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सिविल प्रक्रिया िंहिता, 1908

(सिविल प्रक्रिया िंहिता (िंशोधन) अधधननयम, 2002 एिं सिविल प्रक्रिया िंहिता (िंशोधन) अधधननयम,
1999 द्िारा यथा िंशोधधत)

विषय-िच
ू ी
वििरण
प्रारं सिक
1. िंक्षिप्त नाम, प्रारम्भ और विस्तार
2. पररभाषाएं
3. न्यायालयों की अधीनस्थता
4. व्यािवृ ियां
5. िंहिता का राजस्ि न्यायालयों को लाग-ू िोना
6. धन-िंबध
ं ी अधधकाररता
7. प्रान्तीय लघि
ु ाद न्यायालय
8. प्रेसिडेन्िी लघि
ु ाद न्यायालय

िाग 1
िाधारणत: िादो के विषय में
न्यायालयों की अधधकाररता और पि
ू -व न्याय
9. जब तब क्रक िर्जित न िो, न्यायालय िभी सिविल िादों का विचारण करे गे
10. िाद का रोक हदया जाना
11. पि
ू -ि न्याय
12. अनतररक्त िाद का िजिन
13. विदे शी ननणिय कब ननश्चायक नि ं िोगा
14. विदे शी ननणियों के बारे में उपधारणा

िाद करने का स्थान


15. िि न्यायालय र्जिमें िाद िंर्स्थत क्रकया जाए
16. िादों का ििा िंर्स्थत क्रकया जाना जिां विषय-िस्तु र्स्थत िै
17. विसभन्न न्यायालयों की अधधकाररता के भीतर र्स्थत स्थािर िंपवि के सलए िाद
18. जिां न्यायालयों की अधधकाररता की स्थानीय िीमाएं अननर्श्चत िैं ििां िाद के िंर्स्थत
क्रकए जाने का स्था
19. शर र या जंगमं िम्पवि के प्रनत क्रकए गए दोषों के सलए प्रनतकर के िाद
20. अन्य िाद ििां िंर्स्थत क्रकए जा िकेंगे जिां प्रनतिाद ननिाि करते िैं या िाद-िेतक

पैदा िोता िै
21. अधधकाररता के बारे में आिेप
21क. िाद लाने के स्थान के बारे में आिेप पर डडिी को अपास्त करने के सलए िाद का
िजिन
22. जो िाद एक िे अधधक न्यायालयों में िंर्स्थत क्रकए जा िक ते िैं उनको अन्तररत

1
करने की शर्क्त
23. क्रकि न्यायालय में आिेदन क्रकया जाए
24. अन्तरण और प्रत्यािरण की िाधारण शर्क्त
25. िादों आहद के अन्तरण करने की उच्चतम न्यायालय की शर्क्त

िादों का िंस्स्थत क्रकया जाना


26. िादों का िंर्स्थत क्रकया जाना िमन और प्रकट करण

िमन और प्रकटीकरण
27. प्रनतिाहदयो को िमन
28. जिां प्रनतिाद क्रकिी अन्य राज्य में ननिाि करता िै ििां िमन की तामील
29. विदे शी िमनों की तामील
30. प्रकट करण और उिके िदृश बातो के सलए आदे श करने की शर्क्त
31. िािी को िमन
32. व्यर्क्तिम के सलए शार्स्त

ननणवय ओर डििी
33. ननणिय और डडिी

ब्याज
34. ब्याज

खचे
35. खचे
35क. समथ्या या तंग करने िाले दािों या प्रनतरिाओं के सलए प्रनतकारात्मक खचे
35ख. विलम्ब काररत करने के सलए खचो
िाग 2
ननष्पादन
िाधारण

36. आदे शों को लागू िोना


37. डडिी पाररत करने िाले न्यायालय की पररभाषा

िे न्यायालय स्जनके द्िारा डििीया ननष्पाहदत की जा िकेगी

38. िि न्यायालय र्जिके द्िारा डडिी ननष्पाहदत की जा िकेगी


39. डडिी का अन्तरण

2
40. क्रकिी अन्य राज्य के न्यायालय को डडिी का अन्तरण
41. ननष्पादन कायििाहियों के पररणाम का प्रमाणणत क्रकया जाना
42. अन्तररत डडिी के ननष्पादन में न्यायालय की शर्क्तयां
43. र्जन स्थानों पर इि िंहिता का विस्तार नि ं िै , ििां के सिविल न्यायालयों द्िारा
पाररत डडक्रियों का ननष्पादन
44. र्जन स्थानों पर इि िंहिता का विस्तार नि ं िै , ििां के राजस्ि न्यायालयों द्िारा
पाररत डडक्रियों का ननष्पादन
44क. व्यनतकार राज्यिेत्रों के न्यायालयों द्िारा पाररत डडक्रियों का ननष्पादन
45. भारत के बािर डडक्रियों का ननष्पादन
46. आज्ञापत्र

प्रश्न स्जनका अिधारण डििी का ननष्पादन करने िाला न्यायालय करे गा

47. प्रश्न र्जनका अिधारण डडिी का ननष्पादन करने िाला न्यायालय करे गा

ननष्पादन के सलए िमय की िीमा


48. (ननरसित)

अंतररती और विधधक प्रनतननधध


49. अन्तररती
50. विधधक प्रनतननधध

ननष्पादन-प्रक्रिय
51. ननष्पादन कराने की न्यायालय की शर्क्तयां
52. विधधक प्रनतननधध के विरूद्ध डडिी का प्रितिन
53. पैतक
ृ िम्पवि का दानयत्ि
54. िम्पदा का विभाजन या अंश का पथ
ृ क्करण

धगरफ्तारी और ननरोध
55. धगरफ्तार और ननरोध
56. धन की डडिी के ननष्पादन में र्स्त्रयों की धगरफ्तार या ननरोध का ननषेध
57. जीिन-ननिािि भत्त
58. ननरोध और छोडा जाना
59. रूग्णता के आधार पर छोडा जाना

कुकी
60. िि िम्पवि, जो डडिी के ननष्पादन में कुकि और वििय की जा िकेगी
61. कृवष-उपज को भागत: छूट
62. ननिाि-गि
ृ में िम्पवि का असभग्रिण

3
63. कई न्यायालयों की डडक्रियों के ननष्पादन में कुकि की गई िम्पवि
64. कुकी के पश्चात ् िमपवि के प्राइिेट अन्य िंिामण का शन्
ू य िोना

वििय

65. िेता का िक
66. [* * * * *]
धन के िदाय की डडक्रियों के ननष्पादन में भसू म के वििय के बारे में ननयम बनाने
की राज्य िरकार की शर्क्त

स्थािर िम्पवि के विरुद्ध डिक्रियों का ननष्पादन करने की शस्तत का कलेतटर को


प्रत्यायोजन
68 िे 72 (.................... ननरसित)

आस्स्तयों का वितरण

73. ननष्पादन-वििय के आगमों का डडिीदारों के बीच आनप


ु ानतक रूप िे वितररत क्रकया
जाना

ननष्पादन का प्रनतरोध
74. ननष्पादन का प्रनतरोध

िाग 3
आनष
ु ांधगक कायविािी
कमीशन
75. कमीशन ननकालने की न्यायालय की शर्क्त
76. अन्य न्यायालय को कमीशन
77. अनरु ोध-पत्र
78. विदे शी न्यायालयो द्िारा ननकाले गए कमीशन

िाग 4
विसशष्ट मामलों में िाद
िरकार दारा या उिके विरुद्ध िाद या अपनी पदीय िैसियत में लोक अधधकारी द्िारा या उिके विरुद्ध
िाद
79. िरकार द्िारा या उिके विरुद्ध िाद
80. िच
ू ना
81. धगरफ्तार और स्िीय उपिंजानत िे छूट
82. डडिी का ननष्पादन

4
अन्य दे सशयों द्िारा और विदे शी शािकों, राजदत
ू ों और दत
ू ों द्िारा या उनके विरुद्ध िाद
83. अन्य दे शीय कब िाद ला िकेंगे
84. विदे शी राज्य कब िाद ला िकेंगे
85. विदे शी शािकों की ओर िे असभयोजन या प्रनतरिा करने के सलए िरकार द्िारा
विशेष रूप िे ननयक्
ु त क्रकए गए व्यर्क्त
86. विदे शी राज्यों, राजदत
ू ों और दत
ू ों के विरुद्ध िाद
87. विदे शी शािकों का िादों के पिकारों के रूप में असभधान
87क. “विदे शी राज्य” और ''शािक'' की पररभाषाएं

ित
ू पि
ू व िारतीय राज्यों के शािकों के विरुद्ध िाद
87ख. भत
ू पि
ू ि भारतीय राज्यों के शािकों को धारा 85 और धारा 86 का लागू िोना

अन्तरासििाची
88. अन्तरासभिाची िाद किां िंर्स्थत क्रकया जा िकेगा

िाग 5
विशेष कायविाहियां
माध्यस््म
89. न्यायालय के बािर वििादों का ननपटारा

विशेष मामला
90. न्यायालय की राय के सलए मामले का कथन करने की शर्क्त

लोक न्यि
ू ेन्ि और लोक पर प्रिाि िालने िाले अन्य दोषपण
ू व कायव
91. लोक न्यि
ू ेन्ि और लोक पर प्रभाि डालने िाले अन्य दोषपण
ू ि कायि
92. लोक पत
ू ि कायि
93. प्रेसिडेन्िी नगरों िे बािर मिाधधिक्ता की शर्क्तयों का प्रयोग
िाग 6
अनप
ु रू क कायविाहियां
94. अनप
ु रू क कायििाहियां
95. अपयािप्त आधारों पर धगरफ्तार , कुकी या व्यादे श असभप्राप्त करने के सलए प्रनतकर
िाग 7
अपील
96. मल
ू डडिी की अपील
97. जिााँ प्रारर्म्भक डडिी की अपील नि ं की गई िै ििा अर्न्तम डडिी की अपील
98. जिां कोई अपील दो या अधधक न्यायाधीशों द्िारा िन
ु ी जाए ििां विननश्चय
99. कोई भी डडिी ऐिी गलती या अननयसमतता के कारण र्जििे गण
ु ागण
ु या
अधधकाररता. न तो उलट जाएगी और न उपान्तररत की जाएगी
99क. धारा 47 के अधीन तब तक क्रकिी आदे श को पलटा न जाना या उपांतररत न क्रकया

5
जाना जब तक मामले के विननश्चय पर प्रनतकूल प्रभाि नि ं पडता िै

अपीलीय डिक्रियों की अपीलें


100. द्वितीय अपील
100क.कनतपय मामलों में आगे अपील का न िोना
101. द्वितीय अपील का क्रकिी भी अन्य आधार पर न िोना
102. कनतपय मामलों में आगे द्धधतीय अपील का न िोना
103. तथ्य-वििाद्यकों का अिधारण करने की उच्च न्यायालय की शर्क्त

आदे शों की अपील


104. िे आदे श र्जनकी अपील िोगी
105. अन्य आदे श
106. कौन िे न्यायालय अपील िन
ु ेंगे

अपील िंबध
ं ी िाधारण उपबंध
107. अपील न्यायालय की शर्क्तयां
108. अपील य डडक्रियों और आदे शो की अपीलों में प्रक्रिया

उच्चतम न्यायालय में अपीले


109. उच्चतम न्यायालय में अपीले कब िोंगी
110. िे-111क. (ननरसित)
112. व्यािनृ तयां
िाग 8
ननदे श, पन
ु विवलोकन और पन
ु रीक्षण
113. उच्च न्यायालय को ननदे श
114. पन
ु वििलोकन
115. पन
ु र िण
िाग 9
ऐिे उच्च न्यायालयों के िंबध
ं में विशेष उपबंध जो न्यानयक आयत
ु त के न्यायालय निी िै
116. इि भाग का कुछ उच्च न्यायालयों को ि लागू िोना
117. िंहिता का उच्च न्यायालयों को लागू िोना
118. खचों के असभननश्चय के पि
ू ि डडिी का ननष्पादन
119. अप्राधधकृत व्यर्क्त न्यायालय को िम्बोधधत नि ं कर िकेंगे
120. आरं सभक सिविल अधधकाररता में उच्च न्यायालयों को उपबधों का लागू न िोना

िाग 10
ननयम
121. प्रथम अनि
ु ि
ू ी में के ननयमों का प्रभाि
122. ननयम बनाने की कुछ उच्च न्यायालयों की शर्क्त िे बािर िै ििां प्रक्रिया

6
123. कुछ राज्यों में ननयम-िसमनतयों का गठन
124. िसमनत उच्च न्यायालय की ररपोटि करे गी
125. ननयम बनाने की अन्य उच्च न्यायालयों की शर्क्त
126. ननयमों का अनम
ु ोदन के अधीन िोना
127. ननयमों का प्रकाशन
128. िे विषय र्जनके सलए ननयम उपबन्ध कर िकेंगे
129. अपनी आरं सभक सिविल प्रक्रिया के िंबध
ं में ननयम बनाने की उच्च न्यायालयों की
शर्क्त
130. प्रक्रिया िे सभन्न विषयों के िंबध
ं में ननयम बनाने की अन्य उच्च न्यायालयों की
शर्क्त
131. ननयमों का प्रकाशन

भाग 11
132 कुछ र्स्त्रयों को स्िीय उपिंजानत िे छूट
133 अन्य व्यर्क्तयों को छूट
134 डडिी के ननष्पादन में की जाने िे अन्यथा धगरफ्तार
135 सिविल आदे सशका के अधीन धगरफ्तार िे छूट
135क विधायी ननकायों के िदस्यों को किकिल आदे सशका के अधीन धगरफ्तार क्रकए जाने
और ननरूद्ध क्रकए जाने िे छूट
136 जिां धगरफ्तार क्रकया जाने िाला व्यर्क्त या कुकि की जाने िाल िम्पवि र्जले िे
बािर िै ििां प्रक्रिया
137. अधीनस्थ न्यायालयों की भाषा
138. िाक्ष्य के अंग्रेजी में असभसलणखत क्रकए जाने की अपेिा करने की उच्च न्यायालय
की शर्क्त
139. शपथ-पत्र के सलए शपथ क्रकिके द्िारा हदलाई जाएगी
140. उद्धरण, आहद के मामलों में अिेिर
141. प्रकीणि कायििाहियां
142. आदे शों और िच
ू नाओं का सलणखत िोना
143. डाक मििल

144. प्रत्यास्थापन के सलए आिेदन
145. प्रनतभू के दानयत्ि का प्रितिन
146. प्रनतननधधयों द्िारा या उनके विरुद्ध कायििाहियां
147. ननयोग्यता के अधीन व्यर्क्तयों द्िारा ििमनत या करार
148. िमय का बढ़ाया जाना
148क. केवियट दायर करने का अधधकार
149 न्यायालय-फीि की कमी को परू ा करने की शर्क्त
150. कारबार का अन्तरण
151. न्यायालय की अन्तननिहित शर्क्तयों की व्यािनृ त
152. ननणियों, डडक्रियों या आदे शों का िंशोधन

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153. िंशोधन करने की िाधारण शर्क्त
153क. जिां अपील िंिेपतः खाररज की जाती िै ििा डडिी या आदे श का िंशोधन करने
की शर्क्त
153ख. विचारण के स्थान को खुला न्यायालय िमझा जाना
154. 154 िे 156. (ननरसित)
157. ननरसित अधधननयसमनतयों के अधीन आदे शों का चालू रिना
158. सिविल प्रक्रिया िंहिता और अन्य विकसित अधधननयसमनतयों के प्रनत ननदे श

आदे श
पिली अनि
ु च
ू ी
आदे श 1
िादों के पक्षकार

1. िाहदयों के रूप में कौन िंयोर्जत क्रकए जा िकेंगे


2. पथ
ृ क विचारण का आदे श करने की न्यायालय की शर्क्त
3. प्रनतिाहदयों के रूप में कौन िंयोर्जत क्रकए जा िकेंगे
3क .जिााँ प्रनतिाहदयों के िंयोजन िे उलझन या विचारण में विलंब िो िकता िै ििााँ
पथ
ृ क विचारण का आदे श दे ने की शर्क्त
4. न्यायालय, िंयक्
ु त पिकारों में िे एक या अधधक के पि में या उनके विरुद्ध में
ननणिय दे िकेगा
5. दािाकृत िम्पण
ू ि अनत
ु ोष में प्रनतिाद का हितबद्ध िोना आिश्यक नि ं िै
6. एक ि िंविदा के आधार पर दायी पिकारों का िंयोजन
7. जब िाद को िंदेि िै क्रक क्रकििे प्रनततोष चािा गया िै
8. एक ि हित में िभी व्यर्क्तयों की ओर िे एक व्यर्क्त िाद ला िकेगा या प्रनतरिा
कर िकेगा
8क. न्यायालय की कायििाि में राय दे ने या भाग लेने के सलए क्रकिी व्यर्क्त या
व्यर्क्तयों के ननकाय को अनज्ञ
ु ात करने की शर्क्त
9. कुिंयोजन और अियोजन
10. गलत िाद के नाम िे िाद
न्यायालय पिकारों का नाम काट िकेगा या जोड़ िकेगा
जिां प्रनतिाद जोड़ा जाए ििा िादपत्र का िंशोधन क्रकया जाना
10क. न्यायालय की उिको िम्बोधधत करनेके सलए क्रकिी प्ल डर िे अनरु ोध करने की
शर्क्त
11. िाद का िंचालन
12. कई िाहदयों या प्रनतिाहदयों में िे एक या अन्यों के सलए उपिंजात िोना
13. अिंयोजन या कुिंयोजन के बारे में आिेप

8
आदे श 2
िाद की विरचना

1. िाद की विरचना
2. िाद के अन्तगित िम्पण
ू ि दािा िोगा
दािे के भाग का त्याग
कई अनत
ु ोषों में िे एक के सलए िाद लाने का लोप
3. िाद-िे तक
ु का िंयोजन
4. स्थािर िम्पवि के प्रत्यद्
ु धरण के सलए केिल कुछ दािों का िंयोर्जत क्रकया जाना
5. ननष्पादक, प्रशािक या िाररि द्िारा या उिके विरुद्ध दािे
6. पथ
ृ क विचारण का आदे श दे ने की न्यायालय की शर्क्त
7. कुिंयोजन के बारे में आिेप
आदे श 3
मान्यता प्राप्त असिकताव और प्लीिर

1. उपिंजानतयां, आहद स्िंय या मान्यताप्राप्त असभकताि द्िारा या प्ल डर द्िारा की जा


िकेगी
2. मान्यताप्राप्त असभकताि
3. मान्याप्राप्त असभकताि पर आदे सशका की तामील
4. प्ल डर की ननयर्ु क्त
5. प्ल डर पर आदे सशका की तामील
6. असभकताि तामील का प्रनतग्रिण करे गा
ननयर्ु क्त सलणखत में िोगी और न्यायालय में फाइल की जाएगी

आदे श 4
िादों का िंस्स्थत क्रकया जाना
1. िादपत्र द्िारा िाद प्रारं भ िोगा
2. िादों का रर्जस्टर

आदे श 5
िमनों का ननकाला जाना और उनकी तामील
1. िमन
2. िमनों िे उपाबद्ध िादपत्र की प्रनत
3. न्यायालय प्रनतिाद या िाद को स्िंय उपिंजात िोने के सलए आदे श दे िकेगा
4. क्रकिी भी पिकार को स्ियं उपिंजात िोने के सलए तब तक आदे श नि ं क्रकया
जाएगा जब तक क्रक िि क्रकन्ि ं ननर्श्चत िीमाओं के भीतर ननिािी न िो
5. िमन या तो वििाद्यकों के र्स्थर करण के सलए या अर्न्तम ननपटारे के सलए िोगा
6. प्रनतिाद की उपिंजानत के सलए हदन ननयत क्रकया जाना
7. िमन प्रनतिाद को यि आदे श दे गा क्रक िि िे दस्तािेजें पेश करे र्जन पर िि

9
ननभिर करता िो
8. अंनतम ननपटारे के सलए िमन ननकाले जाने पर प्रनतिाद को यि ननदे श िोगा क्रक
िि अपने िाक्षियों को पेश करे

िमन की तामील
9. न्यायालय द्िारा िमन का पररदान
9क. तामील के सलए िाद को िमन का हदया जाना
10. तामील का ढं ग
11. अनेक प्रनतिाहदयों पर तामील
12. जब िाक्ष्य िो तब िमन की तामील स्िंय प्रनतिाद पर, अन्यथा उिके असभकताि
पर की जाएगी
13. उि असभकताि पर तामील र्जिके द्िारा प्रनतिाद कारबार करता िै
14. स्थािर िम्पवि के िादों में भारिाधक असभकताि पर तामील
15. जिां तामील प्रनतिाद के कुटुम्ब के ियस्क िदस्य पर की जा िकेगी
16. िि व्यर्क्त र्जि पर तामील की गई िै , असभस्िीकृनत िस्तािररत करे गा
17. जब प्रनतिाद तामील का प्रनतग्रिण करने िे इंकार करे या न पाया जाए, तब
प्रक्रिया
18. तामील करने के िमय और र नत का पष्ृ ठांकन
19. तामील करने िाले अधधकार की पर िा
19क. [......... लप्ु त]
20. प्रनतस्थावपत तामील
प्रनतस्थावपत तामील का प्रभाि
जिां तामील प्रनतस्थावपत की गई िों ििां उपिंजानत के सलए िमय का ननयत क्रकया
जाना
20क. [ननरसित]
21. जिां प्रनतिाद क्रकिी अन्य न्यायालय की अधधकाररता के भीतर ननिाि करता िै
ििां िमन की तामील
22. बािर के न्यायालयों द्िारा ननकाले गए िमन की प्रेसिडेंिी नगरों में तामील
23. र्जि न्यायालय को िमन भेजा गया िै उिका कतिव्य
24. कारगार में प्रनतिाद पर तामील
25. ििां तामील, जिां प्रनतिाद भारत के बािर ननिाि करता िै और उिका कोई
असभकताि नि ं िै
26. राजनीनतक असभकताि या न्यायालय की माफित विदे शी राज्यिेत्र में तामील
26क. विदे शों के अधधकाररयों को िमन भेजा जाना
27. सिविल लोक अधधकार पर या रे ल कम्पनी या स्थानीय प्राधधकार के िेिक पर
तामील
28. िैननकों, नौिैननकों या िायि
ु नै नकों पर तामील
29. उि व्यर्क्त का कतिव्य र्जिको िमन तामील के सलए पररदि क्रकया जाए या भेजा
जाए

10
30. िमन के बदले पत्र का प्रनतस्थावपत क्रकया जाना

आदे श 6
असििचन िाधारणत:
1. असभिचन
2. असभिचन में तार्त्िक तथ्यों का, न क्रक िाक्ष्य का, कथन िोगा
3. असभिचन का प्ररूप
4. जिा आिश्यक िो ििां विसशर्ष्टयों का हदया जाना
5. [......... लप्ु त]
6. परु ोभाव्य शति
7. फेरबदल
8. िंविदा का प्रत्याख्यान
9. दस्तािेज के प्रभाि का कथन क्रकया जाना
10. विद्िेष, ज्ञान, आहद
11. िच
ू ना
12. वििक्षित िंविदा या िम्बन्ध
13. विधध की उपधारणाएं
14. असभिचन का िस्तािररत क्रकया जाना
14क. िच
ू ना की तामील के सलए पता
15. असभिचन का ित्यापन
16. असभिचन का काट हदया जाना
17. असभिचनों का िंशोधन
18. आदे श के पश्चात ् िंशोधन करने में अिफल रिना

आदे श 7
िादपत्र

1. िादपत्र में अन्तवििष्ट की जाने िाल विसशर्ष्टयां


2. धन के िादों में
3. जिां िाद की विषयिस्तु स्थािर िम्पवि िै
4. जब िाद प्रनतिाद के रूप में िाद लाता िै
5. प्रनतिाद के हित और दानयत्ि का दसशित क्रकया जाना
6. पररिीमा विधध िे छूट के आधार
7. अनत
ु ोष का विननहदिष्ट रूप िे कथन
8. पथ
ृ क आधारों पर आधाररत अनत
ु ोष
9. िादपत्र ग्रिण करने पर प्रक्रिया
10. िादपत्र का लौटाया जाना
िादपत्र के लौटाए जाने पर प्रक्रिया
10क. जिां िादपत्र उिके लौटाए जाने के पश्चात ् फाइल क्रकया जाना िै ििां न्यायालय में

11
उपिंजानत के सलए तार ख ननयत करने की न्यायालय की शार्क्त
10ख. िमधु चत न्यायालय को िाद अन्तररत करने की अपील न्यायालय की शार्क्त
11. िादपत्र का नामंजूर क्रकया जाना
12. िादपत्र के नामंजूर क्रकए जाने पर प्रक्रिया
13. जिां िादपत्र की नामंजरू िे नए िादपत्र का उपर्स्थत क्रकया जाना प्रिाररत नि ं
िोता

िे दस्तािेजे स्जन पर िादपत्र में ननिवर क्रकया गया िै


14. उन दस्तािेजों की प्रस्तनु त र्जन पर िाद िाद लाता िै या ननभिर करता िै
15. [.................ननरसित]
16. खोई िुई परिाम्य सलखतों के आधार पर िाद
17. दक
ु ान का बि खाता पेश करना
मल
ू प्रविर्ष्ट का धचिाक्रकत क्रकया जाना और लौटाया जाना
18. [.................. ननरसित]

आदे श 8
सलखखत कथन, मज
ु रा और प्रनतदािा
1. सलणखत कथन
1क. प्रनतिाद को िे दस्तािेज पेश करने का कतिव्य र्जन पर उिके द्िाराि अनत
ु ोष का
दािा क्रकया गया िै या ननभिर क्रकया गया िै
2. नए तथ्यों का विशेष रूप िे असभिचन करना िोगा
3. प्रत्याख्यान विननहदि ष्टत: िोगा
4. िाच्छलपण
ू ि प्रत्याख्यान
5. विननहदिष्टत: प्रत्याख्यान
6. मज
ु रा की विसशर्ष्टयां सलणखत कथन में द जाएंगी
मज
ु रा का प्रभाि
6क. प्रनतिाद द्िारा प्रनतदािा
6ख. प्रनतदािे का कथन क्रकया जाना
6ग. प्रनतदािे का अपिजिन
6घ. िाद के बन्द कर हदए जाने का प्रभाि
6ड. प्रनतदािे का उिर दे ने मे िाद द्िारा व्यनतिम
6च. जिां प्रनतदािा िफल िोता िै ििां प्रनतिाद को अनत
ु ोष
6छ. सलणखत कथन िंबध
ं ी ननयमों का लागू िोना
7. पथ
ृ क् आधारों पर आधाररत प्रनतरिा या मज
ु रा
8. प्रनतरिा का नया आधार
8क. [.................ननरसित]
9. पश्चातिती असभिचन
10. जब न्यायालय द्िारा अपेक्षित सलणखत कथन को उपर्स्थत करने में पिकार
अिफल रिता िै तब प्रक्रिया

12
आदे श 9
पक्षकारों की उपिंजानत और उनकी अनप
ु िंजानत का पररणाम

1. पिकार उि हदन उपिंजात िोंगे जो प्रनतिाद के उपजात िोने और उिर दे ने के


सलए िमन में ननयत िै
2. जिााँ िमनों की तामील, खचे दे ने में िाद के अिफल रिने के पररणामस्िरुप नि ं
िुई िै ििां िाद का खाररज क्रकया जाना
3. जिां दोनों में िे कोई भी पिकार उपिंजात नि ं िोता िै ििां िाद का खाररज क्रकया
जाना
4. िाद नया िाद ला िकेगा या न्यायालय िाद को फाइल पर प्रत्यािनतित कर िकेगा
5. जिां िाद , िमन तामील के बबना लौटने के पश्चात ् एक माि तक नए िमन के
सलए आिेदन करने में अिफल रिता िै ििां िाद का खाररज क्रकया जाना
6. जब केिल िाद उपिंजात िोता िै तब प्रक्रिया
जब िमन की तामील िम्यक रूप िे की गई िै
जब िमन की तामील िम्यक रूप िे नि ं की गई िै
जब िमन की तामील तो िुई िो, क्रकन्तु िम्यक् िमय में नि ं िुई िो
7. जिां प्रनतिाद स्थधगत िन
ु िाई के हदन उपिंजात िोता िै और पि ू ि अनप
ु िंजानत के
सलए अच्छा िे तक
ु हदखाता िै ििां प्रक्रिया
8. जिां केिल प्रनतिाद उपजात िोता िै ििां प्रक्रिया
9. व्यनतिम के कारण िाद के विरुद्ध पाररत डडिी नए िाद का िजिन करती िै
10. कई िाहदयों में िे एक या अधधक की गैरिार्जर की दशा में प्रक्रिया
11. कई प्रनतिाहदयों में िे एक या अधधक की गैरिार्जर की दशा में प्रक्रिया
12. स्िंय उपिंजात िोने के सलए आहदष्ट पिकार के पयािप्त िे तक
ु दसशित क्रकए बबना
गैरिार्जर रिने का पररणाम

एकपक्षीय डिक्रियों को अपास्त करना


13. प्रनतिाद के विरुद्ध एकपिीय डडिी को अपास्त करना
14. कोई भी डडिी विरोधी पिकार को िच
ू ना के बबना अपास्ि नि ं की जाएगी

आदे श 10
न्यायालय द्िारा पक्षकारों की परीक्षा
1. यि असभननश्चय करना क्रक असभिचनों में के असभकथन स्िीकृत िैं या प्रत्याख्यान
िैं
1क. िैकर्पपक वििाद िमाधान के क्रकिी एक तर के के सलए विकपप दे ने के सलए
न्यायालय का ननदे श
1ख. िल
ु ि मंच या प्राधधकरण के िमि उपिंजात िोना
1ग. िल
ु ि के प्रयािों के अिफल रिने के पररणाम में न्यायालय के िमि उपिंजात
िोना

13
2. पिकार की या पिकार के िाथी की मौणखक पर िा
3. पर िा का िार सलखा जाएगा
4. उिर दे ने िे प्ल डर के इंकार का या उिर दे ने में उिकी अिमथिता का पररणाम

आदे श 11
प्रकटीकरण और ननरीक्षण
1. पररप्रश्नों द्िारा प्रकट करण कराना
2. विसशष्ट पररप्रश्नों का हदया जाना
3. पररप्रश्नों के खचे
4. पररप्रश्नों का प्ररुप
5. ननगम
6. पररप्रश्नों के िंबध
ं में उिर द्िारा आिेप
7. पररप्रश्नों का अपास्त क्रकया जाना और काट हदया जाना
8. उिर में हदए गए शपथपत्र का फाइल क्रकया जाना
9. उिर में हदए गए शपथपत्र का प्ररूप
10. कोई आपेि नि ं क्रकया जाएगा
11. उिर दे ने के या अनतररक्त उिर दे ने के सलए आदे श
12. दस्तोिेजों के प्रकट करण के सलए आिेदन
13. दस्तािेजों िंबध
ं ी शपथपत्र
14. दस्तािेजों का पेश क्रकया जाना
15. असभिचनों या शपथपत्रों में ननहदि ष्ट दस्तािेजों का ननर िण
16. पेश करने की िच
ू ना
17. जब िच
ू ना द गई िै तब ननर िण के सलए िमय
18. ननर िण के सलए आदे श
19. ित्यावपत प्रनतयां
20. िमयपि
ू ि प्रकट करण
21. प्रकट करण के आदे श का अननप
ु ालन
22. पररप्रश्नों के उिरों का विचारण में उपयोग
23. आदे श अियस्क को लाग-ू िोगा

आदे श 12
स्िीकृनतयााँ
1. मामले की स्िीकृनत की िच
ू ना
2. दस्तािेजों की स्िीकृनत के सलए िच
ू ना
2क. यहद दस्तािेजों की स्िीकृनत के सलए िच
ू ना की तामील के पश्चात ् उनिे इंकार नि ं
क्रकया जाता तो उन्िें स्िीकृत िमझा जाना
3. िच
ू ना का प्ररूप
3क. स्िीकृनत के असभलेखन की न्यायालय की शर्क्त
4. तथ्यों को स्िीकृत करने की िच
ू ना

14
5. स्िीकृनतयों का प्ररूप
6. स्िीकृनतयों पर ननणिय
7. िस्तािर के बारे में शपथ-पत्र
8. दस्तािेजों को पेश करने के सलए िच
ू ना
9. खचे

आदे श 13
दस्तािेजों का पेश क्रकया जाना, पररबद्ध क्रकया जाना और लौटाया जाना
1. मल
ू दस्तािेजों का वििाद्यकों के र्स्थर करण के िमय या उिके पि
ू ि पेश क्रकया
जाना
2. [............................ ननरसित]
3. वििंगत या अग्राह्य दस्तािेजों का नामंजूर क्रकया जाना
4. िाक्ष्य में गि
ृ त दस्तािेजों पर पष्ृ ठाकंन
5. बहियों, लेखाओं और असभलेखों में की गि
ृ त प्रविर्ष्टयों की प्रनतयों पर पष्ृ ठाकंन
6. िाक्ष्य में अग्राह्य िोने के कारण नामंजूर दस्तािेजों पर पष्ृ ठाकंन
7. गि
ृ त दस्तािेजों का असभलेख में िर्म्मसलत क्रकया जाना और नामंजूर -की गई
दस्तािेजों का लौटाया जाना
8. न्यायालय क्रकिी दस्तािेज के पररबद्ध क्रकए जाने का आदे श दे िकेगा
9. गि
ृ त दस्तािेजों का लौटाया जाना
10. न्यायालय स्ियं अपने असभलेखों में िे या अन्य न्यायालयों के असभलेखों में िे
कागज मंगा िकेगा
11. दस्तािेजों िे िंबधं धत उपबंधों का भौनतक पदाथों को लाग-ू िोना

आदे श 14
वििाद्यकों का स्स्थरीकरण और विधध वििाद्यकों के आधार पर या उन वििाद्यकों के आधार पर स्जन पर
रजामंदी िो गई िै िाद का
अिधारण

1. वििाद्यकों की विरचना
2. न्यायालय द्िारा िभी वििाद्यकों पर ननणिय िन
ु ाया जाना
3. िि िामग्री र्जििे वििाद्यकों की विरचना की जा िकेगी
4. न्यायालय वििाद्यकों की विरचना करने के पिले िाक्षियों की या दस्तािेजों की
पर िा कर िकेगा
5. वििाद्यकों का िंशोधन और उन्िें काट दे ने की शर्क्त
6. तथ्य के या विधध के प्रश्न करार द्िारा वििाद्यकों के रूप में कधथत क्रकए जा
िकेंगे
7. यहद न्यायालय का यि िमाधान िो जाता िै क्रक करार का ननष्पादन िद्भािनापि
ू क
ि
िुआ था तो िि ननणिय िन
ु ा िकेगा
आदे श 15

15
प्रथम िन
ु िाई में िाद का ननपटारा
1. जब पिकारों में कोई वििाद नि ं िै
2. जब कई प्रनतिाहदयों में िे क्रकिी का वििाद नि ं िै
3. जब पिकारों में वििाद िै
4. िाक्ष्य पेश करने में अिफलता

आदे श 16
िाक्षक्षयों को िमन करना और उनकी िास्जरी
1. िाक्षियों की िच
ू ी और िाक्षियों को िमन
1क. िमन के बबना िाक्षियों का पेश क्रकया जाना
2. िमन के सलए आिेदन करने पर, िािी के व्यय न्यायालय में जमा कर हदए जाएाँगे
विशेषज्ञ
व्ययों का मापमान
व्ययों का िाक्षियों को िीधे िंदाय क्रकया जाना
3. िािी को व्ययों का ननविदान
4. जिााँ अपयािप्त रासश जमा की गई िै ििााँ प्रक्रिया
एक हदन िे अधधक रोक जाने पर िाक्षियों के व्यय
5. िार्जर के िमय, स्थान और प्रयोजन का िमन में विननहदि ष्ट क्रकया जाना
6. दस्तािेज पेश करने के सलए िमन
7. न्यायालय में उपर्स्थत व्यर्क्तयों को िाक्ष्य दे ने या दस्तािेज पेश करने के सलए
अपेक्षित करने की शर्क्त
7क. तामील के सलए पिकार को िमन का हदया जाना
8. िमन की तामील कैिे िोगी
9. िमन की तामील के सलए िमय
10. जिााँ िािी िमन का अनप
ु ालन करने में अिफल रिता िै ििााँ प्रक्रिया
11. यहद िािी उपिंजात िो जाता िै तााँ कुकी प्रत्याहृत की जा िकेगी
12. यहद िािी उपिंजात िोने में अिफल रिता िै तो प्रक्रिया
13. कुकी करने का ढं ग
14. जो व्यर्क्त िाद में पररव्यर्क्त िै , उन्िें न्यायालय िाक्षियों के रूप में स्िप्रेरणा िे
िमन कर िकेगा
15. उन व्यर्क्तयों का कतिव्य जो िाक्ष्य दे ने या दस्तािेज पेश करने के सलए िमन
क्रकए गए िैं
16. िे कब प्रस्थान कर िकेंगे
17. ननयम 10 िे ननयम 13 तक का लागू िोना
18. जिााँ पकड़ा गया िािी िाक्ष्य नि ं दे िकता या दस्तािेज पेश नि ं कर िकता ििााँ
प्रक्रिया.
19. जब तक क्रक कोई िािी क्रकन्ि ं ननर्श्चत िीमाओं के भीतर का ननिािी न िो िि
स्ियं िार्जर िोने के सलए आहदष्ट नि ं क्रकया जाएगा
20. न्यायालय द्िारा बल
ु ाए जाने पर िाक्ष्य दे ने िे पिकार के इकार का पररणाम

16
21. िाक्षियों विषयक ननयम िमननत पिकारों को लागू िोंगे

आदे श 16क
कारागार में परररुद्ध या ननरुद्ध िाक्षक्षयों की िास्जरी
1. पररभाषाएाँ
2. िाक्ष्य दे ने के सलए बंहदयों को िार्जर करने की अपेिा करने की शर्क्त
3. न्यायालय में व्यय का िंदत क्रकया जाना
4. ननयम 2 के प्रितिन िे कुछ व्यर्क्तयों की अपिर्जित करने की राज्य िरकार की
शर्क्त
5. कारागार के भारिाधक अधधकार का कुछ मामलों में आदे श को कायािर्न्ित न करना
6. बंद का न्यायालय में असभरिा में लाया जाना
7. कारागार में िािी की पर िा के सलए कमीशन ननकालने की शर्क्त

आदे श 17
स्थगन
1. न्यायालय िमय दे िकेगा और िन
ु िाई स्थधगत कर िकेगा स्थगन के खचे
2. यहद पिकार ननयत हदन पर उपिंजात िोने में अिफल रिते िैं तो प्रक्रिया
3. पिकारों में िे क्रकिी पिकार के िाक्ष्य, आहद पेश करने में अिफल रिने पर भी
न्यायालय आगे कायििाि कर िकेगा ।

आदे श 18
िाद की िन
ु िाई और िाक्षक्षयों की परीक्षा
1. आरं भ करने का अधधकार
2. कथन और िाक्ष्य का पेश क्रकया जाना
3. जिााँ कई वििाद्यक िैं ििााँ िाक्ष्य
3क. पिकार का अन्य िाक्षियों िे पिले उपिंजात िोना
4. िाक्ष्य का असभलेखन
5. र्जन मामलों की अपील िो िकती िै उनमें िाक्ष्य कैिा सलखा जाएगा
6. असभिाक्ष्य का भाषांतर कब क्रकया जाएगा
7. धारा 138 के अधीन िाक्ष्य
8. जब िाक्ष्य न्यायाधीश द्िारा स्ियं नि ं सलखा गया िो तब ज्ञापन
9. िाक्ष्य अंग्रेजी में कब सलखा जा िकेगा
10. कोई विसशष्ट प्रश्न और उिर सलखा जा िकेगा
11. िे प्रश्न र्जन पर आिेप क्रकया गया िै और जो न्यायालय द्िारा अनज्ञ
ु ात क्रकए गए
िैं
12. िाक्षियों की भािभंगी के बारे में हटप्पणणयााँ
13. र्जन मामलों में अपील नि ं िो िकती िै उन मामलों में िाक्ष्य का ज्ञापन
14. [............ ननरसित
15. क्रकिी अन्य न्यायाधीश के िामने सलए गए िाक्ष्य का उपयोग करने की शर्क्त

17
16. िािी की तरु ं त पर िा करने की शर्क्त
17. न्यायालय िािी को पन
ु : बल
ु ा िकेगा और उिकीपर िा कर िकेगा
17क. ननरसित
18. ननर िण करने की न्यायालय की शर्क्त
19. कथन को कमीशन द्िारा असभसलणखत कराने की शर्क्त

आदे श 19
शपथपत्र
1. क्रकिी बात के शपथपत्र द्िारा िाबबत क्रकए जाने के सलए आदे श दे ने की शर्क्त 2.
असभिािी की िार्जर प्रनतपर िा के सलए कराने का आदे श दे ने की शर्क्त
3. िे विषय र्जन तक शपथपत्र िीसमत िोंगे

आदे श 20
ननणवय और डििी
1. ननणिय कब िन
ु ाया जाएगा
2. न्यायाधीश के पि
ू ि
ि ती द्िारा सलखे गए ननणिय को िन
ु ाने की शर्क्त
3. ननणिय िस्तािररत क्रकया जाएगा
4. लघि
ु ाद न्यायालयों के ननणिय
अन्य न्यायालयों के ननणिय
5. न्यायालय िर एक वििाद्यक पर अपने विननश्चय का कथन करे गा
5क. र्जन मामलों में पिकारों का प्रनतननधधत्ि प्ल डरों द्िारा न क्रकया गया िो उनमें
न्यायालय द्िारा पिकारों को इि बात की इविला दे ना क्रक अपील किां की जा
िकेगी
6. डडिी की अंतििस्तु
6क. डडिी तैयार करना
6ख. ननणियों की प्रनतयााँ कब उपलब्ध करिाई जाएंगी
7. डडिी की की तार ख
8. जिााँ न्यायाधीश ने डडिी पर िस्तािर करने िे पि
ू ि अपना पद ररक्त कर हदया िै
ििााँ प्रक्रिया
9. स्थािर िंपवि के प्रयद्
ु धरण के सलए डडिी
10. जंगम िंपवि के पररदान के सलए डडिी
11. डडिी क्रकस्तों द्िारा िंदाय के सलए ननदे श दे िकेगी
डडिी के पश्चात ् क्रकस्तों मे िंदाय का आदे श
12. कब्जा और अंतःकाल न लाभों के सलए डडिी
12क. स्थािर िंपवि के वििय या पट्टे के िंविदा विननहदि ष्ट पालन के सलए डडिी
13. प्रशािन-िाद में डडिी
14 शफ
ु ा के िाद में डडिी
15 भागीदार के विघटन के सलए िाद में डडिी
16 मासलक और असभकताि के बीच लेखा के सलए लाए गए िाद में डडिी

18
17 लेखाओं के िंबध
ं में विशेष ननदे श
18 िंपवि के विभाजन के सलए या उनमें के अंश पर पथ
ृ क् कब्जे के सलए िाद में डडिी
19 जब मज
ु रा या प्रतीपदािा अनज्ञ
ु ात क्रकया जाए तब डडिी
मज
ु रा या प्रतीपदािा िंबध
ं ी डडिी की अपील
20 ननणिय और डडिी की प्रमाणणत प्रनतयों का हदया जाना

आदे श 20क
खचे
1. कुछ मदों के बारे में उपबंध
2. उच्च न्यायालय द्िारा बनाए गए ननयमों के अनि
ु ार खचों का अधधननणीत क्रकया
जाना

आदे श 21
डिक्रियों और आदे शों का ननष्पादन
डििी के अधीन िंदाय
1. डडिी के अधीन धन के िंदाय की र नतयां
2. डडिीदार को न्यायालय के बािर िंदाय

डिक्रियााँ ननष्पादन करने िाले न्यायालय


3. एक िे अधधक अधधकाररता में र्स्थत भसू म
4. लघि
ु ाद न्यायालय को अंतरण
5. अंतरण की र नत.
6. जिााँ न्यायालय यि चािता िै क्रक उिकी अपनी डडिी क्रकिी अन्य न्यायालय द्िारा
ननष्पाहदत की जाए ििााँ प्रक्रिया
7. डडिी आहद की प्रनतयााँ प्राप्त करने िाला न्यायालय उन्िें िबत
ू के बबना फाइल कर
लेगा
8. डडिी या आदे श का उि न्यायालय द्िारा ननष्पादन र्जि िि भेजा गया िै
9. अन्य न्यायालय द्िारा अंतररत डडिी का उच्च न्यायालय द्िारा ननष्पादन

ननष्पादन के सलए आिेदन


10. ननष्पादन के सलए आिेदन
11. मौणखक आिेदन
सलणखत आिेदन
11क. धगरफ्तार के सलए आिेदन में आधारों का कधथत िोना
12. ऐिी जंगम िंपवि की कुकी के सलए आिेदन जो ननणीत-ऋणी के कब्जे में नि ं िै
13. स्थािर िंपवि की कुकी के आिेदन में कुछ विसशर्ष्टयों का अंतवििष्ट िोना
14. कलेक्टर के रर्जस्टर में िे प्रमाणणत उद्धरणों की कुछ दशाओं में अपेक्षित करने
की शर्क्त
15. िंयक्
ु त डडिीदार द्िारा ननष्पादन के सलए आिेदन

19
16. डडिी के अंतररती द्िारा ननष्पादन के सलए आिेदन
17. डडिी के ननष्पादन के सलए आिेदन प्राप्त िोने पर प्रक्रिया
18. प्रनत-डडक्रियों की दशा में ननष्पादन
19. एक ि डडिी के अधीन प्रनतदािों की दशा में ननष्पादन
20. बंधक-िादों में प्रनत-डडक्रियााँ और प्रनतदािे
21. एक िाथ ननष्पादन
22. कुछ दशाओं में ननष्पादन के विरुद्ध िे तक
ु दसशित करने की िच
ू ना
22क. ू ि क्रकंतु वििय की उदघोषणा की तामील के पश्चात ् ननणीत- ऋणी की
वििय िे पि
मत्ृ यु पर वििय का अपास्त न क्रकया जाना
23. िच
ू ना के ननकाले जाने के पश्चात ् प्रक्रिया

ननष्पादन के सलए आदे सशका


24. ननष्पादन के सलए आदे सशका
25. आदे सशका पर पष्ृ ठांकन

ननष्पादन का रोका जाना


26. न्यायालय ननष्पादन को कब रोक िकेगा
ननणीत-ऋणी िे प्रनतभनू त अपेक्षित करने या उि पर शतें अधधरोवपत करने की शक्त
27. उन्मोधचत ननणीत-ऋणी का दानयत्ि
28. डडिी पाररत करने िाले न्यायालय का या अपील न्यायालय का आदे श उि न्यायालय
के सलए आबद्धकर िोगा र्जििे आिेदन क्रकया गया िै
29. डडिीदार और ननणीत-ऋणी के बीच िाद लंबबत रिने तक ननष्पादन का रोका जाना

ननष्पादन की रीनत
30. धन के िंदाय की डडिी
31. विननहदिष्ट जंगम िंपवि के सलए डडिी
32. विननहदिष्ट पालन के सलए दाम्पत्य अधधकारों के प्रत्यास्थापन के सलए या व्यादे श के
सलए डडिी
33. दाम्पत्य अधधकारों के प्रत्यास्थापन की डडक्रियों का ननष्पादन करने में न्यायालय का
वििेकाधधकार
34. दस्तािेज के ननष्पादन या परिाम्य सलखत के पष्ृ ठाकन के सलए डडिी
35. स्थािर िंपवि के सलए डडिी
36. जब स्थािर िंपवि असभधार के अधधभोग में िै तब ऐिी िंपवि के पररदान के सलए
डडिी

धगरफ्तारी और सिविल कारागार में ननरोध


37. कारागार में ननरुद्ध क्रकए जाने के विरुद्ध िे तक
ु दसशित करने के सलए ननणीत- ऋणी
को अनज्ञ
ु ा दे ने की िैिेविक शर्क्त
38. धगरफतार के िारण्ट में ननणीत-ऋणी के सलए लाए जाने के सलए ननदे श िोगा

20
39. जीिन-ननिािि भिा
40. िच
ू ना के आज्ञानि
ु तिन में या धगरफतार के पश्चात ् ननणीत-ऋणी के उपिंजात िोने
पर कायििाहियााँ

िंपवि की कुकी
41. ननणीत-ऋणी की अपनी िंपवि के बारे में उिकी पर िाn
42. भाटक या अंतःकाल न लाभों या तत्पश्चात ् अन्य बातों के सलए, र्जिकी रकम िाद
में अिधाररत िोनी िै , डडिी की दशा में कुकी
43. ननणीत-ऋणी के कब्जे में की ऐिी जंगम िंपवि की कुकी जो कृवष उपज िे सभन्न
िै
43क. जंगम िंपवि की असभरिा
44. कृवष उपज की कुकी
45. कुकि की गई कृवष उपज के बारे में उपबंध
46. ऐिे ऋण, अंश या अन्य िंपवि की कुकी जो ननणीत-ऋणी के कब्जे में नि ं
46क. गारननशी को िच
ू ना
46ख. गारननशी के विरुद्ध आदे श
46ग. वििादग्रस्त प्रश्नों का विचारण
46घ. जिााँ ऋण अन्य व्यर्क्त का िो ििााँ प्रक्रिया
46ड. अन्य व्यर्क्त के बारे में आदे श
46च. गारननशों द्िारा क्रकया गया िंदाय विधधमान्य उन्मोचन िोगा
46छ. खचि
46ज. अपीलें
46झ. परिाम्य सलखतों को लागू िोना
47. जंगम िंपवि में अंश की कुकी
48. िरकार या रे ल कंपनी या स्थानीय प्राधधकार के िेिक के िेतन या भिों की कुकी
48क. प्राईिेट कमिचाररयों के िेतन या भतों की कुकी
49. भागीदार की िंपवि की कुकी
50. फमि के विरुद्ध डडिी का ननष्पादन
51. परिाम्य सलखतों की कुकी
52. न्यायालय या लोक अधधकार की असभरिा में की िंपवि की कुकी
53. डडक्रियों की कुकी
54. स्थािर िंपवि की कुकी
55. डडिी की तर्ु ष्ट पर कुकी का उठाया जाना
56. डडिी के अधीन िकदार पिकार को सिक्के या करें िी नोटों का िंदाय क्रकए जाने का
आदे श
57. कुकी का पयिििान

दािों और आक्षेपों का न्यायननणवयन


58. कुकि की गई िंपवि पर दािों का और ऐिी िंपवि की कुकी के बारे में आिेपों का

21
न्याय ननणियन
59. वििय को रोकना
60 िे 63 [ ........ ननरसित]
वििय िाधारणत:
64. कुकि की गई िंपवि के वििय क्रकए जाने और उिके आगम िकदार व्यर्क्त को हदए
जाने के सलए आदे श करने की शाक्त
65. वििय क्रकिके द्िारा िंचासलत क्रकए जाएाँ और कैिे हदए जाएाँ
66. लोक नीलाम द्िारा क्रकए जाने िाले विियों की उद्घोषणा
67. उद्घोषणा करने की र नत
68. वििय का िमय
69. वििय का स्थगन या रोका जाना
70. [.......... ननरसित]
71. व्यनतिम करने िाला िेता पन ु विििय में िुई िानन के सलए उिरदायी िोगा
72. अनज्ञ
ु ा के बबना डडिीदार िंपवि के सलए न बोल लगाएगा और न उिका िय
करे गा जिां डडिीदार िय करता िै ििां डडिी की रकम िंदाय मानी जा िकेगी
72क. बंधकदार द्िारा न्यायालय की इजाजत के बबना वििय में बोल का न लगाया जाना
73. अधधकाररयों द्िारा बोल लगाने या िय करने पर ननबिन्धन

जंगम िंपवि का वििय


74. कृवष उपज का वििय
75. उगती फिलों के िंबध
ं में विशेष उपबं
76. परकाम्य सलखतें और ननगमों के अंश
77. लोक नीलाम द्िारा वििय
78. अननयसमतता वििय को दवू षत नि ं करें गी क्रकं तु कोई भी व्यर्क्त र्जिे िनत िुई िै
िाद ला िकेगा ।
79. जंगम िंपवि, ऋणों और अंशों का पररदान
80. परिाम्य सलखतों और अंशों का अंतरण
81. अन्य िंपवि की दशा में ननहित करने िाला आदे श

स्थािर िंपवि का वििय


82. कौन िे न्यायालय विियों के सलए आदे श कर िकेंगे
83. वििय का इिसलए मप
ु तिी क्रकया जाना क्रक ननणीत-ऋणी डडिी की रकम जुटा िके
84. िेता द्िारा ननिेप और उिके व्यनतिम पर पन
ु विििय
85. िय धन के परू े िंदाय के सलए िमय
86. िंदाय में व्यनतिम िोने पर प्रक्रिया
87. पन
ु विििय पर अधधिच
ू ना
88. िि-अंशधार की बोल को अधधमान प्राप्त िोगा
89. ननिेप करने पर वििय को अपास्त कराने के सलए आिेदन
90. वििय को अननयसमतता या कपट के आधार पर अपास्त कराने के सलए आिेदन
91. वििय का इि आधार पर अपास्त कराने के सलए िेता द्िारा आिेदन क्रक उिमें
ननणीत-ऋणी का कोई वििय हित नि ं था

22
92. वििय कब आत्यंनतक िो जाएगा या अपास्त कर हदया जाएगा
93. कुछ दशाओं में िय धन की िापिी
94. िेता को प्रमाणपत्र
95. ननणीत-ऋणी के अधधभोग में की िंपवि का पररदान
96. असभधार के अधधभोग में की िंपवि का पररदान

डििीदार या िेता को कब्जा पररदि क्रकए जाने में प्रनतरोध

97. स्थािर िंपवि पर कब्जा करने में प्रनतरोध या बाधा


98. न्यायननणियन के पश्चात ् आदे श
99. डडिीदार या िेता द्िारा बेकब्जा क्रकया जाना
100. बेकब्जा क्रकए जाने का पररिाद करने िाले आिेदन पर पाररत क्रकया जाने िाला
आदे श
101. अिधाररत क्रकए जाने िाले प्रश्न
102. िादकाल न अंतररती को इन ननयमों का लागू न िोना
103. आदे शों को डडिी माना जाना
104. ननयम 101 या ननयम 103 के अधीन आदे श लंबबत िाद के पररणाम के अधीन
िोगा
105. आिेदन की िन
ु िाई
106. एकपिीय रूप िे पाररत आदे शों, आहद का अपास्त क्रकया जाना

आदे श 22
पक्षकारों की मत्ृ य.ु उनका वििाि और हदिाला

1. यहद िाद लाने का अधधकार बचा रिता िै तो पिकार की मत्ृ यु िे उिका उपशमन
नि ं िो जाता
2. जिााँ कई िाहदयों या प्रनतिाहदयों में िे एक की मत्ृ यु िो जाती िै --और िाद लाने का
अधधकार बचा रिता िै ििााँ प्रक्रिया
3. कई िाहदयों में िे एक या एकमात्र िाद की मत्ृ यु की दशा में प्रक्रिया
4. कई प्रनतिाहदयों में िे एक या एकमात्र प्रनतिाद की मत्ृ यु की दशा में प्रक्रिया
4क. विधधक प्रनतननधध न िोने की दशा में प्रक्रिया
5. विधधक प्रनतननधध के बारे में प्रश्न का अिधारण
6. िन
ु िाई के पश्चात ् मत्ृ यु िो जाने िे उपशमन न िोना
7. स्त्री पिकार के वििाि के कारण िाद का उपशमन न िोना
8. िाद का हदिाला कब िाद का िजिन कर दे ता िै .जिााँ िमनद
ु े सशती िाद चालू रखने
या प्रनतभनू त दे ने में अिफल..ििााँ प्रक्रिया
9. उपशमन या खाररज िोने का प्रभाि
10. िाद में अंनतम आदे श िोने के पि
ू ि िमनद
ु े शन की दशा में प्रक्रिया
10क. न्यायालय को क्रकिी पिकार की मत्ृ यु िंिधू चत करने के सलए प्ल डर का कतिव्य

23
11. आदे श का अपीलों को लागू िोना
12. आदे श का कायििाहियों को लागू िोना

आदे श 23
िादों का प्रत्यािरण और िमायोजन
1. िाद का प्रत्यािरण या दािे के भाग का पररत्याग
1क. प्रनतिाहदयों का िाहदयों के रूप में पिांतरण करने की अनज्ञ
ु ा कब द जाएगी
2 पररिीमा विधध पर पिले िाद का प्रभाि नि ं पडेगा
3. िाद में िमझौता
3क. िाद का िजिन
3ख. प्रनतननधध िाद में कोई करार या िमझौता न्यायालय की इजाजत के बबना प्रविष्ट
न क्रकया जाना
4. डडक्रियों के ननष्पादन की कायििाहियों पर प्रभाि न पड़ना

आदे श 24
न्यायालय में जमा करना
1. दािे की तर्ु ष्ट में प्रनतिाद द्िारा रकम का ननिेप
2. ननिेप की िच
ू ना
3. ननिेप पर ब्याज िच
ू ना के पश्चात ् िाद को अनज्ञ
ु ात नि ं क्रकया जाएगा
4. जिााँ िाद ननिेप को भागत: तर्ु ष्ट के तौर पर प्रनतगि
ृ त करता िै ििााँ प्रक्रिया
जिााँ िि उिे पण
ू ि तर्ु ष्ट के तौर पर प्रनतगि
ृ त करता िै ििााँ प्रक्रिया

आदे श 25
खचो के सलए प्रनतिनू त
1. िाद िे खचों के सलए प्रनतभनू त कब अपेक्षित की जा िकती िै
2. प्रनतभनू त दे ने में अिफल रिने का प्रभाि

आदे श 26
कमीशन
िाक्षक्षयों की परीक्षा करने के सलए कमीशन
1. िे मामले र्जनमें न्यायालय िािी की पर िा करने के सलए कमीशन ननकाल िकेगा
2. कमीशन के सलए आदे श
3. जिााँ िािी न्यायालय की अधधकाररता के भीतर ननिाि करता िै
4. िे व्यर्क्त र्जनकी पर िा करने के सलए कमीशन ननकाला जा िकेगा
4क. न्यायालय की स्थानीय िीमाओं के भीतर के ननिाि करने िाले क्रकिी व्यर्क्त की
पर िा के सलए कमीशन
5. जो िािी भारत के भीतर नि ं िै उिकी पर िा करने के सलए कमीशन या अनरु ोध
पत्र
6. कमीशन के अनि
ु रण में न्यायालय िािी की पर िा करे गा

24
7. िाक्षियों के असभिाक्ष्य के िाथ कमीशन को लौटाया जाना
8. असभिाक्ष्य कब िाक्ष्य में ग्रिण क्रकया जा िकेगा

स्थानीय अन्िेषणों के सलए कमीशन


9. स्थानीय अन्िेषण करने के सलए कमीशन
10. कसमश्नर के सलए प्रक्रिया
ररपोटि और असभिाक्ष्य िाद में िाक्ष्य िोंगे कसमश्नर की िैयर्क्तक रुप िे पर िा की
जा िकेगी

िैज्ञाननक अन्िेषण, अनि


ु धचिीय कायव करने और जंगम िम्पवि के वििय के सलए कमीशन
10क. िैज्ञाननक अन्िेषण के सलए कमीशन
10ख. अनि
ु धचिीय कायि करने के सलए कमीशन
10ग. जंगम िम्पवि के वििय के सलए कमीशन

लेखाओं की परीक्षा करने के सलए कमीशन


11. लेखाओं की पर िा या िमायोजन करने के सलए कमीशनn
12. न्यायालय कसमश्नर को आिश्यक अनद
ु े श दे गा कायििाहियााँ और ररपोटि िाक्ष्य िोगी
न्यायालय अनतररक्त जााँच ननहदष्ट कर िकेगा

वििाजन करने के सलए कमीशन


13. स्थािर िम्पवि का विभाजन करने के सलए कमीशन
14. कसमश्नर की प्रक्रिया

िाधारण उपबंध
15. कमीशन के व्यय न्यायालय में जमा क्रकए जाएाँगे
16. कसमश्नरों की शर्क्तयों
16क. िे प्रश्न र्जन पर कसमश्नर के िमि आिेप क्रकया जाता िै
17. कसमश्नर के िमि िाक्षियों की िार्जर और उनकी पर िा
18. पिकारों का कसमश्नर के िमि उपिंजात िोना
18क. ननष्पादन कायििाहियों को आदे श का लागू िोना
18ख. न्यायालय द्िारा कमीशन के लौटाए जाने के सलए िमय ननयत क्रकया जाना

विदे शी अधधकरणों की प्रेरणा पर ननकाले गए कमीशन


19. िे मामले र्जनमें उच्च न्यायालय िािी की पर िा करने के सलए कमीशन ननकाल
िकेगा
20. कमीशन ननकलिाने के सलए आिेदन
21. कमीशन क्रकिके नाम ननकाला जा िकेगा
22. कमीशन का ननकाला जाना, ननष्पादन और लौटाया जाना और विदे शी न्यायालय को
िाक्ष्य का पारे षण

25
िरकार द्िारा या उिके विरुद्ध या अपनी पदीय िैसियत में लोक अधधकाररयों द्िारा या उनके विरुद्ध िाद
1. िरकार द्िारा या उिके विरुद्ध िाद
2. िरकार के सलए कायि करने के सलए प्राधधकृत व्यर्क्त
3. िरकार द्िारा या उिके विरुद्ध िादों में िादपत्र
4. आदे सशका प्राप्त करने के सलए िरकार का असभकताि
5. िरकार की ओर िे उपिंजानत के सलए हदन ननयत क्रकया जाना
5क. लोक अधधकार के विरुद्ध िाद में िरकार को पिकार के रूप में िंयोर्जत क्रकया
जाना
5ख. िरकार या लोक अधधकार के विरुद्ध िादों में ननपटारा कराने में ििायता करने के
सलए न्यायालय का कतिव्य
6. िरकार के विरुद्ध िाद िे िंबध
ं रखने िाले प्रश्नों का उिर दे ने योग्य व्यर्क्त की
िार्जर
7. िमय का इिसलए बढ़ाया जाना क्रक लोक अधधकार िरकार िे ननदे श करके पछ

िक
8. लोक अधधकार के विरुद्ध िादों में प्रक्रिया
8क. कुछ मामलों में िरकार िे या लोक अधधकार िे कोई प्रनतभनू त अपेक्षित
न की जाएगी
8ख. ''िरकार'' और ''िरकार प्ल डर'' की पररभाषाएाँ

आदे श 27क
िे िाद स्जनमें िंविधान के ननिवचन या क्रकिी कानन
ू ी सलखत की विधधमान्यता िंबध
ं ी कोई िारित
ू विधध-
प्रश्न अंतर्ग्वस्त िों
1. मिान्यायिाद या मिाधधिक्ता को िच
ू ना
1क. उन िादों में प्रक्रिया र्जनमें क्रकिी कानन
ू ी सलखत की विधधमान्यता अंतग्रिस्त िै
2. न्यायालय िरकार को पिकार के रूप में जोड़ िकेगा
2क. क्रकिी कानन
ू ी सलखत की विधधमान्यता िंबध
ं ी िाद में िरकार या अन्य प्राधधकार
को प्रनतिाद के रुप में जोड़ने की न्यायालय की शर्क्त
3. खचे
4. इि आदे श का अपीलों को लागू िोना

आदे श 28
िैननक या नौिैननक या िायि
ु नै नक द्िारा या उनके विरुद्ध िाद

1. ऑक्रफिर, िैननक, नौिैननक या िायि


ु नै नक, जो छुट्ट असभप्राप्त नि ं कर िकते
अपनी ओर िे िाद लाने या प्रनतरिा करने के सलए क्रकिी व्यर्क्त को प्राधधकृत कर
िकेंगे
2. इि प्रकार प्राधधकृत व्यर्क्त स्ियं कायि कर िकेगा या प्ल डर ननयक्
ु त कर िकेगा
3. इि प्रकार प्राधधकृत व्यर्क्त पर या उिके प्ल डर पर की गई तामील उधचत तामील

26
िोगी

आदे श 29
ननगमों द्िारा या उनके विरुद्ध िाद
1. असभिचन पर िस्तािर क्रकया जाना और उिका ित्यापन
2. ननगम पर तामील
3. ननगम के अधधकार की स्िीय िार्जर अपेक्षित करने की शर्क्त

आदे श 30
फमों के या अपने नामों िे सिन्न नामों में कारबार चलाने िाले व्यस्ततयों द्िारा या उनके विरुद्ध िाद
1. भागीदारों का फमि के नाम िे िाद लाना
2. भागीदारों के नामों का प्रकट क्रकया जाना
3. तामील
4. भागीदार की मत्ृ यु पर िाद का अधधकार
5. िच
ू ना की तामील क्रकि िैसियत में की जाएगी
6. भागीदारों की उपिंजानत
7. भागीदारों द्िारा ि उपिंजानत िोगी अन्यथा नि ं
8. अभ्यापनतपि
ू क
ि उपिंजानत
9. ििभागीदारों के बीच में िाद
10. स्िंय अपने नाम िे सभन्न नाम िे कारबार चलाने िाले व्यर्क्त के विरुद्ध िाद

आदे श 31
न्यासियों, ननष्पादकों और प्रशािकों द्िारा या उनके विरुद्ध िाद
1. न्यासियों, आहद में ननहित िम्पवि िे िम्पक्
ृ त िादों में हिताधधकाररयों का
प्रनतननधधत्ि
2. न्यासियों, ननष्पादकों और प्रशािकों का िंयोजन
3. वििाहिता ननष्पाहदका का पनत िंयोर्जत नि ं िोगा

27
आदे श 32
अियस्कों और विकृतधचि व्यस्ततयों द्िारा या उनके विरुद्ध िाद

1. अियस्क िाद-समत्र द्िारा िाद लाएगा


2. जिााँ िाद-समत्र के बबना िाद िंर्स्थत क्रकया जाए ििााँ िादपत्र फाइल िे ननकाल हदया
जाएगा
2क. िाद-समत्र द्िारा प्रनतभनू त का तब हदया जाना जब इि प्रकार आहदष्ट क्रकया जाए
3. अियस्क प्रनतिाद के सलए न्यायालय द्िारा िादाथि िंरिक की ननयर्ु क्त
3क. अियस्क के विरुद्ध डडिी का तब तक अपास्त न क्रकया जाना जब तक क्रक उिके
हितों पर प्रनतकूल प्रभाि न पड़ा िो
4. कौन िाद-समत्र की िै सियत में कायि करे गा या िादाथि िंरिक ननयक्
ु त क्रकया जा
िकेगा
5. िाद-समत्र या िादाथि िंरिक द्िारा अियस्क का प्रनतननधधत्ि
6. अियस्क की ओर िे िाद-समत्र या िादाथि िंरिक को डडिी के अधीन िम्पवि की
प्रार्प्त
7. िाद-समत्र या िादाथि िंरिक द्िारा करार या िमझौता
8. िाद-समत्र की ननिनृ त
9. िाद-समत्र का िटाया जाना
10. िाद-समत्र के िटाए जाने, आहद पर कायििाहियों का रोका जाना
11. िादाथि िंरिक की ननिनृ त, िटाया जाना या मत्ृ यु
12. अियस्क िाद या आिेदक द्िारा ियस्क िोने पर अनि
ु रण की जाने िाल चयाि
13. जिााँ अियस्क िििाद , ियस्या िोने पर िाद का ननराकरण करने की िांछा करता
िै
14. अयर्ु क्तयक्
ु त या अनधु चत िाद
15. ननयम 1 िे ननयम 14 तक का (र्जनमें ननयम 2 (क) िर्म्मसलत नि ं िै )
विकृतधचि िाले व्यर्क्तयों को लागि
ू ोगा
16. व्यािवृ ियााँ

आदे श 32क
कुटुम्ब िे िंबध
ं रखने िाले विषयों िे िंबधं धत िाद

1. आदे श का लाग-ू िोना


2. कायििाहियों का बद कमरे में क्रकया जाना
3. ननपटारे के सलए प्रत्यन करने का न्यायालय का कतिव्य
4. कपयाण विशेषज्ञ िे ििायता
5. तथ्यों की जााँच करने का कतिव्य
6. ''कुटुम्ब'' का अथि

28
आदे श 33
ननधवन व्यस्ततयों द्िारा िाद
1. ननधिन व्यार्क्त द्िारा िाद िंर्स्थत क्रकए जा िकेंगे
1क. ननधिन व्यर्क्तयों के िाधनों की जााँच
2. आिेदन की विषय-िस्तु
3. आिेदन का उपर-थापन
4. आिेदक की पर िा
यहद आिेदन असभकताि द्िारा उपस्थावपत,क्रकया जाता िै तो न्यायालय आदे श दे
िकेगा क्रक आिेदक की पर िा कमीशन द्िारा की जाए
5. आिेदन का नामंजरू क्रकया जाना
6. आिेदक की ननधिनता के बारे में िाक्ष्य लेने के हदन की िच
ू ना
7. िन
ु िाई में प्रक्रिया
8. यहद आिेदन ग्रिण कर सलया जाए तो प्रक्रिया
9. ननधिन व्यर्क्त के रूप में िाद लाने की अनज्ञ
ु ा का प्रत्यािरण
9क. र्जि ननधिन व्यर्क्त का प्रनतननधधत्ि न िो उिके सलए न्यायालय द्िारा प्ल डर
ननयत क्रकया जाना
10. जिााँ ननधिन व्यर्क्त िफल िोता िै ििााँ खचे
11. प्रक्रिया जिााँ ननधिन व्यर्क्त अिफल िो जाता िै
11क. ननधिन व्यर्क्त के िाद के उपशमन पर प्रक्रिया
12. राज्य िरकार न्यायालय - फीि के िंदाय के सलए आिेदन कर िकेगी
13. राज्य िरकार का प िकार िमझा जाना
14. न्यायालय फीि रकम की ििल

15. ननधिन व्यर्क्त के रूप में िाद लाने के सलए आिेदन को अनज्ञ
ु ा दे ने िे इंकार के
कारण िैिी ि प्रकृनत के पश्चातिती
् आिेदन का िजिन
15क. न्यायालय-फीि के िंदाय के सलए िमय का हदया जाना
16. खचे
17. ननधिन व्यर्क्त द्िारा प्रनतिाद
18. ननधिन व्यर्क्तयों के सलए मप
ु त विधधक िेिाओं की व्यिस्था करने की केंद्र य
िरकार की शर्क्त

आदे श 34
स्थािर िम्पवि के बंधकों के िंबध
ं में िाद
1. परु ोबंध, वििय और मोचन के िादों के पिकार
2. परु ोबंध िाद में प्रारं सभक डडिी
3. परु ोबंध िाद में अंनतम डडिी
4. वििय के िाद में प्रारं सभक डडिी
परु ोबंध िाद के वििय की डडिी पाररत करने की शक्रकत
5. वििय के िाद में अंनतम डडिी
6. वििय के िाद में बंधक पर शोध्य रकम की ििल

29
7. मोचन िाद में प्रारं सभक डडिी
8. मोचन के िाद में अंनतम डडिी
8क. मोचन के िाद में बंधक पर शोध्य बाकी रकम की ििल

9. डडिी जिााँ कुछ भी शोध्य नि ं पाया जाए या जिााँ बंधकदार को अनतिंदाय कर
हदया गया िो
10. बंधकदार के खचे जो डडिी के पश्चात िुए िैं
10क. अंतःकाल न लाभ का िंदाय करने के सलए बंधकदार को ननदे श दे ने की न्यायालय
की शर्क्त
11. ब्याज का िंदाय
12. पवू ििक बंधक के अधीन िम्पवि का वििय
13. आगमों का उपयोजन
14. बंधक िम्पवि का वििय कराने के सलए आिश्यक वििय का िाद
15. िक विलेखों के ननिेप द्िारा बंधक और भार

आदे श 35
अंतरासििाची

1. अंतरासभिाची िाद में िादपत्र


2. दािाकृत चीज का न्यायालय में जमा क्रकया जाना
3. प्रक्रिया जिााँ प्रनतिाद िाद पर िाद चला रिा िै
4. पिल िन
ु िाई में प्रक्रिया
5. असभकताि और असभधार अंतरासभिाची िाद िंर्स्थत नि ं कर िकेगा
6. िाद के खचों का भार

आदे श 36
विशेष मामला

1. न्यायालय की राय के सलए मामले का कथन करने की शर्क्त


2. विषय-िस्तु का मप
ू य किााँ कधथत करना िोगा
3. करार िाद के रूप में फाइल क्रकया जाएगा और रर्जस्टर में चढ़ाया जाएगा
4. पिकार न्यायालय की अधधकाररता के अधीन िोंगे
5. मामले की िन
ु िाई और ननपटारा
6. ननयम 5 के अधीन पाररत डडिी की अपील न िोना

आदे श 37
िंक्षक्षप्त प्रक्रिया

1. िे न्यायालय और िादों के िगि र्जन्िें यि आदे श लागू िोना िै


2. िंक्षिप्त िादों का िंर्स्थत क्रकया जाना

30
3. प्रनतिाद की उपिंजानत के सलए प्रक्रिया
4. डडिी को अपास्त करने की शर्क्त
5. विननमय-पत्र, आहद को न्यायालय के अधधकार के पाि जमा करने का आदे श दे ने
की शर्क्त
6. अनादृत विननमय-पत्र या िचन-पत्र के अप्रनतग्रिण का हटप्पण करने के खचि की
ििल

7. िादों में प्रक्रिया

आदे श 38
ननणवय के पिले धगरफ्तारी और कुकी
ननणवय के पिले धगरफ्तारी

1. उपिंजानत के सलए प्रनतभनू त दे ने की मााँग प्रनतिाद िे कब की जा िकेगा


2. प्रनतभनू त
3. उन्मोधचत क्रकए जाने के सलए प्रनतभक
ू े आिेदन पर प्रक्रिया
4. जिााँ प्रनतिाद प्रनतभनू त दे ने में या नई प्रनतभनू त लाने में अिफल रिता िै ििााँ
प्रक्रिया

ननणवय के पिले कुकी


5. िम्पवि पेश करने के सलए प्रनतभनू त दे ने की अपेिा प्रनतिाद िे कब की जा िकेगी
6. जिााँ िे तक
ु दसशित नि ं क्रकया जाता या प्रनतभनू त नि ं द जाती ििााँ कुकी
7. कुकी करने की र नत
8. ननणिय के पि
ू ि कुकि की गई िंपवि के दािे का न्याय ननणियन
9. प्रनतभनू त दे द जाने पर या िाद खाररज कर हदए जाने पर कुकी का िटा सलया
जाना
10. ननणिय िे पिले की गई कुकी िे न तो पर-व्यर्क्तयों के अधधकार प्रभावित िोंगे और
न वििय के सलए आिेदन करने िे डडिीदार िर्जित िोगा
11. ननणिय िे पिले कुकि की गई िंपवि डडिी के ननष्पादन में पन
ु : कुकि नि ं की
जाएगी
11क. कुकी को लाग-ू िोने िाले उपबंध
12. कृवष उपज ननणिय के पि
ू ि कुकि नि ं िोगी
13. लघि
ु ाद न्यायालय स्थािर िंपवि को कुकि नि ं करे गा

आदे श 39
अस्थायी व्यादे श और अंतिवती आदे श अस्थायी व्यादे श
1. िे दशाएाँ र्जनमें अस्थायी व्यादे श हदया जा िकेगा
2. भंग की पन
ु रािवृ ि या जार रखना अिरूद्ध करने के सलए व्यादे श
2क. व्यादे श की अिज्ञा या भंग का पररणाम
3. व्यादे श दे ने िे पिले न्यायालय ननदे श दे गा क्रक विरोधी पिकार को िच
ू ना दे द

31
जाए
3क. व्यादे श के सलए आिेदन का न्यायालय द्िारा तीि हदन के भीतर ननपटाया जाना
4. व्यादे श के आदे श को प्रभािोमक्
ु त, उिमें फेरफार या उिे अपास्त क्रकया जा िकेगा
5. ननगम को ननहदष्ट व्यादे श उिके अधधकाररयों पर आबद्धकर िोगा

अंतिवती आदे श
6. अंतररम वििय का आदे श दे ने की शर्क्त
7. िाद की विषय-िस्तु का ननरोध, परररिण, ननर िण आहद
8. ऐिे आदे शों के सलए आिेदन िच
ू ना के पश्चात ् क्रकया जाएगा
9. जो भसू म िाद की विषय-िस्तु िै उि पर पिकार का तरु ं त कब्जा कब कराया जा
िकेगा
10. न्यायालय में धन, आहद का जमा क्रकया जाना

आदे श 40
ररिीिरों की ननयस्ु तत
1. ररिीिरों की ननयर्ु क्त
2. पाररश्रसमक
3. कतिव्य
4. ररिीिर के कतिव्यों को प्रिनतित कराना
5. कलक्टर कब ररिीिर ननयक्
ु त क्रकया जा िकेगा

आदे श 41
मल
ू डिक्रियों की अपीलें
1. अपील का प्ररूप/ज्ञापन के िाथ क्या-क्या हदया जाएगा
ज्ञापन की अंतििस्तु
2. आधार जो अपील में सलए जा िकेंगे
3. ज्ञापन का नामंजूर क्रकया जाना या िंशोधन
3क. विलंब की माफी के सलए आिेदन
4. कई िाहदयों या प्रनतिाहदयों में िे एक परू डडिी को उलटिा िकेगा जिााँ िि ऐिे
आधार पर द गई िै जो उन िभी के सलए िामान्य िै

कायविाहियों का और ननष्पादन का रोका जाना


5. अपील न्यायालय द्िारा रोका जाना
र्जि न्यायालय ने डडिी पाररत की थी उिके द्िारा रोका जाना
6. डडिी के ननष्पादन के सलए आदे श की दशा में प्रनतभनू त
7. कुछ मामलों में िरकार िे या लोक अधधकार िे कोई प्रनतभनू त अपेक्षित न की जाए
8. डडिी के ननष्पादन में क्रकए गए आदे श की अपील में शर्क्तयों का प्रयोग

32
अपील के र्ग्िण पर प्रक्रिया
9. अपीलों के ज्ञापन का रर्जस्टर में चढाया जाना
10. अपील न्यायालय अपीलाथी िे खचों के सलए प्रनतभनू त दे ने की अपेिा कर िकेगा
11. ननचले न्यायालय िच
ू ना भेजे बबना अपील खाररज करने की शर्क्त
11क. र्जिके भीतर ननयम 11 के अधीन िन
ु िाई िमाप्त िो जानी चाहिए
12. अपील की िन
ु िाई के हदन
13. [................. ननरसित]
14. अपील की िन
ु िाई के द न की िच
ू ना का प्रकाशन और तामील
अपील न्यायालय स्ियं िच
ू ना की तामील करिा िकेगा
15. [................. ननरसित]

िन
ु िाई की प्रक्रिया
16. शरू
ु करने का अधधकार
17. अपीलाथी के व्यनतिम के सलए अपील का खाररज क्रकया जाना
अपील की एकपिीय िन
ु िाई
18. [................. ननरसित]
19. व्यनतिम के सलए खाररज की गई अपील को पन
ु : ग्रिण करना
20. िन
ु िाई को स्थधगत करने और ऐिे व्यर्क्तयों को जो हितबद्ध प्रतीत िोते िों,
प्रत्यथी बनाए जाने के सलए ननहदि ष्ट करने की शर्क्त
21. उि प्रत्यथी के आिेदन पर पन
ु : िन
ु िाई र्जिके विरुद्ध एकपिीय डडिी की गई िै
22. िन
ु िाई में प्रत्यथी डडिी के विरुद्ध ऐिे आिेप कर िकेगा मानो उिने पथ
ृ क
अपील की िो
आिेप का प्ररूप और उिको लागू िोने िाले उपबंध
23. मामले का अपील न्यायालय द्िारा प्रनतप्रेषण
23क. अन्य मामलों में प्रनतप्रेषण
24. जिााँ असभलेख में का िाक्ष्य पयािप्त िै ििााँ अपील न्यायालय मामले का अंनतम रूप
िे अिधारण कर िकेगा
25. अपील न्यायालय किां वििाद्यकों की विरचना कर िकेगा और उन्िें उि न्यायालय
को विचारण के सलए ननहदिष्ट कर िकेगा र्जिकी डडिी की अपील की गई िै
26. ननष्कषि और िाक्ष्य का असभलेख में िर्म्मसलत क्रकया जाना ननष्कषि पर आिेप
अपील का अिधारण
26क. प्रनतप्रेषण के आदे श में अगल िन
ु िाई का उपलेख क्रकया जाना
27. अपील न्यायालय में अनतररक्त िाक्ष्य का पेश क्रकया जाना
28. अनतररक्त िाक्ष्य लेने की र नत
29. विषय-बबंन्दओ
ु ं का पररभावषत और लेखबद्ध क्रकया जाना

अपील का ननणवय
30. ननणिय कब और किााँ िन
ु ाया जाएगा
31. ननणिय की अंतििस्त,ु तार ख और िस्तािर

33
32. ननणिय क्या ननदे श दे िकेगा
33. अपील न्यायालय की शर्क्त
34. वििम्मनत का लेखबद्ध क्रकया जाना

अपील में की डििी


35. डडिी की तार ख और अंतििस्तु
ननणिय िे वििम्मत न्यायाधीश के सलए डडिी पर िस्तािर करना आिश्यक नि ं
36. पिकारों को ननणिय और डडिी की प्रनतयों का हदया जाना
37. डडिी की प्रमाणणत प्रनत उि न्यायालय को भेजी जाएगी र्जिकी डडिी की अपील
की गई थी

आदे श 42
अपीली डिक्रियों को अपीलें
1. प्रक्रिया
2. न्यायालय की यि ननदे श दे ने की शर्क्त क्रक उिके द्िारा बनाए गए प्रश्न पर
अपील िन
ु ी जाए
3. आदे श 41 के ननयम 14 का लागू िोना

आदे श 43
आदे शों की अपीलें
1. आदशों की अपीलें
1क. डडक्रियों के विरुद्ध अपील में के ऐिे आदशों पर आिेप करने का अधधकार र्जनकी
अपील नि ं की जा िकती
2. प्रक्रिया

आदे श 44
ननधवन व्यस्ततयों द्िारा अपीलें
1. ननधिन व्यर्क्त के रूप में कौन अपील कर िकेगा
2. न्यायालय फीि के िंदाय के सलए िमय हदया जाना
3. इि प्रश्न के बारे में जााँच क्रक आिेदक ननधिन व्यर्क्त िै या नि ं

34
आदे श 45
उच्चतम न्यायालय में अपीलें

1. “डडिी की पररभाषा”
2. उि न्यायालय िे आिेदन र्जिकी डडिी पररिाहदत िै
3. मप
ू य या औधचत्य के बारे में प्रमाण-पत्र
4. [.............ननरसित]
5. [.........ननरसित]
6. प्रमाण-पत्र दे ने िे इंकार का प्रभाि
7. प्रमाण-पत्र हदए जाने पर अपेक्षित प्रनतभनू त और ननिेप
8. अपील का ग्रिण और उि पर प्रक्रिया
9. प्रनतभनू त के प्रनतग्रिण का प्रनतििरण
9क. मत
ृ पिकारों की दशा में िच
ू ना हदए जाने िे असभमर्ु क्त दे ने की शर्क्त
10. अनतररक्त प्रनतभनू त या िंदाय का आदे श दे ने की शर्क्त
11. आदे श का अनप
ु ालन करने में अिफलता का प्रभाि
12. ननिेप की बाकी की िापिी
13. अपील लंबबत रिने तक न्यायालय की शर्क्तयााँ
14. अपयािप्त पाए जाने पर प्रनतभनू त का बढ़ाया जाना
न्यायालय द्िारा तथा अपेक्षित अनतररक्त प्रनतभनू त के हदए जाने में व्यनतिम िोने
पर
15. उच्चतम न्यायालय के आदे शों को प्रिि
ृ कराने की प्रक्रिया
16. ननष्पादन िंबध
ं ी आदे श की अपील
17. [..........ननरसित]

आदे श 46
ननदे श
1. उच्च न्यायालय को प्रश्न का ननदे श
2. न्यायालय ऐिी डडिी पाररत कर िकेगा जो उच न्यायालय के विननश्चय पर
िमाधश्रत िै
3. उच्च न्यायालय का ननणिय पारे वषत क्रकया जाएगा और मामला तदनि
ु ार ननपटाया
जाएगा
4. उच्च न्यायालय को क्रकए गए ननदे श के खचे
4क. धारा 113 के परं तक
ु के अधीन उच्च न्यायालय को ननदे श
5. ननदे शकरने िाले न्यायालय की डडिी को पररिनतित करने आहद की शर्क्त
6. लघि
ु ादों में अधधकाररता िंबध
ं ी प्रश्नों को उच्च् न्यायालय को ननदे सशत करने की
शर्क्त
7. लघि
ु ादों में अधधकाररता िंबध
ं ी भल
ू के अधीन की गई कायििाहियों को पन
ु र िण के
सलए ननिेहदत करने की र्जला न्यायालय की शर्क्त

35
आदे श 47
पन
ु विवलोकन

1. ननणिय के पन
ु वििलोकन के सलए आिेदन
2. [...............ननरसित]
3. पन
ु वििलोकन के आिेदनों का प्ररुप
4. आिेदन कब नामंजूर क्रकया जाएगा
आिेदन कब मंजूर क्रकया जाएगा
5. दो या अधधक न्यायाधीशों िे गहठत न्यायालय में पन
ु वििलोकन का आिेदन
6. आिेदन कब नामंजूर क्रकया जाएगा
7. नामंजूर का आदे श अपीलनीय न िोगा। आिेदन की मंजूर के आदे श पर आिेप
8. मंजरू क्रकए गए आिेदन का रर्जस्टर में चढाया जाना और क्रफर िे िन
ु िाई के सलए
आदे श
9. कुछ आिेदनों का िजिन

आदे श 48
प्रकीणव
1. आदे सशका की तामील उिे ननकलिाने िाले पिकार के व्यय पर की जाएगी
तामील के खचे
2. आदे शों और िच
ू नाओं की तामील कैिे की जाएगी
3. पररसशष्टों में हदए गए प्ररूपों का उपयोग

आदे श 49
चाटव ररत उच्च न्यायालय

1. उच्च न्यायालय की आदे सशकाओं की तामील कौन कर िकेगा


2. चाटि ररत उच न्यायालय के बारे में व्यािवृ ि
3. ननयमों का लागू िोना

आदे श 50
प्रांतीय लघि
ु ाद न्यायालय
1. प्रांतीय लघि
ु ाद न्ययालय

आदे श 51
प्रेसििेंिी लघि
ु ाद न्यायालय
1. प्रेसिडेंिी लघि
ु ाद न्यायालय

36
पिली अनि
ु च
ू ी के पररसशष्ट
प्ररूप
पररसशष्ट क. असभिचन
पररसशष्ट ख. आदे सशका
पररसशष्ट ग. प्रकट करण, ननर िण और स्िीकृनत
पररसशष्ट घ. डडक्रियााँ
पररसशष्ट ड: ननष्पादन
पररसशष्ट च. अनप
ु रू क कायििाहियााँ
पररसशष्ट छ. अपील, ननदे श और पन
ु वििलोकन
पररसशष्ट ज. प्रकीणि

37
सिविल प्रक्रिया िंहिता, 1908

(सिविल प्रक्रिया िंहिता (िंशोधन) अधधननयम, 1999 एिं 2002 द्िारा यथा िंशोधधत)
(1908 का अधधननयम िंख्यांक 5)
[21 माचि, 1908]
सिविल न्यायालयों की प्रक्रिया िे िम्बर्न्धत विधधयों का िमेकन और िंशोधन करने के
अधधननयम
यि िमीचीन िै क्रक सिविल न्यायालयों की प्रक्रिया िे िम्बर्न्धत विधधयों का िमेकन और िंशोधन
क्रकया जाए अत: एतदद्िारा ननम्नसलणखत रुप में यि अधधननयसमत क्रकया जाता िैं-

प्रारस्म्िक

1. िंक्षक्षप्त नाम प्रारम्ि और विस्तार- (1) इि अधधननयम का िंक्षिप्त नाम सिविल प्रक्रिया िंहिता
1908 िै ।
(2) यि िन ् 1909 की जनिर के प्रथम हदन को प्रिि
ृ िोगा ।
[(3) इिका विस्तार-
1

(क)जम्मू - कश्मीर राज्य;


(ख) नागालैण्ड राज्य और जनजानत िेत्रों
के सििाय िम्पण
ू ि भारत पर िै :
परन्तु िंबधं धत राज्य िरकार, राजपत्र में अधधिच
ू ना द्िारा इि िहिता के उपबंधो का या उनमें िे
क्रकिी का विस्तार, यथार्स्थनत, िम्पण
ू ि नागालैण्ड राज्य या ऐिे जनजानत िेत्रों या उनके क्रकिी भाग पर
ऐिे अनप
ु रू क, आनष
ु धं गक या पाररणासमक उपान्तरों िहित कर िकेगी जो अधधिच
ू ना मे विननहदि ष्ट क्रकए
जाए ।
स्पष्टीकरण- इि खण्ड में ''जनजानत िेत्र'' िे िे राज्यिेत्र असभप्रेत िै जो 21 जनिर , 1972 के
ठीक पिले िंविधान की छठी अनि
ु च
ू ी के पैरा 20 में यथाननहदिष्ट अिम के जनजानत िेत्र में िर्म्मसलत थे

(4) अमीनद िी द्िीपिमि
ू और आन्रप्रदे श राज्य मे पि
ू ी गोदािर , पर्श्चमी गोदािर और
विशाखापिनम ् असभकरणों और लिद्िीप िंघ राज्यिेत्र के िम्बन्ध में , इि िंहिता के लागू िोने का कोई
प्रनतकूल प्रभाि, यथार्स्थनत ऐिे द्िीपिमि
ू , असभकरणों या ऐिे िंघ राज्यिेत्र में इि िंहिता के लागू िोने
के िम्बन्ध में तत्िमय प्रिि
ृ क्रकिी ननयम या विननयम के लागू िोने पर नि पडेगा ।]
2. पररिाषाएाँ- इि अधधननयम में , जब तक क्रक विषय या िंदभि में कोई बात विरुद्ध न िो -
(1) ''िंहिता'' के अन्तगित ननयम आते िैं;
(2) “डििी'' िे ऐिे न्यायननणियन की प्ररुवपक असभव्यर्क्त असभप्रेत िै जो, जिां तक क्रक िि उिे
असभव्यक्त करने िाले न्यायलय िे िम्बर्न्धत िै , िाद में के िभी या क्रकन्ि वििादग्रस्त विषयों के िम्बन्ध
में पिकारों के अधधकारों का ननश्चायक रुप िे अिधारण करता िै और िि या तो प्रारर्म्भक या अर्न्तम िो
िकेगी । यि िमझा जाएगा क्रक इिके अन्तगित िादपत्र का नामंजूर क्रकया जाना और धारा 144 के
1***

भीतर के क्रकिी प्रश्न का अिधारण आता िै क्रकन्तु इिके अन्तगित-


(क) न तो कोई ऐिा न्यायननणियन आएगा र्जिकी अपील, आदे श की अपील की भांनत िोती िैं;
और

38
(ख) न व्यनतिम के सलए खाररज करने का कोई आदे श आएगा ।
स्पष्टीकरण- डडिी तब प्रारर्म्भक िोती िै जब िाद के पण
ू ि रुप िे ननपटा हदए जा िकने िे पिले
आगे और कायििाहियां की जानी िै । िि तब अंनतम िोती िै जब क्रक ऐिा न्यायननणियन िाद के पण
ू ि रूप
िे ननपटा दे ता िै िि भागत: प्रारर्म्भक और भागत: अंनतम िो िकेगी;
(3)”डििीदार”िे कोई ऐिा व्यर्क्त असभप्रेत िै र्जिके पि मे कोई डडिी पाररत की िै या कोई
ननष्पादन -योग्य आदे श क्रकया गया िै ;
(4) ''स्जला'' िे आरर्म्भक अधधकाररता िाले प्रधान सिविल न्यायालय की (र्जिे इिमें इिके पश्चात ्
''र्जला न्यायालय'' किा गया िै ) अधधकाररता की स्थानीय िीमाएं असभप्रेत िैं और इिके अन्तगित उच्च
न्यायालय की मामल
ू आरर्म्भक सिविल अधधकाररता की स्थानीय िीमाएं आती िै ;

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 3 द्िारा (1.2.1977 िे) '' धारा 47 या'' शब्दों और
अंको का लोप ।
1
[(5) ''विदे शी न्यायालय'' िे ऐिा न्यायालय असभप्रेत िै जो भारत के बािर र्स्थत िै और केन्द्र य
िरकार के प्राधधकार िे न तो स्थावपत क्रकया गया िै और न चालू रखा गया िै ;]
(6) “विदे शी ननणवय” िे क्रकिी विदे शी न्यायालय का ननणिय असभप्रेत िै ;
(7) ''िरकार प्लीिर'' के अन्तगित ऐिा कोई अधधकार आता िै जो िरकार प्ल डर पर इि िंहिता
द्िारा असभव्यक्त रूप िे अधधरोवपत कृत्यों का या उनमें िे क्रकन्ि ं का पालन करने के सलए राज्य िरकार
द्िारा ननयक्
ु त क्रकया गया िै और ऐिा कोई प्ल डर भी आता िै जो िरकार प्ल डर के ननदे शों के अधीन
कायि करता िै ;
2
[(7क) अंदमान और, ननकोबार द्िीपिमि
ू के िम्बन्ध मे ''उच्च न्यायालय'' िे कलकिा उच्च
न्यायालय असभप्रेत िै ;
(7ख धारा 1, 29, 43, 44 3[44क], 78, 79, 82, 83 और 87- क में के सििाय ''िारत'' िे जम्मू
-कश्मीर राज्य के सििाय भारत का राज्यिेत्र असभप्रेत िै ;]
(8) ''न्यायाधीश'' िे सिविल न्यायालय का पीठािीन अधधकार असभप्रेत िै ;
(9) ''ननणवय'' िे न्यायाधीश द्िारा डडिी या आदे श के आधारों का कथन असभप्रेत िै ;
(10) ''ननणीत ऋणी'' िे िि व्यर्क्त असभप्रेत िै र्जिके विरुद्ध कोई डडिी पाररत की गई िै या
ननष्पादन-योग्य कोई आदे श क्रकया गया िै
(11) ''विधधक प्रनतननधध'' िे िि व्यर्क्त असभप्रेत िै जो मत
ृ व्यर्क्त की िम्पदा का विधध की दृर्ष्ट
िे प्रनतननधधत्ि करता िै और इिके अन्तगित कोई ऐिा व्यर्क्त आता िै जो मत
ृ क की िम्पदा में दखलंदाजी
करता िै और जिा कोई पिकार प्रनतननधध रूप में िाद लाता िै या जिां क्रकिी पिकार पर प्रनतननधध रूप में
िाद लाया जाता िै ििा िि व्यर्क्त इिके अन्तगित आता िै र्जिे िि िम्पदा उि पिकार के मरने पर
न्यागत िोती िै जो इि प्रकार िाद लाया िै या र्जि पर इि प्रकार िाद लाया गया िै ;
(12) िम्पवि के ''अन्तःकालीन लाि'' िे ऐिे लाभों पर ब्याज िहित िे लाभ असभप्रेत िै जो ऐिी
िम्पवि पर िदोष कब्जा रखने िाले व्यर्क्त को उििे िस्तत ु : प्राप्त िुए िों या र्जन्िें िि मामल ू तत्परता
िे उििे प्राप्त कर िकता था, क्रकन्तु िदोष कब्जा रखने िाले व्यर्क्त द्िारा की गई असभिद् ृ धधयों के कारण
िुए लाभ इिके अन्तगित नि ं आएंगे;
(13) ''जंगम िम्पवि'' के अन्तगित उगती फिलें आती िैं;
(14) ''आदे श'' िे सिविल न्यायलय के क्रकिी विननश्चय की प्ररुवपक असभव्यर्क्त असभप्रेत िै जो
डडिी नि ं िै ;

39
(15) ''प्लीिर'' िे न्यायालय में क्रकिी अन्य व्यर्क्त के सलए उपिजात िोने और असभिचन करने
का िकदार कोई व्यर्क्त असभप्रेत िै और इिके अन्तगित अधधिक्ता, िकील और क्रकिी उच्च न्यायलय का
अटनी आता िै ;

1. 1951 के अधधननयम िं. 2 की धारा 4 द्िारा मल


ू खण्ड के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया
2. 1951 के अधधननयम ि. 2 की धारा 4 द्िारा अन्तःस्थावपत क्रकया गय
ु ा ।
3. 1953 के अधधननयम िं 42 की धारा 4 और अनि
ु च
ू ी 3 द्िारा अन्तःस्थावपत क्रकया गया ।

(16) ''विहित'' िे ननयमों द्िारा विहित असभप्रेत िै ;


(17) ''लोक अधधकारी'' िे िि व्यर्क्त असभप्रेत िै जो ननम्नसलणखत िणिनों में िे क्रकि िणिन के
अधीन आता िै अथाित---
(क) िर न्यायधीश
(ख)1[अणखल भारतीय िेिा] का िर िदस्य;
(ग) 2[िंघ] की िेना, 3[नौिेना या िायु िेना का] 4****
िर आयक्
ु त आक्रफिर या राजपबत्रत आक्रफिर,
जब तक क्रक िि िरकार के अधीन िेिा करता रिे ;
(घ)न्यायालय का िर अधधकार र्जिका ऐिे अधधकार के नाते यि कतिव्य िै क्रक िि विधध या तथ्य
के क्रकिी मामले में अन्िेषण या ररपोटि करे या कोई दस्तािेज बनाए अधधप्रमाणणत करे , या रखे या क्रकिी
िम्पवि का भार िम्भाले या उि िम्पवि का व्ययन करे या क्रकिी न्यानयक आदे सशका का ननष्पादन करे ,
या कोई शपथ ग्रिण कराए या ननििचन करे या न्यायालय मे व्यिस्था बनाए रखे और िर व्यर्क्त, र्जिे
ऐिे कतिव्यों में िे क्रकन्ि ं का पालन करने का प्राधधकार न्यायालय द्िारा विशेष रूप िे हदया गया िै
(ड.) िर व्यर्क्त जो क्रकिी ऐिे पद को धारण करता िै र्जिके आधार पर िि क्रकिी व्यर्क्त को
परररोध में करने या रखने के सलए िशक्त िै ;
(च) िरकार का िर अधधकार र्जिका ऐिे अधधकार के नाते यि कतिव्य िै क्रक िि अपराधों का
ननिारण करे , अपराधों की इविला दे अपराधधयों को न्याय के सलए उपर्स्थत करे या लोक के स्िारथ्य िेत्र
या िवु िधा की िंरिा करे
(छ) िर अधधकार र्जिका ऐिे अधधकार के नाते यि कतिव्य िै क्रक िि िरकार की ओर िे क्रकिी
िम्पवि को ग्रिण करे , प्राप्त करे , रखे या व्यय करे या िरकार की ओर िे कोई ििेिण ननधािरण या
िंविदा करे या क्रकिी राजस्ि आदे सशका का ननष्पादन करे या िरकार के धन-िंबध
ं ी हितों पर प्रभाि डालने
िाले क्रकिी मामले में अन्िेषण या ररपोटि करे या िरकार के धन-िंबध
ं ी हितों िे िम्बर्न्धत क्रकिी दस्तािेज
को बनाए, अधधप्रमाणणत करे या रखे या िरकार के धन- िम्बन्धी हितों की िरिा के सलए क्रकिी विधध के
व्यनतिम को रोके; तथा
(ज) िर अधधकार , जो िरकार की िेिा में िै या उििे िेतन प्राप्त करता िै या क्रकिी लोक कतिव्य
के पालन के सलए फीि या कमीशन के रूप में पाररश्रसमक पाता िै
(18) ''ननयम'' िे पिल अनि
ु च
ू ी में अन्तवििष्ट अथिा धारा 122 या धारा 125 के अधीन ननसमित
ननयम और प्ररूप असभप्रेत िै ;
(19) ''ननयम-अंश'' के बारे िमझा जाएगा क्रक उिके अन्तगित स्टाक डडबेंचर या बंधपत्र आते िै ;
तथा
(20) ननणिय या डडिी की दशा के सििाय “िस्तािररत” एक अंतगित स्तार्म्पत बंधपत्र आते िै ; तथा

40
1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 3 द्िारा (1.2.1977 िे) “भारतीय सिविल िेिा'” के
स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
2. विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1935 द्िारा “हिज मैजस्
े ट ” के स्थान पर पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया|
3. 1934 के अधधननयम िं. 35 की धारा 2 और अनि
ु च
ू ी द्िारा “या नौिेना” के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया |
4. 1934 के अधधननयम िं. 35 की धारा 2 और अनि
ु च
ू ी द्िारा ''र्जनमे हिज मैजेस्ट की भारतीय
िमद्र
ु िेिा भी िर्म्मसलत िै ”, शब्दो का लोप ।

1. विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1950 द्िारा अंत:स्थावपत खण्ड (21) का 1951 के अधधननयम िं. 2
की धारा 4 द्िारा लोप |

3. न्यायालयों की अधीनस्थता- इि िंहिता के प्रयोजनों के सलए, र्जला न्यायालय उच्च न्यायालय


के अधीनस्थ िै और र्जला न्यायालय िे अिर श्रेणी का िर सिविल न्यायालय और िर लघि
ु ाद न्यायालय,
उच्च न्यायालय और र्जला न्यायालय के अधीनस्थ िै।
4. व्यािवृ ियां- (1) इिके प्रनतकूल क्रकिी विननहदि ष्ट उपबन्ध के अभाि में , इि िंहिता की क्रकिी भी
बात के बारे में यि नि िमझा जाएगा क्रक िि क्रकिी विशेष या स्थानीय विधध को, जो अब प्रित
ृ िै या
तत्िमय प्रिि
ृ क्रकिी अन्य विधध द्िारा या उिके अधीन प्रदि क्रकिी विशेष अधधकाररता या शर्क्त को या
विहित प्रक्रिया के क्रकिी विशेष रूप को पररिीसमत करती िै या उि पर अन्यथा प्रभाि डालती िै ।
(2) विसशष्टतया और उपधारा (1) में अन्तवििष्ट प्रनतपादना की व्यापकता पर प्रनतकूल प्रभाि डाले
बबना, इि िंहिता की क्रकिी भी बात के बारे में यि नि िमझा जाएगा क्रक िि क्रकिी ऐिे उपचार को
पररिीसमत करती िै या उि पर अन्यथा प्रभाि डालती िै , र्जिे भ-ू धारक या भ-ू स्िामी कृवष-भसू म के भाटक
की ििल
ू ऐिी भसू म की उपज िे करने के सलए तत्िमय प्रित
ृ क्रकिी विधध के अधीन रखता िै ।

5. िंहिता का राजस्ि न्यायालयों को लागू िोना- (1) जिां कोई राजस्ि न्यायालय प्रक्रिया िंबध
ं ी
ऐिी बातों मे र्जन पर ऐिे न्यायलयों को लागू कोई विशेष अधधननयसमनत मौन िै , इि िंहिता के उपबन्धों
द्िारा शासित िैं ििा राज्य िरकार 1***
राजपत्र में अधधिच
ू ना द्िारा यि घोषणा कर िकेगी क्रक उन
उपबन्धों के कोई भी प्रभाग, जो इि िंहिता द्िारा असभव्यक्त रूप िे लागू नि ं क्रकए गए िैं, उन
न्यायालयों को लागू नि िोंगे या उन्िें केिल ऐिे उपान्तरो के िाथ लागू िोंगे जैिे राज्य िरकार 2***

विहित करे ।
(2) उपधारा (1) में ''राजस्ि न्यायालय'' िे ऐिा न्यायालय असभप्रेत िै जो कृवष प्रयोजनों के सलए
प्रयक्
ु त भसू म के भाटक, राजस्ि या लाभों िे िम्बर्न्धत िादों या अन्य कायििाहियों को ग्रिण करने की
अधधकाररता क्रकिी स्थानीय विधध के अधीन रखता िै क्रकन्तु ऐिे िादों या कायििाहियों का विचारण सिविल
प्रकृनत के िादों या कायििाहियों के रुप में करने के सलए इि िंहिता के अधीन आरर्म्भक अधधकाररता रखने
िाला सिविल न्यायालय इिके अन्तगित नि ं आता िै ।
6. धन-िंबध
ं ी अधधकाररता- असभव्यक्त रुप िे जैिा उपबर्न्धत िै उिके सििाय, इिकी क्रकिी बात
का प्रभाि ऐिा नि ं िोगा क्रक िि क्रकिी न्यायालय को उन िादों पर अधधकाररता दे दे र्जनकी रकम या
र्जनकी विषय-िस्तु का मप
ू य उिकी मामल
ू अधधकाररता की धन िंबध
ं ी िीमाओं िे (यहद कोई िो) अधधक
िै ।

41
1. 1920 के अधधननयम और अनि
ु च
ू ी 1 के भाग 1 द्िारा ''िपररषद् गिनिर जनरल की पि
ू ि
मंजरू िे'' शब्दों का लोप ।
2. 1920 के अधधननयम िं. 38 की धारा 2 और अनि
ु च
ू ी 1 के भाग 1 द्िारा “पि
ू ोक्त
मंजूर िे” शब्दो का लोप ।

7. प्रांतीय लघि
ु ाद न्यायालय- उन न्यायालयों पर, जो प्रांतीय लघि
ु ाद न्यायालय अधधननयम, 1887
(1887 का 9) के अधीन 1[या बरार लघि
ु ाद न्यायालय विधध, 1905 के अधीन] गहठत िै , या उन
न्यायालयों पर, जो लघि
ु ाद न्यायालय की अधधकाररता का प्रयोग [उक्त अधधननयम या विधध के अधीन]
2

करते िैं 3[या 4


[भारत के क्रकिी ऐिे भाग] के 5[र्जि पर उक्त अधधननयम का विस्तार नि ं िै ] उन
न्यायालयों पर, जो िमरूपी अधधकाररता का प्रयोग करते िैं]
ननम्नसलणखत उपबंधों का विस्तार नि ं िोगा, अथाित ्-
(क) इि िंहिता के पाठ के उतने अंश का, जो-
(i) उन िादों िे िंबधं धत िै जो लघि
ु ाद न्यायालय के िंज्ञान िे अपिाहदत िै ,
(ii) ऐिे िादों में की डडक्रियों के ननष्पादन िे िंबधं धत िै
(iii) स्थािर िंपवि के विरुद्ध डडक्रियों के ननष्पादन िे िंबधं धत िै , तथा
(ख) ननम्नसलणखत धाराओं का, अथाित ्-
धारा 9 का,
धारा 91 और धारा 92 का,
धारा 94 और धारा 95 का जिााँ तक क्रक िे-
(i) स्थािर िंपवि की कुकी के सलए आदे शों
(ii) व्यादे शों,
(iii) स्थािर िंपवि के ररिीिर की ननयर्ु क्त अथिा
(iv) धारा 94 के खण्ड (ड.) में ननहदि ष्ट अंतििती आदे शों, को प्राधधकृत करती िै या उनिे िंबधं धत
िै ], तथा धारा 96 िे धारा 112 तक की धाराओं और धारा 115 का।

1. 1941 के अधधननयम िं. 4 की धारा 2 और अनि


ु च
ू ी 3 द्िारा अत: स्थावपत क्रकया गया ।
2. 1941 के अधधननयम िं. 4 की धारा 2 और अनि
ु च
ू ी 3 द्िारा ''उि अधधननयम के अधीन'' के
स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया
3. 1951 के अधधननयम िं. 2 की धारा 5 द्िारा अत: स्थावपत क्रकया गया ।
4. विधध अनक
ु ू लन (िं 2) आदे श, 1956 द्िारा ''भाग ख राज्यो'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया
गया ।
5. विधध अनक
ु ू लन (िं.2) आदे श, 1956 द्िारा ''भाग ख राज्यो'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया
गया ।
6. 1926 के अधधननयम िं. 1 की धारा 3 द्िारा “जिााँ तक क्रक िे आदे शो और अतििती आदे शो िे
िंबधं धत िै '' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया |

8. प्रेसििेंिी लघि
ु ाद न्यायालय- धारा 24, धारा 38 िे धारा 41 तक की धाराओं, धारा 75 के खण्ड
(क), (ख) और, (ग) धारा 76, 1[धारा 77, धारा 157 और धारा 158] में तथा प्रेसिडेंिी लघि
ु ाद न्यायालय
अधधननयम, 1882 (1882 का 15) द्िारा यथा उपबंधधत के सििाय, इि िंहिता के पाठ के उपबंधों का

42
विस्तार कलकिा, मद्राि और मम्
ु बई नगरों में स्थावपत क्रकिी लघि
ु ाद न्यायालय में के क्रकिी भी िाद या
कायििाि पर नि ं िोगा:
2
[परन्त-ु
(1) यथार्स्थनत, फोटि विसलयम, मद्राि और मम्
ु बई के उच्च न्यायालय िमय-िमय पर राजपत्र में
अधधिच
ू ना द्िारा ननदे श दे िकेंगे क्रक ऐिे क्रकन्ि ं भी उपबंधों का विस्तार, जो प्रेसिडेन्िी लघि
3
ु ाद न्यायालय
अधधननयम, 1882 (1882 का 15) के असभव्यक्त उपबंधों िे अिगत न िों और ऐिे उपांतरों और
अनक
ु ू लनों िहित, जो उि अधधिच
ू ना में विननहदिष्ट क्रकए जाएाँ, ऐिे न्यायालय में के िादों या कायििाहियों
पर या िादों या कायििाहियों के क्रकिी िगि पर िोगा।
(2) उक्ि उच्च न्यायालयों में िे क्रकिी के भी द्िारा प्रेसिडेन्िी लघि
ु ाद न्यायालय अधधननयम,
1882 (1882 का 15) की धारा 9 के अधीन इिके पिले बनाए गए िभी ननयम विधधमान्यत: बनाए गए
िमझे जाएाँगे।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 4 द्िारा (1.2.1977 िे) “धारा 77 और 155 िे लेकर
158 तक की धाराओ” के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
2. 1914 के अधधननयम िं. 1 की धारा 2 द्िारा जोड़ा ।

िाग 1
िाधारणत: िादों के विषय में
न्यायालयों की अधधकाररता और पि
ू ि -न्याय
9. जब तक क्रक िस्जवत न िो, न्यायालय ििी सिविल िादों का विचरण करें गे - न्यायालयों को (
इिमें अंतवििष्ट उपबंधों के अधीन रिते िुए) उन िादों के सििाय, र्जनका उनके द्िारा िंज्ञान असभव्यक्त
या वििक्षित रुप िे िर्जित िै , सिविल प्रकृनत के िभी िादों के विचारण की अधधकाररता िोगी ।
1
[स्पष्टीकरण 1] - िि िाद, र्जिमें िंपवि-िंबध
ं ी या पद-िंबध
ं ी अधधकार प्रनतपाहदत िै , इि बात के
िोते िुए भी क्रक ऐिा अधधकार धासमिक कृत्यों या कमो िंबध
ं ी प्रश्नों के विननश्चय पर पण
ू ि रुप िे अिलंबबत
िै , सिविल प्रकृनत का िाद िै ।
2
[स्पष्टीकरण 2- इि धारा के प्रयोजनों के सलए, यि बात तार्त्िक नि ं िै क्रक स्पष्ट करण 1 में
ननहदि ष्ट पद के सलए कोई फीि िै या नि ं अथिा ऐिा पद क्रकिी विसशष्ट स्थान िे जुडा िै या नि ं। ]

1. 1967 के अधधननयम िं. 104 की धारा 5 द्िारा (1.2.1977 िे) स्पष्ट करण को स्पष्ट करण 1
के रुप मे पन
ु : िंख्यांक्रकत |
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 5 द्िारा (.12.1977 िे) अन्तःस्थावपत क्रकया गया ।

10. िाद का रोक हदया जाना- कोई न्यायालय ऐिे क्रकिी भी िाद के विचारण में र्जिमें वििाद्य-
विषय उिी के अधीन मक
ु दमा करने िाले क्रकन्ि ं पिकारों के बीच के या ऐिे पिकारों के बीच के, र्जनिे
व्यत्ु पन्न अधधकार के अधीन िे या उनमें िे कोई दािा करते िैं, क्रकिी पि
ू त
ि न िंर्स्थत िाद में भी प्रत्यित:
और िारत; वििाद्य िै , आगे कायििाि नि ं करे गा जिााँ ऐिा िाद उिी न्यायालय में या 1[भारत] में के
क्रकिी अन्य ऐिे न्यायालय में , जो दािा क्रकया गया अनत
ु ोष दे ने की अधधकाररता रखता िै या [भारत] की
2

िीमाओं के परे िाले क्रकिी ऐिे न्यायालय में , जो 3[केन्द्र य िरकार 4***] द्िारा स्थावपत क्रकया गया िै या
चालू रखा गया िै और, िैिी ि अधधकाररता रखता िै , या 5[उच्चतम न्यायालय] के िमि लंबबत िै ।

43
स्पष्टीकरण- विदे शी न्यायालय में क्रकिी िाद का लंबबत िोना उिी िाद-िे तक
ु पर आधाररत क्रकिी
िाद का विचारण करने िे 6[भारत] में के न्यायालयों को प्रिाररत नि ं करता ।

1. 1951 के अधधननयम िं. 2 की धारा 3 द्िारा “राज्यो'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 5 द्िारा (1.2.1977 िे) अतःस्थावपत क्रकया गया ।
3. भारत शािन (भारतीय विधध अनक
ु ू लन) आदे श, 1937 द्िारा “िपररषद गिनिर जनरल'' के स्थान
पर प्रनतस्थावपत ।
4. भारतीय स्ितंत्रता (केन्द्र य अधधननयम और अध्यादे श अनक
ु ू लन) आदे श, 1948 द्िारा ''या िाउन
ररप्रजेन्टे हटि” शब्दो का लोप |
5. विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1960 द्िारा “हिज मैजेस्ट इन काउर्न्िल'' के स्थान पर प्रनतस्थावपतक्रकया
गया ।
6. 1951 के अधधननयम िं. 2 की धारा 3 द्िारा “राज्यों'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

11. पि
ू व -न्याय- कोई भी न्यायालय क्रकिी ऐिे िाद या वििाद्यक का विचारण नि ं करे गा र्जिमें
प्रत्यित: और िारत: वििाद्य-विषय उिी िक के अधीन मक
ु दमा करने िाले उन्ि ं पिकारों के बीच के या
ऐिे पिकारों के बीच के, र्जनिे व्यत्ु पन्न अधधकार के अधीन िे या उनमें िे कोई दािा करते िैं, क्रकिी
पि
ू ि
ि ती िाद में भी ऐिे न्यायालय में प्रत्यित: और िारत: वििाद्य रिा िै , जो ऐिे पश्चातिती
् िाद का या
उि िाद का, र्जिमें ऐिा वििाद्यक िाद में उठाया गया िै , विचारण करने के सलए ििम था और ऐिे
न्यायालय द्िारा िन
ु ा जा चुका िै और अंनतम रुप िे विननर्श्चत क्रकया जा चुका िै ।
स्पष्टीकरण 1 - ''पि
ू ि
ि ती िाद'' पद ऐिे िाद का द्योतक िै जो प्रश्नगत िाद के पि
ू ि ि विननर्श्चत
क्रकया जा चक
ु ा िै चािे िि उििे पि
ू ि िंर्स्थत क्रकया गया िो या नि ं ।
स्पष्टीकरण 2- इि धारा के प्रयोजनों के सलए, न्यायालय की ििमता का अिधारण ऐिे न्यायालय
के विननश्चय िे अपील करने के अधधकार विषयक क्रकन्ि ं उपबंधों का विचार क्रकए बबना क्रकया जाएगा ।
स्पष्टीकरण 3- ऊपर ननदे सशत विषय का पि
ू ि
ि ती िाद में एक पिकार द्िारा असभकथन और दि
ू रे
द्िारा असभव्यक्त का वििक्षित रुप िे प्रत्याख्यान या स्िीकृनत आिश्यक िै ।
स्पष्टीकरण 4- ऐिे क्रकिी भी विषय के बारे में , जो ऐिे पि
ू ि
ि ती िाद में प्रनतरिा या आिमण का
आधार बनाया जा िकता था और बनाया जाना चाहिए था, यि िमझा जाएगा क्रक िि िे िाद में प्रत्यित:
और िारत: वििाद्य रिा िै |
स्पष्टीकरण 5- िाद-पत्र में दािा क्रकया गया कोई अनत
ु ोष, जो डडिी द्िारा असभव्यक्त रुप िे नि ं
हदया गया िै , इि धारा के प्रयोजनों के सलए नामंजूर कर हदया गया िमझा जाएगा ।
स्पष्टीकरण 6- जिााँ कोई व्यर्क्त क्रकिी लोक अधधकार के या क्रकिी ऐिे प्राइिेट अधधकार के सलए
िदभािपि
ू क
ि मक
ु दमा करते िैं र्जिका िे अपने सलए और अन्य व्यर्क्तयों के सलए िामान्यत: दािा करते िैं
ििााँ ऐिे अधधकार िे हितबद्ध िभी व्यर्क्तयों के बारे में इि धारा के प्रयोजनों के सलए यि िमझा जाएगा
क्रक िे ऐिे मक
ु दमा करने िाले व्यर्क्तयों िे व्यत्ु पन्न अधधकार के अधीन दािा करते िैं ।
1
[स्पष्टीकरण 7- इि धारा के उपबंध क्रकिी डडिी के ननष्पादन के सलए कायििाि को लागू िोंगे और
इि धारा में क्रकिी िाद, वििाद्यक या पि
ू ि
ि ती िाद के प्रनत ननदे शों का अथि िमश: उि डडिी के ननष्पादन
के सलए कायििाि , ऐिी कायििाि में उठने िाले प्रश्न और उि डडिी के ननष्पादन के सलए पि
ू ि
ि ती कायििाि
के प्रनत ननदे शों के रुप में लगाया जाएगा ।
स्पष्टीकरण 8- कोई वििाद्यक जो िीसमत अधधकाररता िाले क्रकिी न्यायालय द्िारा, जो ऐिा

44
वििाद्यक विननर्श्चत करने के सलए ििम िै , िन
ु ा गया िै और अंनतम रुप िे विननर्श्चत क्रकया जा चुका
िै , क्रकिी पश्चातिती िाद में पि
ू -ि न्याय के रुप में इि बात के िोते िुए भी प्रिि
ृ िोगा क्रक िीसमत
अधधकाररता िाला ऐिा न्यायालय ऐिे पश्चातिती िाद का या उि िाद का र्जिमें ऐिा वििाद्यक िाद में
उठाया गया िै , विचारण करने के सलए, ििम नि ं था ।]
1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 6 द्िारा (1.2.1977 िे) अंत: स्थावपत क्रकया गया ।

12. अनतररतत िाद का िजवन- जिााँ िाद क्रकिी विसशष्ट िाद-िे तक


ु के िंबध में अनतररक्त िाद
िंर्स्थत करने िे ननयमों द्िारा प्रिाररत िै ििााँ िि क्रकिी ऐिे न्यायालय में र्जिे यि िंहिता लागू िै , कोई
िाद ऐिे िाद-िे तक
ु के िंबध
ं में िंर्स्थत करने का िकदार नि ं िोगा ।
13. विदे शी ननणिय कब ननश्चायक नि ं िोगा – विदे शी ननणिय उिके डरा उन्ि ं पिकारों के बीच या
उिी िक के अधीन मक
ु दमा करने िाले ऐिे पिकारों के बीच, र्जनिे व्यत्ु पन्न अधधकार के अधीन िे या
उनमें िे कोई दािा करते िै, प्रत्यित: न्यायाननणीत क्रकिी विषय के बारे में ििााँ के सििाय ननश्चयात्मक
िोगा जिााँ –
(क) िि ििम अधधकाररता िाले न्यायालय द्िारा नि ं िन
ु ाया गया िै ,
(ख) िि मामले के गण
ु ागण
ु के आधार पर नि ं हदया गया,
(ग) कायििाहियों के िकृत दशिने स्पष्ट िै क्रक िि अंतरराष्र य विधध के अशद्
ु ध बोध पर या [भारत]
1

की विधध को उन मामलों में र्जनको िि लागू िै , मान्यता दे ने िे इंकार करने पर आधाररत


िै /िि कपट द्िारा असभप्राप्त क्रकया गया िै ।
(घ) िे कायििाहियों, र्जनमें िि ननणिय असभप्राप्त क्रकया गया था, नैिधगिक न्याय के विरुद्ध िै ,
(ड.) िि 2[भारत] में प्रिि
ृ क्रकिी विधध के भंग पर आधाररत दािे को ठीक ठिराता िै |

14. विदे शी ननणवयों के बारे में उपधारणा- न्यायालय क्रकिी ऐिे दस्तािेज के पेश क्रकए जाने पर जो
विदे शी ननणिय की प्रमाणणत प्रनत िोना तात्पनयित िै यहद असभलेख िे इिके प्रनतकूल प्रतीत नि ं िोता िै तो
यि उपधारणा करे गा क्रक ऐिा ननणिय ििम अधधकाररता िाले न्यायालय द्िारा िन
ु ाया गया था क्रकन्तु ऐिी
उपधारणा को अधधकाररता का अभाि िाबबत करके विस्थावपत क्रकया जा िकेगा ।

1. 1951 के अधधननयम िं. 2 की धारा 3 द्िारा ''राज्यों'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
2. 1951 के अधधननयम िं. 2 की धारा 3 द्िारा ''राज्यों'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

िाद करने का स्थान


15. िि न्यायालय स्जिमें िाद िंस्स्थत क्रकया जाए- िर िाद उि ननम्नतम श्रेणी के न्यायालय में
िंर्स्थत क्रकया जाएगा जो उिका विचारण करने के सलए ििम िै ।
16. िादों का ििााँ िंस्स्थत क्रकया जाना जिााँ विषय-िस्तु स्स्थत िै - क्रकिी विधध द्िारा विहित धन-
िंबध
ं ी या अन्य पररिीमाओं के अधीन रिते िुए, िे िाद जो-
(क) भाटक या लाभों के िहित या रहित स्थािर िंपवि के प्रत्यद्
ु धरण के सलए,
(ख) स्थािर िंपवि के विभाजन के सलए,
(ग) स्थािर िंपवि के बंधक की या उि पर के भार की दशा में परु ोबंध, वििय या मोचन के सलए,
(घ) स्थािर िंपवि में के क्रकिी अन्य अधधकार या हित के अिधारण के सलए,
(ड) स्थािर िंपवि के प्रनत क्रकए गए दोष के सलए प्रनतकर के सलए,

45
(च) करस्थम ् या कुकी के िस्तत
ु ; अधीन जगम िंपवि के प्रत्यद्
ु धरण के सलए,
िैं, उि न्यायालय में िंर्स्थत क्रकए जाएाँगे र्जिकी अधधकाररता की स्थानीय िीमाओं के भीतर िि
िंपवि र्स्थत िै :
परन्तु प्रनतिाद के द्िारा या ननसमि धाररत स्थािर िंपवि के िबध में अनत
ु ोष की या ऐिी िंपवि
के प्रनत क्रकए गए दोष के सलए प्रनतकर की असभप्रार्प्त के सलए िाद, जिााँ चािा गया अनत
ु ोष उिके स्िीय
आज्ञानि
ु तिन के द्िारा पण
ू ि रुप िे असभप्राप्त क्रकया जा िकता िै , उि न्यायालय में र्जिकी अधधकाररता की
स्थानीय िीमाओं के भीतर िंपवि र्स्थत िै या उि न्यायालय में र्जिकी अधधकाररता की स्थानीय िीमाओं
के भीतर प्रनतिाद िास्ति में और स्िेच्छा िे ननिाि करता िै या कारबार करता िै या असभलाभ के सलए
स्ियं काम करता िै , िंर्स्थत क्रकया जा िकेगा ।
स्पष्टीकरण- इि धारा में “िंपवि” िे 1[भारत] में र्स्थत िंपवि असभप्रेत िै ।

1. 1951 के अधधननयम िं. 2 की धारा 3 द्िारा ''राज्यों'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया |

17. विसिन्न न्यायालयों की अधधकाररता के िीतर स्स्थत स्थािर िंपवि के सलए


िाद- जिााँ िाद विसभन्न न्यायालयों की अधधकाररता के भीतर र्स्थत स्थािर िंपवि के िंबध
ं में
अनत
ु ोष की या ऐिी िंपवि के प्रनत क्रकए गए दोष के सलए प्रनतकर की असभप्रार्प्त के सलए िै ििााँ िि
िाद क्रकिी भी ऐिे न्यायालय में िंर्स्थत क्रकया जा िकेगा र्जिकी अधधकाररता की स्थानीय िीमाओं
के भीतर िंपवि का कोई भाग र्स्थत िै :
परन्तु यि तब जबक्रक परू ा दािा उि िाद की विषय-िस्तु के मप
ू य की दृर्ष्ट िे ऐिे
न्यायालय द्िारा िंज्ञेय िै ।
18. जिााँ न्यायालयों की अधधकाररता की स्थानीय िीमाएं-अननस्श्चत िै ििााँ िाद के
िंस्स्थत क्रकए जाने का स्थान- (1) जिााँ यि असभकथन क्रकया जाता िै क्रक यि अननर्श्चत िै क्रक
कोई स्थािर िंपवि दो या अधधक न्यायालयों में िे क्रकि न्यायालय की अधधकाररता की स्थानीय
िीमाओं के भीतर र्स्थत िै ििााँ उन न्यायालयों में िे कोई भी एक न्यायालय, यहद उिका िमाधान
िो जाता िै क्रक असभकधथत अननर्श्चतता के सलए आधार िै , उि भाि का कथन असभसलणखत कर
िकेगा और तब उि िंपवि िे िंबधं धत क्रकिी भी िाद को ग्रिण करने और उिका ननपटारा करने के
सलए आगे कायििाि कर िकेगा, और उि िाद में उिकी डडिी का िि प्रभाि िोगा मानो िि िंपवि
उिकी अधधकाररता की स्थानीय िीमाओं के भीतर र्स्थत िो :
परन्तु यि तब जबक्रक िि िाद ऐिा िै र्जिके िबध में न्यायालय उि िाद की प्रकृनत और
मप
ू य की दृर्ष्ट िे अधधकाररता का प्रयोग करने के सलए ििम िै ।
(2) जिााँ कथन उपधारा (1) के अधीन असभसलणखत नि ं क्रकया गया िै और क्रकिी अपील
या पन
ु र िण न्यायालय के िामने यि आिेप क्रकया जाता िै क्रक ऐिी िंपवि िे िंबधं धत िाद में डडिी
या आदे श ऐिे न्यायालय द्िारा क्रकया गया था र्जिकी ििााँ अधधकाररता नि ं थी जिााँ िंपवि र्स्थत िै
िि अपील या पन
ु र िण न्यायालय उि आिेप को तब तक अनज्ञ
ु ात नि ं करे गा जब तक क्रक उिकी
राय न िो क्रक िाद के िंर्स्थत क्रकए जाने के िमय उिके िंबध
ं में अधधकाररता रखने िाले न्यायालय
के बारे में अननर्श्चतता के सलए कोई यर्ु क्तयक्
ु त आधार नि ं था उिके पररणामस्िरूप न्याय की
ननष्फलता िुई िै ।
19. शरीर या जंगम िंपवि के प्रनत क्रकए गए दोषों के सलए प्रनतकर के सलए िाद – जिााँ िाद शर र
या जंगम िंपवि के प्रनत क्रकए गए दोष के सलए प्रनतकर के सलए िै ििााँ यहद दोष एक न्यायालय की

46
अधधकाररता की स्थानीय िीमाओं के भीतर क्रकया गया था और प्रनतिाद क्रकिी अन्य न्यायालय की
अधधकाररता की स्थानीय िमाओं के भीरत ननिाि करता िै या कारबार करता िै या असभलाभ के सलए स्िंय
काम करता िै तो िाद िाद के विकपप पर उक्त न्यायालयों में िे क्रकिी भी न्यायालय में िंर्स्थत क्रकया
जा िकेगा |
20. अन्य िाद ििााँ िंस्स्थत क्रकए जा िकेंगे जिााँ प्रनतिादी ननिाि करते िैं या िाद- िे तक
ु पैदा
िोता िै - पि
ू ोक्त पररिीमाओं के अधीन रिते िुए, िर िाद ऐिे न्यायालय में िंर्स्थत क्रकया जाएगा र्जिकी
अधधकाररता की स्थानीय िीमाओं के भीतर-
(क) प्रनतिाद या जिााँ एक िे अधधक प्रनतिाद िै ििााँ प्रनतिाहदयों मे िे िर एक िाद के प्रारं भ के
िमय िास्ति में और स्िेच्छा िे ननिाि करता िै या कारबार करता िै या असभलाभ के सलए स्ियं काम
करता िै , अथिा
(ख) जिााँ एक िे अधधक प्रनतिाद िै ििााँ प्रनतिाहदयों में िे कोई भी प्रनतिाद िाद के प्रारं भ के
िमय िास्ति में और स्िेच्छा िे ननिाि करता िै या कारबार करता िै या असभलाभ के सलए स्ियं काम
करता िै , परं तु यि तब जबक्रक ऐिी अिस्था में या तो न्यायालय की इजाजत दे द गई िै या जो प्रनतिाद
पि
ू ोक्त रूप में ननिाि नि ं करने या कारबार नि ं करते या असभलाभ के सलए स्ियं काम नि ं करते, िे ऐिे
िंर्स्थत क्रकए जाने के सलए उपगत िो गए िै ; अथिा
(ग) िाद-िे तक
ु पण
ू त
ि : या भागत: पैदा िोता िै :
1* * * * *
2
[स्पष्टीकरण] - ननगम के बारे में यि िमझा जाएगा क्रक यि [भारत] में के अपने एकमात्र या
3

प्रधान कायािलय में या क्रकिी ऐिे िाद-िे तक


ु की बाबत, जो ऐिे क्रकिी स्थान में पैदा िुआ िै जिााँ उिका
अधीनस्थ कायािलय भी िै , ऐिे स्थान में कारबार करता िै ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 7 द्िारा (1.2.1977 िे) स्पष्ट करण 1 का लोप ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 7 द्िारा (1.2.1977 िे) ''स्पष्ट करण 2'' के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
3. 1961 के अधधननयम िं. 2 की धारा 3 द्िारा ''राज्यो'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

21. अधधकाररता के बारे में आक्षेप – 1[(1)] िाद लाने के स्थान के िंबध
ं में कोई भी आिेप क्रकिी
भी अपील या पन
ु र िण न्यायालय द्िारा तब तक अनज्ञ
ु ात नि ं क्रकया जाएगा जब तक जब तक क्रक ऐिा
आिेप प्रथम बार के न्यायालय में यथािंभि िििप्रथम अििर पर और उन िभी मामलों में , र्जनमें वििाद्क
र्स्थर क्रकए जाते िै , ऐिे र्स्थर करण के िमय या उिके पिले न क्रकया गया िो और जब तक क्रक उिके
पररणामस्िरूप न्याय की ननष्फलता न िुई िो ।
2
[(2)] क्रकिी न्यायालय की अधधकाररता की धन - िंबध
ं ी पररिीमा के आधार पर उिकी ििमता के
बारे में कोई आिेप क्रकिी अपील या पन
ु र िण न्यायालय द्िारा तब तक अनज्ञ
ु ात नि ं क्रकया जाएगा जब
तक क्रक ऐिा आिेप प्रथम बार के न्यायालय में यथािंभि िििप्रथम अििर पर और उन िभी मामलो में ,
र्जनमें वििाद्यक र्स्थर क्रकए जाते िैं, ऐिे र्स्थर करण के िमय या उिके पिले न क्रकया गया िो और जब
तक क्रक उिके पररणामस्िरूप न्याय की ननष्फलता न िुई िो ।
(3) क्रकिी ननष्पादन -न्यायालय की अधधकाररता की स्थानीय िीमाओं के आधार पर उिकी ििमता
के बारे में कोई आिेप अपील या पन
ु र िण न्यायालय द्िारा तब तक अनज्ञ
ु ात नि ं क्रकया जाएगा जब तक
क्रक ऐिा आिेप ननष्पादन न्यायालय में यथािंभि िििप्रथम अििर पर न क्रकया गया िो और जब तक क्रक

47
उिके पररणाम स्िरूप न्याय की ननष्फलता न िुई िो ।]

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 8 द्िारा (1.2.1977 िे) धारा 21 उिकी उपधारा (1) के
रूप मे पन
ु : िंख्याक्रकत क्रकया गया |
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 8 द्िारा (1.2.1977 िे) अत: स्थावपत क्रकया गया |

1
[21क. िाद लाने के स्थान के बारे में आक्षेप पर डििी को अपास्त करने के सलए िाद का िजवन-
उिी िक के अधीन मक
ु दमा करने िाले उन्ि ं पिकारों के बीच या ऐिे पिकारों के बीच र्जनिे व्यत्ु पन्न
अधधकार के अधीन िे या उनमें िे कोई दािा करते िै , क्रकिी पि
ू ि
ि ती िाद में पाररत डडिी की विधधमान्यता
को िाद लाने के स्थान के बारे में क्रकिी आिेप के आधार पर प्रश्नगत करने िाला कोई िाद नि ं लाया
जाएगा ।
स्पष्टीकरण- ''पि
ू ि
ि ती िाद'' पद िे िि िाद असभप्रेत िै जो उि िाद के विननश्चय के पिले
विननर्श्चत िो चक
ु ा िै र्जिमें डडिी की विधधमान्यता का प्रश्न उठाया गया िै ,चािे पि
ू त
ि न विननर्श्चत िाद
उि िाद िे पिले िंर्स्थत क्रकया गया िो या बाद में र्जिमें डडिी की विधधमान्यता का प्रश्न उठाया गया िै

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 9द्िरा (1.2.1977 िे) अत: स्थावपत क्रकया गया ।

22. जो िाद एक िे अधधक न्यायालयों में िंस्स्थत क्रकए जा िकते िै उनको अन्तररत करने की
शस्तत- जिां कोई िाद दो या अधधक न्यायालयों में िे क्रकिी एक में िंर्स्थत क्रकया जा िकता िै और ऐिे
न्यायलयों में िे क्रकिी एक में िंर्स्थत क्रकया गया िै ििां कोई भी प्रनतिाद अन्य पिकारों की िच
ू ना दे ने
के पश्चात ् यथािंभिि िििप्रथम अििर पर और उन िब मामलों में , र्जनमें वििाद्यक र्स्थर क्रकए जाते िै ,
ऐिे र्स्थर करण के िमय या उिके पिले क्रकिी अन्य न्यायालय को िाद अन्तररत क्रकए जाने के सलए
आिेदन कर िकेगा और िि न्यायालय र्जििे ऐिा आिेदन क्रकया गया िै , अन्य पिक परों के (यहद कोई
िों) आिेपों पर विचार करनेके पश्चात ् यि अिधाररत करे गा क्रक अधधकाररता रखने िाले कई न्यायालयों में
िे क्रकि न्यायालय में िाद चलेगा ।
23. क्रकि न्यायलय में आिेदन क्रकया जाए- (1) जिां अधधकाररता रखने िाले कई न्यायालय एक ि
अपील न्यायालय के अधीनस्थ िै ििां धारा 22 के अधीन आिेदन अपील न्यायालय में क्रकया जाएगा ।
(2) जिां ऐिे न्यायालय विसभन्न अपील न्यायालयों के अधीन िोते िुए भी एक ि उच्च न्यायालय
के अधीनस्थ िै ििां िि आिेदन उक्त उच्च न्यायालय में क्रकया जाएगा ।
(3) जिां ऐिे न्यायालय विसभन्न उच्च न्यायालयों के अधीनस्थ िै ििां आिेदन उि उच्च न्यायालय
में क्रकया जाएगा र्जिकी अधधकाररता की स्थानीय िीमाओं के भीतर िि न्यायालय र्स्थत िै र्जिमें िाद
लाया गया िै ।
24. अन्तरण और प्रत्यािरण की िाधारण शस्तत- (1) क्रकिी भी पिकार के आिेदन पर और
पिकारों को िच
ू ना दे ने के पश्चात ् और उनमें िे जो िन
ु िाई के इच्छुक िों उनको िन
ु ने के पश्चात ् या ऐिी
िच
ू ना हदए बबना स्िप्रेरणा िे, उच्च न्यायालय या र्जला न्यायालय क्रकिी भी प्रिम में -
(क) ऐिे क्रकिी िाद, अपील या अन्य कायििाि को, जो उिके िामने विचारण या ननपटारे के सलए
लर्म्बत िै , अपने अधीनस्थ ऐिे क्रकिी न्यायालय को अन्तररत कर िकेगा जो उिका विचारण करने या उिे
ननपटाने के सलए ििम िै , अथिा

48
(ख) अपने अधीनस्थ क्रकिी न्यायालय में लर्म्बत क्रकिी िाद, अपील या अन्य कायििाि का
प्रत्यािरण कर िकेगा तथा-
(i) उिका विचारण या ननपटारा कर िकेगा; अथिा
(ii) अपने अधीनस्थ ऐिे क्रकिी न्यायालय को उिका विचारण या ननपटारा करने के सलए अन्तररत
कर िकेगा, जो उिका विचारण करने या उिे ननपटाने के सलए ििम िै ; अथिा
(iii) विचारण या ननपटारा करने के सलए उिी न्यायालय को उिका प्रत्यन्तरण कर िकेगा, र्जििे
उिका प्रत्यािरण क्रकया गया था ।
(2) जिां क्रकिी िाद या कायििाि का अन्तरण या प्रत्यािरण उपधारा (1) के अधीन क्रकया गया िै
ििा िि न्यायालय, र्जिे 1[ऐिे िाद या कायििाि का तत्पश्चात ् विचारण करना िै या उिे ननपटाना िै ]
अन्तरण आदे श में हदए गए विशेष ननदे शों के अधीन रिते िुए या तो उिका पन ु : विचारण कर िकेगा या
उि प्रिम िे आगे कायििाि करे गा जिां िे उिका अन्तरण या प्रत्यािरण क्रकया गया था ।
2
[(3) इि धारा के प्रयोजनों के सलए, -
(क) अपर और ििायक न्यायाधीशों के न्यायालय, र्जला न्यायालय के अधीनस्थ िमझे जाएगें ;
(ख) ''कायििाि '' के अन्तगित क्रकिी डडिी या आदे श के ननष्पादन के सलए कायििाि भी िै | ]

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 10 द्िारा (1.2.1977 िे) ''ऐिे िाद का तत्पश्चात ्
विचारण करना िै '' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 10 द्िारा (1.2.1977 िे) उपधारा (3) के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया ।

(4) क्रकिी लघि


ु ाद न्यायालय िे इि धारा के अधीन अन्तररत या प्रत्याहृत क्रकिी िाद का विचारण
करने िाला न्यायालय ऐिे िाद के प्रयोजनों के सलए लघि
ु ाद न्यायालय िमझा जाएगा ।
1
[(5) कोई िाद या कायििाि उि न्यायालय िे इि धारा के अधीन अन्तररत की जा िकेगी र्जिे
उिका विचारण करने की अधधकाररता नि ं िै ।)

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 10 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्तःस्थावपत क्रकया गया ।

1
[25. िादों आहद के अंतरण करने की उच्चतम न्यायालय की शस्तत – (1) क्रकिी पिकार के
आिेदन पर और पिकारों को िधू चत करने के पश्चात ् और उनमें िे जो िन
ु िाई के इन्व्छुक िों उनको िन
ु ने
के पश्चात ् यहद उच्चतम न्यायालय का क्रकिी भी प्रिम पर यि िमाधान िो जाता िै क्रक न्याय की प्रार्प्त
के सलए इि धारा के अधीन आदे श दे ना िमीचीन िै तो िि यि ननदे श दे िकेगा क्रक क्रकिी राज्य के क्रकिी
उच्च न्यायालय या अन्य सिविल न्यायालय िे क्रकिी अन्य राज्य के क्रकिी उच्च न्यायालय या अन्य
सिविल न्यायालय को कोई िाद, अपील या अन्य कायििाि अन्तररत कर द जाए।
(2) इि धारा के अधीन प्रत्येक आिेदन िमािेदन के द्िारा क्रकया जाएगा और उिके अनि
ु मथिन में
एक शपथपत्र िोगा।
(3) िि न्यायालय र्जिको ऐिा िाद, अपील या अन्य कायििाि अन्तररत की गई िै , अन्तरण
आदे श में हदए गए विशेष ननदे शों के अधीन रिते िुए, या तो उिका पन
ु :विचारण करे गा या उि प्रिम िे
आगे कायििाि करे गा र्जि पर िि उिे अंतररत क्रकया गया था।
(4) इि धारा के अधीन आिेदन को खाररज करते िुए यहद उच्चतम न्यायालय की यि राय िै क्रक

49
आिेदन तच्
ु छ था या तंग करने िाला था तो िि आिेदक को यि आदे श दे िकेगा क्रक िि उि व्यर्क्त को
र्जिने आिेदन का विरोध क्रकया िै , प्रनतकर के रूप में दो िजार रुपए िे अनधधक ऐिी रासश िंदि करे जो
न्यायालय मामले की पररर्स्थनतयों में उधचत िमझे |
(5) इि धारा के अधीन अन्तररत िाद, अपील या अन्य कायििाि को लागू िोने िाल विधध िि
विधध िोगी जो िि न्यायालय र्जिमें िि िाद, अपील या अन्य कायििाि मल
ू त: िंर्स्थत की गई थी, ऐिे
िाद अपील या अन्य कायििाि को लागू करता।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 11 द्िारा (1-2-1977 िे धारा 25 के स्थान पर


प्रनतस्थावपत क्रकया |

िादों का िंस्स्थत क्रकया जाना

26.िादों का िंस्स्थत क्रकया जाना - [(1)] - िर िाद िादपत्र को उपर्स्थत करके, या ऐिे अन्य
1

प्रकार ऐिे प्रकार िे, जैिा विहित क्रकया जाए, िंर्स्थत क्रकया जाएगा ।
2
[(2)] प्रत्येक िादपत्र में तथ्य शपथपत्र द्िारा िाबबत क्रकए जाएंगे ।]

िमन और प्रकटीकरण
27. प्रनतिाहदयों को िमन- जिां कोई िाद िम्यक् रुप िे िंर्स्थत क्रकया जा चक
ु ा िै ििां उपिंजात
िोने और दािे का उिर दे ने के सलए िमन प्रनतिाद के नाम ननकाला जा िकेगा 3[और उिकी तामील ऐिे
हदन को, जो िाद के िंस्थापन की तार ख िे तीि हदन के बाद का न िो, विहित र नत िे की जा िकेगी ।]

28. जिां प्रनतिादी क्रकिी अन्य राज्य में ननिाि करता िै ििां िमन की तामील- (1) िमन अन्य
राज्य में तामील क्रकए जाने के सलए ऐिे न्यायालय को और ऐिी र नत िे भेजा जा िकेगा जो उि राज्य में
प्रिि
ृ ननयमों द्िारा विहित की जाए।
(2) िि न्यायालय र्जिे ऐिा िमन भेजा जाता िै , उिकी प्रार्प्त पर आगे ऐिे कायििाि करे गा
मानो िि उि न्यायालय द्िारा ि ननकाला गया िो और तब िि उि िमन को तथा उिके बारे में अपनी
कायििाहियों के असभलेख को (यहद कोई िो) उिे ननकालने िाले न्यायालय को लौटाएगा |

1. 1999 के अधधननयम िं. 46 की धारा 2 द्िारा (1-7-2002 िे) धारा 26 को उिकी उपधारा
(1) के रुप मे पन
ु : िंख्याक्रकत क्रकया गया ।
2. 1999 के अधधननयम िं. 46 की धारा 3 द्िारा (1-7-2002 िे) अंत:स्थावपत ।
3. 1999 के अधधननयम िं. 46 की धारा 3 द्िारा (1-7-2002 िे) अंत:स्थावपत ।

1
[(3) जिां क्रकिी दि
ू रे राज्य में तामील के सलए भेजे गए िमन की भाषा उपधारा (2) में ननहदि ष्ट
असभलेख की भाषा िे सभन्न िै ििां उि उपधारा के अधीन भेजे गए असभलेख के िाथ उिके िाथ उिका--
(क) यहद िमन जार करने िाले न्यायालय की भाषा हिन्द िै तो, हिन्द में , या
(ख) यहद ऐिे असभलेख कीं भाषा हिन्द या अंग्रेजी िे सभन्न िै तो, हिन्द या अंग्रेजी में ,
अनि
ु ाद भी भेजा जाएगा।
2
[29. विदे शी िमनों की तामील- िे िमन और अन्य आदे सशकाएं जो -

50
(क) भारत के क्रकिी भी ऐिे भाग में स्थावपत क्रकिी सिविल या राजस्ि न्यायालय द्िारा र्जि पर
इि िंहिता के उपबन्धों का विस्तार नि ं िै ; अथिा
(ख) क्रकिी ऐिे सिविल या राजस्ि न्यायालय द्िारा जो केन्द्र य िरकार के प्राधधकार िे भारत के
बािर स्थावपत क्रकया गया िै या चालू रखा गया िै ; अथिा
(ग) भारत के बािर के क्रकिी अन्य ऐिे सिविल या राजस्ि न्यायालय द्िारा र्जिके बारे में केन्द्र य
िरकार ने राजपत्र में अधधिच
ू ना द्िारा यि घोवषत क्रकया िै क्रक उिे इि धारा के उपबन्ध लागू िै ,
ननकाल गई िै , उन राज्यिेत्रो में के न्यायालयों को भेजी जा िकेगी र्जन पर इि िंहिता का
विस्तार िै और उनकी तामील ऐिे की जा िकेगी मानो िे ऐिे न्यायालयों द्िारा ननकाले गए िमन िो।]

1.1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 12 द्िारा (1-5-1977 िे) अन्तःस्थावपत क्रकया गया|
2.1951 के अधधननयम िं. 2 की धारा 6 द्िारा पि
ू ि
ि ती धारा के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया|

30. प्रकटीकरण और उिके िदृश बातों के सलए आदे श करने की शस्तत- ऐिी शतों और पररिीमाओं
के अधीन रिते िुए जो विहित की जाएं, न्यायालय क्रकिी भी िमय या तो स्िप्रेरणा िे या क्रकिी भी
पिकार के आिेदन पर-

(क) ऐिे आदे श कर िकेगा जो पररप्रश्नों के पररदान और उनका उिर दे ने िे, दस्तािेजों और तथ्यों
की स्िीकृनत िे और दस्तािेजों या अन्य भौनतक पदाथों के जो िाक्ष्य के रुप में पेश क्रकए जाने योग्य िों,
प्रकट करण, ननर िण, पेश क्रकए जाने, पररबद्ध क्रकए जाने और लौटाए जाने िे िम्बर्न्धत िभी विषयों के
बारे में आिश्यक या यर्ु क्तयक्
ु त िै ;
(ख) ऐिे व्यर्क्तयों के नाम िमन ननकाल िकेगा र्जनकी िार्जर या तो िाक्ष्य दे ने या दस्तािेजें
पेश करने या पि
ू ोक्त जैिे अन्य पदाथों को पेश करने के सलए अपेक्षित िै ;
(ग) यि आदे श दे िकेगा क्रक कोई तथ्य शपथपत्र द्िारा िाबबत क्रकया जाए।
31. िाक्षी को िमन- धारा 27, धारा 28 और धारा 29 के उपबन्ध िाक्ष्य दे ने या दस्तािेजों या
अन्य भौनतक पदाथों के पेश करने के सलए िमनों को लागू िोंगे।
32. व्यनतिम के सलए शस्तत- न्यायालय क्रकिी ऐिे व्यर्क्त को र्जिके नाम धारा 30 के अधीन
िमन ननकाला गया िै , िार्जर िोने के सलए वििश कर िकेगा और उि प्रयोजन के सलए-
(क) उिकी धगरफतार के सलए िारं ट ननकाल िकेगा;
(ख) उिकी िम्पवि को कुकि कर िकेगा और उिका वििय कर िकेगा;
(ग) उिके ऊपर 1[पांच िजार रुपए िे अनधधक] जुमािना अधधरोवपत कर िकेगा;
(घ) उिे आदे श दे िकेगा क्रक िि अपनी उपिंजानत के सलए प्रनतभनू त दे और व्यनतिम करने पर
उिको सिविल कारागार को िप
ु दि कर िकेगा ।

1. 1999 के अधधननयम िं. 46 की धारा 4 द्िारा (1-7-2002 िे) कुछ शब्दों के स्थान पर
प्रनतस्थावपत ।

ननणवय और डििी
33. ननणवय और डििी- न्यायालय मामले की िन
ु िाई िो चुकने के पश्चात ् ननणिय िन
ु ाएगा और ऐिे
ननणिय के अनि
ु रण में डडिी िोगी।

51
ब्याज
34. ब्याज-(1) जिां और जिां तक क्रक डडिी धन के िंदाय के सलए िै , न्यायालय डडिी में यि
आदे श दे िकेगा क्रक न्यायननणीत मल
ू रासश पर क्रकिी ऐिे ब्याज के अनतररक्त जो ऐिी मल
ू रासश पर िाद
िंर्स्थत क्रकए जाने िे पि
ू ि क्रक क्रकिी अिधध के सलए न्यायननणीत िुआ िै , िाद की तार ख िे डडिी की
तार ख तक ब्याज, ऐिी दर िे जो न्यायालय यर्ु क्तयक् ु त िमझे, [ऐिी मल
1
ू रासश पर] डडिी की तार ख िे
िंदाय की तार ख तक या ऐिी पि
ू त
ि र तार ख तक जो न्यायालय ठीक िमझे, 2[छि प्रनतशत प्रनत िषि िे
अनधधक ऐिी दर िे जो न्यायालय यर्ु क्तयक्
ु त िमझे, आगे के ब्याज िहित,] हदया जाए:
3
[परन्तु जिां इि प्रकार न्यायननणीत रासश के िंबध
ं में दानयत्ि क्रकिी िाणणर्ज्यक िंव्यििार िे
उदभतू िुआ था ििां ऐिे आगे के ब्याज की दर छि प्रनतशत प्रनतिषि की दर िे अधधक िो िकती िै , क्रकन्तु
ऐिी दर ब्याज की िंविदात्मक दर िे जिां कोई िंविदात्मक दर नि ं िै ििां उि दर िे अधधक नि ं िोगी
र्जि पर िाणणर्ज्यक िंव्यििार के िंबध
ं में राष्र यकृत बैंक धन उधार या अधग्रम दे ते िै ।
स्पष्टीकरण 1- इि उपधारा में ''राष्रीयकृत बैंक'' िे बैंककार कम्पनी (उपिमों का अजिन और अन्तरण)
अधधननयम, 1970 (1970 का 5) में यथापररभावषत तत्स्थानी नया बैंक असभप्रेत िै ।

1. 1956 के अधधननयम िं. 66 की धारा 2 द्िारा कुछ शब्दों के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया
2. 1956 के अधधननयम िं. 66 की धारा 2 द्िारा कुछ शब्दो के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया
3. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 13 द्िारा (1-7-1977 िे) जोडा ।

स्पष्टीकरण 2- इि धारा के प्रयोजनो के सलए, कोई िंव्यििार िाणणर्ज्यक िंव्यििार िै , यहद िि


दानयत्ि उपगत करने िाले पिकार के उद्योग, व्यापार या कारबार िे िम्बर्न्धत िै ।)
(2) 1[जिां ऐिी मल
ू रासश पर] डडिी की तार ख िे िंदाय की तार ख तक या अन्य पि
ू त
ि र तार ख
तक आगे के ब्याज के िंदाय के िंबध
ं में ऐिी डडिी मौन िै ििा यि िमझा जाएगा क्रक न्यायालय ने ऐिा
ब्याज हदलाने िे इन्कार कर हदया िै और उिके सलए पथ
ृ क िाद नि ं िोगा ।

1. 1956 के अधधननयम िं. 66 की धारा 2 द्िारा कुछ शब्दों के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया
गया |

खचे
35. खचे- (1) ऐिी शतों और पररिीमाओं के जो विहित की जाएं और तत्िमय प्रिि
ृ क्रकिी विधध
के उपबन्धों के अधीन रिते िुए, िभी िादों के और उनिे आनष
ु धं गक खचों का हदलाना न्यायालय के
वििेकाधधकार में िोगा और न्यायालय को यि अिधारणा करने की क्रक ऐिे खचे क्रकिके द्िारा या क्रकि
िम्पवि में िे और क्रकतने तक हदए जाने िैं, और पि
ू ोक्त प्रयोजनो के सलए िभी आिश्यक ननदे श दे ने की
परू शर्क्त िोगी । यि तथ्य क्रक न्यायालय को िाद का विचारण करने की अधधकाररता नि ं िै , ऐिी
शर्क्तयों के प्रयोग के सलए िजिन नि ं िोगा।
(2) जिां न्यायालय यि ननदे श दे ता िै क्रक खचे पररणाम के अनि
ु ार नि ं हदए जाएगें ििां न्यायालय
अपने कारणों को लेखबद्ध करे गा ।
2
[35क. सम्या या तंग करने िाले दािों या प्रनतरक्षाओं के सलए प्रनतकरात्मक खचे- (1) यहद क्रकिी
िाद में या अन्य कायििाि में 3[र्जिके अन्तगित ननष्पादन कायििाि आती िै क्रकन्तु 4[अपील या पन
ु र िण

52
नि ं आती िै ] कोई पिकार दािे या प्रनतरिा के बारे में इि आधार पर आिेप करता िै क्रक दािा या
प्रनतरिा या उिका कोई भाग, जिां तक िि आिेपकताि के विरुद्ध िै , ििां तक उि पिकार के ज्ञान के
समथ्या या तंग करने िाला िै , र्जिके द्िारा िि क्रकया गया िै , और तत्पश्चात ् यहद ऐिा दािा या ऐिी
प्रनतरिा ििा तक पण
ू त
ि : या भागत: नामजूर, पररत्यक्त या प्रत्याहृत की जाती िै जिां तक िि आिेपकताि
के विरुद्ध िै , तो न्यायालय,
[ यहद िि ठीक िमझे तो,] ऐिे दािे या प्रनतरिा को समथ्या या तंग करने िाल ठिराने के सलए अपने
1

कारणों को असभसलणखत करने के पश्चात ् यि आदे श कर िकेगा क्रक आिेपकताि को प्रनतकर के रुप में खचे
का िंदाय िि पिकार करे र्जिके द्िारा ऐिा दािा या प्रनतरिा की गई िै ।
1. 1956 के अधधननयम िं. 66 की धारा 3 द्िारा उपधारा (3) का लोप ।
2. 1922 के अधधननयम िं. 9 की धारा 2 द्िारा धारा 35क का अन्तःस्थापन क्रकया गया था, र्जिे
उिकी धारा 1(2) के अधीन क्रकिी भी राज्य मे क्रकिी विननहदिष्ट तार ख को राज्य िरकार द्िारा
प्रित
ृ क्रकया जा िकेगा । इिे मम्
ु बई, बंगाल, िंयक्
ु त प्रान्त, पंजाब, बबिार, मध्य प्रान्त, अिम,
उडीिा और तसमलनाडु मे इि प्रकार प्रित
ृ क्रकया ।
3. 1956 के अधधननयम िं. 66 की धारा 4 द्िारा “जो अपील नि ं िै ” के स्थान पर प्रनतस्थावपत
क्रकया गया ।
4. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 14 द्िारा (1-2-1977 िे) “र्जिमें िे अपील अपिर्जित
िै ” के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
(2) कोई भी न्यायालय 2[तीन िजार रुपए] की रकम और अपनी धन-िंबध
ं ी अधधकाररता की
पररिीमा तक की रकम में िे जो भी रकम कम िो, उििे अधधक रकम के िदाय के सलए ऐिा कोई आदे श
नि ं करे गा:
परन्तु जिां क्रकिी ऐिी न्यायालय की जो प्रान्तीय लघि
ु ाद न्यायालय अधधननयम, 1887 (1887का
9) [या 4[भारत के क्रकिी ऐिे भाग] में , 5[र्जि पर उक्त अधधननयम का विस्तार निें िै ,] प्रिि
3
ृ तस्तमान
विधध के अधीन]] लघि
ु ाद न्यायालय की अधधकाररता का प्रयोग करता िै और जो [ऐिे अधधननयम या विधध
6

के अधीन] गहठत न्यायालय नि ं िै , अधधकाररता की धन-िंबध


ं ी पररिीमाऐ दो िौ पचाि रुपए िे कम िै
ििां उच्च न्यायालय ऐिी रकम, जो दो िौ पचाि रुपए िे अनधधक िो, और उन पररिीमाओं िे एक िौ
रुपए िे अधधक न िो, खचे के रूप में इि धारा के अधीन अधधननणीत करने की शर्क्त उि न्यायालय को
दे िकेगा:
परन्तु यि और क्रक उच्च न्यायालय ऐिी रकम को पररिीसमत कर िकेगा, र्जिे कोई न्यायालय या
न्यायालयों का िगि इि धारा के अधीन खचि के रूप में अधधननणीत करने के सलए िशक्त िै |
(3) कोई भी व्यर्क्त, र्जिके विरुद्ध र्जिके इि धारा के अधीन आदे श क्रकया गया िै , इि कारण
िे कोई छूट क्रकिी ऐिे आपराधधक दानयत्ि िे नि ं पाएगा, जो उिके द्िारा क्रकए गए क्रकिी दािे या
प्रनतरिा के िंबध
ं में िैं ।
(4) क्रकिी समथ्या या तंग करने िाले दािे या प्रनतरिा के िंबध
ं में इि धारा के अधीन अधधननणीत
क्रकिी प्रनतकर की रकम को ऐिे दािे या प्रनतरिा के िंबध
ं में नक
ु िानी या प्रनतकर के सलए क्रकए गए क्रकिी
पश्चातिती
् िाद में हििाब में सलया जाएगा ।

1. 1956 के अधधननयम िं. 66 की धारा 4 द्िारा कुछ शब्दो के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया
गया|
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 14 द्िारा (1-2-1977 िे) ''एक िजार रुपए” के स्थान

53
पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया |
3. 1951 के अधधननयम िं. 2 की धारा 7 द्िारा अन्तःस्थावपत क्रकया गया ।
4. विधध अनक
ु ू लन (िं. 2) आदे श, 1966 द्िारा ''भाग ख राज्य'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया
गया ।
5. विधध अनक
ु ू लन (िं. 2) आदे श, 1956 द्िारा ''भाग ख राज्य'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया
गया ।
6. 1961 के अधधननयम िं. 2 की धारा 7 द्िारा “उि अधधननयम के अधीन” के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

राज्य िंशोधन
उिर प्रदे श राज्य द्िारा िंशोधन- उिरप्रदे श सिविल विधध (िध
ु ार एिं िंशोधन) अधधननयम (1954
का 24 हदनांक 30-11-1964 िे प्रभािी) के द्िारा उिरप्रदे श में प्रयोज्य िोने के सलए अर्स्तत्ियक्
ु त उपधारा
(1) के स्थान पर ननम्न को प्रनतस्थावपत क्रकया गया-
''(1) यहद क्रकिी िाद अथिा कारि िाई ननष्पादन कारि िाई को शासमल करते िुए परं तु अपील अथिा
पन
ु र िण न िोने िाल में , यहद न्यायालय यि पाता िै क्रक दािा अथिा प्रनतरिा अथिा इिका कोई भाग
उि पिकार की जानकार र्जिने क्रक इिे अग्रेवषत क्रकया िै समथ्या अथिा तंग करने िाला था एिं यहद ऐिा
दािा अथिा प्रनतरिा अथिा इिका कोई भाग िंपण
ू ि तौर पर अथिा आंसशक तौर पर अस्िीकृत कर हदया
जाता िै , त्यक्त कर हदया जाता िै अथिा िावपि ले सलया जाता िै तो न्यायालय ऐिे दािे अथिा प्रनतरिा
को समथ्या या तंग करने िाला मानने के कारणों को असभसलणखत करने के उपरांत िफल पिकार को मामले
में अन्य वििाद्यकों पर ननणिय िोने के बािजद
ू भी प्रनतकर के रूप में खचे को भग
ु तान करने का आदे श दे
िकेगा।
1976 के िंशोधन अधधननयम ि. 57 के द्िारा उिर प्रदे श में धारा 35 (1- क) को अंतःस्थावपत
क्रकया गया िै जो इि प्रकार िै -
''35 (1- क) उपधारा (1) के प्रािधान यथािश्यक पररितिन िहित अपील को प्रयोज्य िोंगे जिां अपील य
न्यायालय विचारण न्यायालय के ननणिय को पष्ु ट करता िै और विचारण न्यायालय ने उि उपधारा के
अधीन प्रनतकरात्मक कास्ट प्रदान नि ं की िै अथिा अिमधु चत प्रदान की िै ।''

[35 ख. विलम्ब काररत करने के सलए खचाव- (1) यहद क्रकिी िाद की िन
1
ु िाई के सलए या उिमें
कोई कायििाि करने के सलए ननयत क्रकिी तार ख को, िाद का कोई पिकार-
(क) कायििाि करने में , जो िि उि तार ख को इि िंहिता द्िारा या इिके अधीन करने के सलए
अपेक्षित था, अिफल रिता िै ; अथिा
(ख) ऐिी कायििाि करने के सलए या िाक्ष्य पेश करने के सलए या क्रकिी अन्य आधार पर स्थगन
असभप्राप्त करता िै , तो न्यायालय ऐिे कारणों के आधार पर जो लेखबद्ध क्रकए जाएगें , ऐिे पिकार िे
दि
ू रे पिकार को ऐिे खचों का, जो न्यायालय की राय में दि
ू रे पिकार को उिके द्िारा उि तार ख को
न्यायालय में िार्जर िोने में उपगत व्ययों की बाबत प्रनतपनू ति करने के सलए यर्ु क्तयक्
ु त रुप मे पयािप्त िों,
िंदाय करने की अपेिा करने िाला आदे श कर िकेगा और ऐिे आदे श की तार ख के ठीक बाद की तार ख
को ऐिे खचों का िंदाय-
(क) यहद िाद को ऐिे खचों का िंदाय करने का आदे श हदया गया था तो िाद द्िारा िाद;
(ख) यहद प्रनतिाद को ऐिे खचों का िंदाय करने के सलए आदे श हदया गया था तो प्रनतिाद द्िारा

54
प्रनतरिा, में आगे कायििाि करने के सलए परु ोभाव्य शति िोगी।
स्पष्टीकरण- जिां प्रनतिाहदयों या प्रनतिाहदयों के िमि
ू ों द्िारा पथ
ृ क-पथ
ृ क प्रनतरिाएं की गई िैं ििां
ऐिे खचाि का िंदाय, ऐिे प्रनतिाहदयों या प्रनतिाहदयों के िमि
ू ों द्िारा, र्जन्िें न्यायालय द्िारा ऐिे खचों का
िंदाय करने का आदे श हदया गया िै , प्रनतरिा में आगे कायििाि करने के सलए परु ोभाव्य शति िोगी।
(2) ऐिे खचे, र्जनका उपधारा (1) के अधीन िंदाय क्रकए जाने का आदे श क्रकया गया िै यहद उनका
िंदाय कर हदया गया िै तो, उि िाद में पाररत डडिी में अधधननणीत क्रकए गए खचों में िर्म्मसलत नि
क्रकए जाएंग;े क्रकन्तु यहद ऐिे खचों का िंदाय नि ं क्रकया गया िै तो, ऐिे खचों की रकम और उन व्यर्क्तयों
के नाम और पते, र्जनके द्िारा ऐिे खचे िंदेय िै , उपदसशित करने िाला पथ
ृ क आदे श क्रकया जाएगा और
ऐिे तैयार क्रकए गए आदे श का ऐिे व्यर्क्तयों के विरुद्ध ननष्पादन क्रकया जा िकेगा।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 15 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया गया|

िाग 2
ननष्पादन
िाधारण
1
[36. आदे शों को लागू िोना- इि िंहिता के डडक्रियों के ननष्पादन िे िम्बर्न्धत उपबन्धों के बारे में
(र्जनके अन्तगित डडिी के अधीन िंदाय िे िंबधं धत उपबन्ध भी िै ) यि िमझा जाएगा क्रक िे आदे शो के
ननष्पादन को (र्जनके अन्तगित आदे श के अधीन िंदाय भी िैं) ििां तक लागू िैं जिां तक क्रक िे उन्िें लागू
क्रकए जा िकेंगे। ]

37. डििी पाररत करने िाले न्यायालय की पररिाषा- जब तक क्रक कोई बात, विषय या िंदभि में
विरुद्ध में न िो, डडक्रियों के ननष्पादन के िम्बन्ध मे “डडिी पाररत करने िाला न्यायालय” पद के या उि
प्रभाि िाले शब्द के बारे में यि िमझा जाएगा क्रक उिके या उनके अन्तगित-
(क) जिां ननष्पाहदत की जाने िाल डडिी अपील अधधकाररता के प्रयोग में पाररत की गई िै ििा
प्रथम बार का न्यायालय आता िै , तथा
(ख) जिां प्रथम बार का न्यायालय विद्यमान नि ं रि गया िै या उिे ननष्पाहदत करने की
अधधकाररता उिे नि ं रि गई िै ििा िि न्यायालय आता िै जो, यहद िि िाद र्जिमें डडिी पाररत की गई
िै , डडिी के ननष्पादन के सलए आिेदन दे ने के िमय िंर्स्थत क्रकया जाता तो ऐिे िाद का विचारण करने
की अधधकाररता रखता। विचारण करने की अधधकाररता रखता |

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 16 द्िारा (1-2-1977 िे) धारा 36 के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया ।
1
[स्पष्टीकरण-- प्रथम बार के न्यायालय की डडिी का ननष्पादन करनेकी अधधकाररता केिल इि आधार पर
िमाप्त नि ं िो जाती क्रक उि िाद के िंर्स्थत क्रकए जाने के पश्चात ् र्जिमें डडिी पाररत की गई थी या
डडिी पाररत क्रकए जाने के पश्चात ् उि न्यायालय की अधधकाररता िे कोई िेत्र क्रकिी अन्य न्यायालय की
अधधकाररता में अन्तररत कर हदया गया िै क्रकन्तु ऐिे प्रत्येक मामले में , ऐिे अन्य न्यायालय को भी डडिी
के ननष्पादन की अधधकाररता िोगी यहद डडिी के ननष्पादन के सलए आिेदन करने के िमय, उिे उक्त िाद
का विचारण करने की अधधकाररता िोती। ]

55
िे न्यायालय स्जनके द्िारा डिक्रिया ननष्पाहदत की जा िकेंगी
38.िि न्यायालय स्जिके द्िारा डििी ननष्पाहदत की जा िकेगी- डडिी या तो उिे पाररत करने िाले
न्यायालय द्िारा या उि न्यायालय द्िारा, र्जिे िि ननष्पादन के सलए भेजी गई िै , ननष्पाहदत की जा
िकेगी।

39. डििी का अन्तरण—(1) डडिी पाररत करने िाला न्यायालय डडिीदार के आिेदन पर उिे
[ििम अधधकाररता िाले अन्य न्यायालय को] ननष्पादन के सलए भेजेगा-
2

(क) यहद िि व्यर्क्त, र्जिके विरुद्ध डडिी पाररत की गई िै , ऐिे अन्य न्यायालय की अधधकाररता
की स्थानीय िीमाओं के भीतर िास्ति में और स्िेच्छा िे ननिाि करता िै या कारबार करता िै या
असभलाभ के सलए स्ियं काम करता िै ; अथिा

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 17 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्तःस्थावपत क्रकया गया ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 8 द्िारा (1-2-1977 िे कुछ शब्दो के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया |
(ख) यहद ऐिे व्यर्क्त की िम्पवि जो ऐिी डडिी की तर्ु ष्ट के सलए पयािप्त िो डडिी पाररत करने
िाले न्यायालय की अधधकाररता की स्थानीय िीमाओं के भीतर नि ं िै और ऐिे अन्य न्यायालय की
अधधकाररता की स्थानीय िीमाओं के भीतर िै ; अथिा
(ग) यहद डडिी उिे पाररत करने िाले न्यायालय की अधधकाररता की स्थानीय िीमाओं के बािर
र्स्थत स्थािर िम्पवि के वििय या पररदान का ननदे श दे ती िै ; अथिा
(घ) यहद डडिी पाररत करने िाला न्यायालय क्रकिी अन्य कारण िे र्जिे िि लेखबद्ध करे गा, यि
विचार करता िै क्रक डडिी का ननष्पादन ऐिे अन्य न्यायालय द्िारा क्रकया जाना चाहिए।
(2) डडिी पाररत करने िाला न्यायालय प्रेरणा िे उिे ििम अधधकाररता िाले क्रकिी भी अधीनस्थ
न्यायालय को ननष्पादन के सलए भेज िकेगा।
[(3) इि धारा के प्रयोजनों के सलए, क्रकिी न्यायालय को ििम अधधकाररता िाला न्यायालय
1

िमझा जाएगा यहद, उि न्यायालय को डडिी के अन्तरण के सलए आिेदन करने के िमय, ऐिे न्यायालय
को उि िाद का विचारण करने की अधधकाररता िोती र्जिमें ऐिे डडिी पाररत की गई थी |]
[(4) इि धारा की क्रकिी बात िे यि नि ं िमझा जाएगा क्रक िि उि न्यायालय को, र्जिने डडिी
2

पाररत की िै , अपनी अधधकाररता की स्थानीय िीमाओं के बािर ऐिी डडिी को, क्रकिी व्यर्क्त या िम्पवि के
विरुद्ध ननष्पादन के सलए प्राधधकृत करती िै ।]

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 18 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्तःस्थावपत क्रकया गया ।
2. 2002 के अधधननयम िं. 22 की धारा 2 द्िारा (1-7-2002 िे) अतःस्थावपत ।

राज्य िंशोधन
उिरप्रदे श राज्य िंशोधन—उ.प्र. अधधननयम (1978 का 31) जो क्रक हदनांक 1-8-1978 िे प्रभािी
िुआ के द्िारा उिरप्रदे श राज्य में उपधारा (3) के स्थान पर ननम्न को प्रनतस्थावपत क्रकया गया-
''(3) इि धारा के प्रयोजनों के सलए क्रकिी न्यायालय को र्जिमें की डडिी पाररत की गई थी ििम
अधधकारता िाला न्यायालय माना जाएगा यहद डडिी को अंतरण करने के सलए आिेदन करने के िमय िाद
की विषय िस्तु की रासश अथिा मप
ू य इिकी मल
ू अधधकारता, यहद कोई िो की आधथिक िीमाओं िे अधधक

56
नि ं िोता िै , इि बात के िोते िुए भी उिे िाद का विचारण करने की अधधकाररता नि ं थी। ''

40. क्रकिी अन्य राज्य के न्यायालय को डििी का अन्तरण- जिां डडिी क्रकिी अन्य राज्य में
ननष्पादन के सलए भेजी जाती िै ििां िि ऐिे न्यायालय को भेजी जाएगी, और ऐिी र नत िे ननष्पाहदत की
जाएगी जो उि राज्य में प्रिि
ृ ननयमों द्िारा विहित की जाए।

41. ननष्पादन कायविाहियों के पररणाम का प्रमाखणत क्रकया जाना- िि न्यायालय, र्जिे डडिी को ऐिे
ननष्पादन का तथ्य या जिां पि
ू ि कधथत न्यायालय उिे ननष्पाहदत करने में अिफल रिता िै ििां ऐिी
अिफलता की पररर्स्थनतयां प्रमाणणत करे गा ।

42. अन्तररत डििी के ननष्पादन में न्यायालय की शस्ततयां- 1[(1)] अपने को भेजी गई डडिी का
ननष्पादन करने िाले न्यायालय को ऐिी डडिी के ननष्पादन में िे ि शर्क्तयां िोगी जो उिकी िोंती यहद
िि उिके ि द्िारा पाररत की गई िोती। िे िभी व्यर्क्त, जो डडिी की अिज्ञा करते िै या उिके ननष्पादन
में बाधा डालते िै , ऐिे न्यायालय द्िारा उिी र नत िे दण्डनीय िोंगे मानों डडिी उिने ि पाररत की िो और
ऐिी डडिी के ननष्पादन में उिका आदे श अपील के बारे में उन्ि ननयमो के अधीन रिे गा मानो डडिी उिके
ि द्िारा पाररत की गई िो ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 19 द्िारा (1-2-1977 िे) धारा 42 उिकी उपधारा (1)
के रुप मे पन
ु ःिख्याक्रकत क्रकया गया।
[(2) उपंधारा (1) उपबन्धों की व्यापकता पर प्रनतकूल प्रभाि डाले बबना, उि उपधारा के अधीन
1

न्यायालय की शर्क्तयों के अन्तगित डडिी पाररत करने िाले न्यायालय की ननम्नसलणखत शर्क्तयां िोंगी
अथाित-
(क) धारा 39 के अधीन क्रकिी अन्य न्यायालय को ननष्पादन के सलए डडिी भेजने की शर्क्त;
(ख) धारा 50 के अधीन मत
ृ ननणीत-ऋणी के विधधक प्रनतननधध के विरुद्ध डडिी का ननष्पादन
करने की शर्क्त;
(ग) डडिी को कुकि करने का आदे श दे ने की शर्क्त।
(3) उपधारा (2) में विननहदिष्ट शर्क्तयो के प्रयोग मे आदे श पाररत करने िाला न्यायालय उिकी एक
प्रनत डडिी पाररत करने िाले न्यायालय को भेजेगा।
(4) इि धारा की क्रकिी बात िे यि नि िमझा जाएगा क्रक िि उि न्यायालय को र्जिकी डडिी
ननष्पादन के सलए भेजी गई िै , ननम्नसलणखत शर्क्तयो मे िे कोई शर्क्त प्रदान करती िै , अथाित-
(क) डडिी के अन्तररती की प्रेरणा िे ननष्पादन का आदे श दे ने की शर्क्त;
(ख) क्रकिी फमि के विरुद्ध पाररत डडिी की दशा में , आदे श 21 के ननयम 50 के उपननयम (1) के
खण्ड (ख) या खण्ड (ग) में ननहदि ष्ट व्यर्क्त िे सभन्न क्रकिी व्यर्क्त के विरुद्ध ऐिी डडिी के ननष्पादन की
इजाजत दे नेकी शर्क्त]

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 19 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्तःस्थावपत क्रकया गया ।

राज्य िंशोधन
उ. प्र. राज्य द्िारा िंशोधन- उ.प्र. अधधननयम (1970 का 14) जो क्रक हदनांक 8-4-1970 िे प्रभािी

57
िुआ के द्िारा उिरप्रदे श में प्रयोज्य िोने के सलए धारा 42 को इि प्रकार प्रनतस्थावपत क्रकया गया-
''42. अंतररत डििी के ननष्पादन में न्यायालय की शस्ततयााँ- (1) अपने को भेजी गई डडिी का
ननष्पादन करने िाले न्यायालय को ऐिी डडिी के ननष्पादन में िे ि शर्क्ियााँ िोंगी जो उिकी िोतीं यहद िि
उिके द्िारा ि पाररत की गई िोतीं । िे िभी व्यर्क्त, जो डडिी की अिज्ञा करते िैं या उिके ननष्पादन में
बाधा डालते िैं ऐिी न्यायालय द्िारा उिी र नत िे दण्डनीय िोंगे मानो डडिी उिने ि पाररत की िो, और
ऐिी डडिी के ननष्पादन में उिका आदे श अपील के बारे में उन्ि ं ननयमों के अधीन रिे गा मानो डडिी उिके
ि द्िारा पाररत की गई िै ।
(2) उपधारा (1) के उपबंधों की व्यापकता पर प्रनतकूल प्रभाि डाले बबना, उि उपधारा के अधीन
न्यायालय की शर्क्तयों के अंतगित डडिी पाररत करने िाले न्यायालय की ननम्नसलणखत शर्क्तयााँ िोगी
अथाित-
(क) धारा 39 के अधीन क्रकिी अन्य न्यायालय को ननष्पादन के सलए डडिी भेजने की शर्क्त;
(ख) धारा 50 के अधीन मत
ृ ननणीत - ऋणी के विधधक प्रनतननधध के विरुद्ध डडिी का ननष्पादन
करने की शर्क्त;
(ग) डडिी को कुकि करने का आदे श दे ने की शर्क्त ।
(घ) डडिी की ननष्पादनता को लेकर पररिीमा िे िर्जित क्रकिी प्रश्न को ननराकृत करने की शर्क्त;
(ड.) आदे श 21 ननयम 2 के अंतगित भग
ु तान अथिा िमायोजन असभसलणखत करने की शर्क्त;
(च) आदे श 21 ननयम 29 के अंतगित ननष्पादन को स्थधगत करने के आदे श की शर्क्त;
(छ) फमि की विरुद्ध डडिी पाररत क्रकए जाने के मामले में , आदे श 21 के ननयम 50 के उपननयम
(1) के खण्ड (ख) अथिा खण्ड (ग) में ननहदिष्ट व्यर्क्त के अलािा क्रकिी व्यर्क्त के विरुद्ध ऐिी डडिी को
ननष्पाहदत करने के सलए अनम
ु नत को प्रदान करने की शर्क्त ।
(3) उपधारा (2) मे विननहदिष्ट शर्क्तयों को प्रयोग में आदे श पाररत करने िाला न्यायालय इिकी
प्रनतसलवप उि न्यायालय को भेजेगा र्जिने डडिी पाररत की थी ।
(4) इि धारा की कोई बात न्यायालय को र्जिको क्रक डडिी ननष्पादन के सलए भेजी जाती िै डडिी
के अंतररती के आग्रि पर ननष्पादन का आदे श करने की शर्क्त प्रदान करने िाल नि ं िमझी जाएगी ।

[43. स्जन स्थानों पर इि िंहिता का विस्तार निें िै . ििां के सिविल न्यायालयों द्िारा पाररत
1

डिक्रियों का ननष्पादन- यहद कोई डडिी, जो क्रकिी ऐिे सिविल न्यायालय द्िारा पाररत की गई िै , जो भारत
के क्रकिी ऐिे भाग में स्थावपत िै र्जि पर इि िंहिता के उपबन्धों का विस्तार नि िै या क्रकिी ऐिे
न्यायालय द्िारा पाररत की गई िै जो केन्द्र य िरकार के प्राधधकार द्िारा भारत के बािर स्थावपत क्रकया
गया िै या चालू रखा गया िै , उिे पाररत करने िाले न्यायालय की अधधकाररता के भीतर, ननष्पाहदत निें की
जा िकती, तो इिमें उपबधधंत र नत िे िि उन राज्यिेत्रो के, र्जन पर इि िंहिता का विस्तार िै , क्रकिी भी
न्यायालय की अधधकाररता के भीतर ननष्पाहदत की जा िकेगी ।]

1. 1951 के अधधननयम िं. 2 की धारा 8 द्िारा पि


ू ि
ि ती धारा के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया
गया|

[44स्जन स्थानों पर इि िंहिता का विस्तार निीं िै , ििां के राजस्ि न्यायालयों द्िारा पाररत
1

डिक्रियों का ननष्पादन- राज्य िरकार, राजपत्र में अधधिच


ू ना द्िारा, यि घोवषत कर िकेगी क्रक भारत के ऐिे
क्रकिी भाग के, र्जि पर इि िंहिता के उपबन्धों का विस्तार नि ं िै , क्रकिी राजस्ि न्यायालय की डडक्रियों

58
का या ऐिी डडक्रियों के क्रकिी िगि का राज्य में ऐिे ननष्पादन क्रकया जा िकेगा मानो िे उि राज्य में के
न्यायालय द्िारा पाररत की गई थी |]

[244क. व्यनतकारी राज्यक्षेत्रों के न्यायालयों द्िारा पाररत डिक्रियों का ननष्पादन- (1) जिा क्रकिी
3***

व्यनतकार राज्यिेत्र के िररष्ठ न्यायालयों में िे क्रकिी की डडिी की प्रमाणणत प्रनत क्रकिी र्जला न्यायालय
में फाइल की गई िै ििां उि डडिी का 4[भारत] में ननष्पादन ऐिे क्रकया जा िकेगा मानो िि उि र्जला
न्यायालय द्िारा पाररत की गई थी।
(2) डडिी की प्रमाणणत प्रनत के िाथ ऐिे िररष्ठ न्यायालय का ऐिा प्रमाणपत्र फाइल क्रकया जाएगा
र्जिमें उि विस्तार का, यहद कोई िो, उपलेख िोगा र्जि तक िि डडिी तष्ु ट या िमायोर्जत की गई िै ,
और ऐिा प्रमाणपत्र इि धारा के अधीन की कायििाहियों के प्रयोजनो के सलए ऐिी तर्ु ष्ट या िमायोजन के
विस्तार का ननश्चायक िबत
ू िोगा।
(3) धारा 47 के उपबन्ध इि धारा के अधीन डडिी का ननष्पादन करने िाले र्जला न्यायालय की
कायििाहियोंको उि डडिी की प्रमाणणत प्रनत के फाइल क्रकए जाने के िमय िे लागु िोंगे और यहद र्जला
न्यायालय को िमाधानप्रद रुप में यि दसशित कर हदया जाता िै क्रक डडिी धारा 13 के खण्ड (क) िे खण्ड
(च) तक में विननहदिष्ट अपिादों मे िे क्रकिी में आती िै तो िि न्यायालय ऐिी डडिी का ननष्पादन करने िे
इन्कार कर दे गा।
5
[स्पष्टीकरण 1 – “व्यनतकार राज्यिेत्रों” िे भारत के बािर का ऐिा दे श या राज्यिेत्र असभप्रेत िै ,
र्जिे केन्द्र य िरकार इि धारा के प्रयोजनो के सलए राजपत्र में अधधिच
ू ना द्िारा व्यनतकार राज्यिेत्र
घोवषत करे और ऐिे क्रकिी राज्यिेत्र के प्रनत ननदे श िे ''िररष्ठ न्यायालय” िे ऐिे न्यायालय असभप्रेत िै जो
उक्त अधधिच
ू ना में विननहदिष्ट क्रकए जाएं।
स्पष्टीकरण 2- िररष्ठ न्यायालय के प्रनत ननदे श िे प्रयक्
ु त “डडिी” शब्द िे ऐिे न्यायालय की ऐिी
डडिी या ननणिय असभप्रेत िै , र्जिके अधीन ऐिी धनरासश िंदेय िै जो करों या िमान प्रकृनत के अन्य
प्रभारों के सलए अथिा जुमािने या अन्य शार्स्त के बारे मे िंदेय रासश नि ं िै , क्रकन्तु क्रकिी भी दशा में इिके
अन्तगित माध्यस्थम ् पंचाट नि ं िोगा, यद्यवप ऐिा पंचाट डडिी या ननणिय के रूप में प्रितिनीय िै |

1. 1951 के अधधननयम िं. 2 की धारा 9 द्िारा पि


ू ि
ि ती धारा के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया|
2. 1937 के अधधननयम िं. 8 की धारा 2 द्िारा अन्तःस्थावपत क्रकया गया ।
3. 1952 के अधधननयम िं. 71 की धारा 2 द्िारा ''यन
ू ाइटे ड क्रकं गडम या'' शब्दों का लोप ।
4. 1951 के अधधननयम िं. 2 की धारा 3 द्िारा “राज्यो” के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
5. 1952 के अधधननयम िं. 71 की धारा 2 द्िारा स्पष्ट करण 1 िे 3 के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया
गया ।

1
[45. िारत के बािर डिक्रियो का ननष्पादन- इि भाग की पि
ू ग
ि ामी धाराओं में िे उतनी धाराओ का,
र्जतनी न्यायालय को क्रकिी अन्य न्यायालय में ननष्पादन के सलए डडिी भेजने के सलए िशक्त करती िै ,
यि अथि लगाया जाएगा क्रक िि क्रकिी राज्य में के न्यायालय को केन्द्र य िरकार के प्राधधकार द्िारा
[भारत के बािर] स्थावपत
2 3***
क्रकिी ऐिे न्यायालय में ननष्पादन के सलए डडिी भेजने के सलए िशक्त करती
िै , र्जिके बारे में उि राज्य िरकार ने राजपत्र में अधधिच
ू ना द्िारा यि घोवषत क्रकया िै क्रक उिे यि धारा
लागू िोगी ।]

59
46. आज्ञापत्र- (1) जब कभी डडिी पाररत करने िाला न्यायालय डडिीदार के आिेदन पर ठीक
िमझे तब िि क्रकिी ऐिे अन्य न्यायालय को जो उि डडिी के ननष्पादन के सलए ििम िै , यि आज्ञापत्र
ननकाल िकेगा क्रक िि ननणीत-ऋणी की उिी आज्ञापत्र में विननहदि ष्ट कोई भी िम्पवि कुकि कर ले।

1. भारत शािन (भारतीय विधध अनक


ु ू लन) आदे श, 1937 द्िारा मल
ू धारा 45 के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
2. विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1950 द्िारा ''क्रकिी भारतीय राज्य मे'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया
गया |
3. भारतीय स्ितंत्रता (केन्द्र य अधधननयमो और अध्यादे शो का अनक
ु ू लन) आदे श, 1948 द्िारा ''या
बनाए रखे गए'' शब्दो का लोप |

(2) िि न्यायालय, र्जिे आज्ञापत्र भेजा जाता िै , उि िम्पवि को ऐिी र नत िे कुकि करने के सलए
कायििाि करे गा जो डडिी के ननष्पादन में िम्पवि की कुकी के सलए विहित िै :
परन्तु जब तक क्रक कुकी की अिधध डडिी पाररत करने िाले न्यायालय के आदे श द्िारा बढा न द
गई िो या जब तक क्रक कुकी के अििान के पि
ू ि डडिी कुकी करने िाले न्यायालय को अन्तररत न कर द
गई िो और डडिीदार ने ऐिी िम्पवि के वििय के आदे श के सलए आिेदन न कर हदया िो, आज्ञापत्र के
अधीन कोई भी कुकी दो माि िे अधधक चालू न रिे गी।

प्रश्न स्जनका अिधारण डििी का ननष्पादन करने िाला न्यायालय करे गा


47. प्रश्न स्जनका अिधारण डििी का ननष्पादन करने िाला न्यायालय करे गा—(1) िे िभी प्रश्न, जो
उि िाद के पिकारों के या उनके प्रनतननधधयों के बीच पैदा िोते िै , र्जिमें डडिी पाररत की गई थी और जो
डडिी के ननष्पादन, उन्मोचन या तर्ु ष्ट िे िंबधं धत िै , डडिी का ननष्पादन करने िाले न्यायालय द्िारा, न
क्रक पथ
ृ क िाद द्िारा, अिधाररत क्रकए जाएगें ।

1* * * * *

(3) जिा यि प्रश्न पैदा िोता िै क्रक कोई व्यर्क्त क्रकिी पिकार का प्रनतननधध िै या नि ं िै ििां
ऐिा प्रश्न उि न्यायालय द्िारा इि धारा के प्रयोजनो के सलए अिधाररत क्रकया जाएगा।
2
[स्पष्टीकरण 1- िि िाद र्जिका िाद खाररज िो चक
ु ा िो और िि प्रनतिाद र्जिके विरुद्ध िाद
खाररज िो चुका िै इि धारा के प्रयोजनो के सलए िाद के पिकार िै ।
स्पष्टीकरण 2- (क) डडिी के ननष्पादन के सलए वििय में िम्पवि का िेता इि धारा के प्रयोजनों
के सलए उि िाद का पिकार िमझा जाएगा र्जिमें िि डडिी पाररत की गई िै ; और
(ख) ऐिी िम्पवि के िेता को या उिके प्रनतननधधयों को कब्जा दे ने िे िंबधं धत िभी प्रश्न इि धारा
के अथि में डडिी के ननष्पादन, उन्मोचन या उिकी तर्ु ष्ट िे िबंधधत प्रश्न िमझे जाएगें । ]

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 20 द्िारा (1-2-1977 िे) उपधारा (2) का लोप ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 20 द्िारा (1-2-1977 िे) पि
ू ि
ि ती स्पष्ट करण के स्थान
पर प्रनतस्थावपत |

राज्य िंशोधन

60
उ.प्र. राज्य द्िारा िंशोधन- उ.प्र. के अधधननयम ि. 54 िषि 1954 के द्िारा धारा 47 में जो
स्पष्ट करण ि. 2 जोडा गया था उिको उ.प्र. अधधननयम िमांक 57 िषि 1976 के द्िारा विलोवपत क्रकया
गया।
ननष्पादन के सलए िमय की िीमा
48. [कुछ मामलों में ननष्पादन िर्जित ।] पररिीमा अधधननयम, 1963(1963 का 36) की धारा 28
द्िारा (1 जनिर , 1964 िे) ननरसित ।

अन्तररती और विधधक प्रनतननधध


49. अन्तररती- डडिी का िर अन्तररती, उिे उन िाम्याओं के (यहद कोई िो) अधीन रिते िुए धारण
करे गा र्जन्िें ननणीत-ऋणी मल
ू डडिीदार के विरुद्ध प्रिनतित करा िकता था ।

50. विधधक प्रनतननधध- (1) जिां डडिी के पण


ू त
ि : तष्ु ट क्रकए जाने िे पिले ननणीत- ऋणी की मत्ृ यु
िो जाती िै ििां डडिी का धारक डडिी पाररत करने िाले न्यायालय में आिेदन कर िकेगा क्रक िि उनका
ननष्पादन मत
ृ क के विधधक प्रनतननधध के विरुद्ध करे ।
(2) जिां डडिी ऐिे विधधक प्रनतननधध के विरुद्ध ननष्पाहदत की जाती िै ििां िि मत
ृ क की िम्पवि
क उि पररमाण तक ि दायी िोगा र्जतने पररमाण तक िि िम्पवि उिके िाथ में आई िै और िम्यक् रुप
िे व्ययननत नि ं कर द गई िै और डडिी ननष्पाहदत करने िाला न्यायालय ऐिा दानयत्ि असभननर्श्चत
करने के प्रयोजन के सलए स्िप्रेरणा िे या डडिीदार के आिेदन पर ऐिे लेखाओं को, जो िि न्यायालय ठीक
िमझे, पेश करनेके सलए ऐिे विधधक प्रनतननधध को वििश कर िकेगा ।

ननष्पादन-प्रक्रिया
51. ननष्पादन कराने की न्यायालय की शस्ततयां- ऐिी शतो और पररिीमाओं के अधीन रिते िुए,
जो विहित की जाए, न्यायालय डडिीदार के आिेदन पर आदे श दे िकेगा क्रक डडिी का ननष्पादन-
(क) विननहदि ष्ट रुप िे डडिीत क्रकिी िम्पवि के पररदान द्िारा क्रकया जाए;
(ख) क्रकिी िम्पवि की कुकी और वििय द्िारा या उिकी कुकी के बबना वििय द्िारा की जाए;
(ग) 1[जिां धारा 58 के अधीन धगरफ्तार और ननरोध अनज्ञ
ु ेय िै ििा धगरफ्तार और ऐिी अिधध के
सलए जो उि धारा में विननहदि ष्ट अिधध िे अधधक न िो,] कारागार में ननरोध द्िारा क्रकया जाए;
(घ) ररिीिर की ननयर्ु क्त द्िारा क्रकया जाए; अथिा
(ड.) ऐिी अन्य र नत िे क्रकया जाए र्जिकी हदए गए अनत
ु ोष की प्रकृनत अपेिा करे :
2
[परन्तु जिां डडिी धन के िंदाय के सलए िै ििां कारागार में ननरोध द्िारा ननष्पादन के सलए
आदे श तब तक नि ं हदया जाएगा तब तक क्रक ननणीत-ऋणी को इिके सलए िे तक
ु दसशित करने का अििर
दे ने के पश्चात ् क्रक उिे कारागार को क्यों न िप
ु द
ु ि क्रकया जाए, न्यायालय का असभसलणखत कारणों िे यि
िमाधान नि ं िो जाता क्रक -
(क) ननणीत-ऋणी इि उद्दे श्य िे या यि पररणाम पैदा करने के सलए डडिी के ननष्पादन में बाधा
या विलम्ब िो,-
(i) न्यायालय की अधधकाररता की स्थानीय िीमाओं िे फरार िोने िाला िै या उन्िें छोड़ने िाला
िै ,अथिा
(ii)उि िाद के िंर्स्थत क्रकए जाने के पश्चात ् र्जिमें िि डडिी पाररत की गई थी अपनी िम्पवि के
क्रकिी भाग को बेईमानी िे अन्तररत कर चक
ु ा िै , नछपा चक
ु ा िै या िटा चक
ु ा िै अथिा अपनी िम्पवि के

61
िम्बन्ध मे अिद्भािपण
ू ि कोई अन्य कायि कर चुका िै , अथिा
(ख) डडिी की रकम या उिके पयािप्त भाग का िंदाय करने के िाधन ननणीत-ऋणी के पाि िै या
डडिी की तार ख के पश्चात ् रि चुके िै और िि उिे िदि करने िे इकार या िंदत करने में उपेिा करता िै
या कर चुका िै ,
(ग) डडिी उि रासश के सलए िै , र्जिका लेखा दे ने के सलए ननणीत-ऋणी िैश्िासिक िै सियत में
आबद्ध था ।
स्पष्टीकरण- खण्ड (ख) के प्रयोजनों के सलए, ननणीत-ऋणी के िाधनों की गणना करने में , ऐिी
िम्पवि गणना में छोड़ द जाएगी, जो डडिी के ननष्पादन में कुकि क्रकए जाने िे तत्िमय प्रिि
ृ क्रकिी विधध
या विधध का बल रखने िाल रूहढ़ द्िारा या उिके अधीन छूट-प्राप्त िै ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 21 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्तःस्थावपत क्रकया गया 2.
1936 के अधधननयम िं. 21 की धारा 2 द्िारा अन्तःस्थावपत क्रकया गया ।

राज्य िंशोधन
उ.प्र. राज्य द्िारा िंशोधन—उ.प्र. राज्य के अधधननयम ि. 24 िषि 1954 के द्िारा खण्ड (ख) के
उपरांत ननम्न खंड (खख)को जोडा गया िै -
''(खख) वििय के अलािा अंतरण द्िारा, कुकी द्िारा अथिा क्रकिी िंपवि की बबना कुकी के द्िारा”
(इि िंशोधन को हदनांक 30-11-1954 िे प्रभािी क्रकया गया ।)

52. विधधक प्रनतननधध के विरुद्ध डििी का प्रितवन- (1) जिां क्रकिी मत


ृ व्यर्क्त के विधधक
प्रनतननधध के रूप में क्रकिी पिकार के विरुद्ध कोई डडिी पाररत की गई िै और डडिी मत
ृ क की िम्पवि में
िे धन िंदि क्रकए जाने के सलए िै और ििा ऐिी क्रकिी भी िम्पवि की कुकी और वििय द्िारा ननष्पाहदत
की जा िकेगी ।
(2) जिां ननणीत-ऋणी के कब्जे में ऐिी कोई िम्पवि बाकी न बची िो और िि न्यायालय का यि
िमाधान करने में अिफल रिता िै क्रक उिने मत
ृ क की उि िम्पवि का िम्यक् रुप िे उपयोजन कर हदया
िै र्जिका उिके कब्जे में आना िाबबत कर हदया गया िै ििां डडिी ननणीत- ऋणी के विरुद्ध उि िम्पवि
के पररमाण तक, र्जिके िम्बन्ध में िि न्यायालय का िमाधान करने में अिफल रिा िै , उिी र नत िे
ननष्पाहदत की जा िकेगी मानो िि डडिी िैयर्क्तक रूप िे उिके विरुद्ध पाररत की गई थी ।

53. पैतक
ृ िम्पवि का दानयत्ि- पत्र
ु या अन्य िंशज के िाथ में की ऐिी िम्पवि के बारे में , जो मत

पि
ू ज
ि के ऐिे ऋण के चक
ु ाने के सलए हिन्द ू विधध के अधीन दायी िै , र्जिके सलए डडिी पाररत की जा चक
ु ी
िै , धारा 50 और धारा 52 के प्रयोजनों के सलए यि िमझा जाएगा क्रक िि मत
ृ क की ऐिी िम्पवि िै जो
उिके विधधक प्रनतननधध के रुप में पत्र
ु या अन्य िंशज के िाथ में आई िै ।

54. िम्पदा का वििाजन या अंश का पथ


ृ तकरण- जिां डडिी क्रकिी ऐिी अविभक्त िम्पदा के
विभाजन के सलए िै , र्जि पर िरकार को हदए जाने के सलए राजस्ि ननधािररत िै, या ऐिी िम्पदा के अंश
के पथ
ृ क कब्जे के सलए िै ििां िम्पदा का विभाजन या अंश का पथ
ृ क्करण कलक्टर या कलक्टर के ऐिे
क्रकिी राजपबत्रत अधीनस्थ द्िारा, र्जिे उिने इि ननसमि प्रनतननयक्
ु त क्रकया िो, ऐिी िम्पदाओं के
विभाजन या अंशों के पथ
ृ क कब्जे िे िम्बर्न्धत तत्िमय प्रित
ृ विधध (यहद कोई िो) के अनि
ु ार क्रकया

62
जाएगा ।

धगरफ्तारी और ननरोध
55. धगरफ्तारी और ननरोध- (1) ननणीत-ऋणी डडिी के ननष्पादन में क्रकिी भी िमय और क्रकिी भी
हदन धगरफ्तार क्रकया जा िकेगा और यथािाक्ष्य शीघ्रता िे न्यायालय के िमि लाया जाएगा और िि उि
र्जले के सिविल कारागार में , र्जिमें ननरोध का आदे श दे ने िाला न्यायालय र्स्थत िै या जिां ऐिे सिविल
कारागार में उपयक्
ु त िाि-िवु िधा नि ं िै ििां ऐिे क्रकिी अन्य स्थान में , र्जिे राज्य िरकार ने ऐिे
व्यर्क्तयों के ननरोध के सलए ननयत क्रकया िो, र्जनके विरुद्ध क्रकए जाने का आदे श ऐिे र्जले के न्यायालयों
द्िारा हदया जाए, ननरुद्ध क्रकया जा िकेगा :
परन्तु प्रथमत: इि धारा के अधीन धगरफ्तार करने के प्रयोजन के सलए क्रकिी भी ननिाि- गि
ृ में
िय
ू ािस्त के पश्चात ् और िय
ू ोदय के पि
ू ि प्रिेश नि ं क्रकया जाएगा:
परन्तु द्वितीयत: ननिाि-गिृ का कोई भी बािर द्िार तब तक तोड़कर नि ं खोला जाएगा तब तक
क्रक ऐिा ननिाि-गि ृ ननणीत-ऋणी के अधधभोग में न िो और िि उि तक पिुंच िोने दे ने िे मना न करता
िो या पिुंच िोने दे ना क्रकिी भांनत ननिाररत न करता िो, क्रकन्तु जबक्रक धगरफ्तार करने के सलए प्रधधकृत
अधधकार ने क्रकिी ननिाि-गि
ृ में िम्यक् रुप िे प्रिेश कर सलया िै , तब िि क्रकिी ऐिे कमरे का द्िार तोड
िकेगा र्जिके बारे में उिे यि विश्िाि करनेका कारण िै क्रक उिमें ननणीत- ऋणी िै :
परन्तु तत
ृ ीयत: यहद कमरा क्रकिी ऐिे स्त्री के िास्तविक अधधभोग में िै जो ननणीत-ऋणी नि ं िै
और जो दे श की रुहढ़यों के अनि
ु ार लोगों के िामने नि ं आती िै तो धगरफ्तार करने के सलए प्राधधकृत
अधधकार उिे यि िच
ू ना दे गा क्रक िि ििां िे िट जाने के सलए स्ितंत्र िै और उिे िट जाने के सलए
यर्ु क्ियक्
ु त िमय अनज्ञ
ु ात करने और िट जाने के सलए उिे यर्ु क्तयक्
ु त िवु िधा दे ने के पश्चात ् िि
धगरफ्तार करने के प्रयोजन िे कमरे में प्रिेश कर िकेगा :
परन्तु चतथ
ु त
ि : जिां िि डडिी, र्जिके ननष्पादन में ननणीत-ऋणी को धगरफतार क्रकया गया िै , धन
के िंदाय के सलए डडिी िै और ननणीत-ऋणी डडिी की रकम और धगरफतार का खचाि उि अधधकार को
िंदि कर दे ता िै , र्जिने उिे धगरपतार क्रकया िै ििां ऐिे अधधकार उिे तरु न्त छोड दे गा ।
(2) राज्य िरकार, राजपत्र में अधधिच
ू ना द्िारा, यि घोषणा कर िकेगी क्रक ऐिा कोई भी व्यर्क्त
या ऐिे व्यर्क्तयों का िगि, र्जिकी धगरफ्तार िे लोगों को खतरा या अिवु िधा पैदा िो िकती िै , डडिी के
ननष्पादन में ऐिी प्रक्रकया िे सभन्न प्रक्रकया के अनि
ु ार जो राज्य िरकार इि ननसमि विहित करे , धगरफ्तार
क्रकए जाने के दानयत्ि के अधीन नि ं िोगा ।
(3) जिां ननणीत-ऋणी धन के िंदाय के सलए डडिी क्रक ननष्पादन में धगरफ्तार क्रकया जाता िै और
न्यायालय के िमि लाया जाता िै ििां न्यायालय उिे यि बताएगा क्रक िि हदिासलया घोवषत क्रकए जाने के
सलए आिेदन कर िकता िै और यहद उिने आिेदन की विषय-िस्तु के िंबध
ं मे कोई अिद्भािपण
ू ि कायि
नि ं क्रकया िै और यहद िि तत्िमय प्रिि
ृ हदिाला-विधध के उपबन्धों का अनप
ु ालन करता िै तो िि
1
[उन्मोधचत क्रकया जा िकेगा] ।
(4) जिां ननणीत-ऋणी हदिासलया घोवषत क्रकए जाने के सलए आिेदन का अपना आशय प्रकट करता
िै और न्यायालय को िमाधानप्रद प्रनतभनू त इि बात के सलए दे दे ता िै क्रक िि ऐिा आिेदन एक माि के
भीतर करे गा और िि आिेदन-िंबध
ं ी या उि डडिी-िंबध
ं ी र्जिके ननष्पादन में िि धगरफतार क्रकया गया था,
क्रकिी कायििाि में बल
ु ाए जाने पर उपंिजात िोगा ििां न्यायालय उिे धगरफ्तार िे [छोड़ िकेगा] और यहद
2

िि ऐिे आिेदन करने और उपिंजात िोने में अिफल रिता िै तो न्यायालय डडिी के ननष्पादन में या तो
प्रनतभनू त प्राप्त करने का या उि व्यर्क्त को सिविल कारागार को िप
ु द
ु ि क्रकए जाने का ननदे श दे िकेगा ।

63
1. 1921 के अधधननयम िं. 3 की धारा 2 द्िारा “उन्मोधचत क्रकया जाएगा” के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया |
2. 1921 के अधधननयम िं. 3 की धारा 2 द्िारा ''ननमक्
ुि त कर दे गा'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत
क्रकया गया ।

56. धन की डििी के ननष्पादन में स्स्त्रयों की धगरफ्तारी या ननरोध का ननषेध- इि भाग में क्रकिी
बात के िोते िुए भी, न्यायालय धन के िंदाय की डडिी के ननष्पादन में स्त्री को धगरफ्तार करने और
सिविल कारागार में ननरुद्ध करने के सलए आदे श नि ं दे गा ।

57. जीिन-ननिावि ििा- राज्य िरकार ननणीत-ऋणणयों के जीिन-ननिािि के सलए िंदेय मासिक भिों
के मापमान, उनकी पंर्क्त, मल
ू िंश और रार्ष्रकता के अनि
ु ार श्रेणीबद्ध करके ननयत कर िकेगी ।

58. ननरोध और छोड़ा जाना- (1) डडिी के ननष्पादन में सिविल कारागार में ननरुद्ध िर व्यर्क्त,-
(क) जिां डडिी को 1[2पांच िजार रुपए]] िे अधधक धनरासश का िंदाय करने के सलए िै 3[ििां तीन
माि िे अनधधक अिधध के सलए, और]
4
[(ख) जिां डडिी दो िजार रुपए िे अधधक क्रकं तु पांच िजार रुपए िे अनधधक धनरासश का िंदाय
करने के सलए िै ििां छि िप्ताि िे अनधधक अिधध के सलए];
5
[(1क) शंकाओं को दरू करने के सलए यि घोवषत क्रकया जाता िै क्रक जिा डडिी की कुल रकम 1[दो
िजार रुपए] िे अधधक नि ं िै ििां धन के िंदाय की डडिी के ननष्पादन में ननणीत-ऋणी को सिविल
कारागार में ननरुद्ध करने के सलए कोई आदे श नि ं क्रकया जाएगा ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 22 द्िारा (1-2-1977 िे) कुछ शब्दो के स्थान
पर प्रनतस्थावपत ।
2. 1999 के अधधननयम िं. 46 की धारा 5 द्िारा (1-7-2002 िे) कुछ शब्दो के स्थान
पर प्रनतस्थावपत ।
3. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 22 द्िारा (1-2-1977 िे) कुछ शब्दो के स्थान
पर प्रनतस्थावपत ।
4. 1999 के अधधननयम िं. 46 की धारा 5 द्िारा (1-7-2002 िे) खंड (ख) के स्थान पर
प्रनतस्थावपत ।
5. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 22 द्िारा (1-2-1977 िे) अंतःस्थावपत |

(2) इि धारा के अधीन ननरोध में िे छोड़ा गया ननणीत-ऋणी अपने छोडे जाने के कारण ि अपने
ऋण िे उन्मोधचत नि ं िो जाएगा, क्रकं तु िि र्जि डडिी के ननष्पादन में सिविल कारागार में ननरुद्ध क्रकया
गया था, उिके ननष्पादन में पन
ु : धगरफ्तार नि ं क्रकया जा िकेगा ।

1. 1999 के अधधननयम िं. 46 की धारा 5 द्िारा (1-7-2002 िे) ''पांच िौ रुपए'' के स्थान पर
प्रनतस्थावपत |

64
59. रुग्णता के आधार पर छोड़ा जाना- (1) न्यायालय ननणीत-ऋणी की धगरफतार के सलए िारण्ट
ननकाले जाने के पश्चात ् क्रकिी भी िमय उिकी गंभीर रुग्णता के आधार पर उि िारण्ट को रद्द कर
िकेगा ।
(2) जिां ननणीत-ऋणी धगरफतार क्रकया जा चक
ु ा िै ििां, यहद न्यायालय की यि राय िै क्रक उिका
स्िास्थ्य इतना ठीक नि ं िै क्रक उिे सिविल कारागार में ननरुद्ध क्रकया जाए तो, िि उिे छोड िकेगा ।
(3) यहद ननणीत-ऋणी को सिविल कारागार के िप
ु द
ु ि कर हदया गया तो उिको ििां िे-
(क) राज्य िरकार क्रकिी िंिामक या िांिधगिक रोग िोने के आधार पर छोड िकेगी, अथिा
(ख) िप
ु द
ु ि करने िाला न्यायालय या ऐिा कोई, न्यायालय र्जिके अधीनस्थ िि न्यायालय िै , उि
ननणीत-ऋणी के क्रकिी गंभीर रुग्णता िे पीडड़त िोने के आधार पर छोड़ िकेगा ।
(4) इि धारा के अधीन छोड़ा गया ननणीत-ऋणी पन
ु : धगरफ्तार क्रकया जा िकेगा, क्रकन्तु सिविल
कारागार में उिके ननरोध की कुल अिधध धारा 58 द्िारा विहित अिधध िे अधधक नि ं िोगी ।

कुकी
1
60. िि िम्पवि, जो डििी के ननष्पादन में कुकव और वििय की जा िकेगी- (1) ननम्नसलणखत
िम्पवि डडिी के ननष्पादन में कुकि और वििय की जा िकेगी अथाित ् भसू म, गि
ृ या अन्य ननमािण, माल,
धन, बैंक-नोट, चैक, विननमय पत्र, िुंडी, िचनपत्र, िरकार प्रनतभनू तयां, धन के सलए बंधपत्र या अन्य
प्रनतभनू तयां ऋण, ननगम- अंश और उिके सििाय जैिा इिमें इिके पश्चात ् िणणित िै , वििय की जा िकने
िाल अन्य ऐिी िभी जंगम या स्थािर िम्पवि, जो ननणीत-ऋणी की िै या र्जि पर या र्जिके लाभों पर
िि ऐिी व्ययन शर्क्त रखता िै र्जिे िि अपने फायदे के सलए प्रयोग कर िकता िो, चािे िि ननणीत-
ऋणी के नाम में धाररत िो या क्रकिी अन्य व्यर्क्त द्िारा उिके सलए न्याि में या उिकी ओर िे धाररत
िो:

1. पि
ू ी पंजाब को लागू िोने में धारा 60 के िंशोधनों के सलए दे णखए 1940 के पंजाब अधधननयम
िं. 12 और 1942 के पंजाब अधधननयम िं. 6 द्िारा यथािंशोधधत पंजाब ररल फ ऑफ इंडट
े े डनेि ऐक्ट,
1934 (1934 का पंजाब अधधननयम िं. 7) की धारा 35 |

परं तु ननम्नसलणखत विसशष्ट िस्तए


ु ं, ऐिे कुकि और वििय नि ं की जा िकेगी, अथाित ्
(क) ननणीत-ऋणी, उिकी पत्नी और उिके बच्चों के पिनने के आिश्यक िस्त्र, भोजन पकाने के
बतिन, चारपाई और बबछौने और ऐिे ननजी, आभष
ू ण र्जन्िें कोई स्त्री धासमिक प्रथा के अनि
ु ार अपने िे
अलग नि ं कर िकती;
(ख) सशपपी के औजार, और जिां ननणीत-ऋणी कृषक िै ििां उिके खेती के उपकरण और ऐिे पशु
और बीज, जो न्यायालय की राय में उिे िैिी िै सियत में अपनी जीविका का उपाजिन करने के सलए िमथि
बनाने के सलए आिश्यक िै और कृवष-उपज का या कृवष-उपज के क्रकिी िगि का ऐिा भाग जो ठीक अगल
धारा के उपबंधों के अधीन दानयत्ि िे मक्
ु त घोवषत कर हदया गया िै ;
(ग) िे गि
ृ और अन्य ननमािण (उनके मलबों और आस्थानों के तथा उनिे अव्यिहित रुप िे
अनल
ु ग्न और उनके उपभोग के सलए आिश्यक भसू म के िहित) जो [कृषक या श्रसमक या घरे लू नौकर के िैं
1

और उिके] अधधभोग में िैं;


(घ) लेखा बहियां;
(ड.) नक
ु िानी के सलए िाद लाने का अधधकारमात्र;

65
(च) िैयर्क्तक िेिा कराने का कोई अधधकार;
(छ) िे िनृ तकाएं और उपदान जो िरकार के 2[या क्रकिी स्थानीय प्राधधकार के या क्रकिी अन्य
ननयोजक के] पें शन भोधगयों को अनज्ञ
ु ात िैं या ऐिी क्रकिी िेिा कुटुम्ब पें शन ननधध में िे, जो [केंद्र य
3

िरकार या राज्य िरकार] द्िारा राजपत्र में अधधिच


ू ना द्िारा इि ननसमत अधधिधू चत की गई िै , िदे य िै
और राजनैनतक पें शनें;
(ज) श्रसमकों और घरे लू नौकरों की मजदरू चािे िि धन में या िस्तु के रुप में िंदेय िो
5 ६***

[(झ) 8[भरणपोषण की डडिी िे सभन्न क्रकिी डडिी के ननष्पादन में ] िेतन के प्रथम 1[ एक िजार
7

रूपए] और बाकी का दो-नतिाई]:

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 23 द्िारा (1-2-1977 िे) ''कृषक के या उिके'' के स्थान
पर प्रनतस्थावपत ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 23 द्िारा (1-2-1977 िे) अतःस्थावपत ।
3. भारत शािन (भारतीय विधध अनक
ु ू लन) आदे श, 1937 द्िारा ''िपररषद् गिनिर जनरल'' के स्थान
पर प्रनतस्थावपत |
4. उक्त अधधिच
ू ना के सलए, भारत का राजपत्र (अग्रेजी), 1909 भाग 1, प.ृ 5 दे णखए ।
5. 1937 के अधधननयम िं. 9 की धारा 2 द्िारा खंड (ज) और (झ) के स्थान पर प्रनतस्थावपत । 1
जून, 1937 के पिले िंर्स्थत िाद िे उद्भत
ू क्रकन्ि ं कायििाहियो के बारे मे उि धारा द्िारा क्रकए
गए िंशोधन का कोई प्रभाि नि ं िोगा, 1937 के अधधननयम िं. 9 की धारा 3 दे णखए ।
6. 1943 के अधधननयम िं. 5 की धारा 2 द्िारा ''तथा िेतन के प्रथम एक िौ रुपए और ऐिे िेतन
के बाकी का आधा'' शब्दो का लोप क्रकया गया ।
7. 1943 के अधधननयम िं. 5 की धारा 2 द्िारा खंड (झ) और परं तक
ु के स्थान पर प्रनतस्थावपत ।
8. 1956 के अधधननयम िं. 66 की धारा 6 द्िारा अतःस्थावपत ।
9. 1963 के अधधननयम िं. 26 की धारा 2 द्िारा ''प्रथम िौ रुपए” के स्थान पर प्रनतस्थावपत ।

[परं तु जिां ऐिे िेतन के प्रभाग का जो कुकि क्रकया जा िकता िै , कोई भाग, कुल समलाकर चौबीि
2

माि की अिधध तक लगातार या आंतरानयक रुप िे कुकि रिा िै ििां जब तक आगे की बािर माि की
अिधध िमाप्त न िो जाए तब तक ऐिे भाग को कुकी िे छूट प्राप्त िोगी और जिां ऐिी कुकी एक ि
डडिी के ननष्पादन में की गई िै ििां कुल समलाकर चौबीि माि की अिधध तक कुकी चालू रिने के पश्चात ्,
ऐिे भाग को उि डडिी के ननष्पादन में कुकी िे अंनतम रुप िे छूट प्राप्त िोगी । ]
[(झक) भरणपोषण की डडिी के ननष्पादन में िेतन का एक-नतिाई;]
3

[(ञ) ऐिे व्यर्क्तयों के िेतन और भिे र्जन्िें िायु िेना अधधननयम, 1960 (1950 का 45) या
4

िेना अधधननयम, 1950 (1950 का 46) या नौिेना अधधननयम, 1957 (1957 का 62) लागू िै ; ]
(ट) क्रकिी भी ऐिी ननधध में के या उििे व्यत्ु पन्न र्जिे लोक भविष्य-ननधध अधधननयम, 5[1925]
(1925 का 19) तत्िमय लागू िै , िभी अननिायि ननिेप और अन्य रासशयां, जिां तक क्रक उनके बारे
में उक्त अधधननयम द्िारा यि घोवषत क्रकया गया िै क्रक िे कुकि नि ं की जा िकेंगी;
[(टक) क्रकिी ऐिी ननधध में के या उििे व्यत्ू पन्न र्जिे लोक भविष्य-ननधध अधधननयम, 1968
6

(1968 का 23) तत्िमय लागू िै , िभी ननिेप और अन्य रासशयां जिा तक क्रक उनके बारे में उक्त
अधधननयम द्िारा यि घोवषत क्रकया गया िै क्रक िे कुकि नि ं की जा िकेंगी ।
(टख) ननणीत-ऋणी के जीिन पर बीमा पासलिी के अधीन िंदेय िभी धन;

66
(टग) क्रकिी ऐिे ननिाि भिन के पट्टे दार का हित र्जिको भाटक और िाि-िवु िधा के ननयंत्रण िे
िंबधं धत तत्िमय प्रित
ृ क्रकिी विधध के उपबंध लागू िैं;
7
[(ठ) 8[िरकार के क्रकिी िेिक] की या रे ल कम्पनी या स्थानीय प्राधधकार के िेिक की उपलर्ब्धयों
का भागरुप ऐिा कोई भिा, र्जिके बारे में 9[िमधु चत िरकार] राजपत्र में अधधिच
ू ना द्िारा घोवषत करे क्रक
िि कुकी िे छूट प्राप्त िै और 10
[ऐिे क्रकिी िेिक] को उिके ननलंबन-काल में हदया गया कोई जीिन-ननिािि
अनद
ु ान या भिा;]
(ड) उिरजीविता द्िारा उिराधधकार की प्रत्याशा अथिा अन्य केिल िमाधश्रत या िम्भि अधधकार
या हित;
(ढ) भािी भरणपोषण का अधधकार;

1. 1999 के अधधननयम िं. 46 की धारा 6 द्िारा (1-7-2002 िे) “चार िौ रुपए” के स्थान पर
प्रनतस्थावपत ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 23 द्िारा (1-2-1977 िे) परं तक
ु के स्थान पर प्रनतस्थावपत ।
3. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 23 द्िारा (1-2-1977 िे) खंड (त्र) के स्थान पर प्रनतस्थावपत
4. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 23 द्िारा (1-2-1977 िे) खंड (ञ के स्थान पर प्रनतस्थावपत
5. 1937 के अधधननयम िं. 9 की धारा 2 द्िारा ''1897'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत ।
6. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 23 द्िारा (1-2-1977 िे) अतःस्थावपत ।
7. 1937 के अधधननयम िं. 9 की धारा 2 द्िारा खंड (ठ) के स्थान पर प्रनतस्थावपत, पाद हटप्पण 3 भी
दे णखए ।
8. 1943 के अधधननयम िं. 5 की धारा 2 दारा ''लोक अधधकार '' के स्थान पर प्रनतस्थावपत ।
9. भारत शािन (भारतीय विधध अनक
ु ू लन) आदे श, 1937 द्िारा ''िपररषद् गिनिर जरनल'' के स्थान पर
प्रनतस्थावपत ।
10. 1943 के अधधननयम िं. 5 की धारा 2 द्िारा ''ऐिे क्रकिी अधधकार या िेिक'' के स्थान पर
प्रनतस्थावपत ।
(ण) ऐिा भिा, र्जिके बारे में 1[क्रकिी भारतीय विधध] ने यि घोवषत क्रकया िै क्रक िि डडिी के
ननष्पादन में कुकी या वििय के दानयत्ि िे छूट-प्राप्त िै ; तथा
(त) जिां ननणीत-ऋणी कोई ऐिा व्यर्क्त िै जो भ-ू राजस्ि के िंदाय के सलए दायी िै ििां कोई ऐिी
जंगम िम्पवि, जो ऐिे राजस्ि की बकाया की ििल
ू के सलए वििय िे ऐिी विधध के अधीन छूट -प्राप्त िै
जो उिे ततिमय लागू िै ।
2
[स्पष्टीकरण 1 - खंड (छ), (ज), (झ), (झक), (ञ), (ठ) और (ण) में िणणित िस्तओ
ु ं के िंबध
ं में
िंदेय धन को, उनके िस्तत
ु : िंदेय िोने के पिले या उिके पश्चात ् कुकी या वििय िे छूट-प्राप्त िै और
िेतन की दशा में उिका कुकी योग्य प्रभाग, उिके िस्तत
ु : िंदेय िोने के पिले या उिके पश्चात ् कुकि क्रकया
जा िकता िै ।
[ [स्पष्टीकरण 2- खंड (झ) और (झक) में ] िेतन में िे, ऐिे भिों को छोडकर जो खंड (ठ) के
3 4

उपबंधों के अधीन कुकी िे छूट प्राप्त घोवषत क्रकए गए िैं, िे िमस्त मासिक उपलर्ब्धयां असभप्रेत िैं जो
क्रकिी व्यर्क्त को उिके ननयोजन िे, चािे िि कतिव्यारुढ िो या छुट्ट पर िो, व्यत्ु पन्न िोती िै ।]
5
[स्पष्टीकरण 6(3) - खंड (ठ) में िमधु चत िरकार िे असभप्रेत िै -
(i) केंद्र य िरकार की िेिा में के क्रकिी 7[व्यर्क्त] अथिा 8[रे ल प्रशािन] के या छािनी प्राधधकार के
या मिापिन के पिन प्राधधकार के क्रकिी िेिक के बारे में केंद्र य िरकार;

67
9
* * * *
(iii) 10
[िरकार के क्रकिी अन्य िेिक] या क्रकिी अन्य स्थानीय प्राधधकार के िेिक के बारे में ,
11***

राज्य िरकार ।]
12
[स्पष्टीकरण 4- इि परं तक
ु के प्रयोजनों के सलए, ''मजदरू '' के अंतगित बोनि िै और “श्रसमक” के
अंतगित कुशल, अकुशल या अधिकुशल श्रसमक िै ।
स्पष्टीकरण 5- इि परं तक
ु के प्रयोजनों के सलए, कृषक िे ऐिा व्यर्क्त असभप्रेत िै जो स्ियं खेती
करता िै और जो अपनी जीविका के सलए मख्
ु यत: कृवष- भसू म की आय पर ननभिर िै चािे स्िामी के रूप में
या असभधार , भागीदार या कृवष श्रसमक के रूप में |

1. भारत शािन (भारतीय विधध अनक


ु ू लन) आदे श, 1937 द्िारा ''इंडडयन काउं सिलर ऐक्ट्ि, 1861
और 1892 के अधीन पाररत क्रकिी विधध'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 23 द्िारा (1-2-1977 िे) स्पष्ट करण 1 के स्थान पर
प्रनतस्थावपत ।
3. 1937 के अधधननयम िं. 9 की धारा 2 द्िारा खंड (ज) और (झ) के स्थान पर प्रनतस्थावपत । 1
जून, 1937 के पिले िंर्स्थत िाद िे उद्भत
ू क्रकन्ि ं कायििाहियों के बारे में उि धारा द्िारा
क्रकए गए िंशोधन का कोई प्रभाि नि िोगा; 1937 के अधधननयम ि 9 की धारा 3 दे णखए ।
4. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 23 द्िारा (1-2-1977 िे) “स्पष्ट करण 2 -खंड (ज)
और (झ) में ” के स्थान पर प्रनतस्थावपत ।
5. भारत शािन (भारतीय विधध अनक
ु ू लन) आदे श, 1937 द्िारा अंतःस्थावपत ।
6. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 23 द्िारा (1-2-1977 िे) ''3'' के स्थान पर
प्रनतस्थावपत ।
7. 1973 के अधधननयम िं. 5 की धारा 2 द्िारा ''लोक अधधकार '' के स्थान पर प्रनतस्थावपत ।
8. विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1950 द्िारा ''फेडरल रे ल'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत ।
9. भारतीय स्ितंत्रता (केंद्र य अधधननयमो और अध्यादे शों का अनक
ु ू लन) आदे श, 1948 द्िारा खंड
(ii) का लोप क्रकया गया ।
10. 1973 के अधधननयम िं. 5 की धारा 2 द्िारा ''लोक अधधकार '' के स्थान पर प्रनतस्थावपत ।
11. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 23 द्िारा (1-2- 1977 िे) अतःस्थावपत ।
12. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 23 द्िारा (1- 2-1977 िे) अतःस्थावपत ।

स्पष्टीकरण 6- स्पष्ट करण 5 के प्रयोजनों के सलए, कोई कृषक स्ियं खेती करने िाला िमझा
जाएगा, यहद िि
(क) अपने श्रम द्िारा; अथिा
(ख) अपने कुटुम्ब के क्रकिी िदस्य के श्रम द्िारा; अथिा
(ग) नगद या िस्तु के रुप में (जो उपज का अंश न िो) या दोनों में िंदेय मजदरू रयों पर िेिकों या
श्रसमकों द्िारा, खेती करता िै ।
1
[1(क) तत्िमय प्रिि
ृ क्रकिी अन्य विधध में क्रकिी बात के िोते िुए भी, िि करार, र्जिके द्िारा
िि व्यर्क्त इि धारा के अधीन छूट के फायदे का अधधत्यजन करने का करार करता िै , शन् ू य िोगा ।]
(2) इि धारा की क्रकिी भी बात के बारे में यि नि ं िमझा जाएगा क्रक िि 2***
क्रकन्ि ं ऐिे गि
ृ ों या
अन्य ननमािणों को (उनके मलबों ओर आस्थानों के तथा उनिे अव्यिहित रुप िे अनल
ु ग्न और उनके

68
उपभोग के सलए आिश्यक भसू म के िहित) ऐिे क्रकिी गि
ृ , ननमािण, आस्थान या भसू म के भाटक के सलए
डडक्रियों के ननष्पादन में कुकी या वििय िे छूट दे ती िै । 3***

1. विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1950 द्िारा ''रे ल या'' शब्दो का लोप क्रकया गया ।
2. 1914 के अधधननयम िं. 10 की धारा 3 और अनि
ु च
ू ी 2 द्िारा अिर और कोष्ठक “(क)” शब्द
''या'' और खंड (ख) ननरसित ।
3. 1914 के अधधननयम िं. 10 की धारा 3 और अनि
ु च
ू ी 2 द्िारा अिर और कोष्टक ''(क)'' शब्द
“या” और खंड (ख) ननरसित ।
4. 1914 के अधधननयम िं. 10 की धारा 3 और अनि
ु च
ू ी 2 द्िारा अिर और कोष्ठक ''(क)'' शब्द
''या'' और खंड (ख) ननरसित ।

राज्य िंशोधन
उत्तर प्रदे श राज्य द्िारा िंशोधन – उत्तर प्रदे श के अधधननयम ि. 35 िन ् 1948 के द्िारा उपधारा
(1) में स्पष्ट करण ि. 1 के उपरांत ननम्न स्पष्ट करण िमांक (1- क) अंतःस्थावपत क्रकया गया िै -
''स्पष्टीकरण (1- क)- खंड (ग) में िणणित ब्यौरे डडिी चािे सि.प्र िंहिता (यन
ू ाइटे ड प्रोविन्िेज ए.
एक्ट, 1948 के आरं भ के उपरांत अथिा उिके उपरांत पाररत की गयी िो, इि पर िोने िाले बंधक के प्रभार
के प्रभािी क्रकये जाने बाबत िोने िाले ननष्पादन में वििय िे असभमक्
ु त िै । ''

राजस्थान राज्य द्िारा िंशोधन- राजस्थान के अधधननयम ि. 16 िषि 1957 जो क्रक हदनांक
6-6- 1957 िे प्रभािी क्रकया गया िै के द्िारा िंहिता की धारा 60 में ननम्न िंशोधन क्रकया गया
िै -
(1) धारा 60 की उपधारा (1) के परं तक
ु में -
(1) खंड (ख) में शब्द 'कृषक' के उपरांत ' उिके दग्ु ध पशु एिं िे जो क्रक 2 िषो के भीतर गाय के
बछडे या बनछयें िोने िाले िैं 'शब्दों को जोड़ा जाएगा ।
(2) खंड (ट/k) के उपरांत ननम्नानि
ु ार खंड (टट/kk) जोडा जाएगा-
(टट/kk)राजस्थान शािकीय िेिक बीमा ननयम, 1953 के अनि
ु रण में जार जीिन बीमा प्रमाणपत्रों
के अन्तगित भग
ु तानयोग्य रासशयां ''
(3) स्पष्ट करण ि. 3 के उपरांत ननम्न स्पष्ट करण ि.4 को जोडा जाएगा-
''स्पष्टीकरण 4- जिां खंड (टट) के अन्तननिहित प्रािधानों के अधीन राज्य के शािकीय िेिक को
भग
ु तानयोग्य कोई रासश कुकी िे मक्
ु त िै , ऐिी रासश कुकी िे मक्
ु त रिे गी इि तथ्य के बािजूद भी क्रक
शािकीय िेिक की मत्ृ यु के कारण यि क्रकिी अन्य व्यर्क्त को भग
ु तान योग्य िै । ''
61. कृवष-उपज को िागत: छूट- राज्य िरकार राजपत्र में प्रकासशत िाधारण या विशेष आदे श
1***

द्िारा यि घोषणा कर िकेगी क्रक कृवष-उपज या कृवष के क्रकिी िगि के ऐिे प्रभाग को र्जिकी बाबत ् राज्य
िरकार को यि प्रतीत िोता िै क्रक िि उि आगामी फिल तक उि भसू म पर िम्यक् खेती करने के सलए
तथा ननणीत-ऋणी और उिके कुटुम्ब के ननिािि के सलए उपबंध करने के प्रयोजन के सलए आिश्यक िै , िभी
कृषकों या कृषकों के क्रकिी िगि की दशा में डडिी के ननष्पादन में कुकी या वििय के दानयत्ि िे छूट िोगी

1. 1920 के अधधननयम िं. 38 की धारा 2 और अनि
ु च
ू ी 1 के भाग 1 द्िारा ''िपररषद् गिनिर जनरल की
पि
ू ि मंजरू िे” शब्दो का लोप ।

69
62. ननिाि-गि
ृ में िंपवि का असिर्ग्िण – (1) कोई भी व्यर्क्त इि िंहिता के अधीन जंगम
िम्पवि का असभग्रिण ननहदिष्ट या प्राधधकृत करने िाल क्रकिी आदे सशका का ननष्पादन करते िुए क्रकिी
ननिाि-गि
ृ में िय
ू ािस्त के पश्चात ् और िय
ू ोदय के पि
ू ि प्रिेश नि ं करे गा ।
(2) ननिाि-गि
ृ का कोई भी बािर द्िारा तब तक तोडकर नि ं खोला जाएगा जब तक क्रक ऐिा
ननिाि-गि ृ ननणीत-ऋणों के अधधभोग में न िो और िि उि तक पिुंच िोने दे ने िे मना न करता िो या
पिुंच िोने दे ना क्रकिी भांनत ननिाररत न करता िो, क्रकन्तु जबक्रक ऐिी क्रकिी आदे सशका का ननष्पादन करने
िाले व्यर्क्त ने क्रकिी ननिाि-गि
ृ में िम्यक् रूप िे प्रिेश कर सलया िै , तब िि क्रकिी ऐिे कमरे का द्िार
तोड िकेगा र्जिके बारे में उिे यि विश्िाि करने का कारण िै क्रक उिमें ऐिी कोई िम्पवि िै ।
(3) जिां ननिाि-गि
ृ का कमरा क्रकिी ऐिी स्त्री के िास्तविक अधधभोग में िै जो दे श की रूहढ़यों के
अनि
ु ार लोगों के िामने नि ं आती िै ििां आदे सशका का ननष्पादन करने िाला व्यर्क्त ऐिी स्त्री को यि
िच
ू ना दे गा क्रक िि ििां िे िट जाने के सलए स्ितंत्र िै और उिे िट जाने के सलए यर्ु क्तयक्
ु त िमय
अनज्ञ
ु ात करने और िट जाने के सलए उिे यर्ु क्तयक्
ु त िवु िधा दे ने के पश्चात ् और िाथ ि उि िम्पवि के
नछपा कर िटाए जाने का ननिारण करने के सलए ऐिी िर एक पि
ू ाििधानी बरत करके, जो इन उपबंधों िे
िंगत िै , िि िम्पवि के असभग्रिण के प्रयोजन िे ऐिे कमरे में प्रिेश कर िकेगा ।
63.कई न्यायालयों की डिक्रियों के ननष्पादन में कुकव की गई िम्पवि- (1) जिां िि िम्पवि, जो
क्रकिी न्यायालय की असभरिा में नि ं िै , एक िे अधधक न्यायालयों की डडक्रियों के ननष्पादन में कुकि की
िुई िै ििां िि न्यायालय, जो ऐिी िम्पवि को प्राप्त या आप्त करे गा और उिके िंबध
ं में क्रकिी दािे का
या उिकी कुकी के िंबध ं में क्रकिी आिेप का अिधारण करे गा, िि न्यायालय िोगा जो िबिे ऊंची श्रेणी का
िै या जिा ऐिे न्यायालयों के बीच में श्रेणी का कोई अन्तर नि ं िै ििां िि न्यायालय िोगा, र्जिकी डडिी
के अधीन िम्पवि िबिे पिले कुकि की गई थी ।
(2) इि धारा की कोई भी बात ऐिी डडक्रियों में िे एक का ननष्पादन करने िाले न्यायालय द्िारा
की गई क्रकिी कायििाि को अविधधमान्य करने िाल नि ं िमझी जाएगी ।
1
[स्पष्टीकरण- उपधारा (2) के प्रयोजनों के सलए, ''न्यायालय द्िारा की गई क्रकिी कायििाि '' के
अन्तगित ऐिी डडिीदार को र्जिने डडिी के ननष्पादन में क्रकए गए वििय में िम्पवि का िय क्रकया िै ,
उिके द्िारा िंदेय िय कीमत के बराबर मज
ु रा अनज्ञ
ु ात करने का आदे श नि ं िै ।
64. कुकी के पश्चात ् िम्पवि के प्राइिेट अन्य िंिामण का शन्ू य िोना- [(1) जिां कुकी की जा
2

चुकी िै ििां कुकि की गई िम्पवि या उिमें क्रक क्रकिी हित का ऐिी कुकी के प्रनतकूल प्राइिेट अंतरण या
पररदान और क्रकिी ऋण, लाभांश या अन्य धन का ऐिी कुकी के प्रनतकूल ननणीत-ऋणी को िदाय कुकी के
अधीन प्रितिनीय िभी दािों के मक
ु ाबले में शन्
ू य िोगा ।
3
[(2) इि धारा की कोई बात, कुकि की गई िम्पवि या उिमें क्रकिी हित के क्रकिी ऐिे प्राइिेट
अंतरण या पररदान को लागू नि ं िोगी, जो कुकी िे पिले ऐिे अंतरण या पररदान की िंविदा के अनि
ु रण
में क्रकया गया िो और रर्जस्र कृत िो ।]
स्पष्टीकरण- इि धारा के प्रयोजनों के सलए, कुकी के अधीन प्रितिनीय िभी दािों के अन्तगित
आर्स्तयों के आनप
ु ानतक वितरण के दािें भी िै ।
1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 24 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्तःस्थावपत क्रकया गया ।
2. 2002 के अधधननयम िं. 22 की धारा 3 द्िारा (1-7-2002 िे) धारा 64 को उिकी उपधारा (1)
के रुप मे पन
ु ःिख्यांक्रकत क्रकया गया ।
3. 2002 के अधधननयम िं. 22 की धारा 3 द्िारा (1-7-2002 िे) अंतःस्थावपत ।

70
वििय
65. िेता का िक – जिां क्रकिी डडिी के ननष्पादन में स्थािर िम्पवि का वििय क्रकया गया िै और
ऐिा वििय आत्यर्न्तक िो गया िै ििां यि िमझा जाएगा क्रक िम्पवि उि िमय िे, जब उिका वििय
क्रकया गया िै , न क्रक उि िमय िे, जब वििय आत्यर्न्तक िुआ िै , िेता में ननहित िो गई िै ।
1
[66. *****]
67. धन के िंदाय की डिक्रियों के ननष्पादन में िसू म के वििय के बारे में ननयम बनाने की राज्य
िरकार की शस्तत- 2
[(1)]3*** राज्य िरकार क्रकिी भी स्थानीय िेत्र के सलए ऐिे ननयम, जो धन के िंदाय
की डडक्रियों के ननष्पादन में भसू म में के हितों के क्रकिी िगि के वििय की बाबत ् शति अधधरोवपत करते िों,
राजपत्र में अधधिच
ू ना द्िारा बना िकेगी यहद ऐिे हित इतने अननर्श्चत या अनिधाररत िों क्रक उनका मप
ू य
ननयत करना राज्य िरकार की राय में अिंभि िो ।
4
[(2) यहद उि तार ख को, र्जि तार ख को यि िंहिता क्रकिी स्थानीय िेत्र में प्रितिन में आई थी,
डडक्रियों के ननष्पादन में भसू म के वििय के बारे में कोई विशेष ननयम ििां प्रित
ृ थे तो राज्य िरकार
राजपत्र में अधधिच
ू ना द्िारा ऐिे ननयमों के बारे में यि घोवषत कर िकेगी क्रक िे प्रित
ृ िैं या
5***
िैिे ि
अधधिच
ू ना द्िारा उन्िे उपांतररत कर िकेगी ।
ऐिे चालू रखे गए या ऐिे उपांतररत ननयम, इि उपधारा द्िारा प्रदि शर्क्तयों के प्रयोग में ननकाल
गई िर अधधिच
ू ना में उपिणणित िोंगे ।]
6
[(3) इि धारा के अधीन बनाया गया प्रत्येक ननयम, बनाए जाने के पश्चात ्, यथाशीघ्र राज्य
विधान-मंडल के िमि रखा जाएगा ।

1. 1988 के अधधननयम िं. 45 की धारा 7 द्िारा (19-5-1988 िे) लोप ।


2. 1914 के अधधननयम िं. 1 की धारा 3 द्िारा धारा 67 को उि धारा की उपधारा (1) के रुप में
पन
ु ःिंख्यांक्रकत क्रकया गया ।
3. 1920 के अधधननयम िं 38 की धारा 2 और अनि
ु च
ू ी के भाग 1 द्िारा ''िपररषद् गिनिर
जनरल की पि
ू ि मंजरू िे'' शब्दो का लोप ।
4. 1914 के अधधननयम िं. 1 की धारा 3 द्िारा जोडा ।
5. 1920 के अधधननयम और अनि
ु च
ू ी के भाग 1 द्िारा ''िपररषद् गिनिर जनरल की पि
ू ि मंजरू
िे” शब्दो का लोप ।
6. 1983 के अधधननयम िं. 20 की धारा 2 और अनि
ु च
ू ी द्िारा (15-3-1984 िे) अन्तःस्थावपत
क्रकया गया ।
स्थािर िम्पवि के विरुद्ध डिक्रियों का ननष्पादन करने की शस्तत का कलतटर का प्रत्यायोजन
68- 72. सिविल प्रक्रिया िंहिता (िंशोधन) अधधननयम, 1966 ( 1966 का 66) की धारा 7 द्िारा
ननरसित ।

अस्स्तयों का वितरण

73. ननष्पादन-वििय के आगमों का डििीदारों के बीच आनप


ु ानतक रुप िे वितररत क्रकया जाना- (1)
जिां आर्स्तयां न्यायालय द्िारा धाररत िैं और ऐिी आर्स्तयों की असभप्रार्प्त के पि
ू ि एक िे अधधक
व्यर्क्तयों ने धन के िंदाय की ऐिी डडक्रियों के, जो एक ि ननणीत-ऋणी के विरुद्ध पाररत िै , ननष्पादन के
सलए आिेदन न्यायालि िे क्रकए िैं और उनकी तर्ु ष्ट असभप्राप्त नि ं की िै , ििां आपन के खचों को काट

71
लेने के पश्चात ् िे आर्स्तयां ऐिे िभी व्यर्क्तयों के बीच आनप
ु ानतक रूप िे वितररत की जाएंगी:
परन्त-ु
(क) जिां कोई िम्पवि बंधक या भार के अधीन वििय की गई िै ििां बंधकदार या विपलगनदार

ऐिे वििय िे पैदा क्रकिी अधधशेष में िे अंश पाने के िकदार नि ं िोंगे;
(ख) जिां डडिी के ननष्पादन में वििय के दानयत्िाधीन कोई िम्पवि बन्धक या भार के अधीन िै
ििां न्यायालय बन्धकदार या विपलगमदार
् की ििमनत िे और बन्धकदारया विपलगमदार
् को वििय के
आगमों में िि ं हित दे ते िुए, जो उिका वििीत िम्पवि में था, िम्पवि को बन्धक या भार िे मक्
ु त रुप में
वििय करने के सलए आदे श दे िकेगा;
(ग) जिां कोई स्थािर िम्पवि ऐिी डडिी के ननष्पादन में वििय की जाती िै जो उि पर विपलगम
के उन्मोचन के सलए उिके वििय क्रकए जाने का आदे श दे ती िै ििां वििय के आगम ननम्नसलणखत के
अनि
ु ार उपयोर्जत क्रकए जाएंगे-
प्रथमत: वििय के व्ययों को चुकाने में ;
द्वितीयत: डडिी के अधीन शोध्य रकम के उन्मोचन में ;
तत
ृ ीयत: पार्श्चक विपलंगमों पर (यहद कोई िों) शोध्य ब्याज और मल
ू धन के उन्मोचन में , तथा
चतथ
ु त
ि : ननणीतऋणी के विरुद्ध धन के िंदाय की डडक्रियों के ऐिे धारकों के बीच अनप
ु ानतक रुप
में , र्जन्िोंने ऐिे वििय का आदे श दे ने िाल डडिी पाररत करने िाले न्यायालय िे, िम्पवि के वििय के
पि
ू ि ऐिी डडक्रियों के ननष्पादन के सलए आिेदन कर हदया िै और उनकी तर्ु ष्ट असभप्राप्त नि ं की िै ।
(2) जिां िे िभी या कोई आर्स्तयां जो इि धारा के अधीन आनप
ु ानतक रुप िे वितररत क्रकए जाने
के सलए दायी िैं, ऐिे व्यर्क्त को दे द जाती िै जो उन्िें प्राप्त करने का िकदार नि ं िै ििां ऐिा िकदार
कोई भी व्यर्क्त उन आर्स्तयों का प्रनतदाय वििश करने के सलए ऐिे व्यर्क्त के विरुद्ध िाद ला िकेगा ।
(3) इि धारा की कोई भी बात िरकार के क्रकिी भी अधधकार पर प्रभाि नि ं डालेगी ।

ननष्पादन का प्रनतरोध
74. ननष्पादन का प्रनतरोध- जिां न्यायालय का यि िमाधान िो जाता िै क्रक स्थािर िम्पवि के
कब्जे के सलए डडिी के ननष्पादन में वििीत स्थािर िम्पवि का िेता िम्पवि पर कब्जा असभप्राप्त करने में
ननणीत-ऋणी या उिकी ओर िे क्रकिी व्यर्क्त के द्िारा प्रनतरुद्ध या बाधधत क्रकया गया िै और ऐिा
प्रनतरोध या बाधा क्रकिी न्यायिंगत िे तक
ु के बबना िै , ििां डडिीदार या िेता की प्रेरणा िे न्यायालय
ननणीत-ऋणी या ऐिे अन्य व्यर्क्त को ऐिी अिधध के सलए सिविल कारागार में ननरुद्ध करने का आदे श दे
िकेगा, जो तीि हदन तक की िो िकेगी और यि अनतररक्त ननदे श दे िकेगा क्रक डडिीदार या वििेता को
िम्पवि का कब्जा हदलाया जाए ।

िाग 3
आनष
ु धं गक कायविाहियां
कमीशन
75. कमीशन ननकालने कीं न्यायालय की शस्तत--ऐिी शतो और पररिीमाओं के अधीन रिते िुए,
जो विहित की जाएं, न्यायालय-
(क) क्रकिी व्यर्क्त की पर िा करने के सलए;
(ख) स्थानीय अन्िेषण करने के सलए;
(ग) लेखाओं की पर िा या उनका िमायोजन करने के सलए; अथिा

72
(घ) विभाजन करने के सलए;
[(ड.) कोई िैज्ञाननक, तकनीकी या विशेषज्ञ अन्िेषण करने के सलए;
1

1. 1976 के अधधननमय िं. 104 की धारा 26 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया गया
(च) ऐिी िम्पवि का वििय करने के सलए जो शीघ्र और प्रकृत्या ियशील िै और जो िाद का
अिधारण लर्म्बत रिने तक न्यायालय की असभरिा में िै ;
(छ) कोई अनिधचिीय कायि करने के सलए;
कमीशन ननकाल िकेगा ।

76. अन्य न्यायालय को कमीशन- (1) क्रकिी व्यर्क्त की पर िा करने के सलए कमीशन उि राज्य
िे, र्जिमें उिे ननकालने िाला न्यायालय र्स्थत िै , सभन्न राज्य में र्स्थत क्रकिी, ऐिे न्यायालय को
ननकाला जा िकेगा (जो उच्च न्यायालय नि ं िै और) जो उि स्थान में अधधकाररता रखता िै र्जिमें िि
व्यर्क्त ननिाि करता िै र्जिकी पर िा की जानी िै ।
(2) उपधारा (1) के अधीन क्रकिी व्यर्क्त की पर िा करने के सलए कमीशन को प्राप्त करने िाला
िर न्यायालय उिके अनि
ु रण में उि व्यर्क्त की पर िा करे गा या कराएगा और जब कमीशन िम्यक रुप
िे ननष्पाहदत क्रकया गया िै तब िि, उिके अधीन सलए गए िाक्ष्य िहित, उि न्यायालय को लौटा हदया
जाएगा र्जिने उिे ननकाला था, क्रकन्तु यहद कमीशन ननकालने के आदे श द्िारा अन्यथा ननहदष्ट क्रकया गया
िै तो कमीशन ऐिे आदे श के ननबन्धनों के अनि
ु ार लौटाया जाएगा ।

77. अनरु ोध पत्र- कमीशन ननकालने के बदले न्यायालय ऐिे व्यर्क्त की पर िा करने के सलए
अनरु ोध-पत्र ननकाल िकेगा जो ऐिे स्थान में ननिाि करता िै जो 1[भारत] के भीतर नि ं िै

1. 1951 के अधधननयम िं. 2 की धारा 3 द्िारा “राज्यो” के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

[78. विदे शी न्यायालयों द्िारा ननकाले गए कमीशन---ऐिी शतो और पररिीमाओं के अधीन रिते
1

िुए जो विहित की जाएं,िाक्षियों की पर िा करनेके सलए कमीशनों के ननष्पादन और लौटाने िे िम्बन्ध


रखने िाले उपबन्ध उन कमीशनों को लागू िोंगे जो,-
(क) भारत के उन भागों में जन पर इि िंहिता का विस्तार नि ं िै , र्स्थत न्यायालयों द्िारा या
उनकी प्ररे णा िे ननकाले गए िों; अथिा
(ख) केन्द्र य िरकार के प्राधधकार द्िारा भारत िे बािर स्थावपत या चालू रखे गए न्यायालयों द्िारा
या उनकी प्रेरणा िे ननकाले गए िों; अथिा
(ग) भारत िे बािर के क्रकिी राज्य या दे श में के न्यायालयों द्िारा या उनकी प्रेरणा िे ननकाले गए
िों ।]

िाग 4
विसशष्ट मामलों में िाद
िरकार द्िारा या उिके विरुद्ध िाद या अपनी पदीय िै सियत में लोक अधधकारी द्िारा
या उिके विरुद्ध िाद
[79. िरकार द्िारा या उिके विरुद्ध िाद- िरकार द्िारा या उिके विरुद्ध िाद में , यथार्स्थनत,
2

73
िाद के प्रनतिाद के रुप में नासमत क्रकया जाने िाला प्राधधकार ,-
(क)केन्द्र य िरकार द्िारा या उिके विरुद्ध िाद की दशा में , 3[भारत िंघ] िोगा; तथा
(ख) क्रकिी राज्य िरकार द्िारा या उिके विरुद्ध िाद की दशा में , िि राज्य िोगा ।]

80. िच
ू ना- [(1)]
4
[उिके सििाय जैिा उपधारा (2) में उपबर्न्धत िै , 1[िरकार के (र्जिके
5

अन्तगित जम्म-ू कश्मीर राज्य की िरकार भी आती िै ) विरुद्ध] या ऐिे कायि करने की बाबत र्जिके बारे में
यि तात्पनयित िै क्रक िि ऐिे लोक अधधकार द्िारा अपनी पद य िै सियत में क्रकया गया िै लोक अधधकार
के विरुद्ध 2[कोई िाद तब तक] 3[िंर्स्थत नि ं क्रकया जाएगा] जब तक िाद-िे तक
ु का, िाद के नाम, िणिन
और ननिाि-स्थान का और र्जि अनत
ु ोष का िि दािा करता िै उिका कथन करने िाल सलणखत िच
ू ना--

1. 1951 के अधधननयम िं. 2 कीं धारा 11 द्िारा पि


ू ि
ि ती धारा के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया
2. भारतीय स्ितंत्रता (केन्द्र य अधधननयमों और अध्यादे शो का अनक
ु ू लन) आदे श, 1948 द्िारा पि
ू ि
ि ती
धारा के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
3. विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1950 द्िारा ''भारत डोसमननयन'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
4. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 27 द्िारा धारा 30 को उि धारा की उपधारा (1) के रुप में
पन
ु ःिख्याक्रकत ।
5. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 27 द्िारा (1-2-1977 िे) ''कोई िाद तब तक िंर्स्थत नि
क्रकया जाएगा'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

1
[ िरकार के (र्जिके अंतगित जम्मू कश्मीर राज्य की िरकार भी आती िै ) विरुद्ध] या ऐिे कायि
करने की बाबत र्जिके बारे में यि तात्पनयित िै क्रक िि ऐिे लोक अधधकार द्िारा अपनी पद य िैसियत में
क्रकया गया िै , लोक अधधकार के विरुद्ध 2[कोई िाद तब तक] 3[िंर्स्थत नहि क्रकया जाएगा] जब तक िाद-
िे तक
ु का, िाद का नाम, िणिन और ननिाि-स्थान का और र्जि अनत
ु ोष का िि दािा करता िै उिका,
कथन करने िाल सलणखत िच
ू ना -
(क) केन्द्र य िरकार के विरुद्ध िाद की दशा में , 4[ििां के सििाय जिां िि रे ल िे िम्बर्न्धत िै ],
उि िरकार के िधचि को;
[ [(ख) केन्द्र य िरकार के विरुद्ध िाद की दशा में , जिां िि रे ल िे िंबधं धत िै , उि रे ल के प्रधान
5 6

प्रबन्धक को;]
7* * * * * *

8
[(खख) जम्म-ू कश्मीर राज्य की िरकार के विरुद्ध िाद की दशा में , उि िरकार के मख्
ु य िधचि
को या उि िरकार द्िारा इि ननसमि प्राधधकृत क्रकिी अन्य अधधकार को;]
(ग) 9[क्रकिी अन्य राज्य िरकार] के विरुद्ध िाद की दशा में , उि िरकार के िधचि को या र्जले
के कलेक्टर को, 10***

11
[* * *
12
[पररदि क्रकए जाने या उिके कायािलय में छोड़े जाने के,] और लोक अधधकार की दशा में उिे पररदि क्रकए
जाने या उिके कायािलय में छोड़े जाने के पश्चात ्, दो माि का अििान न िो गया िो, और िादपत्र में यि
कथन अन्तवििष्ट िोगा क्रक ऐिी िच
ू ना ऐिे पररदत कर द गई िै या छोड द गई िै ।

74
1. 1963 के अधधननयम िं. 26 द्िारा ''िरकार के विरुद्ध िंर्स्थत नि ं क्रकया जाएगा'' के स्थान
पर प्रनतस्थावपत | रे खाक्रकत शब्द विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1948 द्िारा ''िाउन के विरुद्ध
िंर्स्थत” के स्थान पर प्रनतस्थावपत ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 27 द्िारा (1-2-1977 िे) ''कोई िाद तब तक िंर्स्थत
नि ं क्रकया जाएगा'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
3. 1963 के अधधननयम िं. 26 की धारा 3 द्िारा (5-8-1964 िे) ''िरकार के विरुद्ध िर्स्थत
नि ं क्रकया जाएगा'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत । रे खांक्रकत शब्द विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1948
द्िारा
''िाउन के विरुद्ध िंर्स्थत'' शब्दों के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
4. 1948 के अधधननयम िं. 6 की धारा 2 द्िारा अन्तःस्थावपत क्रकया गया ।
5. 1948 के अधधननयम िं. 6 की धारा 2 द्िारा खण्ड (कक) के रुप मे अन्तःस्थावपत क्रकया गया

6. भारतीय स्ितंत्रता (केन्द्र य अधधननयम और अध्यादे श अनक
ु ू लन) आदे श, 1948 द्िार खण्ड
(कक) को खण्ड (ख) के रुप में पन
ु : अिराक्रकत क्रकया गया और खण्ड (ख) का लोप ।
7. 1948 के अधधननयम िं. 6 की धारा 2 द्िारा खण्ड (कक) के रुप मे अन्तःस्थावपत क्रकया गया

8. 1963 के अधधननयम िं. 26 की धारा 3 द्िारा (5-6-1964 िे) अन्तःस्थावपत क्रकया गया ।
9. 1963 के अधधननयम िं. 26 की धारा 3 द्िारा (5-6-1964 िे) ''राज्य िरकार'' के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
10. भारतीय स्ितंत्रता (केन्द्र य अधधननयमों और अध्यादे शों का अनक
ु ू लन) आदे श, 1948 द्िारा
“और” शब्द तथा खण्ड (घ) का लोप ।
11. भारतीय स्ितत्रता (केन्द्र य अधधननयमों और अध्यादे शो का अनक
ु ू लन) आदे श, 1948 द्िारा
''और'' शब्द तथा खण्ड (घ) का लोप ।
12. भारत शािन ( भारतीय विधध अनक
ु ू लन) आदे श 1937 द्िारा “िेिेटर ऑफ स्टे ट इन
काउर्न्िल की दशा मे, स्थानीय

[(2) िरकार के (र्जिके अन्तगित जम्म-ू कश्मीर राज्य की िरकार भी आती िै ,) विरुद्ध या ऐिे
1

कायि की बाबत र्जिके बारे में यि तात्पनयित िै क्रक िि ऐिे लोक अधधकार द्िारा अपनी पद य िै सियत में
क्रकया गया िै , लोक अधधकार के विरुद्ध, कोई अत्यािश्यक या तरु न्त अनत
ु ोष असभप्राप्त करने के सलए
कोई िाद, न्यायालय की इजाजत िे, उपधारा (1) द्िारा यथाअपेक्षित क्रकिी िच
ू ना की तामील क्रकए बबना,
िंर्स्थत क्रकया जा िकेगा; क्रकन्तु न्यायालय िाद में अनत
ु ोष, चािे अन्तररम या अन्यथा, यथार्स्थनत,
िरकार या लोक अधधकार को िाद में आिेहदत अनत
ु ोष की बाबत िे तक
ु दसशित करने का उधचत अििर दे ने
के पश्चात ् ि प्रदान करे गा, अन्यथा नि ं:
परन्तु यहद न्यायालय का पिकारों को िन
ु ने के पश्चात ्, यि िमाधान िो जाता िै क्रक िाद में कोई
अत्यािश्यक या तरु न्त अनत
ु ोष प्रदान करने की आिश्यकता नि ं िै तो िि िाद पत्र को िापि कर दे गा क्रक
उिे उपधारा (1) की अपेिाओं का पालन करने के पश्चात ् प्रस्तत
ु क्रकया जाए ।
(3) िरकार के विरुद्ध या ऐिे कायि की बाबत र्जिके बारे में यि तात्पनयित िै क्रक िि ऐिे लोक
अधधकार द्िारा अपनी पद य िै सियत में क्रकया गया िै, लोक अधधकार के विरुद्ध िंर्स्थत क्रकया गया कोई
िाद केिल इि कारण खाररज नि ं क्रकया जाएगा क्रक उपधारा (1) मे ननहदिष्ट िच
ू ना में कोई त्रहु ट या दोष िै ,

75
यहद ऐिा िच
ू ना में -
(क) िाद का नाम, िणिन और ननिाि-स्थान इि प्रकार हदया गया िै जो िच
ू ना की तामील करने
िाले व्यर्क्त की सशनाख्त करने में िमधु चत प्राधधकार या लोक अधधकार को िमथि करें और ऐिी िच
ू ना
उपधारा (1) में विननहदि ष्ट िमधु चत प्राधधकार के कायािलय में पररदत कर द गई िै या छोड द गई िै , तथा
(ख) िाद-िे तक
ु और िाद द्िारा दािा क्रकया गया अनत
ु ोष िारत; उपदसशित क्रकया गया िै ]

िरकार के िधचि को या र्जले के कलक्टर को पररदि क्रकए जाने या उिके कायािलय मे छोड जाने
के'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 27 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्तःस्थावपत क्रकया गया ।

राज्य िंशोधन
मध्यप्रदे श राज्य द्िारा िंशोधन- सिविल प्रक्रिया िंहिता (मध्य प्रदे श िंशोधन) अधधननयम, 1984
िषि 1984 का अधधननयम िंख्यांक 29 के द्िारा िंहिता की धारा 80 में ननम्न िंशोधन क्रकया गया िै -
मल
ू अधधननयम की धारा 80 में -
(एक) उपधारा (1) में , शब्द, कोष्ठक तथा अंक ''उपधारा (2)'' के स्थान पर शब्द, कोष्ठक, तथा
अंक” उपधारा (2) या उपधारा (4)'' स्थावपत क्रकये जाएं;
(दो)उपधारा (3) के पश्चात, ननम्नसलणखत उपधारा अन्तःस्थावपत की जाय, अथाित-
''(4) जिां आदे श 1 के ननयम 3-ख में ननहदि ष्ट क्रकिी िाद या कायििाि में , राज्य को प्रनतिाद या
अनािेदक के रुप में िंयोर्जत क्रकया गया िै या जिां न्यायालय आदे श 1 के ननयम 10 के उपननयम (2) के
अधीन शर्क्तयों का प्रयोग करते िुए राज्य को प्रनतिाद या अनािेदक के रुप में िंयोर्जत करने का आदे श
दे , ििां ऐिे िाद या कायििाि को इि कारण खाररज नि ं क्रकया जाएगा क्रक िाद या आिेदक की ओर िे
उपधारा (1) के अधीन िच ू ना जार करने में लोप िुआ िै । ''
(िंशोधन को म.प्र. राजपत्र (अिाधारण) में हदनांक 14-8-84 को प्रकासशत क्रकया गया ।)

81. धगरफ्तारी और स्िीय उपिंजानत िे छूट-- ऐिे क्रकिी भी कायि के सलए, जो लोक अधधकार
द्िारा उिकी पद य िै सियत में क्रकया गया तात्पनयित िै , उिके विरुद्ध िंर्स्थत क्रकए गए िाद में -
(क) डडिी के ननष्पादन में िे अन्यथा न तो धगरफ्तार क्रकए जाने का दानयत्ि प्रनतिाद पर और न
कुकि क्रकए जाने का दानयत्ि उिकी िम्पवि पर िोगा; तथा
(ख) जिां न्यायालय का यि िमाधान िो जाता िै क्रक प्रनतिाद लोक िेिा का उपाय क्रकए बबना
अपने कतिव्य िे अनप
ु र्स्थत नि ं िो िकता ििां, िि उिे स्िीय उपिंजानत िे छूट दे दे गा ।

82. डििी का ननष्पादन- 1[(1) जिां िरकार द्िारा या उिके विरुद्ध या ऐिे कायि की बाबत र्जिके
बारे में यि तात्पनयित िै क्रक िि ऐिे लोक अधधकार द्िारा अपनी पद य िैसियत में क्रकया गया िै , उिके
द्िारा या उिके विरुद्ध क्रकिी िाद में , यथार्स्थनत, भारत िंघ या क्रकिी राज्य या लोक अधधकार के
विरुद्ध डडिी पाररत की जाती िै ििां ऐिी डडिी उपधारा (2) के उपबन्धों के अनि
ु ार ि ननष्पाहदत की
जाएगी, अन्यथा नि ं ।]
(2) 2[ऐिी डडिी] तार ख के िंगणणत तीन माि की अिधध तक उि डडिी के तष्ु ट न िोन पर ि
क्रकिी ऐिी डडिी के ननष्पादन का आदे श ननकाला जाएगा ।
3
[(3) उपधारा (1) और उपधारा (2) के उपबन्ध क्रकिी आदे श या पंचाट के िंबध
ं में ऐिे लागू िोंगे

76
जैिे िे डडिी के िम्बन्ध में लागू िोते िै , यहद िि आदे श या पंचाट-
(क) 4[भारत िंघ] क्रकिी राज्य के या यथापि
ू ोक्ि क्रकिी कायिके बारे में क्रकिी लोक अधधकार के
विरुद्ध, चािे न्यायालय द्िारा या चािे क्रकिी अन्य प्राधधकार द्िारा, हदया गया िो, तथा
(ख) इि िंहिता या तत्िमय प्रिि
ृ क्रकिी अन्य विधध के उपबन्धों के अधीन ऐिे ननष्पाहदत क्रकए
जाने के योग्य िो मानो िि डडिी िो ।]

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 28 द्िारा (1-2-1977 िे) उपधारा (1) के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 28 द्िारा (1-2-1977 िे) ''ऐिी ररपोटि '' के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
3. 1949 के अधधननयम िं. 32 की धारा 2 द्िारा अन्तःस्थावपत क्रकया गया ।
4. विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1950 द्िारा ''भारत के डोसमननयन'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया
गया ।

[अन्य दे सशयों द्िारा विदे शी शािकों, राजदत


1
ू ों और दत
ू ों द्िारा या उनके विरुद्ध िाद
83. अन्यदे शीय कब िाद ला िकेंगे- अन्यदे शीय शत्र,ु जो केन्द्र य िरकार की अनज्ञ
ु ा िे भारत में
ननिाि कर रिे िै , और अन्य दे शीय समत्र क्रकिी भी ऐिे न्यायालय में , जो िाद का विचारण करने के सलए
अन्यथा ििम िै , इि प्रकार िाद ला िकेंगे मानो िे भारत के नागररक िों, क्रकन्तु अन्य दे शीय शत्र,ु जो
ऐिी अनज्ञ
ु ा के बबना भारत में ननिाि कर रिे िै या जो विदे श में ननिाि कर रिे िै ऐिे क्रकिी भी
न्यायालय में िाद नि लाएंगे ।
स्पष्टीकरण- ऐिे िर व्यर्क्त के बारे में जो ऐिे विदे श में ननिाि कर रिा िै र्जिकी िरकार भारत
िे यद्
ु ध र्स्थनत में िै और जो केन्द्र य िरकार द्िारा इि ननसमि द गई अनज्ञ
ु र्प्त के बबना उि दे श में
कारबार कर रिा िै , इि धारा के प्रयोजनों के सलए यि िमझा जाएगा क्रक िि ऐिी अन्य दे शीय शत्रु िै जो
विदे श में ननिाि कर रिा िै ।
84. विदे शी राज्य कब िाद ला िकेंगे- -कोई विदे शी राज्य क्रकिी भी ििम न्यायालय में िाद ला
िकेगा:
परन्तु यि तब जब क्रक िाद का उद्दे श्य ऐिे राज्य के शािक में या ऐिे राज्य क्रकिी अधधकार में उिकी
लोक िै सियत में ननहित प्राइिेट अधधकार का प्रितिन कराना िो ।

1. 1951 के अधधननमय िं. 2 की धारा 12 द्िारा पि


ू ि
ि ती शीषि और धारा 83 िे 87 तक के स्थान
पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया |

85. विदे शी शािकों की ओर िे असियोजन या प्रनतरक्षा करने के सलए िरकार द्िारा विशेष रुप िे
ननयत
ु त क्रकए गए व्यस्तत- (1) विदे शी राज्य के शािक के अनरु ोध पर या ऐिे शािक की ओर िे कायि
करने की केन्द्र य िरकार की राय में ििम क्रकिी व्यर्क्त के अनरु ोध पर, केन्द्र य िरकार ऐिे शािक की
ओर िे क्रकिी िाद का असभयोजन करने या प्रनतरिा करने के सलए क्रकन्ि ं व्यर्क्तयों को आदे श द्िारा
ननयक्
ु त कर िकेगी और ऐिे ननयक्
ु त क्रकए गए कोई भी व्यर्क्त ऐिे मान्यताप्राप्त असभकताि िमझे जाएंगे
जो ऐिे शािकों की ओर िे इि िंहिता के अधीन उपिंजात िो िकेंगे और कायि और आिेदन कर िकेंगे
(2) इि धारा के अधीन ननयक्
ु त क्रकिी विननहदि ष्ट िाद के या अनेक विननहदि ष्ट िादों के प्रयोजन के
सलए या ऐिे िभी िादो के प्रयोजनों के सलए की जा िकेगी र्जनका ऐिे शािक की ओर िे असभयोजन या

77
प्रनतरिा करना िमय-िमय पर आिश्यक िो ।
(3) इि धारा के अधीन ननयक्
ु त व्यर्क्त ऐिे क्रकिी िाद या क्रकन्ि ं िादों में उपिंजात िोने तथा
आिेदन और कायि करने के सलए क्रकन्ि ं अन्य व्यर्क्तयों को ऐिे प्राधधकृत या ननयक्
ु त कर िकेगा मानो िि
स्िंय ि उिका या उनका पिकार िो ।

86. विदे शी राज्यों,राजदत


ू ों और दत
ू ों के विरुद्ध िाद- (1) विदे शी राज्य पर कोई भी िाद क्रकिी
1***

भी न्यायालय में ,जो अन्यथा ऐिे िाद का विचारण करने के सलए ििम िै , केन्द्र य िरकार की ऐिी
ििमनत के बबना नि ं लाया जा िकेगा जो उि िरकार के क्रकिी िधचि द्िारा सलणखत रूप में प्रमाणणत की
गई िो :
परन्तु िि व्यर्क्त, जो स्थािर िम्पवि के असभधार के तौर पर ऐिे 2[विदे शी राज्य] पर, र्जििे िि िम्पवि
को धारण करता िै या धारण करने का दािा करता िै , यथापि
ू ोक्ि ििमनत के बबना िाद ला िकेगा ।
1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 29 द्िारा (1-2-1977 िे) '' के क्रकिी भी शािक ''
शब्दो का लोप ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 29 द्िारा (1-2-1977 िे शािक '' के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया ।

(2) ऐिी ििमनत विननहदिष्ट िाद या अनेक विननहदि ष्ट िादों या क्रकिी या क्रकन्ि ं विननहदि ष्ट िगि या
िगो के िमस्त िादों के बारे में द जा िकेगी और िि क्रकिी िाद या िादों के िगि की दशा में उि
न्यायालय को भी विननहदिष्ट कर िकेगी र्जिमें उि 1[विदे शी राज्य] के विरुद्ध िाद लाया जा िकेगा, क्रकन्तु
िि तब तक नि ं द जाएगी जब तक केन्द्र य िरकार को यि प्रतीत नि ं िोता िै क्रक िि 2[विदे शी राज्य] -
(क) उि व्यर्क्त के विरुद्ध जो उि पर िाद लाने की िांछा करता िै , उि न्यायालय में िाद
िंर्स्थत कर चक
ु ा िै अथिा
(ख) स्ियं या क्रकिी अन्य व्यर्क्ि द्िारा उि न्यायालय की अधधकाररता की स्थानीय िीमाओं के
भीतर व्यापार करता िै , अथिा
(ग) उन िीमाओं के भीतर र्स्थत स्थािर िम्पवि पर कब्जा रखता िै और उिके विरुद्ध ऐिी
िम्पवि के बारे में या उि धन के बारे में र्जिका भार उि िम्पवि पर िै , िाद लाया जाना िै , अथिा
(घ) इि धारा द्िारा उिे हदए गए विशेषाधधकार का अधधत्यजन असभव्यक्त या वििक्षित रूप िे कर
चक
ु ा िै ।
3
[(3) केन्द्र य िरकार के िधचि द्िारा सलणखत रूप में प्रमाणणत कोई डडिी विदे शी राज्य की िम्पवि
के विरुद्ध केन्द्र य िरकार की ििमनत िे ि ननष्पाहदत की जाएगी अन्यथा नि ं ।
(4) इि धारा के पि
ू ि
ि ती उपबन्ध ननम्नसलणखत के िम्बन्ध में िैिे ि लागू िोंगे 4[जैिे िे विदे शी
राज्य के िम्बन्ध में लागू िोते िैं-]
5
[(क) विदे शी राज्य का कोई शािक;]
6
[(कक)] विदे शी राज्य का कोई भी राजदत
ू या दत
ू ;
(ख) कामनिेपथ दे श का कोई भी उच्चायक्
ु त; तथा
(ग) 7[विदे शी राज्य के कमिचाररिन्ृ द का या विदे शी राज्य के राजदत
ू या दत
ू के] या कामनिेपथ दे श
के उच्चायक्
ु त के कमिचाररिन्ृ द या अनच
ु र िगि का कोई भी ऐिा िदस्य र्जिे केन्द्र य िरकार िाधारण या
विशेष आदे श द्िारा इि ननसमि विननहदिष्ट करे ।
8
[(5) इि िंहिता के अधीन ननम्नसलणखत व्यर्क्त धगरफ्तार नि ं क्रकए जाएंगे, अथाित:-
(क) विदे शी राज्य का कोई शािक;

78
(ख) विदे शी राज्य का कोई राजदत
ू या दत
ू ;

1. 1976के अधधननयम िं. 104 की धारा 29 द्िारा (1-2-1977 िे) ''शािक'' के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया 1
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 29 द्िारा (1-2-1977 िे) ''शािक'' के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया ।
3. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 29 द्िारा (1-2-1977 िे) उपधारा (3) के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया ।
4. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 29 द्िारा (1.2.1977 िे) कुछ शब्दों के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया ।
5. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 29 द्िारा (1.2.1977 िे) अन्तःस्थावपत क्रकया ।
6. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 29 द्िारा (1.2.1977 िे) खंड (क) को खंड (कक) के
रुप मे पन
ु : अिरांक्रकत ।
7. 1976 केअधधननयम िं. 104 की धारा 29 द्िारा (1.2.1977 िे) कुछ शब्दो के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया ।
8. 1976 के अधधननमय िं. 104 की धारा 29 द्िारा (1.2.1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया ।

(ग) कामनिेपथ दे श का कोई उच्चायक्


ु त;
(घ) विदे शी राज्य के कमिचाररिन्ृ द का या विदे शी राज्य के शािक, राजदत
ू या दत
ू के या
कामनिेपथ दे श के उच्चायक्
ु त के कमिचाररिन्ृ द या अनच
ु र िगि का कोई भी ऐिा िदस्य र्जिे केन्द्र य
िरकार िाधारण या विशेष आदे श द्िारा इि ननसमि विननहदि ष्ट करे ।
(6) जिां केन्द्र य िरकार को उपधारा (1) में विननहदि ष्ट ििमनत दे ने का अनरु ोध क्रकया जाता िै ििां
केन्द्र य िरकार ऐिे अनरु ोध का स्िीकार करने िे पण
ू त
ि : या भागत: इंकार करने िे पिले अनरु ोध करने
िाले व्यर्क्त को िन
ु िाई का उधचत अििर दे गी ।]

87. विदे शी शािकों का िादों के पक्षकारों के रुप में असिधान- विदे शी राज्य शािक अपने राज्य के
नाम िे िाद ला िकेगा और उिके विरुद्ध िाद उिके राज्य के नाम िे लाया जाएगा :
परन्तु धारा 86 में ननहदि ष्ट ििमनत दे ने में केन्द्र य िरकार शािक के विरुद्ध िाद क्रकिी असभकताि
के नाम िे या क्रकिी अन्य नाम िे लाए जाने का ननदे श दे िकेगी ।

87क. ''विदे शी राज्य'' और ''शािक'' की पररिाषाएं- (1) इि िाग में -


(क) ''विदे शी राज्य'' िे भारत िे बािर का ऐिा कोई राज्य असभप्रेत िै जो केन्द्र य िरकार द्िारा
मान्यताप्राप्त िै ; तथा
(ख) विदे शी राज्य के िम्बन्ध में “शािक” िे ऐिा व्यर्क्त असभप्रेत िै जो उि राज्य के अधधपनत के
रूप में केन्द्र य िरकार द्िारा तत्िमय मान्यता प्राप्त िै ।
(2) िर न्यायालय इि तथ्य की न्यानयक अिेिा करे गा क्रक-
(क) कोई राज्य केन्द्र य िरकार द्िारा मान्यता प्राप्त िै या नि ं '
(ख) कोई व्यर्क्त राज्य के अधधपनत के रुप में केन्द्र य िरकार द्िारा मान्यता प्राप्त िै या नि ं|

79
ित
ू पि
ू व िारतीय राज्यों के शािकों के विरुद्ध िाद
87ख. ित
ू पि
ू व िारतीय राज्यों के शािकों को धारा 85 और धारा 86 का लागू िोना
1
[(1) क्रकिी भत
ू पि
ू ि भारतीय राज्य के शािक द्िारा या उिके विरुद्ध क्रकिी िाद की दशा में जो
पण
ू त
ि : या भागत: ऐिे िाद िे तक
ु पर आधाररत िै जो िंविधान के प्रारम्भ िे पि
ू ि उद्भत
ू िुआ िै या ऐिे
िाद िे उद्भत
ू िोने िाल क्रकिी कायििाि की दशा में धारा 85 और धारा 86 की उपधारा (1) और (3) के
उपबन्ध ऐिे शािक के िम्बन्ध में उिी प्रकार लागू िोंगे जैिे िे क्रकिी विदे शी राज्य के शािक के िम्बन्ध
में लागू िोते िैं ।]
(2) इि धारा में -
(क) ''भत
ू पि
ू ि भारतीय राज्य'' िे िि भारतीय राज्य असभप्रेत िै र्जिे केन्द्र य िरकार, राजपत्र में
अधधिच
ू ना द्िारा, इि धारा के प्रयोजनों के सलए विननहदि ष्ट करें ,
2***

3
[(ख) “िंविधान का प्रारम्भ” िे 26 जनिर , 1950 असभप्रेत िै ; और
(ग) क्रकिी भत
ू पि
ू ि भारतीय राज्य के िम्बन्ध में ''शािक'' का िि अथि िै जो िंविधान के अनच्
ु छे द
363 में िै ।]

अन्तरासििाची
88. अन्तरासििाची िाद किां िंस्स्थत क्रकया जा िकेगा- जिां दो या अधधक व्यर्क्त उिी ऋण,
धनरासश या अन्य जगंम या स्थािर िम्पवि के बारे में एक दि
ू रे के प्रनतकूल दािा क्रकिी ऐिे अन्य व्यर्क्त
िे करते िै जो प्रभारों या खचों िे सभन्न क्रकिी हित का उिमें दािा नि ं करता िै और जो अधधकारिान
दािेदार को उिे दे ने या पररदि करने के सलए तैयार िै ििां ऐिा अन्य व्यर्क्त िमस्त ऐिे दािेदारों के
विरुद्ध अन्तरासभिाची िाद उि व्यर्क्त के बारे में र्जिे िंदाय या पररदान क्रकया जाएगा, विननश्चय
असभप्राप्त करने और अपने सलए पररत्राण असभप्राप्त करने के प्रयोजन िे िंर्स्थत कर िकेगा:
परन्तु जिां ऐिा कोई िाद लर्म्बत िै र्जिमें िभी पिकारों के अधधकार उधचत रूप िे विननर्श्चत
क्रकए जा िकते िैं ििां ऐिे कोई अन्तरासभिाची िाद िंर्स्थत नि ं क्रकया जाएगा ।

1. 1972 के अधधननयम िं. 64 की धारा 3 द्िारा उपधारा (1) के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया ।
2. 1972 के अधधननयम िं. 54 की धारा 3 द्िारा ''और'' शब्द का लोप |
3. 1972 के अधधननयम िं. 54 की धारा 3 द्िारा खण्ड (ख) के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया ।

िाग 5
विशेष कायविाहियां
माध्यस्थम ्
1
[89 न्यायालय के बािर वििादों का ननपटारा- (1) जिां न्यायालय को यि प्रतीत िोता िै क्रक क्रकिी
िमझौते के ऐिे तत्ि विद्यमान िैं, जो पिकारों को स्िीकायि िो िकते िैं ििां न्यायालय िमझौते के
ननबंधन बनाएगा और उन्िें पिकारों को उनकी ट का-हटप्पणी के सलए दे गा और पिकारों की ट का-हटप्पणी
प्राप्त करने के पश्चात ् न्यायालय िंभि िमझौते के ननबंधन पन
ु : बना िकेगा और उन्िें :-
(क) माध्यस्थम ्;
(ख) िल
ु ि;
(ग) न्यानयक िमझौते र्जिके अंतगित लोक अदालत के माध्यम िे िमझौता भी िै ; या
(घ) बीच बचाि के सलए ननहदि ष्ट करे गा ।

80
(2) जिा कोई वििाद-
(क) माध्यस्थम ् या िल
ु ि के सलए ननहदि ष्ट क्रकया गया िै ििां माध्यस्थम ् और िल
ु ि अधधननयम,
1996 (1996 का 26) के उपबंध ऐिे लागू िोंगे मानो माध्यस्थम ् या िल
ु ि के सलए कायििाहियां उि
अधधननयम के उपबंधों के अधीन िमझौते के सलए ननहदि ष्ट की गई थीं;
(ख) लोक अदालत को ननहदि ष्ट क्रकया गया िै , ििां न्यायालय उिे विधधक िेिा प्राधधकरण
अधधननयम, 1987 (1987 का 39) की धारा 20 की उपधारा (1) के उपबंधों के अनि
ु ार लोक अदालत को
ननहदि ष्ट करे गा और उि अधधननयम के िभी अन्य उपबंध लोक अदालत को इि प्रकार ननहदि ष्ट क्रकए गए
वििाद के िंबध
ं में लागू िोंगे;
(ग) न्यानयक िमझौता के सलए ननहदि ष्ट क्रकया गया िै , ििां न्यायालय उिे क्रकिी उपयक्
ु त िंस्था या
व्यर्क्त को ननहदि ष्ट करे गा और ऐिी िंस्था या व्यर्क्त को लोक अदालत िमझा जाएगा तथा विधधक िेिा
प्राधधकरण अधधननयम, 1987 (1987 का 39) के िभी उपबंध ऐिे लागू िोंगे मानो िि वििाद लोक अदालत
को उि अधधननयम के उपबंधों के अधीन ननहदि ष्ट क्रकया गया था;
(घ) बीच-बचाि के सलए ननहदि ष्ट क्रकया गया िै ििा न्यायालय पिकारों के बीच िमझौता कराएगा और ऐिी
प्रक्रिया का अनि
ु रण करे गा जो विहित की जाएं ।
1. 1999 के अधधननयम िं. 46 की धारा 7 द्िारा (1-7-2002 िे) अत: स्थावपत ।

विशेष मामला
90. न्यायालय की राय के सलए मामले का कथन करने की शस्तत- जिां कोई व्यर्क्त न्यायालय की
राय के सलए क्रकिी मामले का कथन करने के सलए सलणखत करार कर ले ििां न्यायालय विहित र नत िे
उिका विचारण और अिधारण करे गा ।

[लोक न्यि
1
ू ि
ें और लोक पर प्रिाि िालने िाले अन्य दोषपण
ू व कायव]
91. लोक न्यि
ू ि
ें और लोक पर प्रिाि िालने िाले अन्य दोषपण
ू व कायव- [(1) लोक न्यि
2
ू ि
ें या अन्य
ऐिे दोषपण
ू ि कायि की दशा में र्जििे लोक पर प्रभाि पडता िै या प्रभाि पड़ना िंभि िै , घोषणा और
व्यादे श के सलए या ऐिे अन्य अनत
ु ोष के सलए जो मामले की पररर्स्थनतयों में िमधु चत िो िाद,-
(क) मिाधधिक्ता द्िारा, या
(ख) दो या अधधक व्यर्क्तयों द्िारा, ऐिे लोक न्यि
ू ि
ें या अन्य दोषपण
ू ि कायि के कारण ऐिे
व्यर्क्तयों को विशेष नक
ु िान न िोने पर भी न्यायालय की इजाजत िे,
िंर्स्थत क्रकया जा िकेगा ।
(2) इि धारा की कोई भी बात िाद के क्रकिी ऐिे अधधकार को पररिीसमत करने िाल या उि पर
अन्यथा प्रभाि डालने िाल नि ं िमझी जाएगी, र्जिका अर्स्तत्ि इिके उपबन्धों िे स्ितंत्र िै |

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 30 द्िारा (1.2.1977 िे) पि


ू ि
ि ती शीषि के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 30 द्िारा (1.2.1977 िे) उपधारा (1) के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया ।

1
92. लोक पत
ू व कायव--- (1) पत
ू ि या धासमिक प्रकृनत के लोक प्रयोजनों के सलए िष्ृ ट क्रकिी
असभव्यक्त या आन्िनयक न्याि के क्रकिी असभकधथत भंग के मामले में , या जिा ऐिे क्रकिी न्याि के

81
प्रशािन के सलए न्यायालय का ननदे श आिश्यक िमझा जाता िै ििां मिाधधिक्ता या न्याि में हित रखने
िाले ऐिे दो या अधधक व्यर्क्त, र्जन्िोंने 2[न्यायालय की इजाजत] असभप्राप्त कर ल िै , ऐिा िाद, चािे िि
प्रनतविरोधात्मक िो या नि ,ं आरर्म्भक अधधकाररता िाले प्रधान सिविल न्यायालय में या राज्य िरकार
द्िारा इि ननसमि िशक्त क्रकए गए क्रकिी अन्य न्यायालय में र्जिकी अधधकाररता की स्थानीय िीमाओं के
भीतर न्याि की िम्पण
ू ि विषय-िस्तु या उिका कोई भाग र्स्थत िै , ननम्नसलणखत डडिी असभप्राप्त करने के
सलए िंर्स्थत कर िकेंगे--
(क) क्रकिी न्यािी को िटाने की डडिी;
(ख) नए न्यािी को ननयक्
ु त करने की डडिी;
(ग) न्यािी में क्रकिी िम्पनत को ननहित करने की डडिी;
3
[(गग) ऐिे न्याि को जो िटाया जा चक
ु ा िै या ऐिे व्यर्क्त को जो न्यािी नि ं रि गया िै , अपने
कब्जे में की क्रकिी न्याि-िम्पनत का कब्जा उि व्यर्क्त को जो उि िम्पवि के कब्जे का िकदार िै ,
पररदि करने का ननदे श दे ने की डडिी;]
(घ) लेखाओं और जांचों को ननहदि ष्ट करने की डडिी;
(ड.) यि घोषणा करने की डडिी क्रक न्याि-िम्पनत का या उिमें के हित का कौन िा अनप
ु ात
न्याि के क्रकिी विसशष्ट उद्दे श्य के सलए आबंहटत िोगा;
(च) िम्पण
ू ि न्याि-िम्पवि या उिके क्रकिी भाग का पटटे पर उठाया जाना, वििय क्रकया जाना,
बन्धक क्रकया जाना या विननमय क्रकया जाना प्राधधकृत करने की डडिी;
(छ) स्कीम र्स्थर करने की डडिी; अथिा
(ज) ऐिा अनतररक्त या अन्य अनत
ु ोष अनद
ु ात्त करने की डडिी जो मामले की प्रकृनत िे अपेक्षित
िो|

1. धारा 92 बबिार के क्रकिी धासमिक न्याि को लागू नि ं िोगी । दे णखए 1951 का बबिार
अधधननयम िं. 1 ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 31 द्िारा (1-2-1977 िे) ''मिाधधिक्ता की सलणखत
िम्पवि'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
3. 1956 के अधधननयम िं. 66 की धारा 9 द्िारा अन्त स्थावपत क्रकया ।

(2) उिके सििाय जैिा धासमिक विन्याि अधधननयम, 1863 (1863 का 20) द्िारा 1[या 2[उन राज्यिेत्रों] में,
3
[जो 1 नबम्बर, 1956 के ठीक पि
ू ि भाग ख राज्यों में िमाविष्ट,] थे प्रित
ृ तत्िमान क्रकिी विधध द्िारा]
उपबर्न्धत िै , उपधारा (1) में विननहदि ष्ट अनत
ु ोषों मे िे क्रकिी के सलए दािा करने िाला कोई भी िाद ऐिे
क्रकिी न्याि के िम्बन्ध में जो उिमें ननहदिष्ट िै , उि उपधारा के उपबन्धों के अनरू
ु प ि िंर्स्थत क्रकया
जाएगा, अन्यथा नि ं ।
4
[(3) न्यायालय, पत
ू ि या धासमिक प्रकृनत के लोक प्रयोजनों के सलए िष्ृ ट क्रकिी असभव्यक्त या
आन्िनयक न्याि के मल
ू प्रयोजनों में पररितिन कर िकेगा और ऐिे न्याि की िम्पवि या आय को अथिा
उिके क्रकिी भाग को ननम्नसलणखत में िे एक या अधधक पररर्स्थनतयों में िमान उद्दे श्य के सलए उपयोर्जत
कर िकेगा अथाित:
(क) जिां न्याि के मल
ू प्रयोजन पण
ू त
ि : या भागत:, -
(I) जिां तक िो िके परू े िो गए िैं, अथिा
(II) क्रियार्न्ित क्रकए ि नि ं जा िकते िैं या न्याि को िष्ृ ट करने िाले सलखत में हदए गए ननदे शों

82
के अनि
ु ार या जिां ऐिी कोई सलखत नि ं िै ििां, न्याि की भािना के अनि
ु ार क्रियाविन्त नि ं क्रकए जा
िकते िैं, अथिा
(ख) जिां न्याि के मल
ू प्रयोजनों में , न्याि के आधार पर उपलब्ध िम्पवि के केिल एक भाग के
उपयोग के सलए ि उपबन्ध िै ; अथिा
(ग) जिां न्याि के आधार पर उपलब्ध िम्पवि और िमान प्रयोजन के सलए उपयोर्जत की जा
िकने िाल अन्य िम्पवि का न्याि की भािना और िामान्य प्रयोजनों के सलए उिके उपयोजन को ध्यान
में रखते िुए, क्रकिी अन्य प्रयोजनों के िाथ-िाथ अधधक प्रभािी ढं ग िे उपयोग क्रकया जा िकता िै और िि
उि उद्दे श्य िे क्रकिी अन्य प्रयोजन के सलए उपयक्
ु त र नत िे उपयोर्जत की जा िकती िै ; अथिा
(घ) जिां मल
ू प्रयोजन पण
ू त
ि : या भागत: क्रकिी ऐिे िेत्र के बारे में बनाए गए थे जो ऐिे प्रयोजनों
के सलए उि िमय एक इकाई था क्रकन्तु अब नि ं रि गया िै ; अथिा
(ड.) जिां,-
(I) मल
ू प्रयोजनों को बनाए जाने के पश्चात ्, पण
ू त
ि : या भागत: अन्य िाधनों िे पयािप्त रुप िे
व्यिस्था कर द िै ; अथिा
(II) मल
ू प्रयोजन बनाए जाने के पश्चात ्, पण
ू त
ि : या भागत:, िमाज के सलए अनप
ु योगी या
अपिाननकर िोने के कारण िमाप्त िो गए िै ; अथिा
(III) मल
ू प्रयोजन बनाए जाने के पश्चात, पण
ू त
ि : या भागत: विधध के अनि
ु ार पत
ू ि नि ं रि गए िैं;
अथिा
(IV) मल
ू प्रयोजन बनाए जाने के पश्चात ्, पण
ू त
ि : या भागत: न्याि की भािना को ध्यान में रखते
िुए, न्याि के आधार पर उपलब्ध िम्पवि के उपयक्
ु त और प्रभािी उपयोग के सलए क्रकिी अन्य र नत िे
उपबन्ध नि ं करते िैं ।

1. 1951 के अधधननयम िं. 2 की धारा 13 द्िारा अंत: स्थावपत क्रकया |


2. विधध अनक
ु ू लन (िं. 2) आदे श 1956 द्िारा “भाग ‘ख’ राज्य” के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया|
3. विधध अनक
ु ू लन (िं. 2) आदे श 1956 द्िारा '' भाग 'ख' राज्य '' के स्थान पर प्रनतस्थावपत
क्रकया| 4. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 31 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया

राज्य िंशोधन
उ.प्र. राज्य द्िारा िंशोधन- उ.प्र. सिविल विधध (िध
ु ार ि िंशोधन) अधधननयम, 1954 (1954 का
24) के द्िारा जो क्रक हदनांक 30.11.1954 िे प्रभािी की गई उपधारा (1) के खंड (ख) के उपरांत खंड
(खख) को जोडा गया-
'' (खख) क्रकिी ऐिे व्यर्क्त के विरुद्ध जो क्रक न्यािी िोना िमाप्त िो गया िै अथिा िटा हदया
गया िै क्रकिी न्याि िंपवि के आधधपत्य को पररदान करने के सलए । ''
93. प्रेसििेंिी नगरों िे बािर मिाधधितता की शस्ततयों का प्रयोग- मिाधधिक्ता को धारा 91 और
धारा 92 द्िारा प्रदि शर्क्तयों का प्रयोग प्रेसिडेंिी नगरों िे बािर राज्य िरकार की पि
ू ि मंजूर िे कलक्टर
या ऐिा अधधकार भी कर िकेगा र्जिे राज्य िरकार इि ननसमि ननयक्
ु त करे ।

िाग 6
अनप
ु रू क कायविाहियां

83
94. अनप
ु रू क कायविहियां- न्यायालय न्याि के उद्दे श्यों का विफल क्रकया जाना ननिाररत करने के
सलए उि दशा में र्जिमें ऐिा करना विहित िो-
(क) प्रनतिाद को धगरफ्तार करने के सलए और न्यायालय के िामने उिको इि बात का िे तक

दसशित करने के सलए लाए जाने के सलए क्रक उिे अपने उपिंजात िोने के सलए प्रनतभनू त क्यों नि ं दे नी
चाहिए, िारण्ट ननकाल िकेगा और यहद िि प्रनतभनू त के सलए हदए गए क्रकिी आदे श का अनप
ु ालन करने में
अिफल रिता िै तो उिे सिविल कारागार को िप
ु द
ुि कर िकेगा;
(ख) प्रनतिाद को अपनी कोई िम्पवि पेश करने के सलए प्रनतभनू त दे ने का और उि िम्पवि को
न्यायालय के ननयंत्रणाधीन रखने का ननदे श दे िकेगा या क्रकिी िम्पवि की कुिी आहदष्ट कर िकेगा;
(ग) अस्थायी व्यादे श अनद
ु त कर िकेगा और अिज्ञा की दशा में उिके दोषी व्यर्क्त को सिविल
कारागार को िप
ु द
ु ि कर िकेगा और आदे श दे िकेगा क्रक उिकी िम्पवि कुकि की जाए और उिका वििय
क्रकया जाए;
(घ) क्रकिी िम्पवि का ररिीिर ननयक्
ु त कर िकेगा और उिकी िम्पवि को कुकि करके और उिका
वििय करके उिके कतिव्यों का पालन करा िकेगा;
(डः) ऐिे अन्य अन्तििती आदे श कर िकेगा जो न्यायालय को न्यायिंगत और िवु िधापण
ू ि प्रतीत िों

95. अपयावप्त आधारों पर धगरफ्तारी, कुकी या व्यादे श असिप्राप्त करने के सलए प्रनतकर- (1) जिां
क्रकिी िाद में , र्जिमें इिके ठीक पिले की धारा के अधीन कोई धगरफतार या कुकी कर ल गई िै या
अस्थायी व्यादे श हदया गया िै -
(क) न्यायालय को यि प्रतीत िोता िै क्रक ऐिी धगरफ्तार , कुकी या व्यादे श के सलए आिेदन
अपयािप्त आधारों पर हदया गया था, अथिा
(ख) िाद का िाद अिफल िो जाता िै और न्यायालय को यि प्रतीत िोता िै क्रक उिके िंर्स्थत
क्रकए जाने के सलए कोई यर्ु क्तयक्
ु त या अधधिंभाव्य आधार नि ं था,
ििां प्रनतिाद न्यायालय िे आिेदन कर िकेगा और न्यायालय ऐिे आिेदन पर अपने आदे श द्िारा
[पचाि िजार रुपए िे अनधधक] इतनी रकम िाद के विरुद्ध अधधननणीत कर िकेगा र्जतना िि प्रनतिाद
1

के सलए 2[उिके द्िारा क्रकए गए व्यय के सलए या उिे िुई िनत के सलए (र्जिके अंतगित प्रनतष्ठा की िुई
िनत भी िै)] यर्ु क्तयक्
ु त प्रनतकर िमझे:
परं तु न्यायालय, अपनी धन-िंबध
ं ी अधधकाररता की पररिीमाओं िे अधधक रकम इि धारा के अधीन
अधधननणीत नि ं करे गा ।
(2) ऐिे क्रकिी आिेदन का अिधारण करने िाला आदे श ऐिी धगरफ्तार , कुकी या व्यादे श के िंबध

में प्रनतकर के सलए क्रकिी भी िाद का िजिन करे गा ।

िाग 7
अपीलें
मल
ू डिक्रियों की अपीलें
96. मल
ू डििी की अपील- (1) ििां के सििाय जिां इि िंहिता के पाठ में या तत्िमय प्रिि
ृ क्रकिी
अन्य विधध द्िारा असभव्यक्त रुप िे अन्यथा उपबंधधत िै , ऐिी िर डडिी की, जो आरं सभक अधधकाररता का
प्रयोग करने िाले क्रकिी न्यायालय द्िारा पाररत की गई िै , अपील उि न्यायालय में िोगी जो ऐिे
न्यायालय के विननश्चयों की अपीलों को िन
ु ने के सलए प्राधधकृत िै ।

84
1. 1999 के अधधननयम िं. 46 की धारा 8 द्िारा (1-7-2002 िे) कनतपय शब्दो के स्थान पर
प्रनतस्थावपत ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 32 द्िारा (1-2-1977 िे) ''उिके द्िारा क्रकए गए व्यय
या उिे िुई िनत के सलए'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत ।

(2) एकपिीय पाररत मल


ू डडिी की अपील िो िकेगी ।
(3) पिकारों की ििमनत िे जो डडिी न्यायालय ने पाररत की िै उिकी कोई अपील नि ं िोगी ।
1
[(4) लघि
ु ाद न्यायालयों द्िारा िंज्ञेय िाद में क्रकिी डडिी िे कोई अपील, यहद ऐिी डडिी की रकम
या उिका मप
ू य [दि िजार रुपए िे अधधक नि ं िै तो, केिल विधध के प्रश्न के िंबध
2
ं में ि िोगी ।]
1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 33 द्िारा (1-2-1977 िे) अतःस्थावपत ।
2. 1999 के अधधननयम िं. 46 की धारा 9 द्िारा (1-7-2002 िे) “तीन िजार रुपए” के स्थान पर
प्रनतस्थावपत ।

97. जिां प्रारस्म्िक डििी की अपील निीं की गई िै ििां अस्न्तम डििी की अपील- जिां इि िंहिता
के प्रारम्भ के पश्चात ् पाररत प्रारर्म्भक डडिी िे व्यधथत कोई पिकार ऐिी डडिी की अपील नि ं करता िै
ििां िि उिकी शद्
ु धता के बारे में अंनतम डडिी के विरुद्ध की गई अपील में वििाद करने िे प्रिाररत रिे गा

98. जिां कोई अपील दो या अधधक न्यायाधीशों द्िारा िन


ु ी जाए ििां विननश्चय- (1) जिां कोई
अपील दो या अधधक न्यायधीशों के न्यायपीठ द्िारा िन
ु ी जाती िै ििां अपील का विननश्चय ऐिे
न्यायाधीशों की या ऐिे न्यायाधीशों की बिुिंख्या की (यहद कोई िो) राय के अनिु ार िोगा ।
(2) जिां ऐिी बिुिंख्या नि ं िै जो अपीसलत डडिी में फेरफार करने या उिे उलटने िाले ननणिय के
बारे में ििमत िै , ििां ऐिी डडिी पष्ु ट कर द जाएगी:
परन्तु जिा 1[अपील िन
ु ने िाले न्यायपीठ में दो या क्रकिी अन्य िमिंख्या में न्यायाधीश िैं और िे
न्यायाधीश ऐिे न्यायालय के िै र्जि न्यायालय में उि न्यायपीठ के न्यायाधीशों िे अधधक िंख्या में
न्यायाधीश िैं] और न्यायपीठ के न्यायाधीशों में क्रकिी विधध के प्रश्न पर मतभेद िै ििां िे उि विधध के
प्रश्न का कथन करें गे र्जिके बारे में उनमें मतभेद िै और तब अपील को अन्य न्यायाधीशों में िे कोई एक
या अधधक केिल उि प्रश्न के बारे में िन
ु ेंगे और तब उि प्रश्न का विननश्चय अपील िन
ु ने िाले न्यायाधीशों
की बिुिंख्या की, (यहद कोई िो), र्जनके अन्तगित िे न्यायाधीश भी िै र्जन्िोंने िि अपील िििप्रथम िन
ु ी
थी राय के अनि ु ार क्रकया जाएगा ।
2
[(3) इि धारा की कोई भी बात क्रकिी भी उच्च न्यायालय के लेटिि पेटेन्ट के क्रकिी भी उपबन्ध
का पररितिन करने िाल या अन्यथा उि पर प्रभाि डालने िाल नि ं िमझी जाएगी ।]

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 34 द्िारा (1-2-1977 िे) कुछ शब्दो के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
2. 1928 के अधधननयम िं. 18 की धारा 2 और अनि
ु च
ू ी 1 द्िारा अन्तःस्थावपत क्रकया गया ।

99. कोई िी डििी ऐिी गलती या अननयसमतता के कारण स्जििे गण


ु ागण
ु या अधधकाररता पर

85
प्रिाि निीं पड़ता िै न तो उलटी जाएगी और न उपान्तररत की जाएगी - पिकारों या िाद िे तक
ु ों के ऐिे
कुिंयोजन 1[या अिंयोजन] के या िाद की क्रकन्ि ं भी कायििाहियों में ऐिी गलती, त्रट
ु या अननयसमतता के
कारण र्जििे मामले के गण
ु ागण
ु या न्यायालय की अधधकाररता पर प्रभाि नि ं पडता िै कोई भी डडिी
अपील में न तो उलट जाएगी और न उिमें िारभत
ू फेरफार क्रकया जाएगा और न कोई मामला अपील में
प्रनतप्रेवषत क्रकया जाएगा:
2
[परन्तु इि धारा की कोई भी बात क्रकिी आिश्यक पिकार के िंयोजन को लागू नि ं िोगी ।]

3
[99क. धारा 47 के अधीन तब तक क्रकिी आदे श को उलटा न जाना या उपांतररत न क्रकया जाना
जब तक मामले के विननश्चय पर प्रनतकूल प्रिाि निीं पड़ता िै - धारा 99 के उपबन्धों की व्यापकता पर
प्रनतकूल प्रभाि डाले बबना, धारा 47 के अधीन कोई भी आदे श, ऐिे आदे श िे िंबधं धत क्रकिी कायििाि में
क्रकिी गलती, त्रट
ु या ननयसमतता के कारण तब तक न तो उलटा जाएगा और न उिमें िारभत
ू फेरफार
क्रकया जाएगा तब तक ऐिी गलती, त्रट
ु या अननयसमतता का मामले के विननश्चय पर प्रनतकूल प्रभाि नि
पडता िै ।]

1. 1976के अधधननयम िं. 104 की धारा 35 द्िारा (1-2-1977 िे) अंत:स्थावपत क्रकया गया ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 35 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्तःस्थावपत क्रकया
गया |
3. 1976 के अधधननयम रन 1०4 की धारा 36 द्िारा (1 -2- 1977 िे) अन्तःस्थावपत क्रकया
गया ।
अपीली डिक्रियों की अपीलें

1
[100. द्वितीय अपील- (1) उिके सििाय जैिा इि िंहिता के पाठ में या तत्िमय प्रित
ृ क्रकिी
अन्य विधध में असभव्यक्त रूप िे उपबंधधत िै , उच्च न्यायालय के अधीनस्थ क्रकिी न्यायालय द्िारा अपील
में पाररत प्रत्येक डडिी की उच्च न्यायालय में अपील िो िकेगी, यहद उच्च न्यायालय का यि िमाधान िो
जाता िै क्रक उि मामले में विधध का कोई िारिान ् प्रश्न अन्तििसलत िै |
(2) एकपिीय पाररत अपील डडिी की अपील इि धारा के अधीन िो िकेगी ।
(3) इि धारा के अधीन अपील में अन्तििसलत विधध के उि िारिान ् प्रश्न का अपील के ज्ञापन में
प्रसमतत: कथन क्रकया जाएगा ।
(4) जिां उच्च न्यायालय का यि िमाधान िो जाता िै क्रक क्रकिी मामले में िारिान ् विधध का प्रश्न
अन्तििसलत िै तो िि उि प्रश्न को बनाएगा ।
(5) अपील इि प्रकार बनाए गए प्रश्न पर िन
ु ी जाएगी और प्रनतिाद को अपील की िन
ु िाई में यि
तकि करने की अनज्ञ
ु ा द जाएगी क्रक ऐिे मामले में ऐिा प्रश्न अन्तििसलत नि ं िै :
परन्तु इि धारा की क्रकिी बात के बारे में यि नि ं िमझा जाएगा क्रक िि, विधध के क्रकिी अन्य
ऐिे िारिान ् प्रश्न पर जो न्यायालय के द्िारा नि ं बनाया गया िै , न्यायालय का यि िमाधान िो जाने पर
क्रक उि मामले में ऐिा प्रश्न अन्तििसलत िै , न्यायालय की कारणों को लेखबद्ध करके अपील िन
ु ने की
शर्क्त िापि लेती िै या उिे न्यन
ू करती िै ।]

1. 1976 के अधधनननयम िं. 104 की धारा 37 द्िारा (1-2-1977 िे) धारा 100 के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

86
1
[(100क. कनतपय मामलों में आगे अपील का न िोना - क्रकिी उच्च न्यायालय के सलए क्रकिी
लेटिि पेटेंट में या विधध का बल रखने िाल क्रकिी सलखत में या तत्िमय प्रिि
ृ क्रकिी अन्य विधध में क्रकिी
बात के िोते िुए भी, जिां क्रकिी मल
ू या अपील डडिी या आदे श िे अपील की िन ु िाई और उिका
विननश्चय क्रकिी उच्च न्यायालय के क्रकिी एकल न्यायाधीश द्िारा क्रकया जाता िै ििााँ ऐिे एकल न्यायाधीश
ने ननणिय और डडिी िे आगे कोई अपील नि ं िोगी |]

1. 2002 के अधधननयम िं. 22 की धारा 4 द्िारा (1-7- 2002 िे) धारा 100क के स्थान पर
अंत: स्थावपत ।

101. द्वितीय अपील का क्रकिी िी अन्य आधार पर न िोना - कोई भी द्वितीय अपील धारा 100
में िणणित आधारों पर िोगी, अन्यथा नि ं ।

1
[102. कनतपय मामलों में आगे द्वितीय अपील का न िोना - क्रकिी डडिी िे कोई द्वितीय अपील
नि ं िोगी जब मल
ू िाद की विषय िस्तु पच्चीि िजार रुपए िे अधधक धन की ििल
ू के सलए नि ं िे ।]

2
[103. त्य-वििाद्यकों का अिधारण करने की उच्च न्यायालय की शस्तत - यहद असभलेख में का
िाक्ष्य पयािप्त िो तो क्रकिी भी द्वितीय अपील में उच्च न्यायालय ऐिी अपील के ननपटारे के सलए आिश्यक
कोई वििाद्यक अिधाररत कर िकेगा, जो-
(क) ननचले अपील न्यायालय द्िारा या प्रथम बार के न्यायालय और ननचले अपील न्यायालय दोनों
द्िारा अिधाररत नि ं क्रकया गया िै , अथिा
(ख) धारा 100 में यथाननहदि ष्ट विधध के ऐिे प्रश्न के विननश्चय के कारण ऐिे न्यायालय या
न्यायालयों द्िारा गलत तौर पर अिधाररत क्रकया गया िै ।]

1. 2002 के अधधननयम िं. 22 की धारा 5 द्िारा (1-7-2002 िे) धारा 102 के स्थान पर
प्रनतस्थावपत ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 40 द्िारा (1-2-1977 िे) धारा 103 के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

आदे शों की अपील


104. िे आदे श स्जनकी अपील िोगी - (1) ननम्नसलणखत आदे शों की अपील िोगी -
1* * * * * *

2
[(चच) धारा 35क के अधीन आदे श;]
3
[(चचक) धारा 91 या धारा 92 के अधीन, यथार्स्थनत, धारा 91 या धारा 92 में ननहदि ष्ट प्रकृनत के
िाद को िंर्स्थत करने के सलए इजाजत दे ने िे इंकार करने िाला आदे श;]
(छ) धारा 95 के अधीन आदे श;
(ज) इि िंहिता के उपबन्धों में िे क्रकिी के भी अधीन ऐिा आदे श, जो जुमािना अधधरोवपत करता िै
या क्रकिी व्यर्क्त की धगरफ्तार या सिविल कारागार में ननरोध ननहदि ष्ट करता िै , ििां के सििाय जिां क्रक
ऐिी धगरफ्तार या ननरोध क्रकिी डडिी के ननष्पादन में िै ;
(झ) ननयमों के अधीन क्रकया गया कोई ऐिा आदे श र्जिकी अपील ननयमों द्िारा असभव्यक्त रूप िे

87
अनज्ञ
ु ात िै ,
और इि िंहिता के पाठ में या तत्िमय प्रिि
ृ क्रकिी विधध दारा असभव्यक्त रूप िे अन्यथा
उपबर्न्धत के सििाय क्रकन्ि ं भी अन्य आदे शों की अपील नि ं िोगी :
4
[परन्तु खण्ड (चच) में विननहदि ष्ट क्रकिी भी आदे श की कोई भी अपील केिल इि आधार पर ि
िोगी क्रक कोई आदे श क्रकया ि नि ं जाना चाहिए था या आदे श कम रकम के िंदाय के सलए क्रकया जाना
चाहिए था ।]
(2) इि धारा के अधीन अपील में पाररत क्रकिी भी आदे श की कोई भी अपील नि ं िोगी ।

1. 1940 के अधधननयम िं. 10 की धारा 49 और अनि


ु च
ू ी 3 द्िारा खण्ड (क) िे (च) तक का
लोप ।
2. 1922 के अधधनननयम िं. 9 की धारा 3 द्िारा अन्त: स्थावपत । पि
ू ोक्त धारा 35क का पाद -
हटप्पण भी दे खें ।
3. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 41 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया गया
4. 1922 के अधधननयम िं. 9 की धारा 3 द्िारा अन्तःस्थावपत । पि
ू ोक्त धारा 35क का पाद-
हटप्पण भी दे खें ।

88
105. अन्य आदे श- (1) असभव्यक्त रूप िे अन्यथा उपबर्न्धत के सििाय, क्रकिी न्यायालय द्िारा
अपनी आरर्म्भक या अपील अधधकाररता के प्रयोग में क्रकए गए क्रकिी भी आदे श की कोई भी अपील नि ं
िोगी, क्रकन्तु जिां डडिी की अपील की जाती िै ििां क्रकिी आदे श में की ऐिी गलती, त्रहु ट या अननयसमतता,
र्जििे मामले के विननश्चय पर प्रभाि पड़ता िै , अपील ज्ञापन में आिेप के आधार के रूप में उपिणणित की
जा िकेगी ।
(2) उपधारा (1) में अन्तवििष्ट क्रकिी बात के िोते िुए भी जिां 1***प्रनतप्रेषण के ऐिे आदे श िे,
र्जिकी अपील िोती िै , व्यधथत कोई पिकार अपील नि ं करता िै ििां िि उिके पश्चात ् उिकी शद् ु धता
पर वििाद करने िे प्रिाररत रिे गा ।

106. कौन िे न्यायालय अपील िन


ु ेंगे - जिां क्रकिी आदे श की अपील अनज्ञ
ु ात िै , ििां िि उि
न्यायालय में िोगी, र्जिमें उि िाद की डडिी की अपील िोती िै र्जिमें ऐिा आदे श क्रकया गया था, या
जिां ऐिा आदे श अपील अधधकाररता के प्रयोग में क्रकिी न्यायालय द्िारा (जो उच्च न्यायालय नि ं िै )
क्रकया जाता िै ििां िि उच्च न्यायालय में िोगी ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 42 द्िारा (1-2-1977 िे) कुछ शब्दों का लोप
क्रकया गया|

अपील िम्बन्धी िाधारण उपबन्ध


107. अपील न्यायालय की शस्ततयां--- (1) ऐिी शतो और पररिीमाओं के अधीन रिते िुए, जो
विहित की जाएं, अपील न्यायालय को यि शर्क्त िोगी क्रक िि-
(क) मामले का अंनतम रूप िे अिधारण करे ;
(ख) मामले का प्रनतप्रेषण करे ;
(ग) वििाद्यक विरधचत करे और उन्िें विचारण के सलए ननदे सशत करे ;
(घ) अनतररक्त िाक्ष्य ले या ऐिे िाक्ष्य का सलया जाना अपेक्षित करे ;
(2) पिू ोक्त के अधीन रिते िुए, अपील न्यायालय को िे ि शर्क्तयां िोंगी और िि जिां तक िो
िके उन्ि ं कतिव्यों का पालन करे गा, जो आरं सभक अधधकाररता िाले न्यायालयों में िंर्स्थत िादों के बारे में
इि िंहिता द्िारा उन्िें प्रदि और उन पर अधधरोवपत क्रकए गए िैं ।

108. अपीली डिक्रियों और आदे शों की अपीलों में प्रक्रिया - मल


ू डडक्रियों की अपीलों िे िम्बर्न्धत
इि भाग के उपबन्ध जिां तक िो िके,-
(क) अपील डडक्रियों की अपीलों को लागू िोंगे, तथा
(ख) उन आदे शों की अपीलों को लागू िोंगे जो इि िंहिता के अधीन या ऐिी क्रकिी विशेष या
स्थानीय विधध के अधीन क्रकए गए िैं र्जिमें कोई सभन्न प्रक्रिया उपबर्न्धत नि ं की गई िै ।

उच्चतम न्यायालय में अपीलें


1
[109. उच्चतम न्यायालय में अपीलें कब िोंगी - िंविधान के भाग 5 के अध्याय 4 के उपबंधो के
और ऐिे ननयमों के जो भारत के न्यायालयों िे अपीलों के िंबध
ं में उच्चतम न्यायालय द्िारा िमय -
िमय पर बनाए जाएं और इिमें इिके पश्चात ् अन्तवििष्ट उपबन्धों के अधीन रिते िुए क्रकिी उच्च
न्यायालय की सिविल कायििाि में के क्रकिी ननणिय, डडिी या अर्न्तम आदे श की अपील उच्च न्यायालय में

89
िोगी यहद उच्च न्यायालय यि प्रमाणणत कर दे ता िै क्रक---
(I) मामले में व्यापक मित्ि का कोई िारिान ् विधधक प्रश्न अन्तििसलत िै ; तथा
(II) उच्च न्यायालय की राय में उि प्रश्न का उच्चतम न्यायायल द्िारा विननश्चय आिश्यक िै ।

110. [विषय - िस्तु का मल्


ू य |] - सिविल प्रक्रिया िंहिता (िंशोधन) अधधननयम, 1973 (1973 का
49) की धारा 3 द्िारा ननरसित ।

111. [कुछ अपीलों का िजवन । - विधध अनक


ु ू लन आदे श, 1950 द्िारा ननरसित ।
[111क. [फेिरल न्यायालयों की अपीलें] - फेडरल न्यायालय अधधननयम, 1941 (1941 का 21) की
2

धारा 2 द्िारा ननरसित ।

112. व्यािवृ ियां- 3[(1) इि िंहिता में अन्तवििष्ट क्रकिी भी बात के बारे में यि नि ं िमझा जाएगा
क्रक िि-
(क) िंविधान के अनच्
ु छे द 136 या अन्य क्रकिी उपबन्ध के अधीन उच्चतम न्यायालय की
शार्क्तयों पर प्रभाि डालती िै , अथिा
(ख) उच्चतम न्यायालय में अपीलों को उपर्स्थत करने के सलए या उिके िामने उनके िंचालन के
सलए उि न्यायालय द्िारा बनाए गए और तत्िमय प्रित
ृ क्रकन्ि ं ननयमों में िस्तिेप करती िै |]

1. 1973 के अधधननयम िं. 49 की धारा 2 द्िारा धारा 109 के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया ।
2. भारत शािन (भारतीय विधध अनक
ु ू लन) आदे श, 1937 द्िारा अन्तःस्थावपत क्रकया गया ।
3. विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1950 द्िारा पि
ू ि
ि ती उपधारा (1) के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

(2) इिमें अन्तवििष्ट कोई भी बात क्रकिी भी दार्ण्डक या नािधधकरण विषयक या उपनािधधकरण
विषयक अधधकाररता के विषय को अथिा प्राइल न्यायालयों के आदे शों और डडक्रियों की अपीलों को लागू
नि ं िोती ।

िाग 8
ननदे श, पन
ु विवलोकन और पन
ु रीक्षण
113. उच्च न्यायालय को ननदे श - उन शतो और पररिीमाओं के अधीन रिते िुए, जो विहित की
जाएं, कोई भी न्यायालय मामले का कथन करके उिे उच्च न्यायालय की राय के सलए ननदे सशत कर िकेगा
और उच्च न्यायालय उि पर ऐिा आदे श कर िकेगा जो िि ठीक िमझे:
[परन्तु जिां न्यायालय का यि िामधान िो जाता िै क्रक उिके िमि लंबबत मामले में क्रकिी
1

अधधननयम, अध्यादे श या विननयम अथिा क्रकिी अधधननयम, अध्यादे श या विननयम में अन्तवििष्ट क्रकिी
उपबन्ध की विधधमान्यता के बारें में ऐिा प्रश्न अन्तिसलित िै , र्जिका अिधारण उि मामले को ननपटाने के
सलए आिश्यक िै और उिकी यि राय िै क्रक ऐिा अधधननयम, अध्यादे श, विननयम या उपबंध अविधधमान्य
या अप्रितिनशील िै , क्रकन्तु उि उच्च न्यायालय द्िारा र्जिके िि न्यायालय अधीनस्थ िै , या उच्चतम
न्यायालय द्िारा इि प्रकार घोवषत नि ं क्रकया गया िै , ििां न्यायालय अपनी राय और उिके कारणों को
उपिणणित करते िुए मामले का कथन करे गा और उिे उच्च न्यायालय की राय के सलए ननदे सशत करे गा ।
स्पष्टीकरण- इि धारा में ''विननयम'' िे बंगाल, मम्
ु बई या मद्राि िंहिता का कोई विननयम या

90
िाधारण खंड अधधननयम, 1897 (1897 का 10) में या क्रकिी राज्य के िाधारण खंड अधधननयम में
पररभावषत कोई भी विननयम असभप्रेत िै ।]

1. 1951 के अधधननयम िं. 24 की धारा 2 द्िारा जोडा गया ।

114. पन ु विवलोकन- पि
ू ोक्ि के अधीन रिते िुए कोई व्यर्क्त, जो-
(क) क्रकिी ऐिी डडिी या आदे श िे र्जिकी इि िंहिता द्िारा अपील अनज्ञ
ु ात िै , क्रकन्तु र्जिकी
कोई अपील नि ं की गई िै ,
(ख) क्रकिी ऐिी डडिी या आदे श िे र्जिकी इि िंहिता द्िारा अपील अनज्ञ
ु ात नि ं िै , अथिा
(ग) ऐिे विननश्चय िे जो लघि
ु ाद न्यायालय के ननदे श पर क्रकया गया िै ,
अपने को व्यधथत मानता िै िि डडिी पाररत करने िाले या आदे श करने िाले न्यायालय िे ननणिय
के पन
ु वििलोकन के सलए आिेदन कर िकेगा और न्यायालय उि पर ऐिा आदे श कर िकेगा जो िि ठीक
िमझे ।

115. पन
ु रीक्षण- [(1) उच्च न्यायालय क्रकिी भी ऐिे मामले के असभलेख को मंगिा िकेगा र्जिका
1

ऐिे उच्च न्यायालय के अधीनस्थ क्रकिी न्यायालय िे विननश्चय क्रकया िै और र्जिकी कोई भी अपील नि ं
िोती िै और यहद यि प्रतीत िोता िै क्रक-
(क) ऐिे अधीनस्थ न्यायालय ने ऐिी अधधकाररता का प्रयोग क्रकया िै जो उिमें विधध द्िारा ननहित
नि ं िै अथिा
(ख) ऐिी अधीनस्थ न्यायालय ऐिी अधधकाररता का प्रयोग करने में अिफल रिा िै जो इि प्रकार
ननहित िै , अथिा
(ग) ऐिे अधीनस्थ न्यायालय ने अपनी अधधकाररता का प्रयोग करने में अिैध रूप िे या तार्त्िक
अननयसमतता िे कायि क्रकया िै ,
तो उच्च न्यायालय उि मामले में ऐिा आदे श कर िकेगा जो िि ठीक िमझे:
[परं तु उच्च न्यायालय, क्रकिी िाद या अन्य कायििाि के अनि
2
ु म में इि धारा के अधीन क्रकए गए
क्रकिी आदे श में या कोई वििाद्यक विननर्श्चत करने िाले क्रकिी आदे श में तभी फेरफार करे गा या उिे
उलटे गा जब ऐिा आदे श यहद िि पन
ु र िण के सलए आिेदन करने िाले पिकार के पि में क्रकया गया िोता
तो िाद या अन्य कायििाि का अंनतम रूप िे ननपटारा कर दे ता ।]
[(2) उच्च न्यायालय इि धारा के अधीन क्रकिी ऐिे डडिी या आदे श में , र्जिके विरुद्ध या तो
3

उच्च न्यायालय में या उिके अधीनस्थ क्रकिी न्यायालय में अपील िोती िै , फेरफार नि ं करे गा अथिा उिे
नि ं उलटे गा ।]
[(3) न्यायालय के िमि िाद या अन्य कायििाि में कोई पन
4
ु र िण रोक के रूप में प्रभािी नि ं
िोगी सििाय ििां के जिां ऐिे िाद या अन्य कायििाि को उच्च न्यायालय द्िारा रोका गया िै ।]
स्पष्टीकरण- इि धारा में “ऐिे मामले के असभलेख को मंगिा िकेगा र्जिका ऐिे उच्च
न्यायालय के अधीनस्थ क्रकिी न्यायालय ने विननश्चयक क्रकया िै ” असभव्यर्क्त के अंतगित क्रकिी िाद या
अन्य कायििाि के अनक
ु म में क्रकया गया कोई आदे श या कोई वििाद्यक विननर्श्चत करने िाला कोई आदे श
भी िै ।]

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 43 द्िारा (1-2-1977 िे) धारा 115 को उपधारा (1) के

91
रूप मे पन
ु : िंख्यांक्रकत क्रकया गया ।
2. 1999 के अधधननयम िं. 46 की धारा 12 द्िारा (1-7-2002 िे) परं तक
ु के स्थान पर
प्रनतस्थावपत|
3. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 43 द्िारा (1-2-1977 िे) अंतःस्थावपत ।
4. 1999 के अधधननयम िं. 46 की धारा 12 द्िारा (1-7-2002 िे) अंतःस्थावपत ।

राज्य िंशोधन
मध्य प्रदे श राज्य िंशोधन- मध्य प्रदे श राज्य में म.प्र. के अधधननयम िमांक 4 िन 1994 के
द्िारा ननम्न आशय का िंशोधन क्रकया गया िै -
मल
ू अधधननयम की धारा 115 के स्थान पर ननम्नसलणखत धारा स्थावपत की जाये, अथाित-
''115. पन
ु रीक्षण- (1) उच्च न्यायालय क्रकिी भी ऐिे मामले के असभलेख को मंगा िकेगा र्जिका
ऐिे उच्च न्यायालयों के अधीनस्थ क्रकिी न्यायालय ने विननश्चय क्रकया िै और र्जिकी कोई भी अपील नि ं
िोती िै और यहद यि प्रतीत िोता िै क्रक-
(क) ऐिे अधीनस्थ न्यायालय ने ऐिी अधधकाररता का प्रयोग क्रकया िै , जो उिमें विधध द्िारा
ननहित नि ं िै , अथिा
(ख) ऐिा न्यायालय ऐिी अधधकाररता का प्रयोग करने में अिफल रिा िै जो इि प्रकार ननहित नि ं
िै ; अथिा
(ग) ऐिे अधीनस्थ न्यायालय ने अपनी अधधकाररता का प्रयोग करने में अिैध रुप िे या तार्त्िक
अननयसमतता िे कायि क्रकया िै , तो उच्च न्यायालय उि मामले में ऐिा आदे श कर िकेगा जो िि ठीक
िमझे:
परन्तु उच्च न्यायालय क्रकिी िाद या अनरु काय्रिाि के अनि
ु म में इि धारा के अधीन क्रकए गए
क्रकिी आदे श में या कोई वििाद्यक विननर्श्चत करने िाले क्रकिी आदे श में तभी फेरफार करे गा या उिे
उलटे गा जब-
(क) ऐिा आदे श यहद िि पन
ु र िण के सलए आिेदन करने िाले पिकार के पि में क्रकया गया िोता
तो िाद की उि कायििाि का अंनतम रूप िे ननपटारा कर दे ता; अथिा
(ख) ऐिा आदे श यहद रिने हदया गया तो न्याय नि ं िो पाएगा अथिा ऐिे पिकार को र्जिके
विरुद्ध िि क्रकया गया िोता, िनत पिुंचेगी र्जिकी िाननपनू ति नि ं िो िकेगी ।
(2) उच्च न्यायालय इि आधार के अधीन क्रकिी ऐिी डडिी या आदे श में , र्जिके विरुद्ध या तो
उच्च न्यायालय में या उिके अधीनस्थ क्रकिी न्यायालय में अपील िोती िै , फेरफार नि ं करे गा अथिा उिके
नि ं उलटे गा ।
स्पष्टीकरण- इि धारा में ''ऐिे मामले के असभलेख को मंगिा िकेगा र्जिका ऐि उच्च न्यायालय
के अधीनस्थ क्रकिी न्यायालय ने विननश्चय क्रकया िै '' असभव्यर्क्त के अन्तगित क्रकिी िाद या अन्य
कायििाि के अनि
ु म में हदया गया कोई आदे श वििाद्यक विननर्श्चत करने िाला कोई आदे श भी िै ।
(उक्त िंशोधन बाबत राज्यपाल की अनम ु नत हदनांक 15-3-1994 को प्राप्त िुई ि हदनांक 16-3-
1994 को इिे म.प्र. राजपत्र (अिाधारण) में प्रकासशत क्रकया गया ।)
उिर प्रदे श राज्य िंशोधन- उिर प्रदे श राज्य में इिकी प्रयोज्यता के सलए धारा 115 के सलए ननम्न
को प्रनतस्थावपत कीर्जए-

92
''115 .पन
ु रीक्षण- उच्च न्यायालय, मल
ू िाद या अन्य कायििाहियों (एक लाख रुपयों या पांच लाख
िे अनाधधक ऐिी रासश जो क्रक उच्च न्यायालय िमय िमय पर, राजपत्र में प्रकासशत अधधिच
ू ना द्िारा
ननयत करे , उ.प्र. सिविल विधध (िंशोधन) अधधननयम, 1991 या ऐिी अधधिच
ू ना के आरं भ की तार ख, जैिा
भी मामला िो के पि ू ि िंर्स्थत ऐिे िादों या अन्य कायििाहियों को शासमल करते िुए) और र्जला न्यायालय
ऐिी हदनांक के पि
ू ि मल ू िाद या अन्य कायििाहियों िे उत्पन्न िोने िाले िंर्स्थत क्रकिी मामले जैिा भी
मामला िो, उच्च न्यायालय या र्जला न्यायालय क्रकिी भी ऐिे मामले के असभलेख को मंगा िकेगा र्जिका
ऐिे उच्च न्यायालयों के अधीनस्थ क्रकिी न्यायालय ने विननश्चय क्रकया िै और र्जिकी कोई भी अपील नि ं
िोती िै और यहद यि प्रतीत िोता िै क्रक-
(क) ऐिे अधीनस्थ न्यायालय ने ऐिी अधधकाररता का प्रयोग क्रकया िै , जो उिमें विधध द्िारा
ननहित नि ं िै ; अथिा
(ख) ऐिा न्यायालय ऐिी अधधकाररता का प्रयोग करने में अिफल रिा िै जो इि प्रकार ननहित नि ं
िै ; अथिा
(ग) ऐिे अधीनस्थ न्यायालय ने अपनी अधधकाररता का प्रयोग करने में अिैध रूप िे या तार्त्िक
अननयसमतता िे कायि क्रकया िै ,
तो जैिा भी मामला िो, उच्च न्यायालय या र्जला न्यायालय उि मामले में ऐिा आदे श कर िकेगा
जो िि ठीक िमझे:
परन्तु यि क्रक र्जला न्यायालय द्िारा ननराकृत क्रकिी भी मप
ू यांकन के मल
ू िाद या अन्य कायििाि
िे उत्पन्न मामलों के िंबध
ं में अकेला उच्च न्यायालय इि धारा के अन्तगित आदे श करने के सलए ििम
िोगा:
परन्तु अन्यथा यि क्रक उच्च न्यायालय या र्जला न्यायालय क्रकिी िाद या अन्य कायििाि के
अनि
ु म में इि धारा के अधीन क्रकये गये क्रकिी आदे श में या कोई वििाद्यक विननर्श्चत करने िाले क्रकिी
आदे श में तभी फेरफार करे गा या उिे उलटे गा जब-
(क) आदे श यहद इि प्रकार फेरफार क्रकया जाता या उलटा जाता तो िाद या अन्य कायििाि का
अंनतम रूप िे ननपटारा कर दे ता, अथिा
(ख) ऐिा आदे श यहद रिने हदया गया तो, न्याय नि ं िो पायेगा अथिा उन पिकारों को र्जनके
विरुद्ध िि क्रकया गया था,ऐिी िनत पिुंचेगी र्जिकी िाननपनू ति नि ं िो िकती िै ।
[परन्तु यि भी क्रक जिां कायििाि की प्रकृनत र्जिमें र्जला न्यायालय इि धारा के अन्तगित
असभलेख बल
ु ा िकता िै और आदे शों को पाररत कर िकता िै , ऊपर ननहदिष्ट आरं भ की िि
ु ग
ं त तार ख के
पि
ू ,ि उच्च न्यायालय मे लंबबत थी, ऐिा न्यायालय इिको ननराकृत करने की कायििाि करे गा ।]
स्पष्टीकरण- इि धारा में '' ऐिे मामले र्जनका विननश्चय क्रकया जा चक
ु ा िै '' असभव्यर्क्त के
अन्तगित क्रकिी िाद या अन्य कायििाि के अनि
ु म में कोई वििाद्यक विननर्श्चत करने िाला आदे श भी िै ।
(उ.प्र. अधधननयम 1978 का 31 ि 1991 का 17 के द्िारा िंशोधन)

िाग 9
[ऐिे उच्च न्यायालयों] के िम्बन्ध में विशेष उपबन्ध जो 2[न्यानयक आयत
1
ु त के न्यायालय निी।] िै
116. इि िाग का कुछ उच्च न्यायालयों को िी लागू िोना- यि भाग ऐिे उच्च न्यायालयों को ि
लागू िोगा जो 3[न्यानयक आयक्
ु त के न्यायालय नि ं] िैं ।

93
1. 1951 के अधधननयम िं. 2 की धारा 14 द्िारा ''चाटि डि उच्च न्यायालयों'' के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
2. विधध अनक
ु ू लन (िं. 2) आदे श, 1956 द्िारा '' भाग क राज्यों और भाग ख राज्यों के सलए '' के
स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
3. विधध अनक
ु ू लन (िं. 2) आदे श, 1966 द्िारा '' भाग क राज्यों और भाग ख राज्यों के सलए '' के
स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

117. िंहिता का उच्च न्यायालयों को लागू िोना- उिके सििाय जैिा इि भाग में या भाग 10 में
या ननयमों में उपबर्न्धत िै , इि िंहिता के उपबन्ध ऐिे उच्च न्यायालयों को लागू िोंगे ।

118. खचो के असिननश्चय के पि


ू व डििी का ननष्पादन- जिां ऐिा कोई उच्च न्यायालय यि
आिश्यक िमझता िै क्रक उिकी अपनी आरं सभक सिविल अधधकाररता के प्रयोग में पाररत कोई डडिी िाद में
के खचों की रासश का विननधािरण द्िारा असभननश्चय क्रकए जाने के पि
ू ि ननष्पाहदत की जानी चाहिए ििां िि
न्यायालय यि आदे श दे िकेगा क्रक डडिी के उतने भाग के सििाय र्जतना खचों िे िम्बर्न्धत िै , उि डडिी
का ननष्पादन तरु न्त क्रकया जाए;
और उिके उतने भाग के बारे में र्जिका खचों िे िम्बन्ध िै , यि आदे श दे िकेगा क्रक जैिे ि
खचे विननधािरण द्िारा असभननर्श्चत िो जाएं, िि डडिी िैिे ि ननष्पाहदत की जा िकेगी ।

119. अप्राधधकृत व्यात्न न्यायालय को िंबोधधत निीं कर िकेगे- इि िंहिता की क्रकिी भी बात के
बारे में यि नि ं िमझा जाएगा क्रक िि क्रकिी व्यर्क्त को ििां के सििाय जिा क्रक न्यायालय ने अपने चाटि र
द्िारा प्रदि शर्क्त के प्रयोग में उि व्यर्क्त को ऐिा करने के सलए प्राधधकृत कर हदया िै , दि
ू रे व्यर्क्त की
ओर िे उि न्यायालय को उिकी आरर्म्भक सिविल अधधकाररता के प्रयोग में िंबोधधत करने को या
िाक्षियों की पर िा करने को प्राधधकृत करती िै , या अधधिक्ताओं, िकीलों और अटननियों के िंबध
ं में ननयम
बनाने की उि उच्च न्यायालय की शर्क्त में िस्तिेप करती िै |

120. आरं सिक सिविल अधधकाररता में उच्च न्यायालयों को उपबन्धों का लागू न िोना- (1)
ननम्नसलणखत उपबन्ध, अथाित धारा 16, धारा 17 और धारा 20 उच्च न्यायालय को उिकी आरर्म्भक
सिविल अधधकाररता का प्रयोग करने में लागू नि ं िोंगे ।
1* * * *

1. 1909 के अधधननयम िं. 3 की धारा 127 और अनि


ु च
ू ी 3 द्िारा उपधारा (2) ननरसित ।

िाग 10
ननयम
121. प्रथम अनि
ु च
ू ी में के ननयमों का प्रिाि- प्रथम अनि
ु च
ू ी में के ननयम, जब तक क्रक िे इि
भाग के उपबन्धों के अनि
ु ार बानतल या पररिनतित न कर हदए जाएं, ऐिे प्रभािशील िोंगे, मानो िे इि
िंहिता के पाठ में अधधननयसमत िों ।

122. ननयम बनाने की कुछ उच्च न्यायालयों की शस्तत- 1[ऐिा उच्च न्यायालय, जो 2[न्यानयक

94
आयक्
ु त के न्यायालय नि ]ं िैं,]
3***
अपनी स्ियं की प्रक्रिया और अपने अधीिण के अधीन आने िाले
सिविल न्यायालयों की प्रक्रिया का विननयमन करने के सलए ननयम, पि
ू ि प्रकाशन के पश्चात ् िमय-िमय पर
बना िकेंगे और िे ऐिे ननयमों द्िारा प्रथम अनि
ु च
ू ी में के िभी ननयमों को या उनमें िे क्रकिी को बानतल
या पररिनतित कर िकेंगे अथिा उन िभी में या उनमें िे क्रकिी में पररिधिन कर िकेंगे ।

123. कुछ राज्यों में ननयम-िसमनतयों का गठन- (1) 4[ऐिा नगर में , जो धारा 122 में ननहदि ष्ट
उच्च न्यायालयों में िे िर एक की बैठक का प्रानयक स्थान िै ,] एक िसमनत गहठत की जाएगी र्जिका
5***

नाम ननयम-िसमनत िोगा ।


(2) ऐिी िर एक िसमनत ननम्नसलणखत व्यर्क्तयों िे समलकर गहठत िोगी, अथाित ्: -

1. विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1950 द्िारा ''ऐिे न्यायालय जो भारत शािन अधधननयम, 1935 के
प्रयोजनों के सलए उच्च न्यायालय िै '' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
2. विधध अनु आदे श 1966 द्िारा ''िाग क राज्यों और िाग ख राज्यों के सलए'' के स्थान पर
प्रनतस्थावपत 1951 के अधधननयम िं. 2 की धारा 15 द्िारा अंतःस्थावपत क्रकए गए थे ।
3. 1923 के अधधननयम और अनि
ु च
ू ी 2 द्िारा '' और लोअर बमाि का मख्
ु य न्यायालय'' शब्द
ननरसित ।
4. 1916 के अधधननयम िं. 13 की धारा 2 और अनि
ु च
ू ी द्िारा ''कलकता, मद्राि, मम्
ु बई,
इलािाबाद, लािौर और रं गन
ू के नगर मे िे प्रत्येक नगर, '' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया
गया ।
5. 1923 के अधधननयम िं. 11 की धारा 3 और अनि
ु च
ू ी 2 द्िारा ''और मख्
ु य न्यायालय'' शब्दों
का लोप । 1925 के अधधननयम िं. 32 द्िारा इन शब्दों का पन
ु ःअन्तःस्थापन क्रकया गया था
और तत्पश्चात ् इनका भारतीय स्ितंत्रता (केन्द्र य अधधननयमों और अध्यादे शों का अनक
ु ू कलन
आदे श, 1948 द्िारा लोप ।
(क) ऐिे नगर में , जिां ऐिी िसमनत का गठन िुआ िै , स्थावपत उच्च न्यायालय के तीन
न्यायाधीश, र्जनमें िे कम िे कम एक ऐिा िोगा र्जिने र्जला न्यायाधीश या1*** खण्ड न्यायाधीश के रुप
में तीन िषि िेिा की िै ,
2
[(ख) दो विधध-व्यििायी, र्जनके नाम उि न्यायालय में दजि िों,]
3
[(ग) उि उच्च न्यायालय के अधीनस्थ सिविल न्यायालय का एक न्यायाधीश,4***
5
* * * *
(3) ऐिी िर िसमनत के िदस्य [उच्च न्यायालय] द्िारा ननयक्
6
ु त क्रकए जाएंगे, जो उनके िदस्यों में
िे एक को िभापनत भी नामननदे सशत करे गा
7
* * * *
(4) क्रकिी ऐिी िसमनत का िर एक िदस्य ऐिी अिधध के सलए पद धारण करे गा जो 8[उच्च
न्यायालय] द्िारा इि ननसमि विहित की जाए और जब कभी कोई िदस्य िेिा-ननित
ृ िो जाए, पदत्याग कर
दे , उिकी मत्ृ यु िो जाए या िि उि राज्य में र्जिमें िसमनत का गठन िुआ िै , ननिाि करना छोड़ दे या
िसमनत के िदस्य के रुप में कायि करने के सलए अिमथि िो जाए, तब उक्त 9[उच्च न्यायालय] उिके स्थान
पर अन्य व्यर्क्त को िदस्य ननयक्
ु त कर िकेगा ।
(5) िर एक ऐिी िसमनत का एक िधचि िोगा जो [उच्च न्यायालय] द्िारा ननयक्
10
ु त क्रकया जाएगा
और ऐिा पाररश्रसमक पाएगा, जो 11
[राज्य िरकार द्िारा] इि ननसमि उपबर्न्धत क्रकया जाए ।

95
1. 1923 के अधधननयम िं. 11 की धारा 3 और अनि
ु च
ू ी 2 द्िारा ''(बमाि में )'' कोष्ठक और शब्द
ननरसित |
2. 1951 के अधधननयम िं. 2 की धारा 16 द्िारा मल
ू खण्ड (ख) और (ग) के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
3. 1951 के अधधननयम िं. 2 की धारा 16 द्िारा खण्ड (घ) को (ग) के रुप मे पन
ु : अिरांक्रकत
क्रकया गया ।
4. 1978 के अधधननयम िं. 38 की धारा 3 और दि
ू र अनि
ु च
ू ी द्िारा अन्त में आने िाले शब्द
'' तथा '' का लोप ।
5. 1978 के अधधननयम िं. 38 की धारा 3 और दि
ू र अनि
ु च
ू ी द्िारा खण्ड (घ) का लोप ।
6. 1976 के अधधनननयम िं. 104 की धारा 44 द्िारा (1-2-1977 िे) ''मख्
ु य न्यायमनू ति या मख्
ु य
न्यायाधीश '' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
7. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 44 द्िारा (1-2-1977 िे) परन्तक
ु का लोप ।
8. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 44 दारा (1-2-1977 िे) ''मख्
ु य न्यायमनू ति या मख्
ु य
न्यायाधीश'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
9. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 44 द्िारा (1.2.1977 िे) ''मख्
ु य न्यायमनू ति या मख्
ु य
न्यायाधीश'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
10. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 44 दारा (1.2.1977 िे) ''मख्
ु य न्यायमनू ति या मख्
ु य
न्यायाधीश'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
11. भारत शािन (भारतीय विधध अनक
ु ू लन) आदे श, 1937 दारा ''यथार्स्थनत, िपररषद् गिनिर
जनरल द्िारा या स्थानीय स्िशािन द्िारा'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

124. िसमनत उच्च न्यायालय की ररपोटव करे गी- िर एक ननयम-िसमनत, उि नगर में जिां उिका
गठन िुआ िै , स्थावपत उच्च न्यायालय को प्रथम अनिु च
ू ी में के ननयमों को बानतल, पररिनतित या पररिधधित
करने की या नए ननयम बनाने की क्रकिी भी प्रस्थापना के बारे में ररपोटि करे गी और धारा 122 के अधीन
क्रकन्ि ं भी ननयमों को बनाने िे पि
ू ि िि उच्च न्यायालय ऐिी ररपोटि पर विचार करे गा ।

125. ननयम बनाने की अन्य उच्च न्यायालयों की शस्तत- धारा 122 में विननहदिष्ट न्यायालयों िे
सभन्न उच्च न्यायालय उि धारा द्िारा प्रदि शर्क्तयों का प्रयोग ऐिी र नत िे और ऐिी शतो के अधीन
रिते िुए कर िकेंगे 1[जो 2[राज्य िरकार] अिधाररत करें :
परन्तु ऐिा कोई भी उच्च न्यायालय ऐिे क्रकन्ि ं भी ननयमों का जो क्रकिी अन्य उच्च न्यायालय
द्िारा बनाए गए िैं, अपनी अधधकाररता की स्थानीय िीमाओं के भीतर विस्तारण करने के सलए ननयम, पि
ू ि
प्रकाशन के पश्चात ् बना िकेगा ।

1. 1920 के अधधननयम िं. 38 की धारा 2 और अनि


ु च
ू ी 1 के भाग 1 द्िारा ''जैिी िपररषद्
गिनिर जनरल अिधाररत करे '' के स्थान पर प्रनत स्थावपत क्रकया गया ।
2. भारत शािन (भारतीय विधध अनक
ु ू लन) आदे श, 1937 द्िारा “कुगि के न्यानयक आयक्
ु त के
न्यायलय की दशा में , िपररषद् गिनिर जनरल और अन्य दशाओं में स्थानीय स्िशािन” के
स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

96
[126. ननयमों का अनम
1
ु ोदन के अधीन िोना- पि
ू ग
ि ामी उपबन्धों के अधीन बनाए गए ननयम उि
राज्य िरकार के पि
ू ि अनम
ु ोदन के, र्जिमें िि न्यायालय र्जिकी प्रक्रिया का विननयमन िे ननयम करते िै ,
र्स्थत िै या यहद िि न्यायालय क्रकिी राज्य में र्स्थत नि ं िै तो, 2[केन्द्र य िरकार] के पि
ू ि अनम
ु ोदन के
अधीन रिें गे ।]
127. ननयमों का प्रकाशन- इि प्रकार बनाए गए और 3[अनम
ु ोहदत क्रकए गए] ननयम [राजपत्र] में
4

प्रकासशत क्रकए जाएंगे और प्रकाशन की तार ख िे या ऐिी अन्य तार ख िे जो विननहदि ष्ट की जाए, उि
उच्च न्यायालय की अधधकाररता की स्थानीय िीमाओं के भीतर र्जिने उन्िें बनाया िै , िि बल और प्रभाि
रखें गे मानो िे प्रथम अनि
ु च
ू ी में अन्तवििष्ट थे ।
128. िे विषय स्जनके सलए ननयम उपबन्ध कर िकेंगे- (1) ऐिे ननयम इि िंहिता के पाठ में के
उपबन्धों िे अिंगत नि ं िोंगे क्रकन्तु उनके अधीन रिते िुए, सिविल न्यायालयों की प्रक्रिया िे िम्बर्न्धत
क्रकन्ि ं भी विषयों के सलए उपबंध कर िकेंगे ।
(2) विसशष्टतया और उपधारा (1) द्िारा प्रदि शर्क्तयों की व्यापकता पर प्रनतकूल प्रभाि डाले
बबना, ऐिे ननयम ननम्नसलणखत िभी विषयों या उनमें िे क्रकिी के सलए उपबंध कर िकेंगे, अथाित ्:-
(क) िमनों, िच
ू नाओं और अन्य आदे सशकाओं की िाधारणत: या क्रकन्ि ं विननहदि ष्ट िेत्रों में डाक
द्िारा या क्रकिी अन्य प्रकार िे तामील और ऐिी तामील का िबत
ू ;
(ख) र्जतने िमय पश-ु धन और अन्य जंगम िम्पवि कुकी के अधीन रिे , उतने िमय उनका भरण-
पोषण और असभरिा, ऐिे भरण-पोषण और असभरिा के सलए फीि और ऐिे पश-ु धन और िम्पवि का
वििय और ऐिे वििय के आगम;
(ग) प्रनतदािे के रूप में क्रकए गए िादों में की प्रक्रिया और अधधकाररता के प्रयोजनों के सलए ऐिे
िादों का मप
ू यांकन;
(घ) ऋणों की कुकी और वििय के अनतररक्त या बदले में गारननशी आदे शों और भारण आदे शों की
प्रक्रिया;

1. भारत शािन (भारतीय विधध अनक


ु ू लन) आदे श, 1937 द्िारा पि
ू ि
ि ती धारा के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
2. विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1950 द्िारा ''गिनिर जनरल'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
3. 1918 के अधधननयम िं. 24 की धारा 2 और अनि
ु च
ू ी 1 द्िारा “मंजूर क्रकए गए” के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
4. भारत शािन (भारतीय विधध अनक
ु ू लन) आदे श, 1937 द्िारा ''यथार्स्थनत, भारत के राजपत्र या
स्थानीय राजपत्र'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया । िि अथि में यि प्रनतस्थापन
“यथार्स्थनत, राजपत्र या राजपत्र” पढा जाएगा, क्रकन्तु पश्चातिती
् शब्दों को अनािश्यक िमझकर
उनका लोप कर हदया गया िै ।

(ड.)जिां प्रनतिाद क्रकिी व्यर्क्त के विरुद्ध चािे िि िाद का पिकार िो या निें , असभदाय या
िनतपनू ति के सलए िकदार िोने का दािा करे ििां प्रक्रिया;
(च) उन िादों में िंक्षिप्त प्रक्रिया-
(i) र्जनमें िाद क्रकिी असभव्यक्त या वििक्षित िंविदा िे अथिा क्रकिी अधधननयसमनत िे उि दशा
में र्जिमें िि रासश, र्जिकी ििल
ू चाि गई िै ननयत धनरासश िै या शार्स्त िे सभन्न कोई ऋण िै , अथिा

97
क्रकिी प्रत्याभनू त िे उि दशा में र्जिमें मल
ू ऋणी के विरुद्ध दािा क्रकिी ऋण या पररननधािररत मांग के
सलए ि िै , अथिा क्रकिी न्याि िे उद्भत
ू ऋण या पररननधािररत मांग को, जो प्रनतिाद द्िारा धन के रूप
में िंदेय िै , ब्याज िहित या बबना ब्याज के ििल
ू करना चािता िै अथिा
(ii)जो भाटक या अन्तःकाल न लाभों के सलए दािों के िहित या बबना स्थािर िम्पवि के प्रत्यद्
ु धरण
के सलए भस्
ू िामी द्िारा ऐिे असभधार के विरुद्ध िै , र्जिकी अिधध का अििान िो गया िै , या र्जिकी
अिधध का पयिििान खाल कर दे ने की िच
ू ना द्िारा िम्यक् रूप िे कर हदया गया िै या र्जिकी अिधध
भाटक के अिंदाय के कारण िमपिरणीय िो गई िै , अथिा ऐिे असभधार िे व्यत्ु पन्न अधधकार के अधीन
दािा करने िाले व्यर्क्तयों के विरुद्ध िै ;
(छ) ओररर्जनेहटंग िमन के रुप में प्रक्रिया;
(ज) िादों, अपीलों और अन्य कायििाहियों का िमेकन;
(झ) न्यायालय के क्रकिी रर्जस्रार, प्रोथोनोटर , मास्टर या अन्य पदधार को क्रकन्ि ं न्यानयक-कपप
या न्यानयकेतर कतिव्यों का प्रत्यायोजन; तथा
(त्र) ऐिे िभी प्ररूप, रर्जस्टर, पस्
ु तकें, प्रविर्ष्टयां और लेखे, जो सिविल न्यायालयों के कारबार के
िंव्यििार के सलए आिश्यक या िांछनीय िों ।

129. अपनी आरस्म्िक सिविल प्रक्रिया के िम्बन्ध में ननयम बनाने की उच्च न्यायालयों की
शस्तत- इि िंहिता में क्रकिी बात के िोते िुए भी, कोई ऐिा उच्च न्यायालय 1[जो न्यानयक आयक्
ु त का
न्यायालय नि ं िै ] ऐिे ननयम बना िकेगा जो उिकी स्थापना करने िाले लेटिि पेटेन्ट [या आदे श] 3[या
2

अन्य विधध] िे अिंगत न िो और जो िि अपनी आरर्म्भक सिविल अधधकाररता के प्रयोग में अपनी प्रक्रिया
का विननयमन करने के सलए ठीक िमझे और इिमें अन्तवििष्ट कोई भी बात क्रकन्ि ं ऐिे ननयमों की
विधधमान्यता पर प्रभाि नि ं डालेगी जो इि िंहिता के प्रारम्भ के िमय प्रिि
ृ िै |

4
[130. प्रक्रकया िे सिन्न विषयों के िम्बन्ध में ननयम बनाने की उच्च न्यायालयों की शस्तत- िि
उच्च न्यायालय 5[जो ऐिा उच्च न्यायालय नि ं िै र्जिे धारा 129 लागू िोती िै ,] प्रक्रिया िे सभन्न क्रकिी
भी विषय के िंबध
ं में कोई ऐिा ननयम राज्य िरकार के पि
ू ि अनम
ु ोदन िे बना िकेगा र्जिे [क्रकिी
1 2***

राज्य का] उच्च न्यायालय अपनी अधधकाररता के अधीन राज्यिेत्रों के क्रकिी ऐिे भाग के सलए, जो
प्रेसिडेन्िी नगर की िीमाओं के अन्तगित नि ं िै , 3[िंविधान के अनच्
ु छे द 227] के अधीन ऐिे क्रकिी विषय
के सलए बना िकता िै ।

1. विधध अनक
ु ू लन (िं. 2) आदे श, 1956 करा '' भाग क राज्य या भाग ख राज्य के सलए'' के
स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
2. विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1950 द्िारा अन्तःस्थावपत क्रकया गया ।
3. 1951 के अधधननयम िं. 2 की धारा 17 द्िारा अन्तःस्थावपत क्रकया गया ।
4. भारत शािन (भारतीय विधध अनक
ु ू लन) आदे श, 1937 दारा पि
ू ि
ि ती धारा के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
5. विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1950 द्िारा ''जो लेटिि पेटेन्ट दारा हिज मजेस्ट दारा गहठत नि ं िैं''
के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

131. ननयमों का प्रकाशन- धारा 129 या धारा 130 के अनि


ु ार बनाए गए ननयम [राजपत्र] में
4

98
प्रकासशत क्रकए जाएंगे और प्रकाशन की तार ख िे या ऐिी अन्य तार ख िे जो विननहदि ष्ट की जाए, विधध
का बल रखें गे ।

िाग 11
प्रकीणव
132. कुछ स्स्त्रयों को स्िीय उपिंजानत िे छूट- (1) जो र्स्त्रयां दे श की रूहढ़यों और र नतयों के
अनि
ु ार लोगों के िामने आने के सलए वििश नि ं की जानी चाहिएं उन्िें न्यायालय में स्िीय उपिंजानत िे
छूट िोगी ।
(2) इिमें अन्तवििष्ट कोई भी बात ऐिे क्रकिी मामले में र्जिमें स्त्री की धगरफ्तार इि िंहिता
द्िारा ननवषद्ध नि ं िै , सिविल आदे सशका के ननष्पादन में क्रकिी स्त्री को धगरफ्तार िे छूट दे ने िाल नि ं
िमझी जाएगी ।

1. विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1950 द्िारा ''इि प्रकार गहठत'' शब्दो के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया
गया ।
2. विधध अनक
ु ू लन (िं. 2) आदे श, 1956 द्िारा '' भाग क '' शब्द और अिर का लोप ।
3. विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1950 द्िारा '' भारत शािन अधधननयम, 1935 की धारा 224 '' के
स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया |
4. भारत शािन (भारतीय विधध अनक
ु ू लन) आदे श, 1937 द्िारा '' यथार्स्थनत, भारत के राजपत्र
या स्थानीय राजपत्र '' के स्थान पर प्रनतस्थावपत । िि अथि में , यि प्रनतस्थापन ''यथार्स्थनत,
राजपत्र या राजपत्र '' पढा जाएगा, क्रकन्तु कुछ शब्दो को अनािश्यक िमझकर उनका लोप ।
5. 1956 के अधधननयम िं. 66 की धारा 12 दारा उपधारा (1) के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया
गया|

133. अन्य व्यस्ततयों को छूट- (1) ननम्नसलणखत व्यर्क्त न्यायालय में स्िीय उपिंजानत िे छूट
पाने के िकदार िोंगे, अथाित ्:-
(i) भारत का राष्रपनत;
(ii) भारत का उपराष्रपनत;
(iii) लोक िभा का अध्यि;
(iv) िंघ के मंत्री;
(v) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश;
(vi) राज्यों के राज्यपाल और िंघ राज्यिेत्रों के प्रशािक;
(vii) राज्य विधान िभाओं के अध्यि;
(viii)राज्य विधान पररषदो के िभापनत;
(ix)राज्यों के मंत्री;
(x) उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश; तथा
(xi)िे व्यर्क्त र्जन्िें धारा 87ख लागू िोती िै ।]
1* * * *

(3) जिां यहद कोई व्यर्क्त ऐिी छूट के विशेषाधधकार का दािा करता िै और उिके
2***

पररणामस्िरुप उिकी पर िा कमीशन द्िारा करना आिश्यक िै ििां यहद उिके िाक्ष्य की अपेिा करने

99
िाले पिकार ने कमीशन का खचाि नि ं हदया िै तो िि व्यर्क्त उिका खचाि दे गा ।
134. डििी के ननष्पादन में की जाने िे अन्यथा धगरफ्तारी- धारा 55, धारा 57 और धारा 59 के
उपबन्ध इि िंहिता के अधीन धगरपतार क्रकए गए िभी व्यर्क्तयों को, जिां तक िो िके लागू िोंगे |

1. 1956 के अधधननयम िं. 66 की धारा 12 द्िारा उपधारा (2) का लोप ।


2. 1956 के अधधननयम िं. 66 की धारा 12 द्िारा ''इि प्रकार छूट प्राप्त'' शब्दों का लोप ।

135. सिविल आदे सशका के अधीन धगरफ्तारी िे छूट- (1) कोई भी न्यायाधीश, मर्जस्रे ट या अन्य
न्यानयक अधधकार उि िमय सिविल आदे सशका के अधीन धगरफ्तार नि ं क्रकया जा िकेगा जब िि अपने
न्यायालय को जा रिा िो, उिमें पीठािीन िो या ििां िे लौट रिा िो ।
(2) जिां कोई मामला क्रकिी ऐिे अधधकरण के िमि लंबबत िै र्जिकी उिमें अधधकाररता िै , या
र्जिके बारे में यि िदभाि-पि
ू क
ि यि विश्िाि करता िै क्रक उिमें उिकी ऐिी अधधकाररता िै ििां उि
मामले के पिकार, उनके प्ल डर, मख्
ु तार, राजस्ि असभकताि और मान्यताप्राप्त असभकताि और उनके िे
िािी जो िमन के आज्ञानि
ु तिन में कायि कर रिे िै , ऐिी आदे सशका िे, जो ऐिे अधधकरण ने न्यायालय के
अिमान के सलए ननकाल िै सभन्न सिविल आदे सशका के अधीन धगरफ्तार क्रकए जाने िे उि िमय छूट-प्राप्त
रिें गे जब िे ऐिे मामले के प्रयोजन के सलए ऐिे अधधकरण को जा रिे िों या उिमें िार्जर िों और जब िे
ऐिे अधधकरण िे लौट रिे िों ।
(3) उपधारा (2) की कोई भी बात ननणीत-ऋणी को तरु ं त ननष्पादन के आदे श के अधीन या जिां
ऐिा ननणीत-ऋणी इि बात का िे तक ु दसशित करने के सलए िार्जर िुआ िै क्रक डडिी के ननष्पादन में उिे
कारागार में क्यों न िप
ु द
ु ि क्रकया जाए ििा धगरफ्तार िे छूट का दािा करने के सलए िमथि नि ं बनाएगी ।
1
[135क. विधायी ननकायों के िदस्यों को सिविल आदे सशका के अधीन धगरफ्तार क्रकए जाने और
ननरुद्ध क्रकए जाने िे छूट-
2
[(1) कोई व्यर्क्त---
(क) यहद िि-
(i) िंिद के क्रकिी िदन की, या
(ii) क्रकिी राज्य की विधान िभा या विधान पररषद का, या

1. 1926 के अधधननयम िं. 23 की धारा 3 दारा अन्तःस्थावपत क्रकया गया ।


2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 45 द्िारा (1.2.1977 िे) उपधारा (1) के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

(ii)क्रकिी िंघ राज्यिेत्र की विधान िभा का,


िदस्य िै तो, यथार्स्थनत, िंिद, के क्रकिी िदन के अथिा विधान िभा या विधान पररषद के क्रकिी
अधधिेशन के चालू रिने के दौरान;
(ख) यहद िि-
(i) िंिद के क्रकिी िदन की,या
(ii)क्रकिी राज्य या िंघ राज्यिेत्र की विधान िभा की,या
(iii)क्रकिी राज्य की विधान पररषद की,
क्रकिी िसमनत का िदस्य िै तो ऐिी िसमनत के क्रकिी अधधिेशन के चालू रिने के दौरान;

100
(ग) यहद िि-
(i) िंिद के क्रकिी िदन का,या
(ii) क्रकिी ऐिे राज्य की विधान िभा या विधान पररषद् का र्जिमें ऐिे दोनों िदन िैं,
िदस्य िै तो, यथार्स्थनत, िंिद के िदनों या राज्य विधान मण्डल के िदनों की िंयक्
ु त
बैठक, अधधिेशन, िम्मेलन या िंयक्
ु त िसमनत के चालू रिने के दौरान, और ऐिे अधधिेशन, बैठक
या िम्मेलन के चाल ि हदन पि
ू ि और पश्चात ् सिविल आदे सशका के अधीन धगरफ्तार या कारागार में
ननरुद्ध नि ं क्रकया जा िकेगा ।]
(2) उपधारा (1) के अधीन ननरोध िे छोड़ा गया व्यर्क्त, उक्त उपधारा के उपबन्धों के अधीन रिते
िुए पन
ु : धगरफ्तार और उतनी अनतररक्त अिधध के सलए ननरुद्ध क्रकया जा िकेगा र्जतनी अिधध के सलए
िि ननरुद्ध रिता यहद िि उपधारा (1) के उपबन्धों के अधीन छोड़ा नि ं गया िोता ।

136. जिां धगरफ्तार क्रकया जाने िाला व्यस्तत या कुकव की जाने िाली िम्पवि स्जले िे बािर िै ििां
प्रक्रिया- (1) जिां यि आिेदन क्रकया जाता िै क्रक इि िंहिता के क्रकिी ऐिे उपबन्ध के अधीन, जो डडक्रियों
के ननष्पादन िे िम्बर्न्धत नि ं िै , कोई व्यर्क्त धगरफ्तार क्रकया जाए या कोई िम्पवि कुकि की जाए और
र्जि न्यायालय िे ऐिा आिेदन क्रकया जाए, उिकी अधधकाररता की स्थानीय िीमाओं िे बािर ऐिा व्यर्क्त
ननिाि करता िै या ऐिी िम्पवि र्स्थत िै ििां न्यायालय स्िवििेकानि
ु ार धगरफ्तार का िांरट ननकाल
िकेगा या कुकी का आदे श कर िकेगा और र्जले के उि न्यायालय को, र्जिकी अधधकाररता की स्थानीय
िीमाओं के भीतर ऐिा व्यर्क्त ननिाि करता िै या ऐिी िम्पवि र्स्थत िै िारं ट या आदे श की एक प्रनत
धगरफ्तार या कुकी के खचों की अधधिंभाव्य रकम के िहित भेज िकेगा ।
(2) र्जला न्यायालय ऐिी प्रनत और रकम की प्रार्प्तने पर अपने अधधकाररयों द्िारा या अपने
अधीनस्थ न्यायालय द्िारा धगरफ्तार या कुकी करिाएगा, और र्जि न्यायालय ने धगरफ्तार या कुकी का
ऐिा िांरट ननकाला था या आदे श क्रकया था उिको इविला भेजेगा ।
(3) इि धारा के अधीन धगरफ्तार करने िाला न्यायालय धगरफ्तार क्रकए गए व्यर्क्त को उि
न्यायालय को भेजेगा, र्जिने धगरफ्तार का िारं ट ननकाला था, क्रकन्तु यहद धगरफ्तार क्रकया गया व्यर्क्त
पि
ू क
ि धथत न्यायालय को िमाधान प्रदान करने िाला िेतक
ु इि बात के सलए दसशित कर दे क्रक उिे पश्चात ्
कधथत न्यायालय को क्यों न भेजा जाए अथिा पश्चात ् कधथत न्यायालय के िमि अपनी उपिंजानत के
सलए या ऐिी क्रकिी डडिी की तर्ु ष्ट के सलए, जो उि न्यायालय द्िारा उिके विरुद्ध पाररत की जाए,
पयािप्त प्रनतभनू त दे दे तो इन दोनों दशाओं में िे िर एक में िि न्यायालय, र्जिने धगरपतार की िै , उिे
छोड़ दे गा ।
(4) जिां इि धारा के अधीन धगरफ्तार क्रकया जाने िाला व्यर्क्त या कुकि की जाने िाल जंगम
िम्पवि बंगाल के फोटि विलयम, या मद्राि के या मम्
ु बई के उच्च न्यायालय की मामल
1***
ू आरर्म्भक
सिविल अधधकाररता की स्थानीय िीमाओं के भीतर िै ििां धगरफ्तार के िारं ट की या कुकी के आदे श की
प्रनत और धगरफ्तार या कुकी के खचों की अधधिंभाव्य रकम, यथार्स्थनत, कलकिा, मद्राि 2[या मम्
ु बई] के
लघि
ु ाद न्यायालय को भेजी जाएगी और िि न्यायालय उि प्रनत और उि रकम के प्राप्त िोने पर ऐिे
अग्रिर िोगा मानो िि र्जला न्यायालय िो ।
1. भारत शािन (भारतीय विधध अनक
ु ू लन) आदे श, 1937 दारा ''या लोअर बमाि के मख्
ु य
न्यायालय को'' शब्दो का लोप ।
2. भारत शािन (भारतीय विधध अनक
ु ू लन) आदे श, 1937 द्िारा ''मम्
ु बई या रं गन
ू '' के स्थान पर
प्रनतस्थावपत |

101
137. अधीनस्थ न्यायालयों की िाषा—(1) िि भाषा जो इि िंहिता के प्रारं भ पर उच्च न्यायालय के
अधीनस्थ क्रकिी न्यायालय की भाषा िै , उि अधीनस्थ न्यायालय की भाषा तब तक बनी रिे गी जब तक
राज्य िरकार अन्यथा ननदे श न दे ।
(2) राज्य िरकार यि घोषणा कर िकती िै क्रक क्रकिी भी ऐिे न्यायालय की भाषा क्या िोगी और
क्रकि सलवप में ऐिे न्यायालयों को आिेदन और उनमें की कायििाहियां सलखी जाएंगी ।
(3) जिां यि िंहिता िाक्ष्य के असभलेखन िे सभन्न क्रकिी बात का क्रकिी ऐिे न्यायालय में सलखत
रुप में क्रकया जाना अपेक्षित या अनज्ञ
ु ात करती िै ििां ऐिा लेखन अंग्रज
े ी में क्रकया जा िकेगा, क्रकन्तु यहद
कोई पिकार या उिका प्ल डर अंग्रेजी नि ं जानता िै तो न्यायालय की भाषा में अनि
ु ाद उिकी प्राथिना पर
उिे हदया जाएगा और न्यायालय ऐिे अनि
ु ाद के खचों के िंदाय के िम्बन्ध में ऐिा आदे श करे गा जो िि
ठीक िमझे ।

राज्य िंशोधन
उिर प्रदे श राज्य दारा िंशोधन- उिर प्रदे श में अधधननयम िमांक 17 िषि 1970 के द्िारा जो क्रक
हदनांक 8.4.1970 िे प्रभािी क्रकया गया िै , धारा 137 (3) में ननम्नानि
ु ार परं तक
ु अन्तःस्थावपत क्रकया
जाएगा, नामत:-
''परन्तु यि क्रक ऐिी हदनांक िे प्रभािी र्जिे क्रक राज्य िरकार उच्च न्यायालय िे परामशि करने के
उपरांत राजपत्र में अधधिच
ू ना के द्िारा ननयत करे ननयत करे , ऐिे न्यायालयों द्िारा या उच्च न्यायालय के
अधीनस्थ न्यायालयों के िगो के द्िारा और प्रकरणों के ऐिे िगि जो क्रक विननहदिष्ट क्रकये जाएं में क्रकये गये
या पाररत प्रत्येक ननणिय,डडिी अथिा आदे श की भाषा मात्र हिन्द दे िनागर सलवप भारतीय अंकों के
अन्तरािष्र य प्ररूप में िाथ िोगी ।

राजस्थान राज्य दारा िंशोधन- हदनांक 16.5.1983 िे प्रभािी िोने िाले राजस्थान अधधननयम
िमांक 7 िषि 1983 के द्िारा िंहिता की धारा 137 में ननम्न िंशोधन क्रकया गया िै । धारा 137 की
उपधारा (3) में ननम्न उपधारा को प्रनतस्थावपत क्रकया जाएगा-
''(3) जब यि िंहिता ऐिे क्रकिी न्यायालय में , सलणखत में िाक्ष्य असभसलणखत करने के अलािा
क्रकिी बात को सलखने की अपेिा करती िै अथिा अनज्ञ
ु ात करती िै , तो ऐिी सलणखत हिन्द दे िनागर सलवप
में भारतीय अंकों के अन्तरािष्र य प्ररूप में िाथ िोगी । ''

1
138. िाक्ष्य के अंर्ग्ेजी में असिसलखखत क्रकए जाने की अपेक्षा करने की उच्च न्यायालय की शस्तत-
(1) [उच्च न्यायालय], राजपत्र में अधधिच
2
ू ना द्िारा, ऐिी अधधिच
ू ना में विननहदिष्ट या उिमें हदए िुए िणिन
िाले क्रकिी न्यायाधीश के बारे में ननदे श दे िकेगा क्रक उन मामलों में , र्जनमें अपील अनज्ञु ात िै , िाक्ष्य
अंग्रेजी भाषा में और विहित र नत िे उिके द्िारा सलखा जाएगा ।
(2) जिां न्यायाधीश उपधारा (1) के अधीन ननदे श का अनप
ु ालन करने िे क्रकिी पयािप्त कारण िे ननिाररत
िो जाता िै ििां िि उि कारण को असभसलणखत करे गा और खुले न्यायालय में बोलकर िाक्ष्य सलखिाएगा ।

139. शपथ-पत्र के सलए शपथ क्रकिके द्िारा हदलाई जाएगी- इि िंहिता के अधीन क्रकिी भी शपथ-
पत्र की दशा में ,-

102
1. अिम को यथा लागू धारा 138 के सलए दे णखए सिविल प्रोिीजर (अिम अमेडमें ट) एक्ट, 1941
(1941 का अिम अधधननयम िं. 2) की धारा 2 ।
2. 1914 के अधधननयम िं. 4 की धारा 2 और अनि
ु च
ू ी के भाग 1 द्िारा ''स्थानीय स्िशािन'' के
स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

(क) कोई भी न्यायालय या मर्जस्रे ट, अथिा


[(कक) नोटर अधधननयम, 1952 (1952 का 53) के अधीन ननयक्
1
ु त नोटर , अथिा]
(ख) ऐिा कोई भी अधधकार या अन्य व्यर्क्त, र्जिे उच्च न्यायालय इि ननसमि ननयक्
ु त करे ,
अथिा
(ग) क्रकिी अन्य न्यायालय द्िारा, र्जिे राज्य िरकार ने इि ननसमि िाधारणतया या विशेष रुप िे
िशक्त क्रकया िै , ननयक्
ु त क्रकया गया कोई भी अधधकार असभिािी को शपथ हदला िकेगा ।

राज्य िंशोधन
उ.प्र. राज्य द्िारा िंशोधन- उ.प्र. राज्य में उ.प्र. अधधननयम ( 1981 का 11) के द्िारा खंड (ख) ि
(ग) के स्थान पर ननम्न खंडों को प्रनतस्थावपत क्रकया गया-
“(ख) कोई भी व्यर्क्त र्जिे उच्च न्यायालय या र्जला न्यायालय इि ननसमि ननयक्
ु त क्रकया गया
िो; या
(ग) कोई भी व्यर्क्त र्जिे ऐिे अन्य न्यायालय के दारा र्जिे क्रक राज्य िरकार इि िंबध
ं में
िामान्य या विशेष आदे श के द्िारा िशक्त क्रकया गया िो इि ननसमि ननयक्
ु त क्रकया गया िो ।''

140. उद्धारण. आहद के मामलों में अिेिर- (1) नािधधकरण या उपनािधधकरण विषयक ऐिे
मामले में जो उद्धारण, अनक
ु षिण या टक्कर का िै , न्यायालय चािे िि अपनी आरर्म्भक अधधकाररता का
प्रयोग कर रिा िो या अपील अधधकाररता का, अपनी ििायता के सलए ऐिी र नत िे, जो िि ननहदिष्ट करे
या जो विहित की जाए, दो ििम अिेिरो को, यहद िि ठीक िमझे, िमन कर िकेगा और ऐिे मामले में
के पिकारों में िे क्रकिी के ननिेदन पर िमन करे गा और तदनि
ु ार ऐिे अिेिर िार्जर िोंगे और ििायता
करें गे ।
(2) िर ऐिा अिेिर अपनी िार्जर के सलए ऐिी फीि पाएगा जो पिकारों में िे ऐिे पिकार द्िारा
िंदि की जाएगी जो न्यायालय ननहदि ष्ट करे या जो विहित की जाए ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 46 दारा (1. 2.1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया गया ।

141. प्रकीणव कायविाहियां- उि प्रक्रिया का जो िादों के विषय में इि िंहिता में उपबर्न्धत िै ,
सिविल अधधकाररता िाले क्रकिी भी न्यायालय में भी िभी कायििाहियों में ििां तक अनि
ु रण क्रकया जाएगा
जिां तक िि लागक
ू ी जा िके ।
[स्पष्टीकरण--- इि धारा में , ''कायििाि '' शब्द के अन्तगित आदे श 9 के अधीन कायििाि िै , क्रकन्तु
1

इिके अन्तगित िंविधान के अनच्


ु छे द 226 के अधीन कायििाि नि ं िै ।]
142. आदे शों और िच
ू नाओं का सलखखत िोना- िे िभी आदे श और िच
ू नाएं, र्जनकी तामील इि
िंहिता के अधीन क्रकिी व्यर्क्त पर की जाएया जो उिे द जाएं, सलणखत रुप में िोगी ।
143. िाक मििल
ू - जिां इि िंहिता के अधीन ननकाल गई और डाक द्िारा प्रेवषत क्रकिी िच
ू ना,

103
िमन या पत्र पर डाक मििि
ू प्रभायि िै ििां ऐिा डाक मििल
ू और उनके रर्जस्र करण की फीि उि िमय
के भीतर िंदि की जाएगी जो उि पत्र-व्यििार के सलए क्रकए जाने के पि
ू ि ननयम क्रकया जाएगा-परन्तु राज्य
िरकार 2***
ऐिे डाक मििि
ू या फीि रो या दोनों िे छूट दे िकेगी या उिके बदले में उद्ग्रिणीय न्यायालय
फीि का मापमान विहित कर िकेगी ।

144. प्रत्यास्थापन के सलए आिेदन- (1) जिां क्रक और जिां तक क्रक क्रकिी डडिी 3[या आदे श] में
[क्रकिी अपील, पन
4
ु र िण या अन्य कायििाि में फेरफार क्रकया जाए या उिे उलटा जाए अथिा उिको इि
प्रयोजन के सलए िंर्स्थत क्रकिी िाद में अपास्त क्रकया जाए या उपान्तररत क्रकया जाए ििां और ििां तक
िि न्यायालय र्जिने डडिी या आदे श पाररत क्रकया था,] उि पिकार के आिेदन पर जो प्रत्यास्थापन द्िारा
या अन्यथा कोई फायदा पाने का िकदार िै , ऐिा प्रत्यास्थापन कराएगा र्जििे पिकार, जिां तक िो िके,
उि र्स्थनत में िो जाएगें र्जिमें िे िोते यहद िि डडिी [1या आदे श] या 2[उिका िि भाग र्जिमें फेरफार
क्रकया गया िै या र्जिे उलटा गया िै या अपास्त क्रकया गया िै या उपातररत क्रकया गया िै ,] न हदया गया
िोता और न्यायालय इि प्रयोजन िे कोई ऐिे आदे श र्जनके अन्तगित खचों के प्रनतदाय के सलए और
ब्याज, नक
ु िानी, प्रनतकर और अन्तःकाल न लाभों के िंदाय के सलए आदे श िोंगे, कर िकेगा जो [उि डडिी
3

या आदे श को ऐिे फेरफार करने, उलटने, अपास्त करने या उपान्तरण के उधचत रूप में पाररणासमक िै ।]

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 47 न द्िारा (1.2.1977 िे) अन्तःस्थावपत क्रकया गया
2. 1920 के अधधननयम िं. 38 की धारा 2 और अनि
ु च
ू ी 1 के भाग 1 द्िारा '' िपररषद् गिनिर
जनरल की मंजूर िे'' शब्दो का लोप
3. 1966 के अधधननयम िं. 66 की धारा 13 द्िारा अन्त स्थावपत क्रकया गया ।
4. 197 त के अधधननयम िं 104 की धारा 48 द्िारा (1.2.1977 िे) कुछ शब्दों के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

4
[स्पष्टीकरण- इि धारा के प्रयोजनों के सलए, ''िि न्यायालय र्जिने डडिी या आदे श पाररत क्रकया
था' ' पद के बारे में यि िमझा जाएगा क्रक उरपके अन्तगित ननम्नसलणखत िै :-
(क) जिां डडिी या आदे श में फेरफार या उलटाि अपील या पन
ु र िण अधधकाररता के प्रयोग में
क्रकया गया िै ििां प्रथम बार का न्यायालय,
(ख) जिां डडिी या आदे श पथ
ृ क िाद में अपास्त क्रकया गया िै ििां प्रथम बार का िि न्यायालय
र्जिने ऐिी डडिी या आदे श पाररत क्रकया था;
(ग) जिां प्रथम बार का न्यायालय विद्यमान नि ं रिा िै या उिकी उिे ननष्पाहदत करने की
अधधकाररता निें रि िै ििां िि न्यायालय र्जिे ऐिे िाद का विचारण करने की अधधकाररता िोती यहद िि
िाद में र्जिमें डडिी या आदे श पाररत क्रकया गया था, इि धारा के अधीन प्रत्यास्थापन के सलए आिेदन
क्रकए जाने के िमय िंर्स्थत क्रकया गया िोता ।
(2) कोई भी िाद कोई ऐिा प्रत्यास्थापन या अन्य अनत
ु ोष असभप्राप्त करने के प्रयोजन िे िंर्स्थत
नि ं क्रकया जाएगा जो उपधारा (1) के अधीन आिेदन द्िारा असभप्राप्त क्रकया जा िकता था ।

1. 1956 के अधधननयम िं. 66 की धारा 13 द्िारा अन्तःस्थावपत क्रकया गया ।


2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 48 द्िारा (1.2.1977 िे) कुछ शब्दों के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

104
3. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 48 द्िारा (1.2.1977 िे) कुछ शब्दों के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
4. 1976 के अधधननयम िं 104 की धारा 48 द्िारा (1.2.1977 िे) अन्तःस्थावपत क्रकया गया ।

राज्य िंशोधन
उ.प्र. राज्य द्िारा िंशोधन- उ.प्र अधधननयम (1954 का 24 के द्िारा जो क्रक हदनांक 30.11.1954
िे प्रभािी क्रकया गया, धारा 144 की उपधारा (1) को ननम्न प्रकार प्रनतस्थावपत क्रकया गया-
'' (1) जिां क्रक और जिां तक क्रक क्रकिी डडिी या आदे श में क्रकिी अपील, पन
ु र िण या अन्य
कायििाि में फेरफार क्रकया जाए तो प्रथम बार का न्यायालय उि पिकार के आिेदन पर जो प्रत्यास्थापन
द्िारा या अन्यथा कोई फायदा पाने का िकदार िै , ऐिा प्रत्यास्थापन कराएगा र्जििे पिकार, जिां तक िो
िके, उि र्स्थनत में िो जाएगें र्जिमें िे िोते यहद िि डडिी या आदे श] या उिका िि भाग र्जिमें फेरफार
क्रकया गया िै या र्जिे उलटा गया िै
और न्यायालय इि प्रयोजन िे कोई ऐिे आदे श र्जनके अन्तगित खचों के प्रनतदाय के सलए और
ब्याज, नक
ु िानी, प्रनतकर और अन्तःकाल न लाभों के िंदाय के सलए आदे श िोंगे, कर िकेगा जो [उि डडिी
1

या आदे श को ऐिे फेरफार करने, उलटने, के उधचत रूप में पाररणासमक िै |]

145. प्रनतिू के दानयत्ि का प्रितवन- 2[जिां क्रकिी व्यर्क्त ने] -


(क) क्रकिी डडिी या उिके क्रकिी भाग के पालन के सलए, अथिा
(ख) डडिी के ननष्पादन में ल गई क्रकिी िम्पवि के प्रत्यास्थापन के सलए, अथिा
(ग) क्रकिी िाद में या उिके पररणामस्िरूप क्रकिी कायििाि में न्यायालय के क्रकिी आदे श के अधीन
क्रकिी धन के िंदाय के सलए या क्रकिी व्यर्क्त पर उिके अधीन अधधरोवपत क्रकिी शति की पनू ति के सलए,

1. 1967 के अधधननयम िं. 104 की धारा 48 द्िारा (1.2.1977 िे) कुछ शब्दों के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 49 द्िारा (1.2.1977 िे) कुछ शब्दों के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

1
[प्रनतभनू त या प्रत्याभनू त दे द िै ििां िि डडिी या आदे श, डडक्रियों के ननष्पादन के सलए इिमें
उपबर्न्धत र नत िे ननष्पाहदत क्रकया जाएगा, अथाित ्:-
(i) यहद उिने अपने को व्यर्क्तगत रुप िे दायी बनाया िै तो उिके विरुद्ध उि विस्तार तक;
(ii) यहद उिने प्रनतभनू त के रुप में कोई िम्पवि द िै तो ऐिी प्रनतभनू त के विस्तार तक उि
िम्पवि के वििय द्िारा;
(iii) यहद मामला खण्ड (i) और खण्ड (ii) दोनों के अधीन आता िै तो उन खण्डों के विननहदि ष्ट
विस्तार तक;
और ऐिे व्यर्क्त के बारे में यि िमझा जाएगा क्रक िि धारा 47 के अथि में पिकार िै :]
परन्तु यि तब जब क्रक ऐिी िच
ू ना, जो न्यायालय िर एक मामले में पयािप्त िमझे, प्रनतभू को द
जा चुकी िो ।

राज्य िंशोधन

105
उ.प्र. राज्य द्िारा िंशोधन- उ.प्र. अधधननयम ि. 54 िषि 1954 जो क्रक हदनांक 30.11.1954 के
द्िारा प्रभािी क्रकया गया, धारा 145 के स्थान पर ननम्न धारा 145 को प्रनतस्थावपत क्रकया गया िै -
''145. जिां कोई व्यर्क्त प्रनतभू के रुप में दायी िो गया िै उिने प्रनतभनू त के रूप में कोई िंपवि द
िै या-
(क) क्रकिी डडिी या उिके क्रकिी भाग के पालन के सलए, अथिा
(ख) डडिी के ननष्पादन में ल गई क्रकिी िम्पवि के प्रत्यास्थापन के सलए, अथिा
(ग) क्रकिी िाद में या उिके पररणामस्िरुप क्रकिी कायििाि में न्यायालय के क्रकिी आदे श के

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 49 द्िारा (1.2.1977 िे) कुछ शब्दों के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

(ख) डडिी के ननष्पादन में ल गई क्रकिीिम्पवि के प्रत्यास्थापन के सलए, अथिा


(ग) क्रकिी िाद में या उिके पररणामस्िरूप क्रकिी कायििाि में न्यायालय के क्रकिी आदे श के अधीन
क्रकिी धन के िंदाय के सलए या क्रकिी व्यर्क्त पर उिके अधीन अधधरोवपत क्रकिी शति की पनू ति के सलए
प्रनतभनू त या प्रत्याभनू त दे द िै ििां िि डडिी या आदे श, डडक्रियों के ननष्पादन के सलए इिमें
उपबंधधत र नत िे ननष्पाहदत क्रकया जाएगा,-
(i)यहद उिने अपने को व्यर्क्तगत रूप िे दायी बनाया िै तो उिके विरुद्ध उि विस्तार तक;
(ii)यहद उिने प्रनतभनू त के रुप में कोई िम्पवि द िै तो ऐिी प्रनतभनू त के विस्तार तक उि िम्पवि
के वििय द्िारा;
(iii) यहद मामला खण्ड (i) और खण्ड (ii) दोनों के अधीन आता िै तो उन खण्डों के विननहदि ष्ट
विस्तार तक,
और ऐिे व्यर्क्त के बारे में अपील के प्रयोजन के सलए यि िमझा जाएगा क्रक िि धारा 47 के अथि
में पिकार िै
परन्तु यि तब जब क्रक ऐिी िच
ू ना, जो न्यायालय िर एक मामले में पयािप्त िमझे, प्रनतभक
ू ो द
जा चुकी िो ।
स्पष्टीकरण- इि धारा के प्रयोजन के सलए न्यायालय द्िारा क्रकिी डडिी या आदे श के ननष्पादन में
कुकि की गयी क्रकिी िंपवि की असभरिा के िाथ न्यसित क्रकिी व्यर्क्त के बारे में यि माना जािेगा क्रक िि
खंड (ख) के आशय के अधीन क्रकिी िंपवि के प्रत्यास्थापन के सलए प्रनतभू के रूप में दायी िो गया िै ।''

146. प्रनतननधधयों द्िारा या उनके विरुद्ध कायविाहियां- उिके सििाय जैिा इि िंहिता द्िारा या
तत्िमय प्रिि
ृ क्रकिी विधध द्िारा अन्यथा उपबर्न्धत िै , जिां क्रकिी व्यर्क्त द्िारा या उिके विरुद्ध कोई
कायििाि की जा िकती िै या आिेदन क्रकया जा िकता िै ििां उििे त्यत्ु पन्न अधधकार के अधीन दािा
करने िाले क्रकिी भी व्यर्क्त द्िारा या उिके विरुद्ध िि कायििाि की जा िकेगी या आिेदन क्रकया जा
िकेगा ।
147. ननयोग्यता के अधीन व्यस्ततयों द्िारा ििमनत या करार- उन िभी िादों में, र्जनमें
ननयोग्यता के अधीन कोई व्यर्क्त पिकार िै क्रकिी भी कायििाि के िम्बन्ध मे कोई भी ििमनत या करार,
यहद िि उिके िाद-समत्र या िादाथि िंरिक द्िारा न्यायालय की असभव्यक्त इजाजत िे द जाए या क्रकया
जाए तो िि ऐिा ि बल या प्रभाि रखेगी या रखेगा मानो ऐिा व्यर्क्त क्रकिी ननयोग्यता के अधीन नि ं था

106
और उिने ऐिी ििमनत द थी या ऐिा करार क्रकया था ।
148. िमय का बढ़ाया जाना- जिां न्यायालय ने इिे िंहिता द्िारा विहित या अनज्ञ
ु ात कोई कायि
करने के सलए कोई अिधध ननयत या अनद
ु ि की िै ििां न्यायालय ऐिी अिधध को स्िवििेकानि
ु ार िमय-
िमय पर बढा िकेगा, 1[जो कुल समलाकर तीि हदन िे अधधक न िो], यद्यवप पिले ननयत या अनद
ु ि
अिधध का अििान िो चक
ु ा िो ।
2
[148क. केवियट दायर करने का अधधकार- (1) जिां क्रकिी न्यायालय में िंर्स्थत या शीघ्र ि
िंर्स्थत िोने िाल क्रकिी िाद या कायििाि में क्रकिी आिेदन का क्रकया जाना प्रत्यासशत िै या कोई आिेदन
क्रकया गया िै ििा कोई व्यर्क्त जो ऐिे आिेदन की िन
ु िाई में न्यायालय के िमि उपर्स्थत िोने के
अधधकार का दािा करता िै उिके बारें में केवियट दायर कर िकेगा ।
(2) जिां उपधारा (1) के अधीन कोई केवियट दायर क्रकया गया िै ििां िि व्यर्क्त र्जिके द्िारा
केवियट दायर क्रकया गया िै (र्जिे इिमें इिके पश्चात ् केवियटकताि किा गया िै ), उि व्यर्क्त पर र्जिके
द्िारा उपधारा (1) के अधीन आिेदन क्रकया गया िै या क्रकए जाने की प्रत्याशा िै , केवियट की िच
ू ना की
तामील रिीद रर्जस्र डाक द्िारा करे गा ।
(3) जिां उपधारा (1) के अधीन कोई केवियट दायर क्रकऐ जाने के पश्चात ् क्रकिी िाद या कायििाि
में कोई आिेदन फाइल क्रकया जाता िै ििां न्यायालय आिेदन की िच
ू ना केवियटकताि को दे गा ।
(4) जिां आिेदक पर क्रकिी केवियट की िच
ू ना की तामील की गई िै ििां िि उिके द्िारा क्रकए
गए आिेदन की और उि आिेदन के िमथिन में उिके द्िारा फाइल क्रकए गए या फाइल क्रकए जाने िाले
क्रकिी कागज या दस्तािेज की प्रनतयां केवियटकताि के खचे पर केवियटकताि को तरु न्त दे गा ।
(5) जिां उपधारा (1) के अधीन कोई केवियट दायर क्रकया गया िै ििां ऐिा केवियट उि तार ख िे
र्जिको िि दायर क्रकया गया था, नब्बे हदन के अििान के पश्चात ् प्रित
ृ नि ं रिे गा जब तक क्रक उपधारा
(1) में ननहदिष्ट आिेदन उक्त अिधध के अििान के पि
ू ि नि ं क्रकया गया िो ।]

1. 1999 के अधधननयम िं. 46 की धारा 13 द्िारा (1-7-2002 िे) अंत: स्थावपत ।


2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 50 द्िारा (1.5.1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया गया

149. न्यायालय-फीि की कमी को परू ा करने की शस्तत- जिां न्यायालय-फीि िे िम्बर्न्धत


तत्िमय प्रिि
ृ क्रकिी विधध द्िारा क्रकिी दस्तािेज के सलए विहित परू फीि या उिका कोई भाग िंदि नि ं
क्रकया गया िै ििां र्जि व्यर्क्त द्िारा ऐिी फीि िंदेय िै उिे न्यायालय क्रकिी भी प्रिम में स्िवििेकानि
ु ार
अनज्ञ
ु ात कर िकेगा क्रक िि, यथार्स्थनत, ऐिी परू न्यायालय-फीि या उिका िि भाग िंदि करे और ऐिा
िंदेय क्रकए जाने पर उि दस्तािेज का, र्जिकी बाबत िि फीि िंदेय िै , िि ं बल और प्रभाि िोगा मानो
ऐिी फीि पिल बार ि िंदि कर द गई िो ।

150. कारबार का अन्तरण- उिके सििाय जैिा अन्यथा उपबंधधत िै , जिां क्रकिी न्यायालय का
कारबार क्रकिी अन्य न्यायालय को अन्तररत कर हदया गया िै ििां र्जि न्यायालय को कारबार इि प्रकार
अन्तररत क्रकया गया िै उिकी िे ि शर्क्तयां िोंगी और िि उन्ि ं कतिव्यों का पालन करे गा जो उि
न्यायालय को और उि पर इि िंहिता द्िारा या इिके अधीन िमश: प्रदि और अधधरोवपत थे र्जििे
कारबार इि प्रकार अन्तररत क्रकया गया था ।

151. न्यायालय की अन्तननवहित शस्ततयों की व्यािवृ ि- इि िंहिता की क्रकिी भी बात के बारे में यि
नि ं िमझा जाएगा क्रक िि ऐिे आदे शों के दे ने की न्यायालय की अन्तननिहित शर्क्त को पररिीसमत या

107
अन्यथा प्रभावित करती िै , जो न्याय के उद्दे श्यों के सलए या न्यायालय की आदे सशका के दरु
ु पयोग का
ननिारण करने के सलए आिश्यक िै ।
152. ननणवयों. डिक्रियों या आदे शों का िंशोधन- ननणियों डडक्रियों या आदे शों में की लेखन या गणणत
िम्बन्धी भल ू ें या क्रकिी आकर्स्मक भल
ू या लोप िे उिमें िुई गलनतयां न्यायालय द्िारा स्िप्रेरणा िे या
पिकारों में िे क्रकिी के आिेदन पर क्रकिी भी िमय शद्ु ध की जा िकेंगी ।

153. िंशोधन करने की िाधारण शस्तत- न्यायालय क्रकिी भी िमय और खचि- िम्बन्धी ऐिी शतो
पर या अन्यथा जो िि ठीक िमझे, िाद की क्रकिी भी कायििाि में की क्रकिी भी त्रहु ट या गलती को
िंशोधधत कर िकेगा, और ऐिी कायििाि द्िारा उठाए गए या उि पर अिलंबबत िास्तविक प्रश्न या
वििाद्यक के अिधारण के प्रयोजन के सलए िभी आिश्यक िंशोधन क्रकए जाएंगे ।

1
[153क. जिां अपील िंक्षेपतः खाररज की जाती िै ििां डििी या आदे श का िंशोधन करने की
शस्तत- जिां अपील न्यायालय आदे श 41 के ननयम 11 के अधीन कोई अपील खाररज करता िै ििां धारा
152 के अधीन उि न्यायालय की उि डडिी या आदे श को र्जिके विरुद्ध अपील की गई िै , िंशोधधत
करने की शर्क्त का प्रयोग उि न्यायालय द्िारा र्जिने प्रथम बार डडिी या आदे श पाररत क्रकया िै , इि
बात के िोते िुए भी क्रकया जा िकेगा क्रक अपील के खाररज क्रकए जाने का प्रभाि, प्रथम बार के न्यायालय
द्िारा पाररत, यथार्स्थनत, डडिी या आदे श की पर्ु ष्ट में िुआ िै ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 51 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया गया

153ख. विचारण के स्थान को खल


ु ा न्यायालय िमझा जाना- िि स्थान जिां क्रकिी िाद के
विचारण के प्रयोजन के सलए कोई सिविल न्यायालय लगता िै , खुला न्यायालय िमझा जाएगा और उिमें
िाधारणत: जनता की ििां तक पिुंच िोगी जिां तक जनता इिमें िवु िधापिू क
ि िमा िके;
परन्तु यहद पीठािीन न्यायाधीश ठीक िमझे तो िि क्रकिी विसशष्ट मामले की जांच या विचारण के
क्रकिी भी प्रिम पर यि आदे श दे िक ता िै क्रक िाधारणत: जनता या क्रकिी विसशष्ट व्यर्क्त की न्यायालय
द्िारा प्रयक्
ु त कमरे या भिन तक पिुच नि ं िोगी या यि उिमें नि ं आएगा या िि नि ं रिे गा ।]

154. [अपील के ितवमान आधधकार की व्यािवृ ि ।] --ननरिन और िंशोधन अधधननयम, 1952


(1952 का 48) की धारा 2 और अनि
ु च
ू ी 1 द्िारा ननरसित ।

155. [कुछ अधधननयमों का िंशोधन ।] --ननरिन और िंशोधन अधधननयम, 1952 (1952 का 48


की धारा 2 और अनि
ु च
ू ी 1 द्िारा ननरसित।

156. [ननरिन ।] -- द्वितीय ननरिन और िंशोधन अधधननयम, 1914 (1914 का 17) की धारा 3
और अनि
ु च
ू ी 2 द्िारा ननरसित ।

157. ननरसित अधधननयसमनतयों के अधीन आदे शों का चालू रिना-- 1859 के अधधननयम 8 या
क्रकिी भी सिविल प्रक्रिया िंहिता या उिका िंशोधन करने िाले क्रकिी भी अधधननयम या एतदद्िारा ननरसित
क्रकिी भी अन्य अधधननयसमनत के अधीन प्रकासशत अधधिच
ू नाएं, की गई घोषणाएं और बनाए गए ननयम,

108
ननयत क्रकए गए स्थान, फाइल क्रकए गए करार, विहित मापमान, विरधचत प्ररुप, की गई ननयर्ु क्तयां और
प्रदि शर्क्तयां जिां तक िे इि िंहिता िे िंगत िैं, िि बल और प्रभाि रखें गी मानो िे इि िंहिता के
अधीन और इिके द्िारा इि ननसमि िशक्त प्राधधकार द्िारा िमश: प्रकासशत की गई, बनाए गए, ननयत
क्रकए गए, फाइल क्रकए गए, विहित क्रकए गए, विरधचत क्रकए गए और प्रदि की गई िों ।

158. सिविल प्रक्रिया िंहिता और अन्य विकसित अधधननयसमनतयों के प्रनत ननदे श- इि िंहिता के
प्रारम्भ के पि
ू ि पाररत या ननकाल गई ऐिी िर एक अधधननयसमनत या अधधिच
ू ना में , र्जिमें 1859 के
अधधननयम 8 या क्रकिी भी सिविल प्रक्रिया िंहिता या उिका िंशोधन करने िाले क्रकिी भी अधधननयम का
एतदद्िारा ननरसित क्रकिी भी अन्य अधधननयसमनत के प्रनत या उिके क्रकिी भी अध्याय या धारा के प्रनत
ननदे श क्रकया गया िै , ऐिे ननदे श को, जिां तक िो िके, इि िंहिता या इिके तत्स्थानी भाग, आदे श, धारा
या ननयम के प्रनत ननदे श माना जाएगा ।

पिली अनि
ु च
ू ी
आदे श 1
िादों के पक्षकार
1
[1. िाहदयों के रुप में कौन िंयोस्जत क्रकए जा िकेंगे- िे िभी व्यर्क्त िाहदयों के रुप में एक िाद
में िंयोर्जत क्रकए जा िकेंगे जिां,-
(क) एक ि कायि या िंव्यििार या कायो या िंव्यििारों की आिल के बारे में या उििे पैदा िोने
िाले अनत
ु ोष पाने का अधधकार उनमें िंयक्
ु तत: या पथ
ृ कत: या अनक
ु पपत: ितिमान िोना असभकधथत िै ;
और
(ख) यहद ऐिे व्यर्क्त पथ
ृ क-पथ
ृ क िाद लाते तो, विधध या तथ्य का िामान्य प्रश्न पैदा िोता िै ।]

1. 1976 के अननधधमय िं. 104 की धारा 52 द्िारा (1-2-1977 िे) पि


ू ि
ि ती ननयम के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

2. पथ
ृ क विचारण का आदे श करने की न्यायालय की शस्तत- जिां न्यायालय को यि प्रतीत िोता िै
क्रक िाहदयों के क्रकिी िंयोजन के िाद के विचारण, उलझन या विलंब िो िकता िै ििां न्यायालय िाहदयों िे
ननिािचन करने को कि िकेगा या पथ
ृ क विचारण का या ऐिा अन्य आदे श दे िकेगा जो िमीचीन िो ।
1
[3. प्रनतिाहदयों के रुप में कौन िंयोस्जत क्रकए जा िकेंगे- िे िभी व्यर्क्त प्रनतिाहदयों के रूप में
एक िाद में िंयोर्जत क्रकए जा िकेंगे जिां,-
(क) एक ि कायि या िंव्यििार या कायो या िंव्यििारों की आिल के बारें में या उििे पैदा िोने
िाले अनत
ु ोष पाने का कोई अधधकार उनके विरुद्ध िंयक्
ु तत: या पथ
ृ क्तः या अनक
ु पपत: ितिमान िोना
असभकधथत िै ; और
(ख) यहद ऐिे व्यर्क्तयों के विरुद्ध पथ
ृ क-पथ
ृ क िाद लाए जाते तो, विधध या तथ्य का िामान्य
प्रश्न पैदा िोता िै ।]

राज्य िंशोधन
बबिार राज्य द्िारा िंशोधन- हदनांक 8-2-1969 के बबिार अनि
ु धू चत िेत्र विननयमन 1969 का 1,
धारा 3 ि अनि
ू च
ू ी के द्िारा अनि
ु धू चत िेत्र में प्रयोज्य िोने के सलए ननम्नानि
ु ार परन्तक
ु को अंतःस्थावपत

109
क्रकया गया -
''परन्तु यि क्रक िंविधान (अनि
ु धू चत जनजानत) आदे श, 1950 के अनि
ु च
ू ी के भाग 3 में यथा
विननहदिष्ट अनि
ु धू चत जनजानत के िदस्य की अचल िंपवि के िंबधं धत िक घोषणा या आधधपत्य के सलए
िादों में िंबधं धत उपायक्
ु त को भी प्रनतिाद के रुप में जोड़ा जाएगा ।''

1. 1976 के अननधधमय िं. 104 की धारा 52 द्िारा (1-2-1977 िे) पि


ू ि
ि ती ननयम के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

[3क. जिां प्रनतिाहदयों के िंयोजन िे उलझन या विचारण में विलम्ब िो िकता िै ििां पथ
1
ृ क्
विचारण का आदे श दे ने की शस्तत--- जिां न्यायालय को यि प्रतीत िोता िै क्रक प्रनतिाहदयों के िंयोजन िे
िाद के विचारण में उलझन या विलम्ब िो िकता िै ििां न्यायालय पथ
ृ क विचारण या आदे श या ऐिा अन्य
आदे श दे िकेगा जो न्याय के हित में िमीचीन िो ।]

राज्य िंशोधन
मध्यप्रदे श राज्य द्िारा िंशोधन- सिविल प्रक्रिया िंहिता (िंशोधन) अधधननयम, 1984 जो क्रक
हदनांक 14-8-1984 िे प्रयोज्य िुआ ननयम 3-क के पश्चात ननम्नसलणखत ननयम अंतःस्थावपत क्रकया गया
िै -
''3-ख. िादों को र्ग्िण क्रकये जाने के सलए शते- (1) कोई भी ऐिा िाद या कायििाि , जो-
(क)क्रकिी कृवष भसू म पर िक या क्रकिी अधधकार की घोषणा के सलए क्रकिी अन्य अनत
ु ोष के िाथ
या उिके बबना िै ,अथिा
(ख)क्रकिी कृवष भसू म के अन्तरण की क्रकिी िंविदा के विननहदि ष्ट पालन के सलए क्रकिी अन्य
अनत
ु ोष के िाथ या उिके बबना िै ,
क्रकिी भी न्यायालय द्िारा तब ि ग्रिण की जाएगी जब क्रक यथार्स्थनत िाद या आिेदक, यि
जानते िुए या विश्िाि करने का कारण रखते िुए क्रक उपरोक्त भसू म के िंबध
ं में मध्य प्रदे श कृवषक जोत
उच्चतम िीमा अधधननयम, 1960 (िमांक 20 िन 1960) की धारा 9 के अधीन उिके द्िारा या क्रकिी
अन्य व्यर्क्त के द्िारा एक वििरणी उि अधधननयम के अधीन ननयक्
ु त क्रकये गये ििम प्राधधकार के
िमि फाइल कर द गई िै या ऐिी वििरणी फाइल करने की उििे या क्रकिी अन्य व्यर्क्त िे अपेिा की
गयी िै , ऐिे िाद या कायििाि में मध्यप्रदे श राज्य को यथार्स्थनत प्रनतिाहदयों में िे या अनािेदकों में िे
एक प्रनतिाद या अनािेदक के रूप में पिकार बना दे ।
(2) कोई भी न्यायालय उप-ननयम (1)में ननहदि ष्ट क्रकये गये लंबबत िाद या कायििाि में तब तक
अग्रिर नि ं िोगा जब तक क्रक यथा िंभि शीर, राज्य िरकार को इि प्रकार प्रनतिाद या अनािेदक के रूप
में पिकार न बना हदया जाय ।
स्पष्टीकरण- इि अधधननयम में उपयोग में लायी गयी असभव्यर्क्त ''िाद या कायििाि '' के अन्तगित
अपील, ननदे श या पन
ु र िण आता िै क्रकन्तु ऐिे िाद या ऐिी कायििाि में पाररत की गयी क्रकिी डडिी या
अंनतम आदे श के ननष्पादन के सलए या ननष्पादन िे िंबधं धत कोई कायििाि नि ं आती िै |''

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 52 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया गया

4. न्यायालय, िंयत
ु त पक्षकारों में िे एक या अधधक के पक्ष में या उनके विरुद्ध में ननणवय िे

110
िकेगा-
(क) िाहदयों में िे जो एक या अधधक िाद अनत
ु ोष के िकदार पाए जाएं उिके पि में , उि
अनत
ु ोष के सलए, र्जिके िि या िे िकदार िों;
(ख) प्रनतिाहदयों में िे जो एक या अधधक प्रनतिाद दाई पाए जाएं उिके या उनके विरुद्ध उनके
अपने-अपने दानयत्िों के अनि
ु ार, ननणिय क्रकिी िंशोधन के बबना हदया जा िकेगा |

5. दािाकृत िम्पण
ू व अनत
ु ोष में प्रनतिादी का हितबद्ध िोना आिश्यक निीं िै - यि आिश्यक नि ं
िोगा क्रक िर प्रनतिाद अपने विरुद्ध क्रकिी िाद में दािाकृत िम्पण
ू ि अनत
ु ोष के बारे में हितबद्ध िो |

6. एक िी िंविदा के आधार पर दायी पक्षकारों का िंयोजन- िाद क्रकिी भी एक िंविदा के आधार


पर पथ
ृ क्त: या िंयक्
ु तत: और पथ
ृ क्त: दायी िभी या क्रकन्ि ं व्यर्क्तयों को, र्जनके अंतगित विननयम- पत्रों,
िुंडडयों और िचनपत्रों के पिकार भी िै , एक ि िाद के पिकारों के तौर पर अपने विकपप के अनि
ु ार
िंयोर्जत कर िकेगा |

7. जब िादी को िंदेि िै क्रक क्रकििे प्रनततोष चािा गया िै - जिां िाद को इि बारे में िंदेि िै क्रक
िि व्यर्क्त कौन िै , र्जििे प्रनततोष असभप्राप्त करने का िि िकदार िै ििााँ िि दो या अधधक प्रनतिाहदयों
को इिसलए िंयोर्जत कर िकेगा क्रक िभी पिकारों के बीच इि प्रश्न के बारे में अिधाररत क्रकया जा िके
क्रक प्रनतिाहदयों में िे कौन और क्रकि विस्तार तक दायी िै |

1
[8. एक िी हित में ििी व्यस्ततयों की ओर िे एक व्यस्तत िाद ला िकेगा या प्रनतरक्षा कर
िकेगा— (1) जिां एक ि िाद में एक ि हित में रखने िाले बिुत िे व्यर्क्त िैं ििां,-
(क) इि प्रकार हितबद्ध िभी व्यर्क्तयों की ओर िे या उनके फायदे के सलए न्यायालय की अनज्ञ
ु ा
िे ऐिे व्यर्क्तयों में िे एक या अधधक व्यर्क्त िाद ला िकेंगे या उनके विरुद्ध िाद लाया जा िकेगा या िे
ऐिे िाद में प्रनतरिा कर िकेंगे;
(ख) न्यायालय यि ननदे श दे िकेगा क्रक इि प्रकार हितबद्ध िभी व्यर्क्तयों की ओर िे या उनके
फायदे के सलए ऐिे व्यर्क्तयों में िे एक या अधधक व्यर्क्त िाद ला िकेंगे या उनके विरुद्ध िाद लाए जा
िकेंगे या िे ऐिे िाद में प्रनतरिा कर िकेंगे ।
(2) न्यायालय ऐिे प्रत्येक मामले में जिां उपननयम (1) के अधीन अनज्ञ
ु ा या ननदे श हदया गया िै ,
इि प्रकार हितबद्ध िभी व्यर्क्तयों को या तो िैयर्क्तक तामील कराकर या जिां व्यर्क्तयों की िंख्या या
क्रकिी अन्य कारण िे ऐिी तामील यर्ु क्तयक्
ु त रूप िे िाक्ष्य नि ं िै ििां लोक विज्ञापन द्िारा, जैिा भी
न्यायालय िर एक मामले में ननहदष्ट करे , िाद के िंर्स्थत क्रकए जाने की िच
ू ना िाद के खचे पर दे गा ।
(3) कोई व्यर्क्त र्जिकी ओर िे या र्जिके फायदे के सलए उपननयम (1) के अधीन कोई िाद
िंर्स्थत क्रकया जाता िै या ऐिे िाद में प्रनतरिा की जाती िै , उि िाद में पिकार बनाएंजाने के सलए
न्यायालय को आिेदन कर िकेगा ।
(4) आदे श 23 के ननयम 1 के उपननयम (1) के अधीन ऐिे िाद में दािे के क्रकिी भाग का
पररत्याग नि ं क्रकया जाएगा और उि आदे श के ननयम 1 के उपननयम (3) के अधीन ऐिे िाद का
प्रत्यािरण नि ं क्रकया जाएगा और उि आदे श के ननयम 3 के अधीन ऐिे िाद में कोई करार, िमझौता या
तर्ु ष्ट असभसलणखत नि ं की जाएगी जब तक क्रक न्यायालय ने इि प्रकार हितबद्ध िभी व्यर्क्तयों को
उपननयम (2) में विननहदिष्ट र नत िे िच
ू ना िाद के खचे पर न दे द िो ।

111
(5) जिां ऐिे िाद में िाद लाने िाला या प्रनतरिा करने िाला कोई व्यर्क्त िाद या प्रनतरिा के
िम्यक तत्परता िे कायििाि नि ं करता िै ििां न्यायालय उि िाद में िैिा ि हित रखने िाले क्रकिी अन्य
व्यर्क्त को उिके स्थान पर रख िकेगा ।
(6) इि ननयम के अधीन िाद में पाररत डडिी उन िभी व्यर्क्तयों पर आबद्धकर िोगी र्जनकी
ओर िे या र्जनके फायदे के सलए, यथार्स्थनत, िाद िंर्स्थत क्रकया गया िै या ऐिे िाद में प्रनतरिा की गई
िै |

1. 1976 के अधधननमय िं. 104 की धारा 52 द्िारा (1-2-1977 िे) पि


ू ि
ि ती ननयम के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

स्पष्टीकरण- इि बात का अिधारण करने के प्रयोजन के सलए क्रक िे व्यर्क्त जो िाद ला रिे िै या
र्जनके विरुद्ध िाद लाया गया िै या जो ऐिे िाद में प्रनतरिा कर रिे िै , क्रकिी एक िाद में िैिा ि हित
रखते िै या नि ं, यि िाबबत करना आिश्यक नि ं िै क्रक ऐिे व्यर्क्तयों का बि िाद िे तक
ु िै जो उन
व्यर्क्तयों का िै र्जनकी और िे या र्जनके फायदे के सलए, यथार्स्थनत, िे िाद ला रिे िैं या उनके विरुद्ध
िाद लाया जा रिा िै या िे ऐिे िाद में प्रनतरिा कर रिे िैं ।

[8क न्यायालय की कायविािी में राय दे ने या िाग लेने के सलए क्रकिी व्यस्तत या व्यस्ततयों के
1

ननकाय को अनज्ञ
ु ात करने की शस्तत- यहद िाद का विचारण करते िमय न्यायालय का यि िमाधान िो
जाता िै क्रक कोई व्यर्क्त या व्यर्क्तयों का ननकाय क्रकिी ऐिी विधध के प्रश्न में हितबद्ध िै जो क्रकिी िाद
में प्रत्यित: और िारत: वििाद्य िै और ऐिे व्यर्क्त या व्यर्क्तयों के ननकाय को उि विधध के प्रश्न पर
अपनी राय दे ने के सलए अनज्ञ
ु ात करना लोकहित में आिश्यक िै तो िि ऐिे व्यर्क्त या व्यर्क्तयों के
ननकाय को ऐिी राय दे ने के सलए और िाद की कायििाहियों में ऐिे भाग लेने के सलए अनज्ञ
ु ात कर िकेगा
जो न्यायालय विननहदि ष्ट करे ।

9. कुिंयोजन और अिंयोजन- कोई भी िाद पिकारों के कुिंयोजन या अिंयोजन के कारण विफल


नि ं िोगा और न्यायालय िर िाद में वििादग्रस्त विषय का ननपटारा ििां तक कर िकेगा जिां तक उन
पिकारों के, जो उिके िस्तत
ु : िमि िै , अधधकारों और हितों का िम्बन्ध िै : परन्तु इि ननयम की कोई
बात क्रकिी आिश्यक पिकार के अिंयोजन को लागू नि ं िोगी।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 52 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया गया
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 52 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया गया

10. गलत िादी के नाम िे िाद- (1) जिां कोई िाद िाद के रुप में गलत व्यर्क्त के नाम िे
िंर्स्थत क्रकया गया िै , या जिा यि िंदेिपण
ू ि िै क्रक क्या िि िि िाद के नाम में िंर्स्थत क्रकया गया िै
ििां यहद िाद के क्रकिी भी प्रिम में न्यायालय का यि िमाधान िो जाता िै क्रक िद्भाविक भल
ू िे िंर्स्थत
क्रकया गया िै और वििाद में के िास्तविक विषय के अिधारण के सलए ऐिा करना आिश्यक िै तो, िि ऐिे
ननबन्धनों पर, जो िि न्यायािंगत िमझे, िाद के क्रकिी भी प्रिम में क्रकिी अन्य व्यर्क्त को िाद के रूप
में प्रनतस्थावपत क्रकए जाने या जोड़े जाने का आदे श दे िकेगा।
(2) न्यायालय पक्षकारों का नाम काट िकेगा या जोड़ िकेगा- न्यायालय कायििाहियों के क्रकिी भी

112
प्रिम में या तो दोनों पिकारों में िे क्रकिी के आिेदन पर या उिके बबना और ऐिे ननबन्धनों पर जो
न्यायालय को न्याििंगत प्रतीत िों, यि आदे श दे िकेगा क्रक िाद के रूप में या प्रनतिाद के रुप में
अनधु चत तौर पर िंयोर्जत क्रकिी भी पिकार का नाम काट हदया जाए और क्रकिी व्यर्क्त का नाम र्जिे
िाद या प्रनतिाद के रूप में ऐिे िंयोर्जत क्रकया जाना चाहिए था या न्यायालय के िामने र्जिकी
उपर्स्थनत िाद में अन्तििसलत िभी प्रश्नों का प्रभािी तौर पर और परू तरि न्यायननणियन और ननपटारा
करने के सलए न्यायालय को िमथि बनाने की दृर्ष्ट िे आिश्यक िो, जोड़ हदया जाए।
(3) कोई भी व्यर्क्त, िाद-समत्र के बबना िाद लाने िाले िाद के रूप में अथिा उि िाद के, जो
क्रकिी ननयोग्यता के अधीन िै , िाद-समत्र के रुप में उिकी ििमनत के बबना नि ं जोडा जाएगा।
(4) जिां प्रनतिादी जोड़ा जाए ििां िादपत्र का िंशोधन क्रकया जाना- जिां कोई प्रनतिाद जोड़ा जाता
िै ििां जब तक न्यायालय अन्यथा ननहदष्ट न करे िादपत्र का इि प्रकार िंशोधन क्रकया जाएगा, जैिा
आिश्यक िो, और िमन की और िादपत्र की िंशोधधत प्रनतयों की तामील नए प्रनतिाद पर, और यहद
न्यायालय ठीक िमझे तो मल
ू प्रनतिाद पर की जाएगी।
(5) 1इर्ण्डयन सलसमटे शन ऐक्ट, 1877(1877 का 15) की धारा 22 के उपबन्धों के अधीन रिते िुए,
प्रनतिाद के रूप में जोड़े गए क्रकिी भी व्यर्क्त के विरुद्ध कायििाि िमन की तामील पर ि प्रांरभ की गई
िमझी जाएगी।

1. अब पररिीमा अधधननयम, 1963 (1963 का 36) की धारा 21 दे णखए ।

1
[10क. न्यायालय की उिको िंबोधधत करने के सलए क्रकिी प्लीिर िे अनरु ोध करने की शस्तत--
यहद क्रकिी िाद या कायििाि में वििाद्य विषय पर न्यायालय के विननश्चय का क्रकिी हित पर प्रभाि पड़ना
िंभि िै और उि पिकार का जो ऐिा हित रखता िै र्जिका इि प्रकार प्रभावित िोना िंभि िै , क्रकिी
प्ल डर द्िारा प्रनतननधधत्ि नि ं क्रकया जाता िै तो न्यायालय, स्िवििेकानि
ु ार प्ल डर िे यि अनरु ोध कर
िकेगा क्रक िि ऐिे हित के बारे में उिे िम्बोधधत करें ।

11. िाद का िंचालन- न्यायालय 2[क्रकिी िाद] का िंचालन ऐिे व्यर्क्त को िौंप िकेगा र्जिे िि
ठीक िमझे ।

12. कई िाहदयों या प्रनतिाहदयों में िे एक का अन्यों के सलए उपिंजात िोना- (1) जिां एक िे
अधधक िाद िैं ििां उनमें िे क्रकिी एक या अधधक को उनमें िे कोई अन्य िाद क्रकिी भी कायििाि में उि
अन्य के सलए उपिंजात िोने, असभिचन करने या कायि करने के सलए प्राधधकृत कर िकेगा और उिी प्रकार
िे, जिां एक िे अधधक प्रनतिाद िै ििां उनमें िे एक या अधधक को उनमें िे कोई अन्य प्रनतिाद क्रकिी
भी कायििाि में उि अन्य के सलए उपिंजात िोने, असभिचन करने या कायि करने के सलए प्राधधकृत कर
िकेगा ।
(2) िि प्राधधकार सलणखत रुप में िोगा और उिे दे ने िाले पिकार द्िारा िस्तािररत िोगा और
न्यायालय में फाइल क्रकया जाएगा ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 52 करा (1-2-1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया गया ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 52 द्िारा (1-2-1977 िे) ''िाद'' के स्थान पर

113
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

13. अिंयोजन या कुिंयोजन के बारे में आक्षेप- पिकारों के अिंयोजन या कुिंयोजन के आधार पर
िभी आिेप यथािंभि शीघ्रतम अििर पर क्रकए जाएंगे और िभी मामलों में र्जनमें वििाद्य र्स्थर क्रकए
जाते िै , ऐिे र्स्थर करण के िमय या उििे पिले क्रकए जाएंगे, जब तक क्रक आिेप का आधार पीछे पैदा न
िुआ िो और यहद आिेप ऐिे नि ं क्रकया जाता िै तो िि आिेप अधधत्यक्त कर हदया गया िमझा जाएगा

आदे श 2
िाद की विरचना
1. िाद की विरचना- िर िाद की विरचना याित्िाध्य ऐिे की जाएगी क्रक वििादग्रस्त विषयों पर
अंनतम विननश्चय करने के सलए आधार प्राप्त िो जाए और उनिे िम्पक्
ृ त अनतररक्त मक
ु दमेबाजी का भी
ननिारण िो जाएं।
2. िाद के अन्तगवत िंपण
ू व दािा िोगा- (1) िर िाद के अन्तगित िि परू ा दािा िोगा र्जिे उि िाद-
िे तक
ु के विषय में करने का िाद िकदार िै , क्रकन्तु िाद िाद को क्रकिी न्यायालय की अधधकाररता के भीतर
लाने की दृर्ष्ट िे अपने दािे के क्रकिी भाग का त्याग कर िकेगा ।
(2) दािे के िाग का त्याग- जिां िाद अपने दािे के क्रकिी भाग के बारे में िाद लाने का लोप
करता िै या उिे िाशय त्याग दे ता िै ििां उिके पश्चात ् िि इि प्रकार लोप क्रकए गए या त्यक्त भाग के
बारें में िाद नि ं लाएगा ।
(3) कई अनत
ु ोषों में िे एक के सलए िाद लाने का लोप- एक ि िाद-िे तक
ु के बारे में एक िे
अधधक अनत
ु ोष पाने का िकदार व्यर्क्त ऐिे िभी अनत
ु ोषों या उनमें िे क्रकिी के सलए िाद ला िकेगा,
क्रकन्तु यहद िि ऐिे िभी अनत
ु ोषों के सलए िाद लाने का लोप न्यायालय की इजाजत के बबना करता िै तो
उिके पश्चात ् िि इि प्रकार लोप क्रकए गए क्रकिी भी अनत
ु ोष के सलए िाद नि ं लाएगा ।
स्पष्टीकरण- इि ननयम के प्रयोजनों के सलए, कोई बाध्यता और उिके पालन के सलए िांपासशििक
प्रनतभनू त और उिी बाध्यता के अधीन उद्भत
ू उिरोिर दािों के बारे में यि िमझा जाएगा क्रक िे िमश: एक
ि िाद-िे तक
ु गहठत करते िैं ।
राज्य िंशोधन
उिर प्रदे श राज्य द्िारा िंशोधन- आदे श 2 ननयम 2 में उिर प्रदे श राज्य में इिकी प्रयोज्यता में -
(क) अर्स्तत्ियक्
ु त स्पष्ट करण को स्पष्ट करण 1 के कप में िमांक्रकत क्रकया जाएगा और इि
प्रकार िमांक्रकत स्पष्ट करण 1 के उपरांत ननम्नानि
ु ार स्पष्ट करण 2 को अंतस्थावपत क्रकया
जाएगा-
''स्पष्टीकरण 2- इि ननयम के प्रयोजन के सलए अचल िंपवि िे उिे क्रकराये पर द गयी अचल
िंपवि िे ननष्कािन का दािा या उि िंपवि के उपयोग एिं अधधिाि के सलए भाड़ा या प्रनतकर के रुप में
दे य रासश का दािा को िसु भन्न िादकारणौ िंबध
ं मे दािों को िोने के रूप में िमझा जािेगा | ''
(ख) उदािरण के सलए ननम्नानि
ु ार उदािरण को प्रनतस्थावपत क्रकया जाएगा ।

3. िाद-िे तक
ु का िंयोजन—(1) उिके सििाय जैिा अन्यथा उपबर्न्धत िै , िाद उिी प्रनतिाद या
िंयक्
ु तत: उन्ि ं प्रनतिाहदयों के विरुद्ध कई िाद-िे तक
ु एक ि िाद में िंयोर्जत कर िकेगा और ऐिे िाद-
िे तक
ु रखने िाले कोई भी िाद र्जनमें िे उिी प्रनतिाद या िंयक्
ु ितः उन्ि ं प्रनतिाहदयों के विरुद्ध िंयक्
ु ितः
हितबद्ध िों, ऐिे िाद-िे तक
ु ों को एक ि िाद में िंयोर्जत कर िकेंगे ।

114
(2) जिां िाद-िे तक
ु िंयोर्जत क्रकए जाते िै ,ििां िाद के िम्बन्ध में न्यायालय की अधधकाररता
िंकसलत विषय-िस्तओ
ु ं की उि रकम या मप
ू य पर ननभिर िोगी जो िाद के िंर्स्थत क्रकए जाने की तार ख
पर िै ।

4. स्थािर िम्पवि के प्रत्यद्


ु धरण के सलए केिल कुछ दािों का िंयोस्जत क्रकया जाना- जब तक क्रक
न्यायालय की इजाजत न िो स्थािर िम्पवि के प्रत्यद्
ु धरण के सलए िाद में ननम्नसलणखत के सििाय कोई
भी िाद-िे तक
ु िंयोर्जत नि ं क्रकया जाएगा-
(क) उि दािाकृत िम्पवि या उिके क्रकिी भाग के अन्तःकाल न लाभों या भाटक की बकाया के
सलए दािे;
(ख) र्जि िंविदा में अधीन िि िम्पवि या उिका कोई भाग धाररत िै उिके भंग के सलए नक
ु िानी
के सलए दािे; तथा
(ग) िे दािे र्जनमें चािा गया अनत
ु ोष उिी िाद-िे तक
ु पर आधाररत िै :
परन्तु इि ननयम की क्रकिी भी बात के बारे में यि नि ं िमझा जाएगा क्रक यि परु ोबन्ध या मोचन
के क्रकिी िाद में के क्रकिी भी पिकार को यि मांग करने िे ननिाररत करती िै क्रक बन्धक- िम्पवि का उिे
कब्जा हदलाया जाए ।

5. ननष्पादक, प्रशािक या िाररि दारा या उिके विरुद्ध दािे-- क्रकिी ननष्पादक, प्रशािक या िाररि
द्िारा या उिके विरुद्ध उिका उि िै सियत में लाया गया कोई भी दािा िैयर्क्तक रुप िे उिके द्िारा या
उिके विरुद्ध लाए गए उन दािों िे तब तक िंयोर्जत निें क्रकया जाएगा जब तक क्रक अर्न्तम िणणित दािों
के बारे में यि असभकथन न क्रकया गया िो क्रक िे उि िम्पदा के बारे में पैदा िुए िै या र्जनके बारे में
ननष्पादक, प्रशािक या िाररि की िै सियत में िाद िाद लाया िै या प्रनतिाद पर िाद लाया गया िै या जब
तक क्रक अर्न्तम िणणित दािे ऐिे न िों र्जनके सलए िि उि मत
ृ व्यर्क्त के िाथ, र्जिका िि प्रनतननधधत्ि
करता िै , िंयक्
ु तत: िकदार या दायी था ।

1
[6. पथ
ृ क् विचारण का आदे श दे ने की न्यायालय की शस्तत- जिां न्यायालय को यि प्रतीत िोता िै
क्रक एक ि िाद में िाद-िे तक
ु ों के िंयोजन िे विचारण में उलझन या विलम्ब िो जाएगा या ऐिा करना
अन्यथा अिवु िधाजनक िोगा ििां न्यायालय पथ
ृ क विचारण का आदे श दे िकेगा या ऐिा अन्य आदे श दे
िकेगा जो न्याय के हित में िमीचीन िो ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 53 द्िारा (1-2-1977 िे) ननयम 6 के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

7. कुिंयोजन के बारे में आक्षेप- िाद-िे तक


ु ों के कुिंयोजन के आधार पर िभी आिेप यथा िंभि
शीघ्रतम अििर पर क्रकए जाएंगे और ऐिे िभी मामलों में र्जनमें वििाद्यक र्स्थर क्रकए जाते िै , ऐिे
र्स्थर करण के िमय या उििे पिले क्रकए जाएंगे, जब तक क्रक आिेप का आधार पीछे पैदा न िुआ िो और
यहद ऐिे आिेप क्रकया जाता िै तो िि आिेप अधधत्यक्त कर हदया गया िमझा जाएगा |
उच्च न्यायालय िंशोधन
राजस्थान उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- हदनांक 14-8-1964 की अधधिच
ू ना िमांक 33
एि.आर.ओ. के द्िारा सिविल प्रक्रिया िंहिता के आदे श 2 में ननम्नानि
ु ार ननयम 8 को अन्तःस्थावपत क्रकया
गया िै -

115
“8(1) जिां न्यायालय द्िारा ऐिी आपवि अनज्ञ
ु ात कर द गयी िै तो िाद को उि िाद कारण को
चयन करना अनज्ञ
ु ात क्रकया जाएगा र्जि पर िि कायििाि करे गा और न्यायालय द्िारा ननयत क्रकये गये
िमय के भीतर शेष िाद कारण को िमाप्त करते िुए िादपत्र को िंशोधधत करे गा।
(2) जब िाद ने उि िाद कारण को चयन कर सलया िो र्जि पर िि कायििाि करे गा तो
न्यायालय उिके आिेदन पर ऐिा िमय दे ते िुए र्जिके भीतर िि शेष िादकारणों के िंबध ं में िंशोधधत
िादपत्रों को प्रस्तत
ु कर िके और न्यायशप
ु क दे िके आदे श कर िकेगा,यहद िाद न्यायालय के आदे श का
पालन नि ं करता िै तो न्यायालय आदे श 6 के ननयम 18 में यथा प्रािधाननत ि न्यायालय फीि
अधधननयम के प्रािधानों द्िारा यथाअपेिानि
ु ार कायििाि करे गा ।
पंजाब उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- हदनांक 12-5-19090 की अधधिच
ू ना िमांक 2212- जी के
द्िारा सिविल प्रक्रिया िंहिता के आदे श 2 में ननम्नानि
ु ार ननयम 8 को अन्तःस्थावपत क्रकया गया िै -
''8 (1) जिां न्यायालय द्िारा ऐिी िम्यक रूप िे ल गयी आपवि अनज्ञ
ु ात कर द गयी िै तो िाद
को उि िाद कारण को चयन करना अनज्ञ
ु ात क्रकया जाएगा र्जि पर िि कायििाि करे गा और न्यायालय
द्िारा ननयत क्रकये गये िमय के भीतर शेष िाद कारण को िमाप्त करते िुए िादपत्र को िंशोधधत करे गा ।
(2) जब िाद ने उि िाद का रण को चयन कर सलया िो र्जि पर िि कायििाि करे गा तो
न्यायालय उिके आिेदन पर ऐिा िमय दे ते िुए र्जिके भीतर िि शेष िादकारणों के िंबध ं में िंशोधधत
िादपत्रों को प्रस्तत
ु कर िके और न्यायशप
ु क दे िके आदे श करे गा,यहद िाद न्यायालय के आदे श का पालन
नि ं करता िै तो न्यायालय आदे श 6 के ननयम 18 में यथा प्रािधाननत ि न्यायालय फीि अधधननयम के
प्रािधानों द्िारा यथाअपेिानि
ु ार कायििाि करे गा ।''
हदल्ली उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- दे िल में पंजाब की तरि ि िंशोधन क्रकया गया िै ।
हिमाचल प्रदे श उच्च न्यायालय दारा िंशोधन- हिमाचल प्रदे श में भी पंजाब की तरि िंशोधन क्रकया
गया िै ।

ननणवयज विधध
िंहिता का आदे श 1 एिं आदे श 2 आिश्यक पिकारों को एिं िादकारण को व्यिित करता िै ।
िंहिता के आदे श 1 ननयम 13 में यि प्रािधाननत क्रकया गया िै क्रक पिकारों के अिंयोजन अथिा
कुिंयोजन के आधार पर िोने िाल िभी आपवियों को यथािंभि आरं सभक अििर पर सलया जाना चाहिए ।
िमान तौर
पर िंहिता के आदे श 2 ननयम 7 में यि प्रािधाननत क्रकया गया िै क्रक कुिंयोजन के आधार पर अथिा
िादकारण के आधार पर िोने िाल िभी आपवियों को िंभि आरं सभक अििर पर उठाया जाना अपेक्षित
िोता िै । इि प्रािधान के पीछे ननहित विचार यि िै क्रक िाद को िंरक्षित क्रकया जा िके और उिे विचारण
के अंत में आश्चयि का िामना न करना पड़े और इि आधार पर परास्त िोना न पड़े । इिीसलए विधानयका
ने यि प्रािधाननक करना उपयक्
ु त िमझा था क्रक ऐिी आपवि को यथािंभि शीघ्र अििर पर सलया जाना
चाहिए । यहद ऐिा नि ं क्रकया जाता तो यि माना जाएगा क्रक इन्िें अधधत्यर्जत कर हदया गया िै ।

आदे श 3
मान्यता प्राप्त असिकताव और प्लीिर
1. उपिंजानतयां, आहद स्ियं या मान्यताप्राप्त असिकताव िारा या प्लीिर द्िारा की जा िकेंगी-
क्रकिी भी न्यायालय में या उििे कोई भी ऐिी उपिंजानत, आिेदन या कायि, र्जिे ऐिे न्यायालय में करने
के सलए कोई पिकार विधध द्िारा अपेक्षित या प्राधधकृत िै , ििां के सििाय जिां तत्िमय प्रिि
ृ क्रकिी विधध

116
द्िारा असभव्यक्त रुप िे अन्यथा उपबर्न्धत िो, पिकार द्िारा स्ियं या उिके मान्यता प्राप्त असभकताि
द्िारा या उिकी ओर िे, 1[यथार्स्थनत, उपिंजात िोने िाले, आिेदन करने िाले या कायि करने िाले] उिके
प्ल डर द्िारा क्रकया जा िकेगा :
परन्तु यहद न्यायालय ऐिा ननहदष्ट करे तो ऐिी उपिंजानत स्ियं पिकार द्िारा की जाएगी ।

1. 1926 के अधधननयम िं. 22 की धारा 2 द्िारा ''कायि करने के सलए िम्यक् रुप िे ननयक्
ु ि'' के
स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

2. मान्यताप्राप्त असिकताव- पिकारों के र्जन मान्यताप्राप्त असभकताि द्िारा ऐिी उपिंजानतयां,


आिेदन और कायि क्रकए जा िकेंगे िे ननम्नसलणखत िै :-
(क) ऐिे मख्
ु तारनामे धाररत करने िाले व्यर्क्त र्जनमें उन्िें ऐिे पिकारों की ओर िे ऐिी
उपिंजानतयां, आिेदन और कायि करने के सलए प्राधधकृत क्रकया गया िै ;
(ख) जिां का कोई भी अन्य असभकताि ऐिी उपिंजानतयों, आिेदनों और कायो को करने के सलए
असभव्यक्त रुप िे प्राधधकृत नि ं िै ििां ऐिे व्यर्क्त जो उन पिकारों के सलए और उनके नाम िे व्यापार
या कारबार करते िै , जो पिकार उि न्यायालय की अधधकाररता की उन स्थानीय िीमाओं में ननिाि नि ं
करते िै र्जन िीमाओं के भीतर ऐिी उपरपंजानत, आिेदन या कायि ऐिे व्यापार या कारबार की ि बाबत
क्रकया जाता िै ।
उच्च न्यायालय िंशोधन
मध्य प्रदे श उच्च न्यायालय िंशोधन- मध्य प्रदे श में खंड (क) को ननम्नानि
ु ार िंशोधधत क्रकया गया
िै -
''(क) ऐिे पिकारों की ओर िे (1) या तो िामान्य मख्
ु त्यारनामा, या (2) उच्च न्यायालय में
कायििाि की दशा में , मध्यप्रेश उच्च न्यायालय में उि उच्च न्यायालय का अधधिक्ता और क्रकिी र्जले में
कायििाि के मामले में अधधिक्ता या प्ल डर र्जिको र्जले के सलए िनद जार की गयी िै ऐिे पिकारों िे
जो न्यायालय की अधधकाररता की स्थानीय िीमाओं के भीतर के र्जिके भीतर उपर्स्थत िोना िै या आिेदन
हदया जाना िै या कायि क्रकया जाना िै ननिािी न िो, ऐिी उपर्स्थनत, ऐिे पिकारों की ओर िे आिेदन दे ने
या कायि करने के सलए उिे या उन्िें प्राधधकृत करने िाले अपेक्षित मख्
ु त्यारनामा को धारण करते िों ।''
(इि बाबत म.प्र. राजपत्र, भाग 4 (ग) हदनांक 16.9.1960 अिलोकनीय िै ।)
गज
ु रात उच्च न्यायालय िंशोधन- गज
ु रात में खंड (क) को ननम्नानि
ु ार िंशोधधत क्रकया गया िै -
''(क) ऐिे पिकारों की ओर िे (1) या तो िामान्य मख्
ु त्यारनामा, या (2) उच्च न्यायालय में
कायििाि की दशा में , गज
ु रात उच्च न्यायालय में अधधिक्ता और क्रकिी र्जले में कायििाि के मामले में
अधधिक्ता या प्ल डर र्जिको र्जले के सलए िनद जार की गयी िै ऐिे पिकारों िे जो न्यायालय की
अधधकाररता की स्थानीय िीमाओं के भीतर के र्जिके भीतर उपर्स्थत िोना िै या आिेदन हदया जाना िै या
कायि क्रकया जाना िै ननिािी न िो, ऐिी उपर्स्थनत, ऐिे पिकारों की ओर िे आिेदन दे ने या कायि करने के
सलए उिे या उन्िें प्राधधकृत करने िाले अपेक्षित मख्
ु त्यारनामा को धारण करते िों ।''

3. मान्यताप्राप्त असिकताव पर आदे सशका की तामील—(1) जब तक न्यायालय अन्यथा ननहदष्ट नि ं


करता, क्रकिी पिकार के मान्यताप्राप्त असभकताि पर तामील की गई आदे सशकाएं िैिे ि प्रभािी िोंगी मानों
उनकी तामील स्ियं पिकार पर की गई िो ।
(2) जो उपबन्ध िाद के क्रकिी पिकार पर आदे सशका की तामील के सलए िै िे उिके मान्यताप्राप्त
असभकताि पर आदे सशका की तामील को लागू िोंगे ।

117
[4. प्लीिर की ननयस्ु तत--- (1) कोई भी प्ल डर क्रकिी भी न्यायालय में क्रकिी भी व्यर्क्त के सलए
1

कायि नि ं करे गा जब तक क्रक िि उि व्यर्क्त द्िारा ऐिी सलणखत दस्तािेज द्िारा इि प्रयोजन के सलए
ननयक्
ु त न क्रकया गया िो जो उि व्यर्क्त द्िारा या उिके मान्यताप्राप्त असभकताि द्िारा या ऐिी ननयर्ु क्त
करने के सलए मख्
ु तारनामे द्िारा या उिके अधीन िम्यक रूप िे प्राधधकृत क्रकिी अन्य व्यर्क्त द्िारा
िस्तािररत िै ।
(2) िर ऐिी ननयर्ु क्त 1[न्यायालय में फाइल की जाएगी और उपननयम (1) के प्रयोजनों के सलए]
तब तक प्रिि
ृ िमझी जाएगी जब तक िि न्यायालय की इजाजत िे ऐिे लेख द्िारा पयििसित न कर द
गई िो जो, यथार्स्थनत, मि
ु र्क्कल या प्ल डर द्िारा िस्तािररत िै और न्यायालय में फाइल कर हदया गया
िै या जब तक मि
ु र्क्कल या प्ल डर की मत्ृ यु न िो गई िो या जब तक िाद में की उि मि
ु र्क्कल िे
िंबधं धत िमस्त कायििाहियों का अन्त न िो गया िो ।
स्पष्टीकरण- इि उपननयम के प्रयोजनों के सलए, ननम्नसलणखत को िाद में की कायििाि िमझा
जाएगा,-
(क) िाद में डडिी या आदे श के पन
ु वििलोकन के सलए आिेदन;
(ख) िाद में की गई क्रकिी डडिी या आदे श के िम्बन्ध में इि िंहिता की धारा 144 या धारा 152
के अधीन आिेदन;
(ग) िाद में की क्रकिी डडिी या आदे श की अपील; और
(घ) िाद में पेश की गई या फाइल की गई दस्तािेजों की प्रनतयां या उन दस्तािेजों की िापिी
असभप्राप्त करने या िाद के िम्बन्ध में न्यायालय में जमा क्रकए गए धनों का प्रनतदाय असभप्राप्त करने के
प्रयोजन के सलए आिेदन या कायि ।]
[(3) उपननयम (2) की क्रकिी बात का यि अथि नि ं लगाया जाएगा क्रक िि-
4

(क) प्ल डर और उिके मि


ु र्क्कल के बीच उि अिधध का विस्तार करती िै र्जिके सलए प्ल डर
मक
ु रि र क्रकया गया िै , या
(ख) उि न्यायालय िे सभन्न र्जिके सलए प्ल डर मक
ु रि र क्रकया गया था, क्रकिी न्यायालय द्िारा जार की
गई क्रकिी िच
ू ना या दस्तािेज को प्ल डर पर उि दशा को छोडकर तामील करना प्राधधकृत करती िै र्जिमें
मि
ु र्क्कल उपननयम (1) में ननहदि ष्ट दस्तािेज में ऐिी तामील के सलए असभव्यक्त रुप िे ििमत िो गया िै
।]
1. 1926 के अधधननयम िं. 22 की धारा 2 द्िारा मल
ू ननयम 4 के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया

2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 54 द्िारा (1-2-1977 िे) कुछ शब्दों के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
3. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 54 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्तःस्थावपत क्रकया गया ।
4. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 54 द्िारा (1-2-1977 िे) उपननयम (3) के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

(4) उच्च न्यायालय िाधारण आदे श द्िारा यि ननदे श दे िकेगा क्रक जिां िि व्यर्क्त र्जिके द्िारा
प्ल डर ननयक्
ु त क्रकया जाता िै , अपना नाम सलखने में अिमथि िै ििा प्ल डर को ननयक्
ु त करने िाल
दस्तािेज पर उिका धचह्न ऐिे व्यर्क्त के द्िारा और ऐिी र नत िे अनप्र
ु माणणत क्रकया जाएगा जो उि
आदे श द्िारा विननहदि ष्ट की जाए ।

118
(5) जो कोई प्ल डर केिल असभिचन करने के प्रयोजन िे मक
ु रि र क्रकया गया िै िि क्रकिी पिकार
की ओर िे तब तक असभिचन नि ं करे गा जब तक उिने स्ििस्तािररत और ननम्नसलणखत का कथन करने
िाला उपिंजानत का ज्ञापन न्यायालय में फाइल न कर हदया िो-
(क) िाद के पिकारों के नाम,
(ख) उि पिकार का नाम, र्जिके सलए िि उपिंजात िो रिा िै , तथा
(ग) उि व्यर्क्त का नाम र्जिके द्िारा िि उपिंजात िोने के सलए प्राधधकृत क्रकया गया िै :
परन्तु इि उपननयम की कोई भी बात ऐिे क्रकिी प्ल डर को लागू नि ं िोगी जो क्रकिी पिकार की
ओर िे असभिचन करनेके सलए ऐिे क्रकिी अन्य प्ल डर द्िारा मक
ु रि र क्रकया गया िै र्जिे ऐिे पिकार की
ओर िे न्यायालय में कायि करने के सलए िम्यकू रूप िे ननयक्
ु त क्रकया गया िै ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


1. मध्यप्रदे श उच्च न्यायालय दारा िंशोधन- म.प्र. में उपननयम (3) ननम्नानि
ु ार रुप में
प्रनतस्थावपत क्रकया गया िै -
(3) उपननयम (3) के प्रयोजन के सलए-
(i) इि िंहिता की धारा 22,24 या 25 के अंतगित अंतरण की कायििाि या आिेदन-पत्र ।
(ii) इि िंहिता के आदे श 9 के ननयम 4 या ननयम 9 या ननयम 13 के अंतगित आिेदन ।
(iii ) इि िंहिता के आदे श 37 ननयम 4 के अंतगित आिेदन ।
(iv) ननणिय के पन
ु वििलोकन के सलए आिेदन ।
(v ) िाद िे या उिके बािर िे उत्पन्न ननदे श ।
(Vi ) िाद की डडिी या आदे श या असभलेख या िाद िे या बािर िे उत्पन्न अपील या ननदे श या
पन
ु र िण में िंशोधन के सलए आिेदन ।
(vii) िाद में क्रकिी डडिी या आदे श के ननष्पादन के सलए आिेदन ।
(viii) इि िंहिता की धारा 144 या धारा 151 के अंतगित प्रत्यास्थापना के सलए आिेदन ।
(ix) इि िंहिता की धारा 151 के अंतगित आिेदन ।
(x) इि िंहिता की धारा 152 के अंतगित आिेदन ।
(xi) कोई अपील (उच्च न्यायालय के लेटिि पेटेन्ट के अंतगित अपील को शासमल करते िुए) या
पन
ु र िण आिेदन िाद या िाद िे उत्पन्न अपील में क्रकिी डडिी या आदे श िे ।
(xii) िाद िे या (उच्च न्यायालय के लेटिि पेटेन्ट के अंतगित अपील की अनम
ु नत अथिा ििोच्च
न्यायालय को अपील की अनम ु नत के आिेदन को शासमल करते िुए) उत्पन्न ऐिी अपील या
पनु र िण ननदे श िे िंबधं धत या उत्पन्न िोने िाला कोई आिेदन ।
(xiii) क्रकिी िाद या िणणित क्रकिी कायििाि या उत्पन्न अपील या पन
ु र िण या ऐिे आिेदन या
कायििाि में या िे पाररत क्रकिी आदे श िे उत्पन्न पन
ु र िण िे िंबधं धत दण्ड प्रक्रिया
िंहिता 1898 के अध्याय 35 के अंतगित असभयोजन के सलए ननदे सशत करने के सलए
आिेदन या कायििाि ।
(xiv) िाद या यिााँ पि
ू ि में िणणित क्रकिी कायििाि पेश या प्रस्तत
ु क्रकए गए दस्तािेजों या
दस्तािेजों के ररटनि की प्रनतसलवपयााँ प्राप्त करने के प्रयोजन के सलए कोई आिेदन या कृत्य

(xv) िाद या यिााँ के पि
ू ि िणणित क्रकिी कायििाि के िंबध
ं में न्यायालय में भग
ु तान या जमा की
गई रासश में रा ररफण्ड या भग
ु तान ननकालने या प्राप्त करने के सलए आिेदन कॉस्ट की

119
प्रनतभनू त के रूप में जमा या ििोच्च न्यायालय को अपील के असभलेख के तैयार करने या
मद्र
ु ण करने की लागत िे आच्छाहदत रासश को ननकालने ररफण्ड या भग
ु तान करने को
शासमल करते िुए) ।
(xvi) क्रकिी िाद या िाद में या िे उत्पन्न क्रकिी! अपील पन
ु र िण ननदे श पन
ु वििलोकन में हदए
गए ननणिय में या असभलेख की हटप्पणी या असभननधािरण को ननकालने के सलए आिेदन ।
(xvii) िाद िे उत्पन्न ििोच्च न्यायालय की अपील में िाररिों को प्रनतस्थावपत करने के िंबध
ं में
प्रमाण पत्र के सलए आिेदन |
(xviii) िंहिता के आदे श 44 ननयम 45 के अंतगित क्रकिी आिेदन को िाद में कायििाि िोना
िमझा जािेगा ।
2. इलािबाद उच्च न्यायलय िरा िंशोधन- (1) उपननयम (2) में स्पष्ट करण में खंड (क) के
उपरांत ननम्नानि
ु ार खंड को प्रनतस्थावपत क्रकया जाएगा – “(क)” िाद में आदे श के पन
ु र िण की
कायििाि (21-3-1981)
(2) उपननयम (2) में अर्स्तत्व्यक्
ु त खंड (घ) के उपरांत ननम्न निीन खंड (ड.) को जोड़ें-
“(ड.) िंहिता की धारा 22,24 या 25 के अंतगित अंतरण िे तु आिेदन या कायििाि ;
(च) इि िंहिता के आदे श 9 के ननयम 4 या ननयम 9 या ननयम 13 के अंतगित आिेदन ।
(छ) इि िंहिता के आदे श 37 ननयम 4 के अंतगित आिेदन
(ज) िाद िे उत्पन्न कोई ननदे श
(झ) िाद में क्रकिी डडिी था आदे श के ननष्पादन का आिेदन
(त्र) इि उपननयम के खान (क) िे (झ) में ननहदिष्ट क्रकिी कायििाि िे िंबधं धत या आनष
ु धं गक
या उत्पन्न कोई आिेदन (उच्चतम न्यायलय को अपील करने की अनम
ु नत के सलए आिेदन को शासमल
करते िुए) परन्तु यि क्रक जिां िाद या कायििाि का स्थल एक न्यायालय (अधीनस्थ या अन्यथा) िे
अन्य स्थल पर र्स्थत अन्य को पररिनतित िो जाता िै तो पि ू ि के न्यायालय में उपननयम (2) में
ननहदि ष्ट ननयर्ु क्त प्रस्तत
ु करने िाला प्ल डर पश्चातिती न्यायालय में उपर्स्थत िोनेकायि करने,प्ल ड
करने के सलए आबद्ध नि ं िोगा जब तक क्रक िि उिके द्िारा िस्तािररत ज्ञापन क्रक उिे उिके
मि
ु र्क्कल िे उि न्यायालय में उपर्स्थत िोने, कायि करने या प्ल ड करने के ननदे श िैं प्रस्तत
ु नि ं
करता िै अथिा इिे पि
ू ि में ि प्रस्तत
ु न कर हदया गया िो । ''
3. राजस्थान उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- अधधिच
ू ना िमांक 33 एि. आर. ओ 21.7.1954 के
द्िारा राजस्थान में ननम्न िंशोधन क्रकया गया िै -
(क) परु ाने उपननयम (3) में शब्दों ''िाद में आदे श'' और ''कोई आिेदन या कृत्य'' के बीच शब्दों या
“ऐिी अपील के िंबध
ं में कोई आिेदन” अंतःस्थावपत क्रकया गया िै ।
(ख) ननम्नानि
ु ार उपननयम (5) अंतःस्थावपत क्रकया गया िै -
'' (6) आदे श 27 ननयम 8 (ख) के आशय के अधीन कोई शािकीय अधधिक्ता िे कायि करने के सलए
उिे िशक्त क्रकए जाने िाले क्रकिी दस्तािेज को प्रस्तत
ु करने की अपेिा नि ं की जाएगी परं तु ऐिा प्ल डर
उिके स्ियं के द्िारा िस्तािररत एिं उपननयम (6) में िणणित वििरण बताते िुए प्रस्तत
ु करे गा ।''
यिााँ यि उपलेखनीय िै क्रक परु ाने उपननयम (3) के उपबंध, 8 उपननयम ( 2) के स्पष्ट करण में पन
ु :
विरधचत क्रकए गए िैं ।
4. पटना उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- पटना के उच्च न्यायालय द्िारा ननम्नानि
ु ार उपननयम (4)
प्रनतस्थावपत क्रकया गया िै -
''(4) सिविल प्रक्रिया िंहिता 1908 की प्रथम अनि
ु च
ू ी के आदे श 3 ननयम 4 (3) में अंतननिहित क्रकिी

120
बात के िोते िुए भी क्रकिी व्यर्क्त के सलए उपर्स्थत िोने आिेदन दे ने या कायि करने के सलए िकदार नि ं
िोगा जब तक क्रक िि ऐिे व्यर्क्त या उिके मान्यता प्राप्त असभकताि या उिकी ओर िे मख् ु तारनामे के
द्िारा कायि करने के सलए िम्यक रुप में प्राधधकृत अन्य असभकताि द्िारा िम्यक् रूप िे िस्जािर त
सलणखत में ननयर्ु क्त पत्र प्रस्तत
ु नि ं करता िै अथिा जब तक क्रक उिे ऐिे व्यर्क्त की ओर िे कायि करने
के सलए प्राधधकृत अटानी या प्ल डर द्िारा ननदे सशत नि ं क्रकयाजाता िै । ''
5. 1976 के अधधननयम द्िारा िंशोधन- 1976 के िंशोधन अधधननयम िमांक 104 के द्िारा उपननयम
(2) के अंत में स्पष्ट करण अंतःस्थावपत क्रकया गया िै ।
5. प्लीिर पर आदे सशका की तामील- 1[क्रकिी आदे सशका के बारे में , र्जिकी तामील ऐिे प्ल डर पर कर
द गई िै र्जिे क्रकिी पिकार की ओर िे न्यायालय में कायि करने के सलए िम्यक् रूप िे ननयक्
ु त क्रकया
गया िै ] या जो ऐिे प्ल डर के कायािलय में या उि स्थान में जिां िि मामल
ू तौर िे ननिाि करता िै छोड़
द गई िै चािे िि पिकार की स्िीय उपिंजानत के सलए िो या नि ं, यि उपधारणा की जाएगी क्रक िि उि
पिकार को िम्यक् रुप िे िंिधू चत कर द गई िै और ज्ञात करा द गई िै र्जिका प्रनतननधधत्ि िि प्ल डर
करता िै और जब तक न्यायालय अन्यथा ननहदि ष्ट न करे तब तक िि िमस्त प्रयोजनों के सलए िैिे ि
प्रभािी िोगी मानों स्ियं पिकार को िि द गई थी या स्िंय पिकार पर उिकी तामील की गई िै |

1. 1976 के अधधननयम िन. 104 की धारा 54 द्िारा (1-2-1977 िे) कुछ शब्दों के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


पटना उच्च न्यायालय िारा िंशोधन- अधधिच
ू ना हदनांक 26-7-1948 के द्िारा ननम्नानि
ु ारनिीन
ननयम 5-ख जोड़ा गया िै -
“5-ख. सिविल प्रक्रिया िंहिता, 1908 की प्रथम अनि
ु च
ू ी के आदे श 3 के ननयम 4 के उपननयम (2)
ि (3) में अन्तननिहित क्रकिी बात के िोते िुए भी कोई भी प्ल डर क्रकिी व्यर्क्त के सलए उच्च न्यायालय में
कायि नि ं करे गा जब तक क्रक िि इि प्रयोजन के सलए उपननयम (1) में विहित र नत में ननयक् ु त न क्रकया
गया िो और ननयर्ु क्त को उच्च न्यायालय में प्रस्तत
ु न क्रकया गया िो ।''
राजस्थान उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- अधधिच
ू ना िमांक 33 एि.आर.ओ. हदनांक
21-7-1954 के द्िारा राजस्थान में ननयम 3 के उपरांत ननम्न उपननयम (6) को जोडा गया िै -
“(6) आदे श 27 ननयम 8-ख के आशय के सलए क्रकिी शािकीय अधधिक्ता िे उिे कायि करने के
सलए िशक्त करने िाले क्रकिी दस्तािेज को प्रस्तत
ु करने की अपेिा नि ं की जाएगी परन्तु ऐिा अधधिक्ता
उिके द्िारा िस्तािररत ज्ञापन र्जिमें उपननयम(5)में िणणित वििरण िो, दे िकेगा ।

6. असिकताव तामील का प्रनतर्ग्िण करे गा—(1) ननयम 2 में िणणित मान्यताप्राप्त असभकतािओं के
अनतररक्त ऐिा कोई व्यर्क्त जो न्यायालय की अधधकाररता के भीतर ननिारन करता िै , आदे सशका की
तामील का प्रनतग्रिण करने के सलए असभकताि ननयक्
ु त क्रकया जा िकेगा ।

(2) ननयस्ु तत सलखखत में िोगी और न्यायालय में फाइल की जाएगी-- ऐिी ननयर्ु क्त विशेष या
िाधारण िो िकेगी और ऐिी सलखत द्िारा की जाएगी जो मासलक द्िारा िस्तािररत िो और ऐिी सलखत
या यहद ननयर्ु क्त िाधारण िै तो उिकी प्रमाणणत प्रनत न्यायालय में फाइल की जाएगी ।
1
[(3) न्यायालय, िाद के क्रकिी ऐिे पिकार को र्जिका कोई ऐिा मान्यताप्राप्त असभकताि नि ं िै

121
जो न्यायालय की अधधकाररता के भीतर ननिाि करता िै अथिा र्जिका कोई ऐिा प्ल डर नि ं िै जो उिकी
ओर िे न्यायालय में कायि करने के सलए िम्यक् रूप िे ननयक्
ु त क्रकया गया िै , िाद के क्रकिी भी प्रिम पर
यि आदे श दे िकेगा क्रक िि अपनी ओर िे आदे सशका की तामील का प्रनतग्रिण करने के सलए विननहदि ष्ट
िमय के भीतर ऐिा असभकताि ननयक्
ु त करे जो न्यायालय की अधधकाररता के भीतर ननिाि करता िै ।]

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 54 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया गया ।

आदे श 4
िादों का िंस्स्थत क्रकया जाना
1. िादपत्र द्िारा िाद प्रारं ि िोगा- (1) िर िाद न्यायालय को या उिके द्िारा इि ननसमिि ननयक्
ु त
क्रकिी अधधकार को 1[दो प्रनतयों में िादपत्र उपर्स्थत करके] िंर्स्थत क्रकया जाएगा ।
(2) िर िादपत्र आदे श 6 और 7 में अंतवििष्ट ननयमों का ििां तक अनप
ु ालन करे गा जिा तक िि
लागू क्रकए जा िकते िैं ।
2
[(3) िादपत्र तब तक िम्यक् रुप िे िंर्स्थत क्रकया गया नि ं िमझा जाएगा जब तक िि
उपननयम ( 1) और उपननयम (2) में विननहदि ष्ट अपे िाओं का अनप
ु ालन नि ं करता िै ।]

उच्च न्यायालय िंशोधन


मध्य प्रदे श उच्च न्यायालय िंशोधन- अधधिच
ू ना िमांक 4084/ 35 (ए) - 3 (7) हदनांक
24-7-1926 के द्िारा िंहिता के मल
ू ननयम 1 (1) को ननम्नानि
ु ार प्रनतस्थावपत क्रकया गया िै -
''1 (1) प्रत्येक िाद को िादपत्र की िाधारण कागज पर इतनी ित्यप्रनतसलवपयों के िाथ र्जतने क्रक
प्रनतिाद िैं प्रत्येक प्रनतिाद को िमन के िाथ ननिािहित क्रकये जाने के सलए न्यायालय में या ऐिे अधधकार
को र्जिे क्रक इि िंबध
ं मे ननयक्
ु त क्रकया जाए को प्रस्तत
ु करने के द्िारा िंर्स्थत क्रकया जाएगा जब तक
क्रक न्यायालय अच्छे दसशित कारणों िे ऐिी प्रनतसलवपयों को प्रस्तत
ु करने के सलए िमय को अनज्ञ
ु ात नि ं
करे
(2) ऐिी तामील के सलए प्रभारयोग्य न्यायालय फीि िादों के मामले में उि िमय प्रस्तत
ु की
जाएगी जबक्रक िादपत्र प्रस्तत
ु क्रकया जाता िै और अन्य कायििाि के मामले में जबक्रक आदे सशका के सलए
आिेदन क्रकया जाता िै । ''

इलािाबाद उच्च न्यायालय िंशोधन-- अधधिच


ू ना िमांक 4084/35 (ए) - 3 (7) हदनांक
24-7-1926 के द्िारा िंहिता के मल
ू ननयम 1 ( 1) को ननम्नानि
ु ार प्रनतस्थावपत क्रकया गया िै -

1. 1999 के अधधननयम िं. 46 की धारा 14 द्िारा (1-7-2002 िे) कनतपय शब्दो के स्थान पर
प्रनतस्थावपत ।
2. 1999 के अधधननयम िं. 46 की धारा 14 द्िारा (1-7-2002 िे) अंतःस्थावपत ।

'' 1(1) प्रत्येक िाद को प्रत्येक प्रनतिाद को िमन के िाथ ननिािहित की जाने िाल ित्य प्रनतसलवप
के िाथ न्यायालय में या ऐिे अधधकार को र्जिे क्रक इि िंबध
ं मे ननयक्
ु त क्रकया जाए को प्रस्तत
ु करने के
द्िारा िंर्स्थत क्रकया जाएगा, जब तक क्रक न्यायालय अच्छे दसशित कारणों िे ऐिी प्रनतसलवपयों को प्रस्तत

करने के सलए िमय को अनज्ञ
ु ात नि ं करे

122
(2) ऐिी तामील के सलए प्रभारयोग्य न्यायालय फीि िादों के मामले में उि िमय प्रस्तत
ु की
जाएगी जबक्रक िादपत्र प्रस्तत
ु क्रकया जाता िै और अन्य कायििाि के मामले में जबक्रक आदे सशका के सलए
आिेदन क्रकया जाता िै । ''

राजस्थान उच्च न्यायालय िंशोधन- अधधिच


ू ना िमांक 33/ एि.न.आर.ओ. 21-7-1954 के द्िारा-
िंहिता के मल
ू ननयम 1 (1) को ननम्नानि
ु ार प्रनतस्थावपत क्रकया गया िै -
''1(1) प्रत्येक िाद को िादपत्र की िाधारण कागज पर इतनी ित्यप्रनतसलवपयों के िाथ र्जतने क्रक
प्रनतिाद िैं प्रत्येक प्रनतिाद को िमन के िाथ ननिािहित क्रकये जाने के सलए न्यायालय में या ऐिे अधधकार
को र्जिे क्रक इि िंबध
ं मे ननयक्
ु त क्रकया जाए को प्रस्तत
ु करने के द्िारा िंर्स्थत क्रकया जाएगा, जब तक
क्रक न्यायालय अच्छे दसशित कारणों िे ऐिी प्रनतसलवपयों को प्रस्तत
ु करने के सलए िमय को अनज्ञ
ु ात नि ं
करे
(2) ऐिी तामील के सलए प्रभारयोग्य न्यायालय फीि िादों के मामले में उि िमय प्रस्तत
ु की
जाएगी जबक्रक िादपत्र प्रस्तत
ु क्रकया जाता िै और अन्य कायििाि के मामले में जबक्रक आदे सशका के सलए
आिेदन क्रकया जाता िै । ''

2. िादों का रस्जस्टर- न्यायालय िर िाद की विसशर्ष्टयों को, उि प्रयोजन के सलए रखी गई में जो
सिविल िादों का रर्जस्टर किलाएगी, प्रविष्ट कराएगा । ऐिी प्रविर्ष्टयां िर िषि उिी िम में िंख्यांक्रकत
िोगी र्जिमें िादपत्र ग्रिण क्रकए गए िैं ।

राज्य िंशोधन
उिर प्रदे श राज्य िंशोधन- उिर प्रदे श राज्य में इिकी प्रयोज्यता में आदे श 4 के उपरांत
ननम्नानि
ु ार आदे श को अंतःस्थावपत क्रकया जाएगा-

''आदे श 4क
मामलों का िमेकन
1. िादों और कायविाहियों का िमेकन- जिााँ दो या अधधक िाद या कायििाहियााँ िमान न्यायालय में
लंबबत िैं, और न्यायालय की यि राय िै क्रक न्यायहित में यि िमीचीन िै क्रक, तो यि ननदे श कोई िै आदे श
द्िारा उनके िंयक्
ु ि विचारण का ननदे श दे िकेगा, र्जि पर ऐिे िभी िाद एिं कायििाहियााँ िभी अथिा ऐिे
क्रकन्ि ं िाद या कायििाि में की िाक्ष्य के आधार पर ननराकृत की जा िकेंगी ।''
(उिर प्रदे श अधधननयम (1976 का 57) (1.1.1977)

1. 2002 के अधधननयम िं. 22 की धारा 6 द्िारा (1-7-2002 िे) उपननयम (1) के स्थान पर
प्रनतस्थावपत ।

आदे श 5
िमनों का ननकाला जाना और उनकी तामील
िमनों का ननकाला जाना
1. िमन- [(1) जब िाद िम्यक् क्रकया जा चक
1
ु ा िो तब, उि प्रनतिाद पर, िमन के तामील की

123
तार ख िे तीि हदन के भीतर उपिंजात िोने और दािे का उिर दे ने तथा अपनी प्रनतरिा का सलणखत
कथन, यहद कोई िो, फाइल करने के सलए, िमन ननकाला जा िकेगा:
परं तु जब प्रनतिाद , िाद-पत्र के उपर्स्थत क्रकए जाने पर ि उपजात िो जाए और िाद का दािा
स्िीकार कर ले तब कोई िमन नि ं ननकाला जाएगा:
परं तु यि और क्रक जिां प्रनतिाद , तीि हदन की उक्त अिधध के भीतर सलणखत कथन फाइल करने
में अिफल रिता िै , ििां उिे ऐिे क्रकिी अन्य हदन को फाइल करने के सलए अनज्ञ
ु ात क्रकया जाएगा जो
न्यायालय द्िारा उिके सलए कारणों को लेखबद्ध करके, विननहदिष्ट क्रकया जाए, क्रकंतु जो िमन के तामील
की तार ख िे नब्बे हदन के िाद का नि ं िोगा ]।
(2) िि प्रनतिाद , र्जिके नाम उपननयम (1) के अधीन िमन ननकाला गया िै -
(क) स्ियं, अथिा
(ख) ऐिे प्ल डर द्िारा, जो िम्यक् रूप िे अनहु दष्ट िो और िाद िे िंबधं धत िभी िारिान प्रश्नों
का उिर दे ने के सलए िमथि िो, अथिा
(ग) ऐिे प्ल डर द्िारा, र्जिके िाथ ऐिा कोई व्यर्क्त िै जो ऐिे िभी प्रश्नों का उिर दे ने के सलए
िमथि िै , उपिंजात िो िकेगा ।
(3) िर ऐिा िमन न्यायाधीश या ऐिे अधधकार द्िारा, जो िाद ननयक्
ु त करे , िस्तािररत िोगा और
उि पर न्यायालय की मद्र
ु ा लगी िोगी ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- अधधिच
ू ना हदनांक 24-7-1926 के द्िारा '' या यहद
ऐिा अनज्ञ
ु ात क्रकया गया िो तो एक िंक्षिप्त कथन िोगा '' शब्दों को विलोवपत क्रकया गया िै ।
राजस्थान उच्च न्यायालय दारा िंशोधन- अधधिच
ू ना िमांक 33/ एि. आर. ओ. हदनांक
21-7-1954 के द्िारा '' या यहद ऐिा अनज्ञ
ु ात क्रकया गया िो तो एक िंक्षिप्त कथन िोगा'' शब्दों
को विलोवपत क्रकया गया िै ।

3. न्यायालय प्रनतिादी या िादी को स्ियं उपिंजात िोने के सलए आदे श दे िकेगा- (1) जिां
न्यायालय के पाि प्रनतिाद की स्िीय उपिंजानत अपेक्षित करने के सलए कारण िो ििां िमन द्िारा यि
आदे श क्रकया जाएगा क्रक िमन में विननहदि ष्ट तार ख को िि न्यायालय में स्िंय उपिंजात िो ।
(2) जिां न्यायालय के पाि िाद की उिी हदन स्िीय उपिंजानत अपेक्षित करने के सलए कारण िो
ििां िि ऐिी उपिंजानत के सलए आदे श करे गा ।

1. 1999 के अधधननयम िं. 48 की धारा 14 द्िारा (1-7-2002 िे) उपननयम ( 2) के स्थान पर


प्रनतस्थावपत ।

4. क्रकिी िी पक्षकार को स्ियं उपिंजात िोने के सलए तब तक आदे श निीं क्रकया जाएगा जब तक
क्रक िि क्रकन्िीं ननस्श्चत िीमाओं के िीतर ननिािी न िो- क्रकिी भी पिकार को स्ियं उपिंजात िोने के
सलए केिल तभी आदे श क्रकया जाएगा जब िि-
(क) न्यायालय की मामल
ू आरं सभक अधधकाररता की स्थानीय िीमाओं के भीतर ननिाि करता िै ,
अथिा
(ख) ऐिी िीमाओं के बािर क्रकं तु ऐिे स्थान में ननिाि करता िै जो न्यायिदन िे पचाि मील िे

124
कम या (जिां उि स्थान के जिां िि ननिाि करता िै और उि स्थान के जिां न्यायालय र्स्थत िै , बीच
पंचषप्ठाश दरू तक रे ल या स्ट मर िंचार या अन्य स्थावपत लोक प्रििण िै ििां) दो िौ मील िे कम दरू िै

उच्च न्यायालय िंशोधन
इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- अधधिच
ू ना हदनांक 24-7-1926 के द्िारा ननम्नानि
ु ार
ननयम 4- क जोड़ा गया िै -
“4-क अन्यथा प्रािधाननत क्रकया गया िै उिके सििाय, प्रत्येक अन्तितीय कायििाि में और विचारण
न्यायालय मे डडिी के उपरांत प्रत्येक कायििाि में , न्यायालय या तो क्रकिी पि के आिेदन पर या उिकी
स्िप्रेरणा िे क्रकिी प्रनतिाद पर जो क्रक उपर्स्थत नि ं िुआ िै या क्रकिी ऐिे प्रनतिाद पर र्जिने क्रक
सलणखत कथन प्रस्तत ु नि ं क्रकया िै ,तामील को असभमक्
ु ि कर िकेगा ।''

5. िमन या तो वििाद्यकों के स्स्थरीकरण के सलए या अंनतम ननपटारे के सलए िोगा- न्यायालय


िमन ननकालने के िमय यि अिधाररत करे गा क्रक क्या िि केिल वििाद्यकों के र्स्थर करण के सलए िोगा
या िाद के अंनतम ननपटारे के सलए िोगा और िमन में तदनि
ु ार ननदे श अंतवििष्ट िोगा:
परं तु लघि
ु ाद न्यायालय द्िारा िन
ु े जाने िाले िर िाद में िमन िाद के अंनतम ननपटारे के सलए
िोगा ।

6.प्रनतिादी की उपिंजानत के सलए हदन ननयत क्रकया जाना- 1[ननयम 1 के उपननयम (1) के अधीन]
हदन, न्यायालय के चालू कारबार, प्रनतिाद के ननिाि-स्थान और िमन की तामील के सलए आिश्यक िमय
के प्रनत ननदे श िे ननयत क्रकया जाएगा और िि हदन ऐिे ननयत क्रकया जाएगा क्रक प्रनतिाद को ऐिे हदन
उपिंजात िोने और उिर दे ने को िमथि िोने के सलए पयािप्त िमय समल जाए ।

1. 1999 के अधधननयम िं. 46 की धारा 15 द्िारा (1-7-2002 िे) कनतपय शब्दो के स्थान पर
प्रनतस्थावपत ।

7. िमन प्रनतिादी को यि आदे श दे गा क्रक िि िे दस्तािेजें पेश करें स्जन पर िि ननिवर करता िै -
उपिंजानत और उिर के सलए िमन में प्रनतिाद को आदे श िोगा क्रक िि अपने कब्जे या शर्क्त में की ऐिी
[आदे श 8 के ननयम 1क में विननहदि ष्ट िब दस्तािेजों या उनकी प्रनतयों] को पेश करे र्जन पर अपने
1

मामले के िमथिन में ननभिर करने का उिका आशय िै ।

8. अंनतम ननपटारे के सलए िमन ननकाले जाने पर प्रनतिादी को यि ननदे श िोगा क्रक िि अपने
िाक्षक्षयों को पेश करे - जिााँ िमन िाद के अंनतम ननपटारे के सलए िै ििां उिमें प्रनतिाद को यि ननदे श भी
िोगा क्रक र्जन िाक्षियों के िाक्ष्य पर अपने मामले के िमथिन में ननभिर करने का उिका आशय िै उन िब
को उिी हदन पेश करे जो उिकी उपिंजानत के सलए ननयत िै ।

िमन की तामील
[9. न्यायालय द्िारा िमय का पररदान- (1) जिां प्रनतिाद उि न्यायालय की अधधकाररता के
2

भीतर ननिाि करता िै , र्जिमें िाद िंर्स्थत क्रकया गया िै या उि अधधकाररता के भीतर ननिाि करने िाला
उिका ऐिा असभकताि िै , जो िमन की तामील का प्रनतग्रिण करने के सलए िशक्त िै , ििां िमन जब तक

125
क्रक न्यायालय अन्यथा ननदे श न करे उधचत अधधकार को, उिके द्िारा या उिके अधीनस्थों में िे एक या
ऐिी कूररयर िेिा द्िारा, जो न्यायालय अनम
ु ोहदत िो तामील क्रकए जाने के सलए पररदि क्रकया या भेजा
जाएगा ।

1. 1999 के अधधननयम िं. 46 की धारा 15 द्िारा (1-7-2002 िे) कनतपय शब्दों के स्थान पर
प्रनतस्थावपत ।
2. 2002 के अधधननयम िं. 22 की धारा 6 द्िारा (1-7-2002 िे) ननयम 9 के स्थान पर
प्रनतस्थावपत ।
(2) उधचत अधधकार उि न्यायालय िे सभन्न, र्जिमें िाद िंर्स्थत क्रकया गया िै , क्रकिी न्यायालय
का अधधकार िो िकेगा और जिां िि ऐिा अधधकार िै ििां िमन उिे ऐिी र नत िे भेजा जा िकेगा जो
न्यायालय ननदे श दे ।
(3) िमन की तामील, प्रनतिाद या तामील का प्रनतग्रिण करने के सलए िशक्त क्रकए गए उिके
क्रकिी असभकताि का िंबांधधत रिीद रर्जस्र डाक द्िारा अथिा स्पीड पोस्ट द्िारा अथिा ऐिी कूररयर िेिा
द्िारा, जो उच न्यायालय या उपननयम (1) में ननहदिष्ट न्यायालय द्िारा अनम
ु ोहदत िो, अथिा उच्च
न्यायालय द्िारा बनाए गए ननयमों में यथा उपबंधधत दस्तािेजों (र्जिके अंतगित फैक्ि िंदेश या
इलेर्क्राननक डाक िेिा भी िै ) के पारे षण के क्रकिी अन्य िाधन द्िारा उिकी एक प्रनत के प्रनतदान या
पारे षण द्िारा की जा िकेगी:
परं तु यि क्रक इि उपननयम के अधीन िमन की तामील िाद के खचि पर की जाएगी ।
(4) उपननयम (1) में क्रकिी बात के िोते िुए भी, जिां कोई प्रनतिाद उि न्यायालय की अधधकाररता
के बािर ननिाि करता िै , र्जिमें िाद िंर्स्थत क्रकया गया िै और न्यायालय यि ननदे श दे ता िै क्रक उि
प्रनतिाद को िमनों की तामील ऐिे माध्यम िे की जाए, जैिा क्रक उपननयम (3) में ननहदिष्ट िै (रिीद
रर्जस्र कृत डाक िे सभन्न), ििां ननयम 21 के उपबंध लागू नि ं िोंगे ।
(5) जब कोई असभस्िीकृनत या अन्य पािती, र्जि पर प्रनतिाद या उिके असभकताि द्िारा िस्तािर
िोने तात्पनयित िैं, न्यायालय द्िारा प्राप्त की जाती िै अथिा डाक िस्त,ु र्जिमें िमन अंतवििष्ट िै ,
न्यायालय द्िारा िापि प्राप्त क्रकए जाते िैं र्जि पर डाक कमिचार या कूररयर िेिा द्िारा प्राधधकृत क्रकिी
व्यर्क्त द्िारा क्रकया गया इि आशय का पष्ृ ठांकन तात्पनयित िै क्रक प्रनतिाद या उिके असभकताि ने जब
िमन उिे भेजे गए या पारे वषत क्रकए गए थे तो उि डाक िस्तु का पररदान लेने िे इकार कर हदया िै ।
र्जिमें िमन अंतवििष्ट थे अथिा उपननयम (3) में विननहदि ष्ट क्रकिी अन्य िाधन िे लेने िे इंकार कर हदया
िै , तो िमन ननकालने िाला न्यायालय यि घोषणा करे गा क्रक िमन िम्यक् रूप िे प्रनतिाद पर तामील
कर हदए गए िैं:
परं तु जिां िमन उधचत रुप में पता सलखकर, उि पर पि
ू ि िंदाय करके और रिीद रर्जस्र डाक
द्िारा िम्यक् रुप िे भेजा गया था, ििां इि उपननयम में ननहदिष्ट घोषणा इि तथ्य के िोते िुए भी की
जाएगी क्रक असभस्िीकृनत खो जाने या इधर-उधर िो जाने या क्रकिी अन्य कारण िे िमन ननकालने की
तार ख िे तीि हदन के भीतर न्यायालय द्िारा प्राप्त नि ं िुई िै ।
(6) यथार्स्थनत, उच्च न्यायालय या र्जला न्यायाधीश, उपननयम (1) के प्रयोजनों के सलए कूररयर
असभकरणों का एक पैनल तैयार करे गा ।

9क. तामील के सलए िादी को िमन का हदया जाना- (1) न्यायालय, ननयम 9 के अधीन िमन की
तामील के अनतररक्त, िाद के आिेदन पर, प्रनतिाद के उपिंजात िोने के सलए िमन जार करने के सलए

126
ऐिे िाद को ऐिे प्रनतिाद पर ऐिे िमनों को तामील करने के सलए अनज्ञ
ु ात कर िकेगा और ऐिे मामले
में ऐिे िाद को तामील के सलए िमन का पररदान करे गा ।
(2) न्यायालय के न्यायाधीश या ऐिे अधधकार द्िारा, जो िि इि ननसमि ननयक्
ु त करे , िस्तािररत
और न्यायालय की मद्र
ु ा िे मद्र
ु ांक्रकत ऐिे िमनों की तामील, ऐिे िाद द्िारा या उिकी ओर िे उिकी एक
प्रनत िैयर्क्तक रूप िे प्रनतिाद को दे कर या ननविदान करके की जाएगी या तामील की ऐिी पद्धनत िे की
जाएगी जो ननयम 9 के उपननयम (3) में उर्पलणखत िै ।
(3) ननयम 16 और ननयम 18 के उपबंध इि ननयम के अधीन िैयर्क्तक रुप िे तामील क्रकए
िमनों पर उिकी प्रकार लागू िोंगे मानो तामील करने िाला व्यर्क्त एक तामील करने िाला अधधकार था ।
(4) यहद ऐिे िमनों को, उनके ननविदि क्रकए जाने पर, प्राप्त करने िे इंकार क्रकया जाता िै या
तामील क्रकया गया व्यर्क्त तामील की असभस्िीकृनत पर िस्तािर करने िे इंकार करता िै या क्रकिी
कारणिश ऐिा िमन व्यर्क्तगत रूप िे तामील नि ं क्रकया जा िकता िै या तो न्यायालय, पिकार के
आिेदन पर, न्यायालय द्िारा प्रनतिाद को तामील की जाने िाल र नत िे तामील क्रकएजाने के सलए िमना
को पन
ु : जार करे गा ।
उच्च न्यायालय िंशोधन
इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- ननयम 9 के उपननयम (3) के रुप में ननम्नानि
ु ार को
जोडड़ए--
''उपननयम 1 में इंधगत प्रक्रिया के बजाए, अथिा इिके अलािा, ऐिे िमन प्रनतिाद को ऐिे स्थान
पर जिााँ िि ननिाि करता िै अथिा कारबार करता िै अथिा लाभ के सलए कायि करता िै अथिा असभकताि
को जिााँ क्रक िि रिता िै को िंबोधधत रर्जस्टडि डाक के द्िारा ननिािहित क्रकया जा िकता िै । जब तक क्रक
आिरण उधचत पता के अभाि में अथिा अन्य क्रकिी िमधु चत कारण िे पोस्ट क्रफर द्िारा बबना पररदान के
िावपि नि ं आता िै तो िमन को पाने िाले को उि िमय जबक्रक इिे िामान्य अनि
ु म में उिके पाि
पिुाँच जाना चाहिए था पररदान िोना िमझा जाएगा । ''

10. तामील का ढं ग- िमन की तामील उिकी ऐिी प्रनत के पररदान या ननविदान द्िारा की जाएगी
जो न्यायाधीश या ऐिे अधधकार द्िारा जो िि इि ननसमि ननयक्
ु त करे , िस्तािररत िो और र्जि पर
न्यायालय की मद्र
ु ा लगी िो ।
उच्च न्यायालय िंशोधन
पटना उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- परं तु यि क्रक क्रकिी मामले में न्यायालय, इिकी स्िप्रेरणा िे,
अथिा िाद के आिेदन पर, प्रनतिाद को इि ननयम में प्रनतिाद ननिििन की र नत के अलािा डाक द्िारा
िमन भेज िकेगा। प्रनतिाद द्िारा िस्तािररत िोने के सलए आशनयत असभस्िीकृनत अथिा पोस्टल िेिक के
द्िारा क्रकया गया पष्ृ ठांकन क्रक प्रनतिाद ने पररदान प्राप्त करने िे इंकार क्रकया था को िमन जार करने
िाले न्यायालय द्िारा तामील के प्रथम दृष्टया के रूप में िमझा जाएगा ।

राजस्थान उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- ननम्नानि


ु ार परं तक
ु जोडड़ए--
''परं तु यि क्रकिी मामले में न्यायालय इिके वििेक पर प्रनतिाद को इि ननयम में प्रनतपाहदत
ननिििन की र नत के अलािा रर्जस्टडि डाक द्िारा िमन भेज िकेगा । प्रनतिाद द्िारा िस्तािररत िोने के
सलए आशनयत असभस्िीकृनत अथिा पोस्टल िेिक के द्िारा क्रकया गया पष्ृ ठांकन क्रक प्रनतिाद ने पररदान
प्राप्त करने िे इंकार क्रकया था को िमन जार करने िाले न्यायालय द्िारा तामील के प्रथम दृष्टया के रूप
में िमझा जाएगा ।'' (14.8.1954)

127
11. अनेक प्रनतिाहदयों पर तामील- अन्यथा विहित के सििाय जिां एक िे अधधक प्रनतिाद िैं, ििां
िमन को तामील िर एक प्रनतिाद पर की जाएगी ।

12. जब िाक्ष्य िो तब िमन की तामील स्ियं प्रनतिादी पर, अन्यथा उिके असिकताव पर की
जाएगी- जिां कि ं भी िि िाक्ष्य िो ििा तामील स्ियं प्रनतिाद पर की जाएगी क्रकंतु यहद तामील का
प्रनतग्रिण करने के सलए िशक्त उिका कोई असभकताि िै तो उि पर उिकी तामील पयािप्त िोगी ।

13. उि असिकताव पर तामील स्जिके दारा प्रनतिादी कारबार करता िै- (1) क्रकिी कारबार या काम
िे िंबधं धत क्रकिी ऐिे िाद में जो क्रकिी ऐिे व्यर्क्त के विरुद्ध िै , जो उि न्यायालय की अधधकाररता की
स्थानीय िीमाओं के भीतर ननिाि नि ं करता िै र्जिने िमन ननकाला िै , क्रकिी भी ऐिे प्रबंधक या
असभकताि पर तामील या असभकताि पर तामील ठीक तामील िमझी जाएगी जो तामील के िमय ऐिी
िीमाओं के भीतर ऐिे व्यर्क्त के सलए स्िय ऐिा कारबार या काम करता िै ।
(2) पोत के मास्टर के बारे में इि ननयम के प्रयोजन के सलए यि िमझा जाएगा क्रक िि स्िामी या
भाड़े पर लेने िाले व्यर्क्त का असभकताि िै ।

14. स्थािर िम्पवि के िादों में िारिाधक असिकताव पर तामील- जिां स्थािर िम्पवि की बाबत
अनत
ु ोष या उिके प्रनत क्रकए गए दोष के सलए प्रनतकर असभप्राप्त करने के बाद में तामील स्ियं प्रनतिाद
पर नि ं की जा िकती और प्रनतिाद का उि तामील का प्रनतग्रिण करने के सलए िशक्त कोई असभकताि
नि ं िै ििां तामील प्रनतिाद के क्रकिी ऐिे असभकताि पर की जा िकेगी जो उि िम्पवि का भारिाधक िै

[15. जिां तामील प्रनतिादी के कुटुम्ब के ियस्क िदस्य पर की जा िकेगी- जिां क्रकिी िाद में
1

प्रनतिाद अपने ननिाि-स्थान में उि िमय अनप


ु र्स्थत िै जब उि पर िमन की तामील उिके ननिाि-
स्थान पर की जानी िै और यर्ु क्तयक्
ु त िमय के भीतर उिके ननिाि-स्थान पर पाए जाने की िंभािना नि ं
िै और िमन की तामील का उिकी ओर िे प्रनतग्रिण करने के सलए िशक्त उिका कोई असभकताि नि ं िै
ििां तामील प्रनतिाद के कुटुम्ब के ऐिे क्रकिी ियस्क िदस्य पर, चािे िि स्त्री िो या परु
ु ष, की जा िकेगी
जो उिके िाथ ननिाि कर रिा िै ।
स्पष्टीकरण- इि ननयम के अथि में िेिक कुटुम्ब का िदस्य नि ं िै ।]

16. िि व्यस्तत स्जि पर तामील की गई िै , असिस्िीकृनत िस्ताक्षररत करे गा- जिां तामील करने
िाला अधधकार िमन की प्रनत स्ियं प्रनतिाद को, या उिके ननसमि असभकताि को या क्रकिी अन्य व्यर्क्त
को, पररदि करता िै या ननविदि करता िै ििां र्जि व्यर्क्त को ऐिे प्रनत ऐिे पररदि या ननविदि की गई
िै उििे िि अपेिा करे गा क्रक िि मल
ू िमय पर पष्ृ ठांक्रकत तामील की असभस्िीकृनत पर अपने िस्तािर
करे ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 55 द्िारा (1-2-1977 िे) ननयम 15 के स्थान पर
प्रनतस्थावपत ।

17. जब प्रनतिादी तामील का प्रनतर्ग्िण करने िे इंकार करे या न पाया जाएं तब प्रक्रिया- जिां

128
प्रनतिाद या उिका असभकताि या उपरोक्त जैिा अन्य व्यर्क्त असभस्िीकृनत पर िस्तािर करने िे इंकार
करता िै , या जिां तामील करने िाला अधधकार िभी िम्यक् और यर्ु क्तयक्
ु त तत्परता बरतने के पश्चात ्
ऐिे प्रनतिाद को न पा िके, 1
[जो अपने ननिाि-स्थान िे उि िमय अनप
ु र्स्थत िै , जब उि पर िमन की
तामील उिके ननिाि-स्थान पर की जानी िै और यर्ु क्तयक्
ु त िमय के भीतर उिके ननिाि-स्थान पर पाए
जाने की िंभािना नि ं िै ] और ऐिा कोई असभकताि नि ं िै जो िमन की तामील का प्रनतग्रिण उिकी ओर
िे करने के सलए िशक्त िै और न कोई ऐिा अन्य व्यर्क्त िै या कारबार करता िै या असभलाभ के सलए
स्ियं काम करता िै , बािर द्िार पर या क्रकिी अन्य ििजदृश्य भाग पर िमन की एक प्रनत लगाएगा और
तब िि मल
ू प्रनत को उि पर पष्ृ ठांक्रकत या उििे उपाबद्ध ऐिी ररपोटि के िाथ, र्जिमें यि कधथत िोगा
क्रक उिने प्रनत को ऐिे लगा हदया िै और िे कौन िी पररर्स्थनतयााँ थीं र्जनमें उिने ऐिा क्रकया, कधथत
िोंगी और र्जिमें उि व्यर्क्त का (यहद कोई िो) नाम और पता कधथत िोगा र्जिने गि
ृ पिचाना था और
र्जिकी उपर्स्थनत में प्रनत लगाई गई थी, उि न्यायालय को लौटाएगा र्जिने िमन ननकाला था ।
उच्च न्यायालय िंशोधन
मध्य प्रदे श उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- अधधिच
ू ना 16.9.1960 के द्िारा ननयम के अंत में
ननम्नानि
ु ार परं तक
ु जोडा गया िै -
''परन्तु यि क्रक जिां विशेष तामील जार की गयी िै और प्रनतिाद असभस्िीकृनत पर िस्तािर करने
िे इंकार करता िै , तो यिां के पि
ू ि में यथा ननदे सशत प्रनतसलवप को चस्पा करना आिश्यक नि ं िोगा ।

''18. तामील करने के िमय और और रीनत का पष्ृ ठांकन- तामील करने िाला अधधकार उन िभी
दशाओं में , र्जनमें िमन की तामील ननयम 16 के अधीन की गई िै उि िमय को जब और उि र नत को
र्जििे िमन की तामील की गई थी और यहद ऐिा कोई व्यर्क्त िै र्जिने उि व्यर्क्त को, र्जि पर
तामील की गई िै , पिचाना था और जो िमन के पररदान या ननविदान का िािी रिा था तो उिका नाम
और पता कधथत करने िाल वििरणी मल
ू िमन पर पष्ृ ठांक्रकत करे गा या कराएगा या मल
ू िमन िे
उपाबद्ध करे गा या कराएगा ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 55 द्िारा (1-2-1977 िे) अंतःस्थावपत ।

19. तामील करने िाले अधधकारी की परीक्षा- जिां िमन ननयम 17 के अधीन लौटा हदया गया िै
ििां तामील करने िाले अधधकार की पर िा उिकी अपनी कायििाहियों की बाबत न्यायालय स्िंय या क्रकिी
अन्य न्यायालय द्िारा उि दशा में करे गा या कराएगा र्जिमें उि ननयम के अधीन वििरणी तामील करने
िाले अधधकार द्िारा शपथपत्र द्िारा ित्यावपत नि ं की गई िै और उि दशा मेंकर िकेगा या करा िकेगा
र्जिमें िि ऐिे ित्यावपत की गई िै और उि मामले में ऐिी अनतररक्त जााँच कर िकेगा जो िि ठीक
िमझे और या तो िि घोवषत करे गा क्रक िमन की तामील िमन रुप िे िो गई िै या ऐिी तामील का
आदे श करे गा जो िि ठीक िमझे ।
19क. 1[.................... लप्ु त]

20. प्रनतस्थावपत तामील- (1) जिां न्यायालय का िमाधान िो जाता िै क्रक यि विश्िाि करने के
सलए कारण िै क्रक प्रनतिाद इि प्रयोजन िे क्रक उि पर तामील न िोने पाए, िामने आने िे बचता िै या
िमन की तामील मामल
ू प्रकार िे क्रकिी अन्य कारण िे नि ं की जा िकती ििां न्यायालय आदे श दे गा क्रक
िमन की तामील उिकी एक प्रनत न्याि-िदन के क्रकिी ििजदृश्य स्थान में लगाकर और (यहद ऐिा कोई

129
गि
ृ िो) तो उि गि
ृ के, र्जिमें प्रनतिाद का अंनतम बार ननिाि करना या कारबार या असभलाभ के सलए
स्ियं काम करना ज्ञात िै , क्रकिी ििजदृश्य भाग पर भी लगा कर या ऐिी र नत िे, जो न्यायालय ठीक
िमझे, की जाए ।
[(1) क जिां उपननयम (1) के अधीन कायि करने िाला न्यायालय िमाचारपत्र में विज्ञापन द्िारा तामील
2

का आदे श करता िै ििां िि िमाचारपत्र ऐिा दै ननक िमाचारपत्र िोगा र्जिका पररचालन उि स्थानीय िेत्र
में िोता िै , र्जिमें प्रनतिाद का अंनतम बार िास्ति में और स्िेच्छा िे ननिाि करना या कारबार करना या
असभलाभ के सलए स्ियं काम करना ज्ञात िै ।

1. सिविल प्रक्रिया िंहिता (िंशोधन) अधधननयम, 1999 के द्िारा ननयम 19- क यथा लप्ु त ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 55 द्िारा (1-2-1977 िे) अंतःस्थावपत ।

(2) प्रनतस्थावपत तामील का प्रिाि- न्यायालय के आदे श द्िारा प्रनतस्थावपत तामील इि प्रकार
प्रभािी िोगी मानो िि स्ियं प्रनतिाद पर की गई िो ।
(3) जिां तामील प्रनतस्थावपत की गई िो ििां उपिंजानत के सलए िमय का ननयत क्रकया जाना-
जिां तामील न्यायालय के आदे श द्िारा प्रनतस्थावपत की गई िै ििां न्यायालय प्रनतिाद को उपिंजानत के
सलए ऐिा ननयत करे गा जो उि मामले में अपेक्षित िो ।

1
[20क. िाक द्िारा िमन की तामील]- सिविल प्रक्रिया िंहिता (िंशोधन) अधधननयम, 1976
(1976 का 104) की धारा 55 द्िारा (1-2-1977 िे) ननरसित ।

21. जिां प्रनतिादी क्रकिी अन्य न्यायालय की अधधकाररता के िीतर ननिाि करता िै ििां िमन की
तामील- िमन को िि न्यायालय, र्जिने उिे ननकाला िै , अपने अधधकाररयों में िे क्रकिी द्िारा 2[या डाक
द्िारा या ऐिी कूररयर िेिा द्िारा जो उच्च न्यायालय द्िारा अनम
ु ोहदत िो, फैक्ि िंदेश द्िारा या
इलेक्राननक डाक िेिा या ऐिे क्रकन्ि ं अन्य िाधन द्िारा र्जिका उपबंध उच्च न्यायालय द्िारा बनाए गए
ननयमों द्िारा क्रकया जाएगा] राज्य के भीतर या बािर ऐिे क्रकिी न्यायालय को भेज िकेगा (जो उच्च
न्यायालय न िो) र्जिकी उि स्थान में अधधकाररता िै जिां प्रनतिाद ननिाि करता िै ।

1. 1956 के अधधननयम िं. 66 की धारा 14 द्िारा अंतःस्थावपत ।


2. 1999 के अधधननयम िं. 46 की धारा 15 द्िारा (1-7-2002 िे) कनतपय शब्दों के स्थान पर
प्रनतस्थावपत ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


मध्यप्रदे श उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- अधधिच
ू ना िमांक 6634 ि 6635 हदनांक 23.9.1932
के द्िारा ननयम 21- क के रुप में ननम्न ननयम को शासमल क्रकया गया िै -
''21 क- पि
ू ािक्त ननयमों मे अन्तननिहित क्रकिी बात के िोते िुए भी, प्रनतिाद को िंबोधधत इिके
स्ियं के न्यायालय की अथिा भारत में के अन्य क्रकिी भी न्यायालय के तामील को ऐिे स्थान पर जिां क्रक
िि िामान्य तौर पर ननिाि करता िै या कारबार करता िै करायेगा और उिे असभस्िीकृनत के सलए पि
ू ि
भग
ु तान की गयी रर्जस्टडि डाक भेजेगा िशति क्रक ऐिा स्थान अकोला रे िेन्यू तालक
ू में कस्बा या ग्राम िो ।
प्रनतिाद द्िारा िस्तािररत िोना आशनयत असभस्िीकृनत अथिा पोस्टल िेिक का इि आशय का पष्ृ ठांकन

130
क्रक प्रनतिाद ने तामील करने िे इंकार कर हदया को तामील जार करने िाले न्यायालय के द्िारा तामील
का प्रथमदृष्टया प्रमाण िोना माना जािेगा ।''

इलािाबाद उच्च न्यायालय दारा िंशोधन- अधधिच


ू ना िमांक 43/7 –डी -29 हदनांक 1.6.1957 के
द्िारा आदे श 5 के मल
ू ननयम 21 को, उपननयम (1) के रुप में िमांक्रकत क्रकया गया और ननम्नानि
ु ार
उपननयम (2) को जोडा गया-
''(2) उपननयम (1) में इंधगत की गयी प्रक्रिया के स्थान पर या इिके अलािा, ऐिी तामील को इिे
प्रनतिाद को िंबोधधत रर्जस्टडि डाक के द्िारा ऐिे स्थान पर भेजकर भी जिां क्रक िि िाधारण तौर पर
ननिाि करता िै या कारबार चलाता िै या लाभ के सलए कायि करता िै , ननिािहित कराया जा िकता िै ।
जब तक क्रक उधचत पता अभाि के कारण अथिा अन्य िमान कारण िे पोस्ट आक्रफि िे किर िावपि नि ं
आता िै तो िमन िंबोधधती को ऐिे िमय पर जबक्रक इिे िामान्य अनि
ु म में पिुंच जान चाहिए
था,पररदान िो जाना माना जािेगा ।

22. बािर के न्यायालयों द्िारा ननकाले गए िमन की प्रेसििेंिी नगरों में तामील- जिां कलकिा,
मद्राि, 1
[और मम्
ु बई] नगरों की िीमाओं िे परे स्थावपत क्रकिी न्यायालय द्िारा ननकाले गऐ िमन की
तामील ऐिी िीमाओं में िे क्रकिी िीमा के भीतर की जानी िै ििा िि उि लघि
ु ाद न्यायालय को भेजा
जाएगा र्जिकी अधधकाररता के भीतर उिकी तामील की जाती िै ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


राजस्थान उच्च न्यायालय दारा िंशोधन- यिां अधधिच
ू ना िमांक 10/एि.आर.ओ. हदनांक
29.6.1957 के द्िारा ननयम 22 में ननम्नानि
ु ार परं तक
ु जोडा गया िै -
''परन्तु यि क्रक ऐिी तामील प्रनतिाद को ऐिे स्थान पर िंबोधधत की जा िकेगी जिां क्रक प्रनतिाद ननिाि
कर रिा िै एिं उिे न्यायालय के द्िारा असभस्िीकृनत के सलए रर्जस्टडि डाक द्िारा भेजा जा िकेगा ।
प्रनतिाद द्िारा िस्तािररत िोना आशनयत असभस्िीकृनत अथिा पोस्टल िेिक का इि आशय का पष्ृ ठांकन
क्रक प्रनतिाद ने तामील करने िे इंकार कर हदया को तामील जार करने िाले न्यायालय के द्िारा तामील
का प्रथम दृष्टया प्रमाण िोना माना जािेगा अन्य िभी मामलों में न्यायालय ऐिी जांच करे गा जो क्रक िि
उधचत िमझे और या तो तामील का िम्यक् तौर पर ननिािहित िोना घोवषत करे गा या ऐिी अन्य तामील
का आदे श करे गा जो उिकी राय में आिश्यक िो ''

1. भारत शािन (भारतीय विधध अनक


ु ू लन) आदे श, 1937 द्िारा ''मम्
ु बई और रं गन
ू '' के स्थान पर
प्रनतस्थावपत ।

बंबई उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- यिां अधधिच


ू ना हदनांक 1.11.1966 के द्िारा ननयम 22 में
ननम्नानि
ु ार परं तक
ु जोडा गया िै -
''परन्तु यि क्रक जिां ऐिी कोई तामील ग्रेटर बाम्बे की िीमाओं के भीतर की जानी िो, इिे प्रनतिाद
को ऐिे स्थान पर िंबोधधत क्रकया जाएगा र्जिकी िीमाओं के भीतर िि ननिाि कर रिा िै (अथिा जिां
िाधारण तौर पर कारबार करता िै ) एिं उिे न्यायालय के द्िारा असभस्िीकृनत के सलए रर्जस्टडि डाक द्िारा
भेजा जा िकेगा । प्रनतिाद द्िारा िस्तािररत िोना आशनयत असभस्िीकृनत अथिा पोस्टल िेिक का इि
आशय का पष्ृ ठांकन क्रक प्रनतिाद ने तामील करने िे इंकार कर हदया को तामील जार करने िाले न्यायालय

131
के द्िारा तामील का प्रथमदृष्टया प्रमाण िोना माना जािेगा । अन्य िभी मामलों में न्यायालय ऐिी जांच
करे गा जो क्रक िि उधचत िमझे और या तो तामील िमन तौर पर ननिािहित िोना घोवषत करे गा या ऐिी
अन्य तामील का आदे श करे गा जो उिकी राय में आिश्यक िो ''
23. स्जि न्यायालय को िमन िेजा गया िै उिका कतवव्य- िि न्यायालय, र्जिको िमन ननयम
21 या ननयम 22 के अधीन भेजा गया िै , उिकी प्रार्प्त पर इि भांनत अिर िोगा मानो िि उिी
न्यायालय द्िारा ननकाला गया था और तब िि उििे िंबधं धत अपनी कायििाहियों के असभलेख के (यहद
कोई िो) िहित िमन उिे ननकालने िाले न्यायालय को िापि भेज दे गा ।

24, कारागार में प्रनतिादी पर तामील- जिां प्रनतिाद जिां प्रनतिाद कारगार में परररुद्ध िै ििां
िमन भारिाधक अधधकार को प्रनतिाद पर तामील के सलए पररदि क्रकया जाएगा या 1[डाक द्िारा या ऐिी
कूररयर िेिा द्िारा जो उच्च न्यायालय द्िारा अनम
ु ोहदत िो, फैक्ि िंदेश द्िारा या इलेक्राननक डाक िेिा
द्िारा या क्रकिी अन्य िाधन द्िारा र्जिका उपबंध उच्च न्यायालय द्िारा बनाए गए ननयमों द्िारा] क्रकया
जाए भेजा जाएगा ।

25. ििां तामील, जिां प्रनतिादी िारत के बािर ननिाि करता िै और उिका कोई असिकताव निीं िै-
जिां प्रनतिाद [भारत] के बािर ननिाि करता िै और उिका 3[भारत] में ऐिा कोई असभकताि नि ं िै जो
2

तामील प्रनतगि
ृ त करने के सलए िशक्त िै ििां, यहद ऐिे स्थान और उि स्थान के बीच जिां न्यायालय
र्स्थत िै , डाक द्िारा िंचार िै तो, िमन उि प्रनतिाद को उि स्थान के पते पर, जिां िि ननिाि कर रिा
िै या डाक द्िारा या ऐिी कूररयर िेिा द्िारा जो उच्च न्यायालय द्िारा अनम
ु ोहदत िो, फैक्ि िंदेश द्िारा
या इलेक्राननक डाक िेिा या क्रकिी अन्य िाधन द्िारा र्जिका उपबंध उच न्यायालय द्िारा बनाए गए
ननयमों द्िारा क्रकया जाए :]

1. 1999 के अधधननयम िं. 46 की धारा 15 द्िारा (1-7-2002 िे) कनतपय शब्दों के स्थान पर
प्रनतस्थावपत ।
2. 1951 के अधधननयम िं. 2 की धारा 3 द्िारा “राज्यो” के स्थान पर प्रनतस्थावपत ।
3. 1951 के अधधननयम िं. 2 की धारा 3 द्िारा ''राज्यों'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत |
4. 1999 के अधधननयम िं. 46 की धारा 15 द्िारा (1-7-2002 िे) कनतपय शब्दों के स्थान पर
प्रनतस्थावपत ।
1
[परं तु जिां ऐिा प्रनतिाद [बंगलादे श या पाक्रकस्तान में ननिाि करता िै ] ििां िमन उिकी एक
2

प्रनत के िहित, प्रनतिाद पर तामील के सलए उि दे श के क्रकिी ऐिे न्यायालय को भेजा जा िकेगा (जो उच्च
न्यायालय न िो) र्जिकी उि स्थान में अधधकाररता िै जिां प्रनतिाद ननिाि करता िै :
परं तु यि और क्रक जिां ऐिा कोई प्रनतिाद 3
[बंगलादे श या पाक्रकस्तान में को लोक अधधकार िै
(जो, यथार्स्थनत, बंगलादे श या पाक्रकस्तान की िेना, नौिेना या िायु िेना का नि ं िै ) या उि दे श में की
रे ल कम्पनी या स्थानीय प्राधधकार का िेिक िै ििा िमन उिकी एक प्रनत के िहित, उि प्रनतिाद पर
तामील के सलए उि दे श के ऐिे अधधकार या प्राधधकार को भेजा जा िकेगा र्जिे केंद्र य िरकार, राजपत्र
में अधधिच
ू ना द्िारा, इि ननसमि विननहदिष्ट करे ।]

132
उच्च न्यायालय िंशोधन
मध्य प्रदे श उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- अधधिच
ू ना 16-9-1960 के द्िारा ननम्न िंशोधन क्रकया
गया-
(क) पद 1 में शब्द 'करे गा' को 'कर िकेगा' क्रकया गया िै ।
(ख) ननम्नानि
ु ार निीन ननयम 25-क को जोडा गया िै -

“25-क. ििां तामील जिां प्रनतिादी िारत के बािर ननिाि करता िै - जिां प्रनतिाद भारत के भीतर
ननिाि करता िै न्यायालय तामील की अन्य र नत के अलािा रर्जस्टडि डाक िे प्रनतिाद को ऐिे स्थान पर
जिां िि ननिाि कर रिा िै और व्यापार कर रिा िै तामील भेज िकेगा प्रनतिाद द्िारा िस्तािररत िोना
आशनयत असभस्िीकृनत अथिा पोस्टल िेिक का इि आशय का पष्ृ ठांकन क्रक प्रनतिाद ने तामील करने िे
इंकार कर हदया को तामील जार करने िाले न्यायालय के द्िारा तामील का प्रथमदृष्टया प्रमाण िोना माना
जािेगा । ''

1. 1951 के अधधननयम िं. 19 की धारा 2 द्िारा अंतः स्थावपत ।


2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 55 द्िारा (1-2-1977 िे) ''पाक्रकस्तान मे ननिाि करता
िै '' के स्थान पर प्रनतस्थावपत ।
3. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 55 द्िारा (1-2-1977 िे) कुछ शब्दों के स्थान पर
प्रनतस्थावपत ।
इलािाबाद उच्च न्यायालय दारा िंशोधन- अधधिच
ू ना िमांक 8/VII-डी- 29 हदनांक 29 -3-1958
र्जिे क्रक बाद में अधधिच
ू ना िमांक 69/- - 24-6-1961 के द्िारा िंशोधधत क्रकया गया इि अर्स्तत्व्यक्
ु त
ननयम में ननम्नानि
ु ार िंशोधन क्रकया गया

''25. ििां तामील, जिां प्रनतिादी िारत िे बािर ननिाि करता िै और उिका कोई असिकताव निीं
िै - जिां प्रनतिाद 1
[भारत] के बािर ननिाि करता िै और उिका 2[भारत] में ऐिा कोई असभकताि नि ं िै जो
तामील प्रनतगि
ृ त करने के सलए िशक्त िै ििां, यहद ऐिे स्थान और उि स्थान के बीच जिां न्यायालय
पीठािीन िै , डाक द्िारा िंचार िै तो, िमन, जब तक क्रक न्यायालय अन्यथा ननदे सशत नि ं करे , उि
प्रनतिाद को उि स्थान के पते पर, जिां िि ननिाि कर रिा िै , रर्जस्टडि डाक द्िारा भेजा जा िकेगा जब
तक क्रक किर पोस्ट आक्रफि िे उधचत पते अभाि के कारण या अन्य क्रकिी िमधु चत कारण िे अननिािहित
नि ं आता िै िंबोधधती को ऐिे िमय पर जबक्रक इिे िामान्य तौर पर उिे िामान्य अनि
ु म में पिुंच जाना
चाहिए था,तामील िोना माना जा िकेगा | ''

3
[26. राजनीनतक असिकताव या न्यायालय की माफवत विदे शी राज्यक्षेत्र में तामील- जिां
(क) केंद्र य िरकार में ननहित क्रकिी िैदेसशक अधधकाररता के प्रयोग में क्रकिी ऐिे विदे शी राज्यिेत्र
में र्जिमें प्रनतिाद िास्ति में और स्िैच्छा िे ननिाि करता िै , कारबार करता िै या असभलाभ के सलए
स्ियं काम करता िै , ऐिा राजनीनतक असभकताि ननयक्
ु त क्रकया गया िै या न्यायालय स्थावपत क्रकया गया िै
या चालू रखा गया िै र्जिे उि िमन की तामील करने की शर्क्त िै , जो इि िंहिता के अधीन न्यायालय
द्िारा ननकाला जाए, अथिा
(ख) केंद्र य िरकार ने क्रकिी ऐिे न्यायालय के बारे में जो क्रकिी ऐिे राज्यिेत्र में र्स्थत िै और
पि
ू ोक्त जैिी क्रकिी अधधकाररता के प्रयोग में स्थावपत नि ं क्रकया गया या चालू नि ं रखा गया िै , राजपत्र

133
में अधधिच
ू ना द्िारा घोषणा की िै क्रक न्यायालय द्िारा इि िंहिता के अधीन ननकाले गए िमन की ऐिे
न्यायालय द्िारा तामील विधधमान्य तामील िमझी जाएगी,
ििां िमन ऐिे राजनीनतक असभकताि या न्यायालय को प्रनतिाद पर तामील क्रकए जाने के प्रयोजन के सलए
डाक द्िारा या अन्यथा या यहद केंद्र य िरकार द्िारा इि प्रकार ननदे श हदया जाए तो उि िरकार के विदे शी
मामलों िे िंबधं धत मंत्रालय की माफित या ऐिी अन्य र नत िे जो केंद्र य िरकार द्िारा विननहदि ष्ट की जाए
भेजा जा िकेगा और यहद राजनीनतक असभकताि या न्यायालय िमन को ऐिे राजनीनतक असभकताि द्िारा
या उि न्यायालय के न्यायाधीश या अन्य प्राधधकार द्िारा क्रकए गए तात्पनयित इि आशय के पष्ू ठांकन के
िहित लौटा दे ता िै क्रक िमन कीं तामील प्रनतिाद पर इिमें इिके पि
ू ि ननहदि ष्ट र नत िे की जा चक
ु ी िै तो
ऐिा पष्ृ ठांकन तामील का िाक्ष्य िमझा जाएगा ।

1. 1951 के अधधननयम िं. 2 की धारा 3 द्िारा “राज्यों” के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
2. 1951 के अधधननयम िं. 2 की धारा 3 द्िारा ''राज्यों'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
3. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 55 दारा (1-2-1977 िे) ननयम 26 के स्थान पर
प्रनतस्थावपत ।

उच्च न्यायालय िंशोधन

मध्य प्रदे श उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- अधधिच


ू ना हदनांक 26.9.1943 के द्िारा ननम्न
िंशोधन क्रकया गया-
अंनतम पद में शब्द ''िमन'' के उपरांत शब्द ''ननयम 25 द्िारा अनज्ञ
ु ेय र नत के अलािा या इिके
स्थान पर '' को जोड़ा गया िै । इि प्रकार िंशोधधत रुप इि प्रकार िो गया िै-
''ििां िमन ननयम 25 द्िारा अनज्ञ
ु य र नत के अलािा या इिके स्थान पर, ऐिे राजनीनतक
असभकताि या न्यायालय को प्रनतिाद पर तामील क्रकए जाने के सलए डाक द्िारा या अन्यथा या यहद केन्द्र य
िरकार द्िारा इि प्रकार ननदे श हदया जाए तो उि िरकार के विदे शी मामलो िे िम्बर्न्धत मंत्रालय की
माफित या ऐिी अन्य र नत िे जो केन्द्र य िरकार द्िारा विननहदि ष्ट की जाए, भेजा जा िकेगा और यहद
राजनीनतक असभकताि या न्यायालय िमन को ऐिे राजनीनतक असभकताि द्िारा या उि न्यायालय के
न्यायाधीश या अन्य प्राधधकार द्िारा क्रकए गए तात्पनयित इि आशय के पष्ृ ठांकन के िहित लौटा दे ता िै
क्रक िमन की तामील प्रनतिाद पर इिमें इिके पि
ू ि ननहदष्ट र नत िे की जा चुकी िै तो ऐिा पष्ृ ठांकन
तामील का िाक्ष्य िमझा जाएगा । ''

इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- अधधिच


ू ना हदनांक 24.7.1926 के द्िारा ननम्न िंशोधन
क्रकया गया-
अंनतम पद में शब्द ''िमन'' के उपरांत शब्द ''ननयम 26 द्िारा अनज्ञ
ु ेय र नत के अलािा या इिके
स्थान पर '' को जोडा गया िै । इि प्रकार िंशोधधत रूप इि प्रकार िो गया िै -
''ििां िमन ननयम 25 द्िारा अनड
ु ोय र नत के अलािा या इिके स्थान पर, ऐिे राजनीनतक
असभकताि या न्यायालय को प्रनतिाद पर तामील क्रकए जाने के सलए डाक द्िारा या अन्यथा या यहद केन्द्र य
िरकार द्िारा इि प्रकार ननदे श हदया जाए तो उि िरकार के विदे शी मामलो िे िम्बर्न्धत मत्रालय की
माफित या ऐिी अन्य र नत िे जो केन्द्र य िरकार द्िारा विननहदि ष्ट की जाए, भेजा जा िकेगा और यहद
राजनीनतक असभकताि या न्यायालय िमन को ऐिे राजनीनतक असभकताि द्िारा या उि न्यायालय के
न्यायाधीश या अन्य प्राधधकार द्िारा क्रकए गए तात्पनयित इि आशय के पष्ृ ठांकन के िहित लौटा दे ता िै

134
क्रक िमन की तामील प्रनतिाद पर इिमें इिके पि
ू ि ननहदष्ट र नत िे की जा चुकी िै तो ऐिा पष्ृ ठांकन
तामील का िाक्ष्य िमझा जाएगा ।''

राजस्थान उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- अधधिच


ू ना एि.आर.ओ. िमांक 8 जोधपरु हदनांक
23.12.1964 के द्िारा ननयम 26 में ननम्न परन्तक
ु अंतःस्थावपत क्रकया गया िै -
''परन्तु यि क्रक िमन जार करने िाला न्यायालय, यहद राज्य िरकार राजपत्र में अधधिच
ू ना
प्रकाशन के द्िारा यि ननदे सशत करती िै क्रक विदे शी िेत्र र्जिमें िि न्यायालय र्स्थत िै र्जिके िंबध
ं में
खंड(ख) के अन्तगित राज्य िरकार द्िारा घोषणा की गयी िै एिं र्जिमे प्रनतिाद ननिाि करता िै की
िरकार या इि िंबध
ं में विननहदि ष्ट अधधकार को विदे शी मामलों िे िंबधं धत मंत्रालय अथिा ऐिे प्राधधकार
के माफित र्जिे क्रक कधथत अधधिच
ू ना में इि िंबध
ं में उपरोक्त कधथत ऐिे न्यायालय या विदे शी मंत्रालय
के प्राधधकार द्िारा प्रनतिाद पर तामील कराने के सलए विननहदिष्ट क्रकया गया िै , िमन भेजेगा और यहद
ऐिा न्यायालय या अधधकार िमन को ऐिे न्यायालय के न्यायाधीश या अन्य प्राधधकार या विदे श मंत्रालय
के उपरोक्त कधथत प्राधधकार द्िारा क्रकए गए तात्पनयित इि आशय के पष्ृ ठांकन के िहित लौटा दे ता िै क्रक
िमन की तामील प्रनतिाद पर इिमें इिके पि
ू ि ननहदष्ट र नत िे की जा चुकी िै तो ऐिा पष्ृ ठांकन तामील
का िाक्ष्य िमझा जाएगा । ''

26क. विदे शों के अधधकाररयों को िमन का िेजा जाना- जिां केंद्र य िरकार ने राजपत्र में
अधधिच
ू ना द्िारा क्रकिी विदे शी राज्यिेत्र के बारे में यि घोषणा की िै क्रक उि विदे शी राज्यिेत्र में िास्ति
में और स्िेच्छा िे ननिाि करने िाले या कारबार करने िाले या असभलाभ के सलए स्ियं काम करने िाले
प्रनतिाहदयों पर तामील क्रकए जाने िाले िमन विदे शी राज्यिेत्र की िरकार के ऐिे अधधकार को जो केंद्र य
िरकार द्िारा विननहदि ष्ट क्रकया जाए, भेजे जा िकेंगे ििां िमन ऐिे अधधकार को भारत िरकार के विदे शी
मामलों िे िंबधं धत मंत्रालय की माफित या ऐिी अन्य र नत िे जो केंद्र य िरकार द्िारा विननहदि ष्ट की जाए,
भेजे जा िकेंगे और यहद ऐिा अधधकार क्रकिी ऐिे िमन को उिके द्िारा क्रकए गए तात्पनयित इि पष्ृ ठांकन
के िहित लौटा दे ता िै क्रक िमन की तामील प्रनतिाद पर की जा चुकी िै तो ऐिा पष्ृ ठांकन तामील का
िाक्ष्य िमझा जाएगा ।

1. विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1960 द्िारा “हिज मजेस्ट की” के स्थान पर प्रनतस्थावपत ।
2. 1927 के अधधननयम िं. 10 की धारा 2 और अनि
ु च
ू ी 1 द्िारा ''नौिेना'' के स्थान पर
प्रनतस्थावपत ।

27. सिविल लोक अधधकारी पर या रे ल कम्पनी या स्थानीय प्राधधकारी के िेिक पर तामील- जिां
प्रनतिाद लोक अधधकार िै (जो 1
[भारतीय] िेना 2[नौिेना या िायि
ु ेना]
1***
का नि ं िै ) या रे ल कम्पनी या
स्थानीय प्राधधकार का िेिक िै ििां, यहद न्यायालय को यि प्रतीत िोता िै क्रक िमन की तामील अत्यंत
िवु िधापि
ू क
ि ऐिे की जा िकती िै तो िि उिे उिकी उि प्रनत के िहित जो प्रनतिाद द्िारा रख ल जानी
िैं । उि कायािलय के प्रधान को र्जिमें प्रनतिाद ननयोर्जत िै प्रनतिाद पर तामील के सलए भेज िकेगा ।
उच्च न्यायालय िंशोधन
इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- इि न्यायालय के द्िारा ननयम 27 में ट प के रुप में
ननम्न जोडा गया िै -
“टीप 1. उन िभी प्रधानों की िच
ू ी र्जन्िें क्रक हदये गये इन राज्यों के िंपण
ू ि या भाग में कायिरत

135
रे लिे कंपननयों के िेिकों पर तामील के सलए भेजा जाएगा िामान्य ननयम सिविल के पररसशष्ट में द गयी
िै |
टीप 2. प्रत्येक मामलों में जिां क्रक न्यायालय ननयम 16 के अन्तगित िोल डर के अलािा अन्य
क्रकिी लोक िेिक को तामील जार करने के सलए उपयक्
ु त िोना दे खती िै , तो तामील जार करने के िाथ-
िाथ उि कायािलय के प्रधान को िच
ू नापत्र भेजा जाएगा र्जिमें क्रक िंबधं धत व्यर्क्त ननयोर्जत क्रकया गया िै
ताक्रक ऐिे व्यर्क्तयों के कतिव्यों के िंबध
ं में व्यिस्था की जा िके ।
यहद न्यायालय कानन
ू गो या पटिार को िमन जार करना उपयक्
ु त िोना दे खती िै यि र्जले के
कलेक्टर को िधू चत करे गा और यहद उपपंजीयक को तो र्जला पंजीयक र्जिके अधीनस्थ िि उपपंजीयक िै
िधू चत करे गा

28 िैननकों, नौिैननकों या िायि


ु नै नकों पर तामील- जिां प्रनतिाद िैननक, [नौिैननक] या
2

3
[िायि
ु नै नक] िै ििां न्यायालय िमन को, उिकी उि प्रनत के िहित जो प्रनतिाद द्िारा रख ल जानी िै
उिके कमान आक्रफिर को तामील के सलए भेजेगा ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन-- अधधिच
ू ना िमांक 1442/59 हदनांक 9.3.1927 के
द्िारा ितिमान ननयम 28 को 28 (1) क्रकया िै और ननम्नानि
ु ार उपननयम (2) (3) (4) (5) जोडे गये िैं-
''(2) जिां ऐिे कमान अधधकार का पता ज्ञात नि ं िै , तो न्यायालय उि स्टे शन के कमान
अधधकार र्जिमें क्रक प्रनतिाद उि िमय जबक्रक िाद कारण उत्पन्न िुआ था, िेिारत था को ऐिा पता
प्रदाय करने के सलए, इि ननयम के उपननयम (4) में यथाविहित र नत में , आिेदन कर िकेगा ।

1. 1934 के अधधननयम िं. 35 की धारा 2 और अनि


ु च
ू ी द्िारा ''या हिज मजेस्ट की भारतीय
िमद्र
ु िेिा'' शब्दो का लोप क्रकया गया ।
2. 1934 के अधधननयम िं. 35 की धारा 2 और अनि
ु च
ू ी द्िारा अंतःस्थावपत ।
3. 1927 के अधधननयम िं. 10 की धारा 2 और अनि
ु च
ू ी 1 द्िारा अंतःस्थावपत ।

(3) जिां क्रक प्रनतिाद भारतीय िैन्य बल का अधधकार िै , जब व्यििायि िो तो तामील प्रनतिाद पर
व्यर्क्तश: की जाएगी ।
(4) यहद ऐिा प्रनतिाद उि न्यायालय की अधधकाररता के बािर र्जिमें क्रक िाद िंर्स्थत क्रकया गया
िै या भारत के बािर ननिाि करता िै तो न्यायालय के मद्र
ु ा ि िस्तािर पर न्यायालय उि स्टे शन के
कमान अधधकार र्जिमें क्रक प्रनतिाद उि िमय जबक्रक िादकारण उत्पन्न िुआ था ननिाि करता था को
ऐिे प्रनतिाद का पता दे ने के सलए आिेदन कर िकेगा और कमांडडग अधधकार र्जिको क्रक ऐिा आिेदन
क्रकया गया िै प्रनतिाद का पता अथिा ऐिी िभी जानकार जो क्रक दे ने के सलए उिकी शर्क्त के अधीन िै
जो उिके पते की खोज कर िकती िै , दे गा ।
(5) जिां व्यर्क्तश: तामील िंभि नि ं िै , तो न्यायालय प्रनतिाद पर इि प्रकार प्रदान क्रकये गये
पते पर रर्जस्टडि डाक द्िारा िमन जार करे गा ।

29. उि व्यस्तत का कतवव्य स्जिको िमन तामील के सलए पररदि क्रकया जाए या िेजा जाए-
(1) जिां िमन तामील के सलए क्रकिी व्यर्क्त को ननयम 24, ननयम 27 या ननयम 28 के अधीन

136
पररदि क्रकया गया िै या भेजा गया िै ििां ऐिा व्यर्क्त, उिकी तामील, यहद िंभि िो, करने के सलए और
अपने िस्तािर करके प्रनतिाद की सलणखत असभस्िीकृनत के िाथ लौटाने के सलए आबद्ध िोगा और ऐिे
िस्तािर तामील के िाक्ष्य िमझे जाएंगे ।
(2) जिां क्रकिी कारण िे तामील अिंभि िो ििा िमन ऐिे कारण के और तामील करने के सलए
की गई कायििाहियों के पण
ू ि कथन के िाथ न्यायालय को लौटा हदया जाएगा और ऐिा कथन तामील न िोने
का िाक्ष्य िमझा जाएगा ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- अधधिच
ू ना िमांक 1442/59 हदनांक 5.3.1927 के
द्िारा यि िंशोधन क्रकया गया िै क्रक ''ननयम 28'' के स्थान पर ''ननयम 28 (1)'' पढा जािे ।

30. िमन के बदले पत्र का प्रनतस्थावपत क्रकया जाना- (1) इिमें इिके पि
ू ि अंतवििष्ट क्रकिी बात के
िोते िुए भी, जिां न्यायालय की यि राय िै क्रक प्रनतिाद ऐिी पंर्क्त का िै जो इि बात का िकदार बनाती
िै क्रक उिके प्रनत ऐिा िम्मानपण
ू ि बतािि क्रकया जाए ििां िि िमन के बदले ऐिा पत्र, प्रनतस्थावपत कर
िकेगा जो न्यायाधीश द्िारा या ऐिे अधधकार द्िारा, जो िि इि ननसमि ननयक्
ु त करे , िस्तािररत िोगा ।
(2) उपननयम (1) के अधीन प्रनतस्थावपत पत्र में िे िब विसशर्ष्टयां अंतवििष्ट िोंगी र्जिका िमन में
कधथत िोना अपेक्षित िै और उपननयम (3) के उपबंधों के अधीन रिते िुए िि िर तरि िे िमन माना
जाएगा ।
(3) ऐिा प्रनतस्थावपत पत्र प्रनतिाद को डाक द्िारा या न्यायालय द्िारा चुने गए विशेष िंदेश-िािक
द्िारा या क्रकिी ऐिी अन्य र नत िे जो न्यायालय ठीक िमझे, भेजा जा िकेगा और जिां प्रनतिाद का ऐिा
असभकताि िो जो तामील प्रनतगि
ृ त करने के सलए िशक्त िै ििां िि पत्र ऐिे असभकताि को पररदि क्रकया
जा िकेगा या भेजा जा िकेगा ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- अधधिच
ू ना िमांक 1953/35(a) - 1 (16) हदनांक
19.3.1921 के द्िारा ननयम 30 के उपरांत ननम्न निीन ननयम 31 ि 32 को जोडा गया िै -
“31. पिकार या िािी को आिूत करने के सलए आिेदन इि प्रयोजन के सलए विहित प्ररूप में
क्रकया जाएगा-न्यायालय के द्िारा अन्य कोई प्ररूप ग्रिण नि ं क्रकया जाएगा
32. िामान्यत: प्रत्येक आदे सशका, उिके सििाय जो क्रक यरू ोवपयन पर ननिािहित िोना िै , को
न्यायालय भाषा में सलखा जाएगा । परन्तु जिां क्रक र्जले जिां क्रक िामान्यत: सभन्न भाषा उपयोग की जाती
िै को ननष्पादन के सलए आदे सशका भेजी जाना िै इिे अंग्रेजी में सलखा जाएगा और ननष्पादन की प्राथिना
करने िाले अंग्रेजी के पत्र के िाथ िंलग्र क्रकया जाएगा ।
उि दशा में जिां क्रक तामील की िावपिी उि र्जले िे सभन्न र्जिमे िे इिे जार क्रकया गया िै िै
तो यि अंग्रेजी अनि
ु ाद के द्िारा िंलग्र िोगी ।''

आदे श 6
असििचन िाधारणत:
1. असििचन- ''असभिचन'' िे िादपत्र या सलणखत कथन असभप्रेत िोगा ।
1
[2. असििचन में तास्विक त्यों का, न क्रक िाक्ष्य का, कथन िोगा- (1) िर असभिचन में उन

137
तार्विक तथ्यों का, र्जन पर असभिचन करने िाला पिकार, यथार्स्थनत, अपने दािे या अपनी प्रनतरिा के
सलए ननभिर करता िै और केिल उन तथ्यों का, न क्रक उि िाक्ष्य का र्जिके द्िारा िे िाबबत क्रकए जाने िैं,
िंक्षिप्त कथन अंतवििष्ट िोगा ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 56 द्िारा (1-2-1977 िे) ननयम 2 के स्थान पर
प्रनतस्थावपत ।
(2) िर असभिचन आिश्यकतानि
ु ार पैराओं में विभक्त क्रकया जाएगा, जो यथािम िंख्यांक्रकत क्रकए
जाएंगे । िर असभकथन िवु िधानि
ु ार पथ
ृ क् पैरा में क्रकया जाएगा ।
(3) असभिचन में तार खें , रासशयां और िख्याएं अंकों और शब्दों में भी असभव्यक्त की जाएंगी ।]

3. असििचन का प्ररूप-- जब िे लागू िोने योग्य िों तब पररसशष्ट क में के प्ररूप और जिां िे लागू
िोने योग्य न िों ििा जिां तक िो िके लगभग िैिे ि प्ररूप िभी असभिचनों के सलए प्रयक्
ु त क्रकए जाएंगे

4. जिां आिश्यक िो ििां विसशस्ष्टयों का हदया जाना- उन िभी मामलों में र्जनमें असभिचन करने
िाला पिकार क्रकिी दव्ु यिपदे शन, कपट, न्याि – भंग, जानबझ
ू कर क्रकए गए व्यनतिम या अिम्यक अिर के
असभिाक पर ननभिर करता िै और अनय िभी मामलों में र्जनके उन विसशर्ष्टयों के अलािा विविर्ष्टयां जो
पि
ू ोक्त प्ररूपों में उदािरणस्िरूप दसशित की गई िैं आिश्यक िों असभिचन में िे विसशर्ष्टयां (यहद आिश्यक
िो तो तार खें और मदों के िहित) कधथत की जाएंगी ।
राज्य िंशोधन
मध्यप्रदे श राज्य द्िारा िंशोधन- सिविल प्रक्रिया िंहिता ( मध्य प्रदे श िंशोधन) अधधननयम 1984
(1984 का अधधननयम िंख्यांक 29) के द्िारा आदे श 6 ननयम 4 के पश्चात ननम्नसलणखत ननयम अन्त:
स्थावपत क्रकया गया-

“4 – क. कृवष िसू म के िंबध


ं में असििचन की विसशस्ष्टयां--- आदे श 1 के ननयम 3 -ख के अधीन
अनध्
ु यात क्रकिी िाद या कायििाि में िे पिकार जो राज्य िरकार िे सभन्न िों उि कुल कृवष भसू म की जो
उनके स्िासमत्ि की िो या र्जि पर िे दािा करते िैं या जो क्रकिी भी अधधकार के कारण उनके द्िारा
धाररत िै विसशर्ष्टयों का असभिचन करे गा तथा यि और भी घोवषत करे गा क्रक क्या िाद या कायििाि की
विषयिस्तु मध्यप्रदे श कृवषक जोत उच्चतम िीमा अधधननयम, 1960 ( िमांक 20 िन 1960) के अन्तगित
आती िै या नि ं आती िै और क्या ऐिी विषय िस्तु के िंबध
ं में कोई कायििाहियां उिकी जानकार में
ििम प्राधधकार के िमि लंबबत िे या नि ं । ''
( इिका प्रकाशन म.प्र. राजपत्र (अिाधारण) में हदनांक 14-8-1984 को क्रकया गया ।)
5. 1[............... लप्ु त]

''5. अनतररतत और अधधक अच्छा कथन या विसशस्ष्टयां- दािे या प्रनतरिा की प्रकृनत का अनतररक्त
और अधधक अच्छा कथन करने या क्रकिी असभिचन में कधथत क्रकिी बात की अनतररक्त और अधधक अच्छी
विसशर्ष्टयां दे ने का आदे श खचों और अन्य बातों के बारे में ऐिे ननबंधनों पर हदया जा िकेगा जो
न्यायािंगत िों |”

138
1. सिविल प्रक्रिया िंहिता (िंशोधन) अधधननयम, 1999 के द्िारा लप्ु त ।

6. परु ोिाव्य शतव- र्जि क्रकिी परु ोभाव्य शति के पालन का या घहटत िोने का प्रनतिाद करना
आशनयत िो िि, यथार्स्थनत, िाद या प्रनतिाद द्िारा अपने असभिचन में स्पष्टत: विननहदिष्ट की जाएगी
और उिके अधीन रिते िुए िाद या प्रनतिाद के पि के सलए आिश्यक िभी परु ोभाव्य शतों के पालन या
घहटत िोने का प्रकथन उिके असभिचन में वििक्षित िोगा ।

7. फेरबदल- क्रकिी भी असभिचन में दािे का कोई नया आधार या तथ्य का कोई असभकथन, जो
उिका असभिचन करने िाले पिकार के पि
ू त
ि न असभिचनों िे अिंगत िो, बबना िंशोधन क्रकए न तो उठाया
जाएगा और न अंतवििष्ट िोगा ।
8. िंविदा का प्रत्याख्यान- जिां क्रकिी असभिचन में क्रकिी िंविदा का असभकथन िै ििां विरोधी
पिकार द्िारा क्रकए गए उिके कोरे प्रत्याख्यान का यि अथि लगाया जाएगा क्रक िि केिल असभव्यक्त
िंविदा का, जो असभकधथत की गई िै , या उन तथ्यों की बातों का, र्जनिे िि िंविदा वििक्षित की जा िके,
प्रत्याख्यान िै , न क्रक ऐिी िंविदा की ििैधता या विधध की दृर्ष्ट में पयािप्तता का प्रत्याख्यान ।
9. दस्तािेज के प्रिाि का कथन क्रकया जाना- जिां कि ं क्रकिी दस्तािेज की अंतििस्तु तार्त्िक िै
ििा उिे िंस्कृनत या उिके क्रकिी भाग को उपिणणित क्रकए बबना उिके प्रभाि को यथािंभि िंक्षिप्त रुप में
असभिचन में कधथत कर दे ना पयािप्त िोगा, जब तक क्रक दस्तािेज के या उिके क्रकिी भाग के यथाित ्
शब्द ि तार्त्िक न िों ।

10. विद्िेष, ज्ञान, आहद- जिां कि ं क्रकिी व्यर्क्त के विद्िेष, कपटपण


ू ि आशय, ज्ञान या धचि की
अन्य दशा का असभकथन करना तार्त्िक िै , ििां उन पररर्स्थनतयों को उपिणणित क्रकए बबना र्जनिे उिका
अनम
ु ान क्रकया जाना िै , उिे तथ्य के रुप में असभकधथत करना पयािप्त िोगा ।

11. िच
ू ना- जिां कि ं यि असभकथन करना तार्त्िक िै क्रक क्रकिी तथ्य, बात या िस्तु की िच
ू ना
क्रकि व्यर्क्त की थी ििा जब तक क्रक ऐिी िच
ू ना का प्ररुप या उिके यथाित ् शब्द या िे पररर्स्थनतयां,
र्जनिे ऐिी िच
ू ना का अनम
ु ान क्रकया जाना िै , तार्त्िक न िों, ऐिी िच
ू ना को तथ्य के रूप में असभकधथत
करना पयािप्त िोगा ।

12. वििक्षक्षत िंविदा या िंबध


ं - जब कभी पत्रों की या िातािलापों की आिल िे या अन्यथा कई
पररर्स्थनतयों िे क्रकन्ि ं व्यर्क्तयों के बीच में की कोई िंविदा या अन्य िंबध
ं वििक्षित क्रकया जाना िै तब
ऐिी िंविदा या िंबध
ं को तथ्य के रुप में असभकधथत करना और ऐिे पत्रों, िातािलापों या पररर्स्थनतयों को
व्यौरे िार उपिणणित क्रकए बबना उिके प्रनत िाधारणतया ननदे श करना पयािप्त िोगा और ऐिी दशा में यहद
ऐिे असभिचन करने िाला व्यर्क्त ऐिी पररर्स्थनतयों िे वििक्षित की जाने िाल एक िंविदा या िंबध
ं िे
अधधक िंविदाओं या िंबध
ं ों पर अनक
ु पपत: ननभिर करना चािता िै तो िि उनका कथन अनक
ु पपत: कर
िकेगा ।

13. विधध की उपधारणाएं- क्रकिी तथ्य की बात को, र्जिकी विधध क्रकिी पिकार के पि में करती
िै या र्जिके िबत
ू का भार प्रनतपि पर िै , पिकारों में िे क्रकिी के द्िारा क्रकिी भी असभिचन में
असभकधथत करना तब तक आिश्यक न िोगा जब तक क्रक पिले ि उिका प्रत्याख्यान विननहदिष्ट रूप िे न

139
कर हदया गया िो । (उदािरणाथि जिां िाद दािे के िारभत
ू आधार के रूप में विननमय-पत्र पर न क्रक उिके
प्रनतफल के सलए िाद लाता िै ििां विननमय-पत्र का प्रनतफल) ।

14. असििचन का िस्ताक्षररत क्रकया जाना- िर असभिचन पिकार द्िारा और यहद उिका कोई
प्ल डर िै तो उिके द्िारा िस्तािररत क्रकया जाएगा: पंरतु जिां असभिचन करने िाला पिकार अनप
ु र्स्थनत
के कारण या क्रकिी अन्य अच्छे िे तक
ु िे असभिचन पर िस्तािर करने में अिमथि िै ििां िि ऐिे व्यर्क्त
द्िारा िस्तािररत क्रकया जा िकेगा उिकी ओर िे उिे िस्तािररत करने के सलए या िाद लाने या प्रनतरिा
करने के सलए उिके द्िारा िम्यक् रुप िे प्राधधकृत िै ।

1
[14 क. िच
ू ना की तामील के सलए पता- (1) पिकार द्िारा फाइल क्रकए जाने िाले िर असभिचन
के िाथ पिकार के पते के बारे में विहित प्ररुप में कथन, ननयम 14 में उपबंधधत रुप में िस्तािररत करके
दे ना िोगा ।
(2) ऐिे पते को, न्यायालय में िम्यक् रूप िे भरे गए प्ररूप और ित्यावपत याधचका के िाथ
पिकार के नए पते का कथन दाणखल करके, िमय-िमय पर पररिनतित क्रकया जा िकेगा ।
(3) उपननयम (1) के अधीन क्रकए गए कथन में हदए गए पते को पिकार का “रर्जस्र कृत पता”
किा जाएगा और जब तक पि
ू ोक्त रुप में िम्यक्त: पररिनतित न क्रकया गया िो तब तक िि िाद में या
उिमें द गई क्रकिी डडिी या क्रकए गए क्रकिी आदे श को क्रकिी अपील में िभी आदे सशकाओं की तामील के
प्रयोजनों के सलए और ननष्पादन के प्रयोजन के सलए पिकार का पता िमझा जाएगा और पि
ू ोक्त के अधीन
रिते िुए इि मामले या विषय के अंनतम ननधािरण के पश्चात ् दो िषों की अिधध के सलए िि पता माना
जाएगा ।
(4) क्रकिी आदे सशका की तामील पिकार पर िभी बातों के बारे में उिके रर्जस्र कृत पते पर इि
प्रकार की जा िकेगी मानो िि पिकार ििा ननिाि करता रिा िो ।
(6) जिां न्यायालय को यि पता चलता िै क्रक क्रकिी पिकार का रर्जस्र कृत पता अधूरा, समथ्या या
कापपननक िै ििां न्यायालय या तो स्िप्रेरणा िे या क्रकिी पिकार के आिेदन पर,-

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 56 द्िारा (1-2-1977 िे) अंत: स्थावपत ।

(क) ऐिे मामले में जिां ऐिा रर्जस्र कृत पता िाद द्िारा हदया गया था ििां िाद के रोके जाने का
आदे श दे िकेगा, अथिा
(ख) ऐिे मामले में जिां ऐिा रर्जस्र कृत पता प्रनतिाद द्िारा हदया गया था ििां उिकी प्रनतरिा
काट द जाएगी और िि उिी र्स्थनत में रखा जाएगा मानो उिने कोई प्रनतरिा पेश नि ं की िो ।
(6) जिां उपननयम (5) के अधीन क्रकिी िाद को रोक हदया जाता िै या प्रनतरिा काट द जाती िै ,
ििा, यथार्स्थनत, िाद या प्रनतिाद अपना िि पता दे ने के पश्चात ् न्यायालय िे, यथार्स्थनत, रोक-आदे श
या प्रनतरिा काटने के आदे श को अपास्त करने िाले आदे श के सलए आिेदन कर िकेगा ।
(7) यहद न्यायालय का यि िमाधान िो जाता िै क्रक पिकार उधचत िमय पर अपना िि पता
फाइल करने में क्रकिी पयािप्त कारण िे रोक हदया गया था, तो िि रोक-आदे श या प्रनतरिा काटाने के
आदे श को खचों और अन्य बातों के बारे में ऐिे ननबंधनों पर जो िि ठीक िमझे, अपास्त कर िकेगा और,
यथार्स्थनत, िाद या प्रनतरिा की कायििाि के सलए हदन ननयत करे गा ।
(8) इि ननयम की कोई बात न्यायालय को आदे सशका की तामील क्रकिी अन्य पते पर क्रकए जाने

140
का ननदे श दे ने िे, यहद िि क्रकिी कारण िे ऐिा करना ठीक िमझे तो, नि ं रोकेगी ।

15. असििचन का ित्यापन- (1) उिके सििाय जैिा क्रक तत्िमय प्रिि
ृ क्रकिी विधध द्िारा अन्यथा
उपबंधधत िै , िर असभिचन उिे करने िाले पिकार द्िारा या पिकारों में िे एक के द्िारा या क्रकिी ऐिे
अन्य व्यर्क्त द्िारा, र्जिके बारे में न्यायालय को िमाधानप्रद रुप में िाबबत कर हदया गया िै क्रक िि
मामले के तथ्यों िे पररधचत िै , उिके पाद-भाग में ित्यावपत क्रकया जाएगा ।
(2) ित्यापन करने िाला व्यर्क्त असभिचन के िंख्याक्रकत पैराओं का ननदे श करते िुए यि
विननहदिष्ट करे गा क्रक कौन-िा पैरा िि अपने ननजी ज्ञान के आधार पर ित्यावपत करता िै और कौन- िा
पैरा िि ऐिी जानकार के आधार पर ित्यावपत करता िै जो उिे समल िै और र्जिके बारे में उिका यि
विश्िाि िै क्रक िि ित्य िै ।
(3) ित्यापन करने िाले व्यर्क्त द्िारा िि ित्यापन िस्तािररत क्रकया जएगा और उिमें उि
तार ख का र्जिको और उि स्थान का जिां िि िस्तािररत क्रकया गया था कथन क्रकया जाएगा ।
1
[(4) असभिचनों का ित्यापन करने िाला व्यर्क्त अपने असभिचनों के िमथिन में शपथपत्र भी
प्रस्तत
ु करे गा ।

1. 1999 के अधधननयम िं. 46 की धारा 16 द्िारा (1-7-2002 िे) अंत : स्थावपत ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


पटना उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- अधधिच
ू ना हदनांक 27-9-1967 के द्िारा उपननयम (1) को
प्रनतस्थावपत क्रकया गया िै -
'' (1) तत्िमय प्रित
ृ : क्रकिी विधध द्िारा प्रािधाननत के सििाय, प्रत्येक असभिचन में बताये गये
तथ्यों को ित्यननष्ठ प्रनतज्ञान के द्िारा अथिा पिकार के या पिकारों में िे एक के द्िारा या क्रकिी ऐिे
अन्य व्यर्क्त के द्िारा र्जिके बारे में न्यायालय को िमाधानप्रद रुप में िाबबत कर हदया गया िै क्रक िि
मामले के तथ्यों िे पररधचत िै के शपथ पर िंहिता की धारा 139 के अन्तगित शपथ हदलाने के सलए
िशक्त क्रकिी अधधकार के पि
ू ि ित्यावपत क्रकया जाएगा ''

राज्य िंशोधन
उ.प्र. राज्य द्िारा िंशोधन- उ.प्र. के अधधननयम िंख्यांक 57 िषि 1976 ि िमांक 31 िन 1978
के द्िारा उपननयम (1) को ननम्न रुप में िंशोधधत कर प्रनतस्थावपत क्रकया गया िै -
'' (1) उिके सििाय जैिा क्रक तत्िमय प्रिि
ृ क्रकिी विधध द्िारा अन्यथा उपबर्न्धत िै , िर
असभिचन उिे करने िाले पिकार द्िारा या पिकारों में िे एक के द्िारा या क्रकिी अन्य व्यर्क्त द्िारा,
र्जिके बारे में न्यायालय को िामाधानप्रद रुप में िाबबत कर हदया गया िै क्रक िि मामले के तथ्यों िे
पररधचत िै , िंहिता की धारा 139के अन्तगित शपथ हदलाने के सलए िशक्त क्रकिी अधधकार द्िारा शासित
शपथ पर ित्यावपत क्रकया जाएगा ।''

1
[16 असििचन का काट हदया जाना- न्यायालय कायििाहियों के क्रकिी भी प्रिम में आदे श दे िकेगा
क्रक क्रकिी भी असभिचन में की कोई भी ऐिी बात काट द जाए या िंशोधधत कर द जाए,-
(क) जो अनािश्यक, कलंकात्मक, तच्
ु छ या तंग करने िाल िै , अथिा
(ख) जो िाद के ऋजु विचारण पर प्रनतकूल प्रभाि डालने िाल या उिमें उलझन डालने िाल या

141
विलंब करने िाल िै , अथिा
(ग) जो अन्यथा न्यायालय की प्रक्रिया का दरु
ु पयोग िै ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 56 द्िारा (1-2-1977 िे) ननयम 16 के स्थान पर
प्रनतस्थावपत ।

1
[17. असििचनों का िंशोधन- न्यायालय कायििाहियों के क्रकिी भी प्रिम पर, क्रकिी भी पिकार
को, ऐिी र नत िे और ऐिे ननबंधनों पर, जो न्यायिंगत िों, अपने असभिचनों को पररिनतित या िंशोधधत
करने के सलए अनज्ञ
ु ात कर िकेगा और िे िभी िंशोधन क्रकए जाएंगे जो दोनों पिकारों के बीच वििाद के
िास्तविक प्रश्नों के अिधारण के प्रयोजन के सलए आिश्यक िों:
पंरतु विचारण प्रारं भ िोने के पश्चात ् िंशोधन के सलए क्रकिी आिेदन को तब तक अनज्ञ
ु ात नि ं
क्रकया जाएगा जब तक क्रक न्यायालय इि ननणिय पर न पिुंचे क्रक िम्यक् तत्परता बरतने पर भी िि
पिकार, विचारण प्रारं भ िोने िे पि
ू ि िि विषय नि ं उठा िकता था ।

1. 2002 के अधधननयम िं. 22 की धारा 7 द्िारा (1-7-2002 िे) ननयम 17 और 18 के स्थान


पर प्रनतस्थावपत ।

18. आदे श के पश्चात ् िंशोधन करने में अिफल रिना- यहद कोई पिकार, र्जिने िंशोधन करने
की इजाजत के सलए आदे श प्राप्त कर सलया िै , उि आदे श द्िारा उि प्रयोजन के सलए पररिीसमत िमय के
भीतर या यहद उिके द्िारा कोई िमय पररिीसमत नि ं क्रकया गया िै तो आदे श की तार ख िे चौदि हदन
के भीतर तद्नि
ु ार िंशोधन नि ं करता िै तो उिे यथार्स्थनत यथापि
ू ोक्त पररिीसमत िमय के या ऐिे
चौदि हदन के अििान के पश्चात ् िंशोधन करने के सलए तब तक अनज्ञ
ु ात नि ं क्रकया जाएगा जब तक क्रक
न्यायालय द्िारा िमय न बढ़ाया जाए ।

आदे श 7
िादपत्र
1. िादपत्र में अंतविवष्ट की जाने िाली विसशस्ष्टयां- िादपत्र में ननम्नसलणखत विसशर्ष्टयां िोगी-
(क) उि न्यायालय का नाम र्जिमें िाद लाया गया िै ;
(ख) िाद का नाम, िणिन और ननिाि-स्थान;
(ग) जिां तक असभननर्श्चत क्रकए जा िके, प्रनतिाद का नाम, िणिन और ननिाि-स्थान;
(घ) जिां िाद या प्रनतिाद अियस्क या विकृत-धचि व्यर्क्त िै ििां उि भाि का कथन;
(ड.) िे तथ्य र्जनिे िाद-िेतक
ु गहठत िै और िि कब पैदा िुआ;
(च) यि दसशित करने िाले तथ्य क्रक न्यायालय को अधधकाररता िै ;
(छ) िि अनत
ु ोष र्जिका िाद दािा करता िै ;
(ज) जिां िाद ने कोई मज
ु रा अनज्ञ
ु ात क्रकया िै या अपने दािे का कोई भाग त्याग हदया िै
ििां ऐिी अनज्ञ
ु ात की गई या त्यागी गई रकम, तथा
(झ) अधधकाररता के और न्यायालय-फीि के प्रयोजनों के सलए िाद की विषय-िस्तु के मप
ू य का
ऐिा कथन उि मामले में क्रकया जा िकता िै ।
2. धन के िादों में - जिां िाद धन की ििल
ू चािता िै ििां दािा की गई ठीक रकम िादपत्र में

142
कधथत की जाएगी:
क्रकं तु जिां िाद अंतःकाल न लाभों के सलए या ऐिी रकम के सलए जो उिके और प्रनतिाद के बीच
हििाब क्रकए जाने पर उिको शोध्य पाई जाए 1[या प्रनतिाद के कब्जे में की जंगम िस्तओ
ु ं के सलए या ऐिे
ऋणों के सलए र्जनका मप
ू य िि यर्ु क्तयक्
ु त तत्परता पर भी प्राक्कसलत नि ं कर िकता िै िाद लाता िै
ििां दािाकृत रकम या मप
ू य िादपत्र में लगभग मात्रा में कधथत क्रकया जाएगा ]।

3. जिां िाद की विषय-िस्तु स्थािर िम्पवि िै - जिां िाद की विषय-िस्तु स्थािर िम्पवि िै ििां
िादपत्र में िम्पवि का ऐिा िणिन िोगा जो उिकी पिचान कराने के सलए पयािप्त िै और उि दशा में
र्जिमें ऐिी िम्पवि की पिचान भ-ू व्यिस्थापन या ििेिण िंबध
ं ी असभलेख में की िीमाओं या िंख्यांकों
द्िारा की जा िकती िै , िादपत्र में ऐिी िीमाएं या िंख्यांक विननहदि ष्ट िोंगे ।

4. जब िादी प्रनतननधध के रुप में िाद लाता िै - जिां िाद प्रनतननधध की िै सियत में िाद लाता िै
ििां िादपत्र में न केिल यि दसशित िोगा क्रक उिका विषय-िस्तु में िास्तविक विद्यमान हित िै , िरन ् यि
भी दसशित िोगा क्रक उििे िमपक्
ृ त िाद के िंर्स्थत करने के सलए उिको िमथि बनाने के सलए आिश्यक
कदम (यहद कोई िो) िि उठा चक
ु ा िै ।

5. प्रनतिादी के हित और दानयत्ि का दसशवत क्रकया जाना- िादपत्र में यि दसशित क्रकया जाएगा क्रक
प्रनतिाद विषय-िस्तु हित रखता िै या रखने का दािा करता िै और िि िाद की मांग पर उिर दे ने के
सलए अपेक्षित क्रकए जाने का दायी िै ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 57 द्िारा (1-2-1977 िे) कुछ शब्दो के स्थान पर
प्रनतस्थावपत ।

6. पररिीमा विधध िे छूट के आधार- जिां िाद पररिीमा विधध द्िारा विहित अिधध के अििान के
पश्चात ् िंर्स्थत क्रकया जाता िै ििां िादपत्र में िि आधार दसशित क्रकया जाएगा र्जि पर ऐिी विधध िे छूट
पाने का दािा क्रकया गया िै:
[परं तु न्यायालय िाद को िाद में न हदए गए क्रकिी आधार पर, यहद ऐिा आधार िाद में उपिणणित
1

आधारों िे अिंगत नि ं िै पररिीमा विधध िे छूट का दािा करने की अनम


ु नत दे िकेगा ।

7. अनत
ु ोष का विननहदवष्ट रुप िे कथन- िर िादपत्र में उि अनत
ु ोष का विननहदिष्ट रूप िे कथन
िोगा र्जिके सलए िाद िामान्यत: या अनक
ु पपत: दािा करता िै और यि आिश्यक नि ं िोगा क्रक ऐिा
कोई िाधारण या अन्य अनत
ु ोष मांगा जाए, जो न्यायालय न्यायिंगत िमझे जो िििदा ि उिी विस्तार
तक ऐिे हदया जा िकेगा मानो िि मांगा गया िो, और यि ननयम प्रनतिाद द्िारा अपने सलणखत कथन में
दािा क्रकए गए क्रकिी अनत
ु ोष को भी लागू िोगा ।

8. पथ
ृ क् आधारों पर आधाररत अनत
ु ोष- जिां िाद कई िसु भन्न दािों या िाद-िे तक
ु ों के बारे में जो
पथ
ृ क और िसु भन्न आधारों पर आधाररत िै , अनत
ु ोष चािता िै ििां िे जिां तक िो िके पथ
ृ कत: और
िसु भन्नत: कधथत क्रकए जाएंगे ।

143
[9. िादपत्र र्ग्िण करने पर प्रक्रिया- जिां न्यायालय यि आदे श करता िै क्रक प्रनतिाहदयों पर िमनों
2

की तामील आदे श 5 के ननयम 9 में उपबंधधत र नत िे की जाए ििां िि, िाद को ऐिे आदे श की तार ख िे
िात हदन के भीतर िादा कागज पर िाद पत्र की उतनी प्रनतयां, र्जतने क्रक प्रनतिाद िैं, प्रनतिाहदयों पर
िमनों की तामील के सलए अपेक्षित फीि के िाथ प्रस्तत
ु करने का ननदे श दे िकेगा ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 57 द्िारा (1-2-1977 िे) जोडा गया ।
2. 2002 के अधधननयम िं. 22 की धारा 8 द्िारा (1-7-2002 िे) ननयम 9 के स्थान पर
प्रनतस्थावपत ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


म.प्र. उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (16.9.1960)- ननयम 9 को इि प्रकार प्रनतस्थावपत क्रकया
गया-
'' 9(1) िाद दस्तािेजों (यहद कोई िों) की िच
ू ी िादपत्र पर पष्ृ ठांक्रकत करे गा या इििे उपाबंध
करे गा जो क्रक उिने इिके िाथ प्रस्तत
ु क्रकये िैं ।
(2) मख्
ु य सलवपकीय अधधकार ऐिी िच
ू ी ि आदे श 4 के ननयम 4 के अन्तगित प्रस्तत
ु िादपत्र की
प्रनतसलवपयों को िस्तािररत करे गा, यहद पर िण पर िि उन्िें िि िोना पाता िै ।''

इलािाबाद उच्च न्यायालय िंशोधन- विद्यमान ननयम 9 को इि प्रकार प्रनतस्थावपत क्रकया गया-
'' 9(1) िाद दस्तािेजों (यहद कोई िों) की िच
ू ी िादपत्र पर पष्ृ ठांक्रकत करे गा या इििे उपाबंध
करे गा जो क्रक उिने इिके िाथ प्रस्तत
ु क्रकये िैं ।
(2) मख्
ु य सलवपकीय अधधकार ऐिी िच
ू ी ि प्रनतसलवपयों या कथनों को िस्तािररत क रे गा, यहद
पर िण पर िि उन्िें िि िोना पाता िै ।''
(अधधिच
ू ना हदनांक 1.10.1983 हटप्पणी)

1. यि ननयम छोटा नागपरु टे नेिी ऐक्ट, 1908 (1908 का बंगाल अर्न्नयम िं. 6) की धारा 265
के अधीन भाटक की ििल
ू के सलए िाद को लागू क्रकया गया िै ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 57 द्िारा (1-7-1977 िे) कुछ शब्दो के स्थान पर
प्रनतस्थावपत ।

10. िादपत्र का लौटाया जाना- (1)


1
[ननयम 10क के उपबंधों के अधीन रिते िुए, िादपत्र] िाद के
2

क्रकिी भी प्रिम में उि न्यायालय में उपर्स्थत क्रकए जाने के सलए लौटा हदया जाएगा र्जिमें िाद िंर्स्थत
क्रकया जाना चाहिए था ।
1
[स्पष्टीकरण- शंकाओं को दरू करने के सलए इिके द्िारा यि घोवषत क्रकया जाता िै क्रक अपील या
पन
ु र िण न्यायालय, िाद में पाररत डडिी को अपास्त करने के पश्चात ् इि उपननयम के अधीन िादपत्र के
लौटाए जाने का ननदे श दे िकेगा ।
(2) िादपत्र के लौटाए जाने पर प्रक्रिया- न्यायाधीश िादपत्र के लौटाए जाने पर, उि पर उिके
उपर्स्थत क्रकए जाने की और लौटाए जाने की तार ख, उपर्स्थत करने िाले पिकार का नाम और उिके
लौटाए जाने के कारणों का िंक्षिप्त कथन पष्ृ ठांक्रकत करे गा ।

144
2
[10क. जिां िादपत्र उिके लौटाए जाने के पश्चात ् फाइल क्रकया जाना िै ििां न्यायालय में
उपिंजानत के सलए तारीख ननयत करने की न्यायालय की शस्तत- (1) जिां क्रकिी िाद में प्रनतिाद के
उपिंजात िोने के पश्चात ् न्यायालय की यि राय िै क्रक िादपत्र लौटाया जाना चाहिए ििा िि ऐिा करने के
पि
ू ि िाद को अपने विननश्चय की िच
ू ना दे गा ।
(2) जिां िाद को उपननयम (1) के अधीन िच
ू ना द गई िो ििां िाद न्यायालय िे-
(क) उि न्यायालय को विननहदि ष्ट करते िुए र्जिमें िि िादपत्र के लौटाए जाने के पश्चात ् िादपत्र
प्रस्तत
ु करने की प्रस्थापना करता िै ,
(ख) यि प्राथिना करते िुए क्रक न्यायालय उक्त न्यायालय में पिकारों की उपिंजानत के सलए तार ख
ननयत करे , और
(ग) यि अनरु ोध करते िुए क्रक इि प्रकार ननयत तार ख की िच
ू ना उिे और प्रनतिाद को द जाए,
आिेदन कर िकेगा ।
(3) जिां िाद द्िारा उपननयम (2) के अधीन आिेदन क्रकया जाता िै ििां न्यायालय िादपत्र लौटाए
जाने के पिू ि और इि बात के िोते िुए भी क्रक उिके द्िारा िादपत्र के लौटाए जाने का आदे श इि आधार
पर क्रकया गया था क्रक उिे िाद का विचारण करने की अधधकाररता नि ं थी,-

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 57 द्िारा (1-2-1977 िे) अंतःस्थावपत ।


2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 57 द्िारा (1-2-1977 िे) अतःस्थावपत ।

(क) उि न्यायालय में र्जिमें िादपत्र के उपर्स्थत क्रकए जाने की प्रस्थापना िै , पिकारों की
उपिंजानत के सलए तार ख ननयत करे गा, और
(ख) उपिंजानत की ऐिी तार ख की िच
ू ना िाद और प्रनतिाद को दे गा ।
(4) जिां उपननयम (3) के अधीन उपिंजानत की तार ख की िच
ू ना द जाती िै ििां-
(क) उि न्यायालय के सलए र्जिमें िादपत्र उिके लौटाए जाने के पश्चात ् उपर्स्थत क्रकया जाता िै ,
तब तक यि आिश्यक नि ं िोगा क्रक िि बाद में उपिंजानत के सलए िमन प्रनतिाद पर तामील करे , जब
तक क्रक िि न्यायालय, असभसलणखत क्रकए जाने िाले कारणों िे, अन्यथा ननदे श न दे और
(ख) उक्त िच
ू ना, उि न्यायालय में र्जिमें िादपत्र को लौटाने िाले न्यायालय द्िारा इि प्रकार
ननयत तार ख को िादपत्र उपर्स्थत क्रकया जाता िै , प्रनतिाद की उपिंजानत के सलए िमन िमझी जाएगी ।
(5) जिां न्यायालय िाद द्िारा उपननयम (2) के अधीन क्रकए गए आिेदन को मंजूर कर लेता िै
ििां िाद िादपत्र लौटाए जाने के आदे श के विरुद्ध अपील करने का िकदार नि ं िोगा ।
10ख. िमधु चत न्यायालय को िाद अंतररत करने की अपील न्यायालय की शस्तत- (1) जिां िादपत्र
के लौटाए जाने के आदे श के विरुद्ध अपील में अपील की िन
ु िाई करने िाला न्यायालय ऐिे आदे श की
पर्ु ष्ट करता िै ििां अपील न्यायालय, यहद िाद आिेदन द्िारा ऐिी िांछा करे तो िादपत्र लौटाते िमय
िाद को यि ननदे श दे िकेगा क्रक िि िादपत्र को उि न्यायालय में र्जिमें िाद िंर्स्थत क्रकया जाना चाहिए
था (चािे ऐिा न्यायालय उि राज्य के भीतर िो या बािर र्जिमें अपील की िन
ु िाई करने िाला न्यायालय
र्स्थत िै) पररिीमा अधधननयम, 1963 ( 1963 का 36) के उपबन्धों के अधीन रिते िुए, फाइल करे और
उि न्यायालय में र्जिमें िादपत्र फाइल क्रकए जाने का ननदे श हदया जाता िै , पिकारों की उपिंजानत के
सलए तार ख ननयत कर िकेगा और जब इि प्रकार तार ख ननयत कर द जाती िै तब उि न्यायालय के
सलए र्जिमें िादपत्र फाइल क्रकया गया िै , िाद में उपिंजानत के सलए िमन प्रनतिाद पर तामील करना तब
तक आिश्यक नि ं िोगा जब तक क्रक िि न्यायालय र्जिमें िादपत्र फाइल क्रकया गया िै , असभसलणखत क्रकए

145
जाने िाले कारणों िे, अन्यथा ननदे श न दे ।
(2) न्यायालय द्िारा उपननयम (1) के अधीन क्रकए गए क्रकिी ननदे श िे पिकारों के उन अधधकारों
पर प्रनतकूल प्रभाि नि ं पड़ेगा जो उि न्यायालय की र्जिमें िादपत्र फाइल क्रकया गया िै िाद का विचारण
करने की अधधकाररता को प्रश्नगत करने के िंबध
ं में िें ।

11. िादपत्र का नामंजूर क्रकया जाना- िादपत्र ननम्नसलणखत दशाओं में नामंजूर कर हदया जाएगा-
(क) जिां िि िाद-िे तक
ु प्रकट नि ं करता िै ;
(ख) जिां दािाकृत अनत
ु ोष का मप
ू यांकन कम क्रकया गया िै और िाद मप
ू यांकन को ठीक करने के
सलए न्यायालय द्िारा अपेक्षित क्रकए जाने पर उि िमय के भीतर जो न्यायालय ने ननयत क्रकया िै , ऐिा
करने में अिफल रिता िै ;
(ग) जिां दािाकृत अनत
ु ोष का मप
ू यांकन ठीक िै क्रकन्तु िादपत्र अपयािप्त स्टाम्प-पत्र पर सलखा गया
िै और िाद अपेक्षित स्टाम्प-पत्र के दे ने के सलए न्यायालय द्िारा अपेक्षित क्रकए जाने पर उि िमय के
भीतर, जो न्यायालय ने ननयत क्रकया िै , ऐिा करने में अिफल रिता िै ;
(घ) जिां िादपत्र में के कथन िे यि प्रतीत िोता िै क्रक िाद क्रकिी विधध द्िारा िर्जित िै :
1
[(ड.) जिां यि दो प्रनतयों में फाइल नि ं क्रकया जाता िै ;]
2
[(च) जिां िाद ननयम 9 के उपबंधों का अनप
ु ालन करने में अिफल रिता िै :]
3
[परन्तु मप
ू यांकन की शद्
ु धध के सलए या अपेक्षित स्टाम्प-पत्र के दे ने के सलए न्यायालय द्िारा
ननयत िमय तब तक नि ं बढ़ाया जाएगा जब तक क्रक न्यायालय का असभसलणखत क्रकए जाने िाले कारणों
िे यि िमाधान नि ं िो जाता िै क्रक िाद क्रकिी अिाधारण कारण िे, न्यायालय द्िारा ननयत िमय के
भीतर, यथार्स्थनत, मप
ू याकन की शद्धध करने या अपेक्षित स्टाम्प-पत्र के दे ने िे रोक हदया गया था और
ऐिे िमय के बढ़ाने िे इकार क्रकए जाने िे िाद के प्रनत गंभीर अन्याय िोगा ।

1. 1999 के अधधननयम िं. 46 की धारा 17 द्िारा (1-7-2002 िे) अत : स्थावपत |


2. 2002 के अधधननयम िं. 22 की धारा 8 द्िारा (1-7-2002 िे) उपखंड (च) और (छ) के स्थान
पर प्रनतस्थावपत |
3. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 57 द्िारा (1-2-1977 िे) जोड़ा गया ।

12. िादपत्र के नामंजूर क्रकए जाने पर प्रक्रिया- जिां िादपत्र नामंजूर क्रकया जाता िै ििां न्यायालय
इि भाि का आदे श कारणों िहित असभसलणखत करे गा ।

13. जिां िादपत्र की नामंजरू ी िे नए िादपत्र का उपस्स्थत क्रकया जाना प्रिाररत निीं िोता- इिमें
इिके पि
ू ि िणणित आधारों में िे क्रकिी पर भी िादपत्र के नामंजूर क्रकए जाने पर केिल नामंजूर के ि कारण
िाद उिी िाद - िे तक
ु के बारे में नया िादपत्र उपकर्स्थत करने िे प्रिाररत नि ं िो जाएगा |

1
[14. उन दस्तािेजों की प्रस्तनु त स्जन परिादी िाद लाता िै या ननिवर करता िै - (1) जिां िाद
क्रकिी दस्तािेज के आधार पर िाद लाता िै या अपने दािे के िमथिन में अपने कब्जे या शर्क्त में की
दस्तािेज पर ननभिर करता िै ििां िि उन दस्तािेजों को एक िच
ू ी में प्रविष्ट करे गा और उिके द्िारा
िादपत्र उपर्स्थत क्रकए जाने के िमय िि उिे न्यायालय में पेश करे गा और उिी िमय दस्तािेज और
उिकी प्रनत को िादपत्र के िाथ फाइल क्रकए जाने के सलए पररदि करे गा ।

146
(2) जिां ऐिी कोई दस्तािेज िाद के कब्जे या शर्क्त में नि ं िै ििां िि जिां तक िंभि िो िके
यि कथन करे गा क्रक िि क्रकिके कब्जे में या शर्क्त में िै ।
(3) ऐिा दस्तािेज र्जिे िाद द्िारा न्यायालय में तब प्रस्तत
ु क्रकया जाना चाहिए जब िादपत्र
प्रस्तत
ु क्रकया जाता िै , या िादपत्र में जोडी जाने िाल या उपाबद्ध की जाने िाल िच
ू ी में प्रविष्ट क्रकया
जाना िै , क्रकं तु तद्नि
ु ार, प्रस्तत
ु या प्रविष्ट नि ं क्रकया जाता िै तो उिे न्यायालय की अनम
ु नत के बबना िाद
की िन
ु िाई के िमय उिकी ओर िे िाक्ष्य में ग्रिण नि ं क्रकया जाएगा ।
(4) इि ननयम की कोई बात ऐिी दस्तािेजों को लागू नि ं िोगी जो िाक्षियों की प्रनतपर िा के सलए
पेश क्रकए गए िों या क्रकिी िािी को केिल उिकी स्मनृ त को ताजा करने के सलए हदए गए िों ।]

1. 1999 के अधधननयम िं. 46 की धारा 17 द्िारा (1-7-2002 िे) ननयम 14 के स्थान पर


प्रनतस्थावपत ।
2. 2002 के अधधननयम िं. 22 की धारा 8 द्िारा (1-7-2002 िे) उपननयम (3) के स्थान पर
प्रनतस्थावपत ।

15 . 1[................ लप्ु त]
16. खोई िुई परिाम्य सलखतों के आधार पर िाद- जिां िाद परिाम्य सलखत पर आधाररत िै और
यि िाबबत कर हदया जाता िै क्रक सलखत खो गई िै और िाद सलखत पर आधाररत क्रकिी अन्य व्यर्क्त के
दािों के सलए िनतपनू ति, न्यायालय को िमाधानप्रद रूप में कर दे ता िै ििां न्यायालय ऐिी डडिी पाररत कर
िकेगा- जो िि पाररत करता यहद िाद ने उि िमय जब िादपत्र उपर्स्थत क्रकया गया था, उि सलखत को
पेश क्रकया िोता और उि सलखत की प्रनत िादपत्र के िाथ फाइल क्रकए जाने के सलए उिी िमय पररदि कर
द िोती ।

1. सिविल प्रक्रिया िंहिता िंशोधन अधधननयम 1999 के द्िारा ननरसित ।

17. दक
ु ान का बिी खाता पेश करना- (1) ििां तक के सििाय जिां तक क्रक बैंककार बि िाक्ष्य
अधधननयम, 1891 (1891 का 18) द्िारा अन्यथा उपबंधधत िै , उि दशा में र्जिमें क्रक िि दस्तािेज
र्जिके आधार पर िाद िाद लाता िै दक
ु ान के बि खाते या अन्य लेखे में की जो उिके अपने कब्जे या
शर्क्त में िै , प्रविर्ष्ट िै , िाद उि प्रविर्ष्ट को र्जि पर िि ननभिर करता िै , प्रनत के िहित उि बि खाते
या लेखे को िादपत्र के फाइल क्रकए जाने के िमय पेश करे गा ।
मल
ू प्रविस्ष्ट का धचन्िांक्रकत क्रकया जाना और लौटाया जाना- (2) न्यायालय या ऐिा अधधकार र्जिे
िि इि ननसमि ननयक्
ु त करे तत्िण उिके दस्तािेज को उिकी पहिचान के प्रयोजन के सलए धचन्िांक्रकत
करे गा और प्रनत की पर िा और मल
ू िे तल
ु ना करने के पश्चात ् यहद िि िि पाई जाए तो यि प्रमाणणत
करे गा क्रक िि ऐिी िै और बि खाता िाद को लोटाएगा और प्रनत को फाइल कराएगा ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


इलािाबाद उच्च न्यायालय दारा िंशोधन- अधधिच
ू ना िमांक 268/44-5(1) हदनांक 29.1.1972 ि
अधधिच
ू ना िमांक 6112/45(a) हदनांक 10.12.1982 के द्िारा ननयम 17 के उपरांत ननम्न परन्तक
ु जोडा
गया िै -
''परन्तु यि क्रक यहद प्रनतसलवप अंग्रेजी में नि ं सलखी गयी िै अथिा उपयोग में िोने िाले िामान्य

147
फारिी या नागर सलवप के अलािा सलवप में सलखी गयी िै तो ित्यापन बाबत आदे श 13 ननयम 12 में
प्रनतपाहदत प्रक्रिया को अनि
ु ररत क्रकया जाएगा और उि दशा में न्यायालय अथिा इिके अधधकार को
प्रनतसलवप को मल
ू िे पर क्षित अथिा समलान करने की आिश्यकता नि ं िै 1''
18...............1[लप्ु त

उच्च न्यायालय िंशोधन


म.प्र उच्च न्यायालय दारा िंशोधन- ननम्नानि
ु ार ननयमों को जोड़ा जाएगा-
''19 रस्जस्री पता- प्रत्येक िाद पत्र या मल
ू याधचका पता र्जि पर िाद या याधचकाकार पर
आदे सशका की तामील की जा िे दे ते िुए ज्ञापन द्िारा िंलग्र क्रकया जाएगा । पता उि सिविल र्जले की
स्थानीय िीमाओं के अधीन िोगा र्जिके भीतर िाद पत्र या मल ू याधचका फाइल की गई िै अथिा, यहद ऐिे
सिविल र्जले के भीतर पता िवु िधापि
ू क
ि नि ं हदया जा िकता तो ऐिे सिविल र्जले की स्थानीय िीमाओं के
भीतर र्जिमें पिकार िाधारण तौर पर ननिाि करता िै ।
इि पते को ''रर्जस्टर पता'' पक
ु ारा जाएगा और िंपण
ू ि अंतितीय कायििाि अपीलों और अंनतम
ननणिय िोने िे दो िषों की अन्यथा अिधध के भीतर भी और ननष्पादन िमेत िभी प्रयोजनों के सलए ठीक
बने रिने के रूप में रिे गा ।

20. बाद में िादी या याधचकाकार के रुप में जोड़े गए पक्ष द्िारा रस्जस्टिव पता- िाद या
याधचकाकार के रूप में बाद में जोडा गया कोई पि िमान र नत में िाद या याधचकाकार के कप में जोड़े
जाने का आिेदन करते िमय या ििमनत दे ते िमय रर्जस्र पता फाइल करे गा ।

21. रस्जस्री पता फाइल न करने के पररणाम- (1) यहद िाद या याधचकाकार ननयम 19 या 20
द्िारा यथा अपेक्षित रर्जस्र पता फाइल करने में विफल रिता िै तो न्यायालय के वििेक पर उिका िाद
ननरस्त क्रकए जाने या उिकी याधचका ननरस्त क्रकए जाने के सलए दायी िोगी । इि ननयम के अंतगित
न्यायालय द्िारा स्िप्रेरणा िे या क्रकिी पि के आिेदन पर आदे श पाररत क्रकया जा िकेगा ।

22. आदे सशका चस्पा करना और इिकी विधधमान्यता- जिााँ िाद या याधचकाकार उिके रर्जस्र पते
पर नि ं पाया जाता िै एिं न कोई असभकताि या उिके पररिार का ियस्क परु
ु ष िदस्य र्जि पर क्रक
आदे सशका का ननिािि क्रकया जा िके, उपर्स्थत िै तो आदे सशका की एक प्रनत घर के दरिाजे के बािर चस्पा
की जाएगी और ऐिी तामील को उि रुप में प्रभािी िोना माना जाएगा मानो व्यर्क्तगत तौर पर तामील िो
गई िो ।

23. रस्जस्टिव पते का पररितवन- िाद या याधचकाकार जो क्रक उिके रर्जस्टडि पते को पररिनतित
करने की इच्छा रखता िै िंशोधधत याधचकार प्रस्तत
ु करे गा और न्यायालय असभलेख में तदनि
ु ार िंशोधन
करने को ननदे सशत करे गा । ऐिी याधचकार का िच
ू ना पत्र िाद या कायििाि के ऐिे अन्य पि को हदया
जाएगा र्जिे न्यायालय िधू चत करना आिश्यक िमझे । ''

1. सिविल प्रक्रिया िंहिता (िंशोधन) अधधननयम, 2002 की धारा 8 (iv) के द्िारा ननयम 18 (र्जिे
क्रक सिविल प्रक्रिया िहिता (िंशाधेन) अधधननयम, 1999 के द्िारा यथािंशोधधत क्रकया गया था
लप्ु त ।

148
2. सिविल प्रक्रिया िहिता िंशोधन अधधननयम, 1999 के द्िारा शब्द '' न्यायालय की इजाजत के
बबना '' यथा लप्ु त ।
आदे श 8
1
[सलखखत कथन, मज
ु रा और प्रनतदािा]

2
[1. सलखखत कथन- प्रनतिाद , उि पर िमन तामील क्रकए जाने की तार ख िे तीि हदन के भीतर,
अपनी प्रनतरिा का सलणखत कथन प्रस्तत
ु करे गा;
परं तु जिां प्रनतिाद उक्त तीि हदन की अिधध के भीतर सलणखत कथन फाइल करने में अिफल
रिता िै , ििां उिे ऐिे क्रकिी अन्य हदन को जो न्यायालय द्िारा ऐिे कारणों िे जो लेखबद्ध क्रकए जाएंगे,
विननहदिष्ट क्रकया जाए, फाइल करने के सलए अनज्ञ
ु ात क्रकया जाएगा, क्रकं तु जो िमन की तामील की तार ख
िे नब्बे हदन के पश्चात ् का नि ं िोगा ।]

उच्च न्यायालय िंशोधन


इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- पण
ू ि विराम को विलोवपत क्रकया जाएगा और ननम्नानिार
जोड़ा जाएगा-
''और उिके सलणखत कथन के िाथ िंपण
ू ि दस्तािेजों (चािे उिके आधधपत्य या शर्क्त में िों या
नि ं) र्जन पर िि उिकी प्रनतरिा के िमथिन में िाक्ष्य के रुप मे ननभिरता व्यक्त करता िै की िच
ू ी फाइल
करे गा ।''
पटना उच्च न्यायालय दारा िंशोधन- पटना में ननयम 1 को इि प्रकार प्रनतस्थावपत क्रकया गया िै -
''1 (1) प्रनतिाद उिकी प्रनतरिा का सलणखत कथन, प्रथम िन
ु िाई पर या उिके पि
ू ि अथिा ऐिे
िमय के भीतर जो क्रक न्यायालय अनज्ञ
ु ात करे प्रस्तत
ु कर िकेगा और यहद ऐिा करने की अपेिा
न्यायालय द्िारा की जाए तो करे गा और ऐिे सलणखत कथन के िाथ और यहद सलणखत कथन नि ं िै तो
प्रथम िन
ु िाई पर उिके आधधपत्य या शर्क्त के िभी दस्तािेजों र्जन पर िि उिकी प्रनतरिा या मज
ु रे के
क्रकिी दािे को आधाररत करता िै प्रस्तत
ु करे गा ।
(2) जिां िि उिकी प्रनतरिा के िमथिन में िाक्ष्य के रुप में अन्य क्रकन्ि ं दस्तािेजो पर ननभिरता व्यक्त
करता िै , िि ऐिे दस्तािेजों को सलणखत कथन के िाथ जोड़े जाने िाल अथिा उपाबंध की जाने िाल , या
जिां कोई सलणखत कथन नि ं िै ििां प्रथम िन
ु िाई पर िच
ू ी में प्रविष्ट करे गा । यहद ऐिी कोई िच
ू ी
उपाबंध नि ं की जाती िै या प्रस्तत
ु नि ं की जाती िै तो प्रनतिाद को दस्तािेजों की िच
ू ी को प्रस्तत
ु करने
िाल , या जिां कोई सलणखत कथन नि ं िै ििां प्रथम िन
ु िाई पर िच
ू ी में प्रविष्ट करे गा । यहद ऐिी कोई
रखी उपाबंध नि ं की जाती िै या प्रस्तत
ु नि ं की जाती िै तो प्रनतिाद को दस्तािेजों की िच
ू ी को प्रस्तत

करने के सलए दि हदििों का िमय अनज्ञ
ु ात क्रकया जाएगा।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 58 द्िारा (1.2.1977 िे) पि


ू ि
ि ती शीषि के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
2. 2002 के अधधननयम िं. 22 की धारा 9 द्िारा (1-7-2002 िे) ननयम 1 के स्थान पर
प्रनतस्थावपत ।
(3) दस्तािेज र्जिे क्रक उपखंड (2) में ननहदि ष्ट िच
ू ी में प्रविष्ट िोना चाहिए था परन्तु र्जिे इि
प्रकार प्रविष्ट नि ं क्रकया गया िै , को न्यायालय की अनम
ु नत के बबना िाद की िन
ु िाई पर प्रनतिाद की और
िे िाक्ष्य में प्राप्त नि ं क्रकया जाएगा।

149
(4) इि ननयम की कोई बात िाद गण के िािीगण के प्रनतपर िण के सलए प्रस्तत
ु दस्तािेजों अथिा
िािी को उिकी स्मनृ त को ताजा करने मात्र के सलए िप
ु द
ु ि क्रकये गये दस्तािेजों पर प्रयोज्य नि ं िोगी।

1
[1 क. प्रनतिादी को िे दस्तािेज पेश करने का कतवव्य स्जन पर उिके द्िारा अनत
ु ोष का दािा
क्रकया गया िै या ननिवर क्रकया गया िै - (1) जिां प्रनतिाद अपनी प्रनतरिा अपनी प्रनतरिा का आधार क्रकिी
ऐिे दस्तािेज को बनाता िै या मज
ु रा या प्रनतदािा के सलए अपनी प्रनतरिा या दािे का िमथिन क्रकिी ऐिे
दस्तािेज पर ननभिर करता िै जो उिके कब्जे या शर्क्त में िै , ििां िि ऐिे दस्तािेज को िच
ू ी में प्रविष्ट
करे गा और उिे िि उिके सलणखत कथन उपस्थावपत क्रकए जाने के िमय न्यायालय में पेश करे गा उिी
िमय दस्तािेज और उिकी एक प्रनत िि सलणखत कथन के िाथ फाइल क्रकए जाने के सलए पररदि करे गा ।
(2) जिां ऐिी कोई दस्तािेज प्रनतिाद के कब्जे या शर्क्त में नि ं िै ििां िि, जिां तक िम्भि िो
िके यि कथन करे गा क्रक िि क्रकिके कब्जे में या शर्क्त में िै ।
[(3) ऐिा दस्तािेज र्जिे इि ननयम के अधीन प्रनतिाद द्िारा न्यायालय में प्रस्तत
2
ु क्रकया जाना चाहिए,
क्रकं तु इि प्रकार प्रस्तत
ु नि ं क्रकया जाता िै , न्यायालय की इजाजत के बबना, िाद की िन
ु िाई के िमय
उिकी ओर िे िाक्ष्य में ग्रिण नि ं क्रकया जाएगा ।]

1. 1999 के अधधननयम िं. 46 की धारा 18 द्िारा (1-7- 2002 िे) अंतःस्थावपत ।


2. 2002 के अधधननयम िं. 22 की धारा 9 द्िारा (1-7-2002 िे) उपननयम (3) के स्थान पर
प्रनतस्थावपत ।
(4) इि ननयम की कोई बात ऐिे दस्तािेजों को लागू नि ं िोगी जो-
(क) िाद के िाक्षियों की प्रनतपर िा के सलए पेश क्रकए जाएं; या
(ख) िािी को केिल अपनी स्मनृ त ताजा करने के सलए िौंपे जाएं ।]

2. नए त्यों का विशेष रूप िे असििचन करना िोगा- प्रनतिाद को अपने असभिचन द्िारा िे िब
बातें उठानी िोंगी र्जनिे यि दसशित िोता िै क्रक िाद या विधध की दृर्ष्ट िे िि व्यििार शन्
ू य िै या
शन्
ू यकरणीय िै और प्रनतरिा के िब ऐिे आधार उठाने िोंगे जो ऐिे िैं क्रक यहद िे न उठाए गए तो यि
िंभाव्य िै क्रक उनके िििा िामने आने िे विरोधी पिकार चक्रकत िो जाएगा या र्जनिे तथ्य के ऐिे
वििाद्यक पैदा िो जाएंगे जो िादपत्र िे पैदा नि ं िोते िै । उदािरणाथि कपट, पररिीमा ननमर्ुि क्त, िंदाय,
पालन या अिैधता दसशित करने िाले तथ्य।
3. प्रत्याख्यान विननहदव ष्टत: िोगा- प्रनतिाद के सलए यि पयािप्त नि ं िोगा िि अपने सलणखत कथन
में उन आधारों का िाधारणत: प्रत्याख्यान कर दे जो िाद द्िारा असभकधथत िै , क्रकन्तु प्रनतिाद के सलए
यि आिश्यक िै क्रक िि नक
ु िानी के सििाय ऐिे तथ्य िंबध
ं ी िर एक असभकथन का विननहदि ष्टत: वििेचन
करे र्जिकी ित्यता िि स्िीकार नि ं करता िै ।
4. िाच्छलपण
ू व प्रत्याख्यान- जिां प्रनतिाद िाद में के क्रकिी तथ्य के असभकथन का प्रत्याख्यान
करता िै ििां उिे िैिा िाग्लछपण
ू ि तौर पर नि ं करना चाहिए, िरन ् िार की बात का उतर दे ना चाहिए।
उदािरणाथि, यहद यि असभकधथत क्रकया जाता िै क्रक उिने एक ननर्श्चत धन की रासश प्राप्त की तो यि
प्रत्याख्यान क्रक उिने िि विसशष्ट रासश प्राप्त नि ं की पयािप्त नि ं िोगा िरन ् उिे यि चाहिए क्रक िि
प्रत्याख्यान करे क्रक उिने िि रासश या उिका कोई भाग प्राप्त नि ं क्रकया या क्रफर यि उपवििणत करना
चाहिए क्रक उिने क्रकतनी रासश प्राप्त की और यहद असभकथन विसभन्न पररर्स्थतयों िहित क्रकया गया िै तो
उन पररर्स्थनतयों िहित उि असभकथन का प्रत्याख्यान कर दे ना पयािप्त नि ं िोगा ।

150
5. विननहदवष्टत: प्रत्याख्यान- 1[(1)] यहद िादपत्र में के तथ्य िंबध
ं ी िर असभकथन का विननहदि ष्टत:
यि आिश्यक विििा िे प्रत्याख्यान नि ं क्रकया जाता िै या प्रनतिाद के असभिचन में यि कथन क्रक िि
स्िीकार नि ं क्रकया जाता तो जिां तक ननयोग्यताधीन व्यर्क्त को छोडकर क्रकिी अन्य व्यर्क्त का िम्बन्ध
िै िि स्िीकार कर सलया गया माना जाएगा:
परन्तु ऐिे स्िीकार क्रकए गए क्रकिी की तथ्य के ऐिी स्िीकृनत के अलािा अन्य प्रकार िे िाबबत
क्रकए जाने की अपेिा न्यायालय स्िवििेकानि
ु ार कर िकेगा।
[(2) जिां प्रनतिाद ने असभिचन फाइल नि ं क्रकया िै ििां न्यायालय के सलए िादपत्र में अन्तवििष्ट
2

तथ्यों के आधार पर ननणिय िन


ु ाना, जिां तक ननयोग्यताधीन व्यर्क्त को छोडकर क्रकिी अन्य व्यर्क्त का
िम्बन्ध िै , विधधपण
ू ि िोगा, क्रकन्तु न्यायालय क्रकिी ऐिे तथ्य को िाबबत क्रकए जाने कीं अपेिा
स्िवििेकानि
ु ार कर िकेगा ।
(3) न्यायालय उपननयम (1) के परन्तक
ु के अधीन या उपननयम (2) के अधीन अपने वििेकाधधकार
का प्रयोग करने में इि तथ्य पर िम्यक ध्यान दे गा क्रक क्या िाद क्रकिी प्ल डर को ननयक्
ु त कर िकता था
या उिने क्रकिी प्ल डर को ननयक्
ु त क्रकया िै ।
(4) इि ननयम के अधीन जब कभी ननणिय िन
ु ाया जाता िै तब ऐिे ननणिय के अनि
ु ार डडिी तैयार
की जाएगी और ऐिी डडिी पर िि तार ख द जाएगी र्जि तार ख को ननणिय िन
ु ाया गया था।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 38 द्िारा (1-2-1977 िे) ननयम 5 को उि ननयम के
उपननयम ( 1) के रुप मे पन
ु ःिख्यांक्रकत क्रकया गया ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 58 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया गया ।
6. मज
ु रा की विसशस्ष्टयां सलखखत कथन में दी जाएंगी- (1) जिां धन की ििल
ू के िाद में प्रनतिाद
न्यायालय की अधधकाररता की धन-िंबध
ं ी िीमाओं िे अनधधक धन की कोई असभननर्श्चत रासश जो िि िाद
िे िैध रुप िे ििल
ू कर िकता िै िाद की मागि के विरुद्ध मज
ु रा करने का दािा करता िै और दोनों
पिकार िि िै सियत रखते िै जो िाद के िाद में उनकी िै ििां प्रनतिाद मज
ु रा के सलए चाि गई ऋण की
विसशर्ष्टयां दे ते िुए सलणखत कथन िाद की पिल िन
ु िाई पर उपर्स्थत कर िकेगा, क्रकन्तु उिके पश्चात ्
तब तक उपर्स्थत नि ं कर िकेगा जब तक क्रक न्यायालय द्िारा उिे अनज्ञ
ु ा नि ं दे द गई िो ।
(2) मज
ु रा का प्रिाि- सलणखत कथन का प्रभाि प्रतीपिाद में के िादपत्र के प्रभाि के िमान ि िोगा
र्जिे न्यायालय मल
ू दािे और मज
ु रा दोनों के िम्बन्ध में अर्न्तम ननणिय िन
ु ाने के सलए िमथि िो जाए,
क्रकन्तु डडिीत रकम पर प्ल डर को डडिी के अधीन दे य खचों के बारे में उिके धारणाधधकार पर इििे
प्रभाि नि ं पड़ेगा ।
(3) प्रनतिाद द्िारा हदए गए सलणखत कथन िम्बन्धी ननयम मज
ु रा के दािे के उिर में हदए गए
सलणखत कथन को भी लागू िोते िैं ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


पटना उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- इि उच्च न्यायालय के द्िारा उपननयम (1) के अन्त में
ननम्नानि
ु ार जोडा गया िै-
''और आदे श 6 ननयम 14 के प्रािधान यथािश्यक पररितिन िहित मज
ु रे का दािा करने िाले
प्रनतिाद पर इि प्रकार लागू िोंगे मानों िि िाद िो।''

[6क. प्रनतिादी द्िारा प्रनतदािा- (1) िाद में प्रनतिाद ननयम 6 के अधीन मज
1
ु रा के असभिचन के

151
अपने अधधकार के अनतररक्त िाद के दािे के विरुद्ध प्रनतदािे के रूप में क्रकिी ऐिे अधधकार या दािे को,
जो िाद के विरुद्ध प्रनतिाद को, िाद फाइल क्रकए जाने के पि
ू ि या पश्चात ् क्रकन्तु प्रनतिाद द्िारा अपनी
प्रनतरिा पररत क्रकए जाने के पि
ू ि या अपनी प्रनतरिा पररदि क्रकए जाने के सलए पररिीसमत िमय का
अििान िो जाने के पि ू ,ि क्रकिी िाद-िे तक
ु के बारे में प्रोद्भत
ू िुआ िो, उठा िकेगा चािे ऐिा प्रनतदािा
नक
ु िानी के दािे के रुप में िो या नि ं :
परन्तु ऐिा प्रनतदािा न्यायालय की अधधकाररता की धन-िंबध
ं ी िीमाओं िे अधधक नि ं िोगा।
(2) ऐिे प्रनतदािे का प्रभाि प्रतीपिाद के प्रभाि के िमान ि िोगा र्जििे न्यायालय एक ि िाद में
मल
ू दािे और प्रनतदािे दोनों के िंबध
ं में अंनतम ननणिय िन
ु ाने के सलए िमथि िो जाए।
(3) िाद को इि बात की स्ितंत्रता िोगी क्रक िि प्रनतिाद के प्रनतदािे के उिर में सलणखत कथन
ऐिी अिधध के भीतर जो न्यायालय द्िारा ननयत की जाए, फाइल करे ।
(4) प्रनतदािे को िादपत्र के रूप में माना जाएगा और उिे िि ननयम लाए-िोंगे जो िादपत्रों को
लाग-ू िोते िैं।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 58 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्तःस्थावपत क्रकया गया ।

6ख. प्रनतदािे का कथन क्रकया जाना- जिााँ कोई प्रनतिाद , प्रनतदािे के अधधकार का िमथिन करने
िाले क्रकिी आधार पर ननभिर करता िै ििााँ िि अपने सलणखत कथन में यि विननहदि ष्टत: कथन करे गा क्रक
िि ऐिा प्रनतदािे के रुप में कर रिा िै ।

6ग. प्रनतदािे का अपिजवन- जिााँ प्रनतिाद कोई प्रनतदािा उठाता िै और िाद यि दल ल दे ता िै क्रक
उिके द्िारा उठाए गए दािे का ननपटारा प्रनतदािे के रुप में नि ं िरन ् स्ितंत्र िाद में क्रकया जाना चाहिए,
ििााँ िाद प्रनतिाद के िंबध
ं में वििाद्यकों के तय क्रकए जाने के पि
ू ि क्रकिी भी िमय न्यायालय िे इि
आदे श के सलए आिेदन कर िकेगा क्रक ऐिे प्रनतदािे का अपिजिन क्रकया जाए और न्यायालय ऐिे आिेदन
की िन
ु िाई करने पर ऐिा आदे श कर िकेगा जो िि ठीक िमझे ।

6घ. िाद के बंद कर हदए जाने का प्रिाि- यहद क्रकिी ऐिे मामले में र्जिमें प्रनतिाद कोई प्रनतदािा
उठाता िै , िाद का िाद रोक हदया जाता िै , बंद या खाररज कर हदया जाता िै तो ऐिा िोने पर भी प्रनतदािे
पर कायििाि की जा िकेगी।

6ि. प्रनतदािे का उिर दे ने में िादी द्िारा व्यनतिम- यहद िाद प्रनतिाद द्िारा क्रकए गए प्रनतदािे
का उिर प्रस्तत
ु करने में व्यनतिम करता िै तो न्यायालय िाद के विरुद्ध उि प्रनतदािे के िम्बन्ध में जो
उिके विरुद्ध क्रकया गया िै , ननणिय िन
ु ा िकेगा या प्रनतदािे के िम्बन्ध में ऐिा आदे श कर िकेगा जो िि
ठीक िमझे।

6च. जिां प्रनतदािा िफल िोता िै ििां प्रनतिादी को अनत


ु ोष- जिां क्रकिी िाद में िाद के दािे के
विरुद्ध प्रनतरिा के रूप में मज
ु रा या प्रनतदािा सिद्ध कर हदया जाता िै और कोई ऐिा अनतशेष पाया जाता
िै जो, यथार्स्थनत, िाद या प्रनतिाद को शोध्य िै ििां न्यायालय ऐिे पिकार के पि में जो ऐिे अनतशेष
के सलए िकदार िो, ननणिय दे िकेगा ।

152
6छ. सलखखत कथन िे िंबधं धत ननयमों का लागू िोना- प्रनतिाद द्िारा हदए गए सलणखत कथन िे
िम्बर्न्धत ननयम प्रनतदािे के उिर में फाइल क्रकए गए सलणखत कथन को भी लागू िोंगे ।]

7. पथ
ृ क् आधारों पर आधाररत प्रनतरक्षा या मज
ु रा- जिां प्रनतिाद पथ
ृ क और िसु भन्न तथ्यों पर
आधाररत प्रनतरिा के या मज
ु रा के [या प्रनतदािे के] कई िसु भन्न आधारों पर ननभिर करता िै ििां उनका
1

कथन जिां तक िो िके, पथ


ृ कत: और िसु भन्नत: क्रकया जाएगा ।
8. प्रनतरक्षा का नया आधार- प्रनतरिा का कोई भी ऐिा आधार जो िाद के िंर्स्थत क्रकए जाने के
या मज ु रा का दािा करने िाले सलणखत कथन के या प्रनतदािे के उपर्स्थत क्रकए जाने के पश्चात ् पैदा िुआ िै ,
यथार्स्थनत, प्रनतिाद या िाद द्िारा अपने सलणखत कथन में उठाया जा िकेगा।
3
[8क. .... ननरसित

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 58 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्तःस्थावपत क्रकया गया
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 58 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया गया
3. सिविल प्रक्रिया िंहिता! िंशोधन अधधननयम 1999 के द्िारा ननयम 8क ननरसित ।
4. 2002 के अधधननयम िं. 22 की धारा 9 द्िारा (1-7-2002 िे) ननयम 9 के स्थान पर
प्रनतस्थावपत ।

1
[9. पश्चातिती असििचन- प्रनतिाद के सलणखत कथन के पश्चात कोई भी असभिचन, जो मज
ु रा के
या प्रनतदािे के विरुद्ध प्रनतरिा िे सभन्न िो, न्यायालय की इजाजत िे ि और ऐिे ननबंधनों पर, जो
न्यायालय ठीक िमझे, उपर्स्थत क्रकया जाएगा, अन्यथा नि ं, क्रकं तु न्यायालय, पिकारों में क्रकिी िे भी
सलणखत कथन या अनतररक्त सलणखत कथन क्रकिी भी िमय अपेक्षित कर िकेगा और उिे उपर्स्थत करने
के सलए तीि हदन िे अनधधक का िमय ननयत कर िकेगा ।

1
[10. जब न्यायालय द्िारा अपेक्षक्षत सलखखत कथन को उपस्स्थत करने में पक्षकार अिफल रिता िै
तब प्रक्रिया- जिां ऐिा कोई पिकार, र्जििे ननयम 1 या ननयम 9 के अधीन सलणखत कथन अपेक्षित िै ,
उिे, न्यायालय द्िारा, यथार्स्थनत, अनज्ञ
ु ात या ननयत िमय के भीतर उपर्स्थत करने में अिफल रिता िै
ििां न्यायालय, उिके विरुद्ध ननणिय िन
ु ाएगा या िाद के िंबध
ं में ऐिा आदे श करे गा जो िि ठीक िमझे
और ऐिा ननणिय िन
ु ाए जाने के पश्चात ् डडिी तैयार की जाएगी ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


म.प्र. उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- अधधिच
ू ना हदनांक 16.9.1960 के द्िारा ननम्नानि
ु ार ननयमों
को जोडा गया िै -
11. रस्जस्टिव पता- प्रत्येक िाद में प्रनतिाद या क्रकिी अन्य कायििाि में प्रनतपि न्यायालय में
उिकी उपर्स्थनत की प्रथम हदनांक को उि पर क्रकिी पश्चातिती कायििाि की तामील का पता दे ते एक
ज्ञापन फाइल करे गा। पता सिविल र्जले की स्थानीय िीमाओं के अन्तगित िोगा र्जिमें िाद या याधचका को
ननयत क्रकया गया िै और यहद ऐिे सिविल र्जले की िीमाओं के भीतर का पता िवु िधापि
ू क
ि न हदया न
हदया जा िकता िो तो उि सिविल र्जले की स्थानीय िीमाओं के भीतर का र्जिमें िि िामान्यत: ननिाि
करता िै िोगा।
इि पते को ''रर्जस्टडि पता'' किा जाएगा और इिे िंपण
ू ि अन्तिितीय कायििाि एिं अपील में ि

153
अंनतम ननणिय िे दो िषों की अन्यथा अिधध के सलए भी ि िभी प्रयोजनों ननष्पादन को शासमल करते िुए
मान्य िोगा।

12. रस्जस्टिव पता फाइल न करने का पररणाम- (1) यहद ननयम 11 द्िारा अपेक्षित रर्जस्टडि पता
को प्रस्तत
ु करने में प्रनतिाद या प्रनतपि विफल रिता िै तो, न्यायालय के वििेक पर, उिकी प्रनतरिा,यहद
कोई िो, िमार्प्त के सलए दायीं िो जाएगी और िि उि र्स्थनत में िो जाएगा मानों उिने प्रनतरिा न की िो

1. 2002 के अधधननयम िं. 22 की धारा 9 द्िारा (1-7-2002 िे) ननयम 10 के स्थान पर


प्रनतस्थावपत ।
इि िंबध
ं में न्यायालय स्िप्रेरणा िे या क्रकिी पि के आिेदन पर आदे श कर िकेगी ।
(2) जिां उपननयम (1) के अन्तगित न्यायालय ने प्रनतरिा िमाप्त कर द िै और िाद या कायििाि
की िन
ु िाई को स्थधगत कर हदया िै और जिां प्रनतिाद या प्रनतपि ऐिी िन
ु िाई या उिके पि
ू ि उपर्स्थत
िोता िै और उिके द्िारा रर्जस्टडि पता प्रस्तनु त में विफल िोने का िमधु चत कारण दशािता िै तो न्यायालय
उिके विरुद्ध पाररत डडिी या आदे श को कास्ट या अन्यथा ऐिे ननबंधनों पर जो क्रक िि उपयक्
ु त िमझता
िै िाद या कायििाि के उिर में िन
ु े जाने के सलए ननदे सशत कर िकेगा मानों उिकी प्रनतरिा िमाप्त न िुई
िो ।
(3) जिां उपननयम (1) के अन्तगित न्यायालय ने प्रनतरिा िमाप्त कर द िै और बाद में डडिी या
आदे श पाररत कर हदया िै तो जैिा भी मामला िो, प्रनतिाद या प्रनतपि, ऐिे न्यायालय को र्जिके द्िारा
डडिी या आदे श पाररत क्रकया गया था, डडिी या आदे श को अपास्त करने के सलए आिेदन कर िकेगा और
यहद िि रर्जस्टडि पता फाइल करता िै और न्यायालय की यि िंतर्ु ष्ट कर दे ता िै क्रक िि पता प्रस्तत

करने िे क्रकिी िमधु चत कारणिश प्रिाररत कर हदया गया था, तो न्यायालय उिके विरुद्ध पाररत डडिी या
आदे श को कास्ट या अन्यथा ऐिे ननबंधनों पर जो क्रक िि उपयक्
ु त िमझता िै , अपास्त करने के सलए
आदे श पाररत कर िकेगा और िि िाद या कायििाि के सलए हदनांक ननयत करे गा । मानों उिकी प्रनतरिा
िमाप्त न िुई िो ।
इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- अधधिच
ू ना हदनांक 1.6.1918 के द्िारा आदे श 8 में
ननम्नानि
ु ार ननयमों को जोडा गया िै -
''11. प्रत्येक पिकार चािे िि मल
ू िो जोड़ा गया िो अथिा प्रनतस्थावपत क्रकया गया िो जो क्रक िाद
या कायििाि में उपर्स्थत िोता िै , तामील या िच
ू नापत्र मे िन
ु िाई के सलए ननयत की गयी तार ख को या
उिके पि
ू ि न्यायालय में हिन्द दे िनागर सलवप में सलणखत तामील के सलए उिके पते को बताते िुए उिे
फाइल करने की कायििाि करे गा और यहद िि ऐिा करने में विफल रिता िै तो िि उिकी प्रनतरिा, यहद
कोई िो, िमार्प्त के सलए दायी िो जाएगा और उि र्स्थनत में िो जाएगा मानों उिने प्रनतरिा न की िो ।
इि िंबध
ं में न्यायालय स्िप्रेरणा िे या क्रकिी पि के आिेदन पर इि प्रभाि का कृत्य कर िकेगी और
न्यायालय ऐिा आदे श कर िकेगी जो क्रक िि उधचत िमझे ।
12. आदे श 7 के ननयम 20, 22, 23, 24 ि 25 यथाशक्य पि
ू ि
ि ती ननयम के अन्तगित तामील के
पते के सलए लागू िोंगे ।
पटना उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- ननम्नानि
ु ार ननयमों को जोडड़ए--
''11. प्रत्येक पिकार चािे िि मल
ू िो, जोडा गया िो अथिा प्रनतस्थावपत क्रकया गया िो जो क्रक िाद
या कायििाि में उपर्स्थत िोता िै तामील, िच
ू नापत्र या उि पर ननिािहित अन्य आदे सशका में िन
ु िाई में

154
प्रविष्ट िोने के िमय तामील िे तु उिके पते को बताते िुए एक वििरण फाइल करे गा और यहद िि ऐिा
करने में विफल रिता िै तो िि उिकी प्रनतरिा, यहद कोई िो, िम्पनत के सलए दायी िो जाएगा और उि
र्स्थनत में िो जाएगा मानों उिने प्रनतरिा न की िो । इि िंबध
ं में न्यायालय स्िप्रेरणा िे या क्रकिी पि
के आिेदन पर इि प्रभाि का कृत्य कर िकेगी और न्यायालय ऐिा आदे श कर िकेगी जो क्रक िि उधचत
िमझे ।
12. आदे श 7 के ननयम 20 ि 22 यथाशक्य पि
ू ि
ि ती ननयम के अन्तगित तामील के पते के सलए
लागू िोंगे । ''

आदे श 9
पक्षकारों की उपिंजानत और उनकी अनप
ु िंजानत का पररणाम
1. पक्षकार उि हदन उपिंजात िोंगे जो प्रनतिादी के उपिंजात िोने और उिर दे ने के सलए िमन में
ननयत िैं- जो हदन प्रनतिाद के उपिंजात िोने और उिर दे ने के सलए िमन में ननयत िै उि हदन पिकार
स्ियं या अपने-अपने प्ल डरों द्िारा न्याय िदन में िार्जर रिें गे और, तब के सििाय जबक्रक िन
ु िाई
न्यायालय द्िारा ननयत क्रकिी भविष्यिती हदन के सलए स्थधगत कर द जाएगी िाद उि हदन िन
ु ा जाएगा।

[2. जिां िमनों की तामील. खचे दे ने में िादी के अिफल रिने के पररणामस्िरुप निीं िुई िै ििां
1

िाद का खाररज क्रकया जाना- जिां ऐिे ननयत हदन को यि पाया जाए क्रक प्रनतिाद पर िमन की तामील
इिसलए नि ं िुई िै क्रक न्यायालय फीि या डाक मििल ू , यहद कोई िो, जो ऐिी तामील के सलए प्रभायि िै ,
दे ने में या आदे श 7 के ननयम 9 द्िारा अपेक्षित िाद-पत्र की प्रनतयां उपर्स्थत करने में िाद अिफल रिा िै
ििां न्यायालय यि आदे श कर िकेगा क्रक िाद खाररज कर हदया जाए:
परं तु ऐिी अिफलता के िोते िुए भी, यहद प्रनतिाद उि हदन, जो उिके उपिंजात िोने और उिर
दे ने के सलए ननयत िै , स्ियं पर जब िि असभकताि के द्िारा उपिंजात िोने के सलए अनज्ञ
ु ात िै , असभकताि
के द्िारा उपिंजात िो जाता िै तो ऐिा कोई आदे श नि ं क्रकया जाएगा ।

1. 2002 के अधधननयम िं. 22 की धारा 10 द्िारा (1-7-2002 िे) ननयम 2 के स्थान पर


प्रनतस्थावपत ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- ननयम 2 में शब्दों ''न्यायालय फीि या डाक मििल
ू '' के
स्थान पर शब्दों ''न्यायालय फीि या डाक मििल
ू या अन्य व्यय'' को प्रनतस्थावपत क्रकया जाएगा।
3. जिां दोनों में िे कोई िी पक्षकार उपिंजात निीं िोती िै ििां िाद का खाररज क्रकया जाना- जिां
िाद की िन
ु िाई के सलए पक
ु ार िोने पर कोई भी पिकार उपिंजात नि ं िोता िै ििा न्यायालय यि आदे श
दे िकेगा क्रक िाद खाररज कर हदया जाए।
4. िादी नया िाद ला िकेगा या न्यायालय िाद को फाइल पर प्रत्यािनतवत कर िकेगा- जिां िाद
ननयम 2 या ननयम 3 के अधीन खाररज कर हदया जाता िै ििां िाद नया िाद (पररिीमा विधध के अधीन
रिते िुए) ला िकेगा या िि उि खाररजी को अपास्त कराने के आदे श के सलए आिेदन कर िकेगा और
यहद िि न्यायालय का िमाधान कर दे ता िै क्रक, 1[यथार्स्थनत, ननयम 2 में ननहदिष्ट अिफलता के सलए] या
उिकी अपनी अनप
ु िंजानत के सलए पयािप्त िे तक
ु था तो न्यायालय खाररजों को अपास्त करने के सलए
आदे श करे गा और िाद में आगे कायििाि करने के सलए हदन ननयत करे गा ।

155
उच्च न्यायालय िंशोधन
मध्य प्रदे श उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- मध्य प्रदे श उच्च न्यायालय के द्िारा मल
ू ननयम 4
को 4(1) कर हदया िै ि उिके उपरांत ननम्न ननयम 4(2) जोडा गया िै -
''(2) पररिीमा अधधननयम, 1908 के प्रािधान इि ननयम के अन्तगित आिेदन को भी प्रयोज्य
िोंगे।''
गज
ु रात उच्च न्यायालय दारा िंशोधन- गज
ु रात उच्च न्यायालय के द्िारा मल
ू ननयम 4 को 4(1)
कर हदया िै ि उिके उपरांत ननम्न ननयम 4(2) जोडा गया िै -
''(2) पररिीमा अधधननयम, 1908 के प्रािधान इि ननयम के अन्तगित आिेदन को भी प्रयोज्य िोंगे |''

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 19 द्िारा (1-2-1977 िे) कुछ शब्द के स्थान पर
प्रनतस्थावपत ।

5. जिां िादी, िमन तामील के बबना लौटने के पश्चात ् एक माि तक िमन के सलए आिेदन करने
में अिफल रिता िै ििां िाद का खाररज क्रकया जाना- 1[(1) जिां िमन प्रनतिाद या कई प्रनतिाहदयों में िे
एक के नाम ननकाले जाने और तामील के बबना लौटाए जाने के पश्चात ् उि तार ख िे 2
[िात हदन] की
अिधध तक, र्जिकी न्यायालय को उि अधधकार ने वििरणी द िै , जो तामील करने िाले अधधकाररयों
द्िारा द जाने िाल वििरणणयों को न्यायालय को मामल
ू तौर िे प्रमाणणत करता िै , िाद न्यायालय िे
नए िमन ननकालने के सलए आिेदन करने में अिफल रिता िै ििां न्यायालय यि आदे श करे गा क्रक िाद
ऐिे प्रनतिाद के विरुद्ध खाररज कर हदया जाए क्रकं तु यहद िाद ने न्यायालय का यि िमाधान उक्ि अिधध
के भीतर कर हदया िै क्रक-
(क) र्जि प्रनतिाद पर तामील नि ं िुई िै उिके ननिाि-स्थान का पता चलाने में िि अपने
ििोिम प्रयाि करने के पश्चात ् अिफल रिा िै , अथिा
(ख) ऐिा प्रनतिाद आदे सशका की तामील िोने दे ने िे अपने को बचा रिा िै , अथिा
(ग) िमय को बढाने के सलए कोई अन्य पयािप्त कारण िै ,
तो ऐिा आिेदन करने के सलए िमय को न्यायालय इतनी अनतररक्त अिधध के सलए बढ़ा िकेगा
र्जतनी िि ठीक िमझे।]
(2) ऐिी दशा में िाद (पररिीमा विधध के अधीन रिते िुए) नया िाद ला िकेगा ।

1. 1920 के अधधननयम िं. 24 की धारा 2 द्िारा उपननयम (1) के स्थान पर प्रनतस्थावपत ।


2. 1999 के अधधननयम िं. 46 की धारा 19 द्िारा (1-7-2002 िे) ''एक माि'' के स्थान पर
प्रनतस्थावपत ।
6. जब केिल िादी उपिंजात िोता िै तब प्रक्रिया- (1) जिां िाद की िन
ु िाई के सलए पक
ु ार िोने
पर िाद उपिंजात िोता िै और प्रनतिाद उपिंजात नि ं िोता िै ििां-
[(क) जब िमन की तामील िम्यक् रुप िे की गई िै - यहद यि िाबबत िो जाता िै क्रक िमन की
1

तामील िम्यक् रुप िे की गई थी तो न्यायालय आदे श कर िकेगा क्रक िाद की एकपिीय िन


ु िाई की जाए,
(ख) जब िमन की तामील िम्यक् रुप िे निीं की गई िै - यहद यि िाबबत नि ं िोता िै क्रक िमन
की तामील िम्यक रुप िे की गई थी तो न्यायालय आदे श दे गा क्रक दि
ू रा िमन ननकाला जाए और उिकी
तामील प्रनतिाद पर की जाए,

156
(ग) जब िमन की तामील तो िुई िो क्रकन्तु िम्यक् रुप िे निीं िुई िो- यहद यि िाबबत िो जाता
िै क्रक िमन की तामील तो प्रनतिाद पर िुई थी क्रकन्तु ऐिे िमय पर नि ं िुई थी क्रक िमन में ननयत हदन
को उपिंजात िोने और उिर दे ने को उिे िमथि करने के सलए उिे पयािप्त िमय समल जाता,
तो न्यायालय िाद की िन
ु िाई को न्यायालय द्िारा ननयत क्रकए जाने िाले क्रकिी भविष्यिती हदन
के सलए मप
ु तिी करे गा और ननदे श दे गा क्रक ऐिे हदन की िच
ू ना प्रनतिाद को द जाए।
(2) जिां िमन की िम्यक् रुप िे तामील या पयािप्त िमय के भीतर तामील िाद के व्यनतिम के
कारण नि ं िुई िै ििां न्यायालय िाद को आदे श दे गा क्रक मप
ु तिी िोने के कारण िोने िाले खचों को िि दे

उच्च न्यायालय िंशोधन


पटना उच्च न्यायालय दारा िंशोधन- अधधिच
ू ना हदनांक 6.5.1947 के द्िारा ननयम 6(1) (ग) में
शब्दों ''और ननदे श दे गा क्रक ऐिे हदन की िच
ू ना प्रनतिाद को द जाए।'' को विलोवपत कर हदया गया िै ।
1. 1976 के अधधननयम िं. द्िारा (1-2-1977 िे) खण्ड (क) के स्थान पर प्रनतस्थावपत।
राजस्थान उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- अधधिच
ू ना हदनांक 30-6-1956 के द्िारा ननयम
6(1) (क) में शब्दों '' न्यायालय आदे श कर िकेगा क्रक िाद की एकपिीय िन
ु िाई की जाए '' के
स्थान पर शब्दों '' न्यायालय एक पिीय कायििाि कर िकेगा ''
7. जिां प्रनतिादी स्थधगत िन
ु िाई के हदन उपिंजात िोता िै और पि
ू व अनप
ु िंजानत के सलए अच्छा
िे तक
ु हदखाता िै ििां प्रक्रिया- जिााँ न्यायालय ने एकपिीय रुप में िाद की िन
ु िाई स्थधगत कर द िै और
प्रनतिाद ऐिी िन
ु िाई के हदन या पिले उपिंजात िोता िै और अपनी पि
ू ि अनप
ु िंजानत के सलए अच्छा
िे तक
ु हदखाता िै ििां ऐिे ननबन्धनों पर जो न्यायालय खचों और अन्य बातों के बारे में ननहदष्ट करे उिे
िाद के उिर में उिी भांनत िन
ु ा जा िकेगा मानो िि अपनी उपिंजानत के सलए ननयत क्रकए गए हदन को
उपिंजात िुआ था ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


राजस्थान उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- अधधिच
ू ना हदनांक 30.6.1956 के द्िारा ननयम 7 के
स्थान पर ननम्न ननयम 7 को प्रनतस्थावपत क्रकया गया िै -
''7 जिां न्यायालय ने एक पिीय िन
ु िाई का आदे श करने के उपरांत एकपिीय रूप में िाद की
िनि
ु ाई स्थधगत कर द िै और प्रनतिाद ऐिी िन
ु िाई के हदन या पिले उपिंजात िोता िै और अपनी पि
ू ि
अनप
ु िंजानत के सलए अच्छा िे तक
ु हदखाता िै ििां ऐिे ननबन्धनों पर जो न्यायालय खचों और अन्य बातों
के बारे में ननहदष्ट करे िाद को एकपिीय रुप में िन
ु ने के आदे श को अपास्त कर िकेगा और उिे िाद के
उिर में उिी भांनत िन
ु ा जा िकेगा मानो िि अपनी उपिंजानत के सलए ननयत क्रकए गए हदन को उपिंजात
िुआ था ।''
8. जिां केिल प्रनतिादी उपिंजात िोता िै ििां प्रक्रिया- जिां िाद की िन
ु िाई के सलए पक
ु ार िोने
पर प्रनतिाद उपिंजात िोता िै और िाद उपिंजात नि ं िोता िै ििां न्यायालय यि आदे श करे गा क्रक िाद
को खाररज क्रकया जाए । क्रकन्तु यहद प्रनतिाद दािे या उिके भाग को स्िीकार कर लेता िै तो न्यायालय
ऐिी स्िीकृनत कर प्रनतिाद के विरुद्ध डडिी पाररत करे गा और जिा दािे का केिल भाग ि स्िीकार क्रकया
गया िो ििा िि िाद को ििां तक खाररज करे गा जिां तक उिका िम्बन्ध अिसशष्ट दािे िे िै ।
9. व्यनतिम के कारण िादी के विरुद्ध पाररत डििी नए िाद का िजवन करती िै - (1) जिां िाद
ननयम 8 के अधीन पण
ू त
ि : या भागत: खाररज कर हदया जाता िै ििां िाद उिी िाद िे तक
ु के सलए नया

157
िाद लाने िे प्रिाररत िो जाएगा । क्रकन्तु िि खाररजी को अपास्त करने के आदे श के सलए आिेदन कर
िकेगा और यहद िि न्यायालय का िमाधान कर दे ता िै क्रक जब िाद की िन
ु िाई के सलए पक
ु ार पड़ी थी
उि िमय उिकी अनप
ु िंजानत के सलए पयािप्त िे तक
ु था तो न्यायालय खचों या अन्य बातों के बारे में ऐिे
ननबन्धनों पर जो िि ठीक िमझे, खाररजी को अपास्त करने का आदे श करे गा और िाद में आगे कायििाि
करने के सलए हदन ननयत करे गा ।
(2) इि ननयम के अधीन कोई आदे श तब तक नि ं क्रकया जाएगा जब तक क्रक आिेदन की िच
ू ना
की तामील विरोधी पिकार पर न कर द गई िो ।
10. कई िाहदयों में िे एक या अधधक की गैरिास्जरी की दशा में प्रक्रिया- जिां एक िे अधधक िाद
िै और उनमें िे एक या अधधक उपिंजात िोते िैं और अन्य उपिंजात नि ं िोते िैं ििां न्यायालय
उपिंजात िोने िाले िाद या िाहदयों की प्रेरणा पर िाद को ऐिे आगे चलने दे िकेगा मानो िभी िाद
उपिंजात िुए िों, या ऐिा आदे श कर िकेगा जो िि ठीक िमझे ।

11. कई प्रनतिाहदयों में िे एक या अधधक की गैरिास्जरी की दशा में प्रक्रिया- जिां एक िे अधधक
प्रनतिाद िैं और उनमें िे एक या अधधक उपिंजात िोते िैं और अन्य उपिंजात नि ं िोते िैं ििां िाद आगे
चलेगा और न्यायालय ननणिय िन ु ाने के िमय उन प्रनतिाहदयों के िम्बन्ध में जो उपिंजात नि ं िुए िैं,
ऐिा आदे श करे गा जो िि ठीक िमझे ।

12. स्ियं उपिंजात िोने के सलए आहदष्ट पक्षकार के पयावप्त िे तक


ु दसशवत क्रकए बबना गैरिास्जर
रिने का पररणाम- जिां कोई िाद या प्रनतिाद , र्जिे स्ियं उपिंजात िोने के सलए आदे श क्रकया गया िै ,
स्ियं उपिंजात नि ं िोता िै या ऐिे उपजात िोने िे अिफल रिने के सलए पयािप्त िे तक
ु न्यायालय को
िमाधानप्रद रूप में दसशित नि ं करता िै ििां िि पि
ू ग
ि ामी ननयमों के उन िभी उपबन्धों के अधीन िोगा जो
ऐिे िाहदयों और प्रनतिाहदयों को जो उपिंजात नि ं िोते िैं यथार्स्थनत लागू िोते िैं ।

एकपक्षीय डिक्रियों को अपास्त करना


18. प्रनतिादी के विरुद्ध एकपक्षीय डििी को अपास्त करना- क्रकिी ऐिे मामले में र्जिमें डडिी
क्रकिी प्रनतिाद के विरुद्ध एकपिीय पाररत की गई िै , िि प्रनतिाद उिे अपास्त करने के आदे श के सलए
आिेदन उि न्यायालय में कर िकेगा र्जिके द्िारा िि डडिी पाररत की गई थी और यहद िि न्यायालय
का यि िमाधान कर दे ता िै क्रक िमन की तामील िम्यक् रुप िे नि ं की गई थी या िि िाद की िन
ु िाई
के सलए पक
ु ार िोने पर उपिंजात िोने िे क्रकिी पयािप्त िे तक
ु िे ननिाररत कर रिा था तो खचों के बारे में ,
न्यायालय में जमा करने के या अन्यथा ऐिे ननबन्धनों पर जो िि ठीक िमझे, न्यायालय यि आदे श करे गा
क्रक जिां तक डडिी उि प्रनतिाद के विरुद्ध िै ििा तक िि अपास्त कर द जाए, और िाद में आगे
कायििाि करने के सलए हदन ननयत करे गा:
परन्तु जिां डडिी ऐिी िै क्रक केिल ऐिे प्रनतिाद के विरुद्ध अपास्त नि ं की जा िकती ििां िि
अन्य िभी प्रनतिाहदयों या उनमें िे क्रकिी या क्रकन्ि ं के विरुद्ध भी अपास्त की जा िकेगी :
1
[परन्तु यि और क्रक यहद क्रकिी न्यायालय का यि िमाधान िो जाता िै क्रक प्रनतिाद को िन
ु िाई
की तार ख की िच
ू ना थी और उपिंजात िोने के सलए और िाद के दािे का उिर दे ने के सलए पयािप्त िमय
था तो िि एकपिीय पाररत डडिी को केिल इि आधार पर अपास्त नि ं करे गा क्रक िमन की तामील में
अननयसमतता िुई थी ।]
2
[स्पष्टीकरण- जिां इि ननयम के अधीन एकपिीय पाररत डडिी के विरुद्ध अपील की गई िै और

158
अपील का ननपटारा इि आधार पर सभन्न क्रकिी आधार पर कर हदया गया िै क्रक अपीलाथी ने अपील िापि
ले ल िै ििां उि एकपिीय डडिी को अपास्त करने के सलए इि ननयम के अधीन कोई आिेदन नि ं िोगा
|]

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 59 द्िारा (1-2-1977 िे) जोडा गया ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 59 द्िारा (1-2-1977 िे) अतःस्थावपत क्रकया गया ।

उच्च न्यायलय िंशोधन


मध्य प्रदे श उच्च न्यायलय द्िारा िंशोधन- अधधिच
ू ना हदनांक 16.9.1960 के द्िारा ननम्न
िंशोधन क्रकये गये-
(1) अर्स्तत्ियक्
ु त ननयम 13 को उपननयम (1) के रूप में पन
ु ििमंक्रकत क्रकया जाएगा और शब्दों
“िि िाद की िन
ु िाई के सलए पक
ु ार िोने उपिंजात िोने िे क्रकिी पयािप्त िे तक
ु िे ननिाररत रिा था” के
स्थान पर शब्दों “उपर्स्थत िोने में उिकी विफलता का िमधु चत कारण था” को प्रनतस्थावपत क्रकया जाएगा |
(2) ननम्नानि
ु ार अनतररक्त परं तक
ु ि स्पष्ट करण जोड़ा गया-
“परन्तु यि भी क्रक ऐिी कोई डडिी मात्र तामील में अननयसमतता के आधार पर अपास्त नि ं की
जाएगी क्रक यहद न्यायलय की यि िंतर्ु ष्ट िो जाती िै क्रक प्रनतिाद को तार ख के जानकार थी अथिा उिके
जानबझ
ू कर आचरण िे िमधु चत िमय में ताकी उपिंजात िोने में और िाद के दािे के उिर दे ने में िमथि
िो िके |
स्पष्टीकरण- जिााँ आदे श 5 ननयम 15 के अंतगित िाद की विषय िस्तु में उि प्रनतिाद पर
प्रनतकूल रखने िाले ियस्क परु
ु ष िदस्य पर तामील ननिािहित की जाती िै ,तो इि ननयम के आशय के
अधीन इिे िम्यक तौर पर ननिािहित िोना नि ं िमझा जािेगा”|
इलािबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- िंशोधन के द्िारा ननम्नानि
ु ार अन्य परं तक
ु भी जोड़ा
गया िै -
“परन्तु यि भी ऐिी कोई डडिी मात्र तामील में अननयसमतता के आधार पर अपास्त नि ं क्रक जाएगी
क्रक यहद न्यायलय की यि िंतर्ु ष्ट िो जाती िै क्रक प्रनतिाद को तार ख की जानकार थी अथिा उिके
जानबझ
ू कर आचरण िे िमधु चत िमय में ताक्रक उपिंजात िोने में और िाद के दािे के उिर दे ने में िमथि
िो िके |”

14. कोई िी डििी विरोधी पक्षकार को िच


ू ना के बबना अपास्त निीं की जाएगी- कोई भी डडिी
पि
ू ोक्ि जैिे क्रकिी भी आिेदन पर तब तक अपास्त नि ं की जाएगी जब तक क्रक उिकी िच
ू ना की तामील
विरोधी पिकार पर न क र द गई िो ।

आदे श 10
न्यायालय द्िारा पक्षकारों की परीक्षा

1. यि असिननश्चय करना क्रक असििचनों में के असिकथन स्िीकृत िैं या प्रत्याख्यात िैं- न्यायालय
िर एक पिकार िे या उिके प्ल डर िे िाद की प्रथम िन
ु िाई में यि असभननर्श्चत करे गा क्रक क्या िि
तथ्य के उन असभकथनों को जो िादपत्र में या यहद विरोधी पिकार का कोई सलणखत कथन िै तो उिमें
क्रकए गए िैं और जो उि पिकार द्िारा र्जिके विरुद्ध िे क्रकए गए िैं, असभव्यक्त रूप िे या आिश्यक

159
विििा िे स्िीकार या प्रत्याख्यात नि ं क्रकए गए िैं, स्िीकार करता िै या प्रत्याख्यात करता िै । न्यायालय
ऐिी स्िीकृनतयों और प्रत्याख्यानों को लेखबद्ध करे गा ।

[1क. िैकस्ल्पक वििाद िमाधान के क्रकिी एक तरीके के सलए विकल्प दे ने के सलए न्यायालय का
1

ननदे श- स्िीकृनतयों और प्रत्याख्यानों को असभसलणखत करने के पश्चात ् न्यायालय िाद के पिकारों को धारा
89 की उपधारा (1) में विननहदि ष्ट रुप िे न्यायालय के बािर िमझौते के क्रकिी भी तर के का विकपप दे ने
के सलए ननदे श दे गा । पिकारों के विकपप पर न्यायालय ऐिे मंच या प्राधधकार के िमि, जो पिकारों
द्िारा विकपप हदया जाए, उपिंजात िोने की तार ख ननयत करे गा ।

1ख. िल
ु ि मंच या प्राधधकरण के िमक्ष उपिंजात िोना िोना- जिां कोई िाद ननयम 1क के अधीन
विननहदिष्ट क्रकया जाता िै ििां पिकार िाद के िल
ु ि के सलए ऐिे मच या प्राधधकरण के िमि उपिंजात
िोंगे ।

1ग. िल
ु ि के प्रयािों के अिफल िोने के पररणामस्िरुप न्यायालय के िमक्ष उपिंजात िोना- जिां
कोई िाद ननयम 1क के अधीन ननहदि ष्ट क्रकया जाता िै और िल
ु ि मंच या प्राधधकरण के पीठािीन अधधकार
का यि िमाधान िो जाता िै क्रक मामले में आगे कायििाि करना न्याय के हित में उधचत नि ं िोगा तो िि
न्यायालय को पन
ु : मामला ननहदि ष्ट करे गा और पिकारों को उिके द्िारा ननयत तार ख को न्यायालय के
िमि उपिंजात िोने के सलए ननदे श दे गा । ]।

1. 1999 के अधधननयम िं. 46 की धारा 20 द्िारा (1-7-2002 िे) अंत : स्थावपत ।

[2. पक्षकार की या पक्षकार के िाथी की मौखखक परीक्षा- (1) न्यायालय िाद की प्रथम िन
1
ु िाई में -
(क) पिकारों में िे ऐिे पिकारों की जो न्यायालय में स्ियं उपिंजात िैं या उपर्स्थत िैं, िाद में
वििादग्रस्त बातों के विशद करण की दृर्ष्ट िे मौणखक पर िा करे गा जो िि ठीक िमझे; और
(ख) िाद िे िंबधं धत क्रकन्ि ं तार्त्िक प्रश्नों के उिर दे ने में िमथि ऐिे क्रकिी व्यर्क्त की, जो
न्यायलय में स्ियं उपिंजात याउपर्स्थत पिकार या उिके प्ल डर के िाथ िै , मौणखक पर िा कर िकेगा |
(2) न्यायालय क्रकिी पश्चातिती
् िन
ु िाई में , न्यायालय में स्िय उपिंजात या उपर्स्थत पिकार की
या िाद िे िंबधं धत क्रकन्ि ं तार्त्िक प्रश्नों के उिर दे ने में िमथि ऐिे क्रकिी व्यर्क्त की, जो ऐिे पिकार या
उिके प्ल डर के िाथ िै , मौणखक पर िा कर िकेगा ।
(3) यहद न्यायालय ठीक िमझे तो िि दोनों पिकारों में िे क्रकिी के भी द्िारा िझ
ु ाए गए प्रश्नों
को इि ननयम के अधीन क्रकिी पर िा के दौरान पछ
ू िकेगा ।]
3. परीक्षा का िार सलखा जाएगा- पर िा का िार न्यायधीश द्िारा सलखा जाएगा और िि असभलेख
2

का भाग िोगा ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 60 द्िारा (1-2-1977 िे) ननयम 2 के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
2. यि ननयम अिध के मख्
ु य न्यायालय को लागू नि ं िोता िै । दे णखए अिध कोरि ि ऐक्ट, 1925
(1925 का यप
ू ी. अधधननयम िं. 4) की धारा 16 (2) ।

160
4. उिर दे ने िे प्लीिर के इंकार का या उिर दे ने में उिकी अिमथवता का पररणाम- (1) जिां
प्ल डर द्िारा उपिंजात िोने िाले पिकार का प्ल डर या प्ल डर के िाथ िाला ऐिा व्यर्क्त जो ननयम 2 में
ननहदि ष्ट िै , िाद िे िंबधं धत क्रकिी ऐिे तार्त्िक प्रश्न का उिर दे ने िे इंकार करता िै या उिर दे ने में
अिमथि रिता िै , र्जिके बारे में न्यायालय की राय िै क्रक उिका उिर उि पिकार को दे ना चाहिए र्जिका
िि प्रनतननधधत्ि करता िै और यि िंभि िै क्रक यहद स्ियं पिकार िे पररप्रश्न क्रकया जाए तो िि उिका
उिर दे ने में िमथि िोगा, ििां न्यायालय 1[िाद की िन
ु िाई क्रकिी ऐिे हदन के सलए जो पिल िन
ु िाई की
तार ख िे िात हदन िे पश्चात ् का न िो, मप
ु तिी कर िकेगा] और ननदे श दे िकेगा क्रक ऐिा पिकार उि
हदन स्िय उपिंजात िो ।
(2) यहद ऐिे ननयत हदन पर ऐिा पिकार विधधपण
ू ि प्रनतिे तू के बबना स्ियं उपिंजात िोने में
अिफल रिता िै तो न्यायालय उिके विरुद्ध ननणिय िन
ु ा िकेगा या िाद के िम्बन्ध में ऐिा आदे श कर
िकेगा जो िि ठीक िमझे ।
आदे श 11
प्रकटीकरण और ननरीक्षण

1. पररप्रश्नों द्िारा प्रकटीकरण कराना- क्रकिी भी िाद में िाद या प्रनतिाद विरोधी पिकारों या ऐिे
पिकारों में िे क्रकिी एक या अधधक की पर िा करने के सलए सलणखत पररप्रश्न न्यायालय की इजाजत िे
पररदि कर िकेगा और पररदि क्रकए जाते िमय पररप्रश्नों में यि पाद हटप्पण िोगा क्रक ऐिे व्यर्क्तयों में
िे िर एक ऐिे पररप्रश्नों में िें क्रकनका उिर दे ने के सलए अपेक्षित िै : परन्तु कोई भी प िकार एक ि
पिकार को पररप्रश्न के एक िंिगि िे अधधक उि प्रयोजन के सलए आदे श के बबना पररदि नि ं करे गा :
परन्तु यि और भी क्रक िे पररप्रश्न जो िाद में प्रश्नगत क्रकन्ि ं विषयों िे िंबधं धत नि ं िै इि बात के िोते
िुए भी वििंगत िमझे जाएंगे क्रक िा िी की मौणखक प्रनतपर िा करने में िे ग्राह्य िोते ।

1. 1999 के अधधननयम िं. 46 की धारा 20 द्िारा (1-7-2002 िे) कनतपय शब्दो के स्थान पर
प्रनतस्थावपत ।

2. विसशष्ट पररप्रश्नों का हदया जाना- पररप्रश्नों के पररदान के सलए इजाजात के सलए आिेदन पर िे
विसशष्ट पररप्रश्न र्जनका पररदान क्रकए जाने की प्रस्थापना िै , न्यायालय के िमि रखे जाएंगे 1[और िि
न्यायालय उक्त आिेदन के फाइल क्रकए जाने के हदन िे िात हदन के भीतर विननश्चय करे गा] ऐिे आिेदन
पर विननश्चय करने में न्यायालय क्रकिी ऐिी प्रस्थापना पर भी विचार करे गा जो उि पिकार ने र्जििे
पररप्रश्न क्रकया जाता िै प्रश्नगत बातों या उनमें िेक्रकिी िे िंबधं धत विसशर्ष्टयों को पररदि करने या
स्िीकृनतयां करने या दस्तािेजें पेश करने के सलए की िों और उिके िमि रखे गए पररप्रश्नों में िे केिल
ऐिे पररप्रश्नों के िंबध
ं में इजाजत द जाएगी र्जन्िें न्यायालय या तो िाद के ऋजु ननपटारे के सलए या
खचों में बचत करने के सलए आिश्यक िमझे ।

3. पररप्रश्नों के खचे- िाद के खचों का िमायोजन करने में ऐिे पररप्रश्नों के प्रदशिन के औधचत्य के
िम्बन्ध में जांच क्रकिी पिकार की प्रेरणा पर की जाएगी और यहद विननधािरक अधधकार या न्यायालय की
राय जांच के सलए आिेदन पर या ऐिे आिेदन के बबना यि िो क्रक ऐिे पररप्रश्न अयर्ु क्तयक्
ु तत: तग करने
के सलए या अनधु चत विस्तार के िाथ प्रदसशित क्रकए गए िैं तो उक्त पररप्रश्नों और उनके उिरों के कारण िुए
खचे िर िालत में उि पिकार द्िारा हदए जाएंगे र्जिने यि किरू क्रकया िै ।

161
4. पररप्रश्नों का प्ररूप- पररप्रश्न पररसशष्ट ग के प्ररुप िंख्यांक 2 में ऐिे फेरफार के िाथ िोंगे जो
पररर्स्थनतयों में अपेक्षित िों ।

1. 1999 के अधधननयम िं. 48 की धारा 21 द्िारा (1-7-2002 िे) अंतःस्थावपत ।

5. ननगम- जिां िाद का कोई पिकार ननगम या व्यर्क्तयों का ऐिा ननकाय िै , चािे िि ननगसमत
िो या नि ं, जो विधध द्िारा िशक्त िै क्रक स्ियं अपने नाम िे या क्रकिी अधधकार के या अन्य व्यर्क्त के
नाम िे िाद ला िके या उि पर िाद लाया जा िके ििां कोंई भी विरोधी पिकार ऐिे ननगम या ननकाय
के क्रकिी भी िदस्य या अधधकार को पररप्रश्न पररदि करने के सलए अपने को अनज्ञ
ु ा दे ने िाले आदे श के
सलए आिेदन कर िकेगा और आदे श तदनि
ु ार क्रकया जा िकेगा ।

6. पररप्रश्नों के िम्बन्ध में उिर बारा आक्षेप- क्रकिी भी पररप्रश्न का उतर दे ने की बाबत इि
आधार पर क्रक िि पररप्रश्न कलंकात्मक या वििंगत िै या िाद के प्रयोजन के सलए िदभािपि
ू क
ि प्रदसशित
नि ं क्रकया गया िै या िे विषय र्जनके बारे में पछ
ू ताछ की गई िै , उि प्रिम में पयािप्त रुप िे तार्त्िक
नि ं िैं 1[या विशेषाधधकार के आधार पर या क्रकिी अन्य आधार पर] कोई भी आिेप उिर में हदए गए
शपथपत्र में क्रकया जा िकेगा ।

7. पररप्रश्नों का अपास्त क्रकया जाना और काट हदया जाना- कोई भी पररप्रश्न इि आधार पर
अपास्त क्रकए जा िकेंगे क्रक िे अयर्ु क्तयक्
ु ितः या तंग करने के सलए प्रदसशित क्रकए गए िैं या इि आधार
पर काट हदए जा िकेंगे क्रक िे अनतविस्तत
ृ , पीड़ा पिुंचाने िाले, अनािश्यक या कलंकात्मक िैं और इि
प्रयोजन के सलए कोई भी आिेदन पररप्रश्नों की तामील के पश्चात ् िात हदन के भीतर क्रकया जा िकेगा ।

8. उिर में हदए गए शपथ-पत्र का फाइल क्रकया जाना- पररप्रश्नों का उतर शपथपत्र द्िारा हदया
जाएगा जो दि हदन के भीतर या ऐिे अन्य िमय के भीतर जो न्यायालय अनज्ञ
ु ात करे , फाइल क्रकया
जाएगा ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 61 द्िारा (1-2-1977 िे) प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

9. उिर में हदए गए शपथ-पत्र का प्ररुप- पररप्रश्नों के उतर में हदया गया शपथपत्र पररसशष्ट ग के
प्ररूप िंख्यांक 3 में ऐिे फेरफार के िाथ िोगा जो पररर्स्थनतयों में अपेक्षित िो ।

10. कोई आक्षेप निीं क्रकया जाएगा- उिर में हदए गए क्रकिी शपथपत्र पर कोई भी आिेप नि ं
क्रकया जाएंगे । क्रकन्तु क्रकिी शपथपत्र के अपयािप्त िोने का आिेप क्रकए जाने पर उिका अपयािप्त िोना या
न िोना न्यायालय द्िारा अिधाररत क्रकया जाएगा ।

11. उिर दे ने के या अनतररतत उिर दे ने के सलए आदे श- जिां-जिां कोई व्यर्क्त र्जििे पररप्रश्न
क्रकया गया िै उतर दे ने का लोप करता िै या अपयािप्त उिर दे ता िै ििां पररप्रश्न करने िाला पिकार
न्यायालय िे इि आदे श के सलए आिेदन कर िकेगा क्रक उि पिकार िे यि अपेिा की जाए क्रक िि,
यथार्स्थनत, उिर दे या अनतररक्त उिर दे और उििे यि अपेिा करने िाला आदे श सलया जा िकेगा क्रक

162
िि, न्यायालय द्िारा जैिा भी ननदे श हदया जाए, या तो शपथपत्र द्िारा या मौणखक पर िा द्िारा उिर दे
या अनतररक्त उिर दे ।

12. दस्तािेजों के प्रकटीकरण के सलए आिेदन- कोई भी पिकार कोई भी शपथपत्र फाइल क्रकए
बबना न्यायालय िे ऐिे आदे श के सलए आिेदन कर िकेगा जो क्रकिी िाद के क्रकिी अन्य पिकार को
ननदे श करता िो क्रक िि उिमें प्रश्नगत क्रकिी बात िे िंबधं धत ऐिी दस्तािेजों का, जो उिके कब्जे या
शर्क्त में िों या रि िों, शपथपत्र पर प्रकट करण करे । ऐिे आिेदन की िन
ु िाई के पश्चात ् यहद न्यायालय
का िमाधान िो जाता िै क्रक ऐिा प्रकट करण आिश्यक नि ं िै या िाद के उि प्रिम में आिश्यक नि ं िै
तो िि उिे नामंजूर कर िकेगा या स्थधगत कर िकेगा अथिा या तो िाधारणत; या दस्तािेजों के कुछ िगो
तक ि िीसमत ऐिा आदे श कर िकेगा जो स्िवििेक में िि ठीक िमझे :
परन्तु जब और जिां तक न्यायालय की यि राय िै क्रक िाद के ऋजु ननपटारे के सलए या खचो में
बचत करने के सलए यि आिश्यक नि ं िै तब और ििां तक प्रकट करण के सलए आदे श नि ं हदया जाएगा |

13. दस्तािेजों िम्बन्धी शपथपत्र- र्जि पिकार के विरुद्ध ऐिा आदे श क्रकया गया िै जो अर्न्तम
पि
ू ि
ि ती ननयम में िणणित िै , उि पिकार द्िारा हदए जाने िाले शपथपत्र में यि विननहदि ष्ट िोगा क्रक उिमें
िणणित दस्तािेजों में िे क्रकिको (यहद कोई िो) पेश करने पर िि आिेप करता िै और यि पररसशष्ट ग के
प्ररुप िंख्यांक 5 में ऐिे फेरफार के िाथ िोगा जो पररर्स्थनतयों िे अपेक्षित िो ।

14. दस्तािेजों का पेश क्रकया जाना- न्यायालय के सलए यि विधधपण


ू ि िोगा क्रक िि क्रकिी भी िाद
के लंबबत रिने के दौरान क्रकिी भी िमय उिमें के क्रकिी भी पिकार को यि आदे श दे क्रक िि शपथ पर,
अपने कब्जे या शर्क्त में की और ऐिे िाद में प्रश्नगत क्रकिी विषय िे िम्बर्न्धत दस्तािेजों में िे ऐिी
दस्तािेजें पेश करे जो न्यायालय ठीक िमझे और जब ऐिी दस्तािेजें पेश की जाएं तब न्यायालय उनका
इि प्रकार उपयोग कर िकेगा जो न्यायिंगत प्रतीत िो ।

15. असििचनों या शपथपत्र में ननहदवष्ट दस्तािेजों का ननरीक्षण- िाद का िर पिकार क्रकिी भी ऐिे
अन्य पिकार को, र्जिके असभिचनों या शपथपत्रों में क्रकिी दस्तािेज के प्रनत ननदे श क्रकया गया िै या
र्जिने अपने असभिचनों िे उपाबद्ध क्रकिी िच
ू ी में क्रकिी दस्तािेज की प्रविर्ष्ट की िै ,
1
[वििाद्यकों के
र्स्थर करण के िमय या उिके पि
ू ]ि यि िच
ू ना दे ने का िकदार िोगा क्रक िि कोई ऐिी दस्तािेज ऐिी
िच
ू ना दे ने िाले पिकार या उिके प्ल डर के ननर िण के सलए पेश करे और उिे या उन्िें उिकी प्रनत लेने
दे और ऐिी िच
ू ना का अनप
ु ालन न करने िाला कोई भी पिकार उिके पश्चात ् ऐिी क्रकिी भी दस्तािेज
को ऐिे िाद में अपनी ओर िे िाक्ष्य में दे ने के सलए तब तक स्ितंत्र नि ं िोगा जब तक क्रक िि न्यायालय
का िमाधान न कर दे क्रक िि िाद में प्रनतिाद िै और ऐिे दस्तािेज का िंबध
ं केिल उिके अपने िक िे
िै या उिके पाि कोई अन्य िे तक
ु या प्रनतिे तु था र्जििे न्यायालय ऐिी िच
ू ना का अनप
ु ालन न करने के
सलए पयािप्त िमझे, र्जि दशा में न्यायालय खचों और अन्य बातों में ऐिे ननबंधनों पर जो न्यायालय ठीक
िमझे, उिे िाक्ष्य में रखे जाने के सलए अनज्ञ
ु ा िकेगा |

1. 1999 के अधधननयम िं. 46 की धारा 21 द्िारा (1-7-2002 िे) ''क्रकिी भी िमय'' के स्थान
पर प्रनतस्थावपत |
16. पेश करने की िच
ू ना- क्रकिी पिकार को उिके असभिचन या शपथपत्रों में ननहदि ष्ट क्रकन्ि ं

163
दस्तािेजों को पेश करने की िच
ू ना पररसशष्ट ग के प्ररूप िंख्यांक 7 में ऐिे फेरफार के िाथ िोगी जो
पररर्स्थनतयों िे अपेक्षित िो ।

17. जब िच
ू ना दी गई िै तब ननरीक्षण के सलए िमय- र्जि पिकार को ऐिी िच
ू ना द गई िै िि
ऐिी िच
ू ना के प्राप्त िोने िे दि हदन के भीतर उि पिकार को र्जिने िि िच
ू ना द थी, ऐिी िच
ू ना
पररदि करे गा र्जिमें उिके पररदान िे तीन हदन के भीतर आने िाला िि िमय कधथत िोगा जब उन
दस्तािेजो का या उनमें िे ऐिी का र्जनके पेश करने के बारे में िि आिेप नि ं करता िै , उिके प्ल डर के
कायािलय में या बैंककार बहियों या अन्य लेखा बहियों या ऐिी बहियों की, जो क्रकिी व्यापार या कारबार के
प्रयोजन के सलए ननरं तर उपयोग में रिती िै , दशा में उनकी असभरिा के प्रानयक स्थान में ननर िण क्रकया
जा िकेगा और यि कथन िोगा क्रक िे कौन िी दस्तािेजें िैं (यहद कोई िों) र्जनके पेश करने के बारे में
और क्रकि आधार पर िि आिेप करता िै । ऐिी िच
ू ना पररसशष्ट ग में के प्ररुप िंख्यांक 8 में ऐिे फेरफार
के िाथ िोगी जो पररर्स्थनतयों िे अपेक्षित िो ।

18. ननरीक्षण के सलए आदे श- (1) जिां िि पिकार र्जि पर ननयम 15 के अधीन िच
ू ना की
तामील की गई िै , ननर िण के सलए िमय की ऐिी िच
ू ना दे ने का लोप करता िै या ननर िण कर दे ने पर
आिेप करता िै या अपने प्ल डर के कायािलय िे सभन्न स्थान पर ननर िण कराने की प्रस्थापना करता िै
ििां न्यायालय ननर िण चािने िाले पिकार के आिेदन पर ऐिे स्थान में और इि प्रकार जो न्यायालय
ठीक िमझे, ननर िण के सलए आदे श कर िकेगा :
परन्तु जब और जिां तक न्यायालय की यि राय िै क्रक िाद के ऋजु ननपटारे के सलए या खचों में
बचत करने के सलए यि आिश्यक नि ं िै तब और ििां तक ऐिा आदे श नि ं क्रकया जाएगा ।
(2) उन दस्तािेजों को छोडकर जो उि पिकार के असभिचनों, विसशर्ष्टयों या शपथपत्रों में ननहदिष्ट
िों र्जिके विरुद्ध आिेदन क्रकया गया िै या उिके दस्तािेजो िम्बन्धी शपथपत्र में प्रकट की गई िों,
दस्तािेजों ननर िण के सलए कोई भी आिेदन ऐिे शपथपत्र पर आधाररत िोगा जो यि दसशित करता िो क्रक
िे दस्तािेजें कौन िी िैं र्जनका ननर िण क्रकया जाना िै , यि क्रक आिेदन करने िाला पिकार उनका
ननर िण करने के सलए िकदार िै और यि क्रक िि दि
ू रे पिकार के कब्जे या शर्क्त में िै । जब और जिा
तक न्यायालय की यि राय िै क्रक िाद के ऋजु ननपटारे के सलए या खचों में बचत करने के सलए यि
आिश्यक नि ं िै तब और ििां तक न्यायालय ऐिी दस्तािेजों के ननर िण के सलए ऐिा आदे श नि ं करे गा

19. ित्यावपत प्रनतयां- (1) जिां क्रकन्ि ं कारबार की बहियों के ननर िण के सलए आिेदन क्रकया गया
िै ििां यहद न्यायालय यि ठीक िमझे तो िि मल
ू बहियों के ननर िण का आदे श दे ने के बजाय उनमें की
क्रकन्ि ं प्रविर्ष्टयों की प्रनत दे ने के सलए और क्रकिी ऐिे व्यर्क्त के, र्जिने मल
ू प्रविर्ष्टयों िे प्रनत की तल
ु ना
कर ल िै , शपथपत्र द्िारा उन प्रविर्ष्टयों के ित्यावपत क्रकए जाने के सलए आदे श दे िकेगा और ऐिे
शपथपत्र में यि कथन िोगा क्रक मल
ू बि में कोई उद्घषिण, अन्तरालेखन या पररितिन िैं या नि ं और िैं तो
कोन िे िै : परन्तु ऐिी प्रनत के हदए जाने पर भी न्यायालय उि बि के ननर िण के सलए आदे श दे िकेगा
र्जििे प्रनत तैयार की गई थी ।
(2) जिां ननर िण के आदे श के सलए आिेदन पर क्रकिी दस्तािेज के बारे में विशेषाधधकार का दािा क्रकया
जाता िै ििां न्यायालय के सलए यि विधधपण
ू ि िोगा क्रक िि विशेषाधधकार के दािे की विधधमान्यता का
विननश्चय करने के प्रयोजन िे 1[दस्तािेज का, यहद िि राज्य के विषयों िे िम्बर्न्धत दस्तािेज न िों तो

164
ननर िण करे ]|

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 61 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्तःस्थावपत क्रकया गया ।
(3) न्यायालय िाद के क्रकिी पिकार के आिेदन पर क्रकिी भी िमय और चािे दस्तािेजों के
शपथपत्र का पिले ि आदे श क्रकया या हदया जा चक
ु ा िो या नि ं, क्रकिी भी अन्य पिकार को शपथपत्र
द्िारा यि कथन करने की उििे अपेिा करने िाला आदे श कर िकेगा क्रक विननहदि ष्ट एक या अधधक
दस्तािेज र्जिे आिेदन-पत्र में विननहदि ष्ट क्रकया जाएगा, उिके कब्जे या शर्क्त में िै या िैं, क्रकिी िमय रि
िै या रि िैं और यहद अब उिके कब्जे में नि ं िै तो उिे या उन्िें उिने कब अलग क्रकया और उिका या
उनका क्या िुआ । ऐिा आिेदन यि कधथत करने िाले शपथपत्र द्िारा क्रकया जाएगा क्रक असभिािी को
विश्िाि िै क्रक र्जि पिकार के विरुद्ध आिेदन क्रकया गया िै उिके कब्जे या शर्क्त में िि दस्तािेज िै या
िे दस्तािेजें िैं या क्रकिी िमय थी या थीं जो आिेदन में विननहदि ष्ट की गई िै या की गई िैं, और िाद में
प्रश्नगत बातों िे या उनमें िे कुछ िे िि या िे िम्बर्न्धत िै या िै |

20. िमयपि
ू व प्रकटीकरण- जिां कोई पिकार र्जििे क्रकिी प्रकार का प्रकट करण या ननर िण चािा
गया िै , उिके या उनके क्रकिी भाग के बारे में आिेप करता िै , ििां यहद न्यायालय का िमाधान िो जाता
िै क्रक चािे गए प्रकट करण या ननर िण का अधधकार िाद में वििादास्पद क्रकिी वििाद्यक या प्रश्न के
अिधारण पर ननभिर करता िै या क्रकिी अन्य कारण िे यि िांछनीय िै क्रक िाद में वििादग्रस्त क्रकिी
वििाद्यक या प्रश्न का अिधारण प्रकट करण या ननर िण केअधधकार का विननश्चय करने िे पिले क्रकया
जाना चाहिए तो िि आदे श दे िकेगा क्रक ऐिे वििाद्यक या प्रश्न का अिधारण पिले क्रकया जाए और
प्रकट करण तथा ननर िण के प्रश्न को आरक्षित रख िकेगा ।

21. प्रकटीकरण के आदे श का अनप


ु ालन-
1
[(1) जिां कोई पिकार पररप्रश्नों का उिर दे ने या
दस्तािेजों के प्रकट करण या ननर िण के क्रकिी आदे श का अनप
ु ालन करने में अिफल रिता िै ििां यहद
िि िाद िै तो िि इि बात के सलए दायी िोगा क्रक उिका िाद असभयोजन के अभाि में खाररज कर हदया
जाए, और यहद िि प्रनतिाद िै तो िि इि बात के सलए दायी िोगा क्रक यहद उिने कोई प्रनतरिा की िै तो
िि काट द जाए और िि ऐिी र्स्थनत में रख हदया जाए मानो उिकी प्रनतरिा न की गई िो और पररप्रश्न
करने िाला या प्रकट करण या ननर िण चािने िाला पिकार न्यायालय िे उि भाि के आदे श के सलए
आिेदन कर िकेगा और 2
[पिकारों को िच
ू ना दे ने के पश्चात ् और उनको िन
ु िाई के सलए यर्ु क्तयक्
ु त
अििर दे ने के पश्चात ऐिा आदे श ऐिे आिेदन पर तदनि
ु ार क्रकया जा िकेगा ।]
3
[(2) जिां क्रकिी िाद को खाररज करने का कोई आदे श उपननयम (1) के अधीन क्रकया जाता िै ििां
िाद उिी िाद-िे तक
ु पर नया िाद लाने िे प्रिाररत क्रकया जाएगा ।

22. पररप्रश्नों के उिरों का विचारण में उपयोग- कोई भी पिकार पररप्रश्नों के सलए हदए गए विरोधी
पिकार के उिरों में िे क्रकिी एक या अधधक का या उिर के क्रकिी भाग का, अन्य उिरों या ऐिे परू े उिर
को पेश क्रकए बबना, िाद के विचारण में िाक्ष्य में उपयोग कर िकेगा : परन्तु िदा ि यि क्रक ऐिी दशा में
न्यायालय उन उिरों को पण
ू त
ि : दे ख िकेगा और यहद उिकी यि राय िै क्रक उनमें िे कोई अन्य उिर, पेश
क्रकए गए उिरों िे ऐिे िंिक्त िैं क्रक अर्न्तम िणणित उिरों का उनके बबना उपयोग नि ं करना चाहिए तो
िि उनके पेश क्रकए जाने के सलए ननदे श दे िकेगा ।

165
1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 61 द्िारा (1-2-1977 िे) ननयम 21 को उि ननयम के
उपननयम (1) के रुप मे पन
ु : िंख्यांक्रकत क्रकया गया ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 61 द्िारा (1-2-1977 िे) '' तदनि
ु ार आदे श क्रकया जा
िकेगा '' शब्दो के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
3. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 61 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्तःस्थावपत क्रकया गया ।
23. आदे श अियस्क को लागू िोगा- यि आदे श अियस्क िाहदयों और प्रनतिाहदयों को और
ननयोग्यताधीन व्यर्क्तयों के िाद-समत्रों और िादाथि िंरिकों को लागू िोगा ।

आदे श 12
स्िीकृनतयां

1. मामले की स्िीकृनत की िच
ू ना- िाद का कोई भी पिकार अपने सलणखत असभिचन द्िारा या
अन्यथा सलणखत रुप में िच
ू ना दे िकेगा क्रक िि क्रकिी अन्य पिकार के परू े मामले की या उिके क्रकिी
भाग की ित्यता को स्िीकार करता िै ।
2. दस्तािेजों की स्िीकृनत के सलए िच
ू ना- दोनों पिकारों में िे कोई भी पिकार दि
ू रे पिकार िे
यि अपेिा कर िकेगा क्रक िि क्रकिी दस्तािेज को िभी न्यायिंगत अपिादों को छोडकर िच
ू ना की तामील
की तार ख िे 1[िात] हदन के भीतर स्िीकार कर ले] और ऐिी िच
ू ना के पश्चात ् स्िीकृत करने िे इंकार या
उपेिा करने की दशा में , जब तक क्रक न्यायालय अन्यथा ननदे श न करे , क्रकिी भी ऐिी दस्तािेज को िाबबत
करने के खचि ऐिी उपेिा या इंकार करने िाले पिकार द्िारा हदए जाएंगे चािे िाद का पररणाम कुछ भी िो
और जब तक क्रक ऐिी िच
ू ना नि ं दे द गई िो क्रकिी दस्तािेज को िाबबत करने का कोई भी खचि केिल
तभी अनज्ञ
ु ात क्रकया जाएगा जब ऐिी िच
ू ना न दे ना न्यायालय की राय में व्यय की बचत िै ।

1. 1999 के अधधननयम िं. 46 की धारा 22 द्िारा (1-7- 2002 िे) ''पंद्रि'' के स्थान पर
प्रनतस्थावपत ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- अधधिच
ू ना हदनांक 1.6.1957 के तित इलािाबाद उच्च
न्यायालय के द्िारा क्रकये गये िंशोधन के उपरांत, इिका िंशोधधत रुप इि प्रकार िै -

''2. दस्तािेजों की स्िीकृनत के सलए िच


ू ना- दोनो पिकारों में िे कोई भी पिकार दि
ू रे पिकार िे
यि अपेिा कर िकेगा क्रक िि 1[क्रकिी दस्तािेज को िभी न्यायिंगत अपिादों को छोड़कर िच
ू ना की
तामील की तार ख िे पन्द्रि हदन के भीतर स्िीकार कर ले] और ऐिी िच
ू ना के पश्चात ् स्िीकृत करने िे
इन्कार या बबना िमधु चत कारण के उपेिा करने की दशा में क्रकिी भी ऐिी दस्तािेज को िाबबत करने के
ऐिे विशेष खचि जो क्रक प्रनत दस्तािेज पचाि रुपये िे अनाधधक न्यायालय द्िारा ननयत क्रकये जाएं ऐिी
उपेिा या इंकार करने िाले पिकार द्िारा हदए जाएंगे चािे िाद का पररणाम कुछ भी िो और तब तक क्रक
ऐिी िच
ू ना नि ं दे द गई िो क्रकिी दस्तािेज को िाबबत करने का कोई भी खचि केिल तभी अनज्ञ
ु ात क्रकया
जाएगा जब ऐिी िच
ू ना न दे ना न्यायालय की राय में व्यय की बचत िै ।''

पटना उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- ननयम 2 के अंत में ननम्नानि


ु ार खण्ड जोड़े--

166
''न्यायालय दस्तािेजों को स्िीकार करने िे दोषपण
ू ि अथिा अयर्ु क्तयक्
ु ि इंकार के मामले में दांडडक
खचि लगा िकेगा चािे मक
ु दमे का पररणाम कुछ भी िो ।'' (26.7.1972)

[2क. यहद दस्तािेजों की स्िीकृनत के सलए िच


2
ू ना की तामील के पश्चात ् उनिे इंकार निीं क्रकया
जाता तो उन्िें स्िीकृत िमझा जाना- (1) ऐिी िर दस्तािेज, र्जिको स्िीकार करने की मांग पिकार िे की
जाती िै , उि पिकार द्िारा असभिचन में या दस्तािेजों की स्िीकृनत की िच
ू ना के अपने उिर में
विननहदिष्टत: या आिश्यक विििा िे प्रत्याख्यात नि ं की जाती िै या उिको स्िीकार न क्रकए जाने का
कथन नि ं क्रकया जाता िै , सििाय ऐिे व्यर्क्त के विरुद्ध जो ननयोग्यताधीन िै , स्िीकृत िमझी जाएगी:
परन्तु न्यायालय स्िवििेकानि
ु ार और लेखबद्ध क्रकए जाने िाले कारणों िे यि अपेिा कर िकेगा
क्रक इि प्रकार स्िीकृत कोई दस्तािेज ऐिी स्िीकृनत िे सभन्न रुप िे िाबबत की जाए ।
(2) जिां पिकार दस्तािेजों की स्िीकृत की िच
ू ना की तामील अपने पर क्रकए जाने के पश्चात ्
क्रकिी दस्तािेज को स्िीकार करने में अयर्ु क्तयक्
ु त रूप िे उपेिा करता िै या इंकार करता िै ििां न्यायालय
उिे दि
ू रे पिकार को प्रनतकर के रुप में खचाि दे ने का ननदे श दे िकेगा ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 62 द्िारा (1-2-1977 िे)'' क्रकिी दस्तािेज को स्िीकार
कर ले '' शब्दो के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 62 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया गया ।

3. िच
ू ना का प्ररुप- दस्तािेजों को स्िीकृत करने की िच
ू ना पररसशष्ट ग में प्ररूप िंख्यांक 9 में ऐिे
फेरफार के िाथ िोगी जो पररर्स्थनतयों िे अपेक्षित िो ।

[3क. स्िीकृनत के असिलेखन की न्यायालय की शस्तत- दस्तािेजों को स्िीकार करने के सलए िच


1
ू ना
ननयम 2 के अधीन न द जाने पर भी न्यायालय अपने िमि िाल कायििाि के क्रकिी भी प्रकम में स्ियं
अपनी प्रेरणा िे क्रकिी भी पिकार िे कोई दस्तािेज स्िीकार करने की अपेिा कर िकेगा और ऐिी दशा में
यि असभलेखन करे गा क्रक क्या पिकार ऐिी दस्तािेज को स्िीकार करता िै या स्िीकार करने िे इंकार
करता िै या स्िीकार करने की उपेिा करता िै ।

4. त्यों को स्िीकृत करने की िच


ू ना- कोई भी पिकार क्रकिी भी अन्य प्रकार िे िन
ु िाई के सलए
ननयत हदन िे कम िे कम नौ हदन पिले क्रकिी भी िमय सलणखत िच
ू ना द्िारा अपेिा कर िकेगा क्रक िि
ऐिी िच
ू ना मे िणणित क्रकिी या क्रकन्ि ं विननहदिष्ट तथ्य या तथ्यों को केिल िाद के प्रयोजनों के सलए
स्िीकार कर ले । और ऐिी िच
ू ना की तामील में पश्चात ् छि हदन के भीतर या ऐिे अनतररक्त िमय के
भीतर जो न्यायालय द्िारा अनज्ञ
ु ात क्रकया जाए उिको या उनको स्िीकृत करने िे इंकार करने या उपेिा
करने की दशा में तथ्य या तथ्यों के िाबबत करने का खचाि जब तक क्रक न्यायालय अन्यथा ननदे श न करें ,
इि प्रकार उपेिा करने या इंकार करने िाले पिकार द्िारा हदया जाएगा चािे िाद का पररणाम कुछ भी
क्यों न िो :
परन्तु ऐिी िच
ू ना के अनि
ु रण में की गई क्रकिी भी स्िीकृनत के बारे में यि िमझा जाएगा क्रक िि
उि विसशष्ट िाद के प्रयोजनों के सलए ि की गई िै और िि ऐिी स्िीकृनत नि ं िमझी जाएगी र्जिका उि
पिकार के विरुद्ध क्रकिी अन्य अििर पर या िच
ू ना दे ने िाले पिकार िे सभन्न क्रकिी व्यर्क्त के पि में
उपयोग क्रकया जा िकता िै :

167
2[................]

1. 1956 के अधधननयम िं. 66 की धारा 14 द्िारा अन्तःस्थावपत क्रकया गया ।


2. सिविल प्रक्रिया िंहिता (िंशोधन) अधधननयम, 1999 के द्िारा द्ितीय पंरतक
ु लप्ु त । यि इि
प्रकार था- ''परन्तु यि और भी क्रक न्यायालय इि प्रकार की गई क्रकिी भी स्िीकृनत को ऐिे
ननबन्धनों पर जो न्यायिंगत िो, िंशोधधत करने या प्रत्याहृत कर लेने के सलए क्रकिी भी
पिकार को क्रकिी भी िमय अनज्ञ
ु ा दे िकेगा ।''

5. स्िीकृनतयों का प्ररुप- तथ्यों को स्िीकार करने के सलए िच


ू ना पररसशष्ट ग के प्ररुप िंख्यांक 10
में और तथ्यों की स्िीकृनतयां पररसशष्ट ग के प्ररूप िंख्यांक 11 में ऐिे फेरफार के िाथ िोंगी जो
पररर्स्थनतयों िे अपेक्षित िो ।

1
[6. स्िीकृनतयों के आधार पर ननणवय- (1) जिां असभिचन में यिां अन्यथा, चािे मौणखक रुप िे या
सलणखत रुप में तथ्य की स्िीकृनतयां की जा चक
ु ी िैं ििां न्यायालय िाद के क्रकिी प्रिम में या तो क्रकिी
पिकार के आिेदन पर या स्िप्रेरणा िे और पिकारों के बीच क्रकिी अन्य प्रश्न के अिधारण की प्रतीिा
क्रकए बबना ऐिी स्िीकृनतयों को ध्यान में रखते िुए ऐिा आदे श या ऐिा ननणिय कर िकेगा जो िि ठीक
िमझे ।
(2) जब कभी उपननयम (1) के अधीन ननणिय िन
ु ाया जाता िै तब ननणिय के अनि
ु ार डडिी तैयार
की जाएगी और डडिी में िि तार ख द जाएगी र्जि तार ख को उक्त ननणिय िन
ु ाया गया था ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


पटना उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- ननयम 6 के स्थान पर ननम्न ननयम प्रनतस्थावपत क्रकया
गया-
''जिााँ असभिचन द्िारा या अन्यथा तथ्य की स्िीकृनत िो चुकी िै तो न्यायालय क्रकिी पिकार के
आिेदन पर या स्िप्रेरणा िे िाद के क्रकिी भी प्रिम पर ि पिकारों के मध्य क्रकिी अन्य प्रश्न के अिधारण
का इंतजार क्रकए बबना ठीक िमझे जाने िाला कोई आदे श या ननणिय कर िकेगा ।''

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 62 द्िारा (1-2-1977 िे) ननयम 6 के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

7. िस्ताक्षर के बारे में शपथपत्र- यहद दस्तािेजों या तथ्यों को स्िीकार करने की क्रकिी िच
ू ना के
अनि
ु रण में की गई स्िीकृनतयों के िम्यक् िस्तािरण की बाबत िाक्ष्य की अपेिा की जाती िै तो प्ल डर
या उिके सलवपक या ऐिी स्िीकृनतयों के बारे में शपथपत्र पयािप्त िाक्ष्य िोगा ।

8. दस्तािेजों को पेश करने के सलए िच


ू ना- दस्तािेजों को पेश करने के सलए िच
ू ना पररसशष्ट ग के
प्ररूप िंख्यांक 12 में ऐिे फेरफार के िाथ िोगी जो पररर्स्थतयों िे अपेक्षित िो । पेश करने के सलए क्रकिी
िच
ू ना की तामील के बारे में और उि िमय के बारे में जब उिकी तामील की गई थी, प्ल डर या उिके
सलवपक का शपथपत्र उिे पेश करने की िच
ू ना की प्रनत के िहित िभी दशाओं में िच
ू ना की तामील के बारे
में और उि िमय के बारे में जब उिकी तामील की गई थी पयािप्त िाक्ष्य िोगा ।

168
9. खचे- यहद स्िीकृनत या पेश करने की िच
ू ना ऐिी दस्तािेजों को विननहदिष्ट करती िै जो
आिश्यक नि ं िै तो उिके कारण िुए खचे ऐिी िच
ू ना दे ने िाले पिकार द्िारा ििन क्रकए जाएंगे ।

आदे श 13
दस्तािेजों का पेश क्रकया जाना, पररबद्ध क्रकया जाना और लौटाया जाना

1
[1. मल
ू दस्तािेजों का वििाद्यकों के स्स्थरीकरण के िमय या उिके पि
ू व पेश क्रकया जाना- (1)
पिकार या उनके प्ल डर मल
ू िभी दस्तािेजी िाक्ष्य जिां उनकी प्रनतयां िादपत्र या सलणखत कथन के िाथ
फाइल की गई िैं, वििाद्यकों के र्स्थर करण के िमय या उिके पि
ू ि पेश करे गा ।
(2) न्यायालय इि प्रकार पेश की गई दस्तािेजों को ले लेगा:
परं तु यि तब जब क्रक उनके िाथ ऐिे प्ररूप में तैयार की गई एक िि -िि िच
ू ी िो जो उच्च
न्यायालय ने ननहदिष्ट क्रकया िो ।
(3) उपननयम (1) की कोई भी बात ऐिे दस्तािेजों को लागू नि ं िोगी, जो-
(क) दि
ू रे पिकारों के िाक्षियों की प्रनतपर िा करने के सलए पेश क्रकए गए िैं, अथिा
(ख) क्रकिी िािी को केिल उिकी स्मनृ त को ताजा करने के सलए हदए गए िैं ।] ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


पटना उच्च न्यायालय िंशोधन- पटना उच्च न्यायालय िारा ननम्न िंशोधन क्रकया गया-

1. 1999 के अधधननयम िं. 46 की धारा 23 द्िारा (1-7-2002 िे) ननयम 1 और 2 के स्थान पर


प्रनतस्थावपत ।
2. दस्तािेजों को पेश न करने का प्रिाि- लप्ु त.... (सि. प्र. िं. (िंशोधन) अधधननयम, 1999
(1999 का 46) द्िारा लप्ु त)
3. वििंगत या अर्ग्ािी दस्तािेजों का नामंजूर क्रकया जाना- न्यायालय िाद के क्रकिी भी प्रकम में
ऐिी क्रकिी भी दस्तािेज को र्जिे िि वििंगत या अन्यथा अग्राि िमझता िै ऐिे नामंजूर करने के आधारों
को असभसलणखत करके नामंजूर कर िकेगा |

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 63 द्िारा (1-2-1977 िे) कुछ शब्दो के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

4. िाक्ष्य में गि
ृ ीत दस्तािेजों पर पष्ृ ठांकन- (1) ठीक आगामी उपननयम के उपबन्धों के अधीन
रिते िुए, िर ऐिी दस्तािेज पर, जो िाद में िाक्ष्य में ग्रिण कर ल गई िै ननम्नसलणखत विसशर्ष्टयां
पष्ृ ठांक्रकत की जाएंगी अथाित ् : -
(क) िाद का िंख्यांक और शीषिक;
(ख) दस्तािेज को पे श करने िाले व्यर्क्त का नाम;
(ग) िि तार ख र्जिको िि पेश की गई थी; तथा
(घ) उिके इि प्रकार ग्रिण क्रकए जा चुकने का कथन,
और पष्ृ ठांकन न्यायाधीश द्िारा िस्तािररत या आद्यिररत क्रकया जाएगा

169
(2) जिां इि प्रकार गि
ृ त दस्तािेज क्रकिी बि , लेखा या असभलेख में की प्रविर्ष्ट िै और ठीक
आगामी ननयम के अधीन मल
ू प्रनत के स्थान में उिकी एक प्रनत रख द गई िै ििां पि
ू ोक्त विसशर्ष्टयों का
पष्ु ठांकन उि प्रनत पर क्रकया जाएगा और उि पर का पष्ृ ठांकन न्यायाधीश द्िारा िस्तािररत आद्यिररत
क्रकया जाएगा ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


पटना उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- अधधिच
ू ना हदनांक्रकत 5.12.1971 के द्िारा उपननयम 1 ि
उपननयम 2 में '' न्यायाधीश '' के उपरांत ननम्नानि
ु ार जोडा जाएगा-
''अथिा उच्च न्यायालय के मामले में न्यायाधीश या न्यायाधीशों में िे क्रकिी के आदे श के अधीन
न्यायालय में अधधकार द्िारा ''

5. बहियों. लेखाओं और असिलेखों में की गि


ृ ीत प्रविस्ष्टयों की प्रनतयों पर पष्ृ ठांकन- (1) ििां तक
के सििाय जिां तक क्रक बैंककार बि िाक्ष्य अधधननयम 1891 ( 1891 का 18) द्िारा अन्यथा उपबर्न्धत
िै , उि दशा में र्जिमें िाद के िाक्ष्य में गि
ृ त दस्तािेज डाकबि या दक
ु ानबि या अन्य लेखा में की जो
चालू उपयोग में रिता िै , प्रविर्ष्ट िै िि पिकार, र्जिकी ओर िे िि बि या लेखा पेश क्रकया गया िै उि
प्रविर्ष्ट की प्रनत दे िकेगा ।
(2) जिां ऐिी दस्तािेज लोक कायािलय में िे या लोक अधधकार द्िारा पे श क्रकए गए लोक
असभलेख में की प्रविर्ष्ट िै या र्जि पिकार की ओर िे िि बि या लेखा पेश क्रकया गया िै उििे सभन्न
व्यर्क्त की बि या लेखा में की प्रविर्ष्ट िै ििां न्यायालय अपेिा कर िकेगा क्रक उि प्रविर्ष्ट की प्रनत-
(क) जिां िि असभलेख, बि या लेखापिकार की ओर िे पेश क्रकया गया िै ििां उि पिकार द्िारा
द जाए, अथिा
(ख) जिां िि असभलेख, बि या लेखा ऐिे आदे श के अनप
ु ालन में पेश क्रकया गया िै जो स्िप्रेरणा
पर कायि करते िुए न्यायालय ने हदया िै ििां दोंनों पिकारों या क्रकिी भी पिकार द्िारा द जाए |
(3) जिां प्रविर्ष्ट के प्रनत इि ननयम के पिू ग
ि ामी उपबन्धों के अधीन दे द गई िै ििां न्यायालय
आदे श 7 के ननयम 17 में िणणित र नत िे प्रनत की पर िा और तल
ु ना और प्रनत को प्रमाणणत कराने के
पश्चात ् प्रविर्ष्ट को धचहित करे गा और उि बि , लेखा या असभलेख को र्जिमें िि िै , उिे पेश करने िाले
व्यर्क्त को लौटिा दे गा ।
6. िाक्ष्य में अर्ग्ाह्य िोने के कारण नामंजूर दस्तािेजों पर पष्ृ ठांकन- जिां उि दस्तािेज को र्जि
पर िाक्ष्य के रुप में दोनों पिकारों में िे कोई ननभिर करता िै , न्यायालय िाक्ष्य में अग्राह्य ठिरा दे ता िै
ििां ननयम 4 के उपननयम (1) के खंड (क), (ख) और (ग) में िणणित विसशर्ष्टयां इि कथन के िहित की
िे नामंजरू कर द गई िैं, उि पर पष्ृ ठांक्रकत की जाएंगी और पष्ृ ठाकन न्यायाधीश द्िारा िस्तािररत या
आद्यिररत क्रकया जाएगा ।
7. गि
ृ ीत दस्तािेजों का असिलेख में िस्म्मसलत क्रकया जाना और नामंजूर की गई दस्तािेजों का
लौटाया जाना- (1) िर ऐिी दस्तािेज जो िाक्ष्य में ग्रिण कर ल गई िै या जिां ननयम 5 के अधीन मल

प्रनत के स्थान में उिकी प्रनत रखी गई िै ििां उिकी प्रनत, िाद के असभलेख का भाग िोगी |
(2) दस्तािेजें जो िाक्ष्य में ग्रिण नि ं की गई िैं, असभलेख का भाग नि ं िोंगी और िे,
यथार्स्थनत, उन व्यर्क्तयों को लौटा द जाएंगी र्जन्िोंने उन्िें पेश क्रकया था ।

170
उच्च न्यायालय िंशोधन
म.प्र. उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- अधधिच
ू ना हदनांक 16.2.1990 के द्िारा उपननयम (3) के
द्िारा ननम्नानि
ु ार जोडा गया-
''(3) िाक्ष्य में प्रस्तत
ु प्रत्येक दस्तािेज जो क्रक न्यायालयीन भाषा अथिा अंग्रेजी में नि ं सलखा गया
िै को अंग्रेजी के िि अनि
ु ाद के द्िारा िंलग्र क्रकया जाएगा एिं प्रत्येक दस्तािेज जो क्रक न्यायालयीन भाषा
में सलखा गया िै परं तु दे िनागर के अलािा अन्य सलवप में िै को दे िनागर सलवप के िि सलप्यंतरण द्िारा
िंलग्र क्रकया जाएगा । यहद दस्तािेज को िाक्ष्य में ग्राह्य क्रकया जाता िै तो प्रनतपि या तो अनि
ु ाद अथिा
सलप्यंतरण की शद्
ु धता को मंजूर कर िकेगा अथिा उिका स्ियं का अनि
ु ाद अथिा सलप्यंतरण प्रस्तत
ु कर
िकेगा ।

8. न्यायालय क्रकिी दस्तािेज के पररबद्ध क्रकए जाने का आदे श दे िकेगा- यहद न्यायालय को इि
बात के सलए पयािप्त िे तक
ु हदखाई दे तो िि क्रकिी िाद में अपने िमि पेश की गई क्रकिी भी दस्तािेज या
बि के, इि आदे श के ननयम 5 या 7 में या आदे श 7 के ननयम 17 में क्रकिी बात के िोते िुए भी, ऐिी
अिधध के सलए और ऐिी शतो के अधीन जो न्यायालय ठीक िमझे, पररबद्ध क्रकए जाने और न्यायालय के
क्रकिी अधधकार की असभरिा में रखे जाने के सलए ननदे श दे िकेगा ।

9. गि
ृ ीत दस्तािेजों का लौटाया जाना— (1) िाद में अपने द्िारा पेश की गई और असभलेख में
िर्म्मसलत की गई क्रकिी दस्तािेज को िापि लेने की िांछा करने िाला कोई भी व्यर्क्त, चािे िि िाद का
पिकार िो या न िो, उि दस्तािेज को, जब तक क्रक िि ननयम 8 के अधीन पररबद्ध न कर द गई िो,
िापि प्राप्त करने का िकदार-
(क) जिां िाद ऐिा िै र्जिमें अपील अनज्ञ
ु ात नि ं िै ििां उि िमय िोगा जब िाद का ननपटारा िो
गया िै , तथा
(ख) जिां िाद ऐिा िै क्रक उिमें अपील अनज्ञ
ु ात िै ििां उि िमय िोगा जब न्यायालय का
िमाधान िो जाता िै क्रक अपील करने का िमय बीत चुका िै और अपील नि ं की गई िै या अपील की गई
िै तो उि िमय िोगा जब अपील ननपटा द गई िो :
1
[परन्तु इि ननयम द्िारा विहित िमय िे पि
ू त
ि र क्रकिी भी िमय दस्तािेज लौटाया जा िकेगा यहद
उिकी िापिी के सलए आिेदन करने िाला व्यर्क्त-
(क) िमधु चत अधधकार िो-
(I) िाद के पिकार की दशा में मल
ू के स्थान पर रखने के सलए प्रमाणणत प्रनत पररदि करता िै ,
और
(II) क्रकिी अन्य व्यर्क्त की दशा में ऐिी मामल
ू प्रनत पररदि करता िै , जो आदे श 7 के ननयम 17
के उपननयम (2) में िणणित र नत िे पर क्षित, समलान की गई और प्रमाणणत िै , और
(ख) यि िचन दे ता िै क्रक यहद उििे ऐिी अपेिा की गई तो िि मल
ू को पेश कर दे गा:]
परन्तु यि और भी क्रक ऐिी कोई दस्तािेज नि ं लौटाई जाएगी जो डडिी के बल िे पण
ू त
ि या शन्
ू य
या ननरुपयोगी िो गई िै ।
(2) िाक्ष्य में गि
ृ त दस्तािेज की िापिी पर उिे प्राप्त करने िाले व्यर्क्त द्िारा रिीद द जायेगी।

171
उच्च न्यायालय िंशोधन
म.प्र. उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- अधधिच
ू ना हदनांक 16.9.1960 के द्िारा ननम्नानि
ु ार को
उपननयम (2) के रुप में अंतःस्थावपत क्रकया गया और ितिमान उपननयम (2) को उपननयम (3) के रुप में
पन
ु ि
ि ख्
ं यांक्रकत क्रकया गया-
''(2) जिााँ दस्तािेज ऐिे व्यर्क्त के द्िारा प्रस्तत
ु क्रकया गया िै जो क्रक िाद का पिकार नि ं िै , तो
न्यायालय, दस्तािेज िापि करने के सलए आिेदन करने िाले व्यर्क्त की प्राथिना पर आदे श करे गा क्रक
पिकार र्जिके आग्रि पर दस्तािेजों को प्रस्तत
ु क्रकया गया था िि प्रमाणणत प्रनतसलवप तैयार करने के खचों
का भग
ु तान करे ।
1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 63 द्िारा (1-2-1977 िे) परन्तक
ु के स्थान पर प्रनतस्थावपत
क्रकया गया ।
पटना उच्च न्यायालय दारा िंशोधन- आदे श 13 ननयम 9 में में ननम्नानि
ु ार उपननयम (1 - क) को
जोड़ा जाएगा-
''(1 - क) जिााँ दस्तािेज ऐिे व्यर्क्त के द्िारा प्रस्तत
ु क्रकया जाता िै जो कायििाि में पिकार नि ं
िै तो न्यायालय उि पिकार िे र्जिकी ओर िे दस्तािेज प्रस्तत
ु क्रकया गया िै यिााँ के पि
ू ि यथा प्रािधाननत
मल
ू की प्रमाणणत प्रनतसलवप को प्रस्तत
ु करने की अपेिा कर िकेगा ''
10. न्यायालय स्ियं अपने असिलेखों में िे या अन्य न्यायालयों के असिलेख में िे कागज मंगा
िकेगा- (1) न्यायालय स्िप्रेरणा िे या िाद के पिकारों में िे क्रकिी के आिेदन पर स्िवििेकानि
ु ार अपने
असभलेखों में िे या क्रकिी अन्य न्यायालय के असभलेखों में िे क्रकिी अन्य िाद या कायििाि का असभलेख
मंगा िकेगा और उिका ननर िण कर िकेगा ।
(2) इि ननयम के अधीन क्रकया गया िर आिेदन का ( जब तक क्रक न्यायालय अन्यथा ननदे श न
करे ) एक ऐिे शपथपत्र द्िारा िमथिन क्रकया जाएगा र्जिमें यि दसशित िोगा क्रक उि िाद में , र्जिमें
आिेदन क्रकया गया िै , िि असभलेख कैिे तार्त्िक िै और यि क्रक आिेदक अयर्ु क्तयक्
ु त विलम्ब या व्यय
के बबना उि असभलेख की या उिके ऐिे भाग की र्जिकी उिे आिश्यकता िै , िम्यक् रुप िे अधधप्रमाण
कृत प्रनत असभप्राप्त नि ं कर िकता िै या यि क्रक मल
ू की पेशीं न्याय के प्रयोजनों के सलए आिश्यक िै ।
(3) इि ननयम की कोई भी बात क्रकिी भी ऐिी दस्तािेज को, जो िाद में िाक्ष्य की विधध के
अधीन अग्राह्य िोती, िाक्ष्य में उपयोग करने के सलए न्यायालय को िमथि बनाने िाल नि ं िमझी जाएगी

11. दस्तािेजों िे िम्बंधधत उपबन्धों का िौनतक पदाथो को लागू िोना- दस्तािेजों के िम्बन्ध में
इिमें अन्तवििष्ट उपबन्ध िाक्ष्य के रुप में पेश क्रकए जाने योग्य िभी अन्य भौनतक पदाथो को जिां तक िो
िके, लागू िोंगे ।

172
प्रनतिाद
िंख्यांक 5

तार ख
ननणवय

क्रकिके पि में हदया गया

क्रकि बात के सलए या क्रकि रकम के सलए ये हदया गया

अपील विननश्चय की तार ख


अपील

अपील का ननणिय
आिेदन कीतार ख

आदे श की तार ख
ननष्पादन

क्रकिके विरुद्ध

क्रकि बात के सलये या यहद धन के सलए िै तो क्रकि रकम के सलये


173
ज्ञपन की तार ख

अपील का िंख्यांक

नाम

अपीलाथी
िणिन

ननिाि-स्थान

नाम
प्रत्यथी

िणिन

ननिाि-स्थान

क्रकि न्यायालय की िै
िंख्यांक 15

मल
ू िाद का िंख्यांक
अपीलों का रस्जस्टर
(आदे श 41 का ननयम 9)

विसशर्ष्टयां
िषव 19........ डिक्रियों की अपीलों का रस्जस्टर
.............. स्स्थत न्यायलय (या उच्च न्यायालय)

डडिी र्जिकी अपील की गई िै

रकम का मप
ू य

पिकारों के उपिंजािोने का हदन


उपिंजानत

अपीलाथी

प्रत्यथी

तार ख
ननणवय

पष्ु ट क्रकया गया,उलट हदया गया या उिमें फेरफार क्रकया गया

क्रकि बात या रकम के सलए


174
उच्च न्यायालय िंशोधन

इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- ननम्नानि


ु ार ननयम 12 ि 13 को अंतः स्थावपत क्रकया
गया-
''12. न्यायालयीन भाषा अथिा अंग्रेजी में सलखा न िोने िाल प्रत्येक दस्तािेज जो क्रक (क) िाद पत्र
के िाथ, अथिा (ख) प्रथम िन
ु िाई पर अथिा (ग) अन्य क्रकिी िमय पर क्रकिी िाद, अपील अथिा
कायििाि में िाक्ष्य में प्रस्तत
ु क्रकया जाता िै , को न्यायालयीन भाषा में दस्तािेज के िि अनि
ु ाद के द्िारा
िंलग्र क्रकया जाएगा । यहद ऐिा कोई दस्तािेज न्यायालयीन भाषा में सलखा जाता िै परं तु िामान्य फारिी
अथिा उपयोग में िोने िाल नागर सलवप के अलािा तो इिे इिकी अंतििस्तु के फारिी अथिा नागर सलवप
में के िि सलप्यंतरण के द्िारा िंलग्र क्रकया जाएगा (22.5.1915)
अनि
ु ाद अथिा सलप्यंतरण करने िाला व्यर्क्त उिका नाम और पता दे गा एिं ित्यावपत करे गा क्रक
अनि
ु ाद अथिा सलप्यंतरण िि िै । यहद दस्तािेज ऐिी सलवप अथिा भाषा में िै जो क्रक अनि
ु ादक अथिा
सलप्यंतरण करने िाले व्यर्क्त को ज्ञात नि ं िै तो व्यर्क्त जो क्रक अनि
ु ादक अथिा सलप्यंतरण करने िाले
व्यर्क्त के फायदों के सलए मल
ू दस्तािेज िे पडता िै , भी उिका-नाम एिं पता दे ते िुए ि यि बताते िुए
क्रक उिने मलू दस्तािेज िे िि पढा िै ित्यावपत करे गा'' (10.12.1932)
''13. जिााँ ननयम (1) द्िारा विहित िच
ू ी में शासमल दस्तािेज को िाक्ष्य में मंजूर क्रकया गया िै तो
न्यायालय ननयम 4 (1) में विहित पष्ृ ठांकन करने के अलािा, िाद के सलए िाक्ष्य के रुप में स्िीकार
दस्तािेजों के मामले में िमबद्ध अंकों के िाथ ऐिे दस्तािेज को धचर्न्ित करे गा एिं प्रनतिाद के सलए
िाक्ष्य में मंजूर दस्तािेजों के मामलों में िमबद्ध अिरों के िाथ धचर्न्ित करे गा एिं ऐिे प्रत्येक िमांक
अथिा अिर पर आद्यिर करे गा । जिााँ दो या अधधक पिकारगण प्रनतिाद गण िैं तो प्रथम पि प्रनतिाद
के दस्तािेजों को ए- 1, ए- 2, ए- 3 आहद धचर्न्ित क्रकया जा िकेगा और द्वितीय पि के सलए बी- 1, बी-
2, बी- 3 आहद | जब िमान प्रकृनत के दस्तािेजों की िख्या को मंजूर क्रकया जाता िै , उदािरण के सलए
भाडे की रिीदों की िीर ज को तो िंपण
ू ि िीर ज एक अंक अथिा केवपटल लेटर अथिा अिर एिं छोटे अंक
अथिा छोटे अिर को िीर ज के प्रत्येक कागजात को िसु भन्न करने के सलए जोडा जाएगा । ( 22.5.1915
एिं 11.4.1936)
आदे श 14
वििाद्यकों का र्स्थर करण और विधध वििाद्यकों के आधार पर या उन वििाद्यों के आधार पर र्जन पर
रजामन्द िो गई िै िाद का अिधारण

1. वििाद्यकों की विरचना- (1) वििाद्यक तब पैदा िोते िै जब क्रक तथ्य या विधध की कोई
तार्त्िक प्रनतपादना एक पिकार द्िारा प्रनतज्ञात और दि
ू रे पिकार द्िारा प्रत्याख्यात की जाती िै |
(2) तार्त्िक प्रनतपादनाएं विधध या तथ्य की िे प्रनतपादनाएं िैं र्जन्िें िाद लाने का अपना अधधकार
दसशित करने के सलए िाद को असभकधथत करना िोगा या अपनी प्रनतरिा गहठत करने के सलए प्रनतिाद को
असभकधथत करना िोगा ।
(3) एक पिकार द्िारा प्रनतज्ञात और दि
ू रे पिकार द्िारा प्रत्याख्यात िर एक तार्त्िक प्रनतपादना

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एक िसु भन्न वििाद्यक का विषय िोगी ।
(4) वििाद्यक दो क्रकस्म के िोते िै :-
(क) तथ्य वििाद्यक,
(ख) विधध वििाद्यक ।
(5) न्यायालय िाद की प्रथम िन
ु िाई में िादपत्र को और यहद कोई सलणखत कथन िो तो उिे पढ़ने
के पश्चात ् और 1[आदे श 10 के ननयम 2 के अधीन पर िा करने के पश्चात ् तथा पिकारों या उनके प्ल डरों
की िन
ु िाई करने के पश्चात ्] यि असभननर्श्चत करे गा क्रक तथ्य की या विधध की क्रकन तार्त्िक
प्रनतपादनाओं के बारे में पिकारों में मतभेद िै और तब िि उन वििाद्यक ओं की विरचना और असभलेखन
करने के सलए अग्रिर िोगा र्जनके बारे में यि प्रतीत िोता िै क्रक मामले का ठीक विननश्चय उन पर ननभिर
करता िै ।
(6) इि ननयम की कोई भी बात न्यायालय िे यि अपेिा नि ं करती क्रक िि उि दशा में
वििाद्यक विरधचत और असभसलणखत करे जब प्रनतिाद िाद की पिल िन
ु िाई में कोई प्रनतरिा नि ं करता
|

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 64 द्िारा (1-2-1977 िे) कुछ शब्दों के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

[2. न्यायालय द्िारा ििी वििाद्यकों पर ननणवय िन


1
ु ाया जाना- (1) इि बात के िोते िुए भी क्रक
िाद का ननपटारा प्रारर्म्भक वििाद्यक पर क्रकया जा िकेगा, न्यायालय उपननयम (2) के उपबन्धों के अधीन
रिते िुए िभी वििाद्यकों पर ननणिय िन ु ाएगा ।
(2) जिां विधध वििाद्यक और तथ्य वििाद्यक दोनों एक ि िाद में पैदा िुए िैं और न्यायालय की
यि राय िै क्रक मामले या उिके क्रकिी भाग का ननपटारा केिल विधध वििाद्यक के आधार पर क्रकया जा
िकता िै ििां यहद िि वििाद्यक-
(क) न्यायालय की अधधकाररता अथिा
(ख) तत्िमय प्रिि
ृ क्रकिी विधध द्िारा िष्ृ ट िाद के िजिन,
िे िम्बर्न्धत िै तो िि पिले उि वििाद्यक का विचारण करे गा और उि प्रयोजन के सलए यहद िि
ठीक िमझे तो, िि अन्य वििाद्यकों का ननपटारा तब तक के सलए मप
ु तिी कर िकेगा जब तक क्रक उि
वििाद्यक का अिधारण न कर हदया गया िो और उि िाद की कायििाि उि वििाद्यक के विननश्चय के
अनि
ु ार कर िकेगा ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 64 द्िारा (1-2-1977 िे) ननयम 2 के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

3. िि िामर्ग्ी स्जििे वििाद्यकों की विरचना की जा िकेगी- न्यायालय ननम्नसलणखत िभी िामग्री


िे या उिमें िे क्रकिी िे वििाद्यकों की विरचना कर िकेगा-

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(क) पिकारों द्िारा या उनकी ओर िे उपर्स्थत क्रकन्ि ं व्यर्क्तयों द्िारा या ऐिे पिकारों के प्ल डरों
द्िारा शपथ पर क्रकए गए असभकथन;
(ख) असभिचनों या िाद में पररदि पररप्रश्नों के उिरों में क्रकए गए असभकथन;
(ग) दोनों पिकारों में िे क्रकिी के द्िारा पेश की गई दस्तािेजों की अन्तििस्तु ।

4. न्यायालय वििाद्यकों की विरचना करने के पिले िाक्षक्षयों की या दस्तािेजों की परीक्षा कर


िकेगा- जिां न्यायालय की यि राय िै क्रक क्रकिी ऐिे व्यर्क्त की पर िा क्रकए बबना जो न्यायालय के िामने
नि ं िै , या क्रकिी ऐिी दस्तािेज का ननर िण क्रकए बबना जो िाद में पेश नि ं की गई िै , वििाद्यकों को
ठीक-ठीक विरचना नि ं की जा िकती िै ििां िि वििाद्यकों की विरचना क्रकिी ऐिे हदन के सलए स्थधगत
कर िकेगा जो िात हदन के पश्चात ् का न िो। और (तत्िमय प्रित ृ विधध के अधीन रिते िुए) िमन या
अन्य आदे सशका द्िारा वििश करके क्रकिी व्यर्क्त की िार्जर करा िकेगा या उि व्यर्क्त द्िारा क्रकिी
दस्तािेज को पेश करा िकेगा र्जिके कब्जे या शर्क्त में िि दस्तािेज िै ।

5. वििाद्यकों का िंशोधन और उन्िें काट दे ने की शस्तत- (1) न्यायालय डडिी पाररत करने के पि
ू ि
क्रकिी भी िमय ऐिे ननबंधनों पर जो िि ठीक िमझे, वििाद्यकों में िंशोधन कर िकेगा या अनतररक्त
वििाद्यकों की विरचना कर िकेगा और िभी ऐिे िंशोधन या अनतररक्त वििाद्यक जो पिकारों के बीच
वििादग्रस्त बातों के अिधारण के सलए आिश्यक िों, इि प्रकार िंशोधधत क्रकए जाएंगे या विरधचत क्रकए
जाएंगे ।
(2) न्यायालय डडिी पाररत करने के पि
ू ि क्रकमी भी िमय क्रकन्ि ं वििाद्यकों को काट िकेगा र्जनके
बारे में उिे प्रतीत िोता िै क्रक िे गलत तौर पर विरधचत तया परु :स्थावपत क्रकए गए िैं ।

6. त्य के या विधध के प्रश्न करार द्िारा वििाद्यकों के रुप में कधथत क्रकए जा िकेंगे- जिां िाद
के पिकार तथ्य के या विधध के ऐिे प्रश्न के बारे में रजामंद िो गए िैं जो उनके बीच विननर्श्चत क्रकया
जाना िै ििा िे उिका वििाद्यक के रुप में कथन कर िकेंगे और सलणखत रुप में यि करार कर िकेंगे क्रक
ऐिे वििाद्यक पर न्यायालय के िकारात्मक या नकारात्मक ननष्कषि पर-
(क) ऐिी धनरासश जो करार में विननहदि ष्ट िै या न्यायालय द्िारा या ऐिी र नत िे न्यायालय ननदे श
क रे , असभननर्श्चत की जानी िै , पिकारों में िे एक द्िारा उनमें िे दि
ू रे को िंदि की जाएगी या उनमें िे
एक पिकार ऐिे क्रकिी अधधकार का िकदार या ऐिे क्रकिी दानयत्ि के अधीन घोवषत क्रकया जाएगा जो
करार में विननहदि ष्ट िै ;

1. 1999 के अधधननयम िं. 46 की धारा 24 द्िारा (1-7-2002 िे) कनतपय शब्दों के स्थान पर
प्रनतस्थावपत ।
2. 2002 के अधधननयम िं. 22 की धारा 11 द्िारा (1-7-2002 िे) ननयम 5 के स्थान पर
प्रनतस्थावपत |

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(ख) कोई िम्पवि जो करार में विननहदि ष्ट िै और िाद में वििादग्रस्त िै , पिकारों में िे एक द्िारा
उनमें िे दि
ू रे को या ऐिे पररदि की जाएंगी जैिे क्रक िि दि
ू रा ननदे श करे , अथिा
(ग) पिकारों में िे एक या अधधक पिकार करार में विननहदि ष्ट और वििादग्रस्त बात िे िम्बर्न्धत
कोई विसशष्ट कायि करें गे या करने िे विरत रिें गे ।

7. यहद न्यायालय का यि िमाधान िो जाता िै क्रक करार का ननष्पादन िद्िािनापि


ू क
व िुआ था तो
िि ननणवय िन
ु ा िकेगा- जिां न्यायालय का ऐिी जांच करने के पश्चात ् जो िि उधचत िमझे, यि िमाधान
िो जाता िै क्रक---
(क) करार पिकारों द्िारा िम्यक् रुप िे ननष्पाहदत क्रकया गया था;
(ख) पि
ू ोक्त प्रश्न के विननश्चय में उनका िारिान हित िै , तथा
(ग) िि इि योग्य िै क्रक उिका विचारण और विननर्श्चय क्रकया जाए,
ििां िि उि वििाद्यक को असभसलणखत करने और उिका विचारण करने के सलए अग्रिर िोगा,
और उि पर अपने ननष्कषि या विननर्श्चय का उिी र नत िे कथन करे गा मानो उि वििाद्यक की
विरचना न्यायालय द्िारा की गई िो; और ऐिे वििाद्यक के ननष्कषि या विननर्श्चय के आधार पर िि करार
के ननबन्धनों के अनि
ु ार ननणिय िन
ु ाएगा और इि प्रकार िन
ु ाए गए ननणिय के अनि
ु रण में डडिी िोगी ।

आदे श 15
प्रथम िन
ु िाई में िाद का ननपटारा

1. जब पक्षकारों में कोई वििाद निीं िै - जिां िाद की प्रथम िन


ु िाई में यि प्रतीत िोता िै क्रक विधध
के या तथ्य के क्रकिी प्रश्न पर पिकारों में वििाद नि ं िै ििां न्यायालय तरु न्त ि ननणिय िन
ु ा िकेगा ।

2. जब कई प्रनतिाहदयों में िे क्रकिी एक का वििाद निीं िै - 1[(1) जिां एक िे अधधक प्रनतिाद िै


और प्रनतिाहदयों में िे क्रकिी एक का विधध के या तथ्य के क्रकिी प्रश्न पर िाद िे वििाद नि ं िै ििां
न्यायालय ऐिे प्रनतिाद के पि में या उिके विरुद्ध ननणिय तरु न्त ि िन
ु ा िकेगा और िाद केिल अन्य
प्रनतिाहदयों के विरुद्ध चलेगा ।
2
[(2) जब कभी इि ननयम के अधीन ननणिय िन
ु ाया जाता िै तब ऐिे ननणिय के अनि
ु ार डडिी
तैयार की जाएगी और डडिी में िि तार ख द जाएगी र्जि तार ख को ननणिय िन
ु ाया गया थी । |

3. जब पक्षकारों में वििाद िै - (1) जिां पिकारों में विधध के या तथ्य के क्रकिी प्रश्न पर वििाद िै
और न्यायालय ने इिमें इिके पि
ू ि उपबर्न्धत रुप में वििाद्यकों की विरचना कर ल िै ििां यहद न्यायालय
का यि िमा धान िो जाता िै क्रक वििाद्यकों में िे ऐिे वििाद्यकों के सलए जो िाद के विननश्चय के सलए
पयािप्त िै जो तकि या िाक्ष्य पिकार तरु न्त ि दे िकते िैं उिके सििाय कोई अनतररक्त तकि या िाक्ष्य
अपेक्षित नि ं िै और िाद में तरु न्त ि आगे कायििाि करने िे कोई अन्याय नि ं िोगा तो न्यायालय ऐिे
वििाद्यकों के अिधारण के सलए अग्रिर िो िकेगा और यहद उनिे िम्बर्न्धत ननष्कषि विननश्चय के सलए

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पयािप्त िै तो िि तदनि
ु ार ननणिय िन
ु िकेगा चािे िमन केिल वििाद्यकों के र्स्थर करण के सलए ननकाला
गया िो या िाद के अर्न्तम ननपटारे के सलए :
परन्तु जिां िमन केिल वििाद्यकों के र्स्थर करण के सलए ि ननकाला गया िै ििां िि तब क्रकया गया
जाएगा जब पिकार या उनके प्ल डर उपर्स्थत िों और उनमें िे कोई आिेप न करता
(2) जिां ननष्कषि विननश्चय के सलए पयािप्त नि ं िै ििां न्यायालय िाद की आगे की िन
ु िाई
मप
ु तिी करे गा और ऐिे अनतररक्त िाक्ष्य को पेश करने के सलए या ऐिे अनतररक्त तकि के सलए हदन ननयत
करे गा जो मामले में अपेक्षित िो ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 65 द्िारा (1-2-1977 िे) ननयम 2 क उि ननयम के
उपननयम (1) के रुप में पन
ु -िंख्यांक्रकत क्रकया गया ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 65 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्तःस्थावपत क्रकया गया ।

4. िाक्ष्य पेश करने में अिफलता- जिां िमन िाद के अर्न्तम ननपटारे के सलए ननकाला गया िै
और दोनों में िे कोई भी पिकार िि िाक्ष्य पेश करने में पयािप्त िे तक
ु के बबना अिफल रिता िै र्जि पर
िि ननभिर करता िै ििां न्यायालय तरु न्त ि ननणिय िन
ु ा िकेगा या यहद िि ठीक िमझता िै तो
वििाद्यकों की विरचना और असभलेखन के पश्चात ् िाद को ऐिे िाक्ष्य पेश क्रकए जाने के सलए स्थधगत कर
िकेगा जो ऐिे वििाद्यकों पर उिके विननश्चय के सलए आिश्यक िै ।

राज्य िंशोधन

उिर प्रदे श राज्य िंशोधन- उिर प्रदे श में प्रयोज्य िोने िाला ननम्नानि
ु ार ननयम को अंतःस्थावपत
क्रकया गया-

''5. स्िीकृत िाड़े आहद को जमा करने में विफलता पर प्रनतरक्षा की िमास्प्त- (1) पट्टाकताि द्िारा
उिके पट्टे के अििान के उपरांत पट्टे दार के ननष्कािन के सलए एिं उििे भाड़ा अथिा उपयोग ि
अधधिाि के सलए भाडा अथिा प्रनतकर क्रकिी िाद में प्रनतिाद िाद की प्रथम िन
ु िाई पर या उिके पि
ू ि
उिके द्िारा मंजूर िंपण
ू ि रासश मय 9 प्रनतशत िावषिक ब्याज के जमा करे गा एिं चािे िि क्रकिी रासश को
दे य िोना मंजरू करता िो अथिा न करता िो िि िाद की ननरं तरता के दौरान िि ननयसमत तौर पर मासिक
भाडा उिके उपगत िोने के एक िप्ताि के भीतर जमा करे गा और और उिके द्िारा दे य िोना मंजूर िाल
िंपण
ू ि रासश को या उपरोक्त कधथत दे य मासिक रासश को जमा कराने में कोई चक
ू करने पर, न्यायालय
उपननयम
(2) के प्रािधानों के अध्यधीन उिकी प्रनतरिा िमाप्त कर िकेगा । ''

स्पष्टीकरण 1- िाक्यांश '' प्रथम िन


ु िाई ' 'तामील में िणणित िन
ु िाई के सलए सलणखत कथन प्रस्तत

करने की तार खे और जिां एक िे अधधक ऐिी हदनांकें िणणित की गयीं िों तो िणणित अंनतम हदनांक िे

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आशनयत िै ।
स्पष्टीकरण 2- िाक्यांश '' उिके द्िारा मंजरू िोना दे य िंपण
ू ि रासश'' िे उपयोग या अधधिाि के
सलए चािे भाडे के रुप में या प्रनतकर के कप में स्िीकृत भाडे की दर िे स्िीकृत बकाया अिधध के सलए
गणना की गयी, पट्टाकताि के एकाउण्ट पर भिन के िंबध
ं में स्थानीय प्राधधकार को दे य करों ि पदटाकताि
द्िारा सलणखत में िस्तािररत असभस्िीकृनत की गयी पदटाकताि को भग
ु तान की गयी रासश, यहद कोई िो, ि
उ.प्र. शिर भिन (पटटे पर दे ने भाडा ि ननष्कािन) अधधननयम, 1972 की धारा 30 के अन्तगित क्रकिी
न्यायालय मे जमा की गयी रासश यहद कोई िो के अलािा अन्य कोई कटौती न की गयी िंपण
ू ि िकल रासश
िे िै |

स्पष्टीकरण 3- (1) िाक्यांश ''मासिक दे य रासश'' िे उपयोग या अधधिाि के सलए चािे यि भाडे के
रूप में िो या प्रनतकर के रुप में िो, मंजूर भाडे की दर पर, स्थानीय प्राधधकार को पदटाकताि के एकाउण्ट
पर भिन के िंबध
ं में भग
ु तान क्रकये गये करों-यहद कोई िों, के अलािा बबना अन्य कोई कटौती क्रकये प्रत्येक
माि की दे य रासश असभप्रेत िै ।
(2) प्रनतरिा िमार्प्त का आदे श करने के पि
ू ,ि न्यायालय इि िंबध
ं में प्रनतिाद द्िारा क्रकये जाने
िाले अभ्यािेदन पर विचार कर िकता िै िशति क्रक ऐिा अभ्यािेदन प्रथम िन
ु िाई के 10 हदििों के भीतर
या उपननयम (1) ननहदि ष्ट िप्ताि के अििान के उपरांत, जैिा भी मामला िो, हदया जाता िै ।
(3) इि ननयम के अन्तगित जमा की गयी रासश क्रकिी भी िमय िाद द्िारा आिररत की जा
िकेगी । :
परन्तु यि क्रक ऐिा आिरण िाद के जमा की गयी रासश की शद्
ु धता को वििाहदत करने के िाद के
क्रकिी दािे को प्रनतकूलता काररत करने का प्रभाि नि ं रखेगी ।
परन्तु अन्यथा यि भी क्रक यहद जमा की गयी में जमाकताि द्िारा क्रकिी की कारण िे कटौतीयोग्य
िोने का दािा की जाने िाल कोई रासश भी शासमल िै तो न्यायालय िाद िे ऐिी रासश के िंबध
ं में
प्रनतभनू त की उिके द्िारा इिे ननकालने के पि
ू ि प्रस्तत
ु करने की अपेिा कर िकेगा ।
(यि िंशोधन 1.1.1977 िे क्रकया गया जो क्रक हदनांक 3.10.1980 िे प्रभािी क्रकया गया ।)

आदे श 16
िाक्षक्षयों को िमन करना और उनकी िास्जरी

1
[1. िाक्षक्षयों की िच
ू ी और िाक्षक्षयों को िमन- (1) ऐिी तार ख को या इिके पि
ू ि जो न्यायालय
ननयत करे और जो वििाद्यकों का ननपटारा कर हदए जाने िे पन्द्रि हदन पश्चात ् न िो, पिकार न्यायालय
में ऐिे िाक्षियों की िच
ू ी पेश करें गे र्जन्िें िे या तो िाक्ष्य दे ने के सलए या दस्तािेजों को पेश करने के सलए
बल
ु ाने की प्रस्थापना करते िैं और न्यायालय में ऐिे व्यर्क्तयों की िार्जर के सलए उनके नाम िमन
असभप्राप्त करें गे ।
(2) यहद कोई पिकार क्रकिी व्यर्क्त की िार्जर के सलए कोई िमन असभप्राप्त करना चािता िै तो
िि पिकार न्यायालय में आिेदन उिके उि प्रयोजन का कथन करते िुए फाइल करे गा र्जिके सलए िािी

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को िमन क्रकया जाना प्रस्थावपत िै |

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 66 द्िारा (1-2-1977 िे) ननयम 1 के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

(3) न्यायालय कारण असभसलणखत करते िुए पिकार को क्रकिी ऐिे िािी की जो उपननयम (1) में
ननहदि ष्ट िचू ी में िणणित नामों िे सभन्न िो, चािे न्यायालय की माफित िमन द्िारा या अन्यथा बल
ु ाने की
अनम
ु नत केिल तभी दे िकेगा जब ऐिा पिकार उक्ि िच
ू ी में ऐिे िािी के नाम का िणिन करने में लोप
के सलए पयािप्त कारण दसशित कर दे ।
(4) उपननयम (2) के उपबंधों के अधीन रिते िुए, इि ननयम में ननहदि ष्ट िमन पिकारों द्िारा
न्यायालय िे या ऐिे अधधकार िे जो 1[उपननयम (1) के अधीन िाक्षियों की िच ू ी प्रस्तत
ु करने के पांच
हदन के भीतर न्यायालय द्िारा इि ननसमि ननयक्
ु त क्रकया जाए, आिेदन करके असभप्राप्त क्रकए जा िकेंगे ।

1. 1999 के अधधननयम िं. 46 की धारा 25 द्िारा (1-7-2002 िे) कनतपय शब्दों के स्थान पर
प्रनतस्थावपत ।

1
[1 क िमन के बबना िाक्षक्षयों का पेश क्रकया जाना- ननयम 1 उपननयम (3) के उपबन्धों के अधीन
रिते िुए िाद का कोई पिकार ननयम 1 के अधीन िमन के सलए आिेदन क्रकए बबना क्रकिी िािी को
िाक्ष्य दे ने या दस्तािेजें पेश करने के सलए ला िकेगा ।

2. िमन के सलए आिेदन करने पर, िाक्षी के व्यय न्यायालय में जमा कर हदए जाएंगे- (1) िमन
के सलए आिेदन करने िाला पिकार िमन के अनद
ु त क्रकए जाने के पिले और उि अिधध के भीतर जो
ननयत की जाए 2[जो ननयम 1 के उपननयम (4) के अधीन आिेदन करने की तार ख िे िात हदन के
पश्चात ् की न िो] ऐिी रासश न्यायालय में जमा करे गा जो िमननत व्यर्क्त के उि न्यायालय तक र्जिमें
िार्जर िोन की उपेिा उििे की गई िै आने और ििा िे जाने के यात्रा िंबध
ं ी और अन्य व्ययों और एक
हदन की िार्जर के व्ययों को चुकाने के सलए न्यायालय को पयािप्त प्रतीत िो ।
(2) विशेषज्ञ-- इि ननयम के अधीन दे य रकम या अिधारण करने में न्यायालय विशेषज्ञ के नाते
िाक्ष्य दे ने के सलए िमननत क्रकिी व्यर्क्त की दशा में उि िमय के सलए यर्ु क्तयक्
ु ि पाररश्रसमक अनज्ञ
ु ात
करे गा जो िाक्ष्य दे ने में और मामले के सलए आिश्यक विशेषज्ञीय स्िरुप के क्रकिी कायि के करने में लगा
िो ।

(3) व्ययों का मापमान- जिां न्यायालय उच्च न्यायालय के अधीनस्थ िै ििा ऐिे व्ययों का
मापमान ननयत करने में उन ननयमों का ध्यान रखा जाएगा जो उि ननसमि बनाए गए िै ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 66 द्िारा (1-2-1977 िे) ननयम 1क के स्थान पर

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प्रनतस्थावपत क्रकया गया |
2. 1999 के अधधननयम िं. 46 की धारा 25 द्िारा (1-7-2002 िे) अंतःस्थावपत ।

(4) व्ययों का िाक्षक्षयों को िीधे िंदाय क्रकया जाना- जिां पिकार द्िारा िमन िािी पर िीधे
तामील क्रकया जाता िै ििां उपननयम (1) में ननहदि ष्ट व्यय िािी को पिकार या उिके असभकताि द्िारा
िंदि क्रकया जाएगा ।

उच्च न्यायालय िंशोधन

मध्य प्रदे श उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- अधधिच


ू ना हदनांक 16.9.1960 के द्िारा उपननयम
(1) में ननम्नानि
ु ार परतक
ुं जोडा गया िै -

''अपिाद- इिके स्ियं के अधधकाररयों में क्रकिी को िमन के सलए आिेदन करने में , शािकीय एिं
राज्य रे लिे प्रशािन उपननयम (1) के क्रियान्िन िे असभमक्
ु त िोगा ।''
पटना उच्च न्यायालय दारा िंशोधन- आदे श 18 ननयम 2(1) में ननम्नानि
ु ार परं तक
ु जोडा गया-
''परन्तु यि क्रक इि ननयम के अन्तगित िरकार िे न्यायालय में कोई व्यय भग
ु तान करने की
अपेिा नि ं की जाएगी जबक्रक यि िमन को आिेदन करने िाला पि िो, एिं आिूत क्रकया जाने िाला
अधधकार िरकार के अधीन िेिारत िै र्जिे क्रक ऐिे तथ्यों की िाक्ष्य दे ने के सलए आिूत क्रकया गया िै
र्जिकी उिे उिकी लोक िमता मे या इि कप में विषय को व्यिित करने कारण जानकार िै ।''

राज्य िंशोधन
उिर प्रदे श राज्य िंशोधन- उ.प्र. के अधधननयम ि. 57 िषि 1976 (1.11.1977) के द्िारा इि
राज्य में ननम्न िंशोधन क्रकया गया-
(1) ननयम 2 के उपननयम (1) में अंत में ननम्न परं तक
ु जोडा गया-
''परन्तु यि क्रक जिां शािकीय िेिक को आिूत करने के सलए आिेदन करने िाला पि िरकार िै
तो न्यायालय को ऐिा कोई भग ु तान करने की आिश्यकता नि ं िोगी ।''
(2) उपननयम (4) के उपरांत ननम्न (उपननयम 4 - क) को जोड़ा गया िै -

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 66 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्त : स्थावपत क्रकया गया|

“(4 – क) खचव के रुप में शािकीय िेिक िाक्षीगण के ििे आहद- कोई शािकीय िेिक जो क्रक
न्यायालय में िाक्ष्य दे ने के सलए अथिा दस्तािेज को प्रस्तत
ु करने के सलए उपर्स्थत िोता िै कोई यात्रा
अथिा दै ननक भिे एिं िेतन को ऐिे िािी के द्िारा प्रमाणणत िोने पर खचे के रुप में कराधेय क्रकया
जाएगा ।

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स्पष्टीकरण 1- यात्रा भिा ि दै ननक भिे प्रश्नगत शािकीय िेिक को प्रयोज्य ऐिे भिों को प्रयोज्य
िोने िाले ननयमों के अनि
ु ार िोंगे ।
स्पष्टीकरण 2.- शािकीय िेिक का दै ननक भिा ि िेतन न्यायालय द्िारा अपेक्षित उिकी
उपर्स्थनत के हदििों की िंख्या के अनप
ु ात में िोंगे ।''
3. िाक्षी को व्ययों का ननविदान- यहद िमन की तामील िमननत व्याकृत पर िैयर्क्तक रुप में िे
की जा िकती िै तो िमन की तामील करते िमय िि रासश जो न्यायालय में ऐिे जमा की गई िै ,
िमननत व्यर्क्त को ननविदि की जाएगी ।

उच्च न्यायालय िंशोधन

मध्य प्रदे श उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (16.9.1960)- ननयम 3 के स्थान ननम्न ननयम 3
प्रनतस्थावपत क्रकया गया िै -
''3 (1) न्यायालय में इि प्रकार भग
ु तान की गयी रासश शािकीय िेिक या राज्य रे लिे कमिचार के
मामले के अलािा, आिूत क्रकये जाने िाले व्यर्क्त को तामील ननिािहित िोने के िमय द जाएगी, यहद उि
पर व्यर्क्तश; तामील की जा िकती िै ।''
(2) जिां शािन के अलािा िाद का अन्य पि न्यायालय िे शािकीय िेिक या रे लिे कमिचार को
िािी के रूप में अथिा कायािल न दस्तािेजों को प्रस्तत
ु करने के सलए आिूत करने की प्राथिना करता िै तो
पिकार न्यायालय में ऐिी रासश जमा करे गा जो क्रक न्यायालय की राय में जो क्रक, जैिा भी मामला िो,
शािकीय िेिक या रे लिे कमिचार को भ्रमण पर यात्रा िे तु यात्रा ि अन्य भिे के सलए िमधु चत िोगी और
इि प्रकार जमा की गयी रासश िे शािकीय िेिक अथिा रे लिे कमिचार को उिे अनज्ञ
ु ेय भ्रमण पर यात्रा के
रूप में यात्रा ि अन्य भिों का भग
ु तान करे गा ।''

पटना उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- ननयम 3 में ननम्न परं तक


ु जोडा गया-
''परन्तु यि क्रक आिूत क्रकया जाने िाला व्यर्क्त शािकीय िेिक िै र्जिे क्रक न्यायालय में उि
प्रकरण में र्जिमें क्रक शािन पिकार िै ऐिे तथ्यों की िाक्ष्य दे ने के सलए आिूत क्रकया गया िै र्जिकी उिे
उिकी लोक िमता मे या इि रुप में विषय को व्यिित करने कारण जानकार िै , तो-
(1) यहद आधधकार का िेतन 10 रूपये मासिक िे अनाधधक िै तो न्यायालय तामील के ननिििन के
िमय उिे ननयम 2 द्िारा अिधाररत उिे उिके व्ययों को भग
ु तान करे गा और रे जर िे रासश को आिररत
करे गा;
(2) यहद आधधकार का िेतन 10 रुपये मासिक िे आधधक िै और न्यायालय उिके मख्
ु यालय िे 5
मील िे अधधक दरू पर र्स्थत नि ं िै तो न्यायालय उिके वििेक पर, उिकी उपर्स्थनत पर उपगत
िास्तविक व्यय का भग
ु तान कर िकेगा ।
3. यहद आधधकार का िेतन 10 रुपये मासिक िे अधधक िै और न्यायालय उिके मख्
ु यालय िे 5
मील िे अधधक दरू पर र्स्थत िै तो न्यायालय द्िारा उिे कोई भग
ु तान नि ं क्रकया जाएगा ऐिी दशा में
ननयम 2 के अन्तगित भग
ु तान क्रकये गये व्ययों को शािन में जमा क्रकया जाएगा ।''

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राजस्थान उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (24.7.1954)- उपननयम 3 इि प्रकार प्रनतस्थावपत क्रकया
गया िै -
''न्यायालय में इि प्रकार भग
ु तान की गयी रासश को यहद आिूत क्रकये जाने िाले व्यर्क्त के द्िारा
उि पर तामील ननिािहित िोने के िमय भग ु तान करने की अपेिा की जाए पररदि क्रकया जा िकेगा, यहद
उि पर व्यर्क्तश: तामील िो िकती िै ।''

4. जिां अपयावप्त रासश जमा की गई िै ििां प्रक्रिया- (1) जिां न्यायालय को या ऐिे अधधकार को
र्जिे िि इि ननसमि ननयक्
ु त करता िै यि प्रतीत िोता िै क्रक न्यायालय में जमा की गई रासश ऐिे व्ययों
या यर्ु क्तयक्
ु त पाररश्रसमक को परू ा करने के सलए पयािप्त नि ं िै ििा न्यायालय िमननत व्यर्क्त को ऐिी
अनतररक्त रासश के हदए जाने के सलए ननदे श दे िकेगा जो उि मद्धे आिश्यक प्रतीत िोती िो और िदाय
करने में व्यनतिम की दशा में यि आदे श दे िकेगा क्रक ऐिी रासश िमन करने िाले पिकार की जंगम
िंपवि की कुकी और वििय के द्िारा उद्गि
ृ त की जाए या न्यायालय िमननत व्यर्क्त िे िाक्ष्य दे ने की
अपेिा क्रकए बबना उिे उन्मोधचत कर िकेगा या ऐिे उद्ग्रिण का और ऐिे व्यर्क्त के यथापि
ू ोक्त उन्मोचन
दोनों का आदे श दे िकेगा ।
(2) एक हदन िे अधधक रोके जाने पर िाक्षक्षयों के व्यय- जिां िमननत व्यर्क्त को एक हदन िे
अधधक अिधध के सलए रोक रखना आिश्यक िै ििां न्यायालय िमय-िमय पर उि पिकार को र्जिकी
प्रेरणा िे िि िमननत क्रकया गया था, न्यायालय में ऐिी रासश जमा करने का आदे श दे िकेगा जो ऐिी
अनतररक्त अिधध के सलए उिके रोक रखने के व्ययों को चुकाने के सलए पयािप्त िो और ऐिे ननिेप करने
में व्यनतिम िोने पर आदे श दे िकेगा क्रक ऐिी रासश ऐिे पिकार की जगम िंपवि की कुकी और वििय के
द्िारा उद्गि
ृ त की जाए या न्यायालय िमननत व्यर्क्त िे िाक्ष्य दे ने की अपेिा क्रकए बबना उिे उन्मोधचत
कर िकेगा या ऐिे उद्ग्रिण का और ऐिे व्यर्क्त के यथापि
ू ोक्त उन्मोचन दोनों का आदे श दे िकेगा ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


म.प्र. उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (16.9.1960)- ननयम 4 में उपननयम (1) में प्रथम स्थान पर
दसशित ''िमननत व्यर्क्त'' के उपरांत इन शब्दों को जोड़ा गया िै - ''अथिा जबक्रक ऐिा व्यर्क्त न्यायलय में
भग
ु तान क्रकया जाने िाला शािकीय िेिक या राज्य रे लिे कमिचार िै ''

राज्य िंशोधन

उिर प्रदे श राज्य िंशोधन (1.1.1977)- उिर प्रदे श राज्य में आदे श 14 ननयम 4 मे ननम्न परं तक

जोडा गया िै -
''परन्तु यि क्रक इि ननयम की कोई बात ऐिे मामले में प्रयोज्य नि ं िोगी जिां िािी शािकीय
िेिक िै और पिकार के रुप में शािन िोने पर उिके आग्रि पर उिे आिूत क्रकया गया िै ।''

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5. िास्जरी के िमय, स्थान और प्रयोजन का िमन में विननहदवष्ट क्रकया जाना- िाक्ष्य दे ने या
दस्तािेज पेश करने को क्रकिी व्यर्क्त की िार्जर के सलए िर िमन में िि िमय और स्थान विननहदिष्ट
िोगा र्जिमें िि िार्जर िोने के सलए अपेक्षित िै और यि भी विननहदि ष्ट िोगा क्रक उिकी िार्जर िाक्ष्य दे ने
के प्रयोजन के सलए या दस्तािेज पेश करने के प्रयोजन के सलए या दोनों प्रयोजनों के सलए अपेक्षित िै और
ऐिी कोई विसशष्ट दस्तािेज र्जिे पेश करने की िमननत व्यर्क्त िे अपेिा की गई िै , िमन में यर्ु क्तयक्
ु त
शद्
ु धता के िाथ िणणित िोगी ।

6. दस्तािेज पेश करने के सलए िमन- कोई भी व्यर्क्त िाक्ष्य दे ने के सलए िमन क्रकए बबना,
दस्तािेज पेश करने के सलए िमन क्रकया जा िकेगा और केिल दस्तािेज पेश करने के सलए ि िमननत
कोई व्यर्क्त, यहद उिे पेश करने के सलए स्ियं िार्जर िोने के बदले ऐिी दस्तािेज को पेश करिा दे ता िै
तो उिके बारे में यि िमझा जाएगा क्रक उिने िमन का अनप
ु ालन कर हदया िै ।

7. न्यायालय में उपस्स्थत व्यस्ततयों को िाक्ष्य दे ने या दस्तािेज पेश करने के सलए अपेक्षक्षत करने
की शातत- न्यायालय में उपर्स्थत क्रकिी भी व्यर्क्त िे न्यायालय यि अपेिा कर िकेगा क्रक िि व्यर्क्त
िाक्ष्य दे या ऐिी कोई दस्तािेज पेश करे , जो उि िमय और ििां उिके कब्जे या शर्क्त में िै ।

[7क. तामील के सलए पक्षकार को िमन का हदया जाना—(1) न्यायालय क्रकिी व्यर्क्त की िार्जर
1

के सलए िमन ननकालने के सलए क्रकिी पिकार के आिेदन पर, ऐिे पिकार को उि व्यर्क्त पर िमन की
तामील करने के सलए अनज्ञ
ु ा दे िकेगा और ऐिी दशा में उि पिकार को तामील के सलए िमन पररदि
करे गा ।
(2) ऐिे िमन की तामील ऐिे पिकार द्िारा या उिकी ओर िे िािी को िैयर्क्तक रुप िे उिकी
प्रनत जो न्यायाधीश द्िारा या न्यायालय के ऐिे अधधकार द्िारा र्जिे िि इि ननसमि ननयक्
ु त करे ,
िस्तािररत िो और जो न्यायालय की मद्र
ु ा िे मद्र
ु ांक्रकत िो, पररदि या ननविदि करके की जाएगी ।
(3) आदे श 5के ननयम16 और ननयम 18 के उपबन्ध कर अधधननयम के अधीन िैयर्क्तक रुप िे
तामील क्रकए गए िमन को इि प्रकार लागू िोंगे मानो तामील करने िाला व्यर्क्त तामील करने िाला
अधधकार िो ।
(4) यहद ऐिा िमन ननविदि क्रकए जाने के िमय अगिृ त कर हदया जाता िै या िि व्यर्क्त र्जि
पर तामील की गई िै , तामील भी असभस्िीकृनत पर िस्तािर करके िे इंकार कर दे ता िै या क्रकिी कारण िे
ऐिा िमन िैयर्क्तक रुप िे तामील नि ं क्रकया जा िकता िै तो न्यायालय पिकार के आिेदन पर ऐिा
िमन उिी र नत िे न्यायालय द्िारा तामील क्रकए जाने के सलए र्जििे प्रनतिाद को िमन तामील क्रकया
जाता िै , पन
ु : ननकालेगा ।
(5) जिां इि ननयम के अधीन पिकार द्िारा िमन तामील क्रकया जाता िै ििां पिकार िे ऐिी
फीि िंदि करने की अपेिा नि ं की जाएगी जो िमन की तामील के सलए अन्यथा प्रभायि िोती ।]

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 68 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया गया ।

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8. िमन की तामील कैिे िोगी- 1[इि आदे श के अधीन िर िमन की तामील जो ननयम 7 के
अधीन पिकार को तामील के सलए पररदि िमन नि ं िै , जिां तक िंभि िो िके, िैिी ि र नत िे की
जाएगी जैिी प्रनतिाद के नाम ननकाले गए िमन की तामील की जाती िै और आदे श 5 के िे ननयम जो
तामील के िबत
ू िे िम्बर्न्धत िैं, उन िभी िमनों की दशा में लागू िोंगे र्जनकी तामील इि ननयम के
अधीन की गई िै ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (24.7.1926)-- ननयम 8 में शब्दों '' िमन नि ं िै के
उपरांत ननम्न शब्दों को जोडा गया िै - ''इि आदे श के अन्तगित, न्यायालय की अनम
ु नत िे इिके सलए
आिेदन करने िाले पिकार या उिके असभकताि द्िारा व्यर्क्तश: तामील द्िारा, की जा िकेगी और ऐिी
तामील में विफल रिने पर ''
पटना उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- ननयम 8 में ननम्न परं तक
ु को जोड़ा गया-
''परन्तु यि क्रक इि आदे श के अन्तगित, न्यायालय की अनम
ु नत िे इिके सलए आिेदन करने िाले
पिकार या उिके असभकताि द्िारा व्यर्क्तश: तामील द्िारा, की जा िकेगी और ऐिी तामील प्रभािी नि ं िो
पाती िै तो और न्यायालय की यि िंतर्ु ष्ट िो जाती िै क्रक पिकार या उिके असभकताि के द्िारा ऐिी
तामील को प्रभािी करने में िम्यक ितकिता उपयोधगत की गयी थी तो न्यायालय द्िारा िामान्य र नत में
तामील का ननिािि कराया जाएगा ।''

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 66 द्िारा (1-2-1977 िे) कुछ शब्दों के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

राजस्थान उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (24.7.1954 िे)- ननयम 8 में ननम्न परं तक
ु जोडा गया-
''परन्तु यि क्रक कोई भी पि न्यायालय की अनम
ु नत िे स्ियं या उिके असभकताि के द्िारा उिके
िािीगण या क्रकिी िािी पर व्यर्क्तश: तामील करिा िकेगा ।''

9. िमन की तामील के सलए िमय- िभी दशाओं में तामील उि िमय िे पयािप्त िमय पि
ू ि की
जाएगी जो िमननत व्यर्क्त की िार्जर के सलए िमन में विननहदि ष्ट िो, र्जििे उिे तैयार करने के सलए
और उि स्थान तक जिां पर उिकी िार्जर अपेक्षित िै , यात्रा करने के सलए यर्ु क्ियक्
ु ि िमय समल िके ।

10. जिां िाक्षी िमन का अनप


ु ालन करने में अिफल रिता िै ििां प्रक्रिया- [(1) जिां िि व्यर्क्त
1

र्जिके नाम िाक्ष्य दे ने को िार्जर िोने के सलए या दस्तािेज पेश करने के सलए िमन ननकाला गया िै , ऐिे
िमन के अनप
ु ालन में िार्जर िोने या दस्तािेज पेश करने में अिफल रिता िै ििां न्यायालय-
(क) यहद तामील करने िाले अधधकार का प्रमाणपत्र शपथपत्र द्िारा ित्यावपत नि ं क्रकया गया िै
या यहद िमन की तामील पिकार या उिके असभकताि द्िारा कराई गई िै तो, यथार्स्थनत, तामील करने

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िाले ऐिे अधधकार या पिकार या उिके असभकताि की र्जिने शपथपत्र की तामील कराई थी, िमन की
तामील िोने या न िोने के बारे में शपथपत्र पर िा करे गा या क्रकिी न्यायालय द्िारा उिकी इि प्रकार
पर िा कराएगा; अथिा
(ख) यहद तामील करने िाले अधधकार का प्रमाणपत्र इि प्रकार ित्यावपत क्रकया गया िै तो,
यथार्स्थनत, तामील करने िाले ऐिे अधधकार या पिकार या उिके असभकताि की र्जिने शपथपत्र की
तामील कराई थी, िमन की तामील िोने या न िोने के बारे में शपथपत्र पर पर िा कर िकेगा या क्रकिी
न्यायालय द्िारा उिकी इि प्रकार पर िा करा िकेगा ।]

(2) जिां न्यायालय को यि विश्िाि करने के सलए कारण हदखाई दे ता िै क्रक िाक्ष्य या ऐिा पेश
क्रकया जाना तार्त्िक िै और ऐिे िमन के अनप
ु ालन में िार्जर िोने या ऐिी दस्तािेज पेश करने में ऐिा
व्यर्क्त विधधपण
ू ि प्रनतिे तु के बबना अिफल रिा िै या उिने तामील िे अपने को िाशय बचाया िै ििां िि
उििे यि अपेिा करने िाल उद्घोषणा ननकाल िकेगा क्रक िि उिमें नासमत िमय और स्थान में िाक्ष्य
दे ने या दस्तािेज पेश करने के सलए िार्जर िो और ऐिी उद्घोषणा की प्रनत उि गि
ृ के बािर द्िार पर या
अन्य ििजदृश्य भाग पर लगाई जाएगी र्जिमें िि मामल
ू तौर िे ननिाि करता िै ।
(3) न्यायालय ऐिे व्यर्क्ि की धगरफतार के सलए िांरट प्रनतभनू त के िहित या बबना ऐिी उद्घोषणा
के बदले में या उिे ननकालने के िमय या तत्पश्चात ् क्रकिी भी िमय, स्िवििेकानि
ु ार ननकाल िकेगा और
उिकी िम्पवि की कुकी के सलए आदे श ऐिी कुकी के खचों की और ननयम 12 के अधीन अधधरोवपत क्रकए
जाने िाले क्रकिी जम
ु ािने की रकम िे अनधधक ऐिी रकम के सलए कर िकेगा जो िि ठीक िमझे:
परन्तु कोई भी लघि
ु ाद न्यायालय स्थािर िम्पवि की कुकी के सलए आदे श नि ं करे गा ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 66 द्िारा (1-2-1977 िे) उपननयम (1) के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

उच्च न्यायालय िंशोधन

इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (17.9.1938)- ननम्न िंशोधन क्रकये गये-
(1) उपननयम (1) में ''पर िा करा िकेगा'' शब्दों के उपरांत पण
ू ि विराम के स्थान पर कोलन
प्रनतस्थावपत कीर्जए और परं तक
ु जोडड़ये-

''परन्तु यि क्रक न्यायालय को तामील का ननिािि कराने िाले अधधकार के पर िण की आिश्यकता


नि ं िै यहदआिूत व्यर्क्त को मात्र दस्तािेज को प्रस्तत
ु करने के आिूत क्रकया गया िै और उिने तामील
िोना मंजूर की िै परन्तु दस्तािेज को लाने में विफलता की िै ।''
(2) उपननयम (2) में
(क) शब्द “उद्घोषणा” के उपरांत ि शब्द ''अथिा यहद िि उपर्स्थत िै तो उिके द्िारा सलणखत में
िस्तािररत आदे श'' शब्दों को अन्तःस्थावपत क्रकया गया िै ।

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(ख) शब्द ''उद्घोषणा की प्रनत'' के स्थान पर शब्द '' उद्घोषणा की प्रनत, यहद जार िुई िो'' शब्दों
को प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
(3) उपननयम 3 में शब्दों '' उद्घोषणा के बदलें में या उिे ननकालने के िमय'' के उपरांत ''या
सलणखत में आदे श '' शब्दों को जोडा गया िै ।

11. यहद िाक्षी उपिंजात िो जाता िै तो कुकी प्रत्याहृत की जा िकेगी- जिां ऐिा व्यर्क्त अपनी
िम्पवि की कुकी के पश्चात ् क्रकिी िमय उपिंजात िो जाता िै और-

(क) न्यायालय का िमाधान कर दे ता िै क्रक िमन का अनप


ु ालन करने में िि विधधपण
ू ि प्रनतिे तु के
बबना अिफल नि ं रिा िै या उिने तामील िे अपने को िाशय नि ं बचाया िै , तथा
(ख) जिां िि अर्न्तम पि
ू ि
ि ती ननयम के अधीन ननकाल गई उद्घोषणा में नासमत िमय और स्थान
में िार्जर िोने में अिफल रिा िै ििां न्यायालय का िमाधान कर दे ता िै क्रक ऐिी उद्घोषणा की कोई
िच
ू ना उिे ऐिे िमय पर नि ं िुई थी क्रक िि िार्जर िो िकता,
ििां न्यायालय यि ननदे श दे गा क्रक िम्पवि कुकी िे ननमक्
ुि त की जाए और कुकी के खचों के
िम्बन्ध में िि ऐिा आदे श करे गा जो िि ठीक िमझे ।

12. यहद िाक्षी उपिंजात िोने में अिफल रिता िै तो प्रक्रिया- 1[(1) जिां ऐिा व्यर्क्त उपिंजात
नि ं िोता िै या उपिंजात तो िोता िै क्रकन्तु न्यायालय का िमाधान करने मे अिफल रिता िै ििां
न्यायालय उिकी िांिररक र्स्थनत और मामले की िभी पररर्स्थनतयों को ध्यान में रखते िुए पांच िौ रुपए
िे अनधधक ऐिा जमु ािना उि पर अधधरोवपत कर िकेगा जो िि ठीक िमझे और इि प्रयोजन िे क्रक यहद
कोई यक्
ु त जुमािना िो तो उि जुमािने की रकम के िहित ऐिी कुकी के िभी खचों को चुकाया जा िके यि
आदे श दे िकेगा क्रक उिकी िम्पवि या उिका कोई भाग कुकि क्रकया जाए और उिका वििय क्रकया जाए या
यहद िि पिले ि ननयम 10 के अधीन कुकि क्रकया जा चक
ु ा िै तो उिका वििय क्रकया जाए :
परन्तु यहद िि व्यर्क्त र्जिकी िार्जर अपेक्षित िै उक्त खचों और जुमािने को न्यायालय में जमा
कर दे ता िै तो न्यायालय िम्पवि को कुकी िे ननमक्
ुि ि क्रकए जाने का आदे श दे गा ।
2
[(2) इि बात के िोते िुए भी क्रक न्यायालय ने न तो ननयम 10 के उपननयम (2) के अधीन
उद्घोषणा ननकाल िै , और न उि ननयम के उपननयम (3) के अधीन िांरट ननकाला िै और न कुकी का
आदे श क्रकया िै , न्यायालय ऐिे व्यर्क्त को यि िे तक
ु दसशित करने के सलए िच
ू ना दे ने के पश्चात ् क्रक
जुमािना क्यों नि ं अधधरोवपत क्रकया जाना चाहिए, इि ननयम के उपननयम (1) के अधीन जुमािना अधधरोवपत
कर िकेगा ।]

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 66 द्िारा (1-2-1977 िे) ननयम 12 को उि ननयम के
उपननयम (1) के रुप में पन
ु ःिख्यार्क्त क्रकया गया ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 66 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्तःस्थावपत क्रकया गया

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13. कुकी करने का ढं ग- डडिी के ननष्पादन में िम्पवि की कुकी और वििय के बारे में उपबन्ध
जिां तक क्रक िे लागू िोने योग्य िों, इि आदे श के अधीन क्रकिी कुकी और वििय को उिी प्रकार लागू
िमझे जाएंगे मानों िि व्यर्क्त र्जिकी िम्पवि इि प्रकार कुकी की गई िै , ननणीत ऋणी िो ।

14. जो व्यस्तत िाद में परव्यस्तत िै उन्िें न्यायालय िाक्षक्षयों के रुप में स्िप्रेरणा िे िमन कर
िकेगा- िार्जर और उपर्स्थनत के बारे में इि िंहिता के उपबन्धों और तत्िमय प्रित
ृ क्रकिी विधध के
अधीन रिते िुए, जिा न्यायालय क्रकिी भी िमय यि आिश्यक िमझता िै क्रक 1[क्रकिी ऐिे व्यर्क्त की
पर िा की जाए र्जिके अन्तगित िाद का पिकार भी िै ] और जो िाद के पिकार द्िारा िािी के रुप में
नि ं बल
ु ाया गया िै ििां न्यायालय स्िप्रेरणा िे ऐिे व्यर्क्त को, ऐिे हदन जो ननयत क्रकया जाएगा, िाक्ष्य
दे ने के सलए या अपने कब्जे में की कोई दस्तािेज पेश करने के सलए िािी के रुप में िमन करिा िकेगा
और िािी के रुप में उिकी पर िा कर िकेगा या उििे ऐिी दस्तािेज पेश करने केसलए अपेिा कर िकेगा
15. उन व्यस्ततयों का कतवव्य जो िाक्ष्य दे ने या दस्तािेज पेश करने के सलए िमन क्रकए गए िै -
ठीक ऊपर िाले ननयम के अधीन रिते िुए कोई व्यर्क्त जो क्रकिी िाद में उपिंजात िोने और िाक्ष्य दे ने के
सलए िमन क्रकया जाता िै िि उि प्रयोजन के सलए िमन में नासमत िमय और स्थान में िार्जर िोगा और
कोई व्यर्क्त जो दस्तािेज पेश करने के सलए िमन क्रकया जाता िै िि ऐिे िमयपर और ऐिे स्थान में या
तो उिे पेश करने के सलए िार्जर िो गया उिे पेश कराएगा ।
1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 66 द्िारा (1-2-1977 िे) कुछ शब्दों के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
16. िे कब प्रस्थान कर िकेंगे- (1) इि प्रकार िमननऔर िार्जर िोने िाला व्यर्क्त जब तक क्रक
न्यायालय अन्यथा ननदे श न करे िर एक िन
ु िाई में तब तक िार्जर िोता रिे गा जब तक क्रक िाद का
ननपटारा न िो जाए ।
(2) दोनों पिकारों में िे क्रकिी भी आिेदन पर और न्यायालय की माफित िमस्त आिश्यक व्ययों
के (यहद कोई िो) िदि क्रकए जाने पर, न्यायालय इि प्रकार िमननत और िार्जर िोने िाले क्रकिी भी
व्यर्क्त िे अपेिा कर िकेगा क्रक िि अगल या क्रकिी अन्य िन
ु िाई में या तब तक जब तक क्रक िाद का
ननपटारा न िो जाए िार्जर िोने के सलए प्रनतभनू त दे और ऐिी प्रनतभनू त दे ने में उिके व्यनतिम करने पर
आदे श कर िकेगा क्रक उिे सिविल कारागर में ननरुद्ध क्रकया जाए ।

17. ननयम 10 िे ननयम 13 तक का लागू िोना- ननयम 10 िे ननयम 13 तक के उपबन्धों के


बारे में जिां तक क्रक िे लागू िोने योग्य िैं यि िमझा जाएगा क्रक िे क्रकिी भी ऐिे व्यर्क्त को लागू िोते िैं
जो िमन के अनप
ु ालन में िार्जर िोने पर ननयम 16 के उपलंघन में विधधपण
ू ि प्रनतिे तु के बबना प्रस्थान कर
गया िै ।

18. जिां पकड़ा गया िाक्षी िाक्ष्य निीं दे िकता या दस्तािेज पेश निीं कर िकता ििां प्रक्रिया-
जिां िारं ट के अधीन धगरफ्तार क्रकया गया कोई व्यर्क्त न्यायालय के िमि असभरिा में लाया जाता िै और
पिकारों की या उनमें िे क्रकिी भी अनप
ु र्स्थनत के कारण िि ऐिा िाक्ष्य नि ं दे िकता िै या ऐिी

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दस्तािेज पेश नि ं कर िकता िै र्जिे दे ने या पेश करने के सलए िि िमन क्रकया गया िै ििा न्यायालय
उििे यि अपेिा कर िकेगा क्रक िि ऐिे िमय और ऐिे स्थान में जो न्यायालय ठीक िमझे अपनी
उपिंजानत के सलए यर्ु क्तयक्
ु त जमानत या अन्य प्रनतभनू त दे और ऐिी जमानत या प्रनतभनू त के हदए जाने
पर उिे ननमक्
ुि त कर िकेगा और उिके ऐिी जमानत या प्रनतभनू त दे ने में व्यनतिम करने पर आदे श दे
िकेगा क्रक उिे सिविल कारागार में ननरुद्ध क्रकया जाए ।

19. जब तक क्रक कोई िाक्षी क्रकन्िीं ननस्श्चत िीमाओं के िीतर का ननिािी न िो िि स्ियं िास्जर
िोने के सलए आहदष्ट निीं क्रकया जाएगा- क्रकिी भी व्यर्क्त को स्ियं िार्जर िोने के सलए केिल तभी आदे श
क्रकया जाएगा जब िि-
(क) न्यायालय की मामल
ू आरर्म्भक अधधकाररता की स्थानीय िीमाओं के भीतर, अथिा
(ख) ऐिी दशाओं के बािर क्रकन्तु ऐिे स्थान में जो न्याय-िदन िे 1[एक िौ क्रकलोमीटर] िे कम या
(जिां उि स्थान के जिां िि ननिाि करता िै और उि स्थान के जिां न्यायालय र्स्थत िै , बीच पंचषष्टाश
दरू तक रे ल या स्ट मर िंचार या अन्य स्थावपत लोक प्रििण िै ििां) 2[पांच िौ क्रकलोमीटर] िे कम दरू िै
ननिाि करता िै :
2
[परन्तु जिां इि ननयम में िणणित दोनों स्थानों के बीच िायु मागि द्िारा यातायात उपलब्ध िै और
िािी को िायु मागि का यात्री भाड़ा िंदि क्रकया गया िै , ििां उिे स्ियं िार्जर िोने का आदे श क्रकया जा
िके गा ।]
उच्च न्यायालय िंशोधन
इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- आदे श 16 ननयम 19 के खण्ड ख) में ''लोक प्रििण'' के
उपरांत ि ''ििााँ पााँच िौ क्रकलोमीटर'' के पि
ू ि या क्रकराए पर चलने िाले ननजी प्रििण'' और अंतःस्थावपत
क्रकया गया िै । [दे खें अधधिच
ू ना िमांक 24/VII-डी-154,4.4.1959]

20. न्यायालय द्िारा बल


ु ाए जाने पर िाक्ष्य दे ने िे पक्षकार इंकार का पररणाम- जिां िाद का ऐिा क कोई
पिकार जो न्यायालय में उपर्स्थत िै , न्यायालय द्िारा अपेिा क्रकए जाने पर, िाक्ष्य दे ने िे या ऐिे
दस्तािेज को जो उि िमय और िि ं उिके कब्जे या शर्क्त में िै , पेश करने िे इकार विधधपण
ू ि प्रनतिे तु के
बबना करता िै ििां न्यायालय उिके विरुद्ध ननणिय िन
ु ा िकेगा या िाद के िम्बन्ध में ऐिा आदे श कर
िकेगा जो िि ठीक िकझे ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 66 द्िारा (1-2-1977 िे) ''पचाि मील'' के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 66 द्िारा (1-2-1999 िे) ''दो िौ मील'' के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
3. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 66 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्तःस्थावपत क्रकया गया

21. िाक्षक्षयों विषयक ननयम िमननत पक्षकारों को लागू िोंगे- जिां िाद के क्रकिी पिकार िे िाक्ष्य

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दे ने या दस्तािेज पेश करने के सलए अपेिा की गई िै ििां उिे िाक्षियों विषयक उपबन्ध ििां तक लागू
िोंगे जिां तक क्रक िे लागू िोने योग्य िों ।

उच्च न्यायालय िंशोधन

इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा आदे श 16 में ननयम
22 ि 23 और जोडे गए िैं । ननयम 22 अधधिच
ू ना िमांक 1953/35 (क)' हदनांक 22.5.1915 और ननयम
23 अधधिच
ू ना िमांक 359/35 (क) (1), (1) हदनांक 7.2.1920 के द्िारा जोडे गए िैं ।

[आदे श 16क
1

कारागार में परररुद्ध या ननरुद्ध िाक्षक्षयों की िास्जरी

1. पररिाषाएं- इि आदे श में ,-


(क) “ननरुद्ध” के अन्तगित ननिारक ननरोध के सलए उपबन्ध करने िाल क्रकिी विधध के अधीन
ननरुद्ध भी िै ;
(ख) ''कारागार'' के अन्तगित ननम्नसलणखत भी िैं:-
(i) ऐिा कोई स्थान र्जिे राज्य िरकार ने िाधारण या विशेष आदे श द्िारा अनतररक्त जेल घोवषत
क्रकया िै , और
(ii) कोई िध
ु ारालय, बोस्टि ल िंस्था या इिी प्रकार की कोई अन्य िंस्था ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 67 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया गया

2. िाक्ष्य दे ने के सलए बंहदयों को िास्जर करने की अपेक्षा करने की शस्तत- जिां न्यायालय को यि
प्रतीत िोता िै क्रक राज्य के भीतर कारागार में पररबद्ध या ननरुद्ध व्यर्क्त का िाक्ष्य िाद में तार्त्िक िै
ििां न्यायालय कारागार के भारिाधक अधधकार िे यि अपेिा करने िाला आदे श कर िकेगा क्रक िि उि
व्यर्क्त को िाक्ष्य दे ने के सलए न्यायालय के िमि पेश करे :
परन्तु यहद कारागार' िे न्याय-िदन की दरू पच्चीि क्रकलोमीटर िे अधधक िै तो ऐिा आदे श तब
तक निें क्रकया जाएगा जब तक न्यायालय का यि िमाधान नि ं िो जाता िै क्रक कमीशन द्िारा ऐिे
व्यर्क्त की पर िा पयािप्त नि ं िोगी ।

3. न्यायालय में व्यय का िंदि क्रकया जाना—(1) न्यायालय ननयम (2) के अधीन कोई आदे श करने
िे पि
ू ि उि पिकार िे, र्जिकी प्रेरणा पर या र्जिके फायदे के सलए आदे श ननकाला जाना िै , यि अपेिा
करे गा क्रक िि न्यायालय में ऐिी धनरासश िंदि करे जो न्यायालय को आदे श के ननष्पादन के व्ययों को
चुकाने के सलए र्जिके अन्तगित िािी को हदए गए अनरु िक के यात्रा व्यय और अन्य व्यय भी िैं, पयािप्त
प्रतीत िोती िै ।

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(2) जिां न्यायालय उच्च न्यायालय के अधीनस्थ िै ििां ऐिे व्ययों का मापमान ननयत करने में ,
इि ननसमि उच्च न्यायालय द्िारा बनाए गए क्रकन्ि ं ननयमों को ध्यान में रखा जाएगा ।

4. ननयम 2 के प्रितवन िे कुछ व्यस्ततयों की अपिस्जवत करने की राज्य िरकार की शस्तत—(1)


राज्य िरकार उपननयम (2) में विननहदि ष्ट बातों को ध्यान में रखते िुए क्रकिी भी िमय िाधारण या विशेष
आदे श द्िारा, यि ननदे श दे िकेगी क्रक क्रकिी व्यर्क्त या िगि के व्यर्क्तयों को ऐिे कारागार िे नि ं िटाया
जाएगा र्जिमें उिे या उन्िें परररुद्ध या ननरुद्ध क्रकया गया िै और जब तक आदे श प्रिि
ृ रिता िै तब तक
ननयम 2 के अधीन क्रकया गया कोई आदे श, चािे िि राज्य िरकार द्िारा क्रकए गए आदे श की तार ख के
पि
ू ि या उििे पश्चात ् क्रकया गया िो, ऐिे व्यर्क्त या ऐिे िगि के व्यर्क्तयों के बारे में प्रभािी नि ं िोगा ।
(2) राज्य िरकार उपननयम (1) के अधीन आदे श करने िे पि
ू ि ननम्नसलणखत बातों को ध्यान में
रखेगी, अथाित ् िै :--
(क) उि अपराध का स्िरुप र्जिके सलए या िे आधार र्जन पर उि व्यर्क्त को या िगि के
व्यर्क्तयों को कारागार में परररुद्ध या ननरुद्ध करने का आदे श हदया गया िै र
(ख) यहद उि व्यर्क्त को या उि िगि के व्यर्क्तयों को कारागार िे िटाने की अनज्ञ
ु ा द जाती िै
तो लोक व्यिस्था में विध्न की िंभाव्यता; और
(ग) िाधारणतया लोकहित ।
5. कारागार के िारिाधक अधधकारी का कुछ मामलों में आदे श को कायावस्न्ित न करना- जिां िि
व्यर्क्त र्जिके िम्बन्ध में ननयम 2 के अधीन आदे श क्रकया गया िै ,-
(क) ऐिा व्यर्क्त िै र्जिकी बाबत कारागार िे िम्बद्ध धचक्रकत्िाअधधकार ने यि प्रमाणणत क्रकया िै
क्रक िि बीमार या अंगशैधथपय के कारण कारागार िे िटाए जाने के योग्य नि ं िै , अथिा
(ख) विचारण के सलए िप
ु द
ु िगी के अधीन िै या विचारण के लर्म्बत रिने तक के सलए या प्रारर्म्भक
अन्िेषण के लर्म्बत रिने तक के सलए प्रनतप्रेिण के अधीन िै , अथिा
(ग) ऐिी अिधध के सलए असभरिा में िै जो आदे श का अनप
ु ालन करने के सलए और उि कारागार
में र्जिमें िि परररुद्ध या ननरुद्ध िै िापि ले आने के सलए अपेक्षित िमय के िमाप्त िोने के पि
ू ि
िमाप्त िो जाएगी, अथिा
(घ) ऐिा व्यर्क्त िै र्जिको राज्य िरकार द्िारा ननयम 4 के अधीन क्रकया गया आदे श लागू िोता
िै ,
ििां कारागार का भारिाधक अधधकार न्यायालय के आदे श को कायिर्न्ित नि ं करे गा और ऐिा न
करने के कारणों का वििरण न्यायालय को भेजेगा ।

6. बन्दी का न्यायालय में असिरक्षा में लाया जाना- कारागार का भारिाधक अधधकार , क्रकिी अन्य
मामले में , न्यायालय का आदे श पररदि क्रकए जाने पर उिमें नासमत व्यर्क्त को न्यायालय में सभजिाएगा
र्जििे िि उि आदे श में उर्पलणखत िमय पर उपर्स्थत िो िके और उिे न्यायालय में या उिके पाि
असभरिा में तब तक रखिाएगा जब तक उिकी पर िा न कर ल जाए या जब तक न्यायालय उिको उि
कारागार में र्जिमें िि परररुद्ध या ननरुद्ध िै , िापि ले जाने के सलए उिे प्राधधकृत न करे ।

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7. कारागार में िाक्षी की परीक्षा के सलए कमीशन ननकालने की शस्तत- (1) जिां न्यायालय को यि
प्रतीत िोता िै क्रक कारागार में , चािे िि राज्य के भीतर िो या भारत में अन्यत्र िो, परररूद्ध या ननरुद्ध
व्यर्क्त का िाक्ष्य िाद में तार्त्िक िै , क्रकन्तु ऐिे व्यर्क्त की िार्जर इि आदे श के पि
ू ि
ि ती उपबन्धों के
अधीन िनु नर्श्चत नि ं की जा िकती िै ििा न्यायालय उि व्यर्क्त की पर िा उि कारागार में र्जिमें िि
परररूद्ध या ननरुद्ध िै , करने के सलए कमीशन ननकाल िकेगा ।
(2) आदे श 26 के उपबन्ध जिा तक िो िके कारागार में ऐिे व्यर्क्त की कमीशन द्िारा पर िा के
िम्बन्ध में िैिे ि लागू िोंगे जैिे िे क्रकिी अन्य व्यर्क्त की कमीशन द्िारा पर िा के िम्बन्ध में लागू
िोते िैं ।

1. 1999 के अधधननयम िं. 46 की धारा 26 द्िारा (1-7-2002 िे) उपननयम (1) के स्थान पर
प्रनतस्थावपत ।
आदे श 17
स्थगन

1. न्यायालय िमय दे िकेगा अऐर िन


ु िाई स्थधगत कर िकेगा- [(1) यहद िाद के क्रकिी भी प्रिम
1

में पयािप्त िे तक
ु दसशित क्रकया जाता िै तो न्यायालय ऐिे कारणों िे जो लेखबद्ध क्रकए जाएंगे पिकारों या
उनमें िे क्रकिी को भी िमय दे िकेगा और िाद की िन
ु िाई को िमय-िमय पर स्थधगत कर िकेगा:
परं तु ऐिा कोई स्थगन िाद की िन
ु िाई के दौरान क्रकिी पिकार को तीन बार िे अधधक अनद
ु त
नि ं क्रकया जाएगा ।

(2) स्थगन के खचे- न्यायालय ऐिे िर मामले में िाद की आगे की िन


ु िाई के सलए हदन ननयत
करे गा और 1[ऐिे स्थगन के कारण िुए खचों या ऐिे उपचार खचों के िंबध
ं में र्जन्िें न्यायालय ठीक
िमझे, ऐिे आदे श करे गा:]
2
[परन्त-ु
(क) यहद िाद की िन
ु िाई प्रारम्भ िो गई िै तो जब तक न्यायालय उन अिाधारण कारणों िे जो
उिके द्िारा लेखबद्ध क्रकए जाएंगे, िन
ु िाई का स्थगन अगले हदन िे परे के सलए करना आिश्यक न
िमझे, िाद की िन
ु िाई हदन-प्रनतहदन तब तक जार रिे गी जब तक िभी िार्जर िाक्षियों की पर िा न कर
ल जाए;
(ख) क्रकिी पिकार के अनरु ोध पर कोई स्थगन ऐिी पररर्स्थनतयों को छोडकर जो उि पिकार के
ननयंत्रण के बािर िो, मंजरू नि ं क्रकया जाएगा;
(ग) यि तथ्य स्थगन के सलए आधार नि ं माना जाएगा क्रक क्रकिी पिकार का प्ल डर दि
ू रे
न्यायालय में व्यस्त िै ;
(घ) जिां प्ल डर की रूग्णता या दि
ू रे न्यायालय में उिके व्यस्त िोने िे सभन्न कारण िे मक
ु दमे
का िंचालन करने में उिकी अिमथिता को स्थगन के सलए एक आधार के रूप में पेश क्रकया जाता िै ििां

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न्यायालय तब तक स्थगन मंजूर नि ं करे गा जब तक उिका यि िमाधान नि ं िो जाता िै क्रक ऐिे स्थगन
के सलए आिेदन करने िाला पिकार िमय पर दि
ू रा प्ल डर मक
ु रि र नि ं कर िकता था;
(ड.) जिां कोई िािी न्यायालय में उपर्स्थत िै क्रकन्तु पिकार या उिका प्ल डर उपर्स्थत नि ं िै
अथिा पिकार या प्ल डर न्यायालय में उपर्स्थत िोने पर भी क्रकिी िािी की पर िा या प्रनतपर िा करने
के सलए तैयार नि ं िै ििां न्यायालय, यहद िि ठीक िमझोतों, िािी का कथन असभसलणखत कर िकेगा
और, यथार्स्थनत, पिकार या उिके प्ल डर द्िारा जो उपर्स्थत न िो अथिा पि
ू ोक्ि रूप में तैयार न िो,
िािी की मख्
ु य पर िा या प्रनतपर िा करने को असभमक्
ु त करते िुए ऐिे आदे श पाररत कर िकेगा जो िि
ठीक िमझे ।]

1. 1999 के अधधननयम िं. 46 की धारा 26 द्िारा (1-7-2002 िे) कनतपय शब्दो के स्थान पर
प्रनतस्थावपत ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 68 द्िारा (1-2-1977 िे) पि
ू ि परन्तक
ु के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया |
उच्च न्यायालय िंशोधन

इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- यि परं तक


ु जोडे- ''परं तु अन्यथा ऐिा कोई स्थगन ऐिे
िािी को जो क्रक पिू ि में आिूत अथिा नासमत नि ं क्रकया गया िो को बल
ु ाने के प्रयोजन के सलए नि ं हदया
जाएगा, न ऐिे प्रयोजन के सलए क्रकिी पि द्िारा क्रकिी स्थगन का उपयोग क्रकया जाएगा जब तक क्रक
न्यायाधीश आदे श 16 ननयम 1 के परं तक
ु के अधीन सलणखत में आदे श न करे ।'' (24.7.1926)

2. यहद पक्षकार ननयत हदन पर उपिजांत िोने में अिफल रिते िैं तो प्रक्रिया- िाद की िन
ु िाई
र्जि हदन के सलए स्थधगत िुई िै यहद उि हदन पिकार या उनमें िे कोई उपिंजात िोने में अिफल रिते
िैं तो न्यायालय आदे श 9 द्िारा उि ननसमि ननहदष्ट ढं गों में िे एक िे िाद का ननपटारा करने के सलए
अग्रिर िो िकेगा या ऐिा अन्य आदे श कर िकेगा जो िि ठीक िमझे ।

1
[स्पष्टीकरण-- जिां क्रकिी पिकार का िाक्ष्य या िाक्ष्य का पयािप्त भाग पिले ि असभसलणखत
क्रकया जा चुका िै और ऐिा पिकार क्रकिी ऐिे हदन र्जि हदन के सलए िाद की िन
ु िाई स्थधगत की गई िै
उपिजांत िोने में अिफल रिता िै ििां न्यायालय स्िवििेकानि
ु ार उि मामले में इि प्रकार अग्रिर िो
िकेगा मानो ऐिा पिकार उपर्स्थत िो ।]

उच्च न्यायालय िंशोधन

इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- आदे श 17 ननयम 2 में ननम्न और जोड़ा गया िै -
''जिााँ पिकार की िाक्ष्य या िारिान भाग पि
ू ि में ि असभसलणखत िो चुका िै और ऐिा पि ऐिी
हदनांक पर उपर्स्थत िोने में विफल रिता िै । न्यायालय इिके वििेक िे इि प्रकार कायििाि कर िकती िै

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मानों ऐिा पिकार उपर्स्थत था और इिे गण
ु ागण
ु पर ननराकृत कर िकती िै ।

स्पष्टीकरण- कोई पि उपर्स्थत िोने में विफल िोना नि ं माना जाएगा यहद िि स्ियं उपर्स्थत िै
या न्यायालय में असभकताि या प्ल डर यद्यवप आिेदन दे ने के प्रयोजन के सलए ननयोर्जत, के द्िारा
प्रनतननधधत्ि क्रकया जाता िै ।''

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 68 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया गया

3. पक्षकारों में िे क्रकिी पक्षकार के िाक्ष्य, आहद पेश करने में अिफल रिने पर िी न्यायालय
आगे कायविािी कर िकेगा- जिां िाद का कोई ऐिा पिकार र्जिे िमय अनद
ु त क्रकया गया िै , अपना िाक्ष्य
पेश करने में या अपने िाक्षियों को िार्जर कराने में या िाद की आगे प्रगनत के सलए आिश्यक कोई ऐिा
अन्य कायि करने में र्जिके सलए िमय अनज्ञ
ु ात क्रकया गया िै , अिफल रिता िै [ििां न्यायालय ऐिे
1

व्यनतिम के िोते िुए भी,-


(क) यहद पिकार, उपर्स्थत िों तो िाद को तत्िण विननर्श्चत करने के सलए अग्रिर िो िकेगा,
अथिा
(ख) यहद पिकार या उनमें िे कोई अनप
ु र्स्थत िों तो ननयम 2 के अधीन कायििाि कर िकेगा ।]

उच्च न्यायालय िंशोधन


म.प्र. उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- ननयम के अंत में ननम्न परं तक
ु अंतस्थावपत-
''परं तु यि क्रक जिााँ इि ननयम के तित ि ननयम 2 के तित उपर्स्थनत में अिफलता िोती िै तो
उि मामले में न्यायालय ननयम 2 के अधीन कायििाि करे गा । (अधधिच
ू ना हदनांक 27.8.1976)

इलािाबाद उच्च न्यायालय िंशोधन 17.1.1953.-- इि िंशोधन के द्िारा प्रािधान में प्रथम बार
आए शब्द ''जिााँ'' के उपरांत शब्दों ''ऐिे मामले में र्जिको ननयम 2 प्रयोज्य नि ं िोता िै '' को जोडा गया िै
|

आदे श 18
िाद की िन
ु िाई और िाक्षक्षयों की परीक्षा

1. आरं ि करने का अधधकार- आरम्भ करने का अधधकार िाद को तब के सििाय िै जब क्रक िाद
द्िारा अधधकधथत तथ्यों को प्रनतिाद स्िीकार कर लेता िै और यि तकि करता िै क्रक िाद र्जि अनत
ु ोष
को चािता िै , उिके क्रकिी भाग को पाने का िि िकदार या तो विधध के प्रश्न के कारण या प्रनतिाद द्िारा
अधधकधथत कुछ अनतररक्त तथ्यों के कारण नि ं िै और उि दशा में आरम्भ करने का अधधकार प्रनतिाद
को िोता िै |

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1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 68 द्िारा कुछ शब्दों के स्थान पर प्रनतस्थावपत ।

2. कथन और िाक्ष्य का पेश क्रकया जाना- (1) उि हदन जो िाद की िन


ु िाई के सलए ननयत क्रकया
गया िो, या क्रकिी अन्य हदन र्जि हदन के सलए िन
ु िाई स्थधगत की गई िो, िि पिकार र्जिे आरम्भ
करने का अधधकार िै , अपने मामले का कथन करे गा और उन वििाद्यकों के िमथिन में अपना िाक्ष्य पेश
करे गा र्जन्िें िाबबत करने के सलए िि आबद्ध िै ।
(2) तब दि
ू रा पिकार अपने मामले का कथन करे गा और अपना िाक्ष्य (यहद कोई िो) पेश करे गा
और तब परू े मामले के बारे में िाधारणतया न्यायालय को िम्बोधधत कर िकेगा ।
(3) तब आरम्भ करने िाला पिकार िाधारणतया परू े मामले के बारे में उिर दे िकेगा ।
[(3क) कोई पिकार क्रकिी मामले में मौणखक बिि कर िकेगा और िि मौणखक बिि, यहद कोई
1

िो, िमाप्त करने के पिले न्यायालय को यहद न्यायालय ऐिा अनज्ञ


ु ात करे , अपने मामले के िमथिन में
िंक्षिप्त रूप में और िस्
ु पष्ट शीषों के अधीन सलणखत बिि प्रस्तत
ु कर िकेगा अऐर ऐिी सलणखत बिि
असभलेख का भाग िोगी ।
(3ख) ऐिी सलणखत बिि की एक प्रनत विरोधी पिकार को भी िाथ ि िाथ द जाएगी ।
(3ग) सलणखत बिि फाइल करने के प्रयोजन के सलए कोई स्थगन तब तक मंजरू नि ं क्रकया जाएगा
जब तक न्यायालय, ऐिे कारणों िे, जो असभसलणखत क्रकए जाएं, ऐिा स्थगन मंजरू करना आिश्यक न
िमझे ।
(3घ) न्यायालय, क्रकिी मामले में दोनों पिकारों में िे क्रकिी पिकार द्िारा मौणखक बिि के सलए
ऐिी िमय िीमाएं ननयत करे गा जैिी िि ठीक िमझे ।
[(4).............. लप्ु त]
2

1. 2002 के अधधननयम िं. 22 की धारा 12 द्िारा (1-7-2002 िे) अंतःस्थावपत ।


2. सिविल प्रक्रिया िहिता (िंशोधन) अधधननयम 1999 के द्िारा उपननयम (4) छुपा ।

उच्च न्यायालय िंशोधन

मध्यप्रदे श उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (16.9.1960) - ननयम 4 के उपननयम (2) के रुप में
ननम्नानि
ु ार जोड़ा जाएगा-
''(4) इि ननयम में अंतननिहित क्रकिी बात के िोते िुए भी न्यायालय यि आदे श कर िकेगा क्रक
िाक्ष्य की प्रस्तनु त या न्यायालय को िंबोधन क्रकिी भी िम में उपयक्
ु त माना जाए िो िकेगा''

इलािाबाद उच्च न्यायालय दारा िंशो धन (20.6.1936)- ननयम 2 के स्थान पर ननम्नानि


ु ार
प्रनतस्थावपत क्रकया गया िै -
''2(1) िाद की िन
ु िाई के सलए ननयत हदन अथिा अन्य क्रकिी हदन र्जिको िन
ु िाई स्थधगत की
गई िै आरं भ करने का अधधकार रखने िाला पिकार उिके द्िारा प्रस्तत
ु प्रत्येक दस्तािेजों की िि
ु ग
ं तता

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को एिं उि मौणखक िाक्ष्य की प्रकृनत र्जिको िि प्रस्तत
ु करना प्रस्तावित करता िै . को इंधगत करते िुए
उिके मामले को बताएगा और तब उन वििाद्यकों के िमथिन में जो क्रक उिे प्रमाणणत करता िै उिके
िािीगण को बल
ु ाएगा ।
(2) क्रफर अन्य पि उपरोक्त कधथत र नत में उिके मामले को बताएगा और उिकी िाक्ष्य प्रस्तत

करे गा (यहद कोई िो) ।

राजस्थान उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (25.7.1957) - ननयम 2 में ननम्नानि


ु ार उपननयम (4)
जोडा गया िै -
''(4) जिााँ कोई पि स्ियं िािी के रुप में उपर्स्थत िोने की िांछा रखता िै तो िि स्ियं इि रुप
में उिकी ओर िे अन्य िािीगण की उपर्स्थनत के पि
ू ि उपर्स्थत िोगा । परं तु यि क्रक इि िंबध
ं में
आिेदन दे ने पर ि असभसलणखत कारणों िे पश्चातिती प्रिम पर उिके स्ियं के िािी के रुप में उपर्स्थत
िोने को अनज्ञ
ु ेय कर िकेगा । ''

3. जिां कई वििाद्यक िैं ििां िाक्ष्य- जिां कई वििाद्यक िैं र्जनमें िे कुछ को िाबबत करने का
भार दि
ू रे पिकार पर िै ििां आरम्भ करने िाला पिकार अपने विकपप पर या तो उन वििाद्यकों के बारे
में अपना िाक्ष्य पेश कर िकेगा या दि
ू रे पिकार द्िारा पेश क्रकए गए िाक्ष्य के उिर के रुप में पेश करने
के सलए उिे आरक्षित रख िकेगा और पश्चात ्-कधथत दशा में , आरम्भ करने िाला पिकार दि
ू रे पिकार
द्िारा उिका िमस्त िाक्ष्य पेश क्रकए जाने के पश्चात ् उन वििाद्यकों पर अपना िाक्ष्य पेश कर िकेगा
और तब दि
ू रा पिकार आरम्भ करने िाले पिकार के द्िारा इि प्रकार पेश क्रकए गए िाक्ष्य का विशेषतया
उिर दे िकेगा, क्रकंतु तब आरम्भ करने िाला पिकार परू े मामले के बारे में िाधारणतया उिर दे ने का
िकदार िोगा ।

उच्च न्यायालय िंशोधन

इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (20.6.1936)- ितिनाम ननयम के स्थान पर ननम्न ननयम
3 को प्रनतस्थावपत क्रकया गया िै -

“3(1) जिां कई वििाद्यक िैं र्जनमें िे कनतपय वििाद्यक को प्रमाणणत करने का भार अन्य पि
पर िै तो आरं भ करने िाला पि, उिके विकपप पर या तो उपरोक्त कधथत र नत में उिके मामले को
बताएगा और उन वििाद्यकों पर उिकी िाक्ष्य प्रस्तत
ु करे गा या उिके मामले के कथन ि अन्य पि द्िारा
प्रस्तत
ु िाक्ष्य के उिर में उन वििाद्यकों पर िाक्ष्य प्रस्तत
ु करने को आरक्षित रखेगा और पश्चातििी
मामले में , आरं भ करने िाला पि उपरोक्त कधथत र नत में उिके मामले को बताएगा और अन्य पि द्िारा
उिकी िंपण
ू ि िाक्ष्य दे ने के उपरात उिकी िाक्ष्य प्रस्तत
ु करे गा ।
(2) उभय पि के द्िारा उनकी िाक्ष्य प्रस्तत
ु करने पर, आरं भ करने िाला पि न्यायालय को िंपण
ू ि
मामले पर िंबोधधत करे गा, क्रफर अन्य पि िंपण
ू ि मामले पर िंबोधधत करे गा और आरं भ करने िाला पि

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िंपण
ू ि मामले पर िाधारणतौर पर उिर दे िकेगा परन्तु यि क्रक ऐिा करने में िि न्यायालय की अनम
ु नत
के बबना िि ऐिे प्रश्नों को नि ं उठायेगा जो क्रक िंबोधन आरं भ करने के पि
ू ि उठाये जाने चाहिए थे ।

1
[3क. पक्षकार का अन्य िाक्षक्षयों िे पिले उपिजांत िोना- जिां कोई पिकार स्ियं कोई िािी के
रूप में उपिंजात िोना चािता िै ििां िि उिकी ओर िे क्रकिी अन्य िािी की पर िा क्रकए जाने के पिले
उपिजांत िोगा, क्रकन्तु यहद न्यायालय ऐिे कारणों िे, जो लेखबद्ध क्रकए जाएंगे, उिे पश्चातिती
् प्रिम में
स्ियं अपने िािी के रूप में उपिजांत िोने के सलए अनज्ञ
ु ात करे तो िि िाद में उपर्स्थत िो िकेगा ।]

2
[4. िाक्ष्य का असिलेखन- (1) प्रत्येक मामले में क्रकिी िािी की मख्
ु य पर िा का िाक्ष्य शपथ-पत्र
पर सलया जाएगा और उिकी प्रनतयां उि पिकार द्िारा, जो उिे िाक्ष्य के सलए बल
ु ाती िैं, विरोधी पिकार
को द जाएंगी:

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 69 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया गया ।
2. 2002 के अधधननयम िं. 22 की धारा 12 द्िारा (1-7-2002 िे) ननयम 4 के स्थान पर
प्रनतस्थावपत ।

परं तु जिा दस्तािेज फाइल क्रकए गए िों और पिकार उन दस्तािेजों पर ननभिर करते िों, ििां शपथ-
पत्र के िाथ फाइल क्रकए गए ऐिे दस्तािेजों का िबत
ू और ग्राह्यता न्यायालयों के आदे श के अधीन रिते
िुए िोगी ।
(2) िार्जर िािी का िाक्ष्य (प्रनत पर िा और पन
ु :पर िा), र्जिका िाक्ष्य (मख्
ु य पर िा) न्यायालय
को शपथ-पत्र द्िारा हदया गया िै या तो न्यायालय द्िारा या उिके द्िारा ननयक्
ु त कसमश्नर द्िारा
असभसलणखत क्रकया जाएगा:
परं तु न्यायालय, इि उपननयम के अधीन कमीशन ननयक्
ु त करते िमय ऐिे िि
ु ग
ं त कारणों को, जो
िि ठीक िमझे, गणना में लेने पर विचार करे गा ।

(3) यथार्स्थनत, न्यायालय या कसमश्नर िाक्ष्य को, यथार्स्थनत, न्यायाधीश या कसमश्नर की


उपर्स्थनत में या तो सलणखत रुप िे या यांबत्रक रुप िे असभसलणखत करे गा और जिां ऐिा िाक्ष्य कसमश्नर
द्िारा असभसलणखत क्रकया जाता िै , तो िि ऐिे िाक्ष्य को अपनी सलणखत और िस्तािररत ररपोटि िहित उिे
ननयक्
ु त करने िाले न्यायालय को िापि करे गा और उिके अधीन सलया गया िाक्ष्य िाद के असभलेख का
भाग िोगा ।

(4) कसमश्नर पर िा के िमय क्रकिी िािी की भािभंगी की बाबत ऐिे हटप्पण लेखबद्ध करे गा जो
िि तार्त्िक िमझे:
पंरतु कसमश्नर के िमि िाक्ष्य लेखबद्ध क्रकए जाने के दौरान उठाए गए कोई आिेप उिके द्िारा
लेखबद्ध क्रकए जाएंगे और न्यायालय द्िारा बिि के प्रिम पर विननर्श्चत क्रकए जाएंगे ।

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(5) कसमश्नर की ररपोटि , कमीशन ननकाले जाने की तार ख िे िाल हदन के भीतर कमीशन ननयक्
ु त
करने िाले न्यायालय को प्रस्तत
ु की जाएगी सििाय तब के जब न्यायालय लेखबद्ध क्रकए जाने िाले कारणों
के िमय का विस्तार कर दे ।
(6) यथार्स्थनत, उच्च न्यायालय या र्जला न्यायाधीश इि ननयम के अधीन िाक्ष्य लेखबद्ध करने
के सलए कसमश्नरों का एक पैनल तैयार करे गा ।
(7) न्यायालय िाधारण या विशेष आदे श द्िारा कसमश्नर की िेिाओं के सलए पाररश्रसमक के रुप में
िंदि की जाने िाल रकम ननयत कर िकेगा ।
(8) आदे श 26 के ननयम 16, 16क, 17 और 18 के उपबंध, ििा तक जिां तक िे लागू िोते िैं,
इि ननयम के अधीन उि कमीशन को ननकालने, ननष्पादन और िापिी को लागू िोंगे ।]

उच्च न्यायालय िंशोधन


राजस्थान उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (25.7.1957)- इि ननरसित आदे श 18 के ननयम 4 के
आरं भ में ननम्न शब्दों को जोडा गया था- ''आदे श 16 के ननयम 1 के प्रािधानों के अध्यधीन''

[ 5. स्जन मामलों की अपील िो िकती िै उनमें िाक्ष्य कैिे सलखा जाएगा- र्जन मामलों में अपील
1 2

अनज्ञ
ु ात की जाती िै उन मामलों में िर एक िािी का िाक्ष्य-
(क) न्यायालय की भाषा में,-
(i) न्यायाधीश द्िारा या उिकी उपर्स्थनत में और उिके िैयर्क्तक ननदे शन और अधीिण में सलखा
जाएगा, या
(ii) न्यायाधीश के बोलने के िाथ ि टाइपराईटर पर टाईप क्रकया जाएगा; या
(ख) यहद न्यायाधीश असभसलणखत क्रकए जाने िाले कारणों िे ऐिा ननदे श दे तो न्यायाधीश की
उपर्स्थनत में न्यायालय की भाषा में यंत्र द्िारा असभसलणखत क्रकया जाएगा ।]

3
6. असििाक्ष्य का िाषान्तर कब क्रकया जाएगा- जिां िाक्ष्य उि भाषा िे सभन्न भाषा में सलखा
गया िै र्जिमें िि हदया गया िै और िािी उि भाषा को नि ं िमझता र्जिमें िि सलखा गया िै ििां उि
िाक्ष्य का, जैिा क्रक िि सलखा गया िै , उि भाषा में भाषान्तर उिे िन
ु ाया जाएगा र्जिमें िि हदया गया
था ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 69 द्िारा (1-2-1977 िे) पि


ू ि
ि ती ननयम के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
2. ननयम 5, 6, 7, 8, 9, 11, 13, 14, 15 और 16 के उपबंध, जिां तक िे िाक्ष्य लेने की र नत िे
िंबधं धत िैं, अिध के मख्
ु य न्यायालय को लागू नि ं िोते िैं दे णखए अिध कोटिि ऐक्ट, 1925
(1925 का य.ू पी. अधधननयम िं. 4) की धारा 16 (2) ।
3. ननयम 5, 6, 7, 8, 9, 11, 13, 14, 15 और 16 के उपबंध, जिां तक िे िाक्ष्य लेने की र नत िे

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िबंधधत िैं, अिध के मख्
ु य न्यायालय को लागू नि ं िोते िैं दे णखए अिध कोटिि ऐक्ट, 1925 (
1925 का य.ू पी. अधधननयम िं. 4) की धारा 16 (2) |

7. धारा 138 के अधीन िाक्ष्य- धारा 138 के अधीन सलखा गया िाक्ष्य ननयम 5 द्िारा विहित प्ररूप
1

में िोगा और िि पढ़कर िन


ु ाया जाएगा और िस्तािररत क्रकया जाएगा और यहद अििर िे ऐिा अपेक्षित िो
तो उिका भाषान्तर और शोधन उिी प्रकार क्रकया जाएगा मानो िि उि ननयम की अधीन सलखा गया िो ।

8. जब िाक्ष्य न्यायाधीश द्िारा स्ियं निीं सलखा गया िो तब ज्ञापन- जिां िाक्ष्य न्यायाधीश द्िारा
2

नि ं सलखा गया िै 3[या खल


ु े न्यायालय में उिके द्िारा बोलकर नि ं सलखिाया गया िै या उिकी उपर्स्थनत
में यंत्र द्िारा असभसलणखत नि ं क्रकया गया िै ] ििां जैिे-जैिे िर एक िािी की पर िा िोती जाती िै िैिे-िैिे
िर एक िाक्ष्य के असभिाक्ष्य के िांराश का ज्ञापन बनाने के सलए न्यायाधीश आबद्ध िोगा और ऐिा ज्ञापन
न्यायाधीश द्िारा सलखा जाएगा और िस्तािररत क्रकया जाएगा और असभलेख का भाग िोगा ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


म.प्र. उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- आदे श 18 के ननयम 8 में शब्द ''या खल
ु े न्यायालय में उिके
द्िारा बोलने पर '' को तत्िमय प्रभािी उपबंध में '' न्यायाधीश '' ि “कोमा” के बीच जोडा गया था ।
(27.7.1956)
इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (19.5.1956)- इि प्रािधान अथाित आदे श 18 ननयम 8
में -
(क) शब्द ''न्यायाधीश द्िारा'' के उपरांत शब्द ''या उिके श्रत
ु लेख पर'' जोड़ा गया िै ।

1. ननयम 5, 6, 7, 8, 9, 11, 13, 14, 15 और 16 के उपबंध, जिां तक िे िाक्ष्य लेने की


र नत िे िबंधधत िैं, अिध के मख्
ु य न्यायालय को लागू नि ं िोते िै ।
2. ननयम 5, 6, 7, 8, 9, 11, 13, 14, 15 और 16 के उपबंध, जिां तक िे िाक्ष्य लेने की
र नत िे िबधधत िैं, अिध के मख्
ु य न्यायालय को लागू नि ं िोते िैं ।
3. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 69 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्तःस्थावपत क्रकया
गया ।

(ख) शब्द'' और िस्तािररत क्रकया जाएगा'' के उपरांत शब्दों '' न्यायाधीश के द्िारा या उिके
श्रतलेख पर टं क्रकत को उिके द्िारा िस्तािररत क्रकया जाएगा ।'' को जोड़ा जाए ।

[ 9. िाक्ष्य अंर्ग्ेजी में कब सलखा जा िकेगा- (1) जिां न्यायालय की भाषा अंग्रज
1 2
े ी नि ं िै क्रकन्तु
िाद के िे िभी पिकार जो स्ियं उपिंजात िै और उन पिकारों के जो प्ल डरों के द्िारा उपिंजात िै ,
प्ल डर ऐिे िाक्ष्य के जो अंग्रेजी में हदया जाता िै , अंग्रज
े ी में सलखे जाने पर आिेप नि ं करते िै ििां
न्यायाधीश उिे उिी रुप में सलख िकेगा या सलखिा िकेगा ।

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(2) जिां िाक्ष्य अंग्रेजी मे नि ं हदया जाता िै क्रकन्तु िे िभी पिकार जो स्ियं उपिंजात िै और
उन पिकारों के जो प्ल डरों के द्िारा उपिंजात िै , प्ल डर ऐिे िाक्ष्य के अंग्रज
े ी में सलखे जाने पर आिेप
नि ं करते िै ििां न्यायाधीश ऐिा िाक्ष्य अंग्रेजी में सलख िकेगा या सलखिा िकेगा ।
10. कोई विसशष्ट प्रश्न और उिर सलखा जा िकेगा- यहद ऐिा करने के सलए कोई विशेष कारण
प्रतीत िोता िै तो न्यायलय क्रकिी विसशष्ट प्रश्न और उतर क या क्रकिी प्रश्न के िम्बन्ध में क्रकिी आिेप
को स्िप्रेरणा िे या क्रकिी पिकार या उिके प्ल डर के आिेदन पर सलख िकेगा ।

3
11. िे प्रश्न स्जन पर आक्षेप क्रकया गया िै और जो न्यायालय द्िारा अनज्ञ
ु ात क्रकए गए िै - जिां
क्रकिी िािी िे क्रकए गए क्रकिी प्रश्न पर क्रकिी पिकार या उिके प्ल डर द्िारा आिेप क्रकया गया िै और
न्यायालय उिका पछ
ू ा जाना अनज्ञ
ु ात करता िै ििां न्यायाधीश उि प्रश्न, उिर, आिेप और उिे करने िाले
व्यर्क्त के नाम को उि पर न्यायालय के विननश्चय के िहित सलखेगा ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 69 द्िारा (1-2-1977 िे) ननयम 9 के स्थान पर
प्रनतस्थावपत ।
2. ननयम 5, 6, 7, 8, 9, 11, 13, 14, 15 और 16 के उपबंध. जिां तक िे िाक्ष्य लेने की र नत
िे िबंधधत िैं, अिध के मख्
ु य न्यायालय को लागू नि ं ।
3. ननयम 5, 6, 7, 8, 9, 11, 13, 14, 15 और 16 के उपबंध, जिां तक िे िाक्ष्य लेने की र नत
िे िंबधधत िैं, अिध के मख्
ु य न्यायालय को लागू नि ं िोते िै । दे णखए अिध कोटिि ऐक्ट, 1925
(1925 का य.ू पी. अधधननयम िं. 4) की धारा 16 (2) ।

12. िाक्षक्षयों की िाििंगी के बारे में हटप्पखणयां- न्यायालय िािी की पर िा क्रकए जाते िमय
उिकी भािभंगी के बारे में हटप्पणणयां, र्जन्िें िि तार्विक िमझता िो, असभसलणखत कर िकेगा ।

[ 13. स्जन मामलों में अपील निें िो िकती िै उन मामलों में िाक्ष्य का ज्ञापन--- ऐिे मामले में ,
1 2

र्जनमें अपील अनज्ञ


ु ात नि ं िै , यि आिश्यक नि ं िोगा क्रक िाक्षियों का िाक्ष्य विस्तार िहित सलखा जाए
या बोलकर सलखिाया जाए या असभसलणखत क्रकया जाए क्रकन्तु न्यायाधीश, जैि-े जैिे िर एक िािी की
पर िा िोती िै िैि-े िैि,े उिके असभिाक्ष्य के िार का ज्ञापन सलखेगा या बोलने के िाथ ि टाईपराईटर पर
टाईप कराएगा या यत्र द्िारा असभसलणखत कराएगा और ऐिा ज्ञापन न्यायाधीश द्िारा िस्तािररत क्रकया
जाएगा या अन्यथा अधधप्रमाणणत क्रकया जाएगा और असभलेख का भाग िोगा ]

उच्च न्यायालय िंशोधन


इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- ''या उिके श्रुतलेख िे िस्तािररत टं क्रकत क्रकया जाएगा,
न्यायाधीश द्िारा िस्तािररत क्रकया जाएगा । '' शब्दों को ननयम 13 के इन शब्दों '' तथा िस्तािररत क्रकया
जाएगा'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया । (अधधिच
ू ना हदनांक 19.5.1956)

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3
14. [ऐिा ज्ञापन बनाने में अिमथव न्यायाधीश अपनी अिमथवता के कारण असिसलखखत करे गा ।] -
सिविल प्रक्रिया िंहिता (िंशोधन) अधधननयम, 1976 (1976 का 104) की धारा 69 द्िारा (1.2.1977) िे
ननरसित ।
15. क्रकिी अन्य न्यायाधीश के िामने सलए गए िाक्ष्य का उपयोग करने की शस्तत—(1) जिां मत्ृ य,ु
4

स्थानान्तरण या अन्य कारण िे न्यायाधीश िाद के विचारण की िमार्प्त करने िे ननिाररत िो जाता िै
ििां उिका उिरिती, पि
ू ग
ि ामी ननयमों के अधीन सलए गए क्रकिी भी िाक्ष्य या बनाए गए क्रकिी भी ज्ञापन
का उिी प्रकार उपयोग कर िकेगा मानों ऐिा िाक्ष्य या ज्ञापन उक्ि ननयमों के अधीन उिी के द्िारा या
उिके ननदे श के अधीन सलया गया था या बनाया गया था, और िि िाद में उि प्रिम िे अग्रिर िो िकेगा
र्जिमें उिे उिके पि
ू ि
ि ती ने छोडा था ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 69 द्िारा (1-2-1977 िे) पि


ू ि
ि ती ननयम के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया |
2. ननयम 5, 6, 7, 8, 9, 11, 13, 14, 15 और 16 के उपबध, जिां तक िे िाक्ष्य लेने की र नत
िे िंबधधत िैं, अिध के मख्
ु य न्यायालय को लागू नि ं िोते िै । दे णखए अिध कोटराि ऐक्ट,
1925 (1925 का य.ू पी. अधधननयम िं. 4) की धारा 16 (2) ।
3. ननयम 5, 6, 7, 8, 9, 11, 13, 14, 15 और 16 के उपबध, जिां तक िे िाक्ष्य लेने की र नत
िे िबंधधत िैं, अिध के मख्
ु य न्यायालय को लागू नि ं िोते िै ।
4. ननयम 5, 6, 7, 8, 9, 11, 13, 14, 15 और 16 के उपबध, जिां तक िे िाक्ष्य लेने की र नत
िे िंबधं धत िैं, अिध के मख्
ु य न्यायालय को लागू नि ं िोते िै ।

(2) उपननयम (1) के उपबन्ध धारा 24 के अधीन अन्तररत िाद में क्रकए गए िाक्ष्य को िि तक
लागू िमझे जाएंगे जिां तक िे लागू क्रकए जा िकते िै ।

1
16. िाक्षी की तरु न्त परीक्षा करने की शस्तत—(1) जिां िािी न्यायालय की अधधकाररता िे बािर
जाने िाला िै या इि बात का पयािप्त कारण न्यायालय को िमाधानप्रद रुप में दसशित कर हदया जाता िै क्रक
उिका िाक्ष्य तरु न्त क्यों सलया जाना चाहिए ििा न्यायालय िाद के िंर्स्थत क्रकए जाने के पश्चात ् क्रकिी
भी िमय ऐिे िािी का िाक्ष्य क्रकिी भी पिकार या उि िािी के आिेदन पर उिी र नत िे ले िकेगा जो
इिमें इिके पि
ू ि उपबर्न्धत िै ।
(2) जिां ऐिा िाक्ष्य तत्िण ि और पिकारों की उपर्स्थनत में न सलया जाए ििा पर िा के सलए
ननयत हदन की ऐिी िच
ू ना, जो न्यायालय पयािप्त िमझे, पिकारों को द जाएगी ।
(3) ऐिे सलया गया िाथ िािी को पढ़कर िन
ु ाया जाएगा और यहद िि स्िीकार करता िै क्रक िि
शद्
ु ध िै तो िि उिके द्िारा िस्तािररत क्रकया जाएगा और न्यायाधीश उिे यहद आिश्यक िो तो शद्
ु ध
करे गा और िस्तािररत करे गा और तब उि िाद की क्रकिी भी िन
ु िाई में िि पढ़ा जा िकेगा ।

1. ननयम 5, 6, 7, 8, 9, 11, 13, 14, 15 और 16 के उपबंध, जिां तक िे िाक्ष्य लेने की

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र नत िे िंबधधत िैं, अिध के मख्
ु य न्यायालय को लागू नि ं िोते िै । दे णखए अिध कोरिि
ऐक्ट, 1925 (1925 का य.ू पी. अधधननयम िं. 4) की धारा 16 (2) ।

17. न्यायालय िाक्षी को पन


ु : बल
ु ा िकेगा और उिकी परीक्षा कर िकेगा- न्यायालय िाद के क्रकिी
भी प्रिम में ऐिे क्रकिी भी िािी को पन
ु : बल
ु ा िकेगा र्जिकी पर िा की जा चक
ु ी िै और (तत्िमय प्रिि

िाक्ष्य की विधध के अधीन रिते िुए) उििे ऐिे प्रश्न पछ
ू िकेगा जो न्यायालय ठीक िमझे ।
1
[17क. ................ननरसित

18. ननरीक्षण करने की न्यायालय की शस्तत- न्यायालय ऐिी क्रकिी भी िम्पवि या िस्तु का
ननर िण िाद के क्रकिी भी प्रिम में कर िकेगा र्जिके िम्बन्ध में कोई प्रश्न पैदा िो और ििां न्यायालय
क्रकिी िम्पवि या िस्तु का ननर िण करता िै ििां िि यथा िाक्ष्य शीघ्र, ऐिे ननर िण में दे खे गए क्रकन्ि ं
िि
ु ग
ं त तथ्यों का ज्ञापन बनाएगा और ऐिा ज्ञापन िाद के असभलेख का भाग िोगा ।

1. सिविल प्रक्रिया िंहिता (िंशोधन) अधधननयम, 1999 के दारा ननयम 17क ननरसित ।
2. 1978 के अधधननयम िं. 104 की धारा 69 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्तःस्थावपत क्रकया गया ।

उच्च न्यायालय िंशोधन

इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (17.3.23)- इलािाबाद में ननम्नानि


ु ार ननयम 19
स्थावपत क्रकया गया-
'' 19(1) न्यायाधीश उिके स्ियं के िाथ िे अंग्रेजी 1[या हिन्द ] में आिेदनों पर िभी आदे श उन
आदे शों के अलािा जो क्रक जो पण
ू रु
ि पेण नैर्त्यक प्रकृनत के िैं ।
(2) न्यायाधीश उिके स्ियं के िाथों अंग्रेजी 2[या हिन्द ] में दस्तािेजों की िभी स्िीकृनतयों या इंकार
को असभसलणखत करे गा एिं 3[न्यायाधीशों की ट पों] िे यि दसशित िोगा क्रक िाक्ष्य में प्रस्तत
ु क्रकये गये िभी
दस्तािेजों को प्रस्तत
ु करने की तार ख िे िाक्ष्य में उन्िें मंजूर करने या इंकार करने के अंनतम आदे श तक
क्रकि प्रकार व्यिित क्रकया गया िैं ।
(3) न्यायाधीश उिके स्ियं के िाथों अंग्रेजी 4[या हिन्द ] में वििाद्यकों को असभसलणखत करे गा और
वििाद्यकों को न्यायाधीश के द्िारा िस्तािररत क्रकया जाएगा और 5[न्यायाधीशों की ट पों] का भाग िोगा ।

स्पष्टीकरण- '' न्यायाधीशों की ट पों '' िे न्यायाधीश द्िारा हदन- प्रनतहदन की कायििाि की स्ियं के
िाथों रखे जाने िाल ट पों िे िै असभप्रेत िै । ( 22. 10. 1994)

राजस्थान उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (1.12.1973)- यिां ननम्नानि


ु ार ननयम 19 ननम्न प्रकार
जोडा गया िै -
''19. कमीशन पर कथन असिसलखखत करिाने की शस्तत- इन ननयमों में अन्तननिहित क्रकिी बात के

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िोते िुए भी न्यायालय खुले न्यायालय में िािीगण का पर िण करने के बजाए ननदे सशत कर िकेगा क्रक
उनके कथन आदे श 26 ननयम 4 -क के अन्तगित कमीशन पर कथन असभसलणखत क्रकये जाएं । ''

6
[19. कथन को कमीशन द्िारा असिसलखखत कराने की शस्तत- इन ननयमों में क्रकिी बात के िोते
िुए भी न्यायालय खुले न्यायालय में िाक्षियों की पर िा करने के बजाए आदे श 26 के ननयम 4क के अधीन
उनके कथन को कमीशन द्िारा असभसलणखत क्रकए जाने के सलए ननदे श दे िकेगा ।
.
आदे श 19
शपथ - पत्र

1. क्रकिी बात के शपथपत्र िारा िाबबत क्रकए जाने के सलए आदे श दे ने की शस्तत- कोई भी
न्यायालय क्रकिी भी िमय पयािप्त कारण िे आदे श दे िकेगा क्रक क्रकिी भी विसशष्ट तथ्य या क्रकन्ि ं भी
विसशष्ट तथ्यों को शपथपत्र द्िारा िाबबत क्रकया जाए या क्रकिी िािी का शपथपत्र िन
ु िाई में ऐिी शतो पर
पढ़ा जाए जो न्यायालय यर्ु क्तयक्
ु त िमझे :

1. 22.10.94 िे प्रभािी कर जोडा गया |


2. 22.10.94 िे प्रभािी कर जोड़ा गया ।
3. 22.10.94 िे प्रभािी कर शब्द '' अग्रेजी कायििाि '' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
4. 22.10.94 िे प्रभािी कर जोडा गया ।
5. 22.10.94 िे प्रभािी कर शब्द '' अंग्रज
े ी कायििाि '' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
6. 1999 के अधधननयम िं. 46 की धारा 27 द्िारा (1-7-2002 िे) अंतःस्थावपत ।

परन्तु जिां न्यायालय को यि प्रतीत िोता िै क्रक दोनों में िे कोई भी पिकार िद्भाि िे यि चािता िै
क्रक प्रनतपर िा के सलए िािी को पेश क्रकया जाए और ऐिा िािी पेश क्रकया जा िकता िै ििा ऐिी िािी
का िाक्ष्य शपथपत्र द्िारा क्रकए जाने का प्राधधकार दे ने िाला आदे श नि ं क्रकया जाएगा ।

राज्य िंशोधन
उतर प्रदे श राज्य िंशोधन (1.1.1977)- उ.प्र. अधधननयम ि. 57 िषि 1976 के द्िारा ननयम 1 में
जो परं तक
ु था उिके स्थान पर ननम्न परं तक
ु स्थावपत क्रकया गया-
'' परन्तु यि क्रक यहद न्यायालय को चािे क्रकिी पि के आिेदन पर या अन्य था और चािे ऐिे
शपथपत्र को प्रस्तत
ु करने के पि
ू ि या बाद में यि प्रतीत िोता िै क्रक ऐिे िािी की प्रस्तनु त प्रनतपर िण के
सलए आिश्यक िै और उिकी उपर्स्थनत को िासिल क्रकया जा िकता िै तो न्यायालय ऐिे िािी की
उपर्स्थनत का आदे श करे गी र्जि पर िािी का पर िण प्रनतपर िण एि पन
ु : पर िण क्रकया जा िके ।''

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आदे श 19 ननयम 1 - क
राज्य िंशोधन
मध्य प्रदे श, िंशोधन (14.8.1984) - सिविल प्रक्रिया िंहिता (मध्य प्रदे श िंशोधन) अधधननयम
1984 के द्िारा मल
ू अधधननयम की पिल अनि
ु च
ू ी के आदे श 19 में ननयम 1 के पश्चात ् ननम्नसलणखत
ननयम अन्त: स्थावपत क्रकया गया-
''1 – क. कनतपय मामलों में त्य का शपथपत्र िे िाबबत क्रकया जाना- आदे श 1 के ननयम 3 - ख
में ननहदि ष्ट क्रकये गये क्रकिी िाद या कायििाि में न्यायालय ननयम 1 में क्रकिी प्रनतकूल बात के िोते िुए भी
और मध्यप्रदे श कृवषक जोत उच्चतम िीमा अधधननयम, 1960 ( िमांक 20 िन ् 1960) के अधीन कोई
कायििाि उि अधीन के अधीन ननयक्
ु त क्रकये गये ििम अधधकार के िमि चािे लंबबत िो अथिा न िो
पिकारों िे यि अपेिा करे गा क्रक क्रकिी विसशष्ट तथ्य या तथ्यों को जैिा क्रक िि ननदे श दे शपथपत्र द्िारा
िाबबत करे जब तक क्रक िाद या कायििाि की प्रकृनत तथा जहटलता को दे खते िुए और लेखबद्ध क्रकये जाने
िाले कारणों िे न्यायालय क्रकिी तथ्य को शपथपत्र द्िारा िाबबत करने असभमक्
ु त दे ना उधचत एिं िमीचीन
न िमझे । ''

उच्च न्यायालय िंशोधन


इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (3.10.1981 िे प्रिािी)- उिर प्रदे श राज्य में प्रयोज्य
िोने के सलए आदे श 19 ननयम 1 के उपंरात ननम्न ननयम 1 - क जोडा गया िै -
''1 - क शपथपत्र पर एकपक्षीय िाक्ष्य को अनज्ञ
ु ेय करने की शस्तत--- जिां प्रकरण मे एकपिीय
कायििाि िो जाती िै तो न्यायालय िाद की िाक्ष्य को शपथपत्र पर दे ने को अनज्ञ
ु ेय कर िकेगा ।''

2. असििाक्षी की प्रनतपरीक्षा के सलए िास्जर कराने का आदे श दे ने की शस्तत—(1) क्रकिी भी आिेदन


पर िाक्ष्य शपथपत्र द्िारा हदया जा िकेगा, क्रकन्तु न्यायालय दोनों पिकारों में िे क्रकिी की भी प्रेरणा पर
असभिािी को आदे श दे िकेगा क्रक िि प्रनतरपर िा के सलए िार्जर िो ।
(2) जब तक क्रक असभिािी न्यायालय में स्िीय उपिंजानत िे छूट न पाया िुआ िो या न्यायालय
अन्यथा ननदे श न करे , ऐिी िार्जर न्यायालय में िोगी ।

3. िे विषय स्जन तक शपथपत्र िीसमत िोंगे—(1) शपथपत्र ऐिे तथ्यों तक ि िीसमत िोगे र्जनको
असभिािी अपने ननजी ज्ञान िे िाबबत करने में िमथि िै , क्रकन्तु अन्तििती आिेदनों के शपथपत्रों में उिके
विश्िाि पर आधाररत कथन ग्राह्य िो िकेंगे :
परन्तु यि तब जब क्रक उनके सलए आधारों का कथन क्रकया गया िो ।
(2) र्जि शपथपत्र मे अनश्र
ु त ु या ताक्रकिक बातें या दस्तािेजों की प्रनतयां या दस्तािेजों के उद्धरण
अनािश्यक रूप िे दजि क्रकए गए िै , ऐिे िर एक शपथपत्र के खचे (जब तक क्रक न्यायालय अन्यथा ननदे श
न करे ) उन्िें फाइल करने िाले पिकार द्िारा हदए जाएंगे ।

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आदे श 20
ननणवय और डििी

1. ननणवय कब िन
ु ाया जाएगा- [(1) न्यायालय, मामले की िन
1
ु िाई कर लेने के पश्चात ् ननणिय खुले
न्यायालय में या तो तरु ं त या इिके तत्पश्चात ् यथािाध्य शीघ्र िन
ु ाएगा और जब ननणिय क्रकिी भविष्यिती
हदन को िन
ु ाया जाना िै तब न्यायालय उि प्रयोजन के सलए कोई हदन ननयत करे गा र्जिकी िम्यक्
िच
ू ना पिकारों या उनके प्ल डरों को द जाएगी:
परं तु जिा ननणिय तरु ं त नि ं िन
ु ाया जाता ििां न्यायालय, ननणिय, उि तार ख िे, र्जिको मामले
की िन ु ाने का परू ा प्रयाि करे गा क्रकंतु जिा मामले की
ु िाई िमाप्त िुई थी, तीि हदन के भीतर िन
आपिाहदक और अिाधारण पररर्स्थनतयों के आधार पर ऐिा करना िाध्य नि ं िै ििां न्यायालय ननणिय
िन
ु ाने के सलए कोई भविष्यिती हदन ननयत करे गा और ऐिा हदन िाधारणत: उि तार ख िे, र्जिको
मामले की िनु िाई िमाप्त िुई थी, िाठ हदन के बाद का नि ं िोगा और इि प्रकार ननयत क्रकए गए हदन
की िम्यक् िचू ना पिकारों या उनके प्ल डरों को द जाएगी ।]
(2) जिां सलणखत ननणिय िन
ु ाया जाना िै ििां यहद प्रत्येक वििाद्यक पर न्यायालय के ननष्कषों को
और मामले में पाररत अंनतम आदे श को पड़ हदया जाता िै तो िि पयािप्त िोगा और न्यायालय के सलए यि
आिश्यक नि ं िोगा क्रक िि िम्पण
ू ि ननणिय को पढ़कर िन
ु ाए ]
2****

(3) ननणिय खुले न्यायालय में आशसु लवपक को बोलकर सलखाते िुए केिल तभी िन ु ाया जा िकेगा
जब न्यायाधीश उच्च न्यायालय द्िारा इि ननसमि विशेष रूप िे िशक्त क्रकया गया िै :

1. 2002 के अधधननयम िं. 22 की धारा 13 द्िारा (1-7-2002 िे) उपननयम (1) के स्थान
पर प्रनतस्थावपत ।
2. 1999 के अधधननयम िं. 46 की धारा 28 के द्िारा (1-7-2002 िे) कनतपय शब्दो का लोप

परं तु जिां ननणिय खुले न्यायालय में बोलकर सलखाते िुए िन ु ाया जाता िै ििां इि प्रकार िनु ाए गए
ननणिय की अनसु लवप उिमें ऐिी शद् ु धधयां करने के पश्चात ्, जो आिश्यक िों, न्यायाधीश द्िारा िस्तािररत
की जाएगी, उि पर िि तार ख सलखी जाएगी र्जिको ननणिय िन
ु ाया गया था और िि असभलेख का भाग
िोगी ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 70 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्तःस्थावपत क्रकया गया ।

2. न्यायाधीश के पि
ू ि
व ती दारा सलखे गए ननणवय को िन
ु ाने की शस्तत-- न्यायाधीश ऐिे ननणिय को
िन
ु ाएगा जो उिके पि
ू ि
ि ती ने सलखा तो िै क्रकन्तु िन
ु ाया नि ं िै ।

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3
3. ननणवय िस्ताक्षररत क्रकया जाएगा- ननणिय िन
ु ाए जाने के िमय न्यायाधीश उि पर खुले
न्यायालय में तार ख डालेगा और िस्तािर करे गा और जब उि पर एक बार िस्तािर कर हदया गया िै तब
धारा 152 द्िारा उपबर्न्धत के सििाय या पन
ु वििलोकन के सििाय उिके पश्चात ् उिमें न तो कोई पररितिन
क्रकया जाएगा और न कोई पररिधिन क्रकया जाएगा ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


राजस्थान उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (अधधिच
ू ना हदनांक (23.12.1964)- आदे श 20 के
आर्स्ततव्यक्
ु त ननयम 3 को उपननयम (1) के रुप में िमांक्रकत क्रकया जाएगा और ननम्नानि
ु ार उपननयमों
को प्रनतस्थावपत क्रकया गया-
'' (2) जिां खल
ु े न्यायालय में आशसु लवपक को क्रकये गये श्रत
ृ लेखन पर ननणिय उद्घोवषत क्रकया जाता
िै तो इि प्रकार उद्घोवषत ननणिय की अनसु लवप को ऐिे पन
ु र िण के उपरांत जो क्रक आिश्यक िमझा जाए,
न्यायाधीश द्िारा िस्तािररत क्रकया जाएगा और इि पर इिके उद्घोषणा की हदनांक िोगी ।
(3) उन मामलों में जिां क्रक ननणिय को न्यायाधीश के द्िारा उिके स्ियं के िाथों िे नि ं सलखा
जाता िै ि श्रत
ृ लेखन क्रकया जाता िै ि अिरशःअन्य व्यर्क्त सलखा जाता िै तो ननणिय के प्रत्येक पष्ृ ठ को
न्यायाधीश द्िारा आद्यिररत क्रकया जाएगा ।''

4. लघि
4
ु ाद न्यायालयों के ननणवय- (1) लघि
ु ाद न्यायालयों के ननणियों में अिधायि प्रश्नों और उनके
विननश्चय िे अधधक और कुछ अन्तवििष्ट िोना आिश्यक नि ं िै ।

1. 1999 के अधधननयम िं. 46 की धारा 28 द्िारा (1-7-2002 िे) कनतपय शब्दों का लोप
क्रकया गया ।
2. 1999 के अधधननयम िं. 46 की धारा 28 द्िारा (1-7-2002 िे) कनतपय शब्दो का लोप
क्रकया गया ।
3. ननयम 1, 3, 4 और 5 के उपबंध अिध के मख्
ु य न्यायालय को लागू नि ं िोते िै । दे णखए
अिध कोटिि ऐक्ट, 1925 (1925 का य.ू पी. अधधननयम िं. 4) की धारा 16(2) ।
4. ननयम 1, 3, 4 और 5 के उपबंध अिध के मख्
ु य न्यायालय को लागू नि ं िोते िै । दे णखए
अिध कोटिि ऐक्ट, 1925

(2) अन्य न्यायालयों के ननणवय- अन्य न्यायालयों के ननणियों के मामले का िंक्षिप्त कथन, अिधायि
प्रश्न, उनका विननश्चय और ऐिे विननश्चय के कारण अन्तवििष्ट िोंगे ।

1
5. न्यायालय िर एक वििाद्यक पर अपने विननश्चय का कथन करे गा- उन िादों में , र्जनमें
वििाद्यक की विरचना की गई िै , जब तक क्रक वििाद्यकों में िे क्रकिी एक या अधधक का ननष्कषि िाद के
विननश्चय के सलए पयािप्त न िो, न्यायालय िर एक पथ
ृ क वििाद्यक पर अपना ननष्कषि या विननश्चय उि
ननसमि कारणों के िहित दे गा ।

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2
[5क. स्जन मामलों में पक्षकारों का प्रनतननधधत्ि प्लीिरों द्िारा न क्रकया गया िो उनमें न्यायालय
द्िारा पक्षकारों को इि बात की इविला हदया जाना क्रक अपील किां की जा िकेगी- उि दशा के सििाय
र्जिमें दोनों पिकारों का प्रनतननधधत्ि प्ल डरों द्िारा क्रकया गया िै , न्यायालय ऐिे मामलों में र्जनकी
अपील िो िकती िै , अपना ननणिय िन
ु ाते िमय न्यायालय में उपर्स्थत पिकारों को यि इविला दे गा क्रक
क्रकि न्यायालय मे अपील की जा िकती िै और ऐिी अपील फाइल करने के सलए पररिीमा काल क्रकतना िै
और पिकारों को इि प्रकार द गई इविला को असभलेख में रखेगा ।]

6. डििी की अन्तिवस्त-ु (1) डडिी ननणिय के अनरु


ु प िोगी, उिमें िाद का िंख्यांक, [पिकारों के
3

नाम और िणिन, उनके रर्जस्रकृत पते] और दािे की विसशर्ष्टयां अन्तवििष्ट िोंगी और अनद
ु ि अनत
ु ोष या
िाद का अन्य अिधारण उिमें स्पष्टतया विननहदि ष्ट िोगा ।
(2) िाद में उपगत प्रश्नों की रकम भी और यि बात भी क्रक ऐिे खचे क्रकिके द्िारा या क्रकि
िम्पवि में िे और क्रकि अनप
ु ात में िंदत क्रकए जाने िै , डडिी में कधथत िोगी ।
3) न्यायालय ननदे श दे िकेगा क्रक एक पिकार को दि
ू रे पिकार द्िारा दे य खचे क्रकिी ऐिी रासश
के विरुद्ध मज
ु रा क्रकए जाएं र्जिके बारे में यि स्िीकार क्रकया गया िै या पाया गया िै क्रक िि एक िे
दि
ू रे को शोध्य िै ।

(1926 का य.ू पी. अधधननयम िं. 4) की धारा 16 (2) ।


1. ननयम 1, 3, 4 और 5 के उपबंध अिध के मख्
ु य न्यायालय को लागू नि ं िोते िै । दे णखए
अिध कोटिि ऐक्ट 1925 ( 1926 का य.ू पी. अधधननयम िं. 4) की धारा 16 ( 2) ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 70 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्तःस्थावपत क्रकया गया ।
3. 1976 के अधधननयम द्िारा (1-2-1977 िे) ''पिकारों के नाम और पते '' के स्थान पर
प्रनतस्थावपत ।

1
[6क. डििी तैयार करना- (1) यि िनु नर्श्चत करने के सलए िर प्रयाि क्रकया जाएगा क्रक डडिी जिां
तक िंभि िो शीघ्रता िे और क्रकिी भी दशा में उि तार ख िे पंद्रि हदन के भीतर र्जिको ननणिय िन
ु ाया
जाता िै , तैयार की जाए ।
(2) अपील डडिी की प्रनतसलवप को प्रस्तत
ु क्रकए बबना डडिी के विरुद्ध प्रस्तत
ु की जा िकती िै और
ऐिे मामले में पिकार को उपलब्ध प्रनतसलवप को न्यायालय द्िारा आदे श 41 ननयम 1 के प्रयोजन के सलए
डडिी के रूप में व्यिित क्रकया जाएगा । परं तु जैिे ि डडिी को तैयार क्रकया जाता िै तो ननणिय का
ननष्पादन के प्रयोजन के सलए अथिा क्रकिी अन्य प्रयोजन के सलए डडिी के रुप में प्रभािी िोना िमाप्त िो
जाएगा ।

6ख. ननणवयों की प्रनतसलवपयों को कब उपलब्ध कराया जाना- जिााँ ननणिय उद्घोवषत कर हदया जाता
िै तो ननणिय की प्रनतसलवप को ऐिे प्रभारों को भग
ु तान करने पर जो क्रक उच्च न्यायालय द्िारा बनाए गए
ननयमों में विननहदि ष्ट क्रकए जाएाँ, अपील प्रस्तत
ु करने के सलए ननणिय उद्घोवषत िोने के तत्काल उपरात

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उपलब्ध कराई जाएगी ।

1. 1999 के अधधननयम िं. 46 की धारा 28 द्िारा (1-7-2002िे) ननयम 6क और 6ख के स्थान


पर प्रनतस्थावपत ।
7. डििी की तारीख- डडिी में उि हदन की तार ख िोगी र्जि हदन ननणिय िन
ु ाया गया था और
न्यायाधीश अपना िमाधान कर लेने पर क्रक डडिी ननणिय के अनि
ु ार तैयार की गई िै डडिी पर िस्तािर
करे गा ।

आदे श 20 ननयम 7-क


उच्च न्यायालय िंशोधन

इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (3.10.1981)- ननयम 7 के उपरांत ननम्न ननयम 7-क
अंतःस्थावपत क्रकया गया-
“7-क औपचाररक आदे श- र्जला न्यायालय के अधीनस्थ हदिासलया अधधकाररता का उपयोग करने
िाले क्रकिी न्यायालय के अलािा धारा 144 के अथिा ऐिा आदे श र्जिके विरुद्ध धारा 104 या आदे श 43
ननयम 1 के अंतगित अपील अनज्ञ
ु ात की जाती िै या क्रकिी मामले में कोई आदे श र्जिके विरुद्ध विधध में
अपील अनज्ञ
ु ात क्रकया गया िै आदे श पाररत करने िाला कोई न्यायालय, यहद पिकार औपचाररक आदे श का
आिेदन करे अथिा न्यायालय इि प्रकार ननदे सशत करे तो औपचाररक आदे श उिके न्यायननणियन ि
पिकारों द्िारा उपगत खचों के ज्ञापन को िर्न्नहित करते िुए तैयार करे गा ।''

8. जिां न्यायाधीश ने डििी पर िस्ताक्षर करने िे पि


ू व अपना पद ररतत कर हदया िै ििां प्रक्रिया-
जिााँ न्यायाधीश ने ननणिय िन
ु ाने के पश्चात ् क्रकन्तु डडिी पर िस्तािर क्रकए बबना अपना पद ररक्ि कर
हदया िै ििा ऐिे ननणिय के अनि
ु ार तैयार की गई िै डडिी पर उिका उिरिती या यहद उि न्यायालय का
अर्स्तत्ि ि िमाप्त िो गया िै तो ऐिे क्रकिी न्यायालय का न्यायाधीश र्जिके अधीनस्थ ऐिा न्यायालय
था, िस्तािर करे गा ।

9. स्थािर िम्पवि के प्रत्यद्


ु धरण के सलए डििी- जिां िाद की विषयिस्तु स्थािर िम्पवि िै ििा
डडिी में ऐिी िम्पवि का ऐिा िणिन अन्तवििष्ट िोगा जो उिकी पिचान करने के सलए पयािप्त िो और जिां
ऐिी िम्पवि िीमाओं द्िारा या भ-ू व्यिस्थापन या ििेिण के असभलेख के िंख्यांकों द्िारा पिचानी जा िके
ििा डडिी में ऐिी िीमाएं या िंख्यांक विननहदि ष्ट िोंगे ।

10. जंगम िम्पवि के पररदान के सलए डििी- जिां िाद जंगम िम्पवि के सलए िै और डडिी ऐिी
िम्पवि के पररदान के सलए िै ििां यहद पररदान नि ं कराया जा िकता िै तो डडिी में धन के उि पररणाम
का भी कथन क्रकया जाएगा जो अनक
ु पपत: हदया जाएगा ।

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11. डििी क्रकस्तो द्िारा िंदाय के सलए ननदे श दे िकेगी- (1) यहद और जिां तक कोई डडिी धन
के िंदाय के सलए िै तो और ििां तक न्यायालय उि िंविदा में , र्जिके अधीन धन िंदेय िै , अन्तवििष्ट
क्रकिी बात के िोते िुए भी 1[उन पिकारों को जो अंनतम िन ु िाई में स्ियं या प्ल डर द्िारा उपिंजात थे,
िन ु ने के पश्चात ्, ननणिय के पि
ू ि डडिी में क्रकिी पयािप्त कारण िे यि आदे श िर्म्मसलत कर िकेगा] क्रक
डडिीत रकम का िंदाय ब्याज के िहित या बबना, मप
ु तिी क्रकया जाए या क्रकस्तों में क्रकया जाए ।
(2) डडिी के पश्चात ् क्रकस्तों में िंदाय का आदे श- ऐिी क्रकिी डडिी के पाररत क्रकए जाने के पश्चात ्
न्यायालय ननणीत-ऋणी के आिेदन पर और डडिीदार की अनम
ु नत िे आदे श दे िकेगा क्रक ब्याज के िंदाय
िंबध
ं ी, ननणीत-ऋणी की िम्पवि की कुकी-िम्बन्धी, उििे प्रनतभनू त लेने िम्बन्धी या अन्य ऐिे ननबन्धनों
पर जो िि ठीक िमझे, डडिीत रकम का िंदाय मप
ु तिी क्रकया जाए या क्रकस्तों में क्रकया जाए ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 70 द्िारा (1-2-1977 िे) कुछ शब्दो के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया |

उच्च न्यायालय िंशोधन


मध्यप्रदे श उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (16.9.1960)- शब्द ''और डडिीदार की अनम
ु नत िे'' के
स्थान पर शब्द ''और डडिीदार को िच
ू ना के उपरांत'' प्रनतस्थावपत क्रकये गये ।

इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन-- आदे श 21 ननयम 11 के उपननयम (2) के खण्ड (च)
को ननम्न प्रकार प्रनतस्थावपत क्रकया गया िै -
''अंनतम आिेदन की हदनांक, यहद कोई िो''
उपननयम (2) में अंत में ननम्न परं तक
ु जोड़ा गया िै-
“परं तक
ु जब आिेदक उिका आिेदन डडिी की प्रमाणणत प्रनतसलवप कके िाथ प्रस्तत
ु करता िै तो
खण्ड (ख), (ग) और (ज) के वििरण को आिेदन में हदए जाने की आिश्यकता नि ं िै ।'' 1
ननम्न उपननयम (4) जोड़ा गया िै —
“(4) जिााँ उपननयम (2) के अंतगित धन की डडिी ननणीत-ऋणी को धगरफ्तार कर ननरोध द्िारा
ननष्पादन चािा जाता िै , आिेदन में यि भी बताया जािेगा क्रक धारा 51 के परं तक
ु में िणणित क्रकन आधारों
पर ननरुद्ध क्रकए जाने का दािा क्रकया गया िै ।''

पटना उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- आदे श 21 ननयम 11 में ननम्न उपननयम (क) जोडा गया िै -
'' (1) जिााँ धारा 39 के अंतगित धन भग
ु तान की डडिी के ननष्पादन के सलए उि न्यायालय में
अंतरण करने का आदे श पाररत क्रकया जाता िै र्जिकी स्थानीय िीमाओं में ननणीत-ऋणी ननिाि करता िै
ऐिा न्यायालय डडिी िोपडर द्िारा डडिी की प्रमाणणत प्रनतसलवप और िंतर्ु ष्ट न िोने के शपथ-पत्र की
प्रस्तनु त पर तत्काल ननणीत-ऋणी की धगरफ्तार द्िारा ननष्पादन कर िकेगा ।''
ननयम 11 के उपननयम (2) में शब्द ि अंक ''उपननयम (1)'' को ''उपननयम (1) और (1 -क )''
क्रकया गया िै ।

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1. अधधिच
ू ना िमांक 4048/35 (क)-3- (7), हदनांक 24.7.1926 ।
2. अधधिच
ू ना िमांक 92/x - 14, हदनांक -19.05.1956।

12. कब्जा और अन्तःकालीन लािों के सलए डििी- (1) जिां िाद स्थािर िम्पवि के कब्जे का
प्रत्यद्
ु धरण करने और भाटक या अन्तःकाल न लाभों के सलए िै ििां न्यायालय ऐिी डडिी पाररत कर िकेगा
जो-
(क) िम्पवि के कब्जे के सलए िो;
[(ख) ऐिे भाटको के सलए िो जो िाद के िंर्स्थत क्रकए जाने के पि
1
ू ि की क्रकिी अिधध में िम्पवि
पर प्रोद्भत
ू िुए िों या ऐिे भाटक के बारे में जांच करने का ननदे श दे ती िो;
(खक) अन्त:काल न लाभों के सलए िों या ऐिे अन्तःकाल न लाभों के बारे में जांच करने का ननदे श
दे ती िो,
(ग) िाद के िंर्स्थत क्रकए जाने िे लेकर ननम्नसलणखत में िे, अथाित ्:-
(i) डडिीदार को कब्जे का पररदान;
(ii) डडिीदार को न्यायालय की माफित िच
ू ना िहित ननणीत-ऋणी द्िारा कब्जे का त्याग, अथिा
(iii) डडिी की तार ख िे तीन िषो की िमार्प्त,
इनमें िे जो भी कोई घटना पिले घहटत िो या उि तक के भाटक या अन्त:काल न लाभों के बारें
मे जांच का ननदे श दे ती िो ।
(2) जिां खण्ड (ख) या खण्ड (ग) के अधीन जांच का ननदे श हदया गया िै ििां भाटक या
अन्त:काल न लाभों के िम्बन्ध में अर्न्तम डडिी ऐिी जांच के पररणाम के अनि
ु ार पाररत की जाएगी ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 70 द्िारा (1.2.1977 िे) खण्ड ख के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

[12 क. स्थािर िंपवि के वििय या पटटे की िंविदा के विननहदव ष्ट पालन के सलए डििी- जिां
1

स्थािर िम्पवि के वििय या पट्टे की क्रकिी िंविदा के विननहदि ष्ट पालन के सलए क्रकिी डडिी में यि आदे श
िै क्रक िय-धन या अन्य रासश िेता या पट्टे दार द्िारा िंदि की जाए ििा उिमें िि अिधध विननहदि ष्ट की
जाएगी र्जिके भीतर िंदाय करना िोगा ।

13. प्रशािन-िाद में डििी- (1) जिां िाद क्रकिी िम्पवि के लेखा के सलए और न्यायालय की डडिी
के अधीन उिके िम्यक् प्रशािन के सलए िै ििां न्यायालय अर्न्तम डडिी पाररत करने के पि
ू ि ऐिे लेखाओं
के सलए जाने और जांचों के सलए जाने का आदे श दे ने िाल और ऐिे अन्य ननदे श दे ने िाल जो न्यायालय
ठीक िमझे, प्रारर्म्भक डडिी पाररत करे गा ।
(2) क्रकिी मत
ृ व्यर्क्त की िम्पवि का न्यायालय द्िारा प्रशािन क्रकए जाने में , यहद ऐिी िम्पवि उिके
ऋणों और दानयत्िों के परू े िंदाय के सलए अपयािप्त िाबबत िो तो, प्रनतभत
ू और अप्रनतभत
ू लेनदारों के
अपने-अपने अधधकारों के बारे में और ऐिे ऋणों और दानयत्िों के बारे में जो िाबबत क्रकए जा िकते िै और

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िावषिक्रकयों के और भािी और िमाधश्रत दानयत्िों के मप
ू यांकन के बारे में िमश : उन्ि ं ननयमों का अनप
ु ालन
क्रकया जाएगा जो न्यायननणीत या घोवषत हदिासलया व्यर्क्तयों की िम्पदाओं के बारे में उि न्यायालय की
स्थानीय िीमाओं के भीतर तत्िमय प्रिि
ृ िों र्जनमें प्रशािन - िाद लर्म्बत िै और िे िभी व्यर्क्त जो ऐिे
क्रकिी मामले में ऐिी िम्पवि में िे िंदाय पाने का िकदार िोंगे प्रारर्म्भक डडिी के अधीन आ िकेंगे और
उि िम्पवि के विरुद्ध ऐिे दािे कर िकेंगे र्जनके सलए िे इि िंहिता के आधार पर िमश : िकदार िैं ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 70 दाि (1.2.1977 िे) अन्त : स्थावपत क्रकया गया ।

14. शफ
ु ा के दािे में डििी- (1) जिां न्यायालय िम्पवि के क्रकिी विसशष्ट वििय के बारे में शफ
ु ा
के दािे की डडिी दे ता िै और िय - धन ऐिे न्यायालय में जमा नि ं क्रकया गया िै ििा डडिी में -
(क) ऐिा हदन विननहदि ष्ट िोगा र्जि हदन या र्जिके पि
ू ि िय - धन ऐिे जमा क्रकया जाएगा, तथा
(ख) यि ननदे श िोगा क्रक िाद के विरुद्ध डडिीत खचों के िहित (यहद कोई िों) ऐिे िय - धन को
न्यायालय में उि हदन या उि हदन के पि
ू ि जो खण्ड (क) में ननहदि ष्ट क्रकया गया िै जमा कर हदये जाने पर
प्रनतिाद िम्पवि का कब्जा िाद को पररदि कर दे गा र्जिका िक ऐिे जमा करने की तार ख िे उि पर
प्रोद्भत
ू िुआ िमझा जाएगा; क्रकन्तु यहद िय - धन और खचे (यहद कोई िो) ऐिे जमा नि ं क्रकए जाएंगे तो
िाद खचों के िहित खाररज कर हदया जाएगा ।
(2) जिां न्यायालय ने शफ
ु ा के परस्पर विरो धी दािों का न्यायननणियन कर हदया िै ििां डडिी में
यि ननहदि ष्ट िोगा क्रक-
(क) यहद और जिां तक डडिीत दािे िमान कोहट के िै तो और ििां तक उपननयम (1) के उपबन्धों
का अनप
ु ालन करने िाले िर एक शफ
ु ाधधकार का दािा उि िम्पवि के आनप
ु ानतक अश के बारे में प्रभािी
िोगा र्जि िम्पवि के अन्तगित ऐिा कोई आनप
ु ानतक अश भी िोगा र्जिके बारे में क्रकिी ऐिे शफ
ु ाधधकार
का जो उक्त उपबन्धों का अनप
ु ालन करने में अिफल रिा िै दािा ऐिा व्यनतिम न िोने पर प्रभािी िोता;
तथा
(ख) यहद और जिां तक डडिीत दािे विसभन्न कोहट के िै तो और ििां तक अिर शफ
ु ाधधकार का
दािा तब तक प्रभािी नि ं िोगा जब तक िररष्ठ शफ
ु ाधधकार उक्त उपबंधों का अनप
ु ालन करने में अिफल
न िो गया िो |

उच्च न्यायालय िंशोधन

“म.प्र. उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (िी.पी.एण्ि बरार गजट 1947 पाटव 3 पेज 526)- परन्तु
यि क्रक यहद िंपवि पर फिल खडी िुई िै तो िंपवि का आधधपत्य िाद को प्रदान नि ं क्रकया जाएगा जब
तक क्रक फिल न कट जाए । यद्यवप िाद न्यायालय के वििेक पर, 6 प्रनतशत प्रनतिषि िे अनाधधक न
िोने िाले िाधारण ब्याज को उिके द्िारा न्यायालय मे जमा की गयी रासश पर उि अिधध के दौरान जो
क्रक ियधन ि खचे (यहद कोई िो)उिके द्िारा न्यायालय में भग
ु तान करने की तार ख िे एिं तार ख र्जि
पर क्रक प्रनतिाद द्िारा उिे आधधपत्य प्रदान क्रकया जाता िै के मध्य की िो िकदार िो िकेगा । ''

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15. िागीदारी के विघटन के सलए िाद में डििी- जिां तक िाद भागीदार के विघटन के सलए या
भागीदार के लेखाओं के सलए जाने के सलए िै ििा न्यायालय अर्न्तम डडिी दे ने के पि
ू ि ऐिी प्रारर्म्भक
डडिी पाररत कर िकेगा र्जिमें पिकारों के आनप
ु ानतक अंश घोवषत िोंगे, िि हदन ननयत िोगा र्जिको
भागीदार विघहटत िो जाएगी या विघहटत िुई िमझी जाएगी, और ऐिे लेखाओं के सलए जाने का और अन्य
ऐिे कायि के, जो िि न्यायालय ठीक िमझे, क्रकए जाने का ननदे श िोगा ।

16. मासलक और असिकताव के बीच लेखा के सलए लाए गए िाद में डििी- मासलक और असभकताि के
बीच धन-िंबध
ं ी िंव्यििारों की बाबत लेखा के सलए िाद में , और ऐिे क्रकिी अन्य िाद में , र्जिके सलए
इिमें इिके पि
ू ि उपबन्ध नि ं क्रकया गया िै , जिां यि आिश्यक िो क्रक उि धन की रकम को, जो क्रकिी
पिकार को या पिकार िे शोध्य िै , असभननर्श्चत करने के सलए लेखा सलया जाना चाहिए, न्यायालय अपनी
अर्न्तम डडिी पाररत करने के पि
ू ि ऐिी प्रारर्म्भक डडिी पाररत कर िकेगा र्जिमें ऐिे लेखाओं के सलए
जाने का ननदे श िोगा र्जनका सलया जाना िि ठीक िमझे ।

17. लेखाओं के िम्बन्ध में विशेष ननदे श- न्यायालय या तो लेखा सलए जाने के सलए ननदे श दे ने
िाल डडिी द्िारा या क्रकिी पश्चातिती
् आदे श द्िारा उि ढं ग के बारे में विशेष ननदे श दे िकेगा र्जिमें
लेखा सलया जाना िै या प्रमाणणत क्रकया जाना िै और विसशष्टत: यि ननदे श दे िकेगा क्रक लेखा लेने में उन
लेखा बहियों को, र्जनमें प्रश्नगत लेखा रखे गए िों, उन बातों की ित्यता के प्रथम दृष्टया िाक्ष्य के रूप में
सलया जाएगा जो उनमें अन्तवििष्ट िै । क्रकन्तु हितबद्ध पिकारों क यि स्ितत्रता िोगी क्रक िे उन पर ऐिे
आिेप कर िकेंगे जो िे ठीक िमझे ।

18. िम्पनत के वििाजन के सलए या उनमें के अंश पर पथ


ृ क कब्जे के सलए िाद मे डििी- जब
न्यायालय िम्पवि के विभाजन के सलए या उिमें के अंश पर पथ
ृ क कब्जे के सलए डडिी पाररत करता िै
तब-
(1) यहद और जिां तक डडिी ऐिी िम्पदा िे िम्बर्न्धत िै र्जि पर िरकार को िंदेय राजस्ि
ननधािररत िै तो और ििां तक डडिी िम्पवि के हितबद्ध विसभन्न पिकारों के अधधकारों की घोषणा करे गी,
क्रकन्तु िि यि ननदे श दे गी क्रक ऐिा विभाजन या पथ
ृ क्करण ऐिी घोषणा और धारा 54 के उपबन्धों के
अनि
ु ार कलक्टर द्िारा या उिके द्िारा इरम ननसमत प्रनतननयक्
ु त उिके क्रकिी ऐिे अधीनस्थ द्िारा क्रकया
जाए जो राजपबत्रत िो,
(2) यहद और जिां तक ऐिी डडिी क्रकिी अन्य स्थािर िम्पवि िे या जंगम िंपवि िे िम्बर्न्धत िै
तो और ििां तक न्यायालय यहद विभाजन या पथ
ृ क्करण अनतररक्त जांच के बबना िवु िधापि
ू क
ि नि ं क्रकया
जा िकता तो िम्पवि में हितबद्ध विसभन्न पिकारों के अधधकारों की घोषणा करने िाल और ऐिे
अनतररक्त ननदे श दे ने िाल जो अपेक्षित िो, प्रारर्म्भक डडिी पाररत कर िकेगा |

19. जब मज
ु रा या प्रतीपदािा अनज्ञ
ु ात क्रकया जाए तब डििी—(1) जिां प्रनतिाद का िाद के दािे के
विरुद्ध मज
ु रा [या प्रतीपदािा] अनज्ञ
1
ु ात क्रकया गया िै ििां डडिी में यि कथन िोगा क्रक िाद को क्रकतनी

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रकम शोध्य िै और िि क्रकिी ऐिी रासश की ििल
ू के सलए िोगी जो दोनों पिकारों में िे क्रकिी को शोध्य
प्रतीत िो ।
(2) मज
ु रा या प्रतीपदािा िम्बन्धी डडिी की अपील- क्रकिी ऐिे िाद में , र्जिमें मद्र
ु ा का दािा [या
2

प्रतीपदािा] क्रकया गया िै पाररत कोई भी डडिी अपील के बारे में उन्ि ं उपबन्धों के अधीन िोगी र्जनके
अधीन िि िोती यहद क्रकिी मज
ु रा का दािा [या प्रतीपदािा] न क्रकया गया िोता ।
2

(3) इि ननयम के उपबन्ध लागू िोंगे चािे मज


ु रा, आदे श 8 के ननयम 6 के अधीन या अन्यथा
अनज्ञ
ु ेय िो ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 70 (1-2-1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया गया ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 70 (1-2-1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया गया ।
3. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 70 (1-2-1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया गया ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िं शो धन (21.3.1936)- उपननयम (1) के अंत में पण
ू ि विराम को
विलोवपत क्रकया जाकर उिके स्थान पर कोमा अंक्रकत क्रकया गया और ननम्न और जोडा गया-
'' परन्तु िाद के विरुद्ध कोई डडिी पाररत नि ं की जाएगी जब तक क्रक मज
ु रा का दािा उि
तार ख को जबक्रक सलणखत कथन प्रस्तत
ु क्रकया गया था िमयािधध के भीतर था । ''

20. ननणवय और डििी की प्रमाखणत प्रनतयों का हदया जाना- ननणिय और डडिी की प्रमाणणत प्रनतयां
प िकारों को न्यायालय िे आिेदन करने पर और उनके खचि पर द जाएंगी ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


मध्यप्रदे श उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (16.9.1960) - ननयम 20 के स्थान पर ननम्न ननयम
20 को प्रनतस्थावपत क्रकया गया िै -
'' 20. ननणवय ि डििी की प्रमाखणत प्रनतसलवपयां पक्षकारों को आिेदन पर ि उनके खचों पर प्रदान
की जाएंगी- प्रनतसलवपयों के सलए आिेदन या तो व्यर्क्तश : या असभकताि द्िारा या प्ल डर के द्िारा प्रस्तत

क्रकया जा िकेगा या कायािलय के मख्
ु या प्रनतसलवपकार को डाक द्िारा भेजा जा िकेगा तथा ऐिे स्थान पर
जिां क्रक असभलेख र्जििे आिेदन की गयी प्रनतसलवप हदया गया िै िरु क्षित अन्तत: िरु क्षित असभरिा में
जमा क्रकया जाएगा । जब प्रनतसलवप ऐिे असभलेख िे प्राप्त करना अपेक्षित िै जो न्यायालय की अस्थाई
असभरिा में ऐिे स्थान पर िै जिां क्रक असभलेख कि नि ं िै तो आिेदनपत्र व्यर्क्तश: अथिा असभकताि
द्िारा अथिा प्ल डर उि स्थान के िररष्ठ न्यायाधीश को हदया जा िकेगा ।''

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आदे श 20 ननयम 21
उच्च न्यायालय िंशोधन

इलािाबाद िंशोधन (22.5.1915)- ननयम 20 के उपरांत ननम्न ननयम 21 जोडा गया-


'' 21 (1) लघि
ु ाद न्यायालय या लघि
ु ाद न्यायालय की अधधकाररता प्रयोग करने िाले न्यायालय की
डडिी या आदे श के अलािा धारा 2 मे पररभावषत प्रत्येक डडिी या आदे श को न्यायाल न भाषा या अंग्रज
े ी में
यहद न्यायालय ऐिा आदे श करता िै तैयार क्रकया जाएगा । जैिे ि ऐिी डडिी या आदे श तैयार िो जाता िै
तो इि पर िस्तािर करने के पि ू ि मि
ुं ररम यि बताते िुए क्रक डडिी या आदे श तैयार िो गया िै और यि
क्रक कोई पि या क्रकिी पि का कोई प्ल डर ऐिी िच ू ना के 6 कायिकार हदििों के भीतर तक ड्राफ्ट डड्रकी
या आदे श दे ख िकेगा िच
ू ना पटल पर चस्पा करायेगा और इि पर िस्तािर कर िकेगा अथिा मि
ंु ररम को
इि बाबत इि आधार पर आपनत कर िकेगा क्रक ननणिय में मौणखक त्रहु ट अथिा ननणिय के िारिान भाग को
प्रभावित न करने िाल कनतपय आकर्स्मक त्रहु ट िै अथिा ऐिी डडिी या आदे श ननणिय िे सभन्न िै अथिा
कनतपय सलवपकीय या अंकगणणतीय त्रहु ट अन्तननिहित िै । ऐिी आपवि में स्पष्टत: बताया जाएगा, क्या
असभकधथत गलती,दोष, या सभन्नता िै और इिको करने िाले व्यर्क्त के द्िारा इिे िस्तािररत ि हदनांक्रकत
क्रकया जाएगा । (22.05.1915 ि 1.11.1941)
(2) यहद ऐिी कोई आपवि िच
ू नापटल मे विननहदि ष्ट हदनांक पर या उिके पि
ू ि की जाती िै तो
मि
ुं ररम आरं सभक व्यििायि िोने िाल िाप्ताहिक िच
ू ी में मामले को प्रविष्ट करे गा और ननयत हदनांक पर
उि न्यायाधीश के िमि र्जिने ननणिय उद्घोवषत क्रकया था आपवि को असभलेख के िाथ रखा जाएगा और
यहद ऐिा न्यायाधीश न्यायालय का न्यायाधीश न रि गया िो तो ऐिे न्यायाधीश के िमि जो क्रक
पीठािीन िो । (22.6.1915)
(3) यहद िच
ू ना में िणणित हदनांक पर या उिके पि
ू ि कोई आपवि प्रस्तत
ु नि ं की जाती िै अथिा
यहद आपवि प्रस्तत
ु की गयी िो और ननरस्त कर द गयी िो तो मि
ुं ररम डडिी पर उि हदन के रुप में
जबक्रक ननणिय उद्घोवषत क्रकया गया था हदनांक अंक्रकत करे गा और इिे न्यायाधीश के िमि ननयम 7 ि 8
के प्रािधानों के अनि
ु ार न्यायाधीश के िमि िस्तािर के सलए रखा जाएगा | (22.5.1915)
(4) यहद कोई आपवि िम्यक तौर पर प्रस्तत
ु की गयी िै और मंजूर की गयी िै तो न्यायालय
द्िारा ननदे सशत दरु
ु स्ती या पररितिन क्रकया जाएगा । ननणिय में ऐिी प्रत्येक दरु स्ती या पररितिन न्यायाधीश
द्िारा स्ियं उिके िस्तलेख में क्रकया जाएगा । न्यायाधीश द्िारा ननदे सशत दरु ास्ती ि पररितिन के अनि
ु ार
िंशोधधत डडिी को तैयार क्रकया जाएगा और मि
ंु ररम डडिी पर उि हदन के रूप में जबक्रक ननणिय उद्घोवषत
क्रकया गया था हदनांक अंक्रकत करे गा और इिे न्यायाधीश के िमि ननयम 7 ि 8 के प्रािधानों के अनि
ु ार
न्यायाधीश के िमि िस्तािर के सलए रखा जाएगा । (22.05.1915)
(6) जबक्रक न्यायाधीश डडिी पर िस्तािर करता िै िि एक आटोग्राफ ट प यि बताते िुए क्रक क्रकि
तार ख को डडिी को िस्तािररत क्रकया गया था । (22.05.1915)

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1
[आदे श 20क
खचे

1. कुछ मदों के बारे में उपबन्ध- खचो के बारे में इि िंहिता के उपबन्धों की व्यापकता पर
प्रनतकूल प्रभाि डाले बबना न्यायालय ननम्नसलणखत के िम्बन्ध में खचे अधधननणीत कर िकेगा अथाित-
(क) िाद िंर्स्थत करने िे पि
ू ि क्रकिी ऐिी िच
ू ना के, जो विधध द्िारा द जाने के सलए अपेक्षित िै
हदए जाने के सलए उपगत व्यय,
(ख) क्रकिी ऐिी िच
ू ना पर उपगत व्यय जो विधध द्िारा द जाने के सलए अपेक्षित न िोने पर भी
िाद के क्रकिी पिकार द्िारा क्रकिी दि
ू रे पिकार को िाद िंर्स्थत करने िे पि
ू ि द गई िो;
(ग) क्रकिी पिकार द्िारा फाइल क्रकए गए असभिचनों को टाइप कराने सलखने या महु द्रत कराने पर
उपगत व्यय;
(घ) िाद के प्रयोजनों के सलए न्यायालय के असभलेखों के ननर िण के सलए क्रकिी पिकार द्िारा
िंदि प्रभार;
(ड) क्रकिी पिकार द्िारा िाक्षियों को पेश करने के सलए उपगत व्यय चािे िे न्यायालय के माध्यम
िे िमन न क्रकए गए िो; और

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 71 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया गया |

(च) अपीलों की दशा में क्रकिी पिकार द्िारा ननणियों और डडक्रियों की प्रनतयां प्राप्त करने में उपगत
प्रभार, जो अपील के ज्ञापन के िाथ फाइल की जाने के सलए अपेक्षित िै ।

2. उच्च न्यायालय द्िारा बनाए गए ननयमों के अनि


ु ार खचो का अधधननणीत क्रकया जाना- इि
ननयम के अधीन खचे ऐिे ननयमों के अनि
ु ार अधधननणीत क्रकए जाएंगे जो उच्च न्यायालय द्िारा इि
ननसमि बनाए जाएं ।
आदे श 21

डिक्रियों और आदे शों का ननष्पादन


डििी के अधीन िंदाय

1
[1. डििी के अधीन धन के िंदाय की रीनतयां- (1) डडिी के अधीन िंदेय िभी धन का
ननम्नसलणखत र नत िे िदाय क्रकया जाएगा, अथाित-
(क) उि न्यायालय में , र्जिका कतिव्य उि डडिी का ननष्पादन करना िै , जमा करके या उि
न्यायालय को मनीआडिर द्िारा अथिा बैंक के माध्यम िे भेजकर; या
(ख) न्यायालय के बािर डडिीदार को मनीआडिर द्िारा या क्रकिी बैंक के माध्यम िे या क्रकिी अन्य
र नत िे र्जिमें िंदाय का सलणखत िाक्ष्य िो या

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(ग) अन्य र नत िे जो िि न्यायालय र्जिने डडिी द , ननदे श दे ।
(2) जिां िंदाय उपननयम (1) के खण्ड बक या खण्ड (ग) के अधीन क्रकया जाता िै

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 72 द्िारा (1-2-1977 िे) ननयम 1 के स्थान पर
प्रनतस्थावपन क्रकया गया ।

ििां ननणीत ऋणी डडिीदार को उिकी िच


ू ना न्यायालय के माध्यम िे दे गा या रिीद रर्जस्र डाक
द्िारा िीधे दे गा ।
(3) जिां धन का िदाय उपननयम (1) के खण्ड (क) या खण्ड (ख) के अधीन मनीआडिर द्िारा या
बैंक के माध्यम िे क्रकया जाता िै ििा, यथार्स्थनत, मनीआडिर में या बैंक के माध्यम िे क्रकए गए िदाय में
ननम्नसलणखत विसशर्ष्टयों का स्पष्ट रुप िे कथन िोगा, अथाित-
(क) मल
ू िाद का िंख्यांक;
(ख) पिकारों के या जिां दो िे अधधक िाद या दो िे अधधक प्रनतिाद िै ििां, यथार्स्थनत, पिले
दो िाहदयों और दो प्रनतिाहदयों के नाम;
(ग) प्रेवषत धन का िमायोजन क्रकि प्रकार क्रकया जाना िै , अथाित िि िंदाय मल
ू के प्रनत, ब्याज के
प्रनत या खचो के प्रनत िै ;
(घ) न्यायालय के ननष्पादन मामले का िख्यांक जिां ऐिा मामला लंबबत िै ; और
(ड) िंदाय कताि का नाम और पता ।
(5) उपननयम (1) के खण्ड (क) या खण्ड (ग) के अधीन िंदि क्रकिी रकम पर ब्याज, यहद कोई
िो, उपननयम (2) में ननहदि ष्ट िच
ू ना की तामील की तार ख िे नि ं लगेगा ।
(6) उपननयम (1) के खण्ड (ख) के अधीन िंदि क्रकिी रकम पर ब्याज, यहद कोई िो, ऐिे िंदाय
की तार ख िे नि ं लगेगा:
परन्तु जिां डडिीदार मनीआडिर या बैंक के माध्यम िे िदाय स्िीकार करने िे इंकार करता िै ििां
ब्याज, उि तार ख िे, र्जिको धन उिे ननविदि क्रकया गया था, नि ं लगेगा अथिा जिां िि मनीआडिर या
बैंक के माध्यम िे क्रकए गए िदाय को स्िीकार करने िे बचता िै , ििा ब्याज उि तार ख िे, र्जिको धन
उिे, यथार्स्थनत, डाक प्राधधकाररयों के या बैंक के कारबार के मामल
ू अनि
ु म में हदया गया िोता, नि ं
लगेगा ।]

उच्च न्यायालय िंशोधन


म.प्र. उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- ननम्नानि
ु ार को प्रनतस्थावपत क्रकया गया-
'' (क) ननयम ि मार्जिनल नोट में जिां भी “डडिी या आदे श” शब्द िों ििां शब्द “डडिी” को
प्रनतस्थावपत क्रकया जाए ।
(ख) “उप-ननयम (2) के खंड (क) में शब्द '' में '' के स्थान पर इिमें या इिको पोस्टल आडिर द्िारा
जमा कर '' शब्दों को प्रनतस्थावपत क्रकया गया िै ।
(ग) शब्द “डडिीदार को दे गा” के स्थान पर शब्दों '' ननणीतऋणी डडिीदार को उिकी िच
ू ना

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न्यायालय के माध्यम िे या रर्जस्र कृत डाक द्िारा िीधे दे गा '' को प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
(16.9.1960)
अब मल
ू प्रािधान में ि इि आशय का िंशोधन 1976 के सि.प्र.ि. के िंशोधन िंबध
ं ी अधधननयम
िं. 104 के द्िारा िमाविष्ट क्रकया जा चक
ु ा िै ।

2. डििीदार को न्यायालय के बािर िंदाय- (1) जिां क्रकिी प्रकार की डडिी के अधीन िंदेय कोई
धन न्यायालय के बािर िदि क्रकया गया िै या क्रकिी प्रकार की परू डडिी 1[या उिके क्रकिी भाग का
िमायोजन डडिीदार को िमाधानप्रद रुप में अन्यथा कर हदया गया िै ] ििां डडिीदार उि न्यायालय को,
र्जिका कतिव्य डडिी का ननष्पादन करना िै , यि प्रमाणणत करे गा क्रक ऐिा िदाय या िमायोजन कर हदया
गया िै और न्यायालय उिे तदनि
ु ार असभसलणखत करे गा ।
(2) ननणीतऋणी या कोई ऐिा व्यर्क्त भी जो ननणीतऋणी के सलए प्रनतभू िै , ऐिे िंदाय या
िमायोजन की इविला न्यायालय को दे िकेगा और न्यायालय िे आिेदन कर िकेगा क्रक न्यायालय अपने
द्िारा ननयत क्रकए जाने िाले हदन को िि िे तक
ु दसशित करने के सलए िच
ू ना डडिीदार के नाम ननकाले क्रक
ऐिे िंदाय या िमायोजन के बारे में यि क्यों न असभसलणखत कर सलया जाए क्रक िि प्रमाणणत िै , और यहद
डडिीदार ऐिी िच
ू ना की तामील के पश्चात ् यि िे तक
ु दसशित करने में अिफल रिता िै क्रक िंदाय या
िमायोजन के बारे में यि असभसलणखत नि ं क्रकया जाना चाहिए क्रक िि प्रमाणणत िै तो न्यायालय उिे
तदनि
ु ार असभसलणखत करे गा ।
3
[(2क) ननणीतऋणी की प्रेरणा पर कोई भी िंदाय या िमायोजन तब तक असभसलणखत नि ं क्रकया
जाएगा जब तक--
(क) िि िंदाय ननयम 1 में उपबर्न्धत र नत िे न क्रकया गया िो; या
(ख) िि िंदाय या िमायोजन दस्तािेजी िाक्ष्य द्िारा िाबबत न िो; या
(ग) िि िंदाय या िमायोजन डडिीदार द्िारा या उिकी ओर िे उि िच
ू ना के उिके उिर में जो
ननयम 1 के उपननयम (2) के अधीन द गई िै या न्यायालय के िमि स्िीकार न क्रकया गया िो ।]
4
(3) िि िंदाय या िमायोजन जो पि
ू ोक्त र नत िे प्रमाणणत या असभसलणखत नि ं क्रकया गया िै ,
डडिी ननष्पादन करने िाले क्रकिी न्यायालय द्िारा मान्य नि ं क्रकया जाएगा ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 72 द्िारा (1-2-1977 िे) कुछ शब्दों के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 72 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया
गया ।
3. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 72 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया
गया ।
4. अधधननयम के पंजाब को लागू करने के सलए पंजाब ररल फ आफ इन्डहटडनेि ऐक्ट, 1934
(1934 का पजाब अधधननयम िं. (7) की धारा 36 द्िारा उपननयम (3) ननरसित क्रकया गया

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उच्च न्यायालय िंशोधन
पटना उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- (1) उपननयम (2) में आए शब्दों '' डडिीधार को ऐिी िच
ू ना
की तामील के पश्चात ् '' के सलए ननम्न को प्रनतस्थावपत क्रकया गया-
'' और जिााँ न्यायालय द्िारा आदे सशका जार करने पर डडिीिोपडर द्िारा अथिा इि िंबध
ं में उिके
द्िार प्राधधकृत क्रकिी अन्य व्यर्क्त द्िारा ऐिे भग
ु तान अथिा िमायोजन बाबत ् पष्ृ ठांकन द्िारा
अधधप्रमाणन क्रकया गया िै तो न्यायालय उिकी स्िप्रेरणा िे ऐिे िच
ू ना पत्र की तामील के उपरांत ''
(2) अर्स्तत्ियक्
ु त ननयम 2 का उपननयम (3) लप्ु त (5.4.1961)

डिक्रियां ननष्पादन करने िाले न्यायालय

3. एक िे अधधक अधधकाररता में स्स्थत िसू म- जिां स्थािर िम्पवि दो या अधधक न्यायालयों की
अधधकाररता की स्थानीय िीमाओं के भीतर र्स्थत एक िम्पदा या भध
ू नृ त के रुप में िै ििा परू िम्पदा या
भध
ू नृ त को ऐिे न्यायालयों में िे कोई भी एक न्यायालय कुकि कर िकेगा और उिका वििय कर िकेगा ।

4. लघि
ु ाद न्यायालय को अन्तरण- जिां डडिी क्रकिी ऐिे िाद में पाररत की गई िै , र्जिका िादपत्र
में उपिणणित दो िजार रूपये िे अधधक नि ं िै और जिां तक उिकी विषय- िस्तु का िम्बन्ध िै िि या तो
प्रेिीडेंिी या प्रान्तीय लघि
ु ाद न्यायालयों के िंज्ञान िे तत्िमय प्रित
ृ विधध द्िारा अपिाहदत नि ं िै और िि
न्यायालय र्जिने उिे पाररत क्रकया था यि चािता िै क्रक िि कलकिा, मद्राि 1[या मम्
ु बई] में ननष्पाहदत की
जाएं ििां ऐिा न्यायालय, यथार्स्थनत कलकिा, मद्राि 1[या मम्
ु बई] में के लघि
ु ाद न्यायालय को ननयम 6
में िणणित प्रनतयां और प्रमाणपत्र भेज िकेगा और तब ऐिा लघि
ु ाद न्यायालय उि डडिी का ननष्पादन ऐिे
करे गा मानो िि स्ियं उिके द्िारा पाररत की गई िो ।

3
[5. अन्तरण की रीनत- जिां डडिी ननष्पादन के सलए दि
ू रे न्यायालय को भेजी जानी िै ििां िि
न्यायालय र्जिने ऐिी डडिी पाररत की िै डडिी को िीधे ऐिे दि
ू रे न्यायालय को भेजेगा चािे ऐिा दि
ू रा
न्यायालय उिी राज्य में र्स्थत िो या नि ं, क्रकन्तु िि न्यायालय र्जिको डडिी ननष्पादन के सलए भेजी गई
िै उि दशा में र्जिमें उिे डडिी को ननष्पाहदत करने की अधधकाररता नि ं िै ऐिे न्यायालय को भेजेगा
र्जिे ऐिी अधधकाररता िै ।]

1. भारत शािन (भारतीय विधध अनक


ू ू लन) आदे श, 1937 द्िारा '' मम्
ु बई या रं गन
ू '' के स्थान
पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
2. भारत शािन (भारतीय विधध अनक
ु ू लन) आदे श, 1937 द्िारा '' मम्
ु बई या रं गन
ू '' के स्थान
पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
3. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 72 द्िारा (1-2-1977 िे) ननयम 5 के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

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6. जिां न्यायालय यि चािता िै क्रक उिकी अपनी डिर्ग्ी क्रकिी अन्य न्यायालय द्िारा ननष्पाहदत
की जाए ििां प्रक्रिया- डडिी को ननष्पादन के सलए भेजने िाला न्यायालय ननम्नसलणखत भेजेगा, अथाित-
(क) डडिी की प्रनत,
(ख) यि उपिणणित करने िाला प्रमाणपत्र क्रक डडिी की तर्ु ष्ट उि न्यायालय की अधधकाररता के
भीतर र्जिने उिे पाररत क्रकया था ननष्पादन द्िारा असभप्राप्त नि ं की गई िै या जिां डडिी का ननष्पादन
भागत: िुआ िै ििां िि विस्तार र्जि तक तर्ु ष्ट असभप्राप्त कर ल गई िै और डडिी का जो भाग अतष्ु ट
रिा िै िि भाग उपिणणित करने िाला प्रमाणपत्र; तथा
(ग) डडिी के ननष्पादन के क्रकिी आदे श की प्रनत या यहद ऐिा कोई भी आदे श नि क्रकया गया िै
तो उि भाि का प्रमाणपत्र ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- ननयम 6 को ननयम 6(1) के रुप में पन
ु ििमांक्रकत क्रकया
गया ि उपननयम (2) के रुप में ननम्न जोड़ा गया-
'' (2) ऐिी प्रनतसलवपयााँ एिं प्रमाण पत्र, डडिी िोपडर की प्राथिना पर, उिे अथिा ऐिे व्यर्क्त को
र्जिे िि ननयक्
ु त करता िै , उि न्यायालय द्िारा प्राप्त क्रकए जाने के सलए र्जिको िे भेजी जाती िैं
िीलबन्द आिरण में , िप
ु द
ु ि की जाएाँगी । '' (24.7.1926)

पटना उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- खण्ड (क) में “डडिी” शब्द के उपरांत ननम्नानि
ु ार शब्दों को
अंतःस्थावपत क्रकया जाएगा-
''और िाद र्जिमें क्रक डडिी पाररत की गई थी िे िंबधं धत िाद रर्जस्टर की प्रनतसलवप एिं डडिी
पाररत िोने के पररणामस्िरुप डडिी िोपडर को अनज्ञ
ु ात खचों को दसशित करते िुए ज्ञापन''

7. डििी आहद की प्रनतयां प्राप्त करने िाला न्यायालय उन्िें िबत


ू के बबना फाइल कर लेगा- िि
न्यायालय र्जिे डडिी ऐिे भेजी गई िै , ऐिी प्रनतयों और प्रमाणपत्रों को उि डडिी या आदे श के जो
ननष्पादन के सलए िै या उिकी प्रनतयों के क्रकिी अनतररक्त िबत
ू के बबना, फाइल कर लेगा यहद िि उन
विशेष कारणों िे, जो लेखबद्ध क्रकए जाएंगे और र्जन पर न्यायाधीश के िस्तािर िोंगे, ऐिे िबत
ू की
अपेिा न करे ।

8. डििी या आदे श का उि न्यायालय द्िारा ननष्पादन स्जिे िि िेजा गया िै - जिां ऐिी प्रनतयां
इि प्रकार फाइल कर ल गई िैं ििां यहद िि न्यायालय र्जिे िि डडिी या आदे श भेजा गया िै , र्जला
न्यायालय िै तो िि ऐिे न्यायालय द्िारा ननष्पाहदत क्रकया जा िकेगा या ििम अधधकाररता िाले क्रकिी
अधीनस्थ न्यायालय को ननष्पादन के सलए अन्तररत क्रकया जा िकेगा ।

9. अन्य न्यायालय द्िारा अन्तररत डििी का उच्च न्यायालय द्िारा ननष्पादन- जिां िि न्यायालय
र्जिे डडिी ननष्पादन के सलए भेजी गई िै उच्च न्यायालय िै ििा डडिी ऐिे न्यायालय द्िारा उिी र नत िे

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ननष्पाहदत की जाएगी मानो िि ऐिे न्यायालय द्िारा अपनी मामल
ू आरर्म्भक सिविल अधधकाररता के
प्रयोग में पाररत की गई थी ।

ननष्पादन के सलए आिेदन


10. ननष्पादन के सलए आिेदन- जिां डडिी का धारक उिका ननष्पादन कराना चािता िै ििां िि
डडिी पाररत करने िाले न्यायालय िे या इि ननसमि ननयक्
ु त अधधकार िे (यहद कोई िो) या यहद डडिी
क्रकिी अन्य न्यायालय को इिमें इिके पि
ू ि अन्तवििष्ट उपबन्धों के अधीन भेजी गई िै तो उि न्यायालय िे
या उिके उधचत अधधकार िे आिेदन करे गा ।

11. मौखखक आिेदन- (1) जिां डडिी धन के िंदाय के सलए ििां, यहद ननणीतऋणी न्यायालय की
पररिीमाओं के भीतर िै तो, न्यायालय डडिी पाररत करने के िमय डडिीदार द्िारा क्रकए गए मौणखक
आिेदन पर आदे श दे िकेगा क्रक िारण्ट की तैयार के पि
ू ि ि डडिी का अविलम्ब ननष्पादन ननणीत ऋणी
की धगरफतार द्िारा क्रकया जाए ।
(2) सलखखत आिेदन- उिके सििाय जैिा उपननयम (1) द्िारा उपबर्न्धत िै , डडिी के ननष्पादन के
सलए िर आिेदन सलखा िुआ और आिेदक या क्रकिी अन्य ऐिे व्यर्क्त द्िारा, र्जिके बारे में न्यायालय को
िमाधानप्रद रूप में िाबबत कर हदया गया िै क्रक िि मामले के तथ्यों िे पररधचत िै , िस्तािररत और
ित्यावपत िोगा और उिमें िारणीबद्ध रुप में ननम्न विसशर्ष्टयां िोगी, अथाित-
(क) िाद का िंख्यांक;
(ख) पिकारों के नाम;
(ग) डडिी की तार ख;
(घ) क्या डडिी के विरुद्ध कोई अपील की गई िै ;
(ड) क्या डडिी के पश्चात ् पिकारों के बीच कोई िंदाय या वििादग्रस्त बात का कोई अन्य िमायोजन िुआ
िै और (यहद कोई िुआ िै तो) क्रकतना या क्या,
(च) क्या डडिी के ननष्पादन के सलए कोई आिेदन पिले क्रकए गए िैं और (यहद कोई क्रकए गए िें तो) कौन
िे िैं और ऐिे आिेदनों की तार खें और उनके पररणाम;
(छ) डडिी मद्धे शोध्य रकम, यहद कोई ब्याज िो तो उिके िहित, या उिके द्िारा अनद
ु त अन्य अनत
ु ोष,
क्रकिी प्रनत-डडिी की विसशर्ष्टयों के िहित चािे िि उि डडिी की तार ख के पि
ू ि या पश्चात ् पाररत की
गई िो र्जिका ननष्पादन चािा गया िै ;
(ज) अधधननणीत खचो की (यहद कोई िों) रकम;
(झ) उि व्यर्क्त का नाम र्जिके विरुद्ध डडिी का ननष्पादन चािा गया िै ; तथा
(ञ) िि ढं ग र्जिमें न्यायालय की ििायता अपेक्षित िै अथाित ् क्या-
(i) क्रकिी विननहदि ष्टत: डडिी िम्पवि के पररदान द्िारा;
1
[(ii) क्रकिी िम्पवि की कुकी द्िारा या कुकी और वििय द्िारा या कुकी के बबना वििय द्िारा;]
(iii) क्रकिी व्यर्क्त की धगरफ्तार और कारागार में ननरोध द्िारा;
(iv) ररिीिर की ननयर्ु क्त द्िारा;

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(v) अन्यथा, जो अनद
ु ि अनत
ु ोष की प्रकृनत िे अपेक्षित िै ।
(3) र्जि न्यायालय िे उपननयम (2) के अधीन आिेदन क्रकया गया िै , िि आिेदक िे यि अपेिा कर
िकेगा क्रक िि डडिी की एक प्रमाणणत प्रनत पेश करे ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 72 द्िारा (1-2-1977 िे) उपखण्ड (ii) के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


म.प्र. उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (16.9.1960)- ननयम 11 के उपननयम (2) के खड (ञ) के
उपखंड (v) के उपरात ननम्नानि
ु ार परतक
ु जोड़ा जाएगा-
''परन्तु यि क्रक जब आिेदक उिके आिेदन के िाथा डडिी की प्रमाणणत प्रनतसलवप प्रस्तत
ु करता िै
तो खंड (ख) (ग) एिं (ज) में हदये जाने िाले वििरणों को आिेदन में हदये जाने की आिश्यकता नि ं िै ।

1
[11क. धगरफ्तारी के सलए आिेदन मे आधारों का कधथत िोना- जिां ननणीतऋणी की धगरफ्तार
और कारागार में ननरोध के सलए आिेदन क्रकया जाता िै ििां उिमें उन आधारों का र्जन पर धगरफ्तार के
सलए आिेदन क्रकया गया िै , कथन िोगा या उिके िाथ एक शपथपत्र िोगा र्जिमें उन आधारों का र्जन पर
धगरफतार के सलए आिेदन क्रकया गया िै , कथन िोगा ।
12. ऐिी जंगम िम्पवि की कुकी के सलए आिेदन जो ननणीतऋणी के कब्जे में निीं िैं- जिां क्रकिी
ऐिी जगम िम्पवि की कुकी के सलए आिेदन क्रकया गया िै जो ननणीतऋणी की िै क्रकन्तु उिके कब्जे में
नि ं िै ििा डडिीदार उि िम्पवि का र्जिकी कुकी की जानी िै यर्ु क्तयक्
ु त रुप िे यथाथि िणिन अन्तवििष्ट
करने िाल एक िम्पवि तासलका आिेदन के िाथ उपाबद्ध करे गा ।

13. स्थािर िम्पवि की कुकी के आिेदन में कुछ विसशस्ष्टयों का अन्तविवष्ट िोना- जिां ननणीतऋणी
की क्रकिी स्थािर िम्पवि की कुकी के सलए आिेदन क्रकया जाता िै ििां उि आिेदन के पाद-भाग में
ननम्नसलणखत बातें अन्तवििष्ट िोंगी, अथाित-
(क) ऐिी िम्पवि का ऐिा िणिन जो उिे पिचानने के सलए पयािप्त िै और उि दशा में र्जिमें ऐिी िम्पनत
िीमाओं द्िारा या भ-ू व्यिस्थापन या ििेिण के असभलेख के िंख्याको के द्िारा पिचानी जा िकती िै ,
ऐिी िीमाओं या िंख्यांकों का विननदे श; तथा
(ख) ननणीतऋणी का ऐिी िम्पवि में , जो अशं या हित आिेदक के ििोिम विश्िाि के अनि
ु ार िै और
जिां तक िि उिका असभननश्चय कर पाया िो ििां तक उि अंश या हित का विननदे श ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 72 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया गया ।

14. कलेतटर के रस्जस्टर में िे प्रमाखणत उद्धरणों की कुछ दशाओं में अपेक्षा करने की शस्तत- जिां
क्रकिी ऐिी भसू म की कुकी के सलए आिेदन क्रकया जाता िै जो कलक्टर के कायािलय में रर्जस्र कृत िै ििा

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न्यायालय आिेदक िे अपेिा कर िकेगा क्रक िि उि भसू म के स्ित्िधार के रूप में या उि भसू म में या
उिके राजस्ि में कोई अन्तरणीय हित रखने िाले के रुप में या उि भसू म के सलए राजस्ि दे ने के दायी के
रुप में रर्जस्टर में दजि व्यर्क्तयों का और रर्जस्टर में दजि स्ित्िधाररयों के अशों को विननहदि ष्ट करने िाला
प्रमाणणत उद्धरण ऐिे कायािलय के रर्जस्टर में िे पेश करे ।

15. िंयत
ु त डििीदार द्िारा ननष्पादन के सलए आिेदन- (1) जिां डडिी एक िे अधधक व्यर्क्तयों के
पि में ियक्
ु त रुप िे पाररत की गई िै ििा, जब तक क्रक डडिी में इिके प्रनतकूल कोई शति अधधरोवपत न
िो, परू डडिी के ननष्पादन के सलए आिेदन ऐिे व्यर्क्तयों में िे कोई एक या अधधक अपने िभी के फायदे
के सलए या जिा उनमें िे क्रकिी की मत्ृ यु िो गई िै ििा मत
ृ क के उिरजीवियों और विधधक प्रनतननधधयों के
फायदे के सलए कर िकेगा ।
(2) जिां न्यायालय डडिी का ननष्पादन इि ननयम के अधीन क्रकए गए आिेदन पर अनज्ञ
ु ात करने
के सलए पयािप्त िे तक
ु दे खे ििां िि ऐिा आदे श करे गा जो िि उन व्यर्क्तयों के जो आिेदन करने में
िर्म्मसलत नि ं िुए िै , हितों के िरिण के सलए आिश्यक िमझे ।

16. डििी के अन्तररती दारा ननष्पादन के सलए आिेदन- जिां क्रकिी डिी का या, यहद कोई डडिी
दो या अधधक व्यर्क्तयों के पि में िंयक्
ु त रुप िे पाररत की गई िै तो डिी में क्रकिी डडिीदार के हित का
अन्तरण सलणखत िमनद
ु े शन द्िारा या विधध की क्रिया द्िारा िो गया िै ििा अन्तररती उि न्यायालय िे,
र्जिने डडिी पाररत की थी डडिी के ननष्पादन के सलए आिेदन कर िकेगा और डडिी उिी र नत िे और
उन्ि ं शतो के अधीन रिते िुए इि प्रकार ननष्पाहदत की जा िकेगी मानो आिेदन ऐिे डडिीदार के द्िारा
क्रकया गया िो :
परन्तु जिां डडिी के पि
ू ोक्त जैिे हित का अन्तरण िमनद
ु े शन द्िारा क्रकया गया िै ििां ऐिे
आिेदन की िच
ू ना अन्तरक और ननणीतऋणी को द जाएगी और जब तक न्यायालय ने डडिी के ननष्पादन
के बारे में उनके आिेपों को (यहद कोई िो) न िन
ु सलया िो तब तक िि ननष्पाहदत नि ं की जाएगी :
परन्तु यि और भी क्रक जिा दो या अधधक व्यर्क्तयों के विरुद्ध धन के िदाय की डडिी उनमें िे
एक को अन्तररत की गई िै , ििां िि अन्य व्यर्क्तयों के विरुद्ध ननष्पाहदत नि ं की जाएगी ।

[स्पष्टीकरण- इि ननयम की कोई बात धारा 146 के उपबन्धों पर प्रभाि नि ं डालेगी और उि


1

िम्पवि में जो िाद की विषयिस्तु िै , अधधकारों का कोई अन्तररती डडिी के ननष्पादन के सलए आिेदन, इि
ननयम द्िारा यथा अपेक्षित डडिी के पथ
ृ क िमनद
ु े शन के बबना, कर िकेगा ।
1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 72 द्िारा (1.2.1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया गया

उच्च न्यायालय िंशोधन


म.प्र.उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (16.9.1960)- ननयम 16 मे शब्द “र्जिने इिे पाररत क्रकया”
के उपरांत शब्दों ''या ऐिे न्यायालय को र्जिको यि ननष्पादन के सलए भेजी गयी िै '' को अतःस्थावपत
क्रकया गया ।

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पटना उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- ननयम 16 में-
(1) इन शब्दों को ''अथिा न्यायालय को र्जिको क्रक डडिी ननष्पादन के सलए भेजी गई िै जैिा भी
मामला िो'' शब्द “उि न्यायालय, र्जिने डडिी पाररत की थी” के उपरांत जोडे ।
(2) प्रथम परं तक
ु िे शब्दों ''और ननणीत ऋणी'' को लप्ु त करें एिं द्वितीय परं तक
ु में शब्द ''अंतरक''
के उपरांत इन शब्दों को अंतःस्थावपत करें -
''जब तक क्रक अंतरक द्िारा अंतरण को मंजूर करते िुए एक शपथ पत्र आिेदन के िाथ प्रस्तत ु
नि ं क्रकया जाता िै '' ि शब्द ''उिके'' के स्थान पर शब्द ''उनके'' ि शब्द ''आिेप'' के स्थान पर शब्द
''आिेपों'' को करे ।

17. डििी के ननष्पादन के सलए आिेदन प्राप्त िोने पर प्रक्रिया- (1) डडिी के ननष्पादन के सलए
आिेदन ननयम 11 के उपननयम (2) द्िारा उपबर्न्धत रुप िे प्राप्त िोने पर न्यायालय यि असभननर्श्चत
करे गा क्रक क्या ननयम 11 िे 14 तक की अपेिाओं में िे उनका जो उि मामले में लागू िै अनप
ु ालन क्रकया
जा चुका िै और यहद उनका अनप
ु ालन क्रकया गया िै [तो न्यायालय त्रहु ट का तभी और ििां ि या उि
1

िमय के भीतर जो उिके द्िारा ननयत क्रकया जाएगा दरू क्रकया जाना अनज्ञ
ु ात करे गा ।]
[(1क) यहद त्रहु ट इि प्रकार दरू नि ं क्रक जाती िै तो न्यायालय आिेदन को नामजरू करे गा:
2

परन्तु जिां न्यायालय की राय में , ननयम 11 के उपननयम (2) के खण्ड (छ) और (ज) में ननहदि ष्ट
रकम के बारे में कोई अशद्
ु धधके िो ििां न्यायालय आिेदन को नामजूर करने के बजाय (कायििाहियों के
दौरान रकम को अर्न्तम रुप िे विननर्श्चत कराने के पिकारों के अधधकार पर प्रनतकूल प्रभाि डाले बबना)
अनर्न्तम रुप िे रकम विननर्श्चत करे गा और इि प्रकार अनर्न्तम रुप िे विननर्श्चत रकम िाल डडिी के
ननष्पादन के सलए आदे श करे गा ।
(2) जिां आिेदन उपननयम (1) के उपबन्धों के अधीन िंशोधधत क्रकया जाता िै ििा िि विधध के
अनि
ु ार और उि तार ख को र्जिको िि पेश क्रकया गया था पेश क्रकया गया िमझा जाएगा ।
(3) इि ननयम के अधीन क्रकया गया िर िंशोधन न्यायाधीश द्िारा िस्तािररत या आद्यिररत
क्रकया जागा ।
(4) जब आदे श ग्रिण कर सलया जाए तब न्यायालय उधचत रर्जस्टर मे आिेदन का हटप्पण और
िि तार ख र्जि हदन िि हदया गया था प्रविष्ट करे गा और इिमें इिके पश्चात ् अन्तवििष्ट उपबन्धों के
अधीन रिते िुए आिेदन की प्रकृनत के अनि
ु ार डडिी के ननष्पादन के सलए आदे श दे गा:
परन्तु धन के िंदाय के सलए डडिी की दशा में कुकि की गई िम्पनत का, मप ू य डडिी के अधीन
शोध्य रकम के यथाशक्य लगभग बराबर िोगा ।
1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 72 द्िारा (1.2.1977 िे) कुछ शब्दों के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 72 द्िारा (1.2.1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया गया ।
उच्च न्यायालय िंशोधन
म.प्र. उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (16.9.1960)- उपननयम (1) प्रनतस्थावपत क्रकये गये शब्द इि
प्रकार िै - ''न्यायालय आिेदन को नामंजूर कर िकेगा या त्रहु ट का तभी और ििां ि या उि िमय के भीतर,

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जो उिके द्िारा ननयत क्रकया जाएगा, दरू क्रकया जाना अनज्ञ
ु ात करे गा''

इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- शब्दों ''अनप


ु ालन क्रकया जा चुका िै '' एिं ''और यहद
उनका अनप
ु ालन नि ं क्रकया गया िै '' के मध्य इन शब्दों को अंतःस्थावपत कीर्जए ''और यहद डडिी िोपडर
न्यायालय द्िारा ननयत क्रकए गए िमय के भीतर दोष के उपचार करने में विफल रिता िै ।''

पटना उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- ननयम 17(1) में शब्दों ''न्यायालय आिेदन को नामंजरू
करे गा'' के स्थान पर ननम्न को उपननयम के अंत में प्रनतस्थावपत करें -
''न्यायालय दोष को तभी अथिा इिके द्िारा ननयत क्रकए गए िमय के भीतर उपचाररत क्रकया जाना
अनज्ञ
ु ात करे गा, यहद डडिी िोपडर ऐिे िमय के भीतर दोष का उपचार करने में विफल रिता िै , तो
न्यायालय आिेदन ननरस्त कर िकेगा ।''

18. प्रनत-डिक्रियों की दशा में ननष्पादन- (1) जिां न्यायालय िे आिेदन ऐिी प्रनत- डडक्रियों के
ननष्पादन के सलए क्रकए जाते िै जो दो रासशयों के िंदाय के सलए पथ
ृ क-पथ
ृ क िादों में उन्ि ं पिकारों के
बीच पाररत की गई िै और ऐिे न्यायालय द्िारा एक ि िमय ननष्पादनीय िैं,
ििां-
(क) यहद दोनों रासशयां बराबर िै तो दोनों डडक्रि यों मे तर्ु ष्ट की प्रविर्ष्ट कर द जाएगी तथा
(ख) यहद दोनों रासशयां बराबर नि ं िै तो बडी रासश िाल डडिी के धारक द्िारा ि और केिल
उतनी ि रासश के सलए जो छोट रासश को घटाने के पश्चात ् शेष रिती िै , ननष्पादन कराया जा िकेगा और
बडी रासश िाल डडिी मे छोट रासश की तर्ु ष्ट की प्रविर्ष्ट कर द जाएगी और िाथ ि छोट रासश िाल
डडिी में भी तर्ु ष्ट की प्रविर्ष्ट कर द जाएगी ।

(2) इि ननयम के बारे में यि िमझा जाएगा क्रक ये ििां लागू िै जिां दोनों में िे कोई पिकार उन
डडक्रियों में िे एक का िमनद
ु े सशती िै और मल
ू िमनद
ु े शन द्िारा शोध्य ननणीत ऋणों के बारे में भी िैिे ि
लागू िै जैिे स्िंय िमनद
ु े सशती द्िारा शोध्य ननणीत-ऋणों को ।

(3) इि ननयम के बारे में यि नि ं िमझा जाएगा क्रक यि लागू िै जब तक क्रक-


(क) उन िादों में िे, र्जनमें डडक्रियां की गई िै एक में का डडिीदार दि
ू रे में का ननणीतऋणी
न िो और िर एक पिकार दोनों िादों में एक िी ि िै सियत न रखता िो; तथा
(ख) डडक्रियों के अधीन शोध्य रसशयां ननर्श्चत न िों ।

(4) कई व्यर्क्तयों के विरुद्ध िंयक्


ु तत: और पथ
ृ क्तः पाररत डडिी का धारक अपनी डडिी को ऐिी
डडिी के िम्बन्ध में जो ऐिे व्यर्क्तयों में एक या अधधक के पि में अकेले उिके विरुद्ध पाररत की गई िों
प्रनत-डडिी के रूप में बरत िकेगा ।

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उच्च न्यायालय िंशोधन
म.प्र. उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- अधधिच
ू ना िमांक 3409 हदनांक 26.6.1943 के द्िारा आ.
21 ननयम 18 के स्थान पर ननम्नानि
ु ार ननयम 18 प्रनतस्थावपत क्रकया गया िै -
''8(1) जिााँ डडिी िोपडर न्यायालय िे आिेदन ऐिी प्रनत-डडक्रियों के ननष्पादन के सलए क्रकए जाने िैं
जो दो रासशयों के िंदाय के सलए पथ
ृ क-पथ
ृ क दािों में उन्ि ं पिकारों के बीच पाररत की गई और ऐिे
न्यायालय द्िारा एक ि िमय में ननष्पादनीय िै , तथा-
(1) यहद दोनों रासशयााँ बराबर िैं तो दोनों डडक्रियों की तर्ु ष्ट में प्रविर्ष्ट कर द जाएगी, तथा
(2) यहद दोनों रासशयााँ बराबर नि ं िैं तो बडी रासश के डडिी के धारक के द्िारा ि और केिल
उतनी ि रासश के सलए जो छोट रासश को घटाने के पश्चात शेष रिती िै , ननष्पादन कराया जा िकेगा और
बडी रासश िाल डडिी में छोट रासश की तर्ु ष्ट की प्रविर्ष्ट कर द जाएगी और िाथ ि िाथ छोट रासश
िाल डडिी में भी तर्ु ष्ट की प्रविर्ष्ट कर द जाएगी ।
परं तु यि क्रक----
(I) प्रत्येक पिकार का दोनों िादों में िमान चररत्र िै , और
(II) डडिी के अधीन दे य रासश ननर्श्चंत िै ।

(2) इि ननयम के बारे में यि िमझा जािेगा क्रक यि यिााँ लागू िै , जिााँ दोनों में िे कोई पिकार
उन डडक्रियों में िे एक का िमानद
ु े सशती िै और मल
ू िमनद
ु े शक द्िारा शोध्य ननणीत ऋणों के बारे में िैिे
ि लागू िैं जैिे स्ियं िमानद
ु े सशती द्िारा शोध्य ननणीत ऋणों को ।
परं तु यि क्रक-
(I) जिााँ िमान पिकारों के मध्य डडक्रियों पाररत की गई थीं, प्रत्येक पिकार ने िमान िै सियत
प्रत्येक िाद में भर थी ।
(II) जिााँ डडक्रियााँ िमान पिकारों के मध्य पाररत नि ं की गई थी, िादों में िे एक में डडिी िोपडर
अन्य िाद में ननणीत ऋणी िै और दोनों िादों में िमान िै सियत भरता िै , और
(III) डडक्रियों के अधीन दे य रकम ननर्श्चत िै ।

(3) कई व्यर्क्तयों के विरुद्ध िंयक्


ु त: और पथ
ृ कत: पाररत डडिी का धारक अपनी डडिी को ऐिी
डडिी के िंबध
ं में जो उिे व्यर्क्तयों में एक या अधधक के पि में अकेले उिके विरुद्ध पाररत की गई िो
प्रनत डडिी के रुप में बरत िकेगा ।''
19. एक िी डििी के अधीन प्रनतदािों की दशा में ननष्पादन- जिां न्यायालय िे आिेदन ऐिी डडिी
के ननष्पादन के सलए क्रकया गया िै र्जिके अधीन दो पिकार एक दि
ू रे िे धन की रासशयां ििल
ू करने के
िकदार िैं, ििां-
(क) यहद दोनों रासशयां बराबर िैं तो दोनों के सलए तर्ु ष्ट की प्रविर्ष्ट डडिी मे कर द जाएगी; तथा
(ख) यहद दोनों रासशयां बराबर नि ं िै तो बड़ी रासश के िकदार पिकार द्िारा ि और केिल उतनी
ि रासश के सलए जो छोट रासश के घटाने के पश्चात ् शेष रिती िै , ननष्पादन कराया जा िकेगा, और छोट
रासश की तर्ु ष्ट की प्रविष्ट डडिी में कर द जाएगी ।

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20. बंधक-िादों में प्रनत-डिक्रिया और प्रनतदािे--- ननयम 18 और ननयम 19 में अन्तवििष्ट उपबन्ध,
बन्धक या भार का प्रितिन कराने में वििय की डडक्रियों को लागू िोंगे ।

21. एक िाथ ननष्पादन- न्यायालय ननणीतऋणी के शर र और िम्पवि के विरुद्ध एक िाथ


ननष्पादन करने िे इंकार स्िवििेकानि
ु ार कर िकेगा ।

22. कुछ दशाओं में ननष्पादन के विरुद्ध िे तक


ु दसशवत करने की िच
ू ना- (1) जिां ननष्पादन के सलए
आिेदन-
(क) डडिी की तार ख के 1[दो िषि] के, पश्चात ् क्रकया गया िैं, अथिा

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 72 द्िारा (1.2.1977 िे) ''एक िषि'' के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
(ख) डडिी के पिकार के विधधक प्रनतननधध के विरुद्ध क्रकया गया िै , 1[अथिा जिा धारा 44क के
उपबन्धों के अधीन फाइल की गई डडिी के ननष्पादन के सलए आिेदन क्रकया गया िै ], 2[अथिा]
(ग) जिां डडिी का पिकार हदिासलया न्यायननणीत क्रकया गया िै ििां हदिाले में िमनद
ु े सशती या
ररिीिर के विरुद्ध क्रकया गया िै ,
ििां डडिी ननष्पादन करने िाला न्यायालय उि व्यर्क्त के प्रनत, र्जिके विरुद्ध ननष्पादन के सलए
आिेदन क्रकया गया िै , यि अपेिा करने िाल िच
ू ना ननकालेगा क्रक िि उि तार ख को जो ननयत की
जाएगी, िे तक
ु दसशित करे क्रक डडिी उिके विरुद्ध ननष्पाहदत क्यों न की जाए :
परन्तु ऐिी कोई िच
ू ना न तो डडिी की तार ख और ननष्पादन के सलए आिेदन की तार ख के बीच
[दो िषि] िे अधधक बीत जाने के पररणामस्िरुप उि दशा में आिश्यक िोगी र्जिमें क्रक ननष्पादन के सलए
4

क्रकिी पि
ू त
ि न आिेदन पर उि पिकार के विरुद्ध, र्जिके विरुद्ध ननष्पादन के सलए आिेदन क्रकया गया िै ,
क्रकए गए अर्न्तम आदे श की तार ख िे 5[दो िषि] के भीतर ि ननष्पादन के सलए आिेदन कर हदया गया िै
और न ननणीतऋणी के विधधक प्रनतननधध के विरुद्ध आिेदन क्रकए जाने के पररणामस्िरूप उि दशा में
आिश्यक िोगी र्जिमें क्रक उिी व्याकृत के विरुद्ध ननष्पादन के सलए पि
ू त
ि न आिेदन पर न्यायालय उिके
विरुद्ध ननष्पादन चालू करने का आदे श दे चुका िै ।
(2) पि
ू ग
ि ामी उपननयम की कोई भी बात उि उपननयम द्िारा विहित िच
ू ना ननकाले बबना डडिी के
ननष्पादन में कोई आदे सशका ननकालने िे न्यायालय को प्रिाररत करने िाले नि ं िमझी जाएगी, यहद उन
कारणों िे जो लेखबद्ध क्रकए जाएंगे, उिका विचार िो क्रक ऐिी िच
ू ना ननकालने िे अयर्ु क्तयक्
ु त विलम्ब
िोगा या न्याय के उद्दे श्य विफल िो जाएंगे ।

1. 1937 के अधधननयम िं. 8 की धारा 3 द्िारा अन्तःस्थावपत क्रकया गया ।


2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 72 द्िारा (1.2.1977 िे) अन्तःस्थावपत क्रकया गया ।
3. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 72 द्िारा (1.2.1977 िे) अन्तःस्थावपत क्रकया गया ।

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4. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 72 द्िारा (1.2.1977 िे) ''एक िषि'' के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
5. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 72 द्िारा (1-2-1977 िे) ''एक िषि'' के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


म.प्र. उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- अधधिच
ू ना िमांक 3409 हदनांक 29.6.1943 के द्िारा
उपननयम (2) में परं तक
ु िमाविष्ट क्रकया गया िै-
परन्तु डडिी के ननष्पादन का कोई आदे श इि ननयम के अंतगित िच
ू ना पत्र जार करने की लोपता
के कारण अविधधमान्य नि ं िो जाएगा जब तक क्रक ऐिी लोपता के कारण ननणीत ऋणी
को िारिान िनत काररत न िुई िो |”

इलािबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- आदे श 21 ननयम 22 के उपननयम (2) में ननम्न परं तक

जोड़ा गया िै -
“परन्तु डडिी ननष्पादन काश्तकार कोई आदे श इि कारण अविधधमान्य नि ं िोगा क्रक इि ननयम के
अंतगित िच
ू ना जार करने में लोपता िुई जब तक क्रक ननणीत ऋणी को ऐिी लोपता के कारण िारिान
िनत न िुई िो |

पटना उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- उपननयम (1) ननम्न प्रकार प्रनतस्थावपत क्रकया गया िै -
“(1) जिााँ ननयम 11 (2) के अंतगित सलणखत में ननष्पादन के सलए आिेदन क्रकया जाता िै डडिी
ननष्पादन करने िाला न्यायलय उि व्यर्क्त को जार करे गा र्जिके विरुद्ध ननष्पादन के सलए आिेदन क्रकया
गया िो, उि ननयत हदनांक पर दसशित करने के सलए क्रक उिके विरुद्ध, डडिी का ननष्पादन क्यों नि ं क्रकया
जाना चाहिए |” 2

[22क. वििय िे पि
3
ू व क्रकन्तु की उद्घोषणा की तामील के पश्चात ् ननणीत ऋणी की मत्ृ यु पर वििय
का अपास्त न क्रकया जाना- जिां क्रकिी िंपवि का क्रकिी डडिी के ननष्पादन में वििय क्रकया जाता िै ििां
केिल इि कारण क्रक वििय की उद्घोषणा के जार क्रकए जाने की तार ख और वििय की तार ख के बीच
ननणीतऋणी की मत्ृ यु िो गयी िै और इि बात के िोते िुआ भी वििय अपास्त नि ं क्रकया जाएगा क्रक
डडिीदर ऐिे मत
ृ ननणीतऋणी के विधधक प्रनतननधध को उिके स्थान पर रखने में अिफल रिा िै , क्रकन्तु
ऐिी अिफलता की दशा में अपास्त कर िकेगा र्जिमें उिका िमाधान िो जाता िै क्रक वििय काश्तकार
मत
ृ ननणीतऋणी के विधधक प्रनतननधध पर प्रनतकूल प्रभाि पड़ा िै |]

1. अधधिच
ू ना िमांक 408/35 (क)-3(7), हदनांक 24.7.1926 |
2. अधधिच
ू ना िमांक 89-िी/III-6-47 हदनांक 8.5.1947 |
3. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 72 द्िारा (1-2-1977 िे) अंत:स्थावपत क्रकया गया |

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उच्च न्यायालय िंशोधन
म.प्र. उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (16.9.1960)- उपननयम (2) में ननम्नानि
ु ार परं तक
ु जोड़ा
गया-
'' परन्तु यि क्रक डडिी के ननष्पादन का कोई आदे श इि ननयम के अन्तगित िच
ू ना जार क्रकये जाने
में लोप के कारण अविधधमान्य नि ं िोगा, जब तक क्रक ननणीतऋणी को ऐिी लोपता के कारण िारिान
िनत न िुई िो ।''

पटना उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- ननयम 22 (क) को ननम्न प्रकार प्रनतस्थावपत क्रकया गया-
“22क. क्रकिी डडिी के ननष्पादन बाबत ् जिााँ कोई िंपवि बेची जाती िै , तो वििय उद्घोषणा जार
की जाने की हदनांक एिं वििय की हदनांक के मध्य मात्र ननणीत ऋणी की मत्ृ यु िो जाने पर ि ि ऐिा
िोने पर भी वििय ननरस्त नि ं िोगा क्रक उिके विधधक िाररिों को डडिी धारक ने उिके स्थान पर
प्रनतस्थावपत करने में विफलता की िै , क्रकन्तु यहद न्यायालय की िंतर्ु ष्ट िो जाती िै क्रक इि विफलता के
कारण ननणीत ऋणी के विधधक िाररिों पर प्रनतकूल प्रभाि िुआ िै तो िि वििय ननरस्त कर िकेगा ।''

23. िच
ू ना के ननकाले जाने के पश्चात ् प्रक्रिया- (1) जिां िि व्यर्क्त, र्जिके नाम [ननयम 22] के
1

अधीन िच
ू ना ननकाल गई िै , उपिंजात नि ं िोता िै या न्यायालय को िमाधानप्रद रूप में िे तक
ु दसशित
नि ं करता िै क्रक डडिी का ननष्पादन क्यों न क्रकया जाए ििां न्यायालय आदे श दे गा क्रक डडिी का ननष्पादन
क्रकया जाए ।
(2) जिां ऐिा व्यर्क्त डडिी के ननष्पादन के विराद्ध कोई आिेप पेश करता िै ििा न्यायालय ऐिे
आिेप पर विचार करे गा और ऐिा आदे श करे गा जो िि ठीक िमझे ।

ननष्पादन के सलए आदे सशका


24. ननष्पादन के सलए आदे सशका- (1) जब पि
ू ग
ि ामी ननयमों द्िारा अपेक्षित प्रारर्म्भक उपाय (यहद
कोई िो) क्रकए जा चुके िों तब, जब तक क्रक न्यायालय को इिके प्रनतकूल िे तक
ु हदखाई न दे , िि उि डडिी
के ननष्पादन के सलए अपनी आदे सशका ननकालेगा ।
(2) िर ऐिी आदे सशका में उि हदन की तार ख सलखी जाएगी र्जि हदन िि ननकाल गई उपाय (यहद कोई
िो) क्रकए जा चक
ु े िों तब, जब तक क्रक न्यायालय को इिके प्रनतकूल िे तक
ु हदखाई न दे , िि उि डडिी के
ननष्पादन के सलए अपनी आदे सशका ननकालेगा ।

1. 1978 के अधधननयम िं. 38 की धारा 3 और दि


ू र अनि
ु च
ू ी द्िारा ''इिके ठीक पिले के
ननयम'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

(2) िर ऐिी आदे सशका में उि हदन की तार ख सलखी जाएगी र्जि हदन िि ननकाल गई िै और
िि न्यायाधीश द्िारा या ऐिे अधधकार द्िारा जो न्यायालय इि ननसमि ननयक्
ु त करे , िस्तािररत की
जाएगी और न्यायालय की मद्र
ु ा िे मद्र
ु ांक्रकत की जाएगी और ननष्पाहदत क्रकए जाने के सलए उधचत अधधकार

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को पररदि की जाएगी ।
1
[(3) िर ऐिी आदे सशका में िि हदन विननहदिष्ट क्रकया जाएगा र्जि हदन या र्जिके पि
ू ि िि
ननष्पाहदत की जाएगी और िि हदन भी विननहदिष्ट क्रकया जाएगा र्जि हदन या र्जिके पि
ू ि िि न्यायालय
को िापि की जाएगी, क्रकन्तु कोई की आदे सशका उि दशा में शन्
ू य नि ं िमझी जाएगी र्जिमें उिके लौटाए
जाने के सलए कोई हदन उिमें विननहदि ष्ट नि ं क्रकया गया िो ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


म.प्र. उच्च न्यायालय िंशोधन (16.9.1950)-- उपननयम (3) में आये शब्द ''ननष्पाहदत की जाएगी''
को शब्दों '' न्यायालय को िावपि कर हदया जाएगा'' िे प्रनतस्थावपत कर दें ।

25. आदे सशका पर पष्ृ ठांकन—(1) िि अधधकार र्जिे आदे सशका का ननष्पादन िौंपा गया िै , उि पर
िि हदन जब, और िि र नत, र्जििे िि ननष्पाहदत की गई िै , और यहद उिके लौटाए जाने के सलए
आदे सशका में विननहदि ष्ट अर्न्तम हदन िे अधधक िमय ननकल गया िै तो विलम्ब का कारण या यहद िि
ननष्पाहदत नि ं की गई थी तो िि कारण र्जििे उिका ननष्पादन नि ं क्रकया गया, पष्ृ ठांक्रकत करे गा और
उि आदे सशका को ऐिे पष्ृ ठांकन के िाथ न्यायालय को लौटाएगा ।
(2) जिां पष्ृ ठांकन इि भाि का िै क्रक ऐिा अधधकार आदे सशका का ननष्पादन करने में अिमथि िै
ििां न्यायालय उिकी अधधकधथत अिमथिता के बारे में उिकी पर िा करे गा और यहद िि ऐिा करना ठीक
िमझे तो ऐिी अिमथिता के बारे में िाक्षियों को िमन और उनकी पर िा कर िकेगा और पररणाम को
असभसलणखत करे गा ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 72 द्िारा (1.2.1977 िे) उपननयम (3) के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- आदे श 21 ननयम 25 के उपननयम (2) में इन शब्दों
''उिका पर िण करे गा'' के स्थान पर इन शब्दों ''उिे व्यर्क्तगत तौर पर या शपथ पि पर पर क्षित कर
िकेगा'' क्रकया गया िै । 1
ननष्पादन का रोका जाना
26. न्यायालय ननष्पादन को कब रोक िकेगा- (1) िि न्यायालय, र्जिे डडिी ननष्पादन के सलए
भेजी गई िै , ऐिी डडिी का ननष्पादन पयािप्त िे तक
ु दसशित क्रकए जाने पर यर्ु क्तयक्
ु त िमय के सलए इिसलए
रोकेगा क्रक ननणीतऋणी िमथि िो िके क्रक िि डडिी पाररत करने िाले न्यायालय िे या डडिी के या उिके
ननष्पादन के बारे में अपील अधधकाररता रखने िाले क्रकिी न्यायालय िे ननष्पादन रोक दे ने के आदे श के
सलए आिेदन कर ले या डडिी या ननष्पादन िे िम्बर्न्धत क्रकिी ऐिे अन्य आदे श के सलए आिेदन कर ले
जो प्रथम बार के न्यायालय द्िारा या अपील न्यायालय द्िारा क्रकया जाता यहद ननष्पादन उिके द्िारा जार
क्रकया गया िोता या यहद ननष्पादन के सलए आिेदन उििे क्रकया गया िोता ।

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(2) जिां ननणीतऋणी की िम्पवि या शर र ननष्पादन के अधीन असभगि
ृ त कर सलया गया िै ििां
िि न्यायालय, र्जिने ननष्पादन जार क्रकया िै , ऐिे आिेदन का पररणाम लर्म्बत रिने तक ऐिी िम्पवि के
प्रत्यास्थापन या ऐिे व्यर्क्त के उन्मोचन के सलए आदे श कर िकेगा ।

(3) ननणीतऋणी िे प्रनतिनू त अपेक्षक्षत करने या उि पर शते अधधरोवपत करने की शस्तत---


न्यायालय ननष्पादन को रोकने के सलए या िम्पवि के प्रत्यास्थापन के सलए ननणीतऋणी के उन्मोचन के
सलए आदे श करने िे पिले ननणीतऋणी िे 2[ऐिी प्रनतभनू त अपेक्षित करे गा या उि पर ऐिी शते अधधरोवपत
करे गा जो िि ठीक िमझे] ।

1. अधधिच
ू ना िमांक 2381/35 (क)-8-(3); हदनांक 7.9.1918 ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 72 द्िारा (1-2-1977 िे) कुछ शब्दों के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


म.प्र. उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (16.9.1960)- उपननयम (3) में कनतपय शब्दों को इन शब्दों
“करे गा जब तक क्रक इिके विपर त कोई अच्छा कारण न दशािया जाए” को प्रनतस्थावपत क्रकया गया

इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (24.7.1926)- उपननयम (3) में कनतपय शब्दों को इन
शब्दों “करे गा जब तक क्रक इिके विपर त कोई अच्छा कारण न दशािया जाए'' को प्रनतस्थावपत क्रकया गया

पटना उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- उपननयम (3) में कनतपय शब्दों को इन शब्दों “करे गा जब
तक क्रक इिके विपर त कोई अच्छा कारण न दशािया जाए'' को प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

27. उन्मोधचत ननणीतऋणी का दानयत्ि- ननयम 26 के अधीन प्रत्यास्थापन या उन्मोचन का कोई


भी आदे श ननष्पादन के सलए भेजी गई डडिी के ननष्पादन में ननणीतऋणी की िम्पवि या शर र को क्रफर िे
असभगि
ृ त क्रकए जाने िे ननिाररत नि ं करे गा ।

28. डििी पाररत करने िाले न्यायालय का या अपील न्यायालय का आदे श उि न्यायालय के सलए
आबद्धकर िोगा स्जििे आिेदन क्रकया गया िै- डडिी पाररत करने िाले न्यायालय का या पि
ू ोक्त जैिी
अपील न्यायालय का ऐिी डडिी के ननष्पादन के िंबध
ं में कोई आदे श उि न्यायालय के सलए आबद्धकर
िोगा र्जिे डडिी ननष्पादन के सलए भेजी गई िै ।

29. डििीदार और ननणीतऋणी के बीच िाद लास्म्बत रिने तक ननष्पादन का रोका जाना- जिां उि
व्यर्क्त की ओर िे, र्जिके विरुद्ध डडिी पाररत की गई थी, कोई िाद ऐिे न्यायालय की डडिी के धारक

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के 1[या ऐिी डडिी के जो ऐिे न्यायालय द्िारा ननष्पाहदत की जा रि िै धारक के] विरुद्ध क्रकिी न्यायालय
में लर्म्बत िै ििा न्यायालय प्रनतभनू त के बारे में या अन्यथा ऐिे ननबन्धनों पर, जो िि ठीक िमझे, डडिी
के ननष्पादन क तब तक के सलए रोक िकेगा जब तक लर्म्बत िाद का विननश्चय न िो जाए :
[परन्तु यहद डडिी धन के िदाय के सलए िै तो न्यायालय उि दशा में र्जिमें िि प्रनतभनू त
2

अपेक्षित क्रकए बबना उिका रोकना मजूर करता िै , ऐिा करने के अपने कारणों को लेखबद्ध करे गा ।]

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 क धारा 72 द्िारा (1.2.1977 िे) अन्तःस्थावपत क्रकया गया |
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 क धारा 72 द्िारा (1.2.1977 िे) अन्तःस्थावपत क्रकया गया

उच्च न्यायालय िंशोधन

इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- अधधिच


ू ना िमांक 43/0-29; हदनांक 1.6.1957 के
द्िारा आदे श 21 ननयम 29 में ननम्न िंशोधन क्रकया गया िै -
(1) इन शब्दों के उपरांत ''जिााँ उि व्यर्क्त की ओर िे र्जिके विरुद्ध डडिी पाररत की गई'' ननम्न
शब्दों को और अंतःस्थावपत क्रकया गया िै -
''या कोई व्यर्क्त र्जिके हित डडिी िे या इिके ननष्पादन में क्रकए गए क्रकिी आदे श िे प्रभावित
िुए िैं''
(2) शब्दों 'प्रनतभनू त के बारे में या अन्यथा' विलोवपत क्रकए गए िैं ।
(3) ''जो िि ठीक िमझे'' के स्थान पर ''यहद िि ठीक िमझे'' क्रकया गया िै ।
(4) ननम्न परं तक
ु जोड़ा गया िै -
''परं तु उन िभी मामलों में जिााँ डडिी का ननष्पादन इि ननयम के अंतगित स्थधगत क्रकया गया िो
न्यायालय ऐिे स्थगन चािने िाले व्यर्क्त िे ऐिी प्रनतभनू त दे ने की अपेिा कर िकेगा, जो िि उपयक्
ु त
िमझे ।''

ननष्पादन की रीनत
30. धन के िंदाय की डििी- धन के िंदाय की िर डडिी, र्जिके अन्तगित क्रकिी अन्य अनत
ु ोष के
अनक
ु पप के रूप में धन के िंदाय की डडिी भी आती िै , ननणीतऋणी िे सिविल कारागार में ननरोध द्िारा
या उिकी िम्पनत की कुकी और वििय द्िारा या दोनों र नत िे ननष्पाहदत की जा िकेगी ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- आदे श 21 ननयम 30 में शब्दों ''वििय द्िारा'' के स्थान
पर ''वििय द्िारा या अन्य क्रकिी प्रकार के अंतरण द्िारा'' क्रकया गया िै । 1

31. विननहदव ष्ट जंगम िम्पवि के सलए डििी- (1) जिां डडिी क्रकिी विननहदि ष्ट जंगम िस्तु के, या
क्रकिी विननहदि ष्ट जंगम िस्तु में के अंश के सलए िै ििां यहद जंगम िस्तु या अंश का असभग्रिण िाध्य िो

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तो उि जंगम िस्तु के या अंश के असभग्रिण द्िारा और उि पिकार को र्जिके पि में िि न्यायननणीत
क्रकया गया िै या ऐिे व्यर्क्त को, र्जिे िि अपनी ओर िे पररदान प्राप्त करने के सलए ननयक्
ु त करे ,
पररदान द्िारा या ननणीतऋणी के सिविल कारागार में ननरोध द्िारा या उिकी िम्पवि को कुकी द्िारा या
दोनों र नत िे ननष्पाहदत की जा िकेगी ।

1. अधधिच
ू ना िमांक 2/-29; हदनांक 5.1.60 ।
(2) जिां उपननयम (1) के अधीन की गई कोई कुकी 1[तीन माि] के सलए प्रिि
ृ रि चक
ु ी िै ििां
यहद ननणीतऋणी ने डडिी का आज्ञानि
ु तिन नि ं क्रकया िै और डडिीदार ने कुकि की गई िम्पवि के वििय
क्रकए जाने के सलए आिेदन क्रकया िै तो ऐिी िम्पवि का वििय क्रकया जा िकेगा और आगमों में िे
न्यायालय डडिीदार को उन दशाओं में , जिां जंगम िम्पवि के पररदान के अनक
ु पपस्िरूप हदए जाने के सलए
कोई रकम डडिी द्िारा ननर्श्चत की गई िै , ऐिी रकम और अन्य दशाओं में ऐिा प्रनतकर, जो िि ठीक
िमझे, दे िकेगा और बाकी (यहद कोई िो) ननणीतऋणी के आिेदन पर उिे दे गा ।
(3) जिां ननणीतऋणी ने डडिी का आज्ञानि
ु तिन कर हदया गया िै और उिका ननष्पादन करने के
सलए िभी खचों का िंदाय कर हदया गया िै र्जनका िंदाय करने के सलए िि आबद्ध िै या जिां कुकी की
तार ख िे 2[तीन माि] का अन्त िोने तक िम्पवि के वििय क्रकए जाने के सलए कोई आिेदन नि ं क्रकया
गया िै या यहद क्रकया गया िै तो नामंजरू कर हदया गया िै ििां कुकी िमाप्त िो जाएगी ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


म.प्र. उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (16.9.1960)- ननयम 31 के उप ननयम (2) ि (3) में जिां
जिां '' ''छि माि'' शब्द िो उिके स्थान पर शब्द ''तीन माि या ऐिा अन्य िमय जो क्रक न्यायालय क्रकिी
विशेष प्रकरण में दसशित अच्छे कारण िे ननदे सशत करे ।'' प्रनतस्थावपत क्रकए गए ।

पटना उच्च न्यायालय दारा िंशोधन- आदे श 21 ननयम 31 में उपननयम (4) के रुप में ननम्न
वििरण जोडा गया-
'' (4) न्यायालय िमधु चत कारण िे, उपननयम, (2) और ((3) में िणणित तीन मािों की अिधध को
िंपण
ू ि तौर पर छि माि िे अनाधधक िोने िाल ऐिी अिधध मे विस्तार कर िकेगा जो यि उपयक्
ु त िमझे
। ''
1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 72 द्िारा (1.2.1977 िे) ''छि माि'' के स्थान पर
प्रनतस्थावपत ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 72 द्िारा (1.2.1977 िे) ''छि माि'' के स्थान पर
प्रनतस्थावपत ।
इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- अधधिच
ू ना िमांक 3084/35(क)-3(7) हदनांक 24.7.1926
के द्िारा उपननयम (2) ि (3) आए शब्दों ''छि माि'' को ''तीन माि या ऐिी विस्ताररत अिधध जो
न्यायालय अच्छे कारणों िे ननदे सशत करे '' क्रकया गया िै ।
नोट- उक्त िंशोधन के िमय मल
ू उपबंध में ''छि माि'' शब्द थे परं तु 1976 के िंशोधन द्िारा छि

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माि को ''तीन माि'' क्रकया गया िै ।

32. विननहदव ष्ट पालन के सलए दाम्पत्य अधधकारों के प्रत्यास्थापन के सलए या व्यादे श के सलए डििी-
(1) जिां उि पिकार को, र्जिके विरुद्ध िंविदा के विननहदि ष्ट पालन के सलए, या दाम्पत्य अधधकारों
के प्रत्यास्थापन के सलए या व्यादे श के सलए कोई डडिी पाररत की गई िै उि डडिी के आज्ञानि
ु तिन के सलए
अििर समल चुका िै और उिका आज्ञानि
ु तिन करने में िि जानबझ
ू कर अिफल रिा िै ििा िि डडिी
[दाम्पत्य अधधकारों के प्रत्यास्थापन के सलए डडिी की दशा में उिकी िम्पवि की कुकी के द्िारा या िंविदा
1

के विननहदिष्ट पालन के सलए या व्यादे श के सलए डडिी की दशा में सिविल कारागार में उिके ननरोध द्िारा
या उिकी िम्पवि की कुकी द्िारा, या दोनों र नत िे प्रित
ृ की जा िकेगी ।
(2) जिां िि पिकार र्जिके विरुद्ध विननहदि ष्ट पालन के सलए या व्यादे श के सलए डडिी पाररत की गई
िै , कोई ननगम िै ििा डडिी उि ननगम की िम्पवि की कुकी द्िारा या न्यायालय की इजाजत िे उिके
ननदे शकों या अन्य प्रधान अधधकाररयों के सिविल कारागार में ननरोध द्िारा या कुकी और ननरोध दोनों र नत
िे प्रिि
ृ की जा िकेगी ।
(3) जिां उपननयम (1) या उपननयम (2) के अधीन की गई कोई कुकी 2[छि माि] के सलए प्रित
ृ रि
चक
ु ी िै ििां यहद ननणीतऋणी ने डडिी का आज्ञानि
ु तिन नि ं क्रकया िै और डडिीदार ने कुकि की गई िम्पवि
के वििय क्रकए जाने के सलए आिेदन क्रकया िै तो ऐिी िम्पवि का वििय क्रकए जाने के सलए आिेदन क्रकया
िै तो ऐिी िम्पवि का वििय क्रकया जा िकेगा और आगमों में िे न्यायालय डडिीदार को ऐिा प्रनतकर दे
िकेगा जो िि ठीक िमझे और बाकी (यहद कोई िो) ननणीतऋणी के आिेदन पर उिे दे गा ।
(4) जिां ननणीतऋणी ने डडिी का आज्ञानि
ु तिन कर हदया िै और उिका ननष्पादन करने के सलए िभी
खचों का िंदाय करने के सलए िि आबद्ध िै या जिां कुकी की तार ख िे 3[छि माि] का अन्त िोने तक
िम्पवि के वििय क्रकए जाने के सलए कोई आिेदन नि क्रकया गया िै या यहद क्रकया गया िै तो नामंजूर
कर हदया गया िै ििां कुकी नि ं रि जाएगी ।
(5) जिां िंविदा के विननहदिष्ट पालन की या व्यादे श की क्रकिी डडिी का आज्ञानि
ु तिन नि ं क्रकया गया िै
ििा न्यायालय पि
ू ोक्ि िभी आदे सशकाओं के या उनमें िे क्रकिी के भी बदले में या उनके िाथ-िाथ ननदे श
दे िकेगा क्रक िि कायि र्जिके क्रकए जाने की अपेिा की गई थी, जिां तक िो िके, डडिीदार या न्यायालय
द्िारा ननयक्
ु त क्रकए गए क्रकिी अन्य व्यर्क्त द्िारा ननणीतऋणी के खचे पर क्रकया जा िकेगा और कायि कर
हदए जाने पर जो िि उपगत िुए िों िे ऐिी र नत िे असभननर्श्चत क्रकए जा िकेंगे जो न्यायालय ननहदष्ट
करे और इि प्रकार ििल
ू क्रकए जा िकेंगे मानो िे डडिी में ि िर्म्मसलत िों ।

1. 1923 के अधधननयम िं. 29 की धारा 2 द्िारा अन्तःस्थावपत क्रकया गया ।


2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 72 द्िारा (1.2.1977 िे) '' एक िषि'' के स्थान पर
प्रनतस्थावपत |
3. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 72 द्िारा (1.2.1977 िे) ''एक िषि'' के स्थान पर
प्रनतस्थावपत गया ।

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1
[स्पष्टीकरण- शंकाओं को दरू करने के सलए यि घोषणा की जाती िै क्रक ''िि कायि र्जिके क्रकए जाने
की अपेिा की गई थी'' के अंतगित प्रनतषेधात्मक तथा आज्ञापक आदे श आते िैं ।]

1. 2002 के अधधननयम िं. 22 की धारा 14 द्िारा (1-7-2002 िे) अंत स्थावपत ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


म. प्र. उच्च न्यायालय दारा िंशोधन (16.9.1980)- ननयम 32 के उपननयम (3) में (1) शब्द ''
एक िषि '' को शब्द '' तीन मािों '' िे प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
(2) शब्दों '' और न्यायालय भी अच्छे दसशित कारण िे एक िषि िे अनधधक कुकी प्रभाि में बने
रिने के सलए िमय का विस्तार कर िकेगा । '' को अंतस्थावपत क्रकया गया ।
(3) उपननयम (4) में शब्दों '' एक िषि '' को शब्द '' तीन मािों या ऐिा अन्य िमय जो उपननयम
(3) के अन्तगित न्यायालय द्िारा ननयत क्रकया जा िके '' िे प्रनतस्थावपत कीर्जए ।
इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- आदे श 21 ननयम 32 के उपननयम (3) में इन शब्दों को
बढ़ाया गया िै '' न्यायालय अच्छे कारण िे िमय विस्तार कर िकेगा '' ।
[अधधिच
ू ना िमांक 4084/35(क)-3(7) हदनांक 24.7.1926 ।]

पटना उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- आदे श 21 ननयम 32 में उपननयम (3) में '' एक िषि के
सलए '' के स्थान पर '' छि माि अथिा ऐिी अन्य अिधध िंपण
ू ि तौर पर एक िषि िे अनाधधक िोने िाल
जो िमधु चत कारणों पर दसशित िो न्यायालय द्िारा ननयत की जा िकेगी' ' क्रकया गया िै ।
'' (4) न्यायालय िमधु चत कारण िे, उपननयम (2) और ((3) में िणणित तीन मािों की अिधध को
िंपण
ू ि तौर पर छि माि िे अनाधधक िोने िाल ऐिी अिधध मे विस्तार कर िकेगा जो यि उपयक्
ु त
िमझे” ।

33. दाम्पत्य अधधकारों के प्रत्यास्थापन की डिक्रियों का ननष्पादन करने में न्यायालय का


वििेकाधधकार- (1) ननयम 32 में क्रकिी बात के िोते िुए भी, न्यायालय दाम्पत्य अधधकार के प्रत्यास्थापन
की डडिी 1[पनत के विरुद्ध] पाररत करते िमय या तत्पश्चात ् क्रकिी भी िमय, यि आदे श कर िकेगा क्रक
डडिी 2[इि ननयम में उपबर्न्धत र नत िे ननष्पाहदत की जाएगी] ।
(2) जिां न्यायालय ने उपननयम (1) के अधीन कोई आदे श क्रकया िै 3*** ििां यि आदे श कर िकेगा
क्रक डडिी या आज्ञानि
ु तिन ऐिी अिधध के भीतर न क्रकए जाने की दशा में जो इि ननसमि ननयत की जाए,
ननणीतऋणी डडिीदार को ऐिे कासलक िंदाय करे गा जो न्यायिंगत िों और यहद न्यायालय यि ठीक िमझे
तो िि ननणीतऋणी िे अपेिा करे गा क्रक िि न्यायालय के िमाधानप्रद रूप में डडिीदार को ऐिे कासलक
िंदाय प्रनतभत
ू करे ।
(3) न्यायालय धन के कासलक िंदाय के सलए उपननयम (2) के अधीन क्रकए गए क्रकिी भी आदे श
में फेरफार या उपान्तर िंदाय के िमयों को पररिनतित करके या रकम को बढा या घटा करके िमय-िमय
पर कर िकेगा या इि प्रकार िंदाय क्रकए जाने के सलए आहदष्ट परू े धन या उिके क्रकिी भी भाग की बाबत

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उिे अस्थायी रुप िे ननलर्म्बत कर िकेगा और उिे पण
ू त
ि : या भागत: ऐिे पन
ु : प्रिनतित कर िकेगा जो िि
न्यायिंगत िमझे ।
(4) इि ननयम के अधीन िंदि क्रकए जाने के सलए आहदष्ट कोई भी धन इि प्रकार ििल
ू क्रकया जा
िकेगा मानो िि धन के िदाय की डडिी के अधीन िंदेय िो ।

1. 1923 के अधधननयम िं. 29 की धारा 3 द्िारा अन्तःस्थावपत क्रकया गया ।


2. 1923 के अधधननयम िं. 29 की धारा 3 द्िारा ''कारागार में ननरोध दारा ननष्पाहदत नि ं की
जाएगी'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
3. 1923 के अधधननयम िं. 29 की धारा 3 द्िारा ''और डडिीदार पत्नी िै '' शब्दो का लोप ।

34. दस्तािेज के ननष्पादन या परिाम्य सलखत के पष्ृ ठांकन के सलए डििी- (1) जिां डडिी क्रकिी
दस्तािेज के ननष्पादन के सलए या क्रकिी परिाम्य सलखत के पष्ृ ठांकन के सलए िै और ननणीतऋणी डडिी
का आज्ञानि
ु तिन करने में उपेिा करता िै या उिका आज्ञानि
ु तिन करने िे इकार करता िै ििा डडिीदार
डडिी के ननबन्धनों के अनि
ु ार दस्तािेज या पष्ृ ठांकन का प्रारूप तैयार कर िकेगा और उिे न्यायालय को
पररदि कर िकेगा ।
(2) तब न्यायालय ननणीतऋणी िे यि अपेिा करने िाल िच
ू ना के िाथ प्रारुप की तामील
ननणीतऋणी पर कराएगा क्रक िि अपने आिेप (यहद कोई िो) इतने िमय के भीतर करे र्जतना न्यायालय
इि ननसमि ननयत करे ।
(3) जिां ननणीतऋणी प्रारूप के िम्बन्ध में आिेप करता िै ििा उिके आिेप ऐिे िमय के भीतर
सलणखत रूप में कधथत क्रकए जाएंगे और न्यायालय प्रारूप को अनम
ु ोहदत या पररिनतित करने िाला ऐिा
आदे श करे गा जो िि ठीक िमझे ।
(4) डडिीदार प्रारूप की एक प्रनत ऐिे पररितिनों िहित (यहद कोई िो), जो न्यायालय ने ननहदि ष्ट
क्रकए िों, उधचत स्टाम्प-पत्र पर, यहद तत्िमय प्रिि
ृ विधध द्िारा ऐिा स्टाम्प अपेक्षित िो, न्यायालय को
पररदि करे गा, और न्यायाधीश या ऐिा अधधकार जो इि ननसमि ननयक्
ु त क्रकया जाए, ऐिे पररदि दस्तािेज
को ननष्पाहदत करे गा ।
(5) इि ननयम के अधीन दस्तािेज का ननष्पादन या परिाम्य सलखत का पष्ृ ठांकन ननम्नसलणखत
प्ररुप में िो िकेगा, अथाित िै ---
“ङ च द्िारा क ख के विरुद्ध िाद में क ख, की ओर िे .... न्यायालय का न्यायाधीश (या
यथार्स्थनत) ग घ'' और उिका िि प्रभाि िोगा जो उिे ननष्पादन करने या पष्ृ ठांकन करने के सलए आहदष्ट
पिकार द्िारा दस्तािेज के ननष्पादन या परािाम्य सलखत के पष्ृ ठांकन का िोता ।
1
[(6) (क) जिां दस्तािेज का रर्जस्र करण तत्िमय प्रित
ृ क्रकिी विधध के अधीन अपेक्षित िै ििां
न्यायालय या न्यायालय का ऐिा अधधकार जो न्यायालय द्िारा इि ननसमि प्राधधकृत क्रकया जाए, ऐिी
विधध के अनि
ु ार दस्तािेज का रर्जस्र करण कराएगा ।
(ख) जिां दस्तािेज का रर्जस्र करण इि प्रकार अपेक्षित नि ं िै क्रकन्तु डडिीदार उिका
रर्जस्र करण कराना चािता िै ििा न्यायालय ऐिा आदे श कर िकेगा जो िि ठीक िमझे ।

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(ग) जिां न्यायालय क्रकिी दस्तािेज के रर्जस्र करण के सलए कोई आदे श करता िै ििां िि
रर्जस्र करण के व्ययों के बारे में ऐिा आदे श कर िकेगा जो िि ठीक िमझे ।
1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 72 द्िारा (1.2.1977 िे) उपननयम (6) के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
35. स्थािर िम्पवि के सलए डििी- (1) जिां डडिी क्रकिी स्थािर िम्पवि के पररदान के सलए िै ििां
उिका कब्जा उि पिकार को र्जिे िि न्यायननणीत क्रकया गया िै या ऐिे व्यर्क्त को र्जिे िि अपनी
ओर िे पररदान प्राप्त करने के सलए ननयक्
ु त करे , और यहद आिश्यक िो तो डडिी द्िारा आबद्ध क्रकिी
ऐिे व्यर्क्त को जो िम्पवि को खाल करने िे इंकार करता िै , िटा करके पररदि क्रकया जाएगा ।
(2) जिााँ डडिी स्थािर िम्पवि के िंयक्
ु त कब्जे के सलए िै ििां िम्पवि में के क्रकिी ििजदृश्य
स्थान पर िारण्ट की प्रनत को लगाकर और डडिी के िार को क्रकिी िवु िधाजनक स्थान पर डोंडी वपटिा कर
या अन्य रूहढक ढं ग िे उद्घोवषत करके ऐिे कब्जे का पररदान क्रकया जाएगा ।
(3) जिां क्रकिी ननमािण या अिाते के कब्जे का पररदान क्रकया जाना िै और कब्जा रखने िाला
व्यर्क्त डडिी द्िारा आबद्ध िोते िुए ििां तक अबाध पिुंच नि ं िोने दे ता िै ििां न्यायालय दे श की रूहढ़यों
के अनि ु ार लोगों के िामने न आने िाल स्त्री को यर्ु क्तयक्
ु त चेतािनी दे कर और िट जाने की िवु िधा दे ने
के पश्चात ् अपने अधधकाररयों के माध्यम िे क्रकिी ताले या चटकनी को िटा िकेगा या खोल िकेगा या
क्रकिी द्िार को तोड़ कर खोल िकेगा या डडिीदार को कब्जा दे ने के सलए आिश्यक क्रकिी भी अन्य कायि
को कर िकेगा ।
36. जब स्थािर िम्पवि असिधारी के अधधिोग में िै तब ऐिी िम्पवि के पररदान के सलए डििी-
जिां डडिी क्रकिी ऐिी स्थािर िम्पवि के पररदान के सलए िै जो ऐिे असभधार या अन्य व्यर्क्त के
अधधभोग में िै जो उि पर अधधभोग रखने का िकदार िै और डडिी द्िारा इि बात के सलए आबद्ध नि ं िै
क्रक ऐिा अधधभोग त्याग दे ििां न्यायालय यि आदे श दे गा क्रक िम्पवि में के क्रकिी ििजदृश्य स्थान पर
िारण्ट की प्रनत को लगाकर और िम्पवि के िम्बन्ध में डडिी के िार को क्रकिी िवु िधाजनक स्थान पर
डोंडी वपटिा कर या अन्य रूहढक ढं ग िे अधधभोगी को उदघोवषत करके पररदान क्रकया जाए ।
धगरफ्तारी और सिविल कारागार में ननरोध
कारागार में ननरुद्ध क्रकए जाने के विरुद्ध िे तक
ु दसशवत करने के सलए ननणीतऋणी को अनज्ञ
ु ा दे ने
की िैिेविक शस्तत- (1) इन ननयमों में क्रकिी बात के िोते िुए भी, जिां धन के िदाय के सलए डडिी का
ननष्पादन ऐिे ननणीतऋणी की जो आिेदन के अनि ु रण में धगरफ्तार क्रकए जाने के दानयत्ि के अधीन िै ,
धगरफतार और सिविल कारागार में ननरोध के द्िारा करने के सलए आिेदन िै ििां न्यायालय उिकी
धगरफ्तार के सलए िारण्ट ननकालने के बदले उििे यि अपेिा करने िाल िच
ू ना उिके नाम ननकालेगा क्रक
उि हदन को जो उि िच
ू ना में विननहदि ष्ट क्रकया जाएगा, िि न्यायालय में उपिजात िो और िे तक
ु दसशित
करे क्रक सिविल कारागार को उिे क्यों न िप
ु द
ु ि कर हदया जाए :
1
[परन्तु यहद न्यायालय का शपथ पत्र द्िारा या अन्यथा यि िमाधान िो जाता िै क्रक यि
िम्भाव्यता िै क्रक ननणीतऋणी डडिी के ननष्पादन में विलम्ब करने के उददे श्य िे फरार िो जाए या
न्यायालय की अधधकाररता की स्थानीय िीमाओं को छोड़ दे या उिके ऐिा करने का पररणाम यि िोगा क्रक
डडिी के ननष्पादन में विलम्ब िोगा तो ऐिी िच
ू ना दे ना आिश्यक नि ं िोगा ।]

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(2) जिां िच
ू ना के आशानि
ु तिन में उपिंजानत न की जाए ििां यहद डडिीदार ऐिा अपेक्षित करे तो
न्यायालय ननणीतऋणी की धगरफ्तार के सलए िारण्ट ननकालेगा ।
1936 के अधधननयम िं. 21 की धारा 3 द्िारा अन्त: स्थावपत क्रकया गया ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- आदे श 21 ननयम 37 में उपननयम (1) मे ''िकेगा' को
''कर िकेगा'' क्रकया गया िै ि परं तक
ु िटाया िै । (अधधिच
ू ना िमांक 43/29 हदनांक 1.6.1957 |]

पटना उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- पटना उच्च न्यायालय द्िारा भी ''िकेगा'' के स्थान पर ''कर
िकेगा'' क्रकया िै । (यि िंशोधन हदनांक 5.4.1961 िे क्रकया गया िै ।

38. धगरफ्तारी के िारण्ट में ननणीतऋणी के लाए जाने के सलए ननदे श िोगा- ननणीतऋणी की
धगरफ्तार के िारण्ट में उि अधधकार को र्जिे उिका ननष्पादन न्यस्त क्रकया गया िै , यि ननदे श िोगा क्रक
िि उिे न्यायालय के िमि िवु िधानि
ु ार पण
ू ि शीघ्रता िे लाए यहद ननणीतऋणी िि रकम र्जिे दे ने के सलए
िि आहदष्ट क्रकया गया िै , उि पर ऐिे ब्याज के और यहद कोई खचाि िो तो ऐिे खचे के िहित, र्जिके
सलए िि दायी िै , पिले ि िंदि नि ं कर दे ता िै ।

39. जीिन-ननिावि ििा-- (1) जब तक और र्जि िमय तक डडिीदार ने न्यायालय में ऐिी रासश
जमा न कर द िो, जो न्यायाधीश ननणीतऋणी की धगरफ्तार िे लेकर उिके न्यायालय के िमि लाए जा
िकने तक उिके जीिन ननिािि के सलए पयािप्त िमझता िै , तब तक कोई ननणीतऋणी डडिी के ननष्पादन
में धगरफतार नि ं क्रकया जाएगा |
(2) जिां ननणीतऋणी डडिी के ननष्पादन में सिविल कारागार को िप
ु द
ु ि क्रकया जाता िै ििा
न्यायालय उिके जीिन-ननिािि के सलए ऐिा मासिक भिा ननयत करे गा र्जतने के सलए िि धारा 57 के
अधीन ननयतमापमानों के अनि
ु ार िकदार िै या जिां ऐिे कोई मापमान ननयत नि ं क्रकए गए िैं ििां
र्जतना उिके विचार में उि िगि के बारे में पयािप्त िो र्जि िगि का ननणीतऋणी िै ।
(3) न्यायालय द्िारा ननयत क्रकया गया मासिक भिा उि पिकार द्िारा, र्जिके आिेदन पर
ननणीतऋणी धगरफ्तार क्रकया गया िै , अधग्रम मासिक िंदायों द्िारा िर एक माि में प्रथम हदन के पि
ू ि हदया
जाएगा ।
(4) पिला िंदाय न्यायालय के उधचत अधधकार को चालम
ू ाि के ऐिे भाग के सलए क्रकया जाएगा जो
ननणीतऋणी के सिविल कारागार को िप
ु द
ु ि क्रकए जाने के पि
ू ि शेष िै और पश्चातिती
् िंदाय (यहद कोई िो)
सिविल कारागार के भारिाधक अधधकार को क्रकए जाएंगे ।
(5) सिविल कारागार में ननणीतऋणी के जीिन-ननिािि के सलए डडिीदार द्िारा िंवितररत की गई
रासशयां िाद के खचे िमझी जाएगी:
परन्तु ननणीतऋणी ऐिे िंवितररत की गई क्रकिी भी रासश के सलए न तो सिविल कारागार में
ननरुद्ध क्रकया जाएगा और न धगरफतार क्रकया जाएगा ।

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उच्च न्यायालय िंशोधन
म.प्र. उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- आदे श 21 ननयम 39 में ननम्नानि
ु ार िंशोधन क्रकए गए (1)
उपननयम (1) के अंत में ननम्नानि
ु ार और जोडा गया-
''और ननणित ऋण के प्रििन की कास्ट उिके ननरुद्ध स्थल िे न्यायालय भिन तक की''
(2) उपननयम (4) के स्थान पर ननम्न उपननयम (4) प्रनतस्थावपत क्रकया गया िै -
'' (4) ऐिी रासश (यहद कोई िो) जो न्यायालय ननणीत ऋणी न्यायालय भिन िे सिविल ननरोध में
और उिकी ननयर्ु क्त पर सिविल ननरोध िे उिके िामान्य ननिाि स्थान पर ननणीत ऋणी के प्रििन व्यय
और जीिन ननिािि के सलए िमधु चत िो, चालू माि के ऐिे भाग के सलए जो अव्यतीत रिता िै , के उपननयम
(3) के अंतगित भग
ु तान के िाथ, ननणीत ऋणी को सिविल ननरोध भेजने के पि
ू ि न्यायालय के
उधचत अधधकार को भग
ु तान की जािेगी और पश्चातिती
् भग
ु तान (यहद कोई िो) सिविल ननरोध के प्रभार में
िोने िाले अधधकार को भग
ु तान क्रकया जाएगा ।''
(3) उपननयम 5 के स्थान पर ननम्न उपननयम (5) प्रनतस्थावपत क्रकया गया िै -
'' (5) सिविल कारागार में ननणीत ऋणी के जीिन-ननिािि ि प्रििण के खचे (यहद कोई िो) के सलए
डडिीदार द्िारा िंवितररत की गई रासशयााँ बाद के खचे िमझी जािें गी ।
परं तु ननणीत ऋणी ऐिे िंवितररत की गई क्रकिी भी रासश केसलए न तो सिविल कारागार मे ननरुद्ध
क्रकया जाएगा और न धगरफ्तार क्रकया जाएगा ।''

इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- आदे श 21 ननयम 39 में उपननयम (5) में के शब्दों
''सिविल कारागार'' को विलोवपत क्रकया गया िै । [अधधिच
ू ना िमांक 4084/35 (क)-3-(7), 24.7.1926]

पटना उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- आदे श 21 ननयम 39 के उपननयम (6) में प्रथम पंर्क्त में
आए शब्द ''सिविल कारागार'' को विलोवपत क्रकया गया िै ।

[40. िच
1
ू ना के आज्ञानि
ु तवन में या धगरफ्तारी के पश्चात ् ननणीतऋणी के उपिंजात िोने पर
कायविाहियां- (1) जब ननणीतऋणी ननयम 37 के अधीन ननकाल गई िच
ू ना के आज्ञानि
ु तिन में न्यायालय
के िामने उपिंजात िोता िै या धन के िंदाय की डडिी के ननष्पादन में धगरफ्तार क्रकए जाने के पश्चात ्
न्यायालय के िामने लाया जाता िै तब न्यायालय डडिीदार को िन
ु ने के सलए अग्रिर िोगा और ऐिी िभी
िाक्ष्य लेगा जो ननष्पादन के सलए अपने आिेदन के िमथिन में उिके द्िारा पेश क्रकया जाए और तब
ननणीतऋणी को िे तक
ु दसशित करने का अििर दे गा क्रक िि सिविल कारागार को क्यों न िप
ु द
ु ि कर हदया
जाए ।
(2) उपननयम (1) के अधीन या तो जाच की िमार्प्त लर्म्बत रिने तक न्यायालय स्िवििेकानि
ु ार
आदे श कर िकेगा क्रक ननणीतऋणी न्यायालय के अधधकार की असभरिा में ननरुद्ध क्रकया जाए या उिके
द्िारा न्यायालय को िमाधानप्रद रूप में इि बात की प्रनतभनू त हदए जाने पर क्रक अपेक्षित क्रकए जाने पर
िि उपिंजात िोगा न्यायालय उिे छोड िकेगा ।

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(3) उपननयम (1) के अधीन जांच की िमार्प्त पर न्यायालय धारा 51 के उपबन्धों और इि िंहिता
के अन्य उपबन्धों के अधीन रिते िुए ननणीतऋणी के सिविल कारागार मे ननरुद्ध क्रकए जाने का आदे श कर
िकेगा और उि दशा में जब िि पिले िे ि धगरफ्तार में नि ं िै उिे धगरफ्तार कराएगा:
परन्तु ननणीतऋणी को डडिी की तर्ु ष्ट करने का अििर दे ने के सलए न्यायालय ननरोध का आदे श
करने के पिले ननणीतऋणी को न्यायालय के अधधकार की असभरिा में पन्द्रि हदन िे अनधधक विननहदि ष्ट
अिधध के सलए रिने दे िकेगा या उिके विननहदि ष्ट अिधध के अििान पर उपिंजात िोने के सलए, यहद
डडिी की तर्ु ष्ट उिने पिले ि न कर द गई िो तो, उिके द्िारा न्यायालय को िमाधानप्रद रूप में
प्रनतभनू त हदए जाने पर उिे छोड़ िकेगा ।
(4) इि ननयम के अधीन छोड़ा गया ननणीतऋणी पन
ु : धगरफतार क्रकया जा िकेगा ।
(5) जब न्यायालय उपननयम (3) के अधीन ननरोध का आदे श न करे तब िि आिेदन को नामंजरू
करे गा और यहद ननणीतऋणी धगरफ्तार में िो तो उिको छोड़े जाने का ननदे श दे गा ।]

1. 1936 के अधधननयम िं. 21 की धारा 4 द्िारा मल


ू ननयम 40 के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया
गया ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


म.प्र. उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- अधधिच
ू ना िमांक 3409 हदनांक 29.6.43 के द्िारा
उपननयम (6), (7), (8) अंतःस्थावपत क्रकए गए िैं, जो ननम्नानि
ु ार िै -
'' (6) जब ननणीत ऋणी उपननयम (2) या उपननयम (3) के परं तक
ु के अंतगित न्यायालय के
अधधकार की असभरिा में बनाए रखने का आदे श हदया जाता िै , न्यायालय डडिी िोपडर को ननरुद्ध की
विननहदिष्ट या िंभाव्य लंबाई के िंबध
ं में ऐिी रासश जो इि बाबत उपबंध करे , जमा करने का ननदे श दे गा-
(क) ननणीत ऋणी के आजीविका-ननिािि के सलए उि दर िे र्जिके सलए िि धारा 57 के अंतगित
ननयम मानकों पर िकदार िै , और
(ख) न्यायालय अधधकार र्जिकी असभरिा में ननणीत ऋणी को रखा जाना िै ऐिी शप
ु क (लार्जंग
व्ययों को शासमल करते िुए) जो इि बाबत न्यायालय ननयत करे , को भगु तान करने के सलए :
परं तु (I) आजीिन-ननिािि भिा और न्यायालय अधधकार को िंदाय योग्य शप
ु क एक िमय में एक
माि िे अधधक को ििल
ू नि ं की जाएगी, और
यि क्रक न्यायालय िमय-िमय पर डडिी िोपडर िे ऐिी अन्य रासश जमा करने की अपेिा कर
िकेगा, जो यि आिश्यक मानता िै ।
(7) यहद डडिी िोपडर उपरोक्त उपननयम (6) के अंतगित यथा अपेक्षित कोई रासश जमा करने में
विफल रिता िै , न्यायालय आिेदन को अस्िीकृत कर िकता िै और ननणीत ऋणी को ननमक्
ुि त करने का
आदे श दे िकता िै ।
(8) उपननयम (6) के अंतगित डडिी िोपडर द्िारा िंवितररत रासश िाद का खचि मानी जािेगी । परं तु
ननणीत ऋणी इि प्रकार िंवितररत क्रकिी रासश के कारण सिविल ननरोध में नि ं रखा जाएगा या धगरफ्तार
नि ं क्रकया जाएगा ।''

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1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 72 द्िारा (1.2.1977 िे) ननयम 41 को उि ननयम के
उपननयम (1) के रूप में

िम्पवि की कुकी
41. ननणीतऋणी की अपनी िम्पवि के बारे में उिकी परीक्षा- 1[(1) जिां डडिी धन के िंदाय के
सलए िै ििां डडिीदार न्यायालय िे इि आदे श के सलए आिेदन कर िकेगा क्रक-
(क) ननणीतऋणी की, अथिा
(ख) उि दशा में 1[र्जिमें ननणीतऋणी ननगम िो] उिके क्रकिी अधधकार की, अथिा
(ग) क्रकिी भी अन्य व्यर्क्त की,
यि मौणखक पर िा की जाए क्रक क्या ननणीतऋणी को कोई ऋण शोध्य िैं और िैं तो कौन िे िैं
और क्या ननणीतऋणी की ऐिी कोई अन्य िंपवि या िाधन िैं र्जनिे डडिी की तर्ु ष्ट की जा िके और िैं
तो कौन िे िैं और न्यायालय ऐिे ननणीतऋणी या अधधकार या अन्य व्यर्क्त की िार्जर और उिकी
पर िा के सलए और क्रकन्ि ं बहियों या दस्तािेजों के पेश क्रकए जाने के सलए आदे श कर िकेगा ।

2
[(2) जिां धन के िंदाय के सलए कोई डडिी तीि हदन की अिधध तक अतष्ु ट रि िै ििां
न्यायालय, डडिीदार के आिेदन और उपननयम (1) के अधीन अपनी शर्क्तयों पर प्रनतकूल प्रभाि डाले बबना,
आदे श द्िारा, ननणीतऋणी िे या जिां ननणीतऋणी ननगम िै ििां उिके क्रकिी अधधकार िे यि अपेिा कर
िकेगा क्रक िि ननणीतऋणी की आर्स्तयों की विसशर्ष्टयों का कथन करने िाला एक शपथ-पत्र दें ।

(3) उपननयम (2) के अधीन हदए गए क्रकिी आदे श की अिज्ञा की दशा में , आदे श दे ने िाला
न्यायालय या कोई ऐिा न्यायालय र्जिे कायििाि अन्तररत की गई िै , ननदे श दे िकेगा क्रक आदे श की
अिज्ञा करने िाले व्यर्क्त को सिविल कारागार में उतनी अिधध के सलए जो तीन माि िे अनधधक की िो
िकेगी, तब तक ननरुद्ध क्रकया जाए जब तक क्रक ऐिी अिधध के अििान िे पि
ू ि न्यायालय उिको छोड़े
जाने का ननदे श न दे ।

पन
ु ःिंख्यांक्रकत क्रकया गया ।
1. 1976 के अधधननयम द्िारा (1.2.1977 िे) ''ननगम की दशा मे'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत
क्रकया गया ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 72 द्िारा (1-2-1977 िे अन्तःस्थावपत क्रकया गया

42. िाटक या अन्तःकालीन लािों या तत्पश्चात ् अन्य बातों के सलए, स्जिकी रकम िाद में अिधाररत िोनी
िै , डििी की दशा में कुकी-- जिां डडिी भाटक या अन्तःकाल न लाभों या क्रकिी अन्य बात के सलए जांच
ननहदि ष्ट करती िै ििां ननणीतऋणी की िम्पवि इिके पि
ू ि क्रक ननणीतऋणी द्िारा शोध्य रकम असभननर्श्चत
कर ल गई िो ऐिे कुकि की जा िकेगी जैिे धन के िंदाय की मामल
ू डडिी की दशा में कुकि की जा

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िकती िै ।

43. ननणीतऋणी के कब्जे में की ऐिी जंगम िम्पवि की कुकी जो कृवष उपज िे सिन्न िै - जिां
कुकि की जाने िाल िम्पवि ननणीतऋणी के कब्जे में की कृवष उपज िे सभन्न जंगम िम्पवि िै ििा कुिी
िास्तविक असभग्रिण के द्िारा की जाएगी और कुकी करने िाला अधधकार िम्पवि को स्ियं अपनी
असभरिा में या अपने अधीनस्थों में िे एक की असभरिा में रखेगा और उिकी िम्यक् असभरिा के सलए
उिरदायी िोगा ।
परन्तु जब असभगि
ृ त िम्पवि शीरतया और प्रकृत्या ियशील िै या जब उिे असभरिा में रखने का
व्यय उिके मप
ू य िे ज्यादा िोना िंभाव्य िै तब कुकि करने िाला अधधकार उिका तरु न्त ि वििय कर
िकेगा ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


म.प्र. उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- ननम्न रुप में ननयम 43 को प्रनतस्थावपत क्रकया गया-
पटना उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- आदे श 21 ननयम 43 में आए इन शब्दों “िंपवि को स्ियं
अपनी असभरिा मे या अपने अधीनस्थों में िे एक की असभरिा में '' विलोवपत क्रकया गया िै ।

उपरोक्त िंशोधन के अलािा पटना में निीन ननयम 43-क भी जोड़ा गया िै ।

1
[43क. जंगम िम्पवि की असिरक्षा- (1) जिां कुकि की गई िम्पवि पशध
ु न, कृवष उपकरण या
अन्य ऐिी चीजें िै जो िवु िधापि
ू क
ि िटाई नि ं जा िकती और कुकि करने िाला अधधकार ननयम 43 के
परन्तक
ु के अधीन कायि नि ं कर िकता िै ििां िि, ननणीतऋणी की या डडिीदार की या ऐिी िम्पवि में
हितबद्ध िोने का दािा करने िाले क्रकिी अन्य व्यार्क्त की प्रेरणा पर उिे उि गांि या स्थान में जिां
उिकी कुकी की गई िै , क्रकिी प्रनतर्ष्ठत व्यर्क्त की असभरिा में (र्जिे इिमें इिके पश्चात ् ''असभरिक''
किा गया िै ) छोड़ िकेगा ।
(2) यहद असभरिक, िम्यक् िच
ू ना के पश्चात ् ऐिी िम्पवि को न्यायालय द्िारा बताए गए स्थान
पर उि अधधकार के िमि जो उि प्रयोजन के सलए प्रनतननयक्
ु त क्रकया जाए, पेश करने में या उिे उि
व्यर्क्त को, र्जिके पि में न्यायालय द्िारा प्रत्याितिन का आदे श क्रकया गया िै , प्रत्यािनतित करने में
अिफल रिता िै या यहद िि िम्पवि इि प्रकार पेश या प्रत्यािनतित क्रकए जाने पर िैिी ि दशा में नि ं िै
र्जि दशा में िि न्यस्त क्रकए जाने के िमय थी तो-
(क) असभरिक उि िानन या नक ु िान के सलए जो उिके व्यनतिम िे िुआ िो, डडिीदार,
ननणीतऋणी या क्रकिी अन्य व्यर्क्त को जो उिके प्रत्याितिन का िकदार पाया जाए, प्रनतकर िंदत करने के
दानयत्ि के अधीन िोगा, और
(ख) ऐिे दानयत्ि का प्रितिन-
(i) डडिीदार की प्रेरणा पर इि प्रकार क्रकया जा िकेगा मानों असभरिक धारा 145 के अधीन प्रनतभू
िो;

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(ii) ननणीतऋणी या ऐिे अन्य व्यर्क्त की प्रेरणा पर, ननष्पादन के सलए आिेदन क्रकए जाने पर,
क्रकया जा िकेगा; तथा
(ग) ऐिे दानयत्ि का अिधारण करने िाला कोई आदे श डडिी की तरि अपीलनीय िोगा ।]
1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 72 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्तःस्थावपत क्रकया गया

उच्च न्यायालय िंशोधन


म.प्र. उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- ननम्न रुप में 43-क अंतःस्थावपत की गई-
43-क. पशध
ु न की कुकी- जब पशध
ु न की कुकी के सलए आिेदन हदया जाता िै तो न्यायालय
अद्िधिावषिक तौर पर ननयत क्रकए गए दरों पर, या प्राय: यहद आिश्यक िो तो र्जला जज की मंजूर िे,
रकम को कुकी के िंभाव्य िमय िे वििय के िंभाव्य िमय तक के िंभाव्य िमय के सलए पशध
ु न के
रखरखाब के सलए अपेक्षित रासश को अधग्रम तौर पर नगद दे ने की मांग कर िकेगा अथिा इिके वििेक पर
ऐिी अिधध के भागों के सलए उिरिती मांगे कर िकेगा । दरों में णखलाने का व्यय, लाने ले जाने का व्यय
एिं अन्य िभी प्रभार जो क्रक पशध
ु न के रख-रखाब के सलए अपेक्षित िों शासमल िोंगे ।
(2) यहद ननणीतऋणी के अलािा क्रकिी अन्य व्यर्क्त को न्यसित क्रकया जाता िै तो डडिी िोपडर
द्िारा पशु के रख-रखाब के सलए भग
ु तान की गई रासश या इिका कोई भाग, न्यायालय के वििेक पर,
पशध
ु न के िंरिक को रखरखाब के सलए भग
ु तान क्रकया जाएगा । दध
ू , अण्डे, आहद, यहद कोई िो, को
ननणीत ऋणी के लाभ के सलए या तो यथािंभि शीरता िे वििय क्रकया जा िकेगा या न्यायालय के वििेक
पर पशध
ु न के खचि के सलए मज
ु रा क्रकया जा िकेगा । (16.9.1960)

पटना उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- ननयम 43 के उपरांत ननम्न रुप में 43-क िमाविष्ट क्रकया
गया-

44. कृवष उपज की कुकी- जिां कुकि की जाने िाल िम्पवि कृवष उपज िै ििां कुकी के िारण्ट की
एक प्रनत-
(क) उि दशा में , र्जिमें ऐिी उपज उगती फिल िै , उि भसू म पर लगाकर र्जिमें ऐिी फिल उगी
िै , अथिा
(ख) उि दशा में , र्जिमें ऐिी उपज काट जा चक
ु ी िै या इकटठी की जा चुकी िै , खसलयान में या
अनाज गािने के स्थान में या तदप
ू स्थान में या चारे के ढे र पर, र्जि पर या र्जिमें िि ननक्षिप्त की गई
िै ,
लगाकर और एक अन्य प्रनत उि गि
ृ के, र्जिमें ननणीतऋणी मामल
ू तौर िे ननिाि करता िै ,
बािर द्िार पर या क्रकिी अन्य ििजदृश्य भाग पर लगाकर, या न्यायालय की इजाजत िे उि गि
ृ के,
र्जिमें िि कारबार करता िै या असभलाभ के सलए स्ियं काम करता िै या र्जिके बारे में यि ज्ञात िै क्रक
ििा िि अर्न्तम बार ननिाि करता था या कारबार करता था या असभलाभ के सलए स्ियं काम करता था,
बािर द्िार पर या उिके क्रकिी अन्य ििजदृश्य भाग पर लगाकर कुकि की जाएगी और तब यि िमझा
जाएगा क्रक उपज न्यायालय के कब्जे में आ गई िै ।

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45. कुकव की गई कृवष उपज के बारे में उपबन्ध—(1) जिां कृवष उपज की कुिी की गई िै ििां
न्यायालय उिकी असभरिा के सलए ऐिा इन्तजाम करे गा जो िि पयािप्त िमझे और उगती फिल की कुिी
के सलए िर आिेदन में न्यायालय को ऐिे इन्तजाम करने के सलए िमथि करने के प्रयोजन िे िि िमय
विननहदिष्ट िोगा जब यि िंभाव्यता िै क्रक काटे जाने या इकटट की जाने के योग्य िो जाएगी ।
(2) ऐिी शतो के अधीन रिते िुए जो कुकी के आदे श में या क्रकिी पश्चातिती
् आदे श में न्यायालय
द्िारा इि ननसमि अधधरोवपत की जाए, ननणीतऋणी उपज की दे खभाल कर िकेगा, उिे काट िकेगा,
इकदठी कर िकेगा, भण्डार में रख िकेगा और उिके पकाने या परररिण के सलए आिश्यक कोई अन्य
कायि कर िकेगा और यहद ननणीतऋणी ऐिे िभी कायो को या उनमें िे क्रकिी को करने में अिफल रिता
िै तो डडिीदार न्यायालय की अनज्ञ
ु ा िे और ऐिी ि शतो के अधीन रिते िुए िभी कायो या उनमें िे
क्रकिी को या तो स्ियं कर िकेगा या अपने द्िारा इि ननसमि ननयक्
ु त क्रकिी व्यर्क्त द्िारा करा िकेगा
और डडिीदार द्िारा उपगत खचे ननणीतऋणी िे ऐिे ििल
ू क्रकए जा िकेंगे मानों िे डडिी के अन्तगित िों
या उिके भागरुप िों ।
(3) उगती फिल के रुप में कुकि की गई उपज के बारे में केिल इि कारण क्रक िि काट कर धरती
िे अलग कर ल गई िै यि न िमझा जाएगा क्रक िि कुकी के अधीन नि ं रि गई िै और न उिके बारें में
यि िमझा जाएगा क्रक उिकी पन
ु : कुकी करना अपेक्षित िै ।
(4) जिां उगती फिल की कुकी के सलए आदे श फिल के काटे जाने या इकटठे क्रकए जाने के योग्य
िोने की िंभाव्यता के बिुत िमय पि
ू ि हदया गया िै ििां न्यायालय आदे श का ननष्पादन ऐिे िमय के सलए
ननलर्म्बत कर िकेगा जो िि ठीक िमझे और कुकी के आदे श के ननष्पादन के लर्म्बत रिने तक फिल के
िटाने को प्रनतवषद्ध करने िाला अनतररक्त आदे श स्िवििेकानि
ु ार कर िकेगा ।
(5) िि उगती फिल जो अपनी प्रकृनत के कारण भण्डार में रखने योग्य नि ं िै , क्रकिी ऐिे िमय
पर इि ननयम के अधीन कुकि नि ं की जाएगी जो उि िमय िे पि
ू ि बीि हदन िे कम का िो र्जि िमय
पर उिके काटे जाने या इकट्ठी क्रकए जाने के योग्य िोने की िंभाव्यता िै ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


पटना उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- आदे श 21 ननयम 46 के उपननयम (1) के अंत के पण
ू ि
विराम को िटाकर ननम्न और जोडा गया िै - ''और आिेदक न्यायालय में ऐिी रासश दे गा जो िमय-िमय
पर न्यायालय द्िारा ऐिी व्यिस्थाओं के खचि अदा करने के सलए अपेक्षित िो'' ।
46. ऐिे ऋण, अंश या अन्य िम्पवि की कुकी जो ननणीत ऋणी के कब्जे में निीं िै - (1) (क) ऐिे
ऋण की दशा में जो परिाम्य सलखत के द्िारा प्रनतभत
ू नि ं िै ,
(ख) क्रकिी ननगम की पज
ू ीं में के अंश की दशा में ,
(ग) क्रकिी न्यायालय में ननक्षिप्त या उिकी असभरिा में की िम्पवि के सििाय क्रकिी अन्य ऐिी
जंगम िम्पवि की दशा में जो ननणीतऋणी के कब्जे में नि ं िै ,
कुकी-
(i) ऋण की दशा में जब तक क्रक न्यायालय का अनतररक्त आदे श न िों, तब तक लेनदार को ऋण

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की ििल
ू करने िे और ऋणी को उि ऋण को चुकाने िे; ,
(ii) अंश की दशा में उि व्यर्क्त को, र्जिके नाम में अंश उि िमय दजि िै उिे अन्तररत करने िे
या उि पर के क्रकिी लाभांश को प्राप्त करने िे-,
(iii) पि
ू ोक्त को छोडकर अन्य जंगम िम्पवि की दशा में उि पर कब्जा रखने िाले व्यर्क्त को उिे
ननणीतऋणी को दे ने िे, प्रनतवषद्ध करने िाले सलणखत आदे श द्िारा की जाएगी ।
(2) ऐिे आदे श की एक प्रनत न्याय-िदन के क्रकिी ििजदृश्य भाग पर लगाई जाएगी और एक
अन्य प्रनत ऋण की दशा में ऋणी को अंश को दशा में ननगम के उधचत अधधकार को, और (पि
ू ोक्त को
छोडकर) अन्य जगम िम्पवि की दशा में उि पर कब्जा रखने िाले व्यर्क्त को भेजी जाएगी ।
(3) उपननयम (1) के खण्ड (i) के अधीन प्रनतवषद्ध ऋणी अपने ऋण की रकम न्यायालय में जमा
कर िकेगा और ऐिे जमा करने िे िि िैिे ि प्रभािी तौर पर उन्मोधचत िो जाएगा जैिे िि उिे पाने का
िकदार पिकार को िंदाय करने िे उन्मोधचत िो जाता िै ।

1
[46क. गारननशी को िच
ू ना- (1) न्यायालय (बन्धक या प्रभार द्िारा प्रनतभत
ू ऋण िे सभन्न) ऐिे
ऋण की दशा में , र्जिकी ननयम 46 के अधीन कुकी की गई िै , कुकि कराने िाले लेनदार के आिेदन पर
ऐिे ऋण का िंदाय करने के दानयत्िाधीन गारननशी को िच
ू ना दे िकेगा र्जिमें उििे यि अपेिा की
जाएगी क्रक िि ननणीतऋणी को उिके द्िारा शोध्य ऋण या उिका इतना भाग र्जतना डडिी और ननष्पादन
के खचों को चुकाने के सलए पयािप्त िो, न्यायालय में जमा करे या उपिंजात िो तथा कारण दसशित करे क्रक
उिे िैिा क्यों नि ं करना चाहिए ।
(2) उपननयम (1) के अधीन कोई आिेदन शपथपत्र पर क्रकया जाएगा र्जिमें असभकधथत तथ्य
ित्यावपत िोंगे और यि कधथत िोगा क्रक असभिािी को विश्िाि िै क्रक गारननशी ननणीतऋणी का ऋणी िै ।
(3) जिां गारननशी ननणीतऋणी को उिके द्िारा शोध्य रकम या उिका इतना भाग र्जतना डडिी
और ननष्पादन के खचों को चुकाने के सलए पयािप्त िै , न्यायालय में जमा कर दे ता िै ििां न्यायालय ननदे श
दे िकेगा क्रक िि रकम डडिी की तर्ु ष्ट और ननष्पादन के खचों को चक
ु ाने के सलए डडिीदार को िंदि कर
द जाए ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 क धारा 72 द्िारा (1.2.1977 िे) ननयम 46क िे 46झ तक
अन्त स्थावपत क्रकया गया ।

46ख. गारननशी के विरुद्ध आदे श- जिां गारननशी ननणीतऋणी को उिके द्िारा शोध्य रकम या
उिका इतना भाग र्जतना डडिी की तर्ु ष्ट और ननष्पादन के खचों को चुकाने के सलए पयािप्त िै तरु न्त
न्यायालय में जमा नि ं करता िै और उपिंजात नि ं िोता िै तथा िच
ू ना के अनि
ु रण में कारण दसशित नि ं
करता िै ििां न्यायालय गारननशी को आदे श दे िकेगा क्रक िि ऐिी िच
ू ना के ननबन्धनों का अनप
ु ालन करे
और ऐिे आदे श पर ननष्पादन इि प्रकार क्रकया जा िकेगा मानो ऐिा आदे श उिके विरुद्ध डडिी िों ।

46ग. वििादर्ग्स्त प्रश्नों का विचारण- जिां गारननशी दानयत्ि के बारे में वििाद करता िै ििां

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न्यायालय आदे श का िकेगा क्रक दानयत्ि के अिधारण के सलए क्रकिी वििाद्यक या आिश्यक प्रश्न का
विचारण इि प्रकार क्रकया जाएगा मानो िि िाद में का वििाद्यक िो और ऐिे वििाद्यक के अिधारण पर
ऐिा आदे श या ऐिे आदे श करे गा जो िि ठीक िमझे :
परन्तु यहद िि ऋण र्जिके िम्बन्ध मे 46क के अधीन आिेदन क्रकया गया िै इतनी धनरासश के
बारे में िै जो न्यायालय की धन िबंधी अधधकाररता के बािर िै तो न्यायालय ननष्पादन के मामले को उि
र्जला न्यायाधीश के न्यायालय को भेजेगा र्जिके उक्त न्यायालय अधीनस्थ िै और तब र्जला न्यायाधीश
का न्यायालय या कोई अन्य ििम न्यायालय र्जिे िि र्जला न्यायाधीश द्िारा अंतररत क्रकया जाए उिे
उिी प्रकार ननपटाएगा मानो िि मामला प्रारम्भ में उिी न्यायालय में िंर्स्थत क्रकया गया िो ।

46घ. जिां ऋण अन्य व्यस्तत का िो ििां प्रक्रिया- जिां यि िझ


ु ाया जाता िै या िं भाव्य प्रतीत
िोता िै क्रक ऋण क्रकिी अन्य व्यर्क्त का िै या ऐिे ऋण पर क्रकिी अन्य व्यर्क्त का धारणाधधकार या
प्रभार अथिा उिमें अन्य हित िै ििां न्यायलय ऐिे अन्य व्यर्क्त को आदे श दे िकेगा क्रक िि उपिंजात िो
और ऐिे ऋण के बारे में अपने दािे की प्रकृनत और विसशर्ष्टयां यहद कोई िो कधथत करे और उिे िाबबत
करे ।

46ि. अन्य व्यस्तत के बारे में आदे श- ऐिे अन्य व्यर्क्त और क्रकिी ऐिे व्यर्क्त या व्यर्क्तयों को
र्जन्िें तत्पश्चात ् उपिंजात िोने का आदे श हदया जाए या जिा ऐिे अन्य या दि
ू रा व्यर्क्त या दि
ू रे व्यर्क्त
ऐिा आदे श, हदए जाने पर उपिंजात नि ं िोते िै ििा न्यायालय ऐिा आदे श कर िकेगा जो इिमें इिके
पि
ू ि उपबर्न्धत िै या ऐिे अन्य अथिा दि
ू रे व्यर्क्त या व्यर्क्तयों के यथार्स्थनत, धारणाधधकार, प्रभार या
हित के िम्बन्ध में ऐिे ननबन्धनों पर यहद कोई िों ऐिा अन्य आदे श या ऐिे अन्य आदे श दे िकेगा जो
िि ठीक और उधचत िमझे ।

46च. गारननवशों द्िारा क्रकया गया िंदाय विधधमान्य उन्मोचन िोगा- ननयम 46क के अधीन िच
ू ना
पर या पि
ू ािक्त क्रकिी आदे श के अधीन गारनन शो द्िारा क्रकया गया िदाय ननणीतऋणी और पि
ू ोक्त रुप िे
उपिंजात िोने के सलए आहदष्ट क्रकिी अन्य व्यर्क्त के विरुद्ध उि रकम के सलए जो िदि की गई िो या
उद्गि
ृ त की गई िो उिका विधधमान्य उन्मोचन िोगा चािे िि डडिी र्जिके ननष्पादन में ननयम 46क के
अधीन आिेदन क्रकया गया था या ऐिे आिेदन पर की गई कायििाहियों में पाररत आदे श अपास्त कर हदया
जाए या उलट हदया जाए ।

46छ. खचे- ननयम 46क के अधीन क्रकए गए क्रकिी आिेदन के और उििे िोने िाल क्रकिी
कायििाि के अथिा उिके आनष
ु धं गक खचे न्यायालय के वििेक के अधीन िोंगे ।

46ज. अपीलें- ननयम 46ख, ननयम 46ग या ननयम 46ड. के अधीन क्रकया गया कोई आदे श डडिी
के रुप में अपीलनीय िोगा ।

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46झ. परिाम्य सलखतों को लागू िोना- ननयम 46क िे 46झ तक के (र्जनके अन्तगित ये दोनों
ननयम भी िैं) उपबन्ध ननयम 51 के अधीन कुकि की गई परिाम्य सलखतों के िम्बन्ध में जिां तक िो िके
िैिे ि लागू िोंगे जैिे िे ऋणों के िम्बन्ध में लागू िोते िै ।]

47. जंगम िम्पवि में अंश की कुकी- जिां कुकि की जाने िाल िम्पवि ऐिी जंगम िम्पवि में
ननणीतऋणी के अंश या हित के रुप में िै जो ििस्िासमयों के रुप में उिकी और क्रकिी अन्य की िै ििां
कुकी ननणीतऋणी को अपने अंश या हित का अन्तरण करने िे या उिे क्रकिी भी रूप में भाररत करने िे
प्रनतवषद्ध करने िाल िच
ू ना द्िारा की जाएगी ।

48. िरकार या रे ल कम्पनी या स्थानीय प्राधधकारी के िेिक के िेतन या ििों की कुकी- (1) जिां
कुकि की जाने िाल िम्पवि िरकार के िेिक या रे ल कम्पनी या स्थानीय प्राधधकार के िेिक का 2[या
क्रकिी व्यापार या उद्योग में लगे क्रकिी ननगम के जो केन्द्र य, प्रान्तीय या राज्य अधधननयम द्िारा स्थावपत
क्रकया गया िो, िेिक का या कम्पनी अधधननयम, 1956 (1956 का 1) की धारा 617 में यथापररभावषत
क्रकिी-िरकार कम्पनी के िेिक का] िेतन या भिा िै ििां न्यायालय, चािे ननणीतऋणी या िंवितरक
अधधकार ऐिे न्यायालय के अधधकाररता की स्थानीय िीमाओं के भीतर िो या नि ं, या आदे श कर िकेगा
क्रक िि रकम, धारा 60 के उपबन्धों के अधीन रिते िुए, ऐिे िेतन या भिों में िे या तो एक िंदाय में या
मासिक क्रकस्तों में जैिा न्यायालय ननहदि ष्ट करे , विधाररत की जाएगी और ऐिे अधधकार को, जो 3[िमधु चत
िरकार, राजपत्र में अधधिच
ू ना द्िारा,] [इि ननसमि] ननयक्
4
ु त करें , इि आदे श की िच
ू ना िो जाने पर-
5
[(क) जिां ऐिा िेतन या भिे उन स्थानीय िीमाओं के भीतर िंवितररत क्रकए जाने िैं, र्जन पर
इि िंहिता का तत्िमय विस्तार िै ििां िि अधधकार या अन्य व्यर्क्त र्जिका कतिव्य उिका िंवितरण
करना िै , यथार्स्थनत, आदे श के अधीन शोध्य रकम या मासिक क्रकस्ते विधाररत करे गा और न्यायालय के
पाि भेजेगा,
(ख) जिां ऐिा िेतन या ऐिे भिे उक्त िीमाओं िे परे िंवितररत क्रकए जाने िैं ििां उन िीमाओं के
भीतर िाला िि अधधकार या अन्य व्यर्क्त, र्जिका कतिव्य िंवितररत क्रकए जाने िाले िेतन या भिों की
रकम की बाबत िंवितरक प्राधधकार को दे ना िो, यथार्स्थनत, आदे श के अधीन शोध्य रकम या मासिक
क्रकस्तें न्यायालय के पाि भेजेगा और िंवितरक प्राधधकार को ननदे श दे गा क्रक िि िमय-िमय पर
िंवितररत की जाने िाल रकमों के योग में िे उन रकमों के योग को घटा दे जो न्यायालय के पाि िमय-
िमय पर भेजी गई िों ।]
(2) जिां ऐिे िेतन या भिों का कुकी योग्य भाग कुकी के क्रकिी पि
ू त
ि न और अतष्ु ट आदे श के अनि
ु रण में
पिले िे ि विधाररत क्रकया जा रिा िै और क्रकिी न्यायालय के पाि भेजा जा रिा िै ििां 6[िमधु चत
िरकार] द्िारा इि ननसमत ननयक्
ु त अधधकार पश्चातिती
् आदे श को तत्काल उि न्यायालय को र्जिने उिे
ननकाला िै , विद्यमान कुकी की िभी विसशर्ष्टयों के परू े कथन के िहित लौटा दे गा ।

1. 1943 के अधधननयम िं. 5 की धारा 3 द्िारा ''लोक अधधकार '' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया
गया ।

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2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 72 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्तःस्थावपत क्रकया गया ।
3. 1942 के अधधननयम िं. 25 की धारा 3 और अनि
ु च
ू ी 2 द्िारा ''केन्द्र य िरकार या प्रान्तीय
िरकार उनके राजपत्र मे अधधिच
ू ना द्िारा'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
4. 1939 के अधधननयम िं. 26 की धारा 2 द्िारा कुछ मल
ू शब्दों के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया
गया ।
5. 1939 के अधधननयम िं. 26 की धारा 2 द्िारा कुछ मल
ू शब्दों के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया
गया ।
6. 1942 के अधधननयम िं. 25 की धारा 3 और अनि
ु च
ू ी 2 द्िारा ''यथार्स्थनत, केन्द्र य िरकार
या प्रान्तीय िरकार'' के

[(3) इि ननयम के अधीन क्रकया गया िर आदे श, जब तक क्रक िि उपननयम (2) के उपबन्धों के
1

अनि
ु रण मे लौटा न हदया जाए, अनतररक्त िच
ू ना या अन्य आदे सशका के बबना, उि िमय तब जब तक
क्रक ननणीतऋणी उन स्थानीय िीमाओं के भीतर िै र्जन पर इि िंहिता का तत्िमय विस्तार िै और यहद
िि भारत की िंधचत ननधध में िे या राज्य की िंधचत ननधध में िे या भारत में क्रकिी रे ल कम्पनी या
स्थानीय प्राधधकार या ननगम या िरकार कम्पनी की ननधध में िे िंदेय कोई िेतन या भिे पा रिा िै तो
उि िमय तक भी, जब तक क्रक िि उन िीमाओं के परे िै , यथार्स्थनत, िमधु चत िरकार या रे ल कम्पनी
या स्थानीय प्राधधकार या ननगम या िरकार कम्पनी को आबद्ध करे गा और, यथार्स्थनत, िमधु चत िरकार
या रे ल कम्पनी या स्थानीय प्राधधकार या ननगम या िरकार कम्पनी इि ननयम के उपलघन में िदि की
गई क्रकिी भी रासश के सलए दायी िोगी ।
स्पष्टीकरण- इि ननयम में ''िमधु चत िरकार'' िे असभप्रेत िै ,-
(i) केन्द्र य िरकार की िेिा में के क्रकिी व्यर्क्त के या रे ल प्रशािन के या छािनी प्राधधकार के या
मिापिन के पिन प्राधधकार के क्रकिी िेिक के या क्रकिी व्यापार या उद्योग में लगे क्रकिी ननगम के जो
केन्द्र य अधधननयम द्िारा स्थावपत क्रकया गया िो, क्रकिी िेिक के या ऐिी िरकार कम्पनी के र्जिमें शेयर
पज
ूं ी का कोई भाग केन्द्र य िरकार द्िारा या एक िे अधधक राज्य िरकारों द्िारा या भागत: केन्द्र य
िरकार और भागत: एक या अधधक राज्य िरकारों द्िारा धाररत िो क्रकिी िेिक के िम्बन्ध में , केन्द्र य
िरकार,
(ii) िरकार के क्रकिी अन्य िेिक के या क्रकिी अन्य स्थानीय प्राधधकार के क्रकिी िेिक के या
क्रकिी व्यापार या उद्योग में लगे क्रकिी ननगम के जो प्रान्तीय या राज्य अधधननयम द्िारा स्थावपत क्रकया
गया िो, क्रकिी िेिक के या क्रकिी अन्य िरकार कम्पनी के क्रकिी िेिक के िम्बन्ध में , राज्य िरकार ।
स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।]

1. 1976 के अधधननयम िंख्याक 104 की धारा 72 द्िारा (1-2-1977 िे) उपननयम (3) के स्थान
पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया |
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 72 द्िारा (1-2-1977 िे) स्पष्ट करण के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

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1
[48क. प्राइिेट कमवचाररयों के िेतन या ििों की कुकी—(1) जिां कुकि की जाने िाल िम्पवि ऐिे
िेिक िे र्जिको ननयम 48 लागू िोता िै , सभन्न क्रकिी िेिक का िेतन या भिा िै ििां न्यायालय उि दशा
में र्जिमें उि कमिचार का िंवितरक अधधकार न्यायालय की अधधकाररता की स्थानीय िीमाओं के भीतर
िै , यि आदे श कर िकेगा क्रक िि रकम, धारा 60 के उपबन्धों के अधीन रिते िुए, ऐिे िेतन या भिों में िे
या तो िंदाय में या मासिक क्रकस्तों में , जैिा न्यायालय ननहदष्ट करे , विधाररत की जाएगी और ऐिे
िंवितरक अधधकार को इि आदे श की िच
ू ना िो जाने पर, ऐिा िंवितरक अधधकार , यथार्स्थनत, आदे श के
अधीन शोध्य रकम या मासिक क्रकस्तें न्यायालय के पाि भेजेगा |
(2) जिां ऐिे िेतन या भिों का कुकी योग्य भाग कुकी के क्रकिी पि
ू त
ि न और अतष्ु ट आदे श के
अनि
ु रण में पिले िे ि विधाररत क्रकया जा रिा िै या न्यायालय के पाि भेजा जा रिा िै ििां िंवितरक
अधधकार पश्चातिती
् आदे श को तत्काल उि न्यायालय को र्जिने उिे ननकाला िै , विद्यमान कुकी की
िभी विसशर्ष्टयों के परू े कथन के िहित लौटा दे गा ।
(3) इि ननयम के अधीन क्रकया गया िर आदे श जब तक क्रक िि उपननयम (2) के उपबन्धों के
अनि
ु रण में लौटा न हदया जाए, अनतररक्त िच
ू ना या अन्य आदे सशका के बबना, उि िमय तक जब तक
क्रक ननणीतऋणी उन स्थानीय िीमाओं के भीतर िै र्जन पर इि िंहिता का तत्िमय विस्तार िै और यहद
िि भारत के क्रकिी भाग में के क्रकिी ननयोजक की ननधध में िे िंदेय कोई िेतन या भते पा रिा िै तो उि
िमय तक भी जब तक क्रक िि उन िीमाओं िे परे िै , ननयोजक को आबद्ध करे गा और ननयोजक इि
ननयम के उपलघंन में िंदि की गई क्रकिी भी रासश के सलए दायी िोगा ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 72 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया गया ।

49. िागीदारी की िम्पनत कीं कुकी- (1) इि ननयम द्िारा अन्यथा उपबर्न्धत के सििाय, क्रकिी
भागीदार की िम्पवि उि फमि के विरुद्ध या उि फमि के भागीदार के विरुद्ध उनकी उि िै सियत में
पाररत डडिी िे सभन्न डडिी के ननष्पादन में कुकि नि ं की जाएगी और न उिका वििय क्रकया जाएगा ।
(2) न्यायालय क्रकिी भागीदार के विरुद्ध डडिी के धारक के आिेदन पर आदे श कर िकेगा क्रक
डडिी के अधीन शोध्य रकम के िदाय का भार भागीदार की िम्पवि में ऐिे भागीदार के हित और लाभ पर
डाल हदया जाए और उिी या पश्चातिती
् आदे श िे उन लाभों में (चािे िे पिले िे ि घोवषत क्रकए जा चुके
िों या प्रोद्भत
ू िो रिे िों) ऐिे भागीदार के अंश का और ऐिे क्रकिी अन्य धन का, जो भागीदार मिद्दे उिे
समलता िो, ररिीिर ननयक्
ु त कर िकेगा और लेखाओं और जांचों के सलए ननदे श दे िकेगा और ऐिे हित के
वििय के सलए आदे श कर िकेगा या ऐिे अन्य आदे श कर िकेगा जो क्रकए जाते या ननहदष्ट क्रकए जाते
यहद ऐिे भागीदार ने अपने हित को डडिीदार के पि में भाररत कर हदया िोता या जैिे मामले की
पररर्स्थतयां अपेक्षित करें ।
(3) अन्य भागीदार या भागीदारों को यि स्ितंत्रता िोगी क्रक िे भाररत हित का मोचन क्रकिी भी
िमय पर लें या वििय के सलए ननदे सशत क्रकए जाने की दशा में उिे िय कर लें ।
(4) उपननयम (2) के अधीन आदे श के सलए िर आिेदन की तामील ननणीतऋणी पर और उिके

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भागीदारों पर या उनमें िे ऐिों पर, जो 1[भारत] के भीतर िों, की जाएगी ।
(5) ननणीतऋणी के क्रकिी भी भागीदार द्िारा उपननयम (3) के अधीन क्रकए गए िर आिेदन की
तामील डडिीदार पर और ननणीतऋणी पर और अन्य भागीदारों में िे ऐिों पर, जो आिेदन में िर्म्मसलत
नि ं िुए िों और जो 2[भारत] के भीतर िों, की जाएगी ।
(6) उपननयम (4) या उपननयम (5) के अधीन की गई तामील िभी भागीदारों पर तामील िमझी
जाएगी और ऐिे आिेदनों पर क्रकए गए िभी आदे शों की तामील उिी प्रकार िोगी ।

1. 1951 के अधधननयम िे. 2 की धारा 3 द्िारा “राज्यो” के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया
2. 1951 के अधधननयम िे 2 की धारा 3 द्िारा “राज्यो” के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया

50. फमव के विरुद्ध डििी का ननष्पादन- (1) जिां डडिी क्रकिी फमि के विरुद्ध पाररत की गई िै
ििां ननष्पादन-
(क) भागीदार की क्रकिी िम्पवि के विरुद्ध;
(ख) क्रकिी ऐिे व्यर्क्त के विरुद्ध जो आदे श 30 के ननयम 6 या ननयम 7 के अधीन स्ियं अपने
नाम में उपिंजात िुआ िै या र्जिने अपने असभिचन में यि स्िीकार क्रकया िै क्रक यि भागीदार िै या जो
भागीदार न्यायननणीत क्रकया जा चुका िै ,;
(ग) क्रकिी ऐिे व्यर्क्त के विरुद्ध र्जि पर िमन द्िारा भागीदार के रुप में व्यर्क्तगत तामील की
गई िै और जो उपिंजात िोने में अिफल रिा िै ,

अनद
ु ि क्रकया जा िकेगा :
परन्तु इि उपननयम की कोई भी बात 1[भारतीय भागीदार अधधननयम, 1932 (1932 का 9) की
धारा 30] के उपबन्धों को पररिीसमत करने िाल या उन पर अन्यथा प्रभाि डालने िाल नि ं िमझी जाएगी

(2) जिां डडिीदार डडिी का ननष्पादन क्रकिी ऐिे व्यर्क्त िे सभन्न जो उपननयम (1) के खण्ड (ख)
और (ग) में ननहदिष्ट िै , क्रकिी व्यर्क्त के विरुद्ध उिके फमि में भागीदार िोने के नाते कराने का िकदार
िोने का दािा करता िै ििां िि डडिी पाररत करने िाले न्यायालय िे इि इजाजत के सलए आिेदन कर
िकेगा और जिां ऐिे दानयत्ि के बारे में वििाद नि ं क्रकया जाता िै ििां ऐिा न्यायालय ऐिी इजाजत दे
िकेगा या जिां ऐिे दानयत्ि के बारे में वििाद क्रकया जाता िै ििां आदे श कर िकेगा क्रक ऐिे व्यर्क्त के
दानयत्ि का विचारण और अिधारणा क्रकिी ऐिी र नत िे क्रकया जाए र्जििे िाद का कोई वििाद्यक
विचाररत और अिधाररत क्रकया जा िकता िै ।
(3) जिां क्रकिी व्यर्क्त के दानयत्ि का विचारण और अिधारण उपननयम (2) के अधीन क्रकया गया
िै ििां उि पर क्रकए गए आदे श का िि बल िोगा और िि अपील के बारे में या अन्यथा उन्ि ं शतों के
अधीन रिे गा मानो िि डडिी िो ।
(4) भागीदार की क्रकिी िम्पवि के विरुद्ध िुई डडिी को छोडकर, क्रकिी फमि के विरुद्ध डडिी उि
फमि में के क्रकिी भागीदार को तभी ननमक्
ुि त करे गी, दायी बनाएगी, या उिमें के क्रकिी भागीदार पर प्रभाि

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डालेगी जब क्रक उपिंजात िोने और उिर दे ने के सलए िमन की तामील उि पर िो चुकी िो |

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 72 द्िारा (1-2-1977 िे) कुछ शब्दों के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया |
1
[(5) इि ननयम की कोई बात आदे श 30 के ननयम 10 के उपबन्धों के आधार पर क्रकिी हिन्द ू
अविभक्त कुटुम्ब के विरुद्ध पाररत क्रकिी डडिी को लागू नि ं िोगी ।]

उच्च न्यायालय िंशोधन


इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- उपननयम (2) में इन शब्दों को ''अथिा उिको र्जिको
क्रक डडिी ननष्पादन के सलए अंतररत की गयी िै '' को शब्द “डडिी पाररत करने िाले न्यायालय िे” ि शब्द
''इि इजाजत के सलए'' के मध्य जोडड़ए । (1.6.1957)

पटना उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- ननयम 50 के उपननयम (2) में शब्दों ''या उि न्यायालय को
र्जिको क्रक ननष्पादन के सलए भेजा जाता िै '' को शब्द ''डडिी पाररत करने िाले न्यायालय िे'' ि शब्द ''इि
इजाजत के सलए'' के मध्य जोडा गया ।

51. परिाम्य सलखतों की कुकी- जिां िम्पवि ऐिी परिाम्य सलखत िै जो न्यायालय में ननक्षिप्त
नि ं िै और न लोक अधधकार की असभरिा में िै ििा कुकी िास्तविक असभग्रिण द्िारा की जाएगी और
सलखत न्यायालय में लाई जाएगी और आगे न्यायालय जो आदे श करे उिके अधीन धारण की जाएगी ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 72 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया गया |

उच्च न्यायालय िंशोधन


इलािाबाद उच्च न्यायालय िंशोधन- ननम्नानि
ु ार ननयम 51 कोप्रनतस्थावपत क्रकया गया-
“51 जिां डडिी के ननष्पादन मे कोई िंपवि कुकि की गयी िै और न्यायालय क्रकिी कारण िे
ननष्पादन आिेदन को ननरस्त करने का आदे श पाररत करता िै तो न्यायालय द्िारा पाररत क्रकिी आदे श के
अभाि मे कुकी ननष्पादन के आिेदन की ननरस्ती के उपरांत पन्द्रि हदििो की अिधध के सलए अर्स्तत्ि में
िोना मानी जायेगी और िमान िंपवि के सलए कोई निीन कुकी आिश्यक नि ं िोगी यहद ननष्पादन के सलए
निीन आिेदन ऐिे पन्द्रि हदििों की अिधध के भीतर प्रस्तत
ु कर हदया जाता िै यहद ऐिा कोई आिेदन
नि ं हदया जाता िै तो कुकी िमाप्त िो जाएगी
परन्तु यि क्रक चल िपवि के मामले में ननष्पादन आिेदन की ननरस्ती के आदे श के उपरांत जार
नि ं रिे गी जब तक क्रक डडिीिोपडर ने सलणखत मे उिकी ििमनत और विस्ताररत अिधध में कुकी के व्ययों
को परू ा करने के सलए िमधु चत रासश न्यायालय में जमा न कर द िो ''

52. न्यायालय या लोक अधधकारी की असिरक्षा में की िम्पवि की कुकी- जिां कुकि की जाने िाल

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िम्पवि क्रकिी न्यायालय या लोक अधधकार की असभरिा में िै ििां िि कुकी ऐिे न्यायालय या अधधकार
िे यि अनरु ोध करने िाल िच
ू ना द्िारा की जाएगी क्रक ऐिी िम्पवि और उि पर िंदेय िोने िाला कोई
ब्याज या लाभांश उि न्यायालय के र्जिने िि िच
ू ना ननकाल िै आगे क्रकए जाने िाले आदे शों के अधीन
धारण की जाए :
परन्तु जिां ऐिी िम्पवि क्रकिी न्यायालय की असभरिा में िै ििां िक या पवू ििकता के बारे में कोई
ऐिा प्रश्न जो डडिीदार के और क्रकिी िमनद
ु े शन के या कुकी के आधार पर या अन्यथा ऐिी िम्पवि में
हितबद्ध िोने का दािा करने िाले क्रकिी ऐिे अन्य व्यर्क्त के बीच पैदा िो जो ननणीतऋणी नि ं िै , ऐिे
न्यायालय द्िारा अिधाररत क्रकया जाएगा ।

53. डिक्रियों की कुकी—(1) जिां कुकि की जाने िाल िम्पवि या तो धन के िंदाय की या बंन्धक
या भार के प्रितिन में वििय की डडिी िै ििां कुकी-
(क) यहद डडिीयां उिी न्यायालय के द्िारा पाररत की गई थी तो, ऐिे न्यायालय के आदे श द्िारा
की जाएगी, तथा
(ख) यहद िि डडिी र्जिकी कुकी चाि गई िै , क्रकिी अन्य न्यायालय द्िारा पाररत की गई थी तो
उि डडिी को र्जिका ननष्पादन चािा गया िै , पाररत करने िाले अन्य न्यायालय द्िारा ऐिे न्यायालय को
यि अनरु ोध करने िाल िच
ू ना दे कर की जाएगी क्रक िि अपनी डडिी का ननष्पादन तब तक के सलए रोक दे
जब तक क्रक-
(i) र्जि डडिी का ननष्पादन चािा गया िै उि डडिी को पाररत करने िाला न्यायालय िच
ू ना को
रद्द न कर दे , अथिा
1
[(ii) (क) र्जि डडिी का ननष्पादन चािा गया िै उि डडिी का धारक, या
(ख) ऐिे डडिीदार की सलणखत पि
ू ि ििमनत िे या कुकि करने िाले न्यायालय की अनज्ञ
ु ा िे उिका
ननणीतऋणी, ऐिी िच
ू ना प्राप्त करने िाले न्यायालय िे यि आिेदन न करे क्रक िि कुकि की गई डडिी का
ननष्पादन करे ।
(2) जिां न्यायालय उपननयम (1) के खण्ड (ख) के अधीन आदे श करता िै या उक्त उपननयम के
खण्ड ख) के उपशीषि (ii) के अधीन आिेदन प्राप्त करता िै ििां उि लेनदार के र्जिने डडिी कुकि कराई िै
या उिके ननणीतऋणी के आिेदन पर िि कुकि की गई डडकी का ननष्पादन करने के सलए अग्रिर िोगा और
शद्
ु ध आगमों को उि डडिी की तर्ु ष्ट में लगाएगा र्जिका ननष्पादन चािा गया िै ।
(3) र्जि डडिी का ननष्पादन उपननयम (1) में विननहदिष्ट प्रकृनत की क्रकिी अन्य डडिी की कुकी
द्िारा चािा गया िै उि डडिी के धारक के बारे में यि िमझा जाएगा क्रक िि कुकि की गई डडिी के धारक
का प्रनतननधध िै और कुकि की गई ऐिी डडिी का ननष्पादन ऐिी क्रकिी भी र नत िे कराने का िकदार िै जो
उि डडिी के धारक के सलए विधधपण
ू ि िो ।
(4) जिां डडिी के ननष्पादन में कुकि की जाने िाल िम्पवि उपननयम (1) में ननहदि ष्ट प्रकृनत की
डडिी िे सभन्न डडिी, िै ििां कुकी, उि डडिी को र्जिका ननष्पादन चािा गया िै , पाररत करने िाले
न्यायालय द्िारा उि डडिी के धारक को र्जिकी कुकी चाि गई िै , ऐिी िच
ू ना दे कर क्रक िि उिे क्रकिी भी
प्रकार अन्तररत या भाररत न करे और जिां ऐिी डडिी क्रकिी अन्य न्यायालय द्िारा पाररत की गई ििां

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ऐिे अन्य न्यायालय को भी यि िच
ू ना भेजकर क्रक िि उि डडिी का र्जिकी कुकी चाि गई िै , ननष्पादन
करने िे तब तक प्रविरत रिे जब तक ऐिी िच
ू ना को िि न्यायालय रद्द न कर दे र्जिने उिे भेजा िै ,
की जाएगी ।
(5) इि ननयम के अधीन कुकि की गई डडिी का धारक डडिी का ननष्पादन करने िाले न्यायालय
को ऐिी जानकार और ििायता दे गा जो यर्ु क्तयक्
ु त रुप िे अपेक्षित की जाए ।
(6) र्जि डडिी का ननष्पादन क्रकिी अन्य डडिी की कुकी द्िारा चािा गया िै उि डडिी के धारक
के आिेदन पर िि न्यायालय जो इि ननयम के अधीन कुकी का आदे श करे , ऐिे आदे श की िच
ू ना उि
ननणीतऋणी को दे गा जो कुकि की गई डडिी िे आबद्ध िै , और कुकि की गई डडिी का कोई भी ऐिा िंदाय
या िमायोजन जो ऐिे आदे श का उपलंघन करके ननणीतऋणी 2[उिकी जानकार रखते िुए या] ऐिे आदे श
की िच
ू ना की प्रार्प्त के पश्चात ् या तो न्यायालय की माफित या अन्यथा करता िै, क्रकिी भी न्यायालय
द्िारा उि िमय तक मान्य नि ं क्रकया जाएगा जब तक कुकी प्रित
ृ रिती िै ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 72 द्िारा (1.2.1977 िे) उपखण्ड (ii) के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 72 द्िारा (1.2.1977 िे) अन्तःस्थावपत क्रकया गया ।
उच्च न्यायालय िंशोधन
म.प्र. उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- उपननयम (1) के खण्ड (ख) और उपननयम (4) में शब्द ''ऐिे
न्यायालय'' के उपरांत इन शब्दों ''और क्रकिी अन्य न्यायालय को र्जिको डडिी ननष्पादन के सलए अंतररत
की गई िै '' अंतःस्थावपत क्रकया गया िै ।

इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- आदे श 21 ननयम 53 के उपननयम 1 (ख) में
''न्यायालय को'' के उपरांत इन शब्दों को जोडा गया िै ''और क्रकिी अन्य न्यायालय को र्जिको डडिी
ननष्पादन के सलए अंतररत की गई िै '' क्रकया गया िै ।
इिी प्रकार उपननयम (4) में आए शब्द ''ऐिे अन्य न्यायालय को'' के उपरांत भी इन्ि ं शब्दों अथाित
''और क्रकिी अन्य न्यायालय को र्जिको डडिी ननष्पादन के सलए अंतररत की गई िै '' जोडा गया िै ।
[अधधिच
ू ना िमांक 4084(35)(क)-3(7); हदनांक 24.7.1926 ।]

पटना उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- आदे श 21 ननयम 53 के उपननयम 1 (ख) को ननम्न प्रकार
प्रनतस्थावपत क्रकया गया िै -
'' 1(ख) यहद यि डडिी र्जिकी कुकी चाि गई िै क्रकिी अन्य न्यायालय द्िारा पाररत की गई िै
तो उि डडिी को र्जिका ननष्पादन चािा गया िै , पाररत करने िाले न्यायालय द्िारा ऐिे अन्य न्यायालय
को या न्यायालय र्जिको डडिी ननष्पादन के सलए अंतररत की गई िै , को यि अनरु ोध करने िाल िच
ू ना द
जाएगी क्रक िि अपनी डडिी का ननष्पादन तब तक के सलए रोक दे जब तक क्रक-
(1) र्जि डडिी का ननष्पादन चािा गया िै उि डडिी को पाररत करने िाला न्यायालय िच
ू ना को
रद्द न कर दे अथिा

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(2) र्जि डडिी का ननष्पादन चािा जा रिा िै , डडिी का धारक या ऐिे डडिी िोपडर की सलणखत में
व्यक्त ििमनत िे उिका ननणीत ऋणी या कुकि करने िाले न्यायालय की अनज्ञ
ु ा िे ऐिे अन्य न्यायालय
या िि न्यायालय र्जिको डडिी ननष्पादन के सलए अंतररत की जा िकती िो कुकि की गई डडिी के
ननष्पादन को आिेदन करता िै । ''

54. स्थािर िम्पवि की कुकी—(1) जिां िम्पवि स्थािर िै , ििां कुकी ऐिे आदे श द्िारा की जाएगी
जो िम्पवि को क्रकिी भी प्रकार िे अन्तररत या भाररत करने िे ननणीतऋणी को और ऐिे अन्तरण या भार
िे कोई भी फायदा उठाने िे िभी व्यर्क्तयों को प्रनतवषद्ध करता िै |
1
[(1क) आदे श में ननणीतऋणी िे यि अपेिा की जाएगी क्रक िि वििय की उदघोषणा के ननबन्धनों
को तय करने के सलए ननयत की जाने िाल तार ख की िच
ू ना प्राप्त करने के सलए क्रकिी विननहदिष्ट तार ख
को न्यायालय में िार्जर िो ।]
(2) िि आदे श ऐिी िम्पवि में के या उिके पाश्ििस्थ क्रकिी स्थान पर डोंडी वपटिा कर या अन्य
रूहढक ढं ग िे उद्घोवषत क्रकया जाएगा और ऐिे आदे श की प्रनत िम्पवि के क्रकिी ििजदृश्य भाग और तब
न्यायिदन के क्रकिी ििजदृश्य भाग पर और जिां िम्पवि िरकार को राजस्ि दे ने िाल भसू म िै ििां उि
र्जले के र्जिमें िि भसू म र्स्थत िै , कलक्टर के कायािलय में भी लगाई जाएगी 2[और जिां िम्पवि क्रकिी
गांि में र्स्थत भसू म िै ििां उि गांि पर अधधकाररता रखने िाल ग्राम पंचायत के, यहद कोई िो, कायािलय
में भी लगाई जाएगी ।]

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 72 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया गया |
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 72 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया गया ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


म.प्र. उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- उपननयम (2) के अंत में पण
ू ि विराम िटाकर ननम्न शब्दों को
जोडा गया-
''और ििां भी जिां क्रक िंबधं धत लोकल केन्टूंमेंट बोडि एिं समलेर इस्टे ट आक्रफिर के कायािलय में
केटून्में ट िीमाओं के भीतर िंपवि र्स्थत िै ।''
उपननयम के उपरात ननम्न उपननयम (3) को अंतःस्थावपत क्रकया गया-
'' (3) िद्भाविक मप
ू य पर िेता िोने के मामले में आदे श िंपवि पर आदे श की प्रनतसलवप चस्पा
क्रकये जाने की तार ख िे प्रभािी िोगा और ननणीत ऋणी के अन्य िभी अंतररनतयों के विरुद्ध ऐिी तार ख
िे जबक्रक आदे श क्रकया गया था ।''

इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- आदे श 21 ननयम 54 के उपननयम (2) के अंत में
अंक्रकत पण
ू ि विराम िटाकर ननम्न और अंतःस्थावपत क्रकया गया िै -
''और जिााँ िंपवि चािे िरकार को राजस्ि दे य िो या अन्यथा, केन्टूनमेन्ट िीमाओं में स्थानीय
केन्टूनमेन्ट बोडि या िंबधं धत समलेर िंपदा अधधकार के कायािलय में र्स्थत िै । '' [अधधिच
ू ना िमांक

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5691 /35 (क)-3 (9) हदनांक 29.9.1941 |]
उपननयम (3) के रूप में ननम्न जोड़ा गया-
'' (3) िद्भािना में मप
ू य पर के िेता के विरुद्ध आदे श उि हदनांक िे जबक्रक आदे श की प्रनतसलवप
िंपवि पर चस्पा की जाती िै , प्रभािी िोगा और ननणीत ऋणी िे अन्य िभी अंतररनतयों के विरुद्ध उि
हदनांक िे जबक्रक आदे श क्रकया गया िो'' ।

पटना उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- पटना उच्च न्यायालय ने म.प्र. उच्च न्यायालय की तरि ि
िंशोधन क्रकया िै । [अधधिच
ू ना िमांक 21-आर- हदनांक 28.1.1941 ।]

55. डििी की तस्ु ष्ट पर कुकी का उठाया जाना- जिां-


(क) डडिीत रकम खचों और क्रकिी िम्पवि की कुकी के पाररणासमक प्रभारों और व्ययों के िाथ
न्यायालय में जमा कर द जाती िै , अथिा
(ख) डडिी की तर्ु ष्ट अन्यथा न्यायालय की माफित कर द जाती िै या न्यायालय को प्रमाणणत कर
द जाती िै , अथिा
(ग) डडिी अपार कर द जाती िै या उलट द जाती िै ,
ििां कुकी प्रत्याहृत िमझी जाएगी और स्थािर िम्पवि की दशा में यहद ननणीतऋणी ऐिा चािे तो
प्रत्यािरण उिके व्यय पर उद्घोवषत क्रकया जाएगा और उद्घोषणा की एक प्रनत अर्न्तम पि
ू ि
ि ती ननयम
द्िारा विहित र नत िे लगाई जाएगी ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- आदे श 21 ननयम 55 को ननम्न प्रकार िंशोधन स्िरुप
में प्रनतस्थावपत क्रकया गया िै -
“55(1) उि डडिी के ननष्पादन के सलए र्जिके सलए मल
ू आदे श पाररत क्रकया गया था, के धारक के
अलािा अन्य व्यर्क्त द्िारा िमान ननणीत की िंपवि के िंबध
ं में धारा 73 (1) के अंतगित िंपवियों के
आनप
ु ानतक वितरण के सलए िभी आिेदनों की िच
ू ना डडिी ननष्पादन करने िाले वििय अधधकार को भेजी
जािेगी ।

(2) जिााँ-
(क) डडिीत रासश, जो िमान के विरुद्ध पाररत क्रकिी का रासश र्जिकी िच
ू ना उपधारा (1) के
अंतगित भेजी गई िै शासमल करे गी । न्यायालय में क्रकिी िंपवि को कुकि करने के पररणाम में भग
ु तान क्रकए
गए खचे और िभी प्रभारों और व्ययो िमेत,
(ख) डडिी की िंतर्ु ष्ट िमान ननणीत ऋणी के विरुद्ध पाररत क्रकिी डडिी को शासमल करते िुए
र्जिकी िचू ना उपधारा (1) के अंतगित वििय अधधकार को भेजी गई िै । यहद न्यायालय द्िारा अन्यथा
की गई िै या न्यायालय को प्रमाणणत की गई िै , या
(ग) डडिी (िमान ननणीत ऋणी के विरुद्ध पाररत क्रकिी डडिी को शासमल करते िुए र्जिकी िच
ू ना

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उपधारा (1) के अंतगित वििय अधधकार को भेजी गई िै ) अपास्त िो गई िै , उलट द गई िै , कुकी िावपि
लेना िमझा जािेगा और अचल िंपवि के मामले में िावपिी को यहद ननणीत ऋणी ऐिी िांछा करता िै
उिके व्यय पर उद्घोवषत क्रकया जाएगा और अंनतम पि
ू ि
ि ती ननयम में विहित र नत में उद्घोषणा चस्पा
क्रकया जाएगा ।
[अधधिच
ू ना िमांक 1477/35 (क)-3(3) हदनांक 1.6.1918 ।]

56. डििी के अधीन िकदार पक्षकार को सितके या करे न्िी नोटों का िंदाय क्रकए जाने का आदे श-
जिां कुकि की गई िम्पवि चालू सिक्का िै या करे न्िी नोट िै ििां न्यायालय कुकी के चालू रिने के दौरान
क्रकिी भी िमय ननदे श दे िकेगा क्रक ऐिा सिक्का या ऐिे नोट या उनका उतना भाग र्जतना डडिी की
तर्ु ष्ट के सलए पयािप्त िो, उि पिकार को दे हदया जाए जो डडिी के अधीन उिे पाने का िकदार िै ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 72 द्िारा (1.2.1977 िे) ननयम 57 के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

1
[57. कुकी का पयवििान—(1) जिां कोई िम्पवि क्रकिी डडिी के ननष्पादन में कुकि कर ल गई िै
और न्यायालय क्रकिी कारण िे डडिी के ननष्पादन के सलए आिेदन को खाररज करने का आदे श पाररत
करता िै ििां न्यायालय यि ननदे श दे गा क्रक कुकी जार रिे गी या िमाप्त िो जाएगी और िि अिधध र्जि
तक ऐिी कुकी जार रिे गी और िि तार ख र्जिको कुकी िमाप्त िो जाएगी भी उपहदि शत करे गा ।
(2) यहद न्यायालय ऐिा ननदे श दे ने में लोप करता िै तो यि िमझा जाएगा क्रक कुकी िमाप्त िो
गई िै ।]

उच्च न्यायालय िंशोधन


म प्र. उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- ननयम 57 के स्थान पर ननम्न ननयम को प्रनतस्थावपत क्रकया
गया-
'' 57. जिााँ कोई िम्पवि डडिी के ननष्पादन में कुकि की गई िै , और न्यायालय क्रकिी भी कारण िे
ननष्पादन आिेदन को ननरस्त करने का आदे श पाररत करता िै तो न्यायालय यि ननदे श दे गा क्रक क्या कुकी
को जार रखा जाए अथिा िमाप्त कर हदया जाए । यहद न्यायालय ऐिा कोई ननदे श दे ने में लोभ करे तो
यि माना जाएगा क्रक कुकी अर्स्तत्ि में रिना िमाप्त िो जाएगी ।'' (16-9-1960)

पटना उच्च न्यायालय करा िंशोधन- ननयम 57 के उपननयम (1) को लप्ु त कर ननम्न को अंत :
स्थावपत क्रकया गया ।
'' कुकी ननष्पादन का प्रकरण ननरस्त कर दे ने पर र्जिमें की कुकी कर द गई िै न्यायालय द्िारा
अन्यथा ननदे सशत न करने पर िमाप्त िो जाएगी । '' (7.1.1936)

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इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- ननम्नानि
ु ार ननयम 57 को प्रनतस्थावपत क्रकया गया-
'' 57 जिां डडिी के ननष्पादन में कोई िंपवि कुकि की गयी िै और न्यायालय क्रकिी कारण िे
ननष्पादन आिेदन को ननरस्त करने का आदे श पाररत करता िै तो न्यायालय द्िारा पाररत क्रकिी आदे श के
अभाि में कुकी ननष्पादन के आिेदन की ननरस्ती के उपरांत पन्द्रि हदििों की अिधध के सलए अर्स्तत्ि में
िोना मानी जािेगी और िमान िपवि के सलए कोई निीन कुकी आिश्यक नि ं िोगी यहद ननष्पादन के सलए
निीन आिेदन ऐिे पन्द्रि हदििों की अिधध के भीतर प्रस्तत
ु कर हदया जाता िै । यहद ऐिा कोई आिेदन
नि ं हदया जाता िै तो कुकी िमाप्त िो जाएगी
परन्तु यि क्रक चल िंपवि के मामले मे ननष्पादन आिेदन की ननरस्ती के आदे श के उपरांत जार
नि ं रिे गी जब तक क्रक डडिीिोपडर ने सलणखत में उिकी ििमनत और विस्ताररत अिधध में कुकी के व्ययों
को परू ा करने के सलए िमधु चत रासश न्यायालय में जमा न कर द िो '' (1.6.1957)

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 72 द्िारा (1.2.1977 िे) शीषि और ननयम 58िे 63 तक
के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

1
[दािों और आक्षेपों का न्यायननणवयन
58. कुकव की गई िम्पवि पर दािों का और ऐिी िम्पवि की कुकी के बारे में आक्षेपों का न्याय
ननणवयन- (1) जिां डडिी के ननष्पादन में कुकि की गई क्रकिी िम्पवि पर कोई दािा या उिकी कुकी के बारे
में कोई आिेप इि आधार पर क्रकया जाता िै क्रक ऐिी िम्पवि ऐिे कुकि क्रकए जाने के दानयत्ि के अधीन
नि ं िै ििां न्यायालय ऐिे दािेया आिेप का न्यायननणियन करने के सलए इिमें अन्तवििष्ट उपबन्धों के
अनि
ु ार अग्रिर िोगा :
परन्तु कोई ऐिा दािा या आिेप उि दशा में ग्रिण नि ं क्रकया जाएगा र्जिमें -
(क) दािा या आिेप करने िे पि
ू ि कुकि की गई िम्पवि का वििय कर हदया गया िै ; या
(ख) न्यायालय का यि विचार िै क्रक दािा या आिेप करने में पररकपपनापि
ू क
ि या अनािश्यक रुप
िे विलम्ब क्रकया गया िै ।

(2) इि ननयम के अधीन कायििाि के पिकारों के बीच या उनके प्रनतननधधयों के बीच पैदा िोने
िाले तथा दािे या आिेप न्याय ननणियन िे िि
ु ग
ं त िभी प्रश्न (र्जनके अन्तगित कुकि की गई िम्पवि में
अधधकार, िक या हित िे िम्बर्न्धत प्रश्न भी िैं) दािे या आिेप के िम्बन्ध में कायििाहियााँ करने िाले
न्यायालय द्िारा अिधाररत क्रकए जाएंग,े न क्रक पथ
ृ क िाद द्िारा ।

(3) उपननयम (2) में विननहदि ष्ट प्रश्नों के अिधारण पर, न्यायालय ऐिे अिधारण के अनि
ु ार--
(क) दािे या आिेप को अनज्ञ
ु ात करे गा और िम्पवि या तो पण
ू त
ि : या उि विस्तार तक जो िि
ठीक िमझे, कुकी िे ननमक्
ुि ि कर दे गा; या
(ख) दािे या आिेप को अनज्ञ
ु ात करे गा; या

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(ग) कुकी को क्रकिी व्यर्क्त के पि में क्रकिी बन्धक, भार या अन्य हित के अधीन जार रखेगा; या
(घ) ऐिा आदे श पाररत करे गा जो िि मामले की पररर्स्थनतयों में ठीक िमझे ।

(4) जिां क्रकिी दािे या आिेप पर न्यायननणियन इि ननयम के अधीन क्रकया गया िै ििां उि पर
क्रकए गए आदे श का िि बल िोगा और िि अपील या अन्य बातों के बारे में िैिी ि शतों के अधीन िोना
मानो िि डडिी िो ।

(5) जिां कोई दािा या आिेप क्रकया जाता िै और न्यायालय उपननयम (1) के परन्तक
ु के अधीन
उिे ग्रिण करने िे इंकार करता िै ििा िि पिकार र्जिके विरुद्ध ऐिा आदे श क्रकया जाता िै उि
अधधकार को सिद्ध करने के सलए र्जिके सलए िि वििादग्रस्त िम्पवि में दािा करता िै , िाद िंर्स्थत कर
िके गा; क्रकन्तु ऐिे िाद के, यहद कोई िो, पररणाम के अधीन रिते िुए दािे या आिेप को ग्रिण करने िे
इि प्रकार इन्कार करने िाला आदे श ननश्चायक िोगा ।
59. वििय को रोकना- जिां कुकि की गई िम्पवि दािे या आिेप के क्रकए जाने िे पि
ू ि वििय के
सलए विज्ञावपत की जा चुकी िै ििां न्यायालय-
(क) यहद िम्पवि जंगम िै तो दािे का आिेप न्यायननणियन तक के सलए वििय को मप
ु तिी करने
का आदे श दे िकेगा, या
(ख) यहद िम्पवि स्थािर िै तो यि आदे श दे िकेगा क्रक दािे या आिेप के न्यायननणियन तक
िम्पवि का वििय नि ं क्रकया जाएगा या ऐिे न्यायननणियन तक िम्पवि का वििय क्रकया जा िकता िै
क्रकन्तु वििय को पष्ु ट नि ं क्रकया जाएगा,
और ऐिा कोई आदे श प्रनतभनू त या अन्य बातों के बारे में ऐिे ननबन्धनों और शतों के अधीन क्रकया
जा िकेगा जो न्यायालय ठीक िमझे ।

ननयम 60 िे 64 ननरसित (ि. अधधननयम 104 िन ् 1976 द्िारा)

वििय िाधारणत:
64. कुकव की गई िम्पवि के वििय क्रकए जाने और उिके आगम िकदार व्यस्तत क हदए जाने के
सलए आदे श करने की शस्तत- डडिी का ननष्पादन करने िाला कोई भी न्यायालय आदे श कर िकेगा क्रक
उिके द्िारा कुकि की गई और वििय के दानयत्ि के अधीन क्रकिी भी िम्पवि या उिके ऐिे भाग का जो
डडिी की तर्ु ष्ट के सलए आिश्यक प्रतीत िो, वििय क्रकया जाए और ऐिे वििय के आगम या उनका पयािप्त
भाग उि पिकार को दे हदया जाए जो डडिी के अधीन उन्िें पाने का िकदार िै ।
उच्च न्यायालय िंशोधन
पटना उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- शब्दों ''इिके द्िारा कुकि'' के स्थान पर शब्दों ''र्जिके िंबध

में इिने कुकि का आदे श क्रकया िै '' को आदे श 21 ननयम 66 में क्रकया गया िै ।
शब्दों ''और वििय के दानयत्ि के अधीन'' के स्थान पर ''और जो वििय के दानयत्ि के अधीन िै ''
क्रकया गया िै ।

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65. वििय क्रकिके द्िारा िंचासलत क्रकए जाएं और कैिे क्रकए जाएं- जैिा अन्यथा विहित िै उिे छोडकर,
डडिी के ननष्पादन में क्रकया जाने िाला िर वििय न्यायालय के अधधकार द्िारा या क्रकिी ऐिे अन्य
व्यर्क्त द्िारा र्जिे न्यायालय इि ननसमि करे , िंचासलत क्रकया जाएगा और विहित र नत िे लोक ननलाम
द्िारा क्रकया जाएगा ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


म.प्र. उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- ननयम 65 में ननम्न को जोड़ा गया-
''ऐिा अधधकार या व्यर्क्त वििय पर उच्चतम बोल लगाने िाले को िेता के रूप में घोवषत करने
के सलए ििम िोगा परन्तु यि क्रक जिां क्रक न्यायाल न कि में अथिा उिकी प्रिीमाओं के भीतर वििय
क्रकया जाता िै तो ऐिी घोषणा न्यायालय की अनम
ु नत के बबना की जाएगी ।''

पटना उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- आदे श 21 ननयम 68 के उपननयम (2) में इन शब्दों को
विलोवपत क्रकया गया िै -
“डडिीदार और ननणीत ऋणी को िच
ू ना हदए जाने के पश्चात ् तैयार की जाएगी ।''

66. लोक नीलाम द्िारा क्रकए जाने िाले विियों की उद्घोषणा- (1) जिां क्रकिी िम्पवि का क्रकिी
डडिी के ननष्पादन में लोक ननलाम द्िारा वििय क्रकए जाने का आदे श क्रकया गया िै ििां न्यायालय
आशनयत वििय की उद्घोषणा उि न्यायालय की भाषा में कराएगा ।
(2) ऐिी उद्घोषणा डडिीदार और ननणीतऋणी को िच
ू ना हदए जाने के पश्चात ् तैयार की जाएगी
और उिमें वििय का िमय और स्थान कधथत िोगा और ननम्नसलणखत बातें यथािंभि ऋजुता और
यथाथिता िे विननहदि ष्ट िोंगी-
(क) िि िम्पवि र्जिका वििय क्रकया जाना िै 1[या जिां िम्पवि का कोई भाग डडिी की तर्ु ष्ट के
सलए पयािप्त िोगा ििां िि भाग];
(ख) जिां िि िम्पवि र्जिका वििय क्रकया जाना िै , िरकार को राजस्ि दे ने िाल क्रकिी िम्पदा में
या िम्पदा के भाग में कोई हित िै ििा उि िम्पदा पर या िम्पदा के भाग पर ननधािररत राजस्ि;
(ग) कोई विपलगम र्जिके सलए िि िम्पवि दायी िो;
(घ) िि रकम र्जिकी ििल
ू के सलए वििय आहदष्ट क्रकया गया िै ; तथा
(ड.) िर अन्य बात र्जिके बारे में न्यायालय का विचार िै क्रक िम्पवि की प्रकृनत और मप
ू य का
ननणिय करने के सलए उिकी जानकार िेता के सलए तार्त्िक िै :

2
[परन्तु जिां उद्घोषणा के ननबन्धनों को तय करने की तार ख की िच
ू ना ननयम 54 के अधीन
क्रकिी आदे श के माध्यम िे ननणीतऋणी को द गई िै ििां जब तक क्रक न्यायालय अन्यथा ननदे श न दे
ननणीतऋणी को इि ननयम के अधीन िच
ू ना दे ना आिश्यक नि ं िोगा :
परन्तु यि और क्रक इि ननयम की क्रकिी बात का यि अथि नि ं लगाया जाएगा क्रक िि न्यायालय

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िे यि अपेिा करती िै क्रक िि वििय की उद्घोषणा में िम्पवि के मप
ू य की बाबत अपने प्राक्कलन प्रविष्ट
करें क्रकन्तु उद्घोषणा के अन्तगित दोनों पिकारों या उनमें िे क्रकिी के द्िारा हदया गया प्राक्कलन यहद
कोई िो िोगा ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 72 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्तःस्थावपत क्रकया गया ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 72 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्तःस्थावपत क्रकया गया |

(3) इि ननयम के अधीन वििय के आदे श के सलए िर आिेदन के िाथ एक ऐिा कथन िोगा
असभिचनों के िस्तािर और ित्यापन के सलए इिमें इिके पि
ू ि विहित र नत िे िस्तािररत और ित्यावपत
क्रकया गया िो और उद्घोषणा में विननहदिष्ट क्रकए जाने के सलए उपननयम (2) द्िारा अपेक्षित बातें उिमें
ििां तक अन्तवििष्ट िोंगी जिां तक क्रक ित्यापन करने िाले व्यर्क्त को िे ज्ञात िों या उिके द्िारा
असभननर्श्चत की जा िकती िों ।
(4) न्यायालय उन बातों को असभननर्श्चत करने के प्रयोजन िे जो उद्घोषणा में विननहदि ष्ट की जानी
िै , क्रकिी भी ऐिे व्यर्क्त को िमन कर िकेगा र्जिे िि िमन करना आिश्यक िमझे और िैिी क्रकन्ि ं
बातों के बारे में उिकी पर िा कर िकेगा और उििे अपेिा कर िकेगा क्रक िि उििे िम्बर्न्धत अपने
कब्जे या शर्क्त में की क्रकिी दस्तािेज को पेश करे ।
'
उच्च न्यायालय िंशोधन
म. प्र. उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- ननयम 66 में उपननयम (2) मे खंड (ड.) में
ननम्न शब्दों को जोड़ा गया-
'' डडिी िोपडर के प्राक्कसलत अनम
ु ाननत बाजारु मप
ू य ''

67. उद्घोषणा करने की रीनत- (1) िर उद्घोषणा जिां तक िो िके ऐिी र नत िे


की जाएगी और प्रकासशत की जाएगी जो ननयम 54 के उपननयम (2) द्िारा विहित िै ।
(2) जिां न्यायालय ऐिा ननदे श दे ता िै ििां ऐिी उद्घोषणा राजपत्र या स्थानीय िमाचार
पत्र में भी या दोनों में प्रकासशत का जाएगी और ऐिे प्रकाशन के खचे वििय के खचे िमझे जाएंगे |
(3) जिां िम्पवि पथ
ृ क रूप िे वििय क्रकए जाने के प्रयोजन िे लाटों में विभार्जत की गई
िै ििा पर िर एक लाट के सलए पथ
ृ क् उद्घोषणा करना तब तक आिश्यक नि ं िोगा जब तक क्रक
न्यायालय की यि राय न िो क्रक वििय की उधचत िच
ू ना अन्यथा नि ं द जा िकती ।
उच्च न्यायालय िंशोधन
पटना उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- ननयम 67 (1) के अंत में पण
ू वि िराम को लप्ु त कर
ननम्नानि
ु ार शब्दों को प्रनतस्थावपत करे -
और यहद न्यायालय ऐिा ननदे श करता िै तो डडिीधार के आिेदन कुकी आदे श के िाथ - िाथ
उद्घोषणा की जाए और प्रकासशत की जाए ।

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68. वििय का िमय- ननयम 43 के परन्तक
ु में िणणित क्रकस्म की िम्पवि की दशा में के सििाय
इिके अधीन कोई भी वििय ननणीतऋणी की सलणखत ििमनत के बबना तब तक न िोगा जब तक क्रक उि
तार ख िे र्जिको उद्घोषणा की प्रनत वििय का आदे श दे ने िाले न्यायधीश के न्याय - िदन में लगाई गई
िै गणना करके स्थािर िम्पनत की दशा में कम िे कम 1[पन्द्रि हदन] का और जंगम िम्पवि की दशा में
कम िे कम 2[िात हदन] का अििान न िो गया िो ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 72 द्िारा (1.2.1977 िे) “तीि हदन” के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया |
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 72 द्िारा (1.2.1977 िे) “पन्द्रि हदन” के स्तन पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया |

69. वििय का स्थगन या रोका जाना—(1) न्यायालय इिके अधीन वििय को क्रकिी भी विननहदि ष्ट
हदन और घण्टे तक के सलए स्िवििेकानि
ु ार स्थधगत कर िकेगा और ऐिे क्रकिी वििय का िचालन करने
िाला अधधकार स्थगन के अपने कारणों को लेखबद्ध करते िुए वििय को स्िवििेकानि
ु ार स्थाधगत कर
िकेगा:
परन्तु जिां वििय न्याय-िदन में या उिकी प्रिीमाओं के भीतर क्रकया जाता िै ििां ऐिा कोई भी
स्थगन न्यायालय की इजाजत के बबना नि ं क्रकया जाएगा ।
(2) जिां वििय 1[तीि हदन] िे अधधक की अिधध के सलए उपननयम (1) के अधीन स्थधगत क्रकया
जाता िै ििां, तब के सििाय जब क्रक ननणीतऋणी उिका अधधत्यजन करने के सलए अपनी ििमनत दे दे ,
ननयम 67 के अधीन नई उद्घोषणा की जाएगी ।
(3) यहद लाट के सलए बोल के िमाप्त िोने िे पिले ि ऋण और खचे (वििय के खचों के िहित)
वििय का िंचालन करने िाले अधधकार को ननविदि कर हदए जाते िैं या उिको िमाधानप्रद रुप में यि
िबत
ू दे हदया जाता िै क्रक ऐिे ऋण की रकम और खचे उि न्यायालय में जमा करा हदए गए िैं र्जिने
वििय के सलए आदे श हदया था तो ऐिा िर वििय रोक हदया जाएगा ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- ननयम 69 (2) के स्थान पर ननम्नानि
ु ार को
प्रनतस्थावपत करें -
'' (2) जिााँ उपननयम (1) के अंतगित एक बार वििय स्थधगत कर हदया गया िै , तो 67 ननयम 67
के अंतगित निीन उद्घोषणा की जाएगी, जब तक क्रक ननणीतऋणी इिको अधधत्यर्जत करने की ििमनत
नि ं दे ता िै :
परन्तु यि क्रक जिााँ मल
ू तौर पर वििय की गई तार ख िे 30 हदििों िे अनाधधक अिधध के सलए स्थगन
नि ं क्रकया गया िै , तो निीन उदघोषणा आिश्यक नि ं िोगी :

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 72 द्िारा (1.2.1977 िे) '' िात हदन '' के स्थान पर

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प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

परन्तु यि भी क्रक न्यायालय क्रकिी ननणीतऋणी जो क्रक ननयम 66 के अंतगित जार िच


ू ना का
उिरदे ने के सलए उपर्स्थत िोने में विफलता रिा िै , की ििमनत िे असभमर्ु क्त भी दे िकेगा ।

पटना उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- आदे श 21 के ननयम 69 में उपननयम (2) में ननम्न परं तक

जोड़ा गयािै -
“परं तक
ु न्यायालय क्रकिी ननणीत ऋणी की ििमनत िे जो कायििाि में उपर्स्थत नि ं िुआ िै ''

70. [कुछ विियों की व्यािवृ ि ।]- सिविल प्रक्रिया िंहिता (िंशोधन) अधधननयम, 1956 (1956 का
66) की धारा 14 द्िारा ननरसित ।

71. व्यनतिम करने िाला िेता पन ु विविय में िुई िानन के सलए उिरदायी िोगा- िेता के व्यनतिम
के कारण िोने िाले पन
ु विििय में जो कमी कीमत में िो जाए, िि और ऐिे पन ु विििय में िुए िब व्यय उि
अधधकार या अन्य व्यर्क्त द्िारा जो वििय करता िै , न्यायालय 1***
को प्रमाणणत क्रकए जाएंगे और िि
व्यनतिम करने िाले िेता िे या तो डडिीदार या ननणीतऋणी की प्रेरणा पर उन उपबन्धों के अधीन ििल
ू य
िोंगे जो धन के िंदाय की डडिी के ननष्पादन िे िम्बर्न्धत िैं ।

72. अनज्ञ
ु ा के बबना डििीदार िम्पवि के सलए न बोली लगायेगा और न उिका िय करे गा—(1)
र्जि डडिी के ननष्पादन में िम्पवि का वििय क्रकया जाता िै उि डडिी का कोई भी धारक न्यायालय की
असभव्यक्त अनज्ञ
ु ा के बबना िम्पवि के सलए न तो बोल लगाएगा और न उिका िय करे गा ।
(2) जिां डििीदार िय करता िै ििां डििी की रकम िंदाय मानी जा िकेगी- जिां डडिीदार ऐिी
अनज्ञ
ु ा िे िय करता िै ििां ियधन और डडिी मद्धे शोध्य रासश, धारा 73 के उपबन्धों के अधीन रिते
िुए, एक दि ू रे के विरुद्ध गजु रा की जा िकेगी और डडिी का ननष्पादन करने िाला न्यायालय डडिी की
पणू त
ि : या भागत: तर्ु ष्ट की प्रविर्ष्ट तदनि
ु ार करे गा ।
(3) जिां डडिीदार ऐिी अनज्ञ
ु ा के बबना स्ियं या क्रकिी अन्य व्यर्क्त के माध्यम िे िय करता िै
ििां यहद न्यायालय ननणीतऋणी के या क्रकिी अन्य व्यर्क्त के र्जिके हित वििय िे प्रभावित िोते िैं
आिेदन पर ऐिा करना ठीक िमझे तो िि वििय को आदे श द्िारा अपास्त कर िकेगा और ऐिे आिेदन
और आदे श के खचे और कीमत में की कोई कमी जो पन
ु विििय पर िो, और ऐिे पन
ु विििय में िुए िभी
व्यय डडिीदार द्िारा हदए जाएंगे ।

1. 1956 के अधधननयम िं. 66 की धारा 14 द्िारा ''या, यथार्स्थनत, कलेक्टर या कलेक्टर के


अधीनस्थ अधधकार '' शब्दो का लोप |

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उच्च न्यायालय िंशोधन
इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- आदे श 21 ननयम 72 में ननम्न िंशोधन क्रकए गए िैं-
(1) उपननयम (1) ि (3) को विलोवपत कर हदया गया िै ।
(2) उपननयम (2) को ननयम 72 के रुप में कर हदया िै , परं तु इिके शब्दों ''ऐिी अनज्ञ
ु ा के
िाथ'' को ''वििीत िंपवि'' कर हदया गया िै । [अधधिच
ू ना िमांक 4084/35 (क)-3(7) हदनांक
24.7.1926 ।]

पटना उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- (1) उपननयम (1) को ननम्न प्रकार प्रनतस्थावपत क्रकया गया
िै -
'' (1) कोई डडिी िोपडर र्जिकी िंपवि ननष्पादन में वििय की गई िै , बोल लगाने िे या िय
करे न िे प्रविरत नि ं िोगा, जब तक क्रक इि आशय का व्यक्त आदे श न्यायालय द्िारा पाररत न क्रकया
गया िो ''
(2) उपननयम (2) को िंशोधधत क्रकया गया िै । इिमें शब्दों ''ऐिी अनज्ञ
ु ा के िाथ'' को िटाकर
इिके स्थान पर शब्द “िंपवि” क्रकया गया िै |
(3) उपननयम (3) को भी प्रनतस्थावपत क्रकया गया िै -
“(3) उपननयम (1) के अंतगित क्रकए आदे श के िोते िुए भी जिााँ डडिी िोपडर स्ियं के सलए िंपवि
िय करता िै , न्यायालय ननणीत ऋणी या क्रकिी अन्य व्यर्क्त के आिेदन पर र्जिके हित वििय िे
प्रभावित िुए िैं, के आिेदन पर आदे श द्िारा वििय अपास्त कर िकेगा और ऐिे आिेदन का खचि और
आदे श और मप ू य की कोई कमी जो क्रक पनु विििय के कारण िो िकती िै और िभी व्ययों जो इिका
दे खभाल करने में िो न्यायालय के वििेक पर िोगा । ''

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 72 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया गया ।

[72क. बंधकदार द्िारा न्यायालय की इजाजत के बबना वििय में बोली का न लगाया जाना- (1)
1

ननयम 72 में क्रकिी बात के िोते िुए भी, स्थािर िम्पवि का कोई बंधकदार बन्धक पर डडिी के ननष्पादन
में विक्रित िम्पवि के सलए बोल नि ं लगाएगा या उिे िय नि ं करे गा जब तक क्रक न्यायालय उिे उि
िम्पवि के सलए बोल लगाने या उिे िय करने की इजाजत न दे दे ;
(2) यहद ऐिे बन्धकदार को बोल लगाने की इजाजत द जाती िै तो न्यायालय बन्धकदार के
िम्बन्ध में कोई आरक्षित कीमत ननयत करे गा और जब तक क्रक न्यायालय अन्यथा ननदे श न दे आरक्षित
कीमत-
(क) यहद िम्पवि का वििय एक लाट में क्रकया जाता िै तो बंधक के िंबध
ं में मल
ू धन ब्याज और
खचे मद्धे उि िमय शोध्य रकम िे कम नि ं िोगी; और
(ख) क्रकिी िम्पवि का वििय लाटों में क्रकए जाने की दशा में उतनी रासश िे कम नि ं िोगी र्जतनी
प्रत्येक लाट के िम्बन्ध में न्यायालय को यि प्रतीत िो क्रक िि बन्धक पर मल
ू धन ब्याज और खचे मद्धे
उि िमय शाध्य रकम के िम्बन्ध में उि लाट के सलए उधचत मानी जा िकती िै |

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(3) अन्य मामलों में , ननयम 72 के उपननयम (2) और (3) के उपबन्ध उि ननयम के अधीन
डडिीदार द्िारा िय के िम्बन्ध में लागू िोंगे ।

73. अधधकाररयों द्िारा बोली लगाने या िय करने का ननबवन्धन- कोई भी अधधकार या अन्य
व्यर्क्त र्जिे क्रकिी वििय के िम्बन्ध में क्रकिी कतिव्य का पालन करना िो वििय की गई िम्पवि में के
क्रकिी हित के सलए न तो प्रत्य ि और न अप्रत्यि रूप िे बोल लगाएगा और न उिे अर्जित करे गा और न
अर्जित करने का प्रयत्न करे गा |

जंगम िम्पवि का वििय


74. कृवष उपज का वििय- (1) जिां वििय की जाने िाल िम्पवि कृवष उपज िै ििां वििय-
(क) यहद ऐिी उपज उगती फिल िै तो उि भसू म पर या उिके पाि क्रकया जाएगा र्जिमें ऐिी
फिल उगी िै अथिा
(ख) यहद ऐिी उपज काट जा चुकी िै या इकटठी की जा चुकी िै तो उि खसलिान पर या अनाज
गािने के स्थान या तदप
ु स्थान या चारे के ढे र पर या उिके पाि र्जि पर या र्जिमें िि ननक्षिप्त की गई
िै क्रकया जाएगा :
परन्तु यहद न्यायालय की यि राय िै क्रक िैिा करने िे उपज का अधधक फायदे पर वििय क्रकया
जा िकता िै तो िि यि ननदे श दे िकेगा क्रक वििय लोक िमागम के ननकटतम स्थान पर क्रकया जाए ।
(2) जिां उपज वििय के सलए परु ोधत
ृ क्रकए जाने पर-
(क) वििय करने िाले व्यर्क्त के अनम
ु ान िे उिके सलए ऋजु मप
ू य की बोल नि ं लगाई गई िै ,
तथा
(ख) उि उपज का स्िामी या उिकी ओर िे कायि करने के सलए प्राधधकृत व्यर्क्त वििय को
आगामी हदन तक या यहद वििय के स्थान पर िाट लगती िो तो अगल िाट के हदन तक के सलए मप
ु तिी
करने के सलए आिेदन करता िै ,
ििां वििय तदनि
ु ार मप
ु तिी कर हदया जाएगा और तत्पश्चात उपज के सलए चािे कोई भी कीमत
लगे वििय परू ा कर हदया जाएगा |

75. उगती फिलों के िम्बन्ध में विशेष उपबन्ध- (1) जिां वििय की जाने िाल िम्पवि उगती
फिल िै और फिल अपनी प्रकृनत िे ऐिी िै जो भण्डार में रखने के योग्य िै क्रकन्तु तब तक भण्डार में
नि ं रखी गई िै ििां वििय का हदन ऐिे ननयत क्रकया जाएगा क्रक उि हदन के आने िे पिले िि भण्डार में
रखने के योग्य िो जाए और वििय तब तक नि ं क्रकया जाएगा जब तक फिल काट नि ं ल गई िै या
इकटठी नि ं कर ल गई िै और भण्डार में रखने के योग्य नि ं िो गई िै |
(2) जिां फिल अपनी प्रकृनत िे ऐिी नि ं िै जो भण्डार में रखने के योग्य िै ििां उिका काट
जाने और इकदठी की जाने िे पिले वििय क्रकया जा िकेगा और िेता भसू म पर प्रिेश करने और उिकी
दे खभाल करने और काटने या इकरत करने के प्रयोजन िे िभी आिश्यक बातें करने का िकदार िोगा ।

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उच्च न्यायालय िंशोधन
म.प्र. उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- ननयम 76 के उपननयम (2) मे आये शब्द '' '' के उपरांत
शब्द ''जिां न्यायालय को यि प्रतीत िोता िै क्रक फिल को बबना पकी दशा में अधधक फायदे में वििय
क्रकया जा िकता िै ।''

पटना उच्च न्यायालय िारा िंशोधन- अधधिच


ू ना िमांक 1 -आर हदनांक 7.1.1936 के द्िारा आदे श
21 ननयम 75 ननम्न प्रकार प्रनतस्थावपत क्रकया गया िै-
''75 जिााँ वििय की जाने िाल िंपवि में खड़ी फिल िै जो गैर कट या अपररपक्ि दशा में अधधक
लाभ िे वििय की जा िकती िै , इिे बबना फिल के वििय क्रकया जाएगा और िेता भसू म पर िि िभी
करने का अधधकार िोगा जो इिे दे ने काटने और मरम्मत करने के प्रयोजन के सलए आिश्यक िो । अन्य
िभी मामलों में वििय का हदन ऐिा ननयत क्रकया जाएगा क्रक फिल काटने को वििय के पि
ू ि मान्य क्रकया
जा िके ।''

76. परिाम्य सलखतें और ननगमों के अंश- जिां वििय की जाने िाल िम्पवि परिाम्य सलखत या
ननगम-अंश िै ििां न्यायालय लोक नीलाम द्िारा वििय क्रकए जाने के सलए ननदे श दे ने के बजाय यि
प्राधधकृत कर िकेगा क्रक ऐिी सलखत या अंश का वििय क्रकिी दलाल की माफित क्रकया जाए ।

77. लोक नीलाम द्िारा वििय—(1) जिां जंगम िम्पवि को लोक नीलाम द्िारा वििय क्रकया जाता
िै ििां िर एक लाट का मप
ू य वििय के िमय पर िंदि क्रकया जाएगा या उिके पश्चात ् शीघ्र ि ऐिे िमय
पर िंदि क्रकया जाएगा जो िि अधधकार या अन्य व्यर्क्त ननहदि ष्ट करे जो वििय कर रिा िै , और िंदाय
में व्यनतिम िोने पर िम्पवि का तत्िण ि क्रफर वििय क्रकया जाएगा ।
(2) ियधन का िंदाय कर हदए जाने पर उिके सलए रिीद िि अधधकार या अन्य व्यर्क्त दे गा जो
वििय कर रिा िै और वििय आत्यर्न्तक िो जाएगा ।
(3) जिां विि य की जाने िाल जंगम िम्पवि ऐिे माल में अंश िै जो माल ननणीतऋणी और
क्रकिी िि-स्िामी का िै , और दो या अधधक व्यर्क्त र्जनमें िे एक ऐिा िि-स्िामी िै , िमश: ऐिी िम्पवि
या उिके क्रकिी लाट के सलए एक िी ि रासश की बोल लगाते िैं िि बोल उि िि- स्िामी की बोल
िमझी जाएगी ।

78 अननयसमतता वििय को दवू षत निें करे गी क्रकन्तु कोई िी व्यस्तत, स्जिे क्षनत िुई िै , िाद ला
िकेगा-- जंगम िम्पवि के वििय के प्रकाशन या िंचालन में की कोई भी अननयसमतता वििय को दवू षत
नि ं करे गी क्रकन्तु र्जि क्रकिी व्यर्क्त को कोई िनत ऐिी अननयसमतता के कारण क्रकिी अन्य व्यर्क्त
द्िारा िुई िै िि उिके विरुद्ध प्रनतकर के सलए था (यहद िि अन्य व्यर्क्त िेता िै ) तो उिी विननहदि ष्ट
िम्पवि के प्रत्यद्
ु धरण के सलए और ऐिे प्रत्यद्
ु धरण में व्यनतिम िोने पर प्रनतकर के सलए िाद ला िकेगा

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79. जंगम िम्पनत-ऋणी और अंशों का पररदान- (1) जिां वििय की गई िम्पवि ऐिी जंगम
िम्पवि िै र्जिका िास्तविक असभग्रिणकर सलया गया िै ििां िि िेता को पररदि की जाएगी ।
(2) जिां वििय की गई िम्पवि ननणीतऋणी िे सभन्न क्रकिी व्यर्क्त के कब्जे में की जंगम
िम्पवि िै ििां िेता को उिका पररदान कब्जा रखने िाले व्यर्क्त को यि प्रनतषेध करने िाल िच
ू ना दे कर
क्रकया जाएगा क्रक िि उि पर कब्जा िेता के सििाय क्रकिी अन्य व्यर्क्त को न दे ।
(3) जिां वििय की गई िम्पवि ऐिा ऋण िै जो क्रकिी परिाम्य सलखत द्िारा प्रनतभत
ू नि ं िै या
ननगम-अंश िै ििां उिका पररदान न्यायालय के ऐिे सलणखत आदे श द्िारा क्रकया जाएगा जो उि ऋण को
या उि मद्धे क्रकिी ब्याज को लेने िे लेनदार को और उिका िंदाय िेता को करने के सििाय क्रकिी अन्य
व्यर्क्त को करने िे ऋणी को प्रनतवषद्ध करता िै या जो उि व्यर्क्त को र्जिके नाम िि अंश उि िमय
िै , अंश का कोई भी अन्तरण िेता को करने के सििाय क्रकिी अन्य व्यर्क्त को करने िे या उि मद्धे
क्रकिी भी लाभांश या ब्याज का िंदाय प्राप्त करने िे और उि ननगम के प्रबंधक, िधचि या अन्य उधचत
अधधकार को ऐिे क्रकिी भी अन्तरण के सलए अनज्ञ
ु ा या ऐिा कोई भी िंदाय िे ता को दे ने या करने के
सििाय क्रकिी भी अन्य व्यर्क्त को दे ने या करने िे प्रनतवषद्ध करता िै ।

80. परिाम्य सलखतों और अंशों का अन्तरण- (1) जिां दस्तािेज का ननष्पादन या उि पिकार
द्िारा पष्ृ ठांकन र्जिके नाम में िि परिाम्य सलखत या ननगम-अंश उि िमय िै , ऐिी परिाम्य सलखत के
या अंश के अन्तरण के सलए अपेक्षित िै ििां न्यायाधीश या ऐिा अधधकार र्जिे िि इि ननसमि ननयक्
ु त
करें , ऐिी दस्तािजे का ननष्पादन कर िकेगा या ऐिा पष्ृ ठांकन कर िकेगा जो आिश्यक िो और ऐिे
ननष्पादन या पष्ृ ठांकन का िि प्रभाि िोगा जो पिकार द्िारा क्रकए गए ननष्पादन या पष्ृ ठांकन का िोता िै
(2) ऐिा ननष्पादन या पष्ृ ठांकन ननम्नसलणखत प्ररुप में क्रकया जा िकेगा, अथाित ्:-
क ख, के विरुद्ध ङ च द्िारा लाए गए िाद में क ख की ओर िे........ न्यायालय का न्यायाधीश (या
यथार्स्थनत ग घ ।
(3) न्यायालय ऐिी परिाम्य सलखत या ऐिे अंश का अन्तरण िोने तक आदे श द्िारा क्रकिी व्यर्क्त
को इिसलए ननयक्
ु त कर िकेगा क्रक िि उि पर शोध्य क्रकिी ब्याज या लाभांश को प्राप्त करे और उिके
सलए रिीद पर िस्तािर करे और इि प्रकार िस्तािररत कोई भी रिीद िभी प्रयोजनों के सलए ऐिे ि
मान्य और प्रभािी िोगी मानो स्ियं पिकार ने उि पर िस्तािर क्रकए िों ।

81. अन्य िम्पवि की दशा में ननहित करने िाला आदे श- क्रकिी ऐिी जंगम िम्पवि की दशा में
र्जिके सलए इिमें इिके पि
ू ि उपबन्ध नि ं क्रकया गया िै , न्यायालय ऐिी िम्पवि को िेता में या जैिा
ननदे श िेता दे उिके अनि
ु ार ननहित करने िाला आदे श कर िकेगा और ऐिी िम्पवि तदनि
ु ार ननहित िोगी

स्थािर िंपवि का वििय


82. कौन िे न्यायालय विियों के सलए आदे श कर िकेंगे- डडक्रियों का ननष्पादन करने में स्थािर
िम्पवि के विियों के सलए आदे श लधुिाद न्यायालय िे सभन्न क्रकिी भी न्यायालय द्िारा क्रकया जा िके
गा ।

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83. वििय का इिसलए मल्
ु तिी क्रकया जाना क्रक ननणीतऋणी डििी की रकम जट
ु ा िके- (1) जिां
स्थािर िम्पवि के वििय के सलए आदे श क्रकया जा चक
ु ा िै ििां यहद ननणीतऋणी न्यायालय का िमाधान
कर िके क्रक यि विश्िाि करने के सलए कारण िै क्रक डडिी का धन ऐिी िम्पवि या उिके भाग के, या
ननणीत-ऋणी की क्रकिी अन्य स्थािर िम्पवि के, बंधक या पट्टे या प्राइिेट वििय द्िारा जट
ु ाया जा िकता
िै तो उिके आिेदन पर न्यायालय वििय के आदे श में िमाविष्ट िम्पवि के वििय को ऐिे ननबन्धनों पर
और ऐिी अिधध के सलए जो िि उधचत िमझे, इिसलए मप
ु तिी कर िकेगा क्रक उि रकम को जट
ु ाने में िि
िमथि िो जाए ।
(2) ऐिी दशा में न्यायालय ननणीतऋणी को ऐिा प्रमाणपत्र दे गा जो उिमें िणणित अिधध के भीतर
और धारा 64 में क्रकिी बात के िोते िुए भी प्रस्थावपत बन्धक, पट्टा या वििय करने के सलए उिे प्राधधकृत
करता िै :
परन्तु ऐिे बन्धक-पड़े या वििय के अधीन िंदेय िभी धन ििां तक के सििाय जिां तक क्रक
डडिीदार ऐिे धन के ननयम 72 के उपबन्धों के अधीन मज
ु रा करने का िकदार िै न्यायालय को हदए
जाएंग,े न क्रक ननणीतऋणी को:
परन्तु यि और भी क्रक इि ननयम के अधीन कोई भी बन्धक, पट्टा या वििय तब तक आत्यर्न्तक
नि ं िोगा जब तक क्रक िि न्यायालय द्िारा पष्ु ट न कर हदया जाए ।
(3) इि ननयम की क्रकिी भी बात के बारे में यि नि ं िमझा जाएगा क्रक िि ऐिी िम्पवि के
वििय को लागू िोती िै र्जिके बारे में ऐिी िम्पवि के बन्धक या उि िम्पवि पर के भार का प्रितिन
कराने के सलए वििय की डडिी के ननष्पादन में वििय क्रकए जाने का ननदे श हदया गया िै |

84. िेता द्िारा ननक्षेप और उिके व्यनतिम पर पन


ु विविय—(1) स्थािर िम्पवि के िर वििय पर
िि व्यर्क्त र्जिका िेता िोना घोवषत क्रकया गया िै , अपने ियधन की रकम के पच्चीि प्रनतशत का ननिेप
वििय का िचालन करने िाले अधधकार या अन्य व्यर्क्त को ऐिी घोषणा के तरु न्त पश्चात ् दे गा और ऐिा
ननिेप करने में व्यनतिम िोने पर उि िम्पवि का तत्िण क्रफर वििय क्रकया जाएगा ।
(2) जिां डडिीदार िेता िै और ियधन को ननयम 72 के अधीन मज
ु रा करने का िकदार िै ििां
न्यायालय इि ननयम की अपेिाओं िे असभमर्ु क्त दे िकेगा ।
उच्च न्यायालय िंशोधन
इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- आदे श 21 ननयम 84 के उपननयम (2) मे ननम्न और
जोड़ा गया िै -
“न्यायालय उि मामले में इि ननयम की अपेिाओं िे मर्ु क्त प्रदान नि ं करे गा र्जिमें िंपवियों के
आनप
ु ानतक वितरण का आिेदन िो'' । [अधधिच
ू ना िमांक 16699-एच हदनांक 17.1.1953 ।)

85. ियधन के परू े िंदाय के सलए िमय- ियधन की िंदेय परू रकम को िेता इिके पि
ू ि क्रक
िम्पवि के वििय िे पन्द्रििें हदन न्यायालय बन्द िो, न्यायालय में जमा कर दे गा:
परन्तु न्यायालय में ऐिे जमा की जाने िाल रकम की गणना करने में िेता क्रकिी भी ऐिे मज
ु रा

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का फायदा उठा िकेगा र्जिका िि ननयम 72 के अधीन िकदार िो ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


म.प्र. उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- म.प्र. में आदे श 21 ननयम 85 में ननम्नानि
ु ार स्पष्ट करण
जोड़ा गया-
''स्पष्टीकरण- जब कोई रासश हदन के 1 बजे के उपरांत द जाती िै परं तु न्यायालय में अगले कायि
हदिि में हदन के 11 बजे िे 1 बजे के मध्य भग
ु तान की जाती िै तो भग
ु तान उि हदनांक को िोना माना
जाएगा र्जि हदिि को भग
ु तान क्रकया गया था ।''

86. िंदाय में व्यनतिम िोने पर प्रक्रिया---- अर्न्तम पि


ू ि
ि ती ननयम में िणणित अिधध के भीतर
िंदाय करने में व्यनतिम िोने पर ननिेप, यहद न्यायालय ठीक िमझे तो वििय के व्ययों को काटने के
पश्चात ् िरकार को िमपित क्रकया जा िकेगा और िम्पवि का क्रफर िे वििय क्रकया जाएगा और उि
िम्पवि पर या र्जि रासश के सलए उिका तत्पश्चात ् वििय क्रकया जाए उिके क्रकिी भाग पर व्यनतिम
करने िाले िेता के िभी दािे िमप्रित िो जाएंगे ।

87. पन
ु विविय पर अधधिच
ू ना- स्थािर िम्पवि का िर पन
ु विििय जो ियधन का िंदाय उि अिधध
के भीतर करने में जो ऐिे िंदाय के सलए अनज्ञ
ु ात िै , व्यनतिम के कारण िोना िो, ऐिी र नत िे और ऐिी
अिधध के सलए जो वििय के सलए इिमें इिके पि
ू ि विहित की गई िै , नई उद्घोषणा ननकालने के पश्चात ्
क्रकया जाएगा ।

88. िि-अंशधारी की बोली को अधधमान प्राप्त िोगा- जिां वििीत िम्पवि अविभक्त स्थािर
िम्पवि का अंश िै , और दो या अधधक व्यर्क्त र्जनमें िे एक ऐिा िि-अंशधार िै , िमश: ऐिी िम्पवि या
उिके क्रकिी लाट के सलए एक िी ि रासश की बोल लगाते िै ििां िि बोल उि िि-अंशधार की बोल
िमझी जाएगी ।

89. ननक्षेप करने पर वििय को अपास्त कराने के सलए आिेदन- (1) जिां स्थािर िम्पवि का क्रकिी
डडिी के ननष्पादन में वििय क्रकया गया िै 1[ििां वििीत िम्पवि में वििय के िमय या आिेदन करने के
िमय क्रकिी हित का दािा करने िाला अथिा ऐिे व्यर्क्त के सलए या उिके हित में कायि करने िाला कोई
व्यर्क्त]-
(क) ियधन के पांच प्रनतशत के बराबर रकम िेता को िंदि क्रकए जाने के सलए, तथा
(ख) वििय की उदघोषणा में ऐिी रकम के रूप में र्जिकी ििल
ू के सलए वििय का आदे श हदया
गया था, विननहदि ष्ट रकम उिमें िे िि रकम घटाकर जो वििय की उद्घोषणा की तार ख िे लेकर तब तक
डडिीदार को प्राप्त िो चुकी िै , डडिीदार को िंदि क्रकए जाने के सलए,
न्यायालय में ननक्षिप्त करने पर वििय को अपास्त कराने के सलए आिेदन कर िकेगा ।
(2) जिां कोई व्यर्क्त अपनी स्थािर िम्पवि के वििय को अपास्त कराने के सलए आिेदन ननयम

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90 के अधीन करता िै ििां, जब तक क्रक िि अपना आिेदन लौटा न ले, िि इि ननयम के अधीन आिेदन
दे ने का या उिको आगे चलाने का िकदार नि ं िोगा ।
(3) इि ननयम की कोई भी बात ननणीतऋणी को ऐिे क्रकिी दानयत्ि िे अिमक्
ु त नि ं करे गी
र्जिके अधीन िि उन खचाि और ब्याज के िम्बन्ध में िो जो वििय की उद्घोषणा के अन्तगित नि ं आते

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 72 द्िारा (1.2.1977 िे) कुछ शब्दों के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


म.प्र. उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (16.9.1960)- ननयम 89 के उपननयम में आये शब्दो ''जिां
वििीत िंपवि ................................ कोई व्यर्क्त'' के स्थान पर शब्दों ''जिां व्यर्क्त जो क्रक ननणीतऋणी
िे हित िासिल करता िै या िंपवि में हित रखने िाला कोई व्यर्क्त'' को प्रनतस्थावपत क्रकया गया |

पटना उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- उपननयम (1) के पद 1 में शब्दों ''क्रकिी हित का दािा करने
िाला.............. कोई व्यर्क्त'' के स्थान पर इन शब्दों को प्रनतस्थावपत क्रकया गया-
''ननणीतऋणीं अथिा ननणीतऋणी की ओर िे िक िासिल करने िाला कोई व्यर्क्त अथिा इि ननयम
के अंतगित आिेदन की हदनााँक पर िम्पवि में हित रखने िाला कोई व्यर्क्त ।''

1
[90. वििय को अननयसमतता या कपट के आधार पर अपास्त कराने के सलए आिेदन- (1) जिां
क्रकिी डडिी के ननष्पादन में क्रकिी स्थािर िम्पवि क वििय क्रकया गया िै ििां डडिीदार या िे ता या ऐिा
कोई अन्य व्यर्क्त जो आर्स्तयों के आनप
ु ानतक वितरण में अंश पाने का िकदार िै या र्जिके हित वििय
के द्िारा प्रभावित िुए िैं वििय को उिके प्रकाशन या िंचालन में िुई तार्त्िक अननयसमतता या कपट के
आधार पर अपास्त कराने के सलए न्यायालय िे आिेदन कर िकेगा ।
(2) उिके प्रकाशन या िंचालन में िुई अननयसमतता या कपट के आधार पर कोई भी वििय तब
तक अपास्त नि ं क्रकया जाएगा जब तक िाबबत क्रकए गए तथ्यों के आधार पर न्यायालय का यि िमाधान
नि ं िो जाता िै क्रक ऐिी अननयसमतता या कपट के कारण आिेदक को िारिान ् िनत िुई िै ।
(3) इि ननयम के अधीन वििय को अपास्त कराने के सलए कोई आिेदन ऐिे क्रकिी आधार पर
ग्रिण नि ं क्रकया जाएगा र्जिे आिेदक उि तार ख को या उििे पि
ू ि आधार मान िकता था र्जिक क्रक
वििय की उद्घोषणा तैयार की गई थी ।

स्पष्टीकरण--- वििीत िम्पनत की कुकी का न िोना या कुकी में त्रहु ट अपने आप में इि ननयम के अधीन
क्रकिी वििय को अपास्त करने के सलए कोई आधार नि ं िोगी ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 72 द्िारा (1.2.1977 िे) ननयम 90 के स्थान पर

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प्रनतस्थावपत क्रकया ।
उच्च न्यायालय िंशोधन
म. प्र. उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (16.9.1960)- ननयम 90 के उपननयम (1) के उपरांत ननम्न
परं तक
ु को प्रनतस्थावपत क्रकया जाएगा-
'' परन्तु यि भी क्रक वििय को अपास्त करने के सलए कोई आिेदन ऐिे क्रकिी आधार पर ग्रिण
नि ं क्रकया जाएगा आिेदक द्िारा वििय आरं भ िोने के पि
ू ि रखा जा िकता था परन्तु नि ं रखा गया । ''
इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- आदे श 21 ननयम 90 के ितिमान ननयम को उपननयम
(1) कर हदया गया और इि उपननयम (1) में ननम्न परं तक
ु जोडा गया-
'' परं तु वििय अपास्त करने के सलए कोई आिेदन ग्रिण नि ं क्रकया जाएगा-
(क) ऐिे क्रकिी आधार पर जो क्रक आिेदक द्िारा इि हदनांक पर या उिके पि
ू ि सलया जा िकता था
जबक्रक वििय या उद्घोषणा तैयार की गई थी ।
(ख) जब तक आिेदक वििय द्िारा ििल
ू िोने िाल रासश के 12. 5 प्रनतशत िे अनाधधक ऐिी
रासश जमा नि ं करता िै या ऐिी प्रनतभनू त नि ं दे ता िै जो न्यायालय उिके वििेक िे ननयत करता िै
सििाय उिके जबक्रक असभसलणखत कारणों िे इि खण्ड की अपेिाओं िे मर्ु क्त दे ता िै । ''
उपननयम (2) के रुप में ननम्न िामग्री जोड़ी गई िै -
'' (2) जिााँ ऐिा आिेदन ननरस्त कर हदया जाता िै न्यायालय डडिी िोपडर या नीलामी िेता या
दोनों को ऐिे खचि हदला िकेगा जो यि उधचत िमझे और ऐिे खचि खण्ड (ख) के परं तक
ु में ननहटि ष्ट
प्रनतभनू त यहद कोई िो पर प्रथम प्रभार िोंगे । ''
[अधधिच
ू ना िमांक 43/VIID/29 हदनांक 1.6.1957 ।]

पटना उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- आदे श 21 ननयम 90 (1) में ननम्न परं तक
ु जोडा गया िै -
'' (1) परं तु वििय अपास्त करने के सलए कोई आिेदन ग्रिण नि ं क्रकया जाएगा-
(क) [***]
(ख) जब तक आिेदक ऐिे वििय िे ििल
ू रासश का 12.5 प्रनतशत िे अनाधधक ऐिी रासश जमा
नि ं करता िै या ऐिी अन्य प्रनतभनू त जो क्रक न्यायालय इिके वििेक िे ननयत करे जब तक क्रक न्यायालय
असभसलणखत कारणों िे जमा िे ननमक्
ुि त नि ं दे ता िै । ''
उपननयम (2) के रुप में ननम्न अंत : स्थावपत क्रकया गया िै -
'' (2) आिेदन विफल िोने की दशा में विपर त पिकार के खचि (1) और के परं तक
ु मे ननहदि ष्ट जमा
पर प्रथम प्रभार िोगा''
[अधधिच
ू ना िमांक 136 - आर हदनांक 11.9.1941 ि 290 - आर हदनांक 20.3.1942 ।]

91. वििय का इि आधार पर अपास्त कराने के सलए िेता द्िारा आिेदन क्रक उिमें ननणीतऋणी
का कोई वििय हित निीं था- डडिी के ननष्पादन में ऐिे क्रकिी भी वििय में का िेता वििय को अपास्त
कराने के सलए आिेदन न्यायालय िे इि आधार पर कर िकेगा क्रक वििय की गई िम्पवि में ननणीतऋणी
का कोई वििय हित नि ं था ।

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92. वििय कब आत्यंनतक िो जाएगा या अपास्त कर हदया जाएगा- (1) जिां ननयम 89, ननयम
90 या ननयम 91 के अधीन कोई भी आिेदन नि ं क्रकया गया िै या जिां ऐिा आिेदन क्रकया गया िै और
अननज्ञ
ु ात कर हदया गया िै ििां न्यायालय वििय को पष्ु ट करने िाला आदे श करे गा और तब वििय
आत्यंनतक िो जाएगा :
परं तु जिा क्रकिी िम्पवि का ऐिी िम्पवि के क्रकिी दािे का अंनतम ननपटारा िोने तक या उिकी
कुकी के सलए आिेप के लंबबत रिने तक डडिी के ननष्पादन में वििय क्रकया गया िै ििा न्यायालय ऐिे
वििय को ऐिे दािे या आिेप के अंनतम ननपटारे तक पष्ु ट नि ं करे गा ।
(2) जिां ऐिा आिेदन क्रकया गया िै और अनज्ञ
ु ात कर हदया गया िै और जिां ननयम 89 के अधीन
आिेदन की दशा में िि ननिेप जो उि ननयम द्िारा अपेक्षित िै वििय की तार ख िे 1[िाठ हदन] के भीतर
कर हदया गया िै या उि दशा में र्जिमें ननयम 89 के अधीन ननक्षिप्त रकम ननिेपकताि की ओर िे िुई
क्रकिी सलवपकीय या गणणत िंबध
ं ी भलू के कारण कम पाई जाती िै और ऐिी कमी इतने िमय के भीतर
परू कर द जाती िै र्जतना न्यायालय द्िारा ननयत क्रकया जाए ििां न्यायालय वििय को अपास्त करने
िाला आदे श करे गा :
पंरतु जब तक क्रक आिेदन कीं िच
ू ना उिके द्िारा प्रभावित िभी व्यर्क्तयों को न दे द गई िो
ऐिा कोई आदे श नि ं क्रकया जाएगा ।
2
[परं तु यि और क्रक इि उपननयम के अधीन ननिेप उन िभी मामलों में िाठ हदन के भीतर क्रकया
जा िकेगा जिा तीि हदन की अिधध र्जिके भीतर ननिेप क्रकया जाना था सिविल प्रक्रिया िंहिता (िंशोधन)
अधधननयम, 2002 के प्रारभ के पिले िमाप्त नि ं िुई िै ।

1. 2002 के अधधननयम िं. 22 की धारा 14 द्िारा (1-7-2002 िे) ''तीि हदन'' के स्थान पर
प्रनतस्थावपत ।
2. 2002 के अधधननयम िं. 22 की धारा 14 द्िारा (1-7-2002 िे) अतःस्थावपत ।

(3) इि ननयम के अधीन क्रकए गए आदे श को अपास्त कराने के सलए कोई भी िाद ऐिे क्रकिी
व्यर्क्त द्िारा नि ं लाया जाएगा र्जिके विरुद्ध ऐिा आदे श क्रकया गया िै ।
(4) जिां कोई अन्य पिकार नीलाम-िेता के विरुद्ध िाद फाइल करके ननणीतऋणी के िक को
चन
ु ौती दे ता िै ििां डडिीदार और ननणीतऋणी िाद के आिश्यक पिकार िोंगे ।
(5) यहद उपननयम (4) में ननहदि ष्ट िाद की डडिी दे द जाती िै तो न्यायालय डडिीदार को ननदे श
दे गा क्रक िि नीलाम-िेता को धन िापि कर दे और जिां ऐिा आदे श पाररत क्रकया जाता िै ििां ननष्पादन
की कायििाहियां र्जनमें वििय क्रकया गया था, उि दशा के सििाय र्जिमें न्यायालय अन्यथा ननदे श दे ता िै ,
उि प्रिम पर पन
ु : प्रिनतित की जाएंगी र्जि पर वििय का आदे श क्रकया गया था |]

उच्च न्यायालय िंशोधन


म. प्र. उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (16.9.1960)- ननयम 92 के उपननयम (1) में आये शब्दों

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''जिां ऐिा आिेदन क्रकया गया िैं ।'' के स्थान पर शब्दों ''जिां ऐिा आिेदन ननयम 58(2) के
प्रािधानों के अध्यधीन क्रकया गया िै '' को प्रनतस्थावपत कीर्जए ।

इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- ननयम 92 (1) में आए शब्दों ििााँ न्यायालय ....... ......
आदे श करे गा, के मध्य ननम्नानि
ु ार को जोडा गया- ''ननयम 58 (2) के प्रािधानों के अध्यधीन'' ।
(24.7.1926)
पटना उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- ननयम 92 (1) में आए शब्दों ििााँ न्यायालय ...............
............ आदे श करे गा, के मध्य ननम्नानि
ु ार को जोड़ा गया- ''ननयम 58 (2) के प्रािधानों के अध्यधीन'' ।

93. कुछ दशाओं में ियधन की िापिी- जिां स्थािर िम्पवि का वििय ननयम 92 के अधीन
अपास्त कर हदया जाता िै ििा िेता अपना ियधन ब्याज के िहित या रहित, जैिे भी न्यायालय ननहदष्ट
करे , िापि पाने का आदे श उि व्यर्क्त के विरुद्ध प्राप्त करने का िकदार िोगा र्जिे ियधन दे हदया गया
िै ।

94. िेता को प्रमाणपत्र- जिां स्थािर िम्पवि का वििय आत्यर्न्तक िो गया िै ििा न्यायालय
वििीत िम्पवि को और वििय के िमय र्जि व्यर्क्त को िेता घोवषत क्रकया गया िै उिके नाम को
विननहदिष्ट करने िाला प्रमाणपत्र दे गा । ऐिे प्रमाणपत्र में उि हदन की तार ख िोगी र्जि हदन वििय
आत्यर्न्तक िुआ था ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


म.प्र. उच्च न्यायालय िंशोधन (18.9.1960)- ननयम 94 को म.प्र. मे ननम्न रुप में िंशोधधत क्रकया
गया-
94 िे ता को प्रमाण पत्र- जिां स्थािर िम्पवि का वििय आत्यर्न्तक िो गया िै ििां न्यायालय
वििीत िम्पवि को और वििय के िमय र्जि व्यर्क्त को िेता घोवषत क्रकया गया िै उिके नाम को
विननहदिष्ट करने िाला प्रमाणपत्र दे गा । ऐिे प्रमाणपत्र में उि हदन की तार ख िोगी र्जि हदन वििय
आत्यान्तक िुआ था ।

इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- ितिमान आदे श 21 ननयम 94 को ननयम 94 (1) कर
हदया गया िै ।
उपननयम (2) के रुप में ननम्न शासमल क्रकया गया िै -
'' (2) जिााँ अचल िंपवि वििय के अलािा अन्यथा अंतररत की जाती िै अंतरण का एक प्रमाण पत्र
न्यायालय द्िारा यि विननहदि ष्ट करते िुए व्यर्क्त का नाम र्जिको यि अंतररत की गई और ननबिन्धन र्जन
पर अंतरण क्रकया गया । ऐिा दस्तािेज हदनांक हदिि र्जि पर अंतरण आदे सशत क्रकया गया अंक्रकत िोगा ।
[अधधिच
ू ना िमांक 2/VIId-29; हदनांक 5.1.1960।]

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पटना उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- आदे श 21 ननयम 94 में शब्दों ''वििय आत्यंनतक िो गया
िै '' के उपरांत ननम्न और जोडा गया िै -
''नीलामी िेता वििय प्रमाण पत्र, मद्र
ु ांक वििय पर्ु ष्ट िे 15 हदिि के भीतर प्रस्तत
ु करे गा''
आदे श 21 ननयम 94 के अंत में ननम्न और जोडा गया िै -
''यहद विहित अिधध के भीतर वििय प्रमाण पत्र के सलए मद्र
ु ांक प्रस्तत
ु नि ं क्रकए गए वििय, यहद
न्यायालय उपयक्
ु त िमझे, अपास्त कर िकेगा'' ।

''95. ननणीतऋणी के अधधिोग में की िम्पवि का पररदान- जिां वििीत स्थािर िम्पवि
ननणीतऋणी के या उिकी ओर िे क्रकिी व्यर्क्त के या ऐिे िक के अधीन र्जिे ननणीतऋणी ने ऐिी
िम्पवि की कुकी िो जाने के पश्चात ् िष्ृ ट क्रकया िै , दािा करने िाले क्रकिी व्यर्क्त के अधधभोग में िै और
उिके बारे में प्रमाणपत्र ननयम 94 के अधीन हदया गया िै ििां न्यायालय िेता के आिेदन पर यि आदे श
करे गा क्रक उि िम्पवि पर ऐिे िेता का या ऐिे क्रकिी व्यर्क्त का र्जिे िेता अपनी ओर िे पररदान पाने
के सलए ननयक्
ु त करे , कब्जा करा कर और यहद आिश्यक िो तो ऐिे व्यर्क्त को िटाकर जो उि िम्पवि
को ररक्त करने िे इंकार करता िै , पररदान क्रकया जाए ।

96. असिधारी के अधधिोग में की िम्पवि का पररदान- जिां वििीत िम्पवि असभधार के या उि
पर अधधभोग रखने के िकदार अन्य व्यर्क्त के अधधभोग में िै और उिके िम्बन्ध में प्रमाणपत्र ननयम 94
के अधीन हदया गया िै ििां न्यायालय िेता के आिेदन पर आदे श करे गा क्रक वििय के प्रमाणपत्र की एक
प्रनत िम्पवि के क्रकिी ििजदृश्य स्थान पर लगा कर और क्रकिी िवु िधापण
ू ि स्थान पर डोंडी वपटिा कर या
अन्य रुहढक ढं ग िे यि बात अधधभोगी को उद्घोवषत करके क्रक ननणीतऋणी का हित िेता को अंतररत िो
गया िै , पररदान क्रकया जाए ।

आदे श 21 ननयम 96क


उच्च न्यायालय िंशोधन
इलािाबाद उच्च न्यायालय िंशोधन- ननम्नानि
ु ार ननयम 96क का अंतःस्थावपत करें ।
“96क (1) डडिी का ननष्पादन करने िाला न्यायालय, इिकी स्िप्रेरणा िे अथिा आिेदन पर एिं
ऐिे ननबंधनों पर जो क्रक प्रकरण की पररर्स्थनतयों में ठीक ि यर्ु क्तयक्
ु त प्रतीत िो िके एिं जो क्रक अंतररती
को स्िीकार योग्य िों, आदे श करे गा क्रक उिके द्िारा ननणीतऋणी की कुकि की गई कोई िम्पवि डडिी
िोपडर अथिा डडिी में पिकार न िोने िाला अन्य कोई व्यर्क्त के पि में , डडिी अथिा इिके भाग की
िंतर्ु ष्ट के प्रयोजन के सलए, वििय के अलािा अन्यथा अंतररत करने का आदे श कर िकेगा ।
(2) इि आदे श के ननयम 64 िे 103 के प्रािधान इि ननयम के अंतगित क्रकए गए वििय के
अलािा अंतरण पर सििाय उि दशा के जबक्रक न्यायालय उिके वििेक के तित उद्घोषणा जार करने के
उपरांत अथिा न्यायालय के अधधकार द्िारा अंतरण िंचासलत क्रकए जाने अथिा लोक नीलामी द्िारा अथिा
उद्घोषणा जार िोने के उपरांत िोने िे इिकी आिश्यकता िे असभमर्ु क्त दे दे , िाथ-िाथ लागू िोंगे ।
(5.1.1960)

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डििीदार या िेता क कब्जा पररदि क्रकए जाने में प्रनतरोध
97. स्थािर िम्पवि पर कब्जा करने में प्रनतरोध या बाधा—(1) जिां स्थािर िम्पवि के कब्जे की
डडिी के धारक का या डडिी के ननष्पादन में वििय की गई ऐिी क्रकिी िम्पवि के िेता का ऐिी िम्पवि
पर कब्जा असभप्राप्त करने में क्रकिी व्यर्क्ि द्िारा प्रनतरोध क्रकया जाता िै या उिे बाधा डाल जाती िै ििां
िि ऐिे प्रनतरोध या बाधा का पररिाद करते िुए आिेदन न्यायालय िे कर िकेगा ।
1
[(2) जिां कोई आिेदन उपननयम (1) के अधीन क्रकया जाता िै ििा न्यायालय उि आिेदन पर
न्यायननणियन इिमें अन्तवििष्ट उपबंधों के अनि
ु ार करने के सलए अग्रिर िोगा ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


पटना उच्च न्यायालय िंशोधन- ननयम 97 में उपननयम (3) के रुप में ननम्नानि
ु ार जोडे---
'' (3) इि ननयम के अंतगित आिेदन पर पररिीमा अधधननमय, 1908 की धारा 6 के प्रािधान
प्रयोज्य िोंगे 1 ''

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 72 द्िारा (1-2-1977 िे) उपननयम (2) के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

1
[98. न्यायननणवयन के पश्चात ् आदे श- (1) ननयम 101 में ननहदि ष्ट प्रश्नों के अिधारण पर,
न्यायालय ऐिे अिधारण के अनिु ार और उपननयम (2) के उपबधों के अधीन रिते िुए,-
(क) आिेदन को मंजरू करते िुए और यि ननदे श दे ते िुए क्रक आिेदक को िम्पवि का कब्जा दे
हदया जाए या आिेदन को खाररज करते िुए, आदे श करे गा; या
(ख) ऐिा अन्य आदे श पाररत करे गा जो यि मामले की पररर्स्थनतयों में ठीक िमझे ।
(2) जिााँ ऐिे अिधारण पर, न्यायालय का यि िमाधान िो जाता िै क्रक ननणीतऋणी उिके उकिाने
पर क्रकिी अन्य व्यर्क्त द्िारा या उिकी ओर िे या क्रकिी अन्तररती द्िारा, उि दशा में र्जिमें ऐिा
अन्तरण िाद या ननष्पादन की कायििाि के लंबबत रिने के दौरान क्रकया गया था, प्रनतरोध क्रकया गया था
या बाधा डाल गई थी ििां िि ननदे श दे गा क्रक आिेदक को िम्पवि पर कब्जा हदलाया जाए और जिां इि
पर भी कब्जा असभप्राप्त करने में आिेदक का प्रनतरोध क्रकया जाता िै या उिे बाधा डाल जाती िै ििा
न्यायालय ननणीतऋणी को या उिके उकिाने पर या उिकी ओर िे कायि करने िाले व्यर्क्त को ऐिी अिधध
के सलए, जो तीि हदन तक की िो िकेगी, सिविल कारागार में ननरुद्ध क्रकए जाने का आदे श भी आिेदक
की प्रेरणा पर दे िकेगा ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 72 द्िारा (1-2-1977 िे) ननयम 98 िे 103 के स्थान
पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया |

99. डििीदार या िेता द्िारा बेकब्जा क्रकया जाना- (1) जिां ननणीतऋणी िे सभन्न कोई व्यर्क्त

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स्थािर िम्पवि पर कब्जे की डडिी के धारक द्िारा या जिां ऐिी िम्पवि। का डडिी के ननष्पादन में वििय
क्रकया गया िै ििां, उिके िेता द्िारा ऐिी िम्पवि पर िे बेकब्जा कर हदया गया िो िि िि ऐिे बेकब्जा
क्रकए जाने का पररिाद करते िुए न्यायालय िे आिेदन कर िकेगा ।
(2) जिां ऐिा क ओई आिेदन क्रकया जाता िै ििां न्यायालय उि आिेदन पर न्यायननणियन इिमें
अन्तवििष्ट उपबन्धों के अनि
ु ार करने के सलए अग्रिर िोगा ।
100. बेकब्जा क्रकए जाने का पररिाद करने िाले आिेदन पर पाररत क्रकया जाने िाला आदे श- ननयम
101 के ननहदिष्ट प्रश्नों के अिधारण पर, न्यायालय ऐिे अिधारण के अनि
ु ार—
(क) आिेदन को मंजूर करते िुए और यि ननदे श दे ते िुए क्रक आिेदक को िम्पवि का कब्जा दे
हदया जाए या आिेदन को खाररज करते िुए, आदे श करे गा या
(ख) ऐिा अन्य आदे श पाररत करे गा जो िि मामले की पररर्स्थनतयों में ठीक िमझे ।

101. अिधाररत क्रकए जाने िाले प्रश्न- ननयम 97 या ननयम 99 के अधीन क्रकिी आिेदन पर क्रकिी
कायििाि के पिकारों के बीच या उनके प्रनतननधधयों के बीच पैदा िोने िाले और आिेदन के न्यायननणियन
िे िि
ु ग
ं त िभी प्रश्न (र्जनके अन्तगित िम्पवि में अधधकार, िक या हित िे िंबधं धत प्रश्न भी िैं) आिेदन
के िंबध
ं में कायििाि करने िाले न्यायालय द्िारा अिधाररत क्रकए जाएंगे, न क्रक पथ
ृ क िाद द्िारा और इि
प्रयोजन के सलए न्यायालय, तत्िमय प्रििृ क्रकिी अन्य विधध में क्रकिी प्रनतकूल बात के िोते िुए भी, ऐिे
प्रश्नों का विननश्चय करने की अधधकाररता रखने िाला िमझा जाएगा ।

102. िादकालीन अंतररती को इन ननयमों का लागू न िोना- ननयम 98 और ननयम 100 में की
कोई भी बात स्थािर िम्पवि के कब्जे की डडिी के ननष्पादन में उि व्यर्क्त द्िारा क्रकए गए प्रनतरोध या
डाल गई बाधा को या क्रकिी व्यर्क्त के बेकब्जा क्रकए जाने को लागू नि ं िोगी र्जिे ननणीतऋणी ने िि
िम्पवि उि िाद के र्जिमें डडिी पाररत की गई थी, िंर्स्थत क्रकए जाने के पश्चात ् अन्तररत की िै ।
स्पष्टीकरण- इि ननयम में , ''अन्तरण'' के अन्तगित विधध के प्रितिन द्िारा अन्तरण भी िै ।

103. आदे शों को डििी माना जाना- जिां क्रकिी आिेदन पर न्यायननणियन ननयम 98 या ननयम
100 के अधीन क्रकया गया िै ििां उि पर क्रकए गए आदे श का िि बल िोगा और िि अपील या अन्य
बातों के बारे में िैिी ि शतों के अधीन िोगा मानो िि डडिी िो ।]

1
[104 ननयम 101 या ननयम 103 के अधीन आदे श लस्म्बत िाद के पररणाम के अधीन िोगा-
ननयम 101 या ननयम 103 के अधीन क्रकया गया प्रत्येक आदे श उि कायििाि के र्जिमें ऐिा आदे श क्रकया
जाता िै प्रारम्भ की तार ख को लर्म्बत क्रकिी िाद के पररणाम के अधीन उि दशा में िोगा र्जिमें उि िाद
में ऐिे पिकार द्िारा र्जिके विरुद्ध ननयम 101 या ननयम 103 के अधीन आदे श क्रकया जाता िै ऐिा
अधधकार स्थावपत करना चािा गया िै र्जिका क्रक िि उि िम्पवि के ितिमान कब्जे की बाबत दािा करता
िै ।

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105. आिेदन की िन
ु िाई- (1) िि न्यायालय र्जिके िम ि इि आदे श के पि
ू ग
ि ामी ननयमों में िे
क्रकिी ननयम के अधीन कोई लंबबत िै उिकी िन
ु िाई के सलए हदन ननयत कर िकेगा ।
(2) जिां ननयत हदन या क्रकिी अन्य हदन र्जि तक िन
ु िाई स्थधगत की जाए मामले की िन
ु िाई
के सलए पक
ु ार िोने पर आिेदक उपिंजात नि ं िोता िै ििां न्यायालय आदे श कर िकेगा क्रक आिेदन
खाररज कर हदया जाए ।
(3) जिां आिेदक उपिंजात िोता िै और विरोधी पिकार र्जिको न्यायालय द्िारा िच
ू ना द गई िै ,
उपिंजात नि ं िोता िै ििां न्यायालय आिेदन को एकपिीय रुप िे िन
ु िकेगा और ऐिा आदे श पाररत कर
िकेगा जो िि ठीक िमझे ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 72 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया गया ।

स्पष्टीकरण- उपननयम (1) में ननहदिष्ट क्रकिी आिेदन के अन्तगित ननयम 58 के अधीन क्रकया गया कोई
दािा या आिेप भी िै ।

106. एकपक्षीय रुप िे पाररत आदे शों, आहद का अपास्त क्रकया जाना— (1) आिेदक र्जिके विरुद्ध
ननयम 105 के उपननयम (2) के अधीन कोई आदे श क्रकया जाता िै अथिा विरोधी पिकार र्जिके विरुद्ध
उि ननयम के उपननयम (3) के अधीन या ननयम 23 के उपननयम (1) के अधीन कोई एकपिीय आदे श
पाररत क्रकया जाता िै , उि आदे श को अपास्त करने के सलए न्यायालय िे आिेदन कर िकेगा और यहद िि
न्यायालय का िमाधान कर दे ता िै क्रक आिेदन की िन
ु िाई के सलए िोने पर उिके उपिंजात न िोने के
सलए पयािप्त कारण था तो न्यायालय खचों या अन्य बातों के बारे में ऐिे ननबन्धनों पर जो िि ठीक
िमझे, आदे श अपास्त करे गा और आिेदन की आगे िन
ु िाई के सलए हदन ननयत करे गा ।
(2) उपननयम (1) के अधीन आिेदन पर कोई आदे श तब तक नि ं क्रकया जाएगा जब तक उि आिेदन
की िच
ू ना की तामील दि
ू रे पिकार पर न कर द गई िो ।
(3) उपननयम (1) के अधीन आिेदन की तार ख िे तीि हदन के भीतर क्रकया जाएगा या जिां एकपिीय
आदे श की दशा में की िम्यक् रूप िे तामील नि ं िुई थी ििां उि तार ख िे जब आिेदक को आदे श की
जानकार िुई थी, तीि हदन के भीतर क्रकया जाएगा ।]

उच्च न्यायालय िंशोधन


आदे श 21 ननयम 106-क िे 140
इलािाबाद उच्च न्यायालय िंशोधन – ननम्नानि
ु ार ननयम आदे श 21 में जोिें –

“106- A When the certificate prescribed by section 41 is received by the court which sent the decree for
execution, it shall cause the necessary details as to the result to be entered in its register of civil suits before
the papers are transmitted to the record room.
*106-B. Every attachment of movable property under rule 43, of negotiable instruments under rule 51,

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and of immovable property under rule 54, shall be made through a Civil Court Amin, or Bailiff, unless
special reasons render it necessary that any other agency should be employed; in which case those reasons
shall be stated in the handwriting of the presiding judge himself in the order for attachment.
*106-C When the ptoperty which it is sought to bring to sale is immovable property within the definition
of the same contained in the law for the time being in force relating to the registration of documents, the
decree holder shall file with his application for an order for sale a certificate from the sub-Registrar with in
whose sub-district such property is situated showing that the Sub-Registrar has searched his Book Nos. I and
II and their indices for the twelve years preceding the mortgage or attachment, as the case may be, and
stating encumbrance, if any, which he has found on the property – (22.7.1918 and 5.6.1937)
107. When an application is made for the sale of land or of any interest in land, the Court shall, before
ordering sale therof call upon the parties to state whether such land is or ia not ancestral land within the
meaning of Notification No. 1887-1-238-10, dated 7th October, 1911, of the Local Government, and shall fix
a date for determining the said question.
On the day so fixed, or on any date to which the enquiry may has been adjouned, the court may take
such evidence, by affidavit or otherwise, as it may deem necessary, and may also call for a report from the
collector of the District as to whether such land or any protion threr of is ancestral land.
After considering the evidence and the report, if any, the Court shall determine whether such land, or
any, and what part of it, is ancestral land.
The result of the enquiry shall be noted in an order made for the purpose by the presiding jugge in
his own handwriting.
108. When th property which it is sought to bring to sale is revenue-paying revenue-free land or any
interest in suct land, and the decree is not sent to the Collector for execution under section 68, the Court,
before ordering sale, shall also call upon the Collector in whose district such property is situate to report
whether the property is subject to any (and, if so, to what) outstanding claims on the part of Government.
109. The certificate of the Sub-Registrar and the report of the Collector Shall be open to inspection of
the parties or their pleaders, free of charge, between the time of the receipt by the Court and the declaration
of the result of the enquiry.
No fees are payable in respect of the report by Collector.
110. the result of the enquiry under rule 66 shall be noted in an order made for the purpose by the
presiding Judge in his own handwriting. The Court may, in its discretion, adjourn the inquiry, provided that
the reasons for the sdjournment are stated in writing, and that no more adjournment are made than are
necessary for the purposes of the enquiry.
111. If after proclamation of the intended sale has been made, any matter is brought to the notice of the
Court which it considers material for purchasers to know, the Court shall cause the same to be notified to
intending purchasers when the property is put up for sale.
112. The costs of the proceeding under rules 66, 106 and 108 shall be paid in the first instance by the
decree-holder, but they shall be charged as part of the costs of the execution, unless the court, for reasons to
be specified in writing, shall consider that they shall either wholly or in part be omitted therefrom.
113. Whenever any Civil Court has sold, in execution of a decree or order, any house or other building
situated within the limits of a military cantonment or station, it shall, as soon as the sale has been confirmed,
forward to the Commanding Officer of such cantonment or station for his information and for record in the
Brigade or other proper office, a written notice that such sale has taken place; and such notice shall contain
full particulars of the property sold and the name and address of the purchaser – (22.5.1915)
114. Whenever guns or other arms in respect of which licenece have to be taken by purchasers under the

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Indians Arms Act (XI of 1878) are sold by public auction in execution of decrees by order of a Civil Court,
the Court directing the sale shall give due notice to the Magistrate of the district of the names and addresses
of the purchasers, and of the time and place of the intended delivery to the purchasers of such arms, so that
proper steps amy be taken by the police to enforce the requirement of the Indian Arms Act.
115. When an application is made for the attachment of livestock or other movable property, the decree-
holder shall pay into Court in cash such sum as will cover the costs of the maintenance and custody of the
property for fifteen days. If within three clear days before the expity of any such period of fifteen days, the
amount of such costs for such further period as the Court may direct be not paid into Court, the Court, on
receiving a report thereof from the proper officer, may issue an order for the withdrawal of the attachment
and direct by whom the costs of the attachment are to be paid – (22.5.1915)
116. Livestock which has been attached in execution of a decree shall ordinarily be left at the place
where the attachment is made either in custody of the judgment-debtor on his furnishing security, or in that
of some land-holder or other respectable person willing to undertake the responsibility of its custody and to
produce it when required by the Court – (22.5.1915)
117. If the custody of livestock cannot be provided for in the manner described in the last preceding rule,
the animals attached shall be removed to the nearest pound established under the Cattle Trespass Act, 1871,
and committed to the custody of thepound-keeper, who shall enter in a register- (a) the number and
description of the animals; (b) the day and hour on and at which they were committed to his custody; (c) the
name of the attaching officer of his suborfinate by whom they were committed to his custody; and shall give
such attaching officer or subordinate a copy of the entry – (22.5.1915)
118. For every animal committed to the custody of the pound-keeper as aforesaid, a charge shall be
levied as rent for the use of the pound for each fifteen or part of fifteen days during which such custody
continues, according to the scale prescribed under section 12 of Act 1 of 1871 – (22.5.1915)
And the sums so levied shall be sent to the Municipal or District Board, or the Notified area, as the
case may be under whose jurisdiction the pound is – (21.11.1942)
119. The pound-keeper shall take charge of, feed and water animals attached and committed as
aforesaid, until they are withdrawn from his coutody as hereinafter provided and he shall be entitled to be
paid for their maintenance at such rates as may be, from time to time, prescribed under proper authority.
Such rates shall, for animals specified in the section mentioned in the last preceding rule, not exceed the
rates for the time beingfixed under section 5 of the same Act. In any case, for special reasons to be recorded
in writing, the Court may require payment to be made for maintenance at higher rates than those prescribed –
(22.05.1915)
120. The charges herein authorised for the maintenance of livestock shall be paid to the pound-keeper by
the attaching officer for the first fifteen days at the time the animals are committed to his custody, and
thereafter for such further period as the court may direct, at the commencement of such period. Payments for
such maintenance so made in excess of the sum due for the number of days during which the animals may be
in the custody of the pound-keeper shall be refunded by him to the attaching officer-(22.5.1915)
121. Animals attached and committed as aforesaid shall not be released from custody by the pound-
keeper except on the written order of the Court, or of the attaching officer, or of the officer appointed to
conduct the sale, the person receiving the animals, on their being so released, shall sign a receipt for them in
the register mentioned in rule 117- (22.5.1915)
122. For the safe custody of monable property other than livestock, while under attachment, the
attaching officer shall, subject to approval by the Court, make such arrangement as may be most convenient
and economical- (22.5.1915)

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123. With the permission of the Court the attaching officer may place one or more persons in special
charge of such property – (22.5.1915)
124. The fee for the services of each such person shall be payable in the manner prescribed in rule 115.
It shall not be less than twenty-five naye paise, and shall ordinarily not be more than thirty-seven naye paise
per diem. The Court may, at its discretion, allow a higher-fee; but if it dose so, it shall state in writing its
reasons for allowing an exceptional rate- (22.5.1915)
125. When the services of such person are no longer required, the attaching officer shall give him a
certificate on a counterfoil form of the number of days he has served and of the amount due to him; and on
the presentation of such certificate to the Court which ordered the attachment, the amount shall be paid to
him in the presence of the presiding judge:
Provided that, where the amount does not exceed Rs. 5, it may be paid to the sahana by money order
on requisition by the Amin, and the Presentation of the certificate may be dispensed with- (1. 3.1913)
126. When in consequence of an order of attachment being withdrawn or for some other reason, the
person has not been employed or has remained in charge of the property for a shorter time than for which
payment has been made in respect of his services, the fee paid shall be refunded in whole or in part, as the
case may be- (22.5.1915).
127. Fee paid into Court under the foregoing rules shall be entered inthe Register of Petty Receipts and
Repayments-(22.5.1915)
128. When any sum levied under rule 118 is remitted to the Treasury, it shall be accompanied by an
order in triplicate (in the form given as Form 9 of the Municipal Account Code), of which on part will be
forearded by the Treasury Officials to the District or Municipal Board, as the case may be. A note that the
same has been paid into the Treasury as rent for the use of the pound, will be recorded on the extract from
the pass book – (22.5.1915)
129. The cost of preparing attached property for sale, or of conveying it to the place where it is to be
kept or sold, shall be payable by the decree-holder to the attaching officer. In the event of the decree-holder
failing to provide the necessary funds, the attaching officer shall report his default to the Court, and the
Court may thereupon issue an order for the withdrawal of the attachment and direct by whom the costs of the
attachment are to be paid – (22.5.1915)
130. Nothing in these rules shall be deemed to prevent the Court form issuing and serving on the
judgment-debtor simultaneously the notices required by Order 21, rules 22, 66 and 107- (24.3.1923)

Garnishee Order
131. The Court may, in the case of any debt due to the judgment-debtor (other than a debt secured by a
mortgage or a charge or a negotiable instrument, or a debt recoverable only in a Revenue Court), or any
movable property not in the possession of the judgment-debtor, which has been attached under rule 46 of this
Order, issue a notice to anyperson (hereinafter called the garnishee) liable to pay such debt, or to deliver or
account for such movable property calling upon hi to appear before the Court and show cause way he should
not pay or deliver into Court the debt due from or the property deliverable by him to such judgment-debtor,
or so much thereof as may be sufficient to satisfy the decree and the cost of the execution- (24.7.1926 and
30.04.1949)
(For form of notice under this rule see infra)
The following form shall be used under the provision of rule 131 of order 21 :-
Suit No ..................................... of 19 ....................
.............................................................................. Plaintiff

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versus
...............................................................................Defendant
To
Wheras it is alleged that a debt of Rs ................ is due from you to ....... the judgment-debtor:
Or that you are liable to deliver to the above-named judgment-debto, the property set forth in the
Schedule hereto attached; take notice that you are hereby required on or before the day of ............. 19........ to
pay into this Court the said sum of Rs..............
Or to deliver, or account to the Amin of this Court for the movable property detailed in the attached
Schedule or otherwise to appear in person or by advocate, vakil oa authorise agent in this Court at 10.30 in
the forenoon of the day aforesaid and show cause to the coutrary, in default whether and order for the
payment of the said sum, or for the delivery of the said property may be passed against you.
Dated this ............... day of ................. 19 ................
Munsiff/subordinate Judge,
at...................

132. If the garnishee dose not forthwith oe within such time as the Court amy allow, pay or deliver into
Court the amount due from or the property deliverable by him to the judgment-debtor, or so much as may be
sufficient to satisfy the decree and the cost of execution, and does not dispute his liability to pay such debt or
deliver such movable property, or if he does not appear in answer to the notice, then the Court may order the
garnishee ro comply with the terms of such notice and on such order execution may issue as though such
order were a decree against him- (24.7.1926)
133. If the garnishee disputes his liability the Court, instead of making such order, may order that nay
issue or question necessary for determining his liability be tried as though it were an issue in a suit; and upon
determination of such issue shall pass such order as shall be just –(24.7.1926)
134. Whenever in any proceeding under these rules it is alleged, or apperrs to the Court to be probable,
that the debt or property attached belongs to some third person or that any third has a lien or charge upon, or
an interest in it, the Court may order such third person to appear and state the nature of his claim, if any upon
such debt or property and prove the same, if necessary- (24.7.1926)
135. After tearing such third person, and any other person, who may subsequently be orered to appear, or
in the case of such third or other person not appearing when ordered, the Court may pass such order as is
hereinbefore provided or make such other order as it shall think fit, upon such terms in all cases with respect
to the lien, charge or interest, if any of such third or other person as to such Court shall seem just and
reasonable- (24.7.1926)
136. Payment or delivery made by the garnishee whether in execution of an order under these rules or
otherwise shall be a valid discharge to him as against the judgment-debtor, or any othe person ordered to
appear as aforesaid, for the amount paid, delivered or realised although such order or the judgment may be
set aside or reversed- (24.7.1926)

137. Debts owing from a firm carrying on business within the jurisdicition of the Court may be attached
under these rules, although one or more members of such firm may be resident out of the jurisdiction :
Provided that any person having the control or management of the partnership businee or any
member of the firm within the jurisdiction is served with the garnishee order. An appearance by any member
pursuant to an order shall be sufficient appearance by the firm –(24.7.1926)
138. The cost of any application under these rules, and of any proceedings arising therefrom or

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incidental thereto, or any order made thereon, shall be in the discretion of the Court- (24.7,1926)
139. (1) Where thw liability of any garnishee has been tried and dertermined under these rules, the order
shall have the same force and be subject to the same conditions as to appeal or otherwise as if it were a
decree.
(2) Orders not covered by clause (1) shall be appealable as orders made in execution.
Illustration – An application for a dgarnishee order is dismissed either on the ground that the debt is
secured by a charge of that there is no Prima Facie evidence of debt due. This order is appealable as an order
in execution –(24.7.1926)
140. All the rules in this Code relating to service upon either plaintiffs or defendants at the address filed
or subsequently altered under Order 7 or Order 8, shall apply to all proceedings taken under order 21, or
section 47.” – (24.7.1926)
The Following form shall be used the provision of rule 131 of Order 21:
Suit No ……………………….. of 19 …………………………..
……………………………………………………………………. Plaintiff
Versus
……………………………………………………………………... Defendant

Whereas it is alleged that a debt of Rs……. Is due from you to ……….. the judgment-debtor:
Or that you are liable to deliver to the above mentioned judgment-debtor the property set forth in the
Schedule hereto attached:
Take notice that your are hereby required on or before the ………… day of ….... 19 ..…… to pay
into this Court the said sum of Rs ……… or to deliver, or account to the Amin of this Court for the movable
property detailed in the attached schedule, or otherwise to appear in person or by sdvocate, vakil or
authorised agent in this Court at 10.30 in the forenoon of the day aforesaid and show cause to the coutrary, in
default whereof an order for the payment of the said sum, or for the delivery of the said property may be
passed against you.
Dated this ……………. Day of ……19 ……………..
Munsiff/sub-judge
at ……………
(24.7.1926)
आदे श 22

पक्षकारों की मत्ृ य,ु उनका वििाि और हदिाला

1. यहद िाद लाने का अधधकार बचा रिता िै तो पक्षकार की मत्ृ यु िे उिका उपशमन निीं िो
जाता-- यहद िाद लाने का अधधकार बचा रिता िै तो िाद या प्रनतिाद की मत्ृ यु िे िाद का उपशमन नि ं
िोगा ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- ननयम 1 के अंत में ननम्न जोडे-
'' अथिा प्रारं सभक डडिी पाररत िोने के उपरांत मल
ू न्यायालय में की गई कायििाि को जिााँ क्रक िाद

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की प्रकृनत को ध्यान में रखते िुए अंनतम डडिी पाररत करना भी अपेक्षित िै । ''

2. जिां कई िाहदयों या प्रनतिाहदयों मे िे एक की मत्ृ यु िो जाती िै और िाद लाने का अधधकार


बचा रिता िै ििां प्रक्रिया- जिां एक िे अधधक िाद या प्रनतिाद िै और उनमें िे क्रकिी की मत्ृ यु िो जाती
िै और जिा िाद लाने का अधधकार अकेले उिरजीिी िाद या िाहदयों को या अकेले उिरजीिी प्रनतिाद या
प्रनतिाहदयों के विरुद्ध बचा रिता िै ििां न्यायालय असभलेख में उि भाग की एक प्रविर्ष्ट कराएगा और
िाद उिरजीिी िाद या िाहदयों की प्रेरणा पर या उिरजीिी प्रनतिाद या प्रनतिाहदयों के विरुद्ध आगे चलेगा

3. कई िाहदयों में िे एक या एकमात्र िाद की मत्ृ यु की दशा में प्रक्रिया—(1) जिां दो या अधधक
िाहदयों में िे एक की मत्ृ यु िो जाती िै और िाद लाने का अधधकार अकेले उिरजीिी िाद को या अकेले
उिरजीिी िाहदयों को बचा नि ं रिता िै , या एकमात्र िाद या एकमात्र उिरजीिी िाद की मत्ृ यु िो जाती िै,
और िाद लाने का अधधकार बचा रिता िै ििा इि ननसमि आिेदन क्रकए जाने पर न्यायालय मत
ृ िाद के
विधधक प्रनतननधध को पिकार बनिाएगा और िाद में अग्रिर िोगा ।
(2) जिां विधध द्िारा पररिीसमत िमय के भीतर कोई आिेदन उपननयम (1) के अधीन नि ं क्रकया
जाता िै ििा िाद का उपशमन ििां तक िो जाएगा जिां तक मत
ृ िाद का िबंध िै और प्रनतिाद के
आिेदन पर न्यायालय उन खचो को उिके पि में अधधननणीत कर िकेगा जो उिने िाद की प्रनतरिा में
उपगत क्रकए िों और िे मत
ृ िाद की िम्पदा िे ििल
ू क्रकए जाएंगे ।

4. कई प्रनतिाहदयों में िे एक या एकमात्र प्रनतिादी की मत्ृ यु की दशा में प्रक्रिया—(1) जिां दो या


अधधक प्रनतिाहदयों में िे एक की मत्ृ यु िो जाती िै और िाद लाने का अधधकार अकेले उिरजीिी प्रनतिाद
के या अकेले उिरजीिी प्रनतिाहदयों के विरुद्ध बचा नि ं रिता िै या एकमात्र प्रनतिाद या एकमात्र उिरजीिी
प्रनतिाद की मत्ृ यु िो जाती िै और िाद लाने का अधधकार बचा रिता िै ििा उि ननसमि क्रकए गए आिेदन
पर न्यायालय मत
ृ प्रनतिाद के विधधक प्रनतननधध को प िकार बनिाएगा और िाद में अग्रिर िोगा ।
(2) इि प्रकार पिकार बनाया गया कोई भी व्यर्क्त जो मत
ृ प्रनतिाद के विधधक प्रनतननधध के नाते
अपनी िै सियत के सलए िमधु चत प्रनतरिा कर िकेगा ।
(3) जिां विधध द्िारा पररिीसमत िमय के भीतर कोई आिेदन उपननयम (1) के अधीन नि ं क्रकया
जाता िै ििां िाद का जिां तक िि मत
ृ प्रनतिाद के विरुद्ध िै उपशमन िो जाएगा ।
1
[(4) जब कभी िि ठीक िमझे, िाद को क्रकिी ऐिे प्रनतिाद के जो सलणखत कथन फाइल करने में
अिफल रिा िै या जो उिे फाइल कर दे ने पर िन
ु िाई के िमय उपिंजात िोने में और प्रनतिाद करने में
अिफल रिा िै विधधक प्रनतननधध को प्रनतस्थावपत करने की आिश्यकता िे छूट दे िकेगा और ऐिे मामले
में ननणिय उक्त प्रनतिाद के विरुद्ध उि प्रनतिाद की मत्ृ यु िो जाने पर भी िन
ु ाया जा िकेगा और उिका
िि बल और प्रभाि िोगा मानो िि मत्ृ यु िोने के पि
ू ि िन
ु ाया गया िो ।
(5) जिां-
(क) िाद , प्रनतिाद की मत्ृ यु िे अनसभज्ञ था और उि कारण िे िि इि ननयम के अधीन प्रनतिाद

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के विधधक प्रनतननधध का प्रनतस्थापन करने के सलए आिेदन पररिीमा अधधननयम, 1963 (1963 का 36) में
विननहदिष्ट अिधध के भीतर नि ं कर िकता था और र्जिके पररणामस्िरूप िाद का उपशमन िो गया िै ;
और
(ख) िाद , पररिीमा अधधननमय, 1963 (1963 का 36) में इिके सलए विननहदि ष्ट अिधध के अििान
के प श्चात ् उपशमन अपास्त करने के सलए आिेदन करता िै और उि अधधननयम की धारा 5 के अधीन
उि आिेदन को इि आधार पर ग्रिण क्रकए जाने के सलए भी आिेदन करता िै क्रक ऐिी अनसभज्ञता के
कारण उक्त अधधननयम में विननहदिष्ट अिधध के भीतर उिके आिेदन न करने के सलए उिके पाि पयािप्त
कारण था,
ििां न्यायालय उक्त धारा 5 के अधीन आिेदन पर विचार करते िमय ऐिी अनसभज्ञता के तथ्य
पर यहद िाबबत िो जाता िै तो िम्यक् ध्यान दे गा ।]

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 73 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्त : स्थावपत क्रकया गया

1
[4क. विधधक प्रनतननधध न िोने की दशा में प्रक्रिया—(1) यहद क्रकिी िाद में न्यायालय को यि
प्रतीत िोता िै क्रक ऐिे क्रकिी पिकार का र्जिकी मत्ृ यु िाद के लंबबत रिने के दौरान ि गई िै कोई
विधधक प्रनतननधध नि ं िै तो न्यायालय िाद के क्रकिी पिकार के आिेदन पर, मत
ृ व्यर्क्त की िम्पदा का
प्रनतननधधत्ि करने िाले व्यर्क्त की अनप
ु र्स्थनत में कायििाि कर िकेगा या आदे श द्िारा मिाप्रशािक या
न्यायालय के क्रकिी अधधकार या क्रकिी ऐिे अन्य व्यर्क्त को र्जिको िि मत
ृ व्यर्क्त की िम्पदा का
प्रनतननधधत्ि करने के सलए ठीक िमझता िै िाद के प्रयोजन के सलए ननयक्
ु त कर िकेगा और िाद में
तत्पश्चात ् हदया गया कोई ननणिय या क्रकया गया कोई आदे श मत
ृ व्यर्क्त की िम्पदा को उिी िीमा तक
आबद्ध क रे गा र्जतना क्रक िि तब करता जब मत
ृ व्यर्क्त का ननजी प्रनतननधध िाद में पिकार रिा िोता ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 73 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया गया ।

(2) न्यायालय इि अधधननयम के अधीन आदे श करने के पि


ू ,ि -
(क) यि अपेिा कर िकेगा क्रक मत
ृ व्यर्क्त की िम्पदा में हित रखने िाले ऐिे व्यर्क्तयों को (यहद
कोई िो) र्जनको न्यायालय ठीक िमझता िै , आदे श के सलए आिेदन की िच
ू ना द जाए;
(ख) यि असभननर्श्चत करे गा क्रक र्जि व्यर्क्त को मत
ृ व्यर्क्त की िम्पदा का प्रनतननधधत्ि करने के
सलए ननयक्
ु त क्रकया जाना प्रस्थावपत िै , िि इि प्रकार ननयक्
ु त क्रकए जाने के सलए रजामंद िै और िि मत

व्यर्क्त के हित के प्रनतकूल कोई हित नि ं रखता िै ।]

5. विधधक प्रनतननधध के बारे में प्रश्न का अिधारण- जिां इि िम्बन्ध में प्रश्न उदभत
ू िोता िै क्रक
कोई व्यर्क्त मत
ृ िाद या मत
ृ प्रनतिाद का विधधक प्रनतननधध िै या नि ं ििां ऐिे प्रश्न का अिधारण
न्यायालय द्िारा क्रकया जाएगा:

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1
[परन्तु जिां ऐिा प्रश्न अपील न्यालय के िमि उद्भत
ू िोता िै ििां िि न्यायालय प्रश्न का
अिधारण करने के पि
ू ि क्रकिी अधीनस्थ न्यायालय को यि ननदे श दे िकेगा क्रक िि उि प्रश्न का विचारण
करे और असभलेखों को, जो ऐिे विचारण के िमय असभसलणखत क्रकए गए िाक्ष्य के, यहद कोई िो, अपने
ननष्कषि के और उिके कारणों के िाथ िापि करे , और अपील न्यायालय उि प्रश्न का अिधारण करने में
उन्िें ध्यान में रख िकेगा ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 73 द्िारा (1-2-1977 िे अन्त: स्थावपत क्रकया गया ।

6. िन
ु िाई के पश्चात ् मत्ृ यु िो जाने िे उपशमन न िोना- पि
ू ग
ि ामी ननयमों में क्रकिी बात के िोते
िुए भी, चािे िाद िे तक
ु बचा िो या न बचा िो, िनु िाई की िमार्प्त और ननणिय के िन ु ाने के बीच िाले
िमय में क्रकिी भी पिकार की मत्ृ यु के कारण कोई भी उपशमन नि ं िोगा, क्रकन्तु ऐिी दशा में मत्ृ यु िो
जाने पर भी, ननणिय िन
ु ाया जा िकेगा और उिका िि बल और प्रभाि िोगा मानो िि मत्ृ यु िोने के पि
ू ि
िन
ु ाया गया िो ।

7. स्त्री पक्षकार के वििाि के कारण िाद का उपशमन न िोना- (1) स्त्री िाद या स्त्री प्रनतिाद का
वििाि िाद क उपशमन नि ं करे गा, क्रकन्तु ऐिा िो जाने पर भी िाद ननणिय तक अग्रिर क्रकया जा िकेगा
और जिां स्त्री प्रनतिाद के विरुद्ध डडिी िै ििां िि उि अकेल के विरुद्ध ननष्पाहदत की जा िकेगी ।
(2) जिां पनत अपनी पत्नी के ऋणों के सलए विधध द्िारा दायी िै ििा डडिी न्यायालय की अनज्ञ
ु ा
िे पनत के विरुद्ध भी ननष्पाहदत की जा िकेगी और पत्नी के पि में िुए ननणिय की दशा में डडिी का
ननष्पादन उि दशा में र्जिमें क्रक पनत डडिी की विषयिस्तु के सलए विधध द्िारा िकदार िै , ऐिी अनज्ञ
ु ा िे
पनत के आिेदन पर क्रकया जा िकेगा ।

8. िादी का हदिाला कब िाद का िजवन कर दे ता िै - (1) क्रकिी ऐिे िाद में र्जिे िमनद
ु े सशती या
ररिीिर िाद के लेनदारों के फायदे के सलए चला िकता िै , िाद का उपशमन िाद के हदिाले िे उि दशा
में के सििाय नि ं िोगा र्जिमें क्रक ऐिा िमनद
ु े सशती या ररिीिर ऐिे िाद को चालू रखने िे इंकार कर दे
या (जब तक क्रक न्यायालय क्रकिी विशेष कारण िे अन्यथा ननहदष्ट न करे ) उि िाद के खचों के सलए
प्रनतभनू त ऐिे िमय के भीतर जो न्यायालय ननहदष्ट करे , दे ने िे इंकार कर दे ।

(2) जिां िमनद


ु े सशती िाद चालू रखने या प्रनतिनू त दे ने में अिफल रिता िै ििां प्रक्रिया- जिां
िमनद
ु े सशती या ररिीिर िाद चालू रखने और ऐिे आहदष्ट िमय के भीतर ऐिी प्रनतभनू त दे ने की उपेिा
करता िै या दे ने िे इंकार करता िै ििां प्रनतिाद िाद को िाद के हदिाले के आधार पर खाररज कराने के
सलए आिेदन कर िकेगा और न्यायालय िाद को खाररज करने िाला और प्रनतिाद को िे खचे र्जन्िें उिने
अपनी प्रनतरिा करने में उपगत क्रकया िै , अधधननणीत करने िाला आदे श कर िकेगा और ये खचे ऋण के
तौर पर िाद िम्पदा के विरुद्ध िाबबत क्रकए जाएंगे ।

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9. उपशमन या खाररज िोने का प्रिाि—(1) जिां िाद का इि आदे श के अधीन उपशमन िो जाता िै
या िि खाररज क्रकया जाता िै ििां कोई भी नया िाद, उिी िाद िे तक
ु पर नि ं लाया जाएगा ।
(2) िाद या मत
ृ िाद का विधधक प्रनतननधध िोने का दािा करने िाला व्यर्क्त या हदिासलया िाद
की दशा में उिका िमनद
ु े सशती या ररिीिर, उपशमन या खाररजी अपास्त करने िाले आदे श के सलए आिेदन
कर िकेगा और यहद यि िाबबत कर हदया जाता िै क्रक िाद चालू रखने िे िि क्रकिी पयािप्त िे तक
ु िे
ननिाररत रिा था तो न्यायालय खचे के बारे में ऐिे ननबन्धनों पर या अन्यथा जो िि ठीक िमझे, उपशमन
या खाररजी अपास्त करे गा ।
(3) 1[इर्न्डयन सलसमटे शन ऐक्ट, 1877 (1877 का 15) की धारा 5 के उपबन्ध उपननयम (2) के
अधीन आिेदनों को लागू िोंगे ।

2
[स्पष्टीकरण- इि ननयम की क्रकिी बात का यि अथि नि ं लगाया जाएगा क्रक िि क्रकिी पश्चातिती

िाद में ऐिे तथ्यों पर आधाररत प्रनतरिा का िजिन करती िै जो उि िाद में िाद िे तक
ु बनते थे र्जिका
इि आदे श के अधीन उपशमन िो गया िै या जो खाररज कर हदया गया िै ।

1. अब पररिीमा अधधननयम, 1963(1963 का 36) की धारा 4 और 5 दे णखए ।


2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 73 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्तःस्थावपत क्रकया गया ।

10. िाद में अस्न्तम आदे श िोने के पि


ू व िमनद
ु े शन की दशा में प्रक्रिया—(1) िाद के लंबबत रिने को
दौरान क्रकिी हित के िमनद
ु े शन-िज
ृ न या न्यागमन की अन्य दशाओं में , िाद न्यायालय की इजाजत िे
उि व्यर्क्त द्िारा या उिके विरुद्ध चालू रखा जा िकेगा र्जिको ऐिा हित प्राप्त या न्यागत िुआ िै ।
(2) क्रकिी डडिी की अपील के लर्म्बत रिने के दौरान उि डडिी की कुकी के बारे में यि िमझा
जाएगा क्रक िि ऐिा हित िै र्जििे िि व्यर्क्त र्जिने ऐिी कु की कराई थी, उपननयम (1) का फायदा
उठाने का िकदार िो गया िै ।

1
[(10क. न्यायालय को क्रकिी पक्षकार की मत्ृ यु िंिधू चत करने के सलए प्लीिर का कतवव्य--- िाद में
पिकार की ओर िे उपिंजात िोने िाले प्ल डर को जब कभी यि जानकार प्राप्त िो क्रक उि पिकार की
मत्ृ यु िो गई िै तो िि न्यायालय को इिकी इविला दे गा और तब न्यायालय ऐिी मत्ृ यु की िच
ू ना दि
ू रे
पिकार को दे गा और इि प्रयोजन के सलए प्ल डर और मत
ृ पिकार के बीच िुई िंविदा अर्स्तत्ि में मानी
जाएगी ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 73 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्तःस्थावपत क्रकया गया ।

11. आदे श का अपीलों को लागू िोना- इि आदे श को अपीलों को लागू करने में जिां तक िो िके,
''िाद '' शब्द के, अन्तगित अपीलाथी, ''प्रनतिाद '' शब्द के अन्तगित प्रत्यथी और ''िाद'' शब्द के अंतगित
अपील िमझी जाएगी ।

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12. आदे श का कायविाहियों को लागू िोना- ननयम 3 ननयम 4 और ननयम 8 की कोई भी बात
क्रकिी डडिी या आदे श के ननष्पादन की कायििाहियों को लागू नि ं िोगी ।

उच्च न्यायालयिंशोधन
इलािाबाद उन्न्ि न्यायालय िंशोधन (7.2.1931)- ननयम 12 के अंत में ननम्न और जोडा गया िै -
''अथिा प्रारं सभक डडिी पाररत िोने के उपरांत मल
ू न्यायालय में की गयी कायििाि के सलए जिां क्रक
िाद की प्रकृनत को ध्यान में रखते िुए अंनतम डडिी पाररत क्रकये जाना भी अपेक्षित िै ।''

आदे श 23
िादों का प्रत्यािरण और िमायोजन
1
[1. िाद का प्रत्यािरण या दािे के िाग का पररत्याग- (1) िाद िंर्स्थत क्रकए जाने के पश्चात ्
क्रकिी भी िमय िाद िभी प्रनतिाहदयों या उनमें िे क्रकिी के विरुद्ध अपने िाद का पररत्याग या अपने दािे
के भाग का पररत्याग कर िकेगा :
परन्तु जिां िाद अियस्क िै या ऐिा व्यर्क्त िै र्जिे आदे श 32 के ननयम 1 िे ननयम 14 तक के
उपबन्ध लागू िोते िै ििां न्यायालय की इजाजत बबना न तो िाद का और न दािे के क्रकिी भाग का
पररत्याग क्रकया जाएगा ।
(2) उपननयम (1) के परन्तक
ु के अधीन इजाजत के सलए आिेदन के िाथ िाद-समत्र का शपथपत्र
दे ना िोगा और यहद अियस्क या ऐिे अन्य व्यर्क्त का प्रनतननधधत्ि प्ल डर द्िारा हदया जाता िै तो प्ल डर
को इि आशय का प्रमाणपत्र भी दे ना िोगा क्रक प्रस्थावपत पररत्याग उिकी राय में अियस्क या ऐिे अन्य
व्यर्क्त के फायदे के सलए िै ।
(3) जिां न्यायालय का यि िमाधान िो जाता िै क्रक-
(क) िाद क्रकिी प्ररूवपक त्रहु ट के कारण विफल िो जाएगा, अथिा
(ख) िाद की विषय-िस्तु या दािे के भाग के सलए नया िाद िंर्स्थत करने के सलए िाद अनज्ञ
ु ात
करने पयािप्त आधार िै ,
1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 74 द्िारा (1-2-1977 िे) ननयम 1 के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया |

ििां िि ऐिे ननबन्धनों पर र्जन्िें िि ठीक िमझे, िाद को ऐिे िाद की विषय-िस्तु या दािे के
ऐिे भाग के िम्बन्ध में नया िाद िंर्स्थत करने की स्ितत्रता रखते िुए ऐिे िाद िे या दािे के ऐिे भाग
िे अपने प्रत्याहृत करने की अनज्ञ
ु ा दे िकेगा ।
(4) जिां िाद ,-
(क) उपननयम (1) के अधीन क्रकिी िाद का या दािे के भाग का पररत्याग करता िै , अथिा
(ख) उपननयम (3) में ननहदिष्ट अनज्ञ
ु ा के बबना िाद िे या दािे के भाग िे प्रत्याहृत कर लेता िै ,
ििां िि ऐिे खचे के सलए दायी िोगा जो न्यायालय अधधननणीत करे और िि ऐिी विषय-िस्तु या
दािे के ऐिे भाग के बारे में कोई नया िाद िंर्स्थत करने िे प्रिाररत िोगा ।

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(5) इि ननयम की क्रकिी बात के बारे में यि नि ं िमझा जाएगा क्रक िि न्यायालय को अनेक
िाहदयों में िे एक िाद को उपननयम (1) के अधीन िाद या दािे के क्रकिी भाग का पररत्याग करने या
क्रकिी िाद या दािे का अन्य िाहदयों की ििमनत के बबना उपननयम (3) के अधीन प्रत्यािरण करने की
अनज्ञ
ु ा दे ने के सलए प्राधधकृत करती िै ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 74 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्त स्थावपत क्रकया गया ।

[1क. प्रनतिाहदयों का िाहदयों के रुप में पक्षान्तरण करने की अनज्ञ


1
ु ा कब दी जाएगी- जिां ननयम 1
के अधीन िाद द्िारा िाद का प्रत्यािरण या पररत्याग क्रकया जाता िै और प्रनतिाद आदे श 1 के ननयम 10
िे अधीन िाद के रूप में पिान्तररत क्रकए जाने के सलए आिेदन करता िै ििां न्यायालय, ऐिे आिेदन पर
विचार करते िमय इि प्रश्न पर िम्यक् ध्यान दे गा क्रक क्या आिेदन का कोई ऐिा िारिान ् प्रश्न िै जो
अन्य प्रनतिाहदयों में िे क्रकिी के विरूध विननश्चय क्रकया जाना िै ।
2. पररिीमा विधध पर पिले िाद का प्रभाि नि पडेगा – अर्न्तम पि
ू ि
ि ती ननयम के अधीन द
गई अनज्ञ
ु ा पर िंर्स्थत क्रकिी भी नए िाद में िाद पररिीमा विधध द्िारा उिी र नत िे आिद्ध िोगा मानो
प्रथम िाद िंर्स्थत नि क्रकया गया िो ।
3. िाद में िमझौता – जिां न्यायालय को िमाधानप्रद रूप में यि िाबबत कर हदया जाता िै क्रक
िाद [पिकारो द्िारा ननणखत और िस्तािररत क्रकिी विधधपण
1
ू ि करार या िमझौते के द्िारा] पण
ू त
ि : या
भागत: िमायोर्जत क्रकया जा चक
ु ा िै या जिां प्रनतिाद िाद की परू विषय-िस्तु के या उिके क्रकिी भाग
के िंबध
ं में िाद की तर्ु ष्ट कर दे ता िै ििां न्यायालय ऐिे करार, िमझौते या तर्ु ष्ट के असभसलणखत क्रकए
जाने का आदे श करे गा और 2[जिां तक क्रक िि िाद के पिकारों िे िंबधं धत िै , चािे करारख् िमझौते या
तर्ु ष्ट की विषय-िस्तु िि िो या न िो जो क्रक िाद की विषय-िस्तु ििां तक तदनि
ु ार डडिी पाररत करे गा:]
[परन्तु जिां एक पिकार द्िारा यि असभकथन क्रकया जाता िै और दि
3
ू रे पिकार द्िारा यि
इन्कार क्रकया जाता िै क्रक कोई िमायोजन या तर्ु ष्ट तय िुई थी ििां न्यायालय इि प्रश्न का विननश्चय
करे गा, क्रकन्तु इि प्रश्न के विननश्चय के प्रयोजन के सलए क्रकिी स्थगत की मंजरू तब तक नि ं द जाएगी
तब तक क्रक न्यायालय, ऐिे कारणों िे जो लेखबद्ध क्रकए जाएंगे, ऐिा स्थगनमंजूर करना ठीक न िमझे ।]
[स्पष्टीकरण- कोई ऐिा करार या िमझौता जो भारतीय िंविदा अधधननयम, 1872 (1872 का 9)
4

के अधीन शन्ू य या शन्


ू यकरणीय िै , इि ननयम के अथि में विधधपण
ू ि नि ं िमझा जाएगा ।]

उच्च न्यायालय िंशोधन


इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (31.8.1974) – ननयम 3 में शब्द ‘’और’’ ि
‘’िस्तािररत’’ के मध्य शब्द ‘’िम्यक रूप िे’’ शब्दों को अन्त: स्थावपत गया िै ।
‘’तर्ु ष्ट करता िै ’’ ि ‘’ििां न्यायालय’’ शब्दों के बीच ‘’और िाद द्िारा िम्यक रूप िे
िस्तािररत सलणखत में सलखत प्राप्त करता िै ’’ शब्दों को अतं: स्थावपत क्रकया जाए ।
(2)ननयम 3 के अंत में ननम्नानि
ु ार जोडा जाए –

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‘’परन्तु यि क्रक इि ननयम के प्रािधान आदे श 34 ननयम 3, 5 ि 8 के प्रािधानों को प्रयोज्य
नि ं िोंगे अथिा क्रकिी रूप में प्रभावित नि ं करें गे ।
स्पष्टीकरण- िाक्यांश ‘’करार’’ ि ‘’िमझौता’’ में न्यायालय द्िारा असभसलणखत िंबधं धत
पिकारों अथिा उनके अधधिक्ताओं का िंयक्
ु त कथन शासमल िोता िै , और िाक्यांश ‘’सलणखत’’ में
न्यायालय द्िारा असभसलणखत िाद या उिके अधधिक्ता का कथन शासमल िोता िै ।‘’
1
[3क. िाद का िजिन – कोई डडिी अपास्त करने के सलए कोई िाद इि आधार पर नि लाया
जाएगा क्रक िि िमझौता र्जि पर डडिी आधाररत िै , विधधपण
ू ि नि ं था ।]
3ख. प्रनतननधध िाद में कोई करार या िमझौता न्यायालय की इजाजत के बबना प्रविष्ट न क्रकया
जाना – (1) प्रनतननधध िाद में कोई करार या िमझौता न्यायालय की ऐिी इजाजत के बबना जो कायििाि में
असभव्यक्त रूप िे असभसलणखत िो, नि क्रकया जाएगा और न्यायालय की इि प्रकार िे असभसलणखत
इजाजत के बबना क्रकया गया एिा कोई करार या िमझौता शन्
ू य िोगा ।
(2) ऐिी इजाजत मंजूर करने के पि
ू ि न्यायालय ऐिी र नत िे िच
ू ना र्जिे िि ठीक िमझे, ऐिे
व्यर्क्तयों को दे गा र्जनके बारे में उिे यि प्रतीत िो क्रक िे िाद में हितबद्ध िैं ।
स्पष्ट करण – इि ननयम में ‘’प्रनतननधध िाद’’ िे असभप्रेत िै ,-
(क) धारा 91 या धारा 92 के अधीन िाद,
(ख) आदे श 1 के ननयम 8 के अधीन िाद,
(ग) िि िाद र्जिे हिन्द ू अविभक्त कुटुम्ब का कताि, कुटुम्ब के अन्य िदस्यों का प्रनतननधधत्ि
करते िुए चलाता िै उिके विरूद्ध चलाया जाता िै ,
(घ) कोई अन्य िाद र्जिमें पाररत डडिी इि िंहिता के या तत्िमय प्रित्ृ त क्रकिी अन्य विधध के
उपबेन्धों के आधार पर क्रकिी ऐिे व्यर्क्त को, जो िाद में पिकार के रूप में नासमत नि ं
िै , आबद्ध करती िो ।
4. डडिीयों के ननष्पादन की कायििाहियों पर प्रभाि न पडता – इि आदे श की कोई भी बात डडिी
या आदे श ननष्पादन की कायििाहियों को लागू नि िोगी ।

आदे श 24
न्यायालय में जमा करना
1. दािे की तस्ु ष्ट में प्रनतिादी द्िारा रकम का ननक्षेप –ऋण या नक
ु िानी की ििल
ू के क्रकिी भी
िाद में प्रनतिाद िाद के क्रकिी भी प्रिम में न्यायालय में धन की ऐिी रासश का ननिेप कर िकेगा जो
उिके विचार में दािे की पण
ू ि तर्ु ष्ट िो ।
2. ननक्षेप की िच
ू ना – ननिेप की िच
ू ना प्रनतिाद न्यायालय के माफित िाद को दे गा और ननिेप
की रकम (जब तक क्रक न्यायालय अन्यथा ननहदष्ट न करें ) िाद को उिके आिेदन पर द जाएगी ।

3. ननक्षेप पर ब्याज िच
ू ना के पश्चात ् िादी को अनज्ञ
ु ात निीं क्रकया जाएगा- प्रनतिाद द्िारा
ननक्षिप्त की गई क्रकिी भी रासश पर िाद को कोई भी ब्याज ऐिी िच
ू ना की प्रार्प्त की तार ख िे अनज्ञ
ु ात
नि ं क्रकया जाएगा चािे ननक्षिप्त की गई रासश दािे की पण
ू ि तर्ु ष्ट करती िो या उििे कम िो |

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4. जिां िादी ननक्षेप को िागत: तस्ु ष्ट के तौर पर प्रनतगि
ृ ीत करता िै ििां प्रक्रिया—(1) जिां िाद
ऐिी रकम को अपने दािे के केिल भाग की तर्ु ष्ट के तौर पर प्रनतगि
ृ त करता िै ििां िि बाकी के सलए
अपना िाद आगे चला िकेगा और यहद न्यायालय यि विननश्चय करता िै क्रक प्रनतिाद द्िारा क्रकया गया
ननिेप िाद के दािे की पण
ू ि तर्ु ष्ट करता था तो ननिेप के पश्चात िाद में उपगत खचो को और उििे पि
ू ि
उपगत खचाि को ििां तक िाद दे गा जिां तक क्रक िे िाद िे दािे में आधधक्य के कारण िुए िैं ।
(2) जिां िि उिे पण
ू व तस्ु ष्ट के तौर पर प्रनतगि
ृ ीत करता िै ििां प्रक्रिया- जिां िाद ऐिी रकम को
अपने दािे की पण
ू ि तर्ु ष्ट के तौर पर प्रनतगि
ृ त करता िै ििां िि न्यायालय के िमि उि भाि का कथन
उपर्स्थत करे गा और ऐिा कथन फाइल क्रकया जाएगा और न्यायालय तदनि
ु ार ननणिय िन
ु ाएगा और यि
ननहदि ष्ट करने में क्रक िर एक पिकार के खचे क्रकिके द्िारा हदए जाने िैं न्यायालय इि पर विचार करे गा
क्रक पिकारों में िे कौन िा पिकार मक
ु दमे के सलए ििािधधक दोष का भागी िै ।

आदे श 25
खचो के सलए प्रनतिनू त
1
[1. िादी िे खचो के सलए प्रनतिनू त कब अपेक्षक्षत की जा िकती िै—(1) िाद के क्रकिी प्रिम में
न्यायालय या तो स्ियं अपनी प्रेरणा िे या क्रकिी प्रनतिाद के आिेदन पर, ऐिे कारणों िेजो लेखबद्ध क्रकए
जाएंग,े या आदे श िाद को दे िकेगा क्रक िि क्रकिी भी प्रनतिाद द्िारा उपगत और िंभित: उपगत क्रकए
जाने िाले िभी खचों के िंदाय के सलए प्रनतभनू त न्यायालय द्िारा ननर्श्चंत िमय के भीतर दे : ।

1. 1956 के अधधननयम िं. 66 की धारा 14 द्िारा मल


ू ननयम 1 के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया
गया ।

परन्तु ऐिा आदे श उन िभी मामलों में क्रकया जाएगा र्जिमें न्यायालय को यि प्रतीत िो क्रक एकमात्र िाद
या(जिां एक िे अधधक िाद िों ििां) िभी िाद भारत के बािर ननिाि करते िैं और ऐिे िाद के पाि या
िाहदयों में िे क्रकिी के भी पाि भारत के भीतर िादान्तगित िंपवि िे सभन्न कोई भी पयािप्त स्थािर िंपवि
नि ं िै ।
(2) जो कोई भारत िे ऐिी पररर्स्थनतयों में चला जाता िै र्जनिे यि यर्ु क्तयक्
ु त अधधिंभाव्यता िै
क्रक जब कभी उिे खचे दे ने के सलए बल
ु ाया जाएगा िि नि ं समलेगा तो उिके बारे में यि िमझा जाएगा
क्रक िि उपननयम (1) के परन्तक
ु के अथि में भारत के बािर ननिाि करता िै ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


मध्य प्रदे श उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (16.9.1960)- उपननयम (1) के परं तक
ु के अंत में
शब्दों ''अथिा यि क्रक क्रकिी िाद को िाद का पि न िोने िाले व्यर्क्त के द्िारा विि पोषण क्रकया जा रिा
िै ।''

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इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (5.2.1983)- आदे श 25 के अर्स्तत्ियक्
ु त ननयम 1 के
स्थान पर ननम्न ननयम 1 को प्रनतस्थावपत क्रकया गया िै -
'' 1 कब िादी िे खचों के सलए प्रनतिनू त की अपेक्षा की जा िकती िै - (1) िाद के क्रकिी प्रिम पर
न्यायालय उिके द्िारा ननयत क्रकये गये िमय के भीतर असभसलणखत क्रकये जाने िाले कारणों िे या तो
इिकी स्िप्रेरणा िे या क्रकिी प्रनतिाद के आिेदन पर िाद को क्रकिी प्रनतिाद द्िारा उपगत िभी व्ययों
अथिा उपगत िोना प्रतीत िोने िाले व्ययों के भग
ु तान के सलए प्रनतभनू त िे तु आदे सशत कर िकेगा :
परन्तु यि क्रक ऐिा आदे श ऐिे िभी मामलों में क्रकया जाएगा र्जिमें न्यायालय को यि प्रतीत िोता
िै क्रक एकल िाद िै या (जिां एक िे अधधक िाद गण िैं तो िभी िाद गण राज्य के बािर ननिाि कर रिे
िैं और ऐिा िाद अथिा ऐिे िाहदयों मे िे कोई भी िाद राज्य के भीतर कोई िमधु चत अचल िंपवि
िादग्रस्त िंपवि के अलािा आधधपत्य में नि ं रखता िै अथिा िाद को क्रकिी अन्य व्यर्क्त के द्िारा
वििपोषण क्रकया जा रिा िै ।
(2) जो कोई ऐिी पररर्स्थनतयों में राज्य छोडता िै र्जििे यि यर्ु क्तयक्
ु त आशंका िो जाए क्रक िि
उि िमय जबक्रक उिे व्ययों का भग
ु तान करने के सलए बल
ु ाया जाएगा िि उपलब्ध नि ं िोगा तो उिे
उपननयम (1) के परं तक
ु के आशय के अधीन राज्य के बािर ननिाि करने िाला माना जाएगा । ''

2. प्रनतिनू त दे ने में अिफल रिने का प्रिाि—(1) उि दशा में , र्जिमें क्रक ननयत िमय के भीतर
ऐिी प्रनतभनू त नि ं द जाती िै , न्यायालय िाद को खाररज करने िाला आदे श करे गा, जब जक क्रक िाद या
िाहदयों को उििे प्रत्याहृत िो जाने के सलए अनज्ञ
ु ा न दे द गई िो ।
(2) जिां िाद इि ननयम के अधीन खाररज कर हदया गया िै ििा िाद खाररजी अपास्त कराने के
आदे श के सलए आिेदन कर िकेगा और यहद न्यायालय को िमाधानप्रद रुप में यि िाबबत कर हदया जाता
िै क्रक िि अनज्ञ
ु ात िमय के भीतर प्रनतभनू त दे ने िे क्रकिी पयािप्त िे तक
ु िे ननिाररत रिा िै तो न्यायालय
प्रनतभनू त और खचे िंबध
ं ी ऐिे ननबन्धनों पर या अन्यथा, जो िि ठीक िमझे, खाररजी अपास्त करे गा और
िाद में अग्रिर िोने के सलए हदन ननयत करे गा ।
(3) जब तक क्रक ऐिे आिेदन की िच
ू ना की तामील प्रनतिाद पर न कर द गई िो खाररजी
अपास्त नि ं की जाएगी ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


मध्य प्रदे श उच्च न्यायालय िंशोधन- ननयम 2 के उपरांत ननम्नानि
ु ार निीन ननयम 3 को जोडा
गया-
'' 3. मक
ु दमें बाजी में वििपोषण करने िाले पर-व्यस्ति को जोड़ने और प्रनतिनू त की मांग करने की
शस्तत- (1) जिां कोई िाद िाद में वििपोषण क्रकये जाने के कारण िादग्रस्त िंपवि में क्रकिी अंश या हित
को ऐिे व्यर्क्त को जो क्रक िाद में पि
ू ि में पिकार नि ं िै अंतररत कर हदया िै अथिा अंतरण करने के
सलए ििमत िो गया िै तो न्यायालय ऐिे व्यर्क्त को िाद में िाद बनाये जाने के िंबध
ं में आदे श कर
िकेगा यहद िि ििमनत दे ता िै और या तो स्िप्रेरणा िे अथिा क्रकिी प्रनतिाद के आिेदन करने पर आदे श
कर िकेगा क्रक ऐिा व्यर्क्त उिके द्िारा ननयत क्रकये गये िमय के भीतर क्रकिी प्रनतिाद द्िारा उपगत ि

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उपगत िोना प्रतीत िोने िाले िभी िभी व्ययों के बाबत प्रनतभनू त दे । ननयत क्रकये गये िमय के भीतर
ऐिी प्रनतभनू त भग
ु तान न हदये जाने के मामले में न्यायालय जिां तक िादग्रस्त िंपवि में उिके अधधकार
या हित का िंबध
ं िै िाद को ननरस्त करने का आदे श कर िकेगा अथिा घोवषत कर िकेगा क्रक िि
िादग्रस्त िंपवि में क्रकिी अधधकार या हित को दावित करने िे िर्जित िो जाएगा ।
(2) यहद ऐिा व्यर्क्त िाद बनाये जाने में अननच्छा व्यक्त करता िै तो न्यायालय उिे प्रनतिाद के
रूप मे जोड िकेगा और उिे उिके द्िारा ननयत क्रकये गये िमय के भीतर अन्य क्रकिी प्रनतिाद द्िारा
उपगत िभी या उपगत क्रकये जाने िाले व्ययो के भग
ु तान के सलए प्रनतभनू त दे ने का आदे श कर िकेगा
ननयत क्रकये गये िमय के भीतर ऐिी प्रनतभनू त भग
ु तान न हदये जाने के मामले में न्यायालय घोवषत कर
िकेगा क्रक िि िादग्रस्त िपवि मे क्रकिी अधधकार या हित को दावित करने िे िर्जित िो जाएगा ।
(3) कोई भी िाद या प्रनतिाद र्जिके विरुद्ध इि ननयम के अन्तगित आदे श क्रकया गया िै इिे
अपास्त करने के सलए आिेदन कर िकेगा और ऐिे आिेदन पर यथािश्यक पररितिन िहित ननयम 2 के
उपननयम (2) य (3) के प्रािधान प्रयोज्य िोंगे । ''

आदे श 26
कमीशन
िाक्षक्षयों की परीक्षा करने के सलए कमीशन
1. िे मामले स्जनमें न्यायालय िाक्षी की परीक्षा करने के सलए कमीशन ननकाल िकेगा- कोई भी
न्यायालय क्रकिी भी िाद में अपनी अधधकाररता की स्थानीय िीमाओं के भीतर ननिाि करने िाले क्रकिी ऐिे
व्यर्क्त की पररप्रश्नों द्िारा या अन्यथा पर िा करने के सलए कमीशन ननकाल िकेगा र्जिे न्यायालय में
िार्जर िोने िे इि िंहिता के अधीन छूट समल िो या जो बीमार या अंगशैधथपय के कारण उिमें िार्जर
िोने में अिमथि िो
1
[परन्तु पररप्रश्नों द्िारा पर िा के सलए कमीशन तब तक नि ं ननकाला जाएगा जब तक क्रक
न्यायालय ऐिे कारणों िे जो लेखबद्ध क्रकए जाएंगे, ऐिा करना आिश्यक न िमझे ।

स्पष्टीकरण- न्यायालय इि ननयम के प्रयोजन के सलए, ऐिे प्रमाणपत्र को जो क्रकिी व्यर्क्त की


बीमार या अंगशैधथपय के िाक्ष्य के रूप में क्रकिी रर्जस्र कृत धचक्रकत्िा व्यििायी द्िारा िस्तािर क्रकया
गया तात्पनयित िै , धचक्रकत्िा व्यििायी को िािी के रूप में आिूत क्रकए बबना स्िीकार कर िकेगा ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (22.11.1980)- ननयम 1 के स्थान पर ननम्न ननयम 1
को प्रनतस्थावपत क्रकया गया-
''1. िाक्षीगण के परीक्षण के सलए कमीशन- कोई भी न्यायालय, क्रकिी भी िाद में यहद सलणखत में
असभसलणखत क्रकये जाने िाले कारणों िे ऐिा करना न्यायहित में करना आिश्यक या िमीचीन िमझता िै
तो पछ
ू ताछ या अन्यथा क्रकिी व्यर्क्त के पर िण के सलए कमीशन जार कर िकेगा ।''

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1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 75 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया गया ।

2. कमीशन के सलए आदे श- िािी की पर िा करने के सलए कमीशन ननकाले जाने के सलए आदे श
न्यायालय या तो स्िप्रेरणा िे या िाद के क्रकिी पिकार के या उि िािी के र्जिकी पर िा की जानी िै ,
ऐिे आिेदन पर जो शपथपत्र द्िारा या अन्यथा िमधथित िो, क्रकया जा िकेगा ।

3. जिां िाक्षी न्यायालय की अधधकाररता के िीतर ननिाि करता िै - जो व्यर्क्त कमीशन ननकालने
िाले न्यायालय की अधधकाररता की स्थानीय िीमाओं के भीतर ननिाि करता िै उिकी पर िा करने के सलए
कमीशन क्रकिी ऐिे व्यर्क्त के नाम ननकाला जा िकेगा र्जिे न्यायालय उिका ननष्पादन करने के सलए
ठीक िमझे ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (22.11.1980)- ननयम 3 के स्थान पर ननम्नानि
ु ार
ननयम 3 को प्रनतस्थावपत क्रकया गया-
''3. कमीशन क्रकनको जारी क्रकया जाएगा- ऐिा कमीशन उच्च न्यायालय न िोने िाले क्रकिी
न्यायालय को र्जिकी अधधकाररता की स्थानीय िीमाओं के भीतर ऐिा व्यर्क्त ननिाि करता िै अथिा
क्रकिी प्ल डर या अन्य व्यर्क्त र्जिको न्यायालय इिे ननष्पाहदत करना उपयक्
ु त िमझता िै , जार क्रकया
जा िकेगा और न्यायालय यि ननदे श करे गा क्रक क्या कमीशन इिको स्ियं को िावपि क्रकया जाएगा या
क्रकिी अधीनस्थ न्यायालय को ।''

4. िे व्यस्तत स्जनकी परीक्षा करने के सलए कमीशन ननकाला जा िकेगा- (1) कोई भी न्यायालय-
(क) अपनी अधधकाररता की स्थानीय िीमाओं िे परे ननिािी क्रकिी भी व्यर्क्त की,
(ख) क्रकिी भी ऐिे व्यर्क्त की जो ऐिी िीमाओं को उि तार ख िे पिले छोड़ने िाला िै र्जिको
न्यायालय में पर िा की जाने के सलए िि अपेक्षित िै तथा
(ग) 1[िरकार की िेिा के क्रकिी भी ऐिे व्यर्क्त] की र्जिके बारे में न्यायालय की राय िै क्रक िि
लोक िेिा का अपाय क्रकए बबना िार्जर नि ं िो िकता,
2
[पररप्रश्नों द्िारा या अन्यथा पर िा करने के सलए कमीशन क्रकिी भी िाद में ननकाल िकेगा:
परन्तु जिां क्रकिी व्यर्क्त को आदे श 16 के ननयम 19 के अधीन न्यायालय में स्ियं िार्जर िोने के
सलए मजबरू नि ं क्रकया जा िकता िै ििां, उिका यहद िाक्ष्य न्याय के हित में आिश्यक िमझा जाए तो,
उिकी पर िा के सलए कमीशन ननकाला जाएगा:
परन्तु यि और क्रक पररप्रश्नों द्िारा ऐिे व्यर्क्त की पर िा के सलए कमीशन तब तक नि ं ननकाला
जाएगा जब तक क्रक न्यायालय ऐिे कारणो िे जो लेखबद्ध क्रकए जाएंगे ऐिा करना आिश्यक न िमझे ।]
(2) ऐिा कमीशन उच्च न्यायालय िे सभन्न क्रकिी भी ऐिे न्यायालय के नाम र्जिकी अधधकाररता
की स्थानीय िीमाओं के भीतर ऐिा व्यर्क्त ननिाि करता िै या क्रकिी भी प्ल डर या अन्य व्यर्क्त के नाम,
र्जिे कमीशन ननकालने िाला न्यायालय ननयक्
ु त करे , ननकाला जा िकेगा ।

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(3) न्यायालय कोई भी कमीशन इि ननयम के अधीन ननकालने पर यि ननदे श दे गा क्रक कमीशन
उि न्यायालय को या क्रकिी अधीनस्थ न्यायालय को लौटाया जाएगा ।

1. भारत शािन (भारतीय विधध अनक


ु ू लन) आदे श, 1937 द्िारा ''िरकार के क्रकिी ऐिे सिविल या
िैननक अधधकार '' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 75 द्िारा (1-2-1977 िे) ''पर िा करने के सलए'' के
स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
3. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 75 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्तःस्थावपत क्रकया गया ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


मध्य प्रदे श उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- उपननयम (1) में ननम्नानि
ु ार खंड (घ) जोडा गया िै ---
'' (घ) कोई व्यर्क्त जो यद्
ु ध में िंबद्ध िोने के कारण िवु िधापि
ू क
ि रोका नि ं जा िकता िै ।''

इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (22.11.1980)- ननयम 4 को विलोवपत क्रकया गया ।
राजस्थान उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (1.12.1973 िे प्रिािी)- ननयम 4 के उपरांत ननम्नानि
ु ार
ननयम 4 क जोडा गया-

“4-क. न्यायालय की स्थानीय िीमाओं में रिने िाले क्रकिी व्यस्तत के परीक्षा के सलए कमीशन- (1)
इन ननयमों में अन्तननिहित क्रकिी बात के िोते िुए भी, कोई भी न्यायालय, न्यायहित में अथिा मामले के
शीघ्र ननराकरण करने के सलए अथिा अन्य क्रकिी कारण िे क्रकिी िाद में उिकी अधधकाररता के भीतर
ननिाि करने िाले व्यर्क्त का पछ
ू ताछ पर या अन्यथा पर िण करने के सलए कमीशन जार कर िकेगा,
और इि प्रकार असभसलणखत की गयी िाक्ष्य को िाक्ष्य में पढा जाएगा ।
(2) उपननयम 1 के प्रािधान डडिी या आदे श के ननष्पादन की कायििाि में प्रयोज्य िोंगे ।''

1
[4क. न्यायालय की स्थानीय िीमाओं के िीतर ननिाि करने िाले क्रकिी व्यस्तत की परीक्षा के
सलए कमीशन- इन ननयमों मे क्रकिी बात के िोते िुए भी, कोई न्यायालय क्रकिी िाद में न्याय के हित में
या मामले को शीघ्र ननपटाने के सलए या क्रकिी अन्य कारण िे अपनी अधधकाररता की स्थानीय िीमाओं के
भीतर ननिाि करने िाले क्रकिी व्यर्क्त का पछ
ू ताछ पर या अन्यथा पर िा के सलए कमीशन ननकाल िकेगा
और इि प्रकार असभसलणखत िाक्ष्य को िाक्ष्य में पढ़ा जाएगा ।]

5. जो िाक्षी िारत के िीतर के निीं िै उिकी परीक्षा करने के सलए कमीशन या अनरु ोध पत्र- जिां
क्रकिी ऐिे न्यायालय का र्जिको क्रकिी ऐिे स्थान में ननिाि करने िाले व्यर्क्त की जो 2[भारत] के भीतर
का स्थान नि ं िै , पर िा करने का कमीशन ननकालने के सलए आिेदन क्रकया गया िै , िमाधान िो जाता िै
क्रक ऐिे व्यर्क्त का िाक्ष्य आिश्यक िै ििां न्यायालय ऐिा कमीशन ननकाल िकेगा या अनरु ोधपत्र भेज
िकेगा ।

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1. 1999 के अधधननयम िं. 46 की धारा 29 द्िारा (1-7-2002 िे) अतःस्थावपत |
2. 1951 के अधधननयम िं. 2 की धारा 3 द्िारा ''राज्यों'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

6. कमीशन के अनि
ु रण में न्यायालय िाक्षी की परीक्षा करे गा- क्रकिी व्यर्क्त की पर िा करने के
सलए कमीशन प्राप्त करने िाला िर न्यायालय उिके अनि
ु रण में उि व्यर्क्त की पर िा करे गा या कराएगा

7. िाक्षक्षयों के असििाक्ष्य के िाथ कमीशन का लौटाया जाना- जिां कमीशन का िम्यक रुप िे
ननष्पादन कर हदया गया िै ििां िि उिके अधीन सलए गए िाक्ष्य िहित उि न्यायालय को र्जिने उिे
ननकाला था, उि दशा के सििाय लौटा हदया जाएगा र्जिमें क्रक कमीशन ननकालने िाले आदे श द्िारा
अन्यथा ननहदि ष्ट क्रकया गया िो और उि दशा में कमीशन ऐिे आदे श के ननबन्धनों के अनि
ु ार लौटाया
जाएगा और कमीशन और उिके िाथ िाल वििरणी और उिके अधीन हदया गया िाक्ष्य 1[(ननयम 8 के
उपबन्धों के अधीन रिते िुए) िाद के असभलेख का भाग िोंगे ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- ननयम 7 में शब्दों ''ननयम 8 के उपबन्धों के अधीन
रिते िुए'' को विलोवपत क्रकया गया और अंत में शब्दों ''ि िाद मे िाक्ष्य के रुप में पढा जाएगा ।'' को अंत
में अंतःस्थावपत क्रकया जाएगा ।

8. असििाक्ष्य कब िाक्ष्य में र्ग्िण क्रकया जा िकेगा-- कमीशन के अधीन सलया गया िाक्ष्य िाद में
िाक्ष्य के तौर पर उि पिकार की ििमनत के बबना र्जिके विरुद्ध िि हदया गया िै , उि दशा के सििाय
ग्रिण नि ं क्रकया जाएगा, र्जिमें क्रक-
(क) िि व्यर्क्त र्जिने िाक्ष्य हदया िै , न्यायालय की अधधकाररता के परे िै या उिकी मत्ृ यु िो गई
िै या िि बीमार या अंगशैधथपय के कारण िैयर्क्तक रूप िे पर िा की जाने के सलए िार्जर िोने में
अिमथि िै या न्यायालय में स्िीम उपिंजानत िे छूट पाया िुआ िै या िरकार की िेिा में का ऐिा व्यर्क्त
िै र्जिके बारे में न्यायालय की राय िै क्रक िि लोक िेिा का अपाय क्रकए बबना िार्जर नि ं िो िकता,
अथिा
(ख) न्यायालय खण्ड (क) में िणणित पररर्स्थतयों में िे क्रकिी के िाबबत क्रकए जाने िे असभमर्ु क्त
स्िवििेकानि
ु ार दे दे ता िै और क्रकिी व्यर्क्त के िाक्ष्य को िाद में िाक्ष्य के तौर पर ग्रिण क्रकया जाना,
इि िबत
ू के िोते िुए भी क्रक कमीशन के माध्यम द्िारा ऐिा िाक्ष्य लेने का िे तु उिके ग्रिण क्रकए जाने के
िमय जाता रिा िै , प्राधधकृत कर दे ता िै ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 75 द्िारा (1-2-1977 िे) कुछ शब्दो के स्थान पर
प्रनतस्थावपत ।

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2. भारत शािन (भारतीय विधध अनक
ु ू लन) आदे श, 1937 द्िारा ''िरकार का कोई ऐिा सिविल या
िैननक अधधकार '' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (22.11.1980 िे प्रिािी)- ननयम 8 को विलोवपत क्रकया
गया ।

स्थानीय अन्िेषणों के सलए कमीशन


9. स्थानीय अन्िेषण करने के सलए कमीशन- क्रकिी भी िाद में र्जिमें न्यायालय वििाद में के
क्रकिी विषय के विशद करण के या क्रकिी िंपवि के बाजार-मप
ू य के या क्रकन्ि ं अन्तःकाल न लाभों या
नक
ु िानी या िावषिक शद्
ु ध लाभों की रकम के असभननश्चयन के प्रयोजन के सलए स्थानीय अन्िेषण करना,
अपेिणीय या उधचत िमझता िै , न्यायालय ऐिे व्यर्क्त के नाम र्जिे िि ठीक िमझे, ऐिा अन्िेषण करने
के सलए और उि पर न्यायालय को ररपोटि दे ने के सलए उिे ननदे श दे ते िुए कमीशन ननकाल िकेगा:
परन्तु जिां राज्य िरकार ने उन व्यर्क्तयों के बारे में ननयम बना हदए िैं र्जनके नाम ऐिा
कमीशन ननकाला जा िकेगा ििां न्यायालय ऐिे ननयमों िे आबद्ध िोगा ।

10. कसमश्नर के सलए प्रक्रिया—(1) कसमश्नर ऐिे स्थानीय ननर िण के पश्चात ् जो िि आिश्यक
िमझे और अपने द्िारा सलए गए िाक्ष्य को लेखबद्ध करने के पश्चात ् अपने द्िारा िस्तािररत अपनी
सलणखत ररपोटि िहित ऐिे िाक्ष्य को न्यायालय को लौटाएगा ।
(2) ररपोटि और असभिाक्ष्य िाद में िाक्ष्य िोंगे । कसमश्नर की िैयर्क्तक रुप िे पर िा की जा
िकेगी-कसमश्नर की ररपोटि और उिके द्िारा सलया गया िाक्ष्य (न क्रक िाक्ष्य ररपोटि के बबना) िाद में िाक्ष्य
िोगा और असभलेख का भाग िोगा, क्रकन्तु न्यायालय या न्यायालय की अनज्ञ
ु ा िे िाद में के पिकारों में िे
कोई भी पिकार, कसमश्नर की िैयर्क्तक रूप िे पर िा खल
ु े न्यायालय में उन बातों में िे क्रकिी के बारे में
जो जो ननदे सशत की गई थी या र्जनका िणिन उिकी ररपोटि में िै या उिकी ररपोटि के बारे में या उि र नत
के बारे में र्जिमें उिने अन्िेषण क्रकया िै , कर िकेगा ।
(3) जिां न्यायालय क्रकिी कारण िे कसमश्नर की कायििाहियों िे अंितष्ु ट िै ििां िि ऐिी
अनतररक्त जांच करने के सलए ननदे श दे िकेगा जो िि ठीक िमझे ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 75 द्िारा (1-2-1977 िे अन्त: स्थावपत क्रकया गया ।

[िैज्ञाननक अन्िेषण, अनि


1
ु धचिीय कायव करने और जंगम िम्पवि के वििय के सलए कमीशन
10क. िैज्ञाननक अन्िेषण के सलए कमीशन—(1) जिां िाद में उद्भत
ू िोने िाले क्रकिी प्रश्न में कोई
ऐिा िैज्ञाननक अन्िेषण अन्तग्रिस्त िै जो न्यायालय की राय में न्यायालय के िमि िवु िधापि
ू क
ि नि ं क्रकया
जा िकता िै ििा न्यायालय, यहद िि न्याय के हित में ऐिा करना आिश्यक या िमीचीन िमझे तो ऐिे
व्यर्क्त के नाम र्जिे िि ठीक िमझे, कमीशन उिे यि ननदे श दे ते िुए ननकाल िकेगा क्रक िि ऐिे प्रश्न

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की जांच करे और उिकी ररपोटि न्यायालय को दे ।
(2) आदे श के ननयम 10 के उपबन्ध इि ननयम के अधीन ननयक्
ु त कसमश्नर के िंबध
ं में जिा तक
िो उिे उिी प्रकार लागू िोंगे र्जि प्रकार िे ननयम 9 के अधीन ननयक्
ु त कसमश्नर के िंबध
ं में लागू िोते िैं

10ख. अनि
ु धचिीय कायव करने के सलए कमीशन- (1) जिां िाद में उद्भत
ू िोने िाले क्रकिी प्रश्न में
कोई ऐिा अनि
ु धचिीय कायि करना अन्तग्रिस्त िै जो न्यायालय की राय में न्यायालय के िमि िवु िधापि
ू क
ि
नि ं क्रकया जा िकता िै , ििां न्यायालय, ऐिे कारणों िे जो लेखबद्ध क्रकए जाएंगे, यहद न्यायालय की यि
राय िो क्रक न्याय के हित में ऐिा करना आिश्यक या िमीचीन िै तो, ऐिे व्यर्क्त के नाम र्जिे िि ठीक
िमझे, कमीशन उिे यि ननदे श दे ते ननकाल िकेगा क्रक िि उि अनि
ु धचिीय कायि को करे और उिकी
ररपोटि न्यायालय को दे ।
(2) इि आदे श के ननयम 10 के उपबन्ध इि ननयम के अधीन ननयक्
ु त कसमश्नर के िम्बन्ध में
उिी प्रकार लागू िोंगे र्जि प्रकार िे ननयम 9 के अधीन ननयक्
ु त कसमश्नर के िम्बन्ध में लागू िोते िैं ।

10ग. जंगम िंपवि के वििय के सलए कमीशन—(1) जिां क्रकिी िाद में क्रकिी ऐिी जगम िंपवि का
जो िाद के अिधारण के लर्म्बत रिने के दौरान न्यायालय की असभरिा में िै और जो िवु िधापि
ू क
ि
परररक्षित नि ं की जा िकती िै वििय करना आिश्यक िो जाता िै , ििा न्यायालय ऐिे कारणों िे जो
लेखबद्ध क्रकए जाएंगे यहद न्यायालय की यि राय िो क्रक न्याय के हित में ऐिा करना आिश्यक या
िमीचीन िै तो, ऐिे व्यर्क्त के नाम र्जिे िि ठीक िमझे, कमीशन उिे यि ननदे श दे ते िुए ननकाल िकेगा
क्रक िि ऐिे वििय का िचालन करे और उिकी ररपोटि न्यायालय को दे ।
(2) इि आदे श के ननयम 10 के उपबन्ध इि ननयम के अधीन ननयक्
ु त कसमश्नर के िम्बन्ध में
उिी प्रकार लागू िोंगे र्जि प्रकार िे ननयम 9 के अधीन ननयक्
ु त कसमश्नर के िम्बन्ध मे लागू िोते िैं ।
(3) ऐिा प्रत्येक वििय जिां तक िो िके डडिी के ननष्पादन में जंगम िंपवि के वििय के सलए
विहित प्रक्रिया के अनि
ु ार क्रकया जाएगा ।
लेखाओं की परीक्षा करने के सलए कमीशन
11. लेखाओं की परीक्षा या िमायोजन करने के सलए कमीशन- न्यायालय ऐिे क्रकिी िाद भी र्जिमें
लेखाओं की पर िा या िमायोजन आिश्यक िै , ऐिी पर िा या िमायोजन करने के सलए ऐिे व्यर्क्त के
नाम जो ननदे श दे ते िुए र्जिे िि ठीक िमझे कमीशन ननकाल िकेगा ।

12. न्यायालय कसमश्नर को आिश्यक अनद


ु े श दे गा—(1) न्यायालय कसमश्नर को कायििाहियों का
ऐिा भाग और ऐिे अनद
ु े श दे गा जो आिश्यक िो और ऐिे अनद
ु े शों में यि स्पष्टतया विननहदिष्ट िोगा क्रक
क्या कसमश्नर केिल उन कायििाहियों को पारे वषत करे र्जन्िें िि ऐिी जांच में करता िै या उि बात के बारे
में अपनी राय की भी ररपोटि करे जो उिकी पर िा के सलए ननदे सशत की गई िै ।
(2) कायविाहियां और ररपोटव िाक्ष्य िोंगी । न्यायालय अनतररतत जांच कर िकेगा- कसमश्नर की
कायििाहियााँ और ररपोटि (यहद कोई िों) िाद में िाक्ष्य िोंगी, क्रकन्तु जिा न्यायालय के पाि उनिे अिन्तष्ु ट
िोने के सलए कारण िै ििां िि ऐिी अनतररक्त जांच ननहदि ष्ट कर िकेगा जो िि ठीक िमझे ।

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वििाजन करने के सलए कमीशन
13. स्थािर िम्पवि का वििाजन करने के सलए कमीशन- जिां विभाजन करने के सलए प्रारर्म्भक
डडिी पाररत की गई िै ििां न्यायालय क्रकिी भी मामले में र्जिके सलए धारा 54 द्िारा उपबंध नि ं क्रकया
गया िै , ऐिी डडिी में घोवषत अधधकारों के अनि
ु ार विभाजन या पथ
ृ क् करण करने के सलए ऐिे व्यर्क्त के
नाम र्जिे िि ठीक िमझे कमीशन ननकाल िकेगा ।

14. कसमश्नर की प्रक्रिया- (1) कसमश्नर ऐिी जांच करने के पश्चात ् जो आिश्यक िो, िम्पवि को
उतने अंशों में विभार्जत करे गा र्जतने उि आदे श द्िारा ननहदि ष्ट िों र्जिके अधीन कमीशन ननकाला गया
था और ऐिे अंशों का पिकारों में आबंटन कर दे गा और यहद उिे उक्त आदे श द्िारा ऐिा करने के सलए
प्राधधकृत क्रकया जाता िै तो िि अंशों के मप
ू य को बराबर करने के प्रयोजन के सलए द जाने िाल रासशयां
अधधननणीत कर िकेगा ।
(2) तब िर एक पिकार का अंश ननयत करके और (यहद उक्त आदे श द्िारा ऐिा करने के सलए
ननदे श हदया जाता िै) तो िर एक अंश को माप और िीमांक न करके कसमश्नर अपनी ररपोटि तैयार और
िस्तािररत करे गा या (जिां कमीशन एक िे अधधक व्यर्क्तयों के नाम ननकाला गया था और िे परस्पर
ििमत नि ं िो िके िैं ििां) कसमश्नर पथ
ृ क-पथ
ृ क ररपोटि तैयार और िस्तािररत करें गे । ऐिी ररपोटि या
ऐिी ररपोटें कमीशन के िाथ उपाबद्ध की जाएंगी और न्यायालय को पारे वषत की जाएंगी और पिकार जो
कोई आिेप ररपोटि या ररपोटों पर करे , न्यायालय उन्िें िन
ु ने के पश्चात ् उिे या उन्िें पष्ु ट, उिमें या उनमें
फेरफार या उिे या उन्िें अपास्त करे गा ।
(3) जिां न्यायालय ररपोटि या ररपोटों को पष्ु ट करता िै या उिमें या उनमें फेरफार करता िै ििां
िि उिके पष्ु ट या फेरफार क्रकए गए रूप के अनि
ु ार डडिी पाररत करे गा क्रकन्तु जिां न्यायालय ररपोटि या
ररपोटों को अपास्त कर दे ता िै ििा िि या तो नया कमीशन ननकालेगा या ऐिा अन्य आदे श करे गा जो िि
ठीक िमझे ।
उच्च न्यायालय िंशोधन
पटना उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (4.3.1932)- ननयम 14 के उपननयम (2) ि (3) के स्थान
पर ननम्नानि
ु ार (2) (3) को प्रनतस्थावपत क्रकया गया -
“(2) तब िर एक पिकार का अंश ननयत करके और (यहद उक्त आदे श द्िारा ऐिा करने के सलए
ननदे श हदया जाता िै) तो िर एक अंश को माप और िीमांक न करके कसमश्नर अपनी ररपोटि तैयार और
िस्तािररत करे गा या ( जिां कसमश्नर एक िे अधधक व्यर्क्तयों के नाम ननकाला गया था और िे परस्पर
ििमत नि ं िो िके िैं ििां) कसमश्नर पथ
ृ क-पथ
ृ क ररपोटि तैयार और िस्तािररत करें गे । कसमश्नर या
कसमश्नरगण ररपोटि को उपाबद्ध करें गे और जिां एक िे अधधक िैं तो प्रत्येक ररपोटि प्रत्येक पि को
आबंहटत भख ू ंडो ि िेत्रों की िच
ू ी दसशित करते िुए और जब तक क्रक न्यायालय द्िारा अन्यथा ननदे सशत न
क्रकया गया िो तो प्रत्येक पिकार को आबंहटत भख ू ंडों अथिा भख
ू ंडों के भागों को विसभन्न रं गों में दसशित
करते िुए नक्शा भी िोगा । उि दशा में जबक्रक भखू ंड को उप-विभार्जत क्रकया गया िो तो प्रत्येक उपखंड
का िेत्रफल ि यि दसशित करते िुए क्रक भख
ू ंड को क्रकि प्रकार विभार्जत क्रकया गया िै माप भी अनि ु च
ू ी ि
नकशे, यहद कोई िो, में हदया जाएगा । ऐिी ररपोटि या ऐिी ररपोटें िच
ू ी ि नक्शे के िाथ उपाबद्ध की

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जाएंगी और न्यायालय को पारे वषत की जाएंगी और पिकार जो कोई आिेप ररपोटि या ररपोटों पर करे ,
न्यायालय उन्िें िन
ु ने के पश्चात ् उिे या उन्िें पष्ु ट, उिमें या उनमें फेरफार या उिे या उन्िें अपास्त करे गा

(3) जिां न्यायालय ररपोटि या ररपोटों को पष्ु ट करता िै या उिमें या उनमें फेरफार करता िै ििां
िि उिके पष्ु ट या फेरफार क्रकए गए रुप के अनि
ु ार डडिी पाररत करे गा और जब अंनतम डडिी तैयार करने
में तो इिकी डडिी में ऊपर उपननयम (2) में िणणित िच
ू ी ि नक्शे,यहद कोई िो, जो न्यायालय द्िारा पष्ु ट
या पररिनतित क्रकये गये िों को शासमल करे गा । कसमश्नर या कसमश्नरों की िंपण
ू ि ररपोटि या ररपोटों को
िाधारण तौर पर डडिी में शासमल नि ं क्रकया जाएगा । जब न्यायालय ररपोटि या ररपोटों को अपास्त कर
दे ता िै ििां िि या तो नया कमीशन ननकालेगा या ऐिा अन्य आदे श करे गा जो िि ठीक िमझे ।''

िाधारण उपबन्ध
15. कमीशन के व्यय न्यायालय में जमा क्रकए जाएंग-े न्यायालय इि आदे श के अधीन कोई
कमीशन ननकालने िे पि
ू ि आदे श दे िकेगा क्रक ऐिी रासश (यहद कोई िो) जो िि कमीशन के व्ययों के सलए
यर्ु क्तयक्
ु त िमझे, ननयत क्रकए जाने िाले िमय के भीतर न्यायालय में उि पिकार द्िारा जमा की जाए
र्जिकी प्रेरणा पर या र्जिके फायदे के सलए कमीशन ननकाला जाना िै ।

16. कसमश्नरों की शस्ततयां- इि आदे श के अधीन ननयक्


ु त कोई भी कसमश्नर उि दशा के सििाय
र्जिमें ननयर्ु क्त के आदे श द्िारा उिे अन्यथा ननहदष्ट क्रकया गया िो,-
(क) स्ियं पिकारो की और ऐिे िािी की र्जिे िे या उनमें िे कोई पेश करे और ऐिे अन्य ि
व्यर्क्त की र्जिे कसमश्नर अपने को ननदे सशत मामले में िाक्ष्य दे ने के सलए बल
ु ाना ठीक िमझे, पर िा कर
िकेगा;
(ख) जांच के विषय िे िि
ु ग
ं त दस्तािेजों और अन्य चीजों को मंगिा िकेगा और उनकी पर िा कर
िकेगा;
(ग) आदे श में िणणित क्रकिी भी भसू म में या ननमािण के भीतर क्रकिी यर्ु क्तयक्
ु त िमय पर प्रिेश कर
िकेगा ।

1
[16 क. िे प्रश्न स्जन पर कसमश्नर के िमक्ष आक्षेप क्रकया जाता िैं- (1) जिां इि आदे श के
अधीन ननयक्
ु त कसमश्नर के िमि कायििाहियों में िािी िे पछ
ू े गए क्रकिी प्रश्न पर क्रकिी पिकार या
उिके प्ल डर द्िारा आिेप क्रकया जाता िै , ििां कसमश्नर प्रश्न, उिर, आिेपों को और इि प्रकार आिेप
करने िाले, यथार्स्थनत, पिकार या प्ल डर का नाम सलखेगा :
परन्तु कसमश्नर क्रकिी ऐिे प्रश्न का र्जि पर विशेषाधधकार के आधार पर आिेप क्रकया जाता िै ,
उतर नि ं सलखेगा क्रकन्तु िि िािी की पर िा विशेषाधधकार का प्रश्न न्यायालय द्िारा विननर्श्चत कराने के
सलए पिकार पर छोडते िुए, जार रख िकता िै और जिां न्यायालय विननश्चय करता िै क्रक विशेषाधधकार
का कोई प्रश्न नि ं िै ििां िािी को कसमश्नर द्िारा पन
ु : बल
ु ाया जा िकता िै और उिके द्िारा पर िा की
जा िकती िै या न्यायालय द्िारा उि प्रश्न की बाबत र्जि पर आिेप विशेषाधधकार के आधार पर क्रकया

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गया था, िािी की पर िा की जा िकती िै ।
(2) उपननयम (1) के अधीन सलखे गए क्रकिी उिर को िाद में िाक्ष्य के रुप में न्यायालय के आदे श
के बबना नि ं पड़ा जाएगा ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 75 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया गया ।

17. कसमश्नर के िमक्ष िाक्षक्षयों की िास्जरी और उनकी परीक्षा—(1) िाक्षियों को िमन करने,
िाक्षियों की िार्जर और िाक्षियों की पर िा िम्बन्धी और िाक्षियों के पाररश्रसमक और उन पर अधधरोवपत
की जाने िाल शार्स्तयों िम्बन्धी इि िंहिता के उपबन्ध उन व्यर्क्तयों को लागू िोंगे र्जनिे िाक्ष्य दे ने
की या दस्तािेजें पेश करने की अपेिा इि आदे श के अधीन की गई िै , चािे िि कमीशन र्जिका ननष्पादन
करने में उनिे ऐिी अपेिा की गई िै , 1[भारत] की िीमाओं के भीतर र्स्थत न्यायालय द्िारा या 2[भारत]
की िीमाओं िे परे र्स्थत न्यायालय द्िारा ननकाला गया िो और कसमश्नर के बारे में इि ननयम के
प्रयोजनों के सलए यि िमझा जाएगा क्रक िि सिविल न्यायालय िै ;
3
[परन्तु जब कसमश्नर सिविल न्यायालय का न्यायाधीश नि ं िै तब िि यि शार्स्तयां अधधरोवपत
करने के सलए ििम नि ं िोगा, क्रकन्तु ऐिे कसमश्नर के आिेदन पर ऐिी शार्स्तयां उि न्यायालय द्िारा
र्जिने कमीशन ननकाला था, अधधरोवपत की जा िकेगी ।
(2) कसमश्नर कोई ऐिी आदे सशका ननकालने के सलए, र्जिे िि िािी के नाम या उिके विराद्ध
ननकालना आिश्यक िमझे, ऐिे क्रकिी न्यायालय िे (जो उच्च न्यायालय नि ं िै ) और र्जिकी अधधकाररता
की स्थानीय िीमाओं के भीतर ऐिा िािी ननिाि करता िै , आिेदन कर िकेगा और ऐिा न्यायालय
स्िवििेकानि
ु ार ऐिी आदे सशका ननकाल िकेगा जो िि यर्ु क्तयक्
ु त और उधचत िमझे ।

1. 1951 के अधधननयम िं. 2 की धारा 3 द्िारा “राज्यो” के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया |
2. 1951 के अधधननयम िं. 2 की धारा 3 द्िारा “राज्यो” के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया |
3. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 76 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्तःस्थावपत क्रकया गया ।

18. पक्षकारों का कसमश्नर के िमक्ष उपिंजात िोना- (1) जिां कमीशन इि आदे श के अधीन
ननकाला जाता िै ििा न्यायालय ननदे श दे गा क्रक िाद के पिकार कसमश्नर के िमि या तो स्ियं या अपने
असभकतािओं के या प्ल डरो के द्िारा उपिंजात िों ।
(2) जिां िभी पिकार या उनमें िे कोई इि प्रकार उपिंजात न िो ििां कसमश्नर उनकी
अनप
ु र्स्थनत में कायििाि कर िकेगा ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (29.12.1961)- उपननयम (1) में शब्दों '' और िािी के
के पर िण के सलए आिेदन करने िाले पि अथिा इिके वििेक में िाद के अन्य क्रकिी पि को कसमश्नर
के सलए असभिचनों ि वििाद्यकों की प्रनतसलवप प्रदाय करने के िंबध
ं में ननदे श दे गा ।'' को उपननयम (1) के

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अंत में पण
ू ि विराम को िटाते िुए प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

1
[18क. ननष्पादन कायविाहियों को आदे श का लागू िोना- इि आदे श के उपबन्ध डडिी या आदे श के
ननष्पादन में कायििाहियों को, जिां तक िो िके, लागू िोंगे ।

18ख. न्यायालय द्िारा कमीशन के लौटाए जाने के सलए िमय ननयत क्रकया जाना- कमीशन
ननकालने िाला न्यायालय िि तार ख ननयत करे गा र्जिको या र्जिके पि
ू ि कमीशन ननष्पादन के पश्चात ्
उिको लौटाया जाएगा और इि प्रकार ननयत की गई तार ख बढ़ाई नि ं जाएगी सििाय उि दशा में र्जिने
न्यायालय का, ऐिे कारणों िे जो लेखबद्ध क्रकए जाएंगे, यि िमाधान िो जाता िै क्रक तार ख बढाने के सलए
पयािप्त िे तक
ु िै ।

2
[विदे शी अधधकरणों की प्रेरणा पर ननकाले गए कमीशन
19. िे मामले स्जनमें उच्च न्यायालय िाक्षी की परीक्षा करने के सलए कमीशन ननकाल िकेगा- (1)
यहद क्रकिी उच्च न्यायालय का यि िमाधान िो जाता िै क्रक---
(क) क्रकिी विदे श में र्स्थत कोई विदे शी न्यायालय अपने िमि की क्रकिी कायििाि में क्रकिी िािी
का िाक्ष्य असभप्राप्त करना चािता िै ,
(ख) कायििाि सिविल प्रकृनत की िै , तथा

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 75 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्तःस्थावपत क्रकया गया ।
2. 1932 के अधधननयम िं. 10 की धारा 3 द्िारा शीषि और ननयम 19 िे 22 तक अन्तःस्थावपत
क्रकया गया ।
(ग) िािी उि उच्च न्यायालय की अपील य अधधकाररता की िीमाओं के भीतर ननिाि करता िै ,
तो ननयम 20 के उपबन्धों के अधीन रिते िुए िि ऐिे िािी की पर िा करने के सलए कमीशन
ननकाल िकेगा ।
(2) उपननयम (1) के खण्ड क खण्ड ख और खण्ड ग में विननहदि ष्ट बातों का िाक्ष्य (क) भारत में
उि विदे श के उच्चतम पंर्क्त िाले कीन्िल य आक्रफिर द्िारा िस्तािररत और केन्द्र य िरकार की माफित
उच्च न्यायालय को पारे वषत क्रकए गए प्रमाणपत्र के रूप में , अथिा
(ख) विदे शी न्यायालय द्िारा ननकाले गए और केन्द्र य िरकार की माफित उच्च न्यायालय को
पारे वषत अनरु ोधपत्र के रूप में , अथिा
(ग) विदे शी न्यायालय द्िारा ननकाले गए और कायििाि के पिकार द्िारा उच्च न्यायालय के िमि
पेश क्रकए अनरु ोधपत्र के रुप में ,
िो िकेगा |

20. कमीशन ननकलिाने के सलए आिेदन- उच्च न्यायालय-


(क) विदे शी न्यायालय के िमि की कायििाि के पिकार के आदे िन पर, अथिा

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(ख) राज्य िरकार के अनद
ु े शों के अधीन कायि करते िुए राज्य िरकार के विधध अधधकार के
आिेदन पर, ननयम 19 के अधीन कमीशन ननकाल िकेगा ।

21. कमीशन क्रकिके नाम ननकाला जा िकेगा- ननयम 19 के अधीन कमीशन क्रकिी भी ऐिे
न्यायालय के नाम र्जिकी अधधकाररता की स्थानीय िीमाओं के भीतर िािी ननिाि करता िै या जिां 1***

िािी 2[उच्च न्यायालय की मामल


ू आरर्म्भक सिविल अधधकाररता] की स्थानीय िीमाओं के भीतर ननिाि
करता िै ििां क्रकिी ऐिे व्यर्क्त के नाम र्जिे न्यायालय कमीशन का ननष्पादन करने के सलए ठीक िमझे
ननकाला जा िकेगा ।

22. कमीशन का ननकाला जाना, ननष्पादन और लौटाया जाना और विदे शी न्यायालय को िाक्ष्य का
पारे षण- इि आदे श के ननयम 6, ननयम 15, 3[ननयम 16क के उपननयम (1), ननयम 17, ननयम 18 और
ननयम 18ख] के उपबन्ध ऐिे कमीशनों के ननकाले जाने, ननष्पादन या लौटाए जाने को ििां तक लागू िोंगे
जिा तक क्रक उन्िें िे लागू िो िकते िों, और जब क्रक ऐिा कोई कमीशन िम्यक् रुप िे ननष्पाहदत कर
हदया गया िो तब िि उिके अधीन सलए गए िाक्ष्य के िहित उच्च न्यायालय को लौटाया जाएगा जो उिे
विदे शी न्यायालय को पारे वषत करने के सलए अनरु ोधपत्र िहित केन्द्र य िरकार को अग्रेवषत कर दे गा ।

1. भारत शािन (भारतीय विधधअनक


ु ू लन) आदे श, 1937 द्िारा “इर्न्डयन िाई कोिि ऐक्ट, 1861
या भारत शािन अधधननयम, 1915 के अधीन उच्च न्यायालय स्थावपत क्रकया जाता िै और''
शब्दो का लोप ।
2. भारत शािन (भारतीय विधध अनक
ु ू लन) आदे श, 1937 द्िारा ''इिकी मामल
ू आरर्म्भक सिविल
अधधकाररता'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
3. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 76 द्िारा (1-2-1977 िे) '' 16, 17 और 18'' के
स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया |

आदे श 27
िरकार द्िारा या उिके विरुद्ध या अपनी पदीय िैसियत में लोक अधधकाररयों द्िारा या उनके विरुद्ध िाद
1. िरकार द्िारा या उिके विरुद्ध िाद- 1[िरकार] के द्िारा या विरुद्ध क्रकिी भी िाद में िादपत्र
या सलणखत कथन ऐिे व्यर्क्त द्िारा िस्तािररत क्रकया जाएगा र्जिे िरकार, िाधारण या विशेष आदे श
द्िारा, इि ननसमि ननयक्
ु त करे और क्रकिी ऐिे व्यर्क्ि द्िारा ित्यावपत क्रकया जाएगा र्जिे िरकार इि
प्रकार ननयक्
ु त करे और जो मामलों के तथ्यों िे पररधचत िै ।

राज्य िंशोधन
उ.प्र. राज्य िंशोधन (1.1.1977)- उ. प्र. अधधननयम (1976 का 57) के द्िारा आदे श के शीषिक में
अक्रकत शब्द 'पद य िै सियत' के उपरात शब्द ''अथिा िैधाननक प्राधधकार गण आहद'' जोडे ।

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2. िरकार के सलए कायव करने के सलए प्राधधकृत व्यस्तत--- क्रकिी भी न्यानयक कायििाि के बारे में
िरकार के सलए कायि करने के सलए पदे न या अन्यथा प्राधधकृत व्यर्क्त मान्यता प्राप्त असभकताि िमझे
जाएंगे जो िरकार की ओर िे इि िंहिता के अधीन उपिंजात िो िकेंगे, कायि कर िकेंगे और आिेदन कर
िकेंगे ।

1. भारत शािन ( भारतीय विधध अनक


ु ू लन) आदे श, 1937 द्िारा ''भारत के िेिेटर आफ स्टे ट इन
काउर्न्िल'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया ।

3. िरकार द्िारा या उिके विरुद्ध िादों में िादपत्र- िरकार द्िारा या 1[उिके विरुद्ध] िादों में , िाद
पत्र में िाद या प्रनतिाद का नाम, िणिन और ननिाि का स्थान अन्तःस्थावपत करने के बजाय 2[िि
िमधु चत नाम जो धारा 79 में उपबर्न्धत िै ]3*** अन्तःस्थावपत करना पयािप्त िोगा ।

4
[4. आदे सशका प्राप्त करने के सलए िरकार का असिकताव- क्रकिी भी न्यायालय में का िरकार प्ल डर
ऐिे न्यायालय द्िारा िरकार के विरुद्ध ननकाल गई आदे सशकाएं लेने के प्रयोजन के सलए िरकार का
असभकताि िोगा ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


राजस्थान उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (अधधिच
ू ना िमांक 11/एि.आर.ओ.97 हदनांक 27.9.97)-
ननयम 4 के स्थान पर ननम्न ननयम 4 को प्रनतस्थावपत कर हदया गया-
''4. क्रकिी भी न्यायालय में िरकार प्ल डर अथिा इि प्रयोजन के सलए िरकार द्िारा ननयक्
ु त
अधधकार ऐिे न्यायालय के द्िारा िरकार के विरुद्ध ननकाल गई आदे सशकाए लेने के प्रयोजन के सलए
िरकार का असभकताि िोगा”|
इिका प्रकाशन राजस्थान राजपत्र भाग-(1ख 9-10-97 की पेज 63 पर क्रकया गया ।)

5. िरकार की ओर िे उपिंजानत के सलए हदन ननयत क्रकया जाना- न्यायालय िि हदन ननगत करते िमय
र्जि हदन िादपत्र का उिर 5[िरकार] द्िारा हदया जाना िै , इतना यर्ु क्तयक्
ु त िमय अनज्ञ
ु ात करे गा र्जतना
िरकार को आिश्यक िंिच
ू ना उधचत प्रणाल द्िारा भेजने के सलए और [िरकार]
6 7***
की और उपिंजात िोने
और उिर दे ने के सलए 8
[िरकार प्ल डर] को अनद
ु े श दे ने के सलए आिश्यक िो और उि िमय को
स्िवििेकानि
ु ार बढ़ा िकेगा, [क्रकन्तु इि प्रकार बढाया गया िमय कुल समलाकर दो माि िे अधधक नि ं
िोगा।]

1. भारत शािन (भारतीय विधध अनक


ु ू लन) आदे श, 1937 द्िारा ''भारत के िेिेटर आफ स्टे ट इन
काउर्न्िल के विरुद्ध'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया ।
2. भारत शािन ( भारतीय विधध अनक
ु ू लन) आदे श, 1937 द्िारा ''भारत के िेिेटर आफ स्टे ट
इन काउर्न्िल'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया ।

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3. भारतीय स्ितंत्रता (केन्द्र य अधधननयमों और अध्यादे शों का अनक
ु ू लन) आदे श, 1948 दारा 'या,
यहद िाद िेिेटर आफ स्टे ट के विरुद्ध िै तो, ''िेिेटर आफ स्टे ट'' शब्द' शब्दों का लोप क्रकया
गया ।
4. भारत शािन (भारतीय विधधअनक
ु ू लन आदे श, 1937 द्िारा मल
ू ननयम के स्थान पर
प्रनतस्थावपत ।
5. भारत शािन (भारतीय विधध अनक
ु ू लन) आदे श, 1937 द्िारा ''भारत के िेिेटर आफ स्टे ट इन
काउर्न्िल'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत ।
6. भारत शािन (भारतीय विधध अनक
ु ू लन) आदे श, 1937 द्िारा ''भारत के उक्त िेिेटर आफ
स्टे ट इन काउर्न्िल'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत ।
7. भारतीय स्ितत्रता (केन्द्र य अधधननयमों और अध्यादे शो का अनक
ु ू लन) आदे श, 1948 द्िारा ''या
िरकार'' शब्दो का लोप क्रकया गया ।
8. भारत शािन (भारतीय विधध अनक
ु ू लन) आदे श, 1937 द्िारा ''िरकार प्ल डर'' के सलए रखे गए
''िाउन प्ल डर'' के स्थान पर विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1950 द्िारा प्रनतस्थावपत ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


पटना उच्च न्यायालय दारा िंशोधन (22.11.1960)—शब्द ''यर्ु क्तयक्
ु त िमय'' के स्थान पर शब्द
''तामील की तार ख िे कम िे कम 3 माि का िमय'' प्रनतस्थावपत ।
2
[5क. लोक अधधकारी के विरुद्ध िाद में िरकार को पक्षकार के रुप में िंयोस्जत क्रकया जाना- जिां
लोक अधधकार के विरुद्ध िाद क्रकिी ऐिे कायि के बारे में र्जिके िंबध
ं में यि असभकधथत क्रकया गया िै
क्रक िि उिने अपनी पद य िै सियत में क्रकया िै , नक
ु िानी या अन्य अनत
ु ोष के सलए िंर्स्थत क्रकया जाता िै
ििां िरकार को िाद में पिकार के रुप में िंयोर्जत क्रकया जाएगा ।

5ख. िरकार या लोक अधधकारी के विरुद्ध िादों में ननपटारा कराने में ििायता करने के सलए
न्यायालय का कतवव्य- (1) ऐिे प्रत्येक िाद या कायििाि में र्जिमें िरकार या अपनी पद य िै सियत में
कायि करने िाला लोक अधधकार पिकार िै , न्यायालय का यि कतिव्य िोगा क्रक िि िाद की विषय-िस्तु के
बारे में ननपटारा करान में पिकारों की ििायता करने के सलए िर प्रयाि प्रथमत: करे जिां ऐिा करना
मामले की प्रकृनत और पररर्स्थनतयों िे िि
ु ग
ं त िो ।
(2) यहद क्रकिी ऐिे िाद या कायििाि के क्रकिी प्रिम में न्यायालय को यि प्रतीत िोता िै क्रक
पिकारों के बीच ननपटारा िोने की यर्ु क्तयक्
ु त िम्भािना िै तो न्यायालय कायििाि को ऐिी अिधध के सलए
जो िि ठीक िमझे, स्थधगत कर िकेगा र्जििे क्रक ऐिा ननपटारा कराने के सलए प्रयत्न क्रकए जा िके ।
(3) उपननयम (2) के अधीन प्रदि शर्क्त कायििाहियों को स्थधगत करने के सलए न्यायालय की
क्रकिी अन्य शर्क्त के अनतररक्त िै ।]

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 76 द्िारा (1.2.1977 िे) अन्तःस्थावपत |


2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 76 द्िारा (1.2.1977 िे) अन्तःस्थावपत ।

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6. िरकार के विरुद्ध िाद िे िंबध
ं रखने िाले प्रश्नों का उिर दे ने योग्य व्यस्तत की िास्जरी-
न्यायालय क्रकिी ऐिे मामले में र्जिमें 1[िरकार प्ल डर] के िाथ 2[िरकार] की ओर िे ऐिा कोई व्यर्क्त
नि ं िै जो िाद िम्बन्धी क्रकन्ि ं भी तार्त्िक प्रश्नों का उतर दे ने में िमथि िो, ऐिे व्यर्क्त की िार्जर के
सलए भी ननदे श दे िकेगा ।

7. िमय का इिसलए बढ़ाया जाना क्रक लोक अधधकारी िरकार िे ननदे श करके पछ
ू िके- (1) जिां
प्रनतिाद कोई लोक अधधकार िै और िमन समलने पर िि यि उधचत िमझता िै क्रक िादपत्र का उिर दे ने
िे पि
ू ि िि बात िरकार को ननदे सशत की जाए ििा िि न्यायालय िे आिेदन कर िकेगा क्रक िमन में
ननयत िमय उिके सलए इतना बढ़ा हदया जाए र्जतना उिे उधचत प्रणाल द्िारा ऐिा ननदे श करने के और
उि पर आदे श प्राप्त करने के सलए आिश्यक िै ।
(2) न्यायालय ऐिे आिेदन पर उि िमय को उतना बढ़ा दे गा र्जतना उिे आिश्यक प्रतीत िो ।

1. भारत शािन (भारतीय विधध अनक


ु ू लन) आदे श, 1937 द्िारा '' िरकार प्ल डर'' के सलए रखे
गए “िाउन प्ल डर'' के स्थान पर विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1950 द्िारा प्रनतस्थावपत ।
2. भारत शािन (भारतीय विधध अनक
ु ू लन) आदे श, 1937 द्िारा ''भारत के िेिेटर आफ स्टे ट इन
काउर्न्िल'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत |

8. लोक अधधकारी के विरुद्ध िादों में प्रक्रिया- (1) जिां क्रकिी लोक अधधकार के विरुद्ध क्रकिी
िाद की प्रनतरिा करने का र्जम्मा िरकार लेती िै ििां 2[िरकार प्ल डर] उपिंजात िोने और िादपत्र का
उिर दे ने का प्राधधकार हदए जाने पर न्यायालय िे आिेदन करे गा और न्यायालय ऐिे आिेदन पर उिके
प्राधधकार का हटप्पण सिविल िादों के रर्जस्टर में प्रविर्ष्ट कराता ।
(2) जिां उि हदन को जो प्रनतिाद के उपिंजात िोने और उिर दे ने के सलए िच
ू ना में ननयत िै ,
या उि हदन के पि
ू ि कोई आिेदन [िरकार प्ल डर] द्िारा उपननयम (1) के अधीन नि ं क्रकया जाए ििां
2

मामला ऐिे चलेगा जैिे िि प्राइिेट पिकारों के बीच चलता िें :


परन्तु प्रनतिाद की धगरफ्तार या उिकी िम्पवि की कुकी डडिी के ननष्पादन में ि की जा िकेगी,
अन्यथा नि ं ।

3
[8क. कुछ मामलों में िरकार िे या लोक अधधकारी िे कोई प्रनतिनू त अपेक्षक्षत न की जाएगी-
िरकार िे या जिां िरकार ने िाद की प्रनतरिा का र्जम्मा सलया िै ििां क्रकिी ऐिे लोक अधधकार िे र्जि
पर क्रकिी ऐिे कायि के बारे में िाद लाया गया िै र्जिके िम्बन्ध में यि असभकधथत क्रकया गया िै क्रक िि
उिने अपनी पद य िैसियत में क्रकया िै आदे श 41 के ननयम 5 और ननयम 6 में यथािणणित प्रनतभनू त की
अपेिा नि ं की जाएगी ।
8ख. ''िरकार'' और ''िरकारी प्लीिर'' की पररिाषाएं- इि आदे श में 4[जब तक क्रक असभव्यक्त रुप
िे अन्यथा उपबर्न्धत न िो,] िरकार और 5[िरकार प्ल डर] िे िमश:----

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1. भारत शािन (भारतीय विधध अनक
ु ू लन) आदे श, 1937 द्िारा ''िरकार प्ल डर'' के सलए रखे गए
''िाउन प्ल डर'' के स्थान पर विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1950 द्िारा प्रनतस्थावपत ।
2. भारत शािन (भारतीय विधध अनक
ु ू लन) आदे श, 1937 द्िारा ''िरकार प्ल डर'' के सलए रखे गए
''िाउन प्ल डर'' के स्थान पर विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1950 द्िारा प्रनतस्थावपत क्रकया गया |
3. भारत शािन (भारतीय विधध अनक
ु ू लन) आदे श, 1937 द्िारा ननयम 8क और 8ख
अन्तःस्थावपत क्रकया गया ।
4. विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1950 द्िारा अन्तःस्थावपत क्रकया गया ।
5. भारत शािन (भारतीय विधध अनक
ु ू लन) आदे श, 1937 द्िारा ''िरकार प्ल डर'' के सलए रखे गए
''िाउन प्ल डर'' के स्थान पर विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1950 द्िारा प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

(क) ऐिे िाद के िंबध


ं में जो 1*** केन्द्र य िरकार द्िारा या उिके विरुद्ध िै या उि िरकार की
िेिा में के क्रकिी लोक अधधकार के विरुद्ध िै केन्द्र य िरकार और ऐिा प्ल डर असभप्रेत िै जो िि िरकार
चािे िाधारणत: या विशेषत:, इि आदे श के प्रयोजनों के सलए ननयक्
ु त करे ;
2
* * * *
(ग) ऐिे िाद के िंबध
ं में जो राज्य िरकार द्िारा या उिके विरुद्ध िै या राज्य की िेिा में के
लोक अधधकार के विरुद्ध िै राज्य िरकार और 3[धारा 2 के खण्ड (7) में यथापररभावषत िरकार प्ल डर
या ऐिा अन्य प्ल डर असभप्रेत िै जो राज्य िरकार चािे िाधारणत: या विशेषत: इि आदे श के प्रयोजनों के
सलए ननयक्
ु त करे ।

आदे श 27 ननयम 9
उच्च न्यायालय िंशोधन
इलािाबाद उच्च न्यायालय िंशोधन (22.5.1915) - ननम्नानि
ु ार ननयम 9 को जोड़ा गया-
''9. प्रत्येक मामले में र्जिमें िरकार प्ल डर पिकार के रुप िोने िाल िरकार के सलए अपनी ओर
िे उपर्स्थत िोता िै अथिा िरकार की ओर िे िचनविबंध ननयम 8 (1) के अन्तगित दे ता िै तो िरकार के
अधधकार के विरुद्ध िाद की प्रनतरिा में िि िकालतनामा के स्थान पर उिके द्िारा िस्तािररत बबना
स्टाम्प के कागज पर और यि बताते िुए क्रक िि क्रकिकी ओर िे उपर्स्थत िोता िै ज्ञापन प्रस्तत
ु करे गा ।
ऐिा ज्ञापन यथाशक्य ननकटतम ननम्नानिु ार प्ररूप में िोगा-
िाद का शीषिक आहद
1. मैं क ख िरकार प्ल डर याद में पररषद में भारत के राज्य िधचि (अथिा िंयक्
ु त प्रान्तों की
िरकार के सलए जैिा भी मामला िो,) प्रत्यथी (अथिा आहद) की ओर िे अथिा िरकार (र्जिके िंबध
ं में
1908 के अधधननयम 5 के आदे श 27 ननयमक 8 (1) के अन्तगित िाद की प्रनतरिा िचनबंध हदया गया िै )
प्रत्यथी (अथिा आहद) की ओर िे उपर्स्थत िोता िूाँ |

1. भारतीय स्ितत्रता (केन्द्र य अधधननयमों और अध्यादे शो का अनक


ु ू लन) आदे श 1948 द्िारा

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“िेिेटर आफ स्टे ट या'' शब्दों का लोप ।
2. भारतीय स्ितंत्रता (केन्द्र य अधधननयमो और अध्यादे शों का अनक
ु ू लन) आदे श, 1948 द्िारा
खण्ड (ख) का लोप ।
3. विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1950 द्िारा अन्त स्थावपत क्रकया गया ।

राज्य िंशोधन
उिर प्रदे श राज्य िंशोधन- ननयम 9 के उपरांत ननम्नानि
ु ार अंतस्थावपत क्रकया गया-
''10. िैधाननक प्राधधकारी के दारा या उिके विरुद्ध िाद- (1) क्रकिी विधध के द्िारा या उिके अधीन
गहठत कोई प्राधधकारण या ननगम िमय-िमय पर क्रकिी र्जले में उि प्राधधकारण या ननगम प्ल डर के रुप
में पक
ु ारा जाने िाले स्थायी अधधिक्ता की ननयर्ु क्त कर िकेगा और ऐिी ननयर्ु क्त की िच
ू ना र्जला जज
और *[जैिा भी मामला िो, इलािाबाद ि लखनऊ पीठ के रर्जस्रार] को दे िकेगा
(2) इि प्रकार ननयक्
ु त क्रकया गया ननगम का प्ल डर उि र्जले में ननयक्
ु त प्राधधकरण या ननगम का
उिके विरुद्ध आदे सशका प्राप्त करने के सलए असभकताि िोगा परन्तु यि बबना िकालतनामा या उपर्स्थनत
पत्र फाइल क्रकये बबना कायि या प्ल ड नि ं करे गा |
(इि बाबत उ.प्र. अधधननयम (1976 का 57 हदनांक 1.1.1977) एिं अधधिच
ू ना हदनाक्रकत
10.2.1981 अिलोकनीय िै ।)
1
[आदे श 27क]
िे िाद स्जनमें [िंविधान के ननिवचन [या क्रकिी कानन
2 3
ू ी सलखत की विधधमान्यता] िम्बन्धी कोई िारित

विधध-प्रश्न अंतर्ग्वस्त िों

1. मिान्यायिादी या मिाधधितता को िच
ू ना- क्रकिी भी ऐिे िाद में र्जिमें न्यायालय को यि
प्रतीत िोता िै क्रक 4[[5िंविधान के अनच्
ु छे द 147 के िाथ पहठत अनच्
ु छे द 132 के खण्ड (1) में यथाननहदि ष्ट
कोई प्रश्न अन्तग्रिस्त िै , न्यायालय उि प्रश्न का अिधारण करने के सलए तब तक अग्रिर नि ं िोगा जब
तक, यहद िि विधध-प्रश्न केन्द्र य िरकार िे िंबधं धत िै तो भारत के मिान्यायिाद को ओर यहद िि
विधध-प्रश्न क्रकिी राज्य िरकार िे िंबधं धत िै तो, उि राज्य के मिाधधिक्ता को िच
ू ना न दे द गई िो ।

1. 1942 के अधधननयम िं. 23 की धारा 2 द्िारा आदे श 27क अन्त स्थावपत क्रकया गया ।
2. विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1960 द्िारा '' भारत शािन अधधननयम 1956 या तदधीन क्रकए गए
पररषद के क्रकिी आदे श '' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
3. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 77 द्िारा (1.2.1977 िे) अन्तःस्थावपत क्रकया गया ।
4. भारतीय स्ितंत्रता (केन्द्र य अधधननयमों और अध्यादे शो का अनक
ु ू लन) आदे श, 1948 द्िारा ''
भारत शािन अधधननयम, 1935 या तदधीन क्रकए गए पररषद के क्रकिी आदे श का ननििचन
िबंधी कोई िारभत
ू विधध-प्रश्न '' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया |
5. विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1950 द्िारा '' भारत शािन अधधननयम 1935 की धारा 205 की
उपधारा (1) मे '' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

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6. विधध अनक
ु ू लन आदे श 1950 द्िारा '' भारत के मिाधधिक्ता '' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया
गया ।
7. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 77 द्िारा (1.2.1977 िे) अन्तःस्थावपत क्रकया गया ।

[1क. उन िादों में प्रक्रिया स्जनमें क्रकिी कानन


7
ू ी सलखत की विधधमान्यता अन्तर्ग्वस्त िै - क्रकिी ऐिे
िाद में र्जिमें न्यायालय को यि प्रतीत िोता िै क्रक क्रकिी कानन
ू ी सलखत की विधधमान्यता के िंबध
ं में
कोई ऐिा प्रश्न अन्तग्रिस्त िै जो ननयम 1 में िणणित प्रकृनत का प्रश्न नि ं िै , न्यायालय,-
(क) यहद िि प्रश्न िरकार िे िंबधं धत िै तो, िरकार प्ल डर को, अथिा
(ख) यहद प्रश्न िरकार िे सभन्न क्रकिी प्राधधकार िे िंबधं धत िै तो, उि प्राधधकार को र्जिने
कानन
ू ी सलखत जार की थी,
िच
ू ना हदए बबना प्रश्न का अिधारण करने के सलए अग्रेिर नि ं िोगा ।]

2. न्यायालय िरकार को पक्षकार के रुप में जोड़ िकेगा- क्रकिी भी ऐिे िाद में र्जिमें 1[2[िंविधान
के अनच्
ु छे द 147 के िाथ पहठत अनच्
ु छे द 132 के खण्ड ( 1) में ] यथाननहदि ष्ट कोई प्रश्न अन्तग्रिस्त िै ,
यहद, यथार्स्थनत, 3[भारत का मिान्यायिाद ] या राज्य का मिाधधिक्ता ननयम 1 के अधीन िच
ू ना की
प्रार्प्त पर या अन्यथा, यथार्स्थनत, केन्द्र य िरकार या राज्य िरकार को िाद में प्रनतिाद के रुप में जोडे
जाने के सलए न्यायालय िे आिेदन करता िै और न्यायालय का यि िमाधान िो जाता िै क्रक अन्तग्रिस्त
विधध-प्रश्न के िमाधानप्रद अिधारण के सलए ऐिा जोड़ा जाना आिश्यक िै या िांछनीय िै , तो िि िाद के
क्रकिी भी प्रिम में यि आदे श कर िकेगा क्रक िि िरकार ऐिे िाद में प्रनतिाद के रुप में जोड़ ल जाए ।

1. भारतीय स्ितत्रता (केन्द्र य अधधननयमो और अध्यादे शो का अनक


ु ू लन) आदे श 1948 द्िारा ''
भारत शािन अधधननयम 1935 या तदधीन क्रकए गए पररषद् के क्रकिी आदे श का ननििचन
िंबध
ं ी कोई िारभत
ू विधध -प्रश्न '' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया ।
2. विधध अनक
ु ू लन आदे श 1950 द्िारा '' भारत शािन अधधननयम 1935 की धारा 205 की
उपधारा ( 1) मे '' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया ।
3. विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1950 द्िारा '' भारत के मिाधधिक्ता'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया

4. 1976 के अधधननयम िं 104 की धारा 77 द्िारा (1.2.1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया ।

[2क. क्रकिी कानन


4
ू ी सलखत की विधधमान्यता िंबध
ं ी िाद में िरकार या अन्य प्राधधकारी को
प्रनतिादी के रुप में जोड़ने की न्यायालय की शस्तत- न्यायालय क्रकिी ऐिे िाद में र्जिमें कोई ऐिा प्रश्न जो
ननयम 1 क में ननहदिष्ट िै , अन्तग्रिस्त िै , कायििाहियों के क्रकिी प्रिम में यि आदे श कर िकेगा क्रक िरकार
या अन्य प्राधधकार को प्रनतिाद के रुप में जोड़ा जाएगा, यहद, यथार्स्थत, िरकार प्ल डर द्िारा या ऐिे
प्राधधकार की ओर िे र्जिने सलखत जार की थी, मामले में उपिंजात िोने िाले प्ल डर द्िारा, चािे ननयम
(क के अधीन िच
1
ू ना प्राप्त करने पर या अन्यथा, ऐिे जोड़े जाने के सलए आिेदन क्रकया जाता िै और

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न्यायालय का यि िमाधान िो जाता िै क्रक प्रश्न के िमाधानप्रद अिधारण के सलए ऐिा जोडा जाना
आिश्यक िै या िांछनीय िै ।

1
[3.खचे--- जिां िरकार या कोई अन्य प्राधधकार िाद में प्रनतिाद के रुप में ननयम 2 या ननयम
2क के अधीन जोड़ा जाता िै ििां मिान्यायिाद , मिाधधिक्ता या िरकार प्ल डर या िरकार या अन्य
प्राधधकार उि न्यायालय में र्जिने जोडे जाने का आदे श क्रकया था, तब तक खचे के सलए िकदार या
दानयत्िाधीन नि ं िोगा जब तक क्रक न्यायालय मामले की िभी पररर्स्थनतयों को ध्यान में रखते िुए क्रकिी
विशेष कारण िे अन्यथा आदे श न करे ।

4. इि आदे श का अपीलों को लागू िोना- अपीलों को इि आदे श को लागू करने में ''प्रनतिाद '' शब्द
के अन्तगित प्रत्यथी और ''िाद'' शब्द के अन्तगित अपील िमझी जाएगी ।
2
[स्पष्टीकरण-- इि आदे श में ''कानन
ू ी सलखत'' िे क्रकिी अधधननयसमनत के अधीन विननहदिष्ट रुप में
बनाया गया ननयम, अधधिच
ू ना, उपविधध, आदे श, स्कीम या प्ररूप असभप्रेत िै ।
1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 77 द्िारा (1.2.1977 िे) ननयम 3 के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 77 द्िारा (1.2.1977 िे) अन्तःस्थावपत क्रकया ।
आदे श 28
िैननक [या नौिैननक] या [िायि
1 2
ु नै नक] द्िारा या उनके विरुद्ध िाद

1. आक्रफिर, िैननक, नौिैननक या िायि


ु नै नक, जो छुदटी असिप्राप्त निीं कर िकते अपनी ओर िे
िाद लाने या प्रनतरक्षा करने के सलए क्रकिी व्यात्न को प्राधधकृत कर िकेंगे- (1) जिां कोई ऐिा आक्रफिर,
[िैननक, नौिैननक या िायि
3
ु नै नक] जो [िैिी] िै सियत में [िरकार के अधीन] िस्तत
4 5
ु : [िेिा कर रिा िै ,]
6

क्रकिी िाद का पिकार िै और स्ियं िाद के असभयोर्जत करने या िाद में प्रनतरिा करने के प्रयोजन के
सलए अनप
ु र्स्थनत छुट्ट असभप्राप्त नि ं कर िकता िै ििां िि अपने बदले िाद लाने या प्रनतरिा करने के
सलए क्रकिी भी व्यर्क्त को प्राधधकृत कर िकेगा ।
(2) िि प्राधधकार सलणखत िोगा और उि आक्रफिर, 7[िैननक, नौिैननक या िायि
ु नै नक] द्िारा (क)
अपने कमान आक्रफिर के या यहद पिकार स्ियं कमान आक्रफिर िै तो ठीक ननचले अधीनस्थ आक्रफिर के
िमि या (ख) जिां आक्रफिर 8[िैननक, 9[नौिैननक] या िायि
ु नै नक] िेना,
10
[नौिेना] 11
[या िायि
ु ेना] के
स्टाफ ननयोजन में िेिा कर रिा िै ििां उि कायािलय के र्जिमें िि ननयोर्जत िै , प्रधान या अन्य िररष्ठ
आक्रफिर के िमि, िस्तािररत क्रकया जाएगा; ऐिा कमान या अन्य आक्रफिर उि प्राधधकार को
प्रनतिस्तािररत करे गा जो न्यायालय में फाइल क्रकया जाएगा ।
(3) प्राधधकार के इि प्रकार फाइल क्रकए जाने पर, प्रनतिस्तािर इि बात के सलए पयािप्त िबत
ू िोगा
क्रक प्राधधकार िम्यक रूप िे ननष्पाहदत क्रकया गया था और िि ऑक्रफिर, 12
[िैननक, 13
[नौिैननक] या
िायि
ु नै नक] र्जिके द्िारा िि प्राधधकार हदया गया िै , स्ियं िाद के असभयोर्जत करने या िाद में प्रनतरिा
करने के प्रयोजन के सलए अनप
ु र्स्थनत छुटट असभप्राप्त नि ं कर िका ।

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1. 1934 के अधधननयम िं. 35 की धारा 2 और अनि
ु च
ू ी द्िारा अन्तःस्थावपत क्रकया |
2. 1927 के अधधननयम िं. 10 की धारा 2 और अनि
ु च
ू ी 1 द्िारा अन्तःस्थावपत क्रकया ।
3. ''िैननक या िायि
ु नै नक'' शब्द 1927 के अधधननयम िं. 10 की धारा 2 और अनि
ु च
ू ी 1 द्िारा
''या िैननक'' तथा ''या कोई िैननक'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकए गए थे तथा ''नौिैननक''
शब्द 1934 के अधधननयम िं. 35 की धारा 2 और अनि
ु च
ू ी द्िारा अन्तःस्थावपत क्रकए गए ।
4. 1934 के अधधननयम िं. 35 की धारा 2 और अनि
ु च
ू ी द्िारा ''िेना या िायि
ु ेना'' के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया ।
5. भारत शािन (भारतीय विधध अनक
ु ू लन) आदे श, 1937 द्िारा ''िरकार िेिा में िै '' के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया ।
6. भारत शािन (भारतीय विधध अनक
ु ू लन) आदे श, 1937 द्िारा ''िरकार िेिा में िै '' के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया ।
7. ''िैननक या िायि
ु नै नक'' शब्द 1927 के अधधननयम िं. 10 की धारा 2 और अनि
ु च
ू ी 1 द्िारा
''या िैननक'' तथा ''या कोई िैननक'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकए गए थे तथा ''नौिैननक''
शब्द 1934 के अधधननयम िं. 35 की धारा 2 और अनि
ु च
ू ी द्िारा अन्तः स्थावपत क्रकए गए ।
8. ''िैननक या िायि
ु नै नक'' शब्द 1927 के अधधननयम िं. 10 की धारा 2 और अनि
ु च
ू ी 1 द्िारा
''या िैननक'' तथा ''या कोई िैननक'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकए गए थे तथा ''नौिैननक''
शब्द 1934 के अधधननयम िं. 35 की धारा 2 और अनि
ु च
ू ी द्िारा अन्तःस्थावपत क्रकया ।
9. 1934 के अधधननयम िं. 35 की धारा 2 और अनि
ु च
ू ी द्िारा अन्तःस्थावपत क्रकया |
10. 1934 के अधधननयम िं. 35 की धारा 2 और अनि
ु च
ू ी द्िारा अन्तःस्थावपत क्रकया ।
11. 1927 के अधधननयम िं. 10 की धारा 2 और अनि
ु च
ू ी 1 द्िारा अन्तःस्थावपत क्रकया ।
12. 1927 के अधधननयम िं. 10 की धारा 2 और अनि
ु च
ू ी द्िारा ''या िैननक'' के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया ।
13. 1934 के अधधननयम िं. 35 की धारा 2 और अनि
ु च
ू ी द्िारा अन्तःस्थावपत क्रकया ।

स्पष्टीकरण- इि आदे श में ''कमान ऑक्रफिर'' पद िे ऐिा ऑक्रफिर असभप्रेत िै जो उि रे र्जमें ट,


कोर, 1[पोत], टुकड़ी या डडपो का तत्िमय िास्तविक िमापदे शन करता िै र्जिमें िि आक्रफिर, 2[िैननक,
[नौिैननक] या िायि
3
ु नै नक] िै ।

2. इि प्रकार प्राधधकृत व्यस्तत स्ियं कायव कर िकेगा या लीिर ननयत


ु त कर िकेगा- आक्रफिर,
4[िैननक, 5[नौिैननक] या िायि
ु नै नक] द्िारा उिकी अपनी ओर िे िाद के असभयोर्जत करने या िाद में
प्रनतरिा करने के सलए प्राधधकृत कोई भी व्यर्क्त स्ियं उिे ऐिे असभयोर्जत कर िकेगा या उिमें ऐिे
प्रनतरिा कर िकेगा जैिे िि आक्रफिर, 6[िैननक, 7[नौिैननक,] या िायि
ु नै नक करता यहद िि उपर्स्थत िोता
या िि उि आक्रफिर 8[िैननक, 9[नौिैननक] या िायि
ु नै नक] की ओर िे िाद असभयोर्जत करने या िाद में
प्रनतरिा करने के सलए प्ल डर ननयक्
ु त कर िकेगा ।

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1. 1934 के अधधननयम िं. 35 की धारा 2 और अनि
ु च
ू ी द्िारा अतःस्थावपत क्रकया ।
2. 1927 के अधधननयम िं. 10 की धारा 2 और अनि
ु च
ू ी द्िारा ''या िैननक'' के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया ।
3. 1934 के अधधननयम िं. 35 की धारा 2 और अनि
ु च
ू ी द्िारा अंतःस्थावपत क्रकया ।
4. 1927 के अधधननयम िं. 10 की धारा 2 और अनि
ु च
ू ी 1 द्िारा ''या क्रकिी िैननक'' के स्थान
पर प्रनतस्थावपत क्रकया ।
5. 1934 के अधधननयम िं. 35 की धारा 2 और अनि
ु च
ू ी द्िारा अतःस्थावपत क्रकया ।
6. 1927 के अधधननयम िं. 10 की धारा 2 और अनि
ु च
ू ी द्िारा ''या िैननक'' के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया ।
7. 1934 के अधधननयम िं. 35 की धारा 2 और अनि
ु च
ू ी द्िारा अतःस्थावपत क्रकया ।
8. 1927 के अधधननयम िं. 10 की धारा 2 और अनि
ु च
ू ी द्िारा ''या िैननक'' के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया ।
9. 1934 के अधधननयम िं. 35 की धारा 2 और अनि
ु च
ू ी द्िारा अंतःस्थावपत क्रकया ।

3. इि प्रकार प्राधधकृत व्यस्तत पर या उिके प्लीिर पर की गई तामील उधचत तामील िोगी- क्रकिी
आक्रफिर, 1[िैननक,] 2[नौिैननक] या िायि
ु नै नक] द्िारा ननयम 1 के अधीन प्राधधकृत क्रकए गए क्रकिी भी
व्यर्क्त पर या ऐिे व्यर्क्त द्िारा पि
ू ोक्त र नत िे ननयक्
ु त क्रकिी भी प्ल डर पर तामील की गई आदे सशकाएाँ
िैिे ि प्रभािी िोंगी मानो उनकी तामील स्ियं पिकार पर की गई िै |

आदे श 29
ननगमों द्िारा या उनके विरुद्ध िाद

1. असििचन पर िस्ताक्षर क्रकया जाना और उिका ित्यापन- क्रकिी ननगम द्िारा या उिके विरुद्ध
िादों में कोई भी असभिचन उि ननगम की ओर िे उि ननगम के िधचि या क्रकिी ननदे शक या अन्य प्रधान
अधधकार द्िारा, जो मामले के तथ्यों के बारे में असभिाक्ष्य दे ने योग्य िो, िस्तािररत और ित्यावपत क्रकया
जा िकेगा ।

1. 1927 के अधधननयम िं. 10 की धारा 2 और अनि


ु च
ू ी 1 द्िारा ''या क्रकिी िैननक'' के स्थान
पर प्रनतस्थावपत क्रकया |
2. 1934 के अधधननयम िं. 35 की धारा 2 और अनि
ु च
ू ी द्िारा अंतःस्थावपत क्रकया ।

2. ननगम पर तामील- आदे सशका की तामील का विननयमन करने िाले क्रकिी भी कानन
ू ी उपबंध के

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अधीन रिते िुए, जिााँ िाद क्रकिी ननगम के विरुद्ध िै ििााँ िमन की तामील-
(क) उि ननगम के िधचि या क्रकिी भी ननदे शक या अन्य प्रधान अधधकार पर की जा िकेगी,
अथिा
(ख) उिके रर्जस्र कृत कायािलय में या यहद कोई रर्जस्र कृत कायािलय नि ं िै तो उि स्थान पर
जिााँ ननगम कारबार चलाता िै , छोडकर या िमन को ऐिे कायािलय या स्थान के पते िे ननगम को
िम्बोधधत करके डाक द्िारा भेजकर की जा िकेगी ।

राज्य िंशोधन
उ.प्र. राज्य िंशोधन- उ.प्र. अधधननयम (1957 का अधधननयम िंख्यांक 57) (1.1.1977) के द्िारा
आदे श 29 ननयम 2 के खंड (क) के उपरांत खंड (कक) के रुप में ननम्न अतःस्थावपत क्रकया गया िै -
“(कक) ऐिे र्जले जिां क्रक िमन जार करने िाला न्यायालय र्स्थत िै , के ननगम के स्ियं के
प्ल डर पर यहद क्रकिी को ननयक्
ु त क्रकया गया िै और ननयर्ु क्त को आदे श 27 ननयम 10 के अन्तगित र्जला
जज को अधधिधू चत क्रकया गया िै ''

3. ननगम के अधधकारी की स्िीय िास्जरी अपेक्षक्षत करने की शस्तत- िाद के क्रकिी भी प्रिम में
न्यायालय यि अपेिा कर िकेगा क्रक ननगम का िधचि या कोई ननदे शक या अन्य प्रधान अधधकार , जो िाद
िे िम्बर्न्धत िारिान प्रश्नों का उिर दे ने योग्य िै , स्िय उपिंजात िो ।
आदे श 30
फमों के या अपने नामों िे सिन्न नामों में कारबार चलाने िाले व्यस्ततयों द्िारा या उनके विरुद्ध िाद

1. िागीदारों का फमव के नाम िे िाद लाना- (1) कोई भी दो या अधधक व्यर्क्त, जो भागीदारों की
िै सियत में दािा करते िैं या दायी िैं और 1[भारत] में कारबार चलाते िैं, या उन पर उि फमि के नाम िे
(यहद उिका कोई नाम िो) र्जिके क्रक ऐिे व्यर्क्त िाद िे तक
ु के प्रोदभत
ू िोने के िमय भागीदार थे, िाद
ला िकेंगे या उन पर िाद लाया जा िकेगा और िाद का कोई भी पिकार ऐिे मामले में न्यायालय िे
आिेदन कर िकेगा क्रक उन व्यर्क्तयों के जो िाद-िे तक
ु के प्रोद्भत
ू िोने के िमय ऐिी फमि में भागीदार थे,
नामों और पतों का कथन ऐिी र नत िे क्रकया जाए और ित्यावपत क्रकया जाए जो न्यायालय ननहदष्ट करे ।
(2) जिां उनकी फमि के नाम में भागीदारों की िै सियत में िाद उपननयम (1) के अधीन कोई व्यर्क्त
लाते िैं या उन पर लाया जाता िै ििां क्रकिी असभिचन या अन्य दस्तािेज की दशा में र्जिका िाद या
प्रनतिाद द्िारा िस्तािररत, ित्यावपत या प्रमाणणत क्रकया जाना इि िंहिता द्िारा या इिके अधीन अपेक्षित
िै , यि पयािप्त िोगा क्रक ऐिा असभिचनया अन्य दस्तािेज ऐिे व्यर्क्तयों में िे क्रकिी भी एक द्िारा
िस्तािररत, ित्यावपत या प्रमाणणत कर द जाए ।

2. िागीदारों के नामों का प्रकट क्रकया जाना- (1) जिां कोई िाद भागीदारों द्िारा अपनी फमि के
नाम में िंर्स्थत क्रकया जाता िै ििां िाद या उनका प्ल डर क्रकिी भी प्रनतिाद द्िारा या उिकी ओर िे
सलणखत मांग की जाने पर उि फमि को गहठत करने िाले िभी व्यर्क्तयों के नामों और ननिाि के स्थानों

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की सलणखत घोषणा तत्िण करे गा र्जनकी ओर िे िाद िंर्स्थत क्रकया गया िै |

1. 1951 के अधधननयम िं. 2 की धारा 3 द्िारा ''राज्यों'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया ।


(2) जिां िाद या उनका प्ल डर उपननयम (1) के अधीन की गई क्रकिी मांग को परू ा करने में
अिफल रिता िै ििा िाद की िार कायििाहियााँ उि प्रयोजन के सलए क्रकए गए आिेदन पर ऐिे ननबन्धनों
पर रोकी जा िकेंगी जो न्यायालय ननहदष्ट करे ।
(3) जिां भागीदारों के नाम उपननयम (1) में ननहदष्ट र नत िे घोवषत कर हदए जाते िैं ििां िाद
उिी प्रकार अग्रिर िोगा और िभी दृर्ष्टयों िे िे ि पररणाम िोंगे मानो िे िाहदयों के रुप में िादपत्र में
नासमत थे :
[परन्तु िार कायििाहियां तब भी फमि के नामों में चालू रिें गी क्रकन्तु उपननयम (1) में विननहदिष्ट
1

र नत िे प्रकट क्रकए गए भागीदारों के नाम डडिी में प्रविष्ट क्रकए जाएाँगे ।

3. तामील- जिां व्यर्क्तयों पर भागीदारों के नाते उनकी फमि की िै सियत में िाद लाया जाता िै ििााँ
िमन की तामील न्यायालय द्िारा हदए जाने िाले ननदे श के अनि
ु ार या तो-
(क) भागीदारों में िे क्रकिी एक के या अधधक पर की जाएगी, अथिा
(ख) उि प्रधान स्थान में र्जिमें 2[भारत] के भीतर भागीदार का कारबार चलता िै , क्रकिी ऐिे
व्यर्क्त पर की जाएगी र्जिके िाथ में ििां भागीदार के कारबार का ननयंत्रण या प्रबन्ध तामील के िमय िै ,
और ऐिी तामील के बारे में यि िमझा जाएगा क्रक र्जि फमि पर िाद लाया गया िै उि पर िि
िि तामील िै , चािे िभी भागीदार या उनमें िे कोई 3[भारत] के भीतर या बािर िो :
परन्तु ऐिी भागीदार की दशा में र्जिके बारे में िाद को िाद िंर्स्थत करने िे पिले ि यि
जानकार िो क्रक िि विघहटत की जा चुकी िै , िमन की तामील 4[भारत] के भीतर के ऐिे िर व्यर्क्त पर
की जाएगी र्जिे दायी बनाना चािा गया िै ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 78 द्िारा (1.2.1977 िे) परन्तक


ु के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया ।
2. 1951 के अधधननयम िं. 2 की धारा 3 द्िारा “राज्यो'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया ।
3. 1961 के अधधननयम िं. 2 की धारा 3 द्िारा ''राज्यों'' के स्थान परप्रनतस्थावपत क्रकया ।
4. 1951 के अधधननयम िं. 2 की धारा 3 द्िारा ''राज्यों'' के स्थान परप्रनतस्थावपत क्रकया ।

4. िागीदार की मत्ृ यु पर िाद का अधधकार- (1) भारतीय िंविदा अधधननयम, 1872 (1872 का 9)
की धारा 45 में क्रकिी बात के िोते िुए भी, जिां फमि के नाम में िाद पि
ू ग
ि ामी उपबन्धों के अधीन दो या
अधधक व्यर्क्त लाते िैं या उन पर लाया जाता िै और चािे क्रकिी िाद के िंर्स्थत क्रकए जाने के पि
ू ि या
उिके लर्म्बत रिने के दौरान ऐिे व्यर्क्तयों में िे क्रकिी की मत्ृ यु िो जाती िै ििां यि आिश्यक नि ं िोगा
क्रक मत
ृ क के विधधक प्रनतननधध को िाद के पिकार की िै सियत में िंयोर्जत क्रकया जाए ।
(2) उपननयम (1) की कोई भी बात ऐिे मत
ृ क के विधधक प्रनतननधध के क्रकिी भी ऐिे अधधकार को

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पररिीसमत या अन्यथा प्रभावित नि ं करे गी जो उिका-
(क) उि िाद का पिकार बनाए जाने के सलए आिेदन करने के सलए िो, अथिा
(ख) क्रकिी दािे को उिरजीिी या उिरजीवियों के विरुद्ध प्रिि
ृ कराने के सलए िो ।
5. िच
ू ना की तामील क्रकि िै सियत में की जाएगी- जिां िमन फमि के नाम ननकाला गया िै और
उिकी तामील ननयम 3 द्िारा उपबर्न्धत र नत िे की गई िै ििााँ ऐिे ि व्यर्क्त को र्जि पर उिकी
तामील की गई िै , ऐिी तामील के िमय द गई सलणखत िच
ू ना द्िारा यि जानकार द जाएगी क्रक क्या
उि पर तामील भागीदार की िै सियत में या भागीदार के कारबार का ननयंत्रण या प्रबन्ध करने िाले व्यर्क्त
की िै सियत में या दोनों िै सियतों में की जा रि िै और ऐिी िच
ू ना दे ने में व्यनतिम िोने पर उि व्यर्क्त
के बारे में र्जि पर तामील की गई िै , यि िमझा जाएगा क्रक उि पर तामील भागीदार की िैसियत में की
गई िै ।

6. िागीदारों की उपिंजानत- जिां व्यर्क्तयों पर भागीदारों की िै सियत में उनकी फमि के नाम में
िाद लाया जाता िै ििां िे स्ियं अपने-अपने नाम िे व्यर्ष्टत: उपिंजात िोगे, क्रकन्तु पश्चातिती
् िभी
कायििाहियााँ तब भी फमि के नाम िे चालू रिें गी ।

7. िागीदारों द्िारा िी उपिंजानत िोगी अन्यथा निीं- जिां िमन की तामील ऐिे व्यर्क्त पर
र्जिके िाथ में भागीदार के कारबार का ननयंत्रण या प्रबन्ध िै , ननयम 3 द्िारा उपबर्न्धत र नत िे की गई
िै ििां जब तक क्रक िि उि फमि का र्जि पर िाद लाया गया िै ; भागीदार न िो, उिका उपिंजात िोना
आिश्यक नि ं िोगा ।

[8. अभ्यापविपि
1
ू क
व उपिंजानत- (1) िि व्यर्क्त, र्जि पर िमन की तामील भागीदार की िै सियत
में ननयम 3 के अधीन की गई िै , यि प्रत्याख्यान करते िुए क्रक िि क्रकिी तार्त्िक िमय पर भागीदार था,
अभ्यापविपिू क
ि उपिंजात िो िकेगा ।
(2) ऐिी उपिंजानत की जाने पर या तो िाद या उपिंजात िोने िाला व्यर्क्त िाद की िन
ु िाई और
अंनतम ननपटारे के सलए ननयत तार ख के पि
ू ि क्रकिी भी िमय न्यायालय िे इि बात का अिधारण करने के
सलए आिेदन कर िकेगा क्रक क्या िि व्यर्क्त फमि का भागीदार था और उि िै सियत में दानयत्िाधीन था ।
(3) यहद ऐिे आिेदन पर न्यायालय यि असभननधािररत करता िै क्रक िि तार्त्िक िमय पर भागीदार
था तो यि बात उि व्यर्क्त को प्रनतिाद के विरुद्ध दािे के रुप में फमि के दानयत्ि का प्रत्याख्यान करते
िुए प्रनतरिा फाईल करने िे प्रिाररत नि ं करे गी ।
(4) क्रकन्तु यहद न्यायालय यि असभननधािररत करता िै क्रक ऐिा व्यर्क्त फमि का भागीदार नि ं था
और उि िै सियत में दानयत्िाधीन नि ं था तो यि बात िाद को फमि पर िमन की अन्यथा तामील करने िे
और िाद आगे चलाने िे प्रिाररत नि ं करे गी, क्रकन्तु उि दशा में िाद क्रकिी ऐिी डडिी के ननष्पादन में जो
फमि के विरुद्ध पाररत की जाए, फमि के भागीदार की िै सियत में उि व्यर्क्त के दानयत्ि का असभकथन
करने िे प्रिाररत िो जाएगा ।

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1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 78 द्िारा (1.2.1977 िे) ननयम 8 के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया ।

9. िििागीदारों के बीच में िाद- यि आदे श फमि और उिके एक या अधधक भागीदारों के बीच के
िादों को और ऐिे िादों को, जो उन फमों के बीच िैं, र्जनके एक या अधधक भागीदार ििभागीदार िैं, लागू
िोगा, क्रकन्तु ऐिे िादों में कोई भी ननष्पादन न्यायालय की इजाजत के बबना जार नि ं क्रकया जाएगा और
ऐिे ननष्पादन को जार करने की इजाजत के सलए आिेदन क्रकए जाने पर ऐिे िभी लेखाओं का सलया जाना
और जांच की जानी ननहदष्ट की जा िकेगी और ऐिे ननदे श हदए जा िकेंगे जो न्याय िंगत िो ।

1
[10. स्ियं अपने नाम िे सिन्न नाम िे कारबार चलाने िाले व्यस्तत के विरुद्ध िाद- अपने नाम
िे सभन्न नाम या असभनाम िे कारबार चलाने िाले क्रकिी भी व्यर्क्त पर या क्रकिी नाम िे कारबार चलाने
िाले हिन्द ु अविभक्त कुटुम्ब पर िाद उिी नाम या असभनाम में इि प्रकार लाया जा िकेगा मानो िि फमि
का नाम िो और इि आदे श के िभी ननयम ििां तक लागू िोंगे जिां तक क्रक उि मामले की प्रकृनत िे
अनज्ञ
ु ात िो ।

आदे श 31
न्यासियों, ननष्पादकों और प्रशािकों द्िारा या उनके विरुद्ध िाद

1. न्यासियों, आहद में ननहित िम्पवि िे िमपत


ृ त िादों में हिताधधकाररयों का प्रनतननधधत्ि- क्रकिी
न्यािी, ननष्पादक या प्रशािक में ननहित िम्पवि िे िम्पक्
ृ त ऐिे िभी िादों में र्जनमें क्रक ऐिी िम्पवि में
फायदा पाने िाले के रूप में हितबद्ध व्यर्क्तयों के और क्रकिी पर व्यर्क्त के बीच प्रनतविरोध िै , न्यािी,
ननष्पादक या प्रशािक इि प्रकार हितबद्ध व्यर्क्तयों का प्रनतननधधत्ि करे गा और उन्िें िाद में पिकार
बनाना, मामल
ू तौर िे आिश्यक नि ं िोगा, क्रकन्तु यहद न्यायालय ठीक िमझे तो िि आदे श दे िकेगा क्रक
उन्िें या उनमें िे क्रकिी को पिकार बनाया जाए ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 78 द्िारा (1.2.1977 िे) ननयम 10 के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया ।

2. न्यासियों, ननष्पादकों और प्रशािकों का िंयोजन- जिां कोई न्यािी, ननष्पादक या प्रशािक िों
ििां ऐिे िाद में जो उनमें िे एक या अधधक के विरुद्ध िों, िे िभी पिकार बनाए जाएाँगे: परन्तु र्जन्िोंने
अपने ििीयतकताि की बबल को िाबबत नि ं क्रकया िै , ऐिे ननष्पादकों को और 1[भारत] िे बािर के
न्यासियों, ननष्पादकों और प्रशािकों को पिकार बनाना आिश्यक नि ं िोगा ।

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3. वििाहिता ननष्पाहदका का पनत िंयोस्जत निीं िोगा- जब तक क्रक न्यायालय अन्यथा ननदे श न दे
वििाहिता न्यािी, प्रशासिका या ननष्पाहदका का पनत िोने के नाते ि ऐिे िाद में पिकार न िोगा जो उि
स्त्री द्िारा या उिके विरुद्ध लाया गया िो ।

आदे श 32
अियस्कों और विकृतधचि व्यस्ततयों द्िारा या उनके विरुद्ध िाद

1. अियस्क िाद-समत्र िारा िाद लाएगा- अियस्क द्िारा िर िाद उिके नाम में ऐिे व्यर्क्त द्िारा
िंर्स्थत क्रकया जाएगा जो ऐिे िाद में अियस्क का िाद-समत्र किलाएगा ।
[स्पष्टीकरण- इि आदे श में ''अियस्क'' िे िि व्यर्क्त र्जिने भारतीय अियस्कता अधधननयम, 1875
2

(1875 का 9 ), की धारा 3 के अथि में अपनी ियस्कता प्राप्त नि ं की िै , असभप्रेत िै जिां िाद उि
अधधननयम की धारा 2 के खण्ड (क) और खण्ड (ख) में िणणित विषयों में िे क्रकिी विषय या क्रकिी अन्य
विषय के िंबध
ं में िो । ]

1. 1951 के अधधननयम िं. 2 की धारा 3 द्िारा “राज्यों' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया ।


2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 79 द्िारा (1.2.1977 िे) अंतःस्थावपत क्रकया ।

2. जिां िाद-समत्र के बबना िाद िंस्स्थत क्रकया जाए ििां िादपत्र फाइल िे ननकाल हदया जाएगा-
(1) जिां अियस्क द्िारा या उिकी ओर िे िाद, िाद-समत्र के बबना िंर्स्थत क्रकया जाता िै ििां प्रनतिाद
यि आिेदन कर िकेगा क्रक िादपत्र फाइल िे ननकाल हदया जाए और खचे उि प्ल डर या अन्य व्यर्क्त
द्िारा हदए जाएाँ र्जिने उिे उपर्स्थत क्रकया था ।
(2) ऐिे आिेदन की िच
ू ना ऐिे व्यर्क्त को द जाएगी और उिके आिेप (यहद कोई िों) िन
ु ने के
पश्चात ् न्यायालय उि विषय में ऐिा आदे श कर िकेगा जो िि ठीक िमझे ।

1
[2क. िाद-समत्र द्िारा प्रनतिनू त का तब हदया जाना जब इि प्रकार आहदष्ट क्रकया जाए- (1) जिां
अियस्क की ओर िे उिके िाद-समत्र द्िारा िाद िंर्स्थत क्रकया जाता िै ििां न्यायालय िाद के क्रकिी भी
प्रिम में या तो स्िप्रेरणा िे या क्रकिी प्रनतिाद के आिेदन पर और ऐिे कारणों िे जो लेखबद्ध क्रकए
जाएंग,े िाद-समत्र को यि आदे श दे िकेगा क्रक िि प्रनतिाद द्िारा उपगत या उपगत क्रकए जाने िंभाव्य
िभी खचों के िंदाय के सलए प्रनतभनू त दे ।
(2) जिां ननधिन व्यर्क्त द्िारा ऐिा िाद िंर्स्थत क्रकया जाता िै ििां प्रनतभनू त के अंतगित िरकार
को िंदेय न्यायालय फीि भी िोगी ।
(3) जिां न्यायालय इि ननयम के अधीन प्रनतभनू त दे ने का ननदे श दे ते िुए आदे श करता िै ििा
आदे श 25 के ननयम 2 के उपबन्ध िाद को, जिां तक िो िके, लागू िोंगे ।]

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 79 द्िारा (1.2.1977 िे) अंत स्थावपत क्रकया ।

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3. अियस्क प्रनतिादी के सलए न्यायालय द्िारा िादाथव िंरक्षक की ननयस्ु तत- (1) जिां प्रनतिाद
अियस्क िै ििां न्यायालय उिकी अियस्कता के तथ्य के बारे में अपना िमाधान िो जाने पर उधचत
व्यर्क्त को ऐिे अियस्क के सलए िादाथि िंरिक ननयक्
ु त करे गा ।
(2) िादाथि िंरिक की ननयर्ु क्त के सलए आदे श अियस्क के नाम में और उिकी ओर िे या िाद
द्िारा क्रकए गए आिेदन पर असभप्राप्त क्रकया जा िकेगा ।
(3) ऐिा आिेदन इि तथ्य को ित्यावपत करने िाले शपथपत्र द्िारा िमधथित िोगा क्रक जो बातें
िाद में वििादग्रस्त िैं उनमें जो हित अियस्क का िै उि हित के प्रनतकूल कोई हित प्रस्थावपत िंरिक का
नि ं िै और िि ऐिे ननयक्
ु त क्रकए जाने के सलए ठीक व्यर्क्त िै ।
(4) कोई भी आदे श इि ननयम के अधीन क्रकए गए आिेदन पर तब तक के सििाय नि ं क्रकया
जाएगा जब क्रक 1***
अियस्क के क्रकिी ऐिे िंरिक को जो ऐिे प्राधधकार द्िारा ननयक्
ु त या घोवषत क्रकया
गया िै जो इि ननसमि ििम िै या जिां ऐिा िंरिक नि ं िै ििां 2[अियस्क के वपता को या जिां वपता
नि ं िै ििां माता को या जिां वपता या माता नि ं िैं ििां अन्य नैिधगिक िंरिक को] या 3[जिां वपता, माता
या अन्य नैिधगिक िंरिक नि ं] िै ििां उि व्यर्क्त को र्जिकी दे खरे ख में अियस्क िै , िच
ू ना द गई िै
और र्जि क्रकिी व्यर्क्त पर इि उपननयम के अधीन िच
ू ना की तामील की गई िै , उि व्यर्क्त की ओर िे
क्रकया गया कोई भी आिेप िन
ु सलया गया िै ।
[(4क) यहद न्यायालय क्रकिी मामले में ठीक िमझे तो िि अियस्क को भी उपननयम (4) के
4

अधीन िच
ू ना दे िकेगा ।
[(5) जो व्यर्क्त अियस्क के सलए िादाथि िंरिक उपननयम (1) के अधीन ननयक्
5
ु त क्रकया गया िै ,
यहद उिकी ननयर्ु क्त का पयिििान ननिवृ ि, िटाए जाने या मत्ृ यु के कारण न िो गया िो तो, िि उि िाद
में उद्भत
ू िोने िाल िभी कायििाहियों के परू े दौरान में र्जनके अंतगित अपील न्यायालय या पन
ु र िण
न्यायालय में की गई कायििाहियााँ और डडिी के ननष्पादन की कायििाहियााँ आती िैं उिी िै सियत में बना
रिे गा ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 79 द्िारा (1.2.1977 िे) '' अियस्क की ओर'' शब्दो
का लोप ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 79 द्िारा (1.2.1977 िे) कुछ शब्दो के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया |
3. 1976 के अधधननयम िं.104 की धारा 79 द्िारा (1.2.1977 िे) कुछ शब्दो के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया ।
4. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 79 द्िारा (1.2.1977 िे) अंत: स्थावपत क्रकया।
5. 1937 के अधधननयम िं. 16 की धारा 2 द्िारा अन्तःस्थावपत क्रकया ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


म. प्र. उच्च न्यायालय िंशोधन- ननम्नानि
ु ार को ननयम 3 के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया-

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''3. (1) जिााँ प्रनतिाद अियस्क िै और न्यायालय क्रक उिकी अियस्कता के तथ्य पर िंतर्ु ष्ट िो
जाती िै तो िि ऐिे अियस्क के सलए िाद िे तु िंरिक िोने के सलए उधचत व्यर्क्त की ननयर्ु क्त करे गा ।
(2) उपननयम (1) के अंतगित ननयर्ु क्त व्यर्क्त अियस्क िे तु िाद के सलए िंरिक िोगा और उिकी
ननयर्ु क्त जब तक क्रक िेिाननिवृ ि िटाए जाने अथिा मत्ृ यु िोने के कारण िमाप्त न िो जाए । िाद िे
उत्पन्न िम्पण
ू ि कायििाहियो क्रकिी अपील य अथिा पन
ु र िण न्यायालय और डडिी के ननष्पादन की
कायििाि को शासमल करते िुए जार रिे गी । “(16.9.1960)

इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- आदे श 32 ननयम 3 के अंत में पण


ू ि विराम िटाकर
ननम्न और जोड़ा गया िै —
“और िभी िंभाव्य िंरिक बाबत ििम प्राधधकार द्िारा ननयक्
ु त या घोवषत अियस्क के िंरिक
या अियस्क के अन्य प्राकृनतक िंरिक को शासमल करते िुए या जिााँ क्रक वपता या अन्य प्राकृनतक िरिक
नि ं िै व्यर्क्त र्जिकी असभरिा मे अियस्क िै ।''
उपननयम (4) को ननम्न प्रकार प्रनतस्थावपत क्रकया गया िै --
''(4) न्यायालय ऐिे आिेदन की िच
ू ना अियस्क पर और आिेदन में नासमत िभी िंभाव्य िंरिकों
और ऐिे अन्य व्यर्क्तयों को र्जन्िें यि उपयक्
ु त मानता िै पर उन्िें ननयर्ु क्त आहद के सलए आपवियााँ यहद
कोई िो प्रस्तत
ु करने के सलए किते िुए प्रस्तावित या अन्य कोई िंभाव्य अियस्क के िंरिक को की
जाएगी । उि मामले में जिााँ कोई व्यर्क्त स्िंय को प्रस्तावित िंरिक के बजाय अियस्क का िंरिक
ननयक्
ु त करने की इच्छा करता िै िि यि ित्यावपत करते िुए शपथ पत्र प्रस्तत
ु करे गा क्रक िाद में वििाहदत
मामले मे िि उि अियस्क के प्रनतकूल नि ं रखता िै और िि इि प्रकार ननयक् ु त क्रकए जाने के सलए
उपयक्
ु त व्यर्क्त िै ।
न्यायालय आपवियों यहद कोई िो को िन
ु ने के उपरांत और िंरिक के रुप में ननयक्
ु त िोने के
इच्छुक िभी व्यर्क्तयों प्रस्तावित िर िक को शासमल करते िुए के िंबधं धत दािों पर विचार करके ऐिे
व्यर्क्त को अियस्क का िंरिक ननयक् ु त करे गा र्जिे िि उपयक्
ु त माने । ''
[अधधिच
ू ना िमांक 43/vii - डी - 29 हदनांक 1.6.57 । ]

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 79 द्िारा (1.2.1977 िे) अंतःस्थावपत क्रकया ।

1
[3क अियस्क के विरुद्ध डडिी का तब तक अपास्त न क्रकया जाना जब तक क्रक उिके हितों पर
प्रनतकूल प्रभाि न पड़ा िो- ( 1) अियस्क के विरुद्ध पाररत कोई डडिी केिल इि आधार पर अपार नि ं की
जाएगी क्रक अियस्क के िाद के सलए िाद-समत्र या िंरिण िाद की विषय-िस्तु में अियस्क के हित के
प्रनतकूल कोई हित रखता िै, क्रकन्तु यि तथ्य क्रक िाद के सलए िाद-समत्र या िंरिक के ऐिे प्रनतकूल हित
के कारण अियस्क के हितों पर प्रनतकूल प्रभाि पडा िै , डडिी अपास्त करने के सलए आधार िोगा ।
(2) इि ननयम की कोई बात अियस्क को, िाद के सलए िाद-समत्र या िंरिक की ओर िे ऐिे
अिचार या घोर उपेिा के कारण र्जिके पररणामस्िरूप अियस्क के हित पर प्रनतकूल प्रभाि पड़ा िै , विधध
के अधीन उपलभ्य कोई अनत
ु ोष असभप्राप्त करने िे प्रिाररत नि ं करे गी । ]

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4. कौन िाद-समत्र की िै सियत में कायव करे गा या िादाथव िंरक्षक ननयत
ु त क्रकया जा िकेगा- (1) जो
व्यर्क्त स्िस्थधचि िै और ियस्क िै िि अियस्क के िाद-मत्र या िादाथि िंरिक की िै सियत में कायि कर
िकेगा :
परन्तु यि तब जब क्रक ऐिे व्यर्क्त का हित अियस्क के हित के प्रनतकूल न िो और िाद समत्र की
दशा में िि प्रनतिाद न िो या िादाथि िंरिक की दशा में िि िाद न िो ।
(2) जिां अियस्क का ऐिा िंरिक िै जो ििम प्राधधकार द्िारा ननयक्
ु त या घोवषत क्रकया गया िै
ििां जब तक क्रक न्यायालय का उन कारणों िे, जो लेखबद्ध क्रकए जाएंगे, यि विचार न िो क्रक अियस्क
का इिमें कपयाण िै क्रक दि
ू रे व्यर्क्त को उिके िाद-समत्र की िै सियत में कायि करने के सलए अनज्ञ
ु ात
क्रकया जाए या उिको िादाथि िंरिक ननयक्
ु त क्रकया जाए, ऐिे िरिक िे सभन्न कोई व्यर्क्त, यथार्स्थनत,
न तो इि प्रकार कायि करे गा और न इि प्रकार ननयक्
ु त क्रकया जाएगा ।
(3) कोई भी व्यर्क्त अपनी 1[सलणखत] ििमनत के बबना िादाथि िंरिक ननयक्
ु त नि ं क्रकया जाएगा

(4) जिां िादाथि िंरिक की िै सियत में कायि करने के सलए कोई भी अन्य व्यर्क्त योग्य और रजामन्द नि ं
िै ििां न्यायालय अपने अधधकाररयों में िे क्रकिी को ऐिा िंरिक िोने के सलए ननयक्
ु त कर िकेगा और
ननदे श दे िकेगा क्रक ऐिे िंरिक की िै सियत में अपने कतिव्यों के पालन में ऐिे अधधकार द्िारा उपगत
खचे या तो िाद के पिकारों द्िारा या पिकारों में िे क्रकिी एक या अधधक के द्िारा न्यायालय में की
क्रकिी ऐिी ननधध में िे र्जिमें अियस्क हितबद्ध िै 2[या अियस्क की िम्पवि में िे], हदए जाएंगे और ऐिे
खचों के प्रनतिंदाय या उनके अनज्ञ
ु ात क्रकए जाने के सलए ऐिे ननदे श दे िकेगा जो न्याय और मामले की
पररर्स्थनतयों िे अपेक्षित िों ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 79 द्िारा (1.2.1977 िे) अंतःस्थावपत क्रकया ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 79 द्िारा (1.2.1977 िे) अंत : स्थावपत क्रकया ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


म.प्र. उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- ननम्नानि
ु ार ननयम (4-क) जोडा गया ।
“4-क. िाद के सलए िरिक की ननयर्ु क्त की प्रक्रिया-
(1) ििम प्राधधकार द्िारा ननयक्
ु त अथिा घोवषत िंरिक के सििाए क्रकिी भी व्यर्क्त को बबना
उिकी अनम
ु नत के िाद का िंरिक ननयक्
ु त नि ं क्रकया जाएगा ।
(2) अियस्क के नाम एिं उिकी ओर िे अथिा िाद द्िारा हदए जाने िाले आिेदन पर िाद के
सलए िरिक ननयर्ु क्त का आदे श प्राप्त क्रकया जा िकेगा ।
(3) जब तक न्यायालय की इि तथ्य पर अन्यथा िंतर्ु ष्ट नि ं िो जाती िै क्रक प्रस्तावित िंरिक
का िाद मे वििाहदत विषयों मे अियस्क के प्रनतकूल हित नि ं िैं और िि इि प्रकार ननयक्
ु त क्रकए जाने के
सलए उपयक्
ु त व्यर्क्त िै , िि यि अपेिा करे गा क्रक ऐिा आिेदन तथ्य को ित्यावपत करने िाले शपथ-पत्र
के द्िारा िमधथित िो ।

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(4) ििम प्राधधकार द्िारा अियस्क के रुप में ननयक्
ु त अथिा घोवषत िंरिक के सििाए िाद के
िंरिक के रूप मे क्रकिी व्यर्क्त को ननयक्
ु त करने के क्रकिी आिेदन पर िाद के सलए प्रस्तावित िंरिक को
और ििम प्राधधकार द्िारा अियस्क के रूप में ननयक्
ु त अथिा घोवषत िंरिक को और जिााँ ऐिा कोई
िंरिक नि ं िै , तो व्यर्क्त र्जिकी असभरिा में अियस्क िै को िच
ू ना हदए बबना कोई आदे श नि ं क्रकया
जाएगा और ऐिी क्रकिी आपवि को िन
ु ने के उपरांत जो क्रक िच
ू ना पत्र में विननहदि ष्ट हदिि पर बताई जा
िकती िै । न्यायालय यहद क्रकिी मामले में उपयक्
ु त िमझता िै तो अियस्क को भी िच
ू ना जार कर
िकता िै 1
(6) जिााँ विननहदि ष्ट हदिि पर अथिा उिके पि
ू ि ऐिा प्रस्तावित िंरिक उपर्स्थत िोने ि िाद के
सलए ऐिे िरिक के रूप में कायि करने के सलए उिकी ििमनत व्यक्ि करने में विफल रिता िै , अथिा जिााँ
क्रक िि उपननयम 3 के अंतगित अनप
ु यक्
ु त अथिा ननरहिित िमझा जाता िै तो अन्य उपयक्
ु त अथिा कायि
करने के सलए इच्छुक क्रकिी अन्य व्यर्क्त की अनप
ु र्स्थनत मे इिके क्रकिी विधधक व्यििायी अधधकार
अथिा विधधक व्यििायी को िाद के सलए िरिक िोने के रूप में ननयक्
ु त कर िकेगा । यहद िाद के सलए
विधधक व्यििायी को िंरिक ननयक् ु त क्रकया जाता िै तो न्यायालय यि बताते िुए आदे श पाररत करे गा क्रक
क्या उिे स्ियं मामले का िंचालन करना िै अथिा इि प्रयोजन के सलए अन्य विधधक व्यििायी को
ननयक्
ु त करना िै ।
(6) ऐिे क्रकिी मामले मे र्जिमें अियस्क प्रनतिाद िै , न्यायालय यि ननदे श दे िकेगा क्रक िाद
द्िारा न्यायालय में िमधु चत रासश जमा की जाए र्जिमें िे िाद में अियस्क प्रनतिाद के व्ययों िाद के
सलए ननयक्ु त विधधक व्यििायी के व्ययो को शासमल करते िुए भग
ु तान क्रकया जाएगा । िाद द्िारा इि
प्रकार उपगत खचों को िाद मे खचो के िबध में पाररत अंनतम आदे श के अनि ु ार िमायोर्जत क्रकया जाएगा

इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (24.7.1926)- ननयम 4 ननम्नानि


ु ार प्रनतस्थावपत क्रकया
गया-
“4. (1) जिां ििम प्राधधकार द्िारा अथिा घोवषत अियस्क का िंरिक िै तो ऐिे िरिक के
अलािा अन्य कोई व्यर्क्त, न्यायालय की अनम
ु नत के सििाए, िाद-समत्र के रुप मे कायि नि ं करे गा ।
(2) उपननयम (1) के प्रािधानों के अधीन रिते िुए कोई व्यर्क्त जो स्िस्थधचत्त् िै और ियस्यत्त
िै , िि अियस्क के िाद-समत्र या िादाथि िरिक के रूप में कायि कर िकता िै । जब तक क्रक ऐिे व्यर्क्त
का हित अियस्क के हित के प्रनतकूल न िो अथिा िि प्रनतिाद न िो या अन्य कारणों िे न्यायालय उिे
कायि करने के सलए अनप
ु यक्
ु त न िमझे |
(3) प्रत्येक िाद-समत्र इि ननयम के खण्ड (5) में यथा प्रािधाननत के सििाए अियस्क की िंपदा िे
अियस्क की ओर िे कायि करने के दौरान उिके द्िारा उपगत व्ययों की प्रनतपनू ति करिाने का िकदार िोगा

(4) न्यायालय, उिके वििेक िे, अविसलणखत क्रकए जाने िाले कारणों िे िाद -समत्र के विरुद्ध
व्यर्क्तगत तौर पर मानो िि िाद था, िाद के खचे अथिा धारा 85- क अथिा 95 के अंतगित प्रनतकर
अधधननणीत कर िकेगी ।

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(5) खण्ड (4) के अंतगित अधधननणीत खचे अथिा प्रनतकर अियस्क की िंपदा िे िंरिक द्िारा
ििल
ू योग्य नि ं िोंगे जब तक क्रक डडिी में व्यक्त तौर पर ऐिा ननदे श न हदया गया िो क्रक िे इि प्रकार
ििल
ू योग्य िोंगे ।

'' निीन पद 4 क की स्थापना- इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा निीन पद 4 क भी ननम्न प्रकार
स्थावपत क्रकया गया िै-
''4- क- (1) जिााँ ििम प्राधधकार द्िारा ननयक्
ु त िरिक अियस्क िै , अन्य कोई व्यर्क्त ऐिे
िंरिक के अलािा िाद के सलए उिका िंरिक ननयक्
ु त नि ं क्रकया जाएगा जब तक न्यायालय असभसलणखत
कारणों िे यि विचार नि ं करती िै क्रक यि अियस्क के हित कपयाण में िोगा क्रक अन्य व्यर्क्त को
ननयक्
ु त क्रकया जाए ।
(2) जिााँ कोई िंरिक नि ं िै या जिााँ न्यायालय विचार करती िै क्रक उिे ऐिे िंरिक को ननयक्
ु त
नि ं क्रकया जाना चाहिए यि अियस्क के प्राकृनतक िंरिक को यहद िि योग्य िै , ननयक्
ु त करे गा या जिााँ
ऐिा कोई िंरिक नि ं िै व्यर्क्त र्जिकी दे ख-रे ख में अियस्क िै या अन्य उपयक्
ु त व्यर्क्त जो उिकी
कायि करने की इच्छा को अधधिधू चत कर चुका िै या ऐिे क्रकिी व्यर्क्त के विफल िोने पर न्यायालय के
अधधकार को िाद के सलए िंरिक के रूप में ननयक्
ु त करे गा |
स्पष्टीकरण- उपननयम के प्रयोजन के सलए न्यायालय के अधधकारों में न्यायालय के रोल पर विधध
व्यििायी शासमल िोगा ।

पटना उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- पटना उच्च न्यायालय द्िारा आदे श 32 के ननयम 4 के
उपननयम (4) में िंशोधन क्रकया गया िै । उपननयम (4) मे िणणित इन शब्दों ''जिााँ िादाथि िंरिक की
िै सियत िे कायि करने के सलए कोई भी अन्य व्यर्क्त योग्य और रजामंद नि ं िै '' के स्थान पर इन शब्दों
को प्रनतस्थावपत क्रकया गया िै ''जिााँ व्यर्क्त र्जिको न्यायालय ननयम 3 के उपाननयम (4) के अंतगित
आपवियों, यहद कोई िो, िन
ु ने के उपरांत िाद के सलए िंरिक ननयक्
ु त करने का प्रस्ताि करता िै , उिे
िच
ू ना में ननयत िमय के भीतर इि प्रकार ननयक्
ु त क्रकए जाने में उिकी ििमनत को व्यक्त करने में
विफल रिता िै ।

5. िाद-समत्र या िादाथव िंरक्षक द्िारा अियस्क का प्रनतननधधत्ि- (1) अियस्क की ओर िे िर ऐिा


आिेदन जो ननयम 10 के उपननयम (2) के अधीन आिेदन िे सभन्न िै उिके िाद-समत्र या उिके िादाथि
िंरिक द्िारा क्रकया जाएगा ।
(2) जिां अियस्क का प्रनतननधधत्ि यथार्स्थनत, िाद-समत्र या िादाथि िंरिक द्िारा नि ं िुआ िै ििां
िर आदे श जो न्यायालय के िमि के िाद में या आिेदन पर क्रकया गया िै और र्जििे ऐिा अियस्क
क्रकिी प्रकार िंबधं धत िै या र्जिके द्िारा उि पर क्रकिी प्रकार प्रभाि पड़ता िै अपास्त क्रकया जा िकेगा
और उि दशा में खचे िहित अपास्त क्रकया जा िकेगा र्जिमें उि पिकार का र्जिकी प्रेरणा पर ऐिा
आदे श असभप्राप्त क्रकया गया था, प्ल डर ऐिी अियस्कता के तथ्य को जानता था या यर्ु क्तयक्
ु त रुप िे
जान िकता था, जो खचाि उि प्ल डर द्िारा हदया जाएगा ।

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6. अियस्क की ओर िे िाद-समत्र या िादाथव िंरक्षक को डििी के अधीन िम्पावि की प्रास्प्त—(1)
िाद-समत्र या िादाथि िंरिक न्यायालय की इजाजत के बबना न तो-
(क) डडिी या आदे श के पि
ू ि िमझौते के तौर पर, और न
(ख) अियस्क के पि में डडिी या आदे श के अधीन,
क्रकिी भी धन या अन्य जगम िम्पवि को अियस्क की ओर िे प्राप्त करे गा ।
(2) जिां िाद-समत्र या िादाथि िंरिक अियस्क की िम्पवि का िंरिक िोने के सलए ििम
प्राधधकार द्िारा ननयक्
ु त या घोवषत नि ं क्रकया गया िै या ऐिे ननयक्
ु त या घोवषत क्रकए जाने पर धन या
अन्य जंगम िम्पवि को प्राप्त करने के सलए ऐिी क्रकिी ननयोग्यता के अधीन िै जो न्यायालय को ज्ञात िै
ििां, यहद न्यायालय िम्पवि प्राप्त करने के सलए उिे इजाजत दे ता िै तो, िि ऐिी प्रनतभनू त अपेक्षित
करे गा और ऐिे ननदे श दे गा र्जनिे न्यायालय की राय में िम्पवि की दव्ु यिय िे पयािप्त रुप िे िंरिा िोगी
और उिका उधचत उपयोजन िनु नर्श्चत िोगा :
[परन्तु न्यायालय िाद- समत्र या िादाथि िंरिक को डडिी या आदे श के अधीन धन या अन्य जंगम
1

िम्पवि प्राप्त करने की इजाजत दे ते िमय ऐिे कारणों िे जो लेखबद्ध क्रकए जाएंगे, ऐिी प्रनतभनू त दे ने िे
उि दशा में असभमक्
ु त कर िकेगा र्जिमें ऐिा िाद-समत्र या िंरिक---
(क) हिन्द ु अविभक्त कुटुम्ब का कताि िै और डडिी या आदे श कुटुम्ब की िम्पविने या कारबार के
िम्बन्ध में िै ; अथिा
(ख) अियस्क का माता या वपता िै ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 79 द्िारा (1.2.1977 िे) अत: स्थावपत क्रकया गया ।

7. िाद-समत्र या िादाथव िंरक्षक द्िारा करार या िमझौता- (1) कोई भी िाद-समत्र या िादाथि िंरिक
अियस्क की ओर िे कोई करार या िमझौता उि िाद के बारे में र्जिमें िाद-समत्र या िंरिक की िैसियत
में िि कायि करता िै , न्यायालय की इजाजत के बबना नि ं करे गा जो इजाजत कायििाहियों में स्पष्ट रुप िे
असभसलणखत की जाएगी ।
[(1क) उपननयम (1) के अधीन इजाजत के सलए आिेदन के िाथ, यथार्स्थनत, िाद- समत्र या
1

िादाथि िंरिक का शपथपत्र िोगा और यहद अियस्क का प्रनतननधधत्ि प्ल डर द्िारा क्रकया जाता िै तो,
प्ल डर का इि आशय का प्रमाणपत्र भी िोगा क्रक प्रस्थावपत करार या िमझौता उिकी राय में अियस्क के
फायदे के सलए िै :
परन्तु शपथपत्र या प्रमाणपत्र में इि प्रकार असभव्यक्त की गई राय, न्यायालय को यि जांच करने
िे प्रिाररत नि ं करे गी क्रक क्या प्रस्थावपत करार या िमझौता अियस्क के फायदे के सलए िै ।
(2) न्यायालय की इि प्रकार असभसलणखत इजाजत के बबना क्रकया गया कोई भी करार या िमझौता
अियस्क िे सभन्न िभी पिकारों के विरुद्ध शन्
ू यकरणीय िोगा ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 79 द्िारा (1.2.1977 िे) अंतःस्थावपत क्रकया गया ।

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8. िाद-समत्र की ननिवृ ि- (1) जब तक क्रक न्यायालय द्िारा अन्यथा आहदष्ट न क्रकया जाए िाद-
समत्र अपने स्थान में रखे जाने िाले योग्य व्यर्क्त को पिले उपाप्त क्रकए बबना, और उपगत खचों के सलए
प्रनतभनू त हदए बबना ननिि
ृ नि ं िोगा ।
(2) नए िाद-समत्र की ननयर्ु क्त के सलए आिेदन यि दसशित करने िाले शपथ पत्र द्िारा िमधथित
िोगा क्रक प्रस्थावपत व्यर्क्त ठीक िै और अियस्क के हित के प्रनतकूल उिका कोई हित नि ं िै ।

9. िाद-समत्र का िटाया जाना- (1) जिां अियस्क के िाद-समत्र का हित अियस्क के हित के
प्रनतकूल िै या जिां उि प्रनतिाद िे र्जिका हित अियस्क के हित के प्रनतकूल िै , उिकी ऐिी िंिर्क्त िै
र्जििे यि अिंभाव्य िो जाता िै क्रक अियस्क के हित की िंरिा िि उधचत रूप िे करे गा या जिां िि
अपना कतिव्य नि ं करता िै या िाद के लर्म्बत रिने के दौरान 1[भारत] के भीतर ननिाि करना छोड़ दे ता
िै ििां या क्रकिी भी अन्य पयािप्त कारण िे उिके िटाए जाने के सलए आिेदन अियस्क की ओर िे या
क्रकिी प्रनतिाद द्िारा क्रकया जा िकेगा और यहद िमनहु दष्ट िे तक
ु की पयािप्तता के बारे में न्यायालय का
िमाधान िो जाता िै तो, िि िाद-समत्र के तदनि
ु ार िटाए जाने के सलए आदे श कर िकेगा और खचों के
िम्बन्ध में ऐिा अन्य आदे श कर िकेगा जो िि ठीक िमझे ।
(2) जिां िाद समत्र इि ननसमि ििम प्राधधकार द्िारा ननयक्
ु त या घोवषत िंरिक नि ं िै और ऐिे
ननयक्
ु त या घोवषत िंरिक द्िारा जो यि िांछा करता िै क्रक िि िाद-समत्र के स्थान में ननयक्
ु त क्रकया जाए,
आिेदन क्रकया जाता िै ििा जब तक क्रक न्यायालय का उन कारणों िे जो उिके द्िारा लेखबद्ध क्रकए
जाएंग,े यि विचार न िो क्रक िंरिक को अियस्क का िाद-समत्र ननयक्
ु त नि ं क्रकया जाना चाहिए, िि िाद-
समत्र को िटा दे गा और तब िाद-समत्र िोने के सलए उिके स्थान में आिेदक की ननयर्ु क्त िाद में पिले
उपगत खचों के िम्बन्ध में ऐिे ननबन्धनों पर करे गा जो िि ठीक िमझे ।

1. 1951 के अधधननननयम िं. 2 की धारा 3 द्िारा “राज्यो'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

10. िाद-समत्र के िटाए जाने, आहद पर कायविाहियों का रोका जाना- (1) अियस्क के िाद-समत्र की
ननिवृ ि, िटाए जाने या मत्ृ यु पर आगे की कायििाहियां तब तक रोक रखी जाएंगी जब तक उिके स्थान में
िाद-समत्र की ननयर्ु क्त न िो जाए ।
(2) जिां ऐिे अियस्क का प्ल डर नए िाद-समत्र के ननयक्
ु त क्रकए जाने के सलए यर्ु क्तयक्
ु त िमय
के भीतर कायििाि करने का लोप करता िै ििां उि अियस्क में या वििादग्रस्त बात में हित रखने िाला
कोई भी व्यर्क्त न्यायालय िे आिेदन कर िकेगा क्रक िाद-समत्र ननयक्
ु त क्रकया जाए और न्यायालय ऐिे
व्यर्क्त की ननयर्ु क्त कर िकेगा र्जिे िि ठीक िमझे ।

11. िादाथव िंरक्षक की ननिवृ ि, िटाया जाना या मत्ृ य-ु (1) जिां िादाथि िंरिक ननिि
ृ िोने की
िाछा करता िै , या अपना कतिव्य नि ं करता या जिां अन्य पयािप्त आधार हदखाया जाता िै ििां न्यायालय
ऐिे िरिक को ननिि
ृ िोने के सलए अनज्ञ
ु ा दे िकेगा या उिे िटा िकेगा और खचों के िम्बन्ध में ऐिा

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आदे श कर िकेगा जो िि ठीक िमझे ।
(2) जिां िादाथि िंरिक िाद के लर्म्बत रिने के दौरान ननिि
ृ िो जाता िै , उिकी मत्ृ यु िो जाती िै
या िि न्यायालय द्िारा िटा हदया जाता िै ििा न्यायालय उिके स्थान में नया िंरिक ननयक्
ु त करे गा ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (1.6.1957)- ननयम 11 के उपननयम (1) में िणणित
शब्दो “और खचो के िम्बन्ध में ऐिा आदे श कर िकेगा जो िि ठीक िमझे ।'' को विलोवपत कर हदया गया
िै ।
(2) इि उपननयम मे ननम्न परं तक
ु जोड़ा गया ।
“परं तु यि क्रक जिााँ िरिक बबना यर्ु क्तयक्
ु त कारण के ननिि
ृ िोने की िांछा करता िै तो न्यायालय
उिे िेिा ननिि
ृ िोने की अनज्ञ
ु ा दे ने के दौरान यि ननदे श दे गा क्रक िि निीन िंरिक ननयक्
ु त करने में
उपगत िोने िाले खचों को भग
ु तान करे ।''

12. अियस्क िादी या अिेदक द्िारा ियस्क िोने पर अनि


ु रण की जाने िाली चयाव- (1) अियस्क
िाद या िि अियस्क जो िाद में पिकार तो नि ं िै क्रकं तु र्जिकी ओर िे आिेदन लंबबत िै , ियस्क िोने
पर यि ननिािधचत करे गा क्रक िि िाद या आिेदन आगे चलाएगा या नि ं ।
(2) जिां िि िाद या आिेदन आगे चलाने का ननिािचन करता िै ििां िाद-समत्र के उन्मोचन के
आदे श के सलए और स्िय अपने नाम िे आगे कायििाि चलाने की इजाजत के सलए आिेदन करे गा ।
(3) ऐिी दशा में उि िाद या आिेदन का शीषिक इि भांनत शद्
ु ध क्रकया जाएगा क्रक उिका रुप
तत्पश्चात ् ननम्न प्रकार का िो जाए-
“क ख, भत
ू पि
ू ि अियस्क अपने िाद-समत्र ग घ, द्िारा, क्रकन्तु जो अब ियस्क िै । ''
(4) जिां िि िाद या आिेदन का पररत्याग करने का ननिािचन करता िै ििां, यहद िि एकमात्र िाद
या एकमात्र आिेदक िै तो, िि इि आदे श के सलए आिेदन करे गा क्रक जो खचाि प्रनतिाद या विरोधी पिकार
द्िारा उपगत क्रकया गया िै या जो उिके िाद-समत्र द्िारा हदया गया िै , उि खचि के प्रनत िंदाय पर िाद
या आिेदन खाररज कर हदया जाए ।
(5) इि ननयम के अधीन कोई आिेदन एक पिीय क्रकया जा िकेगा, क्रकन्तु िाद-समत्र को उन्मोधचत
करने िाला और अियस्क िाद को स्ियं अपने नाम िे आगे कायििाि करने के सलए अनज्ञ
ु ा दे ने िाला कोई
भी आिेदन िाद-समत्र को िच
ू ना हदए बबना नि ं क्रकया जाएगा ।

13. जिां अियस्क िििादी, ियस्क िोने पर िाद का ननराकरण करने की िांछा करता िै - (1) जिााँ
अियस्क िह्िाद , ियस्क िोने पर िाद का ननराकरण करने की िांछा करता िै ििां िि यि आिेदन करे गा
क्रक िििाद की िै सियत िे उिका नाम काट हदया जाए और यहद न्यायालय का यि ननष्कषि िो क्रक िि
आिश्यक पिकार नि ं िै तो न्यायालय खचों के िम्बन्ध में या अन्यथा ऐिे ननबन्धनों पर जो िि ठीक
िमझे, उिे िाद िे खाररज कर दे गा ।
(2) आिेदन की िच
ू ना की तामील िाद-समत्र पर, क्रकिी िििाद पर और प्रनतिाद पर की जाएगी ।

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(3) ऐिे आिेदन के िभी पिकारों के और िाद में क्रक तब तक की गई िभी या क्रकन्ि ं कायििाहियों
के खचे ऐिे व्यर्क्तयों द्िारा हदए जाएंगे र्जन्िें न्यायालय ननहदष्ट करे ।
(4) जिां आिेदक िाद का आिश्यक पिकार िै ििां न्यायालय उिे प्रनतिाद बनाए जाने का ननदे श
दे िकेगा ।

14. अयस्ु ततयत


ु त या अनधु चत िाद- (1) यहद अियस्क एक-मात्र िाद िै तो िि ियस्क िोने पर
आिेदन कर िकेगा क्रक उिके नाम में उिके िाद-समत्र द्िारा िंर्स्थत िाद इि आधार पर खाररज कर हदया
जाए क्रक िि अयर्ु क्तयक्
ु त या अनधु चत था ।
(2) इि आिेदन की िच
ू ना की तामील िम्बद्ध िभी पिकारों पर की जाएगी और ऐिी
अयर्ु क्ियक्
ु तता या अनौधचत्य के बारे में अपना िमाधान िो जाने पर न्यायालय आिेदन को मंजरू कर
िकेगा और आिेदन के िम्बन्ध में िभी पिकारों के खचों का और िाद में की गई क्रकिी बात में िुए खचों
को दे ने के सलए आदे श िादसमत्र को दे िकेगा या ऐिा अन्य आदे श दे िकेगा जो िि ठीक िमझे ।

[15. ननयम 1 िे ननयम 14 तक का (स्जनमें ननयम 2क िस्म्मसलत निीं िै ) विकृतधचि िाले


1

व्यस्ततयों को लागू िोना- ननयम 1 िे ननयम 14 तक (र्जनमें ननयम 2क िर्म्मसलत नि ं िै ) ऐिे व्यर्क्तयां
को, जिां तक िो िके, लागू िोंगे जो िाद के लर्म्बत रिने के पि
ू ि या उिके दौरान विकृतधचि के
न्यायननणीत क्रकए जाते िैं और ऐिे व्यर्क्तयों को भी लागू िोंगे जो यद्यवप ऐिे न्याय ननणीत नि ं क्रकए
जाते िैं, क्रकं तु जब िे िाद लाते िैं या उनके विरुद्ध िाद लाया जाता िै तब िे न्यायालय द्िारा जांच क्रकए
जाने पर क्रकिी मानसिक दौबिपय के कारण अपने हित की िरिा करने में अिमथि पाए जाते िैं ।

[16. व्यािवृ ियााँ- (1) इि आदे श की कोई बात विदे शी राज्य के ऐिे शािक को लागू नि ं िोगी जो
2

अपने राज्य के नाम िे िाद लाता िै या र्जिके विरुद्ध उिके राज्य के नाम िे िाद लाया जाता िै या
केन्द्र य िरकार के ननदे श िे र्जिके विरुद्ध असभकताि के नाम िे या क्रकिी अन्य नाम िे िाद लाया जाता
िै ।
(2) इि आदे श की क्रकिी बात का यि अथि नि ं लगाया जाएगा क्रक िि अियस्कों द्िारा या उनके
विरुद्ध अथिा पागलों या विकृतधचि िाले अन्य व्यर्क्तयों द्िारा या उनके विरुद्ध िादों के िम्बन्ध में
क्रकिी तत्िमय प्रिि
ृ स्थानीय विधध के उपबंधों पर प्रभाि डालती िै या क्रकिी रूप में उन्िें अपपीकृत करती
िै ।]

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 79 द्िारा (1.2.1977 िे) ननयम 15 के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 79 द्िारा (1.2.1977 िे) ननयम 15 के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया ।
3. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 80 द्िारा (1.2.1977 िे) आदे श 32क अंतःस्थावपत
क्रकया ।

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आदे श 32क
कुटुम्ब िे िंबध
ं रखने िाले विषयों िे िम्बस्न्धत िाद

1. आदे श का लागू िोना- (1) इि आदे श के उपबन्ध कुटुम्ब िे िंबध


ं रखने िाले विषयों िे
िम्बर्न्धत िादों या कायििाहियों को लागू िोंगे ।
(2) विसशष्टतया और उपननयम (1) के उपबन्धों की व्यापकता पर प्रनतकूल प्रभाि डाले बबना, इि
आदे श के उपबन्ध कुटुम्ब िे िंबधं धत ननम्नसलणखत िादों या कायििाहियों को लागू िोंगे अथाित:-
(क) वििाि-विषयक अनत
ु ोष के सलए कोई िाद या कायििाि र्जिके अन्तगित क्रकिी व्यर्क्त के
वििाि की या वििाि-विषयक प्रार्स्तधथ की विधधमान्यता के बारे में घोषणा के सलए िाद या कायििाि ;
(ख) क्रकिी व्यर्क्त के धमिजत्ि के बारे में घोषणा के सलए िाद या कायििाि ;
(ग) क्रकिी व्यर्क्त की िंरिकता या कुटुम्ब के क्रकिी अियस्क या अन्य ननःशक्त िदस्य की
असभरिा के बारे में कोई िाद या कायििाि ;
(घ) भरणपोषण के सलए कोई िाद या कायििाि ;
(डः) दिकग्रिण की विधधमान्यता या प्रभाि के बारे में कोई िाद या कायििाि ;
(च) विल, ननिििीयतता और उिराधधकार के बारे में कुटुम्ब के क्रकिी िदस्य द्िारा िंर्स्थत क्रकया
गया कोई िाद या कायििाि ;
(छ) क्रकिी ऐिे अन्य विषय के बारे में कोई िाद या कायििाि र्जिके िम्बन्ध में पिकार अपनी
स्िीय विधध के अधीन िै ।
(3) इि आदे श का उतना भाग र्जतना क्रकिी ऐिे िाद या कायििाि िे िम्बन्ध रखने िाल क्रकिी
विशेष विधध द्िारा उपबर्न्धत विषय के िम्बन्ध में िै , उि िाद या कायििाि को लागू नि ं िोगां

2. कायविाहियों का बंद कमरे में क्रकया जाना- ऐिे प्रत्येक िाद या कायििाि में र्जिे िि आदे श लागू
िोता िै , यहद न्यायालय ऐिी िांछा करे तो, कायििाहियां बन्द कमरे में की जा िकेगी और यहद दोनों
पिकारों में िे कोई ऐिी िांछा करे तो कायििाहियां बन्द कमरे में की जाएंगी ।

3. ननपटारे के सलए प्रयत्न करने का न्यायालय का कतवव्य- (1) ऐिे प्रत्येक िाद या कायििाि में
र्जिे यि आदे श लागू िोता िै , न्यायालय िाद की विषय-िस्तु के बारे में ननपटारा कराने में पिकारों की
ििायता करने के सलए िर मामले में जिां ऐिा करना मामले की प्रकृनत और पररर्स्थनतयों िे िि
ु गत िभि
िो, प्रथमत: प्रयाि करे गा ।
(2) यहद ऐिे क्रकिी िाद या कायििाि के क्रकिी प्रिम में न्यायालय को यि प्रतीत िोता िै क्रक
पिकारों के बीच ननपटारे की यर्ु क्तयक्
ु त िम्भािना िै तो न्यायालय कायििाि को ऐिी अिधध के सलए, जो
िि ठीक िमझे, स्थधगत कर िकेगा क्रक ऐिा ननपटारा करने के सलए प्रयत्न क्रकए जा िके ।
(3) उपननयम (2) द्िारा प्रदि शर्क्त, कायििाहियां स्थधगत करने की न्यायालय की क्रकिी अन्य
शर्क्त के अनतररक्त िोगी, न क्रक उिके अपपीकरण में ।

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4. कल्याण विशेषज्ञ िे ििायता- ऐिे प्रत्येक िाद या कायििाि में र्जिे यि आदे श लागू िोता िै
न्यायालय को इि आदे श के ननयम 3 द्िारा अधधरोवपत कृत्यों के ननिििन में न्यायालय की ििायता के
प्रयोजन के सलए ऐिे व्यर्क्त की िेिाएं (विशेषकर महिला की िेिा, यहद उपलभ्य िो) चािे िि पिकारों का
नातेदार िो या नि ं, इिके अन्तगित कुटुम्ब के कपयाण की प्रोन्ननत में िवृ िक तौर पर लगा िुआ व्यर्क्त
भी िै र्जिे न्यायालय ठीक िमझे, प्राप्त करने की स्ितंत्रता िोगी ।

5. त्यों की जांच करने का कतवव्य- ऐिे प्रत्येक िाद या कायििाि में र्जिे यि आदे श लागू िोता
िै , न्यायालय का यि कतिव्य िोगा क्रक िि िाद द्िारा असभकधथत तथ्यों की ओर प्रनतिाद द्िारा
असभकधथत क्रकन्ि ं तथ्यों की जांच ििां तक करे जिां तक क्रक िि यर्ु क्तयक्
ु त रुप िे कर िकता िै|

6. ''कुटुम्ब'' का अथव- इि आदे श के प्रयोजनों के सलए ननम्नसलणखत व्यर्क्तयों में िे प्रत्येक के बारे
में यि िमझा जाएगा क्रक उििे समलकर कुटुम्ब बनता िै , अथाित:-
(क) (i) एक िाथ रिने िाले परु
ु ष और उिकी पत्नी;
(ii) कोई बालक जो उनकी या ऐिे परु
ु ष की या ऐिी पत्नी की िंतान िो या िों;
(iii) कोई बालक र्जिका या र्जनका भरणपोषण ऐिे परु
ु ष और पत्नी द्िारा क्रकया जाता िै ,
(ख) ऐिा परु
ु ष, र्जिकी पत्नी न िो या जो अपनी पत्नी के िाथ न रिता िो, कोई बालक जो
उनकी िंतान िो या िों और कोई बालक र्जिका भरणपोषण उिके द्िारा क्रकया जाता िै
(ग) ऐिी स्त्री, र्जिका पनत न िो या जो अपने पनत के िाथ न रिती िो, कोई बालक, जो उिकी
ितान िो या िों और कोई बालक र्जिका भरणपोषण उिके द्िारा क्रकया जाता िै ;
(घ) कोई परु
ु ष या स्त्री और उि परु
ु ष या स्त्री का भाई, बहिन, पि
ू ज
ि या पारम्पररक िंशज जो
उिके िाथ रिता िो; और
(ड) इि ननयम के खण्ड (क), खण्ड (ख) खण्ड (ग) या खण्ड (घ) में विननहदिष्ट िगो में िे एक या
अधधक का कोई िमच्
ु चय ।
स्पष्टीकरण- शंकाओं को दरू करने के सलए यि घोवषत क्रकया जाता िै क्रक ननयम 6 के उपबन्धों िे
क्रकिी स्िीय विधध में या तत्िमय प्रिि
ृ क्रकिी अन्य विधध में ''कुटुम्ब'' की धारणा पर प्रनतकूल प्रभाि नि ं
पड़ेगा ।]

आदे श 33
1
[ननधवन व्यस्ततयों द्िारा िाद]

1. ननधवन व्यात्न द्िारा िाद िंस्स्थत क्रकए जा िकेंगे- ननम्नसलणखत उपबन्धों के अधीन रिते कोई
भी िाद ननधिन व्यर्क्त द्िारा िंर्स्थत क्रकया जा िकेगा ।
3
[स्पष्टीकरण 1- कोई व्यर्क्त ननधिन व्यर्क्त तब िै -
(क) जब उिके पाि इतना पयािप्त िाधन (डडिी के ननष्पादन में कुकी िे छूट प्राप्त िंपवि िे और
िाद की विषय-िस्तु िे सभन्न) नि ं िै , क्रक िि ऐिे िाद में िाद-पत्र के सलए विधध द्िारा विहित फीि दे

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िके, अथिा
(ख) जिां ऐिी कोई फीि विहित नि ं िै ििा, जब िि एक िजार रुपए के मप
ू य की ऐिी िम्पवि
का, जो डडिी के ननष्पादन में कुकी िे छूट प्राप्त िम्पवि। िे और िाद की विषय-िस्तु िे सभन्न िै , िकदार
नि ं िै ।
स्पष्टीकरण 2- इि प्रश्न पर विचार करने में क्रक आिेदक ननधिन व्यर्क्त िै या नि ं, क्रकिी ऐिी
िम्पवि को ध्यान में रखा जाएगा र्जिको उिने ननधिन व्यर्क्त के रुप में िाद चलाने की अनज्ञ
ु ा के सलए
अपना आिेदन प्रस्तत
ु करने के पश्चात ् और आिेदन का विननश्चय िोने के पि
ू ि अर्जित क्रकया िै ।
स्पष्टीकरण 3- जिां िाद प्रनतननधध की िै सियत में िाद लाता िै ििां इि प्रश्न का अिधारण क्रक
िि ननधिन व्यर्क्त िै , उन िाधनों के प्रनत ननदे श िे क्रकया जाएगा जो ऐिी िै सियत में उिके पाि िै ।]

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 81 द्िारा (1.2.1977 िे) ''अक्रकचनों दारा िाद'' के
स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 81 द्िारा (1.2.1977 िे) ''अक्रकं चन'' के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया ।
3. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 81 द्िारा (1.2.1977 िे) पि
ू ि
ि ती स्पष्ट करण के स्थान
पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

1
[1क. ननधवन व्यस्ततयों के िाधनों की जांच- इि प्रश्न की िर जांच क्रक कोई व्यर्क्त ननधिन व्यर्क्त
िै या नि ं जब तक क्रक न्यायालय अन्यथा ननदे श न दे तब तक, प्रथम बार में न्यायालय के मख्
ु य सलवपक
िगीय अधधकार द्िारा की जाएगी और न्यायालय ऐिे अधधकार की ररपोटि को अपने ननष्कषि के रुप में
मान िकेगा या न्यायालय उि प्रश्न की जांच स्िंय कर िकेगा ।

2. आिेदन की विषयिस्त-ु 2[ननधिन व्यर्क्त] के रुप में िाद लाने की अनज्ञ


ु ा के िर आिेदन में िादों
में के िादपत्रों के िम्बन्ध में अपेक्षित विसशर्ष्टयां अन्तवििष्ट िोगी, आिेदन की जगम या स्थािर िम्पवि
की अनि
ु च
ू ी उि िम्पवि के प्राक्कसलत मप
ू य के िहित उििे उपाबद्ध िोगी, और िि उि र नत िे
िस्तािररत और ित्यावपत िोगा जो असभिचनों के िस्तािरण और ित्यापन के सलए विहित िैं ।

3. आिेदन का उपस्थापन- इन ननयमों में क्रकिी बात के िोते िुए भी, आिेदन स्िय आिेदक द्िारा
न्यायालय में उपस्थावपत क्रकया जाएगा क्रकन्तु यहद न्यायालय में उपिंजात िोने िे उिे छूट दे द गई िो
तो आिेदन ऐिे प्राधधकृत असभकताि द्िारा उपस्थावपत क्रकया जा िकेगा, जो आिेदन िे िम्बर्न्धत िभी
िारिान प्रश्नों का उिर दे िकता िो और र्जिकी उिी र नत िे पर िा की जा िकेगी जैिे उि पिकार की
की जाती र्जिका प्रनतननधधत्ि िि कर रिा िै , यहद िि पिकार स्ियं उपिंजात िुआ िोता :
1
[परन्तु जिां एक िे अधधक िाद िै ििां, यहद आिेदन उन िाहदयों में िे क्रकिी एक द्िारा
उपस्थावपत क्रकया जाता िै तो, यि पयािप्त िोगा ।

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1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 81 द्िारा (1.2.1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया गया ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 81 द्िारा (1.2.1977 िे) ''अक्रकं चन'' के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (8.5.1957)-- ननयम (3) में शब्द ''क्रकं तु यहद
न्यायालयमे उपिंजात िोने िे उिे छूट दे द गई िो'' के उपरांत-शब्द ''अथिा जेलमें ननरुद्ध िो'' जोडा
जाएगा ।

4. आिेदक की परीक्षा- (1) जिां आिेदन उधचत प्ररुप में िै और िम्यक् रुप िे उपस्थावपत क्रकया
गया िै ििां यहद न्यायालय ठीक िमझे तो िि आिेदक की या जब आिेदक असभकताि द्िारा उपिंजात िोने
के सलए अनज्ञ
ु ान िै तब उिके ऐिे असभकताि की पर िा दािे के गण
ु ागण
ु और आिेदक की िम्पवि के बारे
में कर िकेगा ।
(2) यहद आिेदन असिकताव द्िारा उपस्थावपत क्रकया जाता िै तो न्यायालय आदे श दे िकेगा क्रक
आिेदक की परीक्षा कमीशन दारा की जाए- जिां आिेदन असभकताि द्िारा उपस्थावपत क्रकया जाता िै ििां
यहद न्यायालय ठीक िमझे तो िि आदे श दे िकेगा क्रक आिेदक की पर िा कमीशन द्िारा उि र नत िे की
जाए जैिे अनप
ु र्स्थत िािी की की जा िकती िै ।

5. आिेदन का नामंजरू क्रकया जाना- 2[ननधिन व्यर्क्त] के रुप में िाद लाने की अनज्ञ
ु ा के सलए
आिेदन न्यायालय ििां नामजूर कर दे गा-
(क) जिां ननयम 2 और ननयम 3 में विहित र नत िे उिकी विरचना नि ं की गई िै और िि
उपस्थावपत नि ं क्रकया गया िै , अथिा
(ख) जिां आिेदक ननधिन व्यर्क्त नि ं िै , अथिा
(ग) जिां उिने आिेदन उपस्थावपत करने के ठीक पिले िाले दो माि के भीतर कपटपि
ू क
ि या
इिसलए क्रक िि 1[ननधिन व्यर्क्त] के रुप में िाद लाने की अनज्ञ
ु ा के सलए आिेदन कर िके, क्रकिी िंपवि
का व्ययन कर हदया िै :

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 81 द्िारा (1.2.1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 81 द्िारा (1.2.1977 िे) ''अक्रकं चन'' के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया ।
3. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 81 द्िारा (.12.1977 िे) ''अक्रकं चन'' के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया ।

2
[परन्तु यहद आिेदक द्िारा व्ययननत िंपवि के मप
ू य को हििाब में लेने पर भी आिेदक ननधिन

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व्यर्क्त के रूप में िाद लाने का िकदार िो तो क्रकिी आिेदन को नामंजूर नि ं क्रकया जाएगा, अथिा
(घ) जिां उिके असभकथनों िे िाद-िे तक
ु दसशित नि ं िोता, अथिा
(ड.) जिां उिने प्रस्थावपत िाद की विषय-िस्तु के बारे में कोई ऐिा करार क्रकया िै र्जिके अधीन
क्रकिी अन्य व्यर्क्त ने ऐिी विषय-िस्तु में हित असभप्राप्त कर सलया िै , 3[अथिा]
4
[(च) जिां आिेदन में आिेदक द्िारा क्रकए गए असभकथनों िे यि दसशित िोता िै क्रक िाद तत्िमय
प्रित
ृ क्रकिी विधध द्िारा िर्जित िै , अथिा
(छ) जिां क्रकिी अन्य व्यर्क्त ने मक
ु िमेबाजी के वििपोषण के सलए उिके िाथ करार क्रकया िै ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 81 द्िारा (1.2.1977 िे ''अक्रकं चन'' के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 81 द्िारा (1.2.1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया ।
3. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 81 द्िारा (1.2.1977 िे) अन्त : स्थावपत क्रकया ।
4. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 81 द्िारा (1.2.1977 िे) अन्त : स्थावपत क्रकया ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (15.4.1933)- ननयम (5) के अंत मे ननम्न स्पष्ट करण
जोडा गया-
''स्पष्टीकरण- खण्ड (घ) के अंतगित कोई आिेदन मात्र इि आधार पर ननरस्त नि ं क्रकया जाएगा क्रक
प्रस्तावित िाद क्रकिी विधध द्िारा िर्जित िोना प्रतीत िोता िै ।''
ननयम (5-क) में ननम्न शब्दों को शब्द ''उपस्थावपत नि ं क्रकया गया िै '' के उपरांत जोडा जाएगा-
“और आिेदक न्यायालय द्िारा क्रकिी िशोधन की अपेिा क्रकए जाने पर न्यायालय द्िारा ननयत क्रकए गए
िमय के भीतर ऐिा करने में विफल रिता िै । ''

6. आिेदक की ननधवनता के बारे में िाक्ष्य लेने के हदन की िच


ू ना- जिां न्यायालय को आिेदन को
ननयम 5 में कधथत आधारों में िे क्रकिी पर नामंजूर करने के सलए कोई कारण नि ं िै ििां िि ऐिे िाक्ष्य
को, जो आिेदक अपनी ननधिनता के िबत
ू में दे लेने के सलए और ऐिे िाक्ष्य की िन
ु िाई के सलए जो उिको
ना िाबबत करने के सलए हदया जाए हदन ननयत करे गा ( र्जिकी कम िे कम परू े दि हदन की िच
ू ना
विरोधी प िकार और िरकार प्ल डर को द जाएगी) ।

1
7. िन
ु िाई में प्रक्रिया- (1) ऐिे ननयत हदन को या उिके पश्चात ् यथाशीघ्र िवु िधा अनि
ु ार
न्यायालय दोनों पिकारों द्िारा पेश क्रकए गए िाक्षियों की (यहद कोई िों) पर िा करे गा और आिेदक या
उिके असभकताि की पर िा कर िकेगा और 2[उनके िाक्ष्य का पण
ू ि अधधलेख तैयार करे गा] ।
3
[(1क) उपननयम (1) के अधीन िाक्षियों की पर िा ननयम 5 के खण्ड (ख), खण्ड (ग) और खण्ड
(ड) में विननहदिष्ट विषयों तक ि िीसमत रखी जाएगी क्रकन्तु आिेदक या उिके असभकताि की पर िा ननयम
5 में विननहदि ष्ट विषयों में िे क्रकिी के िंबध
ं में िो िकेगी ।

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(2) न्यायालय ऐिा तकि भी िन
ु ेगा र्जिे पिकार इि प्रश्न पर दे ना चािे क्रक क्या आिेदन के या
ऐिे िाक्ष्य के (यहद कोई िो) जो न्यायालय ने 4[ननयम 6 के अधीन या इि ननयम के अधीन] सलया िो
दे खते ि यि प्रकट िै क्रक आिेदक ननयम 5 में विननहदि ष्ट प्रनतषेधों में िे क्रकिी के अधीन िै या नि ं िै ।
(3) तब न्यायालय आिेदक को 5[ननधिन व्यर्क्त] के रुप में िाद लाने के सलए अनज्ञ
ु ात करे गा या
अनज्ञ
ु ा करने िे इकार करे गा ।

1. इि ननयम के उपबंध, जिां तक िे ज्ञापन तैयार करने िे िंबधं धत करने िे िंबधधत िैं | अिध
के उच्च न्यायालय को लागू नि िोगे, अिध कोटि रर ऐक्ट, 1925 ( 1925 का िं. प्रा.
अधधननयम िं. 4) की धारा 16 (2) दे णखए ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 81 द्िारा (1.2.1977 िे) कुछ शब्दों के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया ।
3. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 81 द्िारा (1.2.1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया ।
4. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 81 द्िारा (1.2.1977 िे) कुछ शब्दों के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया ।
5. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 81 द्िारा (1.2.1977 िे) ''अक्रकं चन'' के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया ।

8. यहद आिेदन र्ग्िण कर सलया जाए तो प्रक्रिया- जिां आिेदन मंजरू क्रकया जाता ििां िि
िंख्यांक्रकत और रर्जस्र कृत क्रकया जाएगा और उि िाद में िादपत्र िमझा जाएगा और अन्य िभी बातों में
िि िाद मामल
ू र नत िे िंर्स्थत िाद के रुप में आगे चलेगा, सििाय इिके क्रक िाद क्रकिी याधचका, प्ल डर
की ननयर्ु क्त या िाद िे िंिक्त अन्य कायििाि के िंबध में कोई न्यायालय- फीि 1[या आदे सशका की
तामील के सलए दे य फीि] दे ने का दायी नि ं िोगा ।

9. ननधवन व्यस्तत के रुप में िाद लाने की अनज्ञ


ु ा का प्रत्यािरण- प्रनतिाद या िरकार प्ल डर के
आिेदन पर, र्जिकी परू े िात हदन की सलणखत िच
ू ना िाद को दे द गई िो, न्यायालय यि आदे श दे
िकेगा क्रक िाद को ननधिन व्यर्क्त के रूप में िाद लाने के सलए द गई अनज्ञ
ु ा ननम्नसलणखत दशाओं में
प्रत्याहृत कर ल जाए, अथाित िै ---
(क) यहद िाद िाद के दौरान तंग करने िाले या अनधु चत आचरण का दोषी िै ;
(ख) यहद यि प्रतीत िोता िै क्रक िाद के िाधन ऐिे िै क्रक 2[ननधिन व्यर्क्त] के रुप में उिे िाद
नि ं करते रिना चाहिए; अथिा
(ग) यहद िाद ने िाद की विषय-िस्तु के बारे में ऐिा कोई करार क्रकया िै र्जिके अधीन क्रकिी
अन्य व्याकृत ने ऐिी विषय-िस्तु में कोई हित असभप्राप्त कर सलया िै ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 81 द्िारा (1.2.1977 िे) कुछ शब्दों के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया ।

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2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 81 द्िारा (1.2.1977 िे) ''अक्रकं चन'' के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया ।

1
[9 क. स्जि ननधवन व्यस्तत का प्रनतननधधत्ि न िो उिके सलए न्यायालय द्िारा प्लीिर ननयत क्रकया
जाना- (1) जिां क्रकिी ऐिे व्यर्क्त का र्जिे ननधिन व्यर्क्त के रूप में िाद लाने की अनज्ञ
ु ा द गई िै ,
प्रनतननधधत्ि प्ल डर द्िारा नि ं क्रकया जाता िै ििां न्यायालय उिके सलए प्ल डर तब ननयत कर िकेगा जब
मामले की पररर्स्थनतयों में ऐिा क्रकया जाना अपेक्षित िो ।
(2) उच्च न्यायालय राज्य िरकार के पि
ू ि अनम
ु ोदन िे ननम्नसलणखत का उपबन्ध करने के सलए
ननयम बना िकेगा, अथाित:-
(क) उपननयम (1) के अधीन ननयत क्रकए जाने िाले प्ल डरों के चयन की र नत;
(ख) न्यायालय द्िारा ऐिे प्ल डरों को द जाने िाल िवु िधाएं;
(ग) कोई अन्य विषय जो उपननयम (1) के उपबन्धों को प्रभािी करने के सलए ननयमों द्िारा
अपेक्षित िो या उपबर्न्धत क्रकया जाए ।

10. जिां ननधवन व्यस्तत िफल िोता िै ििां खचे- जिां िाद िाद में िफल िो जाता िै , ििां
न्यायालय फीि की उि रकम की िंगणना करे गा जो यहद उिे 2[ननधिन व्यर्क्त] के रुप में िाद लाने के
सलए अनज्ञ
ु ा न द गई िोती तो िाद द्िारा िदि की जाती, ऐिी रकम [राज्य िरकार] द्िारा उि पिकार
3

िे ििल
ू य िोगी जो उिे िदि करने के सलए डडिी द्िारा आहदष्ट िै और िि िाद की विषय-िस्तु पर
प्रथम भार िोगी ।

11. प्रक्रिया जिां ननधवन व्यस्तत अिफल िो जाता िै - जिां िाद िाद में अिफल िो जाता िै या
ननधिन व्यर्क्त के रुप में िाद लाने के सलए द गई अनज्ञ
ु ा प्रत्याह्रत करल गई िै या जिां िाद प्रत्याह्रत कर
सलया जाता िै या इि कारण िे खाररज कर हदया जाता िै क्रक-
(क) उपिंजात िोने और उिर दे ने के सलए प्रनतिाद के नाम िमन की तामील प्रनतिाद पर इि बात के
पररणामस्िरुप नि ं िो पाई क्रक िाद ऐिी तामील के सलए प्रभायि न्यायालय-फीि या डाक मििल
ू को (यहद
कोई िों) दे ने में 1[या िादपत्र की या िंक्षिप्त कथन की प्रनतयााँ उपर्स्थत करने में ] अिफल रिा िै , अथिा
(ख) जब िाद की िन ु िाई के सलए पकु ार िुई तब िाद उपिंजात नि ं िुआ,
ििां न्यायालय िाद को, या िाद में िििाद के तौर पर जोडे गए क्रकिी भी व्यर्क्त को आदे श दे गा
क्रक िि ऐिी न्यायालय-फीि दे जो यहद िाद 2
[ननधिन व्यर्क्त] के रुप में िाद लाने के सलए अनज्ञ
ु ात नि ं
क्रकया गया िोता तो िाद द्िारा द जाती ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 81 द्िारा (1.2.1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 81 द्िारा (1.2.1977 िे) ''अक्रकं चन'' के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया |
3. भारत शािन (भारतीय विधध अनक
ु ू लन) आदे श, 1937 द्िारा ''िरकार'' के सलए रखे गए

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''प्रान्तीय िरकार'' के स्थान पर विधध अनक
ु ू लन आदे श 1950 द्िारा प्रनतस्थावपत क्रकया |

3
[11क. ननधवन व्यस्तत के िाद के उपशमन पर प्रक्रिया- जिां िाद का उपशमन िाद की या िििाद
के तौर पर जोड़े गए क्रकिी व्यर्क्त की मत्ृ यु की कारण िो जाता िै ििा न्यायालय आदे श दे गा क्रक
न्यायालय-फीिों की िि रकम जो यहद िाद 4
[ननधिन व्यर्क्त] के रुप में िाद लाने के सलए अनज्ञ
ु ात नि ं
क्रकया गया िोता तो िाद द्िारा द जाती, मत
ृ िाद की िम्पदा िे राज्य िरकार द्िारा ििल
ू य िोगी ।]

12. राज्य िरकार न्यायालय-फीि के िंदाय के सलए आिेदन कर िकेगी- 5[राज्य िरकार] को यि
अधधकार िोगा क्रक िि न्यायालय िे क्रकिी िमय ननयम 10, 6[ननयम 11 या ननयम 11क] के अधीन
न्यायालय फीि के िंदाय का आदे श क्रकए जाने के सलए आिेदन करे ।

3. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 81 द्िारा (1.2.1977 िे अंत : स्थावपत क्रकया |
4. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 81 द्िारा (1.2.1977 िे) ''अक्रकं चन'' के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया ।
3. 1942 के अधधननयम िं. 24 की धारा 2 द्िारा अन्त: स्थावपत क्रकया ।
4. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 81 द्िारा (1.2.1977 िे) ''अक्रकं चन'' के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया ।
5. भारत शािन (भारतीय विधध अनक
ु ू लन) आदे श, 1937 द्िारा ''िरकार'' के सलए रखे गए
''प्रान्तीय िरकार” के स्थान पर विधध अनक
ु ू लन आदे श 1950 द्िारा प्रनतस्थावपत क्रकया ।
6. भारत शािन ( भारतीय विधध अनक
ु ू लन) आदे श 1937 द्िारा ''िरकार'' के सलए रखे गए
''प्रान्तीय िरकार” के स्थान पर विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1950 द्िारा प्रनतस्थावपत क्रकया ।

13. राज्य िरकार का पक्षका िमझा जाना- 1[राज्य िरकार] और िाद के क्रकिी भी पिकार के बीच
ननयम 10, ननयम 11, 2[ननयम 11क] या ननयम 12 के अधीन पैदा िोने िाल िभी बातों िाद के पिकारों
के बीच धारा 47 के अथि में पैदा' िोने िाले प्रश्न िमझी जाएगी ।

3
[14. न्यायालय फीि रकम की ििल
ू ी- जिां ननयम 10, ननयम 11 या ननयम 11क के अधीन
आदे श क्रकया जाता िै ििां न्यायालय डडिी या आदे श कीएक प्रनत तत्िण ि कलक्टर को सभजिाएगा:
ििल
ू के क्रकिी अन्य ढं ग पर प्रनतकूल प्रभाि डाले बबना, कलक्टर उिमें विननहदिष्ट न्यायालय-फीिों की
रकम िंदि करने के सलए दायी व्यर्क्त या िम्पवि िे ऐिी रकम को िैिे ि ििल
ू कर िकेगा मानो िि
भ-ू राजस्ि की बकाया िो ।

15. ननधवन व्यस्तत के रुप में िाद लाने के सलए आिेदक को अनज्ञ
ु ा दे ने िे इंकार के कारण िैिी िी
प्रकृनत के पश्चातिती
् आिेदन का िजवन- 4[ननधिन व्यर्क्त] के रुप में िाद लाने के सलए आिेदक को अनज्ञ
ु ा
दे ने िे इंकार करने िाला आदे श, िाद लाने के उिी अधधकार के सलए उिके जरा िैिी ि प्रकृनत के क्रकिी

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भी पश्चातिती
् आिेदन के सलए िजिन िोगा, क्रकन्तु उिी अधधकार के िम्बन्ध में मामल
ू र नत िे िाद
िंर्स्थत करने के सलए आिेदक स्ितन्त्र िोगा: परन्तु यहद िि ननधिन व्यर्क्त के रुप में िाद लाने की
इजाजत के सलए अपने आिेदन का विरोध करने में राज्य िरकार! द्िारा और विरोधी पिकार द्िारा उपगत
क्रकए गए खचो का (यहद कोई िों) िाद िंर्स्थत क्रकए जाने के िमय या उिके पश्चात ् ऐिे िमय के भीतर
जो न्यायालय अनज्ञ
ु ात करे , िदाय नि ं करता िै तो िाद पत्र नामंजूर कर हदया जाएगा। ]

1. भारत शािन (भारतीय विधध अनक


ु ू लन) आदे श, 1937 द्िारा ''िरकार'' के सलए रखे गए
''प्रान्तीय िरकार'' के स्थान पर विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1950 द्िारा प्रनतस्थावपत क्रकया|
2. 1942 के अधधननयम िं. 24 की धारा 2 द्िारा ''या ननयम 11'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत
क्रकया ।
3. 1942 के अधधननयम िं. 24 की धारा 2 द्िारा पि
ू ेिती ननयम के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया

4. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 81 द्िारा (1.2.1977 िे) ''अक्रकं चन'' के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया |
5. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 81 द्िारा (1.2.1977 िे) कुछ शब्दों के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया ।
6. भारत शािन (भारतीय विधध अनक
ु ू लन) आदे श, 1937 द्िारा ''िरकार'' के सलए रखे गए
''प्रान्तीय िरकार'' के स्थान पर विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1950 द्िारा प्रनतस्थावपत क्रकया ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


राजस्थान उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (14.8.1954)- इि िंशोधन के द्िाराझतिमान ननयम
(15) को 15 (1) के रुप में पन
ु ि
ि मांक्रकत क्रकया गया एिं ननम्नानि
ु ार निीन ननयम 15(2) जोड़ा गया-
''15 (2) उपननयम (1) की कोई भी बात न्यायालय को ननयम 5 के अंतगित आिेदन को ननरस्त
करने अथिा ननयम 7 के अतगित आिेदन को इंकाररत करने के दौरान आिेदक को न्यायालय द्िारा ननयत,
क्रकए गए िमय के भीतर अपेक्षित न्यायालय फीि करने के सलए आिेदक को िमय प्रदान करने िे प्रिाररत
नि ं करे गी; और ऐिे भग
ु तान क्रकए जाने पर िाद को उि हदनांक को िंर्स्थत क्रकया जाना माना जाएगा
र्जि पर क्रक आिेदन हदया गया था |''

[15 क. न्यायालय-फीि के िदाय के सलए िमय का हदया जाना- ननयम 5, ननयम 7 या ननयम 15
की कोई बात न्यायालय को ननयम 5 के अधीन आिेदन को नामंजूर या ननयम 7 के अधीन आिेदन को
अनज्ञ
ु प्त करने िे इन्कार करते िमय इि बात िे नि ं रोकेगी क्रक िि आिेदक को अपेक्षित न्यायालय-फीि
का ऐिे िमय के भीतर िंदाय करने के सलए िमय दे , जो न्यायालय द्िारा ननयत क्रकया जाए या िमय-
िमय पर उिके द्िारा बढ़ाया जाए और ऐिा िंदाय क्रकए जाने पर और ननयम 15 2***
में ननहदि ष्ट खचों का
उि िमय के भीतर िंदाय क्रकए जाने पर यि िमझा जाएगा क्रक िाद उि तार ख को िंर्स्थत क्रकया गया
था र्जि तार ख को ननधिन व्यर्क्त के रूप में िाद लाने की अनज्ञ
ु ा के सलए आिेदन उपस्थावपत क्रकया गया

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था ।]

16. खचे- 3[ननधिन व्यर्क्त] के रुप में िाद लाने की अनज्ञ


ु ा के सलए आिेदन के और ननधिनता की
जांच करने के खचे िाद के खचे िोंगे ।

1. 1978 के अधधननयम िं. 104 की धारा 81 द्िारा (1.2.1977 िे) अन्तःस्थावपत क्रकया ।
2. 1988 के अधधननयम िं. 19 की धारा 3 और दि
ू र अनि
ु च
ू ी द्िारा लोप ।
3. 1976 के अधननयम िं. 104 की धारा 81 द्िारा (1.2.1977 िे) '' अक्रकं चन '' के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया ।

1
[17. ननधवन व्यस्तत द्िारा प्रनतिाद- क्रकिी ऐिे प्रनतिाद को जो मज
ु रा या प्रनतदािे का असभिचन
करने की िांछा करता िै , ननधिन व्यर्क्त के रुप में ऐिा दािा असभकधथत करने की अनज्ञ
ु ा द जा िकेगी
और इि आदे श में अन्तवििष्ट ननयम, जिां तक िो िके, उिे इि प्रकार लागू िोंगे, मानो िि िाद िो और
उिका सलणखत कथन िादपत्र िो ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


इलािाबाद उच्च न्यायालय िंशोधन- ननयम 17 के अंत में अंक्रकत पण
ू वि िराम को िटाकर ननम्न
शब्दों को और बढाया गया-
''और यहद उििे पर पि को िच
ू ना जार करनेकी अपेिा की जाए तो यि मानाजाएगा क्रक पर
पिकोद गई िच
ू ना इि अधधननयम के आशय के सलए िाद पत्रिोगी ।'' (1.10.0983)

18. ननधवन व्यस्ततयों के सलए मफ्


ु त विधधक िेिाओं की व्यिस्था करने की केन्रीय िरकार की
शस्तत— (1) इि आदे श के उपबन्धों के अधीन रिते िुए, केन्द्र य िरकार या राज्य िरकार उन व्यर्क्तयों के
सलए, र्जन्िें ननधिन व्यर्क्तयों के रूप में िाद लाने की द गई िै , मक्
ु त विधधक िेिाओं की व्यिस्था करने
के सलए ऐिे अनप
ु रू क उपबन्ध बना िकेगी जो िि ठीक िमझे ।
(2) उच्च न्यायालय उपननयम (1) में ननहदिष्ट ननधिन व्यर्क्तयों के सलए विधधक िेिाओं की
व्यिस्था करने के सलए केंद्र य िरकार या राज्य िरकार द्िारा बनाए गए अनप
ु रू क उपबंधों को कायािविंत
करने के सलए राज्य िरकार के पि
ू ि अनम
ु ोदन िे ननयम बना िकेगा ऐिी ननयमों के अन्तगित ऐिी विधधक
िेिाओं की ऐिी प्रकृनत तथा विस्तार और िे शते भी िोंगी र्जनके अधीन ऐिी िेिाएं उपलब्ध की जा
िकेगी तथा िे विषय िोंगे र्जनके बारे में और िे असभकरण भी िोंगे र्जनके माध्यम िे, ऐिी िेिाएं की
जाएंगी ।

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आदे श 34
स्थािर िम्पवि के बन्धकों के िम्बन्ध में िाद

1. परु ोबन्ध, वििय और मोचन के िादों के पक्षकार- इि िंहिता के उपबन्धों के अधीन रिते िुए,
बन्धक प्रनतभनू त में या मोचन के अधधकार में हितबद्ध िभी व्यर्क्त क्रकिी भी िाद में , जो बन्धक िे
िम्बधधत िो, पिकारों के तौर पर िंयोर्जत क्रकए जाएंगे ।
1. 1976 के अधननयम िं. 104 की धारा 81 द्िारा (1.2.1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया ।

स्पष्टीकरण- पवू ििक बंधकदार को िाद का पिकार बनाए बबना पार्श्चक बंधकदार परु ोबंध के सलए
या वििय के सलए िाद ला िकेगा और पार्श्चक बंधक का मोचन कराने के िाद में पवू ििक बंधकदार को
िंयोर्जत करना आिश्यक नि ं िै ।
2
[2. परु ोबन्ध िाद में प्रारस्म्िक डििी- (1) परु ोरूध िाद में यहद िाद िफल िो जाता िै तो
न्यायालय ऐिी प्रारर्म्भक डडिी पाररत करे गा जो-
(क) यि आदे श दे गी क्रक-
(i) बन्धक पर के मल
ू धन और ब्याज मद्धे,
(ii) िाद के ऐिे खचो मद्धे, यहद कोई िों, जो उिके पि में अधधननणीत क्रकए गए िों, तथा
(iii) अपनी बन्धक प्रनतभनू त की बाबत उि तार ख तक उिके द्िारा उधचत रुप िे उपगत अन्य
खचे, प्रभारों और व्ययों मद्धे उन पर ब्याज िहित,
जो कुछ िाद को ऐिे डडिी की तार ख पर शोध्य िै उिका लेखा सलया जाए; अथिा
(ख) ऐिी रकम घोवषत करे गी जो उि तार ख पर शोध्य िै , तथा
(ग) यि ननदे श दे गी क्रक-
(i) यहद प्रनतिाद ऐिे शोध्य पाई गई या शोध्य घोवषत रकम न्यायालय में यथार्स्थनत उि तार ख
िे र्जिको न्यायालय ने खण्ड (क) के अधीन सलए गए लेखा को पष्ु ट और प्रनत-िस्तािररत क्रकया िै या उि
तार ख िे र्जिको न्यायालय ने खण्ड (ख) के अधीन ऐिी रकम को घोवषत क्रकया िै छि माि के भीतर की
उि तार ख को र्जिे न्यायालय ननयत करे या उिके पि
ू ि जमा कर दे ता िै और तत्पश्चात ् ऐिी रकम जो
ननयम 10 में यथा उपबंधधत पश्चातिती
् खचो प्रभारों और व्ययों की बाबत शोध्य न्यायननणीत की जाए
और ऐिी रासशयों पर ऐिे पार्श्चक ब्याज के िहित जो ननयम 11 में उपबर्न्धत िै , न्यायालय में जमा कर
दे ता िै , तो िाद प्रनतिाद को उि व्यर्क्त को र्जिे प्रनतिाद ननयक्
ु त करे बन्धक िम्पवि। िम्बन्धी िे
िभी दस्तािेजों जो उिके कब्जे या शर्क्त में िै पररदि कर दे और यहद उििे ऐिी अपेिा की जाए तो िि
उि बन्धक िे और िाद द्िारा, या उििे व्यत्ु पन्न अधधकार के अधीन दािा करने िाले क्रकिी भी व्यर्क्त
द्िारा या जिां िाद व्यत्ु पन्न िक के आधार पर दािा करता िै ििां उन द्िारा र्जनिे व्यत्ु पन्न अधधकार के
अधीन िि दािा करता िै , िष्ृ ट बन्धक और िभी विपलगमों िे मक्
ु त करके िि िंपनत प्रनतिाद को उिके
खचे पर प्रनत अन्तररत कर दे और यहद आिश्यक िो तो प्रनतिाद का कब्जा भी िम्पवि पर करा दे तथा
(ii) यहद प्रारर्म्भक डडिी के अधीन या उिके द्िारा शोध्य पाई गई या शोध्य घोवषत रकम का
िदाय इि प्रकार ननयत की गई तार ख को या उिके पि
ू ि नि ं क्रकया जाता िै या प्रनतिाद पश्चातिती
् खचों,

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प्रभारों, व्ययों और ब्याज की बाबत ् शोध्य न्यायननणीत रकम को ऐिे िमय के भीतर जो न्यायालय ननयत
करे , िंदि करने में अिफल रिता िै तो िाद िम्पवि का मोचन कराने के िभी अधधकारों िे प्रनतिाद को
वििर्जित करने िाल अर्न्तम डडिी के सलए आिेदन करने का िकदार िोगा ।
(2) उपननयम (1) के अधीन शोध्य पाई गई या शोध्य घोवषत रकम के या पश्चातिती
् खचो,
प्रभारों, व्ययों और ब्याज की बाबत शोध्य न्यायननणीत रकम के िंदाय के सलए ननयत िमय को, अर्न्तम
डडिी पाररत करने के पि
ू ि क्रकिी भी िमय न्यायालय अच्छा िे तक
ु दसशित क्रकए जाने पर और ऐिे ननबन्धनों
पर जो न्यायालय द्िारा ननयत क्रकए जाए, िमय-िमय पर बढा िकेगा ।
(3) परु ोबंध िाद में जिां पार्श्चक बन्धकदार या िे व्यर्क्त र्जन्िें क्रकन्ि ं ऐिे बन्धकदारों िे िक
व्यत्ु पन्न िुआ िै या जो क्रकन्ि ं ऐिे बन्धकदारों के अधधकारों में प्रत्यािीन िैं, पिकारों के तौर पर िंयोर्जत
क्रकए गए िैं ििां प्रारर्म्भक डडिी िाद के पिकारों के अपने-अपने अधधकारों और दानयत्िों के न्यायननणियन
के सलए उपबन्ध उि र नत िे और उि प्ररूप में जो पररसशष्ट घ में के, यथार्स्थनत, प्ररूप िंख्यांक 9 या
प्ररुप िंख्यांक 10 में उपिणणित िैं, ऐिे फेरफारों िहित करे गी जो उि मामले की पररर्स्थनतयों िे अपेक्षित
िों ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


पटना उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (7.1.1936) - आदे श 34 के ननयम 2 (2) मे शब्द '' इिकी
स्िप्रेरणा िे अथिा '' को शब्द ''न्यायालय'' शब्द के उपरांत जोडा जाए ।
3. परु ोबन्ध िाद में अस्न्तम डििी- (1) जिां बन्धक िम्पवि का मोचन कराने के िभी अधधकारो िे
प्रनतिाद के वििर्जित करने िाल अर्न्तम डडिी पाररत क्रकए जाने के पि
ू ि प्रनतिाद ननयम 2 के उपननयम
(1) के अधीन अपने द्िारा शोध्य िभी रकमें न्यायालय में जमा कर दे ता िै ििां न्यायालय ऐिी अर्न्तम
डडिी प्रनतिाद के इि ननसमि क्रकए गए आिेदन पर पाररत करे गा जो-
(क) प्रारर्म्भक डडिी में ननहदि ष्ट दस्तािेजों को पररदि करने के सलए आदे श िाद को दे गी और
आिश्यक िो तो-
(ख) उक्त डडिी में यथाननहदि ष्ट बन्धक िम्पवि को प्रनतिाद के खचे पर प्रनत - अन्तररत करने के
सलए आदे श िाद को दे गी,
और यहद आिश्यक िो तो-
(ग) प्रनतिाद का कब्जा िम्पवि पर कराने के सलए भी आदे श िाद को दे गी ।
(2) जिां उपननयम (1) के अनि
ु ार िंदाय नि ं क्रकया गया िै ििां िाद द्िारा इि ननसमि क्रकए गए
आिेदन पर न्यायालय यि घोषणा करने िाल क्रक प्रनतिाद और उििे व्यत्ु पन्न अधधकार के द्िारा या
उिके अधीन दािा करने िाले िभी व्यर्क्त बन्धक िम्पवि का मोचन कराने के िभी अधधकार िे वििर्जित
क्रकए जाते िैं और यहद आिश्यक िो तो प्रनतिाद को यि आदे श भी दे ने िाल क्रक िि िम्पवि पर कब्जा
िाद को दे दे , अर्न्तम डडिी पाररत करे गा ।
(3) उपननयम (2) के अधीन अर्न्तम डडिी के पाररत क्रकए जाने पर िे िभी दानयत्ि र्जनके अधीन
प्रनतिाद बन्धक की बाबत िै या िाद के कारण िै उन्मोधचत कर हदए गए िमझे जाएंगे ।

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4. वििय के सलए िाद में प्रारस्म्िक डििी- (1) वििय के िाद में यहद िाद िफल िो जाता िै तो,
न्यायालय ऐिी प्रारर्म्भक डडिी पाररत करे गा जो ननयम 2 के उपननयम (1) के खण्ड (क), खण्ड (ख) और
खण्ड (ग) (i) में िणणित प्रभाि िाल िोगी और यि अनतररक्त ननदे श दे गा क्रक उिमें िणणित र नत िे िंदाय
करने में प्रनतिाद िे व्यनतिम िोन पर िाद यि ननदे श दे ने िाल अंनतम डडिी के सलए आिेदन करने का
िकदार िोगा क्रक बन्धक िंपनत या उिके पयािप्त भाग का वििय क्रकया जाए और वििय के आगम (उनमें
िे वििय के व्ययों को काटने के पश्चात ्) न्यायालय में जमा क राए जाएं और जो कुछ िाद को प्रारर्म्भक
डडिी के अधीन या उिके द्िारा शोध्य पाया गया या शोध्य घोवषत क्रकया गया िै उिका ऐिी रकम िहित
जो पश्चातिती
् खचो, प्रभारों, व्ययों और ब्याज की बाबत शोध्य न्यायननणीत की गई िो, िंदाय करने में
उपयोर्जत की जाएं और यहद कुछ बाकी रिे तो उिे प्रनतिाद को या ऐिे अन्य व्यर्क्तयों को दे हदया जाए
जो उिे प्राप्त करने के िकदार िों ।
(2) उपननयम (1) के अधीन शोध्य पाई गई शोध्य घोवषत रकम की या पश्चातिती
् खचो, प्रभारों,
व्ययों और ब्याज की बाबत शौध्य न्यायननणीत रकम के िंदाय के सलए ननयत िमय को, वििय के सलए
अर्न्तम डडिी पाररत करने के पि
ू ि क्रकिी भी िमय न्यायालय अच्छा िे तक
ु दसशित क्रकए जाने पर और ऐिे
ननबन्धनों पर जो न्यायालय द्िारा ननयत क्रकए जाए, िमय-िमय पर बढ़ा िकेगा ।

(3) परु ोबन्ध िाद के वििय की डििी पाररत करने की शस्तत- परु ोबन्ध िाद में यहद िाद िफल िो
जाता िै तो विलिण बन्धक की दशा में न्यायालय िाद के क्रकिी भी पिकार या बन्धक प्रनतभनू त या
मोचन के अधधकार में हितबद्ध क्रकिी भी अन्य व्यर्क्त की प्रेरणा पर (परु ोबन्ध की डडिी के बदले), िैिी
ि डडिी ऐिे ननबन्धनों पर पाररत कर िकेगा जो िि ठीक िमझे और उन ननबन्धनों के अन्तगित वििय
के व्ययों की पनू ति के सलए और ननबन्धनों का पालन िनु नर्श्चत करने के सलए न्यायालय द्िारा ननर्श्चत
यर्ु क्तयक्
ु त रकम का न्यायालय में ननिेप भी आता िै ।
(4) जिां पार्श्चक बन्धकदार या िे व्यर्क्त र्जन्िें क्रकन्ि ं ऐिे बन्धकदारों िे िक व्यत
ु पन्न िुआ िै
या जो क्रकन्ि ं ऐिे बन्धकदारों के अधधकारों में प्रत्यािीन िैं, वििय के सलए िाद में या परु ोबन्ध के िाद में ,
र्जिमें वििय का आदे श हदया गया िै , पिकारों के तौर पर िंयोर्जत क्रकए गए िैं ििा उपननयम (1) में
ननहदि ष्ट प्रारर्म्भक डडिी िाद के पिकारों के अपने-अपने अधधकारों और दानयत्िों के न्यायननणिय के सलए
उपबन्ध उि र नत िे और उि प्ररुप में जो पररसशष्ट घ में के, यथार्स्थनत, प्ररुप िख्यांक 9, प्ररुप िंख्यांक
10 या प्ररुप िंख्यांक 11 में उपिणणित िैं, ऐिे फेरफारों िहित करे गी जो उि मामले की पररर्स्थनतयों िे
अपेक्षित िों ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


इलािाबाद उच्च न्यायालय दारा िंशोधन (24.7.1926)-- आदे श 34 ननयम 4(2) में शब्द
''न्यायालय'' के उपरांत इिकी स्िप्रेरणा िे अथिा'' शब्दों को जोड़ा जाए ।
5. वििय के िाद में अस्न्तम डििी- (1) जिां ननयत हदन को या उिके पि
ू ि या इि ननयम के
उपननयम (3) के अधीन पाररत अर्न्तम डडिी के अनि
ु रण में क्रकए गए वििय की पर्ु ष्ट क्रकए जाने के पि
ू ि
क्रकिी भी िमय प्रनतिाद ननयम 4 के उपननयम (1) के अधीन अपने द्िारा शोध्य िभी रकमें न्यायालय में

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जमा कर दे ता िै ििां न्यायालय अर्न्तम डडिी या यहद ऐिी डडिी पाररत कर द गई िै तो, आदे श
प्रनतिाद के इि ननसमि क्रकए गए आिेदन पर पाररत करे गा जो-
(क) प्रारर्म्भक डडिी में ननहदि ष्ट दस्तािेजों को पररदि करने के सलए आदे श िाद को दे गा, और यहद
आिश्यक िो तो-
(ख) उक्त डडिी में यथाननहदि ष्ट बन्धक िम्पवि को अन्तररत करने के सलए आदे श िाद को दे गा,
और यहद आिश्यक िो तो-
(ग) प्रनतिाद का कब्जा िम्पवि पर कराने के सलए भी आदे श िाद को दे गा ।
(2) जिां बन्धक िम्पवि या उिके क्रकिी भाग का इि ननयम के उपननयम (3) के अधीन पाररत
डडिी के अनि
ु रण में वििय कर हदया गया िै ििां जब तक क्रक प्रनतिाद उपननयम (1) में िणणित रकम के
अनतररक्तत ऐिी रासश जो िय धन की उि रकम के पांच प्रनतशत के बराबर िो र्जिे िेता ने न्यायालय में
जमा क्रकया िै , िेता को दे ने के सलए न्यायालय में ननक्षिप्त नि ं कर दे ता न्यायालय इि ननयम के
उपननयम (1) के अधीन आदे श पाररत नि ं करे गा ।
जिां ऐिा ननदे श कर हदया गया िै िि िेता ियधन की उि रकम के जो उिने न्यायालय में जमा
की थी, पांच प्रनतशत के बराबर रासश के िहित उि रकम के प्रनतिंदाय के आदे श का िकदार िोगा (3) जिां
उपननयम (1) के अनि
ु ार िंदाय नि ं क्रकया गया िै ििां न्यायालय िाद द्िारा इि ननसमि क्रकए गए
आिेदन पर यि ननदे श दे ने िाल अर्न्तम डडिी पाररत करे गा क्रक बन्धक िम्पवि या उिके पयािप्त भाग का
वििय कर हदया जाए और वििय के आगमों िे ऐिी र नत िे बरता जाए जो ननयम 4 के उपननयम (1) में
उपबर्न्धत िै ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 82 द्िारा (1.2.1977 िे) ''अर्न्तम पि


ू ि
ि ती ननयम'' के
स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया |

6. वििय के िाद में बन्धक पर शोध्य बाकी रकम की ििल


ू ी- [ननयम 5] के अधीन क्रकए गए
5

क्रकिी भी वििय के शद्


ु ध आगम िाद को शद्
ु ध रकम का िंदाय करने के सलए अपयािप्त पाए जाते िैं ििां,
यहद बाकी रकम वििीत िम्पवि के अनतररक्त प्रनतिाद िे अन्यथा िैध रुप िे ििल
ू य िै तो, न्यायालय
िाद द्िारा क्रकए गए आिेदन पर ऐिी बाकी रकम के सलए डडिी पाररत कर िकेगा ।

7. मोचन के िाद में प्रारस्म्िक डििी- (1) मोचन के िाद में यहद िाद िफल िो जाता िै तो
न्यायालय ऐिी प्रारर्म्भक डडिी पाररत करे गा जो-
(क) यि आदे श दे गी क्रक-
(i) बन्धक पर के मल
ू धन और ब्याज मद्धे,
(ii) िाद के ऐिे खचों मद्धे, यहद कोई िों, जो उिके पि में अधधननणीत क्रकए गए िों, तथा
(iii) अपनी बन्धक-प्रनतभनू त की बाबत उि तार ख तक उिके द्िारा उधचत रुप िे उपगत अन्य
खचों, प्रभारों और व्ययों मद्धे उन पर ब्याज िहित,
जो कुछ प्रनतिाद की ऐिी डडिी की तार ख पर शोध्य िै उिका लेखा सलया जाए; अथिा

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(ख) ऐिी रकम घोवषत करे गी जो उन तार ख पर शोध्य िै ; तथा
(ग) यि ननदे श दे गी क्रक-
(i) यहद िाद ऐिे शोध्य पाई गई या शोध्य घोवषत रकम न्यायालय में , यथार्स्थनत, उि तार ख िे
र्जिको न्यायालय ने खण्ड (क) के अधीन सलए गए लेखा को पष्ु ट और प्रनतिस्तािररत क्रकया िै या उि
तार ख िे र्जिको न्यायालय ने खण्ड (ख) के अधीन ऐिी रकम को घोवषत क्रकया िै , छि माि के भीतर की
उि तार ख को र्जिे न्यायालय ननयत करे या उिके पि
ू ि जमा कर दे ता िै और तत्पशचात ् ऐिी रकम जो
ननयम 10 में यथा उपबर्न्धत पश्चातिती
् खचों, प्रभारों और व्ययों की बाबत शोध्य न्यायननणीत की जाए
और ऐिी रासशयों पर ऐिे पार्श्चक ब्याज िहित जो ननयम 11 में उपबर्न्धत िै , न्यायालय में जमा कर
दे ता िै तो प्रनतिाद िाद को या उि व्यर्क्त को र्जिे िाद ननयक्
ु त करे , बन्धक िम्पवि िंबध
ं ी िे िभी
दस्तािेजें जो उिके कब्जे या शर्क्त में िैं, पररदि कर दे और यहद उििे ऐिी अपेिा की जाए तो िि उि
बन्धक िे और प्रनतिाद द्िारा या उििे व्यत्ु पन्न अधधकार के अधीन दािा करने िाले क्रकिी भी व्यर्क्त
द्िारा, या जिां प्रनतिाद व्यत्ु पन्न िक के आधार पर दािा करता िै ििा उन द्िारा र्जनिे व्यत्ु पन्न
अधधकार के अधीन िि दािा करता िै , िष्ृ ट बन्धक और िभी विपलंगमों िे मक्
ु ि करके िम्पवि िाद को
उिके खचे पर प्रनत-अन्तररत कर दे और यहद आिश्यक िो तो िाद का कब्जा भी िम्पवि पर करा दे ; तथा
(ii) यहद प्रारर्म्भक डडिी के अधीन या उिके द्िारा शोध्य पाई गई या शोध्य घोवषत रकम का
िंदाय इि प्रकार ननयत की गई तार ख को या उिके पि
ू ि नि ं क्रकया जाता िै या िाद पश्चातिती
् खचों,
प्रभारों, व्ययों और ब्याज की बाबत शोध्य न्यायननणीत रकम को ऐिे िमय के भीतर जो न्यायालय ननयत
करे , िंदि करने में अिफल रिता िै तो प्रनतिाद -
(क) भोगबंधक, िशति वििय द्िारा बन्धक या ऐिे विलिण बन्धक िे, र्जिके ननबन्धन केिल
परु ोबन्ध के सलए न क्रक वििय के सलए, उपबन्ध करते िैं, सभन्न क्रकिी बन्धक की दशा में इि अर्न्तम
डडिी के सलए आिेदन करने का िकदार िोगा क्रक बन्धक िम्पवि का वििय कर हदया जाए, अथिा
(ख) िशति वििय द्िारा बन्धक या पि
ू ोक्त जैिे विलिण बन्धक की दशा में इि अर्न्तम डडिी के
सलए आिेदन करने का िकदार िोगा क्रक िाद िम्पवि का मोचन कराने के िभी अधधकारों िे वििर्जित कर
हदया जाए अथिा
(2) उपननयम (1) केअधीन शोध्य पाई गई या शोध्य घोवषत रकम के या पश्चातिती
् खचो, प्रभारों,
व्ययों और ब्याज की बाबत शोध्य न्यायननणीत रकम के िंदाय के सलए ननयत िमय को, यथार्स्थनत,
परु ोबन्ध या वििय के सलए अर्न्तम डडिी पाररत करने के पि
ू ि क्रकिी भी िमय न्यायालय अच्छा िे तक

दसशित क्रकए जाने पर और ऐिे ननबन्धनों पर जो न्यायालय द्िारा ननयत क्रकए जाए, िमय-िमय पर बढ़ा
िकेगा ।

8. मोचन के िाद में अस्न्तम डििी- (1) जिां बन्धक िम्पवि के मोचन कराने के िभी अधधकारों िे
िाद को वििर्जित करने िाल अर्न्तम डडिी पाररत क्रकए जाने के पि
ू ि या इि ननयम के उपननयम (3) के
अधीन पाररत अर्न्तम डडिी के अनि
ु रण में क्रकए गए वििय के पष्ु ट क्रकए जाने के पि
ू ि िाद ननयम 7 के
उपननयम (1) के अधीन अपने द्िारा शोध्य िभी रकमें न्यायालय में जमा कर दे ता िै ििां न्यायालय
अर्न्तम डडिी या यहद ऐिी डडिी पाररत कर द गयी िै , तो आदे श िाद के इि ननसमत क्रकए गए आिेदन

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पर पाररत करे गा, जो-
(क) प्रारर्म्भक डडिी में ननहदि ष्ट दस्तािेजों को पररदि करने के सलए आदे श प्रनतिाद को दे गा, और
यहद आिश्यक िो तो-
(ख) उक्त डडिी में यथाननहदि ष्ट बन्धक िम्पवि को िाद के खचे पर प्रनत-अन्तररत करने के सलए
आदे श प्रनतिाद को दे गा
और यहद आिश्यक िो तो-
(ग) िाद का कब्जा िम्पवि पर कराने के सलए भी आदे श प्रनतिाद को दे गा ।
(2) जिां बन्धक िम्पवि या उिके क्रकिी भाग का इि ननयम के उपननयम (3) के अधीन पाररत
डडिी के अनि
ु रण में वििय कर हदया गया िै ििां जब तक क्रक िाद उपननयम (1) में िणणित रकम के
अनतररक्त ऐिी रासश जो ियधन की उि रकम के पांच प्रनतशत के बराबर िो र्जिके िेता ने न्यायालय में
जमा क्रकया िै , िेता को दे ने के सलए न्यायालय में ननक्षिप्त नि ं कर दे ता, न्यायालय इि ननयम के
उपननयम (1) के अधीन आदे श पाररत नि ं करे गा ।
जिां ऐिा ननिेप कर हदया गया िै ििां िेता ियधन की उि रकम के जो उिने न्यायालय में जमा
की थी, पांच प्रनतशत के बराबर रासश के िहित उि रकम के प्रनतिंदाय के आदे श का िकदार िोगा ।
(3) जिां उपननयम (1) के अनि
ु ार िंदाय नि ं क्रकया गया िै ििां न्यायलय, प्रनतिाद द्िारा इि
ननसमि क्रकए गए आिेदन पर,-
(क) िशति वििय दारा बन्धक की दशा में या ऐिे विलिण बन्धक की दशा में जो इिमें इिके पि
ू ि
ननयम 7 में ननहदि ष्ट क्रकया गया िै , यि घोषणा करने िाल क्रक िाद और उििे व्यत्ु पन्न अधधकार के
अधीन दािा करने िाले िभी व्यर्क्त बन्धक िम्पवि का मोचन कराने के िभी अधधकार िे वििर्जित क्रकए
जाते िैं और यहद आिश्यक िो तो िाद को यि आदे श भी दे ने िाल क्रक िि बन्धक िम्पवि पर कब्जा
प्रनतिाद को दे दे , अर्न्तम डडिी पाररत करे गा अथिा
(ख) ऐिे क्रकिी अन्य बन्धक की दशा में जो भोगबन्धक नि ं िै , यि अंनतम डडिी पाररत करे गा क्रक
बन्धक िम्पवि या उिके पयािप्त भाग का वििय क्रकया जाए और वििय के आगम (उनमें िे वििय के
व्ययों को काटने के पश्चात ्) न्यायालय में जमा कराए जाएं और जो कुछ प्रनतिाद को शोध्य पाया गया िै
उिका िंदाय करने में उपयोर्जत क्रकए जाएं और यहद कुछ बाकी रिे तो उिे िाद को या ऐिे अन्य
व्यर्क्तयों को दे हदया जाए जो उिे प्राप्त करने के िकदार िों ।

1. 1929 के अधधननयम िं. 21 की धारा 5 द्िारा अन्त: स्थावपत क्रकया ।


2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 82 द्िारा (1.2.1977) िे ''अर्न्तम पि
ू ि
ि ती ननयम'' के
स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया |

1
[8 क. मोचन के िाद में बन्धक पर शोध्य बाकी रकम की ििल
ू ी- जिां [ननयम 8 के अधीन क्रकए
2

गए क्रकिी भी वििय के शद्


ु ध आगम प्रनतिाद को शोध्य रकम का िंदाय करने के सलए अपयािप्त पाए
जाते िैं ििां यहद बाकी रकम वििीत िम्पवि के अनतररक्त िाद िे अन्यथा िैध रुप िे ििल
ू य िै तो
न्यायालय 1[प्रनतिाद द्िारा ननष्पादन में क्रकए गए आिेदन पर] ऐिी बाकी रकम के सलए डडिी पाररत कर

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िकेगा ।]

9. डििी जिां कुछ िी शोध्य निीं पाया जाए या जिां बंधकदार को अनतिंदाय कर हदया गया िो-
यहद ननयम 7 में ननहदि ष्ट लेखा लेने पर यि प्रतीत िो क्रक प्रनतिाद को कुछ भी शोध्य नि ं िै या उिे
अनतिंदाय कर हदया गया िै तो न्यायालय इिमें इिके पि ू ि क्रकिी बात के िोते िुए भी यि ननदे श दे ने िाल
डडिी पाररत करे गा क्रक प्रनतिाद , यहद उििे ऐिी अपेिा की जाए तो िम्पनत को प्रनत-अन्तररत करे और
िाद को िि रकम दे जो उिको शोध्य पायी जाए और यहद आिश्यक िो तो िाद का कब्जा बन्धक
िम्पवि पर करा हदया जाएगा ।
[10. बन्धकदार के खचे जो डििी के पश्चात ् िुए िैं-- परु ोबन्ध, वििय या मोचन की दशा में जो
2

रकम बन्धकदार को द जानी िै उिका अर्न्तम रुप िे िमायोजन करने में न्यायालय तब के सििाय जब
क्रक िाद में के खचि की दशा में उिका आचरण ऐिा रिा िै जो उिे उनके सलए ननििररत कर दे ता िै ऐिे
िाद के खचे और अन्य खचे, प्रभार और व्यय, जो परु ोबन्ध, वििय या मोचन के सलए प्रारर्म्भक डडिी की
तार ख िे िास्तविक िंदाय के िमय तक उिके द्िारा िमधु चत रुप िे उपगत क्रकए गए िैं, बन्धक धन में
जोड़ दे गा :
[परन्तु जिां बन्धककताि बन्धक पर शोध्य रकम या ऐिी रकम जो न्यायालय की राय में िारत:
3

कम नि ं िै िाद के िंर्स्थत क्रकए जाने के पि


ू ि या के िमय ननविदि या ननक्षिप्त कर दे ता िै ििा उिे
बन्धकदार को िाद के खचे दे ने का आदे श नि ं हदया जाएगा और बन्धककताि िाद के अपने खचे को
बन्धकदार िे ििल
ू करने के सलए तब तक िकदार रिे गा जब तक क्रक न्यायालय ऐिे कारणों िे जो
लेखबद्ध क्रकए जाएंग,े अन्यथा ननदे श न दे ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 82 द्िारा (1.2.1977 िे) “उिके द्िारा क्रकए गए
आिेदन पर'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया ।
2. 1929 के अधधननयम िं. 21 की धारा 6 द्िारा मल
ू ननयम 10 और 11 के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया ।
3. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 82 द्िारा (1.2.1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया ।

[10क. अन्तःकालीन लाि का िंदाय करने के सलए बन्धकदार को ननदे श दे ने की न्यायालय की


2

शस्तत- जिां परु ोबन्ध के िाद में बन्धककताि ने बन्धक पर शोध्य रासश या ऐिी रासश जो न्यायालय की राय
में िारत: कम नि ं िै , िाद के िंर्स्थत क्रकए जाने के पि
ू ि या के िमय ननविदत या ननक्षिप्त कर द िै ििां
न्यायालय बन्धकदार को यि ननदे श दे गा क्रक िि बन्धककताि को िाद िंर्स्थत क्रकए जाने िे प्रारम्भ िोने
िाल अिधध के सलए अन्त: काल न लाभ का िंदाय करे ।

11. ब्याज का िंदाय- परु ोबंध, वििय या मोचन के िाद में पाररत क्रकिी भी डडिी में न्यायालय
जिां ब्याज िैध रुप िे ििल
ू य िो, यि आदे श दे िकेगा क्रक बन्धकदार को ननम्नसलणखत ब्याज हदया जाए,
अथाित-

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(क) प्रारर्म्भक डडिी के अधीन शोध्य पाई गई या शोध्य घोवषत रकम र्जि तार ख को या र्जि
तार ख के पि
ू ि बन्धककताि द्िारा या क्रकिी अन्य व्यर्क्त द्िारा जो बन्धक का मोचन करा रिा िै िंदि की
जाती िै , उि तार ख तक का-
(i) उि दर िे, जो मल
ू धन पर िंदेय िै या जिां ऐिी दर ननयत नि ं िै ििां ऐिी दर िे जो
न्यायालय यर्ु क्तयक्
ु त िमझे, उि मल
ू धन की रकम पर जो बन्धक पर शोध्य पाई गई िै , या शोध्य घोवषत
की गई िै , ब्याज,
3* * * *तथा

(iii) उि दर िे जो पिकारों में करार पाई गई िै या ऐिी दर के अभाि में 4[छि प्रनतशत प्रनतिषि
िे अनधधक ऐिी दर िे जो न्यायालय यर्ु क्तयक्
ु त िमझे,] उन खचों, प्रभारों और व्ययों मद्धे जो बन्धक-
प्रनतभनू त की बाबत बन्धकदार ने प्रारर्म्भक डडिी की तार ख तक उधचत रुप िे उपगत क्रकए िों और जो
बन्धक धन में जोड़ हदए गए िों, बन्धकदार को शोध्य न्यायननणीत रकम पर ब्याज,

2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 82 द्िारा (1.2.1977 िे) अन्त : स्थावपत क्रकया ।
3. 1956 के अधधननयम िं. 66 की धारा 14 द्िारा उपखण्ड (ii) का लोप ।
4. 1956 के अधधननयम िं. 66 की धारा 14 द्िारा कुछ शब्दों के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया ।

तथा
1
[(ख) ऐिी दर िे जो न्यायालय यर्ु क्तयक्
ु त िमझे, उन मल
ू रासशयों के जो खण्ड (क) में विननहदि ष्ट
िैं, उि खण्ड के अनि
ु ार िंगणणत योग पर ििल
ू की या िास्तविक िंदाय की तार ख का पार्श्चक ब्याज
।]]

12. पवू िवक बन्धक के अधीन िम्पवि का वििय- जिां कोई िम्पवि र्जिका वििय इि आदे श के
अधीन ननहदि ष्ट क्रकया गया िै , पवू ििक बन्धक के अधीन िै ििां न्यायालय पवू ििक बन्धकदार की ििमनत िे
यि ननदे श दे िकेगा क्रक ऐिे पवू ििक बन्धकदार को वििय के आगमों में िि हित दे कर जो वििीत िम्पवि
में उिका था, उि िम्पवि का उि बन्धक िे मक्
ु त करके वििय क्रकया जाए ।

1. 1966 के अधधननयम िं. 66 की धारा 14 द्िारा खण्ड (घ) के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया ।

13. आगमों का उपयोजन- (1) ऐिे आगम न्यायालय में लाए जाएंगे और ननम्न प्रकार िे
उपयोर्जत क्रकए जाएंगे,-
प्रथमत: वििय िे आनष
ु धं गक या क्रकिी प्रयनतत वििय में उधचत रुप िे उपगत व्ययों का िंदाय
करने में ;
द्वितीयत: पवू ििक बन्धक मद्धे जो कुछ पवू ििक बन्धकदार को शोध्य िै उिका और उिके बारे में
उधचत रूप िे उपगत खचोका िंदाय करने में ;
तत
ृ ीयत: र्जि बन्धक के पररणामस्िरूप वििय ननहदि ष्ट क्रकया गया था उि मद्धे शोध्य िभी ब्याज

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का और उि िाद में के र्जिमें क्रक वििय का ननदे श दे ने िाल डडिी पाररत की गई थी, खचों का िंदाय
करने में ,
चतथ
ु त
ि : उि बन्धक मद्धे शोध्य मल
ू धन का िदाय करने में ; तथा
अन्तत:, यहद कुछ अिसशष्ट रिे तो िि उि व्यर्क्त को जो यि िाबबत कर दे क्रक वििीत िम्पवि
में िि हितबद्ध िै , या यहद ऐिे व्यर्क्त एक िे अधधक िैं तो ऐिे व्यर्क्तयों को उि िम्पनत में अपने-
अपने हितों के अनि
ु ार या उनकी िंयक्
ु त रिीद पर दे द जाएगी ।
(2) इि ननयम की या ननयम 12 की क्रकिी भी बात के बारे में यि नि ं िमझा जाएगा क्रक िि
िम्पवि अन्तरण अधधननयम, 1882 (1882 का 4) की धारा 57 द्िारा प्रदि शर्क्तयों पर प्रभाि डालती िै

14. बन्धक िम्पवि का वििय कराने के सलए आिश्यक वििय का िाद- (1) जिां बन्धकदार ने
बन्धक के अधीन उद्भत
ू िोने िाले दािे की तर्ु ष्ट में धन के िंदाय के सलए डडिी असभप्राप्त कर ल िै ििां
िि बंधक के प्रितिन के सलए वििय का िाद िंर्स्थत करके ि बन्धक िम्पवि का वििय कराने का िकदार
िोगा, अन्यथा नि ं और िि आदे श 2 के ननयम 2 में अन्तवििष्ट क्रकिी बात के िोते िुए भी ऐिा िाद
िंर्स्थत कर िकेगा ।
(2) उपननयम (1) की कोई भी बात उन राज्यिेत्रों को लागू नि ं िोगी र्जन पर िम्पवि अन्तरण
अधधननयम, 1882 (1882 का 4) का विस्तारण नि ं क्रकया गया िै ।
[15. िक विलेखों के ननक्षेप द्िारा बंधक और िार- 2[(1)] इि आदे श के िे िभी उपबन्ध जो
िाधारण बन्धक को लागू िैं, िम्पवि अन्तरण अधधननयम, 1882 (1882 का 4) की धारा 58 के अथि में
िक विलेखों के ननिेप द्िारा बन्धक को और धारा 100 के अथि में भार को, जािं तक िो िके, लागू िोंगे ।
3
[(2) जिां डडिी में धन िंदाय करने का आदे श हदया जाता िै और उिके िंदाय में व्यनतिम क्रकए
जाने पर उि डडिी को स्थािर िम्पवि पर भाररत क्रकया जाता िै ििां िि रकम उि डडिी के ननष्पादन में
उि िम्पवि के वििय द्िारा ििल
ू की जा िकेगी ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


इलािाबाद उच्च न्यायालय िंशोधन- आदे श 34 ननयम 15 को ननयम 15 (1) के रुप में पड़ा जाए
और ननम्नानि
ु ार को ननयम 15(2) के रूप मे पढ़ा जाए-
“(2) जिााँ डडिी धन भग
ु तान का आदे श दे ती िै और भग
ु तान में चक
ू करने पर अचल िम्पवि पर
प्रभार अधधरोवपत करती िै तो उि डडिी के ननष्पादन में उि िम्पवि के वििय के द्िारा रासश ििल
ू की
जा िकेगी ।'' (17.1.1953)

आदे श 35
अन्तरासििाची

1. अन्तरासििाची िाद में िादपत्र- िर एक अन्तराननिाची िाद के िादपत्रों में , िादपत्रों के सलए

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आिश्यक अन्य कथनों के अनतररक्त,-
(क) यि कथन िोगा क्रक िाद प्रभारों या खचोंके सलए दािा करने िे सभन्न क्रकिी हित का दािा
वििाद की विषय-िस्तु में नि ं करता िै ;
(ख) प्रनतिाहदयों द्िारा पथ
ृ क्तः क्रकए गए दािे कधथत िोंगे; तथा
(ग) यि कथन िोगा क्रक िाद और प्रनतिाहदयों में िे क्रकिी भी प्रनतिाद के बीच कोई दस्
ु िर्न्ध नि ं
िै ।

1. 1929 के अधधननयम िं. 21 की धारा 7 द्िारा मल


ू ननयम 15 के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया

2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 82 द्िारा (1.2.1977 िे) ननयम 15 के उपननयम (1)
के रुप में पन
ु ःिख्याक्रकत क्रकया ।
3. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 82 द्िारा (1.2.1977 िे) अन्तःस्थावपत क्रकया ।

2. दािाकृत चीज का न्यायालय में जमा क्रकया जाना- जिां दािाकृत चीज ऐिी िै क्रक िि न्यायालय
में जमा की जा िकती िै या न्यायालय की असभरिा में रखी जा िकती िै ििां िाद िे अपेिा की जा िके
गी क्रक िि िाद में क्रकिी भी आदे श का िकदार िो िकने के पि
ू ि उिे ऐिे जमा कर दे या रख दे ।

3. प्रक्रिया जिां प्रनतिादी िादी पर िाद चला रिा िै- जिां अन्तरासभिाची िाद के प्रनतिाहदयों में िे
कोई प्रनतिाद , िाद पर ऐिे िाद की विषय-िस्तु की बाबत िास्ति में चला रिा िै ििां िि न्यायालय
र्जिमें िाद के विरुद्ध िाद लर्म्बत िै , उि न्यायालय द्िारा र्जिमें अन्तरासभिाची िाद िंर्स्थत क्रकया
गया िै , इविला हदए जाने पर िाद के विरुद्ध कायििाहियों को रोक दे गा और रोके गए िाद में िाद के जो
खचे िुए िों िे ऐिे िाद में उपबर्न्धत क्रकए जा िकेंगे, क्रकन्तु यहद और जिां तक िे उिे िाद में उपबर्न्धत
नि ं क्रकए जाते िैं तो और ििां तक अन्तरासभिाची िाद में उपगत उिके खचों में जोड़े जा िकेंगे ।

4. पिली िन
ु िाई में प्रक्रिया—(1) पिल िन
ु िाई में न्यायालय-
(क) घोवषत कर िकेगा क्रक िाद दािािाृ त चीज के िंबध
ं में प्रनतिाहदयों के प्रनत िभी दानयत्ि िे
उन्मोधचत िो गया िै , उिे उिके खचे अधधननणीत कर िकेगा और िाद में िे उिे खाररज कर िकेगा,
अथिा
(ख) यहद यि िमझता िै क्रक न्याय या िवु िधा की दृर्ष्ट िे ऐिा करना अपेक्षित िै तो िि िाद का
अर्न्तम ननपटारा िो जाने तक िभी पिकारों को बनाए रख िकेगा ।
(2) जिां न्यायालय का यि ननष्कषि िै क्रक पिकारों की स्िीकृनतयां या अन्य िाक्ष्य उिे ऐिा करने
के योग्य कर दे ते िैं ििां िि दािाकृत चीज पर के िक का न्यायननणियन कर िकेगा ।
(3) जिां पिकारों की स्िीकृनतयां न्यायालय को ऐिे न्यायननणियन करने के योग्य नि ं कर दे ती
ििां िि ननदे श दे िकेगा क्रक-
(क) पिकारों के बीच वििाद्यक या वििाद्यकों की विरचना की जाए और उनका विचारण क्रकया

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जाए, तथा
(ख) मल
ू िाद के बदले में या उिके अनतररक्त क्रकिी दािेदार को िाद बना हदया जाए और िाद
का मामल
ू र नत िे विचारण करने के सलए अग्रिर िोगा ।

5. असिकताव और असिधारी अन्तरासििाची िाद िंस्स्थत निीं कर िकेगा- इि आदे श की क्रकिी भी


बात के बारे में यि नि ं िमझा जाएगा क्रक िि असभकतािओं को अपने मासलकों पर, या असभधाररयों को
अपने भ-ू स्िासमयों पर, इि प्रयोजन िे िाद लाने को िमथि करती िै क्रक िे मासलक या भ-ू स्िामी ऐिे क्रकन्ि ं
व्यर्क्तयों िे जो ऐिे मासलकों या भ-ू स्िासमयों िे व्यत्ु पन्न अधधकार के अधीन दािा करने िाले व्यर्क्तयों िे
सभन्न िों, अन्रासभिचन करने के सलए वििश क्रकए जाएं ।

6. िादी के खचो का िार- जिां िाद उधचत रूप िे िंर्स्थत क्रकया गया िै ििां न्यायालय मल
ू िाद
के खचो के सलए उपबन्ध दािाकृत चीज पर उिका भार डाल कर या अन्य प्रभािी तौर पर कर िकेगा ।

आदे श 36
विशेष मामला
1. न्यायालय की राय के सलए मामले का कथन करने की शस्तत- (1) जो पिकार तथ्य या विधध
के क्रकिी प्रश्न के विननश्चय में हितबद्ध िोने का दािा करते िैं िे ऐिा सलणखत करार कर िकेंगे र्जिमें
ऐिे प्रश्न का मामले के रुप में कथन न्यायालय की राय के सलए िोगा और यि उपबन्ध िोगा क्रक ऐिे प्रश्न
के बारे में न्यायालय के ननष्कषि पर-
(क) िि धनरासश जो पिकारों द्िारा ननयत की गई िै या न्यायालय द्िारा अिधाररत की जाए
पिकारों में िे एक के द्िारा उनमें िे दि
ू रे को द जाएगी; अथिा
(ख) करार में विननहदि ष्ट कोई िम्पवि, चािे िि जंगम िो या स्थािर, पिकारों में िे एकके द्िारा
उनमें िे दि
ू रे को पररदि की जाएगी; अथिा
(ग) पिकारों में िे एक या अधधक पिकार करार में विननहदि ष्ट कोई दि
ू रा विसशष्ट कायि करें गे या
करने िे विरत रिें गे ।
(2) इि ननयम के अधीन कधथत िर मामला िमिती िंख्याक्रकत पैराओं मे बाटा जाएगा और उिमें
ऐिे तथ्यों का िंक्षिप्त कथन िोगा और ऐिी दस्तािेजों का विननदे श िोगा जो न्यायालय का उिके द्िारा
उठाए गए प्रश्न का विननश्चय करने में िमथि बनाने के सलए आिश्यक िों ।

2. विषय-िस्तु का मल्
ू य किां कधथत करना िोगा- जिां करार क्रकिी िंपवि पररदान के सलए या
क्रकिी विसशष्ट कायि को करने िे विरत रिने के सलए िै ििां जो िम्पवि पररदत की जाना िै या र्जिके
प्रनत विननहदि ष्ट कायि का ननदे श िै , उिका प्राक्कसलत मप
ू य करार में कधथत क्रकया जाएगा ।

3. करार िाद के रुप में फाइल क्रकया जाएगा और रस्जस्टर में चढ़ाया जाएगा- (1) यहद करार इिमें
इिके पि
ू ि अन्तवििष्ट ननयमों के अनि
ु ार विरधचत क्रकया गया िै [तो िि न्यायालय में आिेदन के िाथ
1

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फाइल क्रकया जा िकेगा र्जिको] ऐिा िाद ग्रिण करने की अधधकाररता िो, र्जि िाद की रकम या विषय-
िस्तु का मप
ू य करार में की रकम या विषय-िस्तु के मप
ू य के बराबर िै |
(2) जब 2[आिेदन] इि प्रकार फाइल कर हदया जाता िै तब िि िाद या िाहदयों के तौर पर
हितबद्ध िोने का दािा करने िाले पिकारों में िे एक या अधधक और प्रनतिाद या प्रनतिाहदयों के तौर पर
हितबद्ध उनमें िे अन्य या अन्यों के बीच के िाद के रूप में िंख्यांक्रकत क्रकया और रर्जस्टर मे चढाया
जाएगा और उि पिकार या उन पिकारों िे सभन्न, र्जिने या र्जन्िोंने 3[आिेदन] उपस्थावपत क्रकया िै ,
करार के िभी पिकारों को िच
ू ना द जाएगी ।

4. पक्षकार न्यायालय की अधधकाररता के अधीन िोंगे- जिां करार इि प्रकार फाइल कर हदया गया
िै ििां उिमें के पिकार न्यायालय की अधधकाररता के अधीन िोंगे और उिमें अन्तवििष्ट कथनों िे आबद्ध
िोंगे ।
5. मामले की िन
ु िाई और ननपटारा- (1) िि मामला मामल
ू र नत िे िंर्स्थत िाद के रुप में
िन
ु िाई के सलए रखा जाएगा और ऐिे िाद को इि िंहिता के उपबन्ध ििां तक लाग-ू िोंगे जिां तक क्रक िे
लागू िोने योग्य िैं ।
(2) जिां पिकारों, की पर िा करने के पश्चात ् ऐिा िाक्ष्य लेने िो पश्चात ्, जो न्यायालय ठीक
िमझे, न्यायालय का िमाधान िो जाता िै क्रक-
(क) करार उनके द्िारा िम्यक रूप िे ननष्पाहदत क्रकया गया था,
(ख) उिमें कधथत प्रश्न में उनका िदभािपण
ू ि हित िै , तथा
(ग) िि विननर्श्चत क्रकए जाने के योग्य िै ,
ििां न्यायालय उि पर अपना ननणिय िन
ु ाने के सलए ऐिी र नत िे अग्रिर िोगा जो िि मामल

िाद में िोता िै और ऐिे िन
ु ाए गए ननणिय के अनि
ु ार डडिी िोगी ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 83 द्िारा (1.2.1977 िे अन्त: स्थावपत क्रकया ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 83 द्िारा (1.2.1977 िे) ''करार'' के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया ।
3. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 83 द्िारा (1.2.1977 िे) ''उिे उपस्थावपत क्रकया िै '' के
स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया ।

[6. ननयम 5 के अधीन पाररत डििी की अपील न िोना- ननयम 5 के अधीन पाररत डडिी की कोई
1

अपील नि ं िोगी ।
आदे श 37
िंक्षक्षप्तप्रक्रिया

[1. िे न्यायालय और िादों के िगव स्जन्िें यि आदे श लागू िोना िै - (1) यि आदे श ननम्नसलणखत
3

न्यायालयों को लागू िोगा अथाित : -

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(क) उच्च न्यायालय, नगर सिविल न्यायालय और लघि
ु ाद न्यायालय; और
(ख) अन्य न्यायालय:
परन्तु उच्च न्यायालय खण्ड (ख) में ननहदि ष्ट न्यायालयों के बारे में , राजपत्र में अधधिच
ू ना द्िारा
इि आदे श के प्रितिन को िादों के केिल ऐिे प्रिगों तक ननबिर्न्धत कर िकेगा जो िि उधचत िमझे और
इि आदे श के प्रितिन के अधीन लाए जाने िाले िादों के प्रिगों को िमय - िमय पर राजपत्र में अधधिच
ू ना
द्िारा मामले की पररर्स्थनतयों में यथा अपेक्षित और ननबिर्न्धत कर िकेगा बढ़ा िकेगा या उिमें फेरफार
कर िकेगा जो िि उधचत िमझे ।
(2) उपननयम (1) के उपबन्धों के अधीन रिते िुए यि आदे श ननम्नसलणखत िादों के िगों को लागू
िोता िै अथाित ्-
(क) विननमय - पत्रों िुर्ण्डयों और िचन - पत्रों के आधार पर िाद;
(ख) ऐिे िाद र्जनमें िाद प्रनतिाद द्िारा िंदेय ऋण या धन के रुप में पररननधाररत मांग को
ब्याज िहित या ब्याज के बबना केिल ििल
ू करना चािता िै जो ननन्नसलणखत के आधार पर उद्भत
ू िोतािै ,
अथाित ्-
(i) सलणखत िंविदा; अथिा
(ii) ऐिी अधधननयसमनत र्जिमें ििल
ू की जाने िाल रासश कोई ननयत धनरासश िै या क्रकिी शार्स्त
िे सभन्न ऋणस्िरूप िै , अथिा
(iii) ऐिी प्रत्याभनू त र्जिमें केिल क्रकिी ऋण या पररननधािररत मांग के बारे में मल
ू धन के सलए
दािा क्रकया गया िै ।
[(iv) प्राप्तव्य के क्रकिी िमनद
1
ु े सशनत द्िारा िंर्स्थत प्राप्तव्यों की ििल
ू के सलए कोई िाद ।]

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 84 द्िारा (1.2.1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 84 द्िारा (1.2.1977 िे) ''परिाम्य सलखत पर'' शब्दों
का लोप ।
3. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 84 द्िारा (1.2.1977 िे) ननयम 1 के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया ।

1. 2012 के अधधननयम िं. 12 की अनि


ु च
ू ी द्िारा (1-2-2012 िे) अंतःस्थावपत क्रकया ।

[2. िंक्षक्षप्त िादों का िंस्स्थत क्रकया जाना--, (1) यहद िाद क्रकिी ऐिे िाद को र्जिे यि आदे श
1

लागू िोता िै इिके अधीन आगे चलाने की िांछा करता िै तो िि िाद ऐिा िादपत्र उपस्थावपत करके
िंर्स्थत क्रकया जा िकेगा र्जिमें ननम्नसलणखत बातें िोंगी, अथाित ्: -
(क) इि आशय का विननहदिष्ट प्रकथन क्रक िाद इि आदे श के अधीन फाइल क्रकया जाता िै ;
(ख) ऐिे क्रकिी अनत
ु ोष का दािा िादपत्र में नि ं क्रकया गया िै जो इि ननयम के विस्तार के
अन्तगित नि ं आता िै ; और

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1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 84 द्िारा (1.2.1977 िे) ननयम 2 के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया ।

(ग) िाद के शीषिक में िाद के िंख्यांक के ठीक नीचे ननम्नसलणखत अन्तलेखन क्रकया गया िै ,
अथाित ्;-
''(सिविल प्रक्रिया िंहिता, 1908 के आदे श 37 के अधीन)'' ।
(2) िाद का िमन पररसशष्ट ख के प्ररुप िंख्यांक 4 में या क्रकिी ऐिे अन्य प्ररुप में िोगा जो
िमय-िमय पर विहित क्रकया जाए ।

(3) प्रनतिाद उपननयम (1) में ननहदिष्ट िाद की प्रनतरिा तब तक नि ं करे गा जब तक क्रक िि
उपिंजात नि ं िोता िै और उपिंजात िोने में व्यनतिम िोने पर िादपत्र में के असभकथन स्िीकृत कर सलए
गए िमझे जाएंगे और िाद विननहदि ष्ट दर पर यहद कोई िो, डडिी की तार ख तक के ब्याज िहित क्रकिी
ऐिी रासश के सलए जो िमन में िणणित रासश िे अधधक न िो और खचे की ऐिी रासश के सलए जो उच्च
न्यायालय उि ननसमि बनाए गए ननयमों द्िारा िमय-िमय पर अिधाररत करे , डडिी पाने का िकदार िोगा
और ऐिी डडिी तत्कालननष्पाहदत की जा िकेगी ।]

[3. प्रनतिादी की उपिंजानत के सलए प्रक्रिया- (1) क्रकिी ऐिे िाद में र्जिे यि आदे श लागू िोता िै ,
1

िाद प्रनतिाद पर िादपत्र और उिके उपाबन्धों की एक प्रनत ननयम 2 के अधीन िमन के िाथ तामील
करे गा और प्रनतिाद ऐिी तामील के दि हदन के भीतर क्रकिी भी िमय स्ियं या प्ल डर द्िारा उपिंजात
िो िकेगा और दोनों दशाओं में िि उि पर िच
ू नाओं की तामील के सलए पता न्यायालय में फाइल करे गा ।
(2) जब तक अन्यथा आदे श न हदया गया िो तब तक ऐिे िभी िमन, िच
ू नाएं और अन्य
न्यानयक आदे सशकाएं जो प्रनतिाद पर तामील क्रकए जाने के सलए अपेक्षित िों उि पर िम्यक् रुप िे तामील
की गई तब िमझी जाएंगी जब िे उि पते पर छोड़ द गई िों जो ऐिी तामील के सलए उिके द्िारा हदया
गया था ।
(3) उपिंजात िोने के हदन ऐिी उपिंजानत की िच
ू ना प्रनतिाद द्िारा िाद के प्ल डर को या यहद
िाद स्िंय िाद लाता िै तो स्ियं िाद को ऐिी िच
ू ना पररदि करके या पिले िे डाक मििल
ू हदए गए, पत्र
द्िारा, यथार्स्थनत, िाद के प्ल डर के या िाद के पते पर भेजकर की जाएगी ।
(4) यहद प्रनतिाद उपिंजात िोता िै तो उिके पश्चात ् िाद प्रनतिाद पर ननणिय के सलए िमन
पररसशष्ट ख के प्ररुप िंख्यांक 4क में या ऐिे अन्य प्ररुप में जो िमय-िमय पर विहित क्रकया जाए, तामील
करे गा । ऐिा िमन तामील की तार ख िे दि हदन िे अन्यन
ू िमय में िापि क्रकए जाने िाला िोगा और
र्जिका िमथिन िाद-िे तक
ु और दािाकृत रकम का ित्यापन करने िाले शपथपत्र द्िारा क्रकया जाएगा और
उिमें यि कथन क्रकया गया िोगा क्रक उिके विश्िाि में िाद में इि ननसमि कोई प्रनतरिा नि ं िै ।
(5) प्रनतिाद ननणिय के सलए ऐिे िमन की तामील िे दि हदन के भीतर क्रकिी भी िमय शपथपत्र
द्िारा या अन्यथा ऐिे तथ्य प्रकट करते िुए जो प्रनतरिा करने के सलए उिे िकदार बनाने के सलए पयािप्त
िमझे जाएं, ऐिे िाद की प्रनतरिा की इजाजत के सलए ऐिे िमन के आधार पर आिेदन कर िकेगा और

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उिे प्रनतरिा करने की इजाजत बबना शति या ऐिे ननबंधनों पर जो न्यायालय या न्यायाधीश को न्यायिंगत
प्रतीत िों मंजरू की जा िकेगी:
परन्तु प्रनतरिा की इजाजत तब तक नामंजूर नि ं की जाएगी जब तक न्यायालय का यि िमाधान
नि ं िो जाता िै क्रक प्रनतिाद द्िारा प्रकट क्रकए गए तथ्य यि उपदसशित नि ं करते िैं क्रक उिके द्िारा कोई
िारिान ् प्रनतरिा की जानी िै या प्रनतिाद द्िारा की जाने के सलए आशनयत प्रनतरिा तव्ु छ या तंग करने
िाल िै :
परन्तु यि और क्रक जिां िाद द्िारा दािाकृत रकम का कोई भाग प्रनतिाद द्िारा उििे शोध्य िोना
स्िीकार कर सलया जाता िै तो िाद की प्रनतरिा की इजाजत तब तक मंजूर नि ं की जाएगी जब तक शोध्य
िोने के सलए इि प्रकार स्िीकार की गई रकम प्रनतिाद द्िारा न्यायालय में जमा न कर द जाए ।
1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 84 द्िारा (1.2.1977 िे) ननयम 3 के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया ।

(6) ननणिय के सलए ऐिे िमन की िन


ु िाई के िमय-
(क) यहद प्रनतिाद ने प्रनतरिा करने की इजाजत के सलए आिेदन नि ं क्रकया िै या यहद ऐिा
आिेदन क्रकया गया िै और नामंजरू कर हदया गया िै तो िाद तत्काल ननणिय का िकदार िो जाएगा; अथिा
(ख) यहद प्रनतिाद को पण
ू ि दािे या उिके क्रकिी भाग की प्रनतरिा करने की अनज्ञ
ु ा द जाती िै तो
न्यायालय या न्यायाधीश उिे ननदे श दे िकेगा क्रक िि ऐिी प्रनतभनू त ऐिे िमय के भीतर दें जो न्यायालय
या न्यायाधीश द्िारा ननयत क्रकया जाए, और न्यायालय या न्यायाधीश द्िारा विननहदि ष्ट िमय के भीतर
ऐिी प्रनतभनू त दे ने में या ऐिे अन्य ननदे शों का पालन करने में जो न्यायालय या न्यायाधीश द्िारा हदए गए
िों अिफल िोने पर िाद तत्काल ननणिय का िकदार िो जाएगा ।
(7) न्यायालय या न्यायाधीश, प्रनतिाद द्िारा पयािप्त कारण दसशित क्रकए जाने पर, प्रनतिाद को
उपिजात िोने या िाद की प्रनतरिा करने की इजाजत के सलए आिेदन करने में विलम्ब के सलए माफी दे
िकेगा ।]

4. डििी को अपास्त करने की शस्तत- डडिी दे ने के पश्चात ् यहद न्यायालय को विशेष पररर्स्थनतयों
के अधीन ऐिा करना यर्ु क्तयक्
ु त लगे तो िि ऐिे ननबन्धनों पर जो न्यायालय ठीक िमझे, डडिी को
अपास्त कर िकेगा और यहद आिश्यक िो तो उिका ननष्पादन रोक िकेगा या अपास्त कर िकेगा और
िमन पर उपजात िोने और िाद में प्रनतरिा करने की प्रनतिाद को इजाजत दे िकेगा ।

5. विननमय-पत्र आहद को न्यायालय के अधधकारों के पाि जमा करने का आदे श दे ने की शस्तत-


इि आदे श के अधीन क्रकिी भी कायििाि में न्यायालय आदे श दे िकेगा क्रक िि विननमय-पत्र, िुण्डी या
िचन-पत्र, र्जि पर िाद आधाररत िै , न्यायालय के अधधकार के पाि तत्काल जमा कर हदया जाए और यि
अनतररक्त आदे श दे िकेगा क्रक िभी कायििाहियां तब तक के सलए रोक द जाएं जब तक िाद उनके खचों
के सलए प्रनतभनू त न दे दे ।

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6. अनादृत विननमय-पत्र या िचन-पत्र के अप्रनतर्ग्िण का हटप्पण करने के खचव की ििल
ू ी- िर
अनादृत विननमय-पत्र या िचन-पत्र के धारक को ऐिे अनादरण के कारण उिके अप्रनतग्रिण या अिंदाय का
हटप्पण कराने में या अन्यथा उपगत व्ययों की ििल
ू के सलए िि उपचार िोंगे जो उिे ऐिे विननमय-पत्र
या िचन-पत्र की रकम की ििल
ू के सलए इि आदे श के अधीन िैं ।

7. िादों में प्रक्रकया- इि आदे श द्िारा जैिा उपबर्न्धत िै उिके सििाय, इिके अधीन िादों में
प्रक्रिया िि िोगी जो मामल
ू र नत िे िंर्स्थत क्रकए गए िादों में िोती िै ।

आदे श 38
ननणवय के पिले धगरफ्तारी और कुकी
ननणवय के पिले धगरफ्तारी

1. उपिंजानत के सलए प्रनतिनू त दे ने की मांग प्रनतिादी िे कब की जा िकेगी- जिां धारा 16 के


खण्ड (क) िे खण्ड (घ) तक में ननहदि ष्ट प्रकृनत के िाद िे सभन्न िाद के क्रकिी भी प्रिम में न्यायालय का
शपथपत्र द्िारा या अन्यथा यि िमाधान िो जाता िै क्रक-
(क) प्रनतिाद िाद को विलर्म्बत करने के या न्यायालय की क्रकिी आदे सशका िे बचने के या ऐिी
क्रकिी डडिी के जो उिके विरुद्ध पाररत की जाए ननष्पादन को बाधधत या विलर्म्बत करने के आशय िे-
(i) न्यायालय की अधधकाररता की स्थानीय िीमाओं िे फरार िो गया िै या उन्िें छोड गया िै ,
अथिा
(ii) न्यायालय की अधधकाररता की स्थानीय िीमाओं िे फरार िोने ि िाला िै या उन्िें छोड़ने ि
िाला िै , अथिा
(iii) अपनी िम्पवि को या उिके क्रकिी भाग को व्ययननत कर चक
ु ा िै या न्यायालय की
अधधकाररता की स्थानीय िीमाओं िे िटा चक
ु ा िै , अथिा
(ख) प्रनतिाद ऐिी पररर्स्थनतयों के अधीन 1[भारत] छोड़ने िाला िै , र्जनिे यि यर्ु क्तयक्
ु त
अधधिम्भाव्यता िै क्रक िाद क्रकिी ऐिी डडिी के जो िाद में प्रनतिाद के विरुद्ध पाररत की जाए, ननष्पादन
में उिके द्िारा बाधधत या विलर्म्बत िोगा या िो िकेगा
ििां न्यायालय, प्रनतिाद की धगरफतार के सलए और न्यायालय के िमि उिे इिसलए लाए जाने के
सलए क्रक िि यि िे तक
ु दसशित करे क्रक िि अपनी उपिंजानत के सलए प्रनतभनू त क्यों न दे , िारं ट ननकाल
िकेगा :
परं तु यहद प्रनतिाद कोई ऐिी रकम जो िाद के दािे को तष्ु ट करने के सलए पयािप्त िोने के तौर
पर िारण्ट में विननहदि ष्ट िै , उिी अधधकार को, र्जिे िारण्ट का ननष्पाद न्यस्त क्रकया गया िै , दे दे ता िै तो
िि धगरफ्तार नि ं क्रकया जाएगा और ऐिी रकम न्यायालय द्िारा तब तक जमा रखी जाएगी जब तक िाद
का ननपटारा न िो जाए या जब तक न्यायालय का आगे और आदे श न िो जाए ।

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1. 1951 के अधधननयम िं. 2 की धारा 3 दारा ''राज्य'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया ।

2. प्रनतिनू त- (1) जिां प्रनतिाद ऐिा िे तक


ु दसशित करने में अिफल रिता िै ििा न्यायालय या तो
उिे अपने विरुद्ध दािे के उिर के सलए पयािप्त धन या अन्य िम्पवि न्यायालय में जमा करने के सलए या
उि िमय तक जब तक िाद लर्म्बत रिता िै और जब तक ऐिी क्रकिी डडिी को जो उि िाद में उिके
विरुद्ध पाररत की जाए, तर्ु ष्ट नि ं की जाती, बल
ु ाए जाने पर क्रकिी भी िमय अपनी उपिंजानत के सलए
प्रनतभनू त दे ने के सलए आदे श दे िकेगा या उि रासश की बाबत जो प्रनतिाद ने अर्न्तम पि
ू ि
ि ती ननयम के
परन्तक
ु के अधीन जमा कर द िो ऐिा आदे श कर िकेगा जैिा िि ठीक िमझे ।
(2) प्रनतिाद की उपिंजानत के सलए िर प्रनतभू अपने को आबद्ध करे गा क्रक िि ऐिी उपिंजानत में
व्यनतिम िोने पर धन की ऐिी कोई रासश दे गा र्जिे दे ने के सलए प्रनतिाद िाद में आहदष्ट क्रकया जाए ।
3. उन्मोधचत क्रकए जाने के सलए प्रनतिू के आिेदन पर प्रक्रिया- (1) प्रनतिाद की उपिंजानत के सलए
प्रनतभू उि न्यायालय िे र्जिमें िि ऐिा प्रनतभू िुआ िै , अपनी बाध्यता िे उन्मोधचत क्रकए जाने के सलए
क्रकिी भी िमय आिेदन कर िकेगा ।
(2) ऐिा आिेदन क्रकए जाने पर न्यायालय प्रनतिाद को उपिंजात िोने के सलए िमन करे गा या
यहद िि ठीक िमझे तो उिकी धगरफतार के सलए प्रथम बार ि िारण्ट ननकाल िकेगा ।
(3) िमन या िारण्ट के अनि
ु रण में प्रनतिाद को उपिंजात िोने पर या उिके स्िेच्छया अभ्यपिण
करने पर न्यायालय प्रनतभू को उिकी बाध्यता िे उन्मोधचत करने के सलए ननदे श दे गा और नई प्रनतभनू त
लाने की अपेिा प्रनतिाद िे करे गा ।

4. जिां प्रनतिादी प्रनतिनू त दे ने में या नई प्रनतिनू त लाने में अिफल रिता िै ििां प्रक्रिया- जिां
प्रनतिाद ननयम 2 या ननयम 3 के अधीन क्रकिी आदे श का अनप
ु ालन करने में अिफल रिता िै ििां
न्यायालय उिे सिविल कारागार को तब तक के सलए िप
ु द
ु ि कर िकेगा जब तक िाद का विननश्चय न िो
जाए या जिां प्रनतिाद के विरुद्ध डडिी पाररत कर द गई िै ििां जब तक डडिी तष्ु ट न कर द जाए:
परन्तु कोई भी व्यर्क्त कारागार में इि ननयम के अधीन क्रकिी भी दशा में छि माि िे अधधक की
अिधध के सलए और यहद िाद की विषय-िस्तु की रकम या मप
ू य पचाि रुपए िे अधधक नि ं िै तो छि
िप्ताि िे अधधक की अिधध के सलए ननरुद्ध नि ं क्रकया जाएगा :
परन्तु यि भी क्रक ऐिे आदे श का उिके द्िारा अनप
ु ालन कर हदए जाने के पश्चात ् कोई भी व्यर्क्त
इि ननयम के अधीन कारागार में ननरुद्ध नि ं रखा जाएगा ।

ननणवय के पिले कुकी


3. िम्पवि पेश करने के सलए प्रनतिनू त दे ने की अपेक्षा प्रनतिादी िे कब की जा िकेगी- (1) जिां
िाद के क्रकिी भी प्रिम में न्यायालय का शपथपत्र द्िारा या अन्यथा यि िमाधान िो जाता िै क्रक प्रनतिाद
ऐिी क्रकिी डडिी के जो उिके विरुद्ध पाररत की जाए, ननष्पादन को िाधधत या ननलर्म्बत करने के आशय
िे---
(क) अपनी परू िम्पवि या उिके क्रकिी भाग को व्ययननत करने ि िाल िै , अथिा

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(ख) अपनी परू िम्पवि या उिके क्रकिी भाग को न्यायालय की अधधकाररता की स्थानीय िीमाओं
िे िटा दे ने ि िाला िै ,
ििां न्यायालय, प्रनतिाद को ननदे श दे िकेगा क्रक उि िमय के भीतर जो न्यायालय द्िारा ननयत
क्रकया जाएगा या तो िि उक्त िम्पवि को या उिके मप
ू य को या उिके ऐिे भाग को जो डडिी को तष्ु ट
करने के सलए पयािप्त िो, अपेिा की जाने पर पेश करने के सलए और न्यायालय के व्ययनाधीन रखने के
सलए, ऐिी रासश की जो आदे श में विननहदिष्ट की जाए, प्रनतभनू त दे या उपिंजात िो और यि िे तक
ु दसशित
करे क्रक उिे प्रनतभनू त क्यों न दे नी चाहिए ।
(2) र्जि िम्पवि की कुकी की अपेिा की गई िै उिको और उिके प्राक्कसलत मप
ू य को जब तक
न्यायालय अन्यथा ननहदष्ट न करे , िाद विननहदिष्ट करे गा ।
(3) न्यायालय आदे श में यि ननदे श भी दे िकेगा क्रक इि प्रकार विननहदि ष्ट की गई परू िम्पवि या
उिके क्रकिी भाग की िशति कुकी की जाए ।
1
(4) यहद इि ननयम के उपननयम (1) के उपबंधों का अनप
ु ालन क्रकए बबना कुकी का आदे श क्रकया
जाता िै तो ऐिी कुकी शन्
ू य िोगी ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 85 द्िारा (1.2.1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया ।

6. जिां िे तक
ु दसशवत निीं क्रकया जाता या प्रनतिनू त निीं दी जाती ििां कुकी- (1) जिां प्रनतिाद
न्यायालय द्िारा ननयत िमय के भीतर यि िे तक
ु दसशित करने में अिफल रिता िै क्रक उिे प्रनतभनू त क्यों
नि ं दे ना चाहिए या अपेक्षित प्रनतभनू त दे ने में अिफल रिता िै ििां न्यायालय यि आदे श दे िकेगा क्रक
विननहदिष्ट िम्पवि या उिका ऐिा भाग जो क्रकिी ऐिी डडिी को तष्ु ट करने के सलए पयािप्त प्रतीत िोता िै
जो िाद में पाररत की जाए, कुकि कर सलया जाए ।
(2) जिां प्रनतिाद ऐिा िे तक
ु दसशित करता िै या अपेक्षित प्रनतभनू त दे दे ता िै और विननहदि ष्ट
िम्पवि या उिका कोई भाग कुकि कर सलया गया िै ििां न्यायालय कुकी का प्रत्यािरण क्रकए जाने के सलए
आदे श दे गा या ऐिा अन्य आदे श दे गा जो िि ठीक िमझे ।

7. कुकी करने की रीनत- असभव्यक्त रुप िे जैिा उपबर्न्धत िै उिके सििाय, कुकी उि र नत िे की
जाएगी जो डडिी के ननष्पादन में िम्पवि की कुकी के सलए उपबंधधत िै ।

1
[8. ननणवय के पि
ू व कुकव की गई िम्पवि के दािे का न्यायननणवयन- जिां कोई दािा ननणिय के पि
ू ि
कुकि की गई िम्पवि के सलए क्रकया गया िै ििां ऐिे दािे का न्यायननणियन उि र नत िे क्रकया जाएगा जो
धन के िंदाय के सलए डडिी के ननष्पादन में कुकि की गई िम्पवि के दािों के न्यायननणियन के सलए इिमें
इिके पि
ू ि उपबर्न्धत िैं ।

9. प्रनतिनू त दे दी जाने पर या बाद खाररज कर हदए जाने पर कुकी का िटा सलया जाना- जिां
ननणिय के पि
ू ि कुकी के सलए आदे श क्रकया जाता िै ििां जब प्रनतिाद अपेक्षित प्रनतभनू त, उि प्रनतभनू त के

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िहित जो कुकी के खचों के सलए दे दे ता िै या जब िाद खाररज कर हदया जाता िै तब न्यायालय कुकी के
प्रत्यािरण के सलए आदे श दे गा ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 85 द्िारा (1.2.1977 िे) ननयम 8 के स्थान
पर प्रनतस्थावपत क्रकया ।

10. ननणवय िे पिले की गई कुकी िे न तो पर - व्यस्ततयों के अधधकार प्रिावित िोंगे और न


वििय के सलए आिेदन करने िे डििीदार िस्जवत िोगा- ननणिय िे पिले की गई कुकी िे न तो उन
व्यर्क्तयों के जो िाद के प िकार नि ं िैं अधधकारों पर जो कुकी के पि
ू ि ि विद्यमान थे प्रभाि पडेगा और
न प्रनतिाद के विरुद्ध डडिी धारण करने िाला कोई व्यर्क्त ऐिी कुकी के अधीन िम्पवि का वििय ऐिी
डडिी के ननष्पादन में कराने का आिेदन करने िे िर्जित िोगा ।

11. ननणवय िे पिले कुकव की गई िम्पवि डििी के ननष्पादन में पन


ु : कुकव निीं की जाएगी- जिां
िम्पवि इि आदे श के उपबंधो के आधार पर की गई कुकी के अधीन िो और िाद के पि में तत्पश्चात ्
डडिी पाररत कर द जाए ििां ऐिी डडिी के ननष्पादन के सलए क्रकए गए आिेदन में उि िम्पवि को पन
ु :
कुकि करने के सलए आिेदन करना आिश्यक नि ं िोगा ।

1
[11क. कुकी को लागू िोने िाले उपबन्ध- (1) इि िंहिता के ऐिे उपबन्ध जो डडिी के ननष्पादन
में की गई कुकी को लागू िोते िैं ननणिय के पि
ू ि की गई ऐिी कुकी को जिां तक िो िके लागू िोंगे जो
ननणिय के पश्चात ् ननयम 11 के उपबंधों के आधार पर जार रिती िै ।
(2) क्रकिी ऐिे िाद में जो व्यनतिम के कारण खाररज कर हदया जाता िै ननणिय के पि
ू ि की गई
कुकी केिल इि तथ्य के कारण पन
ु : प्रिनतित नि ं िोगी क्रक व्यनतिम के कारण िाद खाररज करने का
आदे श अपास्त कर हदया गया िै और िाद प्रत्याविनतित कर हदया गया िै ।

12. कृवष - उपज ननणवय के पि


ू व कुकव निीं िोगी- इि आदे श की कोई भी बात क्रकिी कृषक के कब्जे
में की क्रकिी कृवष - उपज की कुकी के सलए आिेदन करने को िाद को प्राधधकृत करने िाल या ऐिी उपज
को कुकि करने या पेश करने का आदे श दे ने को न्यायालय को िशक्त करने िाल नि ं िमझी जाएगी |

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 85 दारा (1.2.1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया ।

13. लघि
ु ाद न्यायालय स्थािर िम्पवि को कुकव निीं करे गा- इि आदे श की कोई भी बात स्थािर
िम्पवि की कुकी के सलए आदे श करने क क्रकिी लघि
ु ाद न्यायालय को िशक्त करने िाल नि ं िमझी
जाएगी ।

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आदे श 39
अस्थायी व्यादे श और अन्तिवती आदे श
अस्थायी व्यादे श

1. िे दशाएं स्जनमें अस्थायी व्यादे श हदया जा िकेगा- जिां क्रकिी िाद में शपथपत्र द्िारा या
अन्यथा यि िाबबत कर हदया जाता िै क्रक-
(क) िाद में वििादग्रस्त क्रकिी िम्पवि के बारे में यि खतरा िै क्रक िाद को कोई भी पिकार उिका
दव्ु यियन करे गा, उिे नक
ु िान पिुंचाएगा या अन्य िंिांत करे गा या डडिी के ननष्पादन में उिका िदोष
वििय कर हदया जाएगा, अथिा
(ख) प्रनतिाद अपने लेनदारों को 4[कपट- िंधचत] करने की दृर्ष्ट िे अपनी िम्पवि को िटाने या
व्ययननत करनेकी धमकी दे ता िै या आशय रखता िैं,
3
[(ग) प्रनतिाद िाद को िाद में वििादग्रस्त क्रकिी िम्पवि िे बेकब्जा करने की या िाद को उि
िम्पवि के िम्बन्ध में अन्यथा िनत पिुंचाने की धमकी दे ता िै ,]
ििां न्यायालय ऐिे कायि को अिरुद्ध करने के सलए आदे श द्िारा अस्थायी व्यादे श दे िकेगा या
िम्पवि को दव्ु यिनयत क्रकए जाने, नक
ु िान पिुंचाए जाने, अन्य िंिांत क्रकए जाने, वििय क्रकए जाने, िटाए
जाने या व्ययननत क्रकए जाने िे 4[अथिा िाद को िाद में वििादग्रस्त िम्पविने िे बेकब्जा करने या िाद
को उि िम्पवि के िंबध
ं में अन्यथा िनत पिुंचाने िे] रोकने और ननिाररत करने के प्रयोजन िे ऐिे अन्य
आदे श जो न्यायालय ठीक िमझे, तब तक के सलए कर िकेगा जब तक िाद का ननपटारा न िो जाए या
जब तक अनतररक्त आदे श न दे हदए जाएं ।

1. 1926 के अधधननयम िं. 1 की धारा 4 द्िारा अन्तःस्थावपत क्रकया ।


2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 86 द्िारा ''कपट -िंधचत'' के सलए (1.2.1977 िे)
प्रनतस्थावपत क्रकया ।
3. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 86 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया ।
4. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 86 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्त : स्थावपत क्रकया ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (7.12.1929 ि 12.8.1944) – खण्ड (क) के शब्दों ‘’या
डडिी के ननष्पादन में उिका िंदोष वििय कर हदया जाएगा’’ एिं अंनतम पद में शब्द ‘’अन्यिंिात क्रकए
जाने के उपरांत आने िाले शब्द ‘’विियक्रकए जाने’’ को र्जन्िें क्रक पि
ू ि के िंशोधन 7.12.1929 के द्िारा
विलोवपत कर हदया गया था को पन
ु स्
ि थावपत कर हदया गया ।
पटना उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (8.10.1937) – खण्ड (क) में अंग्रज
े ी पाठ में आए शब्द ‘’…’’
के स्थान पद शब्द ‘’…’’ को प्रनतस्थावपत क्रकया गया ि ननयम (1) के उपरांत ननम्नानि
ु ार पंरतक
ु जोडे गए-
परं तु ऐिा कोई अस्थाई व्यादे श नि हदया जाएगा यहद यि विननहदि ष्ट अनत
ु ोष अधधननयम (1877
का अधधननयम 1) की धारा 56 के प्रािधानों का उपलंघन करे :

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परं तु अन्यथा यि क्रक वििय अथिा वििय की पर्ु ष्ट को प्रिाररत करने अथिा आधधपत्य को
पररदान करने िे प्रिाररत करने के सलए व्यादे श उि मामले के सििाए नि ं हदया जाएगां जिां क्रक आिेदक
विधधपि
ू क
ि िंपवि पर दािा अथिा वििय या कुकी कायििाि के सलए डडिी का ननष्पादन करने िाले
न्यायालय के िमि आपवि प्रस्तत
ु नि ं कर िकता िै ओर विधधपि
ू क
ि प्रस्तत
ु नि ं की जा िकती थी ।
1. सिविल प्रक्रिया िंहिता िशोधन अधधननयम, 1999 की धारा 30 के द्िारा उपननयम (2)
अंतःस्थावपत था अब सिविल प्रक्रकया िंहिता िंशोधन अधधननयम, 2002 की धारा 16 के द्िारा
1999 के िंशोधन अधधननयम की धारा 30 को लप्ु त क्रकया जा चक
ु ा िै ।

2. िंग की पन
ु रािवृ ि या जारी रखना अिरुद्ध करने के सलए व्यादे श- (1) िंविदा भंग करने िे या
क्रकिी भी प्रकार की अन्य िनत करने िे प्रनतिाद को अिरूद्ध करने के क्रकिी भी िाद में , चािे िाद में
प्रनतकर का दािा क्रकया गया िो या न क्रकया गया िो, िाद प्रनतिाद को पररिाहदत िंविदा भंग या िनत
करने िे या कोई भी िंविदा भंग करने िे या तद्रप
ु िनत करने िे, जो उिी िंविदा िे उद्भत
ू िोती िो या
उिी िम्पवि या अधधकार िे िम्बर्न्धत िो, अिरूद्ध करने के अस्थायी व्यादे श के सलए न्यायालय िे
आिेदन, िाद प्रारम्भ िोने के पश्चात ् क्रकिी भी िमय और ननणिय के पिले या पश्चात ् कर िकेगा ।
(2) न्यायालय ऐिा व्यादे श, ऐिे व्यादे श की अिधध के बारे में , लेखा रखने के बारे में , प्रनतभनू त दे ने
के बारे में ऐिे ननबन्धनों पर, या अन्यथा, जो न्यायालय ठीक िमझे, आदे श द्िारा दे िकेगा ।
1
* * * *
म.प्र. राज्य िंशोधन – 1984 का अधधननयम िंख्यांक 29 के द्िारा सिविल प्रक्रिया िंहिता (म.प्र.
िंशोधन) अधधननयम, 1984 के द्िारा र्जिका प्रकाशन म.प्र. राजपत्र (अिाधारण) में हदनांक 14.8.1984
को पष्ृ ठ 2018-21 पर क्रकया गया के द्िारा मल
ू अधधननयम की पिल अनि
ु च
ू ी के आदे श 39 में
(क) ननयम 2 के उपननयम (2) में , ननम्नसलणखत परं तक
ु अंत: स्थावपत क्रकया जाए,
अथाित :-
‘’परं तु –
(क) जिां विननहदिष्ट अनत
ु ोष अधधननयम, 1963 (1963 का िं. 47) की धारा 38 और धारा 41 के
उपबंधों को दृर्ष्टगत रखते िुए शाश्ित व्यादे श नि हदया जा िकता, अथिा
(ख) राज्य के कामकाज के िंबध ं में लोक िेिा तथा पद पर ननयक् ु त क्रकए गए क्रकिी व्यर्क्त के,
र्जिके अंतगित राज्य िरकार के स्िासमत्ि के या उिके ननयंत्रणाधीन क्रकिी भी कंपनी या
ननगम का कमिचार आता िै , स्थानांतरण, ननलंबन, रें क में अिननत, अननिायि िेिाननिवृ ि,
पदच्यनु त, िेिा िे िटाया जाना या अन्यथा िेिा िमार्प्त या उििे कायिभार लेने िंबध
ं ी क्रकिी
आदे श के प्रितिन को रोकने के सलए, अथिा
(ग) राज्य के कामकाज के िंबध
ं में लोक िेिा तथा पद पर ननयक्
ु त क्रकए गए क्रकिी व्यर्क्त के,
र्जिके अंतगित राज्य िरकार के स्िासमत्ि के या उिके ननयंत्रणाधीन क्रकिी भी कंपनी या
ननगम का कमिचार आता िै ,विरूद्ध लंबबत या की जाने के सलए आशनयत क्रकिी अनश
ु ािननक
कायििाि को या क्रकिी प्रनतकूल प्रबबर्ष्ट के पररणाम को रोकने के सलए अथिा
(घ) क्रकिी ननिािचन को अिरूद्ध करने के सलए, अथिा

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(ङ) िरकार द्िारा क्रकए जाने के सलए आशनयत क्रकिी नीलाम को या क्रकए गए क्रकिी नीलाम के
पररणाम को अिरूद्ध करने के सलए अथिा भ-ू राजस्ि के तौर पर ििल
ू य क्रकन्ि शोध्यों की
ििल
ू िे तु कायििाहियों को जब तक क्रक यथोधचत प्रनतभनू त न द जाए, रोकने के सलए ऐिा कोई
व्यादे श नि ं हदया जाएगा और इन उपबंधो के उपलंघन में व्यादे श के सलए हदया गया कोई भी
आदे श यन्ू य िोगा ।‘’
उत्तर प्रदे श राज्य िंशोधन (1.1.1977 ि 3.10.1981) ननयम 2 के उपननयम (2) में ननम्न परं तक

अंत: स्थावपत क्रकया गया –
(क) जिां विननहदिष्ट अनत
ु ोष अधधननयम, 1963 (1963 का िं. 47) की धारा 38 और धारा 41 के
उपबंधो को दृर्ष्टगत रखते िुए शाशित व्यादे श नि ं हदया जा िकता, अथिा
(ख) क्रकिी कमिचार शािकीय कमिचार को शासमल करते िुए, के स्थानांतरण, ननलंन, रें क में
अिननत, अननिायि िेिाननिवृ ि, पदच्यनु त, िेिा िे िटाया जाना या अन्यथा िेिा िमार्प्त या
उििे कायि भार लेने िबंध क्रकिी आदे श के प्रितिन को रोकने के सलए, अथिा
(ग) राज्य के कमिचार के विरूद्ध लंबबत या की जाने के सलए आशनयत क्रकिी अनश
ु ािननक
कायििाि को या क्रकिी प्रनतकूल प्रविर्ष्ट के पररणाम को रोकने के सलए, अथिा
(घ) क्रकिी शैिणणक िंस्था विश्ि विद्यालय अथिा िोिायट को शासमल करते िुए के आंतररक प्रबंध
अथिा कायि कलापों को प्रभावित करने के सलए
(ङ) क्रकिी ननिािचन को अिरूद्ध करने के सलए, अथिा
(च) िरकार द्िारा क्रकए जाने के सलए आशनयत क्रकिी नीलाम को या क्रकए गए क्रकिी नीलाम के
पररणाम को अिरूद्ध करने के सलए जब तक क्रक यथोधचत प्रनतभनू त न द जाए ।
(छ) अथिा भ-ू राजस्ि के तौर पर ििल
ू य क्रकन्ि शोध्यों की ििल
ू िे तु कायििाहियों को अिरूद्ध
करने के सलए जब तक क्रक यथोधचत प्रनतभनू त न द जाए, अथिा ।
(ज) ऐिे क्रकिी मामले में र्जिमें तत्िमय प्रित्ृ त क्रकिी विधध के अधीन विश्ि विद्यालय के चांिलर
को ननदे श क्रकया जा िकता िै
यि क्रक उे िा कोई व्यादे श नि ं हदया जाएगा और इन प्रािधानों के उपलंघन में हदया गया कोई
व्यादे श शन्
ू य िोगा ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 86 द्िारा (1-2-1977 िे उपननयम (3) और (4) का
लोप ।

1
[2क. व्यादे श की अिज्ञा या िंग का पररणाम- (1) ननयम 1 या ननयम 2 के अधीन हदए गए
क्रकिी व्यादे श या क्रकए गए अन्य आदे श की अिज्ञा की दशा में र्जन ननबन्धनों पर व्यादे श हदया गया था
या आदे श क्रकया गया था उनमें िे क्रकिी ननबन्धन के भंग की दशा में व्यादे श दे ने िाला या आदे श करने
िाला न्यायालय या ऐिा कोई न्यायालय, र्जिे िाद या कायििाि अन्तरनत की गई िै , यि आदे श दे िकेगा
क्रक ऐिी अिज्ञा या भंग करने के दोषी व्यर्क्त की िम्पवि कुकि की जाए और यि भी आदे श दे िकेगा क्रक
िि व्यर्क्त तीन माि िे अनधधक अिधध के सलए सिविल कारागार में तब तक ननरुद्ध क्रकया जाए जब तक

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क्रक इि बीच में न्यायालय उिकी ननमर्ुि क्त के सलए ननदे श न दे दे ।
(2) इि अधधननयम के अधीन की गई कोई कुकी एक िषि िे अधधक िमय के सलए प्रिि
ृ नि ं
रिे गी, र्जिके खत्म िोने पर यहद अिज्ञा या भंग जार रिे तो कुकि की गई िम्पवि का वििय क्रकया जा
िकेगा और न्यायालय आगमों में िे ऐिा प्रनतकर जो िि ठीक िमझे उि पिकार को हदलिा िकेगा
र्जिकी िनत िुई िो, और यहद कु छ बाकी रिे तो उिे उिके िकदार पिकार िो दे गा ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 86 द्िारा (1.2.1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया ।
उच्च न्यायालय िंशोधन
पटना उच्च न्यायालय िंशोधन – उपननयम (1) में शब्दों ि अंक ‘’ननयम2’’ के उपरांत ‘’या धारा 151’’
शब्दों ि अंको को प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
3. व्यादे श दे ने िे पिले न्यायालय ननदे श दे गा क्रक विरोधी पक्षकार को िच
ू ना दे दी जाए- ििां के
सििाय जिां िि प्रतीत िोता िै क्रक व्यादे श दे ने का उद्दे श्य विलम्ब द्िारा ननष्फल िो जाएगा न्यायालय िब
मामलों में व्यादे श दे ने िे पि
ू ि यि ननदे श दे गा क्रक व्यादे श के आिेदन की िच
ू ना विरोधी पिकार को दे द
जाए :
[परन्तु जिां यि प्रस्थापना की जाती िै क्रक विरोधी पिकार को आिेदन की िच
1
ू ना हदए बबना
व्यादे श दे हदया जाए ििां न्यायालय अपनी ऐिी राय के सलए क्रक विलम्ब द्िारा व्यादे श दे ने का उद्दे श्य
विफल िो जाएगा, कारण असभसलणखत करे गा और आिेदक िे यि अपेिा कर िकेगा क्रक िि-
(क) व्यादे श दे ने िाला आदे श क्रकए जाने के तरु न्त पश्चात ् व्यादे श के सलए आिेदन की प्रनत
ननम्नसलणखत के िाथ
(i) आिेदन के िमथिन में फाइल क्रकए गए शपथपत्र की प्रनत;
(ii) िादपत्र की प्रनत; और
(iii) उन दस्तािेजों की प्रनतयां, र्जि पर आिेदक ननभिर करता िै ,
विरोधी पिकार को दे या उिे रर्जस्र कृत डाक द्िारा भेजे, और
(ख) उि तार ख को र्जिको ऐिा व्यादे श हदया गया िै या उि हदन के ठीक अगले हदन को यि
कथन करने िाला शपथपत्र फाइल करे क्रक पि
ू ोक्त प्रनतयां इि प्रकार दे द गई िै या भेज द गई िैं ।]

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 86 द्िारा (1.2.1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 86 द्िारा (1.2.1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया ।

[3क. व्यादे श के सलए आिेदन का न्यायालय द्िारा तीि हदन के िीतर ननपटाया जाना- जिां कोई
2

व्यादे श विरोधी पिकार को िच


ू ना हदए बबना हदया गया िै ििां न्यायालय आिेदन को ऐिी तार ख िे
र्जिको व्यादे श हदया गया था, तीि हदन के भीतर ननपटाने का प्रयाि करे गा और जिां िि ऐिा करने में
अिमथि िै ििां िि ऐिी अिमथिता के सलए कारण असभसलणखत करे गा ।
उच्च न्यायालय िंशोधन
इलािाबाद उच्च न्यायालय िंशोधन (3.10.1981)- इि िंशोधन के द्िारा ननयम 3-क को लप्ु त

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क्रकया गया ।
4. व्यादे श के आदे श को प्रिािोन्यत
ू त, उिमें फेरफार या उिे अपास्त क्रकया जा िकेगा- व्यादे श के
क्रकिी भी आदे श को उि आदे श िे अिन्तष्ु ट क्रकिी पिकार द्िारा न्यायालय िे क्रकए गए आिेदन पर उि
न्यायालय द्िारा प्रभािोन्यक्
ू त, उिमें फेरफार या उिे अपास्त क्रकया जा िकेगा;
1
[परन्तु यहद अस्थायी व्यादे श के सलए क्रकिी आिेदन में या ऐिे आिेदन का िमथिन करने िाले
क्रकिी शपथपत्र में क्रकिी पिकार ने क्रकिी तार्त्िक विसशर्ष्ट के िंबध
ं में जानते िुए समथ्या या भ्रामक
कथन क्रकया िै और विरोधी पिकार को िच ू ना हदए बबना व्यादे श हदया गया था तो न्यायालय व्यादे श को
उि दे शा में रद्द कर दे गा र्जिमें िि असभसलणखत क्रकए जाने िाले कारणों िे यि िमझता िै क्रक न्याय के
हित में ऐिा करना आिश्यक नि ं िै :
परन्तु यि और क्रक जिां क्रकिी पिकार को िन
ु िाई का अििर हदए जाने के पश्चात ् व्यादे श के
सलए आदे श पाररत क्रकया गया िै ििां ऐिे आदे श को उि पिकार के आिेदन पर तब तक प्रभािोन्यक्
ू त,
उिमें फेरफार या अपास्त नि ं क्रकया जाएगा जब तक पररर्स्थनतयों के बदल जाने िे ऐिा प्रभािोन्यक्
ू त,
फेरफार या अपास्त क्रकया जाना आिश्यक न िो गया िो या जब तक न्यायालय का यि िमाधान नि ं िो
जाता िै क्रक आदे श िे उि पिकार को अिम्यक् कष्ट िुआ िै ।]

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 86 द्िारा (1.2.1977 िे) अन्त : स्थावपत क्रकया ।

राज्य िंशोधन
म. प्र. राज्य द्िारा िंशोधन (14.8.1984) - ननयम 4 में -
(एक) शब्द ''उि न्यायालय द्िारा'' के पश्चात ् शब्द ''असभसलणखत क्रकए जाने िाले कारणो िे या
स्िप्रेरणा िे'' अत : स्थावपत क्रकए जाएाँ;
(दो) अन्त में ननम्नसलणखत परं तक
ु अंत : स्थावपत क्रकया जाए अथाित ् : -
''परं तु यहद िाद के क्रकिी भी प्रिम पर न्यायालय को यि प्रतीत िोता िै क्रक िि पिकार र्जिके
पि में व्यादे श या आदे श विद्यमान िै कायििाि का क्रकया जाना विलबबत कर रिा िै या न्यायालय की
कायििाि का अन्यथा दरु
ु पयोग कर रिा िै तो िि व्यादे श के सलए आदे श को अपास्त करे गा ।''
उिर प्रदे श राज्य द्िारा िंशोधन (1.1.1977) - उिर प्रदे श अधधननयम (1976 का 57) के द्िारा
ननयम 4 में -
(एक) शब्द '' उि न्यायालय द्िारा '' के पश्चात ् शब्द '' असभसलणखत क्रकए जाने िाले कारणों िे या
स्िप्रेरणा िे '' अंत : स्थावपत क्रकए जाएाँ
(दो) अन्त मे ननम्नसलणखत परं तक
ु अंत : स्थावपत क्रकया जाए अथाित ् : -
''परं तु यहद िाद के क्रकिी भी प्रिम पर न्यायालय को यि प्रतीत िोता िै क्रक िि पिकार, र्जिके
पि मे व्यादे श या आदे श विद्यमान िै कायििाि का क्रकया जाना विलंबबत कर रिा िै या न्यायालय की
कायििाि का अन्यथा दरु
ु पयोग कर रिा िै तो िि व्यादे श के सलए आदे श को अपास्त करे गा ।''
5. ननगम को ननहदष्ट व्यादे श उिके अधधकाररयों पर आबद्धकर िोगा- क्रकिी ननगम को ननहदष्ट
व्यादे श न केिल ननगम पर ि आबद्धकर िोगा बर्पक ननगम के उन िभी िदस्यों और अधधकाररयों पर भी

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आबद्धकर िोगा र्जनके िैयर्क्तक कायि को अिरूद्ध करनेके सलए िि चािा गया िै ।

अतंित
व ी आदे श
6. अन्तररम वििय का आदे श दे ने की शस्तत- न्यायालय िाद के क्रकिी भी पिकार के आिेदन पर
ऐिे आदे श में नासमत क्रकिी भी व्यर्क्त द्िारा और ऐिी र नत िे और ऐिे ननबन्धनों पर जो न्यायालय
ठीक िमझे क्रकिी भी ऐिी जंगम िम्पवि के वििय का आदे श दे िकेगा जो ऐिे िाद की विषय - िस्तु िै
या ऐिे िाद में ननणिय के पिले कुकि की गई िै और जो शीघ्रतया और प्रकृत्या ियशील िै या र्जिकी
बाबत क्रकिी अन्य न्यायिंगत और पयािप्त िे तक
ु िे यि िांछनीय िो क्रक उिका तरु न्त वििय कर हदया
जाए ।

7. िाद की विषय - िस्तु का ननरोध परररक्षण, ननरीक्षण आहद- (1) न्यायालय िाद के क्रकिी भी
पिकार िकार के आिेदन पर और ऐिे ननबन्धनों पर जो िि ठीक िमझे -
(क) क्रकिी भी ऐिी िम्पवि के जो ऐिे िाद की विषय - िस्तु िै या र्जिके बारे में उि िाद में
कोई प्रश्न उद्भत
ू िो िकता िो, ननरोध, िषपरररिण या ननर िण के सलए आदे श कर िकेगा
(ख) ऐिे िाद के क्रकिी भी अन्य पिकार के कब्जे में की क्रकिी भी भसू म या भिन में पि
ू ोक्त िभी
या क्रकन्ि ं प्रयोजनों के सलए प्रिेश करने को क्रकिी भी व्यर्क्त को प्राधधकृत कर िकेगा, तथा
(ग) पि
ू ोक्त िभी या क्रकन्ि ं प्रयोजनों के सलए क्रकन्ि ं भी ऐिे नमन
ू ों का सलया जाना या क्रकिी भी
ऐिे प्रेिण या प्रयोग का क्रकया जाना, जो परू जानकार या िाक्ष्य असभप्राप्त करने के प्रयोजन के सलए
आिश्यक या िमीचीन प्रतीत िो, प्राधधकृत कर िकेगा ।
(2) आदे सशका के ननष्पादन-िम्बन्धी प्रिेश करने के सलए इि ननयम के अधीन प्राधधकृत व्यर्क्तयों
को यथािश्यक पररितिन िहित लागू िोंगे ।

8. ऐिे आदे शों के सलए आिेदन िच


ू ना के पश्चात ् क्रकया जाएगा- (1) िाद द्िारा ननयम 6 और
ननयम 7 के अधीन आदे श के सलए आिेदन िाद के िंर्स्थत क्रकए जाने के पश्चात ् क्रकिी भी िमय 1***

क्रकया जा िकेगा ।
(2) प्रनतिाद द्िारा ऐिे ि आदे श के सलए आिेदन उपिजात िोने के पश्चात ् क्रकिी भी 2***
िमय क्रकया जा िकेगा ।
[(3) इि प्रयोजन के सलए क्रकए गए आिेदन पर ननयम 6 और ननयम 7 के अधीन आदे श करने के
3

पि
ू ि न्यायालय उिकी िच
ू ना विरोधी पिकार को दे ने का ननदे श ििां के सििाय दे गा जिां यि प्रतीत िो क्रक
ऐिा आदे श करने का उद्दे श्य विलम्ब के कारण ननष्फल िो जाएगा ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 86 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया गया ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 86 द्िारा (1-2-1977 िे) ''प्रनतिाद को िच
ू ना दे ने के
पश्चात ्'' शब्दो का लोप |
3. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 88 द्िारा (1-2-1977 िे) ''िाद को िच
ू ना दे ने के

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पश्चात ्'' शब्दो का लोप ।

9. जो िसू म िाद की विषय-िस्तु िै उि पर पक्षकार का तरु न्त कब्जा कब कराया जा िकेगा- जिां
िरकार को राजस्ि दे ने िाल भसू म या वििय के दानयत्ि के अधीन भ-ू धनृ त िाद की विषय-िस्तु िै ििां,
यहद िि पिकार जो ऐिी भसू म या भ-ू धनृ त पर कब्जा रखता िै , यथार्स्थनत, िरकार राजस्ि या भ-ू धनृ त के
स्ित्िधार को शोध्य भाटक दे ने में उपेिा करता िै और पररणामत: ऐिी भसू म या भ-ू धनृ त के वििय के
सलए आदे श हदया गया िै तो उि िाद के क्रकिी भी अन्य पिकार का जो ऐिी भसू म या भ-ू धनृ त में हितबद्ध
िोने का दािा करता िै , उि भसू म या भ-ू धनृ त पर तरु न्त कब्जा वििय के पिले के शोध्य राजस्ि या भाटक
का िंदाय कर हदए जाने पर (और न्यायालय के वििेकानि
ु ार प्रनतभनू त िहित या रहित) कराया जा िकेगा;
और इि प्रकार िंदि रकम को उि पर ऐिी दर िे ब्याज िहित जो न्यायालय ठीक िमझे,
न्यायालय अपनी डडिी में व्यनतिमी के विरुद्ध अधधननणीत कर िकेगा या इि प्रकार िदि रकम को उि
पर ऐिी दर िे ब्याज िहित जो न्यायालय आदे श करे , लेखाओं के क्रकिी ऐिे िमायोजन में , िाद में पाररत
डडिी द्िारा ननहदष्ट क्रकया गया िो, प्रभाररत कर िकेगा ।

10. न्यायालय में धन, आहद का जमा क्रकया जाना- जिां िाद की विषय-िस्तु धन या कोई ऐिी
अन्य चीज िै , र्जिका पररदान क्रकया जा िकता िै , और उिका कोई भी पिकार यि स्िीकार करता िै क्रक
िि ऐिे धन या ऐिी अन्य चीज को क्रकिी अन्य पिकार के न्यािी के रुप में धारण क्रकए िुए िै या िि
अन्य पिकार की िै या अन्य पिकार को शोध्य िै ििां न्यायालय अपने अनतररक्त ननदे श के अधीन रिते
िुए यि आदे श दे िकेगा क्रक उिे न्यायालय में जमा क्रकया जाए या प्रनतभनू त िहित या रहित ऐिे अर्न्तम
नासमत पिकार को पररदि क्रकया जाए ।

आदे श 40
ररिीिरों की ननयस्ु तत

1. ररिीिरों की ननयस्ु तत--- (1) जिां न्यायालय को यि न्यायिंगत और िवु िधापण


ू ि प्रतीत िोता िै
ििां न्यायालय आदे श द्िारा-
(क) क्रकिी िंपवि का ररिीिर चािे डडिी के पिले या पशचात ् ननयक्
ु त कर िकेगा;
(ख) क्रकिी िंपवि पर िे क्रकिी व्यर्क्त का कब्जा या असभरिा िटा िकेगा;
(ग) उिे ररिीिर के कब्जे, असभरिा या प्रबन्ध के िप
ु द
ु ि कर िकेगा; तथा
(घ) िादों के लाने और िादों में प्रनतरिा करने के बारे में और िंपवि के आपन, प्रबन्ध िंरिण,
परररिण और िध
ु ार उिके भाटकों और लाभों के िंग्रिण, ऐिे भाटकों और लाभों के उपयोजन और व्ययन
तथा दस्तािेजों के ननष्पादन के सलए िभी ऐिी शर्क्तयां जो स्ियं स्िामी की िैं, या उन शर्क्तयों में िे
ऐिी शर्क्त जो न्यायालय ठीक िमझे, ररिीिर को प्रदि कर िकेगा ।
(2) इि ननयम की क्रकिी भी बात िे न्यायालय को यि प्राधधकार नि ं िोगा क्रक िि क्रकिी ऐिे
व्यर्क्त का िंपवि पर िे, कब्जा या असभरिा िटा दे र्जिे िटाने का ितिमान अधधकार िाद के क्रकिी भी

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पिकार को नि ं िै ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (10.7.1943)- ननयम 1 के उपननयम (2) में शब्द'' क्रकिी
ऐिे व्यर्क्त'' शब्द के उपरात कोमास्थावपत कर शब्द जोिाद मे पिकार पि न िो ''जोड़ा गया ।

2. पाररश्रसमक- न्यायालय ररिीिर की िेिाओं के सलए पाररश्रसमक के रुप में द जाने िाल रकम को
िाधारण या विशेष आदे श द्िारा ननयत कर िकेगा ।
3. कतवव्य- इि प्रकार ननयक्
ु ि क्रकया गया िर ररिीिर---
(क) िंपवि की बाबत िि जो कु छ प्राप्त करे गा उिका िम्यक् रुप िे लेखा दे ने के सलए ऐिी
प्रनतभनू त (यहद कोई िो) दे गा जो न्यायालय ठीक िमझे,
(ख) अपने लेखाओं को ऐिी अिधधयों पर और ऐिे प्ररूप में दे गा जो न्यायालय ननहदष्ट करे
(ग) अपने द्िारा शोध्य रकम ऐिे िंदि करे गा जो न्यायालय ननहदष्ट करे ; तथा
(घ) अपने जानबझ
ू कर क्रकए गए व्यनतिम या अपनी घोर उपेिा िे िंपवि को िुई क्रकिी िानन के
सलए उिरदायी िोगा ।

4. ररिीिर के कतवव्यों को प्रिनतवत कराना- जिां ररिीिर-


(क) अपने लेखाओं को ऐिी अिधधयों पर और ऐिे प्ररुप में जो न्यायालय ननहदि ष्ट करे , दे ने में
अिफल रिता िै , अथिा
(ख) अपने द्िारा शोध्य रकम ऐिे दे ने में अिफल रिता िै जो न्यायालय ननहदष्ट करे , अथिा
(ग) अपने जानबझ
ू कर क्रकए गए व्यनतिम या अपनी घोर उपेिा िे िंपवि की िानन िोने दे ता िै ,
ििां न्यायालय उिकी िंपवि के कुकि क्रकए जाने के सलए ननदे श दे िकेगा और ऐिी िंपवि का
वििय कर िकेगा और आगमों का उपयोजन उिके द्िारा शोध्य पाई गई क्रकिी भी रकम की या उिके
द्िारा की गई क्रकिी भी िानन की प्रनतपनू ति करने के सलए कर िकेगा और यहद कुछ बाकी रिे तो उिे
ररिीिर को दे गा ।

5. कलतटर कब ररिीिर ननयत


ु त क्रकया जा िकेगा- जिां िंपवि िरकार को राजस्ि दे ने िाल भसू म
िै या ऐिी भसू म िै र्जिके राजस्ि का िमनद
ु े शनया मोचन कर हदया गया िै और न्यायालय का यि विचार
िै क्रक िंबधं धत व्यर्क्तयों के हितों की असभिद्
ृ धध कलक्टर के प्रबन्ध द्िारा िोगी िि न्यायालय कलक्टर की
ििमनत िे उिे ऐिी िंपवि का ररिीिर ननयक्
ु त कर िकेगा ।

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आदे श 41
मल
ू डिक्रियों की अपीलें

1. अपील का प्ररुप/ज्ञापन के िाथ तया-तया हदया जाएगा—(1) िर अपील अपीलाथी या उिके प्ल डर
द्िारा िस्तािररत ज्ञापन के रुप में की जाएगी और न्यायालय में या ऐिे अधधकार के िमि जो न्यायालय
इि ननसमि ननयक्
ु त करे , उपस्थावपत की जाएगी । [ज्ञापन के िाथ ननणिय की प्रनत िोगी] :
1

2
[परन्तु जिााँ दो या दो िे अधधक िादों का िाथ-िाथ विचारण क्रकया गया िै और उनके सलए एक
ि ननणिय हदया गया िै और उि ननणिय के अन्तगित क्रकिी डडिी के विरुद्ध चािे उिी अपीलाथी द्िारा या
सभन्न अपीलाधथियों द्िारा दो या दो िे अधधक अपीलें फाइल की गयी िैं ििां अपील न्यायालय एक िे
अधधक प्रनतयां फाइल करने िे असभमर्ु क्त दे िकेगा ।]

1. 1999 के अधधननयम िं. 46 की धारा 31 द्िारा (1-7-2002िे) कनतपय शब्दों के स्थान पर


प्रनतस्थावपत ।
2. 1999 के अधधननयम िं. 46 की धारा 31 द्िारा (1-7-2002िे) कनतपय शब्दों के स्थान पर
प्रनतस्थावपत ।

(2) ज्ञापन की अंतिवस्तए


ु -ं उि डडिी पर र्जिकी अपील की जाती िै , आिेप के आधार ज्ञापन में
क्रकिी तकि या वििरण के बबना िंक्षिप्त : और िसु भन्न शीषिकों में उपिणणित िोंगे और ऐिे आधार कम िे
िंख्यांक्रकत िोंगे ।

1
[(3) जिां अपील धन के िंदाय के सलए क्रकिी डडिी के ननष्पादन में क्रकए गए क्रकिी आदे श के
विरुद्ध िै ििां अपीलाथी इतने िमय के भीतर र्जतना अपील न्यायालय अनज्ञ
ु ात करे अपील में वििादग्रस्त
रकम ननक्षिप्त करे गा या उिके िंबध
ं में ऐिी प्रनतभनू त दे गा जो न्यायालय ठीक िमझे ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- (1) आदे श 41 के ननयम 1 के उपननयम (1) में परन्तक

के उपरात ननम्न स्पष्ट करण जोडा गया -
''स्पष्टीकरण---- उपरोक्त ननयम 1 के उपननयम (1) में ननहदि ष्ट र्जिकी की प्रनतसलवप मे आदे श 20
के ननयम 6- क के उपननयम (2) मे खंड (ख) में यथा प्रािधाननत मानी जाने िाल डडिी भी आएगी ।''
(22-10-94)
(2) ननयम 1 के उपननयम (2) में ननम्नानि
ु ार परं तक
ु जोड़ा गया िै -
''परन्तु यि क्रक न्यायालय इिके अधीन क्रक न्यायालय द्िारा प्रदान क्रकये गये िमयक के भीतर बाद
में प्रनतसलवप को फाइल कर हदया जाएगा, िमधु चत कारणों िे अपील की गयी डडिी की प्रनतसलवप के बबना
अपील का ज्ञापन स्िीकार कर िकेगा यहद अपीलांट के अधधिक्ता यि प्रमाणणत करते िैं क्रक प्रनतसलवप के
सलए आिेदन क्रकया गया िै और अभी तक जार नि ं की गयी िै ।'' (13-12-69)

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(3) ननयम 1 के उपननयम (3) को लप्ु त क्रकया जाएगा । (1-1-94)
पटना उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन ( 5-4-1961)- उपननयम (1) में ननम्नानि
ु ार परं तक
ु जोडा
गया-
''परन्तु अन्यथा यि क्रक क्रकिी विशेष या स्थानीय अधधननयम के अन्तगित क्रकिी डडिी या आदे शों िे
अपील में र्जिको क्रक पररिीमा अधधननयम, 1908 के भाग 2 ि भाग 3 के प्रािधान प्रयोज्य नि ं िोते िैं
और र्जिमें ऐिी डडक्रियों अथिा आदे शों की प्रमाणणत प्रनतसलवपयां अपील प्रस्तत
ु करने के सलए विहित िमय
के भीतर प्रदान नि ं की गयी िै , तो अपील य न्यायालय, न्यायालय द्िारा ननयत क्रकये गये ऐिे िमय के
भीतर अपील की गयी डडिी या आदे श की प्रनतसलवप की प्रस्तनु त के अध्यधीन अपील के ज्ञापन को स्िीकार
कर िकेगा । ''
राजस्थान उच्च न्यायालय िंशोधन- परन्तु जब अपीलाधीन डडिी बंटिारे के िाद में अंनतम डडिी िो
तो न्यायालय द्िारा डडिी की प्रमाणणत प्रनतसलवप प्रस्तत
ु करने िे मर्ु क्त प्रदान की जा िकेगी यहद अपीलांट
उि ननणिय की प्रमाणणत प्रनतसलवप प्रस्तत
ु कर दे ता िै र्जिके विरात्र अपील की गयी िै ।
(अधधिच
ू ना 6 -10- 1970)

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 87 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्तःस्थावपत ।

2. आधार जो अपील में सलए जा िकेंगे- अपलाथी, न्यायालय की इजाजत के बबना, आिेप के
क्रकिी भी ऐिे आधार को जो अपील के ज्ञापन में उपिणणित नि ं िै , न तो पेश करे गा और न उिके िमथिन
में िन
ु ा ि जाएगा, क्रकन्तु अपील न्यायालय अपील का विननश्चय करने में आिेप के उन आधारों तक ि
िीसमत न रिे गा जो अपील के ज्ञापन में उपिणणित िै या जो न्यायलय की इजाजत िे इि ननयम के अधीन
क्रकए गए िैं :
परन्तु न्यायालय अपने विननश्चय को, क्रकिी अन्य आधार पर तब तक आधाररत नि ं करे गा जब
तक उि पिकार को र्जि पर इिके द्िारा प्रभाि पडता िै उि आधार पर मामले का प्रनतिाद करने का
पयािप्त अििर न समल गया िो ।

3. ज्ञापन का नामंजूर क्रकया जाना या िंशोधन—(1) जिां अपील का ज्ञापन इिमें इिके पि
ू ि विहित
र नत िे सलखा नि ं गया िै ििां िि नामंजूर क्रकया जा िकेगा या अपीलाथी को ऐिे िमय के भीतर
िंशोधधत क्रकए जाने के प्रयोजन िे जो न्यायालय द्िारा ननयत क्रकया जाएगा, लौटाया जा िकेगा तभी और
ििा ि िंशोधधत क्रकया जा िकेगा ।
(2) जिां न्यायालय क्रकिी ज्ञापन को नामंजूर करे ििां िि ऐिी नामंजूर के कारणों को लेखबद्ध
करे गा ।
(3) जिां अपील के ज्ञापन का िंशोधन क्रकया जाता िै ििां न्यायाधीश या ऐिा अधधकार जो उिने
इि ननसमि ननयक्
ु त क्रकया िो, उि िंशोधन को िस्तािररत या आद्यिररत करे गा ।

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उच्च न्यायालय िंशोधन
इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- उपननयम(1) का अधधिच
ू ना िमांक 552/VII-डी हदनांक
30-1 -1992 के द्िारा उपननयम (1) को लप्ु त क्रकया गया ।

1
[3क. विलम्ब की माफी के सलए आिेदन- (1) जब कोई अपील उिके सलए विहित पररिीमाकाल के
पश्चात ् उपस्थावपत की जाती िै , तब उिके िाथ ऐिे शपथपत्र द्िारा िमधथित आिेदन िोगा र्जिमें िे तथ्य
उपिणणित िोंगे र्जन पर अपीलाथी न्यायालय का यि िमाधान करने के सलए ननभिर करता िै क्रक ऐिी
अिधध के भीतर अपील न करने के सलए उिके पाि पयािप्त कारण था ।
(2) यहद न्यायालय यि िमझता िै क्रक प्रत्यथी को िच
ू ना जार क्रकए बबना आिेदन को नामंजूर
करने का कोई कारण नि ं िै तो उिकी िच
ू ना प्रत्यथी को जार की जाएगी और, यथार्स्थनत, ननयम 11 या
ननयम 13 के अधीन अपील को ननपटाने के सलए अग्रिर िोने के पि
ू ि न्यायालय द्िारा उि मामले का
अर्न्तम रुप िे विननश्चय क्रकया जाएगा ।
(3) जिा उपननयम (1) के अधीन कोई आिेदन क्रकया गया िै ििां न्यायालय उि डडिी के र्जिके
विरुद्ध अपील फाइल क्रकए जाने की प्रस्थापना िै , ननष्पादन, को रोकने के सलए आदे श उि िमय तक नि ं
करे गा जब तक न्यायालय ननयम 11 के अधीन िन
ु िाई के पश्चात ् अपील िन
ु ने क विननश्चय नि ं कर
लेता िै ।]

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 87 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया गया ।

4. कई िाहदयों या प्रनतिाहदयों में िे एक परू ी डििी को उलटिा िकेगा जिां िि ऐिे आधार पर दी
गई िै जो उन ििी के सलए िामान्य िै - जिां िाद में एक िे अधधक िाद या प्रनतिाद िै और िि डडिी
र्जिकी अपील की जाती िै , क्रकिी ऐिे आधार पर द गई िै जो िभी िाहदयों या िभी प्रनतिाहदयों के सलए
िामान्य िै ििां िाहदयों या प्रनतिाहदयों में िे कोई भी एक परू डडिी की अपील कर िकेगा और अपील
न्यायालय तब उि डडिी को, यथार्स्थनत, िभी िाहदयों के या प्रनतिाहदयों के पि में उलट िकेगा या उिमें
फेरफार कर िकेगा ।

कायविाहियो का और ननष्पादन का रोका जाना

5. अपील न्यायालय द्िारा रोका जाना—(1) अपील का प्रभाि र्जि डडिी या आदे श की अपील की
गई िै , उिके अधीन की कायििाहियों को रोकना नि ं िोगा क्रकन्तु यहद अपील न्यायालय आदे श दे तो
कायििाहियां रोकी जा िकेंगी । केिल इि कारण िे क्रक डडिी िे अपील की गई िै , डडिी का ननष्पादन नि ं
िो जाएगा क्रकन्तु अपील न्यायालय ऐिी डडिी के ननष्पादन के रोके जाने के सलए आदे श पयािप्त िे तक
ु िे दे
िकेगा ।
1
[स्पष्टीकरण- डडिी के ननष्पादन को रोकने के सलए अपील न्यायालय का आदे श प्रथम बार के
न्यायालय को ऐिे आदे श की िंिच
ू ना की तार ख िे प्रभािी िोगा, क्रकन्तु ननष्पादन को रोकने के सलए

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आदे श की या उिके प्रनतकूल क्रकिी आदे श की, अपील न्यायालय िे प्रार्प्त िोने तक प्रथम बार का
न्यायालय अपीलाथी की उिकी िैयर्क्तक जानकार पर आधाररत ऐिे शपथपत्र पर कायििाि करे गा र्जिमें
यि कधथत िो क्रक डडिी के ननष्पादन को रोकने के सलए अपील न्यायालय द्िारा आदे श दे हदया गया िै ।]

(2) स्जि न्यायालय ने डििी पाररत की थी उिके द्िारा रोका जाना- जिां क्रकिी अपीलनीय डडिी
के ननष्पादन के रोके जाने के सलए आिेदन उि िमय के अििान िे पि
ू ि जो उिकी अपील करने के सलए
अनज्ञ
ु ात िै , क्रकया जाता िै ििां डडिी पाररत करने िाला न्यायालय ननष्पादन के रोके जाने के सलए आदे श
पयािप्त िे तक
ु दसशित क्रकए जाने पर दे िकेगा ।
(3) ननष्पादन रोके जाने के सलए कोई भी आदे श उपननयम (1) या उपननयम (2) के अधीन तब तक
नि ं क्रकया जाएगा जब तक उिे दे ने िाले न्यायालय का यि िमाधान नि ं िो जाता क्रक-
(क) यहद िि आदे श न क्रकया गया तो पररणाम यि िो िकता िै क्रक ननष्पादन के रोके जाने का
आिेदन करने िाले पिकार को िारिान ् िानन िो;
(ख) आिेदन अयर्ु क्तयक्
ु त विलम्ब के बबना क्रकया गया िै ; तथा
(ग) आिेदक ने ऐिी डडिी या आदे श के िम्यक् रुप िे पालन के सलए जो अन्त में उिके सलए
आबद्धकर िो, प्रनतभनू त दे द िै ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 87 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया गया ।

(4) 1[उपननयम (3) के उपबन्धों के अधीन रिते िुए] न्यायालय आिेदन की िन


ु िाई लर्म्बत रिने
तक ननष्पादन के रोके जाने के सलए एकपिीय आदे श कर िकेगा ।
[(5) पि
2
ू गि ामी उपननयमों में अन्तवििष्ट क्रकिी बात के िोते िुए भी, जिां अपीलाथी ननयम 1 के
उपननयम (3) में विननहदिष्ट ननिेप करने में या प्रनतभनू त दे ने में अिफल रिता िै ििां न्यायालय डडिी का
ननष्पादन रोकने िाला आदे श नि ं करे गा ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (1.1.94)- ननयम 5के उपननयम (5) के स्थान पर ननम्न
ननयम 5 को प्रनतस्थावपत क्रकया गया िै -
“(5) पिू ोक्त उपननयमों में अन्तननिहित क्रकिी बात के िोते िुए भी, जिा अपील धन भग
ु तान करने
की डडिी के विरुद्ध अपील िै तो अपील य न्यायालय डडिी के ननष्पादन को स्थधगत करने का आदे श का
आदे श नि ं करे गा जब तक क्रक अपीलाट ऐिे िमय के भीतर जो क्रक अपील य न्यायालय अनज्ञ
ु ात करे ,
अपील में वििाहदत रासश को जमा नि ं करता िै अथिा इिके िंबध
ं में ऐिी प्रनतभनू त नि ं दे ता िै जो क्रक
अपील य न्यायालय उपयक्
ु त िमझ िके ।''

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 87 द्िारा (1-2-1977 िे) कुछ शब्दों के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

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2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 87 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया गया ।

6. डििी के ननष्पादन के सलए आदे श की दशा में प्रनतिनू त- (1) जिां ऐिी डडिी के ननष्पादन के
सलए आदे श क्रकया गया िै र्जिकी अपील लर्म्बत िै ििां डडिी पाररत करने िाला न्यायालय अपीलाथी
द्िारा पयािप्त िे तक
ु दसशित क्रकए जाने पर क्रकिी ऐिी िम्पवि के प्रत्यास्थापन के सलए जो डडिी के
ननष्पादन में ल जाए या ले ल गई िै या ऐिी िम्पवि के मप
ू य को दे ने के सलए और अपील न्यायालय की
डडिी या आदे श के िम्यक् पालन के सलए प्रनतभनू त का सलया जाना अपेक्षित करे गा या िैिे ि िे तक
ु के
सलए यि ननदे श अपील न्यायालय डडिी पाररत करने िाले न्यायालय को दे िकेगा क्रक िि ऐिी प्रनतभनू त ले

(2) जिां डडिी के ननष्पादन के स्थािर िम्पवि के वििय का आदे श कर हदया गया िै और डडिी
की अपील लर्म्बत िै ििां उि न्यायालय िे र्जिने आदे श क्रकया था ननणीतऋणी के आिेदन करने पर
वििय को प्रनतभनू त दे ने के बारे में या अन्यथा ऐिे ननबन्धनों पर जो न्यायालय ठीक िमझे जब तक के
सलए रोक हदया जाएगा जब तक अपील का ननपटारा न िो जाए ।

1. उपरोक्त आदे श 27 का ननयम 8क दे णखए ।

7. [कुछ मामलों में िरकार िे या लोक अधधकारी िे कोई प्रनतिनू त अपेक्षक्षत न की जाए ।]- भारत
1

शािन ( भारतीय विधध अनक


ु ू लन) आदे श 1937 द्िारा ननरसित ।

8. डििी के ननष्पादन में क्रकए गए आदे श की अपील में शस्ततयों का प्रयोग- जिां अपील डडिी के
विरुद्ध नि ं बर्पक डडिी के ननष्पादन में क्रकए गए आदे श के विरुद्ध की जाए या की गई िै ििां ननयम 5
और ननयम 6 द्िारा प्रदि शर्क्तयों का प्रयोग क्रकया जा िकेगा ।

अपील के र्ग्िण पर प्रक्रिया


1
[9. अपीलों के ज्ञापन का रस्जस्टर में चढ़ाया जाना- (1) िि न्यायालय र्जिकी डडिी के विरुद्ध
अपील िोती िै अपील के ज्ञापन को ग्रिण करे गा और उि पर उिके उपस्थावपत क्रकए जाने की तार ख
पष्ृ ठांक्रकत करे गा और अपील को उि प्रयोजन के सलए रखी जाने िाल पस्
ु तक में चढाएगा ।
(2) अपीलों का रर्जस्टर ऐिी पस्
ु तक अपीलों का रर्जस्टर किलाएगी ।

10. अपील न्यायालय अपीलाथी िे खचो के सलए प्रनतिनू त दे ने की अपेक्षा कर िकेगा- (1) अपील
न्यायालय या तो प्रत्यथी के उपिंजात िोने और उिर दे ने के सलए बल
ु ाए जाने के पिले या तत्पश्चात ्
प्रत्यथी के आिेदन पर अपील के या मल
ू िाद के या दौनों के खचों के सलए प्रनतभनू त अपीलाथी िे
स्िवििेकानि
ु ार मांग िकेगा :
जिां अपीलाथी भारत के बािर ननिाि करता िै - परन्तु न्यायालय उन िभी मामलों में ऐिी
प्रनतभनू त की माग करे गा र्जनमें अपीलाथी 2[भारत] के बािर ननिाि करता िै और उिके पाि अपील िे

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िंबधं धत िंपवि िे (यहद कोई िो) सभन्न 3[भारत] के भीतर कोई पयािप्त स्थािर िंपवि नि ं िै ।
(2) जिां ऐिी प्रनतभनू त ऐिे िमय के भीतर न द जाए जो न्यायालय ने आहदष्ट क्रकया िै ििां
न्यायालय अपील नामंजूर कर दे गा |

1. 1999 के अधधननयम िं. 46 की धारा 31 द्िारा (1-7-2002 िे) ननयम 9 के स्थान पर


प्रनतस्थावपत ।
2. 1951 के अधधननयम िं. 2 की धारा 3 द्िारा ''राज्यों” के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
3. 1961 के अधधननयम िं. 2 की धारा 3 द्िारा ''राज्यों'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (1-6-1957)- ननयम 10 के उपननयम (1) के परं तक
ु में
द्वितीय बार आने िाले शब्द ''भारत'' को शब्द ''राज्य'' िे प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
.
11. ननचले न्यायालय को िच
ू ना िेजे बबना अपील खाररज करने की शस्तत- [(1) अपील न्यायालय
1

अपीलाथी या उिके प्ल डर को िन


ु ने के सलए हदन ननयत करने के पश्चात ् और यहद िि उि हदन उपिंजात
िोता िै तो तदनि
ु ार उिे िन
ु ने के पश्चात ् अपील को खाररज कर िकेगा ।

1. 1999 के अधधननयम िं. 46 की धारा 31 द्िारा (1-7-2002 िे) उपननयम (1) के स्थान पर
प्रनतस्थावपत ।

2
[11क. िमय स्जिके िीतर ननयम 11 के अधीन िन
ु िाई िमाप्त िो जानी चाहिए- प्रत्येक अपील
ननयम 11 के अधीन यथािंभि शीघ्रता िे िन
ु ी जाएगी और ऐिी िन
ु िाई को उि तार ख िे र्जिको अपील
का ज्ञापन फाइल क्रकया गया िै , िाठ हदन के भीतर िमाप्त करने का प्रयाि क्रकया जाएगा । ]

12. अपील की िन
ु िाई के सलए हदन- (1) यहद अपील न्यायालय ननयम 11 के अधीन अपील को
खाररज न कर दे तो िि अपील की िन
ु िाई के सलए हदन ननयत करे गा ।
3
[(2) ऐिा हदन न्यायालय के चालू कारबार को ध्यान में रखते िुए ननयत क्रकया जाएगा ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 87 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया गया ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 87 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्त : स्थावपत क्रकया गया

3. 1999 के अधधननयम िं. 46 की धारा 31 द्िारा (1-7-2002िे) उपननयम (2) के स्थान पर


प्रनतस्थावपत ।

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14. अपील की िन
ु िाई के हदन की िच
ू ना का प्रकाशन और तामील—(1) ननयम 12 के अधीन
ननयत क्रकए गए हदन की िच
ू ना अपील न्याय-िदन में लगाई जाएगी और िैिी ि िच
ू ना अपील न्यायालय
द्िारा उि न्यायालय को भेजी जाएगी र्जिकी डडिी की अपील गई िै और प्रत्यथी पर या अपील न्यायालय
में उिके प्ल डर पर उिकी तामील उि र नत िे की जाएगी जो उपिंजात िोने और उिर दे ने के सलए िमनों
की प्रनतिाद पर तामील के सलए उपबंधधत िै और ऐिे िमन को और उनकी तामील विषयक कायििाहियों
को लागू िभी उपबध ऐिी रखना की तामील को लागू िोंगे ।
(2) अपील न्यायालय स्ियं िच
ू ना की तामील करिा िकेगा- र्जि न्यायालय की डडिी की अपील
की गई िै उिे िच
ू ना भेजने के बजाय अपील न्यायालय प्रत्यथी पर या उिके प्ल डर पर िच
ू ना की तामील
उपर ननहदि ष्ट उपबंधों के अधीन स्ियं करिा िकेगा ।

1. सिविल प्रक्रिया िहिता(िंशोधन) अधधननयम, 1999 के द्िारा ननयम 13 को ननरसित क्रकया गया

1
[(3) प्रत्यथी पर तामील की जाने िाल िच
ू ना के िाथ अपील के ज्ञापन की एक प्रनत िोगी ।
(4) उपननयम (1) में क्रकिी प्रनतकूल बात के िोते िुए भी, क्रकिी अपील की आनष
ु धं गक क्रकिी
कायििाि की िचू ना की तामील अपील न्यायालय में प्रथम बार पिकार बनाए गए व्यर्क्त िे सभन्न क्रकिी
प्रत्यथी पर करनी आिश्यक नि ं िोगी जब तक क्रक प्रथम बार के न्यायालय में िि उपिंजात न िुआ िो
और उिने तामील के सलए कोई पता फाइल न क्रकया िो या िि अपील में उपिंजात न िुआ िो ।
(5) उपननयम (4) की कोई भी बात अपील मे ननहदि ष्ट प्रत्यथी को उिका प्रनतिाद करने िे िर्जित
नि ं करे गी ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


म.प्र. उच्च न्यायालय िंशाधेन- आदे श 41 ननयम 14 का िंशोधन--- उपननयम (3) के रुप मे
ननम्नानि
ु ार को जोड़ा जाएगा-
''(3) अपील य न्यायालय इरमके वििेक के अधीन ऐिे क्रकिी प्रत्यथी पर र्जिके विरुद्ध िाद एक
पिीय िन
ु ा गया था िच
ू नापत्र िे असभमर्ु क्त दे िकेगा ।'' (16 -9- 1960)
इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (21 -3- 1981)--- ननयम 14 के उपननयम (1) में शब्दो
''उिके प्ल डर पर'' के स्थान पर शब्दों '' अथिा उिकी ओर िे िच
ू ना प्राप्त करने के सलए ििम उिके
प्ल डर पर'' को प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

आदे श 41 ननयम 14 -क
पटना उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- ननम्नानि
ु ार ननयम 14 -क जोड़ा गया -
''14- क-अपील य न्यायालय इिके वििेक परयिां के पि
ू ि अपेक्षित प्रत्यथी अथिा मत
ृ प्रत्यथी के
िैधाननक प्रनतननधध पर िच
ू ना की तामील की मर्ु क्त प्रदान कर िकेगा ऐिे मामलो में जिां क्रक प्रत्यथी उि
न्यायालय की कायििाि के क्रकिी प्रिम पर र्जिकी डडिी िे अपील की गयी िै अथिा उि न्यायालय की

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डडिी के बाद की क्रकिी कायििाि में उपर्स्थत नि ं िुआ था और ऐिे प्रनतपि या प्रत्यथी या उिके विधधक
प्रनतननधध के विरुद्ध या तो मल
ू प्रकरण में या अपील में कोई अनत
ु ोष दावित नि ं क्रकया गया िै ।''
1
[15................ ननरसित]

उच्च न्यायालय िंशोधन


म.प्र. उच्च न्यायालय द्िारा (िंशोधन)- अधधिच
ू ना िमांक 3409 हदनाक 29.6.1943 के द्िारा
म.प्र. में ननम्नानि
ु ार ननयम 15- क िमाविष्ट क्रकया गया िै -
''15क. उच्च न्यायालय में अपील एिमीशन के उपरांत आिश्यक कदम उठाने में विफलता- जिााँ,
उच्च न्यायालय में अपील एडमीशन के उपरांत उच्च न्यालय के ननयम अपीलांट िे ननयत हदनांक के पि
ू ि
अपील चलाने के सलए कोई कदमों को उठाने की अपेिा करते िैं एि जिााँ, कदम उठाए जाने के सलए िच
ू ना
की िम्यकू तामील के उपरात एि हदनांक र्जि पर उन्िें उठाया जाना चाहिए, अपीलाट विहित िमय के
भीतर, ऐिे कदमो को उठाने में विफल रिता िै , न्यायालय चलाए जाने के अभाि मे अपील ननरस्त करने
का ननदे श दे िकेगा अथिा ऐिा अन्य आदे श पाररत कर िकेगा जो क्रक यि उपयक्
ु त िमझे ।''

आदे श 41 ननयम 15 - क
म. प्र. उच्च न्यायालय िंशोधन (16-9-1960) - ननयम 15 के उपरांत ननम्नानि
ु ार ननयम 15 - क
को अंत : स्थावपत क्रकया गया-
''15 – क. उच्च न्यायालय में अपील के एिमीशन के उपरांत आिश्यक कदम उठाने में विफलता-
जिां उच्च न्यायालय में अपील के एडमीशन के उपरांत उच्च न्यायालय के ननयम यि अपेिा करते िों क्रक
अपीलांट को अपील को चलाये जाने के अनि
ु रण में कनतपय कदमो को ननयत हदनांक के पि
ू ि उठाना चाहिए
और जिां सलये जाने िाले कदमों की जानकार दे ने िाले िच
ू नापर की िम्यक् तामील िोने और उि तार ख
के पि
ू ि िो जाने र्जि तक उनको क्रकया जाना चाहिए यहद अपीलौट विहित अिधध के भीतर ऐिे कदमों को
उठाने में विफल रिता िै तो न्यायालय यि ननदे श कर िकेगा क्रक अपील को न चलाये जाने के कारण
ननरस्त कर हदया जाए या ऐिा आदे श पाररत कर िकेगा जो क्रक िि उधचत िमझे ।

िन
ु िाई की प्रक्रिया
18. शरु
ु करने का अधधकार- (1) ननयत हदन को या ऐिे क्रकिी अन्य हदन को र्जिके सलए िन
ु िाई
स्थधगत की गई िो अपीलाथी को अपील के िमथिन में िन
ु ा जाएगा ।
(2) तब यहद न्यायालय अपील को तरु न्त खाररज न कर दे तो िि अपील के विरुद्ध प्रत्यथी को
िन
ु ेगा और ऐिी दशा में अपीला थी उिर दे ने का िकदार िोगा ।
1. सिविल प्रक्रिया िहिता (िंशोधन) अधधननयम, 1999 के द्िारा ननयम 15 को ननरसित क्रकया
गया ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (22-12-1951)- ननयम 16 के उप ननयम (1) में आये

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शब्दो '' ननयत हदन को या ऐिे क्रकिी अन्य हदन को र्जिके सलए िन
ु िाई स्थधगत की गई िो '' के स्थान
पर शब्दों '' जबअपील की िन
ु िाई की पक
ु ार िोती िै '' को प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

17. अपीलाथी के व्यनतिम के सलए अपील का खाररज क्रकया जाना- (1) जिां ननयत हदन को या
क्रकिी अन्य हदन को र्जिके सलए िन
ु िाई स्थधगत की गई िै अपीलाथी अपील की िन
ु िाई के सलए पक
ु ार
िोने पर उपिंजात नि ं िोता िै ििां न्यायालय आदे श कर िकेगा क्रक अपील ख़ाररज की जाए ।
1
[स्पष्टीकरण- इि उपननयम की क्रकिी बात का यि अथि नि ं लगाया जाएगा क्रक िि न्यायालय को
गण
ु ागण
ु के आ धार पर अपील खाररज करने के सलए िशक्त करती िै ।
(2) अपील की एकपक्षीय िन
ु िाई- जिां अपीलाथी उपिंजात िो और प्रत्यथी उपिंजात न िो ििां
अपील एक प िीय िन
ु ी जाएगी ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (22-12-1931)- ननयम 17 के उपननयम (1) में आये
शब्दों '' ननयत हदन को या क्रकिी अन्य हदन को र्जिके सलए िन
ु िाई स्थधगत की गई िै '' को विलोवपत
क्रकया गया ।
2
[18. ................ ननरसित]

उच्च न्यायालय िंशोधन


इलािाबाद उच्च न्यायालय िंशोधन- पद 1 में अंक्रकत शब्दों ''यहद ननयत हदन को या ऐिे क्रकिी
अन्य हदन को र्जिके सलए िन
ु िाई स्थधगत की गई िै,'' के स्थान पर ''जब िन
ु िाई के सलए अपील को
पक
ु ारा जाता िै ''

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 87 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया गया ।
2. सिविल प्रक्रिया िहिता िंशोधन अधधननयम, 1999 के द्िारा ननयम 18 को ननरसित क्रकया गया

19. व्यनतिम के सलए खाररज की गई अपील को पन


ु : र्ग्िण करना- जिां अपील ननयम 11 के
उपननयम (2) या ननयम 17 2[***] के अधीन खाररज की जाती िै ििां अपीलाथी अपील न्यायालय में
अपील के पन
ु : ग्रिण क्रकए जाने के सलए आिेदन कर िकेगा और जिां तक िाबबत कर हदया जाता िै क्रक
िि अपील की िन
ु िाई के सलए पक
ु ार िोने पर उपिंजात िोने के िे या ऐिी अपेक्षित रासश ननक्षिप्त करने
िे क्रकिी पयािप्त िे तक
ु िे ननिाररत िो गया था िि ं न्यायालय खचे िंबध
ं ी या अन्यथा ऐिे ननबंधनों पर जो
िि ठीक िमझे अपील को पन
ु : ग्रिण करे गा ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


मध्य प्रदे श उच्च न्यायालय िंशोधन- शब्द ''ननयम 11 के उपननयम (2)'' के उपरात शब्द ''या

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ननयम 16 - क'' को प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

20. िन
ु िाई को स्थधगत करने और ऐिे व्यस्ततयों को जो हितबद्ध प्रतीत िोते िों प्रत्यथी बनाए
जाने के सलए ननहदवष्ट करने की शस्तत- 3[(1) जिां िन
ु िाई में न्यायालय को यि प्रतीत िोता िै क्रक कोई
व्यर्क्त जो उि न्यायालय में िाद में पिकार था र्जिकी डडिी की अपील की गई िै क्रकन्तु जो अपील में
पिकार नि ं बनाया गया िै अपील के पररणाम में हितबद्ध िै ििां िन
ु िाई को न्यायालय अपने द्िारा
ननयत क्रकए जाने िाले भविष्यिती हदन के सलए स्थधगत कर िकेगा और यि ननदे श दे िकेगा क्रक ऐिा
व्यर्क्त प्रत्यथी बनाया जाए ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 87 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया गया ।
2. 1999 के अधधननयम िं. 46 की धारा 31 द्िारा (1-7-2002 िे) ''या ननयम 18'' शब्दों का
लोप क्रकया गया ।
3. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 87 द्िारा (1-2-1977 िे) ननयम 20 को उिके
उपननयम (1) के रुप मे पन
ु : िख्याक्रकत क्रकया गया ।
4. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 87 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया गया

4
[(2)] अपील के सलए पररिीमाकाल की िमार्प्त के पश्चात ् इि ननयम के अधीन कोई प्रत्यथी नि ं
जोड़ा जाएगा जब तक क्रक न्यायालय, ऐिे कारणों में जो लेखबद्ध क्रकए जाएंगे खचे िंबध
ं ी ऐिे ननबंधनों पर
जो िि ठीक िमझे, िैिा करने की अनज्ञ
ु ा नि ं दे दे ता ।

21. उि प्रत्यथी के आिेदन पर पन


ु : िन
ु िाई स्जिके विरुद्ध एकपक्षीय डििी की गई िै - जिां
अपील एकपिीय िन
ु ी जाती िै और प्रत्यथी के विरुद्ध ननणिय िन
ु ा हदया जाता िै ििा िि अपील
न्यायालय िे अपील को पन
ु : िन
ु ने के सलए आिेदन कर िकेगा और यहद िि न्यायालय का िमाधान कर
दे ता िै क्रक िच
ू ना की तामील िम्यक् रुप िे नि ं की गई थी िि अपील की िन
ु िाई के सलए पक
ु ार िोने पर
उपिंजात िोने िे पयािप्त िेतक
ु िे ननिाररत िो गया था तो न्यायालय खचे िंबध
ं ी या अन्यथा ऐिे
ननबन्धनों पर जो प्रत्यथी पर अधधरोवपत करना िि ठीक िमझे, उि अपील को पन
ु : िन
ु ेगा ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


म.प्र. उच्च न्यायालय िंशोधन(16.9.1960)- ननयम 21 को ननयम 21 (1) के रुप मे पन
ु किमाक्रकत
क्रकया गया और ननम्नानि
ु ार उपननयम (2) अंतःस्थावपत क्रकया गया-
“(2) भारतीय पररिीमा अधधननयम, 1908 के प्रािधान उपननयम(1) के अन्तगित आिेदनो को भी
लागू िोंगे 1''

22. िन
ु िाई में प्रत्यथी डििी के विरुद्ध ऐिे आक्षेप कर िकेगा मानो उिने पथ
ृ क् अपील की िो-

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(1) कोई भी प्रत्यथी यद्यवप उिने डडिी के क्रकिी भाग के विरुद्ध अपील न की िो, 1[न केिल डडिी का
िमथिन कर िकेगा बर्पक यि कथन भी कर िकेगा क्रक ननचले न्यायालय में उिके विरुद्ध क्रकिी
वििाद्यक की बाबत ननणिय उिके पि में िोना चाहिए था और डडिी के विरुद्ध कोई ऐिा प्रत्यािेप भी कर
िकेगा जो िि अपील द्िारा कर िकता था परन्तु यि तब जब क्रक उिने ऐिा आिेप अपील न्यायालय में
उि तार ख िे एक माि के भीतर र्जिको उि पर या उिके प्ल डर पर अपील की िन
ु िाई के सलए ननयत
हदन की िच ू ना की तामील िुई थी या ऐिे अनतररक्त िमय के भीतर र्जिे अनज्ञ
ु ात करना अपील
न्यायालय ठीक िमझे फाइल कर हदया िो ।
2
[स्पष्टीकरण- कोई प्रत्यथी जो ननणिय में उि न्यायालय के क्रकिी ऐिे ननष्कषि िे र्जि पर डडिी
आ धाररत िै र्जिके विरुद्ध अपील की गई िै इि ननयम के अधीन प्रत्यािेप जिां तक क्रक िि डडिी उि
ननष्कषि पर आधाररत िै इि बात के िोते िुए भी फाइल कर िकेगा क्रक न्यायालय के क्रकिी अन्य ननष्कषि
पर जो उि िाद के विननश्चय के सलए पयािप्त िै विननश्चय के कारण िि डडिी पणू त
ि : या भागत: उि
प्रत्यथी के पि में िै |]
(2) आक्षेप का प्ररुप और उिको लागू िोने िाले उपबंध- ऐिा प्रत्यािेप ज्ञापन के प्ररुप में िोगा और
ननयम 1 के उपबंध उिे ििां तक लागू िोंगे जिां तक िे अपील के ज्ञापनों के प्ररूप और अंतििस्तु िे
िंबधं धत िैं ।
3
[(3) ............लप्ु त]

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 87 द्िारा (1-2-1977 िे) कुछ शब्दों के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 87 द्िारा (1-2-1977 िे) अतःस्थावपत क्रकया गया ।
3. सिविल प्रक्रिया िहिता (िंशोधन) अधधननयम, 1999 के द्िारा ननयम 22 का उपननयम (3)
लप्ु त ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


इलािाबाद उच्च न्यायालय िंशोधन- आदे श 41 के उपननयम (1) में शब्दों ''अपील की िन
ु िाई के
सलए'' के स्थान पर शब्दों'' अपील की िन
ु िाई या अपील में उपिंजानत के सलए '' शब्दों को प्रनतस्थावपत
क्रकया गया । (अधधिच
ू ना हदनांक 8-8-1994)

23. मामले का अपील न्यायालय द्िारा प्रनतप्रेषण- जिां उि न्यायालय ने र्जिकी डडिी की अपील
की गई िै । िाद का ननपटारा क्रकिी प्रारं सभक बात पर कर हदया िै और डडिी अपील में उलट द गई िै
ििां यहद अपील न्यायालय ऐिा करना ठीक िमझे तो िि मामले का आदे श द्िारा प्रनतप्रेषण कर िकेगा
और यि अनतररक्त ननदे श दे िकेगा क्रक ऐिे प्रनतप्रेवषत मामले में कौन िे वििाद्यक या वििाद्यकों का
विचारण क्रकया जाए और अपने ननणिय और आदे श की प्रनत उि न्यायालय को र्जिको डडिी की अपील की
गई िै , इन ननदे शों के िाथ भेजेगा क्रक िि िाद, सिविल िादों के रर्जस्टर में अपने मल
ू िंख्यांक पर पन
ु :
ग्रिण क्रकया जाए और िाद के अिधारण के सलए आगे कायििाि की जाए, और यहद कोई िाक्ष्य मल

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विचारण के दौरान में असभसलणखत कर सलया गया था तो िि िभी न्याय िंगत अपिादों के अधीन रिते
िुए, प्रनतप्रेषण के पश्चात ् िाले विचारण के दौरान में िाक्ष्य िोगा ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (1-6-1957)- ननयम 23 में आये शब्दों ''और डडिी
अपील मे उलट द गई िै '' के उपरात ननम्न शब्दों'' या जिां अपील य न्यायालय अपील के अधीन िोने िाल
डडिी को उलटते िुए या अपास्त करते िुए न्याय हित में मामले को प्रनतप्रेवषत करना आिश्यक िमझता िै
तो यि '' को प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
राजस्थान उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (23.12.1964 जोधपरु ) - ननयम 23 के स्थान पर ननम्न
ननयम 23 को प्रनतस्थावपत क्रकया गया -
''23. मामले का अपील न्यायालय द्िारा प्रनतप्रेषण- जिां उि न्यायालय ने र्जिकी डडिी की अपील
की गई िै । िाद का ननपटारा क्रकिी प्रारं सभक बात पर कर हदया िै । और डडिी अपील मे उलट द गई िै ।
ििा यहद अपील न्यायालय ऐिा करना ठीक िमझे तो िि मामले का आदे श द्िारा प्रनतप्रेषण कर िकेगा
और यि अनतररक्त ननदे श दे िकेगा क्रक ऐिे प्रनतप्रेवषत मामले में कौन िे वििाद्यक या वििाद्यकों का
विचारण क्रकया जाए और अपने ननणिय और आदे श की प्रनत उि न्यायालय को र्जिको डडिी की अपील की
गई िै , इन ननदे शों के िाथ भेजेगा क्रक िि िाद सिविल िादों के रर्जस्टर मे अपने मल
ू िंख्याक पर पन
ु :
ग्रिण क्रकया जाए और िाद के अिधारण के सलए आगे कायििाि की जाए और यहद कोई िाक्ष्य मल

विचारण के दौरान में असभसलणखत कर सलया गया था तो िि िभी न्याय िंगत अपिादो के अधीन रिते िुए
प्रनतप्रेषण के पश्चात ् िाले विचारण के दौरान में िाक्ष्य िोगा ।''

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 87 द्िारा (1.2.1977 िे) अंत: स्थावपत क्रकया गया ।
1
[23क. अन्य मामलों में प्रनतप्रेषण- जिां उि न्यायालय ने र्जिकी डडिी की अपील की गई िै
मामले का ननपटारा क्रकिी प्रारं सभक बात पर करने िे अन्यथा कर हदया िै और डडिी अपील में उलट द गई
िै और पन
ु वििचारण आिश्यक िमझा गया िै ििााँ अपील न्यायालय की िि शर्क्तयााँ िोंगी जो उिकी ननयम
23 के अधीन िैं ।]

24. जिां असिलेख में का िाक्ष्य पयावप्त िै ििां अपील न्यायालय मामले का अंनतम रुप िे
अिधारण कर िकेगा- जिां असभलेख में का िाक्ष्य अपील न्यायालय द्िारा ननणिय िन
ु ाए जाने के सलए
पयािप्त िै ििां अपील न्यायालय, यहद आिश्यक िो, वििाद्यकों का पन
ु : र्स्थर करण करने के पश्चात ् िाद
का इि बात के िोते िुए भी अंनतम रुप िे अिधारण कर िकेगा क्रक उि न्यायालय का ननणिय र्जिकी
डडिी की अपील की गई िै , पण
ू ति : उि आधार िे सभन्न आधार पर क्रकया गया िै र्जि आधार पर अपील
न्यायालय ने कायििाि की िै ।

25. अपील न्यायालय किां वििाद्यकों की विरचना कर िकेगा और उन्िें उि न्यायालय को


विचारण के सलए ननहदव ष्ट कर िकेगा स्जिकी डििी की अपील की गई िै - जिां उि न्यायालय ने र्जिकी
डडिी की अपील की गई िै , ऐिे क्रकिी वििाद्यक की विरचना या विचारण में या क्रकिी ऐिे तथ्य के प्रश्न

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के अिधारण में लोप क्रकया िै जो अपील न्यायालय को िाद के गण
ु ागण
ु पर ठीक विननश्चय के सलए
परमािश्यक प्रतीत िोता िै ििा यहद आिश्यक िो तो अपील न्यायालय वििाद्यकों की विरचना कर िकेगा
और उन्िें उि न्यायालय को विचारण के सलए ननहदि ष्ट कर िकेगा र्जिकी डडिी की अपील की गई िै और
ऐिी दशा में ऐिे न्यायालय को अपेक्षित िाक्ष्य लेने के सलए ननदे श दे गा,
और ऐिा न्यायालय ऐिे वििाद्यकों के विचारण के सलए अग्रिर िोगा और िाक्ष्य को उि पर अपने
ननष्कषों के िहित और उनके सलए अपने कारणों के िहित 1[ऐिे िमय के भीतर जो अपील न्यायालय
द्िारा ननयत क्रकया जाए या उिके द्िारा िमय-िमय पर बढ़ाया जाए,] अपील न्यायालय को लौटा दे गा ।

1. 1976 के अधधननयम िं.104 की धारा 87 द्िारा (1.2.1977 िे) अंत स्थावपत क्रकया गया ।

26. ननष्कषव और िाक्ष्य का असिलेख में िस्म्मसलत क्रकया जाना । ननष्कषव पर आक्षेप- (1) ऐिा
िाक्ष्य और ऐिे ननष्कषि िाद के असभलेख का भाग िोंगे और दोनों पिकारों में िे कोई भी ऐिे िमय के
भीतर जो अपील न्यायालय द्िारा ननयत क्रकया जाएगा, क्रकिी भी ननष्कषि, प्रनत आिेपों का ज्ञापन
उपस्थावपत कर िकेगा ।
(2) अपील का अिधारण- ऐिे ज्ञापन के उपस्थावपत क्रकए जाने के सलए इि प्रकार ननयत की गई
अिधध के अििान के पश्चात ् अपील न्यायालय अपील का अिधारण करने के सलए अग्रिर िोगा ।

1
[26क. प्रनतप्रेषण के आदे श में अगली िन
ु िाई का उल्लेख क्रकया जाना- जिां अपील न्यायालय ननयम
23 या ननयम 23क के अधीन मामला प्रनतप्रेषण करता िै या ननयम 25 के अधीन वििाद्यकों की विरचना
करता िै और उन्िें विचारण के सलए ननहदि ष्ट करता िै ििां िि उि मामले में आगे कायििाि के बारे में उि
न्यायालय के र्जिकी डडिी की अपील की गई थी, ननदे श प्राप्त करने के प्रयोजन के सलए उि न्यायालय के
िमि पिकारों की उपिंजानत के सलए तार ख ननयत करे गा ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 87 द्िारा (1.2.1977 िे अंत स्थावपत क्रकया गया ।

27. अपील न्यायालय में अनतररतत िाक्ष्य का पेश क्रकया जाना- (1) अपील के पिकार अपील
न्यायालय में अनतररक्त िाक्ष्य चािे िि मौणखक िो या दस्तािेजी, पेश करने के िकदार नि ं िोंगे क्रकन्तु
यहद-
(क) उि न्यायालय ने र्जिकी डडिी की अपील की गई िै , ऐिा िाक्ष्य ग्रिण करने िे इंकार कर
हदया िै जो ग्रिण क्रकया जाना चाहिए था, अथिा
1
[(कक) िि पिकार जो अनतररक्त िाक्ष्य पेश करना चािता िै यि सिद्ध कर दे ता िै क्रक िि
िम्यक् तत्परता का प्रयोग करने के बािजद
ू ऐिे िाक्ष्य की जानकार नि ं रखता था या उिे उि िमय पेश
नि ं कर िकता था जब िि डडिी पाररत की गई थी र्जिके विरुद्ध अपील की गई िै , अथिा
(ख) अपील न्यायालय क्रकिी दस्तािेज के पेश क्रकए जाने की या क्रकिी िािी की पर िा की जाने
की अपेिा या तो स्ियं ननणिय िन
ु ाने के िमथि िोने के सलए या क्रकिी अन्य िारिान ् िे तक
ु के सलए करे ,

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तो अपील न्यायालय ऐिे िाक्ष्य का सलया जाना या दस्तािेज का पेश क्रकया जाना या िािी की
पर िा का क्रकया जाना अनज्ञ
ु ात कर िकेगा ।
(2) जिां कि ं अनतररक्त िाक्ष्य पेश करने के सलए अपील न्यायालय अनज्ञ
ु ा दे दे ता िै ििां
न्यायालय ऐिे िाक्ष्य के ग्रिण क्रकए जाने के कारणों को लेखबद्ध करे गा ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 87 द्िारा (1-2-1977 िे) अंत: स्थावपत क्रकया गया
क्रकया गया ।

28. अनतररतत िाक्ष्य लेने की रीनत- जिां कि ं अनतररक्त िाक्ष्य पेश करने की अनज्ञ
ु ा द जाती िै
ििा अपील न्यायालय ऐिा िाक्ष्य स्ियं ले िकेगा या उि न्यायालय को र्जिकी डडिी की अपील की गई िै
या क्रकिी अन्य अधीनस्थ न्यायालय को ऐिा िाक्ष्य लेने के सलए और उिके ले सलए जाने पर अपील
न्यायालय को उिे भेजने के सलए ननदे श दे िकोगा ।

29. विषय-बबन्दओ
ु ं का पररिावषत और लेखबद्ध क्रकया जाना- जिां अनतररक्त िाक्ष्य लेने का ननदे श
हदया जाता िै या अनज्ञ
ु ा द जाती िै ििा अपील न्यायालय उन विषय-बबन्दओ
ु ं को विननहदिष्ट करे गा र्जन
तक िाक्ष्य को िीसमत रखना िै , और अपनी कायििाहियों में उन विषय- बबन्दओ
ु ं को लेखबद्ध करे गा जो
इि प्रकार विननहदि ष्ट क्रकए गए िैं ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 87 द्िारा (1-2-1977 िे) ननयम 30 को उिकी
उपधारा (1) के रुप में पन
ु : िंख्यांक्रकत क्रकया गया |
1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 87 द्िारा (1-2-1977 िे) अंतःस्थावपत क्रकया गया ।

अपील का ननणवय
30. ननणवय कब और किां िन
ु ाया जाएगा- [(1)] अपील न्यायालय पिकारों को या उनके प्ल डरों
1

को िन
ु ने के पश्चात ् और अपील की या उि न्यायालय की र्जिकी डडिी की अपील की गई िै , कायििाहियों
के ऐिे क्रकिी भाग का अिलोकन करने के पश्चात ् र्जिका अिलोकन करना आिश्यक िमझा जाए खुले
न्यायालय में तरु ं त या क्रकिी भविष्यिती हदन को र्जिकी िच
ू ना पिकारों को या उनके प्ल डरों को द
जाएगी, ननणिय िन
ु ाएगा ।
1
[(2)] जिां कोई सलणखत ननणिय िन
ु ाया जाता िै ििां अिधायि प्रश्न, उन पर विननश्चय और अपील
में पाररत अंनतम आदे श को पढा जाना पयािप्त िोगा और न्यायालय के सलए िंपण
ू ि ननणिय को पढ़ना
आिश्यक नि ं िोगा, क्रकन्तु पिकारों या उनके प्ल डरों को पररशीलन के सलए िंपण
ू ि ननणिय की प्रनत ननणिय
िन
ु ाए जाने के तरु ं त पश्चात ् उपलब्ध कराई जाएगी ।]

31. ननणवय की अंतिवस्त,ु तारीख और िस्ताक्षर- अपील न्यायालय का ननणिय सलणखत िोगा और

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उिमें ---
(क) अिधायि प्रश्न;
(ख) उन पर विननश्चय;
(ग) विननश्चय के सलए कारण; तथा
(घ) जिां िि डडिी र्जिकी अपील की गई िै उलट द जाती िै या उिमें फेरफार क्रकया जाता िै
ििां िि अनत
ु ोष र्जिका अपीलाथी िकदार िै , कधथत िोगा,
और िि न्यायाधीश द्िारा या उिमें ििमत न्यायाधीशों द्िारा उि िमय जब िि िन
ु ाया जाए,
िस्तािररत और हदनांक्रकत क्रकया जाएगा ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (14 -1-1939)- ननयम के अंत के पण
ू ि विराम को िटाकर
अद्िधविराम को लगाये और ननम्न परन्तक
ु जोडे-
''परन्तु यि क्रक जिां पीठािीन न्यायाधीश खुले न्यायालय में आशसु लवपक को श्रत
ु - लेखन के द्िारा
उिके ननणिय को उद्घोवषत करता िै तो इि प्रकार उद्घोवषत ननणिय की अनसु लवप को ऐिा पन
ु र िण करने
के उपरांत जो क्रक आिश्यक िमझा जाए न्यायाधीश द्िारा िस्तािररत क्रकया जाएगा और इि पर इिके
उद्घोवषत िोने की हदनांक िोगी”|

राजस्थान उव्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (23.12.1964)- ितिमान ननयम 30 को ननयम 30 (1) के
रूप मे पन
ु किमांक्रकत क्रकया गया । 30 (2) ननयम 30 (2) ि 30 (3) के रुप में ननम्न को प्रनतस्थावपत
क्रकया गया-
''(2) जिां पीठािीन न्यायाधीश खुले न्यायालय में आशसु लवपक को श्रुत- लेखन के द्िारा उिके
ननणिय को उदघोवषत करता िै तो इि प्रकार उद्घोवषत ननणिय की अनसु लवप को ऐिा पन
ु र िण करने के
उपरांत जो क्रक आिश्यक िमझा जाए न्यायाधीश द्िारा िस्तािररत क्रकया जाएगा और इि पर इिके
उद्घोवषत िोने की हदनांक िोगी ।
(3) उन मामलो में जिां क्रक न्यायाधीश के द्िारा उिके िाथों िे ननणिय को नि ं सलखा जाता िै
अवपतु श्रत
ृ लेखन के द्िारा अन्य व्यर्क्त के द्िारा अिरश: सलखा जाता िै तो उिके द्िारा ननणिय के
प्रत्येक पष्ृ ठ को आद्यिररत क्रकया गया जाएगा ।''

पटना उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (21.9.1960)- ननयम के अंत के पण


ू ि विराम को िटाकर
अद्िधविराम को लगाये और ननम्न परन्तक
ु जोडे-
''परन्तु यि क्रक जिा पीठािीन न्यायाधीश खुले न्यायालय मे आशसु लवपक को श्रत
ु -लेखन के द्िारा
उिके ननणिय को उद्घोवषत करता िै तो इि प्रकार उद्घोवषत ननणिय की अनसु लवप को ऐिा पन
ु र िण करने
के उपरांत जो क्रक आिश्यक िमझा जाए न्यायाधीश अथिा इिमे ििमत िोने िाले न्यायाधीशगण द्िारा
िस्तािररत क्रकया जाएगा और इि पर इिके उदघोवषत िोने की हदनांक िोगी । ''

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32. ननणवय तया ननदे श दे िकेगा- ननणिय उि डडिी को र्जिकी अपील की गई िै पष्ु ट करने उिमें
फेरफार करने या उिे उलटने के सलए िो िकेगा या यहद अपील के पिकार अपील की डडिी के प्ररूप के
बारे में या अपील में क्रकए जाने िाले आदे श के बारे में ििमत िो जाएं तो अपील न्यायालय तदनि
ु ार डडिी
पाररत कर िकेगा या आदे श कर िकेगा ।

33. अपील न्यायालय की शस्तत- अपील न्यायालय की यि शर्क्त िोगी क्रक िि कोई ऐिी डडिी
पाररत करे या कोई ऐिा आदे श करे जो पाररत की जानी चाहिए थी या जो क्रकया जाना चाहिए था और ऐिा
या अनतररक्त या अन्य डडिी या आदे श पाररत करे जो मामले में अपेक्षित िो और उि शर्क्त का प्रयोग
न्यायालय द्िारा इि बात के िोते िुए भी क्रकया जा िकेगा क्रक अपील डडिी के केिल भाग के बारे में िै
और यि शर्क्त िभी प्रत्यधथियों या पिकारों या उनमें िे क्रकिी के भी पि में प्रयोग की जा िकेगी यद्यवप
ऐिे प्रत्यधथियों या पिकारों ने कोई भी अपील या आिेप फाइल न क्रकया िो 1[और जिां प्रतीपिादों में
डडक्रियां िुई िों या जिां एक िाद में दो या अधधक डडक्रियां पाररत की गई िों ििां यि शर्क्त िभी डडक्रियों
या उनमें िे क्रकिी के बारे में प्रयोग की जा िकेगी यद्यवप ऐिी डडक्रियों के विरुद्ध अपील फाइल न की
गई िो :
2
[परन्तु अपील न्यायालय धारा 35क के अधीन कोई भी आदे श क्रकिी ऐिे आिेप के अनि
ु रण में
नि करे गा र्जि पर उि न्यायालय ने र्जिकी डडिी की अपील की गई िै , ऐिा आदे श नि ं क्रकया िै या
ऐिा आदे श करने िे इन्कार क्रकया िै ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 87 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया गया |
2. 1922 के अधधननयम िं. 9 की धारा 4 द्िारा अन्त: स्थावपत र्जिे उक्त अधधननयम की धारा
1(2) के अधीन क्रकिी भी विननहदि ष्ट तार ख को क्रकिी राज्य मे राज्य िरकार द्िारा प्रित
ृ क्रकया
जा िकेगा । यि अधधननयम मम्
ु बई, बंगाल, िंयक्
ु त प्रान्त, पंजाब, बबिार, मध्य प्रान्त अिम
उडीिा और तसमलनाडु में प्रिि
ृ क्रकया गया िै ।

34.वििम्मनत का लेखबद्ध क्रकया जाना- जिां अपील एक िे अधधक न्यायाधीशों द्िारा िन


ु ी जाती
िै ििां न्यायालय के ननणिय िे वििम्मत कोई भी न्यायाधीश उि विननश्चय या आदे श का जो िि िमझता
िै क्रक अपील में पाररत क्रकया जाना चाहिए, सलणखत रुप में कथन करे गा और िि उिके सलए अपने कारणों
का कथन कर िकेगा ।

अपील में की डििी


1
35. डििी की तारीख और अन्तिवस्त-ु (1) अपील न्यायालय की डडिी पर उि हदन की तार ख
िोगी र्जि हदन ननणिय िन
ु ाया गया था ।
(2) डडिी में अपील के िंख्यांक, अपीलाथी और प्रत्यथी के नाम और िणिन, तथा हदया गया
अनत
ु ोष या क्रकए गए अन्य न्यायननणियन का स्पष्ट विननदे श अन्तवििष्ट िोंगे ।
(3) अपील में उपगत खचो की रकम भी और यि बात भी क्रक ऐिे खचे और िाद के खचे क्रकिके

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द्िारा या क्रकि िम्पवि में िे और क्रकि अनप
ु ात में हदए जाएंगे, डडिी में कधथत िोंगी ।
(4) डडिी उि न्यायाधीश या उन न्यायाधीशों द्िारा र्जिने या र्जन्िोंने उिे पाररत क्रकया िो,
िस्तािररत और हदनांक्रकत की जाएगी :
ननणवय िे वििम्मत न्यायाधीश के सलए डििी पर िस्ताक्षर करना आिश्यक निीं- परन्तु जिां एक
िे अधधक न्यायाधीश िों और उनमें मतभेद िो ििां न्यायालय के ननणिय िे वििम्मत क्रकिी भी न्यायाधीश
के सलए यि आिश्यक नि ं िोगा क्रक िि डडिी पर िस्तािर करे ।

36. पक्षकारों को ननणवय और डििी की प्रनतयां का हदया जाना- अपील के ननणिय और डडिी की
प्रमाणणत प्रनतयां पिकारों को अपील न्यायालय िे आिेदन करने पर और उनके व्यय पर द जाएंगी ।

1. यि ननयम अपि के मख्


ु य न्यायालय की अपील अधधकाररता के प्रयोग मे लागू नि ं िोता िै ।
दे णखए अिध कोइि ऐक्ट, 1925 (1925 का य.ू पी. अधधननयम िं. 4) की धारा 16(3).

37. डििी की प्रमाखणत प्रनत उि न्यायालय को िेजी जाएगी स्जिकी डििी की अपील की गई थी-
ननणिय और डडिी की एक प्रनत अपील न्यायालय द्िारा या ऐिे अधधकार द्िारा जो िि इि ननसमि
ननयक्
ु त करे प्रमाणणत की जाकर उि न्यायालय को भेजी जाएगी र्जिके द्िारा िि डडिी पाररत की गई थी
र्जिकी अपील की गई िै और िाद की मल
ू कायििाहियों के िाथ फाइल की जाएगी और अपील न्यायालय
के ननणिय प्रविर्ष्ट सिविल िादों के रर्जस्टर में की जाएगी ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- ननयम 37 में दसशित शब्दों ''और याद की मल

कायििाहियों के िाथ फाइल की जाएगी'' को विलोवपत क्रकया गया और ननयम के अंत में ननम्न निीन पद
विरधचत क्रकया गया-

''जिां अपील य न्यायालय उच्च न्यायालय िै तो उपरोक्त कधथत प्रनतसलवपयों िाद की मल



कायििाहियो के िाथ फाइल क्रकया जाएगा ।''

आदे श 41 ननयम 38
इलािाबाद उच्च न्यायालय दारा िंशोधन (1.6.1918)- आदे श 41 में ननयम 38 के रुप में ननम्न
निीन ननयम 38 को जोडा गया-
''38 (1) आदे श 7 ननयम 19 या आदे श 8ननयम 11 या बाद में पररिनतित आदे श 7ननयम 24के
अन्तगित या आदे श 8 ननयम 12के अन्तगित फाइल क्रकया गया तामील का पता मल
ू िाद या याधचका िे
उत्पन्न िभी अपील य कायििाि के दौरान भी काम मे आने योग्य बना रिे गा ।
(2) अपील का प्रत्येक ज्ञापन अधीनस्थ न्यायालय में प्रनतपिों द्िारा तामील के सलए हदये गये पतों
को बताया जाएगा ।

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(3) आदे श 7 के ननयम 21, 22, 23, 24 यथाशक्य अपील य कायििाहियों को भी प्रयोज्य िोंगे ।
पटना उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (1.6.1918)- आदे श 41 में ननयम 38 के रुप में ननम्न
निीन ननयम 38 को जोड़ा गया-
''38 (1) आदे श 7 ननयम 19, या आदे श 8ननयम 11 या बाद में पररिनतित आदे श ननयम 24 के
अन्तगित या आदे श 8 ननयम 12 के अन्तगित फाइल क्रकया गया तामील का पता मल
ू िाद या याधचका िे
उत्पन्न िभी अपील य कायििाि के दौरान भी काम में आने योग्य बना रिे गा और अपील य न्यायालय
द्िारा ऐिे पतों पर िच
ू ना ि आदे सशकाओं को जार क्रकया जाएगा ।
(2) अपील का प्रत्येक ज्ञापन अधीनस्थ न्यायालय में प्रनतपिों द्िारा तामील के सलए हदये गये पतों
को बताया जाएगा ।
(3) आदे श 7 के ननयम 21 ि 22 यथाशक्य अपील य कायििाहियों को भी प्रयोज्य िोंगे ।

आदे श 41- क
इलािाबाद उच्च न्यायालय िंशोधन- आदे श 41 के बाद, आदे श 41- क के ननयम 1 लगायत 11
को ननम्नानि
ु ार अंतःस्थावपत क्रकया गया ।

आदे श 42

अपीली डिक्रियों की अपीलें

1. प्रक्रिया- आदे श 41 के ननयम अपील डडक्रियों की अपीलों को, जिां तक िो िके लागू िोंगे ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


इलािाबाद उच्च न्यायालय िंशोधन- ननयम 1 के स्थान ननम्न ननयम 1 को प्रनतस्थावपत क्रकया
गया- ''1 प्रक्रिया- आदे श 41 के ननयम अपील डडक्रियों की अपीलों को जिां तक िो िके ननम्न
परं तक
ु के अधीन लागू िोगे । (17-6-1916 ि 22.12.1951)
अपील य डडिी िे अपील का प्रत्येक ज्ञापन अपील की गयी डडिी एक प्रनतसलवप के िाथ िंलग्र
िोगा और जब तक क्रक न्यायालय उनमें िे क्रकिी को या िभी को मक्
ु त करना उपयक्
ु त न िमझे -
(1) ननणिय की प्रनतसलवप र्जि पर क्रक कधथत डडिी स्थावपत िै ।
(2) प्रथम बार के न्यायालय के ननणिय की प्रनतसलवप; और
(3) जैिा भी मामला िो, सिविल न्यायालय ि राजस्ि न्यायालय के ननष्कषि की प्रनतसलवप जिां क्रक
वििाद्यक ऐिे न्यायालय को ननणिय के सलए भेजा गया िै । (14.4.1948)

राजस्थान उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- ननयम 1 के स्थान ननम्न ननयम 1 को प्रनतस्थावपत
क्रकया गया
''1. प्रक्रिया- आदे श 41 के ननयम अपील डडक्रियो की अपीलों को जिां तक िो िके ननम्न परं तक

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के अधीन लागू िोंगे ।
अपील य डडिी िे अपील का प्रत्येक ज्ञापन अपील की गयी डडिी एक प्रनतसलवप के िाथ िंलग्र
िोगा और जब तक क्रक न्यायालय उनमें िे क्रकिी को या िभी को मक्
ु ि करना उपयक्
ु त न िमझे -
(1) ननणिय की प्रनतसलवप र्जि पर क्रक कधथत डडिी स्थावपत िै ।
(2) प्रथम बार के न्यायालय के ननणिय की प्रनतसलवप; और
(3) जैिा भी मामला िो सिविल न्यायालय ि राजस्ि न्यायालय के ननष्कषि की प्रनतसलवप जिां क्रक
वििाद्यक ऐिे न्यायालय को ननणिय के सलए भेजा गया िै ।

[2. न्यायालय की यि ननदे श दे ने की शस्तत क्रक उिके द्िारा बनाए गए प्रश्न पर अपील िन
1
ु ी
जाए- आदे श 41 के ननयम 11 के अधीन द्वितीय अपील की िन
ु िाई के सलए आदे श क्रकए जाने के िमय,
न्यायालय धारा 100 द्िारा यथाअपेक्षित िारिान ् विधध - प्रश्न बनाएगा और ऐिा करने में न्यायालय ननदे श
कर िकेगा क्रक द्वितीय अपील इि प्रकार बनाए गए प्रश्न पर िन
ु ी जाएगी और अपीला थीं न्यायालय की
इजाजत के बबना जो धारा 100 के उपबन्धों के अनि
ु ार द गई िो अपील में कोई अन्य आधार ननिेहदत
करने के सलए स्ितंत्र नि ं िोगा ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 88 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया गया ।

3. आदे श 41 के ननयम 14 का लागू िोना- आदे श 41 के ननयम 14 के उपननयम (4) में प्रथम
बार के न्यायालय के प्रनत ननदे शों का क्रकिी अपील डडिी या आदे श की अपील की दशा में यि अथि लगाया
जाएगा क्रक िे उि न्यायालय के प्रनत ननदे श िैं र्जिमें मल
ू डडिी या आदे श की अपील की गई थी ।

आदे श 43
आदे शों की अपीलें

1. आदे शों की अपीलें- धारा 104 के उपबन्धों के अधीन ननम्नसलणखत आदे शों की अपील िोगी,
अथाित:-
(क) िादपत्र के उधचत न्यायालय में उपर्स्थत क्रकए जाने के सलए लौटाने का आदे श जो आदे श 7 के
ननयम 10 के अधीन हदया गया िो, 1[सििाय उि दशा के जब आदे श 7 के ननयम 10क में विननहदि ष्ट
प्रक्रिया का अनि
ु रण क्रकया गया िो];
*
2
* * * * *
(ग) िाद की खाररजी को अपास्त करने के आदे श के सलए (ऐिे मामले में र्जिमें अपील िोती िै )
आिेदन को नामंजूर करने का आदे श जो आदे श 9 के ननयम 9 के अधीन हदया गया िो;
(घ) एकपिीय पाररत डडिी को अपास्त करने के आदे श के सलए (ऐिे मामले में र्जिमें अपील िोती
िै ) आिेदन के नामंजूर करने का आदे श जो आदे श 9 के ननयम 13 के अधीन हदया गया िो;

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3
* * * * * *
(च) आदे श 11 के ननयम 21 के अधीन आदे श;
4
* * * * * *
(झ) दस्तािेज के या पष्ृ ठांकन के प्रारूप पर क्रकए गए आिेप पर आदे श जो आदे श 21 के ननयम
34 के अधीन हदया गया िो;
(अ) वििय को अपास्त करने का या अपास्त करने िे इंकार करने का आदे श जो आदे श 21 के
ननयम 72 या ननयम 92 के अधीन हदया गया िो;
5
[(अक) आिेदन को नामंजरू करने का आदे श जो आदे श 21 के ननयम 106 के उपननयम (1) के
अधीन क्रकया गया िो परन्तु मल
ू आिेदन पर अथाित ् उि आदे श के ननयम 105 के उपननयम (1) में
ननहदि ष्ट आिेदन पर आदे श अपीलनीय िै ;]

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 89 द्िारा (1.2.1977 िे) अन्तःस्थावपत क्रकया गया ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 89 द्िारा (1.2.1977 िे) खण्ड (ख), (डः), (छ) और
(ज) का लोप ।
3. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 89 द्िारा (1.2.1977 िे) खण्ड (ख), (डः), (छ) और
(ज) का लोप ।
4. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 89 द्िारा (1.2.1977 िे) खण्ड (ख), (ड.), (छ) और
(ज) का लोप ।
5. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 89 द्िारा (1.2.1977 िे अन्त:स्थावपत क्रकया गया ।

(ट) िाद के उपशमन या खाररजी को अपास्त करने िे इंकार करने का आदे श जो आदे श 22 के
ननयम 9 के अधीन हदया गया िै ;
(ठ) इजाजत दे ने का या इजाजत दे ने िे इंकार करने का आदे श जो आदे श 22 के ननयम 10 के
अधीन हदया गया िो
1
* * * * * *
(ढ) िाद की खाररजी को अपास्त करने के आदे श के सलए (ऐिे मामले में र्जिमें अपील िोती िै )
आिेदन को नामंजूर करने का आदे श जो आदे श 25 के ननयम 2 के अधीन हदया गया िो;
2
[(ढक) ननधिन व्यर्क्त के रुप में िाद लाने की अनज्ञ
ु ा के सलए आिेदन को नामंजरू करने का आदे श
जो आदे श 33 के ननयम 5 या ननयम 7 के अधीन हदया गया िो;
3
* * * * * *
(त) अन्तरासभिाची िादों में आदे श जो आदे श 35 के ननयम 3, ननयम 4 या ननयम 6 के अधीन
हदया गया िो;
(थ) आदे श 38 के ननयम 2, ननयम 3 या ननयम 6 के अधीन आदे श;
(द) आदे श 39 के ननयम 1, ननयम 2, 4[ननयम 2क,] ननयम 4 या ननयम 10 के अधीन आदे श
(ध) आदे श 40 के ननयम 1 या ननयम 4 के अधीन आदे श;

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(न) अपील को आदे श 41 के ननयम 19 के अधीन पन
ु :ग्रिण करने या आदे श 41 के ननयम 21 के
अधीन पन
ु : िन
ु ने िे इंकार करने का आदे श;
(प) जिां अपील न्यायालय की डडिी की अपील िोती िो ििां मामले को प्रनतप्रेवषत करने का आदे श
जो आदे श 41 के ननयम 23 5[ननयम 23क] के अधीन हदया गया िो;
6
* * * * * *
(ब) पन
ु वििलोकन के सलए आिेदन मंजूर करने का आदे श जो आदे श 47 के ननयम 4 के अधीन हदया
गया िो |
1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 89 द्िारा (1.2.1977 िे) खण्ड (ड), (ण) और (फ) का
लोप ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 89 द्िारा (1.2.1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया गया ।
3. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 89 द्िारा (1.2.1977 िे) खण्ड (ड), (ण) और (फ) का
लोप ।
4. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 89 द्िारा (1.2.1977 िे अन्तःस्थावपत क्रकया गया ।
5. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 89 द्िारा (1.2.1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया गया |
6. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 89 द्िारा (1.2.1977 िे) खण्ड (ड), (ण) और (फ) का
लोप ।
1
[1क. डिक्रियों के विरुद्ध अपील में के ऐिे आदे शों पर आक्षेप करने का अधधकार स्जनकी अपील
निीं की जा िकती- (1) जिां इि िंहिता के अधीन कोई आदे श क्रकिी पिकार के विरुद्ध क्रकया जाता िै
और तदप
ु रान्त ननणिय ऐिे पिकार के विरुद्ध िन
ु ाया जाता िै और डडिी तैयार की जाती िै ििा ऐिा
पिक डडिी के विरुद्ध अपील में यि प्रनतिाद कर िकेगा क्रक ऐिा आदे श नि ं क्रकया जाना चाहिए था और
ननणिय नि ं िन
ु ाया जाना चाहिए था ।
(2) ऐिी डडिी के विरुद्ध अपील में जो िमझौता असभसलणखत करने के पश्चात ् या िमझौता
असभसलणखत क्रकया जाना नामंजरू करने के पश्चात ् िाद में पाररत की गई िै , अपीलाथी को इि आधार पर
डडिी का प्रनतिाद करने की स्ितंत्रता िोगी क्रक िमझौता असभसलणखत क्रकया जाना चाहिए था या नि ं क्रकया
जाना चाहिए था ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 89 द्िारा (1.2.1977 िे) अन्तःस्थावपत क्रकया गया ।
2. प्रक्रिया- आदे श 41 के ननयम आदे शों की अपीलों को, जिां तक िो िके लागू िोंगे ।

आदे श 44
1
[ननधवन व्यस्ततयों द्िारा अपीलें]

1. 2[ननधवन व्यस्तत के रुप में ] कौन अपील कर िकेगा- 3[(1)] अपील करने का िकदार कोई
भी व्यर्क्त जो अपील के ज्ञापन के सलए अपेक्षित फीि दे ने में अिमथि िै अपील के ज्ञापन के िा
थ आिेदन उपर्स्थत कर िकेगा और िभी बातों में र्जनके अन्तगित ऐिे आिेदन को उपर्स्थत

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करना भी िै उन उपबन्धों के जो 4[ननधिन व्यर्क्तयों] द्िारा िादों के िम्बन्ध में िैं ििां तक अधीन
रिते िुए जिां तक ऐिे उपबन्ध लागू करने योग्य िैं, 5[ननधिन व्यर्क्त] के रुप में अपील करने के
सलए अनज्ञु ात क्रकया जा िकेगा :

आदे श 44 ननयम 1- क
राजस्थान उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन(21.7.1954)- आदे श 44 ननयम 1- क के रुप में ननम्न
ननयम प्रनतस्थावपत क्रकया गया-
''1-क- जिां ननयम 1 के अन्तगित आिेदन ननरस्त कर हदया गया िै तो न्यायालय आिेदन ननरस्त
करते िमय, उिके द्िारा ननयत क्रकये गये िमय के भीतर न्यायालय फीि भग
ु तान करने के आिेदनपत्र को
मंजरू कर िकेगा और ऐिे भग
ु तान पर अपील ज्ञापन र्जिके िंबध
ं में ऐिी फीि भग
ु तानयोग्य िै को िमान
बल ि प्रभाि िोगा मानों ऐिी फीि प्रथमत:भग
ु तान की गयी िै |

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 90 द्िारा (1.2.1977 िे) ''अक्रकं चन अपीलों'' के स्थान
पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 90 द्िारा (1.2.1977 िे) ''अक्रकं चन के रुप मे'' के
स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
3. 1956 के अधधननयम िं. 66 की धारा 14 द्िारा ननयम 1 को उिके उपननयम (1) के रुप में
पन
ु : िंख्यांक्रकत क्रकया गया ।
4. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 90 द्िारा (1.2.1977 िे) िमश : ''अक्रकंचनों'' और
''अक्रकं चन'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
5. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 90 द्िारा (1.2.1977 िे) िमश : ''अक्रकंचनों'' और
''अक्रकं चन'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
6. 1956 के अधधननयम िं. 66 की धारा 14 द्िारा परन्तक
ु का लोप ।
7. 1956 के अधधननयम िं. 66 की धारा 14 द्िारा अन्त : स्थावपत उपननयम (2) का 1976 के
अधधननयम िं. 104 की धारा 90 द्िारा (1.2.1977 िे) लोप ।

1
[2. न्यायालय फीि के िंदाय के सलए िमय हदया जाना- जिां आिेदन को ननयम 1 के अधीन
नामंजरू क्रकया जाता िै ििां न्यायलय आिेदन नामंजरू करते िमय आिेदक को यि अनज्ञ
ु ा दे िकेगा क्रक
िि अपेक्षित न्यायालय फीि ऐिे िमय के भीतर जो न्यायालय द्िारा ननयत क्रकया जाए या उिके द्िारा
िमय-िमय पर बढ़ाया जाए, िंदि करे और ऐिा िंदाय कर दे ने पर उि अपील के ज्ञापन का र्जिके िंबध

में फीि िंदेय िै , िि बल और प्रभाि िोगा मानो िि फीि प्रथम बार में िंदि कर द गई िो ।

3. इि प्रश्न के बारे में जांच क्रक आिेदक ननधवन व्यस्तत िै या निीं- (1) जिां ननयम 1 में ननहदिष्ट
आिेदक को उि न्यायालय में र्जिकी डडिी की अपील की गई िै , ननधिन व्यर्क्त के रुप िाद लाने या
अपील करने के सलए अनज्ञ
ु ात क्रकया गया था ििां, यहद आिेदक ने यि कथन करते िुए शपथ-पत्र हदया िै

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क्रक िि उि डडिी की तार ख िे र्जिकी अपील की गई िै , ननधिन व्यर्क्त न रिने िे पररविरत नि ं िुआ िै
तो, इि प्रश्न के बारे में क्रक िि ननधिन व्यर्क्त िै या नि ं, कोई अनतररक्त जांच आिश्यक नि ं िोगी,
क्रकन्तु यहद िरकार प्ल डर या प्रत्यथी ऐिे शपथपत्र में क्रकए गए कथन पर वििाद करता िै तो पि
ू ोक्त
प्रश्न की जांच अपील न्यायालय द्िारा या अपील न्यायालय के आदे शों के अधीन उिी न्यायालय के
अधधकार द्िारा की जाएगी ।
(2) जिां ननयम 1 में ननहदिष्ट आिेदक के बारे में यि असभकथन क्रकया जाता िै क्रक िि उि डडिी
की तार ख िे र्जिकी अपील की गई िै , ननधिन व्यर्क्त िो गया िै ििां इि प्रश्न की जांच की िि ननधिन िै
या नि ,ं अपील न्यायालय द्िारा या अपील न्यायालय के आदे शों के अधीन उिी न्यायालय के अधधकार
द्िारा उि दशा में की जाएगी र्जिमें अपील न्यायालय मामले की पररर्स्थनतयों में यि आिश्यक नि ं
िमझता क्रक जांच ऐिे न्यायालय द्िारा की जानी चाहिए र्जिके विननश्चय की अपील की गई िै ।]

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 90 द्िारा (1.2.1977 िे) ननयम 2 के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (26.4.1987)- ननयम 3 के स्थान पर ननम्न ननयम 3
को प्रनतस्थावपत क्रकया गया-
''3. क्या आिेदक अक्रकं चन व्यर्क्त िै इि बाबत जांच- इि प्रश्न पर जांच क्रक क्या ननयम 1 में
ननहदि ष्ट आिेदक अक्रकं चन व्यर्क्त िै अथिा नि ं अपील य न्यायालय द्िारा की जाएगी अथिा अपील य
न्यायालय के आदे श के अधीन उि न्यायालय के अधधकार द्िारा जब तक क्रक अपील य न्यायालय यि
आिश्यक नि ं िमझता िै क्रक मामलें की पररर्स्थनतयों में उि जांच को ऐिे न्यायालय के द्िारा क्रकया
जाना चाहिए र्जिके ननणिय िे अपील प्रस्तत
ु की गयी िै :
परन्तु यि क्रक यहद ऐिे आिेदक को उि न्यायालय में र्जिमें क्रक अपील प्रस्तत
ु की गयी िै
ु ात क्रकया जाता िै तो इि प्रश्न पर क्रक क्या िि अक्रकंचन
अक्रकं चन के रूपा में अपील को चलाने को अनज्ञ
व्यर्क्त िै अथिा नि ं अन्यथा जाच करना आिश्यक नि ं िोगा यहद आिेदक ने एक शपथपत्र यि बताते
िुए क्रक िि अपील की गयी डडिी की हदनांक तक अक्रकंचन व्यर्क्त िोना िमाप्त नि ं िुआ िै , दे ता िै
परन्तु यहद िरकार प्ल डर या प्रत्यथी ऐिे शपथ - पत्र में क्रकये गये कथन के ित्यता को वििाहदत करता
िै तो उपरोक्त कथन पर ऊपर िणणित र नत में जांच की जाएगी ।''

आदे श 45
[उच्चतम न्यायालय] में अपीलें
1

1. “डििी'' की पररिाषा- इि आदे श में , जब तक क्रक विषय या िन्दभि में कोई बात विरुद्ध न िो,
“डडिी'' पद के अन्तगित अर्न्तम आदे श भी आएगा ।
2. उि न्यायालय िे आिेदन स्जिकी डििी पररिाहदत िै - 2[(1) जो कोई 3[उच्चतम न्यायालय] में

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अपील करना चािता िै िि उि न्यायालय में अजी द्िारा आिेदन करे गा र्जिकी डडिी पररिाहदत िै ।
4
[(2) उपननयम (1) के अधीन िर अजी की िन
ु िाई यथािम्भि शीघ्रता में की जाएगी और आिेदन
के ननपटारे को उि तार ख िे र्जिको िि अजी उपननयम (1) के अधीन न्यायालय में उपस्थावपत की जाती
िै , िाठ हदन के भीतर िमाप्त करने का प्रयाि क्रकया जाएगा ।]

1. विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1950 द्िारा “क्रकं ग-इन- काउसिल'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रक या
गया ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 91 द्िारा (1.2.1977 िे) ननयम 2 को उिके उपननयम
(1) के रुप में पन
ु : िंख्यांक्रकत क्रकया गया ।
3. विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1950 द्िारा “हिज मैजेस्ट इन काउर्न्िल'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत
क्रकया गया ।
4. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 91 द्िारा (1.2.1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया गया ।

राज्य िंशोधन
उिर प्रदे श राज्य द्िारा िंशोधन- उ.प्र. अधधननयम (1976 का 57) के द्िारा उिर प्रदे श राज्य में
प्रयोज्य िोने के सलए उपननयम (2) के स्थान ननम्न उपननयम (3) शासमल क्रकया गया िै -
“(3) उपननयम (1) में अन्तननिहित क्रकिी बात के िोते िुए भी, जो कोई भी उच्चतम न्यायालय में
अपील करने की िांछा रखता िें उि न्यायालय िे र्जिकी डडिी पररिाहदत िै , न्यायालय द्िारा ननणिय
उद्घोवषत क्रकये जाने के ठीक पि
ू ि या पश्चात में मौणखक तौर ननयम 3 के उपननयम (1) में िणणित
प्रमाणपत्र के सलए आिेदन कर िकेगा और न्यायालय प्रमाणपत्र दे िकेगा या इंकार कर िकेगा, अथिा
आिेदक को उपननयम (1) द्िारा यथा अपेक्षित याधचका फाइल करने को ननदे सशत कर िकेगा :
परन्तु यि क्रक यहद मौणखक आिेदन को ग्रिण क्रकया जाता िै और ननरस्त कर हदया जाता िै तो
उपननयम (1) के अन्तगित कोई सलणखत याधचका नि ं िोगी ।''
पटना उच्च न्यायालय दारा िंशोधन(1.11.1978)- ननयम 2 के स्थान पर ननम्न ननयम प्रनतस्थावपत
क्रकया गया उि न्यायालय िे आिेदन र्जिका ननणिय डडिी अथिा अंनतम आदे श पररिाहदत िै -
(1) जो कोई उच्चतम न्यायालय में अपील करना चािता िै िि उि न्यायालय में अजी द्िारा
आिेदन करे गा र्जिका ननणिय, डडिी अथिा अंनतम आदे श पररिाहदत िै ।
(2) उपननयम (1) में अन्तननिहित क्रकिी बात के िोते िुए भी, जो कोई भी उच्चतम न्यायालय में
अपील करने की िांछा रखता िै । न्यायालय द्िारा अंनतम आदे श के ननणिय उद्घोवषत क्रकये जाने के ठीक
पश्चात में मौणखक तौर पर ननिेदन कर िकेगा और न्यायालय पिकार को उच्चतम न्यायालय में अपील
करने की अनम
ु नत प्रदान कर िकेगा अथिा इंकार कर िकेगा अथिा पिकार को उपननयम (1) यथाअपेक्षित
याधचका प्रस्तत
ु करने के सलए ननदे सशत कर िकेगा :
परन्तु यि क्रक यहद उपननयम (2) के अंतगित मौणखक आिेदन को ग्रिण क्रकया जाता िै और ननरस्त
कर हदया जाता िै तो उपननयम (1) के अन्तगित कोई सलणखत याधचका नि ं िोगी ।''

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3. मल्
ू य या औधचत्य के बारे में प्रमाणपत्र- [(1) िर अजी में अपील के आधार कधथत िोंगे और
1

ऐिे प्रमाणपत्र के सलए प्राथिना िोगी क्रक-


(i) मामले में िामान्य मित्ि का िारिान ् विधध-प्रश्न अन्तग्रिस्त िै , तथा
(ii) न्यायालय की राय में उक्त प्रश्न का विननश्चय उच्चतम न्यायालय द्िारा क्रकया जाना आिश्यक
िै ।
(2) न्यायालय ऐिी अजी की प्रार्प्त पर ननदे श दे गा क्रक विरोधी पिकार पर इि िच
ू ना की तामील
की जाए क्रक िि यि िे तक
ु दसशित करे क्रक उक्त प्रमाणपत्र क्यों न दे हदया जाए ।

1. 1973 के अधधननयम िं. 49 की धारा 4 द्िारा उपननयम (1) के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया
गया ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


म. प्र. उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (16.9.1960)- आदे श 45 के उपननयम (2) के ननयम 2 के
स्थान पर ननम्न ननयम 2 प्रनतस्थावपत क्रकया गया-
''(2) ऐिी याधचका प्रस्तत
ु िोने पर न्यायालय असभलेख भेजने के उपरांत एिं आिेदक अथिा उिके
प्ल डर को िन
ु िाई के सलए हदिि ननयत करने के उपरांत िन
ु ने के उपरांत एिं उन्िें तदनि
ु ार िन
ु कर यहद
िि उि हदनांक को उपर्स्थत िोते िैं याधचका को ननरस्त कर िकता िै ।
(3) जब तक क्रक न्यायालय उपननयम (2) के अंतगित याधचका को ननरस्त नि ं करता िै यि
प्रनतपि को यि कारण दसशित करने के सलए क्रक क्यों न कधथत प्रमाण पत्र जार क्रकया जाना चाहिए िच
ू ना
की तामील क्रकए जाने के सलए ननदे सशत करे गा ।''
इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (9.1.1960)- ननयम 3 के उपननयम (2) के अंत मे
पण
ू वि िराम के पि
ू ि इन शब्दों को प्रनतस्थावपत क्रकया गया-
''जब तक क्रक यि प्रमाण पत्र िे इंकाररत करने को उपयक्
ु त िोना नि ं िमझता िै '' ।
4. [िादों का िमेकन]- सिविल प्रक्रिया िंहिता (िंशोधन) अधधननयम 1973 ( 1973 का 49) की
धारा 4 द्िारा ननरसित ।
5. [प्रथम बार के न्यायालय को वििाद का पन
ु : िेजा जाना]- सिविल प्रक्रिया िंहिता (िंशोधन)
अधधननयम 1973 (1973 का 49) की धारा 4 द्िारा ननरसित ।
6. प्रमाणपत्र दे ने िे इंकार का प्रिाि- जिां ऐिा प्रमाणपत्र दे ने िे इंकार कर हदया जाता िै ििां
अजी खाररज की जाएगी ।
7. प्रमाणपत्र हदए जाने पर अपेक्षक्षत प्रनतिनू त और ननक्षेप- (1) जिां प्रमाणपत्र दे हदया जाता िै ििां
आिेदक पररिाहदत डडिी की तार ख िे 1[नब्बे हदन या िे तक
ु दसशित क्रकए जाने पर न्यायालय द्िारा
अनज्ञ
ु ात की जाने िाल िाठ हदन िे अनधधक अनतररक्त अिधध] के भीतर या प्रमाणपत्र हदए जाने की
तार ख िे छि िप्ताि की अिधध के भीतर जो भी तार ख पश्चातिती
् िो -
(क) प्रत्यथी के खचों के सलए प्रनतभनू त 2[नकद या िरकार प्रनतभनू तयों में ] दे गा, तथा
(ख) िि रकम ननक्षिप्त करे गा जो िाद में के परू े असभलेख को अनि
ु ाद कराने अनसु लवप कराने

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अनि
ु मणणका तैयार करने, [मद्र
3
ु ण,] और उिकी शद्
ु ध प्रनत के [उच्चतम न्यायालय] को पारे षण के व्ययों
4

की पनू ति के सलए अपेक्षित िो क्रकन्तु ननम्नसलणखत के सलए रकम ननक्षिप्त नि ं कराई जाएगी: -

1. 1920 के अधधननयम िं. 26 की धारा 3 द्िारा ''छि माि'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया
गया ।
2. 1920 के अधधननयम िं. 26 की धारा 3 द्िारा अन्त: स्थावपत क्रकया गया ।
3. विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1950 द्िारा अन्त: स्थावपत क्रकया गया ।
4. विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1950 द्िारा “हिज मैजेस्ट इन काउर्न्िल'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत
क्रकया गया ।
5. विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1950 द्िारा “हिज मैजेस्ट इन काउर्न्िल के आदे श'' के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

(1) िे प्ररूवपक दस्तािेजें र्जनका अपिर्जित क्रकया जाना 5[उच्चतम न्यायालय के] तत्िमय प्रिि

क्रकिी भी 1[ननयम] द्िारा ननहदि ष्ट िो;
(2) ऐिे कागज र्जन्िें पिकार अपिर्जित करने के सलए ििमत िो जाएं;
(3) ऐिे लेखा या लेखाओं के प्रभाग, र्जन्िें न्यायालय द्िारा इि प्रयोजन के सलए िशक्त अधधकार
अनािश्यक िमझे और र्जनके बारे में पिकारों में विननहदि ष्ट रुप में मांग नि ं की िै क्रक िे िर्म्मसलत क्रकए
जाएं तथा
(4) ऐिी अन्य दस्तािेजें र्जन्िें अपिर्जित करने के सलए उच्च न्यायालय ननदे श दे :
2
[परन्तु न्यायालय प्रमाणपत्र दे ने के िमय क्रकिी ऐिे विरोधी पिकार को जो उपिंजात िो, िन
ु ने
के पश्चात ् विशेष कष्ट के आधार पर यि आदे श दे िकेगा क्रक प्रनतभनू त क्रकिी अन्य रुप में द जाए:
परन्तु यि और क्रक ऐिी प्रनतभनू त की प्रकृनत के िम्बन्ध में प्रनतिाद करने के सलए विरोधी पिकार
को कोई भी स्थगन नि ं हदया जाएगा ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


म. प्र. उच्च न्यायालय िंशोधन— (1) ननम्नानि
ु ार उपननयम (2) को प्रनतस्थावपत क्रकया गया-
''(2) पि
ू ािक्त उपननयम के खंड (क) यथािणणित प्रनतभनू त शािन या लोक अधधकार पर ऐिे कृत्य के
िंबध
ं मे याद लाया जाता िै जो उिके द्िारा पद य िमता िे क्रकया जाना आशनयत िै जिां िरकार ने िाद
की प्रनतरिा का पररिचन हदया िै |”

1. विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1950 द्िारा “हिज मैजेस्ट इन काउर्न्िल के आदे श'' के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
2. 1920 के अधधननयम िं. 26 की धारा 3 द्िारा जोडा गया ।
3. विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1950 द्िारा उपननयम (2) का लोप ।

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(2) उपननयम (3) को ननरसित करें ।
इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- (1) ननयम 7 (1) (क) में शब्द ''प्रत्यथी के पि
ू ि शब्द”
उिके सििाए जबक्रक िरकार आिेदक िै '' शब्दों को जोड़े (20.6.1936)
(2) ननयम 7 (1) के प्रथम परं तक
ु में आए शब्दों ''प्रमाणपत्र दे ने के िमय'' के स्थान पर शब्द
प्रनतभनू त प्रदान करने के सलए अिधध के अििान के पि
ू ि क्रकिी िमय'' शब्दों को प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
(4.2.1939)

आदे श 46 ननयम 7 - क
म. प्र. उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- ननयम 7 के उपरात ननम्न ननयम 7- क अंत : स्थावपत
क्रकया गया-
''7- क ननयम 7 (1) खण्ड (क) में यथािणणित ऐिी क्रकिी प्रनतभनू त की अपेिा भारत िंघ अथिा
राज्य िरकार या जिााँ िरकार िाद की प्रनतरिा का िचनबन्ध दे ती िै क्रकिी लोक अधधकार िे र्जिके
विरुद्ध उिकी पद य िमता में क्रकए गए असभकधथत कृत्य बाबत िाद प्रस्तत
ु क्रकया गया िै नि ं की जाएगी
8. अपील का र्ग्िण और उि पर प्रक्रिया- जिां न्यायालय को िमाधानप्रद रूप में ऐिी प्रनतभनू त दे
द गई िै और ननिेप कर हदया गया िै ििां न्यायालय-
(क) यि घोवषत करे गा क्रक अपील ग्रिण कर ल गई िै,
(ख) उिकी िच
ू ना प्रत्यथी को दे गा,
(ग) उक्त असभलेख की यथापि
ू ोक्त के सििाय शद्
ु ध प्रनत न्यायालय की मद्र
ु ा िहित [उच्चतम
1

न्यायालय] को पारे वषत करे गा, तथा


(घ) दोनों में िे क्रकिी भी पिकार को िाद के कागजों में िे क्रकिी भी कागज की एक या अधधक
अधधप्रमाणणतकृत प्रनतयां उनके सलए उिके द्िारा आिेदन क्रकए जाने पर और उनकी तैयार में उपगत
यर्ु क्तयक्
ु त व्ययों के िंदि क्रकए जाने पर दे गा ।

9. प्रनतिनू त के प्रनतर्ग्िण का प्रनतिंिरण- न्यायालय अपील के ग्रिण क्रकए जाने के पि


ू ि क्रकिी भी
िमय िे तक
ु दसशित क्रकए जाने पर क्रकिी ऐिी प्रनतभनू त के प्रनतग्रिण का प्रनतिंिरण कर िकेगा और उिके
बारे में अनतररक्त ननदे श दे िकेगा ।

1. विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1950 द्िारा “हिज मैजेस्ट इन काउसिल'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत
क्रकया गया ।
2. 1920 के अधधननयम िं. 26 की धारा 4 द्िारा अन्त: स्थावपत क्रकया गया ।

2
[9क मत
ृ पक्षकारों की दशा में िच
ू ना हदए जाने िे असिमस्ु तत दे ने की शस्तत- इन ननयमों की
क्रकिी भी बात के बारे में जो विरो धी प िकार या प्रत्यथी पर क्रकिी भी िच
ू ना की तामील या क्रकिी
िच
ू ना का उिे हदया जाना अपेक्षित करती िै यि नि ं िमझा जाएगा क्रक िि मत
ृ विरोधी पिकार या मत

प्रत्यथी के विधधक प्रनतननधध पर क्रकिी िच
ू ना की तामील या उिे ऐिी क्रकिी िच
ू ना का हदया जाना उि

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दशा में भी अपेक्षित करती िै र्जिमें ऐिा विरोधी पिकार या प्रत्यथी उि न्यायालय में र्जिकी डडिी
पररिाहदत िै , िन
ु िाई के िमय या उि न्यायालय की डडिी िे पश्चातिती
् क्रकन्ि ं कायििाहियों में उपिंजात
नि ं िुआ िै :
परन्तु ननयम 3 के उपननयम (2) के अधीन और ननयम 8 के अधीन िच
ू नाएं उि र्जले के
न्यायाधीश के न्याय-िदन में र्जि र्जले में िाद मल
ू त: लाया गया था, क्रकिी ििज-दृश्य स्थान में लगा
कर द जाएगी और ऐिे िमाचार पत्रों में जो न्यायालय ननहदष्ट करे , प्रकाशन द्िारा द जाएंगी ।

10. अनतररतत प्रनतिनू त या िंदाय का आदे श दे ने की शस्तत- जिां अपील के ग्रिण क्रकए जाने के
पश्चात ् क्रकन्तु यथापि
ू ोक्त के सििाय असभलेख की प्रनत [उच्चतम न्यायालय] को पारे वषत क्रकए जाने के पि
1
ू ि
क्रकिी भी िमय ऐिी प्रनतभनू त अपयािप्त प्रतीत िो,
अथिा यथापि
ू ोक्त के सििाय असभलेख के अनि
ु ाद कराने, अनसु लवप कराने, मद्र
ु ण, अणुकमणणका
तैयार करने या उिकी प्रनत का पारे षण करने के प्रयोजन के सलए अनतररक्त िदाय अपेक्षित िो,
ििां न्यायालय अपीलाथी को आदे श दे िकेगा क्रक िि अन्य और पयािप्त प्रनतभनू त उि िमय के
भीतर दे जो न्यायालय द्िारा ननयत क्रकया जाएगा या उतने ि िमय के भीतर िि िंदाय करे जो अपेक्षित
िै ।

1. विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1950 द्िारा “हिज मैजेस्ट इन काउं सिल'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत
क्रकया गया ।

11. आदे श का अनप


ु ालन करने में अिफलता का प्रिाि- जिां अपीलाथी ऐिे आदे श का अनप
ु ालन
करने में अिफल रिता िै ििां कायििाहियां रोक द जाएंगी,
और अपील में 1[उच्चतम न्यायालय] के इि ननसमि आदे श के बबना आगे कायििाि नि ं की जाएगी
और र्जि डडिी की अपील की गई िै उिका ननष्पादन इि बीच नि ं रोका जाएगा ।

12. ननक्षेप की बाकी की िापिी- जब यथापि


ू ोक्ि के सििाय असभलेख की प्रनत [उच्चतम
2

न्यायालय] को पारे वषत कर द गई िै तब अपीलाथी ननयम 7 के अधीन उिके द्िारा ननिेप की गई रकम
की बाकी को, यहद कोई िो, िापि ले िकेगा ।

13. अपील लंबबत रिने तक न्यायालय की शस्ततयााँ- (1) जब तक न्यायालय अन्यथा ननहदष्ट न
करे तब तक उि डडिी का र्जिकी अपील की गई िै , बबना शति ननष्पादन क्रकिी अपील के ग्रिण के सलए
प्रमाण पत्र के दे हदए जाने पर भी क्रकया जाएगा ।
(2) यहद न्यायालय ठीक िमझे तो िि ऐिे विशेष िे तक
ु िे जो िाद में हितबद्ध क्रकिी पिकार
द्िारा दसशित क्रकया गया िो या न्यायालय को अन्यथा प्रतीत िुआ िो-
(क) वििादग्रस्त क्रकिी भी जंगम िम्पवि को या उिके क्रकिी भी भाग को पररबद्ध कर िकेगा,
अथिा

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(ख) प्रत्यथी िे ऐिी प्रनतभनू त लेकर जो न्यायालय क्रकिी ऐिे आदे श के िम्यक पालन के सलए ठीक
िमझे जो 3[उच्चतम न्यायालय] अपील में करे , उि डडिी का र्जिकी अपील की गई िै , ननष्पादन अनज्ञ
ु ात
कर िकेगा, अथिा
(ग) अपीलाथी िे ऐिी प्रनतभनू त लेकर जो उि डडिी के र्जिकी अपील की गई िै या ऐिी 4[क्रकिी
डडिी या आदे श] के जो उच्चतम न्यायालय अपील में करे , िम्यक् पालन के सलए न्यायालय ठीक िमझे
उि डडिी का र्जिकी अपील की गई िै , ननष्पादन रोक िकेगा, अथिा
(घ) न्यायालय की ििायता मांगने िाले क्रकिी भी पिकार पर ऐिी शतों का अधधरोपण या अपील
की विषय-िस्तु के बारे में ऐिे ननदे श जो न्यायालय ठीक िमझे, ररिीिर की ननयर्ु क्त द्िारा या अन्यथा
कर िकेगा ।
1. विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1950 द्िारा “हिज मैजेस्ट इन काउं सिल'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत
क्रकया गया ।
2. विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1950 द्िारा “हिज मैजेस्ट इन काउं सिल'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत
क्रकया गया ।
3. विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1950 द्िारा ''हिज मैजेस्ट इन काउसिल'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत
क्रकया गया ।
4. विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1950 द्िारा ''क्रकिी आदे श'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
5. विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1950 द्िारा “हिज मैजेस्ट इन काउसिल'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत
क्रकया गया ।

14. अपयावप्त पाए जाने पर प्रनतिनू त का बढ़ाया जाना- (1) जिां दोनों में िे क्रकिी भी पिकार
द्िारा द गई, प्रनतभनू त अपील के लंबबत रिने के दौरान में क्रकिी भी िमय अपयािप्त प्रतीत िो ििा
न्यायालय दि
ू रे पिकार के आिेदन पर अनतररक्त प्रनतभनू त अपेक्षित कर िकेगा ।
(2) न्यायालय द्िारा यथा अपेक्षक्षत अनतररतत प्रनतिनू त के हदए जाने में व्यनतिम िोने पर-
(क) उि दशा में र्जिमें मल
ू प्रनतभनू त अपीलाथी द्िारा द गई थी, न्यायालय उि डडिी का र्जिकी
अपील की गई िै , ननष्पादन प्रत्यथी के आिेदन पर ऐिे कर िकेगा मानो अपीलाथी ने ऐिी प्रनतभनू त न द
िो;
(ख) उि दशा में र्जिमें मल
ू प्रनतभनू त प्रत्यथी द्िारा द गई थी, न्यायालय डडिी का अनतररक्त
ननष्पादन जिां तक िंभि िो िके, रोक दे गा और पिकारों को उिी र्स्थनत में ले आएगा र्जिमें िे उि
िमय थे जब िि प्रनतभनू त द गई थी जो अपयािप्त प्रतीत िोती िै या अपील की विषय-िस्तु की बाबत ऐिा
ननदे श दे गा जो िि ठीक िमझे ।

15. उच्चतम न्यायालय के आदे शों को प्रिि


ृ कराने की प्रक्रिया- (1) जो कोई [उच्चतम न्यायालय]
1

की 2[क्रकिी डडिी या आदे श] का ननष्पादन कराना चािता िै िि उि डडिी की जो अपील में पाररत की गई
थी या उि आदे श की जो अपील में क्रकया गया था, और र्जिका ननष्पादन चािा गया िै , प्रमाणणत प्रनत के
िहित अजी द्िारा उि न्यायालय िे आिेदन करे गा र्जिकी अपील 3[उच्चतम न्यायालय] में की गई थी ।

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(2) ऐिा न्यायालय, 4[उच्चतम न्यायालय] की 5[डडिी या आदे श] को उि न्यायालय को पारे वषत
करे गा र्जिने िि पिल डडिी र्जिकी अपील की गई िै , पाररत की थी या ऐिे अन्य न्यायालय को पारे वषत
करे गा जो 6[उच्चतम न्यायालय] ऐिी 7[डडिी या आदे श] द्िारा ननहदष्ट करे और (दोनों पिकारों में िे क्रकिी
भी पिकार के आिेदन पर) ऐिे ननदे श दे गा जो उिके ननष्पादन के सलए अपेक्षित िों और िि न्यायालय
र्जिे उक्त डडिी या आदे श] ऐिे पारे वषत क्रकया गया िै र तदनि
ु ार उिका ननष्पादन उि र नत िे और उन
उपबंधों के अनि
ु ार करे गा जो उिकी अपनी मल
ू डडक्रियों के ननष्पादन को लागू िोते िैं ।
9
* * * * *
10
[(4) [जब तक क्रक उच्चतम न्यायालय अन्यथा ननदे श न दे उि न्यायालय की कोई भी डडिी या
11

आदे श इि आधार पर अप्रितिनीय न िोगा क्रक क्रकिी मत


ृ विरोधी पिकार या मत
ृ प्रत्यथी के विधधक
प्रनतननधध पर क्रकिी ऐिे मामले में र्जिमें ऐिा विरोधी पिकार या प्रत्यथी िन
ु िाई के िमय उि न्यायालय
में र्जिकी डडिी पररिाहदत िै या उि न्यायालय की डडिी की पश्चातिती
् क्रकन्ि ं भी कायििाहियों में
उपिंजात नि ं िुआ था, क्रकिी िच
ू ना की तामील नि ं की गई थी या उिे ऐिी िच ू ना नि ं द गई थी
क्रकन्तु ऐिे आदे श का िि बल और प्रभाि िोगा मानो िि आदे श मत्ृ यु िोने िे पि
ू ि हदया गया िो ।]

1. विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1950 द्िारा “हिज मैजेस्ट इन काउसिल'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत
क्रकया गया ।
2. विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1950 द्िारा ''क्रकिी आदे श'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
3. विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1950 द्िारा “हिज मैजेस्ट '' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
4. विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1950 द्िारा “हिज मैजेस्ट इन काउं सिल'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत
क्रकया गया ।
5. विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1950 द्िारा ''आदे श'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
6. विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1950 द्िारा “हिज मैजेस्ट इन काउं सिल'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत
क्रकया गया ।
7. विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1950 द्िारा ''आदे श'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
8. विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1960 द्िारा ''आदे श'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
9. विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1950 द्िारा उपननयम (3) का लोप ।
10. 1920 के अधधननयम िं. 26 की धारा 5 द्िारा अतःस्थावपत क्रकया गया ।
11. विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1950 द्िारा ''जब तक क्रक हिज मैजेस्ट इन काउं सिल अन्यथा ननदे श
न दे , हिज मैजेस्ट इन काउं सिल का कोई आदे श'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन(7.4.1928)- ननयम 15(1) के स्थान पर इि िंशोधन के
द्िारा ननम्न ननयम 15(1) प्रनतस्थावपत क्रकया गया-
“(1) जो कोई-
(क) उच्चतम न्यायालय की क्रकिी डडिी या आदे श का ननष्पादन कराना चािता िै , अथिा जिााँ

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चलाए जाने के अभाि में उच्चतम न्यायालय द्िारा अपील को ननरस्त कर हदया गया िै , ििााँ उि
न्यायालय की कायििाि िमाप्त कर खचों को अिधाररत करते िुए आदे श र्जििे उच्चतम न्यायालय को
अपील प्रस्तत
ु की गई थी, को ननष्पाहदत कराना चािता िै तो िि उच्चतम न्यायालय द्िारा द गई डडिी
या आदे श र्जिका ननष्पादन चािा जाता िै या र्जिको प्रभाि हदया जाना िै की प्रमाणणत प्रनतसलवप ि भारत
में उपगत िभी खचों का ज्ञापन र्जनका उनके अनि
ु रण में दािा क्रकया गया िै दे ते िुए उक्त न्यायालय में
आिेदन करे गा ।''

16. ननष्पादन िंबध


ं ी आदे श की अपील- 1[उच्चतम न्यायालय] की 2[डडिी या आदे श] का ननष्पादन
जो न्यायालय करता िै उि न्यायालय द्िारा ऐिे ननष्पादन के िंबध
ं में क्रकए गए आदे श उिी र नत िे और
उन्ि ं ननयमों के अधीन अपीलनीय िोंगे र्जि र नत िे और र्जिके अधीन उि न्यायालय की अपनी डडक्रियों
के ननष्पादन िंबध
ं ी आदे श अपीलनीय िोते िैं ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- अधधिच
ू ना िमांक 3922/(डी) 107 हदनांक 14.8.1948 के
द्िारा आदे श 45 ननयम 16 के उपरांत ननम्न निीन ननयम 17 जोडा गया-
''17. ननयम 15 के उपननयम (1) ि (2) के उपबंध और ननयम 16 के उपबंध उच्च न्यायालय िे
अपीलों में उच्चतम न्यायालय द्िारा कॉस्ट के सलए पाररत डडिी या आदे शों का ननष्पादन यथा पररितिन
लागू िोंगे ।''
म.प्र. उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- अधधिच
ू ना िमांक 3409 हदनांक 20.6.1943 के द्िारा
आदे श ननयम 16 के उपरांत ननयम 17 और जोडा गया िै । यि इि प्रकार िै ---
''17. ननयम 15 के उपननयम (1) और (2) के उपबंध ि ननयम 16 के उपबंध, यथाशक्य पररितिन
िहित, की गई घोषणा या आदे श के अनि
ु ार, उच्च न्यायालय िे उच्चतम न्यायालय में की गई अपील में
उच्चतम न्यायालय द्िारा पाररत करें के आदे शों या डडिी के ननष्पादन में लागू िोंगे ।''

1. विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1950 द्िारा “हिज मैजेस्ट इन काउं सिल'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत
क्रकया गया ।
2. विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1950 द्िारा ''क्रकिी आदे श'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

1
[17 फेिरल न्यायालय में अपील ।] - फेडरल न्यायालय अधधननयम, 1941 (1941 का 21) की
धारा 2 द्िारा ननरसित ।

आदे श 46
ननदे श

1. उच्च न्यायालय को प्रश्न का ननदे श- जिां ऐिे िाद या अपील की र्जिमें डडिी की अपील नि ं

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िोती, िन
ु िाई के पि
ू ि या िन
ु िाई में अथिा जिां क्रकिी ऐिी डडिी के ननष्पादन में क्रकिी विधध का या विधध
का बल रखने िाल प्रथा का कोई ऐिा प्रश्न उत्पन्न िोता िै र्जिके बारे में िि न्यायालय जो िाद या
अपील का विचारण कर रिा िै या डडिी का ननष्पादन कर रिा िै , यर्ु क्तयक्
ु त शंका रखता िै ििा िि
न्यायालय स्िप्रेरणा िे या पिकारों में िे क्रकिी के आिेदन पर, मामले के तथ्यों का और उि विषय-बबन्द ु
का र्जिके बारे में शंका िै , कथन तैयार कर िकेगा और ऐिे कथन को उि विषय-बबन्द ु के बारे में अपनी
राय के िहित उच्च न्यायालय के विननश्चय के सलए ननहदि ष्ट कर िकेगा ।

2. न्यायालय ऐिी डििी पाररत कर िकेगा जो उच्च न्यायालय के विननश्चय पर िमाधश्रत िै -


न्यायालय कायििाहियों को रोक िकेगा या ऐिे ननदे श के क्रकए जाने पर भी मामले में अग्रिर िो िकेगा और
उच्च न्यायालय को ननहदि ष्ट क्रकए गए विषय-बबन्द ु के विननश्चय पर िमाधश्रत डडिी पाररत कर िकेगा या
आदे श कर िकेगा;
क्रकन्तु क्रकिी भी ऐिे मामले में र्जिमें ऐिा ननदे श क्रकया गया िै , कोई भी डडिी या आदे श
ननष्पाहदत नि ं क्रकया जाएगा जब तक क्रक उि ननदे श पर उच्च न्यायालय के ननणिय की प्रनत प्राप्त न िो
जाए ।

1. भारत शािन (भारतीय विधध अनक


ु ू लन) आदे श, 1937 द्िारा अंतःस्थावपत क्रकया गया ।
3. उच्च न्यायालय का ननणवय पारे वषत क्रकया जाएगा और मामला तदनि
ु ार ननपटाया जाएगा- यहद
पिकार उपिंजात िों और िन
ु िाई की िांछा करें तो उच्च न्यायालय उन्िें िन
ु ने के पश्चात ् इि प्रकार
ननहदि ष्ट क्रकए गए विषय-बबन्द ु का विननश्चय करे गा और अपने ननणिय की रर्जस्रार द्िारा िस्तािररत प्रनत
उि न्यायालय को पारे वषत करे गा र्जिने ननदे श क्रकया था और ऐिा न्यायालय उिकी प्रार्प्त पर उि मामले
को उच्च न्यायालय के विननश्चय के अनरू
ु प ननपटाने के सलए अग्रिर िोगा ।

4. उच्च न्यायालय को क्रकए गए ननदे श के खचे- उच्च न्यायालय के विननश्चय के सलए क्रकए गए
ननदे श के पररणामस्िरुप खचे (यहद कोई िों) मामले के खचे िोंगे ।

[4क. धारा 113 के परं तक


1
ु के अधीन उच्च न्यायालय को ननदे श- न्यायालय द्िारा धारा 113 के
परं तक
ु के अधीन क्रकए गए क्रकिी भी ननदे श को ननयम 2, ननयम 3 और ननयम 4 के उपबंध िैिे ि लागू
िोंगे जैिे िे ननयम 1 के अधीन क्रकए गए ननदे श को लागू िोते िैं ।

5. ननदे श करने िाले न्यायालय की डििी को पररिनतवत करने आहद की शस्तत- जिां उच्च न्यायालय
को क्रकिी मामले का ननदे श ननयम 1 के अधीन 2[या धारा 113 के परन्तक
ु के अधीन क्रकया जाता िै ििां
उच्च न्यायालय मामले को िंशोधन के सलए लौटा िकेगा और क्रकिी ऐिी डडिी या आदे श को पररिनतित,
रद्द या अपास्त कर िकेगा र्जिे ननदे श करने िाले न्यायालय ने उि मामले में क्रकया िै या पाररत क्रकया िै
र्जिमें िे ननदे श उठा था और ऐिा आदे श कर िकेगा जो िि ठीक िमझे ।

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6. लधुिादों में अधधकाररता िम्बन्धी प्रश्नों को उच्च न्यायालय को ननदे सशत करने की शस्तत- (1) जिां
ननणिय के पि
ू ि क्रकिी भी िमय िि न्यायालय र्जिमें िाद िंर्स्थत क्रकया गया िै यि शंका करता िै क्रक क्या
िि िाद लघि
ु ाद न्यायालय द्िारा िंज्ञेय िै या इि प्रकार िंज्ञेय नि ं िै ििां िि िाद की प्रकृनत के बारे में
शंका के सलए अपने कारणों के कथन िहित असभलेख को उच्च न्यायालय को ननिेहदत कर िकेगा ।

1. 1951 के अधधननयम िं. 24 की धारा 2 द्िारा अतःस्थावपत क्रकया गया ।


2. 1951 के अधधननयम िं. 24 की धारा 2 द्िारा अतःस्थावपत क्रकया गया ।

(2) असभलेख और कथन के प्राप्त िोने पर, उच्च न्यायालय उि न्यायालय को िाद मे अग्रिर िोने
के सलए या िादपत्र के ऐिे अन्य न्यायालय में उपर्स्थत क्रकए जाने के सलए र्जिके बारे में िि अपने आदे श
द्िारा घोवषत करे क्रक िि न्यायालय िाद का िंज्ञान करने के सलए ि िम िै लौटाने के सलए आदे श दे
िकेगा ।

7. लघि
ु ादों में अधधकाररता िम्बन्धी िल
ू के अधीन की गई कायविाहियों को पन
ु रीक्षण के सलए
ननिेहदत करने की स्जला न्यायालय की शस्तत- (1) जिां र्जला न्यायालय को यि प्रतीत िोता िै क्रक उिका
अधीनस्थ न्यायालय यि गलत धारणा करने के कारण क्रक िाद लघि
ु ाद न्यायालय द्िारा िंज्ञेय िै या इि
प्रकार िंज्ञेय नि ं िै अपने में विधध द्िारा ननहित की गई अधधकाररता का प्रयोग करने में अिफल रिा िै
या इि प्रकार ननहित न की गई अधधकाररता का प्रयोग कर चक
ु ा िै ििां र्जला न्यायालय उि बारे में क्रक
िाद की प्रकृनत की बाबत अधीनस्थ न्यायालय की राय गलत िै अपने कारणों के कथन िहित असभलेख को
उच्च न्यायालय को ननिेहदत कर िकेगा और यहद पिकार द्िारा अपेक्षित क्रकया जाए तो ननिेहदत करे गा ।
(2) असभलेख और कथन की प्रार्प्त पर उच्च न्यायालय मामले में ऐिा आदे श कर िकेगा जो िि
ठीक िमझे ।
(3) ऐिे मामले में जो उच्च न्यायालय को इि ननयम के अधीन ननिेहदत क्रकया गया िै डडिी की
पश्चातिती
् क्रकन्ि ं भी कायििाहियों के बारे में उच्च न्यायालय ऐिा आदे श कर िकेगा जो पररर्स्थनतयों में
उिे न्यायिंगत और उधचत प्रतीत िों ।
(4) र्जला न्यायालय का अधधनस्थ न्यायालय ऐिी अध्यपेिा का अनप
ु ालन करे गा जो र्जला
न्यायालय इि ननयम के प्रयोजनों के सलए क्रकिी असभलेख या जानकार के सलए करे ।

आदे श 46 ननयम 8
इलािाबाद उच्च न्यायालय दारा िंशोधन(1.6.1918)- आदे श 46 ननयम 7 के उपरांत ननयम 8 के
रूपमे इिे जोड़ा गया-
''8. आदे श 41 का ननयम 38 यथाशक्य इि आदे श के अतगित कायििाि को प्रयोज्य िोगा ।''

आदे श 47
पन
ु विवलोकन

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1. ननणवय के पन
ु विवलोकन के सलए आिेदन- (1) जो कोई व्यर्क्त-
(क) क्रकिी ऐिी डडिी या आदे श िे र्जिकी अपील अनज्ञ
ु ात िै क्रकन्तु र्जिकी कोई अपील नि ं की
गई िै ,
(ख) क्रकिी ऐिी डडिी या आदे श िे र्जिकी अपील अनज्ञ
ु ात नि ं िै , अथिा
(ग) लघि
ु ाद न्यायालय द्िारा क्रकए गए ननदे श पर विननश्चय िे,

अपने को व्यधथत िमझता िै और जो ऐिी नई और मित्िपण


ू ि बात या िाक्ष्य के पता चलने िे जो
िम्यक् तत्परता के प्रयोग के पश्चात ् उि िमय जब डडिी पाररत की गई थी या आदे श क्रकया गया था,
उिके ज्ञान में नि ं था या उिके द्िारा पेश नि ं क्रकया जा िकता था, या क्रकिी भल
ू या गलती के कारण
जो असभलेख के दे खने िे ि प्रकट िोती िो या क्रकिी अन्य पयािप्त कारण िे िि चािता िै क्रक उिके
विरुद्ध पाररत डडिी या क्रकए गए आदे श का पन
ु वििलोकन क्रकया जाए िि उि न्यायालय िे ननणिय के
पन
ु वििलोकन के सलए आिेदन कर िकेगा र्जिने िि डडिी पाररत की थी या िि आदे श क्रकया था ।
(2) िि पिकार जो डडिी या आदे श की अपील नि ं कर रिा िै , ननणिय के पन
ु वििलोकन के सलए
आिेदन इि बात के िोते िुए भी क्रक क्रकिी अन्य पिकार द्िारा की गई अपील लंबबत िै ििां के सििाय
कर िकेगा जिां ऐिी अपील का आधार आिेदक और अपीलाथी दोनों के बीच िामान्य िै या जिां प्रत्यथी
िोते िुए िि अपील न्यायालय में िि मामला उपर्स्थत कर िकता िै र्जिके आधार पर िि पन
ु वििलोकन के
सलए आिेदन करता िै ।
[(स्पष्टीकरण- यि तथ्य क्रक क्रकिी विधध-प्रश्न का विननश्चय र्जि पर न्यायालय का ननणिय
1

आधाररत िै , क्रकिी अन्य मामले में िररष्ठ न्यायालय के पश्चातिती


् विननश्चय द्िारा उलट हदया गया िै या
उपान्तररत कर हदया गया िै , उि ननणिय के पन
ु वििलोकन के सलए आधार नि ं िोगा ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 92 द्िारा (1.2.1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया गया ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


पटना उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (5.12.1973)-- 1958 के िंशोधन द्िारा जोडे गए शब्दों
“अथिा िम्यक तत्परता के बािजूद भी, न्यायालय द्िारा अनज्ञ
ु ान िमय के भीतर भग
ु तान न करने पर''
को लप्ु त क्रकया गया |

2. [पन
ु विवलोकन के सलए आिेदन क्रकिको क्रकए जाएंगे]- सिविल प्रक्रिया िंहिता िंशोधन अधधननयम,
1956 (1956 का 66) की धारा 14 द्िारा ननरसित ।
3. पन
ु विवलोकन के आिेदनों का प्ररूप- िे उपबन्ध जो अपील करने के प्ररूप के बारे में िैं,
पन
ु वििलोकन के आिेदनों को यथािश्यक पररितिन िहित लागू िोंगे ।
4. आिेदन कब नामंजूर क्रकया जाएगा- (1) जिां न्यायालय को यि प्रतीत िोता िै क्रक पन
ु वििलोकन
के सलए पयािप्त आधार नि ं िै ििां िि आिेदन को नामंजूर कर दे गा ।
(2) आिेदन कब मंजूर क्रकया जाएगा- जिां न्यायालय की राय िै क्रक पन
ु वििलोकन के सलए आिेदन

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मंजूर क्रकया जाना चाहिए ििां िि उिे मंजूर करे गा :
परन्त-ु
(क) ऐिा कोई भी आिेदन विरोधी पिकार को ऐिी पि
ू ि
ि ती िच
ू ना हदए बबना मंजूर नि ं क्रकया
जाएगा र्जििे िि उपिंजात िोने और उि डडिी या आदे श के र्जिके पन
ु वििलोकन के सलए आिेदन क्रकया
गया िै , िमथिन में िन
ु े जाने के सलए िमथि िो जाएं; तथा
(ख) ऐिा कोई भी आिेदन ऐिी नई बात या िाक्ष्य के पता चलने के आधार पर र्जिके बारे में
आिेदक असभकथन करता िै , क्रक िि उि िमय जब डडिी पाररत की गई थी या आदे श क्रकया गया था,
उिके ज्ञान में नि ं थी या उिके द्िारा पेश नि ं क्रकया जा िकता था, ऐिे असभकथन के पण
ू ि िबत
ू के
बबना मंजूर नि ं क्रकया जाएगा ।
5. दो या अधधक न्यायाधीशों िे गहठत न्यायालय में पन
ु विवलोकन का आिेदन- जिां िि न्यायाधीश
या िे न्यायाधीश या उन न्यायाधीशों में िे कोई एक, र्जिने या र्जन्िोंने िि डडिी पाररत की थी या आदे श
क्रकया था र्जिके पन
ु वििलोकन के सलए आिेदन क्रकया गया िै , उि न्यायालय में उि िमय ननयक्
ु त िै या िैं
जब क्रक पन
ु वििलोकन के सलए आिेदन उपर्स्थत क्रकया जाता िै और आिेदन िे अगले छि माि की अिधध
तक उि डडिी या आदे श पर विचार करने िे र्जिके बारे में िि आिेदन िै , अनप
ु र्स्थनत या अन्य िे तक
ु िे
प्रिाररत नि ं िै या नि ं िैं ििां ऐिा न्यायाधीश या ऐिे न्यायाधीश या उनमें िे कोई भी उि आिेदन को
िन
ु ेगा या िन
ु ेंगे और उि न्यायालय का या के कोई भी अन्य न्यायाधीश उिे नि ं िन
ु ेगा या नि ं िन
ु ेंगे ।

6. आिेदन कब नामंजरू क्रकया जाएगा- (1) जिां पन


ु वििलोकन का आिेदन एक िे अधधक
न्यायाधीशों द्िारा िन
ु ा जाता िै और न्यायालय राय में बराबर बंटा िो ििां आिेदन नामंजूर क्रकया जाएगा ।
(2) जिां बिुमत िै ििा विननश्चय बिुमत की राय के अनि
ु ार िोगा ।
7. नामंजूरी का आदे श अपीलनीय न िोगा । आिेदन की मंजूरी के आदे श पर आक्षेप- 1[(1) आिेदन
को नामंजूर करने िाले न्यायालय का आदे श अपीलनीय नि ं िोगा; क्रकन्तु आिेदन मंजूर करने िाले आदे श
पर आिेप, आिेदन मंजरू करने िाले आदे श की अपील द्िारा या िाद में अर्न्तम रुप िे पाररत डडिी या
क्रकए गए आदे श के अपील में , तरु न्त क्रकया जा िकेगा ।
(2) जिां आिेदन, आिेदक के उपिंजात िोने में अिफल रिने के पररणामस्िरुप नामंजूर कर हदया
गया िै , ििां िि नामंजूर क्रकए गए आिेदन को फाइल पर लाए जाने के आदे श के सलए आिेदन कर िकेगा
और जिा न्यायालय को िमाधानप्रद रुप में यि िाबबत कर हदया जाता िै क्रक आिेदक उि िमय जब ऐिे
आिेदन की िन ु िाई के सलए पक
ु ार िुई थी, उपिंजात िोने िे क्रकिी पयािप्त िे तक
ु द्िारा ननिाररत िो गया
था ििा न्यायालय खचों िम्बन्धी ऐिे ननबन्धनों पर या अन्यथा जो िि ठीक िमझे, उिके फाइल पर लाए
जाने का आदे श करे गा और उिकी िन
ु िाई के सलए हदन ननयत करे गा ।
(3) जब तक आिेदन की िच
ू ना की तामील विरोधी पिकार पर न िो गई िो कोई भी आदे श
उपननयम (2) के अधीन नि ं क्रकया जाएगा ।

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 92 दारा (1.2.1977 िे) उपननयम (1) के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

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8. मंजरू क्रकए गए आिेदन का रस्जस्टर में चढ़ाया जाना और क्रफर िे िन
ु िाई के सलए आदे श- यहद
पन
ु वििलोकन का आिेदन मंजूर कर सलया जाता िै तो उिका हटप्पण रर्जस्टर में क्रकया जाएगा और
न्यायालय मामले को तरु न्त क्रफर िन
ु िकेगा या क्रफर िे िन
ु िाई के बारे में ऐिा आदे श कर िकेगा जो िि
ठीक िमझे ।
9. कुछ आिेदनों का िजवन- पन
ु वििलोकन के आिेदन पर क्रकए गए आदे श के या पन
ु वििलोकन में
पाररत डडिी या क्रकए गए आदे श के पन
ु वििलोकन के सलए कोई भी आिेदन ग्रिण नि ं क्रकया जाएगा ।

आदे श 47 ननयम 10
इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन- आदे श 47 के अंत में ननम्न ननयम 10 को अंतःस्थावपत
क्रकया गया-
''10. आदे श 41 ननयम 38 के प्रािधान यथाशक्य इि आदे श के अंतगित कायििाि को प्रयोज्य िोंगे''
आदे श 48

प्रकीणव

1. आदे सशका की तामील उिे ननकलिाने िाले पक्षकार के व्यय पर की जाएगी- (1) जब तक क्रक
न्यायालय अन्यथा ननहदिष्ट न करे इि िंहिता के अधीन ननकाल गई िर आदे सशका की तामील उि पिकार
के व्यय पर की जाएगी र्जिकी ओर िे िि ननकाल गई िै ।
(2) तामील के खचे- ऐिी तामील के सलए प्रभायि न्यायालय-फीि उि िमय के भीतर िंदि की
जाएगी जो आदे सशका के ननकाले जाने के पि
ू ि ननयत क्रकया जाएगा ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


इलािाबाद उच्च न्यायालय द्िारा िंशोधन (24.7.1926)-- ननयम 1 के खण्ड (1) के आरं भ मे शब्दों
''आदे श 4, ननयम 1(2) में यथाप्रािधाननत के सििाए'' को अंतःस्थावपत क्रकया गया ।
2. आदे शों और िच
ू नाओं की तामील कैिे की जाएगी- उन िभी आदे शों, िच
ू नाओं और अन्य
दस्तािेजों की तामील र्जनका क्रकिी व्यर्क्त को हदया जाना या क्रकिी व्यर्क्त पर तामील क्रकया जाना इि
िंहिता द्िारा अपेक्षित िै , उि र नत िे की जाएगी जो िमन की तामील के सलए उपबर्न्धत िै ।
3. पररसशष्टों में हदए गए प्ररुपों का उपयोग- पररसशष्टों में हदए गए प्ररूप ऐिे फेरफार िहित जो िर
एक मामले में पररर्स्थनतयों िे अपेक्षित िों, उन प्रयोजनों के सलए जो उिमें िणणित िै , उपयोग में लाए
जाएंगे ।

आदे श
चाटव ररत उच्च न्यायालय
1. उच्च न्यायालयों की आदे सशकाओं की तामील कौन कर िकेगा- प्रनतिाहदयों को िमन, ननष्पादन-

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ररटों और प्रत्यधथियों को द जाने िाल िच
ू नाओं को छोड़कर दस्तािेजों को पेश करने के सलए ननकाल गई
िच
ू ना की, उन िमनों की जो िाक्षियों को िों और िर अन्य न्यानयक आदे सशका की जो उच्च न्यायालय की
आरर्म्भक सिविल अधधकाररता के और उिकी वििाि विषयक, ििीयतीय और ननििरनीयतीय अधधकाररता के
प्रयोग में ननकाले गए िैं या ननकाल गई िैं, तामील िादों में अटननियों द्िारा या उनके द्िारा ननयोर्जत
व्यर्क्तयों द्िारा या ऐिे अन्य व्यर्क्तयों द्िारा की जा िकेगी जो उच्च न्यायालय क्रकिी ननयम या आदे श
द्िारा ननहदि ष्ट करे ।
2. चाटव ररत उच्च न्यायालयों के बारे में व्यािवृ ि- इि की क्रकिी भी बात के बारे में यि नि ं िमझा
जाएगा क्रक िि चाटि ररत उच्च न्यायालय द्िारा िाक्ष्य के सलए जाने के या ननणियों और आदे शों के
असभसलणखत क्रकए जाने के ऐिे क्रकन्ि ं भी ननयमों को जो इि िंहिता के प्रारम्भ पर प्रिि
ृ थे, पररिीसमत या
अन्यथा प्रभावित करती िै ।
3. ननयमों का लागू िोना- क्रकिी भी चाटि ररत उच्च न्यायालय को उिकी मामल
ू या गैर-मामल

आरर्म्भक सिविल अधधकाररता का प्रयोग करने में ननम्नसलणखत ननयम लागू िोंगे, अथाित ्-
(1) आदे श 7 के ननयम 10 और ननयम 11 के खण्ड (ख) और खण्ड (ग);
(2) आदे श 10 का ननयम 3;
(3) 16 का ननयम 2;
(4) आदे श 18 के ननयम 5, 6, 8, 9, 10, 11, 13, 14, 15 और 16 ( जिां तक िे िाक्ष्य लेने
की र नत िे िम्बर्न्धत िै );
(5) आदे श 20 के ननयम 1 िे 8 तक के ननयम; तथा
(6) आदे श 33 का ननयम 7 (जिां तक िि ज्ञापन बनाने िे िम्बर्न्धत िै );
और आदे श 41 का ननयम 35 उिकी अपील अधधकाररता के प्रयोग में क्रकिी भी ऐिे उच्च
न्यायालय को लागू नि ं िोगा ।

आदे श 50
प्रान्तीय लघि
ु ाद न्यायालय
1. प्रान्तीय लघि
ु ाद न्यायालय- इिमें इिके पश्चात ् विननहदि ष्ट उपबन्धों का विस्तार प्रान्तीय लघि
ु ाद
न्यायालय अधधननयम, 1887 (1887 का 9) 1[या बरार लघि
ु ाद न्यायालय विधध 1905 के अधीन] गहठत
न्यायालयों पर या 2
[उक्त अधधननयम या विधध के अधीन] लघि
ु ाद न्यायालय की अधधकाररता का प्रयोग
करने िाले न्यायालयों पर 3[या 4[भारत के क्रकिी भी भाग] में 5[र्जि पर उक्त अधधननयम का विस्तार नि ं
िै ,] िमरुपी अधधकाररता का प्रयोग करने िाले न्यायालयों पर नि ं िोगा अथाित ् : -
(क) इि अनि
ु च
ू ी का उतना भाग र्जतना-
(i) लघि
ु ाद न्यायालय के िंज्ञान िे अपिाहदत िादों िे या िैिे िादों की डडक्रियों के ननष्पादन िे,
(ii) स्थािर िम्पवि के विरुद्ध डडक्रियों के ननष्पादन िे या भागीदार िम्पवि के क्रकिी भागीदार के
हित िे;
(iii) वििाघकों के र्स्थर करण िे,
िम्बर्न्धत िै ; तथा

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(ख) ननम्नसलणखत ननयम और आदे श : -
आदे श 2 का ननयम 1 (िाद की विरचना);
आदे श 10 का ननयम 3 ( पिकारों की पर िा का असभलेख);
आदे श 15 ननयम 4 के उतने भाग के सििाय र्जतना ननणिय के तरु न्त िन
ु ाएं जाने के सलए उपबन्ध
करता िै
आदे श 18 के ननयम 5 िे लेकर 12 तक के ननयम (िाक्ष्य);
आदे श 41 िे लेकर 45 तक के आदे श (अपीलें);
आदे श 47 के ननयम 2, 3, 5, 6, 7 (पन
ु वििलोकन),
आदे श 51
1. 1941 के अधधननयम िं. 4 की धारा 2 और अनि
ु च
ू ी 3 द्िारा अन्त: स्थावपत क्रकया गया ।
2. 1941 के अधधननयम िं. 4 की धारा 2 और अनि
ु च
ू ी 3 द्िारा ''उक्त अधधननयम के अधीन'' के
स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
3. 1951 के अधधननयम िं. 2 की धारा 18 द्िारा अन्त: स्थावपत क्रकया गया ।
4. विधध अनक
ु ू लन (िं. 2) आदे श, 1953 द्िारा ''भाग ख राज्यों'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया
गया |
5. विधध अनक
ु ू लन (िं. 2) आदे श 1953 द्िारा ''भाग ख राज्यों'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया
गया ।
आदे श 51

राज्य िंशोधन
उिर प्रदे श राज्य िंशोधन (20.9.1972)- उिर प्रदे श मे इि िंशोधन के द्िारा ननयम 1 के खण्ड
(ख) के शब्दो ''ननणिय के तरु ं त िन
ु ाए जाने के सलए उपबंध करता िै '' के उपरांत ''और ननयम 5'' को
अंतःस्थावपत क्रकया गया ।

आदे श 51
प्रेसििेन्िी लघि
ु ाद न्यायालय

1. प्रेसििेन्िी लघि
ु ाद न्यायालय- आदे श 5 के ननयम 22 और ननयम 23, आदे श 21 के ननयम 4
और ननयम 7 और आदे श 26 के ननयम 4 में और प्रेसिडेनर लघि
ु ाद न्यायालय अधधननयम, 1882 (1882
का 15) द्िारा तथा उपबर्न्धत के सििाय, इि अनि
ु च
ू ी का विस्तार कलकिा, मद्राि और मम्
ु बई नगरों में
स्थावपत क्रकिी भी लघि
ु ाद न्यायालय में के क्रकिी भी िाद या कायििाि पर नि ं िोगा ।

उच्च न्यायालय िंशोधन


आदे श 52

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इलािाबाद उच्च न्यायालय िंशोधन- ननम्न को आदे श 52 (1) रुप में अंतःस्थावपत क्रकया गया –
''आदे श 52 (1)- आदे श 41 का ननयम 38 िंहिता की 115 की कायििाहियों को यथाशक्य प्रयोज्य
िोगा ।''

(1) िादों के शीषवक


............... के न्यायालय में क ख (िणिन और ननिाि-स्थान भी सलणखए)............................. िाद
बनाम
ग घ (िणिन और ननिाि-स्थान भी सलणखए).......... प्रनतिाद ।

(2) विसशष्ट मामलों में पक्षकारों का िणवन


1
[यथार्स्थनत, भारत िंघ या................. राज्य |]
............................................ का मिाधधिक्ता
..................................................का कलक्टर
...................................................... राज्य ।
क ख कम्पनी, सलसमटे ड, र्जिका रर्जस्र कृत कायािलय.............. में िै ।
ग घ कम्पनी का लोक अधधकार क ख ।
क ख (िणिन और ननिाि-स्थान भी सलणखए) अपनी ओर िे और मत
ृ ग घ (िणिन और ननिाि-
स्थान भी सलणखए) के िब अन्य लेनदारों कीं ओर िे ।
क ख (िणिन और ननिाि-स्थान भी सलणखए) अपनी ओर िे और........................... कम्पनी
सलसमटे ड द्िारा परु ोधत
ृ डडबेन्चरों के अन्य िब धारकों की ओर िे ।
शािकीय ररिीिर ।
क ख, अियस्क (िणिन और ननिाि- स्थान भी सलणखए अपने समत्र ग घ द्िारा (या प्रनतपापय
अधधकरण द्िारा) ।
क ख (िणिन और ननिाि-स्थान भी सलणखए), विकृतधचि (या दब
ु ल
ि धचि) व्यर्क्त, अपने िाद-समत्र
ग घ द्िारा ।
क ख, में भागीदार में कारबार करने िाल फमि ।
क ख (िणिन और ननिाि-स्थान भी सलणखए) अपने ननयत अटनी ग घ (िणिन और ननिाि- स्थान
भी सलणखए) द्िारा ।
क ख (िणिन और ननिाि-स्थान भी सलणखए) ठाकुर जी का िेिायत |
क ख (िणिन और ननिाि-स्थान भी सलणखए) मत
ृ क ग घ का ननष्पादक ।
क ख (िणिन और ननिाि-स्थान भी सलणखए) मत
ृ क ग घ का िाररि ।

(3) िाद पत्र


िंख्यांक 1
उधार हदया गया धन

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(शीषिक)
उक्त िाद क ख यि कथन करता िै क्रक---
1. ता0 ........................................को उिने प्रनतिाद को ................................. रुपए उधार
हदए थे जो ता0 ............................को प्रनतिंदेय थे ।
2. प्रनतिाहदयों ने.................................. रूपयों के सििाय र्जनका िंदाय ता0
............................. को क्रकया गया, उि रकम का िंदाय नि ं क्रकया िै ।

1. विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1950 द्िारा “यथार्स्थनत, िेिेटर ऑफ इंडडया या फेडरे शन ऑफ
इंडडया प्रनत'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत ।

[यहद िाद क्रकिी पररिीमा विधध िे छूट का दािा करता िै तो सलणखए िै :----]
3. िाद ता0.............................. िे ता0 ................... तक अियस्क या [या उन्मि] था ।
4. [िे तथ्य र्जनिे यि दसशित िोता िै क्रक िाद-िे तक
ु कब पैदा िुआ और यि क्रक न्यायालय को
अधधकाररता िे ।]
5. िाद की विषय िस्तु का मप
ू य अधधकाररता के प्रयोजन के सलए.......................... रुपए िै और
न्यायालय फीि के प्रयोजन के सलए........................... रुपए िै ।
6. िाद ता0 ............................. िे प्रनतशत ब्याज िहित................... रुपयों का दािा करता िै

िंख्यांक 2
अनतिंदि धन
(शीषवक)
उक्त िाद क ख यि कथन करता िै क्रक-
1. चांद की...................... छडें.................. आने प्रनत तोला पररष्कृत चांद की दर िे खर दने के
सलए िाद ने और बेचने के सलए प्रनत िाद ने ता0 .................. को करार क्रकया ।
2. िाद ने उक्त छड़ों को ड: च द्िारा परखिाने के सलए उपाप्त क्रकया; प्रनतिाद ने उि परख के
सलए ि च को पाररश्रसमक हदया और ङ च ने यि घोवषत क्रकया क्रक िर छड में 1,500 तोले पररष्कृत चांद
िै ; और िाद ने प्रनतिाद को तदनि
ु ार................ रुपयों का िंदाय क्रकया ।
3. उक्त छड़ों में िे िर एक में केिल 1,200 तोले पररष्कृत चांद थी, और जब िाद ने िंदाय
क्रकया उि िमय िि इि तथ्य िे अनसभज्ञ था ।
4. प्रनतिाद ने इि अनतिंदन्त रासश का अभी तक प्रनतिंदाय नि ं क्रकया िै ।
[जैिा प्ररुप िंख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 में िै , और िि अनत
ु ोष र्जिका दािा क्रकया गया िै |]

िंख्यांक 3
ननयत कीमत पर वििय क्रकया गया और पररदि माल

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(शीषिक)

उक्त िाद क ख यि कथन करता िै क्रक-


1. ता0 ....................................को ि. च ने [आटे के एक िौ बोरे या इििे उपाबद्ध अनि
ु च
ू ी में
िणणित माल या विविध माल प्रनतिाद को वििय क्रकया और पररदि क्रकया ।
2. प्रनतिाद ने उि माल के सलए.................. रुपए पररदान पर [या ता0 ........................को, िाद
पत्र फाइल क्रकए जाने िे पिले क्रकिी हदन दे ने का िचन हदया था ।
3. उिने िे रुपए अभी तक नि ं हदए िैं ।
4. ि. च की मत्ृ यु ता0.................... को िुई । अपने अंनतम विल िे उिने अपने भाई अथाित ् िाद
को अपना ननष्पादक ननयक्
ु त क्रकया ।
[जैिा प्ररूप िंख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 में ।]
7. ि. च के ननष्पादक के नाते िाद [िि अनत
ु ोष र्जिका दािा क्रकया गया िै ] का दािा करता िै |

िंख्यांक 4
यस्ु ततयत
ु त कीमत पर वििय क्रकया गया और पररदि माल
(शीषिक)

उक्त िाद क ख यि कथन करता िै क्रक-


1. ता0 ........................................को िाद ने प्रनतिाद को [घरे लू फनीचर की विविध िस्तए
ु ं]
वििय की और पररदि की क्रकन्तु कीमत के बारे में कोई असभव्यक्त करार नि ं क्रकया गया ।
2. इि माल का यर्ु क्तयक्
ु त मप
ू य................. रुपए था ।
3. प्रनतिाद ने इि धन का िंदाय नि ं क्रकया िै ।
[जैिा प्ररुप िंख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 में िै , और िि अनत
ु ोष र्जिका दािा क्रकया गया ि |]

िंख्यांक 5
प्रनतिादी की प्राथवना पर बनाया गया, क्रकन्तु स्िीकार न क्रकया गया माल
(शीषिक)

उक्त िाद क ख यि कथन करता िै , क्रक---


1. ता0 ........................ को ि. च ने िाद िे यि करार क्रकया था क्रक िाद उिके सलए [छि मेजें
और पचाि कुसियााँ] बनाए और ि: च माल के पररदान पर उिके सलए................ रूपयों का िंदाय करे ।
2. िाद ने यि माल बनाया और ता0 ...................... को ि. च को उिका पररदान करने की
प्रस्थापना की, और िाद ऐिा करने के सलए तब िे बराबर तैयार और रजामन्द रिा िै ।
3. ि. च ने उि माल को स्िीकार नि ं क्रकया िै और न उिके सलए िंदाय क्रकया िै ।
[जैिा प्ररुप िंख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 में िै , और िि अनत
ु ोष र्जिका दािा क्रकया गया

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िंख्यांक 6
[नीलाम में वििय क्रकए गए माल के] पन
ु विविय में िुई कमी
(शीषिक)

उक्त िाद क ख यि कथन करता िै क्रक---


1. ता0 ............................... को िाद ने विविध [माल] इि शति पर नीलाम पर चढाया क्रक वििय
के पश्चात ् [दि हदन] भीतर िेता ने र्जि माल के सलए िंदाय नि ं क्रकया और र्जिे िटाया नि ं उि िब
माल का उि िेता के लेखे नीलाम द्िारा पन
ु विििय कर हदया जाएगा, और इि शति की िच
ू ना प्रनतिाद को
थी ।
2. प्रनतिाद ने [चीनी के बतिनों का एक िेट] उि नीलाम में ....................... रुपए कीमत पर िय
क्रकया ।
3. प्रनतिाद को माल का पररदान करने के सलए िाद वििय की तार ख को और उिके पश्चात ् [दि
हदन] तक तैयार और रजामन्द रिा ।
4. प्रनतिाद ने र्जि माल का िय क्रकया उिे यि वििय के पश्चात ् [दि हदन] के भीतर और बाद
में न तो ले गया और न उिके सलए उिने िंदाय क्रकया ।
5. ता0 ........................को िाद ने प्रनतिाद के लेखे उि ( चीनी के बतिनों का िेट] का लोक
नीलाम द्िारा..................... रुपयों में पन
ु विििय क्रकया ।
6. उि पन ु विििय पर.................... रुपए का व्यय िुआ ।
7. ऐिे िुई................... रुपयों की कमी का िंदाय प्रनतिाद ने अब तक नि ं क्रकया िै ।
[जैिा प्ररुप िंख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 में िै , और िि अनत
ु ोष र्जिका दािा क्रकया गया

िंख्यांक 7
यस्ु ततयत
ु त दर पर िेिाएाँ
(शीषिक)

उक्त िाद क ख यि कथन करता िै क्रक-


1. ता0 ......................और ता0 ....................... के बीच............... में , िाद ने प्रनतिाद की
प्राथिना पर उिके सलए [विविध रे खाधचत्र, रूपांकन और आरे ख तैयार क्रकए]; क्रकन्तु इन िेिाओं के सलए द
जाने िाल रासश के बारे में कोई असभव्यक्त करार नि ं क्रकया गया था ।
2. इन िेिाओं का यर्ु क्तयक्
ु त मप
ू य........................... रुपए था ।
3. प्रनतिाद ने इि धन का िंदाय नि ं क्रकया िै |
[जैिा प्ररुप िंख्यांक 1 के पैरा 4 और 6 में िै , और िि अनत
ु ोष र्जिका दािा क्रकया गया

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िंख्यांक 8
यस्ु ततयत
ु त दाम पर िेिाएाँ और िामर्ग्ी
(शीषिक)

उक्त िाद क ख यि कथन करता िै क्रक-


1. ता0 ...............................को........................... में िाद ने प्रनतिाद की प्राथिना पर उिके सलए
एक गि
ृ का ननमािण क्रकया [जो........................... में ,................ िंख्यांक के गि
ृ के नाम िे ज्ञात िै और
उिके सलए िामग्री जट
ु ाई, क्रकन्तु इि काम और िामग्री के सलए द जाने िाल रकम के बारे में कोई
असभव्यक्त करार नि ं क्रकया गया था ।
2. क्रकए गए काम और प्रदि िामग्री का यर्ु क्तयक्
ु त मप
ू य................. रुपए था ।
3. प्रनतिाद ने इि धन का िंदाय नि ं क्रकया िै ।
[जैिा प्ररुप िंख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 में िै , और िि अनत
ु ोष र्जिका दािा क्रकया गया िै |]

िंख्यांक 9
उपयोग और अधधिोग
(शीषिक)

उक्त िाद क ख जो मत
ृ क ि म की विल का ननष्पादक िै , यि कथन करता िै क्रक-
1. प्रनतिाद ने उक्त ि म की अनज्ञ
ु ा िे [................... गल में ................. िंख्यांक िाला गि

ता0 ......................... िे ता0............................. तक अपने अधधभोग में रखा और उक्त पररिर के
उपयोग के सलए िंदाय के बारे में कोई करार नि ं क्रकया गया था ।
2. उक्त पररिर के उक्त अिधध के सलए उपयोग का यर्ु क्तयक्
ु त मप
ू य............ रुपए था ।
3. प्रनतिाद ने उि धन का िंदाय नि ं क्रकया िै ।
[जैिा प्ररुप िंख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 में िे ।]
4. ि म के ननष्पादक के नाते िाद यि दािा करता िै क्रक....................... [िि अनत
ु ोष र्जिका
दािा क्रकया गया िै ।]

िंख्यांक 10
पंचाट पर
(शीषवक)

उक्त िाद क ख यि कथन करता िै क्रक-


1. िाद और प्रनतिाद में [उि मांग के जो िाद ने तेल के दि पीपों की कीमत के सलए की थी
और र्जिका िंदाय करने िे प्रनतिाद ने इंकार कर हदया था,] िंबध
ं में मतभेद िोने पर िाद और प्रनतिाद
ने उि मतभेद को ि. च और छ ज के माध्यस्थम ् के सलए प्रस्तत
ु करने का सलणखत करार ता0 ......... को

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क्रकया था और मल
ू दस्तािेज इिके िाथ उपाबद्ध िै ।
2. ता0 ..................... को मध्यस्थों ने यि पंचाट हदया क्रक प्रनतिाद [िाद को रुपए दे ] ।
3. प्रनतिाद ने उि धन का िंदाय नि ं क्रकया िै ।
[जैिा प्ररुप िंख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 में िै , और िि अनत
ु ोष र्जिका दािा क्रकया गया िै |]

िंख्यांक 11
विदे शी ननणवय पर
(शीषिक)

उक्त िाद क ख यि कथन करता िै क्रक-


1. ता0 को....................... राज्य [या डोसमननयन] के................. में उि राज्य [या डोसमननयन]
के..................... न्यायालय ने, उि िाद में जो िाद और प्रनतिाद के बीच उि न्यायालय में लंबबत था,
िम्यक रुप िे न्याय ननणीत क्रकया था क्रक प्रनतिाद , िाद को............ रुपए उक्त तार ख िे ब्याज िहित
दे ।
2. प्रनतिाद ने उि धन का िंदाय नि ं क्रकया िै ।
[जैिा प्ररुप िंख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 में िै , और िि अनत
ु ोष र्जिका दािा क्रकया गया िै |]

िंख्यांक 12
िाटक के िंदाय के सलए प्रनतिू के विरुद्ध
(शीषिक)

उक्ि िाद क ख यि कथन करता िै क्रक-


1. ता0 ...................... को ि. च ने िाद िे [................. गल में ........... िंख्यांक िाला
गि
ृ ].............................. रुपए िावषिक भाटक पर, जो [प्रनतमाि] िंदेय था,........................... िषि की
अिधध के सलए भाड़े पर सलया ।
2. पररिर का पट्टा ि. च के नाम क्रकए जाने के प्रनतफलस्िरूप प्रनतिाद ने भाटक के यथािमय
िंदाय की प्रत्याभनू त दे ने का करार क्रकया ।
3. .......................... माि के भाटक का, र्जिकी रकम.............. रुपए िै , िंदाय नि ं क्रकया गया
िै ।
[यहद करार के ननबंधनों द्िारा यि अपेक्षित िै क्रक प्रनतभू को िच
ू ना द जाए तो सलणखए िै :---]
4. ता0 .................. को िाद ने प्रनतिाद को भाटक का िंदाय न क्रकए जाने की िच
ू ना द और
उिके िंदाय की मांग की ।
5. प्रनतिाद ने उिका िंदाय नि ं क्रकया िै ।
[जैिा प्ररुप िंख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 में िै , और िि अनत
ु ोष र्जिका दािा क्रकया गया िै |]

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िंख्यांक 13
िसू म िय करने के करार का िंग
(शीषवक)

उक्त िाद क ख यि कथन करता िै क्रक-


1. ता0 ......................... को िाद और प्रनतिाद ने एक करार क्रकया, र्जिकी मल
ू दस्तािेज इिके
िाथ उपाबद्ध िै ।
[या, ता0 .......................... को िाद और प्रनतिाद ने परस्पर करार क्रकया क्रक िाद
.................... ग्राम में चाल ि बीघा भसू म का................................ रुपए में वििय प्रनतिाद को करे गा
और प्रनतिाद िाद िे उिका िय करे गा ।
2. ता0 .....................को िाद ने, जो तब िम्पवि का आत्यंनतक स्िामी तथा [और िि िम्पवि
िब प्रकार के विपलंगमों िे मक्
ु त थी ऐिा प्रनतिाद को प्रतीत कराया गया था,] करार की गई धनरासश के
प्रनतिाद द्िारा हदए जाने पर अंतरण की एक पयािप्त सलखत प्रनतिाद को ननविदि की थी [या उिने
प्रनतिाद को एक पयािप्त सलखत द्िारा अंतररत करने के सलए तैयार और रजामन्द था और अब भी तैयार
और रजामन्द िै और इि िाद की प्रस्थापना कर चक
ु ा िै ।]
3. प्रनतिाद ने उि धन का िंदाय नि ं क्रकया िै ।
[जैिा प्ररुप िंख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 में िै , और िि अनत
ु ोष र्जिका दािा क्रकया गया िै ।

िंख्यांक 14
वििय क्रकए गए माल का पररदान न क्रकया जाना
(शीषिक)

उक्त िादा क ख यि कथन करता िै क्रक-


1. ता0 ........................को .......................... में िाद और प्रनतिाद ने परस्पर करार क्रकया क्रक
प्रनतिाद [आटे के िौ बोरों] का िाद को ता0 ..................... को पररदान करे गा और िाद , पररदान पर
उिके सलए .................... रूपयों का िंदाय करे गा ।
2. [उक्त] हदन उक्त माल के पररदान पर िाद उक्त रासश का प्रनतिाद को िंदाय करने के सलए
तैयार और रजामन्द था और उिने िि रासश दे ने की प्रस्थापना की ।
3. प्रनतिाद ने माल का पररदान नि ं क्रकया िै और िाद उन लाभों िे िंधचत रिा िै जो ऐिे
पररदान िे उिे प्रोद्भत
ू िोते ।
[जैिा प्ररुप िंख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 में िै , और िि अनत
ु ोष र्जिका दािा क्रकया गया िै ।

िंख्यांक 15
िदोष पदच्यनु त
(शीषवक)

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उक्त िाद क ख यि कथन करता िै क्रक---
1. ता0 ........................ को िाद और प्रनतिाद ने परस्पर करार क्रकया क्रक िाद , प्रनतिाद की
िेिा [लेखापाल के या फोरमैन के या क्रकिी अन्य रुप में ] करे गा और प्रनतिाद िाद को [एक िषि] की
अिधध के सलए उि रुप में ननयोर्जत रखेगा और उिकी िेिाओं के सलए उिे............ रुपए [प्रनत माि] दे गा

2. ता0 ................ को िाद प्रनतिाद के िेिा में प्रविष्ट िुआ और उक्त िषि की शेष अिधध के
दौरान ऐिी िेिा में रिने के सलए तब िे बराबर तैयार और रजामन्द रिा िै और अब भी िै और इि बात
की िच
ू ना प्रनतिाद को िदै ि रि िै |
3. ता0 ........................ को प्रनतिाद ने िाद को िदोष िेिोन्यक्
ु त कर हदया और उक्त रुप में
िेिा करने िे िाद को अनज्ञ
ु ा दे ने िे या उिकी िेिा के सलए उिे िंदाय करने िे इंकार कर हदया ।
[जैिा प्ररुप िंख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 में िै , और िि अनत
ु ोष र्जिका दािा क्रकया गया िै ।

िंख्यांक 16
िेिा करने की िंविदा का िंग
(शीषवक)

उक्त िाद क ख यि कथन करता िै क्रक-


1. ता0 .................. को िाद और प्रनतिाद ने परस्पर करार क्रकया क्रक िाद रुपए के [िावषिक]
िेतन पर प्रनतिाद को ननयोर्जत करे गा और प्रनतिाद [कलाकार] के रुप में िाद की िेिा [एक िषि] की
अिधध के सलए करे गा ।
2. िाद करार के अपने भाग का पालन करने के सलए िदै ि तैयार और रजामन्द रिा िै [और ता0
................... को उिने ऐिा करने की प्रस्थपना की ]।
3. प्रनतिाद उक्त हदन िाद की िेिा में [प्रविष्ट िुआ] क्रकन्तु तत्पश्चात ् उिने िाद का उक्त रुप में
िेिा करने िे ता0 ................. को इंकार कर हदया ।
[जैिा प्ररुप िंख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 में िै , और िि अनत
ु ाष र्जिका दािा क्रकया गया िै ।]

िंख्यांक 17
त्रहु टपण
ू व कमवकौशल के सलए ननमावणकताव के विरुद्ध
(शीषवक)

उक्त िाद क ख यि कथन करता िै क्रक---


1. ता0 ........................को िाद और प्रनतिाद ने एक करार क्रकया, र्जिका मल
ू दस्तािेज इिके
िाथ उपाबद्ध िै [या िंविदा का तात्पयि सलणखए] ।
[2. िाद ने करार के अपने भाग की िब शतों का िम्यक् रुप िे पालन कर हदया िै ।]

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3. प्रनतिाद ने [करार में ननहदि ष्ट गि
ृ का ननमािण बरु े प्रकार िे और अकु शलता िे क्रकया िै ।]
[जैिा प्ररुप िंख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 में िै , और िि अनत
ु ोष र्जिका दािा क्रकया गया िै ।]

िंख्यांक 18
सलवपक की विश्िस्तता के बन्धपत्र पर
(शीषिक)

उक्त िाद क ख यि कथन करता िै क्रक-


1. ता0 ...........................को िाद ने च छ को सलवपक के रुप में अपनी िेिा में ननयोर्जत क्रकया

2. उिके प्रनतफलस्िरुप प्रनतिाद ने िाद िे ता0 ............................को करार क्रकया क्रक यहद
सलवपक के रुप में च छ िाद के प्रनत अपने कतिव्यों का पालन ननष्ठापि
ू क
ि नि ं करे गा या यहद
िि उि िब धन, ऋण के िाक्ष्यों या अन्य िम्पवि का, जो उिे िाद के उपयोग के सलए प्राप्त
िुई िै , लेखा िाद को दे ने में अिफल रिे गा तो उि कारण िाद जो भी िानन उठाए उिके सलए
प्रनतिाद िाद को.................. रुपए िे अनधधक का िंदाय करे गा |
[या 2. उिके प्रनतफलस्िरूप प्रनतिाद ने उिी तार ख के अपने बन्धपत्र द्िारा िाद को..............
रुपए की शार्स्तक रासश दे ने के सलए इि शति पर अपने को आबद्ध क्रकया क्रक यहद सलवपक और रोकडडए के
रूप में च छ िाद के प्रनत अपने कतिव्यों का पालन ननष्ठापि
ू क
ि करे गा और यहद िि उि िब धन, ऋण के
िाध्यों या अन्य िम्पवि का र्जिे िि िाद के सलए क्रकिी भी िमय न्याित: धाररत करे , लेखा न्यायिंगत
रुप में िाद को दे दे गा तो बन्धपत्र शन्
ू य िोगा ।
[या 2. उिके प्रनतफलस्िरूप उिी तार ख को प्रनतिाद ने िाद के पि में एक बन्धपत्र ननष्पाहदत
क्रकया, र्जिकी मल
ू दस्तािेज इिके िाथ उपाबद्ध िै ।]
3. ता0 .......................... और ता0 ................... के बीच च छ को िाद के उपयोग के सलए धन
और अन्य िम्पवि, र्जिका मपू य........................ रुपए िै , प्राप्त िुई और इि रासश का लेखा उिने िाद
को नि ं हदया िै और िि अब तक शोध्य िै और उिका िंदाय नि ं क्रकया गया िै ।
[जैिा प्ररुप िंख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 में िै , और िि अनत
ु ोष र्जिका दािा क्रकया गया िै ।

िंख्यांक 19
उि असिधारी द्िारा स्जिे विशेष नकु िान िुआ िै , ि-ू स्िामी के विरुद्ध
(शीषवक)

उक्त िाद क ख यि कथन करता िै क्रक-


1. ता0 ........................को प्रनतिाद ने िाद को रर्जस्र कृत सलणखत द्िारा [.................गल
में .................. िंख्यांक िाला गि
ृ ]........................... िषि की अिधध के सलए िाद िे यि िंविदा करके
पट्टे पर हदया था क्रक िि, अथाित िाद , और उिके विधधक प्रनतननधध उिके कब्जे का शार्न्तपण
ू ि उपभोग

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उक्त अिधधपयंत करें गे ।
2. िब शतें परू कर द गई और ऐिी िब आिश्यक बातें घहटत िुई िैं र्जनिे िाद यि िाद चलाने
का िकदार िो जाता िै ।
3. उक्त अिधध के दौरान में ता0 ........................को च छ ने जो उक्त गि
ृ का विधधपण
ू ि स्िामी
िै , िाद को ििां िे विधधपि
ू क
ि बेदखल कर हदया और अब भी उिने उिका कब्जा िाद को दे ने िे रोक
रखा िै ।
4. िाद इि बात िे [उक्त स्थान में दजी के रुप में अपना कारबार चलाने िे ननिाररत िो गया,
यिां िे िटकर दि
ू र जगि जाने में उिे .................................रुपए व्यय करने पडे और ऐिे िट जाने के
कारण उिे ज झ और ट ठ की ग्रािकी की िानन िो गई ।]
[जैिा प्ररुप िंख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 में िै , और िि अनत
ु ोष र्जिका दािा क्रकया गया िै ।]

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िंख्यांक 20
क्षनतपनू तव के करार पर
(शीषवक)

उक्त िाद क ख यि कथन करता िै क्रक-


1. ता0 ...................... को िाद और प्रनतिाद ने जो क ख और ग घ असभनाम िे क्रकए जाने
िाले व्यापार में भागीदार िैं अपनी भागीदार का विघटन कर हदया और परस्पर करार क्रकया क्रक प्रनतिाद
भागीदार की िब िम्पवि ले लेगा और रखेगा, फमि के िब ऋण चुकाएगा और फमि की ऋणणता मद्धे िाद
के विरुद्ध जो दािे क्रकए जाएं उन िब दािों के सलए िाद की िनतपनू ति करे गा ।
2. िाद ने करार के अपने भाग की िब शतों का िम्यक् रुप िे पालन कर हदया ।
3. ता0 .............................को [फमि द्िारा च छ को शोध्य ऋण मद्धे एक ननणिय च छ
द्िारा.................के उच्च न्यायालय में िाद और प्रनतिाद के विरुद्ध प्राप्त कर सलया गया और ता0
..................... को िाद ने [उिकी तर्ु ष्ट] में ......................... रुपए का िंदाय क्रकया ।
4. प्रनतिाद ने िाद को उि रकम का िंदाय नि ं क्रकया िै ।
[जैिा प्ररुप िंख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 में िै और िि अनत
ु ोष र्जिका दािा क्रकया गया िै ।]

िंख्यांक 21
कपट द्िारा िंपवि उपाप्त करना
(शीषवक)

उक्त िाद क ख यि कथन करता िै क्रक-


1. प्रनतिाद ने िाद को इि बात के सलए उत्प्रेररत करने के प्रयोजन िे क्रक िि प्रनतिाद का कु छ
मालक बेचे ता0 ........................................ को िाद िे यि व्यपदे शन क्रकया क्रक [िि अथाित ् प्रनतिाद
शोधिम िै और उिकी अपने िब दानयत्िों िे.......................रुपए अधधक की मासलयत िै ]।
2. इिे िाद .........................रुपए मप
ू य की [िख
ू ी िस्तए
ु ं] प्रनतिाद को बेचने [और उनका पररदान
करने] के सलए उत्प्रेररत िो गया ।
3. उक्ि व्यपदे शन समथ्या थे [यिां विसशष्ट सम्या बातों का कथन कीस्जए] और उनका ऐिा िोना
प्रनतिाद को तब ज्ञात था ।
4. प्रनतिाद ने माल के सलए िंदाय नि ं क्रकया िै [या, यहद माल का पररदान नि ं क्रकया गया िै तो]
िाद ने उि माल को तैयार करने और पोत द्िारा भेजने और उिका प्रत्याितिन कराने में ........................
रुपए व्यय क्रकए ।
[जैिा प्ररुप िंख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 में िै , और िि अनत
ु ोष र्जिका दािा क्रकया गया िै ।]

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िंख्यांक 22
अन्य व्यस्तत को उधार पर हदया जाना, कपटपि
ू क
व उपाप्त करना
(शीषवक)

उक्त िाद क ख यि कथन करता िै क्रक-


1. ता0 ......................... को प्रनतिाद ने िाद िे व्यपहदष्ट क्रकया क्रक च छ शोधिम िै और
उिकी अच्छी िाख िै तथा उिकी अपने िब दानयत्िों िे................. रुपए अधधक की मासलयत िै [या क्रक
च छ उिरदानयत्िपण
ू ि ओिदे पर िै और अच्छी पररर्स्थनतयों में िै और उधार पर माल दे ने के सलए उिका
परू ा विश्िाि क्रकया जा िकता िै ।]
2. इि पर िाद च छ को..................रुपए मप
ू य का [चािल]................ [माि के उधार पर] बेचने
के सलए उत्प्रेररत िो गया ।
3. उक्त व्यपदे शन समथ्या थे और उनका ऐिा िोना प्रनतिाद को तब ज्ञात था और िे उिके द्िारा
िाद िे प्रिंचना और कपट करने के [या िाद िे प्रिंचना करने और उिे िनत पिुंचाने के] आशय िे क्रकए
गए थे ।
4. च छ ने [उक्ि उधार की अिधध के िमाप्त िोने पर उक्त माल के सलए िंदाय नि ं क्रकया, या]
उिने उक्त चािल के सलए िंदाय नि ं क्रकया और िाद को उि िारे चािल की िानन िो गई िै ।
[जैिा प्ररुप िंख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 में िै , और िि अनत
ु ोष र्जिका दािा क्रकया गया िै ।]

िंख्यांक 23
िादी की िसू म के नीचे के जल को प्रदवू षत करना
(शीषवक)

उक्ि िाद क ख यि कथन करता िै क्रक-


1. ..............नाम िे ज्ञात और..................................में र्स्थत कुछ भसू म और उिमे कुआं और
उि कुएं का जल िाद के कब्जे में िै और इिमें उर्पलणखत िब िमयों पर था और िाद उि कुएं के और
उिके जल के उपयोग और फायदे का तथा जल के कुछ स्रोतों और धाराओं के, जो उि कुएं में बि कर
आती िै और उिे जल पिुंचाती िैं, कलवु षत या प्रकृवपत क्रकए गए बबना बिते रिने हदए जाने का िकदार िै

2. ता0 .................... को प्रनतिाद ने कुएं और उिके जल को और जो स्त्रोत और धाराएं कुएं में
बि कर आती थीं उनको दोषपि
ू क
ि कलवु षत और प्रदवू षत क्रकया ।
3. पररणामस्िरूप कुएं का जल अशद्
ु ध तथा घरे लू और अन्य आिश्यक प्रयोजनों के सलए
अनप
ु यक्
ु त िो गया और िाद और उिका कुटुम्ब कुएं और जल के उपयोग और फायदे िे िंधचत िो गए ।
[जैिा प्ररुप िंख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 में िै , और िि अनत
ु ोष र्जिका दािा क्रकया गया िै ।

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िंख्यांक 24
अपायकर विननमावण चलाना
(शीषवक)

उक्त िाद क ख यि कथन करता िै क्रक-


1. ................. नाम िे ज्ञात और..............................में र्स्थत कुछ भसू मयााँ िाद के कब्जे में िैं
और इिमें आगे उर्पलणखत िब िमयों पर थीं ।
2. ता0 ............................... िे बराबर प्रनतिाद कु छ प्रगालन िंकमों िे र्जन्िें प्रनतिाद चला
रिा िै बडी मात्रा में क्लेशकर और अस्िास्थकर घआ
ु ं तथा अन्य बाध्य और अपायकर पदाथि दोष पि
ू क
ि
ननकाल रिा िै जो उक्त भसू मयों के ऊपर फैल जाते िैं और र्जन्िोंने िायु को भ्रष्ट कर हदया िै और जो
भसू म तल पर जम गए िैं ।
3. िाद के उन भसू मयों में उगने िाले िि
ृ ों, झाडडयों, िररयाल और फिल को उििे नक
ु िान िुआ
और उनके मप
ू य में कमी िो गई और उन भसू मयों पर िाद के ढोर और जीिंधन अस्िस्थ िो गए िैं और
उनमें िे बिुत िे विषाक्त िोकर मर गए ।
4. िाद ढोरों और भेड़ों को उन भसू मयों पर िैिे चराने में अिमथि रिा जैिे िि अन्यथा उन्िें चरा
िकता था और िि अपने ढोरों, भेड़ों और कृवष- धन को ििां िे िटाने के सलए वििश िो गया और भसू मयों
का िैिा फायदाप्रद और अच्छा उपयोग और अधधभोग करने िे ननिाररत रिा जैिा िि अन्यथा कर िकता
था ।
[जैिा प्ररूप िंख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 में िै , और िि अनत
ु ोष र्जिका दािा क्रकया गया िै ।]

िंख्यांक 26
मागावधधकार में बाधा िालना
(शीषवक)

उक्त िाद क ख यि कथन करता िै क्रक-


1. िाद का कब्जा [.............. ग्राम में के एक गि
ृ पर] िै और इिमें आगे उर्पलणखत िमय पर था

2. िाद िषि में िब िमयों पर [गि
ृ ] िे लोक राजमागि तक अमक
ु खेत में िोकर [यानों में या पैदल]
जाने के सलए और लोक राजमागि िे उि खेत िे िोकर उि गि
ृ तक [यानों में या पैदल] लौट कर आने के
सलए स्ियं और अपने िेिकों के सलए मागािधधकार का िकदार था ।
3. ता0 .........................को प्रनतिाद ने उक्त मागि को दोषपि
ू क
ि बाधधत कर हदया र्जििे िाद
[यानों में या पैदल या क्रकिी प्रकार िे] उि रास्ते पर िोकर न जा िका [और िि उिे तब िे बराबर
दोषपि
ू क
ि बाधधत क्रकए िुए िै ]।
4. (यहद कोई विशेष नक ु िान िुआ िो तो िि सलणखए ।)
[जैिा प्ररुप िंख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 में िै , और िि अनत
ु ोष र्जिका दािा क्रकया गया िै ।]

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िंख्यांक 26
राजमागव में बाधा िालना
(शीषवक)

1. प्रनतिाद ने......................... िे................को जाने िाले लोक राजमागि में दोषपि


ू क
ि एक खाई
खोद द िै और उि पर समट्ट और पत्थर ऐिे जमा कर हदए िैं र्जििे िि बाधधत िो गया िै |
2. उक्त लोक राजमागि िे विधधपि
ू क
ि जाते िुए िाद उि बाधा के कारण उक्त समट्ट और पत्थरों
पर [या उक्त खाई में ] धगर पडा और उिकी बांि टूट गई और उिे बिुत पीडा ििनी पडी और बिुत िमय
तक िि अपने कारबार की दे खभाल नि ं कर िका और उिे अपनी धचक्रकत्िा-पररचयाि में व्यय उपगत करना
पडा ।
[जैिा प्ररुप िंख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 में िै , और िि अनत
ु ोष र्जिका दािा क्रकया गया िै ।]

िंख्यांक 27
जल-िरणी को मोड़ना
(शीषवक)

उक्त िाद क ख यि कथन करता िै क्रक---


1. िाद का कब्जा.............................र्जले के...............................ग्राम में ................नाम िे ज्ञात
(धारा) पर र्स्थत समल पर िै और इिमें आगे उर्पलणखत िमय पर था ।
2. ऐिे कब्जे के कारण िाद अपनी समल को चलाने के सलए उि धारा के प्रिाि का िकदार था ।
3. ता0 .....................को प्रनतिाद ने धारा के क्रकनारे को काटकर उिके जल को दोषपि
ू क
ि मोड
हदया र्जििे िाद की समल में पानी कम आने लगा ।
4. इि कारण िाद प्रनतहदन................................. िे अधधक बोरे पीिने में अिमथि रिा िै जब
क्रक जल के उक्त मोडे जाने के पि
ू ि ि प्रनतहदन.......................बोरे पीि लेता था ।
[जैिा प्ररुप िंख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 में िै , और िि अनत
ु ोष र्जिका दािा क्रकया गया िै ।]

िंख्यांक 28
जल का सिंचाई के सलए उपयोग करने के अधधकार में बाधा िालना
(शीषवक)

उक्त िाद क ख यि कथन करता िै क्रक---


1. िाद का कब्जा............... इत्याहद में र्स्थत कुछ भसू मयों पर िै और इिमें आगे उर्पलणखत
िमय पर था और िाद अमक
ु धारा के जल का एक भाग उक्त भसू मयों की सिंचाई के सलए लेने और
उपयोग में लाने का िकदार िै और इिमें आगे उर्पलणखत िमय पर था ।
2. ता0 .............................. को प्रनतिाद ने उक्त धारा को दोषपि
ू क
ि बाधधत करके तथा उिे

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मोडकर िाद को उक्त जल के उक्त भाग को उक्त रुप में लेने और उपयोग में लाने िे रोक हदया ।
[जैिा प्ररुप िंख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 में िै , और िि अनत
ु ोष र्जिका दािा क्रकया गया िै ।]

िंख्यांक 29
रे ल-पथ पर उपेक्षा िे िुई क्षनतयां
(शीषवक)

उक्त िाद क ख यि कथन करता िै क्रक--


1. ता0 .....................को प्रनतिाद .............................और..........................के बीच रे ल द्िारा
याबत्रयों को ले जाने के सलए िामान्य िािक थे ।
2. उि हदन िाद उक्त रे ल-पथ पर प्रनतिाद के डडब्बों में िे एक में यात्री था ।
3. जब िि ऐिा यात्री था तब................ में (या.............. के स्टे शन के ननकट
या............................ और...................... स्टे शनों के बीच) प्रनतिाहदयों के िेिकों की उपेिा और अकौशल
के कारण उक्त रे ल पर टक्कर िो गई, र्जििे िाद को (अपनी टांग टूट जाने अपना सिर फट जाने इत्याहद
िे और यहद कोई विशेष नक
ु िान िुआ िो तो सलणखए) बिुत िनत िुई और उिे अपनी धचक्रकत्िीय-पररचयाि
पर व्यय उपगत करना पडा और िि बबिीकताि के रुप में अपना पि
ू ि
ि ती कारबार करने िे स्थायी रुप िे
अशक्त िो गया िै ।
[जैिा प्ररुप िंख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 में िै , और िि अनत
ु ोष र्जिका दािा क्रकया गया िै ।
[या इि भांनत-2 उि हदन प्रनतिाहदयों ने ईंजन और उििे िंलग्र डडब्बों की रे लगाड़ी को प्रनतिाहदयों
की रे ल की लाइन पर र्जिको िाद विधधपि
ू क
ि उि िमय पार कर रिा था, अपने िेिकों के द्िारा ऐिी
उपेिा और अकौशल िे चलाया और उिका िंचालन क्रकया क्रक उक्त ईंजन और रे लगाड़ी आगे बढकर िाद
िे टकरा गई र्जिके कारण......................... इत्याहद जैिा क्रक पैरा 3 में िै ।]

िंख्यांक 30
उपेक्षापि
ू क
व गाड़ी चलाने िे िुई क्षनतयां
(शीषवक)

उक्त िाद क ख यि कथन करता िै क्रक-


1. िाद जूता बनाने िाला िै और अपना कारबार..................... में करता िै ।
प्रनतिाद ....................का व्यापार िै ।
2. ता0 .................. को लगभग 3 बजे अपराह्र में िाद कलकिा नगर में चौरं गी में दक्षिण की
ओर जा रिा था । उिे समडडलटन स्र ट पार करनी पड़ी जो चौरं गी िे िमकोण पर समलती िै । जब िि
उि स्र ट को पार कर रिा था, और इििे ठीक पिले क्रक िि उिकी दि ू र ओर िाले पथ पर पिुंचे, दो
घोड़ों द्िारा खींची जाने िाल प्रनतिाद की गाड़ी, जो प्रनतिाद के िेिकों के भारिाधन और ननयंत्रण में थी
िििा और क्रकिी चेतािनी के बबना बडी तेजी िे और खतरनाक गनत रो समडडलटन स्र ट िे चौरं गी में

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उपेिापि
ू क
ि मड़
ु ी । गाड़ी का बम िाद िे टकराया और िाद नीचे धगर पडा और घोडों के पांि िे कुचल गया

3. टक्कर लगने और धगरने और पांिों के नीचे कुचले जाने िे िाद की बांि टूट गई और उिकी
बगल में और पीठ पर नील पड़ गए और िनत पिुंची और िाथ ि उिे भीतर िनत भी िुई और उिके
पररणामस्िरूप िाद चार माि तक रोगग्रस्त रिा और कष्ट भोगता रिा और कारबार की दे खभाल करने में
अिमथि रिा, और उिे भार धचक्रकत्िीय और अन्य व्यय उपगत करने पडे तथा उिे कारबार और लाभों की
बड़ी िानन ििनी पडी ।
[जैिा प्ररुप िंख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 में िै , और िि अनत
ु ोष र्जिका दािा क्रकया गया िै ।

िंख्यांक 31
विद्िेषपण
ू व असियोजन के सलए
(शीषवक)

उक्त िाद क ख यि कथन करता िै क्रक-


1. ता0 ........................ को प्रनतिाद ने..................... िे [जो उक्त नगर का मर्जस्रे ट िै या जो
र्स्थनत िो िि सलणखए]............... के आरोप पर धगरफ्तार का िारण्ट असभप्राप्त क्रकया और उिके बल पर
िाद धगरफ्तार क्रकया गया और.................... [हदनों या घण्टों के सलए] कारािासित रिा और [अपनी
ननमर्ुि क्त के सलए उिने................ रुपयों की जमानत द ।]
2. ऐिा करने में प्रनतिाद ने विद्िेषपि
ू क
ि और यर्ु क्तयक्
ु त या असभिम्भाव्य िे तक
ु के बबना कायि
क्रकया ।
3. ता0 ........................ को मर्जस्रे ट ने प्रनतिाद का पररिाद खाररज कर हदया और िाद को
दोषमक्
ु त कर हदया |
4. अनेक व्यर्क्तयों ने, र्जिके नाम िाद को अज्ञात िैं, धगरफ्तार की बात िन
ु कर और िाद को
अपराधी अनम
ु ान करके उिके िाथ कारबार करना छोड़ हदया िै , या ि. च के सलवपक के रुप में अपने पद
को िाद उक्त धगरफतार के पररणामस्िरुप खो बैठा; या पररणामस्िरुप िाद को शर र और मन की पीडा
ििनी पडी और िि अपना कारबार करने िे ननिाररत रिा और उिकी िाख को िनत पिुंची, उक्त कारािाि
िे ननमक्
ुि त िोने के सलए और उक्त पररिाद के विरुद्ध अपनी प्रनतरिा करने के सलए उिे व्यय उपगत
करना पडा ।
[जैिा प्ररुप िंख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 में िै , और िि अनत
ु ोष र्जिका दािा क्रकया गया िै ।]

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िंख्यांक 32
जंगम माल का िदोष ननरोध
(शीषवक)

उक्त िाद क ख यि कथन करता िै क्रक-


1. ता0 .................. को िाद इिके िाथ उपाबद्ध अनि
ु च
ू ी में िणणित माल का (या माल का
िणिन कीर्जए), र्जिका प्राक्कसलत मप
ू य....................... रुपए िै , स्िामी था [या िे तथ्य सलणखए र्जनिे
कब्जे का अधधकार दसशित िोता िै ।]
2. उि हदन िे इि िाद के प्रारम्भ िोने तक प्रनतिाद ने उि माल को िाद िे रोक रखा िै ।
3. िाद आरम्भ िोने िे पिले अथाित ् ता0 ........................को, िाद ने प्रनतिाद िे माल मांगा,
क्रकन्तु उिने माल का पररदान करने िे इंकार क्रकया ।
[जैिा प्ररूप िंख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 में िे ।]
6. िाद यि दािा करता िै क्रक-
(1) उक्त माल का पररदान कराया जाए, या यहद उिका पररदान नि ं कराया जा िकता
तो.............. रुपए हदलाए जाएं;
(2) उिको रोक रखे जाने के प्रनतकरस्िरुप.......................रुपए हदलाए जाएाँ ।

अनि
ु च
ू ी
िंख्यांक 33
कपटी वििेता और उिकी िच
ू ना िहित अन्तररती के विरुद्ध
(शीषवक)

उक्त िाद क ख यि कथन करता िै क्रक-


1. ता0 ...........................को प्रनतिाद ग घ ने िाद को उिे कुछ माल बेचने के सलए उत्प्रेररत
करने के प्रयोजन िे िाद िे यि व्यपहदष्ट क्रकया क्रक [िि शोधिम िै और उिकी उिके िब दानयत्िों
िे......................रुपए अधधक की मासलयत िै । ]
2. इििे िाद ग घ को [चाय के एक िौ बक्िे] बेचने और उनका पररदान करने के सलए उत्प्रेररत
िुआ । इनका प्राक्कसलत मपू य........................... रुपए िै ।
3. उक्त व्यपदे शन समथ्या थे और ग घ को उनका समथ्या िोना तब ज्ञात था [या उक्त व्यपदे शन
करने के िमय, ग घ हदिासलया था और िि अपनी यि र्स्थनत जानता था ।
4. ग घ ने तत्पश्चात ् उक्त माल प्रनतिाद च छ को क्रकिी प्रनतफल के बबना [या च छ को र्जिे
व्यपदे शन के समथ्या िोने की िच
ू ना थी अन्तररत कर हदया ।
[जैिा प्ररुप िंख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 में ि । ]
7. िाद यि दािा करता िै क्रक---
(1) उक्त माल का पररदान कराया जाए, या यहद उिका पररदान नि ं कराया जा िकता

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तो.............. रुपए हदलाए जाएं ।
(2) उि माल को रोक रखने की प्रनतकरस्िरुप................... रुपए हदलाए जाएं ।

िंख्यांक 34
िंविदा का िल
ू के आधार पर विखण्िन
(शीषवक)

उक्त िाद क ख यि कथन करता िै क्रक---


1. ता0 ..............................को प्रनतिाद ने िाद िे व्यपहदष्ट क्रकया क्रक अमक
ु भ-ू खण्ड, जो
प्रनतिाद का िै और............. में र्स्थत िै [दि बीघे] का िै ।
2. इििे िाद उिे................ रुपए की कीमत पर इि विश्िाि पर खर दने के सलए उत्प्रेररत िो
गया क्रक उक्त व्यपदे शन ित्य िै और उिने एक करार पर िस्तािर क्रकए र्जिकी मल
ू प्रनत इिके िा
उपाबद्ध िै । क्रकन्तु भसू म उिे अन्तररत नि ं की गई िै ।
3 ता0 .......................को िाद ने प्रनतिाद को ियधन के भाग रुप ......................... रुपए दे
हदए |
4. उक्त भ-ू खण्ड िास्ति में केिल [पांच बीघे] का िै ।
[जैिा प्ररुप िंख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 में िै |]
7. िाद यि दािा करता िै क्रक---
(1) ता0 ....................... िे ब्याज िहित................... रुपए हदलाए जाएं;
(2) उक्त करार लौटाया जाए और रदृ कर हदया जाए ।

िंख्यांक 35
दव्ु यवय रोकने के सलए व्यादे श
(शीषवक)

उक्त िाद क ख यि कथन करता िै क्रक---


1. िाद [िम्पवि का िणिन कीर्जए] का आत्यर्न्तक स्िामी िै ।
2. प्रनतिाद का उि पर कब्जा िाद िे सलए गए पट्टे के अधीन िै ।
3. प्रनतिाद ने िाद की ििमनत के बबना [वििय के प्रयोजन के सलए कई मप
ू यिान िि
ृ काट डाले
िैं और अन्य बिुत िे काट डालने की धमकी दे रिा िै] |
[जैिा प्ररुप िंख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 में िै |]
6. िाद यि दािा करता िै क्रक प्रनतिाद को उक्त पररिर में कोई अनतररक्त दव्ु यिय करने या करने
दे ने िे व्यादे श द्िारा अिरूद्ध क्रकया जाए ।
[धन के रुप में प्रनतकर का भी दािा क्रकया जा िकता िै ।]

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िंख्यांक 36
न्यि
ू ि
ें रोकने के सलए व्यादे श
(शीषवक)

उक्त िाद क ख यि कथन करता िै क्रक-


1. िाद [कलकिा की....................स्र ट के..................... िंख्यांक िाले गि
ृ ] का आत्यर्न्तक
स्िामी िै और इिमें आगे उर्पलणखत िब िमयों पर था ।
2. प्रनतिाद [उिी.......................... स्र ट में एक भ-ू खण्ड] का आत्यर्न्तक स्िामी िै और उक्त
िब िमयों पर था ।
3. ता0 ............................ को प्रनतिाद ने अपने उक्त भ-ू खण्ड में एक िधशाला ननसमित की और
उिे िि अब भी बनाए िुए िै और उि हदन िे आज तक िि बराबर ििां ढोर मंगिा कर उन्िें मरिा डालता
िै [और रक्त और ओझडी को िाद के उक्त गिृ के िामने िाल गल में क्रफं किा दे ता िै |]
[4. पररणामत: िाद उक्त गि
ृ का पररत्याग करने के सलए वििश िो गया िै और उिे भाटक पर
नि ं उठा िका िै ।]
[जैिा प्ररुप िंख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 में िे ।]
7. िाद दािा करता िै क्रक प्रनतिाद को और न्यि
ू ेन्ि करने या करने दे ने िे व्यादे श द्िारा
अिरुद्ध क्रकया जाए ।

िंख्यांक 37
लोक न्यि
ू ि
ें
(शीषवक)
उक्त िाद क ख यि कथन करता िै क्रक-
1. प्रनतिाद ने......................की लोक िडक पर, जो................. गल के नाम िे ज्ञात िै , समट्ट
और पत्थर का ढे र दोषपि
ू क
ि ऐिे लगा हदया िै क्रक उि िड़क पर लोगों को आने-जाने में बाधा पडती िै और
िि यि धमकी दे रिा िै क्रक उिका यि आशय िै क्रक जब तक उिे ऐिा करने िे अिरुद्ध नि ं क्रकया जाता
िै िि उक्त दोषपण
ू ि कायि को चालू रखेगा और उिे दिु राता रिे गा ।
1 *
[ 2. िाद ने न्यायालय की इजाजत इि िाद को िंर्स्थत करने के सलए असभप्राप्त कर ल िै ।
*
जिां िाद मिाधधिक्ता द्िारा िंर्स्थत क्रकया जाता िै ििां पर यि लागू नि ं िै ।]
[जैिा प्ररुप िंख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 में िै ।]
5. िाद यि दािा करता िै क्रक--
(1) यि घोषणा की जाए क्रक प्रनतिाद उक्त लोक िडक पर लोगों के आने-जाने में बाधा डालने का
िकदार नि ं िै ;
(2) उक्त लोक िडक पर लोगों के आने-जाने में बाधा डालने िे प्रनतिाद को अिरूद्ध करने िाला
और पि
ू ोक्त रूप िे दोषपि
ू क
ि इकटठी की गई समटट और पत्थरों को िटाने के सलए प्रनतिाद को ननदे श दे ने
िाला व्यादे श ननकाला जाए ।

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िंख्यांक 38
जल-िरणी मोड़ने के विरुद्ध व्यादे श
(शीषवक)

उक्त िाद क ख यि कथन करता िै क्रक-


[जैिा प्ररुप िंख्यांक 27 में िै ।]
िाद दािा करता िै क्रक पि
ू ोक्त जल-िरणी को मोडने िे प्रनतिाद व्यादे श द्िारा अिरुद्ध क्रकया
जाए ।

िंख्यांक 39
उतत जंगम िंपवि। के प्रत्याितवन के सलए स्जिके विनाश की धमकी दी जा रिी िै और व्यादे श के सलए
(शीषवक)

उक्त िाद क ख यि कथन करता िै क्रक-


1. िाद (अपने वपतामि के रूपधचत्र का, जो एक प्रसिद्ध धचत्रकार द्िारा बनाया गया था) स्िामी िै
और इिमें आगे उर्पलणखत िब िमयों पर था और उि रुपधचत्र की दि
ू र प्रनत विद्यमान नि ं िै [या िे
तथ्य सलणखए र्जनिे यि दसशित िोता िै क्रक िम्पवि इि प्रकार की िै क्रक उिकी पनू ति धन िे नि ं की जा
िकती िै |]
2. ता0 ......................... को उिने उिे प्रनतिाद के पाि िरु क्षित रुप िे रखने के सलए ननक्षिप्त
क्रकया था ।
3. ता0 ...................... को उिने प्रनतिाद िे उिे िापि मांगा और उिे भण्डार में रखने के िब
यर्ु क्तयक्
ु त प्रभारों को दे ने की प्रस्थापना की ।
4. प्रनतिाद उि रुपधचत्र का िाद को पररदान करने िे इंकार करता िै और यि धमकी दे रिा िै
क्रक यहद उििे उिका पररदान करने की अपेिा की गई तो िि उिे नछपा दे गा या उिका व्ययन कर दे गा
या उिे काट दे गा या ित कर दे गा ।
5. उि [रं गधचत्र] की िानन के सलए िाद को कोई धनीय प्रनतकर पयािप्त प्रनतकर नि ं िोगा ।
[जैिा प्ररूप िंख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 में िै । ]
8. िाद दािा करता िै क्रक-
(1) प्रनतिाद को उक्त [रं गधचत्र] का व्ययन करने, उिे ित करने या नछपाने िे व्यादे श द्िारा
अिरुद्ध क्रकया जाए;
(2) उिे वििश क्रकया जाए क्रक उिका पररदान िाद को कर दे ।

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िंख्यांक 40
अन्तरासििाची
(शीषवक)

उक्त िाद क ख यि कथन करता िै क्रक---


1. इिमें आगे उर्पलणखत दािों की तार ख के पिले ज झ ने िाद के पाि [िम्पवि का िणिन
कीर्जए] को [िरु क्षित रुप िे रखने के सलए] ननक्षिप्त क्रकया था ।
2. प्रनतिाद ग घ [ज झ िे उिके असभकधथत िमनद
ु े शन के अधीन] उिका दािा करता िै ।
3. प्रनतिाद च छ भी [ज झ के ऐिे आदे श के अधीन, र्जिके द्िारा िि उिे अन्तररत की गई थी]
उिका दािा करता िै ।
4. िाद , प्रनतिाहदयों के अपने- अपने अधधकारों के बारे में अनसभज्ञ िै ।
6. उिका उि िम्पवि पर, प्रभारों और खचों िे सभन्न, कोई दािा नि ं िै और िि उिका उन
व्यर्क्तयों को पररदान करने के सलए तैयार और रजामन्द िै र्जन्िें दे ने का न्यायालय ननदे श दे ।
6. यि िाद दोनों प्रनतिाहदयों में िे क्रकिी के िाथ दस्
ु िर्न्ध करने के बाद नि ं लाया गया िै ।
[जैिा प्ररुप िंख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 में िै । ]
9. िाद दािा करता िै क्रक-
(1) प्रनतिाद को िाद के विरुद्ध उिके िम्बन्ध में कोई कायििाि करने िे व्यादे श द्िारा अिरुद्ध
कर हदया जाए;
(2) उनिे अपेिा की जाए क्रक िे उक्त िम्पवि पर अपने दािों के बारे में परस्पर अन्तरासभिचन
करें |
(3) इि मक
ु दमे के लर्म्बत रिने तक उक्त िम्पविने को प्राप्त करने के सलए क्रकिी व्यर्क्त को
प्राधधकृत क्रकया जाए;
(4) उिका ऐिे [व्यर्क्त] को पररदान कर दे ने पर िाद उिके िम्बन्ध में प्रनतिाहदयों में िे क्रकिी
के भी प्रनत िब दानयत्ि में उन्मोधचत क्रकया जाए ।

िंख्याक 41
लेनदार द्िारा अपनी ओर िे और िब लेनदारों की ओर िे प्रशािन
(शीषवक)

उक्त िाद क ख यि कथन करता िै क्रक-


1. मत
ृ ि. च, जो........................... का था, अपनी मत्ृ यु के िमय िाद के प्रनत .......................
(यिां ऋण की प्रकृनत और यहद कोई प्रनतभनू त िो तो उिका उपलेख कीर्जए की रासश का ऋणी था और
उिकी िम्पदा अभी तक उि ऋण िे भाररत िै ।
2. ि. च की मत्ृ यु ता0 ........................... को या उिके लगभग िुई थी । उिने तार ख
................ की अपनी अर्न्तम विल द्िारा ग घ को अपना ननष्पादक ननयक् ु त क्रकया [या, यथार्स्थनत, उिने

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अपनी िम्पदा न्याि के रुप ियीयत द्िारा द , इत्याहद या िि ननिििीचत मर गया ।
3. विल ग घ द्िारा िाबबत की गई [या प्रशािन-पत्र अनद
ु ि क्रकए गए, इत्याहद ]|
4. प्रनतिाद ने ि. च की जंगम िम्पवि [और स्थािर िम्पवि। या स्थािर िम्पवि के आगमों] पर
अपना कब्जा कर सलया िै और िाद को उिका ऋण नि ं चुकाया िै ।
[जैिा प्ररुप िंख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 में िै । ]
7. िाद दािा करता िै क्रक मत
ृ ि. च की जगम [और स्थािर] िम्पवि का लेखा सलया जाए और
न्यायालय की डडिी के अधीन उिका प्रशािन क्रकया जाए ।

िंख्यांक 42
विननहदवष्ट ििीयतदार द्िारा प्रशािन
(शीषवक)

[प्ररुप िंख्यांक 41 को इि प्रकार पररिनतित कीर्जए]


[पैरा 1 छोड द र्जए और पैरा 2 इि प्रकार आरम्भ कीर्जए] मत
ृ ि. च की जो................ का था,
मत्ृ यु ता0 ...................... को या उिके लगभग िुई । उिने ता0 ................... की अपनी अर्न्तम विल
द्िारा ग घ को अपना ननष्पादक ननयक् ु त क्रकया और िाद को [यिां विननहदिष्ट ििीयत िम्पदा सलणखए
ििीयत की ।
पैरा 4 के स्थान पर यि सलणखए क्रक-
प्रनतिाद ि. च की जंगम िम्पवि पर कब्जा रखता िै और अन्य चीजों के िाथ [यिां विननहदि ष्ट
ििीयत की विषय-िस्तु का नाम द र्जए] पर भी कब्जा रखता िै ।
पैरा 7 के प्रारम्भ के स्थान पर यि सलणखए क्रक-
िाद दािा करता िै क्रक प्रनतिाद को आदे श हदया जाए क्रक िि [यिां विननहदि ष्ट ििीयत की विषय-
िस्तु का नाम द र्जए] िाद को पररदि करे या क्रक, इत्याहद ।

िंख्यांक 43
धनीय ििीयतदार द्िारा प्रशािन
(शीषवक)

[प्ररुप िंख्यांक 41 को इि प्रकार पररिनतित कीर्जए]


[पैरा 1 छोड द र्जए और पैरा 2 के स्थान पर यि सलणखए क्रक मत
ृ ] ि. च की, जो.................... का
था, मत्ृ यु तार ख......................... को या उिके लगभग िुई । उिने तार ख............. की अपनी अर्न्तम
विल द्िारा ग घ को अपना ननष्पादक ननयक् ु त क्रकया और िाद को ..................... रुपए की ििीयत की ।
पैरा 4 में “उिका ऋण नि ं चुकाया िै '' शब्दों के स्थान पर ''उिकी ििीयत िम्पदा का िंदाय नि ं
क्रकया िै '' शब्द प्रनतस्थावपत कीर्जए ।

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दि
ू रा प्ररुप
(शीषवक)

उक्त िाद ि. च यि कथन करता िै क्रक-


1. क ख की जो...................... में ट क था, तार ख................ को मत्ृ यु िुई ।
उिने तार ख...................... को अपनी अंनतम विल द्िारा प्रनतिाद को और ि. ढ क [र्जिकी
मत्ृ यु ििीयतकताि के जीिन काल में ि िो गई थी] अपना ननष्पादक ननयक्
ु त क्रकया और अपनी
िम्पवि चािे िि जंगम थी या स्थािर, अपने ननष्पादकों को इि न्याि पर क्रक िे उिके भाटक और
आय िाद को उिके जीिनपयिन्त दे ते रिें , और िाद की मत्ृ यु के पश्चात ् और उिके ऐिे पत्र
ु न
िोने पर, जो इक्कीि िषि की आयु प्राप्त कर ले या ऐिी पत्र
ु ी न िोने पर, जो िि आयु प्राप्त कर
ले या वििाि कर ले अपनी स्थािर िम्पवि उि व्यर्क्त के पि में न्याि पर, जो ििीयतकताि का
विधधना िाररि िोगा और अपनी जंगम िम्पवि उन व्यर्क्तयों के पि में न्याि पर जो यहद िाद
की मत्ृ यु के िमय ििीयतकताि ननिििीयत मरता और िाद के ऐिी िन्तान न िोती, र्जिका
उपलेख ऊपर क्रकया गया िै तो ििीयतकताि के ननकटतम कुपय िोते, ििीयत की थी ।
2. प्रनतिाद ने विल ता0 ....................... को िाबबत कर द थी । िाद ने वििाि नि ं क्रकया िै ।
3. ििीयतकताि अपनी मत्ृ यु के िमय जंगम और स्थािर िम्पवि का िकदार था; प्रनतिाद ने
स्थािर िम्पवि के भाटक प्राप्त करना आरम्भ कर हदया िै और जंगम िम्पवि अपने कब्जे में कर ल िै
उिने स्थािर िम्पवि का कुछ भाग बेच हदया िै ।
[जैिा प्ररूप िंख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 में िै । ]
6. िाद दािा करता िै क्रक-
(1) क ख की जंगम और स्थािर िम्पवि का प्रशािन इि न्यायालय में क्रकया जाए और उि
प्रयोजन के सलए िब उधचत ननदे श हदए जाएं और लेखा सलए जाएं;
(2) ऐिा अनतररक्त या अन्य अनत
ु ोष हदया जाए जैिा मामले की प्रकृनत िे अपेक्षित िो ।

िंख्यांक 44
न्यािों का ननष्पादन
(शीषवक)

उक्ि िाद क ख यि कथन करता िै क्रक-


1. िि ता0 ......................... या उिके लगभग की तार ख की व्यिस्थापन सलखत के अधीन, जो
व्यिस्थापन प्रनतिाद के वपता और माता ि. च और छ ज के वििाि के अििर पर क्रकया गया था [या
प्रनतिाद ग घ के और ि. च के अन्य लेनदारों के फायदे के सलए ि. च की िम्पदा और चीजिस्त के
अन्तरण की सलखत के अधीन न्यासियों में िे एक िै ।
2. क ख ने उक्त न्याि का भार अपने ऊपर सलया िै और उक्त सलखत द्िारा अन्तररत जंगम और
स्थािर िम्पवि। [या उिके आगम] उिके कब्जे में िैं ।

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3. ग घ सलखत के अधीन फायदाप्रद हित का िकदार िोने का दािा करता िै ।
[जैिा प्ररुप िंख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 में िै |]
6. िाद उक्त स्थािर िम्पवि के िब भाटकों और लाभों का [और उक्त स्थािर िम्पवि के या
उिके भाग के वििय के आगमों का या जंगम िम्पवि का या उक्त जंगम िम्पवि के या उिके भाग के
वििय के आगमों का या उक्त न्याि के ननष्पादन में ऐिे न्यािी के रूप में िाद को प्रोद्भत
ू िोने िाले
लाभों का] लेखा दे ना चािता िै , और प्राथिना करता िै क्रक न्यायालय उक्त न्याि का लेखा ले और यि भी
क्रक उक्त िम्पण
ू ि न्याि िम्पदा का इि न्यायालय में प्रशािन प्रनतिाद ग घ के और उन िब अन्य
व्यर्क्तयों के, जो ऐिे प्रशािन में हितबद्ध िों, फायदे के सलए ग घ की और इि प्रकार हितबद्ध अन्य ऐिे
व्यर्क्तयों की, र्जन्िें न्यायालय ननहदष्ट करे , उपर्स्थनत में क्रकया जाए या क्रक ग घ इिके प्रनतकूल अच्छा
िे तक
ु दसशित करें ।
[कृपया ध्यान दें - जिां िाद हिताधधकार द्िारा िै ििां िादपत्र ििीयतदार के िादपत्र के नमन
ू े पर,
आिश्यक पररितिन िहित, तैयार क्रकया जाए ।

िंख्यांक 45
परु ोबन्ध या वििय
(शीषवक)

उक्त िाद क ख यि कथन करता िै क्रक-


1. िाद प्रनतिाद की भसू मयों का बन्धकदार िै ।
2. बन्धक की विसशर्ष्टयााँ ननम्नसलणखत िैं-
(क) (तार ख);
(ख) (बन्धककताि और बन्धकदार के नाम);
(ग) (प्रनतभत
ू रासश);
(घ) (ब्याज की दर);
(ड.) (बन्धक के अधीन िम्पवि);
(च) (अब शोध्य रकम);
(छ) (यहद िाद का िक अन्य िे व्यत्ु पन्न िै तो र्जन अन्तरणों या न्यागमन के अधीन िि दािा
करता िै िे िंिेप में सलणखए ।)
(यहद िाद िकब्जा बन्धकदार िै तो यि सलणखए-)
3. िाद ने बन्धक िम्पवि का कब्जा ता0 ......................... को सलया और िि िकब्जा बन्धकदार
के रुप में उि िमय िे लेखा दे ने के सलए तैयार िै ।
[जैिा प्ररुप िंख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 में ि । ]
6. िाद दािा करता िै क्रक-
(1) उिे िंदाय क्रकया जाए या उिमें व्यनतिम िोने पर [वििय या] परु ोबन्ध क्रकया जाए [और कब्जा
हदलाया जाए];

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[जिां आदे श 34 का ननयम 6 लागू िो]
(2) यहद वििय के आगम िाद को शोध्य रकम के िंदाय के सलए अपयािप्त पाए जाएं, तो िाद की
यि स्ितंत्रता आरक्षित रखी जाए क्रक िि 1[बाकी के आदे श] के सलए आिेदन कर िकेगा ।

िंख्यांक 46
मोचन
(शीषवक)

उक्त िाद क ख यि कथन करता िै क्रक-


1. िाद उन भसू मयों का बन्धककताि िै र्जनका बन्धकदार प्रनतिाद िै ।
2. बन्धक की विसशर्ष्टयां ननम्नसलणखत िैं-
(क) (तार ख);
(ख) बन्धककताि और बन्धकदार के नाम);
(ग) (प्रनतभनू त रासश);
(घ) (ब्याज की दर);
(ड.) (बन्धक के अधीन िम्पवि);
(च) (यहद िाद का िक अन्य िे व्यत्ु पन्न िै तो र्जन अन्तरणों या न्यागमन के अधीन िि दािा
करता िै िे िंिेप में सलणखए) ।
[यहद प्रनतिाद िकब्जा बन्धकदार िै तो यि सलणखए-]
3. प्रनतिाद ने बन्धक िम्पवि का कब्जा ले सलया िै (या उिका भाटक प्राप्त कर सलया िै ) ।
[जैिा प्ररुप िंख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 में िै ।
6. िाद उक्त िम्पवि के मोचन का और 1[अन्तःकाल न लाभ के िाथ] उिे अपने को िापि
िस्तान्तररत कराने का (और उि पर कब्जा प्राप्त करने का) दािा करता िै ।

िंख्यांक 47
विननहदवष्ट पालन (िंख्यांक 1)
(शीषवक)

उक्त िाद क ख यि कथन करता िै क्रक-


1. तार ख.............. के और प्रनतिाद द्िारा िस्तािररत करार द्िारा प्रनतिाद ने उिमें िणणित और
ननहदि ष्ट कुछ स्थािर िम्पनत रुपयों में िाद िे खर दने की (या िाद को बेचने की) िंविदा की थी ।
2. िाद ने प्रनतिाद िे आिेदन क्रकया क्रक िि करार के अपने भाग का विननहदि ष्ट पालन करे , क्रकन्तु
प्रनतिाद ने ऐिा नि ं क्रकया िै ।
3. िाद करार के अपने भाग का विननहदि ष्ट पालन करने के सलए तैयार और रजामन्द रिा िै और
अब भी िै , र्जनकी िच
ू ना प्रनतिाद को िै ।

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[जैिा प्ररुप िंख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 में िे । ]
6. िाद दािा करता िै क्रक न्यायालय प्रनतिाद को करार का विननहदि ष्ट पालन करने के सलए, और
उक्त िम्पवि का िाद को परू ा कब्जा हदलाने के सलए िब आिश्यक कायि करने के सलए [या उक्त िम्पवि
का अन्तरण और कब्जा प्रनतगि
ृ त करने के सलए,] और िाद के खचि दे ने के सलए आदे श दे ।

िंख्यांक 48
विननहदवष्ट पालन (िंख्यांक 2)
(शीषवक)

उक्त िाद क ख यि कथन करता िै क्रक-


1. ता0 .............................. को िाद और प्रनतिाद ने सलणखत करार क्रकया, र्जिकी मल

दस्तािेज इिके िाथ उपाबद्ध िै ।
प्रनतिाद करार में िणणित स्थािर िम्पवि का आत्यंनतक रुप िे िकदार था ।
2. ता0 ....................... को िाद ने प्रनतिाद को..................... प्रस्तत
ु क्रकए और उक्त िम्पवि
का अन्तरण पयािप्त सलखत द्िारा क्रकए जाने की मांग की ।
3. ता0 ......................... को िाद ने ऐिा अन्तरण क्रकए जाने की क्रफर मांग की [या प्रनतिाद ने
उिे िाद को अन्तररत करने िे इंकार कर हदया ।
4. प्रनतिाद ने कोई अन्तरण सलखत ननष्पाहदत नि ं की िै ।
5. िाद उक्त िंपवि का ियधन प्रनतिाद को दे ने के सलए अब भी तैयार और रजामन्द िै ।
[जैिा प्ररूप िंख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 में िै । ]
8. िाद दािा करता िै क्रक---
(1) प्रनतिाद (करार के ननबन्धनों के अनि
ु ार) उक्त िंपवि िाद को पयािप्त सलखत द्िारा अन्तररत
कर दे ;
(2) उि िम्पवि को रोक रखने के सलए उिे.................. रुपए प्रनतकर दे ।

1. 1976 के अधधननयम िंख्या 104 की धारा 93 द्िारा (1.2.1977 िे) ''बाकी की डडिी'' के
स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।|
1. 1976 के अधधननयम िंख्या 104 की धारा 93 द्िारा (1.2.1977 िे) जोड़ा गया ।

िंख्यांक 49
िागीदारी
(शीषवक)

उक्त िाद क ख यि कथन करता िै क्रक-


1. िि और प्रनतिाद ग घ वपछले....................... िषि (या माि) िे भागीदार के सलणखत अनच्
ु छे दों

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के अधीन [या विलेख के अधीन या मौणखक करार के अधीन] इकदठे कारबार करते रिे िैं ।
2. ऐिे भागीदारों के रुप में िाद और प्रनतिाद के बीच ऐिे कई वििाद और मतभेद त्यत्ु पन्न िुए
िैं र्जनके कारण भागीदार का कारबार भागीदारों के फायदाप्रद रुप में चलाना अिम्भि िो गया िै । [या
प्रनतिाद ने भागीदार के अनव्ु छे दों के ननम्नसलणखत भंग क्रकए िैं-
(1)
(2)
(3) |]
[जैिा प्ररुप िंख्यांक 1 के पैरा 4 और 5 में िै । ]
5. िाद दािा करता िै क्रक-
(1) भागीदार का विघटन क्रकया जाए;
(2) लेखा सलया जाए;
(3) ररिीिर ननयक्
ु त क्रकया जाए ।
[कृपया ध्यान दें - क्रकिी भी भागीदार के पररिमापन के िादों में , विघटन के सलए दािा छोड हदया
जाए, और उिके स्थान पर एक पैरा जोड़ हदया जाए, र्जिमें भागीदार का विघटन कर हदए जाने के तथ्य
कधथत िों । ]

(4) सलखखत कथन


िाधारण प्रनतरक्षाएाँ
इंकार- प्रनतिाद इि बात िे इंकार करता िै क्रक (तथ्य सलणखए) ।
प्रनतिाद यि स्िीकार नि ं करता िै क्रक (तथ्य सलणखए) ।
प्रनतिाद स्िीकार करता िै क्रक.......................... क्रकन्तु उिका किना िै क्रक ..................|
प्रनतिाद इि बात िे इंकार करता िै क्रक िि.................................. िाल प्रनतिाद की फमि में
भागीदार िै ।
अभ्यापवि- प्रनतिाद इि बात िे इंकार करता िै क्रक उिने िाद िे असभकधथत िंविदा या कोई
िंविदा की |
प्रनतिाद इि बात िे इंकार करता िै क्रक उिने िाद िे असभकधथत रुप में िंविदा या कोई भी
िंविदा की ।
प्रनतिाद आर्स्तयों को स्िीकार करता िै क्रकन्तु िाद के दािे को स्िीकार नि ं करता ।
प्रनतिाद इि बात िे इंकार करता िै क्रक िाद ने िाद पत्र में िणणित माल या उिमें िे कोई भी
माल प्रनतिाद को बेचा ।
पररिीमा- िाद, इर्ण्डयन सलसमटे शन एक्ट, 1877 1[1877 का 15] की द्वितीय अनि
ु च
ू ी के
अनच्
ु छे द............... या अनच्
ु छे द.................... द्िारा िर्जित िै ।
अधधकाररता- िाद की िन
ु िाई की अधधकाररता न्यायालय को इि आधार पर नि ं िै क्रक (आधार
सलणखए) ।
असभकधथत िाद िे तक
ु के उन्मोचन में ता0 ..................................... को प्रनतिाद ने एक ि रे की

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अंगठ
ू ी िाद को पररदन्त की थी और िाद ने उिे प्रनतगि
ृ त क्रकया था ।
हदिाला- प्रनतिाद हदिासलया न्यायननणीत कर हदया गया िै ।
िाद िाद के िंर्स्थत क्रकए जाने िे पिले हदिासलया न्याय ननणीत कर हदया गया था और िाद
करने का अधधकार ररिीिर में ननहित िो गया था ।
अियस्कता- प्रनतिाद असभकधथत िंविदा की जाने के िमय अियस्क था ।
न्यायालय में जमा करना- प्रनतिाद ने परू े दािे की रकम (या, यथार्स्थनत, दािाकृत धन के
भागरुप............. रुपए) की बाबत न्यायालय में .............................. रुपए जमा कर हदए िैं और उिका
किना िै क्रक यि रासश िाद के दािे की [या उपयक्
ुि त भाग की] तर्ु ष्ट के सलए पयािप्त िै ।
पालन का पररिार- असभकधथत िचन के पालन का पररिार (तार ख)............. को कर हदया था ।
विखण्िन- िंविदा िाद और प्रनतिाद के बीच िुए करार द्िारा विखर्ण्डत कर द गई थी |
पि
ू -व न्याय- िाद का दािा (यिां ननदे श द र्जए) िाद की डडिी द्िारा िर्जित िै ।
विबंध- िाद (यिां िि कथन सलणखए र्जिके बारे में विबन्ध का दािा िै ) की ित्यता िे इंकार करने
िे इिसलए वििद्ध िै क्रक (यिां िे तथ्य सलणखए र्जन पर ननभिर इिसलए क्रकया गया िै क्रक उनिे विबंध का
िज
ृ न िोता िै ) ।
िाद के िंस्स्थत क्रकए जाने का पश्चातिती
् प्रनतरक्षा का आधार- िाद के िंर्स्थत क्रकए जाने के
पश्चात ्, अथाित ् को (यिां तथ्य सलणखए) ।...................................

िंख्यांक 1
वििय क्रकए गए और पररदि माल के सलए िादों में प्रनतरक्षा

1. प्रनतिाद ने माल के सलए आदे श नि ं हदया था ।


2. माल का पररदान प्रनतिाद को नि ं क्रकया गया था ।

2. कीमत................................ रुपए नि ं थी ।
[या]
4. 1.
5. .............................. रुपए के बारे के सििाय यि प्रनतरिा िै जो 2. में िै ।
6. 3.
7. प्रनतिाद [या प्रनतिाद के असभकताि क ख] ने दािे की तर्ु ष्ट िाद के पि
ू ि िाद [या िाद के
असभकताि ग घ] को ता0 ................ को िंदाय करके कर द थी ।
8. प्रनतिाद ने दािे की तर्ु ष्ट िाद के पश्चात ् िाद को ता0 ....................... को िंदाय करके कर
द थी ।

1. अब पररिीमा अधधननयम 1963, (1963 का 36) दे णखए ।

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िंख्यांक 2
बन्धपत्रों पर िादों में प्रनतरक्षा

1. बन्धपत्र प्रनतिाद का बन्धपत्र नि ं िै ।


2. प्रनतिाद ने बन्धपत्र की शतों के अनि
ु ार ननयत हदन पर िाद को िंदाय कर हदया था ।
3. प्रनतिाद ने बन्धपत्र में िणणित मल
ू धन और ब्याज का िंदाय िाद को नासमत हदन के पश्चात ्
और िाद के पि
ू ि कर हदया था ।

िंख्यांक 3
प्रत्यािनू तयों पर िादों में प्रनतरक्षा

1. मल
ू ऋणों ने दािे की तर्ु ष्ट िाद के पि
ू ि िंदाय करके कर द थी ।
2. िाद ने मल
ू ऋणी को एक आबद्धकर करार के अनि
ु रण में िमय हदया था और उििे
प्रनतिाद ननमक्
ुि ि िो गया था ।

िंख्यांक 4
ऋण के क्रकिी िी िाद में प्रनतरक्षा

1. दािा क्रकए गए धन के 200 रुपए की बाबत प्रनतिाद उि माल के सलए जो उिने िाद को बेचा
और पररदि क्रकया िै , मज
ृ राई का िकदार िै -
विसशर्ष्टयां ननम्नसलणखत िैं:
रुपए
25 जनिर , 1907. 150
1फरिर , 1907. 50
जोड़
200

2. परू रकम की [या दािा क्रकए गए धन के भागरुप .........................रुपए की] बाबत प्रनतिाद ने
िाद के पि
ू .ि ..................... रुपए ननविदि क्रकए और उन्िें न्यायालय में जमा कर हदया िै ।

िंख्यांक 5
उपेक्षापि
ू क
व गाड़ी चलाने िे िुई क्षनतयों के सलए िादों में प्रनतरक्षा

1. प्रनतिाद इि बात िे इंकार करता िै क्रक िादपत्र में िणणित गाडी प्रनतिाद की गाडी थी और िि
प्रनतिाद के िेिकों के भारिाधन या ननयंत्रण में थी । गाड़ी .........................गल , कलकिा के ...............

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की थी, जो भाडे पर घोड़ा दे ने के सलए अस्तबल चलाते िैं तथा र्जन्िें प्रनतिाद को गाडडयों और घोड़ों का
प्रदाय करने के सलए प्रनतिाद ने ननयोर्जत क्रकया िै और िि व्यर्क्त र्जिके भारिाधन और ननयंत्रण में
उक्त गाडी थी उक्त.......................... का िेिक था ।
2. प्रनतिाद यि स्िीकार नि ं करता िै क्रक उक्त गाड़ी समडडलटन स्र ट िे या तो उपेिापि
ू क
ि ,
िििा या चेतािनी हदए बबना या तेज या खतरनाक गनत िे मोडी गई ।
3. प्रनतिाद का किना िै क्रक यर्ु क्तयक्
ु त िािधानी और तत्परता बरत कर िाद उक्त गाडी को
अपनी ओर आते िुए दे ख िकता था और उििे टक्कर बचा िकता था ।
4. प्रनतिाद िादपत्र के पैरा 3 में अंतवििष्ट कथनों को स्िीकार नि ं करता ।

िंख्यांक 6
दोषों के सलए ििी िादों में प्रनतरक्षा

1. विसभन्न कायों [या बातों] का र्जनके िंबध


ं में पररिाद क्रकया गया िै , प्रत्याख्यान ।

िंख्यांक 7
माल के विरोध के िादों में प्रनतरक्षा

1. माल िाद की िंपवि नि ं थी ।


2. माल उि धारणाधधकार िे ननरुद्ध क्रकया गया था र्जिका प्रनतिाद िकदार था । विसशर्ष्टयां
ननम्नसलणखत िैं-
3 मई, 1907------ हदपल िे कलकिा को दािाकृत माल के ििन की बाबत-----
2 रुपए प्रनत मन की दर िे 45 मन की बाबत.............90 रुपए ।

िंख्यांक 8
प्रनतसलप्यधधकार के अनतलंघन के िादों में प्रनतरक्षा

1. िाद लेखक [िमनद


ु े सशती, इत्याहद] नि ं िै ।
2. पस्
ु तक रर्जस्र कृत नि ं थी ।
3. प्रनतिाद ने अनतलंघन नि ं क्रकया ।

िंख्यांक 9
व्यापार-धचन्ि के अनतलंघन के िादों में प्रनतरक्षा

1. व्यापार-धचन्ि िाद का नि ं िै ।
2. अधधकधथत व्यापार-धचन्ि व्यापार-धचन्ि नि ं िै ।

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3. प्रनतिाद ने अनतलंघन नि ं क्रकया ।

िंख्यांक 10
न्यि
ू ि
ें िंबध
ं ी िादों में प्रनतरक्षा

1. िाद के प्रकाश मागि प्राचीन नि ं िैं [या उिके अन्य असभकधथत धचरभोगाधधकारों का प्रत्याख्यान
कीर्जए ।]
2. िाद के प्रकाश में प्रनतिाद के ननमािणों िे तत्ित: बाधा नि ं पिुाँचेगी ।
3. प्रनतिाद इि बात का प्रत्याख्यान करता िै क्रक िि या उिके िेिक जल को प्रदवू षत करते िैं
[या िि करते िै र्जिका पररिाद क्रकया गया िै ] ।
[यहद प्रनतिाद दािा करता िै क्रक र्जि बात का पररिाद क्रकया गया िै िि करने का अधधकार उिे
धचरभोग द्िारा या अन्यथा प्राप्त िै तो उिे ऐिा किना चाहिए और अपने दािे के आधारों का कथन करना
चाहिए अथाित ् यि कथन करना चाहिए क्रक िे अधधकार धचरभोग या अनद
ु ान द्िारा िैं या क्रकि आधार पर िैं

4. िाद अनतविलम्ब का दोषी रिा िै र्जिकी विसशर्ष्टयां ननम्नसलणखत िैं-
1870 में िाद की समल ने काम शरु
ु क्रकया ।
1871 में िाद का कब्जा िुआ ।
1883 में पिला पररिाद क्रकया गया ।
5. नक
ु िानी के सलए िाद के दािे की बाबत प्रनतिाद प्रनतरिा के उक्ि आधारों पर ननभिर करे गा
और उिका यि किना िै क्रक पररिाहदत कायों िे िाद को कोई नक ु िान नि ं िुआ िै । [यहद अन्य आधारों
पर ननभिर क्रकया जाता िै तो उनका, जैिे भत
ू कासलक नक
ु िान के बारे में पररिीमा, इत्याहद, का कथन करना
चाहिए ।]

िंख्यांक 11
परु ोबन्ध के िाद में प्रनतरक्षा

1. प्रनतिाद ने बन्धक ननष्पाहदत नि ं क्रकया था ।


2. बन्धक िाद को अन्तररत नि ं क्रकया गया था [यहद एक िे अधधक अन्तरणों का असभकथन
क्रकया गया िै तो यि बताइए क्रक क्रकि अन्तरण का प्रत्याख्यान क्रकया जाता िै ]।
3. िाद इर्ण्डयन सलसमटे शन ऐक्ट, 18771 (1877 का 15) की द्वितीय अनि
ु च
ू ी के अनच्
ु छे द .......
......................द्िारा िर्जित िै ।
4. ननम्नसलणखत िंदाय क्रकए गए िैं, अथाित:-
रुपए
[यिां तार ख सलणखए] .................................... 1000
[यिां तार ख सलणखए] ................................... 500

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5. िाद ने ता0 ...................... को कब्जा सलया था और िि तब िे बराबर भाटक प्राप्त करता
रिा िै ।
6. िाद ने ता0...............................को ऋण का ननमोचन कर हदया था ।
7. प्रनतिाद ने अपना िब हित ता0....................की दस्तािेज द्िारा क ख को अन्तररत कर हदया
था ।

िंख्यांक 12
मोचन के िाद में प्रनतरक्षा

1. िाद का मोचन अधधकार इर्ण्डयन सलसमटे शन ऐक्ट, 18772 (1877 का 15) की द्वितीय
अनि
ु च
ू ी के अनच्
ु छे द.......................... द्िारा िर्जित िै |
2. िाद ने िम्पवि में अपना िब हित क ख को अन्तररत कर हदया ।
3. प्रनतिाद ने ता0..............................की दस्तािेज द्िारा बन्धक ऋण में तथा बन्धक में
िमाविष्ट िम्पवि में अपना िब हित क ख को अन्तररत कर हदया था ।
4. प्रनतिाद ने बन्धक िम्पवि का कब्जा कभी नि ं सलया था और न उिका भाटक प्राप्त क्रकया
[यहद प्रनतिाद केिल कुछ िमय के सलए कब्जा स्िीकार करता िै तो उिे उि िमय क उपलेख
करना चाहिए और जो कुछ िि स्िीकार करता िै उिके परे के कब्जे का प्रत्याख्यान करना चाहिए ।]

िंख्यांक 13
विननहदवष्ट पालन के िाद में प्रनतरक्षा

1. प्रनतिाद ने करार नि ं क्रकया था ।


2. क ख प्रनतिाद का असभकताि नि ं था [यहद ऐिा असभकथन िाद द्िारा क्रकया गया िो] ।
3. िाद ने ननम्नसलणखत शतों का पालन नि ं क्रकया—[शते] ।
4. प्रनतिाद ने [भाधगक पालन के असभकधथत कायि] नि ं क्रकए ।
5. उि िम्पवि में , र्जिके बेचने का करार िुआ था, िाद का िक ऐिा नि ं िै क्रक ननम्नसलणखत
बातों के कारण प्रनतिाद उिे स्िीकार करने के सलए आबद्ध िो [कारण सलणखए] ।
6. करार ननम्नसलणखत बातों के बारे में अननर्श्चत िैं [िे बातें सलणखए] ।
7. [या] िाद विलम्ब का दोषी रिा िै ।
8. [या] िाद कणट या [दव्ु यिपदे शन] का दोषी रिा िै ।
9. [या] करार अनधु चत िै ।
1. अब पर िीमा अधधननयम, 1963 (1963 का 36) दे णखए ।
2. अब पर िीमा अधधननयम, 1963 (1963 का 36) दे णखए ।
10. [या] करार भल
ू िे क्रकया गया था ।
11. (7), (8), (9), (10) [या जैिा र्स्थनत िो] उि की विसशर्ष्टयां ननम्नसलणखत िैं ।

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12. करार का विखण्डन वििय की शति िंख्यांक 11 के अधीन [या परस्पर करार द्िारा] कर हदया
गया था ।
[उन मामलों में , र्जनमें नक
ु िानी का दािा क्रकया गया िै और प्रनतिाद नक
ु िानी की बाबत अपने
दानयत्ि के बारे में वििाद करता िै उिे करार का या असभकधथत भंगों का प्रत्याख्यान करना चाहिए, या
प्रनतरिा के र्जि दि
ू रे आधार पर ननभिर करने की यि आशा रखता िै उिे दसशित करना चाहिए, उदािरणाथि
भारतीय पररिीमा अधधननयम' ििमनत और तर्ु ष्ट, ननमोचन, कपट, इत्याहद ।

िंख्यांक 14
धनीय ििीयतदार द्िारा लाए गए प्रशािन िाद में प्रनतरक्षा

1. क ख की विल में ऋण-भार अन्तवििष्ट था । जब उिकी मत्ृ यु िुई तब िि हदिासलया था ।


अपनी मत्ृ यु के िमय िि कुछ स्थािर िम्पवि का िकदार था र्जिे प्रनतिाद ने बेच हदया और र्जििे,
रुपए की शद्ु ध रासश का आगम िुआ, और ििीयकताि की कुछ जगंम िम्पवि थी, र्जि पर प्रनतिाद ने
कब्जा क्रकया और र्जििे. रूपये की शद्
ु ध रासश का आगम आ ।
2. प्रनतिाद ने उक्त िब रासशयों का और.................रुपए की रासश का जो प्रनतिाद को स्थािर
िम्पवि के भाटकों के रुप में प्राप्त िुई, उपयोजन ििीयतकताि की अन्यतेर्ष्ट और ििीयती व्ययों का और
ऋणों में िे कुछ का िंदाय करने में क्रकया ।
3. प्रनतिाद ने अपने लेखाओं को परू ा करके उनकी एक प्रनत को ता0 ....................... को भेज द
थी और यि प्रस्थापना की थी क्रक उन लेखाओं का ित्यापन करने के सलए िाद िाउचरों को आबद्ध रुप िे
दे ख िकता िै क्रकन्तु उिने प्रनतिाद की प्रस्थापना का फायदा उठाने िे इंकार कर हदया ।
4. प्रनतिाद का यि ननिेदन िै क्रक इि िाद के खचे िाद द्िारा हदए जाने चाहिए ।

िंख्यांक 15
ित्यननष्ठ प्ररूप में ििीयत का प्रोबेट
1. मत
ृ क की उक्त विल और िोडपत्र इंडडयन िक्िेशन ऐक्ट, 1865 (1865 का 10) (या हिन्द ू
2

विपज ऐक्ट, 18703] (1870 का 21) के उपबन्धों के अनि


ु ार िम्यक् रुप िे ननष्पाहदत नि ं क्रकए गए थे ।
2. र्जि िमय िमश: उक्त विल और िोड का ननष्पादन क्रकया जाना तात्पनयित िै उि िमय मत
ृ क
स्िस्थ धचि, स्मनृ त और बोध का नि ं था ।
3. उक्त विल और िोडपत्र का ननष्पादन िाद के ( और उिके िाथ कायि करने िाले अन्य लोगों के
र्जनके नाम इि िमय प्रनतिाद को ज्ञात नि ं िैं) अिम्यक अिर िे असभप्राप्त क्रकया गया था ।
4. उक्त विल और िोडपत्र का ननष्पादन िाद के कपट िे असभप्राप्त क्रकया गया था । जिां तक
उि कपट की प्रनतिाद को इि िमय जानकार िै िि (कपट की प्रकृनत सलणखए) ।
5. उक्त विल और िोडपत्र का ननष्पादन करते िमय मत
ृ क को उिकी अन्तििस्तु की [या,
यथार्स्थनत उक्त विल के अिसशष्ट य खण्ड की अन्तििस्तओ
ु ं की] जानकार नि ं थी और उिने उनका
अनम
ु ोदन नि ं क्रकया था ।

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1. अब पररिीमा अधधननयम, 1963 (1963 का 36) दे णखए ।
2. अब पररिीमा अधधननयम, 1963 (1963 का 36) दे णखए ।
3. अब भारतीय उिराधधकार अधधननयम, 1925(1925 का 39) दे णखए ।

6. मत
ृ क ने अपनी िि अर्न्तम विल 1 जनिर 1873 को की और उििे उिने प्रनतिाद को
उिका एकमात्र ननष्पादक ननयक्
ु ि क्रकया था ।
प्रनतिाद दािा करता िै क्रक-
(1) न्यायालय िाद द्िारा प्रनतपाहदत विल और िोडपत्र के विरुद्ध ननणिय िन
ु ाए;
(2) न्यायालय मत
ृ क की 1 जनिर , 1873 की विल के विधध विहित ित्यननष्ठ प्ररुप में प्रोबेट की
डडिी दे ।

िंख्यांक 16
विसशस्ष्टयां ( आदे श 6 का ननयम 6)
(िाद का शीषवक)

विसशस्ष्टयां----ता0 ..................... के आदे श के अनि


ु रण में पररदि [यिां िे बातें सलणखए र्जनके
बारे में विसशर्ष्टयां दे ने का आदे श हदया गया िै ] की विसशर्ष्टयां ननम्नसलणखत िैं-
[यिां आहदष्ट विसशर्ष्टयां को यहद आिश्यक िो तो पैराओं में सलणखए ।]

पररसशष्ट ख
आदे सशका
िंख्यांक 1
िाद के ननपटारे के सलए िमन (आदे श 5 के ननयम 1 और 5)
(शीषवक)

प्रेवषती-
....................................................................
(नाम, िणिन और ननिाि-स्थान)
......................... ने आपके विरुद्ध.......................... के सलए िाद िंर्स्थत क्रकया िै । आपको इि
न्यायालय में तार ख..........................को हदन में .................................बजे दािे का उिर दे ने के सलए
उपिंजात (िार्जर) िोने के सलए िमन क्रकया जाता िै । आप न्यायालय में स्ियं या क्रकिी ऐिे प्ल डर द्िारा
उपिंजात िो िकते िैं र्जिे िम्यक अनद
ु े श हदए गए िों और जो इि िाद िे िंबधं धत िभी िरिान ् प्रश्नों
का उिर दे िके या र्जिके िाथ ऐिा कोई व्यर्क्त िो जो ऐिे िब प्रश्नों का उिर दे िके । न्यायालय में
आपकी उपिंजानत के सलए जो हदन ननयत क्रकया गया िै िि इि िाद के अर्न्तम ननपटारे के सलए ननयत
हदन िै इिसलए आपको उि हदन अपने िब िाक्षियों को या उन िब दस्तािेजों को पेश करने के सलए तैयार

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रिना चाहिए र्जन पर आप अपनी प्रनतरिा के सलए ननभिर रिना चािते िै ।
आपको िधू चत क्रकया जाता िै क्रक यहद आप ऊपर बताई गई तार ख को इि न्यायालय में उपिंजात
नि ं िोंगे तो िाद की िन
ु िाई और उिका ननपटारा आपकी अनप
ु र्स्थनत में क्रकया जाएगा ।
यि आज तार ख .............................को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा लगा कर हदया
गया िै |
न्यायाधीश
कृपया ध्यान दें - 1. यहद आपको यि आशंका िै क्रक आपके िािी अपनी मजी िे िार्जर नि ं िोंगे
तो आप क्रकिी िािी को िार्जर िोने के सलए वििश करने के सलए और ऐिी कोई दस्तािेज पेश कराने के
सलए, र्जिे पेश करने के सलए िािी िे अपेिा करने का आपको अधधकार िै , िमन इि न्यायालय िे
आिेदन करके और आिश्यक व्ययों की रकम जमा करके ले िकते िैं ।
2. यहद आप दािे को स्िीकार करते िैं तो आपको चाहिए क्रक िाद के खचे के िाथ उि दािें का
धन न्यायालय में जमा कर दें र्जििे क्रक डडिी का ननष्पादन स्ियं आपके या आपकी िम्पवि या दोनों के
विरुद्ध न करना पड़े ।

िंख्यांक 2
वििाद्यकों के स्स्थरीकरण के सलए िमन (आदे श 5 के ननयम 1 और 5)
(शीषवक)
प्रेवषती-
..............................................
(नाम, िणिन और ननिाि-स्थान)
........................... ने आपके विरुद्ध.....................के सलए िाद िंर्स्थत क्रकया िै । आपको इि
न्यायालय में तार ख...........................को हदन में .........................बजे दािे का उिर दे ने के सलए उपिंजात
(िार्जर) िोने के सलए िमन क्रकया जाता िै । आप न्यायालय में स्ियं या क्रकिी ऐिे प्ल डर द्िारा उपिंजात
िो िकते िैं र्जिे िम्यक् अनद
ु े श हदए गए िों और जो इि िाद िे िंबधं धत िभी िारिान ् प्रश्नों का उिर दे
िके या र्जिके िाथ ऐिा कोई व्यर्क्त िो जो ऐिे िब प्रश्नों का उिर दे िके । 11
[आपको यि ननदे श भी
हदया जाता िै क्रक आप उि हदन अपनी प्रनतरिा का सलणखत कथन दाणखल करें और उि हदन ऐिी िब
दस्तािेजें जो आपके कब्जे या शर्क्त में िै पेश करें र्जन पर आपकी प्रनतरिा या मज
ु राई का दािा या
प्रनतदािा आधाररत िै । और यहद आप क्रकिी अन्य दस्तािेज पर, चािे िि आपके कब्जे या शर्क्त में िो या
न िो, अपनी प्रनतरिा या मज
ु राई के दािे या प्रनतदािे के िमथिन में िाक्ष्य के रुप में ननभिर करते िैं तो
आप ऐिी दस्तािेजों की, सलणखत कथन के िाथ उपाबद्ध की जाने िाल िच
ू ी में प्रविर्ष्ट करें ।
आपको िधू चत क्रकया जाता िै क्रक यहद आप ऊपर बताई गई तार ख को इि न्यायालय में उपिंजात
नि ं िोंगे तो िाद की िन
ु िाई और उिका ननपटारा आपकी अनप
ु र्स्थनत में क्रकया जाएगा ।
यि आज ता0 .................................को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा लगाकर हदया
गया िै |
न्यायाधीश

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कृपया ध्यान दें - 1. यहद आपको आशंका िै क्रक आपके िािी अपनी मजी िे िार्जर नि ं िोंगे तो
आप क्रकिी िािी को िार्जर िोने के सलए वििश करने के सलए और ऐिी कोई दस्तािेज पेश कराने के सलए,
र्जिे पेश करने के सलए िािी िे अपेिा करने का आपको अधधकार िै , िमन इि न्यायालय िे आिेदन
करके और आिश्यक खचों की रकम जमा करके ले िकते िैं ।
2. यहद आप दािे को स्िीकार करते िैं तो आपको चाहिए क्रक िाद के खचे के िाथ उि दािे का
धन न्यायालय में जमा कर दें र्जििे क्रक डडिी का ननष्पादन स्ियं आपके या आपकी िम्पवि या दोनों के
विरुद्ध न करना पड़े ।

िंख्यांक 3
स्ियं उपिंजात िोने के सलए िमन (आदे श 5 क ननयम 3)
(शीषिक)

प्रेवषत
......................................
(नाम, िणिन और ननिाि-स्थान)
.................................................ने आपके विरुद्ध....................................के सलए जो िाद
िंर्स्थत क्रकया िै । आपको इि न्यायालय में तार ख..................को हदन में ..............बजे दािे का उिर दे ने
के सलए उपिंजात िोने के सलए िमन क्रकया जाता िै । आपको ननदे श हदया जाता िै क्रक आप उि हदन उन
िब दस्तािेजों को पेश करें र्जन पर अपनी प्रनतरिा के सलए ननभिर रिना चािते िैं ।
आपको िधू चत क्रकया जाता िै क्रक यहद आप ऊपर बताई गई तार ख को इि न्यायालय में उपिंजात
नि ं िोंगे तो िाद की िन
ु िाई और उिका अिधारण आपकी अनप
ु र्स्थनत में क्रकया जाएगा ।
यि आज तार ख.........................को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा लगाकर हदया गया िै

न्यायाधीश

12
[िंख्यांक 4
िंक्षक्षप्त िाद में िमन ( आदे श 37 का ननयम 2)
(शीषवक)

प्रेवषती-
......................................................
(नाम, िणिन और ननिाि-स्थान)
..............................ने सिविल प्रक्रिया िंहिता, 1908 के आदे श 37 के अधीन आपके
विरुद्ध......................... रूपयों और ब्याज के सलए िाद िंर्स्थत क्रकया िै । आपको िमन क्रकया जाता िै

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क्रक आप इि िमन की तामील िोने की तार ख िे दि हदन के भीतर उपिंजात (िार्जर) िों । यहद आप
ऐिा नि ं करें गे तो दि हदन की उक्त अिधध के बीत जाने के पश्चात ् िाद को........................रुपयों िे
अनधधक रासश के सलए और खचों की बाबत.............................. रुपयों की रासश के सलए ऐिे ब्याज िहित,
यहद कोई िों, जैिा न्यायालय आहदष्ट करे , डडिी असभप्राप्त करने का िक िोगा ।
यहद आप उपिंजात िोते िैं तो िाद तत्पश्चात ् आपको ननणिय के सलए िमन तामील करे गा र्जिकी
िन
ु िाई के िमय आपको िाद की प्रनतरिा करने की इजाजत के सलए न्यायालय िे िमािेदन करने का िक
िोगा ।
यहद आप शपथपत्र द्िारा या अन्यथा न्यायालय का यि िमाधान कर दे ते िैं क्रक िाद की प्रनतरिा
गण
ु ागण
ु के आधार पर की जा िकती िै या यि यर्ु क्ियक्
ु त िै क्रक आपको प्रनतरिा करने के सलए अनज
ु ा द
जानी चाहिए तो प्रनतरिा करने की इजाजत द जा िकेगी ।
यि आज तार ख...........................को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा लगाकर हदया गया
िै ।
न्यायाधीश ]

13
[िंख्यांक 4क
िंक्षक्षप्त िाद में ननणवय के सलए िमन (आदे श 37 का ननयम 8)
(शीषवक)

.............................में .......................के न्यायालय में 19................. का िाद िंख्यांक..............


भमय िाद
बनाम
क ख ग प्रनतिाद
न्यायालय िाद के शपथपत्र को पढाने के उपरांत ननम्नसलणखत आदे श करता िै , अथाित ्:-
िम्बद्ध िभी पिकार, यथार्स्थनत, न्यायालय या न्यायाधीश के िमि तार ख..........................
को पि
ू ािह्न में ............................बजे िाद के इि आिेदन की िन
ु िाई के सलए िार्जर िों क्रक िि प्रनतिाद
के विरुद्ध (या यहद एक या कुछ या कई प्रनतिाद िों तो उिका या उनके नाम सलखें )............... रुपए के
सलए और ब्याज तथा खचे के सलए इि िाद में ननणिय प्राप्त करने के सलए स्ितंत्र िोगा ।
तार ख......................... ]

11. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 94 द्िारा (1-2-1977 िे) कुछ शब्दों के स्थान पर
प्रनतस्थावपत |
12. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 94 द्िारा (1-2-1977 िे) प्ररुप 4 के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
13. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 94 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्त: स्थावपत क्रकया
गया ।

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िंख्यांक 5
उि व्यस्तत को िच
ू ना स्जिके बारे में न्यायालय िमझता िै क्रक उिे िििादी के रूप में जोड़ा जाना चाहिए
(आदे श 1 का ननयम 10)
(शीषवक)

प्रेवषती-
......................................................
(नाम, िणिन और ननिाि-स्थान)
...........................ने............................के विरुद्ध...............................के सलए िाद िंर्स्थत क्रकया
िै और यि आिश्यक प्रतीत िोता िै क्रक उक्त िाद में आपको िाद के रुप में इि सलए जोड़ा जाए क्रक
न्यायालय उििे जुडे िुए िब प्रश्नों का प्रभािी तौर पर और पि
ू ि रुप िे न्यायननणियन कर िके और उन्िें
ननपटा िके ।
आपको िधू चत क्रकया जाता िै क्रक आप ता0 .........................को या उिके पि
ू ि इि न्यायालय को
बताएं क्रक क्या आप इि प्रकार जोड़े जाने के सलए ििमत िैं ।
यि आज ता0 ................................. को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा लगाकर द गई
िै |
न्यायाधीश

िंख्यांक 6
मत
ृ क प्रनतिादी के विधधक प्रनतननधध को िमन (आदे श 22 का ननयम 4)
(शीषवक)
प्रेवषती-
...............................................
........................... िाद ने इि न्यायालय में ता0.........................को
..............................प्रनतिाद के विरुद्ध िाद िंर्स्थत क्रकया था । प्रनतिाद की अब मत्ृ यु िो चुकी िै और
उक्त िाद ने यि असभकथन करते िुए इि न्यायालय में आिेदन क्रकया िै क्रक आप उक्त.......................
मतृ क के विधधक प्रनतननधध िैं और यि इच्छा प्रकट की िै क्रक आपको उिके बदले में प्रनतिाद बनाया जाए

आपको िमन क्रकया जाता िै क्रक आप उक्त िाद में प्रनतरिा करने के सलए ता0........................
को .......................... बजे पि
ू ािह्न इि न्यायालय में िार्जर िों और यहद आप ऊपर बताई गई तार ख को
उपिंजात नि ं िोंगे तो िाद की िन
ु िाई और उिका अिधारण आपकी अनप
ु र्स्थनत में क्रकया जाएगा ।
यि आज ता0....................................... को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा लगाकर
हदया गया ।
न्यायाधीश

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िंख्यांक 7
अन्य न्यायालय की अधधकाररता में तामील क्रकए जाने के सलए िमन के पारे षण का आदे श (आदे श 5 का
ननयम 21)
(शीषवक)

यि कथन क्रकया गया िै क्रक..........................जो क्रक उक्त िाद में प्रनतिाद / िािी िै ,
आजकल..................... में ननिाि कर रिा िै । यि आदे श हदया जाता िै क्रक ता0 .......................... को
लौटाया जाने िाला िमन और इि कायििाि की दि
ू र प्रनत..................... .के.............. .न्यायालय को
उक्त प्रनतिाद / िािी पर तामील क्रकए जाने के सलए भेज द जाए ।
िमन की बाबत प्रभायि.....................की न्यायालय फीि स्टाम्पों के रुप में इि न्यायालय में ििल

कर ल गई िै ।
ता0 ................................ 19..............
न्यायाधीश

िंख्यांक 8
कैदी पर तामील क्रकए जाने के सलए िमन के पारे षण का आदे श
(आदे श 5 का ननयम 25)
(शीषवक)
प्रेवषती-
..............................की जेल का अधीिक ।
सिविल प्रक्रिया िंहिता, 1908 के आदे श 3 के ननयम 21 के उपबन्धों के अधीन दो प्रनतयों में
िमन...................प्रनतिाद पर जो................. जेल में कैद िै तामील के सलए भेजा जा रिा िै । आपिे
अनरु ोध िै क्रक उक्त िमन की एक प्रनत की तामील उक्त प्रनतिाद पर करा दें और उक्त प्रनतिाद द्िारा
िस्तािररत मल
ू प्रनत, आप उि पर तामील का कथन स्ियं पष्ृ ठांक्रकत करके, इि न्यायालय को लौटा दें |
न्यायाधीश

िंख्यांक 9
लोक िेिक या िैननक पर तामील क्रकए जाने के सलए िमन के पारे षण का आदे श
(आदे श 5 के ननयम 27 और 28)
(शीषवक)
प्रेवषती-
................................................
सिविल प्रक्रिया िंहिता, 1908 के आदे श 3 के ननयम 27 [या यथार्स्थनत ननयम 28] के उपबन्धों
के अधीन दो प्रनतयों में िमन............................प्रनतिाद पर, र्जिके बारे में यि कथन क्रकया गया िै क्रक
िि आपके अधीन िेिा कर रिा िै , तामील के सलए इिके िाथ भेजा जा रिा िै । आपिे अनरु ोध िै क्रक

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उक्ि िमन की एक प्रनत की तामील उक्त प्रनतिाद पर करा दें और उक्त प्रनतिाद द्िारा िस्तािररत मल

प्रनत, आप उि पर तामील का कथन स्ियं पष्ृ ठांक्रकत करके, इि न्यायालय को लौटा दें ।
न्यायाधीश

िंख्यांक 10
दि
ू रे न्यायालय के िमन को लौटाने का प्ररुप (आदे श 5 का ननयम 23)
(शीषवक)
...................... न्यायालय की उन कायििाहियों को पहढए र्जनके द्िारा उि न्यायालय
के......................... िंख्यांक िाले िाद में .......................... पर तामील के सलए......................... भेजा
गया िै ।
तामील करने िाले अधधकार के उि पष्ृ ठांकन को पहिये र्जिमें किा गया िै क्रक ........... और उक्त
का िबत
ू और............ की शपथ पर मेरे द्िारा िम्यक् रुप िे ले सलए जाने पर यि आदे श हदया जाता िै
क्रक.............. इि कायििाि की एक प्रनत के िाथ.................... को लौटा हदया जाए ।
न्यायाधीश
कृपया ध्यान दें - यि प्ररुप िमन िे सभन्न ऐिी आदे सशका को भी लागू िोगा र्जिकी तामील उिी
प्रकार िे की जानी िो ।

िंख्यांक 11
आदे सशका-तामीलकताव का शपथपत्र जो िमन या िच
ू ना की वििरणी के िाथ िेजा जाएगा (आदे श 5 का
ननयम 18)
(शीषवक)

............................के पत्र
ु .......................का शपथपत्र ।
मैं................... शपथ लेता िूं / प्रनतज्ञान करता िूं और यि कथन करता िूं क्रक:-
(1) मैं इि न्यायालय का एक आदे सशका-तामीलकताि िूं ।
(2)...............................के न्यायालय द्िारा उक्त न्यायालय के
19.....................के................................................. िंख्यांक िाले िाद में ननकाला गया/ ननकाल गईता0
................................ का िमन / की िच
ू ना...................................................... पर तामील के सलए
मझ
ु े ता0 ...................को प्राप्त िुआ था/ िुई थी ।
(3) उक्त.......................को मैं उि िमय िैयर्क्तक रूप िे जानता था और मैने उक्त िमन/
िच
ू ना की तामील उि पर तार ख.......................... को लगभग................................बजे पि
ू ािह्र/ अपराह्न
मैं उिकी प्रनत उिको ननविदि करके और अ िमन/िच
ू ना पर उिके िस्तारिर की अपेिा करके की थी ।
(क)

(ख)

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(क) यिां यि सलणखए क्रक क्या उि व्यर्क्त ने र्जि पर तामील की गई आदे सशका पर िस्तािर
क्रकया था या िस्तािर करने िे इंकार क्रकया था और उिने क्रकिकी उपर्स्थनत में ऐिा क्रकया था ।
(ख) आदे सशका-तामीलकताि के िस्तािर ।
अथिा,
(3) उक्त........................को मैं िैयर्क्तक रुप िे जानता था, इिसलए .......................मेरे
िाथ..........................को गया और उिने मझ
ु े एक व्यर्क्त हदखलाया र्जिके बारे में उिने बताया क्रक िि
उक्त.............................िै और मैंने उक्त िमन / िच
ू ना की तामील उि पर तार ख............................को
लगभग ...................बजे पि
ू ािह्न /अपराह्न में उिकी एक प्रनत उिको ननविदि करके और मल
ू िमना/
िच
ू ना पर उिके िस्तािर की अपेिा करके की थी
(क)
(ख)
(क) यिां यि सलणखए क्रक क्या उि व्यर्क्त ने, र्जि पर तामील की गई आदे सशका पर िस्तािर
क्रकया था या िस्तािर करने िे इन्दगर क्रकया था ओर उिने क्रकिकी उपर्स्थनत में ऐिा क्रकया था ।
(ख) आदे सशका-तामीलकताि के िस्तािर ।
अथिा
(3) उक्त............................को और उि गि
ृ को, र्जिमें िि मामल
ू तौर पर ननिाि करता िै , मैं
िैयर्क्तक रुप िे जानता िूं और...............................में मैं उक्त गि ृ गया और ििां
तार ख........................ को लगभग...............बजे पिू ािह्र/ अपराह्र में मैंने उक्त..................... को नि ं पाया

(क)
(ख)
(क) आदे सशका की तामील र्जि र नत िे की गई उिे आदे श 5 के ननयम 15 और 17 के प्रनत
विशेष ननदे श िे परू तरि िे और यथाित ् सलणखए ।
(ख) आदे सशका-तामीलकताि के िस्तािर ।
अथिा
(3) एक व्यर्क्त............................... मेरे िाथ................ तक गया और मझ
ु े
ििां............................. हदखलाया, र्जिके बारे में उिने किां क्रक िि िि गि
ृ िै , र्जिमें ....................
मामल
ू तौर पर ननिाि करता िै । मैंने उक्त........................ को ििां नि ं पाया ।
(क)
(ख)
(क) आदे सशका की तामील र्जि र नत िे की गई उिे आदे श 5 के ननयम 1 के प्रनत विशेष ननदे श
िे परू तरि िे और यथाित ् सलणखए ।
(ख) आदे सशका-तामीलकताि के िस्तािर ।
अथिा
यहद प्रनतस्थावपत तामील के सलए आदे श हदया गया िै तो र्जि र नत िे िमन की तामील की गई

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थी उिे प्रनतस्थावपत तामील के सलए आदे श के ननबन्धनों के प्रनत विशेष ननदे श िे परू तरि िे और
यथाित ् सलणखए ।
आज ता0........................ को उक्त..................................... ने मेरे िमि शपथ ल / प्रनतज्ञान
क्रकया ।
असभिाक्षियों को शपथ हदलाने के सलए
सिविल प्रक्रिया िंहिता, 1908 की धारा 139 के अधीन िशक्त ।

िंख्यांक 12
प्रनतिादी को िच
ू ना (आदे श 9 का ननयम 6)
(शीषवक)
प्रेवषती –
.............................................
(नाम िणिन और ननिाि-स्थान)
उक्त िाद की िन
ु िाई के सलए आज का हदन ननयत क्रकया गया था और आपके नाम िमन ननकाला
गया था । िाद इि न्यायालय में उपिंजात िुआ िै और आप उपिजांत नि ं िुए िैं । नार्जर की वििरणी
िे न्यायालय को िमाधानप्रद रुप में यि िाबबत िो गया िै क्रक उक्त िमन की तामील आप पर िुई थी
क्रकन्तु िि तामील इतने पयािप्त िमय में नि ं िुई क्रक आप उक्त िमन में ननयत हदन उपिंजात िोकर
उिर दें िके । आपको िधू चत क्रकया जाता िै क्रक िाद की िन ु िाई आज स्थधगत कर द गई िै और उिकी
िन
ु िाई के सलए अब ता0 ............................ ननयत की गई िै । यहद आप उक्त तार ख को उपिंजात
नि ं िोंगे तो िाद की िन
ु िाई और उिका ननपटारा आपकी अनप
ु र्स्थनत में क्रकया जाएगा ।
यि आज ता0 ................. को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा लगा कर द गई िै ।
न्यायाधीश

िंख्यांक 13
िाक्षी को िमन (आदे श 16 के ननयम 1 और 5)
(शीषवक)

प्रेवषती-
......................................
उक्त िाद में ............................... की ओर िे आपकी िार्जर .............. के सलए आपेक्षित िै ।
आपिे अपेिा की जाती िै क्रक आप ता0 ......................को .......................... बजे पि
ू ािन्ि इि न्यायालय
के िमि [स्ियं] उपिंजात िों और अपने िाथ.............. लाएं ( या इि............................. न्यायालय को
भेजें) ।
आपकी यात्रा और अन्य खचो के और एक हदन के ननिािि भिे के रुप में ................ रुपए की रासश
इिके िाथ भेजी जाती िै । यहद आप इि आदे श का अनप
ु ालन करने में विधधपण
ू ि प्रनतिे तु के बबना अिफल

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रिें गे तो आपको गैर-िार्जर के िे पररणाम भोगने िोंगे जो सिविल प्रक्रिया िंहिता, 1908 के आदे श 16 के
ननयम 12 में अधधकधथत िैं ।
यि आज ता. .............. को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा लगाकर हदया गया ।
न्यायाधीश
िच
ू ना- (1) यहद आपको केिल दस्तािेज पेश करने के सलए, न क्रक िाक्ष्य दे ने के सलए िमन क्रकया
गया िै और आप िि दस्तािेज पि
ू ोक्त हदन और िमय इि न्यायालय में पेश करिा दे ते िैं तो यि िमझा
जाएगा क्रक अपने िमन का अनप
ु ालन कर हदया िै ।
(2) यहद आपको पि
ू ोर्क्त हदन के पश्चात ् भी रोक सलया जाता िै तो विननहदिष्ट हदन के पश्चात ् की
प्रनतहदन की िार्जर के सलए आपको.................. रुपए की रासश ननविदि की जाएगी ।

िंख्यांक 14
िाक्षी िे िास्जर िोने की अपेक्षा करने िाली उद्घोषणा (आदे श 16 का ननयम 10)
(शीषवक)

प्रेवषती-
...............................................
तामील करने िाले अधधकार की शपथ पर पर िा करने िे यि प्रतीत िोता िै क्रक िािी पर िमन
की तामील विधध द्िारा विहित प्रकार िे नि ं की जा िकी । यि भी प्रतीत िोता िै क्रक उि िािी का
िाक्ष्य तार्त्िक िै और िि िमन की तामील िे बचने के प्रयोजन िे फरार िो गया िै और िामने आने िे
बचता िै | अत: यि उद्घोषणा सिविल प्रक्रिया िंहिता, 1908 के आदे श 16 के ननयम 10 के अधीन
ननकाल जाती िै और िािी िे अपेिा की जाती िै िि तार ख..................... को....................... बजे पि
ू ािि
में , और जब तक उिे प्रस्थान करने की इजाजत न दे द जाए तब तक हदन प्रनतहदन, इि न्यायालय में
िार्जर िो । यहद िि िािी पि
ू ोक्त हदन और िमय पर िार्जर िोने में अिफल रिता िै तो उिके िाथ
विधध के अनि
ु ार बरता जाएगा ।
यि आज तार ख ....................को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा लगाकर द गई ।
न्यायाधीश

िंख्यांक 15
िाक्षी िे िास्जर िोने की अपेक्षा करने िाली उद्घोषणा (आदे श 16 का ननयम 10)
(शीषवक)
प्रेवषती-
.................................
तामील करने िाले अधधकार की शपथ पर पर िा करने िे यि प्रतीत िोता िै क्रक िािी पर िमन
की तामील िम्यक रुप िे िो चुकी िै । यि भी प्रतीत िोता िै क्रक उि िािी का िाक्ष्य तार्विक िै और िि
उि िमन के अनप
ु ालन में िार्जर िोने में अिफल रिा िै । अत: यि उद्घोषणा सिविल प्रक्रिया िंहिता

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1908 के आदे श 16 के ननयम 10 के अधीन ननकाल जाती िै और िािी िे अपेिा की जाती िै क्रक िि
तार ख............ को.......................बजे पि
ू ाह्र में , और जब तक उिे प्रस्थान करने के सलए इजाजत न दे द
जाए तब तक हदन प्रनतहदन, इि न्यायालय में िार्जर िो । यहद िि िािी उक्ि हदन और िमय पर िार्जर
िोने में अिफल रिता िै तो उिके िाथ विधध के अनि
ु ार बरता जाएगा ।
यि आज तार ख...............................को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा लगाकर द गई
िै ।
न्यायाधीश

िंख्यांक 16
िाक्षी की िंपवि की कुकी का िारं ट (आदे श 16 का ननयम 10)
(शीषवक)

प्रेवषती-
न्यायालय का बेसलफ ।
.............................. द्िारा नासमत िािी................... उिकी िार्जर के सलए ननकाल गई
उद्घोषणा में विननहदिष्ट अिधध के बीतने के पश्चात ् इि न्यायालय में उपिंजात नि ं िुआ िै अत: आपको
ननदे श हदया जाता िै क्रक आप उक्त िािी की...............तक मप
ू य की............. िम्पवि कुकि करके रखें और
उिकी तासलका के िहित वििरणी................... हदन के भीतर भेज दें ।
यि आज तार ख......... .को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा लगाक र हदया गया ।
न्यायाधीश

िंख्यांक 17
िाक्षी की धगरफ्तारी का िारं ट ( आदे श 16 का ननयम 10)
(शीषवक)
प्रेवषती-
न्यायालय का बेसलफ ।
............... पर िमन की िम्यक् रुप िे तामील िो चुकी िै , क्रकन्तु िि िार्जर िोने में अिफल रिा
िै (िमन की तामील िे बचने के प्रयोजन िे फरार िो गया िै और िामने आने िे बचता िै ) । अत:
आपको आदे श हदया जाता िै क्रक आप उक्त ......................को धगरफ्तार करके न्यायालय के िमि लाएं ।
आपको यि भी आदे श हदया जाता िै क्रक आप इि िारं ट को िि हदन र्जिको, और िि र नत,
र्जििे इिका ननष्पादन क्रकया गया िै या िि कारण र्जििे यि ननष्पाहदत नि ं क्रकया गया िै , प्रमाणणत
करने िाले पष्ू ठांकन के िहित तार ख.........................को या उिके पि
ू ि लौटा दें ।
यि आज तार ख....................................को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा लगाकर हदया
गया ।
न्यायाधीश

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िंख्यांक 18
िप
ु द
ु गी का िारं ट (आदे श 16 का ननयम 16)
(शीषवक)

प्रेवषती-
............................. (स्थान) की जेल का भारिाधक अधधकार ।
िाद (या प्रनतिाद ) ने ऊपरनासमत िाद में इि न्यायालय िे आिेदन क्रकया िै क्रक
तार ख............................को िाक्ष्य दे ने के सलए (या दस्तािेज पेश करने के सलए).........................की
उपिंजानत के सलए प्रनतभनू त ल जाए और न्यायालय ने उक्त ......................... िे ऐिे प्रनतभनू त दे ने की
अपेिा की िै , और िि ऐिा करने में अिफल रिा िै ; अत: आप िे अपेिा की जाती िै क्रक आप
उक्त...................को सिविल कारागार में अपनी असभरिा में और उिे इि न्यायालय के िमि उक्त
हदन..................... बजे या ऐिे अन्य हदन या हदनों का र्जिका या र्जनका िाद में आदे श हदया जाए पेश
करे ।
यि आज तार ख.............................. को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा लगाकर हदया
गया |
न्यायाधीश

िंख्यांक 19
िप
ु द
ु गी का िारं ट ( आदे श 16 का ननयम 18)
(शीषवक)
प्रेवषती-
.................... (स्थान) की जेल का भारिाधक अधधकार ।
.......................को, र्जिकी िार्जर इि न्यायालय में ऊपर सलखे िुए िाद में िाक्ष्य दे ने के सलए
(या दस्तािेज पेश करने के सलए) अपेक्षित िै धगरफ्तार कर सलया गया िै और इि न्यायालय के िमि
असभरिा में लाया गया िै , और िाद (या प्रनतिाद ) की अनप
ु र्स्थनत के कारण उक्त.................... ऐिा
िाक्ष्य नि ं दे िकता (या ऐिे दस्तािेज पेश नि ं कर िकता) और न्यायालय ने उक्त....................िे
तार ख................ .को.......................बजे उिकी उपिंजानत के सलए प्रनतभनू त दे ने की अपेिा की थी, र्जिे
दे ने में िि अिफल रिा िै । अत: आप िे यि अपेिा की जाती िै क्रक आप उक्त...................को सिविल
कारागार में अपनी असभरिा में ले लें और तार ख............. को.............. बजे उिे इि न्यायालय के िमि
पेश करें ।
यि आज तार ख........ .को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा लगाकर हदया गया ।
न्यायाधीश

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पररसशष्ट ग
प्रकटीकरण, ननरीक्षण और स्िीकृनत
िंख्यांक 1
पररप्रश्नों के पररदान के सलए आदे श (आदे श 11 का ननयम 1)
.................................... के न्यायालय में
19...........................का सिविल िाद िंख्यांक.........................
क ख ............................................................................िाद ,
बनाम
ग घ च छ और ज झ............................................प्रनतिाद ।
.............................को िन
ु ने और............................के उि शपथपत्र को, जो तार ख...............
को फाइल क्रकया गया था, पढने के पश्चात ् यि आदे श हदया जाता िै क्रक ........................सलणखत
पररप्रश्न........................... को पररदि करने के सलए स्ितन्त्र िै और उक्त.............................. पररप्रश्न
के उिर उि र नत में दे जो आदे श 11 के ननयम 8 में विहित िै और इि आिेदन के
खचे.........................िोंगे ।

िंख्यांक 2
पररप्रश्न (आदे श 11 का ननयम 4)
(शीषवक, जैिा पि
ू ि
व ती िंख्यांक 1 में िै ।)

उक्ि (िाद या प्रनतिाद ग घ) की ओर िे उक्त (प्रनतिाद च छ और ज झ या िाद ) की पर िा


करने के सलए पररप्रश्न ।
1. क्या उिने इत्याहद, इत्याहद नि ं क्रकया ।
2. क्या..................................इत्याहद, इत्याहद नि ं िै ।
................. .इत्याहद........ .इत्याहद.................इत्याहद ।
[प्रनतिाद च छ िे अपेिा की जाती िै क्रक िि............................ िंख्यांक िाले पररप्रश्नों का उिर
दें |]
[प्रनतिाद ज झ िे अपेिा की जाती िै क्रक िि ......................... िंख्यांक िाले पररप्रश्नों का उिर
दें |]

िंख्यांक 3
पररप्रश्नों का उिर (आदे श 11 का ननयम 9)
(शीषवक, जैिा पि
ू ि
व ती िंख्यांक 1 में िै ।)

उक्त िाद द्िारा उकत प्रनतिाद च छ की पर िा करने के सलए पररप्रश्नों का उक्त प्रनतिाद च छ
द्िारा उिर उक्त पररप्रश्नों के उिर में मैं उक्त च छ शपथ लेता िूं और यि कथन करता िूं क्रक:-

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1.
2. पररप्रश्नों के उिर लगातार िंख्यांक्रकत पैराओं में सलणखए ।
3. मैं..................... िंख्यांक िाले पररप्रश्नों का उिर दे ने में इि आधार पर आिेप करता िूं
क्रक [आिेप के आधार पर सलणखए] ।

िंख्यांक 4
दस्तािेजों की बाबत शपथपत्र के सलए आदे श ( आदे श 11 का ननयम 12)
(शीषवक, जैिा पि
ू ि
व ती िंख्यांक 1 में िै ।)

.........................को िन
ु ने के पश्चात ्, यि आदे श हदया जाता िै क्रक.................... इि आदे श की
तार ख िे................................ हदन के भीतर शपथपत्र पर उिर दे र्जिमें यि बताया गया िो क्रक इि
िाद में प्रश्नगत बातों िे िम्बद्ध कौन िी दस्तािेजें उिकी शर्क्त या कब्जे में िैं या रि िैं, और इि
आिेदन के खचे िोंगे

िंख्यांक 5
दस्तािेजों की बाबत शपथपत्र ( आदे श 11 का ननयम 13)
(शीषवक, जैिा पि
ू ि
व ती िंख्यांक 1 में िै ।)
मैं उक्त प्रनतिाद ग घ शपथ लेता िूं और यि कथन करता िूं क्रक-
1. इि िाद में प्रश्नगत बातों िे िंबधं धत िे दस्तािेजें मेरे कब्जे या शर्क्त में िैं र्जनका उपलेख
इिकी प्रथम अनि
ु च
ू ी के पिले और दि
ू रे भाग में क्रकया गया िै ।
2. मैं इिकी प्रथम अनि
ु च
ू ी के दि
ू रे भाग में उर्पलखीत उक्त दस्तािेजों को पेश करने के बारे में
आिेप करता िूं (आिेप के आधार सलणखए) ।
3. िाद में प्रश्नगत बातों िे िम्बर्न्धत िे दस्तािेजें, र्जनका उपलेख इिकी द्वितीय अनि
ु च
ू ी में
क्रकया गया िै , मेरे कब्जे या शर्क्त में थी, क्रकन्तु अब नि ं िै ।
4. अर्न्तम िणणित दस्तािेजें मेरे कब्जे या शर्क्त में अर्न्तम बार (यिां िमय सलणखए और यि
सलणखए क्रक उनका क्या िुआ और िे क्रकिके कब्जे में िैं) ।
5. मेरे ििोिम ज्ञान, जानकार और विश्िाि के अनि ु ार उन दस्तािेजों को छोडकर जो इिकी उक्त
प्रथम और द्वितीय अनि
ु च
ू ी में उर्पलणखत िैं, ऐिा कोई लेखा, लेखा पस्
ु तक, िाऊचर, रिीद, पत्र, ज्ञापन,
कागज या लेख, या ऐिी क्रकिी दस्तािेज की कोई प्रनत या उद्धरण, या कोई ऐिी अन्य दस्तािेज, जो इि
िाद में प्रश्नगत बातों िे या उनमें िे क्रकिी िे िम्बर्न्धत िो या र्जिमें ऐिी बातों के या उनमें िे क्रकिी
के िम्बन्ध में कोई प्रविर्ष्ट की गई िो, मेरे कब्जे, असभरिा या शर्क्त में या मेरे प्ल डर या असभकताि के
कब्जे, असभरिा या शर्क्त में या मेर ओर िे क्रकिी अन्य व्यर्क्त के कब्जे असभरिा या शर्क्त में न अब
िै और न कभी थी ।

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िंख्यांक 6
ननरीक्षण के सलए दस्तािेजें पेश करने का आदे श (आदे श 11 का ननयम 14)
(शीषवक, जैिा पि
ू ि
व ती िंख्यांक 1 में िै ।)
.............................को िन
ु ने और.................................के शपथपत्र को, जो
तार ख......................को फाइल क्रकया गया था, पढ़ने के पश्चात ् यि आदे श हदया जाता िै क्रक
.................यर्ु क्तयक्
ु ि िच
ू ना हदए जाने पर, िब यर्ु क्तयक्
ु त िमयों पर................... में र्स्थत ,...........
में ननम्नसलणखत दस्तािेजें, अथाित ्..............................पेश करें , और ........................को, ऐिे पेश की गई
दस्तािेजों को ननर िण करने और पररशीलन करने की और उनकी अन्तििस्तु को सलख लेने की स्ितंत्रता
िोगी । यि आदे श हदया जाता िै क्रक इि बीच में िब अनतररक्त कायििाहियां रोक द जाएं और इि आिेदन
के खचे......................िोंगे ।

िंख्यांक 7
दस्तािेजों के पेश करने के सलए िच
ू ना ( आदे श 11 का ननयम 10)
(शीषवक, जैिा पि
ू ि
व ती िंख्यांक 1 में िै ।)

आपको िधू चत क्रकया जाता िै क्रक (िाद या प्रनतिाद ) आपिे अपेिा करता िै क्रक आप तार ख.......
....................के अपने (िादपत्र या सलणखत कथन या शपथपत्र में) ननहदि ष्ट ननम्नसलणखत दस्तािेजों को
उिके ननर िण के सलए पेश करें :
[यिां अपेक्षित दस्तािेजों का िणिन कीर्जए ।]
.......................का
प्ल डर भ म ।
....................... के प्ल डर य को ।

िंख्यांक 8
दस्तािेजों के ननरीक्षण के सलए िच
ू ना (आदे श 11 का ननयम 17)
(शीषवक, जैिा पि
ू ि
व ती िंख्यांक 1 में िै ।)

आपको िधू चत क्रकया जाता िै क्रक ता0...........................की अपनी िच


ू ना में िणणित दस्तािेजों का
(उि िच
ू ना में िंख्याक........................के िामने सलखी दस्तािेजों को छोडकर) अगले बि
ृ स्पनतिार
ता0.................. को 12 बजे और 4 बजे हदन के बीच (यिां ननर िण का स्थान सलणखए) में ननर िण कर
िकते िैं ।
या, (िाद या प्रनतिाद ) ता0 .........................को आपकी िच
ू ना में िणणित दस्तािेजों का आपको
ननर िण करने दे ने के बारे में इि आधार पर आिेप करता िै क्रक (आधार सलणखए) ।

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िंख्यांक 9
दस्तािेजों की स्िीकार करने के सलए िच
ू ना (आदे श 12 का ननयम 3)
(शीषवक, जैिा पि
ू ि
व ती िंख्यांक 1 में िै ।)
आपको िधू चत क्रकया जाता िै िाद (या प्रनतिाद ) इिमें आगे विननहदि ष्ट अनके दस्तािेजों को इि
िाद में िाक्ष्य में दे ने की प्रस्थापना करता िै और प्रनतिाद (या िाद ) उिके प्ल डर या असभकताि द्िारा
.......................... (तार ख) को.................................. (िमय) के बीच.................. (स्थान) में उनका
ननर िण क्रकया जा िकता िै । प्रनतिाद (या िाद ) िे यि अपेिा की जाती िै क्रक िि, िाद में िाक्ष्य के
रुप में इन िब दस्तािेजों की ग्राह्यता के बारे में िब न्यायिंगत अपिादों को छोडकर, अर्न्तम िणणित
िमय िे अडताल ि घंटो के भीतर यि स्िीकार कर ले क्रक उक्त दस्तािेजों में रो ऐिी दस्तािेजें र्जनके बारे
में यि विननहदि ष्ट िै क्रक िे मल
ू दस्तािेजें िै िमश: ऐिे सलखी, िस्तािररत या ननष्पाहदत की गई थी जैिे
उनका िमश: सलखा जाना, िस्तािररत क्रकया जाना या ननष्पाहदत क्रकया जाना तात्पनयिक िै क्रक उनमें िे
र्जनके बारे में यि विननहदिष्ट िै क्रक िे प्रनतयां िैं िे िि प्रनतयां िै और र्जन दस्तािेजों के बारे में यि
कधथत िै क्रक उनकी तामील की गई या उन्िें भेजा गया या पररदि क्रकया गया, उनकी ऐिी तामील की गई
या उन्िें ऐिे भेजा गया या पररदि क्रकया गया ।
ज झ, िाद (या प्रनतिाद ) का प्ल डर (या असभकताि) । प्रनतिाद (या िाद ) के प्ल डर (या असभकताि) च छ
को ।
(यिां दस्तािेजों का िणिन कीर्जए और िर एक दस्तािेज के बारे में यि विननहदिष्ट कीर्जए क्रक िि
मल
ू दस्तािेज िै या दस्तािेज की प्रनत िै ।)

िंख्यांक 10
त्यों को स्िीकार करने के सलए िच
ू ना (आदे श 12 का ननमय 5)
(शीषवक, जैिा पि
ू ि
व ती िंख्यांक 1 में िै ।)
आपको िधू चत क्रकया जाता िै क्रक िाद (या प्रनतिाद ) इि िाद में प्रनतिाद (या िाद ) िे अपेिा
करता िै क्रक िि इिमें आगे िमश: विननहदि ष्ट अनेक तथ्यों को केिल इि िाद के प्रयोजनों के सलए
स्िीकार कर ले, और प्रनतिाद (या िाद ) िे यि अपेिा की जाती िै क्रक िि, इि िाद में िाक्ष्य के रुप में
तथ्यों की ग्राह्यता के बारे में िब न्यायािंगत अपिादों को छोडकर, इि िच
ू ना की तामील िे छि हदन के
भीतर उक्त विसभन्न तथ्यों को स्िीकार कर ले ।
ज झ िाद (या प्रनतिाद ) या प्ल डर (या असभकताि)
प्रनतिाद (या िाद ) के प्ल डर (या असभकताि) च छ को ।
िे तथ्य र्जनका स्िीकार क्रकया जाना अपेक्षित िै , ननम्नसलणखत िैं, अथाित ्:-
1. यि क्रक ि की मत्ृ यु पिल जनिर , 1890 को िुई ।
2. यि क्रक िि ननिििीयती मरा ।
3. यि क्रक ढ उिका एकमात्र धमिज पत्र
ु था ।
4. यि क्रक ण, की मत्ृ यु पिल अप्रैल, 1896 को िुई ।
5. यि क्रक ण का वििाि कभी नि ं िुआ ।

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िंख्यांक 11
िच
ू ना के अनि
ु रण में त्यों की स्िीकृनत ( आदे श 12 का ननयम 5)
(शीषवक, जैिा पि
ू ि
व ती िंख्यांक 1 में िै ।)
इि िाद में प्रनतिाद (या िाद ) इिमें आगे िमश: विननहदि ष्ट अनेक तथ्यों को, इि िाद में िाक्ष्य
के रुप में क्रकन्ि ं ऐिे तथ्यों की या उनमें िे क्रकन्ि ं की ग्राह्यता के बारे में िब न्यायिंगत अपविादों को
छोडकर, इिमें आगे यहद कोई विशेषक या पररिीमाएं विननहदिष्ट िैं तो उनके अधीन रिते िुए, केिल इि
िाद के प्रयोजनों के सलए स्िीकार करता िै :
परन्तु यि स्िीकृनत केिल इि िाद के प्रयोजनों के सलए की गई िै , और यि ऐिी स्िीकृनत नि ं िै
जो प्रनतिाद ( या िाद ) के विरुद्ध क्रकिी अन्य अििर पर अथिा िाद (या प्रनतिाद या स्िीकृनत की
अपेिा करने िाले पिकार) िे सभन्न क्रकिी व्यर्क्त द्िारा प्रयक्
ु त की जा िके ।
ड; च, प्रनतिाद (या िाद ) का प्ल डर( या असभकताि)
िाद (या प्रनतिाद ) के प्ल डर (या असभकताि) छ ज को |

स्िीकृत त्य िे विशषक या पररिीमाएं, यहद कोई िों, स्जनके अधीन


रिते िुए िे स्िीकार क्रकए गए िैं |
1. यि क्रक ड मत्ृ यु पिल जनिर , 1980 को िुई | 1.
2.
2. यि क्रक िि ननिििीयती मरा |
3. क्रकन्तु यि नि ं क्रक िि एकमात्र धमिज पत्र
ु था |
3. यि क्रक ढ उिका धमिज पत्र
ु था |
4. क्रकन्तु यि नि ं क्रक उिकी मत्ृ यु पिल अप्रैल, 1896
4. यि क्रक ण मर गया |
को िुई |
5. यि क्रक ण का वििाद कभी नि ं िुआ | 5.

िंख्यांक 12
पेश करने के सलए िच
ू ना (िाधारण प्ररुप) (आदे श 12 का ननयम 8)
(शीषवक, जैिा पि
ू ि
व ती िंख्यांक 1 में िै ।)

आपको िधू चत क्रकया जाता िै क्रक आपिे अपेिा की जाती िै क्रक आप िब पस्
ु तकें, कागज, पत्र, पत्रों
की प्रनतयां और अन्य लेख और दस्तािेज, जो आपकी असभरिा, कब्जे या शर्क्त में िैं और र्जनमें इि िाद
में प्रश्नास्पद बातों िे िम्बर्न्धत कोई प्रविष्ट, ज्ञापन या कायििि
ृ अन्तवििष्ट िै , इि िाद की पिल िन
ु िाई
में न्यायालय के िमि पेश करें और न्यायालय को हदखाए और विशेष रुप िे.................................... ।
छ ज, िाद (या प्रनतिाद ) या प्ल डर (या असभकताि) |
प्रनतिाद ( या िाद ) के प्ल डर ( या असभकताि) िः च को ।

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पररसशष्ट घ
डिक्रियां
िंख्यांक 1
मल
ू िाद में डििी ( आदे श 20 के ननयम 6 और 7)
(शीषवक)

.......................................... के सलए दािा ।


िाद की ओर िे.................................................. की और प्रनतिाद की ओर
िे............................................................ की उपर्स्थनत में इि िाद के आज तार ख................
...............को.......................... .के िमि अर्न्तम ननपटारे के सलए पेश िोने पर आदे श क्रकया जाता िै
और डडिी द जाती िै क्रक................................ और इि िाद के खचे लेखे .................................. रुपए
रासश, आज की तार ख िे ििल
ू की तार ख तक उि पर.................................... प्रनतशत प्रनतिषि की दर
िे ब्याज िहित द्िारा.............................को द जाए ।
यि आज ता0 ...................... को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा लगाकर द गई ।
न्यायाधीश
िाद के खचे

िाद प्रनतिाद
रु. आ. पा. रु. आ. पा.
1. िादपत्र के सलए स्टाम्प शविपत्र के सलए स्टाम्प
2. शर्क्त पत्र के सलए स्टाम्प अजी के सलए स्टाम्प
3. प्रदशों के सलए स्टाम्प प्ल डर की फीि
4. ............. रुपए पर प्ल डर की िाक्षियों के सलए ननिािि- व्यय
फीि आदे सशका की तामील
5. िाक्षियों के सलए ननिािि- व्यय
6. कसमश्नर की फीि. कसमश्नर की फीि

7. आदे सशका की तामील


जोड़ जोड़

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िंख्यांक 2
िादी धन-डििी ( धारा 34)
(शीषवक)
.....................................के सलए दािा ।
िाद की ओर िे................................................................की और प्रनतिाद की ओर
िे.......................................................................की उपर्स्थनत में इि िाद के आज
तार ख...................................... को...................................के िमि अर्न्तम ननपटारे के सलए पेश िोने
पर, आदे श क्रकया जाता िै क्रक..................................को............................................. रुपए की
रासश,..............................िे उक्ि रासश की ििल
ू की तार ख तक..................प्रनतशत प्रनतिषि की दर िे
उि पर ब्याज िहित दे और िाद के खचि के................................. रुपए आज की तार ख िे ििल
ू की
तार ख तक.................................प्रनतशत प्रनतिषि की दर िे उि पर ब्याज िहित दे ।
यि आज ता0..................... को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा लगाकर द गई ।
न्यायाधीश

िाद के खचे
िाद प्रनतिाद
1. िादपत्र के सलए स्टाम्प रु. आ. पा. शविपत्र के सलए स्टाम्प रु. आ. पा.
2. शर्क्त पत्र के सलए स्टाम्प अजी के सलए स्टाम्प
3. प्रदशों के सलए स्टाम्प प्ल डर की फीि
4. ............. रुपए पर प्ल डर की िाक्षियों के सलए ननिािि- व्यय
फीि आदे सशका की तामील
5. िाक्षियों के सलए ननिािि- व्यय
6. कसमश्नर की फीि. कसमश्नर की फीि

7. आदे सशका की तामील

जोड़ जोड़

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1
[िंख्यांक 3
परु ोबन्ध के सलए प्रारस्म्िक डििी
(आदे श 34 का ननयम 2-जिां लेखा
सलए जाने का ननदे श हदया गया िै ।)
(शीषवक)

इि िाद के आज...................को पेश िोने पर आदे श क्रकया जाता िै और डडिी द जाती िै क्रक
यि...................को कसमश्नर के रूप में ननम्नसलणखत लेखा लेने के सलए ननदे सशत क्रकया जाए-
(i) िादपत्र में िणणित अपने बन्धक पर मल
ू धन और ब्याज मद्धे आज की तार ख को िाद को जो
कुछ शोध्य िै उिका लेखा (ऐिे ब्याज की िंगणना उि पर िे की जाएगी जो मल
ू धन पर िंदेय िै या जिां
ऐिी दर ननयत नि ं िै ििां ब्याज छि प्रनतशत प्रनतिषि की दर िे या ऐिी दर िे, जो न्यायालय यर्ु क्तयक्
ु त
िमझे, िंगणणत क्रकया जाएगा);
(ii) बन्धक-िम्पवि की जो आय िाद द्िारा, या िाद के आदे श िे या िाद के उपयोग के सलए
क्रकिी अन्य व्यर्क्त द्िारा, आज की तार ख तक प्राप्त की गई िै , या जो तब प्राप्त िो िकती थी जब िाद
ने या ऐिे व्यर्क्त ने जानबझ
ू कर व्यनतिम न क्रकया िोता, उि आय का लेखा;
(iii) बन्धक प्रनतभनू त की बाबत (िाद के खचों िे सभन्न) खचों, प्रभारों और व्ययों के सलए आज की
तार ख तक िाद द्िारा जो धन रासशयां उधचत रुप िे उपगत की गई िै उन िब का, उन पर ब्याज िहित,
लेखा (ऐिा ब्याज पिकारों के बीच करार की गई दर िे या ऐिी दर के अभाि में उि दर िे, जो मल
ू धन
पर िंदेय िै , या ऐिी दोनों दरों के अभाि में नौ प्रनतशत प्रनतिषि की दर िे िंगणणत क्रकया जाएगा);
(iv) बन्धक-िम्पवि को िाद के क्रकिी ऐिे कायि या लोप द्िारा, जो िम्पवि के सलए विनाशक या
स्थायी रुप िे िनतकर िै , या उि पर क्रकिी भी तत्िमय-प्रिि
ृ -विधध द्िारा या बन्धक-विलेख के ननबन्धनों
द्िारा अधधरोवपत कतिव्यों में िे क्रकिी का पालन करने में उिकी अिफलता िे जो िानन या नक
ु िान इि
तार ख िे पिले पिुंचा िै , उिका लेखा ।
2. यि भी आदे श क्रकया जाता िै और डडिी द जाती िै क्रक उक्त खण्ड (ii) के अधीन प्राप्त या
खण्ड (iv) के अधीन शोध्य न्यायननणीत कोई रकम, उि पर ब्याज िहित पिले उन रासशयों के प्रनत
िमायोर्जत की जाएगी र्जनका िंदाय िाद ने खण्ड (iii) के अधीन क्रकया िै और उन रासशयों में उन पर
ब्याज भी िर्म्मसलत िोगा, और यहद कुछ बाकी बचे तो उिे बन्धक- धन में जोड हदया जाएगा या,
यथार्स्थनत, शोध्य न्यायननणीत मल
ू रासश पर ब्याज मद्धे िाद को जो रकम शोध्य िै उिको घटाने के
सलए और तत्पश्चात ् मल
ू धन को घटाने या उन्मोधचत करने के सलए विकसलत (डेबबट) क्रकया जाएगा ।
3. यि भी आदे श क्रकया जाता िै क्रक उक्त कसमश्नर िि लेखाउिमें िभी न्यायिंगत मौके दे ने के
पश्चात ् िवु िधानि
ु ार शीघ्रता िे ता0 ......................... को या उिके पि
ू ि इि न्यायालय में प्रस्तत
ु करे गा
और कसमश्नर की ऐिी ररपोटि के प्राप्त िोने पर िि ऐिे उपान्तरों के िाथ पष्ु ट और प्रनतिस्तािररत की
जाएगी जैिे क्रक िाद के पिकारों के ऐिे आिेपों पर जो िे करें विचार करने के पश्चात ् आिश्यक िों ।
4. यि भी आदे श क्रकया जाता िै और डडिी द जाती िै क्रक-
(i) प्रनतिाद ता0 .................................... को या उिके पि
ू ि या ऐिी क्रकिी पश्चातिती
् तार ख को

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या उिके पि
ू ,ि र्जि तक िंदाय करने के सलए िमय न्यायालय द्िारा बढ़ा हदया जाए, ऐिी रासश, जैिी
न्यायालय शोध्य पाए, और िाद के उन खचों के सलए जो िाद को अधधननणीत क्रकए गए
िैं.....................रुपए की रासश न्यायालय में जमा कर दें ;
(ii) ऐिे जमा कर हदए जाने पर और तत्पश्चात ् ऐिी तार ख के पि
ू ि जो न्यायालय ननयत करे , ऐिी
रकम जो न्यायालय िाद के ऐिे खचों की, और सिविल प्रक्रि या िंहिता, 1908 की प्रथम अनि
ु च
ू ी के
आदे श 34 के ननयम 10 के अधीन िंदेय खचों, प्रभारों और व्ययों की बाबत शोध्य न्यायननणीत करे ,ननयम
11 के अधीन िंदेय पार्श्चक ब्याज के िहित जमा कर द जाने पर िाद िादपत्र में िणणित बन्धक-िम्पवि
िम्बन्धी ि िभी दस्तािेजें जो उिके कब्जे या शर्क्त में िैं, न्यायालय में लाएगा और ऐिी िब दस्तािेजें
प्रनतिाद को या ऐिे व्यर्क्त को र्जिे िि ननयक्
ु त करे , पररदि की जाएंगी, और यहद िाद िे ऐिी अपेिा
की जाए तो िि उक्त िम्पवि को उक्त बन्धक िे मक्
ु त करके और िाद द्िारा, या ऐिे क्रकिी व्यर्क्त
द्िारा, जो उििे व्यत्ु पन्न अधधकार के अधीन दािा करता िै , या ऐिे क्रकिी व्यर्क्त द्िारा, र्जििे व्यत्ु पन्न
अधधकार के अधीन िाद दािा करता िै , िष्ु ट िब विपलगमों िे रहित और मक्
ु त करके तथा इि बन्धक या
इि िाद िे, जो कोई दानयत्ि उद्भत
ू िोते िैं, उन िब िे मक्
ु ि करके प्रनत िस्तान्तररत या प्रनत अन्तररत
करे गा, और यहद उििे ऐिी अपेिा की जाए तो िि प्रनतिाद को उक्त िम्पवि का ननबािध और शार्न्तपण
ू ि
कब्जा पररदि करे गा ।
5. यि भी आदे श क्रकया जाता िै और डडिी द जाती िै क्रक पि
ू ोक्त रुप में जमा करने में व्यनतिम
िोने पर िाद न्यायालय िे इि अर्न्तम डडिी के सलए आिेदन कर िकेगा क्रक तत्पश्चात ् प्रनतिाद इिके
िाथ उपाबद्ध अनि
ु च
ू ी में िणणित बन्धक-िम्पनत का मोचन कराने के िब अधधकारों िे पण
ू त
ि : वििर्जित
और परु ोबंधधत िोगा और यहद उििे ऐिी अपेिा की जाए तो िि िाद को उक्त िम्पवि का ननबािध और
शार्न्तपण
ू ि कब्जा पररदि करे गा और पिकार िमय-िमय पर न्यायालय िे आिश्यकतानि
ु ार आिेदन कर
िकेंगे और न्यायालय ऐिे आिेदन पर या अन्यथा ऐिे ननदे श दे िकेगा जैिे िि ठीक िमझे ।

1. 1929 के अधधननयम िं. 21 की धारा 8 और अनि


ु च
ू ी द्िारा मल
ू प्ररुप 3 िे 11 तक के स्थान
पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

अनि
ु च
ू ी
बन्धक िम्पवि का िणवन
िंख्यांक 3क
परु ोबन्ध के सलए प्रारस्म्िक डििी
(आदे श 34 का ननयम 2--जिां न्यायालय शोध्य रकम घोवषत करता िै ।)
(शीषिक)

िाद ...................इत्याहद की उपर्स्थनत में इि िाद के आज ता0 ........................को पेश िोने पर


यि घोवषत क्रकया जाता िै क्रक िादपत्र में िणणित िाद के बन्धक पर िाद को आज ता0 .................तक
िंगणणत शोध्य रकम मल
ू धन मद्धे................... रुपए की रासश, उक्त मल
ू धन पर ब्याज मद्दे रुपए की

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रासश (िाद के खचों िे सभन्न) उन खचों प्रभारों और व्ययों के सलए, जो बन्धक प्रनतभनू त की बाबत िाद ने
उधचत रुप में उपगत क्रकए िैं, उन पर ब्याज के िहित............................रुपए की रासश और इि िाद के
जो खचे िाद को अधधननणीत क्रकए गए िैं, उन खचों के सलए................. रुपए की रासश, कुल
समलाकर................. रुपए की रासश िोती िै ।
2. यि आदे श क्रकया जाता िै और डडिी द जाती िै क्रक-
(i) प्रनतिाद ता0 ...........................को या उिके पि
ू ि या क्रकिी ऐिी पश्चातिती
् तार ख को या
उिके पि
ू ,ि र्जि तक िंदाय के सलए िमय न्यायालय द्िारा बढा हदया जाए......................रुपए की उक्ि
रासश न्यायालय में जमा कर दे ।
(ii) ऐिे जमा कर हदए जाने पर और तत्पश्चात ् ऐिी तार ख के पि
ू ि जो न्यायालय ननयत करे ऐिी
रकम जो न्यायालय िाद के खचों की, और सिविल प्रक्रिया िंहिता, 1908 की प्रथम अनि
ु च
ू ी के आदे श 34
के ननयम 10 के अधीन िंदेय खचों, प्रभारों और व्ययों की बाबत शोध्य न्यायननणीत करे ननयम 11 के
अधीन िंदेय पार्श्चक ब्याज के िहित जमा कर द जाने पर िाद िाद पत्र में िणणित बन्धक िम्पवि
िम्बन्धी िे िभी दस्तािेजें जो उिके कब्जे या शर्क्त में िैं न्यायालय में लाएगा और ऐिी िब दस्तािेजें
प्रनतिाद को या ऐिे व्यर्क्त को, र्जिे िि ननयक्
ु त क रे , पररदि की जाएंगी और यहद िाद िे ऐिी अपेिा
की जाए तो िि उक्ि िम्पवि को बन्धक िे मक्
ु त करके और िाद द्िारा, या क्रकिी ऐिे व्यर्क्त द्िारा, जो
उििे व्यत्ु पन्न अधधकार के अधीन दािा करता िै या क्रकिी ऐिे व्यर्क्त द्िारा, र्जििे व्यत्ु पन्न अधधकार
का दािा करता िै , िष्ृ ट िब विपलगमों िे रहित और मक्
ु त करके तथा इि बन्धक या इि िाद िे जो कोई
दानयत्ि उद्भत
ू िोते िै उन िब िे मक्
ु त करके प्रनत िस्तान्तररत प्रात अन्तररत करे गा ऑर याद उििे ऐिा
अपेिा की जाए तो िि प्रनतिाद को उक्त िम्पवि का ननबािध और शांनतपण
ू ि कब्जा पररदि करे गा ।
3. यि भी आदे श क्रकया जाता िै और डडिी द जाती िै क्रक पि
ू ोक्त रुप में रकम जमा करने में
व्यनतिम िोने पर िाद न्यायालय िे इि अर्न्तम डडिी के सलए आिेदन कर िकेगा क्रक तत्पश्चात ्
प्रनतिाद इिके िाथ उपाबद्ध अनि
ु च
ू ी में िणणित बन्धक-िम्पवि का मोचन कराने के िब अधधकारों िे पण
ू ि
रुप िे वििर्जित और परु ोबंधधत िोगा, और यहद उििे ऐिी अपेिा की जाए तो िि िाद को उक्त िम्पवि
का ननबािध और शांनतपण
ू ि कब्जा पररदि करे गा और पिकार िमय-िमय पर न्यायालय िे अपनी
अिश्यकतानि
ु ार आिेदन कर िकेंगे ओर न्यायालय ऐिे आिेदन पर या अन्यथा ऐिे ननदे श दे िकेगा जैिे
िि ठीक िमझे ।

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अनि
ु च
ू ी
बन्धक िम्पवि का िणवन
िंख्यांक 4
परु ोबंध के सलए अस्न्तम डििी (आदे श 34 का ननमय 3)
(शीषवक)

इि िाद में ता0 ............................ को पाररत प्रारर्म्भक डडिी को और ता0 ...................... के


अनतररक्त आदे शों को (यहद कोई िों) और अर्न्तम डडिी िाद के ता0 ........................... के आिेदन को
पढने पर और पिकारों को िन
ु ने के पश्चात ् और यि प्रतीत िोने पर क्रक उक्त डडिी और आदे शों द्िारा
ननहदष्ट िंदाय प्रनतिाद द्िारा या उिकी ओर िे क्रकिी व्यर्क्त द्िारा या उक्त बन्धक का मोचन कराने के
िकदार क्रकिी अन्य व्यर्क्त द्िारा नि ं क्रकया गया िै ।
यि आदे श क्रकया जाता िै और डडिी द जाती िै क्रक प्रनतिाद और उििे व्यत्ु पन्न अधधकार के
द्िारा या अधीन दािा करने िाले िब व्यर्क्त पि
ू ोक्त प्रारर्म्भक डडिी में िणणित िम्पवि के और उिमें
मोचन के िब अधधकार िे इिके पण
ू त
ि : वििर्जित और परु ोबर्न्धत िोंगे और क्रकए जाते िैं; 1
[और (यहद
प्रनतिाद का उक्त बन्धक-िम्पवि पर कबजा िै तो) प्रनतिाद उक्त बन्धक-िम्पवि का ननबािध और शांनतपण
ू ि
कब्जा िाद को पररदि करे गा ।]
2. यि भी घोवषत क्रकया जाता िै क्रक िादपत्र में िणणित उक्त बन्धक िे या इि िाद िे उद् भत
ू जो
भी दानयत्ि प्रनतिाद का आज तक िै क्रक िि िब इिके द्िारा उन्मोधचत और ननिािधचत क्रकया जाता िै ।

िंख्यांक 5
वििय के सलए प्रारस्म्िक डििी (आदे श 34 का ननयम 4--जिां लेखा सलए जाने का ननदे श हदया गया िै ।)
(शीषवक)

िाद ................................ इत्याहद की उपर्स्थनत में इि िाद के आज ता0 ........................ को


पेश िोने पर, यि आदे श क्रकया जाता िै और डडिी द जाती िै क्रक यि.................. को कसमश्नर के रुप में
ननम्नसलणखत लेखा लेने के सलए ननदे सशत क्रकया जाए-
(i) िादपत्र में िर्जित अपने बन्धक पर मल
ू धन और ब्याज मद्धे आज की तार ख को िाद को जो
कुछ शोध्य िै उिका लेखा (ऐिे ब्याज की िंगणना उि दर िे की जाएगी जो मल
ू धन पर िंदेय िै या
जिां क्रक ऐिे दर ननयत न िो ििां, ब्याज छि प्रनतशत प्रनतिषि की दर िे या ऐिी दर िे, जो न्यायालय
यर्ु क्तयक्
ु त िमझे, िंगणणत क्रकया जाएगा);
(ii) बन्धक-िम्पवि की जो आय िाद द्िारा, या िाद के आदे श में या िाद के उपयोग के सलए
क्रकिी अन्य व्यर्क्त द्िारा, आज की तार ख तक प्राप्त िुई िै , का जो तब प्राप्त िो िकती थी जब िाद ने
या ऐिे व्यर्क्त ने जानबझ ू कर व्यनतिम न क्रकया िोता, उि आय का लेखा;
(iii) बन्धक प्रनतभनू त की बाबत (िाद के खचों िे सभन्न) खचों, प्रभारों और व्ययों के सलए आज की
तार ख तक िाद द्िारा जो धन रासशयां उधचत रूप िे उपगत की गई िैं उन िबका, उन पर ब्याज िहित,

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लेखा (ऐिा ब्याज, पिकारों के बीच करार की गई दर िे या ऐिी दर के अभाि में उि दर िे जो मल
ू धन
पर िंदेय िै , या ऐिी दोनों दरों के अभाि में नौ प्रनतशत प्रनतिषि की दर िे िंगणणत क्रकया जाएगा);
(iv) बन्धक िम्पवि को िाद के क्रकिी ऐिे कायि या लोप द्िारा, जो िम्पनत के सलए विनाशक या
स्थायी रुप िे िनतकर िै , या उि पर क्रकिी भी तत्िमय-प्रिि
ृ विधध द्िारा या बन्धक विलेख के ननबन्धनों
द्िारा अधधरोवपत कतिव्यों में क्रकिी का पालन करने में उिकी अिफलता िे जो िानन या नक
ु िान इि
तार ख िे पिले पिुंचा िै , उिका लेखा |

1. अनपेक्षित शब्द काट हदए जाए ।

इि तार ख िे पिले पिुंचा िै , उिका लेखा ।


2. यि भी आदे श क्रकया जाता िै क्रक उक्त खण्ड (ii) के अधीन प्राप्त या खण्ड (iv) के अधीन शोध्य
न्यायननणीत कोई रकम, उि पर ब्याज िहित, पिले उन क्रकिी रासशयों के प्रनत िमायोर्जत की जाएंगी
र्जनका िंदाय िाद ने खण्ड (iii) के अधीन क्रकया िै , और उन रासशयों में उन पर ब्याज भी िर्म्मसलत
िोगा, और यहद कुछ बाकी बचे तो उिे बन्धक- धन में जोड हदया जाएगा या, यथार्स्थनत शोध्य
न्यायननणीत मल
ू रासश पर ब्याज मद्धे िाद को जो रकम शोध्य िै उिको घटाने के सलए और तत्पश्चात ्
मल
ू धन को घटाने या उन्मोधचत करने के सलए विकसलत (डेबबट) क्रकया जाएगा |
3. यि भी आदे श क्रकया जाता िै क्रक उक्त कसमश्नर िमस्त न्यायिंगत मौके दे ने के पश्चात ् उि
लेखा को िवु िधानि
ु ार शीघ्रता िे ता0 ............................को यि उिके पि
ू ि इि न्यायालय में प्रस्तत
ु करे
और कसमश्नर की ऐिी ररपोटि के प्राप्त िोने पर िि ऐिे उपान्तरों के िाथ पष्ु ट और प्रनत िस्तािररत की
जाएगी जैिे क्रक िाद के पिकारों के ऐिे आिेपों पर, जो िे करें , विचार करने के पश्चात ् आिश्यक िों ।
4. यि भी आदे श क्रकया जाता िै और डडिी द जाती िै क्रक---
(i) िाद ता0.......................... को या उिके पि
ू ि या क्रकिी ऐिी पश्चातिती
् तार ख को या उिके
पि
ू ,ि र्जि तक िंदाय करने के सलए िमय न्यायालय द्िारा बढ़ा हदया जाए, ऐिी रासश, जैिी न्यायालय
शोध्य पाए, और िाद के उन खचों के सलए िाद को अधधननणीत क्रकए गए िैं...........................रुपए की
रासश न्यायालय में जमा करे दें ;
(ii) ऐिे जमा कर हदए जाने पर और तत्पशाचात ् ऐिी तार ख के पि
ू ,ि जो न्यायालय ननयत करे ,
ऐिी रकम, जो न्यायालय िाद के ऐिे खचों की और सिविल प्रक्रिया िंहिता, 1908 की प्रथम अनि
ु च
ू ी के
आदे श 34 के ननयम 10 के अधीन िंदेय ऐिे खचों, प्रभारों और व्ययों की बाबत शोध्य न्यायननणीत करे ,
ननयम 11 के अधीन िंदेय पार्श्चक ब्याज के िहित जमा कर द जाने पर, िाद िादपत्र में िणणित बन्धक-
िम्पवि िम्बन्धी िे िभी दस्तािेजें न्यायालय में लाएगा जो उिके कब्जे या शर्क्त में िै और ऐिी िब
दस्तािेजें प्रनतिाद को या ऐिे व्यर्क्त को, र्जिे िि ननयक्
ु त करे , पररदि की जाएंगी, और यहद िाद िे
ऐिी अपेिा की जाए तो िि उक्त िम्पवि को बन्धक िे मक्
ु ि करके और िाद द्िारा या क्रकिी ऐिे
व्यर्क्त द्िारा, जो उििे व्यत्ु पन्न अधधकार के अधीन दािा करता िै या क्रकिी ऐिे व्यर्क्त द्िारा, र्जििे
व्यत्ु पन्न अधधकार के अधीन िाद दािा करता िै , िष्ृ ट िब विपलंगमों िे रहित और मक्
ु त करके प्रनत
िस्तान्तररत या प्रनत अन्तररत करे गा, और यहद उििे ऐिी अपेिा की जाए तो िि प्रनतिाद की उक्त

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िम्पवि का ननबािध और शार्न्तपण
ू ि कब्जा पररदि करे गा ।
5. यि भी आदे श क्रकया जाता िै और डडिी द जाती िै क्रक पि
ू ोक्त रुप में रकम जमा करने में
व्यनतिम िोने पर िाद न्यायालय िे बन्धक-िम्पवि के सलए अर्न्तम डडिी के सलए आिेदन कर िकेगा,
और ऐिा आिेदन क्रकए जाने पर बन्धक-िम्पनत के या उि के पयािप्त भाग के वििय का ननदे श हदया
जाएगा और ऐिे वििय के प्रयोजनों के सलए िाद बन्धक-िम्पवि िम्बन्धी िे िभी दस्तािेजें जो उिके
कब्जे या शाक्त में िैं, न्यायालय के िमि या उि अधधकार के िमि, र्जिे िि ननयक्
ु त करे , पेश करे गा |
6. यि भी आदे श क्रकया जाता िै और डडिी द जाती िै क्रक ऐिे वििय िे ििल ू िुआ धन
न्यायालय में जमा क्रकया जाएगा और (वििय के व्ययों को उिमें िे काटकर) िि िाद को इि डडिी के
अधीन और ऐिे क्रकन्ि ं अनतररक्त आदे शों के अधीन, जैिे इि िाद में पाररत क्रकए जाएं, िंदेय रकम का
िंदाय करने में और ऐिी रकम का, जैिी न्यायालय िाद के ऐिे खचों की और सिविल प्रक्रिया िंहिता,
1908 की प्रथम अनि
ु च
ू ी के आदे श 34 के ननयम 10 के अधीन िंदेय खचों, प्रभारों और व्ययों की बाबत
िाद को शोध्य न्यायननणीत करे ननयम 11 के अधीन िंदेय पार्श्चक ब्याज के िहित, िंदाय करने में
िम्यक् रुप िे उपयोर्जत क्रकया जाएगा और कुछ बाकी बचे तो िि प्रनतिाद को या अन्य व्यर्क्तयों को,
जो उिे प्राप्त करने के िकदार िों, हदया जाएगा ।
7. यि भी आदे श क्रकया जाता िै क्रक और डडिी द जाती िै क्रक यहद ऐिे वििय िे ििल ू िुआ धन
िाद को पिू ािचल रुप मे िंदेय रकम के पण ू ि िंदाय के सलए पयािप्त न िो तो िाद जिां क्रक ऐिा उपचार
उिके सलए बन्धक के ननबन्धनों के अधीन प्राप्त िै और क्रकिी तत्िमय (प्रित
ृ -विधध द्िारा िर्जित नि ं िै )
प्रनतिाद के विरुद्ध बाकी की रकम के सलए िैयर्क्तक डडिी के सलए आिेदन कर िकेगा; और पिकार
िमय-िमय पर न्यायालय िे अपनी आिश्यकतानि
ु ार आिेदन कर िकेंगे और न्यायालय ऐिे आिेदन पर
या अन्यथा ऐिे ननदे श दे िकेगा जैिे िि ठीक िमझे ।

अनि
ु च
ू ी
बन्धक-िम्पवि का िणवन
िंख्यांक 5क
वििय के सलए प्रारस्म्िक डििी (आदे श 34 का ननयम 4--जिां न्यायालय शोध्य रकम घोवषत करता िै |)
(शीषवक)

िाद ........................ इत्याहद की उपर्स्थनत में इि िाद के आज ता0 .................................पेश


िोने पर, यि घोवषत क्रकया जाता िै क्रक िादपत्र में िणणित बन्धक पर िाद को आज ता0
........................तक िंगणणत शोध्य रकम मल
ू धन मद्धे..............................रुपए की रासश, उक्त मल
ू धन
पर ब्याज मद्धे .................................रुपए की रासश (िाद के खचों िे सभन्न) उन खचों, प्रभारों और
व्ययों के सलए, जो बन्धक प्रनतभनू त की बाबत िाद ने उधचत रुप में उपगत क्रकए िैं उन पर ब्याज के
िहित................................ रुपए की रासश, और इि िाद के जो खचे िाद को अधधननणीत क्रकए गए िैं,
उन खचों के सलए................................. रुपए की रासश, कु ल समलाकर,............................. रुपए की
रासश िोती िै ।

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2. यि आदे श क्रकया जाता िै और डडिी द जाती िै क्रक-
(i) प्रनतिाद ता0 ...............................को या उिके पि
ू ि या क्रकिी ऐिी पश्चातिती तार ख को या
उिके पि
ू ,ि र्जि तक िंदाय के सलए िमय न्यायालय द्िारा बढ़ा हदया जाए..................... रुपए की उक्त
रासश न्यायालय में जमा कर दें ।
(ii) ऐिे जमा कर हदए जाने पर और तत्पश्चात ् ऐिी तार ख के पि
ू ,ि जो न्यायालय ननयत करे , ऐिी
रकम जो न्यायालय िाद के ऐिे खचों की और सिविल प्रक्रिया िंहिता, 1908 की प्रथम अनि
ु च
ू ी के आदे श
34 के ननयम 10 के अधीन िंदेय खचों, प्रभारों और व्ययों की बाबत शोध्य न्यायननणीत करे , ननयम 11
के अधीन िंदेय पार्श्चक ब्याज के िहित जमा कर द जाने पर, िाद िादपत्र में िणणित बन्धक-िम्पनत
िम्बन्धी िे िभी दस्तािेजें जो उिके कब्जे या शर्क्त में िैं न्यायालय में लाएगा और ऐिी िब दस्तािेजें
प्रनतिाद को या ऐिे व्यर्क्त को, र्जिे िि ननयक्
ु त करे , पररदि की जाएंगी और यहद िाद िे ऐिी अपेिा
की जाए तो िि उक्ि िम्पवि को बन्धक िे मक्
ु त करके और िाद द्िारा या ऐिे क्रकिी व्यर्क्त द्िारा, जो
उििे व्यत्ु पन्न अधधकार के अधीन दािा करता िै या ऐिे क्रकिी व्यर्क्त द्िारा, र्जििे व्यत्ु पन्न अधधकार
के अधीन िाद दािा करता िै , िष्ृ ट िब विपलगमों िे रहित और मक्
ु ि करके प्रनत िस्तान्तररत या प्रनत
अन्तररत करे गा और यहद उििे ऐिी अपेिा की जाए तो िि प्रनतिाद को उक्ि िम्पवि का ननबािध और
शांनतपण
ू ि कब्जा पररदि करे गा ।
3. यि भी आदे श क्रकया जाता िै और डडिी द जाती िै क्रक पि
ू ोक्त रुप में रकम जमा करने में
व्यनतिम िोने पर िाद न्यायालय िे बन्धक-िम्पवि के वििय के सलए अर्न्तम डडिी के सलए आिेदन कर
िकेगा और ऐिा आिेदन क्रकए जाने पर बन्धक-िम्पवि के या उिके पयािप्त भाग के वििय का ननदे श
हदया जाएगा और ऐिे वििय के प्रयोजनों के सलए िाद बन्धक-िम्पवि िम्बन्धी ऐिी िब दस्तािेजें जो
उिके कब्जे या शर्क्त में िैं न्यायालय के िमि या उि अधधकार के िमि, र्जिे िि ननयक्
ु त करे , पेश
करे गा ।
4. यि भी आदे श क्रकया जाता िै और डडिी द जाती िै क्रक ऐिे विि य िे ििल ू िुआ धन
न्यायालय में जमा क्रकया जाएगा और (वििय के व्ययों को उिमें िे काटकर) िि िाद को इि डडिी के
और क्रकन्ि ं ऐिे अनतररक्त आदे शों के अधीन-जैिे इि िाद में पाररत क्रकए जाएं, िंदेय रकम का िंदाय
करने में और ऐिी रकम का, जैिी न्यायालय िाद के ऐिे खचों की और सिविल प्रक्रिया िंहिता, 1908 की
प्रथम अनि
ु च
ू ी के आदे श 34 के ननयम 10 के अधीन िंदेय खचो, प्रभारों और व्ययों की बाबत िाद को
शोध्य न्यायननणीत करे ननयम 11 के अधीन िंदेय पार्श्चक ब्याज के िहित, िंदाय करने में िम्यक् रुप
िे उपयोर्जत क्रकया जाएगा और यहद कुछ बाकी बचे तो िि प्रनतिाद को या अन्य व्यर्क्तयों को, जो उिे
प्राप्त करने के िकदार िों हदया जाएगा ।
6. यि भी आदे श हदया जाता िै और डडिी द जाती िै क्रक यहद ऐिे वििय िे ििल ू िुआ धन िाद
को पि
ू ोक्त रुप में िंदेय रकम का पण
ू ि िंदाय करने के सलए पयािप्त न िो तो िाद (जिां क्रक ऐिा उपचार
उिके सलए बन्धक के ननबन्धनों के अधीन अनज्ञ
ु ात िै और क्रकिी तत्िमय-प्रित
ृ -विधध द्िारा िर्जित नि ं िै )
प्रनतिाद के विरुद्ध बाकी क रकम के सलए िैयर्क्तक डडिी के सलए आिेदन कर िकेगा, और पिकार
िमय-िमय पर न्यायालय िे अपनी आिश्यकतानि
ु ार आिेदन कर िकेंगे और न्यायालय ऐिे आिेदन पर
या अन्यथा ऐिे ननदे श दे िकेगा जैिे िि ठीक िमझे ।

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अनि
ु च
ू ी
बन्धक िम्पवि का िणवन
िंख्यांक 6
वििय के सलए अस्न्तम डििी (आदे श 34 का ननयम 5)
(शीषिक)

इि िाद में ता0 ...............................को पाररत प्रारर्म्भक डडिी की और ता0 .........................के


अनतररक्त आदे शों को (यहद कोई िों) और अर्न्तम डडिी के सलए िाद के ता0 .........................के आिेदन
को, पढने पर और पिकारों को िन
ु ने के पश्चात ् और यि प्रतीत िोने पर क्रक उक्त डडिी और आदे शों द्िारा
ननहदि ष्ट िंदाय प्रनतिाद द्िारा या उिकी ओर िे क्रकिी व्यर्क्त द्िारा या उक्त बन्धक का मोचन कराने के
िकदार क्रकिी अन्य व्यर्क्त द्िारा नि ं क्रकया गया िै ;
यि आदे श क्रकया जाता िै और डडिी द जाती िै क्रक पि
ू ोक्त प्रारर्म्भक डडिी में िणणित बन्धक-
िम्पवि का या उिके पयािप्त भाग का वििय कर हदया जाए और ऐिे वििय के प्रयोजनों के सलए िाद
बन्धक-िम्पवि िम्बन्धी िे िभी दस्तािेजें जो उिके कब्जे या शर्क्त में िैं न्यायालय के िमि या उि
अधधकार के िमि, र्जिे िि ननयक्
ु त करे , पेश करे गा ।
2. यि भी आदे श क्रकया जाता िै और डडिी द जाती िै क्रक ऐिे वििय िे ििल
ू ा िुआ धन
न्यायालय में जमा क्रकया जाएगा और (वििय के व्ययों को उिमें िे काटकर) िि िाद को पि ू ोक्त
प्रारर्म्भक डडिी के और क्रकन्ि ं ऐिे अनतररक्त आदे शों के अधीन, जैिे इि िाद में पाररत क्रकए गए िों,
िंदेय रकम का िंदाय करने में और ऐिी रकम का, जैिी न्यायालय इि आिेदन के खचों के िहित िाद के
ऐिे खचों की और सिविल प्रक्रिया िहित, 1908 की प्रथम अनि
ु च
ू ी के आदे श 34 के ननयम 10 के अधीन
िंदेय खचों, प्रभारों और व्ययों की बाबत िाद को शोध्य न्यायननणीत करे ननयम 11 के अधीन िंदेय
पार्श्चक ब्याज के िहित िंदाय करने में िम्यक रुप िे उपायोर्जत क्रकया जाएगा और यहद कुछ बाकी बचे
तो िि प्रनतिाद को या अन्य व्यर्क्तयों को, उिे प्राप्त करने के िकदार िों, हदया जाएगा ।

िंख्यांक 7
जिां क्रक बन्धककताव द्िारा िंदाय में व्यनतिम िोने पर परु ोबन्ध के सलए डििी पाररत की जाती िै ििां
मोचन के सलए प्रारं सिक डििी (आदे श 34 का ननयम 7--जिां लेखा सलए जाने का ननदे श क्रकया गया िै )
(शीषिक)

िाद ...................... इत्याहद की उपर्स्थनत में इि िाद के आज तार ख.......................को पेश िोने
पर यि आदे श क्रकया जाता िै और डडिी द जाती िै क्रक यि....................... को कसमश्नर के रुप में
ननम्नसलणखत लेखा लेने के सलए ननदे सशत क्रकया जाए-
(i) िादपत्र में िणणित बन्धक पर मल
ू धन और ब्याज मद्धे आज की तार ख को प्रनतिाद को जो
कुछ शोध्य िै उिका लेखा (ऐिे ब्याज की िंगणना उि दर िे की जाएगी जो मल
ू धन पर िंदेय िै या जिां
ऐिी दर ननयत न िो ििां ब्याज छि प्रनतशत प्रनतिषि की दर िे या ऐिी दर िे, जो न्यायालय यर्ु क्तयक्
ु त

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िमझे िंगणणत क्रकया जाएगा)
(ii) बन्धक िम्पवि की जो आय प्रनतिाद द्िारा या प्रनतिाद के आदे श िे या प्रनतिाद के उपयोग
के सलए क्रकिी अन्य व्यर्क्त द्िारा आज की तार ख तक प्राप्त की गई िै या जो तब प्राप्त िो िकती थी
जब िाद ने या ऐिे व्यर्क्त ने जानबझ
ू कर व्यनतिम न क्रकया िोता, उि आय का लेखा;
(iii) बन्धक प्रनतभनू त की बाबत (िाद के खचो िे सभन्न) खचो, प्रभारों और व्ययों के सलए आज की
तार ख तक प्रनतिाद द्िारा जो धन रासशयां उधचत रूप िे उपगत की गई िैं उन िबका, उन पर ब्याज
िहित, लेखा (ऐिा ब्याज पिकारों के बीच करार की गई दर िे या ऐिी दर के अभाि में उि दर िे, जो
मल
ू धन पर िंदेय िै , या ऐिी दोनों दरों के अभाि में नौ प्रनतशत प्रनतिषि की दर िे िंगणणत क्रकया जाएगा);
(iv) बन्धक-िम्पवि को प्रनतिाद के ऐिे क्रकिी कायि या लोप द्िारा, जो िम्पवि के सलए विनाशक
या स्थायी रुप िे िनतकर िै या उि पर क्रकिी भी तत्िमय-प्रिि
ृ -विधध या बन्धक-विलेख के ननबन्धनों
द्िारा अधधरोवपत कतिव्यों में िे क्रकिी का पालन करने में उिकी अिफलता िे जो िानन या नक
ु िान इि
तार ख िे पिले पिुंचा िै , उिका लेखा ।
2. यि भी आदे श क्रकया जाता िै और डडिी द जाती िै क्रक उक्त खण्ड (ii) के अधीन प्राप्त या
खण्ड (iv) के अधीनने शोध्य न्यायननणीत कोई रकम, उि पर ब्याज िहित पिले उन क्रकन्ि ं रासशयों के
प्रनत िमायोर्जत की जाएगी र्जनका िंदाय प्रनतिाद ने खण्ड (iii) के अधीन क्रकया िै और उन रासशयों में
उन पर ब्याज भी िर्म्मसलत िोगा, और यहद कुछ बाकी बचे तो उिे बन्धक धन में जोड हदया जाएगा, या,
यथार्स्थनत शोध्य न्यायननणीत मल
ू रासश पर ब्याज मद्धे प्रनतिाद को जो रकम शोध्य िै उिको घटाने के
सलए और तत्पश्चात मल
ू धन को घटाने या उन्मोधचत करने के सलए विकसलत क्रकया जाएगा ।
3. यि भी आदे श क्रकया जाता िै क्रक उक्त कसमश्नर िि लेखा, उिमें िभी न्यायिंगत मोक दे ने के
पश्चात िवु िधानि
ु ार शीघ्रता िे ता0 .............................को या उरपके पि
ू ि इि न्यायालय में प्रस्तत
ु करे गा
और कसमश्नर की ऐिी ररपोटि प्राप्त िोने पर िि ऐिे उपान्तरों के िाथ पष्ु ट और प्रनतिस्तािररत की
जाएगी जैिे क्रक िाद के पिकारों के ऐिे आिेपों पर, जो िे करें , विचार करने के पश्चात ् आिश्यक िों |
4. यि भी आदे श क्रकया जाता िै और डडिी द जाती िै क्रक-
(i) िाद ता0............................ को या उिके पि
ू ि या क्रकिी ऐिी पश्चातिती तार ख को या उिके
पि
ू ,ि र्जि तक िंदाय करने के सलए िमय न्यायालय द्िारा बढा हदया जाए, ऐिी रासश, जैिी न्यायालय
शोध्य पाए, और िाद के उन खचों के सलए जो प्रनतिाद को अधधननणीत क्रकए गए िैं........................रुपए
की रासश न्यायालय में जमा कर दे ;
(ii) ऐिे जमा कर हदए जाने पर और तत्पश्चात ् ऐिी तार ख के पि
ू ,ि जो न्यायालय ननयत करे , ऐिी
रकम जो न्यायालय िाद के ऐिे खचो की, और सिविल प्रक्रिया िंहिता, 1908 की प्रथम अनि
ु च
ू ी के आदे श
34 के ननयम 10 के अधीन िंदेय ऐिे खचो, प्रभारों और व्ययों की, बाबत शोध्य न्यायननणीत कर, ननयम
11 के अधीन िंदेय पार्श्चक ब्याज के िहित जमा कर द जाने पर, प्रनतिाद िादपत्र में िणणित बन्धक-
िम्पवि िम्बन्धी िे िभी दस्तािेजे जो उिके कब्जे या शर्क्त में िैं न्यायालय में लाएगा और ऐिी िब
दस्तािेजें िाद को या ऐिे व्यर्क्त को, र्जिे िि ननयक्
ु त करे , पररदि की जाएंगी और यहद प्रनतिाद िे
ऐिी अपेिा की जाए तो िि उक्त िम्पवि को उक्त बन्धक िे मक्
ु त करके और प्रनतिाद द्िारा या क्रकिी
ऐिे व्यर्क्त द्िारा, जो उििे व्यत्ु पन्न अधधकार के अधीन दािा करता िै या क्रकिी ऐिे व्यर्क्त द्िारा,

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र्जििे व्यत्ु पन्न अधधकार के अधीन प्रनतिाद दािा करता िै , िष्ृ ट िब विपलगमों िे रहित, और मक्
ु ि
करके तथा इि बन्धक िे या इि िाद िे जो कोई दानयत्ि उद्भत
ू िोते िैं उन िबिे मक्
ु त करके,
प्रनतिस्तान्तररत या प्रनत अन्तररत करे गा और यहद उििे ऐिी अपेिा की जाए तो िि िाद को उक्त
िम्पवि का ननबािध और शा।त्रपण
ू कब्जा पररदि करे गा ।
5. यि भी आदे श क्रकया जाता िै और डडिी द जाती िै क्रक पि
ू ोक्त रुप में रकम जमा करने में
व्यनतिम िोने पर प्रनतिाद न्यायालय िे इि अंनतम डडिी के सलए आिेदन कर िकेगा क्रक तत्पश्चात ् िाद
इिके िाथ उपाबद्ध अनि
ु च
ू ी में िणणित बंधक िंपवि का मोचन कराने के िब अधकारों िे पण
ू त
ि : वििर्जित
और परु ोबंधधत िोगा और यहद उििे ऐिी अपेिा की जाए तो िि प्रनतिाद को उक्त िंपवि पर ननबािध और
शांनतपण
ू ि कब्जा पररदि करे गा और पिकार िमय-िमय पर न्यायालय रो अिश्यकतानि
ु ार आिेदन कर िके
गे और न्यायालय ऐिे आिेदन पर या अन्यथा ऐिे ननदे श दे िकेगा जैिे क्रक िि ठीक िमझे ।

अनि
ु च
ू ी
बन्धक-िम्पवि का िणवन
िंख्यांक 7क
जिां क्रक बन्धककताव द्िारा िंदाय में व्यनतिम िोने पर वििय के सलए डििी पाररत की जाती िै ििां मोचन
के सलए प्रारं सिक डििी (आदे श 34 का ननयम 7---जिां लेखा सलए जाने का ननदे श क्रकया गया िै )
(शीषवक)

िाद ................................इत्याहद की उपर्स्थनत में इि िाद के आज तार ख....................... को


पेश िोने पर यि आदे श क्रकया जाता िै और डडिी द जाती िै क्रक यि...................... को कसमश्नर के रुप
में ननम्नसलणखत लेखा लेने के सलए ननदे सशत क्रकया जाए-
(i) िादपत्र में िणणित बन्धक पर मल
ू धन और ब्याज मद्धे आज की तार ख को प्रनतिाद को जो
कुछ शोध्य िै उिका लेखा ऐिे ब्याज की िंगणना उि दर िे की जाएगी जो मल
ू धन पर िंदेय िै या जिां
ऐिी दर ननयत न िो ििां ब्याज छि प्रनतशत प्रनतिषि की दर िे या ऐिी अन्य दर िे, जो न्यायालय
यर्ु क्तयक्
ु त िमझे, िंगणणत क्रकया जाएगा);
(ii) बन्धक-िंपवि की जो आय प्रनतिाद द्िारा या प्रनतिाद के आदे श िे या प्रनतिाद के उपयोग के
सलए क्रकिी अन्य व्यर्क्त द्िारा आज की तार ख तक प्राप्त की गई िै या जो तब प्राप्त िो िकती थी जब
प्रनतिाद ने या ऐिे व्यर्क्त ने जानबझ
ू कर व्यनतिम न क्रकया िोता, उि आय का लेखा;
(iii) बन्धक प्रनतभनू त की बाबत (िाद के खचों िे सभन्न) खचों प्रभारों और व्ययों के सलए आज की
तार ख तक प्रनतिाद द्िारा जो धन रासशयां उधचत रूप िे उपगत की गई िैं उन िब का, उन पर ब्याज
िहित, लेखा ऐिा ब्याज पिकारों के बीच करार की गई दर िे या ऐिी दर के अभाि में उि दर िे, जो
मल
ू धन पर िंदेय िै , जो ऐिी दोनों दरों के अभाि में नौ प्रनतशत प्रनतिषि की दर िे, िंगणणत क्रकया
जाएगा);
(iv) बन्धक-िम्पनत को प्रनतिाद के ऐिे क्रकिी कायि या लोप द्िारा, जो िंपवि के सलए विनाशक
या स्थायी रुप िे िनतकर िै , या उि पर क्रकिी भी तत्िमय-प्रित
ृ -विधध द्िारा या बन्धक विलेख के

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ननबन्धनों द्िारा अधधरोवपत कतिव्यों में िे क्रकिी का पालन करने में उिकी अिफलता िे जो िानन या
नक
ु िान इि तार ख िे पिले पिुंचा िै , उिका लेखा ।
2. यि भी आदे श क्रकया जाता िै और डडिी द जाती िै क्रक उक्त खण्ड (ii) के अधीन प्राप्त या
खण्ड (iv) के अधीन शोध्य न्यायननणीत कोई रकम, उि पर ब्याज िहित, पिले उन क्रकन्ि ं रासशयों के प्रनत
िमायोर्जत की जाएगी र्जनका िंदाय प्रनतिाद ने खण्ड (iii) के अधीन क्रकया िै और र्जन रासशयो में उन
पर ब्याज भी िर्म्मसलत िोगा, और यहद कुछ बाकी बचे तो उिे बन्धक- धन में जोड हदया जाएगा या
यथार्स्थनत, शोध्य न्यायननणीत मल
ू रासश पर ब्याज मद्धे प्रनतिाद को जो रकम शोध्य िै उिको घटाने के
सलए और तत्पश्चात ् मल
ू धन को घटाने या उन्मोधचत करने के सलए विकसलत (डेबबट) क्रकया जाएगा ।
3. यि भी आदे श क्रकया जाता िै क्रक उक्त कसमश्नर िि लेखा, उिमें िभी न्यायिंगत मोक दे ने के
पश्चात ् िवु िधानि
ु ार शीघ्रता िे ता0 ...........................को या उिके पि
ू ि इि न्यायालय में प्रस्तत
ु करे गा
और कसमश्नर की ऐिी ररपोटि प्राप्त िोने पर िि ऐिे उपान्तरों के िाथ पष्ु ट और प्रनतिस्तािररत की
जाएगी जैिे क्रक िाद के पिकारों के ऐिे आिेपों पर, जो िे करें , विचार करने के पश्चात ् आिश्यक िों ।
4. यि भी आदे श क्रकया जाता िै और डडिी द जाती िै क्रक-
(i) िाद ता0............................ को या उिके पि
ू ि या क्रकिी ऐिी पश्चातिती
् तार ख को या उिके
पि
ू ,ि र्जि तक िंदाय करने के सलए िमय न्यायालय द्िारा बढा हदया जाए, ऐिी रासश, जैिी न्यायालय
शोध्य पाए, और िाद के उन खचों के सलए जो प्रनतिाद को अधधननणीत क्रकए गए िैं.............. रुपए की
रासश न्यायालय में जमा कर दें ;
(ii) ऐिे जमा कर हदए जाने पर और तत्पश्चात ् ऐिी तार ख के पि
ू ,ि जो न्यायालय ननयत करे ऐिी
रकम जो न्यायालय िाद के ऐिे खचों की, और सिविल प्रक्रिया िंहिता, 1908 की प्रथम अनि
ु च
ू ी के आदे श
34 के ननयम 10 के अधीन िंदेय ऐिे खचों, प्रभारों और व्ययों की बाबत शोध्य न्यायननणीत करे ननयम
11 के अधीन िंदेय पार्श्चक ब्याज के िहित जमा कर द जाने पर, प्रनतिाद िादपत्र में िणणित बन्धक-
िम्पवि िम्बन्धी िे िभी दस्तािेजें जो उिके कब्जे या शर्क्त में िैं न्यायालय में लाएगा, और ऐिी िब
दस्तािेजों िाद को या ऐिे व्याबत को, र्जिे िि ननयक्
ु त करें , पररदि की जाएंगी, और यहद प्रनतिाद िे
ऐिी अपेिा की जाए तो िि उक्ि िम्पवि को उक्त बन्धक िे मक्
ु ि करके और प्रनतिाद द्िारा या क्रकिी
ऐिे व्यर्क्त द्िारा जो उििे व्यत्ु पन्न अधधकार के अधीन दािा करता िै , या क्रकिी ऐिे व्यर्क्त द्िारा,
र्जििे व्यत्ु पन्न अधधकार के अधीन प्रनतिाद दािा करता िै , िष्ृ ट िब विपलगमों िे रहित और मक्
ु त करके
प्रनतिस्तान्तररत या प्रनत अन्तररत करे गा और यहद उििे ऐिी अपेिा की जाए तो िि िाद को उक्त
िम्पवि पर ननबािध और शांनतपण
ू ि कब्जा पररदि करे गा ।
5. यि भी आदे श क्रकया जाता िै और डडिी की जाती िै क्रक पि
ू ोक्त रुप में रकम जमा करने में
व्यनतिम िोने पर प्रनतिाद न्यायालय िे बन्धक-िम्पवि के वििय के सलए अर्न्तम डडिी के सलए आिेदन
कर िकेगा, और ऐिा आिेदन क्रकए जाने पर बन्धक-िम्पवि के या उिके पयािप्त भाग के वििय का ननदे श
हदया जाएगा और ऐिे वििय के प्रयोजनों के सलए प्रनतिाद बन्धक-िम्पवि िम्बन्धी िे िभी दस्तािेजें जो
उिके कब्जे या शर्क्त में िैं न्यायालय के िमझ या उि अधधकार के िमि, र्जिे िि ननयक्
ु त करे , पेश
करे गा ।
6. यि भी आदे श क्रकया जाता िै और डडिी द जाती िै क्रक ऐिे वििय िे ििल
ू िुआ धन

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न्यायालय में जमा क्रकया जाएगा और (वििय के व्ययों को उिमें िे काटकर) िि प्रनतिाद को इि डडिी के
अधीन और ऐिे क्रकन्ि ं अनतररक्त आदे शों के अधीन, जैिे इि िाद में पाररत क्रकए जाएं िंदेय रकम का
िंदाय करने में और ऐिी रकम का जैिी न्यायालय िाद के खचों की ओर सिविल प्रक्रिया िंहिता, 1908 की
प्रथम अनि
ु च
ू ी के आदे श 34 के अधीन िंदेय ऐिे खचो, प्रभारों और व्ययों की बाबत प्रनतिाद को शोध्य
न्यायननणीत करे , ननयम 11 के अधीन िंदेय पार्श्चक ब्याज के िहित िंदाय करने में िम्यक रुप िे
उपयोर्जत क्रकया जाएगा और यहद कुछ बाकी बचे तो िि िाद को या अन्य व्यर्क्तयों को, जो उिे प्राप्त
करने के िकदार िों, हदया जाएगा ।
7. यि भी आदे श क्रकया जाता िै और डडिी द जाती िै क्रक यहद ऐिे वििय िे ििल ू िुआ धन
प्रनतिाद को पि
ू ोक्त रुप में िंदेय रकम के पण
ू ि िंदाय के सलए पयािप्त न िो तो प्रनतिाद (जिां क्रक ऐिा
उपचार उिके सलए बन्धक के ननबन्धनों के अधीन प्राप्त िै और क्रकिी तत्स्यम-प्रित
ृ -विधध द्िारा िर्जित
नि ं िै ) िाद के विरुद्ध बाकी की रकम के सलए िैयर्क्तक डडिी के सलए आिेदन कर िकेगा और पिकार
िमय-- िमय पर न्यायालय िे अिश्यकतानि
ु ार आिेदन कर िकेंगे और न्यायालय ऐिे आिेदन पर या
अन्यथा ऐिे ननदे श दे िकेगा जैिे िि ठीक िमझे ।

अनि
ु च
ू ी
बन्धक िम्पवि का िणवन
िंख्यांक 7ख
जिां बन्धककताव द्िारा िंदाय में व्यस्ततिम करने पर परु ोबन्ध के सलए डििी पाररत की जाती िै ििां
मोचन के सलए प्रारस्म्िक डििी
(आदे श 34 का ननयम 7----जिां न्यायालय शोध्य रकम घोवषत करता िै ।)
(शीषवक)

िाद ........................... इत्याहद की उपर्स्थनत में इि िाद के आज ता0....................... को पेश


िोने पर, यि घोवषत क्रकया जाता िै क्रक िादपत्र में िणणित बन्धक पर प्रनतिाद को आज ता0 .................
तक िंगणणत शोध्य रकम मल
ू धन मद्धे रुपए की रासश, उक्त मल
ू धन पर ब्याज
मद्धे..............................रुपए की रासश (िाद के खचों िे सभन्न) उन खचों, प्रभारों और व्ययों के सलए जो
बन्धक प्रनतभनू त की बाबत प्रनतिाद ने उधचत रुप में उपगत क्रकए िैं उन पर ब्याज के
िहित,......................... रुपए की रासश, और इि िाद के जो खचे प्रनतिाद को अधधननणीत क्रकए गए िै
उन खचों के सलए.........................रुपए की रासश, कुल समलाकर........................रुपए की रासश िोती िै ।
2. यि आदे श क्रकया जाता िै और डडिी द जाती िै क्रक---
(i) िाद ता0................................. को या उिके पि
ू ि या क्रकिी ऐिी पश्चातिती
् तार ख को या
उिके पि
ू ,ि र्जि तक िंदाय के सलए िमय न्यायालय द्िारा बढ़ा हदया जाए,................... रुपए की उक्त
रासश न्यायालय में जमा करे दे ;
(ii) ऐिे जमा कर हदए जाने पर और तत्पश्चात ् ऐिी तार ख िे पि
ू ि जो न्यायालय ननयत करे ऐिी
रकम, जो न्यायालय िाद के ऐिे खचाि की, और सिविल प्रक्रिया िंहिता, 1908 की प्रथम अनि
ु च
ू ी के आदे श

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34 के ननयम 10 के अधीन िंदेय खचो, प्रभारों और व्ययों की, बाबत शोध्य न्यायननणीत करे , ननयम 11
के अधीन िंदेय पार्श्चक ब्याज के िहित, जमा कर द जाने पर, प्रनतिाद िादपत्र में िणणित बन्धक-
िम्पवि िम्बन्धी ऐिी में िैं न्यायालय में लाएगा और ऐिी िब दस्तािेजें िाद को या ऐिे व्यर्क्त को,
र्जिे िि ननयक्
ु त करे , पररदि की जाएंगी, और यहद प्रनतिाद िे ऐिी अपेिा की जाए तो िि उक्त िम्पवि
को उक्त बन्धक िे मक्
ु ि और प्रनतिाद द्िारा या क्रकिी ऐिे व्यर्क्त द्िारा, जो उिमें व्यत्ु पन्न अधधकार
के अधीन दािा करता िै , या क्रकिी ऐिे व्यर्क्त द्िारा, र्जिे व्यत्ु पन्न अधधकार के अधीन प्रनतिाद दािा
करता िै , िष्ु ट िब विपलंगमों िे रहित और मक्
ु त करके तथा इि बन्धक या इि िाद िे जो कोई दानयत्ि
उद्भत
ू िोते िैं उन िबिे मक्
ु त करके प्रनतिस्तान्तररत या प्रनत अन्तररत करे गा, और यहद उििे ऐिी
अपेिा की जाए तो िि िाद को उक्त िम्पवि का ननबािध और शार्न्तपण
ू ि कब्जा पररदि करे गा ।
3. यि भी आदे श क्रकया जाता िै और डडिी द जाती िै क्रक पि
ू ोक्त रुप में रकम जमा करने में
व्यनतिम िोने पर प्रनतिाद न्यायालय िे इि अर्न्तम डडिी के सलए आिेदन कर िकेगा क्रक तत्पश्चात ्
िाद इिके िाथ उपाबद्ध अनि
ू च
ू ी में िणणित बन्धक िम्पवि का मोचन कराने के िब अधधकारों िे पण
ू त
ि :
वििर्जित और परु ोबर्न्धत िोगा और यहद उििे ऐिी अपेिा की जाए तो िि प्रनतिाद को उक्त िंपवि का
ननबािध और शांनतपण
ू ि कब्जा पररदि करे गा और पिकार िमय-िमय पर न्यायालय िे अिश्यकतानि
ु ार
आिेदन कर िके गे और न्यायालय ऐिे आिेदन पर या अन्यथा ऐिे ननदे श दे िकेगा जैिे िि ठीक िमझे

अनि
ु च
ू ी
बन्धक िम्पवि का िणवन
िंख्यांक 7ग
जिां बन्धककताव द्िारा िंदाय में व्यनतिम िोने पर वििय के सलए डििी पाररत की जाती िै ििां मोचन के
सलए प्रारस्म्िक डििी
(आदे श 34 का ननयम 7--- जिां न्यायालय शोध्य रकम घोवषत करता िै ।)
(शीषवक)

िाद ........................... इत्याहद की उपर्स्थनत में इि िाद के आज ता0 ....................को पेश िोने
पर, यि घोवषत क्रकया जाता िै क्रक िादपत्र में िणणित बन्धक पर प्रनतिाद को आज ता0.........................
.तक िंगणणत शोध्य रकम मल
ू धन मद्धे रुपए की रासश, उक्त मल
ू धन पर ब्याज
मद्धे.......................रुपए की रासश (िाद के खचों िे सभन्न) उन खचों, प्रभारों और व्ययों के सलए, जो
बन्धक प्रनतभनू त की बाबत प्रनतिाद ने उधचत रुप में उपगत क्रकए िैं उन पर ब्याज
िहित,.......................... रुपए की रासश और िाद के जो खचे प्रनतिाद को अधधननणीत क्रकए गए िैं उन
खचों के सलए....................... रुपए की रासश, कुल समलाकर.....................रुपए की रासश िोती िै ।
2. यि आदे श क्रकया जाता िै और डडिी द जाती िै क्रक-
(i) िाद ता0 ..........................को या उिके पि
ू ,ि या क्रकिी ऐिी पश्चात्िती तार ख को या उिके
पि
ू ि र्जि तक िंदाय के सलए िमय न्यायालय द्िारा बढा हदया जाए.........................रुपए की उक्त रासश

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न्यायालय में जमा करे दे ;
(ii) ऐिे जमा कर हदए जाने पर और तत्पश्चात ् ऐिी तार ख के पि
ू ि जो न्यायालय ननयत करे ऐिी
रकम, जो न्यायालय िाद के ऐिे खचों की, और सिविल प्रक्रिया िंहिता, 1908 की प्रथम अनि
ु च
ू ी के आदे श
34 के ननयम 10 के अधीन िंदेय ऐिे खचों, प्रभारों और व्ययों की बाबत शोध्य न्यायननणीत करे ननयम
11 के अधीन िंदेय पार्श्चक ब्याज के िहित, जमा कर द जाने पर प्रनतिाद िादपत्र में िणणित बन्धक-
िम्पवि िम्बन्धी िे िभी दस्तािेजें जो उिके कब्जे या शर्क्त में िैं, न्यायालय में लाएगा और ऐिी
दस्तािेजें िाद को या ऐिे व्यर्क्त को, र्जिे िि ननयक्
ु त करे , पररदि की जाएंगी, और यहद प्रनतिाद िे
ऐिी अपेिा की जाए तो िि उक्त िम्पवि को उक्त बन्धक िे मक्
ु त करके और प्रनतिाद द्िारा, या क्रकिी
ऐिे व्यर्क्त द्िारा जो उििे व्यत्ु पन्न अधधकार के अधीन दािा करता िो, या क्रकिी ऐिे व्यर्क्त द्िारा
र्जििे छलन अधधकार के अधीन प्रनतिाद दािा करता िै , िष्ृ ट िब विपलगमों िे रहित और मक्
ु ि करके
प्रनतिस्तान्तररत या प्रनत अन्तररत करे गा, और यहद उििे ऐिी अपेिा की जाए तो िि िाद को उक्त
िम्पवि पर ननबािध और शार्न्तपण
ू ि कब्जा पररदि करे गा ।
3. यि भी आदे श क्रकया जाता िै और डडिी द जाती िै क्रक पि
ू ोक्त रुप में रकम जमा करने में
व्यनतिम िोने पर प्रनतिाद न्यायालय िे बन्धक-िम्पनत के वििय के सलए अर्न्तम डडिी के सलए आिेदन
कर िकेगा, और ऐिा आिेदन क्रकए जाने पर बन्धक-िम्पवि के या उिके पयािप्त भाग के वििय के सलए
ननदे श हदया जाएगा और ऐिे वििय के प्रयोजनों के सलए प्रनतिाद बन्धक-िम्पवि िंबध
ं ी िे िभी दस्तािेजें
जो उिके कब्जे या शर्क्त में िै न्यायालय के िमि या उि अधधकार के िमि, र्जिे िि ननयक्
ु त करे ,
पेश करे गा ।
4. यि भी आदे श हदया जाता िै क्रक और डडिी द जाती िै क्रक ऐिे वििय िे ििल ू िुआ धन
न्यायालय में जमा क्रकया जाएगा और वििय के व्ययों को उिमें िे काटकर) िि प्रनतिाद को इि डडिी के
अधीन और ऐिे क्रकन्ि ं अनतररक्त आदे शों के अधीन, जैिे इि िाद में पाररत क्रकए जाएं, िंदेय रकम का
िंदाय करने में और ऐिी रकम का, जैिी न्यायालय िाद के ऐिे खचों की, और सिविल प्रक्रिया िंहिता,
1908 की प्रथम अनि
ु च
ू ी के आदे श 34 के ननयम 10 के अधीन िंदेय ऐिे खचों, प्रभारों और व्ययों की,
बाबत प्रनतिाद को शोध्य न्यायननणीत करे , ननयम 11 के अधीन िंदेय पार्श्चक ब्याज के िहित िंदाय
करने में िम्यक् रुप िे उपयोर्जत क्रकया जाएगा और यहद कुछ बाकी बचे तो िि िाद को या अन्य
व्यर्क्तयों को, जो उिे प्राप्त करने के िकदार िों, हदया जाएगा ।
5. यि भी आदे श क्रकया जाता िै और डडिी द जाती िै क्रक यहद ऐिे वििय िे ििल ू िुआ धन
प्रनतिाद को पि
ू ोक्त रूप में िंदेय रकम के पण
ू ि िंदाय के सलए पयािप्त न िो तो प्रनतिाद (जिां ऐिा
उपचार उिके सलए बन्धक के ननबन्धनों के अधीन प्राप्त िै और क्रकिी तत्िमय-प्रिि
ृ -विधध द्िारा िर्जित
नि ं िै ) िाद के विरुद्ध बाकी की रकम के सलए िैयर्क्तक डडिी के सलए आिेदन कर िकेगा और पिकार
िमय-- िमय पर न्यायालय िे अिश्यकतानि
ु ार आिेदन कर िकेंगे और न्यायालय ऐिे आिेदन पर या
अन्यथा ऐिे ननदे श दे िकेगा जैिे िि ठीक िमझे ।

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अनि
ु च
ू ी
बन्धक-िम्पवि का िणवन
िंख्यांक 7घ
बन्धककताव द्िारा िंदाय में व्यनतिम िोने पर मोचन िाद में परु ोबन्ध के सलए अस्न्तम डििी
(आदे श 34 का ननयम 8)
(शीषवक)

इि िाद में ता0 ............................... को पाररत प्रारं सभक डडिी को और ता0 ......................के
अनतररक्त आदे शों को (यहद कोई िों) और अंनतम डडिी के सलए प्रनतिाद के ता0 ..........................के
आिेदन को पढने पर और पिकारों को िन
ु ने के पश्चात ् और यि प्रतीत िोने पर क्रक उक्त डडिी और
आदे शों द्िारा ननहदिष्ट िंदाय िाद द्िारा या उिकी ओर िे क्रकिी व्यर्क्त द्िारा या उक्त बन्धक का मोचन
कराने के िकदार क्रकिी अन्य व्यर्क्त द्िारा नि ं क्रकया गया िै ;
यि आदे श क्रकया जाता िै और डडिी द जाती िै क्रक िाद और उििे व्यवु न्न अधधकार के द्िारा या
अधीन दािा करने िाले िब व्यर्क्त पि
ू ोक्त प्रारं सभक डडिी में िणणित िम्पवि के और उिमें मोचन के िब
अधधकारों िे पण
ू त
ि : वििर्जित और परु ोबर्न्धत िों और क्रकए जाते िैं 1
[और (यहद िाद का उक्त बन्धक-
िम्पवि पर कब्जा िै तो िाद उक्त बन्धक-िम्पनत का ननबािध और शांनतपण
ू ि कब्जा प्रनतिाद को पररदि
करे गा । ]
2. यि भी घोवषत क्रकया जाता िै क्रक िादपत्र में िणणित उक्त बन्धक िे या इि िाद िे उद्भत
ू जो
भी दानयत्ि िाद का आज तक िै िि िब इिके द्िारा उन्मोधचत और ननिािवपत क्रकया जाता िै ।

िंख्यांक 7ि.
बन्धककताव दारा िंदाय में व्यनतिम िोने पर मोचन िाद में वििय के सलए अस्न्तम डििी
(आदे श 34 का ननयम 8)
(शीषवक)

इि िाद में ता0 ...........................को पाररत प्रारं सभक डडिी को और ता0 ...........................के
अनतररक्त आदे शों को (यहद कोई िों) और अंनतम डडिी के सलए प्रनतिाद के ता0 ........................ के
आिेदन को पकने पर और पिकारों को िन
ु ने के पश्चात ् और यि प्रतीत िोने पर क्रक उक्त डडिी और
आदे शों द्िारा ननहदिष्ट िंदाय िाद द्िारा या उिकी ओर िे क्रकिी व्यर्क्त द्िारा या उक्त बंधक मो मोचन
कराने के िकदार क्रकिी अन्य व्यर्क्त द्िारा नि ं क्रकया गया िै ;

1. अनपेक्षित शब्द काट हदए जाएं ।

यि आदे श क्रकया जाता िै और डडिी द जाती िै क्रक पि


ू ोक्त प्रारं सभक डडिी में िणणित बन्धक-
िम्पवि या उिके पयािप्त भाग का वििय कर हदया जाए और ऐिे वििय के प्रयोजनों के सलए प्रनतिाद

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बन्धक-िम्पवि िंबध
ं ी िे िभी दस्तािेजें जो उिके कब्जे या शर्क्त में िैं न्यायालय के िमि या उि
अधधकार के िमि, र्जिे िि ननयक्
ु ि करे , पेश करे गा ।
2. यि भी आदे श क्रकया जाता िै और डडिी द जाती िै क्रक ऐिे वििय िे ििल ू िुआ धन
न्यायालय में जमा क्रकया जाएगा और (वििय के व्ययों को उिमें िे काटकर) िि प्रनतिाद को पि
ू ोक्त
प्रारं सभक डडिी के अधीन और ऐिे क्रकन्ि ं अनतररक्त आदे शों के अधीन जैिे इि िाद में पाररत क्रकए गए िों,
िंदेय रकम का िंदाय करने में , और ऐिी रकम का, जैिी न्यायालय इि आिेदन के खचों के िहित िाद के
ऐिे खचों की और सिविल प्रक्रिया िंहिता, 1908 की प्रथम अनि
ु च
ू ी के आदे श 34 के ननयम 10 के अधीन
िंदेय ऐिे खचों, प्रभारों और व्ययों की, बाबत प्रनतिाद को शोध्य न्यायननणीत करे ननयम 11 के अधीन
िंदेय पार्श्चक ब्याज के िहित, िंदाय करने में िम्यक् रुप िे उपयोर्जत क्रकया जाएगा और यहद कुछ
बाकी बचे तो िि िाद को या अन्य व्यर्क्तयों, को जो उिे प्राप्त करने के िकदार िों, हदया जाएगा ।

िंख्यांक 7च
परु ोबन्ध, वििय या मोचन के िाद में जिां बन्धककताव डििी की रकम दे दे ििां अंनतम डििी
(आदे श 34 का ननयम 3, 5 और 8)
(शीषवक)
यि िाद और आगे विचार के सलए आज ता0............................................ को पेश िोने पर और
यि प्रतीत िोने पर क्रक बन्धककताि ने या.............................ने, जो मोचन कराने का िकदार व्यर्क्त िै ,
िि िब रकम, जो ता0 .........................की प्रारं सभक डडिी के अधीन बन्धकदार को शोध्य िै ,
ता0.........................को न्यायालय में जमा कर द िै;
यि आदे श क्रकया जाता िै और डडिी द जाती िै क्रक-
(i) बन्धकदार पि
ू ोक्त प्रारं सभक डडिी में िणणित िम्पवि का प्रनतिस्तान्तरण विलेख बन्धककताि
(या यथार्स्थनत,........................के र्जिने िम्पवि का मोचन कराया िै ) पि में ननष्पाहदत कर दे या
1

अपने को शोध्य रकम की असभस्िीकृनत उिके पि में ननष्पाहदत कर दे ;


(ii) बन्धकदार िाद में की बन्धक-िम्पवि िंबध
ं ी िे िभी दस्तािेजें जो उिके कब्जे या शर्क्त में िै
न्यायालय में लाए ।
यि भी आदे श क्रकया जाता िै और डडिी द जाती िै क्रक बन्धकदार द्िारा प्रनतिस्तान्तरण विलेख
या असभस्िीकृनत पि
ू ोक्त र नत िे ननष्पाहदत क्रकए जाने पर,-
(i)................ रुपए की उक्त रासश बन्धकदार को न्यायालय में िे दे द जाए;
(ii) न्यायालय में लाए गए उक्त विलेख और दस्तािेजें न्यायालय में िे बन्धककताि को 2(या िंदाय
करने िाले व्यर्क्त को पररदि कर द जाएं और यहद बन्धकदार िे ऐिी अपेिा की जाए तो िि बन्धककताि
(या िंदाय करने िाले अन्य व्यर्क्त) के खचे पर उक्त प्रनतिस्तान्तरण विलेख या असभस्िीकृनत
3

को..............................के उपरर्जस्रार के कायािलय में रर्जस्र कृत करने के सलए ििमत िो; तथा
1. अनपेक्षित शब्द काट हदए जाएं ।
2. अनपेक्षित शब्द काट हदए जाएं ।
3. अनपेक्षित शब्द काट हदए जाएं ।

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(iii) 1(यहद, यथार्स्थनत, बन्धकदार, िाद या प्रनतिाद बन्धक-िम्पनत पर कब्जा रखता िै तो)
बन्धकदार पि
ू ोक्त प्रारं सभक डडिी में िणणित बन्धक-िम्पनत पर कब्जा बन्धककताि को (या यथापि
2
ू ोक्त
व्यर्क्त को, र्जिने िंदाय क्रकया िै ) तरु न्त पररदत कर दे ।

िंख्यांक 8
बन्धक-िम्पवि के वििय के पश्चात ् बाकी रकम के सलए बन्धककताव के विरुद्ध िैयस्ततक डििी
(आदे श 34 का ननयम 6 और 8क
(शीषवक)

बन्धकदार (यथार्स्थनत, िाद या प्रनतिाद ) के आिेदन को पढने पर और िाद में ता0…………………….


को पाररत अंनतम डडिी को पढने पर, और न्यायालय का यि िमाधान िो जाने पर क्रक पि
ू ोक्त अंनतम
डडिी के अधीन क्रकए गए वििय के शद्
ु ध आगम......................... रुपए थे और िे ता0 ………………………..को
न्यायालय में िे आिेदक को दे हदए गए िैं और पि
ू ोक्त डडिी के अधीन अब उिकी शोध्य……………………..रुपए
बाकी िै ;
और न्यायालय को यि प्रतीत िोता िै क्रक उक्त रकम स्ियं बन्धककताि (यथार्स्थनत िाद या
प्रनतिाद ) िे िैध रुप िे ििल
ू य िै , अत: यि आदे श क्रकया जाता िै और डडिी द जाती िै क्रक-
बन्धककताि (यथार्स्थनत, िाद या प्रनतिाद ) बन्धकदार यथार्स्थनत, प्रनतिाद या िाद ) को ..................... -
रुपए की उक्त रासश, ता0.............................. (न्यायालय में िे उि िंदाय की तार ख र्जिके प्रनत ऊपर
ननदे श क्रकया गया िै ) िे उक्त रासश की ििल
ू की तार ख तक छि प्रनतशत प्रनतिषि की दर िे अनतररक्त
ब्याज और इि आिेदन के खचों के िहित, दे ।

िंख्यांक 9
परु ोबन्ध या वििय के सलए प्रारं सिक डििी

[िाद ............................................................... पिला बन्धकदार,


बनाम
पिला प्रनतिाद -...................................................... बन्धककताि,
दि
ू रा प्रनतिाद ......................................................दि
ू रा बन्धकदार । ]

(आदे श 34 के ननयम 2 और 4)
(शीषवक)

िाद ......................... आहद की उपर्स्थनत में इि िाद के आज ता0....................को पेश िोने पर,
यि घोवषत क्रकया जाता िै क्रक िादपत्र में िणणित बन्धक पर िाद की आज ता0 ............................तक
िंगणणत शोध्य रकम मल
ू धन मद्धे........................... रुपए की रासश, उक्त मल
ू धन पर ब्याज

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मद्धे................... रुपए की रासश (िाद के खचों िे सभन्न) उन खचों, प्रभारों और व्ययों के सलए, जो
बन्धक प्रनतभनू त की बाबत िाद ने उपगत क्रकए िैं, उन पर ब्याज िहित............ रुपए की रासश, और िाद
के जो खचे िाद को अधधननणीत ट्टक्रकए। गए िैं उन खचों के सलए................ -रुपए की रासश, कुल
समलाकर................ -रुपए की रासश िोती िै |
(यहद दि
ू रे प्रनतिाद को अपने बन्धक को बाबत बन्धक- धन िाद की तार ख पर िंदेय िो गया िै
तो दि
ू रे प्रनतिाद को उिके बन्धक पर शोध्य रकम की बाबत भी ऐिी ि घोषणाएं सलखी जाएंगी ।)
2. यि भी घोवषत क्रकया जाता िै क्रक िाद अपने को शोध्य रकम का िंदाय दि
ू रे प्रनतिाद िे पि
ू ि
पाने का िकदार िै | 1
[या (यहद कई पर्श्चक बन्धकदार िैं तो) इिके विसभन्न पिकार अपने को शोध्य
रासशयों के िंदाय के सलए ननम्नसलणखत िमानि
ु ार िकदार िैं िैं---]
3. यि आदे श क्रकया जाता िै और डडिी द जाती िै क्रक--
(i) (क) िाद को शोध्य..........................रुपए की उक्त रासश प्रनतिाद या उनमें िे कोई एक
ता0................. को या उिके पि
ू ि या ऐिी क्रकिी पश्चातिती
् तार ख को या उिके पि
ू ,ि र्जि तक िंदाय के
सलए िमय न्यायालय द्िारा बढा हदया गया िै न्यायालय में जमा कर दे ; तथा
(ख) दि
ू रे प्रनतिाद को शोध्य.........................रुपए की उक्त रासश पिला प्रनतिाद
ता0.................... को या उिके पि
ू ि या ऐिी क्रकिी पश्चातिती
् तार ख को या उिके पि
ू ,ि र्जि तक िंदाय
के सलए िमय न्यायालय द्िारा बढा हदया गया िै , न्यायालय में जमा कर दे ; तथा
(ii) िाद को शोध्य घोवषत रासश खण्ड (i) (क) में विहित र नत िे प्रनतिाहदयों द्िारा या उनमें िे
क्रकिी एक द्िारा जमा कर द जाने पर और तत्पश्चात ् ऐिी तार ख के पि
ू ,ि जैिी न्यायालय ननयत करे ,
ऐिी रकम, जैिी न्यायालय िाद के खचाि की बाबत और सिविल प्रक्रिया िंहिता, 1908 की प्रथम अनि
ु च
ू ी
के आदे श 34 के अधीन ननयम 10 के अधीन िंदेय ऐिे खचों, प्रभारों और व्ययों की बाबत शोध्य
न्यायननणीत करे , ननयम 11 के अधीन िंदेय पार्श्चक ब्याज के िहित जमा कर द जाने पर िाद िादपत्र
में िणणित बन्धक-िम्पवि िम्बन्धी िे िभी दस्तािेजें जो उिके कब्जे या शर्क्त में िैं, न्यायालय में लाएगा,
और ऐिी िब, दस्तािेज........................ प्रनतिाद को (र्जिने रासश जमा की िै ) या ऐिे व्यर्क्त को, र्जिे
िि ननयक्
ु त करे , पररदि की जाएंगी, और यहद िाद िे ऐिी अपेिा की जाए तो िि उक्त िम्पवि को उक्त
बन्धक िे मक्
ु त करके और िाद द्िारा या क्रकिी ऐिे व्यर्क्त द्िारा, जो उििे त्यत्ु पन्न अधधकार के
अधीन दािा करता िै , या क्रकिी ऐिे व्यर्क्त द्िारा र्जििे त्यत्ु पन्न अधधकार के अधीन िाद दािा करता िै ,
िष्ृ ट िब विपलंगमों िे रहित और मक्
ु त करके और इि बन्धक िे या इि िाद िे जो कोई दानयत्ि उद्भत

िोते िैं उन िबिे मक्
ु त करके प्रनतिस्तान्तररत या प्रनत अन्तररत करे गा और यहद उििे ऐिी अपेिा की
जाए तो........................... प्रनतिाद को र्जिने रासश जमा की िै ) उक्त िम्पवि का ननबािध और शांनतपण
ू ि
कब्जा पररदि करे गा ।
(यहद पिला प्रनतिादी दि
ू रे प्रनतिादी को शोध्य पाई गई या घोवषत रकम दे दे ता िै तो ऐिी िी
घोषणाएं. ऐिे फेरफार के िहित जैिे उिके बन्धक की प्रकृनत को दे खते िुए आिश्यक िों, सलखी जाएंगी ।)
4. यि भी आदे श क्रकया जाता िै और डडिी द जाती िै क्रक िाद को शोध्य रकम के यथापि ू ोक्त
िंदाय में व्यनतिम िोने पर िाद न्यायालय िे इि अंनतम डडिी के सलए आिेदन कर िकेगा क्रक-
(i) 2[िशति वििय द्िारा बन्धक या विलिण बन्धक की दशा में र्जिमें क्रक बन्धक विलेख में

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उपबर्न्धत एकमात्र उपचार वििय नि ं बर्पक परु ोबंध िै ] प्रनतिाद इिके िाथ उपाबद्ध अनि
ु च
ू ी में िणणित
बन्धक-िम्पवि का मोचन कराने के िब अधधकारों िे, िंयक्
ु तत: और पथ
ृ कत: तथा पण
ू त
ि : वििर्जित और
परु ोबंधधत िोंगे और यहद उनिे अपेिा की जाए क्रक उक्त िम्पवि का ननबािध और शांनतपण
ू ि कब्जा िाद को
पररदि करें गे; अथिा
(ii) 3[क्रकिी अन्य बन्धक की दशा में बन्धक-िम्पवि का या उिके पयािप्त भाग का वििय कर
हदया जाएगा और िाद ऐिे वििय के प्रयोजनों के सलए िाद बन्धक-िम्पवि िम्बन्धी िे िभी दस्तािेजें जो
उिके कब्जे या शर्क्त में िैं न्यायालय के िमि या उि अधधकार के िमि, र्जिे िि न्यायालय ननयक्
ु त
करे , पेश करे गा; तथा

1. अनपेक्षित शब्द काट हदए जाए ।


2. अनपेक्षित शब्द काट हदए जाए ।
3. अनपेक्षित शब्द काट हदए जाए ।
1. अनपेक्षित शब्द काट हदए जाए ।
2. अनपेक्षित शब्द काट हदए जाए ।

(iii) 1[उि दशा में र्जिमें क्रक ऊपर के खण्ड 4(ii) के अधीन वििय का आदे श क्रकया जाता िै ] ऐिे
वििय िे ििल
ू िुआ धन न्यायालय में जमा क्रकया जाएगा और (उिमें िे वििय के व्यय को काटकर) िि
िाद को, इि डडिी के अधीन और ऐिे क्रकन्ि ं अनतररक्त आदे शों के, जैिे इि िाद में पाररत क्रकए गए िों,
अधीन िंदेय रकम का िंदाय करने में और ऐिी क्रकिी रकम का, जैिी न्यायालय िाद के खचों की ओर
सिविल प्रक्रिया िंहिता, 1908 की प्रथम अनि
ु च
ू ी के आदे श 34 के ननयम 10 के अधीन िंदेय ऐिे खचों,
प्रभारों और व्ययों की बाबत शोध्य न्यायननणीत करे , ननयम 11 के अधीन िंदेय ऐिे पार्श्चक ब्याज के
िहित, िंदाय करने में िम्यक रुप िे उपयोर्जत क्रकया जाएगा और यहद कुछ बाकी बचे तो िि दि
ू रे
प्रनतिाद को शोध्य रकम का िंदाय करने में उपयोर्जत क्रकया जाएगा और, यहद क्रफर भी कुछ बाकी बचे तो
िि पिले प्रनतिाद को या अन्य व्यर्क्तयों को, जो उिे प्राप्त करने के िकदार िों, हदया जाएगा; तथा
(iv) यहद ऐिे वििय िे ििल ू िुआ धन िाद और दि ू रे प्रनतिाद को शोध्य रकम के पण
ू ि िंदाय के
सलए पयािप्त न िो तो, यथार्स्थनत, िाद या दि
ू रा प्रनतिाद या िे दोनों (जिां ऐिा उपचार उनके अपने
बन्धकों के ननबन्धनों के अधीन अनज
ु ात िै और क्रकिी तत्िमय-प्रिि
ृ विधध द्िारा िर्जित नि ं िै ) पिले
प्रनतिाद के विरुद्ध उि रकम के सलए, जो िमश: उनको शोध्य रि गई िो, िैयर्क्तक डडिी के सलए
आिेदन कर िकेंगे ।
5. यि भी आदे श क्रकया जाता िै और डडिी द जाती िै क्रक -
(क) यहद दि
ू रा प्रनतिाद इि िाद में िि रकम न्यायालय में जमा कर दे ता िै र्जिके बारे में यि
न्यायननणीत क्रकया गया िै क्रक िि िाद को शोध्य िै , क्रकन्तु पिला प्रनतिाद उक्त रकम के िंदाय में
व्यनतिम करता िै तो दि
ू रा प्रनतिाद न्यायालय िे यि आिेदन क्रक िाद का बन्धक मेरे फायदे के सलए
जीवित रखा जाए और (उिी र नत िे र्जििे क्रक ऊपर के खण्ड (4) के अधीन िाद आिेदन कर िकता था
इि अंनतम डडिी के सलए आिेदन कर िकेगा क्रक-

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2
[(1)] पिला प्रनतिाद इिके िाथ उपाबद्ध अनि
ु च
ू ी में िणणित बन्धक-िम्पवि के मोचन के िब
अधधकारों िे तत्पश्चात ् पण
ू त
ि : वििर्जित और परु ोबंधधत िोगा, और यहद उििे ऐिी अपेिा की जाए तो िि
दि
ू रे प्रनतिाद को उक्त िम्पवि का ननबािध और शांनतपण
ू ि कब्जा पररदि करे गा; अथिा
3
[(ii)] बन्धक-िम्पवि का या उिके पयािप्त भाग का वििय क्रकया जाएगा और ऐिे वििय के
प्रयोजनों के सलए दि
ू रा प्रनतिाद बन्धक-िम्पवि िम्बन्धी िे िभी दस्तािेजें जो उिके कब्जे या शर्क्त में
िैं, न्यायालय के िमि या उि अधधकार के िमि, र्जिे िि न्यायालय ननयक्
ु त करे , पेश करे गा; तथा
(ख) (यहद दि
ू रे प्रनतिाद के आिेदन पर परु ोबन्ध के सलए ऐिी अर्न्तम डडिी पाररत की जाती िै
तो) िाद के बन्धक िे या दि
ू रे प्रनतिाद के बन्धक िे या इि िाद िे उद्भत
ू पिले प्रनतिाद के िब
दानयत्िों के बारे में यि िमझा जाएगा क्रक िे उन्मोधचत और ननिािवपत कर हदए गए िैं ।
6. 4(जिांक्रक ऊपर के खण्ड 5 के अधीन वििय का आदे श हदया गया िै , ििां) यि भी आदे श क्रकया
जाता िै और डडिी द जाती िै क्रक---
(i) ऐिे वििय िे ििल
ू िुआ धन न्यायालय में जमा क्रकया जाएगा और (वििय के व्ययों को उिमें
िे काटकर) िि िबिे पिले िाद के बन्धक की बाबत दि ू रे प्रनतिाद द्िारा द गई रकम का और उििे
िम्बंधधत िाद के खचों का िंदाय करने में और क्रकिी रकम का, जैिी न्यायालय उक्त रकम पर पार्श्चक
ब्याज की बाबत शोध्य न्यायननणीत करे , िंदाय करने में िम्यक् रुप िे उपयोर्जत क्रकया जाएगा और यहद
कुछ बाकी बचे तो िि दि
ू रे प्रनतिाद को अपने बन्धक की बाबत इि डडिी के अधीन और ऐिे क्रकन्ि ं
अनतररक्त आदे शों के, जो पाररत क्रकए जाएं, अधीन शोध्य न्यायननणीत की गई रकम का िंदाय करने में
और ऐिी रकम का, जो न्यायालय इि िाद के ऐिे खचों की और सिविल प्रक्रिया िंहिता, 1908 की प्रथम
अनि
ु च
ू ी के आदे श 34 के ननयम 10 के अधीन िंदेय ऐिे खचों, प्रभारों और व्ययों की बाबत शोध्य न्याय
ननणीत करे , ननयम 11 के अधीन िंदेय ऐिे पार्श्चक ब्याज के िहित, िंदाय करने में उपयोर्जत क्रकया
जाएगा, और यहद क्रफर भी कुछ बाकी बचे तो िि पिले प्रनतिाद को या ऐिे अन्य व्यर्क्तयों को, जो उिे
प्राप्त करने के िकदार िों, हदया जाएगा; तथा
(ii) यहद ऐिे वििय िे ििल ू िुआ धन िाद के बन्धक या दि ू रे प्रनतिाद के बन्धक की बाबत
शोध्य रकम का पण ू ि िंदाय करने के सलए पयािप्त न िो तो दि
ू रा प्रनतिाद (जिां ऐिा उपचार उिके बन्धक
के ननबन्धनों के अधीन उिके सलए अनज्ञ
ु ात िै और क्रकिी तत्िमय-प्रिि
ृ -विधध द्िारा िर्जित नि ं िै ) पिले
प्रनतिाद के विरुद्ध बाकी की रकम के सलए िैयर्क्तक डडिी के सलए आिेदन कर िकेगा ।
7. यि भी आदे श क्रकया जाता िै और डडिी द जाती िै क्रक पिकार िमय-िमय पर इि न्यायालय
िे आिश्यकतानि
ु ार आिेदन कर िकेंगे और न्यायालय ऐिे आिेदन पर या अन्यथा ऐिे ननदे श दे िकेगा
जैिे िि ठीक िमझे ।

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अनि
ु च
ू ी
बन्धक-िंपवि का िणवन
िंख्यांक 10
पवू िवक बन्धक के मोचन के सलए और पास्श्चक बन्धक पर परु ोबन्ध या वििय के सलए प्रारस्म्िक डििी

[िाद ............................................. दि
ू रा बन्धकदार,]
बनाम
पिला प्रनतिाद .............................. बन्धककताि,
दि
ू रा प्रनतिाद ................................................ पिला बन्धकदार ।

(आदे श 34 के ननयम 2. 4 और 7)
(शीषवक)

िाद ......................... इत्याहद की उपर्स्थनत में इि िाद के आज........................... को पेश िोने


पर, यि घोवषत क्रकया जाता िै क्रक िाद पत्र में िणणित बन्धक पर दि
ू रे प्रनतिाद को आज ता0
.......................तक िंगणणत शोध्य रकम, मल
ू धन मद्धे ......................................रुपए की रासश, उक्त
मल
ू धन पर ब्याज मद्धे ...................................रुपए की रासश, (िाद के खचों िे सभन्न) उन खचों, प्रभारों
और व्ययों के सलए, जो बन्धक प्रनतभनू त की बाबत दि
ू रे प्रनतिाद ने उधचत रूप में उपगत क्रकए िैं, उन पर
ब्याज के िहित रुपए की रासश, और इि िाद के जो खचे दि
ू रे प्रनतिाद को अधधननणीत क्रकए गए िैं उन
खचों के सलए..................... रुपए की रासश कुल समलाकर............. रुपए की रासश िोती िै ।
(यहद िादी को अपने बन्धक की बाबत बन्धक- धन िाद की तारीख पर िंदेय िो गया िो तो उिे
पिले प्रनतिादी िे शोध्य रकम की बाबत िी ऐिी िी घोषणाएाँ सलखी जाएंगी)
2. यि भी घोवषत क्रकया जाता िै क्रक दि
ू रा प्रनतिाद अपने को शोध्य रकम का िंदाय िाद िे पि
ू ि
पाने का िकदार िै 1[या (यहद कई पार्श्चक बन्धकदार िों तो) इिके विसभन्न पिकार अपने को शोध्य
रासशयों के िंदाय के ननम्नसलणखत िमानि
ु ार िकदार िै-

1. अनपेक्षित शब्द काट हदए जाएं ।

3. यि आदे श क्रकया जाता िै और डडिी द जाती िै क्रक-


(i) (क) दि
ू रे प्रनतिाद को शोध्य ...........................................रुपए की उक्त रासश िाद या पिला
प्रनतिाद या उनमें िे कोई एक ता0...................................... को या उिके पि
ू ि या ऐिी क्रकिी पश्चातिती

तार ख को या उिके पि
ू ,ि र्जि हदन तक िंदाय के सलए िमय न्यायालय द्िारा बढा हदया गया िै ,
न्यायालय में जमा कर दें , तथा
(ख) िाद को शोध्य............................ रुपए की उक्त रासश पिला प्रनतिाद ता0
........................... को या उिके पि
ू ,ि या ऐिी क्रकिी पश्चात्िती तार ख को या उिके पि
ू ,ि र्जि तक िंदाय

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के सलए िमय न्यायालय द्िारा बढा हदया गया िै , न्यायालय में जमा कर दे ; तथा
(ii) दि
ू रे प्रनतिाद को शोध्य घोवषत रासश खण्ड (i) क में विहित र नत िे िाद और पिले प्रनतिाद
या उनमें िे क्रकिी एक द्िारा जमा कर द जाने पर और तत्पश्चात ् ऐिी तार ख के पि
ू ,ि जो न्यायालय
ननयत करे , ऐिी रकम, जो न्यायालय िाद के ऐिे खचों की और सिविल प्रक्रिया िंहिता, 1908 की प्रथम
अनि
ु च
ू ी के आदे श 34 के ननयम 10 के अधीन िंदेय खचो, प्रभारों और व्ययों की बाबत शोध्य न्यायननणीत
करे , ननयम 11 के अधीन िंदेय पार्श्चक ब्याज के िहित, जमा कर द जाने पर, दि
ू रा प्रनतिाद िाद पत्र
में िणणित बन्धक-िम्पवि िम्बन्धी िे िभी दस्तािेजें जो उिके कब्जे या शर्क्त में िै न्यायालय में लाएगा
और ऐिी िब दस्तािेजें िाद या प्रनतिाद को र्जिने भी रासश जमा की िै ) या ऐिे व्यर्क्त को, र्जिे िि
ननयक्
ु त करे , पररदि की जाएंगी और यहद दि
ू रे प्रनतिाद िे अपेिा की जाए तो िि उक्त िम्पवि को उक्त
बन्धक िे मक्
ु ि करके और दि
ू रे प्रनतिाद द्िारा या क्रकिी ऐिे व्यर्क्त द्िारा, जो उििे त्यत्ु पन्न अधधकार
के अधीन दािा करता िै या क्रकिी ऐिे व्यर्क्त द्िारा, र्जििे व्यत्ु पन्न अधधकार के अधीन प्रनतिाद दािा
करता िै , िष्ृ ट िब विपलगमों िे रहित और मक्
ु त करके और इि बन्धक िे या इि िाद िे जो कोई
दानयत्ि उद्भत
ू िोते िैं उन िबिे मक्
ु त करके प्रनतिस्तान्तररत या प्रनत अन्तररत करे गा और यहद उििे
अपेिा की जाए तो उक्त िम्पवि का ननबािध और शार्न्तपण
ू ि कब्जा िाद या पिले प्रनतिाद को र्जिने भी
रासश जमा की िै ) पररदि करे गा ।
(यहद पिला प्रनतिादी िादी को शोध्य पाई गई या घोवषत रकम दे दे ता िै तो ऐिी िी घोषणाएं ऐिे
फेरफार के िहित, जैिे क्रक उिके बन्धक की प्रकृनत को दे खते िुए आिश्यक िों, सलखी जाएंगी) ।
4. यि भी आदे श क्रकया जाता िै और डडिी द जाती िै क्रक दि ू रे प्रनतिाद को शोध्य रकम के
यथापि
ू ोक्त िंदाय में व्यनतिम िोने पर दि
ू रा प्रनतिाद न्यायालय िे िाद के खाररज क्रकए जाने के सलए या
इि अर्न्तम डडिी के सलए आदे श कर िकेगा क्रक-
(i) (िशति वििय द्िारा बन्धक या विलिण बन्धक की दशा में र्जिमें क्रक बन्धक विलेख में
1

उपबंधधत एकमात्र उपचार वििय नि ं बर्पक परु ोबंध िै ) िाद और पिला प्रनतिाद िंयक्
ु तत: और पथ
ृ कत:
इिके िाथ उपाबद्ध अनि
ु च
ू ी में िणणित बन्धक-िम्पवि के मोचन कराने के िब अधधकारों िे तत्पश्चात ्
िंयक्
ु तत: और पथ
ृ कत: तथा पण
ू त
ि : वििर्जित और परु ोबंधधत िोंगे, और यहद उनिे ऐिी अपेिा की जाए तो
उक्त िम्पवि का ननबािध और शार्न्तपण
ू ि कब्जा दि
ू रे प्रनतिाद को पररदि करे गा; अथिा
(ii) 2(क्रकिी अन्य बन्धक की दशा में ) बन्धक-िम्पवि का या उिके पयािप्त भाग का वििय कर
हदया जाएगा और दि
ू रा प्रनतिाद ऐिे वििय के प्रयोजनों के सलए बन्धक-िम्पवि िम्बन्धी िे िभी
दस्तािेजें जो उिके कब्जे या शर्क्त में िैं न्यायालय के िमि या उि अधधकार के िमि, र्जिे िि
न्यायालय ननयक्
ु त करे , पेश करे गा, तथा

1. अनपेक्षित शब्द काट हदए जाए ।


2. अनपेक्षित शब्द काट हदए जाए ।

(iii) 1[उि दशा में र्जिमें क्रक ऊपर के खण्ड 4(ii) के अधीन वििय का आदे श क्रकया जाता िै ऐिे
वििय िे ििल
ू िुआ धन न्यायालय में जमा क्रकया जाएगा और (उिमें िे वििय के व्ययों को काटकर) िि

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दि
ू रे प्रनतिाद को इि डडिी के अधीन और ऐिे क्रकन्ि ं अनतररक्त आदे शों के, जैिे इि िाद में पाररत क्रकए
जाएं, अधीन िंदेय रकम का िंदाय करने में और ऐिी क्रकिी रकम का जैिी न्यायालय िाद के खचों की
और सिविल प्रक्रिया िंहिता, 1908 की प्रथम अनि
ु च
ू ी के आदे श 34 के ननयम 10 के अधीन िंदेय ऐिे
खचों, प्रभारों और व्ययों की बाबत शोध्य न्याय ननणीत करे , ननयम 11 के अधीन िंदेय पार्श्चक ब्याज के
िहित, िंदाय करने में िम्यक रुप िे उपयोर्जत क्रकया जाएगा और यहद कुछ बाकी बचे तो िि िाद को
शोध्य रकम का िंदाय करने में उपयोर्जत क्रकया जाएगा और यहद क्रफर भी कुछ बाकी बचे तो िि पिले
प्रनतिाद को या अन्य व्यर्क्तयों को, जो उिे प्राप्त करने के िकदार िों हदया जाएगा; तथा
(iv) यहद ऐिे वििय िे ििल ू िुआ धन दि ू रे प्रनतिाद और िाद को शोध्य रकम के पण ू ि िंदाय के
सलए पयािप्त न िो तो, यथार्स्थनत, दि
ू रा प्रनतिाद या िाद या िे दोनों (जिां क्रक ऐिा उपचार उनके अपने
बन्धकों के ननबन्धनों के अधीन अनज्ञ
ु ात िै और क्रकिी तत्िमय-प्रिि
ृ -विधध द्िारा िर्जित नि ं िै ) पिले
प्रनतिाद के विरुद्ध उि रकम के सलए, जो िमश: उनको शोध्य रि गई िो, िैयर्क्तक डडिी के सलए
आिेदन कर िकेंगे ।
5. यि भी आदे श क्रकया जाता िै और डडिी द जाती िै क्रक---
(क) यहद िाद इि िाद में िि रकम न्यायालय में जमा कर दे ता िै र्जिके बारे में न्यायननणीत
क्रकया गया िै क्रक िि दि
ू रे प्रनतिाद को शोध्य िै क्रकन्तु पिला प्रनतिाद उक्त रकम का िंदाय करने में
व्यनतिम करता िै तो िाद न्यायालय िे यि आिेदन क्रक दि
ू रे प्रनतिाद का बन्धक मेरे फायदे के सलए
जीवित रखा जाए और [उिी र नत िे र्जििे क्रक ऊपर के खण्ड (4) के अधीन दि
ू रा प्रनतिाद आिेदन कर
िकता था] इि अर्न्तम डडिी के सलए आिेदन कर िकेगा क्रक-
2
[(i) पिला प्रनतिाद इिके िाथ उपाबद्ध अनि
ु च
ू ी में िणणित बन्धक-िम्पवि के मोचन के िब
अधधकारों िे तत्पश्चात ् पण
ू त
ि : वििर्जित और परु ोबर्न्धत िोगा और यहद उििे ऐिी अपेिा की जाए तो िि
िाद की उक्त िम्पवि का ननबािध और शार्न्तपण
ू ि कब्जा पररदि करे गा; अथिा

3
[(ii) बन्धक-िम्पवि का या उिके पयािप्त भाग का वििय क्रकया जाएगा और ऐिे वििय के
प्रयोजनों के सलए िाद बन्धक-िम्पनत िम्बन्धी िे िभी दस्तािेजें जो उिके कब्जे या शर्क्त में िैं
न्यायालय के िमि या उि अधधकार के िमि, र्जिे िि न्यायालय ननयक्
ु त करे , पेश करे गा;] तथा
(ख) (यहद दि
ू रे प्रनतिाद के आिेदन कर परु ोबंध के सलए ऐिी अनतंम डडिी पाररत की जाती िै तो)
िाद के बन्धक िे या दि
ू रे प्रनतिाद के बन्धक िे या इि िाद िे उद्भत
ू पिले प्रनतिाद के िब दानयत्िों
के बारे में यि िमझा जाएगा क्रक िे उन्मोधचत और ननिािवपत कर हदए गए िैं ।
6. (जिां क्रक ऊपर के खण्ड 5 के अधीन वििय का आदे श हदया गया िै ििां) यि भी आदे श क्रकया
जाता िै और डडिी द जाती िै क्रक---
(i) ऐिे वििय िे ििल
ू िुआ धन न्यायालय में जमा क्रकया जाएगा और (वििय के व्ययों को उिमें
िे काटकर) िि िबिे पिले दिू रे प्रनतिाद के बन्धक की बाबत िाद द्िारा द गई रकम का, और उििे
िंबधं धत िाद के खचों का िंदाय करने में और ऐिी क्रकिी रकम का, जैिी न्यायालय उक्त रकम पर
पार्श्चक ब्याज की बाबत शोध्य न्यायननणीत करे , िंदाय करने में िम्यक रुप िे उपयोर्जत क्रकया जाएगा
और यहद कुछ बाकी बचे तो िि िाद को अपने बन्धक की बाबत इि डडिी के अधीन और ऐिे क्रकन्ि ं

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अनतररक्त आदे शों के जो पाररत क्रकए जाएं, अधीन शोध्य न्यायननणीत की गई रकम का िंदाय करने में
और ऐिी रकम का, जो न्यायालय इि िाद के ऐिे खचों की और सिविल प्रक्रिया िंहिता, 1908 की प्रथम
अनि
ु च
ू ी के आदे श 34 के ननयम 10 के अधीन िंदेय ऐिे खचों, प्रभारों और व्ययों की बाबत शोध्य न्याय
ननणीत करे , ननयम 11 के अधीन िंदेय ऐिे पार्श्चक ब्याज के िहित, िंदाय करने में उपयोर्जत क्रकया
जाएगा और यहद क्रफर भी कुछ बाकी बचे तो िि पिले प्रनतिाद को या ऐिे अन्य व्यर्क्तयों को, जो उिे
प्राप्त करने के िकदार िों, िंदि क्रकया जाएगा; तथा
(ii) यहद ऐिे वििय िे ििल ू िुआ धन दि ू रे प्रनतिाद के बन्धक या िाद के बन्धक की बाबत
शोध्य रकम का पण ू ि िंदाय करने के सलए पयािप्त न िो तो दि ू रा प्रनतिाद (जिां क्रक ऐिा उपचार उिके
बन्धक के ननबन्धनों के अधीन उिके सलए अनज्ञ
ु ात िै और क्रकिी तत्िमय-प्रिि
ृ -विधध द्िारा िर्जित नि ं िै )
पिले प्रनतिाद के विरुद्ध बाकी की रकम के सलए िैयर्क्तक डडिी के सलए आिेदन कर िकेगा ।
7. यि भी आदे श क्रकया जाता िै और डडिी द जाती िै क्रक पिकार िमय-िमय पर इि न्यायालय
िे आिश्यकतानि
ु ार आिेदन कर िकेंगे और न्यायालय ऐिे आिेदन पर या अन्यथा ऐिे ननदे श दे िकेगा
जैिे िि ठीक िमझे ।

1. अनपेक्षित शब्द काट हदए जाए ।


2. अनपेक्षित शब्द काट हदए जाए ।
3. अनपेक्षित शब्द काट हदए जाएं ।

अनि
ु च
ू ी
बन्धक-िम्पवि का िणवन
िंख्यांक 11
वििय के सलए प्रारस्म्िक डििी

[िाद ............................... अनब


ु ध
ं कदार या व्यत्ु पन्न बंधकदार;
बनाम
पिला प्रनतिाद ........................... बन्धककिाि,
दि
ू रा प्रनतिाद ..................... मल
ू बन्धकदार ।]

(आदे श 34 का ननयम 4)
(शीषवक)

िाद ...................................इत्याहद की उपर्स्थनत में इि िाद के आज............................को पेश


िोने पर, यि घोवषत क्रकया जाता िै क्रक दि
ू रे प्रनतिाद को उिके बन्धक पर आज तार ख........................
तक िंगणणत शोध्य रकम, मल
ू धन मद्धे. रुपए की रासश, उक्त मल
ू धन पर ब्याज मद्धे .......................

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रुपए की रासश (िाद के खचों िे सभन्न) उन खचों, प्रभारों और व्ययों के सलए जो बन्धक प्रनतभनू त की बाबत
िैं उन पर ब्याज राहित............................. रुपए की रासश, और िाद के जो खचे दि
ू रे प्रनतिाद को
अधधननणीत क्रकए गए िैं उन खचों के सलए.............................. रुपए की रासश, कुल
समलाकर......................... रुपए की रासश िोती िै |
(िादी को उिके बन्धक की बाबत दि
ू रे प्रनतिादी िे शोध्य रकम की बाबत ऐिी िी घोषणाएं सलखी
जाएंगी ।)
2. यि आदे श क्रकया जाता िै और डडिी द जाती िै क्रक--
(i) दि
ू रे प्रनतिाद को शोध्य रुपए की उक्त रासश पिला प्रनतिाद तार ख ........................ को या
उिके पि
ू ि या ऐिी क्रकिी पश्चातिती
् तार ख को या उिके पि
ू ,ि र्जि हदन तक िंदाय के सलए िमय
न्यायालय द्िारा बढ़ा हदया गया िै , न्यायालय में जमा कर दे ।
(िादी को शोध्य रकम की बाबत ऐिी िी घोषणाएं सलखनी िोंगी. ऐिी रकम का िंदाय करने के
सलए दि
ू रा प्रनतिादी स्ितंत्र िोगा |)
(ii) दि
ू रे प्रनतिाद को शोध्य घोवषत रासश खण्ड 2(i) में विहित र नत िे पिले प्रनतिाद द्िारा जमा
कर द जाने पर और तत्पश्चात ् ऐिी तार ख के पि
ू ,ि जो न्यायालय ननयत करे , ऐिी रकम जो न्यायालय
िाद के ऐिे खचों की, और सिविल प्रक्रिया िंहिता, 1908 की प्रथम अनि
ु च
ू ी के आदे श 34 के ननयम 10
के अधीन िंदेय खचों, प्रभारों और व्ययों की बाबत शोध्य न्यायननणीत करे , ननयम 11 के अधीन िंदेय
पार्श्चक ब्याज के िहित, जमा कर द जाने पर िाद और दि
ू रा प्रनतिाद िादपत्र में िणणित बन्धक िम्पवि
िम्बन्धी िे िभी दस्तािेजें जो उिके कब्जे या शर्क्त में िै , न्यायालय में लाएगा और (उन दस्तािेजों को
छोडकर जो अनब
ु न्धक के ि िम्बन्ध में िो) ऐिी िब दस्तािेजें पिले प्रनतिाद या ऐिे व्यर्क्त को र्जिे
िि ननयक्
ु त करे , पररदि की जाएंगी, और यहद दि
ू रे प्रनतिाद िे अपेिा की जाए तो िि उक्ि िम्पवि को
उक्त बन्धक िे मक्
ु त करके और दि
ू रे प्रनतिाद द्िारा या क्रकिी ऐिे व्यर्क्त द्िारा, जो उििे व्यत्ु पन्न
अधधकार के अधीन दािा करता िै , या क्रकिी ऐिे व्यर्क्त द्िारा, र्जििे व्यत्ु पन्न अधधकार के अधीन िि
दािा करता िै , िष्ृ ट िब विपलगमों िे रहित और मक्
ु ि करके और इि बन्धक िे या इि िाद िे जो
दानयत्ि उद्भत
ू िोते िैं उन िबिे मक्
ु ि करके पिले प्रनतिाद को प्रनतिस्तान्तररत या प्रनत अन्तररत करे गा,
और यहद उििे अपेिा की जाए, तो िि उक्त िम्पवि। का ननबािध और शानतपण
ू ि कब्जा पिले प्रनतिाद को
पररदि करे गा; तथा
(iii) दि
ू रे प्रनतिाद को शोध्य रकम पिले प्रनतिाद द्िार न्यायालय में जमा की जाने पर िाद
अपने को शोध्य घोवषत रासश, िाद के क्रकन्ि ं पश्चातिती
् खचों के, और सिविल प्रक्रिया िंहिता, 1908 की
प्रथम अनि
ु च
ू ी के आदे श 34 के ननयम 10 के अधीन िंदेय ऐिे अन्य खचों, प्रभारों और व्ययों के ननयम
11 के अधीन िंदेय ऐिे पार्श्चक ब्याज िहित, अपने को हदए जाने के सलए आिेदन कर िकेगा और यहद
कुछ बाकी बचे तो िि तब दि
ू रे प्रनतिाद को हदया जाएगा, और यहद न्यायालय में जमा की गई रकम
िाद को शोध्य रासश के पण
ू ि िंदाय के सलए पयािप्त न िो तो िाद (यहद ऐिा उपचार बन्धक के ननबन्धनों
द्िारा उिके सलए अनज्ञ
ु ात िै और क्रकिी तत्िमय-प्रिि
ृ -विधध द्िारा िर्जित नि ं िै ) दि
ू रे प्रनतिाद के
विरुद्ध बाकी की रकम के सलए िैयर्क्तक डडिी के सलए आिेदन कर िकेगा |
3. यि भी आदे श क्रकया जाता िै और डडिी द जाती िै क्रक यहद दि
ू रा प्रनतिाद , िाद को शोध्य

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न्यायननणीत रकम इि िाद में न्यायालय में जमा कर दे ता िै तो िाद िब दस्तािेजें न्यायालय में लाएगा
इत्याहद, इत्याहद [जैिा क्रक खण्ि 2 के उपखण्ि (ii) में िै ]
4. यि भी आदे श क्रकया जाता िै और डडिी द जाती िै क्रक पिले और दि
ू रे प्रनतिाद द्िारा पि
ू ोक्त
र नत िे जमा करने में व्यनतिम िोने पर िाद न्यायालय िे वििय की अंनतम डडिी के सलए आिेदन कर
िकेगा और ऐिा आिेदन क्रकए जाने पर बन्धक-िम्पवि या उिके पयािप्त भाग के वििय का ननदे श हदया
जाएगा और ऐिे वििय के प्रयोजनों के सलए िाद और दि
ू रा प्रनतिाद बन्धक-िम्पवि िम्बन्धी िे िभी
दस्तािेजें जो उिके कब्जे या शर्क्त में िैं न्यायालय के िमि या ऐिे अधधकार के िमि, र्जिे िि
ननयक्
ु त करे , पेश करे गा ।
5. यि भी आदे श क्रकया जाता िै और डडिी द जाती िै क्रक ऐिे वििय िे ििल
ू िुआ धन
न्यायालय में जमा क्रकया जाएगा और (वििय के व्ययों को उिमें िे काटकर) िि िबिे पिले िाद को
उक्त खण्ड (i) में विननहदि ष्ट शोध्य रकम का और सिविल प्रक्रिया िंहिता, 1908 की प्रथम अनि
ु च
ू ी के
आदे श 34 के ननयम 10 के अधीन िंदेय िाद के खचों और अन्य प्रभारों और व्ययों का ननयम 11 के
अधीन िंदेय पार्श्चक ब्याज िहित, िंदाय करने में िम्यक् रुप िे उपयोर्जत क्रकया जाएगा और यहद कुछ
बाकी बचे तो िि दि
ू रे प्रनतिाद को शोध्य रकम का िंदाय करने में उपयोर्जत क्रकया जाएगा और यहद क्रफर
भी कुछ बाकी बचे तो िि पिले प्रनतिाद को या ऐिे अन्य व्यर्क्तयों को जो उिे प्राप्त करने के िकदार
िों, हदया जाएगा ।
6. यि भी आदे श क्रकया जाता िै और डडिी द जाती िै क्रक यहद ऐिे वििय िे ििल ू िुआ धन
िाद को और दिू रे प्रनतिाद को िंदेय रकमों का परू ा िंदाय करने के सलए पयािप्त न िो तो, (यहद ऐिा
उपचार उनके अपने बन्धकों के अधीन अनज्ञ
ु ात िै और क्रकिी तत्िमय-प्रिि
ृ -विधध द्िारा िर्जित नि ं िै )
यथार्स्थनत, िाद या दि
ू रा प्रनतिाद या िे दोनों (यथार्स्थनत) दि
ू रे प्रनतिाद या पिले प्रनतिाद के विरुद्ध
बाकी की रकम के सलए िैयर्क्तक डडिी के सलए आिेदन कर िकेंगे ।
7. यि भी आदे श क्रकया जाता िै और डडिी द जाती िै क्रक यहद दि
ू रा प्रनतिाद िाद को शोध्य
न्यायननणीत रकम इि िाद में न्यायालय में जमा कर दे ता िै क्रकन्तु पिला प्रनतिाद दि
ू रे प्रनतिाद को
शोध्य रकम का िंदाय करने में व्यनतिम करता िै तो दि
ू रा प्रनतिाद यथार्स्थनत परु ोबंध या वििय के
सलए अर्न्तम डडिी के सलए न्यायालय िे आिेदन कर िकेगा- (दि
ू रे प्रनतिादी के बन्धक की प्रकृनत के और
उिके अधीन उिे अनज्ञ
ु ात उपचारों के अनि
ु ार घोषणाएं मामल
ू ी प्ररुप में सलखी जाएंगी ।)
8. यि भी आदे श क्रकया जाता िै और डडिी द जाती िै क्रक पिकार न्यायालय िे अिश्यकतानि
ु ार
आिेदन कर िकेंगे और ऐिे आिेदन पर या अन्यथा न्यायालय ऐिे ननदे श दे िकेगा जैिे िि ठीक िमझे ।

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अनि
ु च
ू ी
बन्धक-िम्पवि का िणवन
िंख्यांक 12
सलखत की पररशद्
ु धध की डििी
(शीषवक)

यि घोवषत क्रकया जाता िै क्रक तार ख.....................की.................... उि.......................... के


पिकारों के आशय को ठीक-ठीक व्यक्ि नि ं करती िै ।
यि डडिी द जाती िै क्रक उक्त........................ की पररशद्
ु धध......................... करे ।

िंख्यांक 13
लेनदारों िे कपट करने के सलए क्रकए गए अन्तरण को अपास्त करने की डििी
(शीषवक)

यि घोवषत क्रकया जाता िै क्रक...................... और....................... के बीच क्रकया गया


तार ख............ का.................... ििां तक शन्
ू य िै जिां तक िि िाद के और प्रनतिाद के अन्य लेनदारों
के, यहद कोई िों, विरुद्ध िै ।

िंख्यांक 14
प्राइिेट न्यि
ू ेन्ि के विरुद्ध व्यादे श
(शीषवक)

प्रनतिाद .................. उिके असभकताि, िेिक और कमिकार प्रनतिाद के भख


ू ण्ड में जो उपाबद्ध
रे खांक में ख धचन्ि िे धचर्न्ित िै ईंट पकाने या पकिाने िे, जो उि ननिाि गि
ृ या बाग के र्जिके बारे में
िादपत्र में िणणित िै क्रक िाद का िै या िाद के अधधभोग में िै , स्िामी या अधधभोगी के रुप में िाद के
सलए न्यि
ू ेन्ि करने िाला िो, शाश्ितकाल के सलए अिरूद्ध रिे ।

िंख्यांक 15
परु ानी ऊंचाई िे अधधक ऊंचाई का ननमावण करने के विरुद्ध व्यादे श
(शीषवक)
प्रनतिाद ...................... उिके ठे केदार, असभकताि और कमिकार................... के अपने पररिर में
उि ऊंचाई िे अधधक ऊंचाई का, जो उिके अपने उक्त पररिर में पिले खड़े उन ननमािणों की थी जो िाल में
ि धगरा हदए गए िैं, क्रकिी गि
ृ या ननमािण का बनाया जाना ऐिे या ऐिी र नत िे चालू रखने में
शाश्ितकाल
् के सलए अिरूद्ध रिें , जैिे िे या र्जििे िाद के उक्त पररिर की णखड़क्रकयां, जो उिके प्राचीन
प्रकाशमागि िैं, अंधेर , िनतग्रस्त या बाधधत िो जाएं ।

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िंख्यांक 16
प्राइिेट मागव के उपयोग का अिरोध करने िाला व्यादे श
(शीषवक)

प्रनतिाद .................... उिके असभकताि, िेिक और कमिकार.................... गल के क्रकिी भी भाग


का, र्जिकी तल-भसू म िाद की िै , उपाबद्ध रे खांक में ख धचन्ि िे धचर्न्ित भसू म तक ठे लों, गाडडयों या
अन्य यानों के जाने या ििां िे आने के सलए रास्ते के रुप में या क्रकिी अन्य प्रयोजन के सलए उपयोग
करने या उपयोग करने की अनज्ञ
ु ा दे ने िे शाश्ितकाल
् के सलए अिरुद्ध रिे ।

िंख्यांक 17
प्रशािन-िाद में प्रारस्म्िक डििी
(शीषवक)

यि आदे श हदया जाता िै क्रक ननम्नसलणखत लेखा सलए जाएं और जांच की जाए, अथाित ्:-
लेनदार के िाद में -
1. इिका लेखा सलया जाए क्रक िाद को और मत
ृ क के अन्य िब लेनदारों को क्या शोध्य िै ।
ििीयतदारों द्िारा िादों में-
2. ििीयतकताि की विल द्िारा द गई ििीयत-िम्पदा का लेखा सलया जाए ।
ननकटतम कुल्यों द्िारा िाद में -
3. इिकी जांच की जाए और लेखा सलया क्रक ननिििीयती व्यर्क्त के ननकटतम कुपय (या ननकटतम
कुपयों में िे एक) के रुप में िाद क्रकतने का या क्रकतने अंश का, यहद कोई िो, िकदार िै ।
[डडिी में पिले पैरा के पश्चात ् जिां भी आिश्यक िो, लेनदार के िाद में ििीयतदारों, विधधना
िाररिों और ननकटतम कुपयों के सलए जांच करने और लेखा लेने के सलए आदे श हदया जाएगा । लेनदारों िे
सभन्न दािेदारों के िाद में पिले पैरा के पश्चात ् िब मामलों में लेनदारों की जांच करने और लेखा लेने के
सलए आदे श िोगा और अन्य पैराओं में िे िे, जो आिश्यक िों, प्रारर्म्भक प्ररुवपक शब्दों को छोडकर हदए
जाएंगे । आगे यि प्ररुप िैिा ि िोगा जैिा लेनदार के िाद में िोता िै । ]
4. अंत्येर्ष्ट ओर ििीयती व्ययों का लेखा ।
5. मत
ृ क की जो जंगम िम्पवि प्रनतिाद के िाथ में या उिके आदे श द्िारा या उिके उपयोग के
सलए क्रकिी अन्य व्यर्क्त के िाथ में आई िै उिका लेखा ।
6. इि बात की जांच क्रक मत
ृ क की जंगम िम्पवि का कौन-िा भाग (यहद कोई िै ) परादे य िै और
ऐिा िै र्जिका व्ययन नि ं िुआ िै ।
7. यि भी आदे श हदया जाता िै क्रक प्रनतिाद आगामी तार ख................... को या उिके पि
ू ि
न्यायालय में िे िब धनरासशयां जमा कर दे र्जनके बारे में यि पाया जाए क्रक िे उिके िाथ में आई िैं या
उिके आदे श द्िारा या उिके उपयोग के सलए क्रकिी व्यर्क्त के िाथ में आई िैं ।
8. यहद िाद के उद्दे श्यों को पनू ति के सलए 1...................... को यि आिश्यक मालम
ू िो क्रक मत
ृ क

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की जंगम िम्पवि के क्रकिी भाग का वििय कर हदया जाए तो तदनि
ु ार उिका वििय कर हदया जाए और
उिके आगम न्यायालय में जमा कर हदए जाएं ।
9. श्री च छ िाद (या कायििाि ) में ररिीिर िों और मत
ृ क के िब परादे य ऋणों और परादे य जंगम
िंपवि को प्राप्त और ििल
ू करें और उिे................... को दे दें (और अपने कतिव्यों के िम्यक पालन के
2

सलए...... रुपए की रकम की प्रनतभनू त बन्धपत्र द्िारा दें ) ।

1. यिां उधचत अधधकार का नाम सलणखए ।


2. यिां उधचत अधधकार का नाम सलणखए ।

10. यि भी आदे श हदया जाता िै क्रक यहद मत


ृ क की जंगम िम्पवि िाद के उद्दे श्यों की पनू ति के
सलए अपयािप्त पाई जाए तो ननम्नसलणखत अनतररक्त जांच की जाए और लेखा सलया जाए, अथाित ् िै---
(क) इि बात की जांच क्रक मत
ृ क की मत्ृ यु के िमय उिके पाि कौन-िी स्थािर िम्पवि। थी या
कौन-िी स्थािर िम्पवि का िि िकदार था;
(ख) इि बात की जांच क्रक मत
ृ क की स्थािर िम्पवि या उिके क्रकिी भाग पर प्रभाि डालने िाले
कौन-िे विपलगम (यहद कोई िों) िै
(ग) यथािंभि इिका लेखा क्रक क्रकन-क्रकन विपलगमदारों को क्या-क्या शोध्य िै , और इिके अंतगित
उन विपलगमदार की पवू ििकताओं का वििरण िोगा जो इिमें आगे ननहदष्ट वििय के सलए अपनी ििमनत
दें | 11. मत
ृ क की स्थािर िम्पवि का या उिके उतने भाग का वििय जो िाद के उद्दे श्य की पनू ति के
सलए न्यायालय में पयािप्त ननधध परू करने के सलए आिश्यक िो, उन विपलगमदारों के, जो वििय के सलए
अपनी ििमनत दें , विपलगमों िे मक्
ु त रुप में और जो ऐिी ििमनत न दें उनके विपलगमों के अधीन रिते
िुए, न्यायाधीश के अनमु ोदन िे कर हदया जाए ।
12. यि आदे श हदया जाता िै क्रक ज झ स्थािर िम्पवि। के वििय का िंचालन करे गा और वििय
की शतों और िंविदाओं को..................
के अनम ु ोदन के अधीन रिते िुए तैयार करे गा और यहद कोई
1

शंका या कहठनाई पैदा िो तो उिे तय करने के सलए न्यायाधीश के पाि कागज भेजे जाएंगे ।

13. यि भी आदे श हदया जाता िै क्रक इिमें इिके पि


ू ि ननहदष्ट जाचों के प्रयोजन के सलए
2

...............................
िमाचारपत्रों में इि न्यायालय को पद्धनत के अनि
ु ार विज्ञापन कराता या क्रकिी ऐिी अन्य
र नत िे ऐिी जांच करे गा र्जिकी बाबत......................... 3यि प्रतीत िो क्रक उििे ऐिी जांचों का उपयोगी
प्रचार अधधकतम िोगा ।
14. यि आदे श हदया जाता िै क्रक तार ख...................... के पि
ू ि िे जांचें कर ल जाएं और िे लेखा
ले सलए जाएं र्जनका उपलेख ऊपर क्रकया गया िै और िे िब कायि परू े कर सलए जाएं र्जनके क्रकए जाने के
सलए आदे श हदया गया िै , और 4......................... जांचों और लेखाओं के पररणाम को और यि क्रक िब
अन्य आहदष्ट कायि परू े कर हदए गए िैं प्रमाणणत करे और अपना उि ननसमि प्रमाण-पत्र तार ख..............
को पिकारों के ननर िण के सलए तैयार रखें ।
15. अन्त में यि आदे श हदया जाता िै क्रक यि िाद (या कायििाि ) अर्न्तम डडिी करने के सलए

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तार ख....................... के सलए स्थधगत रिे ।
(इि डििी का केिल िि िाग उपयोग में लाया जाए जो विसशष्ट मामले में लागू िो)

िंख्यांक 18
ििीयतदार दारा लाए गए प्रशािन-िाद में अस्न्तम डििी
(शीषवक)

1. यि आदे श हदया जाता िै क्रक प्रनतिाद ........................... ििीयतकताि ........................... की


िम्पदा के लेखे उि बाकी की, जो उक्त प्रमाण-पत्र द्िारा उक्त प्रनतिाद रो शोध्य पाई गई
िै ,............................................ रुपए की रासश और तार ख.................................. िे
तार ख..................... तक..................... प्रनतशत प्रनतिषि की दर िे ब्याज मद्धे
.................................रुपए की रासश भी, कुल समलाकर........................ रुपए की रासश न्यायालय में
तार ख....................को या उिके पि
ू ि जमा कर दे ।
2. उक्त न्यायालय का 1........................... इि िाद में िाद और पनतिाद के खचों का विननधािरण
करे और जब उक्त खचे ऐिी विननधािररत कर हदए गए िों तब उनकी रकम न्यायालय में पि
ू ोक्त रुप में
जमा क्रकए जाने के सलए आहदष्ट................................... रुपए की उक्त रासश में िे ननम्नसलणखत र नत िे
द जाए, अथाित ्-
(क) िाद के खचे उिके अटनी (या प्ल डर) श्री........................... को और प्रनतिाद के खचे उिके
अटनी (या प्ल डर) श्री................ को हदए जाएं,
(ख) और (यहद कोई ऋण शोध्य िै तो) िाद और प्रनतिाद के खचों के उक्त िंदाय के पश्चात ्
उक्त रासश में िे अिसशष्ट रूपयों में िे उन रासशयों का जो 2.............................. के प्रमाण-पत्र
की....................................... अनि
ु च
ू ी में विसभन्न िणणित लेनदार को शोध्य पाई गई िै , उन ऋणों पर
र्जन पर ब्याज लगता िै पार्श्चक ब्याज के िहित िंदाय कर हदया जाए और ऐिे िंदाय के पश्चात ्.........
अनि
ु च
ू ी में िणणित विसभन्न ििीयतदारों को समलने िाल रकम पार्श्चक ब्याज के िहित (जो पि
ू ोक्त रुप में
ित्यावपत क्रकया जाएगा) उन्िें दे द जाए ।
3. यहद तब कुछ अिसशष्ट रिे तो िि अिसशष्ट य ििीयतदार को दे हदया जाए ।

1. यिा उधचत अधधकार का नाम सलणखए ।


2. यिा उधचत अधधकार का नाम सलणखए ।
3. यिा उधचत अधधकार का नाम सलणखए ।
4. यिां उधचत अधधकार का नाम सलणखए |

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िंख्यांक 19
जिां ननष्पादक ििीयत-िम्पदा के िंदाय के सलए िैयस्ततक रुप िे दायीं पाया गया िै ििां ििीयतदार के
प्रशािन-िाद में प्रारस्म्िक डििी
(शीषवक)

1. यि घोवषत क्रकया जाता िै क्रक प्रनतिाद , िाद को ििीयत की गई....................... रुपए की


ििीयत-िम्पदा के िंदाय के सलए िैयर्क्तक रुप िे दायी िै ।
2. यि आदे श हदया जाता िै क्रक उक्त ििीयत-िम्पदा लेखे मल
ू धन और ब्याज मद्धे जो शोध्य िै
उिका लेखा सलया जाए ।
3. यि भी आदे श क्रकया जाता िै क्रक प्रनतिाद 3
....................... के प्रमाणपत्र की तार ख के
पश्चात ्. ...............................िप्ताि के भीतर िाद को िि रकम दे दे र्जिे......................... नेमल
ू धन
और ब्याज मद्धे प्रमाणणत क्रकया िै ।
4. यि आदे श हदया जाता िै क्रक प्रनतिाद को िाद उिके िाद के खचे दे दे और यहद पिकारों में
खचों के बारे में मतभेद िो तो िे विननधािररत क्रकए जाए ।

िंख्यांक 20
ननकटतम कुल्य दारा प्रशािन-िाद में अंनतम डििी
(शीषवक)

1. उक्त न्यायालय का4..................................का िाद में िाद और प्रनतिाद के खचों को


विननधािररत करे और जब उक्त िाद के खचे ऐिे विननधािररत कर हदए जाएं तब उक्त प्रमाणपत्र द्िारा
ननिििीयती व्याित च छ की िैयर्क्तक िम्पदा लेखे उक्त प्रनतिाद िे शोध्य पाई गई बाकी
की.......................... रुपए की रासश में िे िाद को िे खचे उक्त 5.............................................
द्िारा उक्त खचों के विननधािरण के पश्चात ् एक िप्ताि के भीतर प्रनतिाद द्िारा िंदि क्रकए जाएं, और जब
प्रनतिाद के खचे विननधािररत िो जाएं तब प्रनतिाद उनकी रकम उक्त रासश में िे अपने उपयोग के सलए
रखे रिे ।
2. यि आदे श हदया जाता िै क्रक िाद और प्रनतिाद के खचों का िंदाय पि
ू ोक्त प्रकार िे करने के
पश्चात ्........................................ रुपए की उक्त रासश की अिसशष्ट रासश प्रनतिाद द्िारा ननम्नसलणखत
रुप िे िंदि और उपयोर्जत की जाए ।
(क) प्रनतिाद 1
...............................द्िारा उक्त खचों के पि
ू ोक्त रुप में विननधािरण के पश्चात ् एक
िप्ताि के भीतर उक्त अिसशष्ट रासश का तत
ृ ीयांश िाद क ख को और उिकी पत्नी ग घ को उक्त
ननिििीयती व्यर्क्त च छ की बहिन और ननकटतम कुपयों में िे एक िोने के नाते, िंदि कर दे ।
(ख) प्रनतिाद उक्त ननिििीयती व्यर्क्त च छ की माता और ननकटतम कुपयों में िे एक िोने के
नाते उक्त अिसशष्ट रासश का अन्य तत
ृ ीयांश अपने उपयोग के सलए रखे रिे ।
(ग) प्रनतिाद 2
.................................. द्िारा उक्त खचों के पि
ू ोक्त रुप िे विननधािरण के पश्चात ्

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एक िप्ताि के भीतर उक्त अिसशष्ट रासश का शेष तत
ृ ीयांश उक्त ननिििीचती व्यर्क्त च छ के भाई और
अन्य ननकटतम कुपय िोने के नाते ज झ को िंदि कर दे ।

1. यिां उधचत अधधकार का नाम सलणखए ।


2. यिा उधचत अधधकार का नाम सलणखए ।
3. यिा उधचत अधधकार का नाम सलणखए ।
4. यिा उधचत अधधकार का नाम सलणखए ।
5. यिां उधचत अधधकार का नाम सलणखए ।

िंख्यांक 21
िागीदारी के विघटन और िागीदारी के लेखा लेने के िाद में प्रारस्म्िक डििी
(शीषवक)

यि घोवषत क्रकया जाता िै क्रक भागीदार के पिकारों के आनप


ु ानतक अंश ननम्नसलणखत िैं :
यि घोवषत क्रकया जाता िै क्रक यि भागीदार तार ख............................ िे विघहटत िो जाएगी (या
विघहटत कर द गई िमिी जाएगी) और यि आदे श हदया जाता िै क्रक उिका उि हदन िे
विघटन...................... राजपत्र, इत्याहद में विज्ञावपत क्रकया जाए ।
यि आदे श हदया जाता िै क्रक......................... इि िाद में भागीदार िम्पदा और चीजबस्त का
ररिीिर िो और भागीदार के िब बि -ऋणों और दािों को, जो परादे य िों, ििल
ू े करे ।
यि आदे श हदया जाता िै क्रक ननम्नसलणखत लेखा सलए जाएं, अथाित
1. उक्त भागीदार के ितिमान जमा पािनों, िम्पवि और चीजबस्त का लेखा;
2. उक्त भागीदार के ऋणों और दानयत्िों का लेखा;
3. िाद और प्रनतिाद के बीच िुए िब लेन-दे नों और िंव्यििारों का लेखा जो इि िाद में प्रदसशित
और (क) धचह्न िे धचह्नांक्रकत र्स्थर कृत लेखाओं की अंनतम मद के पश्चात ् के िों और यि लेखा लेने में
क्रकन्ि ं पश्चातिती
् र्स्थर कृत लेखाओं में िस्तिेप न क्रकया जाए ।
यि आदे श हदया जाता िै क्रक िाद और प्रनतिाद द्िारा िादपत्र में िणणित र नत िे अब तक क्रकए
जाने िाले कारबार की गड
ु विल और व्यापार स्टाक का वििय उिके पररिर पर ि कर हदया जाए और
3

............................ ऐिे वििय के िब लाटों या इनमें िे क्रकिी के सलए आरक्षित बोल पिकारों में िे
क्रकिी के आिेदन पर ननयत कर िकेगा और दोनों पिकारों को वििय में बोल लगाने की स्ितंत्रता िोगी ।
यि आदे श हदया जाता िै क्रक तार ख......................................के पि
ू ि उक्त लेखा ले सलए जाएं और
िे िब कायि परू े कर सलए जाएं र्जनका क्रकया जाना अपेक्षित िै और 4............................ लेखाओं के
पररणाम को यि क्रक िब अन्य कायि परू े कर हदए गए िैं प्रमाणणत करे और अपना उि ननसमि प्रमाणपत्र
तार ख..........................को पिकारों के ननर िण क सलए तैयार रखे ।
अन्त में यि आदे श हदया जाता िै क्रक यि िाद अर्न्तम डडिी पाररत करने के सलए
तार ख................... के सलए स्थधगत रिे ।

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1. यिा उधचत अधधकार का नाम सलणखए ।
2. यिा उधचत अधधकार का नाम सलणखए ।
3. यिा उधचत अधधकार का नाम सलणखए ।
4. यिां उधचत अधधकार का नाम सलणखए ।

िंख्यांक 22
िागीदारी के विघटन और िागीदारी के लेखा लेने के िाद में अस्न्तम डििी
(शीषवक)

यि आदे श हदया जाता िै क्रक......................... रुपए की जो ननधध अब न्यायालय में िै िि


ननम्नसलणखत र नत िे उपयोर्जत की जाए-
1. 1..........................के प्रमाणपत्र में दजि भागीदार द्िारा शोध्य ऋणों का, जो कुल
समलाकर...................... रुपए िोते िैं िंदाय करने में ।
2. इि िाद के िब पिकारों के खचों का, जो कुल समलाकर.........................................रुपए िोते
िैं, िंदाय करने में ।
(ये खचे डडिी के तैयार क्रकए जाने के पि
ू ि असभननर्श्चत कर सलए जाने चाहिएं ।)
3. िाद को भागीदार की आर्स्तयां में उिके अंश के रुप में ............................... रुपए की रासश
का िंदाय करने में , प्रनतिाद को भागीदार की आर्स्तयां के उिके अंश के रुप में.......................... रुपए
की रासश का, जो न्यायालय में अब जमा.............. रुपए की उक्त रासश की अिसशष्ट रासश िै , िंदाय करने
में
[या, और... रुपए की उक्त रासश को शेष उक्त िाद (या प्रनतिाद ) को....................... रुपए की
उि रासश का भाधगक िंदाय करने में जो भागीदार लेखाओं की बाबत उिे शोध्य प्रमाणणत की गई िै , िंदि
क्रकया जाए ।
4. और प्रनतिाद (या िाद ) िाद (या प्रनतिाद ) को उिे शोध्य............................रुपए की उक्त
रासश की बाकी........................ रुपए की रासश जो तब भी शोध्य रि गई िो, तार ख..........................को
या उिके पि
ू ि िंदि करे ।

िंख्यांक 23
िसू म और अन्तःकालीन लािों की ििल
ू ी के सलए डििी
(शीषवक)

इिके द्िारा ननम्नसलणखत डडिी द जाती िै -


1. प्रनतिाद इिके िाथ उपाबद्ध अनि
ु च
ू ी में विननहदि ष्ट िम्पवि पर िाद का कब्जा करा दे ।

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2. प्रनतिाद उन अन्त:काल न लाभों मद्धे, जो िाद में िंर्स्थत क्रकए जाने के पि
ू ि शोध्य िो चुके
िैं........................ रुपए की रासश, ििल
ू की तार ख तक...........................प्रनतशत प्रनतिषि की दर िे उि
पर ब्याज िहित, िाद को िंदि करे ।
या
2. उन अन्तःकाल न लाभों की रकम के बारे में जांच की जाए जो िाद के िंर्स्थत क्रकए जाने के
पि
ू ि शोध्य िो चुके िैं ।
3. िाद के िंर्स्थत क्रकए जाने की तार ख िे डडिीदार को कब्जा पररदि क्रकए जाने तक) डडिीदार
को न्यायालय के माध्यम िे िच
ू ना दे कर ननणीतऋणी द्िारा कब्जे के त्याग तक) डडिी की तार ख िे तीन
िषि के अििान तक) के अन्तःकाल न लाभों की रकम के बारे में जांच की जाए ।

1. यिां उधचत अधधकार का नाम सलणखए ।

अनि
ू च
ू ी
पररसशष्ट ि:
ननष्पादन
िंख्यांक 1
इि बात का िे तक
ु दसशवत करने के सलए िच
ू ना क्रक िंदाय या िमायोजन को प्रमाखणत के रुप में तयों न
असिसलखखत कर सलया जाए ।
(आदे श 21 का ननयम 2)
(शीषवक)

प्रेवषती-
उक्त िाद की डडिी के ननष्पादन में ...........................ने इि न्यायालय िे आिेदन क्रकया िै क्रक
उि डडिी के अधीन ििल
ू य ...........................रुपए की रासश िंदि कर द / ियायोर्जत कर ल गई िै
और िि प्रमाणणत की गई असभसलणखत की जाए, अत: आपको यि िच
ू ना द जाती िै क्रक आप
इि...................... बात का िे तक
ु दसशित करने के सलए क्रक उक्त िंदाय/िमायोजन/प्रमाणणत के रुप में क्यों
न असभसलणखत क्रकया जाए ता0.................................... को इि न्यायालय के िमि उपिंजात िों ।
यि आज ता0 .....................को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा लगाकर द गई िै |
न्यायाधीश
िंख्यांक 2
आज्ञापत्र (धारा 46)
(शीषवक)

डडिीदार को िन
ु ने के पश्चात ् यि आदे श हदया जाता िै क्रक यि आज्ञापत्र......................
के.....................न्यायालय को सिविल प्रक्रिया िंहिता, 1908 की धारा 46 के अधीन इि ननदे श के िाथ

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भेजा जाए क्रक िि न्यायालय उपाबद्ध अनि
ु च
ू ी में विननहदि ष्ट िम्पवि को कुकि कर ले और ऐिे क्रकिी
आिेदन के क्रकए जाने तक उिे कुकि रखे, जो डडिी के ननष्पादन के सलए डडिीदार द्िारा क्रकया जाए ।
अनि
ु च
ू ी
ता0................................... न्यायाधीश

िंख्यांक 3
दि
ू रे न्यायालय को ननष्पादन के सलए डििी िेजने का आदे श
(आदे श 21 का ननयम 6)
(शीषवक)

उक्त िाद में डडिीदार ने यि असभकथन करते िुए क्रक.............................के .............................


न्यायालय की अधधकाररता की स्थानीय िीमाओं के अन्दर ननणीतऋणी ननिाि करता िै या उिकी िम्पवि
िै इि न्यायालय िे यि आिेदन क्रकया िै क्रक उक्त न्यायालय को प्रमाणपत्र उक्त िाद की डडिी का उक्त
न्यायालय द्िारा ननष्पादन क्रकए जाने के सलए भेजा जाए और सिविल प्रक्रिया िंहिता, 1908 के आदे श 21
के ननयम 6 के अधीन प्रमाणपत्र उक्त न्यायालय को भेजना आिश्यक और उधचत िमझा गया िै , अत: यि
आदे श हदया जाता िै क्रक...........................
डडिी की ओर ऐिे आदे श की, जो उिके ननष्पादन के सलए हदया गया िो, प्रनत के िहित और तर्ु ष्ट
न िोने के प्रमाणपत्र के िहित इि आदे श की प्रनत.........................को भेजी जाए ।
ता0 .......................................
न्यायाधीश

िंख्यांक 4
डििी की तस्ु ष्ट न िोने का प्रमाण पत्र (आदे श 21 का ननयम 6)
(शीषवक)

यि प्रमाणणत क्रकया जाता िै क्रक 19........................... के ................................. िंख्यांक िाले


िाद में इि न्यायालय की उि डडिी की, र्जिकी प्रनत इिके िाथ िंलग्र िै , तर्ु ष्ट इि न्यायालय की
अधधकाररता के अन्दर ननष्पादन द्िारा नि ं '' िुई िै ।
ता0................................. न्यायाधीश

51. यहद भाधगक तर्ु ष्ट िुई िै तो ''नि ं'' शब्द काट द र्जए और यि सलणखए क्रक क्रकतनी तर्ु ष्ट
िुई िै ।

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िंख्यांक 5
दि
ू रे न्यायलय को अंतररत डििी के ननष्पादन का प्रमाणपत्र
(आदे श 21 का ननयम 6)
(शीषिक)

िाद का पिकारों ननष्पादन ननष्पादन कौन-कौन ननष्पादन ििल


ू की मामले का हटप्पणणयां
िंख्यांक के नाम के सलए मामले आदे सशकएं खचे गई रकम ननपटारा
और उि आिेदन का ननकाल कैिे िुआ
न्यायलय की िंख्यांक गई और
काश्तकार तार ख उनकी
नाम तामील
र्जिने क्रकि-
डडिी क्रकि
पाररत के तार ख को
थी िुई
1 2 3 4 5 6 7 8 9
रू आ पा रू आ पा

िारिाधक मोिररवर के िस्ताक्षर न्यायाधीश के िस्ताक्षर

िंख्यांक 6

डििी के ननष्पादन के सलए आिेदन-पत्र

(आदे श 21 का ननयम 11)

................................... के न्यायलय में मैं ............................................, डडिीदर, इिके द्िारा नीचे द गई डडिी के
ननष्पादन के सलए आिेदन करता िूाँ :-

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ििां ढगं र्जििे न्यायालय की

रकम अधधननणीत की
यहद खचों मद्दे कोई
डडिी की रकम, उि

गई िै तो िि रकम
ििायता अपेक्षित िै ।

पिकारों का नाम

डडिी की तार खा

यहद कोई िंदाय

यहद पिले कोई

क्रकिके विरुद्ध
क्या डडिी की

आिेदन क्रकया
िाद िंख्यांक

पर शोध्य
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10
[जब आशय यि िो क्रक जंगम िंपवि की

ू धन (डडिी की तार ख िे िंदाय तक 6 प्रनतशत


तार ख 4 माचि, 1899 को आिेदन क्रकया गया और उि पर असभसलणखत
कुकी और उिका वििय क्रकया जाए |]
मैं प्राथिना करता िूं क्रक मल
ू धन पर (िंदाय
की तार ख तक ब्याज के िहित) कुल रु.
की रकम और यि ननष्पादन कराने के
खचे प्रनतिाद की उि जंगम िम्पनत की,
जो उपाबद्ध िूची में दजि िै, कुकी और
वििय द्िारा ििूल क्रकए जाएाँ और मझ
ु े
द जाएाँ |
[जब आशय यि िो क्रक स्थािर िंपवि की

डडिी में अधधननणीत क्रकए गए तत्पश्चात उपगत


कुकी और उिका वििय क्रकया जाए |]
मैं प्राथिना करता िूं क्रक मल
ू धन पर (िंदाय
की तार ख तक ब्याज के िहित ) कुल रु.

प्रनतिाद गघ के विरुद्ध
की रकम और यि ननष्पादन कराने के
314 रु. 8 आने 2 पाई मल
11 अक्टूबर, 1897

ू िुए

खचे प्रनतिाद की उि विननहदिष्ट स्थािर


72 रु. 4 आने ििल

िंपवि की, जो इि आिेदन पात्र पाद भाग


1897 का 789

में विननहदिष्ट जंगम िंपवि की, जो


गघ-प्रनतिाद

िवषिक ब्याज)

उपाबद्ध िच
ू ी में दजि िै, कुकी और वििय
कोई नि ं
कख-िाद

द्िारा ििूल क्रकए जाएाँ और मझ


ु े द जाएाँ

47 10 4

55 12 4
रु.आ.पा
नि ं

820
|

जोड़

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मैं.............................................. घोषणा करता िूं क्रक उक्त िणिन में जो भी सलखा गया िै
िि मेरे ििोिम ज्ञान और विश्िाि के अनि ु ार और जिां तक मैं उिमें विननहदि ष्ट िम्पवि में
प्रनतिाद के हित का असभननश्चय करने में िमथि िुआ िूं, ित्य िै ।
िस्तािर......
डडिीदार
िंख्यांक 7
इि बात का िे तक
ु दसशवत करने के सलए िच
ू ना क्रक ननष्पादन तयों न क्रकया जाए [(आदे श 21 का
1

ननयम 16)]
(शीषवक)
प्रेवषती-
................................ ने 19............................... के........................ िंख्यांक िाले िाद
की डडिी के ननष्पादन के सलए इि न्यायालय िे आिेदन यि असभकथन करते िुए क्रकया िै क्रक उक्त
डडिी उिे िमनद ु े शन द्िारा [या िमनद
2
ु े शन के बबना] अंतररत कर द गई िै , अत: आपको यि
िच
ू ना द जाती िै क्रक आप इि बात का िे तक
ु दसशित करने के सलए क्रक ननष्पादन क्यों न मंजूर
क्रकया जाए ता0 ................................. को इि न्यायालय के िमि उपिंजात िों ।
यि आज ता0............................. को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा लगाकर द
गई ।
न्यायाधीश
िंख्यांक 8
धन की डििी के ननष्पादन में जंगम िम्पवि की कुकी का िारण्ट
(आदे श 21 का ननयम 66)
(शीषवक)
प्रेवषती-
न्यायालय का बेसलफ ।
19.......................के.................... िंख्याक िाले िाद में ता0...............................को
पाररत इि न्यायालय की डडिी
द्िारा..............................................
...................को यि आदे श हदया गया था क्रक िि पाश्िि में दजि ................. रुपए की रासश
का िंदाय िाद को करे और..........................रुपए की उक्त रासश का िंदाय नि ं क्रकया गया िै ,
अत: आपको यि िमादे श हदया जाता िे क्रक उक्त ..............................................
डििी
मल

ब्याज
ननष्पादन के खचे
अनतररक्त ब्याज

जोड़

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की िि जंगम िम्पवि, जो इििे उपाबद्ध अनि
ु च
ू ी में दजि िै , या जो आपको उक्त........................
द्िारा हदखाई जाए कुकि कर लें और जब तक क्रक उक्त......................... आपको............................
रुपए की उक्त रासश का इि कुकी के खचों की बाबत........................ रुपए की रासश िहित िंदाय न
कर दे उि िम्पवि को इि न्यायालय के अगले आदे शों तक कुकि रखें ।
आपको यि भी िमादे श हदया जाता िै क्रक आप इि िारण्ट को िि हदन र्जिको और िि
र नत, र्जििे, यि ननष्पाहदत क्रकया गया िो या िि कारण र्जििे यि ननष्पाहदत नि ं क्रकया गया
प्रमाणणत करने िाले पष्ृ ठांकन िहित ता0................................... को या उिके पि
ू ि लौटा दें ।
यि आज ता0.................... को मेरे िस्तािर और न्यायालय की मि
ु र लगाकर हदया गया ।
अनि
ु च
ू ी
न्यायाधीश

िंख्यांक 9
डििी द्िारा न्याय ननणीत विननहदवष्ट जंगम िम्पवि के अधधर्ग्िण के सलए िारण्ट
(आदे श 21 का ननयम 31)
(शीषवक)
प्रेवषती-
न्यायालय का बेसलफ ।
19................. के....................... िंख्यांक िाले िाद में ता0............ ................ को पाररत
इि न्यायालय की डडिी द्िारा................... को आदे श हदया गया था क्रक िि इिके िाथ उपाबद्ध
अनि
ु च
ू ी में विननहदिष्ट जंगम िम्पवि। (या जंगम िम्पवि में ........................
अंश) िाद को पररदि करे और उक्त िम्पवि (या अंश) पररदि नि ं क्रकया गया िै ।
अत: आपको यि िमादे श हदया जाता िै क्रक आप उक्त जंगम िम्पवि को (या उक्त िम्पवि
के................. अंश को) असभगि
ृ त कर लें और उिे िाद को या ऐिे व्यर्क्त को, र्जिे िि इि
ननसमि ननयक्
ु त करें , पररदि कर दें ।
यि आज ता0 ...................को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा लगाकर हदया गया

अनि
ु च
ू ी
न्यायाधीश

िंख्यांक 10
दस्तािेज के प्रारूप के बारे में आक्षेपों का कथन करने के सलए िच
ू ना
(आदे श 21 का ननयम 34)
(शीषवक)
प्रेवषती-
आपको यि िच
ू ना द जाती िै क्रक ता0........................... को डडिीदार ने उक्त िाद में इि
न्यायालय के िमि यि आिेदन उपस्थावपत क्रकया था क्रक न्यायालय इिमें नीचे विननहदि ष्ट स्थािर
िम्पवि का .................. विलेख, र्जिका प्रारुप इिके िाथ उपाबद्ध िै , आपकी ओर िे ननष्पाहदत

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करे और ता0..................................... उक्त आिेदन की िन
ु िाई के सलए ननयत िै और आप उक्त
हदन उपिंजात िोने के सलए और उि प्रारुप के विरुद्ध आिेप सलणखत रुप में दे ने के सलए स्ितंत्र िै

िंपवि का िणवन
यि आज ता0................... को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा लगाकर द गई ।
न्यायाधीश

िंख्यांक 11
िसू म इत्याहद का कब्जा हदलाने का बेसलफ को िारण्ट ( आदे श 21 का ननयम 35)
(शीषवक)

प्रेवषती-
न्यायालय का बेसलफ ।
इिमें आगे िणणित िम्पवि जो........................... के अधधभोग में िै इि िाद के िाद
............... को डडिीत िै , अत: आपको ननदे श हदया जाता िै क्रक आप उक्त ..................... को
उिका कब्जा हदला दें और आपको प्राधधकृत क्रकया जाता िै क्रक आप डडिी िे आबद्ध ऐिे क्रकिी
व्यर्क्त को, जो उिे खाल करने िे इंकार करे , ििां िे िटा दें :
यि आज ता0.................... को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा लगाकर हदया गया
|
अनि
ु च
ू ी
न्यायाधीश

िंख्यांक 12
इि बात का िे तक
ु दसशवत करने के सलए िच
ू ना की धगरफ्तारी का िारण्ट तयों न ननकाला जाए
(आदे श 21 का ननयम 37)
(शीषवक)

प्रेवषती-
...................... ने 19...................... के....................................
िंख्यांक िाले िाद में डडिी का ननष्पादन आपको धगरफ्तार कराकर और कारागार में रखिा कर कराने
के सलए आिेदन इि न्यायालय िे क्रकया िै ; अत: आपिे अपेिा की जाती िै क्रक आप इि बात का
िे तक
ु दसशित करने के सलए क्रक आपको उक्त डडिी के ननष्पादन में सिविल कारागार के िप
ु द
ु ि क्यों न
क्रकया जाए, ता0.......................... को इि न्यायालय के िमि उपिंजात िों ।
यि आज ता0 .......................... को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा लगाकर द
गई ।
न्यायाधीश

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िंख्यांक 13
ननष्पादन में धगरफ्तारी का िारण्ट (आदे श 21 का ननयम 38)
(शीषवक)

प्रेवषत-
न्यायालय का बेसलफ ।
19..................................के िंख्यांक िाले िाद में तार ख............................ की
इि न्यायालय की डडिी द्िारा............के बारे में यि न्यायननणीत क्रकया गया था क्रक िि
पाश्िि में दजि................ रुपए की रासश डडिीदार को दे खचे और.................... रुपए की उक्त रासश
उक्त डडिीदार ननष्पादन के खचि को उक्त डडिी की तर्ु ष्ट में नि ं द गई िै ; अत: आपको यि
िमादे श हदया जाता िै क्रक आप उक्त जोड ननणीतऋणी को धगरफ्तार कर लें और, जब तक उक्त
ननणीतऋणी आपको............ रुपए की उक्त

डििी
मल

ब्याज
खचे
ननष्पादन के खचे
जोड़

रासश, इि आदे सशका के ननष्पादन के खचों के सलए....................... रुपए के िहित न दे दे ,


उक्त प्रनतिाद को िवु िधानि
ु ार शीघ्रता िे इि न्यायालय के िमि लाएं ।
आपको यि और िमादे श हदया जाता िै क्रक आप इि िारण्ट को िि हदन र्जिको, और िि
र नत र्जििे, यि ननष्पाहदत क्रकया गया िै या िि कारण र्जििे यि ननष्पाहदत नि ं क्रकया गया
प्रमाणणत करने िाले पष्ृ ठांकन िहित ता0 ............................... को या उिके पि
ू ि लौटा दें ।
यि आज ता0...................... को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा लगाकर हदया
गया ।
न्यायाधीश

िंख्यांक 14
ननणीतऋणी को जेल िप
ु द
ु व करने का िारण्ट (आदे श 21 का ननयम 40)
(शीषवक)

प्रेवषती-
...........................................की जेल का भारिाधक अधधकार ।
................................. जो ता0 ......................... को इि न्यायालय द्िारा की गई और
िन
ु ाई गई उि डडिी के र्जि डडिी द्िारा उक्त............................ को आदे श हदया गया था क्रक

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िि................. को................ .दे , ननष्पादन में िारण्ट के अधीन आज ता0................................
को इि न्यायालय के िमि लाया गया िै और उक्त ........................... ने डडिी का आज्ञानि
ु तिन
नि ं क्रकया िै और न न्यायालय का यि िमाधान क्रकया िै क्रक असभरिा िे उन्मोधचत क्रकए जाने का
िकदार िै ; अत: आपको1*** िमािेश हदया जाता िै और आपिे अपेिा की जाती िै क्रक आप उक्त को
सिविल कारागार में ले लें और स्िीकार करें और ििां................. िे अनधधक अिधध के सलए या तब
तक, जब तक क्रक उक्त डडिी की परू तर्ु ष्ट न कर द जाए या जब तक क्रक उक्त...........
सिविल प्रक्रिया िंहिता, 1908 की धारा 58 के ननबन्धनों और उपबन्धों के अनि
ु ार ननमक्
ुि त क्रकए
जाने का अन्यथा िकदार न िो जाए, उिे कारािासित रखें ; और िप
ु द
ु ि गी के इि िारण्ट के अधीन
उक्त
....................... के परररुद्ध रिने के दौरान उिके जीिनननिािि के सलए मासिक भिा2*** प्रनत हदन
की दर िे न्यायालय ननयत करता िै ।
यि आज ता0.................. को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा लगाकर हदया गया

न्यायाधीश

1. विधध अनक
ु ू लन आदे श 1950 द्िारा ''भारत के िम्राट के नाम में '' शब्दों का लोप ।
2. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 95 द्िारा (1.2.1977 िे) ''आने'' शब्द का लोप ।

िंख्यांक 15
डििी के ननष्पादन में कारािासित व्यस्तत की ननमस्ुव तत का आदे श ( धारा 58, 59)
(शीषवक)
प्रेवषती-
..................................................की जेल का भारिाधक अधधकार ।
आज पाररत आदे शों के अधीन आपको ननदे श हदया जाता िै क्रक आप..............................
ननणीत-ऋणी को, तो इि िमय आपकी असभरिा में िु, मक्
ु त कर दें ।
ता0...........................
न्यायाधीश

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िंख्यांक 16
ननष्पादन में कुकी
जिां कुकव की जाने िाली िम्पवि ऐिी जंगम िम्पवि िै स्जिका प्रनतिादी क्रकिी
अन्य व्यस्तत के धारणाधधकार या उि पर तत्काल कब्जा करने के अधधकार
के अधीन रिते िुए िकदार िै ििां प्रनतषेधात्मक आदे श
(आदे श 21 का ननयम 46)
(शीषवक)

प्रेवषती-
....................................19 के........................... के िंख्यांक िाले िाद में
ता0...................... को............................. के विरुद्ध और .......................... के पि
में ................................ रुपए के सलए पाररत डडिी की तर्ु ष्ट करने में ......................... अिफल
रिा िै , अत: यि आदे श हदया जाता िै क्रक जब तक इि न्यायालय का अगला आदे श न िो, प्रनतिाद
उक्त.......................... के कब्जे की ननम्नसलणखत िम्पवि अथाित ्................... र्जिका क्रक प्रनतिाद
उक्त ............................... के क्रकिी दािे के अधीन रिते िुए िकदार िै , प्राप्त करने िे प्रनतवषद्ध
और अिरूद्ध िोगा और उिे प्रनतवषद्ध और अिरुद्ध क्रकया जाता िै और जब तक न्यायालय का
अगला आदे श न िो उक्त िम्पवि क्रकिी व्यर्क्त या क्रकन्ि ं व्यर्क्तयों को, चािे िे कोई भी िों,
पररदत्त करने िे उक्त ........................... प्रनतवषद्ध और अिरुद्ध क्रकया जाता िै ।
यि आज ता0....................................... को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा
लगाकर हदया गया ।
न्यायाधीश
1
िंख्यांक 16क
ननणीत-ऋणी दारा आस्स्तयों के बारे में शपथपत्र हदया जाना
[आदे श 21 का ननयम 41 (2)]

.......................................................................................के न्यायालय में


क ख डडिीदार
बनाम
ग ननणीत-ऋणी
..............................................का
मैं.......................................
शपथ/ित्यननष्ठ प्रनतज्ञान पर ननम्नसलणखत रुप में कथन करता िूाँ:-
1. मेरा परू ा नाम ....................................................... िैं ।
(स्पष्ट अिरों में )
2. मैं............................................................. में ननिाि करता िूं ।
1
3. मैं वििाहित िूं
अवििाहित िूं

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विधुर (विधर) िूं विधुर (विधिा) िूं
विनछन्न वििाि िूं
4. ननम्नसलणखत व्यर्क्त मझ
ु पर आधश्रत िैं
5. मेरे ननयोजन, व्यापार या व्यििाय...........................................................................
जो मैं ............................................... में करता िूाँ ।
मैं ननम्नसलणखत कम्पननयों का ननदे शक िूाँ िै --
मेर ितिमान िावषिक/मासिक/िप्ताहिक आय, आय-कर दे ने के पश्चात ् ननम्नसलणखत िै -
(क) मेरे ननयोजन, व्यापार या व्यििाय िे, .................................... रु0
(ख) अन्य स्त्रोतों िे ................................. रु0
7. (क) मैं उि गि
2
ृ का स्िामी िूं र्जिमें मैं ननिाि करता िूं; उिका मप ू य....................
रुपए िै । मैं रे ट, बंधक, ब्याज इत्याहद के रुप में ....................... रु0 की िावषिक रासश दे नदाररयों के
रुप में दे ता िूाँ;
(ख) मैं भाटक के रुप में ............................... रुपए की िावषिक रासश दे ता िूाँ ।
8. मेरे पाि ननम्नसलणखत चीजें िैं-
(क) बैंक में खाता ।
(ख) स्टाक और शेयर ।
(ग) जीिन ओर विन्याि पासलसियां । विसशर्ष्टयां द र्जए ।
(घ) गि
ृ िम्पवि ।
(डः) अन्य िम्पवि |
(च) अन्य प्रनतभनू तयां ।
9. मझ
ु े ननम्नसलणखत ऋण शोध्य िैं-
(विसशर्ष्टयां द र्जए)
(क)................................ िे.........................................
(ख) ............................िे ........................................... रु0 (इत्याहद) मेरे िमि शपथ
सलया गया इत्याहद ।]

िंख्यांक 17
ननष्पादन में कुकी
जिां िम्मान ऐिे ऋणों के रुप में िै जो परिाम्य सलखतों िे प्रनतित
ू निीं िै ििां प्रनतषेधात्मक
आदे श (आदे श 21 का ननयम 46)
(शीषवक)

प्रेवषती-
.................................. उि डडिी की तर्ु ष्ट करने में अिफल रिा िै जो
19................................... के............................ िंख्यांक िाले िाद में

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..........................को...........................के विरुद्ध ..........................
और........................................के पि में रुपए के सलए पाररत की गई थी; अत: यि आदे श हदया
जाता िै क्रक जब तक इि न्यायालय का अगला आदे श न िो आप प्रनतिाद आपिे िि ऋण र्जिके
बारे में यि असभकधथत िै क्रक िि उक्त प्रनतिाद को आपके द्िारा इि िमय शोध्य िै
अथाित ्.............................. का ऋण, प्राप्त करने िे प्रनतवषद्ध और अिरूद्ध िो और क्रकया जाता िै
और जब तक न्यायालय का अगला आदे श न िो उक्त ऋण या उिके क्रकिी भाग को क्रकिी व्यर्क्त
को चािे िि कोई भी िो या उि न्यायालय में जमा कराने िे अन्यथा, दे ने िे आप उक्त
(नाम)........................ प्रनतवषद्ध और अिरुद्ध रिे और क्रकए जाते िैं ।
यि आज ता0......................................... को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा
लगाकर हदया गया ।
न्यायाधीश

िंख्यांक 18
ननष्पादन में कुकी
जिां क्रक िम्पवि क्रकिी ननगम की पज
ंू ी में अंशों के रुप में िै ििां प्रनतषेधात्मक आदे श ( आदे श 21
का ननयम 46)
(शीषवक)

प्रेवषती-
प्रनतिाद ......................................................... और.................................... ननगम के
िधचि
....................................................|
..................................................उि डडिी की तर्ु ष्ट करने में अिफल रिा िै जो
19........................... .को.................................. िंख्यांक िाले िाद में ...............................
.का................................ .के विरुद्ध और................................. .के पि में ............................
रुपए के सलए पाररत की गई थी; अत: यि आदे श हदया जाता िै क्रक जब तक इि न्यायालय का
अगला आदे श न िो आप, प्रनतिाद , उक्त ननगम में अथाित ्...............................
.में ........................... अंशों का कोई अन्तरण करने या उन पर क्रकन्ि ं लाभांशों का िंदाय लेने िे
प्रनतवषद्ध और अिरुद्ध रिें और क्रकए जाते िैं और आप .................. उक्त ननगम के िधचि, क्रकिी
ऐिे अन्तरण की अनज्ञ
ु ा दे ने या कोई भी ऐिा िंदाय करने िे प्रनतवषद्ध और अिरूद्ध क्रकए जाते िैं

यि आज ता0 .........................................को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा
लगाकर हदया गया ।
न्यायाधीश

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िंख्यांक 19
लोक अधधकारी या रे ल कम्पनी या स्थानीय प्राधधकरण के िेिक के िेतन की कुकी का आदे श (आदे श
21 का ननयम 48)
(शीषवक)

प्रेवषती-
.............................................. उक्त मामले में ननणीतऋणी (ननणीत ऋणी के पद का
िणिन कीर्जए) िै जो अपना िेतन (या भिे) आपिे पा रिा िै ; और उक्त मामले में
डडिीदार........................
ने डडिी के अधीन अपने को शोध्य.......................... तक उक्त..............................के िेतन (या
भिों) की चक
ु ी के सलए इि न्यायालय में आिेदन क्रकया िै ; अत: आपिे अपेिा की जाती िै क्रक
आप...................... रुपए की उक्त रासश.............................. .उक्त................. के िेतन में
िे,........................... की मासिक क्रकस्तों में विधाररत कर लें और उक्त रासश (या मासिक क्रकस्त)
इि न्यायालय को भेज दें ।
यि आज ता0 ....................................को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा लगाकर
हदया गया ।
न्यायाधीश

िंख्यांक 20
परिाम्य सलखत की कुकी के सलए आदे श (आदे श 21 का ननयम 51)
(शीषवक)

प्रेवषती-
न्यायालय का बेसलफ ।
ता0 ...........................को...........................की कुकी के सलए आदे श इि न्यायालय द्िारा
पाररत क्रकया गया िै , अत: आपको ननदे श हदया जाता िै क्रक आप
उक्त...............................................
..............................................को असभगि
ृ त कर लें और इि न्यायालय में ले आएं ।
यि आज ता0 ..................................................को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की
मद्र
ु ा लगाकर हदया गया |
न्यायाधीश

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िंख्यांक 21
कुकी
जिां िम्पवि, न्यायालय या 1[लोक अधधकारी] की असिरक्षा में धन या क्रकिी प्रनतिनू त क रुप में िै
ििां प्रनतषेधात्मक आदे श (आदे श 21 का ननयम 52)
(शीषवक)

प्रेवषती-
मिोदय,
िाद ने ऐिे कुछ धन की कुकी के सलए सिविल प्रक्रिया िंहिता, 1908 का आदे श 21 के
ननयम 52 के अधीन आिेदन क्रकया िै जो धन इि िमय आपके पाि जमा िै (यिां यि सलणखए क्रक
यि क्यों अनम
ु ान िै क्रक धन िम्बोधधत व्यर्क्त के पाि जमा िै , क्रकि लेखे जमा िै , (इत्याहद); अत:
में आपिे प्राथिना करता िूं क्रक आप इि न्यायालय के अगले आदे शों के अधीन रिते िुए उक्त धन
को अपने पाि धाररत रखें । ता0................................
भिद य
न्यायाधीश

िंख्यांक 22
डििी की कुकी की उि न्यायालय को िच
ू ना स्जिने डििी पाररत की िै
(आदे श 21 का ननयम 53)
(शीषवक)

प्रेवषती-
.....................................................के न्यायालय का न्यायाधीश ।
मिोदय,
मझ
ु े आपको यि जानकार दे नी िै क्रक 19...................................के िंख्यांक...................
िाले िाद में ता0 ..........................को........................ .द्िारा आपके न्यायालय में असभप्राप्त की
गई िि डडिी, र्जिमें िि........................... था और..................... था, ऊपर विननहदि ष्ट िाद में
...............................................के आिेदन पर इि न्यायालय द्िारा कुकि कर ल गई िै । अत:
आपिे प्राथिना िै क्रक जब तक आपको इि न्यायालय िे यि प्रज्ञापन प्राप्त न िो क्रक यि िच
ू ना रद्द
कर द गई िै या जब तक उि डडिी के र्जिके ननष्पादन की अब इच्छा की गई िै धारक द्िारा या
ननणीतऋणी द्िारा उक्त डडिी के ननष्पादन के सलए आिेदन न क्रकया गया िो, अपने न्यायालय की
उक्त डडिी का ननष्पादन रोक दें ।
ता0................................................
भिद य
न्यायाधीश

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िंख्यांक 23
डििी की कुकी की डििी के धारक को िच
ू ना (आदे श 21 का ननयम 33)
(शीषवक)

प्रेवषती-
उक्त िाद में डडिीदार द्िारा इि न्यायालय में उि डडिी की कुकी के सलए आिेदन क्रकया
गया िै जो आपने 19..........................................के................................... िंख्यांक िाले िाद
में .....................................के न्यायालय में तार ख................................... को असभप्राप्त की थी
और र्जिमें ........................ था और.................................... था; अत: यि आदे श हदया जाता िै
क्रक जब तक इि न्यायालय का अगला आदे श न िो उिे क्रकिी र नत िे अन्तररत या भाररत करने िे
आप उक्त ................... .प्रनतवषद्ध और अिरूद्ध रिें और क्रकए जाते िैं ।
यि आज ता0....................................... .को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा
लगाकर द गई ।
न्यायाधीश

िंख्यांक 24
ननष्पादन में कुकी
जिां िम्पवि स्थािर िम्पवि के रूप में िै ििां प्रनतषेधात्मक आदे श
(आदे श 21 का ननयम 54)
(शीषवक)
प्रेवषती-
............................प्रनतिाद ।
आप उि डडिी की तर्ु ष्ट करने में अिफल रिे िैं जो 19......................................... के
....................................... िंख्याक िाले िाद में ता0.............................. को..............................
के पि में ..................................................... -रुपए के सलए आपके विरुद्ध पाररत की गई थी;
अत : यि आदे श हदया जाता िै क्रक जब तक इि न्यायालय का अगला आदे श न िो, इिके िाथ
उपाबद्ध अनि
ु च
ू ी में विननहदि ष्ट िम्पवि को वििय या दान द्िारा या अन्यथा अन्तररत या भाररत
करने िे आप उक्त...............................प्रनतवषद्ध और अिरूद्ध रिें और क्रकए जाते िैं और िब
व्यर्क्त उिे िय या दान द्िारा या अन्यथा प्राप्त करने िे प्रनतवषद्ध रिें और क्रकए जाते िैं ।
1. भारत (शािन विधध अनक
ु ू लन) आदे श, 1937 द्िारा ''िरकार अधधकार '' के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।
1
[यि भी आदे श हदया जाता िै क्रक आप वििय की उद्घोषणा के ननबंधनों को तय करने के
सलए ननयत तार ख की िच
ू ना प्राप्त करने के सलए तार ख......................को न्यायालय में िार्जर िों
यि आज ता0 ....................................को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा लगाकर
हदया गया ।
न्यायाधीश

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अनि
ु च
ू ी
िंख्यांक 25
उि धन आहद का जो पर-व्यस्तत के िाथ में िै िंदाय िादी आहद को करने का आदे श
(आदे श 21 का ननयम 56)
(शीषवक)
प्रेवषती-
ननम्नसलणखत िम्पवि अथाित ्............................. उि डडिी के ननष्पादन में कुकि की गई िै
जो 19...................के...................... िंख्यांक िाले िाद में ता0 .................................
को.........................के पि में ......................................... रुपए के सलए पाररत की गई थी; अत :
यि आदे श हदया जाता िै क्रक आप उक्त ................... ऐिे कुकि की गई िम्पवि,
जो............................. रुपए के सिक्कों और....................... के करे न्िी नोटों िे समलकर बनी िै या
उक्त डडिी की तर्ु ष्ट करने के सलए उिका पयािप्त भाग.........................को दे दे ।
यि आज ता0 .................................को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा लगाकर
हदया गया ।
न्यायाधीश

िंख्यांक 26
कुकी कराने िाले लेनदार को िच
ू ना आदे श 21 का ननयम 58)
(शीषवक)
प्रेवषती-
...........................................ने............................. 19.........................के......................
िंख्यांकिाले िाद की डडिी के ननष्पादन में आपकी प्रेरणा पर............................................की कुकी
को उठा लेने के सलए इि न्यायालय िे आिेदन क्रकया िै अत: आपको यि िच
ू ना द जाती िै क्रक
आप या तो स्ियं या न्यायालय के ऐिे प्ल डर द्िारा र्जिे िम्यक् अनद
ु े श समला िुआ िो, कुकी
कराने िाले लेनदार के रुप में अपने दािे का िमथिन करने के सलए ता0
.....................................को इि न्यायालय के िमि उपिंजात िों ।
यि आज ता0 ..............................को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा लगाकर द
गई ।
न्यायाधीश

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िंख्यांक 27
धन की डििी के ननष्पादन में िम्पवि की कुकी का िारण्ट
(आदे श 21 का ननयम 86)
(शीषवक)

प्रेवषतीं-
न्यायालय का िेसलफ ।
आपको यि िमादे श हदया जाता िै क्रक आप 19.......................के............... िंख्यांक िाले
िाद में .............................................................................. .के पि की डडिी के ननष्पादन में
ता0 ...........................के इि न्यायालय के िारण्ट के अधीन कुक ............................... िम्पवि
का, या उक्त िम्पवि में िे उतनी का वििय, र्जतनी िे.................................. रूपए की रासश
ििल
ू िो जाए, जो रासश उक्त डडिी और खचों क अब तक अतष्ु ट बची रकम िै ;................... हदनों
की पि
ू ि िच
ू ना इि न्याय-िदन में लगाकर और िम्यक् उद्घोषणा के पश्चात ् नीलाम द्िारा कर दें ।
आपको यि भी िमादे श हदया जाता िै क्रक आप िि र नत, र्जििे यि िारण्ट ननष्पाहदत क्रकया
गया िै या िि कारण र्जििे यि ननष्पाहदत नि ं क्रकया गया िै प्रमाणणत करने िाले पष्ृ ठांकन िहित
इि िारण्ट को तार ख.............................को या उिके पि
ू ि लौटा दें ।
यि आज ता0 ...................को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा लगाकर हदया गया

न्यायाधीश

िंख्यांक 28
वििय उद्घोषणा तय करने के सलए ननयत हदन की िच
ू ना
(आदे श 21 का ननयम 66)
(शीषवक)

प्रेवषती-
.......................................ननणीत ऋणी
उक्त िाद में .................................. डडिीदार ने..................... .के वििय के सलए आिेदन
क्रकया िै , अत: आपको यि इविला द जाती िै क्रक ता0 .........................वििय की उद्घोषणा के
ननबन्धनों को तय करने के सलए ननयत की गई िै ।
यि आज ता0 .......................को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा लगाकर द गई

न्यायाधीश

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िंख्यांक 29
वििय की उद्घोषणा ( आदे श 21 का ननयम 66)
(शीषवक)

(1).........................के......................... द्िारा विननर्श्चत 19................ .के................


िंख्यांक िाला िाद र्जिमें ...........िाद था और............प्रनतिाद था ।
यि िच
ू ना द जाती िै क्रक इि न्यायालय ने उपाबद्ध अनि
ु च
ू ी में िणणित कुकि िम्पवि का,
पाश्िि में िणणित िाद (1) में डडिीदार के दािे की, जो खचों और वििय की तार ख तक के ब्याज
िहित............................... रुपए की रासश का िै , तर्ु ष्ट में वििय करने के सलए सिविल प्रक्रिया
िंहिता, 1908 और आदे श 21 के ननयम 64 के अधीन आदे श हदया गया िै ।
वििय लोक नीलाम द्िारा क्रकया जाएगा और िम्पवि अनि
ु च
ू ी में विननहदि ष्ट लाटों में वििय
के सलए रखी जाएगी । वििय उक्त ननणीतऋणणयों की उि िम्पवि का िोगा जो ननम्नसलणखत
अनि
ु च
ू ी में िणणित िै ; और उक्त िम्पवि िे िंलग्र दानयत्ि और दािे जिां तक क्रक उनका
असभननश्चय क्रकया जा िका िै , िे िैं जो िर एक लाट के िामने अनि
ु च
ू ी में विननहदि ष्ट िैं ।
जब तक मप
ु तिी करने का आदे श न क्रकया जाए यि वििय ता0 ................................को
बजे.................................. में प्रारम्भ िोने िाले मासिक वििय में ................................
द्िारा क्रकया जाएगा । क्रकन्तु यहद ऊपर विननहदि ष्ट ऋण और वििय के खचे क्रकिी लाट के सलए बोल
अर्न्तम िोने के पि
ू ि ननविदि या िंदि कर हदए जाते िैं तो वििय बन्द कर हदया जाएगा ।
वििय में ििििाधारण को या तो स्ियं या िम्यक् रुप िे प्राधधकृत असभकताि द्िारा बोल
लगाने के सलए ननमंबत्रत क्रकया जाता िै । क्रकन्तु उपररिणणित ननणीत लेनदारों द्िारा या उनके ननसमि
लगाई गई कोई भी बोल स्िीकार नि ं की जाएगी और न्यायालय द्िारा पिले िे द गई असभव्यक्त
अनज्ञ
ु ा के बबना उनको क्रकया गया वििय विधधमान्य न िोगा । वििय की अनतररक्त शतें
ननम्नसलणखत िैं िै ---

वििय की शते
1. ननम्नसलणखत अनि
ु च
ू ी में विननहदि ष्ट विसशर्ष्टयां न्यायालय की ििोिम जानकार के
अनि
ु ार सलखी गई िैं, क्रकन्तु इि उद्घोषणा में क्रकिी गलती, अशद्
ु ध कथन या लोप के सलए
न्यायालय उिरदायी नि ं िोगा ।
2. िि रकम र्जतनी िे बोसलयां बढाई जानी िैं वििय िंचासलत करने िाले अधधकार द्िारा
अिधाररत की जाएगी । यहद लगाई गई बोल की रकम के बारे में या बोल लगाने िाले के बारे में
कोई वििाद पैदा िोता िै तो िि लाट पन
ु : नीलाम पर चढाया जाएगा ।
3. क्रकिी भी लाट की िबिे ऊाँची बोल लगाने िाला व्यर्क्त उि लाट का िेता घोवषत क्रकया
जाएगा, परन्तु यि तब जब क्रक िि बोल लगाने के सलए िैध रुप िे अहित िो, यि बात न्यायालय
के या वििय करने िाले अधधकार के वििेकाधधकार में िोगी क्रक िि िबिे ऊंची बोल को स्िीकार
करने िे उि दशा में इन्कार कर दे र्जिमें लगाई गई कीमत स्पष्टत: इतनी अपयािप्त प्रतीत िो क्रक
ऐिे इन्कार करना िांछनीय िो जाता िै ।
4. वििय िंचासलत करने िाले अधधकार के वििेकाधधकार में यि बात िोगी क्रक ऐिे कारणों

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िे, जो असभसलणखत क्रकए जाएंगे िि वििय को आदे श 21 के ननयम 69 के उपबन्धों के अधीन रिते
िुए स्थधगत कर दे ।
5. जंगम िम्पवि की दशा में िर एक लाट की कीमत वििय के िमय या उिके इतने शीघ्र
पश्चात ् र्जतना वििय करने िाला अधधकार ननहदष्ट करे , द जाएगी और िंदाय में व्यनतिम िोने
पर िम्पवि तत्काल पन
ु : नीलाम पर चढाई जाएगी और उिका पन
ु : वििय क्रकया जाएगा ।
6. स्थािर िम्पवि की दशा में िि व्यर्क्त, जो िेता घोवषत क्रकया गया िै उि घोषणा के
पश्चात ् अविलम्ब अपने ियधन की रकम का पच्चीि प्रनतशत िंचासलत करने िाले अधधकार के पाि
ननक्षिप्त कर दे गा और ऐिा ननिेप करने में व्यनतिम िोने पर िम्पवि तत्काल पन
ु : नीलाम पर
चढाई जाएगी और उिका पन
ु : वििय क्रकया जाएगा ।
7. िे ता द्िारा ियधन की परू रकम िम्पवि के िय हदन को छोडकर िम्पवि के वििय के
पश्चात ् पन्द्रििें हदन या यहद पन्द्रििां हदन इतिार िो या अन्य अिकाश हदन िो तो पन्द्रििें हदन के
पश्चात ् कायािलय खुलने के पिले हदन न्यायालय के बन्द िोने के पि
ू ि िंदि की द जाएगी ।
8. ियधन की बाकी रकम का िंदाय अनज्ञ
ु ात अिधध के अन्दर करने में व्यनतिम िोने पर
िम्पवि का पन
ु : वििय, वििय की नई अधधिच
ू ना ननकाल जाने के पश्चात ् क्रकया जाएगा । यहद
न्यायालय ठीक िमझे तो ननिेप, उिमें िे वििय के व्ययों को काट लेने के पश्चात ् िरकार के पि
में िमपह्रत कर हदया जाएगा और व्यनतिम करने िाले िेता के िम्पवि पर या र्जि रासश के सलए
िि िम्पवि बाद में बेची जाए उि रासश के क्रकिी भी भाग पर िब दािे िमपह्रत िो जाएंगे ।
यि आज ता0 .............................को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा लगाकर
जार की गई |
न्यायाधीश

िंपवि की अनि
ु च
ू ी
लाट का उि िपवि यहद िि िंपवि र्जन िंपवि के [डडिीदार
1
ननणीतऋणी
िंख्यांक का िणिन िंपवि विपलंगमों बारे में क्रकए द्िारा यथा द्िारा यथा-
र्जिका र्जिका के दानयत्ि गए दािे कधथत कधथत
वििय वििय क्रकया के अधीन (यहद कोई िंपवि का िंपवि का
क्रकया जाना जाना िै , उनका ब्यौरा िै ) और मप
ू य | मप
ू य |]
िै और जिां िरकार को | उनकी
एक िे राजस्ि दे ने प्रकृनत और
अधधक िाल िंपदा मप
ू य पर
ननणीत या िंपदा के प्रभाि डालने
ऋणी िैं भाग में हित िाल कोई
ििां उिके िै तो िंपदा अन्य ज्ञात
िाथ िर या िंपदा के विसशर्ष्टयां
एक स्िामी भाग पर |
का नाम । ननधािररत
राजस्ि |

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िंख्यांक 30
वििय की उद्घोषणा की तामील कराने के सलए नास्जर को आदे श
(आदे श 21 का ननयम 66)
(शीषवक)
प्रेवषती--
न्यायालय का नार्जर ।
ननणीतऋणी की उि िम्पवि के वििय के सलए, जो इिके िाथ उपाबद्ध अनि
ु च
ू ी में
विननहदिष्ट िै , आदे श हदया गया िै और तार ख............................उक्त िम्पवि के वििय के सलए
ननयत की गई िै ; अत: वििय की उद्घोषणा की............................प्रनतयां इि िारण्ट द्िारा आपके
ििाले की जाती िैं और आपको आदे श हदया जाता िै क्रक आप उक्त अनि
ु च
ू ी में विननहदि ष्ट िम्पवियों
में िे िर एक पर डोंडी वपटिा कर इि उद्घोषणा को प्रकासशत करें , उक्त उद्घोषणा की एक प्रनत
उक्त िम्पवियों में िे िर एक के ििजदृश्य भाग में और तत्पश्चात ् न्याय-िदन में लगाएं और क्रफर
िे तार खें , र्जनको, और िि र नत, र्जििे उद्घोषणा का प्रकाशन क्रकया गया िै , दसशित करने िाल
ररपोटि इि न्यायालय को भेजें ।
ता0 ............................................
न्यायाधीश

अनि
ु च
ू ी
िंख्यांक 31
िेता के व्यनतिम के कारण िम्पवि के पन
ु विविय में कीमत में िुई कमी का वििय करने िाले
अधधकारी द्िारा प्रमाण पत्र
(आदे श 21 का ननयम 71)
(शीषवक)

यि प्रमाणणत क्रकया जाता िै क्रक उक्त िाद में की डडिी के ननष्पादन में िुए िम्पवि के उि
पन
ु विििय में जो................... िे ता के व्यनतिम के पररणामस्िरुप क्रकया गया, उक्त िम्पवि की
कीमत में .......................... रुपए की कमी रि और उि पन
ु विििय के िम्बन्ध में ......................
रुपए व्यय िुए और यि रकम कुल......................... रुपए िोती िै जो व्यनतिम करने िाले िे
ििलू य िै ।
ता0 ...............................................
वििय करने िाला अधधकार

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िंख्यांक 32
ननष्पादन में बेची गई जंगम िम्पवि पर कब्जा रखने िाले व्यस्तत
को िच
ू ना ( आदे श 21 का ननयम 79)
(शीषवक)

प्रेवषती-
............................उक्त िाद में की गई डडिी के ननष्पादन में िुए लोक वििय
में ..................................................... का, जो अब आपके कब्जे में िै िेता िो गया िै , अत:
उक्त.......................पर कब्जा उक्त..................के सििाय क्रकिी व्यर्क्त को पररदि करन िे आपको
प्रनतवषद्ध क्रकया जाता िै ।
यि आज ता0 ..................को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा लगाकर द गई ।
न्यायाधीश

िंख्यांक 33
ननष्पादन में बेचे गए ऋणों का िंदाय िेता िे सिन्न क्रकिी व्यस्तत को करने के विरुद्ध
प्रनतषेधात्मक आदे श (आदे श 21 का ननयम 79)
(शीषवक)
प्रेवषती........................................... और.............................................
.........................................उक्त िाद में की डडिी के ननष्पादन में िुए लोक वििय में उक्त
ऋण का, जो आप/..........................के द्िारा आप/...........................को शोध्य िै , िेता िो गया िै ,
अत: यि आदे श हदया जाता िै क्रक आप...................... उक्त ऋण का िंदाय
उक्त.........................के सििाय क्रकिी व्यर्क्त या व्यर्क्तयों को करने िे प्रनतवषद्ध रिें और क्रकए
जाते िै |
यि आज ता0 ..........................को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा लगाकर हदया
गया ।
न्यायाधीश

िंख्यांक 34
ननष्पादन में बेचे गए अंशों के अन्तरण के विरुद्ध प्रनतषेधात्मक आदे श
(आदे श 21 का ननयम 79)
(शीषवक)

प्रेवषती-
........................ और..................................ननगम के िधचि ..........................उक्त िाद
में की डडिी के ननष्पादन में िुए लोक वििय में उक्त ननगम के कुछ अंशों का अथाित ्............ का,
जो क्रक आप.............. के नाम में दजि िैं, िेता िो गया िै , अत: यि आदे श हदया जाता िै क्रक
आप............ उक्त अंशों को, पि
ू ोक्त िेता उक्त...............................के सििाय क्रकिी व्यर्क्त को

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अन्तरनत करने िे या उन पर कोई लाभांश प्राप्त करने िे और उक्त ननगम के िधचि
आप................... क्रकिी ऐिे अन्तरण के सलए अनज्ञ
ु ा दे ने िे या पि
ू ोक्त िेता
उक्त.............................के सििाय क्रकिी व्यर्क्त को ऐिा िंदाय करने िे प्रनतवषद्ध रिें और क्रकए
जाते िैं ।
यि आज ता0 ....................................को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा लगाकर
हदया गया ।
न्यायाधीश

िंख्यांक 35
िम्पनत को बंधन रखने, पट्टे पर दे ने या उिका वििय करने के सलए ननणीतऋणी को प्राधधकृत
करने के सलए प्रमाणपत्र (आदे श 21 का ननयम 83)
(शीषवक)
उक्त िाद में पाररत डडिी के ननष्पादन में ............................. ननणीतऋणी की नीचे सलखी
िम्पवि के वििय के सलए ता0 ...............................को आदे श हदया गया था और न्यायालय ने,
उक्त ननणीतऋणी के आिेदन पर, उक्त वििय को मप
ु तिी कर हदया िै र्जििे क्रक िि उक्त िम्पवि
या उिके क्रकिी भाग के बन्धक, पट्टे या प्राइिेट वििय द्िारा डडिी की रकम प्राप्त कर िके ।
अत: यि प्रमाणणत क्रकया जाता िै क्रक न्यायालय ने इि प्रमाणपत्र की तार ख
िे.......................की अिधध के भीतर प्रस्थावपत बन्धक, पट्टा या वििय करने के सलए ननणीतऋणी
को प्राधधकृत कर हदया िै, परन्तु ऐिे बन्धक, पट्टे या वििय के अधीन िंदेय िब धन इि
न्यायालय को, न क्रक उक्त ननणीतऋणी को, हदए जाएंगे ।

िम्पवि का िणवन
यि आज ता0 ..................................को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा लगाकर
हदया गया ।
न्यायाधीश

िंख्यांक 36
इि बात का िे तक
ु दसशवत करने के सलए िच
ू ना क्रक वििय अपास्त तयों न कर हदया जाए (आदे श 21
के ननयम 90 और 92)
(शीषवक)

प्रेवषती-
नीचे सलखी िम्पवि का वििय उक्त िाद में पाररत डडिी के ननष्पादन में ता0 ..................
को क्रकया गया था और................... डडिीदार ने (या ननणीतऋणी ने) उक्त िम्पवि के वििय को
वििय के प्रकाशन या िंचालन में ननम्नसलणखत तार्त्िक अननयसमतता (या कपट) के आधार पर
अपास्त करने के सलए इि न्यायालय िे आिेदन क्रकया िै , अथाित ्................
अत: आपको यि िच
ू ना द जाती िै क्रक यहद आपके पाि कोई ऐिा िे तक
ु दसशित करने को िै

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र्जििे उक्त आिेदन मंजूर नि ं क्रकया जाना चाहिए तो आप अपने िबत
ू ों के िहित इि न्यायालय में
ता0................................ को, जब उक्त आिेदन िन
ु ा और अिधाररत क्रकया जाएगा, उपिंजात िों ।
यि आज ता0 ...............................को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा लगाकर द
गई ।
न्यायाधीश

िम्पवि का िणवन
िंख्यांक 37
इि बात का िे तक
ु दसशवत करने के सलए िच
ू ना क्रक वििय अपास्त तयों न कर हदया जाए (आदे श 21
का ननयम 91 और 92)
(शीषवक)

प्रेवषती-
उक्त िाद में पाररत डडिी के ननष्पादन में ता0 .........................को बेची गई नीचे सलखी
िम्पवि के िेता................. ने उि िम्पवि का वििय इि आधार पर अपास्त करने के सलए इि
न्यायालय िे आिेदन क्रकया िै क्रक ननणीतऋणी ..................का उिमें कोई वििेय हित नि ं था ।
अत: आपको यि िच
ू ना द जाती िै क्रक यहद आपके पाि कोई ऐिा िे तक
ु दसशित करने को िै
र्जििे उक्ि आिेदन मंजरू नि ं क्रकया जाना चाहिए तो आप अपने िबत
ू ों के िहित इि न्यायालय में
ता0 ........................... को, जब उक्त आिेदन िन
ु ा और अिधाररत क्रकया जाएगा, उपिंजात िों ।
यि आज ता0 ...........................को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा लगाकर द
गई ।
न्यायाधीश

िम्पवि का िणवन
िंख्यांक 38
िसू म के वििय का प्रमाणपत्र (आदे श 21 का ननयम 94)
(शीषवक)

यि प्रमाणणत क्रकया जाता िै क्रक इि िाद में की डडिी के ननष्पादन में ता0.......................
को लोक नीलाम द्िारा क्रकए गए............................के वििय में ......................... िेता घोवषत कर
हदया गया िै और उक्त वििय की पर्ु ष्ट इि न्यायालय ने िम्यक् रुप िे कर द िै ।
यि आज ता0 .....................को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा लगाकर हदया गया

न्यायाधीश

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िंख्यांक 39
ननष्पादन में वििीत िसू म का पररदान प्रमाखणत िेता को करने के सलए आदे श
(आदे श 21 का ननयम 95)
(शीषवक)

प्रेवषती-
न्यायालय का बेसलफ ।
19................................के..................... िंख्यांक िाले िाद में की डडिी के ननष्पादन में
क्रकए गए वििय में ..............................का प्रमाणणत िेता............................िो गया िै ; अत:
आपको आदे श हदया जाता िै क्रक आप उक्त.................................... को, जो यथापि
ू ोक्त प्रमाणणत
िेता िै उिका कब्जा हदला दें ।
यि आज ता0 ................को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा लगाकर हदया गया ।
न्यायाधीश

िंख्यांक 40
डििी के ननष्पादन में बाधा िालने के आरोप पर उपिंजात िोने और आरोप का उिर दे ने के सलए
िमन
(आदे श 21 का ननयम 97)
(शीषवक)

प्रेवषती-
उक्त िाद में डडिीदार .............. ने इि न्यायालय में पररिाद क्रकया िै क्रक आपने कब्जे के
सलए िारण्ट के ननष्पादन के भारिाधक अधधकार का प्रनतरोध क्रकया (या उिको बाधा पिुंचाई) अत:
आपको उक्त पररिाद का उिर दे ने के सलए ता0 ....................... को.........................बजे पि
ू ाह्र में
इि न्यायालय में उपिंजात िोने के सलए िमन क्रकया जाता िै ।
यि आज ता0 ......................को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा लगाकर हदया
गया ।
न्यायाधीश

िंख्यांक 41
िप
ु द
ु व गी िारण्ट (आदे श 21 का ननयम 98)
(शीषवक)

प्रेवषती-
.......................................................की जेल का भारिाधक अधकार ।
नीचे सलखी िम्पवि के सलए डडिी इि िाद के िाद .....................के पि में कर द गई िै
और न्यायालय का यि िमाधान िो गया िै क्रक.................. उक्त को िम्पवि पर लब्जा असभप्राप्त

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करने िे........................ क्रकिी न्यायिंगत िे तक
ु के बबना प्रनतरद्ध (या बाधधत) करता रिा िै और
अब भी प्रनतरुद्ध (या बाधधत) कर रिा िै , और उक्त.................. ने इि न्यायालय िे आिेदन क्रकया
िै क्रक उक्त.................. को सिविल कारागार को िप
ु द
ु ि क्रकया जाए ।
अत: आपको िमादे श क्रकया जाता िै और आपिे अपेिा की जाती िै क्रक आप
उक्त..................................
....................................को सिविल कारागार में लें और प्राप्त करें और उिे
ििां...............................
....................................हदनों की अिधध के सलए कैद रखें ।
यि आज ता0 ..................को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा लगाकर हदया गया

न्यायाधीश

िंख्यांक 42
िसू म के लोक वििय को रोकने के सलए कलतटर का प्राधधकरण (धारा 72)
(शीषवक)

प्रेवषती-
श्री..............................के कलक्टर,
मिोदय,
आपके........................... िंख्यांक और तार ख.................. .के उि पत्र के उिर में , र्जिमें
आपने यि व्यपहदष्ट क्रकया था क्रक इि िाद की डडिी के ननष्पादन में ................... भसू म का, जो
आपके र्जले के अन्दर र्स्थत िै वििय आपविजनक िै मझ
ु े आपको यि जानकार दे नी िै क्रक उक्त
डडिी की तर्ु ष्ट के सलए उि र नत िे व्यिस्था करने के सलए आपको प्राधधकृत क्रकया जाता िै र्जि
र नत िे व्यिस्था करने की आपने सिफाररश की िै ।
भिद य
न्यायाधीश

पररसशष्ट च
अनप
ू रू क कायविाहियां
िंख्यांक 1
ननणवय िे पि
ू व धगरफ्तारी का िारण्ट (आदे श 38 का ननयम 1)
(शीषवक)

प्रेवषती
न्यायालय का बेसलफ ।
उक्त िाद में िाद ................................. पाश्िि में अंक्रकत.................. रुपए की
रासश का दािा करता िै और उिने न्यायालय को िमाधानप्रद रुप में यि िाबबत कर हदया िै क्रक यि

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विश्िाि करने के सलए अधधिम्भाव्य िे तक
ु िै क्रक........................ प्रनतिाद .....................ि िाला िै ;
अत: आपको िमादे श हदया जाता िै क्रक आप िाद के दािे की तर्ु ष्ट के सलए
सलए पयािप्त रकम के रुप में ................. रुपए की रासश उक्त............... िे मांगे और प्राप्त करें और
जब तक क्रक.................................................................................रुपए की उक्त रासश उक्त
........ द्िारा या उिकी ओर िे आपको तत्काल पररदि न कर द जाए आप उक्त.............. को
अपनी असभरिा में ले लें और उिे इि न्यायालय के िमि इिसलए लाएं क्रक िि िे तक
ु दसशित करे
क्रक िि तब तक के सलए जब तक उक्त िाद पण
ू त
ि : और अर्न्तम रुप िे ननपटा न हदया जाए और
जब तक ऐिी डडिी की तर्ु ष्ट न िो जाए जो िाद में उिके विरुद्ध पाररत की जाए, इि न्यायालय
में स्ियं अपनी उपिंजानत के सलए............................... रुपए की रकम की प्रनतभनू त क्यों न दे ।
िि आज ता0............................. को मेरे िस्तािर िे न्यायालय की मद्र
ु ा लगाकर हदया
गया ।
न्यायाधीश
मल

ब्याज
खचि
योग

िंख्यांक 2
ननणवय िे पि
ू व धगरफ्तार क्रकए गए प्रनतिादी की उपिंजानत के सलए प्रनतिनू त
(आदे श 38 का ननयम 2)
(शीषवक)
उक्त िाद में िाद ............... को प्रेरणा पर प्रनतिाद ............ धगरफ्तार क्रकया गया िै और
इि न्यायालय के िमझ लाया गया िै ;
उक्त प्रनतिाद के इि बात का िे तक
ु दसशित करने में अिफल रिने पर क्रक अपनी उपिंजानत
के सलए िि प्रनतभनू त क्यों न दे न्यायालय ने ऐिी प्रनतभनू त दे ने का उिे आदे श हदया िै ;
अत: मैं.................................... स्िेच्छया प्रनतभू बन गया िूं और इिके द्िारा अपने को
तथा अपने िाररिों और ननष्पादकों को उक्त न्यायालय के प्रनत आबद्ध करता िूं क्रक उक्त प्रनतिाद
िाद के लर्म्बत रिने के दौरान और ऐिी क्रकिी डडिी की तर्ु ष्ट िोने तक, जो उक्त िाद में उिके
विरुद्ध पाररत की जाए, क्रकिी भी िमय बल
ु ाए जाने पर उपिंजात िोगा; और ऐिी उपिंजानत में
व्यनतिम िोने पर उि न्यायालय को उिके आदे श पर ऐिी कोई धनरासश, जो उक्त िाद में उक्त
प्रनतिाद के विरुद्ध न्यायननणीत की जाए, दे ने के सलए मैं अपने को तथा अपने िाररिों और
ननष्पादकों को आबद्ध करता िूं ।
मैंने आज ता0........................ को......................... में िस्तािर क्रकए ।
(िस्तािररत)

1.
2.

Page 510 of 536


िंख्यांक 4
प्रनतिू के अपने उन्मोचन के सलए आिेदन पर प्रनतिादी को उपिंजात िोने के सलए िमन
(आदे श 38 का ननयम 3)
(शीषवक)

प्रेवषती-
........................................................
..................................................................ने, जो उक्त िाद में आपकी उपिंजानत के
सलए ता0 ............................को प्रनतभू बना था, अपनी बाध्यता िे उन्मोधचत क्रकए जाने के सलए
इि न्यायालय िे आिेदन क्रकया िै ;
अत: आपको ता0 ...........................को.................... बजे पि
ू ािह्न में , जब उक्त आिेदन
िन
ु ा और अिधाररत क्रकया जाएगा, इि न्यायालय में स्ियं उपिंजात िोने के सलए िमन क्रकया जाता
िै |
यि आज ता0 ........................को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा लगाकर हदया
गया । न्यायाधीश

िंख्यांक 4
िप
ु द
ु व गी का आदे श (आदे श 38 का ननयम 4)
(शीषवक)

प्रेवषती-
.....................................
इि िाद में िाद ........................ ने इि न्यायालय में आिेदन क्रकया िै क्रक
प्रनतिाद ............................. िे, इि िाद में उिके विरुद्ध जो कोई ननणिय हदया जाए उिके बारे में
उिरदानयत्ि का ननिािि करने के सलए उिकी उपिंजानत के सलए प्रनतभनू त ल जाए, और न्यायालय ने
प्रनतिाद िे अपेिा की िै क्रक िि ऐिी प्रनतभनू त दे या प्रनतभनू त के बदले में पयािप्त ननिेप प्रस्थावपत
करे और िैिा करने में अिफल रिा िै । अत: यि आदे श हदया जाता िै क्रक उक्त
प्रनतिाद .................................... इि बात का विननर्श्चय िोने तक या यहद उिके विरुद्ध ननणिय
िन
ु ाया जाए तो डडिी की तर्ु ष्ट क्रकए जाने तक के सलए सिविल कारागार के िप
ु द
ु ि क्रकया जाए ।
यि आज ता0 ........................को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा लगाकर हदया
गया ।
न्यायाधीश

Page 511 of 536


िंख्यांक 5
डििी की तस्ु ष्ट के सलए प्रनतिनू त की अपेक्षा करने के आदे श के िहित ननणवय िे पि
ू व कुकी (आदे श
38 का ननयम 5)
(शीषवक)

प्रेवषती-
न्यायालय का बेसलफ ।
.............................. ने न्यायालय को िमाधानप्रद रुप में यि िाबबत कर हदया िै क्रक उक्त
िाद में प्रनतिाद ................................
अत: आपको यि िमादे श हदया जाता िै क्रक आप उक्त प्रनतिाद ............................. िे यि
अपेिा करें क्रक िि या तो...........................को या उिके मप
ू य को या उि मप
ू य के ऐिे भाग को,
उि डडिी की तर्ु ष्ट के सलए पयािप्त िो जो उिके विरुद्ध पाररत की जाए उि िमय जब उििे ऐिा
करने की अपेिा की जाए इि न्यायालय में पेश करने और न्यायालय के व्ययनाधीन रखने के
सलए.................. रुपए की रासश की प्रनतभनू त ता0 ........................को या उिके पि
ू ि दे ; या
उपिंजात िो और इि बात क िे तक
ु दसशित करे क्रक ऐिा प्रनतभनू त क्यों नि ं दे नी चाहिए । आपको
यि आदे श भी हदया जाता िै क्रक आप उक्त........................... को कुकि कर लें और, जब तक
न्यायालय का अगला आदे श न िो, उिे अपनी िरु क्षित असभरिा में रखे और आपको यि िमादे श भी
हदया जाता िै क्रक आप इि िारण्ट को िि हदन र्जिको, और िि र नत र्जििे, यि ननष्पाहदत क्रकया
गया िै या िि कारण, जििे यि ननष्पाहदत नि ं क्रकया गया, प्रमाणणत करने िाले पष्ृ ठांकन के िहित
ता0 ........................... को या उिके पि
ू ि लौटा दें ।
यि आज ता0......................... को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा लगाकर हदया
गया । न्यायाधीश

िंख्यांक 6
िम्पवि पेश करने के सलए प्रनतिनू त (आदे श 38 का ननयम 5)
(शीषवक)

उक्त िाद में िाद .....................................की प्रेरणा पर इि न्यायालय ने


प्रनतिाद ...................... को यि ननदे श हदया िै क्रक िि इििे उपाबद्ध अनि
ु च
ू ी में विननहदि ष्ट िंपवि
को न्यायालय के िमि पेश करने और न्यायालय के व्ययनाधीन रखने के
सलए...........................रुपए की प्रनतभनू त दे ,
अत: में ............... स्िेच्छया प्रनतभू बन गया िूं और इिके द्िारा अपने को तथा अपने
िाररिों और ननष्पादकों को उक्त, न्यायालय के प्रनत आबद्ध करता िूं क्रक उक्त प्रनतिाद उक्त
अनि ु च
ू ी में विननहदिष्ट िंपवि को या उिके मप ू य को या उिके ऐिे भाग को, जो डडिी की तर्ु ष्ट के
सलए पयािप्त िो, उि िमय, जबक्रक उििे ऐिा करने की अपेिा की जाए, न्यायालय के िमि पेश
करे गा और न्यायालय के व्ययनाधीन रखेगा, और प्रनतिाद के ऐिा करने में व्यनतिम करने पर
उक्त न्यायालय को उि न्यायालय के आदे श पर...........................रुपए की उक्त रासश िे अनधधक

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रासश या उक्त रासश िे अनधधक रासश या उक्त रासश िे अनधधक ऐिी रासश, जो उक्त न्यायालय
न्यायननणींत करे , दे ने के सलए मैं अपने के तथा अपने िाररिों को ननष्पादकों को आबद्ध करता िूं ।
अनि
ु च
ू ी
मैंने आज ता0 ................................को............................... में िस्तािर क्रकए ।
िािी
(िस्तािररत)
1.
2.
िंख्यांक 7
प्रनतिनू त दे ने में अिफलता िाबबत क्रकए जाने पर ननणवय िे पि
ू व कुकी
(आदे श 38 का ननयम 6)
(शीषवक)

प्रेवषती-
न्यायालय का बेसलफ ।
इि िाद में िाद .............................. .ने इि न्यायालय िे आिेदन क्रकया िै क्रक िि
प्रनतिाद ......................... िे अपेिा करे क्रक प्रनतिाद ऐिी क्रकिी डडिी की तर्ु ष्ट के सलए प्रनतभनू त
दे जो इि िाद में उिके विरुद्ध पाररत की जाए और न्यायालय ने ऐिी प्रनतभनू त दे ने के सलए
उक्त................ िे अपेिा की र्जिे दे ने में िि अिफल रिा िै ;
अत: आपको यि िमादे श हदया जाता िै क्रक आप उक्त.............................. की
िम्पवि.........................को कुकि कर लें और जब तक न्यायालय का अगला आदे श न िो उिे
िरु क्षित असभरिा में रखे । आपको यि िमादे श भी हदया जाता िै क्रक आप इि िारण्ट को, िि
तार ख र्जिको, और िि र नत र्जििे इिका ननष्पादन क्रकया गया िै या िि कारण, र्जििे इिका
ननष्पादन नि ं क्रकया गया, प्रमाणणत करने िाले पष्ृ ठांकन के िहित ता0 ........................को या
उिके पि
ू ि लौटा दें ।
यि आज ता0 .............................................को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा
लगाकर हदया गया |
न्यायाधीश

िंख्यांक 8
अस्थायी व्यादे श (आदे श 39 का ननयम 1)
(शीषवक)

िाद क ख के प्ल डर या (काउन्िेल) .....................द्िारा इि न्यायालय िे प्रस्ताि क्रकए


जाने पर और उक्त िाद के इि मामले में (आज) फाइल की गई अजी को (या इि िाद में ता0
.........................को फाइल क्रकए गए िादपत्र को या उक्त िाद के ता0 ..............................को
फाइल क्रकए गए सलणखत कथन को) पढने के पश्चात ् और उिके िमथिन में ........................के

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और...................... के िाक्ष्य को िन
ु ने के पश्चात ् (यहद िच
ू ना के पश्चात ् प्रनतिाद उपिंजात न
िुआ िो तो यि भी सलणखए, और इि आिेदन की िच ू ना की तामील प्रनतिाद ग घ पर िोने के बारे
में ...................................के िाक्ष्य को भी िन
ु ने के पश्चात ् यि न्यायालय आदे श दे ता िै क्रक िाद
के उक्त िाद में िादपत्र में िणणित (या िाद के सलणखत कथन या अजी में और इि आिेदन की
िन
ु िाई पर िाक्ष्य में िणणित तापलक
ु ा में हिंदप
ू रु के गांधी मागि के िंख्यांक........................ .िाले
गिृ को धगराने या धगरा दे ने िे और र्जि िामग्री िे उक्त गि
ृ बना िुआ िै उिको बेचने िे तब तक
के सलए, जब तक इि िाद की िन ु िाई न िो जाए या जब तक न्यायालय का अगला आदे श न िो,
प्रनतिाद ग घ को तथा उिके िेिकों, असभकतािओं और कमिकारों को अिरूद्ध करने के सलए व्यादे श
मंजूर क्रकया जाए ।
ता0..................................
न्यायाधीश
[जिां िचन-पत्र या विननमयपत्र के परिामण को अिरूद्ध करने के सलए व्यादे श चािा गया िै
ििां आदे श के आदे शक िाग का रुप इि प्रकार िो िकता िै -]
िाद के िादपत्र (या अजी) में और इि प्रस्ताि की िन
ु िाई में हदए गए िाक्ष्य में
िणणित................ के या लगभग की तार ख के प्रश्नास्पद िचनपत्र (या विननमयपत्र को अपनी या
अपने में िे क्रकिी की असभरिा िे बबलग करने िे या पष्ृ ठांक्रकत करने या िमनहु दष्ट करने या
परिामण करने िे तब तक के सलए जब तक इि िाद की िन
ु िाई न िो जाए या जब तक
न्यायालय का अगला आदे श न िो, प्रनतिाहदयों और.................. इत्याहद को अिरुद्ध करने के सलए

(प्रनतसलप्यधधकार के मामलों में )
...................................नामक पस्
ु तक को या उिके क्रकिी भाग को महु द्रत करने, प्रकासशत
करने या बेचने िे तब तक के सलए, जब तक...............................प्रनतिाद ग घ को तथा उिके
िेिकों, असभकतािओं या कमिकारों को अिरुद्ध करने के सलए, इत्याहद ।
(जिां क्रकिी पस्
ु तक के िाग मात्र के विषय में अिरूद्ध करना िै ) िादपत्र में (या अजी और
िाक्ष्य इत्याहद में ) र्जि पस्
ु तक के बारे में यि िणणित िै क्रक िि प्रनतिाद द्िारा प्रकासशत की गई िै
उि पस्
ु तक के इिमें आगे विननहदि ष्ट ऐिे भागों को, अथाित उक्त पस्
ु तक के उि भाग को र्जिका
शीषिक..................िै और उि भाग को भी र्जिका शीषिक.............................िै (या जो
पष्ृ ठ....................... िे पष्ृ ठ,.......... ......तक में , र्जिके अन्तगित ये दोनों पष्ृ ठ भी आते िैं,
अन्तवििष्ट िै ) महु द्रत करने प्रकासशत करने, बेचने या अन्यथा व्ययननत करने िे तब तक के सलए,
जब तक............... .इत्याहद प्रनतिाद ग घ को तथा उिके िेिकों, असभकतािओं या कमिकारों को
अिरुद्ध करने के सलए ।
(पेटेण्ट के मामलों में)
िाद के िादपत्र (या अजी, इत्याहद या सलणखत कथन, इत्याहद) में िणणित और िाहदयों के या
उनमें िे क्रकिी के उद्भािनों के सिद्धान्त पर कोई नछहद्रत ईंटे (या यथार्स्थनत िाद के िादपत्र (या
यथार्स्थनत) में िणणित पेटेन्ट की िसमक अिधधयों के अिसशष्ट काल के दौरान बनाने या बेचने िे
और उन उद्भािनों का या उनमें िे क्रकिी का भी कूटकरण, नकल या िादृष्टयता करने िे या उनमें
कुछ बढाने िे या उनमें िे कोई कमी करने िे तब तक के सलए, जब तक िन
ु िाई न िो जाए,

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इत्याहद प्रनतिाद ग घ को तथा उिके असभकतािओं, िेिकों और कमिकारों को अिरूद्ध करने के सलए,
इत्याहद ।
(व्यापार धचिों के मामलों में)
कोई िंरचना या स्याि (या यथार्स्थनत ऐिी बोतलों में र्जन पर िाद के िादपत्र (या अजी,
इत्याहद) में िणणित जैिे लेबबल या अन्य ऐिे लेबबल लगे िुए िैं जो समलती जुलती नकल के कारण
या अन्यथा इि रूप में बने िैं, या ऐिे असभव्यंजनापण
ू ि िैं क्रक उनिे यि व्यपहदष्ट िोता िै क्रक
प्रनतिाद द्िारा बेची जाने िाल िंरचना या स्याि िि िंरचना या स्याि (या यथार्स्थनत िै र्जिके
बारे में यि िणणित िै या तात्पनयित िै क्रक िि िाद क ख द्िारा ननसमित स्याि िै , बेचने िे या वििय
के सलए असभदसशित करने िे या बेचने के सलए उपाप्त करने िे और ऐिे व्यापार-काडों का उपयोग
करने िे, जो ऐिेबनाए गए िैं या ऐिी असभव्यंजनापण
ू ि िै क्रक उनिे यि व्यपहदष्ट िोता िै क्रक
प्रनतिाद द्िारा बेची जाने िाल या बेचे जाने के सलए प्रस्थावपत कोई िंरचना या स्याि िि िंरचना
या स्याि िै जो िाद क ख द्िारा विननसमित की या बेची जाती िै तब तक के सलए, जब तक
क्रक.................. .इत्याहद, प्रनतिाद ग घ को, उिके िेिकों, या असभकतािओं या कमिकारों को अिरुद्ध
करने के सलए ।
(कारबार में क्रकिी प्रकार िे िस्तक्षेप करने िे भागीदार को अिरूद्ध करने के सलए)
ख और घ की भागीदार फमि के नाम में कोई ऐिी िंविदा करने िे और कोई विननमयपत्र,
िचनपत्र या सलणखत प्रनतभनू त प्रनतगहृ ित करने, सलखने, पष्ृ ठांक्रकत करने या, परिासमत करने िे और
उक्त ख और घ की भागदार फमि के नाम में या प्रत्यय पर ऐिे कोई ऋण लेने िे, कोई माल
खर दने और बेचने िे और कोई मौणखक या सलणखत िचन, करार या िचनबंध करने िे और कोई
ऐिा कायि करने या कराने िे, र्जििे उक्त भागीदार फमि क्रकिी र नत िे क्रकिी धन रासश के िंदाय
के सलए या क्रकिी िंविदा, िचन या िचनबंध या पालन प्रनतिाद ग घ को तथा उिके अधधकतािओं
और िेिकों को अिरूद्ध करने के सलए, इत्याहद ।
िंख्यांक 1[91]
ररिीिर की ननयस्ु तत (आदे श 40 का ननयम 1)
(शीषवक)
प्रेवषती...............................................................................
उक्त िाद में ता0 ............................................................को............................ के पि
में पाररत डडिी के ननष्पादन में ....................................... कुकि कर ल गई िै , अत: इि बात के
अधीन रिते िुए क्रक आप न्यायालय को िमाधानप्रद रुप में प्रनतभनू त दे दें ) आपको उक्त िम्पवि का
ररिीिर, सिविल प्रक्रिया िंहिता, 1908 के आदे श 40 के उपबन्धों के अधीन की िब शर्क्तयों िहित
उक्त आदे श के अधीन ननयक्
ु त क्रकया जाता िै ।
आप िे अपेिा की जाती िै क्रक आप उक्त िम्पवि की बाबत अपनी िब प्रार्प्तयों और व्ययों
का िम्यक और उधचत लेखा ता0...................................... को दे दें । इि ननयर्ु क्त के प्राधधकार के
अधीन अपनी प्रार्प्तयों पर आप.......................... प्रनतशत की दर िे पाररश्रसमक पाने के िकदार
िोंगे ।
यि आज ता0 ........................को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा लगाकर हदया गया
न्यायाधीश

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िंख्यांक 2[10]
ररिीिर द्िारा हदया जाने िाला बन्धपत्र ( आदे श 40 का ननयम 3)
(शीषवक)

यि िब को ज्ञात िो क्रक िम.......................... और................. और ...................... के


न्यायालय के....................... .को या उिके तत्िमय पद उिरिती को..................... रुपए दे ने के
सलए उक्त.................. के प्रनत िंयक्
ु तत: और पथ
ृ कत: आबद्ध िैं । इिका पण
ू ि िंदाय करने के सलए
िम इि विलेख द्िारा अपने को और अपने में िे िर एक को और अपने में िे िर एक के बाररिों,
ननष्पादकों और प्रशािकों को िंयक्
ु ितः और पथ
ृ कत: आबद्ध करते िैं ।
ता0 ................................................
............................... ने....................................के विरुद्ध न्यायालय
में ................................................. (यिां िाद का उद्दे श्य सलणखए) के प्रयोजनाथि िादपत्र फाइल
क्रकया िै ;
उक्त न्यायालय के आदे श द्िारा उक्त.............................. को िादपत्र में नासमत.............
की स्थािर िम्पवि के भाटक और लाभ प्राप्त करने के सलए और उिकी परादे श जंगम िम्पवि ले
लेने के सलए ननयक्
ु त क्रकया गया िै ;
इि बाध्यता की शति यि िै क्रक यहद उक्त रुप में आबद्ध व्यर्क्त......................... उि िब
धनरासश और उन िब धनरासशयों में िे िर एक का िम्यक रुप िे लेखा, जो िि
उक्त.....................................की स्थािर िम्पवि के भाटकों और लाभों की बाबत और उिकी जंगम
िम्पवि की बाबत प्राप्त करे ऐिी अिधधयों में जो न्यायालय द्िारा ननयक्त की जाएं, दे दे गा और िे
बाकी रकमें र्जनके बारे में िमय-िमय पर प्रमाणणत क्रकया जाए क्रक िे उिके द्िारा शोध्य िैं, ऐिे दे
दें जैिे उक्त न्यायालय ने ननहदष्ट क्रकया िै या उक्त न्यायालय इिके पश्चात ् ननहदष्ट करे तो यि
बाध्यता शन्
ू य िोगी अन्यथा यि पण
ू त
ि : प्रित
ृ रिे गी ।
उक्त रुप में आबद्ध व्यर्क्त ने इि पर.............................. की उपर्स्थनत में िस्तािर क्रकए
और पररदान क्रकया ।

1. प्ररुप का िंख्याक, जो मल
ू रूप िे गलत छप गया था और 6 था, 1914 के अधधननयम
िं. 10 की धारा 2 और अनि
ु च
ू ी 1 द्िारा ठीक कर हदया गया था ।
2. प्ररुप का िख्यांक जो मल
ू रूप िे गलत छप गया था और 7 था, 1914 के अधधननयम
िं. 10 की धारा 2 और अनि
ु च
ू ी 1 द्िारा ठीक कर हदया गया था ।

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पररसशष्ट छ
अपील, ननदे श और पन
ु विवलोकन
िंख्यांक 1
अपील का ज्ञापन (आदे श 41 का ननयम 1)
(शीषवक)

उक्त............................... के.............................. िंख्यांक िाले िाद में ता0


.........................की...............................की डडिी के अपील...........................................
में के................................... न्यायालय में करता िै और र्जि डडिी की अपील की जा रि िै उिके
विरुद्ध आिेप के ननम्नसलणखत आधार उपिणणित करता िै , अथाित ् िैं:-

िंख्यांक 2
डििी का ननष्पादन रोकने का आदे श क्रकए जाने पर हदया जाने िाला प्रनतिनू त-बन्धपत्र
(आदे श 41 का ननयम 5)
(शीषवक)
प्रेवषती-
.....................................................
डडिी का ननष्पादन रोक हदए जाने पर........................ द्िारा ननष्पाहदत यि प्रनतभनू त-
बन्धपत्र ननम्नसलणखत का िाक्ष्य िै :----
........................................द्िारा, जो.....................के िंख्यांक िाले िाद में िाद िै ,
प्रनतिाद ................................पर इि न्यायालय में िाद चलाए जाने पर और ता0
........................... को िाद के पि में डडिी पाररत की जाने पर और उक्त डडिी की
अपील............................न्यायालय में प्रनतिाद द्िारा की जाने पर, उक्त अपील अब तक लंबबत िै
|
अब िाद डडिीदार ने डडिी के ननष्पादन के सलए आिेदन क्रकया िै और प्रनतिाद ने ननष्पादन
रोकने की प्राथिना करने िाला आिेदन हदया िै और उिके प्रनतभनू त दे ने के अपेिा की गई िै ।
तदनि
ु ार मैं अपनी स्ितंत्र इच्छा िे............................... रुपए की प्रनतभनू त दे ता िूाँ और उिके सलए
इिके िाथ उपाबद्ध अनि ु च
ू ी में विननहदिष्ट िम्पनतयों को बंधक करता िूाँ और यि प्रिंविदा करता िूाँ
क्रक यहद अपील न्यायालय द्िारा प्रथम न्यायालय की डडिी पष्ु ट कर द जाती िै या उिमें फेरफार
कर हदया जाता िै तो उक्त प्रनतिाद अपील न्यायालय की डडिी के अनि
ु ार िम्यक रूप िे कायि
करे गा, और जो कुछ उिके अधीन उिके द्िारा िंदेय िोगा िि उिका िंदाय करे गा और यहद िि
ऐिा करने में अिफल रिे गा तो ऐिे िंदाय की कोई भी रकम इिके द्िारा बंधक की गई िम्पवि िे
ििल
ू कर ल जाएगी, और यहद उक्त िम्पवियों के वििय के आगम शोध्य रकम के िंदाय के सलए
अपयािप्त िों तो मैं और मेरे विधधक प्रनतननधध बाकी रकम दे ने के सलए िैयर्क्तक रुप िे दायी िोंगे ।
इि आशय का यि प्रनतभनू त-बंधपत्र में आज तार ख............................को ननष्पाहदत करता िूाँ ।

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अनि
ु च
ू ी
(िस्तािररत)
िािी-
1.
2.

िंख्यांक 3
अपील लस्म्बत रिने के दौरान हदया जाने िाला प्रनतिनू त-बन्धपत्र
(आदे श 41 का ननयम 6)
(शीषवक)
प्रेवषती-
.............................................
डडिी का ननष्पादन रोक हदए जाने पर............................... द्िारा ननष्पाहदत यि प्रनतभनू त-
बन्धपत्र ननम्नसलणखत का िाक्ष्य िै -
...........................द्िारा, जो 19...............................के िंख्यांक िाले िाद में िाद िै ,
प्रनतिाद .............................पर इि न्यायालय में िाद चलाए जाने पर और ता0
.............................................. को िाद के पि में डडिी पाररत की जाने पर और उक्त डडिी की
अपील...........................न्यायालय में प्रनतिाद द्िारा की जाने पर उक्त अपील अब तक लर्म्बत िै

अब िाद डडिीदार ने उक्त डडिी के ननष्पादन के सलए आिेदन क्रकया िै और उििे प्रनतभनू त
दे ने की अपेिा की िै । तदनि
ु ार मैं अपनी स्ितन्त्र इच्छा िे............................. रुपए तक की
प्रनतभनू त दे ता िूं और उिके सलए इिके िाथ उपाबद्ध अनि ु च
ू ी में विननहदि ष्ट िम्पवियों को बन्धक
करता िूं और यि प्रिंविदा करता िूं क्रक यहद प्रथम न्यायालय की डडिी अपील न्यायालय द्िारा उलट
द जाती िै या उिमें फेरफार कर हदया जाता िै तो िाद उि िम्पवि का प्रत्याितिन कर दे गा जो
उक्त डडिी के ननष्पादन में ल जाए या ले ल गई िै और िि अपील न्यायालय की डडिी के अनि
ु ार
िम्यक रुप िे कायि करे गा और जो कुछ उिके अधीन उिके द्िारा िंदेय िोगा िि उिका िंदाय
करे गा और यहद िे ऐिा करने में अिफल रिे गा तो ऐिे िंदाय की कोई भी रकम इिके द्िारा
बन्धक की गई िम्पवियों िे ििल
ू कर ल जाएगी और यहद उक्त िम्पवियों के वििय के आगम
शोध्य रकम के िंदाय के सलए अपयािप्त िो तो मैं और मेरे विधधक प्रनतननधध बाकी रकम दे ने के
सलए िैयर्क्तक रुप िे दायी िोंगे । इि आशय का यि प्रनतभनू त बन्ध-पत्र मैं आज ता0
......................को ननष्पाहदत करता िूं ।

अनि
ु च
ू ी
िािी
(िस्तािररत)
1.
2.

Page 518 of 536


िंख्यांक 4
अपील के खचों के सलए प्रनतिनू त (आदे श 41 का ननयम 10)
(शीषवक)
प्रेवषती-
अपील के खचों के सलए.................................. द्िारा ननष्पाहदत यि प्रनतभनू त-बन्धपत्र
ननम्नसलणखत का िाक्ष्य िै :-
अपीलाथी ने 19...................के............... िंख्याक िाले िाद की डडिी की अपील प्रत्यथी के
विरुद्ध की िै और अपीलाथी िे प्रनतभनू त दे ने की अपेिा की गई िै । तदनि
ु ार मैं अपनी स्ितंत्र
इच्छा िे अपील के खचों के सलए प्रनतभनू त दे ता िूं और उिके सलए इिके िाथ उपाबद्ध अनि ु च
ू ी में
विननहदिष्ट िम्पवियों को बन्धक करता िूं । मैं उक्त िम्पवियों को या उिके क्रकिी भी भाग को
अन्तररत नि ं करूंगा और अपीलाथी की ओर रो कोई व्यनतिम क्रकए जाने की दशा में ऐिे क्रकिी भी
आदे श का िम्यक रुप िे पालन करूंगा जो अपील के खचों के िंदाय की बाबत मेरे विरुद्ध हदया
जाए । ऐिे िंदाय की कोई रकम इिके द्िारा बन्धक की गई िम्पवियों िे ििल
ू कर ल जाएगी
और यहद उक्ि िम्पवि के वििय के आगम शोध्य रकम के िदाय के सलए अपयािप्त िों तो मैं और
मेरे विधधक प्रनतननध बाकी की रकम दे ने के सलए िैयर्क्तक रुप िे दायी िोंगे । इि आशय का यि
प्रनतभनू त बन्धपत्र मैं आज ता0 .................. को ननष्पाहदत करता िूं ।
अनिु च
ू ी
िािी
(िस्तािररत)

िंख्यांक 5
अपील र्ग्िण की जाने की ननचले न्यायालय को प्रज्ञापना (आदे श 41 का ननयम 13)
(शीषवक)
प्रेवषत
आपको ननदे श हदया जाता िै क्रक आप यि िच
ू ना लें क्रक उक्त िाद में .................. श्री
............................................................... .ने उि डडिी को जो आपने उि िाद में ता0
..................................... को पाररत की थी, अपील इि न्यायालय में की िै ।
आपिे प्राथिना िै क्रक आप िमस्त िाक्ष्य शीघ्रता िे िाद के िब तार्त्िक कागज भेज दें ।
न्यायाधीश

िंख्यांक 6
अपील की िन
ु िाई के सलए ननयत हदन की प्रत्यथी को िच
ू ना
(आदे श 41 के ननयम 14)
(शीषवक)
...................................के न्यायालय की
तार ख................................................को................ की अपील ।

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प्रेवषत -
.............................प्रत्यथी
आपको िच
ू ना द जाती िै क्रक इि मामले में .............................. की डडिी की
अपील............................. .द्िारा उपस्थावपत की गई िै और इि न्यायालय में रर्जस्टर कर ल गई
िै और इि अपील की िन
ु िाई के सलए इि न्यायालय द्िारा ता0 .........................ननयत की गई िै

यहद इि अपील में आपकी ओर िे आप स्ियं या आपके प्ल डर या आपके सलए कायि करने
के सलए विधधना प्राधधकृत कोई व्यर्क्त उपिंजात नि ं िोगा तो यि आपकी अनप
ु र्स्थनत में िन
ु ी और
विननर्श्चत की जाएगी ।
यि आज ता0 ........................ को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा लगाकर द गई

न्यायाधीश

िंख्यांक 7
िाद के उि पक्षकार की िच
ू ना जो अपील में पक्षकार निीं बनाया गया िै क्रकन्तु न्यायालय द्िारा
प्रत्यथी के रुप में िंयोस्जत कर सलया गया िै
(आदे श 41 का ननयम 20)
(शीषवक)
प्रेवषती-
आप......................... के न्यायालय में ....................... के....................... िंख्यांक िाले
िाद में पिकार थे और............................. ने उक्त िाद में अपने विरुद्ध पाररत डडिी की अपील
इि न्यायालय में की िै और इि न्यायालय को यि प्रतीत िोता िै क्रक आप उक्त अपील के पररणाम
में हितबद्ध िैं
अत: आपको िच
ू ना द जाती िै क्रक उक्त अपील में आपके प्रत्यथी बनाए जाने के सलए इि
न्यायालय ने ननदे श हदया िै और इि अपील की िन
ु िाई ता0 ..........................को.....................
बजे पि
ू ािह्र के सलए स्थधगत कर द िै । यहद उक्त हदन और उक्त िमय आपकी ओर िे उपिंजानत
नि ं िुई तो अपील आपकी अनप ु र्स्थनत में िन ु ी और विननर्श्चत ् की जाएगी ।
यि आज ता0 ............................................ को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा
लगाकर द गई ।
न्यायाधीश

िंख्यांक 8
प्रत्यमक्षेप का ज्ञापन (आदे श 41 का ननयम 22)
(शीषवक)
.............................ने 19..................... के......................... िंख्यांक िाले िाद
में ................ .की ता0.......................... की डडिी की अपील............................ में
के........................... न्यायालय में की िै और अपील की िन
ु िाई के सलए ननयत हदन की िच
ू ना की

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तामील............................. .पर ता0 ....................... को िो गई थी, अत :............................
सिविल प्रक्रिया िंहिता, 1908 के आदे श 41 के ननयम 22 के अधीन प्रत्यािेप का यि ज्ञापन फाइल
करता िै और उि डडिी पर, र्जिकी अपील की गई िै आिेप के ननन्मसलणखत आधार उपिणणित
करता िै अथाित ् िै ---

िंख्यांक 9
अपील में डििी (आदे श41 का ननयम 35)
(शीषवक)
ता0 ............................की..................... न्यायालय की डडिी की अपील
िंख्यांक........................ 19....................................
अपील का ज्ञापन
िाद ............................
प्रनतिाद .......................
उक्त........................... उपयक्
ुि ि िाद में ...........................................की ता0
...................की डडिी की अपील................ न्यायालय में ननम्नसलणखत कारणों िे करता िै अथाित ्
िैं---
यि अपील तार ख................................. को अपीलाथी की ओर िे....................... की और
प्रत्यथी की ओर िे........................... की उपर्स्थनत में ................................ के िमि िन
ु िाई के
सलए आने पर यि आदे श हदया जाता िै
क्रक .........................................
इि अपील के खचे, र्जिका ब्यौरा नीचे हदया गया िै और र्जनकी रकम.........................
रुपए िैं ........................... द्िारा हदए जाने िैं । मल
ू िाद के खचे....................... द्िारा हदए जाने
िै ।
यि आज ता0 ................... को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा लगाकर द गई ।
न्यायाधीश

अपील के खचे

अपीलाथी रकम प्रत्यथी रकम


रु. आ. पा. रु. आ. पा.
1. अपील के ज्ञापन के सलए शर्क्तपत्र के सलए स्टाम्प
स्टाम्प
2. शर्क्तपत्र के सलए स्टाम्प अजी के सलए स्टाम्प
3. आदे सशकाओं की तामील
4. ........ रुपए पर प्ल डर की आदे सशकाओं की तामील

फीि ....... रुपए पर प्ल डर की फीि

जोड़ जोड़

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िंख्यांक 10
अक्रकं चन के रुप में अपील करने के सलए आिेदन (आदे श 44 का ननयम 1)
(शीषवक)
मैं उक्त...................................................उक्त िाद की डडिी की अपील का िंलग्र ज्ञापन
उपस्थावपत करता िूं और आिेदन करता िूं क्रक मझ
ु े अक्रकं चन के रुप में अपील करने की अनज्ञ
ु ा द
जाए । इिके िाथ मेर िब जंगम और स्थािर िम्पवि की परू और ठीक अनि ु च
ू ी उि िम्पवि के
प्राक्कसलत मप
ू य के िहित उपाबद्ध िै ।
ता0 ................................
(िस्तािररत)
िंख्यांक 11
अक्रकं चन के रुप में की गई अपील की िच
ू ना (आदे श 44 के ननयम 1)
(शीषवक)
उक्त.................................. .ने उक्त िाद में ता0 ........................की डडिी की अपील
अक्रकं चन के रुप मे करने की अनज्ञ
ु ा द जाने के सलए आिेदन क्रकया िै , और आिेदन की िन
ु िाई के
सलए ता0 ..................... ननयत की गई िै , अत: आपको िच
ू ना द जाती िै यहद आप इि बात का
ु दसशित करना चािते िैं क्रक आिेदन को अक्रकंचन के रुप में अपील करने की अनज्ञ
िे तक ु ा न द जाए
तो ऐिा करने का अििर आपको पि
ू ािक्त तार ख को हदया जाएगा ।
यि आज ता0 ...................... को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा लगाकर द गई

न्यायाधीश

िंख्यांक 12
इि बात का िे तक
ु दसशवत करने के सलए िच
ू ना क्रक [उच्चतम न्यायालय] में अपील करने के सलए
1

प्रमाणपत्र तयों न अनद


ु ि क्रकया जाए (आदे श 45 का ननयम 3)
(शीषवक)
प्रेवषती-
......................................................
2
[आपको यि िच
ू ना द जाती िै क्रक.....................................ने इि न्यायालय में इि
प्रमाणपत्र के सलए आिेदन क्रकया िै क्रक---
(i) इि मामले में िाििजननक मित्ि का िारिान ् विधध-प्रश्न जुडा िुआ िै ; और
(ii) इि न्यायालय की राय में यि आिश्यक िै क्रक इि प्रश्न का विननश्चय उच्चतम
न्यायालय द्िारा क्रकया जाए । ]
यि दसशित करने के सलए क्रक न्यायालय िि प्रमाणपत्र क्यों न दे जो मांगा गया िै , आप के
सलए ता0 ........................... .ननयत की गई िै ।
यि आज ता0 ...............................को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा लगाकर द
गई ।
रस्जस्रार

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िंख्यांक 13
3
[उच्चतम न्यायालय में की गई अपील र्ग्िण की जाने की प्रत्यथी को िच
ू ना
(आदे श 48 का ननयम 8)
(शीषवक)
प्रेवषती-
उक्त मामले में ............................ ने सिविल प्रक्रिया िंहिता, 1908 के आदे श 45 के ननयम
7 द्िारा अपेक्षित प्रनतभनू त दे द िै और ननिेप कर हदया िै ;
अत: आपको यि िच
ू ना द जाती िै क्रक [उच्चतम न्यायालय में ] उक्त............... की अपील
4

ता0 ...........................को ग्रिण कर ल गई िै ।


यि आज ता0 ...................को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा लगाकर द गई ।
रस्जस्रार
ु ू लन आदे श, 1950 द्िारा ''क्रकंग इन काउं सिल'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत
1. विधध अनक
क्रकया गया ।
2. 1973 के अधधननयम िं. 49 की धारा 4 द्िारा पि
ू ि
ि ती पैरा के स्थान पर प्रनतस्थावपत
क्रकया गया ।
ु ू लन आदे श, 1950 द्िारा ''क्रकंग इन काउं सिल'' के स्थान पर प्रनतस्थावपत
3. विधध अनक
क्रकया गया ।
4. विधध अनक
ु ू लन आदे श, 1950 द्िारा “हिज मैजेस्ट इन काउसिल'' के स्थान पर
प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

िंख्यांक 14
इि बात का िे तक
ु दसशवत करने के सलए िच
ू ना क्रक पन
ु विवलोकन तयों न मंजरू क्रकया जाए (आदे श 47
का ननयम 4)
(शीषवक)
प्रेवषती-
आपको िच
ू ना द जाती िै क्रक.......................... .ने उक्त मामले में ता0........................को
पाररत इि न्यायालय की डडिी के पन
ु वििलोकन के सलए इि न्यायालय में आिेदन क्रकया िै । इि
बात का िे तक
ु दसशित करने के सलए क्रक इि मामले में अपनी डडिी का पन
ु वििलोकन न्यायालय क्यों
न मंजूर करे आपके सलए ता0 ..........................ननयत कर द गई िै ।
यि आज ता0 ......................को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा लगाकर द गई ।
न्यायाधीश

पररसशष्ट ज
प्रकीणव
िंख्यांक 1

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विचारण क्रकए जाने िाले वििाद्यकों की बाबत पक्षकारों का करार
(आदे श 14 का ननयम 8)
(शीषवक)

िम, जो उक्त िाद में पिकार िैं, अपने बीच विननर्श्चत क्रकए जाने िाले तथ्य के (या विधध
के) प्रश्न की बाबत ििमत िैं और िमारे बीच वििादास्पद प्रश्न यि िै क्रक ता0............................के
और उक्त िाद में प्रदशि............... .के रुप में फाइल क्रकए गए बन्धपत्र पर आधाररत दािा पररिीमा
कानन
ू के परे िै या नि ं िै (या जो िी प्रश्न वििादास्पद िो िि यिां सलखखए)
अत: िम अपने को पथ
ृ कत: आबद्ध करते िैं क्रक इि वििाद्यक पर न्यायालय के
नकारात्मक (या िकारात्मक) ननष्कषि पर...................उक्त........................को................. रुपए की
रासश (या ऐिी रासश जैिी न्यायालय शोध्य ठिराए) स्िीकार करूंगा (या ऐिे ननष्कषि पर मैं
उक्त..................... करुं गा या करने िे प्रविरत रिूंगा, इत्याहद, इत्याहद) ।
िाद
प्रनतिाद
िािी-
1.
2.
ता0...................................

िंख्यांक 2
विचारण के सलए िाद का अन्तकरण दि
ू रे न्यायालय को कराने के सलए आिेदन की िच
ू ना (धारा
24) के

.................................के र्जला न्यायाधीश के न्यायालय में 19.............................. का


िंख्यांक........................... ।
प्रेवषती-
..................................के................................न्यायालय में अब लर्म्बत
19.................................. के............................. ..............................िंख्यांक िाले िाद में ,
र्जिमें , िाद िै और.............................. प्रनतिाद िै ....................................ने विचारण के सलए
िाद का अन्तरण.............................. .के............................................. न्यायालय को करने के
सलए
ता0 ..............................का आिेदन इि न्यायालय में हदया िै ;
अत: आपको इविला द जाती िै क्रक आिेदन की िन
ु िाई के सलए ता0 .............................
ननयत की गई िै और यहद आप उिके विरुद्ध कोई आिेप करना चािते िैं तो उि हदन आपकी
िन
ु िाई की जाएगी । यि आज ता0 ................................को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की
मद्र
ु ा लगाकर द गई ।
न्यायाधीश

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1
[िंख्यांक 2क
िादी/प्रनतिादी द्िारा आिूत क्रकए जाने के सलए प्रस्थावपत िाक्षक्षयों की िच
ू ी
(आदे श 16 का ननयम 1)

उि पिकार का नाम जो िािी िािी का नाम और पता हटप्पणी]


को आिूत करने की प्रस्थापना
करता िै ।

िंख्यांक 3
न्यायालय में जमा कर हदए जाने की िच
ू ना (आदे श 24 का ननयम 2)
(शीषवक)

आपको यि िच
ू ना द जाती िै क्रक प्रनतिाद ने.......................................रुपए न्यायालय में
जमा कर हदए िैं और िि किता िै क्रक िाद के दािे के पण
ू ि िंदाय के सलए यि रासश पयािप्त िै ।
िाद के प्ल डर य को ।
ि म, प्रनतिादी का प्लीिर

िंख्यांक 4
िे तक
ु दसशवत करने के सलए िच
ू ना (िाधारण प्ररुप)
(शीषवक)
प्रेवषती-
उक्त...................................ने इि न्यायालय में यि आिेदन क्रकया िै
क्रक ......................................
अत: आपको चेतािनी द जाती िै क्रक आप उि आिेदन के विरुद्ध िे तक
ु दसशित करने के
सलए ता0.................................. को............................पि
ू ािह्र में स्ियं या अपने प्ल डर द्िारा र्जिे
िम्यक् रुप िे अनद
ु े श हदया गया िो, उपिंजात िो । यहद आप ऐिा करने में अिफल रिें गे तो उक्त
आिेदन की िन
ु िाई और उिका ननपटारा एकपिीय रुप िे क्रकया जाएगा ।
यि आज ता0 .............................को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा लगाकर द
गई ।
न्यायाधीश

1. 1976 के अधधननयम िं. 104 की धारा 96 द्िारा (1-2-1977 िे) अन्तःस्थावपत क्रकया
गया ।

िंख्यांक 5

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िादी/ प्रनतिादी द्िारा पेश की गई दस्तािेजों की िच
ू ी (आदे श 13 ननयम 1 प्रनतिादी)
(शीषवक)
िंख्यांक दस्तािेज का िणिन यहद दस्तािेज पर कोई पिकार या प्ल डर के
तार ख पड़ी िै तो िि िस्तािर
तार ख
1 2 3 4

िंख्यांक 6
जो िाक्षी अधधकाररता िे बािर जाने िी िाला िै उिकी परीक्षा करने के सलए ननयत हदन की पक्षकारों
को िच
ू ना (आदे श 18 का ननयम 16)
(शीषवक)
प्रेवषती-
.................................................. िादी (या प्रनतिादी)
...........................................ने उक्त िाद में न्यायालय िे आिेदन क्रकया िै क्रक
उक्त........................... द्िारा अपेक्षित िािी............................की पर िा तरु न्त कर ल जाए और
न्यायालय को िामाधानप्रद रुप में यि बात दसशित कर द गई िै क्रक उक्त िािी न्यायालय की
अधधकाररता को छोडकर बािर जाने ि िाला िै (या कोई अन्य अच्छा और पयािप्त िे तक
ु सलणखए);
अत: आपको िच
ू ना द जाती िै क्रक उक्त िािी....................की इि न्यायालय में पर िा
ता0.................... को की जाएगी ।
ता0 .........................
न्यायाधीश

िंख्यांक 7
अनप
ु स्स्थत िाक्षी की परीक्षा करने के सलए कमीशन
(आदे श 26 के ननयम 4 और 18)
(शीषवक)
प्रेवषती-
...................................का िाक्ष्य को उक्त िाद में ......................... द्िारा अपेक्षित िै ,
और........ अत: आपिे ननिेदन िै क्रक आप या तो पररप्रश्नों द्िारा (या मौणखक रुप िे) उि
िािी............ का िाक्ष्य ले लें और इि प्रयोजन के सलए आपको कसमश्नर ननयक्
ु त क्रकया जाता िै ।
यहद पिकार या उनके असभकताि िार्जर िों तो उनकी उपर्स्थनत में िाक्ष्य सलया जाएगा और
विननहदिष्ट बातों के बारे में िािी में प्रश्न पछ
ू ने की उन्िें स्िंतत्रता िोगी, और आपिे यि भी ननिेदन
िै क्रक आप ऐिा िाक्ष्य उिके सलए जाने के पश्चात ् तरु न्त यिां भेज दें ।
िािी की िार्जर वििश कराने के सलए आदे सशका आपके आिेदन पर अधधकाररता रखने िाले
क्रकिी न्यायालय द्िारा ननकाल जाएगी ।

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ऊपर िणणित के सलए आपकी फीि की बाबत.......................रुपए की रासश इिके िाथ भेजी
जाती िै
यि आज ता0 .......................को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा लगाकर हदया
गया ।
न्यायाधीश

िंख्यांक 8
अनरु ोध पत्र (आदे श 26 का ननयम 5)
(शीषवक)

(शीषिक दें :--- इत्याहद, इत्याहद, के अध्यि और न्यायाधीशों को, या यथार्स्थनत)


............................... में एक िाद, र्जिमें क ख िाद िैं और ग घ प्रनतिाद िैं, इि िमय
लर्म्बत िै और उक्त िाद में िाद दािा करता िै क्रक............................
(दािे का िार)
और उक्त न्यायालय िे यि व्यपहदष्ट क्रकया गया िै क्रक न्याय के प्रयोजनों के सलए और
पिकारों के बीच वििादग्रस्त बातों के िम्यक अिधारण के सलए ऐिी बातों के बारे में शपथ पर
िािी के रुप में ननम्नसलणखत व्यर्क्तयों की, अथाित िै ---
..........................के च छ
.......................के ज झ और
...................के ट ठ
की पर िा करना आिश्यक िै और यि प्रतीत िोता िै क्रक ये िािी आपके माननीय
न्यायालय के अधधकाररता के अन्दर ननिाि करते िैं ।
अत: उक्त न्यायालय के.................................के रुप में मझ
ु े.............................. को
अनरु ोध करना िै और मैं इिके द्िारा यि अनरु ोध करता िूं क्रक पि ू ोक्त कारणों िे और उक्त
न्यायालय की ििायता के सलए आप उक्त............................... के अध्यि और न्यायाधीशों के रुप
में या आप में िे कोई एक या अधधक उक्त िािी को (और ऐिे अन्य िाक्षियों को र्जन्िें िमन
करने के सलए आप िे उक्त िाद और प्रनतिाद के असभकताि विनम्रता िे सलणखत प्राथिना करें ) अपने
में िे एक या अधधक के िमि या ऐिे अन्य व्यर्क्त के िमि, जो आपके न्यायालय की प्रक्रिया के
अनि
ु ार िाक्षियों की पर िा करने के सलए िमि िो, ऐिे िमय और ऐिे स्थान में , जो आप ननयक्
ु त
करें , िार्जर िोने के सलए िमन करने की कृपा करें और इि अनरु ोध-पत्र के िाथ भेजे जा रिे
पररप्रश्नों द्िारा (या मौखखक रुप िे) िाद और प्रनतिाद के असभकतािओं की, या उनमें िे उनकी जो
िम्यक िच
ू ना हदए जाने पर ऐिी पर िा में उपर्स्थत िों, उपर्स्थनत में उक्त प्रश्नगत बातों के बारे
में ऐिे िाक्षियों की पर िा करिाए ।
आपिे यि भी अनरु ोध िै क्रक उक्त िाक्षियों के उिरों को लेखबद्ध कराने की आप कृपा करें
और ऐिी पर िा में पेश की गई िब पस्
ु तकों, धचट्हठयों, कागज-पत्रों और दस्तािेजों की पिचान के
सलए उन्िें िम्यक् रुप िे धचर्ह्नत कराएं और ऐिी पर िा को अपने अधधकरण की मद्र
ु ा द्िारा या
ऐिी अन्य र नत िे जो आपकी प्रक्रिया के अनि
ु ार िो, अधधप्रमाणीकृत कराएं और अन्य िाक्षियों की

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पर िा करने के सलए ऐिी सलणखत प्राथिना के िाथ, यहद कोई िो, उिे उक्त न्यायालय को लौटा दें ।

1. विधध अनक
ू ू लन आदे श, 1950 द्िारा “विदे श कायि के सलए हिज मैजस्
े ट के िेिेटर ऑफ
स्टे ट” के स्थान पर प्रनतस्थावपत क्रकया गया ।

िंख्यांक 9
स्थानीय अन्िेषण के सलए या लेखाओं की परीक्षा के सलए कमीशन
(आदे श 26 के ननयम 6 और 11)
(शीषवक)
प्रेवषती-
इि िाद के प्रयोजनों के सलए यि अपेक्षित िमझा गया िै क्रक...................के सलए कमीशन
ननकाला जाए; अत: आपको........................के प्रयोजनों के सलए कसमश्नर ननयक्
ु त क्रकया जाता िै ।
ऐिे क्रकन्ि ं िाक्षियों को आपके िमि िार्जर करने के सलए या ऐिी क्रकन्ि ं दस्तािेजों क
आपके िमि पेश कराने के सलए, र्जनकी पर िा या र्जनका ननर िण आप करना चािें , आदे सशका,
अधधकाररता रखने िाले क्रकिी भी न्यायालय द्िारा आपके आिेदन पर ननकाल जाएगी ।
उपयक्
ुि त के सलए आपकी फीि की बाबत........................... रुपए की रासश इिके िाथ भेजी
जाती िै ।
यि आज ता0 .......................को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा लगाकर हदया
गया ।
न्यायाधीश

िंख्यांक 10
वििाजन करने के सलए कमीशन (आदे श 26 का ननयम 11)
(शीषवक)
प्रेवषती-
इि िाद की प्रयोजनों के सलए यि अपेक्षित िमझा गया िै क्रक इि न्यायालय की
तार ख.............. की डडिी में विननहदि ष्ट िम्पवि का विभाजन या पथ
ृ क्करण उक्त डडिी में घोवषत
अधधकारों के अनि
ु ार करने के सलए कमीशन ननकाला जाए; अत: उक्त प्रयोजन के सलए आपको
कसमश्नर ननयक्
ु त क्रकया जाता िै और आपको ननदे श हदया जाता िै क्रक आप ऐिी जांच के पश्चात ्
जैिी आिश्यक िो, उक्त िम्पवि को उक्त डडिी में दजि अंशों में अपने ििोिम कौशल और ननणिय
के अनि
ु ार विभक्त कर दें , और विसभन्न पिकारों को ऐिे अंश आबंहटत कर दें । अंशों के मप
ू यों को
िमतप
ु य करने के प्रयोजन िे जो भी रासश क्रकिी एक पिकार द्िारा क्रकिी दि
ू रे पिकार को िंदेय
िो िि रासश अधधननणीत करने के सलए आपको प्राधधकृत क्रकया जाता िै ।
ऐिे क्रकिी िािी को आपके िमि िार्जर कराने के सलए या ऐिी क्रकिी दस्तािेज को आपके
िमि पेश कराने के सलए र्जिकी पर िा या र्जिका ननर िण आप करना चािे , आदे सशका,
अधधकाररता रखने िाले क्रकिी भी न्यायालय द्िारा आपके आिेदन पर ननकाल जाएगी ।
उपयक्
ुि त के सलए आपकी फीि की बाबत.................................. रुपए की रासश इिके िाथ
भेजी जाती िै ।

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यि आज ता0 .........................को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा लगाकर हदया
गया ।
न्यायाधीश

1
[िंख्यांक 11
प्रमाणपत्र प्राप्त नैिधगवक या िास्तविक िंरक्षक को िच
ू ना
(आदे श 32 का ननयम 3)
(शीषवक)
प्रेवषती-
(प्रमाणपत्र प्राप्त, नैिधगिक या िास्तविक िंरिक)
उक्त िाद में िाद की ओर िे2 अियस्क प्रनतिाद की ओर िे3 अियस्क
प्रनतिाद ................. के सलए िादाथि िंरिक की ननयर्ु क्त के सलए आिेदन क्रकया गया िै , अत:
आपको (यिां न्यायालय द्िारा ननयक्
ु त या घोवषत िंरिक या नैिधगिक िंरिक या र्जि व्यर्क्त की
दे ख-रे ख में अियस्क िै , उि व्यर्क्त का नाम सलणखए) िच
ू ना द जाती िै क्रक यहद आप न्यायालय
के िमि मामले की िन
ु िाई के सलए ननयम और उपाबद्ध िमन में कधथत हदन को या उिके पि
ू ि
उपिंजात नि ं िोते िैं और अियस्क के सलए िादाथि िंरिक के रुप में कायि करने के सलए अपनी
ििमनत असभव्यक्त नि ं करते िैं तो न्यायालय क्रकिी अन्य व्यर्क्त को उक्त िाद के प्रयोजनों के
सलए, अियस्क के िंरिक के रुप में कायि करने के सलए ननयक्
ु त करने के सलए अग्रिर िोगा ।
यि आज ता0 ...........................को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा लगाकर द
गई ।
न्यायाधीश

िंख्यांक 11क
अियस्क प्रवितादी को िच
ू ना (आदे श 32 का ननयम 3)
(शीषवक)
प्रेवषती-
अियस्क प्रनतिाद
उक्त िाद में िाद की ओर िे, आप को अियस्क प्रनतिाद के सलए...................... *की
िादाथि िंरिक के रुप में ननयर्ु क्त के सलए आिेदन उपर्स्थत क्रकया गया िै । अत: आपको िच
ू ना द
जाती िै और आपिे अपेिा की जाती िै क्रक आप इि आिेदन के विरुद्ध िे तक
ु दसशित करने के सलए
इि न्यायालय में ता0..........................को.............................. बजे पि
ू ािह्न में स्ियं उपिंजात िों ।
यहद आप ऐिा करने में अिफल रिें गे तो उक्त आिेदन की िन
ु िाई और उिका अिधारण एकपिीय
रुप िे क्रकया जाएगा ।
यि आज ता0 ..........................को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा लगाकर द
गई ।
न्यायाधीश ]
*अनापेक्षित शब्द काट हदए जाएं ।

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िंख्यांक 12
अक्रकं चनता के िाक्ष्य की िन
ु िाई के सलए ननयत हदन की विरोधी पक्षकार को िच
ू ना
(आदे श 33 का ननयम 6)
(शीषवक)
प्रेवषती-
.............................. ने इि न्यायालय िे................................के विरुद्ध िाद सिविल
प्रक्रिया िंहिता, 1908 के आदे श 33 के अधीन अक्रकं चन के रुप में िंर्स्थत करने की अनज्ञ
ु ा के सलए
आिेदन क्रकया िै , और न्यायालय को इि आिेदन को नामंजूर करने का कोई कारण नि ं हदखाई दे ता
िै , और ऐिी क्रकिी िाक्ष्य को लेने के सलए, जो आिेदक अपनी अक्रकं चनता िाबबत करने के सलए दे
और ऐिे क्रकिी िाक्ष्य को िन
ु ने के सलए, जो उिको नािाबबत करने के सलए हदया जाए ता0 ...........
ननयत की गई अत: आपको आदे श 33 के ननयम 6 के अधीन िच
ू ना द जाती िै क्रक यहद आप
आिेदक की अक्रकं चनता को, नािाबबत करने के सलए कोई िाक्ष्य पेश करना चािें तो आप इि
न्यायालय में उक्त ता0 ..........................को उपिंजात िोकर ऐिा कर िकते िैं ।
यि आज ता0........................... को मेरे िस्तािर िे और न्यायालय की मद्र
ु ा लगाकर द
गई ।
न्यायाधीश

िंख्यांक 13
प्रनतिू को डििी के अधीन उिके दानयत्ि की िच
ू ना (धारा 145)
(शीषवक)
प्रेवषती-
आप............................... क्रकिी ऐिी डडिी के पालन के सलए जो उक्त िाद में प्रनतिाद
उक्त..................................... .के विरुद्ध पाररत की जाए प्रनतभू के रुप में ता0
........................को दायी िुए थे, और........................के िंदाय के सलए डडिी उक्त प्रनतिाद के
विरुद्ध ता0 .......................को पाररत की गई थी, तथा उक्त डडिी को आपके विरुद्ध ननष्पाहदत
करने के सलए आिेदन क्रकया गया िै ;
अत: आपको िच
ू ना द जाती िै क्रक आपिे अपेक्षित िै क्रक आप इि बात का िे तक
ु क्रक उक्त
डडिी आपके विरुद्ध ननष्पाहदत क्यों न की जाए ता0 .............................को या उिके पि
ू ि दसशित
करें और यहद विननहदि ष्ट िमय के अन्दर न्यायालय को िमाधानप्रद रुप में पयािप्त िे तक
ु दसशित नि ं
क्रकया गया तो उक्त आिेदन के ननबन्धनों के अनि
ु ार ननष्पादन के सलए आदे श तरु न्त ननकाल हदया
जाएगा ।
यि आज ता0 ...............................को मेरे िस्तािर रो और न्यायालय की मद्र
ु ा लगाकर द
गई ।
न्यायाधीश

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िाद पत्र उपस्थावपत करने की र नत

िाद िंख्यांक

नाम

िणिन िादी

ननिाि-स्थान

नाम
प्रनतिादी

िणिन
ननिाि-स्थान

विसशर्ष्टयां
दािा

रकम का मप
ू य

िाद िे तक
ु कब प्रोदभत
ू िुए

पिकारों के उपिंजात िोने का हदन

िाद ु कब प्रोदित
ू िु
उपिंजानत

िादिे तक

प्रनतिाद

तार ख
िंख्यांक 14

ननणवय

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क्रकिके पि में हदया गया
(आदे श 4 का ननयम 2)
सिविल िादों का रस्जस्टर

क्रकि बात के सलए या क्रकि रकम के सलए ये हदया गया

अपील विननश्चय की तार ख


अपील

अपील का ननणिय

आिेदन कीतार ख
..............स्स्थत ....................न्यायलय िषव 19.......... का सिविल िादों का रस्जस्टर

आदे श की तार ख
ननष्पादन

क्रकिके विरुद्ध

क्रकि बात के सलये या यहद धन के सलए िै तो क्रकि रकम के सलये

खचों की रकम

न्यायलय में जाम की गई रकम

धगरफ्तार क्रकया गया

िंदाय या धगरफ्तार िे सभन्न वििरणी के िि


ृ और िर एक
ननष्पादन की वििरणी

वििरणी की तार ख
ज्ञपन की तार ख

अपील का िंख्यांक

नाम
अपीलाथी

िणिन

ननिाि-स्थान

नाम
प्रत्यथी

िणिन

ननिाि-स्थान
िै

क्रकि न्यायालय की िै
िंख्यांक 15

मल
ू िाद का िंख्यांक
अपीलों का रस्जस्टर
(आदे श 41 का ननयम 9)

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विसशर्ष्टयां
डडिी र्जिकी अपील की गई

रकम का मप
ू य

पिकारों के उपिंजात िोने का हदन


उपिंजानत

अपीलाथी
.............. स्स्थत न्यायलय (या उच्च न्यायालय) िषव 19........ डिक्रियों की अपीलों का रस्जस्टर

प्रत्यथी

तार ख
ननणवय

पष्ु ट क्रकया गया,उलट हदया गया या उिमें फेरफार क्रकया गया

क्रकि बात या रकम के सलए


अध्याय 5
ननरिन और व्यािवृ ि
97. ननरिन और व्यािवृ ि-- (1) इि अधधननयम के प्रारं भ के पि
ू ि क्रकिी राज्य विधान-मंडल या
उच्च न्यायालय द्िारा मल
ू अधधननयम में क्रकया गया कोई िंशोधन या अन्तःस्थावपत कोई उपबंध, ििााँ
तक के सििाय जिााँ तक क्रक ऐिा िंशोधन या उपबंध इि अधधननयम द्िारा यथा िंशोधधत मल

अधधननयम के उपबंधों िे िंगत िै , ननरसित िो जाएगा ।
(2) इि बात के िोते िुए भी इि अधधननयम के उपबंध प्रित
ृ िो गए िैं, या उपधारा (1) के
अधीन ननरिन प्रभािी िो गया िै और िाधारण खण्ड अधधननयम, 1897 (1897 का 10) की धारा 6 के
उपबंधों की व्यापकता पर प्रनतकूल प्रभाि डाले बबना,-
(क) इि अधधननयम की धारा 3 द्िारा मल
ू अधधननयम की धारा 2 के खंड (2) में क्रकया गया
िंशोधन क्रकिी ऐिी अपील पर प्रभाि नि ं डालेगा जो धारा 47 में ननहदिष्ट क्रकिी प्रश्न के अिधारण के
विरुद्ध की गई िै और प्रत्येक ऐिी अपील िे बरता जाएगा मानो उक्त धारा 3 प्रिि
ृ नि ं िुई िो;
(ख) इि अधधननयम की धारा 7 द्िारा यथािंशोधधत मल ू अधधननयम की धारा 20 के उपबंध
क्रकिी ऐिे िाद को जो उक्त धारा 7 के प्रारं भ के ठीक पि
ू ि लंबबत था, लागू नि ं िोंगे या उि पर कोई
प्रभाि नि ं डालेंग;े और ऐिे िर िाद का विचारण ऐिे क्रकया जाएगा मानो धारा 7 प्रिि
ृ नि ं िुई िो;
(ग) इि अधधननयम की धारा 8 द्िारा यथािंशोधधत मल ू अधधननयम की धारा 21 के उपबंध
क्रकिी ऐिे िाद को जो उक्त धारा 8 के प्रारं भ के ठीक पि
ू ि लंबबत था, लागू नि ं िोंगे या उि पर कोई
प्रभाि नि ं डालेंगे और ऐिे िर िाद का विचारण ऐिे क्रकया जाएगा मानो धारा 8 प्रिि
ृ नि ं िुई िो;
(घ) इि अधधननयम की धारा 11 द्िारा यथाप्रस्थावपत मल ू अधधननयम की धारा 25 के
उपबंध क्रकिी ऐिे िाद, अपील या अन्य कायििाि को र्जिमें उक्त धारा 11 के प्रारं भ के पि
ू ि धारा 25
के उपबंधों के अधीन कोई ररपोटि की गई िै , लागू नि ं िोंगे या उि पर कोई प्रभाि नि ं डालेंगे, और ऐिे
िर िाद, अपील या अन्य कायििाि िे ऐिे बरता जाएगा मानो उक्त धारा 11 प्रित
ृ नि ं िुई िो;
(ङ) इि अधधननयम की धारा 13 द्िारा यथािंशोधधत मल ू अधधननयम की धारा 34 के उपबंध
उि दर पर प्रभाि नि ं डालेंगे र्जि दर पर ब्याज क्रकिी ऐिे िाद में जो उक्त धारा 13 के प्रारं भ के पि
ू ि
िंर्स्थत क्रकया गया था, डडिी पर अनज्ञ
ु ात क्रकया जा िकेगा और ऐिे िाद में पाररत डडिी पर ब्याज
धारा 34 के उपबंधों के र्जि रुप में िै इि अधधननयम की धारा 13 के प्रारं भ के पि
ू ि थे, अनि
ु ार ऐिे
आहदष्ट क्रकया जाएगा मानो उक्त धारा 13 प्रित
ृ नि ं िुई िो;
(च) इि अधधननयम की धारा 14 द्िारा यथािंशोधधत मलू अधधननयम की धारा 35क के
उपबंध पन
ु र िण के क्रकिी ऐिी कायििाि को जो उक्ि धारा 14 के प्रारं भ के पि
ू ि लंबबत थी, लागू नि ं
िोंगे या उि पर कोई प्रभाि नि ं डालेंगे; और ऐिी िर कायििाि िे ऐिे बरता जाएगा और उिका
ननपटारा इि प्रकार क्रकया जाएगा मानो उक्त धारा 14 प्रित
ृ नि ं िुई िो;
(छ) इि अधधननयम की धारा 23 द्िारा यथािंशोधधत मल ू अधधननयम की धारा 60 के उपबंध
ऐिी क्रकिी कुकी को जो उक्त धारा 23 के प्रारं भ के पि
ू ि की गई िै , लागू नि ं िोंगे;
(ज) इि अधधननयम की धारा 27 द्िारा मल
ू अधधननयम की धारा 80 का िंशोधन क्रकिी ऐिे
िाद को जो उक्त धारा 27 के प्रारं भ के पि
ू ि िंर्स्थत क्रकया गया था, लागू नि ं िोगा या उि पर कोई

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प्रभाि नि ं डालेगा, और प्रत्येक ऐिे िाद िे ऐिे बरता जाएगा मानो उक्त धारा 27 द्िारा धारा 80 का
िंशोधन नि ं क्रकया गया िो;
(झ) इि अधधननयम की धारा 28 द्िारा यथािंशोधधत मल
ू अधधननयम की धारा 82 के उपबंध
क्रकिी ऐिी डडिी को लागू नि ं िोंगे या उि पर कोई प्रभाि नि ं डालेंगे जो, यथार्स्थनत भारत, िंघ या
क्रकिी राज्य का लोक अधधकार के विरुद्ध उक्त धारा 28 के प्रारं भ के पि
ू ि पाररत की गई थी या ऐिी
क्रकिी डडिी के ननष्पादन को लागू नि ं िोंगे; और ऐिे िर डडिी या ननष्पादन िे ऐिे बरता जाएगा मानो
उक्त धारा 28 प्रिि
ृ नि ं िुई िो;
(ञ) इि अधधननयम की धारा 30 द्िारा यथािंशोधधत मल
ू अधधननयम की धारा 91 के उपबंध
क्रकिी ऐिे िाद, अपील या कायििाि को जो उक्त धारा 30 के प्रारं भ के पि
ू ि िंर्स्थत या फाइल की गई
थी लागू नि ं िोंगे या उि पर कोई प्रभाि नि ं डालेंगे; और ऐिे िर िाद, अपील या कायििाि का
ननपटारा इि प्रकार क्रकया जाएगा मानो उक्ि धारा 30 प्रित
ृ नि ं िुई िो;
(ट) इि अधधननयम की धारा 31 द्िारा यथािंशोधधत मल ू अधधननयम की धारा 92 के उपबंध
ऐिे क्रकिी िाद, अपील या कायििाि को, जो उक्त धारा 31 के प्रारं भ के पि
ू ि िंर्स्थत या फाइल की गई
थी लागू नि ं िोंगे या उि पर कोई प्रभाि नि ं डालेंगे; और ऐिे िर िाद, अपील या कायििाि का
ननपटारा इि प्रकार क्रकया जाएगा मानो उक्त धारा 31 प्रित
ृ नि ं िुई िो;
(ठ) इि अधधननयम की धारा 33 द्िारा यथािंशोधधत मल ू अधधननयम की धारा 96 के उपबंध
क्रकिी ऐिी अपील को जो उक्त धारा 33 के प्रारं भ के पि
ू ि िंर्स्थत क्रकिी िाद में पाररत डडिी के विरुद्ध
की गई िै , लागू नि ं िोंगे या उि पर कोई प्रभाि नि ं डालेंगे; और ऐिी िर अपील िे ऐिे बरता जाएगा
मानो धारा 33 प्रित
ृ नि ं िुई िो;
(ड) इि अधधननयम की धारा 37 द्िारा यथाप्रनतस्थावपत मल
ू अधधननयम की धारा 100 के
उपबंध अपील डडिी या आदे श की क्रकिी ऐिी अपील को, जो उक्त धारा 37 के प्रारं भ के पि
ू ि आदे श 41
के ननयम 11 क अधीन िन
ु िाई के पश्चात ् ग्रिण की गई थी, लागू नि ं िोंगे या उि पर कोई प्रभाि
नि ं डालेंगे; और ऐिे ग्रिण की गई िर अपील िे ऐिे बरता जाएगा मानो उक्त धारा 37 प्रित
ृ नि ं िुई
िो;
(ढ) इि अधधननयम की धारा 38 द्िारा मल
ू अधधननयम में यथा अन्तःस्थावपत धारा 100क
क्रकिी लेटिि पेटेन्ट के अधीन उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश के विननश्चय के विरुद्ध क्रकिी ऐिी
अपील को जो उक्त धारा 38 के प्रारं भ के पि
ू ि ग्रिण की गई थी, लागू नि ं िोंगी या उि पर कोई प्रभाि
नि ं डालेगी, और ऐिी िर अपील का ननपटारा इि प्रकार क्रकया जाएगा मानो उक्त धारा 38 प्रिि
ृ नि ं
िुई िो;
(ण) इि अधधननयम की धारा 43 करा मल
ू अधधननयम की धारा 115 रु का िंशोधन
पन
ु र िण की क्रकिी ऐिी कायििाि को, जो उक्त धारा 43 के प्रारं भ के पि
ू ि प्रारं सभक िन
ु िाई के पश्चात ्
ग्रिण की गई थी लागू नि ं िोगा या उि पर कोई प्रभाि नि ं डालेगा; और पन
ु र िण की ऐिी िर
कायििाि का ननपटारा इि प्रकार क्रकया जाएगा मानो उक्त धारा 43 प्रितृ नि ं िुई िो;
(त) इि अधधननयम की धारा 47 द्िारा यथािंशोधधत मल ू अधधननयम की धारा 141 के
उपबंध क्रकिी ऐिी कायििाि को जो उक्त धारा 47 के प्रारं भ के ठीक पि
ू ि लंबबत थी, लागू नि ं िोंगे या

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उि पर कोई प्रभाि नि ं डालेंगे; और ऐिी िर कायििाि िे ऐिे बरता जाएगा मानों उक्त धारा 47 प्रित

नि ं िुई िो;
(थ) इि अधधननयम की धारा 72 द्िारा, यथार्स्थनत, यथािंशोधधत या प्रनतस्थावपत या
अन्तःस्थावपत पिल अनि
ु च
ू ी के आदे श 21 के ननयम 31, 32, 48क, 57 िे 59 तक, 90 और 97 िे
103 तक के उपबंध ननम्नसलणखत को लागू नि ं िोंगे या उन पर कोई प्रभाि नि ं डालेंगे िै ----
(i) उक्त धारा 72 के प्रारं भ के ठीक पि
ू ि विद्यमान कोई कुकी, अथिा
(ii) कोई िाद जो ऐिे प्रारं भ के पि
ू ि पि
ू ोक्त ननयम 63 के अधीन कुकि की गई िम्पवि में
अधधकार स्थावपत करने के सलए या पि
ू ोक्त ननयम 103 के अधीन कब्जा स्थावपत करने के सलए िंर्स्थत
क्रकया गया था, अथिा
(iii) क्रकिी स्थािर िम्पवि का वििय अपास्त करने के सलए कोई कायििाि ,
और ऐिी िर कुकी, िाद या कायििाि इि प्रकार चालू रखी जाएगी मानो उक्त धारा 72 प्रित

नि ं िुई िो;
(द) इि अधधननयम की धारा 73 द्िारा यथा प्रनतस्थावपत पिल अनि
ु च
ू ी के आदे श 22 के
ननयम 4 के उपबंध उक्त धारा 73 के प्रारं भ के पि
ू ि क्रक ए गए क्रकिी उपशमन आदे श को लागू नि ं िोंगे;
(ध) इि अधधननयम की धारा 74 द्िारा पिल अनि
ु च
ू ी के आदे श 23 में क्रकए गए िंशोधन या
प्रनतस्थापन क्रकिी ऐिे िाद या कायििाि को जो उक्त धारा 74 के प्रारं भ के पि
ू ि लंबबत िो, लागू नि ं
िोंगे;
(न) इि अधधननयम की धारा 76 द्िारा यथा अन्तःस्थावपत आदे श 27 के ननयम 5क और 5ख
के उपबंध क्रकिी ऐिे िाद को जो उक्त धारा 76 के प्रारं भ के ठीक पि
ू ि िरकार या क्रकिी लोक अधधकार
के विरुद्ध लंबबत था, लागू नि ं िोंगे और ऐिे िर िाद िे ऐिे बरता जाएगा मानो उक्त धारा 76 प्रिि

नि ं िुई िो;
(प) इि अधधननयम की धारा 77 द्िारा, यथार्स्थनत, यथा अन्तःस्थावपत या प्रनतस्थावपत आदे श
27क के ननयम 1क, 2क और 3 के उपबंध क्रकिी ऐिे िाद को जो उक्त धारा 77 के प्रारं भ के पि
ू ि
लंबबत था, लागू नि ं िोंगे या उि पर कोई प्रभाि नि ं डालेंगे;
(फ) इि अधधननयम की धारा 79 द्िारा, यथार्स्थनत, यथािंशोधधत या प्रनतस्थावपत पिल
अनि
ु च
ू ी के आदे श 32 के ननयम 2क, 3क और 15 क्रकिी ऐिे िाद को जो उक्त धारा 79 के प्रारं भ के
िमय लंबबत था, लागू नि ं िोंगे; और ऐिे िर िाद िे ऐिे बरता जाएगा और उिका ननपटारा इि प्रकार
क्रकया जाएगा मानो उक्त धारा 79 प्रित
ृ नि ं िुई िो;
(ब) इि अधधननयम की धारा 81 द्िारा यथािंशोधधत पिल अनि
ु च
ू ी के आदे श 33 के उपबंध
क्रकिी ऐिे याद या कायििाि को जो उक्त धारा 81 के प्रारं भ के पि
ू ि अक्रकं चन के रुप में िाद लाने की
अनज्ञ
ु ा के सलए लंबबत थी, लागू नि ं िोंगे या उि पर कोई प्रभाि नि ं डालेंगे और ऐिे िर िाद या
कायििाि िे ऐिे बरता जाएगा और उिका ननपटारा इि प्रकार क्रकया जाएगा मानो उक्त धारा 81 प्रिि

नि ं िुई िो;
(भ) इि अधधननयम की धारा 84 द्िारा यथािंशोधधत पिल अनि
ु च
ू ी के आदे श 37 के उपबंध
क्रकिी ऐिे िाद को जो उक्त धारा 84 के प्रारं भ के पि
ू ि लंबबत था, लागू नि ं िोंगे; और ऐिे िर िाद िे

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ऐिे बरता जाएगा और उिका ननपटारा इि प्रकार क्रकया जाएगा मानो उक्त धारा 84 प्रित
ृ नि ं िुई िो;
(म) इि अधधननयम की धारा 86 द्िारा यथािंशोधधत पिल अनि ु च
ू ी के आदे श 39 के उपबंध
क्रक िी ऐिे व्यादे श को जो उक्त धारा 86 के प्रारं भ के ठीक पि
ू ि विद्यमान था, लागू नि ं िोंगे या उि
पर कोई प्रभाि नि ं डालेंगे और ऐिा िर व्यादे श और ऐिे व्यादे श की अिज्ञा के सलए कायििाि िे ऐिे
बरता जाएगा मानो उक्त धारा 86 प्रििृ नि ं िुइ िो (य) इि अधधननयम की धारा 87 द्िारा
यथािंशोधधत पिल अनि ु च
ू ी के आदे श 41 के उपबध क्रकिी ऐिी अपील को जो उक्त धारा 87 के प्रारं भ
के ठीक पि
ू ि लंबबत थी, लागू नि ं िोंगे या उि पर कोई प्रभाि नि ं डालेंगे; और ऐिी िर अपील का
ननपटारा इि प्रकार क्रकया जाएगा मानो उक्त धारा 87 प्रित
ृ नि ं िुई िो;
(यक) इि अधधननयम की धारा 88 द्िारा यथािंशोधधत पिल अनि ु च
ू ी के आदे श 42 के उपबंध
क्रकिी ऐिी अपील डडिी या आदे श की क्रकिी अपील को, जो उक्त धारा 88 के प्रारं भ के पि
ू ,ि आदे श
41के ननयम 11 के अधीन िन
ु िाई के पश्चात ् ग्रिण की गई थी, लागू नि ं िोंगे या उि पर कोई प्रभाि
नि ं डालेंगे; और ऐिे ग्रिण की गई िर अपील िे ऐिे बरता जाएगा मानो उक्त धारा 88 प्रित
ृ नि ं िुई
िो ।
(यख) इि अधधननयम की धारा 89 द्िारा यथािंशोधधत पिल अनि
ु च
ू ी के आदे श 43 के उपबंध
क्रकिी ऐिी अपील को, जो उक्त धारा 89 के प्रारं भ के ठीक पि
ू ि लंबबत क्रकिी आदे श के विरुद्ध की गई
थी, लागू नि ं िोंगे, और ऐिी िर अपील का ननपटारा इि प्रकार क्रकया जाएगा मानो उक्त धारा 89 प्रित

नि ं िुई िो ।
(3) उपधारा (2) में जैिा उपबंधधत िै उिके सििाय, इि अधधननयम द्िारा यथािंशोधधत मल

अधधननयम के उपबंध ऐिे िर िाद, कायििाि , अपील या आिेदन को जो इि अधधननयम के आरं भ पर
लंबबत था अथिा ऐिे प्रारं भ के पश्चात ् िंर्स्थत या फाइल क्रकया गया िै , इि बात के िोते िुए भी लागू
िोंगे क्रक र्जि अधधकार या िाद िे तक
ु के अनि ु रण में ऐिा िाद, कायििाि , अपील या आिेदन िंर्स्थत
या फाइल क्रकया जाता िै , िि ऐिे प्रारं भ के पि
ू ि अर्जित क्रकया गया था या प्रोद्भत
ू िुआ था ।
* * * * *

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