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विविक अध्ययन-317

विविक अध्ययन
कक्षा 12 के विए पाठ्यक्रम
विविक अध्ययन-317
टिप्पणी:

50 प्रश्नों िािे एक प्रश्न पत्र में से 40 प्रश्नों को हि करने की आिश्यकता होगी।

भाग इकाई
I न्यायपाविका i. भारत में न्यायाियों और कानूनी कायााियों की संरचना और पदानुक्रम
ii. संवििान, भूवमकाएं और वनष्पक्षता
iii. न्यायािीशों की वनयुवि, प्रवशक्षण, सेिावनिृवि और पदच्युवत
iv. न्यायािय और न्यावयक समीक्षा
II कानून के विषय i. संपवि का कानून
ii. अनुबंिों का कानून
iii. अपकृ त्य का कानून
iv. भारत में आपराविक कानूनों का पटरचय

III मध्यस्थता, i. प्रवतकू ि और विज्ञासु प्रणािी


न्यायाविकरण ii. िैकवपपक वििाद समािान का पटरचय
अविवनणाय, और iii. ADR के प्रकार
िैकवपपक वििाद iv. मध्यस्थता, प्रशासवनक, न्यायाविकरण
समािान v. मध्यस्थता और सुिह
vi. िोक अदाित
vii. िोकपाि
viii. िोकपाि और िोकायुि

IV भारत में i.पटरचय - अंतरााष्ट्रीय संदभा


मानिाविकार ii. भारत में संिैिावनक ढांचा और संबंवित कानून
iii. अिा-न्यावयक वनकायों की वशकायत तंत्र
V भारत में पटरचय
कानूनी पेशा अविििा अविवनयम, 1961, द बार काउं वसि ऑफ इं विया, िकीि और पेशेिर
नैवतकता, िकीिों द्वारा विज्ञापन, कानून स्नातकों के विए अिसर, भारत में कानूनी
वशक्षा, कानूनी पेशा का उदारीकरण, भारत में मवहिाएं और कानूनी पेशा
VI कानूनी सेिा i. कानूनी पृष्ठभूवम - आपराविक कानून के तहत मुफ्त कानूनी सहायता,
राज्य द्वारा कानूनी सहायता, भारतीय संवििान के तहत कानूनी
सहायता, NALSAR विवनयम,2010
ii. मुफ्त कानूनी सेिाएं देने के विए मानदंि
iii. िोक अदाित
iv. सामाविक न्याय और मानिाविकारों के संदभा में कानूनी सहायता

विविक अध्ययन-317
VII अंतरााष्ट्रीय संदभा i अंतरााष्ट्रीय कानून का पटरचय
ii. अंतरााष्ट्रीय कानून के स्रोत -
संवियां, सीमा शुपक और आईसीिे वनणाय
iii. अंतरााष्ट्रीय संस्थान, अंतरााष्ट्रीय मानिाविकार
iv. प्रथागत अन्तरााष्ट्रीय कानून
v. अंतरााष्ट्रीय कानून और नगरपाविका कानून
vi. अंतरााष्ट्रीय कानून और भारत
vii. वििाद समािान - ICJ, ICC और अन्य वििाद समािान तंत्र
VIII कानूनी सूवि महत्िपूणा कानूनी सूवि ।
वनम्नविवित के दृष्ांतों के साथ अथा:
- Actus non facit reum nisi mens sit rea
- Ad valorem
- Amicus Curiae
- Audi alterem partum
- Assentio Mentium
- Bona fide
- Bona Vacantia
- Caveat Emptor
- Corpus Delicto
- Damnum Sine Injuria
- De Die in Diem
- De Minimis Lex Non Curat
- Doli Incapax
- Ejusdem Generis
- Ex Post Facto
- Ignorantia Facti Excusat
– IgnorantiaJuris Non Excusat
- Injuria Sine Damnum
- Locus Standi
- Nemo Debet Esse Judex in Propria SuaCausa
- Nemo debt non quad habit
- Noscitur a Sociis
- Obiter Dicta
- Pari Materia
- Per Incuriam
- Qui Facit Per Alium, Facit Per Se
- Quid pro quo
- Ratio Decidendi
- Res ipsa loquitur
- Res Judicata Accipitur Pro Veritate
- Salus Populi Est Suprema Lex
- Stare Decisis
- Ubi Jus Ibi Remediu

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