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न्याययक यिद्ाांत: तत्त्व और िार का यिद्ाांत (Doctrine of Pith and

यह यिद्ाांत या एक ऐिी यथियत है यििे आमतौर पर Substance)


न्यायालयों द्वारा लागू और बरकरार रखा िाता है। भारतीय Pith का अिण है 'प्रकृयत' (True Nature) और
िवां ैधायिक कािूि में भी यवयभन्ि न्याययक यिद्ाांत हैं िो िमय Substance का अिण है 'यकिी चीि का िबिे महत्त्वपूर्ण
के िाि न्यायपायलका द्वारा दी गई व्याख्या के अिुिार या आवश्यक यहथिा'।
यवकयित होते हैं। मूल:
इि लेख में कुछ महत्त्वपूर्ण न्याययक यिद्ाांतों पर चचाण की गई इि यिद्ाांत को पहली बार किाडा के िांयवधाि में थवीकार
है। यकया गया िा और भारत में इिे भारत िरकार अयधयियम,
शयियों के पि ृ क्करर् का यिद्ाांत (Doctrine of 1935 के तहत थवतांिता पूवण अवयध में अपिाया गया िा।
Separation of Powers) प्रयोज्यता:
यह मख् ु य रूप िे राज्य के यवयभन्ि अांगों, कायणपायलका, Pith और Substance के यिद्ाांत को आमतौर पर वहााँ
यवधाययका और न्यायपायलका के मध्य शयियों के यवभािि लागू यकया िाता है िहााँ यह यिधाणररत करिे का प्रश्न उठता है
को दशाणता है।
यक क्या कोई यवशेर् कािूि यकिी यवशेर् यवर्य (िातवीं
शयियों का पृिक्करर् मुख्य रूप िे िरकारी शयियों के यि-
अिि ू ी में उयललयखत) िे िबां यां धत है, ऐिे में न्यायालय
ु च
ििू ीकरर् को दशाणता है: मामले के िार को देखता है।
एक ही व्ययि को राज्य के तीि अांगों में िे एक िे अयधक का
यवधाययका की उपयोयगता (अिच्ु छे द 246) िे िबां यां धत
यहथिा िहीं होिा चायहये।
एक अांग को राज्य के यकिी अन्य अांग के कायण में हथतक्षेप िहीं मामलों में इिकी प्रयोज्यता के अलावा Pith और
करिा चायहये। Substance के यिद्ाांत को िांिद द्वारा बिाए गए कािूिों
एक अांग को यकिी अन्य अांग को िौंपे गए कायण िहीं करिे और राज्य यवधाििभाओ ां द्वारा बिाए गए कािूिों (अिुच्छे द
चायहये। 254) में प्रयतकूलता िे िांबांयधत मामलों में भी लागू यकया
िवां ैधायिक प्रावधाि: िाता है।
भारतीय िांयवधाि के राज्य के िीयत यिदेशक यिद्ाांतों ऐिे मामलों में कें द्र और राज्य यवधािमांडल द्वारा बिाए गए
(DPSP) का अिुच्छे द-50 न्यायपायलका को कायणपायलका कािूिों के बीच अिांगयत को हल करिे के यलये यिद्ाांत को
िे अलग करता है, "राज्य, राज्य की िावणियिक िेवाओ ां में लागू यकया िाता है।
न्यायपायलका को कायणपायलका िे अलग करिे के यलये कदम महत्त्वपूर्ण यिर्णय:
उठाएगा और इिके अलावा शयि के यवभािि की कोई प्रफुलल बिाम बैंक ऑफ कॉमिण (वर्ण 1946) मामले में
औपचाररक प्रयिया िहीं है।” िवोच्च न्यायालय िे मािा यक राज्य का ऐिा कािूि, िो उधार
महत्त्वपूर्ण यिर्णय: यदये गए धि ( राज्य का यवर्य) िे िांबांयधत है, के वल इियलये
राम िवाया बिाम पि ां ाब राज्य (वर्ण 1955) मामले में यक यह ियां ोग िे प्रॉयमिरी िोट को प्रभायवत करता है, अमान्य
िवोच्च न्यायालय िे कहा: "भारतीय िांयवधाि िे वाथतव में िहीं है।
पर् ू ण कठोरता िे शयियों के पि ृ क्करर् के यिद्ाांत को मान्यता
िहीं दी है, लेयकि िरकार के यवयभन्ि भागों या शाखाओ ां के
कायों को पयाणप्त रूप िे यवभेयदत यकया है।"
इयां दरा गाांधी बिाम राि िारायर् (वर्ण 1975) मामले में
िवोच्च न्यायालय िे कहा: “शयियों का पृिक्करर् िांयवधाि
की मल ू िरां चिा का यहथिा है। गर्तिां के तीि अलग-अलग
अांगों में िे कोई भी दूिरे को िौंपे गए कायों को िहीं कर
िकता है।"
आकयथमक या िहायक शयियों का यिद्ाांत के वल वे प्रावधाि िो मौयलक अयधकारों के अिुरूप िहीं हैं, वे
(Doctrine of Incidental or Ancillary अमान्य होंगे।
Powers) िीमा:
यह तत्त्व और िार के यिद्ाांत के अयतररि व्याख्या िे ययद कािूि का वैध और अमान्य भाग आपि में इतिा अयधक
यवकयित हुआ है। यमला हुआ हो यक उिे अलग िहीं यकया िा िकता है तो पूरा
इि यिद्ाांत को तब लागू यकया िाता है िब यकिी मामले या कािूि या अयधयियम अमान्य हो िाएगा।
प्रश्न में प्रमुख यवयधयों की िहायता करिे की आवश्यकता मूल:
होती है। िेवरेयबयलटी का यिद्ाांत िॉडेिफे लट बिाम मैयक्िम िॉडेिफे लट
Pith और Substance का यिद्ाांत के वल यवर्यों िे गन्ि एडां एम्युयिशि कांपिी यलयमटेड के मामले में इांग्लैंड िे
िबां यां धत है, लेयकि आकयथमक या िहायक शयियों का यवकयित हुआ है, िहााँ यह मुद्दा एक ट्रे ड क्लॉज िे िांबयां धत
यिद्ाांत ऐिे यवर्यों और उििे िुडे मामलों पर कािूि बिािे िा।
की शयि िे िांबांयधत है। ू ण यिर्णय:
महत्त्वपर्
मूल: ए.के . गोपालि बिाम मद्राि राज्य (वर्ण 1950) में िवोच्च
इि यिद्ाांत का यवकाि अांग्रेजी कोटण ऑफ अपील के “R. न्यायालय िे कहा यक ियां वधाि के अिगां त होिे की यथियत में
v. Waterfield (वर्ण 1963)” िे िांबयां धत यिर्णय िे हुआ अयधयियम का के वल यववायदत प्रावधाि ही शून्य होगा, िांपूर्ण
है। अयधयियम िहीं और यितिा हो िके अयधयियम को बचािे के
िांवैधायिक प्रावधाि: यलये हरिांभव प्रयाि यकया िािा चायहये।
अिुच्छे द 4, अिुच्छे द 2 और 3 के तहत राज्यों के िाम बदलिे बॉम्बे राज्य बिाम एफ.एि. बलिारा (वर्ण 1951) मामले में
हेतु प्रदत्त कािूि के पूरक और प्रािांयगक मामलों पर कािूि में बॉम्बे प्रोयहयबशि एक्ट की आठ धाराओ ां को अमान्य घोयर्त
पररवतणि करिे की शयि के बारे में बात करता है। कर यदया गया। िवोच्च न्यायालय िे कहा यक िो यहथिा
अिुच्छे द 169 राज्यों में यवधािपररर्दों के उन्मूलि या यिमाणर् मौयलक अयधकारों की िीमा तक अमान्य िा, उिे बाकी
पर िि ां द को दी गई शयि के बारे में बात करता है, "िैिा यक अयधयियम िे अलग यकया िा िकता है।
कािूि के प्रावधािों को प्रभावी करिे के यलये आवश्यक हो आच्छादि का यिद्ाांत (Doctrine of
िकता है और इिमें ऐिे पूरक, आकयथमक और पररर्ामी
प्रावधाि भी शायमल हो िकते हैं यिन्हें िांिद आवश्यक
Eclipse)
यह तब लागू होता है िब कोई काििू /अयधयियम मौयलक
िमझे।" अयधकारों का उललांघि करता है।
महत्त्वपूर्ण यिर्णय: ऐिे मामले में मौयलक अयधकार अयधयियम पर भारी पड िाता
रािथिाि राज्य बिाम िी चावला (वर्ण 1958) मामले में है और इिे अप्रवतणिीय बिा देता है लेयकि यह प्रारांभ िे ही
िवोच्च न्यायालय िे कहा: "यवयध के यवर्य पर कािूि बिािे शून्य िहीं होता।
की शयि के िाि उििे िुडे िहायक मामले पर कािूि बिािे ययद मौयलक अयधकारों द्वारा लगाए गए प्रयतबध ां ों को हटा यदया
की शयि भी होती है यििे उपयणि ु कािूि बिािे की शयि में िाए तो उन्हें िुदृढ़ यकया िा िकता है।
ही शायमल यकया िा िकता है।" यह यिद्ाांत के वल िागररकों के यलये यियरिय यथियत में रहते
हैं, लेयकि ऐिे गैर-िागररकों के यखलाफ िांचायलत होते रहते
यवच्छे दिीयता का यिद्ातां (Doctrine of हैं, यिन्हें मौयलक अयधकारों प्राप्त िहीं होता है।
िांवैधायिक प्रावधाि:
Severability)
इिे पृिक्करर्ीयता के यिद्ाांत के रूप में भी िािा िाता है आच्छादि का यिद्ाांत भारतीय िांयवधाि के अिुच्छे द 13(1)
और यह िागररकों के मौयलक अयधकारों की रक्षा करता है। में यियहत है। आच्छादि का यिद्ाांत िांयवधाि के बाद बििे
ियां वधाि के अिुच्छे द 13 के खडां (1) के अिुिार, ययद भारत वाली यवयधयों पर लागू िहीं होता है।
में लागू कोई भी कािूि मौयलक अयधकारों के प्रावधािों िे महत्त्वपूर्ण यिर्णय:
अिांगत है तो यविांगयत की उि िीमा तक वे शून्य होंगे एवां यह यिर्णय भारत में पहली बार भीकािी िारायर् धाकरा
िांपूर्ण कािूि/अयधयियम को अमान्य िहीं मािा िाएगा, बयलक बिाम मध्य प्रदेश राज्य (वर्ण 1955) मामले में िुिाया गया
िा, िहााँ मध्य प्राांत और बरार मोटर वाहि (िश
ां ोधि)
िामांिथयपूर्ण यिमाणर् के यियम का यिद्ाांत: (Doctrine of
अयधयियम, 1947 में प्राांतीय िरकार को िांपूर्ण प्राांतीय मोटर
पररवहि व्यविाय लेिे का अयधकार यदया गया िा, िो Harmonious Construction)
िामांिथयपूर्ण यिमाणर् शब्द का तात्पयण ऐिे यिमाणर् िे है यििके
अिुच्छे द 19(1)(छ) का उललांघि है।
द्वारा यकिी अयधयियम के यवयभन्ि प्रावधािों के बीच िामांिथय
िुप्रीम कोटण िे मािा यक आक्षेयपत कािूि को कुछ िमय के
या एकता थिायपत की िाती है।
यलये मौयलक अयधकार द्वारा आच्छायदत (Eclipsed by िब वैधायिक प्रावधाि के शब्द एक िे अयधक अिण रखते हैं
the Fundamental Rights) कर यलया गया िा। और िदां ेह है यक कौि िा अिण प्रबल होिा चायहये, तो उिकी
व्याख्या इि तरह िे होिी चायहये यक प्रत्येक का एक अलग
छद्मता का यिद्ाांत (Doctrine of Colourable प्रभाव हो, ि की बेमािी या शन्ू य हो।
Legislation) मूल:
इि यिद्ाांत को "िांयवधाि के िाि धोखाधडी" भी कहा कई मामलों में अदालतों द्वारा दी गई व्याख्याओ ां के माध्यम िे
िाता है। िामांिथयपूर्ण यिमाणर् का यिद्ाांत उत्पन्ि हुआ है।
छद्मता का यिद्ाांत तब लागू होता है िब यकिी यवधाययका के यिद्ाांत के यवकाि का मल ू आशय शांकरी प्रिाद बिाम भारत
पाि यकिी यवशेर् यवर्य पर कािूि बिािे की शयि िहीं होती िघां मामले के ऐयतहायिक यिर्णय के िाि भारत के ियां वधाि में
है लेयकि यफर भी वह अप्रत्यक्ष रूप िे उि पर कािूि बिाती यकये गए पहले िांशोधि िे लगाया िा िकता है।
है।
इि यिद्ाांत को लागू करिे िे आक्षेयपत यवधाि के भयवरय का सामंजस्यपूर्ण निमाणर् के नियम का ससद्ांत
यिर्णय होता है। िीआईटी बिाम यहांदुथताि बलक कै ररयिण (वर्ण 2003) के
मूल: ऐयतहायिक मामले में िवोच्च न्यायालय िे िामांिथयपूर्ण
इि यिद्ाांत की उत्पयत्त एक लैयटि कहावत िे हुई है, यििका यिमाणर् के यियम के पााँच यिद्ाांत यिधाणररत यकये:
न्यायालयों को यवरोधाभािी प्रावधािों के टकराव िे बचिा
इि िांदभण में अिण है: "िो कुछ भी यवधाययका प्रत्यक्ष रूप िे चायहये और उन्हें यवरोधाभािी प्रावधािों को िमझिा चायहये।
िहीं कर िकती, वह अप्रत्यक्ष रूप िे भी िहीं कर िकती"। एक खांड के प्रावधाि का इथतेमाल दूिरे में यियहत प्रावधाि को
िवां ैधायिक प्रावधाि: शन्ू य करिे के यलये िहीं यकया िा िकता है, िब तक यक
यह यिद्ाांत आमतौर पर अिुच्छे द 246 पर लागू होता है न्यायालय िभी प्रयािों के बाविूद अपिे मतभेदों को िुलझािे
यिििे िांघ िूची, राज्य िूची और िमवती िूची के तहत का कोई राथता िहीं ढूाँढ पाता है।
यवयभन्ि यवर्यों को रेखाांयकत करके िांिद एवां राज्य िब यवरोधाभािी प्रावधािों में मतभेदों को परू ी तरह िे
यवधाििभाओ ां की यवधायी क्षमता का िीमाांकि यकया है। िुलझािा अिांभव होता है तो अदालतों को उिकी व्याख्या इि
िीमा: तरह िे करिी चायहये तायक दोिों प्रावधािों का यिािभ ां व
इि यिद्ाांत का वहााँ कोई अिप्रु योग िहीं है िहााँ एक प्रभाव थिायपत यकया िा िके ।
यवधाययका की शयियााँ यकिी िांवैधायिक िीमा िे बाँधी िहीं न्यायालयों को यह भी ध्याि में रखिा चायहये यक वैिी
हैं। व्याख्या िो एक प्रावधाि को शून्य तक कम कर देती है,
यह अधीिथि यवधाि पर भी लागू िहीं होता है। िामांिथयपूर्ण यिमाणर् िहीं है।
महत्त्वपूर्ण यिर्णय: िामांिथय थिायपत करिा यकिी वैधायिक प्रावधाि को िष्ट
आर.एि. िोशी बिाम अिीत यमलि (वर्ण 1977) मामले में करिा या उिे यिरफल करिा िहीं है।
िवोच्च न्यायालय िे यह मािा यक"बल/शयि के यवधाि में, महत्त्वपूर्ण यिर्णय:
प्रशाियिक बल पर छद्म अभ्याि अिवा िबरि विूली या के रल यशक्षा यवधेयक 1951 के मामले में यह मािा गया िा
ियां वधाि में यलखी गई बातों को तोड-मरोडकर प्रथतुत करिा यक मौयलक अयधकारों को तय करिे में अदालत को यिदेशक
आयद ऐिी अयभव्ययियााँ हैं िो के वल यह दशाणती हैं यक यिद्ाांतों पर यवचार करिा चायहये और िामांिथयपूर्ण यिमाणर् के
यवधाििभा एक यवयशष्ट कािूि को अयधकृत करिे के मामले में यिद्ाांत को अपिािा चायहये एवां दोिों िभ ां ाविाओ ां के मध्य
एक िांतुलि बिाकर यितिा िांभव हो कािूि को उतिा प्रभाव
दक्ष िहीं है, भले ही उि पर योग्यता का यिशाि लगाया गया
यदया िािा चायहये।
हो, और कुल यमलाकार यह छद्म अयधयियमि है।"
प्रादेयशक गठिोड का यिद्ाांत (Doctrine of
Territorial Nexus)
इिमें कहा गया है यक राज्य यवधािमांडल द्वारा बिाए गए कािूि
राज्य के बाहर लागू िहीं होते हैं, िब तक यक राज्य और
यवर्य-वथतु के बीच पयाणप्त िबां धां ि हो।
िांवैधायिक प्रावधाि:
यह यिद्ाांत भारतीय िांयवधाि के अिुच्छे द 245 िे अपिी
शयि प्राप्त करता है।
अिुच्छे द 245 (2) में यह प्रावधाि है यक िांिद द्वारा बिाया
गया कोई भी कािूि इि आधार पर अमान्य िहीं होगा यक
इिका अयतररि-क्षेिीय िच ां ालि होगा यािी यह भारत क्षेि के
बाहर प्रभावी होगा।
ू ण यिर्णय:
महत्त्वपर्
ए.एच. वायडया बिाम आयकर आयुि (वर्ण 1948) मामले में
यह मािा गया िा यक यकिी िवोच्च यवधायी प्रायधकरर् की
वैधता पर प्रश्न उठािे के आधार पर अयधयियमि की अयतररि
क्षेिीयता का प्रश्न कभी िहीं उठाया िा िकता है।
बॉम्बे थटेट बिाम आरएमडीिी (वर्ण 1952) मामले में
िवोच्च न्यायालय िे मािा यक बॉम्बे यवधाययका को प्रयतवादी
पर कर लगािे में िक्षम बिािे के यलये एक पयाणप्त प्रादेयशक
गठिोड मौिूद िा क्योंयक िभी गयतयवयधयााँ िो यक प्रयतयोगी
िे आमतौर करिे की उम्मीद की िाती है, वे बॉम्बे में हुई।ां

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