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कानून म वाद अथवा मुकदमा एक नागिरक-िबया है जो िकसी यायालय केसम की जाती है । इसम अ"यथ#
(plaintiff) यायालय सेिविधक उपचार या सा*या की याचना करता है । अ"यथ# की िशकायत पर एक या अिधक
ूितवादी (defendant) अपनी सफाई देतेह0 । यिद अ"यथ# सफल होता है तो यायालय उसेउसकेअिधकार1 को लागू
यािचका
सरकार या िकसी साव2जिनक संःथा सेिकसी चीज को बदलनेकी ूाथ2ना को यािचका ((पेिटशन / Petition) कहतेह0 ।
कानून केेऽ म िकसी यायालय सेिकसी तरह का अनुतोष या िरलीफ (जैसे, कोई आदेश) की माँग करतेहुए की गयी
पिरचय
यािचका, अज#दावा, अिज2पऽ अथवा वाद-पऽ वह ूपऽ है िजसके=ारा वादी िववादमःत मामलेको यायालय केसम
• (१) शीष2क,
शीष2क म बमानुसार यायालय का नाम, वादसंEया एवंसन ्, तथा वादी एवंूितवादी का नाम, पता आिद िववरण होता
है । मBय भाग म वाद संबंधी मुEय तHय1 का संिI एवंयथाथ2 वण2न होना चािहए। िविध तथा साआय का ूितपादन
अवांछनीय है । वाद हेत,ु मूLयांकन तथा ेऽािधकार संबंधी तHय1 का उLलेख अिनवाय2 है । अनुतोष का अथ2 उस सहायता
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जनिहत यािचका
जनिहत यािचका (जिहया), भारतीय कानून म,साव2जिनक िहत की रा केिलए मुकदमेका ूावधान है । अय सामाय
अदालती यािचकाओंसेअलग, इसम यह आवँयक नहींकी पीिड़त प ःवयंअदालत म जाए। यह िकसी भी नागिरक
जिहया केअबतक केमामल1 नेबहुत Qयापक ेऽ1, कारागार और बदी, सशS सेना, बालौम, बंधआ
ु मजदरू ी, शहरी
िवकास, पया2वरण और संसाधन, माहक मामले, िशा, राजनीित और चुनाव, लोकनीित और जवाबदेही, मानवािधकार
हुआ है और जनिहत यािचका का मBयम-वग2 नेसामायतः ःवागत और समथ2न िकया है । यहाँ यह BयातQय है िक
जनिहत यािचका भारतीय संिवधान या िकसी कानून म पिरभािषत नहींहै । यह उWचतम यायालय केसंवैधािनक
जाता है ।
पिरचय
इस ूकार की यािचकाओँ का िवचार अमेिरका म जमा। वहाँ इसे'सामािजक काय2वाही यािचका' कहतेहै । यह
यायपािलका का आिवंकार तथा यायधीश िनिम2त िविध है । भारत मेजनिहत यािचका पी.एन.भगवती नेूारंभ की
थी। येयािचकाएँ जनिहत को सुरित तथा बढाना चाहती है । येलोकिहत भावना पेकाय2 करती ह0 । येऐसेयाियक
उपकरण है िजनका लआय जनिहत ूाI करना है । इनका Lआय तीो तथा सःता याय एक आम आदमी को िदलवाना
तथा काय2पािलका िवधाियका को उनकेसंवैधािनक काय2 करवानेहेतु िकया जाता है । ये'समूह िहत' मेकाम आती है ना
इसकेलाभ
आलोचनाएं
1. येसामाय याियक सं
चालन मेबाधा डालती है
2. इनकेदU
ु पयोग की ूवृित परवान पेहै
जनिहत यािचका िनयिमत याियक चया2ओंसेिभन है । हालाँिक यह समकालीन भारतीय कानून Qयवःथा का
महXवपूण2 अं
ग है , आर*भ म भारतीय कानून Qयवःथा म इसेयह ःथान ूाI नहींथा। इसकी शुgआत अचानक नहींहुई,
वरन ् कई राजनैितक और याियक कारण1 सेधीरे-धीरेइसका िवकास हुआ। कहा जा सकता है िक ७० केदशक से
शुgआत होकर ८० केदशक म इसकी अवधारणा पkकी हो गयी थी। ए केगोपालन और मिास राcय (१९-०५-१९५०) केस
म उWचतम यायालय नेसंिवधान की धारा २१ का शािoदक QयाEया करतेहुए यह फैसला िदया िक धारा म QयािEयत
'िविधस*मत ूिबया' का मतलब िसफ2 उस ूिबया सेहै जो िकसी िवधान म िलिखत हो और िजसेिवधाियका =ारा पािरत
िकया गया हो।[2] अथा2त ्, अगर भारतीय संसद ऐसा कानून बनाती है जो िकसी Qयि` को उसकेजीनेकेअिधकार से
अतक2संगत तरीकेसेवंिचत करता हो, तो वह माय होगा। यायालय नेयह भी माना िक धारा २१ की िविधस*मत
ूिबया म ूाकृ ितक याय या तक2संगतता शािमल नहींहै । यायालय नेयह भी माना िक अमरीकी संिवधानकेउलट
भारतीय संिवधान म यायालय िवधाियका सेहर pिZकोण म सवqWच नहींहै और िवधाियका अपनेेऽ (कानून बनाने)
म सवqWच है । इस फैसलेकी काफी आलोचना भी हुई लेिकन यह िनण2य २५ साल सेभी cयादा समय तक बना रहा। ये
उWचतम यायालय केआरंिभक वष2 थेजब इसका gख सावधानीभरा और िवधाियका समथ2क था। यह काल हर तरह से,
आज केमाहौल, जब याियक समीा की अवधारणा ःथािपत हो चुकी है और यायालय को ऐसी संःथा केUप म देखा
जाता है जो नागिरक1 को राहत ूदान करता है और नीित-िनमा2ण भी करता है िजसका राcय को पालन करना पडता है , से
िभन था। बाद केफैसल1 म, यायालय1 की सवqWचता ःथािपत हुई और इस बीच िवधाियका और यायपािलका केबीच
मतभेद और संघष2 भी हुआ। गोलक नाथ और पंजाब राcय (१९६७) केस मे११ जज1 की खं
ड पीठ ने६-५ केबहुमत से
माना िक संसद ऐसा संिवधान संशोधन पािरत नहींकर सकता जो मौिलक अिधकार1 का हनन करता हो। केशवानंद
भारती और केरल राcय (१९७३) केस म उWचतम यायालय नेगोलक नाथ िनण2य को रt करतेहुए यह दरू गामी िसtांत
िदया िक संसद को यह अिधकार नही है िक वह संिवधान की मौिलक संरचना को बदलनेवाला संशोधन करेऔर यह भी
माना िक याियक समीा मौिलक संरचना का भाग है ।आपातकाल केदौरान नागिरक ःवतंऽता का जो हनन हुआ था,
उसम उWचतम यायालय केए डी एम जबलपुर और अय और िशवकांत शुkला (१९७६) केस, िजसकेफैसलेम
आपातकाल (१९७५-१९७७) केपwात ् यायालय केgख म गुणाXमक बदलाव आया और इसकेबाद जिहया केिवकास
को कुछ हद तक इस आलोचना की ूितिबया केUप म देख सकतेह0 । मेनका गाँधी और भारतीय संघ (१९७८) केस म
यायालय नेए केगोपालन केस केिनण2य को पलटकर जीवन और Qयि`गत ःवतंऽता केअिधकार1 को िवःतािरत
िकया।
ूमुख मुकदमे
जिहया का ूथम मुEय मुकदमा १९७९ म हुसैनआरा खा़तून और िबहार राcय (AIR 1979 SC 1360) केस म कारागार
और िवचाराधीन कैिदय1 की अमानवीय पिरिःथितय1 सेसंबd था। यह एक अिधव`ा =ारा िद इंिडयन एkसूेस अखबार
म छपेएक खबर, िजसम िबहार केजेल1 म बद हजार1 िवचाराधीन कैिदय1 का हाल विण2त था, केआधार पर दायर िकया
गया था। मुकदमेकेनतीजतन ४०००० सेभी cयादा कैिदय1 को िरहा िकया गया था। Xविरत याय को एक मौिलक
अिधकार माना गया, जो उन कैिदय1 को नहींिदया जा रहा था। इस िसdांत को बाद केकेस1 म भी ःवीकार िकया गया। [3]
एम सी मेहता और भारतीय संघ और अय (१९८५-२००१) - इस लंबेचलेकेस म अदालत नेआदेश िदया िक िदLली
औ{ोिगक अशांित और सामािजक अिःथरता को जम िदया था और इसकी आलोचना भी हुई थी िक यायालय =ारा
आम मजदरू 1 केिहत1 की अनदेखी पया2वरण केिलयेकी जा रही है । इस जिहया नेकरीब २० लाख लोग1 को ूभािवत
एक और संबd फैसलेम उWचतम यायालय नेअkटू बर २००१ म आदेश िदया िक िदLली की सभी साव2जिनक बस1 को
चरणबd तरीकेसेिसफ2 सी एन जी (क*ूेःड नेचरु ल गैस) |धन सेचलाया जाए। kय1िक यह माना गया िक सी एन
अना ~मुक केसांसद पी जी नारायणन =ारा मिास उWच यायालय म दायर जिहया, िजसम यायालय सेसंघ सरकार
को जनिहत म सन टीवी ूाइवेट िलिमटेड केडायरेkट टू होम सेवा केआवेदन को अःवीकृ त करनेका अनुरोध िकया गया
दg
ु पयोग और ूणाली की समःया
जिहया केदg
ु पयोग की संभावना हमेशा बनी रही है । और कई मामल1 की आलोचना भी हुई है । ःवयंउWचतम यायालय
गया, तो यह अनैितक हाथ1 =ारा ूचार, ूितशोध, िनजी या राजनैितक ःवाथ2 का हिथयार बन सकता है ।" भारत के
मुEय यायधीश केजी बालाकृ ंणन ने८ अkटू बर २००८ को िसंगापुर लॉ अकादमी म िदयेगयेअपनेभाषण म जिहया
की अिनवाय2ता दहु रातेहुए यह भी माना िक जिहया =ारा यायालय मनमानेतरीकेसेिवधाियका केनीितगत फैसल1 म
केअं
ग1 केबीच केशि` संतुलन की अवहेलना हो। उह1नेयह भी माना िक जिहया नेबेमतलब केस1 को भी जम िदया
है िजनका लोक-याय सेकोई सरोकार नहींहै । यायालय म मुकदम1 की संEया बढाकर इसनेयायालय केमुEय काम
को ूभािवत िकया है और माना िक जज1 केअपनेअिधकार1 सेआगेबढनेकी िःथित म कोई जाँच ूिबया भी नहींहै ।