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भारतीय साक्ष्य अधिधियम, 1872

(1872 का अधिधियम संखयांक 1)1


[15 मार्च, 1872]
उद्देधिका—साक्ष्य की धिधि का समेकि, पररभाषा और संिोिि करिा समीर्ीि है, अत: एतदद्वारा यह धिम्िधिधित रूप में
अधिधियधमत ककया जाता है :—
भाग 1

तथ्यों की सुसग
ं धत
अध्याय 1

प्रारधम्भक
1. संधिप्त िाम, धिस्तार और प्रारम्भ—यह अधिधियम भारतीय साक्ष्य अधिधियम, 1872 कहा जा सके गा ।
इसका धिस्तार 2*** सम्पूर्च भारत पर है और यह ककसी न्यायािय में या के समि की धजसके अन्तगचत 3[आमी ऐक्ट )44 तथा
45 धिक्टो, अ० 58) 4[िेिि धिधसधप्िि ऐक्ट )29 तथा 30 धिक्टो 109( या इध‍ियि िेिी )धिधसधप्िि( ऐक्ट, 1934 (1934 का 34)]
5*** 6[या एअर फोसच ऐक्ट (7 जा० 5, अ० 51)] के अिीि संयोधजत सेिा न्यायाियों से धभन्ि] सेिा न्यायािय आते हैं, समस्त न्याधयक

कायचिाधहयों को िागू है, ककन्तु ि तो ककसी न्यायािय या आकफसर के समि पेि ककए िपथ-पत्रों7 को और ि ककसी मध्यस्थ के समि
की कायचिाधहयों को िागू है;
और यह 1872 के धसतम्बर के प्रथम कदि को प्रिृत्त होगा ।
2. [अधिधियधमधतयों का धिरसि ।]—धिरसि अधिधियम, 1938 (1938 का 1) की िारा 2 और अिुसूर्ी द्वारा धिरधसत ।
3. धििचर्ि-िंि—इस अधिधियम में धिम्िधिधित िब्दों और पदों का धिम्िधिधित भािों में प्रयोग ककया गया है, जब तक कक
संदभच से तत्‍पप्रधतकू ि आिय प्रतीत ि हो—
“न्यायािय”—“न्यायािय” िब्द के अन्तगचत सभी न्यायािीि8 और मधजस्रेट9 तथा मध्यस्थों के धसिाय साक्ष्य िेिे के धिए
िैि रूप से प्राधिकृ त सभी व्यधक्त आते हैं ।
तथ्य—“तथ्य” से अधभप्रेत है और उसके अन्तगचत आती हैं—
(1) ऐसी कोई िस्तु, िस्तुओं की अिस्था, या िस्तुओं का सम्बन्ि जो इधन्ियों द्वारा बोिगम्य हो;
(2) कोई मािधसक दिा, धजसका भाि ककसी व्यधक्त को हो ।
दृषटांत
)क( यह कक अमुक स्थाि में अमुक क्रम से अमुक पदाथच व्यिधस्थत हैं, एक तथ्य है ।
)ि( यह कक ककसी मिुषय िे कु छ सुिा या देिा, एक तथ्य है ।
)ग( यह कक ककसी मिुषय िे अमुक िब्द कहे, एक तथ्य है ।

1
यह अधिधियम 1963 के धिधियम सं० 11 की िारा 3 और अिुसूर्ी द्वारा गोिा, दमर् और दीि पर धिस्ताररत ककया गया, 1963 के धिधियम सं० 6 की िारा 2
और अिुसूर्ी 1 द्वारा (1-7-1965 से) दादरा और िागर हिेिी पर और 1965 के धिधियम सं० 8 द्वारा (1-10-1967 से) सम्पूर्च ििद्वीप संघ राज्यिेत्र पर धिस्ताररत
एिं प्रिृत्त हुआ । यह अधिधियम 1-10-1963 से पांधिर्ेरी में प्रिृत्त हुआ, देधिए 1963 के धिधियम सं० 7 की िारा 3 और अिुसूर्ी 1, इस अधिधियम का संिोिि
1960 के पध‍र्मी बंगाि अधिधियम सं० 20 द्वारा प‍ध र्मी बंगाि में तथा 1979 के तधमििािु अधिधियम सं० 67 द्वारा तधमििािु में ककया गया ।
2
2019 के अधिधियम सं० 34 की िारा 95 और पांर्िी अिुसूर्ी द्वारा (31-10-2019 से) “जम्मू-क‍मीर राज्य के धसिाय” िब्दों का िोप ककया गया ।
3
1919 के अधिधियम सं० 18 की िारा 2 और अिुसूर्ी 1 द्वारा अन्त:स्थाधपत । देधिए सेिा अधिधियम (44 तथा 45 ऐक्ट, अध्याय 58) की िारा 127 ।
4
1934 के अधिधियम सं० 35 की िारा 2 और अिुसूर्ी द्वारा अन्त:स्थाधपत ।
5
धिधि अिुकूिि आदेि, 1950 द्वारा “द्वारा यथा संिोधित उस अधिधियम” िब्द धिरधसत ककए गए ।
6
1927 के अधिधियम सं० 10 की िारा 2 और अिुसूर्ी 1 द्वारा अन्त:स्थाधपत ।
7
िपथ पत्रों से संबंधित प्रथा के बारे में देधिए धसधिि प्रकक्रया संधहता, 1908 (1908 का 5) की िारा 30 )ग( और अिुसूर्ी 1, आदेि 19; दंि प्रकक्रया संधहता, 1973
(1974 का 2) की िारा 295 और िारा 297 ।
8
धसधिि प्रकक्रया संधहता, 1908 (1908 का 5) की िारा 2; भारतीय दंि संधहता, (1860 का 45) की िारा 19; और “धजिा न्यायािीि” की पररभाषा के धिए
सािारर् िंि अधिधियम, 1897 (1897 का 10) की िारा 3(17) की तुििा करें ।
9
सािारर् िंि अधिधियम, 1897 (1897 का 10) िारा 3(32) और दंि प्रकक्रया संधहता, 1973 (1974 का 2) की तुििा करें ।
2

)घ( यह कक कोई मिुषय अमुक राय रिता है, अमुक आिय रिता है, सदभािपूिचक या कपटपूिचक कायच करता है, या ककसी
धिधिषट िब्द को धिधिषट भाि में प्रयोग करता है, या उसे ककसी धिधिषट संिेदिा का भाि है या ककसी धिधिर्दचषट समय में था, एक
तथ्य है ।
)ङ( यह कक ककसी मिुषय की अमुक खयाधत है, एक तथ्य है ।
“सुसग ं त”—एक तथ्य दूसरे तथ्य से सुसंगत कहा जाता है जब कक तथ्यों की सुसंगधत से सम्बधन्ित इस अधिधियम के उपबन्िों
में धिर्दचषट प्रकारों में से ककसी भी प्रकार से िह तथ्य उस दूसरे तथ्य से संसक्त हो ।
“धििाद्यक तथ्य”—“धििाद्यक तथ्य” से अधभप्रेत है और उसके अन्तगचत आता है—
ऐसा कोई भी तथ्य धजस अके िे ही से, या अन्य तथ्यों के संसगच में ककसी ऐसे अधिकार, दाधयत्‍पि या धियोग्यता के ,
धजसका ककसी िाद या कायचिाही में प्राखयाि या प्रत्‍पयाखयाि ककया गया है, अधस्तत्‍पि, अिधस्तत्‍पि, प्रकृ धत या धिस्तार की
उपपधत्त अि‍यमेि होती है ।
स्पषटीकरर्—जब कभी कोई न्यायािय धििाद्यक तथ्य को धसधिि प्रकक्रया1 से सम्बधन्ित ककसी तत्‍पसमय प्रिृत्त धिधि के
उपबन्िों के अिीि अधभधिधित करता है, तब ऐसे धििाद्यक के उत्तर में धजस तथ्य का प्राखयाि या प्रत्‍पयाखयाि ककया जािा है, िह
धििाद्यक तथ्य है ।
दृषटांत
ि की हत्‍पया का क अधभयुक्त है ।
उसके धिर्ारर् में धिम्िधिधित तथ्य धििाद्य हो सकते हैं—
यह कक क िे ि की मृत्‍पयु काररत की,
यह कक क का आिय ि की मृत्‍पयु काररत करिे का था,
यह कक क को ि से गम्भीर और अर्ािक प्रकोपि धमिा था,
यह कक ि की मृत्‍पयु काररत करिे का कायच करते समय क धर्त्तधिकृ धत के कारर् उस कायच की प्रकृ धत जाििे में
असमथच था ।
“दस्तािेज”—“दस्तािेज”2 से ऐसा कोई धिषय अधभप्रेत है धजसको ककसी पदाथच पर अिरों, अंकों या धर्ह्िों के सािि द्वारा
या उिमें से एक से अधिक साििों द्वारा अधभव्यक्त या िर्र्चत ककया गया है जो उस धिषय के अधभिेिि के प्रयोजि से उपयोग ककए
जािे को आिधयत हो या उपयोग ककया जा सके ।
दृषटांत
िेि3 दस्तािेज है;
मुकित, धििा मुकित या फोटोधर्त्र िब्द3 दस्तािेज हैं;
मािधर्त्र या रे िांक दस्तािेज है;
िातुपट्ट या धििा पर उत्‍पकीर्च िेि दस्तािेज है;
उपहासांकि दस्तािेज है ।
“साक्ष्य”—“साक्ष्य” िब्द से अधभप्रेत है और उसके अन्तगचत आते हैं—
(1) िे सभी कथि धजिके , जांर्ािीि तथ्य के धिषयों के सम्बन्ि में न्यायािय अपिे सामिे साधियों द्वारा ककए जािे
की अिुज्ञा देता है, या अपेिा करता है; ऐसे कथि मौधिक साक्ष्य कहिाते हैं;

ऐसे कथि मौधिक साक्ष्य कहिाते हैं;

(2) 4[न्यायािय के धिरीिर् के धिए पेि की गई सब दस्तािेज,ें धजिके अंतगचत इिैक्राधिक अधभिेि भी हैं;] ऐसी
दस्तािेजें दस्तािेजी साक्ष्य कहिाती हैं ।

1
अब धसधिि प्रकक्रया संधहता, 1908 (1908 का 5) देधिए; धििाद्यकों के धस्थरीकरर् के बारे में अिुसूर्ी 1 का आदेि 14 देिें ।
2
भारतीय दंि प्रकक्रया (1860 का 45) की िारा 29 और सािारर् िंि अधिधियम, 1897 (1897 का 10) की िारा 3 (18) की तुििा करें ।
3
सािारर् िंि अधिधियम, 1897 (1897 का 10) की िारा 3(65) में “िेि” की पररभाषा की तुििा करें ।
4
2000 के अधिधियम सं० 21 की िारा 92 और दूसरी अिुसूर्ी द्वारा (17-10-2000 से) “न्यायािय के धिरीिर् के धिए पेि की गई सब दस्तािेज”ें के स्थाि पर
प्रधतस्थाधपत ।
3

“साधबत”—कोई तथ्य साधबत हुआ कहा जाता है, जब न्यायािय अपिे समि के धिषयों पर धिर्ार करिे के प‍र्ात या तो
यह धि‍िास करे कक उस तथ्य का अधस्तत्‍पि है या उसके अधस्तत्‍पि को इतिा अधिसम्भाव्य समझे कक उस धिधिषट मामिे की
पररधस्थधतयों में ककसी प्रज्ञािाि व्यधक्त को इस अिुमाि पर कायच करिा र्ाधहए कक उस तथ्य का अधस्तत्‍पि है ।
“िासाधबत”—कोई तथ्य िासाधबत हुआ कहा जाता है, जब न्यायािय अपिे समि धिषयों पर धिर्ार करिे के प‍र्ात या तो
यह धि‍िास करे कक उसका अधस्तत्‍पि िहीं है, या उसके अिधस्तत्‍पि को इतिा अधिसम्भाव्य समझे कक उस धिधिषट मामिे की
पररधस्थधतयों में ककसी प्रज्ञािाि व्यधक्त को इस अिुमाि पर कायच करिा र्ाधहए कक उस तथ्य का अधस्तत्‍पि िहीं है ।
“साधबत िहीं हुआ”—कोई तथ्य साधबत िहीं हुआ कहा जाता है, जब िह ि तो साधबत ककया गया हो और ि िासाधबत ।
“भारत”—1[“भारत” से जम्मू-क‍मीर राज्य के धसिाय भारत का राज्यिेत्र अधभप्रेत है ।]
[पद “प्रमार्कताच प्राधिकारी”, 3[“इिैक्राधिक धर्ह्िक”], 3[इिैक्राधिक धर्ह्िक प्रमार्पत्र], “इिैक्राधिक रूप”,
2

“इिैक्राधिक अधभिेि”, “सूर्िा”, “सुरधित इिैक्राधिक अधभिेि”, “सुरधित [इिैक्राधिक धर्ह्िक]” और “उपयोगकताच”, के िही
अथच होंगे, जो सूर्िा प्रौद्योधगकी अधिधियम, 2000 (2000 का 21) में हैं ।]
4. “उपिारर्ा कर सके गा”—जहां कहीं इस अधिधियम द्वारा यह उपबधन्ित है कक न्यायािय ककसी तथ्य की उपिारर्ा कर
सके गा, िहां न्यायािय या तो ऐसे तथ्य को साधबत हुआ माि सके गा, यकद और जब तक िह िासाधबत िहीं ककया जाता है, या उिके
सबूत की मांग कर सके गा :
“उपिारर्ा करे गा”—जहां कहीं इस अधिधियम द्वारा यह धिर्दचषट है कक न्यायािय ककसी तथ्य की उपिारर् करे गा, िहां
न्यायािय ऐसे तथ्य को साधबत मािेगा यकद और जब तक िह िासाधबत िहीं ककया जाता है ।
“धि‍र्ायक सबूत”—जहां कक इस अधिधियम द्वारा एक तथ्य ककसी अन्य तथ्य का धि‍र्ायक सबूत घोधषत ककया गया है,
िहां न्यायािय उस एक तथ्य के साधबत हो जािे पर उस अन्य को साधबत मािेगा और उसे िासाधबत करिे के प्रयोजि के धिए साक्ष्य
कदए जािे की अिुज्ञा िहीं देगा ।
अध्याय 2

तथ्यों की सुसग
ं धत के धिषय में
5. धििाद्यक तथ्यों और सुसग ं त तथ्यों का साक्ष्य कदया जा सके गा—ककसी िाद या कायचिाही में हर धििाद्यक तथ्य के और ऐसे
अन्य तथ्यों के , धजन्हें एतधस्मि प‍र्ात सुसंगत घोधषत ककया गया है, अधस्तत्‍पि या अिधस्तत्‍पि का साक्ष्य कदया जा सके गा और ककन्हीं
अन्यों का िहीं ।
स्पषटीकरर्—यह िारा ककसी व्यधक्त को ऐसे तथ्य का साक्ष्य देिे के धिए योग्य िहीं बिाएगी, धजससे 4धसधिि प्रकक्रया से
सम्बधन्ित ककसी तत्‍पसमय प्रिृत्त धिधि के ककसी उपबन्ि द्वारा िह साधबत करिे से धिहचककत कर कदया गया है ।
दृषटांत
(क) ि की मृत्‍पयु काररत करिे के आिय से उसे िाठी मार कर उसकी हत्‍पया काररत करिे के धिए क का धिर्ारर् ककया
जाता है ।
क के धिर्ारर् में धिम्िधिधित तथ्य धििाह है :
क का ि को िाठी से मारिा;
क का ऐसी मार द्वारा ि की मृत्‍पयु काररत करिा;
ि की मृत्‍पयु काररत करिे का क का आिय ।
)ि( एक िादकताच अपिे साथ िह बन्िपत्र, धजस पर िह धिभचर करता है, मामिे की पहिी सुििाई पर अपिे साथ िहीं िाता
और पेि करिे के धिए तैयार िहीं रिता । यह िारा उसे इस योग्य िहीं बिाती कक 4धसधिि प्रकक्रया संधहता द्वारा धिधहत ितों के
अिुकूि िह उस कायचिाही के उत्तरिती प्रक्रम में उस बन्िपत्र को पेि कर सके या उसकी अन्तिचस्तु को साधबत कर सके ।
6. एक ही संव्यिहार के भाग होिे िािे तथ्यों की सुसग ं धत—जो तथ्य धििाद्य ि होते हुए भी ककसी धििाद्यक तथ्य से उस
प्रकार संसक्त है कक िे एक ही संव्यिहार के भाग हैं, िे तथ्य सुसंगत हैं, र्ाहे िे उसी समय और स्थाि पर या धिधभन्ि समयों और
स्थािों पर घरटत हुए हों ।

1
1951 के अधिधियम सं० 3 की िारा 3 और अिुसूर्ी द्वारा “राज्य” तथा “राज्यों” की पररभाषा के स्थाि पर प्रधतस्थाधपत, जो धिधि अिुकूिि आदेि, 1950 द्वारा
अंत:स्थाधपत की गई थी ।
2
2000 के अधिधियम सं० 21 की िारा 92 और दूसरी अिुसूर्ी द्वारा (17-10-2000 से) अंत:स्थाधपत ।
3
2009 के अधिधियम सं० 10 की िारा 52 द्वारा (27-10-2009 से) “अंकीय धर्ह्िक” और “अंकीय धर्ह्िक प्रमार्पत्र” के स्थाि पर प्रधतस्थाधपत ।
4
अब देधिए धसधिि प्रकक्रया संधहता, 1908 (1908 का 5) ।
4

दृषटांत
)क( ि को पीट कर उसकी हत्‍पया करिे का क अधभयुक्त है । क या ि या पास िडे िोगों द्वारा जो कु छ भी धपटाई के समय या
उससे इतिे अल्पकाि पूिच या प‍र्ात कहा या ककया गया था कक िह उसी संव्यिहार का भाग बि गया है, िह सुसंगत तथ्य है ।
)ि( क एक सिस्त्र धिप्िि में भाग िेकर, धजसमें सम्पधत्त िषट की जाती है, फौजों पर आक्रमर् ककया जाता है और जेिें तोड
कर िोिी जाती हैं, 1[भारत सरकार] के धिरुद्ध युद्ध करिे का अधभयुक्त है । इि तथ्यों का घरटत होिा सािारर् संव्यिहार का भाग
होिे के िाते सुसंगत है, र्ाहे क उि सभी में उपधस्थत ि रहा हो ।
)ग( क एक पत्र में, जो एक पत्र-व्यिहार का भाग है, अन्तर्िचषट अपमाि-िेि के धिए ि पर िाद िाता है । धजस धिषय में
अपमाि-िेि उद्भूत हुआ है, उससे सम्बन्ि रििे िािी पिकारों के बीर् धजतिी धर्रियां उस पत्र-व्यिहार का भाग हैं धजसमें िह
अन्तर्िचषट, िे सुसंगत है तथ्य हैं, र्ाहे उिमें िह अपमाि-िेि स्ियं अन्तर्िचषट ि हो ।
)घ( प्र‍ि यह है कक क्या ि से आकदषट अमुक माि क को पररदत्त ककया गया था । िह माि, अिुक्रमि: कई मध्यिती
व्यधक्तयों को पररदत्त ककया गया था । हर एक पररदाि सुसंगत तथ्य है ।
7. िे तथ्य जो धििाद्यक तथ्यों के प्रसंग, हेतक
ु या पररर्ाम हैं—िे तथ्य सुसंगत हैं, जो सुसंगत तथ्यों के या धििाद्यक तथ्यों के
अव्यिधहत या अन्यथा प्रसंग, हेतक
ु या पररर्ाम हैं, या जो उस िस्तुधस्थधत को गरठत करते हैं, धजसके अन्तगचत िे घरटत हुए या धजसिे
उिके घटि या संव्यिहार का अिसर कदया ।
दृषटांत
)क( प्र‍ि यह है कक क्या क ि ि को िूटा ।
ये तथ्य सुसंगत हैं कक िूट के थोडी देर पहिे ि अपिे कब्जे में िि िेकर ककसी मेिे में गया, और उसिे दूसरे व्यधक्तयों को उसे
कदिाया या उिसे इस तथ्य का कक उसके पास िि है, उल्िेि ककया ।
)ि( प्र‍ि यह है कक क्या क ि ि की हत्‍पया की ।
उस स्थाि पर जहां हत्‍पया की गई थी या उसके समीप भूधम पर गुत्‍पथम-गुत्‍पथा से बिे हुए धर्ह्ि सुसंगत तथ्य हैं ।
)ग( प्र‍ि यह है कक क्या क ि ि को धिष कदया ।
धिष से उत्‍पपन्ि कहे जािे िािे ििर्ों के पूिच ि के स्िास्थ्य की दिा और क को ज्ञात ि की िे आदतें, धजिसे धिष देिे का
अिसर धमिा, सुसंगत तथ्य हैं ।
8. हेतु, तैयारी और पूिच का या प‍र्ात का आर्रर्—कोई भी तथ्य, जो ककसी धििाद्यक तथ्य या सुसंगत तथ्य का हेतु या
तैयारी दर्िचत या गरठत करता है, सुसंगत है ।
ककसी िाद या कायचिाही के ककसी पिकार या ककसी पिकार के अधभकताच का ऐसे िाद या कायचिाही के बारे में या उसमें
धििाद्यक तथ्य या उससे सुसंगत ककसी तथ्य के बारे में आर्रर् और ककसी ऐसे व्यधक्त का आर्रर्, धजसके धिरुद्ध कोई अपराि ककसी
कायचिाही का धिषय है, सुसंगत है, यकद ऐसा आर्रर् ककसी धििाद्यक तथ्य या सुसंगत तथ्य को प्रभाधित करता है या उससे प्रभाधित
होता है, र्ाहे िह उससे पूिच का हो या प‍र्ात का ।
स्पषटीकरर् 1—इस िारा में “आर्रर्” िब्द के अन्तगचत कथि िहीं आते, जब तक कक िे कथि उि कथिों से धभन्ि कायों के
साथ-साथ और उन्हें स्पषट करिे िािे ि हों, ककन्तु इस अधिधियम की ककसी अन्य िारा के अिीि उि कथिों की सुसंगधत पर इस
स्पषटीकरर् का प्रभाि िहीं पिेे़गा ।
स्पषटीकरर् 2—जब ककसी व्यधक्त का आर्रर् सुसंगत है, तब उससे, या उसकी उपधस्थधत और श्रिर्गोर्रता में ककया गया
कोई भी कथि, जो उस आर्रर् पर प्रभाि िािता है, सुसंगत है ।
दृषटांत
)क( ि की हत्‍पया के धिए क का धिर्ारर् ककया जाता है ।
ये तथ्य कक क िे ग की हत्‍पया की, कक ि जािता था कक क िे ग की हत्‍पया की है और कक ि िे अपिी इस जािकारी को िोक
धिकदत करिे की िमकी देकर क से िि उद्दाधपत करिे का प्रयत्‍पि ककया था, सुसंगत है ।
)ि( क बन्िपत्र के आिार पर रुपए के संदाय के धिए ि पर िाद िाता है । ि इस बात का प्रत्‍पयाखयाि करता है कक उसिे
बन्िपत्र धििा ।
यह तथ्य सुसंगत है कक उस समय, जब बन्िपत्र का धििा जािा अधभकधथत है, ि को ककसी धिधिषट प्रयोजि के धिए िि
र्ाधहए था ।

1
धिधि अिुकूिि आदेि, 1950 द्वारा “क्िीि” के स्थाि पर प्रधतस्थाधपत ।
5

)ग( धिष द्वारा ि की हत्‍पया करिे के धिए क का धिर्ारर् ककया जाता है ।


यह तथ्य सुसंगत है कक ि की मृत्‍पयु के पूिच क िे ि को कदए गए धिष के जैसा धिष उपाप्त ककया था ।
)घ( प्र‍ि यह है कक क्या अमुक दस्तािेज क की धिि है ।
ये तथ्य सुसंगत है कक अधभकधथत धिि की तारीि से थोडे कदि पहिे क िे उि धिषयों की जांर् की धजिसे अधभकधथत धिि के
उपबन्िों का सम्बन्ि है, कक उसिे िह धिि करिे के बारे में िकीिों से परामिच ककया और कक उसिे अन्य धििों के प्रारूप बििाए धजन्हें
उसिे पसन्द िहीं ककया ।
)ङ( क ककसी अपराि का अधभयुक्त है ।
ये तथ्य कक अधभकधथत अपराि से पूिच या अपराि करिे के समय या प‍र्ात क िे ऐसे साक्ष्य का प्रबन्ि ककया धजसकी प्रिृधत्त
ऐसी थी कक मामिे के तथ्य उसके अिुकूि प्रतीत हों या कक उसिे साक्ष्य को िषट ककया या धछपाया या कक उि व्यधक्तयों की, जो
सािी हो सकते थे, उपधस्थधत धििाररत की या अिुपधस्थधत उपाप्त की या िोगों को उसके सम्बन्ि में धमथ्या साक्ष्य देिे के धिए तैयार
ककया, सुसंगत है ।
)र्( प्र‍ि यह है कक क्या क िे ि को िूटा ।
ये तथ्य कक ि के िूटे जािे के प‍र्ात ग िे क की उपधस्थधत में कहा कक “ि को िूटिे िािे आदमी को िोजिे के धिए पुधिस
आ रही है,” और यह कक उसके तुरन्त प‍र्ात क भाग गया, सुसंगत हैं ।
)छ( प्र‍ि यह है कक क्या ि के प्रधत क 10,000 रुपए का देिदार है ।
ये तथ्य कक क िे ग से िि उिार मांगा और कक घ िे ग से क की उपधस्थधत और श्रिर्-गोर्रता में कहा कक “मैं तुम्हें सिाह
देता हं कक तुम क पर भरोसा ि करो क्योंकक िह ि के प्रधत 10,000 रुपए का देिदार है,” और कक क कोई उत्तर कदए धबिा र्िा गया,
सुसंगत हैं ।
)ज( प्र‍ि यह है कक क्या क िे अपराि ककया है ।
यह तथ्य कक क एक पत्र पािे के उपरान्त, धजसमें उसे र्ेताििी दी गई थी कक अपरािी के धिए जांर् की जा रही है, फरार हो
गया और उस पत्र की अन्तिचस्तु, सुसंगत हैं ।
)झ( क ककसी अपराि का अधभयुक्त है ।
ये तथ्य कक अधभकधथत अपराि के ककए जािे के प‍र्ात िह फरार हो गया या कक उस अपराि से अर्जचत सम्पधत्त या सम्पधत्त
के आगम उसके कब्जे में थे या कक उसिे उि िस्तुओं को, धजिसे िह अपराि ककया गया था, या ककया जा सकता था, धछपािे का प्रयत्‍पि
ककया, सुसंगत हैं ।
)ञ( प्र‍ि यह है कक क्या क के साथ बिात्‍पसंग ककया गया ।
यह तथ्य कक अधभकधथत बिात्‍पसंग के अल्पकाि प‍र्ात उसिे अपराि के बारे में पररिाद ककया, िे पररधस्थधतयां धजिके
अिीि तथा िे िब्द धजिमें िह पररिाद ककया गया, सुसंगत हैं ।
यह तथ्य कक उसिे पररिाद के धबिा कहा कक मेरे साथ बिात्‍पसंग ककया गया है, इस िारा के अिीि आर्रर् के रूप में सुसंगत
िहीं है ।
यद्यधप िह िारा 32 के ि‍ि (1) के अिीि मृत्‍पयुकाधिक कथि या
िारा 157 के अिीि सम्पोषक साक्ष्य के रूप में सुसंगत हो सकता है ।
)ट( प्र‍ि यह है कक क्या क को िूटा गया ।
यह तथ्य कक अधभकधथत िूट के तुरन्त प‍र्ात उसिे अपराि के सम्बन्ि में पररिाद ककया, िे पररधस्थधतयां धजिके अिीि
तथा िे िब्द, धजिमें िह पररिाद ककया गया, सुसंगत हैं ।
यह तथ्य कक उसिे कोई पररिाद ककए धबिा कहा कक मुझे िूटा गया है इस िारा के अिीि आर्रर् के रूप में सुसंगत िहीं है,
यद्यधप िह िारा 32 के ि‍ि (1) के अिीि मृत्‍पयुकाधिक कथि, या
िारा 157 के अिीि सम्पोषक साक्ष्य के रूप में सुसंगत हो सकता है ।
9. सुसग
ं त तथ्यों के स्पषटीकरर् या पुर:स्थापि के धिए आि‍यक तथ्य—िे तथ्य, जो धििाद्यक तथ्य या सुसंगत तथ्य के
स्पषटीकरर् या पुर:स्थापि के धिए आि‍यक है अथिा जो ककसी धििाद्यक तथ्य या सुसंगत तथ्य द्वारा इं धगत अिुमाि का समथचि या
ि‍िि करते हैं, अथिा जो ककसी व्यधक्त या िस्तु का, धजसकी अिन्यता सुसंगत हो, अिन्यता स्थाधपत करते हैं, अथिा िह समय या
6

स्थाि धस्थत करते हैं जब या जहां कोई धििाद्यक तथ्य या सुसंगत तथ्य घरटत हुआ अथिा जो उि पिकारों का सम्बन्ि दर्िचत करते हैं
धजिके द्वारा ऐसे ककसी तथ्य का संव्यिहार ककया गया था, िहां तक सुसंगत हैं जहां तक िे उस प्रयोजि के धिए आि‍यक हों ।
दृषटांत
)क( प्र‍ि यह है कक क्या कोई धिधिषट दस्तािेज क की धिि है ।
अधभकधथत धिि की तारीि पर क की सम्पधत्त की, या उसके कु टु म्ब की अिस्था सुसंगत तथ्य हो सकती है ।
)ि( क पर धिकृ षट आर्रर् का िांछि िगािे िािे अपमाि-िेि के धिए ि पर क िाद िाता है । ि प्रधतज्ञाि करता है कक
िह बात, धजसका अपमाि-िेि होिा अधभकधथत है, सर् है ।
पिकारों की उस समय की धस्थधत और सम्बन्ि, जब अपमाि-िेि प्रकाधित हुआ था, धििाद्यक तथ्यों की पुर:स्थापिा के रूप
में सुसंगत तथ्य हो सकते हैं ।
क और ि के बीर् ककसी ऐसी बात के धिषय में धििाद की धिधिधषटयां, जो अधभकधथत अपमाि-िेि से असंसक्त हैं, धिसंगत
है, यद्यधप यह तथ्य कक कोई धििाद हुआ था, यकद उससे क और ि के पारस्पररक सम्बन्िों पर प्रभाि पडा हो, सुसंगत हो सकता है ।
)ग( क एक अपराि का अधभयुक्त है ।
यह तथ्य कक, उस अपराि के ककए जािे के तुरन्त प‍र्ात क अपिे घर से फरार हो गया, िारा 8 के अिीि धििाद्यक तथ्यों के
प‍र्ातिती और उिसे प्रभाधित आर्रर् के रूप में सुसंगत है ।
यह तथ्य कक उस समय, जब िह घर से र्िा था, उसका उस स्थाि में, जहां िह गया था, अर्ािक और अजेंट कायच था, उसके
अर्ािक घर से र्िे जािे के तथ्य के स्पषटीकरर् की प्रिृधत्त रििे के कारर् सुसंगत है ।
धजस काम के धिए िह र्िा उसका ब्यौरा सुसंगत िहीं है धसिाय इसके कक जहां तक िह यह दर्िचत करिे के धिए आि‍यक
हो कक िह काम अर्ािक और अजेंट था ।
)घ( क के साथ की गई सेिा की संधिदा को भंग करिे के धिए ग को उत्‍पप्रेररत करिे के कारर् ि पर क िाद िाता है । क की
िौकरी छोडते समय क से ग कहता है कक “मैं तुम्हें छोड रहा हं क्योंकक ि िे मुझे तुमसे अधिक अच्छी प्रस्थापिा की है ।” यह कथि ग के
आर्रर् को, जो धििाद्यक तथ्य होिे के रूप में सुसंगत है, स्पषट करिे िािा होिे के कारर् सुसंगत है ।
)ङ( र्ोरी का अधभयुक्त क र्ुराई हुई सम्पधत्त ि को देते हुए देिा जाता है, जो उसे क की पत्‍पिी को देते हुए देिा जाता है । ि
उसे पररदाि करते हुए कहता है कक “क िे कहा है कक तुम इसे धछपा दो” । ि का कथि उस संव्यिहार का भाग होिे िािे तथ्य को
स्पषट करिे िािा होिे के कारर् सुसंगत है ।
)र्( क बल्िे के धिए धिर्ाररत ककया जा रहा है और उसका भीड के आगे-आगे र्ििा साधबत हो र्ुका है । इस संव्यिहार की
प्रकृ धत को स्पषट करिे िािी होिे के कारर् भीड की आिाजें सुसंगत हैं ।
10. सामान्य पररकल्पिा के बारे में षड्यंत्रकारी द्वारा कही या की गई बातें—जहां कक यह धि‍िास करिे का युधक्तयुक्त
आिार है कक दो या अधिक व्यधक्तयों िे अपराि या अिुयोज्य दोष करिे के धिए धमिकर षड्यंत्र ककया है, िहां उिके सामान्य आिय के
बारे में उिमें से ककसी एक व्यधक्त द्वारा उस समय के प‍र्ात, जब ऐसा आिय उिमें से ककसी एक िे प्रथम बार मि में िारर् ककया,
कही, की, या धििी गई कोई बात उि व्यधक्तयों में से हर एक व्यधक्त के धिरुद्ध, धजिके बारे में धि‍िास ककया जाता है कक उन्होंिे इस
प्रकार षड्यंत्र ककया है, षड्यंत्र का अधस्तत्‍पि साधबत करिे के प्रयोजिाथच उसी प्रकार सुसंगत तथ्य है धजस प्रकार यह दर्िचत करिे के
प्रयोजिाथच कक ऐसा कोई व्यधक्त उसका पिकार था ।
दृषटांत
यह धि‍िास करिे का युधक्तयुक्त आिार है कक क 1[भारत सरकार] के धिरुद्ध युद्ध करिे के षड्यंत्र में सधम्मधित हुआ है ।
ि िे उस षड्यंत्र के प्रयोजिाथच यूरोप में आयुि उपाप्त ककए, ग िे िैसे ही उद्दे‍य से किकत्ते में िि संग्रह ककया, घ िे मुम्बई में
िोगों को उस षड्यंत्र में सधम्मधित होिे के धिए प्रेररत ककया, ङ िे आगरे में उस उद्दे‍य के पिपोषर् में िेि प्रकाधित ककए और ग द्वारा
किकत्ते में संगृहीत िि को र् िे कदल्िी से छ के पास काबुि भेजा इि तथ्यों और उस षड्यंत्र का िृत्तान्त देिे िािे झ द्वारा धिधित पत्र
की अन्तिचस्तु में से हर एक षड्यंत्र का अधस्तत्‍पि साधबत करिे के धिए तथा उसमें क की सहअपराधिता साधबत करिे के धिए भी सुसंगत
है, र्ाहे िह उि सभी के बारे में अिधभज्ञ रहा हो और र्ाहे उन्हें करिे िािे व्यधक्त उसके धिए अपररधर्त रहे हों और र्ाहे िे उसके
षड्यंत्र में सधम्मधित होिे से पूिच या उसके षड्यंत्र से अिग हो जािे के प‍र्ात घरटत हुए हों ।
11. िे तथ्य जो अन्यथा सुसग
ं त िहीं हैं कब सुसंगत हैं—िे तथ्य, जो अन्यथा सुसंगत िहीं हैं, सुसंगत हैं :—
(1) यकद िे ककसी धििाद्यक तथ्य या सुसंगत तथ्य से असंगत हैं,

1
धिधि अिुकूिि आदेि, 1950 द्वारा “क्िीि” के स्थाि पर प्रधतस्थाधपत ।
7

(2) यकद िे स्ियंमेि या अन्य तथ्यों के संसंग में ककसी धििाद्यक तथ्य या सुसंगत तथ्य का अधस्तत्‍पि या अिधस्तत्‍पि
अत्‍पयन्त अधिसम्भाव्य या अिधिसम्भाव्य बिाते हैं ।
दृषटांत
)क( प्र‍ि यह है कक क्या क िे ककसी अमुक कदि किकत्ते में अपराि ककया ।
यह तथ्य कक िह उस कदि िाहौर में था, सुसंगत है ।
यह तथ्य कक जब अपराि ककया गया था उस समय के िगभग क उस स्थाि से, जहां कक िह अपराि ककया गया था, इतिी
दूरी पर था कक क द्वारा उस अपराि का ककया जािा यकद असम्भि िहीं तो अत्‍पयन्त अिधिसम्भाव्य था, सुसंगत है ।
)ि( प्र‍ि यह है कक क्या क िे अपराि ककया है ।
पररधस्थधतयां ऐसी हैं कक िह अपराि क, ि, ग, या घ में से ककसी एक के द्वारा अि‍य ककया गया होगा । िह हर तथ्य, धजससे
यह दर्िचत होता है कक िह अपराि ककसी अन्य के द्वारा िहीं ककया जा सकता था िह ि, ग या घ में से ककसी के द्वारा िहीं ककया गया
था, सुसंगत है ।
12. िुकसािी के धिए िादों में रकम अििाररत करिे के धिए न्यायािय को समथच करिे की प्रिृधत्त रििे िािे तथ्य
सुसग
ं त हैं—उि िादों में, धजिमें िुकसािी का दािा ककया गया है, कोई भी तथ्य सुसंगत है धजससे न्यायािय िुकसािी की िह रकम
अििाररत करिे के धिए समथच हो जाए, जो अधिधिर्ीत की जािी र्ाधहए ।
13. जब कक अधिकार या रूक़ि प्र‍िगत है, तब सुसग
ं त तथ्य—जहां कक ककसी अधिकार या रूक़ि के अधस्तत्‍पि के बारे में प्र‍ि है,
िहां धिम्िधिधित तथ्य सुसंगत हैं—
)क( कोई संव्यिहार, धजसके द्वारा प्र‍िगत अधिकार या रूक़ि सृषट, दािाकृ त, उपांतररत, मान्यकृ त, प्राखयात या
प्रत्‍पयाखयात की गई थी या जो उसके अधस्तत्‍पि से असंगत था,
)ि( िे धिधिषट उदाहरर्, धजिमें िह अधिकार या रूक़ि दािाकृ त, मान्यकृ त या प्रयुक्त की गई थी या धजिमें उसका
प्रयोग धििादग्रस्त था प्राखयात ककया गया था या उसका अिुसरर् िहीं ककया गया था ।
दृषटांत
प्र‍ि यह है कक क्या क का एक मीििेत्र पर अधिकार है ।
क के पूिचजों को मीििेत्र प्रदाि करिे िािा धििेि, क के धपता द्वारा उस मीििेत्र का बन्िक, क के धपता द्वारा उस बन्िक से
अिमेि पाध‍र्क अिुदाि, धिधिषट उदाहरर्, धजिमें क के धपता िे अधिकार का प्रयोग ककया या धजिमें अधिकार का प्रयोग क के
पडोधसयों द्वारा रोक गया था, सुसंगत तथ्य हैं ।
14. मि या िरीर की दिा या िारीररक संिदेिा का अधस्तत्‍पि दर्िचत करिे िािे तथ्य—मि की कोई भी दिा धजसे आिय,
ज्ञाि, सदभाि, उपेिा, उताििापि ककसी धिधिषट व्यधक्त के प्रधत िैमिस्य या सकदच्छा दर्िचत करिे िािे अथिा िरीर की या
िारीररक संिेदिा की ककसी दिा का अधस्तत्‍पि दर्िचत करिे िािे तथ्य तब सुसंगत हैं, जब कक ऐसी मि की या िरीर की या िारीररक
संिेदि की ककसी ऐसी दिा का अधस्तत्‍पि धििाद्य या सुसंगत है ।
1[स्पषटीकरर्
1—जो इस िाते सुसगं त हैं कक िह मि की सुसंगत दिा के अधस्तत्‍पि को दर्िचत करता है उससे यह दर्िचत होिा
ही र्ाधहए कक मि की िह दिा सािारर्त: िहीं, अधपतु प्र‍िगत धिधिषट धिषय के बारे में, अधस्तत्‍पि में है ।
स्पषटीकरर् 2—ककन्तु जब कक ककसी अपराि के अधभयुक्त व्यधक्त के धिर्ारर् में इस िारा के अथच के अन्तगचत उस अधभयुक्त
द्वारा ककसी अपराि का कभी पहिे ककया जािा सुसंगत हो, तब ऐसे व्यधक्त की पूिच दोषधसधद्ध भी सुसंगत तथ्य होगी ।]
दृषटांत
)क( क र्ुराया हुआ माि यह जािते हुए कक िह र्ुराया हुआ है, प्राप्त करिे का अधभयुक्त है । यह साधबत कर कदया जाता है
कक उसके कब्जे में कोई धिधिषट र्ुराई हुई र्ीज थी ।
यह तथ्य कक उसी समय उसके कब्जे में कई अन्य र्ुराई हुई र्ीजें थीं यह दर्िचत करिे की प्रिृधत्त रििे िािा होिे के िाते
सुसंगत है कक जो र्ीजें उसके कब्जे में थीं उिमें से हर एक और सब के बारे में िह जािता था कक िह र्ुराई हुई हैं ।
क पर ककसी अन्य व्यधक्त को कू टकृ त धसक्का कपटपूिचक पररदाि करिे का अधभयोग, है, धजसे िह पररदाि करते समय
2[)ि(

जािता था कक िह कू टकृ त है ।
यह तथ्य कक उसके पररदाि के समय क के कब्जे में िैसे ही दूसरे कू टकृ त धसक्के थे, सुसंगत है ।

1
1891 के अधिधियम सं० 3 की िारा 1(1) द्वारा मूि स्पषटीकरर् के स्थाि पर प्रधतस्थाधपत ।
2
1891 के अधिधियम सं० 3 की िारा 1(2) द्वारा मूि दृषटांत )ि( के स्थाि पर प्रधतस्थाधपत ।
8

यह तथ्य कक क एक कू टकृ त धसक्के को, यह जािते हुए कक िह धसक्का कू टकृ त है, उसे असिी के रूप में ककसी अन्य व्यधक्त को
पररदाि करिे के धिए पहिे भी दोषधसद्ध हुआ था, सुसंगत हैं ।]
)ग( ि के कु त्ते द्वारा, धजसका हहंस्र होिा ि जािता था, ककए गए िुकसाि के धिए ि पर क िाद िाता है ।
ये तथ्य कक कु त्ते िे पहिे, भ, म और य को काटा था और यह कक उन्होंिे ि से धिकायतें की थीं, सुसंगत हैं ।
)घ( प्र‍ि यह है कक क्या धिधिमयपत्र का प्रधतगृहीता क यह जािता था कक उसके पािे िािे का िाम काल्पधिक है ।
यह तथ्य कक क िे उसी प्रकार से धिधित अन्य धिधिमयपत्रों को इसके पहिे कक िे पािे िािे द्वारा, यकद पािे िािा िास्तधिक
व्यधक्त होता तो, उसको पारे धषत ककए जा सकते, प्रधतगृहीत ककया था, यह दर्िचत करिे के िाते सुसंगत है कक क यह जािता था कक पािे
िािा व्यधक्त काल्पधिक है ।
)ङ( क पर ि की खयाधत की अपहाधि करिे के आिय से एक िांछि प्रकाधित करके ि की मािहाधि करिे का अधभयोग है ।
यह तथ्य कक ि के बारे में क िे पूिच प्रकािि ककए, धजिसे ि के प्रधत क का िैमिस्य दर्िचत होता है, इस कारर् सुसंगत है कक
उससे प्र‍िगत धिधिषट प्रकािि द्वारा ि की खयाधत की अपहाधि करिे का क का आिय साधबत होता है ।
ये तथ्य कक क और ि के बीर् पहिे कोई झगडा िहीं हुआ और कक क िे पररिादगत बात को जैसा सुिा था िैसा ही दुहरा
कदया था, यह दर्िचत करिे के िाते कक क का आिय ि की खयाधत की अपहाधि करिा िहीं था, सुसंगत हैं ।
)र्( ि द्वारा क पर यह िाद िाया जाता है कक ग के बारे में क िे ि से यह कपटपूिचक व्यपदेिि ककया कक ग िोििम है
धजससे उत्‍पप्रेररत हो कर ि िे ग का, जो कदिाधिया था, भरोसा ककया और हाधि उठाई ।
यह तथ्य कक जब क िे ग को िोििम व्यपकदषट ककया था, तब ग को उसके पडोसी और उससे व्यौहार करिे िािे व्यधक्त
िोििम समझते थे, यह दर्िचत करिे के िाते कक क िे व्यपदेिि सदभापूिक
च ककया था, सुसंगत है ।
)छ( क पर ि उस काम की कीमत के धिए िाद िाता है जो ठे केदार ग के आदेि से ककसी गृह पर, धजसका क स्िामी है, ि िे
ककया था ।
क का प्रधतिाद है कक ि का ठे का ग के साथ था ।
यह तथ्य कक क िे प्र‍िगत काम के धिए ग को कीमत दे दी इसधिए सुसंगत है कक उससे यह साधबत होता है कक क िे
सदभािपूिचक ग को प्र‍िगत काम का प्रबन्ि दे कदया था, धजससे कक ि के साथ ग अपिे ही धिधमत्त, ि कक क के अधभकताच के रूप में,
संधिदा करिे की धस्थधत में था ।
)ज( क ऐसी सम्पधत्त का, जो उसिे पडी पाई थी, बेइमािी से दुर्िचधियोग करिे का अधभयुक्त है और प्र‍ि यह है कक क्या जब
उसिे उसका धिधियोग ककया उसे सदभािपूिचक धि‍िास था कक िास्तधिक स्िामी धमि िहीं सकता ।
यह तथ्य कक सम्पधत्त के िो जािे की िोक सूर्िा उस स्थाि में, जहां क था, दी जा र्ुकी थी, यह दर्िचत करिे के िाते सुसंगत
है कक क को सदभािपूिचक यह धि‍िास िहीं था कक उस सम्पधत्त का िास्तधिक स्िामी धमि िहीं सकता ।
यह तथ्य कक क यह जािता था या उसके पास यह धि‍िास करिे का कारर् था कक सूर्िा कपटपूिचक ग द्वारा दी गई थी
धजसिे संपधत्त की हाधि के बारे में सुि रिा था और जो उस पर धमथ्या दािा करिे का इच्छु क था यह दर्िचत करिे के िाते सुसंगत है कक
क का सूर्िा के बारे में ज्ञाि क के सदभाि को िासाधबत िहीं करता ।
)झ( क पर ि को मार िाििे के आिय से उस पर असि करिे का अधभयोग है । क का आिय दर्िचत करिे के धिए यह तथ्य
साधबत ककया जा सके गा कक क िे पहिे भी ि पर असि ककया था ।
)ञ( क पर ि को िमकी भरे पत्र भेजिे का आरोप है । इि पत्रों का आिय दर्िचत करिे के िाते क द्वारा ि को पहिे भेजे गए
िमकी भरे पत्र साधबत ककए जा सकें गे ।
(ट( प्र‍ि यह है कक क्या क अपिी पत्‍पिी ि के प्रधत क्रूरता का दोषी रहा है ।
अधभकधथत क्रूरता के थोडी देर पहिे या पीछे उिके एक दूसरे के प्रधत भाििा की अधभव्यधक्तयां सुसंगत तथ्य हैं ।
)ठ( प्र‍ि यह है कक क्या क की मृत्‍पयु धिष से काररत की गई थी ।
अपिी रुग्र्ािस्था में क द्वारा अपिे ििर्ों के बारे में ककए हुए कथि सुसंगत तथ्य हैं ।
)ि( प्र‍ि यह है कक क के स्िास्थ्य की दिा उस समय कै सी थी धजस समय उसके जीिि का बीमा कराया गया था । प्र‍िगत
समय पर या उसके िगभग अपिे स्िास्थ्य की दिा के बारे में क द्वारा ककए गए कथि सुसंगत तथ्य हैं ।
)ढ( क ऐसी उपेिा के धिए ि पर िाद िाता है जो ि िे उसे युधक्तयुक्त रूप से अिुपयोग्य गाडी भाडे पर देिे द्वारा की
धजससे को िधत हुई थी ।
9

यह तथ्य कक उस धिधिषट गाडी की त्रुरट की ओर अन्य अिसरों पर भी ि का ध्याि आकृ षट ककया गया था, सुसंगत है ।
यह तथ्य कक ि उि गाधडयों के बारे में, धजन्हें िह भाडे पर देता था, अभ्यासत: उपेिािाि था, धिसंगत है ।
)र्( क सािय असि द्वारा ि की मृत्‍पयु करिे के कारर् हत्‍पया के धिए धिर्ाररत है ।
यह तथ्य कक क िे अन्य अिसरों पर ि पर असि ककया था, क का ि पर असि करिे का आिय दर्िचत करिे के िाते
सुसंगत है ।
यह तथ्य कक क िोगों पर उिकी हत्‍पया करिे के आिय से असि करिे का अभ्यासी था, धिसंगत है ।
)त( क का ककसी अपराि के धिए धिर्ारर् ककया जाता है ।
यह तथ्य कक उसिे कोई बात कही धजससे उस धिधिषट अपराि के करिे का आिय उपदर्िचत होता है, सुसंगत है ।
यह तथ्य कक उसिे कोई बात कही धजससे उस प्रकार के अपराि करिे की उसकी सािारर् प्रिृधत्त उपदर्िचत होती है,
धिसंगत है ।
15. कायच आकधस्मक या सािय था इस प्र‍ि पर प्रकाि िाििे िािे तथ्य—जब कक प्र‍ि यह है कक कायच आकधस्मक या सािय
था 1[या ककसी धिधिषट ज्ञाि या आिय से ककया गया था], तब यह तथ्य कक ऐसा कायच समरूप घटिाओं की आििी का भाग था धजिमें
से हर एक घटिा के साथ िह कायच करिे िािा व्यधक्त सम्पृक्त था, सुसंगत है ।
दृषटांत
)क( क पर यह अधभयोग है कक अपिे गृह के बीमे का िि अधभप्राप्त करिे के धिए उसिे उसे जिा कदया ।
ये तथ्य कक क कई गृहों में एक के प‍र्ात दूसरे में रहा धजिमें से हर एक का उसिे बीमा कराया, धजिमें से हर एक में आग
िगी और धजि अधग्िकांिों में से हर एक के उपरान्त क को ककसी धभन्ि बीमा कायाचिय से बीमा िि धमिा, इस िाते सुसंगत हैं कक उिसे
यह दर्िचत होता है कक िे अधग्िकांि आकधस्मक िहीं थे ।
)ि( ि के ऋधर्यों से िि प्राप्त करिे के धिए क धियोधजत है । क का यह कतचव्य है कक बही में अपिे द्वारा प्राप्त राधियां
दर्िचत करिे िािी प्रधिधषटयां करे । िह एक प्रधिधषट करता है धजससे यह दर्िचत होता है कक ककसी धिधिषट अिसर पर उसे िास्ति में
प्राप्त राधि से कम राधि प्राप्त हुई ।
प्र‍ि यह है कक क्या यह धमथ्या प्रधिधषट आकधस्मक थी या सािय ।
ये तथ्य कक उसी बही में क द्वारा की हुई अन्य प्रधिधषटयां धमथ्या हैं और कक हर एक अिस्था में धमथ्या प्रधिधषट क के पि में है
सुसंगत है ।
)ग( ि को कपटपूिचक कू टकृ त रुपया पररदाि करिे का क अधभयुक्त है ।
प्र‍ि यह है कक क्या रुपए का पररदाि आकधस्मक था ।
ये तथ्य कक ि को पररदाि के तुरन्त पहिे या पीछे क िे ग, घ और ङ को कू टकृ त रुपए पररदाि ककए थे इस िाते सुसंगत हैं कक
उिसे यह दर्िचत होता है कक ि को ककया गया पररदाि आकधस्मक िहीं था ।
16. कारबार के अिुक्रम का अधस्तत्‍पि कब सुसग ं त है—जबकक प्र‍ि यह है कक क्या कोई धिधिषट कायच ककया गया था, तब
कारबार के ऐसे ककसी भी अिुक्रम का अधस्तत्‍पि, धजसके अिुसार िह कायच स्िभाित: ककया जाता, सुसंगत तथ्य है ।
दृषटांत
)क( प्र‍ि यह है कक क्या एक धिधिषट पत्र प्रेधषत ककया गया था ।
ये तथ्य कक कारबार का यह सािारर् अिुक्रम था कक िे सभी पत्र, जो ककसी िास स्थाि में रि कदए जाते थे, िाक में िािे
जािे के धिए िे जाए जाते थे और कक िह पत्र उस स्थाि में रि कदया गया था, सुसंगत हैं ।
)ि( प्र‍ि यह है कक क्या एक धिधिषट पत्र क को धमिा । ये तथ्य कक िह सम्यक अिुक्रम में िाक में िािा गया था, और कक
िह पुि: प्रेषर् के न्ि द्वारा िौटाया िहीं गया था, सुसगत हैं ।

1
1891 के अधिधियम सं० 3 की िारा 2 द्वारा अन्त:स्थाधपत ।
10

स्िीकृ धतयां
17. स्िीकृ धत की पररभाषा—1[स्िीकृ धत िह मौधिक या दस्तािेजी अथिा इिैक्राधिक रूप में अंतर्िचषट कथि है,] जो ककसी
धििाद्यक तथ्य या सुसंगत तथ्य के बारे में कोई अिुमाि इं धगत करता है और जो ऐसे व्यधक्तयों में से ककसी के द्वारा और ऐसी
पररधस्थधतयों में ककया गया है जो एतधस्मन्प‍र्ात िर्र्चत है ।
18. स्िीकृ धत—कायचिाही के पिकार या उसके अधभकताच द्वारा—िे कथि स्िीकृ धतयां हैं, धजन्हें कायचिाही के ककसी पिकार िे
ककया हो, या ऐसे ककसी पिकार के ऐसे ककसी अधभकताच िे ककया हो धजसे मामिे की पररधस्थधतयों में न्यायािय उि कथिों को करिे के
धिए उस पिकार द्वारा अधभव्यक्त या धििधित रूप से प्राधिकृ त ककया हुआ मािता है ।
प्रधतधिधिक रूप से िादकताच द्वारा—िाद के ऐसे पिकारों द्वारा, जो प्रधतधिधिक हैधसयत में िाद िा रहे हों या धजि पर
प्रधतधिधिक हैधसयत में िाद िाया जा रहा हो, ककए गए कथि, जब तक कक िे उस समय ि ककए गए हों जबकक उिको करिे िािा
पिकार िैसी हैधसयत िारर् करता था, स्िीकृ धतयां िहीं हैं ।
िे कथि स्िीकृ धतयां हैं, जो—
(1) धिषयिस्तु में धहतबद्ध पिकार द्वारा—ऐसे व्यधक्तयों द्वारा ककए गए हैं, धजिका कायचिाही की धिषयिस्तु में
कोई साम्पधत्तक या िि संबंिी धहत है और जो इस प्रकार धहतबद्ध व्यधक्तयों की हैधसयत में िह कथि करते हैं, अथिा
(2) उस व्यधक्त द्वारा धजससे धहत व्युत्‍पपन्ि हुआ हो—ऐसे व्यधक्तयों द्वारा ककए गए हैं, धजिसे िाद के पिकारों का
िाद की धिषयिस्तु में अपिा धहत व्युत्‍पपन्ि हुआ है ।
यकद िे कथि उन्हें करिे िािे व्यधक्तयों के धहत के र्ािू रहिे के दौराि में ककए गए हैं ।
19. उि व्यधक्तयों द्वारा स्िीकृ धतयां धजिकी धस्थधत िाद के पिकारों के धिरुद्ध साधबत की जािी र्ाधहए—िे कथि, जो उि
व्यधक्तयों द्वारा ककए गए हैं धजिकी िाद के ककसी पिकार के धिरुद्ध धस्थधत या दाधयत्‍पि साधबत करिा आि‍यक है, स्िीकृ धतयां हैं, यकद
ऐसे कथि ऐसे व्यधक्तयों द्वारा, या उि पर िाए गए िाद में ऐसी धस्थधत या दाधयत्‍पि के संबंि में ऐसे व्यधक्तयों के धिरुद्ध सुसंगत होते
और यकद िे उस समय ककए गए हों जबकक उन्हें करिे िािा व्यधक्त ऐसी धस्थधत ग्रहर् ककए हुए है या ऐसे दाधयत्‍पि के अिीि है ।
दृषटांत
ि के धिए भाटक संग्रह का दाधयत्‍पि क िेता है ।
ग द्वारा ि को िोध्य भाटक संग्रह ि करिे के धिए क पर ि िाद िाता है ।
क इस बात का प्रत्‍पयाखयाि करता है कक ग से ि को भाटक देय था ।
ग द्वारा यह कथि कक उस पर ि को भाटक देय है स्िीकृ धत है, और यकद क इस बात से इन्कार करता है कक ग द्वारा ि को
भाटक देय था तो िह क के धिरुद्ध सुसंगत तथ्य है ।
20. िाद के पिकार द्वारा अधभव्यक्त रूप से धिर्दचषट व्यधक्तयों द्वारा स्िीकृ धतयां—िे कथि, जो उि व्यधक्तयों द्वारा ककए गए
हैं धजिको िाद के ककसी पिकार िे ककसी धििादग्रस्त धिषय के बारे में जािकारी के धिए अधभव्यक्त रूप से धिर्दचषट ककया है,
स्िीकृ धतयां हैं ।
दृषटांत
यह प्र‍ि है कक क्या क द्वारा ि को बेर्ा हुआ घोडा अच्छा है ।
ि से क कहता है कक “जाकर ग से पूछ िो, ग इस बारे में सब कु छ जािता है”। ग का कथि स्िीकृ धत है ।
21. स्िीकृ धतयों का उन्हें करिे िािे व्यधक्तयों के धिरुद्ध और उिके द्वारा या उिकी ओर से साधबत ककया जािा—स्िीकृ धतयां
उन्हें करिे िािे व्यधक्त के या उसके धहत प्रधतधिधि के धिरुद्ध सुसंगत हैं और साधबत की जा सकें गी, ककन्तु उन्हें करिे िािे व्यधक्त द्वारा
या उसकी ओर से या उसके धहत प्रधतधिधि द्वारा धिम्िधिधित अिस्थाओं में के धसिाय उन्हें साधबत िहीं ककया जा सके गा—
(1) कोई स्िीकृ धत उसे करिे िािे व्यधक्त द्वारा या उसकी ओर से तब साधबत की जा सके गी, जबकक िह इस प्रकृ धत
की है कक यकद उसे करिे िािा व्यधक्त मर गया होता, तो िह अन्य व्यधक्तयों के बीर् िारा 32 के अिीि सुसंगत होती ।
(2) कोई स्िीकृ धत उसे करिे िािे व्यधक्त द्वारा या उसकी ओर से तब साधबत की जा सके गी, जबकक िह मि की या
िरीर की सुसंगत या धििाद्य ककसी दिा के अधस्तत्‍पि का ऐसा कथि है जो उस समय या उसके िगभग ककया गया था जब मि
की या िरीर की ऐसी दिा धिद्यमाि थी और ऐसे आर्रर् के साथ है जो उसकी असत्‍पयता को अिधिसम्भाव्य कर देता है ।

1
2000 के अधिधियम सं० 21 की िारा 92 और दूसरी अिुसूर्ी द्वारा (17-10-2000 से) प्रधतस्थाधपत ।
11

(3) कोई स्िीकृ धत उसे करिे िािे व्यधक्त द्वारा या उसकी ओर से साधबत की जा सके गी, यकद िह स्िीकृ धत के रूप में
िहीं ककन्तु अन्यथा सुसंगत है ।
दृषटांत
)क( क और ि के बीर् प्र‍ि यह है कक अमुक धििेि कू टरधर्त है या िहीं । क प्रधतज्ञात करता है कक िह असिी है, ि
प्रधतज्ञात करता है कक िह कू टरधर्त है ।
ि का कोई कथि है कक धििेि असिी है, क साधबत कर सके गा तथा क का कोई कथि कक धििेि कू टरधर्त है, ि साधबत कर
सके गा । ककन्तु क अपिा यह कथि कक धििेि असिी है साधबत िहीं कर सके गा और ि ि ही अपिा यह कथि कक धििेि कू टरधर्त है
साधबत कर सके गा ।
)ि( ककसी पोत के कप्ताि, क का धिर्ारर् उस पोत को संत्‍पयक्त करिे के धिए ककया जाता है ।
यह दर्िचत करिे के धिए साक्ष्य कदया जाता है कक पोत अपिे उधर्त मागच से बाहर िे जाया गया था ।
क अपिे कारबार के मामूिी अिुक्रम में अपिे द्वारा रिी जािे िािी िह पुस्तक पेि करता है धजसमें िे संप्रेिर् दर्िचत हैं,
धजिके बारे में यह अधभकधथत है कक िे कदि प्रधतकदि ककए गए थे और धजिसे उपदर्िचत है कक पोत अपिे उधर्त मागच से बाहर िहीं िे
जाया गया था । क इि कथिों को साधबत कर सके गा क्योंकक, यकद उसकी मृत्‍पयु हो गई होती तो िे कथि अन्य व्यधक्तयों के बीर् िारा
32, ि‍ि (2) के अिीि ग्राह्य होते ।
)ग( क अपिे द्वारा किकत्ते में ककए गए अपराि का अधभयुक्त है ।
िह अपिे द्वारा धिधित और उसी कदि िाहौर में कदिांककत और उसी कदि का िाहौर िाक-धर्ह्ि िारर् करिे िािा पत्र पेि
करता है ।
पत्र की तारीि में का कथि ग्राह्य है क्योंकक, यकद क की मृत्‍पयु हो गई होती, तो िह िारा 32, ि‍ि (2) के अिीि ग्राह्य होता ।
)घ( क र्ुराए हुए माि को यह जािते हुए कक िह र्ुराया हुआ है प्राप्त करिे का अधभयुक्त है ।
िह यह साधबत करिे की प्रस्थापिा करता है कक उसिे उसे उसके मूल्य से कम में बेर्िे से इन्कार ककया था ।
यद्यधप ये स्िीकृ धतयां हैं तथाधप क इि कथिों को साधबत कर सके गा, क्योंकक ये धििाद्यक तथ्यों से प्रभाधित उसके आर्रर् के
स्पषटीकारक हैं ।
)ङ( क अपिे कब्जे में कू टकृ त धसक्का धजसका कू टकृ त होिा िह जािता था, कपटपूिचक रििे का अधभयुक्त है ।
िह यह साधबत करिे की प्रस्थापिा करता है कक उसिे एक कु िि व्यधक्त से उस धसक्के की परीिा करिे को कहा था, क्योंकक
उसे िंका थी कक िह कू टकृ त है या िहीं और उस व्यधक्त िे उसकी परीिा की थी और उससे कहा था कक िह असिी है ।
अधन्तम पूिचिती दृषटांत में कधथत कारर्ों से क इि तथ्यों को साधबत कर सके गा ।
22. दस्तािेजों की अन्तिचस्तु के बारे में मौधिक स्िीकृ धतयां कब सुसग
ं त होती हैं—ककसी दस्तािेज की अन्तिचस्तु के बारे में
मौधिक स्िीकृ धतयां तब तक सुसंगत िहीं होतीं, यकद और जब तक उन्हें साधबत करिे की प्रस्थापिा करिे िािा पिकार यह दर्िचत ि
कर दे कक ऐसी दस्तािेज की अन्तिचस्तुओं का धद्वतीयक साक्ष्य देिे का िह एतधस्मन्प‍र्ात कदए हुए धियमों के अिीि हकदार है, अथिा
जब तक पेि की गई दस्तािेज का असिी होिा प्र‍िगत ि हो ।
[22क. इिैक्राधिक अधभिेिों की अन्तिचस्तु के बारे में मौधिक स्िीकृ धतयां कब सुसंगत होती हैं—ककसी इिैक्राधिक
1

अधभिेि की अंतिचस्तु के बारे में मौधिक स्िीकृ धतयां तब तक सुसंगत िहीं होती जब तक पेि ककए गए इिैक्राधिक अधभिेि का असिी
होिा प्र‍िगत ि हो ।]
23. धसधिि मामिों में स्िीकृ धतयां कब सुसग
ं त होती हैं—धसधिि मामिों में कोई भी स्िीकृ धत सुसंगत िहीं है, यकद िह या तो
इस अधभव्यक्त ितच पर की गई हो कक उसका साक्ष्य िहीं कदया जाएगा, या ऐसी पररधस्थधतयों के अिीि दी गई हो धजिसे न्यायािय
यह अिुमाि कर सके कक पिकार इस बात पर परस्पर सहमत हो गए थे कक उसका साक्ष्य िहीं कदया जािा र्ाधहए ।
स्पषटीकरर्—इस िारा की कोई भी बात ककसी बेररस्टर, प्िीिर, अटिी या िकीि को ककसी ऐसी बात का साक्ष्य देिे से छू ट
देिे िािी िहीं मािी जाएगी धजसका साक्ष्य देिे के धिए िारा 126 के अिीि उसे धििि ककया जा सकता है ।
24. उत्‍पप्रेरर्ा, िमकी या िर्ि द्वारा कराई गई संस्िीकृ धत दाध‍िक कायचिाही में कब धिसंगत होती है—अधभयुक्त व्यधक्त
द्वारा की गई संस्िीकृ धत दाध‍िक कायचिाही में धिसंगत होती है, यकद उसके ककए जािे के बारे में न्यायािय को प्रतीत होता हो कक
अधभयुक्त व्यधक्त के धिरुद्ध आरोप के बारे में िह ऐसी उत्‍पप्रेरर्ा, िमकी, या िर्ि2 द्वारा कराई गई है जो प्राधिकारिाि व्यधक्त की ओर

1
2000 के अधिधियम सं० 21 की िारा 92 और दूसरी अिुसूर्ी द्वारा (17-10-2000 से) अंत:स्थाधपत ।
2
ऐसी उत्‍पप्रेरर्ाओं, आकद के प्रधतषेि के धिए द‍ि प्रकक्रया संधहता, 1973 (1974 का 2), िारा 316 देधिए ।
12

से कदया गया है और जो न्यायािय की राय में इसके धिए पयाचप्त हो कक िह अधभयुक्त व्यधक्त को यह अिुमाि करिे के धिए उसे
युधक्तयुक्त प्रतीत होिे िािे आिार देती है कक उसके करिे से िह अपिे धिरुद्ध कायचिाधहयों के बारे में ऐधहक रूप का कोई फायदा
उठाएगा या ऐधहक रूप की ककसी बुराई का पररिजचि कर िेगा ।
25. पुधिस आकफसर से की गई संस्िीकृ धत का साधबत ि ककया जािा—ककसी पुधिस आकफसर1 से की गई कोई भी संस्िीकृ धत
ककसी अपराि के अधभयुक्त व्यधक्त के धिरुद्ध साधबत ि की जाएगी ।
26. पुधिस की अधभरिा में होते हुए अधभयुक्त द्वारा की गई संस्िीकृ धत का उसके धिरुद्ध साधबत ि ककया जािा—कोई भी
संस्िीकृ धत, जो ककसी व्यधक्त िे उस समय की हो जब िह पुधिस आकफसर की अधभरिा में हो, ऐसे व्यधक्त के धिरुद्ध साधबत ि की
जाएगी जब तक, कक िह मधजस्रेट2 की सािात उपधस्थधत में ि की गई हो ।
[स्पषटीकरर्—इस िारा में “मधजस्रेट” के अन्तगचत फोटच सेन्ट जाजच की प्रेधसिेन्सी में 4*** या अन्यत्र मधजस्रेट के कृ त्‍पय
3

धििचहि करिे िािा ग्रामर्ी िहीं आता है, जब तक कक िह ग्रामर्ी कोि आफ कक्रधमिि प्रोधसजर, 18825 (1882 का 10) के अिीि
मधजस्रेट की िधक्तयों का प्रयोग करिे िािा मधजस्रेट ि हो ।]
27. अधभयुक्त से प्राप्त जािकारी में से ककतिी साधबत की जा सके गी—परन्तु जब ककसी तथ्य के बारे में यह अधभसाक्ष्य कदया
जाता है कक ककसी अपराि के अधभयुक्त व्यधक्त से, जो पुधिस आकफसर की अधभरिा में हो, प्राप्त जािकारी के पररर्ामस्िरूप उसका
पता र्िा है, तब ऐसी जािकारी में से, उतिा र्ाहे िह संस्िीकृ धत की कोरट में आती हो या िहीं, धजतिी एतदद्वारा पता र्िे हुए तथ्य
से स्पषटतया संबंधित है, साधबत की जा सके गी ।
28. उत्‍पप्रेरर्ा, िमकी या िर्ि से पैदा हुए मि पर प्रभाि के दूर हो जािे के प‍र्ात की गई संस्िीकृ धत सुसग ं त है—यकद ऐसी
कोई संस्िीकृ धत, जैसी िारा 24 में धिर्दचषट है, न्यायािय की राय में उसके मि पर प्रभाि के , जो ऐसी ककसी उत्‍पप्रेरर्ा, िमकी या िर्ि
से काररत हुआ है, पूर्चत: दूर हो जािे के प‍र्ात की गई है, तो िह सुसंगत है ।
29. अन्यथा सुसग ं त संस्िीकृ धत का गुप्त रििे के िर्ि आकद के कारर् धिसंगत ि हो जािा—यकद ऐसी संस्िीकृ धत अन्यथा
सुसंगत है, तो िह के िि इसधिए कक िह गुप्त रििे के िर्ि के अिीि या उसे अधभप्राप्त करिे के प्रयोजिाथच अधभयुक्त व्यधक्त से की
गई प्रिंर्िा के पररर्ामस्िरूप, या उस समय जबकक िह मत्त था, की गई थी अथिा इसधिए कक िह ऐसे प्र‍िों के , र्ाहे उिका रूप
कै सा ही क्यों ि रहा हो, उत्तर में की गई थी धजिका उत्तर देिा उसके धिए आि‍यक िहीं था, अथिा के िि इसधिए कक उसे यह
र्ेताििी िहीं दी गई थी कक िह ऐसी संस्िीकृ धत करिे के धिए आबद्ध िहीं था और कक उसके धिरद्ध उसका साक्ष्य कदया जा सके गा,
धिसंगत िहीं हो जाती ।
30. साधबत संस्िीकृ धत को, जो उसे करिे िािे व्यधक्त तथा एक ही अपराि के धिए संयक् ु त रूप से धिर्ाररत अन्य को
प्रभाधित करती है धिर्ार में िेिा—जबकक एक से अधिक व्यधक्त एक ही अपराि के धिए संयुक्त रूप से धिर्ाररत हैं तथा ऐसे
व्यधक्तयों में से ककसी एक के द्वारा, अपिे को और ऐसे व्यधक्तयों में से ककसी अन्य को प्रभाधित करिे िािी की गई संस्िीकृ धत को
साधबत ककया जाता है, तब न्यायािय ऐसी संस्िीकृ धत को ऐसे अन्य व्यधक्त के धिरुद्ध तथा ऐसे संस्िीकृ धत करिे िािे व्यधक्त के धिरुद्ध
धिर्ार में िे सके गा ।
6
[स्पषटीकरर्—इस िारा में प्रयुक्त “अपराि” िब्द के अन्तगचत उस अपराि का दुषप्रेरर् या उसे करिे का प्रयत्‍पि आता है ।7]
दृषटांत
)क( क और ि को ग की हत्‍पया के धिए संयुक्तत: धिर्ाररत ककया जाता है । यह साधबत ककया जाता है कक क िे कहा, “ि और
मैंिे ग की हत्‍पया की है ।” ि के धिरुद्ध इस संस्िीकृ धत के प्रभाि पर न्यायािय धिर्ार कर सके गा ।
)ि( ग की हत्‍पया करिे के धिए क का धिर्ारर् हो रहा है । यह दर्िचत करिे के धिए साक्ष्य है कक ग की हत्‍पया क और ि द्वारा
की गई थी कक ि िे कहा था कक “क और मैंिे ग की हत्‍पया की है” ।
न्यायािय इस कथि को क के धिरुद्ध धिर्ाराथच िहीं िे सके गा, क्योंकक ि संयुक्तत: धिर्ाररत िहीं हो रहा है ।
31. स्िीकृ धतयां धि‍र्ायक सबूत िहीं हैं ककं तु धिबंि कर सकती हैं—स्िीकृ धतयां, स्िीकृ त धिषयों का धि‍र्ायक सबूत िहीं हैं,
ककन्तु एतधस्मन्प‍र्ात अन्तर्िचषट उपबन्िों के अिीि धिबंि के रूप में प्रिर्तचत हो सकें गी ।

1
ककसी मामिे का अन्िेषर् करिे िािे पुधिस अधिकारी को ककए गए कथि के बारे में—देधिए दंि प्रकक्रया संधहता, 1973 (1974 का 2) की िारा 162 ।
2
इस िारा के प्रयोजिों के धिए कारोिर को मधजस्रेट घोधषत ककया गया है—देधिए कारोिर अधिधियम, 1871 (1871 का 4) की िारा 20 ।
3
1891 के अधिधियम सं० 3 की िारा 3 द्वारा अन्त:स्थाधपत ।
4
भारत िासि )भारतीय धिधि अिुकूिि( आदेि, 1937 द्वारा “या बमाच में” िब्दों का िोप ककया गया ।
5
देधिए अब द‍ि प्रकक्रया संधहता, 1973 (1974 का 2) ।
6
1891 के अधिधियम सं० 3 की िारा 4 द्वारा अन्त:स्थाधपत ।
7
देधिए भारतीय दंि संधहता (1860 का 45), िारा 108 का स्पषटीकरर् सं० 4 ।
13

उि व्यधक्तयों के कथि, धजन्हें साक्ष्य में बुिाया िहीं जा सकता


32. िे दिाएं धजिमें उस व्यधक्त द्वारा सुसग
ं त तथ्य का ककया गया कथि सुसग ं त है, जो मर गया है या धमि िहीं सकता,
इत्‍पयाकद—सुसंगत तथ्यों के धिधित या मौधिक कथि, जो ऐसे व्यधक्त द्वारा ककए गए थे, जो मर गया है या धमि िहीं सकता है या जो
साक्ष्य देिे के धिए असमथच हो गया है या धजसकी हाधजरी इतिे धििम्ब या व्यय के धबिा उपाप्त िहीं की जा सकती, धजतिा मामिे की
पररधस्थधतयों में न्यायािय को अयुधक्तयुक्त प्रतीत होता है, धिम्िधिधित दिाओं में स्ियमेि सुसंगत हैं—
(1( जबकक िह मृत्‍पयु के कारर् से सम्बधन्ित है—जबकक िह कथि ककसी व्यधक्त द्वारा अपिी मृत्‍पयु के कारर् के बारे
में या उस संव्यिहार की ककसी पररधस्थधत के बारे में ककया गया है धजसके फिस्िरूप उसकी मृत्‍पयु हुई, तब उि मामिों में,
धजिमें उस व्यधक्त की मृत्‍पयु का कारर् प्र‍िगत हो ।
ऐसे कथि सुसंगत है ं र्ाहे उस व्युधक्त को, धजसिे उन्हें ककया है, उस समय जब िे ककए गए थे मृत्‍पयु की प्रत्‍पयािंका
थी या िहीं और र्ाहे उस कायचिाही की, धजसमें उस व्यधक्त की मृत्‍पयु का कारर् प्र‍िगत होता है, प्रकृ धत कै सी ही क्यों ि हो ।
(2( अथिा कारबार के अिुक्रम में ककया गया है—जबकक िह कथि ऐसे व्यधक्त द्वारा कारबार के मामूिी अिुक्रम में
ककया गया था तथा धििेषतः जबकक िह, उसके द्वारा कारबार के मामूिी अिुक्रम में या िृधत्तक कतचव्य के धििचहि में रिी जािे
िािी पुस्तकों में उसके द्वारा की गई ककसी प्रधिधषट या ककए गए ज्ञापि के रूप में है, अथिा उसके द्वारा िि, माि,
प्रधतभूधतयों या ककसी भी ककस्म की सम्पधत्त की प्राधप्त की धिधित या हस्तािररत अधभस्िीकृ त है, अथिा िाधर्ज्य में उपयोग
में आिे िािी उसके द्वारा धिधित या हस्तािररत ककसी दस्तािेज के रूप में है अथिा ककसी पत्र या अन्य दस्तािेज की तारीि
के रूप में है, जो कक उसके द्वारा प्रायः कदिांककत, धिधित या हस्तािररत की जाती थी ।
(3( अथिा करिे िािे के धहत के धिरुद्ध है—जबकक िह कथि उसे करिे िािे व्यधक्त के िि सम्बन्िी या साम्पधत्तक
धहत के धिरुद्ध है या जबकक, यकद िह सत्‍पय हो, तो उसके कारर् उस पर दाध‍िक अधभयोजि या िुकसािी का िाद िाया जा
सकता है या िाया जा सकता था ।
(4( अथिा िोक अधिकार या रूक़ि के बारे में या सािारर् धहत के धिषयों के बारे में कोई राय देता है —जबकक उस
कथि में उपयुचक्त व्यधक्त की राय ककसी ऐसे िोक अधिकार या रूक़ि अथिा िोक या सािारर् धहत के धिषय के अधस्तत्‍पि के
बारे में है, धजसके अधस्तत्‍पि से, यकद िह अधस्तत्‍पि में होता तो उससे उस व्यधक्त का अिगत होिा सम्भाव्य होता और जब कक
ऐसा कथि ऐसे ककसी अधिकार, रूक़ि या बात के बारे में ककसी संधििाद के उत्‍पपन्न होिे से पहिे ककया गया था ।
(5( अथिा िातेदारी के अधस्तत्‍पि से सम्बधन्ित है —जब कक िह कथि ककन्हीं ऐसे व्यधक्तयों के बीर् 1[रक्त, धििाह
या दत्तकग्रहर् पर आिाररत] ककसी िातेदारी के अधस्तत्‍पि के सम्बन्ि में है, धजि व्यधक्तयों की 1[रक्त, धििाह या दत्तकग्रहर्
पर आिाररत] िातेदारी के बारे में उस व्यधक्त के पास, धजसिे िह कथि ककया है, ज्ञाि के धििेष सािि थे और जब कक िह
कथि धििादग्रस्त प्र‍ि के उठाए जािे से पूिच ककया गया था ।
(6( अथिा कौटु धम्बक बातों से सम्बधन्ित धिि या धििेि में ककया गया है —जब कक िह कथि मृत व्यधक्तयों के
बीर् [रक्त, धििाह या दत्तकग्रहर् पर आिाररत] ककसी िातेदारी के अधस्तत्‍पि के सम्बन्ि में है और उस कु टु म्ब की बातों से,
1

धजसका ऐसा मृत व्यधक्त अंग था, सम्बधन्ित ककसी धिि या धििेि में या ककसी कु टु म्ब-िंिाििी में या ककसी समाधिप्रस्तर,
कु टु म्ब-धर्त्र या अन्य र्ीज पर धजस पर ऐसे कथि प्रायः ककए जाते हैं, ककया गया है, और जब कक ऐसा कथि धििादग्रस्त
प्र‍ि के उठाए जािे से पूिच ककया गया था ।
(7( अथिा िारा 13, िंि )क( में िर्र्चत संव्यिहार से सम्बधन्ित दस्तािेज में ककया गया है —जब कक िह कथि
ककसी ऐसे धििेि, धिि या अन्य दस्तािेज में अन्तर्िचषट है, जो ककसी ऐसे संव्यिहार से सम्बधन्ित है जैसा िारा 13, ि‍ि )क(
में िर्र्चत है ।
(8( अथिा कई व्यधक्तयों द्वारा ककया गया है और प्र‍िगत बात से सुसग
ं त भाििाएं अधभव्यक्त करता है—जब कक
िह कथि कई व्यधक्तयों द्वारा ककया गया था और प्र‍िगत बात से सुसंगत उिकी भाििाओं या िारर्ाओं को अधभव्यक्त
करता है ।
दृषटांत
(क( प्र‍ि यह है कक क्या क की हत्‍पया ि द्वारा की गई थी, अथिा
क की मृत्‍पयु ककसी संव्यिहार में हुई िधतयों से हुई है, धजसके अिुक्रम में उससे बिात्‍पसंत ककया गया था ।
प्र‍ि यह है कक क्या उससे ि द्वारा बिात्‍पसंग ककया गया था, अथिा
प्र‍ि यह है कक क्या क, ि द्वारा ऐसी पररधस्थधतयों में मारा गया था कक क की धिििा द्वारा ि पर िाद िाया
जा सकता है ।

1
1972 के अधिधियम सं० 18 की िारा 2 तथा द्वारा अन्तःस्थाधपत ।
14

अपिी मृत्‍पयु के कारर् के बारे में क द्वारा ककए गए िे कथि, जो उसिे क्रमिः धिर्ारािीि हत्‍पया, बिात्‍पसंग और
अिुयोज्य दोष क ो धिदेधित करते हुए ककए है, सुसंगत तथ्य है ं ।
)ि( प्र‍ि क के जन्म की तारीि के बारे में है ।
एक मृत िल्य-धर्ककत्‍पसक की अपिे कारबार के मामूिी अिुक्रम में धियधमत रूप से रिी जािे िािी िायरी में इस
कथि की प्रधिधषट कक अमुक कदि उसिे क की माता की पररर्याच की और उसे पुत्र का प्रसि कराया सुसंगत तथ्य है ।
)ग( प्र‍ि यह है कक क्या क अमुक कदि किकत्ते में था ।
कारबार के मामूिी अिुक्रम में धियधमत रूप से रिी गई एक मृत साधिधसटर की िायरी में यह कथि कक अमुक कदि
िह साधिधसटर किकत्ते में एक िर्र्चत स्थाि पर धिधिर्दचषट कारबार के बारे में धिर्ार-धिमिच करिे के प्रयोजिाथच क के पास
रहा सुसंगत तथ्य है ।
)घ( प्र‍ि यह है कक क्या कोई पोत मुम्बई बन्दरगाह से अमुक कदि रिािा हुआ ।
ककसी िाधर्धज्यक फमच के , धजसके द्वारा िह पोत भाडे पर धिया गया था, मृत भागीदार द्वारा िन्दि धस्थत अपिे
सम्पर्कच यों को, धजन्हें िह स्थोरा परे धषत ककया गया था, यह कथि करिे िािा पत्र कक पोत मुम्बई बन्दरगाह से अमुक कदि
र्ि कदया सुसंगत तथ्य है ।
)ङ( प्र‍ि यह कक क्या क को अमुक भूधम का भाटक कदया गया था ।
क के मृत अधभकताच का क के िाम पत्र धजसमें यह कथि है कक उसिे क के धिधमत्त भाटक प्राप्त ककया है और िह उसे
क के आदेिािीि रिे हुए है, सुसंगत तथ्य है ।
)र्( प्र‍ि यह है कक क्या क और ि का धििाह िैि रूप से हुआ था ।
एक मृत पादरी का यह कथि कक उसिे उिका धििाह ऐसी पररधस्थधतयों में कराया था, धजिमें उसका करािा
अपराि होता, सुसंगत है ।
)छ( प्र‍ि यह है कक क्या एक व्यधक्त क िे, जो धमि िहीं सकता अमुक कदि एक पत्र धििा था । यह तथ्य कक उसके द्वारा
धिधित एक पत्र पर उस कदि की तारीि कदिांककत है, सुसंगत है ।
)ज( प्र‍ि यह है कक ककसी पोत के ध्िंस का कारर् क्या है ।
कप्ताि द्वारा, धजसकी हाधजरी उपाप्त िहीं की जा सकती, कदया गया प्रसाक्ष्य सुसंगत तथ्य है ।
)झ( प्र‍ि यह है कक क्या अमुक सडक िोक मागच है ।
ग्राम के मृत ग्रामीर् क के द्वारा ककया गया कथि कक िह सडक िोक मागच है, सुसंगत तथ्य है ।
)ञ( प्र‍ि यह है कक धिधिषट बाजार में अमुक कदि अिाज की क्या कीमत थी ।
एक मृत बधिए द्वारा अपिे कारबार के मामूिी अिुक्रम में ककया गया कीमत का कथि सुसंगत तथ्य है ।
)ट( प्र‍ि यह है कक क्या क, जो मर र्ुका है ि का धपता था ।
क द्वारा ककया गया यह कथि कक ि उसका पुत्र है सुसंगत तथ्य है ।
)ठ( प्र‍ि यह कक क के जन्म की तारीि क्या है ।
क के मृत धपता द्वारा ककसी धमत्र को धििा हुआ पत्र, धजसमें यह बताया गया है कक क का जन्म अमुक कदि हुआ,
सुसंगत तथ्य है ।
)ि( प्र‍ि यह है कक क्या और कब क और ि का धििाह हुआ था ।
ि के मृत धपता ग द्वारा ककसी याददा‍त पुस्तक में अपिी पुत्री का क के साथ अमुक तारीि को धििाह होिे की
प्रधिषट सुसंगत तथ्य है ।
)ढ( दुकाि की धिडकी में अधभदर्िचत रं धगत उपहासां कि में अधभव्यक्त अपमाििेि के धिए ि पर क िाद िाता है । प्र‍ि
उपहासांकि की समरूपता तथा उसके अपमाििेिीय प्रकृ धत के बारे में है । इि बातों पर दिचकों की भीड की रटप्पधर्यां साधबत की
जा सकें गी ।
33. ककसी साक्ष्य में कधथत तथ्यों की सत्‍पयता को प‍र्ात्‍पिती कायचिाही में साधबत करिे के धिए उस साक्ष्य की सुसग
ं धत—िह
साक्ष्य, जो ककसी सािी िे ककसी न्याधयक कायचिाही में, या धिधि द्वारा उसे िेिे के धिए प्राधिकृ त ककसी व्यधक्त के समि कदया है, उि
तथ्यों की सत्‍पयता को, जो उस साक्ष्य में कधथत हैं, ककसी प‍र्ात्‍पिती न्याधयक कायचिाही में या उसी न्याधयक कायचिाही के आगामी प्रक्रम
में साधबत करिे के प्रयोजि के धिए तब सुसंगत है, जब कक िह सािी मर गया है या धमि िहीं सकता है या िह साक्ष्य देिे के धिए
15

असमथच है या प्रधतपिी द्वारा उसे पहुंर् के बाहर कर कदया गया है अथिा यकद उसकी उपधस्थधत इतिे धििम्ब या व्यय के धबिा, धजतिा
कक मामिे की पररधस्थधतयों में न्यायािय अयुधक्तयुक्त समझता है, अधभप्राप्त िहीं की जा सकती :
परन्तु िह तब जब कक—
िह कायचिाही उन्हीं पिकारों या उिके धहत प्रधतधिधियों के बीर् में थी,
प्रथम कायचिाही में प्रधतपिी को प्रधतपरीिा का अधिकार और अिसर था,
धििाद्य प्र‍ि प्रथम कायचिाही में सारतः िही थे जो धद्वतीय कायचिाही में है ं ।
स्पषटीकरर्—दाध‍िक धिर्ारर् या जांर् इस िारा के अथच के अन्तगचत अधभयोजक और अधभयुक्त के बीर् कायचिाही
समझी जाएगी ।
धििेष पररधस्थधतयों में ककए गए कथि
34. िेिा पुस्तकों की प्रधिधषटयां कब सुसगं त हैं—कारबार के अिुक्रम में धियधमत रूप से रिी गई 1[िेिा पुस्तकों की
प्रधिधषटयां2, धजिके अन्तगचत िे भी हैं जो इिैक्राधिक रूप में रिी गई हो ं,] जब कभी िे ऐसे धिषय का धिदेि करती हैं धजसमें
न्यायािय को जांर् करिी है, सुसंगत हैं, ककन्तु अके िे ऐसे कथि ही ककसी व्यधक्त को दाधयत्‍पि से भाररत करिे के धिए पयाचप्त साक्ष्य
िहीं होंगे ।
दृषटांत
ि पर क 1,000 रुपयों के धिए िाद िाता है और अपिी िेिा बधहयों की िे प्रिधषटयां दर्िचत करता है, धजिमें ि को इस
रकम के धिए उसका ऋर्ी दर्िचत ककया गया है । ये प्रधिधषटयां सुसंगत हैं ककन्तु ऋर् साधबत करिे के धिए अन्य साक्ष्य के धबिा पयाचप्त
िहीं हैं ।
35. कतचव्य पािि में की गई िोक अधभिेि 1[इिैक्राधिक अधभिेि] की प्रधिधषटयों की सुसग ं धत—ककसी िोक या अन्य
राजकीय पुस्तक, रधजस्टर या 1[अधभिेि या इिैक्राधिक अधभिेि] में की गई प्रधिधषट, जो ककसी धििाद्यक या सुसंगत तथ्य का कथि
करती है और ककसी िोक सेिक द्वारा अपिे पदीय कतचव्य के धििचहि में या उस देि की, धजसमें ऐसी पुस्तक, रजध स्टर या 1[अधभिेि
या इिैक्राधिक अधभिेि] रिा जाता है, धिधि द्वारा धििेष रूप से व्याकदषट कतचव्य के पािि में ककसी अन्य व्यधक्त द्वारा की गई है,
स्ियं सुसंगत तथ्य है ।
36. मािधर्त्रों, र्ाटों और रे िांकों के कथिों की सुसगं धत—धििाद्यक तथ्यों या सुसंगत तथ्यों के िे कथि, जो प्रकाधित
मािधर्त्रों या र्ाटों में, जो िोक धिक्रय के धिए सािारर्तः प्रस्थाधपत ककए जाते हैं, अथिा 3[के न्िीय सरकार या ककसी राज्य सरकार]
के प्राधिकार के अिीि बिाए गए मािधर्त्रों या रे िांकों में , ककए गए हैं, उि धिषयों के बारे में, जो ऐसे मािधर्त्रों, र्ाटों या रे िांकों में
प्रायः रूधपत या कधथत होते है ं स्ियं सुसंगत तथ्य हैं ।
37. ककन्हीं अधिधियमों या अधिसूर्िाओं में अन्तर्िचषट िोक प्रकृ धत के तथ्य के बारे में कथि की सुसंगधत—जब कक न्यायािय
को ककसी िोक प्रकृ धत के तथ्य के अधस्तत्‍पि के बारे में राय बिािी है तब 4[यूिाइटेि ककं गिम की] पािचमेन्ट के ऐक्ट में या ककसी 5[के न्िीय
अधिधियम, प्रान्तीय अधिधियम या] 6[राज्य अधिधियम में] या िासकीय राजपत्र में प्रकाधित ककसी सरकारी अधिसूर्िा या क्राउि
ररप्रेजेन्ट ेरटि द्वारा की गई अधिसूर्िा में या िन्दि गजट या धहज मेजेस्टी के ककसी िोधमधियि, उपधििेि या कब्जािीि िेत्र का
सरकारी राजपत्र तात्‍पपर्यचत होिे िािे ककसी मुकित पत्र में अन्तर्िचषट पररिर्चि में ककया गया उसका कोई कथि 4[सुसंगत तथ्य है] ।
7
* * * *
38. धिधि की पुस्तकों में अन्तर्िचषट ककसी धिधि के कथिों की सुसग ं धत—जब कक न्यायािय को ककसी देि की धिधि के बारे में
राय बिािी है, तब ऐसी धिधि का कोई भी कथि, जो ऐसी ककसी पुस्तक में अन्तर्िचषट है जो ऐसे देि की सरकार के प्राधिकार के अिीि
मुकित या प्रकाधित और ऐसी ककसी धिधि को अन्तर्िच षट करिे िािी तात्‍पपर्यचत है, और ऐसे देि के न्यायाियों के ककसी धिधिर्चय की
कोई ररपोटच, जो ऐसी व्यिस्थाओं की ररपोटच तात्‍पपर्यचत होिे िािी ककसी पुस्तक में अन्तर्िचषट है, सुसंगत है ।

1
2000 के अधिधियम सं० 21 की िारा 92 और दूसरी अिुसूर्ी द्वारा (17-10-2000 से) प्रधतस्थाधपत ।
2
धसधिि प्रकक्रया संधहता, 1908 (1908 5), अिुसूर्ी 1 के आदेि 7 के धियम 17 की तुििा करें । बैककारा की बधहयों में भी प्रधिधषटयों की प्रमाधर्त प्रधतयों की साक्ष्य में
ग्राह्यता के बारे में बैंककर बही साक्ष्य अधिधियम 1891 (1891 का 18) की िारा 4 देधिए ।
3
भारतीय स्ितंत्रता )के न्िीय अधिधियम तथा अध्यादेि अिुकूिि( आदेि, 1948 द्वारा “धिरटि भारत में ककसी सरकार” के स्थाि पर प्रधतस्थाधपत ।
4
धिधि अिुकूि आदेि, 1950 द्वारा अन्तःस्थाधपत ।
5
“सपररषद गििचर जिरि का, या मिास अथिा मुम्बई के सपररषद गििचर का या बंगाि के सपररषद िेधटटिेंट गििचर का अधिधियम, या भारत के राजपत्र में प्रकाधित
होिे िािी सरकार की अधिसूर्िा में या ककसी स्थािीय सरकार के राजपत्र में या िन्दि गजेट अथिा क्िीि के ककसी उपधििेि या कब्जािीि िेत्र के सरकारी राजपत्र
में तात्‍पपर्यचत होिे िािे ककसी मुकित पत्र के सुसंगत तथ्य” मूि िब्दों का संिोिि धिरसि और संिोिि अधिधियम, 1914 (1914 के अधिधियम सं० 10( तत्‍पप‍र्ात
भारत िासि )भारतीय धिधि अिुकूिि( आदेि, 1937, भारतीय स्ितंत्रता )के न्िीय अधिधियम तथा अध्यादेि अिुकूिि( आदेि, 1948 तथा धिधि अिुकूिि आदेि,
1950 द्वारा संिोधित करके उपरोक्त रूप में आया ।
6
1951 के अधिधियम सं० 3 की िारा 3 और अिुसूर्ी द्वारा “भाग क राज्य या भाग ग राज्य के धििाि-मंिि के अधिधियम” के स्थाि पर प्रधतस्थाधपत ।
7
1914 के अधिधियम सं० 10 की िारा 3 और अिुसूर्ी 2 द्वारा अधन्तम पैरे का िोप ककया गया ।
16

ककसी कथि में से ककतिा साधबत ककया जाए


जबकक, कथि ककसी बातर्ीत, दस्तािेज, इिैक्राधिक अधभिेि, पुस्तक अथिा पत्रों या कागज-पत्रों की आििी का
1[39.

भाग हो तब क्या साक्ष्य कदया जाए—जबकक कोई कथि, धजसका साक्ष्य कदया जाता है, ककसी बृहत्तर कथि का या ककसी बातर्ीत का
भाग है या ककसी एकि दस्तािेज का भाग है या ककसी ऐसी दस्तािेज में अन्तर्िच षट है जो ककसी पुस्तक का अथिा पत्रों या कागज-पत्रों
की संसक्त आििी का भाग है या इिैक्राधिक अधभिेि के भाग में अंतर्िचषट है तब उस कथि, बातर्ीत, दस्तािेज, इिैक्राधिक
अधभिेि, पुस्तक अथिा पत्रों या कागज-पत्रों की आििी के उतिे का ही, ि कक उतिे से अधिक का साक्ष्य कदया जाएगा धजतिा
न्यायािय उस कथि की प्रकृ धत और प्रभाि को तथा उि पररधस्थधतयों को, धजिके अिीि िह ककया गया था, पूर्चतः समझिे के धिए उस
धिधिषट मामिे में आि‍यक धिर्ार करता है ।]
न्यायाियों के धिर्चय कब सुसंगत हैं
40. धद्वतीय िाद या धिर्ारर् के िारर्ाथच पूिच धिर्चय सुसग
ं त हैं —ककसी ऐसे धिर्चय, आदेि या धिक्री का अधस्तत्‍पि, जो ककसी
न्यायािय को ककसी िाद के संज्ञाि से या कोई धिर्ारर् करिे से धिधि द्वारा धििाररत करता है, सुसंगत तथ्य है जब कक प्र‍ि यह हो कक
क्या ऐसे न्यायािय को ऐसे िाद का संज्ञाि या ऐसा धिर्ारर् करिा र्ाधहए ।
41. प्रोबेट इत्‍पयाकद धिषयक अधिकाररता के ककन्हीं धिर्चयों की सुसग
ं धत—ककसी सिम न्यायािय के प्रोबेट-धिषयक, धििाह-
धिषयक, िािधिकरर्-धिषयक या कदिािा-धिषयक अधिकाररता के प्रयोग में कदया हुआ अधन्तम धिर्चय, आदेि या धिक्री, जो ककसी
व्यधक्त को, या से, कोई धिधिक हैधसयत प्रदाि करती या िे िेती है या जो सिचतः ि कक ककसी धिधिर्दचषट व्यधक्त के धिरुद्ध ककसी व्यधक्त
को ऐसी ककसी हैधसयत का हकदार या ककसी धिधिर्दचषट र्ीज का हकदार घोधषत करती है, तब सुसंगत है ं जब कक ककसी ऐसी धिधिक
हैधसयत, या ककसी ऐसी र्ीज पर ककसी ऐसे व्यधक्त के हक का अधस्तत्‍पि सुसंगत है ।
ऐसा धिर्चय, आदेि या धिक्री इस बात का धि‍र्ायक सबूत है—
कक कोई धिधिक हैधसयत, जो िह प्रदत्त करती है, उस समय प्रोद्भूत हुई जब ऐसा धिर्चय, आदेि या धिक्री
पररितचि में आई,
कक कोई धिधिक हैधसयत, धजसके धिए िह ककसी व्यधक्त को हकदार घोधषत करती है उस व्यधक्त को उस समय
प्रोद्भूत हुई जो समय ऐसे धिर्चय, 2[आदेि या धिक्री] द्वारा घोधषत है कक उस समय यह उस व्यधक्त को प्रोद्भूत हुई,
कक कोई धिधिक हैधसयत, धजसे िह ककसी ऐसे व्यधक्त से िे िेती है उस समय ित्‍पम हुई जो समय ऐसे धिर्चय ,
2
[आदेि या धिक्री] द्वारा घोधषत है कक उस समय से िह हैधसयत ित्‍पम हो गई थी या ित्‍पम हो जािी र्ाधहए,
और कक कोई र्ीज धजसके धिए िह ककसी व्यधक्त को ऐसा हकदार घोधषत करती है उस व्यधक्त की उस समय
सम्पधत्त थी जो समय ऐसे धिर्चय, 2[आदेि या धिक्री] द्वारा घोधषत है कक उस समय से िह र्ीज उसकी सम्पधत्त थी या
होिी र्ाधहए ।
42. िारा 41 में िर्र्चत से धभन्न धिर्चयों, आदेिों या धिकक्रयों की सुसग ं धत और प्रभाि—िे धिर्चय, आदेि या धिकक्रयां जो िारा
41 में िर्र्चत से धभन्न हैं, यकद िे जांर् में सुसंगत िोक प्रकृ धत की बातों से सम्बधन्ित है ं, तो िे सुसंगत हैं, ककन्तु ऐसे धिर्चय, आदेि या
धिकक्रयां उि बातों का धि‍र्ायक सबूत िहीं है ं धजिका िे कथि करती है ं ।
दृषटांत
क अपिी भूधम पर अधतर्ार के धिए ि पर िाद िाता है । ि उस भूधम पर मागच के िोक अधिकार का अधस्तत्‍पि अधभकधथत
करता है धजसका क प्रत्‍पयाखयाि करता है ।
क द्वारा ग के धिरुद्ध उसी भूधम पर अधतर्ार के धिए िाद में , धजसमें ग िे उसी मागाचधिकार का अधस्तत्‍पि अधभकधथत ककया
था, प्रधतिादी के पि में धिक्री का अधस्तत्‍पि सुसंगत है ककन्तु िह इस बात का धि‍र्ायक सबूत िहीं है कक िह मागाचधिकार अधस्तत्‍पि
में है ।
43. िाराओं 40, 41 और 42 में िर्र्चत से धभन्न धिर्चय आकद कब सुसग ं त हैं—िाराओं 40, 41 और 42 में िर्र्चत से धभन्न
धिर्चय, आदेि या धिकक्रयां धिसंगत हैं जब तक कक ऐसे धिर्चय, आदेि या धिक्री का अधस्तत्‍पि धििाद्यक तथ्य ि हो या िह इस अधिधियम
के ककसी अन्य उपबन्ि के अन्तगचत सुसंगत ि हो ।
दृषटांत
(क) क और ि ककसी अपमाि-िेि के धिए, जो उिमें से हर एक पर िांछि िगाता है, ग पर पृथक-पृथक िाद िाते हैं । हर
एक मामिे में ग कहता है कक िह बात, धजसका अपमािेिीय होिा अधभकधथत है, सत्‍पय है और पररधस्थधतयां ऐसी हैं कक िह
अधिसम्भाव्यतः या तो हर एक मामिे में सत्‍पय है या ककसी में िहीं ।

1
2000 के अधिधियम सं० 21 की िारा 92 और दूसरी अिुसूर्ी द्वारा (17-10-2000 से) प्रधतस्थाधपत ।
2
1872 के अधिधियम सं० 18 की िारा 3 द्वारा अन्तःस्थाधपत ।
17

ग के धिरुद्ध क इस आिार पर कक ग अपिा न्यायोधर्त साधबत करिे में असफि रहा िुकसािी की धिक्री अधभप्राप्त
करता है । यह तथ्य ि और ग के बीर् धिसंगत है ।
)ि( क अपिी पत्‍पिी ग के साथ जारकमच करि े के धिए ि का अधभयोजि करता है ।
ि इस बात का प्रत्‍पयाखयाि करता है कक ग क की पत्‍पिी है ककन्तु न्यायािय ि को जारकमच के धिए दोषधसद्ध
करता है ।
तत्‍पप‍र्ात क के जीििकाि में ि के साथ धििाह करि े पर धद्व-धििाह के धिए ग अधभयोधजत की जाती है । ग
कहती है कक िह क की पत्‍पिी कभी िहीं थी ।
ि के धिरुद्ध कदया गया धिर्चय ग के धिरुद्ध धिसंगत है ।
)ग( ि का अधभयोजि क इसधिए करता है कक उसिे क की गाय र्ुराई है । ि दोषधसद्ध ककया जाता है ।
तत्‍पप‍र्ात क उस गाय के धिए धजसे ि िे दोषधसधद्ध होिे से पूिच ग को बेर् कदया था, ग पर िाद िाता है । ि के
धिरुद्ध िह धिर्चय क और ग के बीर् धिसंगत है ।
)घ( क िे ि के धिरुद्ध भूधम के कब्जे की धिक्री अधभप्राप्त की है । ि का पुत्र ग पररर्ास्िरूप क की हत्‍पया करता है ।
उस धिर्चय का अधस्तत्‍पि अपराि का हेतु दर्िचत करिे के िाते सुसंगत है ।
1[)ङ( क पर र्ोरी और र्ोरी के धिए पूिच दोषधसद्धध का आरोप है । पूिच दोषधसद्धअ धििाद्यक तथ्य होिे के िाते सुसंगत है ।
)र्( ि की हत्‍पया के धिए क धिर्ाररत ककया जाता है । यह तथ्य कक ि िे क पर अपमाि-िेि के धिए अधभयोजि र्िाया था
और क दोषधसद्ध और दध‍ित ककया गया था, िारा 8 के अिीि धििाद्यक तथ्य का हेतु दर्िचत करिे के िाते सुसंगत है ।]
44. धिर्चय अधभप्राप्त करिे में कपट या दुस्संधि अथिा न्यायािय की अिमता साधबत की जा सके गी—िाद या अन्य
कायचिाही का कोई भी पिकार यह दर्िचत कर सके गा कक कोई धिर्चय, आदेि या धिक्री, जो िारा 40, 41 या 42 के अिीि सुसंगत है
और जो प्रधतपिी द्वारा साधबत की जा र्ुकी है, ऐसे न्यायािय द्वारा दी गई थी जो उसे देिे के धिए अिम था या कपट या दुस्सधन्ि द्वारा
अधभप्राप्त की गई थी ।
अन्य व्यधक्तयों की रायें कब सुसंगत हैं
45. धििेषज्ञों की राये—जब कक न्यायािय की धिदेिी धिधि की या धिज्ञाि की या किा की ककसी बात पर या हस्तिेि
2[या अंगुिी धर्ह्िों] की अिन्यता के बारे में राय बिािी हो तब उस बात पर ऐसी धिदेिी धिधि, धिज्ञाि या किा में 2[या हस्तिेि]
3[या अंगुिी धर्ह्िों] की अिन्यता धिषयक प्रस्िों में, धििेष कु िि व्यधक्तयों की रायें सुसंगत तथ्य हैं ।

ऐसे व्यधक्त धििेषज्ञ कहिाते है ं ।


दृषटांत
(क( प्र‍ि यह है कक क्या क की मृत्‍पयु धिष द्वारा काररत हुई ।
धजस धिष के बारे में अिुमाि है कक उससे क की मृत्‍पयु हुई है, उस धिष से पैदा हुए ििर्ों के बारे में धििेषज्ञों की
रायें सुसंगत हैं ।
)ि( प्र‍ि यह है कक क्या क अमुक कायच करिे के समय धर्त्तधिकृ धत के कारर् उस कायच की प्रकृ धत, या यह कक जो कु छ िह कर
रहा है िह दोषपूर्च या धिधि के प्रधतकू ि है, जाििे में असमथच था ।
इस प्र‍ि पर धििेषज्ञों की रायें सुसंगत हैं कक क्या क द्वारा प्रदर्िचत ििर्ों से धर्त्तधिकृ धत सामान्यतः दर्िच त होती
है तथा क्या ऐसी धर्त्तधिकृ धत िोगों को उि कायों की प्रकृ धत, धजन्हें िे करते हैं, या िह कक जो कु छ िे कर रहे हैं िह या तो
दोषपूर्च या धिधि के प्रधतकू ि हैं, जाििे में प्रायः असमथच बिा देती है ।
)ग( प्र‍ि यह है कक क्या अमुक दस्तािेज क द्वारा धििी गई थी । एक अन्य दस्तािेज पेि की जाती है धजसका क द्वारा धििा
जािा साधबत या स्िीकृ त है ।
इस प्र‍ि पर धििेषज्ञों की रायें सुसंगत है ं कक क्या दोिों दस्तािेजें एक ही व्यधक्त द्वारा या धिधभन्न व्यधक्तयों द्वारा
धििी गई थीं ।

1
1891 के अधिधियम सं० 3 की िारा 5 द्वारा अन्तःस्थाधपत ।
2
1899 के अधिधियम सं० 5 की िारा 3 द्वारा अन्तःस्थाधपत । पररषद में धिर्ार-धिमिच के धिए कक क्या “अंगि
ू ी धर्ह्िों” में “अंगूठा धर्ह्ि” सधम्मधित हैं, देधिए भारत
का राजपत्र )अंग्रेजी(, 1898, भाग 6, पृष्ठ 24 ।
3
1872 के अधिधियम सं० 18 की िारा 4 द्वारा अन्तःस्थाधपत
18

1[45क. इिैक्राधिक साक्ष्य के परीिक की राय—जब न्यायािय को ककसी कायचिाही में ककसी कं प्यूटर संसािि या ककसी अन्य
इिैक्राधिक या अंकीय रूप में पारे धषत या भंिाररत ककसी सूर्िा से संबंधित ककसी धिषय पर कोई राय बिािी हो तब सूर्िा
प्रौद्योधगकी अधिधियम, 2000 (2000 का 21) की िारा 79क में धिर्दचषट इिैक्राधिक साक्ष्य के परीिक की राय सुसंगत तथ्य है ।
स्पषटीकरर्—इस िारा के प्रयोजिों के धिए, इिैक्राधिक साक्ष्य का परीिक, धििेषज्ञ होगा ।]

46. धििेषज्ञों की रायों से संबधं ित तथ्य—िे तथ्य, जो अन्यथा सुसंगत िहीं हैं, सुंसगत होते हैं यकद िे धििेषज्ञों की रायों का
समथचि करते हों या उिसे असंगतहों जब कक ऐसी रायें सुसंगत हों ।
दृषटांत
(क( प्र‍ि यह है कक क्या क को अमुक धिष कदया गया था ।
यह तथ्य सुसंगत है कक अन्य व्यधक्तयों में भी, धजन्हें िह धिष कदया गया था, अमुक ििर् प्रकट हुए थे धजिका उस
धिष के ििर् होिा धििेषज्ञ प्रधतज्ञात या प्रत्‍पयाखयात करते हैं ।
)ि( प्र‍ि यह है कक क्या ककसी बन्दरगाह में कोई बािा अमुक समुिधभधत्त से काररत हुई है ।
यह तथ्य सुसंगत है कक अन्य बन्दरगाह, जो अन्य दृधषटयों से िैसे ही धस्थत थे, ककन्तु जहां ऐस ी समुिधभधत्तयां िहीं
थी ं िगभग उसी समय बाधित होिे िगे थे ।
47. हस्तिेि के बारे में राय कब सुसग
ं त है—जबकक न्यायािय को राय बिािी हो कक कोई दस्तािेज ककस व्यधक्त िे धििी
या हस्तािररत की थी, तब उस व्यधक्त के हस्तिेि से, धजसके द्वारा िह धििी या हस्तािररत की गई अिु माधित की जाती है, पररधर्त
ककसी व्यधक्त की यह राय कक िह उस व्यधक्त द्वारा धििी या हस्तािररत की गई थी अथिा धििी या हस्तािररत िहीं की गई थी
सुसंगत तथ्य है ।
स्पषटीकरर्—कोई व्यधक्त ककसी अन्य व्यधक्त के हस्तिेि से पररधर्त तब कहा जाता है, जब कक उसिे उस व्यधक्त को धििते
देिा है या जब कक स्ियं अपिे द्वारा या अपिे प्राधिकार के अिीि धिधित और उस व्यधक्त को संबोधित दस्तािेज के उत्तर में उस
व्यधक्त द्वारा धििी हुई तात्‍पपर्यचत होिे िािी दस्तािेजें प्राप्त की हैं, या जबकक कारबार के मामूिी अिुक्रम में उस व्यधक्त द्वारा धििी
हुई तात्‍पपर्यचत होिे िािी दस्तािेजें उसके समि बराबर रिी जाती रही हैं ।
दृषटांत
प्र‍ि यह है कक क्या अमुक पत्र िन्दि के एक व्यापारी क के हस्तिेि में है ।
ि किकत्ते में एक व्यापारी है धजसिे क को पत्र संबोधित ककए हैं तथा उसके द्वारा धििे हुए तात्‍पपर्यचत होिे िािे पत्र
प्राप्त ककए हैं । ग, ि का धिधपक है, धजसका कतचव्य ि के पत्र-व्यिहार को देििा और फाइि करिा था । ि का दिाि घ है
धजसके समि क द्वारा धििे गए तात्‍पपर्यचत होिे िािे पत्रों को उिके बारे में उससे सिाह करिे के धिए ि बराबर रिा
करता था ।
ि, ग और घ की इस प्र‍ि पर रायें कक क्या िह पत्र क के हस्तिेि में है सुसंगत हैं, यद्यधप ि तो ि िे, ि ग िे, ि घ िे क को
धििते हुए कभी देिा था ।
2
[47क. [इिैक्राधिक धर्ह्िक] के बारे में राय कब सुसग
ं त है—जब कक न्यायािय को ककसी व्यधक्त के 3[इिैक्राधिक धर्ह्िक]
के बारे में राय बिािी हो तब उस प्रमार्कताच प्राधिकारी की राय, धजसिे [इिैक्राधिक धर्ह्िक प्रमार्पत्र] जारी ककया है, सुसंगत
तथ्य है ।]
48. अधिकार या रूक़ि के अधस्तत्‍पि के बारे में रायें कब सुसग
ं त है ं—जबकक न्यायािय को ककस ी सािारर् रूक़ि या अधिकार
के अधस्तत्‍पि के बारे में राय बिािी हो, तब ऐसी रूक़ि या अधिकार के अधस्तत्‍पि के बारे में उि व्यधक्तयों की रायें सुसंगत हैं, जो यकद
उसका अधस्तत्‍पि होता तो संभाव्यतः उसे जािते होते ।
स्पषटीकरर्—“सािारर् रूक़ि या अधिकार” के अन्तगचत ऐसी रूक़ियां या अधिकार आते हैं जो व्यधक्तयों के ककसी काफी बडे
िगच के धिए सामान्य हैं ।
दृषटांत
ककसी धिधिषट ग्राम के धििाधसयों का अमुक कू प के पािी का उपयोग करि े का अधिकार इस िारा के अथच के अन्तगचत
सािारर् अधिकार है ।
49. प्रथाओं, धसद्धान्तों आकद के बारे में रायें कब सुसंगत हैं—जबकक न्यायािय को—

1
2009 के अधिधियम सं० 10 की िारा 52 द्वारा अन्तःस्थाधपत ।
2
2000 के अधिधियम सं० 21 की िारा 92 और दूसरी अिुसूर्ी द्वारा )17-10-2000 से( अन्तःस्थाधपत
3
009 के अधिधियम सं० 10 की िारा 52 द्वारा प्रधतस्थाधपत ।
19

मिुषयों के ककसी धिकाय या कु टु म्ब की प्रथाओं या धसद्धांतों के ,


ककसी िार्मचक या िैराती प्रधतष्ठाि के संधििाि और िासि के , अथिा
धिधिषट धजिे या धिधिषट िगों के िोगों द्वारा प्रयोग में िाए जािे िािे िब्दों या पदों के अथों के ,
बारे में राय बिािी हो, तब उिके संबंि में ज्ञाि के धििेष सािि रििे िािे व्यधक्तयों की रायें संगत तथ्य हैं ।
50. िातेदारी के बारे में राय कब सुसग
ं त है—जबकक न्यायािय को एक व्यधक्त की ककसी अन्य के साथ िातेदारी के बारे में
राय बिािी हो, तब ऐसी िातेदारी के अधस्तत्‍पि के बारे में ऐसे ककसी व्यधक्त के आर्रर् द्वारा अधभव्यक्त राय, धजसके पास कु टु म्ब के
सदस्य के रूप में या अन्यथा उस धिषय के संबंि में ज्ञाि के धििेष सािि है ं, सुसंगत तथ्य है :
परन्तु भारतीय धििाह-धिच्छेद अधिधियम, 1869 (1869 का 4( के अिीि कायचिाधहयों में या भारतीय द‍ि संधहता
(1860 का 45( की िारा 494, 495, 497 या 498 के अिीि अधभयोजिों में ऐसी राय धििाह साधबत करिे के धिए पयाचप्त िहीं होगी ।
दृषटांत
(क( प्र‍ि यह है कक क्या क और ि धििाधहत थे ।
यह तथ्य कक िे अपिे धमत्रों द्वारा पधत और पत्‍पिी के रूप में प्रायः स्िीकृ त ककए जाते थे और उिसे िैसा बताचि ककया जाता था
सुसंगत है ।
)ि( प्र‍ि यह है कक क्या क, ि का िमचज पुत्र है। यह तथ्य कक कु टु म्ब के सदस्यों द्वारा क से सदा उस रूप में बताचि ककया जाता
था सुसंगत है ।

51. राय के आिार कब सुसग


ं त हैं—जब कभी ककसी जीधित व्यधक्त की राय सुसंगत है, तब िे आिार भी, धजि पर िह
आिाररत है, सुसंगत हैं ।
दृषटांत
कोई धििेषज्ञ अपिी राय बिािे के प्रयोजिाथच ककए हुए प्रयोगों का धििरर् दे सकता है ।

िीि कब सुसग
ं त हैं
52. धसधिि मामिों में अध्यारोधपत आर्रर् साधबत करिे के धिए िीि धिसंगत है—धसधिि मामिों में यह तथ्य कक ककसी
सम्पृक्त व्यधक्त का िीि ऐसा है कक जो उस पर अध्यारोधपत ककसी आर्रर् को अधिसंभाव्य या अिधिसंभाव्य बिा देता है, धिसंगत है
िहां तक के धसिाय जहां तक कक ऐसा िीि अन्यथा सुसंगत तथ्यों से प्रकट होता है ।
53. दाध‍िक मामिों में प्रितचि अच्छा िीि सुसंगत है—दाध‍िक कायचिाधहयों में यह तथ्य सुसंगत है कक अधभयुक्त व्यधक्त
अच्छे िीि का है ।
[53क. कधतपय मामिों में िीि या पूिच िैंधगक अिुभि के साक्ष्य का सुसंगत ि होिा—भारतीय दंि संधहता की िारा 354,
1

िारा 354क, िारा 354ि, िारा 354ग, िारा 354घ, िारा 376, 2[िारा 376क, िारा 376कि, 376ि, िारा 376ग, िारा 376घ,
376घक, 376घि,] या िारा 376ङ के अिीि ककसी अपराि के धिए या ककसी ऐसे अपराि के ककए जािे का प्रयत्‍पि करिे के धिए, ककसी
अधभयोजि में जहां सम्मधत का प्र‍ि धििाद्य है िहां पीधडता के िीि या ऐसे व्यधक्त का ककसी व्यधक्त के साथ पूिच िैंधगक अिुभि का
साक्ष्य ऐसी सम्मधत या सम्मधत की गुर्ता के मुद्दे पर सुसंगत िहीं होगा ।]
[54. उत्तर में होिे के धसिाय पूित
3
च ि बुरा िीि सुसंगत िहीं है—दाध‍िक कायचिाधहयों में यह तथ्य कक अधभयुक्त व्यधक्त बुरे
िीि का है, धिसंगत है, जब तक कक इस बात का साक्ष्य ि कदया गया हो कक िह अच्छे िीि का है, धजसके कदए जािे की दिा में िह
सुसंगत हो जाता है ।
स्पषटीकरर् 1—यह िारा उि मामिों को िागू िहीं है धजिमें ककसी व्यधक्त का बुरा िीि स्ियं धििाद्यक तथ्य है ।
स्पषटीकरर् 2—पूिच दोषधसद्ध बुरे िीि के साक्ष्य के रूप में सुसंगत है ।]
55. िुकसािी पर प्रभाि िाििे िािा िीि—धसधिि मामिों में, यह तथ्य कक ककसी व्यधक्त का िीि ऐसा है धजससे
िुकसािी की रकम पर, जो उसे धमििी र्ाधहए, प्रभाि पडता है, सुसंगत है ।

1
2013 के अधिधियम सं० 13 की िारा 25 द्वारा (3-2-2013 से) अंत:स्थाधपत ।
2
2018 के अधिधियम सं० 22 की िारा 8 द्वारा प्रधतस्थाधपत ।
3
1891 के अधिधियम सं० 3 की िारा 6 द्वारा मूि िारा के स्थाि पर प्रधतस्थाधपत ।
20

स्पषटीकरर्—िारा 52, 53, 54 और 55 में “िीि” िब्द के अन्तगचत खयाधत और स्िभाि दोिों आते हैं, ककन्तु 1[िारा 54 में
यथा उपबंधित के धसिाय] के िि सािारर् खयाधत ि सािारर् स्िभाि का ही ि कक ऐसे धिधिषट कायों का, धजिके द्वारा, खयाधत या
स्िभाि दर्िचत हुए थे, साक्ष्य कदया जा सके गा ।
भाग 2

सबूत के धिषय
अध्याय 3

तथ्य धजिका साधबत ककया जािा आि‍यक िहीं है


56. न्याधयक रूप से अिेिर्ीय तथ्य साधबत करिा आि‍यक िहीं है—धजस तथ्य की न्यायािय न्याधयक अिेिा करे गा, उसे
साधबत करिा आि‍यक िहीं है ।
57. िे तथ्य, धजिकी न्याधयक अिेिा न्यायािय को करिी होगी—न्यायािय धिम्िधिधित तथ्यों की न्याधयक
अिेिा करे गा—
2
[(1) भारत के राज्यिेत्र में प्रिृत्त समस्त धिधियां;]
(2) 3[यूिाइटेि ककं गिम की] पािचमेन्ट द्वारा पाररत या एतत्‍पप‍र्ात पाररत ककए जािे िािे समस्त पधब्िक ऐक्ट
तथा िे समस्त स्थािीय और पसचिि ऐक्ट धजिके बारे में 5[यूिाइटेि ककं गिम की] पािचमेन्ट िे धिर्दचषट ककया है कक उिकी
न्याधयक अिेिा की जाए;

(3) 4[भारतीय] सेिा, 5[िौसेिा या िायुसेिा] के धिए युद्ध की धियमाििी;


6
[(4) यूिाइटेि ककं गिम की पािचमेंट की, भारत की संधििाि सभा की, संसद की तथा ककसी प्रान्त या राज्यों में
तत्‍पसमय प्रिृत्त धिधियों के अिीि स्थाधपत धििाि-म‍ििों की कायचिाही का अिुक्रम;]
(5) ग्रेट धिटेि और आयरिैंि की यूिाइटेि ककं गिम के तत्‍पसमय प्रभु का राज्यारोहर् और राजहस्तािर;
(6) िे सब मुिाएं, धजिकी अंग्रेजी न्यायािय न्याधयक अिेिा करते हैं, 7[8[भारत] में के सब न्यायाियों] की और
9[के न्िीय सरकार या क्राउि ररप्रेजेन्टे रटि] के प्राधिकार द्वारा 8[भारत] के बाहर स्थाधपत सब न्यायाियों की मुिाएं,

िािधिकरर् और समुिीय अधिकाररता िािे न्यायाियों की और िोटरीज पधब्िक की मुिाएं और िे सब मुिाएं, धजिका कोई
व्यधक्त 10[संधििाि या यूिाइटेि ककं गिम की पािचमेन्ट के ककसी ऐक्ट या] 8[भारत] में धिधि का बि रििे िािे अधिधियम
या धिधियम द्वारा उपयोग करिे के धिए प्राधिकृ त है;
(7) ककसी राज्य में ककसी िोक पद पर तत्‍पसमय आरू़ि व्यधक्तयों के कोई पदारोहर्, िाम, उपाधियां, कृ त्‍पय और
हस्तािर, यकद ऐसे पद पर उिकी धियुधक्त का तथ्य 11[ककसी िासकीय राजपत्र में] अधिसूधर्त ककया गया हो;
(8) 12[भारत सरकार] द्वारा मान्यताप्राप्त हर राज्य या प्रभु का अधस्तत्‍पि, उपाधि और राषरीय ध्िज;
(9) समय के प्रभाग, पृथ्िी के भौगोधिक प्रभाग तथा िासकीय राजपत्र में अधिसूधर्त िोक उत्‍पसि, उपिास और
अिकाि-कदि;
(10) भारत सरकार के अधिपत्‍पय के अिीि राज्यिेत्र;
(11) 12[भारत सरकार] और अन्य ककसी राज्य या व्यधक्त के धिकाय के बीर् संघषच का प्रारम्भ, र्ािू रहिा और
पयचिसाि;

1
1891 के अधिधियम सं० 3 की िारा 7 द्वारा अन्त:स्थाधपत ।
2
धिधि अिुकूिि आदेि, 1950 द्वारा पूिि च ती पैरा के स्थाि पर प्रधतस्थाधपत ।
3
धिधि अिुकूिि आदेि, 1950 द्वारा अन्त:स्थाधपत ।
4
धिधि अिुकूिि आदेि, 1950 द्वारा “हर मजेस्टी की” के स्थाि पर प्रधतस्थाधपत ।
5
1927 के अधिधियम सं० 10 की िारा 2 और प्रथम अिुसूर्ी द्वारा “या िौसेिा” के स्थाि पर प्रधतस्थाधपत ।
6
धिधि अिुकूिि आदेि, 1950 द्वारा पूिि च ती (4) के स्थाि पर प्रधतस्थाधपत ।
7
भारतीय स्ितंत्रता )के न्िीय अधिधियम तथा अध्यादे‍ ा अिुकूिि( आदेि, 1948 द्वारा “धिरटि भारत के सब न्यायाियों” के स्थाि पर प्रधतस्थाधपत ।
8
1951 के अधिधियम सं० 3 की िारा 3 और अिुसूर्ी द्वारा “राज्यों” के स्थाि पर प्रधतस्थाधपत ।
9
भारत िासि (भारतीय धिधि अिुकिि) आदेि, 1937 द्वारा “सपररषद गििचर जिरि या सपररषद स्थािीय सरकार” के स्थाि पर प्रधतस्थाधपत ।
10
धिधि अिुकूिि आदेि, 1950 द्वारा “संसद के ककसी अधिधियम या” के स्थाि पर प्रधतस्थाधपत ।
11
भारत िासि )भारतीय धिधि अिुकूिि( आदेि, 1937 द्वारा “भारत के राजपत्र या ककसी स्थािीय सरकार के िासकीय राजपत्र में” के स्थाि पर प्रधतस्थाधपत ।
12
धिधि अिुकूिि आदेि, 1950 द्वारा “धिरटि क्राउि” के स्थाि पर प्रधतस्थाधपत ।
21

(12) न्यायािय के सदस्यों और आकफसरों के तथा उिके उपपकदयों और अिीिस्थ आकफसरों और सहायकों के और
उसकी आदेधिकाओं के धिषपादि में कायच करिे िािे सब आकफसरों के भी, तथा सब अधििक्ताओं, अटर्िचयों, प्रोक्टरों,
िकीिों, प्िीिरों, और उिके समि उपसंजात होिे या कायच करिे के धिए ककसी धिधि द्वारा प्राधिकृ त अन्य व्यधक्तयों के िाम;
(13) 1[भूधम या समुि पर] मागच का धियम ।
इि सभी मामिों में, तथा िोक इधतहास, साधहत्‍पय, धिज्ञाि या किा के सब धिषयों में भी न्यायािय समुपयुक्त धिदेि पुस्तकों
या दस्तािेजों की सहायता िे सके गा ।
यकद न्यायािय से ककसी तथ्य की न्याधयक अिेिा करिे की ककसी व्यधक्त द्वारा प्राथचिा की जाती है, तो यकद और जब तक िह
व्यधक्त कोई ऐसी पुस्तक या दस्तािेज पेि ि कर दे, धजसे ऐसा न्यायािय अपिे को ऐसा करिे को समथच बिािे के धिए आि‍यक
समझता है, न्यायािय ऐसा करिे से इन्कार कर सके गा ।
58. स्िीकृ त तथ्यों को साधबत करिा आि‍यक िहीं है—ककसी ऐसे तथ्य को ककसी कायचिाही में साधबत करिा आि‍यक िहीं
है, धजसे उस कायचिाही के पिकार या उिके अधभकताच सुििाई पर स्िीकार करिे के धिए सहमत हो जाते हैं, या धजसे िे सुििाई के पूिच
ककसी स्िहस्तािररत िेि द्वारा स्िीकार करिे के धिए सहमत हो जाते हैं या धजसके बारे में अधभिर्ि संबंिी ककसी तत्‍पसमय प्रिृत्त
धियम के अिीि यह समझ धिया जाता है कक उन्होंिे उसे अपिे अधभिर्िों द्वारा स्िीकार कर धिया है :
परन्तु न्यायािय स्िीकृ त तथ्यों का ऐसी स्िीकृ धतयों द्वारा साधबत ककए जािे से अन्यथा साधबत ककया जािा अपिे
धििेकािुसार अपेधित कर सके गा ।
अध्याय 4

मौधिक साक्ष्य के धिषय में


59. मौधिक साक्ष्य द्वारा तथ्यों का साधबत ककया जािा—2[दस्तािेजों या इिैक्राधिक अधभिेिों की अन्तिचस्तु] के धसिाय
सभी तथ्य मौधिक साक्ष्य द्वारा साधबत ककए जा सकें गे ।
60. मौधिक साक्ष्य प्रत्‍पयि होिा र्ाधहए—मौधिक साक्ष्य, समस्त अिस्थाओं में र्ाहे िे कै सी ही हों, प्रत्‍पयि ही
होगा, अथाचत :—
यकद िह ककसी देिे जा सकिे िािे तथ्य के बारे में है, तो िह ऐसे सािी का ही साक्ष्य होगा जो कहता है कक उसिे उसे देिा;
यकद िह ककसी सुिे जा सकिे िािे तथ्य के बारे में है, तो िह ऐसे सािी का ही साक्ष्य होगा जो कहता है कक उसिे उसे सुिा;
यकद िह ककसी ऐसे तथ्य के बारे में है धजसका ककसी अन्य इं किय द्वारा या ककसी अन्य रीधत से बोि हो सकता था, तो िह ऐसे
सािी का ही साक्ष्य होगा जो कहता है कक उसिे उसका बोि उस इं किय द्वारा या उस रीधत से ककया;
यकद िह ककसी राय के , या उि आिारों के , धजि पर िह राय िाररत है, बारे में है, तो िह उस व्यधक्त का ही साक्ष्य होगा जो
िह राय उि आिारों पर िारर् करता है :
परन्तु धििेषज्ञों की रायें, जो सामान्यत: धिक्रय के धिए प्रस्थाधपत की जािे िािी ककसी पुस्तक में अधभव्यक्त हैं, और िे
आिार, धजि पर ऐसी राय िाररत हैं, यकद रर्धयता मर गया है, या िह धमि िहीं सकता है या िह साक्ष्य देिे के धिए असमथच हो गया
है या उसे इतिे धििम्ब या व्यय के धबिा धजतिा न्यायािय अयुधक्तयुक्त समझता है, सािी के रूप में बुिाया िहीं जा सकता हो, ऐसी
पुस्तकों को पेि करके साधबत ककए जा सकें गे :
परन्तु यह भी कक यकद मौधिक साक्ष्य दस्तािेज से धभन्ि ककसी भौधतक र्ीज के अधस्तत्‍पि या दिा के बारे में है, तो न्यायािय,
यकद िह ठीक समझे, ऐसी भौधतक र्ीज का अपिे धिरीिर्ाथच पेि ककया जािा अपेधित कर सके गा ।
अध्याय 5

दस्तािेजी साक्ष्य के धिषय में


61. दस्तािेजों की अन्तिचस्तु का सबूत—दस्तािेजों की अन्तिचस्तु या तो प्राथधमक या धद्वतीधयक साक्ष्य द्वारा साधबत की जा
सके गी ।
62. प्राथधमक साक्ष्य—प्राथधमक साक्ष्य से न्यायािय के धिरीिर् के धिए पेि की गई दस्तािेज स्ियं अधभप्रेत है ।
स्पषटीकरर् 1—जहां कक कोई दस्तािेज कई मूि प्रधतयों में धिषपाकदत है िहां हर एक मूि प्रधत उस दस्तािेज का प्राथधमक
साक्ष्य है ।

1
1872 के अधिधियम सं० 18 की िारा 5 द्वारा अन्त:स्थाधपत ।
2
2000 के अधिधियम सं० 21 की िारा 92 द्वारा और दूसरी अिुसूर्ी द्वारा (17-10-2000 से) प्रधतस्थाधपत ।
22

जहां कक कोई दस्तािेज प्रधतिेि में धिषपाकदत है और हर एक प्रधतिेि पिकारों में से के िि एक पिकार या कु छ पिकारों
द्वारा धिषपाकदत ककया गया है, िहां हर एक प्रधतिेि उि पिकारों के धिरुद्ध, धजन्होंिे उसका धिषपादि ककया है, प्राथधमक साक्ष्य है ।
स्पषटीकरर् 2—जहां कक अिेक दस्तािेजें एकरूपात्‍पमक प्रकक्रया द्वारा बिाई गई हैं जैसा कक मुिर्, धििा मुिर् या फोटो
धर्त्रर् में होता है, िहां उिमें से हर एक िेष सबकी अन्तिचस्तु का प्राथधमक साक्ष्य है, ककन्तु जहां कक िे सब ककसी सामान्य मूि की
प्रधतयां हैं िहां िे मूि की अन्तिचस्तु का प्राथधमक साक्ष्य िहीं है ।
दृषटांत
यह दर्िचत ककया जाता है कक एक ही समय एक ही मूि से मुकित अिेक प्िेकािच ककसी व्यधक्त के कब्जे में रिे हैं । इि प्िेकािों
में से कोई भी एक अन्य ककसी की भी अन्तिचस्तु का प्राथधमक साक्ष्य है ककन्तु उिमें से कोई भी मूि की अन्तिचस्तु का प्राथधमक साक्ष्य
िहीं है ।
63. धद्वतीधयक साक्ष्य—धद्वतीधयक साक्ष्य से अधभप्रेत है और उसके अन्तगचत आते हैं—
(1) एतधस्मिप‍र्ात अन्तर्िचषट उपबन्िों के अिीि दी हुई प्रमाधर्त प्रधतयां;1
(2) मूि से ऐसी याधन्त्रक प्रकक्रयाओं द्वारा, जो प्रकक्रयाएं स्ियं ही प्रधत की िुद्धता सुधिध‍र्त करती हैं, बिाई गई
प्रधतयां तथा ऐसी प्रधतयों से तुििा की हुई प्रधतधिधपयां;
(3) मूि से बिाई गई या तुििा की गई प्रधतयां;
(4) उि पिकारों के धिरुद्ध, धजन्होंिे उन्हें धिषपाकदत िहीं ककया है, दस्तािेजों के प्रधतिेि;
(5) ककसी दस्तािेज की अन्तिचस्तु का उस व्यधक्त द्वारा, धजसिे स्ियं उसे देिा है, कदया हुआ मौधिक िृत्तांत ।
दृषटांत
)क( ककसी मूि का फोटोधर्त्र, यद्यधप दोिों की तुििा ि की गई हो तथाधप यकद यह साधबत ककया जाता है कक फोटोधर्धत्रत
िस्तु मूि थी, उस मूि की अन्तिचस्तु का धद्वतीधयक साक्ष्य है ।
)ि( ककसी पत्र की िह प्रधत, धजसकी तुििा उस पत्र की, उस प्रधत से कर िी गई है जो प्रधतिधप-यंत्र द्वारा तैयार की गई है,
उस पत्र की अन्तिचस्तु का धद्वतीधयक साक्ष्य है, यकद यह दर्िचत कर कदया जाता है कक प्रधतधिधप-यंत्र द्वारा तैयार की गई प्रधत मूि से
बिाई गई थी ।
)ग( प्रधत की िकि करके तैयार की गई ककन्तु तत्‍पप‍र्ात मूि से तुििा की हुई प्रधतधिधप धद्वतीधयक साक्ष्य है ककन्तु इस प्रकार
तुििा िहीं की हुई प्रधत मूि का धद्वतीधयक साक्ष्य िहीं है, यद्यधप उस प्रधत की, धजससे िह िकि की गई है, मूि से तुििा की गई थी ।
)घ( ि तो मूि से तुििाकृ त प्रधत का मौधिक िृत्तान्त और ि मूि के ककसी फोटोधर्त्र या यंत्रकृ त प्रधत का मौधिक िृत्तान्त मूि
का धद्वतीधयक साक्ष्य है ।
64. दस्तािेजों का प्राथधमक साक्ष्य द्वारा साधबत ककया जािा—दस्तािेजें एतधस्मन्प‍र्ात िर्र्चत अिस्थाओं के धसिाय,
प्राथधमक साक्ष्य द्वारा साधबत करिी होंगी ।
65. अिस्थाएं धजिमें दस्तािेजों के सम्बन्ि में धद्वतीधयक साक्ष्य कदया जा सके गा—ककसी दस्तािेज के अधस्तत्‍पि, दिा या
अन्तिचस्तु का धद्वतीधयक साक्ष्य धिम्िधिधित अिस्थाओं में कदया जा सके गा—
)क( जबकक यह दर्िचत कर कदया जाए या प्रतीत होता हो कक मूि ऐसे व्यधक्त के कब्जे में या िक्त्‍पयिीि है :—
धजसके धिरुद्ध उस दस्तािेज का साधबत ककया जािा ईधप्सत है, अथिा
जो न्यायािय की आदेधिका की पहुंर् से बाहर है, या ऐसी आदेधिका के अध्यिीि िहीं है, अथिा
जो उसे पेि करिे के धिए िैि रूप से आबद्ध है,
और जब कक ऐसा व्यधक्त िारा 66 में िर्र्चत सूर्िा के प‍र्ात उसे पेि िहीं करता है,
)ि( जब कक मूि के अधस्तत्‍पि, दिा या अन्तिचस्तु को उस व्यधक्त द्वारा, धजसके धिरुद्ध उसे साधबत ककया जािा है या
उसके धहत प्रधतधिधि द्वारा धिधित रूप में स्िीकृ त ककया जािा साधबत कर कदया गया है,
)ग( जबकक मूि िषट हो गया है, या िो गया है अथिा जबकक उसकी अन्तिचस्तु का साक्ष्य देिे की प्रस्थापिा करिे
िािा पिकार अपिे स्ियं के व्यधतक्रम या उपेिा से अिुद्भूत अन्य ककसी कारर् से उसे युधक्तयुक्त समय में पेि िहीं कर
सकता,

1
आगे िारा 76 देिें ।
23

)घ( जबकक मूि इस प्रकृ धत का है कक उसे आसािी से स्थािान्तररत िहीं ककया जा सकता,
)ङ( जबकक मूि िारा 74 के अथच के अन्तगचत एक िोक दस्तािेज है,
)र्( जबकक मूि ऐसी दस्तािेज है धजसकी प्रमाधर्त प्रधत का साक्ष्य में कदया जािा इस अधिधियम द्वारा या
1[भारत] में प्रिृत्त ककसी अन्य धिधि द्वारा अिुज्ञात है,2
)छ( जबकक मूि ऐसे अिेक िेिाओं या अन्य दस्तािेजों से गरठत है धजिकी न्यायािय में सुधििापूिचक परीिा िहीं
की जा सकती और िह तथ्य धजसे साधबत ककया जािा है सम्पूर्च संग्रह का सािारर् पररर्ाम है ।
अिस्थाओं )क(, )ग( और )घ( में दस्तािेजों की अन्तिचस्तु का कोई भी धद्वतीधयक साक्ष्य ग्राह्य है ।
अिस्था )ि( में िह धिधित स्िीकृ धत ग्राह्य है ।
अिस्था )ङ( या )र्( में दस्तािेज की प्रमाधर्त प्रधत ग्राह्य है, ककन्तु अन्य ककसी भी प्रकार का धद्वतीधयक साक्ष्य ग्राह्य िहीं है ।
अिस्था )छ( में दस्तािेजों के सािारर् पररर्ाम का साक्ष्य ऐसे ककसी व्यधक्त द्वारा कदया जा सके गा धजसिे उिकी परीिा की
है और जो ऐसी दस्तािेजों की परीिा करिे में कु िि है ।
[65क. इिैक्राधिक अधभिेि से संबधं ित साक्ष्य के बारे में धििेष उपबंि—इिैक्राधिक अधभिेि की अंतिचस्तु िारा 65ि के
3

उपबंिों के अिुसार साधबत की जा सके गी ।


65ि. इिैक्राधिक अधभिेिों की ग्राह्यता—(1) इस अधिधियम में ककसी बात के होते हुए भी, ककसी इिैक्राधिक अधभिेि में
अंतर्िचषट ककसी सूर्िा को भी, जो कं प्यूटर द्वारा उत्‍पपाकदत और ककसी कागज पर मुकित, प्रकािीय या र्ुंबकीय मीधिया में भंिाररत,
अधभधिधित या िकि की गई हो )धजसे इसमें इसके प‍र्ात कं प्यूटर धिगचम कहा गया है(, तब एक दस्तािेज समझा जाएगा, यकद
प्र‍िगत सूर्िा और कं प्यूटर के संबंि में, इस िारा में उधल्िधित ितें पूरी कर दी जाती हैं और िह मूि की ककसी अंतिचस्तु या उसमें
कधथत ककसी तथ्य के साक्ष्य के रूप में, धजसका प्रत्‍पयि साक्ष्य ग्राह्य होता, अधतररक्त सबूत या मूि को पेि ककए धबिा ही ककन्हीं
कायचिाधहयों में ग्राह्य होगा ।
(2) कं प्यूटर धिगचम की बाबत उपिारा (1) में िर्र्चत ितें धिम्िधिधित होंगी, अथाचत :—
)क( सूर्िा से युक्त कं प्यूटर धिगचम, कं प्यूटर द्वारा उस अिधि के दौराि उत्‍पपाकदत ककया गया था धजसमें उस व्यधक्त
द्वारा, धजसका कं प्यूटर के उपयोग पर धिधिपूर्च धियंत्रर् था, उस अिधि में धियधमत रूप से ककए गए ककसी कक्रयाकिाप के
प्रयोजि के धिए, सूर्िा भंिाररत करिे या प्रसंस्करर् करिे के धिए धियधमत रूप से कं प्यूटर का उपयोग ककया गया था;
)ि( उक्त अिधि के दौराि, इिैक्राधिक अधभिेि में अन्तर्िचषट ककस्म की सूर्िा या उस ककस्म की धजससे इस
प्रकार अन्तर्िचषट सूर्िा व्युत्‍पपन्ि की जाती है, उक्त कक्रयाकिापों के सामान्य अिुक्रम में कं प्यूटर में धियधमत रूप से भरी
गई थी;
)ग( उक्त अिधि के महत्‍पिपूर्च भाग में आद्योपांत, कं प्यूटर समुधर्त रूप से कायच कर रहा था अथिा, यकद िहीं तो,
उस अिधि के उस भाग की बाबत, धजसमें कं प्यूटर समुधर्त रूप से कायच िहीं कर रहा था या िह उस अिधि में प्रर्ािि में
िहीं था, ऐसी अिधि िहीं थी धजससे इिैक्राधिक अधभिेि या उसकी अंतिचस्तु की िुद्धता प्रभाधित होती हो; और
)घ( इिैक्राधिक अधभिेि में अन्तर्िचषट सूर्िा ऐसी सूर्िा से पुि: उत्‍पपाकदत या व्युत्‍पपन्ि की जाती है, धजसे उक्त
कक्रयाकिापों के सामान्य अिुक्रम में कं प्यूटर में भरा गया था ।
(3) जहां ककसी अिधि में, उपिारा (2) के िंि )क( में यथा उधल्िधित, उस अिधि के दौराि धियधमत रूप से ककए गए ककन्हीं
कक्रयाकिापों के प्रयोजिों के धिए सूर्िा के भंिारर् या प्रसंस्करर् का कायच कं प्यूटरों द्वारा धियधमत रूप से धिषपाकदत ककया गया था,
र्ाहे यह—
)क( उस अिधि में कं प्यूटरों के प्रर्ािि के संयोजि द्वारा; या
)ि( उस अिधि में उत्तरोत्तर प्रर्ाधित धिधभि कं प्यूटरों द्वारा; या
)ग( उस अिधि में उत्तरोत्तर प्रर्ाधित कं प्यूटरों के धिधभन्ि संयोजिों द्वारा; या
)घ( उस अिधि में उत्तरोत्तर प्रर्ािि को अंतिचधित करते हुए ककसी अन्य रीधत में हो,
र्ाहे िह एक या अधिक कं प्यूटरों और एक या अधिक कं प्यूटरों के संयोजिों द्वारा ककसी भी क्रम में हो,

1
1951 के अधिधियम सं० 3 की िारा 3 और अिुसूर्ी द्वारा “राज्यों” के स्थाि पर प्रधतस्थाधपत ।
2
बैंककार बही साक्ष्य अधिधियम, 1891 (1891 का 18) की िारा 4 की तुििा करें ।
3
2000 के अधिधियम सं० 21 की िारा 92 और दूसरी अिुसूर्ी द्वारा (17-10-2000 से) अंत:स्थाधपत ।
24

उस अिधि के दौराि उस प्रयोजि के धिए उपयोग ककए गए सभी कं प्यू टर इस िारा के प्रयोजिों के धिए एकि कं प्यूटर के रूप में मािे
जाएंगे और इस िारा में कं प्यूटर के प्रधत धिदेि का तद्िुसार अथच िगाया जाएगा ।
(4) ककन्हीं कायचिाधहयों में, जहां इस िारा के आिार पर साक्ष्य में धििरर् कदया जािा िांधछत है, धिम्िधिधित बातों में से
ककसी बात को पूरा करते हुए प्रमार्पत्र, अथाचत :—
)क( धििरर् से युक्त इिैक्राधिक अधभिेि की पहर्ाि करिा और उस रीधत का िर्चि करिा धजससे इसका
उत्‍पपादि ककया गया था;
)ि( उस इिैक्राधिक अधभिेि के उत्‍पपादि में अन्तिचधित ककसी युधक्त को ऐसी धिधिधषटयां देिा, जो यह दर्िचत
करिे के प्रयोजि के धिए समुधर्त हों कक इिैक्राधिक अधभिेि का कं प्यूटर द्वारा उत्‍पपादि ककया गया था;
)ग( ऐसे धिषयों में से ककसी पर कारच िाई करिा, धजससे उपिारा (2) में उधल्िधित ितें संबंधित हैं,
और ककसी ऐसे व्यधक्त द्वारा हस्तािर ककए जािे के धिए तात्‍पपर्यचत होिा, जो सुसंगत युधक्त के प्रर्ािि या सुसंगत कक्रयाकिाप के प्रबंि
के )जो भी समुधर्त हों( संबंि में उत्तरदायी पदीय हैधसयत में हो, प्रमार्पत्र में कधथत ककसी धिषय का साक्ष्य होगा; और इस उपिारा
के प्रयोजिों के धिए ककसी ऐसे धिषय के धिए यह कथि पयाचप्त होगा कक यह कथि करिे िािे व्यधक्त के सिोत्तम ज्ञाि और धि‍िास के
आिार पर कहा गया है ।
(5) इस िारा के प्रयोजिों के धिए,—
)क( सूर्िा ककसी कं प्यूटर को प्रदाय की गई समझी जाएगी यकद यह ककसी समुधर्त रूप में प्रदाय की गई है , र्ाहे
इस प्रकार ककया गया प्रदाय सीिे )मािि मध्यिेप सधहत या रधहत( या ककसी समुधर्त उपस्कर के माध्यम द्वारा ककया
गया हो;
)ि( र्ाहे ककसी पदिारी द्वारा ककए गए कक्रयाकिापों के अिुक्रम में सूर्िा इसके भंिाररत या प्रसंस्कृ त ककए जािे
की दृधषट से उक्त कक्रयाकिापों के अिुक्रम से अन्यथा प्रर्ाधित कं प्यूटर द्वारा उक्त कक्रयाकिापों के प्रयोजिों के धिए प्रदाय की
जाती है, िह सूर्िा, यकद सम्यक रूप से उस कं प्यूटर को प्रदाय की जाती है तो, उि कक्रयाकिापों के अिुक्रम में प्रदाय की गई
समझी जाएगी;
)ग( कं प्यूटर उत्‍पपाद को कं प्यूटर द्वारा उत्‍पपाकदत समझा जाएगा, र्ाहे यह इसके द्वारा सीिे उत्‍पपाकदत हो )मािि
मध्यिेप सधहत या रधहत( या ककसी समुधर्त उपस्कर के माध्यम से हो ।
स्पषटीकरर्—इस िारा के प्रयोजिों के धिए, अन्य सूर्िा से व्युत्‍पपन्ि की गई सूर्िा के प्रधत कोई धिदेि, पररकिि, तुििा या
ककसी अन्य प्रकक्रया द्वारा उससे व्युत्‍पपन्ि के प्रधतधिदेि होगा ।]
66. पेि करिे की सूर्िा के बारे में धियम—िारा 65, ि‍ि )क( में धिर्दचषट दस्तािेजों की अन्तचिस्तु का धद्वतीधयक साक्ष्य तब
तक ि कदया जा सके गा जब तक ऐसे धद्वतीधयक साक्ष्य देिे की प्रस्थापिा करिे िािे पिकार िे उस पिकार को, धजसके कब्जे में या
िक्त्‍पयिीि िह दस्तािेज है 1[या उसके अटिी या प्िीिर को,] उसे पेि करिे के धिए ऐसी सूर्िा, जैसी कक धिधि द्वारा धिधहत है, और
यकद धिधि द्वारा कोई सूर्िा धिधहत िहीं हो तो ऐसी सूर्िा, जैसी न्यायािय मामिे की पररधस्थधतयों के अिीि युधक्तयुक्त समझता है,
ि दे दी हो :
परन्तु ऐसी सूर्िा धिम्िधिधित अिस्थाओं में से ककसी में अथिा ककसी भी अन्य अिस्था में, धजसमें न्यायािय उसके कदए
जािे से अधभमुधक्त प्रदाि कर दे, धद्वतीधयक साक्ष्य को ग्राह्य बिािे के धिए अपेधित िहीं की जाएगी :—
(1) जब कक साधबत की जािे िािी दस्तािेज स्ियं एक सूर्िा है,
(2) जब कक प्रधतपिी को मामिे की प्रकृ धत से यह जाििा ही होगा कक उसे पेि करिे की उससे अपेिा की जाएगी,
(3) जब कक यह प्रतीत होता है या साधबत ककया जाता है कक प्रधतपिी िे मूि पर कब्जा कपट या बि द्वारा
अधभप्राप्त कर धिया है,
(4) जब कक मूि प्रधतपिी या उसके अधभकताच के पास न्यायािय में है,
(5) जब कक प्रधतपिी या उसके अधभकताच िे उसका िो जािा स्िीकार कर धिया है,
(6) जबकक दस्तािेज पर कब्जा रििे िािा व्यधक्त न्यायािय की आदेधिका की पहुंर् के बाहर है या ऐसी
आदेधिका के अध्यिीि िहीं है ।
67. धजस व्यधक्त के बारे में अधभकधथत है कक उसिे पेि की गई दस्तािेज को हस्तािररत ककया था या धििा था उस व्यधक्त
के हस्तािर या हस्तिेि का साधबत ककया जािा—यकद कोई दस्तािेज ककसी व्यधक्त द्वारा हस्तािररत या पूर्चत: या भागत: धििी गई

1
1872 के अधिधियम सं० 18 की िारा 6 द्वारा अन्त:स्थाधपत ।
25

अधभकधथत है, तो यह साधबत करिा होगा कक िह हस्तािर या उस दस्तािेज के उतिे का हस्तिेि, धजतिे के बारे में यह अधभकधथत है
कक िह उस व्यधक्त के हस्तिेि में है, उसके हस्तिेि में है ।
[67क. 2[इिैक्राधिक धर्ह्िक] के बारे में सबूत—सुरधित 2[इिैक्राधिक धर्ह्िक] की दिा में के धसिाय, यकद यह
1

अधभकधथत है कक ककसी हस्तािरकताच का 2[इिैक्राधिक धर्ह्िक] इिैक्राधिक अधभिेि में िगाया गया है तो यह तथ्य साधबत ककया
जािा र्ाधहए कक ऐसा 2[इिैक्राधिक धर्ह्िक] हस्तािरकताच का 2[इिैक्राधिक धर्ह्िक] है ।]
68. ऐसी दस्तािेज के धिषपादि का साधबत ककया जािा धजसका अिुप्रमाधर्त होिा धिधि द्वारा अपेधित है —यकद ककसी
दस्तािेज का अिुप्रमाधर्त होिा धिधि द्वारा अपेधित है, तो उसे साक्ष्य के रूप में उपयोग में ि िाया जाएगा, जब तक कक कम से कम
एक अिुप्रमार्क सािी, यकद कोई अिुप्रमार्क सािी जीधित और न्यायािय की आदेधिका के अध्यिीि हो तथा साक्ष्य देिे के योग्य हो,
उसका धिषपादि साधबत करिे के प्रयोजि से ि बुिाया गया हो :
3[परन्तु
ऐसी ककसी दस्तािेज के धिषपादि को साधबत करिे के धिए, जो धिि िहीं है, और जो भारतीय रधजस्रीकरर्
अधिधियम, 1908 (1908 का 16) के उपबन्िों के अिुसार रधजस्रीकृ त है, ककसी अिुप्रमार्क सािी को बुिािा आि‍यक ि होगा,
जब तक कक उसके धिषपादि का प्रत्‍पयाखयाि उस व्यधक्त द्वारा धजसके द्वारा उसका धिषपाकदत होिा तात्‍पपर्यचत है धिधिर्दचषटत: ि ककया
गया हो ।]
69. जब ककसी भी अिुप्रमार्क सािी का पता ि र्िे, तब सबूत—यकद ऐसे ककसी अिुप्रमार्क सािी का पता ि र्ि सके
अथिा यकद दस्तािेज का यूिाइटेि ककं गिम में धिषपाकदत होिा तात्‍पपर्यचत हो तो यह साधबत करिा होगा कक कम से कम एक
अिुप्रमार्क सािी का अिुप्रमार् उसी के हस्तिेि में है, तथा यह कक दस्तािेज का धिषपादि करिे िािे व्यधक्त का हस्तािर उसी
व्यधक्त के हस्तािेि में है ।
70. अिुप्रमाधर्त दस्तािेज के पिकार द्वारा धिषपादि की स्िीकृ धत—अिुप्रमाधर्त दस्तािेज के ककसी पिकार की अपिे द्वारा
उसका धिषपादि करिे की स्िीकृ धत उस दस्तािेज के धिषपादि का उसके धिरुद्ध पयाचप्त सबूत होगा, यद्यधप िह ऐसी दस्तािेज हो
धजसका अिुप्रमाधर्त होिा धिधि द्वारा अपेधित है ।
71. जबकक अिुप्रमार्क सािी धिषपादि का प्रत्‍पयाखयाि करता है, तब सबूत—यकद अिुप्रमार्क सािी दस्तािेज के धिषपादि
का प्रत्‍पयाखयाि करे या उसे उसके धिषपादि का स्मरर् ि हो, तो उसका धिषपादि अन्य साक्ष्य द्वारा साधबत ककया जा सके गा ।
72. उस दस्तािेज का साधबत ककया जािा धजसका अिुप्रमाधर्त होिा धिधि द्वारा अपेधित िहीं है—कोई अिुप्रमाधर्त
दस्तािेज, धजसका अिुप्रमाधर्त होिा धिधि द्वारा अपेधित िहीं है, ऐसे साधबत की जा सके गी, मािो िह अिुप्रमाधर्त िहीं हो ।
73. हस्तािर, िेि या मुिा की तुििा अन्यों से जो स्िीकृ त या साधबत हैं—यह अधभधिध‍र्त करिे के धिए कक क्या कोई
हस्तािर, िेि या मुिा उस व्यधक्त की है, धजसके द्वारा उसका धििा या ककया जािा तात्‍पपर्यचत है ककसी हस्तािर, िेि या मुिा की,
धजसके बारे में यह स्िीकृ त है या न्यायािय को समािािप्रद रूप में साधबत कर कदया गया है कक िह उस व्यधक्त द्वारा धििा या ककया
गया था, उससे, धजसे साधबत ककया जािा है, तुििा की जा सके गी, यद्यधप िह हस्तािर, िेि या मुिा ककसी अन्य प्रयोजि के धिए पेि
या साधबत ि की गई हो ।
न्यायािय में उपधस्थत ककसी व्यधक्त को ककन्हीं िब्दों या अंकों के धिििे का धिदेि न्यायािय इस प्रयोजि से दे सके गा कक
ऐसे धििे गए िब्दों या अंकों की ककन्हीं ऐसे िब्दों या अंकों से तुििा करिे के धिए न्यायािय समथच हो सके धजिके बारे में अधभकधथत
है कक िे उस व्यधक्त द्वारा धििे गए थे ।
4
[यह िारा ककन्हीं आि‍यक उपान्तरों के साथ अंगुिी छापों को भी िागू है ।]
[73क. [इिैक्राधिक धर्ह्िक] के सत्‍पयापि के बारे में सबूत—यह अधभधिध‍र्त करिे के धिए कक क्या कोई [इिैक्राधिक
5

धर्ह्िक] उस व्यधक्त का है धजसके द्वारा उसका िगाया जािा तात्‍पपर्यचत है, न्यायािय यह धिदेि दे सके गा कक—
)क( िह व्यधक्त या धियंत्रक या प्रमार्कताच प्राधिकारी [इिैक्राधिक धर्ह्िक] प्रमार्पत्र पेि करे ;
)ि( कोई अन्य व्यधक्त [इिैक्राधिक धर्ह्िक] प्रमार्पत्र में सूर्ीबद्ध िोक कुं जी के धिए आिेदि करे और उस
[इिैक्राधिक धर्ह्िक] को, धजसका उस व्यधक्त द्वारा िगाया जािा तात्‍पपर्यचत है, सत्‍पयाधपत करे ।
स्पषटीकरर्—इस िारा के प्रयोजिों के धिए “धियंत्रक” से सूर्िा प्रौद्योधगकी अधिधियम, 2000 (2000 का 21) की िारा 17
की उपिारा (1) के अिीि धियुक्त धियंत्रक अधभप्रेत है ।]

1
2000 के अधिधियम सं० 21 की िारा 92 और दूसरी अिुसूर्ी द्वारा (17-10-2000 से) अंत:स्थाधपत ।
2
2009 के अधिधियम सं० 10 की िारा 52 द्वारा (27-10-2009 से) प्रधतस्थाधपत ।
3
1926 के अधिधियम सं० 31 की िारा 2 द्वारा अन्त:स्थाधपत ।
4
1899 के अधिधियम सं० 5 की िारा 3 द्वारा अन्त:स्थाधपत ।
5
2000 के अधिधियम सं० 21 की िारा 92 और दूसरी अिुसूर्ी द्वारा (17-10-2000 से) अंत:स्थाधपत ।
26

िोक दस्तािेजें
74. िोक दस्तािेजें—धिम्िधिधित दस्तािेजें िोक दस्तािेजें हैं :—
(1) िे दस्तािेजें जो—
(i) प्रभुतासम्पन्ि प्राधिकारी के ,
(ii) िासकीय धिकायों और अधिकरर्ों के , तथा
(iii) 1[भारत के ककसी भाग के या कामििेल्थ के ,] या ककसी धिदेि के धििायी, न्याधयक तथा कायचपािक
िोक आकफसरों के ,
कायों के रूप में या कायों के अधभिेि के रूप में हैं;
(2) 2[ककसी राज्य में] रिे गए प्राइिेट दस्तािेजों के िोक अधभिेि ।
75. प्राइिेट दस्तािेजें—अन्य सभी दस्तािेजें प्राइिेट हैं ।
76. िोक दस्तािेजों की प्रमाधर्त प्रधतयां—हर िोक आकफसर3 धजसकी अधभरिा में कोई ऐसी िोक दस्तािेज है, धजसके
धिरीिर् करिे का ककसी भी व्यधक्त को अधिकार है, मांग ककए जािे पर उस व्यधक्त को उसकी प्रधत उसके धिए धिधिक फीस र्ुकाए
जािे पर प्रधत के िीर्े इस धिधित प्रमार्पत्र के सधहत देगा कक िह यथाधस्थधत ऐसी दस्तािेज की या उसके भाग की िुद्ध प्रधत है तथा
ऐसा प्रमार्पत्र ऐसे आकफसर द्वारा कदिांककत ककया जाएगा और उसके िाम और पदाधभिाि से हस्तािररत ककया जाएगा तथा जब
कभी ऐसा आकफसर धिधि द्वारा ककसी मुिा का उपयोग करिे के धिए प्राधिकृ त है तब मुिायुक्त ककया जाएगा, तथा इस प्रकार प्रमाधर्त
ऐसी प्रधतयां प्रमाधर्त प्रधतयां कहिाएंगी ।
स्पषटीकरर्—जो कोई आकफसर पदीय कतचव्य के मामूिी अिुक्रम में ऐसी प्रधतयां पररदाि करिे के धिए प्राधिकृ त है, िह इस
िारा के अथच के अन्तगचत ऐसी दस्तािेजों की अधभरिा रिता है, यह समझा जाएगा ।
77. प्रमाधर्त प्रधतयों के पेि करिे द्वारा दस्तािेजों का सबूत—ऐसी प्रमाधर्त प्रधतयां उि िोक दस्तािेजों की या उि िोक
दस्तािेज के भागों की अन्तिचस्तु के सबूत में पेि की जा सकें गी धजिकी िे प्रधतयां होिा तात्‍पपर्यचत हैं ।
78. अन्य िासकीय दस्तािेजों का सबूत—धिम्िधिधित िोक दस्तािेजें धिम्िधिधित रूप से साधबत की जा सकें गी—
(1) 4[के न्िीय सरकार] के ककसी धिभाग के , 5[या क्राउि ररप्रेजेन्टे रटि] या ककसी राज्य सरकार के , या ककसी राज्य
सरकार के ककसी धिभाग के कायच, आदेि या अधिसूर्िाएं,—
उि धिभागों के अधभिेिों द्वारा, जो क्रमि: उि धिभागों के मुखय पदाधिकाररयों द्वारा प्रमाधर्त हैं,
या ककसी दस्तािेज द्वारा जो ऐसी ककसी सरकार के 5[या यथाधस्थधत क्राउि ररप्रेजेन्टे रटि के ] आदेि द्वारा मुकित हुई
तात्‍पपर्यचत है;
(2) धििाि-म‍ििों की कायचिाधहयां,—
क्रमि: इि धिकायों के जिचिों द्वारा या प्रकाधित अधिधियमों या संधिधप्तयों द्वारा, या 6[सम्पृक्त सरकार के आदेि
द्वारा] मुकित होिा तात्‍पपर्यचत होिे िािी प्रधतयों द्वारा;
(3) 7हर मजेस्टी द्वारा या धप्रिी कौधन्सि द्वारा या 4हर मजेस्टी की सरकार के ककसी धिभाग द्वारा धिकािी गई
उदघोषर्ाएं, आदेि या धिधियम,—
िन्दि गजट में अन्तर्िचषट या किीन्स हप्रंटर द्वारा मुकित होिा तात्‍पपर्यचत होिे िािी प्रधतयों या उद्धरर्ों द्वारा;
(4) ककसी धिदेि की कायचपाधिका के कायच या धििाि मंिि की कायचिाधहयां,—

1
“र्ाहे िे धिरटि भारत के हों या हर मजेस्टी के िोधमधियि के ककसी अन्य भाग के हो” मूि िब्दों का संिोिि अिुक्रमि: भारतीय स्ितंत्रता )के न्िीय अधिधियम तथा
अध्यादेि अिुकूिि( आदेि, 1948 और धिधि अिुकूिि आदेि, 1950 द्वारा करके उपरोक्त रूप आया ।
2
धिधि अिुकूिि आदेि, 1950 द्वारा “ककसी प्रांत में” के स्थाि पर प्रधतस्थाधपत ।
3
पंजाब में ग्राम आकफसर को इस अधिधियम के प्रयोजिों के धिए िोक आकफसर घोधषत ककया गया है धजसकी अधभरिा में िोक दस्तािेज होंगे—देधिए िैंि-रेिेन्यू ऐक्ट,
1887 (1887 का 17) की िारा 151 (2) ।
4
भारत िासि )भारतीय धिधि अिुकूिि( आदेि, 1937 द्वारा “धिरटि भारत की कायचपाधिका सरकार” के स्थाि पर प्रधतस्थाधपत ।
5
भारत िासि )भारतीय धिधि अिुकूिि( आदेि, 1937 द्वारा अन्त:स्थाधपत ।
6
भारत िासि )भारतीय धिधि अिुकूिि( आदेि, 1937 द्वारा “सरकार के आदेि द्वारा” के स्थाि पर प्रधतस्थाधपत ।
7
“हर मजेस्टी” िब्दों में पररितचि िहीं ककया गया है । देधिए धिधि अिुकूिि आदेि, 1950 ।
27

उिके प्राधिकार से प्रकाधित, या उस देि में सामान्यत: इस रूप में गृहीत, जिचिों द्वारा, या उस देि या प्रभु की
मुिा के अिीि प्रमाधर्त प्रधत द्वारा, या ककसी 1[के न्िीय अधिधियम] में उिकी मान्यता द्वारा;
(5) 2[ककसी राज्य] के िगरपाधिक धिकाय की कायचिाधहयां,—
ऐसी कायचिाधहयों की ऐसी प्रधत द्वारा, जो उिके धिधिक पािक द्वारा प्रमाधर्त है, या ऐसे धिकाय के प्राधिकार से प्रकाधित
हुई तात्‍पपर्यचत होिे िािी ककसी मुकित पुस्तक द्वारा;
(6) ककसी धिदेि की ककसी अन्य प्रकार की िोक दस्तािेज,ें —
मूि द्वारा या उसके धिधिक पािक द्वारा प्रमाधर्त ककसी प्रधत द्वारा, धजस प्रधत के साथ ककसी िोटरी पधब्िक की, या
3[भारतीय कौन्सि] या राजिधयक अधभकताच की मुिा के अिीि यह प्रमार्पत्र है कक िह प्रधत मूि की धिधिक अधभरिा रििे

िािे आकफसर द्वारा सम्यक रूप से प्रमाधर्त है, तथा उस दस्तािेज की प्रकृ धत उस धिदेि की धिधि के अिुसार साधबत ककए
जािे पर ।

दस्तािेजों के बारे में उपिारर्ाएं


79. प्रमाधर्त प्रधतयों के असिी होिे के बारे में उपिारर्ा—न्यायािय हर ऐसी दस्तािेज 4[का असिी होिा] उपिाररत
करे गा जो ऐसा प्रमार्पत्र, प्रमाधर्त प्रधत या अन्य दस्तािेज होिी तात्‍पपर्यचत है धजसका ककसी धिधिषट तथ्य के साक्ष्य के रूप में ग्राह्य
होिा धिधि द्वारा घोधषत है और धजसका 5[के न्िीय सरकार या ककसी राज्य सरकार के ककसी आकफसर द्वारा या 6[जम्मू-क‍मीर राज्य के ]
ककसी ऐसे आकफसर द्वारा, जो के न्िीय सरकार द्वारा इसके धिए सम्यक रूप से प्राधिकृ त हो], सम्यक रूप से प्रमाधर्त होिा
तात्‍पपर्यचत है :
परन्तु यह तब जबकक ऐसी दस्तािेज सारत: उस प्ररूप में हो तथा ऐसी रीधत से धिषपाकदत हुई तात्‍पपर्यचत हो जो धिधि द्वारा
तधन्िधमत्त धिर्दचषट है ।
न्यायािय यह भी उपिाररत करे गा कक कोई आकफसर, धजसके द्वारा ऐसी दस्तािेज का हस्तािररत या प्रमाधर्त होिा
तात्‍पपर्यचत है, िह पदीय हैधसयत, धजसका िह ऐसे कागज में दािा करता है, उस समय रिता था जब उसिे उसे हस्तािररत ककया था ।
80. साक्ष्य के अधभिेि के तौर पर पेि की गई दस्तािेजों के बारे में उपिारर्ा—जब कभी ककसी न्यायािय के समि कोई
ऐसी दस्तािेज पेि की जाती है, धजसका ककसी न्याधयक कायचिाही में, या धिधि द्वारा ऐसा साक्ष्य िेिे के धिए प्राधिकृ त ककसी आकफसर
के समि, ककसी सािी द्वारा कदए गए साक्ष्य या साक्ष्य के ककसी भाग का अधभिेि या ज्ञापि होिा, अथिा ककसी कै दी या अधभयुक्त का
धिधि के अिुसार धिया गया कथि या संस्िीकृ धत होिा तात्‍पपर्यचत हो और धजसका ककसी न्यायािीि या मधजस्रे ट द्वारा या उपयुचक्त जैसे
ककसी आकफसर द्वारा हस्तािररत होिा तात्‍पपर्यचत हो, तब न्यायािय यह उपिाररत करे गा—
कक िह दस्तािेज असिी है, कक उि पररधस्थधतयों के बारे में, धजिके अिीि िह धिया गया था, कोई भी कथि, धजिका
उसको हस्तािररत करिे िािे व्यधक्त द्वारा ककया जािा तात्‍पपर्यचत है, सत्‍पय हैं तथा कक ऐसा साक्ष्य, कथि या संस्िीकृ धत सम्यक रूप से
िी गई थी ।
81. राजपत्रों, समार्ारपत्रों, पािचमटें के प्राइिेट ऐक्टों और अन्य दस्तािेजों के बारे में उपिारर्ाएं—न्यायािय हर ऐसी
दस्तािेज का असिी होिा उपिाररत करे गा धजसका िन्दि गजट, या 7[कोई िासकीय राजपत्र] या धिरटि क्राउि के ककसी उपधििेि,
आधश्रत देि या कब्जािीि िेत्र का 1[सरकारी राजपत्र] होिा या कोई समार्ारपत्र या जिचि होिा, या 8[यूिाइटेि ककं गिम की]
पािचमेन्ट के प्राइिेट ऐक्ट की क्िीन्स धप्रन्टर द्वारा मुकित प्रधत होिा, तात्‍पपर्यचत है तथा हर ऐसी दस्तािेज का, धजसका ऐसी दस्तािेज
होिा तात्‍पपर्यचत है धजसका ककसी व्यधक्त द्वारा रिा जािा ककसी धिधि द्वारा धिर्दचषट है, यकद ऐसी दस्तािेज सारत: उस प्ररूप में रिी
गई हो, जो धिधि द्वारा अपेधित है, और उधर्त अधभरिा में से पेि की गई हो, असिी होिा उपिाररत करे गा ।
9
[81क. इिैक्राधिक रूप में राजपत्र के बारे में उपिारर्ा—न्यायािय, ऐसे प्रत्‍पयेक इिैक्राधिक अधभिेि का असिी होिा
उपिाररत करे गा, धजसका िासकीय राजपत्र होिा तात्‍पपर्यचत है या धजसका ऐसा इिैक्राधिक अधभिेि होिा तात्‍पपर्यचत है धजसका ककसी
व्यधक्त द्वारा रिा जािा ककसी धिधि द्वारा धिर्दचषट है, यकद ऐसा इिैक्राधिक अधभिेि सारत: उस रूप में रिा गया हो, जो धिधि द्वारा
अपेधित है और उधर्त अधभरिा से पेि ककया गया हो ।]

1
भारत िासि )भारतीय धिधि अिुकूिि( आदेि, 1937 द्वारा “भारत के सपररषद गिजचि जिरि के िोक अधिधियम” स्थाि पर प्रधतस्थाधपत ।
2
धिधि अिुकूिि आदेि, 1950 द्वारा “ककसी प्रान्त” के स्थाि पर प्रधतस्थाधपत ।
3
धिधि अिुकूिि आदेि, 1950 द्वारा “धिरटि कौन्सि” के स्थाि पर प्रधतस्थाधपत ।
4
भारतीय स्ितंत्रता )के न्िीय अधिधियम तथा अध्यादेि अिुकूिि( आदेि, 1948 द्वारा अन्तस्थाधपत ।
5
भारत िासि )भारतीय धिधि अिुकूिि( आदेि, 1937, भारतीय स्ितंत्रता )के न्िीय अधिधियम तथा अध्यादेि अिुकूिि( आदेि, 1948 और धिधि अिुकूिि आदेि,
1950 द्वारा अिुक्रमि: संिोिि के तत्‍पप‍र्ात इिका ितचमाि रूप उपरोक्त है ।
6
1951 के अधिधियम सं० 3 की िारा 3 और अिुसूर्ी द्वारा “भाग ि राज्य में” के स्थाि पर प्रधतस्थाधपत ।
7
भारत िासि )भारतीय धिधि अिुकूिि( आदेि, 1937 द्वारा “भारत के राजपत्र या ककसी स्थािीय सरकार के सरकारी राजपत्र या” के स्थाि पर प्रधतस्थाधपत ।
8
धिधि अिुकूिि आदेि, 1950 द्वारा अन्त:स्थाधपत ।
9
2000 के अधिधियम सं० 21 की िारा 92 और दूसरी अिुसूर्ी द्वारा (17-10-2000 से) अंत:स्थाधपत ।
28

82. मुिा या हस्तािर के सबूत के धबिा इं ग्िैंि में ग्राह्य दस्तािेज के बारे में उपिारर्ा—जबकक ककसी न्यायािय के समि
कोई ऐसी दस्तािेज पेि की जाती है धजसका ऐसी दस्तािेज होिा तात्‍पपर्यचत है जो इं ग्िैंि या आयरिैंि के ककसी न्यायािय में ककसी
धिधिधषट को साधबत करिे के धिए उस दस्तािेज को अधिप्रमार्ीकृ त करिे िािी मुिा या स्टाम्प या हस्तािर को या उस व्यधक्त द्वारा,
धजसके द्वारा उसका हस्तािररत ककया जािा तात्‍पपर्यचत है, दािाकृ त न्याधयक या पदीय हैधसयत को साधबत ककए धबिा इं ग्िैंि या
आयरिैंि में तत्‍पसमय प्रिृत्त धिधि के अिुसार ग्राह्य होती, तब न्यायािय यह उपिाररत करे गा कक ऐसी मुिा, स्टाम्प या हस्तािर असिी
है और उसको हस्तािररत करिे िािा व्यधक्त िह न्याधयक या पदीय हैधसयत, धजसका िह दािा करता है, उस समय रिता था जब
उसिे उसे हस्तािररत ककया था,
तथा दस्तािेज उसी प्रयोज के धिए धजसके धिए िह इं ग्िैंि या आयरिैंि में ग्राह्य होती, ग्राह्य होगी ।
83. सरकार के प्राधिकार द्वारा बिाए गए मािधर्त्रों या रे िांकों के बारे में उपिारर्ा—न्यायािय यह उपिाररत करे गा कक िे
मािधर्त्र या रे िांक, जो 1[के न्िीय सरकार या ककसी राज्य सरकार] के प्राधिकार द्वारा बिाए गए तात्‍पपर्यचत हैं, िैसे ही बताए गए थे
और िे िुद्ध हैं ककन्तु ककसी मामिे के प्रयोजिों के धिए बिाए गए मािधर्त्रों या रे िांकों के बारे में यह साधबत करिा होगा कक िे
सही हैं ।
84. धिधियों के संग्रह और धिधि‍र्यों की ररपोटों के बारे में उपिारर्ा—न्यायािय हर ऐसी पुस्तक का, धजसका ककसी देि
की सरकार के प्राधिकार के अिीि मुकित या प्रकाधित होिा और धजसमें उस देि की कोई धिधियां अन्तर्िचषट होिा तात्‍पपर्यचत है,
तथा हर ऐसी पुस्तक का, धजसमें उस देि के न्यायािय के धिधि‍र्यों की ररपोटें अन्तर्िचषट होिा तात्‍पपर्यचत है, असिी होिा
उपिाररत करे गा ।
85. मुखतारिामों के बारे में उपिारर्ा—न्यायािय यह उपिाररत करे गा कक हर ऐसी दस्तािेज धजसका मुखतारिामा होिा
और िोटरी पधब्िक या ककसी न्यायािय, न्यायािीि, मधजस्रेट, 2[भारतीय] कौन्सि या उपकौन्सि या 3*** 4[के न्िीय सरकार] के
प्रधतधिधि के समि धिषपाकदत और उस द्वारा अधिप्रमार्ीकृ त होिा तात्‍पपर्यचत है, ऐसे धिषपाकदत और अधिप्रमार्ीकृ त की गई थी ।
[85क. इिैक्राधिक करारों के बारे में उपिारर्ा—न्यायािय, यह उपिाररत करे गा कक हर ऐसा इिैक्राधिक अधभिेि,
5

धजसका ऐसा करार होिा तात्‍पपर्यचत है धजस पर पिकारों के 6[इिैक्राधिक धर्ह्िक] हैं, पिकारों के 6[इिैक्राधिक धर्ह्िक] िगा कर
ककया गया था ।
85ि. इिैक्राधिक अधभिेिों और 6[इिैक्राधिक धर्ह्िक] के बारे में उपिारर्ा—(1) ककन्हीं ऐसी कायचिाधहयों में, धजिमें
सुरधित इिैक्राधिक अधभिेि अंतिचधित है, जब तक कक इसके प्रधतकू ि साधबत िहीं कर कदया जाता, न्यायािय यह उपिाररत करे गा
कक सुरधित इिैक्राधिक अधभिेि ककसी ऐसे धिधिर्दचषट समय से, धजससे सुरधित प्राधस्थधत संबंधित है, पररिर्तचत िहीं ककया गया है ।
(2) ककन्हीं ऐसी कायचिाधहयों में, धजिमें सुरधित 6[इिैक्राधिक धर्ह्िक] अन्तिचधित है, जब तक कक इसके प्रधतकू ि साधबत
िहीं कर कदया जाता, न्यायािय यह उपिाररत करे गा कक :—
)क( उपयोगकताच द्वारा सुरधित 6[इिैक्राधिक धर्ह्िक] इिैक्राधिक अधभिेि को धर्धह्ित या अिुमोकदत करिे के
आिय से िगाया गया है;
)ि( सुरधित इिैक्राधिक अधभिेि या सुरधित 6[इिैक्राधिक धर्ह्िक] की दिा में के धसिाय, इस िारा की कोई
बात इिैक्राधिक अधभिेि या 6[इिैक्राधिक धर्ह्िक] की अधिप्रमाधर्कता और समग्रता से संबंधित ककसी उपिारर्ा का
सृजि िहीं करे गी ।
85ग. 6[इिैक्राधिक धर्ह्िक] प्रमार्पत्रों के बारे में उपिारर्ा—जब तक कक इसके प्रधतकू ि साधबत िहीं कर कदया जाता,
न्यायािय, यह उपिाररत करे गा कक यकद उपयोगकताच द्वारा प्रमार्पत्र को स्िीकार ककया गया था तो 6[इिैक्राधिक धर्ह्िक] प्रमार्पत्र
में सूर्ीबद्ध सूर्िा सही है, धसिाय उस सूर्िा के जो उपयोगकताच की सूर्िा के रूप में धिधिर्दचषट है धजसे सत्‍पयाधपत िहीं
ककया गया है ।]
86. धिदेिी न्याधयक अधभिेिों की प्रमाधर्त प्रधतयों के बारे में उपिारर्ा—न्यायािय यह उपिाररत कर सके गा कक 7[8***
ऐसे ककसी देि के , जो भारत का या हर मजेस्टी के अधििेत्रों का भाग िहीं है,] न्याधयक अधभिेि की प्रमाधर्त प्रधत तात्‍पपर्यचत होिे
िािी कोई दस्तािेज असिी और िुद्ध है, यकद िह दस्तािेज ककसी ऐसी रीधत से प्रमाधर्त हुई तात्‍पपर्यचत हो धजसका न्याधयक अधभिेिों

1
मूि िब्द “सरकार” का संिोिि अिुक्रमि: भारत िासि )भारतीय धिधि अिुकूिि( आदेि, 1937, भारतीय स्ितंत्रता )के न्िीय अधिधियम तथा अध्यादेि अिुकूिि(
आदेि, 1948, 1949 के अधिधियम सं० 40 की िारा 3 और अिुसूर्ी 2 तथा धिधि अिुकूिि आदेि, 1950 द्वारा करिे प‍र्ात इसका ितचमाि रूप उपरोक्त है ।
2
धिधि अिुकूिि आदेि, 1950 द्वारा “धिरटि” के स्थाि पर प्रधतस्थाधपत ।
3
धिधि अिुकूिि आदेि, 1950 द्वारा “हर मजेस्टी के , या” िब्दों का िोप ककया गया ।
4
भारत िासि )भारतीय धिधि अिुकूिि( आदेि, 1937 द्वारा “भारत सरकार” के स्थाि पर प्रधतस्थाधपत ।
5
2000 के अधिधियम सं० 21 की िारा 92 और दूसरी अिुसूर्ी द्वारा (17-10-2000 से) अंत:स्थाधपत ।
6
2009 के अधिधियम सं० 10 की िारा 52 द्वारा (27-10-2009 से) प्रधतस्थाधपत ।
7
धिधि अिुकूिि आदेि, 1950 द्वारा “ऐसे ककसी देि के , जो हर मजेस्टी के िोधमधियि का भाग िहीं है” के स्थाि पर प्रधतस्थाधपत ।
8
1951 के अधिधियम सं० 3 की िारा 3 और अिुसूर्ी द्वारा “भाग ि राज्य या” िब्दों का िोप ककया गया ।
29

की प्रधतयों के प्रमार्ि के धिए 1[उस देि] में सािारर्त: काम में िाई जािे िािी रीधत होिा 2[ऐसे देि] 3[में या के धिए] 4***
5
[के न्िीय सरकार] के ककसी प्रधतिधि द्वारा प्रमाधर्त है ।
[जो आकफसर ऐसे ककसी 7*** राज्यिेत्र या स्थाि के धिए, जो 8[भारत का या] हर मजेस्टी के अधििेत्रों का भाग िहीं है,
6

सािारर् ि‍ि अधिधियम, 1897 (1897 का 10) की िारा 3 के 9[ि‍ि (43)] में यथा पररभाधषत राजिैधतक अधभकताच है, िह इस िारा
के प्रयोजिों के धिए 5[के न्िीय सरकार] का 10[उस देि में, और के धिए] प्रधतधिधि समझा जाएगा धजसमें िह राज्यिेत्र या स्थाि
समाधिषट है ।]
87. पुस्तकों, मािधर्त्रों और र्ाटों के बारे में उपिारर्ा—न्यायािय यह उपिाररत कर सके गा कक कोई पुस्तक, धजसे िह
िोक या सािारर् धहत सम्बन्िी ितों की जािकारी के धिए देिे और कोई प्रकाधित मािधर्त्र या र्ाटच , धजसके कथि सुसंगत तथ्य हैं,
और जो उसके धिरीिर्ाथच पेि ककया गया है, उस व्यधक्त द्वारा तथा उस समय और उस स्थाि पर धििा गया और प्रकाधित ककया गया
था धजसके द्वारा या धजस समय या स्थाि पर उसका धििा जािा या प्रकाधित होिा तात्‍पपर्यचत है ।
88. तार संदिे ों के बारे में उपिारर्ा—न्यायािय यह उपिाररत कर सके गा कक कोई संदि े , जो ककसी तार घर से उस व्यधक्त
को भेजा गया है, धजसे ऐसे संदि े का सम्बोधित होिा तात्‍पपर्यचत है, उस संदि
े के समरूप है जो भेजे जािे के धिए, उस कायाचिय को,
जहां से िह संदिे पारे धषत ककया गया तात्‍पपर्यचत है, पररदत्त ककया गया था, ककन्तु न्यायािय उस व्यधक्त के बारे में, धजसिे संदिे
पारे धषत ककए जािे के धिए पररदत्त ककया था, कोई उपिारर्ा िहीं करे गा ।
[88क. इिैक्राधिक संदि
11
े ों के बारे में उपिारर्ा—न्यायािय, यह उपिाररत कर सके गा कक प्रितचक द्वारा ऐसे प्रेधषती को
ककसी इिैक्राधिक िाक पररसेिक के माध्यम से अग्रेधषत कोई इिैक्राधिक संदि े , धजसे ऐसे संदिे का संबोधित ककया जािा तात्‍पपर्यचत है,
उस संदि
े के समरूप है, जो पारे षर् के धिए उसके कं प्यूटर में भरा गया था; ककं तु न्यायािय, उस व्यधक्त के बारे में, धजसके द्वारा ऐसा
संदि
े भेजा गया था, कोई उपिारर्ा िहीं करे गा ।
स्पषटीकरर्—इस िारा के प्रयोजिों के धिए, “प्रेधषती” और “प्रितचक” पदों के िही अथच होंगे, जो सूर्िा प्रौद्योधगकी
अधिधियम, 2000 (2000 का 21) की िारा 2 की उपिारा (1) के िंि )ि( और िंि )यक( में हैं ।]
89. पेि ि की गई दस्तािेजों के सम्यक धिषपादि आकद के बारे में उपिारर्ा—न्यायािय उपिाररत करे गा कक हर दस्तािेज,
धजसे पेि करिे की अपेिा की गई थी और जो पेि करिे की सूर्िा के प‍र्ात पेि िहीं की गई है, धिधि द्वारा अपेधित प्रकार से
अिुप्रमाधर्त, स्टाधम्पत और धिषपाकदत की गई थी ।
90. तीस िषच पुरािी दस्तािेज के बारे में उपिारर्ा—जहां की कोई दस्तािेज, धजसका तीस िषच पुरािी होिा तात्‍पपर्यचत है या
साधबत ककया गया है, ऐसी ककसी अधभरिा में से, धजसे न्यायािय उस धिधिषट मामिे में उधर्त समझता है, पेि की गई है, िहां
न्यायािय यह उपिाररत कर सके गा कक ऐसी दस्तािेज पर हस्तािर और उसका हर अन्य भाग, धजसका ककसी धिधिषट व्यधक्त के
हस्तिेि में होिा तात्‍पपर्यचत है, उस व्यधक्त के हस्तिेि में है, और धिषपाकदत या अिुप्रमाधर्त दस्तािेज होिे की दिा में यह उपिाररत
कर सके गा कक िह उि व्यधक्तयों द्वारा सम्यक रूप में धिषपाकदत और अिुप्रमाधर्त की गई थी धजिके द्वारा उसका धिषपाकदत और
अिुप्रमाधर्त होिा तात्‍पपर्यचत है ।
स्पषटीकरर्—दस्तािेजों का उधर्त अधभरिा में होिा कहा जाता है, यकद िे ऐसे स्थाि में और उस व्यधक्त की देिरे ि में हैं,
जहां और धजसके पास िे प्रकृ त्‍पया होिी र्ाधहए, ककन्तु कोई भी अधभरिा अिुधर्त िहीं है, यकद यह साधबत कर कदया जाए कक उस
अधभरिा का उदगम धिधिसम्मत था या यकद उस धिधिषट मामिे की पररधस्थधतयां ऐसी हों धजिसे ऐसा उदगम अधिसम्भाव्य हो
जाता है ।
यह स्पषटीकरर् िारा 81 को भी िागू है ।
दृषटांत
)क( क भू-सम्पधत्त पर दीघचकाि से कब्जा रिता आया है । यह उस भूधम सम्बन्िी धििेि, धजिसे उस भूधम पर उसका हक
दर्िचत होता है, अपिी अधभरिा में से पेि करता है । यह अधभरिा उधर्त है ।

1
1951 के अधिधियम सं० 3 की िारा 3 और अिुसूर्ी द्वारा “िह राज्य या देि” के स्थाि पर प्रधतस्थाधपत ।
2
1951 के अधिधियम सं० 3 की िारा 3 और अिुसूर्ी द्वारा “ऐसे भाग ि राज्य या देि” के स्थाि पर प्रधतस्थाधपत ।
3
1891 के अधिधियम सं० 3 की िारा 8 द्वारा “में धििासी” के स्थाि पर प्रधतस्थाधपत ।
4
धिधि अिुकूिि आदेि, 1950 द्वारा “हर मजेस्टी या” िब्दों का िोप ककया गया ।
5
भारत िासि )भारतीय धिधि अिुकूिि( आदेि, 1937 द्वारा “भारत सरकार” के स्थाि पर प्रधतस्थाधपत ।
6
1891 के अधिधियम सं० 3 की िारा 3 द्वारा जोडे गए पैरे के स्थाि पर 1899 के अधिधियम सं० 5 की िारा 4 द्वारा प्रधतस्थाधपत ककया गया ।
7
धिधि अिुकूिि आदेि, 1950 द्वारा “भाग ि राज्य या” िब्द अन्त:स्थाधपत ककए गए थे । इि िब्दों का 1951 के अधिधियम सं० 3 की िारा 3 और अिुसूर्ी द्वारा िोप
ककया गया ।
8
धिधि अिुकूिि आदेि, 1950 द्वारा अन्त:स्थाधपत ।
9
धिधि अिुकूिि आदेि, 1950 द्वारा “ि‍ि (40)” के स्थाि पर प्रधतस्थाधपत ।
10
1951 के अधिधियम सं० 3 की िारा 3 और अिुसूर्ी द्वारा “उस भाग ि राज्य या देि में और िे धिए” के स्थाि पर प्रधतस्थाधपत ।
11
2000 के अधिधियम सं० 21 की िारा 92 और दूसरी अिुसूर्ी द्वारा (17-10-2000 से) अन्त:स्थाधपत ।
30

)ि( क उस भू-सम्पधत्त से सम्बद्ध धििेि, धजिका िह बन्िकदार है, पेि करता है । बंिककताच सम्पधत्त पर कब्जा रिता है ।
यह अधभरिा उधर्त है ।
)ग( ि का संसंगी क, ि के कब्जे िािी भूधम से सम्बधन्ित धििेि पेि करता है, धजन्हें ि िे उसके पास सुरधित अधभरिा के
धिए धिधिप्त ककया था । यह अधभरिा उधर्त है ।
1
[90क. पांर् िषच पुरािे इिैक्राधिक अधभिेिों के बारे में उपिारर्ा—जहां कोई इिैक्राधिक अधभिेि, धजसका पांर् िषच
पुरािा होिा तात्‍पपर्यचत है या साधबत ककया गया है, ऐसी ककसी अधभरिा से धजसे न्यायािय उस धिधिषट मामिे में उधर्त समझता है,
पेि ककया गया है, िहां न्यायािय, यह उपिाररत कर सके गा कक ऐसा 2[इिैक्राधिक धर्ह्िक], धजसका ककसी धिधिषट व्यधक्त का
2
[इिैक्राधिक धर्ह्िक] होिा तात्‍पपर्यचत है, उसके द्वारा या उसकी ओर से इस धिधमत्त प्राधिकृ त ककसी व्यधक्त द्वारा िगाया गया था ।
स्पषटीकरर्—इिैक्राधिक अधभिेि का उधर्त अधभरिा में होिा कहा जाता है, यकद िे ऐसे स्थाि में और उस व्यधक्त की
देिरे ि में हैं, जहां और धजसके पास िे प्रकृ त्‍पया होिे र्ाधहएं; ककं तु कोई भी अधभरिा अिुधर्त िहीं है, यकद यह साधबत कर कदया जाए
कक उस अधभरिा का उदगम धिधिसम्मत था या उस धिधिषट मामिे की पररधस्थधतयां ऐसी हों धजिसे ऐसा उद्गम अधिसंभाव्य हो
जाता है ।
यह स्पषटीकरर् िारा 81क को भी िागू है ।]
अध्याय 6

दस्तािेजी साक्ष्य द्वारा मौधिक साक्ष्य के अपिजचि के धिषय में


91. दस्तािेजों के रूप में िेिबद्ध संधिदाओं, अिुदािों तथा संपधत्त के अन्य व्ययिों के धिबन्ििों का साक्ष्य—जबकक ककसी
संधिदा के या अिुदाि के या सम्पधत्त के ककसी अन्य व्ययि के धिबन्िि दस्तािेज के रूप में िेिबद्ध कर धिए गए हों, तब, तथा उि सब
दिाओं में, धजिमें धिधि द्वारा अपेधित है कक कोई बात दस्तािेज के रूप में िेिबद्ध की जाए, ऐसी संधिदा, अिुदाि या सम्पधत्त के
अन्य व्ययि के धिबन्ििों के या ऐसी बात के साधबत ककए जािे के धिए स्ियं उस दस्तािेज के धसिाय, या उि दिाओं में, धजिमें
एतधस्मन्पूिच अन्तर्िचषट उपबन्िों के अिीि धद्वतीधयक साक्ष्य ग्राह्य है, उसकी अन्तिचस्तु के धद्वतीधयक साक्ष्य के धसिाय, कोई भी साक्ष्य3
िहीं कदया जाएगा ।
अपिाद 1—जबकक धिधि द्वारा यह अपेधित है कक ककसी िोक आकफसर की धियुधक्त धिधित रूप में हो और जब यह दर्िचत
ककया गया है कक ककसी धिधिषट व्यधक्त िे ऐसे आकफसर के िाते कायच ककया है, तब उस िेि का, धजसके द्वारा िह धियुक्त ककया गया
था, साधबत ककया जािा आि‍यक िहीं है ।
अपिाद 2—धजि धििों का 4[5[भारत] में प्रोबेट धमिा है,] िे प्रोबेट द्वारा साधबत की जा सकें गी ।
स्पषटीकरर् 1—यह िारा उि दिाओं को, धजिमें धिर्दचषट संधिदाएं, अिुदाि या सम्पधत्त के व्ययि एक ही दस्तािेज में
अन्तर्िचषट हैं तथा उि दिाओं को, धजिमें िे एक से अधिक दस्तािेजों में अन्तर्िचषट हैं, समाि रूप से िागू हैं ।
स्पषटीकरर् 2—जहां कक एक से अधिक मूि हैं, िहां के िि एक मूि साधबत करिा आि‍यक है ।
स्पषटीकरर् 3—इस िारा में धिर्दचषट तथ्यों से धभन्ि ककसी तथ्य का ककसी भी दस्तािेज में कथि, उसी तथ्य के बारे में
मौधिक साक्ष्य की ग्राह्यता का प्रिारर् िहीं करे गा ।
दृषटांत
)क( यकद कोई संधिदा कई पत्रों में अन्तर्िचषट है, तो िे सभी पत्र, धजिमें िह अन्तर्िचषट है, साधबत करिे होंगे ।
)ि( यकद कोई संधिदा ककसी धिधिमय-पत्र में अन्तर्िचषट है, तो िह धिधिमय-पत्र साधबत करिा होगा ।
)ग( यकद धिधिमय-पत्र तीि परतों में धिधित है, तो के िि एक को साधबत करिा आि‍यक है ।
)घ( ि से कधतपय धिबन्ििों पर क िीि के पररदाि के धिए धिधित संधिदा करता है । संधिदा इस तथ्य का िर्चि करती है
कक ि िे क को ककसी अन्य अिसर पर मौधिक रूप से संधिदाकृ त अन्य िीि का मूल्य र्ुकाया था ।
मौधिक साक्ष्य पेि ककया जाता है कक अन्य िीि के धिए कोई संदाय िहीं ककया गया । यह साक्ष्य ग्राह्य है ।
)ङ( ि द्वारा कदए गए िि की रसीद ि को क देता है ।

1
2000 के अधिधियम सं० 21 की िारा 92 और दूसरी अिुसूर्ी द्वारा (17-10-2000 से) अंत:स्थाधपत ।
2
2009 के अधिधियम सं० 10 की िारा 52 द्वारा प्रधतस्थाधपत ।
3
ककन्तु जहां दंि न्यायािय को पता र्िता है कक अधभयुक्त व्यधक्त की संस्िीकृ धत या अन्य कथि धिधहत रीधत में अधभधिधित िहीं ककए गए हैं तो साक्ष्य को मािा
जाएगा कक अधभधिधित कथि सम्यक रूप से ककया गया था—देधिए दंि प्रकक्रया संधहता, 1973 (1974 का अधिधियम सं० 2) की िारा 463 ।
4
1872 के अधिधियम सं० 18 की िारा 7 द्वारा “भारतीय उत्तराधिकार अधिधियम के अिीि” के स्थाि पर प्रधतस्थाधपत ।
5
1951 के अधिधियम सं० 3 की िारा 3 और अिुसूर्ी द्वारा “राज्यों” के स्थाि पर प्रधतस्थाधपत ।
31

संदाय करिे का मौधिक साक्ष्य पेि ककया जाता है ।


यह साक्ष्य ग्राह्य है ।
92. मौधिक करार के साक्ष्य का अपिजचि—जबकक ककसी ऐसी संधिदा, अिुदाि या सम्पधत्त के अन्य व्ययि के धिबन्ििों को,
या ककसी बात को, धजसके बारे में धिधि द्वारा अपेधित है कक िह दस्तािेज के रूप में िेिबद्ध की जाए, अंधतम धपछिी िारा के अिुसार
साधबत ककया जा र्ुका हो, तब ककसी ऐसी धिित के पिकारों या उिके धहत प्रधतधिधियों के बीर् के ककसी मौधिक करार या कथि का
कोई भी साक्ष्य उसके धिबन्ििों का ि‍िि करिे के या उिमें फे रफार करिे के या जोडिे के या उिमें से घटािे के प्रयोजि के धिए ग्रहर्
ि ककया जाएगा :
परन्तुक (1)—ऐसा कोई तथ्य साधबत ककया जा सके गा, जो ककसी दस्तािेज को अधिधिमान्य बिा दे या जो ककसी व्यधक्त को
तत्‍पसम्बन्िी ककसी धिक्री या आदेि का हकदार बिा दे, यथा कपट, अधभत्रास, अिैिता, सम्यक धिषपादि का अभाि, ककसी संधिदाकारी
पिकार में सामथ्यच का अभाि, प्रधतफि का 1[अभाि या धिषफिता] या धिधि की या तथ्य की भूि ।
परन्तुक (2)—ककसी धिषय के बारे में, धजसके बारे में दस्तािेज मौि है और जो उसके धिबन्ििों से असंगत िहीं है, ककसी
पृथक मौधिक करार या अधस्तत्‍पि साधबत ककया जा सके गा । इस पर धिर्ार करते समय कक यह परन्तुक िागू होता है या िहीं न्यायािय
दस्तािेज की प्ररूधपता की मात्रा को ध्याि में रिेगा ।
परन्तुक (3)—ऐसी ककसी संधिदा, अिुदाि या सम्पधत्त के व्ययि के अिीि कोई बाध्यता संिग्ि होिे की पुरोभाव्य ितच गरठत
करिे िािे ककसी पृथक मौधिक करार का अधस्तत्‍पि साधबत ककया जा सके गा ।
परन्तुक (4)—ऐसी ककसी संधिदा, अिुदाि या सम्पधत्त के व्ययि को धििंधित या उपांतररत करिे के धिए ककसी सुधभन्ि
पाध‍र्क मौधिक करार का अधस्तत्‍पि उि अिस्थाओं के धसिाय साधबत ककया जा सके गा, धजिमें धिधि द्वारा अपेधित है कक ऐसी संधिदा,
अिुदाि या सम्पधत्त का व्ययि धिधित हो अथिा धजिमें दस्तािेज के रधजस्रीकरर् के बारे में तत्‍पसमय प्रिृत्त धिधि के अिुसार उसका
रधजस्रीकरर् ककया जा र्ुका है ।
परन्तुक (5)—कोई प्रथा या रूक़ि, धजसके द्वारा ककसी संधिदा में अधभव्यक्त रूप से िर्र्चत ि होिे िािी प्रसंगधतयां उस प्रकार
की संधिदाओं से प्राय: उपाबद्ध रहती हैं, साधबत की जा सके गी :
परन्तु यह तब जबकक ऐसी प्रसंगधतयों का उपाबन्िि संधिदा के अधभव्यक्त धिबन्ििों के धिरुद्ध या उिसे असंगत ि हो ।
परन्तुक (6)—कोई तथ्य, जो यह दर्िचत करता है कक ककसी दस्तािेज की भाषा ितचमाि तथ्यों से ककस प्रकार सम्बधन्ित है,
साधबत ककया जा सके गा ।

दृषटांत
)क( बीमा की एक पाधिसी इस माि के धिए की गई है जो “किकत्ते से िन्दि जािे िािे पोतों में” है । माि ककसी धिधिषट
पोत से भेजा जाता है, जो पोत िषट हो जाता है । यह तथ्य कक िह धिधिषट पोत उस पाधिसी से मौधिक रूप से अपिाकदत था साधबत
िहीं ककया जा सकता ।
)ि( ि को पहिी मार्च, 1873 को 1,000 रुपए देिे का पक्का धिधित करार क करता है । यह तथ्य कक उसी समय एक
मौधिक करार हुआ था कक यह िि इकतीस मार्च तक ि कदया जाएगा, साधबत िहीं ककया जा सकता ।
)ग( “रामपुर र्ाय सम्पदा” िामक एक सम्पदा ककसी धििेि द्वारा बेर्ी जाती है, धजसमें धिक्रीत सम्पधत्त का मािधर्त्र
अन्तर्िचषट है । यह तथ्य कक मािधर्त्र में ि कदिाई गई भूधम सदैि सम्पदा का भागरूप मािी जाती रही थी और उस धििेि द्वारा उसका
अन्तररत होिा अधभप्रेत था, साधबत िहीं ककया जा सकता ।
)घ( क ककन्हीं िािों को, जो ि की सम्पधत्त हैं, ककन्हीं धिबन्ििों पर काम में िािे का ि से धिधित करार करता है । उिके
मूल्य के बारे में ि के दुव्यचपदेिि द्वारा क ऐसा करिे के धिए उत्‍पप्रेररत हुआ था । यह तथ्य साधबत ककया जा सके गा ।
(ङ) ि पर क ककसी संधिदा के धिधिर्दचषट पािि के धिए िाद संधस्थत करता है और यह प्राथचिा भी करता है कक संधिदा का
सुिार उसके एक उपबन्ि के बारे में ककया जाए क्योंकक िह उपबन्ि उसमें भूि से अन्त:स्थाधपत ककया गया था । क साधबत कर सके गा
कक ऐसी भूि की गई थी धजससे संधिदा के सुिार करिे का हक उसे धिधि द्वारा धमिता है ।
)र्( क पत्र द्वारा ि का माि आकदषट करता है धजसमें संदाय करिे के समय के बारे में कु छ भी िहीं कहा गया है और पररदाि
पर माि को प्रधतगृहीत करता है । ि मूल्य के धिए क पर िाद िाता है । क दर्िचत कर सके गा कक माि ऐसी अिधि के धिए उिार पर
कदया गया था जो अभी अििधसत िहीं हुई है ।

1
1872 के अधिधियम सं० 18 की िारा 8 द्वारा “धिषफिता का अभाि” के स्थाि पर प्रधतस्थाधपत ।
32

)छ( ि को क एक घोिा बेर्ता है और मौधिक िार‍टी देता है कक िह अच्छा है । ि को क इि िब्दों को धिि कर एक कागज
देता है । “क से 500 रुपए में एक घोडा िरीदा” । ि मौधिक गारन्टी साधबत कर सके गा ।
)ज( ि का बासा क भािे पर िेता है और एक कािच देता है धजसमें धििा है, “कमरे , 200 रुपए प्रधतमास” । क यह मौधिक
करार साधबत कर सके गा कक इि धिबन्ििों के अन्तगचत भागत: भोजि भी था ।
ि का बासा क एक िषच के धिए भाडे पर िेता है और उिके बीर् अटिी द्वारा तैयार ककया हुआ एक स्टाधम्पत करार ककया
जाता है । िह करार भोजि देिे के धिषय में मौि है । क साधबत िहीं कर सके गा कक मौधिक तौर पर उस धिबन्िि के अन्तगचत भोजि
देिा भी था ।
)झ( ि से िोध्य ऋर् के धिए िि की रसीद भेज कर ऋर् र्ुकािे का क आिेदि करता है । ि रसीद रि िेता है और िि
िहीं भेजता । उस रकम के धिए िाद में क इसे साधबत कर सके गा ।
)ञ( क और ि धिधित संधिदा करते हैं जो अमुक अधिध‍र्त घटिा के घरटत होिे पर प्रभाििीि होिी है । िह िेि ि के
पास छोड कदया जाता है जो उसके आिार पर क पर िाद िाता है । क उि पररधस्थधतयों को दर्िचत कर सके गा धजिके अिीि िह
पररदत्त ककया गया था ।
93. संकदग्िाथच दस्तािेज को स्पषट करिे या उसका संिोिि करिे के साक्ष्य का अपिजचि—जबकक ककसी दस्तािेज में प्रयुक्त
भाषा देिते ही संकदग्िाथच या त्रुरटपूर्च है, तब उि तथ्यों का साक्ष्य िहीं कदया जा सके गा, जो उिका अथच दर्िचत या उसकी त्रुरटयों की
पूर्तच कर दे ।
दृषटांत
)क( ि को क 1,000 रुपयों या 1,500 रुपयों में एक घोडा बेर्िे का धिधित करार करता है । यह दर्िचत करिे के धिए कक
कौि सा मूल्य कदया जािा था साक्ष्य िहीं कदया जा सकता ।
)ि( ककसी धििेि में ररक्त स्थाि है । उि तथ्यों का साक्ष्य िहीं कदया जा सकता जो यह दर्िचत करते हों कक उिकी ककस
प्रकार पूर्तच अधभप्रेत थी ।
94. धिद्यमाि तथ्यों को दस्तािेज के िागू होिे के धिरुद्ध साक्ष्य का अपिजचि—जबकक दस्तािेज में प्रयुक्त भाषा स्ियं स्पषट
हो और जबकक िह धिद्यमाि तथ्यों को ठीक-ठीक िागू होती हो, तब यह दर्िचत करिे के धिए साक्ष्य िहीं कदया जा सके गा कक िह ऐसे
तथ्यों को िागू होिे के धिए अधभप्रेत िहीं थी ।
दृषटांत
ि को क “रामपुर में 100 बीघे िािी मेरी सम्पदा” धििेि द्वारा बेर्ता है । क के पास रामपुर में 100 बीघे िािी एक सम्पदा
है । इस तथ्य का साक्ष्य िहीं कदया जा सके गा कक धिक्रयाथच अधभप्रेत सम्पदा ककसी धभन्ि स्थाि पर धस्थत और धभन्ि माप की थी ।
95. धिद्यमाि तथ्यों के सदंभच में अथचहीि दस्तािेज के बारे में साक्ष्य—जब कक दस्तािेज में प्रयुक्त भाषा स्ियं स्पषट हो ककं तु
धिद्यमाि तथ्यों के सदंभच में अथचहीि हो, तो यह दर्िचत करिे के धिए साक्ष्य कदया जा सके गा कक िह एक धिधिषट भाि में प्रयुक्त की
गई थी ।
दृषटांत
ि को क “मेरा किकत्ते का गृह” धििेि द्वारा बेर्ता है ।
क का किकत्ते में कोई गृह िहीं था ककन्तु यह प्रतीत होता है कक उसका हािडा में एक गृह था जो धििेि के धिषपादि के समय
से ि के कब्जे में था ।
इि तथ्यों को यह दर्िचत करिे के धिए साधबत ककया जा सके गा कक धििेि का सम्बन्ि हािडा के गृह से था ।
96. उस भाषा के िागू होिे के बारे में साक्ष्य जो कई व्यधक्तयों में से के िि एक को िागू हो सकती है—जबकक तथ्य ऐसे हैं कक
प्रयुक्त भाषा कई व्यधक्तयों या र्ीजों में से ककसी एक को िागू होिे के धिए अधभप्रेत हो सकती थी तथा एक से अधिक को िागू होिे के
धिए अधभप्रेत िहीं हो सकती थी, तब उि तथ्यों का साक्ष्य कदया जा सके गा जो यह दर्िचत करते हैं कक उि व्यधक्तयों या र्ीजों में से
ककस को िागू होिे के धिए िह आधियत थी ।
दृषटांत
)क( क 1,000 रुपए में “मेरा सफे द घोडा” ि को बेर्िे का करार करता है । क के पास दो सफे द घोडे हैं । उि तथ्यों का साक्ष्य
कदया जा सके गा जो यह दर्िचत करते हों कक उिमें से कौि सा घोडा अधभप्रेत था ।
)ि( ि के साथ क हैदराबाद जािे के धिए करार करता है । यह दर्िचत करिे िािे तथ्यों का साक्ष्य कदया जा सके गा कक दधिर्
का हैदराबाद अधभप्रेत था या धसन्ि का हैदराबाद ।
33

97. तथ्यों के दो संिगों में से धजिमें से ककसी एक को भी िह भाषा पूरी की पूरी ठीक-ठीक िागू िहीं होती, उसमें से एक को
भाषा के िागू होिे के बारे में साक्ष्य—जबकक प्रयुक्त भाषा भागत: धिद्यमाि तथ्यों के एक संिगच को और भागत: धिद्यमाि तथ्यों के
अन्य संिगच को िागू होती है, ककन्तु िह पूरी की पूरी दोिों में से ककसी एक को भी ठीक-ठीक िागू िहीं होती, तब यह दर्िचत करिे के
धिए साक्ष्य कदया जा सके गा कक िह दोिों में से ककस को िागू होिे के धिए अधभप्रेत थी ।
दृषटांत
ि को “मेरी भ में धस्थत म के अधिभोग में भूधम” बेर्िे का क करार करता है । क के पास भ में धस्थत भूधम है, ककन्तु िह म के
कब्जे में िहीं है तथा उसके पास म के कब्जे िािी भूधम है, ककन्तु िह भ में धस्थत िहीं है । यह दर्िचत करिे िािे तथ्यों का साक्ष्य कदया
जा सके गा कक उसका अधभप्राय कौि सी भूधम बेर्िे का था ।
98. ि प़िी जा सकिे िािी धिधप आकद के अथच के बारे में साक्ष्य—ऐसी धिधप का, जो प़िी ि जा सके या सामान्यत: समझी ि
जाती हो, धिदेिी, अप्रर्धित, पाररभाधषक, स्थाधिक और प्रान्तीय िब्द प्रयोगों का, संिेपािरों का और धिधिषट भाि में प्रयुक्त िब्दों
का अथच दर्िचत करिे के धिए साक्ष्य कदया जा सके गा ।
दृषटांत
एक मूर्तचकार, क “मेरी सभी प्रधतमाएं” ि को बेर्िे का करार करता है । क के पास प्रधतमाि और प्रधतमा बिािे के औजार भी
हैं । यह दर्िचत करािे के धिए कक िह ककसे बेर्िे का अधभप्राय: रिता था साक्ष्य कदया जा सके गा ।
99. दस्तािेज के धिबन्ििों में फे रफार करिे िािे करार का साक्ष्य कौि दे सके गा—िे व्यधक्त जो ककसी दस्तािेज के पिकार
या उिके धहत प्रधतधिधि िहीं हैं, ऐसे ककन्हीं भी तथ्यों का साक्ष्य दे सकें गे, जो दस्तािेज के धिबन्ििों में फे रफार करिे िािे ककसी
समकािीि करार को दर्िचत करिे की प्रिृधत्त रिते हों ।
दृषटांत
क और ि धिधित संधिदा करते हैं कक क को कु छ कपास ि बेर्ेगा धजसके धिए संदाय कपास के पररदाि ककए जािे पर ककया
जाएगा । उसी समय िे एक मौधिक करार करते हैं कक क को तीि मास का प्रत्‍पयय कदया जाएगा । क और ि के बीर् यह तथ्य दर्िचत
िहीं ककया जा सकता था ककन्तु यकद यह ग के धहत पर प्रभाि िािता है, तो यह ग द्वारा दर्िचत ककया जा सके गा ।
100. भारतीय उत्तराधिकार अधिधियम के धिि सम्बन्िी उपबन्िों की व्यािृधत्त—इस अध्याय की कोई भी बात धिि का
अथच िगािे के बारे में भारतीय उत्तराधिकार अधिधियम1 (1865 का 10) के ककन्हीं भी उपबन्िों पर प्रभाि िाििे िािी िहीं
समझी जाएगी ।
भाग 3

साक्ष्य का पेि ककया जािा और प्रभाि


अध्याय 7

सबूत के भार के धिषय में


101. सबूत का भार—जो कोई न्यायािय से यह र्ाहता है कक िह ऐसे ककसी धिधिक अधिकार या दाधयत्‍पि के बारे में धिर्चय
दे, जो उि तथ्यों के अधस्तत्‍पि पर धिभचर है, धजन्हें िह प्राखयाि करता है, उसे साधबत करिा होगा कक उि तथ्यों का अधस्तत्‍पि है ।
जब कोई व्यधक्त ककसी तथ्य का अधस्तत्‍पि साधबत करिे के धिए आबद्ध है, तब यह कहा जाता है कक उस व्यधक्त पर सबूत का
भार है ।
दृषटांत
)क( क न्यायािय से र्ाहता है कक िह ि को उस अपराि के धिए दध‍ित करिे का धिर्चय दे धजसके बारे में क कहता है कक
िह ि िे ककया है ।
क को यह साधबत करिा होगा कक ि िे िह अपराि ककया है ।
)ि( क न्यायािय से र्ाहता है कक न्यायािय उि तथ्यों के कारर् धजिके सत्‍पय होिे का िह प्रखयाि और ि प्रात्‍पयाखयाि करता
है, यह धिर्चय दे कक िह ि के कब्जे में की अमुक भूधम का हकदार है ।
क को उि तथ्यों का अधस्तत्‍पर् साधबत करिा होगा ।
102. सबूत का भार ककस पर होता है—ककसी िाद या कायचिाही में सबूत का भार उस व्यधक्त पर होता है जो असफि हो
जाएगा, यकद दोिों में से ककसी भी ओर से कोई भी साक्ष्य ि कदया जाए ।

1
देधिए अब भारतीय उत्तराधिकार अधिधियम, 1925 (1925 का 39), भाग 6, अध्याय 6 ।
34

दृषटांत
)क( ि पर उस भूधम के धिए क िाद िाता है जो ि के कब्जे में है और धजसके बारे में क प्रखयाि करता है कक िह ि के धपता
ग को धिि द्वारा क के धिए दी गई थी ।
यकद ककसी भी ओर से कोई साक्ष्य िहीं कदया जाए, तो ि इसका हकदार होगा कक िह अपिा कब्जा रिे रहे ।
अत: सबूत का भार क पर है ।
)ि( ि पर एक बन्िपत्र मद्धे िोध्य िि के धिए क िाद िाता है ।
उस बन्िपत्र का धिषपादि स्िीकृ त है ककन्तु ि कहता है कक िह कपट द्वारा अधभप्राप्त ककया गया था, धजस बात का क
प्रत्‍पयाखयाि करता है ।
यकद दोिों में से ककसी भी ओर से कोई साक्ष्य िहीं कदया जाए, तो क सफि होगा क्योंकक बन्िपत्र धििादग्रस्त िहीं है और
कपट साधबत िहीं ककया गया ।
अत: सबूत का भार ि पर है ।
103. धिधिषट तथ्य के बारे में सबूत का भार—ककसी धिधिषट तथ्य के सबूत का भार उस व्यधक्त पर होता है जो न्यायािय से
यह कहता है कक उसके अधस्तत्‍पि में धि‍िास करे , जब तक कक ककसी धिधि द्वारा यह उपबधन्ित ि हो कक उस तथ्य के सबूत का भार
ककसी धिधिषट व्यधक्त पर होगा ।
दृषटांत
[)क(] ि को क र्ोरी के धिए अधभयोजि करता है और न्यायािय से र्ाहता है कक न्यायािय यह धि‍िास करे कक ि िे
1

र्ोरी की स्िीकृ धत ग से की । क को यह स्िीकृ धत साधबत करिी होगी ।


ि न्यायािय से र्ाहता है कक िह यह धि‍िास करे कक प्र‍िगत समय पर िह अन्यत्र था । उसे यह बात साधबत करिी होगी ।
104. साक्ष्य को ग्राह्य बिािे के धिए जो तथ्य साधबत ककया जािा हो, उसे साधबत करिे का भार—ऐसे तथ्य को साधबत करिे
का भार धजसका साधबत ककया जािा ककसी व्यधक्त को ककसी अन्य तथ्य का साक्ष्य देिे को समथच करिे के धिए आि‍यक है, उस व्यधक्त
पर है जो ऐसा साक्ष्य देिा र्ाहता है ।

दृषटांत
)क( ि द्वारा ककए गए मृत्‍पयु-काधिक कथि को क साधबत करिा र्ाहता है । क को ि की मृत्‍पयु साधबत करिी होगी ।
)ि( क ककसी िोई हुई दस्तािेज की अन्तिचस्तु को धद्वतीधयक साक्ष्य द्वारा साधबत करिा र्ाहता है ।
क को यह साधबत करिा होगा कक दस्तािेज िो गई है ।
105. यह साधबत करिे का भार कक अधभयुक्त का मामिा अपिादों के अन्तगचत आता है—जबकक कोई व्यधक्त ककसी अपराि
का अधभयुक्त है, तब उि पररधस्थधतयों के अधस्तत्‍पि को साधबत करिे का भार, जो उस मामिे को भारतीय द‍ि संधहता (1860 का 45)
के सािारर् अपिादों में से ककसी के अन्तगचत या उसी संधहता के ककसी अन्य भाग में, या उस अपराि की पररभाषा करिे िािी ककसी
धिधि में, अन्तर्िचषट ककसी धििेष अपिाद या परन्तुक के अन्तगचत कर देती है, उस व्यधक्त पर है और न्यायािय ऐसी पररधस्थधतयों के
अभाि की उपिारर्ा करे गा ।
दृषटांत
)क( हत्‍पया का अधभयुक्त, क अधभकधथत करता है कक िह धर्त्तधिकृ धत के कारर् उस कायच की प्रकृ धत िहीं जािता था ।
सबूत का भार क पर है ।
)ि( हत्‍पया का अधभयुक्त, क, अधभकधथत करता है कक िह गम्भीर और अर्ािक प्रकोपि के कारर् आत्‍पमधियंत्रर् की िधक्त से
िंधर्त हो गया था ।
सबूत का भार क पर है ।
)ग( भारतीय द‍ि संधहता (1860 का 45) की िारा 325 उपबन्ि करती है कक जो कोई, उस दिा के धसिाय धजसके धिए िारा
335 में उपबन्ि है, स्िेच्छया घोर उपहधत करे गा, िह अमुक द‍िों से द‍ििीय होगा ।
क पर स्िेच्छया घोर उपहधत काररत करिे का, िारा 325 के अिीि आरोप है ।

1
अधिधियम में एकमेि जैसा भारत के राजपत्र )अंग्रेजी( 1872, भाग 4, पृषठ 1 में प्रकाधित ककया गया था, दृषटांत )ि( को िहीं रिा गया है ।
35

इस मामिे को िारा 335 के अिीि िािे िािी पररधस्थधतयों को साधबत करिे का भार क पर है ।
106. धििेषत: ज्ञात तथ्य को साधबत करिे का भार—जबकक कोई तथ्य धििेषत: ककसी व्यधक्त के ज्ञाि में है, तब उस तथ्य
को साधबत करिे का भार उस पर है ।
दृषटांत
)क( जबकक कोई व्यधक्त ककसी कायच को उस आिय से धभन्ि ककसी आिय से करता है, धजसे उस कायच का स्िरूप और
पररधस्थधतयां इं धगत करती हैं, तब उस आिय को साधबत करिे का भार उस पर है ।
)ि( ि पर रे ि से धबिा रटकट यात्रा करिे का आरोप है । यह साधबत करिे का भार कक उसके पास रटकट था उस पर है ।
107. उस व्यधक्त की मृत्‍पयु साधबत करिे का भार धजसका तीस िषच के भीतर जीधित होिा ज्ञात है —जबकक प्र‍ि यह है कक
कोई मिुषय जीधित है या मर गया है और यह दर्िचत ककया गया है कक िह तीस िषच के भीतर जीधित था, तब यह साधबत करिे का भार
कक िह मर गया है उस व्यधक्त पर है, जो उसे प्रधतज्ञात करता है ।
108. यह साधबत करिे का भार कक िह व्यधक्त, धजसके बारे में सात िषच से कु छ सुिा िहीं गया है, जीधित है—1[परन्तु
जबकक] प्र‍ि यह है कक कोई मिुषय जीधित है या मर गया है और यह साधबत ककया गया है कक उसके बारे में सात िषच से उन्होंिे कु छ
िहीं सुिा है, धजन्होंिे उसके बारे में यकद िह जीधित होता तो स्िभाधिकतय: सुिा होता, तब यह साधबत करिे का भार कक िह जीधित
है उस व्यधक्त 2[पर र्िा जाता] है जो उसे प्रधतज्ञात करता है ।
109. भागीदारों, भू-स्िामी और अधभिारी, माधिक और अधभकताच के मामिों में सबूत का भार—जबकक प्र‍ि यह है कक क्या
कोई व्यधक्त भागीदार, भू-स्िामी और अधभिारी, या माधिक और अधभकताच है, और यह दर्िचत कर कदया गया है कक िे इस रूप में कायच
करते रहे हैं, तब यह साधबत करिे का भार कक क्रमि: इि सम्बन्िों में िे परस्पर अिधस्थत िहीं हैं या अिधस्थत होिे से पररधिरत हो
र्ुके हैं, उस व्यधक्त पर है, जो उसे प्रधतज्ञात करता है ।
110. स्िाधमत्‍पि के बारे में सबूत का भार—जबकक प्र‍ि यह है कक क्या कोई व्यधक्त ऐसी ककसी र्ीज का स्िामी है धजस पर
उसका कब्जा होिा दर्िचत ककया गया है, तब यह साधबत करिे का भार कक िह स्िामी िहीं है, उस व्यधक्त पर है, जो प्रधतज्ञात करता है
कक िह स्िामी िहीं है ।
111. उि संव्यिहारों में सदभाि का साधबत ककया जािा धजिमें एक पिकार का सम्बन्ि सकक्रय धि‍िास का है—जहां कक
उि पिकारों के बीर् के संव्यिहार के सदभाि के बारे में प्र‍ि है, धजिमें से एक दूसरे के प्रधत सकक्रय धि‍िास की धस्थधत में हैं, िहां उस
संव्यिहार के सदभाि को साधबत करिे का भार उस पिकार पर है जो सकक्रय धि‍िास की धस्थधत में है ।
दृषटांत
)क( किीकार द्वारा अटिी के पि में धिए गए धिक्रय का सदभाि किीकार द्वारा िाए गए िाद में प्र‍िगत है । संव्यिहार का
सदभाि साधबत करिे का भार अटिी पर है ।
)ि( पुत्र द्वारा, जो कक हाि ही में प्राप्त िय हुआ है, धपता को ककए गए ककसी धिक्रय का सदभाि पुत्र द्वारा िाए गए िाद में
प्र‍िगत है । संव्यिहार के सदभाि को साधबत करिे का भार धपता पर है ।
3[111क. कु छ अपरािों के बारे में उपिारर्ा—(1) जहां कोई व्यधक्त उपिारा (2) में धिधिर्दचषट ऐसे ककसी अपराि के —
)क( ऐसे ककसी िेत्र में, धजसे उपिि को दबािे के धिए और िोक व्यिस्था की बहािी और उसे बिाए रििे के धिए
उपबंि करिे िािी तत्‍पसमय प्रिृत्त ककसी अधिधियधमधत के अिीि धििुब्ि िेत्र घोधषत ककया गया है; या
)ि( ऐसे ककसी िेत्र में, धजसमें एक मास से अधिक की अिधि के धिए िोक िांधत में व्यापक धिघ्ि रहा है,
ककए जािे का अधभयुक्त है और यह दर्िचत ककया जाता है कक ऐसा व्यधक्त ऐसे िेत्र में ककसी स्थाि पर ऐसे समय पर था जब ऐसे ककसी
सिस्त्र बि या बिों के , धजन्हें िोक व्यिस्था बिाए रििे का भार सौंपा गया है, ऐसे सदस्यों पर जो अपिे कतचव्यों का धििचहि कर रहे
हैं, आक्रमर् करिे के धिए या उिका प्रधतरोि करिे के धिए उस स्थाि पर या उस स्थाि से अग्न्यायुिों या धिस्फोटक का प्रयोग ककया
गया था, िहां जब तक तत्‍पप्रधतकू ि दर्िचत िहीं ककया जाता यह उपिारर्ा की जाएगी कक ऐसे व्यधक्त िे ऐसा अपराि ककया है ।
(2) उपिारा (1) में धिर्दचषट अपराि धिम्िधिधित हैं, अथाचत :—
)क( भारतीय दंि संधहता (1860 का 45) की िारा 121, िारा 121क, िारा 122 या िारा 123 के अिीि
कोई अपराि;

1
1872 के अधिधियम 18 की िारा 9 द्वारा “जब” के स्थाि पर प्रधतस्थाधपत ।
2
1872 के अधिधियम 18 की िारा 9 द्वारा “पर” के स्थाि पर प्रधतस्थाधपत ।
3
1984 के अधिधियम सं० 61 की िारा 20 द्वारा (14-7-1984 से) अंत:स्थाधपत ।
36

)ि( आपराधिक षड्यंत्र या भारतीय दंि संधहता (1860 का 45) की िारा 122 या िारा 123 के अिीि कोई
अपराि करिे का प्रयत्‍पि या उसका दुषप्रेरर् ।]
112. धििाधहत धस्थधत के दौराि में जन्म होिा िमचजत्‍पि का धि‍र्ायक सबूत है—यह तथ्य कक ककसी व्यधक्त का जन्म उसकी
माता और ककसी पुरुष के बीर् धिधिमान्य धििाह के कायम रहते हुए, या उसका धिघटि होिे के उपरान्त माता के अधििाधहत रहते हुए
दो सौ अस्सी कदि के भीतर हुआ था, इस बात का धि‍र्ायक सबूत होगा कक िह उस पुरुष का िमचज पुत्र है, जब तक कक यह दर्िचत ि
ककया जा सके कक धििाह के पिकारों की परस्पर पहुंर् ऐसे ककसी समय िहीं थी कक जब उसका गभाचिाि ककया जा सकता था ।
113. राज्यिेत्र के अध्यपचर् का सबूत—िासकीय राजपत्र में यह अधिसूर्िा कक धिरटि राज्यिेत्र का कोई भाग ककसी
भारतीय राज्य, राजा या िासक को 1[गििचमेंट आफ इध‍िया ऐक्ट, 1935 (26 जॉ० 5, अ० 2) के भाग 3 के प्रारम्भ से पूिच] अध्यर्पचत
ककया गया है, इस बात धि‍र्ायक सबूत होगी कक ऐसे राज्यिेत्र का ऐसी अधिसूर्िा में िर्र्चत तारीि को धिधिमान्य अध्यपचर् हुआ ।
2[113क. ककसी धििाधहत स्त्री द्वारा आत्‍पमहत्‍पया के दुषप्रेरर् के बारे में उपिारर्ा—जब प्र‍ि यह है कक ककसी स्त्री द्वारा
आत्‍पमहत्‍पया का करिा उसके पधत या उसके पधत के ककसी िातेदार द्वारा दुषप्रे ररत ककया गया है और यह दर्िचत ककया गया है कक उसिे
अपिे धििाह की तारीि से सात िषच की अिधि के भीतर आत्‍पमहत्‍पया की थी और यह कक उसके पधत या उसके पधत के ऐसे िातेदार िे
उसके प्रधत कू रता की थी, तो न्यायािय मामिे की सभी अन्य पररधस्थधतयों को ध्याि में रिते हुए यह उपिारर्ा कर सके गा कक ऐसी
आत्‍पमहत्‍पया उसके पधत या उसके पधत के ऐसे िातेदार द्वारा दुषप्रेररत की गई थी ।
स्पषटीकरर्—इस िारा के प्रयोजिों के धिए “क्रूरता” का िही अथच है, जो भारतीय द‍ि संधहता (1860 का 45) की िारा
498क में है ।]
[113ि. दहेज मृत्‍पयु के बारे में उपिारर्ा—जब प्र‍ि यह है कक ककसी व्यधक्त िे ककसी स्त्री की दहेज मृत्‍पयु की है और यह
3

दर्िचत ककया जाता है कक मृत्‍पयु के कु छ पूिच ऐसे व्यधक्त िे दहेज की ककसी मांग के धिए, या उसके संबंि में उस स्त्री के साथ क्रूरता की थी
या उसको तंग ककया था तो न्यायािय यह उपिारर्ा करे गा कक ऐसे व्यधक्त िे दहेज मृत्‍पयु काररत की थी ।
स्पषटीकरर्—इस िारा के प्रयोजिों के धिए “दहेज मृत्‍पयु” का िही अथच है जो भारतीय दंि संधहता (1860 का 45) की िारा
304ि में है ।]
114. न्यायािय ककन्हीं तथ्यों का अधस्तत्‍पि उपिाररत कर सके गा—न्यायािय ऐसे ककसी तथ्य का अधस्तत्‍पि उपिाररत कर
सके गा धजसका घरटत होिा उस धिधिषट मामिे के तथ्यों के सम्बन्ि में प्राकृ धतक घटिाओं, माििीय आर्रर् तथा िोक और प्राइिेट
कारबार के सामान्य अिुक्रम को ध्याि में रिते हुए िह सम्भाव्य समझता है ।
दृषटांत
न्यायािय उपिाररत कर सके गा—
)क( कक र्ुराए हुए माि पर धजस मिुषय का र्ोरी के िीघ्र उपरान्त कब्जा है, जब तक कक िह अपिे कब्जे का
कारर् ि बता सके , या तो िह र्ोर है या उसिे माि को र्ुराया हुआ जािते हुए प्राप्त ककया है;
)ि( कक सह-अपरािी धि‍िसिीयता के अयोग्य है जब तक कक ताधविक धिधिधषटयों में उसकी सम्पुधषट िहीं होती;
)ग( कक कोई प्रधतगृहीत या पृषठांककत धिधिमयपत्र समुधर्त प्रधतफि के धिए प्रधतगृहीत या पृषठांककत ककया
गया था;
)घ( कक ऐसी कोई र्ीज या र्ीजों की दिा अब भी अधस्तत्‍पि में है, धजसका उतिी कािािधि से धजतिी में ऐसी र्ीजें
या र्ीजों की दिाएं प्राय: अधस्तत्‍पि-िून्य हो जाती हैं, िघुतर कािािधि में अधस्तत्‍पि में होिा दर्िचत ककया गया है;
)ङ( कक न्याधयक और पदीय कायच धियधमत रूप से संपाकदत ककए गए हैं;
)र्( कक धिधिषट मामिों में कारबार के सामान्य अिुक्रम का अिुसरर् ककया गया है;
)छ( कक यकद िह साक्ष्य जो पेि ककया जा सकता था और पेि िहीं ककया गया है, पेि ककया जाता, तो उस व्यधक्त
के अििुकूि होता, जो उसका धििारर् ककए हुए है;
)ज( कक यकद कोई मिुषय ऐसे ककसी प्र‍ि का उत्तर देिे से इन्कार करता है, धजसका उत्तर देिे के धिए िह धिधि
द्वारा धििि िहीं है, तो उत्तर, यकद िह कदया जाता, उसके अििुकूि होता;
)झ( कक जब ककसी बाध्यता का सृजि करिे िािी दस्तािेज बाध्यतािारी के हाथ में है, तब उस बाध्यता का
उन्मोर्ि हो र्ुका है ।

1
भारत िासि )भारतीय धिधि अिुकूिि( आदेि, 1937 द्वारा अंत:स्थाधपत, भारत िासि अधिधियम, 1935 का भाग 3, 1 अप्रैि, 1937 को प्रिृत्त हुआ था ।
2
1983 के अधिधियम सं० 46 की िारा 7 द्वारा अन्त:स्थाधपत ।
3
1986 के अधिधियम सं० 43 की िारा 12 द्वारा (5-1-1986 से) अंत:स्थाधपत ।
37

ककन्तु न्यायािय यह धिर्ार करिे में कक ऐसे सूत्र उसके समि के धिधिषट मामिे को िागू होते हैं या िहीं, धिम्िधिधित
प्रकार के तथ्यों का भी ध्याि रिेगा—
दृषटांत )क( के बारे में—ककसी दुकािदार के पास उसके गल्िे में कोई धर्धह्ित रुपया उसके र्ुराए जािे के िीघ्र प‍र्ात है,
और िह उसके कब्जे का कारर् धिधिर्दचषटत: िहीं बता सकता ककन्तु अपिे कारबार के अिुक्रम में िह रुपया िगातार प्राप्त कर रहा है;
दृषटांत )ि( के बारे में—एक अत्‍पयन्त ऊंर्े िीि का व्यधक्त, क ककसी मिीिरी को ठीक-ठीक िगािे में ककसी उपेिापूिचक कायच
द्वारा ककसी व्यधक्त की मृत्‍पयु काररत करिे के धिए धिर्ाररत है । िैसा ही अच्छे िीि का व्यधक्त, ि, धजसिे मिीिरी िगािे के उस काम
में भाग धिया था, ब्यौरे िार िर्चि करता है कक क्या-क्या ककया गया था, और क की और स्ियं अपिी असाििािी स्िीकृ त और स्पषट
करता है;
दृषटांत )ि( के बारे में— कोई अपराि कोई व्यधक्तयों द्वारा ककया जाता है । अपराधियों में से तीि क, ि और ग घटिास्थि
पर पकडे जाते हैं और एक दूसरे से अिग रिे जाते है । अपराि का धििरर् उिमें से हर एक ऐसा देता है जो घ को आधिप्त करता है
और ये धििरर् एक दूसरे को ककसी ऐसी रीधत में सम्पु षट करते हैं धजससे उिमें यह अधत अिधिसम्भाव्य हो जाता है कक उन्होंिे इसके
पूिच धमिकर कोई योजिा बिाई थी ;
दृषटांत )ग( के बारे में—ककसी धिधिमयपत्र का िेिीिाि, क व्यापरी था । प्रधतगृहीता ि पूर्चत: क के असर के अिीि एक
युिक और िासमझ व्यधक्त था;
दृषटांत )घ( के बारे में—यह साधबत ककया गया है कक कोई िदी अमुक मागच में पांर् िषच पूिच बहती थी, ककन्तु यह ज्ञात है कक
उस समय से ऐसी बा़िें आई हैं जो उसके मागच को पररिर्तचत कर सकती थीं;
दृषटांत )ङ( के बारे में—कोई न्याधयक कायच, धजसकी धियधमतता प्र‍िगत है, असािारर् पररधस्थधतयों में ककया गया था;
दृषटांत )र्( के बारे में—प्र‍ि यह है कक क्या कोई प्रत्र प्राप्त हुआ था । उसका िाक में िािा जािा दर्िचत ककया गया है, ककन्तु
िाक के सामान्य अिुक्रम में उपििों के कारर् धिघ्ि पडा था;
दृषटांत )छ( के बारे में—कोई मिुषय ककसी ऐसी दस्तािेज को पेि करिे से इन्कार करता है धजसका असर ककसी अल्प महत्‍पि
की ऐसी संधिदा पर पडता है, धजसके आिार पर उसके धिरुद्ध िाद िाया गया है, ककन्तु जो उसके कु टु म्ब की भाििाओं और खयाधत को
भी िधत पहुंर्ा सकती है;
दृषटांत )ज( के बारे में—कोई मिुषय ककसी प्र‍ि का उत्तर देिे से इं कार करता है धजसका उत्तर देिे के धिए िह धिधि द्वारा
धििि िहीं है, ककन्तु उसका उत्तर उसे उस धिषय से असंसक्त धिषयों में हाधि पहुंर्ा सकता है, धजसके सम्बन्ि में िह पूछा गया है;
दृषटांत )ज( के बारे में—कोई बन्िपत्र बाध्यतािारी के कब्जे में है ककन्तु मामिे की पररधस्थधतयां ऐसी हैं कक हो सकता है कक
उसिे उसे र्ुराया हो ।
[114क. बिात्‍पसंग के धिए कधतपय अधभयोजि में सम्मधत के ि होिे की उपिारर्ा—भारतीय दंि संधहता (1860 का 45) की
1

िारा 376 की उपिारा (2) के िंि )क(, िंि )ि(, िंि )ग(, िंि )घ(, िंि )ङ(, िंि )र्(, िंि )छ(, िंि )ज(, िंि )झ(, िंि )ञ(, िंि
)ट(, िंि )ठ(, िंि )ि( या िंि )ढ( के अिीि बिात्‍पसंग के धिए ककसी अधभयोजि में, जहां अधभयुक्त द्वारा मैथुि ककया जािा साधबत हो
जाता है और प्र‍ि यह है कक क्या िह उस स्त्री की, धजसके बारे में यह अधभकथि ककया गया है कक उससे बिात्‍पसंग ककया गया है,
सम्मधत के धबिा ककया गया था और ऐसी स्त्री न्यायािय के समि अपिे साक्ष्य में यह कथि करती है कक उसिे सम्मधत िहीं दी थी, िहां
न्यायािय यह उपिारर्ा करे गा कक उसिे सम्मधत िहीं दी थी ।
स्पषटीकरर्—इस िारा में “मैथुि” से भारतीय दंि संधहता (1860 का 45) की िारा 375 के ि‍ि (क) से ख ा‍ि (घ) में
िर्र्चत कोई कायच अधभप्रेत होगा ।
अध्याय 8

धिबन्ि
115. धिबंि—जबकक एक व्यधक्त िे अपिी घोषर्ा, कायच या िोप द्वारा अन्य व्यधक्त को धि‍िास सािय कराया है या कर
िेिे कदया है कक कोई बात सत्‍पय है और ऐसे धि‍िास पर कायच कराया या करिे कदया है, तब ि तो उसे और ि उसके प्रधतधिधि को अपिे
और ऐसे व्यधक्त के , या उसके प्रधतधिधि के , बीर् ककसी िाद या कायचिाही में उस िाद की सत्‍पयता का प्रत्‍पयाखयाि करिे कदया जाएगा ।
दृषटांत
क सािय और धमथ्या रूप से ि को यह धि‍िास करिे के धिए प्रेररत करता है कक अमुक भूधम क की है, और एतदद्वारा ि को
उसे क्रय करिे और उसका मूल्य र्ुकािे के धिए उत्‍पप्रेररत करता है ।

1
2013 के अधिधियम सं० 13 की िारा 26 द्वारा (3-2-2013 से) प्रधतस्थाधपत ।
38

तत्‍पप‍र्ात भूधम क की सम्पधत्त हो जाती है और क इस आिार पर कक धिक्रय के समय उसका उसमें हक िहीं था धिक्रय
अपास्त करिे की ईप्सा करता है । उसे अपिे हक का अभाि साधबत िहीं करिे कदया जाएगा ।
116. अधभिारी का और कब्जािारी व्यधक्त के अिुज्ञधप्तिारी का धिबन्ि—स्थािर सम्पधत्त के ककसी भी अधभिारी को या
ऐसे अधभिारी से व्युत्‍पपन्ि अधिकार से दािा करिे िािे व्यधक्त को, ऐसी अधभिृधत के र्ािू रहते हुए, इसका प्रत्‍पयाखयाि ि करिे कदया
जाएगा कक ऐसे अधभिारी के भू-स्िामी का ऐसी स्थािर सम्पधत्त पर, उस अधभिृधत के आरम्भ पर हक था तथा ककसी भी व्यधक्त को,
जो ककसी स्थािर सम्पधत्त पर उस पर कब्जािारी व्यधक्त की अिुज्ञधप्त द्वारा आया है, इसका प्रत्‍पयाखयाि ि करिे कदया जाएगा कक ऐसे
व्यधक्त को उस समय, जब ऐसी अिुज्ञधप्त दी गई थी, ऐसे कब्जे का हक था ।
117. धिधिमयपत्र के प्रधतगृहीता का, उपधिधहती का या अिुज्ञधप्तिारी का धिबन्ि—ककसी धिधिमयपत्र के प्रधतगृहीता को
इसका प्रत्‍पयाखयाि करिे की अिुज्ञा ि दी जाएगी कक िेिीिाि को ऐसा धिधिमयपत्र धिििे या उसे पृषठांककत करिे का प्राधिकार था,
और ि ककसी उपधिधहती या अिुज्ञधप्तिारी को इसका प्रत्‍पयाखयाि करिे कदया जाएगा कक उपधििाता या अिुज्ञापक को उस समय, जब
ऐसा उपधििाि या अिुज्ञधप्त आरम्भ हुई, ऐसे उपधििाि करिे या अिुज्ञधप्त अिुदाि करिे का प्राधिकार था ।
स्पषटीकरर् 1—ककसी धिधिमयपत्र का प्रधतगृहीता इसका प्रत्‍पयाखयाि कर सकता है कक धिधिमयपत्र िास्ति में उस व्यधक्त
द्वारा धििा गया था धजसके द्वारा धििा गया िह तात्‍पपर्यचत है ।
स्पषटीकरर् 2—यकद कोई उपधिधहती, उपधिधहत माि उपधििाता से अन्य ककसी व्यधक्त को पररदत्त करता है, तो िह
साधबत कर सके गा कक ऐसे व्यधक्त का उस पर उपधििाता के धिरुद्ध अधिकार था ।
अध्याय 9

साधियों के धिषय में


118. कौि साक्ष्य दे सके गा—सभी व्यधक्त साक्ष्य देिे के धिए सिम होंगे, जब तक कक न्यायािय का यह धिर्ार ि हो कक
कोमि ियस, अधतिािचक्य, िरीर के या मि के रोग या इसी प्रकार के ककसी अन्य कारर् से िे उिसे ककए गए प्र‍िों को समझिे से या
उि प्र‍िों के युधक्तसंगत उत्तर देिे से धििाररत हैं ।
स्पषटीकरर्—कोई पागि व्यधक्त साक्ष्य देिे के धिए अिम िहीं है, जब तक कक िह अपिे पागिपि के कारर् उससे ककए गए
प्र‍िों को समझिे से या उिके युधक्तसंगत उत्तर देिे से धििाररत ि हो ।
[119. सािी का मौधिक रूप से संसधू र्त करिे में असमथच होिा—ऐसा कोई सािी, जो बोििे में असमथच है, ऐसी ककसी अन्य
1

रीधत में, धजसमें िह उसे बोिगम्य बिा सकता है जैसे कक धििकर या संकेत धर्ह्िों द्वारा, अपिा साक्ष्य दे सके गा; ककं तु ऐसा िेिि और
संकेत धर्ह्ि िुिे न्यायािय में धििे और ककए जािे र्ाधहए तथा इस प्रकार कदया गया साक्ष्य मौधिक साक्ष्य मािा जाएगा :
परं तु यकद सािी मौधिक रूप से संसूधर्त करिे में असमथच है तो न्यायािय कथि अधभधिधित करिे में ककसी धद्वभाधषए या
धििेष प्रबोिक की सहायता िेगा और ऐसे कथि की िीधियो कफल्म तैयार की जा सके गी ।]
120. धसधिि िाद के पिकार और उिकी पधत्‍पियां या पधत । दाध‍िक धिर्ारर् के अिीि व्यधक्त का पधत या पत्‍पिी—सभी
धसधिि कायचिाधहयों में िाद के पिकार और िाद के ककसी पिकार का पधत या पत्‍पिी सिम होंगे । ककसी व्यधक्त के धिरुद्ध दाध‍िक
कायचिाही में उस व्यधक्त का पधत या पत्‍पिी सिम सािी होगा या होगी ।
121. न्यायािीि और मधजस्रे ट—कोई भी न्यायािीि या मधजस्रे ट न्यायािय में ऐसे न्यायािीि या मधजस्रे ट के िाते अपिे
स्ियं के आर्रर् के बारे में, या ऐसी ककसी बात के बारे में, धजसका ज्ञाि उसे ऐसे न्यायािीि या मधजस्रे ट के िाते न्यायािय में हुआ,
ककन्हीं प्र‍िों का उत्तर देिे के धिए ऐसे ककसी भी न्यायािय के धििेष आदेि के धसिाय, धजसके िह अिीिस्थ है, धििि िहीं ककया
जाएगा ककन्तु अन्य बातों के बारे में जो उसकी उपधस्थधत में उस समय घरटत हुई थीं, जब िह ऐसे कायच कर रहा था उसकी परीिा की
जा सके गी ।
दृषटांत
)क( सेिंस न्यायािय के समि अपिे धिर्ार में क कहता है कक अधभसाक्ष्य मधजस्रेट ि द्वारा अिुधर्त रूप से धिया गया था ।
तदिध षयक प्र‍िों का उत्तर देिे के धिए क को ककसी िररषठ न्यायािय के धििेष आदेि के धसिाय धििि िहीं ककया जा सकता ।
)ि( मधजस्रेट ि के समि धमथ्या साक्ष्य देिे का क सेिंस न्यायािय के समि अधभयुक्त है । िररषठ न्यायािय के धििेष आदेि
के धसिाय ि से यह िहीं पूछा जा सकता कक क िे क्या कहा था ।
)ग( क सेिंस न्यायािय के समि इसधिए अधभयुक्त है कक उसिे सेिंस न्यायािीि ि के समि धिर्ाररत होते समय ककसी
पुधिस आकफसर की हत्‍पया करिे का प्रयत्‍पि ककया । ि की यह परीिा की जा सके गी कक क्या घरटत हुआ था ।

1
2013 के अधिधियम सं० 13 की िारा 27 द्वारा (3-2-2013 से) प्रधतस्थाधपत ।
39

122. धििाधहत धस्थधत के दौराि में की गई संसूर्िाएं —कोई भी व्यधक्त, जो धििाधहत है या जो धििाधहत रह र्ुका है, ककसी
संसूर्िा को, जो ककसी व्यधक्त द्वारा, धजससे िह धििाधहत है या रह र्ुका है, धििाधहत धस्थधत के दौराि में उसे दी गई थी, प्रकट करिे
के धिए धििि ि ककया जाएगा, और ि िह ककसी ऐसी संसूर्िा को प्रकट करिे के धिए अिुज्ञात ककया जाएगा, जब तक िह व्यधक्त,
धजसिे िह संसूर्िा दी है या उसका धहत-प्रधतधिधि सम्मत ि हो, धसिाय उि िादों में, जो धििाधहत व्यधक्तयों के बीर् हों, या उि
कायचिाधहयों में, धजिमें एक धििाधहत व्यधक्त दूसरे के धिरुद्ध ककए गए ककसी अपराि के धिए अधभयोधजत है ।
123. राज्य का कायचकिापों के बारे में साक्ष्य—कोई भी व्यधक्त राज्य के ककसी भी कायचकिापों से सम्बधन्ित अप्रकाधित
िासकीय अधभिेिों से व्युत्‍पपन्ि कोई भी साक्ष्य देिे के धिए अिुज्ञात ि ककया जाएगा, धसिाय सम्पृक्त धिभाग के प्रमुि आकफसर की
अिुज्ञा के जो ऐसी अिुज्ञा देगा या उसे धििाररत करे गा, जैसा करिा िह ठीक समझे ।
124. िासकीय संसर्ू िाएं —कोई भी िोक आकफसर उसे िासकीय धि‍िास में दी हुई संसूर्िाओं को प्रकट करिे के धिए
धििि िहीं ककया जाएगा, जब कक िह समझता है कक उस प्रकटि से िोक धहत की हाधि होगी ।
अपरािों के करिे के बारे में जािकारी—कोई भी मधजस्रे ट या पुधिस आकफसर यह कहिे के धिए धििि िहीं ककया
1[125.

जाएगा कक ककसी अपराि के ककए जािे के बारे में उसे कोई जािकारी कहां से धमिी और ककसी भी राजस्ि आकफसर को यह कहिे के
धिए धििि िहीं ककया जाएगा कक उसे िोक राजस्ि के धिरुद्ध ककसी अपराि के ककए जािे के बारे में कोई जािकारी कहां से धमिी ।
स्पषटीकरर्—इस िारा में “राजस्ि आकफसर” से िोक राजस्ि की ककसी िािा के कारबार में या के बारे में धियोधजत
आकफसर अधभप्रेत है ।]
126. िृधत्तक संसर्
ू िाएं —कोई भी बैररस्टर, अटिी, प्िीिर या िकीि अपिे किीकार की अधभव्यक्त सम्मधत के धसिाय ऐसी
ककसी संसूर्िा को प्रकट करिे के धिए, जो उसके ऐसे बैररस्टर, अटिी, प्िीिर या िकीि की हैधसयत में धियोजि के अिुक्रम में, या के
प्रयोजिाथच उसके किीकार द्वारा, या की ओर से उसे दी गई हो अथिा ककसी दस्तािेज की, धजससे िह अपिे िृधत्तक धियोजि के अिुक्रम
में या के प्रयोजिाथच पररधर्त हो गया है, अन्तचिस्तु या दिा कधथत करिे को अथिा ककसी सिाह को, जो ऐसे धियोजि के अिुक्रम में या
के प्रयोजिाथच उसिे अपिे किीकार को दी है, प्रकट करिे के धिए ककसी भी समय अिुज्ञात िहीं ककया जाएगा :
परन्तु इस िारा की कोई भी बात धिम्िधिधित बात को प्रकटीकरर् से संरिर् ि देगी—
(1) ककसी भी 2[अिैि] प्रयोजि को अग्रसर करिे में दी गई कोई भी ऐसी संसूर्िा,
(2) ऐसा कोई भी तथ्य जो ककसी बैररस्टर, प्िीिर, अटिी या िकीि िे अपिी ऐसी हैधसयत में धियोजि के अिुक्रम में
संप्रेधषत ककया हो, और धजससे दर्िचत हो कक उसके धियोजि के प्रारम्भ के प‍र्ात कोई अपराि या कपट ककया गया है ।
यह तविहीि है कक ऐसे बैररस्टर, 3[प्िीिर], अटिी या िकीि का ध्याि ऐसे तथ्य के प्रधत उसके किीकार के द्वारा या की ओर
से आकर्षचत ककया गया था या िहीं ।
स्पषटीकरर्—इस िारा में कधथत बाध्यता धियोजि के अिधसत हो जािे के उपरान्त भी बिी रहती है ।
दृषटांत
)क( किीकार क, अटिी ि से कहता है, “मैंिे कू टरर्िा की है और मैं र्ाहता हं कक आप मेरी प्रधतरिा करें ” ।
यह संसूर्िा प्रकटि से संरधित है, क्योंकक ऐसे व्यधक्त की प्रधतरिा आपराधिक प्रयोजि िहीं है, धजसका दोषी होिा
ज्ञात हो ।
)ि( किीकार क, अटिी ि से कहता है, “मैं सम्पधत्त पर कब्जा कू टरधर्त धििेि के उपयोग द्वारा अधभप्राप्त करिा र्ाहता हं
और इस आिार पर िाद िािे की मैं आपसे प्राथचिा करता हं” ।
यह संसूर्िा आपराधिक प्रयोजि के अग्रसर करिे में की गई होिे से प्रकटि से संरधित िहीं है ।
)ग( क पर गबि का आरोप िगाए जािे पर िह अपिी प्रधतरिा करिे के धिए अटिी ि को प्रधतिाररत करता है । कायचिाही
के अिुक्रम में ि देिता है कक क की िेिाबही में यह प्रधिधषट की गई है कक क द्वारा उतिी रकम देिी है धजतिी के बारे में अधभकधथत है
कक उसका गबि ककया गया है, जो प्रधिधषट उसके धियोजि के आरम्भ के समय उस बही में िहीं थी ।
यह ि द्वारा अपिे धियोजि के अिुक्रम में सम्प्रेधित ऐसा तथ्य होिे से, धजससे दर्िचत होता है कक कपट उस कायचिाही के
प्रारम्भ होिे के प‍र्ात ककया गया है, प्रकटि से संरधित िहीं है ।
127. िारा 126 दुभाधषयों आकद को िागू होगी—िारा 126 के उपबन्ि दुभाधषयों और बैररस्टरों, प्िीिरों, अटर्िचयों और
िकीिों के धिधपकों या सेिकों को िागू होंगे ।

1
1887 के अधिधियम सं० 3 की िारा 1 द्वारा मूि िारा 125 के स्थाि पर प्रधतस्थाधपत ।
2
1872 के अधिधियम सं० 18 की िारा 10 द्वारा “आपराधिक” के स्थाि पर प्रधतस्थाधपत ।
3
1872 के अधिधियम सं० 18 की िारा 10 द्वारा अन्त:स्थाधपत ।
40

128. साक्ष्य देिे के धिए स्ियंमि


े उद्यत होिे से धििेषाधिकार अधभत्‍पयक्त िहीं हो जाता—यकद ककसी िाद का कोई पिकार
स्िप्रेरर्ा से ही या अन्यथा उसमें साक्ष्य देता है तो यह ि समझा जाएगा कक एतदद्वारा उसिे ऐसे प्रकटि के धिए, जैसा िारा 126 में
िर्र्चत है, सम्मधत दे दी है, तथा यकद ककसी िाद या कायचिाही का काई पिकार ऐसे ककसी बैररस्टर, 1[प्िीिर], अटिी या िकीि को
सािी के रूप में बुिाता है, तो यह कक उसिे ऐसे प्रकटि के धिए अपिी सम्मधत दे दी है के िि तभी समझा जाएगा, जबकक िह ऐसे
बैररस्टर, अटिी या िकीि से उि बातों के बारे में प्र‍ि करे धजिके प्रकटि के धिए िह ऐसे प्र‍िों के अभाि में स्िािीि ि होता ।
129. धिधि सिाहकारों से गोपिीय संसर् ू िाएं —कोई भी व्यधक्त ककसी गोपिीय संसूर्िा को, जो उसके और उसके धिधि-
िृधत्तक सिाहकार के बीर् हुई है, न्यायािय को प्रकट करिे के धिए धििि िहीं ककया जाएगा, जब तक कक िह अपिे को सािी के तौर
पर पेि ि कर दे; ऐसे पेि करिे की दिा में ककन्हीं भी ऐसी संसूर्िाओं को, धजन्हें उस ककसी साक्ष्य को स्पषट करिे के धिए जाििा, जो
उसिे कदया है, न्यायािय को आि‍यक प्रतीत हो, प्रकट करिे के धिए धििि ककया जा सके गा ककन्तु ककन्हीं भी अन्य संसूर्िाओं
को िहीं ।
130. जो सािी पिकार िहीं है उसके हक-धििेिों का पेि ककया जािा—कोई भी सािी, जो िाद का पिकार िहीं है, ककसी
सम्पधत्त सम्बन्िी अपिे हक-धििेिों को, या ककसी ऐसी दस्तािेज को, धजसके बि पर िह धगरिीदार या बन्िकदार के रूप में कोई
सम्पधत्त िारर् करता है, या ककसी दस्तािेज को, धजसका पेिकरर् उसे अपराि में फं सािे की प्रिृधत्त रिता है, पेि करिे के धिए धििि
िहीं ककया जाएगा, जब तक कक उसिे ऐसे धििेिों के पेिकरर् की ईप्सा रििे िािे व्यधक्त के साथ, या ऐसे ककसी व्यधक्त के साथ
धजससे व्युत्‍पपन्ि अधिकार से िह व्यधक्त दािा करता है, उन्हें पेि करिे का धिधित करार ि कर धिया हो ।
[131. ऐसे दस्तािेजों या इिैक्राधिक अधभिेिों का पेि ककया जािा धजन्हें कोई दूसरा व्यधक्त, धजसका उि पर कब्जा है,
2

पेि करिे से इं कार कर सकता था—कोई भी व्यधक्त, अपिे कब्जे में की ऐसे दस्तािेजों या अपिे धियंत्रर् िािे इिैक्राधिक अधभिेिों
को पेि करिे के धिए धजिको पेि करिे के धिए कोई अन्य व्यधक्त, यकद िे उसके कब्जे या धियंत्रर् में होते, पेि करिे से इं कार करिे का
हकदार होता, धििि िहीं ककया जाएगा, जब तक कक ऐसा अधन्तम िर्र्चत व्यधक्त उन्हें पेि करिे के धिए सहमधत िहीं देता ।]
132. इस आिार पर कक उत्तर उसे अपराि में फं साएगा, सािी उत्तर देिे से िम्य ि होगा—कोई सािी ककसी िाद या ककसी
धसधिि या दाध‍िक कायचिाही में धििाद्यक धिषय से सुसंगत ककसी धिषय के बारे में ककए गए ककसी प्र‍ि का उत्तर देिे से इस आिार
पर िम्य िहीं होगा कक ऐसे प्र‍ि का उत्तर ऐसे सािी को अपराि में फं साएगा या उसकी प्रिृधत्त प्रत्‍पयित: या परोित: अपराि में फं सािे
की होगी अथिा िह ऐसे सािी को ककसी ककस्म की िाधस्त या समपहरर् के धिए उच्छन्ि करे गा या इसकी प्रिृधत्त प्रत्‍पयित: या परोित:
उच्छन्ि करिे की होगी :
परन्तुक—परन्तु ऐसा कोई भी उत्तर, धजसे देिे के धिए कोई सािी धििि ककया जाएगा उसे धगरटतारी या अधभयोजि के
अध्यिीि िहीं करे गा और ि ऐसे उत्तर द्वारा धमथ्या साक्ष्य देिे के धिए अधभयोजि में के धसिाय िह उसके धिरुद्ध ककसी दाध‍िक
कायचिाही में साधबत ककया जाएगा ।
133. सहअपरािी—सहअपरािी, अधभयुक्त व्यधक्त के धिरुद्ध सिम सािी होगा, और कोई दोषधसधद्ध के िि इसधिए अिैि
िहीं है कक िह ककसी सहअपरािी के असम्पुषट पररसाक्ष्य के आिार पर की गई है ।
134. साधियों की संखया—ककसी मामिे में ककसी तथ्य को साधबत करिे के धिए साधियों की कोई धिधिषट संखया अपेधित
िहीं होगी ।
अध्याय 10

साधियों की परीिा के धिषय में


135. साधियों के पेिकरर् और उिकी परीिा का क्रम— साधियों के पेिकरर् और उिकी परीिा का क्रम, क्रमि: धसधिि
और द‍ि प्रकक्रया से तत्‍पसमय सम्बधन्ित धिधि और पद्धधत द्वारा, तथा ऐसी ककसी धिधि के अभाि में न्यायािय के धििेक द्वारा,
धिधियधमत होगा ।
136. न्यायािीि साक्ष्य की ग्राह्यता के बारे में धि‍र्य करे गा—जबकक दोिों में से कोई पिकार ककसी तथ्य का साक्ष्य देिे की
प्रस्थापिा करता है, तब न्यायािीि साक्ष्य देिे की प्रस्थापिा करिे िािे पिकार से पूछ सके गा कक अधभकधथत तथ्य, यकद िह साधबत
हो जाए, ककस प्रकार सुसंगत होगा और यकद न्यायािीि यह समझता है कक िह तथ्य यकद साधबत हो गया तो सुसंगत होगा, तो िह उस
साक्ष्य को ग्रहर् करे गा, अन्यथा िहीं ।
यकद िह तथ्य, धजसका साधबत करिा प्रस्थाधपत है, ऐसा है धजसका साक्ष्य ककसी अन्य तथ्य के साधबत होिे पर ही ग्राह्य होता
है, तो ऐसा अधन्तम िर्र्चत तथ्य प्रथम िर्र्चत तथ्य का साक्ष्य कदए जािे के पूिच साधबत करिा होगा, जब तक कक पिकार ऐसे तथ्य को
साधबत करिे का िर्ि ि दे दे और न्यायािय ऐसे िर्ि से संतुषट ि हो जाए ।

1
1872 के अधिधियम सं० 18 की िारा 10 द्वारा अन्त:स्थाधपत ।
2
2000 के अधिधियम सं० 21 की िारा 92 और दूसरी अिुसूर्ी द्वारा (17-10-2000 से) प्रधतस्थाधपत ।
41

यकद एक अधभकधथत तथ्य की सुसंगधत अन्य अधभकधथत तथ्य के प्रथम साधबत होिे पर धिभचर हो, तो न्यायािीि अपिे
धििेकािुसार या तो दूसरे तथ्य के साधबत होिे के पूिच प्रथम तथ्य का साक्ष्य कदया जािा अिुज्ञात कर सके गा, या प्रथम तथ्य का साक्ष्य
कदए जािे के पूिच धद्वतीय तथ्य का साक्ष्य कदए जािे की अपेिा कर सके गा ।
दृषटांत
)क( यह प्रस्थापिा की गई है कक एक व्यधक्त के , धजसका मृत होिा अधभकधथत है, सुसंगत तथ्य के बारे में एक कथि को, जो
कक िारा 32 के अिीि सुसंगत है, साधबत ककया जाए ।
इससे पूिच कक उस कथि का साक्ष्य कदया जाए उस कथि को साधबत करिे की प्रस्थापिा करिे िािे व्यधक्त को यह तथ्य
साधबत करिा होगा कक िह व्यधक्त मर गया है ।
)ि( यह प्रस्थापिा की गई है कक एक ऐसी दस्तािेज की अन्तिचस्तु को, धजसका िोई हुई होिा कधथत है, प्रधतधिधप द्वारा
साधबत ककया जाए ।
यह तथ्य कक मूि िो गया है प्रधतधिधप पेि करिे की प्रस्थापिा करिे िािे व्यधक्त को िह प्रधतधिधप पेि करिे से पूिच साधबत
करिा होगा ।
)ग( क र्ुराई हुई सम्पधत्त को यह जािते हुए कक िह र्ुराई हुई है, प्राप्त करिे का अधभयुक्त है ।
यह साधबत करिे की प्रस्थापिा की गई है कक उसिे उस सम्पधत्त के कब्जे का प्रत्‍पयाखयाि ककया ।
इस प्रत्‍पयाखयाि की सुसंगधत सम्पधत्त की अिन्यतया पर धिभचर है । न्यायािय अपिे धििेकािुसार या तो कब्जे के प्रत्‍पयाखयाि
के साधबत होिे से पूिच सम्पधत्त की पधहर्ाि की जािी अपेधित कर सके गा, या सम्पधत्त की पधहर्ाि की जािे के पूिच कब्जे का प्रत्‍पयाखयाि
साधबत ककए जािे की अिुज्ञा दे सके गा ।
)घ( ककसी तथ्य )क( के , धजसका ककसी धििाद्यक तथ्य का हेतुक या पररर्ाम होिा कधथत है, साधबत करिे की प्रस्थापिा की
गई है । कई मध्यान्तररक तथ्य )ि(, )ग( और )घ( हैं, धजिका, इससे पूिच कक तथ्य )क( उस धििाद्यक तथ्य का हेतुक या पररर्ाम मािा
जा सके , अधस्तत्‍पि में होिा दर्िचत ककया जािा आि‍यक है । न्यायािय या तो ि, ग या घ के साधबत ककए जािे के पूिच क के साधबत ककए
जािे की अिुज्ञा दे सके गा, या क का साधबत ककया जािा अिुज्ञात करिे के पूिच क, ग और घ का साधबत ककया जािा अपेधित
कर सके गा ।
137. मुखय परीिा—ककसी सािी की उस पिकार द्वारा, जो उसे बुिाता है, परीिा उसकी मुखय परीिा कहिाएगी ।
प्रधतपरीिा—ककसी सािी की प्रधतपिी द्वारा दी गई परीिा उसकी प्रधतपरीिा कहिाएगी ।
पुि: परीिा—ककसी सािी की प्रधतपरीिा के प‍र्ात उसकी उस पिकार द्वारा, धजसिे उसे बुिाया था, परीिा उसकी
पुि:परीिा कहिाएगी ।
138. परीिाओं का क्रम—साधियों से प्रथमत: मुखयपरीिा होगी, तत्‍पप‍र्ात )यकद प्रधतपिी ऐसा र्ाहे तो( प्रधतपरीिा होगी,
तत्‍पप‍र्ात )यकद उसे बुिािे िािा पिकार ऐसा र्ाहे तो( पुि:परीिा होगी ।
परीिा और प्रधतपरीिा को सुसंगत तथ्यों से सम्बधन्ित होिा होगा, ककन्तु प्रधतपरीिा का उि तथ्यों तक सीधमत रहिा
आि‍यक िहीं है, धजिकी सािी िे अपिी मुखयपरीिा में पररसाक्ष्य कदया है ।
पुि: परीिा की कदिा—पुि:परीिा उि बातों के स्पषटीकरर् के प्रधत उकद्दषट होगी जो प्रधतपरीिा में धिर्दचषट हुए हों, तथा
यकद पुि:परीिा में न्यायािय की अिुज्ञा से कोई िई बात प्रधिषट की गई हो, तो प्रधतपिी उस बात के बारे में अधतररक्त प्रधतपरीिा
कर सके गा ।
139. ककसी दस्तािेज को पेि करिे के धिए समधित व्यधक्त की प्रधतपरीिा—ककसी दस्तािेज को पेि करिे के धिए समधित
व्यधक्त के िि इस तथ्य के कारर् कक िह उसे पेि करता है सािी िहीं हो जाता तथा यकद और जब तक िह सािी के तौर पर बुिाया
िहीं जाता, उसकी प्रधतपरीिा िहीं की जा सकती ।
140. िीि का साक्ष्य देिे िािे सािी—िीि का साक्ष्य देिे िािे साधियों की प्रधतपरीिा और पुि:परीिा की जा सके गी ।
141. सूर्क प्र‍ि—कोई प्र‍ि, जो उस उत्तर को सुझता है, धजसे पूछिे िािा व्यधक्त पािा र्ाहता है या पािे की आिा करता
है, सूर्क प्र‍ि कहा जाता है ।
142. उन्हें कब िहीं पूछिा र्ाधहए—सूर्क प्र‍ि मुखयपरीिा में या पुि:परीिा में, यकद धिरोिी पिकार द्वारा आिेप ककया
जाता है, न्यायािय की अिुज्ञा के धबिा िहीं पूछे जािे र्ाधहएं ।
न्यायािय उि बातों के बारे में, जो पुि:स्थापिा के रूप में या धिर्िचिाद है या जो उसकी राय में पहिे से ही पयाचप्त रूप से
साधबत हो र्ुके हैं, सूर्क प्र‍िों के धिए अिुज्ञा देगा ।
143. उन्हें कब पूछा जा सके गा—सूर्क प्र‍ि प्रधतपरीिा में पूछे जा सकें गे ।
42

144. िेिबद्ध धिषयों के बारे में साक्ष्य—ककसी सािी से, जबकक िह परीिािीि है, यह पूछा जा सके गा कक क्या कोई संधिदा,
अिुदाि या सम्पधत्त का अन्य व्ययि, धजसके बारे में िह साक्ष्य दे रहा है, ककसी दस्तािेज में अन्तर्िचषट िहीं था, और यकद िह कहता है
कक िह था, या यकद िह ककसी ऐसी दस्तािेज की अन्तिचस्तु के बारे में कोई कथि करिे ही िािा है, धजसे न्यायािय की राय में, पेि
ककया जािा र्ाधहए, तो प्रधतपिी आिेप कर सके गा कक ऐसा साक्ष्य तब तक िहीं कदया जाए जब तक ऐसी दस्तािेज पेि िहीं कर दी
जाती, या जब तक िे तथ्य साधबत िहीं कर कदए जाते, जो उस पिकार को, धजसिे सािी को बुिाया है, उसका धद्वतीधयक साक्ष्य देिे का
हक देते हैं ।
स्पषटीकरर्—कोई सािी उि कथिों का, जो दस्तािेजों की अन्तिचस्तु के बारे में अन्य व्यधक्तयों द्वारा ककए गए थे, मौधिक
साक्ष्य दे सके गा, यकद ऐसे कथि स्ियमेि सुसंगत तथ्य हैं ।
दृषटांत
प्र‍ि यह है कक क्या क िे ि पर हमिा ककया ।
ग अधभसाक्ष्य देता है कक उसिे क को घ से यह कहते सुिा है कक “ि िे मुझे एक पत्र धििा था धजसमें मुझ पर र्ोरी का
अधभयोग िगाया था और मैं उससे बदिा िूंगा” । यह कथि हमिे के धिए क का आिय दर्िचत करिे िािा होिे के िाते सुसंगत है और
उसका साक्ष्य कदया जा सके गा, र्ाहे पत्र के बारे में कोई अन्य साक्ष्य ि भी कदया गया हो ।
1145.पूित
च ि िेिबद्ध कथिों के बारे में प्रधतपरीिा—ककसी सािी की उि पूिचति कथिों के बारे में, जो उसिे धिधित रूप में
ककए हैं या जो िेिबद्ध ककए गए हैं और जो प्र‍िगत बातों से सुसंगत हैं, ऐसा िेि उसे कदिाए धबिा, या ऐसे िेि साधबत हुए धबिा,
प्रधतपरीिा की जा सके गी, ककन्तु यकद उस िेि द्वारा उसका ि‍िि करिे का आिय है तो उस िेि को साधबत ककए जा सकिे के पूिच
उसका ध्याि उस िेि के उि भागों की ओर आकर्षचत करिा होगा धजिका उपयोग उसका ि‍िि करिे के प्रयोजि से ककया जािा है ।
146. प्रधतपरीिा के धिधिपूर्च प्र‍ि—जब कक ककसी सािी से प्रधतपरीिा की जाती है, तब उससे एतधस्मन्पूिच धिर्दचषट प्र‍िों के
अधतररक्त ऐसे कोई भी प्र‍ि पूछे जा सकें गे धजिकी प्रिृधत्त—
(1) उसकी सत्‍पयिाकदता परििे की है,
(2) यह पता र्िािे की है कक िह कौि है और जीिि में उसकी धस्थधत क्या है, अथिा
(3) उसके िीि को दोष िगाकर उसकी धि‍िसिीयता को िक्का पहुंर्ािे की है, र्ाहे ऐसे प्र‍िों का उत्तर उसे प्रत्‍पयित: या
परोित: अपराि में फं सािे की प्रिृधत्त रिता हो, या उसे ककसी िाधस्त या समपहरर् के धिए उच्छन्ि करता हो या प्रत्‍पयित: या
परोित: उच्छन्ि करिे की प्रिृधत्त रिता हो :
[परन्तु भारतीय दंि संधहता (1860 का 45) की िारा 376, 3[िारा 376क, िारा 376कि, 376ि, िारा 376ग, िारा 376घ,
2

376घक, 376घि,] या िारा 376ङ के अिीि ककसी अपराि के धिए या ऐसे ककसी अपराि के ककए जािे का प्रयत्‍पि करिे के धिए ककसी
अधभयोजि में, जहां सम्मधत का प्र‍ि धििाद्य है िहां पीधडता की प्रधतपरीिा में उसके सािारर् व्यधभर्ार या ककसी व्यधक्त के साथ पूिच
िैंधगक अिुभि के बारे में ऐसी सम्मधत या सम्मधत की प्रकृ धत के धिए साक्ष्य देिा या प्र‍िों को पूछिा अिुज्ञेय िहीं होगा ।]
147. सािी को उत्तर देिे के धिए कब धििि ककया जाए—यकद ऐसा कोई प्र‍ि उस िाद या कायचिाही से सुसंगत ककसी बात
से संबंधित है, तो िारा 132 के उपबन्ि उसको िागू होंगे ।
148. न्यायािय धिधिध‍र्त करे गा कक कब प्र‍ि पूछा जाएगा और सािी को उत्तर देिे के धिए कब धििि ककया
जाएगा—यकद ऐसा कोई प्र‍ि ऐसी बात से संबंधित है, जो उस बात या कायचिाही से िहां तक के धसिाय, जहां तक कक िह सािी के
िीि को दोष िगाकर उसकी धि‍िसिीयता पर प्रभाि िािती है, सुसंगत िहीं है, तो न्यायािय धिधिध‍र्त करे गा कक सािी को उत्तर
देिे के धिए धििि ककया जाए या िहीं और यकद िह ठीक समझे, तो सािी को सर्ेत कर सके गा कक िह उसका उत्तर देिे के धिए आबद्ध
िहीं है । अपिे धििेक का प्रयोग करिे में न्यायािय धिम्िधिधित धिर्ारों को ध्याि में रिेगा :—
(1) ऐसे प्र‍ि उधर्त हैं, यकद िे ऐसी प्रकृ धत के हैं कक उिके द्वारा प्रिहर् ककए गए िांछि की सत्‍पयता उस धिषय में,
धजसका िह सािी पररसाक्ष्य देता है, सािी की धि‍िसिीयता के बारे में न्यायािय की राय पर गम्भीर प्रभाि िािेगी;
(2) ऐसे प्र‍ि अिुधर्त हैं, यकद उिके द्वारा प्रिहर् ककया गया िांछि ऐसी बातों के संबंि में है जो समय में उतिी
अतीत हैं या जो इस प्रकार की है कक िांछि की सत्‍पयता उस धिषय में, धजसका िह सािी पररसाक्ष्य देता है, सािी की
धि‍िसिीयता के बारे में न्यायािय की राय पर प्रभाि िहीं िािेगी या बहुत थोडी मात्रा में प्रभाि िािेगी;
(3) ऐसे प्र‍ि अिुधर्त हैं, यकद सािी के िीि के धिरुद्ध ककए गए िांछि के महत्‍पि और उसके साक्ष्य के महत्‍पि के
बीर् भारी अििुपात है;

1
पुधिस िायररयों को िारा 145 के िागू होिे के बारे में द‍ि प्रकक्रया संधहता, 1973 (1974 का 2) की िारा 172 देधिए ।
2
2003 के अधिधियम सं० 4 की िारा 2 द्वारा अंत:स्थाधपत ककया गया था और इसके स्थाि पर 2013 के अधिधियम सं० 13 की िारा 28 द्वारा (13-2-2013 से)
प्रधतस्थाधपत ।
3
2018 के अधिधियम सं० 22 की िारा 9 द्वारा प्रधतस्थाधपत ।
43

(4) न्यायािय, यकद िह ठीक समझे, सािी के उत्तर देिे से इं कार करिे पर यह अिुमाि िगा सके गा कक उत्तर यकद
कदया जाता तो, प्रधतकू ि होता ।
149. युधक्तयुक्त आिारों के धबिा प्र‍ि ि पूछा जाएगा—कोई भी ऐसा प्र‍ि, जैसा िारा 148 में धिर्दचषट है, िहीं पूछा जािा
र्ाधहए, जब तक कक पूछिे िािे व्यधक्त के पास यह सोर्िे के धिए युधक्तयुक्त आिार ि हो कक यह िांछि, धजसका उससे प्रिहर् होता
है, सुआिाररत है ।
दृषटांत
)क( ककसी बैररस्टर को ककसी अटिी या िकीि द्वारा अिुदि े कदया गया है कक एक महत्‍पिपूर्च सािी िकै त है । उस सािी से
यह पूछिे के धिए कक क्या िह िकै त है, यह युधक्तयुक्त आिार है ।
)ि( ककसी िकीि को न्यायािय में ककसी व्यधक्त द्वारा जािकारी दी जाती है कक एक महत्‍पिपूर्च सािी िकै त है । जािकारी
देिे िािा िकीि द्वारा प्र‍ि ककए जािे पर अपिे कथि के धिए समािािप्रद कारर् बताता है । उस सािी से यह पूछिे के धिए कक क्या
िह िकै त है, यह युधक्तयुक्त आिार है ।
)ग( ककसी सािी से, धजसके बारे में कु छ भी ज्ञात िहीं है, अटकिपच्र्ू पूछा जाता है कक क्या िह िकै त है । यहां इस प्र‍ि के
धिए कोई युधक्तयुक्त आिार िहीं है ।
)घ( कोई सािी, धजसके बारे में कु छ भी ज्ञात िहीं है, अपिे जीिि के ढंग और जीधिका के साििों के बारे में पूछे जािे पर
असमािािप्रद उत्तर देता है । उससे यह पूछिे का कक क्या िह िकै त है यह युधक्तयुक्त आिार हो सकता है ।
150. युधक्तयुक्त आिारों के धबिा प्र‍ि पूछे जािे की अिस्था में न्यायािय की प्रकक्रया—यकद न्यायािय की यह राय हो कक
ऐसा कोई प्र‍ि युधक्तयुक्त आिारों के धबिा पूछा गया था, तो यकद िह ककसी बैररस्टर, प्िीिर, िकीि या अटिी द्वारा पूछा गया था,
तो िह मामिे की पररधस्थधतयों की उच्र् न्यायािय को या अन्य प्राधिकारी को, धजसके ऐसा बैररस्टर, प्िीिर, िकीि या अटिी अपिी
िृधत्त के प्रयोग में अिीि है, ररपोटच कर सके गा ।
151. अधिषट और किंकात्‍पमक प्र‍ि—न्यायािय ककन्हीं प्र‍िों का या पूछताछों का, धजन्हें िह अधिषट या किांकात्‍पमक
समझता है, र्ाहे ऐसे प्र‍ि या जांर् न्यायािय के समि प्र‍िों को कु छ प्रभाधित करिे की प्रिृधत्त रिते हों, धिषेि कर सके गा, जब तक
कक िे धििाद्यक तथ्यों के या उि धिषयों के संबंि में ि हों, धजिका ज्ञात होिा यह अििाररत करिे के धिए आि‍यक है कक धििाद्यक
तथ्य धिद्यमाि थे या िहीं ।
152. अपमाधित या िुब्ि करिे के धिए आधियत प्र‍ि—न्यायािय ऐसे प्र‍ि का धिषेि करे गा, जो उसे ऐसा प्रतीत होता है
कक िह अपमाधित या िुब्ि करिे के धिए आिधयत है, या जो यद्यधप स्ियं में उधर्त है, तथाधप रूप में न्यायािय को ऐसा प्रतीत होता है
कक िह अिाि‍यक तौर पर संतापकारी है ।
153. सत्‍पयिाकदता परििे के प्र‍िों के उत्तरों का ि‍िि करिे के धिए साक्ष्य का अपिजचि—जबकक ककसी सािी से ऐसा कोई
प्र‍ि पूछा गया हो, जो जांर् से के िि िहीं तक सुसंगत है जहां तक कक िह उसके िीि को िधत पहुंर्ा कर उसकी धि‍िसिीयता को
िक्का पहुंर्ािे की प्रिृधत्त रिता है, और उसिे उसका उत्तर दे कदया हो, तब उसका ि‍िि करिे के धिए कोई साक्ष्य िहीं कदया जाएगा;
ककन्तु यकद िह धमथ्या उत्तर देता है, तो तत्‍पप‍र्ात उस पर धमथ्या साक्ष्य देिे का आरोप िगाया जा सके गा ।
अपिाद 1—यकद ककसी सािी से पूछा जाए कक क्या िह तत्‍पपूिच ककसी अपराि के धिए दोषधसद्ध हुआ था और िह उसका
प्रत्‍पयाखयाि करे , तो उसकी पूिच दोषधसधद्ध का साक्ष्य कदया जा सके गा ।
अपिाद 2— यकद ककसी सािी से उसकी धिषपिता पर अधििेप करिे की प्रिृधत्त रििे िािा कोई प्र‍ि पूछा जाए और िह
सुझाए हुए तथ्यों के प्रत्‍पयाखयाि द्वारा उसका उत्तर देता है, तो उसका ि‍िि ककया जा सके गा ।
दृषटांत
(क) ककसी धिम्िांकक के धिरुद्ध एक दािे का प्रधतरोि कपट के आिार पर ककया जाता है ।
दािेदार से पूछा जाता है कक क्या उसिे धपछिे एक संव्यिहार में कपटपूर्च दािा िहीं ककया था । िह इसका
प्रत्‍पयाखयाि करता है ।
यह दर्िचत करिे के धिए साक्ष्य स्थाधपत ककया जाता है कक उसिे ऐसा दािा सर्मुर् ककया था ।
यह साक्ष्य अग्राह्य है ।
)ि( ककसी सािी से पूछा जाता है कक क्या िह ककसी ओहदे से बेईमािी के धिए पदच्युत िहीं ककया गया था ।
िह इसका प्रत्‍पयाखयाि करता है ।
यह दर्िचत करिे के धिए कक िह बेईमािी के धिए पदच्युत ककया गया था साक्ष्य प्रधतस्थाधपत ककया जाता है ।
यह साक्ष्य ग्राह्य िहीं है ।
44

)ग( क प्रधतज्ञात करता है कक उसिे अमुक कदि ि को िाहौर में देिा । क से पूछा जाता है कक क्या िह स्ियं उस कदि किकत्ते
में िहीं था । िह इसका प्रत्‍पयाखयाि करता है ।
यह दर्िचत करिे के धिए कक क उस कदि किकत्ते में था साक्ष्य प्रस्थाधपत ककया जाता है ।
यह साक्ष्य ग्राह्य है, इस िाते िहीं कक िह क का एक तथ्य के बारे में ि‍िि करता है जो उसकी धि‍िसिीयता पर
प्रभाि िािता है, िरि इस िाते कक िह इस अधभकधथत तथ्य का ि‍िि करता है कक ि प्र‍िगत कदि िाहौर में देिा
गया था ।
इिमें से हर एक मामिे में सािी पर, यकद उसका प्रत्‍पयाखयाि धमथ्या था, धमथ्या साक्ष्य देिे का आरोप िगाया
जा सके गा ।
)घ( क से पूछा जाता है कक क्या उसके कु टु म्ब और ि के , धजसके धिरुद्ध िह साक्ष्य देता है, कु टु म्ब में कु ि बैर िहीं रहा था ।
िह इसका प्रत्‍पयाखयाि करता है । उसका ि‍िि इस आिार पर ककया जा सके गा कक यह प्र‍ि उसकी धिषपिता पर
अधििेप करिे की प्रिृधत्त रिता है ।
154. पिकार द्वारा अपिे ही सािी से प्र‍ि—1[(1)] न्यायािय उस व्यधक्त को, जो सािी को बुिाता है, उस सािी से कोई
ऐसे प्र‍ि करिे की अपिे धििेकािुसार अिुज्ञा दे सके गा, जो प्रधतपिी द्वारा प्रधतपरीिा में ककए जा सकते हैं ।
इस िारा की कोई बात, उपिारा (1) के अिीि इस प्रकार अिुज्ञात ककए गए व्यधक्त को ऐसे सािी के ककसी भाग का
2[(2)

अििंब िेिे के हक से िंधर्त िहीं करे गी ।]


155 सािी की धि‍िसिीयता पर अधििेप—ककसी सािी की धि‍िसिीयता पर प्रधतपिी द्वारा, या न्यायािय की सम्मधत से
उस पिकार द्वारा, धजसिे उसे बुिाया है, धिम्िधिधित प्रकारों से अधििेप ककया जा सके गा :—
(1) उि व्यधक्तयों के साक्ष्य द्वारा, जो यह पररसाक्ष्य देते हैं कक सािी के बारे में अपिे ज्ञाि के आिार पर, िे उसे
धि‍िसिीयता का अपात्र समझते हैं,
(2) यह साधबत ककए जािे द्वारा कक सािी को रर‍ित दी गई है या उसिे रर‍ित की प्रस्थापिा 3[प्रधतगृहीत कर
िी है] या उसे अपिा साक्ष्य देिे के धिए कोई अन्य भ्रषट उत्‍पप्रेरर्ा धमिी है,
(3) उसके साक्ष्य के ककसी ऐसे भाग से, धजसका ि‍िि ककया जा सकता है, असंगत धपछिे कथिों को साधबत करिे
द्वारा,
4
* * * * * * *

स्पषटीकरर्—कोई सािी जो ककसी अन्य सािी को धि‍िसिीयता के धिए अपात्र घोधषत करता है, अपिे से की गई मुखय
परीिा में अपिे धि‍िास के कारर्ों को र्ाहे ि बताए, ककन्तु प्रधतपरीिा में उससे उिके कारर्ों को पूछा जा सके गा, और उि उत्तरों का,
धजन्हें िह देता है, ि‍िि िहीं ककया जा सकता, तथाधप यकद िे धमथ्या हों, तो तत्‍पप‍र्ात उस पर धमथ्या साक्ष्य देिे का आरोप िगाया
जा सके गा ।
दृषटांत
(क) ि को बेर्े गए और पररदाि ककए गए माि के मूल्य के धिए ि पर क िाद िाता है । ग कहता है कक उसिे ि को माि का
पररदाि ककया ।
यह दर्िचत करिे के धिए साक्ष्य प्रस्थाधपत ककया जाता है कक ककसी पूिच अिसर पर उसिे कहा था कक उसिे उस माि का
पररदाि ि को िहीं ककया था ।
यह साक्ष्य ग्राह्य है ।
(ि) ि की हत्‍पया के धिए क पर अभ्यारोप िगाया गया है ।
ग कहता है कक ि िे मरते समय घोधषत ककया था कक क िे ि को यह घाि ककया था, धजससे िह मर गया ।
यह दर्िचत करिे के धिए साक्ष्य प्रस्थाधपत ककया जाता है कक ककसी पूिच अिसर पर ग िे कहा था कक घाि क द्वारा या उसकी
उपधस्थधत में िहीं ककया गया था ।
यह साक्ष्य ग्राह्य है ।

1
2006 के अधिधियम सं० 2 की िारा 9 द्वारा (16-4-2006 से) पुि:संखयांककत ।
2
2006 के अधिधियम सं० 2 की िारा 9 द्वारा (16-4-2006 से) अन्त:स्थाधपत ।
3
1872 के अधिधियम सं० 18 की िारा 11 द्वारा “की है” के स्थाि पर प्रधतस्थाधपत ।
4
2003 के अधिधियम सं० 4 की िारा 3 द्वारा िंि (4) का िोप ककया गया ।
45

156. सुसंगत तथ्य के साक्ष्य की सम्पुधषट करिे की प्रिृधत्त रििे िािे प्र‍ि ग्राह्य होंगे—जबकक कोई सािी, धजसकी सम्पुधषट
करिा आिधयत हो, ककसी सुसंगत तथ्य का साक्ष्य देता है, तब उससे ऐसी अन्य ककन्हीं भी पररधस्थधतयों के बारे में प्र‍ि ककया जा
सके गा, धजन्हें उसिे उस समय या स्थाि पर, या के धिकट सम्प्रेधित ककया, धजस पर ऐसा सुसंगत तथ्य घरटत हुआ, यकद न्यायािय की
यह राय हो कक ऐसी पररधस्थधतयां, यकद िे साधबत हो जाएं सािी के उस सुसंगत तथ्य के बारे में, धजसका िह साक्ष्य देता है, पररसाक्ष्य
को सम्पुषट करें गी ।
दृषटांत
क एक सह अपरािी ककसी िूट का, धजसमें उसिे भाग धिया था, िृत्तान्त देता है । िह िूट से असंसक्त धिधभन्ि घटिाओं का
िर्चि करता है जो उस स्थाि को और जहां कक िह िूट की गई थी, जाते हुए और िहां से आते हुए मागच में घरटत हुई थी ।
इि तथ्यों का स्ितंत्र साक्ष्य स्ियं उस िूट के बारे में उसके साक्ष्य को सम्पुषट करिे के धिए कदया जा सके गा ।
157. उसी तथ्य के बारे में प‍र्ातिती अधभसाक्ष्य की संपधु षट करिे के धिए सािी के पूित च ि कथि साधबत ककए जा
सकें गे—ककसी सािी के पररसाक्ष्य की समुधषट करिे के धिए ऐसे सािी द्वारा उसी तथ्य से संबंधित, उस समय पर या के िगभग जब िह
तथ्य घरटत हुआ था, ककया हुआ, या उस तथ्य का अन्िेषर् करिे के धिए धिधि द्वारा सिम ककसी प्राधिकारी के समि ककया हुआ कोई
पूिचति कथि साधबत ककया जा सके गा ।
158. साधबत कथि के बारे में, जो कथि िारा 32 या 33 के अिीि सुसग ं त है, कौि सी बातें साधबत की जा सकें गी—जब कभी
कोई कथि, जो िारा 32 या 33 के अिीि सुसंगत है, साधबत कर कदया जाए, तब र्ाहे उसके ि‍िि के धिए या संपुधषट के धिए या
धजसके द्वारा िह ककया गया था उस व्यधक्त की धि‍िसिीयता को अधिधिप्त या पुषट करिे के धिए िे सभी बातें साधबत की जा सकें गी,
जो यकद िह व्यधक्त सािी के रूप में बुिाया गया होता और उसिे प्रधतपरीिा में सु झाई हुई बात की सत्‍पयता का प्रत्‍पयाखयाि ककया होता,
तो साधबत की जा सकती ।
159. स्मृधत ताजी करिा—कोई सािी जबकक िह परीिा के अिीि है, ककसी ऐसे िेि को देि करके , जो कक स्ियं उसिे उस
संव्यिहार के समय धजसके संबंि में उससे प्र‍ि ककया जा रहा है, या इतिे िीघ्र प‍र्ात हो कक न्यायािय इसे संभाव्य समझता हो कक
िह संव्यिहार उस समय उसकी स्मृधत में ताजा था, अपिी स्मृधत को ताजा कर सके गा ।
सािी उपयुचक्त प्रकार के ककसी ऐसे िेि को भी देि सके गा जो ककसी अन्य व्यधक्त द्वारा तैयार ककया गया हो और उस सािी
द्वारा उपयुचक्त समय के भीतर प़िा गया हो, यकद िह उस िेि का, उस समय जबकक उसिे उसे प़िा था, सही होिा जािता था ।

सािी स्मृधत ताजी करिे के धिए दस्तािेज की प्रधतधिधप का उपयोग कब कर सके गा—जब कभी कोई सािी अपिी स्मृधत
ककसी दस्तािेज को देििे से ताजी कर सकता है, तब िह न्यायािय की अिुज्ञा से, ऐसी दस्तािेज की प्रधतधिधप को देि सके गा :

परन्तु यह तब जबकक न्यायािय का समािाि हो गया हो कक मूि को पेि ि करिे के धिए पयाचप्त कारर् है ।
धििेषज्ञ अपिी स्मृधत िृधत्तक पुस्तकों को देि कर ताजी कर सके गा ।

160. िारा 159 में िर्र्चत दस्तािेज में कधथत तथ्यों के धिए पररसाक्ष्य—कोई सािी ककसी ऐसी दस्तािेज में, जैसी िारा 159
में िर्र्चत है, िर्र्चत तथ्यों का भी, र्ाहे उसे स्ियं उि तथ्यों का धिधिर्दचषट स्मरर् िहीं हो, पररसाक्ष्य दे सके गा, यकद उसे यकीि है कक िे
तथ्य उस दस्तािेज में ठीक-ठीक अधभधिधित थे ।
दृषटांत
कोई िेिाकार कारबार के अिुक्रम में धियधमत रूप से रिी जािे िािी बधहयों में उसके द्वारा अधभधिधित तथ्यों का
पररसाक्ष्य दे सके गा, यकद िह जािता हो कक बधहयां ठीक-ठीक रिी गई थीं, यद्यधप िह प्रधिषट ककए गए धिधिषट संव्यिहारी को भूि
गया हो ।
161. स्मृधत ताजी करिे के धिए प्रयुक्त िेि के बारे में प्रधतपिी का अधिकार—पूिचिती अधन्तम दो िाराओं के उपबन्िों के
1

अिीि देिा गया कोई िेि पेि करिा और प्रधतपिी को कदिािा होगा, यकद िह उसकी अपेिा करे । ऐसा पिकार, यकद िह र्ाहे, उस
सािी से उसके बारे में प्रधतपरीिा कर सके गा ।
162. दस्तािेजों का पेि ककया जािा—ककसी दस्तािेज को पेि करिे के धिए समधित सािी, यकद िह उसके कब्जे में और
िक्यिीि हो, ऐसे ककसी आिेप के होिे पर भी, जो उसे पेि करिे या उसकी ग्रह्यता के बारे में हो, उसे न्यायािय में िाएगा । ऐसे ककसी
आिेप की धिधिमान्यता न्यायािय द्वारा धिधिध‍र्त की जाएगी ।
न्यायािय, यकद िह ठीक समझे, उस दस्तािेज का, यकद िह राज्य की बातों से संबंधित ि हो, धिरीिर् कर सके गा, या अपिे
को उसकी ग्राह्यता अििाररत करिे योग्य बिािे के धिए अन्य साक्ष्य िे सके गा ।

1
पुधिस िायररयों को िारा 161 के िागू होिे के बारे में द‍ि प्रकक्रया संधहता, 1973 (1974 का 2) की िारा 172 देधिए ।
46

दस्तािेजों का अिुिाद—यकद ऐसे प्रयोजि के धिए ककसी दस्तािेज का अिुिाद करािा आि‍यक हो तो न्यायािय, यकद िह
ठीक समझे, अिुिादक को धिदेि दे सके गा कक िह उसकी अन्तचिस्तु को गुप्त रिे, धसिाय जबकक दस्तािेज को साक्ष्य में कदया जािा हो;
तथा यकद अिुिादक ऐसे धिदेि की अिज्ञा करे , तो यह िाररत ककया जाएगा कक उसिे भारतीय द‍ि संधहता (1860 का 45) की िारा
166 के अिीि अपराि ककया है ।
163. मंगाई गई और सूर्िा पर पेि की गई दस्तािेज का साक्ष्य के रूप में कदया जािा—जबकक कोई पिकार ककसी दस्तािेज
को धजसे पेि करिे की उसिे दूसरे पिकार को सूर्िा दी है, मंगाता है और ऐसी दस्तािेज पेि की जाती है और उस पिकार द्वारा,
धजसिे उसके पेि करिे की मांग की थ ी, धिरीधित हो जाती है, तब यकद उसे पेि करिे िािा पिकार उससे ऐसा करिे की अपेिा
करता है, तो िह उसे साक्ष्य के रूप में देिे के धिए आबद्ध होगा ।
164. सूर्िा पािे पर धजसे दस्तािेज के पेि करिे से इं कार कर कदया गया है उसको साक्ष्य के रूप में उपयोग में
िािा—जबकक कोई पिकार ऐसी ककसी दस्तािेज को पेि करिे से इन्कार कर देता है, धजसे पेि करिे की उसे सूर्िा धमि र्ुकी है, तब
िह तत्‍पप‍र्ात उस दस्तािेज को दूसरे पिकार की सम्मधत के या न्यायािय के आदेि के धबिा साक्ष्य के रूप में उपयोग में िहीं
िा सके गा ।
दृषटांत
ि पर ककसी करार के आिार पर क िाद िाता है और िह ि को उसे पेि करिे की सूर्िा देता है । धिर्ारर् में क उस
दस्तािेज की मांग करता है और ि उसे पेि करिे से इं कार करता है । क उसकी अन्तिचस्तु का धद्वतीधयक साक्ष्य देता है । क द्वारा कदए हुए
धद्वतीधयक साक्ष्य का ि‍िि करिे के धिए या यह दर्िचत करिे के धिए कक िह करार स्टाधम्पत िहीं है, ि दस्तािेज ही को पेि करिा
र्ाहता है । यह ऐसा िहीं कर सकता ।
165. प्र‍ि करिे या पेि करिे का आदेि देिे की न्यायािीि की िधक्त—न्यायािीि सुसंगत तथ्यों का पता र्िािे के धिए या
उिका उधर्त सबूत अधभप्राप्त करिे के धिए, ककसी भी रूप में ककसी भी समय ककसी भी सािी या पिकारों से ककसी भी सुसंग त या
धिसंगत तथ्य के बारे में कोई भी प्र‍ि, जो िह र्ाहे, पूछ सके गा, तथा ककसी भी दस्तािेज या र्ीज को पेि करिे का आदेि दे सके गा ;
और ि तो पिकार और ि उिके अधभकताच हकदार होंगे कक िह ककसी भी ऐसे प्र‍ि या आदेि के प्रधत कोई भी आिेप करें , ि ऐसे ककसी
भी प्र‍ि के प्रत्‍पयुत्तर में कदए गए ककसी भी उत्तर पर ककसी भी सािी की न्यायािय की इजाजत के धबिा प्रधतरीिा करिे के
हकदार होंगे :
परन्तु धिर्चय को उि तथ्यों पर, जो इस अधिधियम द्वारा सुसंगत घोधषत ककए गए हैं और जो सम्यक रूप से साधबत ककए गए
हों, आिाररत होिा होगा :
परन्तु यह भी कक ि तो यह िारा न्यायािीि को ककसी सािी को ककसी ऐसे प्र‍ि का उत्तर देिे के धिए या ककसी ऐसी
दस्तािेज को पेि करिे को धििि करिे के धिए प्राधिकृ त करे गी, धजसका उत्तर देिे से या धजसे पेि करिे से, यकद प्रधतपिी द्वारा िह
प्र‍ि पूछा गया होता या िह दस्तािेज मंगाई गई होती, तो ऐसा सािी दोिों िाराओं को सधम्मधित करते हुए िारा 121 से िारा 131
पयचन्त िाराओं के अि ीि इं कार करिे का हकदार होता; और ि न्यायािीि कोई ऐसा प्र‍ि पूछेगा धजसका पूछिा ककसी अन्य व्यधक्त के
धिए िारा 148 और 149 के अिीि अिुधर्त होता; और ि िह एतधस्मन्पूिच अपिाकदत दिाओं के धसिाय ककसी भी दस्तािेज के
प्राथधमक साक्ष्य का कदया जािा अधभमुक्त करे गा ।
166. जूरी या असेसरों की प्र‍ि करिे की िधक्त—जूरी द्वारा या असेसरों की सहायता से धिर्ाररत मामिों में जूरी या असेसर
साधियों से कोई भी ऐसे प्र‍ि न्यायािीि के माध्यम से या इजाजत से कर सकें गे, धजन्हें न्यायािीि स्िय ं कर सकता हो और धजन्हें िह
उधर्त समझे ।
अध्याय 11

साक्ष्य के अिुधर्त ग्रहर् और अग्रहर् के धिषय में


167. साक्ष्य के अिुधर्त ग्रहर् या अग्रहर् के धिए ििीि धिर्ारर् िहीं होगा—साक्ष्य का अिुधर्त ग्रहर् या अग्रहर् स्ियमेि
ककसी भी मामिे में ििीि धिर्ारर् के धिए या ककसी धिधि‍र्य के उिटे जािे के धिए आिार िहीं होगा, यकद उस न्यायािय को
धजसके समि ऐसा आिेप उठाया गया है, यह प्रतीत हो कक आधिप्त और गृहीत उस साक्ष्य के धबिा भी धिधि‍र्य के न्यायोधर्त ठहरािे
के धिए यथेषट साक्ष्य था अथिा यह कक यकद अगृधहत साक्ष्य धिया भी गया होता तो उससे धिधि‍र्य में फे रफार ि होिा र्ाधहए था ।
अिुसर्
ू ी—[अधिधियधमधतयां धिरधसत]—धिरसि अधिधियम, 1938 (1938 का 1( की िारा 2 और अिुसूर्ी द्वारा धिरधसत

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