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भारतीय संविदा अविवियम, 1872

(1872 का अविवियम संखयांक 9)1


[25 अप्रैल, 1872]

उद्देविका––संविदाओं से संबंवित विवि के कवतपय भागों को पररभावित और संिोवित करिा समीचीि है;

अत: तदद्वारा यह विम्िवलवित रूप में अविवियवमत ककया जाता है :––

प्रारवम्भक
1. संविप्त िाम––यह अविवियम भारतीय संविदा अविवियम, 1872 कहा जा सके गा ।
विस्तार, प्रारं भ–– इसका विस्तार 2*** संपूर्ण भारत पर है; और यह 1872 के वसतम्बर के प्रथम कदि को प्रिृत्त होगा ।
व्यािृवत्त––3*** इसमें अंतर्िणष्ट कोई भी बात, तदद्वारा अवभव्यक्त रूप से विरवसत ि ककए गए ककसी स्टे ट्यूट, अविवियम या
विवियम के उपबंिों पर, व्यापार की ककसी प्रथा या रूक़ि पर, अथिा ककसी संविदा की ककसी प्रसंगवत पर, जो इस अविवियम के
उपबंिों से असंगत ि हो, प्रभाि ि डालेगी ।
2. वििणचि िंड––इस अविवियम में, विम्िवलवित िब्दों और पदों का विम्िवलवित भािों में प्रयोग ककया गया है, जब तक
कक संदभण से प्रवतकू ल आिय प्रतीत ि हो––
(क) जब कक एक व्यवक्त, ककसी बात को करिे या करिे से प्रविरत रहिे की अपिी रजामन्दी ककसी अन्य को इस
दृवष्ट से संज्ञावपत करता है कक ऐसे कायण या प्रविरवत के प्रवत उस अन्य की अिुमवत अवभप्राप्त करे तब िह प्रस्थापिा करता है,
यह कहा जाता है;
(ि) जब कक िह व्यवक्त, वजससे प्रस्थापिा की जाती है उसके प्रवत अपिी अिुमवत संज्ञावपत करता है तब िह
प्रस्थापिा प्रवतगृहीत हुई कही जाती है । प्रस्थापिा प्रवतगृहीत हो जािे पर िचि हो जाती है;
(ग) प्रस्थापिा करिे िाला व्यवक्त, “िचिदाता” कहलाता है और प्रस्थापिा प्रवतगृहीत करिे िाला व्यवक्त
“िचिगृहीता” कहलाता है;
(घ) जब कक िचिदाता की िांछा पर िचिगृहीता या कोई अन्य व्यवक्त कु छ कर चुका है या करिे से विरत रहा है,
या करता है या करिे से प्रविरत रहता है, या करिे का या करिे से प्रविरत रहिे का िचि देता है, तब ऐसा कायण या प्रविरवत
या िचि उस िचि के वलए प्रवतफल कहलाता है;
(ङ) हर एक िचि और ऐसे िचिों का हर एक संिगण, जो एक दूसरे के वलए प्रवतफल हो, करार है;
(च) िे िचि जो एक दूसरे के वलए प्रवतफल या प्रवतफल का भाग हों, व्यवतकारी िचि कहलाते हैं;

1
वििेयक के उद्देश्यों और कारर्ों के कथि के वलए, जो भारत के वलए मुखय विवियां तैयार करिे के वलए तारीि 6 जुलाई, 1866 को वियुक्त हर मजेस्टी के कवमश्िर की
ररपोटण पर आिाररत है, देविए भारत का राजपत्र (अंग्रेजी), 1867, असािारर्, पृ० 34; प्रिर सवमवत की ररपोटण के वलए, भारत का राजपत्र (अंग्रेजी), असािारर्, तारीि
28 माचण, 1872, पररिद में हुई चचाण के वलए देविए, भारत का राजपत्र (अंग्रेजी), 1867 अिुपूरक, पृ० 1064; भारत का राजपत्र (अंग्रेजी), 1871, पृ० 313 के भारत का
राजपत्र (अंग्रज े ी), 1872, पृ० 527 ।
यह अविवियम, 1915 के मध्य प्रांत अविवियम 1 द्वारा मध्य प्रांत में और 1938 के मध्य प्रांत और बरार अविवियम 15 द्वारा मध्य प्रांत और बरार में
संिोवित ककया गया ।
संपवत्त अंतरर् अविवियम, 1882 (1882 का 4) के िे अध्याय और िाराएं जो संविदाओं से संबंवित हैं ऐसे स्थािों में जहां यह अविवियम प्रिृत्त है इस
अविवियम के भाग मािे जाएंगे । देविए 1882 का अविवियम सं० 4 की िारा 4 ।
इस अविवियम का विस्तार, बरार विवि अविवियम, 1941 (1941 का 4) द्वारा बरार पर, 1963 के विवियम सं० 6 की िारा 2 तथा अिुसूची 1 द्वारा दादरा
और िागर हिेली पर; 1963 के विवियम सं० 11 की िारा 3 तथा अिुसूची द्वारा गोिा, दमर् और दीि पर, 1965 के विवियम सं० 8 की िारा 3 तथा अिुसूची द्वारा
लिद्वीप वमविकोय और अमीिदीिी द्वीप समूह पर; 1968 के अविवियम सं० 2 की िारा 3 तथा अिुसूची द्वारा पाव‍डचेरी पर ककया गया है तथा विम्िवलवित स्थािों पर
प्रिृत्त होिे के वलए घोवित ककया गया––
संथाल परगािा––देविए संथाल परगिा व्यिस्थापि विवियम, 1872 (1872 का 3) की िारा 3 वजसका संिोिि संथाल परगिा न्याय और विवि विवियम,
1899 (1899 का 3) की िारा 3 द्वारा ककया गया ।
पंथ वपपलोदा––देविए पंथ वपपलोदा विवि विवियम, 1929 (1929 का 1) की िारा 2 ।
अिुसूवचत वजला अविवियम, 1874 (1874 का 14) की िारा 3(क) के अिीि जारी अविसूचिा द्वारा आगरा प्रांत तराई में इसे प्रिृत्त होिे के वलए घोवित
ककया गया देविए भारत का राजपत्र (अंग्रेजी), 1876, भाग 1, पृ० 505;
हजारी बाग वजले में लोहारडागा और मािभूम, और परगिा डालभूम तथा ससंघभूम वजले में कोलहाि––देविए भारत का राजपत्र (अंग्रेजी), 1881 भाग 1
का पृ० 504 । लोहारडागा वजला में इस समय ितणमाि पलामू वजला सवम्मवलत है वजसे 1874 में पृथक ककया गया था । अब लोहारडागा वजले को रांची वजला कहा जाता
है––देविए कलकत्ता राजपत्र, 1899 भाग 1, पृ० 44 ।
2
2019 के अविवियम सं० 34 की िारा 95 और पांचिी अिुसूची द्वारा (31-10-2019 से) “जम्मू-कश्मीर राज्य के वसिाय” िब्दों का लोप ककया गया ।
3
1914 के अविवियम सं०10 की िारा 3 तथा अिुसूची 2 द्वारा “अिुसूची में उपिर्र्णत अविवियवमवतयां इसके द्वारा जो अिुसूची के तीसरे स्तंभ में विविर्दणष्ट विस्तार तक
विरवसत होंगी, ककन्तु” िब्दों का विरसि ककया गया ।
2

(छ) िह करार जो विवित: प्रितणिीय ि हो, िून्य कहलाता है;


(ज) िह करार, जो विवित: प्रितणिीय हो, संविदा है;
(झ) िह करार, जो उसके पिकारों में से एक या अविक के विकल्प पर तो विवि द्वारा प्रितणिीय हो, ककं तु अन्य
पिकार या पिकारों के विकल्प पर िहीं, िून्यकरर्ीय संविदा है;
(ञ) जो संविदा विवित: प्रितणिीय िहीं रह जाती िह तब िून्य हो जाती है जब िह प्रितणिीय िहीं रह जाती ।
अध्याय 1

प्रस्थापिाओं की संसच
ू िा, प्रवतग्रहर् और प्रवतसंहरर् के वििय में
3. प्रस्थापिाओं की संसच ू िा, प्रवतग्रहर् और प्रवतसंहरर्––प्रस्थापिाओं की संसूचिा, प्रस्थापिाओं का प्रवतग्रहर् और
प्रस्थापिाओं तथा प्रवतग्रहर्ों का प्रवतसंहरर् क्रमि: प्रस्थापिा करिे िाले, प्रवतग्रहर् करिे िाले या प्रवतसंहरर् करिे िाले पिकार के
ककसी ऐसे कायण या लोप से हुआ समझा जाता है, वजसके द्वारा िह ऐसी प्रस्थापिा, प्रवतग्रहर् या प्रवतसंहरर् को संसूवचत करिे का
आिय रिता हो, या जो उसे संसूवचत करिे का प्रयास रिता हो ।
4. संसच
ू िा कब संपर्
ू ण हो जाती है––प्रस्थापिा की संसूचिा तब संपर्
ू ण हो जाती है जब प्रस्थापिा उस व्यवक्त के ज्ञाि में आ
जाती है वजसे िह की गई है ।
प्रवतग्रहर् की संसूचिा––
प्रस्थापक के विरुद्ध तब संपूर्ण हो जाती है जब िह उसके प्रवत इस प्रकार पारे िर् के अिुक्रम में कर दी जाती है कक
िह प्रवतगृहीता की िवक्त के बाहर हो जाए;
प्रवतगृहीता के विरुद्ध तब संपूर्ण हो जाती है जब िह प्रस्थापक के ज्ञाि में आती है ।
प्रवतसंहरर् की संसूचिा––
उसे करिे िाले व्यवक्त के विरुद्ध तब संपूर्ण हो जाती है, जब िह उस व्यवक्त के प्रवत, वजससे प्रवतसंहरर् ककया गया
हो, इस प्रकार पारे िर् के अिुक्रम में कर दी जाती है कक िह उस व्यवक्त की िवक्त के बाहर हो जाए, जो उसे करता है ।
उस व्यवक्त के विरुद्ध, वजससे प्रवतसंहरर् ककया गया है, तब संपूर्ण हो जाती है, जब िह उसके ज्ञाि में आती है ।
दृष्टांत
(क) अमुक कीमत पर ि को गृह बेचिे की पत्र द्वारा प्रस्थापिा करता है ।
प्रस्थापिा की संसूचिा तब संपूर्ण हो जाती है जब ि को पत्र प्राप्त होता है ।
(ि) क की प्रस्थापिा का ि डाक से भेजे गए पत्र को प्रवतग्रहर् करता है ।
प्रस्थापिा की संसूचिा तब संपूर्ण हो जाती है जब ि से पत्र प्राप्त होता है ।
प्रवतग्रहर् की संसूचिा––
क के विरुद्ध तब संपूर्ण हो जाती है जब पत्र डाक में डाल कदया जाता है;
ि के विरुद्ध तब संपूर्ण हो जाती है जब क को पत्र प्राप्त होता है ।
(ग) क अपिी प्रस्थापिा का प्रवतसंहरर् तार द्वारा करता है ।
क के विरुद्ध प्रवतसंहरर् तब संपूर्ण हो जाता है जब तार प्रेवित ककया जाता है । ि के विरुद्ध प्रवतसंहरर् तब संपूर्ण
हो जाता है जब ि को तार प्राप्त होता है ।
ि अपिे प्रवतग्रहर् का प्रवतसंहरर् तार द्वारा करता है । ि का प्रवतसंहरर् ि के विरुद्ध तब संपूर्ण हो जाता है जब
तार प्रेवित ककया जाता है और क के विरुद्ध तब, जब तार उसके पास पहुंचता है ।
5. प्रस्थापिाओं और प्रवतग्रहर्ों का प्रवतसंहरर्––कोई भी प्रस्थापिा उसके प्रवतग्रहर् की संसूचिा प्रस्थापक के विरुद्ध संपूर्ण
हो जािे से पूिण ककसी भी समय प्रवतसंहृत की जा सके गी, ककन्तु उसके पश्चात िहीं ।
कोई भी प्रवतग्रहर् उस प्रवतग्रहर् की संसूचिा, प्रवतगृहीता के विरुद्ध संपूर्ण हो जािे से पूिण ककसी भी समय प्रवतसंहृत ककया
जा सके गा, ककन्तु उसके पश्चात िहीं ।

दृष्टांत
3

क अपिा गृह ि को बेचिे की प्रस्थापिा डाक से भेजे गए एक पत्र द्वारा करता है ।


ि प्रस्थापिा को डाक से भेजे गए पत्र द्वारा प्रवतगृहीत करता है ।
क अपिी प्रस्थापिा को ि द्वारा अपिे प्रवतग्रहर् का पत्र डाक में डाले जािे से पूिण ककसी भी समय या डाले जािे के िर्
प्रवतसंहृत कर सके गा, ककन्तु उसके पश्चात िहीं ।
ि अपिे प्रवतग्रहर् को, उसे संसूवचत करिे िाला पत्र क को पहुंचिे के पूिण ककसी भी समय या पहुंचिे के िर् प्रवतसंहृत कर
सके गा, ककन्तु उसके पश्चात िहीं ।
6. प्रवतसंहरर् कै से ककया जाता है––प्रस्थापिा का प्रवतसंहरर् हो जाता है––
(1) प्रस्थापक द्वारा दूसरे पिकार को प्रवतसंहरर् की सूचिा के संसूवचत ककए जािे से;
(2) ऐसी प्रस्थापिा में उसके प्रवतग्रहर् के वलए विवहत समय के बीत जािे से या यकद कोई समय इस प्रकार विवहत
ि हो तो प्रवतग्रहर् की संसूचिा के वबिा युवक्तयुक्त समय बीत जािे से;
(3) प्रवतग्रहर् ककसी पुरोभाव्य ितण को पूरा करिे में प्रवतगृहीता की असफलता से; अथिा
(4) प्रस्थापक की मृत्यु या उन्मत्तता से, यकद उसकी मृत्यु या उन्मत्तता का तथ्य प्रवतगृहीता के ज्ञाि में प्रवतग्रहर् से
पूिण आ जाए ।
7. प्रवतग्रहर् आत्यवन्तक होिा ही चावहए––प्रस्थापिा को िचि में संपररिर्तणत करिे के वलए प्रवतग्रहर्––
(1) आत्यवन्तक और अवििेवित होिा ही चावहए;
(2) ककसी प्रावयक और युवक्तयुक्त प्रकार से अवभव्यक्त होिा ही चावहए, जब तक कक प्रस्थापिा विवहत ि करती
हो कक उसे ककस प्रकार प्रवतगृहीत ककया जािा है । यकद प्रस्थापिा विवहत करती हो कक उसे ककस प्रकार प्रवतगृहीत ककया
जािा है और प्रवतग्रहर् उस प्रकार से ि ककया जाए, तो प्रस्थापक, उसे प्रवतग्रहर् संसूवचत ककए जािे के पश्चात युवक्तयुक्त
समय के भीतर आग्रह कर सके गा कक उसकी प्रस्थापिा विवहत प्रकार से ही प्रवतगृहीत की जाए, अन्यथा िहीं । ककन्तु यकद िह
ऐसा करिे में असफल रहता है तो िह उस प्रवतग्रहर् को प्रवतगृहीत करता है ।
8. ितों के पालि या प्रवतफल की प्रावप्त द्वारा प्रवतग्रहर्––ककसी प्रस्थापिा की ितों का पालि, या व्यवतकारी िचि के वलए,
जो प्रवतफल ककसी प्रस्थापिा के साथ पेि ककया गया हो, उसका प्रवतग्रहर् उस प्रस्थापिा का प्रवतग्रहर् है ।
9. िचि अवभव्यक्त और वििवित––जहां तक कक ककसी िचि की प्रस्थापिा या उसका प्रवतग्रहर् िब्दों में ककया जाता है िह
िचि अवभव्यक्त कहलाता है । जहां तक कक ऐसी प्रस्थापिा या प्रवतग्रहर् िब्दों से अन्यथा ककया जाता है, िह िचि वििवित
कहलाता है ।
अध्याय 2

संविदाओं, िून्यकरर्ीय संविदाओं और िून्य करारों के वििय में


10. कौि से करार संविदाएं हैं––सब करार संविदाएं हैं, यकद िे संविदा करिे के वलए सिम पिकारों की स्ितन्त्र सम्मवत से
ककसी विविपूर्ण प्रवतफल के वलए और ककसी विविपूर्ण उद्देश्य से ककए गए हैं और तदद्वारा अवभव्यक्तत: िून्य घोवित िहीं ककए
गए हैं ।
इसमें अन्तर्िणष्ट कोई भी बात 1[भारत] में प्रिृत्त और तदद्वारा अवभव्यक्तत: विरवसत ि की गई ककसी ऐसी विवि पर, वजसके
द्वारा ककसी संविदा का वलवित2 रूप में या सावियों की उपवस्थवत में ककया जािा अपेवित हो, या ककसी ऐसी विवि पर जो दस्तोिजों
के रवजस्रीकरर् से सम्बवन्ित हो, प्रभाि ि डालेगी ।
11. संविदा करिे के वलए कौि सिम है––हर ऐसा व्यवक्त संविदा करिे के वलए सिम है, जो उस विवि के अिुसार, वजसके
िह अध्यिीि है, प्राप्तिय हो, और जो स्िस्थवचत्त हो, और ककसी विवि द्वारा, वजसके िह अध्यिीि3 है, संविदा करिे से विरर्हणत ि हो ।
12. संविदा करिे के प्रयोजिों के वलए स्िस्थवचत्त क्या है––कोई व्यवक्त संविदा करिे के प्रयोजि के वलए स्िस्थवचत्त कहा
जाता है, यकद िह उस समय, जब िह संविदा करता है उस संविदा को समझिे में और अपिे वहतों पर उसके प्रभाि के बारे में
युवक्तसंगत विर्णय लेिे में समथण है ।

1
1951 के अविवियम सं० 3 की िारा 3 तथा अिुसूची द्वारा “भाग क राज्यों तथा भाग ग राज्यों” के स्थाि पर प्रवतस्थावपत; वजसे विवि अिुकूलि आदेि, 1950 द्वारा
“प्रान्तों” के स्थाि पर प्रवतस्थावपत ककया गया था ।
2
उदाहरर्ाथण, देविए इसी की िारा 25; प्रवतवलप्यविकार अविवियम, 1957 (1957 का 14) की िारा 19; िाहक अविवियम, 1865 (1865 का 3) की िारा 6 तथा िारा
7; कं पिी अविवियम, 1956 (1956 का 1) की िारा 12, िारा 30, िारा 46, तथा िारा 109 ।
3
देविए भारतीय ियस्कता अविवियम, 1875 (1875 का 9) ।
4

जो व्यवक्त प्राय: विकृ तवचत्त रहता है ककन्तु कभी-कभी स्िस्थवचत्त हो जाता है, िह जब स्िस्थवचत्त हो तब
संविदा कर सके गा ।
जो व्यवक्त प्राय: स्िस्थवचत रहता है ककं तु कभी-कभी विकृ तवचन्त्त हो जाता है, िह जब विकृ तवचत्त हो तब संविदा
िहीं कर सके गा ।
दृष्टांत
(क) पागलिािे का एक रोगी, जो अन्तरालों में स्िस्थवचत्त हो जाता है, उि अन्तरालों के दौराि में संविदा कर सके गा ।
(ि) िह स्िस्थवचत्त मिुष्य, जो ज्िर से वचत्तविपयणस्त है या जो इतिा मत्त है कक िह संविदा के विबंििों को िहीं समझ
सकता या अपिे वहतों पर उसके प्रभाि के बारे में युवक्तसंगत विर्णय िहीं ले सकता तब तक संविदा िहीं कर सकता जब तक ऐसी
वचत्तविपयणस्तता या मत्तता बिी रहे ।
13. “सम्मवत” की पररभािा––दो या अविक व्यवक्त सम्मत हुए तब कहे जाते हैं जब कक िे ककसी एक बात पर एक ही भाि
में सहमत होते हैं ।
14. “स्ितंत्र सम्मवत” की पररभािा––सम्मवत स्ितन्त्र तब कही जाती है जब कक िह––
(1) ि तो िारा 15 में यथापररभावित प्रपीड़ि द्वारा काररत हो;
(2) ि िारा 16 में यथापररभावित असम्यक असर द्वारा काररत हो;
(3) ि िारा 17 में यथापररभावित कपट द्वारा काररत हो;
(4) ि िारा 18 में यथापररभावित दुव्यणपदेिि द्वारा काररत हो;
(5) ि भूल द्वारा काररत हो, ककन्तु यह बात िाराओं 20, 21 और 22 के उपबंिों के अध्यिीि है ।
सम्मवत ऐसे काररत तब कही जाती है जब कक िह ऐसा प्रपीड़ि, असम्यक असर, कपट, दुव्यणपदेिि या भूल ि होती,
तो ि दी जाती ।
15. “प्रपीड़ि” की पररभािा––“प्रपीड़ि” इस आिय से कक ककसी व्यवक्त से कोई करार कराया जाए कोई ऐसा कायण करिा
या करिे की िमकी देिा है, जो भारतीय द‍ड संवहता (1860 का 45) द्वारा विविद्ध है, अथिा ककसी व्यवक्त पर, चाहे िह कोई हो,
प्रवतकू ल प्रभाि डालिे के वलए ककसी सम्पवत्त का विविविरुद्ध विरोि करिा या विरोि करिे की िमकी देिा है ।
स्पष्टीकरर्––यह तत्त्िहीि है कक वजस स्थाि पर प्रपीड़ि का प्रयोग ककया जाता है िहां भारतीय द‍ड संवहता (1860 का 45)
प्रिृत्त है या िहीं ।
दृष्टांत
िुले समुद्र में एक अंग्रेजी पोत पर, ऐसे कायण द्वारा, जो भारतीय द‍ड संवहता (1860 का 45) के अिीि आपराविक अवभत्रास
की कोरट में आता है, ि से क एक करार कराता है ।
तत्पश्चात क संविदा भंग के वलए कलकत्ते में ि पर िाद लाता है ।
क िे प्रपीड़ि का प्रयोग ककया है यद्यवप उसका कायण इं ग्लैंड की विवि के अिुसार अपराि िहीं है, और यद्यवप उस समय जब
और उस स्थाि पर जहां िह कायण ककया गया था भारतीय द‍ड संवहता (1860 का 45) की िारा 506 प्रिृत्त िहीं थी ।
[16. “असम्यक असर” की पररभािा––(1) संविदा असम्यक असर द्वारा उत्प्रेररत कही जाती है जहां कक पिकारों के बीच
1

विद्यमाि संबंि ऐसे हैं कक उिमें से एक पिकार दूसरे पिकार की इच्छा को अवििावसत करिे की वस्थवत में है और उस वस्थवत का
उपयोग उस दूसरे पिकार से अऋजु फायदा अवभप्राप्त करिे के वलए करता है ।
(2) विविष्टतया और पूिणिती वसद्धांत की व्यापकता पर प्रवतकू ल प्रभाि डाले वबिा यह है कक कोई व्यवक्त ककसी अन्य की
इच्छा को अवििावसत करिे की वस्थवत में समझा जाता है जब कक िह––
(क) उस अन्य पर िास्तविक या दृश्यमाि प्राविकार रिता है, या उस अन्य के साथ िैश्िावसक संबंि की वस्थवत में
है; अथिा
(ि) ऐसे व्यवक्त के साथ संविदा करता है वजसकी मािवसक सामथ्यण पर आयु, रुग्र्ता या मािवसक या िारीररक
कष्ट के कारर् अस्थायी या स्थायी रूप से प्रभाि पड़ा है ।
(3) जहां कक कोई व्यवक्त, जो ककसी अन्य की इच्छा को अवििावसत करिे की वस्थवत में हो, उसके साथ संविदा करता है, और
िह संव्यिहार देििे से ही या कदए गए साक्ष्य के आिार पर लोकात्माविरुद्ध प्रतीत होता है िहां यह सावबत करिे का भार कक ऐसी

1
1899 के अविवियम सं० 6 की िारा 2 द्वारा मूल िारा 16 के स्थाि पर प्रवतस्थावपत ।
5

संविदा असम्यक असर से उत्प्रेररत िहीं की गई थी उस व्यवक्त पर होगा जो उस अन्य की इच्छा को अवििावसत करिे की
वस्थवत में था ।
इस उपिारा की कोई भी बात भारतीय साक्ष्य अविवियम, 1872 (1872 का 1) की िारा 111 के उपबंिों पर प्रभाि
िहीं डालेगी ।
दृष्टांत
(क) क, वजसिे अपिे पुत्र ि को उसकी अप्राप्तियता के दौराि में िि उिार कदया था, ि के प्राप्तिय होिे पर अपिे पैवत्रक
असर के दुरुपयोग द्वारा उससे उस उिार िि की बाबत िोध्य रावि से अविक रकम के वलए एक बन्िपत्र अवभप्राप्त कर लेता है । क
असम्यक असर का प्रयोग करता है ।
(ि) रोग या आयु से िीर् हुए मिुष्य क पर ि का, जो असर उसके वचककत्सीय पररचारक के िाते है, उस असर से ि को
उसकी िृवत्तक सेिाओं के वलए एक अयुवक्तयुक्त रावि देिे का करार करिे के वलए क उत्प्रेररत ककया जाता है । ि असम्यक असर का
प्रयोग करता है ।
(ग) क अपिे ग्राम के साहूकार ि का ऋर्ी होते हुए एक िई संविदा करके ऐसे विबंििों पर िि उिार लेता है जो
लोकात्माविरुद्ध प्रतीत होते हैं । यह सावबत करिे का भार कक संविदा असम्यक असर से उत्प्रेररत िहीं की गई थी ि पर है ।
(घ) क एक बैंककार से उिार के वलए ऐसे समय में आिेदि करता है जब िि के बाजार में तंगी है । बैंककार ब्याज की
अप्रावयक ऊंची दर पर देिे के वसिाय उिार देिे से इन्कार कर देता है । क उि विबंििों पर उिार प्रवतगृहीत करता है । यह संव्यिहार
कारबार के मामूली अिुक्रम में हुआ है, और िह संविदा असम्यक असर से उत्प्रेररत िहीं है ।]
17. “कपट” की पररभािा––“कपट” से अवभप्रेत है और उसके अन्तगणत आता है विम्िवलवित कायों में कोई भी ऐसा कायण जो
संविदा के एक पिकार द्वारा, या उसकी मौिािुकूलता से या उसके अवभकताण 1 द्वारा, संविदा के ककसी अन्य पिकार की या उसके
अवभकताण की प्रिंचिा करिे के आिय से या उसे संविदा करिे के वलए उत्प्रे ररत करिे के आिय से ककया गया हो––
(1) जो बात सत्य िहीं है, उसका तथ्य के रूप में उस व्यवक्त द्वारा सुझाया जािा जो यह विश्िास िहीं करता कक
िह सत्य है;
(2) ककसी तथ्य का ज्ञाि या विश्िास रििे िाले व्यवक्त द्वारा उस तथ्य का सकक्रय वछपाया जािा;
(3) कोई िचि जो उसका पालि करिे के आिय के वबिा कदया गया हो;
(4) प्रिंचिा करिे योग्य कोई अन्य कायण;
(5) कोई ऐसा कायण या लोप वजसका कपटपूर्ण होिा विवि वििेित: घोवित करे ।
स्पष्टीकरर्––संविदा करिे के वलए ककसी व्यवक्त की रजामन्दी पर वजि तथ्यों का प्रभाि पड़िा संभाव्य हो उिके बारे में
के िल मौि रहिा कपट िहीं है जब तक कक मामले की पररवस्थवतयां ऐसी ि हों वजन्हें ध्याि में रिते हुए मौि रहिे िाले व्यवक्त का यह
कतणव्य हो जाता हो कक िह बोले2 या जब तक कक उसका मौि स्ित: ही बोलिे के तुल्य ि हो ।
दृष्टांत
(क) क िीलाम द्वारा ि को एक घोड़ा बेचता है वजसके बारे में क जािता है कक िह ऐबदार है । क घोड़े के ऐब के बारे में ि
को कु छ िहीं कहता । यह क ओर से कपट िहीं है ।
(ि) क की ि पुत्री है और अभी ही प्राप्तिय हुई है । यहां पिकारों के बीच के संबंि के कारर् क का यह कतणव्य हो जाता है
कक यकद घोड़ा ऐबदार है तो ि को िह बता दे ।
(ग) क से ि कहता है कक यकद आप इस बात का प्रत्याखयाि ि करें तो मै माि लूंगा कक घोड़ा बेऐब है । क कु छ भी िहीं कहता
है । यहां क का मौि बोलिे के तुल्य है ।
(घ) क और ि, जो व्यापारी हैं, एक संविदा करते हैं । क को कीमतों में ऐसे पररितणि की विजी जािकारी है, वजससे संविदा
करिे के वलए अग्रसर होिे की ि की रजामन्दी पर प्रभाि पड़ेगा । ि को यह जािकारी देिे के वलए क आबद्ध िहीं है ।
18. “दुव्यणपदेिि” की पररभािा––“दुव्यणपदेिि” से अवभप्रेत है और उसके अन्तगणत आते हैं––
(1) उस बात का, जो सत्य िहीं है, ऐसे प्रकार से ककया गया विश्चयात्मक प्राखयाि जो उस व्यवक्त की, जो उसे
करता है, जािकारी से समर्थणत ि हो, यद्यवप िह उस बात के सत्य होिे का विश्िास करता हो;

1
िारा 238 भी देविए ।
2
िारा 143 भी देविए ।
6

(2) कोई ऐसा कतणव्य भंग, जो प्रिंचिा करिे के आिय के वबिा उस व्यवक्त को, जो उसे करता है, या उससे
व्युत्पन्ि अविकार के अिीि दािा करिे िाले ककसी व्यवक्त को कोई फायदा ककसी अन्य को ऐसा भुलािा देकर पहुंचाए,
वजससे उस अन्य पर या उससे व्युत्पन्ि अविकार के अिीि दािा करिे िाले ककसी व्यवक्त पर प्रवतकू ल प्रभाि पड़े;
(3) चाहे ककतिे ही सरल भाि से क्यों ि हो, करार के ककसी पिकार से उस बात के पदाथण के बारे में, जो उस करार
का वििय हो, कोई भूल करािा ।
[19. स्ितंत्र सम्मवत के वबिा ककए गए करारों की िून्यकरर्ीयता––जब कक ककसी करार के वलए सम्मवत प्रपीड़ि, 1* * *
कपट या दुव्यणपदेिि से काररत हो तब िह करार ऐसी संविदा है जो उस पिकार के विकल्प पर िून्यकरर्ीय है वजसकी सम्मवत
ऐसे काररत हुई थी ।
संविदा का िह पिकार वजसकी सम्मवत कपट या दुव्यणपदेिि से काररत हुई थी, यकद िह ठीक समझे तो, आग्रह कर सके गा कक
संविदा का पालि ककया जाए, और िह उस वस्थवत में रिा जाए वजसमें िह होता यकद ककए गए व्यपदेिि सत्य होते ।
अपिाद––यकद ऐसी सम्मवत दुव्यणपदेिि द्वारा या ऐसे मौि द्वारा, जो िारा 17 के अथण के अन्तगणत कपटपूर्ण है, काररत हुई थी
तो ऐसा होिे पर भी संविदा िून्यकरर्ीय िहीं है यकद उस पिकार के पास, वजसकी सम्मवत इस प्रकार काररत हुई थी, सत्य का पता
मामूली तत्परता से चला लेिे के सािि थे ।
स्पष्टीकरर्––िह कपट या दुव्यणपदेिि, वजसिे संविदा के उस पिकार की सम्मवत काररत िहीं की, वजससे ऐसे कपट या
दुव्यणपदेिि ककया गया था, संविदा को िून्यकरर्ीय िहीं कर देता ।
दृष्टांत
(क) ि को प्रिंवचत करिे के आिय से क वमथ्या व्यपदेिि करता है कक क के कारिािे में पांच सौ मि िील प्रवतििण बिाया
जाता है और तदद्वारा ि को िह कारिािा िरीदिे के वलए उत्प्रेररत करता है । संविदा ि के विकल्प पर िून्यकरर्ीय है ।
(ि) क दुव्यणपदेिि द्वारा ि को गलत विश्िास कराता है कक क के कारिािे में पांच सौ मि िील प्रवतििण बिाया जाता है । ि
कारिािे के लेिाओं की पड़ताल करता है जो यह दर्िणत करते हैं कक के िल चार सौ मि िील बिाया गया है । इसके पश्चात ि कारिािे
को िरीद लेता है । संविदा क के दुव्यणपदेिि के कारर् िून्यकरर्ीय िहीं है ।
(ग) क कपटपूिणक ि को इवत्तला देता है कक क सम्पदा-विल्लंगम मुक्त है । तब ि उस सम्पदा को िरीद लेता है । िह सम्पदा
एक बन्िक के अध्यिीि है । ि या तो संविदा को िून्य कर सके गा या यह आग्रह कर सके गा कक िह कक्रयावन्ित की जाए और बंिक ऋर्
का मोचि ककया जाए ।
(घ) क की सम्पदा में ि अयस्क की एक विला का पता लगाकर क से उस अयस्क के अवस्तत्ि को वछपािे के साििों का प्रयोग
करता है और वछपा लेता है । क के अज्ञाि के ि उस सम्पदा को न्यूि-मूल्य पर िरीदिे में समथण हो जाता है । संविदा क के विकल्प पर
िून्यकरर्ीय है ।
(ङ) ि की मृत्यु पर एक सम्पदा का उत्तराविकारी होिे का क हकदार है । ि की मृत्यु हो जाती है । ि की मृत्यु का समाचार
पािे पर ग उस समाचार को क तक िहीं पहुंचिे देता और इस तरह क को उत्प्रेररत करता है कक उस सम्पदा में अपिा वहत उसके हाथ में
बेच दे । यह विक्रय क के विकल्प पर िून्यकरर्ीय है ।
[19क. असम्यक असर से उत्प्रेररत संविदा को अपास्त करिे की िवक्त––(1) जब कक ककसी करार के वलए सम्मवत असम्यक
2

असर से काररत हो, तब िह करार ऐसी संविदा है जो उस पिकार के विकल्प पर िून्यकरर्ीय है वजसकी सम्मवत इस प्रकार
काररत हुई है ।
ऐसी कोई भी संविदा या तो आत्यवन्तकत: अपास्त की जा सके गी या यकद उस पिकार िे, जो उसके िून्यकरर् का हकदार हो,
तदिीि कोई फायदा प्राप्त ककया हो तो ऐसे विबंििों और ितों पर, जो न्यायालय को न्यायसंगत प्रतीत हों ।
दृष्टांत
(क) क के पुत्र िे एक िचिपत्र पर ि के िाम की कू टरचिा की है । क के पुत्र का अवभयोजि करिे की िमकी देकर क से
कू टरवचत िचिपत्र की रकम के वलए एक बन्िपत्र ि अवभप्राप्त करता है । यकद ि उस बंिपत्र पर िाद लाए तो न्यायालय उसे अपास्त
कर सके गा ।
(ि) एक साहूकार क एक कृ िक ि को 100 रुपए उिार देता है और असम्यक असर से ि को 6 प्रवतित प्रवतमास ब्याज पर
200 रुपए का एक बन्िपत्र विष्पाकदत करिे को उत्प्रेररत करता है । न्यायालय ऐसे ब्याज सवहत जो न्यायसंगत प्रतीत हो, 100 रुपए के
प्रवत संदाय का आदेि ि को देते हुए बन्िपत्र अपास्त कर सके गा ।]

1
1899 के अविवियम सं० 6 की िारा 3 द्वारा “असम्यक असर” िब्दों का विरसि ककया गया ।
2
1899 के अविवियम सं० 6 की िारा 3 द्वारा अंत:स्थावपत ।
7

20. जब कक दोिों पिकार तथ्य की बात सम्बन्िी भूल में हों तब करार िून्य है––जहां कक ककसी करार के दोिों पिकार ऐसी
तथ्य की बात के बारे में, जो करार के वलए ममणभूत है, भूल में हों िहां करार िून्य है ।
स्पष्टीकरर्––जो चीज करार की विियिस्तु हो उसके मूल्य के बारे में गलत राय, तथ्य की बात के बारे में भूल िहीं
समझी जाएगी ।
दृष्टांत
(क) माल के एक विविर्दणष्ट स्थोरा को, वजसके बारे में यह अिुमाि है कक िह इं ग्लैंड से मुम्बई को चल चुका है, ि को भेजिे
का करार क करता है । पता चलता है कक सौदे के कदि से पूिण, उस स्थोरा के प्रिहर् करिे िाला पोत संत्यक्त कर कदया गया था और
माल िष्ट हो गया था । दोिों में से ककसी भी पिकार को इि तथ्यों की जािकारी िहीं थी । करार िून्य है ।
(ि) ि से अमुक घोड़ा िरीदिे का करार क करता है । यह पता चलता है कक िह घोड़ा सौदे के समय मर चुका था, यद्यवप
दोिों में से ककसी भी पिकार को इस तथ्य की जािकारी िहीं थी । करार िून्य है ।
(ग) ि के जीििपयणन्त के वलए एक सम्पदा का हकदार होते हुए क उसे ग को बेचिे का करार करता है । करार के समय ि मर
चुका था । ककन्तु दोिों पिकार इस तथ्य से अिवभज्ञ थे । करार िून्य है ।
21. विवि के बारे की भूलों का प्रभाि––कोई संविदा इस कारर् ही िून्यकरर्ीय िहीं है कक िह 1[भारत] में प्रिृत्त विवि के
बारे की ककसी भूल के कारर् की गई थी, ककन्तु ककसी ऐसी विवि के बारे की, जो 1[भारत] में प्रिृत्त िहीं है, ककसी भूल का िही प्रभाि है
जो तथ्य की भूल का है ।
2
* * * * * * *
दृष्टांत
क और ि इस गलत विश्िास पर संविदा करते हैं कक एक विविष्ट ऋर् भारतीय पररसीमा विवि द्वारा िाररत है । संविदा
िून्यकरर्ीय िहीं है ।
3
* * * * * * *
22. एक पिकार की तथ्य की बात के बारे की भूल से काररत संविदा––कोई संविदा इस कारर् ही िून्यकरर्ीय िहीं है कक
उसके पिकारों में से एक के ककसी तथ्य की बात के बारे की भूल में होिे से िह काररत हुई थी ।
23. कौि से प्रवतफल और उद्देश्य विविपूर्ण हैं और कौि से िहीं––करार का प्रवतफल या उद्देश्य विविपूर्ण है, वसिाय जब कक––
िह विवि4 द्वारा विविद्ध हो; अथिा
िह ऐसी प्रकृ वत का हो कक यकद िह अिुज्ञात ककया जाए तो िह ककसी विवि के उपबंिों को विफल कर देगा; अथिा
िह कपटपूर्ण हो; अथिा
उसमें ककसी अन्य के िरीर या सम्पवत्त को िवत अन्तिणवलत या वििवित हो; अथिा
न्यायालय उसे अिैवतक या लोकिीवत के विरुद्ध मािे ।
इि दिाओं में से हर एक में करार का प्रवतफल या उद्देश्य विविविरुद्ध कहलाता है । हर एक करार, वजसका उद्देश्य या
प्रवतफल विविविरुद्ध हो, िून्य है ।
दृष्टांत
(क) क अपिा गृह 10,000 रुपए में ि को बेचिे का करार करता है । यहां 10,000 रुपए देिे का ि का िचि गृह बेचिे के क
के िचि के वलए प्रवतफल है, और गृह बेचिे का क का िचि 10,000 रुपए देिे के ि के िचि के वलए प्रवतफल है । ये विविपूर्ण
प्रवतफल हैं ।
(ि) क यह िचि देता है कक यकद ग, वजसे ि को 1,000 रुपए देिा है, उसे देिे में असफल रहा तो िह ि को छह मास के
बीतते ही 1,000 रुपए देगा । ि तदिुसार ग को समय देिे का िचि देता है । यहां हर एक पिकार का िचि दूसरे पिकार के िचि के
वलए प्रवतफल है और ये विविपूर्ण प्रवतफल हैं ।

1
“वबरटि इव‍डया” मूल िब्दों का अिुक्रमि: विवि अिुकूलि, आदेि, 1948 तथा विवि अिुकूलि आदेि, 1950 द्वारा संिोिि ककया गया वजससे कक उपयुणक्त प़िा जाए ।
2
भारतीय विवि अिुकूलि आदेि, 1937 द्वारा पैरा 2 अंत:स्थावपत ककया गया वजसका विवि अिुकूलि आदेि, 1950 द्वारा लोप ककया गया ।
3
1917 के अविवियम सं० 24 की िारा 3 तथा अिुसूची 2 द्वारा िारा 21 के वद्वतीय दृष्टांत का विरसि ककया गया ।
4
िारा 26, िारा 27, िारा 28 तथा िारा 30 भी देविए ।
8

(ग) ि द्वारा उसे दी गई ककसी रावि के बदले क यह िचि देता है कक यकद ि का पोत अमुक समुद्र यात्रा में िष्ट हो जाए तो
क उसके पोत के मूल्य की प्रवतपूर्तण करे गा । यहां क का िचि ि के संदाय के वलए प्रवतफल है, और ि का संदाय क के िचि के वलए
प्रवतफल है; और ये विविपूर्ण प्रवतफल हैं ।
(घ) ि के बच्चे का भरर्-पोिर् करिे का क िचि देता है और ि उस प्रयोजि के वलए क को 1,000 रुपए िार्िणक देिे का
िचि देता है । यहां हर एक पिकार का िचि दूसरे पिकार के िचि के वलए प्रवतफल है । ये विविपूर्ण प्रवतफल हैं ।
(ङ) क, ि और ग अपिे द्वारा कपट से अर्जणत ककए गए या ककए जािे िाले अवभलाभों के आपस में विभाजि के वलए करार
करते हैं । करार िून्य है क्योंकक उसका उद्देश्य विविविरुद्ध है ।
(च) ि के वलए लोक सेिा में वियोजि अवभप्राप्त करिे का िचि क देता है और क को ि 1,000 रुपए देिे का िचि देता है ।
करार िून्य है क्योंकक उसके वलए प्रवतफल विविविरुद्ध है ।
(छ) क, जो एक भूस्िामी का अवभकताण है, अपिे मावलक के ज्ञाि के वबिा अपिे मावलक की भूवम का एक पट्टा ि के वलए
अवभप्राप्त करिे का करार िि के वलए करता है । क और ि के बीच का करार िून्य है क्योंकक उससे यह वििवित है कक क िे अपिे
मावलक से वछपाि द्वारा कपट ककया है ।
(ज) क उस अवभयोजि को, जो उसिे लूट के बारे में ि के विरुद्ध संवस्थत ककया है, छोड़ देिे का ि को िचि देता है, और ि
दी गई चीजों का मूल्य लौटा देिे का िचि देता है । करार िून्य है क्योंकक उसका उद्देश्य विविविरुद्ध है ।
(झ) क की सम्पदा का राजस्ि की बकाया के वलए विक्रय वििाि-म‍डल के एक ऐसे अविवियम के उपबंिों के अिीि ककया
जाता है, जो व्यवतक्रम करिे िाले को िह भू-सम्पदा िरीदिे से प्रवतविद्ध करता है । क के साथ तय करके ि क्रेता बि जाता है और यह
करार करता है कक िह क से िह कीमत वमलिे पर, जो ि िे दी है, िह सम्पदा क को हस्तान्तररत कर देगा । करार िून्य है क्योंकक
उसका यह प्रभाि है कक िह संव्यिहार व्यवतक्रम करिे िाले द्वारा ककया गया क्रय बि जाता है और इस प्रकार उससे विवि का उद्देश्य
विफल हो जाएगा ।
(ञ) क, जो ि का मुखतार है, उस असर को जो उस हैवसयत में उसका ि पर है ग के पि में प्रयुक्त करिे का िचि देता है और
क को 1,000 रुपए देिे का िचि ग देता है । करार िून्य है क्योंकक िह अिैवतक है ।
(ट) क अपिी पुत्री को उपपत्िी के रूप में रिे जािे के वलए ि को भाड़े पर देिे के वलए करार करता है । करार िून्य है क्योंकक
िह अिैवतक है, यद्यवप इस प्रकार भाड़े पर कदया जािा भारतीय द‍ड संवहता (1860 का 45) के अिीि द‍डिीय ि हो ।
िून्य करार
24. यकद प्रवतफल और भागत: विविविरुद्ध हों तो करार िून्य होंगे––यकद एक या अविक उद्देश्यों के वलए ककसी एकल
प्रवतफल का कोई भाग, या ककसी एक उद्देश्य के वलए कई प्रवतफलों में से कोई एक या ककसी एक का कोई भाग विविविरुद्ध हो तो करार
िून्य है ।
दृष्टांत
क िील के िैि विविमाणर् का, और अन्य िस्तुओं में अिैि दुव्याणपार का ि की ओर से अिीिर् करिे का िचि देता है । ि
10,000 रुपए िार्िणक संबलम क को देिे का िचि देता है । यह करार इस कारर् िून्य है कक क के िचि का उद्देश्य और ि के िचि के
वलए प्रवतफल भागत: विविविरुद्ध है ।
25. प्रवतफल के वबिा करार िून्य है वसिाय जबकक िह वलवित तथा रवजस्रीकृ त हो या की गई ककसी बात के वलए प्रवतकर
देिे का िचि हो, या पररसीमा विवि द्वारा िाररत ककसी ऋर् के संदाय का िचि हो––प्रवतफल के वबिा ककया गया करार िून्य है,
वसिाय जबकक िह––
(1) वलवित रूप में अवभव्यक्त और 1[दस्तािेजों] के रवजस्रीकरर् के वलए तत्समय प्रिृत्त विवि के अिीि रवजस्रीकृ त और
एक दूसरे के साथ विकट संबंि िाले पिकारों के बीच िैसर्गणक प्रेम और स्िेह के कारर् ककया गया हो; अथिा
(2) ककसी ऐसे व्यवक्त को पूर्णत: या भागत: प्रवतकर देिे के वलए िचि हो, वजससे िचिदाता के वलए स्िे च्छया पहले ही कोई
बात कर दी हो अथिा ऐसी कोई बात कर दी हो वजसे करिे के वलए िचिदाता िैि रूप से वििि ककए जािे का दायी था; अथिा
(3) वजस ऋर् का संदाय िादों की पररसीमा विियक विवि द्वारा िाररत ि होिे की दिा में लेिदार करा लेता, उसके पूर्णत:
या भागत: संदाय के वलए उस व्यवक्त द्वारा वजसे उस िचि से भाररत ककया जािा है या तवन्िवमत्त सािारर् या वििेि रूप से प्राविकृ त
उसके अवभकताण द्वारा, ककया गया वलवित और हस्तािररत िचि हो ।
इसमें से ककसी भी दिा में ऐसा करार संविदा है ।

1
1891 के अविवियम सं० 12 की िारा 2 तथा अिुसूची 2, भाग 1 द्वारा “हस्तांतरर्-पत्र” के स्थाि पर प्रवतस्थावपत ।
9

स्पष्टीकरर् 1––इस िारा की कोई भी बात िस्तुत: कदए गए ककसी दाि की विविमान्यता पर, जहां तक कक दाता और
आदाता के बीच का संबंि है, प्रभाि िहीं डालेगी ।
स्पष्टीकरर् 2––कोई करार, वजसके वलए िचिदाता के सम्मवत स्ितन्त्रता से दी गई है, के िल इस कारर् िून्य िहीं है कक
प्रवतफल अपयाणप्त है, ककन्तु इस प्रश्ि को अििाररत करिे में कक िचिदाता की सम्मवत स्ितंत्रता से दी गई थी या िहीं प्रवतफल की
अपयाणप्तता न्यायालय द्वारा गर्िा में भी ली जा सके गी ।
दृष्टांत
(क) ि को ककसी प्रवतफल के वबिा 1,000 रुपए देिे का क िचि देता है, यह करार िून्य है ।
(ि) क िैसर्गणक प्रेम और स्न्ेेह से अपिे पुत्र ि को 1,000 रुपए देिे का िचि देता है । ि के प्रवत अपिे िचि को क लेिबद्ध
करता है और उसे रवजस्रीकृ त करता है यह संविदा है ।
(ग) ि की थैली क पड़ी पाता है और उसे उसको दे देता है । क को ि 50 रुपए देिे का िचि देता है । यह संविदा है ।
(घ) ि के वििुपुत्र का पालि क करता है । िैसा करिे में हुए क के व्ययों के संदाय का ि िचि देता है । यह संविदा है ।
(ङ) ि के 1,000 रुपए क द्वारा देय हैं ककतु िह ऋर् पररसीमा अविवियम द्वारा िाररत है । क उस ऋर् मद्धे ि को 500 रुपए
देिे का वलवित िचि हस्तािररत करता है । यह संविदा है ।
(च) क 1,000 रुपए के मूल्य के घोड़े को 10 रुपए में बेचिे का करार करता है । इस करार के वलए क की सम्मवत स्ितन्त्रता से
दी गई थी । प्रवतफल अपयाणप्त होते हुए भी यह करार संविदा है ।
(छ) क 1,000 रुपए के मूल्य के घोड़े को 10 रुपए में बेचिे का करार करता है । क इससे इं कार करता है कक इस करार के वलए
उसकी सम्मवत स्ितन्त्रता से दी गई थी ।
प्रवतफल की अपयाणप्तता ऐसा तथ्य है वजसे न्यायालय को यह विचार करिे में गर्िा में लेिा चावहए कक क की सम्मवत
स्ितन्त्रता से दी गई थी या िहीं ।
26. वििाह का अिरोिक करार िून्य है––ऐसा हर करार िून्य है जो अप्राप्तिय से वभन्ि ककसी व्यवक्त के वििाह के
अिरोिाथण हो ।
27. व्यापार का अिरोिक करार िून्य है––हर करार वजससे कोई व्यवक्त ककसी प्रकार की विविपूर्ण िृवत्त, व्यापार या
कारबार करिे से अिरुद्ध ककया जाता हो, उस विस्तार तक िून्य है ।
अपिाद 1––वजस कारबार की गुडविल बेच दी गई है उस कारबार को ि चलािे के करार की व्यािृवत्त––िह व्यवक्त जो ककसी
कारबार की गुडविल का विक्रय करे , क्रेता से यह करार कर सके गा कक िह विविर्दणष्ट स्थािीय सीमाओं के अन्दर तब तक तत्सदृि
कारबार चलािे से विरत रहेगा जब तक क्रेता या कोई ऐसा व्यवक्त, वजसे उससे गुडविल का हक व्युत्पन्ि हुआ हो, उि सीमाओं में
तत्सदृि कारबार चलाता रहे; परन्तु यह तब जब कक उस कारबार की प्रकृ वत की दृवष्ट से ऐसी सीमाएं न्यायालय को युवक्तयुक्त
प्रतीत हों ।
1
* * * * * * *
28. विविक कायणिावहयों के अिरोिक करार िून्य हैं–– [हर करार,––
2

(क) वजससे उसका कोई पिकार ककसी संविदा के अिीि या उसके बारे में अपिे अविकारों को मामूली अविकरर्ों
में प्रावयक विविक कायणिावहयों द्वारा प्रिर्तणत करािे से आत्यंवतकत: अिरुद्ध ककया जाता है या जो उस समय को, वजसके
भीतर िह अपिे अविकारों को इस प्रकार प्रिर्तणत करा सकता है, पररसीवमत कर देता है; या
(ि) जो ककसी विविर्दणष्ट अिवि की समावप्त पर ककसी संविदा के अिीि या उसके बारे में उसके ककसी पिकार के
अविकारों को वििाणवपत कर देता है या उसके ककसी पिकार को ककसी दावयत्ि से उन्मोवचत कर देता है, वजससे कक कोई
पिकार अपिे अविकारों को प्रिर्तणत करािे से अिरुद्ध हो जाए,
उस विस्तार तक िून्य है ।]
अपिाद 1––जो वििाद पैदा हो उसको माध्यस्थम के वलए विदेवित करिे िाली संविदा की व्यािृवत्त––यह िारा उस संविदा
को अिैि िहीं कर देगी वजसके द्वारा दो या अविक व्यवक्त करार करें कक ककसी वििय के या विियों के ककसी िगण के बारे में, जो वििाद
उिके बीच पैदा हो िह माध्यस्थम के वलए विदेवित ककया जाएगा और कक ऐसे विर्दणष्ट वििाद के बारे में के िल िह रकम िसूलीय होगी
जो ऐसे माध्यस्थम में अविविर्ीत हो ।

1
1932 के अविवियम सं० 9 की िारा 73 तथा अिुसूची 2 द्वारा अपिाद 2 तथा 3 विरवसत ।
2
1997 के अविवियम सं० 1 की िारा 2 द्वारा (8-1-1997 से) प्रवतस्थावपत ।
10

1
* * * * * * *
अपिाद 2––जो प्रश्ि पहले ही पैदा हो चुके हैं उन्हें विदेवित करिे की संविदा की व्यािृवत्त––और ि यह िारा ककसी ऐसी
वलवित संविदा को अिैि कर देगी वजससे दो या अविक व्यवक्त ककसी प्रश्ि को, जो उिके बीच पहले ही पैदा हो चुके हों, माध्यस्थम के
वलए विदेवित करिे का करार करे , या माध्यस्थम2 विियक विदेिों के बारे में ककसी तत्समय प्रिृत्त विवि के ककसी उपबंि पर प्रभाि
डालेगी ।
3
[अपिाद 3––ककसी बैंक या वित्तीय संस्था के प्रत्याभूवत करार की व्यािृवत्त––यह िारा ऐसी ककसी वलवित संविदा को अिैि
िहीं करे गी वजसके द्वारा ककसी बैंक या वित्तीय संस्था द्वारा ककसी प्रत्याभूवत या प्रत्याभूवत का उपबंि करिे िाले ककसी करार में, उस
विविर्दणष्ट अिवि की समावप्त पर, जो ऐसे पिकार के उक्त दावयत्ि से वििाणपि या उन्मोचि संबंिी विविर्दणष्ट वस्थवत के होिे या ि
होिे की तारीि से एक ििण से कम की िहीं है, ऐसी प्रत्याभूवत या करार के अिीि या उसकी बाबत उसके ककसी पिकार के अविकारों
का वििाणपि या ककसी उन्मोचि करिे संबंिी अिवि वियत की गई हो ।
स्पष्टीकरर्––
(i) अपिाद 3 में, “बैंक” पद से अवभप्रेत है––
(क) कोई “बैंककारी कं पिी”, जो बैंककारी विवियमि अविवियम, 1949 (1949 का 10) की िारा 5 के
िंड (ग) में पररभावित है;
(ि) कोई “तत्स्थािी िया बैंक”, जो बैंककारी विवियमि अविवियम, 1949 (1949 का 10) की िारा 5 के
िंड (घक) में पररभावित है;
(ग) भारतीय स्टेट बैंक अविवियम, 1955 (1955 का 23) की िारा 3 के अिीि गरठत “भारतीय
स्टेट बैंक”;
(घ) कोई “समिुिंगी बैंक”, जो भारतीय स्टे ट बैंक (समिुिंगी बैंक) अविवियम, 1959 (1959 का 38) की
िारा 2 के िंड (ट) में पररभावित है;
(ङ) प्रादेविक ग्रामीर् बैंक अविवियम, 1976 (1976 का 21) की िारा 3 के अिीि स्थावपत “प्रादेविक
ग्रामीर् बैंक”;
(च) कोई “सहकारी बैंक”, जो बैंककारी विविमि अविवियम, 1949 (1949 का 10) की िारा 5 के िंड
(गगi) में पररभावित है;
(छ) कोई “बहुराज्य सहकारी बैंक”, जो बैंककारी विवियमि अविवियम, 1949 (1949 का 10) की िारा
5 के िंड (गगiiiक) में पररभावित है; और
(ii) अपिाद 3 में “वित्तीय संस्था” पद से कं पिी अविवियम, 1956 (1956 का 1) की िारा 4क के अथाणन्तगणत कोई
लोक वित्तीय संस्था अवभप्रेत है ।]
29. करार अविवश्चतता के कारर् िून्य है––िे करार, वजिका अथण विवश्चत िहीं है या विवश्चत ककया जािा िक्त िहीं
है, िून्य है ।
दृष्टांत
(क) ि को क “एक सौ टि तेल” बेचिे का करार करता है । उसमें यह दर्िणत करिे के वलए कु छ िहीं है कक ककस तरह का तेल
आिवयत था । करार अविवश्चतता के कारर् िून्य है ।
(ि) ि को क, विविर्दणष्ट िर्णि का एक सौ टि ऐसा तेल बेचिे का करार करता है जो एक िावर्वज्यक िस्तु के रूप में
ज्ञात है । यहां कोई अविवश्चतता िहीं है वजससे करार िून्य हो जाए ।
(ग) क, जो के िल िाररयल के तेल का व्यिसायी है, ि, को “एक सौ टि तेल” बेचिे का करार करता है । क के व्यापार की
प्रकृ वत इि िब्दों का अथण उपदर्िणत करती है और क िे एक सौ टि िाररयल के तेल के विक्रय के वलए संविदा की है ।
(घ) क “रामिगर में मेरे िान्य भंडार में का सारा िान्य” ि को बेचिे का करार करता है । यहां कोई अविवश्चतता िहीं है
वजससे करार िून्य हो जाए ।
(ङ) ि को “ग द्वारा वियत की जािे िाले कीमत पर एक हजार मि चािल” बेचिे का करार क करता है । कीमत विवश्चत की
जा सकती है, इसवलए यहां कोई अविवश्चतता िहीं है वजससे करार िून्य हो जाए ।

1
1877 के अविवियम सं० 1 की िारा 2 तथा अिुसूची द्वारा िारा 28 के अपिाद 1 का वद्वतीय िंड विरवसत ।
2
देविए माध्यस्थम अविवियम, 1940 (1940 का 10) और कम्पिी अविवियम, 1956 (1956 का 1) की िारा 389 ।
3
2013 के अविवियम सं० 4 की िारा 17 और अिुसूची द्वारा (18-1-2013 से) अंत:स्थावपत ।
11

(च) ि को क “मेरा सफे द घोड़ा पांच सौ रुपए या एक हजार रुपए के वलए” बेचिे का करार करता है । यह दर्िणत करिे के
वलए कु छ िहीं है कक इि दो कीमतों में से कौि-सी दी जािी है । करार िून्य है ।
30. पंद्यम के तौर के करार िून्य हैं––पंद्यम के तौर के करार िून्य हैं; और ककसी ऐसी चीज की िसूली के वलए कोई िाद ि
लाया जाएगा, जो पंद्यम पर जीती गई अवभकवथत हो, या जो ककसी व्यवक्त को ककसी ऐसे िेल या अन्य अविवश्चत घटिा के , वजसके
बारे में कोई पंद्यम ककया गया हो पररर्ाम के अिुसार व्ययवित की जािे को न्यस्त की गई हो ।
घुड़दौड़ के वलए कवतपय पाररतोविकों से पि में अपिाद––यह िारा ऐसे चन्दे या अवभदाय को, या चन्दा देिे या अवभदाय
करिे के ऐसे करार को विविविरुद्ध बिा देिे िाली ि समझी जाएगी जो ककसी घुड़दौड़ 1 के विजेता या विजेताओं को प्रदेय ककसी ऐसी
प्लेट, पाररतोविक या ििरावि के वलए या मद्धे कदया या ककया जाए, वजसका मूल्य या रकम पांच सौ रुपए या उससे अविक हो ।
भारतीय द‍ड संवहता की िारा 294क पर प्रभाि ि पड़ेगा––इस िारा की कोई भी बात घुड़दौड़ से संबंवित ककसी ऐसे
संव्यिहार को, वजसे भारतीय द‍ड संवहता (1860 का 45) की िारा 294क लागू है, िैि बिा देिे िाली िहीं समझी जाएगी ।
अध्याय 3

समावित संविदाओं के वििय में


31. “समावित संविदा” की पररभािा––“समावित संविदा” िह संविदा है जो ऐसी संविदा से साम्पार्श्िणक ककसी घटिा के
घरटत होिे या ि होिे पर ही ककसी बात को करिे या ि करिे के वलए हो ।
दृष्टांत
ि से क संविदा करता है कक यकद ि का गृह जल जाए तो िह ि को 10,000 रुपए देगा । यह समावित संविदा है ।
32. ऐसी संविदाओं का प्रितणि जो ककसी घटिा के घरटत होिे पर समावित हो––उि समावित संविदाओं का प्रितणि, जो
ककसी अविवश्चत भािी घटिा के घरटत होिे पर ककसी बात को करिे या ि करिे के वलए हो, विवि द्वारा िहीं कराया जा सकता यकद
और जब तक िह घटिा घरटत ि हो गई हो ।
यकद िह घटिा असम्भि हो जाए तो ऐसी संविदाएं िून्य हो जाती हैं ।
दृष्टांत
(क) ि के क संविदा करता है कक यकद ग के मरिे के पश्चात क जीवित रहा तो िह ि का घोड़ा िरीद लेगा । इस संविदा का
प्रितणि विवि द्वारा िहीं कराया जा सकता यकद और जब तक क के जीिि-काल में ग मर ि जाए ।
(ि) ि से क संविदा करता है कक यकद ग िे, वजससे घोड़ा बेचिे की प्रस्थापिा की गई है, उसे िरीदिे से इन्कार कर कदया तो
िह ि को िह घोड़ा विविर्दणष्ट कीमत पर बेच देगा; इस संविदा का प्रितणि विवि द्वारा िहीं कराया जा सकता यकद और जब तक ग
घोड़े को िरीदिे से इन्कार ि कर दे ।
(ग) क यह संविदा करता है कक जब ग से ि वििाह कर लेगा तो ि को क वियत ििरावि देगा । ि से वििाह हुए वबिा ग मर
जाती है । संविदा िून्य हो जाती है ।
33. उि संविदाओं का प्रितणि जो ककसी घटिा के घरटत ि होिे पर समावित हों––उि समावित संविदाओं का प्रितणि, जो
ककसी अविवश्चत भािी घटिा के घरटत ि होिे पर ककसी बात को करिे या ि करिे के वलए हों, तब कराया जा सकता है जब उस घटिा
की घरटत होिा असम्भि हो जाए उससे पूिण िहीं ।
दृष्टांत
क करार करता है कक यकद अमुक पोत िापस ि आए तो िह ि को एक ििरावि देगा । िह पोत डू ब जाता है । संविदा का
प्रितणि पोत के डू ब जािे पर कराया जा सकता है ।
34. वजस घटिा पर संविदा समावित है, यकद िह ककसी जीवित व्यवक्त का भािी आचरर् हो तो िह घटिा कब असम्भि
समझी जाएगी––यकद िह भािी घटिा, वजस पर कोई संविदा समावित है, िह प्रकार हो वजस प्रकार से कोई व्यवक्त ककसी अविविर्दणष्ट
समय पर कायण करे गा तो िह घटिा सम्भि हुई तब समझी जाएगी जब ऐसा व्यवक्त कोई ऐसी बात करे जो ककसी भी पररवमत समय के
भीतर, या उत्तरदायी आकवस्मकताओं के वबिा उस व्यवक्त द्वारा िैसा ककया जािा असम्भि कर दे ।
दृष्टांत
क करार करता है कक यकद ग से ि वििाह करे तो िह ि को एक ििरावि देगा । घ से ग वििाह कर लेती है । अब ग से ि का
वििाह असम्भि समझा जािा चावहए यद्यवप यह सम्भि है कक घ की मृत्यु हो जाए और तत्पश्चात ि से ग वििाह कर ले ।

1
देविए गोसमंग ऐक्ट (विक्ट० 8 और 9, सी 109) िारा 18 ।
12

35. संविदाएं, जो वियत समय के भीतर विविर्दणष्ट घटिा के घरटत होिे पर समावित हों, कब िून्य हो जाती हैं––समावित
संविदाएं, जो ककसी विविर्दणष्ट अविश्चवयत घटिा के ककसी वियत समय के भीतर घरटत होिे पर ककसी बात को करिे या ि करिे के
वलए हों, िून्य हो जाती हैं, यकद उस अविवश्चत वियत समय के अिसाि पर ऐसी घटिा ि घरटत हुई हो या यकद उस वियत समय से
पूिण ऐसी घटिा असम्भि हो जाए ।
विविर्दणष्ट घटिा के वियत समय के भीतर घरटत ि होिे पर समावित संविदाओं का प्रितणि कब कराया जा
सके गा––समावित संविदाएं, जो ककसी विविर्दणष्ट अविवश्चत घटिा के ककसी वियत समय के भीतर घरटत ि होिे पर ककसी बात को
करिे या ि करिे के वलए हों, विवि द्वारा तब प्रिर्तण त कराई जा सकें गी जब उस वियत समय का अिसाि हो गया हो और ऐसी घटिा
घरटत ि हुई हो या उस वियत समय के अिसाि से पूिण यह विवश्चत हो जाए कक ऐसी घटिा घरटत िहीं होगी ।
दृष्टांत
(क) क िचि देता है कक यकद अमुक पोत एक ििण के भीतर िापस आ जाए तो िह ि को एक ििरावि देगा । यकद पोत उस
ििण के भीतर िापस आ जाए तो संविदा का प्रितणि कराया जा सके गा और यकद पोत उस ििण के भीतर जल जाए तो संविदा िून्य हो
जाएगी ।
(ि) क िचि देता है कक यकद अमु क पोत एक ििण के भीतर ि लौटे तो िह ि को एक ििरावि देगा । यकद पोत उस ििण के
भीतर ि लौटे या उस ििण के भीतर जल जाए तो संविदा का प्रितणि कराया जा सके गा ।
36. असंभि घटिाओं पर समावित करार िून्य है––समावित करार, जो ककसी असम्भि घटिा के घरटत होिे पर ही कोई
बात करिे या ि करिे के वलए हों, िून्य हैं, चाहे घटिा की असंभिता करार के पिकारों को उस समय ज्ञात थी या िहीं जब करार ककया
गया था ।
दृष्टांत
(क) क करार करता है कक यकद दो सरल रे िाएं ककसी स्थाि को घेर लें तो िह ि को 1,000 रुपए देगा । करार िून्य है ।
(ि) क करार करता है कक यकद क की पुत्री ग से ि वििाह कर ले तो िह ि को 1,000 रुपए देगा । करार के समय ग मर चुकी
थी । करार िून्य है ।
अध्याय 4

संविदाओं के पालि के वििय में


संविदाएं वजिका पालि करिा होगा
37. संविदाओं के पिकारों की बाध्यता––संविदा के पिकारों को या तो अपिे-अपिे िचिों का पालि करिा होगा या करिे
की प्रस्थापिा करिी होगी जब तक कक ऐसे पालि से इस अविवियम के या ककसी अन्य विवि के उपबंिों के अिीि अवभमुवक्त या माफी
ि दे दी गई हो ।
िचि, उिके पालि के पूिण िचिदाताओं की मृत्यु हो जािे की दिा में, ऐसे िचिदाताओं के प्रवतविवियों को आबद्ध करते हैं,
जब तक कक तत्प्रवतकू ल कारर् संविदा से प्रतीत ि हो ।
दृष्टांत
(क) क, 1,000 रुपए का संदाय ककए जािे पर ि को अमुक कदि माल पररदत्त करिे का िचि देता है । क उस कदि से पहले ही
मर जाता है । क के प्रवतविवि ि को माल पररदत्त करिे के वलए आबद्ध हैं और क के प्रवतविवियों को ि 1,000 रुपए देिे के वलए
आबद्ध है ।
(ि) क, अमुक कीमत पर अमुक कदि तक ि के वलए एक रं गवचत्र बिािे का िचि देता है । क उस कदि से पहले ही मर
जाता है । यह संविदा क के प्रवतविवियों द्वारा या ि द्वारा प्रिर्तणत िहीं कराई जा सकती है ।
38. पालि की प्रस्थापिा प्रवतगृहीत करिे से इन्कार का प्रभाि––जब कक ककसी िचिदाता िे िचिगृहीता से पालि की
प्रस्थापिा की हो और िह प्रस्थापिा प्रवतगृहीत िहीं की गई हो तो िचिदाता अपालि के वलए उत्तरदायी िहीं है और ि तदद्वारा िह
संविदा के अिीि के अपिे अविकारों को िो देता है ।
ऐसी हर प्रस्थापिा को विम्िवलवित ितें पूरी करिी होंगी :––
(1) िह अितण ही होगी;
(2) उसे उवचत समय और स्थाि पर और ऐसी पररवस्थवतयों के अिीि करिा होगा कक उस व्यवक्त को, वजससे िह
की जाए, यह अवभविवश्चत करिे का युवक्तयुक्त अिसर वमल जाए कक िह व्यवक्त वजसके द्वारा िह की गई है, िह समस्त,
वजसे करिे को िह अपिे िचि द्वारा आबद्ध है, िहीं और उसी समय करिे के वलए योग्य और रजामन्द है;
13

(3) यकद िह प्रस्थापिा िचिगृहीता को कोई चीज पररदत्त करिे के वलए हो तो िचिगृहीता को यह देििे का
युवक्तयुक्त अिसर वमलिा ही चावहए कक प्रस्थावपत चीज िही चीज है वजसे पररदत्त करिे के वलए िचिदाता अपिे िचि
द्वारा आबद्ध है ।
कई संयुक्त िचिगृवहताओं में से एक से की गई प्रस्थापिा से विविक पररर्ाम िे ही हैं जो उि सबसे की गई प्रस्थापिा के ।
दृष्टांत
ि को उसके भा‍डागार मे विविष्ट क्िावलटी की रुई की 100 गांठें 1873 की माचण की पहली तारीि को पररदत्त करिे की
संविदा क करता है । इस उद्देश्य से कक पालि की ऐसी प्रस्थापिा की जाए वजसका प्रभाि िह हो, जो इस िारा में कवथत है, क को िह
रुई वियत कदि को ि के भांडागार में ऐसी पररवस्थवतयों के अिीि लािी होगी कक ि को अपिा यह समािाि कर लेिे का युवक्तयुक्त
अिसर वमल जाए कक प्रस्थावपत चीज उस क्िावलटी की रुई है वजसकी संविदा की गई थी और यह कक 100 गांठें हैं ।
39. िचि का पूर्तण : पालि करिे से पिकार के इं कार का प्रभाि––जब कक ककसी संविदा के एक पिकार िे अपिे िचि का
पूर्णत: पालि करिे से इन्कार कर कदया हो या ऐसा पालि करिे के वलए अपिे को वियोग्य बिा वलया हो तब िचिगृहीता संविदा का
अन्त कर सके गा, यकद उसिे उसको चालू रििे को िब्दों द्वारा या आचरर् द्वारा अपिी उपमवत संज्ञावपत ि कर दी हो ।
दृष्टांत
(क) एक गावयका क एक िाट्यगृह के प्रबंिक ि से अगले दो मास के दौराि में प्रवत सप्ताह में दो रात उसके िाट्यगृह में गािे
की संविदा करती है और ि उसे हर रात के गािे के 100 रुपए देिे का िचिबंि करता है । छठी रात को क िाट्यगृह से जािबूझकर
अपुपवस्थत रहती है । ि संविदा का अन्त करिे के वलए स्ितंत्र है ।
(ि) एक गावयका क एक िाट्यगृह के प्रबंिक ि से अगले दो मास के दौराि में प्रवत सप्ताह में दो रात उसके िाट्यगृह में गािे
की संविदा करती है और ि उसे प्रवत रात के वलए 100 रुपए की दर से संदाय करिे का िचिबंि करता है । छठी रात को क जािबूझकर
अिुपवस्थत रहती है । ि की अिुमवत से क सातिीं रात को गाती है । ि िे संविदा के जारी रहिे के वलए अपिी उपमवत संज्ञावपत कर
दी है और अब िह उसका अन्त िहीं कर सकता । ककन्तु छठी रात को क के ि गािे से उठाए गए िुकसाि के वलए िह प्रवतकर का
हकदार है ।
संविदा का पालि ककसे करिा होगा
40. िह व्यवक्त वजसे िचि का पालि करिा है––यकद मामले की प्रकृ वत से यह प्रतीत हो कक ककसी संविदा के पिकारों का
यह आिय था कक उसमें अन्तर्िणष्ट ककसी िचि का पालि स्ियं िचिदाता द्वारा ककया जािा चावहए तो ऐसे िचि का पालि िचिदाता
को ही करिा होगा अन्य दिाओं में िचिदाता या उसके प्रवतविवि उसका पालि करिे के वलए ककसी सिम व्यवक्त को वियोवजत कर
सकें गे ।
दृष्टांत
(क) ि को एक ििरावि देिे का िचि क देता है । क इस िचि का पालि ि को िह िि स्ियं देकर या उसे ककसी और के
द्वारा कदलिाकर कर सके गा । और यकद संदाय के वलए वियत समय से पूिण क मर जाए तो उसके प्रवतविवियों को िचि का पालि करिा
होगा या उसके पालि के वलए ककसी उवचत व्यवक्त को वियोवजत करिा होगा ।
(ि) ि के वलए एक रं गवचत्र बिािे का िचि क देता है । क को इस िचि का पालि स्ियं करिा होगा ।
41. अन्य व्यवक्त से पालि प्रवतगृहीत करिे का प्रभाि––जबकक िचिगृहीता ककसी अन्य व्यवक्त से िचि का पालि प्रवतगृहीत
कर लेता है तब िह तत्पश्चात उसे िचिदाता के विरुद्ध प्रिर्तणत िहीं करा सकता ।
42. संयुक्त दावयत्िों का न्यागमि––जबकक दो या अविक व्यवक्तयों िे कोई संयुक्त िचि कदया हो तब यकद तत्प्रवतकू ल आिय
संविदा से प्रतीत ि हो तो यह िचि ऐसे सब व्यवक्तयों को अपिे संयुक्त जीििों के दौराि में और उिमें से ककसी की मृत्यु के पश्चात
उसके प्रवतविवि को उत्तरजीिी या उत्तरजीवियों के साथ संयुक्तत: और अवन्तम उत्तरजीिी की मृत्यु के पश्चात सबके प्रवतविवियों को
संयुक्तत: पूरा करिा होगा ।
43. संयक्ु त िचिदाताओं में से कोई भी पालि के वलए वििि ककया जा सके गा––जबकक दो या अविक व्यवक्त कोई संयुक्त
िचि में तब तत्प्रवतकल अवभव्यक्त करार के अभाि में िचिगृहीता, ऐसे संयुक्त िचिदाताओं में से ककसी 1[एक या अविक] को समग्र
िचि के पालि के वलए वििि कर सके गा ।
हर एक िचिदाता अवभदाय करिे के वलए वििि कर सके गा––दो या अविक संयुक्त िचिदाताओं में से हर एक अन्य संयुक्त
िचिदाता को िचि के पालि में अपिे समाि अवभदाय करिे के वलए वििि कर सके गा, जब तक कक तत्प्रवतकू ल आिय संविदा से
प्रतीत ि हो ।

1
1891 के अविवियम सं० 12 की िारा 2 तथा अिुसूची 2, भाग 1 द्वारा “एक” के स्थाि पर प्रवतस्थावपत ।
14

अवभदाय में व्यवतक्रम से हुई हावि में अंि बंटािा––यकद दो या अविक संयुक्त िचिदाताओं में से कोई एक ऐसा अवभदाय
करिे में व्यवतक्रम करे तो िेि संयुक्त िचिदाताओं को ऐसे व्यवतक्रम से उद्भूत हावि को समाि अंिों में सहि करिा होगा ।
स्पष्टीकरर्––इस िारा की कोई भी बात ककसी प्रवतभू द्वारा मूलऋर्ी की ओर से ककए गए संदायों को अपिे मूलऋर्ी से उस
प्रवतभू को िसूल करिे से वििाररत िहीं करे गी और ि मूलऋर्ी द्वारा ककए गए संदायों के कारर् से प्रवतभू से कु छ भी िसूल करिे का
हकदार बिाएगी ।
दृष्टांत
(क) क, ि और ग, 3,000 रुपए घ को देिे का संयुक्तत: िचि देते हैं । घ चाहे क या ि या ग को वििि कर सके गा कक िह
उसे 3,000 रुपए दे ।
(ि) क, ि और ग 3,000 रुपए घ को देिे का संयुक्तत: िचि देते हैं । ग पूर्ण रावि देिे के वलए वििि ककया जाता है ।
क कदिावलया है, ककन्तु उसकी आवस्तयां उसके ऋर्ों के अिाांग के चुकािे के वलए पयाणप्त है । क की सम्पदा से 500 रुपए और ि से
1,250 रुपए पािे का ग हकदार है ।
(ग) घ को 3,000 रुपए देिे का संयुक्त िचि क, ि और ग िे कदया है । ग कु छ भी देिे के वलए असमथण है, और क पूर्ण रावि
देिे के वलए वििि ककया जाता है । ि से क 1,500 रुपए पािे का हकदार है ।
(घ) घ को 3,000 रुपए देिे का संयुक्त िचि क, ि और ग िे कदया है । ग के वलए क और ि प्रवतभू मात्र हैं । ग रुपयों के
संदाय में असफल रहता है । क और ि पूर्ण रावि देिे के वलए वििि ककए जाते हैं । िे उसे ग से िसूल करिे के हकदार हैं ।
44. संयक्ु त िचिदाताओं में से एक की विमुवण क्त का प्रभाि––जहां कक दो या अविक व्यवक्तयों िे एक संयुक्त िचि कदया हो,
िहां िचिगृहीता द्वारा ऐसे संयुक्त िचिदाताओं में से एक की विमुणवक्त अन्य संयुक्त िचिदाता या संयुक्त िचिदाताओं को उन्मोवचत
िहीं करती, और ि िह ऐसे विमुणक्त संयुक्त िचिदाता को अन्य संयक् ु त िचिदाता या संयुक्त िचिदाताओं1 के प्रवत उत्तरदावयत्ि से ही
विमुणक्त करती है ।
45. संयक्ु त अविकारों का न्यागमि––जबकक ककसी व्यवक्त िे दो या अविक व्यवक्तयों को संयुक्तत: िचि कदया हो, तब यकद
संविदा से तत्प्रवतकू ल आिय प्रतीत ि हो तो उसके पालि के वलए दािा करिे का अविकार, जहां तक कक उसका और उिका संबंि है,
उिके संयुक्त जीििों के दौराि में उिकी, और उिमें से ककसी की मृत्यु के पश्चात ऐसे मृत व्यवक्त के प्रवतविवि को उत्तरजीिी या
उत्तरजीवियों के साथ संयुक्तत: और अवन्तम उत्तरजीिी की मृत्यु के पश्चात उि सबके प्रवतविवियों को संयुक्तत:2 होता है ।
दृष्टांत
क अपिे को ि और ग द्वारा उिार कदए गए, 5,000 रुपयों के प्रवतफल में संयुक्तत: ि और ग को िह रावि ब्याज समेत
विविर्दणष्ट कदि प्रवतसंदत्त करिे का िचि देता है । ि मर जाता है । पालि का दािा करिे का अविकार ग के जीिि के दौराि में ि के
प्रवतविवियों को ग के साथ संयुक्तत: और ग की मृत्यु के पश्चात ि और ग के प्रवतविवियों को संयुक्तत: होता है ।
पालि के वलए समय और स्थाि
46. िचि पालि के वलए समय जहां कक पालि के वलए आिेदि ि ककया जािा हो और कोई समय विविर्दणष्ट ि हो––जहां कक
संविदा के अिुसार िचिदाता को अपिे िचि का पालि िचिगृहीता द्वारा आिेदि ककए जािे के वबिा करिा हो और पालि के वलए
कोई समय विविर्दणष्ट ि हो िहां िचिबन्ि का पालि युवक्तयुक्त समय के भीतर करिा होगा ।
स्पष्टीकरर्––“युवक्तयुक्त समय क्या है”, यह प्रश्ि हर एक विविष्ट मामले में तथ्य का प्रश्ि है ।
47. िचि पालि के वलए समय और स्थाि जहां कक पालि के वलए समय विविर्दणष्ट हो और आिेदि ि ककया
जािा हो––जबकक ककसी िचि का पालि अमुक कदि ककया जािा हो और िचिदाता िे िचिगृहीता द्वारा आिेदि ककए जािे के वबिा
उसका पालि करिे का िचि कदया हो तब कारबार के प्रावयक घ‍टों के दौराि में ककसी भी समय ऐसे कदि और उस स्थाि पर, वजस पर
उस िचि का पालि ककया जािा चावहए, िचिदाता उसका पालि कर सके गा ।
दृष्टांत
क िचि देता है कक िह पहली जििरी को ि के भा‍डागार में माल पररदत्त करे गा । उस कदि क माल को ि के भा‍डागार में
लाता है, ककन्तु उसके बन्द होिे के प्रावयक घंटे के पश्चात और माल िहीं वलया जाता । क िे अपिे िचि का पालि िहीं ककया ।
48. अमुक कदि पर पालि के वलए आिेदि उवचत समय और स्थाि पर ककया जाएगा––जब कक ककसी िचि का पालि अमुक
कदि ककया जािा हो और िचिदाता िे यह भार अपिे ऊपर ि ले वलया हो कक िह िचिगृहीता के आिेदि के वबिा उसका पालि करे गा
तब िचिगृहीता का यह कतणव्य है कक पालि के वलए आिेदि उवचत स्थाि पर और कारबार के प्रावयक घंटों के भीतर करे ।

1
िारा 138 देविए ।
2
सरकारी प्रवतभूवतयों के मामले में िारा 45 के अपिाद के वलए देविए लोक ऋर् अविवियम, 1944 (1944 का 18) की िारा 8 ।
15

स्पष्टीकरर्––“उवचत समय और स्थाि क्या है”, यह प्रश्ि हर एक विविष्ट मामले में तथ्य का प्रश्ि है ।
49. िचि के पालि के वलए स्थाि, जहां कक पालि के वलए, आिेदि ि ककया जािा हो और कोई स्थाि वियत ि हो––जबकक
ककसी िचि का पालि िचिगृहीता के आिेदि के वबिा ककया जािा हो और उसके पालि के वलए कोई स्थाि वियत ि हो तब
िचिदाता का कतणव्य है कक िह िचि के पालि के वलए युवक्तयुक्त स्थाि वियत करिे के वलए िचिगृहीता से आिेदि करे और ऐसे
स्थाि में उसका पालि करे ।
दृष्टांत
क एक हजार मि पटसि ि को एक वियत कदि पररदत्त करिे का िचि देता है । क को ि से आिेदि करिा होगा कक िह उसे
लेिे के वलए युवक्तयुक्त स्थाि वियत करे और क को ऐसे स्थाि पर पटसि पररदत्त करिा होगा ।
50. िचिगृहीता द्वारा विवहत या मंजूर ककए गए प्रकार से या समय पर पालि––ककसी भी िचि का पालि उस प्रकार से और
उस समय पर ककया जा सके गा, वजसे िचिगृहीता विवहत या मंजूर करे ।
दृष्टांत
(क) क को ि 2,000 रुपए का देिदार है । क चाहता है कक ि उस रकम को एक बैंककार ग के यहां क के िाते में जमा करा
दे । ि का भी ग के यहां िाता है और िह यह आदेि देता है कक िह रकम उसके िाते में से अन्तररत करके क के िाम जमा कर दी जाए
और ग ऐसा कर देता है । तत्पश्चात और उस अन्तरर् का ज्ञाि क को होिे के पूिण ग का कारबार बैठ जाता है । ि का संदाय ठीक है ।
(ि) क और ि परस्पर ऋर्ी हैं । क और ि एक मद को दूसरी में से मुजरा करके लेिा का पररवििाणरर् कर लेते हैं और ऐसे
पररवििाणरर् पर जो िि उससे िोध्य बाकी विकलता है उसे क को ि देता है । यह क और ि द्वारा एक दूसरे को देय रावियों का संदाय
क्रमि: एक दूसरे को हो जाता है ।
(ग) क का ि 2,000 रुपए का देिदार है । उस ऋर् में कमी करिे के वलए क का कु छ माल ि प्रवतगृहीत करता है । माल के
पररदाि से भावगक संदाय हो जाता है ।
(घ) क यह चाहता है कक ि, जो उसे 100 रुपए का देिदार है, उसे डाक द्वारा 100 रुपए का िोट भेजे । जैसे ही ि उस िोट
सवहत वचट्ठी को, वजस पर क का पता सम्यक रूप से वलिा है, डाक में डालता है िैसे ही ऋर् का सम्मोचि हो जाता है ।
व्यवतकारी िचिों का पालि
51. िचिदाता पालि करिे के वलए आबद्ध िहीं है जब तक कक व्यवतकारी िचिगृहीता पालि के वलए तैयार और
रजामन्द ि हो––जबकक कोई संविदा साथ-साथ पालि ककए जािे िाले व्यवतकारी िचिों से गरठत हो तब ककसी भी िचिदाता के वलए
अपिे िचि का पालि करिा आिश्यक िहीं है जब तक कक िचिगृहीता अपिे व्यवतकारी िचि का पालि करिे के वलए तैयार और
रजामन्द ि हो ।
दृष्टांत
(क) क और ि संविदा करते हैं कक ि को क माल पररदत्त करे गा वजसके वलए संदाय माल के पररदाि पर ि द्वारा ककया
जाएगा ।
माल का पररदाि करिा क के वलए आिश्यक िहीं है जब तक कक ि पररदाि पर माल के वलए सं दाय करिे को
तैयार और रजामन्द ि हो ।
माल के वलए संदाय करिा ि के वलए आिश्यक िहीं है जब तक कक संदाय पर माल को पररदत्त करिे के वलए क
तैयार और रजामन्द ि हो ।
(ि) क और ि संविदा करते हैं कक क ककस्तों में दी जािे िाली कीमत पर ि को माल पररदत्त करे गा, और पहली ककस्त
पररदाि पर दी जाती है ।
माल का पररदाि करिा क के वलए आिश्यक िहीं है जब तक कक ि पररदाि पर पहली ककस्त देिे के वलए तैयार
और रजामन्द ि हो ।
पहली ककस्त देिा ि के वलए आिश्यक िहीं है जब तक कक क पहली ककस्त के संदाय पर माल पररदत्त करिे के वलए
तैयार और रजामन्द ि हो ।
52. व्यवतकारी िचिों के पालि का क्रम––जहां कक िह क्रम वजससे व्यवतकारी िचिों का पालि ककया जािा है, संविदा द्वारा
अवभव्यक्तत: वियत हो िहां उिका पालि उसी क्रम से ककया जाएगा और जहां कक िह क्रम संविदा द्वारा अवभव्यक्तत: वियत ि हो
िहां उिका पालि उस क्रम से ककया जाएगा जो उस संव्यिहार की प्रकृ वत द्वारा अपेवित हो ।
16

दृष्टांत
(क) क और ि संविदा करते हैं कक क वियत कीमत पर ि के वलए एक गृह बिाएगा । क को गृह बिािे के िचि का पालि ि
द्वारा उसके वलए संदाय के िचि के पालि से पहले करिा होगा ।
(ि) क और ि संविदा करते हैं कक क अपिा व्यापार-स्टाक एक वियत कीमत पर ि को दे देगा, और ि िि के संदाय के वलए
प्रवतभूवत देिे का िचि देता है । क के िचि का पालि ककया जािा तब तक आिश्यक िहीं है जब तक प्रवतभूवत ि दे दी जाए, क्योंकक
इस संव्यिहार की प्रकृ वत यह अपेिा करती है कक अपिे व्यापार-स्टाक का पररदाि करिे से पूिण क को प्रवतभूवत वमलिी चावहए ।
53. वजस घटिा के घरटत होिे पर संविदा प्रभाििील होिी है उसका वििारर् करिे िाले पिकार का दावयत्ि––जब कक
ककसी संविदा में व्यवतकारी िचि अन्तर्िणष्ट हो और संविदा का एक पिकार दूसरे को उसके िचि का पालि करिे से वििाररत करे तब
िह संविदा इस प्रकार वििाररत ककए गए पिकार के विकल्प पर िून्यकरर्ीय हो जाती है; और िह ककसी भी हावि के वलए, जो संविदा
के अपालि के पररर्ामस्िरूप उसे उठािी पड़े1, दूसरे पिकार से प्रवतकर पािे का हकदार है ।
दृष्टांत
क और ि संविदा करते है कक ि एक हजार रुपए के बदले क के वलए अमुक काम विष्पाकदत करे गा । ि उस काम को
तद्िुसार विष्पाकदत करिे के वलए तैयार और रजामन्द है, ककन्तु क उसे िैसा करिे से वििाररत करता है । संविदा ि के विकल्प पर
िून्यकरर्ीय है; और यकद िह उसे वििंवडत करिे का वििाण चि करे तो िह ककसी भी हावि के वलए, जो उसिे उसके अपालि से उठाई
हो, क से प्रवतकर िसूल करिे का हकदार है ।
54. व्यवतकारी िचिों से गरठत संविदा में, उस िचि के व्यवतक्रम का प्रभाि वजसका पालि पहले ककया जािा
चावहए––जबकक कोई संविदा ऐसे व्यवतकारी िचिों से गरठत हो वजिमें से एक का पालि या पालि का दािा तब तक िहीं ककया जा
सके जब तक दूसरे का पालि ि कर कदया जाए और अवन्तम-िर्र्णत िचि का िचिदाता उसका पालि करिे में असफल रहे तब ऐसा
िचिदाता व्यवतकारी िचि के पालि का दािा िहीं कर सकता और उसे संविदा के दूसरे पिकार को, ककसी भी हावि के वलए, जो ऐसा
दूसरा पिकार संविदा के अपालि से उठाए, प्रवतकर देिा होगा ।
दृष्टांत
(क) ि के पोत को क अपिे द्वारा कदए जािे िाले स्थोरा को भरिे और कलकत्ते से मौरीिस तक प्रिहर् करिे के वलए भाड़े पर
लेता है । उसके प्रिहरर् के वलए ि को अमुक ढु लाई वमलिी है । क पोत के वलए कोई स्थोरा िहीं देता । ि के िचि के पालि का दािा
क िहीं कर सकता और ि को, उस हावि के वलए, जो ि उस संविदा के अपालि से उठाए, प्रवतकर देिा होगा ।
(ि) क एक वियत कीमत पर कोई विमाणर् कमण विष्पाकदत करिे के वलए ि से संविदा करता है, उस फमण के वलए आिश्यक
पाड़ और काष्ठ ि द्वारा कदया जािा है । ि पाड़ या काष्ठ देिे से इन्कार करता है, और कमण विष्पाकदत िहीं ककया जा सकता । कमण का
विष्पादि करिा क के वलए आिश्यक िहीं है, और क को, ककसी भी हावि के वलए जो उस संविदा के अपालि से काररत हो, प्रवतकर देिे
के वलए ि आबद्ध है ।
(ग) ि से क संविदा करता है कक िह उस िावर्ज्या को, जो एक पोत पर है, जो एक मास तक िहीं पहुंच सकता । विविर्दणष्ट
कीमत पर उसे पररदत्त करे गा, और ि संविदा की तारीि से एक सप्ताह के भीतर उस िावर्ज्या के वलए संदाय करिे का िचिबन्ि
करता है । ि उस सप्ताह के भीतर संदाय िहीं करता । पररदाि करिे के क के िचि का पालि आिश्यक िहीं है और ि को प्रवतकर
देिा होगा ।
(घ) ि को क िावर्ज्या की सौ गांठें बेचिे का िचि देता है वजिका पररदाि अगले कदि ककया जािे िाला है और उिके वलए
एक मास के भीतर संदाय करिे का िचि क को ि देता है । क अपिे िचि के अिुसार पररदाि िहीं करता । संदाय करिे के ि के िचि
का पालि आिश्यक िहीं है और क को प्रवतकर देिा होगा ।
55. उस संविदा में वजसमें समय ममणभत
ू है वियत समय पर पालि ि करिे का प्रभाि––जबकक ककसी संविदा का एक पिकार
ककसी बात को विविर्दणष्ट समय पर या उसके पूिण, या ककन्हीं बातों को विविर्दणष्ट समयों पर या उिसे पूिण करिे का िचि दे और ऐसी
ककसी भी बात को उस विविर्दणष्ट समय पर या उससे पूिण करिे में असफल रहे, तब िह संविदा या उसमें से उतिी, वजतिी का पालि ि
ककया गया हो, िचिगृहीता के विकल्प पर िून्यकरर्ीय हो जाएगी, यकद पिकारों का आिय यह रहा हो कक समय संविदा का ममण
होिा चावहए ।
ऐसी असफलता का प्रभाि जब समय ममणभत ू िहीं है––यकद पिकारों का यह आिय ि रहा हो कक समय संविदा का ममण होिा
चावहए तो संविदा ऐसी बात को विविर्दणष्ट समय पर या उससे पूिण करिे में असफल रहिे से िून्यकरर्ीय िहीं होगी, ककन्तु िचिगृहीता
ऐसी असफलता से उसे हुई ककसी भी हावि के वलए िचिदाता से प्रवतकर पािे का हकदार है ।
कराररत समय से वभन्ि समय पर ककए गए पालि के प्रवतग्रहर् का प्रभाि––यकद ऐसी संविदा की दिा में, जो काररत समय
पर िचि के पालि में िचिदाता की असफलता के कारर् िून्यकरर्ीय हो, िचिगृहीता ऐसे िचि का कराररत समय से वभन्ि ककसी

1
िारा 73 भी देविए ।
17

समय पर ककया गया पालि प्रवतगृहीत कर ले तो िचिगृहीता कराररत समय पर िचि के अपालि से हुई ककसी भी हावि के वलए
प्रवतकर का दािा िहीं कर सके गा जब तक कक उसिे ऐसे प्रवतग्रहर् के समय अपिे ऐसा 1 करिे के आिय की सूचिा िचिदाता को ि दे
दी हो ।
56. असम्भि कायण करिे का करार––िह करार, जो ऐसा कायण करिे के वलए हो, जो स्ित: असंभि है, िून्य है ।
उस कायण को करिे की संविदा जो तत्पश्चात असम्भि या विविविरुद्ध हो जाए––ऐसा कायण करिे की संविदा, जो संविदा के
ककए जािे के पश्चात असम्भि था ककसी ऐसी घटिा के कारर् वजसका वििारर् िचिदाता िहीं कर सकता था, विविविरुद्ध हो जाए,
तब िून्य हो जाती है जब िह कायण असम्भि या विविविरुद्ध2 हो जाए ।
ऐसे कायण के अपालि से हुई हावि के वलए प्रवतकर वजसका असम्भि या विविविरुद्ध होिा ज्ञात हो––जहां कक एक व्यवक्त िे
ऐसी कोई बात करिे या िचि कदया हो वजसका असम्भि या विविविरुद्ध होिा िह जािता था या युवक्तयुक्त तत्परता से जाि सकता
था और िचिगृहीता िहीं जािता था, िहां जो कोई हावि ऐसे िचिगृहीता को उस िचि के अपालि से हो, उसके वलए ऐसा िचिदाता
ऐसे िचिगृहीता को प्रवतकर देगा ।
दृष्टांत
(क) जादू से गुप्तविवि का पता चलािे का ि से क करार करता है । यह करार िून्य है ।
(ि) क और ि आपस में वििाह करिे की संविदा करते हैं; वििाह के वलए वियत समय से पूिण क पागल हो जाता है संविदा
िून्य हो जाती है ।
(ग) क, जो पहले से ही ग से वििावहत है और वजसके वलए बहुपत्िीत्ि उस विवि द्वारा, वजसके िह अध्यिीि है, विविद्ध है,
ि से वििाह करिे की संविदा करता है । उसके िचि के अपालि से ि को हुई हावि के वलए क को उसे प्रवतकर देिा होगा ।
(घ) क संविदा करता है कक िह एक विदेिी पत्ति पर ि के वलए स्थोरा भरे गा । तत्पश्चात क की सरकार उस देि के विरुद्ध,
वजसमें िह पत्ति वस्थत है, युद्ध की घोिर्ा कर देती है । संविदा तब िून्य हो जाती है जब युद्ध घोवित ककया जाता है ।
(ङ) ि द्वारा अवग्रम दी गई रावि के प्रवतफल पर क छह मास के वलए एक िाट्यगृह में अवभिय करिे की संविदा करता है ।
अिेक अिसरों पर क बहुत बीमार होिे के कारर् अवभिय िहीं कर सकता । उि अिसरों पर अवभिय करिे की संविदा िून्य
हो जाती है ।
57. िैि बातों, और ऐसी अन्य बातों को भी, जो अिैि हों, करिे का व्यवतकारी िचि––जहां कक कोई व्यवक्त, प्रथमत: कु छ
ऐसी बातें करिे का, जो िैि हों, और वद्वतीयत: विविदेवित पररवस्थवतयों में, कु छ अन्य बातें करिे का, जो अिैि हों, व्यवतकारी िचि
देते हैं, िहां िचिों का प्रथम संिगण, संविदा है ककन्तु वद्वतीय संिगण िून्य करार है ।
दृष्टांत
क और ि करार करते है कक ि को एक गृह क 10,000 रुपए में बेचेगा, ककन्तु यकद ि उसे एक द्यूत-गृह के रूप में उपयोग में
लाए तो िह क को उसके वलए 50,000 रुपए देगा ।
व्यवतकारी िचिों का, अथाणत गृह को बेचिे का और उसके वलए 10,000 रुपए देिे का प्रथम िचि-संिगण एक संविदा है ।
वद्वतीय संिगण एक विविविरुद्ध उद्देश्य के वलए है, अथाणत इस उद्देश्य के वलए है कक ि उस गृह को द्यूत-गृह के रूप में उपयोग में
लाए, और िह िून्य करार है ।
58. अिुकल्पी िचि वजसकी एक िािा अिैि हो––ऐसे अिुकल्पी िचि की दिा में, वजसकी एक िािा िैि हो दूसरी अिैि,
के िल िैि िािा का ही प्रितणि कराया जा सकता है ।
दृष्टांत
क और ि करार करते हैं कक ि को क 10,000 रुपए देगा, वजसके वलए क को ि तत्पश्चात या तो चािल या तस्कररत अफीम
पररदत्त करे गा ।
यह चािल पररदत्त करिे की विविमान्य संविदा है और अफीम के बारे में िून्य करार है ।
संदायों का विवियोग
59. जहां कक िह ऋर् उपदर्िणत हो, वजसका उन्मोचि ककया जािा है, िहां संदायों का उपयोजि––जहां कक कोई ऋर्ी, वजस
पर एक व्यवक्त के कई सुवभन्ि ऋर् हों उस व्यवक्त को या तो अवभव्यक्त प्रज्ञापिा सवहत या ऐसी पररवस्थवतयों में, वजिसे वििवित हो

1
िारा 62 तथा िारा 63 भी देविए ।
2
िारा 65 भी देविए ।
18

कक िह संदाय ककसी विविष्ट ऋर् के उन्मोचि के वलए उपयोवजत ककया जािा है, कोई संदाय करता है िहां उस संदाय को, यकद िह
प्रवतगृहीत कर वलया जाए, तद्िुसार उपयोवजत करिा होगा ।
दृष्टांत
(क) अन्य ऋर्ों के साथ-साथ एक िचिपत्र पर, जो पहली जूि को िोध्य है, ि का क 1,000 रुपए का देिदार है । िह ि को
उसी रकम के ककसी अन्य ऋर् का देिदार िहीं है । पहली जूि को ि को क 1,000 रुपए देता है । यह संदाय िचिपत्र का उन्मोचि
करिे के वलए उपयोवजत ककया जािा है ।
(ि) अन्य ऋर्ों के साथ-साथ ि को क 567 रुपए का देिदार है । क से ि इस रावि के संदाय की वलवित मांग करता है । ि
को क 567 रुपए भेजता है । यह संदाय उस ऋर् के उन्मोचि के वलए उपयोवजत ककया जािा है वजिके संदाय की मांग ि िे की थी ।
60. जहां कक िह ऋर् उपदर्िणत ि हो वजसका उन्मोचि ककया जािा है, िहां संदाय का उपयोजि––जहां कक ऋर्ी िे यह
प्रज्ञावपत िहीं ककया है और कोई अन्य ऐसी पररवस्थवतयां िहीं हैं वजिसे यह उपदर्िणत होता हो कक िह संदाय ककस ऋर् के वलए
उपयोवजत ककया जािा है िहां लेिदार स्िवििेकािुसार उसे ऐसे ककसी विविपूर्ण ऋर् मद्दे उपयोवजत कर सके गा, जो ऋर्ी द्वारा उसे
िस्तुत: िोध्य और देय हो, चाहे उसकी िसूली िादों की पररसीमा सम्बन्िी तत्समय प्रिृत्त विवि द्वारा िाररत हो या ि हो ।
61. जहां कक दोिों पिकारों में से कोई भी विवियोग िहीं करता है िहां संदाय का उपयोजि––जहां कक दोिों पिकारों में से
कोई भी विवियोग िहीं करता िहां िह संदाय समयक्रमािुसार ऋर्ों के उन्मोचि में उपयोवजत ककया जाएगा, चाहे िे ऋर् िादों की
पररसीमा सम्बन्िी तत्समय प्रिृत्त विवि द्वारा िाररत हों या ि हों । यकद ऋर् समकावलक हैं तो संदाय हर एक के उन्मोचि में
अिुपातत: उपयोवजत ककया जाएगा ।
िे संविदाएं वजिका पालि करिे की आिश्यकता िहीं है
62. संविदा के ििीयि, वििंडि और पररितणि का प्रभाि––यकद ककसी संविदा के पिकार उसके बदले एक िई संविदा
प्रवतस्थावपत करिे या उस संविदा को वििंवडत या पररिर्तणत करिे का करार करें तो मूल संविदा का पालि करिे की
आिश्यकता ि होगी ।
दृष्टांत
(क) क एक संविदा के अिीि ि को िि का देिदार है । क, ि और ग के बीच यह करार होता है कक ि तत्पश्चात क के बजाय
ग को अपिा ऋर्ी मािेगा । क पर ि के पुरािे ऋर् का अन्त हो गया है और ग पर ि के एक िए ऋर् की संविदा हो गई है ।
(ि) ि का क 10,000 रुपए का देिदार है । ि से क ठहराि करता है और ि को 10,000 रुपए के ऋर् के बदले 5,000 रुपए
के वलए क की सम्पदा बन्िक करता है । यह िई संविदा है और पुरािी को वििाणवपत कर देती है ।
(ग) क एक संविदा के अिीि ि को 1,000 रुपए का देिदार है । ग का ि 1,000 रुपए का देिदार है । क और ि आदेि देता है
कक िह अपिे बवहयों में ग के िाम 1,000 रुपए जमा कर दे, ककन्तु ग इस ठहराि के वलए अिुमवत िहीं देता । ि अब भी ग का 1,000
रुपए का देिदार है और कोई िई संविदा िहीं की गई है ।
63. िचिगृहीता िचि के पालि से अवभमुवक्त या उसका पररहार दे या कर सके गा––हर िचिगृहीता अपिे को कदए गए
ककसी िचि के पालि1 से अवभमुवक्त या उसका पररहार पूर्णत: या भागत: दे या कर सके गा, या ऐसे पालि के वलए समय ब़िा सके गा,
या उसके स्थाि पर ककसी तृवष्ट को, वजसे िह ठीक समझे, प्रवतगृहीत कर सके गा ।
दृष्टांत
(क) ि के वलए क एक रं गवचत्र बिािे का िचि देता है । तत्पश्चात ि उससे िैसा करिे का वििेि कर देता है । क उस िचि
के पालि के वलए अब आबद्ध िहीं है ।
(ि) ि का क 5,000 रुपए का देिदार है । क उस समय और स्थाि पर, वजस पर 5,000 रुपए थे, ि को 2,000 रुपए देता है
और ि सम्पूर्ण ऋर् की तुवष्ट में उन्हें प्रवतगृहीत कर लेता है । सम्पूर्ण ऋर् का उन्मोचि हो जाता है ।
(ग) ि का क 5,000 रुपए का देिदार है । ि को ग 1,000 रुपए देता है और ि उन्हें क पर अपिे दािे की तुवष्ट में प्रवतगृहीत
कर लेता है । यह संदाय सम्पूर्ण दािे2 का उन्मोचि है ।
(घ) क एक संविदा के अिीि ि का ऐसी ििरावि का देिदार है वजसका पररर्ाम अवभविवश्चत िहीं ककया गया है । क
पररर्ाम अवभविवश्चत ककए वबिा ि को 2,000 रुपए देता है और ि उसे उसकी तुवष्ट में प्रवतगृहीत कर लेता है । यह सम्पूर्ण ऋर् का
उन्मोचि है चाहे उसका पररर्ाम कु छ भी हो ।

1
िारा 135 भी देविए ।
2
िारा 41 भी देविए ।
19

(ङ) ि का क 2,000 रुपए का देिदार है और अन्य लेिदारों का भी ऋर्ी है । ि समेत अपिे लेिदारों से क उिकी
अपिी-अपिी मांगों का 1[प्रिमि] करिे के वलए उन्हें रुपए में आठ आिे देिे का ठहराि करता है । ि को 1,000 रुपए का संदाय ि की
मांग का उन्मोचि है ।
64. िून्यकरर्ीय संविदा के वििंडि के पररर्ाम––जबकक कोई व्यवक्त, वजसके विकल्प पर कोई संविदा िून्यकरर्ीय है, उसे
वििव‍डत कर देता है तब उसके दूसरे पिकार को, उसमें अन्तर्िणष्ट ककसी िचि का, वजसका िह िचिदाता है, पालि करिे की
आिश्यकता िहीं है । िून्यकरर्ीय संविदा को वििंवडत करिे िाले पिकार िे, यकद ऐसी संविदा के ककसी दूसरे पिकार से तदिीि कोई
फायदा प्राप्त ककया है, तो िह ऐसा फायदा, उस व्यवक्त को, वजससे िह प्राप्त2 ककया गया था, यथासंभि प्रत्यािर्तणत कर देगा ।
65. उस व्यवक्त की बाध्यता वजसिे िून्य करार के अिीि या उस संविदा के अिीि जो िून्य हो गई हो फायदा प्राप्त
ककया हो––जबकक ककसी करार के िून्य होिे का पता चले या कोई संविदा िून्य हो जाए तब िह व्यवक्त वजसिे ऐसे करार या संविदा के
अिीि कोई फायदा प्राप्त ककया हो िह फायदा उस व्यवक्त को, वजससे उसिे उसे प्राप्त ककया था, प्रत्यािर्तणत करिे या उसके वलए
प्रवतकर देिे को आबद्ध होगा ।
दृष्टांत
(क) ि के यह िचि देिे के प्रवतफलस्िरूप कक िह क को पुत्री ग से वििाह कर लेगा ि को क 1,000 रुपए देता है । िचि के
समय ग मर चुकी है । करार िून्य है, ककन्तु ि को िे 1,000 रुपए क को प्रवतसंदत्त करिे होंगे ।
(ि) ि से क उसे एक मई के पूिण 250 मि चािल पररदत्त करिे की संविदा करता है । क उस कदि के पूिण के िल 130 मि
पररदत्त करता है और तत्पश्चात कु छ िहीं । ि उस 130 मि को एक मई के पश्चात रिे रिता है । िह क को उसके वलए संदाय करिे
को आबद्ध है ।
(ग) एक गावयका क एक िाट्यगृह प्रबन्िक ि से अगले दो मास में प्रवत सप्ताह में दो रात उसके िाट्यगृह में गािे की संविदा
करती है और ि उसे हर रात के गािे के वलए सौ रुपए देिे के वलए िचिबद्ध होता है । छठी रात को क उस िाट्यगृह से जािबूझकर
अिुपवस्थत रहती है, और पररर्ामस्िरूप ि उस संविदा को वििंवडत कर देता है । ि को उि पांचोें रातों के वलए, वजिमें क िे गाया
था, उसे संदाय करिा होगा ।
(घ) क एक संगीत समारोह में 1,000 रुपए पर, जो अवग्रम कदए जाते हैं, ि के वलए गािे की संविदा करती है । क इतिी रुग्र्
है कक गा िहीं सकती । क उि लाभों की हावि के वलए प्रवतकर देिे को आबद्ध िहीं है जो ि को होते यकद क गा सकती ककन्तु उसे अवग्रम
कदए गए, 1,000 रुपए ि को लौटािे होंगे ।
66. िून्यकरर्ीय संविदा के वििंडि का संसच ू िा या प्रवतसंहरर् की रीवत—िून्यकरर्ीय संविदा का वििंडि उसी प्रकार और
उन्हीं वियमों के अध्यिीि संसूवचत या प्रवतसंहृत ककया जा सके गा जो प्रस्थापिा3 की संसूचिा या प्रवतसंहरर् को लागू है ।
67. पालि के वलए युवक्तयुक्त सौकयण िचिदाता को देिे में िचिगृहीता की उपेिा का प्रभाि—यकद कोई िचिगृहीता
ककसी िचिदाता को उसके िचि के पालि के वलए युवक्तयुक्त सौकयण देिे में उपेिा या देिे से इन्कार करे तो तदद्वारा काररत ककसी भी
अपालि के बारे में ऐसी उपेिा या इन्कार के कारर् िचिदाता की माफी हो जाती है ।
दृष्टांत
ि के गृह की मरम्मत करिे की ि से क संविदा करता है ।
वजि स्थािों में उसके गृह की मरम्मत अपेवित है, ि उन्हें क को बतािे में उपेिा या बतािे से इन्कार करता है ।
संविदा के अपालि के वलए क की माफी हो जाती है यकद िह ऐसी उपेिा या इन्कार से काररत हुआ हो ।
अध्याय 5

संविदा द्वारा सृवजत सम्बन्िों के सदृि कवतपय सम्बन्िों के वििय में


68. संविदा करिे में असमथण व्यवक्त को या उसके लेिे प्रदाय की गई आिश्यक िस्तुओं के वलए दािा—यकद ककसी ऐसे व्यवक्त
को, जो संविदा करिे में असमथण है या ककसी ऐसे व्यवक्त को वजसके पालि-पोिर् के वलए िह िैि रूप से आबद्ध हो, जीिि में उसकी
वस्थवत के योग्य आिश्यक िस्तुएं ककसी अन्य व्यवक्त द्वारा प्रदाय की जाती है तो िह व्यवक्त वजसिे ऐसे प्रदाय ककए हैें, ऐसे असमथण
व्यवक्त4 की सम्पवत्त से प्रवतपूर्तण पािे का हकदार है ।

1
1891 के अविवियम सं० 12 की िारा 2 तथा अिुसूची 2, भाग 1 द्वारा “प्रवतकर” के स्थाि पर प्रवतस्थावपत ।
2
िारा 75 भी देविए ।
3
िारा 3 तथा िारा 5 भी देविए ।
4
मध्य प्रांतों में सरकारी प्रवतपाल्य की संपवत्त इस िारा के अिीि दायी िहीं है ; देविए सेन्रल प्राविन्सेस कोटण आफ िार्डसण ऐक्ट, 1899 (1899 का 24) की
िारा 31 )1) ।
20

दृष्टांत
(क) ि को, जो पागल है, जीिि में उसकी वस्थवत के योग्य आिश्यक िस्तुओं का प्रदाय क करता है । ि की सम्पवत्त से क
प्रवतपूर्तण पािे का हकदार है ।
(ि) ि को, जो पागल है, पत्िी और बच्चों को जीिि में उिकी वस्थवत के योग्य आिश्यक िस्तुओं का प्रदाय क करता है । ि
की सम्पवत्त से क प्रवतपूर्तण पािे का हकदार है ।
69. उस व्यवक्त की प्रवतपूर्तण जो ककसी अन्य द्वारा िोध्य ऐसा िि देता है वजसके संदाय में िह व्यवक्त वहतबद्ध है—िह
व्यवक्त जो उस िि के , वजसके संदाय के वलए कोई अन्य व्यवक्त विवि द्वारा आबद्ध है, संदाय में वहतबद्ध है और इसवलए उसका संदाय
करता है, उस अन्य से प्रवतपूर्तण पािे का हकदार है ।
दृष्टांत
जमींदार क के द्वारा अिुदत्त पट्टे पर ि बंगाल में भूवम िारर् करता है । क द्वारा सरकार को देय राजस्ि के बकाया में होिे के
कारर् उसकी भूवम सरकार द्वारा विक्रय के वलए विज्ञावपत की जाती है । ऐसे विक्रय का राजस्ि-विवि के अिीि पररर्ाम ि के पट्टे का
बावतल ककया जािा होगा । ि विक्रय का और उसके पररर्ामस्िरूप अपिे पट्टे के बावतल ककए जािे को वििाररत करिे के वलए क द्वारा
िोध्य रावि सरकार को संदत्त करता है । क इस प्रकार संदत्त रकम की ि को प्रवतपूर्तण करिे के वलए आबद्ध है ।
70. िािुग्रवहक कायण का फायदा उठािे िाले व्यवक्त की बाध्यता—जहां कक कोई व्यवक्त ककसी अन्य व्यवक्त के वलए कोई बात
या उसे ककसी चीज का पररदाि 1 आिुग्रवहकतः करिे का आिय ि रिते हुए विविपूिणक करता है और ऐसा अन्य व्यवक्त उसका फायदा
उठाता है िहां िह पश्चात्कवथत व्यवक्त, उस पूिणकवथत व्यवक्त को ऐसे की गई बात या पररदत्त चीज के बारे में प्रवतकर देिे या उसे
प्रत्यािर्तणत करिे के वलए आबद्ध है ।
दृष्टांत
(क) एक व्यापारी क कु छ माल ि के गृह पर भूल से छोड़ जाता है । ि उस माल को अपिे माल के रूप में बरतता है । उसके
वलए क को संदाय करिे के वलए िह आबद्ध है ।
(ि) ि की सम्पवत्त को क आग से बचाता है । यकद पररवस्थवतयां दर्िणत करती हों कक क का आिय आिुग्रवहकतः कायण करिे
का था, तो िह ि से प्रवतकर पािे का हकदार िहीं है ।
71. माल पड़ा पािे िाले का उत्तरदावयत्ि—िह व्यवक्त, जो ककसी अन्य का माल पड़ा पाता है और उसे अपिी अवभरिा में
लेता है, उसी उत्तरदावयत्ि के अध्यिीि है वजसके अध्यिीि उपविवहती 2 होता है ।
72. उस व्यवक्त का दावयत्ि वजसको भूल से या प्रपीड़ि के अिीि िि का संदाय या चीज का पररदाि ककया जाता है —वजस
व्यवक्त को भूल से या प्रपीड़ि के अिीि िि संदत्त ककया गया है या कोई चीज पररदत्त की गई है, उसे उसका प्रवतसंदाय या िापसी
करिी होगी ।
दृष्टांत
(क) क और ि संयुक्तत: ग के 100 रुपए के देिदार हैं । अके ला क ही ग को िह रकम संदत्त कर देता है और इस तथ्य को ि
जािते हुए, ग को ि 100 रुपए कफर संदत्त कर देता है । इस रकम का ि को प्रवतसंदाय करिे के वलए ग आबद्ध है ।
(ि) एक रे ल-कम्पिी परे विती केो अमुक माल, जब तक कक िह उसके िहि के वलए अिैि प्रभार ि दे, पररदत्त करिे से
इन्कार करती है । परे विती माल को अवभप्राप्त करिे के वलए प्रभार की िह रावि संदत्त कर देता है । िह उस प्रभार में से उतिा िसूल
करिे का हकदार है वजतिा अविवितः अविक था ।
अध्याय 6

संविदा-भंग के पररर्ामों के वििय में


73. संविदा-भंग से काररत हावि या िुकसाि के वलए प्रवतकर—जब कक कोई संविदा भंग कर दी गई है तब िह पिकार, जो
ऐसे भंग से िवत उठाता है, उस पिकार से, वजसिे संविदा भंग की है, अपिे को तदद्वारा काररत ककसी ऐसी हावि या िुकसाि के वलए
प्रवतकर पािे का हकदार है जो ऐसी घटिाओं के प्रावयक अिुक्रम में प्रकृ त्या ऐसे भंग से उद्भूत हुआ हो, वजसका संविदा-भंग का संभाव्य
पररर्ाम होिा पिकार उस समय जािते थे जब उन्होंिे संविदा की थी ।
ऐसा प्रवतकर उस भंग के कारर् उठाई गई ककसी दूरस्थ और परोि हावि या िुकसाि के वलए िहीं कदया जािा है ।

1
प्रेवसडेंसी लघुिाद न्यायालयों में िारा 70 के अिीि अप्राप्तियों के िादों के बारे में देविए प्रेवसडेन्सी लघुिाद न्यायालय अविवियम, 1882 )1882 का 15( की
िारा 32 ।
2
िारा 151 तथा िारा 152 भी देविए ।
21

संविदा द्वारा सृवजत बाध्यताओं के सदृिय बाध्यता का वििणहि करिे में असफल रहिे पर प्रवतकर—जब कक कोई बाध्यता, जो
संविदा द्वारा सृर्जणत बाध्यताओं के सदृश्य हो, उपगत कर ली गई है और उसका वििणहि िहीं ककया गया है तब कोई भी व्यवक्त, वजसे
उसके वििणहि में असफलता से िवत हुई हो, व्यवतक्रम करिे िाले पिकार से िही प्रवतकर पािे का हकदार है मािो ऐसे व्यवक्त िे उस
बाध्यता का वििणहि करिे की संविदा की हो, और उसिे अपिी उस संविदा का भंग ककया हो ।
स्पष्टीकरर्—ककसी संविदा-भंग से उद्भूत हावि या िुकसाि का प्राक्कलि करिे में उि साििों को दृवष्ट में रििा होगा जो
संविदा के अपालि से हुई असुवििा का उपचार करिे के वलए ितणमाि थे ।
दृष्टांत
(क) क, संविदा करता है कक िह अमुक कीमत पर ि को 50 मि िोरा बेचेगा और पररदत्त करे गा, और कीमत उसके पररदाि
पर संदत्त की जाएगी । क अपिे िचि को भंग कर देता है । ि प्रवतकर के रूप में क से उतिी रावि, यकद कोई हो, पािे का हकदार है,
वजतिी से संविदा िाली कीमत उस कीमत से कम है वजतिी पर ि िैसी क्िावलटी का 50 मि िोरा उस समय अवभप्राप्त कर सकता था
वजस समय िह िोरा पररदत्त ककया जािा चावहए था ।
(ि) ि के पोत को मुम्बई जािे और िहां पहली जििरी को क द्वारा उपबवन्ित ककया जािे िाला स्थोरा भरिे और कलकत्ता
लािे के वलए क भाड़े पर लेता है । ढु लाई उपार्जणत होिे पर दी जािी है । ि का, पोत मुम्बई िहीं जाता, ककन्तु िैसे ही फायदाप्रद
विबणन्ििों पर, वजि पर क िे िह पोत भाड़े पर वलया था, उस स्थोरा के वलए उपयुक्त प्रिहर् याि उपाप्त करिे के अिसर क को प्राप्त
हैें । क उि अिसरों का उपयोग करता है ककन्तु उसे िैसा करिे में कष्ट और व्यय उठािा पड़ता है । क ऐसे कष्ट और व्यय के वलए ि से
प्रवतकर पािे का हकदार है ।
(ग) ि से कवथत कीमत पर 50 मि चािल िरीदिे की संविदा क करता है । चािल के पररदाि के वलए कोई समय वियत िहीं
है । तत्पश्चात ि को क यह जतला देता है कक यकद चािल विविदत्त ककया गया तो िह उसे प्रवतगृहीत िहीं करे गा । क से ि प्रवतकर के
रूप में उतिी रकम यकद कोई हो, पािे का हकदार है वजतिी से संविदा कीमत उस कीमत से अविक है जो ि उस समय चािल के वलए
अवभप्राप्त कर सकता हो वजस समय ि को क जतलाता है कक िह चािल प्रवतगृहीत िहीं करे गा ।
(घ) ि को पोत को 60,000 रुपए पर िरीदिे की संविदा क करता है, ककन्तु अपिा िचि भंग कर देता है । क प्रवतकर के रूप
में ि को िह अविकाई, यकद कोई हो, देगा वजतिी से संविदा-कीमत उस कीमत से अविक हो, जो ि िचि-भंग के समय पोत के वलए
अवभप्राप्त कर सकता था ।
(ङ) क, जो एक िौका का स्िामी है, विविर्दणष्ट कदि प्रस्थाि करके वमजाणपुर को िहां विक्रय के वलए पटसि के स्थोरा को ले
जािे की ि से संविदा करता है । ककसी पररहायण हेतुक से िौका वियत समय पर प्रस्थाि िहीं करती वजससे िह स्थोरा वमजाणपु र में उस
समय के पश्चात पहुंचता है वजस समय िह पहुंचता यकद उस िौका िे संविदा के अिुसार प्रस्थाि ककया होता । उस तारीि के पश्चात
और स्थोरा के पहुंचिे से पूिण पटसि की कीमत वगर जाती है । क द्वारा ि को देय प्रवतकर का पररर्ाम िह अन्तर है जो उस कीमत का,
जो स्थोरा के वलए ि वमजाणपुर में उस समय अवभप्राप्त कर सकता था जब कक िह पहुंचता यकद िह सम्यक अिुक्रम में भेजा गया होता
उस कीमत से है, जो उस समय, उस स्थोरा की बाजार में हो, जब िह िास्ति में पहुंचा ।
(च) ि के गृह की मरम्मत अमुक प्रकार से करिे के वलए संविदा क करता है और उसके वलए संदाय अवग्रम पाता है । क गृह की
मरम्मत कर करता है ककन्तु संविदा के अिुसार िहीं । ि िह िचाण क से िसूल करिे का हकदार है जो इसवलए करिा हो कक मरम्मत
संविदा के अिुरूप हो जाए ।
(छ) क अपिा पोत अमुक भाड़े पर ि को पहली जििरी से एक ििण के वलए देिे की संविदा करता है । ढु लाई की दरें च़ि
जाती हैं और पहली जििरी को पोत के वलए अवभप्राय: भाड़ा संविदा भोड़े से ऊंचा है । क अपिा िचि भंग करता है । उसे संविदा-भाड़े
और उस भाड़े के बीच के अन्तर के बराबर की रावि ि को प्रवतकर के रूप में देिी होगी वजस पर ि पहली जििरी को और एक ििण के
वलए िैसे ही पोत को भाड़े पर ले सकता हो ।
(ज) ि को लोहे की अमुक मात्रा ऐसी वियत कीमत पर प्रदाय करिे की संविदा क करता है जो उस कीमत से ऊंची है वजस पर
क उस लोहे का उपापि और पररदाि कर सकता है । ि उस लोहे को लेिे से सदोि इन्कार कर देता है । लोहे की संविदा-कीमत और उस
रावि के बीच का अन्तर, वजस पर क उस लोहे को अवभप्राप्त और पररदत्त कर सकता है, क के प्रवत प्रवतकर के रूप में ि को देिा होगा ।
(झ) ि को, जो सेामान्य िाहक है, क एक मिीि क की वमल तक अविलम्ब प्रिवहत ककए जािे के वलए यह जािकारी देकर
पररदत्त करता है कक उस मिीि के अभाि में क की वमल रुकी पड़ी है । ि मिीि के पररदाि में अयुवक्तयुक्त विलम्ब करता है और
सरकार के साथ होिे िाली लाभदायक संविदा क के हाथ से उसके पररर्ामस्िरूप विकल जाती है । क, प्रवतकर के रूप में ि से उस
औसत लाभ की रकम पािे का हकदार है जो उस समय के दौराि में , वजसमें उसका पररदाि विलवम्बत हुआ, वमल के चालू रहिे से हुआ
होता, ककन्तु सरकार के साथ होिे िाली संविदा के हाथ से विकल जािे से हुई हावि के वलए प्रवतकर पािे का हकदार िहीं है ।
(ञ) ि से क यह संविदा करता है कक िह 100 रुपए प्रवत टि की दर से 1,000 टि लोहा, जो कवथत समय पर पररदत्त ककया
जाएगा, उसे प्रदाय करे गा । िह ग को यह बतलाकर कक मैं ि के साथ हुई अपिी संविदा का पालि करिे के प्रयोजि से तुम से संविदा
कर रहा हूं उससे 80 रुपए प्रवत टि दर से 1,000 टि लोहा लेिे की संविदा करता है । क के साथ अपिी संविदा का पालि करिे में ग
22

असफल होता है । क दूसरा लोहा उपाप्त िहीं कर सकता और उसके पररर्ामस्िरूप ि संविदा का वििंडि कर देता है । क के प्रवत ग
को, 20,000 रुपए देिे होंगे जो उस लाभ की रकम है जो ि से अपिी संविदा का पालि करिे पर क प्राप्त करता ।
(ट) क अमुक मिीिरी को विविर्दणष्ट कीमत पर वियत कदि तक बिािे और पररदत्त करिे की ि से संविदा करता है । क उस
मिीिरी को विविर्दणष्ट समय पर पररदत्त िहीं करता और इसके पररर्ामस्िरूप ि उस कीमत से, जो िह क को देिे िाला था, ऊंची
कीमत पर कोई दूसरी मिीिरी उपाप्त करिे के वलए वििि हो जाता है, और उस संविदा का पालि िहीं कर सकता जो क के साथ की
गई अपिी संविदा के समय ि िे एक पर-व्यवक्त से की थी (ककं तु वजसकी सूचिा उसिे तब तक क को िहीं दी थी) और उस संविदा के
भंग के वलए प्रवतकर देिे को वििि ककया जाता है । संविदा द्वारा वियत मिीिरी की कीमत और ि द्वारा ककसी दूसरी मिीिरी के वलए
दी गई रावि के बीच का अंतर प्रवतकर के रूप में ि के प्रवत क को देिा होगा ककन्तु िह रावि िहीं, जो ि द्वारा पर-व्यवक्त को प्रवतकर
के रूप में दी गई थी ।
(ठ) एक विमाणता क पहली जििरी तक एक गृह विर्मणत और पूरा करिे की संविदा करता है वजससे ग को, वजसे उस गृह को
भाटक पर देिे की ि िे संविदा की है, ि उसका कब्जा उस समय दे सके । ि और ग के बीच की संविदा की जािकारी क को दे दी जाती
है । क गृह को इतिी बुरी तरह से विर्मणत करता है कक पहली जििरी से पूिण िह वगर जाता है और ि को उसका पुिर्िणमाणर् करिा
पड़ता है, वजसके पररर्ामस्िरूप िह उस भाटक की, जो उसे ग से वमलता हावि उठाता है और ग को अपिी संविदा के भंग के वलए
प्रवतकर देिे को बाध्य हो जाता है । गृह के पुिर्िणमाण र् के िचण के वलए, भाटक की हावि के वलए और ग को कदए गए प्रवतकर के वलए ि
के प्रवत क को प्रवतकर देिा होगा ।
(ड) ि को क कु छ िावर्ज्येा यह िार‍टी देते हुए बेचता है कक िह एक विविष्ट क्िावलटी की है और इस िारं टी के भरोसे ि
िैसी ही िारं टी पर उसे ग को बेच देता है । िह माल िारं टी के अिुसार सावबत िहीं होता और ग को ि एक ििरावि प्रवतकर के रूप में
देिे का दायी हो जाता है । ि इस रावि की क द्वारा प्रवतपूर्तण का हकदार है ।
(ढ) क विविर्दणष्ट कदि ि को एक ििरावि देिे की संविदा करता है । क िह िि उस कदि िहीं देता । उस कदि िि ि पािे के
पररर्ामस्िरूप ि अपिे ऋर् के संदाय में असमथण रहता है और पूर्णतया बरबाद हो जाता है । ि को संदाय करिे के कदि तक के ब्याज
सवहत उस मूल रावि के वसिाय, वजसके संदाय की उसिे संविदा की थी, ि की अन्य कोई प्रवतपूर्तण करिे के वलए क दायी िहीं है ।
(र्) क अमुक कीमत पर 50 पर मि िोरा पहली जििरी को ि को पररदत्त करिे की संविदा करता है । तत्पश्चात ि पहली
जििरी से पूिण उस िोरे को पहली जििरी की बाजार-कीमत से ऊंची कीमत पर ग को बेचिे की संविदा करता है । क अपिा िचिभंग
करता है । क द्वारा ि को देय प्रवतकर का प्राक्कलि करिे में पहली जििरी की बाजार-कीमत, ि कक िह लाभ, जो ि को क के हाथ
बेचिे से वमलता, गर्िा में वलया जािा है ।
(त) क रुई की 500 गांठें ि को बेचिे और एक वियत कदि पर पररदत्त करिे की संविदा करता है । ि के अपिे कारबार के
संचालि के ढंग के बारे में क कु छ िहीं जािता । क अपिा िचि-भंग करता है और ि रुई ि होिे के कारर् अपिी वमल बंद करिे के वलए
वििि हो जाता है । वमल बंद होिे से ि को काररत हावि के वलए ि के प्रवत क उत्तरदायी िहीं है ।
(थ) अमुक कपड़ा वजससे ि ऐसी विविष्ट ककस्म की टोवपयां बिािे का आिय रिता है वजसके वलए उि कदिों के वसिाय और
कभी कोई मांग िहीं होती, ि को बेचिे और पहली जििरी को पररदत्त करिे की संविदा क करता है । िह कपड़ा वियत के पश्चात तक
पररदत्त िहीं ककया जाता और टोवपयां बिािे में, उस ििण उसे उपयोग में िहीं लाया जा सकता । कपड़े की संविदा-कीमत और पररदाि
के समय उसके बाजार-दाम के अंतर को प्रवतकर के रूप में क से ि पािे का हकदार है ककं तु िह ि तो उि लाभों को पािे का हकदार है
वजिको िह टोवपयां बिािे से अवभप्राप्त करिे की आिा करता था, और ि उि व्ययों को, जो टोवपयां बिािे के वलए की गई तैयारी में
उसे करिे पड़े हों ।
(द) क, जो एक पोत का स्िामी है, ि से संविदा करता है कक िह उसे पहली जििरी को यात्रारं भ करिे िाले पोत में कलकत्ते
से वसडिी ले जाएगा और ि यात्रा भाडेे़ का आिा भाग वििेप के रूप में क को दे देता है । िह पोत पहली जििरी को यात्रारं भ िहीं
करता है उसके पररर्ामस्िरूप कु छ समय के कलकत्ते में रुके रहिे और उस कारर् कु छ व्यय उठािे के पश्चात ि एक अन्य जलयाि में
वसडिी के वलए प्रस्थाि करता है और पररर्ास्िरूप वसडिी में देरी से पहुंचिे के कारर् कु छ ििरावि की हावि उठाता है । ि को ब्याज
सवहत उसका वििेप, और िे व्यय जो उसे कलकत्ते में रुके रहिे के कारर् उठािे पड़े और पहले पोत के वलए करार पाए गए भाडेे़ से दूसरे
पोत के वलए कदए गए यात्रा भाड़े की अविकाई, यकद कु छ हो, प्रवतदत्त करिे का क दायी है ककं तु िह उस िि के वलए दायी िहीं है
वजसकी हावि ि िे वसडिी में देर से पहुचंिे के कारर् उठाई है ।
74. जहां कक िावस्त का अिुबि
ं है िहां संविदा भंग के वलए प्रवतकर—1[जबकक कोई संविदा-भंग कर दी गई है, तब, यकद उस
संविदा में ऐसी कोई रावि िावमत हो जो ऐसे भंग की अिस्था में संदेय होगी या यकद िावस्त के तौर का कोई अन्य अिुबंि उस संविदा
में अंतर्िणष्ट हो तो चाहे यह सावबत ककया गया हो या िहीं कक उस भंग से िस्तुतः िुकसाि या हावि हुई है , भंग का पररिाद करिे िाला
पिकार उस पिकार से वजसिे संविदा भंग की है, यथावस्थवत, ऐसी िावमत रकम से या अिुबद्ध िावस्त से अिविक युवक्तयुक्त प्रवतकर
पािे का हकदार होगा ।
स्पष्टीकरर्—व्यवतक्रम की तारीि से िर्िणत ब्याज के वलए अिुबंि िावस्त के तौर का अिुबंि हो सकता है ।]

1
1899 के अविवियम सं० 6 की िारा 4 द्वारा िारा 74 के प्रथम पैरा के स्थाि पर प्रवतस्थावपत ।
23

अपिाद—जब कक कोई व्यवक्त कोई जमाितिामा, मुचलका या उसी प्रकृ वत की अन्य वलित करता है, अथिा ककसी विवि के
उपबंिों के अिीि, या 1[के न्द्रीय सरकार] के या ककसी राज्य सरकार के आदेिों के अिीि कोई बंिपत्र ककसी लोक कतणव्य के या ऐसे कायण
के , वजसमें जिता वहतबद्ध हो, पालि के वलए देता है, तब िह ककसी ऐसी वलित की ितण के भंग होिे पर उसमें िर्र्णत संपूर्ण रावि देिे
के वलए दायी होगा ।
स्पष्टीकरर्—िह व्यवक्त जो सरकार से कोई संविदा करता है तदद्वारा आिश्यकत: ि तो ककसी लोक-कतणव्य का भार लेता है
ि ऐसा कायण करिे का िचि देता है वजसमें जिता वहतबद्ध हो ।
दृष्टांत
(क) ि से क संविदा करता है कक यकद िह ि को एक विर्दणष्ट कदि 500 रुपए देिे में असफल रहे तो िह ि को, 1,000 रुपए
देगा । क उस कदि ि को 500 रुपए देिे में असफल रहता है । क से ि 1,000 रुपए से अिविक ऐसा प्रवतकर, जो न्यायालय युवक्तयुक्त
समझे, िसूल करिे का हकदार है ।
(ि) ि से क संविदा करता है कक यकद क कलकत्ते के भीतर िल्य-वचककत्सक के रूप में व्यिसाय करे गा तो िह ि को 5,000
रुपए देगा । क कलकत्ते में िल्य वचककत्सक के रूप में व्यिसाय करता है । ि 5,000 रुपए से अिविक उतिा प्रवतकर पािे का हकदार है
वजतिा न्यायालय युवक्तयुक्त समझे ।
(ग) क अमुक कदि न्यायालय में स्ियं उपसंजात होिे के वलए मुचलका देता है वजससे ऐसा ि करिे पर िह 500 रुपए की
िावस्त देिे के वलए आबद्ध है । उसका मुचलका समपहृत हो जाता है । यह सम्पूर्ण िावस्त देिे का दायी है ।
ि को क छह मास के अंत पर 1,000 रुपए 12 प्रवतित ब्याज के सवहत संदाय करिे का बंिपत्र इस अिुबंि के साथ
2[(घ)

वलि देता है कक व्यवतक्रम की दिा में ब्याज व्यवतक्रम की तारीि से 75 प्रवतित की दर से देय होगा । यह िावस्त के तौर का अिुबंि है
और क से ि के िल ऐसा प्रवतकर िसूल करिे का हकदार है जो न्यायालय युवक्तयुक्त समझे ।
(ङ) क, जो एक साहूकार ि को िि का देिदार है, यह िचिबंि करता है कक िह उसको अमुक कदि 10 मि अिाज पररदत्त
करिे द्वारा प्रवतसंदाय करे गा और यह अिुबंि करता है कक यकद िह वियत पररर्ाम वियत तारीि तक पररदत्त ि करे तो िह 20 मि
पररदाि करिे का दायी होगा । यह िावस्त के तौर का अिुबंि है और भंग की दिा में ि के िल युवक्तयुक्त प्रवतकर का ही हकदार है ।
(च) ि को क, 1,000 रुपए के उिार को पांच मावसक सम ककस्तों में प्रवतसंदत्त करिे के वलए इस अिुबंि के साथ िचिबद्ध
होता है कक ककसी ककस्त के संदाय में व्यवतक्रम होिे पर संपूर्ण रावि िोध्य हो जाएगी । यह अिुबंि िावस्त के तौर का िहीं है, और
संविदा उसके विबंििों के अिुसार प्रिर्तणत कराई जा सके गी ।
(छ) ि से क 100 रुपए उिार लेता है और 200 रुपए के वलए बंिपत्र जो चालीस रुपए की पांच िार्िणक ककस्तों में देय है , इस
अिुबंि के साथ वलि देता है कक ककसी भी ककस्त के संदाय में व्यवतक्रम होिे पर संपूर्ण रावि िोध्य हो जाएगी । यह िावस्त के तौर का
अिुबंि है ।]
75. संविदा को अविकारपूिक
ण वििंवडत करिे िाला पिकार प्रवतकर का हकदार है —िह व्यवक्त, जो ककसी संविदा को
अविकारपूिणक वििंवडत करता है, ऐसे िुकसाि के वलए प्रवतकर पािे का हकदार है जो उसिे उस संविदा के पालि ि ककए जािे से
उठाया है ।
दृष्टांत
एक गावयका क एक िाट्यगृह के प्रबंिक ि से अगले दो मास में प्रवत सप्ताह में दो रात उसके िाट्यगृह में गािे की संविदा
करती है और ि उसे हर रात के गािे के वलए एक सौ रुपए देिे के वलए िचिबद्ध होता है । छठी रात को क उस िाट्यगृह से जािबूझकर
अिुपवस्थत रहती है और पररर्ामस्िरूप ि उस संविदा को वििंवडत कर देता है । ि उस िुकसाि के वलए प्रवतकर का दािा करिे का
हकदार है जो उसिे उस संविदा के पूरा ि ककया जािे से उठाया है ।
अध्याय 7—िाराएं 76—123. [माल का विक्रय]—माल विक्रय अविवियम, 1930 )1930 का 3) की िारा 65
द्वारा विरवसत ।
अध्याय 8

िवतपूर्तण और प्रत्याभूवत के वििय में


124. “िवतपूर्तण की संविदा” की पररभािा—िह संविदा, वजसके द्वारा एक पिकार दूसरे पिकार को स्ियं िचिदाता के
आचरर् से या ककसी अन्य व्यवक्त के आचरर् से उस दूसरे पिकार को हुई हावि से बचािे का िचि देता है “िवतपूर्तण की संविदा”
कहलाती है ।

1
विवि अिुकूलि आदेि, 1937 द्वारा “भारत िासि” के स्थाि पर प्रवतस्थावपत ।
2
1899 के अविवियम सं० 6 की िारा 4 द्वारा जोड़ा गया ।
24

दृष्टांत
क ऐसी कायणिावहयों के पररर्ामों के वलए, जो ग 200 रुपए की अमुक रावि के संबंि में ि के विरुद्ध चलाए, ि की िवतपूर्तण
करिे की संविदा करता है । यह िवतपूर्तण की संविदा है ।
125. िवतपूर्तणिारी के अविकार जब कक उस पर िाद लाया जाए—िवतपूर्तण को संविदा का िचिगृहीता, अपिे प्राविकार के
िेत्र के भीतर कायण करता हुआ, िचिदाता से विम्िवलवित िसूल करिे का हकदार है—
)1) िह सब िुकसािी, वजसके संदाय के वलए िह ऐसे ककसी िाद में वििि ककया जाए जो ककसी ऐसी बात के बारे
में हो, वजसे िवतपूर्तण करिे का िह िचि लागू हो ;
)2) िे सब िचे, वजिको देिे के वलए, िह ऐसे ककसी िाद में वििि ककया जाए, यकद िह िाद लािे या प्रवतरिा
करिे में उसिे िचिदाता के आदेिों का उल्लंघि ि ककया हो और इस प्रकार कायण ककया हो वजस प्रकार कायण करिा िवतपूर्तण
की ककसी संविदा के अभाि में उसके वलए प्रज्ञायुक्त होता, अथिा यकद िचिदाता िे िह िाद लािे या प्रवतरिा करिे के वलए
उसे प्राविकृ त ककया हो ;
)3) िे सब ििरावियां, जो उसिे ऐसे ककसी िाद के ककसी समझौते के विबंििों के अिीि दी हो, यकद िह समझौता
िचिदाता के आदेिों के प्रवतकू ल ि रहा हो और ऐसा रहा हो जैसा समझौता िवतपूर्तण की संविदा के अभाि में िचिगृहीता
के वलए करिा प्रज्ञायुक्त होता अथिा यकद िचिदाता िे उस िाद का समझौता करिे के वलए उसे प्राविकृ त ककया हो ।
126. “प्रत्याभूवत की संविदा”, “प्रवतभू”, “मूलऋर्ी” और “लेिदार”—“प्रत्याभूवत की संविदा” ककसी पर-व्यवक्त द्वारा
व्यवतक्रम की दिा में उसके िचि का पालि या उसके दावयत्ि का वििणहि करिे की संविदा है । िह व्यवक्त जो प्रत्याभूवत देता है
“प्रवतभू” कहलाता है, िह व्यवक्त, वजसके व्यवतक्रम के बारे में प्रत्याभूवत दी जाती है “मूलऋर्ी” कहलाता है, और िह व्यवक्त वजसको
प्रत्याभूवत दी जाती है “लेिदार” कहलाता है । प्रत्याभूवत या तो मौविक या वलवित हो सके गी ।
127. प्रत्याभूवत के वलए प्रवतफल—मूलऋर्ी के फायदे के वलए की गई कोई भी बात या कदया गया कोई िचि प्रवतभू द्वारा
प्रत्याभूवत कदए जािे का पयाणप्त प्रवतफल हो सके गा ।
दृष्टांत
(क) क से ि माल उिार बेचिे और पररदत्त करिे की प्राथणिा करता है । क िैसा करिे को इस ितण पर रजामंद हो जाता है कक
ग माल की कीमत के संदाय की प्रत्याभूवत दे । क के इस िचि के प्रवतफलस्िरूप कक िह माल पररदाि करे गा ग संदाय की प्रत्याभूवत
देता है । यह ग के िचि के वलए पयाणप्त प्रवतफल है ।
(ि) ि केो क माल बेचता है और पररदत्त करता है । ग तत्पश्चात क से प्राथणिा करता है कक िह एक ििण तक ऋर् के वलए
ि पर िाद लािे से प्रविरत रहे और िचि देता है कक यकद िह ऐसा करे गा तो ि द्वारा संदाय में व्यवतक्रम होिे पर ग उस माल के वलए
संदाय करे गा । क यथाप्रार्थणत प्रविरत रहिे के वलए रजामंद हो जाता है । यह ग के िचि के वलए पयाणप्त प्रवतफल है ।
(ग) ि को क माल बेचता और पररदत्त करता है । ग तत्पश्चात प्रवतफल के वबिा करार करता है कक ि द्वारा व्यवतक्रम होिे
पर िह माल के वलए संदाय करे गा । करार िून्य है ।
128. प्रवतभू का दावयत्ि—प्रवतभू का दावयत्ि मूलऋर्ी के दावयत्ि के समविस्तीर्ण है जब तक कक संविदा द्वारा अन्यथा
उपबंवित ि हो ।
दृष्टांत
ि को क एक विविमय-पत्र के प्रवतगृहीता ग द्वारा संदाय की प्रत्याभूवत देता है । विविमय-पत्र ग द्वारा अिादृत ककया जाता
है । क ि के िल उस विविमय-पत्र की रकम के वलए, बवल्क उि ब्याज और प्रभारों के वलए भी, जो उस पर िोध्य हो गए हों, दायी है ।
129. “चलत प्रत्याभूवत”—िह प्रवतभूवत वजसका विस्तार संव्यिहारों की ककसी आिली पर हो “चलत प्रत्याभूवत”
कहलाती है ।
दृष्टांत
(क) क इस बात के प्रवतफलस्िरूप कक ि अपिी जमींदारी के भाटकों का संग्रह करिे के वलए ग को िौकर रिेगा ग द्वारा उि
भाटकों के सम्यक संग्रह और संदाय के वलए 5,000 रुपए की रकम तक उत्तरदायी होिे का ि को िचि देता है । यह चलत प्रत्याभूवत है ।
(ि) क एक चाय के व्यापारी ि को, उस चाय के वलए, वजसका िह ग को समय-समय पर प्रदाय करे , 100 पौंड तक की रकम
का संदाय करिे की प्रत्याभूवत देता है । ग को ि उपयुणक्त 100 पौंड से अविक मूल्य की चाय का प्रदाय करता है और ग उसके वलए ि को
संदाय कर देता है । तत्पश्चात ग को ि 200 पौंड मूल्य की चाय का प्रदाय करता है । ग संदाय करिे में असफल रहता है । क द्वारा दी
गई प्रत्याभूवत चलत प्रत्याभूवत थी, और तद्िुसार िह ि के प्रवत 100 पौंड तक का दायी है ।
25

(ग) ि द्वारा ग को पररदत्त ककए जािे िाले आटे के पांच बोरों की कीमत के , जो एक मास में दी जािी है, संदाय के वलए ि को
क प्रत्याभूवत देता है । ग को ि पांच बोरे पररदत्त करता है । ग उिके वलए संदाय कर देता है । ि तत्पश्चात ग को चार बोरे देता है
वजसका संदाय ग िहीं करता है । क द्वारा दी गई प्रत्याभूवत चलत प्रत्याभूवत िहीं थी और इसवलए िह उि चार बोरों की कीमत के वलए
दायी िहीं है ।
130. चलत प्रत्याभूवत का प्रवतसंहरर्—चलत प्रत्याभूवत का भािी संव्यिहारों के बारे में प्रवतसंहरर् लेिदार को सूचिा द्वारा
ककसी भी समय प्रवतभू कर सके गा ।
दृष्टांत
(क) ऐसे विविमय-पत्रों को, जो ग के पि में हों, क की प्राथणिा पर ि द्वारा वमतवेकाटे पर भुगताि के प्रवतफलस्िरूप ि को क
ऐसे सब विविमय-पत्रों पर 5,000 रुपए तक सम्यक संदाय की प्रत्याभूवत बार मास के वलए देता है । 2,000 रुपए तक के ऐसे विविमय-
पत्रों को जो, ग के पि में हैं, ि वमतवेकाटे पर भुगताि करता है, तत्पश्चात तीि मास का अंत होिे पर क उस प्रत्याभूवत का प्रवतसंहरर्
कर लेता है । यह प्रवतसंहरर् क को ि के प्रवत ककसी भी पश्चातिती वमतवेकेाटे पर भुगताि के वलए समस्त दावयत्ि से उन्मोवचत कर
देता है । ककन्तु ग द्वारा व्यवतक्रम होिे पर, क उि 2000 रुपयों के वलए ि के प्रवत दायी है ।
(ि) ि को क 1,000 रुपए तक की यह प्रत्याभूवत देता है कक ग उि सब विविमय-पत्रों का, जो ि उसके िाम वलिेगा, संदाय
करे गा । ग के िाम ि विविमय-पत्र वलिता है । ग उस विविमय-पत्र को प्रवतगृहीत करता है । क प्रवतसंहरर् की सूचिा देता है । ग उस
विविमय-पत्र उसके पररपक्ि होिे पर अिादृत कर देता है । क अपिी प्रत्याभूवत के अिुसार दायी है ।
131. चलत प्रत्याभूवत का प्रवतभू का मृत्यु द्वारा प्रवतसंहरर्—चलत प्रत्याभूवत को, जहां तक कक उसका भािी संव्यिहारों से
संबंि है, प्रवतभू की मृत्यु तत्प्रवतकू ल संविदा के अभाि में प्रवतसंहृत कर देती है ।
132. प्रथमतः दायी दो व्यवक्तयों के दावयत्ि पर उिके बीच के इस ठहराि का प्रभाि िहीं पड़ता कक उिमें से एक के व्यवतक्रम
पर दूसरा प्रवतभू होगा—जब कक दो व्यवक्त ककसी दावयत्ि को अपिे ऊपर लेेिे की ककसी तृतीय व्यवक्त से संविदा करते हैं और िे दोिों
एक दूसरे के साथ भी यह संविदा करते हैें कक एक के व्यवतक्रम पर ही दूसरा दायी होगा, वजस संविदा का िह तृतीय व्यवक्त पिकार
िहीं है, तब ऐसे दोिों व्यवक्तयों में से हर एक के उस तृतीय व्यवक्त के प्रवत प्रथम संविदा के अिीि दावयत्ि पर उस दूसरी संविदा के
अवस्तत्ि का प्रभाि िहीं पड़ता, यद्यवप उस तृतीय व्यवक्त को उसके अवस्तत्ि की जािकारी रही हो ।
दृष्टांत
क और ि संयुक्त और पृथके दावयत्ि िाला एक िचिपत्र ग के पि में वलि देते हैें । क उसे िास्ति में ि के प्रवतभू रूप में
वलिता है और वजस समय िह िचिपत्र वलिा जाता है ग यह बात जािता है । यह तथ्य कक क िे यह िचिपत्र ि के प्रवतभू के रूप में ग
की जािकारी में वलिा था िचिपत्र के आिार पर क के विरुद्ध ग द्वारा ककए गए िाद का कोई उत्तर िहीं है ।
133. संविदा के विबंििों में फे रफार से प्रवतभू का उन्मोचि—जो भी फे रकार मूल 1[ऋर्ी] और लेिदार के बीच की संविदा के
विबंििों में प्रवतभू की सम्मवत के वबिा ककया जाए िह उस फे रफार के पश्चात्िती संव्यिहारों के बारे में प्रवतभूवत का उन्मोचि कर
देता है ।
देृष्टांत
(क) ग के बैंक में प्रबंिक के तौर पर ि के आचरर् के वलए ग के प्रवत क प्रवतभू होता है । तत्पश्चात क की सम्मवत के वबिा ि
और ग संविदा करते हैें कक ि का संबलम ब़िा कदया जाएगा और औिर-ड्राफ्टों से हुई हावि की एक चौथाई का ि दायी है । ि एक
ग्राहक को ओिरड्राफ्ट करिे देता है और बैंक को कु छ िि की हावि होती है । क उसकी सम्मवत के वबिा ककए गए फे रफार के कारर्,
अपिे प्रवतभूत्ि से उन्मोवचत हो जाता है, और इस हावि को पूरा करिे का दायी िहीं है ।
(ि) क एक ऐसे पद पर ि के रहते हुए उसके अिचार के विरुद्ध ग को प्रत्याभूवत देता है वजस पद पर ग द्वारा ि वियुक्त
ककया जाता है और वजसके कतणव्य वििाि-मंडल के एक अविवियम द्वारा पररभावित हैं । एक पश्चात्िती अविवियम द्वारा उस पद की
प्रकृ वत तातेवत्िक रूप से बदल दी जाती है । तत्पश्चात ि अिचार करता है । इस तब्दीली के कारर् क अपिी प्रत्याभूवत के अिीि
भािी दावयत्ि से उन्मोवचत हो जाता है, यद्यवप ि का िह अिचार ऐसे कतणव्य के संबंि में है वजस पर पश्चात्िती अविवियम का प्रभाि
िहीं पड़ता ।
(ग) ग अपिा माल बेचिे के वलए िार्िणक संबलम पर ि को अपिा वलवपक वियुक्त करिे का करार इस बात पर करता है कक
ऐसे वलवपक के िाते ि द्वारा प्राप्त िि का उसके द्वारा सम्यक वहसाब ककए जािे के वलए ग के प्रवत क प्रवतभू हो जाए । तत्पश्चात क के
ज्ञाि या सम्मवत के वबिा ग और ि करार करते हैं कक ि को पाररिवमक उसके द्वारा बेचे गए माल पर कमीिि के रूप में ि कक वियत
संबलम के रूप में, कदया जाएगा । ि के पश्चात्िती अिचार के वलए क दायी िहीं है ।
(घ) ग द्वारा ि को उिार प्रदाय ककए जािे िाले तेल के वलए क 3,000 रुपए तक की चलत प्रत्याभूवत ग को देता है ।
तत्पश्चात ि संकट में पड़ जाता है और क के ज्ञाि के वबिा ि और ग संविदा करते हैें कक ि को ग िकद िि पर तेल प्रदाय करता

1
1917 के अविवियम सं० 24 की िारा 2 तथा अिुसूची 1 द्वारा अंतःस्थावपत ।
26

रहेगा और िे संदाय जो ककए जाएं, ि और ग के उस समय ितणमाि ऋर्ों के वलए उपयोवजत ककए जाएंगे । क इस िए ठहराि के
पश्चात कदए गए ककसी भी माल के वलए अपिी प्रत्याभूवत के अिीि संदाय का दायी िहीं है ।
(ङ) ि को पहली माचण को 5,000 रुपए उिार देिे की संविदा ग करता है । क उस ऋर् से प्रवतसंदाय की प्रत्याभूवत करता है ।
ग 5,000 रुपए ि को पहली जििरी को दे देता है । क अपिे दावयत्ि से उन्मोवचत हो जाता है, क्योंकक संविदा में यह फे रफार हो गयेा
है कक ग रुपयों के वलए ि पर पहली माचण से पूिण िाद ला सकता है ।
134. मूलऋर्ी की विमुवण क्त या उन्मोचि से प्रवतभू का उन्मोचि—लेिदार और मूलऋर्ी के बीच ककसी ऐसी संविदा से,
वजसके द्वारा मूलऋर्ी विमुणक्त हो जाए या लेिदार के ककसी ऐसे कायण या लोप से, वजसका विविक पररर्ाम मूलऋर्ी का उन्मोचि हो,
प्रवतभू उन्मोवचत हो जाता है ।
दृष्टांत
(क) ग द्वारा ि को प्रदाय ककए जािे िाले माल के वलए ग को क प्रत्याभूवत देता है । ि को ग माल प्रदाय करता है और
तत्पश्चात ि संकट में पड़ जाता है और अपिे लेिदारों से (वजिके अंतगणत ग भी है) उिकी मांगोें से अपिे को विमुणक्त ककए जािे के
प्रवतफलस्िरूप, उिको अपिी सम्पवत्त समिुदवे ित करिे की संविदा करता है । यहां ग के साथ की गई इस संविदा द्वारा ि अपिे ऋर् से
विमुणक्त हो जाता है और क अपिे प्रवतभूत्ि से उन्मोवचत हो जाता है ।
(ि) क अपिी भूवम पर िील की फसल उगािे और उसे वियत दर पर ि को पररदत्त करिे की संविदा ि से करता है और ग
इस संविदा के क द्वारा पालि ककए जािे की प्रत्याभूवत देता है । ि एक जलिारा को, जो क की भूवम की ससंचाई के वलए आिश्यक है,
मोड़ देता है और तदद्वारा उसे िील उगािे से वििाररत कर देता है । ग अब अपिी प्रत्याभूवत पर दायी िहीं रहा ।
(ग) ि के वलए एक गृह अिुबद्ध समय के भीतर और वियत कीमत पर बिािे की संविदा ि से क करता है, वजसके वलए
आिश्यक काष्ठ ि द्वारा कदया जाएगा । ग इस संविदा के क द्वारा पालि ककए जािे की प्रत्याभूवत देता है । ि काष्ठ देिे का लोप करता
है । ग अपिे प्रवतभूत्ि से उन्मोवचत हो जाता है ।
135. प्रवतभू का उन्मोचि जब कक लेिदार मूलऋर्ी के साथ प्रिमि करता है, उसे समय देता है या उस पर िाद ि लािे का
करार करता है—लेिदार और मूलऋर्ी के बीच ऐसी संविदा वजससे लेिदार मूलऋर्ी के साथ समझौता कर लेता है या उसे समय देिे
या उस पर िाद ि लािे का िचि देता है, प्रवतभू को तब के वसिाय उन्मोवचत कर देती है जब कक प्रवतभू ऐसी संविदा के वलए अिु मवत दे
देता है ।
136. जब कक मूलऋर्ी को समय देिे का करार पर-व्यवक्त से ककया जाता है तब प्रवतभू उन्मोवचत िहीं होता—जहां कक
मूलऋर्ी केो समय देिे की संविदा लेिदार ककसी पर-व्यवक्त से, ि कक मूलऋर्ी से की जाती है िहां प्रवतभू उन्मोवचत िहीं होता ।
दृष्टांत
ग एक ऐसे अवतिोध्य विविमय-पत्र का िारक है, वजसे क िे ि के प्रवतभू के रूप में वलिा और ि िे प्रवतगृहीत ककया है । ि
को समय देिे की संविदा ङ से ग करता है । क उन्मोवचत िहीं होता ।
137. लेिदार का िाद लािे से प्रिवेरत रहिा प्रवतभू को उन्मोवचत िहीं करता—मूलऋर्ी पर िाद लािे से या उसके विरुद्ध
ककसी अन्य उपचार को प्रिर्तणत करिे से लेिदार केा प्रविरत रहिा मात्र, प्रत्याभूवत में तत्प्रवतकू ल उपबन्ि के अभाि में, प्रवतभू को
उन्मोवचत िहीं करता ।
दृष्टांत
ि एक ऋर् का, वजसकी प्रत्याभूवत क िे दी है, ग को देिदार है । ऋर् देय हो जाता है । ऋर् के देय हो जािे के पश्चात एक
ििण तक ि पर ग िाद िहीं लाता । क अपिे प्रवतभूत्ि से उन्मोवचत िहीं होता ।
138. एक सह-प्रवतभू की विमुवण क्त अन्यों को उन्मोवचत िहीं करती—जहां कक सह-प्रवतभू हो िहां लेिदार द्वारा उिमें से एक
की विमुणक्तवे अन्यों को उन्मोवचत िहीं करती और ि यह ऐसे विमुणक्त प्रवतभू को अन्य प्रवतभूओं1 के प्रवत अपिे उत्तरदावयत्ि से मुक्त
करती है ।
139. लेिदार के ऐसे कायण या लोप से, वजसे प्रवतभू के पाररर्ावमक उपचार का ह्रास होता है, प्रवतभू का उन्मोचि—यकद
लेिदार कोई ऐसा कायण करे जो प्रवतभू के अविकारों से असंगत हो या ककसी ऐसे कायण को करिे का लोप करे वजसके ककए जािे की प्रवतभू
के प्रवत उसका कतणव्य अपेिा करता हो और मूलऋर्ी के विरुद्ध प्रवतभू के अपिे पाररर्ावमक उपचार का तदद्वारा ह्रास हो तो प्रवतभू
उन्मोवचत हो जाएगा ।

1
िारा 44 भी देविए ।
27

दृष्टांत
(क) ग के वलए ि विवश्चत ििरावि के बदले एक पोत विमाणर् करिे की संविदा करता है, जो ििरावि, काम के जैसे-जैसे
अमुक प्रक्रमों तक पहुंचे, िैसे-िैसे ककस्तों में दी जािी है । ि द्वारा संविदा के सम्यक पालि के वलए ग के प्रवत क प्रवतभू हो जाता है । क
के ज्ञाि के वबिा ि को अवन्तम दो ककस्तों का पूिण संदाय ग कर देता है । इस पूिण संदाय के कारर् क उन्मोवचत हो जाता है ।
(ि) ि के फिीचर के ऐसे विक्रयाविकार-पत्र के साथ, जो ग को यह िवक्त देता है कक िह फिीचर बेच दे और उसके आगमों
को िचिपत्र के उन्मोचि में उपयोवजत कर ले । ग के पि में ि द्वारा और ि के प्रवतभू के रूप में क द्वारा वलिे गए संयुक्त एिं पृथक
िचिपत्र की प्रवतभूवत पर ि को ग िि उिार देता है । तत्पश्चात ग उस फिीचर को बेच देता है, ककन्तु उस उपचार और उसके द्वारा
जािबूझकर की गई उपेिा के कारर् के िल थोड़ी कीमत प्राप्त होती है । क उस िचिपत्र के दावयत्ि से उन्मोवचत हो जाता है ।
(ग) ड को ि के पास वििु के रूप में क रिता है और ि को ड की विश्िस्तता की प्रत्याभूवत देता है । ि अपिी ओर से िचि
देता है कक िह प्रवत मास कम से कम एक बार देि लेगा कक ड िे रोकड़ का वमलाि कर वलया है । ि ऐसा करिे का लोप करता है और ड
गबि कर लेता है । ि के प्रवत क अपिी प्रत्याभूवत पर दायी िहीं है ।
140. संदाय या पालि होिे पर प्रवतभू के अविकार—जहां कक कोई प्रत्याभूत ऋर् िोध्य हो गया हो, या प्रत्याभूत कतणव्य के
पालि में मूलऋर्ी से व्यवतक्रम हो गया हो िहां िे सब अविकार, जो लेिदार को मूलऋर्ी के विरुद्ध प्राप्त हों, प्रवतभू द्वारा उस सब के ,
वजसके वलए िह दायी हो, संदाय या पालि पर प्रवतभू में विविवहत हो जाते हैें ।
141. लेिदार की प्रवतभूवतयों का फायदा उठािे का प्रवतभू का अविकार—प्रवतभू हर ऐसी प्रवतभूवत के फायदे का हकदार है
जो उस समय, जब प्रवतभूत्ि की संविदा की जाए, लेिदार को मूलऋर्ी के विरुद्ध प्राप्त हो, चाहे प्रवतभू उस प्रवतभूवत के अवस्तत्ि को
जािता हो या िहीं और यकद लेिदार उस प्रवतभूवत को िो दे या प्रवतभू की सम्मवत के वबिा उस प्रवतभूवत को विलग कर दे तो प्रवतभू
उस प्रवतभूवत के मूल्य के पररर्ाम तक उन्मोवचत हो जाएगा ।

दृष्टांत
(क) क की प्रत्याभूवत पर ग अपिे अवभिारी ि को 2,000 रुपए उिार देता है । ग के पास उि 2,000 रुपयों के वलए ि के
फिीचर के बन्िक के रूप में एक और प्रवतभूवत है । ग उस बन्िक को रद्द कर देता है । ि कदिावलया हो जाता है और ि की प्रत्याभूवत के
आिार पर क के विरुद्ध ग िाद लाता है । क उस फिीचर के मूल्य की रकम तक दावयत्ि से उन्मोवचत हो गया है ।
(ि) एक लेिदार ग को, वजसका ि को कदया हुआ उिार वडक्री द्वारा प्रवतभूत है, उस उिार के वलए क से भी प्रत्याभूवत
वमलती है । तत्पश्चात ग उस वडक्री के विष्पादि में ि के माल को कु कण करा लेता है, और तब क को जािकारी के वबिा उस विष्पादि
का प्रत्याहरर् कर लेता है । क उन्मोवचत हो जाता है ।
(ग) ग से ि के वलए उिार प्राप्त करिे को ि के साथ संयुक्ततः क एक बन्िपत्र ि के प्रवतभू के तौर पर ग को वलि देता है ।
तत्पश्चात ग उसी ऋर् के वलए ि से एक अवतररक्त प्रवतभूवत अवभप्राप्त करता है । तत्पश्चात ग उस अवतररक्त प्रवतभूवत को छोड़ देता
है । क उन्मोवचत िहीं होता है ।
142. दुव्यप
ण देिि द्वारा अवभप्राप्त प्रत्याभूवत अविविमान्य होगी—कोई भी प्रत्याभूवत, जो लेिदार द्वारा या उसके ज्ञाि और
अिुमवत से संव्यिहार के तावत्त्िक भाग के बारे में दुव्यणपदेिि से अवभप्राप्त की गई है, अविविमान्य है ।
143. वछपाि द्वारा अवभप्राप्त प्रत्याभूवत अविविमान्य होगी—कोई भी प्रत्याभूवत जो लेिदार िे तावत्त्िक पररवस्थवत के बारे
में मौि िारर् से अवभप्राप्त की है, अविविमान्य है ।
दृष्टांत
(क) क अपिे वलए रुपए का संग्रहर् करिे के वलए ि को वलवपक के तौर पर रिता है । ि अपिी कु ल प्रावप्तयों का सम्यक
लेिा देिे में असफल रहता है और पररर्ामस्िरूप क उससे यह अपेिा करता है कक िह अपिे द्वारा सम्यक रूप से लेिा कदए जािे के
वलए प्रवतभूवत दे । ि द्वारा सम्यक रूप से लेिा कदए जािे की प्रत्याभूवत ग दे देता है । ग को ि के वपछले आचरर् से क अिगत िहीं
करता है । तत्पश्चात ि लेिा देिे में व्यवतक्रम करता है । प्रत्याभूवत अविविमान्य है ।
(ि) ग द्वारा ि को 2,000 टि पररर्ाम तक प्रदाय ककए जािे िाले लोहे के वलए संदाय की प्रत्याभूवत ग को क देता है । ि
और ग िे प्राइिेट तौर पर करार कर वलया है कक ि बाजार-दाम से पांच रुपया प्रवत टि अविक देगा जो अविक रकम एक पुरािे ऋर् के
समापि में उपयोवजत की जाएगी । यह करार कै से वछपाया गया है । क प्रवतभू के तौर पर दायी िहीं है ।
144. इस संविदा पर प्रत्याभूवत देिा कक लेिदार उस पर तब तक कायण िहीं करे गा जब तक सह-प्रवतभू सवम्मवलत िहीं हो
जाता—जहां कक कोई व्यवक्त इस संविदा पर प्रत्याभूवत देता है कक लेिदार उस पर तब तक कायण िहीं करे गा जब तक कक कोई अन्य
व्यवक्त सह-प्रवतभू के रूप में उसमें सवम्मवलत िहीं हो जाता, िहां यकद िह अन्य व्यवक्त सवम्मवलत िहीं होता तो िह प्रत्याभूवत
विविमान्य िहीं है ।
28

145. प्रवतभू की िवतपूर्तण करिे का वििवित िचि—प्रत्याभूवत की हर संविदा में प्रवतभू की िवतपूर्तण ककए जािे का मूलऋर्ी
का वििवित िचि रहता है, और प्रवतभू ककसी भी ििरावि को जो उसिे प्रत्याभूवत के अिीि अविकारपूिण क दी हो, मूलऋर्ी से िसूल
करिे का हकदार है, ककन्तु उि ििरावियों को िहीं जो उसिे अिविकारपूिणक दी होें ।
दृष्टांत
(क) ग का ि ऋर्ी है और क उस ऋर् के वलए प्रवतभू है । ग संदाय की मांग क से करता है और उसके इन्कार करिे पर उस
रकम के वलए उस पर िाद लाता है । प्रवतरिा के वलए युवक्तयुक्त आिार होिे से क िाद में प्रवतरिा करता है, ककन्तु िह ऋर् की रकम
को िचण समेत संदत्त करिे के वलए वििि ककया जाता है । िह मूल ऋर् तथा अपिे द्वारा दी गई िचे की रकम को भी ि से िसूल कर
सकता है ।
(ि) ि को ग कु छ िि उिार देता है, और ि की प्राथणिा पर क, उस रकम को प्रवतभूत करिे के वलए ि द्वारा क के ऊपर वलिे
गए विविमय-पत्र को प्रवतगृहीत करता है । विविमय-पत्र का िारक ग उसके संदाय की मांग क से करता है और क के इन्कार करिे पर
उसके विरुद्ध उस विविमय-पत्र पर िाद लाता है । क प्रवतरिा करिे के वलए युवक्तयुक्त आिार ि रिते हुए िाद में प्रवतरिा करता है,
और उसे उस विविमय-पत्र की रकम और िचाण देिा पड़ता है । िह विविमय-पत्र की रकम ि से िसूल कर सकता है ककन्तु िचण के वलए
दी गई रावि िसूल िहीं कर सकता, क्योंकक उस अिुयोग में प्रवतरिा करिे के वलए कोई िास्तविक आिार िहीं था ।
(ग) ग द्वारा ि को प्रदाय ककए जािे िाले चािल के वलए, क 2,000 रुपए तक का संदाय प्रत्याभूत करता है । ि को ग 2,000
रुपए से कम की रकम का चािल प्रदाय करता है, ककन्तु प्रदाय ककए गए चािल के वलए क से 2,000 रुपए की रावि का संदाय अवभप्राप्त
कर लेता है । क िास्ति में प्रदाय ककए गए चािल की कीमत से अविक ि से िसूल िहीं कर सकता ।
146. सह-प्रवतभू समाितः अवभदाय करिे के दायी होते हैें—जहां कक दो या अविक व्यवक्त उसी ऋर् या कतणव्य के वलए, या
तो संयुक्ततः या पृथक्त: और चाहे एक हेो या चाहे विवभन्ि संविदाओं के अिीि, और चाहे एक दूसरे के ज्ञाि में चाहे ज्ञाि के वबिा,
सह-प्रवतभू हों, िहीं उि सह-प्रवतभूओं में से हर एक, तत्प्रवतकू ल संविदा के अभाि में िहां तक, जहां तक उिके बीच का सम्बन्ि है,
सम्पूर्ण ऋर् का या उसके उस भाग का, जो मूल ऋर्ी1 द्वारा असंदत्त रह गया हो, समाि अंि समाितः देिे के दायी हैें ।
दृष्टांत
(क) ङ को उिार कदए गए 3,000 रुपए के वलए घ के क, ि और ग प्रवतभू हैं । ङ संदाय में व्यवतक्रम करता है । क, ि और ग,
जहां तक उिके बीच का सम्बन्ि है, हर एक 1,000 रुपए संदाय करिे का दायी है ।
(ि) ङ को उिार कदए गए 1,000 रुपए के वलए घ के क, ि और ग प्रवतभू हैं, और क, ि और ग के बीच यह संविदा है कक क
एक चौथाई तक के वलए, ि एक चौथाई तक के वलए और ग आिे तक के वलए उत्तरदायी हैें । ङ संदाय में व्यवतक्रम करता है । जहां
तक कक प्रवतभूओं के बीच का सम्बन्ि है, क 250 रुपए, ि 250 रुपए और ग 500 रुपए संदाय करिे का दायी है ।
147. विवभन्ि रावियों के वलए आबद्ध सह-प्रवतभेुओं का दावयत्ि—सह-प्रवतभू, जो विवभन्ि रावियों के वलए आबद्ध है,
अपिी-अपिी बाध्यताओं की पररसीमाओं तक समाितः संदाय करिे के दायी है ।
दृष्टांत
(क) घ के प्रवतभूओं के रूप में क, ि और ग इस ितण पर आवित कक ङ को घ सम्यक रूप से लेिा देगा, पृथक-पृथक तीि
बन्िपत्र वलि देते हैं, वजिमें से हर एक वभन्ि िावस्त िाला है अथाणत क का 10,000 रुपए की, ि का 20,000 रुपए की, ग का 40,000
रुपए की िावस्त िाला है । ग 30,000 रुपए का लेिा िहीं देता । क, ि और ग हर एक 10,000 रुपए संदाय करिे के दायी हैं ।
(ि) घ के प्रवतभुओं की हैवसयत में क, ि और ग, इस ितण पर आवित कक ङ को घ सम्यक रूप से लेिा देगा, पृथक-पृथक तीि
बन्िपत्र वलि देते हैं वजिमें से हर एक वभन्ि िावस्त िाला है, अथाणत क का 10,000 रुपए की, ि का 20,000 रुपए की, ग का 40,000
रुपए की िावस्त िाला है । घ 40,000 रुपए का लेिा िहीं देता । क 10,000 रुपए का और ि और ग हर एक 15,000 रुपए का संदाय
करिे के दायी हैं ।
(ग) घ के प्रवतभुओं के रूप में, क, ि और ग इस ितण पर आवित कक ङ को घ सम्यक रूप से लेिा देगा, पृथक-पृथक तीि
बन्िपत्र वलि देते हैं वजिमें से हर एक वभन्ि िावस्त िाला है, अथाणत क का 10,000 रुपए की, ि का 20,000 रुपए की, और घ का
40,000 रुपए की िावस्त िाला है । घ 70,000 रुपए का लेिा िहीं देता । क, ि और ग हर एक को अपिे बन्िपत्र की पू री िावस्त देिी
होगी ।
अध्याय 9

उपवििाि के वििय में


148. “उपवििाि”, “उपवििाता” और “उपविवहती” की पररभािा—“उपवििाि” एक व्यवक्त द्वारा दूसरे व्यवक्त को ककसी
प्रयोजि के वलए इस संविदा पर माल का पररदाि करिा है कक जब िह प्रयोजि पूरा हो जाए तब िह लौटा कदया जाएगा; या उसे

1
िारा 43 भी देविए ।
29

पररदाि करिे िाले व्यवक्त के विदेिों के अिुसार अन्यथा व्ययवित कर कदया जाएगा । माल का पररदाि करिे िाला व्यवक्त
“उपवििाता” कहलाता है । िह व्यवक्त, वजसको िह पररदत्त ककया जाता है “उपविवहती” कहलाता है ।
स्पष्टीकरर्—यकद िह व्यवक्त, जो ककसी अन्य के माल पर पहले से ही कब्जा रिता है , उसका िारर् उपविवहती के रूप में
करिे की संविदा करता है तो िह तदद्वारा उपविवहती हो जाता है और माल का स्िामी उसका उपवििाता हो जाता है यद्यवप िह माल
उपवििाि के तौर पर पररदत्त ि ककया गया हो ।
149. उपविवहती को पररदाि ककस प्रकार ककया जाए—उपविवहती को पररदाि ऐसा कु छ करिे द्वारा ककया जा सके गा
वजसका प्रभाि उस माल को आिवयत उपविवहती के या उसकी ओर से उसे िारर् करिे के वलए प्राविकृ त ककसी व्यवक्त के कब्जे में रि
देिा हो ।
150. उपविवहत माल की त्रुरटयों को प्रकट करिे का उपवििाता का कतणव्य —उपवििाता, उपविवहत माल की उि त्रुरटयों को
उपविवहती से प्रकट करिे के वलए आबद्ध है वजिकी जािकारी उपवििाता को हो और जो उसके उपयोग में ततेत्ितः विघ्ि डालती हो
या उपविवहती को सािारर् जोविम में डालती हो और यकद िह ऐसा प्रकटीकरर् िहीं करता है तो िह उपविवहती को ऐसी त्रुरटयों से
प्रत्यितः उद्भूत िुकसाि के वलए उत्तरदायी है ।
यकद माल भाड़े पर उपविवहत ककया गया है तो उपवििाता ऐसे िुकसाि के वलए उत्तरदायी है चाहे उपविवहत माल की ऐसी
त्रुरटयों के अवस्तत्ि से िह पररवचत था या िहीं ।
दृष्टांत
(क) क एक घोड़ा ि को उिार देता है वजसका दुष्ट होिा िह जािता है । िह यह तथ्य प्रकट िहीं करता कक घोड़ा दुष्ट है ।
घोड़ा भाग िड़ा होता है, ि को वगरा देता है और ि ित हो जाता है । हुए िुकसाि के वलए ि के प्रवत क उत्तरदायी है ।
(ि) ि की एक गाड़ी क भाड़े पर लेता है । गाड़ी अिेमकर है, यद्यवप ि को यह मालूम िहीं है और क ित हो जाता है । िवत
के वलए क के प्रवत ि उत्तरदायी है ।
उपविवहती द्वारा बरती जािे िाली सतकण ता—उपवििाि की सभी दिाओं में उपविवहती आबद्ध है कक िह अपिे को
1151.

उपविवहत माल के प्रवत िैसी ही सतकण ता बरते जैसी मामूली प्रज्ञा िाला मिुष्य िैसी ही पररवस्थवतयों में अपिे ऐसे माल के प्रवत बरतता
जो उसी पररर्ाम, क्िावलटी और मूल्य का हो जैसा उपविवहत2 माल है ।
152. उपविवहत चीज की हावि, आकद के वलए उपविवहती कब दायी िहीं है—उपविवहती वििेि संविदा के अभाि में
1

उपविवहत चीज की हावि, िाि या िय के वलए उत्तरदायी िहीं है, यकद उसिे िारा 151 में िर्र्णत पररर्ाम में उसकी देि-रे ि की हो ।
153. उपविवहती के ऐसे कायण द्वारा, जो ितों से असंगत हो, उपवििाि का पयणिसाि—उपवििाि की संविदा उपवििाता के
विकल्प पर िून्यकरर्ीय है यकद उपविवहती उपविवहत माल के सम्बन्ि में कोई ऐसा कायण करे जो उपवििाि की ितों से असंगत हो ।
दृष्टांत
ि को एक घोड़ा उसकी अपिी सिारी के वलए क भाड़े पर देता है । ि उस घोड़े को अपिी गाड़ी में चलाता है । यह क के
विकल्प पर उपवििाि का पयणिसाि है ।
154. उपविवहत माल का अप्राविकृ त उपयोग करिे िाले उपविवहती का दावयत्ि—यकद उपविवहती उपविवहत माल का ऐसा
कोई उपयोग करे जो उपवििाि की ितों के अिुसार ि हो तो िह उसके ऐसे उपयोग से या ऐसे उपयोग के दौराि में माल को हुए
िुकसाि के वलए उपवििाता को प्रवतकर देिे का दायी है ।
दृष्टांत
(क) ि को एक घोड़ा के िल उसकी अपिी सिारी के वलए क उिार देता है । ि उपिे कु टु म्ब के एक सदस्य ग को उस घोड़े पर
सिारी करिे देता है । ग साििािी से सिारी करता है । ककन्तु अकस्मात घोड़ा वगर पड़ता है और ित हो जाता है । ि घोड़े को हुई िवत
के वलए क को प्रवतकर देिे का दायी है ।
(ि) क कलकत्ते में ि में एक घोड़ा यह कह कर भाड़े पर लेता है कक िह िारार्सी जाएगा । क सम्यक साििािी से सिारी
करता है, ककन्तु िारार्सी ि जाकर कटक जाता है । अकस्मात घोड़ा वगर पड़ता है और ित हो जाता है । क घोड़े को हुई िवत के वलए
ि को प्रवतकर देिे का दायी है ।
155. उपविवहती के माल के साथ उपवििाता की सम्मवत से उसके माल के वमिर् का प्रभाि—यकद उपविवहती उपवििाता
की सम्मवत से उपवििाता के माल को अपिे माल के साथ वमवित कर दे तो उपवििाता और उपविवहती इस प्रकार उत्पाकदत वमिर् में
अपिे-अपिे अंि के अिुपात से वहत रिेंगे ।

1
मद्रास पोटण रस्ट ऐक्ट, 1905 )1905 का मद्रास अविवियम सं० 2) के अिीि मद्रास पत्ति के न्यावसयों का उत्तरदावयत्ि, इि िाराओं के अिीि, ऐसे माल के बारे में उन्हें
िारा 152 में प्रयुक्त “ककसी वििेि संविदा के प्रभाि में” िब्दों के वबिा, उपविवहती घोवित ककया गया है; देविए उस अविवियम की िारा 40)1) ।
2
रे ल संविदाओं के बारे में, भारतीय रेल अविवियम, 1890 )1890 का 9) की िारा 72 देविए । सामान्य िाहकों के दावयत्िों के बारे में, िाहक अविवियम, 1865
)1865 का 3) की िारा 8 देविए ।
30

156. जबकक माल पृथक ककए जा सकते हों तब उपवििाता की सम्मवत के वबिा ककए गए वमिर् का प्रभाि—यकद
उपविवहती उपवििाता की सम्मवत के वबिा उपवििाता के माल को अपिे माल के साथ वमवित करे दे और माल पृ थक या विभावजत
ककए जा सकते हों तो माल में सम्पवत्त पिकारों की अपिी-अपिी रहती है ककं तु उपविवहती या पृथक्करर् विभाजि के व्यय को और
वमिर् से हुए ककसी भी िुकसाि को सहि करिे के वलए आबद्ध है ।
दृष्टांत
क एक विविष्ट वचह्ि से वचवह्ित रुई की 100 गांठेें ि के पास उपविवहत करता है । क की सम्मवत के वबिा ि उि 100
गांठों को एक अलग वचह्ि िारर् करिे िाली अपिी अन्य गांठों में वमवित करता है । क को हक है कक िह अपिी 100 गांठों को िापस
करा ले, और गांठों के पृथक करिे में हुआ सारा व्यय और अन्य आिुिंवगक िुकसाि सहि करिे के वलए ि आबद्ध है ।
157. जबकक माल पृथक ि ककए जा सकते हों तब उपविवहती को सम्मवत के वबिा ककए गए वमिर् का प्रभाि—यकद
उपविवहती, उपवििाता की सम्मवत के वबिा उपवििाता के माल को अपिे माल के साथ ऐसे प्रकार से वमवित कर दे कक विवहत माल को
अन्य माल से पृथक करिा और उसे िापस पररदत्त करिा संभि हो तो उपवििाता उस माल की हावि के वलए उपविवहती से प्रवतकर
पािे का हकदार है ।
दष्टांत
क 45 रुपए कीमत के के प के आटे का बैरल ि के पास उपविवहत करता है । क की सम्मवत के वबिा ि उस आटे को के िल 25
रुपए प्रवत बैरल के अपिे देिी आटे के साथ वमवित करता है । क को उसके आटे की हावि के वलए ि प्रवतकर देगा ।
158. आिश्यक व्ययों का उपवििाता द्वारा प्रवतसंदाय—जहां कक उपवििाि की ितों के अिुसार उपविवहती द्वारा उपवििाता
के वलए माल रिा जािा या प्रिहर् ककया जािा हो अथिा उस पर काम करिाया जािा हो और उपविवहती को कोई पाररिवमक िहीं
वमलता हो िहां उपवििाता उपविवहतेी को उपविवहती द्वारा उपवििाि के प्रयोजि के वलए उपगत आिश्यक व्ययों का प्रवतसंदाय
करे गा ।
159. आिुग्रवहक रूप से उिार कदए गए माल का प्रत्याितणि —ककसी चीज को उपयोगाथण उिार पर देिे िाला, यकद िह उिार
आिग्रवहक रूप से कदया गया हो ककसी भी समय उसकी िापसी अपेवित कर सके गा यद्यवप उसिे उसे एक विविर्दणष्ट समय या प्रयोजि
के वलए उिार कदया हो । ककन्तु यकद उिार लेिे िाले िे विविर्दणष्ट समय या प्रयोजि के वलए कदए गए उिार के भरोसे ऐसे प्रकार से
कायण ककया है कक उिार दी गई चीज की ठहराए गए समय से पूिण िापसी से उसे उस फायदे से अविक हावि होगी जो उसे उिार से
िास्ति में व्युत्पन्ि हुआ हो तो, यकद उिार दाता उिार लेिे िाले को उसे िापस करिे के वलए वििि करे तो उसको उिार लेिे िाले की
उतिी मात्रा में िवतपूर्तण करिी होगी वजतिी िैसे हुई हावि िैसे व्येुत्पन्ि फायदे से अविक है ।
160. समय के अिसाि पर या प्रयोजि पूरा होिे पर उपविवहत माल की िापसी—उपविवहती का यह कतणव्य है कक ज्यों ही
उस समय का, वजसके वलए माल उपविवहत ककया गया था, अिसाि हो जाए या िह प्रयोजि, वजसके वलए िह माल उपविवहत ककया
गया था, पूरा हो जाए, उपविवहत माल को मांग के वबिा िापस कर दे या उपवििाता के विदेिों के अिुसार पररदत्त कर दे ।
जबकक माल सम्यक रूप से िापस ि ककया जाए तब उपविवहती का उत्तरदावयत्ि—यकद उपविवहती के दोि से माल
1161.

उवचत समय पर िापस या पररदत्त या विविदत्त ि ककया जाए तो उस समय से माल की ककसी भी हावि, िाि या िय के वलए िह
उपवििाता के प्रवत उत्तरदायी है ।2
162. आिुग्रवहक उपवििाि का मृत्यु से पयणिसाि—आिुग्रवहक उपवििाि उपवििाता या उपविवहती की मृत्यु से पयणिवसत हो
जाता है ।
163. उपवििाता उपविवहत माल में हुई िृवद्ध या उससे हुए लाभ का हकदार—तत्प्रवतकू ल संविदा के अभाि में उपविवहतेी
िह िृवद्ध या लाभ, जो उपविवहत माल से प्रोद्भूत हुआ हो, उपवििाता को, या उसके विदेिों के अिुसार, पररदत्त करिे के वलए
आबद्ध है ।
दृष्टांत
क एक गौ को देिभाल के वलए ि की अवभरिा में छोड़ता है । गौ के बछड़ा पैदा होता है । ि िह गौ और बछड़ा क को
पररदत्त करिेे के वलए आबद्ध है ।
164. उपविवहती के प्रवत उपवििाता का उत्तरदावयत्ि—उपवििाता उपविवहती की ऐसी ककसी भी हावि के वलए उत्तरदायी है
जो उपविवहती इस कारर् उठाए कक उपवििाता उपवििाि करिे या माल को िापस लेिे या उसके संबंि में विदेि देिे का हकदार
िहीं था ।

1
मद्रास पत्ति के न्यावसयों के उिके कब्जेे में के माल के बारे में उत्तरदावयत्ि के संबि
ं में िारा िारा 161 लेागू होिा घोवित की गई है, देविए मद्रास पोटण रस्ट ऐक्ट,
1905 )1905 का मद्रास अविवियम सं० 2) ।
2
रे ल संविदाओं के बारे में देविए भारतीय रेल अविवियम, 1890 (1890 का 9( की िारा 72 ।
31

165. कई संयुक्त स्िावमयों द्वारा उपवििाि—यकद माल के कई संयुक्त स्िामी उसे उपविवहत करें तो, ककसी तत्प्रवतकू ल करार
के अभाि में, उपविवहती सभी स्िावमयों की सम्मवत के वबिा भी एक संयुक्त स्िामी को या उसके विदेिों के अिुसार माल िापस
पररदत्त कर सके गा ।
166. वबिा हक िाले उपवििाता को िापस पररदाि करिे पर उपविवहती उत्तरदायी ि होगा—यकद उपवििाता का माल पर
कोई हक ि हो और उपविवहती उसके उपवििाता को या उसके विदेिों के अिुसार सदभािपूिणक प्रवतपररदाि कर दे तो उपविवहती ऐसे
पररदाि1 के बारे में उसके स्िामी के प्रवत उत्तरदायी िहीं है ।
167. उपविवहत माल पर दािा करिे िाले पर-व्यवक्त का अविकार—यकद उपवििाता से वभन्ि कोई व्यवक्त उपविवहत माल
का दािा करे तो िह न्यायालय से आिेदि कर सके गा कक उपवििाता को माल का पररदाि रोक कदया जाए और यह विविश्चय ककया
जाए कक माल पर हक ककसका है ।
168. माल पड़ा पािे िाले का अविकार । िह प्रस्थावपत विविर्दणष्ट पुरस्कार के वलए िाद ला सके गा—माल पड़ा पािे िाले
को माल का परररिर् करिे और स्िामी का पता लगािे में अपिे द्वारा स्िेच्छया उठाए गए कष्ट और व्यय के प्रवतकर के वलए स्िामी पर
िाद लािे का कोई अविकार िहीं है, ककन्तु िह उस माल को स्िामी के विरुद्ध तब तक प्रवतिृत रि सके गा जब तक उसे ऐसा प्रवतकर ि
वमल जाए, और यकद स्िामी िे िोए माल की िापसी के वलए विविर्दणष्ट पुरस्कार देिे की प्रस्थापिा की हो, तो पड़ा पािे िाला ऐसे
पुरस्कार के वलए िाद ला सके गा और माल को तब तक प्रवतिृत रि सके गा जब तक उसे िह पुरस्कार ि वमल जाए ।
169. सामान्यतया विक्रय होिे िाली चीज को पड़ी पािे िाला उसे कब बेच सके गा—जबकक कोई चीज, जो सामान्यतया
विक्रय का वििय हो, िो जाए तब यकद स्िामी का युवक्तयुक्त तत्परता से पता िहीं लगाया जा सके या यकद िह पड़ा पािे िाले के
विविपूर्ण प्रभारों का मांगे जािे पर संदाय करिे से इं कार करे तो पड़ा पािे िाला उसको बेच सके गा :—
)1) जबकक उस चीज के िष्ट हो जािे या उसके मूल्य का अविकांि जाते रहिे का ितरा हो, अथिा
)2) जबकक पाई गई चीज के बारे में पड़े पािे िाले के विविपूर्ण प्रभार उसके मूल्य के दो वतहाई तक पहुंच जाए ।
170. उपविवहती का विविष्ट िारर्ाविकार—जहां कक उपविवहती िे, उपविवहत माल के बारे में उपवििाि के प्रयोजि के
अिुसार कोई ऐसी सेिा की हो, वजसमें िम या कौिल का प्रयोग अंतिणवलत हो, िहां तत्प्रवतकू ल संविदा के अभाि में, उसे ऐसे माल के
तब तक प्रवतिारर् का अविकार है जब तक िह उि सेिाओं के वलए जो उसिे उसके बारे में की हों, सम्यक पाररिवमक िहीं पा लेता ।
दृष्टांत
(क) क एक जोहरी ि को अिग़ि हीरा काटिे और पावलि ककए जािे के वलए पररदत्त करता है ।तद्िुसार िैसा कर कदया
जाता है । ि उस हीरे के प्रवतिारर् का तब तक हकदार है जब तक उसे उि सेिाओं के वलए जो उसिे की हैं संदाय ि कर कदया जाए ।
(ि) क एक दजी ि को कोट बिािे के वलए कपड़ा देता है । ि यह िचि देता है कक कोट ज्यों ही पूरा हो जाएगा िह उसे क
को पररदत्त कर देगा और पाररिवमक के वलए तीि मास का प्रत्यय देगा । कोट के वलए संदाय ककए जािे तक ि उसे प्रवतिृत रििे का
हकदार िहीं है ।
171. बैंकारों, फै क्टरों, घाटिालों, अटर्िणयों और बीमा-दलालों का सािारर् िारर्ाविकार—बैंकार, फै क्टर, घाटिाल, उच्च
न्यायालय के अटिी और बीमा-दलाल अपिे को उपविवहत ककसी माल को, तत्प्रवतकू ल संविदा के अभाि में समस्त लेिाओं की बाकी के
वलए प्रवतभूवत के रूप में प्रवतिृत रि सकें गे, ककन्तु अन्य ककन्हीं भी व्यवक्तयों को यह अविकार िहीं है कक िे अपिे को उपविवहत माल
ऐसी बाकी के वलए प्रवतभूवत के रूप में प्रवतिृत रिें जब तक कक उस प्रभाि की कोई अवभव्यक्त संविदा ि हो ।2
वगरिीरूपी उपवििाि
172. “वगरिी”, “पर्यमकार” और “पर्यमदार” की पररभािा—ककसी ऋर् के संदाय के वलए या ककसी िचि के पालि के
वलए प्रवतभूवत के तौर पर माल का उपवििाि “वगरिी” कहलाता है । उस दिा में उपवििाता “पर्यमकार” कहलाता है । उपविवहती
“पर्यमदार” कहलाता है ।
173. पर्यमदार का प्रवतिारर् का अविकार—पर्यमदार वगरिी माल का प्रवतिारर् ि के िल ऋर् के संदाय के वलए या
िचि के पालि के वलए कर सके गा िरि ऋर् के ब्याज और वगरिी माल के कब्जे के बारे में या परीिर् के वलए अपिे द्वारा उपगत सारे
आिश्यक व्ययों के वलए भी कर सके गा ।
174. वजस ऋर् या िचि के वलए माल वगरिी रिा गया है, पर्यमदार उससे वभन्ि ऋर् या िचि के वलए उसका प्रवतिारर्
िहीं करे गा । पश्चात्िती उिारों के बारे में उपिारर्ा—पर्यमदार उस ऋर् या िचि से वभन्ि ककसी ऋर् या िचि के वलए, वजसके
वलए माल वगरिी रिा गया है, उस माल का प्रवतिारर् उस प्रभाि की संविदा के अभाि में ि करे गा, ककन्तु तत्प्रवतकू ल ककसी बात के
अभाि में ऐसी संविदा की उपिारर्ा पर्यमदार द्वारा कदए गए पश्चात्िती उिारों के बारे में कर ली जाएगी ।

1
भारतीय साक्ष्य अविवियम, 1872 (1872 कक 1( की िारा 117 देविए ।
2
अवभकताण के िारर्ाविकार के बारे में िारा 221 भी देविए; रेल प्रिासि के िारर्ाविकार के बारे में देविए भारतीय रेल अविवियम, 1890 (1890 का 9( की
िारा 55 ।
32

175. उपगत गैर-मामूली व्ययों के बारे में पर्यमदार का अविकार—पर्यमदार वगरिी माल के परीिर् के वलए अपिे द्वारा
उपगत गैर-मामूली व्ययों को पर्यमदार से प्राप्त करिे का हकदार है ।
176. पर्यमदार का अविकार जहां कक पर्यमकार व्यवतक्रम करता है—यकद पर्यमकार उस ऋर् के संदाय में या अिुबद्ध
समय पर उस िचि का पालि करिे में, वजसके वलए माल वगरिी रिा गया था, व्यवतक्रम करता है तो पर्यमकार उस ऋर् या िचि
पर पर्यमकार के विरुद्ध िाद ला सके गा और वगरिी माल का साम्पार्श्िणक प्रवतभूवत के रूप में प्रवतिारर् कर सके गा, या वगरिी चीज
को बेचिे की युवक्तयुक्त सूचिा पर्यमकार को देकर उस चीज को बेच सके गा ।
यकद ऐसे विक्रय के आगम उस रकम से कम हों, जो ऋर् या िचि के बारे में िोध्य है, तो पर्यमकार बाकी के संदाय के वलए
तब भी दायी रहता है । यकद विक्रय के आगम उस रकम से अविक हों जो ऐसे िोध्य है ें तो पर्यमदार िह अवििेि पर्यमकार
को देगा ।
177. व्यवतक्रम करिे िाले पर्यमकार का मोचिाविकार—यकद उस ऋर् के संदाय या उस िचि के पालि के वलए, वजसके
वलए वगरिी की गई है, कोई समय अिुबद्ध हो, और पर्यमकार ऋर् का संदाय या िचि का पालि अिुबद्ध समय पर करिे में व्यवतक्रम
करे तो िह ककसी भी पश्चात्िती समय में इसके पूिण कक वगरिी माल का िस्तुतः विक्रय 1 हो, उसका मोचि करा सके गा, ककन्तु ऐसी दिा
में उसे ऐसे अवतररक्त व्ययों का, जो उसके व्यवतक्रम से हुए हों, संदाय करिा होगा ।
[178. िावर्वज्यक अवभकताण द्वारा वगरिी—जहेाें कक कोई िावर्वज्यक अवभकताण स्िामी की सम्मवत से माल पर या माल
2

के हक की दस्तािेजों पर कब्जा रिता है िहां िावर्वज्यक अवभकताण के कारबार के मामूली अिुक्रम में कायण करते हुए उसके द्वारा की गई
वगरिी उतिी ही विविमान्य होगी मािो िह माल के स्िामी द्वारा, उसे करिे के वलए अवभव्यक्त रूप से प्राविकृ त हो, परन्तु यह तब
जबकक पर्यमदार सदभािपूिणक कायण करे और वगरिी के समय उसे िह सूचिा ि हो कक पर्यमकार वगरिी करिे का प्राविकार
िहीं रिता ।
स्पष्टीकरर्—इस िारा में “िावर्वज्यक अवभकताण” और “हक की दस्तािेजों” पदों के िे ही अथण होंगे जो उन्हें भारतीय माल
विक्रय अविवियम, 1930 )1930 का 3) में समिुकदष्ट हैं ।
178क. िून्यकरर्ीय संविदा के अिीि कब्जा रििे िाले व्यवक्त द्वारा वगरिी—जबकक पर्यमकार िे अपिे द्वारा वगरिीकृ त
माल का कब्जा िारा 19 या िारा 19क के अिीि िून्यकरर्ीय ककसी संविदा के अिीि अवभप्राप्त ककया हो, ककन्तु संविदा वगरिी के
समय वििव‍डत ि हो चुकी हो, तो पर्यमदार उस माल पर अच्छा हक अर्जणत कर लेता है, परन्तु यह तब जबकक िह सदभािपूिणक
और पर्यमकार के हक की त्रुरट की सूचिा के वबिा कायण करे ।]
179. वगरिी जहां कक पर्यमकार के िल पररसीवमत वहत रिता है—जहां कक कोई व्यवक्त ऐसे माल को वगरिी रिता है
वजसमें िह के िल पररसीवमत वहत रिता है, िहां वगरिी उस वहत के विस्तार तक विविमान्य है ।
उपविवहवतयों या उपवििाताओं द्वारा दोिकताणओं के विरुद्ध िाद
180. उपवििाता या उपविवहती द्वारा दोिकताण के विरुद्ध िाद—यकद कोई पर-व्यवक्त उपविवहती को उपविवहत माल के
उपयोग या उस पर कब्जे से दोिपूिणक िंवचत करे या माल को कोई िवत करे तो उपविवहती ऐसे उपचारों का उपयोग करिे का हकदार
है वजिका िैसी दिा में स्िामी उपयोग कर सकता यकद उपवििाि िहीं ककया गया होगा, और या तो उपवििाता या उपविवहती ऐसे
िंवचत ककए जािे या ऐसी िवत के वलए पर-व्यवक्त के विरुद्ध िाद ला सके गा ।
181. ऐसे िादों से अवभप्राप्त अिुतोि या प्रवतकर का प्रभाजि—ऐसे ककसी िाद में अिुतोि या प्रवतकर के तौर पर जो कु छ
भी अवभप्राप्त ककया जाए, िह, जहां पर कक उपवििाता और उपविवहती के बीच का सम्बन्ि है, उिकेे अपिे-अपिे वहतों के अिुसार
बरता जाएगा ।
अध्याय 10
अवभकरर्

अवभकताणओं की वियुवक्त और प्राविकार


182. “अवभकताण” और “मावलक” की पररभािा—“अवभकताण” िह व्यवक्त है जो ककसी अन्य की ओर से कोई कायण करिे के
वलए या पर-व्यवक्तयों से व्यिहारों में ककसी अन्य का प्रवतविवित्ि करिे के वलए, वियोवजत है । िह व्यवक्त वजसके वलए ऐसा कायण
ककया जाता है या वजसका इस प्रकार प्रवतविवित्ि ककया जाता है “मावलक” कहलाता है ।
183. अवभकताण कौि वियोवजत कर सके गा—िह व्यवक्त, जो उस विवि के अिुसार, वजसके िह अध्यिीि है, प्राप्तिय हो और
स्िस्थ-वचत्त हो, अवभकताण वियोवजत कर सके गा ।

1
पररसीमा के वलए पररसीमा अविवियम, 1963 )1963 का 36) की अिुसूची 1 ।
2
1930 के अविवियम सं० 4 की िारा 2 द्वारा मूल िारा 178 के स्थाि पर िारा 178 तथा िारा 178क प्रवतस्थावपत ।
33

184. अवभकताण कौि हो सके गा—जहां तक कक मावलक और पर-व्यवक्तयों के बीच का सम्बन्ि है कोई भी व्यवक्त अवभकताण हो
सके गा, ककन्तु कोई भी व्यवक्त, जो प्राप्तिय और स्िस्थ-वचत्त ि हो, अवभकताण ऐसे ि हो सके गा कक िह अपिे मावलक के प्रवत तविवमत्त
एतवस्मि अंतर्िणष्ट उपबंिों के अिुसार उत्तरदायी हो ।
185. प्रवतफल आिश्यक िहीं है—अवभकरर् के सृजि के वलए कोई प्रवतफल आिश्यक िहीं है ।
186. अवभकताण का प्राविकार अवभव्यक्त या वििवित हो सके गा—अवभकताण का प्राविकार अवभव्यक्त या वििवित
हो सके गा ।1
187. अवभव्यक्त और वििवित प्राविकार की पररभािाएें—प्राविकार अवभव्यक्त कहा जाता है जब कक िह मौविक या
वलवित िब्दों द्वारा कदया जाए । प्राविकार वििवित कहा जाता है जबकक उसका अिुमाि मामले की पररवस्थवतयों में करिा हो और
मौविक या वलवित बातों या व्यिहार के मामूली अिुक्रम की मामले की पररवस्थवतयों में गर्िा की जा सके गी ।
दृष्टांत
क, जो स्ियं कलकत्ते में रहता है, सीरामपुर में एक दुकाि का स्िामी है और उस दुकाि पर िह कभी-कभी जाता है । दुकाि
का प्रबंि ि द्वारा ककया जाता है और क की जािकारी में िह दुकाि के प्रयोजिों के वलए क के मामले में ग से माल आकदष्ट करता रहता
है और क के कोि में से उसके वलए संदाय करता रहता है । दुकाि के प्रयोजिों के वलए क के िाम में ग से माल आकदष्ट करिे का क केी
ओर से ि को वििवित प्राविकार है ।
188. अवभकताण के प्राविकार का विस्तार—ककसी कायण को करिे का प्राविकार रििे िाला अवभकताण हर ऐसी विविपूर्ण बात
करिे का प्राविकार रिता है जो ऐसा कायण करिेे के वलए आिश्यक हो ।
ककसी कारबार को चलािे का प्राविकार रििे िाला अवभकताण हर ऐसी विविपूर्ण बात करिे का प्राविकार रिता है जो ऐसे
कारबार के संचालि के प्रयोजि के वलए आिश्यक हो या उसके अिुक्रम में प्रायः की जाती हो ।
दृष्टांत
(क) ि, जो लंदि में रहता है, अपिे को िोध्य ऋर् मुम्बई में िसूल करिे के वलए क को वियोवजत करता है । क उस ऋर् को
िसूल करिे के प्रयोजिों के वलए आिश्यक कोई भी विविक प्रकक्रया अपिा सके गा और उसके वलए विविमान्य उन्मोचि दे सके गा ।
(ि) क अपिा पोत-विमाणता का कारबार चलािे के वलए ि को अपिा अवभकताण बिाता है । ि उस कारबार को चलािे के
प्रयोजि के वलए काष्ठ और अन्य सामग्री िरीद सके गा और कमणकारों को भाड़े पर रि सके गा ।
189. आपात में अवभकताण का प्राविकार—अवभकताण को आपात में यह प्राविकार है कक हावि से अपिे मावलक की संरिा करिे
के प्रयोजि से सारे ऐसे कायण करे जैसे मामूली प्रज्ञािाला व्यवक्त अपिे मामले में िैसी ही पररवस्थवतयों में करता ।
दृष्टांत
(क) विक्रय-अवभकताण माल की मरम्मत करा सके गा, यकद अिश्यक हो ।
(ि) ि को जो कलकत्ते में है, क इस विदेि के साथ रसद परे वित करता है कक िह उसे तुरन्त ही ग के पास कटक भेज दे । यकद
िह रसद कटक की यात्रा में िराब होिे से िहीं बच सकती तो ि िह रसद कलकत्ते में बेच सके गा ।
उपावभकताण
190. अवभकताण कब प्रत्यायोज िहीं कर सकता—कोई अवभकताण उि कायों के पालि के वलए, वजिका स्ियं अपिे द्वारा पालि
ककए जािे का भार उसिे अवभव्यक्त या वििवित रूप से वलया हो, ककसी अन्य व्यवक्त का विविपूिणक वियोजि तब के वसिाय िहीं कर
सके गा जबकक उपावभकताण का वियोजि व्यापार की मामूली रूक़ि के अिुसार ककया जा सकता हो या अवभकरर् की प्रकृ तवे के अिुसार
करिा आिश्यक हो ।
191. “उपावभकताण” की पररभािा—“उपावभकताण” िह व्यवक्त है जो अवभकरर् के कारबार में मूल अवभकताण द्वारा वियोवजत
हो और उसके वियंत्रर् के अिीि कायण करता हो ।
192. उवचत तौर पर वियुक्त उपावभकताण द्वारा मावलक का प्रवतविवित्ि—जहां कक उपावभकताण उवचत तौर पर वियुक्त ककया
गया है िहां, जहां तक पर-व्यवक्तयों का सम्बन्ि है, मावलक का प्रवतविवित्ि िह अवभकताण करता है, और मावलक उसके कायों से ऐसे ही
आबद्ध और उिके वलए ऐसे ही उत्तरदायी है मािो िह मावलक द्वारा मूलतः वियुक्त अवभकताण हो ।
उपेावभकताण के वलए अवभकताण का उत्तरदावयत्ि—अवभकताण उपावभकताण के कायों के वलए मावलक के प्रवत उत्तरदायी है ।
उपावभकताण का उत्तरदावयत्ि—उपवभकताण अपिे कायों के वलए अवभकताण के प्रवत उत्तरदायी है, ककन्तु कपट या जािबूझकर
ककए गए दोि की दिा को छोड़कर मावलक के प्रवत उत्तरदायी िहीं है ।

1
रवजस्रीकरर् अविवियम, 1908 (1908 का 16) की िारा 33 देविए, वसविल प्रकक्रया संवहता, 1908 (1908 का 5) की अिुसूची 1, आदेि 3, वियम 4 भी देविए ।
34

193. प्राविकार के वबिा वियुक्त उपावभकताण के वलए अवभकताण का उत्तरदावयत्ि—जहां कक ककसी अवभकताण िे उपावभकताण
वियुक्त करिे के प्राविकार के वबिा ककसी व्यवक्त को उपावभकताण की हैवसयत में कायण करिे के वलए वियुक्त ककया हो िहां अवभकताण की
उस व्यवक्त के प्रवत हैवसयत िैसी है जैसी अवभकताण के प्रवत मावलक की होती है और िह उसके कायों के वलए मावलक और पर-व्यवक्तयों
दोिों के प्रवत उत्तरदायी है; ऐसे वियोवजत व्यवक्त मावलक का प्रवतविवित्ि िहीं करता और ि उसके कायों के वलए मावलक उत्तरदायी है;
और ि िह मावलक के प्रवत उत्तरदायी है ।
194. अवभकताण द्वारा अवभकरर् के कारबार में कायण करिे के वलए सम्यक रूप से वियु क्त व्यवक्त और मावलक के बीच का
सम्बन्ि—जहां तक िह अवभकताण, जो अवभकरर् के कारबार में मावलक की ओर से कायण करिे के वलए ककसी अन्य व्यवक्त को िावमत
करिे का अवभव्यक्त या वििवित प्राविकार रिता है, ककसी अन्य व्यवक्त को तद्िुसार िावमत कर देता है िहां ऐसा व्यवक्त उपावभकताण
िहीं है िरि, िह अवभकरर् के कारबार के ऐसे भाग के वलए, जो उसे सौंपा गया हो, मावलक का अवभकताण है ।
दृष्टांत
(क) क अपिे सावलवसटर ि को अपिी सम्पदा िीलाम द्वारा बेचिे और उस प्रयोजि के वलए एक िीलामकताण वियोवजत करिे
का विदेि देता है । ि विक्रय संचालि के वलए एक िीलामकताण ग को िावमत करता है ग उपावभकताण िहीं है िरि विक्रय संचालि के
वलए क का अवभकताण है ।
(ि) क कलकत्ते के एक िवर्क ि को ग ए‍ड कम्पिी द्वारा अपिे को िोध्य िि िसूल करिे के वलए प्राविकृ त करता हैं
सावलवसटर घ को ि उस िि की िसूली के वलए ग ए‍ड कम्पिी के विरुद्ध विविक कायणिाही करिे का आदेि लेता है । घ उपावभकताण
िहीं है िरि क का सावलवसटर है ।
195. ऐसे व्यवक्त को िावमत करिे में अवभकताण का कतणव्य —अपिे मावलक के वलए ऐसा अवभकताण चुििे में अवभकताण उतिा
ही वििेक प्रयुक्त करिे के वलए आबद्ध है वजतिा मामूली प्रज्ञािाला व्यवक्त अपिे विजी मामले में करता और यकद िह ऐसा करता है तो
िह ऐसे चुिे गए अवभकताण के कायों या उपेिा के वलए मावलक के प्रवत उत्तरदायी िहीं है ।
दृष्टांत
(क) क अपिे वलए एक पोत िरीदिे के वलए ि को, जो एक िवर्क है, अिुदि े देता है । ि अच्छी खयावत िाले एक पोत-
सिेिक को क के वलए पोत पसन्द करिे को वियोवजत करता है । िह सिेिक पसन्द करिे में उपेिा बरतता है और पोत-तरर् अयोग्य
विकलता है और िष्ट हो जाता है । क के प्रवत ि िहीं िरि िह सिेिक उत्तरदायी है ।
(ि) ि को, जो एक िवर्क है, क विक्रय के वलए माल परे वित करता है । ि सम्यक अिुक्रम में अच्छे प्रत्यय िाले एक
िीलामकताण को क का माल बेचिे के वलए वियोवजत करता है, और िीलामकताण को विक्रय के आगम प्राप्त करिे के वलए अिुज्ञात करता
है । िीलामकताण तत्पश्चात उि आगमों का लेिा-जोिा कदए वबिा कदिावलया हो जाता है । ि उि आगमों के वलए क के प्रवत उत्तरदायी
िहीं है ।
अिुसमथणि
196. ककसी व्यवक्त के वलए उसके प्राविकार के वबिा ककए गए कायों के बारे में उसका अविकार । अिुसमथणि का
प्रभाि—जहां कक कायण एक व्यवक्त द्वारा ककसी अन्य व्यवक्त के विवमत्त ककन्तु उसके ज्ञाि या प्राविकार के वबिा ककए जाते हैं िहां िह
वििाणवचत कर सके गा कक ऐसे कायों का अिुसमथणि करे या अिंगीकरर् करे । यकद िह उिका अिुसमथणि करे तो उि कायों के िैसे ही
पररर्ाम होंगे मािो िे उसके प्राविकार से ककए गए थे ।
197. अिुसमथणि अवभव्यक्त या वििवित हो सके गा—अिुसमथणि अवभव्यक्त या उस व्यवक्त के आचरर् से, वजसकी ओर से िे
कायण ककए जाते हैं, वििवित हो सके गा ।
दृष्टांत
(क) क प्राविकार के वबिा ि के वलए माल िरीदता है । तत्पश्चात ि उन्हें ग को अपिे लेिे बेच देता है । ि के आचरर् से
वििवित है कक उसिे क द्वारा उसके वलए ककए गए क्रय का अिुसमथणि ककया है ।
(ि) क, ि के प्राविकार के वबिा ि का िि ग को उिार देता है । तत्पश्चात ि उस िि पर से ब्याज प्रवतगृहीत करता है । ि
के आचरर् से वििवित है कक उसिे उस उिार का अिुसमथणि ककया है ।
198. विविमान्य अिुसमथणि के वलए ज्ञाि अपेवित है—कोई भी विविमान्य अिुसमथणि ऐसे व्यवक्त द्वारा िहीं ककया जा
सकता वजसका मामलेोें के तथ्यों का ज्ञाि तत्त्ितः त्रुरटयुक्त हो ।
199. जो अप्राविकृ त कायण ककसी संव्यिहार का भाग हो उसके अिुसमथणि का प्रभाि—जो व्यवक्त अपिी ओर से ककए गए
ककसी अप्राविकृ त कायण का अिुसमथणि करता है, िह उस सम्पूर्ण संव्यिहार का अिुसमथणि करता है वजसका ऐसा कायण भाग हो ।
200. अप्राविकृ त कायण का अिुसमथणि पर-व्यवक्त को िवत िहीं पहुंचा सकता—एक व्यवक्त द्वारा ककसी दूसरे व्यवक्त की ओर
से ऐसे दूसरे व्यवक्त के प्राविकर के वबिा ककया गया कोई ऐसा कायण , जो यकद प्राविकार से ककया जाता तो ककसी पर-व्यवक्त को
35

िुकसािी के अध्यिीि करिे या ककसी पर-व्यवक्त के ककसी अविकार या वहत का पयणिसाि करिे का प्रभाि रिता, अिुसमथणि के द्वारा
ऐसा प्रभाि रििे िाला िहीं बिाया जा सकता ।
दृष्टांत
(क) ि द्वारा तदथण प्राविकृ त ककए गए वबिा ि की ओर से ग से क यह मांग करता है कक ि की कोई जंगम िस्तु, जो ग के
कब्जे में है ग पररदत्त कर दे । िह मांग ि द्वारा ऐसे अिुसमर्थणत िहीं की जा सकती कक ग पररदाि से अपिे इन्कार के वलए िुकसािी का
दायी हो जाए ।
(ि) तीि मास की सूचिा पर पयणिसेय एक पट्टा ि से क िारर् करता है । एक अप्राविकृ त व्यवक्त ग पट्टे के पयणिसाि की
सूचिा क को देता है । यह सूचिा ि द्वारा ऐसे अिुसमर्थणत िहीं की जा सकती कक िह क पर आबद्धकर हो जाए ।
प्राविकार का प्रवतसंहरर्
201. अवभकरर् का पयणिसाि—अवभकरर् का पयणिसाि मावलक द्वारा अपिे प्राविकार के प्रवतसंहरर् से, अथिा अवभकताण
द्वारा अवभकरर् के कारबार के त्यजि से, अथिा अवभकरर् के कारबार के पूरे हो जािे से, अथिा मावलक के या अवभकताण के मर जािे
या विकृ तवचत्त हो जािे से; अथिा मावलक ककसी ऐसे तत्समय प्रिृत्त अविवियम के उपबन्िों के अिीि, जो कदिावलया ऋवर्यों के
अिुतोि के वलए हो कदिावलया न्यायविर्ीत ककए जािे से हो जाता है ।
202. जहां कक अवभकताण का विियिस्तु में कोई वहत हो िहां अवभकरर् का पयणिसाि—जहां कक उस सम्पवत्त में, जो
अवभकरर् की विियिस्तु हो, अवभकताण का कोई वहत हो िहां अवभव्यक्त संविदा के अभाि में अवभकरर् का पयणिसाि ऐसे िहीं ककया
जा सकता कक उस वहत पर प्रवतकू ल प्रभाि पड़े ।
दृष्टांत
(क) ि को क यह प्राविकार देता है कक िह क की भूवम बेच दे और उस विक्रय के आगमों में से उि ऋर्ों का संदाय कर ले जो
उसे क द्वारा िोध्य है । क इस प्राविकार का प्रवतसंहरर् िहीं कर सकता और ि क की उन्मत्तता या मृत्यु से उस प्राविकार का पयणिसाि
हो सकता है ।
(ि) क रुई की 1,000 गांठें ि को, वजसिे उसे ऐसी रुई पर अवग्रम िि कदया है, परे वित करता है और ि से िांछा करता है कक
ि उस रुई को बेचे और उसकी कीमत में से अपिे अवग्रम िि की रकम का प्रवतसंदाय कर ले । क इस प्राविकार का प्रवतसंहरर् िहीं कर
सकता है और ि उसकी उन्मत्तता या मृत्यु से उस प्राविकार का पयणिसाि होता है ।
203. मावलक अवभकताण के प्राविकार का प्रवतसंहरर् कब कर सके गा—पूिणगामी अंवतम िारा द्वारा अन्यथा उपबंवित दिा को
छोड़कर, मावलक अपिे अवभकताण को कदए गए प्राविकार का प्रवतसंहरर् उसके ऐसे उपयोग ककए जािे से पूिण कक मावलक आबद्ध हो जाए
ककसी भी समय कर सके गा ।
204. प्रवतसंहरर् जहां कक प्राविकार का भागतः प्रयोग कर वलया गया है —मावलक अपिे अवभकताण को कदए गए प्राविकार का
प्रवतसंहरर् उस प्राविकार के भागतः प्रयोग के पश्चात िहीं कर सकता जहां तक कक उस अवभकरर् में पहले ही ककए गए कायों से
उद्भूत कायों और बाध्याताओं का संबंि हो ।
दृष्टांत
(क) ि को क प्राविकृ त करता है कक िह क के लेिे रुई की 1,000 गांठें िरीद ले और क का जो िि ि के पास बचा हुआ है
उसमें से उिके वलए संदाय कर दे । ि रुई की 1,000 गांठें अपिे िाम में इस प्रकार िरीद लेता है कक उिकी कीमत के वलए िह स्ियं
िैयवक्तक तौर पर दायी हो जाता है । जहां तक कक उस रुई के वलए संदाय करिे का सम्बन्ि है ि के प्राविकार का प्रवतसंहरर् क िहीं
कर सकता ।
(ि) ि को क प्राविकृ त करता है कक िह क के लेिे रुई की 1,000 गांठें िरीद ले और क का जो िि ि को पास बचा हुआ है
उसमें से उिके वलए संदाय कर दे । ि रुई की 1,000 गांठें क के िाम में इस प्रकार िरीद लेता है कक उिकी कीमत के वलए िह स्ियं
िैयवक्तक तौर पर दायी िहीं होता । क उस रुई के संदाय के वलए ि के प्राविकार का प्रवतसंहरर् कर सकता है ।
205. मावलक द्वारा प्रवतसंहरर् या अवभकताण द्वारा त्यजि के वलए प्रवतकर––जहां कक यह अवभव्यक्त या वििवित संविदा हो
कक अवभकरर् को ककसी कालािवि के वलए चालू रहिा है िहां पयाणप्त कारर् के वबिा अवभकरर् के ककसी पूिणति प्रवतसंहरर् या त्यजि
का प्रवतकर, यथावस्थवत, अवभकताण को मावलक या मवलक को अवभकताण देगा ।
206. प्रवतसंहरर् या त्यजि की सूचिा––ऐसे प्रवतसंहरर् या त्यजि की युवक्तयुक्त सूचिा देिी होगी, अन्यथा, यथावस्थवत,
मावलक को या अवभकताण को तदद्वारा होिे िाले िुकसाि की प्रवतपूर्तण एक को दूसरा करे गा ।
207. प्रवतसंहरर् और त्यजि अवभव्यक्त या वििवित हो सके गा––प्रवतसंहरर् और त्यजि अवभव्यक्त हो सके गा अथिा
मावलक या अवभकताण के अपिे-अपिे आचरर् द्वारा विविित हो सके गा ।
36

दृष्टांत
क अपिा गृह भाड़े पर देिे के वलए ि को सिक्त करता है । तत्पश्चात क स्ियं उसे भाड़े पर दे देता है । यह ि के प्राविकार
का वििवित प्रवतसंहरर् है ।
208. अवभकताण के प्राविकार का पयणिसाि कब अवभकताण के सम्बन्ि में और कब पर-व्यवक्तयों के सम्बन्ि में प्रभािी
होता है––अवभकताण के प्राविकार का पयणिसाि, जहां तक अवभकताण से सम्बन्ि है, उसे उसका ज्ञाि होिे से पूिण, अथिा जहां तक
पर-व्यवक्तयों से सम्बन्ि है उन्हें उसका ज्ञाि होिे से पूिण, प्रभािी िहीं होता ।
दृष्टांत
(क) ि को क अपिी ओर से माल बेचिे का विदेि देता है और माल की जो कीमत वमले उस पर ि को पांच प्रवतित कमीिि
देिे का करार करता है । तत्पश्चात क पत्र द्वारा ि के प्राविकार का प्रवतसंहरर् करता है । ि उस पत्र के भेजे जािे के पश्चात ककन्तु
उसकी प्रावप्त से पूिण माल को 100 रुपए में बेच देता है । क इस विक्रय से आबद्ध है और ि पांच रुपए कमीिि का हकदार है ।
(ि) क जो मद्रास में है, पत्र द्वारा अपिी ओर से ि को मुम्बई में एक भा‍डागार में रिी हुई कु छ रुई बेचिे का विदेि देता है
और तत्पश्चात पत्र द्वारा उसके विक्रय प्राविकार का प्रवतसंहरर् करता है और ि को उस रुई को मद्रास भेजिे का विदेि देता है । ि,
दूसरा पत्र पािे के पश्चात ग के साथ, वजसे पहले पत्र का तो ज्ञाि है ककन्तु दूसरे िहीं, उस रुई को उसे बेचिे की संविदा करता है । ि को
ग उसकी कीमत संदत्त कर देता है और ि उसे लेकर फरार हो जाता है । क के विरुद्ध ग का संदाय प्रभािी है ।
(ग) क अपिे अवभकताण ि को अिुक ििरावि ग को देिे का विदेि देता है । क मर जाता है और घ उसकी वबल का प्रोबेट लेता
है । क की मृत्यु के पश्चात ककन्तु मृत्यु की िबर सुििे से पूिण ग को ि रुपए संदत्त कर देता है । विष्पादक घ के विरुद्ध यह संदाय
प्रभािी है ।
209. मावलक की मृत्यु या उन्मत्तता के द्वारा अवभकरर् के पयणिसाि पर अवभकताण का कतणव्य––जबकक मावलक की मृत्यु हो
जािे या उसके विकृ तवचत्त हो जािे से अवभकरर् का पयणिसाि हो जाए तब अवभकताण अपिे को न्यस्त वहतों के संरिर् और परररिर् के
वलए अपिे अभूतपूिण मावलक के प्रवतविवियों की ओर से सभी युवक्तयुक्त कदम उठािे के वलए आबद्ध है ।
210. उपावभकताण के प्राविकार का पयणिसाि––अवभकताण के प्राविकार का पयणिसाि उि सब उपावभकताणओं के , जो उसिे
वियुक्त ककए हों, प्राविकार का (उि वियमों के अध्यिीि, जो अवभकताण के प्राविकार के पयणिसाि के बारे में एतवस्मि अन्तर्िणष्ट है)
पयणिसाि काररत कर देता है ।
मावलक के प्रवत अवभकताण का कतणव्य
211. मावलक के कारबार के संचालि में अवभकताण का कतणव्य––अवभकताण अपिे मावलक के कारबार का संचालि मावलक द्वारा
कदए गए विदेिों के अिुसार, या ऐसे विदेिों के अभाि में, उस रूक़ि के अिुसार, करिे के वलए आबद्ध है जो उस स्थाि पर, जहां
अवभकताण ऐसे कारबार का संचालि करता है, उसी ककस्म का कारबार करिे में प्रचवलत हो । जबकक अवभकताण अन्यथा कायण करे तब
यकद कोई हावि हो तो उसे उसके वलए अपिे मावलक की प्रवतपूर्तण करिी होगी और यकद कोई लाभ हो तो उसे उसका लेिा लेिा होगा ।
दृष्टांत
(क) क, एक अवभकताण, जो ि की ओर से ऐसा कारबार करिे में लगा है, वजसमें यह रूक़ि है कक समय-समय पर जो रुपए हाथ
में आएं उसे ब्याज पर विविवहत कर कदया जाए, उसका िैसा विवििाि करिे का लोप करता है । ि के प्रवत उस ब्याज की प्रवतपूर्तण, जो
इस प्रकार के विवििािों से प्राय: अवभप्राप्त होती है, क को करिी होगी ।
(ि) एक दलाल, ि वजसके कारबार में उिार बेचिे की रूक़ि िहीं है, क का माल ग को वजसका प्रत्यय उस समय बहुत ऊंचा
है, उिार बेचता है । ग, संदाय करिे से पूिण कदिावलया हो जाता है । क की इस हावि की प्रवतपूर्तण ि को करिी होगी ।
212. अवभकताण से अपेवित कौिल और तत्परता––अवभकताण अवभकरर् के कारबार का संचालि उतिे कौिल से करिे के वलए
आबद्ध है वजतिा िैसे कारबार में लगे हुए व्यवक्तयों में सािारर्त: होता है, जब तक कक मावलक को उसके कौिल के अभाि की सूचिा
ि हो । अवभकताण सदा ही युवक्तयुक्त तत्परता से कायण करिे के वलए और उसका वजतिा कौिल है उसे उपयोग में लािे के वलए और
अपिी स्ियं की उपेिा, कौिल के अभाि या अिचार के प्रत्यि पररर्ामों की बाबत अपिे मावलक को प्रवतकर देिे के वलए आबद्ध है,
ककन्तु ऐसी हावि या िुकसाि की बाबत िहीं जो ऐसी उपेिा, कौिल के अभाि या अिचार से अप्रत्यित: या दूरस्थत: काररत हो ।
दृष्टांत
(क) कलकत्ते के एक िवर्क क का एक अवभकताण ि लन्दि में है वजसे ि के लेिे में कु छ िि इस आदेि के साथ कदया जाता है
कक िह उसे भेज दे । ि उस िि को बहुत समय तक रिे रिता है । उस िि के ि वमलिे के फलस्िरूप क कदिावलया हो जाता है । ि
उस िि के वलए और वजस तारीि को िह दे कदया जािा चावहए था उस तारीि से प्रावयक दर पर, ब्याज के वलए और ककसी प्रत्यि
हावि के वलए, उदाहरर्ाथण विविमय दर में फे रफार के वलए दायी है, ककन्तु इससे अवतररक्त के वलए िहीं ।
37

(ि) माल के विक्रय के वलए एक अवभकताण क, वजसे उिार बेचिे का प्राविकार है, ि की िोिििमता के बारे में उवचत और
प्रावयक जांच ककए वबिा ि को उिार माल बेचता है । इस विक्रय के समय ि कदिावलया है । उससे हुई हावि के वलए क अपिे मावलक
को प्रवतकर देगा ।
(ग) पोत का बीमा करिे के वलए ि द्वारा वियोवजत एक बीमा-दलाल क इस बात का ध्याि रििे का लोप करता है कक बीमे
की पावलसी में िे उपबन्ि रिे जाएं, जो प्राय: रिे जाते हैं । तत्पश्चात पोत िष्ट हो जाता है । उि उपबन्िों के ि होिे के
पररर्ामस्िरूप विम्िांककों से कु छ िसूल िहीं ककया जा सकता । ि की उस हावि की प्रवतपूर्तण करिे के वलए क आबद्ध है ।
(घ) इं गलैंड का एक िवर्क क, मुम्बई के अपिे अवभकताण ि को वजसिे, अवभकरर् प्रवतगृहीत ककया है, रुई की 100 गांठें
अमुक पोत में अपिे को भेजिे का विदेि देता है । ि की िवक्त में यह बात थी कक िह रुई भेज दे ककन्तु िह ऐसा करिे का लोप
करता है । िह पोत सकु िल इं गलैंड पहुंच जाता है । उसके पहुंचिे के तुरन्त पश्चात रुई की कीमत च़ि जाती है । ि उस लाभ की
प्रवतपूर्तण क के प्रवत करिे को आबद्ध है जो क रुई की उि 100 गांठों में से उस समय कमाता वजस समय पोत पहुंचा ककन्तु उस लाभ की
पूर्तण के वलए िहीं जो उस पश्चात्िती ब़िोत्तरी के कारर् होता ।
213. अवभकताण के लेिा––अवभकताण अपिे मावलक की मांग पर उवचत लेिा देिे के वलए आबद्ध है ।
214. मावलक से सम्पकण रििे का अवभकताण का कतणव्य––अवभकताण का यह कतणव्य है कक करठिाई की दिाओं में अपिे मावलक
से सम्पकण रििे और उसके अिुदिे अवभप्राप्त करिे में समस्त युवक्तयुक्त तत्परता बरते ।
215. मावलक का अविकार जब कक अवभकताण अवभकरर् के कारबार में मावलक की सम्मवत के वबिा अपिे ही लेिे व्यिहार
करता है––यकद कोई अवभकताण अपिे मावलक की सम्मवत पहले से अवभप्राप्त ककए वबिा और उसको उि सब तावत्त्िक पररवस्थवतयों से,
जो उस वििय पर उसके अपिे ज्ञाि में आई हों, पररवचत कराए वबिा, अवभकरर् के कारबार में अपिे ही लेिे व्यिहार करे तो, यकद
मामले से यह दर्िणत हो कक या तो कोई तावत्त्िक तथ्य अवभकताण द्वारा बेईमािी से मावलक से वछपाया गया है या अवभकताण के व्यिहार
मावलक के वलए अवहतकार रहे हैं, तो मावलक उस व्यिहार का विराकरर् कर सके गा ।
दृष्टांत
(क) क अपिी सम्पदा बेचिे का विदेि ि को देता है । ि उस सम्पदा को ग के िाम में अपिे वलए िरीद लेता है यह पता
लगिे पर कक ि िे सम्पदा अपिे वलए िरीदी है क उस विक्रय का विराकरर् कर सके गा यकद िह यह दर्िणत कर सके कक ि िे बेईमािी
से कोई तावत्त्िक तथ्य वछपाया है या िह विक्रय उसके वलए अवहतकर रहा है ।
(ि) क अपिी सम्पदा बेचिे का विदेि ि को देता है । ि बेचिे से पूिण उस सम्पदा को देििे पर यह जाि जाता है कक सम्पदा
में एक िाि है जो क को ज्ञात िहीं है । क को ि सूवचत करता है कक िह सम्पदा अपिे वलए िरीदिा चाहता है ककन्तु िाि की बात
वछपा लेता है । क िाि के अवस्तत्ि को ि जािते हुए ि को िरीदिे देता है । क यह जाििे पर कक ि सम्पदा को िरीदिे के समय िाि
के बारे में जािता था, उस विक्रय को अपिे विकल्प पर विराकृ त या अंगीकृ त कर सके गा ।
216. अवभकरर् के कारबार में अवभकताण को अपिे लेिा व्यिहार को करिे से प्राप्त फायदे पर मावलक का अविकार––यकद
कोई अवभकताण अपिे मावलक के ज्ञाि के वबिा अवभकरर् के कारबार में अपिे मावलक के लेिे व्यिहार करिे के बजाय अपिे ही लेिे
व्यिहार करता है तो मावलक अवभकताण से उस फायदे का दािा करिे का हकदार है जो अवभकताण को उस संव्यिहार से हुआ है ।
दृष्टांत
क अपिे वलए अमुक गृह िरीदिे का विदेि अपिे अवभकताण ि को देता है । क से ि कहता है कक िह िरीदा िहीं जा सकता
और उसे अपिे वलए िरीद लेता है । यह जांचिे पर कक ि िे गृह िरीद वलया है क उसे िह घर अपिे को उस कीमत पर, जो ि िे दी
हो, बेचिे के वलए वििि कर सके गा ।
217. अवभकताण का मावलक के लेिे प्राप्त रावियों में से प्रवतिारर् का अविकार––अवभकताण अवभकरर् के कारबार में मावलक
के लेिे प्राप्त रावियों में से उि सब ििों का, जो उसे कारबार के संचालि में उसके द्वारा कदए गए अवग्रमों या उवचत रूप से उपगत
व्ययों के वलए उसको िोध्य हों, और ऐसे पाररिवमक का भी, जो ऐसे अवभकताण के तौर पर कायण करिे के वलए उसे देय हों, प्रवतिारर्
कर सके गा ।
218. मावलक के विवमत्त प्राप्त रावियों के संदाय का अवभकताण का कतणव्य––ऐसी कटौवतयों के अध्यिीि अवभकताण मावलक की
उि सब रावियों को संदाय करिे के वलए आबद्ध है जो मावलक के लेिे उसे प्राप्त हुई हों ।
219. अवभकताण का पाररिवमक कब िोध्य हो जाता है––ककसी वििेि संविदा के अभाि में, ककसी कायण के पालि के वलए
संदाय अवभकताण को तब तक िोध्य िहीं होता जब तक िह कायण पूरा ि हो जाए, ककन्तु अवभकताण बेचे गए माल के लेिे उसे प्राप्त
ििरावियों को प्रवतिृत कर सके गा यद्यवप विक्रय के वलए उसे परे वित माल सारे का सारा बेचा ि जा सका हो, या विक्रय िस्तु त: पूर्ण ि
हुआ हो ।
220. अिचाररत कारबार के वलए अवभकताण पाररिवमक का हकदार िहीं है ––िह अवभकताण, जो अवभकरर् के कारबार में
अिचार का दोिी है, कारबार के उस भाग के बारे में, वजसे उसिे अिचाररत ककया है, ककसी पाररिवमक का हकदार िहीं है ।
38

दृष्टांत
(क) ग से 1,00,000 रुपए िसूल करिे और उन्हें अच्छी प्रवतभूवत पर लगािे के वलए ि को क वियोवजत करता है । ि उि
1,00,000 रुपयों को िसूल करता है और 90,000 रुपए अच्छी प्रवतभूवत पर लगाता है ककन्तु 10,000 रुपए ऐसी प्रवतभूवत पर लगाता है
वजसका बुरा होिा उसे ज्ञात होिा चावहए था । इसके फलस्िरूप क को 2,000 रुपयों की हावि होती है । ि 1,00,000 रुपए िसूल करिे
के वलए और 90,000 रुपए विविवहत करिे के वलए पाररिवमक पािे का हकदार है । िह 10,000 रुपए विविवहत करिे के वलए ककसी
पाररिवमक का हकदार िहीं है; और उसे क को 2,000 रुपए की प्रवतपूर्तण करिी होगी ।
(ि) ग से 1,000 रुपए िसूल करिे के वलए ि को क वियोवजत करता है । ि के अिचार से िह िि िसूल िहीं होता । ि
अपिी सेिाओं के वलए ककसी भी पाररिवमक का हकदार िहीं है और उसे हावि की प्रवतपूर्तण करिी होगी ।
221. मावलक की सम्पवत्त पर अवभकताण का िारर्ाविकार––तत्प्रवतकू ल संविदा के अभाि में अवभकताण को यह हक है कक उसे
प्राप्त मावलक का माल, कागज-पत्र और अन्य सम्पवत्त, चाहे िह जंगम हो या स्थािर, तब तक प्रवतिाररत ककए रहे जब तक उसे
तत्संबंिी कमीिि, संवितरर्ों और सेिाओं की बाबत िोध्य रकम दे ि दी जाए या उसका लेिा समझा ि कदया जाए ।
अवभकताण के प्रवत मावलक का कतणव्य
222. विविपूर्ण कायों के पररर्ामों के वलए अवभकताण की िवतपूर्ण की जाएगी––अवभकताण का वियोजक उि सब विविपूर्ण
कायों के पररर्ामों के वलए अवभकताण की िवतपूर्तण करिे के वलए आबद्ध है जो उस अवभकताण िे उसे प्रदत्त प्राविकार के प्रयोग में
ककए हों ।
दृष्टांत
(क) कलकत्ते के क के अिुदि े ों के अिीि ग को कु छ माल पररदाि करिे के वलए ग से ि वसगांपुर में संविदा करता है । ि को
क माल िहीं भेजता और ग संविदा भंग के वलए ि पर िाद लाता है । क को ि िाद की इवत्तला देता है और क उसे िाद में प्रवतरिा
करिे के वलए प्राविकृ त करता है । ि िाद में प्रवतरिा करता है और िुकसािी तथा िचण देिे के वलए वििि ककया जाता है और िह व्यय
उपगत करता है । क ऐसी िुकसािी, िचों और व्ययों के वलए ि के प्रवत दायी है ।
(ि) कलकत्ते का एक दलाल ि िहां के एक िवर्क क के आदेिों के अिुसार ग से क के वलए दस पीपे तेल िरीदिे की संविदा
करता है । तत्पश्चात क िह तेल लेिे से इन्कार कर देता है और ि पर ग िाद लाता है । क को ि इवत्तला देता है । क संविदा का पूर्णत:
विराकरर् कर देता है । ि प्रवतरिा करता है ककन्तु असफल रहता है और उसे िुकसािी और िचे देिे पड़ते हैं और व्यय उठािे
पड़ते हैं । क ऐसी िुकसािी, िचों और व्ययों के वलए ि के प्रवत दायी है ।
223. सदभाि से ककए गए कायों के पररर्ामों के वलए अवभकताण की िवतपूर्तण की जाएगी––जहां कक एक व्यवक्त ककसी दूसरे
को कोई कायण करिे के वलए वियोवजत करता है और िह अवभकताण उस कायण को सदभाि से करता है िहां िह वियोजक उस कायण के
पररमर्ामों के वलए अवभकताण की िवतपूर्तण करिे का दायी है यद्यवप िह कायण पर-व्यवक्तयों के अविकारों को िवत करता हो ।
दृष्टांत
(क) क, एक वडक्रीदार, जो ि के माल के विरुद्ध उस वडक्री का विष्पादि करािे का हकदार है, कु छ माल को ि का माल
व्यपकदष्ट करके न्यायालय के आकफसर से अपेिा करता है कक िह उस माल को अवभगृहीत कर ले । आकफसर उस माल का अवभग्रहर्
करता है और उस पर माल के िास्तविक स्िामी ग द्वारा िाद लाया जाता है । क उस रावि के वलए उस आकफसर की िवतपूर्तण करिे का
दायी है वजसे िह क के विदेिों के पालि के पररर्ामस्िरूप ग को देिे के वलए वििि ककया जाता है ।
(ि) क की प्राथणिा पर ि उस माल को बेचता है जो क के कब्जे में तो है ककन्तु वजसके व्ययि का क को कोई अविकार िहीं
था । ि यह बात िहीं जािता और विक्रय के आगम क को दे देता है । तत्पश्चात ि पर उस माल का िास्तविक स्िामी ग िाद लाता है
और माल का मूल्य और िचाण िसूल कर लेता है । ग को जो कु छ देिे के वलए ि वििि ककया गया है उसकी और ि के अपिे व्ययों की
िवतपूर्तण करिे के वलए ि के प्रवत क दायी है ।
224. आपराविक कायण करिे के वलए अवभकताण के वियोजक का अदावयत्ि––जहां कक एक व्यवक्त ककसी दूसरे को ऐसा करिे के
वलए वियोवजत करता है, जो आपराविक हो, िहां वियोजक उस कायण के पररर्ामों के वलए अवभकताण की िवतपूर्तण ि तो अवभव्यक्त
और ि वििवित िचि के आिार पर करिे का दायी है ।1
दृष्टांत
(क) ग को पीटिे के वलए ि को क वियोवजत करता है और उस कायण के सब पररर्ामों के वलए उसकी िवतपूर्तण करिे का
करार करता है । ि तदुपरर ग को पीटता है और िैसा करिे के वलए उसे ग को िुकसािी देिी पड़ती है । क उस िुकसािी के वलए ि की
िवतपूर्तण करिे का दायी िहीं है ।

1
िारा 24 भी देविए ।
39

(ि) ि, एक समाचारपत्र का स्ित्ििारी, क की प्राथणिा पर उस पत्र में ग के विरुद्ध एक अपमािलेि प्रकावित करता है और
क उस प्रकािि के पररर्ामों और उसके संबंि में जो भी अिुयोजि हो उसके सब िचों और िुकसािी के वलए ि की िवतपूर्तण करिे
करार करता है । ि पर ग द्वारा िाद लाया जाता है और उसे िुकसािी देिी पड़ती है और व्यय भी उठािा पड़ता है । उक्त िवतपूर्तण
िचि के आिार पर ि के प्रवत क दायी िहीं है ।
225. मावलक की उपेिा से काररत िवत के वलए अवभकताण को प्रवतकर––मावलक की उपेिा से या कौिल के अभाि से उसके
अवभकताण को काररत िवत1 के वलए मावलक अवभकताण को प्रवतकर देगा ।
दृष्टांत
क एक गृह बिािे के वलए ि को राज के तौर पर वियोवजत करता है और पाड़ स्ियं ही लगाता है । पाड़ कौिलहीिता से
लगाई गई है और पररर्ामत: ि उपहत होता है । ि को क प्रवतकर देगा ।
पर-व्यवक्तयों से की गई संविदाओं पर अविकरर् का प्रभाि
226. अवभकताण की संविदाओं का प्रितणि और उिके पररर्ाम––अवभकताण के माध्यम से की गई संविदाएं और अवभकताण द्वारा
ककए गए कायों से उद्भूत बाध्यताएं उसी प्रकार प्रिर्तणत कराई जा सकें गी और उिके िे ही विविक पररर्ाम होंगे मािो िे संविदाएं और
कायण स्ियं मावलक द्वारा ककए गए हों ।
दृष्टांत
(क) ि से माल क यह जािते हुए कक ि उिके विक्रय के वलए अवभकताण है, ककन्तु यह ि जािते हुए कक मावलक कौि है,
िरीदता है । ि का मावलक क से उस माल की कीमत का दािा करिे का हकदार है और मावलक द्वारा लाए गए िाद में मावलक के दािे
के विरुद्ध के िह ऋर्, जो उसे ि को िोध्य हो, मुजरा िहीं करा सकता ।
(ि) ि का अवभकताण क वजसे उसकी ओर से िि प्राप्त करिे का प्राविकार है, ग से ि को िोध्य कु छ ििरावि प्राप्त करता
है । उक्त िि ि देिे को बाध्यता से ग उन्मोवचत हो जाता है ।
227. मावलक कहां तक आबद्ध है जबकक अवभकताण प्राविकार से आगे ब़ि जाता है––जबकक कोई अवभकताण उससे अविक करता
है वजतिा करिे के वलए िह प्राविकृ त है और जबकक जो कु छ िह करता है उसका िह भाग, जो उसके प्राविकार के भीतर है, उस भाग
से, जो उसके प्राविकार के परे है, पृथक ककया जा सकता है तो जो कु छ िह करता है उसका के िल उतिा ही भाग, वजतिा उसके
प्राविकार के भीतर है, उसके और उसके मावलक के बीच आबद्धकर है ।
दृष्टांत
क, जो एक पोत और स्थोरा का स्िामी है, ि को उस पोत का 4,000 रुपए का बीमा उपाप्त करिे के वलए प्राविकृ त करता
है । ि पोत का 4,000 रुपए का एक बीमा और स्थोरा का समाि रावि का दूसरा बीमा उपाप्त करता है । क पोत के बीमे के वलए
प्रीवमयम देिे को आबद्ध है ककन्तु स्थोरा के बीमे के वलए प्रीवमयम देिे को िहीं ।
228. मावलक आबद्ध ि होगा जहां कक अवभकताण के प्राविकार से परे ककया गया कायण पृथक िहीं ककया जा सकता––जहां कक
अवभकताण उससे अविक करता है वजतिा करिे के वलए िह प्राविकृ त है और अपिे प्राविकार के विस्तार के परे जो कु छ िह करता है िह
उससे पृथक िहीं ककया जा सकता जो उसके प्राविकार के भीतर है िहां मावलक उस संव्यिहार को मान्यता देिे के वलए आबद्ध िहीं है ।
दृष्टांत
क, अपिे वलए 500 भेड़ें िरीदिे के वलए ि को प्राविकृ त करता है । ि 6,000 रुपए की एक रावि में 500 भेडें और 200 मेमिे
िरीदा लेता है । क संपूर्ण संव्यिहार का विराकरर् कर सके गा ।
229. अवभकताण को दी गई सूचिा के पररर्ाम––अवभकताण को दी गई ककसी सूचिा या उसके द्वारा अवभप्राप्त ककसी जािकारी
का, जहां तक कक मावलक और पर-व्यवक्तयों का संबंि है, िही विविक पररर्ाम होगा मािो िह मावलक को दी गई या उसके द्वारा
अवभप्राप्त की गई हो, परन्तु यह तब जब कक िह अवभकताण द्वारा मावलक के वलए संव्यिहृत कारबार के अिुक्रम में दी या अवभप्राप्त की
गई हो ।
दृष्टांत
(क) ग से िह माल वजसका ग दृश्यमाि स्िामी है िरीदिे के वलए ि द्वारा क वियोवजत ककया जाता है और िह तद्िुसार उसे
िरीदता है । विक्रय की बातचीत के अिुक्रम में क को पता चलता है कक िह माल िास्ति में घ का है ककन्तु ि को यह तथ्य ज्ञात िहीं
है । ग से अपिे को िोध्य एक ऋर् उस माल की कीमत के विरुद्ध मुजरा करिे का ि हकदार िहीं है ।

1
घातक दुघटण िा अविवियम, 1855(1855 13) देविए ।
40

(ि) ग से िह माल वजसका ग दृश्यमाि स्िामी है िरीदिे के वलए ि द्वारा क वियोवजत ककया जाता है । क इस प्रकार
वियोवजत होिे से पूिण ग का सेिक था और तब उसे मालूम हुआ था कक िह माल िास्ति में घ का है ककन्तु ि को यह तथ्य ज्ञात िहीं है ।
अपिे अवभकताण को यह ज्ञाि होते हुए भी ग से अपिे को िोध्य ऋर् ि उस माल की कीमत के विरुद्ध मुजरा कर सके गा ।
230. मावलक की ओर से की गई संविदाओं को अवभकताण िैयवक्तक रूप से ि तो प्रिर्तणत करा सकता है और ि उिसे आबद्ध
ही होता है––ककसी तत्प्रभािी संविदा के अभाि में कोई भी अवभकताण अपिे मावलक की ओर से अपिे द्वारा की गई संविदाओं का प्रितण ि
िैयवक्तक रूप से िहीं करा सकता और ि िैयवक्तक रूप से उिसे आबद्ध होता है ।
तत्प्रवतकू ल संविदा की उपिारर्ा––ऐसी संविदा के अवस्तत्ि की उपिारर्ा विम्िवलवित दिाओं में की जाएगी––
(1) जहां कक संविदा ककसी अवभकताण द्वारा ककसी विदेि वििासी िवर्क की ओर से माल के विक्रय या क्रय के वलए
की गई हो ।
(2) जहां कक अवभकताण अपिे मावलक का िाम प्रकट िहीं करता ।
(3) जहां कक मावलक पर, यद्यवप उसका िाम प्रकट कर कदया गया हो, िाद िहीं लाया जा सकता ।
231. अप्रकरटत अवभकताण द्वारा की गई संविदा के पिकारों के अविकार––यकद कोई अवभकताण ऐसे व्यवक्त से संविदा करे , जो
ि तो यह जिता हो और ि यह सन्देह करिे का कारर् रिता हो कक िह अवभकताण है, तो अवभकताण का मावलक यह अपेिा कर सके गा
कक संविदा का पालि ककया जाए, ककन्तु संविदा करिे िाला दूसरा पिकार उस मावलक के विरुद्ध िे ही अविकार रिता है जो िह उस
अवभकताण के विरुद्ध रिता यकद िह अवभकताण मावलक होता ।
यकद मावलक संविदा पूर्ण होिे के पूिण अपिे आपको प्रकट कर दे तो संविदा करिे िाला दूसरा पिकार उस संविदा का पालि
करिे से इन्कार कर सके गा यकद िह यह दर्िणत कर सके कक यकद उसे यह ज्ञात होता कक संविदा में मावलक कौि है या यकद उसे यह ज्ञात
होता कक िह अवभकताण मावलक िहीं है तो उसिे िह संविदा ि की होती ।
232. अवभकताण को मावलक समझ कर उसके साथ की गई संविदा का पालि––जहां कक एक व्यवक्त ककसी दूसरे व्यवक्त के
साथ, यह ि जािते हुए और यह सन्देह करिे का युवक्तयुक्त आिार ि रिते हुए कक िह दूसरा व्यवक्त एक अवभकताण है, संविदा करता है
िहां यकद मावलक उस संविदा के पालि की अपेिा करे तो िह ऐसा पालि, अवभकताण और संविदा के दूसरे पिकार के बीच विद्यमाि
अविकारों और बाध्यताओं के अध्यिीि ही अवभप्राप्त कर सकता है ।
दृष्टांत
क, जो ि को 500 रुपए का देिदार है, क को 1,000 रुपए का चािल बेचता है । क इस संव्यिहार में ग के वलए अवभकताण के
रूप में कायण कर रहा है, ककन्तु ि ि तो जािता ही है और ि यह सन्देह करिे का युवक्तयुक्त आिार ही रिता है कक बात ऐसी है । ि को
क का ऋर् मुजरा देिे की अिुज्ञा कदए वबिा ि को चािल लेिे के वलए ग वििि िहीं कर सकता ।
233. िैयवक्तक रूप से दायी अवभकताण से व्यिहार करिे िाले व्यवक्त का अविकार––उि मामलों में, वजिमें कक अवभकताण
िैयवक्तक रूप से दायी हो, उसके व्यिहार करिे िाला व्यवक्त या तो उसको या उससे मावलक को या उि दोिों को दायी ठहरा सके गा ।
दृष्टांत
रुई की 100 गांठ ि को बेचिे की संविदा उससे क करता है और तत्पश्चात उसे पता चलता है कक ग की ओर से ि अवभकताण
के रूप में कायण कर रहा था । क उसे रुई की कीमत के वलए या तो ि पर या ग पर या दोिों पर िाद ला सके गा ।
234. अवभकताण या मावलक को इस विश्िास पर कायण करिे के वलए उत्प्रेररत करिे का पररर्ाम ि कक के िल मावलक या के िल
अवभकताण दायी ठहराया जाएगा––जबकक कोई व्यवक्त, वजसिे ककसी अवभकताण से संविदा की हो उस अवभकताण को इस विश्िास पर
कायण करिे के वलए उत्प्रेररत करे कक के िल मावलक ही दायी ठहराया जाएगा या मावलक को इस विश्िास पर कायण करिे के वलए
उत्प्रेररत करे कक के िल अवभकताण ही दायी ठहराया जाएगा तब िह, यथावस्थवत, अवभकताण या मावलक को तत्पश्चात दायी िहीं ठहरा
सकता ।
235. अपदेिी अवभकताण का दावयत्ि––जो व्यवक्त अपिे को ककसी दूसरे का प्राविकृ त अवभकताण होिा असत्यत: व्यपकदष्ट
करता है और तदद्वारा ककसी पर-व्यवक्त को उत्प्रेररत करता है कक िह उसे अवभकताण माि कर उसके साथ व्यिहार करे , यकद उसका
अवभकवथत वियोजक उसके कायों का अिुसमथणि ि करे तो, िह उस पर-व्यवक्त की उस हावि या िुकसाि के बारे में जो उस पर-व्यवक्त
िे ऐसे व्यिहार करिे द्वारा उठाया है, प्रवतकर देिे का दायी होगा ।
236. वमथ्या रूप से अवभकताण के तौर पर संविदा करिे िाला व्यवक्त पालि करािे का हकदार िहीं है––िह व्यवक्त, वजससे
अवभकताण की हैवसयत में संविदा की गई है, उसके पालि की अपेिा करिे का हकदार िहीं है, यकद िह िास्ति में अवभकताण के तौर पर
िहीं, िरि स्ियं अपिे लेिे कायण कर रहा था ।
237. यह विश्िास उत्प्रेररत करिे िाले मावलक का दावयत्ि कक अवभकताण के अप्राविकृ त कायण प्राविकृ त थे––जब कक अवभकताण
िे प्राविकार के वबिा अपिे मावलक की ओर से कायण ककए हों या पर-व्यवक्तयों के प्रवत बाध्यताएं उपगत की हों तब मावलक ऐसे कायों
41

या बाध्यताओं से आबद्ध होगा, यकद मावलक िे अपिे िब्दों या आचरर् से ऐसे पर-व्यवक्तयों को यह विश्िास करिे के वलए उत्प्रेररत
ककया हो कक ऐसे कायण और बाध्यताएं उस अवभकताण के प्राविकार के विस्तार के भीतर थी ।
दृष्टांत
(क) क विक्रय के वलए माल ि को प्रेवित रिता है और उसे अिुदेि देता है कक िह उसे वियत कीमत से कम पर ि बेचे ।
ि को कदए गए अिुदि े ों को ि जािते हुए ग आरवित कीमत से कम कीमत पर उस माल को िरीदिे की ि से संविदा करता है । क उस
संविदा से आबद्ध है ।
(ि) क ऐसी परक्राम्य वलित, वजि पर विरं क पृष्ठांकि है, ि के पास न्यस्त करता है । क के प्राइिेट आदेिों का अवतक्रमर्
कर ि उन्हें ग को बेच देता है । विक्रय ठीक है ।
238. अवभकताण द्वारा दुव्यणपदेिि या कपट का करार पर प्रभाि––अपिे कारबार के अिुक्रम में अपिे मावलकों की ओर से कायण
करते हुए अवभकताणओं द्वारा ककए गए दुव्यणपदेिि या कपट ऐसे अवभकताणओं द्वारा ककए गए करारों पर िे ही प्रभाि रिते हैं मािो ऐसे
दुव्यणपदेिि या कपट उि मावलकों द्वारा ककए गए हों, ककन्तु अवभकताणओं द्वारा ऐसे विियों में, जो उिके प्राविकार के भीतर िहीं आते,
ककए गए दुव्यणपदेिि या कपट का उिके मावलकों पर प्रभाि िहीं पड़ता ।
दृष्टांत
(क) क, जो माल के विक्रय के वलए ि का अवभकताण है, एक दुव्यणपदेिि द्वारा वजसे करिे के वलए िह ि द्वारा प्राविकृ त िहीं
था, ग को उसे िरीदिे के वलए उत्प्रेररत करता है । जहां तक कक ि और ग के बीच का संबंि है, संविदा ग के विकल्प पर
िून्यकरर्ीय है ।
(ि) ि के पोत का कप्ताि क, िहिपत्रों पर, उिमें िर्र्णत माल को पोत पर प्राप्त ककए वबिा ही हस्तािर करता है । जहां
तक ि और अपदेिी परे िक का संबंि है, िहिपत्र िून्य है ।
अध्याय 11––[भागीदारी के वििय में ।] ––भारतीय भागीदारी अविवियम, 1932 (1932 का 9) की िारा 73 तथा अिुसूची
2 द्वारा विरवसत ।
अिुसच ू ी––[अविवियवमवतयां विरवसत ।] ––विरसि तथा संिोिि अविवियम, 1914 (1914 का 10) की िारा 3 तथा
अिुसूची 2 द्वारा विरवसत ।

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