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भारतीय क्रिश्‍ियन श्ििाह अश्िश्नयम, 1872

(1872 का अश्िश्नयम संखयांक 15)


[18 जुलाई, 1872]
क्रिश्‍ियन के श्ििाहों के भारत में
अनुष्ठापन सेसम्बश्‍ित श्िश्ि
का समेकन और संशोिन
करने के श्लए
अश्िश्नयम

उद्देश्शकायह समीिीन है क्रक क्रिश्‍ियन िमम मानने िाले व्यश्‍तयों के श्ििाहों के भारत में अनुष्ठापन से संबंश्ित श्िश्ि का
समेकन और संशोिन क्रकया जाए ; अत: श्नम्नश्लश्ित रूप में यह अश्िश्नयश्मत क्रकया जाता है :

प्रारश्म्भक
1. संश्िप्त नामइस अश्िश्नयम का संश्िप्त नाम भारतीय क्रिश्‍ियन श्ििाह अश्िश्नयम, 1872 है ।
श्िस्तार1[इसका श्िस्तार 3[उन राज्यिेत्रों के ,] 2[श्सिाय] सम्पूर्म भारत पर है 2[3[जो 1 निम्बर, 1956 से ठीक पूिम]
ट्रािनकोर-कोिीन, मश्र्पुर और 4*** 3[राज्यों में समाश्िष्ट थे] ।]5
6* * * * *
2. [अश्िश्नयश्मश्तयां श्नरश्सत ।]श्नरसन अश्िश्नयम, 1938 )1938 का 1( की िारा 2 तथा अनुसूिी के भाग 1 द्वारा
श्नरश्सत ।
3. श्निमिन िंडइस अश्िश्नयम मेa, जब तक क्रक कोई बात श्िषय या संदभम में श्िरुद्ध न हो,
“इं ग्लैण्ड का ििम” और “एंगश्लकन” से श्िश्ि द्वारा स्थाश्पत इं ग्लैण्ड का ििम अश्भप्रेत है और िे उसे लागू होते हैं ;
“स्काटलैण्ड का ििम” और “एंगश्लकन” से श्िश्ि द्वारा स्थाश्पत स्काटलैण्ड का ििम अश्भप्रेत है ;
“रोम का ििम” और “रोमन कै थोश्लक” से िह ििम अश्भप्रेत है जो रोम के पोप को उसका आध्याश्‍मक प्रमुि
मानता है और िे ऐसे ही ििम को लागू होते हैं ;
“ििम” के अ‍तगमत कोई िैपल या सािमजश्नक क्रिश्‍ियन उपासना के श्लए सािारर्तया प्रयोग में आने िाला अ‍य
भिन है ;
7[“भारत” से 8[िे राज्यिेत्र अश्भप्रेत हैं श्जन] पर इस अश्िश्नयम का श्िस्तार है ; ]
“अियस्क” से ऐसा व्यश्‍त अश्भप्रेत है श्जसने इ‍कीस िषम की आयु पूरी नहीं की है और जो श्ििुर अथिा श्िििा
नहीं है ;
9* * * * *
“क्रिश्‍ियन” पद से क्रिश्‍ियन िमम मानने िाले व्यश्‍त अश्भप्रेत हैं ;

1
श्िश्ि अनुकूलन आदेश, 1937 और श्िश्ि अनुकूलन आदेश, 1948 द्वारा संशोश्ित दूसरे पैरे के स्थान पर श्िश्ि अनुकूलन आदेश, 1950 द्वारा प्रश्तस्थाश्पत ।
[टटप्पर्: यह अश्िश्नयम मश्र्पुर राज्य को श्िस्ताटरत नहीं हुआ, देश्िए, 1956 के अश्िश्नयम सं० 68 की िारा 2 द्वारा संशोश्ित 1950 के अश्िश्नयम सं०30
की िारा 3)2क( और अनुसूिी । यह अश्िश्नयम, 1963 के श्िश्नयम सं० 6 की िारा 2 और अनुसूिी 1 द्वारा दादरा और नागर हिेली को )1-7-1965 से( श्िस्ताटरत और
प्रिृत्त क्रकया गया ।]
2
1951 के अश्िश्नयम सं० 3 की िारा 3 और अनुसूिी द्वारा “भाग ि राज्यों के श्सिाय” के स्थान पर प्रश्तस्थाश्पत ।
3
श्िश्ि अनुकूलन आदेश, 1956 द्वारा “राज्यों” के स्थान पर प्रश्तस्थाश्पत ।
4
2019 के अश्िश्नयम सं० 34 की िारा 95 और पांििी अनुसूिी द्वारा (31-10-2019 से) “जम्मू-क‍मीर” शब्दों का लोप क्रकया गया ।
5
पांश्डिेरी संघ राज्यिेत्र को लागू होने पर िारा 1 के अंत में श्नम्नश्लश्ित पर‍तुक जोड़ा जाएगा )देश्िए 1968 का अश्िश्नयम सं० 26( : “पर‍तु इस अश्िश्नयम में
अ‍तर्िमष्ट कोई बात पांश्डिेरी के संघ राज्यिेत्र के रनोसाओं को लागू नहीं होगी” ।
6
1874 के अश्िश्नयम सं० 16 की िारा 1 और अनुसूिी, भाग 1 द्वारा प्रारम्भ िण्ड का श्नरसन ।
7
1951 के अश्िश्नयम सं० 3 की िारा 3 और अनुसूिी द्वारा अंत:स्थाश्पत ।
8
श्िश्ि अनुकूलन )संखयांक 2( आदेश, 1956 द्वारा “राज्यों में समाश्िष्ट राज्यिेत्र” के स्थान पर प्रश्तस्थाश्पत ।
9
भारत शासन )भारतीय श्िश्ि अनुकूलन( आदेश, 1937 द्वारा “देशी राज्य” की पटरभाषा का श्नरसन ।
2

“भारतीय क्रिश्‍ियन” पद के अ‍तगमत क्रिश्‍ियन िमम में संपटरिर्तमत भारत के मूल श्निाश्सयों के क्रिश्‍ियन
1[और

िंशज और ऐसे िमम में संपटरिर्तमत व्यश्‍त भी हैं ;


[“ज‍म, मृ‍यु और श्ििाह का महारश्जस्ट्रार” से ज‍म, मृ‍यु और श्ििाह रश्जस्ट्रीकरर् अश्िश्नयम, 1886
2

)1886 का 6( के अिीन श्नयु‍त ज‍म, मृ‍यु और श्ििाह का महारश्जस्ट्रार अश्भप्रेत है ।]


भाग 1

िे व्यश्‍त, श्जनके द्वारा श्ििाह अनुष्ठाश्पत कराए जा सकते हैं


4. अश्िश्नयम के अनुसार श्ििाहों का अनुष्ठापनऐसे व्यश्‍तयों के बीि, श्जनमें से कोई एक क्रिश्‍ियन है या दोनों ही
क्रिश्‍ियन 3[हैं], प्र‍येक श्ििाह ठीक अगली िारा के उपब‍िों के अनुसार अनुष्ठाश्पत कराया जाएगा, और ऐसे उपब‍िों से अ‍यथा
अनुष्ठाश्पत कराया गया श्ििाह शू‍य होगा ।
5. िे व्यश्‍त, श्जनके द्वारा श्ििाह अनुष्ठाश्पत कराए जा सकते हैं4[भारत] में श्नम्नश्लश्ित द्वारा श्ििाह अनुष्ठाश्पत कराए
जा सकते है,
)1( उस व्यश्‍त द्वारा, जो िमामध्यि द्वारा अश्भश्ष‍त है, पर‍तु यह तब जब िह श्ििाह ऐसे ििम के श्जसका िह
पुरोश्हत है, श्नयमों, िार्ममक कृ ‍यों, कममकांडों और रूक्रियों के अनुसार, अनुष्ठाश्पत कराया जाए ;
)2( स्काटलैण्ड के ििम के क्रकसी पादरी द्वारा, पर‍तु यह तब जब िह श्ििाह स्काटलैण्ड के ििम के , श्नयमों, िार्ममक
कृ ‍यों, कममकांडों और रूक्रियों के अनुसार, अनुष्ठाश्पत कराया जाए ;
)3( श्ििाहों को अनुष्ठाश्पत कराने के श्लए इस अश्िश्नयम के अिीन अनुज्ञप्त क्रकसी िममपुरोश्हत द्वारा ;
)4( इस अश्िश्नयम के अिीन श्नयु‍त क्रकसी श्ििाह रश्जस्ट्रार द्वारा या उसकी उपश्स्थश्त में ;
)5( क्रकसी व्यश्‍त द्वारा, जो 5[भारतीय] क्रिश्‍ियनों के बीि श्ििाहों के प्रमार्पत्र देने के श्लए इस अश्िश्नयम के
अिीन अनुज्ञप्त है ।
6[6. श्ििाहों के अनुष्ठापन के श्लए अनुज्ञश्प्तयों का क्रदया जाना और प्रश्तसंहरर्राज्य सरकार, जहां तक उसके प्रशासन के
अिीन राज्यिेत्रों का सम्ब‍ि है 7***, ऐसे राज्यिेत्रों 8*** के अ‍दर श्ििाहों का अनुष्ठापन कराने के श्लए राजपत्र में 9*** अश्िसूिना
द्वारा िमम-पुरोश्हतों को अनुज्ञश्प्तयां, प्रदान कर सके गी, और उसी प्रकार की अश्िसूिना द्वारा, ऐसी अनुज्ञश्प्तयां प्रश्तसंहृत कर सके गी ।]
7. श्ििाह रश्जस्ट्रारराज्य सरकार, अपने प्रशासन के अिीन क्रकसी श्जले के श्लए, एक या अश्िक क्रिश्‍ियनों को, या तो
नाम से या उस समय क्रकसी पद िारक के रूप में, श्ििाह रश्जस्ट्रार श्नयु‍त कर सके गी ।
िटरष्ठ श्ििाह रश्जस्ट्रारजहां क्रकसी श्जले में एक से अश्िक श्ििाह रश्जस्ट्रार हैं िहां राज्य सरकार उनमें से एक को िटरष्ठ
श्ििाह रश्जस्ट्रार श्नयु‍त करे गी ।
मश्जस्ट्रेट का श्ििाह रश्जस्ट्रार होनाजब क्रकसी श्जले में एक ही श्ििाह रश्जस्ट्रार है, और िह रश्जस्ट्रार उस श्जले से
अनुपश्स्थत है, या बीमार है, या उसका पद अस्थायी रूप से टर‍त है, तब, ऐसी अनुपश्स्थश्त, बीमारी या अस्थायी टरश्‍त के दौरान, उस
श्जले का मश्जस्ट्रेट, उस श्जले का श्ििाह रश्जस्ट्रार होगा और उस रूप में कायम करे गा ।
8. [भारतीय राज्यों में श्ििाह रश्जस्ट्रार ।] श्िश्ि अनुकूलन आदेश, 1950 द्वारा श्नरश्सत ।
9. भारतीय क्रिश्‍ियनों के बीि श्ििाह के प्रमार्पत्र देने के श्लए व्यश्‍तयों का अनुज्ञापनराज्य सरकार 10*** क्रकसी
क्रिश्‍ियन को, या तो नाम से या उस समय क्रकसी पद-िारक के रूप में, उसे 5[भारतीय] क्रिश्‍ियनों के बीि श्ििाह के प्रमार्पत्र देने के
श्लए प्राश्िकृ त करते हुए, अनुज्ञश्प्त दे सके गी ।
ऐसी कोई भी अनुज्ञश्प्त उस प्राश्िकारी द्वारा प्रश्तसंहृत की जा सके गी श्जसके द्वारा िह दी गई थी और ऐसी प्र‍येक अनुज्ञश्प्त
का क्रदया जाना या प्रश्तसंहरर् राजपत्र में अश्िसूश्ित क्रकया जाएगा ।

1
श्िश्ि अनुकूलन आदेश, 1950 द्वारा मूल पटरभाषा के स्थान पर प्रश्तस्थाश्पत ।
2
1866 के अश्िश्नयम सं० 6 की िारा 30 द्वारा अ‍त:स्थाश्पत ।
3
1891 के अश्िश्नयम सं० 12 की िारा 2 और अनुसूिी 2 द्वारा अ‍त: स्थापश्त )यह पाद-टटप्पर् अंग्रज े ी के पाद-टटप्पर् के कारर् बनाया गया है( ।
4
1951 के अश्िश्नयम सं० 3 की िारा 3 और अनुसूिी द्वारा “भाग क राज्यों और भाग ग राज्यों” के स्थान पर प्रश्तस्थाश्पत ।
5
श्िश्ि अनुकूलन आदेश, 1950 द्वारा “देशी” के स्थान पर प्रश्तस्थाश्पत ।
6
1891 के अश्िश्नयम सं० 2 की िारा 1 द्वारा मूल िारा 6 के स्थान पर प्रश्तस्थाश्पत ।
7
श्िश्ि अनुकूलन आदेश, 1937 द्वारा संशोश्ित “और के ‍रीय सरकार, जहां तक क्रकसी भारतीय राज्य का संबंि है” शब्दों का श्िश्ि अनुकूलन आदेश, 1950 द्वारा श्नरसन ।
8
श्िश्ि अनुकूलन आदेश, 1950 द्वारा “और राज्य, िमश:” शब्दों का श्नरसन ।
9
श्िश्ि अनुकूलन आदेश, 1937 द्वारा “या, यथाश्स्थश्त, भारत के राजपत्र में” शब्दों का श्नरसन ।
10
श्िश्ि अनुकूलन आदेश, 1937 द्वारा संशोश्ित “या )जहां तक भारतीय राज्य का संबि ं है( के ‍रीय सरकार” शब्दों का श्िश्ि अनुकूलन आदेश, 1950 द्वारा श्नरसन ।
3

भाग 2

िह समय और स्थान जहां श्ििाह अनुष्ठाश्पत क्रकए जा सकते हैं


10. श्ििाह अनुष्ठाश्पत कराने का समयइस अश्िश्नयम के अिीन प्र‍येक श्ििाह प्रात:काल छह बजे से सांय:काल सात बजे
के बीि अनुष्ठाश्पत कराया जाएगा :
अपिादपर‍तु इस िारा की कोई बात श्नम्नश्लश्ित को लागू नहीं होगी
)1( इं गलैण्ड के ििम के क्रकसी पादरी को, जो डायोसीस के ऐंगललंकन श्बशप या उसके कमीसरी के हस्तािर से और
मुरायु‍त क्रकसी ऐसी श्िशेष अनुज्ञश्प्त के अिीन श्ििाह अनुष्ठाश्पत कराता है, जो उसे प्रात:काल छह बजे और सांय:काल
सात बजे के बीि के समय के अलािा क्रकसी भी समय ऐसा करने के श्लए अनुज्ञात करती है, अथिा
)2( सांय:काल सात बजे से प्रात: छह बजे के बीि श्ििाह अनुष्ठाश्पत कराने िाले रोम के ििम के पादरी को, जब
उसे उस डायोसीस या श्िके टरयट के , श्जसमें ऐसा श्ििाह इस प्रकार अनुष्ठाश्पत कराया गया है, रोमन कै थोश्लक श्बशप से, या
ऐसे व्यश्‍त से, श्जसे उस श्बशप ने ऐसी अनुज्ञश्प्त देने के श्लए प्राश्िकृ त क्रकया है, कोई सािारर् या श्िशेष अनुज्ञश्प्त प्राप्त हो
गई है, 1[अथिा
)3( स्काटलैण्ड के ििम के ऐसे पादरी को, जो स्काटलैण्ड के ििम के श्नयमों, िार्ममक कृ ‍यों, कममकाण्डों और रूक्रियों
के अनुसार कोई श्ििाह अनुष्ठाश्पत कराता है ] ।
11. श्ििाह अनुष्ठाश्पत कराने का स्थानइं ग्लैण्ड के ििम का कोई पादरी क्रकसी ऐसे स्थान में श्ििाह अनुष्ठाश्पत नहीं
कराएगा, जो उस ििम से श्भ‍न है, 2[जहां सािारर्तया इं ग्लैण्ड के ििम की श्िश्ियों के अनुसार उपासना की जाती है],
जब तक क्रक श्नकटतम मागम से उस स्थान से पांि मील की दूरी के भीतर 2[ऐसा] कोई ििम न हो, अथिा
जब तक क्रक उसे डायोसीस के ऐंलग्लंकन श्बशप या उसके कमीसरी के हस्तािर से और मुरायु‍त ऐसी श्िशेष अनुज्ञश्प्त न
प्राप्त हो गई हो जो उसे िैसा करने के श्लए प्राश्िकृ त करती हो ।
श्िशेष अनुज्ञश्प्त के श्लए फीसऐसी श्िशेष अनुज्ञश्प्त के श्लए डायोसीस का रश्जस्ट्रार ऐसी अश्तटर‍त फीस प्रभाटरत कर
सके गा श्जसे उ‍त श्िशप समय-समय पर प्राश्िकृ त करे ।
भाग 3

इस अश्िश्नयम के अिीन अनुज्ञप्त िमम पुरोश्हतों द्वारा अनुष्ठाश्पत श्ििाह


12. आशश्यत श्ििाह की सूिनाजब कभी इस अश्िश्नयम के अिीन श्ििाहों का अनुष्ठापन कराने के श्लए अनुज्ञप्त क्रकसी
िमम पुरोश्हत द्वारा क्रकसी श्ििाह का अनुष्ठापन आशश्यत हो, तब,
श्ििाह का आशय रिने िाले व्यश्‍तयों में से एक, इससे उपाबद्ध अनुसूिी 1 में क्रदए गए प्ररूप के अनुसार, या उसी आशय
की, श्लश्ित सूिना उस िमम पुरोश्हत को देगा श्जससे िह श्ििाह का अनुष्ठापन कराना िाहता है या िाहती है, और उसमें श्नम्नश्लश्ित
बातें श्लिी जाएंगी,
)क( श्ििाह का आशय रिने िाले व्यश्‍तयों में से प्र‍येक का नाम और अश्िनाम, तथा उसकी िृश्त्त या दशा ;
)ि( उनमें से प्र‍येक का श्निास-स्थान;
)ग( िह अिश्ि श्जसके दौरान प्र‍येक िहां रहा है ; और
)घ( िह ििम या प्राइिेट श्निास-स्थान जहां श्ििाह अनुष्ठाश्पत क्रकया जाना है :
पर‍तु यक्रद ऐसे व्यश्‍तयों में से कोई व्यश्‍त, सूिना में उश्‍लश्ित स्थान पर एक मास से अश्िक तक रह िुका है तो, उसमें यह
श्लिा जाना िाश्हए क्रक िह िहां एक मास या उससे अश्िक तक रह िुका है या रह िुकी है ।
13. ऐसी सूिना का प्रकाशनयक्रद श्ििाह का आशय रिने िाला व्यश्‍त यह िाहता है क्रक श्ििाह अमुक ििम में अनुष्ठाश्पत
क्रकया जाए, और यक्रद िह िमम पुरोश्हत श्जसे िह सूिना दी गई है, उस ििम में स्थानापन‍न रूप से कायम करने का हकदार है तो िह
सूिना को उस ििम के क्रकसी सहजदृ‍य भाग में लगिा देगा ।
सूिना का िापस श्लया जाना या अ‍तटरत क्रकया जानाक्रक‍तु यक्रद िह उस ििम में पुरोश्हत के रूप में स्थानाप‍न रूप में
कायम करने का हकदार नहीं है तो िह उस सूिना को, अपने श्िक‍प पर, या तो उस व्यश्‍त को िापस कर देगा श्जसने िह सूिना दी थी,

1
1891 के अश्िश्नयम सं० 2 की िारा 2 द्वारा अ‍त:स्थाश्पत ।
2
1891 के अश्िश्नयम सं० 2 की िारा 3 द्वारा अ‍त:स्थाश्पत ।
4

या उसे उस ििम में स्थानाप‍न रूप में कायम करने के हकदार क्रकसी अ‍य पुरोश्हत को पटरदत्त कर देगा, जो त‍प‍िात् उस सूिना को
यथापूिो‍त लगिा देगा ।
14. आशश्यत श्ििाह श्नजी श्निास स्थान में करने की सूिनायक्रद यह आशश्यत है क्रक श्ििाह क्रकसी श्नजी श्निास स्थान में
अनुष्ठाश्पत कराया जाए तो िमम पुरोश्हत, िारा 12 में श्िश्हत सूिना की प्राश्प्त पर, उसे उस श्जले के श्ििाह रश्जस्ट्रार को भेज देगा जो
उसे अपने ही कायामलय के क्रकसी सहजदृ‍य स्थान पर लगिा देगा ।
15. जब एक पिकार अियस्क हो तब सूिना की प्रश्त का श्ििाह रश्जस्ट्रार को भेजा जानाजब श्ििाह का आशय रिने
िाले व्यश्‍तयों में से कोई एक अियस्क है तब प्र‍येक पुरोश्हत, श्जसे िह सूिना प्राप्त होती है, यक्रद िह उसे उसकी प्राश्प्त के प‍िात्
िौबीस घंटों के भीतर िारा 13 के उपबंिों के अिीन िापस नहीं कर देता, उस सूिना की एक प्रश्त, डाक से या अ‍य प्रकार से, उस श्जले
के श्ििाह रश्जस्ट्रार को, या यक्रद उस श्जले में एक से अश्िक रश्जस्ट्रार हैं तो िटरष्ठ श्ििाह रश्जस्ट्रार को, भेज देगा ।
16. सूिना की प्राश्प्त पर प्रक्रियायथाश्स्थश्त, श्ििाह रश्जस्ट्रार या िटरष्ठ श्ििाह रश्जस्ट्रार, ऐसी क्रकसी सूिना की प्राश्प्त
पर, उसे अपने कायामलय के क्रकसी सहजदृ‍य स्थान पर लगिा देगा, और िटरष्ठ श्ििाह रश्जस्ट्रार उस सूिना की एक प्रश्त उसी श्जले के
अ‍य श्ििाह रश्जस्ट्रारों में से प्र‍येक को भी श्भजिा देगा जो उसे ऊपर श्नर्दमष्ट रीश्त से िैसे ही प्रकाश्शत करें गे ।
17. दी गई सूिना और की गई घोषर्ा के प्रमार्पत्र का जारी क्रकया जानाकोई िमम पुरोश्हत, जो यथापूिो‍त क्रकसी श्ििाह
का अनुष्ठापन कराने के श्लए सहमत है या कराने का आशय रिता है, उस व्यश्‍त द्वारा या उसकी ओर से, श्जसके द्वारा सूिना दी गई
थी, िैसा करने की अपेिा की जाने पर, और इसमें इसके प‍िात् अपेश्ित घोषर्ा श्ििाह का आशय रिने िाले व्यश्‍तयों से एक के
द्वारा की जाने पर, अपने हस्तािर से इस आशय का एक प्रमार्पत्र जारी करे गा क्रक िह सूिना दी गई थी और िह घोषर्ा की गई थी :
पर‍तुकपर‍तु
)1( ऐसा कोई प्रमार्पत्र तब तक जारी नहीं क्रकया जाएगा जब तक उ‍त पुरोश्हत द्वारा सूिना की प्राश्प्त की
तारीि के प‍िात् िार क्रदन न समाप्त हो जाएं ;
)2( तभी जबक्रक ऐसा प्रमार्पत्र ‍यों न क्रदया जाए इस बारे में उसका समािान करने िाली कोई श्िश्िपूर्म अड़िन
क्रदिाई न गई हो ; और
)3( तभी जबक्रक उस प्रमार्त्र का जारी क्रकया जाना, उस श्नश्मत्त प्राश्िकृ त क्रकसी व्यश्‍त द्वारा, इसमें इसके
प‍िात्-िर्र्मत रीश्त से, श्नश्षद्ध न कर क्रदया गया हो ।
18. प्रमार्पत्र जारी करने से पूिम घोषर्ािारा 17 में िर्र्मत प्रमार्पत्र तब तक जारी नहीं क्रकया जाएगा जब तक श्ििाह
का आशय रिने िाले व्यश्‍तयों में से कोई एक पुरोश्हत के समि व्यश्‍तगत रूप से उपश्स्थत न हुआ हो और उसने श्नष्ठापूिमक यह
घोषर्ा न की हो,
)क( क्रक उसका श्ि‍िास है क्रक उ‍त श्ििाह में र‍त संबंि या श्ििाह संबंि की कोई अड़िन या अ‍य श्िश्िपूर्म
बािा नहीं है,
और जब दोनों में से कोई एक या दोनों ही अियस्क हों, तब,
)ि( क्रक, यथाश्स्थश्त, उस श्ििाह के श्लए श्िश्ि द्वारा अपेश्ित सहमश्त या सहमश्तयां प्राप्त कर ली गई हैं या यह
क्रक भारत में श्निासी ऐसा कोई व्यश्‍त नहीं है श्जसे ऐसी सहमश्त देने का प्राश्िकार है ।
19. श्पता, या संरिक, या माता की सहमश्तक्रकसी अियस्क का श्पता, यक्रद िह जीश्ित है तो, या यक्रद श्पता की मृ‍यु हो
गई है तो ऐसे अियस्क के शरीर का संरिक, और यक्रद कोई संरिक नहीं है तो ऐसे अियस्क की माता उस अियस्क के श्ििाह की
सहमश्त दे सकती है,
और उस श्ििाह के श्लए इसके द्वारा ऐसी सहमश्त अपेश्ित है, क्रक‍तु उस दशा में नहीं होगी जब ऐसी सहमश्त देने के श्लए
प्राश्िकृ त कोई व्यश्‍त भारत में श्निासी न हो ।
20. प्रमार्पत्र जारी करने की सूिना द्वारा प्रश्तशेि करने की शश्‍तप्र‍येक व्यश्‍त श्जसकी श्ििाह के श्लए सहमश्त
िारा 19 के अिीन अपेश्ित है, इसके द्वारा इस बात के श्लए प्राश्िकृ त क्रकया जाता है क्रक िह क्रकसी पुरोश्हत द्वारा प्रमार्पत्र के श्लए
जाने का प्रश्तषेि, उस पुरोश्हत को उस प्रमार्पत्र को जारी करने से पहले क्रकसी भी समय, ऐसी श्लश्ित सूिना देकर कर सकता है,
श्जस पर इस प्रकार प्राश्िकृ त व्यश्‍त द्वारा उसके नाम के हस्तािर क्रकए गए हों, और उसके रहने के स्थान का तथा श्ििाह का आशय
रिने िाले व्यश्‍तयों में से क्रकसी व्यश्‍त की उस दशा का उ‍लेि क्रकया गया हो, श्जसके कारर् िह यथापूिो‍त प्राश्िकृ त क्रकया गया है
या की गई है ।
21. सूिना की प्राश्प्त पर प्रक्रियायक्रद उस पुरोश्हत द्वारा ऐसी कोई सूिना प्राप्त होती है तो िह अपना प्रमार्पत्र जारी
नहीं करे गा और उ‍त श्ििाह तब तक अनुष्ठाश्पत नहीं कराएगा जब तक िह उ‍त प्रश्तषेि सम्ब‍िी मामले की जांि नहीं कर लेता और
उसका यह समािान नहीं हो जाता है क्रक श्ििाह का प्रश्तषेि करने िाले व्यश्‍त को ऐसा प्रश्तषेि करने का कोई श्िश्िमा‍य प्राश्िकार
नहीं है ।
5

या जब तक उ‍त सूिना उस व्यश्‍त द्वारा िापस नहीं ले ली जाती श्जसमें सूिना दी थी ।


22. अियस्कता के मामले में प्रमार्पत्र का जारी क्रकया जानाजब श्ििाह का आशय रिने िाले व्यश्‍तयों में से कोई व्यश्‍त
अियस्क है, और पुरोश्हत का यह समािान नहीं हुआ है क्रक उस व्यश्‍त की सहमश्त प्राप्त हो गई है श्जसकी उस श्ििाह के श्लए सहमश्त
िारा 19 द्वारा अपेश्ित है तब िह पुरोश्हत ऐसा प्रमार्पत्र, श्ििाह की सूिना प्राप्त होने के प‍िात् िौदह क्रदन की समाश्प्त तक जारी
नहीं करे गा ।
23. भारतीय क्रिश्‍ियनों को प्रमार्पत्र जारी करनाजब कोई 1[भारतीय] क्रिश्‍ियन, श्जसका श्ििाह होने िाला है, श्ििाह
की सूिना क्रकसी पुरोश्हत के पास ले जाता है, या उस पुरोश्हत से िारा 17 के अिीन प्रमार्पत्र के श्लए आिेदन करता है तब िह
पुरोश्हत, प्रमार्पत्र जारी करने से पूिम, यह अश्भश्न‍िय करे गा क्रक उस 1[भारतीय] क्रिश्‍ियन को, यथाश्स्थश्त, उ‍त सूिना या
प्रमार्पत्र के आशय और प्रभाि की समझ है या नहीं है तो 1[भारतीय] क्रिश्‍ियन के समि उस सूिना या प्रमार्पत्र का अनुिाद ऐसी
भाषा में, श्जसे िह समझता है, करे गा या कराएगा ।
24. प्रमार्पत्र का प्ररूपऐसे पुरोश्हत द्वारा जारी क्रकए जाने िाला प्रमार्पत्र इससे उपाबद्ध अनुसूिी 2 में क्रदए गए प्ररूप में,
अथिा उसी आशय के प्ररूप में, होगा ।
25. श्ििाह का अनुष्ठापनपुरोश्हत द्वारा प्रमार्पत्र जारी क्रकए जाने के प‍िात्, उसमें उश्‍लश्ित व्यश्‍तयों के बीि श्ििाह
का अनुष्ठापन ऐसी रीश्त या कममकांड के अनुसार क्रकया जा सके गा श्जसे अपनाना िह पुरोश्हत ठीक समझे :
पर‍तु श्ििाह पुरोश्हत के अलािा कम से कम दो साश्ियों की उपश्स्थश्त में अनुष्ठाश्पत क्रकया जाएगा ।
26. यक्रद श्ििाह दो मास के भीतर अनुष्ठाश्पत नहीं कराया जाता तो प्रमार्पत्र का शू‍य होनाजब कभी क्रकसी पुरोश्हत
द्वारा यथापूिो‍त जारी क्रकए गए प्रमार्पत्र की तारीि के प‍िात् दो मास के भीतर श्ििाह अनुष्ठाश्पत नहीं करा क्रदया जाता तब िह
प्रमार्पत्र और त‍सम्ब‍िी सभी कायमिाश्हयां )यक्रद कोई हों( शू‍य हो जाएंगी ;
और कोई भी व्यश्‍त उ‍त श्ििाह के अनुष्ठापन की कारम िाई तब तक नहीं करे गा जब तक नई सूिना नही दे दी जाती और
उसका प्रमार्पत्र पूिो‍त रीश्त से जारी नहीं कर क्रदया जाता ।
भाग 4

िमम पुरोश्हतों द्वारा अनुष्ठाश्पत श्ििाहों, का रश्जस्ट्रीकरर्


27. श्ििाह कब रश्जस्टर क्रकए जाएंऐसे व्यश्‍तयों के बीि, श्जनमें से एक या दोनों ही क्रिश्‍ियन िमम मानते हैं, 2[भारत] में
इसके प‍िात् अनुष्ठाश्पत सभी श्ििाह, इस अश्िश्नयम के भाग 5 या भाग 6 के अिीन अनुष्ठाश्पत श्ििाहों को छोड़कर, इसमें इसके
प‍िात् श्िश्हत रीश्त से, रश्जस्टर3 क्रकए जाएंगे ।
28. इं ग्लैंड के ििम के पादटरयों द्वारा अनुष्ठाश्पत श्ििाहों का रश्जस्ट्रीकरर्इं ग्लैण्ड के ििम का प्र‍येक पादरी श्ििाहों का
एक रश्जस्टर रिेगा और उसमें इससे उपाबद्ध अनुसूिी 3 में क्रदए गए सारर्ी-प्ररूप के अनुसार, ऐसे प्र‍येक श्ििाह को रश्जस्टर करे गा
श्जसे िह उस अश्िश्नयम के अिीन अनुष्ठाश्पत कराए ।
29. आिमश्डकनरी को श्तमाही श्ििरश्र्यांइं ग्लैण्ड के ििम का प्र‍येक पादरी ऐसे स्थान में, जहां उसका आध्याश्‍मक प्रभार
है, अनुष्ठाश्पत श्ििाहों के रश्जस्टर की प्रश्िश्ष्टयों की श्ििटरर्यां, जो उसके हस्तािर से अश्िप्रमाश्र्त की जाएंगी, दो प्रश्तयों में, उस
आिमश्डकनरी के रश्जस्ट्रार को, श्जसके िह अिीन है या श्जसकी सीमाओं के भीतर िह स्थान श्स्थत है, प्रश्तिषम िार बार भेजेगा ।
श्ििरश्र्यों का अंतर्िमषयऐसी श्तमाही श्ििरश्र्यों में, उ‍त रश्जस्टर में की प्रश्त िषम िमश: जनिरी के प्रथम क्रदन से मािम
के इकतीसिें क्रदन तक, अप्रैल के प्रथम क्रदन से जून के तीसिें क्रदन तक, जुलाई के प्रथम क्रदन से श्सतंबर के तीसिें क्रदन तक, और अ‍तूबर
के प्रथम क्रदन से क्रदसम्बर के इकतीसिें क्रदन तक की श्ििाह की सभी प्रश्िश्ष्टयां होंगी और उ‍त पादरी, ऊपर श्िश्नर्दमष्ट श्तमाश्हयों में
से प्र‍येक श्तमाही की समाश्प्त से दो सप्ताह के भीतर, भेजेगा ।
उ‍त रश्जस्ट्रार उन श्ििरश्र्यों की प्राश्प्त पर उसकी एक-एक प्रश्त 4[ज‍म, मृ‍यु और श्ििाह के महारश्जस्ट्रार] को भेजेगा ।
30. रोम के ििम के पादटरयों द्वारा अनुष्ठाश्पत श्ििाहों का रश्जस्ट्रीकरर् और उनकी श्ििरश्र्यांरोम के ििम के पादरी
द्वारा अनुष्ठाश्पत प्र‍येक श्ििाह उस डायोश्सस या श्िके टरयट के , जहां िह श्ििाह अनुष्ठाश्पत क्रकया गया हो, रोमन कै थोश्लक श्बशप
द्वारा श्नक्रदष्ट व्यश्‍त द्वारा और ऐसे श्बशप द्वारा उस श्नश्मत्त श्नक्रदष्ट प्ररूप के अनुसार रश्जस्टर क्रकया जाएगा,
और ऐसा व्यश्‍त ठीक पूिमगामी तीन मास के दौरान उसके द्वारा रश्जस्टर क्रकए गए सभी श्ििाहों की प्रश्िश्ष्टयों की
श्ििरश्र्यां, प्रश्त श्तमाही, 4[ज‍म, मृ‍यु और श्ििाह के महारश्जस्ट्रार] को भेजेगा ।

1
श्िश्ि अनुकूलन आदेश, 1950 द्वारा “देशी” के स्थान पर प्रश्तस्थाश्पत ।
2
1951 के अश्िश्नयम सं० 3 की िारा 3 और अनुसूिी द्वारा “भाग क राज्य या भाग ग राज्य” के स्थान पर प्रश्तस्थाश्पत ।
3
ज‍म, मृ‍यु और श्ििाह के सािारर् रश्जस्ट्री कायामलय की स्थापना के बारे में देश्िए ज‍म, मृ‍यु और श्ििाह रश्जस्ट्रीकरर् अश्िश्नयम, 1886 )1886 का 6(, अध्याय 2 ।
4
1886 के अश्िश्नयम सं० 6 की िारा 30 द्वारा “स्थानीय सरकार के सश्िि” के स्थान पर प्रश्तस्थाश्पत ।
6

31. स्काटलैंड के ििम के पादटरयों द्वारा अनुष्ठाश्पत श्ििाहों का रश्जस्ट्रीकरर् और उनकी श्ििरश्र्यांस्काटलैंड के ििम का
प्र‍येक पादरी श्ििाहों का एक रश्जस्टर रिेगा,
और उसमें, इस अश्िश्नयम से उपाबद्ध अनुसूिी 3 में क्रदए गए सारर्ी-प्ररूप के अनुसार, ऐसे प्र‍येक श्ििाह को रश्जस्टर
करे गा श्जसे िह इस अश्िश्नयम के अिीन अनुष्ठाश्पत कराए,
और, स्काटलैंड के ििम के सीश्नयर िैपलेन की माफम त, 1[ज‍म, मृ‍यु और श्ििाह के महारश्जस्ट्रार] को ऐसे सभी श्ििाहों की,
िारा 29 में श्िश्हत श्ििरश्र्यों जैसी श्ििरश्र्यां, प्रश्त श्तमाही भेजेगा ।
32. कु छ श्ििाहों का दो जगहों पर रश्जस्टर क्रकया जानािमामध्यि द्वारा अश्भश्ष‍त क्रकसी व्यश्‍त द्वारा, जो इं ग्लैंड के ििम
का, या रोम के ििम का पादरी नहीं है, या श्ििाहों का अनुष्ठापन कराने के श्लए इस अश्िश्नयम द्वारा अनुज्ञप्त क्रकसी िमम पुरोश्हत
द्वारा, अनुष्ठाश्पत प्र‍येक श्ििाह, उसके अनुष्ठापन के तुर‍त प‍िात् श्ििाह का अनुष्ठापन कराने िाले व्यश्‍त द्वारा दो जगहों पर
रश्जस्टर क्रकया जाएगा ; )अथामत्( उसके द्वारा उस प्रयोजन के श्लए, इससे उपाबद्ध अनुसूिी 4 में क्रदए गए प्ररूप के अनुसार रिी गई
श्ििाह रश्जस्टर पुस्तक में, और श्ििाह रश्जस्टर पुस्तक में प्रश्तपर्म के रूप में संलग्न प्रमार्पत्र में भी, रश्जस्टर क्रकया जाएगा ।
33. ऐसे श्ििाहों की प्रश्िश्ष्टयों पर हस्तािर करना और उ‍हें अनुप्रमाश्र्त करनाप्रमार्पत्र और श्ििाह रश्जस्टर पुस्तक
दोनों में ही ऐसे श्ििाह की प्रश्िश्ष्ट पर, श्ििाह अनुष्ठाश्पत कराने िाले व्यश्‍त द्वारा और श्ििाश्हत व्यश्‍तयों द्वारा भी, हस्तािर क्रकए
जाएंग,े और श्ििाह अनुष्ठाश्पत कराने िाले व्यश्‍त से श्भ‍न दो श्ि‍िसनीय साश्ियों द्वारा, जो उसके अनुष्ठापन में उपश्स्थत हों,
अनुप्रमाश्र्त क्रकए जाएंगे ।
ऐसी प्र‍येक प्रश्िश्ष्ट, पुस्तक के आरम्भ से लेकर अ‍त तक, िमबद्ध रूप में की जाएगी और प्रमार्पत्र का संखयांक िही होगा
जो श्ििाह रश्जस्टर पुस्तक में प्रश्िश्ष्ट का है ।
34. प्रमार्पत्र का श्ििाह रश्जस्ट्रार को भेजा जाना, उसकी प्रश्तश्लश्प का बनाया जाना, और उसे महारश्जस्ट्रार को भेजा
जानाश्ििाह का अनुष्ठापन कराने िाला व्यश्‍त प्रमार्पत्र को श्ििाह रश्जस्टर पुस्तक में से त‍काल अलग कर देगा और उसे, श्ििाह
अनुष्ठापन के समय से एक मास के भीतर, उस श्जले के श्ििाह रश्जस्ट्रार का, श्जसमें श्ििाह अनुष्ठाश्पत क्रकया गया था, और यक्रद
श्ििाह रश्जस्ट्रार एक से अश्िक हों तो िटरष्ठ श्ििाह रश्जस्ट्रार को, भेज देगा ;
जो उस प्रयोजन के श्लए उसके पास रिी पुस्तक में उस प्रमार्पत्र की प्रश्तश्लश्प कराएगा ;
और उन सभी प्रमार्पत्रों को, जो उसे मास के दौरान प्राप्त हुए हैं, उन पर िह संखयांक डालकर और हस्तािर या आद्यिटरत
करके , जो इसमें इसके प‍िात् अपेश्ित हैं, 1[ज‍म, मृ‍यु और श्ििाह के महारश्जस्ट्रार] को भेज देगा ।
35. प्रमार्पत्रों की प्रश्तश्लश्पयों का दजम और संखयांक्रकत क्रकया जानाऐसी प्रश्तश्लश्पयां उ‍त पुस्तक में आरम्भ से लेकर
उसके अ‍त तक िमबद्ध रूप में दजम की जाएंगी और उन पर उस प्रमार्पत्र का, जो उसकी बनी प्रश्तश्लश्प में हो, संखयांक और श्जस िम
में श्ििाह रश्जस्ट्रार प्र‍येक प्रमार्पत्र प्राप्त करता है, उस िम के अनुसार, उसके द्वारा दजम क्रकया जाने िाला संखयांक, जो उ‍त पुस्तक
में उ‍त प्रश्तश्लश्प की प्रश्िश्ष्ट की संखया उपदर्शमत करे गा, ये दोनों संखयांक, डाले जाएंगे ।
36. रश्जस्ट्रार द्वारा प्रमार्पत्र में प्रश्िश्ष्ट का संखयांक डालना और उसे महारश्जस्ट्रार को भेजनाश्ििाह रश्जस्ट्रार उस
पुस्तक में प्रश्तश्लश्प की प्रश्िश्ष्ट का उपरो‍त अश्‍तम िर्र्मत संखयांक भी प्रमार्पत्र पर श्लिेगा और उस पर अपने हस्तािर या
आद्यिटरत करे गा तथा उसे प्र‍येक मास के अ‍म में 1[ज‍म, मृ‍यु और श्ििाह के महारश्जस्ट्रार] को भेज देगा ।
37. भारतीय क्रिश्‍ियनों के बीि श्ििाहों का िारा 5 के िंड )1(, )2( और )3( में श्नर्दमष्ट व्यश्‍तयों द्वारा
रश्जस्ट्रीकरर्जब 2[क्रकसी ऐसे व्यश्‍त, पादरी या िममपुरोश्हत द्वारा जो िारा 5 के िण्ड )1(, िण्ड )2( या िण्ड )3( में श्नर्दमष्ट] कोई
श्ििाह 3[भारतीय] क्रिश्‍ियनों के बीि अनुष्ठाश्पत कराया जाता है तब उसे अनुष्ठाश्पत कराने िाला व्यश्‍त, िारा 28 से लेकर िारा
36 तक, श्जनके अ‍तगमत दोनों ही िाराएं सश्म्मश्लत हैं, के द्वारा उपबश्‍ित रीश्त से कायमिाही करने के बजाय उस श्ििाह को एक अलग
रश्जस्टर पुस्तक में रश्जस्टर करे गा, और जब तक िह भर नहीं जाती तब तक उसे अपने पास सुरश्ित रूप से रिेगा, और, यक्रद िह उस
पुस्तक के भर जाने से पूिम श्जसमें उसने िह श्ििाह अनुष्ठाश्पत कराया था तो िह ही उस श्जले को छोड़ देता है उसे उस व्यश्‍त को दे
जाएगा जो उ‍त श्जले के उसके कतमव्यों का पालन करने के श्लए उसका उत्तरिती बनता है ।
रश्जस्टर पुस्तक की अश्भरिा और व्यिस्थाश्जस क्रकसी के श्नयंत्रर् में िह पुस्तक उस समय, रहती है, जब िह भर जाती है,
तब िह उसे श्जले के श्ििाह रश्जस्ट्रार को, या यक्रद श्ििाह रश्जस्ट्रार एक से अश्िक हों तो िटरष्ठ श्ििाह रश्जस्ट्रार को भेज देगा जो उसे
1
[ज‍म, मृ‍यु और श्ििाह के महारश्जस्ट्रार] को, उसके कायामलय के अश्भलेिों के साथ रिे जाने के श्लए, भेज देगा ।

1
1886 के अश्िश्नयम सं० 6 की िारा 30 द्वारा “स्थानीय सरकार के सश्िि” के स्थान पर प्रश्तस्थाश्पत ।
2
1928 के अश्िश्नयम सं० 18 की िारा 2 और अनुसूिी 1 द्वारा “इस अश्िश्नयम के भाग 1 या भाग 3 के अिीन” शब्दों के स्थान पर प्रश्तस्थाश्पत ।
3
श्िश्ि अनुकूलन आदेश, आदेश, 1950 द्वारा “देशी” के स्थान पर प्रश्तस्थाश्पत ।
7

भाग 5

श्ििाह रश्जस्ट्रार द्वारा या उसकी उपश्स्थश्त में, अनुष्ठाश्पत श्ििाह


38. आशश्यत श्ििाह की श्ििाह रश्जस्ट्रार के समि सूिनाजब क्रकसी श्ििाह रश्जस्ट्रार द्वारा, या उसकी उपश्स्थश्त में,
क्रकसी श्ििाह का अनुष्ठापन आशश्यत हो तब, उस श्ििाह के पिकारों में से कोई एक इसे उपाबद्ध अनुसूिी 1 में क्रदए गए प्ररूप में, या
उसी आशय की, एक सूिना श्लश्ित रूप में उस श्जले के क्रकसी श्ििाह रश्जस्ट्रार को देगा श्जसके भीतर पिकार रह िुके हैं ;
या, यक्रद पिकार श्िश्भ‍न श्जलों में रहते हैं तो, िैसी ही सूिना प्र‍येक श्जले के श्ििाह रश्जस्ट्रार को देगा ;
और उसमें श्ििाह का आशय रिने िाले पिकारों में से प्र‍ये क का नाम और अश्िनाम, तथा उसकी िृश्त्त या दशा, उनमें से
प्र‍येक का श्निास-स्थान, िह अिश्ि श्जनके दौरान प्र‍येक िहां रहा है, और िह स्थान जहां श्ििाह अनुष्ठाश्पत कराया जाता है,
श्लिेगा :
पर‍तु यक्रद ऐसे पिकारों में से कोई भी सूिना में उश्‍लश्ित स्थान पर एक मास से अश्िक तक रह िुका है तो उसमें यह
श्लिा जाना िाश्हए क्रक िह िहां एक मास या उससे अश्िक तक रह िुका है या रह िुकी है ।
39. सूिना का प्रकाशनप्र‍येक श्ििाह रश्जस्ट्रार, ऐसी सूिना प्राप्त होने पर, उसकी एक प्रश्तश्लश्प अपने कायामलय में क्रकसी
सहजदृ‍य स्थान पर, लगिा देगा ।
जब श्ििाह का आशय रिने िाले पिकारों में से कोई एक अियस्क है तब प्र‍येक श्ििाह रश्जस्ट्रार, ऐसे श्ििाह की सूिना,
उसके द्वारा प्राप्त होने के प‍िात् िौबीस घंटों के भीतर, उस सूिना की एक प्रश्त डाक से या अ‍य प्रकार से, उसी श्जले के अ‍य श्ििाह
रश्जस्ट्रारों )यक्रद कोई हों( में से प्र‍येक को भेजेगा जो उस प्रश्तश्लश्प को अपने कायामलय के क्रकसी सहजदृ‍य स्थान पर उसी प्रकार लगिा
देगा ।
40. सूिना का फाइल क्रकया जाना और उसकी प्रश्तश्लश्प का श्ििाह सूिना पुस्तक में दजम क्रकया जानाश्ििाह रश्जस्ट्रार
ऐसी सभी सूिनाओं को फाइल करे गा और उ‍हें अपने कायामलय के अश्भलेि के साथ रिेगा ;
और ऐसी सभी सूिनाओं की एक सही प्रश्तश्लश्प, उसे उस प्रयोजन के श्लए, राज्य सरकार द्वारा दी जाने िाली पुस्तक में भी,
श्जसका नाम “श्ििाह सूिना पुस्तक” होगा, दजम करे गा ।
और श्ििाह सूिना पुस्तक ऐसे सभी व्यश्‍तयों के श्लए जो उसका श्नरीिर् करना िाहते हैं, श्बना क्रकसी फीस के , सभी उश्ित
समयों पर, उपलब्ि रहेगी ।
41. सूिना के प्रमार्पत्र का क्रदया जाना और शपथ ग्रहर्यक्रद िह पिकार, श्जसने सूिना दी थी, इसमें इसके प‍िात्
उश्‍लश्ित प्रमार्पत्र को जारी करने के श्लए श्ििाह रश्जस्ट्रार से अनुरोि करता है, और यक्रद श्ििाह का आशय रिने िाले पिकारों में
से एक ने, इसके प‍िात् यथा अपेश्ित शपथ1 ले ली है तो, श्ििाह रश्जस्ट्रार अपने हस्तािर से यह प्रमार्पत्र जारी करे गा क्रक िह
सूिना दी गई थी और िह शपथ ली गई थी :
पर‍तुकपर‍तु यह तभी जब,
ऐसा प्रमार्पत्र ‍यों न क्रदया जाए इस बारे में उसका समािान करने िाली कोई श्िश्िपूर्म अड़िन क्रदिाई न
गई हो ;
उस प्रमार्पत्र का जारी क्रकया जाना, इस अश्िश्नयम द्वारा उस श्नश्मत्त प्राश्िकृ त क्रकसी व्यश्‍त द्वारा, इसमें इसके
प‍िात्-िर्र्मत रीश्त से, श्नश्षद्ध न कर क्रदया गया हो ;
सूिना की प्राश्प्त के प‍िात् िार क्रदन बीत गए हों, और यह भी क्रक ;
जहां ऐसी शपथ से यह प्रतीत होता है क्रक श्ििाह का आशय रिने िाले पिकारों में से कोई एक अियस्क है िहां,
ऐसी सूिना दजम की जाने के प‍िात् िौदह क्रदन बीत गए हों ।
42. प्रमार्पत्र जारी करने से पूिम शपथिारा 41 में िर्र्मत प्रमार्पत्र क्रकसी भी श्ििाह रश्जस्ट्रार द्वारा तब तक जारी नहीं
क्रकया जाएगा जब तक श्ििाह का आशय रिने िाले पिकारों में से , कोई एक उस श्ििाह रश्जस्ट्रार के समि व्यश्‍तगत रूप से
उपश्स्थत हो कर यह शपथ1 नहीं लेता क्रक,
)क( उसका श्ि‍िास है क्रक उ‍त श्ििाह में र‍त सम्ब‍ि या श्ििाह सम्ब‍ि की कोई अड़िन या अ‍य श्िश्िपूर्म
बािा नहीं है, और
)ि( दोनों ही पिकारों का, या )यक्रद िे श्िश्भ‍न श्ििाह रश्जस्ट्रारों के श्जलों में रहे हैं, तो( ऐसी शपथ लेने िाले
पिकारों का, प्राश्यक श्निास-स्थान उस श्ििाह रश्जस्ट्रार के श्जले में था या है,

1
“शपथ” के अथम के श्लए देश्िए सािारर् िंड अश्िश्नयम, 1897 )1897 का 10( की िारा 3 और िारा 4 ।
8

)ग( और जहां उन पिकारों में से कोई एक या दोनों ही अियस्क हों, िहां, यथाश्स्थश्त, उस श्ििाह के श्लए श्िश्ि
द्वारा अपेश्ित सहमश्त या सहमश्तयां प्राप्त कर ली गई हैं या यह क्रक भारत में श्निासी ऐसा कोई व्यश्‍त नहीं है श्जसे ऐसी
सहमश्त देने का प्राश्िकार प्राप्त हो ।
43. िौदह क्रदन से पहले प्रमार्पत्र का आदेश देने के श्लए उच्ि ‍यायालय को याश्िकाजब श्ििाह का आशय रिने िाले
पिकारों में से कोई एक अियस्क है और दोनों ही पिकार उस समय कलकत्ता, मरास और मुम्बई के नगरों में से क्रकसी एक के श्निासी
हैं और यथापूिो‍त सूिना दजम क्रकए जाने के प‍िात् िौदह क्रदन के भीतर श्ििाह कर लेने के इच्छु क हैं तब िे उस श्ििाह रश्जस्ट्रार
को, श्जसे श्ििाह की सूिना दी गई है, यह आदेश क्रदए जाने के श्लए, क्रक उसे िारा 41 द्वारा अपेश्ित उ‍त िौदह क्रदनों की समाश्प्त से
पूिम अपना प्रमार्पत्र जारी करने के श्लए श्नदेश क्रदया जाए, याश्िका द्वारा उच्ि ‍यायालय के ‍यायािीश का आिेदन कर सकें गे ।
याश्िका पर आदेशऔर पयामप्त कारर् क्रदिाने पर, उ‍त ‍यायािीश, स्िश्ििेकानुसार, उस श्ििाह रश्जस्ट्रार को, आदेश दे
सके गा श्जसमें उसे यह श्नदेश क्रदया जाएगा क्रक िह इस प्रकार अपेश्ित िौदह क्रदन की समाश्प्त से पूिम क्रकसी समय, श्जसका उ‍लेि
आदेश में क्रकया जाएगा अपना प्रमार्पत्र जारी करे ।
और उ‍त श्ििाह रश्जस्ट्रार, उ‍त आदेश की प्राश्प्त पर, तदनुसार अपना प्रमार्पत्र जारी करे गा ।
44. श्पता या संरिक की सहमश्तिारा 19 के उपबंि इस भाग के अिीन प्र‍ये क श्ििाह को, श्जसके पिकारों में से कोई
अियस्क हो, लागू होंगे ।
प्रमार्पत्र जारी करने के श्िरुद्ध अभ्यापश्त्तऔर कोई व्यश्‍त, श्जसकी श्ििाह के श्लए सहमश्त तद्िीन अपेश्ित है, श्ििाह
रश्जस्ट्रार के प्रमार्पत्र जारी क्रकए जाने से पूिम क्रकसी भी समय, श्ििाह सूिना पुस्तक में ऐसे आशश्यत श्ििाह की सूिना की प्रश्िश्ष्ट के
सामने “श्नषेि क्रकया” शब्द श्लिकर और उस पर अपने नाम के हस्तािर करके तथा अपने रहने का स्थान श्लिकर, तथा पिकारों में से
क्रकसी के संबंि में अपनी िह श्स्थश्त श्लिकर, श्जसके कारर् िह इस प्रकार प्राश्िकृ त क्रकया गया है या की गई है, उस प्रमार्पत्र को
जारी करने के श्िरुद्ध अभ्यापश्त्त दजम कर सकता है ।
अभ्यापश्त्त का प्रभािजब ऐसी अभ्यापश्त्त दजम कर ली गई है तब कोई प्रमार्पत्र तब तक जारी नहीं क्रकया जाएगा जब तक
श्ििाह रश्जस्ट्रार अभ्यापश्त्त संबंिी मामले की जांि नहीं कर लेता है, और उसका यह समािान नहीं हो जाता है क्रक उससे उ‍त श्ििाह
का प्रमार्पत्र जारी करने में बािा नहीं पड़नी िाश्हए, या जब तक िह अभ्यापश्त्त उस व्यश्‍त द्वारा िापस नहीं ले जाती है, श्जसने िह
दजम की थी ।
45. जहां िह व्यश्‍त श्जसकी सहमश्त आि‍यक है, श्िश्िप्त है या उसका सहमश्त न देना अनुश्ित है, िहां याश्िकायक्रद
कोई व्यश्‍त, श्जसकी सहमश्त इस भाग के अिीन क्रकसी श्ििाह के श्लए आि‍यक है, श्िकृ तश्ित्त है,
या ऐसा कोई व्यश्‍त )श्पता को छोड़कर( श्बना ‍यायोश्ित कारर् के , श्ििाह के श्लए अपनी सहमश्त नहीं देता है,
तो श्ििाह का आशय रिने िाला पिकार, याश्िका द्वारा, जहां िह व्यश्‍त, श्जसकी सहमश्त आि‍यक है, कलकत्ता, मरास
और मुम्बई के नगरों में से क्रकसी में श्निासी है िहां उच्ि ‍यायालय के ‍यायािीश को, या यक्रद िह उ‍त नगरों में से क्रकसी में भी
श्निासी नहीं है तो श्जला ‍यायािीश को, आिेदन कर सकें गे ।
याश्िका पर प्रक्रियाऔर, यथाश्स्थश्त, उच्ि ‍यायालय का ‍यायािीश या श्जला ‍यायािीश याश्िका के अश्भकथनों की
संिेपत: परीिा कर सके गा ;
और यक्रद परीिा करने पर िह श्ििाह उश्ित प्रतीत होता है तो, यथाश्स्थश्त, उच्ि ‍यायालय का ‍यायािीश या श्जला
‍यायािीश उस श्ििाह को उश्ित श्ििाह घोश्षत करे गा ;
ऐसी घोषर्ा िैसे ही प्रभािी होगी मानो उस व्यश्‍त ने, श्जसकी सहमश्त जरूरी थी, श्ििाह के श्लए सहमश्त दी थी ;
और यक्रद उस व्यश्‍त ने श्ििाह रश्जस्ट्रार के प्रमार्पत्र जारी करने का श्नषेि क्रकया है तो िह प्रमार्पत्र जारी कर क्रदया
जाएगा और श्ििाह के संबंि में इस भाग के अिीन िैसी ही कायमिाश्हयां की जा सकें गी मानो उस प्रमार्पत्र को जारी करने का श्नषेि
नहीं क्रकया गया था ।
46. प्रमार्पत्र देने से श्ििाह रश्जस्ट्रार द्वारा इं कार करने पर याश्िकाजब कभी कोई श्ििाह रश्जस्ट्रार इस भाग के अिीन
कोई प्रमार्पत्र जारी करने से इं कार करता है तब श्ििाह का आशय रिने िाले पिकारों में से कोई भी पिकार, जहां ऐसे रश्जस्ट्रार का
श्जला कलकत्ता, मरास और मुम्बई के नगरों में से क्रकसी नगर में है िहां उच्ि ‍यायालय के ‍यायािीश को, या यक्रद िह श्जला उ‍त
नगरों में से क्रकसी में नहीं है तो श्जला ‍यायािीश को याश्िका द्वारा आिेदन कर सके गा ।
याश्िका पर प्रक्रियायथाश्स्थश्त, उच्ि ‍यायालय की ‍यायािीश या श्जला ‍यायािीश याश्िका के अश्भकथनों की संश्िप्त:
परीिा कर सके गा और उन पर श्िश्न‍िय करे गा ।
यथाश्स्थश्त, उच्ि ‍यायालय के उस ‍यायािीश या श्जला ‍यायािीश का श्िश्न‍िय अश्‍तम होगा और िह श्ििाह रश्जस्ट्रार,
श्जसे प्रमार्पत्र जारी करने के श्लए मूलत: आिेदन क्रकया गया था, तद्नुसार कायमिाही करे गा ।
9

47. [याश्िका जब भारतीय] राज्यों में श्ििाह रश्जस्ट्रार प्रमार्पत्र देने से इं कार करे ।]श्िश्ि अनुकूलन आदेश, 1950 द्वारा
श्नरश्सत ।
48. श्नषेि करने िाले व्यश्‍त के प्राश्िकार पर रश्जट्रार के संदेह करने पर याश्िकाजब कभी िारा 44 के उपब‍िों के
अिीन कायम करने िाले क्रकसी श्ििाह रश्जस्ट्रार का यह समािान नहीं होता है क्रक प्रमार्पत्र जारी करने का श्नषेि करने िाला व्यश्‍त
िैसा करने के श्लए श्िश्ि द्वारा प्राश्िकृ त है तब, उ‍त श्ििाह रश्जस्ट्रार, जहां उसका श्जला कलकत्ता, मरास और मुम्बई नगरों में से
क्रकसी नगर में है िहां उच्ि ‍यायालय के ‍यायािीश को, और यक्रद िह श्जला उ‍त नगरों में क्रकसी में नहीं है तो श्जला ‍यायािीश को,
याश्िका द्वारा, आिेदन कर सके गा ।
याश्िका पर प्रक्रियाउ‍त याश्िका में मामले की सभी पटरश्स्थश्तयों का उ‍लेि क्रकया जाएगा और उनके सम्ब‍ि में
‍यायालय के आदेश ओर श्नदेश के श्लए प्राथमना की जाएगी,
और, यथाश्स्थश्त, उच्ि ‍यायालय का ‍यायािीश या श्जला ‍यायािीश याश्िका के अश्भकथनों और मामले की पटरश्स्थश्तयों
की परीिा करे गा,
और यक्रद, ऐसी परीिा करने पर, यह प्रतीत होता है क्रक ऐसे प्रमार्पत्र को जारी करने का श्नषेि करने िाला व्यश्‍त िैसा
करने के श्लए श्िश्ि द्वारा प्राश्िकृ त नहीं है तो, यथाश्स्थश्त, उच्ि ‍यायालय का ‍यायािीश या श्जला ‍यायािीश यह घोश्षत करे गा क्रक
उस प्रमार्पत्र को जारी करने का श्नषेि करने िाला व्यश्‍त यथापूिो‍त प्राश्िकृ त नहीं है,
और तब ऐसा प्रमार्पत्र जारी कर क्रदया जाएगा, और उस श्ििाह के सम्ब‍ि में िैसी ही कायमिाश्हयां की जा सकें गी मानो
प्रमार्पत्र जारी करने का श्नषेि नहीं क्रकया गया था ।
1* * * * *
49. प्रमार्पत्र जारी करने के श्िरुद्ध तुच्छ अभ्यापश्त्त के श्लए दाश्य‍िप्र‍येक व्यश्‍त, जो क्रकसी प्रमार्पत्र के जारी क्रकए
जाने के श्िरुद्ध इस भाग के अिीन श्ििाह रश्जस्ट्रार के पास कोई अभ्यापश्त्त उन आिारों पर दजम करता है श्ज‍हें िह रश्जस्ट्रार िारा 44
के अिीन, या उच्ि ‍यायालय का ‍यायािीश या श्जला ‍यायािीश िारा 45 या िारा 46 के अिीन तुच्छ और इस प्रकार का घोश्षत
करता है श्जससे प्रमार्पत्र के जारी क्रकए जाने में बािा नहीं होनी िाश्हए, प्रमार्पत्र के सम्ब‍ि में सभी कायमिाश्हयों के ििों और
नुकसानी का श्जम्मेदार होगा और िे िाद लाकर उस व्यश्‍त द्वारा िसूल क्रकए जा सकें गे, श्जसके श्ििाह के श्िरुद्ध िह अभ्यापश्त्त दजम की
गई थी ।
50. प्रमार्पत्र का प्ररूपिारा 41 के उपब‍िों के अिीन श्ििाह रश्जस्ट्रार द्वारा जारी क्रकया जाने िाला प्रमार्पत्र इस
अश्िश्नयम से उपाबद्ध अनुसूिी 2 में क्रदए गए प्ररूप में या उसी प्रभाि के प्ररूप में होगा,
और राज्य सरकार प्र‍येक श्ििाह रश्जस्ट्रार को पयामप्त संखया में प्रमार्पत्र प्ररूप देगी ।
51. प्रमार्पत्र जारी क्रकए जाने के बाद श्ििाह का अनुष्ठापनश्ििाह रश्जस्ट्रार का प्रमार्पत्र जारी क्रकए जाने के प‍िात्,
या, जहां श्िश्भ‍न श्जलों के श्ििाह रश्जस्ट्रारों को इस अश्िश्नयम के अिीन सूिना दी जानी अपेश्ित है िहां, उन श्जलों के
श्ििाह रश्जस्ट्रारों के प्रमार्पत्रों को जारी क्रकए जाने के प‍िात्,
यक्रद ऐसे प्रमार्पत्र या प्रमार्पत्रों में िर्र्मत पिकारों के श्ििाह में कोई श्िश्िपूर्म अड़िन नहीं है तो उनके बीि श्ििाह ऐसी
रीश्त या कममकांड से अनुष्ठाश्पत कराया जा सके गा श्ज‍हें अपनाना िे उश्ित समझें ।
क्रक‍तु ऐसा प्र‍येक श्ििाह क्रकसी श्ििाह रश्जस्ट्रार की )श्जसे यथापूिो‍त प्रमार्पत्र पटरदत्त क्रकया जाएगा या क्रकए जाएंगे(
और श्ििाह रश्जस्ट्रार के अलािा दो या अश्िक श्ि‍िसनीय साश्ियों की उपश्स्थश्त में अनुष्ठाश्पत कराया जाएगा ।
और श्ििाह कमम के समय क्रकसी अिसर पर पिकारों में से प्र‍येक श्नम्नश्लश्ित या उसी प्रभाि की घोषर्ा करे गा,
“मैं कि, श्नष्ठापूिमक घोश्षत करता हं क्रक मुझे ऐसी क्रकसी श्िश्िपूर्म अड़िन की जानकारी नहीं है क्रक श्जसके कारर् मैं गघ, के
साथ श्ििाह बंिन में न बंि सकूं ।
और पिकारों में से प्र‍येक पिकार दूसरे से श्नम्नश्लश्ित या उसी प्रभाि का कथन करे गा :
“मै इन व्यश्‍तयों का, जो यहां उपश्स्थत हैं, इस बात के श्लए आहृिान करता हं क्रक िे इस बात के सािी हों क्रक मैं
कि तुम्हें गघ को अपनी श्िश्िपूर्म श्ििाश्हता प‍नी )या अपना श्ििाश्हत पश्त( स्िीकार करता हं )या करती हं( ।”
52. जब श्ििाह, सूिना के प‍िात् दो मास के भीतर नहीं हो जाता तब नई सूिना की आि‍यकताजब कभी कोई श्ििाह,
िारा 40 की अपेिानुसार, श्ििाह रश्जस्ट्रार द्वारा सूिना की प्रश्तश्लश्प दजम क्रकए जाने के प‍िात् दो मास के भीतर अनुष्ठाश्पत नहीं कर
क्रदया जाता तब, िह सूिना और उस पर जारी क्रकया गया प्रमार्पत्र, यक्रद कोई हो, तथा त‍सम्ब‍िी अ‍य सभी कायमिाश्हयां शू‍य हो
जाएंगी ;

1
श्िश्ि अनुकूलन आदेश, 1950 द्वारा अंश्तम तीन पैराओं का श्नरसन ।
10

और कोई व्यश्‍त भी उस श्ििाह के अनुष्ठापन की कारम िाई नहीं करे गा, और न ही कोई श्ििाह रश्जस्ट्रार उसे तब तक दजम
करे गा जब तक क्रक पूिो‍त समय पर और रीश्त से नई सूिना न दे दी गई हो, और प्रश्िश्ष्ट न कर ली गई हो, और उसका प्रमार्पत्र न दे
क्रदया गया हो ।
53. श्ििाह रश्जस्ट्रार, रश्जस्टर क्रकए जाने िाले श्ििरर्ों की मांग कर सके गाकोई श्ििाह रश्जस्ट्रार, श्जसके समि इस भाग
के अिीन कोई श्ििाह अनुष्ठाश्पत कराया जाता है, उन व्यश्‍तयों से, श्जनका श्ििाह कराया जाना है, उस श्ििाह के सम्ब‍ि में
रश्जस्टर करने के श्लए अपेश्ित श्िश्भ‍न श्ििरर्ों की मांग कर सके गा ।
54. भाग 5 के अिीन अनुष्ठाश्पत श्ििाहों का रश्जस्ट्रीकरर्इस भाग के अिीन क्रकसी श्ििाह के अनुष्ठापन के प‍िात्, ऐसे
अनुष्ठापन के समय उपश्स्थत श्ििाह रश्जस्ट्रार त‍काल श्ििाह को दो स्थानों पर, अथामत् इससे उपाबद्ध अनुसूिी 4 में क्रदए गए प्ररूप के
अनुसार रिी गई श्ििाह रश्जस्टर पुस्तक में और श्ििाह रश्जस्टर पुस्तक के प्रश्तपर्म के रूप में संलग्न प्रमार्पत्र में भी, रश्जस्टर करे गा ।
प्रमार्पत्र और श्ििाह रश्जस्टर पुस्तक दोनों में ही ऐसे श्ििाह की प्रश्िश्ष्ट पर उस व्यश्‍त द्वारा, यक्रद ऐसा कोई व्यश्‍त हो
तो, श्जसके द्वारा या श्जसके समि श्ििाह अनुष्ठाश्पत कराया गया है, और उस श्ििाह में उपश्स्थत श्ििाह रश्जस्ट्रार द्वारा, िाहे श्ििाह
उसके द्वारा अनुष्ठाश्पत कराया गया हो या नहीं, और श्ििाश्हत पिकारों द्वारा भी, हस्तािर क्रकए जाएंगे तथा िह प्रश्िश्ष्ट श्ििाह
रश्जस्ट्रार से और श्ििाह अनुष्ठाश्पत कराने िाले व्यश्‍तयों से श्भ‍न दो श्ि‍िसनीय साश्ियों द्वारा अनुप्रमाश्र्त की जाएगी ।
ऐसी प्र‍येक प्रश्िश्ष्ट पुस्तक के आरम्भ से लेकर अंत तक िमबद्ध रूप में की जाएगी और प्रमार्पत्र का संखयांक िहा होगा, जो
श्ििाह रश्जस्टर पुस्तक में प्रश्िश्ष्ट का है ।
55. प्रमार्पत्रों का प्रश्त मास महारश्जस्ट्रार को भेजा जानाश्ििाह रश्जस्ट्रार, प्रमार्पत्र को श्ििाह रश्जस्टर पुस्तक में से
त‍काल अलग कर देगा और उसे प्र‍येक मास के अंत में 1[ज‍म, मृ‍यु और श्ििाह के महारश्जस्ट्रार] को भेजेगा ।
रश्जस्टर पुस्तक की अश्भरिाश्ििाह रश्जस्ट्रार उ‍त रश्जस्टर पुस्तक को तब तक सुरश्ित रिेगा जब तक िह भर नहीं
जाती और त‍प‍िात् उसे 1[ज‍म, मृ‍यु और श्ििाह के महारश्जस्ट्रार] को, उसके कायामलय के अश्भलेिों के साथ रिे जाने के श्लए, भेज
देगा ।
56. [िे अश्िकारी श्जनको भारतीय राज्यों में रश्जस्ट्रार प्रमार्पत्र भेजेंगे ।]श्िश्ि अनुकूलन आदेश 1950 द्वारा श्नरश्सत ।
57. रश्जस्ट्रारों द्वारा यह अश्भश्न‍िय कर लेना क्रक सूिना और प्रमार्पत्र भारतीय क्रिश्‍ियनों द्वारा समझ श्लए गए हैंजब
कोई 2[भारतीय] क्रिश्‍ियन, श्जसका श्ििाह होने िाला है, श्ििाह की सूिना देता है, या श्ििाह रश्जस्ट्रार से प्रमार्पत्र प्राप्त करने के
श्लए आिेदन करता है, तब िह श्ििाह रश्जस्ट्रार यह अश्भश्नश्‍ित करे गा क्रक उ‍त 2[भारतीय] क्रिश्‍ियन, अंग्रेजी भाषा समझता है या
नहीं, और यक्रद नहीं समझता है, तो श्ििाह रश्जस्ट्रार, यथाश्स्थश्त, उस सूिना या प्रमार्पत्र का, या दोनों का, अनुिाद उस 2[भारतीय]
क्रिश्‍ियन के श्लए ऐसी भाषा में श्जसे िह समझता है, करे गा या कराएगा ;
या िह श्ििाह रश्जस्ट्रार अ‍यथा यह अश्भश्नश्‍ित करे गा क्रक िह 2[भारतीय] क्रिश्‍ियन उ‍त सूिना और प्रमार्पत्र के
प्रयोजन और प्रभाि को समझता है या नहीं ।
58. भारतीय क्रिश्‍ियनों को घोषर्ा का समझाया जानाजब क्रकसी 2[भारतीय] क्रिश्‍ियन का श्ििाह इस भाग के
उपब‍िों के अिीन क्रकया जाता है तब श्ििाह अनुष्ठाश्पत कराने िाला व्यश्‍त यह अश्भश्नश्‍ित करे गा क्रक िह 2[भारतीय] क्रिश्‍ियन
अंग्रेजी भाषा समझता है या नहीं, और यक्रद नहीं समझता है तो श्ििाह अनुष्ठाश्पत कराने िाला व्यश्‍त उस 2[भारतीय] क्रिश्‍ियन के
श्लए, उस श्ििाह में इस अश्िश्नयम के उपब‍िों के अनुसार की गई घोषर्ाओं का अनुिाद ऐसी भाषा में, श्जसे िह समझता है, श्ििाह
अनुष्ठापन के समय, करे गा या कराएगा ।
59. भारतीय क्रिश्‍ियनों के बीि श्ििाहों का रश्जस्ट्रीकरर्इस भाग के अिीन 2[भारतीय] क्रिश्‍ियनों के बीि श्ििाहों का
रश्जस्ट्रीकरर् िारा 37 में क्रदए गए श्नयमों के अनुसार )जहां तक िे लागू होते हों( ही क्रकया जाएगा अ‍यथा नहीं ।
भाग 63
2[भारतीय] क्रिश्‍ियनों का श्ििाह
60. भारतीय क्रिश्‍ियनों के श्ििाहों को प्रमाश्र्त करने की शतेंप्रमार्पत्र के श्लए आिेदन करने िाले 2[भारतीय]
क्रिश्‍ियनों के बीि प्र‍येक श्ििाह, भाग 3 के अिीन अपेश्ित प्रारश्म्भक सूिना के श्बना, इस भाग के अिीन उस दशा में प्रमाश्र्त क्रकया
जाएगा जब श्नम्नश्लश्ित शतें पूरी होती हों, न क्रक अ‍यथा,

1
1886 के अश्िश्नयम सं० 6 की िारा 30 द्वारा “स्थानीय सरकार के सश्िि” के स्थान पर प्रश्तस्थाश्पत ।
2
श्िश्ि अनुकूलन आदेश, 1950 द्वारा “देशी” के स्थान पर प्रश्तस्थाश्पत ।
3
भाग 6 के अिीन व्यश्‍तयों, श्जनमें के िल एक भारतीय क्रिश्‍ियन है, के बीि अनुष्ठाश्पत पूिम श्ििाहों की श्िश्िमा‍यता के बारे में तथा भाग 6 के अिीन भश्िष्य में इस
प्रकार के श्ििाहों को अनुष्ठाश्पत कराने के श्लए शाश्स्त के बारे में देश्िए श्ििाह श्िश्िमा‍यकरर् अश्िश्नयम, 1892 )1892 का 2( ।
11

)1( श्ििाह का आशय रिने िाले पुरुष की आयु 1[2[इ‍कीस िषम] से कम नहीं होगी] और श्ििाह का आशय रिने
िाली स्त्री की आयु 3[4[अट्ठारह िषम] से कम नहीं होगी] ;
)2( श्ििाह का आशय रिने िाले व्यश्‍तयों में से क्रकसी की भी प‍नी या पश्त जीश्ित नहीं होगा ;
)3( िारा 9 के अिीन अनुज्ञप्त व्यश्‍त की, और ऐसे व्यश्‍त से श्भ‍न कम से कम दो श्ि‍िसनीय साश्ियों की
उपश्स्थश्त में पिकारों में से प्र‍येक पिकार दूसरे से श्नम्नश्लश्ित या उसी आशय का कथन करे गा,
“मै इन व्यश्‍तयों का, जो यहां उपश्स्थत हैं, इस बात के श्लए आह्िान करता हं क्रक िे इस बात के सािी
हों क्रक मैं क ि, सिमशश्‍तमान ई‍िर की उपश्स्थश्त में, और प्रभु जीसस िाइस्ट के नाम में, तुम्हें जघ को अपनी
श्िश्िपूर्म श्ििाश्हता प‍नी )या श्ििाश्हत पश्त(, स्िीकार करता हं )करती हं( । ”
5* * * * * * *
61. प्रमार्पत्र का क्रदया जानाजब इस भाग के अिीन अनुष्ठाश्पत क्रकसी श्ििाह के सम्ब‍ि में, िारा 60 में श्िश्हत शतें पूरी
कर ली गई हैं तब यथापूिो‍त अनुज्ञप्त व्यश्‍त, श्जसकी उपश्स्थश्त में उ‍त घोषर्ा की गई है, ऐसे श्ििाह के पिकारों में से क्रकसी भी
पिकार के आिेदन करने पर, और िार आने फीस का संदाय करने पर श्ििाह का प्रमार्पत्र दे देगा ।
उ‍त अनुज्ञप्त व्यश्‍त उस प्रमार्पत्र पर हस्तािर करे गा, और िह प्रमार्पत्र ऐसे श्ििाह की श्िश्िमा‍यता से सम्बश्‍ित
क्रकसी िाद में इस बात के श्न‍िायक सबूत के रूप में माना जाएगा क्रक िह श्ििाह सम्प‍न हुआ था ।
6[62.रश्जस्टर पुस्तक का रिा जाना और उसमें से उद्धरर्ों का महारश्जस्ट्रार के पास जमा क्रकया जाना(1( िारा 9 के
अिीन अनुज्ञप्त प्र‍येक व्यश्‍त, अंग्रेजी में, या उस श्जले या राज्य में, श्जसमें श्ििाह अनुष्ठाश्पत क्रकया गया था, सािारर् प्रयोग की देशी
भाषा में तथा ऐसे प्ररूप में, श्जसे िह राज्य सरकार, श्जसके द्वारा िह व्यश्‍त अनुज्ञाश्पत क्रकया गया था, समय-समय पर श्िश्हत करे ,
उसकी उपश्स्थश्त में इस भाग के अिीन अनुष्ठाश्पत सभी श्ििाहों का एक रश्जस्टर रिेगा, और ऐसे प्ररूप में और ऐसे अ‍तरालों पर
श्ज‍हें उ‍त राज्य सरकार श्िश्हत करे , अपने रश्जस्टर में से उन सभी प्रश्िश्ष्टयों के , जो उ‍त अ‍तरालों में से अश्‍तम अ‍तराल के
प‍िात् उनमें की गई हो, सही-सही और सम्यक् रूप से अश्िप्रमाश्र्त उद्धरर् उ‍त राज्य सरकार के प्रशासनािीन राज्यिेत्रों के ज‍म,
मृ‍यु और श्ििाह के महारश्जस्ट्रार के कायामलय में जमा करे गा ।]
7
* * * * *
63. रश्जस्टर पुस्तक में तलाशी और प्रश्िश्ष्टयों की प्रश्तश्लश्पयांश्ििाह के प्रमार्पत्र देने के श्लए इस अश्िश्नयम के अिीन
अनुज्ञप्त प्र‍येक व्यश्‍त, जो िारा 62 के अिीन श्ििाह रश्जस्टर रिता है, सभी उश्ित समयों पर उस रश्जस्टर में तलाश करने
देगा, और समुश्ित फीस का संदाय क्रकए जाने पर, उनमें की क्रकसी प्रश्िश्ष्ट की प्रश्तश्लश्प अपने हस्तािरों से प्रमाश्र्त करके देगा ।
64. िे रश्जस्टर, श्जसमें भाग 1 या भाग 3 के अिीन भारतीय क्रिश्‍ियनों के श्ििाह रश्जस्टर क्रकए जाते हैंरश्जस्टर के
प्ररूप, उसमें के उद्धरर्ों को जमा करने, उसमें तलाश करने देने और उसमें की प्रश्िश्ष्टयों की प्रश्तश्लश्पयां देने के सम्ब‍ि में िारा 62
और िारा 63 के उपब‍ि, आि‍यक पटरितमनों सश्हत, िारा 37 के अिीन रिी गई पुस्तकों को लागू होंगे ।
65. भाग 6 का रोमन कै थोश्लक को लागू न होना । कु छ श्ििाहों की व्यािृश्त्तइस अश्िश्नयम का यह भाग, घास 62 और
िारा 63 के उन अंशों को छोड़कर श्जनका श्नदेश िारा 64 में क्रकया गया है रोमन कै थोश्लकों के बीि श्ििाहों को लागू नहीं होगा ।
क्रक‍तु यहां अ‍तर्िमष्ट कोई बात 23 फरिरी, 1865 से पूिम, 1864 के अश्िश्नयम सं० 25 के भाग 58 के उपबंिों के अिीन रोमन
कै थाश्लकों के बीि अनुष्ठाश्पत क्रकसी श्ििाह को अश्िश्िमा‍य नहीं करे गी ।
भाग 7

शाश्स्तयां
9[66.श्ििाह उपाप्त करने के श्लए श्मथ्या शपथ, घोषर्ा, सूिना या प्रमार्पत्रजो कोई श्ििाह या श्ििाह की अनुज्ञश्प्त
उपाप्त करने के प्रयोजनाथम साशय,

1
1952 के अश्िश्नयम सं० 48 की िारा 3 और अुनसूिी 2 द्वारा “सोलह िषम से अश्िक होगी” के स्थान पर प्रश्तस्थाश्पत ।
2
1978 के अश्िश्नयम सं० 2 की िारा 6 और अनुसूिी द्वारा )1-10-1978 से( “अट्ठारह िषम” के स्थान पर प्रश्तस्थाश्पत ।
3
1952 के अश्िश्नयम सं० 48 की िारा 3 और अुनसूिी 2 द्वारा “तेरह िषम से अश्िक होगी” के स्थान पर प्रश्तस्थाश्पत ।
4
1978 के अश्िश्नयम सं० 2 की िारा 6 और अनुसूिी द्वरा )1-10-1978 से( “प‍रह िषम” के स्थान पर प्रश्तस्थाश्पत ।
5
1978 के अश्िश्नयम सं० 2 की िारा 6 और अनुसूिी द्वारा )1-10-1978 से( पर‍तुक का लोप क्रकया गया ।
6
1891 के अश्िश्नयम सं० 2 की िारा 4 द्वारा मूल िारा 62 के स्थान पर प्रश्तस्थाश्पत ।
7
श्िश्ि अनुकूलन आदेश, 1937 द्वारा संशोश्ित उपिारा )2( का श्िश्ि अनुकूलन आदेश, 1950 द्वारा श्नरसन ।
8
1865 के अश्िश्नयम सं० 5 का, श्जसके द्वारा 1864 का अश्िश्नयम सं० 25 श्नरश्सत क्रकया गया था, इस अश्िश्नयम द्वारा श्नरश्सत ।
9
1891 के अश्िश्नयम सं० 2 की िारा 5 द्वारा मूल िारा 66 के स्थान पर प्रश्तस्थाश्पत ।
12

)क( जहां इस अश्िश्नयम द्वारा, या इं ग्लैण्ड या स्काटलैण्ड या रोम के क्रकसी ऐसे ििम के क्रकसी श्नयम या रूक्रि द्वारा
श्जसके िार्ममक कृ ‍यों और कममकांडों के अनुसार कोई शपथ लेना या घोषर्ा करना अपेश्ित है िहां , श्मथ्या शपथ लेगा या
श्मथ्या घोषर्ा करे गा, अथिा
)ि( जहां इस अश्िश्नयम द्वारा कोई सूिना या प्रमार्पत्र अपेश्ित है िहां , श्मथ्या सूिना या प्रमार् पत्र पर
हस्तािर करे गा,
उसके बारे में यह समझा जाएगा क्रक उसने ऐसा अपराि क्रकया है जो भारतीय दंड संश्हता )1860 का 45( की िारा 193 के अिीन क्रकसी
भी प्रकार के ऐसे कारािास से, श्जसकी अिश्ि तीन िषम तक की हो सके गी, और, ‍यायालय के श्ििेकानुसार, जुमामने से, दंडनीय है ।]
67. श्मथ्या प्रश्तरूपर् करके श्ििाह रश्जस्ट्रार द्वारा प्रमार्पत्र जारी करने का श्नषेिजो कोई अपने को यह व्यपदेश्शत करते
हुए क्रक िह ऐसा व्यश्‍त है, श्जसकी श्ििाह के श्लए सहमश्त श्िश्ि द्वारा अपेश्ित है, यह जानते हुए या श्ि‍िास करते हुए क्रक िह
व्यपदेशन श्मथ्या है, या इस श्ि‍िास का कारर् न रिते हुए क्रक िह व्यपदेशन सही है, श्ििाह रश्जस्ट्रार द्वारा कोई प्रमार्पत्र जारी
क्रकए जाने का श्नषेि करता है, िह भारतीय दण्ड संश्हता )1860 का 45( की िारा 205 में िर्र्मत अपराि का दोषी समझा जाएगा ।
[68. सम्यक् प्राश्िकार के श्बना श्ििाह का अनुष्ठापनजो कोई, श्ििाहों का अनुष्ठापन कराने के श्लए इस अश्िश्नयम की
1

िारा 5 द्वारा प्राश्िकृ त न होने पर, उस श्जले के , श्जसमें श्ििाह अनुष्ठापन होता है, श्ििाह रश्जस्ट्रार की अनुपश्स्थश्त में, ऐसे व्यश्‍तयों
के बीि श्ििाह अनुष्ठाश्पत कराएगा या कराने की प्रव्यंजना करे गा, िह कारािास से, श्जसकी अिश्ि दस िषम तक की हो सके गी, या
)सात िषम या उससे अश्िक के कारािास के दंडादेश के बदले में( श्निामसन से , श्जसकी अिश्ि सात िषम से कम की, और दस िषम से अश्िक
की, नही होगी, दंश्डत क्रकया जाएगा,
2
* * * * * * *
और जुमामने से भी दंडनीय होगा ।]
69. उश्ित समय के बाद या साश्ियों के श्बना श्ििाह का अनुष्ठापनजो कोई ऐसे व्यश्‍तयों के बीि, श्जनमें से कोई एक या
दोनों ही क्रिश्‍ियन हों, प्रात:काल छह बजे से लेकर सांय:काल सात बजे के समय से श्भ‍न क्रकसी समय, या श्ििाह अनुष्ठाश्पत कराने
िाले व्यश्‍त से श्भ‍न कम से कम दो श्ि‍िसनीय साश्ियों की अनुपश्स्थश्त में, कोई श्ििाह जानते हुए, और जानबूझकर अनुष्ठाश्पत
कराएगा, िह कारािास से, श्जसकी अिश्ि तीन िषम तक की हो सके गी, दंश्डत क्रकया जाएगा और जुमामने से भी दंडनीय होगा ।
श्िशेष अनुज्ञश्प्त के अिीन अनुष्ठाश्पत श्ििाहों की व्यािृश्त्तयह िारा डायोसीस के ऐंगश्लकन श्बशप द्वारा या उसके मीसरी
द्वारा दी गई श्िशेष अनुज्ञश्प्तयों के अिीन अनुष्ठाश्पत श्ििाहों को लागू नहीं होगी, और न ही रोम के ििम के पादरी द्वारा, जब उसे
िारा 10 में िर्र्मत सािारर् या श्िशेष अनुज्ञश्प्त उस श्नश्मत्त प्राप्त हो गई हो, सांय:काल सात बजे और प्रात:काल छह बजे के बीि
सम्प‍न श्ििाहों को लागू होगी ।
[और न ही यह िारा स्काटलैंड के ििम के श्नयमों, िार्ममक कृ ‍यों एिं कममकांडों और रूक्रियों के अनुसार स्काटलैंड के ििम के
3

क्रकसी पादरी द्वारा अनुष्ठाश्पत श्ििाहों को लागू होगी । ]


70. सूिना के श्बना, या सूिना के प‍िात् िौदह क्रदनों के भीतर, अियस्क के साथ श्ििाह का अनुष्ठापनइस अश्िश्नयम के
अिीन श्ििाहों का अनुष्ठापन कराने के श्लए अनुज्ञप्त कोई िमम-पुरोश्हत जो श्लश्ित सूिना के श्बना, या जब श्ििाह के पिकारों में से
कोई एक अियस्क हो और ऐसे श्ििाह के श्लए माता-श्पता या संरिक की अपेश्ित सहमश्त प्राप्त न कर ली गई हो तब, अपने द्वारा ऐसे
श्ििाह की सूिना की प्राश्प्त के प‍िात् िौदह क्रदन के भीतर, भाग 3 के अिीन कोई श्ििाह जानते हुए और जानबूझ कर अनुष्ठाश्पत
कराएंगा, िह कारािास से श्जसकी अिश्ि तीन िषम तक की हो सके गी, दंश्डत क्रकया जाएगा और जुमामने से भी दंडनीय होगा ।
71. प्रमार्पत्र का जारी करना या सूिना के प्रकाशन के श्बना श्ििाह करानाइस अश्िश्नयम के अिीन कोई भी श्ििाह
रश्जस्ट्रार, जो श्नम्नश्लश्ित अपरािों में से कोई अपराि करे गा,
)1( इस अश्िश्नयम द्वारा जैसा श्नक्रदष्ट है उसके अनुसार श्ििाह की सूिना प्रकाश्शत क्रकए श्बना, जानते हुए और
जानबूझकर, श्ििाह का कोई प्रमार्पत्र जारी करे गा या श्ििाह अनुष्ठाश्पत कराएगा ;
4
[)2( सूिना की समाश्प्त के प‍िात् श्ििाह करानािारा 40 की अपेिानुसार क्रकसी श्ििाह के सम्ब‍ि में सूिना
की प्रश्तश्लश्प दजम क्रकए जाने के प‍िात् दो मास की समाश्प्त के बाद ऐसा श्ििाह अनुष्ठाश्पत कराएगा ; ]
)3( ‍यायालय के प्राश्िकार के श्बना या सूिना की प्रश्त भेजे श्बना अियस्क के साथ श्ििाह का अनुष्ठापन िौदह
क्रदन के भीतर करानाजब पिकारों में से कोई एक अियस्क हो तब, श्ििाह की सूिना की प्राश्प्त के प‍िात् िौदह क्रदन की
समाश्प्त से पूिम या ऐसी सूिना की एक प्रश्त श्जले के िटरष्ठ श्ििाह रश्जस्ट्रार को, यक्रद उस श्जले में एक से अश्िक श्ििाह

1
1891 के अश्िश्नयम सं० 2 की िारा 6 द्वारा मूल िारा 68 के स्थान पर प्रश्तस्थाश्पत ।
2
1891 के अश्िश्नयम सं० 12 द्वारा 3 द्वारा संशोश्ित दूसरा पैरा श्िश्ि अनुकूलन आदेश, 1950 द्वारा श्नरश्सत ।
3
1891 के अश्िश्नयम सं० 2 की िारा 7 द्वारा अ‍त:स्थाश्पत ।
4
1891 के अश्िश्नयम सं० 2 की िारा 8 द्वारा मूल िंड )2( के स्थान पर प्रश्तस्थाश्पत ।
13

रश्जस्ट्रार हों और यक्रद िह स्ियं ज्येष्ठ श्ििाह रश्जस्ट्रार न हो तो डाक से या अ‍य प्रकार से भेजे श्बना कोई श्ििाह, क्रकसी
सिम ‍यायालय के ऐसे आदेश के श्बना जो उसे उसके श्लए प्राश्िकृ त करता हो, अनुष्ठाश्पत कराएगा ;
)4( प्राश्िकृ त प्रश्तषेि के श्िरुद्ध प्रमार्पत्र जारी करनाऐसा कोई प्रमार्पत्र जारी करे गा श्जसका जारी क्रकया
जाना, इस अश्िश्नयम में जैसा उपबंश्ित है उसके अनुसार, क्रकसी ऐसे व्यश्‍त द्वारा प्रश्तश्षद्ध कर क्रदया गया है, जो उसका
जारी क्रकया जाना प्रश्तश्षद्ध कर सकता है,
िह कारािास से, श्जसकी अिश्ि पांि िषम तक की हो सके गी, दंश्डत क्रकया जाएगा और जुमामने से भी दंडनीय होगा ।
72. सूिना के अिसान के पशिात् या अियस्क की दशा में, सूिना के प‍िात् िौदह क्रदन के भीतर, या प्राश्िकृ त प्रश्तषेि के
श्िरुद्ध, प्रमार्पत्र जारी करनाऐसे श्ििाह रश्जस्ट्रार के बारे में, जो अपने द्वारा यथापूिो‍त सूिना के दजम करने के प‍िात् 1[दो मास]
के अिसान के बाद, जानते हुए और जानबूझकर श्ििाह का कोई प्रमार्पत्र जारी करता है,
या जहां श्ििाह का आशय रिने िा ले पिकारों में से एक अियस्क है िहां, ऐसी सूिना दजम क्रकए जाने के प‍िात् िौदह क्रदन
के अिसान के पूिम, श्ििाह का कोई प्रमार्पत्र ऐसे सिम ‍यायालय के आदेश के श्बना, जो उसे ऐसा करने के श्लए प्राश्िकृ त करता है, या
कोई ऐसा प्रमार्पत्र, जानते हुए और जानबूझकर जारी करे गा श्जसका जारी क्रकया जाना इस श्नश्मत्त प्राश्िकृ त क्रकसी व्यश्‍त द्वारा
यथापूिो‍त श्नश्षद्ध कर क्रदया गया है,
यह समझा जाएगा क्रक उसने भारतीय दंड संश्हता )1860 का 45( की िारा 166 के अिीन अपराि क्रकया है ।
73. श्ििाह अनुष्ठाश्पत कराने के श्लए प्राश्िकृ त व्यश्‍त )जो इं ग्लैण्ड, स्काटलैण्ड या रोम के ििों के पादटरयों से श्भ‍न
हों(जो कोई, श्जसे इस अश्िश्नयम के अिीन श्ििाह अनुष्ठाश्पत कराने का प्राश्िकार प्राप्त है,
इं ग्लैंड के ििम का पादरी न होते हुए, श्ििाह घोषर्ा के सम्यक् प्रकाशन के प‍िात् या डायोसीस के ऐंगललंकन श्बशप से या
उस श्नश्मत्त सम्यक् रूप से प्राश्िकृ त िमामध्यि के प्रश्तश्नश्ि से प्राप्त अनुज्ञश्प्त के अिीन श्ििाह अनुष्ठाश्पत कराएगा,
या स्काटलैंड के ििम का पादरी न होते हुए, उस ििम के श्नयमों, िार्ममक कृ ‍यों, कममकांडों और रूक्रियों के अनुसार, कोई
श्ििाह अनुष्ठाश्पत कराएगा,
या रोम के ििम का पादरी न होते हुए, उस ििम के िार्ममक कृ ‍यों, श्नयमों, कममकांडों और रूक्रियों के अनुसार कोई श्ििाह
अनुष्ठाश्पत कराएगा,
प्रमार्पत्र का जारी क्रकया जाना, या सूिना प्रकाश्शत क्रकए श्बना या प्रमार्पत्र के अिसान के प‍िात्, श्ििाह
करानाया जानते हुए और जानबूझकर इस अश्िश्नयम के अिीन श्ििाह का कोई प्रमार्पत्र जारी करे गा या इस अश्िश्नयम के भाग 3
के श्नदेशानुसार ऐसे श्ििाह की सूिना प्रकाश्शत क्रकए श्बना या लगिाए श्बना, अथिा उसके द्वारा प्रमार्पत्र जारी क्रकए जाने के बाद दो
मास की समाश्प्त के प‍िात् यथा पूिो‍त, व्यश्‍तयों के बीि कोई श्ििाह अनुष्ठाश्पत कराएगा,
प्रमार्पत्र जारी करना या सूिना के बाद िौदह क्रदन के भीतर अियस्क के साथ श्ििाह अनुष्ठाश्पत करानाया जानते हुए
और जानबूझकर श्ििाह का कोई प्रमार्पत्र जारी करे गा, या ऐसे व्यश्‍तयों के बीि जब श्ििाह का आशय रिने िाले व्यश्‍तयों में से
एक अियस्क हो तब, ऐसे श्ििाह की सूिना की प्राश्प्त के प‍िात् िौदह क्रदन की समाश्प्त से पूिम, या ऐसी सूिना की एक प्रश्त डाक से
या अ‍य प्रकार से श्ििाह रश्जस्ट्रार को, अथिा यक्रद श्ििाह रश्जस्ट्रार एक से अश्िक हों तो उस श्जले के िटरष्ठ श्ििाह रश्जस्ट्रार को
भेजे श्बना कोई श्ििाह अनुष्ठाश्पत कराएगा,
प्राश्िकारे र् श्नश्षद्ध प्रमार्पत्र जारी करनाया जानते हुए और जानबूझकर ऐसा प्रमार्पत्र जारी करे गा, श्जसका जारी
क्रकया जाना उसे जारी करने का श्नषेि करने के श्लए प्राश्िकृ त व्यश्‍त द्वारा इस अश्िश्नयम के अिीन श्नश्षद्ध क्रकया गया है,
प्राश्िकारे र् श्नश्षद्ध श्ििाह का अनुष्ठापनया जानते हुए और जानबूझकर ऐसा श्ििाह अनुष्ठाश्पत कराएगा, जो उसका
श्नषेि करने के श्लए प्राश्िकृ त क्रकसी व्यश्‍त द्वारा श्नश्षद्ध कर क्रदया गया है,
िह कारािास से, श्जसकी अिश्ि िार िषम तक की हो सके गी, दंश्डत क्रकया जाएगा और जुमामने से भी दंडनीय होगा ।
74. अनुज्ञप्त होने का अपदेश करते हुए अनुज्ञप्त व्यश्‍त द्वारा प्रमार्पत्र का क्रदया जानाजो कोई, इस अश्िश्नयम के भाग 6
के अिीन श्ििाह का प्रमार्पत्र देने के श्लए अनुज्ञप्त न होते हुए, ऐसा प्रमार्पत्र देगा, श्जसका आशय यह प्रतीत कराना हो क्रक िह इस
प्रकार अनुज्ञप्त है, िह कारािास से, श्जसकी अिश्ि पांि िषम तक की हो सके गी, दंश्डत क्रकया जाएगा और जुमामने से भी दंडनीय होगा ।
कोई, इस अश्िश्नयम के भाग 6 के अिीन श्ििाह का प्रमार्पत्र देने के श्लए अनुज्ञप्त होते हुए, उस भाग द्वारा उस पर
2[जो

अश्िरोश्पत क्रक‍हीं कतमव्यों का पालन करने से, ‍यायोश्ित कारर् के श्बना, इं कार करे गा, या पालन करने में जानबूझकर उपेिा या लोप
करे गा, िह जुमामने से, जो एक सौ रुपए तक का हो सके गा, दंश्डत क्रकया जाएगा ।]

1
1891 के अश्िश्नयम सं० 2 की िारा 8 द्वारा “तीन मास” के स्थान पर प्रश्तस्थाश्पत ।
2
1891 के अश्िश्नयम सं० 2 की िारा 9 द्वारा अ‍त:स्थाश्पत ।
14

75. रश्जस्टर पुस्तकों का नष्ट करना या उनका श्मथ्याकरर्जो कोई क्रकसी रश्जस्टर या उसके प्रश्तपर्म प्रमार्पत्रों को या
उनके क्रकसी भाग को, या उनमें के क्रकसी अश्िप्रमाश्र्त उद्धरर् को, स्ियं या क्रकसी अ‍य के द्वारा जानबूझकर नष्ट करे गा या िश्त
पहुंिाएगा,
या रश्जस्टर या प्रश्तपर्म प्रमार्पत्रों के क्रकसी भाग को नकली बनाएगा या उसका कू टकरर् करे गा,
या ऐसे क्रकसी रश्जस्टर या प्रश्तपर्म प्रमार्पत्र या अश्िप्रमाश्र्त उद्धरर् में जानबूझकर कोई श्मथ्या प्रश्िश्ष्ट करे गा,
िह कारािास से, श्जसकी अिश्ि सात िषम तक की हो सके गी, दंश्डत क्रकया जाएगा और जुमामने से भी दंडनीय होगा ।
76. अश्िश्नयम के अिीन अश्भयोजनों की पटरसीमाइस अश्िश्नयम के अिीन दंडनीय प्र‍येक अपराि का अश्भयोजन,
अपराि क्रकए जाने के प‍िात् दो िषम के भीतर, प्रारम्भ क्रकया जाएगा ।
भाग 8

प्रकीर्म
77. िे श्िषय, श्ज‍हें अश्िश्नयम के अनुसार हुए श्ििाह के श्लए साश्बत करने की जरूरत नहीं हैजब कभी िारा 4 और
िारा 5 के उपब‍िों के अनुसार कोई श्ििाह अनुष्ठाश्पत क्रकया गया हो तब िह, श्नम्नश्लश्ित क्रक‍हीं श्िषयों के सम्ब‍ि में हुई क्रकसी
अश्नयश्मतता के कारर् ही शू‍य नहीं होगा, अथामत् :
)1( श्ििाश्हत व्यश्‍तयों के श्निास, या ऐसे व्यश्‍त को श्जसकी, उस श्ििाह के श्लए सहमश्त श्िश्ि द्वारा अपेश्ित
है, सहमश्त के सम्ब‍ि में क्रकया गया कोई कथन ;
)2( श्ििाह की सूिना ;
)3( प्रमार्पत्र या उसका अनुिाद ;
)4( िह समय और स्थान जब और जहां श्ििाह अनुष्ठाश्पत क्रकया गया है ;
)5( श्ििाह का रश्जस्ट्रीकरर् ।
78. गलश्तयों का शोिनऐसा प्र‍येक व्यश्‍त, श्जसे कोई श्ििाह रश्जस्टर करने का कतमव्य सौंपा गया है, और श्जसे क्रकसी
प्रश्िश्ष्ट के स्िरूप या सार में क्रकसी गलती का पता िलता है, ऐसी गलती का पता िलने के प‍िात् अगले एक मास के भीतर, उस
गलती का शोिन, श्ििाश्हत व्यश्‍तयों की उपश्स्थश्त में, या यक्रद उनकी मृ‍यु हो गई है या िे अनुपश्स्थत हैं तो दो अ‍य श्ि‍िसनीय
साश्ियों की उपश्स्थश्त में, मूल प्रश्िश्ष्ट में कोई पटरितमन क्रकए श्बना, हाश्शए में प्रश्िश्ष्ट करके कर सके गा, और हाश्शए की प्रश्िश्ष्ट पर
हस्तािर करे गा और ऐसे शोिन की तारीि डालेगा, और िही व्यश्‍त उसके प्रमार्पत्र के हाश्शए पर िैसी ही प्रश्िश्ष्ट करे गा ;
और इस िारा के अिीन की गई प्र‍येक प्रश्िश्ष्ट उन साश्ियों द्वारा अनुप्रमाश्र्त की जाएगी श्जनकी उपश्स्थश्त में िह
की गई थी ;
और यक्रद ऐसा प्रमार्पत्र 1[ज‍म, मृ‍यु और श्ििाह के महारश्जस्ट्रार] को पहले ही भेजा जा िुका है तो िह व्यश्‍त गलती
िाली मूल प्रश्िश्ष्ट का, और उसमें हाश्शए पर क्रकए गए शोिन का, एक अलग प्रमार्पत्र उसी प्रकार तैयार करे गा और भेजेगा ।
79. प्रश्िश्ष्टयों की तलाश और उनकी प्रश्तश्लश्पयांप्र‍येक व्यश्‍त, जो इस अश्िश्नयम के अिीन श्ििाह का अनुष्ठापन
कराता है, और श्जससे उस श्ििाह को रश्जस्टर करना इसके द्वारा अपेश्ित है ;
और प्र‍येक श्ििाह रश्जस्ट्रार या 2[ज‍म, मृ‍यु और श्ििाह का महारश्जस्ट्रार], श्जसकी अश्भरिा में इस अश्िश्नयम के अिीन
उस समय कोई श्ििाह रश्जस्टर, या कोई प्रमार्पत्र या श्द्वप्रश्तक, या प्रमार्पत्र की प्रश्तश्लश्पयां हों,
उश्ित फीस का संदाय करने पर, उस रश्जस्टर में या उस प्रमार्पत्र, या श्द्वप्रश्तक या प्रश्तश्लश्पयों के श्लए, सभी उपयु‍त समयों पर,
तलाश करने देगा, और उसमें की क्रकसी प्रश्िश्ष्ट की प्रश्तश्लश्प अपने हस्तािर से देगा ।
80. श्ििाह रश्जस्टर, आक्रद में प्रश्िश्ष्ट की प्रमाश्र्त प्रश्त का साक्ष्य होनाक्रकसी ऐसे रश्जस्टर में क्रकसी श्ििाह की, श्जसका
रिा जाना, या क्रकसी ऐसे प्रमार्पत्र, या श्द्वप्रश्तक की, श्जसका पटरदत्त क्रकया जाना, इस अश्िश्नयम के अिीन अपेश्ित है, प्र‍येक
प्रमाश्र्त प्रश्त, श्जसका ऐसे व्यश्‍त द्वारा हस्तािटरत होना ता‍पर्यमत है श्जसे ऐसे रश्जस्टर, या प्रमार्पत्र, या श्द्वप्रश्तक की इस
अश्िश्नयम के अिीन अश्भरिा सौंपी गई है ऐसे श्ििाह के , श्जसका इस प्रकार प्रश्िष्ट क्रकया जाना ता‍पर्यमत है, या उन तथ्यों के ,
श्जनका उसमें इस प्रकार प्रमाश्र्त होना ता‍पर्यमत है, साक्ष्य के रूप में, िमश: उस रश्जस्टर या प्रमार्पत्र, या श्द्वप्रश्तक या उनमें की
क्रकसी प्रश्िश्ष्ट के , या ऐसी प्रश्तश्लश्प के और सबूत के श्बना, ग्रहर् की जाएगी ।

1
1891 के अश्िश्नयम सं० 2 की िारा 9 द्वारा अंत:स्थाश्पत ।
2
1886 के अश्िश्नयम सं० 6 की िारा 30 द्वारा “क्रकसी स्थानीय सरकार का सश्िि” के स्थान पर प्रश्तस्थाश्पत ।
15

1[81. कु छ श्ििाहों के प्रमार्पत्रों का के ‍रीय सरकार को भेजा जानाज‍म, मृ‍यु और श्ििाह का महारश्जस्ट्रार 2***
प्रश्तिषम की प्र‍येक श्तमाही के दौरान 3[उसे] भेजे गए श्ििाह प्रमार्पत्रों में से, उस श्तमाही की समाश्प्त पर उन प्रमार्पत्रों को छांट
लेगा, श्जनके श्ििाह के साक्ष्य के श्लए 4[िह सरकार, श्जसके द्वारा उसे श्नयु‍त क्रकया गया था,] यह िाहे क्रक िह साक्ष्य इं ग्लैंड भेज क्रदया
जाए, और उन प्रमार्पत्रों को, 3[अपने] हस्तािर करके , 5[के ‍रीय सरकार] को भेज देगा ।
82. राज्य सरकार द्वारा फीस श्िश्हत करनाइस अश्िश्नयम के अिीन श्नम्नश्लश्ित के श्लए फीस प्रभायम होगी,
श्ििाहों की सूिनाएं प्राप्त करने और उनके प्रकाशन के श्लए ;
श्ििाह रश्जस्ट्रारों द्वारा 6[श्ििाह के प्रमार्पत्र] जारी करने और उसके द्वारा श्ििाहों को रश्जस्टर करने के श्लए ;
उ‍त रश्जस्ट्रारों द्वारा 7[श्ििाह के प्रमार्पत्रों] को जारी करने के श्िरुद्ध अभ्यापश्त्तयों या प्रश्तषेिों को दजम
करने के श्लए ;
रश्जस्टर या प्रमार्पत्रों या, उनकी श्द्वप्रश्तकों या प्रश्तश्लश्पयों की तलाश के श्लए; िारा 63 और िारा 79 के अिीन
उनमें की प्रश्िश्ष्टयों की प्रश्तश्लश्पयां देने के श्लए ;
राज्य सरकार िमश: ऐसी फीस की रकम श्नयत करे गी ;
और उसमें सािारर्तया या श्िशेष मामलों में, जैसा भी उसे ठीक प्रतीत हो, समय-समय पर पटरितमन कर सके गी
या उनमें छू ट दे सके गी ।
83. श्नयम बनाने की शश्‍त8[)1(] राज्य सरकार, िारा 82 में िर्र्मत फीस के व्ययन, रश्जस्टर के प्रदाय, तथा इस
अश्िश्नयम के अिीन अनुष्ठाश्पत श्ििाहों की श्ििरश्र्यां तैयार करने और भेजने के संबंि में 9[राजपत्र में अश्िसूिना द्वारा श्नयम बना
सके गी] ।
इस िारा के अिीन राज्य सरकार द्वारा बनाया गया प्र‍येक श्नयम, बनाए जाने के प‍िात् यथाशीघ्र, राज्य श्ििान-
10[)2(

मंडल के समि रिा जाएगा ।] ।


84. [भारतीय राज्यों के श्लए फीसें और श्नयम श्िश्हत करने की शश्‍त ।]श्िश्ि अनुकूलन आदेश, 1950 द्वारा श्नरश्सत ।
85. श्जला ‍यायािीश घोश्षत करने की शश्‍तराज्य सरकार, राजपत्र में अश्िसूिना द्वारा, यह घोश्षत कर सके गी क्रक क्रकसी
ऐसे स्थान में, जहां यह अश्िश्नयम लागू होता है, श्जला ‍यायािीश कौन समझा जाएगा ।
86. 11[भारतीय राज्यों के संबि
ं में प्रयोज्य शश्‍तयां और कृ ‍य ।]श्िश्ि अनुकूलन आदेश, 1950 द्वारा श्नरश्सत ।
87. कौ‍सलीय श्ििाहों की व्यािृश्त्तइस अश्िश्नयम की कोई बात क्रकसी श्मश्नस्टर, कौंसल, या कौंसलीय अश्भकताम द्वारा,
उस राज्य के , श्जसका िह प्रश्तश्नश्ि‍ि करता है, प्रयोजनों के बीि उस राज्य की श्िश्ियों के अनुसार संप‍न कराए गए श्ििाह को लागू
नहीं होगी ।
88. प्रश्तश्षद्ध कोटटयों के भीतर श्ििाहों का अश्िश्िमा‍य होनाइस अश्िश्नयम की क्रकसी भी बात से यह नहीं समझा
जाएगा क्रक िह ऐसे श्ििाह को श्िश्िमा‍य करती है श्जसे संप‍न करने के श्लए पिकारों में से क्रकसी को लागू कोई स्िीय श्िश्ि उसे
श्नश्षद्ध करती है ।

अनुसूिी 1
)िारा 12 और िारा 38 देश्िए(

श्ििाह की सूिना
सेिा में,
................................का पुरोश्हत )या रश्जस्ट्रार(

1
1911 के अश्िश्नयम सं० 13 की िारा 2 द्वारा मूल िारा 81 के स्थान पर प्रश्तस्थाश्पत ।
2
1952 के अश्िश्नयम सं० 48 की िारा 3 और अनुसूिी 2 द्वारा “और िारा 56 के अिीन श्नयु‍त अश्िकारी” शब्द और अंक श्नरश्सत क्रकए गए ।
3
1952 के अश्िश्नयम सं० 48 की िारा 3 और अनुसूिी 2 द्वारा “िमश: उनको” शब्दों के स्थान पर प्रश्तस्थाश्पत ।
4
श्िश्ि अनुकूलन आदेश, 1937 द्वारा “सपटरषद् गिमनर जनरल” के स्थान पर प्रश्तस्थाश्पत ।
5
श्िश्ि अनुकूलन आदेश, 1948 द्वारा “भारत के राज्य सश्िि” के स्थान पर प्रश्तस्थाश्पत ।
6
1903 के अश्िश्नयम सं० 1 की िारा 3 और अनुसूिी 2, भाग 2 द्वारा “श्ििाहों के प्रमार्पत्र” के स्थान पर प्रश्तस्थाश्पत ।
7
1903 के अश्िश्नयम सं० 1 की िारा 3 और अनुसूिी 2, भाग 2 द्वारा “श्ििाह प्रमार्पत्र” के स्थान पर प्रश्तस्थाश्पत ।
8
1983 के अश्िश्नयम सं० 20 की िारा 2 और अनुसूिी द्वारा )15-3-1984 से( िारा 83 को उपिारा )1( के रूप में पुनसंखयांक्रकत क्रकया गया ।
9
1983 के अश्िश्नयम सं० 20 की िारा 2 और अनुसूिी द्वारा )15-3-1984 से( प्रश्तस्थाश्पत ।
10
1983 के अश्िश्नयम सं० 20 की िारा 2 और अनुसूिी द्वारा )15-3-1984 से( अ‍त:स्थाश्पत ।
11
1920 के अश्िश्नयम सं० 38 की िारा 2 और अनुसूिी 1 द्वारा मूल िारा के स्थान पर प्रश्तस्थाश्पत ।
16

मैं आपको यह सूश्ित करता हं क्रक, आज की तारीि से तीन कै लेण्डर मास के भीतर मेरे तथा उस अ‍य पिकार के बीि,
श्जसका नाम और श्ििरर् यहां क्रदया गया है, श्ििाह करना आश्शत है, )अथामत्( :

माथाम ग्रीन जैम्स श्स्मथ नाम


अश्ििाश्हत श्ििुर दशा
 बिई रैं क या िृश्त्त
अियस्क ियस्क आयु
20, हैलस्टंग्स 16, ‍लाइि स्ट्रीट श्निास स्थान

एक मास के अश्िक 23 क्रदन श्निास की अिश्ि


फ्री ििम आफ स्काटलैण्ड ििम, कलकत्ता यह ििम, िैपल या उपासना स्थल जहां
श्ििाह अनुष्ठाश्पत क्रकया जाना है

जब दोनों पिकार श्िश्भ‍न श्जलों में रहते


हों तब िह श्जला श्जसमें दूसरा पिकार
श्निास करता है
इसके साक्ष्य स्िरूप मैंने आज 19…………………की/के ............................के .....................क्रदन हस्तािर क्रकए

हस्तािटरत )जैम्स श्स्मथ(


[इस अनुसूिी में मोटे अिरों में क्रदए गए शब्दों को, यथाश्स्थश्त, भरा जाना है और उसका िाली भाग तभी भरा जाना है जब पिकारों
में से कोई एक क्रकसी अ‍य श्जले में रहता हो] ।

अनुसूिी 2
)िारा 24 और िारा 50 देश्िए(

सूिना की प्राश्प्त का प्रमार्पत्र


मैं.........................इसके द्वारा यह प्रमाश्र्त करता हं क्रक उन पिकारों के बीि, श्जनका सूिना में नाम और श्ििरर् क्रदया
गया है, आशश्यत श्ििाह को मेरी श्ििाह सूिना पुस्तक में.....................के ...........................के ................क्रदन को सम्यक् रूप से
दजम क्रकया गया था, और यह सूिना )िषम( )मास(
...........................................के हस्तािर से, जो पिकारों में से एक है, दी गई थी, )अथामत्( :
माथाम ग्रीन जेम्स श्स्मथ नाम

अश्ििाश्हत श्ििुर दशा


 बिई रैं क या िृश्त्त

अियस्क ियस्क आयु


20, हैलस्टंग्स स्ट्रीट 16, ‍लाइि स्ट्रीट श्निास स्थान

एक मास के अश्िक 23 क्रदन श्निास की अिश्ि


फ्री ििम आफ स्काटलैण्ड ििम, कलकत्ता िह ििम, िैपल या उपासना स्थल जहां
श्ििाह अनुष्ठाश्पत क्रकया जाना है
जब दोनों पिकार श्िश्भ‍न श्जलों में रहते
हों, तब िह श्जला श्जसमें दूसरा पिकार
श्निास करता है
17

और यह क्रक भारतीय क्रिश्‍ियन श्ििाह अश्िश्नयम, 1872 )1872 का 15( की िारा 17 या िारा 41 द्वारा अपेश्ित घोषर्ा
उ‍त )जैम्स श्स्मथ( द्वारा सम्यक् रूप से की गई है 1[या शपथ] ली गई है ।

सूिना दजम करने की तारीि इस प्रमार्पत्र का जारी क्रकया जाना ऐसे क्रकसी व्यश्‍त द्वारा प्रश्तश्षद्ध नहीं क्रकया
प्रमार्पत्र क्रदए जने की तारीि गया है जो उसके जारी क्रकए जाने का श्नषेि करने के श्लए प्राश्िकृ त था ।

इसके साक्ष्य स्िरूप मैंने आज 72.............की/के .............. के ..............क्रदन हस्तािर क्रकए ।

)हस्तािटरत(
यक्रद श्ििाह.................के ...............के ....................क्रदन अनुष्ठाश्पत नहीं हो जाता तो यह प्रमार्पत्र शू‍य हो जाएगा ।

[इस अनुसूिी में मोटे अिरों में क्रदए गए शब्दों को, यथाश्स्थश्त, भरा जाना है और उसका िाली भाग तभी भरा जाना है जब
पिकारों में से कोई एक क्रकसी अ‍य श्जले में रहता हो ।]

अनुसूिी 3
2
[)िारा 28 और िारा 31 देश्िए(]

श्ििाहों के रश्जस्टर का प्ररूप


................के श्लए श्ििाहों की श्तमाही श्ििरश्र्यां

कलक‍ता
मरास  की आिमश्डकनरी

मुम्बई

मैं...................................., कलकत्ता/मरास/मुम्बई की आिमश्डकनरी का रश्जस्ट्रार इसके द्वारा यह प्रमाश्र्त करता हं क्रक


उपाबद्ध कगजपत्र................................की आिमश्डकनरी, कलकत्ता/मरास/मुम्बई में श्ििाह के मूल पत्रों और शासकीय श्तमाही
श्ििरश्र्यों की, जो..........................ईस्िी सन् के ....................के ......................क्रदन की प्रारम्भ हो
कर.................................क्रदन को समाप्त होने िाली श्तमाही के श्लए मुझे भेजी गई थीं, ठीक-ठीक और शुद्ध प्रश्तश्लश्पयां हैं ।

[रश्जस्ट्रार के हस्तािर]
कलकत्ता/मरास/मुम्बई
की आिमश्डकनरी का
रश्जस्ट्रार

1
1903 के अश्िश्नयम सं० 1 की िारा 3 और अनुसूिी 2, भाग 2 द्वारा अ‍त:स्थाश्पत ।
2
1891 के अश्िश्नयम सं० 12 की िारा 2 और अनुसूिी 2 द्वारा “)िारा 28 देश्िए(” के स्थान पर प्रश्तस्थाश्पत ।
18

इलाहबाद/बैरकपुर/बरे ली/कलकत्ता, आक्रद-आक्रद में अनुष्ठाश्पत श्ििाह


िषम
मास श्ििाह कब हुआ

क्रदन
क्रिश्‍ियन नाम पिकारों के
नाम
अश्िनाम

आयु
दशा
रैं क या िृश्त्त

श्ििाह के समय श्निास-स्थान


श्पता का नाम और अश्िनाम
श्ििाह घोषर्ा द्वारा हुआ या अनुज्ञश्प्त द्वारा

पिकारों के हस्तािर
दो या अश्िक साश्ियों के , जो उपश्स्थत हों,
हस्तािर

श्ििाह अनुष्ठाश्पत कराने िाले व्यश्‍त के


हस्तािर

अनुसूिी 4
)िारा 32 और िारा 54 देश्िए(

श्ििाह रश्जस्टर पुस्तक


संखयांक श्ििाह कब हुआ पिकारों के नाम आयु दशा रैं क या श्ििाह के श्पता का नाम और
िृश्त्त समय श्निास- अश्िनाम
स्थान
क्रिश्‍ियन अश्िनाम
नाम
क्रदन मास िषम

जेम्स व्हाइट 26 िषम श्ििुर बिई आगरा श्िश्लयम व्हाइट


जान डंकन
माथाम डंकन 17 िषम अश्ििाश्हत  आगरा
....................में श्ििाश्हत
जैम्स व्हाइट जान श्स्मथ
यह श्ििाह हम लोगों माथाम डंकन के बीि जान ग्रीन की उपश्स्थत में अनुष्ठाश्पत हुआ ।
19

श्ििाह का प्रमार्पत्र
संखयांक श्ििाह कब हुआ पिकारों के नाम आयु दशा रैं क या श्ििाह के श्पता का नाम और
िृश्त्त समय श्निास- अश्िनाम
स्थान
क्रिश्‍ियन अश्िनाम
नाम
1. क्रदन मास िषम

जैम्स व्हाइट 26 िषम श्ििुर बिई आगरा श्िश्लयम व्हाइट


माथाम डंकन 17 िषम अश्ििाश्हत  आगरा जान डंकन

....................में श्ििाश्हत

श्जस व्हाइट जान श्स्मथ


यह श्ििाह हम लोगों के बीि की उपश्स्थत में अनुष्ठाश्पत हुआ ।
माथाम इं कन जान ग्रीन

अनुसि
ू ी 5[अश्िश्नयश्मश्तयां श्नरश्सत ।]श्नरसन अश्िश्नयम, की िारा 1938 )1938 का 1( की िारा 2 तथा अनुसूिी
के भाग 1 द्वारा श्नरश्सत ।

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