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अिधवक्ता अिधिनयम, 1961

(1961 का अिधिनयम संख्यांक 25)


[19 मई, 1961]
िविध व्यवसाियय से संबिं धत िविध का संशोधन और समेकन करने
तथ िविधज्ञ पिरषद और अिखल भारतीय िविधज्ञ पिरषद् का
गठन करने हेतु उपबन्ध
करने के िलए
अिधिनयम
भारत गणराज्य के बारहव वषर् म संसद् ारा िनम्निलिखत रूप म यह अिधिनयिमत हो :––
अध्याय 1

पर्ारिम्भक
1. संिक्षप्त नाम, िवस्तार और पर्ारम्भ्ा––(1) इस अिधिनयम का संिक्षप्त नाम अिधवक्ता अिधिनयम, 1961 है ।
1
[(2) इसका िवस्तार सम्पूणर् भारत पर है ।]
(3) यह 2 [उपधारा (4) म िनिदष्ट राज्यक्षेतर् से िभन्न राज्यक्षेतर् के सम्बन्ध म उस तारीख को पर्वृ होगा] जो के न्दर्ीय
सरकार, राजपतर् म अिधसूचना ारा, िनयत करे और इस अिधिनयम के िविभन्न उपबन्ध के िलए िविभन्न तारीख 3 िनयत की जा
सकगी ।
[(4) जम्मू-कश्मीर राज्य* 5 और गोवा, दमन और दीव संघ राज्यक्षेतर् के सम्बन्ध म यह अिधिनयम उस तारीख को पर्वृ
4

होगा, जो कदर्ीय सरकार, राजपतर् म अिधसूचना ारा, इस िनिम िनयत करे और इस अिधिनयम के िविभन्न उपबन्ध के िलए
िविभन्न तारीख िनयत की जा सकगी ।]

1
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 2 ारा (31-3-1974 से) उपधारा (2) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 2 ारा (31-3-1974 से) “पर्वृ होगा” शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
अिधिनयम के उपबंध िनम्नानुसार पर्वृ िकए गए ह :––

तारीख उपबंध अिधसूचना

16-8-1961 अध्याय 1, 2 और 7 का.आ 1870, तारीख 7-8-1961, भारत का राजपतर्, असाधारण, भाग 2,
खण्ड 3(ii), पृष्ठ 1237 ।
1-12-1961 अध्याय 3 और धारा 50(2) का.आ 2790, तारीख 24-11-1961, भारत का राजपतर्, असाधारण, भाग 2,
खण्ड 3(ii), पृष्ठ 1723 ।
15-12-1961 धारा 50(1) का.आ 2919, तारीख 13-12-1961, भारत का राजपतर्, असाधारण, भाग 2,
खण्ड 3(ii), पृष्ठ 1745 ।
24-1-1962 धारा 51 और 52 का.आ 297, तारीख 24-1-1962, भारत का राजपतर्, असाधारण, भाग 2,
खण्ड 3(ii), पृष्ठ 169 ।
29-3-1962 धारा 46 का.आ 958, तारीख 29-3-1962, भारत का राजपतर्, असाधारण, भाग 2
खण्ड 3(ii), पृष्ठ 589 ।
4-1-1963 धारा 32 और अध्याय 6 [धारा 46 को छोड़कर, धारा 50 की का.आ 50, तारीख 4-1-1963, भारत का राजपतर्, असाधारण, भाग 2, खण्ड
उपधारा (1) और (2), धारा 51 और 52] 3(ii), पृष्ठ 1 ।
1-9-1963 अध्याय 5 का.आ 2509, तारीख 31-8-1963, भारत का राजपतर्, असाधारण, भाग 2,
खण्ड 3(ii), पृष्ठ 513 ।
10-6-1968 अध्याय 1, 2, 3, अध्याय 4 की धारा 12 और अध्याय 5,6,7 तथा 8 का.आ. 63, तारीख 7-6-1968 ।
पांिडचेरी संघ
राज्यक्षेतर् म
1-6-1969 अध्याय 4 की धारा 29, धारा 31, धारा 33 और धारा 34 का.आ 1500, तारीख 5-4-1969, भारत का राजपतर्, असाधारण, भाग 2,
खण्ड 3(ii), पृष्ठ 569 ।
1-6-1979 गोवा, धारा 39 के िसवाय सा. का. िन. 84(अ), तारीख 21-2-1979, भारत का राजपतर्, असाधारण,
दमन और दीव भाग 2, खण्ड 3(i), पृष्ठ 168 ।
संघ राज्यक्षेतर् म

4
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 2 ारा (31-1-1974 से) अन्त:स्थािपत ।
*5इस अिधिनयम के सभी उपबंध, धारा 30 के िसवाय, जम्मू-कश्मीर राज्य म, (1-8-1986) से पर्वृ हुए; देिखए सा०का०िन० 946(अ), तारीख 15-7-1986 ।
2

2. पिरभाषाएं–– 1 [(1)] इस अिधिनयम म, जब तक िक सन्दभर् से अन्यथा अपेिक्षत न हो,––


(क) “अिधवक्ता” से इस अिधिनयम के उपबंध के अधीन िकसी नामावली म दजर् अिधवक्ता अिभपर्ेत है;
(ख) इस अिधिनयम के िकसी उपबंध के सम्बन्ध म “िनयत िदन” से वह िदन अिभपर्ेत है िजसको वह उपबन्ध पर्वृ
होता है;
2
* * * * * * *
(घ) “िविधज्ञ पिरषद्” से इस अिधिनयम के अधीन गिठत िविधज्ञ पिरषद् अिभपर्ेत है;
(ङ) “भारतीय िविधज्ञ पिरषद्” से उन राज्यक्षेतर् के िलए िजन पर इस अिधिनयम का िवस्तार है, धारा 4 के
अधीन गिठत िविधज्ञ पिरषद् अिभपर्ेत है;
3
* * * * * * *
(छ) “उच्च न्यायालय” के अन्तगर्त, धारा 34 की उपधारा (1) 4 [और उपधारा (1क)] और धारा 42 तथा धारा 43
के िसवाय, न्याियक आयुक्त का न्यायालय नह है, और िकसी राज्य िविधज्ञ पिरषद् के सम्बन्ध म,––
(i) िकसी राज्य के िलए या िकसी राज्य और एक या अिधक संघ राज्यक्षेतर् के िलए गिठत िकसी िविधज्ञ
पिरषद् की दशा म, उस राज्य का उच्च न्यायालय अिभपर्ेत है;
(ii) िदल्ली के िलए गिठत िविधज्ञ पिरषद् की दशा म 5 [िदल्ली का उच्च न्यायालय] अिभपर्ेत है;
(ज) “िविध स्नातक” से कोई ऐसा व्यिक्त अिभपर्ेत है, िजसने भारत म िविध ारा स्थािपत िकसी िवश्विव ालय
से िविध म स्नातक की उपािध पर्ाप्त की है;
(झ) 6 [“िविध व्यवसायी” से िकसी उच्च न्यायालय का अिधवक्ता या वकील, कोई प्लीडर, मुख्तार या राजस्व
अिभकतार् अिभपर्ेत है];
(ञ) “िविहत” से इस अिधिनयम के अधीन बनाए गए िनयम ारा िविहत अिभपर्ेत है;
(ट) “नामावली” से इस अिधिनयम के अधीन तैयार की गई और रखी गई अिधवक्ता नामावली अिभपर्ेत है;
(ठ) “राज्य” के अन्तगर्त संघ राज्यक्षेतर् नह है;
(ड) “राज्य िविधज्ञ पिरषद्” से धारा 3 के अधीन गिठत िविधज्ञ पिरषद् अिभपर्ेत है;
(ढ) “राज्य नामावली” से धारा 17 के अधीन िकसी राज्य िविधज्ञ पिरषद् ारा तैयार की गई और रखी गई
अिधवक्ता नामावली अिभपर्ेत है ।
4
[(2) इस अिधिनयम म िकसी ऐसी िविध के पर्ित, जो जम्मू-कश्मीर राज्य या गोवा, दमन और दीव संघ राज्यक्षेतर् म पर्वृ
नह है, िकसी िनदश का, उस राज्य या उस राज्यक्षेतर् के सम्बन्ध म, यह अथर् लगाया जाएगा िक वह, यथािस्थित, उस राज्य या
राज्यक्षेतर् म पर्वृ तत्स्थानी िविध के पर्ित, यिद कोई हो, िनदश है ।]
अध्याय 2

िविधज्ञ पिरषद्
3. राज्य िविधज्ञ पिरषद्––(1) (क) आंधर् पर्देश, िबहार, गुजरात, 7 [जम्मू-कश्मीर,] 8 [झारखंड,] 9 [मध्य पर्देश और छ ीसगढ़],
10 * * * * * * 12 [कनार्टक], उड़ीसा, राजस्थान और 13 [उ र पर्देश, 14 [उ राखण्ड, मेघालय, मिणपुर और ितर्पुरा]] राज्य म से पर्त्येक
11

के िलए, उस राज्य की िविधज्ञ पिरषद् के नाम से ज्ञात, एक िविधज्ञ पिरषद् होगी;

1
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 3 ारा (31-1-1974 से) धारा 2 को उसकी उपधारा (1) के रूप म पुन:संख्यांिकत िकया गया ।
2
1976 के अिधिनयम सं० 107 की धारा 2 ारा (15-10-1976 से) खण्ड (ग) का लोप िकया गया ।
3
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 3 ारा (31-1-1974 से) खण्ड (च) का लोप िकया गया ।
4
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 3 ारा (31-1-1974 से) अन्त:स्थािपत ।
5
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 3 ारा (31-1-1974 से) “पंजाब का उच्च न्यायालय” शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
6
1976 के अिधिनयम सं० 107 की धारा 2 ारा (15-10-1976 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
7
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 4 ारा (31-1-1974 से) अन्त:स्थािपत ।
8
2000 के अिधिनयम सं० 30 की धारा 2 ारा (15-11-2000 से) अन्त:स्थािपत ।
9
2000 के अिधिनयम सं० 28 की धारा 24 ारा (1-11-2000 से) “मध्य पर्देश” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
10
1968 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 3 और अनुसूची ारा “मदर्ास” शब्द का लोप िकया गया ।
11
1963 के िविनयम सं० 8 की धारा 12 ारा (1-7-1965 से) “महाराष्टर्” शब्द का लोप िकया गया ।
12
मैसूर राज्य (नाम पिरवतर्न) (संघ िवषय पर िविधय का अनुकूलन) आदेश, 1974 ारा (1-11-1973 से) “मैसूर” शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
13
2000 के अिधिनयम सं० 29 की धारा 29 ारा (9-11-2000 से) “और उ र पर्देश” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
14
2012 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 9 ारा पर्ितस्थािपत ।
3

[(ख) अरुणाचल पर्देश, असम, िमजोरम और नागालड राज्य के िलए अरुणाचल पर्देश, असम, िमजोरम और नागालड
1

िविधज्ञ पिरषद् के नाम से ज्ञात िविधज्ञ पिरषद् होगी;]


(ग) के रल राज्य और 2 [लक्ष ीप] संघ राज्यक्षेतर् के िलए, के रल िविधज्ञ पिरषद् के नाम से ज्ञात एक िविधज्ञ पिरषद् होगी;
3
[(गग) 4 [तिमलनाडु राज्य] तथा पांिडचेरी संघ राज्यक्षेतर् के िलए, मदर्ास िविधज्ञ पिरषद् के नाम से ज्ञात एक िविधज्ञ पिरषद्
होगी;]
[(गगग) महाराष्टर् और गोवा राज्य के िलए और दादरा और नागर हवेली तथा दमण और दीव के संघ राज्यक्षेतर् के िलए
5

होगी िजसका नाम महाराष्टर् और गोवा िविधज्ञ पिरषद् होगा;]


6
[(घ) पंजाब और हिरयाणा राज्य के िलए तथा चंडीगढ़ संघ राज्यक्षेतर् के िलए, पंजाब और हिरयाणा िविधज्ञ पिरषद् के
नाम से ज्ञात, एक िविधज्ञ पिरषद् होगी;
(घघ) िहमाचल पर्देश राज्य के िलए, िहमाचल पर्देश िविधज्ञ पिरषद् के नाम से ज्ञात एक िविधज्ञ पिरषद् होगी;]
(ङ) पिश्चमी बंगाल राज्य तथा 7 [अंदमान और िनकोबार ीप समूह संघ राज्यक्षेतर्] के िलए, पिश्चमी बंगाल िविधज्ञ पिरषद्
के नाम से ज्ञात एक िविधज्ञ पिरषद् होगी; और
(च) िदल्ली संघ राज्यक्षेतर् के िलए, िदल्ली िविधज्ञ पिरषद् के नाम से ज्ञात एक िविधक पिरषद् होगी ;
(2) राज्य िविधज्ञ पिरषद् िनम्निलिखत सदस्य से िमलकर बनेगी, अथार्त् :––
(क) िदल्ली राज्य िविधज्ञ पिरषद् की दशा म भारत का अपर महासािलिसटर, पदेन; 1[असम, अरुणाचल पर्देश,
िमजोरम और नागालड राज्य िविधज्ञ पिरषद् की दशा म पर्त्येक राज्य, अथार्त् असम, अरुणाचल पर्देश, िमजोरम, और
नागालड का महािधवक्ता] पदेन, पंजाब और हिरयाणा राज्य िविधज्ञ पिरषद् की दशा म पर्त्येक राज्य, अथार्त् पंजाब और
हिरयाणा का महािधवक्ता, पदेन; और िकसी अन्य राज्य िविधज्ञ पिरषद् की दशा म उस राज्य का महािधवक्ता, पदेन;
[(ख) पांच हजार से अनिधक के िनवार्चक-मंडल वाली राज्य िविधज्ञ पिरषद् की दशा म, पन्दर्ह सदस्य, पांच
8

हजार से अिधक िकन्तु दस हजार से अनिधक के िनवार्चक-मंडल वाली राज्य िविधज्ञ पिरषद् की दशा म बीस सदस्य, और दस
हजार से अिधक के िनवार्चक-मंडल वाली राज्य िविधज्ञ पिरषद् की दशा म पच्चीस सदस्य, जो राज्य िविधज्ञ पिरषद् की
िनवार्चक नामावली के अिधवक्ता म से आनुपाितक पर्ितिनिधत्व प ित के अनुसार एकल संकर्मणीय मत ारा िनवार्िचत
ह :]
[परन्तु ऐसे िनवार्िचत सदस्य म से यथासंभव आधे के िनकट सदस्य, ऐसे िनयम के अधीन रहते हुए, जो भारतीय
9

िविधज्ञ पिरषद् ारा इस िनिम बनाए जाएं, ऐसे व्यिक्त ह गे जो िकसी राज्य नामावली म कम से कम दस वषर् तक
अिधवक्ता रहे ह , और ऐसे िकसी व्यिक्त के सम्बन्ध म दस वषर् की उक्त अविध की संगणना करने म वह अविध भी
सिम्मिलत की जाएगी, िजसके दौरान ऐसा व्यिक्त भारतीय िविधज्ञ पिरषद् अिधिनयम, 1926 (1926 का 38) के अधीन
नामंिकत अिधवक्ता रहा हो ।]
[(3) पर्त्येक राज्य िविधज्ञ पिरषद् का एक अध्यक्ष और उपाध्यक्ष होगा जो उस पिरषद् ारा ऐसी रीित से िनवार्िचत िकया
10

जाएगा जो िविहत की जाए ।]


(3क) अिधवक्ता (संशोधन) अिधिनयम, 1977 (1977 का 38) के पर्ारम्भ के ठीक पूवर् िकसी राज्य िविधज्ञ पिरषद् के अध्यक्ष
या उपाध्यक्ष का पद धारण करने वाला पर्त्येक व्यिक्त, ऐसे पर्ारम्भ पर, यथािस्थित, अध्यक्ष या उपाध्यक्ष का पद धारण नह करे गा :

1
2012 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 9 ारा पर्ितस्थािपत ।
2
लक्कादीव, िमिनकोय और अमीनदीवी ीप (नाम पिरवतर्न) अिधिनयम, 1973 (1973 का 34) की धारा 5 ारा (1-11-1973 से) “लक्कादीव िमिनकोय, अमीन दीवी
ीप” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1968 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 3 और अनुसूची ारा अन्त:स्थािपत ।
4
मदर्ास राज्य (नाम पिरवतर्न) (संघ िवषय पर िविधय का अनुकूलन) आदेश, 1970 ारा (14-1-1969 से) “मदर्ास राज्य” शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
1987 के अिधिनयम सं० 18 की धारा 21 ारा (30-5-1987 से) खंड (गगग) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
6
1970 के अिधिनयम सं० 53 की धारा 24 ारा (25-1-1971 से) खंड (घ) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
7
1971 के अिधिनयम सं० 81 की धारा 34 ारा (21-1-1972 से) “ितर्पुरा तथा अंदमान और िनकोबार ीप समूह संघ राज्यक्षेतर्” शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
8
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 4 ारा (31-1-1974 से) खण्ड (ख) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
9
1964 के अिधिनयम सं० 21 की धारा 2 ारा अन्त:स्थािपत ।
10
1977 के अिधिनयम सं० 38 की धारा 2 ारा (31-10-1977 से) उपधारा (3) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4

परन्तु ऐसा पर्त्येक व्यिक्त अपने पद के कतर्व्य का तब तक पालन करता रहेगा जब तक िक पर्त्येक राज्य िविधज्ञ पिरषद् का,
यथािस्थित, अध्यक्ष या उपाध्यक्ष, जो अिधवक्ता (संशोधन) अिधिनयम, 1977 (1977 का 38) के पर्ारं भ के पश्चात् िनवार्िचत हुआ है,
पद भार संभाल नह लेता ।]
[(4) कोई अिधवक्ता उपधारा (2) के अधीन िकसी िनवार्चन म मतदान करने, या िकसी राज्य िविधज्ञ पिरषद् के सदस्य के
1

रूप म चुने जाने और सदस्य होने के िलए तब तक िनरिहत होगा जब तक उसके पास ऐसी अहर्ताएं न ह या वह ऐसी शत पूरी न करता
हो, जो भारतीय िविधज्ञ पिरषद् ारा इस िनिम िविहत की जाएं, और िकन्ह ऐसे िनयम के अधीन रहते हुए, जो बनाए जाएं, पर्त्येक
राज्य िविधज्ञ पिरषद् ारा िनवार्चक नामावली तैयार की जाएगी और समय-समय पर पुनरीिक्षत की जाएगी ।
(5) उपधारा (2) के परन्तुक की कोई भी बात, अिधवक्ता (संशोधन) अिधिनयम, 1964 (1964 का 21) के पर्ारम्भ के पूवर्
िनवार्िचत िकसी सदस्य की पदाविध पर पर्भाव नह डालेगी, िकन्तु ऐसे पर्ारम्भ्ा के पश्चात् पर्त्येक िनवार्चन, उक्त परन्तुक को पर्भावी
करने के िलए, भारतीय िविधज्ञ पिरषद् ारा बनाए गए िनयम के उपबन्ध के अनुसार कराया जाएगा ।]
[(6) उपधारा (2) के खंड (ख) की कोई भी बात, अिधवक्ता (संशोधन) अिधिनयम, 1973 (1973 का 60) के पर्ारम्भ के ठीक
2

पूवर् गिठत िकसी राज्य िविधज्ञ पिरषद् म िनवार्िचत सदस्य के पर्ितिनिधत्व पर तब तक पर्भाव नह डालेगी जब तक वह राज्य िविधज्ञ
पिरषद् इस अिधिनयम के उपबन्ध के अनुसार पुनगर्िठत नह की जाती ।]
4. भारतीय िविधज्ञ पिरषद्––(1) उन राज्यक्षेतर् के िलए, िजस पर इस अिधिनयम का िवस्तार है, भारतीय िविधज्ञ पिरषद्
के नाम से ज्ञात एक िविधज्ञ पिरषद् होगी जो िनम्निलिखत सदस्य से िमलकर बनेगी, अथार्त् :––
(क) भारत का महान्यायवादी, पदन
े ;
(ख) भारत का महासािलिसटर, पदेन;
3
* * * * * * *
(ग) पर्त्येक राज्य िविधज्ञ पिरषद् ारा, अपने सदस्य म से िनवार्िचत एक सदस्य ।
[(1क) कोई भी व्यिक्त भारतीय िविधज्ञ पिरषद् के सदस्य के रूप म िनवार्िचत होने के िलए तब तक पातर् नह होगा जब
4

तक उसके पास धारा 3 की उपधारा (2) के परन्तुक म िविनिदष्ट अहर्ताएं न ह ।]


[(2) भारतीय िविधज्ञ पिरषद् का एक अध्यक्ष और एक उपाध्यक्ष होगा जो उस पिरषद् ारा ऐसी रीित से िनवार्िचत िकया
5

जाएगा जो िविहत की जाए ।


(2क) अिधवक्ता (संशोधन) अिधिनयम, 1977 (1977 का 38) के पर्ारम्भ के ठीक पूवर् भारतीय िविधज्ञ पिरषद् के अध्यक्ष या
उपाध्यक्ष का पद धारण करने वाला व्यिक्त ऐसे पर्ारम्भ्ा पर, यथािस्थित, अध्यक्ष या उपाध्यक्ष का पद धारण नह करे गा :
परन्तु ऐसा व्यिक्त अपने पद के कतर्व्य का पालन तब तक करता रहेगा जब तक िक पिरषद् का, यथािस्थित, अध्यक्ष या
उपाध्यक्ष, जो अिधवक्ता (संशोधन) अिधिनयम, 1977 (1977 का 38) के पर्ारम्भ के पश्चात् िनवार्िचत हुआ है, पद भार संभाल नह
लेता ।]
6
[(3) भारतीय िविधज्ञ पिरषद् के ऐसे सदस्य की, जो राज्य िविधज्ञ पिरषद् ारा िनवार्िचत िकया गया हो, पदाविध,––
(i) राज्य िविध पिरषद् के ऐसे सदस्य की दशा म, जो वह पद पदेन धारण करता हो, उसके िनवार्चन की तारीख से
दो वषर् होगी 4[या उस अविध तक होगी िजसको वह राज्य िविधज्ञ पिरषद् का सदस्य न रह जाए, इनम से जो भी अविध
पहले हो,] और
(ii) िकसी अन्य दशा म, उतनी अविध के िलए होगी िजतनी के िलए वह राज्य िविधज्ञ पिरषद् के सदस्य के रूप म
पद धारण करता हो :
परन्तु पर्त्येक ऐसा सदस्य भारतीय िविधज्ञ पिरषद् के सदस्य के रूप म अपने पद पर तब तक बना रहेगा जब तक उसका
उ रािधकारी िनवार्िचत नह कर िलया जाता है ।]
5. िविधज्ञ पिरषद् का िनगिमत िनकाय होना––पर्त्येक िविधज्ञ पिरषद् शाश्वत उ रािधकार और सामान्य मुदर्ा वाली एक
िनगिमत िनकाय होगी िजसे स्थावर तथा जंगम, दोन पर्कार की सम्पि अिजत और धारण करने तथा संिवदा करने की शिक्त होगी
और िजस नाम से वह ज्ञात हो उस नाम से वह वाद ला सके गी और उस पर वाद लाया जा सके गा ।

1
1964 के अिधिनयम सं० 21 की धारा 2 ारा अन्त:स्थािपत ।
2
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 4 ारा (31-1-1974 से) अन्त:स्थािपत ।
3
1977 के अिधिनयम सं० 38 की धारा 3 ारा (31-10-1977 से) खण्ड (खख) का लोप िकया गया ।
4
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 5 ारा (31-1-1974 से) अन्त:स्थािपत ।
5
1977 के अिधिनयम सं० 38 की धारा 3 ारा (31-10-1977 से) उपधारा (2) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
6
1964 के अिधिनयम सं० 21 की धारा 3 ारा अन्त:स्थािपत ।
5

6. राज्य िविधज्ञ पिरषद के कृ त्य––(1) राज्य िविधज्ञ पिरषद् के िनम्निलिखत कृ त्य ह गे,––
(क) अपनी नामावली म अिधवक्ता के रूप म व्यिक्तय को पर्िवष्ट करना;
(ख) ऐसी नामावली तैयार करना और बनाए रखना;
(ग) अपनी नामावली के अिधवक्ता के िवरु अवचार के मामले गर्हण करना और उनका अवधारण करना;
(घ) अपनी नामावली के अिधवक्ता के अिधकार , िवशेषािधकार और िहत की रक्षा करना;
[(घघ) इस धारा की उपधारा (2) के खंड (क) और धारा 7 की उपधारा (2) के खंड (क) म िनिदष्ट कल्याणकारी
1

स्कीम के पर्भावपूणर् कायार्न्वयन के पर्योजन के िलए िविधज्ञ संगम के िवकास का उन्नयन करना;]
(ङ) िविध सुधार का उन्नयन और उसका समथर्न करना;
[(ङङ) िविधक िवषय पर पर्ितिष्ठत िविध-शािस्तर्य ारा पिरसंवाद का संचालन और वातार्
2
का आयोजन
करना और िविधक रुिच की पतर्-पितर्काएं और लेख पर्कािशत करना;
(ङङङ) िविहत रीित से िनधर्न को िविधक सहायता देने के िलए आयोजन करना;]
(च) िविधज्ञ पिरषद् की िनिधय का पर्बन्ध और उनका िविनधान करना;
(छ) अपने सदस्य के िनवार्चन की व्यवस्था करना;
[(छछ) धारा 7 की उपधारा (1) के खंड (झ) के अधीन िदए गए िनदेश के अनुसार िवश्विव ालय म जाना और
1

उनका िनरीक्षण करना;]


(ज) इस अिधिनयम ारा या उसके अधीन उसे पर्द अन्य सभी कृ त्य का पालन करना;
(झ) पूव क्त कृ त्य के िनवर्हन के िलए आवश्यक अन्य सभी कायर् करना ।
3
[(2) राज्य िविधज्ञ पिरषद्, िविहत रीित से एक या अिधक िनिधय का गठन िनम्निलिखत पर्योजन के िलए, अथार्त् :––
(क) िनधर्न, िन:शक्त या अन्य अिधवक्ता के िलए कल्याणकारी स्कीम के संचालन के िलए िव ीय सहायता देने
के िलए,
(ख) इस िनिम बनाए गए िनयम के अनुसार िविधक सहायता या सलाह देने के िलए,
1
[(ग) िविध पुस्तकालय की स्थापना करने के िलए ।]
कर सके गी ।
(3) राज्य िविधज्ञ पिरषद्, उपधारा (2) म िविनिदष्ट सभी पर्योजन या उनम से िकसी पर्योजन के िलए अनुदान, संदान, दान
या उपकृ ितयां पर्ाप्त कर सके गी, जो उस उपधारा के अधीन गिठत समुिचत िनिध या िविधय म जमा की जाएंगी ।
7. भारतीय िविधज्ञ पिरषद् के कृ त्य–– 4 [(1)] भारतीय िविधज्ञ पिरषद् के कृ त्य िनम्निलिखत ह गे––
5
* * * * * *
(ख) अिधवक्ता के िलए वृि क आचार और िशष्टचार के मानक िनधार्िरत करना;
(ग) अपनी अनुशासन सिमित ारा और पर्त्येक राज्य िविधज्ञ पिरषद् की अनुशासन सिमित ारा अनुसरण की
जाने वाली पर्िकर्या िनधार्िरत करना;
(घ) अिधवक्ता के अिधकार , िवशेषािधकार और िहत की रक्षा करना;
(ङ) िविध सुधार का उन्नयन और उसका समथर्न करना;
(च) इस अिधिनयम के अधीन उत्पन्न होने वाले िकसी ऐसे मामले म कायर्वाही करना और उसे िनपटाना, जो उसे
िकसी राज्य िविधज्ञ पिरषद् ारा िनिदष्ट िकया जाए;
(छ) राज्य िविधज्ञ पिरषद का साधारण पयर्वेक्षण और उन पर िनयंतर्ण रखना;

1
1993 के अिधिनयम सं० 70 की धारा 2 ारा (26-12-1993 से) अन्त:स्थािपत ।
2
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 5 ारा (31-1-1974 से) अन्त:स्थािपत ।
3
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 6 ारा (31-1-1974 से) उपधारा (2) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 7 ारा (31-1-1974 से) धारा 7 को उस धारा की उपधारा (1) के रूप म पुन:संख्यांिकत िकया गया ।
5
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 7 ारा (31-1-1974 से) खण्ड (क) का लोप िकया गया ।
6

(ज) िविध िशक्षा का उन्नयन करना और ऐसी िशक्षा पर्दान करने वाले भारत के िवश्विव ालय और राज्य िविधज्ञ
पिरषद से िवचार-िवमशर् करके ऐसी िशक्षा के मानक िनधार्िरत करना;
(झ) ऐसे िवश्विव ालय को मान्यता देना, िजनकी िविध की उपािध अिधवक्ता के रूप म नामांिकत िकए जाने के
िलए अहर्ता होगी और उस पर्योजन के िलए िवश्विव ालय म जाना और उनका िनरीक्षण करना; 1 [या राज्य िविधज्ञ
पिरषद को, ऐसे िनदेश के अनुसार जो वह इस िनिम दे, िवश्विव ालय म जाने देना और उनका िनरीक्षण कराना];
[(झक) िविधक िवषय पर पर्ितिष्ठत िविध शािस्तर्य ारा पिरसंवाद का संचालन और वातार्
2
का आयोजन
करना और िविधक रुिच की पतर्-पितर्काएं और लेख पर्कािशत करना;
(झख) िविहत रीित से िनधर्न को िविधक सहायता देने के िलए आयोजन करना;
(झग) भारत के बाहर पर्ाप्त िविध की िवदेशी अहर्ता को, इस अिधिनयम के अधीन अिधवक्ता के रूप म पर्वेश
पाने के पर्योजन के िलए, पारस्पिरक आधार पर मान्यता देना;]
(ञ) िविधज्ञ पिरषद् की िनिधय का पर्बन्ध और उनका िविनधान करना;
(ट) अपने सदस्य के िनवार्चन की व्यवस्था करना;
(ठ) इस अिधिनयम ारा या उसके अधीन िविधज्ञ पिरषद् को पर्द अन्य सभी कृ त्य का पालन करना;
(ड) पूव क्त कृ त्य के िनवर्हन के िलए आवश्यक अन्य सभी कायर् करना ।
2
[(2) भारतीय िविधज्ञ पिरषद् िविहत रीित से एक या अिधक िनिधय का गठन िनम्निलिखत पर्योजन के िलए, अथार्त् :––
(क) िनधर्न, िन:शक्त या अन्य अिधवक्ता के िलए कल्याणकारी स्कीम के संचालन के िलए िव ीय सहायता देने
के िलए;
(ख) इस िनिम बनाए गए िनयम के अनुसार िविधक सहायता या सलाह देने के िलए,
3
[(ग) िविध पुस्तकालय की स्थापना करने के िलए,]
कर सके गी ।
(3) भारतीय िविधज्ञ पिरषद् उपधारा (2) म िविनिदष्ट सभी पर्योजन या उनम से िकसी पर्योजन के िलए अनुदान, संदान,
दान या उपकृ ितयां पर्ाप्त कर सके गी, जो उस उपधारा के अधीन गिठत समुिचत िनिध या िनिधय म जमा की जाएगी ।]
[7क. अन्तरराष्टर्ीय िनकाय की सदस्यता––भारतीय िविधज्ञ पिरषद् अन्तरराष्टर्ीय िविधक िनकाय जैसे इन्टरनेशलन बार
4

एसोिसएशन या इन्टरनेशनल लीगल ऐड एसोिसएशन की सदस्य बन सके गी, अिभदान के तौर पर या अन्यथा ऐसे िनकाय को, ऐसी
रािशय का अिभदाय कर सके गी, िजन्ह वह ठीक समझे और िकसी अन्तरराष्टर्ीय िविध सम्मेलन या पिरसंवाद म अपने पर्ितिनिधय के
भाग लेने के सम्बन्ध म व्यय पर्ािधकृ त कर सके गी ।]
[8. राज्य िविधज्ञ पिरषद् के सदस्य की पदाविध––राज्य िविधज्ञ पिरषद् के (धारा 54 म िनिदष्ट उसके िनवार्िचत सदस्य से
5

िभन्न) िकसी िनवार्िचत सदस्य की पदाविध उसके िनवार्चन के पिरणाम के पर्काशन की तारीख से पांच वषर् की होगी :
परन्तु जहां कोई राज्य िविधज्ञ पिरषद् उक्त पदाविध की समािप्त के पूवर् अपने सदस्य के िनवार्चन की व्यवस्था करने म
असफल रहती है वहां भारतीय िविधज्ञ पिरषद्, आदेश ारा और ऐसे कारण से जो लेखब िकए जाएंगे, उक्त पदाविध को ऐसी
अविध के िलए बढ़ा सके गी जो छह मास से अिधक नह होगी ।
8क. िनवार्चन के अभाव म िवशेष सिमित का गठन––(1) जहां कोई राज्य िविधज्ञ पिरषद्, धारा 8 म िनिदष्ट, यथािस्थित,
पांच वषर् की पदाविध या बढ़ाई गई पदाविध की समािप्त के पूवर् अपने सदस्य के िनवार्चन की व्यवस्था करने म असफल रहती है वहां
भारतीय िविधज्ञ पिरषद् ऐसी समािप्त के िदन के ठीक बाद की तारीख से ही, इस अिधिनयम के अधीन िविधज्ञ पिरषद् का गठन होने
तक, राज्य िविधज्ञ पिरषद् के कृ त्य का िनवर्हन करने के िलए एक िवशेष सिमित का गठन करे गी जो िनम्निलिखत से िमलकर बनेगी,
अथार्त् :––
(i) धारा 3 की उपधारा (2) के खंड (क) म िनिदष्ट राज्य िविधज्ञ पिरषद् का पदेन सदस्य जो अध्यक्ष होगा :
परन्तु जहां एक से अिधक पदेन सदस्य ह वहां उनम से ज्येष्ठतम सदस्य, अध्यक्ष होगा, और

1
1993 के अिधिनयम सं० 70 की धारा 3 ारा जोड़ा गया ।
2
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 7 ारा (31-1-1974 से) अन्त:स्थािपत ।
3
1993 के अिधिनयम सं० 70 की धारा 3 ारा (26-12-1993 से) अन्त:स्थािपत ।
4
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 8 ारा (31-1-1974 से) अन्त:स्थािपत ।
5
1993 के अिधिनयम सं० 70 की धारा 4 ारा (26-12-1993 से) धारा 8 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
7

(ii) दो सदस्य जो राज्य िविधज्ञ पिरषद् की िनवार्चक नामवली के अिधवक्ता म से भारतीय िविधज्ञ पिरषद्
ारा नामिनदिशत िकए जाएंगे ।
(2) िवशेष सिमित का गठन हो जाने पर और राज्य िविधज्ञ पिरषद् का गठन िकए जाने तक––
(क) राज्य िविधज्ञ पिरषद् म िनिहत सभी सम्पि और आिस्तयां, िवशेष सिमित म िनिहत ह गी;
(ख) राज्य िविधज्ञ पिरषद् के सभी अिधकार, दाियत्व और बाध्यताएं, चाहे वे िकसी संिवदा से उद्भूत ह या
अन्यथा, िवशेष सिमित के अिधकार, दाियत्व और बाध्यताएं ह गी;
(ग) राज्य िविधक पिरषद् के समक्ष िकसी अनुशासिनक िवषय की बाबत या अन्यथा लंिबत सभी कायर्वािहयां
िवशेष सिमित को अन्तिरत हो जाएंगी ।
(3) उपधारा (1) के अधीन गिठत िवशेष सिमित, ऐसे िनदश के अनुसार जो भारतीय िविधज्ञ पिरषद् इस िनिम उसे दे,
उपधारा (1) के अधीन उसके गठन के तारीख से छह मास की अविध के भीतर राज्य िविधज्ञ पिरषद् के िलए िनवार्चन कराएगी और
जहां िकसी कारण से िवशेष सिमित उक्त छह मास की अविध के भीतर िनवार्चन का संचालन कराने की िस्थित म नह है वहां भारतीय
िविधज्ञ पिरषद् ऐसे कारण से जो उसके ारा लेखब िकए जाएंगे, उक्त अविध को बढ़ा सके गी ।]
[9. अनुशासन सिमितयां––(1) िविधज्ञ पिरषद् एक या अिधक अनुशासन सिमितय का गठन करे गी । पर्त्येक ऐसी सिमित
1

तीन व्यिक्तय से िमलकर बनेगी । इसम दो पिरषद् ारा अपने सदस्य म से िनवार्िचत व्यिक्त ह गे और तीसरा पिरषद् ारा ऐसे
अिधवक्ता म से सहयोिजत व्यिक्त होगा िजसके पास धारा 3 की उपधारा (2) के परन्तुक म िविनिदष्ट अहर्ताएं ह और जो पिरषद्
का सदस्य न हो । िकसी अनुशासन सिमित के सदस्य म से ज्येष्ठतम अिधवक्ता उसका अध्यक्ष होगा ।
(2) उपधारा (1) म िकसी बात के होते हुए भी, अिधवक्ता (संशोधन) अिधिनयम, 1964 (1964 का 21) के पर्ारम्भ के पूवर्
गिठत कोई अनुशासन सिमित अपने समक्ष लंिबत कायर्वािहय का िनपटारा इस पर्कार कर सके गी मानो यह धारा उक्त अिधिनयम
ारा संशोिधत ही न की गई हो ।]
[9क. िविधक सहायता सिमितय का गठन––(1) िविधज्ञ पिरषद् एक या अिधक िविधक सहायता सिमितय का गठन कर
2

सके गी । ऐसी पर्त्येक सिमित म अिधक से अिधक नौ और कम से कम पांच ऐसे सदस्य ह गे जो िविहत िकए जाएं ।
(2) िविधक सहायता सिमित के सदस्य की अहर्ताएं, उनके चयन की प ित और उनकी पदाविध वह होगी जो िविहत
की जाए ।]
10. अनुशासन सिमितय से िभन्न सिमितय का गठन––(1) राज्य िविधज्ञ पिरषद् िनम्निलिखत स्थायी सिमितय का गठन
करे गी, अथार्त् :––
(क) एक कायर्कािरणी सिमित, जो पिरषद् ारा अपने सदस्य म से िनवार्िचत पांच सदस्य म िमलकर बनेगी;
(ख) एक नामांकन सिमित, जो पिरषद् ारा अपने सदस्य म से िनवार्िचत तीन सदस्य से िमलकर बनेगी ।
(2) भारतीय िविधज्ञ पिरषद् िनम्निलिखत स्थायी सिमितय का गठन करे गी, अथार्त् :––
(क) एक कायर्कािरणी सिमित, जो पिरषद् ारा अपने सदस्य म से िनवार्िचत नौ सदस्य से िमलकर बनेगी;
(ख) एक िविध िशक्षा सिमित जो दस सदस्य से िमलकर बनेगी । इसम पांच सदस्य पिरषद् ारा अपने सदस्य म
से िनवार्िचत व्यिक्त ह गे और पांच सदस्य पिरषद् ारा सहयोिजत ऐसे व्यिक्त ह गे जो उसके सदस्य नह ह ।
(3) राज्य िविधज्ञ पिरषद् और भारतीय िविधज्ञ पिरषद् अपने सदस्य म से ऐसी अन्य सिमितय का गठन करे गी िजन्ह वह
अिधिनयम के उपबंध को कायार्िन्वत करने के पर्योजन के िलए आवश्यक समझे ।
[10क. िविधज्ञ पिरषद और उनकी सिमितय ारा कारबार के संव्यवहार–– 4 [(1) भारतीय िविधज्ञ पिरषद् का अिधवेशन
3

नई िदल्ली म या ऐसे अन्य स्थान पर होगा जो वह, ऐसे कारण से जो लेखब िकए जाएंगे, अवधािरत करे ।
(2) राज्य िविधज्ञ पिरषद् का अिधवेशन उसके मुख्यालय म या ऐसे अन्य स्थान पर होगा जो वह, ऐसे कारण से जो लेखब
िकए जाएंगे, अवधािरत करे ।]
(3) िविधज्ञ पिरषद ारा गिठत अनुशासन सिमितय से िभन्न सिमितय का अिधवेशन िविधज्ञ पिरषद के अपने-अपने
मुख्यालय म होगा ।

1
1964 के अिधिनयम सं० 21 की धारा 5 ारा धारा 9 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 9 ारा (31-1-1974 से) अन्त:स्थािपत ।
3
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 10 ारा (31-1-1974 से) अन्त:स्थािपत ।
4
1993 के अिधिनयम सं० 70 की धारा 5 ारा (26-12-1993 से) उपधारा (1) और (2) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
8

(4) पर्त्येक िविधज्ञ पिरषद् और अनुशासन सिमितय से िभन्न उसकी पर्त्येक सिमित अपने अिधवेशन म कारबार के
संव्यवहार की बाबत पर्िकर्या के ऐसे िनयम का अनुपालन करे गी जो िविहत िकए जाएं ।
(5) धारा 9 के अधीन गिठत अनुशासन सिमितय का अिधवेशन ऐसे समय और स्थान पर होगा और वे अपने अिधवेशन म
कारबार के संव्यवहार की बाबत पर्िकर्या के ऐसे िनयम का अनुपालन करे गी जो िविहत िकए जाएं ।
[ [10ख.] िविधज्ञ पिरषद के सदस्य की िनरहर्ता––िविधज्ञ पिरषद् के िकसी िनवार्िचत सदस्य ने अपना पद िरक्त िकया है
1 2

ऐसा तब समझा जाएगा जब उसके बारे म उस िविधज्ञ पिरषद् ारा, िजसका वह सदस्य है, यह घोिषत िकया गया हो िक वह उस
पिरषद् के लगातार तीन अिधवेशन म पयार्प्त कारण के िबना अनुपिस्थत रहा है या जब उसका नाम िकसी कारणवश अिधवक्ता की
नामावली से हटा िदया गया हो या जब वह भारतीय िविधज्ञ पिरषद् ारा बनाए गए िकसी िनयम के अधीन अन्यथा िनरिहत हो
गया हो ।]
11. िविधज्ञ पिरषद् का कमर्चािरवृन्द––(1) पर्त्येक िविधज्ञ पिरषद् एक सिचव की िनयुिक्त करे गी और एक लेखापाल और
ऐसे अन्य व्यिक्तय की अपने कमर्चािरवृन्द के रूप म िनयुक्त कर सके गी िजन्ह वह आवश्यक समझे ।
(2) सिचव और लेखापाल की, यिद कोई ह , अहर्ताएं वे ह गी जो िविहत की जाएं ।
12. लेखा तथा लेखापरीक्षा––(1) पर्त्येक िविधज्ञ पिरषद् ऐसी लेखा बिहयां और अन्य बिहयां ऐसे पर्रूप म और ऐसी रीित से
रखवाएगी जो िविहत की जाएं ।
(2) िविधज्ञ पिरषद् के लेखा की लेखापरीक्षा, कम्पनी अिधिनयम, 1956 (1956 का 1) के अधीन कम्पिनय के
लेखापरीक्षक के रूप म कायर् करने के िलए सम्यक् रूप से अिहत लेखापरीक्षक ारा, ऐसे समय पर और ऐसी रीित से की जाएगी, जो
िविहत की जाएं ।
[(3) पर्त्येक िव ीय वषर् की समािप्त पर, यथासाध्य शीघर्ता से, िकन्तु ठीक अगले वषर् के िदसम्बर के 31व िदन के पश्चात्
3

नह , राज्य िविधज्ञ पिरषद् अपने लेखा की एक पर्ित, लेखापरीक्षक की िरपोटर् की एक पर्ित सिहत, भारतीय िविधज्ञ पिरषद् को
भेजेगी और उसे राजपतर् म पर्कािशत करवाएगी ।]
(4) पर्त्येक िव ीय वषर् की समािप्त पर, यथासाध्य शीघर्ता से, िकन्तु ठीक अगले वषर् के िदसम्बर के 31व िदन के पश्चात्
नह , भारतीय िविधज्ञ पिरषद् अपने लेखा की एक पर्ित, लेखापरीक्षक की िरपोटर् की एक पर्ित सिहत, के न्दर्ीय सरकार को भेजेगी
और उसे भारत के राजपतर् म पर्कािशत करवाएगी ।
13. िविधज्ञ पिरषद् और उसकी सिमितय म िरिक्त होने के कारण की गई कारर् वाही का अिविधमान्य न होना––िविधज्ञ
पिरषद् या उसकी िकसी सिमित ारा िकया गया कोई भी कायर् के वल इस आधार पर पर्श्नगत नह िकया जाएगा िक, यथािस्थित,
पिरषद् या सिमित म कोई िरिक्त िव मान थी या उसके गठन म कोई तर्ुिट थी ।
14. िविधज्ञ पिरषद् के िनवार्चन का कु छ आधार पर पर्श्नगत नह िकया जाना––िविधज्ञ पिरषद् के िलए िकसी सदस्य का
कोई भी िनवार्चन के वल इस आधार पर पर्श्नगत नह िकया जाएगा िक उसम मत देने के िलए हकदार िकसी व्यिक्त को उसकी सम्यक्
सूचना नह दी गई है, यिद िनवार्चन की तारीख की सूचना, कम से कम उस तारीख से तीस िदन पहले, राजपतर् म पर्कािशत कर दी
गई हो ।
15. िनयम बनाने की शिक्त––(1) िविधज्ञ पिरषद् इस अध्याय के पर्योजन को कायार्िन्वत करने के िलए िनयम बना सके गी ।
(2) िविशष्टतया तथा पूवर्गामी शिक्त की व्यापकता पर पर्ितकू ल पर्भाव डाले िबना, ऐसे िनयम िनम्निलिखत के िलए उपबन्ध
कर सकगे––
4
[(क) िविधज्ञ पिरषद् के सदस्य का गुप्त मतदान ारा िनवार्चन, िजसके अन्तगर्त वे शत भी ह िजनके अधीन रहते
हुए व्यिक्त डाक मतपतर् ारा मतदान के अिधकार का पर्योग कर सकते ह, िनवार्चक नामाविलयां तैयार करना और उनका
पुनरीक्षण और वह रीित िजससे िनवार्चन के पिरणाम पर्कािशत िकए जाएंगे;]
5
* * * * * * *
6
[(ग) िविधज्ञ पिरषद् के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के िनवार्चन की रीित;]
(घ) वह रीित, िजससे, और वह पर्ािधकारी िजसके ारा िविधज्ञ पिरषद् के िलए 4[या अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के पद के
िलए] िकसी िनवार्चन की िविधमान्यता के बारे म शंका और िववाद का अिन्तम रूप से िविनश्चय िकया जाएगा;

1
1964 के अिधिनयम सं० 21 की धारा 6 ारा अन्त:स्थािपत ।
2
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 10 ारा (31-1-1974 से) धारा 10क को धारा 10ख के रूप म पुन:संख्यांिकत िकया गया ।
3
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 11 ारा (31-1-1974 से) उपधारा (3) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 12 ारा (31-1-1974 से) खण्ड (क) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 12 ारा (31-1-1974 से) खण्ड (ख) का लोप िकया गया ।
6
1977 के अिधिनयम सं० 38 की धारा 5 ारा (31-10-1977 से) अन्त:स्थािपत ।
9

1
* * * * * * *
(च) िविधज्ञ पिरषद् म आकिस्मक िरिक्तय का भरना;
(छ) िविधज्ञ पिरषद् के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष की शिक्तयां और कतर्व्य;
[(छक) धारा 6 की उपधारा (2) और धारा 7 की उपधारा (2) म िनिदष्ट िव ीय सहायता देने या िविधक
2

सहायता या सलाह देने के पर्योजन के िलए िविधज्ञ पिरषद् ारा एक या अिधक िनिधय का गठन;
(छख) िनधर्न के िलए िविधक सहायता और सलाह देने के िलए आयोजन, और उस पर्योजन के िलए सिमितय और
उपसिमितय का गठन और उनके कृ त्य तथा उन कायर्वािहय का िववरण िजनके सम्बन्ध म िविधक सहायता या सलाह दी
जा सकती है;]
(ज) िविधज्ञ पिरषद् के अिधवेशन बुलाना और उनका आयोजन, 3 *** उनम कारबार का संचालन और उनम
गणूपित के िलए आवश्यक सदस्य-संख्या
(झ) िविधज्ञ पिरषद् की िकसी सिमित का गठन और उसके कृ त्य और िकसी ऐसी सिमित के सदस्य की पदाविध;
(ञ) ऐसी िकसी सिमित के अिधवेशन बुलाना और उनका आयोजन, उनम कारबार के संव्यवहार और गणपूित के
िलए आवश्यक सदस्य-संख्या;
(ट) िविधज्ञ पिरषद् के सिचव, लेखापाल और अन्य कमर्चािरय की अहर्ताएं और उनकी सेवा की शत;
(ठ) िविधज्ञ पिरषद् ारा लेखा-बिहय तथा अन्य पुस्तक का रखा जाना;
(ड) लेखापरीक्षक की िनयुिक्त और िविधज्ञ पिरषद् के लेखा की लेखापरीक्षा ।
(ण) िविधज्ञ पिरषद् की िनिधय का पर्बन्ध और िविनधान ।
(3) िकसी राज्य िविधज्ञ पिरषद् ारा इस धारा के अधीन बनाए गए िनयम तब तक पर्भावी नह ह गे जब तक भारतीय
िविधज्ञ पिरषद् उनका अनुमोदन न कर दे ।
अध्याय 3

अिधवक्ता का पर्वेश और नामांकन


16. विरष्ठ तथा अन्य अिधवक्ता––(1) अिधवक्ता के दो वगर् ह गे, अथार्त् विरष्ठ अिधवक्ता और अन्य अिधवक्ता ।
(2) कोई अिधवक्ता, अपनी सहमित से, विरष्ठ अिधवक्ता के रूप म अिभिहत िकया जा सके गा यिद उच्चतम न्यायालय या
िकसी उच्च न्यायालय की यह राय है िक वह अपनी योग्यता 4 [िविध व्यवसायी वगर् म िविध व्यवसाय काल या िविध िवषयक िवशेष
ज्ञान या अनुभव] के आधार पर ऐसे सम्मान के योग्य है ।
(3) विरष्ठ अिधवक्ता अपने िविध व्यवसाय के मामले म ऐसे िनबर्न के अधीन ह गे, िजन्ह भारतीय िविधज्ञ पिरषद् िविध
व्यवसाय के िहत म, िविहत करे ।
(4) उच्चतम न्यायालय का ऐसा अिधवक्ता, जो िनयत िदन के ठीक पूवर् उस न्यायालय का विरष्ठ अिधवक्ता था, इस धारा
के पर्योजन के िलए, विरष्ठ अिधवक्ता समझा जाएगा :
[परन्तु जहां कोई ऐसा विरष्ठ अिधवक्ता 31 िदसम्बर, 1965 के पूवर् उस िविधज्ञ पिरषद् को जो ऐसी नामावली रखती है
5

िजसम उसका नाम दजर् िकया गया है, आवेदन करता है िक वह विरष्ठ अिधवक्ता नह बना रहना चाहता है वहां, िविधज्ञ पिरषद् उस
आवेदन को मंजूर कर सके गी और तदनुसार नामावली पिरवितत की जाएगी ।]
17. राज्य िविधज्ञ पिरषद् अिधवक्ता की नामावली रखेगी––(1) पर्त्येक राज्य िविधज्ञ पिरषद् अिधवक्ता की ऐसी
नामावली तैयार करे गी और रखेगी िजसम––
(क) ऐसे सभी व्यिक्तय के नाम और पते दजर् िकए जाएंगे जो िनयत िदन के ठीक पूणर् भारतीय िविधज्ञ पिरषद्
अिधिनयम, 1926 (1926 का 38) के अधीन िकसी उच्च न्यायालय की अिधवक्ता नामावली म अिधवक्ता के रूप म दजर् थे
6 [और इसके अन्तगर्त उन व्यिक्तय के नाम और पते भी ह गे जो भारत के नागिरक होते हुए 15 अगस्त, 1947 के पूवर्, उक्त

अिधिनयम के अधीन अिधवक्ता के रूप म ऐसे क्षेतर् म नामांिकत थे जो उक्त तारीख के पूवर् भारत शासन अिधिनयम, 1935

1
1966 के अिधिनयम सं० 23 की धारा 3 ारा (भूतलक्षी पर्भाव से) खण्ड (ङ) का लोप िकया गया ।
2
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 12 ारा (31-1-1974 से) अन्त:स्थािपत ।
3
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 12 ारा (31-1-1974 से) कितपय शब्द का लोप िकया गया ।
4
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 13 ारा (31-1-1974 से) “िविध व्यवसायी वगर् म िविध व्यवसाय काल और अनुभव” शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
1964 के अिधिनयम सं० 21 की धारा 8 ारा अन्त:स्थािपत ।
6
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 14 ारा (31-1-1974 से) “और जो, िविहत समय के भीतर” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
10

(25 और 26, जॉ० 5 सी 42) ारा पिरिनिश्चत क्षेतर् म समािवष्ट थे और जो] िविधज्ञ पिरषद् की अिधकािरता के भीतर
िविध व्यवसाय करने का अपना आशय िविहत रूप म 2[िकसी भी समय] अिभव्यक्त कर;
(ख) ऐसे सभी अन्य व्यिक्तय के नाम और पते ह गे जो राज्य िविधज्ञ पिरषद् की नामावली म, िनयत िदन को या
उसके पश्चात् इस अिधिनयम के अधीन अिधवक्ता के रूप म पर्िवष्ट िकए गए ह ।
(2) अिधवक्ता की पर्त्येक ऐसी नामावली के दो भाग ह गे––पर्थम भाग म विरष्ठ अिधवक्ता के नाम ह गे और दूसरे
भाग म अन्य अिधवक्ता के नाम ।
(3) िकसी राज्य िविधज्ञ पिरषद् ारा इस धारा के अधीन तैयार की गई और रखी गई अिधवक्ता की नामावली के पर्त्येक
भाग म पर्िविष्टयां ज्येष्ठता के कर्म से ह गी, 1 [और िकसी ऐसे िनयम के अधीन रहते हुए, जो भारतीय िविधज्ञ पिरषद् ारा इस िनिम
बनाया जाए, ऐसी ज्येष्ठता िनम्निलिखत रूप म अवधािरत की जाएगी] :––
(क) उपधारा (1) के खंड (क) म िनिदष्ट िकसी अिधवक्ता की ज्येष्ठता, भारतीय िविधज्ञ पिरषद् अिधिनयम,
1926 (1926 का 38) के अधीन उसके नामांकन की तारीख के अनुसार अवधािरत की जाएगी;
(ख) िकसी ऐसे व्यिक्त की ज्येष्ठता, जो िनयत िदन के ठीक पूवर् उच्चतम न्यायालय का विरष्ठ अिधवक्ता था,
राज्य नामावली के पर्थम भाग के पर्योजन के िलए, ऐसे िस ान्त के अनुसार अवधािरत की जाएगी, िजन्ह भारतीय िविधज्ञ
पिरषद् िविनिदष्ट करे ;
2
* * * * * * *
(घ) िकसी अन्य व्यिक्त की ज्येष्ठता, जो िनयत िदन को या उसके पश्चात् विरष्ठ अिधवक्ता के रूप म नामांिकत
िकया गया है या अिधवक्ता के रूप म पर्िवष्ट िकया गया है, यथािस्थित, ऐसे नामांकन या पर्वेश की तारीख के आधार पर
अवधािरत की जाएगी;
[(ङ) खण्ड (क) म अन्तिवष्ट िकसी बात के होते हुए भी िकसी नामांिकत अटन की [चाहे वह अिधवक्ता
3

(संशोधन) अिधिनयम, 1980 के पर्ारम्भ के पूवर् या पश्चात् नामांिकत हो] ज्येष्ठता, अिधवक्ता के रूप म उस तारीख के
अनुसार अवधािरत की जाएगी] जो उसके अटन के रूप म नामांिकत िकए जाने की तारीख हो ।]
(4) कोई भी व्यिक्त एक से अिधक राज्य िविधज्ञ पिरषद की नामावली म अिधवक्ता के रूप म नामांिकत नह िकया
जाएगा ।
18. एक राज्य की नामावली से दूसरे राज्य की नामावली म नाम का अन्तरण––(1) धारा 17 म िकसी बात के होते हुए भी,
कोई व्यिक्त, िजसका नाम िकसी राज्य िविधज्ञ पिरषद् की नामावली म अिधवक्ता के रूप म दजर् है, अपना नाम उस राज्य िविधज्ञ
पिरषद् की नामावली से िकसी अन्य राज्य िविधज्ञ पिरषद् की नामावली म अन्तिरत कराने के िलए, िविहत रूप म, भारतीय िविधज्ञ
पिरषद् को आवेदन कर सके गा और ऐसे आवेदन की पर्ािप्त पर भारतीय िविधज्ञ पिरषद् यह िनदेश देगी िक ऐसे व्यिक्त का नाम, िकसी
फीस के संदाय के िबना, पर्थम विणत राज्य िविधज्ञ पिरषद् की नामावली से हटा कर उस अन्य राज्य पिरषद् की नामावली म दजर्
िकया जाए और सम्ब राज्य िविधज्ञ पिरषद् ऐसे िनदेश का अनुपालन करे गी :
[परन्तु जहां अन्तरण के िलए ऐसा कोई आवेदन ऐसे व्यिक्त ारा िकया गया है िजसके िवरु कोई अनुशािसक कायर्वाही
4

लंिबत है या जहां िकसी अन्य कारण से भारतीय िविधज्ञ पिरषद् को यह पर्तीत होता है िक अन्तरण के िलए आवेदन सद्भावपूवर्क नह
िकया गया है और अन्तरण नह िकया जाना चािहए वहां भारतीय िविधज्ञ पिरषद् आवेदन करने वाले व्यिक्त को इस िनिम
अभ्यावेदन करने का अवसर देने के पश्चात् आवेदन नामंजूर कर सके गी ।]
(2) शंका को दूर करने के िलए इसके ारा यह घोिषत िकया जाता है िक जहां उपधारा (1) के अधीन िकसी अिधवक्ता
ारा िकए गए आवेदन पर, उसका नाम एक राज्य िविधज्ञ पिरषद् की नामावली से िकसी अन्य राज्य की नामावली म अन्तिरत िकया
जाता है वहां उस पश्चात्किथत नामावली म उसकी वही ज्येष्ठता बनी रहेगी िजसका वह पूवर्वत नामावली म हकदार था ।
19. अिधवक्ता की नामाविलय की पर्ितय का राज्य िविधज्ञ पिरषद ारा भारतीय िविधज्ञ पिरषद् को भेजा जाना––
पर्त्येक राज्य िविधज्ञ पिरषद्, इस अिधिनयम के अधीन अपने ारा पहली बार बनाई गई अिधवक्ता की नामवली की एक
अिधपर्मािणत पर्ित भारतीय िविधज्ञ पिरषद् को भेजेगी और उसके पश्चात् नह , ऐसी नामावली म िकए गए सभी पिरवतर्न और
पिरवधर्न, उनके िकए जाने के पश्चात् यथाशक्य शीघर्, भारतीय िविधज्ञ पिरषद् को संसूिचत करे गी ।
[20. उच्चतम न्यायालय के कु छ अिधवक्ता के नामांकन के िलए िवशेष उपबन्ध––(1) इस अध्याय म िकसी बात के होते
5

हुए भी, पर्त्येक ऐसा अिधवक्ता, जो िनयत िदन के ठीक पूवर् उच्चतम न्यायालय म िविध व्यवसाय करने के िलए सािधकार हकदार था

1
1964 के अिधिनयम सं० 21 की धारा 9 ारा “और ऐसी ज्येष्ठता िनम्निलिखत रूप म अवधािरत की जाएगी” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 14 ारा (31-1-1974 से) खण्ड (ग) का लोप िकया गया ।
3
1980 के अिधिनयम सं० 47 की धारा 2 ारा (29-11-1980 से) अन्त:स्थािपत ।
4
1964 के अिधिनयम सं० 21 की धारा 10 ारा अन्त:स्थािपत ।
5
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 15 ारा (31-1-1974 से) धारा 20 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
11

और िजसका नाम िकसी राज्य नामावली म दजर् नह है, िकसी राज्य िविधज्ञ पिरषद् की नामावली म अपना नाम दजर् कराने का आशय
िविहत समय के भीतर, िविहत पर्रूप म भारतीय िविधज्ञ पिरषद् को पर्कट कर सके गा और उसके पर्ाप्त हो जाने पर भारतीय िविधज्ञ
पिरषद् यह िनदेश देगी िक ऐसे अिधवक्ता का नाम, िकसी फीस के संदाय के िबना, उस राज्य िविधज्ञ पिरषद् की नामावली म दजर्
िकया जाए, और सम्ब राज्य िविधज्ञ पिरषद् ऐसे िनदेश का अनुपालन करे गी ।
(2) भारतीय िविधज्ञ पिरषद् के उपधारा (1) के अधीन िनदेश के अनुपालन म राज्य नामावली म कोई भी पर्िविष्ट धारा 17
की उपधारा (3) के उपबंध के अनुसार अवधािरत ज्येष्ठता के कर्म से की जाएगी ।
(3) जहां उपधारा (1) म िविनिदष्ट कोई अिधवक्ता, िविहत समय के भीतर अपना आशय पर्कट करने म लोप करता है या
असफल रहता है वहां उसका नाम िदल्ली की राज्य िविधज्ञ पिरषद् की नामावली म दजर् िकया जाएगा ।]
21. ज्येष्ठता के बारे म िववाद––(1) जहां दो या उससे अिधक व्यिक्तय की ज्येष्ठता की तारीख एक ही हो, वहां आयु म
ज्येष्ठ व्यिक्त दूसरे व्यिक्त से ज्येष्ठ माना जाएगा ।
[(2) यथापूव क्त के अधीन रहते हुए, यिद िकसी व्यिक्त की ज्येष्ठता के बारे म, कोई िववाद उत्पन्न होता है, तो उसे सम्ब
1

राज्य िविधज्ञ पिरषद् को िविनश्चय के िलए िविनिदष्ट िकया जाएगा ।]


[22. नामांकन पर्माणपतर्––(1) राज्य िविधज्ञ पिरषद् पर्त्येक ऐसे व्यिक्त को, िजसका नाम इस अिधिनयम के अधीन उसके
2

ारा रखी गई अिधवक्ता नामावली म दजर् है, िविहत पर्रूप म नामांकन पर्माणपतर् जारी करे गी ।
(2) ऐसा पर्त्येक व्यिक्त िजसका नाम राज्य नामावली म इस पर्कार दजर् है, अपने स्थायी िनवास स्थान म िकसी पिरवतर्न की
सूचना सम्ब राज्य िविधज्ञ पिरषद् को ऐसे पिरवतर्न के नब्बे िदन के भीतर देगा ।]
23. पूवर् सुनवाई का अिधकार––(1) भारत के महान्यायवादी की सुनवाई अन्य सभी अिधवक्ता से पूवर् होगी ।
(2) उपधारा (1) के उपबन्ध के अधीन रहते हुए, भारत के महासािलिसटर की सुनवाई अन्य सभी अिधवक्ता से
पूवर् होगी ।
(3) उपधारा (1) और उपधारा (2) के उपबन्ध के अधीन रहते हुए, भारत के अपर महासािलिसटर की सुनवाई अन्य सभी
अिधवक्ता से पूवर् होगी ।
[(3क) उपधारा (1), उपधारा (2) और उपधारा (3) के उपबन्ध के अधीन रहते हुए, भारत के ि तीय अपर महासािलिसटर
3

की सुनवाई अन्य सभी अिधवक्ता से पूवर् होगी ।]


(4) उपधारा (1), 4 [उपधारा (2), उपधारा (3) और उपधारा (3क)] के उपबन्ध के अधीन रहते हुए, िकसी राज्य के
महािधवक्ता की सुनवाई अन्य सभी अिधवक्ता से पूवर् होगी और महािधवक्ता म परस्पर पूवर् सुनवाई का अिधकार उनकी
अपनी-अपनी ज्येष्ठता के अनुसार अवधािरत िकया जाएगा ।
(5) यथापूव क्त के अधीन रहते हुए––
(i) विरष्ठ अिधवक्ता की सुनवाई अन्य अिधवक्ता से पूवर् होगी, और
(ii) विरष्ठ अिधवक्ता म परस्पर और अन्य अिधवक्ता म परस्पर पूवर् सुनवाई का अिधकार उनकी
अपनी-अपनी ज्येष्ठता के अनुसार अवधािरत िकया जाएगा ।
24. वे व्यिक्त, िजन्ह िकसी राज्य नामावली म अिधवक्ता के रूप म पर्िवष्ट िकया जा सकता है––(1) इस अिधिनयम और
उसके अधीन बनाए गए िनयम के उपबन्ध के अधीन रहते हुए कोई व्यिक्त िकसी राज्य नामावली म अिधवक्ता के रूप म पर्िवष्ट िकए
जाने के िलए अिहत तभी होगा जब वह िनम्निलिखत शत पूरी करे , अथार्त् :––
(क) वह भारत का नागिरक हो :
परन्तु इस अिधिनयम के अन्य उपबन्ध के अधीन रहते हुए, िकसी अन्य देश का रािष्टर्क िकसी राज्य नामावली म
अिधवक्ता के रूप म उस दशा म पर्िवष्ट िकया जा सके गा जब सम्यक् रूप से अिहत भारत के नागिरक उस अन्य देश म िविध
व्यवसाय करने के िलए अनुज्ञात ह ;
(ख) उसने इक्कीस वषर् की आयु पूरी कर ली है;
(ग) उसन–े –

1
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 16 ारा (31-1-1974 से) उपधारा (2) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 17 ारा (31-1-1974 से) धारा 22 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1980 के अिधिनयम सं० 47 की धारा 3 ारा (29-11-1980 से) अन्त:स्थािपत ।
4
1980 के अिधिनयम सं० 47 की धारा 3 ारा (29-11-1980 से) “उपधारा (2) और (3)” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
12

(i) भारत के राज्यक्षेतर् के िकसी िवश्विव ालय से 1 [12 माचर्, 1967] से पूवर् िविध की उपािध पर्ाप्त कर
ली है;
(ii) िकसी ऐसे क्षेतर् के , जो भारत शासन अिधिनयम, 1935 ारा पिरिनिश्चत भारत के भीतर
15 अगस्त, 1947 के पूवर् समािवष्ट था, िकसी िवश्विव ालय से, उस तारीख के पूवर् िविध की उपािध पर्ाप्त कर ली
है; या
[(iii) उपखण्ड (iiiक) म जैसा उपबिन्धत है उसके िसवाय, िविध िवषय म तीन वषर् के पा कर्म को
2

पूरा करने के पश्चात् भारत के िकसी ऐसे िवश्विव ालय से िजसे भारतीय िविधज्ञ पिरषद् ारा, इस अिधिनयम के
पर्योजन के िलए मान्यता पर्ाप्त है, 12 माचर्, 1967 के पश्चात् िविध की उपािध पर्ाप्त कर ली है; या
(iiiक) िविध िवषय म ऐसा पा कर्म पूरा करने के पश्चात् िजसकी अविध िशक्षण वषर् 1967-68 या
िकसी पूवर्वत िशक्षण वषर् से आरम्भ्ा होकर दो िशक्षण वष से कम की न हो, भारत के िकसी ऐसे िवश्विव ालय से
िजसे भारतीय िविधज्ञ पिरषद् ारा, इस अिधिनयम के पर्योजन के िलए मान्यता पर्ाप्त है, िविध की उपािध पर्ाप्त
कर ली है; या ]
3
[(vi) िकसी अन्य दशा म भारत के राज्यक्षेतर् से बारह के िकसी िवश्विव ालय से िविध की उपािध
पर्ाप्त की है, यिद उस उपािध को इस अिधिनयम के पर्योजन के िलए, भारतीय िविधज्ञ पिरषद् ारा मान्यता
पर्ाप्त है; या ]
[वह बैिरस्टर है और उसे 31 िदसम्बर, 1976 को या उसके पूवर् िविध व्यवसायी वगर् म िलया गया है,]
4

5 [अथवा वह मुम्बई अथवा कलक ा उच्च न्यायालय के अटन रूप म नामांकन के िलए मुम्बई या कलक ा उच्च न्यायालय
ारा िविनिदष्ट आब िशक्षाथ की परीक्षा या िकसी अन्य परीक्षा म उ ीणर् हो चुका है;] अथवा उसने िविधम ऐसी अन्य
िवदेशी अहत र् ा पर्ाप्त कर ली है िजसे इस अिधिनयम के अधीन अिधवक्ता के रूप म पर्वेश पाने के पर्योजन के िलए भारतीय
िविधज्ञ पिरषद् ारा मान्यता पर्ाप्त है ];
6
* * * * * *
(ङ) वह ऐसी अन्य शत पूरी करता है, जो इस अध्याय के अधीन राज्य िविधज्ञ पिरषद् ारा बनाए गए िनयम म
िविनिदष्ट की जाएं;
[(च) उसने, नामांकन के िलए, भारतीय स्टाम्प अिधिनयम, 1899 (1899 का 2) के अधीन पर्भायर् स्टाम्प शुल्क,
7

यिद कोई हो, और राज्य िविधज्ञ पिरषद् को 8 [संदय


े छह सौ रुपए और भारतीय िविधज्ञ पिरषद् को, उस पिरषद् के पक्ष म
िलखे गए बक डर्ाफ्ट के रूप म, संदय
े एक सौ पचास रुपए की] नामांकन फीस दे दी है :
परन्तु जहां ऐसा व्यिक्त अनुसूिचत जाित या अनुसूिचत जनजाित का सदस्य है और ऐसे पर्ािधकारी से जो िविहत
िकया जाए, उस आशय का पर्माणपतर् पेश करता है वहां 7[उसके ारा संदय
े नामांकन फीस राज्य िविधज्ञ पिरषद् की दशा म
एक सौ रुपए और भारतीय िविधज्ञ पिरषद् की दशा म पच्चीस रुपए होगी ।]
[स्पष्टीकरण––इस उपधारा के पर्योजन के िलए िकसी व्यिक्त को भारत के िकसी िवश्विव ालय से िविध की
9

उपािध-पर्ाप्त उस तारीख से समझा जाएगा, िजस तारीख को उस उपािध की परीक्षा के पिरणाम, िवश्विव ालय ारा अपनी
सूचना प पर, पर्कािशत िकए जाते ह या अन्यथा यह घोिषत िकया जाता है िक उसने परीक्षा उ ीणर् कर ली है ।]
(2) उपधारा (1) म िकसी बात के होते हुए भी 10
[कोई वकील या प्लीडर, जो िविध स्नातक है,] राज्य नामावली म
अिधवक्ता के रूप म पर्िवष्ट िकया जा सकता है, यिद वह––
(क) इस अिधिनयम के उपबंध के अनुसार ऐसे नामांकन के िलए आवेदन िनयत िदन से दो वषर् के भीतर, न िक
उसके पश्चात् करता है; और
(ख) उपधारा (1) के खंड (क), (ख), (ङ) और (च) म िविनिदष्ट शत पूरी करता है ।
2
[(3) उपधारा (1) म िकसी बात के होते हुए भी, कोई व्यिक्त, जो––

1
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 18 ारा (31-1-1974 से) “28 फरवरी, 1963” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 18 ारा (31-1-1974 से) उपखंड (iii) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1964 के अिधिनयम सं० 21 की धारा 13 ारा अन्त:स्थािपत ।
4
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 18 ारा (31-1-1974 से) “वह बैिरस्टर है” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
1976 के अिधिनयम सं० 107 की धारा 6 ारा (15-10-1976 से) अन्त:स्थािपत ।
6
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 18 ारा (31-1-1974 से) खण्ड (घ) का लोप िकया गया ।
7
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 18 ारा (31-1-1974 से) खण्ड (च) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
8
1993 के अिधिनयम सं० 70 की धारा 6 ारा (26-12-1993 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
9
1962 के अिधिनयम सं० 14 की धारा 2 ारा अन्त:स्थािपत ।
10
1964 के अिधिनयम सं० 21 की धारा 13 ारा कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
13

(क) 1 * * * कम से कम तीन वषर् तक वकील या प्लीडर या मुख्तार रहा हो, या 2 * * * िकसी िविध के अधीन
िकसी भी समय िकसी उच्च न्यायालय के (िजसके अन्तगर्त भूतपूवर् भाग ख राज्य का उच्च न्यायालय भी है) या िकसी संघ
राज्यक्षेतर् म न्याियक आयुक्त के न्यायालय म अिधवक्ता के रूप म नामांिकत िकए जाने का हकदार था; या
[(कक) िकसी िविध के उपबंध के आधार पर (चाहे अिभवचन ारा या कायर् ारा या दोन के ारा) िविध
3

व्यवसाय करने के िलए अिधवक्ता से िभन्न रूप म 1 िदसम्बर, 1961 के पूवर् हकदार था, या जो इस पर्कार हकदार होता यिद
वह उस तारीख को लोक सेवा म न होता;] या
4
* * * * * *
(ग) भारत शासन अिधिनयम, 1935 (25 और 26 जॉ० 5 सी 42) ारा पिरिनिश्चत बमार् म समािवष्ट िकसी क्षेतर्
के िकसी उच्च न्यायालय का, 1 अपर्ैल, 1937 के पूवर् अिधवक्ता था; या
(घ) भारतीय िविधज्ञ पिरषद् ारा इस िनिम बनाए गए िकसी िनयम के अधीन अिधवक्ता के रूप म नामांिकत
िकए जाने के िलए हकदार है,
िकसी राज्य नामावली म अिधवक्ता के रूप म पर्िवष्ट िकया जा सके गा, यिद वह––
(i) इस अिधिनयम के उपबंध के अनुसार ऐसे नामांकन के िलए आवेदन करता है; और
(ii) उपधारा (1) के खंड (क), (ख), (ङ) और (च) म िविनिदष्ट शत पूरी करता है ।]
5
* * * * * *
[24क. नामांकन के िलए िनरहर्ता––(1) कोई भी व्यिक्त िकसी राज्य नामावली म अिधवक्ता के रूप म पर्िवष्ट नह िकया
6

जाएगा, यिद––
(क) वह नैितक अधमता से संबंिधत अपराध के िलए िस दोष ठहराया गया है;
(ख) वह अस्पृश्यता (अपराध) अिधिनयम, 1955 (1955 का 22) के उपबंध के अधीन िकसी अपराध के िलए
िस दोष ठहराया गया है;
[(ग) वह िकसी ऐसे आरोप पर िजसम नैितक अधमता अन्तवर्िलत है, राज्य के अधीन िनयोजन या पद से हटाया
7

जाता है या पदच्युत िकया जाता है ।


स्पष्टीकरण––इस खंड म “राज्य” पद का वही अथर् है जो संिवधान के अनुच्छेद 12 म है :]
परन्तु नामांकन के िलए यथा पूव क्त िनरहर्ता, उसके 8 [िनमुर्क्त होने अथवा, यथािस्थित, पदच्युत िकए जाने या पद से हटाए
जाने] से दो वषर् की अविध की समािप्त के पश्चात् पर्भावी नह रहेगी ।]
(2) उपधारा (1) की कोई भी बात दोषी पाए गए िकसी ऐसे व्यिक्त को लागू नह होगी िजसके सम्बन्ध म अपराधी पिरवीक्षा
अिधिनयम, 1958 (1958 का 20) के उपबंध के अधीन कायर्वाही की गई है ।]
25. पर्ािधकरण िजसे नामांकन के िलए आवेदन िकए जा सकगे––अिधवक्ता के रूप म पर्वेश के िलए आवेदन िविहत पर्रूप म
उस राज्य िविधज्ञ पिरषद् को िकया जाएगा िजसकी अिधकािरता के भीतर आवेदक िविध व्यवसाय करना चाहता है ।
26. अिधवक्ता के रूप म पर्वेश के िलए आवेदन का िनपटारा––(1) राज्य िविधज्ञ पिरषद् अिधवक्ता के रूप म पर्वेश के िलए
पर्त्येक आवेदन को अपनी नामांकन सिमित को िनिदष्ट करे गी और ऐसी सिमित उपधारा (2) और उपधारा (3) के उपबन्ध के अधीन
रहते हुए 9 [और िकसी ऐसे िनदेश के अधीन रहते हुए, जो इस िनिम राज्य िविधज्ञ पिरषद् ारा िलिखत रूप म िदया जाए], िविहत
रीित से आवेदन का िनपटारा करे गी :
[परन्तु यिद भारतीय िविधज्ञ पिरषद् का, या तो इस िनिम उसे िकए गए िनदश पर या अन्यथा, यह समाधान हो जाता है
9

िक िकसी व्यिक्त ने िकसी आवश्यक तथ्य के सम्बन्ध म दुव्यर्पदेशन ारा या कपट ारा या असम्यक् असर डालकर, अिधवक्ता

1
1968 के अिधिनयम सं० 33 की धारा 2 ारा (5-6-1968 से) “31 माचर्, 1964 के पूवर्” शब्द और अंक का लोप िकया गया ।
2
1968 के अिधिनयम सं० 33 की धारा 2 ारा (5-6-1968 से) “तत्समय पर्वृ ” शब्द का लोप िकया गया ।
3
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 18 ारा (31-1-1974 से) अन्त:स्थािपत ।
4
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 18 ारा (31-1-1974 से) खण्ड (ख) का लोप िकया गया ।
5
1976 के अिधिनयम सं० 107 की धारा 6 ारा लोप िकया गया ।
6
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 19 ारा (31-1-1974 से) अन्त:स्थािपत ।
7
1993 के अिधिनयम सं० 70 की धारा 7 ारा (26-12-1993 से) अन्त:स्थािपत ।
8
1993 के अिधिनयम सं० 70 की धारा 7 ारा (26-12-1993 से) “िनमुर्क्त होने” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
9
1964 के अिधिनयम सं० 21 की धारा 14 ारा अन्त:स्थािपत ।
14

नामावली म अपना दजर् करवाया है, तो वह उस व्यिक्त को सुनवाई का अवसर देने के पश्चात्, उसका नाम अिधवक्ता नामावली म से
हटा सके गी ।]
(2) जहां िकसी राज्य िविधज्ञ पिरषद् की नामांकन सिमित, िकसी ऐसे आवेदन को इं कार करने का पर्स्ताव करती है वहां वह
आवेदन को भारतीय िविधज्ञ पिरषद् की राय के िलए िनिदष्ट करेगी और पर्त्येक ऐसे िनदश के साथ आवेदन के इं कार िकए जाने वाले
आधार के समथर्न म िववरण होगा ।
(3) राज्य िविधज्ञ पिरषद् की नामांकन सिमित उपधारा (2) के अधीन भारतीय िविधज्ञ पिरषद् को िनिदष्ट िकसी आवेदन का
िनपटारा भारतीय िविधज्ञ पिरषद् की राय के अनुरूप करे गी ।
[(4) जहां िकसी राज्य िविधज्ञ पिरषद् की नामांकन सिमित ने अपनी नामावली म अिधवक्ता के रूप म पर्वेश के िलए िकसी
1

आवेदन को नामंजूर िकया है वहां वह राज्य िविधज्ञ पिरषद् यथाशक्य शीघर्, अन्य सभी राज्य िविधज्ञ पिरषद को ऐसी नामंजूरी की
इि ला भेजेगी िजसम उस व्यिक्त के नाम, पते और अहर्ता का कथन होगा िजसके आवेदन को इं कार िकया गया है और आवेदन के
इं कार िकए जाने के आधार भी िदए जाएंगे ।]
[26क. नामावली से नाम हटाने की शिक्त––राज्य िविधज्ञ पिरषद् ऐसे िकसी भी अिधवक्ता का नाम राज्य नामावली से
2

हटा सके गी िजसकी मृत्यु हो गई हो या िजस अिधवक्ता से नाम हटाने के आशय का आवेदन पर्ाप्त हो गया हो ।]
27. एक बार इं कार िकए गए आवेदन का अन्य िविधज्ञ पिरषद् ारा कु छ पिरिस्थितय के िसवाय, गर्हण न िकया जाना––
जहां िकसी राज्य िविधज्ञ पिरषद् ने अपनी नामावली म िकसी व्यिक्त को अिधवक्ता के रूप म पर्वेश के िलए उसके आवेदन को इं कार
कर िदया है, वहां कोई भी अन्य राज्य िविधज्ञ पिरषद् ऐसे व्यिक्त का आवेदन अपनी नामावली म अिधवक्ता के रूप म पर्वेश के िलए
उस राज्य िविधज्ञ पिरषद् की, िजसने आवेदन नामंजूर िकया था, तथा भारतीय िविधज्ञ पिरषद् की, िलिखत पूवर् सम्मित के िबना, गर्हण
नह करे गी ।
28. िनयम बनाने की शिक्त––(1) इस अध्याय के पर्योजन को कायार्िन्वत करने के िलए राज्य िविधज्ञ पिरषद् िनयम बना
सके गी ।
(2) िविशष्टतया और पूवर्गामी शिक्त की व्यापकता पर पर्ितकू ल पर्भाव डाले िबना, ऐसे िनयम िनम्निलिखत के िलए उपबंध
कर सकगे, अथार्त् :––
[(क) वह समय िजसके भीतर और वह पर्रूप, िजसम कोई अिधवक्ता धारा 20 के अधीन िकसी राज्य िविधज्ञ
3

पिरषद् की नामावली म अपना नाम दजर् कराने का अपना आशय पर्कट करे गा ;
4
* * * * * *
(ग) वह पर्रूप िजसम िविधज्ञ पिरषद् को, उसकी नामावली म अिधवक्ता के रूप म पर्वेश के िलए आवेदन िकया
जाएगा और वह रीित, िजससे ऐसे आवेदन का िविधज्ञ पिरषद् की नामांकन सिमित ारा िनपटारा िकया जाएगा;
(घ) वे शत िजनके अधीन रहते हुए, कोई व्यिक्त ऐसी िकसी नामावली म अिधवक्ता के रूप म पर्िवष्ट िकया जा
सके गा;
(ङ) वे िकस्त िजनम नामांकन फीस दी जा सके गी ।
(3) इस अध्याय के अधीन बनाए गए िनयम तब तक पर्भावी नह ह गे जब तक वे भारतीय िविधज्ञ पिरषद् ारा अनुमोिदत
न कर िदए गए ह ।]
अध्याय 4

िविध व्यवसाय का अिधकार


29. के वल अिधवक्ता का ही मान्यतापर्ाप्त व्यिक्तय का वगर्, िविध व्यवसाय करने के िलए हकदार होना––इस अिधिनयम
और उसके अधीन बनाए गए िकन्ह िनयम के उपबंध के अधीन रहते हुए, िनयत िदन से िविध व्यवसाय करने के िलए हकदार
व्यिक्तय का एक ही वगर् होगा, अथार्त् अिधवक्ता ।
30. अिधवक्ता का िविध व्यवसाय का अिधकार––इस अिधिनयम के उपबन्ध के अधीन रहते हुए, पर्त्येक अिधवक्ता
िजसका नाम 5 [राज्य नामावली] म दजर् है, ऐसे समस्त राज्यक्षेतर् के , िजन पर इस अिधिनयम का िवस्तार है,––
(i) सभी न्यायालय म, िजनम उच्चतम न्यायालय भी सिम्मिलत है;

1
1964 के अिधिनयम सं० 21 की धारा 14 ारा अन्त:स्थािपत ।
2
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 20 ारा (31-1-1974 से) धारा 26क के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 21 ारा (31-1-1974 से) खण्ड (क) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 21 ारा खण्ड (ख) का लोप िकया गया ।
5
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 22 ारा (31-1-1974 से) “सामान्य नामावली” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
15

(ii) िकसी ऐसे अिधकरण या व्यिक्त के समक्ष, जो सा य लेने के िलए वैध रूप से पर्ािधकृ त है;
(iii) िकसी अन्य ऐसे पर्ािधकारी या व्यिक्त के समक्ष िजसके समक्ष ऐसा अिधवक्ता उस समय पर्वृ िकसी िविध
ारा या उसके अधीन िविध व्यवसाय करने का हकदार है,
सािधकार िविध व्यवसाय करने का हकदार होगा ।
31. [न्यायवािदय के िलए िवशेष उपबंध ।]––1976 के अिधिनयम सं० 107 की धारा 7 ारा (1-1-1977) से िनरिसत ।
32. िविशष्ट मामल म उपसंजात होने के िलए अनुज्ञा देने की न्यायालय की शिक्त––इस अध्याय म िकसी बात के होते हुए
भी, कोई न्यायालय, पर्ािधकरण या व्यिक्त, अपने समक्ष िकसी िविशष्ट मामले म िकसी व्यिक्त को, जो इस अिधिनयम के अधीन
अिधवक्ता के रूप म नामांिकत नह है, उपसंजात होने की अनुज्ञा दे सके गा ।
33. िविध व्यवसाय करने के िलए के वल अिधवक्ता हकदार ह गे––इस अिधिनयम म या उस समय पर्वृ िकसी अन्य िविध म
जैसा उपबिन्धत है उसके िसवाय, कोई व्यिक्त, िनयत िदन को या उसके पश्चात् िकसी न्यायालय म या िकसी पर्ािधकरण या व्यिक्त के
समक्ष िविध व्यवसाय करने का हकदार तब तक नह होगा जब तक वह इस अिधिनयम के अधीन अिधवक्ता के रूप म
नामांिकत न हो ।
34. उच्च न्यायालय की िनयम बनाने की शिक्त––(1) उच्च न्यायालय, ऐसी शत को अिधकिथत करते हुए िनयम बना
सके गा, िजनके अधीन रहते हुए िकसी अिधवक्ता को उच्च न्यायालय म और उसके अधीनस्थ न्यायालय म िविध व्यवसाय करने के
िलए अनुज्ञात िकया जाएगा ।
[(1क) उच्च न्यायालय, अपनी या अपने अधीनस्थ िकसी न्यायालय की सभी कायर्वािहय म िकसी पक्षकार ारा, अपने
1

पर्ितपक्षी के अिधवक्ता की फीस की बाबत खच के रूप म संदये फीस, िविनधार्रण ारा या अन्यथा, िनयत और िविनयिमत करने के
िलए, िनयम बनाएगा ।]
[(2) उपधारा (1) म अन्तिवष्ट उपबंध पर पर्ितकू ल पर्भाव डाले िबना कलक ा िस्थत उच्च न्यायालय आब िशक्षािथय के
2

िलए इन्टरमीिडएट और अंितम परीक्षाएं लेने का, जो धारा 58कछ म िनिदष्ट व्यिक्तय को राज्य नामावली म अिधवक्ता के रूप म
पर्िविष्ट िकए जाने के पर्योजन से उ ीणर् करनी ह गी, उपबंध करने के िलए और उससे सम्बिन्धत िकसी अन्य िवषय के िलए िनयम बना
सके गा ।]
3
* * * * * * *
अध्याय 5

अिधवक्ता का आचरण
35. अवचार के िलए अिधवक्ता को दंड––(1) जहां िकसी िशकायत की पर्ािप्त पर या अन्यथा, िकसी राज्य िविधज्ञ पिरषद्
के पास यह िवश्वास करने का कारण है िक उसकी नामावली का कोई अिधवक्ता वृि क या अन्य अवचार का दोषी रहा है वहां वह
मामले को, अपनी अनुशासन सिमित को िनपटारे के िलए, िनिदष्ट करे गी ।
[(1क) राज्य िविधज्ञ पिरषद् अपनी अनुशासन सिमित के समक्ष लंिबत िकसी कायर्वाही को, या तो स्वपर्ेरणा से या िकसी
4

िहतब व्यिक्त ारा उसको िदए गए आवेदन पर, वापस ले सके गी और यह िनदेश दे सके गी िक जांच उस राज्य िविधज्ञ पिरषद् की
िकसी अन्य अनुशासन सिमित ारा की जाए ।]
(2) राज्य िविधज्ञ पिरषद् की अनुशासन सिमित 5 * * * मामले की सुनवाई के िलए तारीख िनयत करे गी और उसकी सूचना
सम्ब अिधवक्ता को और राज्य के महािधवक्ता को िदलवाएगी ।
(3) राज्य िविधज्ञ पिरषद् की अनुशासन सिमित, सम्ब अिधवक्ता और महािधवक्ता को सुनवाई का अवसर देने के पश्चात्,
िनम्निलिखत आदेश म से कोई आदेश कर सके गी, अथार्त् :––
(क) िशकायत खािरज कर सके गी या जहां राज्य िविधज्ञ पिरषद् की पर्ेरणा पर कायर्वािहयां आरम्भ की गई थ वहां
यह िनदेश दे सके गी िक कायर्वािहयां फाइल कर दी जाएं;
(ख) अिधवक्ता को िधग्दंड दे सके गी;
(ग) अिधवक्ता को िविध व्यवसाय से उतनी अविध के िलए िनलंिबत कर सके गी िजतनी वह ठीक समझे;

1
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 23 ारा (31-1-1974 से) अन्त:स्थािपत ।
2
1977 के अिधिनयम सं० 38 की धारा 6 ारा (31-10-1977 से) अन्त:स्थािपत िजसका 1976 के अिधिनयम सं०107 की धारा 8 ारा (1-1-1977 से) लोप िकया गया
था ।
3
1976 के अिधिनयम सं० 107 की धारा 8 ारा (1-1-1977 से) उपधारा (3) का लोप िकया गया ।
4
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 24 ारा (31-1-1974 से) अन्त:स्थािपत ।
5
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 23 ारा (31-1-1974 से) “यिद वह पिरवाद को संिक्षप्तत: खािरज नह कर देती है तो” शब्द का लोप िकया गया ।
16

(घ) अिधवक्ता का नाम, अिधवक्ता की राज्य नामावली म से हटा सके गी ।


(4) जहां कोई अिधवक्ता उपधारा (3) के खंड (ग) के अधीन िविध व्यवसाय करने से िनलंिबत कर िदया गया है वहां वह,
िनलंबन की अविध के दौरान, भारत म िकसी न्यायालय म या िकसी पर्ािधकरण या व्यिक्त के समक्ष िविध व्यवसाय करने से िवविजत
िकया जाएगा ।
(5) जहां महािधवक्ता को उपधारा (2) के अधीन कोई सूचना जारी की गई हो वहां महािधवक्ता राज्य िविधज्ञ पिरषद् की
अनुशासन सिमित के समक्ष, या तो स्वयं या उसकी ओर से हािजर होने वाले िकसी अिधवक्ता की माफर् त हािजर हो सके गा ।
[स्पष्टीकरण––िदल्ली संघ राज्यक्षेतर् के सम्बन्ध म इस धारा, 2 [धारा 37 और धारा 38] म, “महािधवक्ता” और “राज्य का
1

महािधवक्ता” पद का अथर् भारत का अपर महासािलिसटर होगा ।]


36. भारतीय िविधज्ञ पिरषद् की अनुशासिनक शिक्तयां––(1) जहां िकसी िशकायत की पर्ािप्त पर या अन्यथा, भारतीय
िविधज्ञ पिरषद् के पास यह िवश्वास करने का कारण है िक 3 * * * कोई ऐसा अिधवक्ता, िजसका नाम िकसी राज्य नामावली म दजर्
नह है, वृि क या अन्य अवचार का दोषी रहा है, वहां वह उस मामले को, अपनी अनुशासन सिमित को िनपटारे के िलए, िनिदष्ट
करे गी ।
(2) इस अध्याय म िकसी बात के होते हुए भी, भारतीय िविधज्ञ पिरषद् की अनुशासन सिमित, िकसी राज्य िविधज्ञ पिरषद्
की अनुशासन सिमित के समक्ष िकसी अिधवक्ता के िवरु अनुशासिनक कारर् वाई के िलए लंिबत िकन्ह कायर्वािहय को 4 [या तो
स्वपर्ेरणा से या िकसी राज्य िविधज्ञ पिरषद् की िरपोटर् पर या िकसी िहतब व्यिक्त ारा] उसको िकए गए आवेदन पर, जांच करने के
िलए अपने पास वापस ले सके गी और उसका िनपटारा कर सके गी ।
(3) भारतीय िविधज्ञ पिरषद् की अनुशासन सिमित, इस धारा के अधीन िकसी मामले के िनपटारे म, धारा 35 म अिधकिथत
पर्िकर्या का यथाशक्य अनुपालन करे गी, और उस धारा म महािधवक्ता के पर्ित िनदश का यह अथर् लगाया जाएगा िक वे भारत के
महान्यायवादी के पर्ित िनदश ह ।
(4) इस धारा के अधीन िकन्ह कायर्वािहय के िनपटारे म भारतीय िविधज्ञ पिरषद् को अनुशासन सिमित कोई ऐसा आदेश दे
सके गी, जो िकसी राज्य िविधज्ञ पिरषद् की अनुशासन सिमित धारा 35 की उपधारा (3) के अधीन दे सकती है और जहां 5 [भारतीय
िविधज्ञ पिरषद् की अनुशासन सिमित के पास] जांच के िलए िकन्ह कायर्वािहय को वापस िलया गया है, वहां सम्ब राज्य िविधज्ञ
पिरषद् ऐसे आदेश को पर्भावी करे गी ।
[36क. अनुशासन सिमितय के गठन म पिरवतर्न––जब कभी धारा 35 या धारा 36 के अधीन की िकसी कायर्वाही की बाबत
6

राज्य िविधज्ञ पिरषद् की िकसी अनुशासन सिमित या भारतीय िविधज्ञ पिरषद् की िकसी अनुशासन सिमित की अिधकािरता समाप्त हो
जाती है और कोई अन्य ऐसी सिमित िजसे अिधकािरता पर्ाप्त है और जो अिधकािरता का पर्योग करती है और उसकी उ रवत बनती है
तब, यथािस्थित, इस पर्कार उ रवत बनने वाली राज्य िविधज्ञ पिरषद् की अनुशासन सिमित, या भारतीय िविधज्ञ पिरषद् की
अनुशासन सिमित, कायर्वाही उसी पर्कर्म से जारी रख सके गी िजस पर्कर्म पर उसकी पूवर्वत सिमित ने छोड़ी थी ।
36ख. अनुशासिनक कायर्वािहय का िनपटारा––(1) राज्य िविधज्ञ पिरषद् की अनुशासन सिमित ऐसी िशकायत का जो उसे
धारा 35 के अधीन पर्ाप्त हुई हो शीघर्ता से िनपटारा करे गी और पर्त्येक मामले म कायर्वािहयां, यथािस्थित, िशकायत की पर्ािप्त की
तारीख से या राज्य िविधज्ञ पिरषद् की पर्ेरणा पर कायर्वाही के पर्ारम्भ होने की तारीख से एक वषर् की अविध के भीतर पूरी की जाएगी
और ऐसा न िकए जाने पर ऐसी कायर्वािहयां भारतीय िविधज्ञ पिरषद् को अन्तिरत हो जाएंगी, जो उनका इस पर्कार िनपटारा कर
सके गी मानो वह धारा 36 की उपधारा (2) के अधीन जांच के िलए वापस ली गई कायर्वाही हो ।
(2) उपधारा (1) म िकसी बात के होते हुए भी, जहां अिधवक्ता (संशोधन) अिधिनयम, 1973 (1973 का 60) के पर्ारम्भ पर,
िकसी अिधवक्ता के िवरु िकसी अनुशासिनक मामले की बाबत कोई कायर्वाही राज्य िविधज्ञ पिरषद् की अनुशासन सिमित के समक्ष
लंिबत हो वहां राज्य िविधज्ञ पिरषद् की अनुशासन सिमित उसका िनपटारा ऐसे पर्ारम्भ की तारीख से छह मास की अविध के भीतर
या, यथािस्थित, िशकायत की पर्ािप्त की तारीख से अथवा राज्य िविधज्ञ पिरषद् की पर्ेरणा पर कायर्वाही आरम्भ की जाने की तारीख म
से, जो भी पश्चात्वत हो, उससे एक वषर् की अविध के भीतर करे गी, और ऐसा न िकए जाने पर कायर्वाही उपधारा (1) के अधीन
िनपटारे के िलए भारतीय िविधज्ञ पिरषद् को अन्तिरत हो जाएगी ।]

1
1964 के अिधिनयम सं० 21 की धारा 17 ारा अन्त:स्थािपत ।
2
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 24 ारा (31-1-1974 से) अन्त:स्थािपत ।
3
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 25 ारा (31-1-1974 से) “सामान्य नामावली का” शब्द का लोप िकया गया ।
4
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 25 ारा (31-1-1974 से) “स्वपर्ेरणा से” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 25 ारा (31-1-1974 से) “भारतीय िविधज्ञ पिरषद् के पास” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
6
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 26 ारा (31-1-1974 से) अन्त:स्थािपत ।
17

37. भारतीय िविधज्ञ पिरषद् को अपील––(1) िकसी राज्य िविधज्ञ पिरषद् की अनुशासन सिमित की 1 [धारा 35 के अधीन]
िकए गए आदेश 2 [या राज्य के महािधवक्ता] के आदेश से व्यिथत कोई व्यिक्त, आदेश की संसूचना की तारीख से साठ िदन के भीतर,
भारतीय िविधज्ञ पिरषद् को अपील कर सके गा ।
(2) पर्त्येक ऐसी अपील की सुनवाई भारतीय िविधज्ञ पिरषद् की अनुशासन सिमित ारा की जाएगी और वह सिमित उस पर
ऐसा आदेश 3 [िजसके अन्तगर्त राज्य िविधज्ञ पिरषद् की अनुशासन सिमित ारा अिधिनण त दण्ड को पिरवितत करने का आदेश भी है]
पािरत कर सके गी, जैसा वह ठीक समझे :
1
[परन्तु राज्य िविधज्ञ पिरषद् की अनुशासन सिमित का कोई भी आदेश, व्यिथत व्यिक्त को सुनवाई का उिचत अवसर िदए
िबना, भारतीय िविधज्ञ पिरषद् की अनुशासन सिमित ारा इस पर्कार पिरवितत नह िकया जाएगा िजससे िक उस व्यिक्त पर पर्ितकू ल
पर्भाव पड़े ।]
38. उच्चतम न्यायालय को अपील––भारतीय िविधज्ञ पिरषद् की अनुशासन सिमित ारा धारा 36 या धारा 37 के अधीन
4 [या,यथािस्थित, भारत के महान्यायवादी या सम्ब राज्य के महािधवक्ता] ारा िकए गए आदेश से व्यिथत कोई व्यिक्त, उस तारीख
से साठ िदन के भीतर, िजसको उसे वह आदेश संसूिचत िकया जाता है, उच्चतम न्यायालय को अपील कर सके गा और उच्चतम
न्यायालय उस पर ऐसा आदेश 2[(िजसके अन्तगर्त भारतीय िविधज्ञ पिरषद् की अनुशासन सिमित ारा अिधिनण त दण्ड म पिरवतर्न
करने का आदेश भी है)] पािरत कर सके गा, जैसा वह ठीक समझे :
[परन्तु भारतीय िविधज्ञ पिरषद् की अनुशासन सिमित का कोई भी आदेश, व्यिथत व्यिक्त को सुनवाई का उिचत अवसर
2

िदए िबना उच्चतम न्यायालय ारा इस पर्कार पिरवितत नह िकया जाएगा िजससे िक उस व्यिक्त पर पर्ितकू ल पर्भाव पड़े ।]
[39. पिरसीमा अिधिनयम, 1963 की धारा 5 और धारा 12 का लागू होना––पिरसीमा अिधिनयम, 1963 (1963 का 36)
5

की धारा 5 और धारा 12 के उपबन्ध्ा यावत्शक्य धारा 37 और धारा 38 के अधीन की अपील को लागू ह गे ।]


40. आदेश का रोका जाना–– 6 [(1)] धारा 37 या धारा 38 के अधीन की गई कोई अपील उस आदेश के , िजसके िवरु अपील
की गई है रोके जाने के रूप म पर्वितत नह होगी िकन्तु, यथािस्थित, भारतीय िविधज्ञ पिरषद् की अनुशासन सिमित या उच्चतम
न्यायालय, पयार्प्त हेतुक होने पर ऐसे िनबन्धन और शत पर, जो वह ठीक समझे, उस आदेश को पर्भावी होने से रोके जाने का िनदेश
दे सके गा ।
[(2) जहां धारा 37 या 38 के अधीन उस आदेश से अपील करने के िलए अनुज्ञात समय की समािप्त के पूवर् आदेश को रोकने
7

के िलए आवेदन िकया जाता है वहां, यथािस्थित, राज्य िविधज्ञ पिरषद् की अनुशासन सिमित, या भारतीय िविधज्ञ पिरषद् की
अनुशासन सिमित, पयार्प्त हेतुक होने पर, ऐसे िनबन्धन और शत पर, जो वह ठीक समझे, उस आदेश को पर्भावी होने से रोकने के
िलए िनदेश दे सके गी ।]
41. अिधवक्ता-नामावली म पिरवतर्न––(1) जहां इस अध्याय के अधीन िकसी अिधवक्ता को िधग्दण्ड देने या उसे िनलंिबत
करने का कोई आदेश िदया जाता है, वहां उस दण्ड का अिभलेख––
(क) ऐसे अिधवक्ता की दशा म, िजसका नाम िकसी राज्य नामावली म दजर् है, उस नामावली म;
8
* * * * * *
उसके नाम के सामने दजर् िकया जाएगा; और जहां िकसी अिधवक्ता को िविध-व्यवसाय से हटाने का आदेश िदया जाता है वहां उसका
नाम राज्य नामावली म से काट िदया जाएगा 9 * * * ।
10 * * * * * * *
(3) जहां िकसी अिधवक्ता को िविध-व्यवसाय करने से िनलंिबत िकया जाता है या हटा िदया जाता है वहां, उसके नामांकन
की बाबत धारा 22 के अधीन उससे अनुद पर्माणपतर् वापस ले िलया जाएगा ।
42. अनुशासन सिमित की शिक्तयां––(1) िविधज्ञ पिरषद् की अनुशासन सिमित को िनम्निलिखत बात के सम्बन्ध म वही
शिक्तयां ह गी, जो िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908 (1908 का 5) के अधीन, िसिवल न्यायालय म िनिहत ह, अथार्त् :––

1
1964 के अिधिनयम सं० 21 की धारा 18 ारा “धारा 35 की उपधारा (3) के अधीन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 27 ारा (31-1-1974 से) अन्त:स्थािपत ।
3
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 27 ारा (31-1-1974 से) अन्त:स्थािपत ।
4
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 28 ारा (31-1-1974 से) अन्त:स्थािपत ।
5
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 29 ारा (31-1-1974 से) पर्ितस्थािपत ।
6
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 30 ारा (31-1-1974 से) धारा 40 को उस धारा की उपधारा (1) के रूप म पुन: संख्यांिकत िकया गया ।
7
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 30 ारा (31-1-1974 से) अन्त:स्थािपत ।
8
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 31 ारा (31-1-1974 से) खण्ड (ख) का लोप िकया गया ।
9
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 31 ारा (31-1-1974 से) कितपय शब्द का लोप िकया गया ।
10
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 31 ारा (31-1-1974 से) उपधारा (2) का लोप िकया गया ।
18

(क) िकसी व्यिक्त को समन करना तथा उसे हािजर कराना और शपथ पर उसकी परीक्षा करना;
(ख) िकन्ह दस्तावेज को पर्कट करने और उन्ह पेश करने की अपेक्षा करना;
(ग) शपथपतर् पर सा य लेना;
(घ) िकसी न्यायालय या कायार्लय से िकसी लोक-अिभलेख की या उसकी पर्ितिलिपय की अपेक्षा करना;
(ङ) सािक्षय या दस्तावेज की परीक्षा के िलए कमीशन िनकालना;
(च) कोई अन्य बात, जो िविहत की जाए :
परन्तु िकसी भी ऐसी अनुशासन सिमित को,––
(क) िकसी न्यायालय के पीठासीन अिधकारी को, उस उच्च न्यायालय की पूवर् मंजूरी के िबना िजसके अधीनस्थ
ऐसा न्यायालय है;
(ख) िकसी राजस्व न्यायालय के िकसी अिधकारी को राज्य सरकार की पूवर् मंजूरी के िबना, हािजर कराने का
अिधकार नह होगा ।
(2) िविधज्ञ पिरषद् की िकसी अनुशासन सिमित के समक्ष की सभी कायर्वािहयां भारतीय दण्ड संिहता (1860 का 45) की
धारा 193 तथा धारा 228 के अथर् म न्याियक कायर्वािहयां समझी जाएंगी और पर्त्येक ऐसी अनुशासन सिमित कोड आफ िकर्िमनल
पर्ोसीजर, 1898 1 (1898 का 5) की धारा 480, धारा 482 और धारा 485 के पर्योजन के िलए िसिवल न्यायालय समझी जाएंगी ।
(3) उपधारा (1) ारा पर्द शिक्तय म से िकसी का पर्योग करने के पर्योजन के िलए, अनुशासन सिमित उन राज्यक्षेतर् म
के िकसी िसिवल न्यायालय को िजन पर इस अिधिनयम का िवस्तार है, ऐसे साक्षी का हािजरी के िलए या ऐसे दस्तावेज को पेश करने
के िलए जो सिमित ारा अपेिक्षत है, कोई समन या अन्य आदेिशका भेज सके गी, या ऐसा कमीशन भेज सके गी िजसे सिमित िनकालना
चाहती है और ऐसा िसिवल न्यायालय, यथािस्थित, उस आदेिशका की तामील करवाएगा या कमीशन िनकलवाएगा और ऐसी िकसी
आदेिशका को इस पर्कार पर्वितत कर सके गा मानो वह उसके समक्ष हािजरी के िलए या पेश िकए जाने के िलए कोई आदेिशक हो ।
[(4) अनुशासन सिमित के समक्ष िकसी मामले की सुनवाई के िलए िनयत की गई तारीख को उस सिमित के अध्यक्ष या िकसी
2

सदस्य के अनुपिस्थत होने पर भी, अनुशासन सिमित, यिद ठीक समझे तो, इस पर्कार िनयत तारीख को कायर्वािहयां कर सके गी या उन्ह
जारी रख सके गी और ऐसी कोई कायर्वाही और ऐसी िकन्ह कायर्वािहय म अनुशासन सिमित ारा िकया गया कोई भी आदेश के वल
इसी कारण अिविधमान्य नह होगा िक उस तरीख को उसका अध्यक्ष या सदस्य अनुपिस्थत था :
परन्तु िकसी कायर्वाही म धारा 35 की उपधारा (3) म िनिदष्ट पर्कृ ित का कोई अिन्तम आदेश तब तक नह िकया जाएगा जब
तक अनुशासन सिमित का अध्यक्ष और अन्य सदस्य उपिस्थत न ह ।
(5) जहां िकसी कायर्वाही म, अनुशासन सिमित के अध्यक्ष और सदस्य की राय के अनुसार या तो उनके मध्य बहुसंख्यक राय
न होने के कारण या अन्यथा धारा 35 की उपधारा (3) म िनिदष्ट पर्कृ ित का कोई अंितम आदेश नह िकया जा सकता हो, वहां मामला,
उस पर उनकी राय सिहत, सम्ब िविधज्ञ पिरषद् के अध्यक्ष के समक्ष या यिद िविधज्ञ पिरषद् का अध्यक्ष अनुशासन सिमित के अध्यक्ष
या सदस्य के रूप म कायर् कर रहा है तो िविधज्ञ पिरषद् के उपाध्यक्ष के समक्ष रखा जाएगा, और िविधज्ञ पिरषद् का, यथािस्थित, उक्त
अध्यक्ष या उपाध्यक्ष ऐसी सुनवाई के पश्चात्, जैसे वह ठीक समझे, अपनी राय देगा और अनुशासन सिमित का अिन्तम आदेश ऐसी राय
के अनुरूप होगा ।]
[42क. भारतीय िविधज्ञ पिरषद् और अन्य सिमितय की शिक्तयां––धारा 42 के उपबन्ध्ा, भारतीय िविधज्ञ पिरषद्, िकसी
3

िविधज्ञ पिरषद् की नामांकन सिमित, िनवार्चन सिमित, िविधक सहायता सिमित, या िकसी अन्य सिमित के सम्बन्ध म यथाशक्य वैसे
ही लागू ह गे, जैसे वे िकसी िविधज्ञ पिरषद् की अनुशासन सिमित के सम्बन्ध म लागू होते ह ।]
43. अनुशासन सिमित के समक्ष कायर्वािहय का खचार्––िविधज्ञ पिरषद् की अनुशासन सिमित, अपने समक्ष की िकन्ह
कायर्वािहय के खच के बारे म ऐसा आदेश कर सके गी, जैसा वह ठीक समझे, और कोई आदेश इस पर्कार िनष्पािदत िकया जा सके गा
मानो वह,––
(क) भारतीय िविधज्ञ पिरषद् की अनुशासन सिमित के आदेश की दशा म, उच्चतम न्यायालय का आदेश हो;
(ख) िकसी राज्य िविधज्ञ पिरषद् की अनुशासन सिमित के आदेश की दशा म, उच्च न्यायालय का आदेश हो ।
44. अनुशासन सिमित ारा आदेश का पुनिवलोकन––िविधज्ञ पिरषद् की अनुशासन सिमित इस अध्याय के अधीन अपने
ारा पािरत िकसी ओदश का, 4 [उस आदेश की तारीख से साठ िदन के भीतर,] स्वपर्ेरणा से या अन्यथा, पुनिवलोकन कर सके गी :

1
अब दण्ड पर्िकर्या संिहता, 1973 (1974 का अिधिनयम सं० 2) की धारा 345 (1), धारा 346 और धारा 349 देिखए ।
2
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 32 ारा (31-1-1974 से) अन्त:स्थािपत ।
3
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 33 ारा (31-1-1974 से) अन्त:स्थािपत ।
4
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 34 ारा (31-1-1974 से) अन्त:स्थािपत ।
19

परन्तु िकसी राज्य िविधज्ञ पिरषद् की अनुशासन सिमित का ऐसा कोई पुनिवलोकन आदेश तब तक पर्भावी नह होगा जब
तक वह भारतीय िविधज्ञ पिरषद् ारा अनुमोिदत न कर िदया गया हो ।

अध्याय 6

पर्कीणर्
45. न्यायालय म तथा अन्य पर्ािधकरण के समक्ष अवैध रूप से िविध-व्यवसाय करने वाले व्यिक्तय के िलए शािस्त––कोई
व्यिक्त, िकसी ऐसे न्यायालय म या िकसी ऐसे पर्ािधकरण या व्यिक्त के समक्ष, िजसम या िजसके समक्ष वह इस अिधिनयम के उपबन्ध
के अधीन िविध-व्यवसाय करने का हकदार नह है, िविध व्यवसाय करे गा, कारावास से, िजसकी अविध छह मास तक की हो सके गी,
दण्डनीय होगा ।
1* * * * * * *
[46क. राज्य िविधज्ञ पिरषद् को िव ीय सहायता––यिद भारतीय िविधज्ञ पिरषद् का यह समाधान हो जाता है िक िकसी
2

राज्य िविधज्ञ पिरषद् को इस अिधिनयम के अधीन अपने कृ त्य का पालन करने के पर्योजन के िलए िनिध की आवश्यकता है, तो वह
अनुदान के रूप म या अन्यथा, उस िविधज्ञ पिरषद् को ऐसी िव ीय सहायता दे सके गी, जैसी वह ठीक समझे ।]
47. पारस्पिरकता––(1) जहां के न्दर्ीय सरकार ारा इस िनिम राजपतर् म अिधसूचना ारा िविनिदष्ट कोई देश, भारत के
नागिरक को िविध व्यवसाय करने से रोकता है या उस राज्य म उनके पर्ित अनुिचत भेदभाव करता है, वहां से िकसी देश की कोई भी
पर्जा भारत म िविध व्यवसाय करने की हकदार नह होगी ।
(2) उपधारा (1) के उपबन्ध के अधीन रहते हुए, भारतीय िविधज्ञ पिरषद् ऐसी शत, यिद कोई ह , िविहत कर सके गी िजनके
अधीन रहते हुए भारत के नागिरक से िभन्न व्यिक्तय ारा िविध िवषय म पर्ाप्त िवदेशी अहर्ता को, इस अिधिनयम के अधीन
अिधवक्ता के रूप म पर्वेश के पर्योजन के िलए, मान्यता दी जाएगी ।
48. िविधक कायर्वािहय के िवरु संरक्षण––इस अिधिनयम या उसके अधीन बनाए िकन्ह िनयम के उपबंध के अनुसरण म
सद्भावपूवर्क िकए गए या िकए जाने के िलए आशियत िकसी कायर् के िलए कोई भी वाद या अन्य िविधक कायर्वाही िकसी िविधज्ञ
पिरषद् 3 [या उसकी िकसी सिमित के ] या िविधज्ञ पिरषद् के या उसकी िकसी सिमित के सदस्य के िवरु नह होगी ।
[48क. पुनरीक्षण की शिक्त––(1) भारतीय िविधज्ञ पिरषद् िकसी भी समय, इस अिधिनयम के अधीन िकसी ऐसी कायर्वाही
4

का अिभलेख मंगा सके गी जो िकसी राज्य िविधज्ञ पिरषद् या उसकी िकसी सिमित ारा िनपटाई गई है, और िजसके िवरु कोई अपील
नह हो सकती है । ऐसा भारतीय िविधज्ञ पिरषद् ऐसे िनपटारे की वैधता या औिचत्य के बारे म अपना समाधान करने के पर्योजन के
िलए करे गी, और उसके सम्बन्ध म ऐसे आदेश पािरत कर सके गी जो वह ठीक समझे ।
(2) इस धारा के अधीन ऐसा कोई आदेश, जो िकसी व्यिक्त पर पर्ितकू ल पर्भाव डालता है, उसे सुनवाई का उिचत अवसर
िदए िबना पािरत नह िकया जाएगा ।
पुनिवलोकन–– भारतीय िविधज्ञ पिरषद् या उसकी अनुशासन सिमित से िभन्न उसकी सिमितय म से कोई भी
5 [48कक.

सिमित इस अिधिनयम के अधीन अपने ारा पािरत िकसी आदेश का, उस आदेश की तारीख से साठ िदन के भीतर, स्वपर्ेरणा से या
अन्यथा पुनिवलोकन कर सके गी ।]
48ख. िनदेश देने की शिक्त––(1) िकसी राज्य िविधज्ञ पिरषद् या उसकी िकसी सिमित के कृ त्य के उिचत और दक्षतापूणर्
िनवर्हन के िलए भारतीय िविधज्ञ पिरषद् अपने साधारण अधीक्षण और िनयन्तर्ण की शिक्तय का पर्योग करते हुए राज्य िविधज्ञ
पिरषद् या उसकी िकसी सिमित को ऐसे िनदेश दे सके गी जो उसे आवश्यक पर्तीत ह और राज्य िविधज्ञ पिरषद् या सिमित ऐसे िनदेश
का अनुपालन करे गी ।
(2) जहां कोई राज्य िविधज्ञ पिरषद् िकसी भी कारण से अपने कृ त्य का पालन करने म असमथर् है, वहां भारतीय िविधज्ञ
पिरषद् पूवर्गामी शिक्त की व्यापकता पर पर्ितकू ल पर्भाव डाले िबना, उसके पदेन सदस्य को ऐसे िनदेश दे सके गी, जो उसे आवश्यक
पर्तीत ह और ऐसे िनदेश उस राज्य िविधज्ञ पिरषद् ारा बनाए गए िनयम म िकसी बात के होते हुए भी पर्भावी ह गे ।]

1
1993 के अिधिनयम सं० 70 की धारा 8 ारा (26-12-1993 से) धारा 46 का लोप िकया गया ।
2
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 35 ारा (31-1-1974 से) अन्त:स्थािपत ।
3
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 36 ारा (31-1-1974 से) अन्त:स्थािपत ।
4
1964 के अिधिनयम सं० 21 की धारा 19 ारा अन्त:स्थािपत ।
5
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 37 ारा (31-1-1974 से) अन्त:स्थािपत ।
20

49. भारतीय िविधज्ञ पिरषद् की िनयम बनाने की साधारण शिक्त–– 1 [(1)] भारतीय िविधज्ञ पिरषद् इस अिधिनयम के
अधीन अपने कृ त्य के िनवर्हन के िलए िनयम बना सके गी और िविशष्टतया ऐसे िनयम िनम्निलिखत के बारे म िविहत कर सकगे,
अथार्त् :––

[(क) वे शत, िजनके अधीन रहते हुए कोई अिधवक्ता राज्य िविधज्ञ पिरषद् के िकसी िनवार्चन म मतदान करने के
2

िलए हकदार हो सके गा िजनके अन्तगर्त मतदाता की अहर्ताएं या िनरहर्ताएं भी ह और वह रीित, िजससे मतदाता की
िनवार्चक नामावली राज्य िविधज्ञ पिरषद् ारा तैयार और पुनरीिक्षत की जा सके गी;
(कख) िकसी िविधज्ञ पिरषद् की सदस्यता के िलए अहर्ताएं और ऐसी सदस्यता के िलए िनरहर्ताएं;
(कग) वह समय, िजसके भीतर और वह रीित िजससे धारा 3 की उपधारा (2) के परन्तुक को पर्भावी िकया जा
सके गा;
(कघ) वह रीित िजससे िकसी अिधवक्ता के नाम को एक से अिधक राज्य की नामावली म दजर् िकए जाने से रोका
जा सके गा;
(कङ) वह रीित िजससे िकन्ह अिधवक्ता की परस्पर ज्येष्ठता अवधािरत की जा सके गी;
[(कच) िकसी मान्यता पर्ाप्त िवश्विव ालय म, िविध की उपािध के पा
3
कर्म म पर्वेश पाने के िलए अपेिक्षत
न्यूनतम अहतर् ाएं;]
(कछ) अिधवक्ता के रूप म नामांिकत िकए जाने के िलए हकदार व्यिक्तय का वगर् या पर्वगर्;
(कज) वे शत िजनके अधीन रहते हुए िकसी अिधवक्ता को िविध व्यवसाय करने का अिधकार होगा और वे
पिरिस्थितयां िजनम िकसी व्यिक्त के बारे म यह समझा जाएगा िक वह िकसी न्यायालय म िविध व्यवसाय करता है;]
(ख) वह पर्रूप िजसम एक राज्य की नामावली से दूसरे म िकसी अिधवक्ता के नाम के अन्तरण के िलए आवेदन
िकया जाएगा;
(ग) अिधवक्ता ारा अनुपालन िकए जाने वाले वृि क आचरण और िशष्टाचार के मानक;
(घ) भारत म िवश्विव ालय ारा अनुपालन िकया जाने वाला िविध िशक्षा का स्तर और उस पर्योजन के िलए
िवश्विव ालय का िनरीक्षण;
(ङ) भारत के नागिरक से िभन्न व्यिक्तय ारा िविध िवषय म पर्ाप्त ऐसी िवदेशी अहर्ताएं, िजन्ह इस अिधिनयम
के अधीन अिधवक्ता के रूप म पर्वेश पाने के पर्योजन के िलए मान्यता दी जाएगी;
(च) िकसी राज्य िविधज्ञ पिरषद् की अनुशासन सिमित ारा और अपनी अनुशासन सिमित ारा अनुसिरत की
जाने वाली पर्िकर्या;
(छ) िविध व्यवसाय के मामले म वे िनबर्न्धन िजनके अधीन विरष्ठ अिधवक्ता ह गे;
4
[(छछ) जलवायु को ध्यान म रखते हुए, िकसी न्यायालय या अिधकरण के समक्ष हािजर होने वाले अिधवक्ता
ारा, पहली जाने वाली पोशाक या पिरधान; ]
(ज) इस अिधिनयम के अधीन िकसी मामले की बाबत उद्गृहीत की जा सकने वाली फीस;
[(झ) राज्य िविधज्ञ पिरषद के मागर्दशर्न के िलए साधारण िस ान्त और वह रीित िजससे भारतीय िविधज्ञ
5

पिरषद् ारा जारी िकए गए िनदेश या िदए गए आदेश को पर्वितत िकया जा सके गा;
(ञ) कोई अन्य बात, जो िविहत की जाए :]
[परन्तु खण्ड (ग) या खण्ड (छछ) के पर्ित िनदश से बनाए गए कोई भी िनयम तब तक पर्भावी नह ह गे जब तक वे भारत के
3

मुख्य न्यायािधपित ारा अनुमोिदत न कर िदए गए ह :]


[परन्तु यह और िक] खंड (ङ) के पर्ित िनदश से बनाए गए कोई भी िनयम तब तक पर्भावी नह ह गे जब तक वे के न्दर्ीय
6

सरकार ारा अनुमोिदत न कर िदए गए ह ।]

1
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 38 ारा (31-1-1974 से) धारा 49 को उस धारा की उपधारा (1) के रूप म पुन:संख्यािकत िकया गया ।
2
1964 के अिधिनयम सं० 21 की धारा 20 ारा खण्ड (क) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 38 ारा (31-1-1974 से) खण्ड (कच) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 38 ारा (31-1-1974 से) अन्त:स्थािपत ।
5
1964 के अिधिनयम सं० 21 की धारा 20 ारा खण्ड (झ) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
6
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 38 ारा (31-1-1974 से) “परन्तु” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
21

[(2) उपधारा (1) के पर्थम परन्तुक म िकसी बात के होते हुए भी, उक्त उपधारा के खण्ड (ग) या खण्ड (छछ) के पर्ित िनदश
3

से बनाए गए कोई िनयम और जो अिधवक्ता (संशोधन) अिधिनयम, 1973 (1973 का 60) के पर्ारम्भ के ठीक पूवर् पर्वृ थे, तब तक
पर्भावी बने रहगे, जब तक वे इस अिधिनयम के उपबन्ध के अनुसार या पिरवितत, िनरिसत या संशोिधत नह कर िदए जाते ।]
[49क. के न्दर्ीय सरकार की िनयम बनाने की शिक्त––(1) के न्दर्ीय सरकार इस अिधिनयम के पर्योजन को कायार्िन्वत करने के
1

िलए िनयम, राजपतर् म अिधसूचना ारा, बना सके गी और इनके अन्तगर्त िकसी ऐसे िवषय के बारे म िनयम भी ह गे िजसके िलए
भारतीय िविधज्ञ पिरषद् या िकसी राज्य िविधज्ञ पिरषद् को िनयम बनाने की शिक्त है ।
(2) िविशष्टतया और पूवर्गामी शिक्त की व्यापकता पर पर्ितकू ल पर्भाव डाले िबना ऐसे िनयम िनम्निलिखत के िलए उपबंध
कर सकगे––
(क) िकसी िविधज्ञ पिरषद ् की सदस्यता के िलए अहर्ताएं और ऐसी सदस्यता के िलए िनरहर्ताएं;
(ख) वह रीित िजससे भारतीय िविधज्ञ पिरषद्, राज्य िविधज्ञ पिरषद का पयर्वेक्षण कर सके गी और उन पर
िनयंतर्ण रख सके गी और वह रीित िजससे, भारतीय िविधज्ञ पिरषद् ारा जारी िकए गए िनदेश या िकए गए आदेश को
पर्वितत िकया जा सके गा;
(ग) इस अिधिनयम के अधीन अिधवक्ता के रूप म नामांकन के िलए हकदार व्यिक्तय का वगर् या पर्वगर्;
(घ) ऐसे व्यिक्तय का पर्वगर् िजन्ह धारा 24 की उपधारा (1) के खंड (घ) के अधीन िविहत पर्िशक्षण पा कर्म को
पूरा करने और परीक्षा उ ीणर् करने से छू ट दी जा सके गी;
(ङ) वह रीित िजससे अिधवक्ता की पारस्पिरक ज्येष्ठता अवधािरत की जा सके गी;
(च) िकसी िविधज्ञ पिरषद् की अनुशासन सिमित ारा मामल की सनुवाई म अनुसिरत की जाने वाली पर्िकर्या और
भारतीय िविधज्ञ पिरषद् की अनुशासन सिमित ारा अपील की सुनवाई म अनुसिरत की जाने वाली पर्िकर्या;
(छ) कोई अन्य बात जो िविहत की जाए ।
(3) इस धारा के अधीन िनयम या तो सम्पूणर् भारत के िलए या सभी िविधज्ञ पिरषद या उनम से िकसी के िलए बनाए जा
सकगे ।
(4) यिद िकसी िविधज्ञ पिरषद् ारा बनाए गए िकसी िनयम का कोई उपबन्ध्ा इस धारा के अधीन के न्दर्ीय सरकार ारा
बनाए गए िकसी िनयम के िकसी उपबन्ध के िवरु है तो इस धारा के अधीन बनाया गया िनयम, चाहे वह िविधज्ञ पिरषद् ारा बनाए
गए िनयम से पहले बनाया गया हो या उसके पश्चात् बनाया गया हो, अिभभावी होगा अ◌ैर िविधज्ञ पिरषद् ारा बनाया गया िनयम
िवरु ता की सीमा तक शून्य होगा ।
[(5) इस धारा के अधीन बनाया गया पर्त्येक िनयम, बनाए जाने के पश्चात् यथाशीघर्, संसद् के पर्त्येक सदन के समक्ष, जब
2

वह सतर् म हो, कु ल तीस िदन की अविध के िलए रखा जाएगा । यह अविध एक सतर् म अथवा दो या अिधक आनुकर्िमक सतर् म पूरी हो
सके गी । यिद सतर् के या पूव क्त आनुकर्िमक सतर् ठीक बाद के सतर् अवसान के पूवर् दोन सदन उस िनयम म कोई पिरवतर्न करने के िलए
सहमत हो जाएं तो पश्चात् वह ऐसे पिरवितत रूप म ही पर्भावी होगा । यिद उक्त अवसान के पूवर् दोन सदन सहमत हो जाएं िक वह
िनयम बनाया जाना चािहए, तो तत्पश्चात् वह िनष्पर्भाव हो जाएगा । िकन्तु िनयम के ऐसे पिरवितत या िनष्पर्भाव होने से उसके
अधीन पहले की गई िकसी बात की िविधमान्यता पर पर्ितकू ल पर्भाव नह पड़ेगा ।]
50. कु छ अिधिनयिमितय का िनरसन––(1) उस तारीख को िजसको इस अिधिनयम के अधीन िकसी राज्य िविधज्ञ पिरषद्
का गठन िकया जाता है, भारतीय िविधज्ञ पिरषद् अिधिनयम, 1926 (1926 का 38) की धारा 3 से धारा 7 तक (दोन सिहत), धारा 9
की उपधारा (1), (2) और (3), धारा 15 और धारा 20 के उपबन्ध उस राज्यक्षेतर् म िनरिसत हो जाएंगे िजसके िलए राज्य िविधज्ञ
पिरषद् गिठत की गई है ।
(2) उस तारीख को िजसको अध्याय 3 पर्वृ होता है, िनम्निलिखत िनरिसत हो जाएंगे, अथार्त् :––
(क) िविध व्यवसायी अिधिनयम, 1879 (1879 का 18) की धारा 6, धारा 7, धारा 18, और उस अिधिनयम की
धारा 8, धारा 9, धारा 16, धारा 17, धारा 19 और धारा 41 का उतना भाग िजतना िविध व्यवसाियय के पर्वेश और
नामांकन से सम्बिन्धत है;
(ख) बाम्बे प्लीडसर् ऐक्ट, 1920 (1920 का मुम्बई अिधिनयम 17) की धारा 3, धारा 4 और धारा 6 ;
(ग) भारतीय िविधज्ञ पिरषद ् अिधिनयम, 1926 (1926 का 38) की धारा 8 का उतना भाग िजतना िविध
व्यवसाियय के पर्वेश और नामांकन से सम्बिन्धत है;

1
1964 के अिधिनयम सं० 21 की धारा 21 ारा अन्त:स्थािपत ।
2
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 39 ारा (31-1-1974 से) उपधारा (5) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
22

(घ) िकसी उच्च न्यायालय के लेटसर् पेटेन्ट के और िकसी अन्य िविध के उपबन्ध, जहां तक वे िविध व्यवसाियय के
पर्वेश और नामांकन से सम्बिन्धत ह ।
(3) उस तारीख को िजसको अध्याय 4 पर्वृ होता है, िनम्निलिखत िनरिसत हो जाएंगे, अथार्त् :––
(क) िविध व्यवसायी अिधिनयम, 1879 (1879 का 18) की धारा 4, धारा 5, धारा 10 और धारा 20 और उस
अिधिनयम की धारा 8, धारा 9, धारा 19 और धारा 41 का उतना भाग िजतना िविध व्यवसाियय को िकसी न्यायालय म या
िकसी पर्ािधकरण या व्यिक्त के समक्ष िविध व्यवसाय करने का अिधकार पर्द ा करता है ;
(ख) बाम्बे प्लीडसर् ऐक्ट, 1920 (1920 का मुम्बई अिधिनयम 17) की धारा 5, धारा 7, धारा 8 और धारा 9;
(ग) भारतीय िविधज्ञ पिरषद् अिधिनयम, 1926 (1926 का 38) की धारा 14 और उस अिधिनयम की धारा 8 और
धारा 15 का उतना भाग िजतना िविध व्यवसाियय को िकसी न्यायालय म या िकसी पर्ािधकरण या व्यिक्त के समक्ष िविध
व्यवसाय करने का अिधकार पर्द करता है;
(घ) सुपर्ीम कोटर् एडवोके ट्स (पर्ैिक्टस इन हाई कोट्र्स) ऐक्ट, 1951 (1951 का 18);
(ङ) िकसी उच्च न्यायालय के लेटसर् पेटेन्ट के और िविध व्यवसाियय को िकसी न्यायालय म या िकसी पर्ािधकरण
या व्यिक्त के समक्ष िविध व्यवसाय करने का अिधकार पर्द करने वाली िकसी अन्य िविध के उपबंध ।
(4) उस तारीख को िजसको अध्याय 5 पर्वृ होता है, िनम्निलिखत िनरिसत हो जाएंगे, अथार्त् :––
(क) िविध व्यवसायी अिधिनयम, 1879 (1879 का 18) की धारा 12 से धारा 15 तक (दोन सिहत) धारा 21 से
धारा 24 तक (दोन सिहत) और धारा 39 और धारा 40 तथा उस अिधिनयम की धारा 16, धारा 17 और धारा 41 का उतना
भाग िजतना िविध व्यवसाियय के िनलंिबत िकए जाने, हटाए जाने या पदच्युत िकए जाने से सम्बिन्धत है;
(ख) बाम्बे प्लीडसर् ऐक्ट, 1920 (1920 का मुम्बई अिधिनयम 17) की धारा 24 से धारा 27 तक (दोन सिहत);
(ग) भारतीय िविधज्ञ पिरषद् अिधिनयम, 1926 (1926 का 38) की धारा 10 से धारा 13 तक (दोन सिहत);
(घ) िकसी उच्च न्यायालय के लेटसर् पेटेन्ट के और िकसी अन्य िविध के उपबन्ध जहां तक वे िविध व्यवसाियय के
िनलिम्बत िकए जाने, हटाए जाने या पदच्युत िकए जाने से संबंिधत ह ।
(5) जब यह सम्पूणर् अिधिनयम पर्वृ हो जाता है तब,––
(क) इस धारा म िनिदष्ट ऐसे अिधिनयम के शेष उपबन्ध [िविध व्यवसायी अिधिनयम, 1879 (1879 का 18) की
धारा 1, धारा 3, और धारा 36 के िसवाय], जो इस धारा के पूवर्गामी उपबन्ध म से िकसी आधार पर िनरिसत नह हुए ह,
िनरिसत हो जाएंगे;
(ख) अनुसूची म िविनिदष्ट अिधिनयिमितयां, उनम विणत सीमा तक िनरिसत हो जाएंगी ।
51. अथार्न्वयन के िनयम––िनयत िदन से ही िकसी अिधिनयिमित म िकसी उच्च न्यायालय ारा नामांिकत िकसी अिधवक्ता
के पर्ित िकन्ह भी शब्द म िनदश का यह अथर् लगाया जाएगा िक वे इस अिधिनयम के अधीन नामांिकत अिधवक्ता के पर्ित िनदश ह ।
52. व्यावृि ––इस अिधिनयम की कोई भी बात संिवधान के अनुच्छेद 145 के अधीन िनम्निलिखत के िलए उच्चतम
न्यायालय की िनयम बनाने की शिक्त पर पर्भाव डालने नह समझी जाएगी, अथार्त् :––
(क) वे शत अिधकिथत करना, िजनके अधीन रहते हुए, विरष्ठ अिधवक्ता उस न्यायालय म िविध व्यवसाय करने
का हकदार होगा;
(ख) ऐसे व्यिक्तय को िनिश्चत करना, जो उस न्यायालय म 1 [कायर् या अिभवचन करने] के हकदार ह गे ।
अध्याय 7

अस्थायी और संकर्मणकालीन उपबन्ध


53. पर्थम राज्य िविधज्ञ पिरषद् के िलए िनवार्चन––इस अिधिनयम म िकसी बात के होते हुए भी, इस अिधिनयम के अधीन
पर्थम बार गिठत िकसी राज्य िविधज्ञ पिरषद् के िनवार्िचत सदस्य ऐसे अिधवक्ता , वकील , प्लीडर और अटिनय ारा, अपने म से,
िनवार्िचत िकए जाएंगे जो िनवार्चन की तारीख को उच्च न्यायालय म िविध व्यवसाय करने के िलए सािधकार हकदार ह, और
साधारणतया ऐसे राज्यक्षेतर् के भीतर िविध व्यवसाय कर रह ह िजसके िलए िविधज्ञ पिरषद् का गठन िकया जाना है ।
स्पष्टीकरण––जहां उस राज्यक्षेतर् म िजसके िलए िविधज्ञ पिरषद् का गठन िकया जाना है, कोई संघ राज्यक्षेतर् सिम्मिलत है,
वहां “उच्च न्यायालय” पद के अन्तगर्त उस संघ राज्यक्षेतर् के न्याियक आयुक्त का न्यायालय सिम्मिलत होगा ।

1
1993 के अिधिनयम सं० 70 की धारा 9 ारा “कायर् करने” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
23

54. पर्थम राज्य िविधज्ञ पिरषद के सदस्य की पदाविध––इस अिधिनयम म िकसी बात के होते हुए भी, पर्थम बार गिठत
1* * * राज्य िविधज्ञ पिरषद् के 2 * * * िनवार्िचत सदस्य की पदाविध पिरषद् के पर्थम अिधवेशन की तारीख से दो वषर् होगी :
[परन्तु ऐसे सदस्य तब तक पद धारण िकए रहगे जब तक इस अिधिनयम के उपबंध के अनुसार राज्य िविधज्ञ पिरषद् का
3

पुनगर्ठन नह हो जाता ।]
55. िव मान कु छ िविध व्यवसाियय के अिधकार का पर्भािवत न होना––इस अिधिनयम म िकसी बात के होते हुए भी,––
(क) पर्त्येक प्लीडर या वकील, जो उस तारीख से िजसको अध्याय 4 पर्वृ होता है (िजसे इस धारा म इसके पश्चात्
उक्त तारीख कहा गया है) ठीक पूवर् उस हैिसयत म िविध व्यवसायी अिधिनयम, 1879 (1879 का 18), बाम्बे प्लीडसर् ऐक्ट,
1920 (1920 का मुम्बई अिधिनयम 17) या िकसी अन्य िविध के उपबन्ध के आधार पर िविध व्यवसाय कर रहा है और जो
इस अिधिनयम के अधीन अिधवक्ता के रूप म नामांिकत िकए जाने के िलए चयन नह करता है या उसके िलए अिहत
नह है ;
4
* * * * * *
[(ग) पर्त्येक मुख्तार जो उक्त तारीख के ठीक पूवर्, िविध व्यवसायी अिधिनयम, 1879 (1879 का 18) या िकसी
5

अन्य िविध के उपबन्ध के आधार पर, उस हैिसयत म, िविध व्यवसाय कर रहा है, और जो इस अिधिनयम के अधीन
अिधवक्ता के रूप म नामांिकत िकए जाने के िलए चयन नह करता है या उसके िलए अिहत नह है;
(घ) पर्त्येक राजस्व अिभकतार् जो उक्त तारीख के ठीक पूवर्, िविध व्यवसायी अिधिनयम, 1879 (1879 का 17) या
िकसी अन्य िविध के उपबन्ध के आधार पर उस हैिसयत म, िविध व्यवसाय कर रहा है,]
इस अिधिनयम ारा, िविध व्यवसायी अिधिनयम, 1879 (1879 का 18), बाम्बे प्लीडसर् ऐक्ट, 1920 (1920 का मुम्बई अिधिनयम 17)
या अन्य िविध के सुसंगत उपबन्ध के िनरसन के होते हुए भी, िकसी न्यायालय म या राजस्व कायार्लय म या िकसी पर्ािधकरण या
व्यिक्त के समक्ष िविध व्यवसाय करने के सम्बन्ध म उन्ह अिधकार का उपभोग करता रहेगा और उसी पर्ािधकरण की अनुशासिनक
अिधकािरता के अधीन बना रहेगा, िजसका उक्त तारीख के ठीक पूवर्, यथािस्थित, उसने उपभोग िकया था या िजसके अधीन वह था
और तदनुसार पूव क्त अिधिनयम या िविध के सुसंगत उपबंध, ऐसे व्यिक्तय के सम्बन्ध म वैसे ही पर्भावी ह गे, मानो उनका िनरसन
ही न हुआ हो ।
56. िव मान िविधज्ञ पिरषद का िवघटन––(1) इस अिधिनयम के अधीन िदल्ली िविधज्ञ पिरषद् से िभन्न िकसी राज्य
िविधज्ञ पिरषद् के (िजसे इसम इसके पश्चात् नई िविधज्ञ पिरषद् कहा गया है) गठन पर,––
(क) तत्स्थानी िविधज्ञ पिरषद् म िनिहत सभी सम्पि यां और आिस्तयां नई िविधज्ञ पिरषद् म िनिहत ह गी;
(ख) तत्स्थानी िविधज्ञ पिरषद् के सभी अिधकार, दाियत्व और बाध्यताएं चाहे वे िकसी संिवदा से उद्भूत ह या
अन्यथा नई िविधज्ञ पिरषद् के कर्मश: अिधकार, दाियत्व और बाध्यताएं ह गी;
(ग) िकसी आनुशासिनक मामले के बारे म या अन्यथा तत्स्थानी िविधज्ञ पिरषद् के समक्ष लिम्बत सभी कायर्वािहयां
नई िविधज्ञ पिरषद् को अन्तिरत हो जाएंगी ।
(2) इस धारा म िदल्ली िविधज्ञ पिरषद् से िभन्न िकसी राज्य िविधज्ञ पिरषद् के सम्बन्ध म “तत्स्थानी िविधज्ञ पिरषद्” से
उस राज्यक्षेतर् के उच्च न्यायालय के िलए िविधज्ञ पिरषद् अिभपर्ेत है िजसके िलए इस अिधिनयम के अधीन राज्य िविधज्ञ पिरषद् का
गठन िकया गया है ।
57. िविधज्ञ पिरषद् का गठन होने तक िनयम बनाने की शिक्त––जब तक इस अिधिनयम के अधीन िकसी िविधज्ञ पिरषद् का
गठन नह कर िलया जाता है तब तक इस अिधिनयम के अधीन उस िविधज्ञ पिरषद् की िनयम बनाने की शिक्त का पर्योग,––
(क) भारतीय िविधज्ञ पिरषद् की दशा म, उच्चतम न्यायालय ारा;
(ख) िकसी राज्य िविधज्ञ पिरषद् की दशा म, उच्च न्यायालय ारा,
िकया जाएगा ।
[58. संकर्मणकाल के दौरान िवशेष उपबन्ध––(1) जहां इस अिधिनयम के अधीन िकसी राज्य िविधज्ञ पिरषद् का गठन नह
6

िकया गया है या जहां इस पर्कार गिठत कोई राज्य िविधज्ञ पिरषद् िकसी न्यायालय के िकसी आदेश के कारण या अन्यथा अपने कृ त्य

1
1964 के अिधिनयम सं० 21 की धारा 22 ारा (भूतलक्षी पर्भाव से) “भारतीय िविधज्ञ पिरषद् और” शब्द का लोप िकया गया ।
2
1962 के अिधिनयम सं० 14 की धारा 3 ारा “नामिनदिशत और” शब्द का लोप िकया गया ।
3
1964 के अिधिनयम सं० 21 की धारा 22 ारा (भूतलक्षी पर्भाव से) अन्त:स्थािपत ।
4
1976 के अिधिनयम सं० 107 की धारा 10 ारा (1-1-1977 से) खण्ड (ख) का लोप िकया गया ।
5
1964 के अिधिनयम सं० 21 की धारा 23 ारा खण्ड (ग) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
6
धारा 58 और धारा 59, 1962 के अिधिनयम सं० 14 की धारा 4 ारा (भूतलक्षी पर्भाव से) अन्त:स्थािपत ।
24

का पालन करने म असमथर् है, वहां उस िविधज्ञ पिरषद् या उसकी िकसी सिमित के कृ त्य का पालन, जहां तक उनका अिधवक्ता के
पर्वेश और नामांकन से सम्बन्ध है, इस अिधिनयम के उपबन्ध के अनुसार, उच्च न्यायालय ारा िकया जाएगा ।
(2) जब तक अध्याय 4 पर्वृ नह होता है, तब तक राज्य िविधज्ञ पिरषद् या िकसी राज्य िविधज्ञ पिरषद् के कृ त्य का पालन
करने वाला उच्च न्यायालय, िकसी व्यिक्त को, यिद वह इस अिधिनयम के अधीन नामांिकत िकए जाने के िलए अिहत है तो इस बात के
होते हुए भी िक धारा 28 के अधीन कोई िनयम नह बनाए गए ह, या इस पर्कार बनाए गए िनयम भारतीय िविधज्ञ पिरषद् ारा
अनुमोिदत नह ह, िकसी राज्य नामावली म अिधवक्ता के रूप म नामांिकत कर सके गा और इस पर्कार नामांिकत पर्त्येक व्यिक्त, जब
तक वह अध्याय पर्वृ नह हो जाता, भारतीय िविधज्ञ पिरषद् अिधिनयम, 1926 (1926 का 38) की धारा 14 के अधीन िकसी
अिधवक्ता को िविध व्यवसाय के िलए पर्द सभी अिधकार का हकदार होगा ।
(3) इस अिधिनयम म िकसी बात के होते हुए भी, पर्त्येक ऐसा व्यिक्त, जो 1 िदसम्बर, 1961 से ठीक पूवर्, भारतीय िविधज्ञ
पिरषद् अिधिनयम, 1926 (1926 का 38) के अधीन िकसी उच्च न्यायालय की नामावली म अिधवक्ता था या जो इस अिधिनयम के
अधीन अिधवक्ता के रूप म नामांिकत कर िलया गया है, जब तक अध्याय 4 पर्वृ नह हो जाता है तब तक उच्चतम न्यायालय ारा
इस िनिम बनाए गए िनयम के अधीन रहते हुए, उच्चतम न्यायालय म िविध व्यवसाय करने का सािधकार हकदार होगा ।
(4) धारा 50 की उपधारा (2) ारा िविध व्यवसायी अिधिनयम, 1879 (1879 का 18) के या बाम्बे प्लीडसर् ऐक्ट, 1920
(1920 का मुम्बई अिधिनयम 17) के 1 [या िविध व्यवसाियय के पर्वेश और नामांकन से संबंिधत िकसी अन्य िविध के उपबंध के
िनरिसत होते हुए भी, पूव क्त अिधिनयम और िविध के ] और उनके अधीन बनाए गए िकन्ह िनयम के उपबंध, जहां तक वे िकसी
िविध व्यवसायी को, िविध व्यवसाय करने के िलए उसे पर्ािधकृ त करने वाले िकसी पर्माणपतर् 2 [के नवीकरण से या नवीकरण के रूप म
पर्माणपतर् जारी िकए जाने] से सम्बिन्धत है, तब तक पर्भावी रहगे जब तक अध्याय 4 पर्वृ नह हो जाता है और तदनुसार ऐसे िविध
व्यवसायी को (जो इस अिधिनयम के अधीन अिधवक्ता के रूप म नामांिकत नह है) जारी िकए गए या नवीकृ त पर्त्येक पर्माणपतर् के
बारे म, जो या तो पूव क्त दोन अिधिनयम म से िकसी अिधिनयम के 3 [या उक्त अन्य िविध के ] उपबन्ध के अधीन 1 िदसम्बर, 1961
से आरम्भ होकर उस तारीख को, िजसको अध्याय 4 पर्वृ होता है समाप्त होने वाली अविध के दौरान जारी िकया गया है या नवीकृ त
है या िजसका ऐसे जारी िकया जाना या नवीकरण तात्पियत है, यह समझा जाएगा िक वह वैध रूप से जारी िकया गया है या
नवीकृ त है ।
[58क. कु छ अिधवक्ता के बारे म िवशेष उपबन्ध––(1) इस अिधनयम के िकसी बात के होते हुए भी ऐसे सभी अिधवक्ता
4

जो 26 जुलाई, 1948 से ठीक पूवर् इलाहाबाद के उच्च न्यायालय म या अवध के मुख्य न्यायालय म िविध व्यवसाय करने के हकदार थे
और िजन्ह यूनाइटेड पर्ािवन्सेज हाई कोट्र्स (अमलगमेशन) आडर्र, 1948 म उपबंध के अधीन इलाहाबाद के नए उच्च न्यायालय म
अिधवक्ता के रूप म िविध व्यवसाय करने की मान्यता पर्ाप्त थी िकन्तु िजनके नाम, के वल उक्त उच्च न्यायालय की िविधज्ञ पिरषद् को
संदये फीस के संदाय न िकए जाने के कारण उस उच्च न्यायालय की अिधवक्ता नामावली म औपचािरक रूप से दजर् नह िकए गए थे
और सभी ऐसे अिधवक्ता, जो उस रूप म उक्त तारीख और 26 मई, 1952 के बीच उस रूप म नामांिकत िकए गए थे, धारा 17 की
उपधारा (1) के खण्ड (क) के पर्योजन के िलए, भारतीय िविधज्ञ पिरषद् अिधिनयम, 1926 (1926 का 38) के अधीन उक्त उच्च
न्यायालय की नामावली म अिधवक्ता के रूप म दजर् िकए गए व्यिक्त समझे जाएंगे और पर्त्येक ऐसा व्यिक्त, इस िनिम आवेदन िकए
जाने पर, उ र पर्देश की राज्य नामावली म अिधवक्ता के रूप म पर्िवष्ट िकया जा सके गा ।
(2) इस अिधिनयम म िकसी बात के होते हुए भी, ऐसे सभी अिधवक्ता, जो 10 अक्तूबर, 1952 के ठीक पूवर्, हैदराबाद उच्च
न्यायालय म िविध व्यवसाय करने के हकदार थे िकन्तु िजनके नाम उक्त उच्च न्यायालय की िविधज्ञ पिरषद् को संदय
े फीस के संदाय न
िकए जाने के कारण उस उच्च न्यायालय की अिधवक्ता नामावली म औपचािरक रूप से दजर् नह िकए गए थे, धारा 17 की उपधारा
(1) के खण्ड (क) के पर्योजन के िलए, भारतीय िविधज्ञ पिरषद् अिधिनयम, 1926 (1926 का 38) के अधीन उक्त उच्च न्यायालय की
नामावली म अिधवक्ता के रूप म दजर् िकए गए व्यिक्त समझे जाएंगे और पर्त्येक ऐसा व्यिक्त, इस िनिम आवेदन िकए जाने पर,
आन्धर् पर्देश या महाराष्टर् की राज्य नामावली म अिधवक्ता के रूप म पर्िवष्ट िकया जा सके गा ।
(3) इस अिधिनयम म िकसी बात के होते हुए भी, ऐसे सभी अिधवक्ता जो 1 मई, 1960 के ठीक पूवर् मुम्बई उच्च न्यायालय
म िविध व्यवसाय करने के हकदार थे और िजन्ह ने भारतीय िविधज्ञ पिरषद् अिधिनयम, 1926 (1926 का 38) की धारा 8 के उपबन्ध
के अधीन गुजरात उच्च न्यायालय की अिधवक्ता नामावली म अपने नाम दजर् करवाने के िलए आवेदन िकए थे, िकन्तु िजनके नाम
उक्त उपबंध के िनरिसत हो जाने के कारण इस पर्कार दजर् नह िकए गए थे, धारा 17 की उपधारा (1) के खण्ड (क) के पर्योजन के
िलए, उक्त अिधिनयम के अधीन गुजरात उच्च न्यायालय की नामावली म अिधवक्ता के रूप म दजर् िकए गए व्यिक्त समझे जाएंगे और
पर्त्येक ऐसा व्यिक्त, इस िनिम आवेदन िकए जाने पर, गुजरात की राज्य नामावली म अिधवक्ता के रूप म पर्िवष्ट िकया जा सके गा ।
(4) इस अिधिनयम म िकसी बात के होते हुए भी, सभी ऐसे व्यिक्त, जो िकसी राज्यक्षेतर् म पर्वृ िकसी िविध के अधीन उस
राज्यक्षेतर् के न्याियक आयुक्त के न्यायालय की नामावली म 1 िदसम्बर, 1961 के ठीक पूवर्, अिधवक्ता थे, धारा 17 की उपधारा (1) के
खण्ड (क) के पर्योजन के िलए, भारतीय िविधज्ञ पिरषद् अिधिनयम, 1926 (1926 का 38) के अधीन िकसी उच्च न्यायालय की

1
1962 के अिधिनयम सं० 32 की धारा 3 ारा (भूतलक्षी पर्भाव से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1964 के अिधिनयम सं० 21 की धारा 24 ारा “जारी और नवीकरण” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1962 के अिधिनयम सं० 32 की धारा 3 ारा (भूतलक्षी पर्भाव से) अन्त:स्थािपत ।
4
1964 के अिधिनयम सं० 21 की धारा 25 ारा धारा 58क और धारा 58ख, अन्त:स्थािपत । ।
25

नामावली म अिधवक्ता के रूप म पर्िवष्ट िकए गए व्यिक्त समझे जाएंगे और पर्त्येक ऐसा व्यिक्त, इस िनिमत िकए गए आवेदन पर,
उस संघ राज्यक्षेतर् के िलए रखी गई राज्य नामावली म अिधवक्ता के रूप म पर्िवष्ट िकया जा सके गा ।
1
[58कक. पांिडचेरी संघ राज्यक्षेतर् के सम्बन्ध म िवशेष उपबन्ध––(1) इस अिधिनयम म िकसी बात के होते हुए भी, ऐसे सभी
व्यिक्त जो उस तारीख के ठीक पूवर् िजसको अध्याय 3 के उपबंध को पांिडचेरी संघ राज्यक्षेतर् म पर्वृ िकया जाता है, उक्त संघ
राज्यक्षेतर् म पर्वृ िकसी िविध के अधीन (चाहे अिभवचन ारा या कायर् ारा या दोन के ारा) िविध व्यवसाय करने के हकदार थे, या
जो यिद उक्त तारीख को लोक सेवा म न होते तो इस पर्कार हकदार होते, धारा 17 की उपधारा (1) के खण्ड (क) के पर्योजन के िलए,
भारतीय िविधज्ञ पिरषद् अिधिनयम, 1926 (1926 का 38) के अधीन िकसी उच्च न्यायालय की नामावली म अिधवक्ता के रूप म
पर्िवष्ट िकए गए व्यिक्त समझे जाएंगे और पर्त्येक ऐसा व्यिक्त, उतने समय के भीतर, जो मदर्ास िविधज्ञ पिरषद् ारा िविनिदष्ट िकया
जाए इस िनिम िकए गए आवेदन पर, उस संघ राज्यक्षेतर् के िलए रखी गई राज्य नामावली म अिधवक्ता के रूप म पर्िवष्ट िकया जा
सके गा ।
(2) इस अिधिनयम म िकसी बात के होते हुए भी, पर्त्येक ऐसा व्यिक्त जो उस तारीख के ठीक पूवर्, िजसको अध्याय 4 के
उपबंध को पांिडचेरी संघ राज्यक्षेतर् म पर्वृ िकया जाता है, उक्त संघ राज्यक्षेतर् म पर्वृ िकसी िविध के अधीन के आधार पर (चाहे
अिभवचन ारा या कायर् ारा या दोन के ारा या िकसी अन्य पर्कार से) िविध व्यवसाय करता था और जो उपधारा (1) के अधीन
अिधवक्ता के रूप मे नामांिकत िकए जाने का चयन नह करता है या नामांिकत िकए जाने के िलए अिहत नह है, पांिडचेरी (एक्सटशन
आफ लॉज) ऐक्ट, 1968 (1968 का 26) ारा ऐसी िविध के सुसंगत उपबन्ध के िनरिसत होते हुए भी, िकसी न्यायालय या राजस्व
कायार्लय म, या िकसी पर्ािधकरण या व्यिक्त के समक्ष िविध व्यवसाय की बाबत उन्ह अिधकार का उपभोग करता रहेगा और उसी
पर्ािधकारी की अनुशासिनक अिधकािरता के अधीन बना रहेगा, िजसका उक्त तारीख के ठीक पूवर्, यथािस्थित, उसने उपभोग िकया था
या िजसके अधीन वह था और तदनुसार पूव क्त िविध के सुसंगत उपबन्ध ऐसे व्यिक्तय के सम्बन्ध म वैसे ही पर्भावी ह गे, मानो वे
िनरिसत ही नह िकए गए थे ।]
[58कख. कनार्टक राज्य िविधज्ञ पिरषद् ारा नामांिकत कु छ व्यिक्तय की बाबत िवशेष उपबन्ध––इस अिधिनयम म या
2

िकसी न्यायालय के िकसी िनणर्य, िडकर्ी या आदेश म या भारतीय िविधज्ञ पिरषद् ारा पािरत िकसी संकल्प या िदए गए िनदेश म
िकसी बात के होते हुए भी, पर्त्येक ऐसा व्यिक्त, जो कनार्टक उच्च न्यायालय से प्लीडर का पर्माणपतर् पर्ाप्त करने के आधार पर 28
फरवरी, 1963 से पर्ारं भ होकर 31 माचर्, 1964 को समाप्त होने वाली अविध के दौरान, कनार्टक राज्य िविधज्ञ पिरषद् ारा राज्य
नामावली म अिधवक्ता के रूप म पर्िवष्ट िकया गया था, तो जैसा उपबिन्धत है उसके िसवाय, उसके बारे म यह समझा जाएगा िक वह
उस राज्य की नामावली म अिधवक्ता के रूप म िविधमान्य रूप से पर्िवष्ट िकया गया है, और तदनुसार िविध व्यवसाय करने का
(अिभवचन ारा या कायर् ारा या दोन के ारा) हकदार होगा :
परन्तु जहां ऐसे िकसी व्यिक्त ने िकसी अन्य राज्य िविधज्ञ पिरषद् की नामावली म अिधवक्ता के रूप म नामांिकत िकए जाने
का चयन िकया है, वहां उसका नाम उस तारीख से, िजसको वह उस अन्य राज्य िविधज्ञ पिरषद् ारा नामांिकत िकया गया था कनार्टक
राज्य िविधज्ञ पिरषद् की नामावली से काट िदया गया समझा जाएगा :
परन्तु यह और िक ऐसे व्यिक्त की ज्येष्ठता, चाहे उसका नाम कनार्टक राज्य िविधज्ञ पिरषद् की राज्य नामावली म हो या
िकसी अन्य िविधज्ञ पिरषद् की राज्य नामावली म हो, धारा 17 की उपधारा (3) के खंड (घ) के पर्योजन के िलए, 16 मई, 1964 को
पर्वेश की तारीख मान कर अवधािरत की जाएगी ।]
[58कग. उ र पर्देश राज्य िविधज्ञ पिरषद् ारा नामांिकत कु छ व्यिक्तय की बाबत िवशेष उपबन्ध––इस अिधिनयम या
3

िकसी न्यायालय के िकसी िनणर्य, िडकर्ी या आदेश म िकसी बात के होते हुए भी, पर्त्येक ऐसा व्यिक्त जो 2 जनवरी, 1962 से पर्ारम्भ्ा
होकर 25 मई, 1962 को समाप्त होने वाली अविध के दौरान उच्च न्यायालय ारा अिधवक्ता के रूप म नामांिकत था और तत्पश्चात्
उ र पर्देश राज्य िविधज्ञ पिरषद् ारा राज्य नामावली म अिधवक्ता के रूप म पर्िवष्ट िकया गया था, उच्च न्यायालय ारा, उसके
नामांकन की तारीख से उस राज्य नामावली म अिधवक्ता के रूप म िविधमान्यत: पर्िवष्ट िकया गया समझा जाएगा और तदनुसार
िविध व्यवसाय करने का, (चाहे अिभवचन ारा या कायर् ारा या दोन के ारा) हकदार होगा ।
58कघ. भारत म पर्वास करने वाले कु छ व्यिक्तय की बाबत िवशेष उपबन्ध––इस अिधिनयम ारा िविध व्यवसायी
अिधिनयम, 1879 (1879 का 18) या िविध व्यवसाियय के पर्वेश और नामांकन से सम्बिन्धत िकसी अन्य िविध के (िजसे इस धारा म
इसके पश्चात् ऐसा अिधिनयम या ऐसी िविध कहा गया है) उपबन्ध के िनरसन होते हुए भी, पर्त्येक ऐसा व्यिक्त जो िकसी ऐसे क्षेतर् से,
जो 15 अगस्त, 1947 से पूवर्, भारत शासन अिधिनयम, 1935 म पिरिनिश्चत भारत म समािवष्ट राज्यक्षेतर् था, पर्वास करता है, और
ऐसे िकसी क्षेतर् म पर्वृ िकसी िविध के अधीन उस क्षेतर् म ऐसे पर्वास से पूवर्, प्लीडर, मुख्तार या राजस्व अिभकतार् रहा है तो ऐसे
अिधिनयम या ऐसी िविध के सुसंगत उपबन्ध के अधीन, यथािस्थित, प्लीडर, मुख्तार या राजस्व अिभकतार् के रूप म पर्िवष्ट और
नामांिकत िकया जा सके गा, यिद वह––
(क) ऐसे अिधिनयम या ऐसी िविध के अधीन समुिचत पर्ािधकारी को इस पर्योजन के िलए आवेदन करता है; और

1
1968 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 3 और अनुसूची ारा अन्त:स्थािपत ।
2
1968 के अिधिनयम सं० 33 की धारा 3 ारा (5-6-1968 से) अन्त:स्थािपत ।
3
1973 के अिधिनयम सं० 60 की धारा 40 ारा (31-1-1974 से) अन्त:स्थािपत ।
26

(ख) भारत का नागिरक है और पूव क्त समुिचत पर्ािधकारी ारा इस िनिम िविनिदष्ट अन्य शत को यिद कोई
ह , पूरी करता है,
और इस अिधिनयम ारा ऐसे अिधिनयम या ऐसी िविध के सुसंगत उपबन्ध के िनरसन के होते हुए भी इस पर्कार, नामांिकत पर्त्येक
प्लीडर, मुख्तार या राजस्व अिभकतार् को, िकसी न्यायालय या राजस्व कायार्लय म या िकसी अन्य पर्ािधकरण या व्यिक्त के समक्ष िविध
व्यवसाय करने की बाबत, वैसे ही अिधकार पर्ाप्त ह गे और वह ऐसे अिधिनयम या ऐसी िविध के सुसंगत उपबंनध के अनुसार िजस
पर्ािधकरण की अनुशासिनक अिधकािरता के अधीन होना उसी पर्ािधकरण की अनुशासिनक अिधकािरता म वैसे ही बना रहेगा मानो
ऐसे अिधिनयम या ऐसी िविध का िनरसन ही नह िकया गया था, और तद्नुसार वे उपबन्ध ऐसे व्यिक्तय के सम्बन्ध म
पर्भावी ह गे ।
58कङ. गोवा, दमण और दीव संघ राज्यक्षेतर् के सम्बन्ध म िवशेष उपबन्ध––(1) इस अिधिनयम म िकसी बात के होते हुए
भी, ऐसे सभी व्यिक्त, जो गोवा, दमण और दीव संघ राज्यक्षेतर् म अध्याय 3 के उपबन्ध के पर्वृ िकए जाने की तारीख से ठीक पूवर्
िविध व्यवसाय (चाहे अिभवचन ारा या कायर् ारा या दोन के ारा) करने के िलए, उक्त संघ राज्य ोतर् म पर्वृ िकसी िविध के
अधीन हकदार थे, या जो, यिद वे उक्त तारीख को लोक सेवा म न होते तो इस पर्कार हकदार होते, धारा 17 की उपधारा (1) के खंड
(क) के पर्योजन के िलए, भारतीय िविधज्ञ पिरषद् अिधिनयम, 1926 (1926 का 38) के अधीन िकसी उच्च न्यायालय की नामावली म
अिधवक्ता के रूप म दजर् िकए गए व्यिक्त समझे जाएंगे और पर्त्येक ऐसा व्यिक्त, उतने समय के भीतर, जो महाराष्टर् की िविधज्ञ
पिरषद् ारा िविनिदष्ट िकया जाए, इस िनिम िकए आवेदन पर, उक्त संघ राज्यक्षेतर् के सम्बन्ध म रखी गई राज्य नामावली म
अिधवक्ता के रूप म पर्िवष्ट िकया जा सके गा :
परन्तु इस उपधारा के उपबन्ध िकसी ऐसे व्यिक्त को लागू नह ह गे, जो पूव क्त आवेदन की तारीख को भारत का नागिरक
नह था ।
(2) इस अिधिनयम म िकसी बात के होते हुए भी, पर्त्येक ऐसा व्यिक्त जो उस तारीख से ठीक पूवर् िजसको अध्याय 4 के
उपबन्ध को गोवा, दमण और दीव संघ राज्यक्षेतर् म पर्वृ िकया जाता है उक्त संघ राज्यक्षेतर् म पर्वृ िकसी िविध के उपबन्ध के
आधार पर (चाहे अिभवचन ारा या कायर् ारा या दोन के ारा या िकसी अन्य पर्कार से) िविध व्यवसाय कर रहा था, या जो उपधारा
(1) के अधीन अिधवक्ता के रूप म नामांिकत िकए जाने का चयन नह करता है या नामांिकत िकए जाने के िलए अिहत नह है, इस
अिधिनयम ारा ऐसी िविध के सुसंगत उपबन्ध के िनरसन के होते हुए भी, िकसी न्यायालय या राजस्व कायार्लय म या िकसी अन्य
पर्ािधकरण या व्यिक्त के समक्ष िविध व्यवसाय की बाबत उन्ह अिधकार का उपभोग करता रहेगा और उसी पर्ािधकरण की
अनुशासिनक अिधकािरता के अधीन बना रहेगा िजनका उसने उक्त तारीख से ठीक पूवर्, यथािस्थित, उपभोग िकया था या िजसके
अधीन वह था, और तदनुसार पूव क्त िविध के सुसंगत उपबंध ऐसे व्यिक्तय के बारे म वैसे ही पर्भावी ह गे मानो वे िनरिसत ही नह
िकए गए थे ।
(3) उस तारीख को, िजसको यह अिधिनयम या इसका कोई भाग गोवा, दमण और दीव संघ राज्यक्षेतर् म पर्वृ होता है, उस
संघ राज्यक्षेतर् म पर्वृ ऐसी िविध भी, जो इस अिधिनयम के या उसके ऐसे भाग के तत्समान हो, और इस अिधिनयम की धारा 50 के
उपबन्ध के आधार पर िनरिसत न हुई हो, िनरिसत हो जाएगी ।
58कच. जम्मू-कश्मीर के सम्बन्ध म िवशेष उपबन्ध––(1) इस अिधिनयम म िकसी बात के होते हुए भी, ऐसे सभी अिधवक्ता
जो जम्मू-कश्मीर राज्य म उस तारीख के ठीक पूवर् िजसको अध्याय 3 के उपबन्ध को पर्वृ िकया जाता है, उस राज्य के उच्च न्यायालय
म िविध व्यवसाय करने के हकदार थे, या जो, यिद वे उक्त तारीख को लोक सेवा म न होते तो, इस पर्कार हकदार होते, धारा 17 की
उपधारा (1) के खंड (क) के पर्योजन के िलए, भारतीय िविधज्ञ पिरषद् अिधिनयम, 1926 (1926 का 38) के अधीन िकसी उच्च
न्यायालय की नामावली म अिधवक्ता के रूप म दजर् िकए गए समझे जाएंगे और पर्त्येक ऐसा व्यिक्त, उतने समय के भीतर, जो
भारतीय िविधज्ञ पिरषद् ारा िविनिदष्ट िकया जाए, इस िनिम िकए गए आवेदन पर, उक्त राज्य के सम्बन्ध म रखी गई राज्य
नामावली म अिधवक्ता के रूप म पर्िवष्ट िकया जा सके गा ।
(2) इस अिधिनयम म िकसी बात के होते हुए भी, पर्त्येक व्यिक्त, जो जम्मू-कश्मीर राज्य म, उस तारीख के ठीक पूवर् िजसको
अध्याय 3 के उपबन्ध को पर्वृ िकया जाता है, अिधवक्ता से िभन्न िकसी रूप म िविध व्यवसाय करने का (चाहे अिभवचन ारा या
दोन के ारा) उक्त राज्य म पर्वृ िकसी िविध के उपबन्ध के आधार पर, हकदार था, या यिद वह उक्त तारीख को लोक सेवा म न
होता तो, इस पर्कार हकदार होता, उक्त राज्य के सम्बन्ध म रखी गई राज्य नामावली म अिधवक्ता के रूप म पर्िवष्ट िकया जा सके गा,
यिद वह, ––
(i) इस अिधिनयम के उपबन्ध के अनुसार ऐसे नामांकन के िलए आवेदन करता है; और
(ii) धारा 24 की उपधारा (1) के खंड (क), (ख) और (च) म िविनिदष्ट शत को पूरा करता है ।
(3) इस अिधिनयम म िकसी बात के होते हुए भी, पर्त्येक ऐसा व्यिक्त जो उस तारीख से ठीक पूवर्, िजसको अध्याय 4 के
उपबन्ध को जम्मू-कश्मीर राज्य म पर्वृ िकया जाता है, वहां पर्वृ िकसी िविध के उपबन्ध के आधार पर (चाहे अिभवचन ारा या
काय के ारा या दोन के ारा) िविध व्यवसाय करता था, या जो उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन अिधवक्ता के रूप म
नामांिकत िकए जाने का चयन नह करता है या नामांिकत िकए जाने के िलए अिहत नह है, इस अिधिनयम ारा ऐसी िविध के सुसंगत
27

उपबन्ध के िनरसन के होते हुए भी, िकसी न्यायालय या राजस्व कायार्लय म या िकसी अन्य पर्ािधकरण या व्यिक्त के समक्ष िविध
व्यवसाय की बाबत, उन्ह अिधकार का उपभोग करता रहेगा और उसी पर्ािधकरण की अनुशासिनक अिधकािरता के अधीन बना
रहेगा, िजनका, उसने उक्त तारीख के ठीक पूवर्, यथािस्थित, उपभोग िकया था या िजसके अधीन वह था, और तदनुसार पूव क्त िविध
के सुसंगत उपबन्ध्ा ऐसे व्यिक्तय के सम्बन्ध म वैसे ही पर्भावी ह गे मानो वे िनरिसत ही नह िकए गए थे ।
(4) उक्त तारीख को, िजसको यह अिधिनयम या इसका कोई भाग जम्मू-कश्मीर राज्य म पर्वृ होता है, उस राज्य म पर्वृ
ऐसी िविध भी, जो इस अिधिनयम के या उसके ऐसे भाग के तत्समान ह और इस अिधिनयम की धारा 50 के उपबन्ध के आधार पर
िनरिसत न हुई हो, िनरिसत हो जाएगी ।]
[58कछ. आब िशक्षािथय के सम्बन्ध म िवशेष उपबन्ध––इस अिधिनयम म िकसी बात के होते हुए भी, पर्त्येक ऐसा
1

व्यिक्त िजसने अिधवक्ता (संशोधन) अिधिनयम, 1976 (1976 का 107) ारा धारा 34 की उपधारा (2) का लोप िकए जाने के पूवर्, उस
उपधारा के अधीन बनाए गए िनयम के अनुसरण म कलक ा िस्थत उच्च न्यायालय के अटन के रूप म नामांकन के पर्योजन के िलए
1976 के िदसम्बर के इकतीसव िदन के ठीक पूवर् आब िशक्षाथ का कायर् पर्ारम्भ कर िदया है और पर्ारिम्भक परीक्षा उ ीणर् कर ली ह,ै
राज्य नामावली म अिधवक्ता के रूप म तभी पर्िवष्ट िकया जा सके गा जब वह,––
(i) 1980 के िदसम्बर के इकतीसव िदन को या उसके पूवर् िनम्निलिखत परीक्षा म उ ीणर् हो जाता है, अथार्त् :––
(क) उस दशा म जब ऐसे व्यिक्त ने 1976 के िदसम्बर के इकतीसव िदन के पूवर् इण्टरमीिडएट परीक्षा
उ ीणर् कर ली है, अंितम परीक्षा;
(ख) िकसी अन्य दशा म इण्टरमीिडएट परीक्षा और अंितम परीक्षा ।
स्पष्टीकरण––इस खंड के पर्योजन के िलए, कलक ा िस्थत उच्च्ा न्यायालय ऐसे िनयम िविहत कर
सके गा जो धारा 34 की उपधारा (2) के अधीन आवश्यक ह और उनम परीक्षा के स्वरूप और उनसे संबंिधत कोई
अन्य िवषय िविनिदष्ट करे गा;
(ii) ऐसे नामांकन के िलए इस अिधिनयम के उपबन्ध के अनुसार आवेदन करता है; और
(iii) धारा 24 की उपधारा (1) के खंड (क), (ख), (ङ) और (च) म िविनिदष्ट शत पूरी करता है ।]
58ख. कु छ अनुशासिनक कायर्वािहय से सम्बिन्धत िवशेष उपबन्ध––(1) 1 िसतम्बर, 1963 से िकसी उच्च न्यायालय के
िकसी िविधमान अिधवक्ता के संबंध म िकसी अनुशासिनक मामले की बाबत पर्त्येक कायर्वाही, उपधारा (2) के पर्थम परन्तुक म जैसा
उपबिन्धत है उसके िसवाय, उस उच्च न्यायालय के सम्बन्ध म राज्य िविधज्ञ पिरषद् ारा इस पर्कार िनपटाई जाएगी मानो िव मान
अिधवक्ता उसकी नामावली म अिधवक्ता के रूप म नामांिकत था ।
(2) यिद िकसी उच्च न्यायालय के समक्ष िकसी िव मान अिधवक्ता से सम्बिन्धत िकसी अनुशासिनक मामले के सम्बन्ध म,
उक्त तारीख के ठीक पूवर्, भारतीय िविधज्ञ पिरषद् अिधिनयम, 1926 (1926 का 38) के अधीन कोई कायर्वाही लंिबत है तो वह
कायर्वाही उस उच्च न्यायालय के सम्बन्ध म राज्य िविधज्ञ पिरषद् को इस पर्कार अन्तिरत हो जाएगी मानो वह कायर्वाही धारा 56 की
उपधारा (1) के खंड (ग) के अधीन तत्स्थानी िविधज्ञ पिरषद् के समक्ष लंिबत कायर्वाही हो :
परन्तु जो िकसी ऐसी कायर्वाही की बाबत भारतीय िविधज्ञ पिरषद् अिधिनयम, 1926 (1926 का 38) की धारा 11 के अधीन
गिठत िकसी अिधकरण का िनष्कषर् उच्च न्यायालय को पर्ाप्त हो गया है, वहां वह उच्च न्यायालय मामले का िनपटारा करे गा और उस
उच्च न्यायालय के िलए यह िविधपूणर् होगा िक वह उस पर्योजन के िलए उन सभी शिक्तय का, जो उक्त अिधिनयम की धारा 12 के
अधीन उसे पर्दान की गई ह, इस पर्कार पर्योग करे मानो वह धारा िनरिसत ही न हुई हो :
परन्तु यह और िक जहां उच्च न्यायालय ने कोई मामला उक्त अिधिनयम की धारा 12 की उपधारा (4) के अधीन आगे जांच
करने के िलए वापस भेजा है, वहां वह कायर्वाही उच्च न्यायालय के सम्बन्ध म राज्य िविधज्ञ पिरषद् को इस पर्कार अन्तिरत हो जाएगी
मानो वह धारा 56 की उपधारा (1) के खंड (ग) के अधीन तत्स्थानी िविधज्ञ पिरषद् के समक्ष लंिबत कायर्वाही हो ।
(3) यिद िकसी ऐसे प्लीडर, वकील, मुख्तार या अटन के सम्बन्ध म, जो अिधिनयम के अधीन िकसी राज्य नामावली म
अिधवक्ता के रूप म नामांिकत िकया गया है, िकसी अनुशासिनक मामले की बाबत कोई कायर्वाही उक्त तारीख से ठीक पूवर् लंिबत है,
तो ऐसी कायर्वाही उस राज्य िविधज्ञ पिरषद् को अन्तिरत हो जाएगी िजसकी नामावली म उसका नामांकन िकया गया है और इस
अिधिनयम के अधीन उसकी बाबत इस पर्कार कायर्वाही की जाएगी मानो वह उस अिधिनयम के अधीन उसके िवरु उद्भूत होने वाली
कायर्वाही हो ।
(4) इस धारा म “िव मान अिधवक्ता” से ऐसा व्यिक्त अिभपर्ेत है, िजसका भारतीय िविधज्ञ पिरषद् अिधिनयम, 1926
(1926 का 38) के अधीन िकसी उच्च न्यायालय की नामावली म अिधवक्ता के रूप म नामांकन िकया गया था और जो िकसी
अनुशासिनक मामले की बाबत अपने िवरु कोई कायर्वाही शुरू करने के समय इस अिधिनयम के अधीन िकसी राज्य नामावली म
अिधवक्ता म रूप म नामांिकत नह है ।

1
1977 के अिधिनयम सं० 38 की धारा 7 (31-10-1977 से) अन्त:स्थािपत ।
28

(5) इस अिधिनयम म िकसी बात के होते हुए भी इस धारा के उपबन्घ पर्भावी ह गे ।]


59. किठनाइय का दूर िकया जाना––(1) यिद इस अिधिनयम के उपबन्ध को पर्भावी करने म, िविशष्टतया इस अिधिनयम
ारा िनरिसत अिधिनयिमितय से इस अिधिनयम के उपबन्ध के संकर्मण के संबंध म, कोई किठनाई उत्पन्न होती है तो के न्दर्ीय
सरकार, राजपतर् म पर्कािशत आदेश ारा, ऐसे उपबन्ध कर सके गी, जो इस अिधिनयम के पर्योजन से असंगत न ह और जो उसे
किठनाइयां दूर करने के िलए आवश्यक या समीचीन पर्तीत ह ।
(2) उपधारा (1) के अधीन कोई आदेश इस पर्कार िकया जा सके गा िक उसका पर्भाव ऐसी भूतलक्षी तारीख से हो जो
1 िदसम्बर, 1961 से पूवर् की तारीख न हो ।
[60. के न्दर्ीय सरकार की िनयम बनाने की शिक्त––(1) जब तक इस अिधिनयम के अधीन िकसी िवषय की बाबत िकसी
1

राज्य िविधज्ञ पिरषद् ारा िनयम नह बनाए जाते ह, और भारतीय िविधज्ञ पिरषद् ारा अनुमोिदत नह िकए जाते ह, तब तक उस
िवषय से सम्बिन्धत िनयम बनाने की शिक्त का पर्योग के न्दर्ीय सरकार करे गी ।
(2) के न्दर्ीय सरकार, उपधारा (1) के अधीन िनयम, या तो िकसी िविधज्ञ पिरषद् के िलए या साधारणतया सभी राज्य िविधज्ञ
पिरषद के िलए, भारतीय िविधज्ञ पिरषद् से परामशर् करने के पश्चात् राजपतर् म अिधसूचना ारा बना सके गी और इस पर्कार बनाए
गए िनयम इस अिधिनयम म िकसी बात के होते हुए भी, पर्भावी ह गे ।
(3) जहां िकसी िवषय की बाबत के न्दर्ीय सरकार ारा इस धारा के अधीन िकसी राज्य िविधज्ञ पिरषद् के िलए िनयम बनाए
जाते ह, और उसी िवषय की बाबत राज्य िविधज्ञ पिरषद् ारा िनयम बनाए जाते ह और भारतीय िविधज्ञ पिरषद् ारा अनुमोिदत
िकए जाते ह, वहां के न्दर्ीय सरकार, राजपतर् म अिधसूचना ारा, यह िनदेश दे सके गी िक उसके ारा ऐसे िवषय की बाबत बनाए गए
िनयम, ऐसी तारीख से, जो अिधसूचना म िविनिदष्ट की जाए, उस िविधज्ञ पिरषद् के सम्बन्ध्ा म पर्वृ नह रह जाएंगे, और ऐसी
अिधसूचना के जारी िकए जाने पर, के न्दर्ीय सरकार ारा बनाए गए िनयम तद्नुसार वहां तक के िसवाय पर्वृ नह रह जाएंगे जहां
तक िक उस तारीख के पूवर् की गई या की जाने से लोप की गई बात का सम्बन्ध है ।]

अनुसूची
[धारा 50 (5) देिखए]

कु छ अिधिनयिमितय का िनरसन

संिक्षप्त नाम िनरसन का िवस्तार


1. लीगल पर्ैक्टीशनसर् (िवमेन) ऐक्ट, 1923 (1923 का अिधिनयम सं० 23) सम्पूणर् ।
2. लीगल पर्ैक्टीशनसर् (फीस) ऐक्ट, 1926 (1926 का अिधिनयम सं० 21) सम्पूणर् ।
3. राज्य पुनगर्ठन अिधिनयम, 1956 (1956 का अिधिनयम सं० 37) धारा 53 ।
4. मुम्बई पुनगर्ठन अिधिनयम, 1960 (1960 का अिधिनयम सं० 11) धारा 31 ।

______

1
1962 के अिधिनयम सं० 32 की धारा 4 ारा अन्त:स्थािपत ।
29

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