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H 188126
H 188126
ारि भक
1. संि त नामयह अिधिनयम पर ा य िलखत अिधिनयम, 1881 कहा जा सके गा ।
थानीय े ि डय आ द से स बि धत था क यावृि ार भइसका िव तार2 स पूण भारत पर है; क तु इसम
अ त व ट कोई भी बात इंिडयन पेपर करसी ऐ ट, 1871 (1871 का 3)3 क धारा 21 पर या कसी ा य भाषा म क कसी भी िलखत
से संबंिधत कसी भी थानीय था पर भाव नह डालता: पर तु ऐसी थाएं िलखत के िनकाय के क ह भी ऐसे श द ारा, िजनसे
यह आशय उपद शत हो क उसके प कार के िविधक संबंध इस अिधिनयम ारा शािसत ह गे, अपव जत क जा सके गी; और यह
पहली माच, 1882 को वृ होगा ।
2. [अिधिनयिमितय का िनरसन ।]िनरसन अिधिनयम, 1891 (1891 का 2) क धारा 2 तथा अनुसूची 1, भाग 1 ारा
िनरिसत ।
3. िनवचन ख डइस अिधिनयम म
4
* * * * *
5
“बककार” [“बककार” के अ तगत बककार के तौर पर काय करने वाला कोई भी यि त और कोई भी डाक घर बचत बक
आता है ।]
6
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अ याय 2
1
इस अिधिनयम का, 1962 के िविनयम सं० 12 क धारा 3 और अनुसूची ारा गोवा, दमण और दीव पर उपा तरण सिहत िव तार कया गया, 1963 के िविनयम
सं० 6 क धारा 2 और अनुसूची 1 ारा (1-7-1965 से) दादरा और नागर हवेली पर और 1965 के िविनयम सं० 8 क धारा 3 और अनुसूची ारा (1-10-1967 से)
ल ीप संघ रा य े पर िव तार कया गया और उसे वृ कया गया ।
2
1956 के अिधिनयम सं० 62 क धारा 2 और अनुसूची ारा “ज मू और क मीर रा य के िसवाय” श द का, जो 1951 के अिधिनयम सं० 3 ारा “भाग ग रा य के
िसवाय” श द के थान पर ित थािपत कए गए थे, लोप कया गया ।
3
इं िडयन पेपर करे सी ऐ ट, 1923 (1923 का 10) ारा िनरिसत । अब देिखए भारत रजव बक अिधिनयम, 1934 (1934 का 2) क धारा 31 ।
4
1956 के अिधिनयम सं० 62 क धारा 2 और अनुसूची ारा श द “भारत” क प रभाषा का, िजसे 1951 के अिधिनयम सं० 3 ारा श द “रा य” क प रभाषा के थान
पर ित थािपत कया गया था, लोप कया गया ।
5
1955 के अिधिनयम सं० 37 क धारा 2 ारा श द “बककार” क प रभाषा के थान पर ित थािपत ।
6
1952 के अिधिनयम सं० 53 क धारा 16 ारा (14-2-1956 से) लोप कया गया ।
2
1
2002 के अिधिनयम सं० 55 क धारा 2 ारा (6-2-2003 से) ित थािपत ।
2
2015 के अिधिनयम सं० 26 क धारा 2 ारा ित थािपत ।
3
2015 के अिधिनयम सं० 26 क धारा 2 ारा अंत: थािपत ।
3
1
1885 के अिधिनयम सं० 2 क धारा 2 ारा “जब क ित हण इ कार कर दया गया है और प अ ित हण के िलए साि यत हो गया है” के थान पर
ित थािपत ।
2
1919 के अिधिनयम सं० 8 क धारा 2 ारा “पाने वाला को देय या उसको आदेश” के थान पर ित थािपत ।
3
1957 के अिधिनयम सं० 36 क धारा 3 तथा अनुसचू ी 2 ारा “रा य” के थान पर ित थािपत ।
4
1919 के अिधिनयम सं० 8 क धारा 3 ारा मूल उपधारा के थान पर ित थािपत ।
5
1914 के अिधिनयम सं० 5 क धारा 2 ारा अंत: थािपत ।
4
15. पृ ठांकनजब क पर ा य िलखत का रचियता या धारक ऐसे रचियता के प म, ह ता र करने से अ यथा, पर ामण
के योजन के िलए उसके पृ ठ पर या मुख-भाग पर या उससे उपाब कागज क परची पर ह ता र करता है या पर ा य िलखत के
प म पू त कए जाने के िलए आशियत टा प-प पर उसी योजन के िलए ऐसे ह ता र करता है तब यह कहा जाता है क वह उसे
पृ ठां कत करता है और वह “पृ ठांकक” कहलाता है ।
16. “िनरंक” पृ ठांकन और “पूण” पृ ठांकन1[(1)] य द पृ ठांकक के वल अपना नाम ह ता रत करता है तो पृ ठांकन
“िनरं क” कहलाता है । और य द वह िलखत व णत रकम कसी िविन द ट यि त को या उसके आदेशानुसार संद करने का िनदेश
जोड़ देता है तो पृ ठांकन “पूण” कहलाता है, और ऐसा िविन द ट यि त िलखत का “पृ ठां कती” कहलाता है ।
पृ ठां कती2[(2) इस अिधिनयम के जो उपब ध पाने वाले से संबंिधत ह वे पृ ठां कती को आव यक उपा तर सिहत
लागू ह गे ।]
17. सं द धाथ िलखतजहां क िलखत का अथ वचन-प या िविनमय-प दोन लगाया जा सकता है वहां धारक अपने
िनवाचन ारा उसे दोन म से कसी भी प म बरत सके गा और त प चात् वह िलखत तदनुसार बरती जाएगी ।
18. जहां क रकम अंक और श द म िभ नत: किथत हैय द वह रकम, िजसके संद कए जाने का वचन या आदेश दया
गया है, अंक और श द म िभननत: किथत है तो श द म किथत रकम वह होगी िजसके संद कए जाने का वचन या आदेश दया
गया है ।
19. मांग पर देय िलखतवह वचन-प या िविनमय-प , िजसम संदाय का कोई समय िविन द ट नह है, और चेक, मांग
पर देय होते ह ।
20. टाि पत अधूरी िलखतजहां क एक यि त 3[भारत] म पर ा य िलखत-संबंधी त समय वृ िविध के अनुसार,
टाि पत और या तो पूणत: िनरं क या उस पर अपू रत पर ा य िलखत िलखकर कोई कागज ह ता रत करता है और कसी दूसरे को
प रद कर देता है जहां वह उसके धारक को तद् ारा यह थमदृ ट्या ािधकार देता है क वह कसी भी रकम के िलए जो उसम
िविन द ट हो, और उस रकम से अिधक न हो िजसके िलए वह टा प पया त है, पर ा य िलखत उस पर, यथाि थित, रच ले या पूण
कर ले । ऐसे ह ता र करने वाला यि त अपनी उस हैिसयत म, िजसम उसने उस पर ह ता र कया, कसी भी स यक् -अनु म-धारक
के ित ऐसी रकम के िलए ऐसी िलखत पर दायी होगा, पर तु स यक् -अनु म-धारक से िभ न कोई भी यि त िलखत प रद करने
वाले यि त से उस रकम से अिधक कु छ वसूल न करे गा जो उसके ारा तद्धीन संद क जाने के िलए आशियत थी ।
21. “दशन पर”“उप थापन पर”“दशनोपरा त”वचन-प या िविनमय-प म “दशन पर” और “उप थापन पर”
श द से मांग पर अिभ ेत है । “दशनोपरा त” श द से वचन-प म दशनाथ उप थापन के प चात् तथा िविनमय-प म ित हण के
या अ ित हण के िलए ट पण या अ ित हण के िलए सा य के प चात् अिभ ेत है ।
22. “प रप वता”वचन-प या िविनमय-प क प रप वता उस तारीख को होती है िजसको वह शो य हो जाता है ।
अनु ह दवसहर वचन-प या िविनमय-प क , िजसका मांग पर, दशन पर या उप थापन पर देय होना अिभ य त नह
है, प रप वता उस तारीख के तीसरे दन होती है िजसको उसका देय होना अिभ य त है ।
23. जो िविनमय-प या वचन-प तारीख या दशन से इतने मास के प चात् देय है उसक प रप वता क गणनाउस
तारीख क गणना करने म, िजसको वह वचन-प या िविनमय-प , जो ऐसे रिचत है क वह तारीख या दशन से िनि चत मास क
सं या या कसी िनि चत घटना के प चात् देय है, प रप व हो जाता है वह किथत कालाविध, मास के उसी दन को, जो िलखत क
तारीख का है या िजसको िलखत ित हण या दशन के िलए उप थािपत क गई है या अ ित हण के िलए ट पिणत है या अ ित हण
के िलए साि यत क गई है या वह घटना होती है या जहां िलखत दशन के किथत सं या के मास प चात् देय होने वाला िविनमय-प
है और आदरणाथ ितगृहीत कया गया है वहां उस तारीख वाले दन को, िजसको वह ऐसे ितगृहीत क गई थी, पयविसत समझी
जाएगी । य द िजस मास म वह कालाविध पयविसत होगी, उसम वह तारीख वाला दन नह है तो वह कालाविध ऐसे मास के अि तम
दन को पयविसत समझी जाएगी ।
दृ टांत
(क) 29 जनवरी, 1878 तारीख क एक पर ा य िलखत ऐसे रिचत है क वह उस तारीख के एक मास के प चात् देय है ।
िलखत 28 फरवरी, 1878 के प चात् तीसरे दन प रप व हो जाती है ।
(ख) 30 अग त, 1878 तारीख क एक पर ा य िलखत ऐसे रिचत है क वह उस तारीख के तीन मास प चात् देय है । िलखत
3 दस बर, 1878 को प रप व हो जाती है ।
(ग) 31 अग त, 1878 तारीख का एक वचन-प ऐसे रिचत है क वह उस तारीख के तीन मास प चात् देय है । िलखत 3
दस बर, 1878 को प रप व हो जाती है ।
1
1914 के अिधिनयम सं० 5 क धारा 3 ारा धारा 16 उपधारा (1) के प म पुन:सं यां कत ।
2
1914 के अिधिनयम सं० 5 क धारा 3 ारा धारा 16 अ त: थािपत ।
3
1951 के अिधिनयम सं० 3 क धारा 3 तथा अनुसूची ारा “रा य ” के थान पर ित थािपत ।
5
24. जो िविनमय-प या वचन-प तारीख या दशन से इतने दन के प चात् देय है उसक प रप वता क गणनाउस
तारीख क गणना करने म, िजसको वह वचन-प या िविनमय-प जो ऐसे रिचत है क वह तारीख से या दशन से या कसी िनि चत
घटना से दन क िनि चत सं या के प चात् देय है, प रप व हो जाता है, उस तारीख का या ित हण या दशन के िलए उप थािपत
करने का या अ ित हण के िलए सा य का दन या वह दन, िजस दन वह घटना घ टत होती है, अपव जत कर दया जाएगा ।
25. जब क प रप वता का दन लोक अवकाश दन हैजब क वह दन, िजसको कोई वचन-प या िविनमय-प प रप व
हो जाएगा लोक अवकाश दन हो तब िलखत िनकटतम पूव कारबार वाले दन शो य समझी जाएगी ।
प टीकरण“लोक अवकाश दन” पद के अ तगत रिववार 1*** आता है और ऐसा कोई भी अ य दन आता है िजसे
2[के ीय सरकार] ने शासक य राजप म अिधसूचना ारा लोक अवकाश दन घोिषत कया है ।
अ याय 3
1
1955 के अिधिनयम सं० 37 क धारा 3 ारा (1-4-1956 से) “नव वष दवस, समस दवस, य द दोन म से कोई दन रिववार को पड़ता है तो ठीक अगला
सोमवार; गुड ाइडे” श द का लोप कया गया ।
2
भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937 ारा “ थानीय सरकार” के थान पर ित थािपत ।
6
पूव त जैसे संदाय म यित म होने पर ऐसा रचियता या ितगृहीता वचन-प या िविनमय-प के कसी भी प कार को
कसी ऐसी हािन या नुकसान के िलए ितकर देने के िलए आब है जो उसे उठाना पड़ा है और ऐसे यित म से आ है ।
33. के वल ऊपरवाल आव यकता म के या आदरणाथ होने के िसवाय ितगृहीता हो सकता हैिविनमय-प के ऊपरवाल या
कई ऊपरवाल म से सब या कु छ या िजकरीवाल या आदरणाथ ितगृहीता के प म उसम नािमत यि त के िसवाय कोई भी यि त
ित हण ारा अपने को आब नह कर सकता ।
34. जो ऊपरवाल भागीदार नह ह उन ारा ित हणजहां क िविनमय-प के कई ऐसे ऊपरवाल ह, जो भागीदार नह
ह, वहां उनम से हर एक उसे अपने िलए ितगृहीत कर सकता है क तु उनम से कोई भी उसे कसी दूसरे के िलए उसके ािधकार के
िबना ितगृहीत नह कर सकता ।
35. पृ ठांकक का दािय वत ितकू ल संिवदा न हो तो जो कोई कसी पर ा य िलखत क प रप वता से पूव उसे पृ ठां कत
और प रद ऐसे पृ ठांकन म अपने वयं के दािय व को अिभ य तत: अपव जत या सशत कए िबना करता है वह तद् ारा उस दशा म,
िजसम ऊपरवाल, ितगृहीता या रचियता ारा उसे अनादृत कया जाए, हर एक प चा वत धारक के ित ऐसी हािन या नुकसान के
िलए, जो ऐसे अनादर से उसे आ है, ितकर देने के िलए आब है, पर तु यह तब जब क अनादर क स यक् सूचना ऐसे पृ ठांकक को
एति म प चात् उपबंिधत प म दे दी गई हो या ा त हो गई हो ।
हर पृ ठांकक अनादर के प चात् वैसे ही दायी है जैसे वह मांग पर देय िलखत पर दायी होता है ।
36. स यक् -अनु म-धारक के ित पू वक प कार का दािय वपर ा य िलखत का हर पू वक प कार स यक-अनु म-
धारक के ित तब तक उसके आधार पर दायी है जब तक उस िलखत क स यक् प से तुि ट न क जाए ।
37. रचियता, लेखीवाल और ितगृहीता मूल ऋणी ह गेवचनप या चेक का रचियता, िविनमय-प का लेखीवाल,
ित हण तक, और ितगृहीता उसके आधार पर मश: मूल ऋिणय के प म, त ितकू ल संिवदा न हो तो, दायी ह और उसके अ य
प कार, यथाि थित, रचियता, लेखीवाल या ितगृहीता के ितभु के प म उसके आधार पर दायी ह ।
38. हर एक पाि चक प कार क बाबत पू वक प कार मूल ऋणी होगा ितभु के प म ऐसे दायी प कार का जहां
तक पार प रक संबंध है वहां तक हर एक पू वक प कार, त ितकू ल संिवदा के अभाव म उसके आधार पर हर एक पाि चक प कार के
ित मूल ऋणी के प म भी दायी है ।
दृ टांत
क वयं अपने आदेशानुसार देय िविनमय-प ख पर िलख देता है, जो उसे ितगृहीत कर लेता है । त प चात् क िविनमय-प
को ग के नाम, ग, घ के नाम और घ, ङ के नाम पृ ठां कत कर देता है । जहां तक ङ और ख का स ब ध है, ख मूल ऋणी है और क, ग
और घ उसके ितभू ह । जहां तक ङ और क का स ब ध है क मूल ऋणी है और ग और घ उसके ितभू ह । जहां तक ङ और ग का
स ब ध है, ग मूल ऋणी है और घ उसका ितभू है ।
39. ितभू वजब क ितगृहीत िविनमय-प का धारक ितगृहीता से कोई ऐसी संिवदा कर लेता है िजससे अ य प कार
भारतीय संिवदा अिधिनयम, 1872 (1872 का 9) क धारा 134 या 135 के अधीन उ मोिचत हो जाते ह तब धारक अ य प कार को
भा रत करने का अपना अिधकार अिभ य तत: आरि त रख सके गा और ऐसी दशा म वे उ मोिचत नह होते ह ।
40. पृ ठांकक के दािय व का उ मोचनजहां क पर ा य िलखत का धारक कसी पू वक प कार के िव पृ ठांकक के
उपचार का नाश या ास पृ ठांकक क स मित के िबना कर देता है, वहां पृ ठांकक धारक के ित दािय व से उस िव तार तक
उ मोिचत हो जाता है जहां तक वह हो जाता य द प रप वता पर उस िलखत का संदाय कर दया गया होता ।
दृ टांत
क के आदेश पर देय रिचत िविनमय-प का धारक क है, िजसम, िन निलिखत िनरंक पृ ठांकक है :
थम पृ ठांकक, “ख” ।
ि तीय पृ ठांकक, “पीटर िविलय स” ।
तृतीय पृ ठांकक, “राइट ए ड क पनी” ।
चतुथ पृ ठांकक, “जान रोजा रओ” ।
इस िविनमय-प पर क जान रोजा रओ के िव वाद लाता है और पीटर िविलय स और राइट ए ड कं ० ारा पृ ठांकन
जान रोजा रओ क स मित के िबना काट देता है । क जान रोजा रओ से कु छ भी वसूल करने का हकदार नह है ।
41. ितगृहीता आब है य िप पृ ठांकन कू टरिचत हैपहले से ही पृ ठां कत िविनमय-प का ितगृहीता दािय व से इस
कारण से मु त नह हो जाता क ऐसा पृ ठांकन कू टरिचत है य द जब क उसने िविनमय-प ितगृहीत कया था, वह जानता था या
िव वास करने का कारण रखता था क वह पृ ठांकन कू टरिचत है ।
7
42. कि पत नाम म िलखे गए िविनमय-प का ित हणकि पत नाम म िलखा गया और लेखीवाल के आदेश पर देय
िविनमय-प का ितगृहीता, कसी ऐसे स यक् -अनु म-धारक के ित, जो लेखीवाल के ह ता र जैसे ही ह ता र ारा और लेखीवाल
ारा रिचत ता प यत पृ ठांकन के अधीन दावा करता है, दािय व से इस कारण मु त नह हो जाता क ऐसा नाम कि पत है ।
43. पर ा य िलखत ितफल के िबना रिचत इ या द ितफल के िबना, या ऐसे ितफल के िलए, जो िन फल हो जाता है,
रिचत, िलिखत, ितगृहीत, पृ ठां कत या अ त रम पर ा य िलखत उस सं यवहार के प कार के बीच संदाय को कोई बा यता सृ ट
नह करती । क तु य द ऐसे कसी प कार ने कसी ितफलाथ धारक को वह िलखत पृ ठांकन सिहत या रिहत अ त रत कर दी है तो
ऐसा धारक और उससे हक यु प न करने वाला हर पाि चक धारक ऐसी िलखत पर शो य रकम ितफलाथ अ तरक से या उस िलखत
के कसी भी पू वक प कार से वसूल कर सके गा ।
अपवाद 1िजस प कार के सौकय के िलए पर ा य िलखत रची गई, िलखी गई, ितगृहीत क गई या पृ ठां कत क गई है,
य द उसने उसक रकम का संदाय कर दया है तो वह कसी भी ऐसे यि त से, जो उसके सौकय के िलए ऐसे िलखत का प कार बना
है, उस िलखत पर ऐसी रकम वसूल नह कर सकता ।
अपवाद 2िलखत का कोई भी प कार, िजससे कसी अ य प कार को ऐसे ितफल के िलए, िजसे देने म या िजसका पूणत:
पालन करने म वह असफल रहा है उसे अपने हक म रचने, िलखने, ितगृहीत करने या पृ ठां कत या अ त रत करने के िलए उ े रत
कया है, उस ितफल के (य द कोई हो) जो उसने व तुत: दया है, या िजसका उसने व तुत: पालन कया है, मू य से अिधक रकम वसूल
न करे गा ।
44. धन के प म ितफल का भागत: अभाव या िन फल हो जानाजब क वह ितफल, िजसके िलए कसी यि त ने
वचन-प , िविनमय-प या चेक को ह ता रत कया है, धन के प म या और ार भ म भागत: िव मान न था या त प चात्
भागत: िन फल हो गया है, तब वह रािश, िजसे ऐसे ह ता रकता से अ यविहत संबंध म ि थत धारक उससे पाने का हकदार होगा
अनुपातत: कम हो जाती है ।
प टीकरणिविनमय-प का लेखीवाल ितगृहीता से अ यविहत संबंध म ि थत होता है । वचन-प , िविनमय-प या चेक
का रचियता पाने वाले से और पृ ठांकक अपने पृ ठां कती से अ यविहत संबंध म ि थत होता है । अ य ह ता रकता धारक से
अ यविहत संबंध म करार ारा ि थत हो सकगे ।
दृ टांत
क अपने आदेशानुसार देय 500 पए का िविनमय-प ख पर िलखता है । ख िविनमय-प को ितगृहीत कर लेता है । क तु
त प चात् संदाय न करके उसे अनादृत कर देता है । क िविनमय-प के आधार पर ख पर वाद लाता है । ख सािबत कर देता है क 400
पए के िलए तो वह मू याथ ितगृहीत कया गया था और अविश ट के िलए वादी के सौकय के िलए ितगृहीत कया गया था । क
के वल 400 पए वसूल कर सकता है ।
45. जो ितफल धन के प म नह है उसका भागत: िन फल होनाजहां क उस ितफल का, िजसके िलए, कसी यि त ने
वचन-प , िविनमय-प या चेक ह ता रत कया था, कोई भाग य िप धन के प म नह है, तथािप सा पा वक जांच के िबना धन
के प म अिभिनि चत कया जा सकता है और उस भाग क िन फलता ई है वहां वह रािश, जो उस ह ता रकता से अ यविहत संबंध
म ि थत धारक उससे वसूल करने का हकदार है, अनुपातत: कम हो जाती है ।
1
[45क. खोए ए िविनमय-प क दूसरी ित पाने का धारक का अिधकारजहां क िविनमय-प अितशो य होने के पूव
खो गया है वहां जो यि त उसका धारक था वह उसके लेखीवाल को इस बात के िलए क िजस िविनमय-प का खो जाना अिभकिथत
है, उसके पुन: पाए जाने क दशा म सब यि तय के िव , चाहे वे कोई भी ह , लेखीवाल क ितपू त क जाएगी, ितभूित य द वह
अपेि त क जाए देकर अपने को वैसा ही दूसरा िविनमय-प देने के िलए आवेदन कर सके गा ।
य द लेखीवाल पूव त जैसी ाथना पर िविनमय-प क ऐसी दूसरी ित देने से इ कार करे तो वह ऐसा करने के िलए
िववश कया जा सके गा ।]
अ याय 4
पर ामण के िवषय म
46. प रदानवचन-प , िविनमय-प या चेक क रचना, या उसका ित हण या पृ ठांकन, वा तिवक या आ वियक,
प रदान ारा पूरा हो जाता है ।
इसिलए क जहां तक उन प कार के बीच, जो अ यविहत संबंध म ि थत ह, प रदान भावी हो वह प रदान उस िलखत को
वयं रचने, ितगृहीत करने या पृ ठां कत करने वाले प कार के ारा या उसके ारा ति निम ािधकृ त यि त ारा कया जाएगा ।
1
1885 के अिधिनयम सं० 2 क धारा 3 ारा अ त: थािपत ।
8
ऐसे प कार के और िलखत के ऐसे धारक के बीच, जो स यक् -अनु म-धारक नह है, यह द शत कया जा सके गा क िलखत
सशत या िवशेष योजन के िलए ही है न क उसम क स पि को आ यि त : अ त रत करने के योजन के िलए, प रद क गई थी ।
वाहक को देय वचन-प , िविनमय-प या चेक उसके प रदान ारा पर ा य है ।
आदेशानुसार देय वचन-प , िविनमय-प या चेक धारक ारा उसके पृ ठांकन और प रदान ारा पर ा य है ।
47. प रदान ारा पर ामणवाहक को देय वचन-प , िविनमय-प या चेक धारा 58 के उपबंध के अ यधीन रहते ए
उसके प रदान ारा पर ा य है ।
अपवादइस शत पर प रद वचन-प , िविनमय-प या चेक क अमुक घटना घ टत होने के िसवाय वह भावशाली नह
होना है । (उस दशा के िसवाय जब क वह ऐसे मू याथ धारक के हाथ म हो, िजसे इस शत क सूचना नह थी) । तब तक पर ािमत
नह होता जब क ऐसी घटना घ टत न हो जाए ।
दृ टांत
(क) वाहक को देय पर ा य िलखत का धारक क उसे ख के अिभकता को ख के िलए रखने को प रद करता है । िलखत
पर ा य हो गई है ।
(ख) वाहक को देय उस पर ा य िलखत का धारक क, जो िलखत क के बककार के हाथ म है, जो उस समय ख का भी
बककार है, बककार को िनदेश देता है क वह उस िलखत को उस बककार क या ख के खाते म ख के नाम अ त रत करके जमा कर दे ।
बककार ऐसा करता है और तदनुसार अब वह िलखत ख के अिभकता के प म उसके क जे म है । वह िलखत पर ािमत हो गई है और
ख उसका धारक हो गया है ।
48. पृ ठांकन ारा पर ामणधारा 58 के उपबंध के अ यधीन रहते ए यह है क 1[आदेशानुसार देय] वचन-प ,
िविनमय-प या चेक धारक ारा उसके पृ ठांकन और प रदान ारा पर ािमत होता है ।
49. िनरं क पृ ठांकन का पूण पृ ठांकन म संप रवतनिनरं क पृ ठां कत पर ा य िलखत का धारक पृ ठांकक के ह ता र के
ऊपर िनदेश िलखकर क पृ ठां कती के प म कसी अ य यि त को उसका संदाय कया जाए अपना नाम ह ता रत कए िबना
िनरं क पृ ठांकन को पूण पृ ठांकन म संप रव तत कर सके गा और वह धारक एतद् ारा पृ ठांकक का उ रदािय व उपगत नह करता ।
50. पृ ठांकन का भावपर ा य िलखत का पृ ठांकन त प चात् प रदान होने पर, उसम क स पि पृ ठां कती को आगे
के पर ामण के अिधकार सिहत अ त रत कर देता है, क तु पृ ठांकन अिभ य त श द ारा ऐसा अिधकार िनबि धत या अपव जत
कर सके गा अथवा पृ ठां कती को िलखत का पृ ठांकन करने का या पृ ठांकक के िलए या कसी अ य िविन द ट यि त के िलए उसक
अ तव तुएं ा त करने को के वल अिभकता बना सके गा ।
दृ टांत
ख वाहक को देय िविभ न पर ा य िलखत पर िन निलिखत पृ ठांकन ह ता रत करता है :
(क) “अ तव तु का संदाय के वल ग को करो” ।
(ख) “मेरे उपयोग के िलए ग को संदाय करो” ।
(ग) “ख के लेखे ग को या आदेशानुसार संदाय करो” ।
(घ) “इसक अ तव तुएं ग के नाम जमा कर दो” ।
ग ारा आगे के पर ामण का अिधकार इन पृ ठांकन से अपव जत है ।
(ङ) “ग को संदाय करो” ।
(च) “ओ रए टल बक म ग के खाते म इसका मू य जमा कर दो” ।
(छ) “पृ ठांकक और अ य को ग ने जो समनुदश
े न िवलेख िन पा दत कया है उसके ितफल के भाग व प ग को
इसक अ तव तु का संदाय करो” ।
ग ारा आगे के पर ामण के अिधकार को ये पृ ठांकन अपव जत नह करते ।
51. पर ामण कौन कर सके गापर ा य िलखत का हर एकल रचियता, लेखीवाल, पाने वाला या पृ ठां कती या कई संयु त
रचियता , लेखीवाल , पाने वाल या पृ ठां कितय म से सब उसे पृ ठां कत और पर ािमत कर सकगे य द ऐसी िलखत क
पर ा यता धारा 50 म व णत प म िनबि धत या अपव जत नह क गई है ।
1
1919 के अिधिनयम सं० 8 क धारा 4 ारा “िविन द ट यि तय के आदेशानुसार देय या िविन द ट यि त को या उसके आदेशानुसार देय” के थान पर
ित थािपत ।
9
प टीकरणइस धारा म क कोई भी बात रचियता या लेखीवाल को िलखत को पृ ठां कत करने या पर ािमत करने के
िलए समथ नह बनाती जब तक क वह उस पर िविधपूण क जा न रखता हो या वह उसका धारक न हो, और न वह पाने वाले या
पृ ठां कती को, िलखत को पृ ठां कत या पर ािमत करने के िलए समथ बनाती है, जब तक क वह उसका धारक न हो ।
दृ टांत
िविनमय-प क को या आदेशानुसार देय िलखा गया है क उसे ख के नाम पृ ठां कत करता है । पृ ठांकन म “या आदेशानुसार”
श द या कोई समतु य श द अ त व ट नह ह । ख िलखत को पर ािमत कर सके गा ।
52. पृ ठांकक जो अपने वयं के दािय व को अपव जत करता है या सशत करता हैपर ा य िलखत का पृ ठांकन म
अिभ य त श द ारा, उस पर का अपना वयं का दािय व अव जत कर सके गा या ऐसे दािय व को या उस िलखत पर शो य रकम को
ा त करने के पृ ठां कती के अिधकार को कसी िविन द ट घटना के घ टत होने पर, चाहे ऐसी घटना कभी भी घ टत न हो, आि त कर
सके गा ।
जहां क कोई पृ ठांकक अपने दािय व को ऐसे अपव जत करता है और त प चात् िलखत का धारक हो जाता है वहां सब
म यवत पृ ठांकक उसके ित दायी होते ह ।
दृ टांत
(क) पर ा य िलखत का पृ ठांकक “दािय व रिहत” यह श द जोड़कर अपना नाम ह ता रत करता है ।
इस पृ ठांकन के आधार पर वह कोई दािय व उपगत नह करता ।
(ख) क पर ा य िलखत का पाने वाला और धारक है । “दािय व रिहत” इस पृ ठांकन ारा वैयि तक दािय व को अपव जत
करके वह िलखत ख को अ त रत करता है और ख, उसे ग को पृ ठां कत करता है जो उसे क को पृ ठां कत कर देता है । क न के वल अपने
पूववत अिधकार म ही पुन: थािपत हो जाता है वरन् उसे ख और ग के िव पृ ठां कती के अिधकार भी ा त हो जाते ह ।
53. स यक् -अनु म-धारक से हक यु प न करने वाला धारकपर ा य िलखत का वह धारक, िजसे स यक् -अनु म-धारक
से हक यु प न आ है उस िलखत पर उस स यक् -अनु म-धारक के अिधकार रखता है ।
54. िनरं क पृ ठां कत िलखत ास क ई चेक के बारे म जो उपब ध एति म प चात् अ त व ट ह उनके अ यधीन रहते
ए यह क िनरंक पृ ठां कत पर ा य िलखत उसके वाहक को देय होती है य िप वह मूलत: आदेशानुसार देय थी ।
55. िनरंक पृ ठांकन का पूण पृ ठांकन म संप रवतनय द पर ा य िलखत िनरं क पृ ठां कत क जाने के प चात् पूण
पृ ठां कत क जाए तो िजस यि त के प म वह पूण पृ ठां कत क गई है या िजसका हक ऐसे यि त के मा यम ारा यु प न आ है
उसके ारा कए जाने के िसवाय उसक रकम का दावा पूण पृ ठांकन करने वाले से नह कया जा सकता ।
56. शो य रािश के भाग के िलए पृ ठांकनपर ा य िलखत पर का कोई भी लेख, य द उससे यह ता प यत हो क वह उस
िलखत पर शो य तीत होने वाली रकम के कसी भाग को ही अ त रत करता है, पर ामण के योजन के िलए िविधमा य न होगा ।
क तु जहां क ऐसी रकम का संदाय भागत: कर दया गया है वहां उस आशय वाला ट पण उस िलखत पर पृ ठां कत कया जा सके गा
जो तब बाक के िलए पर ािमत क जा सके गी ।
57. मृतक ारा पृ ठां कत िलखत को िविधक ितिनिध के वल प रदान ारा पर ािमत नह कर सकताआदेशानुसार देय
और मृतक ारा पृ ठां कत क तु अप रद वचन-प , िविनमय-प या चेक को मृतक का िविधक ितिनिध के वल प रदान ारा
पर ािमत नह कर सकता ।
58. िविधिव साधन ारा या िविधिव ितफलाथ अिभ ा त िलखतजब क पर ा य िलखत खो गई है या उसके
कसी रचियता, ितगृहीता या धारक से अपराध या कपट ारा या िविधिव ितफल के िलए अिभ ा त क गई है तब िजस यि त
ने िलखत को पाया था या ऐसे अिभ ा त कया था उससे यु प न अिधकार से दावा करने वाला कोई क जाधारी या पृ ठां कती उस पर
शो य रकम को ऐसे रचियता, ितगृहीता या धारक से या ऐसे धारक के पू वक कसी भी प कार से उस दशा के िसवाय ा त करने का
हकदार नह है िजसम क ऐसा क जाधारी या पृ ठां कती या वह कोई यि त िजससे यु प न अिधकार से वह दावा करता है, उसका
स यक् -अनु म-धारक है या था ।
59. अनादर के या अितशो य होने के प चात् अ जत िलखतपर ा य िलखत के उस धारक को िजसने उसे अ ित हण या
असंदाय ारा उसके अनादर के प चात् उसक सूचना सिहत या प रप वता के प चात् अ जत कया है, उस पर अ य प कार के
िव के वल वे ही अिधकार ा त ह जो उसके अंतरक के थे :
सौकय प या िवप पर तु जो कोई भी यि त सद्भावपूवक और ितफलाथ कसी ऐसे वचन-प या िविनमय-प का
धारक उनक प रप वता के प चात् हो जाता है जो ितफल के िबना इस योजन से रचा, िलखा या ितगृहीत कया गया था क
उसका कोई प कार उसके आधार पर धन ले सकने के िलए समथ हो जाए वह कसी भी पू वक प कार से उस वचन-प या िविनमय-
प क रकम वसूल कर सके गा ।
10
दृ टांत
एक िविनमय-प के ितगृहीता ने उस समय, जब क उसने उसे ितगृहीत कया था, लेखीवाल के पास कु छ माल उस
िविनमय-प के संदाय के िलए सा पा वक ितभूित के प म लेखीवाल को यह शि त देकर िनि त कर दया था क य द उस
िविनमय-प क प रप वता पर िविनमय-प का संदाय न कया जाए, तो वह माल को बेच दे और उसके आगम को िविनमय-प के
चुकाने म लगा दे । प रप वता पर िविनमय-प का संदाय न कए जाने पर लेखीवाल ने माल को बेच दया, आगम को ितधृत कर
िलया क तु िविनमय-प क को पृ ठां कत कर दया । क का हक उसी आ ेप के अ यधीन है िजसके अ यधीन लेखीवाल का हक है ।
60. संदाय या तुि ट होने तक िलखत पर ा य हैपर ा य िलखत तब तक पर ािमत क जा सके गी, जब तक रचियता,
ऊपरवाल या ितगृहीता ारा उसका संदाय या तुि ट प रप वता पर या के प चात् न कर दी गई हो क तु ऐसे संदाय या तुि ट के
प चात् नह ; पर तु प रप वता के प चात् वह उसके रचियता, ऊपरवाल या ितगृहीता ारा पर ािमत न क जा सके गी ।
अ याय 5
उप थापन के िवषय म
61. ित हण के िलए उप थापनय द दशनोपरा त देय िविनमय-प म उसके उप थापन के िलए कोई समय या थान
िविन द ट नह है तो उस यि त ारा जो उसके ित हण क मांग करने का हकदार है, उसके िलखे जाने के प चात् युि तयु त समय
के अ दर और कारबार के दन कारबार के समय म ित हण के िलए उसके ऊपरवाल को य द वह युि तयु त तलाश के प चात् पाया
जा सके , उप थािपत कया जाएगा । ऐसे उप थापन म यित म होने पर उसका कोई भी प कार ऐसा यित म करने वाले प कार के
ित उस पर दायी न होगा ।
य द ऊपरवाल युि तयु त तलाश के प चात् न पाया जा सके तो िविनमय-प अना त हो जाता है ।
य द िविनमय-प ऊपरवाल को कसी िविश ट थान पर िन द ट है तो वह उस थान पर ही उप थािपत कया जाना
चािहए और य द उप थािपत करने के िलए स यक् तारीख को युि तयु त तलाश के प चात् वह वहां न पाया जा सके तो िविनमय-प
अना त हो जाता है ।
1
[जहां क करार या था से ऐसा करना ािधकृ त है वहां रिज ीकृ त िचट्ठी से डाकघर के मा यम ारा उप थापन
पया त है ।]
62. वचन-प को दशन के िलए उप थािपत करनादशनोपरा त िनि चत कालाविध पर देय वचन-प उसके रचियता के
सम (य द वह युि तयु त तलाश के प चात् पाया जा सके ) उसके रचे जाने के प चात् युि तयु त समय के अ दर उस यि त ारा,
जो संदाय क मांग करने का हकदार है, और कारबार के दन कारबार के समय दशन के िलए उप थािपत कया जाना चािहए । ऐसे
उप थापन म यित म होने पर उसका कोई भी प कार ऐसा यित म करने वाले यि त के ित उस पर दायी न होगा ।
63. ऊपरवाल को िवचार-िवमश करने के िलए समयय द उस िविनमय-प का ऊपरवाल, जो ित हण के िलए उसके
सम उप थािपत कया गया है धारक से ऐसी अपे ा करे तो वह ऊपरवाल को यह िवचार करने के िलए क या वह उसे ितगृहीत
करेगा 2[अड़तालीस] घ टे का समय (लोक अवकाश दन का अपवजन करके ) देगा ।
64. संदाय के िलए उप थापन3[(1)] वचन-प , िविनमय-प और चेक मश: उसके रचियता, ितगृहीता या ऊपरवाल
को एत ि◌म प चात् उपबंिधत तौर पर संदाय के िलए धारक ारा या उसक ओर से उप थािपत कए जाने ह गे । ऐसे उप थापन म
यित म होने पर उसके अ य प कार ऐसे धारक के ित उस पर दायी न ह गे ।
1
[जहां क करार या था से ऐसा करना ािधकृ त है वहां रिज ीकृ त िच ी से डाकघर के मा यम ारा उप थापन
पया त है ।]
अपवादजहां क वचन-प मांग पर देय है और िविन द ट थान पर देय नह है वहां उसके रचियता को भा रत करने के
िलए कोई उप थापन आव यक नह है ।
4
[(2) धारा 6 म कसी बात के होते ए भी, जहां सं ेिपत चेक का कोई इलै ािनक ित प संदाय के िलए उप थािपत कया
जाता है, वहां ऊपरवाल बक, िलखत के कट श द क असिलयत के बारे म कसी युि तयु त संदह े क दशा म सं ेिपत चेक को धारण
करने वाले बक से उ त सं ेिपत चेक के संबंध म कसी और जानकारी क मांग करने का हकदार है और य द संदह े िलखत म कसी
कपट, कू टरचना, छेड़छाड़ या िवनाश के बारे म है, तो वह स यापन के िलए सं ेिपत चेक के ही उप थापन क और मांग करने का
हकदार है :
1
1885 के अिधिनयम सं० 2 क धारा 4 ारा अंत: थािपत ।
2
1921 के अिधिनयम सं० 12 क धारा 2 ारा “चौबीस” के थान पर ित थािपत ।
3
2002 के अिधिनयम सं० 55 क धारा 3 ारा (6-2-2003 से) पुन:सं यां कत ।
4
2002 के अिधिनयम सं० 55 क धारा 3 ारा (6-2-2003 से) अंत: थािपत ।
11
परं तु ऊपरवाल बक ारा इस कार मांगा गया सं ेिपत चेक उसके ारा उस दशा म ितधा रत कया जाएगा िजसम
तदनुसार संदाय कर दया जाता है ।]
65. उप थापन के िलए समयसंदाय के िलए उप थापन कारबार के ाियक समय के दौरान म और य द वह कसी बककार
के यहां कया जाना है तो बककारी कारबार के समय के अ दर करना होगा ।
66. तारीख के प चात् या दशनोपरा त देय िलखत के संदाय के उप थापनजो वचन-प या िविनमय-प उसम दी ई
तारीख के प चात् या उसके दशनोपरा त एक िविन द ट कालाविध पर देय रचा गया है उसे प रप वता पर संदाय के िलए उप थािपत
करना होगा ।
67. क त म देय वचन-प का संदाय के िलए उप थापन क त म देय वचन-प हर एक क त के संदाय के िलए िनयत
तारीख के प चात् तीसरे दन संदाय के िलए उप थािपत करना होगा और ऐसे उप थापन पर असंदाय का वही भाव होगा जो
प रप वता पर वचन-प के असंदाय का होता है ।
68. िविन द ट थान म, न क अ य , देय िलखत के संदाय के िलए उप थापनजो वचन-प , िविनमय-प या चेक कसी
िविन द ट थान म, न क अ य देय रिचत, िलिखत या ितगृहीत है, उसके कसी प कार को भा रत करने के िलए उसे उसी थान म
संदाय के िलए उप थािपत करना होगा ।
69. िन द ट थान म देय िलखतजो वचन-प या िविनमय-प कसी िविन द ट थान म देय रिचत, िलिखत या
ितगृहीत है उसे उसके रचियता या लेखीवाल को भा रत करने के िलए उसी थान म संदाय के िलए उप थािपत करना होगा ।
70. जहां क कोई अन य थान िविन द ट नह है वहां उप थापनजो वचन-प या िविनमय-प धारा 68 और 69 म
व णत तौर पर देय रिचत नह है, उसे, यथाि थित, उसके रचियता, लेखीवाल या ितगृहीत के कारबार के थान म (य द कोई हो) या
ाियक िनवास- थान म संदाय के िलए उप थािपत करना होगा ।
71. जब क रचियता आ द के कारबार या िनवास का कोई ात थान नह है तब उप थापनय द पर ा य िलखत के
रचियता, लेखीवाल या ितगृहीता का कोई कारबार का ात थान या िनयत िनवास- थान नह है और िलखत म ित हणाथ या
संदायाथ उप थापन के िलए कोई थान िविन द ट नह है तो ऐसा उप थापन वयं उसको कसी ऐसे थान म कया जा सके गा जहां
कह वह पाया जा सके ।
72. लेखीवाल को भा रत करने के िलए चेक का उप थापन1[धारा 84 के उपब ध के अ यधीन यह है क] इसिलए क चेक
लेखीवाल को भा रत करे उसे उस बक म, िजस पर वह िलखा गया है, इसके पूव उप थािपत करना होगा क लेखीवाल और उसके
बककार के बीच का संबंध ऐसे प रव तत हो जाए क िजससे लेखीवाल पर ितकू ल भाव पड़ा हो ।
73. कसी अ य यि त को भा रत करने के िलए चेक का उप थापनइसिलए क चेक लेखीवाल के िसवाय कसी अ य
यि त को भा रत करे , ऐसे यि त को वह उसके प रदान के प चात् युि तयु त समय के अ दर उप थािपत करना होगा ।
74. मांग पर देय िलखत का उप थापनधारा 31 के उपबंध के अ यधीन यह है क मांग पर देय पर ा य िलखत धारक
ारा उसे ा त करने के प चात् युि तयु त समय के अ दर संदाय के िलए उप थािपत करनी होगी ।
75. अिभकता, मृतक के िविधक ितिनिध या दवािलया के समनुदिे शती ारा या को उप थापन ित हण या संदाय के
िलए उप थापन, यथाि थित, ऊपरवाल, रचियता, या ितगृहीता के स यक् प से ािधकृ त अिभकता को या जहां क ऊपरवाल,
रचियता या ितगृहीता मर गया है वहां उसके िविधक ितिनिध को, या जहां क वह दवािलया घोिषत कया जा चुका है वहां उसके
समनुदिे शती को कया जा सके गा ।
2
[75क. ित हण या संदाय के िलए उप थापन म िवल ब के िलए ितहेतु 3[ ित हण या संदाय के िलए] उप थापन म
िवल ब य द धारक के िनयं ण के परे क प रि थितय से आ है और उसके यित म, अवचार या उपे ा के कारण होने का दोष नह
लगाया जा सकता तो वह माफ यो य होगा । जब िवल ब के कारण का प रिवराम हो जाता है तब उप थापन युि तयु त समय के
अ दर करना होगा ।]
76. उप थापन कब अनाव यक होता हैिन निलिखत दशा म से कसी भी दशा म संदाय के िलए उप थापन आव यक
नह है और िलखत उस तारीख पर अनादृत हो जाती है, जो उप थापन के िलए िनयत है, अथात् :
(क) य द रचियता, ऊपरवाल या ितगृहीता उप थापन साशय िनवा रत करता है, या
उसके कारबार के थान म देय िलखत क दशा म, य द वह कारबार के दन कारबार के ाियक समय के दौरान म
ऐसा थान ब द कर देता है, या
1
1897 के अिधिनयम सं० 6 ारा 2 ारा अ त: थािपत ।
2
1920 के अिधिनयम सं० 25 ारा 2 ारा अ त: थािपत ।
3
1921 के अिधिनयम सं० 12 ारा 3 ारा “संदाय के िलए” के थान पर ित थािपत ।
12
कसी अ य िविन द ट थान म देय िलखत क दशा म य द न तो वह और न उसका संदाय करने के िलए ािधकृ त
कोई यि त कारबार के ाियक समय के दौरान म ऐसे थान म हािजर रहता है, या
कसी िविन द ट थान म देय िलखत न होने क दशा म य द वह स यक् तलाशी के प चात् नह पाया जा सकता;
(ख) जहां तक क कसी ऐसे प कार का संबंध है, िजसे उससे भा रत कया जाना ईि सत है य द वह अनु थापन
क दशा म भी संदाय करने के िलए वचनब आ है;
(ग) जहां तक क कसी भी प कार का संबंध है, य द वह यह ान रखते ए क िलखत उप थािपत नह क गई
है, प रप वता के प चात
िलखत पर शो य रकम म े भागत: संदाय कर देता है;
या उस पर शो य रकम को पूणत: या भागत: संदाय करने का वचन दे देता है,
या संदाय के िलए उप थापन म कसी यित म का फायदा उठाने का अपना अिधकार अ यथा
अिध य त कर देता है;
(घ) जहां तक क लेखीवाल का न है य द लेखीवाल को ऐसे उप थापन के अभाव से नुकसान नह प च
ं सकता ।
77. संदाय के िलए उप थािपत िविनमय-प से उपे ा बरतने के िलए बककार का दािय वजब क कसी िविन द ट बक
पर देय ितगृहीत िविनमय-प वहां संदाय के िलए स यक् प से उप थािपत कर दया गया है और अनादृत कर दया है तब य द
बककार ऐसे िविनमय-प को ऐसे उपे ापूण या अनुिचत तौर पर रखे, बरते या वािपस प रद करे क धारक को उससे हािन प च
ं े तो
वह धारक को ऐसी हािन के िलए ितकर देगा ।
अ याय 6
1
1926 के अिधिनयम सं० 30 क धारा 2 ारा “िसिवल या संिहता क धारा 532 म जैसा उपबंध है उन दशा के िसवाय” के थान पर ित थािपत ।
2
1988 के अिधिनयम सं० 66 क धारा 2 ारा (30-12-1988 से) “छह ितशत” के थान पर ित थािपत ।
3
2002 के अिधिनयम सं० 55 क धारा 4 ारा (6-2-2003 से) पुन:सं यां कत ।
4
2002 के अिधिनयम सं० 55 क धारा 4 ारा (6-2-2003 से) अंत: थािपत ।
13
अ याय 7
1
1921 के अिधिनयम सं० 12 क धारा 2 ारा “चौबीस” के थान पर ित थािपत ।
2
1897 के अिधिनयम सं० 6 क धारा 3 ारा मूल धारा के थान पर ित थािपत ।
3
1934 के अिधिनयम सं० 17 क धारा 2 ारा धारा 85 को उसक उपधारा (1) के प म पुन:सं यां कत कया गया और उपधारा (2) अंत: थािपत क गई ।
4
1930 के अिधिनयम सं० 25 क धारा 2 ारा अ त: थािपत ।
14
86. स मत न होने वाले प कार िवशेिषत या सीिमत ित हण ारा उ मोिचत हो जाते हय द िविनमय-प का धारक से
ित हण से उपमत हो जाता है जो िवशेिषत है, या िविनमय-प म व णत रािश के एक भाग तक सीिमत है या जो संदाय के िलए कोई
िभ न थान या समय ित थािपत करता है या जो उस दशा म जहां क ऊपरवाल भागीदार नह है, उन सब के ारा ह ता रत नह
है तो जब तक क वे सब पू वक प कार, िजनक ऐसे ित हण के िलए स मित अिभ ा त नह क गई है, धारक ारा सूचना दी जाने
पर ऐसे ित हण के िलए अपनी अनुमित नह दे देते वे जहां तक क धारक और उनसे यु प न अिधकार के अधीन दावा करने वाल
का संबंध है, उ मोिचत हो जाते ह ।
प टीकरण ित हण वहां िवशेिषत होता है
(क) जहां क वह सशत है अथात् यह घोिषत करता है क संदाय उसम किथत घटना के होने पर िनभर करे गा,
(ख) जहां क वह संद क जाने के िलए आ द ट रािश के के वल भाग के संद ाय का वचन देता है,
(ग) जहां क आदेश म संदाय के िलए कोई थान िविन द ट न होते ए वह िविन द ट थान म, न क अ यथा या
अ य , संदाय का वचन देता है अथवा जहां क आदेश म संदाय का थान िविन द ट होते ए वह कसी दूसरे थान म, न क
अ यथा या अ य , संदाय का वचन देता है,
(घ) जहां क वह उस समय से िभ न समय पर संदाय का वचन देता है िजस समय पर आदेश के अधीन वह वैध प
से शो य होगा ।
87. ताि वक प रवतन का भावपर ा य िलखत म का कोई भी ताि वक प रवतन उसे कसी के िव भी, जो क ऐसे
प रवतन के समय उसका प कार और उसके ित स मत नह आ है, तब के िसवाय शू य कर देता है जब क वह प रवतन मूल
प कार के सामा य आशय को पूरा करने के िलए कया गया हो;
पृ ठां कती ारा प रवतनऔर य द ऐसा कोई प रवतन पृ ठां कती ारा कया गया है, तो वह उसके ितफल क बाबत
उसके सब दािय व से उसके पृ ठांकक को उ मोिचत कर देता है ।
इस धारा के उपबंध धाराएं 20, 49, 86 और 125 के उपबंध के अ यधीन ह ।
88. पू वक प रवतन के होते ए भी ितगृहीता या पृ ठांकक आब रहता हैिलखत म कसी पू वक प रवतन के होते ए
भी पर ा य िलखत का ितगृहीता या पृ ठांकक अपने ित हण या पृ ठांकन से आब रहता है ।
89. िजस िलखत पर प रवतन दृ यमान नह है उसका संदाय1[(1)] जहां क वचन-प , िविनमय-प या चेक ताि वक प
म प रव तत कया गया है क तु यह तीत नह होता है क वह ऐसे प रव तत कया गया है,
या जहां क ऐसा चेक जो क उप थापन के समय ऐसा तीत नह होता क वह ास कया आ है अथवा उस पर ा सग थी
जो िमटा दी गई है, संदाय के िलए उप थािपत कया जाता है,
वहां संदाय के िलए दायी यि त और या बककार ारा उसका संदाय और संदाय के समय उसके कट श द के अनुकूल और
स यक् -अनु म म अ यथा उसके संदाय से ऐसा यि त या बककार उसके सब दािय व से उ मोिचत हो जाएगा और ऐसा संदाय िलखत
के प रवतन कए जाने या चेक के ास कए जाने के कारण नगत न कया जाएगा ।
2
[(2) जहां चेक सं ेिपत चेक का कोई इलै ािनक ित प है, वहां ऐसे इलै ािनक ित प और सं िे पत चेक के कट श द
म कोई अंतर ताि वक प रवतन होगा और, यथाि थित, बक या समाशोधन गृह का यह कत य होगा क वह ित प का सं ेपण और
पारेषण करते समय, सं ेिपत चेक के इलै ािनक ित प के कट श द क यथाथता को सुिनि चत कर ले ।
(3) कोई ऐसा बक या समाशोधन गृह, जो सं िे पत चेक के पारे िषत इलै ािनक ित प को ा त करता है, उस प कार से,
िजसने उसको ित प पारेिषत कया है, यह स यािपत करेगा क उसे इस कार पारे िषत और उसके ारा ा त ित प िब कु ल एक
ही ह ।]
90. ितगृहीता के हाथ म के िविनमय-प पर कायवाही करने के अिधकार का िनवापनजो िविनमय-प पर ािमत
कया गया है, प रप वता के समय या प चात् य द वह ितगृहीता ारा वयं अपने अिधकार से धा रत है तो उस पर कायवाही करने
के सब अिधकार िनवािपत हो जाते ह ।
अ याय 8
1
2002 के अिधिनयम सं० 55 क धारा 5 ारा (6-2-2003 से) पुन:सं यां कत ।
2
2002 के अिधिनयम सं० 55 क धारा 5 ारा (6-2-2003 से) अंत: थािपत ।
15
जहां क ऊपरवाल संिवदा करने के िलए अ म है या ित हण िवशेिषत है वहां िविनमय-प अनादृत कर दया गया माना
जा सके गा ।
92. असंदाय ारा अनादरवचन-प , िविनमय-प या चेक असंदाय ारा अनादृत आ तब कहा जाता है जब क
ऊपरवाल-वचन-प का रचियता, िविनमय-प का ितगृहीता या चेक का ऊपरवाल उसका संदाय करने के िलए स यक् प से
अपेि त कए जाने पर संदाय म यित म करता है ।
93. सूचना कसके ारा और कसको दी जानी चािहएजब क वचन-प , िविनमय-प या चेक अ ित हण या असंदाय
ारा अनादृत हो गया है तब उसके धारक को या उसके कसी प कार को जो उस पर दायी बना रहता है, उन सब अ य प कार को,
िज ह क धारक उस पर अलग-अलग दायी बनाना चाहता है, और उन कई प कार म से कसी एक को, िज ह क वह उस पर
संयु तत: दायी बनाना चाहता है, यह सूचना देगा क िलखत ऐसे अनादृत कर दी गई है ।
इस धारा क कोई भी बात यह आव यक नह करती है क अनादृत वचन-प के रचियता को या अनादृत िविनमय-प या
चेक के ऊपरवाल या ितगृहीता को सूचना दी जाए ।
94. वह रीित िजसम सूचना दी जा सके अनादर क सूचना उस यि त के , िजसको उसका दया जाना अपेि त है, स यक्
प से ािधकृ त अिभकता को या जहां क वह यि त मर गया है वहां उसके िविधक ितिनिध को या जहां क वह दवािलया घोिषत
कर दया गया है वहां उसके समनुदिे शती को दी जा सके गी, वह मौिखक या िलिखत हो सके गी; य द वह िलिखत है तो डाक ारा भेजी
जा सके गी और कसी भी प म हो सके गी, क तु िजस प कार को वह दी जाए उसको या तो अिभ य त श द म या युि तयु त
अथा वयन से यह जानकारी देगी क िलखत अनादृत हो गई है और कस कार अनादृत हो गई है और यह क वह उस पर दायी
ठहराया जाएगा और वह अनादर के प चात् युि तयु त समय के भीतर उस प कार के , िजसके िलए क वह आशियत है, कारबार के
थान म या (उस दशा म, िजसम ऐसे प कार का कोई कारबार का थान नह है) उसके िनवास- थान पर देनी होगी ।
य द सूचना डाक ारा ठीक पते पर भेजी जाती है और गलत जगह चली जाती है तो ऐसी गलत जगह चली जाने से वह
सूचना अिविधमा य नह हो जाती ।
95. अनादर क सूचना पाने वाला प कार उसे पारे िषत करे गाअनादर क सूचना पाने वाले कसी भी प कार को इस
गरज से क वह कसी पू वक प कार को अपने ित दायी करे अनादर क सूचना ऐसे प कार को युि तयु त समय के अंदर उस दशा के
िसवाय देनी होगी िजसम क ऐसे प कार को धारा 93 म उपबंिधत स यक् सूचना अ यथा ा त हो गई है ।
96. उप थापन के िलए अिभकताजब क िलखत उप थापन के िलए अिभकता के पास िनि त कर दी गई है तब अिभकता
अपने मािलक को सूचना देने के िलए उतने ही समय का हकदार है मानो वह अनादर क सूचना देने वाला धारक हो और मािलक
अनादर क सूचना देने के िलए आगे उतनी ही कालाविध का हकदार हो जाता है ।
97. जब क वह प कार िजसे सूचना दी गई है, मर गया हैजब क वह प कार, िजसे क अनादर क सूचना भेजी गई है,
मर गया है, क तु सूचना भेजने वाले प कार को उसक मृ यु क जानकारी नह है तब वह सूचना पया त है ।
98. अनादर क सूचना कब अनाव यक हैअनादर क कोई भी सूचना
(क) तब आव यक नह है जब क उसके हकदार प कार को उसके दए जाने से अिभमुि त दे दी है;
(ख) लेखीवाल को भा रत करने के िलए तब आव यक नह है, जब क उसने संदाय या द ट कर दया है;
(ग) तब आव यक नह है जब क भा रत प कार को कोई नुकसान सूचना के अभाव से नह हो सकता था;
(घ) तब आव यक नह है जब क सूचना का हकदार प कार स यक् तलाश के प चात् नह पाया जा सकता या
सूचना देने के िलए आब प कार अपनी कसी ु ट के िबना उसे देने म अ य कारणवश असमथ है;
(ङ) लेखीवाल को भा रत करने के िलए तब आव यक नह है जब क ितगृहीता उसका लेखीवाल भी है;
(च) उस वचन-प के बारे म आव यक नह है, जो पर ा य नह है;
(छ) तब आव यक नह है जब क सूचना का हकदार प कार िलखत पर शो य रकम देने का अशत वचन त य को
जानते ए दे देता है ।
अ याय 9
ट पण और सा य के संबध
ं म
99. ट पणजब क वचन-प या िविनमय-प अ ित हण ारा या असंदाय ारा अनादृत हो गया है तब धारक ऐसे
अनादर का ट पण नोटरी पि लक से ऐसी िलखत पर या संल न कागज पर या भागत: एक पर और भागत: दूसरे पर करवा सके गा ।
16
ऐसा ट पण अनादर के प चात् युि तयु त समय के भीतर कया जाना चािहए और उसम अनादर क तारीख, ऐसे अनादर
के िलए दया गया कारण, य द कोई हो, या य द िलखत अिभ य तत: अनादृत नह क गई है तो वह कारण, िजसके िलए धारक उसे
अनादृत मानता है, और नोटरी पि लक के भार िविन द ट कए जाने चािहएं ।
100. सा यजब क वचन-प या िविनमय-प अ ित हण या असंदाय ारा अनादृत हो गया है तब धारक ऐसे अनादर
को नोटरी पि लक ारा युि तयु त समय के भीतर ट पिणत और मािणत करा सके गा । ऐसा माण सा य कहलाता है ।
बेहतर ितभूित के िलए सा यजब क िविनमय-प का ितगृहीता दवािलया हो गया है या िविनमय-प क
प रप वता से पूव उसका यय खुले आम अिध ेिपत कया गया है तब धारक ितगृहीता से बेहतर ितभूित क मांग नोटरी पि लक
से युि तयु त समय के अ दर करवा सके गा और ितभूित दए जाने से इं कार कए जाने पर ऐसे त य को युि तयु त समय के भीतर
पूव त जैसे ट पिणत और मािणत करवा सके गा । ऐसा माण बेहतर ितभूित के िलए सा य कहलाता है ।
101. सा य क अ तव तुए
ं धारा 100 के अधीन सा य म अ त व ट होने चािहएं
(क) या तो वयं िलखत या िलखत क और िजसके ऊपर िलखी या मु त हर बात क अ रश: अनुिलिप;
(ख) उस यि त का नाम िजसके िलए और िजसके िव िलखत साि यत क गई है;
(ग) यह कथन क, यथाि थित, संदाय या ित हण या बेहतर ितभूित क मांग नोटरी पि लक ारा ऐसे यि त
से क गई है; य द उस यि त का कोई उ र है तो उस उ र के श द या यह कथन क उसम कोई उ र नह दया था वह
पाया नह जा सका;
(घ) जब क वचन-प या िविनमय-प अनादृत कया गया है तब अनादर का थान और समय और जब क बेहतर
ितभूित देने से इ कार कया गया है तब इं कार का थान और समय;
(ङ) सा य करने वाले नोटरी पि लक के ह ता र;
(च) आदरणाथ ित हण या आदरणाथ संदाय क दशा म उस यि त का नाम, िजस ारा, उस यि त का नाम
िजसके िलए, और वह रीित, िजससे ऐसा ित हण या संदाय थािपत कया गया था और दया गया था ।
1[नोटरी पि लक इस धारा के खंड (ग) म व णत मांग या तो वयं या अपने िलिपक ारा या, जहां क करार या था से यह
ािधकृ त है वहां, रिज ीकृ त िच ी ारा कर सके गा ।]
102. सा य क सूचनाजब क वचन-प या िविनमय-प का साि यत कराया जाना िविध ारा अपेि त है तब ऐसे
सा य क सूचना उसी रीित म और उ ह शत के अ यधीन रहते ए अनादर क सूचना के बदले म देनी होगी क तु वह सूचना उस
नोटरी पि लक ारा दी जा सके गी जो सा य करता है ।
103. अ ित हण ारा अनादर के प चात् असंदाय के िलए सा यवे सब िविनमय-प , जो ऊपरवाल के िनवास- थान के
तौर पर व णत थान से िभ न कसी अ य थान म देय िलखे गए ह, और जो अ ित हण ारा अनादृत हो गए ह, ऊपरवाल को आगे
कोई और उप थापन के िबना उस थान म, जो संदाय के िलए िविन द ट है, असंदाय के िलए साि यत कए जा सकगे य द उनका
संदाय प रप वता के पूव या प रप वता पर न कर दया गया हो ।
104. िवदेशी िविनमय-प का सा यिवदेशी िविनमय-प उस दशा म अनादर के िलए साि यत ह गे िजसम क ऐसा
सा य उस थान क िविध ारा अपेि त है, जहां वे िलखे गए ह ।
2
[104क. ट पण कब सा य के समतु य होता हैइस अिधिनयम के योजन के िलए जहां क िविनमय-प या वचन-प
के िलए यह अपेि त है क वह एक िविन द ट समय के अ दर या आगे कोई और कायवाही क जाने से पूव साि यत कराया जाए वहां
यह पया त है क वह िविनमय-प िविन द ट समय के अवसान से पूव या कायवाही करने के पूव सा य के िलए ट पिणत कर दया
जाए और त प चात् कसी भी समय िपत सा य ट पण क तारीख को कए गए के तौर पर पूरा कया जा सके गा ।]
अ याय 10
1
1885 के अिधिनयम सं० 2 क धारा 5 ारा अंत: थािपत ।
2
1885 के अिधिनयम सं० 2 क धारा 6 ारा अंत: थािपत ।
17
106. अनादर क सूचना देने का युि तयु त समयय द धारक और वह प कार, िजसे अनादर क सूचना दी जाती है,
यथाि थित, िविभ न थान म कारबार करते ह या रहते ह तो य द ऐसी सूचना अगली डाक से या अनादर के दन के प चात् अगले
दन भेज दी गई हो तो वह युि तयु त समय के अ दर दी गई है ।
य द उ त प कार एक ही थान म कारबार करते ह या रहते ह तो य द ऐसी सूचना इतने समय म भेज दी गई हो क वह
अनादर के दन के प चात् अगले दन अपने गंत य थान पर प च
ं जाए तो वह युि तयु त समय के अ दर दी गई है ।
107. ऐसी सूचना के पारे षण के िलए युि तयु त समयअनादर क सूचना पाने वाला जो प कार कसी पू वक प कार के
िव अपने अिधकार को वृ करना चाहता है, य द उसने उसक ाि त के प चात् उतने ही समय के अ दर उसे पारे िषत कर दया
हो िजतना सूचना देने के िलए उसे िमलता, य द वह धारक होता, तो उसने सूचना युि तयु त समय के अ दर पारे िषत कर दी है ।
अ याय 11
1
1885 के अिधिनयम सं० 2 क धारा 7 ारा ि तीय वा य िनरिसत कया गया ।
2
1885 के अिधिनयम सं० 2 क धारा 8 ारा “नोटरी पि लक क उपि थित म प को अपने ह ता र से िलिखत प म, और” के थान पर ित थािपत ।
3
1885 के अिधिनयम सं० 2 क धारा 8 ारा “और ऐसी घोषणा नोटरी ारा अपने रिज टर म अव य अिभिलिखत करे गा” श द िनरिसत कए गए ।
4
1885 के अिधिनयम सं० 2 क धारा 9 ारा अंत: थािपत ।
18
अ याय 12
ितकर के िवषय म
117. ितकर के बारे म िनयमधारक या कसी पृ ठां कती के ित दािय वाधीन कसी भी प कार ारा वचन-प ,
िविनमय-प या चेक का अनादर कए जाने क दशा म 1*** देय ितकर िन निलिखत िनयम ारा अवधा रत कया जाएगा :
(क) धारक िलखत पर शो य रकम, उसे उप थािपत करने, और ट पिणत और साि यत कराने म उिचत तौर पर
उपगत यय सिहत पाने का हकदार है;
(ख) जब क भा रत यि त उस थान से िभ न थान म रहता है िजसम क िलखत देय थी तब धारक ऐसी रकम
दोन थान के बीच िविनमय क चालू दर पर पाने का हकदार है;
(ग) िजस पृ ठांकक ने दािय वाधीन होते ए उस पर शो य रकम का संदाय कया है वह ऐसी संद रकम संदाय
क तारीख से उसके िनिवदान या आपन क तारीख तक 2[अठारह ितशत] ित वष याज सिहत तथा अनादर और संदाय के
कारण ए सब यय सिहत पाने का हकदार है;
(घ) जब क भा रत यि त और ऐसा पृ ठांकक िविभ न थान म िनवास करते ह तब पृ ठांकक ऐसी रकम दोन
थान के बीच िविनमय क चालू दर पर पाने का हकदार है;
(ङ) ितकर का हकदार प कार अपने को देय ितकर के दािय वाधीन प कार पर, दशन पर या मांग पर संदय े
िविनमय-प अपने ारा उिचत तौर पर उपगत सब यय सिहत अपने को शो य रकम के िलए िलख सके गा । ऐसे िविनमय-
प के साथ अनादृत िलखत और उसका सा य (य द कोई हो) होना चािहए । य द ऐसा िविनमय-प अनादृत कया जाता
है तो उसका अनादर करने वाला प कार उसके िलए ितकर उसी कार से देने के िलए दािय वाधीन है जैसा क वह मूल
िविनमय-प क दशा म होता है ।
अ याय 13
सा य के िवशेष िनयम
118. पर ा य िलखत के बारे म उपधारणाएंजब तक क ितकू ल सािबत नह कर दया जाता, िन निलिखत उपधारणाएं
क जाएंगी :
(क) ितफल के िवषय मयह क हर एक पर ा य िलखत ितफलाथ रिचत या िलखी गई थी और यह क हर
ऐसी िलखत जब ितगृहीत, पृ ठां कत, पर ािमत या अ त रत हो चुक हो तब वह ितफलाथ, ितगृहीत, पृ ठां कत,
पर ािमत या अ त रत क गई थी;
(ख) तारीख के बारे मयह क ऐसी हर पर ा य िलखत िजस पर तारीख पड़ी है, ऐसी तारीख को रिचत या
िलखी गई थी;
(ग) ित हण के समय के बारे मयह क हर ितगृहीत िविनमय-प उसक तारीख के प चात् युि तयु त समय
के अ दर और उसक प रप वता के पूव ितगृहीत कया गया था;
(घ) अ तरण के समय के बारे मयह क पर ा य िलखत का हर अ तरण उसक प रप वता के पूव कया
गया था;
(ङ) पृ ठांकन के म के बारे मयह क पर ा य िलखत पर िव मान पृ ठांकन उस म म कए गए थे िजसम वे
उस पर िव मान ह;
(च) टा प के बारे मयह क खोया गया वचन-प , िविनमय-प या चेक स यक् प से टाि पत था;
(छ) यह क धारक स यक् -अनु म-धारक हैयह क पर ा य िलखत का धारक स यक् -अनु म-धारक है, पर तु
जहां क िलखत उसके िविधपूण वामी से या उसक िविधपूण अिभर ा रखने वाले कसी यि त से अपराध या कपट ारा
अिभ ा त क गई है अथवा उसके रचियता या ितगृहीता से अपराध या कपट ारा अिभ ा त या िविधिव ितफल के
िलए अिभ ा त क गई है वहां यह सािबत करने का भार क धारक स यक् -अनु म-धारक है, उस पर है ।
119. सा य के सािबत होने पर उपधारणाउस िलखत के आधार पर जो अनादृत कर दी गई है, बाद म यायालय पर
सा य के सािबत हो जाने पर अनादर के त य क उपधारणा करे गा य द और जब तक क ऐसा त य नासािबत नह कर दया जाता ।
1
1926 के अिधिनयम सं० 30 क धारा 3 ारा “(िसिवल या संिहता क धारा 532 ारा जैसा उपबंध है उन मामल के िसवाय)” श द , अंक और को ठक का लोप
कया गया ।
2
1988 के अिधिनयम सं० 66 क धारा 3 ारा (30-12-1988 से) “छह ितशत” के थान पर ित थािपत ।
19
120. िलखत क मूल िविधमा यता का या यान करने के िव िवब धवचन-प या कोई भी रचियता और िविनमय-
प या चेक का कोई भी लेखीवाल और लेखीवाल के आदरणाथ िविनमय-प का कोई भी ितगृहीता स यक् -अनु म-धारक ारा उसके
आधार पर कए गए वाद म िलखत क , जैसी क वह मूलत: रची या िलखी गई थी, िविधमा यता का या यान करने के िलए अनु ात
न होगा ।
121. पाने वाले क पृ ठांकन क साम य क या यान करने के िव िवब धवचन-प का कोई भी रचियता और
1
[आदेशानुसार देय] िविनमय-प का कोई ितगृहीता स यक् -अनु म-धारक ारा उसके आधार पर कए गए वाद म उस वचन-प या
िविनमय-प क तारीख पर उसे पृ ठां कत करने क पाने वाले क साम य का या यान करने के िलए अनु ात न होगा ।
122. पू वक प कार के ह ता र या साम य का या यान करने के िव िवब धपर ा य िलखत का कोई भी पृ ठांकक
कसी प चा वत धारक ारा उसके आधार पर कए गए वाद म उस िलखत के कसी भी पू वक प कार के ह ता र या उसक संिवदा
करने क साम य का या यान करने के िलए अनु ात न होगा ।
अ याय 14
ास चेक के िवषय म
123. साधारणत: ास कया आ चेकजहां क चेक पर उसके मुख भाग को काटती ई दो समाना तर आड़ी रेखा के
बीच “और क पनी” श द या उनका कोई सं ेपा र या के वल दो समाना तर आड़ी रेखाएं “पर ा य नह है” श द के सिहत या िबना
बढ़ा दए गए ह वहां ऐसा बढ़ाना ास करना समझा जाएगा और वह चेक साधारणत: ास कया आ समझा जाएगा ।
124. िवशेषत: ास कया आ चेकजहां क चेक पर उसके मुख भाग को काटते ए बककार का नाम “पर ा य नह है”
श द के सिहत या िबना बढ़ा दया गया है वहां ऐसा बढ़ाना ास करना समझा जाएगा और यह समझा जाएगा क वह चेक िवशेषत:
ास कया गया है और उस बककार के प म ास कया गया है ।
125. चेक काटने के प चात् उसे ास करनाजहां क चेक ास कया आ नह है वहां धारक उसे साधारणत: या िवशेषत:
ास कर सके गा ।
जहां क चेक साधारणत: ास कया आ है वहां धारक उसे िवशेषत: ास कर सके गा ।
जहां क चेक साधारणत: या िवशेषत: ास कया आ है वहां धारक उसम “पर ा य नह है” श द बढ़ा सके गा ।
जहां क चेक िवशेषत: ास कया आ है वहां वह बककार िजसके प म वह ास कया आ है, उसे सं ह करने के िलए
अपने अिभकता के प म दूसरे बककार के प म पुन: िवशेषत: ास कर सके गा ।
126. साधारणत: ास कए ए चेक का संदायजहां क चेक साधारणत: ास कया आ है वहां वह बककार, िजस पर
वह िलखा आ है, उसका संदाय कसी बककार को करने से अ यथा न करे गा ।
िवशेषत: ास कए ए चेक का संदायजहां क चेक िवशेषत: ास कया आ है वहां वह बककार, िजस पर वह िलखा
गया है, उसका संदाय उस बककार को िजसके प म वह ास कया आ है, या सं ह करने के िलए उसके अिभकता को करने से
अ यथा न करेगा ।
127. एक से अिधक बार िवशेषत: ास कए ए चेक का संदायजहां क चेक एक से अिधक बककार के प म िवशेषत:
ास कया गया है वहां तब के िसवाय जब क वह सं ह करने के योजन के िलए अिभकता को ास कया गया है, वह बककार, िजस
पर वह िलखा गया है, उसका संदाय करने से इं कार करे गा ।
128. ास चेक का स यक् अनु म म संदायजहां क उस बककार ने, िजस पर ास चेक िलखा गया है, उसका स यक्
अनु म म संदाय कर दया है वहां चेक का संदाय करने वाला बककार और (ऐसा चेक पाने वाले के हाथ म आ जाने क दशा म) उसका
लेखीवाल मश: उ ह अिधकार के हकदार ह गे और सभी पहलु से उसी ि थित म रख दए जाएंगे िजनके वह मश: हकदार होते
और रखे गए होते य द चेक क रकम चेक के सही वामी को दे दी गई होती और उस ारा ा त कर ली गई होती ।
129. ास चेक का स यक् अनु म के बाहर संदायकोई भी बककार जो साधारणत: ास कए गए चेक का संदाय कसी
बककार को करने से अ यथा करता है या िवशेषत: ास कए ए चेक का संदाय उस बककार को, िजसके प म वह ास कया गया है,
या सं हण करने के िलए उसके अिभकता को, जो वयं बककार है, करने से अ यथा करता है, वह चेक के सही वामी के ित उस हािन
के िलए दायी होगा जो ऐसा वामी चेक का संदाय ऐसे कए जाने के कारण उठाए ।
130. “पर ा य नह है” यह श द वाला चेकसाधारणत: या िवशेषत: ास कए ए ऐसे चेक को, िजस पर “पर ा य नह
है” श द िलखे ह, लेने वाला यि त उस चेक पर उससे बेहतर हक न रखेगा और न देने के िलए समथ होगा जैसा उस यि त का था
िजससे उसने उसे िलया है ।
1
1919 के अिधिनयम सं० 8 क धारा 5 ारा “ कसी िविन द ट यि त को या उसके आदेशानुसार, देय” के थान पर ित थािपत ।
20
131. चेक का संदाय ा त करने वाले बककार का अदािय विजस बककार ने अपने प म साधारणत: या िवशेषत: ास
कए ए चेक का संदाय अपने यवहारी लेखे सद्भावपूवक और उपे ा िबना ा त कया है वह बककार उस चेक पर हक के ु टपूण
सािबत होने क दशा म सही वामी के ित कोई दािय व ऐसा संदाय ा त करने के कारण ही उपगत न करेगा ।
1
[ प टीकरण 2[1]बककार ास चेक का संदाय अपने कसी यवहारी लेखे इस धारा के अथ म ा त करता है य िप चेक
का संदाय ा त करने के पूव वह चेक क रकम अपने यवहारी के खाते म जमा कर देता है ।]
प टीकरण 2उस बककार का, जो उसके पास धा रत सं ेिपत चेक के इलै ािनक ित प के आधार पर संदाय ा त
3[
करता है, यह कत य होगा क वह सं ेिपत कए जाने वाले चेक क थमदृ ा असिलयत का और िलखत के दृ यमा से कट कसी
कपट, कू टरचना या छेड़दाड़ का, िजसका स यापन स यक् त परता और मामूली सावधानी से कया जा सकता है, स यापन कर ले ।]
4
[131क. ा ट को अ याय का लागू होनाइस अ याय के उपब ध धारा 85क म यथाप रभािषत कसी भी ा ट को ऐसे
लागू ह गे मानो ा ट चेक हो ।]
अ याय 15
1
2002 के अिधिनयम सं० 55 क धारा 6 ारा पुन:सं यां कत ।
2
1922 के अिधिनयम सं० 18 क धारा 2 ारा अ त: थािपत ।
3
2002 के अिधिनयम सं० 55 क धारा 6 ारा अंत: थािपत ।
4
1947 के अिधिनयम सं० 33 क धारा 2 ारा अंत: थािपत ।
5
1951 के अिधिनयम सं० 3 क धारा 3 तथा अनुसूची ारा “रा य ” के थान पर ित थािपत ।
21
य िप जो िविनमय-प िवदेशी नह ह उनके बारे म एति मन् अ त व ट िनयम के अनुसार वह सूचना नह है । तथािप वह सूचना
पया त है ।
136. भारत के बाहर क तु भारत क िविध के अनुसार रिचत आ द िलखतय द पर ा य िलखत 1[भारत के बाहर,] क तु
2
[भारत क िविध] के अनुसार, रिचत, िलिखत, ितगृहीत या पृ ठां कत है तो इस बात से क ऐसी िलखत िजस करार क सा य है ।
वह उस देश क िविध के अनुसार अिविधमा य है िजसम वह कया था, उस पर 3[भारत म] कया गया कोई प चा वत ित हण या
पृ ठांकन अिविधमा य नह हो जाता ।
137. िवदेशी िविध के बारे म उपधारणावचन-प , िविनमय-प और चेक संबंधी कसी भी िवदेश 4*** क िविध के
बारे म यह उपधारणा क जाएगी क वह वैसी ही है जैसी क 5[भारत] क है जब तक क त ितकू ल सािबत न कर दया जाए ।
6
[अ याय 17
खात म अपया त िनिधय के कारण कितपय चेक के अनादरण क दशा म शाि तयां
138. खात म अपया त िनिधय , आ द के कारण चेक का अनादरणजहां कसी यि त ारा कसी ऋण या अ य दािय व
के पूणत: या भागत: उ मोचन के िलए कसी बककार के पास अपने ारा रखे गए खाते म से कसी अ य यि त को कसी धनरािश के
संदाय के िलए िलखा गया कोई चेक बक ारा संदाय कए िबना या तो इस कारण लौटा दया जाता है क उस खाते म जमा धनरािश
उस चेक का आदरण करने के िलए अपया त है या वह उस रकम से अिधक है िजसका बक के साथ कए गए कराकर ारा उस खाते म से
संदाय करने करने का ठहराव कया गया है, वहां ऐसे यि त के बारे म यह समझा जाएगा क उसने अपराध कया है और वह, इस
अिधिनयम के कसी अ य उपबंध पर ितकू ल भाव डाले िबना, कारावास से, िजसक अविध 7[दो वष] तक क हो सके गी या जुमाने
से, जो चेक क रकम का दुगुना तक हो सके गा, या दोन से, दंडनीय होगा :
पर तु इस धारा म अंत व ट कोई बात तब तक लागू नह होगी जब तक
(क) वह चेक उसके , िलखे जाने क तारीख से छह मास क अविध के भीतर या उसक िविधमा यता क अविध के
भीतर जो भी पूवतर हो, बक को तुत न कया गया हो;
(ख) चेक का पाने वाला या धारक, स यक् अनु म म चेक के लेखीवाल को, असंद चेक के लौटाए जाने क बाबत
बक से उसे सूचना क ाि त के 8[तीस दन] के भीतर, िलिखत प म सूचना देकर उ त धनरािश के संदाय के िलए मांग नह
करता है; और
(ग) ऐसे चेक का लेखीवाल, चेक के पाने वाले को या धारक को उ त सूचना क ाि त के पं ह दन के भीतर उ त
धनरािश का संदाय स यक् अनु म म करने म असफल नह रहता है ।
प टीकरणइस धारा के योजन के िलए, “ऋण या अ य दािय व” से िविधत: वतनीय ऋण या अ य दािय व
अिभ ेत है ।
139. धारक के प म उपधारणाजब तक क त ितकू ल सािबत न हो, यह उपधारणा क जाएगी क चेक के धारक ने
धारा 138 म िन द ट कृ ित का चेक कसी ऋण या अ य दािय व के पूणत: या भागत: उ मोचन के िलए ा त कया है ।
140. ितर ा, जो धारा 138 के अधीन कसी अिभयोजन म अनु ात नह क जा सके गीधारा 138 के अधीन कसी
अपराध के िलए अिभयोजन म यह कोई ितर ा नह होगी क जब लेखीवाल ने चेक जारी कया था तब उसके पास यह िव वास करने
का कोई कारण नह था क चेक का, तुत कए जाने पर, उस धारा म किथत कारण से अनादरण हो सकता है ।
141. कं पिनय ारा अपराध(1) य द धारा 138 के अधीन अपराध करने वाला यि त कोई कं पनी है तो ऐसा येक
यि त जो उस अपराध के कए जाने के समय उस कं पनी के कारबार के संचालन के िलए उस कं पनी का भारसाधक और उसके ित
उ रदायी था और साथ ही वह कं पनी भी ऐसे अपराध के िलए दोषी समझे जाएंगे और तदनुसार अपने िव कायवाही कए जाने और
दंिडत कए जाने के भागी ह गे :
1
भारतीय वतं ता (के ीय अिधिनयम तथा अ यादेश अनुकूलन) आदेश, 1948, िविध अनुकूलन आदेश, 1950 और 1951 के अिधिनयम सं० 3 क धारा 3 तथा अनुसूची
ारा “ि टश भारत के बाहर” श द अनु मश: ित थािपत होकर उपरो त प म आए ।
2
भारतीय वतं ता (के ीय अिधिनयम तथा अ यादेश अनुकूलन) आदेश, 1948, िविध अनुकूलन आदेश, 1950 और 1951 के अिधिनयम सं० 3 ारा “ि टश भारत क
िविध” श द अनु मश: ित थािपत होकर उपरो त प म आए ।
3
भारतीय वतं ा (के ीय अिधिनयम तथा अ यादेश अनुकूलन) आदेश, 1948, िविध अनुकूलन आदेश, 1950 और 1951 के अिधिनयम सं० 3 ारा “ि टश भारत म”
श द अनु मश: ित थािपत होकर उपरो त प म आए ।
4
1956 के अिधिनयम सं० 62 क धारा 2 और अनुसूची ारा “या ज मू-क मीर रा य” श द का लोप कया गया ।
5
भारतीय वतं ा (के ीय अिधिनयम तथा अ यादेश अनुकूलन) आदेश, 1948, िविध अनुकूलन आदेश, 1950 और 1951 के अिधिनयम सं० 3 क धारा 3 तथा अनुसूची
ारा “ि टश भारत” श द अनु मश: ित थािपत होकर उपरो त प म आए ।
6
1988 के अिधिनयम सं० 66 क धारा 4 ारा (1-4-989 से) अ त: थािपत ।
7
2002 के अिधिनयम सं० 55 क धारा 7 ारा (6-2-2003 से) “एक वष” ित थािपत ।
8
2002 के अिधिनयम सं० 53 क धारा 7 ारा (6-2-2003 से) “प ह दन” के थान पर ित थािपत ।
22
परं तु इस उपधारा क कोई बात कसी ऐसे यि त को दंड का भागी नह बनाएगी य द वह यह सािबत कर देता है क
अपराध उसक जानकारी के िबना कया गया था अथवा उसने ऐसे अपराध के िनवारण के िलए सब स यक् त परता बरती थी :
1[परं तु
यह और क जहां कसी यि त को, यथाि थित, क ीय सरकार या रा य सरकार या क ीय सरकार अथवा रा य
सरकार के वािम वाधीन या िनयं णाधीन कसी िव िनगम म कोई पद धारण करने या िनयोजन म रहने के कारण कसी कं पनी के
िनदेशक के प म नामिन द ट कया जाता है, वहां वह इस अ याय के अधीन अिभयोजन का भागी नह होगा ।]
(2) उपधारा (1) म कसी बात के होते ए भी, जहां इस अिधिनयम के अधीन कोई अपराध कसी कं पनी ारा कया गया है
और यह सािबत हो जाता है क वह अपराध कं पनी के कसी िनदेशक, बंधक, सिचव या अ य अिधकारी क सहमित या मौनानुकूलता
से कया गया है या उस अपराध का कया जाना उसक कसी उपे ा के कारण माना जा सकता है वहां ऐसा िनदेशक, बंधक, सिचव
या अ य अिधकारी भी, उस अपराध का दोषी समझा जाएगा और तदनुसार अपने िव कायवाही कए जाने और दंिडत कए जाने का
भागी होगा ।
प टीकरणइस धारा के योजन के िलए,
(क) “कं पनी” से कोई िनगिमत िनकाय अिभ ेत है और इसके अंतगत फम या यि तय का अ य संगम है; और
(ख) कसी फम के संबंध म, “िनदेशक” से उस फम का कोई भागीदार अिभ ेत है ।
142. अपराध का सं ान2[(1)] दंड या संिहता, 1973 (1974 का 2) म कसी बात के होते ए भी,
(क) कोई भी यायालय धारा 138 के अधीन दंडनीय कसी अपराध का सं ान, चेक के पाने वाले या धारक ारा
स यक् अनु म म कए गए िलिखत प रवाद पर ही करेगा, अ यथा नह ;
(ख) ऐसा प रवाद उस तारीख के एक मास के भीतर कया जाता है िजसको धारा 138 के परं तुक के खंड (ग) के
अधीन वाद हेतुक उ भूत होता है :
3
[परंतु यायालय ारा कसी प रवाद का सं ान िविहत अविध के प चात् िलया जा सके गा य द प रवादी
यायालय का यह समाधान कर देता है क उसके पास ऐसी अविध के भीतर प रवाद नह करने का पया त कारण था ;]
(ग) महानगर मिज टे या थम वग याियक मिज ेट के यायालय से अवर कोई यायालय धारा 138 के अधीन
दंडनीय कसी अपराध का िवचारण नह करे गा ।
धारा 138 के अधीन दंडनीय अपराध क जांच और उसका िवचारण, के वल ऐसे यायालय ारा कया जाएगा, िजसक
4[(2)
1
2002 के अिधिनयम सं० 55 क धारा 8 ारा (6-2-2003 से) अंत: थािपत ।
2
2015 के अिधिनयम सं० 26 क धारा 3 ारा पुन:सं यां कत ।
3
2002 के अिधिनयम सं० 55 क धारा 9 ारा अंत: थािपत ।
4
2015 के अिधिनयम सं० 26 क धारा 3 ारा अंत: थािपत ।
5
2015 के अिधिनयम सं० 26 क धारा 4 ारा अंत: थािपत ।
23
(3) य द पर ा य िलखत (संशोधन) अिधिनयम, 2015 के ारंभ क तारीख को, यथाि थित, उसी पाने वाले या धारक ारा
स यक् अनु म म चेक के उसी लेखीवाल के िव फाइल कए गए एक से अिधक अिभयोजन िभ न-िभ न यायालय के सम लंिबत
ह, तो यायालय क अवे ा म उ त त य लाए जाने पर, वह यायालय पर ा य िलखत (संशोधन) अ यादेश, 2015 ारा यथा
संशोिधत धारा 142 क उपधारा (2) के अधीन अिधका रता रखने वाले ऐसे यायालय को, िजसके सम पहला मामला फाइल कया
गया था और लंिबत है, वह मामला इस कार अंत रत कर देगा, मानो वह उपधारा सभी ताि वक समय पर वृ थी ।]
1
[143. यायालय क मामल का संि त िवचारण करने क शि त(1) दंड या संिहता, 1973 (1974 का 2) म कसी
बात के होते ए भी, इस अ याय के अधीन सभी अपराध का िवचारण थम ेणी के याियक मिज ेट या महानगर मिज टे ारा
कया जाएगा और उ त संिहता क धारा 262 से धारा 265 के उपबंध (दोन धारा को सि मिलत करते ए), जहां तक हो सके , ऐसे
िवचारण को लागू ह गे :
परं तु इस धारा के अधीन संि त िवचारण म कसी दोषिसि क दशा म, मिज ेट के िलए ऐसे कारावास का, िजसक
अविध एक वष से अिधक नह होगी और ऐसे जुमाने का िजसक रकम पांच हजार पए से अिधक नह होगी, दंडादेश पा रत करना
िविधपूण होगा :
परं तु यह और क इस धारा के अधीन संि त िवचारण के ारं भ पर या उसके दौरान जब मिज ट
े को यह तीत होता है क
मामले क कृ ित ऐसी है क एक वष से अिधक अविध के कारावास का दंडादेश पा रत कया जा सकता है या यह क कसी अ य
कारण से, मामले का संि त प म िवचारण कया जाना अवांछनीय है तो मिज टे प कार को सुनने के प चात्, उस आशय का
आदेश अिभिलिखत करेगा और त प चात् ऐसे कसी सा ी को वापस बुलाएगा िजसक परी ा क जा चुक है और उ त संिहता म
उपबंिधत रीित से मामले को सुनने या पुन: सुनने के िलए अ सर होगा ।
(2) इस धारा के अधीन कसी मामले का िवचारण, यथासा य, अिवरोध याय के िहत म उसके समापन तक दन ित दन
जारी रखा जाएगा । जब तक क यायालय लेखब कए जाने वाले कारण से िवचारण का अगले दन से परे के िलए थिगत कया
जाना आव यक नह समझता है ।
(3) इस धारा के अधीन येक िवचारण यथासंभव शी ता से संचािलत कया जाएगा और िवचारण को प रवाद फाइल करने
क तारीख से छह मास के भीतर समा त करने का यास कया जाएगा ।
144. समन क तामील करने क रीित(1) दंड या संिहता, 1973 (1974 का 2) म कसी बात के होते ए भी, और इस
अ याय के योजन के िलए, कसी अिभयु त या सा ी को समन जारी करते ए कोई मिज ेट समन क एक ित उस थान पर पीड
पो ट या ऐसी कू रयर सेवा के ारा जो सेशन यायालय ारा अनुमो दत है, तामील करने का िनदेश दे सके गा जहां ऐसा अिभयु त
या सा ी मामूली तौर से िनवास करता है या कारबार करता है या लाभ के िलए यि तगत प से काय करता है ।
(2) जहां ऐसी कोई अिभ वीकृ ित, िजसका कसी अिभयु त या सा ी ारा ह ता रत क जानी ता प यत है या उसका
पृ ठांकन डाक िवभाग या कू रयर सेवा ारा ािधकृ त कसी यि त ारा कया गया इस कार ता प यत है क अिभयु त या सा ी
ने समन लेने से इ कार कर दया है, ा त ई है, वहां समन जारी करने वाला यायालय यह घोिषत कर सके गा क समन क स यक्
प से तामील हो गई है ।
145. शपथप पर सा य(1) दंड या संिहता, 1973 (1974 का 2) म कसी बात के होते ए भी, प रवादी का सा य
उसके ारा शपथप पर दया जा सके गा और सभी यायसंगत अपवाद के अ यधीन उ त संिहता के अधीन कसी जांच, िवचारण या
अ य कायवाही म सा य म पढ़ा जा सके गा ।
(2) यायालय, य द वह उिचत समझे, अिभयोजन या अिभयु त के आवेदन पर ऐसे कसी यि त को जो शपथप पर सा य
देता है, समन करेगा और उसम अंत व ट त य के बारे म उसक परी ा करे गा ।
146. बक क पच का कितपय त य के िलए थमदृ ट्या सा य होना यायालय इस अ याय के अधीन येक कायवाही के
संबंध म बक क पच या ापन के , िजसम यह ोतन करने वाला शासक य िच न हो क चेक अनाद रत हो गया है, तुत कए जाने
पर ऐसे चेक का अनादर होने के त य क अवधारणा करे गा जब तक क ऐसे त य को नासािबत न कर दया गया हो ।
147. अपराध का शमनीय होनादंड या संिहता, 1973 (1974 का 2) म कसी बात के होते ए भी इस अिधिनयम के
अधीन दंडनीय येक अपराध शमनीय होगा ।]
अनुसूची[अिधिनयिमितय का िनरसन ।]संशोधन अिधिनयम, 1891 (1891 का अिधिनयम सं यांक 12) क धारा 2
तथा अनुसूची 1, भाग 1 ारा िनरिसत ।
________
1
2002 के अिधिनयम सं० 55 क धारा 10 ारा अंत: थािपत ।