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घरे लू िहसा से मिहला संरक्षण अिधिनयम, 2005

(2005 का अिधिनयम संख्यांक 43)


[13 िसतम्बर, 2005]
ऐसी मिहला के , जो कु टुंब के भीतर होने वाली िकसी पर्कार की
िहसा से पीिड़त ह, संिवधान के अधीन पर्त्याभूत अिधकार
के अिधक पर्भावी सरं क्षण और उससे संबिं धत या
उसके आनुषिं गक िवषय का उपबंध
करने के िलए
अिधिनयम
भारतीय गणराज्य के छप्पनव वषर् म संसद् ारा िनम्निलिखत रूप म यह अिधिनयिमत हो:—
अध्याय 1

पर्ारं िभक
1. संिक्षप्त नाम, िवस्तार और पर्ारं भ—(1) इस अिधिनयम का संिक्षप्त नाम घरेलू िहसा से मिहला संरक्षण अिधिनयम,
2005 है ।
(2) इसका िवस्तार जम्मू-कश्मीर राज्य के िसवाय संपूणर् भारत पर है ।
(3) यह उस तारीख को पर्वृ होगा, िजसे के दर्ीय सरकार, राजपतर् म अिधसूचना ारा, िनयत करे ।
2. पिरभाषाएं—(1) इस अिधिनयम म, जब तक िक संदभर् से अन्यथा अपेिक्षत न हो,—
(क) “व्यिथत व्यिक्त” से कोई ऐसी मिहला अिभपर्ेत है जो पर्त्यथ की घरे लू नातेदारी म है या रही है और िजसका
अिभकथन है िक वह पर्त्यथ ारा िकसी घरे लू िहसा का िशकार रही है;
(ख) “बालक” से कोई ऐसा व्यिक्त अिभपर्ेत है जो अठारह वषर् से कम आयु का है और िजसके अंतगर्त कोई द क,
सौतेला या पोिषत बालक है;
(ग) “पर्ितकर आदेश” से धारा 22 के िनबंधन के अनुसार अनुद कोई आदेश अिभपर्ेत है;
(घ) “अिभरक्षा आदेश” से धारा 21 के िनबंधन के अनुसार अनुद कोई आदेश अिभपर्ेत है;
(ङ) “घरे लू घटना िरपोटर्” से ऐसी िरपोटर् अिभपर्ेत है जो, िकसी व्यिथत व्यिक्त से घरे लू िहसा की िकसी िशकायत
की पर्ािप्त पर, िविहत पर्रूप म तैयार की गई हो;
(च) “घरे लू नातेदारी” से ऐसे दो व्यिक्तय के बीच नातेदारी अिभपर्ेत है, जो साझी गृहस्थी म एक साथ रहते ह या
िकसी समय एक साथ रह चुके ह, जब वे, समरक्तता, िववाह ारा या िववाह, द क गर्हण की पर्कृ ित की िकसी नातेदारी
ारा संबंिधत ह या एक अिवभक्त कु टुंब के रूप म एक साथ रहने वाले कु टु म्ब के सदस्य ह;
(छ) “घरे लू िहसा” का वही अथर् है जो उसका धारा 3 म है;
(ज) “दहेज” का वही अथर् होगा, जो दहेज पर्ितषेध अिधिनयम, 1961 (1961 का 28) की धारा 2 म है;
(झ) “मिजस्टर्ेट” से उस क्षेतर् पर, िजसम व्यिथत व्यिक्त अस्थायी रूप से या अन्यथा िनवास करता है या िजसम
पर्त्यथ िनवास करता है या िजसम घरेलू िहसा का होना अिभकिथत िकया गया है, दंड पर्िकर्या संिहसा, 1973 (1974 का 2)
के अधीन अिधकािरता का पर्योग करने वाला, यथािस्थित, पर्थम वगर् न्याियक मिजस्टर्ेट या महानगर मिजस्टर्ेट अिभपर्ेत है;
(ञ) “िचिकत्सीय सुिवधा” से ऐसी सुिवधा अिभपर्ेत है जो इस अिधिनयम के पर्योजन के िलए, राज्य सरकार ारा
िचिकत्सीय सुिवधा अिधसूिचत की जाए;
(ट) “धनीय अनुतोष” से ऐसा पर्ितकर अिभपर्ेत है िजसके िलए कोई मिजस्टर्ेट घरे लू िहसा के पिरणामस्वरूप
व्यिथत व्यिक्त ारा उपगत व्यय और सहन की गई हािनय को पूरा करने के िलए , इस अिधिनयम के अधीन िकसी अनुतोष
की ईप्सा करने वाले आवेदन की सुनवाई के दौरान, िकसी पर्कर्म पर, व्यिथत व्यिक्त को संदाय करने के िलए, पर्त्यथ को
आदेश दे सके गा;
(ठ) “अिधसूचना” से राजपतर् म पर्कािशत कोई अिधसूचना अिभपर्ेत है और “अिधसूिचत” पद का तदनुसार अथर्
लगाया जाएगा;
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(ड) “िविहत” से इस अिधिनयम के अधीन बनाए गए िनयम ारा िविहत अिभपर्ेत है;
(ढ) “संरक्षण अिधकारी” से धारा 8 की उपधारा (1) के अधीन राज्य सरकार ारा िनयुक्त कोई अिधकारी
अिभपर्ेत है;
(ण) “संरक्षण आदेश” से धारा 18 के िनबंधन के अनुसार िकया गया कोई आदेश, अिभपर्ेत है;
(त) “िनवास आदेश” से धारा 19 की उपधारा (1) के िनबंधन के अनुसार िदया गया कोई आदेश अिभपर्ेत है;
(थ) “पर्त्यथ ” से कोई वयस्क पुरुष अिभपर्ेत है जो व्यिथत व्यिक्त की घरे लू नातेदारी म है या रहा है और िजसके
िवरु व्यिथत व्यिक्त ने, इस अिधिनयम के अधीन कोई अनुतोष चाहा है :
परं तु यह िक कोई व्यिथत पत्नी या िववाह की पर्कृ ित की िकसी नातेदारी म रहने वाली कोई मिहला भी पित या
पुरुष भागीदार के िकसी नातेदार के िवरु िशकायत फाइल कर सके गी;
(द) “सेवा पर्दाता” से धारा 10 की उपधारा (1) के अधीन रिजस्टर्ीकृ त कोई अिस्तत्व अिभपर्ेत है;
(ध) “साझी गृहस्थी” से ऐसी गृहस्थी अिभपर्ेत है, जहां व्यिथत व्यिक्त रहता है या िकसी घरे लू नातेदारी म या तो
अके ले या पर्त्यथ के साथ िकसी पर्कम पर रह चुका है, और िजसके अंतगर्त ऐसी गृहस्थी भी है जो चाहे उस व्यिथत व्यिक्त
और पर्त्यथ के संयुक्त: स्वािमत्व या िकरायेदारी म है, या उनम से िकसी के स्वािमत्व या िकरायेदारी म है, िजसके संबंध म
या तो व्यिथत व्यिक्त या पर्त्यथ या दोन संयुक्त रूप से या अके ले, कोई अिधकार, हक, िहत या साम्या रखते ह और िजसके
अंतगर्त ऐसी गृ्हस्थी भी है जो ऐसे अिवभक्त कु टुंब का अंग हो सकती है िजसका पर्त्यथ , इस बात पर ध्यान िदए िबना िक
पर्त्यथ या व्यिथत व्यिक्त का उस गृहस्थी म कोई अिधकार, हक या िहत है, एक सदस्य है;
(न) “आशर्य गृह” से ऐसा कोई आशर्य गृह अिभपर्ेत है, िजसको इस अिधिनयम के पर्योजन के िलए राज्य सरकार
ारा एक आशर्य गृह के रूप म, अिधसूिचत िकया जाए ।
अध्याय 2

घरे लू िहसा
3. घरे लू िहसा की पिरभाषा—इस अिधिनयम के पर्योजन के िलए पर्त्यथ का कोई कायर्, लोप या िकसी कायर् का करना या
आचरण, घरेलू िहसा गिठत करे गा यिद वह,—
(क) व्यिथत व्यिक्त के स्वास्थ्य, सुरक्षा, जीवन, अंग की या चाहे उसकी मानिसक या शारीिरक भलाई की अपहािन
करता है, या उसे कोई क्षित पहुंचाता है या उसे संकटापन्न करता है या उसकी ऐसा करने की पर्कृ ित है और िजसके अंतगर्त
शारीिरक दुरुपयोग, लिगक दुरुपयोग, मौिखक और भावनात्मक दुरुपयोग और आिथक दुरुपयोग कािरत करना भी है; या
(ख) िकसी दहेज या अन्य संपि या मूल्यवान पर्ितभूित के िलए िकसी िविधिवरु मांग की पूित के िलए उसे या
उससे संबंिधत िकसी अन्य व्यिक्त को पर्पीिड़त करने की दृिष्ट से व्यिथत व्यिक्त का उत्पीड़न करता है या उसकी अपहािन
करता है या उसे क्षित पहुंचाता है या संकटापन्न करता है; या
(ग) खंड (क) या खंढ (ख) म विणत िकसी आचरण ारा व्यिथत व्यिक्त या उससे संबंिधत िकसी व्यिक्त पर धमकी
का पर्भाव रखता है; या
(घ) व्यिथत व्यिक्त को, अन्यथा क्षित पहुंचाता है या उत्पीड़न कािरत करता है, चाहे वह शारीिरक हो
या मानिसक ।
स्पष्टीकरण 1—इस धारा के पर्योजन के िलए,—
(i) “शारीिरक दुरुपयोग” से ऐसा कोई कायर् या आचरण अिभपर्ेत है जो ऐसी पर्कृ ित का है, जो व्यिथत व्यिक्त को
शारीिरक पीड़ा, अपहािन या उसके जीवन, अंग या स्वास्थ्य को खतरा कािरत करता है या उससे उसके स्वास्थ्य या िवकास
का हर्ास होता है और इसके अंतगर्त हमला, आपरािधक अिभतर्ास और आपरािधक बल भी है;
(ii) “लिगक दुरुपयोग” से लिगक पर्कृ ित का कोई आचरण अिभपर्ेत है, जो मिहला की गिरमा का दुरुपयोग,
अपमान, ितरस्कार करता है या उसका अन्यथा अितकर्मण करता है;
(iii) “मौिखक और भावनात्मक दुरुपयोग” के अन्तगर्त िनम्निलिखत ह,—
(क) अपमान, उपहास, ितरस्कार, गाली और िवशेष रूप से संतान या नर बालक के न होने के संबंध म
अपमान या उपहास; और
(ख) िकसी ऐसे व्यिक्त को शारीिरक पीड़ा कािरत करने की लगातार धमिकयां देना, िजसम व्यिथत
व्यिक्त िहतब है;
3

(iv) “आिथक दुरुपयोग” के अंतगर्त िनम्निलिखत ह:—


(क) ऐसे सभी या िकन्ह आिथक या िव ीय संसाधन , िजनके िलए व्यिथत व्यिक्त िकसी िविध या रूिढ़
के अधीन हकदार है, चाहे वे िकसी न्यायालय के िकसी आदेश के अधीन या अन्यथा संदय े ह या िजनकी व्यिथत
व्यिक्त, िकसी आवश्यकता के िलए, िजसके अंतगर्त व्यिथत व्यिक्त और उसके बालक , यिद कोई ह , के िलए घरे लू
आवश्यकताएं भी ह, अपेक्षा करता है, िकन्तु जो उन तक सीिमत नह ह, स्तर्ीधन, व्यिथत व्यिक्त के संयुक्त रूप से
या पृथक्त: स्वािमत्वाधीन संपि , साझी गृहस्थी और उसके रखरखाव से संबंिधत भाटक का संदाय, से
वंिचत करना;
(ख) गृहस्थी की चीजबस्त का व्ययन, आिस्तय का चाहे वे जंगम ह या स्थावर, मूल्यवान वस्तु ,
शेयर , पर्ितभूितय , बंधपतर् और उसके सदृश या अन्य संपि का, िजसम व्यिथत व्यिक्त कोई िहत रखता है या
घरे लू नातेदारी के आधार पर उसके पर्योग के िलए हकदार है या िजसकी व्यिथत व्यिक्त या उसकी संतान ारा
युिक्तयुक्त रूप से अपेक्षा की जा सकती है या उसके स्तर्ीधन या व्यिथत व्यिक्त ारा संयुक्तत: या पृथक्त: धािरत
िकसी अन्य संपि का कोई अन्य संकर्ामण; और
(ग) ऐसे संसाधन या सुिवधा तक, िजनका घरे लू नातेदारी के आधार पर कोई व्यिथत व्यिक्त, उपयोग
या उपभोग करने के िलए हकदार है, िजसके अंतगर्त साझी गृहस्थी तक पंहुच भी है, लगातार पहुंच के िलए पर्ितषेध
या िनबर्न्धन ।
स्पष्टीकरण 2—यह अवधािरत करने के पर्योजन के िलए िक क्या पर्त्यथ का कोई कायर्, लोप या िकसी
कायर् का करना या आचरण इस धारा के अधीन “घरे लू िहसा” का गठन करता है, मामले के संपूणर् तथ्य और
पिरिस्थितय पर िवचार िकया जाएगा ।
अध्याय 3

संरक्षण अिधकािरय , सेवा पर्दाता आिद की शािक्तयां और कतर्व्य


4. सरं क्षण अिधकारी को जानकारी का िदया जाना और जानकारी देने वाले के दाियत्व का अपवजर्न—(1) कोई व्यिक्त,
िजसके पास ऐसा िवश्वास करने का कारण है िक घरे लू िहसा का कोई कायर् हो चुका है या हो रहा है या िकए जाने की संभावना है, तो
वह संब संरक्षण अिधकारी को इसके बारे म जानकारी दे सके गा ।
(2) उपधारा (1) के पर्योजन के िलए, िकसी व्यिक्त ारा, स ािवक रूप दे दी जाने वाली जानकारी के िलए, िसिवल या
दांिडक कोई दाियत्व उपगत नह होगा ।
5. पुिलस अिधकािरय , सेवा पर्दाता और मिजस्टर्ेट के कतर्व्य—कोई पुिलस अिधकारी, संरक्षण अिधकारी, सेवा पर्दाता या
मिजस्टर्ेट, िजसे घरे लू िहसा की कोई िशकायत पर्ाप्त हुई है या जो घरे लू िहसा की िकसी घटना के स्थान पर अन्यथा उपिस्थत है या जब
घरे लू िहसा की िकसी घटना की िरपोटर् उसको दी जाती है तो वह, व्यिथत व्यिक्त को—
(क) इस अिधिनयम के अधीन, िकसी संरक्षण आदेश, धनीय राहत के िलए िकसी आदेश, िकसी अिभरक्षा आदेश,
िकसी िनवास आदेश, िकसी पर्ितकर आदेश या ऐसे एक आदेश से अिधक के रूप म िकसी अनुतोष को अिभपर्ाप्त करने के िलए
आवेदन करने के उसके अिधकार की;
(ख) सेवा पर्दाता की सेवा की उपलब्धता की;
(ग) संरक्षण अिधकािरय की सेवा की उपलब्धता की;
(घ) िविधक सेवा पर्ािधकरण अिधिनयम, 1987 (1987 का 39) के अधीन िन:शुल्क िविधक सेवा के उसके
अिधकार की;
(ङ) जहां कह सुसंगत हो, भारतीय दंड संिहता (1860 का45) की धारा 498क के अधीन िकसी पिरवाद के फाइल
करने के उसके अिधकार की,
जानकारी देगा :
परन्तु इस अिधिनयम की िकसी बात का िकसी रीित म यह अथर् नह लगाया जाएगा िक वह िकसी पुिलस अिधकारी को
िकसी संज्ञेय अपराध के िकए जाने के बारे म जानकारी पर्ाप्त होने पर िविध के अनुसार कायर्वाही करने के िलए, अपने कतर्व्य से
अवमुक्त करती है ।
6. आशर्य गृह के कतर्व्य—यिद, कोई व्यिक्त या उसकी ओर से कोई संरक्षण अिधकारी या कोई सेवा पर्दाता िकसी आशर्य गृह
के भारसाधक व्यिक्त से, उसको आशर्य उपलब्ध करने का अनुरोध करता है तो आशर्य गृह का ऐसा भारसाधक व्यिक्त, व्यिथत व्यिक्त
को, आशर्य गृह म आशर्य उपलब्ध कराएगा ।
4

7. िचिकत्सीय सुिवधा के कतर्व्य—यिद, कोई व्यिथत व्यिक्त या उसकी ओर से कोई संरक्षण अिधकारी या कोई सेवा
पर्दाता, िकसी िचिकत्सीय सुिवधा के भारसाधक व्यिक्त से, उसको कोई िचिकत्सीय सहायता उपलब्ध कराने का अनुरोध करता है तो
िचिकत्सीय सुिवधा को ऐसा भारसाधक व्यिक्त, व्यिथत व्यिक्त को उस िचिकत्सीय सुिवधा म िचिकत्सीय सहायता उपलब्ध कराएगा ।
8. संरक्षण अिधकािरय की िनयुक्त—(1) राज्य सरकार, अिधसूचना ारा पर्त्येक िजले म उतने संरक्षण अिधकारी िनयुक्त
करे गी िजतने वह आवश्यक समझे और वह उन क्षेतर् या क्षेतर् को भी अिधसूिचत करे गी, िजनके भीतर संरक्षण अिधकारी इस अिधिनयम
ारा या उसके अधीन उसको पर्द शिक्तय को पर्योग और कतर्व्य का पालन करे गा ।
(2) ऐसे संरक्षण अिधकारी, जहां तक संभव हो, मिहलाएं ह गी और उनके पास ऐसी अहर्ताएं और अनुभव होगा, जो िविहत
िकया जाए ।
(3) संरक्षण अिधकारी और उसके अधीनस्थ अन्य अिधकािरय की सेवा के िनबंधन और शत ऐसी ह गी जो िविहत की जाएं ।
9. संरक्षण अिधकािरय के कतर्व्य और कृ त्य—(1) संरक्षण अिधकारी के िनम्निलिखत कतर्व्य ह गे—
(क) िकसी मिजस्टर्ेट को, इस अिधिनयम के अधीन उसके कृ त्य के िनवर्हन म सहायता करना;
(ख) िकसी घरे लू िहसा की िशकायत की पर्ािप्त पर, िकसी मिजस्टर्ेट को, ऐसे पर्रूप और रीित म जो िविहत की
जाए, घरे लू िहसा की िरपोटर् करना और उस पुिलस थाने के , िजसकी अिधकािरता की स्थानीय सीमा के भीतर, घरे लू िहसा
का होना अिभकिथत िकया गया है, भारसाधक पुिलस अिधकारी को और उस क्षेतर् के सेवा पर्दाता को, उस िरपोटर् की
पर्ितयां अगर्ेिषत करना;
(ग) िकसी मिजस्टर्ेट को, यिद व्यिथत व्यिक्त, िकसी संरक्षण आदेश के जारी करने के िलए, अनुतोष का दावा करने
की वांछा करता हो, तो ऐसे पर्रूप और ऐसी रीित म जो िविहत की जाएं, आवेदन करना;
(घ) यह सुिनिश्चत करना िक िकसी व्यिथत व्यिक्त को िविधक सेवा पर्ािधकरण अिधिनयम, 1987 (1987 का 39)
के अधीन िविधक सहायता उपलब्ध कराई गई है और उस िविहत पर्रूप को, िजसम िशकायत की जानी है, मुक्त उपलब्ध
कराना;
(ङ) मिजस्टर्ेट की अिधकािरता वाले स्थानीय क्षेतर् म ऐसे सभी सेवा पर्दाता की, जो िविधक सहायता या परामशर्
आशर्य गृह और िचिकत्सीय सुिवधाएं उपलब्ध कराते ह, एक सूची बनाए रखना;
(च) यिद व्यिथत व्यिक्त ऐसी अपेक्षा करता है तो कोई सुरिक्षत आशर्य गृह का उपलब्ध कराना और िकसी व्यिक्त
को आशर्य गृह म स पते हुए, अपनी िरपोटर् की एक पर्ित पुिलस थाने को और उस क्षेतर् म जहां वह आशर्य गृह अविस्थत है,
अिधकािरता रखने वाले मिजस्टर्ेट को अगर्ेिषत करना;
(छ) व्यिथत व्यिक्त को शारीिरक क्षितयां हुई ह तो उसका िचिकत्सीय परीक्षण कराना, और उस क्षेतर् म, जहां
घरे लू िहसा का होना अिभकिथत िकया गया है, पुिलस थाने को और अिधकािरता रखने वाले मिजस्टर्ेट को उस िचिकत्सीय
िरपोटर् की एक पर्ित अगर्ेिषत करना;
(ज) यह सुिनिश्चत करना िक धारा 20 के अधीन धनीय अनुतोष के िलए आदेश का, दंड पर्िकर्या संिहता, 1973
(1974 का 2) के अधीन िविहत पर्िकर्या के अनुसार अनुपालन और िनष्पादन हो गया है;
(झ) ऐसे अन्य कतर्व्य का, जो िविहत िकए जाएं, पालन करना ।
(2) संरक्षण अिधकारी, मिजस्टर्ेट के िनयंतर्ण और पयर्वेक्षण के अधीन होगा और वह, इस अिधिनयम ारा या उसके अधीन
मिजस्टर्ेट और सरकार ारा उस पर अिधरोिपत कतर्व्य का पालन करे गा ।
10. सेवा पर्दाता—(1) ऐसे िनयम के अधीन रहते हुए जो इस िनिम बनाए जांए, सोसाइटी रिजस्टर्ीकरण अिधिनयम,
1860 (1860 का 21) के अधीन रिजस्टर्ीकृ त कोई स्वैिच्छक संगम या कं पनी अिधिनयम, 1956 (1956 का 1) के अधीन या तत्समय
पर्वृ िकसी अन्य िविध के अधीन रिजस्टर्ीकृ त कोई कं पनी, िजसका उ ेश्य िकसी िविधपूणर् साधन ारा, मिहला के अिधकार और
िहत का सरं क्षण करना है, िजसके अंतगर्त िविधक सहायता, िचिकत्सीय सहायता या अन्य सहायता उपलब्ध कराना भी है, स्वयं को
इस अिधिनयम के पर्योजन के िलए एक सेवा पर्दाता के रूप म राज्य सरकार के पास रिजस्टर कराएगी ।
(2) िकसी सेवा पर्दाता के पास, जो उपधारा (1) के अधीन रिजस्टर्ीकृ त है, िनम्निलिखत शिक्तयां ह गी—
(क) यिद व्यिथत व्यिक्त ऐसी वांछा करता हो तो िविहत पर्रूप म घरे लू िहसा की िरपोटर् अिभिलिखत करना और
उसकी एक पर्ित, उस क्षेतर् म, जहां घरेलू िहसा हुई है, अिधकािरता रखने वाले मिजस्टर्ेट और संरक्षण अिधकारी को
अगर्ेिषत करना;
(ख) व्यिथत व्यिक्त का िचिकत्सीय परीक्षण कराना और उस संरक्षण अिधकारी और पुिलस थाने को, िजसकी
स्थानीय सीमा के भीतर, घरे लू िहसा हुई है, िचिकत्सीय िरपोटर् की पर्ित अगर्ेिषत करना;
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(ग) यह सुिनिश्चत करना िक व्यिथत व्यिक्त को, यिद वह ऐसी वांछा करे तो, आशर्य गृह म आशर्य उपलब्ध
कराया गया है और व्यिथत व्यिक्त को, आशर्य गृह म स पे जाने की िरपोटर् , उस पुिलस थाने को, िजसकी स्थानीय सीमा के
भीतर घरे लू िहसा हुई है, अगर्ेिषत करना ।
(3) इस अिधिनयम के अधीन, घरेलू िहसा के िनवारण हेतु शिक्तय के पर्योग या कृ त्य के िनवर्हन म, स ावपूवर्क की गई या
की जाने के िलए आशियत िकसी बात के िलए कोई भी वाद, अिभयोजन या अन्य िविधक कायर्वाही, िकसी सेवा पर्दाता या सेवा पर्दाता
के िकसी सदस्य के , जो इस अिधिनयम के अधीन कायर् कर रहा है या करने वाला समझा जाता है या करने के िलए तात्पियत है, िवरु
नह होगी ।
11. सरकार के कतर्व्य—के न्दर्ीय सरकार और पर्त्येक राज्य सरकार यह सुिनिश्चत करने के िलए सभी उपाय करे गी िक—
(क) इस अिधिनयम के उपबंध का िनयिमत अंतराल पर, लोक मीिडया के माध्यम से िजसके अंतगर्त टेलीिवजन,
रे िडयो और िपर्ट मीिडया भी है, व्यापक पर्चार िकया जाता है;
(ख) के न्दर्ीय सरकार और राज्य सरकार के अिधकािरय को, िजसके अंतगर्त पुिलस अिधकारी और न्याियक सेवा
के सदस्य भी ह इस अिधिनयम ारा उठाए गए िववा क पर समय-समय पर सुगर्ाहीकरण और जानकारी पर्िशक्षण िदया
जाता है;
(ग) घरेलू िहसा के िववा क को संबोिधत करने के िलए िविध, गृह काय िजनके अंतगर्त िविध और व्यवस्था भी
ह, स्वास्थ्य और मानव संसाधन के संबंध म कारर् वाई करने वाले संबंिधत मंतर्ालय और िवभाग ारा दी जाने वाली सेवा
के बीच पर्भावी समन्वय स्थािपत िकया गया है और उनका कािलक पुनिवलोकन िकया जाता है;
(घ) इस अिधिनयम के अधीन मिहला के िलए सेवा के पिरदान से संब िविभन्न मंतर्ालय के िलए पर्ोटोकाल,
िजसके अंतगर्त न्यायालय को तैयार करना और िकसी स्थान पर स्थािपत करना भी है ।
अध्याय 4

अनुतोष के आदेश अिभपर्ाप्त करने के िलए पर्िकर्या


12. मिजस्टर्ेट को आवेदन—(1) कोई व्यिथत व्यिक्त या संरक्षण अिधकारी या व्यिथत व्यिक्त की ओर से कोई अन्य व्यिक्त,
इस अिधिनयम के अधीन एक या अिधक अनुतोष पर्ाप्त करने के िलए मिजस्टर्ेट को आवेदन पर्स्तुत कर सके गा :
परन्तु मिजस्टर्ेट, ऐसे आवेदन पर कोई आदेश पािरत करने से पहले, िकसी संरक्षण अिधकारी या सेवा पर्दाता से उसके ारा
पर्ाप्त, िकसी घरे लू िहसा की िरपोटर् पर िवचार करे गा ।
(2) उपधारा (1) के अधीन ईिप्सत िकसी अनुतोष म वह अनुतोष भी सिम्मिलत हो सके गा िजसके िलए िकसी पर्त्यथ ारा
की गई घरे लू िहसा के काय ारा कािरत की गई क्षितय के िलए पर्ितकर या नुकसान के िलए वाद संिस्थत करने के ऐसे व्यिक्त के
अिधकार पर पर्ितकू ल पर्भाव डाले िबना, िकसी पर्ितकर या नुकसान के संदाय के िलए कोई आदेश जारी िकया जाता है :
परन्तु जहां िकसी न्यायालय ारा, पर्ितकर या नुकसानी के रूप म िकसी रकम के िलए, व्यिथत व्यिक्त के पक्ष म कोई िडकर्ी
पािरत की गई है यिद इस अिधिनयम के अधीन, मिजस्टर्ेट ारा िकए गए िकसी आदेश के अनुसरण म कोई रकम संद की गई है या
संदय े है तो ऐसी िडकर्ी के अधीन संदये रकम के िवरु मुजरा होगी और िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908 (1908 का 5) म या तत्समय
पर्वृ िकसी अन्य िविध म िकसी बात के होते हुए भी, वह िडकर्ी, इस पर्कार मुजरा िकए जाने के पश्चात् अितशेष रकम के िलए, यिद
कोई हो, िनष्पािदत की जाएगी ।
(3) उपधारा (1) के अधीन पर्त्येक आवेदन, ऐसे पर्रूप म और ऐसी िविशिष्टयां जो िविहत की जाएं या यथासंभव उसके
िनकटतम रूप म अंतिवष्ट होगा ।
(4) मिजस्टर्ेट, सुनवाई की पहली तारीख िनयत करे गा जो न्यायालय ारा आवेदन की पर्ािप्त की तारीख से सामान्यत: तीन
िदन से अिधक नह होगी ।
(5) मिजस्टर्ेट, उपधारा (1) के अधीन िदए गए पर्त्येक आवेदन का, पर्थम सुनवाई की तारीख से साठ िदन की अविध के भीतर
िनपटारा करने का पर्यास करे गा ।
13. सूचना की तामील—(1) धारा 12 के अधीन िनयत की गई सुनवाई की तारीख की सूचना मिजस्टर्ेट ारा संरक्षण
अिधकारी को दी जाएगी जो पर्त्यथ पर और मिजस्टर्ेट ारा िनदेिशत िकसी अन्य व्यिक्त पर, ऐसे साधन ारा जो िविहत िकए जाएं,
उसकी पर्ािप्त की तारीख से अिधकतम दो िदन की अविध के भीतर या ऐसे अितिरक्त युिक्तयुक्त समय के भीतर जो मिजस्टर्ेट ारा
अनुज्ञात िकया जाए, तामील करवाएगा ।
(2) संरक्षण अिधकारी ारा की गई सूचना की तामील की घोषणा, ऐसे पर्रूप म जो िविहत िकया जाए, इस बात का सबूत
होगी िक ऐसी सूचना की तामील पर्त्यथ पर और मिजस्टर्ेट ारा िनदेिशत िकसी अन्य व्यिक्त पर कर दी गई है, जब तक िक पर्ितकू ल
सािबत नह कर िदया जाता है ।
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14. परामशर्—(1) मिजस्टर्ेट, इस अिधिनयम के अधीन कायर्वािहय के िकसी पर्कर्म पर, पर्त्यथ या व्यिथत व्यिक्त को, अके ले
या संयुक्तत: सेवा पर्दाता के िकसी सदस्य से, जो परामशर् म ऐसी अहर्ताएं और अनुभव रखता है, जो िविहत की जाएं, परामशर् लेने का
िनदेश दे सके गा ।
(2) जहां मिजस्टर्ेट ने उपधारा (1) के अधीन कोई िनदेश जारी िकया है, वहां वह मामले की सुनवाई की अगली तारीख, दो
मास से अनिधक अविध के भीतर िनयत करे गा ।
15. कल्याण िवशेषज्ञ की सहायता—(1) इस अिधिनयम के अधीन िकन्ह कायर्वािहय म, मिजस्टर्ेट अपने कृ त्य के िनवर्हन म
अपनी सहायता के पर्योजन के िलए, ऐसे व्यिक्त की, अिधमानत: िकसी मिहला की, चाहे वह व्यिथत व्यिक्त की नातेदार हो या नह ,
जो वह ठीक समझे, िजसके अंतगर्त ऐसा व्यिक्त भी है जो पिरवार कल्याण के संवधर्न म लगा हुआ है, सेवाएं पर्ाप्त कर सके गा ।
16. कायर्वािहय का बंद कमरे म िकया जाना—यिद मिजस्टर्ेट ऐसा समझता है िक मामले की पिरिस्थितय के कारण ऐसा
आवश्यक है और यिद कायर्वािहय का कोई पक्षकार ऐसी वांछा करे , तो वह इस अिधिनयम के अधीन, कायर्वािहयां बंद कमरे म
संचािलत कर सके गा ।
17. साझी गृहस्थी म िनवास करने का अिधकार—(1) तत्समय पर्वृ िकसी अन्य िविध म अंतिवष्ट िकसी बात के होते हुए
भी, घरे लू नातेदारी म पर्त्येक मिहला को साझी गृहस्थी म िनवास करने का अिधकार होगा चाहे वह उसम कोई अिधकार, हक या
फायदापर्द िहत रखती हो या नह ।
(2) िविध ारा स्थािपत पर्िकर्या के अनुसरण म के िसवाय, कोई व्यिथत व्यिक्त, पर्त्यथ ारा िकसी साझी गृहस्थी या उसके
िकसी भाग से बेदखल या अपविजत नह िकया जाएगा ।
18. संरक्षण आदेश—मिजस्टर्ेट, व्यिथत व्यिक्त और पर्त्यथ को सुनवाई का एक अवसर िदए जाने के पश्चात् और उसका
पर्थमदृष् ा समाधान होने पर िक घरे लू िहसा हुई है या होने वाली है, व्यिथत व्यिक्त के पक्ष म एक संरक्षण आदेश पािरत कर सके गा
तथा पर्त्यथ को िनम्निलिखत से पर्ितिष कर सके गा,—
(क) घरेलू िहसा के िकसी कायर् को करना;
(ख) घरेलू िहसा के काय के कािरत करने म सहायता या दुष्पर्ेरण करना;
(ग) व्यिथत व्यिक्त के िनयोजन के स्थान म या यिद व्यिथत व्यिक्त बालक है, तो उसके िव ालय म या िकसी
अन्य स्थान म जहां व्यिथत व्यिक्त बार-बार आता जाता है, पर्वेश करना;
(घ) व्यिथत व्यिक्त से संपकर् करने का पर्यत्न करना, चाहे वह िकसी रूप म हो, इसके अंतगर्त वैयिक्तक, मौिखक
या िलिखत या इलैक्टर्ोिनक या दूरभाषीय संपकर् भी है;
(ङ) िकन्ह आिस्तय का अन्य संकर्ामण करना; उन बक लाकर या बक खात का पर्चालन करना िजनका दोन
पक्ष ारा पर्योग या धारण या उपयोग, व्यिथत व्यिक्त और पर्त्यथ ारा संयुक्तत: या पर्त्यथ ारा अके ले िकया जा रहा है,
िजसके अंतगर्त उसका स्तर्ीधन या अन्य कोई संपि भी है, जो मिजस्टर्ेट की इजाजत के िबना या तो पक्षकार ारा संयुक्तत:
या उनके ारा पृथक्त: धािरत की हुई ह;
(च) आिशर्त , अन्य नातेदार या िकसी ऐसे व्यिक्त को जो व्यिथत व्यिक्त को घरे लू िहसा के िवरु सहायता देता
है, के साथ िहसा कािरत करना;
(छ) ऐसा कोई अन्य कायर् करना जो संरक्षण आदेश म िविनिदष्ट िकया गया है ।
19. िनवास आदेश—(1) धारा 12 की उपधारा (1) के अधीन िकसी आवेदन का िनपटारा करते समय, मिजस्टर्ेट, यह समाधान
होने पर िक घरे लू िहसा हुई है तो िनम्निलिखत िनवास आदेश पािरत कर सके गा :—
(क) पर्त्यथ को साझी गृहस्थी से, िकसी व्यिक्त के कब्जे को बेकब्जा करने से या िकसी अन्य रीित म उस कब्जे म
िवघ्न डालने से अवरु करना, चाहे, पर्त्यथ , उस साझी गृहस्थी म िविधक या साधारण रूप से िहत रखता है या नह ;
(ख) पर्त्यथ को, उस साझी गृहस्थी से स्वयं को हटाने का िनदेश देना;
(ग) पर्त्यथ या उसके िकसी नातेदार को साझी गृहस्थी के िकसी भाग म, िजसम व्यिथत व्यिक्त िनवास करता है,
पर्वेश करने से अवरु करना;
(घ) पर्त्यथ को, िकसी साझी गृहस्थी के अन्यसंकर्ांत करने या व्ययिनत करने या उसे िवल्लंगिमत करने से
अवरु करना;
(ङ) पर्त्यथ को, मिजस्टर्ेट की इजाजत के िसवाय, साझी गृहस्थी म अपने अिधकार त्यजन से, अवरु करना; या
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(च) पर्त्यथ को, व्यिथत व्यिक्त के िलए उसी स्तर की आनुकिल्पक वास सुिवधा जैसी वह साझी गृहस्थी म उपयोग
कर रही थी या उसके िलए िकराए का संदाय करने, यिद पिरिस्थितयां ऐसी अपेक्षा करे , सुिनिश्चत करने के िलए
िनदेश करना :
परं तु यह िक खंड (ख) के अधीन कोई आदेश िकसी व्यिक्त के , जो मिहला है, िवरु पािरत नह िकया जाएगा ।
(2) मिजस्टर्ेट, व्यिथत व्यिक्त या ऐसे व्यिथत व्यिक्त की िकसी संतान की सुरक्षा के िलए, संरक्षण देने या सुरक्षा की व्यवस्था
करने के िलए कोई अितिरक्त शतर् अिधरोिपत कर सके गा या कोई अन्य िनदेश पािरत कर सके गा जो वह युिक्तयुक्त रूप से
आवश्यक समझे ।
(3) मिजस्टर्ेट घरे लू िहसा िकए जाने का िनवारण करने के िलए पर्त्यथ से, एक बंधपतर्, पर्ितभु सिहत या उनके िबना
िनष्पािदत करने की अपेक्षा कर सके गा ।
(4) उपधारा (3) के अधीन कोई आदेश दंड पर्िकर्या संिहता, 1973 (1974 का 2) के अध्याय 8 के अधीन िकया गया कोई
आदेश समझा जाएगा और तद्नुसार कारर् वाई की जाएगी ।
(5) उपधारा (1), उपधारा (2) या उपधारा (3) के अधीन िकसी आदेश को पािरत करते समय, न्यायालय, उस व्यिथत
व्यिक्त को संरक्षण देने के िलए या उसकी सहायता के िलए या आदेश के िकर्यान्वयन म उसकी ओर से आवेदन करने वाले व्यिक्त की
सहायता करने के िलए, िनकटतम पुिलस थाने के भारसाधक अिधकारी को िनदेश देते हुए आदेश भी पािरत कर सके गा ।
(6) उपधारा (1) के अधीन कोई आदेश करते समय, मिजस्टर्ेट, पक्षकार की िव ीय आवश्यकता और संसाधन को ध्यान म
रखते हुए िकराए और अन्य संदाय के उन्मोचन से संबंिधत बाध्यता को पर्त्यथ पर अिधरोिपत कर सके गा ।
(7) मिजस्टर्ेट, उस पुिलस थाने के भारसाधक अिधकारी को, िजसकी अिधकािरता म, संरक्षण आदेश के कायार्न्वयन म
सहायता करने के िलए मिजस्टर्ेट से िनवेदन िकया गया है, िनदेश कर सके गा ।
(8) मिजस्टर्ेट, व्यिथत व्यिक्त को उसके स्तर्ीधन या िकसी अन्य संपि या मूल्यवान पर्ितभूित का, िजसके िलए वह हकदार
है, कब्जा लौटाने के िलए पर्त्यथ को िनदेश दे सके गा ।
20. धनीय अनुतोष—(1) धारा 12 की उपधारा (1) के अधीन िकसी आवेदन का िनपटारा करते समय, मिजस्टर्ेट, घरे लू िहसा
के पिरणामस्वरूप व्यिथत व्यिक्त और व्यिथत व्यिक्त की िकसी संतान ारा उपगत व्यय और सहन की गई हािनय की पूित के िलए
धनीय अनुतोष का संदाय करने के िलए पर्त्यथ को िनदेश दे सके गा और ऐसे अनुतोष म िनम्निलिखत सिम्मिलत हो सकगे िकन्तु वह
िनम्निलिखत तक की सीिमत नह होगा—
(क) उपाजर्न की हािन;
(ख) िचिकत्सीय व्यय ;
(ग) व्यिथत व्यिक्त के िनयंतर्ण म से िकसी संपि के नाश, नुकसानी या हटाए जाने के कारण हुई हािन; और
(घ) व्यिथत व्यिक्त के साथ-साथ उसकी संतान, यिद कोई ह , के िलए भरण-पोषण, िजसम दंड पर्िकर्या संिहता,
1973 (1974 का 2) की धारा 125 या तत्समय पर्वृ िकसी अन्य िविध के अधीन कोई आदेश या भरण-पोषण के आदेश के
अितिरक्त कोई आदेश सिम्मिलत है ।
(2) इस धारा के अधीन अनुद धनीय अनुतोष, पयार्प्त, उिचत और युिक्तयुक्त होगा तथा उस जीवनस्तर से, िजसका
व्यिथत व्यिक्त अभ्यस्त है, संगत होगा ।
(3) मिजस्टर्ेट को, जैसा मामले की पर्कृ ित और पिरिस्थितयां, अपेक्षा कर, भरण-पोषण के एक समुिचत एकमुश्त संदाय या
मािसक संदाय का आदेया देने की शिक्त होगी ।
(4) मिजस्टर्ेट, आवेदन के पक्षकार को और पुिलस थाने के भारसाधक को, िजसकी स्थानीय सीमा की अिधकािरता म
पर्त्यथ िनवास करता है, उपधारा (1) के अधीन िदए गए धनीय अनुतोष के आदेश की एक पर्ित भेजेगा ।
(5) पर्त्यथ , उपधारा (1) के अधीन आदेश म िविनिदष्ट अविध के भीतर व्यिथत व्यिक्त को अनुद धनीय अनुतोष का
संदाय करे गा ।
(6) उपधारा (1) के अधीन आदेश के िनबंधन म संदाय करने के िलए पर्त्यथ की ओर से असफलता पर, मिजस्टर्ेट, पर्त्यथ के
िनयोजक या ऋणी को, व्यिथत व्यिक्त को पर्त्यक्षत: संदाय करने या मजदूरी या वेतन का एक भाग न्यायालय म जमा करने या शोध्य
ऋण या पर्त्यथ के खाते म शोध्य या उद्भूत ऋण को, जो पर्त्यथ ारा संदये धनीय अनुतोष म समायोिजत कर ली जाएगी, जमा करने
का िनदेश दे सके गा ।
21. अिभरक्षा आदेश—तत्समय पर्वृ िकसी अन्य िविध म अंतिवष्ट िकसी बात के होते हुए भी, मिजस्टर्ेट, इस अिधिनयम के
अधीन संरक्षण आदेश या िकसी अन्य अनुतोष के िलए आवेदन की सुनवाई के िकसी पर्कर्म पर व्यिथत व्यिक्त को या उसकी ओर से
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आवेदन करने वाले व्यिक्त को िकसी संतान की अस्थायी अिभरक्षा दे सके गा और यिद आवश्यक हो तो पर्त्यथ ारा ऐसी संतान या
संतान से भट के इं तजाम को िविनिदष्ट कर सके गा :
परन्तु, यिद मिजस्टर्ेट की यह राय है िक पर्त्यथ की कोई भट संतान या संतान के िहत के िलए हािनकारक हो सकती है तो
मिजस्टर्ेट ऐसी भट करने को अनुज्ञात करने से इन्कार करे गा ।
22. पर्ितकर आदेश—अन्य अनुतोष के अितिरक्त, जो इस अिधिनयम के अधीन अनुद की जाएं, मिजस्टर्ेट, व्यिथत व्यिक्त
ारा िकए गए आवेदन पर, पर्त्यथ को क्षितय के िलए, िजसके अंतगर्त उस पर्त्यथ ारा की गई घरे लू िहसा के काय ारा मानिसक
यातना और भावनात्मक कष्ट सिम्मिलत ह, पर्ितकर और नुकसानी का संदाय करने के िलए पर्त्यथ को िनदेश देने का आदेश पािरत
कर सके गा ।
23. अंतिरम और एकपक्षीय आदेश देने की शिक्त—(1) मिजस्टर्ेट, इस अिधिनयम के अधीन उसके समक्ष िकसी कायर्वाही म,
ऐसा अंतिरम आदेश, जो न्यायसंगत और उपयुक्त हो, पािरत कर सके गा ।
(2) यिद मिजस्टर्ेट का यह समाधान हो जाता है िक पर्थमदृष् ा कोई आवेदन यह पर्कट करता है िक पर्त्यथ घरे लू िहसा का
कोई कायर् कर रहा है या उसने िकया है, या यह संभावना है िक पर्त्यथ घरे लू िहसा का कोई कायर् कर सकता है, तो वह व्यिथत व्यिक्त
के ऐसे पर्रूप म जो िविहत िकया जाए, शपथपतर् के आधार पर, यथािस्थित, धारा 18, धारा 19, धारा 20,धारा 21 या धारा 22 के
अधीन पर्त्यथ के िवरु एकपक्षीय आदेश दे सके गा ।
24. न्यायालय ारा आदेश की पर्ितय का िन:शुल्क िदया जाना—मिजस्टर्ेट, सभी मामल म जहां उसने इस अिधिनयम के
अधीन कोई आदेश पािरत िकया है, वहां यह आदेश देगा िक ऐसे आदेश की एक पर्ित िन:शुल्क आवेदन के पक्षकार को, उस पुिलस थाने
के भारसाधक पुिलस अिधकारी को, िजसकी अिधकािरता म मिजस्टर्ेट के पास पहुंच की गई है और न्यायालय की अिधकािरता की
स्थानीय सीमा के भीतर अविस्थत िकसी सेवा पर्दाता को और यिद िकसी सेवा पर्दाता ने िकसी घरे लू घटना की िरपोटर् को
रिजस्टर्ीकृ त िकया है तो उस सेवा पर्दाता को दी जाएगी ।
25. आदेश की अविध और उनम पिरवतर्न—(1) धारा 18 के अधीन िकया गया संरक्षण आदेश व्यिथत व्यिक्त ारा िनम चन
के िलए आवेदन िकए जाने तक पर्वृ रहेगा ।
(2) यिद मिजस्टर्ेट का, व्यिथत व्यिक्त या पर्त्यथ से िकसी आवेदन की पर्ािप्त पर यह समाधान हो जाता है िक इस
अिधिनयम के अधीन िकए गए िकसी आदेश म पिरिस्थितय म पिरवतर्न के कारण पिरवतर्न, उपांतरण या पर्ितसंहरण अपेिक्षत है तो
वह लेखब िकए जाने वाले कारण से ऐसा आदेश, जो वह समुिचत समझे, पािरत कर सके गा ।
26. अन्य वाद और िविधक कायर्वािहय म अनुतोष—(1) धारा 18, धारा 19, धारा 20, धारा 21 और धारा 22 के अधीन
उपलब्ध कोई अनुतोष, िकसी िसिवल न्यायालय, कु टु म्ब न्यायालय या िकसी दंड न्यायालय के समक्ष िकसी व्यिथत व्यिक्त और पर्त्यथ
को पर्भािवत करने वाली िकसी िविधक कायर्वाही म भी, चाहे ऐसी कायर्वाही इस अिधिनयम के पर्ारं भ से पूवर् या उसके पश्चात् आरं भ
की गई हो, मांगा जा सके गा ।
(2) उपधारा (1) म िनिदष्ट कोई अनुतोष, िकसी अन्य अनुतोष के अितिरक्त और उसके साथ-साथ िजसकी व्यिथत व्यिक्त,
िकसी िसिवल या दंड न्यायालय के समक्ष ऐसे वाद या िविधक कायर्वाही म वांछा करे , मांगा जा सके गा ।
(3) यिद इस अिधिनयम के अधीन िकसी कायर्वाही से िभन्न िकन्ह कायर्वािहय म व्यिथत व्यिक्त ारा कोई अनुतोष
अिभपर्ाप्त कर िलया गया है, तो वह ऐसे अनुतोष को अनुद करने वाले मिजस्टर्ेट को सूिचत करने के िलए बाध्य होगा ।
27. अिधकािरता—(1) यथािस्थित, पर्थम वगर् के न्याियक मिजस्टर्ेट या महानगर मिजस्टर्ेट का न्यायालय, िजसकी स्थानीय
सीमा के भीतर,—
(क) व्यिथत व्यिक्त स्थायी रूप से या अस्थायी रूप से िनवास करता है या कारबार करता है या िनयोिजत है; या
(ख) पर्त्यथ िनवास करता है या कारबार करता है या िनयोिजत है; या
(ग) हेतुक उद्भूत होता है,
इस अिधिनयम के अधीन कोई संरक्षण आदेश और अन्य आदेश अनुद करने और इस अिधिनयम के अधीन अपराध का िवचारण करने
के िलए सक्षम न्यायालय होगा ।
(2) इस अिधिनयम के अधीन िकया गया कोई आदेश समस्त भारत म पर्वतर्नीय होगा ।
28. पर्िकर्या—(1) इस अिधिनयम म अन्यथा उपबंिधत के िसवाय धारा 12, धारा 18, धारा 19, धारा 20, धारा 21, धारा 22
और धारा 23 के अधीन सभी कायर्वािहयां और धारा 31 के अधीन अपराध, दंड पर्िकर्या संिहता, 1973 (1974 का 2) के उपबंध ारा
शािसत ह गे ।
(2) उपधारा (1) की कोई बात, धारा 12 के अधीन या धारा 23 की उपधारा (2) के अधीन िकसी आवेदन के िनपटारे के िलए
अपनी स्वयं की पर्िकर्या अिधकिथत करने से न्यायालय को िनवािरत नह करे गी ।
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29. अपील—उस तारीख से, िजसको मिजस्टर्ेट ारा िकए गए आदेश की, यथािस्थित, व्यिथत व्यिक्त या पर्त्यथ पर िजस पर
भी पश्चात्वत हो, तामील की जाती है, तीस िदन के भीतर सेशन न्यायालय म कोई अपील हो सके गी ।
अध्याय 5

पर्कीणर्
30. संरक्षण अिधकािरय और सेवा पर्दाता के सदस्य का लोक सेवक होना—संरक्षण अिधकारी और सेवा पर्दाता के
सदस्य जब वे इस अिधिनयम के उपबंध म से िकसी उपबन्ध या उसके अधीन बनाए गए िकन्ह िनयम या आदेश के अनुसरण म कोई
कायर् कर रहे ह या उनका कायर् करना तात्पियत हो, तब यह समझा जाएगा िक वे भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) की धारा 21 के
अथार्न्तगर्त लोक सेवक ह ।
31. पर्त्यथ ारा संरक्षण आदेश के भंग के िलए शािस्त—(1) पर्त्यथ ारा संरक्षण आदेश या िकसी अंतिरम संरक्षण आदेश
का भंग, इस अिधिनयम के अधीन एक अपराध होगा और वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध एक वषर् तक की
हो सके गी, या जुमार्ने से, जो बीस हजार रुपए तक का हो सके गा, या दोन से, दंडनीय होगा ।
(2) उपधारा (1) के अधीन अपराध का िवचारण यथासाध्य उस मिजस्टर्ेट ारा िकया जाएगा िजसने वह आदेश पािरत िकया
था, िजसका भंग अिभयुक्त ारा कािरत िकया जाना अिभकिथत िकया गया है ।
(3) उपधारा (1) के अधीन आरोप को िवरिचत करते समय, मिजस्टर्ेट, यथािस्थित, भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) की
धारा 498क या संिहता के िकसी अन्य उपबंध, या दहेज पर्ितषेध अिधिनयम, 1961 (1961 का 28) के अधीन अरोप को भी िवरिचत
कर सके गा, यिद तथ्य से यह पर्कट होता है िक उन उपबंध के अधीन कोई अपराध हुआ है ।
32. संज्ञान और सबूत—(1) दंड पर्िकया संिहता, 1973 (1974 का 2) म अंतिवष्ट िकसी बात के होते हुए भी धारा 31 की
उपधारा (1) के अधीन अपराध संज्ञेय और अजमानतीय होगा ।
(2) व्यिथत व्यिक्त के एकमातर् पिरसा य पर, न्यायालय यह िनष्कषर् िनकाल सके गा िक धारा 31 की उपधारा (1) के अधीन
अिभयुक्त ारा कोई अपराध िकया गया है ।
33. संरक्षण अिधकारी ारा कतर्व्य का िनवर्हन न करने के िलए शािस्त—यिद कोई संरक्षण अिधकारी, संरक्षण आदेश म
मिजस्टर्ेट ारा यथा िनदेिशत अपने कतर्व्य का, िकसी पयार्प्त हेतुक के िबना, िनवर्हन करने म असफल रहता है या इं कार करता है, तो
वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से, िजसकी अविध एक वषर् तक की हो सके गी या जुमार्ने से, जो बीस हजार रुपए तक का हो
सके गा या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
34. संरक्षण अिधकारी ारा िकए गए अपराध का संज्ञान—संरक्षण अिधकारी के िवरु कोई अिभयोजन या अन्य िविधक
कायर्वाही तब तक नह होगी जब तक राज्य सरकार या इस िनिम उसके ारा पर्ािधकृ त िकसी अिधकारी की पूवर् मंजूरी से कोई
पिरवाद फाइल नह िकया जाता है ।
35. स ावपूवकर् की गई कारर् वाई के िलए संरक्षण—इस अिधिनयम या उसके अधीन बनाए गए िकसी िनयम या िकए गए
आदेश के अधीन स ावपूवर्क की गई या की जाने के िलए आशियत िकसी बात से कािरत या कािरत होने के िलए संभाव्य िकसी
नुकसान के िलए कोई भी वाद, अिभयोजन या अन्य िविधक कायर्वाही संरक्षण अिधकारी के िवरु नह होगी ।
36. अिधिनयम का िकसी अन्य िविध के अल्पीकरण म न होना—इस अिधिनयम के उपबंध, तत्समय पर्वृ िकसी अन्य िविध
के उपबंध के अितिरक्त ह गे और न िक उनके अल्पीकरण म ।
37. के न्दर्ीय सरकार की िनयम बनाने की शिक्त—(1) के न्दर्ीय सरकार, अिधसूचना ारा, इस अिधिनयम के उपबंध को
कायार्िन्वत करने के िलए िनयम, बना सके गी ।
(2) िविशष्टतया और पूवर्गामी शिक्त की व्यापकता पर पर्ितकू ल पर्भाव डाले िबना ऐसे िनयम िनम्निलिखत सभी या िकन्ह
िवषय के िलए उपबंध कर सकगे, अथार्त्:—
(क) वे अहर्ताएं और अनुभव, जो धारा 8 की उपधारा (2) के अधीन िकसी संरक्षण अिधकारी के पास ह गे;
(ख) धारा 8 की उपधारा (3) के अधीन संरक्षण अिधकािरय और उसके अधीनस्थ अन्य अिधकािरय की सेवा के
िनबंधन और शत;
(ग) वह पर्रूप और रीित िजसम धारा 9 की उपधारा (1) के खंड (ख) के अधीन कोई घरे लू घटना िरपोटर् बनाई
जा सके गी;
(घ) वह पर्रूप और रीित िजसम, धारा 9 की उपधारा (1) के खंड (ग) के अधीन संरक्षण आदेश के िलए मिजस्टर्ेट को
कोई आवेदन िकया जा सके गा;
(ङ) वह पर्रूप िजसम, धारा 9 की उपधारा (1) के खंड (घ) के अधीन कोई पिरवाद फाइल िकया जाएगा;
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(च) धारा 9 की उपधारा (1) के खंड (झ) के अधीन संरक्षण अिधकारी ारा पालन िकए जाने वाले अन्य कतर्व्य;
(छ) धारा 10 की उपधारा (1) के अधीन सेवा पर्दाता के रिजस्टर्ीकरण को िविनयिमत करने के िनयम;
(ज) वह पर्रूप िजसम इस अिधिनयम के अधीन अनुतोष की वांछा करने के िलए धारा 12 की उपधारा (1) के
अधीन कोई आवेदन िकया जा सके गा और वे िविशिष्टयां जो उस धारा की उपधारा (3) के अधीन ऐसे आवेदन म
अंतिवष्ट ह गी;
(झ) धारा 13 की उपधारा (1) के अधीन सूचना की तामील करने के उपाय;
(ञ) धारा 13 की उपधारा (2) के अधीन संरक्षण अिधकारी ारा दी जाने वाली सूचना की तामील की घोषणा
का पर्रूप;
(ट) परामशर् देने के िलए अहर्ताएं और अनुभव जो धारा 14 की उपधारा (1) के अधीन सेवा पर्दाता के िकसी सदस्य
के पास ह गे;
(ठ) वह पर्रूप, िजसम कोई शपथपतर्, धारा 23 की उपधारा (2) के अधीन व्यिथत व्यिक्त ारा फाइल िकया
जा सके गा;
(ड) कोई अन्य िवषय, जो िविहत िकया जाना है या िकया जा सके गा ।
(3) इस अिधिनयम के अधीन कदर्ीय सरकार ारा बनाया गया पर्त्येक िनयम, बनाए जाने के पश्चात् यथाशीघर् संसद् के
पर्त्येक सदन के समक्ष, जब वह ऐसी कु ल तीस िदन की अविध के िलए सतर् म हो, जो एक सतर् म अथवा दो या अिधक आनुकर्िमक सतर्
म पूरी हो सकती है, रखा जाएगा और यिद उस सतर् के या पूव क्त आनुकर्िमक सतर् के ठीक बाद के सतर् के अवसान के पूवर् दोन सदन
उस िनयम म कोई पिरवतर्न करने के िलए सहमत हो जाएं या दोन सदन इस बात से सहमत हो जाएं िक वह िनयम नह बनाया जाना
चािहए तो ऐसा िनयम, यथािस्थित, तत्पश्चात् के वल ऐसे पिरवितत रूप म ही पर्भावी होगा या उसका कोई पर्भाव नह होगा, तथािप,
उस िनयम के ऐसे पिरवितत या िनष्पर्भाव होने से उसके अधीन पहले की गई िकसी बात की िविधमान्यता पर पर्ितकू ल पर्भाव
नह पड़ेगा ।

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