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अनुसूिचत जाित और अनुसूिचत जनजाित

(अत्याचार िनवारण) अिधिनयम, 1989


(1989 का अिधिनयम संख्यांक 33)
[11 िसतंबर, 1989]
अनुसिू चत जाितय और अनुसिू चत जनजाितय के सदस्य पर
अत्याचार का अपराध करने का िनवारण करने के िलए,
ऐसे अपराध के िनवारण के िलए िवशेष न्यायालय
का तथा ऐसे अपराध से पीिड़त व्यिक्तय को
राहत देने का और उनके पुनवार्स का तथा
उससे संबिं धत या उसके आनुषिं गक
िवषय का उपबंध
करने के िलए
अिधिनयम
भारत गणराज्य के चालीसव वषर् म संसद् ारा िनम्निलिखत रूप म वह अिधिनयिमत हो:—
अध्याय 1

पर्ारं िभक
1. संिक्षप्त नाम, िवस्तार और पर्ारं भ—(1) इस अिधिनयम का संिक्षप्त नाम अनुसूिचत जाित और अनुसूिचत जनजाित
(अत्याचार िनवारण) अिधिनयम, 1989 है ।
(2) इसका िवस्तार जम्मू-कश्मीर राज्य के िसवाय संपूणर् भारत पर है ।
(3) यह उस तारीख को पर्वृ होगा जो के न्दर्ीय सरकार, राजपतर् म अिधसूचना ारा, िनयत करे ।
2. पिरभाषाएं—इस अिधिनयम म, जब तक िक संदभर् से अन्यथा अपेिक्षत न हो,—
(क) “अत्याचार” से धारा 3 के अधीन दंडनीय अपराध अिभपर्ेत है;
(ख) “ संिहता” से दंड पर्िकर्या संिहता, 1973 (1974 का 2) अिभपर्ेत है;
(ग) “अनुसूिचत जाितय और अनुसूिचत जनजाितय ” के वही अथर् ह जो संिवधान के अनुच्छेद 366 के खंड (24)
और खंड (25) म ह;
(घ) “िवशेष न्यायालय” से धारा 14 म िवशेष न्यायालय के रूप म िविनिदष्ट कोई सेशन न्यायालय अिभपर्ेत है;
(ङ) “िवशेष लोक अिभयोजक” से िवशेष लोक अिभयोजक के रूप म िविनिदष्ट लोक अिभयोजक या धारा 15 म
िनिदष्ट अिधवक्ता अिभपर्ेत है;
(च) उन शब्द और पद के , जो इस अिधिनयम म पर्युक्त ह िकन्तु पिरभािषत नह ह और संिहता या भारतीय दंड
संिहता म पिरभािषत ह, वही अथर् ह जो, यथािस्थित, संिहता म या भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) म है ।
(2) इस अिधिनयम म िकसी अिधिनयिमित या उसके िकसी उपबंध के पर्ित िकसी िनदश का अथर् िकसी ऐसे क्षेतर् के संबंध म
िजसम ऐसी अिधिनयिमित या ऐसा उपबंध पर्वृ नह है, यह लगाया जाएगा िक वह उस क्षेतर् म पर्वृ तत्स्थानी िविध, यिद कोई हो,
के पर्ित िनदश है ।
अध्याय 2

अत्याचार के अपराध
3. अत्याचार के अपराध के िलए दंड—(1) कोई भी व्यिक्त, जो अनुसूिचत जाित या अनुसूिचत जनजाित का सदस्य
नह है,—
(i) अनुसूिचत जाित या अनुसूिचत जनजाित के िकसी सदस्य को अखा या घृणाजनक पदाथर् पीने या खाने के िलए
मजबूर करे गा;
2

(ii) अनुसूिचत जाित या अनुसूिचत जनजाित के िकसी सदस्य के पिरसर या पड़ोस म मल-मूतर्, कू ड़ा, पशु-शव या
कोई अन्य घृणाजनक पदाथर् इक ा करके उसे क्षित पहुंचाने, अपमािनत करने या क्षुब्ध करने के आशय से कायर् करे गा;
(iii) अनुसूिचत जाित या अनुसूिचत जनजाित के िकसी सदस्य के शरीर से बलपूवक र् कपड़े उतारे गा या उसे नंगा या
उसके चेहरे या शरीर को पोतकर घुमाएगा या इसी पर्कार का कोई अन्य ऐसा कायर् करे गा जो मानव के सम्मान के िवरु है;
(iv) अनुसूिचत जाित या अनुसूिचत जनजाित के िकसी सदस्य के स्वािमत्वाधीन या उसे आबंिटत या िकसी सक्षम
पर्ािधकारी ारा उसे आबंिटत िकए जाने के िलए अिधसूिचत िकसी भूिम को सदोष अिधभोग म लेगा या उस पर खेती करे गा
या उसे आंबिटत भूिम को अंतिरत करा लेगा;
(v) अनुसूिचत जाित या अनुसूिचत जनजाित के िकसी सदस्य को उसकी भूिम या पिरसर से सदोष बेकब्जा करे गा
या िकसी भूिम, पिरसर या जल पर उसके अिधकार के उपभोग म हस्तक्षेप करे गा;
(vi) अनुसूिचत जाित या अनुसूिचत जनजाित के िकसी सदस्य को ‘बेगार’ करने के िलए या सरकार ारा लोक
पर्योजन के िलए अिधरोिपत िकसी अिनवायर् सेवा से िभन्न अन्य समरूप पर्कार के बलात्शर्म या बंधुआ मजदूरी के िलए
िववश करे गा या फु सलाएगा;
(vii) अनुसूिचत जाित या अनुसूिचत जनजाित के िकसी सदस्य को मतदान न करने के िलए या िकसी िविशष्ट
अभ्यथ के िलए मतदान करने के िलए या िविध ारा उपबिन्धत से िभन्न रीित से मतदान करने के िलए मजबूर या अिभतर्स्त
करे गा;
(viii) अनुसूिचत जाित या अनुसूिचत जनजाित के िकसी सदस्य के िवरु िमथ्या, ष
े पूणर् या तंग करने वाला वाद
या दािण्डक या अन्य िविधक कायर्वाही संिस्थत करे गा;
(ix) िकसी लोकसेवक को कोई िमथ्या या तुच्छ जानकारी देगा और उसके ारा अनुसूिचत जाित या अनुसूिचत
जनजाित के िकसी सदस्य को क्षित पहुंचाने या क्षुब्ध करने के िलए ऐसे लोक सेवक से उसकी िविधपूणर् शिक्त का पर्योग
कराएगा;
(x) जनता को दृिष्टगोचर िकसी स्थान म अनुसूिचत जाित या अनुसूिचत जनजाित के िकसी सदस्य का अपमान
करने के आशय से साशय उसको अपमािनत या अिभतर्स्त करे गा;
(xi) अनूसूिचत जाित या अनुसूिचत जनजाित की िकसी मिहला का अनादर करने या उसकी लज्जा भंग करने के
आशय से हमला या बल पर्योग करे गा;
(xii) अनुसूिचत जाित या अनुसूिचत जनजाित की िकसी मिहला की इच्छा को अिधशािसत करने की िस्थित म होने
पर उस िस्थित का पर्योग उसका लिगक शोषण करने के िलए, िजसके िलए वह अन्यथा सहमत नह होती, करे गा;
(xiii) िकसी सर्ोत, जलाशय या िकसी अन्य उ म के जल को जो आमतौर पर अनुसूिचत जाित या अनुसूिचत
जनजाित के सदस्य ारा उपयोग म लाया जाता है, दूिषत या गंदा करे गा िजससे िक वह उस पर्योजन के िलए कम उपयुक्त
हो जाए िजसके िलए उसका आमतौर पर पर्योग िकया जाता है;
(xiv) अनुसूिचत जाित या अनुसूिचत जनजाित के िकसी सदस्य को सावर्जिनक अिभगम के स्थान के मागर् के िकसी
रूिढ़जन्य अिधकार से वंिचत करे गा या ऐसे सदस्य को बाधा पहुंचाएगा िजससे िक वह ऐसे सावर्जिनक अिभगम के स्थान का
उपयोग करने या वहां पहुंचने से िनवािरत हो जाए जहां जनता के अन्य सदस्य या उसके िकसी भाग को उपयोग करने का या
पहुंचने का अिधकार है;
(xv) अनुसूिचत जाित या अनुसूिचत जनजाित के िकसी सदस्य को अपना मकान, गांव या अन्य िनवास-स्थान
छोड़ने के िलए मजबूर करे गा या कराएगा,
वह, कारावास से, िजसकी अविध छह मास से कम की नह होगी िकतु जो पांच वषर् तक की हो सके गी, और जुमार्ने से, दंडनीय होगा ।
(2) कोई भी व्यिक्त जो अनुसूिचत जाित या अनुसूिचत जनजाित का सदस्य नह है—
(i) िमथ्या सा य देगा या गढ़ेगा िजससे उसका आशय अनुसूिचत जाित या अनुसूिचत जनजाित के िकसी सदस्य को
िकसी ऐसे अपराध के िलए जो तत्समय पर्वृ िविध ारा मृत्यु दंड से दंडनीय है, दोषिस कराना है या वह यह जानता है िक
इससे उसका दोषिस होना संभाव्य है, वह आजीवन कारावास से और जुमार्ने से दंडनीय होगा; और यिद अनुसूिचत जाित
या अनुसूिचत जनजाित के िकसी िनद ष सदस्य को ऐसे िमथ्या या गढ़े हुए सा य के फलस्वरूप दोषिस िकया जाता है और
फांसी दी जाती है तो वह व्यिक्त, जो ऐसा िमथ्या सा य देता है या गढ़ता है, मुत्यु दंड से दंडनीय होगा;
(ii) िमथ्या सा य देगा या गढ़ेगा िजससे उसका आशय अनुसूिचत जाित या अनुसूिचत जनजाित के िकसी सदस्य को
ऐसे अपराध के िलए जो मुत्यु दंड से दंडनीय नह है िकतु सात वषर् या उससे अिधक की अविध के कारावास से दंडनीय है,
3

दोषिस कराना है या वह यह जानता है िक उससे उसका दोषिस होना संभाव्य है, वह कारावास से, िजसकी अविध छह
मास से कम की नह होगी िकन्तु जो सात वषर् या उससे अिधक की हो सके गी और जुमार्ने से, दंडनीय होगा;
(iii) अिग्न या िकसी िवस्फोटक पदाथर् ारा िरिष्ट करे गा िजससे उसका आशय अनुसूिचत जाित या अनुसूिचत
जनजाित के िकसी सदस्य की िकसी सम्पि को नुकसान पहुंचाना है या वह यह जानता है िक उससे ऐसा होना संभाव्य है वह
करावास से, िजसकी अविध छह मास से कम की नह होगी िकन्तु जो सात वषर् तक की हो सके गी, और जुमार्ने से,
दंडनीय होगा;
(iv) अिग्न या िकसी िवस्फोटक पदाथर् ारा िरिष्ट करे गा िजससे उसका आशय िकसी ऐसे भवन को जो अनुसूिचत
जाित या अनुसूिचत जनजाित के िकसी सदस्य ारा साधारणत: पूजा के स्थान के रूप म या मानव आवास के स्थान के रूप
म या सम्पि की अिभरक्षा के िलए िकसी स्थान के रूप म उपयोग िकया जाता है, नष्ट करता है या वह यह जानता है िक
उससे ऐसा होना संभाव्य है, वह आजीवन कारावास से, और जुमार्ने से दंडनीय होगा;
(v) भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) के अधीन दस वषर् या उससे अिधक की अविध के कारावास से दंडनीय कोई
अपराध िकसी व्यिक्त या सम्पि के िवरु इस आधार पर करे गा िक ऐसा व्यिक्त अनूसूिचत जाित या अनुसूिचत जनजाित
का सदस्य है या ऐसी संपि ऐसे सदस्य की है, वह आजीवन कारावास से, और जुमार्ने से, दंडनीय होगा;
(iv) यह जानते हुए या यह िवश्वास करने का कारण रखते हुए िक इस अध्याय के अधीन कोई अपराध िकया गया
है, वह अपराध िकए जाने के िकसी सा य को, अपराधी को िविधक दंड से बचाने के आशय से गायब करे गा या उस आशय से
अपराध के बारे म कोई ऐसी जानकारी देगा जो वह जानता है या िवश्वास करता है िक वह िमथ्या है, वह उस अपराध के
िलए उपबिन्धत दंड से दंडनीय होगा; या
(vii) लोक सेवक होते हुए इस धारा के अधीन कोई अपराध करे गा, वह कारावास से, िजसकी अविध एक वषर् से
कम की नह होगी िकन्तु जो उस अपराध के िलए उपबंिधत दंड तक हो सके गी, दंडनीय होगा ।
4. कतर्व्य की उपेक्षा के िलए दंड—कोई भी लोक सेवक, जो अनुसूिचत जाित या अनुसूिचत जनजाित का सदस्य नह है, इस
अिधिनयम के अधीन उसके ारा पालन िकए जाने के िलए अपेिक्षत अपने कतर्व्य की जानबूझकर उपेक्षा करे गा, वह कारावास से,
िजसकी अविध छह मास से कम की नह होगी िकतु जो एक वषर् तक की हो सके गी दंडनीय होगा ।
5. पश्चात्वत दोषिसि के िलए विधत दंड—कोई व्यिक्त, जो इस अध्याय के अधीन िकसी अपराध के िलए पहले ही
दोषिस हो चुका है, दूसरे अपराध या उसके पश्चात्वत िकसी अपराध के िलए दोषिस िकया जाता है, वह कारावास से, िजसकी
अविध एक वषर् से कम की नह होगी िकतु जो उस अपराध के िलए उपबंिधत दंड तक हो सके गी, दंडनीय होगा ।
6. भारतीय दंड संिहता के कितपय उपबंध का लागू होना—इस अिधिनयम के अन्य उपबंध के अधीन रहते हुए, भारतीय
दंड संिहता (1860 का 45) की धारा 34, अध्याय 3, अध्याय 4, अध्याय 5, अध्याय 5क, धारा 149 और अध्याय 23 के उपबंध, जहां तक
हो सके , इस अिधिनयम के पर्योजन के िलए उसी पर्कार लागू ह गे िजस पर्कार वे भारतीय दंड संिहता के पर्योजन के िलए लागू
होते ह ।
7. कितपय व्यिक्तय को संपि का समपहरण—(1) जहां कोई व्यिक्त इस अध्याय के अधीन दंडनीय िकसी अपराध के िलए
दोषिस िकया गया है, वहां िवशेष न्यायालय, कोई दंड देने के अितिरक्त, िलिखत रूप म आदेश ारा, यह घोिषत कर सके गा िक उस
व्यिक्त की कोई सम्पि , स्थावर या जंगम, या दोन , िजनका उस अपराध को करने म पर्योग िकया गया है, सरकार को समपहृत
हो जाएगी ।
(2) जहां कोई व्यिक्त इस अध्याय के अधीन िकसी अपराध का अिभयुक्त है, वहां उसका िवचारण करने वाले वाला िवशेष
न्यायालय ऐसा आदेश करने के िलए स्वतंतर् होगा िक उसकी सभी या कोई संपि , स्थावर या जंगम या दोन , ऐसे िवचारण की अविध
के दौरान, कु कर् की जाएंगी और जहां ऐसे िवचारण का पिरणाम दोिषिसि है वहां इस पर्कार कु कर् की गई संपि उस सीमा तक
समपहरण के दाियत्वाधीन होगी जहां तक वह इस अध्याय के अधीन अिधरोिपत िकसी जुमार्ने की वसूली के पर्योजन के िलए
अपेिक्षत है ।
8. अपराध के बारे म उपधारणा—इस अध्याय के अधीन िकसी अपराध के िलए अिभयोजन म, यिद यह सािबत हो जाता
है िक—
(क) अिभयुक्त ने इस अध्याय के अधीन अपराध करने के अिभयुक्त व्यिक्त की, या युिक्तयुक्त रूप से संदह
े ास्पद
व्यिक्त की कोई िव ीय सहायता की है तो िवशेष न्यायालय, जब तक िक तत्पर्ितकू ल सािबत न िकया जाए, यह उपधारणा
करे गा िक ऐसे व्यिक्त ने उस अपराध का दुष्पर्ेरणा िकया है;
(ख) व्यिक्तय के िकसी समूह ने इस अध्याय के अधीन अपराध िकया है, और यिद यह सािबत हो जाता है िक
िकया गया अपराध भूिम या िकसी अन्य िवषय के बारे म िकसी िव मान िववाद का फल है तो यह उपधारणा की जाएगी िक
यह अपराध सामान्य आशय या सामान्य उ ेश्य को अगर्सर करने के िलए िकया गया था ।
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9. शिक्तय का पर्दान िकया जाना—(1) संिहता म या इस अिधिनयम के िकसी अन्य उपबन्ध म िकसी बात के होते हुए भी,
यिद राज्य सरकार ऐसा करना आवश्यक या समीचीन समझती है, तो वह—
(क) इस अिधिनयम के अधीन िकसी अपराध के िनवारण के िलए और उससे िनपटाने के िलए, या
(ख) इस अिधिनयम के अधीन िकसी मामले या मामल के वगर् या समूह के िलए,
िकसी िजले या उनके िकसी भाग म, राज्य सरकार के िकसी अिधकारी को राजपतर् म अिधसूचना ारा, ऐसे िजले या उसके भाग म
संिहता के अधीन पुिलस अिधकारी ारा पर्योक्त शिक्तयां या, यथािस्थित, ऐसे मामले या मामल के वगर् या समूह के िलए,
और िविशष्टतया िकसी िवशेष न्यायालय के समक्ष व्यिक्तय की िगरफ्तारी, अन्वेषण और अिभयोजन की शिक्तयां पर्दान कर सके गी ।
(2) पुिलस के सभी अिधकारी और सरकार के अन्य सभी अिधकारी इस अिधिनयम के या उसके अधीन बनाए गए िकसी
िनयम, स्कीम या आदेश के उपबंध के िनष्पादन म उपधारा (1) म िनिदष्ट अिधकारी की सहायता करगे ।
(3) संिहता के उपबंध, जहां तक हो सके , उपधारा (1) के अधीन िकसी अिधकारी ारा शिक्तय के पर्योग के संबंध म
लागू ह गे ।
अध्याय 3

िनष्कासन
10. ऐसे व्यिक्त का हटाया जाना िजसके ारा अपराध िकए जाने की संभावना है—(1) जहां िवशेष न्यायालय का, पिरवाद
या पुिलस िरपोटर् पर, यह समाधान हो जाता है िक संभाव्यता है िक कोई व्यिक्त संिवधान के अनुच्छेद 224 म यथािनिदष्ट
‘अनुसूिचत क्षेतर् ’ या ‘जनजाती क्षेतर् ’ म सिम्मिलत िकसी क्षेतर् म इस अिधिनयम के अध्याय 2 के अधीन कोई अपराध करे गा वहां वह,
िलिखत आदेश ारा, ऐसे व्यिक्त को यह िनदेश दे सके गा िक वह ऐसे क्षेतर् की सीमा से परे , ऐसे मागर् से होकर और इतने समय के
भीतर हट जाए, जो आदेश म िविनिदष्ट िकए जाएं, और दो वषर् से अनिधक ऐसी अविध के िलए जो आदेश म िविनिदष्ट की जाए,
उस क्षेतर् म िजससे हट जाने का उसे िनदेश िदया गया था, वापस न लौटे ।
(2) िवशेष न्यायालय, उपधारा (1) के अधीन आदेश के साथ उस उपधारा के अधीन िनिदष्ट व्यिक्त को वे आधार संसूिचत
करे गा िजन पर वह आदेश िकया गया है ।
(3) िवशेष न्यायालय, उस व्यिक्त ारा िजसके िवरु ऐसा आदेश िकया गया है, या उसकी ओर से िकसी अन्य व्यिक्त ारा
आदेश की तारीख से तीस िदन के भीतर िकए गए अभ्यावेदन पर ऐसे कारण से जो लेखब िकए जाएंगे उपधारा (1) के अधीन िकए
गए आदेश को पर्ितसंहृत या उपान्तिरत कर सके गा ।
11. िकसी व्यिक्त ारा संबिं धत क्षेतर् से हटने म असफल रहने और वहां से हटने के पश्चात् उसम पर्वेश करने की दशा म
पर्िकर्या—(1) यिद कोई व्यिक्त िजससे धारा 10 के अधीन िकसी क्षेतर् से हट जाने के िलए कोई िनदेश जारी िकया गया है—
(क) िनदेश िकए गए रूप म हटने म असफल रहता है; या
(ख) इस पर्कार हटने के पश्चात् उपधारा (2) के अधीन िवशेष न्यायालय की िलिखत अनुज्ञा के िबना उस क्षेतर् म
ऐसे आदेश म िविनिदष्ट अविध के भीतर पर्वेश करता है,
तो िवशेष न्यायालय उसे िगरफ्तार करा सके गा और उसे उस क्षेतर् के बाहर ऐसे स्थान पर, जो िवशेष न्यायालय िविनिदष्ट करे ,
पुिलस अिभरक्षा म हटवा सके गा ।
(2) िवशेष न्यायालय, िलिखत आदेश ारा, िकसी ऐसे िक्त को िजसके िवरु धारा 10 के अधीन आदेश िकया गया है,
अनुज्ञा दे सके गा िक वह उस क्षेतर् म जहां से हट जाने का उसे िनदेश िदया गया था ऐसी अस्थायी अविध के िलए और ऐसी शत के
अधीन रहते हुए, जो ऐसे आदेश म िविनिदष्ट की जाएं, लौट सकता है और अिधरोिपत शत के सम्यक् अनुपालन के िलए उससे अपेक्षा
कर सके गा िक वह पर्ितभू सिहत या उसके िबना, बंधपतर् िनष्पिदत करे ।
(3) िवशेष न्यायालय िकसी भी समय ऐसी अनुज्ञा को पर्ितसंहृत कर सके गा ।
(4) ऐसा व्यिक्त, जो ऐसी अनुज्ञा से उस क्षेतर् म वापस आता है, िजससे उसे हटने के िलए िनदेश िदया गया था, अिधरोिपत
शत का अनुपालन करे गा और िजस अस्थायी अविध के िलए लौटने की से अनुज्ञा दी गई थी उसके अवसान पर या ऐसी अस्थायी अविध
के अवसान के पूवर् ऐसी अनुज्ञा के पर्ितसंहृत िकए जाने पर ऐसे क्षेतर् से बाहर हट जाएगा और धारा 10 के अधीन िविनिदष्ट अविध के
अनविसत भाग के भीतर नई अनुज्ञा के िबना वहां नह लौटेगा ।
(5) यिद कोई व्यिक्त अिधरोिपत शत म से िकसी का पालन करने म या तद्नुसार स्वयं को हटाने म असफल रहेगा या इस
पर्कार हट जाने के पश्चात् ऐसे क्षेतर् म नई अनुज्ञा के िबना पर्वेश करे गा या लौटेगा तो िवशेष न्यायालय उसे िगरफ्तार करा सके गा और
उसे उस क्षेतर् के बाहर ऐसे स्थान को, जो िवशेष न्यायालय िविनिदष्ट करे , पुिलस अिभरक्षा म हटवा सके गा ।
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12. ऐसे व्यिक्तय के , िजनके िवरु धारा 10 के अधीन आदेश िकया गया है, माप और फोटो आिद लेना—(1) पर्त्येक ऐसा
व्यिक्त, िजसके िवरु धारा 10 के अधीन आदेश िकया गया है, िवशेष न्यायालय ारा ऐसी अपेक्षा की जाने पर, िकसी पुिलस
अिधकारी को अपने माप और फोटो लेने देगा ।
(2) यिद उपधारा (1) म िनिदष्ट कोई व्यिक्त, िजससे यह अपेक्षा की जाती है िक वह अपने माप या फोटो लेने दे, इस पर्कार
माप या फोटो िलए जाने का पर्ितरोध करता है या उससे इं कार करता है, तो यह िविधपूणर् होगा िक माप या फोटो िलए जाने को
सुिनिश्चत करने के िलए सभी आवश्यक उपाय िकए जाएं ।
(3) उपधारा (2) के अधीन िलए जाने वाले माप या फोटो का पर्ितरोध या उससे इं कार करने को भारतीय दंड संिहता
(1860 का 45) की धारा 186 के अधीन अपराध समझा जाएगा ।
(4) जहां धारा 10 के अधीन िकया गया आदेश पर्ितसंहृत कर िदया जाता है वहां उपधारा (2) के अधीन िलए गए सभी माप
और फोटो (िजसके अंतगर्त नेगेिटव भी ह) नष्ट कर िदए जाएंगे या उसे व्यिक्त को स प िदए जाएंगे िजसके िवरु आदेश िकया
गया था ।
13. धारा 10 के अधीन के अननुपालन के िलए शािस्त—(1) व्यिक्त, जो धारा 10 के अधीन िकए गए िवशेष न्यायालय के
आदेश का उल्लंघन करे गा, कारावास से, िजसकी अविध एक वषर् तक की हो सके गी, और जुमार्ने से, दंडनीय होगा ।
अध्याय 4

िवशेष न्यायालय
14. िवशेष न्यायालय—राज्य सरकार, शीघर्, िवचारण का उपबंध करने के पर्योजन के िलए, उच्च न्यायालय के मुख्य
न्यायमूित की सहमित से, राजपतर् म अिधसूचना ारा, इस अिधिनयम के अधीन अपराध का िवचारण करने के िलए पर्त्येक िजले के
िलए एक सेशन न्यायालय को िवशेष न्यायालय के रूप म िविनिदष्ट करे गी ।
15. िवशेष लोक अिभयोजक—राज्य सरकार, पर्त्येक िवशेष न्यायालय के िलए, रापजतर् म अिधसूचना ारा, एक लोक
अिभयोजक िविनिदष्ट करे गी या िकसी ऐसे अिधवक्ता को, िजसने कम से कम सात वषर् तक अिधवक्ता के रूप म िविध-व्यवसाय
िकया हो, उस न्यायालय म मामल के संचालन के पर्योजन के िलए िवशेष लोक अिभयोजक के रूप म िनयुक्त करे गी ।
अध्याय 5

पर्कीणर्
16. राज्य सरकार की सामूिहक जुमार्ना अिधरोिपत करने की शिक्त—िसिवल अिधकार संरक्षण अिधिनयम, 1955
(1955 का 22) की धारा 10क के उपबंध, जहां तक हो सके , इस अिधिनयम के अधीन सामूिहक जुमार्ना अिधरोिपत करने और उसे वसूल
करने के पर्योजन के िलए और उससे संब सभी अन्य िवषय के िलए लागू ह गे ।
17. िविध और व्यवस्था तंतर् ारा िनवारक कारर् वाई—(1) यिद िजला मिजस्टर्ेट या उपखंड मिजस्टर्ेट या िकसी अन्य
कायर्पालक मिजस्टर्ेट या िकसी पुिलस अिधकारी को, जो पुिलस उप-अधीक्षक की पंिक्त से नीचे का न हो, इि ला पर्ाप्त होने पर और
ऐसी जांच करने के पश्चात् जो वह आवश्यक समझे, यह िवश्वास करने का कारण है िक िकसी ऐसे व्यिक्त या ऐसे व्यिक्तय के
समूह ारा, जो अनुसूिचत जाित या अनुसूिचत जनजाित के नह ह और जो उसकी अिधकािरता की स्थानीय सीमा के भीतर िकसी
स्थान पर िनवास करते ह या बार-बार आते-जाते ह, इस अिधिनयम के अधीन कोई अपराध करने की संभावना है या उन्ह ने अपराध
करने की धमकी दी है और उसकी यह राय है िक कायर्वाही करने के िलए पयार्प्त आधार है तो वह उस क्षेतर् को अत्याचार गर्स्त क्षेतर्
घोिषत कर सके गा तथा शांित और सदाचार बनाए रखने तथा लोक व्यवस्था और पर्शांित बनाए रखने के िलए आवश्यक कारर् वाई कर
सके गा और िनवारक कारर् वाई कर सके गा ।
(2) संिहता के अध्याय 8, अध्याय 10 और अध्याय 11 के उपबंध, जहां तक ह सके , उपधारा (1) के पर्योजन के िलए
लागू ह गे ।
(3) राज्य सरकार, राजपतर् म अिधसूचना ारा, एक या अिधक स्कीम वह रीित िविनिदष्ट करते हुए बना सके गा िजससे
उपधारा (1) म िनिदष्ट अिधकारी अत्याचार के िनवारण के िलए तथा अनुसूिचत जाित और अनुसिू चत जनजाित के सदस्य म सुरक्षा
की भावना पुन: लाने के िलए स्कीम या स्कीम म िविनिदष्ट समुिचत कारर् वाई करगे ।
18. अिधिनयम के अधीन अपराध करने वाले व्यिक्तय को संिहता की धारा 438 का लागू न होना—संिहता की धारा 438
की कोई बात इस अिधिनयम के अधीन कोई अपराध करने के अिभयोग पर िकसी व्यिक्त की िगरफ्तारी के िकसी मामले के संबंध म
लागू नह होगी ।
19. इस अिधिनयम के अधीन अपराध के िलए दोषी व्यिक्तय को संिहता की धारा 360 या अपराधी पिरवीक्षा अिधिनयम के
उपबंध का लागू न होना—संिहता की धारा 360 के उपबंध और अपराधी पिरवीक्षा अिधिनयम, 1958 (1958 का 20) के उपबंध
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अठारह वषर् से अिधक आयु के ऐसे व्यिक्त के संबंध म लागू नह ह गे जो इस अिधिनयम के अधीन कोई अपराध करने का दोषी पाया
जाता है ।
20. अिधिनयम का अन्य िविधय पर अध्यारोही होना—इस अिधिनयम म जैसा अन्यथा उपबंिधत है उसके िसवाय,
इस अिधिनयम के उपबंध, तत्समय पर्वृ िकसी अन्य िविध या िकसी रूिढ़ या पर्था या िकसी अन्य िविध के आधार पर पर्भाव रखने
वाले िकसी िलखत म उससे असंगत िकसी बात के होते हुए भी, पर्भावी ह गे ।
21. अिधिनयम का पर्भावी िकर्यान्वयन सुिनिश्चत करने का सरकार का कतर्व्य—(1) राज्य सरकार, ऐसे िनयम के अधीन
रहते हुए, जो के न्दर्ीय सराकर इस िनिम बनाए, इस अिधिनयम के पर्भावी िकर्यान्वयन के िलए ऐसे उपाय करे गी जो आवश्यक ह ।
(2) िविशष्टतया और पूवर्गामी उपबंध की व्यापकता पर पर्ितकू ल पर्भाव डाले िबना, ऐसे उपाय के अंतगर्त िनम्निलिखत हो
सके गा,—
(i) ऐसे व्यिक्तय को, िजन पर अत्याचार हुआ है, न्याय पर्ाप्त करने म समथर् बनाने के िलए पयार्प्त सुिवधा की,
िजनके अंतगर्त िविधक सहायता भी है, व्यवस्था;
(ii) इस अिधिनयम के अधीन अपराध के अन्वेषण और िवचारण के दौरान सािक्षय , िजनके अंतगर्त अत्याचार से
पीिड़त व्यिक्त भी ह, यातर्ा और भरणपोषण के व्यय की व्यवस्था;
(iii) अत्याचार से पीिड़त व्यिक्तय के आिथक और सामािजक पुनरु ार की व्यवस्था;
(iv) इस अिधिनयम के उपबंध के उल्लंघन के िलए अिभयोजन पर्ारम्भ करने या उनका पयर्वेक्षण करने के िलए
अिधकािरय की िनयुिक्त;
(v) ऐसे समुिचत स्तर पर, जो राज्य सरकार ऐसे उपाय की रचना या उनके िकर्यान्वयन के िलए उस सरकार की
सहायता करने के िलए ठीक समझे, सिमितय की स्थापना करना;
(vi) इस अिधिनयम के उपबंध के बेहतर िकर्यान्वयन के िलए उपाय का सुझाव देने की दृिष्ट से इस अिधिनयम के
उपबन्ध के कायर्करण का समय-समय पर सवक्षण करने की व्यवस्था;
(vii) उन क्षेतर् की पहचान करना जहां अनुसूिचत जाित और अनुसूिचत जनजािज के सदस्य पर अत्याचार होने की
संभावना है और ऐसे उपाय करना िजससे ऐसे सदस्य की सुरक्षा सुिनिश्चत हो सके ।
(3) के न्दर्ीय सरकार ऐसे उपाय करे गी जो उपधारा (1) के अधीन राज्य सरकार ारा िकए गए उपाय म समन्वय करने के
िलए आवश्यक ह ।
(4) के न्दर्ीय सरकार, पर्त्येक वषर्, संसद् के पर्त्येक सदन के पटल पर इस धारा के उपबंध के अनुसरण म स्वयं उसके ारा और
राज्य सरकार ारा िकए गए उपाय के संबंध म एक िरपोटर् रखेगी ।
22. स ावपूवक
र् की गई कारर् वाई के िलए सरं क्षण—इस अिधिनयम के अधीन स ावपूवर्क की गई या की जाने के िलए
आशियत िकसी बात के िलए कोई भी वाद, अिभयोजन या अन्य िविधक कायर्वाही के न्दर्ीय सरकार के िवरु या राज्य सरकार या
सरकार के िकसी अिधकारी या पर्ािधकारी या िकसी अन्य िक्त के िवरु नह होगी ।
23. िनयम बनाने की शिक्त—(1) के न्दर्ीय सरकार, राजपतर् म अिधसूचना ारा, इस अिधिनयम के पर्योजन को कायार्िन्वत
करने के िलए िनयम बना सके गी ।
(2) इस अिधिनयम के अधीन बनाया गया पर्त्येक िनयम, बनाए जाने के पश्चात् यथाशीघर् संसद् के पर्त्येक सदन के समक्ष,
जब वह सतर् म हो, कु ल तीस िदन की अविध के िलए रखा जाएगा । यह अविध एक सतर् म अथवा दो या अिधक आनुकर्िमक सतर् म पूरी
हो सके गी । यिद उस सतर् के या पूव क्त आनुकर्िमक सतर् के ठीक बाद के सतर् के अवसान के पूवर् दोन सदन उस िनयम म कोई पिरवतर्न
करने के िलए सहमत हो जाएं तो तत्पश्चात् वह ऐसे पिरवितत रूप म ही पर्भावी होगा । यिद उक्त अवसान के पूवर् दोन सदन सहमत
हो जाएं िक वह िनयम नह बनाया जाना चािहए तो तत्पश्चात् वह िनष्पर्भाव हो जाएगा । िकन्तु िनयम के ऐसे पिरवितत या
िनष्पर्भाव होने से उसके अधीन पहले की गई िकसी बात की िविधमान्यता पर पर्ितकू ल पर्भाव नह पड़ेगा ।

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