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H 193003
H 193003
पर्ारिम्भक
1. संिक्षप्त नाम, िवस्तार और पर्ारम्भ—(1) यह अिधिनयम 2 *** माल-िवकर्य अिधिनयम, 1930 कहा जा सके गा ।
3 [(2) इसका िवस्तार 4 [जम्मू-कश्मीर राज्य के िसवाय] सम्पूणर् भारत पर है ।]
(3) यह जुलाई, 1930 के पर्थम िदन को पर्वृ होगा ।
2. पिरभाषाएं—इस अिधिनयम म जब तक कोई बात िवषय या संदभर् म िवरु न हो,—
(1) “कर्ेता” से वह व्यिक्त अिभपर्ेत है जो माल का कर्य करता है या कर्य करने का करार करता है ;
(2) “पिरदान” से एक व्यिक्त से दूसरे व्यिक्त को कब्जे का स्वेच्छया अन्तरण अिभपर्ेत है ;
(3) माल का, “पिरदेय िस्थित” म होना तब कहा जाता है जबिक वह ऐसी िस्थित म हो िक कर्ेता उसका पिरदान लेने के
िलए संिवदा के अधीन आब हो ;
(4) “माल पर हक की दस्तावेज” के अन्तगर्त वहनपतर्, डाक-वारण्ट, भाण्डागािरक पर्माणपतर्, घाटवाल का पर्माणपतर्,
रे ल-रसीद 5 [,बहुिविध पिरवहन दस्तावेज], माल के पिरदान के िलए वारण्ट या आदेश और ऐसी अन्य कोई भी दस्तावेज आती है
िजसका कारबार के मामूली अनुकर्म म उपयोग माल पर कब्जे या िनयंतर्ण के सबूत के रूप म िकया जाता है या जो उस दस्तावेज
पर कब्जा रखने वाले व्यिक्त को वह माल िजसके बारे म वह दस्तावेज है अन्तिरत या पर्ाप्त करने के िलए या तो पृष्ठांकन ारा
या पिरदान ारा पर्ािधकृ त करती है या पर्ािधकृ त करने वाली तात्पियत है ;
(5) “कसूर” से सदोष कायर् या व्यितकर्म अिभपर्ेत है ;
(6) “भावी माल” से वह माल अिभपर्ेत है िजसे िवकर्य की संिवदा करने के पश्चात् िवकर्ेता को िविनिमत या उत्पािदत
या अिजत करना है ;
(7) “माल” से अनुयोज्य दाव और धन से िभन्न हर िकस्म की जंगम सम्पि अिभपर्ेत है, तथा इसके अन्तगर्त आते ह
स्टाक और अंश, उगती फसल, घास और भूिम से ब या उसकी भागरूप ऐसी चीज िजनका िवकर्य से पूवर् या िवकर्य की संिवदा के
अधीन भूिम से पृथक् िकए जाने का करार िकया गया हो ;
(8) वह व्यिक्त “िदवािलया” कहलाता है िजसने कारबार के मामूली अनुकर्म म अपने ऋण का संदाय बन्द कर िदया हो
या जो अपने ऋण का, जैसे-जैसे वे शोध्य होते जाएं संदाय न कर सकता हो, चाहे उसने िदवािलएपन का कोई कायर् िकया हो या
नह ;
1
इस अिधिनयम का िवस्तार बरार पर 1941 के अिधिनयम सं० 4 ारा दादरा और नागर हवेली पर ; 1963 के िविनयम सं० 6 की धारा 2 और अनुसूची 1 ारा
(1-7-1965 से) गोवा, दमण और दीव पर; 1963 के िविनयम सं० 11 की धारा 3 और अनुसूची ारा पािण्डचेरी पर; 1968 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 3, अनुसूची ारा
लक्ष ीप पर ; 1965 के िविनयम सं० 8 की धारा 3 और अनुसूची ारा (1-10-1967 से) ; तथा िसिक्कम पर अिधसूचना सं० का० आ० 645 (अ), तारीख 24-8-1984, भारत
का राजपतर् (अंगर्ेजी) आसाधारण, भाग II, अनुभाग 3 (ii) ारा (1-9-1984 से) िकया गया है ।
2
1963 के अिधिनयम सं० 33 की धारा 2 ारा “भारतीय” शब्द का लोप िकया गया ।
3
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा उपधारा (2) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1951 के अिधिनयम सं० 3 की धारा 3 और अनुसूची ारा “भाग ख राज्य के िसवाय” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
1993 के अिधिनयम सं० 28 की धारा 31 और अनुसूची भाग 3 ारा अंत:स्थािपत ।
(9) “वािणिज्यक अिभकतार्” से ऐसा वािणिज्यक अिभकतार् अिभपर्ेत है जो ऐसा अिभपर्ेत होने के नाते कारबार के रूिढ़क
अनुकर्म म या तो माल के िवकर्य का या िवकर्य के पर्योजन के िलए माल के परे षण का या माल के कर्य या माल की पर्ितभूित पर
धन खड़ा करने का पर्ािधकार रखता हो ;
(10) “कीमत” से वह पर्ितफल अिभपर्ेत है जो माल के िवकर्य का धन के रूप म है ;
(11) “सम्पि ” से माल म की साधारण सम्पि , न िक के वल कोई िवशेष सम्पि , अिभपर्ेत है ;
(12) “माल की क्वािलटी” के अन्तगर्त उनकी िस्थित या दशा भी आती है ;
(13) “िवकर्ेता” से वह व्यिक्त अिभपर्ेत है जो माल का िवकर्य करता है या िवकर्य करने का करार करता है ;
(14) “िविनिदष्ट माल” से वह माल अिभपर्ेत है जो उस समय, जब िवकर्य की संिवदा की जाती है, पिरलिक्षत ओर
करािरत िकया जाता है ; तथा
(15) उन पद के जो इस अिधिनयम म पर्युक्त िकए गए ह िकन्तु पिरभािषत नह ह और भारतीय संिवदा
अिधिनयम, 1872 (1872 का 9) म पिरभािषत ह, वे ही अथर् ह जो उन्ह उस अिधिनयम म समनुिदष्ट ह ।
3. 1872 के अिधिनयम 9 के उपबन्ध का लागू होना—भारतीय संिवदा अिधिनयम, 1872 के अिनरिसत उपबन्ध, वहां तक के
िसवाय जहां तक िक वे इस अिधिनयम के अिभव्यक्त उपबन्ध से असंगत ह, माल के िवकर्य की संिवदा को लागू होते रहगे ।
अध्याय 2
संिवदा की िवरचना
िवकर्य की संिवदा
4. िवकर्य और िवकर्य करने का करार—(1) माल के िवकर्य की संिवदा ऐसी संिवदा है िजसके ारा िवकर्ेता माल म की सम्पि
कर्ेता को कीमत पर अन्तिरत करता या अन्तिरत करने का करार करता है । एक भािगक स्वामी और दूसरे भािगक स्वामी के बीच िवकर्य की
संिवदा हो सके गी ।
(2) िवकर्य की संिवदा आत्यिन्तक या सशतर् हो सके गी ।
(3) जहां िक माल म की सम्पि िवकर्ेता से कर्ेता को िवकर्य की संिवदा के अधीन अन्तिरत होती है वहां संिवदा िवकर्य कहलाती है,
िकन्तु जहां िक माल म की सम्पि का अन्तरण िकसी आगामी समय म या िकसी ऐसी शतर् के अध्यधीन होना है जो तत्पश्चात् पूरी की जानी
है वहां संिवदा िवकर्य करने का करार कहलाती है ।
(4) िवकर्य करने का करार तब िवकर्य हो जाता है जब वह समय बीत जाता है या वे शत पूरी हो जाती ह िजनके अध्यधीन माल म
की सम्पि अन्तिरत होनी है ।
संिवदा की पर्रूिपताएं
5. िवकर्य की संिवदा कै से की जाती है—(1) िवकर्य की संिवदा कीमत पर माल का कर्य या िवकर्य करने की पर्स्थापना और इस
पर्स्थापना के पर्ितगर्हण ारा की जाती है । संिवदा माल के तुरन्त पिरदान के या कीमत के तुरन्त संदाय के या उन दोन के िलए अथवा
िकस्त म पिरदान या संदाय के िलए अथवा इस बात के िलए िक पिरदान या संदाय या दोन मुल्तवी रहगे, उपबन्ध कर सके गी ।
(2) िकसी तत्समय पर्वृ िविध के उपबन्ध के अध्यधीन यह है िक िवकर्य की संिवदा िलिखत या वािचक या भागत: िलिखत और
भागत: वािचक तौर पर की जा सके गी अथवा पक्षकार के आचरण से िवविक्षत हो सके गी ।
संिवदा की िवषय-वस्तु
6. वतर्मान या भावी माल—(1) वह माल जो िवकर्य की संिवदा का िवषय हो या तो ऐसा वतर्मान माल हो सके गी जो िवकर्ेता के
स्वािमत्व या कब्जे म हो या भावी माल हो सके गा ।
(2) उस माल के िवकर्य के िलए संिवदा हो सके गी िजसका कर्ेता ारा अजर्न ऐसी अिनिश्चत घटना पर अलिम्बत हो जो घिटत हो
या न हो ।
(3) जहां िक िवकर्य की संिवदा ारा िवकर्ेता का भावी माल का साम्पर्ितक िवकर्य करना तात्पियत है वहां वह संिवदा उस माल का
िवकर्य करने के करार के रूप म पर्वृ होती है ।
7. संिवदा की जाने के पूवर् माल का नष्ट होना—(1) जहां िक संिवदा िविनिदष्ट माल के िवकर्य के िलए है, वहां यिद िवकर्ेता के
ज्ञान के िबना वह माल उस समय, जब संिवदा की गई थी, नष्ट हो गया था या इतना नुकसान गर्स्त हो गया था िक वह संिवदा म के अपने
वणर्न के अनुरूप नह रह गया था, तो संिवदा शून्य है ।
8. िवकर्य के पूवर् िकन्तु िवकर्य करने के करार के पश्चात् माल का नष्ट हो जाना—जहां िक करार िविनिदष्ट माल के िवकर्य का है
और तत्पश्चात् इसके पूवर् िक जोिखम कर्ेता को संकर्ान्त हो वह माल कर्ेता या िवकर्ेता की तरफ के िकसी कसूर के िबना नष्ट हो जाता है या
इतना नुकसान गर्स्त हो जाता है िक वह करार म के अपने वणर्न के अनुरूप नह रह जाता वहां करार तद् ारा शून्य हो जाता है ।
कीमत
9. कीमत अिभिनिश्चत करना—(1) िवकर्य की संिवदा म की कीमत उस संिवदा ारा िनयत की जा सके गी या तद् ारा करािरत
रीित िनयत िकए जाने के िलए छोड़ी जा सके गी, या पक्षकार के बीच की व्यवहार-चयार् ारा अवधािरत की जा सके गी ।
(2) जहां िक कीमत पूवर्गामी उपबन्ध के अनुसार अवधािरत नह की गई है, वहां कर्ेता को युिक्तयुक्त कीमत देगा । युिक्तयुक्त
कीमत क्या है, यह तथ्य का पर्श्न है जो हर िविशष्ट मामले की पिरिस्थितय पर अवलिम्बत है ।
10. मूल्यांकन पर िवकर्य करने का करार—(1) जहां िक इस िनबन्धन पर माल का िवकर्य करने का करार है िक कीमत िकसी पर-
व्यिक्त के मूल्यांकन ारा िनयत की जाती है और ऐसा पर-व्यिक्त मूल्यांकन नह कर सकता या नह करता, वहां वह करार तद् ारा शून्य
हो जाता है :
परन्तु यिद वह माल या उसका कोई भाग कर्ेता को पिरद कर िदया गया हो और उसके ारा िविनयोिजत कर िलया गया हो, तो
वह उसके िलए युिक्तयुक्त कीमत देगा ।
(2) जहां िक िवकर्ेता या कर्ेता के कसूर से ऐसा पर-व्यिक्त मूल्यांकन करने से िनवािरत हो जाता है, वहां िजस पक्षकार का कसूर
नह है वह उस पक्ष के िवरु िजसका कसूर है नुकसानी के िलए वाद ला सके गा ।
शत और वारं िटयां
11. समय के बारे म अनुबन्ध—जब तक िक उस संिवदा के िनबन्धन से कोई िभन्न आशय पर्तीत हो संदाय के समय के बारे म
अनुबन्ध िवकर्य की संिवदा के ममर् नह समझे जाते । समय के बारे म कोई अन्य अनुबन्ध उस संिवदा का ममर् है या नह , यह बात उस संिवदा
के िनबन्धन पर अवलंिबत होती है ।
12. शतर् और वारन्टी—(1) िवकर्य की संिवदा म कोई अनुबन्ध जो उस माल के बारे म हो जो उस संिवदा का िवषय है शतर् या
वारण्टी हो सके गा ।
(2) शतर् संिवदा के मुख्य पर्योजन के िलए ममर्भूत वह अनुबन्ध है िजसका भंग उस संिवदा को िनराकृ त मानने का अिधकार पैदा
करता है ।
(3) वारण्टी संिवदा के मुख्य पर्योजन का सांपािश्वक वह अनुबंध है िजसका भंग नुकसानी के िलए दावा पैदा करता है िकन्तु माल
को पर्ितपेिक्षत करने और संिवदा को िनराकृ त मानने का अिधकार पैदा नह करता ।
(4) िवकर्य की संिवदा म कोई अनुबन्ध शतर् है या वारण्टी, यह बात हर एक मामले म उस संिवदा के अथार्न्वयन पर अवलंिबत
होती है । अनुबन्ध शतर् हो सकता है, य िप संिवदा म उसे वारण्टी कहा गया हो ।
13. शतर् कब वारन्टी मानी जा सके गी—(1) जहां िक िवकर्य की संिवदा िकसी ऐसी शतर् के अध्यधीन है िजसकी पूित िवकर्ेता ारा
की जानी है, वहां कर्ेता उस शतर् का अिधत्यजन कर सके गा अथवा यह िनवार्चन कर सके गा िक शतर् के भंग को वारण्टी का भंग, न िक संिवदा
को िनराकृ त मानने का आधार माने ।
(2) जहां िक िवकर्य की संिवदा िवभाजनीय नह है और कर्ेता ने माल को या उसके भाग को पर्ितगृहीत कर िलया है 1 *** वहां
कर्ेता ारा पूरी की जाने वाली िकसी शतर् का भंग के वल वारण्टी का भंग न िक माल को पर्ितक्षेिपत करने का और संिवदा को िनराकृ त मानने
का आधार, माना जा सके गा, जब तक िक संिवदा म कोई तत्पर्भावी अिभव्यक्त या िवविक्षत िनबन्धन न हो ।
(3) इस धारा की कोई भी बात िकसी ऐसी शतर् या वारण्टी के मामले पर पर्भाव न डालेगी िजसे पूरा करने से माफी उसकी
असंभवता के कारण या अन्यथा िविध ारा पर्द हो ।
14. हक आिद के बारे म िवविक्षत पिरवंचना—िवकर्य की संिवदा म, जब तक िक संिवदा की पिरिस्थितयां ऐसी न ह िक िभन्न
आशय दिशत होता है—
1
1963 के अिधिनयम सं० 33 की धारा 3 ारा “या जहां िक संिवदा उस िविनिदष्ट माल के िलए है िजसम िक संपि कर्ेता को संकर्ांत होती है” शब्द का लोप िकया गया ।
(क) िवकर्ेता की तरफ से िवकर्य की दशा म यह िवविक्षत शतर् रहती है उसे माल के िवकर्य का अिधकार है और िवकर्य
करने के करार की दशा म यह िवविक्षत शतर् रहती है िक उसे माल के िवकर्य का अिधकार उस समय रहेगा जब सम्पि संकर्ान्त
होनी है ;
(ख) यह िवविक्षत वारण्टी रहती है िक कर्ेता को उस माल का िनबार्ध कब्जा पर्ाप्त होगा और वह ऐसे कब्जे का
उपभोग करे गा ;
(ग) वह िवविक्षत वारण्टी रहती है िक माल िकसी पर-व्यिक्त के पक्ष म िकए गए िकसी ऐसे भार या िवल्लंगम् से मुक्त
रहेगा जो कर्ेता को संिवदा िकए जाने के पूवर् या िकए जाने के समय घोिषत नह िकया गया था या ज्ञात न था ।
15. वणर्नानुसार िवकर्य—जहां िक संिवदा वणर्नानुसार माल के िवकर्य के िलए हो वहां यह िवविक्षत शतर् रहती है िक माल वणर्न
के अनुरूप होगा और यिद िवकर्य नमूने और वणर्न दोन के अनुसार हो तो माल के पर्पुंज का नमूने के अनुरूप होना पयार्प्त नह है जब तक
िक माल वणर्न के अनुरूप भी न हो ।
16. क्वािलटी या योग्यता के बारे म िवविक्षत शत—इस अिधिनयम के और िकसी अन्य तत्समय पर्वृ िविध के उपबंध के
अध्यधीन यह है िक िजस माल का पर्दाय िवकर्य की संिवदा के अधीन िकया गया है उसकी क्वािलटी के बारे म या िकसी िविशष्ट पर्योजन के
िलए उसकी योग्यता के बारे म िवविक्षत वारण्टी या शतर् िनम्निलिखत के िसवाय नह रहती है—
(1) जहां िक कर्ेता वह िविशष्ट पर्योजन, िजसके िलए माल अपेिक्षत है, िवकर्ेता को अिभव्यक्त या िवविक्षत रूप से इस
पर्कार ज्ञात करा देता है िक उससे यह दिशत हो िक िवकर्ेता के कौशल या िववेकबुि पर कर्ेता भरोसा कर रहा है और माल उस
वणर्न का है, िजस वणर्न के माल का पर्दाय िवकर्ेता के कारबार के अनुकर्म म है (चाहे िवकर्ेता उसका िविनमार्ता या उत्पादक हो या
नह ), वहां वह िवविक्षत शतर् होती है िक माल ऐसे पर्योजन के िलए युिक्तयुक्तत: योग्य होगा :
परन्तु िविनिदष्ट चीज के पेटेन्ट-नाम या अन्य व्यापार नाम से िवकर्य की संिवदा की दशा म उस चीज के िकसी िविशष्ट
पर्योजन के िलए योग्य होने के बारे म कोई िवविक्षत शतर् नह होगी ।
(2) जहां िक माल का ऐसे िवकर्ेता से वणर्नानुसार कर्य िकया जाता है जो उस वणर्न के माल का व्यापार करता है (चाहे
वह उसका िविनमार्ता या उत्पादक हो या नह ), वहां यह िवविक्षत शतर् होती है िक माल वािणिज्यक क्वािलटी का होगा :
परन्तु यिद कर्ेता ने माल की परीक्षा कर ली है तो उन तर्ुिटय के बारे म जो ऐसी परीक्षा से पर्कट हो जानी चाहए थी
कोई िवविक्षत शतर् नह होगी ।
(3) क्वािलटी के बारे म या िविशष्ट पर्योजन के िलए योग्य होने के बारे म िवविक्षत वारं टी या शतर् व्यापार की पर्था
ारा उपाब हो सके गी ।
(4) अिभव्यक्त वारं टी या शतर् इस अिधिनयम ारा िवविक्षत वारं टी या शतर् का नकार नह करती जब तक िक वह
उससे असंगत न हो ।
17. नमूने के अनुसार िवकर्य—(1) िवकर्य की संिवदा वहां नमूने के अनुसार िवकर्य के िलए होती है जहां िक संिवदा म तत्पर्भावी
अिभव्यक्त या िवविक्षत िनबंधन हो ।
(2) नमूने के अनुसार िवकर्य के िलए संिवदा की दशा म यह िवविक्षत शतर् रहती है—
(क) िक माल का पर्पुंज क्वािलटी म नमूने के सदृश होगा ;
(ख) िक कर्ेता को माल के पर्पुंज का नमूने से िमलान करने का युिक्तयुक्त अवसर पर्ाप्त होगा ;
(ग) िक माल उसे अवािणिज्यक बना देने वाली िकसी ऐसी तर्ुिट से मुक्त होगा जो नमूने की युिक्तयुक्त परीक्षा से
पर्कट न होती हो ।
अध्याय 3
संिवदा के पर्भाव
िवकर्ेता और कर्ेता के बीच संपि का अन्तरण
18. माल को अिभिनिश्चत करना होगा—जहां िक संिवदा अिभिनिश्चत माल के िवकर्य के िलए है वहां यिद और जब तक
अिभिनिश्चत नह कर िलया जाता, माल म कोई सम्पि कर्ेता को अन्तिरत नह होगी ।
19. सम्पि तब संकर्ांत होती है जब उसका संकर्ान्त होना आशियत हो—(1) जहां िक संिवदा िविनिदष्ट या अिभिनिश्चत माल के
िवकर्य के िलए हो वहां उस माल म की सम्पि कर्ेता को उस समय अन्तिरत होती है िजस समय उसका अन्तिरत िकया जाना उस संिवदा के
पक्षकार ारा आशियत हो ।
(2) संिवदा के िनबन्धन, पक्षकार का आचरण और मामले की पिरिस्थितयां पक्षकार के आशय को अिभिनिश्चत करने के पर्योजन
के िलए ध्यान म रखी जाएगी ।
(3) जब तक िक िभन्न आशय पर्तीत न हो, उस समय के बारे म िजस पर माल म की सम्पि कर्ेता को संकर्ान्त होनी है, पक्षकार के
आशय के अिभिनश्चयन के िलए िनयम वे िनयम ह जो धारा 20 से लेकर 24 तक म अन्तिवष्ट ह ।
20. पिरदेय िस्थित म िविनिदष्ट माल—जहां िक संिवदा पिरदेय िस्थित के िविनिदष्ट माल के िवकर्य के िलए वहां उस माल म की
सम्पि कर्ेता को उस समय संकर्ान्त होती है जब संिवदा की जाती है, और यह तत्वहीन है िक कीमत के संदाय का समय या माल के पिरदान
का समय या दोन मुल्तवी कर िदए गए ह ।
21. िविनिदष्ट माल का पिरदेय िस्थित म लाया जाना—जहां िक संिवदा िविनिदष्ट माल के िवकर्य के िलए है और िवकर्ेता माल
को पिरदेय िस्थित म लाने के पर्योजन से माल के पर्ित कु छ करने के िलए आब है, वहां सम्पि तब तक संकर्ान्त नह होती जब तक वह कर
नह िदया जाता और कर्ेता को उसकी सूचना नह हो जाती ।
22. पिरदेय िस्थित म िविनिदष्ट माल, जब िक उसकी कीमत अिभिनिश्चत करने के िलए उसके पर्ित िवकर्ेता को कु छ करना है—
जहां िक संिवदा पिरदेय िस्थित के िविनिदष्ट माल के िवकर्य के िलए है िकन्तु िवकर्ेता कीमत अिभिनिश्चत करने के पर्योजन से माल को
तोलने, मापने, परखने या उसके बारे म कोई अन्य कायर् या बात करने के िलए आब है वहां सम्पि तब तक संकर्ान्त नह होती जब तक वह
कायर् या बात नह कर जाती और कर्ेता को उसकी सूचना नह हो जाती ।
23. अनिभिनिश्चत माल का िवकर्य और िविनयोग—(1) जहां िक अनिभिनिश्चत या भावी माल के वणर्नानुसार िवकर्य की संिवदा
है और ऐसा माल जो उस वणर्न का और पिरदेय िस्थित म है या तो कर्ेता की अनुमित से िवकर्ेता ारा या िवकर्ेता की अनुमित से कर्ेता ारा
संिवदा म े अशतर् िविनयोिजत कर िदया जाता है वहां तदुपिर माल म की सम्पि कर्ेता को संकर्ान्त हो जाती है ऐसी अनुमित अिभव्यक्त या
िवविक्षत हो सके गी और िविनयोग िकए जाने के पूवर् या पश्चात् दी जा सके गी ।
वाहक को पिरदान—(2) जहां िक संिवदा के अनुसरण म िवकर्ेता कर्ेता को अथवा कर्ेता को माल परे िषत िकए जाने के पर्योजन से
वाहक को या अन्य उपिनिहती को (चाहे वह कर्ेता ारा नािमत हो या न हो) माल का पिरदान कर देता है और व्ययन का अिधकार आरिक्षत
नह रखता वहां यह समझा जाएगा िक उसने संिवदा म े उस माल का अशतर् िविनयोग कर िदया है ।
24. अनुमोदनाथर् अथवा “िवकर्य या वापसी के िलए” भेजा गया माल—जब िक कर्ेता को माल अनुमोदनाथर् अथवा “िवकर्य या
वापसी के िलए” या ऐसे ही अन्य िनबन्धन पर पिरद िकया जाता है तब माल म की सम्पि का कर्ेता को संकर्मण—
(क) उस समय होता है जब वह अपना अनुमोदन या पर्ितगर्हण िवकर्ेता को संज्ञािपत करता है या उस संव्यवहार को
अंगीकार करने का कोई अन्य कायर् करता है ;
(ख) उस दशा म जब िक वह अपना अनुमोदन या पर्ितगर्हण िवकर्ेता को संज्ञािपत नह करता िकन्तु पर्ितक्षेप की सूचना
िदए िबना माल को पर्ितधािरत रखता है, यिद माल की वापसी के िलए कोई समय िनयत िकया गया हो तो उस समय के अवसान
पर होता है, और यिद कोई समय िनयत नह िकया गया हो तो युिक्त-युक्त समय के अवसान पर होता है ।
25. व्ययन के अिधकार का आरक्षण—(1) जहां िक संिवदा िविनिदष्ट माल के िवकर्य के िलए है या जहां िक माल संिवदा म े
तत्पश्चात्, िविनयोिजत कर िदया जाता है वहां िवकर्ेता उस माल के व्ययन का अिधकार संिवदा या िविनयोग के िनबन्धन ारा तब तक के
िलए आरिक्षत रख सके गा जब तक अमुक शत पूरी नह हो जात । ऐसी दशा म इस बात के होते हुए भी िक माल का पिरदान कर्ेता को, या
कर्ेता को उसका परे षण करने के पर्योजन से वाहक को या अन्य उपिनिहती को, कर िदया गया है, माल म की सम्पि कर्ेता को तब तक
संकर्ान्त नह होती जब तक िवकर्ेता ारा लगाई गई शत पूरी नह हो जात ।
जहां िक माल पोत ारा भेजा जाता है या रे ल ारा वहन िकए जाने के िलए रे ल-पर्शासन को पिरद िकया जाता है और,
1 [(2)
यथािस्थित, वहन पतर् या रे ल-रसीद पर माल िवकर्ेता के या उसके अिभकतार् के आदेशानुसार पिरदेय है वहां पर्थमदृष्ट्या यह समझा जाता है
िक िवकर्ेता ने व्ययन का अिधकार आरिक्षत कर िलया है ।
(3) जहां िक माल का िवकर्ेता कर्ेता पर कीमत के िलए िविनमय-पतर् िलखता है और िविनमय-पतर्, यथािस्थित, वहन-पतर् या रे ल-
रसीद के साथ कर्ेता को इस दृिष्ट से पारे िषत करता है िक िविनमय-पतर् पर्ितगृहीत कर िलया जाए या उसका भुगतान कर िदया जाए वहां
1
1963 के अिधिनयम सं० 33 की धारा 4 ारा उपधारा (2) और उपधारा (3) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
यिद कर्ेता िविनमय-पतर् का आदरण नह करता तो वह उस वहन-पतर् या रे ल-रसीद को लौटाने के िलए आब है और यिद वह उस वहन-पतर्
या रे ल-रसीद को सदोष पर्ितधािरत करता है तो माल म की सम्पि उसको संकर्ान्त नह होती है ।
स्पष्टीकरण—इस धारा म “रे ल” और “रे ल-पर्शासन” पद के वे ही अथर् ह गे जो भारतीय रे ल अिधिनयम, 1890 (1890 का 9) म
उन्ह कर्मश: समनुिदष्ट ह ।]
26. जोिखम पर्थमदृष्ट्या सम्पि के साथ संकर्ान्त हो जाती है—जब तक िक अन्यथा करािरत न हो, माल तब तक िवकर्ेता की
जोिखम पर रहता है जब तक उसम की सम्पि कर्ेता को अन्तिरत नह हो जाती ; िकन्तु जब उसम की सम्पि कर्ेता को अन्तिरत हो जाती है
तब, चाहे पिरदान िकया गया हो या नह , माल कर्ेता की जोिखम पर रहता है :
परन्तु जहां िक पिरदान कर्ेता या िवकर्ेता के कसूर से िवलिम्बत हो गया है वहां माल िकसी हािन की बाबत, जो ऐसे कसूर के
अभाव म न हुई होती, उस पक्षकार की जोिखम पर रहता है िजसका कसूर हो :
परन्तु यह और भी िक इस धारा की कोई भी बात कर्ेता या िवकर्ेता के उन कतर्व्य या दाियत्व पर पर्भाव नह डालेगी जो दूसरे
पक्षकार के माल के उपिनिहती के नाते उसके ह ।
हक का अन्तरण
27. उस व्यिक्त ारा िवकर्य जो स्वामी नह है—इस अिधिनयम और िकसी तत्समय पर्वृ िविध के उपबन्ध के अध्यधीन यह है
िक जहां िक माल ऐसे व्यिक्त ारा बेचा जाता है जो उसका स्वामी नह है और जो स्वामी के पर्ािधकार के अधीन या सम्मित से उसे नह
बेचता वहां कर्ेता उस माल पर उस हक से, जो िवकर्ेता का था, बेहतर हक नह अिजत करता, जब तक िक माल का स्वामी िवकर्ेता के िवकर्य-
पर्ािधकार का पर्त्याखान करने से अपने आचरण ारा पर्वािरत नह हो जाता :
परन्तु जहां िक वािणिज्यक अिभकतार् माल पर या माल पर हक की दस्तावेज पर स्वामी की सम्मित से कब्जा रखता है वहां जब
तक वह वािणिज्यक अिभकतार् के कारबार के मामूली अनुकर्म म कायर् कर रहा हो, उसके ारा िकया गया कोई भी िवकर्य वैसा ही िविधमान्य
होगा मानो माल के स्वामी ारा वह ऐसा करने के िलए अिभव्यक्तत: पर्ािधकृ त हो ; परन्तु यह तब तब िक कर्ेता सद्भावपूवर्क कायर् करे और
िवकर्य की संिवदा के समय उसे यह सूचना न हो िक िवकर्ेता को िवकर्य-पर्ािधकार नह है ।
28. संयुक्त स्वािमय म से एक ारा िवकर्य—यिद माल के कई संयुक्त स्वािमय म से एक का उस माल पर एकमाितर्क कब्जा
सहस्वािमय की अनुज्ञा से है तो उस माल म की सम्पि ऐसे िकसी व्यिक्त को अन्तिरत हो जाती है जो ऐसे संयुक्त स्वामी म उसे
सद्भावपूवर्क कर्य करे और िजसे िवकर्य की संिवदा के समय यह सूचना न हो िक िवकर्ेता को िवकर्य-पर्ािधकार नह है ।
29. शून्यकरणीय संिवदा के अधीन कब्जा रखने वाले व्यिक्त ारा िवकर्य—जब िक माल के िवकर्ेता ने भारतीय संिवदा
अिधिनयम, 1872 (1872 का 9) की धारा 19 या 19क के अधीन शून्यकरणीय संिवदा के अधीन उस पर कब्जा अिभपर्ाप्त िकया है िकन्तु वह
संिवदा िवकर्य के समय िवखिण्डत नह हो चुकी है, तब कर्ेता उस माल पर अच्छा हक अिजत कर लेता है; परन्तु यह तब जब िक वह उसे
सद्भावपूवर्क और िवकर्ेता के हक की तर्ुिट की सूचना के िबना कर्य करे ।
30. िवकर्य के पश्चात् िवकर्ेता या कर्ेता का कब्जा रहना—(1) जहां िक िकसी व्यिक्त के माल का िवकर्य कर देने पर भी उस माल
पर या उस माल पर हक की दस्तावेज पर कब्जा बना रहता है या होता है वहां उस व्यिक्त ारा या उसके िलए कायर् करने वाले वािणिज्यक
अिभकतार् ारा उस माल का या हक की दस्तावेज का िकसी िवकर्य, िगरवी या अन्य व्ययन के अधीन िकसी ऐसे व्यिक्त को िकया गया
पिरदान या अन्तरण जो उसे सद्भावपूवर्क और पूवर्तन िवकर्य की सूचना के िबना पर्ाप्त करता है, वही पर्भाव रखेगा मानो पिरदान या
अन्तरण करने वाला व्यिक्त माल के स्वामी ारा वैसा करने के िलए अिभव्यक्तत: पर्ािधकृ त था ।
(2) जहां िक कोई व्यिक्त माल का कर्य करके या कर्य करने का करार करके उस माल का या उस माल पर हक की दस्तावेज का
कब्जा िवकर्ेता की सम्मित से अिभपर्ाप्त करता है वहां उस व्यिक्त ारा या उसके िलए कायर् करने वाले वािणिज्यक अिभकतार् ारा उस माल
का या हक की दस्तावेज का िकसी िवकर्य, िगरवी या अन्य व्ययन के अधीन िकसी ऐसे व्यिक्त को िकया पिरदान या अन्तरण, जो उसे
सद्भावपूवर्क और माल के बारे म मूल िवकर्ेता के िकसी धारणािधकार या अन्य अिधकार की सूचना के िबना पर्ाप्त करता है, ऐसा पर्भाव
रखेगा मानो ऐसा धारणािधकार या अिधकार अिस्तत्व म था ही नह ।
अध्याय 4
संिवदा का पालन
31. िवकर्ेता और कर्ेता के कतर्व्य—िवकर्ेता का कतर्व्य है िक माल का पिरदान और कर्ेता का कतर्व्य है िक उसका पर्ितगर्हण और
उसके िलए संदाय िवकर्य की संिवदा के िनबन्धन के अनुसार करे ।
32. संदाय और पिरदान समवत शत ह—जब तक िक अन्यथा करार न हुआ हो माल का पिरदान और कीमत का संदाय समवत
शत ह अथार्त् िवकर्ेता कीमत के िविनमय म माल का कब्जा कर्ेता को देने को तैयार और रजामन्द होगा और कर्ेता माल के कब्जे के िविनमय म
कीमत देने को तैयार और रजामन्द होगा ।
33. पिरदान—िवकर्ीत माल का पिरदान ऐसा कोई काम करके िकया जा सके गा िजसके बारे म पक्षकार म करार हो िक वह
पिरदान माना जाएगा या जो माल पर कर्ेता का या उसकी ओर से धािरत करने के िलए पर्ािधकृ त व्यिक्त का कब्जा करा देने का पर्भाव
रखता हो ।
34. भािगक पिरदान का पर्भाव—सम्पूणर् माल का पिरदान चालू रहने के दौरान म माल के भाग का पिरदान ऐसे माल म की
सम्पि के संकर्मण के पर्योजन के िलए वही पर्भाव रखता है जो सम्पूणर् का पिरदान ; िकन्तु माल के भाग का ऐसा पिरदान, जो उसे सम्पूणर् से
पृथक् करने के आशय से िकया जाए शेष के पिरदान के रूप म पर्वृ नह होता ।
35. पिरदान के िलए कर्ेता आवेदन करे —कोई अिभव्यक्त संिवदा न हो तो, जब तक कर्ेता पिरदान के िलए आवेदन न करे माल का
िवकर्ेता उसका पिरदान करने के िलए आब नह है ।
36. पिरदान िवषयक िनयम—(1) यह बात िक माल का कब्जा कर्ेता को लेना है या माल कर्ेता को िवकर्ेता ारा भेजा जाना है हर
मामले म पक्षकार के बीच अिभव्यक्त या िवविक्षत संिवदा पर अवलंिबत है । कोई ऐसी संिवदा न हो तो िवकर्ीत माल का पिरदान उस
स्थान पर िजसम यह िवकर्य के समय हो और िवकर्य करने के िलए करािरत माल का पिरदान उस स्थान पर िजसम वह िवकर्य करने के करार
के समय हो या यिद माल तब अिस्तत्व म न हो तो उस स्थान पर, िजसम वह िविनिमत या उत्पािदत िकया जाता है, िकया जाएगा ।
(2) जहां िक िवकर्य की संिवदा के अधीन कर्ेता को माल भेजने के िलए िवकर्ेता आब हो, िकन्तु उसे भेजने के िलए कोई समय
िनयत न हो वहां िवकर्ेता उसे युिक्तयुक्त समय के अन्दर भेजने के िलए आब है ।
(3) जहां िक माल िवकर्य के समय िकसी पर-व्यिक्त के कब्जे म हो, वहां कर्ेता को िवकर्ेता ारा पिरदान नह होता यिद और जब
तक ऐसा पर-व्यिक्त कर्ेता से यह अिभस्वीकार न कर ले िक वह माल को उसकी ओर से धािरत िकए हुए है :
परन्तु इस धारा की कोई भी बात माल पर हक की िकसी दस्तावेज के पर्दान या अन्तरण के पर्वतर्न पर पर्भाव न डालेगी ।
(4) पिरदान की मांग या िनिवदा, जब तक िक वह युिक्तयुक्त समय पर न की जाए, पर्भावहीन मानी जा सके गी । युिक्तयुक्त
समय क्या है यह तथ्य का पर्श्न है ।
(5) जब तक िक अन्यथा करार न हो, माल को पिरदेय िस्थित म लाने के और तदनुषंिगक व्यय िवकर्ेता ारा उठाए जाएंगे ।
37. गलत पिरमाण का पिरदान—(1) जहां िक िवकर्ेता उस पिरमाण से, िजसके िवकर्य की संिवदा उसने की थी, कम पिरमाण के
माल का पिरदान कर्ेता को करता है वहां कर्ेता उसे पर्ितक्षेिपत कर सके गा, िकन्तु यिद कर्ेता ऐसे पिरद माल को पर्ितगृहीत कर लेता है तो
वह संिवदा-दर से उसके िलए संदाय करे गा ।
(2) जहां िक िवकर्ेता उस पिरमाण से, िजसके िवकर्य की संिवदा उसने की थी, अिधक पिरमाण के माल का पिरदान कर्ेता को करता
है वहां कर्ेता उस माल को, जो संिवदा के अन्तगर्त है, पर्ितगृहीत कर सके गा और शेष को पर्ितक्षेिपत कर सके गा अथवा सम्पूणर् को पर्ितक्षेिपत
कर सके गा । यिद कर्ेता ऐसे पिरद समस्त माल को पर्ितगृहीत कर ले तो वह संिवदा-दर से उसके िलए संदाय करे गा ।
(3) जहां िक िवकर्ेता उस माल को, िजसके िवकर्य की उसने संिवदा की थी, उससे िभन्न वणर्न के ऐसे माल से, जो संिवदा के
अन्तगर्त नह है, िमिशर्त करके पिरद करता है वहां कर्ेता उस माल को पर्ितगृहीत कर सके गा जो संिवदा के अनुसार है और शेष को
पर्ितक्षेिपत कर सके गा, अथवा समस्त को पर्ितक्षेिपत कर सके गा ।
(4) इस धारा के उपबन्ध व्यापार की पर्था अथवा पक्षकार के बीच के िवशेष करार या व्यवहार-चयार् के अध्यधीन है ।
38. िकस्त म पिरदान—(1) जब तक िक अन्यथा करार न हो, माल का कर्ेता उसका पिरदान िकस्त म पर्ितगृहीत करने के िलए
आब नह है ।
(2) जहां िक संिवदा ऐसे माल के िवकर्य के िलए हो िजसका पिरदान किथत िकस्त म िकया जाना है, िजनके िलए संदाय पृथक् -
पृथक् िकया जाना है और िवकर्ेता एक या अिधक िकस्त की बाबत कोई पिरदान नह करता है या तर्ुिटयुक्त पिरदान करता है अथवा कर्ेता
एक या अिधक िकस्त का पिरदान लेने म उपेक्षा या लेने से इं कार या एक या अिधक िकस्त के िलए संदाय करने म उपेक्षा या संदाय करने से
इन्कार करता है वहां यह पर्श्न हर एक मामले म संिवदा के िनबन्धन और मामले की पिरिस्थितय पर अवलिम्बत होगा िक संिवदा का भंग
सम्पूणर् संिवदा का िनराकरण है या वह उसका ऐसा पृथक्करणीय भंग है, िजससे पर्ितकर के िलए दावा तो उद्भूत होता है िकन्तु सम्पूणर्
संिवदा को िनराकृ त मानने का अिधकार नह ।
39. वाहक या घाटवाल को पिरदान—(1) जहां िक िवकर्य की संिवदा के अनुसरण म िवकर्ेता को यह पर्ािधकार है या उससे यह
अपेिक्षत है िक वह कर्ेता को माल भेजे, वहां उस माल का कर्ेता के पास पारे षण करने के पर्योजन से वाहक को पिरदान, चाहे वाहक कर्ेता
ारा नािमत हो या न हो, अथवा घाटवाल को सुरिक्षत अिभरक्षा के िलए पिरदान पर्थमदृ ् या उस माल का कर्ेता को पिरदान समझा
जाता है ।
(2) जब तक िक कर्ेता ारा िवकर्ेता अन्यथा पर्ािधकृ त न हो, वह कर्ेता की ओर से वाहक से या घाटवाल से ऐसी संिवदा करे गा, जो
माल की पर्कृ ित और मामले की अन्य पिरिस्थितय को ध्यान म रखते हुए युिक्तयुक्त हो । यिद िवकर्ेता ऐसा करने का लोप करता है और
माल अिभवहन के अनुकर्म म, अथवा उस समय, जब वह घाटवाल की अिभरक्षा म है, खो जाता है या नुकसानगर्स्त हो जाता है, तो कर्ेता,
वाहक या घटवाल को िकया गया पिरदान अपने को िकया गया पिरदान मानने से इन्कार कर सके गा या िवकर्ेता को नुकसानी के िलए
उ रदायी ठहरा सके गा ।
(3) जब तक अन्यथा करार न हो, जहां िक िवकर्ेता ारा कर्ेता को ऐसे मागर् से, िजसम समुदर् अिभवहन अन्तर्विलत है, ऐसी
पिरिस्थितय म माल भेजा जाता है, िजसम पर्ाय: बीमा कराया जाता है, वहां कर्ेता को िवकर्ेता ऐसी सूचना देगा िजससे कर्ेता उसके समुदर्
अिभवहन के दौरान के िलए उसका बीमा कराने को समथर् हो सके और यिद िवकर्ेता ऐसा करने म असफल रहता है तो माल ऐसे समुदर्
अिभवहन के दौरान म उसकी जोिखम पर समझा जाएगा ।
40. जोिखम, जहां िक माल का पिरदान दूर के स्थान पर िकया जाता है—जहां िक माल का िवकर्ेता अपनी ही जोिखम पर उसका
पिरदान उस स्थान से िभन्न स्थान पर करने का करार करता है जहां वह माल िवकर्य के समय है, वहां, ऐसा होते हुए भी कर्ेता, जब तक िक
अन्यथा करार न हो, उस माल म ऐसे क्षय की जोिखम उठाएगा जो अिभवहन के अनुकर्म म अवश्यमेव हुआ करता है ।
41. माल की परीक्षा करने का कर्ेता का अिधकार—(1) जहां िक कर्ेता को ऐसा माल पिरद िकया जाता है िजसकी परीक्षा उसने
तत्पूवर् नह की है, वहां यह न समझा जाएगा िक उसने उसका पर्ितगर्हण कर िलया है यिद और जब तक उसे यह अिभिनिश्चत करने के
पर्योजन से िक वह संिवदा के अनुरूप है या नह , उसकी परीक्षा करने का युिक्तयुक्त अवसर न िमल गया हो ।
(2) यिद अन्यथा करार न हो, तो जब िवकर्ेता माल का पिरदान कर्ेता को िनिवद करता है तब वह इस बात के िलए आब है िक
यह अिभिनिश्चत करने के पर्योजन से िक माल संिवदा के अनुरूप है या नह , माल की परीक्षा करने का युिक्तयुक्त अवसर, पर्ाथर्ना िकए जाने
पर, कर्ेता को दे ।
42. पर्ितगर्हण—कर्ेता ने माल को पर्ितगृहीत कर िलया है, यह तब समझा जाता है, जब वह िवकर्ेता को यह पर्ज्ञािपत कर देता है
उसने वह माल पर्ितगृहीत कर िलया है, या जब माल कर्ेता को पिरद कर िदया गया है और उसने उसके संबंध म ऐसा कोई कायर् िकया है
जो िवकर्ेता के स्वािमत्व से असंगत है या जब युिक्तयुक्त समय के बीत जाने पर भी वह िवकर्ेता को अपना पर्ितक्षेपण पर्ज्ञािपत िकए िबना
माल को पर्ितधािरत िकए रहता है ।
43. कर्ेता पर्ितक्षेिपत माल को वापस करने के िलए आब नह है—जब तक िक अन्यथा करार न हो, जहां िक कर्ेता को माल
पिरद िकया जाता है और वह उसका पर्ितगर्हण करने से इन्कार ऐसा करने का अिधकार रखते हुए, करता है वहां वह उसे िवकर्ेता को
वापस करने के िलए आब नह है, िकन्तु यह पयार्प्त होगा िक वह िवकर्ेता को पर्ितज्ञािपत कर दे िक वह उसका पर्ितगर्हण करने से इन्कार
करता है ।
44. माल का पिरदान लेने म उपेक्षा या लेने से इन्कार करने के िलए कर्ेता का दाियत्व—जब िक िवकर्ेता माल का पिरदान करने को
तैयार और रजामन्द है और कर्ेता से पिरदान लेने की पर्ाथर्ना करता है और कर्ेता ऐसी पर्ाथर्ना के पश्चात् युिक्तयुक्त समय के अन्दर उस माल
का पिरदान नह लेता है तब वह िवकर्ेता के पर्ित ऐसी िकसी हािन के िलए, जो पिरदान लेने म कर्ेता ारा की गई उपेक्षा या इन्कार से हुई है,
और माल की देख-रे ख और अिभरक्षा के युिक्तयुक्त पर्भार के िलए भी दायी है :
परन्तु जहां िक पिरदान लेने म कर्ेता ारा की गई उपेक्षा या इन्कार संिवदा के िनराकरण की कोिट म आता है वहां इस धारा की
कोई भी बात िवकर्ेता के अिधकार पर पर्भाव न डालेगी ।
अध्याय 5
पर्कीणर्
62. िवविक्षत िनबन्धन और शत का अपवजर्न—जहां िक िविध की िववक्षा से कोई अिधकार, कतर्व्य या दाियत्व िवकर्य की
संिवदा के अधीन उद्भूत होता हो वहां अिभव्यक्त करार ारा या पक्षकार के बीच की व्यवहार-चयार् ारा या पर्था ारा, यिद पर्था ऐसी
हो जो संिवदा के दोन पक्षकार पर आब कर हो, उसका नकार या उसम फे रफार िकया जा सके गा ।
63. युिक्तयुक्त समय तथ्य का पर्श्न है—जहां िक इस अिधिनयम म युिक्तयुक्त समय के पर्ित कोई िनदश िकया गया है वहां
युिक्तयुक्त समय क्या है, यह तथ्य का पर्श्न है ।
64. नीलाम िवकर्य—नीलाम ारा िवकर्य की दशा म—
(1) जहां िक माल लाट म िवकर्य के िलए रखा जाता है वहां हर एक लाट के बारे म पर्थमदृ ् या यह समझा जाता है िक
वह िवकर्य की एक पृथक् संिवदा का िवषय है ;
(2) वह िवकर्य तब पूणर् हो जाता है जब नीलामकतार् उसका पूणर् होना धनपात ारा या अन्य रूिढ़क पर्कार से
आख्यािपत करता है और जब तक ऐसा आख्यापन न िकया जाए कोई भी बोली लगाने वाला अपनी बोली वापस ले सके गा ;
(3) बोली लगाने का अिधकार िवकर्ेता ारा या उसकी ओर से अिभव्यक्तत: आरिक्षत रखा जा सके गा और जहां िक ऐसा
अिधकार अिभव्यक्तत: आरिक्षत रखा जाता है, िकन्तु अन्यथा नह , िवकर्ेता या उसकी ओर से कोई एक व्यिक्त नीलाम म बोली
एतिस्मन्पश्चात् अन्तिवष्ट उपबन्ध के अध्यधीन लगा सके गा ;
(4) जहां िक िवकर्य का िवकर्ेता की ओर से बोली लगाने के अिधकार के अध्यधीन होना अिधसूिचत नह है वहां ऐसे
िवकर्य म स्वयं बोली लगाना या िकसी व्यिक्त को बोली लगाने के िलए िनयोिजत करना िवकर्ेता के िलए िविधपूणर् न होगा, और न
नीलामकतार् के िलए यह िविधपूणर् होगा िक वह िवकर्ेता से या ऐसे िकसी व्यिक्त से कोई बोली जानते हुए ले, और इस िनयम के
उल्लंघनकारी िवकर्य को कर्ेता कपटपूणर् मान सके गा ;
(5) िवकर्य का िकसी आरिक्षत कीमत या अपसेट कीमत के अध्यधीन होना अिधसूिचत िकया जा सके गा ;
(6) यिद िवकर्ेता अपदेशी बोली का पर्योग कीमत बढ़ाने के िलए करता है तो िवकर्य कर्ेता के िवकल्प पर
शून्यकरणीय है ।
विधत या कम िकए गए कर की रकम का िवकर्य की संिवदा म जोड़ा या घटाया जाना—(1) जब तक िक संिवदा के
1 [64क.
िनबन्धन से िभन्न आशय पर्तीत न हो, िकसी माल की बाबत उपधारा (2) म विणत पर्कृ ित का कोई कर ऐसे माल के िवकर्य या कर्य के िलए,
वहां पर जहां िक संिवदा के िकए जाने के समय कर पर्भायर् नह था, कर के संदाय के बारे म िकसी अनुबन्ध के िबना, या वहां पर जहां िक
उस समय कर पर्भायर् था, ऐसे माल के द -कर िवकर्य या कर्य के िलए, कोई संिवदा की जाने के पश्चात् अिधरोिपत, विधत, कम या पिरहृत
िकए जाने की दशा म—
(क) यिद ऐसा अिधरोपण या वधर्न इस पर्कार पर्भाव म आता है िक, यथािस्थित, कर या विधत कर या ऐसे कर का कोई
भाग संद िकया जाता है या संदये है तो िवकर्ेता संिवदा-कीमत म उतनी रकम जोड़ सके गा िजतनी ऐसे कर या कर की वृि की
बाबत संद या संदय े रकम के बराबर हो, और ऐसी जोड़ी गई रकम अपने को संद िकए जाने का तथा वह उस रकम के िलए
वाद लाने और उसे वसूल करने का हकदार होगा ; तथा
(ख) यिद ऐसी कमी या पिरहार इस पर्कार पर्भाव म आता है िक, यथािस्थित, के वल कम िकया गया कर संद िकया
जाता है या संदय
े है या कोई भी कर संद िकया गया है, न संदय
े है तो कर्ेता संिवदा कीमत म से उतनी रकम काट सके गा िजतनी
कर की कमी या पिरहृत कर के बराबर हो और ऐसी कटौती के िलए या की बाबत संदाय करने का वह दायी न होगा और न उस
पर वाद लाया जा सके गा ।
(2) उपधारा (1) के उपबन्ध िनम्निलिखत कर को लागू होते ह, अथार्त् :—
(क) माल पर कोई भी सीमाशुल्क या उत्पाद-शुल्क ;
(ख) माल के िवकर्य या कर्य पर कोई भी कर ।]
65. [िनरसन ।]—िनरसन अिधिनयम, 1938 (1938 का 1) की धारा 2 और अनुसूची ारा िनरिसत ।
1
1963 के अिधिनयम सं० 33 की धारा 5 ारा धारा 64क के स्थान पर पर्ितस्थािपत । यह धारा 1940 के अिधिनयम सं० 41 की धारा 2 ारा अन्त:स्थािपत की गई थी ।
66. व्यावृि यां—(1) इस अिधिनयम या एतद् ारा िकए गए िकसी भी िनरसन म की कोई भी बात िनम्निलिखत पर न तो पर्भाव
डालेगी और न पर्भाव डालने वाली समझी जाएगी—
(क) इस अिधिनयम के पर्ारम्भ से पूवर् अिजत, पर्ोद्भूत या उपगत कोई भी अिधकार, हक, िहत, बाध्यता या दाियत्व ;
अथवा
(ख) ऐसे िकसी अिधकार, हक, िहत, बाध्यता या दाियत्व के िवषय म कोई वैध कायर्वािहयां या उपचार ; अथवा
(ग) इस अिधिनयम के पर्ारम्भ के पूवर् की गई या सहन की गई कोई भी बात ; अथवा
(घ) माल के िवकर्य से संबंिधत ऐसी कोई भी अिधिनयिमित, जो इस अिधिनयम ारा अिभव्यक्तत: िनरिसत नह की
गई है ; अथवा
(ङ) िविध का ऐसा कोई भी िनयम जो इस अिधिनयम से असंगत नह है ।
(2) िदवाला िवषयक िनयम, जो माल के िवकर्य की संिवदा से संबंिधत ह इस अिधिनयम म अन्तिवष्ट िकसी बात के होते हुए
भी, उन्ह लागू बने रहगे ।
(3) िवकर्य की संिवदा से संबंिधत इस अिधिनयम के उपबन्ध िवकर्य की संिवदा के रूप के िकसी ऐसे संव्यवहार को लागू नह ह
जो बन्धक, िगरवी, भार या अन्य पर्ितभूित के तौर पर पर्वितत होने के िलए आशियत ह ।
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