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भारतीय अनुबन्ध अधिनियम, 1872

(Indian Contract Act, 1872)


भारतीय अनुबन्ध अधिनियम, व्यापारिक, सन्नियम का सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण भाग है। हमारे दैनिक जीवन में
अनुबन्धों का विशेष स्थान है। हम प्रायः प्रतिदिन जाने-अनजाने अनेक अनुबन्ध करते हैं जिनमें कोई न कोई
वादा (प्रतिज्ञा) (Promise) किया जाता है जैसे बस में सवार होना, पुस्तकालय से पुस्तक लेना, अपना सामान रेल
के अमानती घर में जमा करना या कोई वस्तु उधार खरीदना आदि। जब हम बस में सवार होते हैं तब हमारे
एवं बस मालिक के बीच एक अनबन्ध हो जाता है जिसके अन्तर्गत बस कम्पनी एक निश्चित किराए के बदले
में हमें निश्चित स्थान तक पहुँचाने का वचन देती है। वास्तविकता यह है कि अनबन्ध करने वाले व्यक्तियों
को सामान्यत: इसके कानूनी पक्ष का आभास नहीं होता एवं प्रायः वे इस ओर ध्यान भी नहीं देते। व्यापार
जगत में अनुबन्ध अधिनियम का महत्त्व और भी अधिक है क्योंकि प्राय: समस्त व्यापार, अनबन्धों पर ही
आधारित होता है। अनुबन्ध अधिनियम की व्यवस्थाओं के अनुसार अनुबन्ध करने वाले व्यक्ति अपने-अपने
वचनों को पूरा करने के लिये कानूनी रूप से बाध्य होते हैं। यदि कोई व्यक्ति अपने दिए हुए वचन को पूरा नहीं
करता तो दूसरा व्यक्ति उसके विरुद्ध न्यायालय में वाद (मुकदमा) करके दिए हुए वचन को पूरा करा सकता है।
अत: न के वल व्यापारियों के लिए बल्कि प्रत्येक साधारण व्यक्ति के लिए भी अनुबन्ध अधिनियम की व्यवस्था
का ज्ञान प्राप्त करना अत्यन्त लाभदायक एवं महत्त्वपूर्ण है।

परिचय
(Introduction)
‘भारतीय अनुबन्ध अधिनियम’ भारतीय संसद द्वारा सन् 1872 में लागू किया गया था। इस अधिनियम की
धारा 1 के अनुसार इस अधिनियम का नाम ‘भारतीय अनुबन्ध अधिनियम 1872’ है। इस अधिनियम को 25
अप्रैल, 1872 को तत्कालीन गर्वनर जनरल ने स्वीकृ ति प्रदान की थी। यह अधिनियम 1 सितम्बर, 1872 से
कार्यान्वित हुआ और जम्मू कश्मीर को छोड़कर समस्त भारत में लागू होता है।
इस अधिनियम को दो भागों में बाँटा जा सकता है। पहला भाग धारा 1 से 75 तक उन सामान्य सिद्धान्तों से
सम्बन्धित है जिन पर समस्त अनुबन्ध आधारित हैं। दूसरे भाग में तीन विशेष व्यापारिक अनुबन्ध सम्मिलित
हैं, ये निम्नलिखित हैं
1 अनुबन्ध के सामान्य सिद्धान्त (General Principles of Contract) (धारा 1-75)
2. हानिरक्षा तथा प्रत्याभूति अनुबन्ध (Contract of Indemnity and guarantee) (धारा 124-147)
3. निक्षेप अनुबन्ध (Contract of Bailment) (धारा 148-181)
4. एजेन्सी अनुबन्ध (Contract of Agency) (धारा 182-238)

आधारभूत परिभाषाएँ
(Fundamental Definitions)
किसी भी अधिनियम के अध्ययन से पूर्व उसमें प्रयुक्त आवश्यक शब्दों का अर्थ जान लेना आवश्यक होता है।
भारतीय अनुबन्ध अधिनियम को भी भली-भाँति समझने के लिए यह आवश्यक है कि इसमें बार-बार प्रयुक्त
होने वाले शब्दों के अर्थ को समझ लिया जाए।
भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 2 में इन आधारभूत शब्दों की परिभाषाएँ निम्न प्रकार दी गई हैं
1 प्रस्ताव (Proposal)-जब एक व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को किसी कार्य को करने अथवा न करने के
सम्बन्ध में अपनी इच्छा इस उद्देश्य से प्रकट करता है कि वह दूसरा व्यक्ति उस कार्य को करने अथवा न
करने के सम्बन्ध में अपनी सहमति प्रदान करे तो यह कहा जाता है कि पहले व्यक्ति ने दूसरे व्यक्ति के
समक्ष ‘प्रस्ताव’ रखा।’
2. वचन (Promise)-जब वह व्यक्ति जिसके सम्मुख प्रस्ताव रखा जाता है उस पर अपनी सहमति प्रकट कर
देता है, तब यह कहा जाता है कि प्रस्ताव स्वीकृ त हो गया। जब कोई प्रस्ताव स्वीकार कर लिया जाता है तो
वह ‘वचन’ कहलाता है।’
3. वचनदाता एवं वचनगृहीता (Promisor and Promisee)-प्रस्ताव रखने वाले व्यक्ति को ‘प्रस्तावक या
वचनदाता’ कहते हैं और उस प्रस्ताव को स्वीकार करने वाले व्यक्ति को ‘वचनगृहीता’ कहते हैं।
4. प्रतिफल (Consideration)-जब वचनदाता की इच्छा पर वचनगृहीता या किसी अन्य व्यक्ति ने कु छ कार्य
किया है या उसके करने से विरत रहा है अथवा कु छ कार्य करता है या उसके करने से विरत रहता है अथवा
कु छ कार्य करने या करने से विरत रहने का वचन देता है तो ऐसा कार्य या उससे | विरति या वचन उस वचन
का ‘प्रतिफल’ कहलाता है।’
5. ठहराव (Agreement)-प्रत्येक वचन तथा वचनों का प्रत्येक समूह जो एक-दूसरे का प्रतिफल हो ‘ठहराव’
कहलाता है।’
6. पारस्परिक वचन (Reciprocal Promises)-ऐसे वचन जो एक-दूसरे के लिए प्रतिफल अथवा आंशिक प्रतिफल
होते हैं ‘पारस्परिक वचन’ कहलाते हैं।’
7. व्यर्थ ठहराव (Void Agreement)-ऐसा ठहराव जो राजनियम द्वारा प्रवर्तनीय नहीं कराया जा सकता, ‘व्यर्थ
ठहराव’ कहलाता है।
8. अनुबन्ध (Contract)-ऐसा ठहराव जो राजनियम द्वारा प्रवर्तनीय होता है ‘अनुबन्ध’ कहलाता
9. व्यर्थनीय अनुबन्ध (Voidable Contract)-एक ठहराव जो के वल एक या अधिक पक्षकारों की इच्छा पर
प्रवर्तनीय हो परंतु दूसरे पक्षकार अथवा पक्षकारों की इच्छा पर प्रवर्तनीय न हो ‘व्यर्थनीय अनुबन्ध’ कहलाता है।
10. व्यर्थ अनुबन्ध (Void Contract)-जब किसी अनुबन्ध का राजनियम द्वारा प्रवर्तनीय होना समाप्त हो जाता
है तो वह उस समय व्यर्थ हो जाता है जब से वह कानून द्वारा प्रवर्तनीय नहीं रहता।’

परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न


(Expected Important Questions for Examination)
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
(Long Answer Questions)
1 भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि तथा रूपरेखा दीजिए।
Give the historical background and outline of Indian Contract Act.
2. भारतीय अनुबन्ध अधिनियम से क्या आशय है? इसकी आधारभूत शब्दावली को स्पष्ट कीजिए।
What do you understand by Indian Contract Act? Explain its fundamental terminology..

लघु उत्तरीय प्रश्न


(Short Answer Questions)
1 निम्नलिखित को समझाइए
(a) प्रस्ताव (Proposal); (b) अनुबन्ध (Contract); (c) प्रतिफल (Consideration); (d) वचन (Promise); (e)
व्यर्थनीय अनुबन्ध (Voidable Contract); (1) व्यर्थ ठहराव (Void Agreement);
(g) पारस्परिक वचन (Reciprocal Promise)
2. भारतीय अनुबन्ध अधिनियम, 1872 का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
Describe in brief about Indian Contract Act, 1872.
ठहराव(Agreement)

ठहराव का अर्थ एवं परिभाषाएँ

(Meaning and Definitions of Agreement)


जब एक पक्षकार दूसरे पक्षकार के समक्ष प्रस्ताव प्रस्तुत करता है और दूसरा पक्षकार उसे स्वीकार कर लेता है
तो यह ठहराव कहलाता है अर्थात् जब दो व्यक्ति किसी एक तथ्य के विषय में पारस्परिक रूप से सहमत हो
जाएँ तो इसे ठहराव कहते हैं। अनुबन्ध अधिनियम में ठहराव का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है क्योंकि ठहराव
अनुबन्ध की वह आधारशिला है जिस पर अनुबन्ध रूपी महल खड़ा होता है। अतः ठहराव में दो या दो से
अधिक व्यक्ति इस बात के लिये सहमत होने की घोषणा करते हैं कि उनमें से कोई व्यक्ति किसी दूसरे के
लिये कोई कार्य करेंगे या नहीं करेंगे। एक वैध ठहराव के लिए उसका राजनियम द्वारा प्रवर्तनीय होना आवश्यक
है। ठहराव की प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं

पोलाक के अनुसार, “ठहराव एक या एक से अधिक पक्षकारों द्वारा दूसरे पक्षकार अथवा पक्षकारों के लिए कु छ
कार्य करने या न करने का चिन्तन है।”

लीक के अनुसार, “ठहराव से आशय दो व्यक्तियों के बीच सहमति से है, जो विषय वस्तु के सम्बन्ध में एकमत
होते हैं।”

चेट्टी के अनुसार, “एक उचित रीति से स्वीकृ त प्रस्ताव ठहराव कहलाता है।”

भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 2 (e) के अनुसार, “प्रत्येक वचन तथा वचनों का प्रत्येक समूह जो एक दूसरे
का प्रतिफल हो, ठहराव कहलाता है।”

अत: प्रत्येक प्रस्ताव जब उचित रीति से स्वीकार कर लिया जाता है ठहराव कहलाता है। सूत्ररूप में हम कह
सकते हैं कि ठहराव = प्रस्ताव + स्वीकृ ति।

ठहराव के लक्षण
(Characteristics of Agreement)
एक ठहराव के आवश्यक लक्षण निम्नलिखित हैं

1 दो या दो से अधिक पक्षकार-एक ठहराव के लिए कम से कम दो पक्षकारों का होना आवश्यक है क्योंकि एक


व्यक्ति स्वयं के साथ किसी प्रकार का कोई ठहराव नहीं कर सकता है।

2. पारस्परिक सहमति–दोनों पक्षकारों को एक ही बात पर एक ही भाव से सहमत होना आवश्यक है, अन्यथा
उनके बीच कोई भी ठहराव नहीं होगा। अर्थात् पक्षकारों में मानसिक एकमतता होना आवश्यक है। उदाहरण के
लिए, राम के पास दो घोड़े हैं एक सफे द रंग का तथा दूसरा काला, उसने अपना एक घोड़ा मोहन को 15,000 ₹
में बेचने का प्रस्ताव रखा जिसे मोहन ने स्वीकार कर लिया। राम का उद्देश्य अपना काला घोड़ा बेचना था
जबकि मोहन का उद्देश्य सफे द घोड़ा खरीदना था। यहाँ पर ठहराव के दोनों पक्षकार ठहराव की विषय वस्तु
(घोड़े के रंग) के बारे में एक मत नहीं हैं इसलिए उनके बीच किसी प्रकार का ठहराव हुआ नहीं माना जाएगा।
3. वैधानिक सम्बन्ध–ठहराव के लिए यह भी आवश्यक है कि पक्षकारों का उद्देश्य आपस में वैधानिक दायित्वों को
उत्पन्न करना होना चाहिए जिससे वे एक दूसरे के प्रति अपने वचनों के लिए उत्तरदायी हो सके ।

(4) पास्पारिक संवहन–प्रस्ताव के लिए यह आवश्यक है कि पक्षकार प्रस्ताव के सम्बन्ध में। अपना समान
अभिप्राय एक दूसरे को संवहन कर दें ताकि उनकी सहमति या असहमति का ज्ञान दूसर पक्षकार को हो सके ।

(5) परिणाम–ठहराव के परिणामस्वरूप के वल सम्बन्धित पक्षकार ही आपस में प्रभावित होने चाहिएँ, अन्य कोई
पक्षकार नहीं।

ठहराव‘ और ‘अनुबन्ध‘ में अन्तर


(Difference between Agreement and Contract)
ठहराव के प्रकार
(Kinds of Agreement)
सामान्यतया ठहराव व अनुबन्ध के प्रकारों में समानता पाई जाती है, लेकिन इनको स्पष्टतया व सरलता से
समझने के लिए इनका अलग-अलग अध्ययन किया जाना आवश्यक है। ठहराव के प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं

1 वैधानिक ठहराव (Legal Agreement)-वह ठहराव जिसे वैधानिक रूप से कार्यान्वित किया जा सकता है तथा
जिसमें एक वैध ठहराव के सभी लक्षण विद्यमान होते हैं, वैधानिक ठहराव कहलाते हैं। उदाहरणार्थ-अतुल अपना
पुराना स्कू टर 5000 ₹ में विक्रय करने का ठहराव करता है। यह एक वैधानिक ठहराव है।

2. अवैध ठहराव (Illegal Agreement)-एक अवैध ठहराव वह है जिसे राजनियम मान्यता नहीं देता। इस ठहराव
को न्यायालय द्वारा लागू नहीं कराया जा सकता है और इनके समस्त सम्पाश्विक (समानान्तर) व्यवहार भी
व्यर्थ होते हैं। समस्त अवैध ठहराव आवश्यक रूप में व्यर्थ होते हैं। उदाहरण

व्यावसायिक नियामक ढाँचा के लिए ‘अ’, ‘ब’ से कहता है कि वह स की पिटाई कर दे तो वह उसे 10,000 ₹
देगा तो यह ठहराव अवैध है और व्यर्थ है। अब यदि एक अन्य व्यक्ति ‘द’ यह जानते हुए भी कि रकम किस
कार्य के लिए दी जा रही है, अ को 10.000 ₹ उधार देता है तो ऐसी परिस्थिति में यह समानांतर व्यवहार भी
व्यर्थ होगा। अर्थात् यदि ‘अ’ ‘द’ को 10,000 ₹ देने से मना कर देता है तो ‘द’ उस पर वाद प्रस्तुत करके यह
पैसे वसूल नहीं कर सकता है।

3. व्यर्थ ठहराव (Void Agreement)-भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 2(g) के अनुसार एक ठहराव जो
राजनियम द्वारा प्रवर्तनीय नहीं कराया जा सकता, व्यर्थ ठहराव कहलाता है। ठहराव का कोई भी पक्षकार इसे
राजनियम द्वारा प्रवर्तनीय नहीं करा सकता।

4. व्यर्थनीय ठहराव (Voildable Agreement)-एक ठहराव जो के वल एक या अधिक पक्षकारों की इच्छा पर


प्रवर्तनीय हो परन्तु दूसरे पक्षकार अथवा पक्षकारों की इच्छा पर प्रवर्तनीय न हो, व्यर्थनीय ठहराव कहलाता है।
ऐसे ठहराव में किसी वैधानिक लक्षण की कमी पाई जाती है।

5. स्पष्ट ठहराव (Express Agreement)-जब ठहराव करने के उद्देश्य से एक पक्षकार किसी दूसरे पक्षकार के
सम्मुख स्पष्ट रूप से प्रस्ताव रखता है एवं दूसरा पक्षकार स्पष्ट रूप में अपनी स्वीकृ ति प्रदान करता है, तो इसे
स्पष्ट ठहराव कहते हैं। स्पष्ट ठहराव लिखित अथवा मौखिक हो सकता है। उदाहरणार्थ–‘अ’ अपनी घड़ी ‘ब’ को
100 ₹ में बेचने के लिए प्रस्ताव करता है। ‘ब’ इस प्रस्ताव को शब्दों द्वारा लिखित या मौखिक रूप में स्वीकार
कर लेता है तो इसे स्पष्ट ठहराव कहेंगे।

6. गर्भित ठहराव (Implied Agreement)-गर्भित ठहराव में वचनदाता या वचनग्रहीता अपनी इच्छा स्पष्टत:
लिखित या मौखिक शब्दों द्वारा व्यक्त नहीं करता, बल्कि पक्षकारों के आचरण, उनके कार्य करने के ढंग,
व्यापारिक रीति-रिवाज एवं उस समय की परिस्थिति आदि को देखकर ठहराव का होना माना जाता है। दूसरे
शब्दों में, जब एक वचन से सम्बन्धित प्रस्ताव या स्वीकृ ति मौखिक अथवा लिखित शब्दों में न होकर पक्षकार
के व्यवहार या आचरण से होती है तो उसे गर्भित ठहराव कहते हैं।

उदाहरणार्थ–आशीष एक थ्री व्हीलर को हाथ का इशारा करके रोकता है और उसमें बैठकर किसी विशिष्ट स्थान
पर चलने के लिए कहता है। श्री व्हीलर का ड्राइवर निर्दिष्ट स्थान की ओर चल देता है। यहाँ पर थ्री व्हीलर के
ड्राइवर एवं आशीष के बीच गर्भित ठहराव माना जाएगा जिसके अनुसार थ्री व्हीलर का ड्राइवर, आशीष को उस
निर्दिष्ट स्थान पर ले जाएगा तथा आशीष उसे मीटर के अनुसार भाड़ा चुकाएगा।

यदि ‘अ’, ‘ब’ को अपनी साइकिल 200 ₹ में बेचने के लिए प्रस्ताव करता है और ‘ब’, ‘अ’ के पास बिना कु छ कहे
या लिखे 200 ₹ भेज देता है, तो यह गर्भित स्वीकृ ति है! यहाँ पर ‘अ’ एवं ‘ब’ के मध्य गर्भित ठहराव माना
जाएगा।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न


(Long Answer Questions)
1 ठहराव किसे कहते हैं? ठहराव के प्रमुख लक्षण बताइए।।
agreement? Explain the main characteristics of an agreement.
एह कितने प्रकार का होता है? ठहराव तथा अनुबन्ध में अन्तर कीजिए।
2. ठहराव क्या है? यह कितने प्रकार का होता है? उरा
What is an Agreement? What are its types? Distinguish between agreement and What is the
agreement? What are its types? Distinguish contract.

लघु उत्तरीय प्रश्न


(Short Answer Questions)
1 ठहराव की परिभाषा दीजिए।
Define agreement.
2. ठहराव किसे कहते हैं? ठहराव के प्रमुख लक्षण बताइए।
What is meant by agreement? Describe main features of agreement.
3. ठहराव कितने प्रकार के होते हैं?
Describe types of agreement.
4. निम्नलिखित में अन्तर स्पष्ट कीजिए
(i) व्यर्थ अनुबन्ध तथा व्यर्थ ठहराव। (Void contract and Void agreement).
(ii) व्यर्थ ठहराव तथा अवैधानिक ठहराव। (Void Agreement and Illegal Agreement).
(iii) व्यर्थ अनुबन्ध तथा व्यर्थनीय अनुबन्धा (Void Contract and Voidable Contract).
(iv) ठहराव तथा अनुबन्धा (Agreement and Contract.)
(v) व्यर्थ ठहराव तथा व्यर्थनीय अनुबन्धा (Void Agreement and voidable contract.)

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