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अनुबन्ध करने के योग्य पक्षकार

(Parties Competent to Contract)


अनुबन्ध करने की क्षमता ( योग्यता) का अर्थ
(Meaning of Contractual Capacity)
भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 10 के अनसार वैध अनबन्ध के निर्माण के लिए आवश्यक है कि
अनुबन्ध करने वाले पक्षकार अनुबन्ध करने के योग्य होने चाहिये। किस व्यक्ति में अनबन्ध करने की योग्यता
या क्षमता है और किस में नहीं, इस प्रश्न का उत्तर भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 11 में स्पष्ट रूप से
दिया गया है। धारा 11 के अनुसार, “प्रत्येक ऐसा व्यक्ति अनुबन्ध करने के योग्य है जो कि सम्बन्धित
राजनियम के अनुसार वयस्क आयु का है, स्वस्थ मस्तिष्क का है तथा जिसे अन्य किसी सम्बद्ध कानून के
द्वारा अनुबन्ध करने के अयोग्य नहीं ठहराया गया है।”
उपरोक्त परिभाषा के विश्लेषण के आधार पर कहा जा सकता है कि पक्षकारों में अनुबन्ध करने की योग्यता
होने के लिए निम्नलिखित तीन गुणों का होना अनिवार्य है-1. वह वयस्क या बालिग (Major) हो, 2. वह स्वस्थ
मस्तिष्क (Sound Mind) का हो, 3. जिसे अन्य किसी सम्बद्ध कानून के द्वारा अनुबन्ध करने के अयोग्य न
माना गया हो। दूसरे शब्दों में निम्नलिखित व्यक्ति अनुबन्ध करने के लिए अयोग्य (Incompetent) माने जाते
हैं-1. अवयस्क या नाबालिग (Minor), 2. अस्वस्थ मस्तिष्क वाले व्यक्ति तथा 3. सम्बद्ध कानून द्वारा अनुबन्ध
करने के अयोग्य ठहराए गए व्यक्ति।
सामान्यतः कानून द्वारा यह माना जाता है कि प्रत्येक व्यक्ति अनबन्ध करने के योग्य है। अत: यदि कोई
व्यक्ति अयोग्यता (Incompetency) के आधार पर अनुबन्ध के दायित्वों से मुक्त होना चाहता है तो उसे ही
अपनी अयोग्यता सिद्ध करनी होगी। यदि वह स्वयं को अनुबन्ध करने के अयोग्य सिद्ध नहीं कर पाता तो वह
अनुबन्ध से पूर्णतया बाध्य होगा। अनुबन्ध करने की क्षमता से सम्बन्धित उपर्युक्त तीनों गुणों की संक्षिप्त
विवेचना निम्न प्रकार है

1 वयस्क एवं अवयस्क


(Major and Minor)
भारतीय वयस्कता अधिनियम, 1875 के अनुसार वे सभी व्यक्ति जो 18 वर्ष के हो चुके हैं, वयस्क माने जाते हैं
अर्थात् जिस व्यक्ति ने अपनी आयु का 18 वाँ वर्ष पूरा नहीं किया है तो उसे अवयस्क माना जाता है। परन्तु वे
अवयस्क जिनके संरक्षक न्यायालय द्वारा नियुक्त किए गए हैं अथवा जिनकी सम्पत्ति उक्त 18 वर्ष की आयु
से पहले ‘कोर्ट ऑफ वार्डस’ के निरीक्षण में है तो ऐसा व्यक्ति 21 वर्ष की आयु पूरी करने के बाद ही वयस्क
माना जाता है। इंग्लैंड में 21 वर्ष की आयु पूरी करने के बाद ही कोई भी व्यक्ति वयस्क माना जाता है।

अवयस्क द्वारा किए गए अनुबन्ध के सम्बन्ध में वैधानिक स्थिति


(Legal Position of a Minor’s Contract)
अधिकतर अवयस्क व्यक्ति अपरिपक्व मस्तिष्क के तथा अनुभवहीन होते हैं। कोई व्यक्ति इनकी अनभवहीनता
से अनुचित लाभ न उठा ले इसलिए उन्हें कानून द्वारा संरक्षण प्रदान किया गया है। वस्ततः अवयस्क होना
जहाँ अनुबन्ध करने के लिए अयोग्यता है, वहीं यही अयोग्यता अवयस्कों को सरक्षा प्रदान करती है। सालमंड
(Salmond) ने ठीक ही कहा है , “कानून अवयस्कों की रक्षा करता है , उनके अधिकारों एवं
सम्पत्ति की सुरक्षा करता है , उनकी त्रुटियों को क्षमा करता है , उनकी ओर से वैधानिक
कार्यवाही में उनकी सहायता करता है। न्यायाधीश उनके सलाहकार होते हैं , जरी के सदस्य
उसके सेवक होते हैं तथा कानून उनका संरक्षक होता है।“
भारतीय अनुबन्ध अधिनियम के अनुसार एक अवयस्क द्वारा किए गए अनबन्ध के सम्बन्ध में। अग्रलिखित
प्रावधान दिए गए हैं
1 अवयस्क के साथ किए गए अनुबन्ध पूर्णतः व्यर्थ होते हैं (Contracts with Minors are
Absolutely Void)-अवयस्क के साथ किए गए समझौते प्रारम्भ से ही पूर्णत: व्यर्थ होते हैं अर्थात प्रभाव शून्य
होते हैं। जिस प्रकार शून्य से कोई परिणाम नहीं निकल सकता, उसी प्रकार व्यर्थ समझौता कोई दायित्व उत्पन्न
नहीं करता अर्थात् अवयस्क किसी समझौते द्वारा उत्पन्न दायित्व की पूर्ति के लिए बाध्य नहीं है। कहने का
अभिप्राय यह है कि यदि अवयस्क ने किसी अनुबन्ध के अन्तर्गत कोई दायित्व अपने ऊपर लिया है या किसी
अनुबन्ध के अन्तर्गत कोई धनराशि प्राप्त कर ली है तो अवयस्क को ऐसे दायित्व को पूरा करने या धनराशि
वापस करने के लिए दायी नहीं ठहराया जा सकता है चाहे उसके साथ अनुबन्ध करने वाले पक्षकार को
अवयस्कता का ज्ञान हो या नहीं। यहाँ पर यह उल्लेखनीय है कि यह नियम तभी लागू होगा जबकि वाद
अवयस्क के विरुद्ध किसी दायित्व को पूरा करने के लिए प्रस्तुत किया गया हो, परन्तु जहाँ अवयस्क अपने
दायित्व को पूरा कर चुका है और दूसरे पक्षकार से दायित्व की पूर्ति की माँग करता है तो न्यायालय अवयस्क
की सहायता करेगा। इस सम्बन्ध में मोहरी बीबी बनाम धर्मोदास घोष का विवाद महत्त्वपूर्ण है। इसमें प्रतिवादी
(धर्मोदास घोष) ने जो कि एक अवयस्क था. वादी (मोहरी बीबी) के पति से 20 जुलाई, 1895 को 8,000 ₹ उधार
लिए थे और उसके बदले में 20,000 ₹ का एक बन्धक-पत्र (Mortgage Bond) लिख दिया था। साथ में धर्मोदास
से यह घोषणा भी लिखवा ली गई थी कि वह 17 जून, 1895 को ही वयस्क हो गया है। अपने पति की मृत्यु के
पश्चात् वादी ने बन्धक-पत्र के आधार पर वाद प्रस्तुत किया। प्रिवी कौंसिल द्वारा यह निर्णय दिया गया कि
वादी (मोहरी बीबी) रुपया वापस पाने की अधिकारी नहीं है, क्योंकि अवयस्क के साथ किया गया प्रत्येक
अनुबन्ध व्यर्थ (Void) होता है। अतएव धमोंदास ने 8,000 ₹ नहीं लौटाए।
2. अवयस्क के विरुद्ध अवरोध का सिद्धान्त लागू नहीं होता (No Estoppel against Minor)-यदि
एक अवयस्क स्वयं को वयस्क बतलाकर किसी व्यक्ति के साथ कोई अनुबन्ध कर लेता है तो ऐसी दशा में भी
उसे बाद में यह सिद्ध करने से नहीं रोका जा सकता कि अनुबन्ध करते समय वह अवयस्क था। अवरोध का
सिद्धान्त अवयस्क पर इसलिए लागू नहीं किया जाता क्योंकि यदि ऐसा न हो तो चालाक व्यक्ति अवयस्क से
वयस्क होने की लिखित घोषणा करवा कर अनुबन्ध कर लेंगे जिससे अवयस्क को हानि हो सकती है।
इस सम्बन्ध में नवाब सादिक अली खाँ बनाम जय किशोर (A.I.R. 1928 P.C. 152) का विवाद महत्त्वपूर्ण है।
इस विवाद में प्रतिवादी अवयस्क जय किशोर ने अपने को वयस्क बताकर एक प्रलेख वादी सादिक अली खाँ के
पक्ष में लिखा था। वादी द्वारा प्रतिवादी के विरुद्ध वाद प्रस्तुत करने पर न्यायालय ने प्रतिवादी जयकिशोर को
अवयस्क होने के कारण कपटपूर्ण मिथ्या वर्णन करने पर भी दायित्व से मुक्त कर दिया।
3. वयस्क होने पर भी अनुबन्ध का पुष्टिकरण नहीं किया जा सकता (Minor’s Contract
cannot be Ratified)-अवयस्क द्वारा किए गए अनुबन्ध पूर्णत: व्यर्थ होते हैं, अत: वयस्क होने पर वह उनका
पुष्टिकरण नहीं कर सकता अर्थात् जो अनुबन्ध पहले व्यर्थ था, पुष्टिकरण द्वारा बाद में उसे वैध नहीं बनाया
जा सकता। उदाहरणार्थ, यदि किसी अवयस्क ने अवयस्कता की अवधि में ऋण लेकर प्रोनोट लिखा, बाद में
वयस्क होने पर उसने पुराने प्रोनोट के बदले में एक नया प्रोनोट लिख दिया। इस नए प्रोनोट (प्रतिज्ञा-पत्र) के
आधार पर रकम वसूल नहीं की जा सकती क्योंकि यह एक स्वतन्त्र अनुबन्ध न होकर अवयस्क के साथ किए
गए समझौते का पष्टिकरण मात्र है जो व्यर्थ है।
4. जीवनरक्षक आवश्यकताओं के लिए अवयस्क द्वारा अनुबन्ध (Contract for Necessaries
done by a Minor)-यद्यपि एक अवयस्क अनुबन्ध करने के अयोग्य है परन्तु वह अपने जीवन की
आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अपनी सम्पत्ति के आधार पर ऋण ले सकता है अथवा अनुबन्ध कर सकता
है। ऐसी दशा में के वल अवयस्क की सम्पत्ति ही उत्तरदायी होगी, अवयस्क स्वयं व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी
नहीं होगा। यदि अवयस्क के पास कोई सम्पत्ति नहीं है तो ऐसी आवश्यक वस्तुओं की पूर्ति के लिए भी कोई
राशि वसूल नहीं की जा सकती है।
भारत में सामान्यत: निम्नलिखित व्यय जीवन की आवश्यकताओं की श्रेणी में माने जाते हैं(i) स्वयं व आश्रितों
के लिए भोजन, कपड़ा तथा मकान से सम्बन्धित व्यय। (ii) अवयस्क की सम्पत्ति की रक्षा के लिए आवश्यक
व्यय। (iii) स्वयं की या आश्रितों की शिक्षा व चिकित्सा सम्बन्धी व्यय। (iv) मान मर्यादा के लिए विवाह, यात्रा,
अन्तिम संस्कार आदि सम्बन्धी व्यय। (v) प्रदान की जाने वाली वस्तुओं का उचित मूल्य होना चाहिए। (vi)
आवश्यक व्यय अवयस्क के जीवन स्तर के अनुरूप होने चाहिएँ।
की रक्षा के लिए भामा सम्बन्धी व्यवसबन्धी व्यय।
पीटर्स बनाम फ्लेमिंग के विवाद में न्यायालय द्वारा यह निर्णय दिया गया कि श्रृंगार व सजावट की वस्तुएँ
जीवन की आवश्यकतायें नहीं हो सकती। अतएव अवयस्क को उनके भुगतान के लिये बाध्य नहीं किया जा
सकता। यही नहीं, उसकी निजी सम्पत्ति भी ऐसे भुगतान के लिये उत्तरदायी नहीं हो सकती।
नैश बनाम इनमैन के विवाद में इनमैन, एक अवयस्क जो कै म्ब्रिज में पूर्व स्नातक (Under Graduate) का
छात्र था, नैश से 11 वेस्ट-कोट ले आया। उस वक्त उसके पास पर्याप्त मात्रा में कपड़े
यह निर्णय दिया गया कि वेस्ट-कोट उसके लिये जरुरी नहीं थे तथा नैश वेस्ट-कोट के मूल्य का भुगतान प्राप्त
नहीं कर सकता।
बेच सिंह बनाम बल्दियो प्रसाद के मामले में एक अवयस्क के पिता की मृत्यु पर धार्मिक कियाओं पर किया
गया खर्च आवश्यक आवश्यकताओं में माना गया।
5. अवयस्क के संरक्षक अथवा निरीक्षक द्वारा किया गया अनुबन्ध (Contract done by the
Guardian or Court of Wards of a Minor)-एक अवयस्क के माता-पिता, कानूनी संरक्षक अथवा सम्पत्ति के
निरीक्षक द्वारा अवयस्क की ओर से किया गया अनुबन्ध उसके विरूद्ध लागू कराया जा सकता है, यदि वह
अनुबन्ध निम्नलिखित दो शर्तों को पूरी करता हो
(i) अवयस्क के संरक्षक अथवा उसकी सम्पत्ति के निरीक्षक को ऐसा करने का अधिकार प्राप्त हो।
(i) ऐसा अनुबन्ध अवयस्क के लाभ के लिए किया गया हो।
सुब्रमणियम बनाम सुब्बा राव के विवाद में न्यायालय द्वारा यह निर्णय दिया कि यदि अवयस्क के संरक्षक या
उनकी सम्पत्ति के निरीक्षक अवयस्क की ओर से कोई अनुबन्ध करते हैं तो अवयस्क ऐसे अनुबन्ध के प्रति
उत्तरदायी होगा, बशर्ते कि संरक्षक को ऐसा अनुबन्ध करने का अधिकार प्राप्त हो तथा अनुबन्ध अवयस्क के
लाभ के लिए किया गया हो।
6. अवयस्क द्वारा अपने लाभ के लिए अनुबन्ध करना (Minor’s Contract for His Benefits)-
कानून अवयस्क को लाभ प्राप्त करने के अयोग्य नहीं मानता अर्थात् अवयस्क अपने लाभ के लिए अनुबन्ध
कर सकता है परन्तु किसी ऐसे अनुबन्ध को अवयस्क के विरुद्ध लागू नहीं किया जा सकता जिससे अवयस्क
स्वयं उत्तरदायी हो जाए।
इस सम्बन्ध में राबर्ट बनाम ग्रे का विवाद महत्त्वपूर्ण है। ग्रे, जोकि एक अवयस्क था, विलियर्ड का एक
पेशेवर खिलाड़ी बनना चाहता था। इस कार्य के लिए उसने बिलियर्ड के प्रसिद्ध खिलाड़ी राबर्ट से एक अनुबन्ध
किया। इस अनुबन्ध के अन्तर्गत राबर्ट ने एक निश्चित धनराशि के बदले में ग्रे को खेल की शिक्षा देने एवं
विदेशों के दौरे पर उसे अपने साथ ले जाने का वचन दिया। बाद में ग्रे ने उक्त धनराशि का भुगतान करने से
इन्कार कर दिया। इस पर राबर्ट ने उसके विरुद्ध वाद प्रस्तुत किया। न्यायालय द्वारा यह निर्णय दिया गया कि
ग्रे अपनी सम्पत्ति में से उक्त धनराशि देने के लिए बाध्य है, क्योंकि उसे खिलाड़ी बनाने के लिए राबर्ट जैसे
प्रसिद्ध खिलाड़ी द्वारा प्रशिक्षण दिया जाना परम आवश्यक था। यह अनुबन्ध प्रशिक्षण प्रदान करने के साथ-साथ
अवयस्क के भावी पेशे के लिए भी महत्त्वपूर्ण था। अतएव अवयस्क के लाभार्थ किया गया अनुबन्ध सर्वथा
युक्तिसंगत एवं वैध था।
7. पुनर्स्थापना का सिद्धान्त (Doctrine of Restitution)-कानून अवयस्क को संरक्षण तो प्रदान करता है
परन्तु इसका यह अर्थ बिल्कु ल भी नहीं है कि अवयस्क को दूसरों को धोखा देकर ठगने की पूर्ण स्वतंत्रता है।
पुनर्स्थापन सिद्धान्त के अनुसार यदि अवयस्क ने धोखा देकर कु छ माल, सम्पत्ति या रकम प्राप्त कर ली है
और वह माल, सम्पत्ति या धन अभी अवयस्क के ही पास है तो न्यायालय उस माल, सम्पत्ति या धन को
वापिस लौटाने का आदेश दे सकता है। परन्तु यदि अवयस्क ने वह माल या वस्तु किसी अन्य व्यक्ति को बेच
दी है तब माल बेचकर जो राशि अवयस्क के पास है, वह वसल की जा सकती है। उदाहरणार्थ, अजय ने अपनी
आयु गलत बतलाकर विजय से एक साइकिल 500 ₹ में खरीदी तथा एक माह बाद मल्य चुकाने का वादा
किया। अजय ने वह साईकिल संजय को 400 ₹में बेच दी और इन 400₹ में से वह 100 ₹ खर्च कर देता है तो
विजय उससे 300₹ प्राप्त कर सकता है।
8. अवयस्क एजेन्ट बन सकता है (Minor can be an Agent)-किसी अवयस्क की नियुक्ति एजेन्ट के
रूप में हो सकती है परन्तु तृतीय पक्ष के प्रति अवयस्क एजेन्ट के प्रत्येक कार्य के लिए उसका नियोक्ता
उत्तरदायी होता है। अवयस्क एजेन्ट अपने नियोक्ता के प्रति उत्तरदायी नहीं होता। अवयस्क एजेन्ट की
लापरवाही, कर्तव्य पालन न करने अथवा जानबूझकर गलती करने के कारण होने वाली किसी क्षति की पूर्ति
उसका नियोक्ता उससे नहीं करा सकता।
9. अवयस्क साझेदार नहीं बन सकता (Minor cannot become a Partner)-एक अवयस्क फर्म में
साझेदार नहीं बन सकता। हाँ, अन्य सब साझेदारों की सहमति से उसे फर्म के लाभों में (admitted to the
benefits of the firm) सम्मिलित अवश्य किया जा सकता है। लेकिन ऐसी स्थिति में भी अवयस्क साझेदार फर्म
के दायित्वों के लिए व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी नहीं होता, उसका दायित्व फर्म में लगी उसकी पूँजी तक ही
सीमित होता है।
10. अवयस्क की कम्पनी में स्थिति (Position of a Minor in a Company)-अवयस्क कम्पनी का
अंशधारी (Shareholder) नहीं बन सकता। यदि गलती से अवयस्क का नाम कम्पनी के सदस्यता रजिस्टर में
लिख दिया जाता है तो कम्पनी अवयस्क को दिए गए अंशों (शेयरों) को रद्द कर सकती है। लेकिन यदि ऐसा
नहीं किया जाता तो अवयस्कता की अवधि में अवयस्क अंशधारी, याचनाओं (Calls) का भुगतान करने के लिए
उत्तरदायी नहीं होता।
12. विनिमयसाध्य लेख पत्रों के लिए उत्तरदायी नहीं (Not Responsible for Negotiable
Instruments)-एक अवयस्क विनिमयसाध्य लेख-पत्र (जैसे-चैक, विनिमय-पत्र, प्रतिज्ञा-पत्र आदि) लिख सकता है,
उनका हस्तांतरण कर सकता है, बेचान कर सकता है और सुपुर्दगी दे सकता है, किं तु ऐसा करते समय वह स्वयं
उत्तरदायी नहीं होगा। उसको छोड़कर अन्य सभी पक्षकार अवश्य उत्तरदायी होंगे।
13. अवयस्क दिवालिया घोषित नहीं किया जा सकता (Minor cannot be Adjudged insolvent)-
अवयस्क को दिवालिया भी घोषित नहीं किया जा सकता, क्योंकि जो व्यक्ति अनुबन्ध करने के योग्य ही नहीं है
वह देनदार (Debtor) भी नहीं हो सकता। अवयस्क का व्यक्तिगत उत्तरदायित्व किसी भी परिस्थिति में नहीं
होता। आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति के सम्बन्ध में भी उसकी सम्पत्ति को ही दायी ठहराया जा सकता है।
अत: ऐसा व्यक्ति जिसे व्यक्तिगत रूप से दायी न ठहराया जा सकता हो उसे दिवालिया घोषित नहीं किया जा
सकता।
14. अपराधिक कार्यों के प्रति अवयस्क का दायित्व (Liability of a Minor for Torts)-यदि किसी
अवयस्क ने कोई ऐसा अपराध किया है जिससे किसी व्यक्ति के शरीर या सम्पत्ति को हानि पहुँचती है तो
अवयस्क को उसके लिए दायी ठहराया जाएगा। बनार्ड बनाम हैंगिग के विवाद में निर्णय दिया गया है कि
अवयस्क किसी व्यक्ति के शरीर या सम्पत्ति की हानि के लिए उत्तरदायी होता है। इस विवाद में अवयस्क ने
चढ़ने के लिए एक घोड़ा उधार लेकर अपने मित्र को दे दिया। उसके मित्र ने उछल-कू दकर घोड़े को मार डाला।
न्यायालय ने इस क्षति के लिए अवयस्क को उत्तरदायी ठहराया। सरल शब्दों में, फौजदारी मामलों में दण्डनीय
अपराध के लिए अवयस्क पूर्णत: उत्तरदायी होता है।
15. अवयस्क अपने प्रतिभू के प्रति दायी नहीं होता (Minor is not Liable for Surety)-यदि कोई
व्यक्ति अवयस्क के किसी ऋण के प्रति गारण्टी देता है तो ऐसा व्यक्ति ऋणदाता के प्रति उत्तरदायी होगा
परन्तु अवयस्क न तो ऋणदाता के प्रति और न प्रतिभू (गारण्टी देने वाले) के प्रति उत्तरदायी होगा क्योंकि वह
अनुबन्ध करने के योग्य ही नहीं है।

अस्वस्थ मस्तिष्क वाले व्यक्ति


(Persons of Unsound Mind)
अनुबन्ध के पक्षकारों को अनुबन्ध के योग्य होने के लिए स्वस्थ मस्तिष्क का होना आवश्यक है। अर्थात जो
व्यक्ति अनुबन्ध करते समय स्वस्थ मस्तिष्क का नहीं होता उसे अनुबन्ध करने के लिए अयोग्य माना जाता
है। ‘स्वस्थ मस्तिष्क वाले व्यक्ति’ से क्या अभिप्राय है, इसका वर्णन भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 12
में इस प्रकार किया गया है, “अनुबन्ध करने के लिए ऐसा कोई भी व्यक्ति स्वस्थ मस्तिष्क का
कहा जा सकता है जो अनुबन्ध करते समय अनुबन्ध को समझने की क्षमता रखता हो तथा
इससे अपने हितों पर पड़ने वाले प्रभाव के विषय में विवेकपूर्ण निर्णय लेने के लिए योग्य
है।” इस परिभाषा के विश्लेषण से स्पष्ट है कि ऐसा प्रत्येक व्यक्ति स्वस्थ मस्तिष्क का
माना जाएगा जो अनुबन्ध करते समय (i) अनुबन्ध की शर्तों को भली-भाँति समझ सकता
है , तथा (ii) अनुबन्ध का उसके हितों पर क्या प्रभाव पड़ेगा, यह अच्छी तरह समझ सकता है। यहाँ पर
उल्लेखनीय है। कि यदि अनुबन्ध करने से पहले या बाद में किसी प्रक्ष का मस्तिष्क अस्वस्थ हो जाता है तो
इसका। अनुबन्ध की वैधता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
कोई व्यक्ति स्वस्थ मस्तिष्क का है अथवा नहीं, यह एक तथ्य सम्बन्धी विषय है तथा इसके सम्बन्ध में
निर्णय न्यायालय द्वारा लिया जाएगा। यदि कोई व्यक्ति प्रायः अस्वस्थ मस्तिष्क का रहता है। परन्त कभी-
कभी स्वस्थ मस्तिष्क का हो जाता है, तो वह स्वस्थ मस्तिष्क की अवधि में अनुबन्ध कर सकता है। जैसे
पागलखाने का रोगी उस समय अनुबन्ध कर सकता है जब वह स्वस्थ मस्तिष्क का होता है। पागल व्यक्ति के
जीवन में अनेक बार ऐसा समय आता है जब वह ठीक प्रकार से सोच-समझ सकता है। इसके विपरीत यदि
कोई व्यक्ति प्राय: स्वस्थ मस्तिष्क का रहता है परन्तु कभी-कभी अस्वस्थ मस्तिष्क का हो जाता है तो
अस्वस्थ मस्तिष्क की स्थिति में वह अनुबन्ध करने के अयोग्य होगा। जैसे एक स्वस्थ मस्तिष्क वाला व्यक्ति
जो तेज बुखार के कारण बेहोश है या अधिक शराब पी लेने के कारण बेहोश है तो ऐसी बेहोशी या बेसुधी की
हालत में वह अनुबन्ध करने के अयोग्य होगा।
संक्षेप में, अस्वस्थ मस्तिष्क वाले व्यक्ति निम्नलिखित तीन प्रकार के हो सकते हैं

1 जन्मजात मुर्ख (Idiot)-ऐसा व्यक्ति जो जन्म से ही मुर्ख है, विचार-शक्तिहीन है तथा जो विवेकपूर्ण निर्णय
लेने में पूर्णत: असमर्थ है, जन्मजात मूर्ख कहलाता है। ऐसे व्यक्तियों का मस्तिष्क थोड़े -समय के लिए भी
स्वस्थ नहीं होता, अत: ये अनुबन्ध के लिए स्थाई रूप से अयोग्य माने जाते हैं।
2. पागल (Lunatic)-ऐसा व्यक्ति जो किसी रोग, दुर्घटना या आकस्मिक दुख के परिणामस्वरूप अपने
मस्तिष्क का सन्तुलन खो बैठता है, ‘पागल’ कहलाता है। पागलपन की अवधि में ऐसा व्यक्ति अस्वस्थ
मस्तिष्क का माना जाता है, लेकिन बीच में कभी-कभी वह स्वस्थ मस्तिष्क का हो सकता है। अतः ऐसे स्वस्थ
अन्तराल (Lucid interval) में वह अनुबन्ध करने के योग्य माना जाता है।
3. शराबी (Drunkards)-जब कोई व्यक्ति अत्यधिक शराब पी लेता है तो वह विवेकपूर्ण निर्णय लेने की
स्थिति में नहीं रहता, अत: उस दौरान उसे स्वस्थ मस्तिष्क का नहीं मानते तथा वह अनुबन्ध करने के अयोग्य
होता है। इस आधार पर अनुबन्ध रद्द कराने के लिए उसे यह सिद्ध करना होगा कि अनुबन्ध करने के समय वह
इतना नशे में था कि उसकी तर्क शक्ति अस्थाई रूप से समाप्त हो गई थी।

अन्य अयोग्य व्यक्ति


(Other Disqualified Persons)
निम्नलिखित व्यक्तियों को राजनियम (कानून) द्वारा अनुबन्ध करने के अयोग्य घोषित कर दिया गया है
1 विदेशी शत्रु (Alien Enemy)-जो व्यक्ति भारत का नागरिक नहीं है, ‘विदेशी’ कहलाता है। एक विदेशी हमारा
मित्र या शत्रु हो सकता है। यदि वह व्यक्ति ऐसे देश का है जिसके साथ भारत के मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध हैं तो उसे
‘विदेशी मित्र’ कहते हैं और यदि विदेशी किसी ऐसे देश का नागरिक है जिससे युद्ध छिड़ गया हो या मैत्री
सम्बन्ध न हो तो उसे विदेशी शत्रु कहा जाता है। युद्ध के समय विदेशी शत्रु से अनुबन्ध नहीं कर सकते, परन्तु
यदि युद्ध से पहले अनुबन्ध किया गया था तो वह युद्ध काल में रद्द या स्थगित हो जाता है।
2. विदेशी शासक एवं राजदूत (Foreign Soverigns and Ambassadors)-विदेशी शासक, राजदूत तथा
उनके अधिकृ त प्रतिनिधियों पर कें द्रीय सरकार की अनुमति लेकर ही भारतीय न्यायालयों में मुकदमा चलाया जा
सकता है। ऐसे व्यक्ति अपने एजेंटों के द्वारा भारत में अनुबन्ध कर सकते हैं तथा उन्हें प्रवर्तित करा सकते हैं।
3. कै दी या अपराधी (Convicts)-जब कोई व्यक्ति न्यायालय द्वारा किसी अपराध का दोषी ठहराया जाता
है तो सजा की अवधि में वह अनुबन्ध करने के अयोग्य माना जाता है।
4. बैरिस्टर तथा चिकित्सक (Barristers & Physicians)-इंग्लैंड में बैरिस्टर तथा चिकित्सक अपनी फीस
के लिए वाद प्रस्तुत नहीं कर सकते लेकिन वर्तमान में भारत में इनके द्वारा अपनी फीस के लिये वाद प्रस्तुत
करने पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है।
5.कम्पनी और समामेलित संस्थाए (Companies and Incorporated Bodies)-ये कानुन के द्वारा
निर्मित कत्रिम व्यक्ति होती हैं, कृ त्रिम व्यक्ति होने के कारण ये अपने एजेंट के माध्यम से ही अवर सकती है.
स्वयं नहीं। कहने का अभिप्राय यह है कि कम्पनी अनबन्ध के लिए अयोग्य तो नहीं है, परन्तु कृ त्रिम व्यक्ति
होने के कारण व्यक्तिगत प्रकति के अगल
व्याक्तगत प्रकृ ति के अनुबन्ध नहीं कर सकती। इसके अतिरिक्त ये अपने पार्षद सीमा नियम तथा पार्षद
अंतर्नियमों में दिए गए अधिकारों के बाहर कोई भी । अनुबन्ध नहीं कर सकती।
6. दिवालिया (Insolvent)-जब कोई व्यक्ति राजनियम द्वारा दिवालिया घोषित कर दिया जाता है तो वह
अपने दिवालियेपन की अवधि में अनुबन्ध करने के अयोग्य रहता है। इस अवधि में सरकारी प्रापक (Official
Receiver) उसके लिए अनुबन्ध करता है। न्यायालय के मुक्ति आदेश (Order of discharge) मिल जाने पर वह
पुनः अनबन्ध करने के योग्य हो जाता है।
7. विवाहित स्त्रियाँ (Married Women)-एक विवाहित स्त्री के वल व्यक्तिगत सम्पत्ति (स्त्रीधन) के लिए ही
पृथक रूप से अनबन्ध कर सकती है। साथ ही एक विवाहित स्त्री जीवन की आवश्यक वस्तुओं के लिए भी
अपने पति की साख गिरवी रख सकती है बशर्ते उसके पति ने ऐसी । आवश्यक आवश्यकताओं के लिए
व्यवस्था न की हो।
भारत के राष्ट्रपति (President of India)-भारतीय संविधान के अनसार राष्टपति की सर्वोपरि स्थिति होने के
कारण उन पर भारत के किसी भी न्यायालय में वाद प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है और न ही उनको किसी
भी न्यायालय में बुलाया जा सकता है। इसलिए उनके साथ किसी भी प्रकार का अनुबन्ध नहीं किया जा सकता।

परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न


(Expected Important Questions for Examination)
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
(Long Answer Questions)
1 अनुबन्ध करने की क्षमता से आपका क्या आशय है? भारतीय अनुबन्ध अधिनियम के अनुसार कौन-कौन से
व्यक्ति अनुबन्ध में सम्मिलित होने के लिए योग्य समझे गए हैं?
What do you mean by competency to contract? Who are the persons considered competent to enter a
contract by the Indian Contract Act?
2. अनुबन्ध करने के योग्य पक्षकारों से आपका क्या आशय है? वे विभिन्न व्यक्ति कौन हैं जो कानून के द्वारा
अनुबन्ध करने के अयोग्य समझे जाते हैं?
What do you understand by competency to contract’? Who are the persons regarded as incompetent
by law to enter into contract?
3. एक अवयस्क दूसरों को तो बाध्य करता है किन्तु स्वयं दूसरों से कभी भी बाध्य नहीं होता है।” अपने द्वारा
अध्ययन किए हुए अधिनियमों के अन्तर्गत इस कथन की विवेचना कीजिए। “
A minor binds other, but is never bound by other’s.” Explain this statement on the basis of the Acts
which you have studied.
4. भारतीय अनुबन्ध अधिनियम के अन्तर्गत अवयस्क को क्या सुरक्षा प्रदान की गई है? किन परिस्थितियों में
एक अवयस्क आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किए गए अनुबन्ध से बाध्य होता
What protection given to a minor by the Indian Contract Act? In what circumstances an infant is bound
by his contract for necessities?
5. अनुबन्ध करने की क्षमता से आप क्या समझते हैं? भारत में अवयस्क द्वारा किए गए अनुबन्धों के सम्बन्ध
में राजनियम की व्याख्या कीजिए।
What do you understand by compentency to contract? Describe the law relating to minor’s contracts
in India.
6. अनुबन्ध करने की क्षमता से आप क्या समझते हैं? इस सम्बन्ध में अवयस्क की स्थिति की विवेचना
कीजिए।
What do you understand by competency to contract? Describe the position of a minor in this
connection.

लघु उत्तरीय प्रश्न


(Short Answer Questions)
1 अनुबन्ध करने की क्षमता से क्या आशय है?
What do you mean by competency to contract?
2. अवयस्क की अनुबन्ध करने की क्षमता पर एक टिप्पणी लिखिए।
Write a short note on contractual capacity of a minor.
3. अवयस्क के साथ किए गए अनुबन्ध पूर्णत: व्यर्थ होते हैं।” समझाइए।
“Contracts with minors are absolutely void.” Explain.
4. “अवयस्क के विरुद्ध अवरोध का सिद्धान्त लागू नहीं होता।” समझाइए।
No estoppel against minor.” Explain.
5. क्या अवयस्क के साथ किए गए ठहराव की पुष्टि वयस्क होने पर की जा सकती है?
Can a minor’s agreement be ratified by him on attaining the age of majority?
6. एक व्यक्ति अवयस्क को उसके जीवन-निर्वाह की वस्तुएँ देता है। क्या वह उन वस्तुओं का मूल्य प्राप्त कर
सकता है?
A man supplies goods of necessaries for life to a minor. Can he recover the value of the goods from
him?
7. पुनर्स्थापना के सिद्धान्त को समझाइए।
Discuss the doctrine of Restitution.
8. वे विभिन्न व्यक्ति कौन हैं, जो अनुबन्ध करने के लिए अयोग्य समझे जाते हैं?
Who are disqualified persons to do the contract?
9. अस्वस्थ मस्तिष्क वाले व्यक्ति को समझाइए।
Explain the persons of unsound mind.

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