You are on page 1of 13

एक MBA महिला ने दिल्ली हाई कोर्ट में अंतरिम गुजारा भत्ता के लिए अर्जी लगाई। घरेलू हिंसा अधिनियम

ंसा अधिनियम के तहत महिला की अर्जी को कोर्ट ने खारिज कर


दिया। तर्क दिया कि वह काफी पढ़ी-लिखी है। अपने आय का स्रोत ढूंढने में खुद सक्षम है।

पत्नी ने गुजारा भत्ता के तौर पर 50 हजार रुपए महीना की मांग की थी। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान यह पाया कि मेंटेनेंस मांगने वाली पत्नी MBA है और अपने पति के
बराबर योग्य है। उसका पति, जो पेशे से डॉक्टर है, लेकिन इस समय बेरोजगार है।

गुजारा भत्ता यानी मेंटेनेंस को लेकर आमतौर से लगता है कि इसे तलाक के बाद पति अपनी पत्नी को देता है। ऐसा नहीं है आज जरूरत की खबर में जानेंगे कि
किन-किन कं डीशन में कौन-कौन लोग गुजारा भत्ता यानी मेंटेनेंस के हकदार हो सकते हैं।

एक्सपर्ट पैनल:
 सचिन नायक, एडवोके ट, सुप्रीम कोर्ट और मध्य प्रदेश हाई कोर्ट
 नवनीत कु मार मिश्रा, एडवोके ट, लखनऊ हाई कोर्ट
सवाल: मेंटेनेंस यानी गुजारा भत्ता का मतलब क्या है ?
जवाब: जब एक व्यक्ति दूसरे को खाना, कपड़ा, घर, एजुके शन और मेडिकल जैसी बेसिक जरूरत की चीजों के लिए फाइनेंशियल सपोर्ट करता है तो उसे मेंटेनेंस यानी
गुजारा भत्ता कहते हैं।

सवाल: मौजूदा मामले में अंतरिम गुजारा भत्ता की बात की गई है तो गुजारा भत्ता कितने तरह का होता है ?
जवाब: हिंदू मैरेज एक्ट 1955 के तहत दो तरह का गुजारा भत्ता होता है-

 अंतरिम गुजारा भत्ता या अस्थायी भत्ता

 परमानेंट गुजारा भत्ता या स्थायी भत्ता

अंतरिम गुजारा भत्ता: जब तक कोर्ट की कार्यवाही चल रही होती है, और शुरुआत में खर्चा करने के लिए रकम नहीं है। तब सेक्शन 24 के तहत कोर्ट का फै सला
आने तक शिकायतकर्ता को गुजारा भत्ता मिलता रहता है।

परमानेंट गुजारा भत्ता: सेक्शन 25 के तहत तलाक के बाद मिलने वाली एलिमनी परमानेंट भत्ता कहलाती है। इस मेंटेनेंस में स्त्रीधन शामिल नहीं होता, उस
पर सिर्फ पत्नी का अधिकार होता है।

भत्ता कितना होगा यह पति की आय, संपत्ति, जिम्मेदारियां आदि को देखते हुए कोर्ट तय करता है।
सवाल: पत्नी को पति से कितना प्रतिशत मेंटेनेंस मिलता है ?
जवाब: आमतौर पर मेंटेनेंस के के स में लगभग 20% पति की सैलरी का पत्नी को दिलवाया जाता है।

सवाल: क्या सिर्फ पति-पत्नी ही मेंटेनेंस मांग सकते हैं?


जवाब: नहीं। अलग-अलग सिचुएशन में रिश्तेदारों से मेंटेनेंस मांगा जा सकता है। इसे नीचे लगे क्रिएटिव में पढ़ें…
ऊपर लगे क्रिएटिव को समझते हैं कि किन कं डीशन में मेंटेनेंस मांग सकते हैं-
पत्नी:
 पत्नी को पति ने तलाक दे दिया हो तब।

 पति से पत्नी ने तलाक ले लिया हो।

 तलाक के बाद उसने दूसरी शादी नहीं की हो।

 खुद का भरण-पोषण नहीं कर पा रही हो।

इन सिचुएशन में पत्नी पति से गुजारा भत्ता नहीं मांग सकती। जैसे-
 पत्नी, खुद की कमाई से खुद का भरण-पोषण कर पा रही हो।

 पत्नी जो अपने पति से बिना किसी वजह के अलग रह रही हो।

 पति-पत्नी आपसी समझौते से अलग रह रहे हों।

 पत्नी का शादी के बाद भी किसी और से रिलेशन हो।

पति: नीचे लिखे सिचुएशन में मांग सकता है...


 पति जब बेरोजगार है और पत्नी के पास कमाई का साधन हो।

 शारीरिक या मानसिक तौर से कमजोर पति जो पैसे कमाने के लायक नहीं और उसकी पत्नी कमा रही हो।

 पति-पत्नी का कोर्ट में के स चल रहा हो, और पति के पास फीस के पैसे न हो।

 पति के पास बुनियादी जरूरतों के लिए पैसे न हो।

बच्चे: ये शर्तें कानून में रखी गई है...

 नाबालिग बच्चे इस धारा के तहत अपने पिता से भरण-पोषण यानी मेंटेनेंस की मांग कर सकते हैं। इनमें जायज के साथ नाजायज बच्चे भी शामिल हैं।

 वो बालिग बच्चे जो शारीरिक या मानसिक तौर पर बीमार हैं, अपने पिता से भरण-पोषण की मांग कर सकते हैं।

बुजुर्ग माता-पिता: बुजुर्गों को फाइनेंशियल सिक्योरिटी, मेडिकल सिक्योरिटी, मेंटेनेंस (जिंदगी जीने के लिए खर्च) और प्रोटेक्शन देने के लिए सीनियर सिटीजन
एक्ट, 2007 लागू किया गया है। इसके तहत...

 अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने वाले बुजुर्ग यानी माता-पिता अपने बेटे से भरण-पोषण की मांग कर सकते हैं।

 बेटे के अलावा वे अपनी बालिग बेटी, पोते-पोती, किसी से भी भरण-पोषण की मांग कर सकते हैं।

 जिन बुजुर्गों के बच्चे नहीं है वो अपने ऐसे किसी रिश्तेदार से भी मांग सकते है जो उनकी संपत्ति का इस्तेमाल कर रहे हैं या फिर जो उसके वारिस हैं।

विधवा बहू : भरण-पोषण कानून, 1950 धारा 19 के तहत विधवा बहू अपने ससुर से मेंटेनेंस की मांग कर सकती है।

अब वापस आते है मौजूदा मामले पर और पति-पत्नी के गुजारा भत्ते को लेकर कु छ और सवालों के जवाब जानते
हैं…
सवाल: मेंटेनेंस की अर्जी कोर्ट में कब लगाई जा सकती है ?
जवाब: अगर पति और पत्नी के रिश्ते खराब हो गए हैं और दोनों एक-दूसरे के साथ कानूनी तौर पर नहीं रहते हैं तब मेंटेनेंस की अर्जी कोर्ट लगती है।

अगर महिला और बच्चे अपना भरण-पोषण नहीं कर पा रहे हैं। मतलब उनके पास रहने को घर नहीं है, खाने-पीने के पैसे नहीं हैं, कपड़े खरीदने का पैसा नहीं है और कोर्ट
आने तक का पैसा नहीं है। तो इस तरह के सभी खर्चे मेंटेनेंस में आते हैं।

सवाल: पत्नी अगर कामकाजी है तब उसे मेंटेनेंस देने का क्या नियम है ?


जवाब: अगर पत्नी जॉब करती है या शादी से पहले जॉब करती थी। मतलब उसकी क्वालिफिके शन ऐसी है कि वह नौकरी या बिजनेस कर अपनी बुनियादी जरूरतें
पूरी कर सकती है। इस कं डीशन में कोर्ट महिला को मेंटेनेंस नहीं देता है।

सवाल: तो फिर कमाऊ पत्नी कभी भी गुजारा भत्ता नहीं मांग सकती है ?
जवाब: सुप्रीम कोर्ट के फै सले के मुताबिक, कामकाजी पत्नी जब अपनी कमाई से खुद का खर्च नहीं उठा पा रही है तो पति से मेंटेनेंस मांग सकती है।
सवाल: अच्छा अगर पति बेरोजगार है क्या तब भी उसे गुजारा भत्ता देना पड़ेगा?
जवाब: हां, अगर पति बेरोजगार है और शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत भी तब उसे गुजारा भत्ता देना पड़ेगा।
दूसरी ओर पत्नी नाैकरी नहीं करती, न ही उसके पास ऐसी कोई क्वालिफिके शन है तब भी उसे अपनी पत्नी और बच्चों को गुजारा भत्ता देना पड़ेगा। भले ही उसे मजदूरी
क्यों ना करनी पड़े।

लेकिन अलग-अलग मामलों पर कोर्ट इस बात का फै सला बदल भी सकती है।

सवाल: पति के मेंटेनेंस को लेकर कानून क्या कहता है ?


जवाब: हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 के अनुसार, पति और पत्नी दोनों एक-दूसरे से मेंटेनेंस की डिमांड कर सकते हैं।

धारा 24- अगर कोर्ट में पति-पत्नी का कोई के स चल रहा है और कार्यवाही के दौरान कोर्ट को ये पता लग जाए कि पति खुद की जरूरत पूरी नहीं कर पा रहा है।

यहां तक की उसके पास इस कार्यवाही के लिए भी पैसे नहीं हैं तो कोर्ट पत्नी को आदेश दे सकता है कि वो अपने पति को मेंटेनेंस और कोर्ट के स में आने वाले खर्च के लिए
पैसे दे। हालांकि, इसमें पत्नी के पास सोर्स ऑफ इनकम होना जरूरी है।

अगर पति के पास प्रॉपर्टी और कमाने की क्षमता है तो वो पत्नी से मेंटेनेंस का दावा नहीं कर सकता है। अगर पति ने कोर्ट में पत्नी से मेंटेनेंस लेने का दावा किया है तो
उसे सबूत भी देना होगा कि वो शारीरिक और मानसिक तौर पर कमाने के लायक नहीं है।

धारा 25- पति को भरण-पोषण मिलने का नियम शामिल है। इस परिस्थिति में कोर्ट पति और पत्नी दोनों की प्रॉपर्टी को ध्यान में रखकर विचार करता है। मान
लीजिए कोर्ट ने पत्नी को आदेश दिया कि वो अपने पति को भरण-पोषण दे।

फिर कु छ समय बाद अगर पति कमाने लायक हो जाता है और काम करने लगता है तो पत्नी के दावे पर कोर्ट अपने फै सले को रद्द या बदल सकती है।

चलते-चलते…
लिव इन रिलेशन में रहने वाली महिला पार्टनर भी गुजारा-भत्ता की हकदार
फै मिली मामलों की वकील सुमित्रा गुप्ता कहती हैं, 'लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिला अपने पार्टनर के खिलाफ घरेलू हिंसा कानून के तहत गुजारा भत्ते के
लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकती है। महिला को CrPC की धारा-125 के तहत गुजारा भत्ता दिया जा सकता है। यहां तक कि लिव-इन-रिलेशन में पैदा होने वाला
बच्चा भी हक रखता है।'

चनमुनिया बनाम विरेंद्र कु मार मामले में सुप्रीम कोर्ट इस तरह का फै सला सुना चुका है।

Crpc 125 in Hindi -कब पत्नी को अंतरिम भरण पोषण देने से इनकार
किया जा सकता है ?
October 6, 2023 by Adv Vikas Shukla

परिचय:

क्या आप पत्नी है या माता -पिता या बच्चे ? आप के पति द्वारका आप को ओर बच्चे को क्या neglect (उपेक्षा) करते है ? क्रिमिनल प्रोसीजर कोड की धारा 125 भारतीय कानूनी प्रणाली में

एक महत्वपूर्ण कानूनी प्रावधान है, जो उन व्यक्तियों /महिलों को भरण –पोषण सुनिश्चित करती है जो अपने आप को पालन-पोषण करने में असमर्थ हैं। इस धारा के अंतर्गत व्यक्तियों

को उनके पति, बच्चों और माता-पिता से वित्तीय समर्थन मांगने का अधिकार होता है, आप कोर्ट मे धारा 125 crpc in hindi के तहत वाद कर सकते है, न्यालाय द्वारा आप को
आंतरिक गुजारा भत्ता देने का फै सला जल्दी दे सकती है । शुरू करने के लिए क्या प्रक्रिया होती है और इसके अंतर्गत वित्तीय सहायता मांगने वाले व्यक्तियों को क्या अधिकार प्रदान करता
है। चाहे आप पति हों, पत्नी हों, माता-पिता हों या बच्चे हों, यह महत्वपूर्ण है कि आप इस कानूनी के तहत अपने अधिकारों और जिम्मेदारियों को समझें।

Table of Contents

 सीआरपीसी की धारा 125 क्या है ?


o भरण –पोषण के लिए आवेदन कौन कर सकता है
 भरण-पोषण के लिए आवेदन किस आधार पर किया जा सकता है
 गुजारा भत्ते का आवेदन किसके विरुद्ध में किया जा सकता है
 पत्नी कब अपना गुजारा भत्ता पाने की अधिकरणी नहीं है
 अब हम यह भी समझेंगे कि पर्याप्त कारण क्या है
 इसके उदाहरण के माध्यम से समझेंगे यदि कोई पति दूसरा विवाह कर लेता है और पहली पत्नी
से अलग रहता है या पति अपने पास कोई रखैल रख लेता है , तो उसे पत्नी उसके साथ रहने के
लिए इंकार कर सकती है यह इनकार करना पर्याप्त कारण माना जाएगा।

सीआरपीसी की धारा 125 क्या है ?


पत्नी ,संतान , माता –पिता भरण –पोषण एवं करने के लिए वह धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत वाद कर सकता/ सकती है कानून आप को अधिकार प्रदान दिया हुआ है
इस धारा के अंतर्गत कोई भी सजा नहीं दी जा सकती है बल्कि निवारक है । यह धारा सभी धर्म पर लागू होती है मुस्लिम पत्नी भी इस धारा तहत के भरण –पोषण की मांग कर
सकती है । पत्नी को गुजारा भत्ता कितना देना पड़ता है जो मजिस्ट्रेट ठीक समझे ।

भरण –पोषण के लिए आवेदन कौन कर सकता है


निम्नलिखित लोग मैन्ट्नन्स के लिए आवेदन कर सकते है जो स्वयं maintenance नहीं कर सकते है :-

पत्नी : – विवाहित पत्नी अपने पति से गुजारा भत्ता इस धारा के अंतर्गत ले सकती है । ‘wife ‘ पत्नि शब्द के अनुसार वह महिला भी शामिल है जिसका तालक हो गया है, परंतु
उसका पुनर्विवाह नहीं हुआ हो ।

2. धर्म या अधर्मज अवयस्क पुत्र या पुत्री – धर्म या अधर्मज अवयस्क पुत्र या पुत्री अपना गुजारा करने मे असमर्थ हो वह भी कोर्ट मे गुजारा भत्ता
का आवेदन कर सकते है । दोनों धर्म या अधर्मज संतनों को मैन्ट्नन्स ( maintenance) पिता से लेने का भी अधिकार है।
3. अविवाहित वयस्क पुत्री या वयस्क पुत्र ;- अविवाहित वयस्क पुत्री या वयस्क पुत्र किसी शारीरिक या मानसिक या क्षति के कारण अपना भरण –पोषण नहीं कर सकते
है तो अपने पिता से मैन्ट्नन्स ले सकते है

4. पिता या माता ;- पिता या माता अपनी परवरिश नहीं कर पा रहे तो आपने पुत्र से परवरिश करने का पैसे ले सकते है अपना गुजारा करने के लिए

भरण-पोषण के लिए आवेदन किस आधार पर किया जा सकता है

जब किसी व्यक्ति के भरणपोषण का नैतिक जिम्मेदारी है यदि वह गुजारा देने से इनकार कर देता है या उससे अपेक्षा करता है उसे व्यक्ति के पास पर्याप्त साधन है जिससे कि वह
maintenance कर सकता है आवेदककर्ता एवं अपना गुजरा करने में स्वयं असमर्थ है.

गुजारा भत्ते का आवेदन किसके विरुद्ध में किया जा सकता है

गुजारे भत्ते का आवेदन संतान पत्नी अपने पति के विरुद्ध संतान अपने पिता के विरुद्ध माता-पिता अपने पुत्र के विरुद्ध कर सकते हैं

पत्नी कब अपना गुजारा भत्ता पाने की अधिकरणी नहीं है


यदि पत्नीभरण -पोषण पाने की अधिग्करनी नहीं है यदि वह

 जब पत्नी अपना जीवन यापन व्यभिचार से बिता रही हो तथा जारकर्म करती है
 जब पत्नी अपने पति से आपसी समझौते सेअलग-अलग रह रहे हो
 जब कोई पत्नी अपने पति के पास पर्याप्त कारण के बिना रहने से इनकार कर देती है तो उसको मेंटेनेंस लेने का कोई अधिकार नहीं है

अब हम यह भी समझेंगे कि पर्याप्त कारण क्या है


इसके उदाहरण के माध्यम से समझेंगे यदि कोई पति दूसरा विवाह कर लेता है और पहली पत्नी से अलग रहता है या पति अपने पास कोई रखैल रख लेता है, तो उसे पत्नी उसके साथ
रहने के लिए इंकार कर सकती है यह इनकार करना पर्याप्त कारण माना जाएगा।

यदि विवाह शून्य है तो पत्नी को गुजारा भत्ता पानी की अधिकरणी नहीं होगी यदि कोई स्त्री रखेल बनाकररहती हैतो भीगुजारा भत्ता पानी की हकदार नहीं है

धारा 125 cr .pc आवेदन की सुनवाई की प्रक्रिया कै से होती है ।

धारा 125 भारतीय दंड संहिता की सुनवाई समान मामले विचरण की प्रक्रिया रहेगी

कोर्ट मे आवेदन करना ;धारा 125 भारतीय दंड संहिता के के अनुसार हम न्यायालय में आवेदन करेंगे आवेदन की सुनवाई न्यायालय द्वारा की जाएगी न्यायालयको

लगता है किआवेदन करता मेंटेनेंस लेने का कानूनी अधिकार है को न्यायालय द्वारा विरोधी पक्ष को समान कर देती है विरोधी पक्षकोर्ट में उपस्थित होता है तोकोर्ट
तोधारा 125 भारतीय दंड सहित कीआवेदन काउत्तर कोर्ट में दाखिल करता है यदि अंतरिम भरण पोषण की एप्लीके शन होती है तो कोर्ट द्वारा निर्णय दे दिया जाता है आवेदककर्ता
द्वारा पहले सबूत कोपेश किया जाएगा विरोधी पक्ष द्वाराउसके बचाव में सबूत पेश किया जाएगा

सबूत दोनों पक्ष के समाप्त होने के बाद कोर्ट द्वारा धारा 125 के आवेदन को न्यायालय द्वारा निर्णय दे दिया जाएगा

FAQ

Q.1 .कब पत्नी को अंतरिम भरण पोषण देने से इनकार किया जा सकता है ?

Ans .कु छ परिस्थितियों में पत्नी को अंतरिम भरण-पोषण देने से इनकार किया जा सकता है, जैसे कि जब वह अपना भरण-पोषण करने के लिए पर्याप्त कमाई कर रही हो या यदि
उसने दोबारा शादी कर ली हो। इसके अतिरिक्त,पत्नी ने बिना किसी उचित कारण के अपने पति को छोड़ दिया है, या यदि वह व्यभिचार में रह रही है, तो अदालत अंतरिम भरण-
पोषण से इनकार कर सकती है।

Q.2.क्या तलाक के बाद भी पति को खर्चा देना होगा ?

Ans.- तलाक के बाद पति गुजारा भता देने का पति का दायित्व स्वतः समाप्त नहीं हो जाता है। पत्नी और बच्चों गुजारा भत्ता देना होता है जब तक पत्नी किसी से दूसरी शादी
नहीं कर लेती जै या गुजारा भत्ता समझौता, तो उसे अभी भी खर्चों के लिए योगदान करने की आवश्यकता है

अगर वह कमा रही है तो क्या पत्नी भरण-पोषण का दावा कर सकती है?’

निष्कर्ष

धारा 125 क्रिमिनल प्रोसीजर कोड महिला , बच्चे , माता पिता की गुजारा भत्ता के लिए एक महत्वपूर्ण कानूनी संरक्षण है। तो आपको इस कानूनी फ्रे मवर्क को
समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है।

यदि आपको किसी कानूनी सलाहकार की आवश्यकता होती है जो आपको धारा 125 क्रिमिनल प्रोसीजर कोड के तहत वित्तीय सहायता की मांग में मदद कर सकता है, तो हमसे
संपर्क करें: 8700437159
Haq Ki Baat : 'भीख मांगो, चोरी करो, कु छ भी
करो...पत्नी और बच्चे को गुजारा भत्ता देना ही
होगा', मैंटिनेंस पर अदालतों के चर्चित फै सले
Authored By चन्द्र प्रकाश पाण्डेय | नवभारतटाइम्स.कॉम | Updated: 2 Oct 2022, 10:05 pm

Subscribe

Haq Ki Baat : बादशाह बनाम उर्मिला बादशाह गोडसे के स (2013)


में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि गुजारा भत्ते का गरीबों को सबल बनाना
और सामाजिक न्याय हासिल करना या वैयक्तिक समानता और
गरिमा को मजबूत करना है। 'हक की बात' के इस अंक में पत्नी और
बच्चों के गुजारा भत्ता के अधिकार को लेकर अहम अदालती फै सलों
पर नजर डालते हैं।
हाइलाइट्स

 पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फै सले में कहा कि पत्नी, बच्चों का भरण-पोषण पति का फर्ज

 2015 में एक हाई कोर्ट ने तो यहां तक कह दिया कि भीख मांगो चाहे चोरी करो, गुजारा भत्ता देना होगा

 2020 में दिल्ली हाई कोर्ट ने एक फै सले में कहा कि गुजारा भत्ता सार्वभौमिक मानवाधिकारों का हिस्सा है
पत्नी और बच्चों का गुजारा भत्ता पाने का अधिकार और कु छ चर्चित अदालती फै सले

 टू टा रिश्ता वापस जुड़ेगा? पूछिए ज्योतिषी से। पहली चैट फ्री में कीजिये |

नई दिल्ली : पति-पत्नी अलग-अलग रहते थे। बच्चे महिला के साथ। गुजारे भत्ते का मामला हाई कोर्ट पहुंचा। वहां फै मिली कोर्ट का फै सला
बरकरार रहा जिसमें बच्चे को तो गुजारा भत्ता देने का आदेश था लेकिन पत्नी के लिए नहीं। इसके खिलाफ महिला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई। वहां पति
ने अपनी कम कमाई का हवाला दिया। अपनी दलील को और मजबूती देने के लिए पत्नी के चरित्र पर भी सवाल उठा दिया। अपने बेटे के डीएनए
परीक्षण की मांग कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने इस मामले में फै सला दिया। कोर्ट ने बच्चे के साथ-साथ पत्नी को भी गुजारे भत्ते का हकदार
बताया। शीर्ष अदालत ने कहा कि पति शारीरिक रूप से सक्षम है, उसे अपनी पत्नी और बच्चों को गुजारा भत्ता देना होगा। यह उसका फर्ज भी है।
वैसे, ऐसे ही एक मामले में पंजाब ऐंड हरियाणा हाई कोर्ट ने तो यहां तक कह दिया था कि पति को अपनी बीवी और बच्चे को गुजारा भत्ता देना ही

होगा, इसके लिए चाहे वह भीख मांगे, चोरी करे या कु छ भी करे। 'हक की बात' (Haq Ki Baat) सीरीज के एक अंक में हमने मियां-बीबी के
तकरार में गुजारे भत्ते के अधिकार पर बात की थी। इस अंक में हम उससे आगे बढ़ते हुए बात करते हैं कि पत्नी या बच्चे कब गुजारे भत्ते
के हकदार होंगे और कब नहीं। इसे लेकर कब-कब अदालतों ने अहम और चर्चित फै सले दिए।
आगे बढ़ने से पहले पिछले महीने के सुप्रीम कोर्ट के फै सले पर एक नजर डाल लेते हैं। उस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा
125 की कल्पना एक महिला की पीड़ा और वित्तीय दिक्कतों को दूर करने के लिए की गई थी जो इसलिए वैवाहिक घर छोड़ने को मजबूर हुई ताकि
अपना और बच्चे के भरण-पोषण की कु छ उपयुक्त व्यवस्था कर सके । पति का कर्तव्य है कि वह अपनी पत्नी और नाबालिग बच्चों को शारीरिक
श्रम करके भी आर्थिक सहायता प्रदान करे और उसे के वल कानूनी आधार पर शारीरिक रूप से सक्षम नहीं होने पर ही इससे छू ट मिल सकती है।
जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी की बेंच ने पति को आदेश दिया कि वह बच्चे के लिए तो हर महीने 6 हजार रुपये का गुजारा
भत्ता दे ही, पत्नी को भी हर महीने 10 हजार रुपये गुजारा भत्ता दे।

गुजारे भत्ते से जुड़े कानून


कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर यानी सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण की व्यवस्था की गई है। इसके तहत पत्नी, बच्चे या माता-पिता
जैसे आश्रित तब मैंटिनेंस का दावा कर सकते हैं जब उनके पास आजीविका के अन्य साधन उपलब्ध नहीं हैं। गुजारा भत्ता दो तरह के होते हैं-
अंतरिम और स्थायी। अगर मामला अदालत में लंबित है तो उस दौरान के लिए अंतरिम गुजारे भत्ते का आदेश दिया जा सकता है। कोई शख्स
पर्मानेंट मैंटिनेंस के लिए भी दावा कर सकता है। तलाक जैसे मामलों में स्थायी गुजाराभत्ता तबतक प्रभावी रहता है जबतक कि संबंधित पक्ष (पति
या पत्नी) दोबारा शादी न कर ले या उसकी मौत हो जाए। 'प्रोटेक्शन ऑफ वूमेन फ्रॉम डोमेस्टिक वायलेंस ऐक्ट, 2005' की धारा 20 के तहत भी

पीड़ित पत्नी को गुजारा भत्ता पाने का अधिकार है। (और डीटेल में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )

पत्नी को इन स्थितियों में ही गुजारे भत्ते का अधिकार

 अगर पति ने तलाक दे दिया हो, या

 पति से तलाक ले लिया हो

 तलाक के बाद उसने दूसरी शादी नहीं की हो और

 वह खुद का भरण-पोषण करने में असमर्थ हो

कब नहीं मिलेगा गुजारा भत्ता

 अगर बिना किसी वाजिब कारण के पति से अलग रह रही हो

 पति-पत्नी आपसी सहमति से अलग-अलग रह रहे हों

2020 में सुप्रीम कोर्ट ने मैंटिनेंस के लिए तय किए ये गाइडलाइंस


सुप्रीम कोर्ट ने 4 नवंबर 2020 को 'रजनीश बनाम नेहा' के स में गुजारे भत्ते को लेकर अदालतों के लिए गाइडलाइंस तय किए। कोर्ट ने कहा कि
गुजारा भत्ता की रकम कितनी हो, इसका कोई तय फॉर्म्युला नहीं है। यह के स टु के स अलग हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालतें जब गुजारे
भत्ते की राशि तय करें तो उन्हें किसी पिछले फै सले पर विचार करना चाहिए। मैंटिनेंस अमाउं ट तय करते वक्त संबंधित पक्षों की स्थिति, आवेदक
की जरूरत, प्रतिवादी की आय और संपत्ति, दावेदार की वित्तीय जिम्मेदारियों, संबंधित पक्षों की उम्र और रोजगार की स्थिति, नाबालिग बच्चों के
भरण पोषण और बीमारी या अक्षमता जैसे पहलुओं पर विचार करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि मैंटिनेंस से जुड़े आदेशों का पालन भी
सिविल कोर्ट के फै सलों की तरह होना चाहिए। आदेश का पालन नहीं होने पर हिरासत में लिए जाने से लेकर संपत्ति की जब्ती जैसी कार्रवाई हो।
अदालतों के पास अधिकार होगा कि वह अवमानना की कार्रवाई शुरू कर सके ।

'गुजारा भत्ता सिर्फ कानूनी नहीं, सार्वभौमिक मौलिक अधिकार'


बादशाह बनाम उर्मिला बादशाह गोडसे के स (2013) में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि गुजारा भत्ते का उद्देश्य गरीबों को सबल बनाना और सामाजिक
न्याय हासिल करना या वैयक्तिक समानता और गरिमा को मजबूत करना है।
'भुवन मोहन सिंह बनाम मीना और अन्य' (2014) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर महिला वाजिब वजहों से पति का घर छोड़ती है तो कोर्ट
उसके और अगर उसके बच्चे (अगर महिला के साथ हों) के भरण-पोषण के लिए जरूरी इंतजामात कर सकता है। कोर्ट ने कि महिला का यह कानूनी
अधिकार है कि वह अपना जीवन उसी तरह जीए जैसा वह अपने पति के घर में रहते हुए जीती थी यानी रहन-सहन का वैसा ही स्तर उसका कानूनी
अधिकार है।

दिल्ली हाई कोर्ट ने कु सुम शर्मा बनाम महिंदर कु मार शर्मा (2020) मामले में कहा कि मैंटिनेंस न सिर्फ संवैधानिक अधिकार है बल्कि यह
सार्वभौमिक मानवाधिकारों का भी हिस्सा है। कोर्ट ने कहा कि मैंटिनेंस को दो मुख्य उद्देश्य हैं- वैवाहिक रिश्तों में तनाव की वजह से महिला के लिए
फाकाकशी जैसी नौबत न आए। और इसकी गारंटी कि पैसे के अभाव में वह कानूनी लड़ाई में असमर्थ न हो।

चाहे भीख मांगो, उधार लो या चोरी करो...गुजारा भत्ता तो देना होगा : हाई कोर्ट
2015 में 'राजेश बनाम सुनीता और अन्य' के स में पंजाब ऐंड हरियाणा हाई कोर्ट ने यह टिप्पणी की थी। कोर्ट ने कहा, 'अगर पति गुजारा भत्ता देने
में नाकाम रहता है तो हर डिफॉल्ट पर उसे सजा काटनी होगी।' हाई कोर्ट ने कहा कि पति की पहली और सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी अपनी पत्नी
और बच्चे को लेकर है। इसके लिए उसके पास भीख मांगने, उधार लेना या चोरी करने का विकल्प है।

दिलचस्प बात ये है कि जनवरी 2018 में मद्रास हाई कोर्ट ने एक मामले में फै मिली कोर्ट के जजों को सलाह दी कि गुजारा भत्ता के मामलों में वे
'भीख मांगो, उधार लो या चोरी करो' जैसी टिप्पणियां न करें। जस्टिस आरएमटी टीका रमन ने कहा कि भीख मांगना या चोरी करना गैरकानूनी है
लिहाजा इस तरह की टिप्पणियां न करें।

पति नपुंसक हो तब भी पत्नी को गुजारा भत्ता का हक

अगर पति नपुंसक हो तब भी पत्नी को उससे गुजारा भत्ता पाने का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने 1981 में 'सिराजमोहम्मदखान जानमोहम्मदखान
बनाम हफीजुन्निसा यासीनखान' मामले में कहा कि अगर पति नपुंसक हो तो पत्नी को गुजारा भत्ता की इजाजत दी जा सकती है। कोर्ट ने अपने
फै सले में कहा कि नपुंसक पति अपने वैवाहिक दायित्वों का निर्वहन नहीं कर सकता जो पत्नी के लिए मानसिक यातना है। वह अगर ऐसे पति के
साथ रहने से इनकार करती है तो उसे पति से गुजारा भत्ता पाने का अधिकार है।

अगर पत्नी कमा रही है तो भी क्या गुजारा भत्ता की हकदार होगी?


सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में Shailja & Anr. v. Khobanna के स में महत्वपूर्ण आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि सिर्फ इसलिए कि पत्नी कमाने में सक्षम
है, कमा रही है तो इसका मतलब ये नहीं कि गुजारा-भत्ता को कम कर देना चाहिए।

दूसरी पत्नी को गुजारे भत्ते का हक नहीं अगर पहली पत्नी जीवित हो


यमुनाबाई अनंतराव आधव बनाम रनंतराव शिवराम आधव के स में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर कोई महिला किसी ऐसे शादीशुदा शख्स से हिंदू
रीति-रिवाज के साथ शादी की हो जो अपनी पहली पत्नी के साथ रहता आया हो तब कानून की नजर में उसकी शादी मान्य नहीं है। वह सीआरपीसी
की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ता का दावा नहीं कर सकती।

विवाह अवैध हो तब भी उससे पैदा हुई संतान गुजारे भत्ते की हकदार


अगर किसी वजह से शादी अमान्य घोषित हो जाए तब भी उससे पैदा हुई संतान सीआरपीसी की धारा 125 के तहत गुजारे भत्ते की हकदार है।
बकु लबाई बनाम गंगाराम (1988) के स में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया।

बालिग एब्नॉर्मल बच्चे को भी गुजारा भत्ता पाने का अधिकार


नाबालिग बच्चों को तो गुजारा भत्ता पाने का अधिकार होता ही है, 18 साल से ऊपर के बच्चे को भी कु छ परिस्थितियों में यह अधिकार है। अगर
कोई बालिग बच्चा (लेजिटिमेट या इलेजिटिमेट) असामान्य है (मानसिक या शारीरिक तौर पर अनफिट) तब पिता की जिम्मेदारी है कि वह उसका
भरण-पोषण करे। ऐसा बालिग बच्चा भी मैंटिनेंस का दावा कर सकता है।

बेटी के बालिग होने तक ही नहीं, शादी होने तक गुजारा भत्ता


हिंदू अडॉप्शन ऐंड मैंटिनेंस ऐक्ट, 1956 के तहत अविवाहित बेटी गुजारे भत्ते की हकदार है अगर वह खुद से गुजारा नहीं कर पा रही। ऐसे मामलों में
पिता अपनी अविवाहित बेटी की मदद करेगा भले ही वह अपनी मां के साथ उससे अलग रह रही हो। सुप्रीम कोर्ट ने जसबीर कौर सहगल बनाम
डिस्ट्रिक्ट जज देहरादून मामले में ये फै सला किया। राजस्थान हाई कोर्ट ने जगदीश जुगतावत बनाम मंजू लता के स में स्पष्ट किया कि अगर बेटी
बालिग हो गई लेकिन उसकी शादी नहीं हुई है तो वह शादी होने तक पिता से गुजारा भत्ता पाने की हकदार है।

वह अपनी संपत्ति बेच सकता है, गिरवी रख सकता है या दान कर सकता है। इस संबंध में सभी अधिकार उसके पास सुरक्षित हैं। सास-ससुर की प्रॉपर्टी पर बहू का कोई अधिकार नहीं है। ना ही
उनके जीवित रहते और ना ही उनके देहांत के बाद महिला संपत्ति पर क्लेम कर सकती है।

https://www.youtube.com/watch?v=otIOxo_37g0

You might also like