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125
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पत्नी ने गुजारा भत्ता के तौर पर 50 हजार रुपए महीना की मांग की थी। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान यह पाया कि मेंटेनेंस मांगने वाली पत्नी MBA है और अपने पति के
बराबर योग्य है। उसका पति, जो पेशे से डॉक्टर है, लेकिन इस समय बेरोजगार है।
गुजारा भत्ता यानी मेंटेनेंस को लेकर आमतौर से लगता है कि इसे तलाक के बाद पति अपनी पत्नी को देता है। ऐसा नहीं है आज जरूरत की खबर में जानेंगे कि
किन-किन कं डीशन में कौन-कौन लोग गुजारा भत्ता यानी मेंटेनेंस के हकदार हो सकते हैं।
एक्सपर्ट पैनल:
सचिन नायक, एडवोके ट, सुप्रीम कोर्ट और मध्य प्रदेश हाई कोर्ट
नवनीत कु मार मिश्रा, एडवोके ट, लखनऊ हाई कोर्ट
सवाल: मेंटेनेंस यानी गुजारा भत्ता का मतलब क्या है ?
जवाब: जब एक व्यक्ति दूसरे को खाना, कपड़ा, घर, एजुके शन और मेडिकल जैसी बेसिक जरूरत की चीजों के लिए फाइनेंशियल सपोर्ट करता है तो उसे मेंटेनेंस यानी
गुजारा भत्ता कहते हैं।
सवाल: मौजूदा मामले में अंतरिम गुजारा भत्ता की बात की गई है तो गुजारा भत्ता कितने तरह का होता है ?
जवाब: हिंदू मैरेज एक्ट 1955 के तहत दो तरह का गुजारा भत्ता होता है-
अंतरिम गुजारा भत्ता: जब तक कोर्ट की कार्यवाही चल रही होती है, और शुरुआत में खर्चा करने के लिए रकम नहीं है। तब सेक्शन 24 के तहत कोर्ट का फै सला
आने तक शिकायतकर्ता को गुजारा भत्ता मिलता रहता है।
परमानेंट गुजारा भत्ता: सेक्शन 25 के तहत तलाक के बाद मिलने वाली एलिमनी परमानेंट भत्ता कहलाती है। इस मेंटेनेंस में स्त्रीधन शामिल नहीं होता, उस
पर सिर्फ पत्नी का अधिकार होता है।
भत्ता कितना होगा यह पति की आय, संपत्ति, जिम्मेदारियां आदि को देखते हुए कोर्ट तय करता है।
सवाल: पत्नी को पति से कितना प्रतिशत मेंटेनेंस मिलता है ?
जवाब: आमतौर पर मेंटेनेंस के के स में लगभग 20% पति की सैलरी का पत्नी को दिलवाया जाता है।
इन सिचुएशन में पत्नी पति से गुजारा भत्ता नहीं मांग सकती। जैसे-
पत्नी, खुद की कमाई से खुद का भरण-पोषण कर पा रही हो।
शारीरिक या मानसिक तौर से कमजोर पति जो पैसे कमाने के लायक नहीं और उसकी पत्नी कमा रही हो।
पति-पत्नी का कोर्ट में के स चल रहा हो, और पति के पास फीस के पैसे न हो।
नाबालिग बच्चे इस धारा के तहत अपने पिता से भरण-पोषण यानी मेंटेनेंस की मांग कर सकते हैं। इनमें जायज के साथ नाजायज बच्चे भी शामिल हैं।
वो बालिग बच्चे जो शारीरिक या मानसिक तौर पर बीमार हैं, अपने पिता से भरण-पोषण की मांग कर सकते हैं।
बुजुर्ग माता-पिता: बुजुर्गों को फाइनेंशियल सिक्योरिटी, मेडिकल सिक्योरिटी, मेंटेनेंस (जिंदगी जीने के लिए खर्च) और प्रोटेक्शन देने के लिए सीनियर सिटीजन
एक्ट, 2007 लागू किया गया है। इसके तहत...
अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने वाले बुजुर्ग यानी माता-पिता अपने बेटे से भरण-पोषण की मांग कर सकते हैं।
बेटे के अलावा वे अपनी बालिग बेटी, पोते-पोती, किसी से भी भरण-पोषण की मांग कर सकते हैं।
जिन बुजुर्गों के बच्चे नहीं है वो अपने ऐसे किसी रिश्तेदार से भी मांग सकते है जो उनकी संपत्ति का इस्तेमाल कर रहे हैं या फिर जो उसके वारिस हैं।
विधवा बहू : भरण-पोषण कानून, 1950 धारा 19 के तहत विधवा बहू अपने ससुर से मेंटेनेंस की मांग कर सकती है।
अब वापस आते है मौजूदा मामले पर और पति-पत्नी के गुजारा भत्ते को लेकर कु छ और सवालों के जवाब जानते
हैं…
सवाल: मेंटेनेंस की अर्जी कोर्ट में कब लगाई जा सकती है ?
जवाब: अगर पति और पत्नी के रिश्ते खराब हो गए हैं और दोनों एक-दूसरे के साथ कानूनी तौर पर नहीं रहते हैं तब मेंटेनेंस की अर्जी कोर्ट लगती है।
अगर महिला और बच्चे अपना भरण-पोषण नहीं कर पा रहे हैं। मतलब उनके पास रहने को घर नहीं है, खाने-पीने के पैसे नहीं हैं, कपड़े खरीदने का पैसा नहीं है और कोर्ट
आने तक का पैसा नहीं है। तो इस तरह के सभी खर्चे मेंटेनेंस में आते हैं।
सवाल: तो फिर कमाऊ पत्नी कभी भी गुजारा भत्ता नहीं मांग सकती है ?
जवाब: सुप्रीम कोर्ट के फै सले के मुताबिक, कामकाजी पत्नी जब अपनी कमाई से खुद का खर्च नहीं उठा पा रही है तो पति से मेंटेनेंस मांग सकती है।
सवाल: अच्छा अगर पति बेरोजगार है क्या तब भी उसे गुजारा भत्ता देना पड़ेगा?
जवाब: हां, अगर पति बेरोजगार है और शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत भी तब उसे गुजारा भत्ता देना पड़ेगा।
दूसरी ओर पत्नी नाैकरी नहीं करती, न ही उसके पास ऐसी कोई क्वालिफिके शन है तब भी उसे अपनी पत्नी और बच्चों को गुजारा भत्ता देना पड़ेगा। भले ही उसे मजदूरी
क्यों ना करनी पड़े।
धारा 24- अगर कोर्ट में पति-पत्नी का कोई के स चल रहा है और कार्यवाही के दौरान कोर्ट को ये पता लग जाए कि पति खुद की जरूरत पूरी नहीं कर पा रहा है।
यहां तक की उसके पास इस कार्यवाही के लिए भी पैसे नहीं हैं तो कोर्ट पत्नी को आदेश दे सकता है कि वो अपने पति को मेंटेनेंस और कोर्ट के स में आने वाले खर्च के लिए
पैसे दे। हालांकि, इसमें पत्नी के पास सोर्स ऑफ इनकम होना जरूरी है।
अगर पति के पास प्रॉपर्टी और कमाने की क्षमता है तो वो पत्नी से मेंटेनेंस का दावा नहीं कर सकता है। अगर पति ने कोर्ट में पत्नी से मेंटेनेंस लेने का दावा किया है तो
उसे सबूत भी देना होगा कि वो शारीरिक और मानसिक तौर पर कमाने के लायक नहीं है।
धारा 25- पति को भरण-पोषण मिलने का नियम शामिल है। इस परिस्थिति में कोर्ट पति और पत्नी दोनों की प्रॉपर्टी को ध्यान में रखकर विचार करता है। मान
लीजिए कोर्ट ने पत्नी को आदेश दिया कि वो अपने पति को भरण-पोषण दे।
फिर कु छ समय बाद अगर पति कमाने लायक हो जाता है और काम करने लगता है तो पत्नी के दावे पर कोर्ट अपने फै सले को रद्द या बदल सकती है।
चलते-चलते…
लिव इन रिलेशन में रहने वाली महिला पार्टनर भी गुजारा-भत्ता की हकदार
फै मिली मामलों की वकील सुमित्रा गुप्ता कहती हैं, 'लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिला अपने पार्टनर के खिलाफ घरेलू हिंसा कानून के तहत गुजारा भत्ते के
लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकती है। महिला को CrPC की धारा-125 के तहत गुजारा भत्ता दिया जा सकता है। यहां तक कि लिव-इन-रिलेशन में पैदा होने वाला
बच्चा भी हक रखता है।'
चनमुनिया बनाम विरेंद्र कु मार मामले में सुप्रीम कोर्ट इस तरह का फै सला सुना चुका है।
Crpc 125 in Hindi -कब पत्नी को अंतरिम भरण पोषण देने से इनकार
किया जा सकता है ?
October 6, 2023 by Adv Vikas Shukla
परिचय:
क्या आप पत्नी है या माता -पिता या बच्चे ? आप के पति द्वारका आप को ओर बच्चे को क्या neglect (उपेक्षा) करते है ? क्रिमिनल प्रोसीजर कोड की धारा 125 भारतीय कानूनी प्रणाली में
एक महत्वपूर्ण कानूनी प्रावधान है, जो उन व्यक्तियों /महिलों को भरण –पोषण सुनिश्चित करती है जो अपने आप को पालन-पोषण करने में असमर्थ हैं। इस धारा के अंतर्गत व्यक्तियों
को उनके पति, बच्चों और माता-पिता से वित्तीय समर्थन मांगने का अधिकार होता है, आप कोर्ट मे धारा 125 crpc in hindi के तहत वाद कर सकते है, न्यालाय द्वारा आप को
आंतरिक गुजारा भत्ता देने का फै सला जल्दी दे सकती है । शुरू करने के लिए क्या प्रक्रिया होती है और इसके अंतर्गत वित्तीय सहायता मांगने वाले व्यक्तियों को क्या अधिकार प्रदान करता
है। चाहे आप पति हों, पत्नी हों, माता-पिता हों या बच्चे हों, यह महत्वपूर्ण है कि आप इस कानूनी के तहत अपने अधिकारों और जिम्मेदारियों को समझें।
Table of Contents
पत्नी : – विवाहित पत्नी अपने पति से गुजारा भत्ता इस धारा के अंतर्गत ले सकती है । ‘wife ‘ पत्नि शब्द के अनुसार वह महिला भी शामिल है जिसका तालक हो गया है, परंतु
उसका पुनर्विवाह नहीं हुआ हो ।
2. धर्म या अधर्मज अवयस्क पुत्र या पुत्री – धर्म या अधर्मज अवयस्क पुत्र या पुत्री अपना गुजारा करने मे असमर्थ हो वह भी कोर्ट मे गुजारा भत्ता
का आवेदन कर सकते है । दोनों धर्म या अधर्मज संतनों को मैन्ट्नन्स ( maintenance) पिता से लेने का भी अधिकार है।
3. अविवाहित वयस्क पुत्री या वयस्क पुत्र ;- अविवाहित वयस्क पुत्री या वयस्क पुत्र किसी शारीरिक या मानसिक या क्षति के कारण अपना भरण –पोषण नहीं कर सकते
है तो अपने पिता से मैन्ट्नन्स ले सकते है
4. पिता या माता ;- पिता या माता अपनी परवरिश नहीं कर पा रहे तो आपने पुत्र से परवरिश करने का पैसे ले सकते है अपना गुजारा करने के लिए
जब किसी व्यक्ति के भरणपोषण का नैतिक जिम्मेदारी है यदि वह गुजारा देने से इनकार कर देता है या उससे अपेक्षा करता है उसे व्यक्ति के पास पर्याप्त साधन है जिससे कि वह
maintenance कर सकता है आवेदककर्ता एवं अपना गुजरा करने में स्वयं असमर्थ है.
गुजारे भत्ते का आवेदन संतान पत्नी अपने पति के विरुद्ध संतान अपने पिता के विरुद्ध माता-पिता अपने पुत्र के विरुद्ध कर सकते हैं
जब पत्नी अपना जीवन यापन व्यभिचार से बिता रही हो तथा जारकर्म करती है
जब पत्नी अपने पति से आपसी समझौते सेअलग-अलग रह रहे हो
जब कोई पत्नी अपने पति के पास पर्याप्त कारण के बिना रहने से इनकार कर देती है तो उसको मेंटेनेंस लेने का कोई अधिकार नहीं है
यदि विवाह शून्य है तो पत्नी को गुजारा भत्ता पानी की अधिकरणी नहीं होगी यदि कोई स्त्री रखेल बनाकररहती हैतो भीगुजारा भत्ता पानी की हकदार नहीं है
धारा 125 भारतीय दंड संहिता की सुनवाई समान मामले विचरण की प्रक्रिया रहेगी
कोर्ट मे आवेदन करना ;धारा 125 भारतीय दंड संहिता के के अनुसार हम न्यायालय में आवेदन करेंगे आवेदन की सुनवाई न्यायालय द्वारा की जाएगी न्यायालयको
लगता है किआवेदन करता मेंटेनेंस लेने का कानूनी अधिकार है को न्यायालय द्वारा विरोधी पक्ष को समान कर देती है विरोधी पक्षकोर्ट में उपस्थित होता है तोकोर्ट
तोधारा 125 भारतीय दंड सहित कीआवेदन काउत्तर कोर्ट में दाखिल करता है यदि अंतरिम भरण पोषण की एप्लीके शन होती है तो कोर्ट द्वारा निर्णय दे दिया जाता है आवेदककर्ता
द्वारा पहले सबूत कोपेश किया जाएगा विरोधी पक्ष द्वाराउसके बचाव में सबूत पेश किया जाएगा
सबूत दोनों पक्ष के समाप्त होने के बाद कोर्ट द्वारा धारा 125 के आवेदन को न्यायालय द्वारा निर्णय दे दिया जाएगा
FAQ
Q.1 .कब पत्नी को अंतरिम भरण पोषण देने से इनकार किया जा सकता है ?
Ans .कु छ परिस्थितियों में पत्नी को अंतरिम भरण-पोषण देने से इनकार किया जा सकता है, जैसे कि जब वह अपना भरण-पोषण करने के लिए पर्याप्त कमाई कर रही हो या यदि
उसने दोबारा शादी कर ली हो। इसके अतिरिक्त,पत्नी ने बिना किसी उचित कारण के अपने पति को छोड़ दिया है, या यदि वह व्यभिचार में रह रही है, तो अदालत अंतरिम भरण-
पोषण से इनकार कर सकती है।
Ans.- तलाक के बाद पति गुजारा भता देने का पति का दायित्व स्वतः समाप्त नहीं हो जाता है। पत्नी और बच्चों गुजारा भत्ता देना होता है जब तक पत्नी किसी से दूसरी शादी
नहीं कर लेती जै या गुजारा भत्ता समझौता, तो उसे अभी भी खर्चों के लिए योगदान करने की आवश्यकता है
निष्कर्ष
धारा 125 क्रिमिनल प्रोसीजर कोड महिला , बच्चे , माता पिता की गुजारा भत्ता के लिए एक महत्वपूर्ण कानूनी संरक्षण है। तो आपको इस कानूनी फ्रे मवर्क को
समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
यदि आपको किसी कानूनी सलाहकार की आवश्यकता होती है जो आपको धारा 125 क्रिमिनल प्रोसीजर कोड के तहत वित्तीय सहायता की मांग में मदद कर सकता है, तो हमसे
संपर्क करें: 8700437159
Haq Ki Baat : 'भीख मांगो, चोरी करो, कु छ भी
करो...पत्नी और बच्चे को गुजारा भत्ता देना ही
होगा', मैंटिनेंस पर अदालतों के चर्चित फै सले
Authored By चन्द्र प्रकाश पाण्डेय | नवभारतटाइम्स.कॉम | Updated: 2 Oct 2022, 10:05 pm
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पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फै सले में कहा कि पत्नी, बच्चों का भरण-पोषण पति का फर्ज
2015 में एक हाई कोर्ट ने तो यहां तक कह दिया कि भीख मांगो चाहे चोरी करो, गुजारा भत्ता देना होगा
2020 में दिल्ली हाई कोर्ट ने एक फै सले में कहा कि गुजारा भत्ता सार्वभौमिक मानवाधिकारों का हिस्सा है
पत्नी और बच्चों का गुजारा भत्ता पाने का अधिकार और कु छ चर्चित अदालती फै सले
टू टा रिश्ता वापस जुड़ेगा? पूछिए ज्योतिषी से। पहली चैट फ्री में कीजिये |
नई दिल्ली : पति-पत्नी अलग-अलग रहते थे। बच्चे महिला के साथ। गुजारे भत्ते का मामला हाई कोर्ट पहुंचा। वहां फै मिली कोर्ट का फै सला
बरकरार रहा जिसमें बच्चे को तो गुजारा भत्ता देने का आदेश था लेकिन पत्नी के लिए नहीं। इसके खिलाफ महिला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई। वहां पति
ने अपनी कम कमाई का हवाला दिया। अपनी दलील को और मजबूती देने के लिए पत्नी के चरित्र पर भी सवाल उठा दिया। अपने बेटे के डीएनए
परीक्षण की मांग कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने इस मामले में फै सला दिया। कोर्ट ने बच्चे के साथ-साथ पत्नी को भी गुजारे भत्ते का हकदार
बताया। शीर्ष अदालत ने कहा कि पति शारीरिक रूप से सक्षम है, उसे अपनी पत्नी और बच्चों को गुजारा भत्ता देना होगा। यह उसका फर्ज भी है।
वैसे, ऐसे ही एक मामले में पंजाब ऐंड हरियाणा हाई कोर्ट ने तो यहां तक कह दिया था कि पति को अपनी बीवी और बच्चे को गुजारा भत्ता देना ही
होगा, इसके लिए चाहे वह भीख मांगे, चोरी करे या कु छ भी करे। 'हक की बात' (Haq Ki Baat) सीरीज के एक अंक में हमने मियां-बीबी के
तकरार में गुजारे भत्ते के अधिकार पर बात की थी। इस अंक में हम उससे आगे बढ़ते हुए बात करते हैं कि पत्नी या बच्चे कब गुजारे भत्ते
के हकदार होंगे और कब नहीं। इसे लेकर कब-कब अदालतों ने अहम और चर्चित फै सले दिए।
आगे बढ़ने से पहले पिछले महीने के सुप्रीम कोर्ट के फै सले पर एक नजर डाल लेते हैं। उस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा
125 की कल्पना एक महिला की पीड़ा और वित्तीय दिक्कतों को दूर करने के लिए की गई थी जो इसलिए वैवाहिक घर छोड़ने को मजबूर हुई ताकि
अपना और बच्चे के भरण-पोषण की कु छ उपयुक्त व्यवस्था कर सके । पति का कर्तव्य है कि वह अपनी पत्नी और नाबालिग बच्चों को शारीरिक
श्रम करके भी आर्थिक सहायता प्रदान करे और उसे के वल कानूनी आधार पर शारीरिक रूप से सक्षम नहीं होने पर ही इससे छू ट मिल सकती है।
जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी की बेंच ने पति को आदेश दिया कि वह बच्चे के लिए तो हर महीने 6 हजार रुपये का गुजारा
भत्ता दे ही, पत्नी को भी हर महीने 10 हजार रुपये गुजारा भत्ता दे।
पीड़ित पत्नी को गुजारा भत्ता पाने का अधिकार है। (और डीटेल में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )
दिल्ली हाई कोर्ट ने कु सुम शर्मा बनाम महिंदर कु मार शर्मा (2020) मामले में कहा कि मैंटिनेंस न सिर्फ संवैधानिक अधिकार है बल्कि यह
सार्वभौमिक मानवाधिकारों का भी हिस्सा है। कोर्ट ने कहा कि मैंटिनेंस को दो मुख्य उद्देश्य हैं- वैवाहिक रिश्तों में तनाव की वजह से महिला के लिए
फाकाकशी जैसी नौबत न आए। और इसकी गारंटी कि पैसे के अभाव में वह कानूनी लड़ाई में असमर्थ न हो।
चाहे भीख मांगो, उधार लो या चोरी करो...गुजारा भत्ता तो देना होगा : हाई कोर्ट
2015 में 'राजेश बनाम सुनीता और अन्य' के स में पंजाब ऐंड हरियाणा हाई कोर्ट ने यह टिप्पणी की थी। कोर्ट ने कहा, 'अगर पति गुजारा भत्ता देने
में नाकाम रहता है तो हर डिफॉल्ट पर उसे सजा काटनी होगी।' हाई कोर्ट ने कहा कि पति की पहली और सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी अपनी पत्नी
और बच्चे को लेकर है। इसके लिए उसके पास भीख मांगने, उधार लेना या चोरी करने का विकल्प है।
दिलचस्प बात ये है कि जनवरी 2018 में मद्रास हाई कोर्ट ने एक मामले में फै मिली कोर्ट के जजों को सलाह दी कि गुजारा भत्ता के मामलों में वे
'भीख मांगो, उधार लो या चोरी करो' जैसी टिप्पणियां न करें। जस्टिस आरएमटी टीका रमन ने कहा कि भीख मांगना या चोरी करना गैरकानूनी है
लिहाजा इस तरह की टिप्पणियां न करें।
अगर पति नपुंसक हो तब भी पत्नी को उससे गुजारा भत्ता पाने का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने 1981 में 'सिराजमोहम्मदखान जानमोहम्मदखान
बनाम हफीजुन्निसा यासीनखान' मामले में कहा कि अगर पति नपुंसक हो तो पत्नी को गुजारा भत्ता की इजाजत दी जा सकती है। कोर्ट ने अपने
फै सले में कहा कि नपुंसक पति अपने वैवाहिक दायित्वों का निर्वहन नहीं कर सकता जो पत्नी के लिए मानसिक यातना है। वह अगर ऐसे पति के
साथ रहने से इनकार करती है तो उसे पति से गुजारा भत्ता पाने का अधिकार है।
वह अपनी संपत्ति बेच सकता है, गिरवी रख सकता है या दान कर सकता है। इस संबंध में सभी अधिकार उसके पास सुरक्षित हैं। सास-ससुर की प्रॉपर्टी पर बहू का कोई अधिकार नहीं है। ना ही
उनके जीवित रहते और ना ही उनके देहांत के बाद महिला संपत्ति पर क्लेम कर सकती है।
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