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संविदा का उन्मोचन
संविदा का उन्मोचन
Discharge of Contract
(1) ननष्पादन द्िारा (By performance) – धारा 37 से 61 जब एक संविदे के पक्षकार अपिे िचि
एिं कततव्य पूर्त कर दे ते हैं, अर्ातत ् िे एक-दस
ू रे को सन्तुष्ट कर दे ते हैं, तो संविदा निष्पाददत
हुआ मािा जाता है।
(2) आपसी सहमनत द्िारा (By mutual agreement) धारा 62-63 संविदा की समाप्तत पक्षकारों की
आपसी सहमनत से भी हो सकती है । यह सहमनत निम्ि ककसी भी प्रकार से हो सकती है –
(स) आश्िासन एिं संतुष्ष्ट द्िारा (By accord and satisfaction) – जब संविदा के दोिों पक्षकारों के
बीच, मूि संविदा से छुटकारा पािे के लिए कोई दस
ू रा संविदा ककसी दस
ू रे कायत को रोकिे के लिए ककया
जाता है और िचिदाता (Promisor) ऐसे दस
ू रे कायत को पूरा कर दे ता है, तो पदहिा संविदा आश्िासि
और संतुप्ष्ट द्िारा समातत हुआ मािा जायेगा, तयोंकक यहााँ जो िया संविदा दोिों पक्षकारों के मध्य हुआ
है, उसको आश्िासि कहें गे और इस िये संविदा के निष्पादि को संतुप्ष्ट कहें गे।
छुटकारा और आश्िासि ि सन्तुप्ष्ट द्िारा संविदा को समातत करिे के ढं गों में अन्तर समझ सेिा
आिश्यक है। छुटकारा द्िारा निष्पादि में िये संविदा या प्रनतफि की आिश्यकता िह ं होती जबकक
आश्िासि एिं संतुप्ष्ट द्िारा संविदा समातत करिे में िया संविदा करिा और प्रनतफि की भी
आिश्यकता होगी।
(4) सष्न्नयम के अनुसार (By operation of law) – (धारा 37 का प्रभाि) कभी संविदे की समाप्तत
सप्न्ियम के अिुसार भी हो जाती है, जैसे िेि पत्र के िो जािे पर या ददिालिया हो जािे पर ऋर्ी
अपिे ऋर् से मुतत हो जाता है ।
(5) समय व्यतीत हो जाने पर – भारतीय अिधध अधधनियम के अिुसार निप्श्चत समय के बीत जािे पर
भी िचिदाता अपिे िचि से मुतत हो जाता है ।
(6) खंण्डन द्िारा (By Breach) – धारा 39 का प्रभाि जब संविदा का कोई पक्षकार अपिे िचि का
पािि करके या दस
ू र ढं ग से संविदे को भंग कर दे ता है तो मि
ू संविदा समातत हो जाता है और दस
ू रा
संविदा भी अपिे दानयत्ि से मत
ु त हो जाता है और सार् ह िह प्रिम पक्षकार से संविदा का िण्डि
करिे के लिए हजातिा पािे का भी अधधकार हो जाता है ।
जब कोई पक्षकार संविदा पािि के अपिे कततव्य को पूरा करिे में असफि रहता है या कोई ऐसा कायत
करता है प्जससे उसके द्िारा संविदा का पािि होिा असम्भि हो जाता है, या
िह संविदा पािि से इन्कार कर दे ता है, यहााँ पर उसके द्िारा संविदा का भंग ककया जाता है। एक
पक्षकार द्िारा संविदा भंग करिे पर, दस
ू रे पक्षकार को अपिे भाग की बाध्यता पूरा करिे की बाध्यता से
उन्मोचि प्रातत हो जाता है और उसे संविदा भंग द्िारा होिे िाि हानि के लिए संविदा भंग करिे िािे
पक्षकार पर िुकसािी के लिए िाद करिे का अधधकार भी प्रातत हो जाता है।
संविदा का भंग या तो :
संविदा के पूिातधार िंडि से आशय ऐसे िंडि से है, जो कक संविदा के पािि के लिए निप्श्चत
समय के पूित, प्रनतज्ञाकतात द्िारा अपिी प्रनतज्ञा का पािि करिे के प्रत्याख्याि करिे (Denying)
या प्रनतज्ञा के पाििे के अयोग्य होिे के कारर् उत्पन्ि होता है । भारतीय संविद्या अधधनियम
की धारा 39 पूिातधार िंडि का वििेचि करती है। इस धारा के अिुसार “जबकक संविदा का एक
पक्षकार संविदा के पूर्ततः पािि करिे से इन्कार कर दे ता है या पूर्ततः पािि करिे के लिए
अयोग्य हो जाता है, तो प्रनतज्ञाग्रह ता संविदा को समातत कर सकता है, बशते उसिे संविदा के
सतत ् रििे शब्दों या आचरर् द्िारा सहमनत प्रकट िह ं की है।“ (धारा 39)
उदाहरण ‘क’, जो गानयका है, एक िाटक के प्रबन्धक ‘ि’ से अगिे दो मह िे के दौराि में
प्रत्येक सतताह में दो रात उसके िाटक में गािे की संविदा करती है और ‘ि’ से प्रत्येक रात के
गायि के लिए 100 रुपये दे िा तय करता है । छठी रात को ‘क’ िाटक स कामतः अिुपप्स्र्त
रहती है। ‘ि’ संविदा का अन्त करिे के लिए स्ितन्त्र है।
अतः पूिातधार िंडि की दशा में संविदा का िंडि निप्श्चत समय के पूित ह हो सकता है।
प्रनतज्ञाकतात द्िारा संविदा के पािि करिे से इंकार करिे की दशा में या उसक संविदा के पािि
करिे में अयोग्य हो जािे पर प्रनतज्ञाग्रह ता को संविदा समातत करिे और िंडि के लिए हजार
के िाद को संप्स्र्त करिे का अधधकार होता है।
पीडड़त पक्ष को विकल्प या प्रत्यालशत संविदा भंग का प्रभाि जबकक एक पक्षकार संविदा का
पािि करिे से इन्कार कर दे ता है या पाििे के लिए अयोग्य हो जाता है, तो विधच पीडड़त पक्ष
(Aggrieved Party), अर्ातत ् प्रनतज्ञाग्रह ता (Promisee) को यह विकल्प दे ता है कक-
(1) यह संविदा के वििंडि (Recission) को पाररिरर् (Elect) कर सकता है और निप्श्चत
नतधर् के पूित ह प्रनतज्ञाकतात के विरुद्ध हजातिे का िाद संप्स्र्त कर सकता है, इस सम्बंध में
कुछ महत्िपूर्त िादों का हिािा दे िा उधचत होगा – होचस्टर बिाम डी िा दरू के मामिे में िाद
12 अप्रैि, 1852 को यूरोप के टूर में अपिे सार् पत्रिाहक की भााँनत िे जािे के लिए नियुतत
ककया। टूर । जूि, 1852 से शुरू होिा र्ा। िाद को £ 10 प्रनत माह उसकी सेिाओं के लिए
संदाय ककया जािा र्ा। 11 मई, 1852 को प्रनतिाद िे िाद को यह सूधचत करते हुए पत्र लििा
कक उसिे अपिा विचार पररिनततत कर लिया है और िाद की सेिाएाँ ग्रहर् करिे से इन्कार कर
ददया, 22 मई, 1852 को िाद िे प्रनतिाद के विरुद्ध संविदा भंग की कायतिाह की। इस मामिे
में यह अलभनिधातररत ककया गया कक िाद को संविदा समातत करिे का अधधकार प्रातत है और
िह संविदा पािि की िास्तविक नतधर् के पहुाँचिे के पूित ह कायतिाह कर सकता है । इस सम्बंध
में कुछ महत्िपूर्त िादों का हिािा दे िा उधचत होगा। फ्रॉस्ट बिाम िाइट में प्रनतिाद िे िाद से
उसके (प्रनतिाद के) वपता की मृत्यु के पश्चात ् वििाह करिे का िचि ककया। जबकक प्रनतिाद के
वपता अभी जीवित र्े, उसिे सगाई तोड़ द । िाद िे प्रनतिाद के वपता की मत्ृ यु होिे तक
इन्तजार िह ं ककया और उसिे तुरन्त ह संविदा भंग के लिए िाद कर ददया। िह अपिी
कायतिाह में सफि रहा। या
(2) िह संविदा का वििंडि ि करके िह संविदा के पािि की नतधर् तक प्रभािशीि माि सकता
है। इस निप्श्चत नतधर् पर भी प्रनतज्ञाकतात संविदा के पािि से इन्कार करता है, तो िह संविदा
के अपािि (Non-performance) के लिए हजातिा प्रातत करिे के लिए उसके विरुद्ध िाद
संप्स्र्त कर सकता है।
उदाहरण – ‘क’, जो गानयका है, एक िाटक के प्रबन्धक ‘ि’ से अगिे दो मह िे के दौराि में
प्रत्येक सतताह में दो रात उसके िाटक में गािे की संविदा करती है और ‘ि’ उसे प्रत्येक रात के
लिए 100 रुपये की दर पर दे िगी तय करता है। छठी रात को ‘क’ कामतः अिुपप्स्र्त रहती है ।
‘ि’ की अिुमनत से ‘क’ सातिीं रात को गाती है। ‘ि’ िे संविदा के जार रहिे में अपिी उपमनत
संज्ञात कर द है और अब िह उसका अन्त िह ं कर सकता। ककन्तु छठी रात को गािे में ‘क’
की असफिता से उठाये गये िुकसाि के लिए मुआिजा पािे का अधधकार है।
(1) ऐसा कायत करिे का करार प्जसका पािि ककया जािा स्ितः असंभि है, शून्य (Void) है।
उदाहरर् – ‘क’ ‘ि’ से जाद ू से कोई िजािा ढूाँढिे का करार करती है, ऐसा करार
असम्भाव्यता के कारर् शून्य है।
(2) एक ऐसा कायत करिे की संविदा जो कक संविदा करिे के बाद असम्भि हो जाती है या ककसी
घटिा के घदटत होिे के कारर् िह ं कर सकता या विधध विरुद्ध हो जाता है, शून्य हो जाती
है।
(i) क और ि आपस में वििाह करिे की संविदा करते हैं, वििाह के लिए नियत
समय से पूित क पागि हो जाता है । संविदा शून्य हो जाती है।
(ii) क संविदा करता है कक िह एक विदे शी पत्ति पर ि के लिए स्र्ोरा भरे गा।
तत्पश्चात ् क की सरकार उस दे श के विरुद्ध, प्जसमें िह पत्ति प्स्र्त है, युद्ध
की घोषर्ा कर दे ती है । संविदा तब शून्य हो जाती है जब युद्ध घोवषत ककया
जाता है।
(iii) ि द्िारा अधग्रम द गई रालश के प्रनतफि पर क छह मास के लिए एक
िाट्यगह
ृ में अलभिय करिे की संविदा करता है। अिेक अिसरों पर क बहुत
बीमार होिे के कारर् अलभिय िह ं कर सकता। उि अिसरों पर अलभिय करिे
की संविदा शून्य हो जाती है।
(3) जबकक एक व्यप्तत ऐसा कायत करिे का संविदा करता है, प्जसे िह जािता है या युप्तत
उद्यम से जाि सकता है कक ऐसा कायत करिा असम्भि या अिैध है, ककन्तु प्रनतज्ञाग्रह ता
को इसका ज्ञाि िह ं है तो प्रनतज्ञाकतात को प्रनतग्रह ता को ऐसी क्षनत का प्रनतकर दे िा होगा
जो कक उसे संविदा के अपािि के कारर् सहिी पड़ेगी। उदाहरण – ‘क’, ‘ि’ के सार् वििाह
करिे का संविदा करता है ‘क’ पूित में ह ‘ग’ के सार् वििादहत है और विधध द्िारा प्जसके
िह अधीि है दस
ू रा वििाह करिा िप्जतत है। ऐसी दशा में ‘क’ को प्रनतज्ञा के पािि िह ं
करिे के कारर् हुई क्षनत के लिए ‘ि’ को प्रनतकर दे िा होगा।
माि िादिे के लिए एक जहाज ककराए पर लिया गया। परन्तु माि िादिे के स्र्ाि पर पहुाँचिे
से पहिे ह ब्िायिर में विस्फोट हो जािे के कारर् जहाज निप्श्चत समय से अपिी यात्रा पर
ि जा सका। हाउस ऑफ िॉर्डतस िे निर्ीत ककया कक ऐसी पररप्स्र्नतयों में यह मनतय हो गई
र्ी। [जोसफ कािटे टाइि स्ट य लशष िाइि लि. ब. इम्पीररयि स्िेिदटक कारपोरे शि, (1941) 2
All ER 165: 1942]
यहााँ माि की आपूनतत की संविदा के बाद, प्जसमें ट्ांसफामतर एक निप्श्ित मूल्य पर दे िे का िचि
र्ा, एक युद्ध के कारर् कीमतें 400% बढ गईं, अलभनिधातररत हुआ कक सनतক ক पािि
असम्भि हो गया र्ा।
अब पररितति की सम्भाििा का पहिे से ह पक्षकारों को पता रहा हो, तो इसके आधार कोई
उपाय िह ं मांगा जा सकता। एक रे ििे कम्पिी िे कुछ माि यातायात के लिए स्िीकार ककया
परन्तु उसे गित स्र्ाि पर पहुाँचा ददया जो दे श के बंटिारे के कारर् पाककस्ताि में पड़ गया।
िहााँ से भाि िापस ि लिया जा सका। रे ििे को असम्भिता का बचाि िह ं लमि सका।
प्रनतिाद के पास धचकोर , कॉफी पाउडर बिािे के लिए आयात करिे का िाइसेंस या शतत यह र्ी
कक िह माि अपिी ह फैतटर में प्रयोग करे गा। उसिे सारा का सारा माि बेचिे की संविदा की
परन्तु इसके बाद, जल्द ह ऐसा माि बेचिा विधध द्िारा िप्जतत कर ददया गया। निर्ीत हुआ
कक संविदा शून्य हो गई र्ी और विक्रेता संविदा भंग के लिए दायी िह ं र्ा।
(6) युद्ध का हस्तक्षेप (Intervention of War)- बुद्ध या युद्ध जैसी पररप्स्र्नतयों के हस्तक्षेप
से संविदा पािि में काफी कदठि समस्याएाँ उत्पन्ि हुई है । इंग्िैंड तर्ा फ्रांस का लमि के
सार् युद्ध होिे के कारर् स्िेज िहर बन्द हो गई र्ी प्जसके फिस्िरूप संविदा के पािि में
का बाचाएाँ आयी। उिमें से एक मामिा त्साककयर ओग्िोि ऐण्ड कं. लि. बिाम िािि ऐण्ड
र्ारे ि जी. एम. बी. एच. है। अपीिार्ों िे उत्तरापेक्षक्षयों को 300 टि सूडािको मूंगफि , सी.
आई. एफ. (CIF) बेचिे का िचि ददया। उस समय जहाज जािे का रास्ता स्िेज िहर से
होकर र्ा। स्िेज रास्ते के इस प्रकार बन्द हो जािे के कारर् यह संविदा विधधक रूप से व्ययत
हो गई र्ा? अपीिाधर्तयों का तकत यह र्ा कक संविदा में स्िेज रास्ते द्िारा माि भेजे जािे
की अन्तनितदहत शतत र्ी। परन्तु हाउस ऑफ िॉर्डतस िे यह निर्ीत ककया कक केप ऑफ गुड
होप का रास्ता िम्बा होिे के कारर् अधधक िचीिा अिश्य र्ा परन्तु यह अधधक व्यय इस
बात का आधार िह ं हो सकता र्ा कक संविदा में मूिभूत पररितति आ गया र्ा।
भारतीय संविदा अधधनियम की धारा 56 के अिुसार “असंभि (Impossible) कायत कािे के करार शून्य
हैं। कभी-कभी ऐसा भी होता है कक कोई कायत संविदा करिे की नतधर् तक
संभि या विधधपूर्त होता है, ककन्तु सम्पादि की नतधर् पर या उससे पूित ह िह ककसी घटिा के घदटत हो
जािे पर प्जसका नििारर् प्रनतज्ञाकतात िह ं कर सकता है, असंभि हो जाय या विविरुद्ध (Unlawful) हो
जाय, तो ऐसी दशा में भी संविदा व्यर्त (Void) मािी जाएगी। इसे अव्यिधायक असंभिता (Superreing
Impossibility) कहते हैं। इस घटिा से संविदा का उद्दे श्य ह िष्ट (Frustration) हो जाता है, इसलिए
इसे निराशा (Frustration) भी कहते हैं। भग्िाश का लसद्धांत (Doctrine of frustration) इसी धारर्ा
पर आधाररत है।
संविदा के निष्पादि की असंभिता की मूि धारर्ा पर ‘भग्िाशा का लसद्धांत’ आधाररत है। इस लसद्धांत
के आिश्यक घटक (Essentials) निम्ि है-
(1) संविदा करिे के बाद ककसी घटिा के घदटत हो जािे से संविदा का निष्पादि असंभि
(1) असम्भिता ककसी पक्षकार द्िारा प्रेररत िह ं होिी चादहए (Frustration should not be
self induced) सम्भिता के लसद्धांत का आधार यह है कक संविदा का पािि ककसी
पक्षकार के कसूर के कारर् असम्भि ि हुआ हो। ककसी पक्षकार द्िारा प्रेररत असम्भिता
का आश्रय िह ं लिया जा सकता है।
मेर टाइम िेशिि कफश लि. ब. ओशि ट्ािसत लि. में अपीिाधर्तयों िे उत्तरापेक्षक्षयों से एक
ट्ािर प्जसका िाम ‘सेन्ट कर्बटत’ र्ा, ककराए पर मत्स्य व्यापार चिािे के लिए लिया। दोिों
पक्षकारों को यह मािूम र्ा कक किाड़ा सरकार से िाइसेंस प्रातत ककए बबिा ट्ािर को इस
प्रयोग में िह ं लिया जा सकता है । अपीिाधर्तयों के पास पााँच ट्ॉिर र्े, अतः उन्होंिे पााँच
िाइसेंस ददए तर्ा अपीिाधर्तयों से तीि ट्ािसत के िाम बतािे के लिए कहा। अपीिाधर्तयों िे
तीि िाम बताए प्जिमें ‘सेंट कर्बटत’ का िाम िह ं र्ा। इसके उपरान्त उन्होंिे उत्तरापेक्षक्षयों
के सार् की गयी संविदा को व्यर्तता के आधार पर समातत करिा चाहा। उत्तरापेक्षक्षयों िे
ट्ािर के ककराए के लिए िाद ककया।
एक गानयका क एक िाट्यगह
ृ प्रबन्धक ि से अगिे दो मास में प्रनत सतताह में दो रात उसके िाट्यगह
ृ
में गािे की संविदा करती है और ि उसे हर रात के गािे के लिए एक सौ रुपए दे िे के लिए िचिबद्ध
होता है । छठी रात को क उस िाट्यगह
ृ से जािबूझकर अिुपप्स्र्त रहती है, और पररर्ामस्िरूप ि उस
संविदा को वििप्ण्डत कर दे ता है। ि को उि पााँचों रातों के लिए, प्जिमें क िे गाया र्ा, उसे संदाय
करिा होगा।
इस धारा का पररर्ाम यह है कक यदद पक्षकारों िे प्रत्यक्ष रूप से िैध संविदा की र्ी और उसके अंतगतत
एक पक्षकार को कुछ फायदा लमिा है, और बाद में यह ज्ञात हो कक संविदा या तो प्रारम्भ से ह शून्य
र्ी या बाद में ककसी कारर्िश शून्य हो गई है तो प्जस पक्षकार िे िाभ प्रातत ककया है उसे दस
ू रे
पक्षकार को िह िाभ िापस करिा पड़ेगा। यदद पक्षकारों को यह मािूम हो कक संविदा शून्य है तो यह
धारा िागू िह ं होगी।
उपरोतत वििेचि से यह स्पष्ट है कक संवििा के ििकरर् से आशय एक पुरािे संविय समातत कर उसके
स्र्ाि पर िया संविदा करिे से है।
ककन्तु यह बात स्मरर् रििे योग्य है कक जब पुरािे संविदा के िण्डि के पश्चात ्, दसके स्र्ाि पर िया
संविदा प्रनतस्र्ावपत करिे पर इसे संविदा का ििकरर् िह ं कहा जायगा। ऐसे मामिों में धारा 62 िागू
िह ं होती है। इस विषय पर भारतीय उच्च न्यायाियों में मतैतय िह ं है। मद्रास उच्च न्यायािय िे एक
िाद में यह निर्तय ददया र्ा कक एक संविदा िण्डि हो जािे पर भी उसका ििकरर् या प्रनतस्र्ापि
ककया जा सकता है।
(1) संविदा के पक्षकारों की सहमनत से संविदा ििकरर् ककया जा सकता है । िये संविदा के पक्षकार
िे ह रह सकते हैं ककन्तु पुरािी शतों के स्र्ाि पर िई शतें प्रनतस्र्ावपत की जा सकती है।
(2) संविदा के ििकरर् में पुर ािे संविदा की शतों में पररितति िह ं ककया जा सकता है, ककन्तु उसके
पक्षकारों में पररितति ि ककया जा सकता है |
(3) संविदा के ििकरर् के पश्चात पुर ािा संविदा समातत हो जाता है। ििकरर् के पश्चात पुरािे
संविदा के अधीि दानयत्ि समातत हो जाते हैं।
समयािधि बीत जाने पर (By period of limitation) धारा 63 संविदा पािि के लिए समय का विस्तार
करिे के उपदाि के लिए िचिग्रह ता को अिुमनत दे ती है और उसके लिए ककसी प्रनतफि की आिश्यकता
िह ं है। समय का विस्तार पक्षकारों के परस्पर समझौते के सार् होिा चादहए। कोई िचिग्रह ता केिि
अपिे दहत के लिए एकपक्षीय रूप से पािि के समय का विस्तार िह ं कर सकता है। संविदा में पररदाि
की एक अमुक नतधर् निप्श्चत की गयी हो और विक्रेता उस नतधर् पर माि की आपूनतत करिे में असफि
रहे, विक्रेता एक पक्षीय रूप से पररदाि का समय िह ं बढा सकता ताकक बढ हुई नतधर् पर चि रहे
मूल्यों की दरों के आधार पर प्रनतकर का दािां कर सके। िह केिि पािि की िास्तविक नतनय पर चि
रहे मूल्यों की दरों के अिुसार ह प्रनतकर का हकदार होगा। समय बढिे से लिए, दोिों पक्षकारों के बीच
करार होिा चादहए। इसलिए, यदद क्रेता िे विक्रेता को पािि का समय बढाता हुआ पत्र लििा और
विक्रेता िे ि तो उस पत्र का उत्तर ददया और ि ह बढे समय के भीतर माि का पररदाि ककया. परर
अलभनिधातररत ककया गया र्ा कक क्रेता द्िारा एक पत्र लिििे से माि के पररयि का समय िह ं बढा र्ा
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