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STUDY NOTE- 4
OTHER LAWS
NEGOTIABLE INSTRUMENT ACT-1981
विनिमय-साध्य विलेख अधिनियम
उदे श्य ऐंवम कारण:- इस अधिनियम को निगमित ( incorporate ) करने का मुख्य उद्देश्य, विनिमय साध्य के
आहर्ता (DRAWER) के कोष में पर्याप्त धनराशि उचित समय पर न होने के कारण जुर्माना आरोपित करना है , ऐंवम
विनमय पत्रो के प्रचलन मे वद्धि
ृ करना है ।

परिभाषा:- विनिमय-साध्य विलेख अधिनियम की धारा 13 के अनुशार-


“ एक विनिमय-साध्य विलेख से तात्पर्य ऐसे प्रतिज्ञा पत्र से है , जिसका भुगतान वाहक को अथवा आदे शानुसार हो
सकता है । “
अन्य परिभाषा
“ विनिमय-साध्य विलेख ऐसा विपत्र है , जिसमे निहित संम्पत्ति किसी व्यक्ति द्वारा सदभाव से और मूल्य के बदले
अर्जित की गयी है , चाहे वह किसी ऐसे व्यक्ति से लिया गया है , जिसके स्वामित्व ( ownership ) मे कोई दोष ही
क्यों न हो। “

उपरोक्त परिभाषा से स्पष्ट है कि विनिमय-साध्य विलेख का स्वामित्व किसी अन्य व्यक्ति से हस्तानांतरण किया जा
सकता है , प्राप्त करने वाले को सुद्ध स्वामित्व प्राप्त होगा।
यदि वह निम्न तीन बाते पूरी कर दे ।
1. उसने उचित मूल्य दिया है ।
2. सद्विश्वास मे खरीदा है ,
3. उसे बेचने वाले (drawer) के दषि
ू त स्वामित्व ( improper ownership) का ज्ञान नहीं है ।

विनिमय-साध्य विलेख के आवश्यक लछण ( Essential characteristics )

1. लिखित
2. लिखने वाले के हस्ताक्षर
3. हस्तनान्तरण
4. स्वामित्व का परिवर्तन ( transfer of ownership)
5. सुद्ध अधिकार (good title)
6. वैधानिक स्वामित्व
7. सर्त रहित आदे श
8. मुद्रा मे भुगतान
9. दे य होना
10. प्रयोग

विनिमय-साध्य विलेख के प्रकार ( TYPE OF NEGOTIABLE INSTRUMENT )


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1. धनादे श या चेक (cheque):- “चेक एक प्रकार का विनिमय-पत्र है , जो किसी विशिष्ट बैंकर पर लिखा जाता
है तथा मांग पर ही दे य होता है । “
2. विनिमय-विपत्र (BILL OF EXCHANGE):- “ विनिमय बिल एक लिखित आदे श होता है , जिस पर लेखक
के लिखित हस्ताक्षर होते है , तथा जिसमे निश्चित व्यक्ति को यह आदे श होता है कि वह अमुक ( निश्चित)
व्यक्ति को अथवा उसके आदे शानुशर अथवा विलेख वाहक को एक निश्चित धनराशि का भुगतान करे ।“
3. प्रतिज्ञा-पत्र (PROMISSORY NOTE):- “ प्रतिज्ञा पत्र एक लिखित विलेख है ( जिसमे बैंक नोट अथवा
करन्सी नोट सामील नहीं है ) जिसमे सर्तहीन प्रतिज्ञा-पत्र लिखने वाला हस्ताक्षर करता है और किसी निश्चित
व्यक्ति अथवा उनके आदे शानुशार अथवा विलेक्स क वाहक को एक निश्चित राशि चुकाने का वचन दिया
जाता है ।“
4. हुण्डी (HUNDI):- हुण्डी विनिमय पत्र का एक भारतीय रूप है । यह भारतीय भाषा मे लिखी जाती है व इसमे
निश्चित राशि क भुगतान का आदे श होता है ।

DIFFERENCE BETWEEN CHAQUE, BILL OF EXCHANGE, PROMISSORY NOTE, & HUNDI


SR. BASIS CHAQUE BILL OF EXC PROMISSORY
NO. NOTE
1 लेखक यह दे नदार द्वारा लिखा जाता यह लेनदार अथवा प्राप्तकर्ता यह भि दे नदार द्वारा ही
है । द्वारा लिखा जाता है । लिखा जाता है ।
2 पक्षकार इसमे तीन पक्षकार- लेखक, इसमे तीन पक्षकार- लेखक, इसमे दो पक्षकार- लेखक,
दे नदार, व प्राप्तकर्ता होते है । दे नदार, व प्राप्तकर्ता होते है । व प्राप्तकर्ता होते है ।
3 लेख का चेक एक आदे श पत्र होता है । यह भी भग
ु तान का एक इसमें भग
ु तान करने वाला
स्वभाव आदे श पत्र होता है । ही भुगतान करने की
प्रतिज्ञा करता है ।
4 प्रपत्र का यह सदै व बैंक द्वारा छापे गये ईसका कोई निश्चित प्रारूप इसका भी कोई निश्चित
स्वरूप फॉर्म पर ही लिखा जा सकता नहीं है । प्रारूप नहीं है ।
है ।
5 रे खांकन चेक पर रे खांकन किया जा इसपे कोई रे खांकन नहीं इस पर रे खांकन नही
(crossing) सकता है । किया जा सकता है । किया जाता है ।
6 अनादरण की चेक अनादरण होने पर धारक इसके अनादरण होने पर इसमे अनादरण स्वयॅ
सच
ू ना। द्वारा लेखक को सच
ू ना दे ना सभी पछकारो को धारक लेखक ही कर्ता है ।
(DISHONOUR) अनिवार्य नही है , बैंक स्वत: ही द्वारा सूचित करना चाहिए।
यह कार्य करती है ।

धारक व यथाविधि धारक: (holder and holder in due course)


धारक (HOLDER)- धारक से आशय उस व्यक्ति से है , जिसके आधार पर मूल विलेख (instrument) रहता है ।
विनिमय साध्य विलेख की अधिनियम की धारा 8 के अनुशार –
“ किसी प्रतिज्ञा-पत्र, विनिमय विपत्र, अथवा चेक का धारक वह व्यक्ति है ,जो उसे अपने नाम मे उसे रखने तथा
संबन्धित पक्षकारों से उसकी राशि प्राप्त करने का अधिकारी हो। यदि ऐसा विनिमय पत्र खो जाता है तो उसका धारक
वही होगा, जो ऐसी हानि अथवा विनाश के समय उसका अधिकारी था। “

इस परिभाषा के अनश
ु ार धारक क लिए निम्न दो बाते आवश्यक है ।
1. लेखपत्र को अपने पास रखने का अधिकारी होना चाहिये।
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2. संबन्धित पक्षकारों से लेखपत्र की राशि वसल


ू करने का अधिकारी होना चाहिये।

यथाविधि धारक (HOLDER IN DUE COURSE)- यथाविधि धारक से अभिप्राय ऐसे व्यक्ति से है , जिसने विलेख
(instrument) को भुगतान तिथि क पूर्व उचित प्रतिफल के बदले इस विश्वास पर प्राप्त किया हो की दे ने वाले के
अधिकार मे कोई दोष नहीं था।

यथाविधि धारक के लिए निम्न सर्ते पूरी होना आवश्यक है ।


1) न्यायोचित प्रतिफल के बदले।
2) भग
ु तान तिथि के पर्व
ू ।
3) विश्वास एवॅम सद्भावना से।
4) विलेख पर अधिकार।
क्र॰ सं॰ अंतर का आधार धारक यथाविधि धारक
1. प्रतिफल इसमे प्रतिफल का होना अनिवार्य नही है । इसमे प्रतिफल का होना अनिवार्य है ।
2. आवश्यकता इसमे धारक को यथाविधिधारी होना यथाविधि धारी होने के लिए धारक होना
आवश्यक नहीं है । आवश्यक है ।
3. भुगतान तिथि से धारक होने के लिए आवश्यक नही की यथाविधिधरी होने के लिए आवश्यक है
पूर्व। विलेख को परिपक्वता से पूर्व प्राप्त किया की विलेख को परिपक्वता से पूर्व प्राप्त
जाए। किया जाए।
4. अधिकार इसमे धारक का अधिकार हस्तांतरक इसमे धारक का अधिकार हस्तांतरक
(transferor) से श्रेष्ट नहीं होता है । (transferor) से श्रेष्ट हो सकता है ।
5. विशेषाधिकार धारक को वो सब विशेषाधिकार प्राप्त नहीं इसे कई विशेषाधिकार प्राप्त है ।
होते , जो कि यथाविधि धारक को प्राप्त
होते है ।
6. अनादरण अनादरण हो जाने पर सदै व वाद (sue) अनादरण हो जाने पर हस्तांतरणकर्ता के
प्रस्तुत नहीं कर सकता है । विरुद्ध वाद (sue) प्रस्तुत कर सकता है ।
7. सद्भावना धारक बनने के लिए विलेख को सद्भावना यथाविधिधारक बनने के लिए विलेख को
से प्राप्त करना आवश्यक नही है । पूर्ण सद्भावना से प्राप्त करना आवश्यक
है ।

MOHAN
RAM
(HOLDER IN
(transferor)
DUE COURSE)

SHYAM
(holder)
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व्याख्या
1. उक्त परिस्थितियो मे श्याम ने कोई विलेख राम से प्राप्त किया है , अतः श्याम एक विलेख का धारक है ।
2. श्याम वह विलेख किसी वैधानिक प्रतिफल (consideration) के बदले मोहन को हस्तानतरित (transfer) कर
दे ता है ।
3. अतः मोहन एक यथाविधिधारक कहलाएगा। तथा सामान्य परिस्थितियो मे अपने प्रतिफल की राशि का
भुगतान वह राम से प्राप्त करने का अधिकारी है ।
4. किन्ही कारणो से अगर राम और श्याम के मध्य हुये लेन-दे न के जारी विलेख के भुगतान के लिए अब अगर
राम बाध्य नहीं है , तो ऐसी परिस्थितियो मे राम विलेख के राशि का भग
ु तान मोहन को करने के लिए बाध्य
नहीं होगा।
5. उक्त परिस्थितियो मे अगर मोहन ने अगर वह विलेख पूर्ण वैधानिक तरीके से श्याम से प्राप्त किया है व
श्याम उस विलेख का सद्ध
ु स्वामी नहीं था, फिर भी मोहन श्याम से विलेख के विरुद्ध राशि प्राप्त करने के
अधिकारी है ।
नोट- उक्त व्याख्या मात्र विध्यार्थियों को समझने के लिए की गयी है , इसका प्रयोग उदाहरण के तौर पर न करे ।

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