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1
ष म सं रण
त ात् योगी भवाजुन
वसुदेवसुतं(न्) दे वं(ङ् ), कंसचाणूरमदनम्।
दे वकीपरमान ं (ङ् ), कृ ं(व्ँ) व े जगद् गु म् ॥

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ॐ ीपरमा ने नम:
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' ी' को 'श+र


् ' पढ़ (' ी' नह )ं
ीम गव ीता
' ीम गव ीता' म दोन थान पर ' ' आधा एवं 'ग' पूरा पढ़
अथ ादशोऽ ायः
' ादशो( ) याय:' म 'शो' का उ ारण द घ कर ['ऽ' (अव ह) का उ ारण 'अ' नह कर]
अजुन उवाच

'अजुन' म 'न' पूरा पढ़ (आधा नह )ं


एवं(म्) सततयु ा ये, भ ा ां(म्) पयुपासते
ये चा रम ं (न्), तेषां(ङ् ) के योगिव माः 1
'ये' पढ◌़ ('ए' नह )ं , 'भ( ) ास्+ वाम् ' पढ़,
'पयु पासते' म 'र'् आधा पढ़ एवं 'य' प पढ़,
'चा( ) य ( ) र' म ' ' का उ ारण ' ष' कर ('छ' नह )ं
ीभगवानुवाच

म ावे मनो ये मां(न्), िन यु ा उपासते


या परयोपेता:(स्), ते मे यु तमा मताः 2
'ये' पढ़ ('ए' नह )ं , 'मताः' को 'मताहा' पढ़ ('मतह' या 'मतहा' नह )ं

Śrīmadbhagavadgītā - 12th Chapter - Bhaktiyoga geetapariwar.org ीम गव ीता - ादश अ ाय - भ योग 


ये रमिनद म्, अ ं(म्) पयुपासते
सव गमिच ं(ञ्) च, कूट थमचलं(न्) ुवम् 3
'ये' पढ़ ('ए' नह )ं , ' व( ) रम' म 'म' पूरा पढ़,
'सव( ) +गम च यञ ' पढ़, ' च यञ् ' म 'त्' आधा पढ़,
' ट( ) थमचलन्' म 'म' पूरा पढ़
सि य े य ामं(म्), सव समबु यः
ते ा ुव मामेव, सवभूतिहते रताः 4
'स य ( )म् +येि य' म तीन 'य' प कर, ' ा( ) व( )ि त' पढ़
ेशोऽिधकतर ेषाम्, अ ास चेतसाम्
अ ा िह गितदःु खं(न्), दे हव रवा ते 5
' े शो धकतर' म 'शो' द घ पढ़ ['ऽ' (अव ह) का उ ारण 'अ' नह ं कर],
' धकतर' म ' ध' व एवं 'क' पूरा पढ़, 'देहव( ) + भर' म ' भ' व एवं 'र' पूरा पढ़
ये तु सवािण कमािण, मिय स म राः
अन ेनैव योगेन, मां(न्) ाय उपासते 6
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'ये' पढ़ ('ए' नह )ं , 'म य' म ' य' व पढ़ (द घ नह )ं


'अन( ) ये+नैव' म 'ये' का उ ार प कर ('अन े' नह )ं

ात् योगी भवाजुन


तेषामहं (म्) समु ता, मृ ुसंसारसागरात्
भवािम निचरा ाथ, म ावेिशतचेतसाम् 7
'स ( ) +धता' पढ़, 'संसार' को 'स(व्ँ)सार' पढ़ ('स सार' नह )ं
म ेव मन आध , मिय बु ं (न्) िनवेशय
िनविस िस म ेव, अत ऊ (न्) न संशयः 8
'आधत्+ व' पढ़ ('आध व' नह )ं ,
' नव स( ) य स' पढ◌़ (' नव स य स' नह )ं
अथ िच ं(म्) समाधातुं(न्), न श ोिष मिय थरम्
अ ासयोगेन ततो, मािम ा ुं(न्) धन य 9
'श( ) ो ष' म ' ष' व पढ़, 'मा म ( ) छा( ) तुन्' पढ़
अ ासेऽ समथ ऽिस, म मपरमो भव
मदथमिप कमािण, कुव मवा िस 10
'अ ( ) यासे( ) य' म 'से' द घ पढ़ ['ऽ' (अव ह) का उ ारण 'अ' नह ं कर],
'म( ) कम+परमो' को एकसाथ पढ़े़ं (तोड़कर नह )ं ,
'परमो' म 'र' पूरा पढ़, 'वाप् + य स' पढ़ ('वा य स' नह )ं

Śrīmadbhagavadgītā - 12th Chapter - Bhaktiyoga geetapariwar.org ीम गव ीता - ादश अ ाय - भ योग 


अथैतद श ोऽिस, कतु(म्) म ोगमाि तः
सवकमफल ागं(न्), ततः (ख्) कु यता वान् 11
'अथै तद( ) यश( ) ो स' म 'तो' का द घ पढ़, 'म( ) +योग' पढ़
ेयो िह ानम ासाज्, ाना ानं(व्ँ) िविश ते
ाना मफल ाग:(स्), ागा ा रन रम् 12
' ान+म( ) यासाज्' पढ़, 'छा( )ि तर+न( ) तरम् ' म थम 'र' पूरा पढ़
अ े ा सवभूतानां(म्), मै ः (ख्) क ण एव च
िनममो िनरह ारः (स्), समदःु खसुखः मी 13
'सम ःख खः' एकसाथ पढ़
स ु ः (स्) सततं(य्ँ) योगी, यता ा ढिन यः
म िपतमनोबु :(र् ), यो म ः (स्) स मे ि यः 14
'म य पत' म ' प' व एवं 'त' पूरा पढ़ ['म य प ' या 'म यप त' नह ]ं,
'मनो+बु ( ) र'् पढ़ ('मनोरबु र'् नह )ं
य ा ोि जते लोको, लोका ोि जते च यः
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हषामषभयो े गै:(र् ), मु ो यः (स्) स च मे ि यः 15


'य ( ) मान्+नो' पढ़ ('य मानो' नह )ं


ात् योगी भवाजुन
अनपे ः (श्) शुिचद , उदासीनो गत थः
सवार प र ागी, यो म ः (स्) स मे ि यः 16
'शु चर'् पढ़ (' चर'् नह )ं , ' यथः' पढ◌़ (' यतः' नह )ं
यो न ित न े ि , न शोचित न का ित
शुभाशुभप र ागी, भ मा ः (स्) स मे ि यः 17
'शोच त' म ' त' व पढ़,
'शभाशभ'
ु ु म दोन 'श'ु व एवं 'भ' पूरा पढ़ ('ब' नह )ं
समः (श्) श ौ च िम े च, तथा मानापमानयोः
शीतो सुखदःु खेषु, समः (स्) स िवविजतः 18
'मानाप+मानयोहो' म 'प' पूरा पढ़
'शीतो( ) ण' म 'शी' द घ पढ़ (' शतो ण' या 'शीतोषण' नह )ं
तु िन ा ुितम नी, स ु ो येन केनिचत्
अिनकेतः (स्) थरमित:(र् ), भ मा े ि यो नरः 19
'ि थर' पढ़ ('इ ि तर' नह )ं एवं 'र' पूरा पढ़

Śrīmadbhagavadgītā - 12th Chapter - Bhaktiyoga geetapariwar.org ीम गव ीता - ादश अ ाय - भ योग 


ये तु ध ामृतिमदं (य्ँ), यथो ं(म्) पयुपासते
धाना म रमा, भ ा ेऽतीव मे ि याः 20
' धाना' म ' +द' है अतः ' +दधाना' पढ़,
'भ( ) ा( ) तेऽतीव' म 'ते' एवं 'ती' द घ पढ़

ॐत िदित ीम गव ीतासु उपिनष ु िव ायां(य्ँ) योगशा े


ीकृ ाजुनसंवादे भ योगो नाम ादशोऽ ाय:।।
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● िवसग के उ ार जहाँ (ख्) अथवा (फ्) िलखे गय ह, वह ख् अथवा फ् नही ं होते, उनका उ ारण 'ख्' या 'फ्' के जैसा िकया
जाता है ।
● संयु वण (दो ंजन वण के संयोग) से पहले वाले अ र पर आघात (ह ा सा जोर) दे कर पढ़ना चािहये। '॥' का िच आघात
को दशाने हे तु ेक आव क वण के ऊपर िकया गया है । ोक के नीचे उ ारण संकेत हे तु बगनी रं ग से आघात के वण
िलखे गये ह, इसका अथ यह नही ं िक इन वण को दो बार पढ़, ब इ े जोड़कर वहाँ ज़ोर दे कर इन वण का उ ारण
कर, यह ता य है ।
● यिद िकसी ंजन का र के साथ संयोग हो तो वह संयु वण नही होता इसिलये वहां आघात भी नही ं होगा। संयु वण से पूव
र पर ही आघात िदया जाता है िकसी ंजन या अनु ार पर नही।ं उदाहरण - 'वासुदेवं(व्ँ) जि यम्' म ' ' संयु होने पर भी
पूव म अनु ार होने से आघात नही ं आयेगा।
● कुछ थानो ं पर र के प ात् संयु वण होने पर भी अपवाद िनयम के कारण आघात नही ं िदये गये ह जैसे एक ही वण के दो बार
आने से, तीन ंजनो ं के संयु होने से, रफार (उपर र् ) या हकार आने पर आिद। िजन थानो ं पर आघात का िच नही ं वहाँ िबना
आघात के ही अ ास कर।

योगेशं(म्) स दान ं (व्ँ), वासुदेवं(व्ँ) जि यम्


धमसं थापकं(व्ँ) वीरं (ङ् ), कृ ं(व्ँ) व े जगद् गु म्

त ात् योगी भवाजुन


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गीता प रवार सा ह य का उपयोग कसी अ य थान पर करने हेतु पूवा म त आव यक है।


Śrīmadbhagavadgītā - 12th Chapter - Bhaktiyoga geetapariwar.org ीम गव ीता - ादश अ ाय - भ योग 

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