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ch12 Hi
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ष म सं रण
त ात् योगी भवाजुन
वसुदेवसुतं(न्) दे वं(ङ् ), कंसचाणूरमदनम्।
दे वकीपरमान ं (ङ् ), कृ ं(व्ँ) व े जगद् गु म् ॥
~
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ॐ ीपरमा ने नम:
ीम गव ीता
अथ ादशोऽ ाय:
अजुन उवाच
अ े ा सवभूतानां(म्), मै ः (ख्) क ण एव च
त
ात् योगी भवाजुन
िनममो िनरह ारः (स्), समदःु खसुखः मी 13
स ु ः (स्) सततं(य्ँ) योगी, यता ा ढिन यः
म िपतमनोबु :(र् ), यो म ः (स्) स मे ि यः 14
य ा ोि जते लोको, लोका ोि जते च यः
हषामषभयो े गै:(र् ), मु ो यः (स्) स च मे ि यः 15
अनपे ः (श्) शुिचद , उदासीनो गत थः
सवार प र ागी, यो म ः (स्) स मे ि यः 16
यो न ित न े ि , न शोचित न का ित
शुभाशुभप र ागी, भ मा ः (स्) स मे ि यः 17
समः (श्) श ौ च िम े च, तथा मानापमानयोः
शीतो सुखदःु खेषु, समः (स्) स िवविजतः 18
तु िन ा ुितम नी, स ु ो येन केनिचत्
अिनकेतः (स्) थरमित:(र् ), भ मा े ि यो नरः 19
ये तु ध ामृतिमदं (य्ँ), यथो ं(म्) पयुपासते
धाना म रमा, भ ा ेऽतीव मे ि याः 20
Śr madbhagavadg t - 12th Chapter - Bhaktiyoga geetapariwar.org ीम गव ीता - ादश अ ाय - भ योग
ॐत िदित ीम गव ीतासु उपिनष ु िव ायां(य्ँ) योगशा े
ीकृ ाजुनसंवादे भ योगो नाम ादशोऽ ाय:।।
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● िवसग के उ ार जहाँ (ख्) अथवा (फ्) िलखे गय ह, वह ख् अथवा फ् नही ं होते, उनका उ ारण 'ख्' या 'फ्' के जैसा िकया जाता है ।
● संयु वण (दो ंजन वण के संयोग) से पहले वाले अ र पर आघात (ह ा सा जोर) दे कर पढ़ना चािहये। '॥' का िच आघात को
दशाने हे तु िदया गया है ।
● कुछ थानो ं पर र के प ात् संयु वण होने पर भी अपवाद िनयम के कारण आघात नही ं िदये गये ह जैसे एक ही वण के दो बार आने
से, तीन ंजनो ं के संयु होने से, रफार (उपर र् ) या हकार आने पर आिद। िजन थानो ं पर आघात का िच नही ं वहाँ िबना आघात के ही
अ ास कर।