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Overview Summery of 7th Chapter
Overview Summery of 7th Chapter
प पा जाताय तो वे कपाणये ।
नमु य कृ य गीताऽमृत नमः ||
ॐअ न रा ना नशालाकया ।
च तं येन त गुरवे नमः ||
प्र
ज्ञा
प्रा
र्थ
न्न
रु
क्षु
न्मी
द्रा
ज्ञा
रि
लि
ति
मि
ष्णा
न्ध
स्मै
स्य
त्र
श्री
ज्ञा
त्रै
ञ्ज
दु
हे
ना
नमः ॐ पादाय कृ य भूतले ।
मते भ वेदांत न इ ना ने ।।
शेष शू -वादी पा श ता णे ।।
जय कृ चैत भु नंद ।
अ त गदाधर वास आ गौर भ वृ ।।
ह कृ ह कृ कृ कृ ह ह ।
ह राम ह राम राम राम ह ह ।।
श्री
नि
श्री
प्रा
रे
रे
र्वि
स्ते
र्थ
श्री
द्वै
ष्ण
क्ति
वि
रे
ष्ण
स्व
रे
न्य
ष्णु
ष्ण
दे
श्री
न्य
स्वा
प्र
ष्ण
श्चा
मि
ष्ण
नि
रे
त्य
ष्ण
त्या
दि
प्रे
ति
रे
दे
प्र
ष्ठा
रे
रि
मि
रे
रि
क्त
न्द
अ य7- न न योग
अवलोकन (छं द )
सा क - अनु प
ध्या
रे
श्लो
ज्ञा
वि
ज्ञा
ष्टु
छले अ य से स
थम छ: अ जीवा को अभौ क आ के प व त
या गया जो कार के यो रा आ -सा र को
हो सकता ।
छ अ य के अ यह कहा गया मन को कृ पर
एका करना ही स योग , से भ -योग (६.४७) कहा जाता
।
इस अ य से भगवान् कृ भ योग या को त प
से समझाना शु करते ।
पि
प्र
कि
प्रा
है
ठे
प्त
ग्र
ध्या
ध्या
है
ध्या
ध्या
रू
यों
है
वि
न्त
र्वो
में
भि
च्च
में
न्न
हैं
प्र
ष्ण
त्मा
स्प
है
म्ब
ष्ट
क्ति
जि
न्ध
गों
ति
क्ति
द्वा
की
है
प्र
कि
क्रि
त्मा
त्म
रू
क्षा
वि
त्का
में
स्तृ
ष्ण
र्णि
रू
mayyaasa>manaaÁ paqa- yaaogaM yauMjanmadaEayaÁ È
BagavadgaIta 7.1
AsaMSayaM samaga`M maaM yaqaa &asyaisa tcCRNau ÈÈ
( )पा !
}
यथा सम
म आस मना: तत्
असंशयं मां
मदा य: योगं यु न् णु
शृ
ज्ञा
हे
यि
स्य
श्र
र्थ
सि
ग्रं
क्त
ञ्ज
स
इदम्
नम्
नम्
अहम् ते अशेषत:
व } यत्
इह भूय: न अ त् त म्
अव ते
क्ष्या
वि
शि
ज्ञा
ज्ञा
ज्ञा
मि
ष्य
त्वा
न्य
ज्ञा
व्य
जो न खाने जा रहे है उसका
BagavadgaIta 7.2
गुणगान भगवानने या
भगवान जो न देने जा रहे है उसे
जानने के बाद कुछभी जानना बा
BagavadgaIta 7.3
न रहता तो र सब मनु उस
त को न जान लेते?
हीं
त्त्व
ज्ञा
क्यों
सि
ज्ञा
फि
हीं
कि
ष्य
की
manauYyaaNaaM सह षु kiScaVtit isawyao È
BagavadgaIta 7.3
yattamaip isawanaaM kiScanmaaM vaoi<a t<vatÁ ÈÈ
मनु णाम् सह षु क त् ये यत
}
BagavadgaIta 7.4
AhMkar [tIyaM mao iBannaa p`ÌitrYTQaa ÈÈ
1 भू : 2 आप:
मे अ धा
3 अनल: 4 वायु: इ
5 खम् 6 मन: इयम्
कृ :
7 बु : 8 अहङ्कार:
भि
प्र
द्धि
ति
मि
न्ना
ति
ष्ट
भगवानने अपनी ८ कृ के बारे
BagavadgaIta 7.4
बताया था
अभी इन दो कृ के रा भगवान
BagavadgaIta 7.6 यं कैसे सृ आ करते है यह
बता गे
प्र
स्व
ति
येँ
यों
ष्टि
प्र
ति
में
दि
यों
द्वा
etVaonaIina BaUtaina savaa-NaI%yaupQaarya È
BagavadgaIta 7.6
AhM Ì%snasya jagatÁ p`BavaÁ p`layastqaa ÈÈ
स
एत नी इ उपधारय
भूता
अहम् भव:
कृ जगत:
तथा लय:
ति
र्वा
त्स्न
द्यो
नि
णि
प्र
स्य
प्र
नि
अपनी परा और अपरा कृ के
BagavadgaIta 7.6 रा भगवान यं कैसे सृ आ
करते है
म
इदम् स म्
तम् } सू म गणा: इव
किं
त्त
यि
हे
त्रे
न्य
प्रो
णि
र्व
ञ्ज
चि
स्ति
कृ से अ व न है
BagavadgaIta 7.7 और यह स जगत सू म के
स श कृ ही रोया आ है।
}
ma<a evaoit tainvaiw na %vahM toYau to maiya ÈÈ
ये च सा का: भावा: तान् म : एव
एव ये राजसा: तामसा: च इ
अहम् तु तेषु न (अ )
ते म
ति
त्त्वि
यि
वि
त्त
द्धि
स्मि
भगवान कृ कैसे इस जगत के कारण है
BagavadgaIta 7.8-12 और जगत बनाये रखते है यह ५
व त या गया है ।
ए : परं अ यं मां
न अ जाना
भि
भ्य
भि
त्रि
र्वं
भि
व्य
ति
हि
गु से उ भा से स जगत्
BagavadgaIta 7.13 मो त आ इन गु से परे अ य प
मुझे न जानता है।
लोग आपको जान न सकते है और
BagavadgaIta 7.14 स उपाय से लोग ३ गु के भाव से छूट
सकते है?
त्रि
क्यों
कि
हि
णों
हीं
हु
त्प
न्न
णों
वों
णों
हीं
म्पू
व्य
र्ण
प्र
स्व
रू
dOvaI *yaoYaa gauNamayaI mama maayaa dur%yayaa È
BagavadgaIta 7.14
maamaova yao p`pVnto maayaamaotaM trint to ÈÈ
वी
एषा मम माया गुणमयी
र या
प्र
द्य
न्ति
न्ते
यह दैवी गुणमयी मेरी माया ब दु र
BagavadgaIta 7.14 है। पर जो मेरी शरण आते वे इस
माया को पार कर जाते ।
}
BagavadgaIta 7.15 maayayaap)t&anaa AasaurM BaavamaaiEataÁ ÈÈ
मूढा:
नराधमा: मां न
न:
मायया अप त ना: प
आसुरं भावम् आ ता:
प्र
दु
ष्कृ
द्य
ति
न्ते
हृ
ज्ञा
श्रि
दु करने वाले मनु मेरी
BagavadgaIta 7.15
शरण न लेते
तो र कौन आप शरण
BagavadgaIta 7.16
लेता है?
ष्कृ
फि
त्य
हीं
की
ष्य
catuiva-Qaa Bajanto maaM janaaÁ sauÌitnaao|jau-na È
BagavadgaIta 7.16
Aatao- ija&asaurqaa-qaI- &anaI ca BartYa-Ba ÈÈ
अ न! भरत भ!
आ :
चतु धा: सुकृ न: सु:
जना: मां भज अ
नी च
हे
जि
ज्ञा
र्था
र्त
ज्ञा
र्वि
र्जु
र्थी
न्ते
र्ष
ति
उ म क करनेवाले (सुकृ न:) आ ,
BagavadgaIta 7.16 अ , सु और नी ये चार
कारके मनु मेरी शरण लेते ।
इन च नी है इसका व न
BagavadgaIta 7.17
भगवान क गे।
प्र
त्त
र्था
र्थी
रों
र्म
में
जि
रें
ज्ञा
ष्य
ज्ञा
श्रे
ष्ठ
ज्ञा
ति
हैं
र्ण
र्त
toYaaM &anaI ina%yayau> ekBai>iva-iSaYyato È
BagavadgaIta 7.17
ip`yaao ih &ainanaao|%yaqa-ma\ AhM sa ca mama ip`yaÁ ÈÈ
}
यु :
तेषाम् नी ते
एकभ :
अहं न:
स: च मम य:
अ म् य:
ज्ञा
नि
त्य
त्य
हि
र्थ
क्ति
वि
क्त
ज्ञा
शि
प्रि
नि
प्रि
ष्य
४ कार के शरणाग , नी
BagavadgaIta 7.17
है इसका व न भगवान ने या ।
य नी है तो बा का
BagavadgaIta 7.18
?
क्या
दि
प्र
ज्ञा
र्ण
श्रे
ष्ठ
तों
में
कि
कि
ज्ञा
यों
श्रे
ष्ठ
]daraÁ sava- evaOto &anaI %vaa%maOva mao matma\ È
BagavadgaIta 7.18
AaisqatÁ sa ih yau>a%maa maamaovaanau<amaaM gaitma\ ÈÈ
एते स एव उदारा:
स: यु
नी तु आ
एव मे मतम् अनु मां ग माम्
एव आ त:
तिं
ज्ञा
हि
त्त
र्वे
स्थि
क्ता
त्मा
त्मा
३ कार के भ उदार है और नी
BagavadgaIta 7.18
है यह बताया गया है
ऐसे नी अथवा मी भ
BagavadgaIta 7.19
द ु भता बतायी गयी है
क्यों
र्ल
प्र
ज्ञा
श्रे
ष्ठ
क्त
प्रे
क्त
की
ज्ञा
bahunaaM janmanaamanto &anavaanmaaM p`pVto È
BagavadgaIta 7.19
vaasaudovaÁ sava-imait sa maha%maa saudula-BaÁ ÈÈ
ब नां ज नाम्
अ माम्
नवान्
प ते } वासु व:
स म् इ
स महा सु भ:
ज्ञा
हू
र्व
न्ते
दे
प्र
त्मा
ति
द्य
न्म
दु
र्ल
जो भगवान मह को समझकर
BagavadgaIta 7.16 sao 19 भगवान शरण लेते ऐसे भ का
व न या
}
तै: तै: कामै: त ना:
अ वता:
या कृ यता:
प
तम् तम् यमम् आ य
स्व
प्र
न्य
द्य
दे
न्ते
प्र
नि
त्या
हृ
नि
ज्ञा
स्था
yaao yaao yaaM yaaM tnauM Ba>Á Eawyaaica-tuimacCit È
BagavadgaIta 7.21
tsya tsyaacalaaM EawaM tamaova ivadQaamyahma\ ÈÈ
वयज: वान् या
म : अ माम् या
दे
द्भ
ल्प
ति
क्ता
दे
न्त
पि
न्ति
न्ति
अ बु वाले मनु को देवता
आराधनाका फल नाशवान ही लता है।
BagavadgaIta 7.23
देवता का पूजन करनेवाले देवता को
होते और कृ के भ उ ही होते ।
य देवता उपासनाका फल सी त
BagavadgaIta 7.24 और अ वाला होता है, र भी मनु उस
उलझ जाते , भगवान न लगते ?
क्यों
द्य
ल्प
पि
हैं
ओं
द्धि
न्त
ओं
ष्ण
की
हैं
ष्यों
क्त
फि
न्हें
में
मि
ओं
क्यों
प्रा
ओं
की
प्त
ष्य
हीं
प्रा
मि
प्त
में
हैं
Avya>M vyai>maapnnaM manyanto maamabauwyaÁ È
BagavadgaIta 7.24
prM Baavamajaanantao mamaavyayamanau<amama\ ÈÈ
}
अबु य:
अ यं
मम अनु मं अजान :
परम् भावम्
अ म् म् आप म् माम् म
व्य
व्य
त्त
द्ध
क्त
न्त
व्य
क्ति
न्न
न्य
न्ते
बु हीन मनु मेरे स म, अ नाशी,
BagavadgaIta 7.24 परमभावको न जानते ए मनु तरह ही
शरीर धारण करनेवाला मानते ।
अजम् अ यं मां न
अयं मू : लोक:
अ जाना
भि
र्व
ढ़
स्य
व्य
ति
प्र
अपनी योगमाया से आवृ सबको
BagavadgaIta 7.25
न होता
}
अ न!
समतीता
व माना च अहं वेद
भ च भूता
मां तु न क न वेद
हे
र्त
वि
ष्या
र्जु
णि
नि
नि
श्च
नि
पू तीत ए और व मान त
तथा भ होने वाले भूतमा को
BagavadgaIta 7.26
जानता पर मुझे कोई भी पु ष न
जानता
भगवान को न जानने मु कारण
BagavadgaIta 7.27
है?
र्व
में
व्य
वि
हूँ
हैं
ष्य
न्तु
में
हु
में
र्त
ख्य
रु
में
त्र
स्थि
क्या
हीं
मैं
[cCaWoYasamau%qaona WnWmaaohona Baart È
BagavadgaIta 7.27
sava-BaUtaina sammaaohM sagao- yaaint prntp ÈÈ
भारत! पर प
इ षसमु न स स भूता
मो न संमोहम् या
हे
द्व
च्छा
न्द्व
र्गे
द्वे
र्व
हे
न्ति
न्त
नि
त्थे
भगवान को न जानने मु कारण -
BagavadgaIta 7.27
इ और ष से उ मोह
स कार जीव इ और ष के
BagavadgaIta 7.28 से मु होकर कृ का भजन
कर सकता है?
कि
द्व
च्छा
न्द्व
प्र
क्त
द्वे
च्छा
श्री
त्प
में
न्न
ष्ण
ख्य
द्व
न्द्व
द्वे
yaoYaaM %vantgatM papM janaanaaM puNyakma-Naama\ È
BagavadgaIta 7.28
to WnWmaaohinamau->a Bajanto maaM dRZva`taÁ ÈÈ
पु क णां जनानां
येषां तु
पापं अ गतं
}
मोह :
ते मां भज
ढ ता:
द्व
दृ
न्द्व
ण्य
व्र
न्त
र्म
न्ते
नि
र्मु
क्ता
न पु क मनु के पाप न गये
BagavadgaIta 7.28 वे मोहसे र त ए मनु ती
होकर मेरा भजन करते
}
तत्
ते कृ म् अ म् :
अ लम् क च
वि
खि
त्स्न
दु
ब्र
ह्म
ध्या
श्रि
क्षा
र्म
त्य
त्म
न्ति
इस कार मेरे भजन करने से वे जो
BagavadgaIta 7.29 जाननेयो है वह सब जानकर कृता
हो जाते
}
p`yaaNakalao|ip ca maaM to ivaduya-u>caotsaÁ ÈÈ
सा भूतं
ये सा वं मां :
सा य च
याणकाले अ
ते च यु चेतस:
मां :
प्र
धि
धि
धि
वि
वि
दै
क्त
दु
दु
ज्ञं
पि
BagavadgaIta 7.29-30
क योगी और नयोगी भी ज -मृ से मु होते ।
भगवान के भ ज -मृ से मु होने के साथ साथ भगवान
के सम पकोभी जानते । क योग और नयोग
रंभसेही अपनी साधना होती भ योग
भ रंभसेही भगव होता । भगव होनेसे
भगवान ही कृपा करके अपने सम पका न करते ।
में
में
र्म
प्रा
क्त
ग्र
प्रा
रू
क्त
ज्ञा
न्म
न्नि
त्यु
है
ष्ठ
में
नि
न्म
क्यों
क्त
ष्ठा
ग्र
कि
रू
त्यु
है
र्म
है
ज्ञा
क्त
न्नि
कि
ष्ठ
न्तु
है
क्ति
ज्ञा
है
कि
न्तु
म स मना: पा जरामरणमो य
योगं यु न् मदा य: । मामा यत ये ।
असंशयं सम मां ते त : कृ म
यथा त णु ॥ अ क चा लम् ॥
भगवद गीता 7.1 भगवद गीता 7.29
च्छृ
य्या
ध्या
ब्र
ह्म
श्रि
ज्ञा
त्मं
ञ्ज
क्त
त्य
स्य
द्वि
सि
र्म
क्षा
ग्रं
दु
न्ति
त्स्न
खि
श्र
र्थ
म स मना: पा सा भूता वं मां
योगं यु न् मदा य: । सा य च ये :।
असंशयं सम मां याणकालेऽ च मां
यथा त णु ॥ ते : यु चेतस: ॥
भगवद गीता 7.1 भगवद गीता 7.30
च्छृ
प्र
य्या
वि
धि
धि
ज्ञा
दु
ञ्ज
ज्ञं
क्त
स्य
धि
क्त
सि
दै
ग्रं
पि
वि
श्र
र्थ
दु
अ य7- न न योग
अवलोकन (सारांश )
क 1-3: भगवान कृ के बा न म मा
क 4-12: भगवान कृ श का न
क 13-19: भगवान कृ के शरणाग
क 20-25: वताओं पूजा और राकारवाद
क 26-30: माया के म से कृ भ ओर
श्लो
श्लो
श्लो
श्लो
श्लो
ध्या
ज्ञा
दे
वि
ष्ण
ष्ण
ज्ञा
भ्र
की
ष्ण
की
रे
प्र
ष्ण
क्ति
में
ति
ज्ञा
की
यों
नि
की
क्ति
ति
ज्ञा
हि
की
अ य7- न न योग
H.E.A.D
अवलोकन (सारांश )
H- Hearing (1-3)
E- Everywhere (4-12)
A- Accept or Reject (13-19)
D- Devata (20-30)
ध्या
ज्ञा
वि
ज्ञा