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ना

प पा जाताय तो वे कपाणये ।
नमु य कृ य गीताऽमृत नमः ||

ॐअ न रा ना नशालाकया ।
च तं येन त गुरवे नमः ||
प्र
ज्ञा
प्रा
र्थ
न्न
रु
क्षु
न्मी
द्रा
ज्ञा
रि
लि
ति
मि
ष्णा
न्ध
स्मै
स्य
त्र
श्री
ज्ञा
त्रै
ञ्ज
दु
हे

ना
नमः ॐ पादाय कृ य भूतले ।

मते भ वेदांत न इ ना ने ।।

नम सार ते वे गौर वाणी चा णे ।

शेष शू -वादी पा श ता णे ।।

जय कृ चैत भु नंद ।
अ त गदाधर वास आ गौर भ वृ ।।

ह कृ ह कृ कृ कृ ह ह ।
ह राम ह राम राम राम ह ह ।।
श्री
नि
श्री
प्रा
रे
रे
र्वि
स्ते
र्थ
श्री
द्वै
ष्ण
क्ति
वि
रे
ष्ण
स्व
रे
न्य
ष्णु
ष्ण
दे
श्री
न्य
स्वा
प्र
ष्ण
श्चा
मि
ष्ण
नि
रे
त्य
ष्ण
त्या
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रे
दे
प्र
ष्ठा
रे
रि
मि

रे
रि
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न्द
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BagavadgaIta 7.28 to WnWmaaohinamau->a Bajanto maaM dRZva`taÁ ÈÈ
पु क णां जनानां
येषां तु
पापं अ गतं

}
मोह :
ते मां भज
ढ ता:
द्व
दृ
न्द्व
ण्य
व्र
न्त
र्म
न्ते
नि
र्मु
क्ता
येषां तु

पर न पु का
न्तु
जि
रु
षों
येषां तु
छले क कृ ने ऐसे लो बात कही
थी जो इ तथा ष से उ मोह के वश आकर
कृ का भजन न करते , पर अब इस क
कृ ऐसे लो बात कर र जो इ
तथा ष के से मु होकर कृ का भजन
करते ।
पि
श्री
में
श्री
ष्ण
द्वे
हैं
श्लो
ष्ण
च्छा
द्व
न्द्व
में
श्री
द्वे
गों
हीं
क्त
की
ष्ण
त्प
न्न
हैं
श्री
न्तु
गों
हे
ष्ण
हैं
की
में
च्छा
श्लो
पु क णां जनानां

पु क पु का
ण्य
ण्य
र्म
र्मी
रु
षों
पु क णां जनानां
न मनु ने अपनेको तो भगव ही करनी इस
उ को पहचान या अ त् नको उ यह
आ गयी यह मनु शरीर भोग भोगनेके ये
न त भगवान कृपासे केवल उन के
ये ही ला ऐसा नका य हो गया वे
मनु ही पु क ।
जि
स्मृ
लि
द्दे
हीं
ण्य
श्य
ति
ष्य
है
प्र
र्म
ष्यों
मि
त्यु
ण्य
है
है
र्मा
कि
लि
हैं
की
जि
है
ष्य
र्था
दृ
त्प्रा
ढ़
जि
नि
प्ति
श्च
की
द्दे
श्य
प्रा
की
प्ति
है
है
लि
पु क णां जनानां
यं न योगेन सा न
दान ततपोऽ : ।
यस सै:
याद् य वान ॥
- मद भागवतम 11.12.9
व्या
प्रा
श्री
ण्य
प्नु
ख्या
व्र
र्म
स्वा
ध्या
त्न
ध्व
ङ्ख्ये
रै
पि
न्न्या
पु क णां जनानां
पु क पाप आं क प से न हो जाते

आस
स धानता और तमो का स
काम होना

भ से स पा से
भ के संग का सुअवसर
मु
क्ति
क्ति
क्तों
ण्य
ण्य
त्व
क्ति
की
शि
र्म
प्र
र्म
म्पू
रू
र्ण
पों
ष्ट
ह्रा
हैं
पापं अ गतं

न मनु के पाप न गये


जि
न्त
ष्यों
ष्ट
पापं अ गतं

Qama-

tpÁ SaaOcaM dyaa sa%yaM


न्त
पापं अ गतं
नशापान चार मांसाहार जुआ

tpÁ SaaOcaM dyaa sa%yaM


व्य
भि
न्त
द्व
द्व
न्द्व
न्द्व
नि
र्मु
क्ता
वे
हि
ते

हु
मोह

ष्य
:

मोहसे र त ए मनु
ते मोह :

मनु का एक ही पारमा क उ हो
जाय तो पारमा क और सांसा क सभी
ट जाते ।
द्व
न्द्व
द्व
ष्य
न्द्व
मि
नि
र्मु
क्ता
र्थि
हैं
र्थि
द्दे
रि
श्य
त्रै
नि
द्व
र्द्व
ण्य
न्द्व
न्द्वो
वि
गु
नि
नि
त्य
र्मु
क्ता
त्त्व

ते

स्थो
नि
स्त्रै
षया वेदा

नि
मोह

र्यो
ण्यो
गु

क्षे
:

र्जु
त्म
भवा न ।

- भगवद गीता 2.45


ग म आ वान् ॥
नि
द्व
र्ग
न्द्वै
च्छ
द्व
ध्या
र्मा
न्द्व
र्वि
न्त्य
त्म
क्ता
नि

नि
र्मु
त्या
जि
क्ता
वि
ते

नि
व्य
दु
नमोहा

त्त
मोह

ज्ञै
:
तसङ्गदोषा

मु : सुख :खसं -
मूढा: पदम यं तत् ॥
वृ कामा: ।

- भगवद गीता 15.5


भज मां ढ ता:

ती होकर मेरा भजन करते


दृ
ढ़
व्र
न्ते
दृ
व्र
हैं
भज मां ढ ता:

ती कहनेका ता ह तो
केवल भगवान तरफ ही चलना
हमारा और कोई ल ही न
दृ
ढ़
व्र
न्ते
दृ
व्र
की
क्ष्य
त्प
र्य
है
है
कि
हीं
में
है
भज मां ढ ता:

चा तनी ही बाधा न आये एक भ


कृ का भजन न छोड़ते
श्री
हे
न्ते
कि
ष्ण
दृ
व्र
हीं
यें
हैं
क्त
न्ते
भज मां ढ ता:

दृ
व्र
छले क से स
न पु क मनु के पाप न गये
BagavadgaIta 7.28 वे मोहसे र त ए मनु ती
होकर मेरा भजन करते

इस कार मेरे भजन करने से वे जो


BagavadgaIta 7.29 जाननेयो है वह सब जानकर कृता
हो जाते
पि
जि
द्व
न्द्व
प्र
ण्य
हैं
ग्य
श्लो
र्मा
हि
ष्यों
हु
हैं
ष्य
म्ब
दृ
न्ध
ढ़
ष्ट
व्र
र्थ
हैं
BagavadgaIta 7.29
jaramarNamaaoxaaya
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पद भाग और स
जरामरणमो य, माम्, आ , यत , ये, ते,
, तत्, :, कृ म्, अ म्, क , च,
अ लम्
ब्र
ह्म
खि
वि
वि
क्षा
दु
न्धि
त्स्न
श्रि
ध्या
त्य
त्म
न्ति
र्म
jaramarNamaaoxaaya maamaaiEa%ya yatint yao È
अ य to ba`*ma tiWduÁ Ì%snama\ AQyaa%maM kma- caaiKlama\ ÈÈ
जरामरणमो य ये माम् आ यत

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तत्
ते कृ म् अ म् :
अ लम् क च
वि
खि
त्स्न
न्व
दु
ब्र
 
ह्म
ध्या
श्रि
क्षा
र्म
त्य
त्म
न्ति
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अनुवाद
to ba`*ma tiWduÁ Ì%snama\ AQyaa%maM kma- caaiKlama\ ÈÈ

जो जरा तथा मृ से मु पाने के ए य शील


रहते , वे बु मान मेरी भ शरण
हण करते । वे वा व वे
क के षय पूरी तरह से जानते ।
ग्र
र्मों
हैं
वि
हैं
द्धि
में
त्यु
व्य
स्त
क्ति
क्ति
में
ब्र
ह्म
हैं
क्ति
क्यों
लि
हैं
की
कि
त्न
दि
व्य
जरामरणमो य

जरा और मरणसे मो
क्षा
पानेके ये

क्ष
लि
जरामरणमो य

७. १६ भगवानने ३ सकाम भ का
व न या था। इस क वे चौथे
कार के सकाम भ (मो कामी) का
व न कर र ।
प्र
र्ण
र्ण
कि
में
क्षा
हे
हैं
क्त
श्लो
क्ष
में
क्तों
जरामरणमो य

इ या षु वैरा मनहङ्कार एव च ।
ज मृ जरा :खदोषानुद नम् ॥ 
- भगवद गीता 13.9
न्द्रि
न्म
त्यु
र्थे
क्षा
व्या
ग्य
धि
दु
र्श
ये माम् आ यत

जो मेरा आ य लेकर य करते


श्रि
त्य
श्र
न्ति
त्न
ये माम् आ यत
यहाँ आ य लेना और य करना इन दो बा को
कहनेका ता मनु अगर यं य करता
तो अ मान आता ने ऐसा कर या और अगर
यं य न करके भगवानके आ यसे सब कुछ हो
जायगा ऐसा मानता तो वह आल और माद लग
जाता । इस ये यहाँ दो बा बता ।
स्व
भि
है
त्न
श्र
श्रि
त्प
लि
र्य
त्य
है
है
कि
है
कि
न्ति
त्न
मैं
ष्य
तें
श्र
स्य
स्व
यीं
लि
हैं
त्न
तों
प्र
में
है
प्रा
प्त
ब्र
व्यं
ह्म
ब्र
ह्म
वि
दु
 
वे उस
(
ते तत्

हैं
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को जान जाते
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ह्म
ब्र
ब्र
ह्म
ब्र
ह्म
ह्म
वि
अहम्
दु
 
ते तत्
:

तत्
त्स्न
म्पू
र्ण
ध्या
वे स
ध्या
त्म
ते कृ

त्म

वि
दु
 
म् अ
म्
:

हैं
को जान जाते
ते कृ म् अ म् :

शु आ का प जो भौ क शरीर
से उसे जानना
द्ध
भि
त्स्न
न्न
त्मा
है
ध्या
त्म
स्व
वि
रू
दु
 
ति
ते अ लम् क च :

वे स क को भी जान जाते
खि
म्पू
र्ण
र्म
र्म
वि
दु
 
हैं
ते अ लम् क च :

वे स क के वा क त को जान
जाते अ त् सृ रचना होती ,
कैसे होती , और भगवान कैसे करते
इसको भी वे जान जाते ।
खि
म्पू
हैं
र्ण
र्था
है
र्म
र्मों
वि
ष्टि
दु
की
स्त
 
वि
हैं
क्यों
त्त्व
हैं
है
ते अ लम् क च :

तद्-साधन-भूतम् अ लम् (रह म्) क


जान
खि
न्ति
र्म
वि
खि
दु
 
स्य
र्म
तत् सा
कृ म् अ म् साधक

अ लम् क च साधन
खि
त्स्न
ध्य
ब्र
ह्म
ध्या
र्म
त्म
BagavadgaIta 7.29 jaramarNamaaoxaaya maamaaiEa%ya yatint yao È
to ba`*ma tiWduÁ Ì%snama\ AQyaa%maM kma- caaiKlama\ ÈÈ
जरामरणमो य ये माम् आ यत

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तत्
ते कृ म् अ म् :
अ लम् क च
वि
खि
त्स्न
दु
ब्र
 
ह्म
ध्या
श्रि
क्षा
र्म
त्य
त्म
न्ति

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