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BG 7.30 Notes
BG 7.30 Notes
प पा जाताय तो वे कपाणये ।
नमु य कृ य गीताऽमृत नमः ||
ॐअ न रा ना नशालाकया ।
च तं येन त गुरवे नमः ||
प्र
ज्ञा
प्रा
र्थ
न्न
रु
क्षु
न्मी
द्रा
ज्ञा
रि
लि
ति
मि
ष्णा
न्ध
स्मै
स्य
त्र
श्री
ज्ञा
त्रै
ञ्ज
दु
हे
ना
नमः ॐ पादाय कृ य भूतले ।
मते भ वेदांत न इ ना ने ।।
शेष शू -वादी पा श ता णे ।।
जय कृ चैत भु नंद ।
अ त गदाधर वास आ गौर भ वृ ।।
ह कृ ह कृ कृ कृ ह ह ।
ह राम ह राम राम राम ह ह ।।
श्री
नि
श्री
प्रा
रे
रे
र्वि
स्ते
र्थ
श्री
द्वै
ष्ण
क्ति
वि
रे
ष्ण
स्व
रे
न्य
ष्णु
ष्ण
दे
श्री
न्य
स्वा
प्र
ष्ण
श्चा
मि
ष्ण
नि
रे
त्य
ष्ण
त्या
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रे
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प्र
ष्ठा
रे
रि
मि
रे
रि
क्त
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BagavadgaIta 7.29 to ba`*ma tiWduÁ Ì%snama\ AQyaa%maM kma- caaiKlama\ ÈÈ
जरामरणमो य ये माम् आ यत
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तत्
ते कृ म् अ म् :
अ लम् क च
वि
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त्स्न
दु
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र्म
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जरामरणमो य
जरा और मरणसे मो
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पानेके ये
क्ष
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जरामरणमो य
७. १६ भगवानने ३ सकाम भ का
व न या था। इस क वे चौथे
कार के सकाम भ (मो कामी) का
व न कर र ।
प्र
र्ण
र्ण
कि
में
क्षा
हे
हैं
क्त
श्लो
क्ष
में
क्तों
जरामरणमो य
इ या षु वैरा मनहङ्कार एव च ।
ज मृ जरा :खदोषानुद नम् ॥
- भगवद गीता 13.9
न्द्रि
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त्यु
र्थे
क्षा
व्या
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ये माम् आ यत
हैं
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को जान जाते
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ध्या
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त्म
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वि
दु
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म्
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हैं
को जान जाते
ते कृ म् अ म् :
शु आ का प जो भौ क शरीर
से उसे जानना
द्ध
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त्स्न
न्न
त्मा
है
ध्या
त्म
स्व
वि
रू
दु
ति
ते अ लम् क च :
वे स क को भी जान जाते
खि
म्पू
र्ण
र्म
र्म
वि
दु
हैं
ते अ लम् क च :
वे स क के वा क त को जान
जाते अ त् सृ रचना होती ,
कैसे होती , और भगवान कैसे करते
इसको भी वे जान जाते ।
खि
म्पू
हैं
र्ण
र्था
है
र्म
र्मों
वि
ष्टि
दु
की
स्त
वि
हैं
क्यों
त्त्व
हैं
है
ते अ लम् क च :
अ लम् क च साधन
खि
त्स्न
ध्य
ब्र
ह्म
ध्या
र्म
त्म
छले क से स
इस कार मेरे भजन करने से वे जो
BagavadgaIta 7.29 जाननेयो है वह सब जानकर कृता
हो जाते
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पद भाग और स
स, अ भूता वम्, माम्, स, अ य म्, च, ये,
:, याणकाले, अ , च, माम्, ते, :,
यु चेतस:
वि
क्त
वि
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अ य
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सा भूतं
ये सा वं मां :
सा य च
याणकाले अ
ते च यु चेतस:
मां :
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क्त
दु
दु
ज्ञं
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अनुवाद
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अ भूत नाम भौ क ल सृ का
स तमोगुण धानता
जि
धि
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में
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ये सा वं मां :
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ष्णु
अ य नाम भगवान्
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ये सा य मां
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धानता
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दि
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अ भूत (अन
) आ सभी
)अ व
भगवान के राट प
जी) और अ य
कृ ही सम भगवान्
प वां व व
स था भूत शेषसङ्घान् ।
णमीशं कमलासन -
मृ स नुरगां न् ॥
- भगवद गीता 11.15
ब्र
श्री
श्या
षीं
ह्मा
र्वां
ष्ण
श्च
स्त
मि
दे
र्वा
ग्र
स्त
वि
श्च
दे
हैं
दि
दे
स्थ
हे
व्या
ते च यु चेतस:
वे यु वाले पु ष
क्त
क्त
चि
त्त
रु
ते च यु चेतस:
जो संसारके भो और सं ह -
अ समान रहनेवाले तथा संसारसे
स था उपरत होकर भगवान लगे ए वे
पु ष यु चेता
रु
र्व
प्रा
प्ति
क्त
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में
गों
हैं
ग्र
हैं
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हु
प्ति
हैं
याणकाले अ मां :
इस अ य समा भगवान् इस
घोषणा के साथ होती जो पु ष मुझे
जानता वह सब कुछ जानता ।
ध्या
है
की
प्ति
है
कि
है
की
रु
BagavadgaIta 7.29-30
क योगी और नयोगी भी ज -मृ से मु होते ।
भगवान के भ ज -मृ से मु होने के साथ साथ भगवान
के सम पकोभी जानते । क योग और नयोग
रंभसेही अपनी साधना होती भ योग
भ रंभसेही भगव होता । भगव होनेसे
भगवान ही कृपा करके अपने सम पका न करते ।
में
में
र्म
प्रा
क्त
ग्र
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रू
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ज्ञा
न्म
न्नि
त्यु
है
ष्ठ
में
नि
न्म
क्यों
क्त
ष्ठा
ग्र
कि
रू
त्यु
है
र्म
है
ज्ञा
क्त
न्नि
कि
ष्ठ
न्तु
है
क्ति
ज्ञा
है
कि
न्तु
मनु णां सह षु
क त ये ।
यतताम नां
क वे त त: ॥
- भगवद गीता 7.3
श्चि
श्चि
ष्या
द्य
न्मां
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ति
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त्ति
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द्धा
स्रे
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BagavadgaIta 7.29-30
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सा भूतं
ये सा वं मां :
सा य च
याणकाले अ
ते च यु चेतस:
मां :
प्र
धि
धि
धि
वि
वि
दै
क्त
दु
दु
ज्ञं
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