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अशोच्मानन्वशोचस्त्वं प्रऻावादांश्च बाषसे।

गतासन
ू गतासंश्ू च नानश
ु ोचन्न्त ऩन्डडता्॥२-११॥
तभ
ु शोक न कयने मोग्म भनष्ु मों के लरए शोक कयते हो औय ऩन्डडतों जैसी फात बी कयते हो, ऩयन्तु
फुद्धधभान रोग न्जनके प्राण चरे गए हैं, उनके लरए औय न्जनके प्राण नह ं गए हैं उनके लरए शोक नह ं
कयते हैं॥11॥

न ्वेवाहं जातु नासं न ्वं नेभे जनाधधऩा्।


न चैव न बववष्माभ् सवे वमभत् ऩयभ ्॥२-१२॥
न तो ऐसा ह है कक भैं ककसी कार भें नह ं था, तुभ नह ं थे अथवा मे याजा रोग नह ं थे औय न ऐसा ह है कक
इससे आगे हभ सफ नह ं यहें गे॥12॥

दे हहनोऽन्स्तभन्मथा दे हे कौभायं मौवनं जया।


तथा दे हान्तयप्रान्तत धीयस्ततत्र न भुह्मतत॥२-१३॥
जैसे इस शय य भें जीवा्भा को कुभाय, मुवा औय वद्
ृ धावस्तथा प्रातत होती है , वैसे ह अन्म शय य की प्रान्तत
बी होती है , इस ववषम भें धीय ऩुरुष भोहहत नह ं होता(शोक नह ं कयता)॥13॥

भात्रास्तऩशाास्ततु कौन्तेम शीतोष्णसुखद्ु खदा्।


आगभाऩातमनोऽतन्मा स्ततांन्स्ततततऺस्तव बायत॥२-१४॥
हे कंु तीऩुत्र! सदी-गभी औय सुख-द्ु ख को दे ने वारे इन्न्िम औय ववषमों के संमोग तो उ्ऩवि-
ववनाशशीर औय अतन्म हैं, इसलरए हे बायत! तभ
ु उनको सहन कयो॥14॥

मं हह न व्मथमन््मेते ऩुरुषं ऩुरुषषाब।


सभद्ु खसुखं धीयं सोऽभत
ृ ्वाम कल्ऩते॥२-१५॥
क्मोंकक हे ऩुरुषश्रेष्ठ! द्ु ख-सुख को सभान सभझने वारे न्जस धीय ऩुरुष को मे इन्न्िम औय ववषमों के
संमोग व्माकुर नह ं कयते, वह भोऺ के मोग्म हो जाता है ॥15॥

नासतो ववद्मते बावो नाबावो ववद्मते सत्।


उबमोयवऩ दृष्टोऽन्त स्त्वनमोस्तत्वदलशालब्॥२-१६॥
असत ् वस्ततु की तो सिा नह ं है औय सत ् का अबाव नह ं है । इस प्रकाय इन दोनों का ह तत्त्व तत्त्व ऻानी
ऩुरुषों द्वाया दे खा गमा है ॥16॥
अववनालश तु तद्ववद्धध मेन सवालभदं ततभ ्।
ववनाशभव्ममस्तमास्तम न कन्श्च्कतभ
ुा हातत॥२-१७॥
नाशयहहत तो तुभ उसको जानो, न्जससे मह सम्ऩूणा दृश्म जगत ् व्मातत है । इस अववनाशी का ववनाश कयने
भें कोई बी सभथा नह ं है ॥17॥

अन्तवन्त इभे दे हा तन्मस्तमोक्ता् शय रयण्।


अनालशनोऽप्रभेमस्तम तस्तभाद्मुध्मस्तव बायत॥२-१८॥
इस नाशयहहत, अप्रभेम, तन्मस्तवरूऩ जीवा्भा के मे सफ शय य नाशवान कहे गए हैं, इसलरए हे
बयतवंशी अजन
ु ा ! तभ
ु मद्
ु ध कयो॥18॥

म एनं वेवि हन्तायं मश्चैनं भन्मते हतभ ्।


उबौ तौ न ववजानीतो नामं हन्न्त न हन्मते॥२-१९॥
जो इस आ्भा को भायने वारा सभझता है औय जो इसको भया हुआ भानता है , वे दोनों ह नह ं जानते
क्मोंकक मह आ्भा वास्ततव भें न तो ककसी को भायता है औय न ककसी द्वाया भाया ह जाता है ॥19॥

न जामते लिमते वा कदाधच न्नामं बू्वा बववता वा न बूम्।


अजो तन्म् शाश्वतोऽमं ऩुयाणो न हन्मते हन्मभाने शय ये ॥२-२०॥
मह आ्भा ककसी कार भें बी न तो जन्भता है औय न भयता ह है तथा न मह उ्ऩन्न होकय
कपय न होने वारा ह है क्मोंकक मह अजन्भा, तन्म, सनातन औय ऩुयातन है , शय य के भाये
जाने ऩय बी मह भाया नह ं जाता॥20॥
वेदाववनालशनं तन्मं म एनभजभव्ममभ ्।
कथं स ऩरु
ु ष् ऩाथा कं घातमतत हन्न्त कभ ्॥२-२१॥

वासांलस जीणाातन मथा ववहाम नवातन गह्


ृ णातत नयोऽऩयाणण।
तथा शय याणण ववहाम जीणाा न्मन्मातन संमातत नवातन दे ह ॥२-२२॥

नैनं तिन्दन्न्त शस्तत्राणण नैनं दहतत ऩावक्।


न चैनं क्रेदमन््माऩो न शोषमतत भारुत्॥२-२३॥

अच्िे द्मोऽमभदाह्मोऽमभ क्रेद्मोऽशोष्म एव च।


तन्म् सवागत् स्तथाणुयचरोऽमं सनातन् ॥२-२४॥

अव्मक्तोऽमभधचन््मोऽमभ ववकामोऽमभच्
ु मते।
तस्तभादे वं ववहद्वैनं नानश
ु ोधचतभ
ु हालस॥२-२५॥

अथ चैनं तन्मजातं तन्मं वा भन्मसे भत


ृ भ ्।
तथावऩ ्वं भहाफाहो नैवं शोधचतभ
ु हालस॥२-२६॥

जातस्तत हह ध्रव
ु ो भ्ृ मध्र
ु व ुा ं जन्भ भत
ृ स्तम च।
तस्तभादऩरयहामेऽथे न ्वं शोधचतभ
ु हालस॥२-२७॥

अव्मक्ताद तन बत
ू ातन व्मक्तभध्मातन बायत।
अव्मक्ततनधनान्मेव तत्र का ऩरयदे वना॥२-२८॥

आश्चमाव्ऩश्मतत कन्श्चदे न भाश्चमावद्वदतत तथैव चान्म्।


आश्चमावच्चैनभन्म् श्रण
ृ ोतत श्र्ु वातमेनं वेद न चैव कन्श्चत ्॥२-२९॥

दे ह तन्मभवध्मोऽमं दे हे सवास्तम बायत।


तस्तभा्सवााणण बूतातन न ्वं शोधचतुभहालस॥२-३०॥

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