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Shankracharya
Shankracharya
इसकी यात्रा में 243 सीढ़ियाँ हैं। वह बहुत खड़ी नहीं हैं और आसानी से चढ़
सकते हैं। गर्भगृह तक पहुंचने के लिए और 30 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। सीमा सड़क
संगठन ने कार पार्किं ग के लिए जगह के साथ मंदिर के आधार
तक एक मोटर योग्य सड़क बनाई है। गर्भगृह में भगवान शिव का
विशालाकाय लिंग स्थापित है। इस मंदिर की शैली को देखकर अंदाजा लगाया जाता है
कि यह छठी या सातवीं शताब्दी में बनवाया गया था। गर्भगृह से कु छ सीढ़ियां नीचे
उतरने के बाद आपको पत्थरों से बना ही एक छोटा सा कमरा दिखाई देता है जिसे
शंकराचार्य की तपस्या स्थल माना जाता है।इससे थोड़ी दूर ही एक कुं ड है, जिसे गौरी कुं ड के
नाम से जाना जाता है। हालांकि अब यह कुं ड सुख चुका है। मंदिर की सीढ़ियों पर फारसी भाषा में
लिखे दो अभिलेख हैं, जिनके अनुसार इस मंदिर की स्थापना 1659 ईसवी में की गयी थी। दूसरे
अभिलेख के अनुसार 1644 ईसवी में शाहजहां ने मंदिर की छत और स्तंभ बनवाया था।
कु छ समय पश्चात, श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए डोगरा शासक महाराजा गुलाब सिंह ने मंदिर में
पत्थर की सीढ़ियों का निर्माण करवा दिया था। और साथ ही इस मंदिर की मरम्मत की। हिंदुओं का
एक धार्मिक स्थल होने के अलावा यह मंदिर महान पुरातात्विक महत्व भी रखता है।
कें द्र 21.5 फीट (6.6 मीटर) व्यास वाले एक वृत्त से बना है और
प्रवेश द्वार 3.5 फीट (1.1 मीटर) चौड़ा है। दीवारें 8 फीट (2.4
मीटर) हैं। चौकोर मंदिर के चारों ओर की छत पर दो दीवारों के
बीच घिरी एक पत्थर की सीढ़ी से पहुंचा जा सकता है। सीढ़ी के
विपरीत दिशा में एक द्वार आंतरिक भाग की ओर जाता है, जो
योजना में गोलाकार, एक छोटा और अंधेरा कक्ष है
छत को चार अष्टकोणीय स्तंभों द्वारा समर्थित किया गया है, जो
एक बेसिन से घिरा हुआ है जिसमें एक सांप से घिरा हुआ
लिंगम है।
कई लोगों का मानना है कि इस पहाड़ी पर इस्लाम के आगमन
से बहुत पहले सुलेमान (जिसे सोलोमन और सैंडीमैन भी कहा
जाता है) नामक व्यक्ति ने विजय प्राप्त की थी।
मंदिर सुबह 6 बजे खुलता है। यहाँ का प्रवेश द्वार सेना के कर्मियों द्वारा संरक्षित है। 5 बजे के बाद
मंदिर के भीतर जाने की अनुमति नहीं है, लेकिन मंदिर 8 बजे तक खुला रहता है।