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कोणार्क सूर्य मंदिर की भव्यता !!

ऐसे स्थान जो विश्व संस्कृ ति की दृष्टि से मानवता के लिए महत्वपूर्ण हों उन्हें विश्व विरासत स्थल या
वर्ल्ड हेरिटेज साइट कहते हैं। इसमें पर्वत, झील, मरुस्थल, स्मारक, भवन या धरोहर किसी को भी चयनित
किया जा सकता है। इन स्थलों की देखरेख यूनेस्को द्वारा चयनित समिति के द्वारा की जाती है।
कोर्णाक का सूर्य मंदिर, महाबलीपुरम, अजंता की गुफाएं इनमें से हैं। कोणार्क का सूर्य मंदिर उड़ीसा राज्य
के जगन्नाथ पुरी मंदिर से 35 किमी दूर उत्तर पूर्वी किनारे पर समुद्र के समीप बना है। कोणार्क अपनी
शिल्प आकृ तियों के लिए प्रसिद्ध है। इसे यूनेस्को द्वारा सन् 1984 में विश्व धरोहर स्थल घोषित किया
गया। इतिहासकारों के अनुसार कोर्णाक मंदिर का निर्माण 1253 ई० से 1260 ई० के बीच हुआ। नरसिंहदेव
के द्वारा सूर्य देव को समर्पित करके बनाया गया। बारह वर्ष तक 1200 शिल्पियों ने रात दिन एक करके
मंदिर का निर्माण किया। मंदिर बनकर पूर्ण हो गया परंतु मंदिर के शीर्ष पर कलश बिठाना बाकी था।
परंतु कु छ कारणों से यह मंदिर पूर्ण नहीं हो सका और न ही इसमें पूजा अर्चना की जा सकी। इस विषय
में अनेक कहानियां प्रचलित हैं।

कोणार्क शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है। कोण + अर्क । कोणक का अर्थ ‘कोना’ और अर्क का अर्थ ‘सूर्य’
होता । कोणार्क सूर्य के रथ के रूप में बना हुआ है। मुख्य मंदिर तीन मंडपों में बना है। नाट्य मंडप,
भोग मंडप, मुख्य मंडप। संपूर्ण मंदिर की कथा एक चलते हुए रथ के समान की गई है। आज मंदिर का
काफी भाग ध्वस्त हो चुका है परंतु इसको देखकर इसकी पूर्व की भव्यता का सहज ही अनुमान लगाया
जा सकता है।

संपूर्ण मंदिर को रथ के रूप में बनाया गया है। रथ को चलाने के लिए जैसे पहिए लगे रहते हैं वैसे ही
मंदिर के दोनों ओर बारह ― बारह पहिए बने हैं। इन पहियों में से अधिकतर पहिए टू ट चुके हैं परंतु
फिर भी चार पांच पहिए पूरी तरह से बचे हुए हैं। यह पहिए पत्थर पर नक्काशी और शिल्पकारी का
अद्भुत नमूना है। यह बारह पहिए वर्ष के 12 महीनों को प्रदर्शित करते हैं उनकी रचना ज्योतिष की गणना
के अनुसार की गई है। परियों के आठ आठ आरे हैं जो दिन के आठ पहरों को दर्शाते हैं। पहियों के अंदर
सुंदर नक्काशी की गई है जिसमें मानव जीवन से संबंधित दु:ख सुख, उत्थान पतन की अनेक मुद्राएं
दिखाई गई हैं। जिनमें श्रृंगार करती युवती, शिकार खेलते पुरुष, कु त्ते-बिल्ली, हाथी, घोड़े, पशु-पक्षी, राजा
महाराजाओं के जीवन की अनेक झांकियां दिखाई गई । छे नी और हथौड़े से तराशी हुए यह मूर्तियां इतनी
सजीव हैं मानो अभी यह सब बोलने और चलने लगेंगी।

मंदिर के तीन मंडपों से दो मंडप ढह चुके हैं। मुख्य मंदिर को अंग्रेजों ने रेट भरवा कर बंद करा दिया
है। जिससे मंदिर और अधिक क्षतिग्रस्त न हो। मंदिर में सूर्य भगवान की तीन मुद्राओं में प्रतिमाएं हैं:

1. बाल्यावस्था
2. उदित सूर्य
3. 8 फीट, युवावस्था मध्यान्ह सूर्य
4. 9.5 फ़ीट प्रौढ़ावस्था
5. अस्त सूर्य ― 3.5 फीट तीनों मूर्तियां के भाव उनके अवस्था के अनुरूप हैं।
6. बाल सूर्य ― चंचल, मध्यान्ह सूर्य ― तीव्र और प्रौढ़ सूर्य के चेहरे पर सौम्य भाव दिखाई देता
है।

मंदिर के प्रवेश द्वार पर दो सिंह हाथियों पर आक्रामक होते हुए तथा नीचे आदमी बैठा है। मंदिर
के प्रवेश द्वार पर नाट्य मंदिर है। नाट्य मंदिर को नृत्य मंदिर भी कहते हैं। यहां विभिन्न नृत्य
मुद्राओं तथा विभिन्न वाद्य यंत्रों को मंदिर की दीवारों पर बजाते हुए मूर्तियां बनाई गई हैं।
भारतीय शैली के सभी वाद्य ― ढोल, मंजीरा, मृदंग, तबला, शहनाई, नगाड़ा बजाते हुए पुरूष और
स्त्रियों की मूर्तियों तथा नृत्य की विभिन्न मुद्राओं को पत्थर पर जिस ढंग से उके रा गया है उसे
देखकर कभी श्री रविंद्र नाथ टैगोर ने लिखा है―

‘कोणार्क जहां पत्थरों की भाषा मनुष्य की भाषा से श्रेष्ठतर है।‘

यहां की स्थापत्य कला, वैभव एवं मानवीय संवेदनाओं को दर्शाती कला का अद्वितीय संगम है। मूर्तियों में
स्थापत्य के अनुपात एवं विभिन्न आयाम अपने आप में प्रत्येक दृष्टि से संपूर्ण एवं उत्कृ ष्टतम् उदाहरण
है। मंदिर की दीवारें भगवान, देवी-देवताओं, गंधर्व, मानव, वादकों, प्रेमी युगल, मत्स्य कन्या, नागकन्या, दरबार
की झांकियां, शिकार एवं युद्ध के चित्रों से भरी पड़ी है बीच-बीच में पशु पक्षी लगभग दो हज़ार हाथी, के वल
मुख्य मंदिर के आधार की पट्टी पर भ्रमण करते हुए इसके अतिरिक्त जीव―जंतु, पेड़―पौधों, ज्यामितीय
नमूने अलंकृ त किए गए हैं।

मंदिर में सूर्य की पत्नी मायादेवी और छायादेवी की भी मूर्तियां बनी है। मंदिर का मुख्य प्रांगण 857
फीट ×540 फीट का है। मंदिर पूर्व पश्चिम दिशा में बना है। यह मंदिर इस प्रकार बना है कि इसकी कभी
परछाई नहीं पड़ती।

कई कथाओं के अनुसार सूर्य मंदिर के शिखर पर एक चुंबक पत्थर लगा था। इसके प्रभाव से कोणार्क के
समुद्र से गुजरने वाले जहाज इस ओर खींचे चले आते थें, उन्हें भारी क्षति हो जाती थी। अंग्रेज और
मुस्लिम नाविक इस पत्थर को उखाड़ ले गए। चुंबकीय पत्थर के कें द्रीय शीला के हटने से मंदिर की
दीवारों का संतुलन बिगड़ गया और दीवारें गिर पड़ीं।

समुद्र से आने वाली हवाओं के कारण निरंतर पत्थरों का क्षरण होता रहा है। इसके अद्भुत सौंदर्य को
देखते हुए सरकार ने इसे राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया है। उड़ीसा सरकार को इससे राजस्व की प्राप्ति
होती है। उड़ीसा सरकार का राज्यचिन्ह भी कोणार्क के सूर्य मंदिर से ही लिया गया है।

शिवांश साहू
12―बी

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