You are on page 1of 8

दे वी माता के 51 शक्तिपीठ, 18 महा शक्तिपीठ एवम 4 आदि शक्तिपीठ के दर्शनों की श्रंख

ृ ला में दिनांक 27 मार्च


2022 को 35 वें शक्तिपीठ श्री शैलम एवम ब्रह्मरम्भा दे वी शक्तिपीठ मंदिर के दर्शनों का पुण्य लाभ प्राप्त किया ।
मां भ्रमराम्बा शक्तिपीठ श्रीसैलम आंध्र प्रदे श राज्य के कुर्नूल ज़िले में नल्लमाला पर्वत पर स्थित 'श्रीसैलम'
भगवान शिव और माता शक्ति के पावन धामों में से एक है , इसे 'दक्षिण का कैलाश' भी कहा जाता है । भारत में
विभिन्न स्थानों पर शक्तिपीठ और ज्योतिर्लिंग मौजूद हैं। श्रीसैलम की विशेषता यह है कि यहां दे वी भ्रमराम्बा
शक्तिपीठ और मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग दोनों ही स्थित हैं, और इसके पौराणिक और ऐतिहासिक संदर्भ भी मिलते
हैं। इसी प्राचीन मंदिर के विशाल परसिर में 'मां भ्रमराम्बा मंदिर' स्थापित है , जो मां शक्ति के पतित पावन 51
शक्तिपीठों में से एक है । ऐसी मान्यता है कि यहां माता सती की ग्रीवा का पतन हुआ था। यहां माता की मूर्ति
'महालक्ष्मी' के रूप में स्थापित है और उन्हें 'भ्रमराम्बिका' या 'भ्रमराम्बा' दे वी के नाम से पूजा जाता है । उनके साथ
भगवान शिव 'शम्बरानंद भैरव' के रूप में विराजमान हैं, उन्हें 'मल्लिकार्जुन स्वामी' भी कहा जाता है । । श्री शैल
शक्तिपीठ को हिंद ू धर्म में प्रसिद्ध 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है ।

दे वी माता के 51 शक्तिपीठ, 18 महा शक्तिपीठ एवम 4 आदि शक्तिपीठ के दर्शनों की श्रंख


ृ ला में दिनांक 27 मार्च
2022 को 34 वें शक्तिपीठ जोगुलम्बा दे वी एवम माँ महालक्ष्मी मंदिर के दर्शनों का पुण्य लाभ प्राप्त किया ।
आलमपुर भारतीय राज्य तेलंगाना के जोगलंबा गडवाल जिले का यह एक धार्मिक महत्व का शहर है जो पवित्र
मानी जाने वाली नदियों तुंगभद्रा और कृष्णा के संगम पर स्थित है और इसे दक्षिण काशी (जिसे नवब्रह्मेश्र्वर तीर्थ
भी कहा जाता है ) कहा जाता है तथा इसे प्रसिद्ध शैव तीर्थ श्रीसैलम का पश्चिमी द्वार भी कहा जाता है ।आलमपुर में
कई हिंद ू मंदिर हैं, जिनमें प्रमुख हैं जोगुलम्बा मंदिर, नवब्रह्म मंदिर, पापनासी मंदिर और संगमेश्वर मंदिर।
जोगुलम्बा मंदिर 18 महा शक्तिपीठों में से एक है , जो शक्तिवाद में सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ और तीर्थ स्थल हैं।
मान्यता है कि आलमपुर में जहां जोगुलाम्बा दे वी मंदिर स्थापित है वहां माता सती के दांतों की ऊपर वाली पंक्ति
गिरी थी। इस मंदिर के प्रमुख आराध्य 'मां जोगुलाम्बा' और 'बाल ब्रह्मेश्वरा स्वामी' हैं। माता सती को 'जोगुलाम्बा
दे वी' या 'योगाम्बा दे वी' के नाम से और भगवान शिव को 'बाल ब्रह्मेश्वर स्वामी' के रूप में पूजा जाता है ।

दिनांक 27 मार्च 2022 को श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के दर्शनों का पुण्य लाभ प्राप्त किया । दे श भर में भगवान
शिव के लाखों शिवलिंग है । परं तु दे श में शिव के 12 ज्योतिर्लिंग का विशेष महत्व है , इन्हीं में से एक मल्लिकार्जुन
ज्योतिर्लिंग है । यह ज्योतिर्लिंग आंध्र प्रदे श के कृष्णा नदी के तट पर पवित्र शैल पर्वत पर स्थित है । इस ज्योतिर्लिंग
को दक्षिण भारत का कैलाश भी कहा जाता है । इसके दर्शन मात्र से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।
पुराणों के अनुसार, मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग में शिव और पार्वती की संयुक्त रूप से दिव्य ज्योतियां विद्यमान हैं।
जिसमें मल्लिका मतलब पार्वती और अर्जुन शब्द भगवान शिव के लिए प्रयोग किया गया |

दे वी माता के 51 शक्तिपीठ, 18 महा शक्तिपीठ एवम 4 आदि शक्तिपीठ के दर्शनों की श्रंख


ृ ला में दिनांक 28 मार्च
2022 को 36 वें शक्तिपीठ मां कामाक्षी दे वी के दर्शनों का पुण्य लाभ प्राप्त किया । कामाक्षी शक्तिपीठ कांचीपुरम
जिसे हम कांची शक्तिपीठ भी कहते हैं, भारत के 51 शक्तिपीठों में से एक है । पुराणों के अनुसार जहां-जहां सती के
अंग गिरे वहां-वहां शक्तिपीठ बनाए गए। यह शक्तिपीठ तमिलनाडु राज्य के कांचीपुरम नगर में स्थित है । यहां
दे वी की अस्थियां या कंकाल गिरा था। जहां पर मां कामाक्षी दे वी का भव्य विशाल मंदिर है , जिसमें त्रिपुर सुंदरी की
प्रतिमूर्ति कामाक्षी दे वी की प्रतिमा है । यह दक्षिण भारत का सर्वप्रधान शक्तिपीठ है । इसमें भगवती पार्वती का
श्रीविग्रह है , जिसको कामाक्षी दे वी अथवा भी कहते हैं।

दिनांक 29 मार्च 2022 को श्री रामेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग के दर्शनों का पुण्य लाभ प्राप्त किया ।रामेश्वर ज्योतिर्लिंग की
स्थापना मर्यादा-पुरुषोत्तम भगवान ् श्री रामचन्द्र जी ने की थी। यह शिवलिंग pop प्रांत के रामनाथपुरम जनपद में
स्थित है ।जब भगवान ् श्री राम लंका पर चढ़ाई करने के लिये जा रहे थे, तब इसी स्थान पर उन्होंने समुद्रतट की
बालुका से शिवलिंग बनाकर उसका पूजन किया था। ऐसा भी कहा जाता है कि इस स्थान पर ठहरकर भगवान ् राम
जल पी रहे थे कि आकाशवाणी हुई – ‘मेरी पूजा किये बिना ही जल पीते हो?’ इस वाणी को सुनकर भगवान ् श्रीराम ने
बालुका से शिवलिंग बनाकर उसकी पूजा की तथा भगवान ् शिव से रावण पर विजय प्राप्त करने का वर माँगा।
उन्होंने प्रसन्नता के साथ यह वर भगवान श्री राम को दे दिया। भगवान शिव ने लोक कल्याणार्थ ज्योतिर्लिंग के रूप
में वहाँ निवास करने की सबकी प्रार्थना भी स्वीकार कर ली। तभी से रामेश्वर ज्योतिर्लिंग यहाँ विराजमान है ।

श्री मीनाक्षी दे वी के दर्शनों का पुण्य लाभ दिनांक 30 मार्च 2022 को प्राप्त किया । मिनाक्षी अम्मन मंदिर एक
इतिहासिक हिन्द ू मंदिर है जो भारत के तमिलनाडु राज्य के मदरु ाई शहर की वैगई नदी के दक्षिण किनारे पर स्थित
है । यह मंदिर माता पार्वती को समर्पित है जो मिनाक्षी के नाम से जानी जाती है और शिव जो सुन्दरे श्वर के नाम से
जाने जाते है । यह मंदिर 2500 साल परु ाने शहर मदरु ाई का दिल और जीवन रे खा है और साथ ही तमिलनाडु के मुख्य
आकर्षणों में से भी एक है । कहा जाता है की इस मंदिर की स्थापना इंद्र ने की थी। जब वे अपने कुकर्मो की वजह से
तीर्थयात्रा पर जा रहे थे तभी उन्होंने इस मंदिर का निर्माण करवाया था। जैसे ही वे मदरु ाई के स्वयंभू लिंग के पास
पहुचे वैसे ही उन्हें लगा की उनका बोझ कोई उठाने लगा है ।इसके बाद उन्होंने इस चमत्कार को दे खते हुए स्वयं ही
मंदिर में लिंग को प्रति प्रतिष्टापित किया। इंद्र भगवान शिव की पूजा करते थे और इसीलिए वहा पूल के आस-पास
हमें कमल के फुल दिखाई दे ते है ।

मिनाक्षी अम्मन मंदिर त्यौहार –

मंदिर से जुड़ा हुआ सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार “मिनाक्षी थिरुकल्याणम (मिनाक्षी का दिव्य विवाह)” है , जिसे स्थानिक
लोग हर साल अप्रैल के महीने में मनाते है । दिव्य जोड़ो के इस विवाह प्रथा को अक्सर दक्षिण भारतीय लोग अपनाते
है और इस विवाह प्रथा को “मदरु ाई विवाह” का नाम भी दिया गया है ।पुरुष प्रधान विवाह को “चिदं बरम विवाह” कहा
जाता है , जो भगवान शिव के चिदं बरम के प्रसिद्ध मंदिर के प्रभुत्व, अनुष्ठान और कल्पित कथा को दर्शाता है । इस
विवाह के दौरान ग्रामीण और शहरी, दे वता और मनुष्य, शिवास (जो भगवान शिव को पूजते है ) और वैष्णव (जो
भगवान विष्णु को पूजते है ) वे सभी मिनाक्षी उत्सव मनाने के लिये एकसाथ आते है ।

मंदिर में कुल 33,000 मूर्तियाँ है ।


दे वी माता के 51 शक्तिपीठ, 18 महा शक्तिपीठ एवम 4 आदि शक्तिपीठ के दर्शनों की श्रंख
ृ ला में दिनांक 31 मार्च
2022 को 37 वें शक्तिपीठ कण्यकाश्रम कन्याकुमारी के दर्शनों का पुण्य लाभ प्राप्त किया । कन्याश्रम में माता का
पष्ृ ठ भाग (पीठ) गिरी थी। इसकी शक्ति है सर्वाणी और शिव को निमिष कहते हैं। कुछ विद्वान को मानना है कि
यहां मां का उर्ध्वदं त गिरा था। कन्याश्रम को कालिकशराम या कन्याकुमारी शक्तिपीठ के नाम से भी जाना जाता है ।
यह शक्तिपीठ चारों ओर जल से घिरा हुआ है । ये एक छोटा सा टापू है जहां का दृश्य बहुत ही मनोरम है । तमिलनाडु
के कन्याकुमारी के तीन सागरों हिन्द महासागर, अरब सागर तथा बंगाल की खाड़ी के संगम पर स्थित है । यह
कुमारी दे वी की सखी हैं। यह मंदिर ही कण्यकाश्रम शक्तिपीठ है यहां की शक्ति शर्वाणि या नारायणी तथा भैरव
निमषि या स्थाणु हैं।

दे वी माता के 51 शक्तिपीठ, 18 महा शक्तिपीठ एवम 4 आदि शक्तिपीठ के दर्शनों की श्रंख


ृ ला में दिनांक 31 मार्च
2022 को 38 वें शक्तिपीठ शुचि - नारायणी दे वी कन्याकुमारी के दर्शनों का पुण्य लाभ प्राप्त किया ।शुचि- नारायणी
शक्तिपीठ तमिलनाडु के कन्याकुमारी-तिरुवनंतपुरम मार्ग पर शुचितीर्थम शिव मंदिर में है , जहां पर माता की ऊपरी
दं त (ऊर्ध्वदं त) गिरे थे। इसकी शक्ति है नारायणी और भैरव को संहार या संकूर कहते हैं। कन्याकुमारी के त्रिसागर
संगम स्थल से 13 किलोमीटर दरू शुचींद्रम में स्थित स्थाणु शिवजी के मंदिर में ही स्थित है ये शक्तिपीठ। मान्यता
है कि यहां दे वी अभी तक तपस्यारत है ।महर्षि गौतम के शाप से इंद्र को यहीं मुक्ति मिली थी और वे शुचिता अर्थात
पवित्रता हो गए थे, इसीलिए इसका नाम शुचींद्रम पड़ा। शुचींद्रम क्षेत्र को ज्ञानवनम ् क्षेत्र भी कहते हैं। मान्यता है कि
यहीं पर दे वी ने राक्षस बाणासुर का वध किया था। यहां के मंदिर में नारायणी रूप में माता की भव्य प्रतिमा है और
उनके हाथ में एक माला है । इसी मंदिर में भद्रकाली का मंदिर भी स्थित है जो दे वी सती की सखी भी मानी जाती हैं।

दे वी माता के 51 शक्तिपीठ, 18 महा शक्तिपीठ एवम 4 आदि शक्तिपीठ के दर्शनों की श्रंख


ृ ला में दिनांक 2 अप्रैल
2022 ( गुड़ी पड़वा )को 39 वें शक्तिपीठ माँ चामुंडश्े वरी दे वी के दर्शनों का पुण्य लाभ प्राप्त किया । दे वी का यह मंदिर
कर्नाटक राज्य में मैसूर शहर से 13 किमी दरू चामुंडी पहाड़ियों पर स्थित है । यह मंदिर माँ दर्गा
ु के ही एक स्वरुप 'माँ
चामुंडश्े वरी' को समर्पित है । यह स्थान हिन्दओ
ु ं का प्रमुख धार्मिक स्थान है और चामुंडश्े वरी दे वी को दर्गा
ु जी का ही
रूप माना जाता है । चामुंडी पहाड़ी पर स्थित यह मंदिर दर्गा
ु जी द्वारा राक्षस महिषासुर के वध का प्रतीक माना जाता
है । कहा जाता है की दे वी ने महिषासुर का इसी जगह वध किया था वही आज यह चामुंडश्े वरी मंदिर स्थित है । चामुंडी
पहाड़ी पर महिषासुर की एक ऊंची मूर्ति है और उसके बाद मंदिर है ।चामुंडश्े वरी मंदिर को 18 महा शक्तिपीठों में से
एक माना जाता है । क्योंकि मान्यताओं के अनुसार यहाँ दे वी सती के बाल गिरे थे। पौराणिक काल में यह क्षेत्र 'क्रौंच
पुरी'कहलाता था, इसी कारण दक्षिण भारत में इस मंदिर को 'क्रौंचा पीठम' के नाम से भी जाना जाता है । रहवासियों
की मानें तो कहा जाता है की शक्तिपीठ की रक्षा के लिए कालभैरव भी यहां सदै व विराजमान रहते हैं।

दे वी माता के 51 शक्तिपीठ, 18 महा शक्तिपीठ एवम 4 आदि शक्तिपीठ के दर्शनों की श्रंख


ृ ला में दिनांक 28 अप्रैल
2022 को 40 वें शक्तिपीठ माँ मंगला गौरी दे वी के दर्शनों का पुण्य लाभ प्राप्त किया । गया (बिहार ) शहर से कुछ ही
दरू ी पर भस्मकूट पर्वत पर स्थित शक्तिपीठ मां मंगलागौरी मंदिर पर सुबह से ही भक्तों का तांता लग जाता है .
मान्यता है कि यहां मां सती का वक्ष स्थल (स्तन) गिरा था, जिस कारण यह शक्तिपीठ 'पालनहार पीठ' या
'पालनपीठ' के रूप में प्रसिद्ध है । दे वी सती के सत
्‍ न मंडल गया के भसम
्‍ कूट पर्वत पर गिरे और दो पतथ
्‍ र बन गए।
इसी प्रसत
्‍ रमयी सत
्‍ न मंडल में मां मंगलागौरी निवास करती हैं। मानय
्‍ ता है कि यहां आकर जो मनुषय
्‍ इन
शिलाओं को सप्‍ र्श करता है वो अमरतव्‍ को प्रापत
्‍ करता है ।पद्म पुरान, वायु पुराण और अग्नि परु ाण में जिस मंदिर
का उल्लेख हैं वो हैं बिहार का सबसे प्रसिद्ध और मशहूर मंगला गौरी मंदिर। इस मंदिर का समावेश अठराह महा
शक्तिपीठ में किया गया है । मंगला गौरी मंदिर 15 वी शताब्दी में बना हुआ मंदिर है । यह मंदिर दे वी शक्ति को
समर्पित है और गया का यह मंदिर विशेष रूप से वैष्णव पंथिय है । दया और करुना की दे वता के रूप में मंगला गौरी
की पूजा की जाती है । जो भी भक्त यहापर माँ दर्गा
ु के दर्शन करने आता है उसकी हर प्रार्थना और इच्छा पूरी हो
जाती है । इसीलिए दे वी का यह मंदिर बहुत ही जागत
ृ मंदिर है ।

दे वी माता के 51 शक्तिपीठ, 18 महा शक्तिपीठ एवम 4 आदि शक्तिपीठ के दर्शनों की श्रंख


ृ ला में दिनांक 28 अप्रेल
2022 को 41 वें शक्तिपीठ माँ पटनेश्वरी दे वी मंदिर के दर्शनों का पुण्य लाभ प्राप्त किया । दे वी भागवत के
अनुसार, सती की दाहिनी जांघ का निपात हुआ था । इसलिए यह शक्तिपीठ पटन दे वी मंदिर के रुप में जाना गया।
पटन दे वी मंदिर की वजह से बिहार की राजधानी को पटना नाम दिया गया क्योंकि यह मंदिर पौराणिक काल से
विख्यात है जहां दर्शन के लिए हजारों श्रद्धालु आते है । पटन दे वी मंदिर के दो स्वरूप हैं एक छोटी पटन दे वी और
दस
ू री बड़ी पटन दे वी। माना जाता है कि यह मंदिर पटना शहर की रक्षा करता है , इसीलिए इसे रक्षिका भगवती
पटनेश्वरी के नाम से भी जाना जाता है । इस मंदिर के अंदर महालक्ष्मी, महासरस्वती और महाकाली की मूर्तियां भी
स्थापित हैं।

दे वी माता के 51 शक्तिपीठ, 18 महा शक्तिपीठ एवम 4 आदि शक्तिपीठ के दर्शनों की श्रंख


ृ ला में दिनांक 29 अप्रैल
2022 को 42 वें शक्तिपीठ माता जय दर्गा
ु दे वी मंदिर के दर्शनों का पुण्य लाभ प्राप्त किया । झारखंड के
दे वघर में स्थित वैद्यनाथ धाम जहां माता का हृदय गिरा था, जिस कारण यह स्थान 'हार्दपीठ' से भी जाना जाता है ।
इसकी शक्ति है जयदर्गा
ु और शिव को वैद्यनाथ कहते हैं। बैद्यनाथ धाम में भगवान शंकर के द्वादश ज्योतिर्लिंगों
में नौवां ज्योतिर्लिग है ।मंदिर के गर्भगह
ृ में चंद्रकांत मणि है । जिससे सतत जल स्रवित होकर लिंग विग्रह पर गिरता
है । बैद्यनाथ ज्योर्तिलिंगपर गिरनेवाला जल रोग से मुक्ति दिलाता है । दे वघर में माता जयदर्गा
ु शक्ति के रूप में
है । दे वघर की शक्ति साधना में भैरव की प्रधानता है और बैद्यनाथ स्वयं यहां भैरव हैं। इनकी प्रतिष्ठा के मूल में
तांत्रिक अभिचारों की ही प्रधानता है । तांत्रिक ग्रंथों में इस स्थल की चर्चा है । दे वघर में काली और महाकाल के महत्व
की चर्चा तो पद्मपुराण के पातालखंड में भी की गयी है । भगवान शिव का स्थान भी यहीं होने की वजह से ये दे वघर की
ये भूमि काफी खास हो जाती है । इस स्थान के बारे में एक मान्यता यह भी है कि यहीं पर माता सती का दाह संस्कार
भी हुआ था।नवरात्र के दिनों में दे वी के इस धाम की सौंदर्यता दे खनी बनती है । इस दौरान दे वी का ये स्थान काफी
पावन और शांति प्रदान करनेवाला है । भक्त यहां आकर मां के सामने अपनी भक्ति प्रकट करते है और मां भी अपने
बच्चों पर कृपा करने में जरा भी दे री नहीं करती। यहां ना सिर्फ नवरात्रि बल्कि शिव और शक्ति का धाम होने की
वजह से महाशिवरात्रि भी यहां काफी धूमधाम से मनाई जाती है । इस दौरान पूरा इलाका भक्तिमय रं ग में डूबा और
शिव औऱ शक्ति का जयकारा साफ दिखाई पड़ता है ।
तख़्त श्री पटना साहिब या श्री हरमंदिर जी, पटना साहिब (पंजाबी: ਤਖ਼ਤ ਸ੍ਰੀ ਪਟਨਾ ਸਾਹਿਬ) पटना शहर में स्थित सिख
आस्था से जुड़ा यह एक ऐतिहासिक दर्शनीय स्थल है । यहाँ सिखों के दसवें गुरु गोबिंद सिंह का जन्मस्थान है । गुरु
गोबिंद सिंह का जन्म 26 दिसम्बर 1666 शनिवार को 1.20 पर माता गुजरी के गर्भ से हुआ था। उनका बचपन का
नाम गोबिंद राय था। यहाँ महाराजा रं जीत सिंह द्वारा बनवाया गया गुरुद्वारा है जो स्थापत्य कला का सुन्दर
नमूना है ।

दे वी माता के 51 शक्तिपीठ, 18 महा शक्तिपीठ एवम 4 आदि शक्तिपीठ के दर्शनों की श्रंख


ृ ला में दिनांक 22 मई
2022 को 43 वें शक्तिपीठ श्री नैना दे वी मंदिर के दर्शनों का पुण्य लाभ प्राप्त किया ।नैना दे वी मंदिर हिमाचल प्रदे श
के बिलासपुर जिले में है । इस स्थान पर माता सती के दोनों नेत्र गिरे थे । यह शिवालिक पर्वत श्रेणी की पहाड़ियो पर
स्थित एक भव्य मंदिर है । यह दे वी के 51 शक्ति पीठों में शामिल है । नैना दे वी हिंदओ
ू ं के पवित्र तीर्थ स्थलों में से
एक है । यह स्थान नैशनल हाईवे न. 21 से जुड़ा हुआ है । इस स्थान तक पर्यटक अपने निजी वाहनो से भी जा सकते
है । मंदिर तक जाने के लिए उड़्डनखटोले, पालकी आदि की भी व्यवस्था है । यह समुद्र तल से 1100 मीटर की ऊंचाई
पर स्थित है । मंदिर में पीपल का पेड़ मुख्य आकषर्ण का केन्द्र है जो कि अनेको शताब्दी पुराना है । मंदिर के मुख्य
द्वार के दाई ओर भगवान गणेश और हनुमान कि मूर्ति है । मुख्य द्वार के पार करने के पश्चात आपको दो शेर की
प्रतिमाएं दिखाई दे गी। शेर माता का वाहन माना जाता है । मंदिर के गर्भ ग्रह में मुख्य तीन मूर्तियां है । दाई तरफ
माता काली की, मध्य में नैना दे वी की और बाई ओर भगवान गणेश की प्रतिमा है । पास ही में पवित्र जल का तालाब
है जो मंदिर से कुछ ही दरू ी पर स्थित है । मंदिर के समीप ही में एक गुफा है जिसे नैना दे वी गुफा के नाम से जाना
जाता है । पहले मंदिर तक पहुंचने के लिए 1.25 कि॰मी॰ की पैदल यात्रा कि जाती थी परन्तु अब मंदिर प्रशासन द्वारा
मंदिर तक पहुंचने के लिए उड़्डलखटोले का प्रबंध किया गया है । लोगों की आस्था है कि यहां पहुंचने वालों की आंखों
की बीमारियां दरू हो जाती हैं. यहां सती के शक्ति रूप की पूजा की जाती है .

दे वी माता के 51 शक्तिपीठ, 18 महा शक्तिपीठ एवम 4 आदि शक्तिपीठ के दर्शनों की श्रंख


ृ ला में दिनांक 23 मई
2022 को 44 वें शक्तिपीठ श्री चिंतपूर्णी दे वी मंदिर के दर्शनों का पुण्य लाभ प्राप्त किया ।चिंतपूर्णी धाम शक्ति पीठों
में से एक है । हिमाचल प्रदे श में धौलाधार पर्वत की गोद में श्री छिन्नमस्तिका धाम के नाम से विश्व विख्यात मंदिर
माता चिंतपूर्णी के नाम से भी जाना जाता है । इस स्थान पर माता के चरण गिरे थे ।चिंतपूर्णी धाम हिमाचल के ऊना
जिले में स्थित है । चिंतपूर्णी मंदिर एक पहाड़ी पर स्थित है जो सोला सिग्ही पहाडिय़ों की श्रेणी में आता है ।

मान्यता है कि चिंतपूर्णी शक्तिपीठ में सभी चिंताओं का अंत होता है

मान्यता है कि मां चिंतपूर्णी के दर्शन करने वाले भक्तों की न केवल चिंताएं समाप्त होती हैं बल्कि भक्तों के असंभव
कार्य भी पलक झपकते हुए पूर्ण होते है । पिंडी रूप में मां के दर्शन होते हैं। मंदिर एक बरगद के वक्ष
ृ के नीचे बना हुआ
है । मंदिर के चारों तरफ सोने का आवरण लगा हुआ है । दर्शनों को प्राप्त कर मनष्ु य सभी सुखों का भागी बनता है
और उसके जीवन में आने वाली सभी चिंताओं का अंत होता है ।नवरात्रि और सावन के पावन समय में तो यहां का
नजारा दे खते ही बनता है । इस स्थान पर प्रकृति का सुंदर नजारा दे खने को मिल जाता है । यात्रा मार्ग में काफी सारे
मनमोहक दृश्य यात्रियो का मन मोह लेते हैं और उनपर एक अमिट छाप छोड़ दे ते हैं। यहां पर आकर माता के भक्तों
को आध्यात्मिक आंनद की प्राप्ति होती है ।दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालु माता के लिए भोग के रूप में सूजी का
हलवा, लड्डू, बर्फी, बताशा, नारियल आदि लाते हैं। कुछ श्रद्धालु अपनी मन्नत पूरी हो जाने पर ध्वज और लाल चुनरी
माता को भें ट स्वरूप प्रदान करते हैं। चढ़ाई के रास्ते में काफी दक
ु ानें हैं जहां से श्रद्धालु माता को चढ़ानेे का सामान
खरीदते हैं। दर्शनों से पहले प्रत्येक पर्यटक हाथ धोते हैं और उन्हें सिर रूमाल या कपड़े से ढं कना पड़ता है । मंदिर
भवन के मध्य में माता की गोल आकार की पिंडी है जिसके दर्शन भक्त कतारबद्ध होकर करते हैं। श्रद्धालु मंदिर की
परिक्रमा करते हैं। माता के भक्त मंदिर के अंदर निरं तर भजन कीर्तन करते रहते हैं। मंदिर के साथ वट का वक्ष
ृ है
जहां श्रद्धालु कच्ची मौली अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए बांधते हैं। पश्चिम की ओर बढ़ने पर बड़ का वक्ष
ृ है
जिसके अंदर भैरों और गणेश के दर्शन होते हैं। मंदिर के मुख्य द्वार पर सोने की परत चढ़ी हुई है । इस मुख्य द्वार
का प्रयोग नवरात्रि के समय किया जाता है । यदि मौसम साफ हो तो आप यहां से धौलाधार पर्वत श्रेणी को दे ख सकते
हैं।

दे वी माता के 51 शक्तिपीठ, 18 महा शक्तिपीठ एवम 4 आदि शक्तिपीठ के दर्शनों की श्रंख


ृ ला में दिनांक 23 मई
2022 को 45 वें शक्तिपीठ माता ज्वाला जी दे वी मंदिर के दर्शनों का पुण्य लाभ प्राप्त किया । इसे
ज्वालामुखी, सिद्धिदा (अंबिका) एवम ज्वालाजी दे वी का स्थान कहते हैं। ज्वालादे वी का मंदिर हिमाचल के कांगड़ा
घाटी के दक्षिण में 30 किमी की दरू ी पर स्थित है । यह मां सती के 51 शक्तिपीठों में से एक है । यहां माता की जीभ
गिरी थी। इसकी शक्ति है सिद्धिदा (अंबिका) और भैरव को उन्मत्त कहते हैं। हजारों वर्षों से यहां स्थित दे वी के मुख
से 9 ज्वालाएं प्रज्वलित हो रही हैं । ये ज्वालाएं 9 दे वियों महाकाली, महालक्ष्मी, सरस्वती, अन्नपूर्णा, चंडी,
विन्ध्यवासिनी, हिंगलाज भवानी, अम्बिका और अंजना दे वी की ही स्वरूप हैं। ज्वाला मंदिर को जोता वाली मां का
मंदिर और नगरकोट भी कहा जाता है । यह मंदिर माता के अन्य मंदिरों की तुलना में अनोखा है क्योंकि यहां पर
किसी मूर्ति की पूजा नहीं होती है बल्कि पथ्
ृ वी के गर्भ से निकल रही नौ ज्वालाओं की पूजा होती है । सतयुग में
महाकाली के परम भक्त राजा भूमिचंद ने स्वप्न से प्रेरित होकर यह भव्य मंदिर बनवाया था। जो भी सच्चे मन से
इस रहस्यमयी मंदिर के दर्शन के लिए आया है उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। गुरु गोरखनाथ ने यहां
तपस्या की थी।

दे वी माता के 51 शक्तिपीठ, 18 महा शक्तिपीठ एवम 4 आदि शक्तिपीठ के दर्शनों की श्रंख


ृ ला में दिनांक 23 मई
2022 को 46 वें शक्तिपीठ माता ब्रजेश्वरी दे वी मंदिर के दर्शनों का पुण्य लाभ प्राप्त किया ।शक्तिपीठों में से
एक हिमाचल के कांगड़ा जिले में स्थित ब्रजेश्वरी दे वी ( कांगडा की दे वी ) का मंदिर प्रसिद्ध है । यहां माता भगवान
शिव के रूप भैरव नाथ के साथ विराजमान हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यहां माता सती का दाहिना वक्ष
गिरा था। मां का यह धाम नगरकोट के नाम से भी प्रसिद्ध है । इस मंदिर का वर्णन दर्गा
ु स्तुति में किया गया है । मंदिर
के पास में ही बाण गंगा है , जिसमें स्नान करने का विशेष महत्व है । इस मंदिर में सालभर भक्त मां के दरबार में
आकर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं लेकिन नवरात्र के दिनों मंदिर की शोभा दे खने लायक होती है । मंदिर में आकर भक्त
की हर तकलीफ दर्शन मात्र से दरू हो जाती है । महाभारत काल में पांडवों ने इस मंदिर का निर्माण किया था। बताया
जाता है कि पांडवों ने मां को सपने में बताया था कि वह कांगड़ा जिले में स्थित हैं। इसके बाद पांडवों ने मंदिर का
निर्माण कराया।ब्रजेश्वरी मंदिर में माता पिंडी रूप में विराजमान हैं। यहां माता का प्रसाद तीन भागों में विभाजति
करके चढ़ाया जाता है । पहला प्रसाद महासरस्वती, दस
ू रा महालक्ष्मी और तीसरा महाकाली को चढ़ाकर भक्तों में
बांटा जाता है । मंदिर के गर्भगह
ृ में भी तीन पिंडी हैं, पहली मां ब्रजेश्वरी, दस
ू री मां भद्रकाली और तीसरी सबसे छोटी
पिंडी एकादशी की है ।ब्रजेश्वरी मंदिर में हिंदओ
ु ं और सिखों के अलावा मुस्लिम भी आस्था के फूल चढ़ाते हैं। मंदिर में
मौजूद तीन गुंबद तीन धर्मों के प्रतीक हैं। पहला गुंबद हिंद ू धर्म का है , जिसकी आकृति मंदिर जैसी है , दस
ू रा सिख
संप्रदाय का और तीसरा गुंबद मुस्लिम समाज का प्रतीक है । पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, महिषासुर को मारने
के बाद मां दर्गा
ु को कुछ चोटे आई थीं। उन चोटों को दरू करने के लिए दे वी मां ने अपने शरीर पर मक्खन लगाया था।

हिमाचल प्रदे श को दे व भूमि के नाम से भी जाना जाता है इसलिए इसे दे वताओं के घर के रूप में भी जाना जाता है ।
पूरे हिमाचल प्रदे श में 2000 से भी ज्यादा मंदिर है और इनमें से ज्यादातर प्रमुख आकर्षक का केन्द्र बने हुए हैं। इन
मंदिरो में से एक प्रमुख मंदिर चामुण्डा दे वी का मंदिर है जो कि जिला कांगड़ा हिमाचल प्रदे श राज्य में स्थित है ।
चामुण्डा दे वी मंदिर शक्ति के 51 शक्ति पीठो में से एक है । वर्तमान मे उत्तर भारत की नौ दे वियों मे चामुण्डा दे वी
का दस
ु रा दर्शन होता है वैष्णो दे वी से शुरू होने वाली नौ दे वी यात्रा मे माँ चामुण्डा दे वी, माँ वज्रेश्वरी दे वी, माँ ज्वाला
दे वी, माँ चिंतपुरणी दे वी, माँ नैना दे वी, माँ मनसा दे वी, माँ कालिका दे वी, माँ शाकम्भरी दे वी आदि शामिल हैं यहां पर
आकर श्रद्धालु अपने भावना के पुष्प मां चामुण्डा दे वी के चरणों में अर्पित करते हैं।

मान्यता है कि यहां पर आने वाले श्रद्धालओ


ु ं की सभी मनोकामना पर्ण
ू होती है । दे श के कोने-कोने से भक्त यहां पर
आकर माता का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। चामण्
ु डा दे वी का मंदिर समद्र
ु तल से 1000 मी की ऊंचाई पर स्थित है । यह
धर्मशाला से 15 कि॰मी॰ की दरू ी पर है । यहां प्रकृति ने अपनी संद
ु रता भरपरू मात्रा में प्रदान कि है । चामण्
ु डा दे वी
मंदिर बंकर नदी के किनारे पर बसा हुआ है । पर्यटको के लिए यह एक पिकनिक स्पॉट भी है । यहां कि प्राकृतिक
सौंदर्य लोगो को अपनी और आकर्षित करता है । चामण्
ु डा दे वी मंदिर मख्
ु यता माता काली को समर्पित है । माता
काली शक्ति और संहार की दे वी है । जब-जब धरती पर कोई संकट आया है तब-तब माता ने दानवों का संहार किया
है । असरु चण्ड-मण्
ु ड के संहार के कारण माता का नाम चामण्
ु डा पड़ गया।

आनन्दपरु साहिब (Anandpur Sahib) भारत के पंजाब राज्य के रूपनगर ज़िले में स्थित एक ऐतिहासिक नगर है ।
यह शिवालिक पर्वतमाला के चरणों में सतलुज नदी के समीप स्थित है । आनन्दपुर साहिब सिख धर्म से सबसे पवित्र
स्थानों में से एक है । यहाँ दो अंतिम सिख गुरु, श्री गुरु तेग बहादरु जी और श्री गुरु गोविंद सिंह जी, रहे थे और यहीं
सन ् 1699 में गुरु गोविंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना करी थी। यहाँ तख्त श्री केसगढ़ साहिब है , जो सिख धर्म के
पाँच तख्तों में से तीसरा है । यहाँ बसंत होला मोहल्ला का उत्सव होता है , जिसमें भारी संख्या में सिख अनुयायी
एकत्रित होते हैं।

आनन्दपुर साहिब (Anandpur Sahib) भारत के पंजाब राज्य के रूपनगर ज़िले में स्थित एक ऐतिहासिक नगर है। यह
शिवालिक पर्वतमाला के चरणों में सतलुज नदी के समीप स्थित है। आनन्दपुर साहिब सिख धर्म से सबसे पवित्र स्थानों में से
एक है। यहाँ दो अंतिम सिख गुरु, श्री गुरु तेग बहादुर जी और श्री गुरु गोविंद सिंह जी, रहे थे और यहीं सन् 1699 में गुरु
गोविंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना करी थी। यहाँ तख्त श्री केसगढ़ साहिब है, जो सिख धर्म के पाँच तख्तों में से तीसरा
है। यहाँ बसंत होला मोहल्ला का उत्सव होता है, जिसमें भारी संख्या में सिख अनुयायी एकत्रित होते हैं।

You might also like