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कै लाश - मानसरोवर यात्रा

कै लाश मानसरोवर को हिंदू धर्म के सबसे पवित्र स्थलों में एक माना जाता है।
किं वदंती है कि यहां साक्षात भगवान शिव निवास करते हैं, उन्हीं के दर्शनों के
लिए हजारों-लाखों शिवभक्त हर वर्ष यहां आते हैं। माना जाता है कि यही पर
आदि शंकराचार्य ने भी अपने शरीर का त्याग किया था। यही प्रथम तीर्थकर
ऋषभदेव ने निर्वाण प्राप्त किया था।
तिब्बत में स्थित पर्वत श्रेणी कै लाश के पश्चिम में मानसरोवर झील
तथा दक्षिण में रक्षातल झील है। यहां से ब्रह्मपुत्र, सिंधु तथा
सतलुज सहित कई पवित्र नदियों का उद्गम होता है। इस पूरे खंड
को मानसखंड भी कहा जाता है। कै लाश को गणपर्वत और
रजतगिरी भी कहा जाता है। कु छ विद्वानों के अनुसार शास्त्रों में
बताया गया मेरू पर्वत भी इसी को कहा जाता है।

मान्यता है कि कोई व्यक्ति मानसरोवर में एक बार डु बकी लगा ले, तो वह


'रुद्रलोक' पहुंच सकता है। मानसरोवर पहाड़ों से घिरी झील है, जिसे
पुराणकार 'क्षीर सागर' कहते हैं। ऐसा माना जाता है कि महाराज मांधाता ने
मानसरोवर झील की खोज की और कई वर्षों तक इसके किनारे तपस्या की
थी, जो कि इन पर्वतों की तलहटी में स्थित है।
मानसरोवर झील लगभग 320 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फै ली है। कहते हैं कि
मानसरोवर वह झील हैं जहां माता पार्वती स्नान करती थीं और मान्यता अनुसार
वह आज भी करती हैं।
हालांकि पुराणो के अनुसार , समुद्र तल से 17 हज़ार फू ट की ऊं चाई पर स्थित
300 फू ट गरही मीठे पानी की झील उत्पत्ति भगीरथ की तपस्या से भगवन शिव
के प्रसन्न होने पर हुई थी। पुराणो के अनुसार, भगवान शंकर द्वारा प्रकट किए गए
जल के वेग से झील बनी कालांतर उसी का नाम मानसरोवर हुआ।
पौराणिक धार्मिक मान्यता और

 एक अन्य मान्यता के अनुसार, परमपिता परमेश्वर के आनन्द अश्रुओं को भगवान


ब्रह्मा ने अपने कमण्डल में रख लिया था तथा इस भूलोक पर 'त्रियष्टकं ' (तिब्बत)
स्वर्ग समान स्थल पर 'मानसरोवर' की स्थापना की। शाक्त ग्रंथ के अनुसार, देवी
सती का दायां हाथ इसी स्थान पर गिरा था, जिससे यह झील तैयार हुई। इसलिए
यहां एक पाषाण शिला को उसका रूप मानकर पूजा जाता है। इसलिए इसे 51
शक्तिपीठों में से एक माना गया 
• यहां दो सरोवर मुख्य है पहला मानसरोवर जो दुनिया की शुद्ध
पानी की उच्चतम झीलों में से एक है और जिसका आकार सूर्य के
समान है ।दूसरा, यहां पर लगभग 225 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र, 84
किलोमीटर परिधि तथा 150 फु ट गहरी राक्षस नामक झील ,जो
दुनिया की खारे पानी की उच्चतम झीलों में से एक है और जिसका
आकार चंद्र के समान है ।इन दो सरोवरों के उत्तर में कै लाश पर्वत
है इसके दक्षिण में गुरला पर्वतमाला और गुरला शिखर है ।
मानसरोवर के कारण कु माऊं की धरती पुराणों में उत्तराखंड के
नाम से जानी जाती है।
वैज्ञानिकमान्यता
 वैज्ञानिकों के अनुसार, यह स्थान धरती का कें द्र है।

 धरती के एक ओर उत्तरी ध्रुव है, तो दूसरी ओर दक्षिणी ध्रुव।

 दोनों के बीचोबीच स्थित है हिमालय।

 हिमालय का कें द्र है कै लाश पर्वत और मानसरोवर।


 यह एक ऐसा भी कें द्र है जिसे एक्सिस मुंडी कहा जाता है।

 रशिया के वैज्ञानिकों के अनुसार, एक्सिस मुंडी वह स्थान है, जहां शक्तियों के साथ संपर्क कर
सकते है।

 तिब्बत के मंदिरों के धर्मगुरुओं के अनुसार पर्वत के चारों ओर एक अलौकिक शक्ति का प्रवाह


है।
यात्रा का पहला दिन :

सबसे पहले दिल्ली में सारी औपचारिकताएं पूरी की जाती है फिर हेल्थ चैकअप के बाद
आपको सीधे काठमांडू ले जाया जाएगा। आप चाहें तो काठमंडू में एक दिन रुक कर
अगले दिन से यात्रा आगे बढ़ा सकते हैं। लेकिन अक्सर लोग यहां पशुपतिनाथ जी के
दर्शन के बाद ही कै लाश के दर्शन के लिए आगे का सफर शुरू करते हैं।

यात्रा का दूसरा दिन :


काठमांडू से सुबह-सुबह कै लाश के लिए सफर शुरू हो जाता है। काठमांडू से तकरीबन
एक घंटे की यात्रा के बाद फ्रें डशिप ब्रिज पर मानसरोवर यात्रियों की यहीं पर कस्टम
क्लियरेंस और पासपोर्ट की जांच चीनी अधिकारी करते हैं। यह पुल नेपाल-चीन की सीमा
पर है और सभी कागजात की जांच होने के बाद यात्रा आगे बढ़ती है। यात्रा का पहला
पड़ाव नायलम होता है। नायलम तिब्बत में है और समुद्र तल से इसकी ऊं चाई 3700
मीटर है। नायलम पहुंचने के बाद अक्सर लोग एक दिन यहां अपने शरीर को वातावरण के
अनुकू ल करने के लिए रुकते हैं।
यात्रा का तीसरा
दिनकहते हैं कि आस्था में इतनी ताकत होती है कि मुश्किल से मुश्किल रास्ता भी
आसान हो जाता है। और श्रद्धालुओं को इसका एहसास भी होने लगता है। गाड़ी से
आपको कारवां प्रतिदिन 260-270 किलोमीटर की दूरी तय करने का लक्ष्य लेकर
चलता है। दूर-दूर तक फै ला सन्नाटा और वीरानी, खामोशी का ऐसा मंजर पैदा कर देती
है कि हर यात्री खुद-ब-खुद खामोश भगवान शिव के एहसास को महसूस करने लगता है।
शाम तक आप सागा पहुंचेंगे।

यात्रा का चौथा दिन


सागा से चौथे दिन आपका सफर प्रयाग के लिए शुरू हो जाएगा। सागा से प्रयाग की दूरी
270 किलोमीटर के करीब है। दस घंटे की यात्रा के बाद प्रयाग में रात बितानी पड़ती है।
चारों और अद्भुत नजारा और भगवान शिव के दर्शन की ललक शायद ही आपको थकान
का एहसास भी होने देगी। क्योंकि पांचवें दिन मानसरोवर के दर्शन के होने वाले हैं।
यात्रा का पांचवां दिन :
दिल्ली से महज चार दिन के सफर के बाद पांचवें दिन आप अद्भुत, अनोखा, पारलौकिक
और एहसास की धरती मानसरोवर झील के सामने होंगे। मानसरोवर की छटा ही निराली
होता है। दूर-दूर गहरा नीला पानी शान्त, निर्मल व स्वच्छता से परिपूर्ण फै ला होता है और
सामने ही होता है ओम पर्वत। 85 किलोमीटर में फै ले मानसरोवर झील की विशालता ये
एहसास कराती है कि धरती पर अगर स्वर्ग है तो कै लाश में ही है। ।इस मानसरोवर झील के
किनारे से कै लाश पर्वत का दक्षिणी हिस्सा दिखाई देता है।

यहां से ओम पर्वत के दर्शन के बाद एक ललक जाग जाती है शिव और पार्वती के दर्शन
की। कै लाश की परिक्रमा करने की। इसके लिए पहले मानसरोवर झील से 60 किलोमीटर
दूर तारचंद का बेस कै म्प आपको पहुंचना होगा। वहां से सभी यात्रियों को कै लाश पर्वत की
परिक्रमा करने की तैयारी करनी होती है और परिक्रमा आप या तो पैदल कीजिए या फिर
घोड़े की सवारी के जरिए। 54 किलोमीटर की परिक्रमा करना आसान नहीं होता है,
लेकिन कै लाश के आसपास का वातावरण ही इतना अद्भुत होता है कि आपको न तो
थकान का एहसास होगा और न ही किसी डर का।
कै लाश दर्शन का छठा दिन:
1980फीट की ऊं चाई, फिर रास्ता सीढी़ की तरह कभी ऊं चाई तो कभी एकदम ढलान।
समुद्रतल से ऊं चाई अधिक होने के कारण वहां ऑक्सीजन की थोडी कमी है। कई
यात्रियों को सांस लेने में तकलीफ होने लगती है लेकिन उनके लिए ऑक्सीजन सिलेंडरों
का इंतजाम होता है।

कै लाश दर्शन का सातवां:


दिनमानसरोवर से तारचेन के लिए जाना होगा जो 40 किलोमीटर दूर है। ये कै लाश मानसरोवर की
परिक्रमा का बेस कैं प माना जाता है। देहारा पुक के लिए पदयात्रा शुरू करनी होगी जहां की वादियों में
आपको बेहद पवित्र अनुभव होने लगेगा। आसापास झरने और ठंडी हवाएं आपकी सारी थकान मिटा देंगी
और आपकी पद यात्रा को सुखद बनाएंगी, जैसे ही जैसे आप आगे बढ़ते जाएंगे कै लाश पर्वत का मुख
आपको नज़र आने लगेगा। परिक्रमा के दूसरे दिन आपको गौरी कु ण्ड के दर्शन होंगे। माना जाता है कि माता
पार्वती इसी कु ण्ड में स्नान करती हैं। पुराणों में लिखा है कि गौरी कु ण्ड के जलस्पर्श मात्र से ही सारे कष्ट दूर
हो जाते हैं। स्नान के बाद परिक्रमा फिर से शुरू हो जाती है। इस दिन 24 किलोमीटर की दूरी तय की जाती
है। परिक्रमा के दौरान कै लाश पर्वत के पश्चिमी, उत्तरी और दक्षिणी मुख के दर्शन होते हैं।
यकीन मानिए, सोने की चमक और चांदी की आभा कै लाश पर्वत पर देखकर आपको वापस अपनी
रोजमर्रा की जिंदगी में वापस लौटने का शायद ही मन करे। ये दिन सबसे मुश्किल लेकिन बेहद
आध्यात्मिक और मन को शांति देने वाला होने वाला है। डोलमा ला पास पहुंचने के लिए आपको
यकु छ भुला कर आंखें बंद करके बैठ जाइए। आपको लगेगा आप स्वर्ग में आ गए हैं और इतनी
शांति शायद ही आपके मन को और कहीं नसीब हो पाई होगी।मस्थल से शिवस्थल तक पहुंचना
होगा, यहां पहुंचते ही आप बस सब

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