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Kailash Yatra
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कै लाश मानसरोवर को हिंदू धर्म के सबसे पवित्र स्थलों में एक माना जाता है।
किं वदंती है कि यहां साक्षात भगवान शिव निवास करते हैं, उन्हीं के दर्शनों के
लिए हजारों-लाखों शिवभक्त हर वर्ष यहां आते हैं। माना जाता है कि यही पर
आदि शंकराचार्य ने भी अपने शरीर का त्याग किया था। यही प्रथम तीर्थकर
ऋषभदेव ने निर्वाण प्राप्त किया था।
तिब्बत में स्थित पर्वत श्रेणी कै लाश के पश्चिम में मानसरोवर झील
तथा दक्षिण में रक्षातल झील है। यहां से ब्रह्मपुत्र, सिंधु तथा
सतलुज सहित कई पवित्र नदियों का उद्गम होता है। इस पूरे खंड
को मानसखंड भी कहा जाता है। कै लाश को गणपर्वत और
रजतगिरी भी कहा जाता है। कु छ विद्वानों के अनुसार शास्त्रों में
बताया गया मेरू पर्वत भी इसी को कहा जाता है।
रशिया के वैज्ञानिकों के अनुसार, एक्सिस मुंडी वह स्थान है, जहां शक्तियों के साथ संपर्क कर
सकते है।
सबसे पहले दिल्ली में सारी औपचारिकताएं पूरी की जाती है फिर हेल्थ चैकअप के बाद
आपको सीधे काठमांडू ले जाया जाएगा। आप चाहें तो काठमंडू में एक दिन रुक कर
अगले दिन से यात्रा आगे बढ़ा सकते हैं। लेकिन अक्सर लोग यहां पशुपतिनाथ जी के
दर्शन के बाद ही कै लाश के दर्शन के लिए आगे का सफर शुरू करते हैं।
यहां से ओम पर्वत के दर्शन के बाद एक ललक जाग जाती है शिव और पार्वती के दर्शन
की। कै लाश की परिक्रमा करने की। इसके लिए पहले मानसरोवर झील से 60 किलोमीटर
दूर तारचंद का बेस कै म्प आपको पहुंचना होगा। वहां से सभी यात्रियों को कै लाश पर्वत की
परिक्रमा करने की तैयारी करनी होती है और परिक्रमा आप या तो पैदल कीजिए या फिर
घोड़े की सवारी के जरिए। 54 किलोमीटर की परिक्रमा करना आसान नहीं होता है,
लेकिन कै लाश के आसपास का वातावरण ही इतना अद्भुत होता है कि आपको न तो
थकान का एहसास होगा और न ही किसी डर का।
कै लाश दर्शन का छठा दिन:
1980फीट की ऊं चाई, फिर रास्ता सीढी़ की तरह कभी ऊं चाई तो कभी एकदम ढलान।
समुद्रतल से ऊं चाई अधिक होने के कारण वहां ऑक्सीजन की थोडी कमी है। कई
यात्रियों को सांस लेने में तकलीफ होने लगती है लेकिन उनके लिए ऑक्सीजन सिलेंडरों
का इंतजाम होता है।