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कै लास पर्वत

तिब्बत में कै लास पर्वतमाला की सबसे ऊँ ची चोटी

इस लेख में सन्दर्भ या स्रोत नहीं दिया गया है।

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कै लाश पर्वत तिब्बत में स्थित एक पर्वत श्रेणी है। इसके पश्चिम तथा दक्षिण में मानसरोवर तथा राक्षसताल झील हैं। यहां से
कई महत्वपूर्ण नदियां निकलतीं हैं - ब्रह्मपुत्र, सिन्धु, सतलुज इत्यादि। हिन्दू सनातन धर्म में इसे पवित्र माना गया है।[1]
कै लाश पर्वत
अष्टापद, रजतगिरी, गणपर्वत

कै लाश, उत्तरी ओर का दृश्य

उच्चतम बिंदु
ऊँ चाई 6,638 मीटर (21,778 फीट)

उदग्रता 1,319 मी॰ (4,327 फीट) 

निर्देशांक 31°4′0″N 81°18′45″E/ 31.06667°N 81.31250°E (http


s://tools.wmflabs.org/geohack/geohack.php?page
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नामकरण
मूल नाम गंग रिपोचे / གངས་རིན་པོ་ཆེ (तिब्बती)
भूगोल

कै लाश पर्वत

भारत,तिब्बत, चीन
मातृ श्रेणी पारहिमालय (ट्रांस- हिमालय)
आरोहण
प्रथम आरोहण आरोहणका प्रयास नहीं किया हुआ

इस तीर्थ को अस्टापद, गणपर्वत और रजतगिरि भी कहते हैं। कै लाश के बर्फ से आच्छादित 6,638 मीटर (21,778 फु ट)
ऊँ चे शिखर और उससे लगे मानसरोवर का यह तीर्थ है। और इस प्रदेश को मानसखंड कहते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार
भगवान ऋषभदेव ने यहीं निर्वाण प्राप्त किया। श्री भरतेश्वर स्वामी मंगलेश्वर श्री ऋषभदेव भगवान के पुत्र भरत ने दिग्विजय के
समय इसपर विजय प्राप्त की। पांडवों के दिग्विजय प्रयास के समय अर्जुन ने इस प्रदेश पर विजय प्राप्त किया था। युधिष्ठिर के
राजसूय यज्ञ में इस प्रदेश के राजा ने उत्तम घोड़े, सोना, रत्न और याक के पूँछ के बने काले और सफे द चामर भेंट किए थे।
इनके अतिरिक्त अन्य अनेक ऋषि मुनियों के यहाँ निवास करने का उल्लेख प्राप्त होता है।[2]

जैन धर्म में इस स्थान का बहुत महत्व है। इसी पर्वत पर श्री भरत स्वामी ने रत्नों के 72 जिनालय बनवाये थे

कै लाश पर्वतमाला कश्मीर से लेकर भूटान तक फै ली हुई है और ल्हा चू और झोंग चू के बीच कै लाश पर्वत है जिसके उत्तरी
शिखर का नाम कै लाश है। इस शिखर की आकृ ति विराट् शिवलिंग की तरह है। पर्वतों से बने षोडशदल कमल के मध्य यह
स्थित है। यह सदैव बर्फ से आच्छादित रहता है। इसकी परिक्रमा का महत्व कहा गया है। तिब्बती (लामा) लोग कै लाश
मानसरोवर की तीन अथवा तेरह परिक्रमा का महत्व मानते हैं और अनेक यात्री दंड प्रणिपात करने से एक जन्म का, दस
परिक्रमा करने से एक कल्प का पाप नष्ट हो जाता है। जो 108 परिक्रमा पूरी करते हैं उन्हें जन्म- मरण से मुक्ति मिल जाती है।

कै लाश- मानसरोवर जाने के अनेक मार्ग हैं किंतु उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के अस्कोट, धारचूला, खेत, गर्ब्यांग,कालापानी,
लिपूलेख, खिंड, तकलाकोट होकर जानेवाला मार्ग अपेक्षाकृ त सुगम है।[3] यह भाग 544 किमी (338 मील) लंबा है और इसमें
अनेक चढ़ाव उतार है। जाते समय सरलकोट तक 70 किमी (44 मील) की चढ़ाई है, उसके आगे 74 किमी (46 मील) उतराई
है। मार्ग में अनेक धर्मशाला और आश्रम है जहाँ यात्रियों को ठहरने की सुविधा प्राप्त है। गर्विअंग में आगे की यात्रा के निमित्त
याक, खच्चर, कु ली आदि मिलते हैं। तकलाकोट तिब्बत स्थित पहला ग्राम है जहाँ प्रति वर्ष ज्येष्ठ से कार्तिक तक बड़ा बाजार
लगता है। तकलाकोट से तारचेन जाने के मार्ग में मानसरोवर पड़ता है।

कै लाश की परिक्रमा तारचेन से आरंभ होकर वहीं समाप्त होती है। तकलाकोट से 40 किमी (25 मील) पर मंधाता पर्वत स्थित
गुर्लला का दर्रा 4,938 मीटर (16,200 फु ट) की ऊँ चाई पर है। इसके मध्य में पहले बाइर्ं ओर मानसरोवर और दाइर्ं ओर
राक्षस ताल है। उत्तर की ओर दूर तक कै लाश पर्वत के हिमाच्छादित धवल शिखर का रमणीय दृश्य दिखाई पड़ता है। दर्रा
समाप्त होने पर तीर्थपुरी नामक स्थान है जहाँ गर्म पानी के झरने हैं। इन झरनों के आसपास चूनखड़ी के टीले हैं। प्रवाद है कि
यहीं भस्मासुर ने तप किया और यहीं वह भस्म भी हुआ था। इसके आगे डोलमाला और देवीखिंड ऊँ चे स्थान है, उनकी ऊँ चाई
5,630 मीटर (18,471 फु ट) है। इसके निकट ही गौरीकुं ड है। मार्ग में स्थान स्थान पर तिब्बती लामाओं के मठ हैं।[4]

यात्रा में सामान्यत: दो मास लगते हैं और बरसात आरंभ होने से पूर्व ज्येष्ठ मास के अंत तक यात्री अल्मोड़ा लौट आते हैं। इस
प्रदेश में एक सुवासित वनस्पति होती है जिसे कै लास धूप कहते हैं। लोग उसे प्रसाद स्वरूप लाते हैं।

कै लाश पर्वत को भगवान शिव का घर कहा गया है। वहॉ बर्फ ही बर्फ में भोले नाथ शंभू अंजान (ब्रह्म) तप में लीन शालीनता से,
शांत ,निष्चल ,अघोर धारण किये हुऐ एकं त तप में लीन है।।
धर्म व शा्स्त्रों में उनका वर्णनं प्रमाण है अन्यथा .....!
शिव एक आकार है जो इस संपदा व प्राकृ ति के व हर जीव के आत्मा स्वरूपी ब्रह्म है क्योंकि हम अभी तक यही ही जानते है।

शिव का अघोर रूप वैराग व गृहत्थ का संभव संपूर्ण मेल है जिसे शिव व शक्ति कहते हैं।

कै लास पर्वत भगवान शिव एवं भगवान आदिनाथ के कारण ही संसार के सबसे पावन
स्थानों में है । कै लाश पर्वत के विषय में
हमारे संस्कृ त साहित्य के अनेकानेक काव्यों में वर्णन मिलता है । जैसे कि महाकवि माघ द्वारा रचित शिशुपालवधम् महाकाव्य
के प्रथम सर्ग में वर्णन मिलता है

सन्दर्भ

1. "क्यों असंभव है कै लाश पर्वत की चोटी तक पहुँचना?" (https://www.uttarakhandhindinews.in/2021/01/w


hy-no-one-can-climb-mount-kailash-and-reason-why-it-is-sacred.html) . अभिगमन तिथि 2021-
01-06.

2. नवभारतटाइम्स.कॉम (2020-06-05). "कै लास पर्वत के ये रहस्य, जानेंगे तो दंग रह जाएंगे" (https://navbharattim
es.indiatimes.com/astro/dharam-karam/religion-and-spiritualism/know-about-the-mystery-of-
kailash-mountain-and-its-spiritual-and-scientific-importance-80130/) . नवभारत टाइम्स. अभिगमन
तिथि 2020-08-28.
3. "शिव-पार्वती के
दर्शन के लिए कै से पहुंचे कै लाश मानसरोवर" (http://khabar.ibnlive.com/news/uncategoriz
ed/105240.html) . आईबीएन-7. अभिगमन तिथि 1 जून 2011.

4. "कै लाश पर्वत से जुड़े ये रहस्य आपको कर देंगे हैरान, क्या सच में यहां रहते हैं भगवान शिव?" (https://www.amaru
jala.com/photo-gallery/bizarre-news/mahashivratri-2020-mystery-of-kailash-mountain-why-no-
one-has-climbed-on-kailash-parvat-till-now) . Amar Ujala. अभिगमन तिथि 2020-08-28.

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