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पर्वतीय र्न

 पर्वतीय क्षेत्रों में जैसे-जैसे ऊपर की ओर जाते हैं, तापमान में गगरार्ट आती-जाती
है| ये गगरार्ट 14 ककमी० की ऊँचाई तक आती है |
 क्षोभमण्डल की औसत ऊँचाई 14 ककमी० तक है| चूँगक पर्वत क्षोभमण्डल की
ओर उठे हुए होते हैं| यही कारण है गक पर्वतों के ऊँचाई पर जाने पर तापमान में
गगरार्ट आती है| तापमान में गगरार्ट के चलते ही पर्वतों के शिखर पर ग्लेशियर
पाये जाते हैं, क्योगक र्र्ाव यहाँ बर्व के रूप में होती है |
 क्षोभमण्डल में ताप ह्रास दर 6.50C/Km है | इसे र्ायुमण्डल का सामान्य ताप
ह्रास दर कहते हैं| पर्वतों पर इस गुण के कारण जलर्ायु में पररर्तवन हो जाता है|
पर्वतों पर थोड़ी ऊँचाई पर जाने पर जलर्ायु बदल जाती है| यही कारण है गक
पर्वतों पर अलग-अलग जलर्ायु र्ाली र्नस्पगतयाां पायी जाती हैं|

भारत में पर्वतीय र्न दो स्थानों पर पाये जाते हैं -

(a) कहमालय पर

(b) दक्षक्षण भ भारत के कक क्षेरों ों में

कहमालय के पर्वतीय र्न

कहमालय पर्वत के ऊँचाई पर जाने पर अलग-अलग जलर्ाय र्ाले र्न


ममलते हैं, जो इस प्रकार हैं-
(i) 1500 मीटर की ऊँचाई तक :- सदाबहार और पतझड़ र्ाले र्न ममश्रित रूप में
पाये जाते हैं |

(ii) 1500 मीटर से 2500 मीटर की ऊँचाई तक :- िीतोष्ण चौड़ी पत्ती र्ाले र्न
पाये जाते हैं | इसके अन्तगवत मुख्य रूप से दे र्दार, ओक, बचव और मैकपल
नामक र्ृक्ष पाये जाते हैं|

 दे र्दार का र्ृक्ष मुख्य रूप से कहमाचल प्रदे श की गर्िेर्ता है |


 पश्रिम गहमालय के तीन राज्यों (जम्मू-कश्मीर, कहमाचल प्रदे श और
उत्तराखण्ड) में िीतोष्ण जलर्ायु के पेटी में ये र्ृक्ष पाये जाते हैं |

(iii) 2500 मीटर से 4500 मीटर की ऊँचाई तक :- कोण भधारी र्न पाये जाते हैं|

 कोणधारी र्न के अन्तगवत प्रमुख र्ृक्ष इस प्रकार हैं - चीड़, स्प्रूस, फर, सनोर्र
और ब्लूपाइन |

(iv) 4500 मीटर से 4800 मीटर की ऊँचाई तक :- टु ण्रा र्नस्पगत बर्ीले क्षेत्र में
उगने र्ाली घास है, जजसमें काई, घास और लाइकेन आदद िाममल हैं |

(v) 4800 मीटर से अमधक ऊँचाई :- इसके ऊपर जाने पर र्नस्पगतयाां नहीं
पायी जाती हैं, क्योंगक 4800 मीटर के ऊपर सांपूणव क्षेत्र बर्ीला है |

दक्षक्षण भ भारत के र्न

 दश्रक्षण भारत में पर्वतीय र्न मुख्य रूप से नीलकगरी, नीलगगरी के दश्रक्षण में
अन्नामलाई, अन्नामलाई के दश्रक्षण में पालनी पहाड़ी में पर्वतीय र्न पाये जाते
हैं|
 इन तीनों पहामड़यों के कुछ-कुछ क्षेत्रों में िीतोष्ण र्न पाये जाते हैं, जजन्हें दश्रक्षण
भारत में शोला कहते हैं |
 िोला र्न के कुछ प्रमुख र्ृक्ष हैं - लारेल, मैगनोललया और लसनकोना |
 दश्रक्षण भारत के र्न गहमालय से ज्यादा ऊँचे नहीं हैं, इसशलए यहाँ कोणधारी र्न
नहीं पाये जाते हैं |
ज्र्ारीय र्न अथर्ा मैंग्रोर् र्न

 भारत में तटीय क्षेत्रों में, नददयों के डेल्टा क्षेत्रों में जो र्ृक्ष पाये जाते हैं, उन्हें
ज्र्ारीय र्न अथर्ा डेल्टाई र्न कहते हैं | ज्र्ारीय र्न पूर्ी तट पर अमधक पाये
जाते हैं | इसके साथ ही गुजरात में थोड़े मात्रा में ज्र्ारीय र्न पाये जाते हैं |
 ज्र्ारीय र्नस्पगतयों की मुख्य गर्िेर्ता है गक समुद्र के जल में डू बे होने के कारण
इनकी छाल खारी होती है ,लकड़ी कठोर होती है और इनकी जड़े ऊपर की ओर
उठी हुई होती हैं |
 नददयों के डेल्टा क्षेत्रों में तट कार्ी नीचे होते हैं, जजसके पररणामस्र्रूप समुद्र का
खारा जल डेल्टा क्षेत्रों में प्रर्ेि कर जाता है| इसके कारण डेल्टा क्षेत्रों की
र्नस्पगतयाँ समुद्र के खारे जल में डू बी हुई होती हैं |
 इन र्नों में मैंग्रोर्ा नामक र्ृक्षों की अमधकता होती है, इसशलए इसे हम मैंग्रोर् र्न
भी कहते हैं |
 मैंग्रोर् र्न अथर्ा ज्र्ारीय र्न की प्रमुख र्नस्पगतयाां इस प्रकार है - मैंग्रोर्ा,
सन्दरी, कैसरीना और फाकनक्स |

भारत में मैंग्रोर् र्नों के मख्य रूप से 5 क्षेरों हैं -

(a) गजरात तट - भारत में मैंग्रोर् र्नों के अन्तगवत सबसे ज्यादा क्षेत्रर्ल गुजरात
तट पर है |

गुजरात के बाद मैंग्रोर् र्नों का सबसे ज्यादा क्षेत्रर्ल आांध्र प्रदे ि तट पर है |

(b) गंगा-ब्रह्मपरों डेल्टा - गांगा-ब्रह्मपुत्र डेल्टा दुगनया का सबसे बड़ा डेल्टा है, गकन्तु
इस डेल्टा का अमधकाँि भाग बाांग्लादे ि में पड़ता है| यही कारण है गक इस डेल्टा
में पाया जाने र्ाला मैंग्रोर् र्नों का क्षेत्रर्ल भारत में स्स्थत नहीं है |

 गांगा-ब्रह्मपुत्र डेल्टा में सुन्दरी नामक र्ृक्ष की अमधकता पायी जाती है, इसशलए
यहाँ के मैंग्रोर् र्न को सन्दरर्न भी कहते हैं |
 सन्दरर्न का कुछ भाग पश्रिम बांगाल के हुगली तट तक पाया जाता है |

(c) महानदी डेल्टा - उड़ीसा

(d) गोदार्री और कृष्ण भा नदी का डेल्टा - (आांध्र प्रदे ि में) - गुजरात के बाद सबसे
ज्यादा मैंग्रोर् र्न आांध्र प्रदे ि में पाये जाते हैं |

(e) कार्ेरी नदी का डेल्टा - तममलनाडु के कार्ेरी नदी के डेल्टा में भी मैंग्रोर् र्न
पाया जाता है |

मैंग्रोर् र्नों का महत्र्


 मैंग्रोर् र्न तटीय पाररस्स्थगतकी का महत्र्पूणव अांग होता है, क्योंगक मैंग्रोर् र्न
सुनामी और चक्रर्ात से तटीय क्षेत्र में रहने र्ाले लोगों की रक्षा करते हैं |
 मैंग्रोर् र्न अनेक जलीय जीर्-जन्तुओं के अपने प्रारस्भभक नसवरी का कायव करते
हैं |

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