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@Akash_Singhh

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भारत का भूगोल
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 +91-7007-931-912 
भारत का भग
ू ोल

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1 भारत के भूआकृतत विज्ञान की बुतनयाद 1
2 उत्तरी मैदान 29
3 प्रायद्िीपीय भारत 40
4 भारत का अपिाह तंत्र 59
5 भारतीय मौसम- ऋतु 86
6 भारतीय जलिायु 111
7 भारत की ममट्टी 132
8 वनस्पततयां 147
CH-1 भारत के भआ
ू कृतत विज्ञान की बतु नयाद

विषयों का अध्ययन करें गे:

• भारतीय भूवैज्ञानिक इनतहास


• पूव-व कैं ब्रियि चट्टािे
➢ आर्कवयि क्रम
➢ धारवाड़ क्रम
➢ कुडप्पा क्रम
➢ वविंध्यि क्रम
• द्रववड़ समूह की चट्टािें
• आयव समुह की चट्टािें
➢ गोंडवािा क्रम
➢ जरु ाससक क्रम
➢ दक्कि ट्रै प
➢ तत
ृ ीयक कल्प
➢ चतर्
ु कव कल्प
• भारत का भूगोल
• भारत के बारे में भौगोसलक तथ्य
• भारतीय मािक मध्याह्ि रे खा
• भारत उष्णकटटबिंधीय या शीतोष्ण कटटबिंधीय दे श?
• सिंयक्
ु त राष्ट्र की समद्र
ु ी कािि
ू सिंधध
• भारत और उसके पड़ोसी
• उत्तरी और पूवोत्तर पववत
• टहमालय का गठि
• ववशेषताएिं
• टहमालय का ववभाजि
• पार्शवव ववभाजि
➢ बह
ृ त ् टहमालयि श्रेणी जजसमें शासमल हैं :
➢ बह
ृ त ् टहमालय (टहमाद्री)
➢ पार-टहमालयि श्रेणी
➢ मध्य टहमालय (टहमािंचल श्रेणी)
➢ बाह्य-टहमालय (सशवासलक श्रेणी)
• अिुदैर्घयव ववभाजि
➢ पिंजाब टहमालय
➢ कुमाऊँ टहमालय
➢ िेपाल टहमालय

1
➢ असम टहमालय
• पूवी टहमालय
• उत्तर-पूवी पहाड़ी और पववत (पूवाांचल)
• पूवाांचल का अिंडमाि निकोबार द्वीप समूह तक ववस्तार
• पजर्शचमी और पूवी टहमालय के बीच मुख्य अिंतर
• भारत में महत्वपण
ू व दरे
• जम्मू कर्शमीर के दरे
• टहमाचल प्रदे श के दरे
• उत्तराखिंड के दरे
• ससजक्कम के दरे
• अरुणाचल प्रदे श के दरे
• टहमालय में टहमािी और टहम रे खा
• टहमालय के महत्वपूणव घाटटयाँ
• टहमालय- शद्
ु ध जल स्रोत/िटदयों का स्रोत
• भारत के सलए टहमालय का महत्व

@Akash_Singhh

2
भारतीय भूिैज्ञातनक इततहास

इसे जटटल और ववववध भग


ू ासभवक इनतहास के आधार पर भारतीय भूवैज्ञानिक सवेक्षण िे दे श की शैल क्रम को 4
प्रमुख भागों में वगीकृत र्कया है

3
चिंपािेर पववत श्रख
िं ृ ला से दक्षक्षणी दक्कि क्षेत्र में
पूिव-कैं ब्रियन चट्टानें
पाई जाती हैं।
• उत्तर भारत में इस क्रम की चट्टािें लद्दाख,
आर्कवयन क्रम की चट्टानें जास्कर, गढ़वाल और कुमाऊँ की टहमालय पववत
• ये सबसे प्राचीि और प्रार्समक आग्िेय चट्टािें हैं श्रिंख
ृ ला तर्ा असम के पठार की लिंबी श्रिंख
ृ ला में
क्योंर्क इिका निमावण तप्त व वपघली हुई पथ्
ृ वी मौजद
ू हैं।
के ठिं डे होिे के क्रम में हुआ र्ा।
• इसमें जीवार्शम अिुपजस्र्त होते हैं।
कुडप्पा क्रम की चट्टानें
• अत्यधधक कायािंतरण के कारण उिका मूल स्वरूप • आर्कवयि क्रम की चट्टािों के अपरदि व निक्षेपण
िष्ट हो गया है । के पररणामस्वरूप कुडप्पा क्रम की चट्टािों का
• आग्िेय चट्टािें > कायािंतरण > िाइस (Gneiss) निमावण हुआ।
• बुिंदेलखिंड िाइस सबसे पुरािा है । • ये बलुआ पत्र्र, चूिा पत्र्र, सिंगमरमर अभ्रक
• प्रायद्वीपीय भारत के लगभग 66% टहस्से में आटद के सलए प्रससद्ध हैं।
आर्कवयि क्रम की चट्टािें पायी जाती हैं। ये वह
ृ त • इि चट्टािों का िाम आिंध्र प्रदे श के कुडप्पा जजले
टहमालय के सार्-सार् पववत चोटटयों के िीचे भी से सलया गया है ।
पाई जाती हैं।
• ये चट्टािें किावटक, मध्य प्रदे श, झारखिंड, मेघालय
• इस क्रम की चट्टािें किावटक, तसमलिाडु, आिंध्र और राजस्र्ाि में पाई जाती हैं।
प्रदे श, मध्य प्रदे श, उड़ीसा, झारखिंड के छोटािागपरु • कुडप्पा चट्टािों के अयस्कों में धातु की मात्रा कम
पठार और राजस्र्ाि के दक्षक्षणी-पूवी भाग में पाई होती है । और कहीिं-कहीिं पर इिका निष्कषवण
जाती हैं। आधर्वक दृजष्टकोण से अलाभकारी होता है ।

धारिाड़ क्रम की चट्टानें वििंध्यन क्रम की चट्टानें


• आर्कवयि क्रम की चट्टािों के अपरदि व निक्षेपण • ये चट्टािें कुडप्पा क्रम की चट्टािों के बििे के
के पररणामस्वरूप धारवाड़ क्रम की चट्टािों का बाद िदी घाटटयों और उर्ले महासागरों के गाद
निमावण हुआ। जमाव द्वारा बिी र्ी। इससलए ये चट्टािें
• इिमें जीवार्शम िहीिं समलता (इिके गठि के अवसादी चट्टािें होती हैं।
दौराि प्रजानतयों की उत्पवत्त िहीिं हुई र्ी ) है । इि चट्टािों में सक्ष्
• ू म जीवों के जीवार्शमों के साक्ष्य
• ये पुराति अवसादी चट्टािें होती हैं। पाए गए हैं।
• ववर्शव की सबसे पुरािी वसलत पववत श्रख
िं ृ ला यह चट्टािें गह
• ृ -निमावण के सलए प्रससद्ध हैं। लाल
अरावली इन्ही चट्टािों से बिी है । र्कला, सािंची स्तूप, जामा मजस्जद आटद की
• आर्कवयि क्रम की चट्टािें आधर्वक दृजष्टकोण से सिंरचिा इसी क्रम की लाल बलुआ पत्र्र से
अत्यधधक महत्वपूणव हैं। सभी प्रमख
ु धाजत्वक निसमवत हैं। इसके अनतररक्त चीिी समट्टी,
खनिज (सोिा, लोहा, मैंगिीज आटद) इन्हीिं डोलोमाइट(dolomite), चूिा पत्र्र आटद भी इस
चट्टािों में पाई जाती है । क्रम की चट्टािों के अिंतगवत आते हैं।
• धारवाड़ क्रम की चट्टािें मख्
ु य रूप से किावटक के • मध्य प्रदे श ( पन्िा) और किावटक के गोलकोंडा
कावेरी घाटी, धारवाड़, बेल्लारी, सशमोगा, जबलपुर की हीरे की खदािें इसी क्रम की चट्टािों के
और िागपुर में सासार पववत तर्ा गज
ु रात में अिंतगवत आते हैं।

4
• ये चट्टािें मालवा पठार, सोि घाटी में सेमरी द्वारा लाए गए पदार्ों के जमाव से इस अवसादी
श्रेणी, बुिंदेलखिंड आटद में पाई जाती हैं। चट्टाि का निमावण हुआ।
• उस काल की विस्पनतयों के जमीि के अन्दर
द्रविड़ समूह की चट्टाने
दबिे के पररणामस्वरूप कोयले का निमावण हुआ।

द्रववड़ समूह की चट्टाि (कैजम्ियि से मध्य • यह कोयला अब मुख्य रूप से दामोदर िदी, सोि,

काबोनिफेरस तक ) महािदी, गोदावरी और वधाव िदी घाटटयों में पाया

• इसका निमावण प्रायद्वीपीय पठार में िहीिं हुआ हैं जाता है ।

क्योंर्क यह उस समय समद्रु तल से ऊपर र्ा।


• ये चट्टािें टहमालय में एक निरिं तर क्रम में पाई जुराससक क्रम :

जाती हैं। • जुराससक के उत्तराधव में समुद्री जल के क्रसमक

• ये चट्टािें जीवार्शम से यक्


ु त हैं। फैलाव िे राजस्र्ाि और कच्छ में उर्ले पािी के

• काबोनिफेरस युग में कोयले का निमावण शुरू हुआ। जमाव की वह


ृ त ् श्रिंख
ृ ला को जन्म टदया।
• भूववज्ञाि में काबोनिफेरस का अर्व है - जजसमें • मूिंगा, चूिा पत्र्र, बलुआ पत्र्र, वपण्ड और शेल्स,

कोयला पाया जाए। कच्छ से प्राप्त होते हैं।

• भारत में पाए जािे वाला अधधकािंश कोयला • प्रायद्वीप के पूवी तट गुिंटूर और राजमुिंदरी के बीच

काबोनिफेरस कल्प का िहीिं हैं। ठीक ऐसे ही सागरी जल का फैलाव पाया गया।

• सिंयक्
ु त राज्य अमेररका, ब्रिटे ि में ग्रेट लेक्स क्षेत्र
का उच्च गुणवत्ता वाला कोयला और जमविी के रुर दक्कन ट्रै प

क्षेत्र में पाया जािे वाला कोयला काबोनिफेरस कल्प • मेसोजोइक महाकल्प की अिंनतम काल (क्रेटे सशयस

का है । कल्प ) में प्रायद्वीपीय भारत में ज्वालामुखी

• इिका निमावण प्रायद्वीपीय पठार में िहीिं हुआ हैं प्रर्क्रया शरू
ु हुई जजसके पररणामस्वरूप दक्कि ट्रै प

क्योंर्क यह उस समय समद्रु तल से ऊपर र्ा। का निमावण हुआ।


• यह सिंरचिा बेसाल्ट और डोलोराइट चट्टािों से
आयवन समूह की चट्टाने बिी है ।
• ज्वालामुखी की इि चट्टािों में लावा के बीच कुछ
• गोंडिाना क्रम की चट्टानें पतली जीवार्शम अवसादी परतें पायी जाती हैं। यह
• गोंडवािा शब्द मध्य प्रदे श के गोंड क्षेत्र से सलया लावा के असतत प्रवाह को इिंधगत करता है ।
गया है । ज्वालामुखीय गनतववधध के कारण दो बड़ी घटिाएिं
• भारत में 98% कोयला इसी क्रम की चट्टािों में हुईं र्ीिं:
पाया जाता है । 1. गोंडवािालैंड का ववभाजि।
• गोंडवािा कोयला काबोनिफेरस कोयले की तुलिा में 2. टे धर्स सागर से टहमालय का उत्र्ाि।
बहुत बाद का बिा हुआ है इससलए इसमें काबवि • ये चट्टािें बहुत कठोर होती हैं और इि चट्टािों
की मात्रा कम होती है । के लिंबे समय तक हुए अपक्षय के पररणामस्वरूप
• इि चट्टािों का निमावण काबोनिफेरस और काली कपासी समट्टी का निमावण हुआ जजसे 'रे गुर'
जुराससक काल के बीच हुआ र्ा। के िाम से भी जािा जाता है ।
• काबोनिफेरस कल्प के दौराि प्रायद्वीपीय भारत में • यह सिंरचिा महाराष्ट्र के अधधकािंश टहस्सों,
वववतवनिक हलचल द्वारा कई दरारों/सिंकरी घाटटयों गुजरात, मध्य प्रदे श और तसमलिाडु के कुछ
का निमावण हुआ। तर्ा इि सिंकरी दरारों में िटदयों टहस्सों में भी पाई जाती है ।

5
तत
ृ ीयक कल्प की चट्टानें • टहमालय पववत श्रख
िं ृ ला का ववकास निम्ि क्रम में
• तत
ृ ीयक कल्प को कालािक्र
ु समक रूप से चार भागों हुआ है :
में ववभाजजत र्कया गया है 1. बहृ त टहमालय का निमावण ओसलगोसीि काल के
• इयोसीि दौराि हुआ र्ा।
• ओसलगोसीि 2. मध्य टहमालय का निमावण मायोसीि काल के
• मायोसीि दौराि हुआ र्ा।
• प्लायोसीि 3. सशवासलक का निमावण प्लायोसीि और ऊपरी
• भारत के भूवज्ञ
ै ानिक इनतहास के सलए यह कल्प, प्लायोसीि काल के दौराि हुआ र्ा।
टहमालय के ववकास के कारण सबसे महत्वपूणव हो • असम, राजस्र्ाि और गज ु रात में खनिज तेल
जाता है । इयोसीि और ओसलगोसीि काल के चट्टािों में
पाया जाता है ।

चतुर्व (Quarternary) कल्प की चट्टानें (घाटी) को जन्म टदया, जजसे 'करे िा' के िाम से
• ये चट्टािें गिंगा और ससिंधु िदी के मैदािों में पाई जािा जाता है ।
जाती हैं। • प्लीस्टोसीि काल का निक्षेपण र्ार रे धगस्ताि में
• चतर्
ु व कल्प को कालािक्र
ु समक रूप से दो भागों में भी पाया जाता है ।
बािंटा गया है
होलोसीन युग
प्लेइस्टोससन काल • खादर' के रूप में जािी जािे वाली जलोढ़ समट्टी
• पुरािी जलोढ़ समट्टी जजसे 'बािंगर' के िाम से जािा का निमावण प्लीस्टोसीि काल के अिंत में शरू
ु होकर
जाता है , का निमावण ऊपरी और मध्य प्लीस्टोसीि होलोसीि काल तक चला।
काल के दौराि हुई र्ी। • 'कच्छ का रण' पहले समुद्र का एक टहस्सा र्ा जो
• कर्शमीर घाटी शुरुआत में एक झील र्ी लेर्कि प्लीस्टोसीि और होलोसीि काल के दौराि अवसादी
समट्टी के निरिं तर निक्षेपण िे वतवमाि स्वरूप निक्षेपण से भर गया।

6
भारत का भूगोल भारत की मुख्य भूसम उत्तर में कर्शमीर से लेकर दक्षक्षण
भारत क्षेत्रफल की दृजष्ट से दनु िया का 7 वाँ सबसे बड़ा में कन्याकुमारी तक और पूवव में अरुणाचल प्रदे श से
दे श है । जजसे टहमालय शेष एसशया से अलग करता है । लेकर पजर्शचम में गुजरात तक फैली हुई है ।

भारत: दे शािंतरीय और अक्ािंशीय विशेषताएिं

मानचचत्र किंु जी (map key): 3. गुजरात, राजस्र्ाि, मध्य प्रदे श, छत्तीसगढ़,


1. भारत के द्वीप समूह अरब सागर और बिंगाल की झारखिंड, पजर्शचम बिंगाल, ब्रत्रपुरा और समजोरम
खाड़ी में जस्र्त हैं। राज्यों से होकर ककव रे खा गुजरती है ।
2. मािधचत्र में टदखाये गए दे श भारतीय उपमहाद्वीप 4. सबसे उत्तरी अक्षािंश जम्मू और कर्शमीर में इिंटदरा
का निमावण करते हैं । कोल है ।
5. भारतीय मुख्य भूसम का सबसे दक्षक्षणी अक्षािंश
तसमलिाडु में कन्याकुमारी है । ध्याि दें र्क भारत

7
का सबसे दक्षक्षणतम ब्रबिंद ु इिंटदरा पॉइिंट है जो 2.4 प्रनतशत है ।
अिंडमाि और निकोबार द्वीपसमूह के ग्रेट निकोबार • भारत का तट पूवव में बिंगाल की खाड़ी और पजर्शचम
द्वीप का सबसे दक्षक्षणी ब्रबद
िं ु भी है । इिंटदरा पॉइिंट में अरब सागर तक फैली है।
को पहले पैग्मसलयि पॉइिंट या पासवि पॉइिंट के रूप • गुजरात और अरुणाचल प्रदे श के बीच दो घिंटे का
में जािा जाता र्ा। समय अिंतर होता है । (1 ° = 4 समिट)।
6. मािधचत्र में पव
ू ी और पजर्शचमी दे शािंतरीय ववस्तार • उत्तर से दक्षक्षण तक मख्
ु य भसू म की अधधकतम
को टदखाया गया है । लिंबाई लगभग 3214 र्कमी है ।
7. समुद्र से तीि तरफ से नघरा क्षेत्र • पूवव से पजर्शचम तक की मख्
ु य भूसम की अधधकतम
8. श्रीलिंका और भारत को अलग करिे वाला लिंबाई लगभग 2933 र्कमी है ।
जलडमरूमध्य, पाक जलडमरूमध्य है । • भारत की तटरे खा की कुल लिंबाई लगभग 6,100
9. भारत के सिंघ शाससत प्रदे श को टदखाया गया है । र्कमी है तर्ा अिंडमाि-निकोबार और लक्षद्वीप
द्वीपसमूह सटहत लगभग 7,516 र्कलोमीटर है ।
भारत के बारे में भौगोसलक तथ्य • भारत की क्षेत्रीय सीमा समुद्र से 12 समुद्री मील
• भारत का क्षेत्रफल 3.28 लाख वगव र्कमी. है । (यािी लगभग 21.9 र्कमी) तक फैली हुई है ।
• भारत दनु िया के कुल भौगोसलक क्षेत्र का लगभग

भारतीय मानक याम्योत्तर


• 82° 30' पूवी मध्यान्ह उत्तर प्रदे श के समजावपरु
शहर को पार करते हुए गज ु रती हैं। इसको भारत
के मािक याम्योत्तर के रूप में जािा जाता है ।
• भारतीय मािक समय ग्रीिववच मध्य समय से
(जजसे जीएमटी या 0 ° या प्रधाि याम्योत्तर के
रूप में भी जािा जाता है ) 5 घिंटे 30 समिट आगे
है ।
• ककव रे खा (23 ° 30'N) गज
ु रात, राजस्र्ाि, मध्य
प्रदे श, छत्तीसगढ़, झारखिंड, पजर्शचम बिंगाल, ब्रत्रपुरा
और समजोरम से होकर गज
ु रती है ।

8
दे शािंतरीय और अक्ािंशीय विस्तार भारत उष्णकटटबिंधीय या शीतोष्णकटटबिंधीय दे श?
• ककव रे खा दे श के मध्य से होकर गुजरती है जो ककव रे खा के दक्षक्षण में जस्र्त दे श का आधा भाग
इसे दो बराबर अक्षािंशीय टहस्सों में ववभाजजत करती उष्णकटटबिंधीय या गमव क्षेत्र में जस्र्त है और दस
ू रा
है ककव रे खा के उत्तर में उपोष्णकटटबिंधीय क्षेत्र में जस्र्त
• ककव रे खा के उत्तर में जस्र्त क्षेत्र इसके दक्षक्षण में है ।
जस्र्त क्षेत्र का लगभग दोगि
ु ा है । • टहमालय द्वारा दे श को शेष एसशया से अलग
• 22 ° उत्तरी अक्षािंश के दक्षक्षण में दे श प्रायद्वीप के र्कया जाता है
रूप में टहिंद महासागर से 800 र्कमी अधधक दरू • इसकी जलवायु पर उष्णकटटबिंधीय मािसूि का
है । अधधक प्रभाव होता है ।
• यह अवजस्र्नत दे श में जलवायु, समट्टी के प्रकार • टहमालय ठिं डी शीतोष्ण वायु धाराओिं को रोकता है ।
और प्राकृनतक विस्पनतयों में बड़े बदलाव के सलए
जजम्मेदार है ।

अतः भारत मख्


ु य रूप से टहमालय के कारण उष्णकटटबिंधीय दे श है ।

9
सिंयुक्त राष्ट्र की समद्र
ु ी कानून सिंचध o र्कसी दे श के क्षेत्रीय जल से गुजरते समय
• समुद्री कािूिों पर सिंयुक्त राष्ट्र सम्मेलि पिडुब्बी को सतह पर चलिा होता हैं और
(UNCLOS) को समुद्री विचध सिंचध के रूप में भी अपिे झिंडे टदखािे होते हैं।
जािा जाता है ।
• इसे "महासागरों का सिंविधान" मािा जाता है । समीपिती क्ेत्र
• िवीितम समुद्री विचध का सिंस्करण • क्षेत्र 12 िॉटटकल मील प्रादे सशक जल से आगे
UNCLOS III है । इसमें समुद्री सीमाओिं से (यािी आधारभूत सीमा से 24 समुद्री मील)।
सिंबिंधधत सभी महत्वपण
ू व मद्
ु दों को शासमल र्कया • दे श केवल 4 क्षेत्रों में कािूि लागू कर सकता है -
गया है । प्रदष
ू ण, कराधाि, सीमा शुल्क और अप्रवास पर ।
यह समुद्र में खिि, पयाववरण सिंरक्षण, समुद्री सीमा
और वववाद निपटाि का कायव करता है । विशेष आचर्वक क्ेत्र (EEZ)
UNCLOS महासागरों को निम्ि प्रकार से ववभाजजत • बेसलाइि से 200 िॉटटकल मील तक प्रादे सशक
करता है समुद्र के र्किारे का क्षेत्र।
• सभी प्राकृनतक सिंसाधिों के उपयोग पर सिंबिंधधत
दे श का एकाधधकार होता है ।
• ववशेष आधर्वक क्षेत्र (EEZ) को शुरू करिे का
सबसे महत्वपूणव कारण मछली पकड़िे के अधधकार
और तेल अधधकारों पर होिे वाली झड़पों को
रोकिा र्ा।
• ववदे शी जहाजों को तटीय राज्यों के ववनियमि के
अधीि रहकर , िेववगेशि और उड़ाि की स्वतिंत्रता
है ।
• ववदे शी राज्यों को पिडुब्बी पाइप और केबल
ब्रबछािे की अिुमनत है ।

प्रादे सशक जल
भारत और उसके पड़ोसी
• बेसलाइि से 12 िॉटटकल मील।
• दे श इसके सिंसाधिों का उपयोग करिे और
कािूि बिािे के सलए स्वतिंत्र हैं।
• "निदोष गमि के मागव" (innocent passage) को
छोड़कर ववदे शी जहाजों को गुजरिे के सभी
अधधकार िहीिं टदए गए हैं।
o ऐसे जलमागो से गुजरता है जो शािंनत और
सुरक्षा की दृजष्ट के पूवावग्रह से मुक्त है ।
o राष्ट्रों को निदोष गमि मागव को बन्द करिे
का अधधकार है ।

10
• भारत की 15106.7 र्कलोमीटर की स्र्लीय सीमा ससजक्कम, अरुणाचल प्रदे श
7 दे शों की स्र्लीय सीमा से नघरी हुई है । पार्कस्तान 3322 जम्मू और कर्शमीर,
• भारत उत्तर और पव ू ोत्तर में िवीि वसलत पववतों पिंजाब, राजस्र्ाि, गुजरात
(बह ृ त ् टहमालय) से नघरा हुआ है । नेपाल 1751 उत्तराखिंड, उत्तरप्रदे श,
• प्राचीि समय में भारत के व्यापाररक सिंबिंध यहािं के ब्रबहार, पजर्शचम बिंगाल,
जलमागव और पववत-पठार के कारण अत्यधधक ससजक्कम
प्रभाववत हुए र्े। म्यािंमार 1643 अरुणाचल प्रदे श, िागालैंड,
• भारत उत्तर-पजर्शचम में अफगानिस्ताि और मणणपुर, समजोरम
पार्कस्ताि के सार्; उत्तर में चीि, नतब्बत (चीि), भूटान 699 ससजक्कम, पजर्शचम बिंगाल,
िेपाल के सार्; उत्तर-पूवव में भूटाि; और पूवव में असम, अरुणाचल प्रदे श
म्यािंमार और बािंग्लादे श के सार् सीमा साझा करता अफ़गातनस्तान 106 जम्मू और कर्शमीर
है । (पीओके में वाखाि
• भारत की सबसे लिंबी सीमा बािंग्लादे श के सार् है कॉररडोर)
जबर्क सबसे छोटी सीमा अफगानिस्ताि के सार्
है । उत्तरी और पूिोत्तर पिवत
• श्रीलिंका और मालदीव टहिंद महासागर में जस्र्त
टहमालय ( भूगभीय रूप से युवा और वसलत पववत)
भारत के दो पड़ोसी द्वीपीय दे श हैं।
भारत के उत्तरी भाग में फैला हुआ है । ये पववत
• मन्िार की खाड़ी और पाक जलडमरूमध्य( pak
श्रिंख
ृ लाएिं ससिंधु से िह्मपत्र
ु तक पजर्शचम से पव
ू व टदशा में
strait) श्रीलिंका को भारत से अलग करता है ।
फैली हुई हैं। टहमालय दनु िया के सबसे ऊबड़-खाबड़
पववतीय बाधाओिं में से एक है । वे एक चापाकार (arc
shaped) आकृनत बिाते हैं, जो लगभग 2,400
र्कलोमीटर की दरू ी तक फैला हुआ है । इिकी चौड़ाई
कर्शमीर में 400 र्कलोमीटर और अरुणाचल प्रदे श में
150 र्कलोमीटर तक है । पजर्शचमी टहस्से की तुलिा में
पूवी भाग में ऊिंचाई की सभन्िताएिं अधधक हैं।
टहमालय अपिे अिद
ु ै ध्यव ववस्तार में तीि समािािंतर
पववत श्रेणणयों को शासमल करता हैं। इि श्रेणणयों के
बीच कई घाटटयाँ हैं। सबसे उत्तरी सीमा को महाि या
भीतरी टहमालय या 'टहमाटद्र‘ के रूप में जािा जाता है ।
यह 6,000 मीटर की औसत ऊिंचाई के सार् सबसे
पड़ोसी सीमा की सीमािती राज्य ऊिंची चोटटयों से यक्
ु त है। इसमें टहमालय की सभी
लिंबाई प्रमुख चोटटयाँ पायी जाती हैं।
(र्कमी में)
टहमालय का गठन
बािंग्लादे श 4096 पजर्शचम बिंगाल, असम,
मेघालय, ब्रत्रपुरा, समजोरम
• 225 समसलयि वषव पूवव (MA) भारत एक बड़ा
चीन 3488 जम्मू और कर्शमीर,
द्वीप र्ा जो ऑस्ट्रे सलयाई तट से दरू र्ा और
टहमाचल प्रदे श, उत्तराखिंड,
टे धर्स महासागर द्वारा एसशया से अलग र्ा।

11
• सुपरकॉजन्टिेंट पैंजजया 200 समसलयि वषव पहले भ्रिंशि ( folding and faulting) के कारण यह
(Ma) ववघटटत होिा आरम्भ हुआ और भारत का महाद्वीपीय परत मोटी हो गई।
एसशया की ओर एक उत्तरमख
ु ी बहाव शुरू हुआ। • भारत एसशया के पूवोत्तर में लगातार सिंचसलत हो
• 80 समसलयि वषव पहले (Ma) भारत एसशयाई रहा है इससलए टहमालय अभी भी प्रनत वषव 1
महाद्वीप से 6,400 र्कमी दक्षक्षण में र्ा लेर्कि सेमी अधधक ऊँचा हो रहा है , जो आज इस क्षेत्र
प्रनत वषव 9 से 16 सेमी की दर से यह इसकी ओर में उर्ले फोकस वाले भक
ू िं पों की घटिाओिं का
बढ़ रहा र्ा। स्पष्ट कारण है ।
• एसशया के नीचे टे चर्स महासागरीय नितल उत्तर
विशेषताएिं
की ओर बढा होगा और प्लेट सीमान्त
महासागरीय-महाद्वीपीय हो गई होगी जैसा की • टहमालय का दक्षक्षणी भाग धिष
ु ाकार या चापाकार

वतवमाि एिंडीज श्रेणी । है ।

• लगभग 50-40 समसलयि वषव पहले , भारतीय • टहमालय का यह घुमावदार आकार इसके उत्तर की

महाद्वीपीय प्लेट के उत्तरोत्तर अपवाह की दर ओर सिंचलि के दौराि भारतीय प्रायद्वीप के दोिो


र्किारों पर लगिे वाले बल के कारण हुआ है ।
लगभग 4-6 सेमी प्रनत वषव हो गई।
• इस दर मे कमी को, यूरेसशयि और भारतीय • उत्तर-पजर्शचम में यह बल अरावली द्वारा और
पूवोत्तर में असम पववतश्रेणी द्वारा लगाया गया र्ा।
महाद्वीपीय प्लेटों के बीच टकराव की शरु
ु आत,
पूवव टे धर्स महासागर के समापि और टहमालय के • पजर्शचम में टहमालय की चौड़ाई अधधक है तर्ा पूवव

उत्र्ान की शुरुआत के रूप में धचजह्ित र्कया गया की ओर टहमालय सिंकरा होता चला गया है जजसके

है । कारण पूवी टहमालय की ऊिंचाई पजर्शचमी टहमालय

• यूरेसशयि प्लेट आिंसशक रूप से टूटिे लगी और के अपेक्षाकृत अधधक है ।

भारतीय महाद्वीप प्लेट के ऊपर आ गई, लेर्कि


उिके कम घित्व के कारण दोिों मे से र्कसी टहमालय के अक्सिंघीय मोड़

भी महाद्वीपीय प्लेट का क्षेपण िही हो सका। पूवव में िह्मपुत्र गाजव, पजर्शचम में ससन्धु गाजव में

• टहमालय और नतब्बती पठार को ऊपर की ओर टहमालय पूवव – पजर्शचम तक फैला है और इि घाटटयों

धकेलिे वाले सिंपीडडत बलों द्वारा वलि और पर तेज दक्षक्षणमुखी मोड़ लेता है । इि मोड़ों को
टहमालय के अक्सिंघीय मोड़ के नाम से जाना जाता
है ।
• पजर्शचमी अक्षसिंघीय मोड़ ििंगा पववत के पास पाया
जाता है ।
• पूवी अक्षसिंघीय मोड़ िमचा बरवा के पास है ।

12
टहमालय का विभाजन

• पवू ी टहमालय ससजक्कम से असम तक फैला हुआ


• टहमालय पववत श्रिंख
ृ ला को पजर्शचमी, मध्य और पूवी है और इसमें भूटाि, अरुणाचल प्रदे श और असम
टहमालय में वगीकृत र्कया जा सकता है । श्रिंख
ृ लाएिं शासमल है ।
• कभी-कभी नतब्बत टहमालय को शासमल करके एक
और वगीकरण जोड़ा जाता है जजसमें नतब्बत के
पठार के दक्षक्षणी र्किारे शासमल होते हैं।

टहमालय पववत श्रिंख


ृ ला को तिंग
ु ता(ऊिंचाई) के आधार पर
निम्ि प्रकार से वगीकृत र्कया जाता है :

1.बह
ृ त टहमालय जजसमें निम्ि शासमल हैं:
• पजर्शचमी टहमालय में जम्मू और कर्शमीर, • महाि टहमालय (टहमाद्री)

पीरपािंजाल, लद्दाख और धगलधगट बाजल्टस्ताि • पार-टहमालय श्रख


िं ृ ला

क्षेत्र शासमल हैं। 2. मध्य टहमालय (टहमािंचल श्रिंख


ृ ला)
• मध्य टहमालय जम्मू और कर्शमीर से ससजक्कम • बाह्य या उप-टहमालय (सशवासलक श्रख
िं ृ ला )
तक फैला है और इसमें टहमाचल, गढ़वाल, पिंजाब
और िेपाल का क्षेत्र शासमल है ।

13
पार्शिव मिंडल

टहमालय पिवत समूह : दक्षक्ण से उत्तर तक पार्शिव चचत्र


• भारत की ओर टहमालय का दक्षक्षणी ढाल तीक्ष्ण है
• पूवव की तुलिा में पजर्शचम में टहमालय अधधक चौड़ा जबर्क नतब्बत की और इसकी ढाल सामान्य हैं।
है । • इसमें दनु िया के कुछ सबसे बड़े टहमिद शासमल हैं
• चौड़ाई कर्शमीर में 400 र्कमी से लेकर अरुणाचल और गिंगोत्री एविं यमुिोत्री टहमिद सटहत इिकी
प्रदे श में 160 र्कमी तक है । सिंख्या 15000 तक पहुँच जाती है ।
• इस अिंतर के पीछे मख्
ु य कारण यह है र्क • टहमालय पववत से निकलिे वाली िटदयाँ बारहमासी
सिंपीडिात्मक बल पूवव की तुलिा में पजर्शचम में होती हैं और इिमें साल के लगभग हर महीिे में
अधधक है । पािी होता है ।
• इसीसलए पूवी टहमालय में माउिं ट एवरे स्ट और • दनु िया की आबादी का लगभग पािंचवािं टहस्सा
किंचिजिंगा जैसी ऊिंची पववत चोटटयाँ मौजूद हैं। टहमालय प्रणाली के जल पर निभवर करता है ।
• ववसभन्ि श्रेणीयों को गहरी घाटटयों द्वारा अलग • टहमालय का बेससि लगभग 19 िटदयों द्वारा बिा
र्कया जाता है जो एक अत्यधधक ववच्छे टदत है । जजन्हें गिंगा, ससिंधु और िह्मपुत्र की तीि
स्र्लाकृनत बिाती है । प्रमुख िदी प्रणासलयों में बािंटा जा सकता है ।

14
• िटदयों के अलावा टहमालय श्रिंख
ृ ला में कई मीठे • मत्वपूणव झीलों में नतसलचो, पैगोंग सो और
पािी एविं खारे पािी की झीले मौजूद है । यमद्रोक सो झील शासमल हैं।

बह
ृ त ् टहमालयन पिवत श्िंख
ृ ला

पार-टहमालयन श्ख
िं ृ ला (ततब्बती टहमालय)

टहमालय के इस भाग की अधधकािंश सीमा नतब्बत में जस्र्त है और इससलए इसे नतब्बती टहमालय भी कहा जाता है ।
यह सीमा टहमाटद्र के उत्तर में मख्
ु य श्रेणणयों के सार् जस्र्त है ।

जास्कर • इसे कृष्णधगरर के िाम से भी जािा जाता है , जो


• यह 80 डडग्री पूवी दे शािंतर के पास महाि टहमालय ट्रािंस-टहमालय पववतमाला के उत्तरी भाग में जस्र्त
से अलग हो जाती है और इसके समािािंतर चलती है ।
है । • दनु िया का तीसरा सबसे बड़ा ग्लेसशयर इसमें
• ििंगा पववत (8126 मीटर) उत्तर-पजर्शचम में जास्कर जस्र्त है ।
श्रेणी की सवोच्च चोटी है । इसके अिंतगवत • यह चीि और अफगानिस्ताि के सार् सीमा बिाता
निकटवती दे वसई पववत को भी शासमल र्कया जा है ।
सकता है । • K2 (गॉडववि ऑजस्टि) दनु िया की दस
ू री सबसे
• लद्दाख श्रेणी जास्कर श्रेणी के उत्तर में जस्र्त है , ऊिंची और भारतीय क्षेत्र की सबसे ऊिंची चोटी है ।
जो इसके समािािंतर चलता है ।
लद्दाख
काराकोरम (उत्तरतम सीमा) • यह लेह के उत्तर में जस्र्त है ।
• यह नतब्बत में कैलाश श्रिंख
ृ ला के सार् समल जाता
है ।

15
कैलाश

पामीर ग्रिंचर् (Pamir knot)


• पामीर पववत की एक अद्ववतीय भौगोसलक ववशेषता शाि, काराकोरम, कुिलुि शाि, टहन्दकुश और
है । पामीर श्रेणी शासमल हैं।
• यह दनु िया की कुछ प्रमख
ु पववत श्रख
िं ृ लाओिं के • कई दे श पामीर गाँठ पर अपिा दावा करते हैं
असभसरण को सिंदसभवत करता है । जजसमें नतयाि- जबर्क यह वास्तव में पव
ू ी ताजजर्कस्ताि के गोिो-

16
बदाख-शाि स्वायत्त क्षेत्र में है । • इसमें मुख्य रूप से रूपािंतररत चट्टािें हैं।
• इस श्रेणी के पूवी भाग के ढलाि घिे जिंगलों से
आच्छाटदत हैं।
• इस श्रेणी के दक्षक्षण की ओर तीि ढाल है और
यह आम तौर पर र्कसी भी विस्पनत से रटहत हैं।
• जबर्क इस श्रेणी की उत्तरी ढाल घिी विस्पनतयों
से आच्छाटदत है ।
• स्र्ािीय िाम -जम्मू और कर्शमीर में पीर पिंजाल;
टहमाचल प्रदे श में धौलाधार।
• सशमला, मसूरी, िैिीताल, दाजजवसलिंग आटद जैसे
पहाड़ी शहर टहमाचल में जस्र्त हैं।
• सभी बड़ी घाटटयाँ जैसे कर्शमीर घाटी, कािंगड़ा घाटी,
महान टहमालय (टहमाटद्र)
कुल्लू घाटी यहाँ मौजूद हैं।
• टहमालय की सबसे ऊिंची और सबसे उत्तरी सीमा।
• विों के प्रकार → चौड़े पत्तों वाले ,सदाबहार वि
• 6,000 मीटर की औसत ऊिंचाई के सार् सबसे
ऊिंची चोटटयों से समलकर बिी श्रेणी है ।
• इसमें टहमालय की सभी प्रमुख चोटटयाँ शासमल
हैं।
• यह अक्षसिंघीय मोड़ पर आकर समाप्त हो जाती हैं

• महाि टहमालय की तहें प्रकृनत में ववषम हैं।
टहमालय के इस भाग का मख्
ु य भाग ग्रेिाइट से
बिा है ।
• चोटटयाँ ऊिंचाई के कारण बफव से ढकी रहती हैं।
बाह्य या उप टहमालय (सशिासलक श्ेणी )
इससलए इसका िाम टहमाटद्र भी है
• टहमालय की सबसे दक्षक्षणी और बाहरी सीमा जो
• टहमालय की लगभग सभी प्रमुख चोटटयाँ इस
ववशाल मैदािों और निम्ि टहमालय के बीच
श्रेणी में जस्र्त हैं जैसे एवरे स्ट, किंचिजिंगा आटद।
जस्र्त है ।
• गिंगोत्री और यमुिोत्री जैसे प्रससद्ध ग्लेसशयर यहाँ
• इसे प्राचीि काल में मािक पववत के रूप में भी
जस्र्त हैं।
जािा जाता र्ा।
• विों के प्रकार → शिंकुधारी वक्ष

• इिका ववस्तार 10-50 र्कलोमीटर की चौड़ाई और
900 से 1100 मीटर की ऊिंचाई तक है ।
मध्य टहमालय (टहमािंचल श्ेणी)
• ये पववतमाला उत्तर में जस्र्त मुख्य टहमालय
• यह सीमा दक्षक्षण में सशवासलक और उत्तर में महाि
पववतमाला से िटदयों द्वारा लाई गई असिंगटठत
टहमालय के बीच जस्र्त है ।
तलछट से बिी हैं।
• अधधकािंश बीहड़ पववतीय तिंत्र अत्यधधक सिंकुधचत
• ये घाटटयाँ मोटी बजरी और जलोढ़ से आच्छाटदत
और पररवनतवत चट्टािों से बिी हैं।
हैं।
• ऊँचाई 3,700 से 4,500 मीटर के बीच और
औसत चौड़ाई 50 र्कलोमीटर है ।

17
• 80-90 र्कमी के अिंतराल को छोड़कर ये कम ऊँची
पहाडड़यािं लगभग अखिंड श्रख
िं ृ ला हैं जो तीस्ता िदी
और रै डक िदी की घाटी द्वारा आच्छाटदत है ।
• अधधकािंश दि
ू और दआ
ु र इस श्रेणी में जस्र्त हैं।
• विों के प्रकार → पणवपाती प्रकार के वि

दन
ू :
दि
ू अिुदैध्यव घाटटयािं हैं जो यूरेसशयि प्लेट और
भारतीय प्लेट के टकरािे के कारण हुए वलि के
पररणामस्वरूप बिी हैं । ये निम्ि टहमालय और
सशवासलक के बीच बिे हैं। इि घाटटयों में टहमालयी
िटदयों द्वारा लाए गए मोटे जलोढ़ का निक्षेपण पाया
जाता है । इन्हें पजर्शचम में दि
ू और पूवव में दआ
ु र के
िाम से जािा जाता है । दे हरा दि
ू ,कोटली दि
ू और
पटली दि
ू कुछ प्रससद्ध दि
ू हैं।

Chhos / चोस
िेपाल तक सशवासलक श्रेणी का पूवी भाग घिे जिंगलों
से ढका हुआ है । जबर्क पजर्शचम में विावरण कम घिा
है । पिंजाब और टहमाचल प्रदे श में सशवासलक श्रेणी के
दक्षक्षणी ढाल लगभग वि आवरण से रटहत हैं और
मौसमी धाराओिं द्वारा निदे सशत हैं। ऐसे क्षेत्रों को
पिंजाब टहमालय
स्र्ािीय रूप से चोस (chhos) के रूप में जािा जाता
• ससिंधु और सतलज
ु िटदयों के बीच का टहमालय
है । इसे आमतौर पर पिंजाब के होसशयारपुर जजले में
क्षेत्र (560 र्कमी लिंबा)।
दे खा जाता है ।
• ससिंधु िदी प्रणाली की सभी प्रमुख िटदयाँ पिंजाब
टहमालय से होकर बहती हैं।
सशिासलक का नाम क्ेत्र
जम्मू क्षेत्र जम्मू की पहाडड़याँ
दफला, समरी, अबोर और अरुणाचल प्रदे श
समर्शमी पहाड़ी
धिंग श्रेणी , डिंडवा श्रेणी उत्तराखिंड
चुररया घाट टहल्स िेपाल

अनुदैध्यव विभाजन
िदी घाटी के आधार पर टहमालय का पजर्शचम से पव • पिंजाब टहमालय का एक बड़ा टहस्सा जम्मू- कर्शमीर
ू व
तक ववभाजि निम्ि तरीके से र्कया गया है । और टहमाचल प्रदे श में है। इससलए उन्हें कर्शमीर
और टहमाचल टहमालय भी कहा जाता है ।

18
• प्रमुख श्ेणणयािं: काराकोरम, लद्दाख, पीर पिंजाल, नेपाल टहमालय
जास्कर और धौलाधार।
• कर्शमीर टहमालय करे वा सिंरचिाओिं के सलए भी
प्रससद्ध है जो केसर की स्र्ािीय र्कस्म जाफ़राि
की खेती के सलए उपयोगी हैं।
• दक्षक्षण एसशया के महत्वपण
ू व ग्लेसशयर जैसे
बोल्तारो और ससयाचचन भी इस क्षेत्र में पाए
जाते हैं।
• लद्दाख पठार और कर्शमीर घाटी, कर्शमीर टहमालय
क्षेत्र के दो महत्वपूणव क्षेत्र हैं।
• बह
ृ त ् टहमालय श्रिंख
ृ ला इस टहस्से में अधधकतम
कुमाऊिं टहमालय ऊिंचाई प्राप्त करती है ।
• कुमाऊिं टहमालय उत्तराखिंड में जस्र्त है और • यह पजर्शचम में काली िदी और पूवव में तीस्ता िदी
सतलज ु से काली िदी तक फैला हुआ है । के बीच मे जस्र्त है ।
• कुमाऊिं टहमालय में लघु टहमालय का प्रनतनिधधत्व, • प्रससद्ध चोटटयािं माउिं ट एवरे स्ट, किंचिजिंगा, मकालू,
मसूरी और िाग टटबा पववतमाला द्वारा र्कया अन्िपण
ू ाव, गोसाईर्ाि और धौलाधगरी यहाँ जस्र्त
जाता है । हैं।
• भूआकृनत ववज्ञाि के दृजष्टकोण से इस क्षेत्र की दो • इस क्षेत्र में लघु टहमालय को महाभारत श्ेणी के
ववशेषताएिं 'सशवासलक' और 'दि
ू ' निमावण हैं। िाम से जािा जाता है ।
• इस क्षेत्र में सशवासलक, गिंगा और यमुिा िटदयों के • इसकी श्रेणी को घाघरा, गिंडक, कोसी आटद िटदयों
बीच मसूरी श्रेणी के दक्षक्षण में जस्र्त है । द्वारा पार र्कया जाता है ।
• महाि और लघु टहमालय के बीच में काठमािंडू और
पोखरा सरोवर घाटटयाँ हैं।

असम टहमालय
• टहमालय का यह टहस्सा पजर्शचम में तीस्ता िदी
और पूवव में िह्मपुत्र िदी के बीच जस्र्त है और
लगभग 720 र्कमी की दरू ी तक फैला है ।
• यह किंचिजिंगा जैसी उच्च पववत चोटटयों का एक
क्षेत्र है ।
• इसका दक्षक्षणी ढाल बहुत तीव्र है लेर्कि उत्तरी ढाल
मिंद हैं।
• ब्रिटटशों िे इस क्षेत्र में चाय के बागािों की
शुरूआत की र्ी।
• 'दआ
ु र सिंरचिाओिं' के सलए प्रससद्ध, जैस-े बिंगाल
दआ
ु र '
• इस क्षेत्र में टहमालय सिंकरा है और यहाँ लघु
• इस क्षेत्र में पाँच प्रससद्ध प्रयाग (िदी सिंगम) हैं। टहमालय बह
ृ त ् टहमालय के करीब है ।

19
• असम टहमालय भारी वषाव के कारण िदी-सिंबिंधी • ये पहाडड़याँ पैमािे और उच्चावच में सभन्ि हैं
कटाव का एक प्रमख
ु प्रभाव दशावता है । लेर्कि इिकी उत्पवत्त टहमालय से ही हुई है ।
• वे ज्यादातर सैंडस्टोि (यािी तलछटी चट्टािों) से
बिे होते हैं।
• ये पहाडड़याँ घिे जिंगलों से आच्छाटदत हैं।
• उत्तर से दक्षक्षण की ओर इिकी ऊँचाई कम होती
जाती है । हालािंर्क तुलिात्मक रूप से कम ऊँची
होती हैं क्योंर्क ये पहाड़ी ऊबड़-खाबड़ क्षेत्रों, घिे
जिंगलों और तेज धाराओिं के कारण पररवतवि का
ववरोध करती हैं।

इन पहाडड़यों से बनी है :
• पटकाई बूम - अरुणाचल प्रदे श और म्यािंमार के
बीच की सीमा
• िागा पहाडड़याँ
• मणणपुरी पहाडड़याँ - मणणपरु और म्यािंमार के बीच
की सीमा
• जेलेप ला पास- भारत - चीि-भट
ू ाि का ब्रत्र-
• समजो पहाडड़याँ
जिंक्शि- इस क्षेत्र में जस्र्त है ।
• पटकाई बम
ू और िागा पहाडड़याँ भारत और
पूिी टहमालय म्यािंमार के बीच सीमा बिाती हैं।

उत्तर-पूिी पहाड़ी और पिवत पूिाांचल पहाडड़यों का अिंडमान तनकोबार द्िीप समूह


• टदहािंग घाटी के बाद टहमालय अचािक दक्षक्षण की तक विस्तार
ओर मड़
ु जाता है । उत्तर-दक्षक्षण टदशा म्यािंमार
और भारत की सीमा के सार् में चलिे वाली पववत
श्रिंख
ृ लाओिं को सामूटहक रूप से पूवाांचल पहाड़ी के
रूप में जािा जाता है ।
• पूवाांचल की पहाडड़यों को ववसभन्ि स्र्ािीय िामों
से जािा जाता है जैसे पटकाई बम
ु , िागा पहाड़ी,
कोटहमा पहाड़ी, मणणपुर पहाड़ी, समजो पहाड़ी (पहले
लुशाई पहाड़ी के रूप में जािा जाता र्ा), ब्रत्रपुरा
पहाड़ी और बरै ल श्रेणी। • पूवाांचल टहमालय का ववस्तार म्यािंमार श्रख
िं ृ ला

• ये पहाडड़याँ भारत के पव और यहािं (अराकाि योमा) से आगे इिंडोिेसशया


ू ोत्तर राज्यों से होकर
द्वीप समूह से होते हुए अिंडमाि और निकोबार
गुजरती हैं।
द्वीप समूह तक ववस्तत
ृ है।

20
पश्र्शचमी और पूिी टहमालय के बीच मुख्य अिंतर

21
भारत के महत्िपूणव दरे
पववतों के आर-पार ववस्तत
ृ सँकरे और प्राकृनतक मागव, जजससे होकर पववतों को पार र्कया जा सकता है , दरे कहलाते
हैं| पररवहि, व्यापार, युद्ध असभयािों और मािवीय प्रवास में इि दरों की महत्वपूणव भूसमका रही है| भारत के
अधधकतर दरे टहमालय क्षेत्र में पाये जाते हैं|

J & K के दरे

22
टहमाचल प्रदे श के दरे

23
उत्तराखिंड के दरे

24
ससश्क्कम के दरे

25
अरुणाचल प्रदे श के दरे

26
टहमालय में ग्लेसशयर और टहम रे खा

र्कसी पववत या उच्च भूसम पर वह कजल्पत रे खा जजसके ऊपर सदै व बफव जमी रहती है । यह स्र्ायी टहमावरण की
निम्ितम सीमा होती है । इस रे खा के िीचे सिंधचत टहम ग्रीष्म ऋतु में वपघल जाती है र्कन्तु इसके ऊपर का भाग
सदै व टहमाच्छाटदत रहता है।

पश्र्शचमी टहमालय में टहम रे खा पूिी टहमालय की


तुलना में कम ऊिंचाई पर होती है ।

• उदाहरण के सलए ससजक्कम में किंचिजिंगा के


टहमिद मुजर्शकल से 4000 मीटर से िीचे हैं,
जबर्क कुमाऊिं और लाहुल में 3600 मीटर और
कर्शमीर टहमालय के ग्लेसशयर समुद्र तल से 2500
मीटर तक हैं।
• इसका कारण अक्षािंश में वद्
ृ धध है जो किंचिजिंगा
में 28 ° N से काराकोरम में 36 ° N तक बड़े ग्लेसशयरों के प्रमाण पीरपिंजाल और धौलाधार पववत
दे खी जा सकती हैं (निम्ि अक्षािंश > गमव श्रेणी में पाए जाते हैं।
तापमाि > उच्च टहम रे खा )।
• इसके अलावा पूवी टहमालय, उच्च श्रेणणयों के
टहमालय की महत्िपूणव घाटटयााँ
हस्तक्षेप के ब्रबिा पजर्शचमी टहमालय से औसति
• कर्शमीर घाटी और करे वा की घाटी
ऊँचा उठा हुआ है ।
• टहमाचल प्रदे श में कािंगड़ा और कुलु घाटी;
• पजर्शचमी टहमालय में कुल वषाव बहुत कम होती है
• दि
ू घाटी (दि
ू घाटी, दे हरादि
ू घाटी); उत्तराखिंड में
लेर्कि पूरे वषवभर बफव के रूप में वषाव होती है ।
भागीरर्ी घाटी (गिंगोत्री के पास) और मिंदार्किी
• बह
ृ त ् टहमालयि पववतमाला के उत्तरी ढलाि की
घाटी (केदारिार् के पास)
तल
ु िा में दक्षक्षणी ढलािों पर कम ऊिंचाई की टहम
• िेपाल में काठमािंडू घाटी।
रे खा हैं। ऐसा इससलए है क्योंर्क उत्तरी ढलािों
की तुलिा में दक्षक्षणी ढलाि अधधक खड़ी हैं तर्ा टहमालय- मीठे पानी / नटदयों का स्रोत:-
ये अधधक वषाव प्राप्त करते हैं।
ग्लेसशयर- ये ग्रेट टहमालय और ट्रािंस-टहमालय • टहमालय पववत श्रिंख
ृ ला भारत के सार् ववर्शव की
पववतमाला (काराकोरम, लद्दाख और जास्कर) में पाए कुछ सबसे बड़ी िटदयों का स्रोत है ।
जाते हैं। लघु टहमालय में छोटे ग्लेसशयर हैं हालािंर्क

27
• ध्रव
ु ीय क्षेत्रों के बाद यह पथ्
ृ वी पर मीठे पािी • दनु िया की आबादी का लगभग पािंचवािं टहस्सा
(freshwater) का सबसे बड़ा स्रोत है । टहमालय तिंत्र के जल पर निभवर है ।
• पथ्
ृ वी पर अिंटाकवटटक और आकवटटक के बाद बफव • टहमालय बेससि में 19 िटदयािं हैं। तर्ा उन्हें
का यहािं तीसरा सबसे बड़ा जमाव है । गिंगा, ससिंधु और िह्मपत्र
ु की तीि प्रमुख िदी तिंत्र
• इसमें गिंगोत्री और यमुिोत्री ग्लेसशयर सटहत दनु िया में बािंटा जाता है ।
के कुछ सबसे बड़े ग्लेसशयरों के सार् लगभग • िटदयों के अलावा, टहमालय श्रिंख
ृ ला में बड़ी सिंख्या
15000 ग्लेसशयर हैं । में मीठे पािी की झीलें हैं ।
• टहमालय पववत से निकलिे वाली िटदयाँ बारहमासी • कुछ महत्वपूणव झीलों में नतसलचो, पैगािंग सो और
होती हैं और इिमें वषव भर पािी होता है । यमद्रोक सो झील शासमल हैं ।

भारत के सलए टहमालय का महत्ि :-


जलिायु का • टहमालय की ऊँचाई, फैलाव और ववस्तार ग्रीष्म मािसूि को रोकते हैं।
महत्ि • वे शीत साइबेररयाई वायु धाराओ को भारत में प्रवेश करिे से भी रोकते हैं।
कृवष महत्ि • टहमालय से प्रवाटहत होिे वाली िटदयों में भारी मात्रा में गाद (जलोढ़) आती है , जो लगातार
मैदािी क्षेत्रों को समद्
ृ ध बिाती है जजससे भारत के सबसे उपजाऊ कृवष मैदािों का निमावण
होता है । इन्हें उत्तरी मैदािों के रूप में जािा जाता है ।
सामररक महत्ि • टहमालय भारतीय उपमहाद्वीप के सलए सटदयों से एक प्राकृनतक रक्षात्मक ढ़ाल के रूप में
खड़ा है ।
आचर्वक महत्ि • टहमालयी िटदयों की ववशाल पिब्रबजली क्षमता।
• टहमालय में समद्
ृ ध शिंकुधारी और सदाबहार वि पाए जाते हैं। जो उद्योगों के सलए ईंधि
और लकड़ी की एक ववशाल ववववधता प्रदाि करते हैं।
• इिमें ववसभन्ि प्रकार की टहमालयि जड़ी बूटी और औषधीय पौधे भी पाए जाते हैं।
पयवटन महत्ि • प्रमुख प्राकृनतक दृर्शयों और टहल स्टे शिों का सिंकलि है।
• श्रीिगर, डलहौजी, धमवशाला, चिंबा, सशमला, कुल्लू, मिाली, मसूरी, िैिीताल, रािीखेत,
अल्मोड़ा, दाजजवसलिंग, समररक, गिंगटोक आटद टहमालय के महत्वपूणव पयवटि केंद्र हैं। इि
जगहों पर कई टहिंद ू और बौद्ध मिंटदर भी हैं।
पयाविरण • इिमें बह
ृ त ् पाररजस्र्नतक जैव ववववधता पाई जाती है और भारत के चार हॉटस्पॉट जोि
महत्ि में से एक हैं ।

28
CH-2 उत्तरी मैदान

भारत के उत्तर में स्थित विशाल मैदान हिमालय के बाद मध्य अक्ाांश पर स्थित एक उपजाऊ भमू म िैं| ये अपेक्ाकृत
िाल की उत्पवत्त िैं और हिमालय से ननकलने िाली एिां तेज गनत से बिने िाली नहदयों द्िारा लाए गए गाद से
ननममित िोती िैं।

उत्तर भारत का विशाल मैदानी क्ेत्र मशिामलक के दक्षक्ण में स्थित िै , जो हिमालयी फ्रांटल फॉल्ट (HFF) द्िारा पि
ृ क
िोता िै । प्रायद्िीपीय पठारी क्ेत्र इसकी दक्षक्णी सीमा बनाती िै । पूिि में , मैदानों की सीमा पूिाांचल की पिाड़ियों से
लगती िै । उत्तरी मैदान भारत की सबसे कम उम्र की भौगोमलक विशेषता िै ।

उत्तरी मैदानों का विकास


ऐसा माना जाता िैं की हिमालय के ननमािण के साि
िी उत्तरी मैदान का ननमािण प्रारभां िो गया िा|

• टे थिस सागर में हिमालय के उत्िान के कारण,


भारतीय प्रायद्िीप का उत्तरी भाग जलमग्न िो गया
िा और एक विशाल घाटी का ननमािण िुआ।

• यि घाटी उन नहदयों की तलछट से भरा गया िा


जो उत्तर में पिा़िों से और दक्षक्ण में प्रायद्िीप से
उत्पन्न िुई िी।

29
• िाल के समय में (करो़िो िषों के बाद), तीन प्रमख
ु • उत्तरी सीमा को मशिामलक द्िारा अच्छी तरि से
नहदयों- मसांध,ु गांगा और ब्रह्मपत्र
ु के ननक्ेपण थचस्ह्नत ककया जाता िै और दक्षक्णी सीमा को
कायि, उत्कृष्टता पे प्रतीत िोते िैं।. प्रायद्िीपीय भारत के उत्तरी ककनोरों के साि |
• पररणामथिरूप, इस मैदान को भारत के गांगा- • पस्चचमी भाग सल
ु ेमान और कीिािर श्रेणणयों द्िारा
ब्रह्मपुत्र के मैदान के रूप में भी जाना जाता िै ।. विभास्जत िै ।

• जलोढ़ क्ेत्र की गिराई अलग-अलग थिाांनो पर


उत्तरी मैदानों की मुख्य विशेषताएं:
अलग –अलग िोती िै | जलोढ़ की अथधकतम गिराई

पथ्
ृ िी की सति के नीचे की चट्टानों में लगभग
• भारत का उत्तरी मैदान तीन नदी तांत्र, अिाित मसांध,ु
6,100 मीटर िै ।
गांगा और ब्रह्मपुत्र और उनकी सिायक नहदयों
द्िारा ननममित िै । • इस समतल मैदान की अत्यथधक क्ैनतजता इसकी
मुख्य विशेषता िै ।
• उत्तर का मैदान दनु नया का सबसे ब़िा जलोढ़ क्ेत्र
िै । • इसकी सामान्य ऊँचाई समद्र
ु तल से लगभग 200
मीटर िै , सबसे अथधक ऊँचाई अांबाला के समीप
• यि मसांधु के मुिाने से गांगा के मुिाने तक लगभग
समद्र
ु तल से 291 मीटर िै (यि ऊँचाई मसांधु नदी
3,200 ककमी तक फैला िुआ िै ।
तांत्र और गांगा नदी तांत्र के बीच जल विभाजक का
• इन मैदानों की औसत चौ़िाई 150 और 300 ककमी
काम करती िै )।
िै । सामान्य तौर पर, उत्तरी मैदानी इलाकों की
चौ़िाई पि
ू ि से पस्चचम तक (असम में 90-100
• भौनतक भूदृचय, नदी का ककनारा, तटबांध आहद(नदी
के प्रिाि) से टूट जाते िै ।
ककमी और पांजाब में लगभग 500 ककमी) तक बढ़
o बाढ़प्रिण क्ेत्र - ककसी नदी घाटी का िि
जाती िै ।
हिथसा िोता िै , जो नदी प्रणाली के समीप

30
िोता िै , तिा बाढ़ के समय स्जसके ऊपर से • यि गांगा-ब्रह्मपुत्र मैदान का एक सांकीणि, पारगम्य,
जल की धारा बिती िै । सबसे उत्तरी भाग िै
o तटबांध - एक उठा िुआ ककनारा िोता िै , जो • यि लगभग 8-16 ककमी चौ़िा िै जो मशिामलक के
नदी प्रणाली को प्रिाहित करता िै और मख्
ु त: ननचले क्ेत्रों (जलोढ़) में पूि-ि पस्चचम हदशा में
बाढ़ प्रिण क्ेत्र के थतर से ऊपर रिता िै । समानाांतर विथतत
ृ िै
o नदी का उच्च उध्िाधर ककनारा (Bluff) - जब • मसांधु से तीथता तक इनमे ननरां तरता दे खी जा
कोई नदी ककसी ख़िी चट्टान के ककनारे को सकती िैं।
थपशि करती िुई नतरछा काटती िै । तब नदी • हिमालय से ननकलने िाली नहदयाँ ननचले क्ेत्रों के
का उच्च ख़िा ककनारा अक्सर वपछले बाढ़ के साि-साि जलोढ़ पांखे के रूप में अपना
मैदान के ककनारे को दशािती िुईं प्रतीत िोती भार(गाद\ननक्ेपण) जमा करती िैं।
िै |
• इन जलोढ़ पांखो (अक्सर कांक़ि िाली ममट्टी) द्िारा
उत्तरी मैदान का भौततक विभाजन

भारत के विशाल उत्तरी मैदान को इनके उच्च्िाच के िी मुख्त: भाबर बेल्ट का ननमािण िोता िै ।
आधार पर ननम्नमलणखत उपविभागों में विभास्जत
• सांरांध्रता के कारण भाबर क्ेत्र में आने पर धाराएँ
ककया जाता िै :
प्रमुखतालुप्त िो जाती िैं
1. भाबर के मैदान|
2. तराई क्ेत्र के मैदान|
• इसके बाद, इस क्ेत्र को बाररश के मौसम को
छो़िकर सख
ू ी नदी मागों द्िारा अलग ककया जाता िै
3. भाांगर के मैदान|
4. खादर के मैदान • भाबर बेल्ट पूिि में सांकरा और पस्चचम में चौ़िा िै ।
5. डेल्टा मैदान
यि क्ेत्र अपनी झरझरा प्रकृनत और कांक़ि ज़िी
भाबर चट्टानों की उपस्थिनत के कारण खेती के मलए
भाबर के मैदान जम्मू से असम तक मशिामलक के उपयुक्त निीां िै ; इस बेल्ट में केिल विशाल पे़िों िाले
दक्षक्ण में स्थित िै विशाल िक्
ृ िी फलते-फूलते िैं।

31
तराई
• मुख्य रूप से शुष्क क्ेत्रों में , भाांगर नमकीन और
क्ारीय छोटे पिों(way) को प्रदमशित करता िै स्जन्िें
‘रे ि ‘, कल्लर’ या 'भूर’ ’के नाम से जाना जाता िै ।
रे ि क्ेत्रों में िाल के हदनों में मसांचाई में िद्
ृ थध िुई िै
(केमशका किया सति पर लिण लाती िै )।?

• बांगाल के डेल्टा क्ेत्र में 'बररांड क्ेत्र' और मध्य गांगा


और यमुना दोआब में 'भुर सांरचनाओां' भाांगर के
क्ेत्रीय रूपाांतर िैं।

• भाांगर में गैंडे, दररयाई घो़िे, िािी और आगे? जैसे


• तराई एक सूखा, नम और घने जांगल िाला क्ेत्र िै जीिों के जीिाचम िैं।
इसके दक्षक्ण में समानाांतर भाभर का क्ेत्र चौ़िा
• इस क्ेत्र में दोमट ममट्टी पाए जाते िै और आम
पाए जाते िै ।
तौर पर यि गिरे रां ग की िोती िै ।
• तराई लगभग 15-30 ककमी चौ़िा िैं।
• इस बेल्ट में भाबर बेल्ट की भूममगत धाराएँ बिती
खादर
िैं।
• खादर नए जलोढ़ से बना िै और नदी के ककनारे
• तराई पूिी हिथसे में पस्चचम की तुलना में अथधक
बाढ़ प्रिण का ननमािण करता िै ।
विभास्जत प्रतीत िोती िै क्योंकक पूिी भागों में
• िर साल नदी की बाढ़ से जलोढ़ की एक नई परत
तुलनात्मक रूप से अथधक िषाि िोती िै ।
का ननमािण िोता िै |
• तराई की ममट्टी गाद-भरी और नाइट्रोजन और
• जो इसको उत्तरी मैदानों का सबसे उपजाऊ भाग
काबिननक पदािों से भरपरू िोती िै लेककन इसमें
बनाता िै |
प्रमुख्त: फॉथफेट की कमी पाई जाती िै |
• यि प्रमुख्त: रे तीले और दोमट ममट्टी िोते िैं|
• आजकल िररयाणा, पांजाब, उत्तराखांड, और उत्तर प्रदे श
स्जसमे सोखने, अथधक प्रक्ामलत और अस्थिर िोने
में तराई क्ेत्र को खेती के मलए मांजूरी दे दी गई िै
की प्रिवत्त िोती िै |
क्योंकक यि खाद और काबिननक पदािों में समद्
ृ ध
• पांजाब में , खादर के समद्
ृ ध बाढ़ के मैदानों को
िै ।
थिानीय रूप से 'बेटलैंड्स' या 'बेट्स' के रूप में
• यि गेिूां, चािल, मक्का, गन्ना आहद की खेती के
जाना जाता िै ।
मलए उपयक्
ुि त िै |
• पांजाब-िररयाणा के मैदानी इलाकों में नहदयाँ खा़ि

भांगर
• भाांगर नदी के ककनारे पुराने जलोढ़ िैं जो बाढ़प्रिण
क्ेत्रों की तुलना में अथधक ऊांचे िोते िैं

• ऊांचाई िाले भागो को ननयममत रूप से(चुना –पत्िर)


कैल्केररयस सॉमलडेशांस (चन
ू े के नोडल्स के बेड) के
द्िारा भरा जाता िै , स्जन्िें 'कांकर' के रूप में भी
जाना जाता िै ।
की विथतत
ृ बाढ़ के मैदान िैं, स्जन्िें थिानीय तौर

32
पर धाय(Dhaya=Heavily gullied bluffs) के नाम • पांजाब का तात्पयि "द लैंड ऑफ फाइि ररिेस"ि के
से जाना जाता िै । ये 3 मीटर तक ऊांचे िोते िैं। साि बिने िाली नहदयों से िै : झेलम, थचनाब, रािी,
उत्तरी मैदानों के क्षेत्रीय वितरण सतलज और ब्यास|
• इस समतल क्ेत्र की औसत ऊँचाई समुद्र तल से
लगभग 250 मीटर ऊपर िै|
• पांजाब -िररयाणा मैदान की पि
ू ी सीमा को हदल्ली-
अरािली पिितश्रेणी द्िारा पि
ृ क ककया जाता िै |
• सतलुज नदी के दक्षक्ण में, पांजाब का मालिा का
मैदान स्थित िै |
• मैदान का भूगमभिक उद्गम पैमलयोजेन और
ननयोजीन िै (यानी, लगभग 65 और 2.6 मममलयन
िषि पूि)ि - दक्षक्ण में इसकी सति - इसकी सति
का ननमािण मेन्रा धाराओां की मसस्ल्टां ग किया द्िारा
िुआ िै ।
• यि मैदान िो़िा ऊँचा िै , जो उत्तर पूिि में 2,140
फीट (650 मीटर) और दक्षक्ण पूिि में 700 फीट
(200 मीटर) िै । रािी, ब्यास, सतलज और यमुना
बारिमासी नहदयाँ िैं।
• दक्षक्ण-पि
ू ि में मख्
ु त: उपोष्णकहटबांधीय कांटीले जांगल
पंजाब का मैदान
िैं, और साि िी इसमें शुष्क पणिपाती िन भी पाए
उत्तर पस्चचमी भारत में पांजाब के मैदान ब़िे जलोढ़
जाते िैं।
मैदान िैं। इसका क्ेत्रफल लगभग 38,300 िगि मील
• कृवष क्ेत्र अििव्यिथिा का मुख्य आधार िै , और
(99,200 िगि ककमी) िै और इसमें शािदरा अांचल को
अथधकाांशत: मैदानी क्ेत्र पर खेती की जाती
छो़िकर पांजाब , िररयाणा और हदल्ली के केंद्र शामसत
िै ;स्जसपर अनाज, कपास, गन्ना, और नतलिन
प्रदे श शाममल िैं।
उगाए जाते िैं। अथधकाांश क्ेत्र मसांचाई निरों से भरा
यि उत्तर में मशिामलक रें ज, पूिि में यमुना नदी, दक्षक्ण
िुआ िै ।
में राजथिान राज्य के शष्ु क क्ेत्र, और उत्तर और
• हदल्ली, अमत
ृ सर, लथु धयाना, जालांधर और चांडीगढ़
दक्षक्ण-पस्चचम में िमशः रािी और सतलज नहदयों से
में केंहद्रत ब़िे पैमाने पर उद्योग विमभन्न प्रकार के
नघरा िुआ िै ।
सामानों का उत्पादन करते िैं, स्जनमें कप़िा,
साइककल पाट्िस, मशीन टूल्स, कृवष उपकरण, खेल
यि मैदान मसांधु तांत्र की पाांच प्रमुख नहदयों द्िारा
के सामान, रोस़्िन, तारपीन और िाननिश शाममल िैं।
आकार लेता िै
• मैदान मुख्य रूप से 'दोआब' से बना िै –(स्जसको
गंगा का मैदान
दो नहदयों के बीच की क्ेत्र के रूप में भी जाना
जाता िै | • यि हदल्ली से कोलकाता (लगभग 3.75 लाख िगि

• नहदयों द्िारा ननक्ेपण प्रकिया इन दोआब में ककमी) तक फैले भारत के विशाल मैदान की सबसे

शाममल िो कर एक सजातीय थिरूप लेता िै । ब़िी क्ेत्र िै |

33
िाले सुन्दरी नामक िक्ृ पर िुआ िै जो दलदली
• गांगा अपनी सिायक नहदयों की विशाल सांख्या के
भूमम में अच्छी तरि से बढ़ता िै । यि रॉयल टाइगर
साि इस मैदान में जल ननकासी करती िै । हिमालय
और मगरमच्छों का प्राकृनतक ननिास थिान िै ।
में उत्पन्न िोने िाली ये धाराएँ पिा़िों से ब़िी मात्रा
सुंदरबन
में जलोढ़ लाती िैं और इस व्यापक मैदान को
गांगा के मैदानी इलाकों के क्ेत्रीय विभाजन:
बनाने के मलए इसे यिाँ जमा करती िैं|
• रोहिलखांड मैदान
• चांबल, बेतिा, केन, सोन आहद प्रायद्िीपीय नहदयों
• अिध के मैदान
ने गांगा नदी प्रणाली में शाममल िोकर इस मैदान के
• ममथिला का मैदान
विकास में योगदान हदया िै |
• मगध का मैदान।
• नहदयाँ गांगा के ननचले क्ेत्रों में धीमी गनत से बिती
िैं स्जसके कारण इस क्ेत्र को थिानीय क्ेत्र से ब्रह्मपत्र
ु मैदान
अलग ककया जाता िै जैसे कक तटबांध, नदी के • इसे ब्रह्मपुत्र घाटी या असम घाटी या असम मैदान
ककनारे , गोखुर झील, दलदल, घाटी इत्याहद। के रूप में भी जाना जाता िै क्योंकक ब्रह्मपुत्र घाटी
का अथधकाांश हिथसा असम में स्थित िै ।
• लगभग सभी नहदयाँ अपने मागों को बदलते रिती
• इसकी पस्चचमी सीमा भारत-बाांग्लादे श सीमा के
िैं स्जससे इस क्ेत्र में बार-बार बाढ़ आती िै |
साि-साि ननचले गांगा मैदान की सीमा से बनती
• इस सांबांध में कोसी नदी बेिद प्रमुख िै । इसे लांबे िै । इसकी पूिी सीमा पूिाांचल की पिाड़ियों द्िारा
समय तक बबिार का 'दःु ख'(शोक ) किा जाता रिा बनती िै ।
िै । यि ब्रह्मपत्र और उसकी सिायक नहदयों के
• ु
• उत्तरी राज्य िररयाणा, हदल्ली, यप
ू ी, बबिार, पि
ू ि में ननक्ेपी कायों द्िारा विकमसत ननक्ेवपत मैदान िै ।
झारखांड और पस्चचम बांगाल का हिथसा गांगा के • उत्तरी भाग से ननकलने िाली ब्रह्मपुत्र नदी की
मैदान में स्थित िै । अनेक सिायक नहदयाां जलोढ़ पांख का ननमािण
करती िै ।
• गांगा-ब्रह्मपुत्र डेल्टा: दनु नया का सबसे ब़िा डेल्टा।
• इसमलए, सिायक नहदयाां कई चैनलों/नालों में
तटीय डेल्टा का एक ब़िा हिथसा सांद
ु रबन नामक
विभास्जत िो जाती िै और इस प्रकार नदी विसपों
ज्िारीय जांगलों द्िारा सुरक्षक्त िै ।
का ननमािण िोता िै जो अांत मे गोखुर झील के रूप
• सुांदरबन, इस ग्रि पर सबसे ब़िे मैंग्रोि दलदल िै मे बदल जाती िै ।
स्जसका नामकरण इसमें ििृ द् पैमाना पर पाए जाने • इस क्ेत्र में विशाल दलदली इलाके िैं। मोटे जलोढ़
मलबे के द्िारा ननममित जलोढ़ पांख के कारण
तराई या अधि-तराई क्ेत्र का ननमािण िोता िै ।
• ब्रह्मपुत्र की माजुली नदी द्िीप विचि में सबसे
ब़िा नदी तटीय द्िीप िै
• माजुली द्िीप समिू को भारतीय सांसकृनत मांत्रालय
द्िारा यूनेथको के विचि धोरिर थिल के मलए
नाममत ककया गया िा परन्तु 2020 की सच
ू ी में
इसको शाममल निीां ककया गया िैं|

उत्तरी मैदानों का महत्ि

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• ितिमान में दे श की इस एक चौिाई भूमम पर भारत में कुल 247 द्िीप िैं स्जनमें से 204 द्िीप
आधी आबादी ननिास करती िै ।
• उपजाऊ जलोढ़ ममट्टी, सपाट सति, धीमी गनत से
चलने िाली बारिमासी नहदयाां और आदशि
िातािरण कृवष गनतविथधयों को प्रोत्साहित करते िैं

• इन मैदानों की अिसादी चट्टानों में पेट्रोमलयम
और प्राकृनतक गैस के ननक्ेप भी ममले िै ।
• इन नहदयों में बिुत कम ढाल िोता िैं जो इन्िे
लांबी दरू ी तक जाने में मदद करता िैं ।
• मसांचाई के व्यापक उपयोग द्िारा पांजाब, िररयाणा
बांगाल की खा़िी में और 43 अरब सागर में स्थित िैं।
और उत्तर प्रदे श के पस्चचमी भाग भारत के अन्न
इसके अलािा मन्नार की खा़िी में भी कुछ प्रिाल
भांडार के रूप मे उभरे िै (प्रेयरी को दनु नया के
द्िीप समि
ू मौजद
ू िै ।
अन्न भांडार के रूप में जाना जाता िै )।
भारत के प्रमुख द्िीप समूि -
• िार रे थगथतान को छो़िकर पूरे मैदानी क्ेत्र में
स़िकों और रे लिे का एक गिरा नेटिकि िै स्जसने - बांगाल की खा़िी में अांडमान और ननकोबार
औद्योगीकरण और शिरीकरण की अपार द्िीप समूि
सांभािनाओां को प्रेररत ककया िै । - अरब सागर में लक्द्िीप द्िीप समूि।
• साांथकृनतक पयिटन: गांगा और यमन
ु ा जैसी पवित्र बांगाल की खा़िी में अांडमान ननकोबार द्िीप समि
ू में
नहदयों के ककनारे कई धाममिक थिल स्थित िैं जो कठोर ज्िालामख
ु ीय चट्टानें पायी जाती िैं
हिांदओ
ु ां, बौद्धों और जैन धमि मे बिुत मान्य िैं। जबकक लक्द्िीप द्िीप समूि प्रिालों द्िारा बने िैं।
मध्य अांडमान ननकोबार द्िीप समि
ू भारत का सबसे
ब़िा द्िीप िै ।
भारत का सबसे दक्षक्णी बबन्द ु ननकोबार द्िीप में
स्थित िै , स्जसे इांहदरा प्िाइांट के नाम से जाना जाता
िै । स्जसे पूिि में वपग्मेमलयन पॉइांट और पासिन्स पॉइांट
के नाम से जाना जाता िा, यि 2004 की सन
ु ामी के
बाद जलमग्न िो गया िै ।

अंडमान और तनकोबार द्िीप समूह


अांडमान ननकोबार द्िीप समूि का ननमािण भारतीय
प्लेट और बमाि माइनर प्लेट (यरू े मशयन प्लेट का
हिथसा) के बीच टकराि के कारण िुआ िा (हिमालय
उदािरण के मलए: िररद्िार, िाराणसी, इलािाबाद,
के ननमािण के समान(समय )) । यि अराकान योमा
गया, अमत
ृ सर।
पिित शांख
ृ ला (म्याांमार) का दक्षक्णी विथतार िैं।( इसको
हिमालय के भाग के रूप में भी जाना जाता िैं|)
भारतीय द्िीप समूह

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• यि द्िीप समूि 265 ब़िे और छोटे द्िीपों से बना क्ारीय और अनतक्ारीय ज्िालामुणखयों पर ममलते
िुआ िै (203 अांडमान द्िीप + 62 ननकोबार िै ।
द्िीप)। • पोटि ब्लेयर के उत्तर में बैरेन द्िीप (भारत में
• अांडमान और ननकोबार द्िीप समूि 6° 45'N से केिल सकिय ज्िालामुखी) और नाकोंडैम द्िीप
13° 45' N और 92° 10'E से 94° 15' E
तक फैला िुआ िै | जो लगभग 590 ककमी में

(एक विलुप्त या ननस्ष्िय ज्िालामुखी), ज्िालामख


ु ी
द्िीप िैं।
• द्िीपों का एक हिथसा प्रिाल मभवत्तयों से सीमा
बनाता िै । उनमें से कई घने जांगलों से ढके िुए िैं
और अथधकाांश द्िीप पिितीय िैं।
• उत्तर अंडमान में सैडल चोटी (737 मीटर) सबसे
ऊंची चोटी िै ।

स्थित िै |
• अांडमान द्िीप समि
ू तीन मख्
ु य द्िीपों )उत्तर, लक्षद्िीप द्िीप समूह
मध्य और दक्षक्ण) में बांटा िुआ िै ।
• डंकर पैसेज दक्षक्ण अांडमान से मलहटल अांडमान को
अलग करता िै ।
• 10 डडग्री चैनल उत्तर में ग्रेट अंडमान द्िीप समूह
और दक्षक्षण में तनकोबार समूह को अलग करता है ।
• अांडमान ननकोबार द्िीप समूि की राजधानी पोटि
ब्लेयर दक्षक्ण अांडमान में स्थित िै ।
• ननकोबार द्िीप समि
ू में , ग्रेट तनकोबार सबसे
बडा िै और यि इांडोनेमशया के सुमात्रा द्िीप से
केिल 147 ककमी दरू (पर स्थित) िै ।
• ग्रेट ननकोबार सबसे दक्षक्णी द्िीप िै ।
• कार ननकोबार सबसे उत्तरी द्िीप िै ।
• इन द्िीपों का ब़िा हिथसा तत
ृ ीय यग
ु के बलआ

लक्द्िीप द्िीप एक प्रिाल द्िीप िैं। ये द्िीप
पत्िर, चूना पत्िर और शेल से बना िैं जो यिाँ
रीयूननयन िॉटथपॉट ज्िालामुखी श्रख
ां ृ ला का हिथसा िै ।

36
• अरब सागर में द्िीपों की तीन श्रेणणयाां िैं। इन दो समूिों के अलािा भारत-गांगा डेल्टा (ये द्िीप
कम और डेल्टा का हिथसा अथधक िैं) और भारत और
- अमीनदीि द्िीप (अममनी, केल्टन, चेतलत,
श्रीलांका के बीच स्थित द्िीप िैं (राम सेतु या एडम
बब्रज के अिशेष; जलमग्न के कारण गहठत)।
कुछ अन्य महत्िपूणण द्िीप:
1. माजल
ु ी- यि असम में िै । यि:

- दनु नया का सबसे ब़िा


ताजा पानी (ब्रह्मपत्र
ु नदी)
का द्िीप िै ।
कदमत, बबट्रा और पेरुमल पार छि मुख्य द्िीपों
से ममलकर बना िै)। - भारत का पिला
द्िीपीय स्जला िै ।
- लैकाडडि द्िीप समूह (एांरोट, कल्पेनी, कािारत्ती,
2. साल्सेट द्िीप: यि भारत का सबसे अथधक
वपट्टी और सुिेली पार- पाांच प्रमुख द्िीपों से
आबादी िाला द्िीप िै । मब
ांु ई शिर इस द्िीप
ममलकर बना िै )
- ममनीकॉय
• ितिमान में इन द्िीपों को सामूहिक रूप से
लक्द्िीप के नाम से जाना जाता िै ।
• लक्द्िीप द्िीप 25 छोटे द्िीपों का एक समि
ू िै |
• िे केरल तट से लगभग 200-500 ककमी दक्षक्ण-
पस्चचम में व्यापक रूप से बबखरे िुए िैं।
• अमीनदीि द्िीप सबसे उत्तरी जबकक ममनीकॉय
द्िीप सबसे दक्षक्णी द्िीप िै ।
• सभी प्रिाल द्िीप प्रमख्
ु त: छोटे द्िीप िोते
िैं(एटोल पर प्रिाल ननक्ेपण) और ये मभवत्तयों की
सीमा से नघरे िुए िै । पर स्थित िै ।
• एंड्रोट (4.9 िगि ककमी) सबसे बडा द्िीप िै । 3. श्री हररकोटा: यि एक बाधा/बैररयर द्िीप िै ।
ममननकॉय (4.5 िगि ककमी) दस
ू रा सबसे ब़िा द्िीप इस द्िीप पर इसरो का उपग्रि प्रक्ेपण थटे शन
िै । िै ।
• अथधकतर द्िीपों की ऊांचाई कम िै और जो 4. आमलयाबेट: भारत की पिला अपतटीय तेल
समुद्र तल से पाांच मीटर से अथधक ऊांचे भी निीां कुएां का थिान(गज
ु रात) िै ; जोकक भािनगर से
िै (समद्र
ु के थतर में िद्
ृ थध िोने पर जलमगन लगभग 45 ककमी दरू िै , और यि खांभात की
िोना के दृस्ष्टकोण से बेिद सांिेदनशील)। खा़िी में स्थित िै ।
• इनकी थिलाकृनत सपाट िै और थिलाकृनतक 5. न्यू मूर द्िीप: यि गांगा डेल्टा में िै । इसे
विशेषताएँ जैसे की पिाड़ियाँ, धाराएँ, घाहटयाँ पुरबाशा द्िीप के नाम से भी जाना जाता िै ।
आहद अनुपस्थित िैं। यि सुांदरबन डेल्टा क्ेत्र में स्थित िै और यि
भारत और बाांग्लादे श के बीच वििाद का कारण

अन्य द्िीप िा । 2010 में ग्लोबल िाममांग के कारण

37
समुद्र के बढ़ते जलथतर से यि पूरी तरि चट्टानी िै , जबकक इसका पस्चचमी भाग रे त के
जलमग्न िो गया। टीलों से ढका िुआ िै ।
6. पाम्बन द्िीप- भारत और श्रीलांका के बीच • बागर:- बागर अधि-रे थगथतानी क्ेत्र में िै जो
स्थित िै । अरािली के पस्चचम में िै । बागर में रे त की
7. अब्दल
ु कलाम द्िीप: ओ़िीसा तट के पास पतली परत िै । यि दक्षक्ण में लूनी द्िारा मसांथचत
व्िीलर द्िीप का नाम बदलकर 2015 में िै जबकक उत्तरी क्ेत्र में कई नमक झीलें िैं।
अब्दल
ु कलाम द्िीप कर हदया गया। यि • राजथिान बागर क्ेत्र में विमभन्न छोटी मौसमी
बांगाल की खा़िी में ममसाइल प्रक्ेपण थटे शन नहदयाां/ धाराएँ िैं जो अरािली से शुरू िोती िैं। ये
िै । पथ्
ृ िी ममसाइल का पिला सफल( भूमम-से- धाराएँ रोही नामक कुछ उपजाऊ क्ेत्र में कृवष
भूमम परीक्ण) परीक्ण यिी से ककया गया िा करने मे सिायता करती िैं ।
(30 निम्बर 1993)| • यिाां तक कक सबसे मित्िपूणि नदी लूनी एक
मौसमी धारा िै । लन
ू ी अजमेर के करीब अरािली
भारतीय रे गगस्तान शांख
ृ ला की पुष्कर घाटी में शुरू िोती िै और
भारतीय रे थगथतान को िार रे थगथतान या ग्रेट इांडडयन दक्षक्ण पस्चचम की ओर कच्छ के रण में बिती िुए
डेजटि के नाम से भी जाना जाता िै । विलुप्त िो जाती िै ।
• लूनी के उत्तरी क्ेत्र को थली या रे तीले मैदान के
स्थान और सीमा रूप में जाना जाता िै ।
• थिान - अरािली पिाड़ियों के उत्तर-पस्चचम में । • कुछ ऐसी धाराएां िैं जो कुछ दरू ी तक बिने के बाद
• यि पस्चचमी राजथिान पर आच्छाहदत िै और गायब िो जाती िैं और एक झील या प्लाया जैसे
पाककथतान के ननकटिती हिथसों तक फैला िुआ िै सांभर झील में शाममल िोकर अांतदे शीय जल

भूिैज्ञातनक इततहास
• मेसोजोइक युग के दौरान, यि क्ेत्र समुद्र के नीचे
िा। आांकल िुड फॉमसल पाकि में उपलब्ध सबूतों
और जैसलमेर के पास ब्रह्मसर के आस-पास के
सामुहद्रक क्ेत्रों से प्राप्त ननक्ेपण के आधार पर
इसकी पस्ु ष्ट की जा सकती िै ।
• नहदयों के सख
ू े नदीतल (जैसे सरथिती) की
उपस्थिनत से पता चलता िै कक यि क्ेत्र कभी
उपजाऊ िा।
• भूिैज्ञाननक रूप से, रे थगथतानी क्ेत्र प्रायद्िीपीय
पठार क्ेत्र का एक हिथसा िै , लेककन सति पर
यि एक ननक्ेवपत मैदान की तरि लगता िै

भारतीय रे गगस्तान की विशेषताएं


• इस रे थगथतान को मरुथिली (मत
ृ भूमम) किा जाता प्रणाली का एक विमशष्ट उदािरण प्रथतुत करती िैं|
िै क्योंकक इस क्ेत्र में कम जलिायु के साि शुष्क ।
जलिायु उपस्थित िै । रे थगथतान का पूिी भाग

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• झीलों और प्लाया में खारा पानी िोता िै जो
नमक का मूलभूत स्रोत िै ।

अच्छी तरह से स्पष्ट रे गगस्तानी भूमम विशेषताएँ:


• रे त के टीले: पिन द्िारा रे त एिां बालू के ननक्ेप
से ननममित टीलों को बालक
ु ा थतप
ू अििा हटब्बा
किते िैं। भौनतक भूगोल में , एक हटब्बा एक टीला
या पिा़िी िै , स्जसका ननमािण िायू प्रकियाओां द्िारा
िोता िै । इन थतूपो के आकार में तिा थिरुप में
बिुत विविधता दे खने को ममलती िैं। हटब्बा
विमभन्न थिरूपों और आकारों में ननममित िो सकता
िै और यि सब िायु की हदशा और गनत पर ननभिर

करता िै । बरचन ) अधिचांद्रा कारबालू का टीला)-


इसका िि प्रमुख ििा की हदशा से दरू िोता िै
और समकोण पर ननममित िोता िै |
• अनुदैध्यि हटब्बा - पिन के रे त के समाांतर बनने -
(िाला एक रे त का टीला
• मशरूम चट्टाने
• थिानाांतरण हटब्बा ( इन्िे थिानीय रूप से धररयन
किा जाता िै )
• मरूद्यान (ज्यादातर इसके दक्षक्णी भाग में )

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CH-3 प्रायद्वीपीय भारत
ववषय-वस्तु
समुद्र तट और तटिती मैदान
1. विशेषताएं
2. पिवतमालाएं/पिवत-श्ख
ं र लाएं 1. भारत के पश्चचमी तटिती मैदान
o अरािली पिवतमाला 2. भारत के पूिी तटिती मैदान
o विंध्याचल पिवतमाला
o सतपुरा पिवतमाला
o पश्चचमी घाट या सयाद्री
▪ उत्तरी भाग
▪ मध्य भाग
▪ दक्षिणी भाग
o पूिी घाट
3. पठार
o मारिाड़ या मेिाड़ पठार
o केंद्रीय/मध्यिती उच्भूमम
o बुंदेलखंड उच्चभूमम
o मालिा पठार
o बघेलखंड
o छोटानागपुर पठार
o मेघालय या मशलांग पठार
o काठठयािाड़ पठार
o दक्कन का पठार
▪ महाराष्ट्र पठार
▪ कनावटका पठार
▪ तेलंगाना पठार
o छत्तीसगढ़ का समतल मैदान

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ववशेषताएं • प्रायद्िीपीय पठार में कई छोटे पठार एिं पहाड़ी
श्ंख
र लाएं हैं, श्जनमें कई नदी द्रोणी और घाटी भी
शाममल हैं।
• इसमें कुल 16 लाख िगव ककलोमीटर (भारत का
कुल िेिफल 32 लाख िगव ककलोमीटर) का िेिफल
शाममल है ।
• पठार की औसत ऊंचाई समुद्र तल से 600 से 900
मीटर ( िेि के अनुसार मभन्न हो सकता है ) है ।
• पठार की अगिकांश नठदयां पश्चचम से पूिव की ओर
बहती है , जो पठार के सामान्य ढलान को दशावती है ,
जो पश्चचम से पि
ू व की ओर है ।
o नमवदा ताप्ती एक अपिाद है , जो एक भ्रंश
(अपसारी सीमा के कारण) से होकर पूरब से
पश्चचम की ओर बहती है ।
• कैं त्रियन कल्प से यह भख
ू ड
ं एक कठोर खंड के रूप
में खड़ा है । और कभी भी समुद्र के नीचे नहीं डूबा
है , केिल कुछ थिानों को छोड़कर जहां समुद्री
अनतक्रमण ककए गए हैं और िह भी थिानीय थतर
पर और अथिायी रूप से।
• प्रायद्िीपीय पठार भारत के सबसे पुराने एिं सबसे
गारो-राजमहल भ्रंश (gap)
श्थिर भू-भागों में से एक है , जो ज्यादातर प्राचीन
नाइस (Gneiss) एिं ‘मशथट’ (schists) द्िारा • गारो और राजमहल पहाडड़यों के बीच जलोढ़ आिरण
ननममवत है । के कारण गारो-राजमहल सतपुड़ा की ननरं तरता में
• यह मोटे तौर पर आकार में त्रिकोणीय है और उत्तर एक भौनतक अंतर है ।
भारत के विथतत
र मैदान के दक्षिण में श्थित है । • ऐसा माना जाता है कक राजमहल पहाडड़यों और
पठार का शीषव कन्याकुमारी में श्थित है । मेघालय पठार के बीच एक बहुत बड़ा भ्रंश पैदा हो
• यह हर तरफ से पहाड़ी श्ंख
र लाओं से नघरा है : गया िा, जो ठहमालय की उत्पवत्त के समय भारतीय
o उत्तर पश्चचम ( अरािली का विथतार) प्लेट के उत्तर-पूिव ठदशा में खखसकने से उत्पन्न बल
=ठदल्ली ररज के कारण हुआ िा।
o पूिव = राजमहल पहाडड़यां • बाद में यह कई नठदयों की ननिेपण गनतविगि से
o पश्चचम= गगर श्ंख
र ला उत्पन्न अिसाद द्िारा भर गया श्जसके
o दक्षिण= इलायची पहाडड़यााँ (प्रायद्िीपीय पररणामथिरूप मेघालय पठार मख्
ु य प्रायद्िीपीय
पठार के बाहरी ठहथसे का ननमावण करती है) ब्लॉक से अलग हो गया।
o बाहरी ठहथसा = मशलांग और कबी एंगलॉग भूगभीय इततहास और ववशेषताएं
पठार

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इसके श्थिर इनतहास के अलािा, प्रायद्िीप में कुछ • यह लाखों साल पहले ननममवत पहाडड़यों एिं होथटव स (
बदलाि भी हुए हैं, जैस:े उत्िान खंड) के अिशेष हैं।
• ये पिवत श्ंख
र ला एिं अन्य नदी-घाठटयां, इन
1. गोंडिाना कोयले का ननमावण प्रायद्िीपीय पठारों को एक दस
ू रे से अलग करती हैं।
2. नमवदा-तापी भ्रंश घाटी का ननमावण अरावली पववत-माला
3. दक्कन पठार पर बेसाल्ट लािा का विथफोट
• यह अिमशष्ट्ट पिवत-माला, उत्तर पूिव से दक्षिण
a) गोंडिाना से टूटकर उत्तर की ओर अपनी पश्चचम की ओर फैला हुआ है ।
यािा के दौरान भारतीय प्लेट एक भूगमभवक • अरािली की कुल लंबाई 1100 ककलोमीटर है , जो
हॉटथपॉट, ररयूननयन हॉटथपॉट से होकर ठदल्ली से अहमदाबाद तक फैली हुई है ।
गुजरी, श्जसके कारण भारतीय क्रेटों के नीचे • यह दनु नया के सबसे प्राचीन िमलत पिवतों में से एक
एक व्यापक वपघलाि हुआ। वपघले हुए लािा है और, भारत की सबसे प्राचीन िमलत पिवत हैं।
क्रेटों के सतह के माध्यम से ऊपर की ओर o आककवयन काल (कई 100 मममलयन िषव
आ गए और िेि में बेसाल्ट का विथतार पहले) में इसके ननमावण के बाद, इसके
हुआ। इसे दक्कन रै प के नाम से भी जाना मशखर ठहमनद से ढके हुए िे, और शायद
जाता है । आज के ठहमालय से भी ऊाँचे िे।
b) इस िेि में लािा के अपरदन के कारण • यह ननरं तर हररद्िार से गंगा के मैदानी िेि तक
काली ममट्टी पाई जाती है । फैली हुई है ।
• यह श्ंख
र ला राजथिान (अजमेर के दक्षिण में ननरं तर
पववत-मालाएं
फैली हुई है , जहां इसकी ऊंचाई 900 मीटर तक है )

• प्रायद्िीपीय िेि की अगिकांश पहाडड़यां अवशशष्ट में उल्लेखनीय है , लेककन अजमेर के बाद हररयाणा

पहाड़ियां हैं। और ठदल्ली में इस श्ख


ं र ला में मभन्नता दे खी जा
सकती है ।
• केिल कुछ ही चोठटयों की ऊंचाई 1000 मीटर से
अगिक है । श्जनमें शाममल हैं:- अबू पहाडड़यों पर
श्थित गुरु मशखर इसकी सबसे ऊंची चोटी है । माउं ट
आबू एक प्रमसद्ि ठहल थटे शन है । जैनों का िाममवक
थिल माउं ट आबू पर श्थित है ।
• बनास, लूनी, साबरमती नठदयों का उद्गम थिल
अरािली ही है ।
o बनास चंबल की सहायक नदी है ।
o लोनी एक अल्पायु नदी है , जो कच्छ के
रण में लुप्त हो जाती है ।

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• इनमें कुछ दरे भी पाए जाते हैं, खासकर उदयपुर • उल्लेखनीय है कक 3 नठदयां मैकाल पहाडड़यों के
और अजमेर के बीच, जैसे पीपली घाट, दे ियर, तीन ओर से उत्पन्न होती है , लेककन केिल 2
दे सूरी, इत्याठद। नठदयां, नमवदा और सोन की उत्पवत्त अमरकंटक से
• इसमें कई झील भी श्थित हैं, जैसे सांभर झील(भारत होती है ना कक महानदी की।
में सबसे बड़ा अंतररक खारे पानी का जल ननकाय), • गोंडिाना चट्टानों की उपश्थिनत के कारण यह
ढे बर झील (अरािली के दक्षिण में), जयसमंद झील पहाडड़यां बॉक्साइट से समद्
र ि हैं।
(जयसमंद िन्य जीि अभ्यारण) इत्याठद। • सतपुड़ा श्ंख
र ला की नठदयां कई झरने बनाती
सतपुरा पववत-माला

• सतपुरा पहाडड़यां विितवननक पहाडड़यां हैं, जो िलन


और संरचनात्मक उत्िापन (होथटवस थिलाकरनत) के
फलथिरूप ननममवत हुई हैं।
• इनके चोठटयों की ऊंचाई 4000 फीट (1200 मीटर)
तक है , श्जनमें उत्तर में महादे ि पहाडड़यां, पूिव में
मैकाल श्ंख
र ला, पश्चचम में राजवपपला पहाडड़यां
हैं।‘िऑ
ु ंिर’ जलप्रपात जो नमवदा नदी द्िारा बनाया
शाममल हैं।
गया एक महत्िपूणव झरना है । यहां संगमरमर की
• सतपुरा पिवत श्ख
ं र ला एक ब्लॉक पिवत है , श्जसके
चट्टानें भी पाई जाती हैं।
उत्तर में नमवदा घाटी और पश्चचम में तापी है ।
ववंध्याचल पववत-श्ंख
र ला
• यह 900 ककलोमीटर तक फैला हुआ है ।
• महादे ि पहाडड़यों (पचमढ़ी के पास) पर श्थित िूपगढ़ • यह श्ंख
र ला विंध्याचल, भांडेर, कैमरू और पारसनाि
(1,350 m), सतपुरा पिवत माला की सबसे ऊंची पहाडड़यों का एक समूह है ।
चोटी है । • यह गैर विितवननक पिवत हैं, जो न केिल प्लेट की
• अमरकंटक (1,127m) भी एक महत्िपूणव चोटी है जो टक्कर के कारण बने हैं बश्ल्क नमवदा ररफ्ट घाटी के
मैकाल पिवत श्ख
ं र ला की सबसे ऊंची चोटी है । यह दक्षिण की ओर नीचे खखसकने से भी बनते हैं।
नमवदा और सोन नदी का उद्गम थिल भी है । • यह गज
ु रात के भरूच से त्रबहार के सासाराम तक
1200 ककलोमीटर से अगिक की दरू ी तक विथतत
र है ,
और यह पूि-व पश्चचम ठदशा में नमवदा घाटी के
समानांतर फैला हुआ है ।
• विंध्याचल श्ख
ं र ला की सामान्य ऊंचाई 300 से 650
मीटर के बीच है ।
• विंध्याचल श्ेणी के अगिकांश भाग प्राचीन काल की
िैनतजरूप से संथतररत अिसादी चट्टानों से बने हैं।
• उन्हें पन्ना, कैमरू , रीिा, इत्याठद जैसे नामों से जाने
जाते हैं।

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• यह श्ंख
र ला गंगा-प्रणाली और दक्षिण भारत की नदी • सहयाद्री की कुछ मुख्य चोठटयां हैं- कलसुबाई मशखर
प्रणामलयों के बीच विभाजक के रूप में कायव करती ( सहयाद्री की सबसे ऊंची चोटी), साल्हे र मशखर,
है । हररशचंद्रगड़ मशखर इत्याठद।
पश्चचमी घाट(या सहयाद्रि) • पश्चचमी घाट के अन्य भागों की तुलना में सहयाद्री
से अगिक नठदयां ननकलती है , जो इसे दक्षिण भारत
• पश्चचमी घाट की यह दस
ू री सबसे बड़ी पिवत श्ख
ं र ला का एक महत्िपण
ू व जलस्रोत बनाती है ।
है , जो दक्कन पठार के पश्चचमी भाग का ननमावण • इस भाग के महत्िपूणव दरे हैं-
करती है । o िाल घाट- यह नामसक को मुंबई से जोड़ता
• यह उत्तर में तापी नदी घाटी और दक्षिण में है ।(कोलकाता से मुंबई जाने िाला मागव
कन्याकुमारी के बीच 1600 ककलोमीटर की दरू ी तक नामसक से होकर गज
ु रता है)
फैला हुआ है । o भोर घाट- यह मंब
ु ई को पण
ु े से जोड़ता है ।
• यह सीढ़ीनुमा थिलाकरनत को दशावता है , जो िैनतज
रूप से संथतररत लािे के कारण अरब सागर के तट मध्य भाग/खंड
से लगा हुआ है ।
• पश्चचमी घाट की ऊंचाई पश्चचमी तट के मैदानी • यह खंड कनावटक एिं गोिा राज्यों से होते हुए
इलाकों से अचानक समद्र
ु तल से 1 ककलो मीटर नीलगगरी में खत्म हो जाता है जहां यह पि
ू ी घाट से
ऊची हो जाती है । ममलता है ।
• दक्कन पठार से उनके पि
ू ी ककनारे की ओर एक • नीलगगरी भ्रंशोत्ि/ब्लॉक पिवत हैं, जो दो भ्रंश के बीच
सौम्य ढाल है ,जो पहाड़ों की एक लम्बी श्ंख
र ला प्रतीत हैं, इसमलए इन्हे होथटव थिलाकरनत भी कहा जाता
नहीं होती है । है ।
• भूगभीय संरचना में अंतर के कारण मालाबार के • यह आग्नेय और कायांतररत चट्टाने के जैसे ग्रेनाइट
दक्षिण में नीलगगरी, अन्नामलाई, आठद द्िारा एक और नाइस पत्िरों से बने होते हैं।
अलग भूदृचयों का ननमावण ककया जाता है । • इनमें घने जंगल भी पाए जाते हैं तिा छोटी
उत्तरी भाग/खंड सररताएं भी यहां से ननकलती हैं। इनसे पहाडड़यों का
िरण हुआ है और पिवतमाला के बीच में कहीं कहीं
• पश्चचम घाट का खंड महाराष्ट्र में श्थित है और इसे भ्रंश (gaps) पैदा हो गए हैं।
सहयाद्री के रूप में भी जाना जाता है । • इनकी औसत ऊंचाई लगभग 1200 मीटर है और
• सहयाद्री की औसतन ऊंचाई समुद्र तल से लगभग कुछ प्रमुख चोठटयों में िेिुलमाला, कुदरे मख
ु ,
1200 मीटर ऊंची है । पुष्ट्पगगरी आठद मौजद
ू हैं।
• सहयाद्री ज्िालामख
ु ीय आग्नेय चट्टानों (दक्कन • बाबा बुदन पहाडड़यां कॉफ़ी बागानों के मलए प्रमसद्ि
लािा या दक्कन रै प) से बने हैं। इसमलए यह हैं।
पश्चचम घाट के अन्य िेिों की चट्टानों की तुलना o इस खंड की प्रमख
ु नठदयां तंग
ु भद्र और
में भौगोमलक रूप से नए हैं। कािेरी (िम्हगगरी) हैं।
• गोदािरी (नामसक), भीमा (भीमाशंकर) और करष्ट्णा दक्षिणी भाग/खंड
(महाबलेचिर) इस खंड की मुख्य नठदयां हैं।

44
• इस खंड में अन्नामलाई एिं काडवमम पिवत श्ख
ं र ला श्थित है , जो सेनकोत्तई दरे से विभाश्जत की जाती
शाममल हैं। है । ये पहाडड़यां इलायची की खेती के मलए प्रमसद्ि है
• पलक्कड़ या पालघाट दराव पश्चचमी घाट का सबसे और इन्हें इलाईमलाई के नाम से भी जाना जाता है ।
बड़ा (लगभग 24 ककलोमीटर चौड़ा) दराव है जो o िरूषांड पहाडड़यां काडवमम पहाडड़यों का
नीलगगरी को अन्नामलाई पहाडड़यों से अलग करता ठहथसा हैं, जहां से िैगई नदी का उद्गम
है । होता है ।
o इसी दरे के माध्यम से दक्षिण पश्चचम • पश्चचम घाट का सबसे दक्षिणी भाग अगथतमलाई
मानसून के नमी िाले बादल मैसूर िेि में पहाडड़यां हैं, जो केरल और तममलनाडु में श्थित हैं।
बाररश लाते हैं। प्रायद्िीपीय भारत का सबसे दक्षिणी मशखर
• अनाइमुडी मशखर अन्नामलाई पहाडड़यों में श्थित अगथतमलाई मशखर है ।
प्रायद्िीपीय भारत की सबसे ऊंची चोटी है । पूवी घाट
• पालनी पहाडड़यां अन्नामलाई श्ेणी का ठहथसा हैं,
जो िारिाड़ आग्नेय चट्टानों से बनी हैं। • पूिी घाट भारत के पूिी तट के लगभग

o कोडाईकनाल ठहल थटे शन पालनी पहाडड़यों में समानांतर फैली हुई है , श्जनके आिार और तट

श्थित है । के बीच व्यापक मैदानी भाग मौजूद है ।

o पेररयार नदी अन्नामलाई पहाडड़यों के करीब • पश्चचमी घाटों की तल


ु ना में इनका अत्यगिक

से ननकलती है और अरब सागर में ममल िरण हुआ है , इसमलए ऊंचाई में यह उनसे कम

जाती है । हैं।

• काडवमम पहाडड़यां अन्नामलाई पहाडड़यों के दक्षिण में • यह मख्


ु य रूप से आग्नेय और कायांतररत शैलों

45
से बने हैं। • यह श्ंख
र ला मिुगुला कोंडा श्ंख
र ला और
• यह अत्यगिक विषम और विलगगत पहाडड़यों की नल्लमाला पहाडड़यों के बीच लगभग गायब सा
श्ेणी है , जो उड़ीसा में महानदी से शुरू होकर प्रतीत होती है । यह िेि गोदािरी-करष्ट्णा डेल्टा से
तममलनाडु के िैगई में खत्म होती है । बना है ।
• इन पहाडड़यों में संरचनात्मक और भू आकरनतयों • कुछ प्रमुख पहाडड़यां
की ननरं तरता का अभाि है इसमलए इन्हें थितंि o आंध्र प्रदे श = िेलीकोंडा पहाड़ी,
इकाइयों के रूप में जाना जाता है । पालकोण्डा पहाड़ी और शेषाचलम|
• पूिी घाट के दक्षिणी भाग में केिल महानदी और o तममलनाडु=जािडी पहाड़ी और शेिरॉय
गोदािरी के बीच ही थपष्ट्ट रूप से पहाडड़यों के पहाड़ी
अश्थतत्ि का पता चलता है । • पूिी घाट का ममलन नीलगगरी में पश्चचमी घाट
के साि होता है ।

पश्चचमी घाट से संबंधित गाडधगल और कस्तूरीरं गन ररपोटव

46
• इसकी ऊंचाई समद्र
ु तल से 250 से 500 मीटर है
PLATEAU
और इसका ढाल पूिव की ओर है ।
मारवा़ि या मेवा़ि पठार • इसमें विंध्याचल काल के बलुआ पत्िर,
मशष्ट्ट(shales) एिं चन
ू ा पत्िर मौजद
ू हैं।
• बनास नदी के कारण यह उममवल भूमम में पररिनतवत
हो गया हैं।
उममवल भूममयां मैदान की तरह से समतल नहीं होती हैं।
इन थिलाकरनतयों में मामल
ू ी उतार-चढ़ाि दे खे जा सकते
हैं। उदाहरण- संयक्
ु त राज्य अमेररका के घास के
मैदान(prairies)।
मध्यवती उच्चखंड

• इसे मध्य भारत पठार भी कहा जाता है ।


• यह मेिाड़ के पि
ू व में श्थित है ।
• यह एक पिवतनुमा पठार है श्जसमें विमभन्न ऊंचाई
िाले बलुआ पत्िरों से ननममवत पहाडड़यां श्थित हैं।
• यह पठार पूिी राजथिान में श्थित है ।(मारिाड़ का • यहां घने जंगल पाए जाते हैं।
मैदानी इलाका अरािली के पश्चचम में है जबकक • इसके उत्तर में चंबल नदी के उत्खात भूमम पाए जाते
मारिाड़ पठार पूिव में श्थित है )। हैं।

47
बंुदेलखंड उच्चभूशम/भू-भाग • यहां अिव-शष्ट्ु क से लेकर शष्ट्ु क प्रकार की जलिायु
पाई जाती है । जहां कभी-कभी बाररश के कारण
• उत्तर में यमुना नदी, दक्षिण में मालिा का पठार, अथिाई िाराएं ननकलती रहती हैं। घनी िनथपनत के
पूिव और दक्षिण-पूिव में विंध्याचल और पश्चचम में अनप
ु श्थिनत के कारण ये िाराएं ऊपरी तल को हटा
मध्य भारत का पठार। दे ती हैं, श्जससे संकरी घाठटयों का ननमावण होता है ,
• यह, बंद
ु े लखंड, जो ग्रेनाइट और नाइस पत्िरों से श्जसे अिनमलका (gullies) कहते हैं।
बना है , का पुराना विच्छे ठदत भाग (गहरे घाठटयों से o अिनमलकाओं के गहरे हो जाने पर, ये
विभाश्जत) है । घाठटयों का रूप ले लेती हैं।
• पठार की ऊंचाई 300 से 600 मीटर है । o अिनमलका अपरदन इन प्राकरनतक भभ
ू ाग को
• इनकी जल ननकास प्रणाली बंगाल की खाड़ी में है । ऐसी भू-भागों में बदल दे ती है , जो करवष के
• यह िेि खेती के मलए अयोग्य है , क्योंकक इस िेि मलए अनुकूल नहीं होती है । चंबल अपिाह
में बहने िाली नठदयों के अपरदन के कारण उममवल तंि इसी का एक उदाहरण है ।
(लहरों जैसी सतह) िेि में बदल गया है । बघे लखंड
• बेतिा, िसान एिं केन जल िाराएं पठार से होकर
बहती हैं। • यह मैकाल पिवत श्ख
ं र ला के पूिव में श्थित है , इसके
मालवा का पठार पश्चचम में चूना पत्िर और बलुआ पत्िर पाए जाते
हैं, िहीं पूिव में ग्रेनाइट पाया जाता है ।
• विंध्याचल पिवत में बसा मालिा का पठार एक • इस पठार में िारिाड़ और गोंडिाना क्रम की चट्टाने
त्रिभज
ु आकरनत का ननमावण करता है , जो पश्चचम में पाई जाती हैं।
अरािली श्ंख
र ला, उत्तर में मध्य भारत पठार और पूिव • पठार का मध्य भाग उत्तर में सोन नदी-तंि एिं
में बुंदेलखंड से नघरा हुआ है । दक्षिण में महानदी नदी-तंि के बीच, एक जल
• इस पठार में दो अपिाह तंि हैं विभाजक का काम करता है।
o अरब सागर की तरफ ( नमवदा, तापी और o ररहन्द बांि और गोविंद बल्लभ पंत सागर
माही) बांि (भारत में सबसे बड़ी मानि-ननममवत
o बंगाल की खाड़ी की तरफ (चंबल और बेतिा झील) सोन नदी पर ननममवत है ।
श्जसमें यमुना भी आती है) • इस पठार की औसत ऊंचाई 150 से 1200 मीटर है ।
• इसकी औसत ऊंचाई 500 मीटर है , श्जसकी ढाल यहां विषम उच्चािच पाए जाते हैं।
उत्तर की तरफ है । • इस भ-ू आकरनत का मुख्य तत्ि विंध्याचल और गंगा
• भूिैज्ञाननक दृश्ष्ट्टकोण से यह भारत के सबसे के मैदान और नमवदा सोन घाटी के मध्य बलुआ
विमभन्न विभागों में से एक है , श्जसमें िारिाड़ पत्िर की मौजद
ू गी है ।
चट्टानें, विंध्याचल चट्टाने, गोंडिाना चट्टानें और • यह भानेर और कैमूर के नजदीक श्थित हैं।
ज्िालामख
ु ीय बेसाल्ट शाममल हैं। • विमभन्न थतरों की सामान्य िैनतजीय श्थिनत यह
• यह लािा के व्यापक प्रिाह से बना है , जो काली दशावती है , कक इस िेि में ज्यादा पररितवन नहीं हुए
ममट्टी से ढका हुआ है । हैं।
• यह एक लहरदार पठार है जो नठदयों द्िारा छोटा नागपुर पठार (CNP)
विच्छे ठदत ककया जाता है ।

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• यह एक प्रायद्िीपीय पठार है श्जसकी ऊंचाई समद्र
ु इसमें उममवल भमू म मौजद
ू है, जहााँ रांची (661 मीटर)
तल से 700 मीटर है । शहर श्थित है ।
• यह झारखंड, उत्तरी छत्तीसगढ़, पश्चचम बंगाल के • रांची का पठार दक्षिण-पूिव में मसंहभूम (पहले यह
परु
ु मलया श्जले और उड़ीसा के भागों में फैला हुआ है । मसंहभम
ू श्जला िा या श्जसे अब कोल्हान डडिीजन
• इस पठार की सबसे महत्िपूणव संरचना दामोदर ररफ्ट बना ठदया गया है ) के पहाड़ी िेि की तरफ क्रम से
घाटी है , श्जसमें गोंडिाना पत्िर मौजूद है जो कोयले झुका हुआ है । उत्तर में यह दामोदर घाटी के द्िारा
के अत्यगिक भंडार के रूप में भी जाना जाता है । हजारीबाग पठार से अलग कर ठदया जाता है ।पठार
जैसे, दामोदर घाटी कोयले का मैदान। का पश्चचमी भाग सबसे ऊंचा है और इसे
• इस िेि में नरम और ठोस चट्टानों की परतें पाई पेटलैंड(patland) कहा जाता है ।
जाती हैं, श्जसके पररणामथिरूप अंतर अपिय के • रांची के पठार से आने िाली नठदयां जब पठार के
कारण पेटलैंड जैसे भ-ू आकरनत (नरम चट्टानों की तेज बहाि से काफी कम ऊंचाई के िेि में प्रिेश
परतों के िरण के कारण ठोस चट्टाने बच जाती हैं) करती हैं तो जलप्रपात का ननमावण करती हैं।
का ननमावण होता है । o रांची पठार के दक्षिण भाग में उत्तरी कारों
o कई जगहों पर इनके विरुद्ि मॉनेडनॉक नदी 17 मीटर (56 फीट) ऊंची पेरिा घाघ
(एक पि
र क पहाड़, जो अपरदन प्रनतरोिी और जलप्रपात का ननमावण करती है । ऐसे प्रपातों
समप्राय मैदान के ऊपर होता है ) द्िारा को कगारी प्रपात या थक्रैप फॉल्स कहते हैं।
अिरोि पैदा ककया जाता है। o कगारी प्रपात या थक्रैप फॉल्स के कुछ
• तीव्र अपिय और िरण ने छोटा नागपुर पठार िेि उदाहरण हैं- रांची के नजदीक सुिणवरेखा नदी
को लेटराइट ममट्टी िाले इलाके में बदल ठदया है । पर हुंडरू जलप्रपात (75 मीटर), रांची के पूिव
• इस पठार में कई नठदयां हैं, जो अलग-अलग में , कांची नदी पर दशम प्रपात (39.62
ठदशाओं में प्रिाठहत होते हुए अरीय अपिाह तंि का मीटर), शंख नदी (रांची का पठार) परसदानी
ननमावण करती हैं। प्रपात (60 मीटर)।
o सोन नदी पठार के उत्तर-पश्चचमी भाग में • शसंहभूम िेत्र मोटे तौर पर झारखंड के कोल्हान
बहते हुए गंगा में ममल जाती है । डडिीजन को किर करता है।यह िेि िाश्त्िक खननजों
o दामोदर, सि ु णवरेखा, उत्तरी कोयल, दक्षिणी में सश्म्ममलत है ।
कोयल और बराकर नठदयां, इस िेि में एक • राजमहल पहाडड़यां, छोटा नागपुर पठार के उत्तर पूिी
िह
र त अपिाह तंि का ननमावण करती हैं। भाग का ननमावण करती है जो ज्यादातर बेसाल्ट से
• हजारीबाग पठार दामोदर नदी के उत्तर में श्थित है , बनी है ।
श्जस की औसत ऊंचाई समुद्र तल से 600 मीटर • छोटा नागपुर का पठार माइका,बॉक्साइट, तांबा, चूना
है ।इस पठार में पि
र क पहाडड़यां हैं और यह व्यापक पत्िर, लौह-अयथक और कोयले जैसे खननजों का
िरण के कारण एक समप्राय मैदान की भांनत प्रतीत भंडार है ।दामोदर घाटी कोयले से समद्
र ि है और इसे
होता है । दे श में कोककं ग कोल का प्रमुख केंद्र माना जाता है ।
• दामोदर घाटी के दक्षिण में रांची पठार श्थित है मेघालय या शशलांग का पठार
श्जसकी औसत ऊंचाई समुद्र तल से 600 मीटर
है ।यह पठार अत्यगिक विच्छे ठदत है । आमतौर पर

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• राजमहल की पहाडड़यों से आगे विथतत
र प्रायद्िीपीय श्ंख
र ला, जन
ू ागढ़ पिवत-श्ख
ं र ला, पािागढ़ पिवत-श्ख
ं र ला,
पठार को मेघालय या मशलांग का पठार कहा जाता इत्याठद।
है । • नल सरोिर झील (पिी अभ्यारण) इस पठार के
• प्रायद्िीपीय पठार का एक विथतत
र भाग उत्तर पि
ू व में उत्तर पि
ू ी सीमाओं का ननमावण करती है ।
भी ठदखाई पड़ता है श्जसे थिानीय तौर पर मेघालय • काठठयािाड़ पठार के उत्तर में रण-भमू म श्थित है ।
या मशलांग के पठार के नाम से जाना जाता है , इसे • मांडि पहाडड़यां और बल्दा पहाडड़यों के रूप में , यहां
काबी-एंगलॉग का पठार या उत्तरी कछार पहाडड़यां भी कुछ ज्िालामुखी चट्टान भी पाई जाती हैं।
कहा जाता है । • गगरनार पहाड़ काठठयािाड़ पठार की सबसे ऊाँची
• एक भ्रंश द्िारा छोटा नागपरु के पठार से अलग मशखर।
ककया जाता है । और इसकी पश्चचमी सीमा लगभग दक्कन का पठार
बांग्लादे श की सीमा से ममलती है ।
यहााँ तीन मख्
ु य पिवत श्ंख • यह भारतीय प्रायद्िीपीय पठार की सबसे बड़ी इकाई
• र लाएं ( पश्चचम से पि
ू व की
ओर) हैं- गारो, खासी और जयंनतया। है , जो पांच लाख िगव ककलोमीटर के िेि में फैली

• इस पठार का ननमावण मुख्य रूप से िारिेररयन हुई है ।

(आककवयन) क्िाटवजाइट, नाइस, मशष्ट्ट और ग्रेनाइट से • इसका आकार त्रिभज


ु ाकार है , जो ननम्नमलखखत से

हुआ है । इन में कई खननज जैसे कोयला, चूना नघरा है -

पत्िर, यरू े ननयम, मसलीमेनाइट, केओमलन और o उत्तर पश्चचम में सतपुड़ा और विंध्याचल से

ग्रेनाइट आठद पाए जाते हैं। o उत्तर में महादे ि और मैकाल से

• इसकी औसत ऊंचाई समुद्र तल से 1500 मीटर है । o पश्चचम में पश्चचमी घाट

• इस पठार के उत्तर में िह्मपुि बेमसन है । सुरमा नदी o पूिव में पूिी घाट

इस पठार में असम से प्रिेश करती है और बांग्लादे श • इसकी औसत ऊंचाई 600 मीटर है ।

में यह मेघना नदी से ममलती है । o दक्षिण में इसकी ऊंचाई 1000 मीटर तक है

• इस पठार की सबसे ऊंची मशखर मशलांग है । गारो जबकक उत्तर में 500 मीटर।

खासी एिं जयंनतया पहाडड़यों के साि यह एक ऊंची • इसकी सामान्य ढाल पश्चचम से पूिव की ओर है जो

पठार है । अनेक मशखरों के साि ये पहाडड़यां पि


ू -व इसकी प्रमुख नठदयों जैसे महानदी, गोदािरी, करष्ट्णा

पश्चचम ठदशा में फैली हुई है । श्जनमें से मशलांग और कािेरी के प्रिाह से इंगगत होती है । इन नठदयों

मशखर (1,916 मीटर) और नोकरे क मशखर (1,515 द्िारा इस पठार को दो छोटे पठारों में विभाश्जत

मीटर) महत्िपूणव हैं। ककया जाता है :

• चेरापूंजी और मॉमसनाराम भारत के सबसे अगिक o महाराष्ट्र का पठार– इसमें विमशष्ट्ट दक्कन

आद्रव ता प्राप्त करने िाले थिान हैं। जोकक इसी पठार रै प थिलाकरनत है , श्जसका ननमावण

के भाग हैं, तिा खासी पहाडड़यों में श्थित हैं। बेसाश्ल्टक चट्टान एिं रे गुर द्िारा ककया

काद्रठयावा़ि पठार गया है ।


o कनावटक पठार (श्जसे मैसूर पठार भी कहा
• यह गुजरात के काठठयािाड़ िेि में श्थित है , जहां जाता है ) – दे श के पहाड़ी िेि ‘मलनद’ एिं
कई पाइपनम
ु ा ज्िालामख
ु ी हैं जो कई पिवत- मैदानी िेि ‘मैदान’ में विभाश्जत है ।
श्ंख
र लाओं का ननमावण करते है , जैसे गगरनार पिवत- o तेलंगाना का पठार|

50
महाराष्र का पठार • यह िारिाड़ चट्टानों से बना है ।
o िारिाड़ चट्टानों की मौजूदगी के कारण यह
• महाराष्ट्र का पठार महाराष्ट्र में श्थित है जो दक्कन खननज पदािों से समद्
र ि है ।
पठार के उत्तरी भाग का ननमावण करता है । o गोंडिाना चट्टाने जो कोयले के मैदान के
• ज्यादातर िेि लािा से ननकले बेसाश्ल्टक चट्टानों से मलए प्रमसद्ि है गोदािरी घाटी में पाई जाती
बनी हुई है । िैनतज लािा शीट ने विमशष्ट्ट दक्कन है ।
रै प थिलाकरनत का ननमावण ककया है । • िेि में तीन नदी तंि मौजद
ू हैं- करष्ट्णा, गोदािरी एिं
• बठहजावत गनतविगियों के कारण यह िेि उममवल पेन्नेरू नदी तंि।
मैदान की भांनत प्रतीत होता है । o गोदािरी नदी द्िारा इस पठार को दो भागों
• गोदािरी भीम और करष्ट्णा की चौड़ी एिं उिली में बांटा जाता है ।
घाठटयां, अजंता, बालाघाट और हररचचंद्र पिवतमाला • इस पूरे पठार को दो भ-ू भागों में बांटा गया है- घाट
जैसी समतल पहाडड़यों और उच्चे टीले से नघरे हुए और समप्राय मैदान (peneplains)।
हैं। • छोटा नागपुर पठार के समान इस पठार में भी
• परू ा िेि काली कपास ममट्टी श्जसे रे गरु ममट्टी भी अच्छी बाररश ( औसतन 100 mm/year) होती है ।
कहा जाता है , से ढका हुआ है । • दक्षिणी भाग की तुलना में उत्तरी भाग नीचा है ।
कनावटक का पठार
दं डकारण्य पठार
• दक्कन पठार के उत्तर पूिी भाग में श्थित घने जंगल
• कनावटक पठार श्जसे मैसूर पठार भी कहा जाता है ,
से ढके िेि को दं डकारण्य पठार कहा जाता है ।
महाराष्ट्र पठार के दक्षिण में श्थित है ।
• यह छत्तीसगढ़, झारखंड, महाराष्ट्र के पि
ू ी भाग और
• यह िेि उममवल पठार की भांनत प्रतीत होता है
आंध्रप्रदे श के उत्तरी छोर तक फैला हुआ है ।
श्जसकी औसतन ऊंचाई 600 से 900 मीटर है ।
• यह पश्चचमी घाट से ननकलने िाली कई नठदयों से
अत्यगिक विच्छे ठदत है । इसमें तुंगभद्रा और कािेरी छत्तीसगढ़ का मैदानी भाग

नठदयां मौजद
ू हैं।
• यह कटोरे के आकार का बेमसन है , जो मैकाल पिवत
• पहाडड़यों का सामान्य विथतार पश्चचमी घाट के
श्ंख
र ला और उड़ीसा की पहाडड़यों के मध्य श्थित है ,
समानांतर है ।
श्जसमें चन
ू ा पत्िर और शैल की परतें मौजद
ू हैं।
• इसकी सबसे ऊंची मशखर गचकमंगलरू श्जले में श्थित
• यह ऊपरी महानदी द्िारा अपिाठहत है ।
बाबा बुदन पहाडड़यों में मुलांगीरी है ।
• मैदान की सामान्य ऊंचाई पूिव में 250 मीटर से
o बाबा बुदन पहाडड़यां लौह-अयथक खनन और
लेकर पश्चचम में 330 मीटर तक है ।
कॉफ़ी के उत्पादन के मलए प्रमसद्ि है ।
• यह पठार दे श के पश्चचमी पहाड़ी िेि ‘मलनद’ एिं
महत्त्व
मैदानी िेि ‘मैदान’ में बंटा हुआ है ।
• दक्षिण में यह पठार पश्चचमी और पूिी घाट के बीच 1. यह भारतीय उपमहाद्िीप का सबसे परु ाना और
सपाट है और नीलगगरी पहाडड़यों से ममलती है । सबसे श्थिर ठहथसा है ।
तेलंगाना का पठार 2. यह िाश्त्िक एिं अिाश्त्िक खननज संसािनों दोनों
में समद्
र ि है । इसमें लोहे , मैंगनीज, तांबा, बॉक्साइट,

51
अभ्रक, क्रोममयम, चन
ू ा पत्िर, आठद के विशाल 6. यह ऊाँचे िेि घने मल्
ू यिान जंगलों से आच्छाठदत
भंडार हैं। हैं।
3. भारत के गोंडिाना कोयला भंडार का 98% से 7. पश्चचमी घाट से ननकलने िाली नठदयां पनत्रबजली
अगिक इस पठारी िेि में पाया जाता है । उत्पादन के मलए उपयक्
ु त थिान प्रदान करती हैं।
4. पठार का उत्तर पश्चचमी भाग उपजाऊ काली ममट्टी 8. प्रायद्िीपीय पठार में कई ठहल थटे शन भी मौजद
ू हैं
से ढका हुआ है जो कपास और गन्ने की खेती के जैस,े ऊटी, कोडाईकनाल, पचमढ़ी, महाबलेचिर,
मलए उपयोगी है । खंडाला, मािेरोन इत्याठद।
5. कुछ ननम्न भमू म चािल और विमभन्न प्रकार के
उष्ट्णकठटबंिीय फलों की पैदािार के मलए उपयक्
ु त
हैं।

पश्चचमी घाट और अरब पूिी घाट और बंगाल की


समुि तट और तटवती मैदान
सागर के मध्य अवश्स्ित खाड़ी के मध्य अिश्थित
हम पहले ही पढ़ चक
ु े हैं कक भारत की एक लंबी तटरे खा है । है ।
है । थिान और सकक्रय भ-ू आकरनतक प्रकक्रयाओं के आिार
ये मुख्य रूप से सुंदरिन से कन्याकुमारी
पर, इसे मोटे तौर पर दो भागों में विभाश्जत ककया जा
कन्याकुमारी तक फैले हुए तक फैला हुआ है ।
सकता है : (i) पश्चचमी तटीय मैदान;(ii) पूिी तटीय
हैं।
मैदान|
वे पश्चचमी घाट के पूिी घाट के समानांतर हैं।
पश्चचमी तटीय मैदानी पूिी तटीय मैदानी िेि
समानांतर हैं।
िेि

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ये कच्छ, कोंकण, कन्ऩि ये उत्कल, आंध्र और • इसका ननमावण पश्चचमी घाट से ननकलने िाली छोटी
एवं मालाबार के तटीय कोरोमंडल मैदानी िेिों में िाराओं द्िारा जलोढ़ ममट्टी के ननिेपन से हुआ है ।
मैदानी िेत्रों में ववभाश्जत विभाश्जत हैं। • इसमें िह
र त संख्या में कोव (एक छोटी खाड़ी), क्रीक
है । (दलदली इलाकों में संकरा जलमागव) पाए जाते हैं।
यह लंबी एवं संकरी है । इनकी चौड़ाई पश्चचमी तट और साि ही कुछ मुहाने/इस्चुअरी (समुद्री
से ज्यादा है । थिलाकरनत) भी मौजद
ू हैं।
यह डूबी हुई तटीय ये उभरे हुए तटीय मैदानी
मैदानी िेत्र है । िेि हैं।
तटीय मैदानी इलाकों में तुलनात्मक रूप से कम
अत्यधिक बाररश होती है । बाररश होती है ।
पश्चचमी तटीय मैदानी नठदयों द्िारा डेल्टा का
इलाकों में बहने वाली ननमावण ककया जाता है ।
नद्रदयां डेल्टा का तनमावण
नहीं करती हैं।
मोटी शमट्टी के कारण महीन जलोढ़ ममट्टी के
यहां करवष कम ववकशसत कारण करवष ज्यादा o नमवदा और ताप्ती के मुहाने सबसे महत्िपूणव

है । विकमसत है । हैं।
• केरल का तटीय िेि या मालाबार तटीय िेि में कुछ
महत्वपूणव प्राकरततक कम बंदरगाह अिश्थित हैं।
झील, लैगून और अप्रिाही जल (वेंबनाड झील सबसे
बंदरगाह पश्चचमी तट पर
बड़ी है ) भी पाए जाते हैं।
अवश्स्ित हैं- कांडला,
उत्िान एवं तनमज्जन तटवती िेत्र
जवाहरलाल नेहरू
पोटव रस्ट, ममावगाओं
• ननमज्जन तटिती िेि का ननमावण ननम्न भमू म या
बेंगलुरु, कोचीन
समुद्र के बढ़ते जलथतर के कारण होता है । िहीं
तटिती िेिों का उत्िान इसके विपरीत होता है ।
भारत के पश्चचम तटीय मैदान
• भारत का पूिी तट उश्त्ित तट है
• भारत के पश्चचमी तट में उश्त्ित एिं जलमग्न दोनों
• पश्चचमी तटीय पट्टी कैं बे की खाड़ी से लेकर केप
िेि पाए जाते है ।
कोमोररन (कन्याकुमारी) तक फैली हुई है ।
o तट का उत्तरी भाग, उत्पन्न हुए भ्रंश के
• उत्तर से दक्षिण की ओर से इसे ननम्नमलखखत तरह
कारण जलमग्न है ।
से बांटा गया है
o दक्षिणी भाग (केरल का तट) उश्त्ित तट का

1. कच्छ या काठठयािाड़ तटीय िेि एक उदाहरण है ।

2. कोंकण तटीय िेि


• भू-उत्िान तटिती िेि
3. कनावटक या कन्नड़ तटीय िेि
o कोरोमंडल तट (तममलनाडु)
4. केरल या मालाबार तटीय िेि
o मालाबार तट (केरल तट)

53
• ननमज्जन तटिती िेि • इस मैदान का पूिी भाग उपजाऊ है , लेककन तट के
o कोंकण तट( महाराष्ट्र और गोिा तट) समीप मुख्य भाग रे त के टीला से ढका हुआ है
कच्छ और काद्रठयावा़ि िेत्र कोंकण मैदानी िेत्र

• प्रायद्िीपीय पठार का विथतत


र भाग होने के बावजूद • कोंकण मैदानी िेि गज
ु रात के मैदानी िेि के
कच्छ और काठठयािाड़ को पश्चचमी तटिती मैदान दक्षिण में है , जो दमन से गोिा तक फैला हुआ है ।
का अमभन्न ठहथसा माना जाता है ।(क्योंकक इस िेि • कोंकण तट पर कई अपरदन जननत विशेषताएं
में तत
र ीयक कल्प के चट्टानों पाए जाते हैं जो ममलती हैं, जैसे श्क्लफ (सीिी चट्टान), मभवत्तयााँ और
दक्कन के लािा से बने हैं)| अरब सागर के द्िीप।
• कच्छ प्रायद्िीप समद्र
ु और लैगून से नघरा हुआ िा • मुंबई के पास िाने-क्रीक एक महत्िपूणव लघु-खाड़ी
जो बाद में , मसंिु नदी द्िारा लाए गए गाद से भर (समद्र
ु तट के पास एक गौण-खाडी) है , जो एक
ठदया गया। बेहतरीन प्राकरनतक बंदरगाह प्रदान करती है ।
• िह
र त रण एक लिणीय मैदानी िेि है जो कच्छ के कनावटक का तटवती मैदान
उत्तर में श्थित है । इसके दक्षिणी विभाग को छोटा
रण कहते हैं। • गोिा से मंगलोर तक|

• काठठयािाड़ प्रायद्िीप कच्छ के दक्षिण में श्थित है । • कन्नड़ तट मामावगांि और बेंगलरु


ु के बीच फैला हुआ

o इसका केंद्रीय भाग मांडि पहाडड़यां हैं, जहां है ।

से कई छोटी िाराएं सभी ठदशाओं में बहती • कन्नड़ तट संकरा एिं दं तुररत है ।

हैं। (अरीय अपिाह) • यह िेि लौह-भंडार से समद्


र ि है ।
o गगरनार पहाड़ (1,117 मीटर) सबसे ऊंची • कुछ जगहों पर पश्चचमी घाट से ननकलने िाली

मशखर है , श्जसकी उत्पवत्त ज्िालामुखीय िाराएं नतरछी ढाल से नीचे आते िक्त प्रपात का

प्रिवर त्त की है । ननमावण करती हैं।

o काठठयािाड़ प्रायद्िीप के दक्षिणी भाग में • शरािती द्िारा एक विमशष्ट्ट जलप्रपात का ननमावण

गगर-श्ख
ं र ला अिश्थित है । यहां घने जंगल ककया जाता है श्जसे गरसोप्पा या जोग प्रपात कहते

पाए जाते हैं और गगर शेरों के मलए भी हैं, श्जसकी ऊंचाई नतरछी ढलान से उतरते िक्त

प्रमसद्ि है । 271 मीटर है ।

गुजरात के मैदान • इस तट की खामसयत यहां की समुद्री थिलाकरनत है ।

• गज
ु रात के मैदान कच्छ और काठठयािाड़ के पि
ू व में पथ्
र िी पर मौजूद सबसे ऊंचा जलप्रपात िेनेजुएला में
श्थित है , श्जनका ढलान पश्चचम और दक्षिण श्थित एंजल जलप्रपात (979 मीटर) है । श्जसके बाद,

पश्चचम की तरफ है । दक्षिण अफ्रीका के ड्रेकेन्सबगव में तुगेला फॉल्स (948

• इसका ननमावण नमवदा, तापी, माही और साबरमती मीटर) है ।

नठदयों द्िारा ककया जाता है ।इस मैदान में गुजरात केरल के मैदान

का दक्षिणी भाग और कैम्बे की खाड़ी का तटीय िेि


• केरल का तटीय मैदानी िेि या मालाबार मैदानी तट
शाममल हैं।
मंगलौर से कन्याकुमारी तक फैला हुआ है ।

54
• ये ननम्न तटीय मैदान हैं, श्जसकी तुलनात्मक चौड़ाई • उत्तर से पश्चचम की ओर यह ननम्नमलखखत रूप में
ज्यादा है । विभाश्जत है :-
• मालाबार तट की विशेषता यहां मौजूद झील, लैगून,
अप्रिाही जल (backwater), जलमगन ठहथसा 1. उत्कल तटीय मैदान

(spits) है । 2. आंध्र तटीय मैदान

o मालाबार तट की एक खास विशेषता है – 3. तममलनाडु तटीय मैदान

‘कयाल’ (backwater), जो समुद्र तट के


• इस मैदान को महानदी और करष्ट्णा नदी के मध्य
समानांतर एक उिला लैगून होता है ।
उत्तरी सरकार(circars) मैदान के नाम से जाना जाता
▪ इनका प्रयोग मछली पकड़ने,
है और करष्ट्णा और कािेरी के मध्य कनावटकी
भूममगत नौपररिहन और पयवटन के
(carnatic) मैदान के नाम से जाना जाता है ।
मलए ककया जाता है , प्रत्येक िषव
पुन्नमडा कयाल, केरल में , नेहरू आंध्र तटीय मैदान और तममलनाडु तटीय मैदान को
रॉफी िल्लमकाली (boat race) समग्र रूप से कोरोमंडल तटीय मैदान भी कहा जाता है ।
आयोश्जत की जाती है ।
▪ इनमें से सबसे बड़ा िेंबनाड झील है । उत्कल मैदानी भाग
भारत का पूवी तटवती मैदान
• उत्कल मैदान में महानदी डेल्टा सठहत उड़ीसा के
• यह पि
ू ी घाट और बंगाल की खाड़ी के मध्य पाया तटीय िेि भी शाममल हैं।
जाता है । • गचल्का झील इस मैदान की सबसे प्रमुख भौनतक
• इसका फैलाि गंगा डेल्टा से लेकर कन्याकुमारी तक विशेषता है ।
है । o यह दे श की सबसे बड़ी झील है ।
• यहााँ सुव्यिश्थित ढं ग से विकमसत डेल्टा पाए जाते आंध्रा का मैदानी िेत्र
हैं, जैसे महानदी, गोदािरी, करष्ट्णा और कािेरी के
डेल्टा। • यह उत्कल मैदान के दक्षिण में पाया जाता है और
• पूिी तट पर गचल्का झील और पुमलकट झील पुमलकट झील तक फैला हुआ है ।
(लैगन
ू ) के रूप में दो महत्िपण
ू व भौगोमलक विशेषताएं o पुमलकट झील में एक रे त का द्िीप है श्जसे

ममलती हैं। श्ीहरीकोटा द्िीप (इसरो द्िारा प्रिेपण के


• पश्चचमी तटिती मैदान की तुलना में पूिी तटिती मलए प्रयोग ककया जाता है ) कहा जाता है ।
मैदान की चौड़ाई अगिक है और यह उद्गामी • गोदािरी और करष्ट्णा द्िारा डेल्टा का ननमावण ककया
तटिती मैदान का उदाहरण है । जाता है ।दोनों डेल्टाओं के विलय के कारण, एक भू-
• इस िेि में महाद्िीपीय जल सीमा समुद्र के अंदर आकरनत इकाई का ननमावण होता है ।
500 ककलोमीटर तक फैली हुई है , श्जसके कारण • इस मैदानी भाग में एक सीिी तट रे खा है और
यहा प्राकरनतक बंदरगाहों का ननमावण नहीं हो पाते है । विशाखापट्टनम और मछलीपट्टनम के अलािा यहां
अच्छे बंदरगाहों का अभाि दे खा जाता है ।
भारत के पूवी तट का कई स्िानीय नाम भी है तशमलनाडु के मैदानी िेत्र

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1. तममलनाडु का मैदानी भूभाग पुमलकट झील से लेकर 4. उिवरक ममट्टी तिा व्यापक थतर पर मसंचाई की
कन्याकुमारी तक फैला हुआ है , जो तममलनाडु के व्यिथिा के कारण, कािेरी डेल्टा को दक्षिण भारत
तट से लगा हुआ है । का अन्नागार (granary) कहा जाता है ।
2. इसकी औसत चौड़ाई 100 ककलोमीटर है ।
3. इस मैदानी भाग की विशेषता कािेरी डेल्टा है जहां
यह 130 ककलोमीटर चौडा है ।

भारतीय तट रे खाओं का महत्व


1. भारत के तटीय मैदान आमतौर पर उिवरक ममट्टी से सकते हैं।
ढके हुए हैं। 4. इन इलाकों के लोगों का मख्
ु य व्यिसाय मछली
o इन िेिों में चािल की खेती मुख्य अनाज पकड़ना है ।
के तौर पर की जाती है । 5. तटीय एिं समुद्री पाररश्थिनतकी तंि जैसे मैंग्रोि,
2. भारत के तटीय सीमाओं पर अिश्थित बंदरगाह, प्रिाल मभवत्त या ज्िारनदमख
ु और लैगन
ू की प्रचरु ता,
व्यापाररक गनतविगियों में मदद करते हैं। इन िेिों में पयवटन को बढ़ािा दे ती है ।
3. इन तटीय मैदानों में मौजूद अिसादी चट्टानों में 6. भारत के तटीय िेिों में अनुकूल जलिायु होने के
खननज तेल का भंडार पाया जाता है , जो समुद्री कारण, यहां आदशव-पण
ू व मानि विकास दे खा जा
अिवव्यिथिा को बढ़ािा दे ने में मददगार सात्रबत हो सकता है ।

डेल्टा और ज्वारनदमुख
नदी की प्रिाह प्रणाली के तीन थतर होते हैं:

• डेल्टा जलोढ़ अमभिद्


र गि (ननिेपण के कारण) है
लेककन यह एक अलग थिान पर विकमसत होते हैं।
• जलोढ़ अमभिद्
र गि के विपरीत, डेल्टा का ननमावण
करने िाली ननिेप में थपष्ट्ट थतरीकरण दे खा जा
सकता है ।

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▪ पररष्ट्करत पदािव पहले ही जमा हो • नठदयों द्िारा लाए गए गाद को समुद्र में
जाते हैं तिा महीन पदािव जैसे फैला ठदया जाता है ।
तलछट और गचकनी ममट्टी समुद्र में • डेल्टा के विकास के साि-साि वितररकाओं की लंबाई
प्रिाठहत हो जाते हैं। में भी बढ़ोतरी होती है इस तरह समुद्र में डेल्टाओ
• डेल्टा बड़ी नठदयों के मुहाने पर पाए जाते हैं - का लगातार ननमावण होता रहता है ।
उदाहरण के मलए, गंगा डेल्टा|

भारत के महत्वपूणव बंदरगाह


• दे श के मुख्य भूमम के 5600 ककलोमीटर लंबी बंदरगाहों को संवििान की समिती सूची में
समद्र
ु तट में 13 प्रमख
ु और 185 छोटे बंदरगाह शाममल ककया गया है और संबंगित राज्यों द्िारा
श्थित है । प्रबंगित और प्रशामसत ककया जाता है ।
• प्रमुख बंदरगाहों को केंद्र सरकार द्िारा ननयंत्रित
ककया जाता है , जबकक मध्यम और छोटे

पश्चचमी तटीय मैदानी िेि पूिी तटीय मैदानी िेि


पश्चचमी घाट और अरब सागर के मध्य अिश्थित है । पि
ू ी घाट और बंगाल की खाड़ी के मध्य अिश्थित है ।
ये कच्छ से कन्याकुमारी तक फैले हुए हैं। सुंदरबन से कन्याकुमारी तक फैला हुआ है ।
िे पश्चचमी घाट के समानांतर हैं। पूिी घाट के समानांतर हैं।
आगे ये कच्छ, कोंकण, कन्नड़ एिं मालाबार के तटीय आगे ये उत्कल, आंध्र और कोरोमंडल मैदानी िेिों में
मैदानी िेिों में विभाश्जत है। विभाश्जत हैं।
यह लंबी एिं संकरी है । इनकी चौड़ाई पश्चचमी तट से ज्यादा है ।
यह ननमज्जन तटीय मैदानी िेि है । ये उभरे हुए तटीय मैदानी िेि हैं।
तटीय मैदानी इलाकों में अत्यगिक बाररश होती है । तल
ु नात्मक रूप से कम बाररश होती है ।
पश्चचमी तटीय मैदानी इलाकों में बहने िाली नठदयां डेल्टा नठदयों द्िारा डेल्टा का ननमावण ककया जाता है ।
का ननमावण नहीं करती हैं।
मोटी ममट्टी के कारण यहां करवष कम विकमसत है । महीन जलोढ़ ममट्टी के कारण करवष ज्यादा विकमसत है ।

महत्िपूणव प्राकरनतक बंदरगाह पश्चचमी तट पर अिश्थित हैं- कम बंदरगाह अिश्थित हैं।


कांडला, जिाहरलाल नेहरू पोटव रथट, ममावगाओं बेंगलुरु,
कोचीन|

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CH-4 भारत का अपवाह तंत्र
भारत के अपवाह तंत्र में बहुत बड़ी संख्या में छोटी और बड़ी नदियााँ हैं। यह त़ीन प्रमुख भौततक इकाइयों की ववकास
प्रक्रिया (महान दहमालय, प्रायद्व़ीप़ीय पठार, पश्चिम़ी घाट) तथा वर्ाा की प्रकृतत और इसकी ववशेर्ताओं का पररणाम
है ।

मल
ू शब्दावली • निी का उद्गम स्रोत: जहााँ से निी का जन्म होता
है .
• अपवाह तंत्र: पण
ू ा ववकससत िैनलों से होना जल का
• संगम: वह स्थान जहााँ िो नदियााँ समलत़ी है
प्रवाह, अपवाह कहलाता है और इस तरह के िैनलों
के जाल को अपवाह तंत्र कहते है .
@Akash_Singhh

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• ववतररका निी: मुख्य निी से तनकलने वाली
छोटी निी जो क्रिर कभ़ी इससे नहीं समलत़ी
है . इसके कारण मुख्य निी के पाऩी की मात्रा
में कम़ी आत़ी है . ववतररका सामान्यतः डेल्टा
पर समलत़ी है और इनका जलोढ़ पंख और
शंकु बनाने में अत्यधिक योगिान होता है .
• सहायक निी: एक छोटी निी या िारा जब
क्रकस़ी बड़ी निी से समलकर इसके जल की
मात्रा को बढात़ी है इसे सहायक निी कहते
है ।
• निी मुहाना: वह स्थान जहााँ निी का प्रवाह
ख़त्म होता है या यह समुद्र से समलत़ी है ।
• जलग्रहण क्षेत्र: वह सम्पूणा क्षेत्र, श्जस पर वर्ाा
होत़ी है और यह निी बेससन का काया करता
है ।
• निी रूपरे खा: यह निी स्त्रोत से मुहाने तक
ववसभन्न बबंिओ
ु ं पर निी की ऊंिाई का
प्रतततनधित्व करता है । प्रायद्व़ीप़ीय नदियााँ
लगभग अपने क्षरण के तनम्न स्तर तक पहुाँि
िुकी हैं। • वाटरशेड/जल ववभाजक: एक जल तनकास़ी बेससन को
• तनवाहन/Discharge: समय के साथ निी में बहने िस
ू रे बेससन से अलग करने वाली स़ीमा रे खा को
वाले जल की माप़ी गय़ी मात्रा। इसे क्यूसेक (क्यूबबक वाटरशेड क्षेत्र कहा जाता है ।
िीट प्रतत सेकंड) या क्यूमक्
े स (क्यूबबक म़ीटर प्रतत
सेकंड) में मापा जाता है ।

अपवाह का स्वरूप

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• एक क्षेत्र में िाराओं की एक ज्यासमत़ीय व्यवस्था में जाना जाता है । उिाहरण के सलए, उत्तरी मैिान की
को अपवाह स्वरूप कहा जाता है । एक क्षेत्र में अपवाह नदियााँ।
पैटना को तनयंबत्रत करने वाले कारक तनम्न हैं:
अरीय अपवाह प्रततरूप: रे ड्रडयल अपवाह पैटना तब बनते
➢ स्थलाकृतत: क्रकस़ी क्षेत्र की प्राकृततक और कृबत्रम
हैं जब नदियााँ एक पहाड़ी से तनकलकर सभ़ी दिशाओं में
भौततक आकृतत क्रकस़ी अपवाह तंत्र को अत्यधिक
प्रवादहत होत़ी हैं। उिाहरण के सलए, अमरकंटक से
प्रभाववत करत़ी है ।
तनकलत़ी नदियााँ।
➢ ढलान: निी के प्रवाह की दिशा आमतौर पर ढलान
की दिशा द्वारा तनिे सशत होत़ी है क्योंक्रक पाऩी का
प्रवाह गुरुत्वाकर्ाण बल द्वारा तनयंबत्रत होता है । ऐस़ी
बहुत स़ी नदियााँ हैं श्जनका प्रवाह ववशेर् रूप से
ढलान की दिशा द्वारा तनिााररत होता है ।
➢ संरिनात्मक तनयंत्रण: निी के मागा में , िट्टान की
परतों की व्यवस्था, निी को ले जाने वाली दिशा को
प्रभाववत कर सकत़ी है । प्रवाह की सामान्य दिशा के
बावजूि एक उठी हुई िट्टान की रुकावट के कारण केंद्राभभमख
ु ी : केंद्रासभमख
ु ़ी अपवाह स्वरूप तब बनता है
निी अपऩी दिशा बिल सकत़ी है ।
जब बहुत स़ी नदियााँ अपने जल को सभ़ी दिशाओं से
➢ िट्टानों की प्रकृतत: जैस-े जैसे निी अपने मागा का लाकर एक झ़ील या एक तालाब में छोड िे त़ी हैं। उिाहरण
अपरिन करत़ी जात़ी है , निी मागों की गहराई को के सलए, मणणपरु में लोकटक झ़ील।
तनिााररत करने में आिार की प्रकृतत महत्वपूणा होत़ी
जाल स्वरूप : जाली जल अपवाह पैटना तब बनता है
है । यदि निी अपने रास्ते में बहुत अधिक प्रततरोि़ी
जब मख्
ु य नदियों की प्राथसमक सहायक नदियााँ एक
िट्टान से टकरात़ी है , तो ढलान की प्रकृतत के
बावजूि निी को अपऩी दिशा बिलऩी पड सकत़ी है ।
➢ टे क्टोतनक गततववधियां: टे क्टोतनक हलिल निी के
आकार, जलीय गततववधियों , इनका बनना और
तनक्षेपण को प्रभाववत करते हैं।
➢ उस क्षेत्र का भूवज्ञ
ै ातनक इततहास

भारत में अपवाह तंत्र के स्वरूप

वक्ष
ृ ाकार/डेंड्रिटिक: एक अपवाह पैटना पेड की शाखाओं की
तरह दिखता है , वक्ष
ृ ाकार/ डेंड्रिदटक अपवाह पैटना के रूप

िस
ू रे के समानांतर बहत़ी हैं और द्ववत़ीयक सहायक
नदियााँ उन्हें समकोण पर जोडत़ी हैं। उिाहरण के सलए,
दहमालय़ी क्षेत्र के ऊपरी भाग में श्स्थत नदियााँ और

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ससंहभूम के पुराने वसलत पवात (छोटानागपुर पठार) इस स्थलाकृतत के उत्थान के कारण अपऩी पूवा
अथाात िामोिर निी प्रणाली। श्स्थतत पर बऩी रहत़ी है ससंि,ु सतलुज, गंगा, सरजू
(काली), अरुण (कोस़ी की एक सहायक निी), ततस्ता,
आयताकार: आयताकार अपवाह तंत्र में , मुख्य िारा और
और ब्रह्मपुत्र कुछ महत्वपूणा प्राि़ीन निी हैं, जो
इसकी सहायक नदियााँ िोनों समकोण-मोड पर काटत़ी
महान दहमालय के ऊपर से तनकलत़ी हैं।
हैं। एक आयताकार अपवाह स्वरूप अत्यधिक कठोर
2. अध्यारोश्त्पत अपवाह तंत्र: निी के लगातार अपरिन
िट्टानों में समलता है । उिाहरण के सलए भारत के ववंध्य
के कारण स्थल की कमजोर िट्टानें अपरदित हो
पवात में समलने वाली िाराएाँ।
जात़ी है और निी कठोर िट्टानों पर स्वतंत्र रूप से
बहने लगत़ी है । िामोिर, सुबणारेखा, िंबल, बानस
अध्यारोश्त्पत अपवाह तंत्र के कुछ अच्छे उिाहरण
हैं।

सुसंगत/अनुकूल अपवाह तंत्र

अपवाह का एक ऐसा पैटना जो क्षेत्र की स्थलाकृतत और


भूववज्ञान के संगत होता है ।

Consequent िाराएाँ: ये िाराएाँ भूसम के ढलान से


प्रभाववत होत़ी है ।
अपवाह तंत्र के स्वरूपों के प्रकार
Subsequent िाराएाँ: ये िाराएाँ भूसम का ढलान के
निी के पैटना के आकार और गठन के आिार पर,
अनुसार िलत़ी है और Consequent िाराओं का
ववसभन्न जल अपवाह तंत्र स्वरूप समलते हैं।
अनुसरण करत़ी है ।
ए) असंगत/ प्रततकूल अपवाह तंत्र
Obsequent िाराएाँ: ये िाराएाँ भूसम ढलान से ववपरीत
अपवाह का एक ऐसा पैटना जो क्षेत्र की स्थलाकृतत और दिशा में बहत़ी है ।
भवू वज्ञान के संगत नहीं होता है । ये िो प्रकार के होते
Resequent िाराएाँ: यह िारा शुरू में consequent
है -
िारा की दिशा में ही िलत़ी है परं तु ये बाि में बनत़ी है
1. पव
ू ग
ा ाम़ी असंगत अपवाह तंत्र: निी के िमवार जब अपरिन के कारण यहााँ नया ववपरीत आिार बन
अपरिन से इस निी की सतह कम होने की बजाय जाता है ।

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भारत में मुख्य नदी प्रणाली

भारतीय अपवाह तंत्र का वगीकरण

1. जल ववतरण के आिार पर
• अरब सागर का अपवाह तंत्र
• बंगाल की खड़ी का अपवाह तंत्र

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अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में बहने वाली अपवाह प्रणासलयों को एक जल ववभाजन से अलग क्रकया जाता है , जो
पश्चिम़ी घाट, अरावली और यमुना सतलुज में ववभाश्जत होत़ी है ।

सभ़ी अपवाह तंत्रों का 90% केवल बंगाल की खाड़ी में जाता है और शेर् अरब सागर और आतंररक अपवाह तंत्र का
दहस्सा बन जाता है ।

उत्पवत्त, प्रकृतत और ववशेर्ताओं के आिार पर:

• दहमालय़ी अपवाह
• पठारी अपवाह
o दहमालय़ी अपवाह प्रायद्व़ीप़ीय अपवाह की तुलना में बहुत छोटा होता है

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o इन िोनों अपवाह प्रणासलयों के ब़ीि स़ीमांकन स्पष्ट नहीं है , क्योंक्रक िंबल, बेतवा, ससंि, केन और सोन
दहमालय़ी नदियों की सहायक नदियााँ होत़ी हैं।

टहमालयी अपवाह तंत्र

इस तंत्र में दहमालय और ट्ांस दहमालय से उत्पन्न होने वाली नदिया शासमल होत़ी है । इस में 3 मुख्य निी तंत्र शासमल
होते है -

o गंगा
o ससंिु
o ब्रह्मपुत्र निी तंत्र

• ये सभ़ी नदिया बिा के वपघलने और वर्ाा होने के • दहमालय़ी नदियों की ववसभन्न भौगोसलक ववशेर्ताएं
कारण बनत़ी है इससलए इन्हें बारहमास़ी/नव़ीन हैं:
नदियां कहा जाता है ।

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• इसके ऊपरी क्षेत्र में (युवा अवस्था): गाजा, व़ी-आकार (भारत) राज्यों में ससंिु बेससन का एक ततहाई से अधिक
की घादटयााँ, तेज उतार, झरने, कटे हुए िग
ु ,ा आदि दहस्सा श्स्थत है । बाकी दहस्सा पाक्रकस्तान में है ।
समलते है ।
• मैिाऩी क्षेत्रों या मध्य भाग (पररपक्व अवस्था) में : • इंडस, श्जसे ससंिु के नाम से भ़ी जाना जाता है ,
मैिानों में प्रवेश करते समय, वे सपाट घादटयों, भारत में दहमालय़ी नदियों की सबसे पश्चिम़ी निी
गोखुर झ़ीलों, बाढ़ के मैिानों, अव्यवश्स्थत िैनल है ।
और निी के मुहाने के पास डेल्टा जैस़ी स्थलाकृततयों • ससंिु की उत्पवत्त कैलाश पवात श्ंख
ृ ला में 4,164
का तनमााण करते हैं। मैिाऩी इलाकों में , वे एक म़ीटर की ऊंिाई पर ततब्बत़ी क्षेत्र में बोखार िू के
मजबूत ििीय प्रववृ त्त प्रिसशात करते हैं और अपने पास एक ग्लेसशयर से हुई है ।
मागों को अक्सर स्थानांतररत करते हैं। • जम्मू और कचम़ीर में प्रवेश करने के बाि, यह
लद्िाख और जास्कर रें ज के ब़ीि बहत़ी है ।
टहमालयी अपवाह तंत्र की उत्पत्ति
• यह लेह में जास्कर निी से समलत़ी है ।
• प्रमुख दहमालय़ी नदियााँ दहमालय के तनमााण से पहले • ससंिु ने दहमालय, लद्िाख, जास्कर, और कैलाश के
भ़ी मौजूि थ़ीं, अथाात यरू े सशयन प्लेट के साथ ग्लेसशयरों से इसे जल की प्राश्प्त होत़ी है ।
भारत़ीय प्लेट के टकराने से पहले भ़ी। • यह 3600 क्रकम़ी लंब़ी और ितु नया की सबसे बड़ी
• ये नदियााँ तब टे धथस सागर में बह रही थ़ी और नदियों में से एक है ।
इनका स्त्रोत वतामान ततब्बत क्षेत्र था। • ततब्बत में , ससंिु को ससंग़ी खंबन या शेर के मुंह के
• ससंिु, सतलुज, ब्रह्मपुत्र आदि की गहरे घादटयों से नाम से जाना जाता है ।
संकेत समलता है क्रक ये नदियााँ दहमालय से भ़ी पुराऩी • ससंिु िदिा स्तान क्षेत्र में तछल्लर के पास पाक्रकस्तान
हैं। में प्रवेश करत़ी है ।
• ये नदियााँ दहमालय के तनमााण के पूरे िरण के िौरान
बहत़ी रहीं; ऊध्वाािर अपरिन के कारण निी तल
कम होते िले गए थे (ऊध्वाािर कटाव का महत्वपण
ू ा
योगिान था और यह दहमालय के बढ़ते की तुलना
अधिक तेज था), इससे गहरी घादटयों का तनमााण
हुआ।
• दहमालय की कई नदियां पूवव
ा ती अपवाह का ववसशष्ट
उिाहरण हैं।

ससंिु की सहायक नदियााँ और उनके उद्गम स्थल


भसंधु नदी तंत्र
इस निी प्रणाली में ससंिु और उसकी सहायक नदियााँ • ऊपरी भाग में ससंिु की प्रमख
ु सहायक नदियााँ चयोक,
जैसे झेलम, िेनाब, रवव, ब्यास, सतलुज (पंिनि) आदि धगलधगत, जास्कर, हुंजा, नुब्रा, सशगार, िाश्स्टं ग और

शासमल हैं। यह ितु नया की सबसे बड़ी निी घादटयों में द्रास हैं।

से एक है । जम्मू और कचम़ीर, दहमािल प्रिे श और पंजाब • तनिले भाग में सतलुज, ब्यास, राव़ी, धिनाब और
झेलम ससंिु की प्रमुख सहायक नदियााँ हैं।

66
• अंत में , ससंिु पाक्रकस्तान में कराि़ी के पास अरब • ब्यास ससंिु की एक और महत्वपूणा सहायक निी है ,
सागर में धगरत़ी है । श्जसका उद्गम समुद्र तल से 4,000 म़ीटर की ऊंिाई
पर रोहतांग िरे के पास ब्यास कंु ड से हुआ है ।
झेलम नदी
• यह निी कुल्लू घाटी से होकर बहत़ी है और िौलािार
• झेलम कचम़ीर की घाटी के िक्षक्षण-पूवी दहस्से में प़ीर श्ेण़ी में कदट और लागी में गाजा बनात़ी है ।
पंजाल के तल पर श्स्थत वेरीनाग में एक झरने से • यह पंजाब के मैिानों में प्रवेश करत़ी है जहााँ यह
तनकलत़ी है । हररके के पास सतलज
ु से समलत़ी है ।
• यह पाक्रकस्तान में प्रवेश करने से पहले श़्ीनगर और • बांि: पौंग बांि, पंडोह बांि
वुलर झ़ील गहरी संकीणा घाटी से होकर बहत़ी है ।
सतलुज नदी
यह पाक्रकस्तान में झांग के पास धिनाब से समलत़ी
है । • सतलुज की उत्पवत्त ततब्बत में 4,555 म़ीटर की
• बांि: मंगला बांि, उरी बांि, क्रकशनगंगा पनबबजली ऊंिाई पर मानसरोवर के पास राकस झ़ील से हुई है
संयंत्र। जहााँ इसे लैंगिेन खंब के नाम से जाना जाता है ।
• यह भारत में प्रवेश करने से पहले लगभग 400
चिनाब नदी
क्रकम़ी तक ससंिु के समानांतर बहत़ी है और रूपार
• धिनाब ससंिु की सबसे बड़ी सहायक निी है । यह िो में एक गाजा से तनकलत़ी है।
िाराओं, िंद्र और भागा द्वारा बनत़ी है , जो दहमािल • यह दहमालय पवातमाला पर सशपकी ला से गुजरते
प्रिे श में कीलोंग के पास टांड़ी में समलत़ी है । हुए पंजाब के मैिानों में प्रवेश करत़ी है । यह एक
• इससलए, इसे िंद्रभागा के नाम से भ़ी जाना जाता प्राि़ीन निी है ।
है । पाक्रकस्तान में प्रवेश करने से पहले निी 1,180 • यह एक बहुत महत्वपूणा सहायक निी है क्योंक्रक यह
क्रकम़ी तक बहत़ी है । भाखडा नांगल पररयोजना की नहर प्रणाली को जल
• बांि: सलाल बांि, पाकल डल बांि, रतले हाइिो- उपलब्ि करवात़ी है ।
इलेश्क्ट्क प्लांट, डल हस्त़ी हाइिो-इलेश्क्ट्क प्लांट
भसंधु जल संचध
रावी नदी
19 ससतंबर 1960 को िोनों िे शों के ब़ीि हस्ताक्षररत
• राव़ी ससंिु की एक और महत्वपूणा सहायक निी है । ससंिु जल संधि के अनुसार भारत और पाक्रकस्तान ससंिु
यह दहमािल प्रिे श के कुल्लू पहाड्रडयों में रोहतांग निी प्रणाली के जल को साझा करते हैं।
पास के पश्चिम से तनकलत़ी है और राज्य की िंबा
संयुक्त राष्ट् द्वारा स्थाय़ी वववाि आयोग का गठन
घाटी से होकर बहत़ी है ।
क्रकया गया था, जो एक तंत्र के साथ जल बंटवारे में होने
• पाक्रकस्तान में प्रवेश करने और सराय ससद्िू के पास
वाले वववािों को सुलझाने के सलए सौहािा पूणा ढं ग से काया
धिनाब में शासमल होने से पहले, यह प़ीर पंजाल
करे गा।
और िौलािार पवातमाला के िक्षक्षण-पूवी भाग के
ब़ीि श्स्थत क्षेत्र में बहत़ी है । इस संधि के अनुसार, भारत कुल पाऩी का केवल 20
• बांि: रणज़ीत सागर बांि, िमेरा बांि प्रततशत उपयोग कर सकता है ।

ब्यास नदी

67
1960 में भारत और पाक्रकस्तान के ब़ीि हस्ताक्षररत घरे लू, गैर-उपभोग्य और कृवर् उपयोग भारत भ़ी कर
संधि के तहत, त़ीन नदियों (अथाात ् राव़ी, सतलज, और सकता है जैसा क्रक संधि में प्रिान क्रकया गया था।
ब्यास (पूवी नदियों) ) के सारे जल के अनन्य उपयोग
भारत को पश्चिम़ी नदियों पर निी (ROR) पररयोजनाओं
के सलए भारत को आवंदटत क्रकया गया था।
के माध्यम से पनबबजली उत्पािन का अधिकार भ़ी दिया
जबक्रक, पश्चिम़ी नदियों का पाऩी - ससंिु, झेलम, और गया है , जो रिना और संिालन के सलए ववसशष्ट मानिं डों
धिनाब पाक्रकस्तान आवंदटत क्रकए गए थे, इनका तनदिाष्ट के अि़ीन मान्य है ।

वततमान त्तवकास

• भारत को ववशेर् उपयोग के सलए आवंदटत पूवी नदियों के पाऩी का उपयोग करने के सलए, भारत ने तनम्न बांिो
का तनमााण क्रकया है :
o सतलुज पर भाखडा बांि,
o ब्यास पर पोंग और पंडोह बांि और
o राव़ी पर िीन बांि (रं ज़ीत सागर)।

• 2016 में , पाक्रकस्तान ने जम्मू-कचम़ीर में बनाई जा • भारत ने तब तटस्थ ववशेर्ज्ञों से संयंत्र का तनरीक्षण
रही भारत की क्रकशनगंगा और रतले पनबबजली करने का अनुरोि क्रकया, भारत ने कहा क्रक
पररयोजनाओं पर अपऩी धिंताओं को उठाने के सलए पाक्रकस्तान द्वारा उठाए गए बबंि ु तकऩीकी हैं और
ववचव बैंक से संपका क्रकया था।

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इसमें मध्यस्थता के सलए अिालत की आवचयकता
नहीं है ।
• ववचव बैंक ने संधि के तकऩीकी प्राविानों पर िोनों
िे शों के ब़ीि बाति़ीत के बाि भारत को
पररयोजनाओं के साथ आगे बढ़ने की अनुमतत िी।

गंगा नदी तंत्र

• गंगा निी प्रणाली भारत में सबसे बड़ी है और इसमें


कई बारहमास़ी और गैर-बारहमास़ी नदियााँ हैं जो • िे वप्रयाग में , भाग़ीरथ़ी अलकनंिा से समलत़ी है ;
इसके बाि, इसे गंगा के नाम से जाना जाता है ।
हररद्वार में गंगा मैिाऩी इलाकों में प्रवेश करत़ी है ।
• यह प्रयागराज (इलाहाबाि) में यमुना से समलत़ी है ।
• गंगा निी की लंबाई 2,525 क्रकम़ी है । गंगा बेससन
अकेले भारत में लगभग 8.6 लाख वगा क्रकम़ी क्षेत्र
को आच्छादित करता है ।
• महत्वपूणा बांि: भाग़ीरथ़ी निी (गंगा की एक सहायक
निी) पर तनसमात दटहरी बांि, िरक्का बैराज उस
बबंि ु के करीब है जहां निी का मुख्य प्रवाह बांग्लािे श
में प्रवेश करता है ।
• गंगा के मैिान पर बड़ी संख्या में शहर बनाए गए

गंगा नदी तंत्र हैं। सबसे उल्लेखऩीय में से सहारनपुर, मेरठ, आगरा,
अलीगढ़ कानपुर, बरे ली, लखनऊ, इलाहाबाि,
िमशः उत्तर में दहमालय और िक्षक्षण में प्रायद्व़ीप
वाराणस़ी (दहन्िओ
ु ं का पववत्र शहर या काश़ी), पटना,
से तनकलत़ी हैं।
भागलपुर, मुसशािाबाि, कोलकाता, हावडा और ढाका
• गंगा अपने बेससन और सांस्कृततक महत्व के
प्रमुख हैं।
दृश्ष्टकोण से भारत की सबसे महत्वपूणा निी है ।
• बांग्लािे श में इसे पिमा के रूप में जाना जाता है।
• गंगा बेससन में 11 राज्य शासमल हैं। उत्तराखंड, उत्तर
पिमा निी के जमुना (ब्रह्मपुत्र निी) से समलने के
प्रिे श, मध्य प्रिे श, राजस्थान, हररयाणा, दहमािल
बाि में मेघना के रूप में जाना जाता है जो हुगली
प्रिे श, छत्त़ीसगढ़, झारखंड, बबहार, पश्चिम बंगाल
निी के साथ समलकर ितु नया की सबसे बड़ी डेल्टा
और दिल्ली।
बनात़ी है , जो भारत और बांग्लािे श िोनों में श्स्थत
• इसकी उत्पवत्त उत्तराखंड के उत्तरकाश़ी श्जले में गौमख

बंगाल की खाड़ी में सुंिरबन डेल्टा के रूप में जाना
(3,900 म़ीटर) के पास गंगोत्ऱी ग्लेसशयर में हुई है ।
जाता है ।
यहां पर इसे भाग़ीरथ़ी के नाम से जाना जाता है ।
• यह मध्य और तनिले दहमालय को संकीणा घादटयों
में काटत़ी है ।

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गंगा की महत्वपूणत बाईं ओर की सहायक नटदयााँ

• रामगंगा
• गोमत़ी
• घाघरा
• गंडक
• कोस़ी
• महानंिा

गंगा की सहायक नटदयााँ और उनके उद्गम स्थल

गंगा की महत्वपूणत दाईं ओर की सहायक नटदयााँ: • रामगंगा तुलनात्मक रूप से गेरसैन के पास
गढ़वाल पहाड्रडयों में एक छोटी निी है ।
• सोन
• यह सशवासलक को पार करने के बाि िक्षक्षण
• यमुना
पश्चिम दिशा में अपना रास्ता बिलत़ी है और
अलकनंदा नदी नज़ीबाबाि के पास उत्तर प्रिे श के मैिाऩी इलाके

• बद्रीनाथ से ऊपर सतोपंथ ग्लेसशयर में अलकनंिा का में प्रवेश करत़ी है ।

स्रोत है । • अंत में , यह कन्नौज के पास गंगा में समलत़ी

• अलकनंिा में िौली और ववष्णु गंगा जोश़ीमठ या है ।

ववष्णु प्रयाग में समलत़ी हैं। गोमती नदी


• अलकनंिा की अन्य सहायक नदियााँ जैसे वपंडर
• गोमत ताल / िुलहार णझल से उत्पन्न -
कणाप्रयाग में समलत़ी हैं जबक्रक मंिाक्रकऩी या काली
प़ीलीभ़ीत
गंगा इसे रुद्रप्रयाग में समलत़ी हैं।
• यह लखनऊ और जौनपुर शहरों से बहने से पहले
रामगंगा नदी उत्तर प्रिे श के गाज़ीपुर में गंगा में समलत़ी है ।

70
यमुना नदी

होकर बहत़ी है , जहां गांि़ीसागर बांि बनाया गया


है ।
• कोटा से, यह बूंिी, सवाई मािोपुर और िौलपुर तक
जात़ी है , और अंत में यमन
ु ा में समलत़ी है । िंबल

यमुना की सहायक नदियााँ अपने बैडलैंड स्थलाकृतत के सलए प्रससद्ि है श्जसे


िंबल ब़ीहड कहा जाता है ।
• यमुना, गंगा की सबसे पश्चिम़ी और सबसे लंब़ी
सहायक निी, बंिरपूछ श्ेण़ी (6,316 क्रकम़ी) के िंबल पर बांि

पश्चिम़ी ढलान पर यमुनोत्ऱी ग्लेसशयर में इसका स्रोत • गांि़ी सागर बांि राजस्थान-मध्य प्रिे श स़ीमा पर
है । श्स्थत िंबल निी पर बने िार बांिों में से पहला है ।
• यह प्रयागराज (इलाहाबाि) में गंगा में समलत़ी है । • राणा प्रताप सागर बांि गांि़ी सागर बांि के ऩीिे
इसके िादहने क्रकनारे पर िंबल, ससंि, बेतवा और श्स्थत है ।
केन इससे समलत़ी हैं, जो प्रायद्व़ीप़ीय पठार से • जवाहर सागर बांि राणा प्रताप सागर बांि के ऩीिे
तनकलत़ी है , जबक्रक दहंडन, ररंड, सेंगर, वरुण, आदि श्स्थत है ।
इसे अपने बाएं क्रकनारे से जुडत़ी हैं। • श्ंख
ृ ला में िौथा कोटा बैराज राजस्थान में कोटा शहर
• इसका अधिकांश पाऩी पश्चिम़ी और पूवी यमुना और के ऊपर श्स्थत है ।
आगरा की नहरों में ससंिाई के सलए उपयोग होता
बनास
है ।
• यमुना निी पर लखवार-व्यास़ी बांि पररयोजना, • बनास िंबल की एक सहायक निी है ।
इसमें भारत में उत्तराखंड के िे हरािन
ू श्जले के कलस़ी • इसकी उत्पवत्त अरावली पवातमाला के िक्षक्षण़ी भाग
ब्लॉक में लखवार शहर के पास, लखवार बांि और में होत़ी है ।
पॉवर स्टे शन, व्यास़ी डैम, हाथ़ीयारी पावर स्टे शन • यह सवाई मािोपुर के पास राजस्थान - मध्य प्रिे श
और कटापथर बैराज शासमल हैं। की स़ीमा पर िंबल में समलत़ी है ।

िंबल नदी भसंध

• िंबल मध्य प्रिे श के मालवा पठार में महू के पास • ससंि मध्य प्रिे श के ववदिशा पठार में उत्पन्न होत़ी
से तनकलत़ी है और राजस्थान में कोटा के ऊपर से है ।

71
• यमुना से जुडने से पहले यह 415 क्रकम़ी की िरू ी • भारत-नेपाल स़ीमा के साथ, इसे काली या िौक कहा
तक बहत़ी है । जाता है , जहााँ यह घाघरा में समलत़ी है ।

बेतवा कोसी नदी

• बेतवा भोपाल श्जले (ववंध्य रें ज) में उत्पन्न होत़ी है • कोस़ी ततब्बत में माउं ट एवरे स्ट के उत्तर में अपने
और हम़ीरपुर के पास यमुना में समलत़ी है । स्रोत से तनकलत़ी है , जहां इसकी मुख्यिारा अरुण
• िसान इसकी महत्वपूणा सहायक निी है । की उत्पवत्त होत़ी है ।
• नेपाल में मध्य दहमालय को पार करने के बाि, यह
केन
पश्चिम से सोन कोस़ी और पूवा से तमूर कोस़ी में
• केन निी मध्य प्रिे श के बारनेर रें ज से तनकलत़ी है शासमल हो जात़ी है ।
जो ि़ीला के पास यमुना में समलत़ी है । • यह अरुण निी के साथ समलने के बाि सप्त कोस़ी

गंडक नदी बनात़ी है । निी कोस़ी, श्जसे 'बबहार का िख


ु ' भ़ी कहा
जाता है , अक्सर अपने अपवाह मागा को बिलने के
• गंडक में काली गंडक और बत्रशूल गंगा की िो िाराएाँ
सलए कुख्यात रही है ।
शासमल हैं।
• कोस़ी अपने साथ ऊपर से भारी मात्रा में तलछट
• यह नेपाल दहमालय में िौलाधगरर और माउं ट एवरे स्ट
लात़ी है और इसे मैिानों में जमा करत़ी है । श्जससे
के ब़ीि से तनकलत़ी है और नेपाल के मध्य भाग
मागा अवरुद्ि हो जाता है , और पररणामस्वरूप, निी
में जात़ी है ।
अपने मागा को बिल िे त़ी है ।
• यह बबहार के िंपारण श्जले में गंगा के मैिान में
प्रवेश करत़ी है और पटना के पास सोनपुर में गंगा महानंदा नदी

में समलत़ी है । • महानंिा िाश्जासलंग पहाड्रडयों में गंगा की एक और

घाघरा नदी महत्वपूणा सहायक निी है ।


• यह पश्चिम बंगाल में गंगा की अंततम बाईं सहायक
• घाघरा मप्ििुंगों (Mapchachungo) के ग्लेसशयरों
निी के रूप में समलत़ी है ।
में उत्पन्न होत़ी है ।
• अपऩी सहायक नदियों - टीला, सेटी, और बेरी का सोन नदी

पाऩी इकट्ठा करने के बाि, यह पहाड से तनकलत़ी • सोन इसकी प्रमुख िादहऩी-सहायक निी है । सोन
है , जो धिसापाऩी में एक गहरा गाजा काटत़ी है । गंगा की एक बड़ी िक्षक्षण़ी सहायक निी है , जो
• शारिा (काली या काली गंगा) निी इसे मैिान मे अमरकंटक के पठार से तनकलत़ी है ।
समलत़ी है घाघरा निी के गंगा मे शासमल होने से • रोहतास पठार के क्रकनारे पर झरने की एक श्ंख
ृ ला
पहले छपरा में समलत़ी है । बनाने के बाि, यह गंगा में शासमल होने के सलए

शारदा नदी पटना के पश्चिम में अराह नमक स्थान पर पहुाँित़ी


है ।
• शारिा या सरयू निी नेपाल दहमालय में समलम
ग्लेसशयर से बहत़ी है जहााँ इसे गोरं गा के नाम से दामोदर नदी

जाना जाता है ।

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• िामोिर छोटानागपुर पठार के पूवी हासशये पर है • कभ़ी इसे बंगाल के 'िःु ख' के रूप में जाना जाता
जहााँ यह एक ररफ्ट घाटी से बहत़ी है और अंत में था, अब िामोिर को बहुउद्िे श़ीय पररयोजना िामोिर
हुगली में समलत़ी है । घाटी तनगम (DVC) द्वारा नासमत क्रकया गया है ।
• बराकर इसकी प्रमख
ु सहायक निी है ।
त्सांगपो के नाम से जाना जाता है , श्जसका अथा है
“शुद्ि करने वाली”।
ब्रह्मपुत्र नदी प्रणाली
• यह नामिा बरवा (7,755 म़ीटर) के पास मध्य
ब्रह्मपुत्र निी प्रणाली (3848 क्रकम़ी) ितु नया की सबसे दहमालय में एक 'वह
ृ त मोड' लेते हुए भारत में प्रवेश
लंब़ी नदियों में से एक है । इसे ततब्बत में यारलुंग त्संग्पो करत़ी है ।
निी के रूप में जाना जाता है साथ ही भारत में ब्रह्मपत्र
ु , • यह अरुणािल प्रिे श के सदिया शहर के पश्चिम से
लोदहत, ससयांग और दिहांग के नाम से और बांग्लािे श भारत में प्रवेश करत़ी है । त्सांगपो निी भारत में
में इसे जमुना के रूप में जाना जाता है प्रवेश करने के पचिात ससयांग या दिहांग के नाम

• ब्रह्मपुत्र, ितु नया की सबसे बड़ी नदियों में से एक से जाऩी जात़ी है ।

है , श्जसका उद्गम मानसरोवर झ़ील के पास कैलाश • जब यह निी भारत में िक्षक्षण-पश्चिम की ओर

पवात के िेमायुंगडुंग ग्लेसशयर से होता है बहत़ी है तब दिबांग या ससकंग और लोदहत इसकी

• यहााँ से, यह निी ततब्बत के िक्षक्षण़ी क्षेत्र में लगभग सहायक नदियां इससे समल जात़ी है और इसके बाि,

1,200 क्रकम़ी पूवा की और बहत़ी है जहााँ इसे इसे ब्रह्मपुत्र के रूप में जाना जाता है ।

ब्रह्मपुत्र की सहायक नदियााँ

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• ब्रह्मपुत्र असम घाटी में 750 क्रकम़ी लंब़ी यात्रा में • ब्रह्मपुत्र निी की महत्वपूणा सहायक नदियााँ तनम्न
कई सहायक नदियों से जल प्राप्त करत़ी है । हैं:
• इसकी प्रमुख बाईं सहायक नदियााँ में बुरर िीदहंग • बाई और की सहायक नदियां: िनससरी, कवपली,
और िनसारी आत़ी है , जबक्रक महत्वपूणा िादहऩी बराक
सहायक नदियााँ में सुबनसरी, कामें ग, मानस और • िादहने और की सहायक नदियां: सुबनससरी, श्जया
संकोश का नाम महत्वपण
ू ा हैं। भोरे ली, मानस, संकोश, ततस्ता और रै डक।
• सुबनससरी एक प्राि़ीन निी है , श्जसका उद्गम • िनससरी: नागा पहाड्रडयों से इसका उद्गम है ।
ततब्बत में होता है । • संकौश: यह भूटान की मख्
ु य निी है असम के
• ब्रह्मपुत्र िुबरी के पास बांग्लािे श में प्रवेश के बाि िुबरी में ब्रह्मपुत्र से समलत़ी है ।
िक्षक्षण की ओर बहत़ी है । • मानस: निी का उद्गम ततब्बत से होता है मानस
• बांग्लािे श में , ततस्ता निी िादहने ओर से समलत़ी है , ब्रह्मपुत्र की महत्वपूणा सहायक निी है ।
जहााँ से ब्रह्मपुत्र निी को जमुना के नाम से जाना • सुबनससरी: यह समक्रकर पहाड्रडयों और अबोर पहाड्रडयों
जाता है । के ब़ीि में बहत़ी है और बाि में ब्रह्मपुत्र में समलत़ी
• आणखर में जमुना निी पद्मा निी में समल जात़ी है है ।
और पद्मा निी के रूप में बंगाल की खाड़ी में धगरत़ी • ततस्ता: कंिनजंगा से तनकलत़ी है , और रं धगत और
है रं गपो जैस़ी सहायक नदियां इस से आकर समलत़ी
• ब्रह्मपुत्र निी बाढ़ और मि
ृ ा कटाव के सलए प्रससद्ि है , आणखर में ततस्ता बांग्लािे श में ब्रह्मपुत्र निी में
है । समलत़ी है ।
• बराक: मणणपुर से इसका उद्गम होता है यह सुरमा
ब्रह्मपुत्र निी से बाढ़ और मि
ृ ा कटाव का एक महत्वपण
ू ा
निी के रूप में बांग्लािे श में प्रवेश करत़ी है जो बाि
कारण यह भ़ी माना जाता है की इसकी अधिकांश
में िांिपुर में जाकर पद्मा निी में समल जात़ी है ।
सहायक नदियां बड़ी हैं, और इसके जलग्रहण क्षेत्र में
भारी वर्ाा के कारण वहााँ के लोगों को आपिा का सामना Peninsular Drainage System (प्रायद्वीपीय
करना पडता है अपवाह तंत्र)

Tributaries of Brahmaputra/ ब्रह्मपुत्र की सहायक • प्रायद्व़ीप़ीय अपवाह व्यवस्था दहमालय की जल


नटदयााँ तनकास़ी व्यवस्था से पुराऩी है ।
• यह व्यापक, मोटे तौर पर वगीकृत उथली घादटयों
और नदियों की पररपक्वता से स्पष्ट है ।.
• पश्चिम़ी घाट जो की पश्चिम़ी तट के पास है ,
प्रायद्व़ीप़ीय नदियों के पाऩी को बांटने का काया
करता हैं श्जससे यह पाऩी एक ओर तो बंगाल की
खाड़ी और िस
ू री ओर अरब सागर में बंट जाता है |.
• नमािा और ताप़ी को छोडकर अधिकांश प्रमख

प्रायद्व़ीप़ीय नदियााँ पश्चिम से पूवा की ओर बहत़ी
हैं।

74
• प्रायद्व़ीप के उत्तरी भाग में होने वाले िंबल, ससंि, झुकने के कारण ही सम्पण
ू ा अपवाह व्यवस्था का
बेतवा, केन, सोन, इस़ी निी अपवाह तंत्र से संबंधित बंगाल की खाड़ी की ओर असभसंस्करण हुआ है ।
हैं।
प्रायद्वीपीय भारत की नटदयााँ
प्रायद्वीपीय अपवाह तंत्र का त्तवकास
प्रायद्व़ीप़ीय निी प्रणाली को तनम्न वगों में वगीकृत
• अत़ीत में हुई त़ीन प्रमख
ु भूगभीय घटनाओं ने क्रकया गया है :
प्रायद्व़ीप़ीय भारत की वतामान जल अपवाह तंत्र को
पूवत की ओर बहने वाली नटदयां
आकार दिया है :
• शुरुआत़ी अवधि के िौरान प्रायद्व़ीप के पश्चिम़ी • महानिी, सुवणारेखा, गोिावरी, कृष्णा, कावेरी

दिशा में झक
ु ाव के कारण समुद्र का अपऩी प्रायद्व़ीप़ीय भारत की प्रमख
ु नदियााँ हैं।

जलमग्नता से ऩीिे िले जाना। आम तौर पर इसने • गोिावरी, कृष्णा, कावेरी पश्चिम़ी घाट से तनकलत़ी

निी के िोनों तरि के जल का मूल जल ववभाजन है , जबक्रक सुवणारेखा रांि़ी के पठार से तनकलत़ी है ।

क्रकया है । • ये सभ़ी निी बंगाल की खाड़ी में धगरत़ी है जबक्रक

• दहमालय में उभार आने से प्रायद्व़ीप़ीय खंड में उत्तरी सुवणारेखा डेल्टा बनात़ी है ।

दिशा में झुकाव हुआ और श्जसके िलस्वरूप यह पश्चिम की ओर बहने वाली नटदयां
गता बन गया। नमािा और ताप़ी इस़ी गता में बहत़ी
• नमािा, ताप़ी, साबरमत़ी, माही नदियााँ पश्चिम में
है और अपने अवसाि से मूल िरारों को भरने का
बहने वाली प्रमुख नदियााँ हैं, जो अरब सागर में
काम करत़ी है । इससलए इन िो नदियों में जलोढ़
धगरत़ी हैं और ज्वारनिमुख बनात़ी हैं।
और डेल्टा अवसािों की कम़ी है ।
• इस़ी अवधि के िौरान प्रायद्व़ीप़ीय ब्लॉक का उत्तर-
पश्चिम से िक्षक्षण -पूवी दिशा की ओर थोडा सा

सह्याटद्र में पश्चिम की ओर बहती नटदयााँ:

• हालााँक्रक सह्यादद्र की ये पश्चिम में बहने वाली नदियााँ भारत के घादटयों के कुल क्षेत्रिल का लगभग 3% दहस्सा
बनात़ी हैं, लेक्रकन इनमें िे श का लगभग 18% जल संसािन मौजूि है ।
• लगभग छह सौ छोटी िाराएाँ पश्चिम़ी घाट से तनकलत़ी हैं और पश्चिम की ओर बहत़ी हुई अरब सागर में धगरत़ी
हैं।
• पश्चिम़ी घाट के पश्चिम़ी ढलान िक्षक्षण-पश्चिम मानसून से भारी वर्ाा प्राप्त करते हैं और इतऩी बड़ी संख्या में
जलिाराओं को जल की प्राश्प्त होत़ी हैं।
• शरावत़ी निी द्वारा बनाया गया जोग या गसोप्पा जलप्रपात (289 म़ीटर) भारत का सबसे प्रससद्ि जलप्रपात है ।

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प्रायद्व़ीप़ीय अपवाह तंत्र

Mahanadi River/ महानदी

76
• महानिी का बेससन छत्त़ीसगढ़ और ओड्रडशा राज्यों • यह कटक के पास ओड्रडशा के मैिानों में प्रवेश करत़ी
और तुलनात्मक रूप से छोटा दहस्सा झारखंड, है और बाि में बंगाल की खाड़ी में धगरत़ी है ।
महाराष्ट् और मध्य प्रिे श में भ़ी िैला हुआ है , जो • पुरी, इसके एक मुहाने पर एक प्रससद्ि त़ीथा स्थल
1.4 लाख वगा क्रकम़ी बहने के बाि अरब सागर में है ।
धगरत़ी हैं और ज्वारनिमुख बनात़ी हैं। • ब्राह्मण़ी निी महानिी की सहायक निी नहीं है । यह
• इसका ऊपरी जलमागा “छत्त़ीसगढ़ के मैिान” नामक एक मौसम़ी निी है जो ओड्रडशा में बहत़ी है । महानिी
तचतरी के आकार के बेससन में श्स्थत है । और बैतरण़ी नदियों के साथ, यह िामरा में बंगाल
• इसका बेससन उत्तर में मध्य भारत की पहाड्रडयों, की खाड़ी में प्रवेश करने से पहले एक बडा डेल्टा
िक्षक्षण और पूवा में पूवी घाटों और पश्चिम में मैकाल बनात़ी है
श्ेण़ी से तघरा है । • कछुए का तनवास: इस निी का डेल्टा ऑसलव ररडले
• महानिी (महान निी) छत्त़ीसगढ़ के रायपुर श्जले से समुद्री कछुओं के सलए घोंसले के रूप में काया करता
तनकलत़ी है । है ।
• महानिी प्रायद्व़ीप़ीय नदियों की प्रमुख नदियों में से • महानिी की प्रमुख सहायक नदियााँ हैं सेओनाथ,
एक है , जल क्षमता और बाढ़-उत्पािन क्षमता में यह जोंक, हसिे ओ, मैंड, इब, ओंग, तेल, इत्यादि।
गोिावरी के बाि िस
ू रे स्थान पर है । • सेओनाथ निी: सेओनाथ निी महानिी की सबसे
• धिल्का झ़ील में स़ीिे बहने वाली अन्य छोटी िाराएं लंब़ी सहायक निी है । यह कोटाल में पहाड्रडयों के
भ़ी महानिी बेससन का दहस्सा हैं। कई छोटे समूहों के साथ एक अववभाश्जत क्षेत्र में
• संबलपुर में , निी पर हीराकंु ड बांि (भारत के सबसे उत्पन्न होत़ी है और 383 क्रकलोम़ीटर बहकर खरगंि
बडे बांिों में से एक) द्वारा 35 म़ील (55 क्रकम़ी) में अपने बाएं क्रकनारे पर महानिी में शासमल होत़ी
लंब़ी मानव तनसमात झ़ील बन गई है । है ।

77
• जोंक निी: जोंक निी 762 म़ीटर की ऊंिाई पर • हसिे ओ निी: यह छत्त़ीसगढ़ के सरगुजा श्जले में
ओड्रडशा के कालाहांड़ी श्जले के खाररयार पहाड्रडयों से तनकलत़ी है और महुआड़ीह में महानिी से समलने के
तनकलत़ी है । चयोरीनारायण में महानिी में शासमल सलए 333 क्रकलोम़ीटर की िरू ी तय करत़ी है ।
होने के सलए यह 196 क्रकलोम़ीटर बहत़ी है ।
• मांि निी: मांि निी का उद्गम ओड्रडशा के सरगुजा • ओंग निी: इसका उद्गम 457 म़ीटर की ऊाँिाई पर
श्जले में 686 म़ीटर की ऊाँिाई पर है और 241 एक पहाड़ी पर है , जो जोंक निी के मागा पर श्स्थत
क्रकलोम़ीटर बहकर िन्िरपरु में महानिी से समलत़ी है और सोनपुर में महानिी से समलने के सलए 204
है । क्रकलोम़ीटर बहत़ी है ।
• इब निी: इब की उत्पवत्त छत्त़ीसगढ़ के रायगढ़ श्जले • तेल निी: तेल निी का उद्गम ओड्रडशा के कोरापट

के पंडरापाट में होत़ी है और हीराकंु ड बांि में धगरने में है । यह सोनपुर में महानिी से समलने के सलए
के सलए 251 क्रकलोम़ीटर बहत़ी है । यह एक बरसात़ी 296 क्रकलोम़ीटर की िरू ी तय करत़ी है ।
निी है ।

गोदावरी नदी

• गोिावरी सबसे बड़ी प्रायद्व़ीप़ीय निी प्रणाली है । इसे • यह 1,465 क्रकलोम़ीटर लंब़ी है , यह 3.13 लाख वगा
िक्षक्षण गंगा भ़ी कहा जाता है । क्रकम़ी जलग्रहण क्षेत्र िैली है , जो महाराष्ट् में 49
• यह महाराष्ट् के नाससक श्जले में उत्पन्न होत़ी है प्रततशत में िैला हुआ है , मध्य प्रिे श और छत्त़ीसगढ़
और बंगाल की खाड़ी में इसके पाऩी का तनवाहन में 20 प्रततशत और आंध्र प्रिे श में शेर् है ।
होता है । • पेनगंगा, इंद्रावत़ी, प्राणदहता और मंजरा इसकी प्रमुख
• गोिावरी सहायक नदियााँ महाराष्ट्, मध्य प्रिे श, सहायक नदियााँ हैं।
छत्त़ीसगढ़, ओड्रडशा और आंध्र प्रिे श राज्यों से होकर • गोिावरी पोलावरम के िक्षक्षण में पहुाँित़ी है , जहााँ
गुजरत़ी हैं। यह एक आकर्ाक जलप्रपात बनात़ी है ।

गोिावरी निी बेससन

78
• यह केवल इसके डेल्टा णखंिाव में नौगम्य है ।
राजमुंिरी के बाि निी एक बडे डेल्टा का तनमााण
करत़ी हुई कई शाखाओं में ववभाश्जत हो जात़ी है ।

कृष्णा नदी

• कृष्णा िस
ू री सबसे बड़ी पूवी-बहने वाली
प्रायद्व़ीप़ीय निी है जो सह्याद्री में महाबलेचवर के
पास उत्पन्न होत़ी है । इसकी कुल लंबाई 1,401
क्रकम़ी है ।
• कोयना, तुंगभद्रा और भ़ीम इसकी प्रमुख सहायक
नदियााँ हैं।
• कृष्णा के कुल जलग्रहण क्षेत्र में , 27 प्रततशत
महाराष्ट् में , 44 प्रततशत कनााटक में और 29
प्रततशत आंध्र प्रिे श में हैं।

कृष्णा निी बेससन

कावेरी नदी

79
• कावेरी निी की उत्पवत्त कनााटक के कोडागु श्जले की तुलनात्मक रूप से पाऩी में कम उतार-िढ़ाव होता
ब्रह्मधगरी पहाड्रडयों में हुई है । है ।
• इसकी लंबाई 800 क्रकम़ी है और यह 81,155 वगा • कावेरी बेससन का लगभग 3 प्रततशत केरल में , 41
क्रकम़ी के क्षेत्र में िैला है । प्रततशत कनााटक में और 56 प्रततशत तसमलनाडु में
• िूंक्रक ऊपरी क्षेत्र िक्षक्षण-पश्चिम मानसून के मौसम पडता है ।
(गमी) के िौरान और तनिला क्षेत्र पूवोत्तर मानसन
ू • इसकी महत्वपूणा सहायक नदियााँ काबबऩी, भवाऩी
के मौसम (सदिा यों) के िौरान वर्ाा प्राप्त करता है , और अमरावत़ी हैं।
इस निी में प्रायद्व़ीप़ीय नदियों की तुलना में

छोिी पूवत में बहने वाली नटदयााँ

o सुवणारेखा
o बैतरण़ी
o ब्राह्मण़ी
o वंशिारा
o पेन्नार
o पलार
o वैगई

नमतदा नदी

• नमािा का उद्गम स्थल अमरकंटक पठार के पश्चिम़ी • िक्षक्षण में सतपुडा और उत्तर में ववंध्य श्ेण़ी के ब़ीि
तट पर लगभग 1,057 म़ीटर की ऊंिाई पर हुआ एक ररफ्ट घाटी में बहते हुए, यह जबलपुर के पास
है । संगमरमर की िट्टानों और िुआाँिार झरने में
आकर्ाक जलप्रपात बनात़ी है ।

80
• लगभग 1,312 क्रकलोम़ीटर की िरू ी तय करने के • नमािा बहुउद्िे श़ीय पररयोजना के तहत इस निी पर
बाि, यह भरूि के िक्षक्षण में अरब सागर से समलत़ी अन्य बांिो के साथ सरिार सरोवर पररयोजना का
है , यहााँ यह 27 क्रकम़ी लंबा िौडा निमुख बनात़ी है । तनमााण क्रकया गया है ।
इसका जलग्रहण क्षेत्र लगभग 98,796 वगा क्रकम़ी
है ।
तापी नदी

• ताप़ी एक महत्वपूणा पश्चिम की ओर बहने वाली • इसका लगभग 79 प्रततशत बेससन महाराष्ट् में , 15
निी है । यह मध्य प्रिे श के बैतूल श्जले के मुलताई प्रततशत मध्य प्रिे श में और शेर् 6 प्रततशत गुजरात
से तनकलत़ी है । में है ।
• नमािा की तरह, यह सतपुडा रें ज के िक्षक्षण में एक • साबरमत़ी और माही गुजरात की िो प्रससद्ि नदियााँ
ररफ्ट घाटी में बहत़ी है । यह 724 क्रकम़ी लंब़ी और हैं। वे अरावली श्ेण़ी से तनकलत़ी हैं और अरब सागर
इसका जल प्रवाह क्षेत्रिल 65,145 वगा क्रकम़ी है । के खंभात की खाड़ी में प्रवादहत होत़ी हैं।

81
टहमालयी और प्रायद्वीपीय नदी प्रणाली के बीि महत्वपूणत अंतर

झील

• एक ववशाल जल तनकाय जो भूसम से तघरा हुआ है


उसे झ़ील कहा जाता है ।
• अधिकांश झ़ीलें स्थाय़ी होत़ी हैं, जबक्रक कुछ में केवल
बरसात के मौसम में पाऩी होता है ।
• झ़ीलें दहमनिों और बिा की िािरों, हवा, निी और
मानव़ीय गततववधियों से बनत़ी हैं।

झीलों के प्रकार

गोखुर (Ox-bow Lake) झील: एक झ़ील का तनमााण


तब होता है जब एक बहत़ी हुई निी मुख्य िारा से कट
जात़ी है । इस झ़ील का आकार िनुर् जैसा दिखता है ।

82
अनूप झील/ लैगून: अनूप अथवा लैगून क्रकस़ी ववस्तत
ृ झ़ील है । इसका तनमााण टे क्टोतनक गततववधि के कारण
जलस्रोत जैसे समद्र
ु या महासागर के क्रकनारे पर बनने हुआ था।
वाला एक उथला जल क्षेत्र होता है जो क्रकस़ी पतली
मानव तनभमतत झीलें: ये झ़ील मानव गततववधियों द्वारा
स्थलीय पेटी या अवरोि (रोि, रोधिका, सभवत्त आदि)
बनाई गई होत़ी हैं। गोववंि सागर एक मानव तनसमात
द्वारा सागर से अंशतः अथवा पूणत
ा ः अलग होता है।
जलाशय है जो बबलासपुर श्जला, दहमािल प्रिे श में श्स्थत
इसका तनमााण अधिकांशतः अपतट रोधिका, रोि,
है ।
प्रवालसभवत्त अथवा प्रवाल वलय द्वारा तटवती जल को
मुख्य सागर से पथ
ृ क् कर िे ने से होता है । धिसलका
झ़ील, पुसलकट झ़ील, कोलेरु झ़ील आदि लैगून के
उिाहरण हैं।

एक झील के लाभ

1. एक झ़ील निी के प्रवाह को तनयंबत्रत करके बाढ़


को रोकने में मिि करत़ी है।

ग्लेभशयल झील: ग्लेसशयर के वपघलने से बनने वाली 2. शष्ु क मौसम के िौरान, एक झ़ील निी के समान

झ़ील को ग्लेसशयल झ़ील कहा जाता है । दहमालय क्षेत्र प्रवाह को बनाए रखने में मिि करत़ी है ।

की अधिकांश झ़ीलें दहमाच्छादित झ़ीलें हैं। वुलर झ़ील 3. झ़ीलों का उपयोग जल ववद्यत
ु उत्पािन के सलए

(जम्मू और कचम़ीर) भारत की सबसे बड़ी ताजे पाऩी की भ़ी क्रकया जा सकता है ।
4. पयाटन ववकास।
5. एक जलीय पाररश्स्थततकी तंत्र बनाए रखत़ी है ।

नदी का प्रदष
ू ण

• पाऩी की बढ़त़ी घरे लू, नगरपासलका, औद्योधगक


और कृवर् मांग स्वाभाववक रूप से पाऩी की
गुणवत्ता को प्रभाववत करत़ी है ।
• पररणामस्वरूप, अधिक से अधिक निी के पाऩी
का उपयोग क्रकया जा रहा है, श्जससे उनमें पाऩी
की मात्रा कम हो जात़ी है ।

83
• िस
ू री ओर, अनुपिाररत स़ीवेज और औद्योधगक • यह कायािम राष्ट्ीय स्वच्छ गंगा समशन
अपसशष्टों के भारी भार को नदियों में डाल दिया (NMCG), और इसके राज्य समकक्ष संगठनों
जाता है । याऩी राज्य कायािम प्रबंिन समूह (SPMGs)
• इससे न केवल पाऩी की गुणवत्ता प्रभाववत होत़ी द्वारा कायााश्न्वत क्रकया जा रहा है ।
है , बश्ल्क निी की आत्म-सिाई की क्षमता भ़ी o NMCG राष्ट्ीय गंगा पररर्ि (2016 में
प्रभाववत होत़ी है । राष्ट्ीय गंगा निी बेससन प्राधिकरण
(NRGBI) की जगह) का कायाान्वयन
राष्रीय नदी संरक्षण योजना (NRCP)
ववभाग है ।
• पयाावरण, वन और जलवायु पररवतान मंत्रालय • इसमें 20,000 करोड रुपये की केंद्रीय रूप से
में राष्ट्ीय निी संरक्षण तनिे शालय, (NRCD) ववत्त पोवर्त और गैर- कालात़ीत रासश (non-
िे श में नदियों, झ़ीलों और आद्रा भूसम का संरक्षण lapsable corpus) है और लगभग 288
करने के सलए, राष्ट्ीय निी संरक्षण योजना पररयोजनाएं शासमल हैं।
(NRCP) में केंद्र प्रायोश्जत योजनाओं को लागू • कायािम के मुख्य स्तंभ हैं:
कर रहा है । o स़ीवेज ढांिे का उपिार और औद्योधगक प्रवाह
• निी काया योजना का उद्िे चय नदियों में पहिान तनगराऩी ,
क्रकए गए प्रिवू र्त दहस्सों में प्रिर्
ू ण उन्मूलन o निी ववकास और निी तलहटी की सिाई,
योजनाओं के कायाान्वयन के माध्यम से नदियों o जैव वववविता और वऩीकरण,
की जल गण
ु वत्ता में सुिार करना है । o जन जागरूकता
• NPCA का उद्िे चय सतत संरक्षण योजनाओं के
अन्य पहलें
कायाान्वयन के माध्यम से जलीय पाररश्स्थततक
तंत्र (झ़ीलों और आद्रा भसू म) का संरक्षण करना है • गंगा कायत योजना: यह पहली निी काया योजना
और इन्हें समान ऩीतत और दिशातनिे शों के साथ थ़ी, श्जसे 1985 में पयाावरण, वन और जलवायु
शाससत है । पररवतान मंत्रालय द्वारा लाया गया था, ताक्रक
पाऩी की गुणवत्ता में सुिार, अवरोिन और घरे लू
स़ीवेज का उपिार क्रकया जा सके।
नमाभम गंगे कायतक्रम o राष्ट्ीय निी संरक्षण योजना गंगा निी

• नमासम गंगे कायािम एक एकीकृत संरक्षण काया योजना का ववस्तार है । इसका

समशन है , श्जसे प्रिर्


ू ण और संरक्षण और राष्ट्ीय उद्िे चय गंगा काया योजना िरण -2 के

निी गंगा के कायाकल्प के प्रभाव़ी उन्मूलन के तहत गंगा निी की सिाई करना है ।

िोहरे उद्िे चयों को पूरा करने के सलए जून 2014 • राष्रीय नदी गंगा बेभसन प्राचधकरण (NRGBA):

में केंद्र सरकार द्वारा 'फ्लैगसशप कायािम' के इसका गठन भारत सरकार ने पयाावरण संरक्षण

रूप में मंजूरी िी गई थ़ी। अधितनयम, 1986 की िारा -3 के तहत वर्ा

• यह जल संसािन ववभाग, निी ववकास और गंगा 2009 में क्रकया था।

कायाकल्प, जल शश्क्त ववभाग के तहत o इसने ही गंगा को भारत की 'राष्ट्ीय

संिासलत क्रकया जा रहा है । निी' घोवर्त क्रकया।

84
• स्वच्छ गंगा तनचध: यह गंगा की सिाई,
अपसशष्ट उपिार संयंत्रों की स्थापना और निी
की जैव वववविता के संरक्षण के सलए 2014 में
बनाई गई थ़ी।
• भुवन-गंगा वेब ऐप: यह गंगा निी में प्रवेश करने
वाले प्रिर्
ू ण की तनगराऩी में जनता की भाग़ीिारी
सुतनश्चित करता है ।
• अपभशष्ि तनपिान पर प्रततबंध: 2017 में,
नेशनल ग्ऱीन दट्ब्यूनल ने गंगा में क्रकस़ी भ़ी
किरे के तनपटान पर प्रततबंि लगा दिया।

85
CH-5 भारतीय मौसम- ऋतु
परिचय:
• जलवायु मानवजाति के भौतिक वािावरण का एक • भारि की जलवायु उष्णकटिबंिीय मानसन
ू वगण ’से
महत्वपूणण अंग है । यह वायुमंडलीय पररस्थितियों संबंधिि है , जो उष्णकटिबंिीय बेल्ि और मानसूनी
का समुच्चय है स्जसमें गमी, नमी और वायु संचलन हवाओं में अपने प्रभाव को दशाणिा है ।
शाममल है । • .हालााँकक दे श का एक बडा टहथसा ककण रे खा के उत्तर
• भारि जैसे ववकासशील दे श में जलवायु ववशेषिाओं स्थिि है , जो कक उत्तरी समशीिोष्ण क्षेत्र में पडिा
का अिणव्यवथिा में महत्वपर्
ू ण योगदान होता है , है , लेककन टहमालय और दक्षक्षण में टहंद महासागर
इससे जीवन यापन का िरीका, रहने का िरीका, से घिरेे होने के कारण भारत की जलवायु ववशिष्ट
खाद्य प्रािममकिाएं, वेशभष
ू ा और यहां िक कक
लोगों की व्यवहाररक प्रतिकियाएं भी प्रभाववि होिी
हैं।
• भारि में बहुि सारे वैज्ञातनक और िकनीकी ववकास
के बावजद ू कृवष गतिववधियों को सफल बनाने के
मलए हमारी मानसूनी वषाण पर तनभणरिा कम नहीं
हुई है ।

है ।

मौसम वािावरण की क्षणणक स्थिति है जबकक जलवायु , मौसम की औसि से अधिक समय िक की स्थिति
को संदमभणि करिा है। मौसम में िेजी से बदलाव होिा है और यह एक टदन या सप्िाह के भीिर हो
सकिा है लेककन जलवायु में पररविणन 50 साल या उससे भी अधिक समय के बाद हो सकिा है ।

जलवायु मौसम

जलवायु एक थिान का मौसम है जो औसिन 30 वषों .यह वािावरण में हर टदन होने वाली घिनाओं का ममश्रण
की होिी है । है (पथ्
ृ वी पर एक वािावरण है लेककन ववमभन्न थिानों पर
अलग-अलग मौसम है )।
यह बिािा है कक ककसी ववमशष्ि क्षेत्र में लंबे समय िक यह अल्पकाशलक मौसमी पररवतणन को दिाणता है
मौसम कैसा रहिा है ।
जलवायवु वज्ञान मौसम-ववज्ञान

नोि - NCERT में 50 वषण का उल्लेख है लेककन WMO के अनस


ु ार यह 30 वषण है ।

86
भारतीय जलवायु की मख्
ु य ववशेषताएं

• हवाओं का टदशा पररवतणन - भारिीय जलवायु एक • मौसमों की बहुलिा - भारिीय जलवायु में लगािार
वषण में मौसम के पररविणन के साि पवन प्रणाली के बदलिे मौसम की स्थिति होिी है । िीन मुख्य
पूणण टदशा पररवतणन की ववशेषिा है । सटदण यों के मौसम हैं लेककन व्यापक रूप से ववचार करने पर
मौसम के दौरान आम िौर पर व्यापाररक हवाओं की उनकी संख्या एक वषण में छह हो जािी है (सटदण यों,
टदशा उत्तर-पूवण से दक्षक्षण-पस्चचम की ओर चलिी सटदण यों की धगरावि, वसंि, गमी, बरसाि और शरद
हैं। ये हवाएाँ शुष्क ,नमी से रटहि ,और दे श भर में ऋिु)।
कम िापमान और उच्च दबाव स्थिति गण
ु ों वाली • भारिीय जलवायु की एकिा - टहमालय और उससे
होती है है । गममणयों के मौसम के दौरान हवाओं की जुडी पवणि श्रख
ं ृ लाएाँ भारि के उत्तर मे पूवण से पस्चचम
टदशा में पण
ू ण टदशा पररवतणन पाया जािा है और ये िक फैली हुई हैं। ये लंबी पवणि श्रंख ृ लाएं मध्य
मुख्य रूप से दक्षक्षण-पस्चचम से लेकर उत्तर-पूवण िक एमशया की ठं डी हवाओं को भारि में प्रवेश करने से
चलिी हैं। रोकिी हैं। यहां िक कक भारि के कुछ टहथसों का
• भमू म पर वैकस्ल्पक रूप से उच्च और तनम्न दबाव ववथिार ककण रे खा के उत्तर मे है इसीशलए यहेाें
क्षेत्रों का गठन - मौसम के पररविणन के साि उष्णकटिबंिीय जलवायु होती है । ये पवणिमाला
वायुमंडलीय दाब में बदलाव होिा है । कम िापमान मानसूनी हवाओं से भारि में वषाण का कारण बनािी
की स्थिति के कारण सटदणयों के मौसम में दे श के हैं और पूरा दे श मानसूनी हवाओं के प्रभाव में आिा
उत्तरी भाग में उच्च दबाव वाले क्षेत्र बनिे हैं। दस
ू री है । इस िरीके से पूरे दे श में जलवायु मानसूनी
ओर गमी के मौसम में भमू म के िीव्र िाप से दे श प्रकार की हो जािी है ।
के उत्तर-पस्चचमी भाग में एक ऊष्मीय प्रेररि तनम्न • भारिीय जलवायु की ववववििा - भारिीय जलवायु
दाब केंद्र का तनमाणण होिा है । ये दाब क्षेत्र हवा की की एकिा के बावजूद, यह क्षेत्रीय ववशभन्नता और
टदशा और िीव्रिा को तनयंत्रत्रि करिे हैं। ववववििाओं में ववभकेि की जा सकिी है ।
• मौसमी और पररविणनशील वषाण - भारि में 80 उदाहरण के मलए, जबकक गममणयों में तापमान
प्रतिशि वावषणक वषाण गममणयों के उत्तरािण में प्राप्ि पस्चचमी राजथिान में कभी-कभी 55 ° C को छू
होिी है , स्जसकी अवधि दे श के ववमभन्न भागों में लेिा है , यह लेह के आसपास सटदण यों में शून्य से
1-5 महीने से होिी है । चूंकक वषाण भारी आपतन के 45 डडग्री सेस्ल्सयस नीचे िक धगर जािा है । ये
रूप में होिी है , इसमलए यह बाढ़ और ममट्िी के अंिर हवाओं, िापमान, वषाण, आद्रण िा और शष्ु किा
किाव की समथया पैदा करिी है । कभी-कभी कई आटद के संदभण में टदखाई दे िे हैं। ये थिान, ऊंचाई,
टदनों िक लगािार बाररश होिी है और कभी-कभी समुद्र से दरू ी, पहाडों से दरू ी और दस
ू रे थिानों पर
शुष्क अवधि का लंबा दौर होिा है । इसी प्रकार, सामान्य दिेा स्थितियों के कारण होिे हैं।
वषाण के सामान्य वविरण में एक थिातनक मभन्निा
है । राजथिान के जैसलमेर में 10 साल मैं हुई
बाररि के बराबर चेरापूंजी में बाररश एक ही टदन में
होिी है ।

87
• प्राकृतिक आपदाओं में घनरूपर्- ववशेष रूप से महामारी जैसी प्राकृतिक आपदाओं मे तनरूवपि होती
इसकी मौसम संबि
ं ी स्थितियों के कारण भारिीय है ।
जलवायु बाढ़, सख
ू ा, अकाल और यहां िक कक

भारिीय जलवायु इिनी ववववि और जटिल है कक यह जलवायु की चरम सीमाओं और जलवायु ककथमों को
दशाणिा है। जबकक यह फसलों को उगाने के मलए पयाणप्ि गमी प्रदान करिा है और परू े दे श में कृवष
गतिववधियों को करने के मलए यह उष्णकटिबंिीय, समशीिोष्ण और साि ही शुष्क क्षेत्रों से संबंधिि कई
फसलों की खेिी में भी मदद करिा है।

भारतीय जलवायु को प्रभाववत करने वाले कारक:

भारि की जलवायु को कई कारकों द्वारा तनयंत्रत्रि ककया जािा है स्जन्हें मोिे िौर पर दो समूहों में ववभास्जि ककया
जा सकिा है –

Factors Influencing the Indian Climate

Factors related to Location and Relief Factors related to air pressure and winds

1. स्थान और स्थल रूप से संबंधित कारक:

The Distribution of
Distances Upper Air
Latitude Himalayan Land and
from the Sea Circulation
Mountains Water

Tropical And
Monsoon
Altitude Physiography Temperate
Winds
Cyclones

• अक्षांश - भारि की मुख्य भूमम 8 ° N से 37 ° N गमण होिा है और पस्चचमी ववक्षोभ की तनरं िरिा और
के बीच फैली हुई है । ककण रे खा के दक्षक्षणी क्षेत्र आगमन के कारण सटदण यााँ बहुि ठं डी होिी हैं। ििीय
उष्ण कटिबंि में हैं और इसमलए उच्च सौर ववककरर् क्षेत्र में अक्षांशीय स्थिति के बावजद
ू मध्यम जलवायु
प्राप्ि करिे हैं। गममणयों के िापमान चरम मे होिे पायी जाती हैं।
हैं और अधिकांश क्षेत्रों में सटदण यों का िापमान मध्यम • टहमालय पवणि - उत्तर में उदात्त टहमालय अपने
होता है । दस
ू री ओर उत्तरी भाग गमण समशीिोष्ण ववथिार के साि मध्य एमशया और भारिीय
क्षेत्र में स्थिि हैं और िुलनात्मक रूप से कम सौर उपमहाद्वीप के बीच एक प्रभावी जलवायु ववभाजन
ववककरर् प्राप्ि करिे हैं। उत्तर भारि में ग्रीष्मकाल, के रूप में कायण करिा है । आकणटिक वि
ृ के पास

88
उत्पन्न होने वाली ठं डी और सदण हवाएं टहमालय के अंदरूनी टहथसों जैसे कानपुर और अमि
ृ सर में
द्वारा बाधिि होिी हैं और भारि की जलवायु को मानसूनी ववषमिाएाँ जीवन को पूरे क्षेत्र में प्रभाववि
एक ववमशष्ि अनभ
ु तू ि दे िी हैं। करिी हैं।
• .भूमम और जल का वविरण - भारि ,दक्षक्षण में िीन • ऊंचाई - िापमान ऊंचाई के साि घििा जािा है ।
िरफ टहंद महासागर से तघरा हुआ है और उत्तर में हल्की हवा के कारण, पहाडों पर मैदानी इलाकों की
एक उच्च और तनरं िर पहाड की दीवार से तघरा हुआ िुलना में अधिक ठं ड होटी हैं। उदाहरण के मलए,
है । थिल की िुलना में , पानी गमण और ठं डा िीरे - आगरा और दास्जणमलंग एक ही अक्षांश पर स्थिि हैं,
िीरे होिा है । थिल भशू म और समद्र
ु मे िापांिर लेककन आगरा में जनवरी का िापमान 16 ° C है
होने के कारर् भारिीय उपमहाद्वीप और इसके जबकक दास्जणमलंग में यह केवल 4 ° C है ।
आसपास ववमभन्न मौसमों में अलग-अलग वायु • प्राकृतिक भूगोल- अरब सागर की दक्षिर् पश्चिम
दबाव क्षेत्र बनािा है । मानसन
ू की शाखा पस्चचमी घाि पर लगभग लंबवि
• महासागरीय िारा- समद्र
ु ी क्षेत्र गमण या ठं डे महासागरों टकराती है और पस्चचमी ढलानों पर भारी वषाण का
की िाराओं से प्रभाववि होिे हैं। खाडी पावन या कारण बनिी है । इसके ववपरीि, महाराष्र, कनाणिक,
उत्तरी अिलांटिक प्रवाह जैसे महासागरीय िाराएाँ िेलंगाना, आंध्र प्रदे श और िममलनाडु के ववशाल क्षेत्र
अपने बंदरगाहों को बफण मक्ु ि रखिे हुए पस्चचमी पस्चचमी घाि के वषाण-छाया क्षेत्र में स्थिि है । स्जससे
यरू ोप के ििीय स्जलों को गमण करिी हैं। एक ही कम वर्ाण प्राप्त करते हैं राजथिान और गज
ु राि में
अक्षांश में स्थिि बंदरगाह लेककन इनका शीि बहने वाली मॉनसूनी हवाएं अरावली के समानांिर
िाराओं द्वारा संचरण ककया जाता है , जैसे कक चलिी हैं और ककसी भी भौगोमलक बािा से बाधिि
उत्तर-पूवण कनाडा के लैब्राडोर प्रवाह से यह कई नहीं होिी हैं और इसमलए इन क्षेत्रों में वषाण नहीं
महीनों जमे हुए होिे हैं। शीि िाराएाँ भी गमी के होिी है । मेघालय के पठार में बहुि भारी वषाण इसके
िापमान को कम करिी हैं, ववशेषकर जब इन्हें िि कीप और भौगोशलक उत्थान प्रभाव के कारण होिी
पर चलने वाली हवाओं द्वारा भूमम पर ले जाया है । 1100 सेमी से अधिक औसि वावषणक वषाण के
जािा है । साि मावमसनराम और चेरापूंजी ,पथ्
ृ वी के सबसे नम
• .थिानीय हवाएाँ - यह हवाएाँ गमण होिी हैं यानी ये थिानों में जगह बनािा है ।
गमण क्षेत्र से उठिी है , िो वे िापमान बढ़ाएंगी। अगर
ठं डी जगहों से हवाएाँ चली हैं, िो वे िापमान कम कीप प्रभाव: जब बादल पहाडों के बीच एक संकीणण
करें गे। थिानीय हवाएं जैसे फोहे न, धचनक
ू , मसरोको क्षेत्र से गुजरता है िो इसके िनत्व में वद्
ृ धध होती
और ममथरल भी िापमान में उल्लेखनीय पररविणन है ।
करिे हैं।
• समुद्र से दरू ी(महाद्वीपीय) - एक लंबी ििरे खा वाले,
• मानसन
ू हवाएाँ - मानसन
ू ी हवाओं का पण
ू ण पररविणन
बडे ििीय क्षेत्रों में एक समान जलवायु होिी है ।
मौसम में अचानक पररविणन लािा है । भारिीय
भारि के भीिरी इलाकों के क्षेत्र समद्र
ु के मध्यम
उपमहाद्वीप में अधिकांश वषाण इन हवाओं के कारण
प्रभाव से बहुि दरू हैं। ऐसे क्षेत्रों में जलवायु उच्चिम
होिी है ।
होती है । इसीमलए, कोंकण िि के लोगों को शायद
• ऊपरी वायु प्रवाह - उपोष्णकटिबंिीय जेि धारा की
ही कभी िापमान के उच्च सीमा और जलवायु की
दक्षक्षणी शाखा भम
ू ध्यसागरीय क्षेत्र से भारिीय उप-
मौसमी लय का अंदाजा होिा है । दस
ू री ओर, दे श
महाद्वीप में पस्चचमी वविोभ लाने के मलए स्जम्मेदार

89
है । पूवी उष्णकटिबंिीय जेि धारा दक्षक्षण पस्चचम वायु दबाव और पवन प्रणाली अलग-अलग ऊंचाई पर
मानसून की शीघ्र शुरुआि होने में मदद करिा है । मभन्न होिी है जो भारि के थिानीय जलवायु को
• उष्णकटिबंिीय और शीिोष्ण चिवाि - प्रभाववि करिी है । तनम्नमलणखि कारकों पर ववचार
उष्णकटिबंिीय चिवािों की अधिकांश उत्पवत्त बंगाल करें :
की खाडी में होिी है और ििीय मौसम को प्रभाववि • दबाव और थिलीय हवाओं का वविरण।
करिी है । शीिोष्ण चिवाि के अवशेष पस्चचमी • ऊपरी वायु पररसंचरण और ववमभन्न वायु द्रव्यमानों
ववक्षोभ के रूप में आिे हैं और उत्तर भारि में मौसम की गति और जेि िारा।
को प्रभाववि करिे हैं। • .सटदण यों में ववक्षोभ के कारण होने वाली वषाण और
दक्षक्षण-पस्चचम मानसून के मौसम में उष्णकटिबंिीय
2. वायु दबाव और पवन से संबंधित कारक: अवसाद।

AQ. मॉनसूनी जलवायु को औऐसी कौन सी ववशेषताएँ दी जा सकती हैं जो मानसून एशशया में रहने वाली
ववश्व की 50 प्रततशत से अधिक आबादी को खिलाने में सफल हों? GS 1, मुख्य 2017

भारत में मौसम

• मौसम ववज्ञानी तनम्नमलणखि चार मौसमों को धचस्न्हि करते हैं:

SEASONS IN INDIA

The monsoon (Rainy) The cold weather season The hot weather season
season

Southwest Northeast monsoon


monsoon season season

भारतीय मौसम

• मानसन
ू शब्द अरबी शब्द 'मौमसम' से मलया गया • मानसन
ू भारिीय उपमहाद्वीप, दक्षक्षण पव
ू ण एमशया,
है श्जसका अिण 'सीजन' है । मध्य पस्चचमी अफ्रीका के कुछ टहथसों आटद के मलए
• मानसून वे मौसमी पावनी (द्वविीय पवन) हैं जो अनूठा हैं। वे ककसी अन्य क्षेत्र की िुलना में भारिीय
मौसम के पररविणन के साि अपनी टदशा पररवतिणि उपमहाद्वीप में अधिक थपष्ि हैं।
कर दे िी हैं।

90
• भारि अक्िूबर से टदसंबर के दौरान उत्तर पूवण • उत्तर-पूवण मानसून तिब्बिी और साइबेररयाई पठारों
मानसून पवन (उत्तर पूवण से दक्षक्षण पस्चचम की ओर) पर उच्च दबाव केंद्र से संबंधधत है ।
और जन
ू - मसिंबर के दौरान दक्षक्षण-पस्चचम • दक्षक्षण-पस्चचम मानसन
ू भारि के अधिकांश क्षेत्रों
मानसूनी पवन (दक्षक्षण पस्चचम से उत्तर पव
ू ण की ओर) में िीव्र वषाण लािा है और उत्तर-पूवण मानसून मुख्य
प्राप्ि करिा है । रूप से भारि के दक्षक्षणी-पूवी िि (दक्षक्षणी आंध्र
• दक्षक्षण-पस्चचम मानसून तिब्बिी पठार के ऊपर बने प्रदे श िि और िममलनाडु िि) में वषाण लािा है ।
तनम्न दबाव प्रणाली के कारण बनिा है ।

मानसन
ू ववशेष रूप से बडे भभ
ू ाग के पव
ू ी ककनारों पर उष्णकटिबंिीय क्षेत्र के अंदर प्रमख
ु है , लेककन एमशया में ,
यह चीन, कोररया और जापान में उष्णकटिबंिीय के बाहर होिा है ।

भारतीय मानसन
ू की महत्वपर्
ू ण ववशेषताएं:

Sudden onset Gradual Seasonal reversal


Gradual retreat
(sudden burst) progress of winds

मानसून को प्रभाववत करने वाले कारक:


• गममणयों के महीनों के दौरान तिब्बिी पठार का िीव्र िाप और सटदण यों में तिब्बिी पठार और साइबेररयाई पठार पर
उच्च दाब केंद्र का तनमाणण होिा है ।
• सूरज की थपष्ि गति के साि अंिर उष्र्कटटबंधीय आच्छादन िेत्र (ITCZ) का थिानांिरण।
• दक्षक्षण टहंद महासागर में थिायी उच्च दबाव केंद्र (गममणयों में मेडागाथकर के उत्तर-पूवण में )।
• जेि िारा, ववशेष रूप से उपोष्ण कटटबंधीय जेि धारा, सोमाली जेि धारा और उष्णकटिबंिीय पव
ू ी जेि धारा।
• ध्रुवीय भारतीय सागर
• एल नीनो और ला नीनो

मानसून मौसम संबंिी एक जटिल घिना है । मौसम ववज्ञान के ववशेषज्ञों ने मानसून की उत्पवत्त के बारे में
कई अविारणाएाँ ववकमसि की हैं। मानसून की उत्पवत्त के बारे में कुछ महत्वपूणण अविारणाएाँ नीचे दी गई
हैं।

भारतीय मानसून की काययप्रणाली


• भारिीय मानसन
ू ी कायणप्रर्ाली की शरु
ु आि के पीछे एक जटिल प्रकिया है स्जसे अभी परू ी िरह से समझा नहीं
गया है ।
• इस जटिल घिना को समझाने के मलए ववमभन्न मसद्िांिों को प्रथिुि ककया गया है ।

91
Theories of Indian Monsoon

CLASSICAL THEORY AIR MASS THEORY THE DYNAMIC THEORY

1. प्राचीन ससद्ाांत:
• मानसूनी हवाओं का पहला वैज्ञातनक अध्ययन अरब व्यापाररयों द्वारा ककया गया िा।
• 10 वीं िताब्दी में , एक अरब अन्वेर्क, अल मसुदी ने उत्तर टहंद महासागर के ऊपर महासागरीय हवाओं और
मानसन
ू ी हवाओं के उत्रमर् का वववरर् टदया था।
• 17 वीं िताब्दी में , सर एडमंड है ली ने मानसून के बारे में ववस्तार से बताया कक महाद्वीपों और महासागरों के
िापांिर के कारर् मानसून बनता है ।

• गममणयों में सूयण का पररिमण ककण रे खा पर लंबवि होिा है स्जसके


पररणामथवरूप मध्य एमशया में उच्च िापमान और तनम्न दबाव होिा है ।
ग्रीष्म ऋत:ु • अरब सागर और बंगाल की खाडी पर दबाव पयाणप्ि रूप से अधिक होिा है ।
अि: ग्रीष्म ऋिु में हवाएं समुद्र से स्थल की ओर बहिी हैं।
• यह नमी से भरी हवा भारिीय उपमहाद्वीप में भारी वषाण लािी है ।

• सटदण यों में सय


ू ण का पररिमण मकर रे खा के ऊपर लंबवि होिा है ।
शीत ऋतु: • . भारि का उत्तर पस्चचमी भाग अरब सागर और बंगाल की खाडी से अधिक
ठं डा हो जािा है और मानसून के प्रवाह को पररवघतणत करता है ।
• मानसन
ू पथ्
ृ वी पर हर जगह समान रूप से ववकमसि नहीं होिा है और है ली की
शसदिांतों के दोष: िापीय अविारणा मानसून की जटिलिाओं को समझाने में ववफल रहिी है जैसे
मानसून का अचानक आना, मानसून का घनधाणररत समय से कभी-कभी दे री
आटद।

2. वायु द्रव्यमान का शसदिांत:


• यह मसद्िांि उष्णकटिबंिीय क्षेत्रों में सूयण की मौसमी गति के कारण ITCZ के प्रवास पर आिाररि है । इस
मसद्िांि के अनुसार, मानसन
ू केवल व्यापाररक हवाओं का एक पररविणन है ।

92
• ग्रीष्मकाल में , ITCZ 20 ° - 25 ° N अक्षांश पर थिानांिररि होिा है और यह गंगा के मैदान में स्थिि होिा है ।
इस स्थिति में ITCZ को अक्सर "मानसून गिण" कहा जािा है ।
• अप्रैल और मई के दौरान जब सय
ू ण ककण रे खा के ऊपर लंबवि चमकिा है , िो टहंद महासागर के उत्तर में बडा भभ
ू ाग
िीव्रिा से गमण हो जािा है । यह उपमहाद्वीप के उत्तर पस्चचमी भाग में एक िीव्र तनम्न दबाव के तनमाणण का कारण
बनिा है । ये स्थितियााँ ITCZ स्थिति को उत्तरािण की ओर जाने में मदद करिी हैं।
• दक्षक्षणी गोलािण मे दक्षक्षण पूवण व्यापाररक हवाएं भूमध्य रे खा को पार करिी हैं और कोररओमलस बल के प्रभाव में
उत्तर-पूवण टदशा की ओर बहने लगिी हैं।
• भारिीय उप-महाद्वीप मे चलने पर इन ववथिावपि व्यापाररक पवनेो को दक्षक्षण-पस्चचम मानसन
ू कहा जािा है ।
• सर्दण यों के मौसम में , सूयण मकर रे िा पर लंबवत चमकता है और ITCZ भूमध्य रे िा के दक्षिर् में स्थानांतररत
होता है । उत्तरी गोलािण में व्यापार हवाएं अपने सामान्य उत्तर पूवय ददशा में तेजी से बहती हैं

Figure – South West Monsoon Winds


Figure - North-East Monsoon Winds

आंतररक उष्णकदिबां्ीय आच्छादन क्षेत्र (ITCZ)


ITCZ भूमध्य रे खा पर श्स्थत एक कम दबाव का िेत्र है जहााँ व्यापाररक पवन प्रवाटहि होती हैं, और इसशलए, यह
एक ऐसा िेत्र है जहााँ हवा का रुख जल
ु ाई में , ITCZ में लगभग 20 ° N-25 ° N अिांि (गंगा के मैदान के ऊपर)
श्स्थत होिा है , श्जसे कभी-कभी मानसून गतण भी कहा जाता है । यह मानसून गतण उत्तर और उत्तर पश्चिम भारत
में ताप कम करने के ववकास को प्रोत्साटहत करता है । ITCZ के स्थानांतरर् के कारर्, दक्षिर्ी गोलाधण की
व्यापाररक हवाएं भूमध्य रे खा को 40 ° और 60 ° E अनुदैध्यण के बीि पार करती हैं और कोररओशलस बल के
कारर् दक्षिर्-पश्चिम से उत्तर-पूवण की ओर बहने लगती हैं। यह दक्षिर्-पश्चिम मानसून बनाता है । सटदण यों में ,
ITCZ दक्षिर् की ओर बढ़ता है , और इसशलए उत्तर-पव
ू ण से दक्षिर् और दक्षिर्-पश्चिम की ओर हवाओं का टदशा
पररवतणन होता है । उन्हें उत्तर-पूवण मानसून कहा जाता है ।

3. गततक ससद्ाांत:
• यह मानसून की उत्पवत्त के बारे में नवीनतम शसदिांत है और इसे भर में स्वीकृतत अर्जणत है ।

93
• यह मसद्िांि ववमभन्न कारकों को मानसून के िंत्र में शाममल करिा है और भारिीय मानसून पर उनके प्रभाव की
व्याख्या करिा है ।
• इस मसद्िांि को गतिक नाम इसमलए टदया गया है क्योंकक यह मानसन
ू को एक गतिशील प्रणाली, आववृ त्त, िीव्रिा
और तनयममििा के रूप में मानिा है , स्जसका तनिाणरण कारकों के संयोजन द्वारा ककया जािा है :
o . भूमम और समुद्र मे िापांिर।
o ITCZ का स्थानांतरर्।
o तिब्बि पठार का िाप बढ़ना।
o जेि िाराओं (उपोष्णकटिबंिीय जेि, सोमाली जेि और उष्णकटिबंिीय पव
ू ी जेि) की भमू मका।
o द्ववध्रुवीय महासागर
o एल नीनो और ला नीनो

उपोष्र्कर्िबंिीय जेि ्ािा की भूशमका


• उप-रॉवपकल जेिथरीम (STJ) मानसूनी हवाओं के साि-साि मॉनसून की त्वररि शुरुआि में बािा उत्पन्न करने में
महत्वपूणण भूममका तनभािा है । (पोलर जेि का भारिीय मानसून पर कोई प्रभाव नहीं है )

उप-उपोषर् जेि िारा(STJ) का मौसमी प्रवासन


• िारा अधिक क्षेत्रीय सीमा के साि सटदण यों में अधिक मजबूि होिी हैं और वे ग्रीष्मकाल में घनम्नतम की ओर
अग्रसर होिी हैं।
• उत्तरी सटदण यों में , STJ टहमालय के दक्षक्षण में बहिी है , लेककन ग्रीष्मकाल में , यह कमजोर होकर उत्तर की ओर
ववथिावपि होती है और टहमालय / तिब्बिी पठार के उत्तरी ककनारे के साि बहिी है ।
• STJ का अचानक आवधिक गमन , मानसन
ू की शरु
ु आि और वापसी को इंधगि करता है ।

शीत ऋतु में जेि ्ािा:


• पस्चचमी उप-उष्णकटिबंिीय क्षेत्र में सटदण यों के दौरान बहुि
िेज गति से STJ िारा बहिी है । हालााँकक, इस जेि िारा को
ऊंची टहमालयी श्रेणणयों और तिब्बिी पठार द्वारा दो भागो में
ववभास्जि ककया गया है :
1. जेि िारा की उत्तरी शाखा तिब्बिी पठार के उत्तरी ककनारे
के साि बहिी है ।
2. दक्षक्षणी शाखा टहमालय पवणिमाला के दक्षक्षण में 25 ° N
अक्षांश के साि बहिी है ।
• जेि िारा की यह दक्षक्षणी शाखा भारि में सटदण यों के मौसम की स्थिति पर एक महत्वपण
ू ण प्रभाव डालिी है । यह
उत्तर-पस्चचम भारि में भूमध्य सागर से पस्चचमी ववक्षोभ के संचालन के मलए स्जम्मेदार है ।
• यह दक्षक्षणी शाखा उत्तर भारि के ऊपर एक उच्च दबाव क्षेत्र बनािी है स्जसमें हवाएाँ पररवतिणि होिी हैं.
• यह उत्तर पूवण मानसूनी हवाओं के रूप में बहने वाली उत्तर पूवण व्यापाररक हवाओं को मजबूि करिा है ।

94
ग्रीष्म ऋतु में जेि ्ािा:
• गममणयों की शुरुआि के साि, STJ की दक्षक्षणी शाखा कमजोर
पडने लगिी है । ITCZ उत्तर की ओर भी आगे बढ़िा है ,
स्जससे STJ की दक्षक्षणी शाखा कमजोर हो जािी है ।
• मई के अंि िक, दक्षक्षणी जेि नष्ि हो जािा है और तिब्बि
के उत्तर की ओर मोड टदया जािा है और अचानक मानसून
का आगमन होिा है ।
• जल
ु ाई के मध्य िक, अंिर उष्णकटिबंिीय आच्छादन िेत्र
(ITCZ) उत्तर की ओर बढ़िा है , लगभग 20 ° N और 25 °
N के बीच टहमालय के समानांिर होता है ।
• इस समय िक, भारिीय क्षेत्र से पस्चचमी जेि िारा वापस आ जािी है ।
• वाथिव में , मौसम ववज्ञातनयों ने भूमध्यरे खीय गिण (ITCZ) की उत्तरविी पारी और उत्तर भारिीय मैदान के ऊपर
से जेि िारा की वापसी के बीच एक अंिसंबंि पाया है । आमिौर पर यह माना जािा है कक दोनों के बीच
"कारण और प्रभाव" संबि
ं है ।
• उष्णकटिबंिीय पूवी जेि(TEJ), STJ के उत्तर-पूवी प्रवास के साि प्रायद्वीपीय भारि में आिी है । गममणयों में
तिब्बिी पठार पर िाप प्रेररि कम दाब के पररणामथवरूप ऊपरी वािावरण में चिवािी ववचलन होिा है ।
• ऊपरी वायुमंडल में पूवव
ण िी हवाएाँ तनचले वायुमंडल की िेज हवाओं से संबंधिि होिी हैं। भारिीय उपमहाद्वीप में
दक्षक्षण-पस्चचम मानसूनी हवाओं के रूप में िेज हवाएाँ चलिी हैं।

पर्श्चमी वविोभ
• ये अवसाद अवमशष्ि आगामी चिवाि हैं। जेि िारा की दक्षक्षणी शाखा , इन पस्चचमी अवसादों (वेथिनण डडथिबेंस)
के संचालन के मलए स्जम्मेदार है । ये अवसाद पूरब की यात्रा करिे समय कैस्थपयन सागर और काला सागर से
नमी उठािे हैं।
• प्रत्येक वषण अक्िूबर से अप्रैल के बीच औसिन 4 से 6 चिवािी िारा उत्तर-पस्चचमी भारि में पहुाँचिी हैं।
• इन शीिोष्ण िफ ू ानों के आने से उत्तर-पस्चचम भारि में हवा के िापमान में भारी कमी हो जािी है ।

95
• उत्तर-पस्चचमी मैदानों में सटदण यों की बाररश, पहाडी क्षेत्रों में कभी-कभी भारी बफणबारी और पूरे उत्तरी मैदानों में ठं ड
की लहरें इस वीिोभ के कारण होिी हैं।
• रबी फसल (गेहूं, जौ, सरसों आटद) के मलए कभी-कभार होने वाली सटदण यों की बाररश फायदे मंद होिी है ।

र्हमालय और ततब्बती पठारो की भूसमका:


• इसकी ऊंचाई के कारण इसे पडोसी क्षेत्रों की िुलना में 2-3 ° C
अधिक आपिन प्राप्ि होिा है ।
• पठार दो िरह से वायम
ु ंडल को प्रभाववि करिा है : एक यांत्रत्रक
अवरोि के रूप में और एक उच्च-थिरीय ऊष्मा स्रोि के रूप में ।
• सटदण यों में , पठार एक यांत्रत्रक अवरोि के रूप में कायण करिा है और
STJ को दो भागों में ववभास्जि करिा है ।
• शीिकाल मे तिब्बिी पठार िेजी से ठं डा होिा है और एक उच्च दाब
केंद्र का उत्पादन करिा है , जो N-E मानसून को मजबूि करिा है ।
• ग्रीष्मकाल में , तिब्बि गमण हो जािा है और आसपास के क्षेत्रों की िुलना में 2 ° C से 3 ° C अधिक गमण होिा
है । इस प्रकार, यह कम वायुमंडल में बढ़िी हवा (कम दबाव) का क्षेत्र उत्पन्न करिा है । इसकी चढ़ाई के दौरान
हवा ऊपरी क्षोभमंडल (उच्च दबाव या ववचलन) में बाहर की ओर फैलिी है ।
• यह प्रायद्वीपीय भारि के ऊपरी वायुमंडल में उष्णकटिबंिीय पूवी जेि (TEJ) के उद्भव के मलए स्जम्मेदार है ,
स्जसकी सिह पर दक्षक्षण पस्चचम मानसून हवाओं का पररवहन होता है ।
• दक्षक्षण-पस्चचम मानसूनी हवाएाँ, तिब्बि के पठार पर टहंद महासागर (मैथकरीन हाई) के ववषुविीय भाग के ऊपर से
तनकली हुई हवा के िममक शसकुड़न (उपखंड) का भी पररणाम हैं।
• यह अंि में दक्षक्षण-पस्चचम टदशा (दक्षक्षण-पस्चचम मानसन
ू ) से वापसी के रूप में भारि के पस्चचमी िि पर पहुंचिा
है ।

सोमलई जेि की भशू मका:


• पूवी उष्णकदिबां्ीय जेि के साथ, सोमाली जेि एक अस्थायी जेि िारा है ।
• ग्रीष्मकाल में लगभग 3 ° S पर केन्या के िि पर पहुाँचने से पहले केन्या, सोमामलया और सहे ल के ऊपर से
गुजरिे हुए मॉरीशस िक सोमाली जेि को दे खा जािा है ।
• यह मेडागाथकर के पास उच्च दबाव को मजबूि करिा है और दक्षक्षण
पश्चिम मानसन
ू को भारि की ओर ,अधिक गति और िीव्रिा से लाने
में भी मदद करिा है ।

दववध्रव
ु ी भाितीय महासागि की भसू मका(IOD):

96
• र्हंद महासागर दववध्रुवी एक समुद्र की सतह का तापमान की ववसंगतत है
जो उत्तरी या भूमध्यरे िीय र्हंद महासागर िेत्र (IOR) में कभी-कभी होता
है ।
• एक सकारात्मक IOD है जब अफ्रीकी िि के पास पस्चचमी टहंद महासागर
सामान्य से अधिक गमण होिा है । यह भारिीय मानसून के मलए अच्छा
है क्योंकक गमण पानी में अधिक वाष्पीकरण होिा है और मानसूनी हवाएं
इस क्षेत्र में िेजी से बहिी हैं स्जससे भारि में अधिक नमी ले जा सके।
• नकारात्मक द्ववध्रव
ु ीय वषण के ववपरीि, इंडोनेमशया को बहुि गमण और
बाररश वाला क्षेत्र बनािा है । यह भारिीय मानसून की िीव्रिा को रोकिा है ।

अल नीनो औि ला नीनो की भसू मका:


• प्रशांि महासागर में अल नीनो की घिना भारिीय मानसून पर प्रतिकूल प्रभाव डालिी है ।
• ला नीना भारिीय उपमहाद्वीप में एक मजबूि मानसन
ू का समिणन करिा है ।

भारतीय मौसम की प्रकृतत:


दक्षक्षण एमशयाई क्षेत्र में वषाण के कारणों का व्यवस्थिि अध्ययन मानसन
ू के महत्वपण
ू ण पहलओ
ु ं को समझने में मदद
करिा है जैसे:

The onset of the monsoon

Rain-bearing systems (e.g. tropical cyclones) and the relationship between their frequency and
distribution of monsoon rainfall.

Break in the monsoon

मानसूनी हवाओं के शीघ्र आगमन के बाद, ITCZ की उत्तरविी पारी और उत्तर भारिीय
शीघ्र आगमन मैदानी इलाकों में अपनी स्थिति कमजोर होने से वापस होने लगती है
• दक्षक्षणपस्चचम मानसून 1 जून िक केरल िि पर आिा है और 10 से 13 जून के बीच
मुंबई और कोलकािा पहुंचने के मलए िेजी से आगे बढ़िा है । जुलाई के मध्य िक,
दक्षक्षण-पस्चचम मानसन
ू परू े उपमहाद्वीप को घेर लेिा है ।

• भारत में मुख्य रूप से दो वषाण-वहन प्रर्ाशलयाँ हैं।

97
1. पहली बंगाल की खाडी में उत्पन्न होिी है स्जससे उत्तर भारि के मैदानी इलाकों में

वषाण-असर प्रर्ाली वषाण होिी है ।


2. दस
ू रा दक्षक्षण-पस्चचम मानसन
ू का अरब सागर का प्रवाह है जो भारि के पस्चचमी
और वषाण ववतरर्
िि पर बाररश लािा है ।
• भारि मे उनके प्रवाह मागण मुख्य रूप से ITCZ की स्थिति से तनिाणररि होिे हैं स्जसे
आमिौर पर मानसून गिण के रूप में जाना जािा है ।

• दक्षिर्ी पर्श्चमी मानसूनी हवाओं में दो शािाएं होती हैं:

Branches of South West Monsoon

1. Arabian Sea Branch 2. Bay Of Bengal Branch

अरब सागर शािा:

यह पस्चचमी घाि द्वारा भारी वषाण होने के


कारण बाधिि होिी है , सहयाद्री की
पहली शािा: पवनामभमुखी ढाल और पस्चचमी घाि के
मैदान में 250 सेमी और 400 सेमी के
बीच भारी वषाण करिी है। पस्चचमी घाि के
पूवी क्षेत्र में अल्प वषाण के कारण वस्ृ ष्ि छाया
क्षेत्र बनिा है।

दस
ू री शािा यह नमणदा और ताप्ती नदी की घाटियों में प्रवेश करिी है और मध्य भारि में वषाण
करिी है।इसके बाद, ये गंगा के मैदानों में प्रवेश करिी है और बंगाल की खाडी में ममल
जािी है।

98
तीसरी शािा यह गज
ु राि के िि से प्रवेश करिी है। यह गज
ु राि के मैदानी इलाकोंऔरअरावली के
समानांिर होिी है जो अत्यल्प वषाण का कारण बनिी है। पंजाब और हररयाणा में , यह
बंगाल की खाडी में भी ममलिी है। एक दस
ू रे से प्रबमलि ये दोनों शाखाएाँ पस्चचमी
टहमालय में बाररश का कारण बनिी हैं।
बंगाल की िाडी शािा
• यह बंगाल की खाडी से नमी इकट्ठा करिा है और मयांमार और दक्षक्षण-पव
ू ण बांग्लादे श से िकरािा है । इस शाखा
को कफर अराकानयोमा और पूवाांचल पहाड़डयों द्वारा भारि की ओर ववथिावपि कर टदया जािा है ।
• इस प्रकार यह, शाखा उत्तर-पूवी भारि और दक्षक्षणी-पस्चचम बंगाल और दक्षक्षणपूवण टदशा से प्रवेश करिी है ।
• यह शाखा टहमालय को िकराने के बाद दो भागों में बंि जािी है -
1. पहली शािा पूरे भारि प्रवाटहि होिे हुए गंगा के मैदान के साि पस्चचम ओर जािी है।
2. दस
ू री शािा ब्रह्मपत्र
ु घािी और पवू ांचल पहाडडयों से िकरािी है। यह उत्तर-पव
ू ण भारि में भारी वषाण का
कारण बनिा है।
• अरब सागर की िल
ु ना में मानसून की गतत बंगाल की िाडी में अत्यधिक तीव्र होती है ।
• दोनों शाखाएं परथपर जुड कर टदल्ली के चारों िरफ एक एकल िारा बना लेिी हैं एवं दोनों शाखाएाँ एक ही समय
पर टदल्ली पहुाँचिी हैं।
• दोनों िाराओं की संयक् ु ि िारा िीरे -िीरे पस्चचमी उत्तर प्रदे श, हररयाणा, पंजाब, राजथिान और अंि में टहमाचल
प्रदे श और कचमीर िक प्रवाटहि होिी है ।
• जून के अंि िक,सामान्यिः मानसून दे श के अधिकांश टहथसों में पहुंच जािा है ।
• बंगाल की िाडी की तुलना में मानसून की अरब सागर शािा तनमनशलखित कारर्ों से अधिक शर्ततशाली होती है :
1. अरब सागर बंगाल की खाडी की िल
ु ना में बडा है ।
2. अरब सागर से आने वाला समग्र मानसून भारि की ओर बढ़िा है जब कक बंगाल की खाडी का केवल एक
टहथसा ही भारि में प्रवेश करिा है , बाकी टहथसा म्यांमार, िाईलैंड और मलेमशया में प्रवेश करिा है ।

वषणर् • इस मानसून में कुल वावषणक वषाण का िीन चौिाई टहथसा प्राप्ि होिा है।
• दक्षक्षण पस्चचमी मानसून की 1 जून को सबसे पहले भारि के केरल राज्य
में प्रवेश करिा है
• मानसून त्रबजली की कडक, प्रचंड गजणन एवं मस
ू लािार बाररश के साि
बहुि िीव्रिा से आगे बढ़िा है िीव्र वषाण की इस िरह अचानक शुरुआि को
मानसून प्रथफुिन की संज्ञा दी जािी है।
• दक्षक्षण-पस्चचम मानसून के दौरान िममलनाडु िि अपेक्षाकृि शुष्क रहिा है
क्योंकक:
1. िममलनाडु अरब सागर की शाखा के वस्ृ ष्िछाया क्षेत्र में स्थिि है
2. िममलनाडु िि बंगाल की खाडी की मानसन
ू ी पवनों के समानांिर पडिा है

99
• जुलाई और अगथि में मानसून कमजोर हो जािा है , और टहमालयी बेल्ि
और दक्षक्षण-पूवण प्रायद्वीप के बाहर दे श में सामान्य िौर पर वषाण बंद हो
जािी है। इसे मानसून तनविणन रूप में जाना जािा है।

उत्तर-पूवी मानसून (मानसून का तनवतणन)


• दक्षक्षण-पस्चचम मानसून (मसिंबर नवंबर के मध्य) की वापसी के साि शुरू होिा है।
• मानसून मसिंबर में दे श के अंतिम उत्तर पस्चचमी मसरे से, अक्िूबर िक प्रायद्वीप से और टदसंबर िक अंतिम
दक्षक्षण-पूवी मसरे से वापस चला जािा है
• पंजाब में , दक्षक्षण पस्चचमी मानसन ू जल ु ाई के पहले सप्िाह में पहुंचिा है और मसिंबर के दस
ू रे सप्िाह में वापसी
करना प्रारं भ कर दे िा है । दक्षक्षण पस्चचमी मानसून जून के पहले सप्िाह में कोरोमंडल िि पर पहुंचिा है और
टदसंबर में ही वहां से वापस लौिने लगिा है ।
• अधग्रम मानसून के अचानक प्रथफुिन के ववपरीि, इसका तनविणन िीरे -िीरे होिा है और इसमें लगभग िीन महीने
लगिे हैं।
तापमान
• दक्षक्षण-पस्चचम मानसन
ू के वापस लौिने से आसमान साफ हो जािा है और िापमान में वद्
ृ धि होिी है।
पथ्
ृ वी में अभी भी नमी ववद्यमान रहिी है
• उच्च िापमान और आद्रणिा के कारण, मौसम अधिक कष्िकारी हो जािा है। इसे सामान्यिया 'अक्िूबर
हीि' के रूप में जाना जािा है।
• अक्िूबर के अंि िक उत्तर भारि में, िापमान में िीव्रिा से धगरावि आिी है।
• कम बादल होने के कारण िापमान में वद्
ृ धि होिी है ।
वाय-ु दाब एवं पवन
• जैसे-जैसे मानसून वापस होिा है, मानसून भी कमजोर होिा जािा है और िीरे -िीरे दक्षक्षण की ओर बढ़िा
है। स्जसके पररणाम थवरुप वायुदाब कम हो जािा है
• दक्षक्षण-पस्चचम मानसून के ववपरीि, उत्तर-पूवी मानसून की शुरुआि थपष्ि रूप से पररभावषि नहीं है।
• दे श के ववशाल टहथसे में हवाओं की टदशा थिानीय दबाव की स्थितियों से प्रभाववि होिी है।
ऊष्र्कर्िबंिी चक्रवात
• इस मौसम में, सबसे गंभीर और ववनाशकारी उष्णकटिबंिीय चिवाि भारिीय समुद्रों में,ववशेष रूप से
बंगाल की खाडी में उत्पन्न होिे हैं
• चिवािों की अधिकतम आववृ त्त अतिूबर के महीने में और नवंमबर के प्रारं भ में होती है।
• अरब सागर की िुलना में बंगाल की खाडी में अधिक चिवाि उत्पन्न होिे हैं।
• इन चिवािों के मलए सबसे अधिक संवेदनशील क्षेत्रों में िममलनाडु, आंध्रप्रदे श, ओडडशा और पस्चचमबंगाल
के ििीय क्षेत्र शाममल हैं।
• उत्तर-पस्चचम भारि में पस्चचमी ववक्षोभ ववमभन्न प्रकार के मौसम में बादल और हल्की वषाण करिे हैं।

100
वषणर्
• दक्षक्षण-पस्चचम मानसन
ू के लौिने के साि आद्रणिा और बादल का आवरण कम हो जािा है और दे श के
अधिकांश टहथसे में बाररश नहीं होिी है।
• अतिूबर-नवंबर में तशमलनाडु और आंध्र-प्रदे श के आसपास के िेत्रों में कृष्र्ा डेल्िा के दक्षिर् में मुख्य
रूप से बाररश का मौसम होता है और साथ ही केरल में औसत वषाण होती है।
• बंगाल की खाडी से होकर गुजरिे समय, लौििा हुआ मानसून नमी को अवशोवष करिे हैं और इस वषाण
का कारण बनिे हैं।
मानसून की समझ
भूमम, महासागरों और ऊपरी वायुमंडल पर आिाररि आंकडों के आिार पर मानसून की प्रकृति और िंत्र को
समझने का प्रयास ककया गया है। पूवी प्रशांि क्षेत्र में फ्रेंच पोमलनेमशया और उत्तरी ऑथरे मलया में पोिण डाववणन
(12°30’S और 131°E) में तार्हती( Tahiti) (लगभग 20°S और 140°W) के बीच के दबाव के अंिर को
मापकर, दक्षक्षणी दोलन की दक्षक्षण-पस्चचमी मानसूनी हवाओं की िीव्रिा को मापा जा सकिा है। भारिीय
मौसम ववभाग (IMD) 16 संकेतकों के आिार पर मानसून के संभाववि व्यवहार का पूवाणनुमान कर सकिा है।

मौसमी बाररश की ववशेषताएं


• मानसूनी वषाण काफी हद िक संरचना और स्थलाकृतत पर तनभणर करती है । उदाहरण के मलए, पस्चचमीघाि
की हवा की ओर से 250 सेमी से अधिक वषाण दजण की जािी है। लेककन कफर भी राज्यों में भारी वषाण का
कारण टहमालय की पहाडी श्रंख
ृ लाओं को बिाया जािा है।
• मौसमी बाररश में समुद्र से दरू ी बढ़ने के साथ धगरावि होती है । दक्षक्षण-पस्चचम मॉनसून अवधि के दौरान
कोलकािा को 119 सेमी, पिना को 105 सेमी, प्रयागराज को 76 सेमी और टदल्ली को 56 सेमी वषाण की
प्रास्प्ि होिी है।
• मानसून के दौरान वषाण कुछ र्दनों की अवधि (spells) में होती है। इन (गीले) अवधियों में वषाणहीन
अंिराल शाममल होिे हैं, स्जन्हें 'ववराम (break)' के रूप में जाना जािा है। वषाण में ये ववराम चक्रवाती
अवसादों से संबंधिि होिे हैं, जो मख्
ु य रूप से बंगाल की खाडी के मख्
ु य भाग में बनिे हैं, और मख्
ु य
भमू म में उनका प्रवेश होिा है। इन अवसादों की आववृ त्त और िीव्रिा के अलावा, उनके द्वारा पाररि मागण
भी वषाण के थिातनक वविरण को तनिाणररि करिा है।
• गममणयों में अधिक मस
ू लािार बाररश होिी है , स्जसके कारण अधिक बहाव और मद
ृ ा अपरदन होिा है।
• मॉनसन
ू भारि की कृवष अिणव्यवथिा में एक महत्वपण
ू ण भमू मका तनभािा है क्योंकक दे श में कुल वषाण का
िीन-चौिाई से अधिक दक्षक्षण-पस्चचम मानसून के मौसम के दौरान प्राप्ि होिा है।
• इसका स्थातनक ववतरर् भी असमान है जो 12 सेमी से 250 सेमी से अधिक िक होिा है।
• वषाण की शुरुआि कभी-कभी संपूणण या दे श के ककसी टहथसे में काफी दे री से होती है।
• वषाण कभी-कभी सामान्य से काफी पहले समाप्ि हो जािी है , स्जससे खडी फसलों को बहुि नुकसान होिा
है और सटदणयों की फसलों की बुवाई मुस्चकल हो जािी है।

101
मानसन
ू और भारत में आधथणक जीवन
• मानसन
ू वह िरु ी है स्जसके इदण धगदण भारि का संपण
ू ण कृवष-चि घम
ू िा है।
• ऐसा इसमलए है क्योंकक भारि के लगभग 49 प्रतिशि लोग अपनी आजीववका के मलए कृवष पर तनभणर हैं
और कृवष थवयं दक्षक्षण-पस्चचम मानसून पर तनभणर है।
• टहमालय को छोडकर दे श के सभी भागों में वषण भर फसलों या पौिों को उगाने के मलए सामान्य थिर से
ऊच्च िापमान होिा है।
• मानसून की जलवायु में िेत्रीय ववशभन्नता,ववमभन्न प्रकार की फसलें उगाने में सहायक होिी हैं।
• वषाण की ववववििा,दे श के कुछ टहथसों में हर साल सूखा या बाढ़ लािी है।
• भारत की कृवष समद
ृ धि, समय पर और पयाणप्ि रूप से वविररि वषाण पर तनभणर करिी है। यटद यह ववफल
हो जािा है, िो कृवष ववशेष रूप से उन क्षेत्रों में प्रतिकूल रूप से प्रभाववि होिी है जहां मसंचाई के सािन
ववकमसि नहीं होिे हैं।
• अचानक मानसून प्रस्फुिन से भारि में बडे क्षेत्रों में मद
ृ ा अपरदन की समथया उत्पन्न होिी है।
• उत्तर भारि में शीतोष्र् चक्रवातों दवारा सर्दणयों की वषाण रबी फसलों के मलए अत्यधिक लाभदायक है।
• भारि में िेत्रीय जलवायु शभन्नता भोजन, कपडे और घर के प्रकार की ववशाल ववववििा में पररलक्षक्षि
होिी है।

Q. आप इस बाि से कहां िक सहमि हैं कक भारिीय मानसन


ू की प्रववृ त्त थिलाकृति के मानवीकरण के
कारण बदल रहा है? चचाण करें । GS 1, Mains 2015

शीतकालीन मानसून (शीत मौसम)


• यह मानसून ककण रे िा के उत्तरी िेत्रों में अलग है। यह नवंबर से माचण िक रहिा है। टदसंबर और जनवरी
सबसे ठं डा महीना होिा है।
• साफ आसमान, सुहावना मौसम, कम िापमान, कम आद्रणिा, उच्च िापमान, ठं डी और िीमी उत्तर-पव
ू ण की
व्यापाररक पवनें
• िापमान की तनरं िरिा ववशेषकर दे श के आंिररक भागों में बहुि अधिक है।
तापमान
• 20°C समिाप रे खा,ककण रे खा के लगभग समांतर चलता है।
• इस समिाप रे खा के दक्षक्षण में िापमान 20° C से ऊपर होिा है। इस प्रकार, दक्षिर् भारत में सर्दणयों
का कोई अलग मौसम नहीं है।
• उत्तर में िापमान 21 ड़डग्री सेर्ल्सयस से नीचे होिा है और सटदणयों का मौसम अलग है।
• न्यूनिम िापमान उत्तर-पर्श्चम भारत में लगभग 5° C और गंगा के मैदानों में 10 ° C होिा है।
• राि का िापमान काफी कम हो सकिा है, कभी-कभी पंजाब और राजथिान में टहमांक नीचे चला जािा
है।
• इस मौसम में उत्तर भारत में अत्यधिक ठं ड के तीन मुख्य कारर् हैं:

102
o पंजाब, हररयाणा और राजथिान जैसे राज्य समद्र
ु ी अनभ
ु व महाद्वीपीय जलवायु के मध्यम प्रभाव से
बहुि दरू हैं।
o टहमालयी पवणिमाला की तनकििा के कारण बफणबारी से शीिलहर की स्थिति बनिी है।
o फरवरी के आसपास, कैस्थपयन सागर और िुकणमेतनथिान से आने वाली ठं डी हवाएं भारि के उत्तर-
पस्चचमी टहथसों (पस्चचमी ववक्षोभ) में ठं ड और कोहरे के साि-साि शीिलहर लािी हैं।
• समुद्र के प्रभाव और भूमध्य रे खा के तनकििा के कारण तिीय िेत्रों में तापमान के ववतरर् पैिनण में
शायद ही कोई मौसमी पररवतणन होता है।
• उदाहरण के मलए, तिरुवनंिपुरम में जनवरी के मलए अधिकिम िापमान 31 डडग्री सेस्ल्सयस और जून के
मलए अधिकिम िापमान 29.5 डडग्री सेस्ल्सयस है।
वाय-ु दाब एवं पवने
• सटदणयों के महीनों में, भारि में मौसम की स्थिति सामान्य तौर पर मध्य और पर्श्चमी एशशया में वायु-
दाब प्रवाह से प्रभाववत होती है।
• कम िापमान के कारण उत्तर-पस्चचम भारि और मध्य एमशया के बडे टहथसों में उच्च वायु दबाव बना
रहिा है।
• टहमालयी और भारिीय मैदानी इलाकों के उत्तर में स्थिि इस उच्च दबाव केंद्र से उत्तर की ओर तनम्न
थिर पर हवा का प्रवाह टहंद महासागर की ओर होिा है।
• मध्य एमशया के ऊपर उच्च दबाव केंद्र से बहने वाली सदण हवाएाँ एक शुष्क महाद्वीपीय वायु रामशयों के
रूप में भारि में पहुाँचिी हैं।
• ये महाद्वीपीय हवाएाँ उत्तर-पस्चचमी भारि में व्यापाररक हवाओं के संपकण में आिी हैं। हालांकक इस संपकण
क्षेत्र की स्थिति, स्थिर नहीं है।
• कभी-कभी, यह अपनी स्थिति को मध्य गंगा घािी के रूप में पूवण की ओर थिानांिररि कर सकिा है ,
स्जसके पररणामथवरूप उत्तर-पस्चचमी और उत्तरी भारि के मध्य गंगा घािी िक का पूरा क्षेत्र शुष्क उत्तर-
पस्चचमी हवाओं के प्रभाव में आिा है।
• दक्षक्षण भारि में िल
ु नात्मक रूप से दबाव कम होिा है।
जेि स्रीम/िारा और ऊपरी वायु प्रवाह
• पर्श्चमी और मध्य एशशया के सभी भाग पर्श्चम से पव
ू ण की ओर 9-13 ककमी की ऊँचाई के साथ पर्श्चमी
हवा (westerly) के प्रभाव में रहते हैं।
• ये हवाएाँ टहमालय के उत्तर में अक्षांशों पर एमशयाई महाद्वीप में चलिी हैं जो लगभग तिब्बिी उच्च भमू म
के समानांिर हैं। इन्हें जेि थरीम के नाम से भी जाना जािा है।
• ततब्बती उच्च भूशम इन जेि िाराओं की राह में अवरोिक का काम करिे हैं स्जसके कारण जेि िाराएं
द्ववभास्जि हो जािी हैं।
• इसकी एक शाखा तिब्बिी उच्च भूमम के उत्तर में बहिी है , जबकक दक्षक्षणी शाखाए पूवण टदशा में , टहमालय
के दक्षक्षण में चलिी है।

103
• फरवरी में इसका औसि थिान 25 ° N पर 200-300 mb के थिर पर है।
पर्श्चमी वविोभ
• ये उथले चक्रवाती अवसाद हैं जो पव
ू ी भम
ू ध्यसागर में उत्पन्न होते हैं और भारि के उत्तर-पस्चचमी भागों
में पहुाँचने से पहले पस्चचम एमशया, ईरान और पाककथिान में पूवण की ओर जािे हैं।
• उनके राथिे में, उत्तर में कैर्स्पयन सागर और दक्षिर् में फारस की िाडी से नमी प्राप्त होती है।
• ये भारत में वेस्िरली जेिस्रीम दवारा लाये जाते है। रात के तापमान में वद
ृ धि आम तौर पर इन चक्रवातों
की गडबडी के आगमन में एक संकेत दे ती है। ये राजस्थान, पंजाब, और हररयार्ा पर अधिक तेज हो
जाती हैं।
• ये उप – र्हमालयी िेत्र अरुर्ाचल प्रदे श तक पूवण की ओर बढ़ते हैं।
• ये अवसाद, मसंिु-गंगा के मैदानों में हल्की वषाण और टहमालयी बेल्ि में बफणबारी का कारण बनिे हैं।
• ववक्षोभ के पचचाि िुंि एवं ठं डी लहरों का तनमाणण होिा है।

ऊष्र्कर्िबंिी चक्रवात
समुद्र की सिह का कम िापमान और ITCZ के दक्षक्षण में णखसकने के कारण, इस मौसम में कम
उष्णकटिबंिीय चिवाि दे खे जािे हैं।
वषणर्
भारि के अधिकांश टहथसों में सटदणयों के मौसम में वषाण नहीं होिी है। हालााँकक, कुछ अपवाद भी हैं:

• अतिूबर और नवंबर के दौरान उत्तर-पूवी मानसून बंगाल की खाडी से गुजरिे


मानसून का तनवतणन या समय आद्रिा प्राप्ि करिा है , स्जसके कारण िममलनाडु िि, पस्चचमी आंध्र
लौिता मानसून प्रदे श , पस्चचम-पूवण कनाणिक ,और पस्चचम-पूवण केरल में भारी वषाण होिी है।

• पस्चचमी ववक्षोभ के कारण उत्तर भारत में भी थोडी वषाण होती है।
• वषाण की मात्रा िीरे -िीरे उत्तर और उत्तर-पर्श्चम से पूवण की ओर कम होती
जाती है।
पर्श्चमी वविोभ • यह रबी फसलों के शलए अत्यधिक लाभकारी होिा है।
(Western • टहमालय के तनचले भागों में वषाण बफणबारी के रूप में होिी है। टहमपाि के
Disturbances) कारण गमी के महीनों में टहमालय की नटदयों में पानी का प्रवाह बना
रहिा है।
• ये अवसाद ,मध्य भारि और पूवी टहमालय में भी कम वषाण का कारण बन
सकिे हैं।
गमी का मौसम (गमण मौसम)
• अप्रैल, मई और जून उत्तर भारि में गमी के महीने होिे हैं।

104
• उच्च िापमान और कम आद्रण िा मख्
ु य ववशेषिाएं हैं।
तापमान
• सय
ू ण के उत्तर की ओर खिसकने के कारर् िापमान में वद्
ृ धि होिी है । दे श के दक्षक्षणी टहथसे माचण और
अप्रैल के मौसम में ववशेष रूप से गमण होिे हैं, जबकक जून िक उत्तर भारि में िापमान अधिक हो जािा
है।
• जल तनकायों के प्रभाव और सूयण के उत्तर की ओर णखसकने के कारण ऐसा होिा है ।
• दक्षक्षण-पस्चचम मानसून की शुरुआत से ठीक पहले उच्चतम तापमान दजण ककया जाता है। िापमान की
दै तनक सीमा भी बहुि अधिक होिी है। यह कुछ टहथसों में 18 ° c से अधिक हो सकिा है । समुद्र के
प्रभाव के कारण गममणयों के दौरान अधिकिम और दक्षक्षणी प्रायद्वीपीय क्षेत्रों में िल
ु नात्मक रूप से कम
िापमान होिा है।
• प्रायद्वीपीय भारि में , िापमान उत्तर से दक्षक्षण की ओर घििा नहीं है , बस्ल्क यह िि से आंिररक क्षेत्रों
की ओर बढ़ जािा है।
• पूवी िि की िुलना में पस्चचमी िि पर िापमान अपेक्षाकृि कम हवाओं के कारण कम होिा है ।
• ऊंचाई के कारण, पस्चचमी घाि की पहाडडयों में िापमान 25 ° C से नीचे रहिा है।
• इस मौसम में भारि के उत्तरी और मध्य भागों में गमी की लहरें (heat waves) होिी हैं।

गमी की लहरें (Heat Wave): जब क्षेत्रों में असामान्य रूप से उच्च िापमान दजण ककया जािा है। सामान्य
से ऊपर 6 ° से 7 ° C की िापमान वद्
ृ धि को 'मध्यम' गमी की लहर और 8 ° C और अधिक को 'गंभीर' गमी
की लहरें कहा जािा है।

दबाव और वायु
• उच्च िापमान के कारण पूरे दे श में वायुमंडलीय दबाव कम होता है ।
• जुलाई के मध्य िक, उष्णकटिबंिीय अमभसरण क्षेत्र (ITCZ) उत्तर की ओर णखसक जािा है , जो लगभग
20 ° N और 25 ° N के बीच टहमालय के समानांिर होिा है।
• इस समय िक, भारतीय िेत्र से वेस्िले जेि प्रवाह वापस हो जाती है।
• ITCZ कम दबाव का वाला क्षेत्र है जहां हवा ववमभन्न टदशाओं से बहिी है।
• दक्षक्षणी गोलािण से समुद्री उष्र्कर्िबंिीय वायु (mT) भम
ू ध्य रे खा को पार करने के बाद, सामान्यिः
दक्षक्षण-पस्चचम टदशा में कम दबाव वाले क्षेत्र में प्रवाटहि होिी है। यह नम हवा का प्रवाह है स्जसे आमिौर
पर दक्षक्षण-पस्चचम मानसून के रूप में जाना जािा है ।
लू
• ये बेहद गमण और शष्ु क हवाएँ होती हैं, जो ईरानी, बलच
ू और िार रे धगथिान में उत्पन्न होिी हैं।
• मई और जन
ू में , उत्तर-पस्चचम भारि में उच्च िापमान के कारण दाब प्रवणिा उत्पन्न होिा है , जो इन
हवाओं को उत्तर भारिीय मैदानों िक खींचिा है।

105
आंिी
• कम दबाव और मजबि
ू संवहन िाराओं के कारण राजथिान से त्रबहार के उत्तरी मैदानी इलाकों में िल

भरी तेज आँधियाँ चलती हैं।
• पंजाब, हररयाणा, पूवी राजथिान और उत्तर प्रदे श में मई के महीने में शाम के समय िूल भरी आंिी चलिी
है। ये अथिायी िूफान अत्यधिक गमी से राहि दे िे हैं क्योंकक वे अपने साि हल्की बाररश और सुखद
ठं डी हवाएं लािे हैं।
• इसकी वजह से दृश्यता (कुछ मीिर िक) कम हो जाती है।
संवहनीय आंिी/थंडरस्िॉमण
• कम दबाव, नम हवाओं को आकवषणि करिी है, और मजबूि संवहन गति के कारण दे श के ववमभन्न टहथसों
में आंिीयॉ चलिी है।

गमण मौसम वाले कुछ प्रशसदि स्थानीय आंधियां

आम्रवषाण गममणयों के अंि में , प्री-मॉनसून वषाण होिी है जो केरल, आंध्र प्रदे श और कनाणिक के ििीय
क्षेत्रों में एक आम घिना है । चूंकक वे आम के पकने में मदद करिे हैं, इसमलए थिानीय
रूप से उन्हें आम की वषाण (आम्रवषाण) के रूप में जाना जािा है।
ब्लॉसम सावर इस बाररश के साि, केरल और आसपास के िेत्रों में कॉफी के फूल भी खिलते हैं।
नावेस्िर ये पस्चचम बंगाल, झारखंड, ओडडशा, बंगाल और असम में शाम के वक्ि िेज आंधियों
के रूप में चलिी हैं। इनके कुख्याि थवभाव के कारण थिानीय रूप से इन्हें ‘कालबैसािी’
के नाम से जाना जािा है , जो बैसाख महीने में आपदा के रूप में आिी हैं। ये बौछारें
चाय, जूि और चावल की खेिी के मलए उपयोगी हैं। असम में , इन िूफानों को ‘चाय की
बौछार’ (िी सॉवर) और बारदोली तछरहा के नाम से भी जाना जािा है। ये खडी फसलों,
पेडों, इमारिों, पशि
ु न और यहां िक कक मानव जीवन को भी नक
ु सान पहुंचािे हैं।
लू ये गमण, शुष्क हवाएाँ हैं, जो पंजाब से त्रबहार (टदल्ली और पिना के बीच उच्च िीव्रिा के
साि) में उत्तरी मैदानी इलाकों में चलिी हैं।

जेि स्रीम और ऊपरी वायु पररसंचरर्


• एक पुरवाई (easterly) जेि प्रवाह जून के महीने में प्रायदवीप के दक्षिर्ी र्हस्से में बहती है , स्जसकी
अधिकिम गति 90 ककलोमीिर प्रति घंिा होिी है।
• अगस्त के महीने में यह 15°N अिांश तक ही सीशमत रहती है , जबकक शसतंबर के महीने में यह 22°N
तक प्रवाटहि होिी है । ऊपरी वायुमंडल में पुरवाई का प्रवाह सामान्यिः 30°N अक्षांश से ज्यादा नहीं होिा
है।

106
ऊष्र्कर्िबंिी चक्रवात
• उनकी आववृ त्त बढ़ जािी है (यह अरब सागर की िल
ु ना में बंगाल की खाडी में अधिक होिा है )।
• इस मौसम के अधिकांश िफ
ू ान शरू
ु में पस्चचम या उत्तर-पस्चचम की ओर बढ़िे हैं, लेककन बाद में वे उत्तर-
पूवण की ओर मुड जािे हैं और बांग्लादे श और मयांमार के अराकान ति पर पहुँचते हैं।
• भारिीय िि इन चिवािों से शायद ही कभी प्रभाववि होिे हैं।
वषणर्
• वषाण बहुि कम होिी है ।
• संवहनीय आंधियां दे श के उत्तर पूवी और दक्षक्षणी भागों में कुछ वषाण लािी है ।
• पुरवाई जेि प्रवाह भारि में उष्णकटिबंिीय अवसाद का कारण बनिी है । भारिीय उपमहाद्वीप में मानसूनी
वषाण के वविरण में ये अवसाद महत्वपूणण भूममका तनभािे हैं।

परं परागत भारतीय मौसम


भारिीय परं परा में , एक वषण को छह दो-मामसक मौसमों में ववभास्जि ककया जािा है। मौसमों का यह चि,
स्जसका उत्तर और मध्य भारि में आम लोग अनुसरण करिे हैं, उनके व्यावहाररक अनुभव और मौसम की
घिनाओं की सटदयों पुरानी िारणा पर आिाररि है । हालांकक, यह प्रणाली दक्षक्षण भारि के मौसमों से मेल
नहीं खािी है , जहां मौसमों में बहुि कम मभन्निा होिी है ।

Season Months according to Indian Months according to English


Calendar Calendar

Vasanta Chaitra-Vaisakha March-April


Grishma Jyaistha-Asadha May-June
Varsha Sravana-Bhadra July-August
Sharada Asvina-Kartika September-October
Hemanta Margashirsa-Pausa November-December
Shishira Magha-Phalguna January-February

वावषणक वषाण का ववतरर्


भारि में औसि वावषणक वषाण लगभग 125 सेमी होिी है , लेककन इसमें बहुत स्थातनक वववविताएं होिी हैं।
यह मानधचत्र दशाणिा है , कक भारि में वषाण का वविरण असमान होिा है। वषाण के वविरण के आिार पर, भारि
को तनमन चार िेत्रों में ववभार्जत ककया जा सकता है , जैसा कक िामलका में नीचे टदखाया गया है।
Category Rainfall in cms Regions

107
200 से ज्यादा पस्चचमी िि, पस्चचमी घाि, उत्तर-पव
ू ण के उप-टहमालयी क्षेत्र,
भारी वषाण मेघालय की गारो, खासी और जयंतिया पहाडडयााँ। कुछ
भागों में वषाण 1000 सेमी से अधिक होिी है।

100 सेमी समवषाण रे खा गुजराि से दक्षक्षण में कन्याकुमारी


100 से 200 के बीच िक पस्चचमी घाि के समानांिर फैली हुई है । उत्तरी आंध्र
मध्यम वषाण प्रदे श, महाराष्र के पूवी भाग, मध्य प्रदे श, ओडडशा, जम्मू
और कचमीर के कुछ टहथसे।

60 से 100 के बीच िममलनाडु, कनाणिक, आंध्र प्रदे श, पूवी राजथिान, दक्षक्षण-


कम वषाण पस्चचमी उत्तर प्रदे श के अधिकांश टहथसे।

अपयाणप्त वषाण 60 से कम
पंजाब, हरयाणा, नािण- वेथिनण राजथिान, कच्छ, काटठयावाड

वषाण की पररवततणता (Variability)


• भारि में वषाण की एक ववशेषिा इसकी पररवतणनशीलता है। वषाण की पररवतिणिा (औसि मात्रा से) वषाण में
मभन्निा/ववववििा कहलािी है। । तनम्नमलणखि सूत्र की सहायता से वषाण की पररवततणता की गर्ना की
जाती है :

108
• मभन्निा के गुणांक का मान वषाण के औसि मानों से अंिर को दशाणिे हैं।
• कुछ थिानों पर वाथिववक वषाण 20-50 प्रततशत से शभन्न होिी है । मभन्निा के गुणांक के मान भारि में
वषाण की पररविणनशीलिा को दशाणिे हैं।
• पस्चचमी ििों, पस्चचमी घाि, उत्तर-पव
ू ी प्रायद्वीप, गंगा के पव
ू ी मैदान, उत्तर-पव
ू ी भारि, उत्तराखंड, टहमाचल
प्रदे श और जम्मू-कचमीर के दक्षक्षण-पस्चचमी भाग में 25 प्रततशत से कम की पररविणनशीलिा दे खी जा
सकिी है। इन क्षेत्रों में 100 सेमी तक की वावषणक वषाण होिी है।
• 50 प्रतिशि िक की पररविणनशीलिा राजथिान के पस्चचमी भाग, जम्मू और कचमीर के उत्तरी भाग और
दक्खन के पठार के आंिररक भागों में दे खी जा सकिी है। इन क्षेत्रों में 50 सेमी से कम की वावषणक वषाण
होिी है।
• शेष भारि में यह अंतर 25-50 प्रततशत तक होिा है और इन क्षेत्रों में 50 से 100 सेमी तक वावषणक वषाण
होती है।

UPSC Previous Years’ Mains Questions on Climate:


1. दे श में गमी के मौसम के महत्वपूणण थिानीय िूफानों की सूची बनाएं और उनके सामास्जक-आधिणक प्रभाव
को दशाणएं। (UPSC 2010/12 Marks)
2. भारिीय मौसम ववभाग की ववमभन्न कायों के महत्व को समझाएं। (UPSC 2009/15 Marks)
3. नोर वेथिर के बारे में मलखें (20 शब्दों में) । (UPSC 2008/15 Marks)
4. उत्तर भारि में सटदणयों के दौरान होने वाली बाररश मोिे -िौर पर जेि प्रवाह और पस्चचमी ववक्षोभ से संबंधिि
है। संबंि थपष्ि करें । (UPSC 2008/15 Marks)
5. भारि में सटदणयों की बाररश/सटदणयों के दौरान होने वाली बाररश पर एक नोि मलखें। (UPSC 2006/12
Marks)
6. गमी के मानसून के मौसम में भारि में हवाओं और वषाण के वविरण पर चचाण करें । (UPSC 2002/10
Marks)
7. भारिीय मानसून के कारणों की व्याख्या कीस्जए।(UPSC 2001/10 Marks)
8. मैंगो शॉवसण पर संक्षक्षप्ि नोि मलखें। (UPSC 2000/2 Marks)
9. भारि में मानसून की उत्पवत्त पर चचाण करें । (UPSC 1997/15 Marks)
10. 'वषाण-िीव्रिा' क्या है ? भारिीय ककसानों के मलए इसके महत्व पर चचाण करें । (UPSC 1995/15 Marks)
11. भारि के ककस भाग में दक्षक्षण-पस्चचम मानसून की िुलना में उत्तर-पूवण मानसून से अधिक वषाण होिी है?
समझाएं कक ऐसा क्यों होिा है ? (UPSC 1994/15 Marks)
12. मानसन
ू के पव
ू ाणनम
ु ान का आिार क्या है , जो अब भारिीय मौसम ववभाग द्वारा िैयार ककया गया है , जो
वपछले िीन िममक वषों से यिोधचि रूप से सही है ? (UPSC 1991/20 Marks)

109
13. यह कहना ककिना उधचि है , कक इस दे श का ववत्तीय बजि भारिीय मानसन
ू के मलए एक जआ
ु की भांिी
है ? ववकास के उपायों ने ककस हद िक इस समथया को हल ककया है ? (UPSC 1986/20 Marks)
14. भारि अंिाकणटिका में अमभयान क्यों चला रहा है ? भारि की जलवायु और टहंद महासागर में पोषक और
ऊजाण आपूतिण पर अंिाकणटिका और अंिाकणटिक महासागर के प्रभाव का वणणन करें ।
15. "मानसून समुद्र से उत्पन्न होने वाली ऊजाण के रूप में जाना जािा है ।" व्याख्या करें । यह ऊजाण हमारे दे श
की संपूणण आधिणक प्रणाली को कैसे लाभ पहुंचािी है ? यह दे श ककन िरीकों से खुद को मानसून के खिरे
से लडने के मलए िैयार कर सकिा है ? (UPSC 1982/30 Marks)
16. दे श के अधिकांश अन्य टहथसों के ववपरीि, िममलनाडु िि जुलाई-अगथि में न होकर, नवंबर-टदसंबर के
महीनों में सबसे गीला (wettest) क्यों होिा है ? (UPSC 1980/3 Marks)

110
CH-6 भारतीय जलवायु

भारत में स्थलाकृततक विविधताओं (स्स्थतत, समुद्र तल से ऊंचाई, समुद्र से दरू ी और उच्चािच) के कारण प्रादे शिक
जलिायु में विविधता अत्यधधक होती है ।

● भारतीय जलिायु 'उष्ण मानसन


ू ी' प्रकार की है । मानसन
ू अरबी िब्द 'मौशसम’ से शलया गया है स्जसका अथथ
'मौसम'(season) होता है ।
o पिन तंत्र, जो मौसम के आधार पर िायु की ददिा पररिततथत करती है ।
● विश्ि में 4 प्रमख
ु मानसून क्षेत्र हैं:

1. दक्षक्षण एशिया
2. पूिी एशिया
3. पस्श्चम अफ्रीका
4. उत्तरी ऑस्रे शलया

एशिया के बडे महाद्िीपीय क्षेत्र सददथ यों के दौरान कम दबाि उत्पन्न होता है स्जससे िायुप्रिाह का
अत्यधधक ठं डे हो जाते हैं और खुले समुद्री क्षेत्र में उत्रमण होता है । समुद्र से हिा(नमी से भरी) आंतररक
उच्च दबाि और िुष्क हिा का प्रिाह उत्पन्न करते हैं। दहस्सों में आती है और प्रदे िों में आगे बढ़ते हुए भारी
गशमथयों के दौरान, महाद्िीप के तीव्र ताप के कारण मात्रा में िर्ाथ करती है

भारत, उष्णकदिबंधीय या िीतोष्ण दे ि?


ककथ रे खा के दक्षक्षण में दे ि का आधा भाग ● दहमालय भारत को, एशिया के बाकी दहस्सों

उष्णकदिबंधीय या उष्ण क्षेत्र में स्स्थत है और ककथ से अलग करता है ।

रे खा के उत्तर में दस
ू रा आधा भाग उपोष्णकदिबंधीय ● उष्णकदिबंधीय मानसून यहां की जलिायु में

क्षेत्र में स्स्थत है । महत्िपूणथ है ।


● दहमालय उत्तर की ठं डी िीतोष्ण िायु के प्रिाह
में अिरोध उत्पन्न करता है।

111
इस प्रकार, दहमालय के कारण भारत मुख्यतः एक o ददसंबर की ककसी रात में : द्रास (Drass) (-
उष्णकदिबंधीय दे ि है । 45 डडग्री )सेस्ससयस जबकक ततरुिनंतपरु म या
प्रादे शिक विविधताएं चेन्नई 20 डडग्री सेस्ससयस या 22 डडग्री
लेककन हम जानते हैं कक तापमान, िर्ाथ आदद के सेस्ससयस तक मापा गया है ।
कारण भारत में अत्यधधक प्रादे शिक अंतर या 2. दै तनक तापांतर:
विविधता है । o रे धगस्तान की तुलना में तिीय क्षेत्रों में दै तनक
तापांतर कम होता है ।
1. तापमान में अंतर: 3. िर्ाथ के प्रकार और उसकी मात्रा के आधार पर
o गशमथयों में - पस्श्चमी राजस्थान में 55 डडग्री क्षेत्रीय विविधताएं:
सेस्ससयस तक तापमान जबकक लेह में o दहमालय में बर्थबारी होती है जबकक दे ि के
सददथ यों के मौसम में तापमान (-45 डडग्री) बाकी दहस्सों में केिल िर्ाथ होती है ।
सेस्ससयस तक हो जाता है ।
o खासी(Khasi) की पहाडडयों में स्स्थत चेरापूंजी (Cherrapunji)और माशसनराम (Mawsynram) में पूरे िर्थ में
1080 सेमी से अधधक िर्ाथ होती है जबकक जैसलमेर में इसी अिधध के दौरान िायद ही कभी 9 सेमी से
अधधक िर्ाथ होती है ।
o दे ि के अधधकांि दहस्सों में जून-शसतंबर के दौरान िर्ाथ होती है लेककन तशमलनाडु के तिीय क्षेत्रों में सददथ यों
के मौसम की िरु
ु आत में भी िर्ाथ होती है ।

इन क्षेत्रीय विविधताओं के कारण भारत के विशभन्न क्षेत्रों के मौसम और जलिायु में अंतर उत्पन्न होता है ।

भारत का जलवायु कैलेंडर


भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) 4 मौसमों को मान्यता दे ता है :

● िीतकालीन मौसम (जनिरी-र्रिरी)


● मानसन
ू पि
ू थ का मौसम या ग्रीष्म ऋतु (माचथ-मई)
● दक्षक्षण पस्श्चम मानसून या िर्ाथ का मौसम (जून-शसतंबर)
● मानसून के तनितथन की ऋतु (अक्िूबर-निंबर)

112
भारत की जलवायु का निर्ाारण करिे वाले कारक
सामान्यतः इसे 2 भागो में विभास्जत ककया जाता है -

1. िायुदाब और पिनों से संबंधधत कारक तथा


2. स्स्थतत और उच्चािच से संबंधधत कारक

वायुदाब और पविों से जुडे कारक

1. जेि धाराएं जो ऊपरी िायम


ु ंडलीय परतों पर चलती
हैं। तनचली परतों पर इसकी कोई भूशमका नहीं
होती है वििेर्कर क्षोभमंडल की ऊंचाई के तनकि।
उपमहाद्िीप की तल
ु ना में उच्च
2. पस्श्चमी जेि: दबाि िाले क्षेत्र हैं।
o स्िीअसथ(Steers) पस्श्चमी िीतोष्ण 2. गशमथयों में
चरिात जो भूमध्य सागर के पास बनता ▪ ITCZ उत्तरी मैदानों (20-25L) की
है । (रबी र्सल के शलए उपयोगी होता है ) ओर खखसकता है जो भूमध्यरे खीय
। या मानसन
ू गतथ का तनमाथण करता
o ततब्बत के पठार में यह 2 िाखाओं में है ।
विभास्जत हो जाता है , पहली िाखा ▪ ITCZ के खखसकने के कारण
दहमालय के समानांतर चलती है । ततब्बत कम दबाि िाला क्षेत्र होता
▪ जब तक पस्श्चमी जेि ततब्बती है ।
पठार के उत्तर में नहीं चला जाता, ▪ व्यापाररक हिाएं भूमध्य रे खा
तब तक उत्तर भारत में तनम्न को पार करती हैं और
दाब उत्पन्न नहीं होता है । कोररओशलस बल के कारण
3. पूिी जेि धाराएं: अपनी ददिा पररिततथत कर
o स्िीसथ उष्णकदिबंधीय चरिात। लेती हैं - (इसशलए दक्षक्षण पूिी
o िर्ाथ का प्रततमान( patterns) गशमथयों में व्यापाररक हिाएँ दक्षक्षण
इसी पर तनभथर करता है । पस्श्चमी हो जाती है )।
4. चरिाती विक्षोभ
o पस्श्चमी चरिात विक्षोभ भूमध्य सागर से 7. दबाि प्रणाली
पस्श्चमी जेि धाराओं के माध्यम से आता
o ततब्बत का पठार तनम्न दाब िाला क्षेत्र
है ।
होता है ।
5. सददथ यों के मौसम में उष्णकदिबंधीय चरिातीय
o मेडागास्कर(Madagascar) के पास
विक्षोभ (पि
ू ोत्तर मानसन
ू प्रभाि)।
मस्केरे न (Mascarene )में उच्च
6. िायुदाब
दबाि प्रणाली विकशसत होती है ।
1. सददथ यों में
(ततब्बती तनम्न दबाि + मस्केरे न उच्च दबाि
▪ मध्य एशिया और ततब्बत का
= पूिी उष्णकदिबंधीय जेि)
आंतररक भाग भारतीय

113
8. अलनीना और IOD (दहंद महासागर द्विध्रुि): मस्केरे न और ऑस्रे शलया के बीच हिा और
o अलनीना द्विध्रि
ु को तोडता है । नमी की आपतू तथ में अिरोध उत्पन्न करता
o कम दाब के बजाय, एक उच्च दाब क्षेत्र है ।
ऑस्रे शलया के पास विकशसत होता है जो
स्थिनत और उच्चावच

1. उच्चािच – अनि
ु ात और हिा का रुख

2. ऊंचाई- बढ़ती ऊंचाई के साथ तापमान कम होता जाता है । उदाहरण के शलए, एक ही अक्षांि होने के बािजद
ू ,
आगरा में जनिरी का तापमान 16 डडग्री सेस्ससयस होता है जबकक दास्जथशलंग में यह केिल 4 डडग्री सेस्ससयस
तक होता है ।

3. अक्षांि - उपोष्णकदिबंधीय और उष्णकदिबंधीय दोनों


क्षेत्रों की उपस्स्थत होती हैं ।

4. दहमालय पिथत: दहमालय अजेय किच के रूप में


आकथदिक क्षेत्र की ठं डी हिाओं से रक्षा करता है और
मानसन
ू उत्पवत्त में भी प्रमख
ु भशू मका तनभाता है
(ततब्बत का पठार भी यहां महत्िपूणथ भशू मका तनभाता
है )।
5. समुद्र से दरू ी - दक्षक्षण भारत में संयशमत प्रभाि होता
है , इसशलए यहाँ सदी अधधक नहीं होती है । भारत
के भीतरी क्षेत्र समद्र
ु के संयशमत प्रभाि से अत्यधधक
दरू हैं स्जसके कारण यहाँ जलिायु अधधक होती है ।

6. भूशम और पानी का वितरण - सददथ यों में धरातल ठं ढा होता है स्जससे उच्च दबाि उत्पन्न होता है , जबकक गशमथयों
में भूशम गमथ हो जाती है स्जससे तनम्न दाब उत्पन्न होता है । इस उतार-चढ़ाि के कारण मानसून में पररिततथत
होता है ।

114
सर्दा याां
जलवायुवीय दशाएां:
उत्तर भारत

1. उत्तर भारत में इस मौसम के दौरान अत्यधधक ठं ड


तनम्नशलखखत कारणों से पडती है ।
• यह क्षेत्र समुद्री संयशमत प्रभाि से बहुत दरू
है ।
• तनकििती दहमालयी श्रेखणयों में बर्थबारी के
कारण िीत लहर की स्स्थतत उत्पन्न होती
है ।
• पस्श्चमी विक्षोभ के कारण भारत के
पस्श्चमोत्तर दहस्सों में पाला और कोहरे के
साथ िीत लहर चलती है ।

प्रायद्वीपीय क्षेत्र

1. कोई भी पररभावर्त ठं ड का मौसम नहीं है ।


2. तिीय क्षेत्रों में तापमान के वितरण पैिनथ के कारण िायद ही कोई मौसशमक पररितथन होता हो:
1. समुद्र का मध्यस्थता प्रभाि
2. भूमध्य रे खा से तनकिता।

सतही दाब और हवाएां

● भारत के मौसम की स्स्थतत आम तौर पर मध्य और पस्श्चमी एशिया में होने िाले दाब के वितरण से प्रभावित
होती है ।
● सददथ यों के दौरान दहमालय के उत्तरी क्षेत्रों में उच्च दाब उत्पन्न होता है ।
o उच्च दाब के कारण पिथत श्रंख
ृ ला के दक्षक्षण में स्स्थत भारतीय उपमहाद्िीप की ओर उत्तर से तनम्न स्तर
पर हिा का प्रिाह होता है।
o मध्य एशिया में उच्च दाब केंद्र से बहने िाली सतही हिाएं िुष्क महाद्िीपीय िायु के रूप में भारत
पहुंचती हैं ।
o ये महाद्िीपीय हिाएं उत्तर पस्श्चमी भारत में व्यापाररक पिनों से शमलती हैं ।
o इनके शमलने का क्षेत्र तनस्श्चत नहीं होता है ,कभी-कभी, यह पूिथ में मध्य गंगा घािी तक स्थानांतररत हो
जाती है , स्जसके पररणामस्िरुप समच
ू ा उत्तर-पस्श्चमी क्षेत्र और उत्तरी भारत मध्य गंगा घािी तक िष्ु क
उत्तर पस्श्चमी हिाओं के प्रभाि में रहता है ।

115
जेट र्ाराएां और ऊपरी वायु पररसांचरण
समानांतर बहती हैं। इन्हें उपोष्ण कदिबंधीय
● ऊपर चचाथ की गई थी कक िायु पररसंचरण केिल पस्श्चमी जेि धारा के नाम से जाना जाता है ।
पथ्
ृ िी की सतह के पास िायुमंडल के तनचले स्तर ● ततब्बती उच्चभूशम इन जेि धाराओं के बहाि में
पर दे खा जाता है । अिरोध उत्पन्न करते हैं। पररणामस्िरूप जेि
● पथ्
ृ िी की सतह से लगभग 3 ककमी ऊपर तनचले धाराएं दो भागों में विभास्जत हो जाती हैं। स्जसका
क्षोभ मंडल में उच्च िायु पररसंचरण का एक एक भाग ततब्बती उच्चभूशम के उत्तर में चलती है ,
अलग पैिनथ दे खा जाता है । जबकक दस
ू रा भाग( दक्षक्षणी भाग) दहमालय के
● पथ्
ृ िी की सतह के करीब िायुमंडलीय दाब में दक्षक्षण में पि
ू थ ददिा की ओर चलती है ।
शभन्नता ऊपरी िायु पररसंचरण के तनमाथण में कोई ● र्रिरी में इसका 25 ° N पर औसत 200-300
भशू मका नहीं तनभाती है । mb के स्तर पर होता है । यह माना जाता है कक
● पस्श्चम से पि
ू थ की ओर 9-13 ककमी की ऊँचाई के जेि धाराओं की यह दक्षक्षणी िाखा भारत में
साथ पस्श्चमी और मध्य एशिया के सभी क्षेत्र सददथ यों के मौसम में महत्िपूणथ प्रभाि डालती है ।
पछुआ पिनों के प्रभाि में रहते हैं।
● ये हिाएँ दहमालय के उत्तरी अक्षांि पर एशियाई
महाद्िीप के पार, लगभग ततब्बती उच्चभशू म के

पस्चचमी ववक्षोभ (WDs)

116
● पस्श्चमी विक्षोभ (डब्सयूडी) िब्द को भारतीय मौसम
विज्ञातनयों ने पस्श्चम से पि
ू थ ददिा की ओर बढ़ने िाली
पिन प्रणाशलयों का िणथन करने के शलए बनाया था ।
● पस्श्चमी विक्षोभ कैस्स्पयन सागर या भूमध्य सागर में
असमान या असाधारण उष्णकदिबंधीय चरिात के रूप में
उत्पन्न होता है । ये धीरे -धीरे ईरान, अर्गातनस्तान और
पाककस्तान से होते हुए मध्य-पि ू थ में जाते हैं और भारतीय
उप-महाद्िीप में प्रिेि करते है ।
● हालांकक पस्श्चमी विक्षोभ परू े िर्थ भारतीय क्षेत्र में होते है ,
लेककन ये जनिरी और र्रिरी की सददथ यों के महीनों के
दौरान अपने उच्चतम बबंद ु को प्राप्त करते हैं । भारत में
मानसून के दौरान इनका प्रभाि कम होता है ।

प्रेररत प्रणाशलयां और उनका प्रभाि क्या है ?


प्रेररत प्रणाशलयां प्राथशमक पस्श्चमी विक्षोभ द्िारा प्रेररत कम
दबाि िाले द्वितीय क्षेत्र या चरिाती पररसंचरण होते हैं।
आम तौर पर ये मध्य पाककस्तान और उससे सिे पस्श्चम राजस्थान क्षेत्र में दे खे जाते हैं, जो धीरे -धीरे पि
ू थ की ओर
बढ़ते हैं, स्जससे उत्तर पस्श्चम भारत में बाररि होती है । इनके कारण तापमान में िद्
ृ धध, सतह के दबाि मे कमी,
उच्च, मध्यम और तनम्न बादलों की उपस्स्थतत दे खी जाती हैं। सामान्य दाब और पिन प्रणाली, विक्षोभ समाप्त होने
के बाद अपनी परु ानी स्स्थतत में िापस आ जाते हैं।

कृवि पर पस्चचमी ववक्षोभ का प्रभाव

● पंजाब, हररयाणा, उत्तर प्रदे ि और ददसली सदहत उत्तर-पस्श्चम भारत में गैर-मानसूनी महीनों के दौरान पस्श्चमी
विक्षोभ अपने प्रमख
ु प्रणाशलयों के साथ शमलकर िर्ाथ प्रणाली बनाते हैं।
● उनका प्रभाि कुछ समय बाद गंगा के मैदानों और पूिोत्तर भारत तक र्ैल जाता है ।
● पस्श्चमी विक्षोभ के कारण जम्मू-कश्मीर, दहमाचल प्रदे ि और उत्तराखंड के उच्च क्षेत्रों में बर्थ-बारी भी होती है ।
● पस्श्चमी विक्षोभ सददथ यों में मानसून पूिथ िर्ाथ कराता है जो उत्तरी उपमहाद्िीप में रबी की र्सल के विकास के
शलए महत्िपूणथ है ।
● यह दे खते हुए कक गेहूं सबसे महत्िपण
ू थ रबी र्सलों में से एक है , जो इस क्षेत्र के लोगों के प्रमख
ु आहारों में से
एक है , सददथ यों की बाररि भारत की खाद्य सुरक्षा को पूरा करने में योगदान दे ती है ।

पूव-ा मािसूि मौसम / ग्रीष्म ऋतु (माचा-मई)

● ककथ रे खा से उत्तर की ओर सूयथ की स्स्थतत में बदलाि के कारण भारत में विर्ि
ु के बाद तापमान में िद्
ृ धध होती
है ।

उत्तर भारत

117
● अप्रैल, मई और जून उत्तर भारत में गशमथयों के महीने होते हैं। मई के महीने में 48 डडग्री सेस्ससयस के आसपास
का तापमान असामान्य नहीं है ।

दक्षक्षण भारत

● महासागरों के मध्यस्थता प्रभाि से दक्षक्षण भारत में


26 डडग्री सेस्ससयस और 32 डडग्री सेस्ससयस के
बीच तापमान रहता है ।
● ति से आंतररक क्षेत्रों की ओर तापमान बढ़ता जाता
है ।
● ऊंचाई के कारण पस्श्चमी घाि की पहाडडयों में
तापमान 25 ° C से नीचे रहता है ।

सतह दाब और हवाएां:-

● दे ि के उत्तरी दहस्से में गशमथयों के दौरान अत्यधधक


गमी के साथ िायु दाब कम होता है ।
● तापमान अधधक होने के कारण पूरे दे ि में
िायम
ु ंडलीय दाब कम होता है ।
● जैसे जैसे सूयथ धीरे -धीरे ककथ रे खा की ओर
खखसकता जाता है । आईिीसीजेड उत्तर की ओर
स्थानांतररत होने लगता है
● ITCZ का स्थान उन हिाओं के सतह पररसंचरण
को आकवर्थत करता है जो पस्श्चम ति के साथ-साथ
पस्श्चम बंगाल और बांग्लादे ि के ति पर भी दक्षक्षण
की ओर बहती हैं । ये हिाएं पूरे उत्तरी बंगाल और बबहार में पूिथ की ओर या दक्षक्षण ओर बहती हैं।
● उत्तर-पस्श्चमी भारत में उच्च तापमान मई और जन
ू के महीनों में अतत दाब प्रिणता बनाता है स्जसके कारण गमथ
धूल से भरी तेज हिाएं चलती है , स्जसे ' लू ' कहते है ।
o 'ल'ू संिहनीय घिना के कारण उत्पन्न होते है और दोपहर में इनकी तीव्रता बढ़ जाती है । इन्हें स्थानीय
रूप से 'आँधी' के नाम से जाना जाता है ।
o ये असपकालीन होती हैं, जो रे त और धूल की एक मोिी दीिार की तरह बहती हैं ।
o पंजाब, हररयाणा, पि
ू ी राजस्थान और उत्तर प्रदे ि में मई के महीने में
िाम को धलू भरी आंधी बहुत
आम है । ये अस्थायी तूर्ान अत्यधधक गमी से आराम ददलाते हैं क्योंकक िे अपने साथ हसकी बद
ूं ा बांदी
और ठं डी हिा लाते हैं ।

मािसूि के पूवा की विाा:

● कभी-कभी नमी से भरी हिाएं दाब ढाल/द्रोखणका की पररधध की ओर बहती हैं।

118
● िुष्क और नम िायु राशियों के बीच अचानक संपकथ
से तीव्र स्थानीय तर्
ू ान उत्पन्न हो जाते हैं । इस
स्थानीय तूर्ान में अत्यधधक तीव्र हिा, मूसलाधार
िर्ाथ और यहां तक कक ओलािस्ृ ष्ि भी होती हैं ।
● छोिानागपुर पठार में उत्पन्न होने िाली बबजली और
िज्रध्ितन के साथ आने िाली आंधधयां , पस्श्चमी
हिाओं द्िारा पि
ू थ की ओर संचररत होती है ।
o तडडत झंझा से होने िाली िर्ाथ के अंतगथत
पूिोत्तर राज्य, पस्श्चम बंगाल और उडीसा
और झारखंड के आसपास के इलाके आते हैं।
o पस्श्चम बंगाल और असम, उडीसा और
झारखंड के आसपास के इलाकों में तूफान की
ददिा मुख्य रूप से पस्श्चमोत्तर होती है और
इसीशलए उन्हें नोिेस्िर कहा जाता है ।

दक्षक्षण पस्चचम मािसूि मौसम (जूि-ससतांबर)


इस मौसम में तापमान की स्स्थतत

● जब सूयथ उत्तर की ओर खखसकता है तो तापमान में


तेजी से िद्
ृ धध होती है , उत्तर भारत में इसके कारण
हिा का पररसंचरण उपमहाद्िीप पर पूरी तरह से
विपरीत हो जाता है ।
● तापमान में तेजी से िद्
ृ धध के पररणामस्िरूप उत्तर-
पस्श्चमी मैदानों पर दाब अत्यधधक कम हो जाता है ।
● लगभग 20 ° N और 25 ° N के बीच दहमालय के
समानांतर, अंतः उष्णकदिबंधीय अशभसरण क्षेत्र

(ITCZ) के रूप में जाना जाने िाली तनम्न दाब की पेिी


जुलाई के मध्य तक उत्तर की ओर बढ़ती है , इस स्स्थतत
में ITCZ कभी-कभी मानसन
ू गतथ के रूप में होता है ।
● साधारणतया, कम दाब िाली मानसून गतथ
दक्षक्षण-पि
ू थ में पिना और छोिानागपरु पठार के बीच
उत्तर-पस्श्चम में थार रे धगस्तान तक र्ैली हुई है । इस
बीच, उच्च दाब क्षेत्र भारत के दक्षक्षणी समुद्र ति को
बंद कर दे ते हैं स्जससे आसपास के समद्र
ु धीरे -धीरे

119
गमथ होते है ।
● हिाएँ उच्च से तनम्न दाब की और बहती हैं। यह उत्तर और उत्तर पि
ू थ में भारत की ओर दक्षक्षण-पस्श्चमी ददिा से
बहना िुरू करती है और पथ्ृ िी के घूणन
थ से उत्पन्न कोररओशलस बल से ये विक्षेवपत होती है । यह समुद्र से नमी
को अििोवर्त करती है और इस नम युक्त पिन के बहाि को दक्षक्षण-पस्श्चम मानसून के नाम से जाना जाता है ।

जेट थरीम और ऊपरी वायु पररसांचरण

● इस समय तक, पस्श्चमी जेि धाराएं भारतीय क्षेत्र से


िापस चली जाती है । दरअसल, मौसम विज्ञातनयों ने
भूमध्य रे खा (आईिीसीजेड) के उत्तर की ओर जाने
और उत्तर भारतीय मैदान के ऊपर से पस्श्चमी जेि
धाराओं की िापसी के बीच एक संबंध पाया है ।
आमतौर पर माना जाता है कक दोनों के बीच कारण
और प्रभाि संबंध है ।
● एक पूिी जेि धारा जून में प्रायद्िीप के दक्षक्षणी भाग
में चलती है और इसकी अधधकतम गतत 90 ककमी
प्रतत घंिे तक होती है । अगस्त में , यह 15 ° N
अक्षांि तक ही सीशमत रहती है , और शसतंबर में 22
° N अक्षांि तक सीशमत हो जाती है । आमतौर पर
पूिी पिनों का ऊपरी िायम
ु ंडल में 30 डडग्री उत्तरी
अक्षांि के उत्तर में विस्तार नहीं होता है ।

मािसूि

मानसून एक ज्ञात जलिायुिीय घिना है । सददयों से o दक्षक्षण-पस्श्चम मानसून को दक्षक्षण पस्श्चम


बहुत सी दिप्पखणयों के बािजद
ू मानसन
ू िैज्ञातनकों के व्यापाररक पिनो के भम
ू ध्य रे खा को पार करने के
शलए यह पहे ली बना हुआ है । मानसून की सिीक बाद भारतीय उपमहाद्िीप की ओर विस्थावपत होने
प्रकृतत और कारण की खोज के कई प्रयास ककए गए के रूप में दे खा जा सकता है ।
हैं, लेककन अभी तक कोई भी शसद्धांत मानसून को o आईिीसीजेड की स्स्थतत में बदलाि का संबंध
पूरी तरह से समझाने में सक्षम नहीं है । हाल ही में दहमालय के दक्षक्षण में उत्तर भारतीय मैदान के
क्षेत्रीय स्तर पर अध्ययन करने के बाद इसमें ऊपर पस्श्चमी जेि धारा के अपनी स्स्थतत से
सर्लता प्राप्त हुई है । दक्षक्षण एशियाई क्षेत्र में िर्ाथ के िापस जाने की घिना से संबस्न्धत है ।
कारणों के गहन अध्ययन से मानसून के मुख्य o पस्श्चमी जेि धाराओं के क्षेत्र से हिने के बाद ही
कारणों और वििेर्ताओं को समझने मे आसानी होती 15 ° N अक्षांि में पि
ू ी जेि धाराएं इसका स्थान
है , वििेर् रूप से इसके कुछ महत्िपूणथ पहलू, जैसे: लेती है । इस पूिी जेि धाराओं को भारत में
मानसून के तीव्रता से प्रिेि करने के शलए
1. मानसून की िुरुआत स्जम्मेदार माना जाता है ।

120
o दक्षक्षण पस्श्चम मानसून 1 जून तक केरल ति पर
होता है और 10 से 13 जन
ू के बीच मंब
ु ई और
कर्र कोलकाता पहुंचता है । जुलाई के मध्य तक
दक्षक्षण-पस्श्चम मानसन
ू परू े उपमहाद्िीप को अपने
अंतगथत ले लेता है ।
2. िर्ाथिाही तंत्र (जैसे उष्णकदिबंधीय चरिात) तथा
मानसन
ू िर्ाथ की आिवृ त्त और वितरण के बीच
संबंध:-
3. भारत में दो िर्ाथिाही तंत्र होते हैं ।
1. पहली बंगाल की खाडी में उत्पन्न होता है जो
उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में िर्ाथ का ● भारत के ऊपर इसके मागथ का तनधाथरण मुख्यतः
कारण बनता है । ITCZ की स्स्थतत द्िारा होते हैं स्जसे आमतौर पर
2. दस
ू री दक्षक्षण-पस्श्चम मानसून की अरब सागर मानसून द्रोणी(monsoon trough) भी कहा जाता
धारा है जो भारत के पस्श्चमी ति पर िर्ाथ है ।
करती है । ● जब भी मानसन
ू द्रोणी का अक्ष दोलायमान होता
o पस्श्चमी घाि के साथ अधधकांि िर्ाथ है , विशभन्न िर्ो में इन अिदाबों के मागथ, ददिा,
पिथतीय होती है क्योंकक इससे नम हिा िर्ाथ की गहनता और वितरण में भी पयाथप्त उतार
बाधधत होती है और घािों के साथ ऊपर चढ़ाि आते रहते हैं।
उठने के शलए मजबरू होती है ।
o हालांकक, भारत के पस्श्चमी ति पर िर्ाथ ● जो िर्ाथ कुछ ददनों के अंतराल में आती है , िह
की तीव्रता दो कारकों से संबंधधत है : पस्श्चम ति पर पस्श्चम से पूि-थ उत्तर-पूिथ की ओर
1. अपतिीय मौसमी दिाएं। और उतरी भारतीय मैदान और प्रायद्िीप के उत्तरी
2. अफ्रीका के पि
ू ी ति के साथ भाग में पूिथ दक्षक्षण पूिथ से उत्तर पस्श्चम की ओर
भूमध्य रे खीय जेि धारा की घिने की प्रिवृ त्त को प्रदशिथत करती है ।
स्स्थतत।
o बंगाल की खाडी से तनकलने िाले मानसून में विच्छे द (monsoon break):-
उष्णकदिबंधीय अिदाबों की आिवृ त्त साल ● कुछ ददनों तक िर्ाथ होने के बाद दक्षक्षण-पस्श्चम
दर साल बदलती रहती है । मानसन
ू काल के दौरान, यदद िर्ाथ एक या अधधक
सप्ताह तक नहीं होती है तो इसे मानसून विच्छे द
भारत के ऊपर इनके रास्ते मुख्य रूप से आईिीसीजेड के रूप में जाना जाता है ।
की स्स्थतत से तनधाथररत होते हैं स्जसे आम तौर पर ● िर्ाथ के मौसम में ये आद्रथ काल(dry spells)कार्ी
मानसून द्रोखणका कहा जाता है । आम हैं|
जैसा ही मानसन
ू द्रोणी की धरु ी दोलन करती है , इन ● विशभन्न क्षेत्रों में ये विच्छे द अलग-अलग कारणों
अिदाबों के रास्ते और ददिाओं में उतार-चढ़ाि होते से होते हैं:
हैं, और िर्ाथ की तीव्रता और मात्रा में िर्थ-दर-िर्थ उतार
चढ़ाि आते है ।

121
● यदद इस क्षेत्र में मानसून द्रोणी या ITCZ के साथ
िर्ाथ लाने िाले उष्णकदिबंधीय चरिात तनत्य ना
हो तो उत्तर भारत में िर्ाथ की संभािना विर्ल हो
सकती है
● पस्श्चमी ति पर मानसून विच्छे द तब होता है जब
आद्रथ पिनें ति के

समानांतर बहने लगती हैं।

• दक्षक्षण पस्श्चम मानसून के गठन, िुरुआत और


गहनता को प्रभावित करने िाले कारक हैं:-
दक्षक्षण पस्श्चम मानसन
ू का बनना:-

1. अंतःउष्णकदिबंधीय अशभसरण क्षेत्र (ITCZ): गंगा


के मैदान पर गशमथयों में ITCZ का स्थानांतरण उत्तरी

• उपोष्णकदिबंधीय जेि प्रिाह जन


ू के िरु
ु आत में
पूरी तरह से भारत से िापस लौि जाता है और
40 ° N (ततब्बती पठार के उत्तर में ) अक्षांि पर
आ जाता है ।
• पठार, जेि प्रिाह के उत्तर की ओर विस्थापन का
कारण बनता है । इसशलए जून के माह में
मानसून दहमालय के कारण अपने चरम पर होता
है ना कक ततब्बत के क्षेत्र में कम दाब द्िारा ।
• ततब्बत का पठार दक्षक्षण-पस्श्चम मानसन
ू के शलए
उत्तरदायी है , लेककन मानसन
ू की िरु
ु आत उत्तरी
मैदानों पर कम दाब बनाती है ।
ददिा में प्रिास(STG) के कारण होती है ।
2. ग्रीष्म महीनों के दौरान ततब्बत के पठार का अधधक • अक्िूबर के मध्य में यह पठार दहमालय के दक्षक्षण
गमथ होना; -समद्र
ु तल से लगभग 9 ककमी ऊपर में जेि के आगे बढ़ने या इसे दो भागों में
ततब्बत के पठार पर मजबत
ू ऊध्िाथधर िायु धाराएँ और विभास्जत करने के शलए सबसे महत्िपूणथ कारक
तनम्न दाब का तनमाथण होता है । बनता है ।
• िीतकालीन मानसून में ततब्बत का पठार तेजी से
• ततब्बत का पठार उच्च भूशम का एक वििाल खंड ठं डा होता है और एक उच्च दाब क्षेत्र (ततब्बत के
है जो आसपास के क्षेत्रों की तल
ु ना में 2-3 ° C ऊपर चरिातीय स्स्थतत कमजोर होने लगती है
अधधक सूयाथतप प्राप्त करता है | तथा प्रततचरिातीय स्स्थतत स्थावपत होने लगती
• पठार िायुमंडल को दो तरह से प्रभावित करता है : है ) का तनमाथण करता है जो उत्तर-पूिी मानसून
• भौततक अिरोध के रूप में । को मजबूत करता है ।
• उच्च स्तरीय ऊष्मा स्रोतों के रूप में ।

122
• ततब्बत का पठार ग्रीष्म काल में अपने आसपास • अंत में यह दक्षक्षण-पस्श्चम ददिा से लौिने के
के क्षेत्रों की िायु की तल
ु ना में 2 ° C से 3 ° C दौरान भारत के पस्श्चमी ति पर प्रकि होता है
तक अधधक गमथ हो जाता है । स्जसे भूमध्यरे खीय पछुआ पिन कहा जाता है ।

• क्योंकक ततब्बत का पठार िायम


ु ंडल के शलए ऊष्मा
का एक स्रोत है जो िायु को ऊपर की ओर • यह दहंद महासागर से आद्रथ ता को ग्रहण करता है
(अशभसरण) उठाता है । स्जससे सतह पर तनम्न एिं भारत और आसपास के दे िों में िर्ाथ का
िायु दाब क्षेत्र बनता है । कारण बनता है ।
• इसके ऊपर उठने के दौरान िायु ऊपरी क्षोभमंडल
सतह और जल का विभेदी तापन और िीतलन:-
(अपसरण) में बाहर की ओर र्ैलती है और धीरे -
ग्रीष्मकाल के दौरान धरातल पर तनम्न दाब और
धीरे दहंद महासागर के भूमध्यरे खीय भाग पर
अितशलत हो जाती है ।

123
समुद्र के ऊपर उच्च दाब का तनमाथण होता है | मैस्करीन तापन (Mascarene heating): दक्षक्षण दहंद
महासागर में स्थायी उच्च दाब कोशिक

दक्षक्षण-पस्चचम मािसूि का आगमि

● उपोष्णकदिबंधीय पस्श्चमी जेि धारा (SWTJ)


मानसन
ू के अचानक प्रस्र्ोि और विच्छे द के शलए
स्जम्मेदार।

• उष्णकदिबंधीय पूिी जेि धारा:-

● लंबे समय तक ततब्बत के ऊपर िायु का उच्च


ग्रीष्मकालीन ताप ,पूिी जेि को सिक्त बनाता है ।
भारत में भारी िर्ाथ तब होती है जब ये जेि धाराएँ
समुद्र के ऊपर (आद्रथ ता ग्रहण करने के कारण) से
गज
ु रते समय दक्षक्षण-पस्श्चम मानसन
ू के साथ भारतीय उपमहाद्िीप में प्रिेि करती हैं।

● यदद ततब्बत का पठार भारत में िर्ाथ की घिना में बाधा उत्पन्न नहीं करता तो पि
ू ी जेि अस्स्तत्ि में नहीं आता।

● ततब्बत के पठार के ऊपर जब ककसी िर्थ में


अत्यधधक दहमपात होता है तो भारतीय
उपमहाद्िीप में मानसून अगला िर्थ कमजोर होता
है |
सोमाशलया जेि(र्ाइंडलेिर जेि):-

● केन्या, सोमाशलया और साहेल क्षेत्र को पार करने

िाले सोमाली जेि के जुडाि से भारत की ओर दक्षक्षण-पस्श्चम


मानसून की प्रगतत बहुत अधधक हो जाती है ।
● यह मेडागास्कर के तनकि स्थायी उच्च दाब को
मजबूत करता है और दक्षक्षण-पस्श्चम मानसून को अधधक
गतत और गहनता से भारत में प्रवेश करिे हे तु मदद करता
है ।

124
125
दक्षक्षण पस्चचम मािसूि की गहिता
र्हांद महासागरीय द्ववध्रव
ु ीय(IOD):

दहंद महासागर द्विध्रुिीय (IOD) को दो क्षेत्रों ( ध्रुिों या द्विध्रुिीय) के बीच समद्र


ु की सतह के तापमान में अंतर से
पररभावर्त ककया जाता है -अरब सागर में ‘पस्श्चमी ध्रि
ु ’ (पस्श्चमी दहंद महासागर) और इंडोनेशिया के दक्षक्षण में पूिी
दहंद महासागर में ‘पूिी ध्रि
ु ’।
1. यह एक एसएसिी (SST) विसंगतत (समुद्र की सतह के तापमान में विसंगतत) है जो उत्तरी या
भम
ू ध्यरे खीय दहंद महासागरीय क्षेत्र (IOR) में कभी-कभी घदित होती है ।
2. IOD अप्रैल से मई तक दहंद महासागर के भूमध्यरे खीय क्षेत्र में विकशसत होता है जो अक्िूबर में चरम
पर पहुंच जाता है ।
3. एक सकारात्मक आईओडी के साथ, दहंद महासागर क्षेत्र पर पिनें पि
ू थ से पस्श्चम की ओर (बंगाल की
खाडी से अरब सागर की ओर) चलती है । स्जसके पररणामस्िरूप अरब सागर बहुत गमथ (अफ्रीकी ति के
पास पस्श्चमी दहंद महासागर) और पूिी दहंद महासागर अधधक ठं डा एिं आद्रथ (इंडोनेशिया के आसपास)
होता है । नकारात्मक आईओडी के िर्थ में यह उसिा होता है स्जससे इंडोनेशिया बहुत अधधक गमथ और िर्ाथ
िाला क्षेत्र बन जाता है ।

126
4. सकारात्मक आईओडी गमथ जल के अधधक िाष्पीकरण के कारण भारतीय मानसन
ू के शलए उधचत शसद्ध
होता है ।
यह अफ्रीकी ति के समीप भूमध्य सागर के पस्श्चमी भाग में बादलों के बनने और िर्ाथ को प्रेररत करने के शलए
स्जम्मेदार है जबकक सुमात्रा के पास ऐसी गततविधधयां को यह बाधधत करता है ।
• दाब की स्स्थतत में पररितथन भी ENSO से प्रभावित होता हैं।
• एल-तननो िब्द का अथथ है 'चाइसड राइस्ि' क्योंकक यह धारा ददसंबर में करसमस के आसपास ददखाई दे ता है ।
पेरू (दक्षक्षणी गोलाधथ) में ददसंबर एक ग्रीष्म ऋतु का महीना है ।
• यह एक जदिल मौसशमक तंत्र है जो प्रत्येक तीन से सात िर्थ में एक बार प्रकि होता है ।
• यह दतु नया के विशभन्न दहस्सों में सूखा, बाढ़ और अन्य मौसम की चरम अिस्थाएं उत्पन्न करता है ।
• इस तंत्र में महासागरीय और िायम
ु ंडलीय पररघिनाएं िाशमल होती हैं। पि
ू ी प्रिांत महासागर में , पेरू के ति के
तनकि उष्ण समद्र
ु ी धारा के रूप में प्रकि होता है और भारत सदहत बहुत से स्थानों के मौसम को प्रभावित करता
है ।
• एल-नीनो भूमध्यरे खीय उष्ण समुद्री धारा का विस्तार मात्र है , जो अस्थाई रूप से ठं डी पेरूवियन अथिा हंबोसि
धारा (अपनी एिलस में इन धाराओं की स्स्थतत ज्ञात कीस्जए) द्िारा प्रततस्थावपत हो जाती है ।
• यह धारा पेरू के ति के जल के तापमान को 10°C तक बढ़ा दे ती है । स्जसके तनम्नशलखखत पररणाम होते है :
1. भूमध्यरे खीय िायुमंडलीय पररसंचरण में विकृतत|
2. समुद्री जल के िाष्पन में अतनयशमतता।
3. प्लिक की मात्रा में कमी जो समुद्र में मछशलयों की संख्या को और कम कर दे ती है ।
• एल-नीनो का उपयोग भारत में मानसून िर्ाथ के पूिाथनुमान के शलए ककया जाता है । 1990-91
में , एक प्रचंड एल-नीनो घिना घदित हुई थी स्जसके कारण दे ि के अधधकांि दहस्सों में पांच से
बारह ददनों तक दक्षक्षण-पस्श्चम मानसून के आगमन में दे री हुई थी।

भारत में दक्षक्षण-पस्श्चम मॉनसून का आगमि और प्रगतत

अरब सागर की िाखा:


अरब सागर में उत्पन्न मानसूनी पिनें आगे चलकर तीन िाखाओं में विभास्जत हो जाती हैं:
इसकी एक िाखा पस्श्चमी घाि द्िारा अिरुद्ध की जाती है ।

• पिनें पस्श्चमी घाि की ढलान पर चढ़ती हैं और


सह्याद्री के पिनाशभमख
ु ी ढाल और पस्श्चमी तिीय
मैदान में पिथतीय िर्ाथ का कारण बनती हैं।
• पस्श्चमी घािों को पार करने के बाद ये पिनें नीचे
उतरती है और गमथ होने लगती है । इससे पिनों की
आद्रथ ता में कमी आती है। पररणामस्िरूप, ये पिनें
पस्श्चमी घाि के पूिथ में कम िर्ाथ का कारण बनती हैं।
कम िर्ाथ िाले इस क्षेत्र को िस्ृ ष्ि-छाया क्षेत्र के रूप मे
जाना जाता है ।

127
2. अरब सागर मानसून की दस
ू री िाखा मुंबई के उत्तरी ति से िकराती है , तथा ये पिनें नमथदा और तापी नदी की
घादियों से होकर मध्य भारत के दरू िती क्षेत्रों में िर्ाथ का कारण बनती हैं। छोिानागपरु पठार में इस िाखा से 15
सेंिीमीिर िर्ाथ होती है । इसके बाद, िे गंगा के मैदानों में प्रिेि करती हैं और बंगाल की खाडी से आने िाली मानसून
की िाखा से शमल जाती है ।
3. इस मानसूनी पिन की तीसरी िाखा सौराष्र प्रायद्िीप और कच्छ से िकराती है । इसके बाद, यह बहुत कम िर्ाथ
के साथ आगे पस्श्चम राजस्थान और अरािली की ओर बढ़ती है । पंजाब और हररयाणा में , यह बंगाल की खाडी से
आने िाली िाखा से शमल जाती है । यह दोनों िाखाएं एक दस
ू रे के सहारे प्रबशलत होकर पस्श्चमी दहमालय में िर्ाथ का
कारण बनती है ।
• राजस्थान से होकर गुजरने िाली िाखा में िर्ाथ को प्रभावित करने की क्षमता कम नहीं होती है क्योंकक:
1. अरािली की ददिा इन मानसन
ू ी हिाओं के समानांतर है ।
2. पाककस्तान के शसंध क्षेत्र की िुष्क और गमथ हिाएँ इन मानसूनी हिाओं की सापेक्ष आद्रथ ता को कम करती हैं
और उन्हें घनीकृत नहीं होने दे ती हैं।

बांगाल की खाडी की शाखा:


1. बंगाल की खाडी की िाखा म्यांमार के ति और दक्षक्षण-पि
ू थ बांग्लादे ि के छोिे से दहस्सों से िकराती है । ककं तु
म्यांमार के ति पर स्स्थत आराकान पहाडडयां इस िाखा के एक बडे दहस्से को भारतीय उपमहाद्िीप की ओर
विक्षेवपत कर दे ती हैं।इसशलए, मानसून दक्षक्षण-पस्श्चम ददिा के बजाय दक्षक्षण ि दक्षक्षण-पूिथ से पस्श्चम बंगाल और
बांग्लादे ि में प्रिेि करती है ।यहाँ से, यह िाखा दहमालय और उत्तर-पस्श्चम भारत में तापीय तनम्न दाब के प्रभाि
के कारण दो भागो में विभास्जत हो जाती है ।
• इसकी एक िाखा गंगा के मैदान के साथ-साथ पस्श्चम की ओर बढ़ती है और पंजाब के मैदान तक पहुंचती है।
• इसकी दस
ू री िाखा उत्तर ि उत्तर पूिथ में ब्रह्मपुत्र घािी में बढ़ती है जहां यह िाखा विस्तत
ृ क्षेत्रों में िर्ाथ करते हैं।
• इसकी एक उप-िाखा मेघालय की गारो और खासी पहाडडयों से िकराती है । स्जससे तनकििती पहाडडयों के
कीपनम
ु ा प्रभाि के कारण भारी िर्ाथ होती है ।
• खासी पहाडडयों की चोिी पर स्स्थत माशसनराम दतु नया में सबसे अधधक औसत िावर्थक िर्ाथ (1141 सेमी) प्राप्त
करने िाला स्थान है ।
• माशसनराम की तुलना में मेघालय पठार (शिलांग और गुिाहािी की तरह) के पिनाविमुखी ढाल पर अपेक्षाकृत कम
िर्ाथ होती है ।
• उत्तर की ओर ब्रह्मपत्र
ु घािी में िस्ृ ष्ि छाया प्रभाि पडता है , लेककन समीपिती दहमालय द्िारा इसका प्रभाि कम
हो जाता है , स्जससे पिनें कर्र से ऊपर उठने लगती हैं, स्जससे भारी िर्ाथ की एक समानांतर पेिी विकशसत होती
है ।
Note:
● मानसून की अरब सागर िाखा बंगाल की खाडी की तल
ु ना में अत्यधधक िस्क्तिाली होती है क्योंकक:
o अरब सागर बंगाल की खाडी से बडा है ।
o संपूणथ अरब सागर भारत की ओर बढ़ता है जबकक बंगाल की खाडी का केिल एक दहस्सा भारत में
प्रिेि करता है और िेर् म्यांमार, थाईलैंड और मलेशिया तक जाता है ।
● ये दो िाखाएँ गंगा के मैदान में एक में विलीन हो जाती हैं और जब तक यह पंजाब में पहुँचती है , तब तक
नमी कार्ी हद तक खत्म हो चुकी होती है ।

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इस मौसम में तशमलनाडु ति िुष्क रहता है क्योंकक:
● तशमलनाडु ति दक्षक्षण-पस्श्चम मानसन
ू की बंगाल की खाडी िाखा के समानांतर स्स्थत है ।
● यह दक्षक्षण-पस्श्चम मानसन
ू की अरब सागर िाखा के िस्ृ ष्ि-छाया क्षेत्र (पस्श्चमी घािों के) में स्स्थत है ।

दक्षक्षण-पस्चचम मािसूि की वापसी:


NE मानसून का आगमन और शसतंबर के अंत में SW मानसून का तनितथन एक रशमक घिना है ।
1. ये घिनाएं लगभग एक ही समय पर होती हैं।
2. यह "मानसून के तनितथन" को संदशभथत करता है ।
मािसूि के बाद का मौसम/शीत ऋतु (Oct–Dec)
अक्िूबर-निंबर के महीने में मौसम िुष्क और सदथ हो जाता है ।
मािसूि प्रत्यावताि का मौसम-
ITCZ के दक्षक्षण की ओर स्थानांतरण के पररणामस्िरुप, भारत के उत्तर-पस्श्चमी दहस्सों में न्यून दाब के क्षेत्र के
कमजोर होने के कारण प्रत्याितथन होता है । स्जसका कारण होता है :
● सय
ू थ का भम
ू ध्य रे खा की ओर बढ़ना(दक्षक्षणायन)।
● अत्यधधक िर्ाथ के कारण तापमान में कमी।
इससे िायु दाब में धीरे -धीरे कमी आती है स्जसके कारण दक्षक्षण-पस्श्चम मानसून पीछे लौिने लगता है । दाब के इस
रशमक कमी के कारण, मॉनसनू प्रकरया का पीछे हिना इसके आगमन की तल
ु ना में बहुत धीमी प्रकरया है।
निवाति का चरण (Oct- Nov)
● दक्षक्षण-पस्श्चम मानसून उत्तर-पस्श्चम भारत में
पाककस्तान की सीमा से शसतंबर के पहले सप्ताह में
पीछे हिना प्रारं भ कर दे ता है ।इसशलए ये पिनें उन
क्षेत्रों से सबसे पहले लौिती हैं जहां िे आखखरी में
पहुंचती है ।
● मानसून शसतंबर के पहले सप्ताह तक पस्श्चमी
राजस्थान से लौिता है ।
● यह महीने के अंत तक राजस्थान, गुजरात, पस्श्चमी
गंगा के मैदान और मध्यिती उच्चभशू म से िापस लौि
चुकी होती है ।
● अक्िूबर के आरं भ में बंगाल की खाडी के उत्तरी भागों
में आ जाता है और निंबर के िरू
ु में यह कनाथिक
और तशमलनाडु की ओर बढ़ जाता है ।
● ददसंबर के मध्य तक प्रायद्िीप से, तनम्न िायुदाब का
केंद्र ,पूरी तरह से हि चुका होता है ।

इस मौसम के दै राि तापमाि की स्थिनत:


1. मानसून के तनितथन के साथ मेघ विलुप्त हो जाते हैं, और आसमान सार् हो जाता है और तापमान में िद्
ृ धध
होने लगती है ।
2. मेघ आिरण में कमी के कारण दै तनक तापांतर बढ़ जाता है ।

129
3. उच्च तापमान (लगभग 25°C) की स्स्थतत और आमतौर पर ‘अक्िूबर हीि’ या क्िार की उमस ’के रूप में

संदशभथत आद्रथ ता के कारण मौसम असहनीय हो जाता है ।

सतही पविें और विाण:


● जैस-े जैसे मानसून का तनितथन होता है , मानसून द्रोणी कमजोर
होती जाती है और धीरे -धीरे दक्षक्षण की ओर खखसकना आरं भ
कर दे ती है ।

● दक्षक्षण-पस्श्चम मानसून के विपरीत उत्तरी मानसून की िुरुआत


स्पष्ि रूप से पररभावर्त नहीं है ।

● दे ि के बडे दहस्से पर पिनों की ददिा स्थानीय दाब की


स्स्थततयों से प्रभावित होती है ।

o पिनें गंगा घािी के उत्तर पस्श्चम में नीचे की ओर,


गंगा-ब्रह्मपत्र
ु डेसिा में उत्तरी और बंगाल की खाडी के
ऊपर उत्तर-पूिथ में (इस प्रकार उत्तर-पि
ू थ मानसून नाम)
चलती हैं।

● ये िीतकालीन मानसूनी िर्ाथ का कारण नहीं बनते हैं क्योंकक


िे धरातल से समद्र
ु की ओर चलते हैं। स्जसके तनम्नशलखखत कारण है :
o उनमें थोडी आद्रथ ता होती है ।
o धरातल पर प्रततचरिातीय पररसंचरण के कारण िर्ाथ की संभािना कम हो जाती है ।
o अपिाद: तशमलनाडु के तिीय क्षेत्रों में भारी िर्ाथ, स्जसका कारण उत्तर पूिी मानसूनी पिनों का लौिते
समय बंगाल की खाडी के ऊपर से गुजरते हुए आद्रथ ता ग्रहण करना होता है |

130
131
CH-7 भारत की मिट्टी
मिट्टी पथ्
ृ वी की पपपटी की सबसे ऊपरी परत है जिसिें • प्रायद्वीपीय भारत की मिट्टी चट्टािों के
काबपनिक पदार्थों के सार्थ चट्टाि के कण मिश्रित होते थवथर्थािी अपघटि से बिती है , अर्थापत सीधे
हैं। मिट्टी एक पाररजथर्थनतकी तंत्र की जथर्थरता के मिए अंतनिपहहत चट्टािों से बिती है ।
आवश्यक िहत्वपूणप घटकों िें से एक है क्योंकक यह
• प्रायद्वीपीय भारत की मिट्टी एक सीमित सीिा
विथपनतयों के ववकास के मिए िहत्वपूणप प्राकृनतक
तक प्रवाहहत होती है और िि िाती है , इसे
िाध्यि है और इस प्रकार यह पथ्
ृ वी पर िीवि िें
तिछटी मिट्टी के रूप िें िािा िाता है ।
िदद करती है ।
• अनतररक्त प्रायद्वीप की मिट्टी, िहदयों और हवा
भग
ू भीय रूप से, भारतीय मिट्टी को िोटे तौर पर
के ििावीय कायों के कारण बिती है । ये बहुत
प्रायद्वीपीय भारत की मिट्टी और अनतररक्त
गहरी होती हैं। उन्हें अक्सर पररवहि या अिोिि
प्रायद्वीपीय भारत की मिट्टी िें ववभाजित ककया िा
या गैर-क्षेत्रीय मिट्टी के रूप िें संदमभपत ककया
सकता है ।
िाता है ।

मिट्टी के गठन को प्रभावित करने िाले प्रिख


ु कारक

मिट्टी की ववशेषताओं को निधापररत करिे वािे प्रिुख कारक िूि सािग्री, ििवायु, उच्चावच, विथपनत, सिय और
कुछ अन्य िीवि के रूप हैं।

िूल सािग्री/पदार्थ यह धाराओं द्वारा ििा की िाती है या थवथर्थािे


अपक्षय से प्राप्त होती है । इस चरण िें , मिट्टी खनिि

132
संरचिा, छाया, कण आकार और रासायनिक तत्वों थर्थिाकृनत, मिट्टी की सतह पर पहुंचिे वािे पािी को
िैसे कई गुण प्राप्त करती है । पुिववपतररत करती है । उच्चभूमि िे बाररश होिे से

उदाहरण के मिए तराई क्षेत्र पर ििी की पररजथर्थनतयां बिती है , कुछ


जथर्थनतयों िें ये दिदि या िैववक मिट्टी के रूप िे
- कािी मिट्टी को इसका रं ग िावा चट्टाि से
पररवनतपत हो िाते है । इस तरह, ििवायु के
मििा है ।
पुिववपतरण कारक के रूप िें , थर्थिाकृनत मिट्टी के
- प्रायद्वीपीय मिट्टी िूि चट्टाि के गण
ु रूपों, मिट्टी के ववतरण और उस थर्थाि पर विथपनत
दशापती है । के प्रकार को प्रभाववत करती है ।

- रे तीिी मिट्टी बिुआ पत्र्थर से प्राप्त होती है । सिय

जलिायु मिट्टी को आकार प्राप्त करिे िें कई साि िग सकते


हैं। िई मिट्टी िें उिकी िि
ू सािग्री वािे कुछ गुण
यह मिट्टी के गठि िें िहत्वपण
ू प घटकों िें से एक है
होते हैं, हािांकक सिय के सार्थ काबपनिक पदार्थप के
क्योंकक यह िूि चट्टाि के अपक्षय की गनत को
ववथतार, ििी और अन्य पाररजथर्थनतक कारकों के
प्रभाववत करता है ।
संपकप िें आिे से इसकी ववशेषताओं िे बदिाव आ
• वषाप की भमू िका: वषाप िें पररवतपिशीिता सकता हैं। सिय के सार्थ, ये मिट्टी िीचे बैठती है
,मिट्टी की संरचिा को बदि दे ती है । उदाहरण और इसके ऊपर और भी मिट्टी िि िाती है , जिससे
के मिए- वाष्पीकरण की उच्च दर और कि वषाप इसकी ववशेषताओं को बदििे िें सिय िग िाता है ।
वािे क्षेत्रों की मिट्टी िें िवण अश्रधक संश्रचत अंत िें , ये एक मिट्टी के प्रकार से दस
ू रे िें बदि
हुआ है । इि विों की मिट्टी िें भारी बाररश से सकती हैं।
होिे वािे गहि निक्षािि के कारण पोषक तत्व
कि होते है ।

• तापिाि की भूमिका: यह भी एक िहत्वपूणप


भूमिका निभाता है क्योंकक तापिाि िें मभन्िता
के कारण सािान्यतः मिट्टी िें संकुचि और
ववथतार तर्था अपक्षय होता है ।

जैविक कारक (िनस्पतत, जीि और सूक्ष्िजीि)

वातावरण के सार्थ मििकर िैववक तत्व, मिट्टी का


उत्पादि करिे के मिए िूि चट्टाि िे बदिाव करते
है । उदाहरण के मिए- फिीदार पौधों (िैसे फिी, िटर गठि के आधार पर भारत की मिट्टी को निम्िमिखखत
और िूंगफिी) िें िाइट्रोिि जथर्थरीकरण करिे वािे दो िेखणयों िें बांटा िाता है:
सूक्ष्ि िीव होते हैं। ये पौधे िाइट्रोिि-जथर्थरकृत • अवमशष्ट मिट्टी → िो अपिे स्रोत के थर्थाि पर
बैक्टीररया से सीधे िाइट्रे ट आयि िेते हैं। वायुिंडिीय बिती है िैसे कािी मिट्टी
िाइट्रोिि को जथर्थरीकरण द्वारा अिोनिया या
अिोनियि िे पररवनतपत करिे से मिट्टी की उवपरता िे
• प्रवाहहत मिट्टी → िो अपिे स्रोत के थर्थाि से
दरू चिी िाती है िैसे ििोढ़ मिट्टी
सुधार होता है ।
िद
ृ ा प्रततरूप (िद
ृ ा क्षिततज)
स्र्लाकृतत

133
िद
ृ ा प्रनतरूप मिट्टी का एक ऊध्वापधर श्रचत्रण है िो O क्षिततज - मिट्टी की यह शीषप काबपनिक परत, आि
मिट्टी के सभी क्षक्षनतिों को श्रचत्रत्रत करता है । यह तौर पर पत्ती कूडे और ह्यूिस (ववघहटत काबपनिक
मिट्टी की सतह से िूि चट्टाि सािग्री तक सभी को पदार्थप) से बिी होती है ।
सजम्िमित करता है । िदृ ा प्रनतरूप िें बहुत सी परतें
शामिि होती है , िो सतह के सिािांतर होती हैं, A क्षिततज - परत को टॉपसाइि/ऊपरी मिट्टी कहा
इिको िद
ृ ा क्षक्षनति कहा िाता है । ये परतें अपिे िाता है ; यह O क्षक्षनति के िीचे और E क्षक्षनति के
भौनतक और रासायनिक गण
ु ों से ववमशष्ट होती हैं। ऊपर पाई िाती है । इस गहरे रं ग की परत िें बीि
ववकमसत होते हैं और पौधे की िडें बढ़ती हैं। यह
िद
ृ ा क्षक्षनति को तीि िेखणयों − क्षक्षनति A, क्षक्षनति
खनिि कणों के सार्थ ह्यूिस (ववघहटत काबपनिक
B और क्षक्षनति C िें व्यवजथर्थत ककया िाता है । इन्हे
पदार्थप) के मििण से बिती है ।
सािूहहक रूप से िद
ृ ा प्रनतरूप के रूप िें िािा िाता
है । इि तीिों के अिावा O, E और R क्षक्षनति भी
E क्षिततज – यह निक्षामित परत हल्के रं ग की होती
होते हैं ।
है ; यह परत Aक्षक्षनति के िीचे और B क्षक्षनति के
ऊपर होती है । यह ज्यादातर रे त और गाद से बिती
है , मिट्टी के िाध्यि से पािी िीचे निक्षामित हो
िाता है जिससे यह मिट्टी अपिे अश्रधकतर खनिि
खो दे ती है ।

B क्षिततज - इसे उप-िद


ृ ा भी कहा िाता है । यह परत
E क्षक्षनति के िीचे और C क्षक्षनति के ऊपर होती है ।
इसिें मिट्टी और खनिि भंडार (िैसे िोहा,
एल्यूिीनियि ऑक्साइड और कैजल्शयि काबोिेट)
भरपूर होता है क्योंकक ऊपर की परतों से खनिि पदार्थप
ररसते हुए इस परत िे आ िाते है ।

C क्षिततज – इसे रे गोमिर्थ भी कहा िाता है । यह B


क्षक्षनति के िीचे और R क्षक्षनति के ऊपर होती है ।
इसिे पत्र्थर के छोटे छोटे टुकडे होते है । पौधों की िडें
इस परत िें प्रवेश िहीं करती हैं। कोई काबपनिक पदार्थप
इस परत िें िहीं पाया िाता है ।

R क्षिततज - यह अन्य सभी परतों के िीचे की


अपरदि रहहत चट्टाि (बेडरॉक) परत है ।

केमिका क्रिया

• ककसी संकीणप ट्यब


ू िे त्रबिा ककसी बाहरी बि के या गरु
ु त्वाकषपण बि के ककसी तरि का प्रवाह होिा केमशका किया
कहिाती है ।

134
• केमशका किया के पीछे का बि ,पष्ृ ठ तिाव है ।

सतही / पष्ृ ठ तनाि इसकी खनिि सािग्री िैसे ववमभन्ि िापदं डों का

• पष्ृ ठ-तिाव के कारण ही द्रव एक प्रकार की परीक्षण ककया िािा चाहहए।

प्रत्याथर्थता (एिाजथटक) का गुण प्रदमशपत करता है । • घुिे हुए उवपरक - मिट्टी िे घुिे हुए उवपरकों का

• कुछ कीट िि की सतह पर 'चि' पाते हैं। इसका प्रकार और िात्रा, इसकी िवणता को प्रभाववत

कारण पष्ृ ठ-तिाव ही है । िैसे पािी के कीडे। करती है । कुछ उवपरकों िें संभाववत हानिकारक
िवणों का उच्च थतर होता है , िैसे पोटे मशयि
• सतह तिाव ककसी वथतु को पािी पर तैरिे के
क्िोराइड या अिोनियि सल्फेट। उवपरकों के अनत
मिए आवश्यक उत्प्िावक बि प्रदाि करता है
उपयोग और दरु
ु पयोग से िवणता बढ़ती है , और
जिससे वथतए
ु ं पािी पर तैर पाती है िैसे पािी के
इससे बचा िािा चाहहए।
िहाि
• मसंचाई और मसंचाई प्रणािी के प्रकार – िब पािी
िद
ृ ा लिणीकरण
की िात्रा अश्रधक होती है , मिट्टी की िवणता
मिट्टी की िवणता मिट्टी िें िवण की िात्रा को
संदमभपत करती है और इसका पता, मिट्टी के घोि की
ववद्युत चािकता (ईसी) को िापिे से िगाया िा
सकता है ।

िवणीकरण के तहत, मिट्टी की ऊपरी परत िें िवण


की सांद्रता की वद्
ृ श्रध होती है और ज्यादातर िाििों िें
यह पािी की आपूनतप िें घुमित िवण के कारण होता
है ।

िद
ृ ा लिणता को प्रभावित करने िाले कारक

• मसंचाई योग्य िि की गण
ु वत्ता - मसंचाई के पािी
िें घुमित िवणों की कुि िात्रा और उिकी
संरचिा, मिट्टी की िवणता को प्रभाववत करती है ।
इसमिए, स्रोत िि की ववद्युत चािकता और

135
कि होती है । िब मिट्टी सूख िाती है , तो मिट्टी
के घोि िें िवण की सांद्रता बढ़ िाती है ।

लिणीकरण का प्रभाि • मसंचाई आववृ त्त िें वद्


ृ श्रध: अश्रधक मसंचाई से भमू ि

• िवणता प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से कई तरीकों िे अश्रधक ििी होगी जिससे भूमि पर िवण की

से पौधों के ववकास को प्रभाववत करती है : सांद्रता िे किी होगी।

• चूिे और जिप्सि के सार्थ मिट्टी का उपचार:


- पािी ग्रहण करिे की क्षिता िे किी
सोडडयि पदार्थप को कि करिे के मिए जिप्सि
- आयि-ववमशष्ट ववषाक्तता िैसे घि
ु िशीि कैजल्सयि का प्रयोग ककया िािा
- आवश्यक पोषक तत्वों की ग्रहण क्षिता पर चाहहए।
प्रभाव। • खेतों िें बाढ़ से िवण को दरू करिा: कभी-कभी
• मिट्टी की उवपरता कि हो िाती है सतह की िवणीय िद
ृ ा को धोिे के मिए
िवणयुक्त खेतो िे बाढ़ का उपयोग ककया िाता
• अनतररक्त िवणता िगह िगह पर खडी फसि,
है ।
असिाि, अवरुद्ध ववकास और खराब फसि का
कारण बिती है । भारत के प्रिुख िद
ृ ा सिूह
भारत िें उच्चावच ववशेषता, भू आकृनत, ििवायु क्षेत्र
• आवास और सडक नििापण िें कहठिाई उत्पन्ि
और विथपनत के ववमभन्ि प्रकार हैं। इिसे भारत िें
होती है ।
ववमभन्ि प्रकार की मिट्टी के ववकास िें िदद मििी
तनयंत्रण के उपाय है ।
• अत्यश्रधक पािी की ििनिकासी: िि निकासी • प्रायद्वीपीय भारत की मिट्टी, चट्टािों के
िद
ृ ा की िवणता को नियंत्रत्रत करिे की प्रार्थमिक थवथर्थािी अपरदि के होिे से बिती है । इस
ववश्रध है । प्रकार, उन्हें गनतहीि मिट्टी कहा िाता है ।
• िहरों पर सीिाएं: िहरों के ररसाव से भूिि थतर • भारत-गंगा-ब्रह्िपत्र
ु के िैदािों की मिट्टी िहदयों
बढ़ सकता है , जिसके पररणािथवरूप मिट्टी की और हवा के निक्षेपण कायप के कारण बिती है । ये
िवणता और ििभराव हो सकता है । िहरों आस बहुत गहरी होती हैं। इन्हें अक्सर गनतशीि मिट्टी
पास की भूमि िे िि का ररसाव िहरों के पास कहा िाता है ।
कंिीट, रबर, प्िाजथटक आहद की सीिा बिाकर
कि ककया िा सकता है ।
@Akash_Singhh

136
मिट्टी का िगीकरण 2. मिट्टी की बिावट, रं ग, भूमि ढिाि और ििी
1. प्राचीि काि िें , मिट्टी को दो प्रार्थमिक सिूहों िें सहहत उसकी अंतनिपहहत ववशेषताओं और बाहरी
श्रचजह्ित ककया िाता र्था: ववशेषताओं के आधार पर ,बिावट के आधार पर,

- उवपर (उपिाऊ) प्रार्थमिक मिट्टी प्रकारों की पहचाि रे तीिे, श्रचकिी,


गाद और दोिट आहद के रूप िें की गई र्थी।
- ऊसर (बंिर)
• रे तीिी मिट्टी: इसिें अपक्षय चट्टाि के छोटे कण
होते हैं। रे तीिी मिट्टी पौधों को उगािे के मिए

137
सबसे खराब प्रकार की मिट्टी िें से एक है क्योंकक 3. शुरुआत, रं ग, रचिा और थर्थाि के आधार पर,
इसिें बहुत कि पोषक तत्व होते है और पािी भारत की मिट्टी को निम्ि रूपों िें व्यवजथर्थत ककया
रोकिे की क्षिता भी कि होती है , जिससे पौधे की गया है :
िडों के मिए पािी को अवशोवषत करिा िजु श्कि - ििोढ़ मिट्टी
हो िाता है । इस प्रकार की मिट्टी िि निकासी - कािी मिट्टी
व्यवथर्था के मिए बहुत अच्छी है ।
- िाि और पीिी मिट्टी
• गाद मिट्टी: गाद िें रे तीिी मिट्टी की ति
ु िा िें
- िेटराइट मिट्टी
बहुत छोटे कण होते है । यह चट्टाि और अन्य
- िवणीय मिट्टी
खनिि कणों से बिी होती है िो रे त से छोटे और
श्रचकिी मिट्टी के कणो से बडे होते हैं। यह - वि मिट्टी

श्रचकिी और काफी अच्छी गुणवत्ता की मिट्टी है - शुष्क मिट्टी


जिसकी पािी को रोकिे की क्षिता रे तीिी मिट्टी - पीट मिट्टी
से कि होती है । गाद, िि धाराओं के द्वारा
आसािी से प्रवाहहत होती है, और यह िुख्य रूप जलोढ़ मिट्टी
से िदी, झीि और अन्य िि निकायों के पास • भारत-गंगा-ब्रह्िपत्र
ु िहदयों द्वारा ििा गाद के
मििती है । कारण ििोढ़ मिट्टी बिती है ।
• श्रचकिी मिट्टी: श्रचकिी मिट्टी का कण अन्य दो • ििोढ़ मिट्टी उत्तरी िैदािी इिाकों और पंिाब,
प्रकार की मिट्टी िे सबसे छोटा कण है । इस हररयाणा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदे श, त्रबहार और
मिट्टी िें कण एक दस
ू रे से श्रचपके होते है जििके पजश्चि बंगाि की िदी घाहटयों िें फैिी हैं ।
बीच बहुत कि या िा के बराबर हवा होती है । इस रािथर्थाि िें एक सँकरे िागप के िाध्यि से, यह
मिट्टी िें पािी के भंडारण के गुण बहुत अच्छे गुिरात के िैदािी इिाकों िें फैिी हुई हैं।
होते हैं और ििी और हवा के मिए इसिें प्रवेश प्रायद्वीपीय क्षेत्र िें , यह पव
ू ी तट के डेल्टा और
करिा िुजश्कि हो िाता है । गीिी होिे पर यह िदी घाहटयों िें पायी िाती हैं।
श्रचपश्रचपी हो िाती है , िेककि सूखिे पर श्रचकिी
• तटीय क्षेत्रों िें कुछ ििोढ़ ििाव िहर किया के
होती है । श्रचकिी मिट्टी सबसे घिी और भारी
कारण भी बिते हैं।
प्रकार की मिट्टी होती है ।
• यह भारत के कुि क्षेत्रफि के िगभग 40% को
• दोिट मिट्टी: दोिट मिट्टी का चौर्था प्रकार है ।
आच्छाहदत करिे वािा सबसे बडा िद
ृ ा सिूह हैं।
यह रे त, गाद और श्रचकिी मिट्टी का एक संयोिि
• सतिुि गंगा िैदाि → सबसे बडा फैिाव
है जिसिे प्रत्येक के िाभकारी गुण शामिि हैं।
उदाहरण के मिए, इसिें ििी और पोषक तत्वों को • यह िहािदी, गोदावरी, कृष्ण और कावेरी के डेल्टा

बिाए रखिे की क्षिता होती है ; इसमिए, यह खेती िें भी मििती हैं, िहां इसे तटीय ििोढ़ कहा

के मिए अश्रधक उपयक्


ु त है । इस मिट्टी को कृवष िाता है ।
िद
ृ ा के रूप िें भी िािा िाता है क्योंकक इसिें • गहरी उपिाऊ िदी मिट्टी → पररवहि/गनतशीि
तीिों प्रकार की मिट्टी के पदार्थों का संतुिि होता प्रकार
है , और इसिे ह्यूिस भी होता है । • िूि चट्टाि की ववशेषताएँ कि होती है ।
- रं ग के आधार पर, ये िाि, पीिी , कािी • पोटाश की िात्रा अश्रधक होती है िबकक िाइट्रोिि
आहद होती है । और ह्यूिस अपयापप्त होते है ।

138
• यह गेहूं, चावि, िक्का, गन्िा, दिहि, नतिहि, • इस मिट्टी का कािा रं ग टाइटै निक िैग्िेटाइट या
फि और सजजियां, फिीदार फसिों िैसी रबी और िोहे और पैतक
ृ चट्टाि िें कािे घटकों की
खरीफ दोिों फसिों के मिए अच्छी है । उपजथर्थनत के कारण होता है।
• डेल्टा क्षेत्रों िें , यह िूट की खेती के मिए आदशप • यह चि
ू े और िोहे , िैग्िेमशया और एल्यमू ििा से
मिट्टी होती हैं। सिद्
ृ ध होती है और इसिें पोटाश भी होता है ।
• सािान्य तौर पर, उप्र की कािी मिट्टी कि
• ििोढ़ मिट्टी को खादर और बांगर िें बांटा िा
उवपरता वािी होती है , िबकक घाहटयों की कािी
सकता है ।
मिट्टी काफी उपिाऊ होती है ।
• खादर: वह क्षेत्र िहाँ बाढ़ का पािी आता है और
• गीिी होिे पर यह मिट्टी श्रचपश्रचपी होिे के सार्थ
वो पािी िई मिट्टी बहाकर िाती है उसे खादर
फूि िाती है और सख
ू िे पर इसिें गहरी दरारें बि
ििोढ़ मिट्टी कहते हैं। यह उपिाऊ होती है ।
िाती हैं। जिससे इसिें वायु का संचार होता है
• बांगर भूमि के उस उच्च भाग को कहा िाता है
िो वातावरण से िाइट्रोिि के अवशोषण िें
िहां बाढ का पािी िही पहुंच पाता है । इसिे चि
ू ा
सहायक है । इस प्रकार इसिें थवता िुताई हो िाती
कंकड पाए िाते है । यह पुरािी ििोढ होिे के
है ।
कारण िवीि िािोढ की ति
ु िा िें कि उवपर होती
• वायु के इस प्रवाह एवं ऑक्सीकरण से इस िद
ृ ा
है ।
की उवपरता बिी रहती है । यह उवपरता ,कि वषाप
• कुछ क्षेत्रों िें , इस मिट्टी को हवा िनित वािे क्षेत्रों िें त्रबिा मसंचाई के कपास की फसि हे तु
अिुत्पादक मिट्टी द्वारा ढक हदया िाता है जिसे उपयुक्त है ।
िोएस कहा िाता है । • इसिें मिट्टी का रं ग गहरा कािा, िध्यि कािा,
काली िद
ृ ा िाि और कािे रं ग का मििण िैसा होता है ।
• कािी िद
ृ ाएं, कािी सतह वािी खनिि िद
ृ ाएं होती • यह मिट्टी का अवमशष्ट प्रकार है ।
हैं जिििें ऑगेनिक काबपि होता है । • इसिें फाथफोरस, िाइट्रोिि एवं ऑगेनिक पदार्थप
• एक सािान्य कािी मिट्टी अश्रधक क्िे वािी, 62 अपयापप्त िात्रा िें पाए िाते हैं।
प्रनतशत या अश्रधक [भवू वज्ञाि (चट्टािों या तिछट • यह िण्ृ िय एवं अपारगम्य होती है ।
की) मिट्टी से युक्त होती है । • शष्ु क ऋतु िें वाष्पोत्सिपि के कारण इसिें दरारे
• अश्रधकांश कािी मिट्टी की िूि सािग्री पड िाती हैं िो बीिों के पेनिट्रे शि के मिए
ज्वािािख
ु ी चट्टािें होती हैं िो दक्कि के पठार अिुकूि होती है ।
(डेक्कि और राििहि ट्रै प) िें निमिपत हुई र्थी। • ये मिट्टी अत्यश्रधक उत्पादक होती हैं और यह
• तमिििाडु िें िीस और मसष्ट इसकी िूि सािग्री कपास, दाि, बािरा, अिसी, तम्बाकू, गन्िा,
हैं। जिसिें िीस गहरी एवं मसष्ट उर्थिी होती हैं। सजजियों और खट्टे फिों की खेती के मिए
• यह उच्च तापिाि एवं कि वषाप वािे क्षेत्रों िें उपयुक्त हैं।
ववकमसत होती हैं। इसीमिए प्रायद्वीपीय क्षेत्र िें • क्षेत्र →िहाराष्ट्र, गुिरात, िध्य प्रदे श, आंध्र प्रदे श,
शुष्क िद
ृ ा पाई िाती है । तमिििाडु के कुछ हहथसे।
• इसे कािी कपास िद
ृ ा एवं रे गुर िद
ृ ा भी कहा • यह दे श के कुि भमू ि क्षेत्र का 15.6 % हैं।
िाता है ।

139
लाल िद
ृ ा • हाइड्रेटेड रूप िें यह पीिी हदखती है ।

• यह आग्िेय (किथटिीय) एवं िेटािॉकफप क चट्टािों • इस मिट्टी िें अश्रधक िीश्रचंग का खतरा बिा रहता

के अपक्षय द्वारा निमिपत होती हैं। है ।

• यह ििोढ़ और कािी मिट्टी की तुििा िें कि • यह वायव


ु ीय (airy)होती हैं जिििें कृवष कायप हे तु

उपिाऊ होती है । मसंचाई काफी िहत्वपूणप होती है ।

• इसकी िि धारण क्षिता कि होती है । • इििें िाइट्रोिि, चूिा, िैग्िेमशया, ह्यूिस और

• िब चूिा पत्र्थर, ग्रेिाइट, िीस और क्वाटपिाइट का फॉथफेट अपयापप्त िात्रा िें पाया िाता है ।

क्षरण होता है तो चट्टािों के भीतर की मिट्टी • यह िद


ृ ा पोटाश िें सिद्
ृ ध होती हैं और मसंचाई

गैर-घुििशीि सािग्री के अन्य रूपों िें बिी रहती तर्था उवपरकों द्वारा यह और भी उपिाऊ हो िाती

है । हैं।

• ऑक्सीकरण की जथर्थनत िें , मिट्टी िें िंग या िोहे • यह प्रकृनत िें पारगम्य, होती है ।

के ऑक्साइड का ववकास होता है , जिससे मिट्टी • क्षेत्र: दक्कि पठार का पररश्रध क्षेत्र अर्थापत

िाि रं ग की हो िाती है । छोटािागपुर पठार, तेिंगािा, िीिश्रगरी, किापटक,

• िोहे के ऑक्साइड के उच्च प्रनतशत के बिाय आंध्र प्रदे श; और िगभग परू ा तमिििाडु ।

अश्रधक डडफ्यि • यह बािरा, दाि, अिसी, तंबाकू आहद की खेती के


ू ि के कारण इसका ऐसा रं ग होता
है । मिए उपयक्
ु त है ।

अश्रधकांशतः यह िद • िाि मिट्टी अपिे छोटे सिह


ू ों के सार्थ भारत का
• ृ ाएं कि वषाप वािे क्षेत्रों िें पाई
िाती हैं। सबसे बडा मिट्टी सिूह है ।

लैटेराइट िद
ृ ा

• यह उच्च तापिाि एवं भारी वषाप वािे क्षेत्रों िें • िेटराइट िद


ृ ा उच्च वषाप (>200cm) एवं तीव्र
ववकमसत होती हैं िहां एक निजश्चत अंतराि के अपक्षय वािे क्षेत्रों िें पाई िाती हैं।
बाद िि एवं शष्ु क ऋतु होती है । यह अपक्षय के
अंनति उत्पाद के रूप िें ववकमसत होती हैं।

140
• िीश्रचंग के कारण यह िद
ृ ा अम्िीय होती है । कृवष • यह िुख्य रूप से उच्च भमू ि एवं पठारी क्षेत्रों िें
हे तु उपयुक्त बिािे के मिए इस िद
ृ ा िें उवपरक पाई िाती है िहां पयापप्त वषाप होती है ।
एवं कंपोथट की आवश्यकता होती है । • यह चाय, रबड, कॉफी और कािू िैसी वक्ष
ृ ारोपण
• यह मिट्टी ,अपघटि (decomposition) का फसिों को छोडकर खेती के मिए उपयोगी िहीं है
अंनति उत्पाद होती है और यह कि उपिाऊ होती • इसका उपयोग नििापण सािग्री के रूप िें और ईंट
हैं। बिािे िें ककया िाता है
• इस िद
ृ ा िें पाया िािे वािा ह्यि
ू स पदार्थप इसिें • इसिें चि
ू ा, िाइट्रोिि, िैग्िीमशयि और ह्यि
ू स
पाए िािे वािे िाइिोव द्वारा हटा हदया िाता है की किी होती है िबकक इसिें आयरि और
िो उच्च तापिाि िें अच्छी तरह से ववकमसत होते एिुमििा उश्रचत िात्रा िें पाया िाता है ।
हैं। • कभी-कभी, फॉथफेट की िात्रा िोहे के फॉथफेट की
• शुष्क होिे पर यह कठोर हो िाती हैं। तरह अश्रधक हो सकती है ।
• िेटेराइट मिट्टी िाि बािू और िाि बिरी की • िि थर्थािों िें इसिें ह्यि
ू स की िात्रा अश्रधक हो
अश्रधकता के कारण रं ग िें िाि होती है । सकती है ।
• बाररश के सार्थ, िाइि और मसमिका बह िाते हैं • क्षेत्र → िेघािय, किापटक, केरि, तमिििाडु,
और अघुििशीि िोहा और एल्यूिीनियि यौश्रगक असि के पहाडी क्षेत्र, राििहि पहाडडयाँ और
शेष बच िाते हैं। → Desilication छोटािागपुर पठार
• यह अववमशष्ट प्रकार की िद
ृ ा है िो उच्च वषाप • यह दे श की कुि भमू ि क्षेत्र के 3.2 % िें ववथतत

वािे क्षेत्रों िें िीश्रचग
ं के द्वारा निमिपत होती है । है ।

लिणीय / िारीय िद
ृ ा

• यह मिट्टी िि के निक्षािि वािे शुष्क या • तटीय क्षेत्रों िें ऊंचे ज्वार के सिय खारा पािी
अधप-शष्ु क क्षेत्रों िें मििती हैं। ििीि पर आ िािे के कारण इस मिट्टी का
• खराब िि निकासी और उच्च वाष्पीकरण एवं नििापण होता है । इसके अिावा, डेल्टा क्षेत्र िें पािी
शुष्क होिे के कारण यह अत्यश्रधक खारी होती है । का ििाव हो िािे से क्षारीय मिट्टी का नििापण
• यह मिट्टी उपिाऊ िहीं होती है और इसिें होता है ।
विथपनतयों का ववकास ठीक से िहीं होता है । • अश्रधक मसंचाई (िहर मसंचाई / भूिि उपयोग) और
• इन्हें उसर मिट्टी के िाि से भी िािा िाता है । उच्च िि थतर वािे (िहाराष्ट्र और तमिििाडु के
क्षारीय मिट्टी के मिए ववमभन्ि थर्थािों पर रे ह, तटीय क्षेत्रों िें ) क्षेत्रों िें भी िवणता वािी मिट्टी
कल्िर और चोपि, राकर, र्थुर, कािप आहद िाि से होती है । मसंचाई के िाध्यि से धीरे धीरे िवणता
िािा िाता है । िें वद्
ृ श्रध होती रहती है क्योंकक िब िि भमू ि पर
• यह त्रबहार, रािथर्थाि, यूपी, पंिाब, हररयाणा, आता है , चाहे वह वषाप का ही िि हो, तब पौधे
िहाराष्ट् िें मििती है । िि का अवशोषण कर िेते हैं िेककि इसिें
• शुष्क पररजथर्थनतयों िें अत्यश्रधक मसंचाई करिे से
केमशकात्व प्रकिया द्वारा भी मिट्टी की क्षारीयता
िें वद्
ृ श्रध होती है ।
• कच्छ के रण िें , दक्षक्षण-पजश्चि िािसूि के द्वारा
आिे वािे ििक के कण भमू ि की सतह पर
इकट्ठे हो िाते हैं ।

141
शामिि िवण िद
ृ ा पर ही शेष रह िाते हैं जिससे • इसका संगठि रे तीिे से दोिट तक होता है ।
धीरे -धीरे िवणता िें वद्
ृ श्रध होती रहती है । • केमशका किया द्वारा भूमि के अंदर पाए िािे वािे
• इसके सार्थ सार्थ शुष्क क्षेत्रों िें अत्यश्रधक मसंचाई िवण भूमि की सतह पर एकत्रत्रत हो िाते हैं।
के कारण केमशका किया द्वारा मिट्टी के िवण
उसकी ऊपरी सतह पर आकर एकत्रत्रत हो िाते हैं।

(see the picture below)

िुष्क मिट्टी (Arid Soil)

• शुष्क मिट्टी िें ऐओमियि रे त (90 से 95


प्रनतशत) और मिट्टी (5 से 10 प्रनतशत) होती है
• यह मिट्टी <50 सेिी वषाप वािे क्षेत्रों िें पाई िाती
है ।
• यह सैंडी (Sandy), पारगम्य, और िवण िें
सिद्
ृ ध होती है ।
• आितौर पर उच्च वाष्पीकरण के कारण यह खारी
हो िाती है ।
• सािान्यता इसिें िाइट्रोिि शुरू िें कि होती है
• आि तौर पर इसिें काबपनिक पदार्थों की किी
िेककि यह िाइट्रे ट्स के रूप िें उपिजध रहती है ।
होती है ।
• यह िोटे भूरे रं ग के आवरण के सार्थ कवर रहती
• कुछ शुष्क मिट्टी कैजल्शयि काबोिेट िैसे
है जिससे मिट्टी का ववकास अवरूद्ध होता है ।
घुििशीि िवणों के बदिते थतर के सार्थ क्षारीय
• यह सतही चट्टाि के यांत्रत्रक रूप से टूटिे एवं हवा
होती है ।
के निक्षेप द्वारा निमिपत होती है ।
• इसिें कैजल्शयि की िात्रा िीचे की तरफ बढ़ती है
• इसिें पौधे बहुत दरू -दरू पर होते हैं।
और सबसॉइि (subsoil) िें कई गुिा अश्रधक
• इसिें रासायनिक अपक्षय सीमित होता है ।
कैजल्शयि होता है ।
• इस मिट्टी िें िीचे की ओर बढ़िे पर कैजल्शयि
• इस मिट्टी िें फॉथफेट की िात्रा सािान्य ििोढ़
की िात्रा बढ़िे के कारण ’कंकर’ की परतें मििती
मिट्टी की ति
ु िा िें अश्रधक होती है ।

142
है । निचिी परत िें कंकर की सतह होिे के • यह उपिाऊ तो होती हैं िेककि िि की उपिजधता
कारण पािी का प्रवाह अवरुद्ध हो िाता है जिससे उवपरता को सीमित करिे वािा कारक है ।
मसंचाई के द्वारा पौधों के ववकास हे तु अश्रधक • इस िद
ृ ा िें उगाई िािे वािी प्रिुख फसिें ज्वार,
सिय तक ििी को बिाए रखा िा सकता है । बािरा, रागी और तेि के बीि हैं िो सख
ू ा
• निम्ि वषाप एवं उच्च तापिाि इस मिट्टी के प्रनतरोध फसिें हैं।
ववकास हे तु उपयक्
ु त दशाएं हैं। • दे श के कुि भूमि क्षेत्र के 3.9% हहथसे िें यह
• यह मिट्टी िख्
ु यता दक्षक्षण पजश्चिी हररयाणा एवं ववथतत
ृ है ।
पंिाब और पजश्चिी रािथर्थाि िें मििती हैं।

पिथतीय िद
ृ ा (Mountain Soils)

• ये पवपतों पर पाई िािे वािी िद


ृ ा होती है । और • िीचे घाहटयों िें पाई िािे वािी िद
ृ ा उपिाऊ होिे
यह पथ्
ृ वी पर पाई िािे वािी ककसी भी िद
ृ ा के के सार्थ-सार्थ काबपनिक पदार्थों िें सिद्
ृ ध होती है ।
प्रकार की हो सकती हैं। ऊंचाई बढ़िे के कारण • अश्रधक ऊंचाई एवं ढाि के कारण वषाप एवं अन्य
ििवायु दशाओं िें होिे वािे पररवतपि के कारण कारणों से िद
ृ ा का क्षरण होता है ।
इस िद
ृ ा िें भी पररवतपि दे खिे को मििता है । • इसिें पीट, meadow और पहाडी वि मिट्टी
• इस िद
ृ ा िें िद
ृ ा पररच्छे हदका पण
ू प रूप से शामिि होती है ।
ववकमसत िहीं होती है और यह घाहटयों एवं • यह ह्युिस िें सिद्
ृ ध होती है िेककि इसिें
हहिािय के ढािो पर मििती है । पोटाश, फाथफोरस एवं चूिे की किी होती है ।
• हहिािय के बफीिे क्षेत्रों िें , यह मिट्टी ह्युिस की • चाय, कॉफी, िसािे और उष्णकहटबंधीय फिों के
किी के सार्थ अम्िीय होती है । क्योंकक अश्रधक मिए यह उपयोग होती है ।
ऊंचाई पर विथपनतयों का अभाव होता है । इसके • क्षेत्र: िम्िू और कश्िीर, हहिाचि प्रदे श, उत्तरांचि,
अनतररक्त, ये मिट्टी भूथखिि और बफपबारी के असि, मसजक्कि, अरुणाचि प्रदे श।
कारण अपक्षनयत हो िाती है ।

पीट / कार्थतनक मिट्टी (Peaty / Organic Soil)

• ये दिदिी मिट्टी हैं और िि ििाव और • यह ओडडशा और तमिििाडु के तटीय इिाकों िें ,


अवायवीय जथर्थनतयों (िो काबपनिक पदार्थों के पजश्चि बंगाि के सुंदरबि , त्रबहार और उत्तराखंड
आंमशक ववघटि को बढ़ावा दे ती हैं) के द्वारा के अल्िोडा जििे िें भी मििती है ।
निमिपत होती हैं। • यह ह्यूिस एवं काबपनिक पदार्थों से सिद्
ृ ध होती
• ये उच्च वषाप + उच्च आद्रपता वािे क्षेत्रों िें पाई है ।
िाती है । • ये मिट्टी आितौर पर प्रकृनत िें अम्िीय होती हैं।
• यह केरि के कोट्टायि और अिाप्पझ
ु ा जििों िें िेककि कई थर्थािों पर, ये क्षारीय भी होती हैं।
पाई िाती है िहाँ इसे कारी कहा िाता है • ये आितौर पर बाररश के िौसि के दौराि
िििग्ि हो िाती है जिससे यह धाि की खेती के
@Akash_Singhh मिए उपयक्
ु त होती है ।

143
िद
ृ ा िरण (Soil Erosion)
िि और वायु द्वारा िद
ृ ा की उवपरक परत का अपरदि होिा िद
ृ ा क्षरण कहिाता है ।
• िद
ृ ा िरण के कारण • िद
ृ ा िरण के प्रभाि
• अश्रधक चराई • ऊपरी उपिाऊ भमू ि का अपरदि होिा
• विों की कटाई • भूमिगत िि थतर एवं िद
ृ ा की ििी िें किी
• हवा, पािी, ग्िेमशयर, आहद आिा
• थर्थिाकृनत अर्थापत तीव्र ढाि एवं उच्च वषपण • शष्ु क भमू ि का ववथतार एवं विथपनतयों का सख

• कृवष कायों की गित ववश्रधयां – अनत मसंचाई, झूि िािा
कृवष आहद। • बाढ़ एवं सूखा की आववृ त्त िें वद्
ृ श्रध
• अन्य िािव निमिपत कारक िैसे खिि, • िहदयों एवं कैिािों की मसजल्टं ग
औद्योश्रगक गनतववश्रधयां इत्याहद। • भूथखिि िें वद्
ृ श्रध

भारत िें िद
ृ ा िरण के िेत्र

Source: NCERT

िद
ृ ा िरण को रोकने के उपाय

टे रेस फामििंग (Terrace Farming)

• इसिें सीढ़ीदार खेत बिाकर मिट्टी के कटाव को


रोका िाता है ।
• इसिें कृवष कायप सीढ़ीदार खेतों एवं िि की
सहायता से ककया िाता है ।
• इसिें िि तीव्रता से निकािा िा सकता है ।

सिोच्च जुताई (Contour ploughing)

• भूमि की खडी िुताई (ploughed up & down)


से भमू ि का कटाव बढ़ता है।

144
• नतरछी िुताई होिे से िि के सार्थ मिट्टी बह आच्छाददत फसल / तनयमित आितथन फसल
िाती है । • अच्छाहदत फसिें िैसे फमियां(legumes), सफेद
• सिोच्चय से िद
ृ ा का कटाव रुकता है और इससे शििि, िूिी और अन्य प्रिानतयों को मिट्टी
धीरे -धीरे िि मिट्टी िें प्रवेश करता है । वषप-दौर को अच्छाहदत करिे के मिए िकदी फसिों
• इसके अतिरिक्ि यह तिलंबिि मिट्टी के कणों को के सार्थ उगाया िाता है । दलहि शलजि िूली
जैसी फसिों वािे खेतों िें चक्रण एक अहि
भूमिका तिभािा है ।
• िो हरी खाद के रूप िे िाइट्रोिि और अन्य
बुनियादी पोषक तत्वो को पूिा कििा है
• सार्थ ही खरपतवारों को गिािे और मिट्टी की
उवपरता बढ़ािे िें िदद करते हैं

जुताई रहित कृषि

हटा दे िी है ।

िनरोपण

• मिट्टी के कटाव को रोकिे के मिए खेतों के


ककिारे , बंिर भूमि पर पेड िगािा
• इसके अनतररक्त पािी को बिाए रखिे के मिए
मिट्टी की क्षिता िें वद्
ृ श्रध करिा ।

िेल्टर पट्टी

• खिाि िौसि से सुरक्षा के मिए एक क्षेत्र, ववशेष


• इसे "िीरो टटलेज"(zero tillage)डायिे क्ट
पेतिट्रे टटंग(direct penetrating) भी कहा जािा है
• िुताई के िाध्यि से मिट्टी को बदिें त्रबिा वषप-
दर-वषप फसिों या चारागाह उगािे की एक ववश्रध
• मिट्टी के कटाव के त्रबिा, मिट्टी िें यह पािी की
िात्रा को बढ़ाता है ।
• सार्थ ही मिट्टी िें काबपनिक पदार्थप प्रनतधारण और
परू क आहार का नििापण करता है
• हवा और पािी के संपकप िें आिे वािी ििीि की

रूप से फसिों के क्षेत्र को सुनिजश्चत करिे के मिए मिट्टी को बांध कर रखता है ,।

िगाए गए पेडों या झाडडयों की एक पंजक्त पट्टीदार खेती(Strip Cropping)


• हवा से होिे वाले कटाव को िोकिे के मिए ककसाि • हवाओं के प्रभाव को रोकिे के मिए भूमि के
कुछ पंजक्तबद्ध पेड िगाते हैं वैकजल्पक जथट्रप्स (पाट्टीदार खेत) िें फसिें उगाई
• इन्हें ववंडब्रेक्स के िाि से भी जािा जािा है । िाती हैं।

145
• इसका उपयोग तब ककया िाता है िब • मिट्टी के ऊपर फैिी हुई सािग्री की एक रक्षात्िक
एिीिक्िाइि िरूरत से ज्यादा खडी होती है या परत।
िब मिट्टी के कटाव को रोकिे की कोई वैकजल्पक • िल्च, या िो प्राकृनतक हो सकते हैं, िैसे घास
तकिीक िहीं होती है । कतरिों, भस
ू े, छाि , इत्याहद इसी तरह की
• परीरे खा पट्टीदार खेती (Contour strip सािग्री।
cropping) → फसिों के कटाव के सार्थ बारी-बारी • या अकाबपनिक, िैसे पत्र्थर, ईंट के टुकडे, और
से जथट्रप्स(पट्टी) िें फसिों को सनु िजश्चत करिे प्िाजथटक आहद।
वािी मिट्टी िें खेती। जथट्रप्स(पट्टी) ढिाि के
िीचे होिा चाहहए।

• पाटीदार क्षेत्र िें खेती → पौधों की खेती ढिािों के


सिािांतर जथट्रप्स(पट्टी) िें की िाती है

घास-पात से ढकना(Mulching)

• िल्च, (Mulches)ििी को बिाए रखिे और


मिट्टी की जथर्थनत िें सध
ु ार करिे के मिए मिट्टी
की सतह पर डािी गई सािग्री होती हैं।

146
CH-8 वनस्पतिय ां

भारत दनु िया के 12 ववशषल िैव-वववविता वाले दे शों में से एक है । लिभि 47000 पौिों की प्रिानतयों के
साथ, भारत ववचव में दसवें स्थाि पर और एशशया में िौथे स्थाि पर है । भारत में लिभि 15000 फूलों की
प्रजषतत के पौिे हैं, िो दनु िया के कुल फूलों के पौिों कष 6% हैं। दे श में कई िैर-फूल वषले पौिे भी हैं, िैसे
फ़िा, शैवाल और कवक। भारत में िािवरों की लिभि 90000 प्रिानतयाां हैं, साथ ही, इसके तािे और समुद्री
िल में ववलभन्ि प्रकषर की मछललयों की प्रजषततयषीं भी पषई जषती हैं| प्राकृनतक विस्पनत एक पषदप समुदाय
को सांदशभात करती है , िो प्राकृनतक रूप से मािव सहायता के बबिा ववकशसत होती है और जो लांबे समय
तक मिुष्यों द्वारा अ्षधित छोड दी गयी हो | इसे प्रषकृततक विस्पनत (virgin vegetation ) कहा िाता
है । इस प्रकार, कृवर् -फसलें, फल, बाि-बिीिे विस्पनत का हहस्सा तो हैं, लेककि ये प्राकृनतक विस्पनत िहीां
हैं । विस्पतत (flora) शब्द का उपयोि ककसी ववशेर् िेत्र या अवधि के पौिों को निरूवपत करिे के शलए
ककया िाता है । इसी प्रकार, िािवरों की प्रिानतयों को प्रषणी जषत वगा के रूप में िािा िाता है । पषदप और
प्रषणी वगों मे यह वववविता निम्ि कारकों के कारण है ।

वर् ा का वविरण काल भी होते हैं। वर्ाा की मात्रा के आिार पर, हम भारत
को पााँि प्रमख
ु वर्ाा िेत्रों में ववभाश्ित कर सकते हैं।
भारत में वर्ाा मौसमी, अनिश्चित और असमाि रूप से
ववतररत होती है । अधिकाांश वर्षा दक्षिण-पश्चिम मािसूि 1. अतत तिमि वर्षा वषले िेत्र (प्रनत वर्ा 40 सेमी से
अवधि के दौराि होती है । वर्ाा बहुत अधिक या बहुत कम)- काराकोरम पवातमाला, उत्तरी कचमीर और
कच्छ और रािस्थाि (थार रे धिस्ताि) के पश्चिमी
भषग अतत तिमि वर्षा वषले िेत्रों के अींतगात आते हैं

2. तिमि वर्ाा वषले िेत्र (प्रनत वर्ा 40 सेंटीमीटर से
60 सेंटीमीटर)- इसके अींतगात जषस्कर श्रेणी, पांिाब
और हररयाणा, मध्य रािस्थाि, पश्चिमी िि
ु रात के
कुछ हहस्सों और पश्चिमी घाट के वश्ृ टि छषयष क्षेत्र
सश्ममललत हैं ।
3. मध्यम वर्ाा वषले क्षेत्र (60 सेंटीमीटर से 100
सेंटीमीटर प्रनत वर्ा)- इसके अींतगात तिमि वर्ाा और
उच्ि वर्ाा वाले िेत्रों को छोड़कर भारत कष एक ्डष
भषग सश्ममललत है |

कम हो सकती है । बीि-बीि में लम्ीीं अवधि के शुष्क

147
4. उच्ि वर्ाा वषले िेत्र (100 सेंटीमीटर से 200
सेंटीमीटर प्रनत वर्ा)- इसके अींतगात िार लभन्ि-लभन्ि
िेत्र सश्ममललत हैं, श्िसमें पश्चिमी तट कष एक
सांकीणा क्षेत्र, पूवी तटीय क्षेत्र, हहमालय की तलहटी
और उत्तर-पव
ू ी भारत का एक भषग शाशमल है ।
5. अतत उच्ि वर्ाा वषले िेत्र (प्रनत वर्ा 200 से अधिक
सेमी)- इसके अींतगात पश्चिमी घाट के पश्चिमी
ककिषरे , हहमालय की तलहटी, मेघालय पठार
(शशलाांि पठार) और अांडमाि और निकोबार द्वीप
समूह सश्ममललत हैं। मेघालय पठार में माशसिराम
में 1141 सेंटीमीटर वर्षा दजा की गई है , िो भारत
/ ववचव में सबसे अधिक वर्ाा ( वषवर्ाक) प्राप्त
करता है ।
● 'शभन्िता िण
ु ाांक' के माि वर्ाा के 'माध्य मािों 'के
वर्ाा की परिवर्ानशीलर् ( rainfall variability) साथ पररवताि दशषाते हैं। कुछ स्थािों पर वास्तववक

भारत में वर्ाा की एक ववशेर्ता ,इसकी पररवतािशीलता वर्ाा 20-50% तक पररवतािशील होती है ।

है । निम्िशलखखत सत्र
ू की सहायता से वर्ाा की ● पश्चिमी तटों, पश्चिमी घाट, उत्तरपूवी प्रायद्वीप,

पररवतािशीलता की िणिा की िाती है : िांिा के पूवी मैदाि, उत्तरपव


ू ी भारत, उत्तराखांड और
हहमािल प्रदे श और िम्मू-कचमीर के दक्षिणी-
पश्चिमी भाि पर 25% से कम की पररवतािशीलता

148
होती है । इि िेत्रों में 100 सेमी से अधिक की वर् ा की र्ीव्रर्
वावर्ाक वर्ाा होती है । • तिमि वर्ाा वाले िेत्रों की तुलिा में उच्ि वर्ाा
● 50% से अधिक की पररवतािशीलता रािस्थाि के वाले िेत्रों में अधिक सघि विस्पनत पषई जषती है ।
पश्चिमी भाि, िम्मू और कचमीर के उत्तरी भाि
और दक्कि के पठार के आांतररक भािों में होती
है । इि िेत्रों में 50 सेमी से कम की वावर्ाक वर्ाा
होती है ।
● शेर् भारत की पररवतािशीलता 25-50% है और इि
िेत्रों में 50 -100 सेमी के मध्य वावर्ाक वर्ाा होती
है ।

िापमान और आर्द्ा िा उच्ि तापमाि और कम आद्रा ता वाला िेत्र काांटेदार


झाडड़यों (रे धिस्ताि) के अिक
ु ू ल होते है ।
● तषपमषि और आर्द्ा तष प्रमख
ु कषरक हैं जो विस्पतत
के प्रकृतत और ववस्तषर को तििषाररत करते हैं। एक िेत्र की विस्पनत प्रकार पर, तापमाि और वावर्ाक
● उदाहरण के शलए, उच्ि तापमाि और उच्ि आद्रा ता वर्ाा के सांयुक्त प्रभाव को समझिे के शलए निम्िशलखखत
वाले िेत्र सदाबहार वि के अिुकूल होते है , िबकक रे खष धित्र को दे खें:

@Akash_Singhh

149
सूया की रोशनी श्िससे इस िेत्र में वर्ाा अधिक होती है लेककि पवात

● अिाांश, ऊांिाई, मौसम और हदि की अवधि में अांतर


के कारण ववलभन्ि स्थषिों पर सूया की रोशिी यष
ददि की अवधि में लभन्ितष पषई जषती है ।
● सूया के प्रकाश की लांबी अवधि के कारण, िशमायों में
वक्ष
ृ तेिी से बढ़ते हैं।

र्ांगर् (altitude )

● अिाांश, या भूमध्य रे खा से दरू ी, एक िेत्र की


िलवायु और मौसम को अधिक प्रभाववत करता है ।
यहद आप भूमध्य रे खा के िजदीक जषते हैं, तो के ववपरीत ककिषरे में हवष में िमी की अिुपश्स्थतत

िलवायु िमा होगी , िबकक भम


ू ध्य रे खा से उत्तर के कषरण वर्ाा कम होती है । स्पष्टीकरण के शलए

या दक्षिण की ओर बढ़िे पर ठीं डी िलवायु होगी| िीिे दी िई छवव दे खें।

ककसी स्थषि कक तुींगतष और समुद्र सतह से ऊींिषई


कष प्रभषव उस स्थषि की जलवषयु पर एकसमाि ● इस प्रकार तींग
ु तष (altitude), तापमाि और वर्ाा
होतष है – श्जतिी ऊींिषई में पररवतािशीलतष होगी दोिों को प्रभाववत करती है जो अींततः बायोम की

उतिी ठां डी िलवायह


ु ोगी। सींरििा को तििषाररत करे िी।

● विस्पनत आांशशक रूप से ऊांिाई द्वषरष नििााररत होती


है । ज्कक अधिकषींशतः विस्पनत तापमाि और वर्ाा
द्वारा नििााररत होती है और तुींगतष(ऊींिषई ) कष
तषपमषि और वर्षा की तीव्रतष दोिों पर प्रभषव पडतष
है ।
● िैस-े िैसे ऊांिाई बढ़ती है , तापमाि कम होता िाता
है । यह हमारे बायोम की सांरििा और सींघिक को
बदल दे ती है । उदाहरण के शलए, िीिे दी गयी धित्र
में , हम दे ख सकते हैं कक जैसे-जैसे ऊींिषई में वद्
ृ धि
हो रही है वैसे वैसे विस्पतत में भी लभन्ितष ददखषई ● अलेक्िेंडर वॉि हम्बोल्ट पहले भग
ू ोलवेत्तष थे,
दे रही है और जो अांततः िीरे -िीरे ववलुप्त हो रही श्िन्होंिे विस्पनत और तग
ींु तष के बीि सांबांि को
है । मान्यता दी थी।

● वर्ाा की तीव्रतष और ऊाँिाई में िहटल सीं्ींि है । उच्ि


ऊांिाई वषले क्षेत्रों में प्रषयः वर्षा के स्थषि पर
्र्ा्षरी होती हैं क्योंकक वहषीं तषपमषि कम होता है ।
पवात के एक ककिषरे पर िमी उपश्स्थत होती है ,

150
बायोम:- प्रषकृततक रूप से पषए जषिे वषले विस्पनतयों ● उदाहरण के शलए, पवातीय िेत्रों में विस्पनत का
और िीवों के समुदषय का एक प्रमख
ु निवास स्थाि है , प्रकार पठारी और मैदािी िेत्रों की तल
ु िा में शभन्ि
िैसे कक वि। होता है ।
● उपिाऊ भूशम का उपयोि आम तौर पर कृवर् के
शलए ककया िाता है , िबकक असमतल और उबड़-
खाबड क्षेत्र में घास के मैदाि और वि - िेत्र हैं
िो ववशभन्ि प्रकार के वन्यिीवों को आश्रय प्रदषि
करते हैं।

ममट्टी

● ववशभन्ि प्रकार की शमट्टी ववशभन्ि प्रकार की


विस्पनत में मदद करती है ।
● रे धिस्ताि की रे तीली शमट्टी कैक्टस और कांटीली
झाडड़यों के अिुकूल करती है िबकक िीली, दलदली,
डेल्टाई शमट्टी मैंग्रोव और डेल्टा विस्पनत का
समथाि करती है ।
भमू म ● शमट्टी की िहराई वाले पहाड़ी ढलािों में शांकुिारी
पेड़ हैं।
● विस्पनत प्रत्यि और अप्रत्यि रूप से भलू म की
प्रकृतत से प्रभाववत होती है ।

151
भारि में वनस्पति के प्रकार

नम उष्णकटटबंधीय वन उपोष्ण कटिबांधीय पवार्ीय वन

• उटणकदि्ींिीय िम सदष्हषर • उपोटण कदि्ींिीय िौडी पत्ती वषले पवातीय वि


• उटणकदि्ींिीय अिा सदष्हषर • उपोष्णकहटबांिीय िम पवातीय वि (दे वदार)
• उष्णकहटबांिीय िम पणापषती • उपोष्णकहटबांिीय शष्ु क सदष्हषर पवातीय वि
• तिीय और दलदली
पवार्ीय समशीिोष्ण वन
शष्ु क उष्णकटटबंधीय वन
• पवातीय िम समशीतोटण वि
• उटणकदि्ींिीय शटु क सदष्हषर • हहमालयि िम समशीतोटण वि
• उष्णकहटबांिीय शुष्क पणापाती • हहमालयि शुटक समशीतोटण वि
• उष्णकहटबांिीय कषींिेदषर
अल्पाइन वन

152
नम उष्णकटटबंधीय वन ● इि विों के वक्ष
ृ तेि िमी और अधिक आद्रा ता के
कारण अपिे पत्ते एक साथ िहीां धगरषते ।
उटणकदि्ींिीय िम सदष्हषर वि या वर्षा वि ● इस जलवषयु के पौिे समोद्भदीय (Mesophitic)
होते हैं जो ि तो शुष्क और ि ही िम प्रकार
की िलवायु की अिुकूलतष ग्रहण करते हैं।
● ऊींिषई: पेड़ों की ऊाँिाई प्रायः 45-60 मीटर तक
होती है ।
● उष्णकहटबांिीय वर्ाा वि ऊपर से छतरी (canopy)
की तरह हदखाई दे ते हैं | इसमें केवल तभी अींतरषल

होतष है िब इससे यष तो ्डी िददयषीं गज


ु रती हैं
या कर्र कृवर् के ललए इसकी सर्षई की जषती है ।
o मोिी छतरी (canopy) के कारण सूया की
रोशिी प्रषयः भलू म तक िहीीं पहुांिती ,
श्जसके पररणषम स्वरूप छोिे पौिों की कम
वविरण
वद्
ृ धि होती है । यह मुख्य रूप से बाांस, फिा,
लतषएँ, ऑककाड, आहद से बिा है ।
● पश्चिमी घाट का पश्चिमी भाि (समद्र
ु तल से 500
सभी पौिे सूया की रोशिी के शलए ऊपर की ओर
से 1370 मीटर की ऊींिषई पर)।

● पूवाांिल पहाडड़यों के कुछ िेत्र। (अधिकाांश एवपफाइट्स) ्ढ़िे कष प्रयषस करते हैं,
श्िसके पररणामस्वरूप एक ववशेर् परत की व्यवस्था
● अांडमाि और निकोबार द्वीप समह
ू में ।
होती है । ऊपर से दे खिे पर पूरी आकृनत
वािाविणीय पररस्स्ितियााँ (morphology) एक हरे रां ि की कालीि जैसी ददखती
है ।
● छोटे शष्ु क मौसम के साथ 250 सेमी से अधिक
की वषवर्ाक वर्षा होती है । लकडी (timber )
● वावर्ाक तापमाि 25 ° -27 ° C के मध्य होतष है ।
इि विों की लकड़ी हटकाऊ और कठोर (hardwood)
औसत वावर्ाक आद्रा ता 77% से अधिक होती है ।


होती हैं ।
ववशेर्िाएाँ

153
● इिकष उच्ि वाखणश्ययक मूल्य होतष है , , लेककि ● वक्ष
ृ ों के सषथ अत्यधिक मषत्रष में अधिपषदपों के
उच्ि घित्व और पररवहि सुवविाओां के अभषव के साथ आश्रय दे ते तिें होते हैं।
कषरण इिकष दोहि करिा दटु कर है ।
● इि विों की महत्वपूणा प्रिानतयााँ-महोििी, मेसुआ,
सफेद दे वदार, िामुि, बेंत, बााँस आहद हैं।

उष्णकटटबंधीय अधा सद बह ि वन

● ये उष्णकहटबांिीय आद्रा सदाबहार विों और


उष्णकहटबांिीय पणापाती विों के मध्य श्स्थत
मषध्यलमक ( transitional forest) वि हैं।
● वे उष्णकहटबांिीय आद्रा सदाबहार विों की तुलिा में
शुटकतष वाले िेत्र हैं।
● महत्वपूणा प्रिानतयाां हैं: -
जलव य - पररस्स्ितियााँ o पश्चिमी घाट में रोज़वुड, मेसुआ, लॉरे ल, काांटेदार
बाांस
● वावर्ाक वर्ाा 200-250 सेमी के मध्य होती है । o हहमालयी िेत्र में सफेद दे वदार, आम, भारतीय
● औसत वावर्ाक तापमाि 24 डडग्री सेश्ससयस से 27 िेस्ििि, िम्पा, आहद।
डडग्री सेश्ल्सयस के बीि होता है ।
● सापेि आद्रा ता लिभि 75% होती है । लकडी
● शुष्क मौसम उष्णकहटबांिीय सदाबहार विों की
● इसकी लकड़ी भी उष्णकहटबांिीय सदाबहार विों
तुलिा में अधिक है ।
की तरह कठोर होती है , शसवाय इसके कक ये वि
वविरण ऊँिे होिे के सषथ-सषथ कम घिे होते हैं (यहााँ लकड़ी
उद्योि सदाबहार विों की तुलिा में बेहतर है )।
● पश्चिमी ति
● असम उष्णकटिबांधीय आर्द्ा पणाप र्ी वन वविरण
● पूवी हहमालय की तििले ढलषि वषले क्षेत्र
● ये सदाबहार विों से तघरे पश्चिमी घाट के साथ -
● ओडडशा और अांडमाि।
सषथ पषए जषते हैं।
ववशेर्िाएाँ ● तराई और भाबर िेत्र सहहत शशवाशलक श्रेणी की एक
पट्टी।
● अद्ाि सदाबहार वि कम सघि होते हैं और आर्द्ा
सदाबहार विों की तुलिा में अधिक घिे (झुांड या
कॉलोनियों में ) होते हैं।
● इि िांिलों में कई प्रिानतयाां पषई जषती हैं।

154
● मखणपुर और शमिोरम के िेत्र।
● पूवी मध्य प्रदे श और छत्तीसिढ़ की पहाडड़यााँ, छोटा
िािपरु का पठार, ओडडशा का अधिकाांश भाि,
पश्चिम बांिाल के कुछ हहस्से और अांडमाि और
निकोबार द्वीप समूह।

जलव य पररस्स्ितियााँ

● वावर्ाक वर्ाा 100 से 200 सेमी के मध्य होती है । ● मैंग्रोव वनस्पति िांिा, महािदी, िोदावरी और कृष्णा
● औसत वावर्ाक तापमाि लिभि 27 ° C होतष है । िहदयों के यवारीय डेल्टओां में पषई जषती है ।
● औसत वावर्ाक सापेि आद्राता 60-75% के मध्य ● इि िेत्रों में 200 सेमी से अधिक की वर्ाा होती है ।
होती है । ● महत्वपूणा वि
ृ प्रिानतयाां सद
ुां री, आिर, भें डी, कीरा,
● वसांत (िशमायों और सहदा यों के बीि का मौसम) और निपा हैं।
िमी शुष्क होती है । ● इि िांिलों में कछुए, मिरमच्छ, घडड़याल और साांप
भी पाए िाते हैं। रॉयल बांिाल टाइिर इि िांिलों
ववशेर्िाएाँ
कष प्रशसद्ि िािवर है ।

● वातावरण में अपयााप्त िमी के कारण वसांत और


िशमायों प्रषरीं भ में वक्ष
ृ अपिे पत्ते धिरा दे ते हैं।
o ग्रीष्मकाल (अप्रैल-मई) में लगभग अिषवत
ृ हो
जषते हैं।
● उष्णकहटबांिीय िम पणापाती वि, अनियशमत
ऊींिषई (25 से 60 मीटर), भारी तिें वाले वक्ष
ृ ों ,
और अववकलसत अधिपषदप के सषथ मौजूद होते हैं।
● ये वि सदाबहार विों की तुलिा में बहुत बड़े िेत्र
को आच्छषददत करते हैं लेककि इि विों के अांतिात
आिे वाले प्रमख
ु क्षेत्र को कृवर् के शलए कषींि हदया
िया है ।

लकडी मख्य ववशेर्िाएं:


o पेड़ मख्
ु य रूप से सदाबहार होते हैं।
● इि विों में पाई िािे वषले वक्ष
ृ ों की मुख्य प्रिानतयााँ o प्रषयः वे कम यवार के दौराि ददखषई दे िे वषली
सािौि (मूल्यवाि इमारती लकड़ी), साल, लॉरे ल, जषलीिुमष जडों( web of arcing roots) से
शीशम, आांवला, िामुि, बाांस, आहद हैं। युक्त होते हैं।
● कम सघि होिे के कारण, इि विों का दोहि o मैिग्रोव विस्पनत दो श्स्थनतयों के शलए
करिा तुलिात्मक रूप से आसाि है । अिक
ु ू ललत है -
▪ उच्ि िल लवणता
र्िीय और दलदली वनस्पति (मैंग्रोव वनस्पति /
▪ नियशमत अांतराल पर बाढ़
ज्वारीय वन)

155
o इि अिुकूलिों में प्रमख
ु हैं, अवस्तींभ मूल( prop o अवस्तमभ जडें एक भूशमित जड प्रणषली से
roots,) और चवसि मूल(pneumatophores ) उपिी वषयुयुक्त िड़ें हैं, िो पौिों को जलमग्ि
आहद की उपश्स्थनत। क्षेत्रों में भी वषयु ग्रहण करिे में सक्षम बिाती
▪ अवस्तींभ मूल मैिग्रोव वक्ष
ृ ों के तिे और हैं। इिमें नछद्र होते हैं िो वक्ष
ृ ों को स्वसि
करिे में सहषयतष प्रदषि करती हैं िब अन्य िड़ें
उच्ि यवार के दौराि जल में डूब िाती हैं।
o मैंग्रोव झाडड़यााँ " हररत कवि" के रूप में कषया
करती हैं िो समद्र
ु ी कटाव., िक्रवातों और
सुिामी के सांभाववत वविाशकारी प्रभावों के
ववरुद्ि समुद्र तट को सुरक्षक्षत करती हैं।

ववशेर्र् एां
o पेड मख्
ु य रूप से सदष्हषर होते हैं।
शषखषओीं की उदवद्
ृ धि कष पररणषम है । o आम तौर पर तिमि ज्वषर(tides) के दौरषि
िैसे ही अवस्तींभ िड़ें िमीि पर पहुांिती हैं,
लमट्िी से ्षहर तिकल आिे वषली जडों के ललए
इि जडों कष अग्रभषग एक भूशमित जड
जषले िुमष सींरििष ववकशसत करते हैं।
तींत्र कष ववकषस करती है , िो अवस्तमभ
o इस विस्पनत के शलए दो श्स्थनतयाां अिुकूल हैं:
जड को भूलम से िोड़ती है और कफर आिे
o उच्ि जल लवणतष(High water salinity)
इसी प्रकषर की जडों कष ववकषस करती है ।
▪ तियलमत अींतरषल पर ्षढ़(Flooded at
regular intervals)
o सह ि दे ने व ली जडें- पोर्क तत्वों के ललए
प्रनतस्पिाा लिभि उतिी ही तीव्र होती है श्ितिी
कक प्रकाश के ललए प्रनतस्पिाा। अत्यधिक वर्ाा
शमट्टी में पोर्क तत्वों कष शीघ्र ही ववलय कर
दे ती है , श्िससे यह ऊपरी परतों को छोड़कर
अपेिाकृत अिुपजषऊ हो िाती है । इस कारण
से, वर्ाावि वक्ष
ृ ों की िड़ें एक व्यापक िेत्र को
आच्छषददत करिे के शलए िीिे की ओर ्ढ़िे
के स्थषि पर बाहर की ओर अग्रसररत होती हैं
। इससे वर्ाावि के वक्ष
ृ कुछ हद तक अश्स्थर
हो िाते हैं, क्योंकक उिके िजदीक की भूलम उन्हें o इि अिुकूल श्स्थततयों में प्रमुख विस्पतत हैं -
अधिक सहषरष िहीीं दे पषती। कुछ वक्ष
ृ प्राकृनतक अवस्तींभ मूल, ्ट्रे स(उठीं गषिष), न्यूमेिोर्ोरस
तिो को बढ़ाकर इसकी भरपाई करते हैं। ये आदद की उपश्स्थनत।
आश्रय दे िे वषली जडें मूल रूप से वक्ष
ृ के तिे ▪ अवस्तींभ मूल (श्जसे प्रोप रूि भी कहष जषतष
होते हैं िो वक्ष
ृ से तिकलकर भूलम के िीिे तक है ) शषखषओीं यष मैन्ग्रोव वक्ष
ृ में पहले से
र्ैल जषती हैं , श्िससे वक्ष
ृ को अनतररक्त सहारा मौजूद जडों से ववकलसत होती है । जैसे ही
शमलता है । ये जडें जमीि तक पहुींिती हैं, इि जडों की

156
िोक एक भूलमगत जड ववकलसत करती है ● लगभग 100 सेमी की वषवर्ाक वर्षा
जो जमीि के अींदर आगे ्ढ़ती है । o ज्यषदषतर अक्िू्र-ददसीं्र में उत्तर-पूवा
मषिसि
ू ी हवषओीं से।
o ्ट्रे स रूट्स - इि जडों में पोर्क तत्वों की ● औसत वषवर्ाक तषपमषि लगभग 28 ° C है ।
प्रततस्पिषा, उतिी ही अधिक होती है श्ितिी ● औसत आर्द्ा तष लगभग 75% है ।
प्रकाश के शलए प्रनतस्पिाा होती है । अत्यधिक
वर्षा , लमट्िी के पोर्क तत्वों को कम कर दे ती ववशेर्र् एँ
है , श्जससे यह शीर्ा परतों को छोडकर अपेक्षषकृत
शुटक हो जषती है । इस कषरण से, वर्षाविो के ● 12 मीटर के ऊींिे तथष छोटे कद के शींकुदषर पेड़।

पेड की जडें एक व्यषपक क्षेत्र में ववस्तषररत होिे ● 10 से 15 मीटर ऊांिाई के शमधश्रत छोटे सदाबहार

के ललए तििले स्तर तक ्ढ़ती हैं, । यह और पणापाती पेड़ों का सघि ववतरण।

वर्षावि के पेडों को कुछ अश्स्थर ्िषतष है , ● ्षींस और घषस ववलशटि रूप से अिुपश्स्थत िहीीं हैं।

क्योंकक उिके पषस जमीि में ्हुत मज्त


ू पकड ● इसमें महत्वपूणा प्रजषततयषीं िीम, जषमुि, इमली आदद

िहीीं होती है । हैं।


● इि विों के अींतगात आिे वषली अधिकषींश भूलम कृवर्
o श्वसन- सूल(Pneumatophores) यह भूशमित यष कैसुरीिष वक्ष
ृ षरोपण (casuarina plantations)
िड़ प्रणाली से उपिी ववशेर् िड़ें हैं, िो पौिों के ललए सषर् कर दी गई है।
को िलभराव शमट्टी के आवासों में हवा का
उपयोि करिे में सिम बिाते हैं। इिमें नछद्र उष्णकटिबांधीय शष्क पणाप र्ी वन

होते हैं िो पेड़ों को चवसि करिे में सिम


बिाते हैं िब अन्य िड़ें उच्ि ज्वषर (tides) के
दौराि पािी के िीिे डूब िाती हैं ।
o मैंग्रोव झषडडयषँ "हरी ढषल" के रूप में कषम करती
हैं जो िक्रवषतों और सि
ु षमी के सींभषववत
वविषशकषरी प्रभषवों से समर्द्
ु ति के किषव को
रोकती हैं।

शुष्क उष्णकटटबंधीय वन
उष्णकटटबंधीय शुष्क सदाबहार वन
ववर्िण

● तलमलिषडु के तिों के सषथ।


● ये वि अपेक्षषकृत उच्ि तषपमषि और केवल
ग्रीटमकषल के दौरषि वर्षा प्रषप्त करिे वषले क्षेत्रों में
पषए जषते हैं ।

जलव य की स्थितर्

157
ववथर्र्

वे रषजस्थषि, पश्चिमी घषि और पश्चिम ्ींगषल को


छोडकर दहमषलय की तलहिी से कन्यषकुमषरी तक िलिे
वषली एक अतियलमत िौडी पट्िी(wide strip) में पषए
जषते हैं।

जलव य की स्थितर्

● वषवर्ाक वर्षा 100-150 सेमी होती है ।


● ये जींगल 25-32 डडग्री सेश्ससयस तषपमषि वषले क्षेत्रों
में पषए जषते हैं और यहषीं लगभग छह महीिे के
शुटक मौसम के सषथ-सषथ 75-125 सेमी की वषवर्ाक ● ये वि पश्चिमी रषजस्थषि, मध्य प्रदे श, दक्षक्षण-

वर्षा होती है । पश्चिमी पींजष्, पश्चिमी हररयषणष, कच्छ और


सौरषटट्र के पडोसी दहस्सों में ववस्तत
ृ हैं।
ववशेर्र् एां o यहषीं वे थषर रे धगस्तषि में अपकृटि हो जषते
हैं ।
● ये वि शुटक मौसम में िम पणापषती जींगलों की ● इस तरह के जींगल किषािक, तेलींगषिष, आींध्र प्रदे श,
तरह अपिी पवत्तयषीं धगरषते हैं। महषरषटट्र और तलमलिषडु के ्डे क्षेत्रों तथष पश्चिमी
o बड़ा अांतर यह है कक वे अपेिाकृत कम वर्ाा घषि के ककिषरे पर भी पषए जषते हैं।
वाले िेत्रों में बढ़ (grow)सकते हैं ।
● वे िमी युक्त क्षेत्र पर िम पणापषती वषले और सख
ू े जलव य की स्थितर्
ककिषरो पर कषींिेदषर वि होते हैं।
विों की प्रमख ये जींगल 27-30 डडग्री सेश्ससयस के उच्ि तषपमषि
ु ववशेर्तष छोिे (10-15 मीिर ऊींिे)
● ●

पेडों की खल और लीं्ी अवधि के सूखष(आर्द्ा तष 50% से कम है )


ु ी छत्रछषयष और झषडडयों की ्हुतषयत
है । के सषथ 20-60 सेमी की ्हुत कम वषवर्ाक वर्षा

● इि विों में 20 मीिर की ऊींिषई तक उगिे वषले वषले क्षेत्रों में पषए जषते हैं।

कुछ पणापषती पेडों की प्रजषततयषँ भी लमलती है ।


ववशेर्र् एां
● प्रकाश ककरणों, कष जमीि पर पयषाप्त ढीं ग से पहुांििा
● महत्वपणू ा प्रजषततयषँ िीक, सषल, लॉरे ल, पलषस, खैर, ● छोिे (8-10 ऊींिे) ब्खरी हुई कषींिेदषर झषडडयषीं होती
तें द,ू अमलतषस, ्ेल, एक्सलवुड आदद हैं। हैं जो पेडों की तुलिष में अधिक सषमषन्य रूप से
● कृवर् कषयों के ललए इस जींगल के ्डे मषगों को सषर् पषयी जषती हैं।
कर ददयष गयष है । ● इि जींगलों में पौिे केवल सींक्षक्षप्त ्रसषत के मौसम
● इि जींगलों को अततवश्ृ टि,(overgrazing) आग आदद में पवत्तयों कष ववकषस करते हैं ज् घषस और जडी
कष सषमिष करिष पडष है । ्ूिी भी प्रिुर मषत्रष में हो जषती हैं ,जो वर्ा के
अधिकषींश ददिों तक पत्तेदषर रहती हैं ।
उष्णकटिबांधीय किीय वन
● ््ूल और यूर्ोरब्यष (Acacias and
ववथर्र्

Euphorbias)्हुत प्रमख
ु हैं।

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● सषमषन्य रूप से यहाां िांिली खिूर पाया िाता है ● उत्तर के जींगलों में प्रमख
ु पेड क्वेरकस, लशमष और
तथष ्रसषत के मौसम में कुछ घषस के पौिे भी कषस्िषिोश्प्सस कुछ समशीतोटण प्रजषततयों के सषथ
उगते है । पषए जषते हैं।

मोंटाने उप-उष्णकटटबंधीय(MONTANE SUB- उपोटणकदि्ींिीय िीड के जींगल(SUBTROPICAL


TROPICAL) MOIST PINE FORESTS)
(उप उष्णकटिबांधीय ब्रॉड-लीव टहल वन) ववस्तत

SUB-TROPICAL BROAD-LEAVED HILL
FORESTS • ये जींगल दहमषलय में 1500-2000 मीिर की सीमष
के ्ीि मध्यम ऊींिषई पर होते हैं ।

जलव य की स्थितर् • वे पश्चिमी दहमषलय में कचमीर से उत्तर प्रदे श तक


ववस्तत
ृ हैं।
● औसत वषवर्ाक वर्षा 75 सेमी से 125 सेमी के ्ीि • पूवी दहमषलय में , ये वि अरुणषिल प्रदे श, मणणपुर,
होती है । िषगष दहसस और खषसी दहसस के पहषडी क्षेत्रों में पषए
● औसत वषवर्ाक तषपमषि 18 ° -21 ° C के ्ीि है । जषते हैं।
● आर्द्ा तष 80% होती है ।
इम िर्ी लकडी/क ष्ठ(Timber)
ववथर्र्

● धिर यष धिल स्से प्रमख
ु वक्ष
ृ है जो ववशुद्ि रूप
● ये जींगल पवात श्रींख
ृ लषओीं पर अपेक्षषकृत िम क्षेत्रों से सीिे खड़े पाए जषते हैं।
में कम ऊींिषई (1000 से 2000 मीिर तक) पर होते ● यह ्क्से, र्िीिर और इमषरतों के तिमषाण के शलए
हैं। लकडी प्रदषि करतष है और रषल(resin) और तषरपीि
● वे मुख्य रूप से पश्चिम ्ींगषल और असम के पूवी (turpentine)उत्पषदि में भी उपयोग ककयष जषतष है ।
दहमषलय, खषसी की पहषडडयों, महषमींडलेचवर और
िीलधगरी में पषए जषते हैं।

ववशेर्र् एां

● जींगलों की मुख्य ववशेर्तष क्लेमसा और एवपर्षइदिक


र्िा और ऑककाड की घिी वद्
ृ धि है ।
o एवपफाइट्स वे पौिे हैं िो पेड़ या अन्य पौिे
पर िैर-परिीवी रूप से बढ़ते हैं।
● सामान्य रूप से पाई िािे वाली प्रिानतयााँ सदाबहार
ओक, िेस्टिट, एश, बीि, साल और
पाइांस(evergreen oaks, chestnuts, ash,
beech, sals and pines.) हैं।

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उप उटणकदि्ींिीय शुटक सदष्हषर वि(SUB- ● जीरोर्षइदिक झषडडयों के सषथ शींकुिषरी वि।
TROPICAL DRY EVERGREEN FORESTS) ● महत्वपूणा प्रजषततयषीं धिलगोजष, दे वदषर, ओक, एश,
ववथर्र्
ृ जैति
ू आदद हैं।

● ये जींगल कषर्ी कम तषपमषि और वर्षा वषले क्षेत्रों ववथर्र्



में होते हैं।
● ये वि समुर्द् तल से करी् 1000 मीिर ऊपर पूवी ● ऐसे जींगल दहमषलय की भीतरी शुटक पवातमषलष में

और पश्चिमी दहमषलय, भष्र और लशवषललयों क्षेत्रों पषए जषते हैं जहषीं दक्षक्षण-पश्चिम मषिसूि लद्दषख,

की तििली ऊींिषई में ववस्तत है । लषहुल, िीं्ष, ककन्िौर, गढ़वषल और लसश्क्कम की



तरह कषर्ी कमजोर होतष है।
जलव य की स्थितर्
टहम लय नम शीर्ोष्ण वन (HIMALAYAN MOIST
● सषलषिष ्षररश 50-100 सेमी (ददसीं्र-मषिा में 15 TEMPERATE FORESTS)
से 25 सेमी) के ्ीि होती है ।
● यहषीं गलमायों में मौसम पयषाप्त रूप से गमा होतष हैं जलव य की स्थितर्
और सददा यो मे ्हुत ठीं ड पडती हैं।
● इि क्षेत्रों में 100 सेमी से ऊपर वषवर्ाक वर्षा होती है
ववशेर्र् एां लेककि िमी वषले शीतोटण विों के क्षेत्रों की तुलिष
में अपेक्षषकृत कम होती है ।
● छोिे सदष्हषर अवरुद्ि पेड और झषडडयों के सषथ
तिमि स्क्र् वि। ववथर्र्

● जैतूि, ््ूल मोदस्िष(लषजवींत) और वपस्तष स्से
प्रमुख प्रजषततयषीं हैं। ● ये जींगल पूवी और पश्चिमी दहमषलय में 1700-

● जींगलों की मुख्य ववशेर्तष कषींिेदषर जीरोर्षइट्स और 3500 मीिर की ऊींिषई पर पषए जषते हैं।

छोिे सदष्हषर पौिों की उपश्स्थतत है । ● यह कचमीर, दहमषिल प्रदे श, उत्तरषखींड, दषश्जाललींग


और लसश्क्कम पवात श्रींख
ृ लष में पषए जषते है ।
मोंि ने िे म्पडा(MONTANE TEMPERATE)
दहमषलयि ड्रषई िे मपरे िर{( शुटक आर्द्तष वाले) वि ववशेर्र् एां

HIMALAYAN DRY TEMPERATE FORESTS}


• मुख्य रूप से शींकुिषरी प्रजषततयों के वक्ष
ृ पषए जषते
हैं।
जलव य की स्थितर्
• ज्यषदषतर प्रजषततयषीं शद्
ु ि ककस्म की होती हैं।
● ये जींगल दहमषलय के ्हुत कम वर्षा वषले क्षेत्रों में • यहषीं पेड 30 से 50 मीिर ऊींिे होते हैं।

मौजूद हैं। • दे वदषर, पॉइींस, लससवर कर्सा, स्प्रूस, आदद स्से

● वर्षा 100 सेमी से कम होती है और अधिकतर ्र्ा महत्वपूणा पेड हैं।

के रूप में होती है । • वे ऊँिे लेककि खुले जींगल होते हैं, श्जिमें झषडडयषँ
होती हैं जैसे रोडोडेंड्रोि, ओक और ्षींस की कुछ
ववशेर्र् एां प्रजषततयषीं।

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इम िर्ी लकडी /क ष्ि(Timber) ● दक्षक्षण भषरत में , इि विों को शोलष वि कहष जषतष
है और ज्यषदषतर 15-20 मीिर ऊींिे-िौडे पेड होते
● इस क्षेत्र की लकडी कष उपयोग तिमषाण कषयों, तथष हैं, श्जिमें घिे पत्तों की छतररयषीं, प्रिरु मषत्रष में
रे लवे स्लीपरों के तिमषाण में ककयष जषतष है । उपजषऊ विस्पततयषँ और समद्
ृ ि शषकिषशी वक्ष
ृ होते
हैं।
मोंिे न नम शीर्ोष्ण वन (MONTANE WET
● ओक, पोपलर, एसम, लॉरे ल, मेपल, ब्िा(भुज)ा ,
TEMPERATE FORESTS)
एसडर, मैगिोललयष(सषगररकष िमपक) , आदद
जलव य की स्थितर्
महत्वपण
ू ा प्रजषततयषीं हैं।

● औसत वषवर्ाक वर्षा लगभग 150 सेमी से 300 सेमी


अल्प इन वनथपतर्
के ्ीि होती है ।
● औसत वषवर्ाक तषपमषि लगभग 11 ° C से 14 ° ● ये पूवी दहमषलय में 2700 मीिर ऊींिषई से ऊपर
C के ्ीि होतष है । और पश्चिमी दहमषलय में 3000 मीिर से ऊपर पषए
● औसत सषपेक्ष आर्द्ा तष 80% से अधिक है । जषते हैं।
● यह ्िा, रोडोडेंड्रॉि(धिमूल), जुतिपर, पषइि और
ववथर्र्

लससवर र्र कष एक घिष वि है

● ये वि ठीं डे और उमस भरे पहषडों में 1800-3000


ववशेर्र् एां
मीिर की ऊींिषई पर मौजद
ू हैं।
● में ववस्तत
ृ ● इि विों को इसमें ववभषश्जत ककयष जष सकतष है :
o पूवी िेपषल से असम तक (पूवी दहमषलय)।
o (पश्चिमी दहमषलय) कचमीर से पश्चिमी िेपषल ▪ उप-असपषइि(sub-alpine)
तक। ▪ िम असपषइि स्क्र्(moist alpine scrub)
o तलमलिषडु और केरल की ऊींिी पहषडडयषीं में । ▪ शुटक असपषइि स्क्र्(dry alpine scrub)

ववशेर्र् एां ● असपषइि जींगल दहम रे खष तक ऊपर की ओर ववस्तषर


करते हैं और झषडडयों और स्क्र् के मषध्यम से
● िूींकक यहषीं वर्षा अधिक होती है ,सषथ ही गलमायों में असपषइि घषस के मैदषिों को रषस्तष दे ते हैं।
तषपमषि मध्यम होतष है और सददा यों में मौसम ● इि क्षेत्रों में गलमायों के मौसम के दौरषि छोिे ्ौिष
पयााप्त ठीं डष होतष है , इसललए वषटपीकरण की दर कॉतिफ़र और हरे -भरे पौश्टिक घषस की ववशेर्तष
अधिक िहीीं होती है । इसललए पेड वर्ा में अपिी होती है ।
पवत्तयों को िहीीं धगरषते हैं, कम से कम एक ही समय
में तो बबल्कुल िहीीं। बग्य ल्स(Bugyals)
● ये ्डी पररधिय तिो वषले सदष्हषर वि हैं। ्ुग्यषल उच्ि ऊींिषई वषले असपषइि घषस के मैदषि हैं,
● शषखषओीं में मस
ू ष, र्िा और अन्य जो उत्तरषींिल में सपषि यष ढलषि वषली स्थलषकृतत
अधिपषदप(एवपर्षइट्स )पषए जषते हैं। (3400 मीिर और 4000 मीिर के ्ीि ऊींिषई पर) हैं
● यहषीं के वक्ष
ृ शषयद ही कभी 6 मीिर से अधिक की और उन्हें 'प्रकृतत के अपिे उद्यषि' के रूप में जषिष
ऊींिषई तक पहुींिते हैं। जषतष है । इि ्ुग्यषलों की सतह प्रषकृततक हरी घषस और
मौसमी र्ूलों से ढकी हुई है । इिकष उपयोग आददवषसी

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िरवषहों द्वषरष अपिे मवेलशयों को िरषिे के ललए ककयष
जषतष है । सददा यों के मौसम के दौरषि असपषइि घषस
के मैदषि ्र्ा से ढके रहते हैं । गलमायों के महीिों के
दौरषि, ्ुग्यषलों सुींदर र्ूलों और घषस से सुसश्ज्जत रहते
हैं। ्ुग्यषलों में एक ्हुत ही िषजुक पषररश्स्थततकी तींत्र
है । ्ुग्यषलों के कुछ उदषहरण
● औली (िोशीमठ के पषस) - यहषीं एक प्रमुख स्कीई
रें ज श्स्थत है ।
● गोरसो(Gorso)
● क्वषिी ्ुग्यषल(Kwani Bugyal)
● ्ेदिी(Bedni)
● पिवषली और कुश कसयषण(Panwali and Kush
Kalyan)
● दयषरष(Dayara)
● मुिस्यषरी ्ुग्यषल(Munsiyari Bugya

भारि में प्राकृतिक वनथपतर् के प्रकार

उटणकदि्ींिीय सदष्हषर(Tropical Evergreen)


िम सदष्हषर(Wet Evergreen)
शुटक सदष्हषर(Dry Evergreen)
अिा सदष्हषर(Semi Evergreen)

उटणकदि्ींिीय पणापषती(Tropical Decidous)


िम पणापषती(Moist Decidous)
शटु क पणापषती (Dry Decidous)

उटणकदि्ींिीय किीय (Tropical Throny)


उप-उष्णकहटबांिीय (Sub-Tropical)
ब्रॉड-लीव्ड दहल र्ॉरे स्ि(Broad-leaved Hill Forest)

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