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‘वेदवाङ्‍मय‍परिचय’

अथवववेद १

डॉ. मणृ ालिनी‍नेवाळकि


mrunalini.newalkar@gmail.com
वेदवाङ्‍मय- Quick recap
• वेदवाङ्‍मय- इडं ो- यिु ोलपयन भाषासमहू का सब से पिु ाना सालहत्य ।
• वेद- लवद-् जानना- धातु से वेद शब्द- ज्ञान- पावन, वास्ततलवक ज्ञान ।
• एक अखण्ड वेद संलहता का महलषव वेदव्यास ने चाि वेदों में लवभाजन लकया-
वेदान् लवव्यास इलत वेदव्यासः।
• ऋग्वेद, यजवु ेद, सामवेद, अथवववेद ।
• वेद- वेदसलं हता + ब्राह्मण + आिण्यक-उपलनषद् + वेदाङ्ग
• इस‍लवभाजन‍में‍सब‍से‍जरूिी‍भेद‍है- लवषयवस्तत‍ु औि‍यज्ञोपयोलगत्व‍।
वेदवाङ्‍मय- Quick recap
• ऋचा‍ं वेदः‍ऋग्वेदः। यजषु ा‍ं वेदः यजवु ेदः। सामना‍ं वेद: सामवेद: ।‍
• तीनों‍का‍वैलदक‍यज्ञों‍में‍प्राधान्य‍से‍लवलनयोग‍।
• वेदों‍का‍महत्त्व‍ही‍उन‍के ‍यज्ञोपतोलगता‍से‍जडु ा‍हआआ‍।
• इन‍में‍से‍सलं हता, ब्राह्मण, औि‍वेदाङ्गों‍की‍यज्ञों‍में‍ायादा‍अहलमयत‍।
• सलं हता भाग में यज्ञीय मन्र । ब्राह्मण भाग में यालज्ञकों द्वािा लदया गया यज्ञशास्त्र
का लववेचन औि यज्ञों में उन मन्रों का लवलनयोग ।
• वेदाङ्गों में मख्ु यतः श्रौतसरू , शल्ु बसरू , ायोलतष, आलद का यज्ञों में महत्त्व ।
• आिण्यक‍भी‍यज्ञों‍के ‍अनष्ठु ानों‍की‍आध्यालत्मक‍मीमासं ा‍किते‍ह‍।
अथवववेद
• इन सब से अिग वेद- भाित के धालमवक, सामालजक वैलवध्य का दशवक ।
• वेदरयी से अिग माना गया, अन्ततः वेदचतष्टु यी में परिवतवन ।
• लजन कािणों से त्यााय समझा गया था, उन्हीं के कािण महत्त्वपणू व बना ।
• पहिा कािण- यज्ञ से न्यनू तम समबन्ध- आम िोगों की िोजाना लजन्दगी से,
उन की जरूितों औि समस्तयाओ ं से जडु ा हआआ िोकवेद ।
• दसू िा कािण- यातु एवं अलभचािों का प्राबल्य । ऋग्वेद में भी सपत्नीमदवन जैसे
अलभचािसक्तू । लकन्तु यात्वात्मक अलभचािलवलध अथवववेद का मि ू ाधाि ।
अथवववेद
• बदिते समाज में वैलदक यज्ञों के स्तथान में बहआजनप्रधान धालमवकता की आवश्यकता
औि अलभचाि की क्रमप्राप्तता । आथववणमन्रलवद् िाजपिु ोलहत की आवश्यकता ।
• वेदचतष्टु यी में स्तथान लमिने पि ब्राह्मणों जैसे सहयोगी ग्रन्थों का लनमावण । लकन्तु उन
का स्तवरूप काफी अिग ।
• अथवववेद का ऋलत्वज- ब्रह्मा । सभी वेदों का, यज्ञलवलधओ ं का ज्ञान आवश्यक ।
• गोपथ ब्राह्मण, प्रश्न, माण्डूक्य, मण्ु डक, आलद अनेक उपलनषद् ।
• वैतानश्रौतसरू , कौलशकगह्य ृ सरू , अथववप्रालतशाख्य, अथववपरिलशष्ट आलद पिू क
वेदाङ्ग ग्रन्थ ।
अथवववेद की शाखाएँ
• कात्यायन के सवावनक्र
ु मणी के अनसु ाि १५ शाखाएँ । शौनक कृत चिणव्यहू ,
पतञ्जलि कृत महाभाष्य, आलद के अनसु ाि- नवधा आथववणो वेद: ।
• पैप्पि, शौनक, दामोद, औत, जावाि, ब्रह्मपिाश, कुनखी, वेददशव, चािणलवद्य
• पैप्पि, शौनक, दान्त, प्रदान्त, स्तनात, सौर, ब्रह्मदावन, देवदशवनी, चािणलवद्या
• पैप्पिाद, शौनक, तौदायन, मौदायन, जाजि, जिद, ब्रह्मवेद, देवदशवन, चािणवैद्य
• पैप्पिाद, शौनकीय, स्ततौद, मौद, जाजि, जिद, ब्रह्मवद, देवदशव, चािणवैद्य
• इन में से आज के वि शौनक एवं पैप्पिाद शाखा प्राप्त होती ह । उन में भी पैप्पिाद
शाखा की के वि सलं हता ।
पैप्पिाद सलं हता
• पैप्पिादक, पैप्पिालद, लपप्पिाद, पैप्पि, पैप्पिायन, आलद नामों से उल्िेख ।
• बॅिेट द्वािा प्रकालशत आवलृ ि एक अके िे कलश्मिी भजू वपर हस्ततलिलखत पि
आधारित ।
• २०१७ में भट्टाचायव द्वािा संशोलधत- प्रकालशत संस्तकिण ओलडशा में लमिे ताडपर
हस्ततलिलखतों पि आधारित ।
• कुछ लवद्वानों के अनसु ाि पैप्पिाद शाखा शौनक शाखा से पिु ानी । उन का
तिु नात्मक सस्तं किण ब्िमू लफल्ड द्वािा लकया गया है ।
• संलहता का प्रािमभ ‘शं नो देवीिभीष्टये’ इस मन्र से ।
पैप्पिाद सलं हता
• २० काण्ड, ९२३ कलण्डका, ७८३७ ऋच् । ऋग्वेद की तिह स्तवाध्याय के
सि
ु भता के लिए किीब पाँच कलण्डकाओ ं से बने अनवु ाकों में भी लवभाजन ।
• पहिा चतिु चव काण्ड- हि कलण्डका में चाि ऋचाएँ । दसू िा पञ्चचव, तीसिा
षडचव... पन्रहवाँ काण्ड अष्टादशचव । यह क्रम दसवे काण्ड तक काफी समभािा
गया है । उस के बाद ऋचाओ ं की सख्ं या दस के आसपास लमिती है ।
• १५५ कलण्डकाओ ं से बना १६ वाँ सब से बडा क्षरु काण्ड । १७ वाँ एकानचृ -
ू ,
इस के छठे अनवु ाक में गद्य मन्र आते ह । १८ वें महत्काण्ड में व्रात्यसक्त
ू , इ. । १९ वाँ तचृ काण्ड- ३ ऋचाओ ं से बनी कलण्डकाएँ । अलन्तम
अन्त्येलष्टसक्त
एकाचव काण्ड । िेलकन ऋचाओ ं की सख्ं या कमायादा होती िहती है ।
पैप्पिाद शाखा
• इस शाखा का अपना अिग ब्राह्मण नहीं । कौलशकसरू में कुछ मन्र एवं लवलध
लसफव पैप्पिाद शाखा से समबलन्धत । पैठीनलससरू नाम के गह्य ृ सरू का उल्िेख ।
आङ्लगिसकल्प (अलभचािात्मक) के भी कुछ ग्रन्थ । कमवपलञ्जका, पञ्चकल्प
जैसे परिलशष्ट ग्रन्थ भी लमिते ह । प्रश्न, मण्ु डक जैसे कुछ उपलनषद् भी पैप्पिाद
से जडु े होने का दावा किते ह ।
• मख्ु यतः ओलडशा में आज भी प्रचाि है- मौलखकी पिमपिा में कई ग्रन्थों का
सन्दभव । कुछ लगने चनु े काण्डों पि फ्रेंच, जमवन, औि अग्रं ेजी व्याख्या ।
• एक ओि लवलधलवलनयोग के साथ साथ ब्रह्ममीमांसा, औि दसू िी तिफ गह्य ृ लवलध
औि अलभचाि ।
शौनक शाखा
• ‘ये लरषप्ताः परियलन्त’ इस मन्र से प्रािमभ । शौनकी, शौनकीय जैसे पयावयनाम ।
• २० काण्ड, ७३६/७४१ सक्त ू , किीब ६००० मरं (उन में से १२०० मन्र ऋग्वेद
के पहिे, आठवे, दसवे मण्डि के सक्त ू ों से लिए गए ह ) । ऋग्वेद की तिह २०
काण्ड, ३६ प्रपाठक, १११ अनवु ाक यह भी एक लवभाजन ।
• काण्ड १-७- छोटे आकाि के सक्त ू - लसफव १-१८ मन्रों के सक्तू ।
• काण्ड ८-१८- बडे आकाि के सक्त ू - २१-८९ मन्रों से बने सक्तू ।
• काण्ड १९-२० लखिकाण्ड माने जाते ह ।
• मन्रसख्ं या के साथ ही लवषयानसु ािी लवभाजन ।
शौनक शाखा
• १४ वाँ लववाहकाण्ड, १५ वाँ व्रात्यकाण्ड, १६-१७ वे अलभचािकाण्ड, १८ वाँ
लपतकृ ाण्ड/ अन्त्येलष्टकाण्ड । १५ एवं १६ वे काण्डों में गद्य मन्र भी ह । बाकी का
वेद पद्यमय ।
• १९ वे काण्ड के अन्त में आनेवािी प्राथवना से शायद पहिे अथवववेद यहीं तक
सीलमत । कुछ लवद्वान १९ वाँ काण्ड भी परिलशष्टात्मक मानते ह ।
• इन काण्डों की िचना अलनयलमत- १९ वे काण्ड में पैप्पिाद संलहता में लमिने वािे
७२ मन्र । २० वे काण्ड में कंु ताप नामक सक्त
ू छोड कि बाकी के १३१ सक्त ू ऋग्वेद
से लिए हआए ।
• सायणभाष्य, लग्रलफथ का अग्रं ेजी, लचरावशास्त्री का मिाठी अनवु ाद औि प्रस्ततावना ।
अथवववेद के अन्य नाम
१. अथवववेद/ आथववण/ अथववलशिस/् अथवावङ्लगिस/् आङ्लगिोवेद/
भग्ृ वङ्लगिस/् भगृ वु ेद/ भगृ लु वस्तति/ भागवव
२. क्षरवेद/ िाजवेद
३. पगू यलज्ञय/ ग्रामयालजन्
४. ब्रह्मवेद
५. भैषायवेद/ सभु ेषज (आयवु ेद भी उपवेद)
६. यातवु ेद
अथवववेद का महत्त्व
• पद्मपिु ाण २.५- अथववमन्रसमप्राप्त्या सववलसलिभवलवष्यलत ।
• सायणाचायवकृत अथववभाष्यभलू मका श्लोक १०- ऐलहकामलु ष्मकफिं चतथु ं
व्यालचलकषवलत ।
• िोकसस्तं कृलत, लवचाि, औि धमवभावनाओ ं का सटीक लचरण ।
• सववसमावेशकता ।
• लवषयों का वैलवध्य । (Details in tomorrow’s session)
• आध्यालत्मक सक्त ू ों द्वािा उपलनषदों का, भैषायसक्त
ू ों द्वािा आयवु ेद का, अन्य
सक्त
ू ों द्वािा स्तमलृ तयों औि पिु ाणों का आधाि ।

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