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तिद्वानों ने इतिहाि को उिके िाक्ष्यों के आधार पर मुख्य रूप िे िीन तहस्िों में तिभातिि तकया है। ये प्रागैतिहातिक
काल, आद्य ऐतिहातिक काल और ऐतिहातिक काल के नाम िे िाने िािे हैं।
प्रागैतिहातिक काल के अंिगगि इतिहाि के उि कालखंड को शातमल तकया िािा है, तििके बारे में िानकारी प्राप्त
करने के तलए हमारे िमक्ष के िल पुरािातविक िाक्ष्य ही उपलब्ध हैं। इिकी िानकारी प्राप्त करने के तलए हमारे पाि
तकिी भी प्रकार के िातहतवयक िाक्ष्य उपतस्िि नहीं हैं। इि आधार पर प्रागैतिहातिक काल के अिं गगि मानि इतिहाि
के आरंभ िे लेकर के हड़प्पा िभ्यिा िे पहले िक का काल शातमल तकया िािा है।
आद्य ऐतिहातिक काल के अिं गगि इतिहाि के उि कालखडं को शातमल तकया िािा है, तििके बारे में िानकारी
प्राप्त करने के तलए हमारे िमक्ष परु ािातविक िाक्ष्य के िाि-िाि िातहतवयक िाक्ष्य भी उपलब्ध हैं, लेतकन उन
िातहतवयक िाक्ष्यों को अभी िक पढा नहीं िा िका है। इि आधार पर आद्य ऐतिहातिक काल के अंिगगि हड़प्पा
िभ्यिा और िैतिक िंस्कृ ति को शातमल तकया िािा है।
ऐतिहातिक काल के अंिगगि इतिहाि के उि कालखंड को शातमल तकया िािा है, तििके बारे में िानकारी प्राप्त
करने के तलए हमारे िमक्ष िातहतवयक और पुरािातविक िोनों ही िाक्ष्य उपलब्ध हैं ििा िातहतवयक िाक्ष्य को पढा
िा चकु ा है और उनके आधार पर उि कालखडं के बारे में िानकारी प्राप्त की िा रही है। इि कालखडं के अंिगगि
िैतिक िभ्यिा के बाि िे लेकर ििगमान काल िक का िपं र्ू ग इतिहाि शातमल तकया िािा है।
प्रागैतिहातिक काल
प्रागैतिहातिक काल को मुख्य रूप िे पाषार् काल के नाम िे िाना िािा है क्योंतक इि काल में पाषार् उपकरर्ों की
प्रधानिा िी। तिद्वानों ने प्रागैतिहातिक काल को पाषार् उपकरर्ों की उपतस्िति के आधार पर िीन खंडों में तिभक्त
तकया है। ये िीन खंड हैं- पुरापाषार् काल, मध्य पाषार् काल और निपाषार् काल।
1. परु ापाषार् काल (25 लाख ईिा पिू ग िे 10,000 ईिा पिू ग) :
इतिहाि के इि कालखंड में मानि एक तशकारी ि खाद्य िंग्राहक के रूप में अपना िीिन व्यिीि करिा िा। इि िौर
में मानि को पशपु ालन ि कृ तष का ज्ञान नहीं िा। इतिहाि के इि िमय में मानि आग िे पररतचि िो िा, लेतकन िह
उिका िमतु चि उपयोग करना नहीं िानिा िा। अपनी गतितितधयों के िचं ालन के तलए मानि इि िौरान अनेक
प्रकार के पाषार् उपकरर्ों का प्रयोग करिा िा। परु ापाषार् काल में भी मनष्ु य अलग-अलग िमय में अलग-अलग
िरह के पाषार् उपकरर्ों का उपयोग कर रहा िा। इन्हीं पाषार् उपकरर्ों के आधार पर इतिहािकारों ने पुरापाषार्
काल को पनु ः िीन काल खंडों में तिभातिि तकया है। ये हैं- तनम्न पुरापाषार् काल, मध्य परु ापाषार् काल और उच्च
परु ापाषार् काल।
1.1 तनम्न परु ापाषार् काल (25 लाख ईिा पूिग िे 1 लाख ईिा पूिग) :
• इि िौरान मानि पाषार् उपकरर्ों का तनमागर् करने के तलए क्िार्गिाइर् पविर का उपयोग करिा िा। इि
िौरान पाषार् उपकरर्ों के तनमागर् के तलए ‘बतर्काश्म’ (Pebble) का उपयोग भी तकया िािा िा।
‘बतर्काश्म’ पविर के ऐिे र्ुकड़े होिे िे, िो पानी के बहाि िे रगड़ खाकर गोल मर्ोल ि िपार् हो िािे िे।
• तनम्न परु ापाषार् काल के िौरान मानि द्वारा प्रयोग में लाए िाने िाले प्रमख
ु पाषार् उपकरर्ों के नाम हस्ि
कुठार, तििारर्ी, खडं क और गंडािा िे। गडं ािा एक ऐिा बतर्काश्म होिा िा, तििके एक िरफ धार लगाई
िािी िी और खंडक एक ऐिा बतर्काश्म में होिा िा, तििके िोनों िरफ धार लगाई िािी िी।
• तनम्न परु ापाषार् काल के प्रमखु स्िलों में ििगमान पातकस्िान में तस्िि िोहन निी घार्ी, कश्मीर, रािस्िान
का िार रे तगस्िान, मध्य प्रिेश की नमगिा निी घार्ी में तस्िि भीमबेर्का, हिनौरा, उत्तर प्रिेश के तमिागपरु
तस्िि बेलन घार्ी, ितमलनाडु में पल्लिरम, अतिरपक्कम, आंध्र प्रिेश में कुरनूल, नागािगनु कोंडा, कनागर्क
में इिामपरु आति शातमल िे।
1.2 मध्य परु ापाषार् काल (1 लाख ईिा पूिग िे 40,000 ईिा पिू ग) :
• इि िौरान मानि पाषार् उपकरर्ों का तनमागर् करने के तलए क्िार्गिाइर् पविर के स्िान पर िैस्पर और चर्ग
नामक पविरों का उपयोग करिा िा। इि िौर में आकर पाििान उपकरर्ों का आकार तनम्न परु ापाषार् काल
की अपेक्षा छोर्ा हो गया िा।
• इि काल में मानि मख्ु य रूप िे िेधनी, फलक िेधक, खरु चनी आति पाषार् उपकरर्ों का उपयोग करिा
ु रूप िे फलक पर आधाररि होिे िे। इि िौरान फलक उपकरर्ों की प्रधानिा तमली है,
िा। ये उपकरर् प्रमख
इिीतलए मध्य परू ापाषार् काल को एच डी िाकं तलया ने ‘फलक िस्ं कृ ति’ की िज्ञं ा िी है।
• महाराष्र तस्िि नेिािा, उत्तर प्रिेश तस्िि चतकया ि तिगं रौली, झारखडं तस्िि तिहं भमू ि पलाम,ू गिु राि
तस्िि िौराष्र क्षेत्र, मध्य प्रिेश तस्िि भीमबेर्का की गफ
ु ाएं, रािस्िान तस्िि बेड़च, कािमली, पष्ु कर क्षेत्र,
िार का रे तगस्िान इवयाति मध्य परु ापाषार् काल िे िंबंतधि प्रमख ु स्िल है।
1.3 उच्च परु ापाषार् काल (40,000 ईिा पिू ग िे 10,000 ईिा पिू ग) :
• उच्च परु ापाषार् काल के िौरान पाषार् उपकरर्ों के तनमागर् के तलए मानि द्वारा िैस्पर, चर्ग, त्लंर् आति
पविरों का उपयोग तकया िािा िा। इि िौरान मनष्ु य द्वारा तनतमगि तकए िाने िाले पाषार् उपकरर्ों का
आकार मध्य परु ापाषार् काल के िौरान तनतमगि पाषार् उपकरर्ों िे और अतधक छोर्ा हो गया िा।
• इि काल में मानि फलक एिं िक्षर्ी पर आधाररि पाषार् उपकरर्ों का अवयतधक तनमागर् करने लगा िा।
आकार में छोर्े होने के कारर् इन पाषार् उपकरर्ों के उपयोग िे मानि की िक्षिा ि गतिशीलिा में िृति हो
गई िी।
• महाराष्र तस्िि इनामगांि ि पर्र्े, आंध्र प्रिेश तस्िि कुरनूल, नागािगनु कोंडा ि रे तनगंर्ु ा, मध्य प्रिेश तस्िि
भीमबेर्का, कनागर्क तस्िि शोरापरु िोआब, रािस्िान तस्िि बढू ा पष्ु कर, उत्तर प्रिेश तस्िि लोहिं ानाला,
बेलन घार्ी इवयाति उच्च परु ापाषार् काल िे िंबतं धि प्रमखु स्िल हैं।
1. प्रारंतभक हड़प्पा िंस्कृ ति अििा प्राक् हड़प्पा िंस्कृ ति : 3200 ईिा पिू ग िे 2600 ईिा पिू ग
2. हड़प्पा िभ्यिा अििा पररपक्ि हड़प्पा िभ्यिा : 2600 ईिा पिू ग िे 1900 ईिा पिू ग
3. उत्तरििी हड़प्पा िस्ं कृ ति अििा परििी हड़प्पा िंस्कृ ति : 1900 ईिा पूिग िे 1300 ईिा पिू ग
तिंधु घार्ी िभ्यिा का क्षेत्रीय तिस्िार
• हड़प्पा िभ्यिा भारि भतू म पर लगभग 13 लाख िगग तकलोमीर्र के क्षेत्रफल में तत्रभिु ाकार स्िरूप में फै ली
हुई िी।
• यह उत्तर में ‘मांडा’ (िम्मू कश्मीर) िक, ितक्षर् में ‘िैमाबाि’ (महाराष्र) िक, पूिग में ‘आलमगीरपरु ’
(उत्तरप्रिेश) िक और पतिम में ‘िवु कागेंडोर’ (पातकस्िान) िक फै ली हुई िी।
• यह िभ्यिा िौराष्र, रािस्िान, हररयार्ा, पतिमी उत्तर प्रिेश इवयाति क्षेत्रों में भी तिस्िृि िी।
तिंधु घार्ी िभ्यिा िे िंबंतधि प्रमख
ु स्िल
1. हड़प्पा :
• यह स्िल ििगमान पातकस्िान के पंिाब प्रांि के मोंर्गोमरी तिले में तस्िि है। यहााँ िबिे पहले उवखनन कायग
तकया गया िा। यह रािी निी के िर् पर तस्िि है।
• िबिे पहले 1826 ईस्िी में एक अंग्रेि पयगर्क चाल्िग मेिन ने हड़प्पा के र्ीले के तिषय में िानकारी िी िी।
इिके बाि हड़प्पा स्िल की तितधिि खिु ाई 1921 ईस्िी में श्री ियाराम िाहनी के नेिवृ ि में आरंभ हुई िी।
• इि स्िल पर आबािी िाले क्षेत्र के ितक्षर्ी भाग में एक कतिस्िान प्राप्त हुआ है, तििे तिद्वानों ने ‘कतिस्िान
एच’ का नाम तिया है।
• हड़प्पा िे हमें एक तिशाल अन्नागार के िाक्ष्य भी तमले हैं। यह तिंधु घार्ी िभ्यिा की खिु ाई में प्राप्त हुई
िमाम िंरचनाओ ं में ििू री िबिे बड़ी िंरचना है। इि अन्नागार में 6-6 की 2 पंतक्तयों में कुल 12 तिशाल
कक्ष तनतमगि पाए गए हैं।
• हड़प्पा िे हमें एक पीिल की इक्का गाड़ी तमली है। इिी स्िल पर स्त्री के गभग िे तनकलिे हुए पौधे िाली एक
मृण्मतू िग भी तमली है।
• िमचू ी हड़प्पा िभ्यिा में हमें िबिे अतधक अतभलेख यक्त ु महु रें यहीं िे ही प्राप्त हुई हैं।
2. मोहनिोिड़ो :
• मोहनिोिड़ो का तिंधी भाषा में शातब्िक अिग होिा है- ‘मृिकों का र्ीला’। यह ििगमान पातकस्िान में तिंध के
लरकाना तिले में तस्िि है। यह स्िल तिधं ु निी के िर् पर तस्िि है। इि स्िल पर उवखनन कायग 1922
ईस्िी में श्री राखाल िाि बनिी के नेिवृ ि में हुआ िा।
• इि स्िल िे हमें एक तिशाल स्नानागार के िाक्ष्य प्राप्त हुए हैं। यहााँ िड़कों का िाल तबछा हुआ िा। यहााँ पर
िड़कें तग्रड प्रारूप में बनी हुई िीं। यहााँ िे तमली िबिे बड़ी इमारि तिशाल अन्नागार है।
• ििागतधक महु रें मोहनिोिड़ो िे प्राप्त हुई हैं। उल्लेखनीय है की हड़प्पा स्िल िे ििागतधक अतभलेख यक्त
ु महु रें
प्राप्त हुई हैं।
• ु अिशेषों में शातमल हैं- कािं े की निगकी की मतू िग, मद्रु ा पर अतं कि पशपु ति नाि
यहााँ िे प्राप्त हुए अन्य प्रमख
की मतू िग, ििू ी कपड़ा, अलक ं ृ ि िाढी िाला पिु ारी, इवयाति।
3. चन्हिड़ो :
• चन्हिड़ो ििगमान में पातकस्िान में तिंधु निी के िर् पर तस्िि है। यहााँ पर उवखनन कायग 1935 ईस्िी में
अनेस्र् मैके के नेिवृ ि में तकया गया िा।
• यहााँ पर शहरीकरर् का अभाि िा। इि स्िल िे तितभन्न प्रकार के मनके , उपकरर्, महु रें इवयाति प्राप्त हुई हैं।
इि आधार पर तिद्वानों द्वारा अनमु ान लगाया िािा है की चन्हिड़ो में मनके तनमागर् का कायग होिा िा।
इिीतलए इि स्िल को तिंधु घार्ी िभ्यिा का औद्योतगक कें द्र भी माना िािा है।
• चन्हिड़ो तिंधु घार्ी िभ्यिा का एक मात्र ऐिा स्िल है, िहााँ िे हमें िक्ाकार ईर्ों के िाक्ष्य प्राप्त होिे हैं।
4. कालीबंगा :
• कालीबगं ा स्िल ििगमान रािस्िान के हनमु ानगढ तिले में तस्िि है। यह प्राचीन ‘िरस्ििी निी’ के िर् पर
तस्िि िा। इि स्िल की खोि 1953 ईस्िी में अमलानंि घोष द्वारा की गई िी।
• कालीबगं ा नामक स्िल िे हमें ििु े हुए खेि, एक िाि िो फिलों की बुिाई, अतनन कंु ड के िाक्ष्य तमले हैं।
यहााँ िे िल तनकािी प्रर्ाली के िाक्ष्य नहीं तमलिे हैं।
• यहााँ िे बेलनाकर महु रों, अलक
ं ृ ि ईर्ोंं के िाक्ष्य तमले हैं।
5. लोिल :
• लोिल ििगमान में गिु राि के अहमिाबाि में भोगिा निी के िर् पर तस्िि है। यह स्िल खंभाि की खाड़ी के
अवयंि तनकर् तस्िि है।
• इि स्िल की खोि 1957 ईस्िी में श्री एि. आर. राि द्वारा की गई िी। तिंधु घार्ी िभ्यिा का यह स्िल
एक प्रमख ु बिं रगाह स्िल िा।
• तिधं ु घार्ी िभ्यिा के इि बिं रगाह स्िल लोिल में एक तिशाल गोिी बाड़ा तमला है।
• लोिल िे धान ि बािरे , िोनों के िाक्ष्य तमलिे हैं। इि बिं रगाह स्िल िे हमें िीन यगु ल िमातधयों के िाक्ष्य
भी प्राप्त होिे हैं।
6. धौलािीरा :
• धौलािीरा ििगमान गिु राि के कच्छ तिले की भचाऊ िहिील में तस्िि है। यह तिंधु घार्ी िभ्यिा कालीन
स्िल मानहर ि मानिर नतियों के पाि तस्िि है।
• धौलािीरा में अन्य तिधं ु घार्ी िभ्यिा कालीन स्िलों के तिपरीि नगर का तिभािन िीन तहस्िों में तमलिा है।
तिंधु घार्ी िभ्यिा कालीन अन्य नगरों का तिभािन िो तहस्िों में तकया गया िा।
• धौलािीरा में हमें बााँध अििा कृ तत्रम िलाशय के िाक्ष्य तमले हैं। इििे यह तिि होिा है तक इि नगर में िल
प्रबंधन की उवकृ ष्ट व्यिस्िा मौििू िी।
इनके अलािा, अन्य स्िलों में राखीगढी, िंघोल, रोपड़, कोर्िीिी इवयाति शातमल हैं।
• यह िमाि मािृित्तावमक रहा होगा। इतिहािकारों के अनिु ार, िमाि चार िगों में तिभक्त िा- तिद्वान, योिा,
श्रतमक और व्यापारी।
• ये लोग शाकाहार और मााँिाहार, िोनों ही िरह के भोिन का प्रयोग करिे िे। ये ऊनी और ििू ी, िोनों ही
प्रकार के िस्त्रों का उपयोग करिे िे। परुु ष और मतहलाएाँ, िोनों ही आभषू र् पहनिे िे।
• तिधं ु घार्ी िभ्यिा के लोग शांतितप्रय लोग िे। यहााँ िे िलिार, ढाल, तशरस्त्रार्, किच इवयाति के िाक्ष्य
नहीं तमले हैं।
• ये लोग तितभन्न कृ तष िस्िुओ,ं िैिे- िौ, चािल, गेह,ाँ मर्र, िरिों, राई, तिल, िरबिू , खिरू इवयाति का
उपयोग करिे िे।
• तिधं ु घार्ी िभ्यिा के स्िलों िे हमें ििु े हुए खेि के िाक्ष्य, एक िाि िो फिलें बोए िाने के िाक्ष्य इवयाति
प्राप्त हुए हैं।
• हड़प्पा िभ्यिा एक कांस्य यगु ीन िभ्यिा िी। कािं ा बनाने के तलए िांबे और तर्न को क्मशः 9:1 के
अनपु ाि में तमलाया िािा िा। हड़प्पा िभ्यिा के लोग लोहे के प्रयोग िे पररतचि नहीं िे और िंभििः उन्हें
िलिार के तिषय में भी िानकारी नहीं िी।
• इि िौरान आंिररक और बाह्य िोनों ही व्यापार िमृि अिस्िा में िे। िमु ेररयन िभ्यिा के लेखों िे ज्ञाि होिा
है तक तििेशों में तिंधु िभ्यिा के व्यापाररयों को मेलुहा के नाम िे िाना िािा िा।
• लोिल नामक तिधं ु घार्ी िभ्यिा कालीन स्िल िे हमें फारि की महु रें प्राप्त होिी हैं ििा कालीबगं ा िे
बेलनाकर महु रें प्राप्त होिी हैं। ये िभी प्रमार् तिधं ु घार्ी िभ्यिा के अिं रागष्रीय व्यापार की ओर इशारा करिे
हैं।
तिंधु घार्ी िभ्यिा का पिन
• तिधं ु घार्ी िभ्यिा का पिन कै िे हुआ, इिके िंबंध में तितभन्न तिद्वानों के अनेक मि हैं। लेतकन उनमें िे
कोई भी मि ििगिम्मति िे स्िीकार नहीं तकया िा िकिा क्योंतक ये िभी मि तिफग अनमु ानों के आधार पर
तिए गए हैं।
• गाडगन चाइल्ड, मॉतर्गमर व्हीलर, तपनगर् महोिय िैिे तिद्वानों ने तिधं ु घार्ी िभ्यिा के पिन का कारर् आयग
आक्मर् को माना िा, लेतकन तितभन्न शोधों के आधार पर अब इि मि का खंडन तकया िा चक ु ा है और
यह तिि तकया िा चक ु ा है तक आयग बाहरी व्यतक्त नहीं िे, बतल्क िे भारि के ही मल ू तनिािी िे। इितलए
आयों के आक्मर् के कारर् तिंधु घार्ी िभ्यिा के पिन के मि को िैध नहीं माना िा िकिा है।
• इिके अलािा, तितभन्न तिद्वान िलिायु पररििगन, बाढ, िख ू ा, प्राकृ तिक आपिा, पाररतस्ितिकी अिंिल
ु न,
प्रशाितनक तशतिलिा इवयाति को तिंधु घार्ी िभ्यिा के पिन के तलए उत्तरिायी कारक मानिे हैं।
िाक्ष्यों िे पिा चलिा है तक तिंधु घार्ी िभ्यिा एक अवयंि तिकतिि िभ्यिा िी, लेतकन अभी िक इि बाि का
कोई िीधा िपार् को उत्तर नहीं तिया िा िकिा है तक आतखर इिका पिन कै िे हुआ होगा। इिके अलािा, तिधं ु
घार्ी िभ्यिा की तचत्रावमक तलतप अभी िक पढी भी नहीं गई है। ऐिे में, िब िक तिधं ु घार्ी िभ्यिा की तलतप नहीं
पढ ली िािी, िब िक इिके अनिल ु झे ििालों का कोई स्पष्ट उत्तर िेना िल्िबािी होगी।
िैतिक यगु | Vedic Age
o िैतिक पाठ िैतिक यगु के पुनतनगमागर् के तलए िचू ना का प्राितमक स्रोि है।
o इि िानकारी को परु ािातविक िामग्री के माध्यम िे परू क तकया गया है। माना िािा है तक िैतिक ग्रंिों की
रचना इडं ो आयों ने की िी।
o इडं ो आयगन्ि इडं ो-यरू ोपीय भाषाओ ं के पररिार की इडं ो ईरानी शाखा के एक िब िमहू का उल्लेख करिे हैं।
o िे खिु को आयग के रूप में ितर्गि करिे हैं िो “आर” िे व्यवु पन्न है तििका अिग है खेिी करना।
o आयों के आगमन की पतु ष्ट करने िाले तितभन्न तििांि हैं:
तििांि अतभधारर्ाएं प्रस्िािना
आयग प्रिािन o यह तििािं एक दृतष्टकोर् िा तक आयग एड्रं ोतमयो o यह िबिे स्िीकृ ि तििािं है
तििांि िंस्कृ ति िे तहिं ू कुश के उत्तर में चले गए और िहां
िे िे भारि पहुचं े।
o इि तििांि को घोड़ों, अतनन िोष, िीतलयों के
पतहये और िाह िंस्कार के प्रमार्ों द्वारा िमतिगि
तकया गया है।
मध्य एतशयाई o यह तििांि मानिा है तक आयग मध्य एतशया और o यह तििांि मैक्िमलू र द्वारा प्रतिपातिि
तििािं यरू े तशयन स्र्ेपी िे चले गए। तकया गया िा।
o िैतिक ग्रंिों और अिेस्िा की अिधारर्ाओ ं के o हाल के अध्ययन “ितक्षर् और मध्य
बीच िमानिा है। एतशया के िीनोतमक गठन” ने इि
दृतष्टकोर् का िमिगन तकया।
यरू ोपीय o यह तििांि यूरोप को आयों की मािृभूतम मानिा o तििािं िर तितलयम िोन्ि द्वारा
तििािं िा। प्रस्िातिि तकया गया िा।
o यह िल ु नावमक भाषाई अध्ययन लैतर्न, िमगन और
िंस्कृ ि पर आधाररि है।
भारिीय o यह तििािं आयों को भारिीय उपमहाद्वीप के तलए o तििािं को डॉ. िपं र्ू ागनिं और एिी
तििांि स्ििेशी मानिा िा। िाि ने प्रतिपातिि तकया िा।
o इिका प्रमार् यज्ञ की पहुचं और ऋनिेि में तमलने
िाले भौगोतलक आंकड़ों िे तमलिा है।
आकग तर्क o तििािं का मानना िा तक उत्तरी आकग तर्क आयों o बाल गगं ाधर तिलक ने प्रतिपातिि
क्षेत्र तििांि की मािृभतू म है क्योंतक उन्होंने 6 महीने के लंबे तिनों तकया िा
और लंबी रािों की बाि की िी।
o प्रारंतभक आयग तिंधु और उिकी िहायक नतियों के आिपाि और आिपाि के क्षेत्रों में तस्िि िे।
o इि क्षेत्र को िप्त-तिंधु क्षेत्र (िाि नतियों की भतू म) के रूप में िाना िािा है।
o इिके अलािा यह खोई हुई िरस्ििी निी के आिपाि फै ली हुई है, िो क्षेत्र रािस्िान में ििगमान घनगर निी
द्वारा िशागया गया है।
o इि चरर् में िमद्रु का कोई ििं भग नहीं िा।
o तहमालय और गंगा के बारे में कोई उल्लेख नहीं तकया गया िा।
!
उत्तर िैतिक काल | Post Vedic period
o बाि के काल में, आयग आग और लोहे के औिारों की मिि िे पिू ी क्षेत्रों में चले गए।
o उनके द्वारा बिाए गए क्षेत्र में गरुु पांचाल क्षेत्र (इडं ो-गंगा तिभातिि और ऊपरी गंगा घार्ी) शातमल िे।
o इि चरर् के िौरान, उन्होंने पिू ी और पतिमी िमद्रु , यानी अरब िागर और तहिं महािागर और नमगिा और
तिध्ं य पहाड़ों का भी ज्ञान प्राप्त तकया।
o प्रारंतभक िैतिक िमाि एक अधग खानाबिोश आतििािी िमाि िा तििमें िेहािी अिगव्यिस्िा िी।
o यहााँ कबीले को िन कहा िािा िा और कबीलाई मतु खया को रािन, गोपति या गोपा कहा िािा िा।
o रानी को मतहषी कहा िािा िा।
o िमाि को िाति व्यिस्िा के आधार पर िमाि के 4 गनु ा तिभािन के रूप में तिभातिि तकया गया िा।
o िाति बतहतिगिाह और कठोर िामातिक पिानक् ु म की प्रिाएं तिकतिि हुई।ं
o यज्ञों की प्रिा में िृति हुई तिििे िाह्मर्ों की शतक्त में िृति हुई।
o
िर्ग व्यिस्िा | Varna System
o इि काल में िर्ग व्यिस्िा अतधक तितशष्ट हो गई
o यह व्यिस्िा िन्म के आधार पर अतधक और व्याििातयक दृतष्ट िे कम होिी गई।
o िर्ागश्रम धमग िमाि ने िीिन के चार चरर्ों को प्रितशगि तकया।
o िल के िेििा िरुर्
o यम मृवयु के िेििा
o पृथ्िी की िेिी
o िेििाओ ं के िगग में तिभािन िा। पशओ ु ं के िेििा पषू न शद्रू ों के िेििा बने।
िैतिक ग्रंिों को िो भागों में िगीकृ ि तकया गया है, श्रतु ि और स्मृति।
श्रतु ि | Shruti
o श्रतु ि िह पाठ है तििे िनु ा िािा है या िब िे ध्यान में िे िब ऋतषयों के तलए ईश्वरीय रहस्योद्घार्न का एक
उवपाि है।
o श्रतु ि में चार िेि और िंतहिा शातमल हैं।
स्मृति | Smriti
o स्मृति िे हैं िो िामान्य मनष्ु यों द्वारा याि की िािी हैं।
o स्मृति में 6 िेिांग, चार उपिेि और िेिों पर भाष्य शातमल हैं
o बेहिर िमझ के तलए स्ििेशी आिं ोलन के बारे में तिस्िार िे िानें।
िेि | Vedas
ऋनिेि | Rigveda
o ऋनिेि िबिे परु ाना िेि है और भारि में प्रारंतभक िैतिक लोगों के िीिन को िशागिा है।
o इिके पाठ में 1028 भिन हैं, तिन्हें बाि में 10 मंडलों में तिभातिि तकया गया है।
o मंडल 2-7 ऋनिेि ितमति का िबिे पुराना तहस्िा हैं और उन्हें पाररिाररक पस्ु िकें कहा िािा है क्योंतक िे
ऋतषयों के पररिारों को तनधागररि करिे हैं।
o मंडला 8 में तितभन्न िेििाओ ं को िमतपगि भिन हैं।
o ऋनिेि का उपिेि आयिु ेि है।
o ऋनिेि िे िड़ु ा िाह्मर् ऐिरय है।
िामिेि | Samaveda
o िामिेि ऋनिेि िे तलए गए छंिों का िंग्रह है
o इिमें प्रतिि ध्रपु ि राग शातमल है तििे निीनिम िानिे द्वारा गाया गया िा
o इिका उपिेि है गंधिग िेि
o इििे िड़ु ा िाह्मर् ििातिंश है।
यििु ेि | Yajurveda
o यह बतलिानों के प्रिशगन की प्रतक्या िे िंबंतधि है
o इिे आगे शक्ु ल यििु ेि और कृ ष्र् यििु ेि में तिभातिि तकया गया है
o शक्ु ल यििु ेि : इिमें के िल मंत्र हैं। इिमें मध्यातिना और पनु राििगन शातमल हैं।
o कृ ष्र् यििु ेि : इिमें मंत्रों के िाि-िाि गद्य की व्याख्या और भाष्य भी शातमल हैं
o यििु ेि का उपिेि धनुर िेि है।
o इििे िड़ु ा िाह्मर् गोपि है।
अििगिेि | Atharvaveda
o अििगिेि अन्य िीन िेिों िे अलग है क्योंतक यह बरु ी आवमाओ,ं खिरे , मत्रं ों, भिनों, प्रािगनाओ,ं शातियों
और अंवयेतष्ट को िरू करने के तलए उपयोग तकए िाने िाले िैतनक िािू मंत्रों पर कें तद्रि है।
o अििग नाम पिु ारी अििगन िे आया है, िो एक धातमगक प्रिगिक और उपचारक िे।
o अििगिेि की रचना बाि में हुई है।
o इि िेि के 20 अध्यायों में 5687 मन्त्र हैं।
िेिागं | Vedangas
उपतनषि | Upanishads
o िे उि ज्ञान का िंकेि िेिे हैं िो तशक्षक के पाि बैठकर प्राप्त तकया गया िा
o इन्हें िेिािं ी के नाम िे भी िाना िािा है।
o 108 उपतनषि हैं तिनमें िे 13 िबिे प्रमख ु हैं।
o उन्होंने आवमा और िाह्मर् की अिधारर्ा पेश की।
o उनके अनिु ार िाह्मर् िह्मांड का मल ू िवि है और एक अपररििगनीय तनरपेक्ष ित्ता है।
o उपतनषि मख्ु य रूप िे प्रकृ ति में िाशगतनक हैं और उच्चिम ज्ञान की बाि करिे हैं।
o िवयमेि ियिे मंडु क उपतनषि िे तलया गया है।
o छािं ोनय उपतनषि पहले िीन आश्रमों को ििं तभगि करिा है और तििाह के रूपों पर चचाग करिा है।
1) उवपतवि के कारर्
• ु , िोनों क्षतत्रय
िाह्मर् नामक परु ोतहि िगग के प्रभवु ि के तिरुि क्षतत्रयों की प्रतितक्या। महािीर और गौिम बि
कुल के िे।
• िैतिक बतलिानों और खाद्य पिािों के तलए मिेतशयों की अधं ाधधंु हवयाओ ं ने नई ं कृ तष अिगव्यिस्िा को
अतस्िर कर तिया, िो खेिी करने के तलए मिेतशयों पर तनभगर िी। बौि धमग एिं िैन धमग िोनों इि हवया के
तिरुि खड़े हो गए िे।
• पंच तचतन्हि तिक्कों के प्रचलन और व्यापार एिं िातर्ज्य में िृति के िाि शहरों के तिकाि ने िैश्यों के महवि
को बढािा तिया, िो अपनी तस्िति में िधु ार करने के तलए एक नए धमग की िलाश में िे। िैन धमग एिं बैि धमग
ने उनकी िरूरिों को िल ु झानें में िहायिा की।
• नए प्रकार की िपं तवि िे िामातिक अिमानिाएं पैिा हो गई ंऔर आम लोग अपने िीिन के प्रारंतभक स्िरूप
में िाना चाहिे िे।
• िैतिक धमग की ितर्लिा और अध: पिन में िृति हुई।
2) िैन धमग और बौि धमग और िैतिक धमग के बीच अंिर
1) गौिम बि
ु और बौि धमग
1. िख
ु - िीिन िख ु ों िे भरा है।
2. िमिु ाय - ये िखु ों का कारर् होिे हैं।
3. तनरोध- ये रोके िा िकिे हैं।
4. तनरोध गातमनी प्रतिपद्या- िख ु ों की िमातप्ि का मागग
b. अष्र्ांतगक मागग
1. िम्यक दृतष्र्
2. िम्यक िंकल्प
3. िम्यक िार्ी
4. िम्यक कमागन्ि
5. िम्यक आिीि
6. िम्यक व्यायाम
7. िम्यक स्मृति
8. िम्यक िमातध
d. तत्ररवन- बि
ु , धमग और िघं
• प्रिम पररषि: प्रिम पररषि िषग 483 ईिा पिू ग में रािा अिािशत्रु के िंरक्षर् में तबहार में रािगढ के पाि
िप्िपर्ी गफ ु ाओ ं में आयोतिि की गई, प्रिम पररषि के िौरान उपाली द्वारा िो बौि िातहवय तिनय और िवु िा
तपिाका िक ं तलि तकए गये।
• तद्विीय पररषि: तद्विीय पररषि िषग 383 ईिा पिू ग में रािा कालाशोक के िंरक्षर् में िैशाली में आयोतिि की
गई िी।
• िृिीय पररषि: िृिीय पररषि िषग 250 ईिा पिू ग में रािा अशोक महान के िंरक्षर् में पार्तलपत्रु में आयोतिि
की गई िी, िृिीय पररषि के िौरान अतभधम्म तपिाका को िोड़ा गया और बौि धमग के पतित्र ग्रंि तत्रतपर्क
को िक ं तलि तकया गया।
• चििु ग पररषि: चििु ग पररषि िषग 72 ईस्िीं में रािा कतनष्क के िंरक्षर् में कश्मीर के कुण्डलिन में आयोतिि
की गई िी, चििु ग पररषि के िौरान हीनयान और महायान को तिभातिि तकया गया िा।
4) बौि धमग के पिन के कारर्
1. बौि धमग उन धातमगक तक्याओ ं और िमारोहों के अधीन हो गया, तिनकी उन्होंने मल ू रूप िे तनंिा की िी।
2. उन्होंने पाली छोड़कर िंस्कृ ि को अपना तलया। उन्होंने मतू िग पिू ा शरू
ु कर िी और भक्िों िे कई ं िमान प्राप्ि
तकए।
3. मठ आिानी िे प्यार करने िालों के िचगस्ि के अधीन हो गए और भ्रष्र् प्रिाओ ं के कें द्र बन गए।
4. िज्रायन प्रिा का तिकाि होने लगा।
5. बौि मतहलाओ ं को िािना की िस्िु के रूप में िेखने लगे।
a. िातहवय
1. तत्रतपर्क
िवु ि तपिाका- बि
ु के िचन
तिनय तपिाका- मठ के कोड
अतभधम्म तपिाका- बि ु के धातमगक प्रिचन
2. तमतलिं पान्हों- मींिर और िंि नागिेना के बीच के िंिाि
3. िीपािाम्श (Dipavamsha) और महािाम्श (Mahavamsha) – श्रीलक ं ा का महान इतिहाि
4. अश्िघोष के द्वारा बौिचररत्र
b. िप्रं िाय
1. हीनयान (Lesser Wheel)- ये तनिागर् प्रातप्ि की गौिम बि ु की िास्ितिक तशक्षाओ ं में तिश्िाि करिे
हैं। िे मतू िग पिू ा में तिश्िाि नहीं करिे और हीनयान पाठ में पाली भाषा का प्रयोग करिे िे।
2. महायान (Greater Wheel)- इनका मानना है तक तनिागर् गौिम बि ु की कृ पा और बोतधिवि िे प्राप्ि
तकया िा िकिा है न तक उनकी तशक्षा का पालन करके । ये मतू िग पिू ा पर तिश्िाि करिे िे और महायान पाठ
में िंस्कृ ि भाषा का प्रयोग करिे िे।
3. िज्रायन- इनका मानना है तक तनिागर् िािू और काले िािू की िहायिा िे प्राप्ि तकया िा िकिा है।
c. बोतधिवि
1. िज्रपातर्
2. अिलोतकिेश्िरा या पद्मपातर्
3. मिं श्रू ी
4. मैत्रीय
5. तकतश्िग्रह
6. अतमिाभ/अतमवयषु ा
• पिू ा का स्िल- बि ु या बोतधिवि के अिशेषों िाले स्िपू । चैवय, प्रािगना कक्ष िबतक तिहार, तभक्षओ
ु ं के
तनिाि स्िान िे।
• गफ ु ा िास्िकु ला का तिकाि- िैिे गया में बराबर गफ ु ाएं
• मतू िग पिू ा और मतू िगयों का तिकाि
• उवकृ ष्र् तिश्ितिद्यालयों का तनमागर् तििने पूरे तिश्ि के छात्रों को आकतषगि तकया।
िैन धमग
• िैन धमग 24 िीिंकरों में तिश्िाि करिा है तििमें ऋषभिेि िबिे पहले और महािीर, बि ु के िमकालीन
24िें िीिंकर हैं।
• 23िें िीिंकर पाश्िगनाि (प्रिीक: नाग) बनारि के रािा अश्ििेन के पत्रु िे।
• 24िें और अंतिम िीिंकर ििगमान महािीर (प्रिीक: शेर) िे।
• उनका िन्म कंु डग्राम (तबहार तिला मिु ्फरपुर) में 598 ईिा पूिग में हुआ िा।
• उनके तपिा तििािग ‘ज्ञािृक कुल’ के मतु खया िे।
• उनकी मां तत्रशला, िैशाली के तलच्छिी के रािा चेिक की बहन िीं।
• महािीर, तबंतबिार िे िंबतं धि िे।
• यशोिा िे तििाह के बाि बेर्ी तप्रयिशगनी का िन्म हुआ, तिनके पति िमाली उनके पहले तशष्य बने। 30 िषग
की उम्र में, अपने मािा-तपिा की मृवयु के बाि, िह िन्यािी बन गए।
• अपने िन्याि के 13िें िषग (िैशाख के 10िें िषग) में, िृतम्भक ग्राम के बाहर, उन्हें ििोच्च ज्ञान (कै िल्य)
की प्रातप्ि हुई।
• िब िे उन्हें िैन या तििेंतद्रय और महािीर और उनके अनयु ातययों को िैन नाम तिया गया िा।
• उन्हें अररहिं की उपातध प्राप्ि हुई, अिागि,् योनयिा। 72 िषग की आयु में, 527 ईिा पिू ग में, पर्ना के पाि
पािा में उनकी मृवयु हो गई।
िैन धमग की पांच प्रतिज्ञाएं
• अतहिं ा- तहिं ा न करना
• िवय- झठू न बोलना
• अस्िेय- चोरी न करना
• अपररग्रह- िपं तवि का अतधग्रहर् न करना
• िह्मचयग- अतििातहि िीिन
िीन मख्ु य तििािं
• अतहिं ा
• अनेकांििाि
• अपररग्रह
िैन धमग के तत्ररवन
• िम्यक िशगन- िम्यक श्रिा
• िम्यक ज्ञान- िम्यक िन
• िम्यक आचरर् – िम्यक कमग
ज्ञान के पांच प्रकार
• मति िन
• श्रिु िन
• अितध िन
• मनाहप्रयाय िन
• के िल िन
िैन िभाएं
• प्रिम िभा 300 ईिा पूिग चंद्रगप्ु ि मौयग के िंरक्षर् में पार्तलपत्रु में हुई तििके िौरान 12 अंग िंकतलि तकए
गए।
• तद्विीय िभा 512 ईिा में िल्लभी में हुई तििके िौरान 12 अंग और 12 उपअंग का अंतिम िंकलन तकया
गया।
िंप्रिाय
• श्िेिांबर- स्िल
ू भद्र- िो लोग िफे ि िस्त्र धारर् करिे िे। िो लोग अकाल के िौरान उविर में रहे िे।
• तिगंबर- भद्रबाहु- मगध अकाल के िौरान डेक्कन और ितक्षर् में तभक्षओ ु ं का पलायन। ये ननन रहिे िे।
िैन िातहवय
िैन िातहवयकार प्रकृ ि का प्रयोग करिे िे, िो िस्ं कृ ि के प्रयोग की िुलना में लोगों की एक आम भाषा है। इि प्रकार
िे िैन धमग लोगों के माध्यम िे िरू िक गया। महविपर्ू ग िातहतवयक कायग इि प्रकार हैं-
• 12 अंग
• 12 उपअगं
• 10 पररक्र्
• 6 छे िित्रू
• 4 मल
ू ित्रू
• 2 ित्रू ग्रंि
• िंगम िातहवय का भाग भी िैन तिद्वानों की िेन है।
15.अश्मक पोिन ि. भारि में गोिािरी निी घार्ी के आि-पाि का क्षेत्र (द.भारत
का एक मात्र महाजनपद)
16 महािनपि – अिलोकन
1.अवषन्त : इिकी पहचान मध्य प्रिेश के आधतु नक मालिा क्षेत्र िे की िा िकिी है | तिन्ध्य पिगि श्रृंखला इिे
2 भाग में तिभातिि करिी िी ― उत्तरी अितन्ि और ितक्षर्ी अितन्ि | उत्तरी अितन्ि की रािधानी उज्ितयनी
और ितक्षर्ी अितन्ि की रािधानी मातहष्मति (आधतु नक माहेश्वर) िी | ये िोनों रािधातनयां उत्तर भारि के एक ओर
िक्कन िे और पतिमी िमुद्री िर् के बंिरगाहों िे िोड़ने िाले व्यापाररक मागग पर तस्िि होने के कारर् अवयंि
महविपर्ू ग िीं | प्राचीन काल में यहााँ हैहय िंश का शािन िा | प्रद्योि यहााँ का प्रिापी शािक हुआ |
2.अश्मक या अस्सक : पातर्तन की “अष्टाध्यायी” ,माकग ण्डेय परु ार् ,बृहि् िंतहिा ि कई यूनानी स्रोिों के
अनिु ार अश्मक का राज्य उत्तर-पतिमी भारि में िा | िबतक बौि ग्रन्िों के अनुिार यह नमगिा और गोिािरी नतियों
के बीच तस्िि िा और दषक्षण भारत का एकमात्र महाजनपद था | इि प्रिेश की रािधानी पोर्न (तििे
आधतु नक बोधन िे तचतन्हि तकया िा िकिा है) िी। इि राज्य के रािा इक्ष्िाकुिशं के िे। इिका अितन्ि के िाि
तनरंिर िघं षग चलिा रहिा िा और अिं िः यह राज्य अितन्ि के अधीन हो गया।
3.अंग : यह मगध के परू ब में , तबहार के ििगमान मगंु ेर और भागलपरु तिले के आिपाि का क्षेत्र िा | यह चम्पा
निी (आधतु नक चन्िन निी ) द्वारा मगध िे अलग होिा िा | इिकी रािधानी भी चंपा ही िी तििे पहले मातलनी
नाम िे भी िाना िािा िा । चंपा उि िमय भारि के िबिे प्रतिि नगरों में िे एक िी। अंग का मगध के िाि
हमेशा िंघषग होिा रहिा िा और अंि में मगध ने इि राज्य को परातिि कर अपने में तमला तलया| महाभारि का
प्रतिद्द रािा कर्ग इि अंग िेश का ही रािा िा | िीघग तनकाय के अनिु ार महागोतिंि ने इि नगर की तनमागर् योिना
बनाई िी | तबंतबिार ने अंग के शािक िह्मित्त को हराकर इि राज्य को मगध िाम्राज्य में िमातहि कर तलया |
िवपिाि अिािशत्रु को अंग का उप रािा तनयक्त ु तकया गया |
4.कम्बोज : यह गांधार-कश्मीर के उत्तर में आधतु नक पामीर का पठार क्षेत्र में तस्िि िा िहााँ रािौड़ी ि हिड़ा
क्षेत्र आिे िे | हार्क या रािापरु इि राज्य की रािधानी िी। ििगमान में यह भारि िे बाहर स्िातपि है | चन्द्र िधगन
ि ििु ाक्ष्ना इिके 2 िबिे प्रतिि शािक हुए |
5.काशी : काशी का राज्य उिर में वरुणा और ितक्षर् में असी निी के बीच बिा िा | इिकी रािधानी उत्तर
प्रिेश का ििगमान बनारि ( िारार्िी-तििका नाम िरुर्ा और अति नतियों के नाम पर ही पड़ा है ) िा | 23िें िैन
िीिंकर पाश्वगनाि के तपिा अश्विेन काशी के ही रािा िे | इिका कोशल,मगध ि अंग राज्य के िाि िंघषग चलिा
रहिा िा | गुतत्तल िािक के अनिु ार काशी नगरी 12 योिन तिस्िृि िी और भारि िषग की ििगप्रधान नगरी िी |
अंििः इिे कोिल राज्य में तमला तलया गया |
6.कुरु : परंपरानिु ार यह यतु धतष्ठर के पररिार द्वारा शातिि िा और इिकी रािधानी आधतु नक इन्द्रप्रस्ि (िो बाि में
7िीं ििी में िोमर रािपिू ों द्वारा तिल्ली नाम िे स्िातपि की गई) िी | इि महा िनपि में आधतु नक हररयार्ा ििा
तिल्ली के यमनु ा निी के पतिम के क्षेत्र अश ं शातमल िे | िैनों के उत्तराध्ययन ित्रू ग्रन्ि में यहााँ के इक्ष्िाकु नामक
रािा का उल्लेख तमलिा है | िािक किाओ ं में ििु िोम, कौरि और धनंिय यहााँ के रािा माने गए हैं |
कुरुधम्मिािक के अनिु ार, यहााँ के लोग अपने िीधे-िच्चे मनष्ु योतचि बिागि के तलए अग्रर्ी माने िािे िे और ििू रे
राष्रों के लोग उनिे धमग िीखने आिे िे | बि ु के काल िक कुरु एक छोर्ा िा राज्य िा िो आगे चलकर एक गर्-
िंघ बना |
7.कोशल/कोसल : यह एक शतक्तशाली राज्य िा तििमें ििगमान उत्तर प्रिेश के अयोध्या , गोंडा ,गोरखपरु और
बहराइच तिलों के क्षेत्र शातमल िे | यह पिू ग में गडं क (तििे शास्त्रों में ििानीरा कहा गया है),पतिम में गोमिी,
ितक्षर् में िाई ं(ितपगका निी ) और उत्तर में तहमालय की िराई के बीच तस्िि एक िरु तक्षि राज्य िा | िरयू निी इि
राज्य को उत्तरी ि ितक्षर्ी 2 तहस्िों में बीच िे तिभातिि करिी िी | उत्तरी कोिल की प्रिम रािधानी अयोध्या िी।
श्रािस्िी (तििकी पहचान आधतु नक िहेि -महेि के रूप में की गई है) इिकी तद्विीय रािधानी िी। कुशाििी ि
तिरपुर (आधतु नक श्रीपुर) ि.कोिल की रािधानी िी | कोशल के एक रािा कंश को पातलग्रंिों में ‘बारानतिनगहो’
कहा गया है | उिी ने काशी को िीि कर कोशल में तमला तलया िा | कोशल के िबिे प्रिापी रािा प्रिेनतिि हुए
िो बि ु के िमकालीन िे |
8.गांधार : पातकस्िान का पतिमी ििा अफ़गातनस्िान का पिू ी क्षेत्र और कश्मीर के कुछ भाग इि राज्य में आिे
िे । इिकी रािधानी िक्षतशला िी िो की एक िमकालीन ज्ञान एिं व्यापार की नगरी के रूप में प्रतिद्द िी | यहीं
भारि का पहला तिश्वतिद्यालय स्िातपि हुआ िा | प्राचीन िक्षतशला एक अवयंि प्रमख ु नगर िा िो अफगातनस्िान
और मध्य एतशया को िाने िाले स्िल मागों पर पड़िा िा और यह नगर तिंधु निी के द्वारा अरब िागर में तस्िि
िामतु द्रक मागों िे भी िड़ु ा हुआ िा | महाकाव्यों के अनिु ार, इिी स्िान पर िन्मेिय ने प्रतिि नाग यज्ञ करिाया
िा | बौि, िैन और यनू ानी स्रोिों में इि नगर की काफी चचाग हुई है | इि स्िान पर तकये गये परु ािातविक उवखननों
के िौरान िीन प्रमख ु बतस्ियों को रे खांतकि तकया गया है िो भीर, तिरकप और तिरिख ु के नाम िे िाने िािे हैं। भीर
का र्ीला इि नगर की प्राचीनिम बस्िी है िहां 6ठी – 5िीं शिाब्िी िा.िं.प.ू िे लेकर ििू री शिाब्िी िा. .प.ू िक
के अिशेष तमले हैं | ध्यािव्य हे तक गंधार का यह राज्य आधतु नक कंिहार िे अलग है िो तक इि क्षेत्र िे ितक्षर्
में तस्िि िा | पक्ु कुििी या पश्ु करतिन 6ठी ििी में यहााँ का प्रतिद्द शािक हुआ तििने अिन्िी को परातिि तकया
िा | (तक्षषशला की खोज एलेक्ज़ेंडर कषनंघम नामक पुरातत्वषवद ने 1871 में की थी जो षक भारतीय
परु ातषत्वक सवेक्षण (A.S.I) के प्रथम महा -षनदेशक थे | इसके अलावा उन्हें सघू न , अषहित्र, सगं ल,
षवराट, श्रावस्ती ,कौशाम्बी, पद्मावती, वैशाली, नालदं ा इत्याषद जैसे ऐषतहाषसक स्थलों की भी खोज का
श्रेय जाता है)
9.चेषद : चेिी ििगमान उत्तर प्रिेश के बंिु ल
े खंड का क्षेत्र िा | इिकी रािधानी शतक्तमिी िी िो िेट्ठीििी नगर के
नाम िे िानी िािी िी | इि राज्य का उल्लेख महाभारि में भी है | तशशपु ाल यहााँ का प्रतिद्द रािा िा तििका िध
परंपरानिु ार भगिन कृ ष्र् ने तकया िा |
10.वषज्ज या वषृ ज : ितज्ि का शातब्िक अिग होिा है- पशपु ालक िमिु ाय | यह 8 (कुछ स्रोिों के अनिु ार
9) राज्यों का एक िंघ िा िो अट्ठकुतलक कहलािे िे | यह गंगा निी के उत्तर में नेपाल की िराई में तस्िि िा
| ितज्ियों के इन आठ कुलों में ितज्ि, तलच्छति और तििेह और नयातत्रक ििागतधक महविपर्ू ग िे | अन्य कुल
उम्र,भोग,कौरि ,एच्छिक आति िे तिनके बारे में अतधक िानकारी नहीं तमलिी | नयातत्रक की रािधानी
‘नातिका’ िी | िैन महािीर इिी कुल के िे | इि िंघ का ििागतधक शतक्तशाली गर्राज्य िैशाली के तलच्छतियों
का िा, िो क्षतत्रय िे। इि राज्य की रािधानी िैशाली िी, तििकी पहचान आधतु नक तबहार के मिु ्फरपरु तिले में
गंडक निी के िर् पर तस्िि िशाढ िे की गई है | तििेह की रािधानी तमतिला िी, िो ििगमान नेपाल की िीमा में
िनकपरु नामक कस्बे के रूप में आि भी तिद्यमान है | गंगा निी ितज्ि और मगध बीच की िीमा का तनधागरर् करिी
िी | इि िघं में आठ न्यायालय िे | िैन परंपरा के अनिु ार, यहां महािीर का िन्म स्िान िा और परु ार्ों में इिे
िीिल नामक शािक का नगर बिलाया है,तििके कारर् इिका नाम िैशाली पड़ा | रािा िीिल का गढ कहे िाने
िाले पुरािातविक र्ीले िे पुराने िगु ग के अिशेष तमले हैं | यहीं िे प्राप्त एक िालाब को तलच्छतियों के राज्यातभषेक
िे िड़ु े प्रतिि िालाब में माना िािा है | षलछिषव गणराज्य को षवश्व का पहला गणतंत्र माना जाता है
| मगध के शािक अिािशत्रु ने अपने मंत्री िस्िकार की िहायिा िे ितज्ि कुल पर तििय प्राप्त कर ली ।
“महािस्ि”ु िे ज्ञाि होिा है तक महावमा बि ु 11 तलच्छतियों के तनमंत्रर् पर िैशाली गए िे | ितज्ि गर् िंघ के
शािक चेिक तत्रशाला (महािीर की मािा) के भाई िे और मगध के रािा तबतम्बिार की पवनी चेलान्ना के तपिा |
11.वत्स या वंश : उत्तर प्रिेश के प्रयाग (आधतु नक इलाहाबाि अििा प्रयागराि) के आि-पाि का क्षेत्र | इिकी
रािधानी कौशाम्बी िी िो बौि ि िैन िोनों धमों का प्रमख ु कें द्र िी | यह अपने उवकृ ष्ट ििू ी िस्त्रों के तलए प्रतिद्द िा
| बि ं का शािन िा तििका प्रिापी रािा उियन हुआ | उिने अिन्िी के शािक चडं प्रद्योि
ु काल में यहााँ पौरि िश
को बंिी बना तलया िा | पुरार्ों के अनिु ार, रािा तनचक्षु ने यमनु ा निी के िर् पर अपने राज्यिंश की स्िापना िब की
िी िब हतस्िनापुर राज्य का पिन हो गया िा |
12.पांचाल : इिके अंिगगि मध्य गंगा -यमनु ा िोआब का पतिमी उत्तर प्रिेश िमातहि िा तििमे रुहेलखण्ड
आिा है | यह गंगा निी द्वारा 2 शाखाओ ं में तिभातिि िा ― उत्तरी पंचाल और िक्षतर् पंचाल | उत्तरी पांचाल की
रािधानी अतहच्छत्र िी तििको आधतु नक बरे ली के राम नगर िे तचतन्हि तकया िािा है ,और िक्षतर् पांचाल की
रािधानी कातम्पल्य िी तििकी पहचान फरुगखाबाि तिले के कातम्पल्य िे की गई है | कन्नौि भी इिी क्षेत्र में तस्िि
िा | चल
ु ानी िह्मित्त पाचं ाल िेश का एक महान शािक हुआ |
13.मत्स्य या मछि : इिमें ििगमान रािस्िान के अलिर, भरिपरु ििा ियपरु के क्षेत्र शातमल िे | इिकी
रािधानी तिरार्नगर िी तििकी पहचान आधतु नक िैरार् के रूप में की गई है | इिका नाम इि राज्य के िंस्िापक
तिरार् के नाम पर पड़ा | ऐिा माना िािा है तक अज्ञाििाि के िौरान इिी राज्य ने पांडिों को शरर् तिया िा |
14.मल्ल : यह 9 कुलों का एक गर् िंघ िा िो पिू ी उत्तर प्रिेश के िेिररया और गोरखपुर के आिपाि
तिस्िृि िा | मल्लों की िो शाखाएाँ िीं | एक की रािधानी कुशीनारा िी िो ििगमान कुशीनगर या कतिया है ििा
ििू रे की रािधानी पािा या पि िी िो ििगमान फातिलनगर है | प्रारंभ में मल्ल का राज्य एक राििंत्र िा िो तक
बाि में गर्ित्रं में पररितिगि हो गया | कुश िािक में गोकाक को िहां का प्रतिि रािा बिाया गया है |
15.सरु सेन या शरू सेन : यह प.उत्तर प्रिेश में तस्िि िा तििकी रािधानी मिरु ा िी | प्रारंतभक ऐतिहातिक काल के
प्रमखु नगरों में मिरु ा का स्िान आिा है | महाभारि और परु ार्ों में इि स्िान को यािि िश ं ो िे िोड़ा गया तिनमें
िृष्र्ी भी एक कुल िा तििमें कृ ष्र् का िन्म हुआ िा | यह नगर गंगा के उबर मैिानों के द्वार पर तस्िि और
उत्तरापि का एक प्रमख ु के न्द्र है क्योंतक यहां िे उत्तरापि ितक्षर्ििी तिशा में मालिा की और िािा िा और एक मागग
पतिमी िर् को और मिरु ा नगर के उत्तर में यमनु ा के तनकर् अंबरोश र्ोला को मिरु ा के िांस्कृ तिक स्िर तिन्याि में
कालखंड िे िोड़ा गया है | बौि ग्रंिों के अनिु ार अिंति पत्रु यहााँ का रािा िा िो बि ु का तशष्य िा | उिी के
प्रयािों िे इि राज्य में बौि धमग का तिस्िार हुआ | परु ार्ों में मिरु ा के राििश ं कहा िािा िा |
ं को यििु श
16.मगध : मगध महािनपि ितक्षर् तबहार के ििगमान पर्ना ि गया तिले में तस्िि िा ि िभी 16
महािनपिों में िबिे शतक्तशाली तिि हुआ क्योंतक धीरे धीरे अन्य िभी राज्यों को स्िंय में िमातहि कर यह भारि
का प्रिम िाम्राज्य बना | मगध का प्रिम स्पष्ट उल्लेख अििग िेि में तमलिा है | हालांतक ऋनिेि में मगध का
प्रवयक्ष उल्लेख िो नहीं तकंिु कीकर् िािी और उिके रािा परमअंगि की चचाग है िो तक िंभिि इिी क्षेत्र िे
िबं तं धि है | मगध के बारे में अतधक िानकारी हमें महाभारि और परु ार्ों िे तमलिी है | शिपि िाह्मर् में भी इि
क्षेत्र को ‘कीकर्’ कहा गया है | गगं ा निी घार्ी के क्षेत्र में आने के कारर् यह एक अवयिं उपिाऊ क्षेत्र भी िा
| इिकी प्रारतम्भक रािधानी रािगृह (ििगमान रािगीर) िी िो चारो िरफ िे पिगिो िे तघरी होने के कारर् तगररिि
के नाम िे भी िानी िािी िी और िामररक रूप िे बहुि िरु तक्षि िी | रािगीर के ऐतिहातिक महवि को बौि एिं
िैन िोनों धमों िे िोड़ा गया है | यहााँ िो नगरों को रे खांतकि तकया िा िकिा है- प्राचीन रािगीर एिं निीन रािगीर |
प्राचीन रािगीर पांच पहातड़यों के बीच तस्िि िा तििके चारों िरफ़ िोहरे पविर के िरु क्षा घेरे बने हुए िे िो
तबतम्बिार के द्वारा बनिाए गए िे | निीन रािगीर भी पविर की िीिारों िे तघरा िा और प्राचीन रािगीर के उत्तर में
बिाया गया िा | यह िरु क्षा घेरे 25 िे 30 मील के िायरे में फै ले िे और िभं ििः अिािशत्रु के द्वारा बनिाए गए
िे | बाि में िैशाली एिं पार्तलपत्रु इिकी रािधातनयां बनी |
मगध का संषक्षप्त इषतहास
• मगध के िबिे प्राचीन िंश बहगद्रि िंश का िंस्िापक िृहद्रि िा | उिने तगररिि (रािगृह) को अपनी
रािधानी बनाई िी | महाभारि का शतक्तशाली रािा िरािंध िृहद्रि का पत्रु िा |
• बहगद्रि िंश 6ठी ििी ई.प.ू िमाप्त हो गया और हयगक िंश का िंस्िापक तबतम्बिार मगध की गद्दी पर
544 ई० प०ू बैठा | िह बि ु का िमकालीन िा और बौि धमग का अनयु ायी बना | उिने िह्मित्त को
हराकर अंग राज्य को मगध में तमला तलया। रािगृह का तनमागर् कर उिे अपनी रािधानी बनाया | तबतम्बिार
ने मगध पर करीब 52 िषों िक शािन तकया | महावमा बि ु की िेिा में तबतम्बिार ने ही राििैद्य िीिक
को भेिा | इतिहाि में तबतम्बिार की प्रतिति इितलय है की उिने िैिातहक िंबंध स्िातपि कर अपने
िाम्राज्य का तिस्िार तकया। इिने कोशल नरे श प्रिेनतिि की बहन महाकोशला िे, िैशाली के चेर्क की
पत्रु ी िेल्लना िे ििा मद्र िेश (आधतु नक पंिाब) की रािकुमारी क्षेमा िे तििाह कर इन राज्यों िे मगध के
अच्छे िम्बन्ध स्िातपि तकये | तििाह में उपहार के स्िरुप उिे कई क्षेत्र भी इन रािाओ ं िे तमले | कौशल
नरे श प्रिेनिीि िे उिे िहेि स्िरूप काशी प्राप्त हुआ िो तक आतिगक रूप िे एक अवयिं ही िमृि नगर हुआ
करिा िा | ििू री पवनी रािकुमारी चेलान्ना के कारर् उिके िाम्राज्य की उत्तरी िीमा िरु तक्षि हो गई |
• तितम्बिार की हवया उिके पत्रु अिािशत्रु ने कर िी और िह 493 ई० प०ू में मगध की गद्दी पर बैठा
| अिािशत्रु का उपनाम कुतर्क िा | अिािशत्रु ने 32 िषों िक मगध पर शािन तकया | अिािशत्रु
प्रारंभ में िैनधमग का अनयु ायी िा | तकंिु बि
ु के िम्पकग में आ कर उिने बौि धमग अपना तलया | अिािशत्रु
के कुशल मंत्री का नाम िषगकार या िरस्कार िा तििकी िहायिा िे अिािशत्रु ने िैशाली पर तििय प्राप्त
की | अिािशत्रु की प्रतिति रि – मिू ल एिं महा -शीला- कंर्क नामक िो नए अस्त्रों के प्रयोग के कारर् है
तििका प्रयोग उिने िैशाली के तिरुि अपने यि ु में तकया िा | अिािशत्रु की हवया उिके पत्रु उिातयन ने
461 ई० प०ू में कर िी और िह मगध की गद्दी पर बैठा |
• उिातयन को ही पातर्लग्राम की स्िापना का श्रेय िािा है िो आगे चलकर पर्ना बना | उिातयन िैनधमग
का अनयु ायी िा | उिातयन का पत्रु नागिशक हयगक िंश का अंतिम रािा हुआ |
• नागिशक को उिके मंत्री तशशनु ाग ने 412 ई० प०ू में अपिस्य करके मगध पर तशशनु ाग िंश की स्िापना
की |
• तशशनु ाग ने अपनी रािधानी पार्तलपत्रु िे हर्ाकर िैशाली में स्िातपि की | तशशुनाग का उत्तरातधकारी
कालाशोक या काकिर्ग पनु ः रािधानी को पार्तलपत्रु ले गया | तशशुनाग िश ं का अतं िम रािा नंतििधगन िा
| इिके बाि मगध में निं िश
ं की स्िापना हुई |
• ं का िस्ं िापक महापद्म निं िा | कई ग्रन्िों में उिे उग्रिेन कहा गया है | िबतक निं िश
नन्ििश ं का अंतिम
शािक घनानंि तिकन्िर के आक्मर् के िमय मगध का िम्रार् िा | चन्द्रगप्तु मौयग ने अपने कूर्नीति गरुु
चार्क्य (कौतर्ल्य अििा तिष्र्गु प्तु ) की िहायिा िे घनानंि को पिस्ि कर मौयग िाम्राज्य की स्िापना की |
इिके बाि कई शिातब्ियों िक मगध भारि का शतक्त कें द्र रहा |
• मगध की भौगोतलक तस्िति:- मगध की रािधानी रािगृह एिं पार्तलपत्रु प्राकृ तिक िीमाओ ं िे िरु तक्षि िी |
रािगृह पहातड़यों िे और पार्तलपत्रु नतियों िे तघरा हुआ िा | इितलए इि पर बाहरी आक्मर् िम्भि नहीं
िा | अिः यहााँ के रािाओ ं को राज्य तिस्िार का अििर प्राप्त हुआ, तििका लाभ उन लोगों ने उठाया |
िाि ही िे बाहरी आक्मर्ों िे भी बहुि हि िक िरु तक्षि रहे |
• आतिगक िम्पन्निा:- इि राज्य में कृ तष, उद्योग और व्यापार की उन्नि तस्िति िी | मगध का राज्य गगं ा के
उपिाऊ मैिान में आिा िा और िाि ही यहााँ लोहे के भी प्रचुर खान उपलब्ध िे (तिनमें िे अतधकांश अब
झारखण्ड में आिे हैं) िो कृ तष ििा औिार िोनों में अवयंि लाभाकरी िे | राज्य को भरपरू कर की प्रातप्त
होिी िी, तििके बल पर िेना का गठन कर िाम्राज्यिािी प्रिृतत्त को बढािा तिया गया |
• िैतनक िंगठन:- मगध में िदृु ढ िैन्य व्यिस्िा िी | इिके पाि हािी की र्ुकड़ी िी, िो िलिली क्षेत्र में घोड़े
ु िी | यि
िे अतधक उपयक्त ु के नए अस्त्र-शस्त्रों िे मगध की िेना ििु तज्िि िी | मगध की िैतनक ििोच्चिा
ने मगध के उवकषग में प्रमख
ु भतू मका तनभाई।
• आरंतभक िैन और बौि लेखकों ने मगध की महत्ता का कारर् तितभन्न शािकों की नीतियों को बिाया है |
इन लेखकों के अनिु ार तबंतबिार, अिािित्तु ,अशोक , चन्द्रगप्तु और महापद्मनंि िैिे प्रतिि रािा अवयंि
महविाकांक्षी शािक िे, और इनके मंत्री उनकी नीतियााँ लागू करिे िे | मगध में अनेक िाम्राज्यिािी प्रिृतत्त
के शािक हुए, तिन्होंने युि एिं कूर्नीति द्वारा मगध की िीमा का तिस्िार तकया। तबतम्बिार की “तििाह के
द्वारा कुर्नीतिक प्रिार की तनि “ अवयिं िफल रही |
1. रामग्राम के कोषलय- यह राज्य शाक्यों के पूिग में बिा हुआ िा | िोनों राज्यों की तिभािक रे खा रोतहर्ी
निी िी और निी-िल के बाँर्िारे के तलए िोनों राज्यों में िघं षग चलिे रहिे िे
2. पावा के मल्ल- यह महािीर की तनिागर् स्िली िी
3. कुशीनारा के मल्ल- यह गौिम बि ु की तनिागर् स्िली िी
4. षमषथला के षवदेह- तििेह की रािधानी तमतिला िी | यह ितज्ि िंघ का ही एक घर्क राज्य िा
5. षपप्पलीवन के मोररय- यह गर्राज्य नेपाल की िराई में तस्िि िा और मौयों िे इनका िम्बन्ध िोड़ा
िािा है
6. सुसुमार के भग्ग- यह राज्य आधतु नक तमिागपरु , उत्तर प्रिेश के तनकर् तस्िि िा
7. अल्लकप्प के वषु ल- ितु ल,शाहाबाि और मिु ्फरपरु के मध्य बिा हुआ अल्लकप्प राज्य का भाग िा
8. के सपुत्त के कालाम- यह एक छोर्ा-िा गर्राज्य िा | गौिम बि ु के गरु आलार कलाम यहीं के आचायग
िे | यहााँ का प्रतिि नगर के िपत्तु गोमिी निी के िर् पर बिा हुआ िा
9. वैशाली के षलछिषव- यह गर् िृतज्ि िंघ का घर्क िा। इि िंघ में िबिे प्रमख ु तलच्छति ही िे
| तलच्छतियों को परम्परा पर आधाररि न्याय-व्यिस्िा के तलए िाना िािा है | तलच्छति गर्राज्य को
तिश्व का पहला गर्िंत्र माना िािा है | .
हयाक वंश
का िंस्िापक तबंतबिार िा। िैन िातहवय में तबंतबिार को श्रेतर्क क्यों कहा गया है। तबंतबिार ने रािगृह (तगररिि)
नामक नगर की स्िापना की ििा इिे अपनी रािधानी बनाई ।रािगृह िीनों ओर िे पहातड़यों िे तघरा हुआ
िा। तबंतबिार ने तिियों ि िैिातहक िंबंधों के द्वारा अपने िंश का तिस्िार तकया। इिने 3 राििंशों मैं िैिातहि
िबं धं स्िातपि तकए प्रिम षलछिवी गणराज्य के शासक चेटक की पााँचिी पत्रु ी चेलना के िाि तििाह तकया।
तद्विीय, कौशल राज्य प्रिनिीि की बहन महाकौशला िे तििाह तकया तिििे िहेि में काशी का प्रांि प्राप्त हुआ।
िृिीय, मद्र िेश (कुरू के िमीप) की रािकुमारी िे तििाह तकया। Dy
nasties of Magadha
Empire In Hindi
तबंतबिार की हवया उिके पत्रु अिािशत्रु ने कर िी । आिाि शत्रु को कुतर्क भी कहा िािा है। अिािशत्रु का
कौशल नरे श प्रिनिीि िे यि ु हुआ तिििे पहले िो प्रिनिीि की हार हुई परंिु बाि में िोनों में िमझौिा हो गया
प्रिनिीि ने अपनी पत्रु ी िातिरा का तििाह अिािशत्रु िे कर तिया। अिािशत्रु का ितज्ि िघं के िाि भी यि ु हुआ,
तििमें उिने अपने कूर्नीतिज्ञ मंत्री िविकार की िहायिा िे तलच्छतियों की शतक्त पर तििय प्राप्त की। इि प्रकार
काशी और िैशाली को तमला लेने के बाि मगध का िाम्राज्य और तिस्िृि हो गया। अिािशत्रु के शािनकाल के
8िें िषग में गौिम बि
ु की मृवयु हुई िी। अिािशत्रु के काल में रािगृह की िप्तपर्ी गफ
ु ा (या ित्तपर्गगहु ा) में प्रिम
बौि िगं ीति का आयोिन तकया गया। Dynasties of Magadha Empire In
Hindi
अिािशत्रु की हवया इिके पत्रु उितयन ने कर िी। उतिय ने गंगा और िोनू नतियों के िंगम पर पार्तलपत्रु / कुिमु परु
नामक नगर की स्िापना की ििा रािगृह िे अपनी रािधानी िही स्िानांिररि की। अितन्ि के शािक “पालक” की
शह पर “उिातयन” की हवया की गई िी, एक व्यतक्त ने छुरा घोंप कर की। उितयन के बाि उिके िीन पत्रु ों अतनरुि,
मडंु क और नागिशक (िशगक) ने बारी-बारी िे तकिने राि तकया। बाि में िनिा ने इन तपिृहन्िाओ ं को शािन िे
हर्ाकर तशशनु ाग नामक एक योनय अमावय को रािा बनाया।
• मड
ं क
• नागिशक
मगध िाम्राज्य का िबिे शतक्तशाली शािक िा पुरार्ों में इिे एकछत्र एकरार् कहा गया है इिके अतिररक्त
महापद्यनन्ि की अन्य उपातधयां उग्रिेन, आपरोपरशुराम, ििग क्षत्रान्िक आति िी महापद्यनन्ि ने कतलंग की तििय
ििा िहां तिन िुतलया नामक नहर भी खिु िाई। इिका उल्लेख बाि में कतलंग के शािक खारिेल ने अपनी
हािीगुम्फा अतभलेख में तकया है इिी अतभलेख िे पिा चला है तक महापद्मनिं कतलगं िे तिनिेन की िैन प्रतिमा
उठा लाया िा।
निं िशं का अतं िम शािक धनानदं हुआ घर आनिं के िमय ही 326 ईिा पिू ग में तिकंिर ने भारि पर आक्मर्
तकया िा घनानिं के परु ोतहि चार्क्य ने चद्रं गप्तु मौयग की िहायिा िे परातिि तकया इि प्रकार मगध में मौयग िश
ं की
स्िापना हुई
नंि िंश का अंतिम शािक घनानंि हुआ धनानंि के िमय में ही 326ई. प.ू में तिकंिर ने भारि में आक्मर् तकया
िा। धनानंि के परु ोतहि चार्क्य ने चंद्रगप्तु मौयग की िहायिा िे धनानंि को परातिि तकया। इि प्रकार मगध में मौयग
िंश की स्िापना हुई। Dynasties of Magadha Empire In Hindi
छठी ििी ई.प.ू के िौरान भारि के रािनीतिक ,आतिगक, िामातिक एिं धातमगक क्षेत्र में कुछ महविपर्ू ग पररििगन हुए।
आगे इन पररििगनों ने भारि के इतिहाि को एक निीन तिशा प्रिान की। िस्ििु ः यह िमस्ि पररििगन िवकालीन िीिन
की निीन आिश्यकिाएं के ही पररर्ाम िे। इन्हीं पररििगनों के कारर् छठी ििी ई.प.ू के इतिहाि को प्राचीन भारिीय
इतिहाि में तिशेष स्िान प्राप्त है।
छठी ििी ई.प.ू की महविपूर्ग घर्नाएं /पररििगन
> राजनीषतक क्षेत्र की महत्वपूणा घटनाएं /पररवतान– गर्िंत्रों की स्िापना ,16 महािनपिों/ तद्विीय नगरीकरर्
का उिय ,मगध का उवकषग आति।
> आषथाक क्षेत्र की महत्वपूणा घटनाए/ं पररवतान– कृ तष उवपािन में िृति ,निीन तशल्प -उद्योगों का तिकाि,
िातर्ज्य- व्यापार में तिस्िार, तनयतमि मद्रु ा का प्रचलन, तद्विीय नगरीकरर् का उिय आति।
> सामाषजक क्षेत्र का महत्वपण ू ा घटनाएं /पररवतान– िर्ग व्यिस्िा में पररििगन ,िाति व्यिस्िा एिं अस्पृश्यिा
का उद्भि, तस्त्रयों की तस्िति में तगरािर् आति।
> धाषमाक क्षेत्र की महत्वपूणा घटनाएं /पररवतान– आश्रम व्यिस्िा परुु षािग, 16 िंस्कार ,आठ प्रकार के तििाह
का प्रचलन ,िैन ि बौि धमग का उद्भि आति।
Alexander Invasion in India
लाया था।
▪ षसकंदर के आक्रमण ने एक एकीकृत साम्राज्य बनाने की आवश्यकता के षलए भारतीय राजनेताओ ं
▪ और, कालानक्र ु षमक कषिनाइयों को हल करने में काफी मदद करती है।
यह भारि के इतिहाि में ििग िबिे महान िाम्राज्यों में िे एक िा। मौयों का शासन 322 - 185 ई.पू. िहां
महान िंस्िापक िम्रार् चंद्रगप्तु मौयग द्वारा भारि के अतधकांश तहस्िे को एक राज्य के रूप में एकिर्ु तकया गया
िा। कौषटल्य या चाणक्य की मदद से चंद्रगुप्त मौया ने इस षवशाल साम्राज्य की नींव रखी।
चंद्रगप्तु के बाद, उनके पत्रु षबदं ु सार ने लगभग परू े उपमहाद्वीप पर राज्य का तिस्िार तकया। यह ध्यान तिया िाना
चातहए तक मौयग िाम्राज्य के पाि प्राचीन भारि में िबिे शतक्तशाली िेना िी। षबंदुसार के बाद मौया वंश का सबसे
बडा सम्राट अशोक आया। िे एक कुशल योिा और कुशल प्रशािक िे। कतलंग यि ु के बाि, अशोक बौि धमग
का अनयु ायी बन गया और उिने तमशनररयों को भेिकर भारिीय उपमहाद्वीप में इिका प्रिार तकया।
मौयग राििंश के शािकों के तििरर् का िर्गन हम एक अन्य पोस्र् में करें गे, पहले मौयग िाम्राज्य के बारे में एक अन्य
महविपर्ू ग तिषय पर तिचार करिे हैं, उनका प्रशािन
'राििरंतगर्ी' के लेखक कल्हर् के अनिु ार अशोक भगिान तशि का अनयु ायी िा।
ऐतिहातिक स्रोि
चंद्रगप्तु के िीिन और उपलतब्धयों का िर्गन प्राचीन और ऐतिहातिक ग्रीक, तहंि,ू बौि और िैन ग्रंिों में तकया गया
है, हालांतक िे तिस्िार िे काफी तभन्न हैं। चंद्रगप्तु मौयग के िीिन का िर्गन करने िाले ऐतिहातिक स्रोि तिस्िार िे
काफी तभन्न हैं। चंद्रगप्तु का िन्म लगभग 340 ईिा पिू ग हुआ िा और लगभग 295 ईिा पिू ग में उनकी मृवयु हो
गई िी।
कालानक्
ु तमक क्म में उनके मख्ु य िीिनी स्रोि हैं:
भारि की िंिि में चरिाहा चंद्रगप्तु मौयग की मतू िग
▪ ग्रीक और रोमन स्रोि, िो िबिे परु ाने िीतिि अतभलेख हैं तिनमें चंद्रगप्तु या उनिे िंबंतधि पररतस्ितियों
का उल्लेख है; इनमें तनयरचि, ओनेतितक्र्ि, कै िंतड्रया के अररस्र्ोबुलि, स्रैबो, मेगस्िनीि,
तडयोडोरि, एररयन, तप्लनी ि एल्डर, प्लर्ू ाकग और ितस्र्न द्वारा तलतखि कायग शातमल हैं।
▪ परु ार् और अिगशास्त्र िैिे तहिं ू ग्रंि; बाि में रतचि तहिं ू स्रोिों में तिशाखित्त की मद्रु ाराक्षि, िोमिेि की
किािररििागर और क्षेमेंद्र की बृहिकिामंिरी में तकंिितं ियां शातमल हैं।
▪ बौि स्रोि िे हैं िो चौिी शिाब्िी या उिके बाि के हैं, तिनमें श्रीलंकाई पाली ग्रंि िीपिंश (राििंश
खंड), महािंश, महािंश र्ीका और महाबोतधिंश शातमल हैं।
श्रिर्बेलगोला में 7िीं िे 10िीं शिाब्िी के िैन तशलालेख; ये तिद्वानों के िाि-िाि श्वेिाबं र िैन
▪
परंपरा द्वारा तििातिि हैं। [ मौयग िम्रार् का उल्लेख करने के तलए व्याख्या तकया गया ििू रा तिगंबर पाठ
10 िीं शिाब्िी के बारे में है िैिे तक हररिेना (िैन तभक्ष)ु के िहिकिाकोश में, िबतक चंद्रगप्तु के बारे
में परू ी िैन किा 12 िीं शिाब्िी में हेमचंद्र द्वारा पेररिष्टपिगन में पाई िािी है।
Sunga Dynasty : 185 BC – 73 BC Post Mauryan Period
Kanva Dynasty : 73 BC – 28 BC
▪ िगंु िंश के अंतिम शािक देवभूषत िे।
▪ और, उनके मंत्री िे वासुदेव।
▪ मौयग काल में इडं ो – ग्रीक्ि उत्तर पतिमी भारि के पहले तििेशी शािक िे।
▪ और, उनके प्रतिि शािक का नाम िा मेनआनडर, तिन्हे षमषलंडा के रूप में भी िाना िािा िा।
▪ 165 – 145 ईिा पिू ग में तमतलंडा ने बौि धमग िे प्रभातिि होकर बौि धमग को अपना तलया िा।
▪ और, बौि धमग में उनके गरुु के नाम िे नागसेन तिन्हे नागाजानु के नाम िे भी िाना िािा िा।
▪ ििा, इडं ो – ग्रीक शािन काल भारि के इतिहाि में महविपर्ू ग है,
▪ क्योंतक बड़ी िख्ं या में तिक्के उिी शािन काल में िारी तकये गए िे।
▪ ििा, इडं ो – ग्रीक भारि में सोने के षसक्के िारी करने िाले पहले शािक िे।
▪ और, उत्तर पतिमी भारि में गांधार स्कूल को शरू ु करने का श्रेय इडं ो – ग्रीक के ऊपर िािा है।
▪ इिके िाि इन स्कूल में ‘हेलेतनक’ यानी ग्रीक िुतिधाओ ं और ग्रीक प्रभाि भी पाया गया है।
The Sakas : 1st Century BC – 4th Century AD
की िगह ले ली िी।
▪ तििके कारर्, शक (Sakas) के शािन क्षेत्र को बहुि छोर्ा कर तिया िा।
▪ और, गोंडफनेि के शािन काल में ही िेंर् िॉमि (St. Thomas) ईिाई धमग के प्रचार के तलए भारि
आए िे।
The Kushans : 1st Century AD – 3rd Century AD
▪कुषार् मध्य एतशया के पााँच येऊची (Yeuchi) कुलों में िे एक कुल िे।
▪ कुषार् ने उत्तर – पतिमी भारि में पातिगयनों की िगह ली,
▪ और, तफर तनचले तिध ं ु बेतिन और मध्य गगं ा िक िाम्राज्य को तिस्िार तकया।
▪ प्रिम कुषार् िंश की स्िापना कडषफसेस I / कुजुल कडषफसेस द्वारा की गई िी।
▪ इिी िरह दूसरा कुषाण वंश कमनष्क द्वारा स्िातपि तकया गया िा।
▪ इिी शािन काल में कुषार् िश ं के रािाओ ं ने ऊपरी भारि पर अपने शतक्त का तिस्िार तकया िा।
▪ उनकी रािधातनयााँ पेशािर (परु ु षपरु ा) और मिरु ा में िीं।
▪ कुषार् िंश में 78 – 101 ईिा में िबिे प्रतिि कुषार् शािक कतनष्क िा।
▪ इनके शािनकाल में कश्मीर के कुंडलवन में 4 वें बौद्ध पररिद का आयोिन तकया गया िा।
▪ िहााँ बौि धमग के महायान रूप के तििांिों को अंतिम रूप तिया गया िा।
▪ और, इनके शािनकाल के िमय ही शाही िरबार में परसवा, वसुमित्र, अश्वघोष, नागार्ु न,
▪ एक नाषवक, षहप्पालस, ने पतिम एतशया िे भारि के तलए मानिन ू िमद्रु ी मागग की खोि की िी।
▪ और, महविपर् ू ग बिं रगाह िे, बैरगाजा और बारबेररकम िो की पतिमी िर् पर िे।
▪ ििा, अररकमे डु बि ं रगाह पातं डचेरी पिू ी िर् के पाि िे।
▪ और, Post Mauryan Period में ही भारि का मध्य एतशया, चीन, रोमन तिश्व और ितक्षर् पि ू ग
एतशया िे िंपकग िा।
The Gupta Empire in Ancient India
▪ Gupta Empire की नींि तीसरी ििा चौथी शिाब्िी की शरुु आि में हुआ िा।
▪ मौयागकाल की िीिरी शिाब्िी ईस्िी में तीन राजवंशो का उिय हुआ िा।
▪ तिनमे मध्य भारत में नाग शषक्त, दषक्षण भारत में वाकाटक शषक्त ििा पूवी भारत में गुप्त वंश की
शतक्त प्रमख
ु िे।
▪ मौयग िंश के पिन के पिाि नष्ट हुई रािनीतिक एकिा को पनु ः स्िातपि करने का श्रेय गप्तु िंश को िािा है।
▪ गप्तु राििंश प्राचीन भारि के िभी राििश ं ों में िे प्रमख
ु एक राििश
ं िा।
▪ ििा, इि गप्तु िश ं का प्राचीन शरुु िािी राज्य आधषु नक भारत के उत्तर प्रदेश ििा षबहार है।
▪ ु िाि 280 ईशा के आिपाि िी।
गप्तु िाम्राज्य के प्रारंतभक शरू
▪ लेतकन, इि िाम्राज्य के पूर्ग शािन काल 319 ईसा से 540 ईसा िक िी।
▪ Gupta Empire में िंस्िापक के रूप में श्रीगुप्त को िाना िािा है।
▪ हालांतक पूना ताम्रपत्र अतभलेख में श्रीगप्तु को ‘आषदराज’ कहकर िम्बोतधि तकया गया है।
▪ यातन श्रीगप्तु तकिी के अधीन शािक िा।
▪ क्यों की उि िमयकाल में महारािा की उपातध ‘सामन्तों’ को प्रिान की िािी िी,
▪ इिीतलए श्रीगप्तु भारतशिों शािक के अधीन प्रयाग राज्य का शािक िा।
▪ श्रीगप्तु के िाि इि राििंश में श्रीगप्तु का पत्रु घटोत्कच गुप्त प्रिम रािा बना।
▪ 280 ईसा के आिपाि गप्तु िाम्राज्य में पहले रािा हुये।
▪ इि िाम्राज्य में शािक घर्ोवकच का राज्य मगध के आि-पाि िक ही िीतमि िा।
▪ और, लगभग 467 ईसा िक यह िाम्राज्य का राि िा।
▪और, प्रारतम्भक गप्तु रािाओ ं का िाम्राज्य गंगा द्रोणी, प्रयाग, साके त (अयोध्या) ििा मगध िक
फै ला फै ला हुआ िा।
King Chandragupta I
▪ Gupta Empire में घटोत्कच गुप्त के बाि उनके पत्रु चन्द्रगुप्त प्रथम रािा बने िे।
▪ इि िाम्राज्य के चन्द्रगप्तु प्रिम स्ििन्त्र मगध शािक िा।
▪ चन्द्रगप्तु प्रिम का शािन काल 320 ईसा से 334 ईसा के आिपाि िी।
▪ और, उन्होंने मगध िाम्राज्य को तिस्िृि करने के तलए तलच्छति राज्य िे भी िंबंध िोड़े िे,
▪ षलछिषव के रािकुमारी कुमारदेवी के िाि चन्द्रगप्तु प्रिम का तििाह हुआ िा।
▪ तििके फलस्िरूप, मगध तलच्छति राज्य के क्षेत्र में िमातहि हो गया।
▪ और, इि िम्बन्ध को स्िातपि करके चन्द्रगप्तु प्रिम ने अपने राज्य मगध को रािनैतिक दृतष्ट िे िदृु ढ ििा
आतिगक दृतष्ट िे िमृिशाली बना तिया िा।
▪ ििा, चन्द्रगप्तु प्रिम ने कौशाम्बी और कौशल िैिे राज्यों के महारािाओ ं को भी िीि तलया िा।
▪ और, अपने राज्य में िमातहि करने के िाि िाि िाम्राज्य की रािधानी पाटषलपुत्र में स्िातपि कर िी
िी।
▪ चन्द्रगप्तु प्रिम ने ‘महाराजा षधराज’ की उपातध प्राप्त की िी।
▪ और, चन्द्रगप्तु प्रिम के शािनकाल में ही उन्होंने अपने तििाह की स्मृति में कुमार िेिी ििा उनके
तचत्र के तिक्के भी चलाए िे।
▪
Gupta Empire king Samudragupta
▪ Gupta Empire में चंद्रगप्तु प्रिम के प्रिाि उनके पत्रु समुद्रगुप्त इि राििंश का रािा बने िे।
▪ िमद्रु गप्तु कुमारिेिी ििा चंद्रगप्तु प्रिम का पत्रु िा।
▪ और, िमद्रु गप्तु 335 ईसा से 380 ईसा पिू ग िक अपने रािगद्दी पर शािन तकया िा।
▪ इि िाम्राज्य की रािधानी पाटषलपत्रु िी।
▪ िमद्रु गप्तु प्राचीन भारिीय इतिहाि में गप्तु राििश ं का अिाधारर् िैतनक योनयिा िाला एक महानिम
शािक िा।
▪ और, हररिेण िेिे तिद्बान इनके िाम्राज्य के मन्त्री ििा िरबारी कति िे ।
▪ इिके िाि िे िमद्रु गप्तु की राििभा के एक महविपर्ू ग िभािि भी िे।
▪ और, इन्होने प्रतिि कृ ति ‘प्रयाग प्रशषस्त’ में िमद्रु गप्तु की िीरिा का िर्गन तकया है।
▪ िमद्रु गप्तु को नेपोषलयन की भी उपातध िी गई िी।
▪ िमद्रु गप्तु का महविपर्ू ग अतभयान ितक्षर् की िरफ़ िा।
▪ और, उन्होंने ितक्षर् में बारह षवजयों तकये िे।
▪ और, िमद्रु गप्तु एक अच्छे शािक होने के िाि िाि िे एक िंगीिज्ञ, कति और कला के िानकर भी िे।
▪ ििा, गप्तु िाम्राज्य में िमद्रु गप्तु का शािनकाल रािनैतिक तिस्िार और प्रतिि िांस्कृ तिक दृतष्ट कोर् के
कारर् इिे प्रषतष्ठा काल भी माना गया है।
▪ इिके िाि िमद्रु गप्तु ने तलच्छतियों के ििू रे राज्य नेपाल को भी अपने राज्य में तमला तलया िा।
▪ िमद्रु गप्तु ने एक तिशाल िाम्राज्य का तनमागर् तकया िो की उत्तर में षहमालय िे लेकर दषक्षण में षवन्ध्य
पवात िक िा।
▪ििा, पूवा में बंगाल की खाडी िे पषिम में पूवी मालवा िक तिस्िृि िा।
▪ लेतकन, तिन्ध, गि ु राि, कश्मीर और पतिमी रािस्िान को छोड़कर िमस्ि उत्तर भारि इि िाम्राज्य में
ितम्मतलि िा।
▪ ििा, ितक्षर् के शािक ििा पतिम भारि की तििेशी शतक्तयााँ भी इनकी अधीनिा को स्िीकार करिी िीं।
▪ 380 ईसा में िमद्रु गप्तु का िेहान्ि के प्रिाि, उनके पुत्र रामगुप्त Gupta Empire के रािा बने।
▪ और, रामगुप्त के िोटे भाई चन्द्रगुप्त षितीय िे।
▪ लेतकन, रामगप्तु एक कायर रािा िा।
▪ तििके चलिे िे शकों द्वारा परातिि होने िाि एक अपमान िनक ितन्ध कर अपने पवनी रुवस्वाषमनी को
शकरािा के पाि भेंर् कर तिया िा ।
▪ इिी के कारर् रामगप्तु तनन्िनीय के पात्र हो गया िा।
▪ लेतकन, रामगप्तु के छोर्े भाई चन्द्रगप्तु तद्विीय बड़ा ही पराक्मी ििा स्िातभमानी िा।
▪चन्द्रगप्तु तद्विीय ने ध्रिु स्िातमनी को उिार तकया।
▪ और, अपने बड़े भाई रामगप्त ु की हवया कर 375 इसा में चन्द्रगप्तु तद्विीय ने रािगद्दी पर आिीन हुये ,
▪ ििा, ध्रि ु स्िातमनी िे तििाह कर उन्हें अपना पवनी बना तलया,
▪ और, िच ु ारु रूप िे शािन करने लगे िे।
Gupta Empire king Chandragupta II Vikramaditya (Golden Age)
▪ चन्द्रगप्त
ु तद्विीय ने िबिे पहले शकों द्वारा परे शानी करने िाली गिु राि के कातठयािाड़ ििा पतश्चमी
मालिा को 389 ईिा िे 412 ईिा के मध्य में आक्मर् कर तितिि तकया िा।
▪ उिके िाि, चन्द्रगप्त ु तद्विीय ने तिन्धु के पााँच मख ु ों को पार कर वाषहकों पर तििय प्राप्त की िी।
▪ ििा, िातहकों का िमिल् ु य कुषार्ों के िमरूप पाया गया है।
▪ उिके प्रिाि, उन्होंने बग ं ाल के शासकों के िघं के ऊपर तििय प्राप्त तकया िा।
▪ महाशैली स्िम्भ लेख के अनि ु ार यह िभी के ऊपर चन्द्रगप्तु तद्विीय ने तििय पाई िी।
▪ और, अपने िाम्राज्य में तिलीन कर तिस्िृि कर तिया िा।
▪ चन्द्रगप्त
ु तद्विीय की शािनकाल में ही उन्होंने अपने िरबार में षविानों ििा कलाकारों को आश्रय प्रिान
तकया िा।
▪ उनके िरबार में षवशाखदत्त, शूद्रक, ब्रम्हगुप्त, षवष्णुशमाा , भास्कराचाया, अमरषसंह, शंकु,
▪ चन्द्रगप्तु तद्विीय की मृवयु के बाि 415 ईसा में उनके पत्रु कुमारगुप्त प्रथम ने Gupta Empire की
रािगद्दी िभं ाली िी।
▪ िह चन्द्रगप्तु तद्विीय की पवनी रुवदेवी की िबिे बड़ा पत्रु िा।
▪ ििा, गोषवन्दगुप्त उनका छोर्ा भाई िा।
▪ और, िे वैशाली का राज्यपाल िा।
▪ इिके िाि कुमारगुप्त प्रथम ने अपने शािनकाल में भी समुद्रगुप्त की िमरूप दषक्षण भारत में तििय
अतभयान चलाया िा।
▪ और, कुमारगप्तु ने भी िमद्रु गप्तु की िरह अश्वमेध यज्ञ कराये िे,
▪ ििा, िमद्रु गप्तु की िरह कुमारगप्तु प्रिम ने भी तिक्के चलाये िे।
▪ और, षमलरक्द अतभलेख िे मालमू परिा हे की,
▪ कुमारगप्तु प्रिम का शािनकाल िव्ु यिस्िा ििा शातन्ि का शािनकाल िा।
▪ उन्होंने अपने िाम्राज्य को िंयोतिि और िुखि बनाये रखा िा।
▪ कुमारगप्तु प्रिम ने भी िमद्रु गप्तु और चन्द्रगप्तु प्रिम ििा तद्विीय की िरह कई उपातधयााँ धारर् कीं िी।
▪ श्री महेन्द्र षसहं , महेन्द्र कुमार, महेन्द्रा षदव्य और श्री महेन्द्र िैिे उपातधयााँ उनके अतधकार में िा।
▪ कुमारगप्तु प्रिम के शािनकाल में ही नालन्दा षवश्वषवद्यालय की स्िापना की गई िी।
▪ और, 455 ईसा में कुमारगप्तु प्रिम की मृवयु हो गई िी।
▪ कुमारगप्तु ने चालीस विों िक अपने िाम्राज्य पर शािन तकया िा।
▪इिके इलािा, कुमारगप्तु प्रिम स्ियं एक वैष्णव धमाानुयायी िा।
▪ और, उन्होंने धमा सषहष्णत ु ा नीषत का भी पालन तकया िा।
Gupta Empire king Skandagupta
▪ कुमारगप्तु प्रिम की मृवयु के िमय ही पष्ु यषमत्र ने Gupta Empire पर आक्मर् तकया िा।
▪ पष्ु यतमत्र उत्तर भारि के एक महान रािा िे।
▪ और, िे शुंग साम्राज्य के िंस्िापक भी िे।
▪ लेतकन, कुमारगप्तु प्रिम की पत्रु स्कन्दगुप्त ने पष्ु यतमत्र को यि
ु में परास्ि कर तिया िा।
▪ और, 455 ईसा में गप्तु िाम्राज्य के रािा के रूप में तिंहािन पर बैठा िा।
▪ उन्होंने, बारह विा िक िाम्राज्य में शािन तकया िा।
▪ ििा, षवक्रमाषदत्य, क्रमाषदत्य आति उपातधयााँ भी धारर् कीं िी।
▪ स्कन्िगप्तु के शािनकाल में ही उन्हें कई प्रकार के कतठनाइओ और परे शानीओ का िामना करना पड़ा िा।
▪ िैिे, उनके शािन काल में भारी िषाग के कारर् मौयगकाल में बनी सुदशान झील का बााँध र्ूर् गया िा।
▪ तििके चलिे िो माह के भीिर स्कन्िगप्तु ने अपने प्रचुर धन को व्यय करके पविरों की िड़ाई द्वारा उि झील
के बााँध को पुनतनगमागर् करिा तिया िा।
▪ लेतकन, िबिे अतधक परे शानी स्कन्िगप्तु को हूणों कबीले की लोगो ने तकया िा।
▪ हर् एक लर्ु ेरी और िगं ली िाति िी,
▪ और, तिनका मल ू स्िान वोल्गा के पिू ग में िा।
▪ िोल्गा यूरोप की एक निी है।
▪ और, इन्ही हर्ों की एक शाखा ने तहि ंक
ु ु श पिगि को पार करके फ़ारि ििा भारि की ओर रुख तकया िा।
▪ ििा, हर्ों ने िबिे पहले गाध ं ार पर कब्िा कर तलया और तफर गप्तु िाम्राज्य (Gupta
Empire) पर आक्मर् कर तिया िा।
▪ लेतकन, स्कंिगप्त ु ने इिी हर्ों की आक्मर् पर इि िंगली िाति को करारी तशकस्ि िी िी।
▪ तििके चलिे अगले 50 िषों िक हर्ों ने भारि की िरह रुख नहीं तकया।
▪ और, इिी गप्त ु राििंश में स्कन्िगप्तु आतखरी शतक्तशाली िम्रार् िे।
▪ इिके इलािा स्कन्िगप्त ु एक उिार शािक भी िा,
▪ तिन्हे, प्रिा के िख ु -िःु ख प्रति तनरन्िर तचन्िा रहिी िी।
▪ और, उनकी मृवयु 467 ईसा में हुई िी।
▪ नालन्िा मद्र ु ा लेख में नरतिंहगप्तु को परम भागिि के रूप भी कहा गया है।
▪ नरतिंहगप्त ु के बाि उिका पत्रु कुमारगप्तु ततृ ीय मगध के रािा बना िा।
▪ इिके प्रिाि कुमरगुप्त िृिीय के मृवयु के बाि उिका पुत्र दामोदरगुप्त ने शिन तकया िा।
▪ ििा, महािेनगप्त ु के तनधन के बाि उनके पत्रु देवगुप्त और उिके प्रिाि माधवगुप्त इि गप्तु िाम्राज्य के
शािक िे।
▪लगभग 200 – 260 विों के आिपाि गप्तु िाम्राज्य ने शािन तकया िा।
▪ और, तफर इि िाम्राज्य की नीि कमिोर हो गई िी।
▪ तििके कारर्, 540 ईसा के आिपाि गप्त ु िाम्राज्य का पिन हो गया िा।
Administration of the Gupta Empire
▪ गप्त
ु प्रशािन अवयतधक षवके न्द्रीकृत िा,
▪ िश ं ानगु ि अनिु ानों में यह अिगव्यिस्िा के अधग – िामिं ी चररत्र को िशागिा है।
▪ इिमें स्ियं शातिि िनिातियों और िनिातियों के राज्यों का एक िंघ शातमल िा।
▪ िो गप्त
ु के प्रमखु अक्िर शाही शतक्तयों के प्रतितनतधयों के रूप में कायग करिे िे।
▪ इि प्रशािन में रािाओ ं को मंतत्रपररषि के एक मंत्री द्वारा िहायिा प्रिान की िािी िी।
▪ िो तिह ं ािन के तलए िमद्रु गप्तु के चयन पर ‘िभा’ ििस्यों की प्रिन्निा की बाि करिा है।
▪ गप्त
ु रािाओ ं ने महादृज, सम्राट, एकषधराज, चक्रवषतान िैिे अषतरंषजत उपातधयााँ लीं िी,
▪ िो उनके बड़े िाम्राज्य और िाम्राज्यिािी तस्िति को िशागिे िे।
▪ इिके इलािा अन्य महविपूर्ग अतधकारी भी िे, िैिे शाही महल की महाप्रषतहार, प्रमुख, घुडसवार सेना
Gupta Empire
Administrative Unit
▪ गप्तु काल के प्रान्ि को भुषक्त कहा िािा िा।
▪ तिनमे िे कुछ महविपर्ू ग भतु क्त िे, पवू ी मालवा, पषिमी मालवा, मगध, बधामान, पड्रुं वधान, तेराभषु क्त
उत्तरेन षबहार, सौराष्र, बधामान और मगध।
▪ और, शहर का प्रिशगन के तलए एक पररिद िा,
▪ तििे पौर कहा िािा िा,
▪ तििमे, नगर षनगम के अध्यक्ष, मुख्य लेखाकार, कारीगरों के एक प्रषतषनषध और व्यापाररयों के
श्रेणी के मुख्य प्रषतषनषध शातमल िे।
▪ िबतक मौयों के िहि, शहर ितमति को मौयग िरकार द्वारा तनयक्त ु तकया गया िा,
▪ और, गप्तु ों के िहि, इिमें स्िानीय प्रतितनतध शातमल िे।
▪ ििा, गप्तु काल के िौरान ही प्रशाितनक अतधकार का तिघर्न शरू ु हुआ िा।
▪ और, इि गप्तु शािनकाल में ही ग्राम प्रधान पहले की िल ु ना में अतधक महविपर्ू ग हो गए िे।
▪ इि गप्तु काल में पहली बार नागररक और आपराषधक कानून को स्पष्ट रूप िे पररभातषि और
पररिीतमि तकया गया िा।
▪ ििा, गप्तु रािा मख्ु यिः रूप िे भतू म रािस्ि पर तनभगर िे,
▪ िो की 1/4 िे 1/6 तबच में उवपािन के ऊपर कर ितं चि करिे िे।
▪ और, गप्तु काल में िेना िब ग्रामीर् इलाकों िे गिु रिे िे,
▪ उहा के लोगों द्वारा िेना को तखलाया िािा िा,
▪ और,इि कर को सेनाभक्त कहा िािा िा।
▪ििा, ग्रामीर्ों को भी शाही िेना और अतधकाररयों की िेिा के तलए वषशष्ठ नामक श्रम के अधीन तकया
गया िा।
▪ गप्त
ु काल में भतू म िे िड़ु ी अग्रहरा और देवघर िैिे अनिु ान शातमल िा।
▪ और, भतू म अनि ु ान में नमक और खानों पर शाही अतधकारों का एकातधपवय हस्िांिरर् िा।
The economy of the Gupta Empire
▪ गप्तु काल में वास्तुकला के प्रति तिशेष िोर तिया गया िा।
▪ और, िास्िक ु ला को तीन श्रेषणयों में तिभातिि तकया गया िा। िैिे,
‘’चट्टान को काटा गया गफ ु ाएाँ’’ :
Rock Cut Caves
▪ एलोरा समह ू (महारास्र) और बाग (मध्य प्रदेश)
‘’संरचनात्मक मंषदर’’ :
Structural Temples
▪ देवगढ़ (झांसी षजला, यपू ी), भूरा का षशव मंषदर (नागोद, एमपी), षवष्णु और कंकाली मंषदर
(षतगावा, एमपी), नचना कुथवा का पावाती मषं दर (पन्ना षजला, एमपी), खोह का षशव मंषदर (
सतना, पन्ना, एमपी), षभतरगााँव के कृष्ण ईटं मंषदर (कानपुर, उत्तर प्रदेश), षसरपरु के लक्ष्मण मंषदर
(लक्ष्मण, एमपी), तथा षवष्णु मषं दर और वराह मषं दर (एमपी)
‘’स्तूप’’ :
Stupas
▪
मीरपुर खास (षसध ं ), धम्मेख (सारनाथ), और रत्नाषगरी (उडीसा)
▪ ििा, इि िाम्राज्य ने िास्िुकला की महान ऊंचाइयों को प्राप्त तकया िा।
▪ नागर शैली (षशखर शैली) को तिकतिि करके , गप्तु कला ने भारिीय िास्िक ु ला के इतिहाि में प्रिेश
तकया िा।
▪ गप्तु काल में मतं िरो की िास्िक ु ला िबिे तितशष्ट तिशेषिाओ ं में िे एक िी।
▪ और, मतं िर की िास्िक ु ला अपने गभगगहृ (श्रीनाि कक्ष) के िाि तििमें भगिान की प्रतिमा रखी गई िी,
गप्तु काल िे शरू
ु हुई िी।
▪ देवगढ़ के दशावतार मंषदर के अिशेष, िबिे अलंकृि और खबू िूरिी िे बना गप्तु ा मंतिर भिन का
उिाहरर् है।
▪ और, पहली बार हमें तिष्र्,ु तशि और अन्य िेििाओ ं के तचत्र भी इि अितध में तमलिे हैं।
▪ बिु की िबिे अच्छे छतियों के नमनू े में िे िारनाि का एक बैठा हुआ बि ु तचत्र है,
▪ िो बि ु को धम्म का उपिेश िेिा हुआ िशागिा है।
▪ ििा, िाह्मर्िािी तचत्रों में िे शायि िबिे प्रभािशाली उियतगरर में एक गफ ु ा के द्वार पर राहि के रूप में
उके रा गया िा।
▪ इि काल की तचत्र बाग (धार षजला, एमपी) और अजंता (औरंगाबाद षजला, महाराष्र) में पाई िािी
है।
The literature of the Gupta Empire
▪ गप्त
ु काल की अितध में कुछ परु ानी धातमगक षहदं ू ग्रथ ं /पस्ु तकें तलखी गई ंिी।
▪ िैिे मनु स्मृषत, मत्स्य पुराण, षवष्णु पुराण, अथाात वायु पुराण, रामायण और महाभारत,
▪ और, कुछ बौद्ध पाि िे षवशुषदमाग (बौद्धघोि) ििा अषभधमाा कोि (षदग्नागा)
हृदय षचषकत्सा (वाग्भट्ट), आयाभटीय, सयू ा षसद्धान्त (आयाभट्ट), नवषनषधम (धन्वंतरर), ब्रह्मषसद्धांत
(ब्रह्मगुप्त) ििा पंच षसद्धान्तक
▪ और, इनमे िे कुछ िातहवय को अंग्रेिी में भी अनुिाि तकया गया िा।
▪ िैिे मनस् ु मषृ त ििा अषभज्ञान शकुंतलम (यानी शकुंतला की मान्यता) का अनिु ाि षवषलयम
जोन्स द्वारा अग्रं ेिी में तकया गया िा।
▪ और, ‘अषभज्ञान शकुंतलम साषहत्य को काषलदास द्वारा तलखा गया िा।
िा।
▪ और, इि िमाि में मख् ु य रूप िे तीन उपािान िे,
▪ िैिे बड़ी िख् ं या में तििेतशयों को भारिीय िमाि में आवमिाि तकया गया िा।
▪ ििा, उन्हें क्षतत्रय के रूप में िाना िािा िा।
▪ और, भतू म अनि ु ान के माध्यम िे िाह्मर्िािी िमाि में आतििािी लोगों का एक बड़ा अिशोषर् हुआ िा।
▪ इिके िाि आरोतपि िनिातियों को शद्र ू िर्ग में िमातहि कर तलया गया िा।
▪ ििा, व्यापार और शहरी कें द्रों की तगरािर् और तशल्पों के स्िानीय चररत्र के पररर्ामस्िरूप तशतल्पयों के
िमाि को अक्िर िातियों में बिल तिया िािा िा।
▪ और, इि अितध में शद्रू ों के िामातिक पिों में िधु ार के िाि िाि उन्हें महाकाव्यों और परु ाणों को िनु ने
के भी अनमु ति िी।
▪ ििा, कृष्ण नामक िेििा की पिू ा भी शद्रू ों द्वारा तकया िािा िा।
▪ और, तीसरी शताब्दी के बाि िे ही िमाि में अस्पश्ृ यता का प्रचलन िेि हो गया िा।
▪ इि अितध में मषहलाओ ं की षस्थषत भी खराब हो गई िी।
▪ ििा, बहुतििाह प्रचलन िामान्य िा।
▪ और, मतहलाओ ं के आभूिण और वस्त्रों के रूप में स्त्रीधन के अलािा तकिी भी िपं तत्त के अतधकार िे
िंतचि कर तिया गया िा।
▪ गप्तु शािक के िंरक्षर् में, वैष्णववाद बहुि लोकतप्रय िा।
▪ क्यों की िेििाओ ं की िंबंतधि िंघों के िाि उनकी एकिा द्वारा लोकतप्रयिा मतू िग को ितक्य तकया गया िा।
▪ तिििे षवष्णु के साथ लक्ष्मी का िड़ु ाि ििा पावाती का षशव के िाि िड़ु ाि हो गया िा।
▪ और, इिी गप्तु काल िे ही मषू ता पज ू ा षहदं ू धमा की एक िामान्य तिशेषिा बन गई िी।
▪ ििा, इि अितध में ही वज्रयाषनज्म और बौद्ध तांषत्रक पथ ं ों के तिकाि काल िा।
▪ Rajput Period की सातवीं शताब्दी में रािपिू भारि में उभर कर आिे हे और तितभन्न क्षेत्र पर
रािा बनकर अस्िातपि हो िािे है।
▪ लेतकन इतिहाि में रािपिू की उवपतत्त को लेकर कई इतिहािकारो का मि अलग अलग है।
▪ तििेशी इतिहािकार कनाल जेम्स टॉड के अनिु ार रािपिू िह तििेशी िातियााँ है, तिन्होंने भारि पर
आक्मर् तकया िा।
▪ और, िे रािपिू ों को षवदेशी सीषथयन जाषत की िमरूप मानिे िे।
▪ िीतियन िाति यूरेषशया के स्तेपी इलाके की एक प्राचीन खानाबिोश िातियों के गर्ु का नाम िा।
▪ ििा, रािपिू ों और िीतियन इन िोनों िातियों की िामातिक एिं धातमगक तस्िति एक बराबर िी।
▪ और, िोनों जाषतयों में पजू ा का प्रचलन, याषज्ञक अनुष्ठानों का प्रचलन, अस्त्र-शस्त्र की पूजा का
प्रचलन,
▪ रथ के िारा यद्धु को सचं ाषलत करने का प्रचलन, रहन-सहन और वेश-भिू ा की िमानिा िी।
▪ तिििे यह प्रिीि होिा है तक रािपिू िीतियन के ही िंशि िे।
▪ परन्िु तििेशी इतिहािकार ‘वी.ए. षस्मथ’ और कषनंघम के अनिु ार शक ििा कुषार् िैिी तििेशी िातियां
िो भारि में आक्मर् करने के तलए आये िे।
▪ िही िाति आगे चलकर भारिीय िातियों के िाि तमतश्रि हो िािे है।
▪ और, कालक्म में रािपिू के रूप में उभरिे है।
▪ तििेशी इतिहािकार रािपिू ों को तििेशी इिीतलए मानिे िे,
▪ क्यों की यही इतिहािकार तििेशी िे,
▪ और, इनकी दृतष्टकोर् िे इतिहाि को इन्होने िेखा िा।
▪ ििा, भारतीय इषतहासकार िैिे डॉ. गौरी शंकर ओझा और दशरथ शमाा का मानना िा की भारि में
प्राचीन क्षतत्रयां िो िातियां िी,
▪ िह िातियां आया िे िम्बतं धि िे।
▪ और, उन्ही िातियों के िश ं ि बाि में चलकर के रािपिू ों के रूप में उभरिे है।
▪ और, चंिबरिाई षहन्दी साषहत्य के आतिकालीन कषव ििा पृथ्वीराज चौहान के षमत्र िे।
▪ िब महषिा वषशष्ठ ने िैवयों के तिनाश के तलए आबू पवात पर एक अषग्नकुण्ड का तनमागर् कर यज्ञ तकया।
▪ और, इि यज्ञ की अतनन िे चौहान, प्रषतहार, परमार, एिं सोलंकी / चालुक्य िैिे चार योद्धाओ ं की
उवपतत्त हुई।
▪ तििके फलस्िरूप अन्य रािपि ू िंश इन्हीं योिाओ ं की िन्िाने हैं।
Chauhan Dynasty in the Rajput period
▪ सातवीं शताब्दी में अजमेर के षनकट ‘’शाकम्भरी’’ में वासदु ेव के द्वारा चौहान वशं को स्थाषपत करने
का िर्गन तमलिा है।
▪ इि वंश के प्रारषम्भक शासक कन्नौज के गुज्जर प्रषतहार शासको के अंतगात अपना शासन करिे िे।
▪ और, दसवीं शताब्दी के शरुु िािी िौड़ में चौहान िंश के शािक ‘’वाकपषतराज प्रथम’’ ने आपने को
स्ििंत्र घोतषि कर तलया िा।
▪ इिीतलए चौहान िंश के वास्ताषभक संस्थापक के रूप में वाकपषतराज प्रथम को कहा िािा है।
▪ िैिे िो इि िंश के कई रािा हुए िैिे षसद्धराज, षवग्रहराज षितीय, षवग्रहराज ततृ ीया, अजयराज,
अणोराज, षवग्रहराज चतुथा और पृथ्वीराज चौहान तृतीया।
▪ इनमे िे अजमेर नगर की स्थापना इिी िंश के राजा ‘’अजयराज’’ ने आपने शािन काल के िौरान तकया
िा।
▪ और, अजमेर को आपनी राजधानी बनाई िी।
▪ और, इि िंश की रािा षवग्रहराज चतुथा ने आपने शािन काल के िमय तोमरो वंश की स्वतंत्रता को
िीनकर आपने आधीन सामन्त बनाया िा।
▪ तोमर राजवश ं ने षदल्ली शहर को बिया है।
▪ ििा, इि चौहान िंश के सबसे प्रतापी और शषक्त शाली राजा िे (1178 ईसा) पथ्ृ वीराज चौहान
ततृ ीया।
▪ इन्हे रायषपथौरा भी कहा िािा है।
▪ और, िे सोमेश्वर राजा के पत्रु िे।
▪
▪ 1191 ईसा में पथ्ृ वीराज चौहान ततृ ीया ने एक यद्ध ु तकया िा मोहम्मद गोरी के िाि।
▪ तििे इतिहाि में तराइन का प्रथम युद्ध के नाम िे िाना िािा है।
▪ इि यिु में मोहम्मि गोरी हार िािा है, और पृथ्िीराि उिे छोड़ िेिा है, क्यों की िे बहुि ियालु तकिम के िे।
▪ लेतकन 1192 ईसा में मोहम्मि गोरी ने तफर िे आक्रमण तकया और पृथ्वीराज चौहान तृतीया
को तराइन का षितीय यद्ध ु में पराषजत कर िेिा है।
▪ इिके िाि इि िंश का राजा गोषवन्दा हुए लेतकन कुछ िमय के अन्िराल महु म्मि गौरी का गुलाम
कुतुबद्दु ीन ऐबक द्वारा चौहान िशं का िमन कर तिया िािा है।
Rajput Period
Pratihara Dynasty in the Rajput period
▪ तमतहरभोि का शािनकाल प्रतिहार िाम्राज्य के तलये स्वणा काल माना गया है।
▪
▪ प्रमार ऋषि वषशष्ठ द्वारा अषग्नकुंड से प्रकट होने िाला एक पुरुि िा।
▪ ऋतष ितशष्ठ ने तिश्वातमत्र के तिरुि यिु में िहायिा प्राप्त करने के तलये आबु पिगि पर एक यज्ञ तकया िा।
▪ तििके फलस्िरूप प्रमार प्रकर् हुआ और ऋतष ितशष्ठ के िाि िेने का प्रर् तलया िा।
▪ इि िश ं के आिवीं शताब्दी के प्रारंतभक काल में उपेन्द्र कृष्णराज ितक्षर् के राष्रकूर्ो िंश के िामिं िे।
▪ लेतकन, राष्रकूर्ों के पिन के बाि (948 – 974 ई॰) षसंपाक षितीय के नेिवृ ि में परमार िंश को
मक्त
ु करा तलया गया िा।
▪ इिीतलए षसंपाक षितीय को परमार वंश का असल संस्थापक माना िािा है।
▪ तिंपाक तद्विीय के िो पत्रु िे वाक्पषत मुंज और षसंधरु ाज।
▪ इि िंश में िाक्पति मंिु अतधक शतक्त शाली रािा िे,
▪ ििा, इनके िरिार में पद्म्गप्तु , हलायथु और धनज ं य िैिे महान तिद्वानो का तनिाि िा।
▪ और, िे साषहत्य, कला एिं सस्ं कृषत के प्रधान िरं क्षक िे।
▪ ििा, कृ तत्तम मुंजसागर झील का तनमागर् भी इन्होने करिाया िा।
▪ िाक्पति मंिु ने चालुक्य सम्राट तैलप षितीय को िह बार यि ु में परातिि तकया िा।
▪ लेतकन सातवीं यद्ध ु में चालक्ु य िम्रार् तैलप षितीय ने वाक्पषत मज ुं को पराषजत कर उनकी हवया कर
िी िी।
▪ और, इि िंश में िाक्पति मंि ु के प्रिाि (995 – 1010 ई॰) षसध ं ुराज रािा बने,
▪ षसंधुराज की िरबार में रािकति पद्दमगुप्त द्वारा रतचि ‘नवसाहसांक चररतम’ में तिंधरु ाि की िीिन के
▪ ििा, रािा भोि के शािन काल के अंतिम चरर् में कल्यार्ी और अतन्हलिाड़ के चालक् ु यों ने तमलकर
मालिा पर आक्मर् तकया,
▪ और, रािा भोि को परातिि कर उनकी हवया कर िी िी।
▪ और, रािा भोि के मृवयु के प्रिाि “अद्यधारा षनराधारा षनरालम्बा सरस्वती” िनप्रिाि प्रचतलि हो गया
िा।
▪ तििका अिग है षवद्या और षविान् दोनों षनराषश्रत हो गए है।
Chaulukya / Solanki Dynasty of Gujarat
▪ गुजरात में अषन्हलवाड के चालक्ु य िंश को सोलक ं ी वंश के नाम िे िाना िािा है।
▪ िोलक ं ी िश ं को महषिा वषशष्ठ द्वारा तकये गए यज्ञ की अतननकुण्ड िे उवपन्न होने िाले रािपिू माने िािे है।
▪ प्राचीन ग्रिं कुमारपाल चररत और वणारत्नाकर में कुल 36 िोलक ं ी रािपिू ों का िर्गन तमलिा है।
▪ और, यह िंश में कुछ रािा शैव धमा के उपािक िे, परन्िु अतधकिर रािा जैन धमा को मानिे िे।
▪ िोलंकी िंश के संस्थापक के रूप में मूलराज प्रथम को िाना िािा है।
▪ और, अषन्हलवाड इि िश ं की राजधानी िी।
▪ इि िंश में महविपर्ू ग रािाओ ं में, भीम प्रथम, जयषसंह षसद्धराज, कुमारपाल और भीम षितीय िे।
▪ और, रािा भीम प्रथम के (1023 – 1065 ईसा) शािनकाल में ही महमूद गज़नवी ने 1025
ईिा में गज ु रात पर आक्मर् तकया
▪ और, सोमनाथ मंषदर को लूटा एिं नष्ट कर तिया िा।
▪ बाि में भीम प्रिम ने िोमनाि मंतिर को तफर िे ठीक करिा तिया िा।
ििा, भीम प्रिम के शािनकाल में उनके िामंि षवमलशाह ने माउंट आबू पवात पर षदलवाडा जैन
▪
कर तिया िा।
▪ ििा, पशुहत्या और मद्यपान के ऊपर प्रषतबंध भी लगाया िा।
▪ और, भीम षितीय रािा (1178 – 1238 ईसा) इि िश ं का अंषतम शासक िा।
▪ इन्होने मोहम्मद गोरी को 1178 ईसा और कुतुबद्द ु ीन ऐबक को 1195 ईसा में परास्ि तकया िा।
▪ लेतकन, बाि में कुिब ु द्दु ीन ऐबक ने भीम तद्विीय िे गिु राि के अतन्हलिाड़ को छीन तलया।
▪ और, 1201 में कुिब ु द्दु ीन ऐबक िे भीम तद्विीय ने आपने राज्य को तफर िे प्राप्त कर तलया िा।
Causes of the Decline of Rajputas
▪ भारि में िाििीं और बारहिीं शिाब्िी के मध्य में चौहान, प्रतिहार, परमार ििा िोलंकी / चालक् ु य राििंश
िे।
▪ परन्िु इन प्रमख् ु य राििंश के इलाबा और भी कई रािपिू िंश उभर कर आये िे,
▪ िैिे, गहडवाल वंश, बुंदेलखंड के चंदेल वंश और चे षद राजवंश आति…
▪ रािपि ू िंश के अबतध में मतहलाओ ं की तस्िति भी अच्छी िी मतहलाओ ं को उच्च पि पर तनयक्त ु तकया
िािा िा।
▪ लेतकन जौहर और सती प्रथा का भी प्रचलन िा।
▪ रािपि ू िश
ं का शािनकाल उत्तरी भारि में तिस्िृि िा।
▪ परन्िु आपिी मिभेि के कारर् यह रािपि ू ों अपने ही अलग गर्ु बनािे िे और ििू रों िे श्रेष्ठ होने का िािा
करिे िे।
▪ और, रािपि ू ों के मध्य में भाईचारे की भािना रखिे हुए गैर रािपिू ों को शातमल नहीं करिे िे।
▪ तिििे आपि में एकिा का अभाि होिा चला गया,
▪ और, रािपि ू ों के शािनकाल के िमय ही महमदू गज़नवी ने भारि पर 17 बार आक्रमण तकया िा।
▪ तििके कारर् तििेशी िाकि ने धीरे धीरे भारि पर कब्जा करना शरू ु कर तिया िा।
▪ और, रािपि ू ाने के राििंशों को षदल्ली सल्तनत की ििोपरी ित्ता को स्िीकार करनी पड़ी िी।
▪ लेतकन, मेिाड़ के रािपि ू शािक राणा सााँगा ने तिल्ली िल्िनि को परास्ि करने के तलए फ़रगना
घाटी के ज़हीरुद्दीन बाबर को भारि बुलाया िा।
▪और, 1526 में पानीपत के मैदान पर पहला यद्ध ु में बाबर ने लोदी वंश के अंषतम सुल्तान इब्राषहम
लोदी को हराया िा।
▪ लेतकन इििे रािपि ू ों को तिशेष िफलिा नही तमली िी।
▪ क्यों की 1527 में खानवा की युद्ध में जहीरुद्दीन बाबर ने रार्ा िााँगा को परास्ि कर भारि में मुगल
▪ िो, रािपि ू शािकों ने िरु क्षा हेिु अंग्रेजों िे िहायिा तलया िा।
▪ और, धीरे धीरे रािपि ू ों की एकिा आभाि के कारर् रािपिू िंश का प्रभाि धीरे धीरे कम होिा गया।
गप्तु िाम्राज्य के पिन के बाि हररयार्ा के अंबाला तिले के िानेश्वर नमक स्िान पर ििगन िश
ं की स्िापना हुई। यह
िंश हर्ों के िाि हुए अपने िंघषग के कारर् प्रतिद्द हुआ।
हषग ने षदवाकर षमत्र की सहायता िे राज्यश्री को खोि तनकाला और ििी होने िे बचाया। और उिे कन्नौि लेकर
आया िब ििगिम्मति िे िो कन्नौि का भी शािक बन गया।
कन्नौज
कन्नौि >> ऊंची िगह पर तस्िि >> िोआब के बीच तस्िि >> तकलाबिं ी करना आिान िा >> 7िी ििी में
उिकी उत्तम ढंग िे तकलाबंिी की गयी >> पिू ी और पतिमी िोनों बािओ
ु ं पर तनयंत्रर् >> िल और स्िल िोनों
मागों िे आ िा िकिे िे
हुआन िांग = चीनी यात्री िो 7िी ििी में भारि आया और 15िाल रहा
हषग = भारि का अंतिम तहन्िी िम्रार् >> न कट्टर तहन्िू और न ही िारे िेश का शािक
पिू ी भारि में हषग ने गौड़ के शैि शािक शशांक तििने बोधगया में बोतधिृक्ष का कार् डाला िा, िे मक़
ु ाबला तकया
>> 619 ई में शशांक की मृवयु के बाि यह शत्रिु ा िमाप्त हुई
ितक्षर् भारि में हषग के अतभयान को नमगिा के तकनारे चालक्ु य िंश के रािा पल
ु के तशन ने रोका
ु के तशन = आधतु नक कनागर्क और महाराष्र के बड़े भू भाग पर राि करिा िा >> रािधानी = कनागर्क के
रािा पल
बीिापुर तिले के बािामी में
चीन के िाि हषग ने तमत्रिा की और 641 ई में िहााँ अपने ििू भेिे । 643 और 646 ई में िो चीनी ििू उिके
िरिार में आए ।
प्रशासन
शािन अतधक िामंतिक और तिकें तद्रि िा। इि कारर् परमभट्टारक , महारािातधराि, िकलोत्तरपिेश्वर,चक्ििी ,
िािगभौमपरमेश्वर , परममाहेश्वर िैिी उपातधयााँ िी
हषग के पाि 100,000 घोड़े और 60,000 हािी िे (मौयो के पाि के िल 30,000 घोड़े और 9,000 हािी
िे) >> यह िभी िामिं ों िे िहयोग प्राप्त करने पर ही िभं ि िा >> हरे क िामिं िामिं एक तनधागररि पैिल िैतनक
और घोड़े िेिा िा >> इि िरह उिने अपनी िही िेना को आकार में तिशाल बनाया ।
हषु की सेना को चिरु ं तगर्ी कहा िािा िा, तििमे पैिल, घड़ु ििार, रि और हािी की र्ुकतड़यााँ िी।
राज्य को सवाुमधक आय भतू म िे ही तमलिी िी। उपि का 6th भाग कर के रूप मे तलया िािा िा ।
भोषगक :- कर ििल
ू ने िाला
पुस्तपाल :- िमीन का तहिाब रखने िाला
पिातधकाररयों को िनि (शािन पत्र ) द्वारा िमीन िी िािी िी >> इन िब की ररयायिें अनिु ान भोगी िैिी ही िी
2. एक तिियिानों के तलए
तितध व्यिस्िा अच्छी नहीं िी >> हुआन िागं की िरु क्षा के प्रबधं के िािििू उिके माल िब छीन तलया गया िा
अपराध के तलए कड़ी ििा का प्रािधान >> डकै िी रािद्रोह िा >> उिके तलए डाकू का िायााँ हाि कार् तिया
िािा िा
बौद्द धमग का प्रभाि >> िडं की कठोरिा कम की गयी >> आिीिन कारीिाि तिया िाने लगा
नालंिा महातिहार = बौद्द तिश्वतिधालय >> तबहार के आधतु नक नालंिा तिले में
हषग के िरबार में कई िषग रहा , हषग ने हुयान सांग को मशलामदत्य कहा िा
इिकी कारर् हषग बौद्द धमग का महा िमिगक हो गया >> बौद्द धमग के तलए िान तिये
इिने िवकालीन लोगों के आतिगक और िामातिक िीिन पर ििा िवकालीन धातमगक िंप्रिाय पर तलखा
मेहिर और चांडालों पर निर डाली >> अछूि लोग >> गााँि के बाहर बििे िे >> लहिनु प्याि खािे िे >>
नगर में प्रिेश के पहले जोर जोर िे आिाि करिे िे िातक लोग उनके स्पशग िे बचे रहे
ई-तविगं = एक अन्य चीनी यात्री >> 670 में नालिं ा में आया िा >> इिके अनिु ार >> के िल 3000 तभक्षु
रहिे िे
नालिं ा तिश्वतिधालय का भरर् पोषर् 100 गााँि के रािस्ि िे होिा िा (हुआन िांग के अनुिार) >> ई-तविंग के
अनिु ार 200 गााँि िे
धाषमाक नीषत
1. हषग शरू
ु में शैि िा पर धीरे धीरे बौद्द का महान िंपोषक हो गया
3. हुआन िांग और कामरूप के रािा भास्करिमगन के िाि बीि िेशो के रािा और तितभन्न िंप्रिायों के कई हिार
परु ोतहि पधारे
4. फूि के िो बड़े बड़े घर बनाए गए >> हर एक में हिार हिार लोग तर्क िकिे िे
5. एक तिशाल मीनार बनाई गयी तििके मध्य में बद्दु की स्िर्ग प्रतिमा बनाई गयी >> प्रतिमा की ऊंचाई हषग की
ऊंचाई तििनी ही िी
7. िम्मेलन में शास्त्रािग का आरंभ हुआन िांग ने तकया >> उिने महायान िंप्रिाय के ििगर्ु ो का प्रतिपािन तकया
और बोला की कोई आकर उिके िकों का खंडन करे >> पर पााँच तिन िक कोई खड़ा नहीं हो पाया >> िब उिको
िान िे मारने की गयी
9. 500 िाह्मर्ो को तगर्िार तकया गया >> कुछ को तनिागतिि तकया गया और कुछ को मौि की ििा िी गयी
10. कन्नौि के बाि उिने प्रयाग में महािम्मेलन बल ु ाया >> िभी िामिं , मत्रं ी, िभ्य आति लोग शातमल हुए >>
बद्दु की प्रतिमा का पिू न हुआ >> हुआन िागं ने प्रिचन तकया >> अिं में हषग ने बड़े बड़े िान तकया और अपने
शरीर के िस्त्रो को छोड़कर िभी िस्िओु ं का िान तकया >> हुआन िांग ने हषग की प्रशंिा की
गई है।
The Cholas–चोल राजवश ं
Sangam Period
इन्हे पड़े – Post-mauryan period Hindi
The Pandyas–पाण्ड्य राजवंश
▪ चोल राििंश के प्रिाि पाण्ड्य राजवंश आया।
▪ ििा, पाण्ड्य रािाओ ं ने तनयतमि शािन करिे हुए अपना िचगस्ि िनाये रक्खा िा।
▪ ििा, ईिा के शरू ु आिी शिातब्ियों में पाण्ड्य रािा िैतिक यज्ञ भी तकया करिे िे।
▪ लेतकन, िमाि में तिधिाओ ं के िाि बरु ा व्यिहार तकया िािा िा।
▪ और, इतिहािकारों ने िग ं मकाल के पहले अितध को ‘अंतररम युग’ या ‘अंधकार युग’ कहा है।
Sangam period/age Literature
▪ Sangam period में ितक्षर् भारि का एक प्राचीन इतिहाि है।
▪ िगं मकाल को िीिरी और चौिी शिाब्िी की अितध के रूप में भी िाना िािा है।
▪ ििा, इि शिाब्िी में ितमल िातहवय का भी अच्छा प्रभाि िा।
▪ और, यह तकिी प्रधान या रािाओ ं के िंरक्षर् में ही आयोतिि तकया िािा िा।
▪ 8 िीं ििी ई. में प्राचीन ितक्षर् भारि में िीन िंगमों का आयोिन तकया गया िा।
▪ हालााँतक, पहला संगम पांड्यों की परु ानी रािधानी दस-मदुरै में आयोतिि तकया गया िा।
▪ िंगमकाल में ही ििगप्रिम ितमल क्षेत्र में िाह्मर्ों का आगमन हुआ िा।
▪ और, शासक, ब्राह्मण, वषणक ििा षकसान िैिे चार वणा िे।
▪ तििमे िाह्मर् को अंडनार, तकिान को वेलालर, शािक को अरसर ििा ितर्क को वेषनगर कहा गया है।
▪ िंगमकाल में शािक िगग और धनी कृ षक िगग को िैल्लाल िाति के रूप में भी िाना िािा िा।
▪ चोल राज्य में धनी कृ षकों को ‘वेल’ ििा ‘आरशु’ की उपातध िी िािी िी।
▪ िंगमकाल में उच्च िैतनक िगों में ििी प्रिा का प्रचलन िा।
▪ िंगमकाल में पतिमी िेशों को सूती वस्त्र, रे शम, मोती, मसाला, काली षमचा और हाथीदांत आति
▪ इिके अतिररक्त, ग्रीक भाषा में चावल, अदरक आति िैिे शब्ि को ितमल भाषा िे तलए गए िे।
▪ इिी अितध में कृषि, पशुपालन ििा षशकार िैिे िीतिका मख् ु य िे।
▪ और, इिी िमयकाल में कृषि का षवस्तार ऋषि अगस्त्य द्वारा तकया गया िा।
▪ ििा, िग ं मकाल में जहाजों का षनमााण ििा कताई-बनु ाई िैिे महविपर्ू ग उद्योग िे।
Political Situation of the Sangam period/age
▪ Sangam period में िमस्ि अतधकार रािा में अंितनगतहि होिा िा।
▪ ििा, िग ं मकाल में कारवेन, मन्नम और वन्दन िैिे उपातधयााँ रािा एिं िेििा को िी गई है।
▪ िंगमकाल में रािा का िो िरबार होिा िा, उिे ‘नलबै’ कहा िािा िा।
▪ इिके इलािा, लड़ाई में मारे गए िैतनकों की याि में िो पािाण मषू ता यााँ बनाई िािीं िीं।
▪ और, यि ु में मारे गए िैतनकों की बन्िी तस्त्रयों को िािी बनाकर उनिे मंतिरों में िीपक िलाने का कायग भी
करिाया िािा िा।
‘’ Education System of Sangam period/age’’
मशक्षा प्रणाली
▪ Sangam period के िमय िमाि में षशक्षा का प्रचलन प्रबल िा।
▪ तशक्षा को महिगपर्ू ग माना िािा िा।
▪ यह अितध काल षशक्षा और साषहत्य का िमागम िा।
▪ िहा पे तशक्षक को ‘कणकट्टम’ कहा िािा िा।
▪ और, तशक्षा पाने िाले को ‘षपल्लै’ कहा िािा िा।
▪ ििा, कला, षवज्ञान, गषणत, व्याकरण, षचत्रकला, ज्योषति, और मूषताकला िैिे तिषयो पर िमतु चि
ज्ञान प्रिान तकया िािा िा।
▪ और, ितमल कतियों के िमागम भी इिी िग ं मकाल में पाया गया िा।
Religious Position of Sangam period/age
▪ तषमल में भगवन षवष्णु को ‘षतरुमल’ कहा िािा है।
▪ िंगम िातहवय िे पिा चलिा है तक ितक्षर् भारि में आयग िभ्यिा का तिस्िार ऋतष अगस्वय द्वारा तकया गया
िा।
▪ और, िंगम यग ु में ितक्षर् भारि में वैषदक धमा का भी आगमन हुआ िा।
▪ ितक्षर् भारि में मुरुगन का उपािना िबिे प्राचीन है।