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मेरे हीरो, मेरे आइडल, मेरे जीवन के स्तंभ, पापा की याद में

बीती 24 अक्टू बर, 2023 को हमारे पिता स्व o ईश्वर चंद गोयल जी, हमें
रोता हुआ छोड़कर, बैकुं ठ धाम के लिए प्रस्थान कर गए।

इस गहरे दुःख के समय में दोस्तों, रिश्तेदारों, सीनियर्स, सहयोगियों,


शुभचिंतकों आदि की ओर से परिवार के लिए जो भावभरी संवेदनाएं
और पापा की आत्मा की शांति हेतु जो प्रार्थनाएं प्राप्त हुईं, उससे मुझे
और मेरे परिवार को बड़ी सांत्वना मिली है। आपके इस प्यार, भावपूर्ण
संवेदनाओं, प्रार्थनाओं और आशीर्वाद के लिए मैं पूरे मन से आप सभी
का आभार व्यक्त करती हूँ। हमारे लिए यह मन को बहुत सुकू न देने
वाली बात है कि दुःख की इस घड़ी में भी, हम अके ले नहीं हैं।

19 जुलाई 1953 को हरियाणा के पानीपत जिले के एक छोटे से गाँव-


धर्मगढ़ में पैदा हुए मेरे पिता श्री ईश्वर चंद गोयल जी, श्री रामकरन
गोयल एवं श्रीमती अनारकली देवी की संतान थे। उनकी शुरुआती
शिक्षा गाँव के स्कू ल में ही हुई और फिर पानीपत के आर्या कॉलेज से
उन्होंने अपनी हायर एजुके शन कं प्लीट की। पापा, परिवार और गाँव के
उन बहुत कम लोगों में से एक थे जो शिक्षा के महत्व को समझते
थे।

इसीलिए हर तरह की चुनौतियों का सामना करते हुए, उन्होंने अच्छी


से अच्छी शिक्षा पाने के अपने सपने को पूरा किया और चार्टर्ड
अकाउं टेंट बन गए। यह उपलब्धि उनके दस भाई-बहनों से अलग थी,
क्यूँकि बाक़ी सब बिज़नेस में थे।

1979 में एक चार्टर्ड अकाउं टेंट के रूप में ख़ुद को इस्टैब्लिश करने के
लिए पापा ने दिल्ली का रुख़ किया। इस बीच 27 जून 1980 को हमारी
माताजी श्रीमती रेनू गोयल जी के साथ पापा की शादी हो गई और
फिर पापा की अच्छी प्रैक्टिस और बच्चों के लिए बेहतर एजुके शन
और करियर ऑपरचुनिटीज़ के चलते दोनों ने आगे का जीवन दिल्ली
में ही बिताने का निर्णय लिया।

बहुत संघर्ष के साथ, उन्होंने दिल्ली में सीए के रूप में अपनी प्रैक्टिस
जमाई और फिर धीरे-धीरे अपने करियर में नई ऊँ चाइयों को छु आ।
अपनी मेहनत, क़ाबिलियत, प्रोफे श्नलिज़्म, ‘आई फ़ॉर डीटेल’ और इन
सबसे ऊपर अपने सहयोगपूर्ण व्यवहार के चलते पापा ने अपनी चार्टर्ड
अकाउं टेंट फ़्रे टरनिटी के बीच बहुत सम्मान पाया।

हमारी शिक्षा के लिए, हमारे मम्मी-पापा ने हर मुमकिन सहयोग


किया। उनकी मेहनत और संघर्ष के बदौलत ही, न सिर्फ़ एक
आईएएस अधिकारी के रूप में मेरी यात्रा आगे बढ़ी, बल्कि हम तीनों
भाई-बहन एजुके शन और करियर में अच्छे से अच्छा कर सके । मेरी
बड़ी बहन श्रीमती मीनल गुप्ता और मेरे छोटे भाई श्री सौरभ गोयल
ने पापा के नक़्शे कदम पर चलते हुए ख़ुद को एक चार्टर्ड अकाउं टेंट
के रूप में स्थापित किया। मेरे जीजा श्री मयंक गुप्ता जी, मेरे पति
आदित्य और मेरी भाभी श्रीमती अदिति गोयल, परिवार की इस कड़ी
में वैल्यू एडिशन की तरह शामिल होकर पापा के लिए ख़ुशी और गर्व
का कारण बने। मेरे जीजा श्री मयंक गुप्ता जी भी एक एकमप्लिश्ड
चार्टर्ड अकाउं टेंट हैं। मेरी तरह मेरे पति आदित्य ने भी कॉर्पोरेट सेक्टर
के करियर को अलविदा कहकर सिविल सेवा का रुख़ किया और
भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी बने। मेरी भाभी श्रीमती अदिति
गोयल दिल्ली विश्वविद्यालय में बतौर असिस्टेंट प्रोफ़े सर अपनी सेवा
दे रही हैं। कु ल-मिलाकर पापा के नज़रिए से देखें तो सब बच्चे
शिक्षित होकर अपनी लाइफ़ और करियर में अच्छा कर रहे हैं… पापा
इस बात से बहुत संतुष्ट थे। उन्होंने पूरे परिवार, जिसमें हम सब के
बच्चे यानी उनकी तीसरी पीढ़ी भी शामिल है, सबमें अच्छी मोरल
वैल्यूज, ईश्वर के प्रति अटू ट आस्था और एक मज़बूत चरित्र का बीज
डाल कर, हम सबके लिए एक बड़ा उदाहरण पेश किया।

कई सालों पहले जब हमारी मम्मी की किडनी की बीमारी का पता


चला तब पापा ने मम्मी की बहुत सेवा की। उनको डायलिसिस के
लिए ले जाना, उनके खाने-पीने, दवाई का ध्यान रखना, पापा ने हर
ज़िम्मेदारी को बख़ूबी निभाया।

स्कू ल में पढ़ा था कि ‘पितृ देवो भव:’ लेकिन उसका सही मतलब अब
समझ में आता है कि आख़िर क्यूँ हमारे शास्त्रों में पिता को देवता
का दर्जा दिया गया है।

पापा ने अपने सभी भाई-बहनों को अपने बच्चों, चाहे लड़का हो या


लड़की, को भरपूर शिक्षा देने के लिए प्रेरित किया। उनकी ईश्वर भक्ति
अटू ट थी। धर्म-कर्म के कार्यों में वो बढ़-चढ़कर अपनी भूमिका निभाते।
पुष्पांजलि एन्क्लेव के स्थानीय शिव शक्ति मंदिर में कोषाध्यक्ष के
रूप में नि:स्वार्थ सेवा के लिए उन्होंने अपने जीवन के कई वर्ष
समर्पित किए।

पापा बहुत सामाजिक व्यक्ति थे। वो सबसे प्यार करते थे। यही
कारण है कि छोटे-बड़े, बूढ़े-बुज़ुर्ग सब उनसे बहुत प्यार करते थे। पापा
हमेशा दूसरों के सुख-दुःख में शामिल रहे। उन्होंने हम तीनों बच्चों को
हमेशा यही सिखाया कि जहां तक सम्भव हो सके अपने आस-पास के
लोगों की मदद करो। जिस समाज में हम रहते हैं, उसके लिए जो बन
पड़े, करो। पापा के यही सिद्धांत जीवन में मुझे रास्ता दिखाते रहे हैं,
और आगे भी मुझे प्रेरणा देते रहेंगे।

13 जनवरी, 2022 की सर्दियों में हमें जब उनके गले के कैं सर के बारे


में पता चला, तो एक पल को तो हमें विश्वास ही नहीं हुआ… क्यूँकि
पापा अपनी सेहत का बहुत ध्यान रखते थे। सुबह एक-दो घण्टे
मॉर्निंग वॉक करना, योग और एक्सरसाइज़ करना, नियम से शाम को
मंदिर जाना, सालों से पापा का यही रूटीन था। उनका खान-पान भी
बहुत सधा हुआ और सात्विक था। इसलिए हम सब हैरान रह गए…
मगर पापा शांत रहे…। घबराए नहीं… उल्टा पूरे परिवार को हिम्मत
देते रहे। कैं सर जैसी भयानक बीमारी के सामने भी उन्होंने हिम्मत
हारने से इंकार कर दिया। उनका संकल्प, उनका अटू ट निश्चय, उनके
चेहरे से झलकता था।
हम सबके लिए उनका यह व्यवहार घने अँधेरे में रोशनी की एक
किरण जैसा बन गया, एक ऐसी रोशनी जिसने न के वल उन्हें, बल्कि
हम सभी को ट्रीटमेंट के उलझन और तनाव भरे दिनों में आगे बढ़ते
रहने का हौसला दिया। पापा की स्ट्रॉंग विल पावर के चलते शुरू के
एक साल तक उनकी रिकवरी बहुत अच्छी थी। बाद में कैं सर अपना
शिकं जा कसता चला गया, लेकिन पापा ने आख़िरी तक जीवन की डोर
को बहुत कस कर पकड़े रखा। कैं सर का दीमक धीरे-धीरे उनके शरीर
को कमजोर करता जा रहा था लेकिन मानसिक रूप से उनकी
सक्रियता में कोई कमी नहीं आई। बिस्तर पर होने के बावजूद वो
लैपटॉप और मोबाइल पर अपने क्लाइंट्स का कु छ-कु छ काम करते
रहे। सारे परिवार, नाते-रिश्तेदारों, दोस्तों-सहयोगियों का हाल-चाल लेते
रहे। सबके सुख-दुःख जानने-समझने के उनके जज़्बे में कभी कोई
कमी नहीं आई। किसी ने कु छ कहा तो मुझे या परिवार में अन्य
किसी को मैसेज करके कहते कि देखो अगर इनकी ये मदद हो सके
तो करो। जितना भी बन सके इनका सहयोग करो।

पिछले दिनों जब मेरी पहली पुस्तक का विमोचन हुआ तो पापा बहुत


खुश हुए। बिस्तर पर होने के कारण वो बुक लॉंच फ़ं क्शन में तो
शामिल नहीं हो सके मगर क़िताब पढ़ने के बाद उनका मेरे पास
मैसेज आया। उन्होंने लिखा कि क़िताब की भूमिका में उनके दामाद
जी यानी मेरे पति का नाम दूसरे पेज पर क्यूँ है। उनके मुताबिक़
आदित्य जी का नाम पहले पेज पर होना चाहिए था। ऐसी थी परिवार
और रिश्तों के प्रति पापा की निष्ठा।
जैसा कि बेटियों के मामले में अक्सर होता है, मेरे पापा मेरे हीरो थे।
जितना मैंने उनको जाना और समझा, वो बहुत बुद्धिमान और दूर की
सोचने वाले व्यक्ति थे। आज मैं जो कु छ भी हूं, उसके शिल्पकार कोई
और नहीं बल्कि मेरे पापा थे। मेरे जीवन के लगभग हर पहलू पर मेरे
पापा की कभी न मिटने वाली छाप है। मुझे ‘अडैप्टबिलिटी’ और
‘रेज़िलियंस’ सिखाने के अलावा उन्होंने मुझमें यह अटू ट विश्वास पैदा
किया कि अपनी मेहनत और क़ाबिलियत के बल-बूते मैं मुश्किल-से-
मुश्किल चुनौती को भी पार कर सकती हूँ।

उस समय हरियाणा में लड़कियों की पैदाइश पर ज़्यादातर घरों में


बहुत ख़ुशी नहीं मनाई जाती थी लेकिन पापा की सोच बिल्कु ल अलग
थी। उस समय के समाज की रूढ़िवादी सोच, अपने जीवन में एक बेटी
का स्वागत करने की उनकी खुशी को कम नहीं कर सकी। उन्होंने न
के वल मेरी पैदाइश का जश्न मनाया बल्कि मुझे वह सारा प्यार और
देखभाल दी जो एक माता-पिता दे सकते थे। जब-जब समाज की सोच
ने मेरे कदमों पर बेड़ियाँ डालने की कोशिश की, उन्होंने मुझे खुलकर
सपोर्ट किया, मेरी उड़ान को सहारा दिया और मेरी दुनिया को अपने
प्यार और स्नेह से भर दिया। बाहर की दुनिया के सवालों के बावजूद
भी उन्होंने मुझ पर अपना विश्वास कभी नहीं डिगाया। मेरे जीवन के
हर अध्याय में पापा मेरा ‘सेफ़ हैवेन’ और मेरी ‘सोर्स ऑफ़ इंस्पिरेशन’
थे।
अपनी सिविल सेवा की तैयारी के दिनों में जब मैं रात भर पढ़ती, तो
भोर में, चिड़ियों की चहचहाहट के बीच चाय की प्याली हाथ में लेकर
आते हुए पापा को देखकर मेरी रात भर की सारी थकान दूर हो
जाती। पापा के साथ चाय पीते-पीते वो हल्की-फ़ु ल्की बातचीत मुझे
फिर से तरो-ताज़ा कर देती। पापा कहते नहीं, मगर उनकी उपस्थिति
मुझे आश्वस्त करती। पढ़ाई की उन लंबी, कठिन रातों के दौरान बिना
बोले उनका दृढ़ समर्थन मैंने गहराई से महसूस किया। तैयारी की
मुश्किल राह में पापा का वो अनकं डिशनल सपोर्ट ही मेरी ताकत बना।
उनकी सुबह की चाय सिर्फ एक रस्म नहीं थी, बल्कि उस आश्वासन
का कप थी, कि इस बड़े लक्ष्य को पाने की पथरीली राह में मैं अके ली
नहीं हूँ।

उन्होंने मेरे जीवन का सबसे यादगार अध्याय तब लिखा जब मेरा


पहला बच्चा इस दुनिया में आया। मैं घर से मीलों दूर त्रिपुरा में
पोस्टेड थी। माँ की बहुत कोशिशों के बावजूद, उनका आना किसी
वजह से पॉसिबल नहीं हो सका। उस पल में, पापा ने मुझपर अपना
असीम प्यार-दुलार लुटाकर माता-पिता के बीच के अंतर को भी पाट
दिया। अपने स्नेह और समर्थन से उस मुश्किल समय में वो मुझे
सम्बल देते रहे।

मेरे व्यक्तित्व और चरित्र के निर्माण में, नींव की ईंट की तरह जड़े,


पापा के लाइफ़ लेसंस, दरअसल वो तारे हैं, जिनकी रोशनी के सहारे ही
मैंने आज तक की अपनी जीवन-यात्रा को आगे बढ़ाया है। उनकी
नि:स्वार्थता, उनकी सहजता, उनकी करुणा और समाज के प्रति उनका
समर्पण आदि ऐसे लाइफ़ लेसंस हैं, जो जीवन के तूफ़ानों और
झंझावातों में हमेशा मेरा मार्गदर्शन करते रहे और आजीवन करते
रहेंगे। अपनी ज़िंदगी के ज़रिए, उन्होंने मुझे सहानुभूति की शक्ति,
दयालुता का महत्व और एक इंसान का दूसरे इंसान के जीवन पर
कितना गहरा प्रभाव पड़ सकता है, सिखाया।

पापा- मैं जानती हूँ कि आशा, विश्वास और जी-तोड़ मेहनत के आपके


सबक पूरी ज़िंदगी हमें रास्ता दिखाते रहेंगे। इंसान के कर्मों की ताक़त
और भगवान की कृ पा शक्ति पर आपके विश्वास को हमने अपनी
आँखों से साकार होते हुए देखा है। मुझे विश्वास है कि आप जहां कहीं
भी हैं, वहीं से हमारे लिए एक गाइडिंग एंजिल बने रहेंगे।

डियर पापा, यह शब्दांजलि, आपमें जीती रही उस पवित्र आत्मा के लिए


है, जिसने हमारे अंदर ईश्वर की आध्यात्मिक शक्ति में विश्वास पैदा
किया। जिसने हमें सिखाया कि कड़ी मेहनत से कोई भी, कु छ भी
हासिल कर सकता है। यह शब्दांजलि, मेरे उस हीरो के लिए है, जिसने
मुझे कभी हार न मानने के लिए प्रोत्साहित किया, और उस दोस्त के
लिए जो मेरी छोटी-से-छोटी अचीवमेंट पर सबसे ज़्यादा ख़ुश होते थे।

पापा शायद ऐसे ही होते हैं। भवानी प्रसाद मिश्र जी ने भी अपनी


प्रसिद्ध कविता ‘आज पानी गिर रहा है’ में पिता का कु छ ऐसा ही
शब्दचित्र खींचा है।
पिताजी जिनको बुढ़ापा,
एक क्षण भी नहीं व्यापा,
जो अभी भी दौड़ जाएँ,
जो अभी भी खिल-खिलाएँ,

मौत के आगे न हिचकें ,


शेर के आगे न बिचकें ,
बोल में बादल गरजता,
काम में झंझा लरजता,

बिल्कु ल ऐसे ही थे हमारे पापा।


सरल, सहज। निडर, निर्भीक। कर्मठ, करुण।

I love you, Papa.


मैं आपको शायद कभी भी अंतिम प्रणाम कर विदा नहीं कर पाऊँ गी,
क्यूँकि मैं जानती हूँ कि आपका अस्तित्व मेरी हर साँस में जीवंत है।

Please watch over us, dear Papa.

आपकी लाडली बेटी,


सोनल गोयल
*****

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