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मेरे मार्गदर्शक - Final
मेरे मार्गदर्शक - Final
बीती 24 अक्टू बर, 2023 को हमारे पिता स्व o ईश्वर चंद गोयल जी, हमें
रोता हुआ छोड़कर, बैकुं ठ धाम के लिए प्रस्थान कर गए।
1979 में एक चार्टर्ड अकाउं टेंट के रूप में ख़ुद को इस्टैब्लिश करने के
लिए पापा ने दिल्ली का रुख़ किया। इस बीच 27 जून 1980 को हमारी
माताजी श्रीमती रेनू गोयल जी के साथ पापा की शादी हो गई और
फिर पापा की अच्छी प्रैक्टिस और बच्चों के लिए बेहतर एजुके शन
और करियर ऑपरचुनिटीज़ के चलते दोनों ने आगे का जीवन दिल्ली
में ही बिताने का निर्णय लिया।
बहुत संघर्ष के साथ, उन्होंने दिल्ली में सीए के रूप में अपनी प्रैक्टिस
जमाई और फिर धीरे-धीरे अपने करियर में नई ऊँ चाइयों को छु आ।
अपनी मेहनत, क़ाबिलियत, प्रोफे श्नलिज़्म, ‘आई फ़ॉर डीटेल’ और इन
सबसे ऊपर अपने सहयोगपूर्ण व्यवहार के चलते पापा ने अपनी चार्टर्ड
अकाउं टेंट फ़्रे टरनिटी के बीच बहुत सम्मान पाया।
स्कू ल में पढ़ा था कि ‘पितृ देवो भव:’ लेकिन उसका सही मतलब अब
समझ में आता है कि आख़िर क्यूँ हमारे शास्त्रों में पिता को देवता
का दर्जा दिया गया है।
पापा बहुत सामाजिक व्यक्ति थे। वो सबसे प्यार करते थे। यही
कारण है कि छोटे-बड़े, बूढ़े-बुज़ुर्ग सब उनसे बहुत प्यार करते थे। पापा
हमेशा दूसरों के सुख-दुःख में शामिल रहे। उन्होंने हम तीनों बच्चों को
हमेशा यही सिखाया कि जहां तक सम्भव हो सके अपने आस-पास के
लोगों की मदद करो। जिस समाज में हम रहते हैं, उसके लिए जो बन
पड़े, करो। पापा के यही सिद्धांत जीवन में मुझे रास्ता दिखाते रहे हैं,
और आगे भी मुझे प्रेरणा देते रहेंगे।