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D-09

महोदय, वतमान समय म भारतीय समाज का पूरी तरह से राजनीितकरण हो चु का है। आधुिनक
भारत म राजनीित की जड़ सभी धम व जाितयों म ब त अ ी तरह जम चु की ह। िपछले दो-
तीन दशकों म शहरों के साथ-साथ गाँ वों म भी राजनीितक चेतना उ हो चुकी है । भारतवष
की सभी राजनीितक पािटयों ने जनमानस म अपना आधार ने बनाने व मजबूत करने के िलए
स ाएँ व सिमितयाँ बनाई है । अपने -अपने दलों की सं ा म बढ़ोतरी करने के िलए सभी पािटयाँ
यासरत ह। चु नावी िदनों म इन सं ाओं पर ब त कुछ छोड़ िदया जाता है और िन ं देह जीत
भी उसी दल की होती है, िजस दल के छोटे र के कायक ा अिधक िन ा व अनुशासन से काय
करते ह ।

िविभ दलों के राजनीितक नेताओं म जब िवचारों की र ाकशी होती है तो छोटे र की पािटयों


के बीच भी तनाव दे खने को िमलता है । जमीन से जु ड़े कायक ा अपनी पाट के ित सचे त व
गं भीर रहते ह तथा यह तनाव की ित कभी-कभी िहं सा का प भी धारण कर लेती है और
इस तरह के िहं सक उदाहरण हम दे खने को भी िमले ह, लगभग हर समय अपनी पाट की
अ ाइयों की घोषणा व उसके प रणामों का िज करते रहते ह िजससे िक उनकी पाट को
आधार िमल सके।

जमीन से जुड़े की वा िवक सि यता हम पं चायती व नगरपािलका के चुनावों म दे खने को


िमलती है। जमीनी कायक ा अपनी पाट का अपने-अपने े म वच रखने के िलए िदन-रात
एक कर दे ते ह । कायक ा एक बार पाट म स िलत होने के प ात पाट की हार को अपनी
हार मानते ह, दू सरे श ों म इसे स ान का ' भी कहा जाता है। जमीनी कायक ा चुनावी
िदनों म अपने आधार पर वोटों की खरीद-फरो व जोड़-तोड़ करने म कोई कसर नही ं छोड़ते।
सभी े ों म सं ाओं व कायालयों के होने के कारण े िविभ पािटयों म बँ टे िदखाई दे ते ह।

जमीन से जुड़े कायक ाओं का नेता िजस कुस पर बैठता है वह उनकी लगन व प र म का
प रणाम होता है व जमीनी कायक ा अपने नेता को कुस पर बैठा दे ख कर अपना प र म सफल
समझते ह। िकंतु कुछ समय से ये कायक ा अपने आप को कुछ उलझन म अनुभव कर रहे है ।
इसका मु कारण है िक पाट के उ र के ने ताओं ारा िकसी पाट से चुनाव समझौता कर
ले ना ।

महोदय, पहली ि म आम जनता को यह िव ास नहीं हो सकता िक यिद सभी सहयोगी या


समथक दल सरकार से समथन वापस लेते ह िफर भी सरकार बनी रहती है । यह कैसे होता है ?
SSC STENOGRAPHERS ZONE

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