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Putra Prem
Putra Prem
Subject - Hindi
Topic - Putra Prem
पुत्र - प्रेम
मुंशी प्रेमचुंद जी ने पत्र - प्रेम कहानी में बाबू चैतन्य की मन की कमजोरियों को ददखाया गया है। वे वककल थे ,दो तीन
गााँव में उनकी जमीुंदािी थी। धनी होने के बावजूद वे किजूलखची में ववश्वास नहीुं िखते थे। ककसी भी खचच को वे सोच
समझ पि ही किते थे।
उनके दो बेटे थे - प्रभदास औि शशवदास। बडे बेटे पि उनका स्नेह अधधक था। उन्हें प्रभदास से बडी - बडी आशाएाँ थी।
प्रभदास को वे इुंग्लैंड भेजना चाहते थे।लेककन सुंयोगवस से बी.ए किने के बाद प्रभदास बीमाि िहने लगा।डॉक्टिों की
दवा होने लगी।एक महीने तक ननत्य डॉक्टि साहब आते ,लेककन ज्वि में कछ कमी नहीुं आती। अतः कई डॉक्टििों को
ददखाने के बाद एक डॉक्टि ने सलाह दी कक सायेद प्रभदास को टी.बी (तपेददक )हो गया है। यह अभी िेिडों तक नहीुं
पहुंचा। अतः इसे ककसी अच्छे सेनेटोरियम में भेजना ही उधचत होगा।साथ ही डॉक्टि ने मानशसक परिश्रम से बचने की
सलाह दी।यह सन कि चैतन्यदास बहत दखी हो गए।
कई महीनों के बीतने के बाद प्रभदास की दशा ददनों -ददन बबगडती चली गयी। वह अपने जीवन कके प्रनत उदासीन हो
गया।अतः धचक्क्तसक ने उसे इटली के ककसी अच्छे सेनेटोरियम में जाने की सलाह दी। इस पि तीन हजाि का खचाच का
सकता है। इस पि घि में चैतन्यदास जी द्वािा वववाद हआ।
मााँ द्वािा प्रभदास का पक्ष शलया गया लेककन चैत्यान्डास अपनी अथचशाष्त्त्री बक्दद द्वािा ऐसे ककसी कायच में खचच नहीुं
किना चाहते थे क्जसमें लाभ होने की शुंका हो। अतः उन्होंने प्रभदास को इटली नहीुं भेजा।
समय बीतता गया। ६ मॉस बाद शशवदास बी. ए। पास हो गया। अतः चैतीनदास जी ने जमीुंदािी बुंधक िखकि शशवदास
को पढाई के शलए इुंग्लैंड भेज ददया औि एक सप्ताह बाद ही प्रभदास की मत्ृ य हो जाती है।
अुंनतम सुंस्काि के शलए मणिकणिचका घात पि अपने सम्बक्न्धयों के साथ जाते हैं। उस समाय वह बहत दखी थे। उनके
अथचशास्त्र पि उनका पत्र प्रेम हावी हो िहा था। वे बाि - बाि सोच िहे थे कक यदद वे ३ हजाि रुपये खचच कि ददए होते तो
सुंभव है ,प्रभदास स्वस्थ हो जाता। अतः वे ग्लानन ,शोक औि पस्चताप से सुंतप्त हो गए।
अकस्मात ् उनके कानों में शहनाइयों की आवाज सनाई आयी। उन्होंने दे खा की मनष्त्यों को एक समूह गाते ,बजाते हए
पष्त्प की वर्ाच किते हए आ िहे हैं।वे घाट पि पहाँच कि अथी उतािी औि धचता सजाने लगे। चैतीनदास ने एक यवक से
पूछा तो उसने उसने बताया कक यह हमािे वपता जी है । अुंनतम इच्छा के अनसाि उन्हें हम मणिकणिचका घाट पि ले आये
हैं। यहााँ तक आने पि सैकडों रुपये खचच हो गए ,लेककन बूढे वपता की मक्क्त हो गयी।धन ककसशलए होता है ।यवक ने
बताया कक तीन साल तक इलाज चला।जमीन तक बेंच दे नी पडी ,लेककन धचत्रकूट ,हरिद्वाि ,प्रयाग सभी स्थानों के
बैद्यों को ददखाया कोई कोई कसाि नहीुं छोडी। यवक ने कहा कक पैसा हाथ का मेल है ,किि कमा लूुंगा लेककन मनष्त्य
के जाने पि वापस नहीुं आता है। धन से ज्यादा प्यािा इुंसान है।
इन सब बातों का चैत्यन्य दास पि गहिा प्रभाव पडा. वे अपनी हृदयहीनता ,आत्म हीनता औि भौनतकता के कािि दबे
जा िहे थे। अतः वे इतने परिवनतचत हो गए कक प्रभदास की अुंत्येक्ष्त्ट में हजािों रुपये खचच कि डाले। अब उनके सुंतप्त
ह्रदय की शाक्न्त के शलए अब एक मात्र यही उपाय िह गया।
प्रश्न
1. "एक-एक शब्द उनके हृदय में शर के समान चुभता था। इस उदारता के प्रकाश में उन्हें अपनी
हृदयहीनता, अपनी आत्मशून्यता, अपनी भौततकता अत्यंत भयंकर ददखाई दे ती थी।" - बाबू चैतन्यदास की
आत्मग्लातन का क्या कारण था ? अपने शोक संतप्त हृदय की शांतत के ललए उन्होंने ककस उपाय का सहारा
ललया ?
2. पत्र
ु प्रेम कहानी के प्रमख
ु पात्र कौन थे ?उनकी क्या विशेषता थी ? अपनी ककन गलततयों के कारण अंत में
िे पछताते है एिं पश्चाताप के ललए क्या करते हैं ?