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ये क्षमा पूजा में हुई गलितयों के िलए और दैिनक जीवन में िकए
गए गलत कामों के िलए भी होती है। क्षमा सबसे बड़ा भाव है।
जब हम भगवान से क्षमा मांगते हैं, तब पूजा पूरी होती है और
भगवान की कृपा िमलती है। क्षमा का ये भाव हमारे अहंकार को
िमटाता है। हमें दैिनक जीवन में भी अहंकार को त्यागकर अपनी
गलितयों की क्षमा मांगने में देरी नहीं करनी चािहए। ये इस
परंपरा का मूल संदेश है।
मंत्रः
आवाहनं न जानािम न जानािम िवसजर्नम्।
पूजां चैव न जानािम क्षमस्व परमेश्वर॥
मंत्रहीनं िक्रयाहीनं भिक्तहीनं जनादर्न।
यत्पूिजतं मया देव! पिरपूणर् तदस्तु मे॥
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