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Maharshi Classes - 9667116111

राम क शि पूजा

रिव आ अ त : योित के प पर िलखा अमर

रह गया राम - रावण का अपराजेय समर

आज का, ती ण - शर - िवधृत - ि - कर, - वेग- खर,

शतशेलस वरणशील, नील नभ ग त - वर ।

ितपल - प रव तत - ूह - भेद - कौशल - समूह,-

रा स - िव यूह, - ु - किप - िवषम - ह,

िव छु रितवि न - राजीवनयन - हत ल य - बाण,

लोिहतलोचन - रावण - मदमोचन - महीयान।

राघव - लाघव - रावण - वारण - गत - यु म - हर,

उ त - लंकापित म त- किप - दल - बल - िव तर,

अिनमेष -राम - िव िज - शर - भंग - भाव,-

िव ांग - ब - कोदंड - मुि - खर - िधर- ाव ।

रावण - हार - दुवार - िवकल वानर - दल- बल, -

मू छत - सु ीवांगद - भीषण - गवा - गवा - गय- नल,-

वा रत - सौिम - भ लपित - अगिणत - म ल - रोध,

ग त - लयाि ध - ु ध - हनुमत् - के वल - बोध,

उ ी रत - वि न - भीम - पवत - किप - चतुः हर,

जानक - भी - उर - आशाभर - रावण - स वर ।

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लौटे युग - दल । रा स-पदतल पृ वी टलमल,

बध महो लास से बार - बार आकाश िवकल ।

वानर-वािहनी िख , लख िनज-पित-चरण-िच न

चल रही िशिवर क ओर थिवर - दल य िविभ ।

शिमत है वातावरण, निमत-मुख सा य कमल

ल मण िच ता-पल, पीछे वानर- वीर सकल,

रघुनायक आगे अवनी पर नवनीत-चरण,

थ धनु-गुण है, क टब ध त तूणीर-धरण,

दृढ़ जटा - मुकुट हो िवपय त ितलट से खुल

फै ला पृ पर, बा पर, व पर, िवपुल

उतरा य दुगम पवत पर नैशा धकार,

चमकत दूर ताराएँ य हो कह पार ।

आये सब िशिवर, सानु पर पवत के , म थर

सु ीव, िवभीषण, जा बवान आ दक वानर,

सेनापित दल-िवशेष के , अंगद, हनूमान,

नल, नील, गवा , ात के रण का समाधान

करने के िलए, फे र वानर दल आ य थल ।

बैठे रघु-कु ल-मिण ेत िशला पर; िनमल जल

ले आये कर-पद- ालनाथ पटु हनूमान;

अ य वीर सर के गये तीर स या- िवधान-

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व दना ईश क करने को, लौटे स वर,

सब घेर राम को बैठे आ ा को त पर;

पीछे ल मण, सामने िवभीषण, भ लधीर,

सु ीव, ा त पर पाद-प के महावीर,

यूथपित अ य जो, यथा थान, हो िन नमेष ,

देखते राम का िजत- सरोज-मुख- याम-देश।

है अमािनशा, उगलता गगन घन अ धकार,

खो रहा दशा का ान, त ध है पवन-चार,

अ ितहत गरज रहा पीछे अ बुिध िवशाल

भूधर य यान-म , के वल जलती मशाल ।

ि थर राघवे को िहला रहा फर- फर संशय,

रह-रह उठता जग जीवन म रावण-जय-भय,

जो नह आ आज तक दय रपु-द य ा त, -

एक भी, अयुत-ल म रहा जो दुरा ा त,

कल लड़ने को हो रहा िवकल वह बार-बार

असमथ मानता मन उ त हो हार-हार ।

ऐसे ण अ धकार घन म जैसे िव ुत

जागो पृ वी-तनया-कु मा रका-छिब, अ युत

देखते ए िन पलक, याद आया उपवन

िवदेह का, - थम ेह का लता तराल िमलन

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नयन का-नयन से गोपन-ि य स भाषण,

पलक का नव पलक पर थमो थन-पतन, -

काँपते ए कसलय, - झरते पराग-समुदय, -

गाते खग-नव-जीवन-प रचय, -त मलय-वलय,-

योितः पात वग य, - ात छिब थम वीय,

जानक - नयन- कमनीय थम क पन तुरीय ।

िसहरा तन, ण भर भूला मन, लहरा सम त,

हर धनुभग को पुनवार य उठा ह त,

फू टी ि मित सीता- यान-लीन राम के अधर,

फर िव -िवजय-भावना दय म आयी भर ।

वे आये याद द शर अगिणत म पूत,-

फड़का पर नभ को उड़े सकल य देवदूत,

देखते राम, जल रहे शलभ य रजनीचर,

ताड़का, सुबा , िवराध, िशर य, दूषण, खर,

फर देखी भीमामू त आज रण देखी जो

आ छा दत कये ए स मुख सम नभ को,

योितमय अ सकल बुझ-बुझ कर ए ीण,

पा महािनलय उस तन म ण म ए लीन,

लख शंकाकु ल हो गये अतुल-बल शेष-नयन, -

खच गये दृग म सीता के राममय नयन,

फर सुना-हँस रहा अ हास रावण खलखल,

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भािवत नयन से सजल िगरे दो मु ा-दल ।

बैठे मा ित देखते राम-चरणारिव द-

युग 'आि त-नाि त' के एक- प, गुण-गण-अिन ,

साधना-म य भी सा य-वाम-कर दि ण-पद,

दि ण कर-तल पर वाम चरण, किपवर ग द

पा स य, सि दान द प िव ाम-धाम,

जपते सभि अजपा िवभ हो राम-नाम ।

युग चरण पर आ पड़े अ तु वे अ ु युगल,

देखा किप ने, चमके नभ म य तारादल, -

ये नह चरण राम के , बने यामा के शुभ-

सोहते म य म हीरक-युग या दो कौ तुभ,

टूटा वह तार यान का, ि थर मन आ िवकल,

सं द ध भाव क उठी दृि , देखा अिवकल

बैठे वे वही कमल लोचन, पर सजल नयन,

ाकु ल- ाकु ल कु छ िचर- फु ल मुख, िन ेतन ।

'ये अ ु राम के ' आते ही मन म िवचार,

उ ग
े हो उठा शि -खेल-सागर अपार,

हो िसत पवन- उनचार िपता-प से तुमुल

एक व पर बहा वा प को उड़ा अतुल,

शत घूणावत, तरं ग-भंग उठते पहाड़,

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जल-रािश-रािश-जल पर चढ़ता खाता पछाड़,

तोड़ता ब ध- ितस ध धरा, हो फ त-व

दि वजय- अथ ितपल समथ बढ़ता सम ।

शत-वायु-वेग-बल, डु बा अतल म देश-भाव,

जलरािश िवपुल मथ िमला अिनल म महाराव

व ांग तेजघन बना पवन को, महाकाश

प च
ँ ा, एकादश ु ध कर अ हास ।

रावण-मिहमा यामा िवभावरी अ धकार,

यह राम-पूजन- ताप तेजः सार,

उस ओर शि िशव क जो दश क ध-पूिजत,

इस ओर -व दन जो रघुन दन-कू िजत,

करने को त सम त ोम किप बढ़ा अटल ।

लख महानाश िशव अचल ए ण-भर चंचल,

यामा के पदतल भारधरण हर म वर

बोले- "स वरो देिव, िनज तेज, नह वानर

यह, - नह आ शृंगार-यु म-गत, महावीर,

अचना राम क मू तमान अ य-शरीर

िचर- चय-रत, ये एकादश ध य,

मयादा-पु षो म के सव म, अन य,

लीला-सहचर, द भावधर, इन पर हार,

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करने पर होगी देिव, तु हारी िवषम हार,

िव ा का ले आ य इस मन को दो बोध,

झुक जायेगा किप, िन य होगा दूर रोध।"

कह ए मौन िशव, पवन-तनय म भर िव मय

सहसा नभ म अंजना- प का आ उदय,

बोली माता -"तुमने रिव को जब िलया िनगल

तब नह बोध था तु ह, रहे बालक के वल,

यह वही भाव कर रहा तु ह ाकु ल रह-रह,

यह ल ा क है बात क माँ रहती सह-सह,

यह महाकाश, है जहाँ वास िशव का िनमल-

पूजते िज ह ीराम, उसे सने को चल

या नह कर रहे तुम अनथ-सोचो मन म,

या दी आ ा ऐसी कु छ ीरघुन दन ने?

तुम सेवक हो, छोड़ कर धम कर रहे काय-

या अस भा हो यह राघव के िलए धाय?"

किप ए न , ण म माताछिव ई लीन,

उतरे धीरे -धीरे गह भु-पद ए दीन ।

राम का िवष णानन देखते ए कु छ ण,

'हे सखा', िवभीषण बोले, "आज स वदन

वह नह देख कर िजसे सम वीर वानर-

भ लूक िवगत- म हो पाते जीवन-िनजर,

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रघुवीर, तीर सब वही तूण म ह रि ण,

है वही व , रण - कु शल ह त, बल वही अिमत,

ह वही सुिम ान दन मेघनाद-िजत-रण,

ह वही भ लपित, वानरे सु ीव मन,

तारा - कु मार भी वही महाबल ेत धीर,

अ ितभट वही एक-अबुद-सम, महावीर,

ह वही द सेना नायक, है वही समर,

फर कै से असमय आ उदय यह भाव- हर ?

रघुकुल-गौरव, लघु ए जो रहे तुम इस ण,

तुम फे र रहे हो पीठ हो रहा जब जय रण!

कतना म आ थ ! आया जब िमलन-समय,

तुम ख च रहे हो ह त जानक से िनदय !

रावण, रावण, ल पट, खल क मष गताचार,

िजसने िहत कहते कया मुझे पाद- हार,

बैठा वैभव म देगा दुख सीता को फर,-

कहता रण क जय-कथा पा रषद-दल से िघर, -

सुनता वस त म उपवन म कल-कू िजत िपक

म बना क तु लंकापित, िधक् , राघव, िधक् -िधक् !"

सब सभा रही िन त ध, राम के ि तिमत नयन

छोड़ते ए, शीतल काश देखते िवमन

जैसे ओज वी श द का जो था भाव

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उससे न इ ह कु छ चाव, न हो कोई दुराव,

य ह वे श द मा ,-मै ी को समनुरि ,

पर जहां गहन भाव के हण क नह शि ।

कु छ ण तक रह कर मौन सहज िनज कोमल वर

बोले रघुमिण - "िम वर, िवजय होगी न समर,

यही नह रहा नर-वानर का रा स से रण,

उतर पा महाशि रावण से आम ण,

अ याय िजधर, ह उधर शि !" कहते छल-छल

हो गये नयन, कु छ बूँद पुनः ढलके दृगजल,

क गया क ठ, चमका ल मण-तेजः चंड,

धस गया धरा म किप गह युग पद मसक दंड,

ि थर जा बवान, - समझते ए य सकल भाव,

ाकु ल सु ीव,- आ उर म य िवषम घाव,

िनि त-सा करते ए िवभीषण काय- म,

मौन म रहा य पि दत वातावरण िवषम ।

िनज सहज प म संयत हो जानक - ाण

बोले- "आया न समझ म यह दैवी िवधान,

रावण, अधमरत भी, अपना, म आ अपर-

यह रहा शि का खेल समर, शंकर, शंकर!

करता म योिजत बार-बार शर-िनकर िनिशत

हो सकती िजनसे यह संसृित स पूण िविजत,

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जो तेज: पुंज, सृि क र ा का िवचार

है िजसम िनिहत पतनघातक सं कृ ित अपार-

शत-शुि -बोध- सू माितसू म मन का िववेक,

िजनम ह ा धम का धृत पूणािभषेक,

जो ए जापितय से संयम से रि त,

वे शर हो गये आज रण म, ीहत खि डत |

देखा, ह महाशि रावण को िलये अंक,

लांछन को ले जैसे शशांक नभ म अशंक,

हत म पूत शर संवत
ृ करत बार-बार

िन फल होते ल य पर ि वार पर वार!

िवचिलत लख किपदल कु , यु को म य - य ,

झक-झक झलकती वि न वामा के दृग य - य ,

प ात्, देखने लग मुझे, बँध गये ह त,

फर खचा न धनु, मु य बँधा म आ त।"

कह ए भानुकुलभूषण वहां मौन ण भर,

बोले िव त कं ठ से जा बवान- "रघुवर,

िवचिलत होने का नह देखता म कारण,

हे पु ष - सह, तुम भी यह शि करो धारण,

आराधन का दृढ़ आराधन से दो उ र,

तुम वरो िवजय संयत ाण से ाण पर,

रावण अशु होकर भी य द कर सका त

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तो िन य तुम हो िस करोगे उसे व त,

शि क करो मौिलक क पना, करो पूजन,

छोड़ दो समर जब तक न िसि हो रघुन दन !

तब तक ल मण ह महावािहनी के नायक

म य भाग म, अंगद दि ण- ेत सहायक,

म भल सै य, ह वाम पा म हनूमान,

नल, नील और छोटे किपगण-उनके धान,

सु ीव, िवभीषण, अ य यूथपित यथासमय

आयगे र ा हेतु जहां भी होगा भय।"

िखल गयी सभा । "उ म िन य यह, भ लनाथ !"

कह दया वृ को मान राम ने झुका माथ ।

हो गये यान म लीन पुनः करते िवचार,

देखते सकल-तन पुल कत होता बार-बार ।

कु छ समय अन तर इ दीवर िनि दत लोचन

खुल गये, रहा िन पलक भाव म मि त मन ।

बोले आवेग-रिहत वर से िव ास-ि थत-

"मातः, दशभुजा, िव - योित: म ँ आि त,

हो िव शि से है खल मिहषासुर म दत,

जनरं जन-चरण-कमल-तल, ध य सह ग त!

यह, यह मेरा तीक, मातः, समझा इं िगत,

म सह, इसी भाव से क ं गा अिभनि दत । "

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कु छ समय त ध हो रहे राम छिव म िनम ,

फर खोले पलक कमल- योितदल यान- ल ,

ह देख रहे म ी, सेनापित, वीरासन

बैठे उमड़ते ए, राघव का ि मत आनन ।

बोले भव थ च -मुख-िनि दत रामच ,

ाण म पावन क पन भर, वर मेघम -

'देखो ब धुवर, सामने ि थत जो यह भूधर

शोिभत शत-ह रत-गु म-तृण से यामल सु दर,

पावती क पना ह इसक , मकर द-िव दु,

गरजता चरण- ा त पर सह वह, नह िस धु,

दश दक-सम त है ह त, और देखो ऊपर,

अ बर म ए दग बर अ चत शिश-शेखर,

लख महाभाव-मंगल पदतल धँस रहा गव-

मानव के मन का असुर म द, हो रहा खव ।"

फर मधुर दृि से ि य किप को ख चते ए

बोले ि यतर वर से अ तर स चते ए-

"चािहए हम एक सौ आठ किप, इ दीवर,

कम-से-कम, अिधक और ह , अिधक और सु दर,

जाओ देवीदह, उषःकाल होते स वर,

तोड़ो, लाओ वे कमल, लौटकर लड़ो समर ।

अवगत हो जा बवान से पथ, दूर व, थान,

भु-पद-रज िसर धर चले हष भर हनूमान ।

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राघव ने िवदा कया सब को जानकर समय,

सब चले सदय राम क सोचते ए िवजय ।

िनिश ई िवगतः नभ के ललाट पर थम करण

फू टी, रघुन दन के दृग मिहमा- योित-िहरण,

ह नह शरासन आज ह त-तूणीर क ध,

वह नह सोहता िनिवड़-जटा-दृढ़-मुकुट-ब ध,

सुन पड़ता सहनाद, -रण-कोलाहल अपार,

उमड़ता नह मन, त ध सुधी ह यान धार,

पूजापरा त जपते दुगा, दशभुजा नाम,

मन करते ए मनन नाम के गुण ाम,

बीता वह दवस, आ मन ि थर इ के चरण,

गहन-से-गहनतर होने लगा समराधन ।

म- म से ए पार राघव के पंच दवस,

च से च मन चढ़ता गया ऊ व िनरलस,

कर-जप पूरा कर एक चढ़ाते इ दीवर,

िनज पुर रण इस भाँित रहे ह पूरा कर ।

चढ़ ष दवस आ ा पर आ समािहत मन,

ित जप से खच - खच होने लगा महाकषण,

संिचत ि कु टी पर यान ि दल देवी-पद पर,

जप के वर लगा काँपने थर-थर-थर अ बर,

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दो दन िन प द एक आसन पर रहे राम,

अ पत करते इ दीवर, जपते ए नाम ।

आठवाँ दवस, मन यान-यु चढ़ता ऊपर

कर गया अित म ा-ह र शंकर का तर,

हो गया िविजत ा ड पूण, देवता त ध,

हो गये द ध जीवन के तप के समार ध,

रह गया एक इ दीवर, मन देखता-पार

यः करने को आ दुग जो सह ार,

ि हर राि , साकार दुगा िछपकर,

हँस उठा ले गय पूजा का ि य इ दीवर ।

यह अि तम जप, यान म देखते चरण युगल

राम ने बढ़ाया कर लेने को नील कमल,

कु छ लगा न हाथ, आ सहसा ि थर मन चंचल

यान क भूिम से उतरे , खोले पलक िवमल,

देखा, वह र थान, यह जप का पूण समय,

आसन छोड़ना अिसि , भर गये नयन य

" िधक् जीवन को जो पाता ही आया िवरोध,

िधक् साधन, िजसके िलए सदा ही कया शोध !

जानक ! हाय, उ ार ि या का हो न सका।"

वह एक और मन रहा राम का जो न थका,

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जो नह जानता दै य, नह जानता िवनय

कर गया भेद वह मायावरण ा कर जय,

बुि के दुग प च
ं ा िव त
ु -गित हतचेतन

राम म जगी मृित, ए सजग पा भाव मन ।

"यह है उपाय" कह उठे राम य मि त घन-

"कहती थ माता मुझे सदा राजीवनयन!

दो नील कमल ह शेष अभी, यह पुर रण

पूरा करता ँ देकर मातः एक नयन ।"

कह कर देखा तूणीर शर रहा झलक,

ले िलया ह त, लक-लक करता वह महाफलक,

ले अ वाम कर, दि ण कर दि ण लोचन

ले अ पत करने को उ त हो गये सुमन ।

िजस ण बँध गया बेधने को दृग दृढ़ िन य,

काँपा ा ड, आ देवी का व रत उदय :-

"साधु, साधु, साधक धीर, धम-धन ध य राम!"

कह, िलया भगवती ने राघव का ह त थाम ।

देखा राम ने-सामने ी दुगा, भा वर

वामपद असुर-सक ध पर,रहा दि ण ह र पर,

योितमय प, ह त दश िविवध अ -सि त,

म द ि मत मुख, लख ई िव क ी लि त,

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ह दि ण म ल मी, सर वती वाम भाग,

दि ण गणेश, का तक बाय रण-रं ग राग,

म तक पर शंकर । पदप पर ाभर

ी राघव ए णत म द वर व दन कर ।

"होगी जय, होगी जय, हे पु षो म नवीन !"

कह महाशि राम के वदन म लीन ।

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