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2015.345636.adwetanand Arthat Text
2015.345636.adwetanand Arthat Text
प्देतावत्द्
या
सचिदानन्द प्रकाश
(पहला भाग)
जिसमे
~ -2 ॥
24
दीबाचां (भूमिक `
पर पिताजी का हाल नौं उनकी सपन |
3
4
(कि श्री परम हसजी महौ्य॑ज केदारः घाट । ` "४
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वराज्ञ जीर उपदेशं 1" `; ^“) । >
उडते की सिटी ¶ {५ ", *।]5 ° +) {४
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२३ पटना को रवानगी ५ .= ` '
( ३ )
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नम्बर इरएादं ‡ प विषुग ह
हाफिज जी त्यागी-जैपुर 1 . ॥}
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# योतरसत् #
अदरेतानन्द
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श्रथतवा
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सच्चदा्नन्द् प्रकाश
प्रथम भाग `
जीवन चरि
० ~ध ~~
ती यह
सार्यंश ˆकि दोनों वतिं एक
। ` है ५ साथ न्दी..दी-।
॥ दाहा}. `
ने कह हे-
इस द्म का करे भरोसा कौन वपे ।
जधर्किदम भरनखुददहं सव्र इस ॥
।) रैर ॥
फिकरे सुश्राश सिके खुरा यदे रस्त्गानि ।
दा दिन की जिन्दगी. भला.कोह. ग्या करे॥
अथे-इष थोडे जीवनम मयुष्य क्यार रेज्गी
ती चताक्रेया परास काष्यनकरेया्ये की
याद कर इसलिये एकर समय मे.एक काम से ठकदय
सकता हं ! “इविधौ म दोनों मये. मायां मिली न सम
दोना शरोर देखने मेयहंदशा ्ोती है-
ह वहारे वाग दुनिर्या-च॑द रज्ञ ।
देखले इसका तमाशा चन्द् रोज्ञ ॥
पच्छ कृपां सेजिया त्कितने रे
८ २. )
` ` दस्त हसरत मलक गला चन्द सेज्ञ॥
` कृत् म रहकर यों बली कञ्ञा)
श्रव यहा तुम सोते रहना चन्द शैज्ञ॥ `
गाफिलां यदे -इलादी चाहिये ।
इस जहां म है वदेय. चन्द रञ्ज ॥
यंह सुन कर परमहस ने कहा कि भह शृ
होना मानो सार रका बो अपने सिर परं लेना है
ग्रोर यदि ठम्हारा यह विश्ाघ हेग साधू होने मे कीटं
चिन्तान रहेगी सो भी ठीक-नहीं श्यो क्षि रर बतो
के श्रतिरिक्तं सुखस्य. चिता खाने पहरने कीं हा करती है
रो! इस से नगृहस्थी ही वचाह्ुश्राहेशरोरन्न साधर
सरतत है ।.मेने कहा. सच हे यहकाम देनीःत्राश्रमों
करे लिये दहतो आवश्यक परन्तु साधूको इसी इह
एसी धक चिता न्ह हे ।
न
॥ कर ॥ `
. ॥ शैर ॥
। दह,
अरस सण्व ले द्रव्य हो च्रौर द्य भस्
= „०
लो
त राज
„=, |
।. .
तुलसी जो निज मरन हैतो अविकानं कज ॥
( ३० )
1 दाहा-॥
॥ शर ॥
( ४५. )
भा. कैः तालाब पर स्थितिः थी, महागजाः सांहषःव गनी
.. जा साहिकः दोना; षहः साधू. सेबी रोर हरिः मक्त-येः।
उनक्रीः व्वोदीः यानी फाटक के,उपरःएकः मोसौः नीःरहतेः
ये'। . वृहत पन्दर सूरतके-श्रच्छे;. बलवानः ओर वलिषट
जवान थेः। वृह हमासः बहा: ष्यानः रखते, चोरय
इयादिः लामा करते थे. इनः थस जी हास व महाः
राजा व.महारनी ली कीःसेत्रा क संमालःसेः व्हःपरअः
कसर. साधर महासागर का नित्ासःथा ।` शतार जीं नैः
से. दिखनोदी जगानः बःसूरत शकलैः थच्देये पेते) दी
सभावर्मभीएक्षदहीये)
(२७) एक दिन दइस्थाद हृ किं सम्बत् ५६२०
क
से १८ ३६ किक्रमीं तक अथवा १५. या १६ वष . बरावर भर-
म॒ करने फे वाद जव.वितिया राज मेः उस समयर'एक
दिन मन मे थह विचार उदयन्न.ह्ा.फिः यदं कोई स्थानं
शर के. बाहर मिलता जहां दिशा ब जल आदिर्
खख होता ता अपनी मञ्जी से वी सदसे । इन त्रिचारी
के उत्तर मे थर कींश्चोर से यह थान्ना इई. उस्र
का देशाटन होड कर काव्िषाड. देशं व दार्का"जा
दि कादेशाटनक्े] `, ~ ५. ; 5.
( २९२) एंकादनःद्णाद हुत्रापििणह कः श्ना
पाति दी हमे `चनः काः इरादा करलिंया; भरर भीः ्-
कभ्याःजीःकी च्रोर चलः धियि । रस्ति मःयुर्द कवे तीन
(भ< )
हो लि मे शर ैर इ ी तर ह मि लत े. मि लत े लग भग
साधू साथ व ा
े । उन सव ने हम को पन ा सि खर ा थ
किः मूरती होगय र ा र
पशडली का मह न् त मा न कर से वा टह ल कर ना
। हम उन को बा रम ्ब ार सम मत
क
ि श् रौ र मन ा केस ^
क्र ी
परुतु यह सेवा करनी नहीं दोढते ये । हमको साइली
थ्वी पर नहीं सोने देतेये वररलोरयासगचमेजोव्ह
मोज॒द होता गदी की तरह विद्धा देते ये । गवि की
किसी पेड के नीये खूब. रासन लगा द शरोर धी चिल
रादि माग करं लत ओर रसोई . वनाकर हमारे हाय
घुलाना श्यादि जो सेवा महन्त की होनी चाहिय _ करते
थे । ओः गाव के दूसरे मयुष्य भी पसा दी कतं ये ।
ह भ जों सार मिलते गये साथ होणिये यहां तक़ भि
अयोध्या .जी पचते पवते लग भग १२ मृती दाग ।
पहले तो हमार व्रिंचार दारका जी तक काही था परन्तु
रहम जो साधं मिलते गये उनके कारण अभी. मधुर
बन्दायन तक का हृ । ज॑ब बहुत मियां हेग तो जी
उक्ताने लगा, इ तो हम उन लोगो के तकस्ुफ
सःपवरामे हुएयेही, अव हम नेअलग होने का एक उपाय
सोचा, अंथोत् कभी मील कमी दो मील चलकर ठहरा
भरमम किया, कयो कै हम वहा लोट कर पीकेःच्राना -
तों चाहते दी वहीं ये केवल, दिन काठते ये, परन्तु इन
लोगों को यात्रा के च्रपने स्थानौ को पी अनाथा
इसलिये इनकी हानि होने लगी.। पिर तो उन लोगो ने
( ५६ )
ं क्ष
ध्वान्भ्भे पसाउनसेवतरवातभेटचीवेत लोकरग बाप्रंतु शरोहमराचाहशा
बालन चालने शरोर वात चीत करने फो नहीं बादती थी
( ६३ )
स्रोर न इध् उनकी थोर ध्यान देते ये, परस् उ र
0०५
आर्धक च,
परन्तु उस कै विचार ससा वाता का रर्
ं चषक
किसी एक ही प्रकारका प्रजा पाह की ओर
ान न था । इस लि ये सा सा रक ्त रू पा कै पूर् हन
ध्य
। यदा
्रादिकेनजो मन्त्र थे वह उनका वती दाये
् च. \
केवल एक ही दिन र्द ओरं चलनं का विचार कृत
उसी दिन स्मे यहः अद्म हृ्रा किं 'ठम्हार
विचार एक स्थान परै करमनन कने का था, परनठु चक
त॒म द्राख्िली का षिचार् कर उके हो इसलिय जयश
होते हुए दार्काजी जाना" सारांश १४४० सत म्
फिर जयपुर गये शहर से बाहर फतहासह का सराय् च
ठहरे वहां हमरे साथी साधुने दाल वादी नाई अरं
भोजन करने के यश्चात् शहर म गथ-
(३५) एक दिनि इष्शद हेश्मा किं जव ` शहर
जयपुर मेँ घुसे तो पहले सुहर्ला पान दरीवा भजाना
हा यहां एक आ्रादमो गूजर जाति का वेग था, उसस्
चय ति यहां फे साधर स॑त का स्थान हे । उसने निकट
ही पर एक स्थान का पता बताया, हम प्ंढते जाते थे कि
एक कबीषुर कन्हेयालाल ने इम को साथ लेकर रधी-
किशन कै इंड के पस श्री नगन्नाथजीके मन्दिरमे
पना दिया वहां जोवेष्ण॒षर साधरथेउनका नाम हनूमा-
नजीथा, चौर एक श्चीःमीरावहर नामक. बडी भगतमभी
क क क
वह। रहता थाः इन दना च हर प्रकार हमार. सवा का।इन
( & )
[क
स व ा द ः या द् र ा य ा क हा
्रीङ्ष्ण जी महारज क
से क ह ा थ ा ४ १ ददवा
श्री कृष्ण जा न चरन म इ स ब ा त
च न ा : ६ ग ् र ो
को यह उपदेश दीया था म क वह ीं ज ा ग त ा । द म
वा ति
को जानता ह पर्त त् इस स ा बो लत े क ि हा श्रव
ं थ % म ह ा
इस को विचार कर रह ऊ स म ् ब ा द क ो वि चा रं
प रैन भरर शृष्ण म ह ा र ा ज
क ि म े न े द ] । न य म व े ए फ ती
हे हो चौर फिर बोले च ल त ा प् रा जे से ह व ा
लवं चलता था तव पव न क ी स ी त ि
त व च ल इ न त े क ि स ी स
चलकी हे षि जव चाहा ब ह त स ु स ् भरं
क ि स ी स म ल न ा सन ोर
पना च्रोर न ड ञ् रौ रं यद्यपि
ी ज व ज च ा ह ा च ल प
श्रो की सेर क ्र ी प् रध ान हं
ख ह पर न् तु इ न ८ मद
इस शरीर मे पर्चो त त् च भ ा न ो
इसलिये जव से वै व ह ं त ो ध र त ी क ी भा
भ ना
स धरती न हिलती हे न शुलती हे इसं। मात त-
ज ग ृ ह वै ठ रह ा ह ं न ो र इ स ध् या न प् र 4 इ ए नि
एक ना स।
ना ्रापका ध्यान है उतना ही समय हृ्रा हं पा ट |
क
वर्स से दस बस्स कम या धिक 1चर याद ठम त
कि धरती तो हिलती ुलती भी ह आर् भाचाल आ
हेतो इस प्रकार मेरे हाथपैर भीदहिलतेषहं आरभ
टच देशाव को उठता वैव्ता दं ओर् अव यद् भद्रा जहा ।
के निमित हे वहां लगेगी ओ्रौर उसी जगह चला वतम
न े ल ग े क ि स ा ध ु के त ा न श ु ह त ि ह ए क ं
ग्रो कह
ब्रह्मण इसरा न तीसरा साधु भरं पास बहुत स
( -१६३ )
तकन
उना स्मरण कराना व्यथ है। उषी चथ
चा हि य । अव ठम यह व त ा कि वद ्र विषादः
कुरी
वर ि मं क् ण सम ्प ति है । उन ्ह ा न कह ा रि जसा
के
रा पक ी श्र ह्न ा दे गी फल न कर ूण ा अर पा द पर ा
श्
पह तं तो मेर ी इच ्छ ता वि वा ह क ल की
विचार
ा
नही हे) श्रापने कदा कि यदि हमार कहन पर
आर्यक्रम है तो हम कहते हे कि शदी करो चर शप्र
क्रो । विवाह करना आवश्यक है । फिर आपन १
क्षि यदि को कारण विशेष हो तो कहो । याद् उत्ति
हा तो भेंतुमको श्रधिकरार् देदुगा चाहे (विहं करना
यान करना \उन्हे ने ऊहा किकार्णताम क्या कहु
लव् ्रापने कह दीया कि विगाह ग्रावर्यक हं ता आवश्यकं
के सामने कौन सी तेना हासकती है । अ्रापनं कहा
तो वसं । माग्यवश यदि साथी ठीक न भिले ती ठुपका
प्रधिकारं है कि प्रथक करदे ।
(& ७) एक दिन बतं वाते म एक सजन ने
का कि लिस सपय मठष्यके जी मे इषित विचारन
पेदा हा तो सममना चाहिये फि उसका मन मरगया।
दूसरे सजन ने कहा कि यह ठीके नहीं जिस समय
मचुष्य बुरे काम न करे तब. जानना चाहिय कि उष्षक्रा `
मन मरगया 1 जवं कह निगय न हंसक तोत्र
महारज से धा गया । आपन कह कि निस समय
ना बन्दहो
भले श्रौर दुर दोनो दी प्रकार करे विचार उव्
( १८३ )
मृ टं कह दि या कि .द ा कन ् कै री व- सव कतं
उसने भट वाद
चा र दि नि का रह गय ा, ह । उत ्त र
गया, सिक दो च ा च ा ल
वनने को देदे ना । दो ती न दि न के बा दउ सन
कि -ज ब- उस का पत ि. घर आण ् त् वह बल ि फेला
चली वकानः
ार शर ोर ने मी . हो कर वै ठ गई आ र वव ्र
कपडे उत
-नब ्. पत िन . पा स: अ र श ध क क् या
लमी।
कसः
हाल ३. तो- बोदी में देषी्न्ड काः। माथः
हइ का ।-सूतों का कपास करः! के. तरः घस -जर
1. डोह ॥
|
{ .\६५ )
दिया ।-मगर थोडी देर इर् उधर की बात चीत करे वाद
इस्णाद हवा करि एक रोज़ हम जयपुर म एक सहासा
को पास वेठे हुवेये उनकी यह श्रादत थी ॐ याह कोई
ञ्रवि याह कोद जावे किसी से जाने थारेहश्नेकेलिमे
सिद नही करते थे । एक रोज एके साहव पधि चौर ष
देर ठहर कर जाना चोद्य तो महातमा ने कहा ठरो
अभी जाकर क्या करोगे बह थोडदे तो बहर गये
मगर चकि उनको कों काम जरूरी था इसके फिर
जाते का इरादा शिया महात्मा ने फि{ कहा कि साहव
थोदी देर तो शरोर टैरो। ह बात उनके खिलाफ त्रादत
थी इसलिये हमन दशयाप्तं किया कि भ्राज इनको हट
क्वो ठेराने की श्या वजहहे तो फरमाया कि इस श्र
पर ङ्क श्राफत प्राने बाली है अगर यह यहां शहर
जाति तो शायद मेरे राम की कृद मदद कर सकते । यह
सुनकर पोह साहब हंस दिये ओर कहने लगे कि बाह
महारज भला मै आपकी क्या मदद कर सक्रगा शरोर
चकि उनको कोई बहुत जरूरी काम था इसलिये ठर
नह ओर खाना होगये । एक सेत ते ज्र रहे थेवहां
पर कटृवमेण्डकारस भओोट रहा था श्रौर कदाई
ज्ञमीन से मिली हृद रखी थीः शरीर उस पर चाद ठक्री
ह थी उषम गिर् षडे लोगो ने दोड् करं निश्राला
मगर ४इ बहुत गमे था कमर् तक इल ॒निस्म युबल .
गया । लोग बाग उढकर महार्मा के परस लये तो
{( २६० )
न
( र्दे. )
सभाया मगर-
सुगर बद द? तवीयरते के नसस्त
न खद जुञ्न बमं उ अरस दस्त
शरथ-बुरी ्रादत जित के खमाव मे पड गहै ह
उसके मरने पर ही दुत हे लीकन उसके खयाल मर
तवदीली नही हहं । एक रात को अगत जी भन करने
कोड्टरेतो राप भी उनके पास जाकर बेशी उनके कपडे
का पर्ला अपने पर तले दवा लिया के कदी
इधर उधर ना चले जवि । जब खुद भजनम लगी तो
१
ामे ं हा ड हव े श्र ौर एक ी को सि क् रा यत .क ।क
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ठु के चाल्ञ चलन की बावतं बहत शक है । हम लान
ाप कृपा करक
तो उसको समभा बा करं थक गय् श्र न।
,नदी ं तो इस का इृष ्णद रार े म आन ा जा
समभायिं
द कर दी जि ये इस की बज ह सं हम ा अस ्त भी
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है श्र ौर हम ार ी भी बद ना म हा ता € ।
बदनाम हो ती
ने फस् माय ा कि हम को एक बा त वा ः ओर
श्री महार ज
का लड का पर से लड ्क र भाग ः गय ा
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२१३ ७ ¦! छन्त कल 1 ुन्तक्रालः
५१३ २१ 1* जादिर .; जाहिर
२१३ २२ ` खजाना खजरा
२१४ २२९ 1 मेना मजी
९१६ ४ ) जिन्दगी 1 जिन्दगी
२१६ ४ वैखशीं वशी
११६ १२ : 'जिशगीये ३। द्विशतीये
शद् २१ दी दा
२१६ ठेर ` ह्र ह
०१६ 1 . ठलरुक . कंसररु्न
२१७ ३1.. ऋधी , आधीन
२१७ ठ कौ करा
२१७ ४ . मंजु मंजूर
२.१८ ७ . िल्लानेकी चिज्ञ
२१६ २ ` लजाना ठेःजाना
५१६ १० प्रज्ञाये चछ्याजायः
प्रः ` . ४ एेट ऊंट
न९०:. :; १७ खस खास
२२०.. . १७ , स्रामं अजमादे
२२० 11 ६६ . लडक नञ्क्र
२२० ' ` '२०५ ` . 1 मर . करी मर बदता.ग्रा जीं सं
4: + । ट्वाकी
२२१ 1८ . करन कडने
२९२ ४ . र । शुरं
२२२९. १६ ` -जिन्दा जिन्दा
९२२ १८ फंकीरी कक्तौरी
२२२ १८ 1 11.च्ित्ताक्र । चिता
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पुस्त पुश
नतीचा नतोजा
वङच्छ वक्तश्चा
मग्र .. म्यर्
सस्सख स्स
गुस्सा गरस्सा
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इले इलाक्र
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फकीर पकीर
-मायव द गायवथे
गायन गोयवाना
सर्त शख्स
वल् ` अरवल
पूजित्त पूजत
~>५ भीमः अत्त
[+ चर मलक घर् फलक
80^<,[8^ ग्ण
कि छगर "“* ष्ठत है ्रगर बुरे समाव वाला
मनुष्य दूसरों की सखती व
चुल्म से तन्ग आकर आसे-
मान मं मी चलाजवे.तो
वद मी च्रपनी बुरी आदत
की वजहसे वलाम फसा
ही रहेगा
२९६ सुर
२९६ सुल . शुग्रल ( श्रभ्यास )
२९६ जाक जाकर
२२६ बलाये बलये
. सस्त मशस्त
{ज्ञि जिम
9
नपम्
१६२ कोशिष कीशिश
२६२ १४
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