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मुख्य संरक्षक
श्री बी.एल.मोरोहिया
उपायुक्त, के .हव.सं., जयपुर संभाग
संरक्षक
समन्वयक
2 काव्य खंर् पर आधाठरि िीि प्रश्नों में से दकन्िीं दो प्रश्नों के उत्तर (लगभग 40 शब्दों में)(2 अंक x 2 प्रश्न) 4
3 गद्य खंर् पर आधाठरि िीि प्रश्नों में से दकन्िीं दो प्रश्नों के उत्तर (लगभग 60 शब्दों में) (3 अंक x 2 प्रश्न) 6
अपठिि गद्यांश-2
“इहििास से हवरासि में आपको भारिीय संगीि जैसी अमूल्य हिहध हमली िै। अन्य देशों के संगीिों
की अपेक्षा इसमें जो हवहशििा िै, वि उि मान्यिाओं के कारण िै जो संगीि के संबंध में िमारे पूवयजों की थी।
भारि में संगीि क्षहणक आमोद-प्रमोद या अिृि िृष्णा की वस्िु ि िोकर, समस्ि िह्ांर् से ऐक्य का आभास
िै, आिंद प्रदाि करिे वाला आध्याहत्मक साधि िै और मािव को बह् िक ले जािे वाला मागय िै। संगीि के
इस स्वभाव और ध्येय को िमारे देश के लोगों िे िमारी सभ्यिा के प्रारं भ में िी पिचाि हलया था और संगीि
का हवकास इन्िीं आदशों के अिुकूल दकया था।
उन्िोंिे संगीि और जीवि में दकसी प्रकार की दीवार ििीं खिी की। यि कििा अिुहचि ि िोगा दक
उन्िोंिे संगीि को िमारे जीवि में इस प्रकार बुि ददया दक सिस्राहब्दयों के पिाि् भी वि उसका अहवहछछन्न
अंग बिा हुआ िै। संसार में संभवि: ऐसा अन्य कोई देश ििीं िै जिाँ संगीि इििे पुरािे युग से जि-जीवि में
इििा व्याि िो हजििा दक भारि में भारिवाहसयों के अहधक संगीिप्रेमी िोिे की बाि का उल्लेख मेगस्थिीज
भी कर गया िै। दूसरी शिाब्दी ई.पू. में हलखे गए 'इंहर्का' िामक अपिे ग्रंथ में एठरयि मेगस्थिीज का यि
कथि उद्धि िै दक "सब जाहियों की अपेक्षा भारिीय लोग संगीि के किीं अहधक प्रेमी िै।
सिस्रों वषों से िमारे घरे लू और सांसाठरक जीवि में लगभग सभी काम दकसी-ि-दकसी प्रकार के
संगीि से प्रारं भ िोिे रिे िैं। जन्म से लेकर मृत्यु िक यि संगीि िमारे साथ बिा रििा िै। हजस ददि बालक
संसार में अपिी आँखे खोलिा िै, उस ददि से िी संगीि से भी उसका पठरचय िो जािा िै। िामकरण,
कणयछेदि, हववाि आदद में िो संगीि िोिा िी िै। ऐसा कोई िीज-त्योिार ििीं िोिा, ऐसा कोई पवय और
संस्कार ििीं िोिा हजसमें संगीि ि िो। घर में िी क्यों, िमारे यिाँ खेल में और चौपाल में, चक्की चलािे और
धाि कू टिे के समय भी संगीि चलिा िी रििा िै। यि िमारे जि-जीवि के उल्लास को प्रकट करिे का िो
प्रभावी साधि िै िी, साथ िी साथ उसको गहिमाि बिािे का भी प्रबल अस्त्र िै। संगीि रचिात्मक कायों में
अग्रसर िोिे की सामूहिक स्िू र्िय और प्रेरणा प्रदाि करिा िै और वि सामूहिक शहक्त देिा िै, जो िमें उि
कायों को करिे के योग्य बिा देिी िै, हजन्िें िम अके ले या समूि में संगीि की प्रेरणा के हबिा ििीं कर पािे।”
(i) प्रस्िुि गद्यांश दकस हवषयवस्िु पर आधाठरि िै?
(क) इहििास के पृष्ठों पर भारि (ग) इहििास की प्रहसद्ध पुस्िक
(ख) भारिीय संगीि की हवशाल परं परा (घ) हवहभन्न कमयकांर्ों का व्यहक्त पर प्रभाव
(ii) भारिीय संगीि में अन्य देशों के संगीि की अपेक्षा क्या हवशेषिा िै?
(क) संपूणय िह्ांर् से ऐक्य करिे का आभास िै
(ख) मािव को वास्िहवकिा से हवमुख करिा
(ग) मािव को िह् बिा देिा
(घ) कृ हत्रम वािावरण उपहस्थि कर कल्पिा लोक में ले जािा
(iii) मिुष्य को िह् िक ले जािे का मागय दकसे किा गया िै?
(क) संगीि को (ख) आदशों को (ग) ईश्वर को (घ) गुरु को
(iv) संसार का ऐसा कौि-सा देश िै, जिाँ संगीि पुरािे समय से मािव जीवि का हिस्सा रिा िो?
(क) एहशया (ख) जापाि (ग) िुर्कय स्िाि (घ) भारि
पाठ्यसामग्री-हिन्दी (आधार) कक्षा:ग्यारिवीं पृष्ठ 10 of 123
(v) इहििास में भारिीयों की संगीिहप्रयिा का उल्लेख दकससे हमलिा िै?
(क) पवय-त्योिार से (ख) इंहर्का ग्रंथ से (ग) संस्कारों से (घ) सामूहिक काययक्रम से
(vi) हिम्नहलहखि में से दकस संस्कार में संगीि ििीं हमलिा िै?
(क) िामकरण (ख) हववाि (ग) कणय छेदि (घ) इिमें से कोई ििीं
(vii) जि-जीवि के उल्लास को प्रकट करिे का प्रभावी साधि क्या िै?
(क) त्योिार (ख) पवय (ग) संगीि (घ) रीहि ठरवाज
(viii) सामूहिक रचिात्मक कायों में संगीि का क्या प्रभाव िोिा िै?
(क) हशहथलिा प्रदाि करिा (ग) स्िू र्िय और प्रेरणा प्रदाि करिा
(ख) अके लेपि का अिुभव करिा (घ) कायय करिे योग्य िा छोििा
(ix) िमारे घरे लू जीवि में संगीि किाँ व्याि ददखाई देिा िै?
(क) चक्की चलािे में (ख) चौपाल में (ग) धाि कू टिे में (घ) यि सभी
(x) अन्य देशों की अपेक्षा भारिीय संगीि की हवहशििा का क्या कारण रिा िै?
(क) भारिीयों का संगीि प्रेमी िोिा (ग) संगीि के संबंध में पूवयजों की मान्यिाएं िोिा
(ख) मािव िेिु संगीि का िोिा (घ) जिजीवि द्वारा संगीि की उपेक्षा करिा
उत्तर-
प्रश्न सं . i ii iii iv v vi vii viii ix x
उत्तर ख क क घ ख क ग ग घ क
अपठिि गद्यांश-3
“कियव्य-पालि और सत्यिा में बिा घहिष्ठ सरबन्ध िै। जो मिुष्य अपिा कियव्य-पालि करिा िै, वि
अपिे कामों और वचिों में सत्यिा का बिायव भी रखिा िै। वि िीक समय पर उहचि रीहि से अछछे कामों
को करिा िै । सत्यिा िी एक ऐसी वस्िु िै, हजससे इस संसार में मिुष्य अपिे कायों में सिलिा पा सकिा
िै, क्योंदक संसार में कोई कायय झूि बोलिे से ििीं चल सकिा। यदद दकसी के घर सब लोग झूि बोलिे लगे
िो उस घर में कोई कायय ि िो सके गा और सब लोग बिा दु:ख भोगेंगे । इसहलए िम लोगों को अपिे कायों
में झूि का बिायव ििीं करिा चाहिए। अिएव सत्यिा को सबसे ऊँचा स्थाि देिा उहचि िै। संसार में हजििे
पाप िैं, झूि उि सभी से बुरा िै । झूि की उत्पहत्त पाप, कु ठटलिा और कायरिा के कारण िोिी िै। बहुि-से
लोग सच्चाई का इििा थोिा ध्याि रखिे िैं दक अपिे सेवकों को स्वयं झूि बोलिा हसखािे िैं। पर उिको इस
बाि पर आियय करिा और क्रुद्ध ि िोिा चाहिए, जब उिके िौकर भी उिसे अपिे हलए झूि बोलें।
बहुि-से लोग िीहि और आवश्यकिा के बिािे झूि की रक्षा करिे िैं। वे कििे िैं दक इस समय इस
बाि को प्रकाहशि ि करिा और दूसरी बाि को बिाकर कििा, िीहि के अिुसार समयािुकूल और परम
आवश्यक िै। दिर बहुि-से लोग दकसी बाि को ‘सत्य-सत्य’ कििे िैं दक हजससे सुििे वाला यि समझे दक
यि बाि सत्य ििीं, वरि् इसका जो उल्टा िै विी सत्य िोगा। इस प्रकार से बािों का कििा झूि बोलिे के
पाप से दकसी प्रकार कम ििीं िै।
संसार में बहुि-से ऐसे भी िीच और कु हत्सि लोग िोिे िैं, जो झूि बोलिे में अपिी चिुराई समझिे
िैं और सत्य को हछपाकर धोखा देिे या झूि बोलकर अपिे को बचा लेिे में अपिा परम गौरव माििे िैं ।
ऐसे लोग िी समाज को िि करके दु:ख और सन्िाप के िै लािे के मुख्य कारण िोिे िैं । इस प्रकार झूि बोलिा
स्पि ि बोलिे से अहधक हिहन्दि और कु हत्सि कमय िै।
हवधािा-रहचि इस सृहि का हसरमौर िै मिुष्य। उसकी कारीगरी का सवोत्तम िमूिा! इस मािव
को िह्ांर् का लघु रूप मािकर भारिीय दाशयहिकों िे ‘यि् हपण्र्े िि् िह्ांर्’े की कल्पिा की थी। उिकी
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क घ ग ख ख
अपठिि पद्यांश-2
“भारि मािा का मंददर यि, समिा को संवाद जिाँ।
सबका हशव कल्याण यिाँ पाएँ सभी प्रसाद यिाँ।
जाहि-धमय या संप्रदाय का, ििीं भेद व्यवधाि यिाँ
सबका स्वागि, सबका आदर, सबका सरमाि यिाँ।
राम-रिीम, बुद्ध ईसा का, सुलभ एक-सा ध्याि यिाँ।
हभन्न-हभन्न भव संस्कृ हियों के , गुण-गौरव का ज्ञाि यिाँ।
ििीं चाहिए बुहद्ध वैर की, भला प्रेम उन्माद यिाँ।
सब िीथों का एक िीथय यि, हृदय पहवत्र बिा लें िम।
रे खाएँ प्रस्िुि िैं, अपिे मि के हचत्र बिा लें िम।
सौ-सौ आदशों को लेकर, एक चठरत्र बिा लें िम।
कोठट-कोठट कं िों से हमलकर, उिे एक जयिाद यिाँ।
सबका हशव कल्याण यिाँ िै, पाएँ सभी प्रसाद यिाँ”
(i) कहव दकस मंददर की बाि कर रिा िै?
(क) हशव मंददर (ख) शहक्त मंददर (ग) राम-सीिा मंददर (घ) भारि मािा
(ii)“जाहि-धमय या संप्रदाय का, ििीं भेद व्यवधाि यिाँ” का क्या िात्पयय िै?
(क) समाििा का भाव िै (ग) असमाििा का भाव िै
(ख) जाहि धमं का भेद िै (घ) इिमेंसे कोई ििीं
(iii) सबका आदर सरमाि किाँ िोिा िै?
(क) भारि देश में (ख) ईराि (ग) चीि में (घ) पादकस्िाि में
(iv) िम सबके हमत्र कै से बि सकिे िैं?
पाठ्यसामग्री-हिन्दी (आधार) कक्षा:ग्यारिवीं पृष्ठ 16 of 123
(क) वैरभाव से (ख) आपसी भेदभाव से (ग) वैर-बुहद्धको त्यागकर (घ) हवषम दृहिकोण से
(v) एकिा के सूत्र में बाँधिे के हलए क्या प्रयास दकया गया िै?
(क) अपिे मि के हचत्र बिािा (ग) एक चठरत्र बिािा
(ख) हवहभन्न प्रकार के आदशों को ग्रिण करिा (घ) उक्त सभी
उत्तर गद्यांश – 2
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घ क क ग घ
अपठिि पद्यांश-3
“मिमोहििी प्रकृ हि की जो गोद में बसा िै,
सुख स्वगय-सा जिाँ िै, वि देश कौि-सा िै?
हजसके चरण हिरन्िर रत्नेश धो रिा िै,
मुकुट हिमालय, वि देश कौि-सा िै?
िददयाँ जिाँ सुधा की धारा बिा रिी िैं,
सींचा हुआ सलोिा, वि देश कौि-सा िै?
हजसके बिे रसीले िल, कन्द, िाज, मेव,े
सब अंग में सजे िैं, वि देश कौि-सा िै?
हजसमें सुगन्ध वाले, सुन्दर प्रसूि प्यारे ,
ददि-राि िँस रिे िैं, वि देश कौि-सा िै?
मैदाि, हगठर, विों में िठरयाहलयाँ लिकिी,
आिन्दमय जिाँ िै, वि देश कौि-सा िै?
हजसकी अिन्ि धि से, धरिी भरी पिी िै,
संसार का हशरोमहण, वि देश कौि-सा िै?”
(i) भारि का मुकुट दकसे किा गया िै?
(क) रत्नेश (ख) हिमालय (ग) स्वगय (घ) उक्त सभी
(ii) भारि बसा हुआ िै:
(क) स्वगय में (ख) हिमालय में (ग) मैदािों में (घ) प्रकृ हि की जो गोद में
(iii) “सींचा हुआ सलोिा’ से क्या िात्पयय िै?
(क) अमृि धाराओं वाली िददयों के बसंचि से सुन्दर (ग) के वल ‘क’
(ख) रत्नेश द्वारा चरणों के बसंचि से सुन्दर (घ) ‘क’ व ‘ख’ दोिो
(iv) भारि देश को संसार का हशरोमहण क्यों किा गया िै?
(क) खेिों की उत्पादकिा की प्रचुरिा के कारण (ख) प्राकृ हिक सौंदयय के कारण
(ग) अपूवय खहिज-संपदा के कारण (घ) उक्त सभी
(v) ‘ददि-राि’ में समास िै-
(क) द्वंद्व (ख) ित्पुरुष (ग) कमयधारय (घ) बहुव्रीहि
उत्तर गद्यांश – 3
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ख घ घ घ क
अपठिि पद्यांश-5
“मि रोक मुझे भयभीि ि कर, मैं सदा कटीली राि चला।
पथ-पथ मेरे पिझारों में िव सुरहभ भरा मधुमास पला।
दिर किाँ र्रा पाएगा यि पगले! जजयर संसार मुझे।
इि लिरों के टकरािे पर, आिा रि-रि कर प्यार मुझे।
(iii) कहव रािों में दकस मिोभाव के साथ आगे बढ़िा िै?
(क) उदासीििा (ख) हिराशा (ग) बेमि (घ) उत्साि
(iv) जीवि को कं टीली राि क्यों किा गया िै?
(क) जीवि की सरलिा के कारण (ग) संघषों से भरा िोिे के कारण
(ख) रािों में हबखरे काँटों के कारण (घ) रास्िे की हवषमिा के कारण
(v) ‘जजयर संसार’ में संसार पद िै:
(क) सवयिाम (ख) हवशेषण (ग) हवशेष्य (घ) इिमें कोई ििीं
उत्तर गद्यांश – 5
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ख घ घ ग ग
उत्तरमाला
1-घ 2-क 3-घ 4-घ 5-ग 6-ग 7-क 8-ख 9-घ 10-क
11-ख 12-ख 13-घ 14-ग 15-घ 16-ख 17-क 18-क 19-घ 20-क
21-ख 22-ग 23-घ 24-ग
2. मीरा
➢ जन्म: सि् 1498, कु िकी गाँव (मारवाि ठरयासि)
➢ मृत्यु: सि् 1546
➢ प्रमुख रचिाएँ:-‘मीरापदावली’, ‘िरसीजी-रो-मािेरो’
पद
मेरे िो हगरधर गोपाल, दूसरो ि कोई
जा के हसर मोर-मुकुट, मेरो पहि सोई
छांहि दयी कु ल की काहि, किा कठरिै कोई?
संिि दढग बैठि-बैठि, लोक लाज खोयी
अंसुवि जल सींहच-सींहच, प्रेम-बेहल बोयी
पाठ्यसामग्री-हिन्दी (आधार) कक्षा:ग्यारिवीं पृष्ठ 28 of 123
अब ि बेहल िै हल गयी, आणंद-िल िोयी
दूध की मथहियाँ बिे प्रेम से हवलोयी
दहध महथ घृि कादढ़ हलयो, र्ाठर दयी छोयी
भगि देहख राजी हुयी, जगि देहख रोयी
दाहस मीरां लाल हगरधर! िारो अब मोिी
बहुहवकल्पी प्रश्न
1. मीरा िे अपिे आराध्य देव की क्या पिचाि बिाई िै?
(क) उसके हसर पर िाज िै (ख) उसके हसर पर मोर मुकुट िै
(ग) उसिे अपिे हसर को झुकाया िै (ग) उसके हसर पर पगिी बँधी हुई िै
2. "छाहि दयी कु ल की काहि, किा कठरिै कोई?" इस पंहक्त से मीरा की कौि-सी भाविा प्रकट िोिी िै?
(क) समाज के प्रहि चुिौिी (ख) हवियभाव
(ग) समाज के सामिे याचिा भाव (घ) समाज से र्रिे का भाव
3. दकसके साथ बैि-बैि कर मीरा िे लोक-लाज को त्याग ददया था?
(क) सास-ससुर (ख) सहखयों (ग) संिों (घ) राजा
4. मीरा िे अपिी प्रेम-बेहल को दकससे सींचा िै?
(क) पािी से (ख) दूध से (ग) अमृि से (घ) आँसुओं से
5. मीरा इस जगि में क्या देखकर प्रसन्न िोिी िै?
(क) सामाहजक बंधि (ख) समाज में मोि-माया
(ग) प्रभु-भहक्त (घ) सगे-संबंधी
उत्तर-
(i) (ii) (iii) (iv) (v)
(ख) (क) (ग) (घ) (ग)
3. भवािीप्रसाद हमश्र
कहविा-घर की याद
पद्यांश-1
“और माँ हबि – पढ़ी मेरी,
दुःख में वि गढ़ी मेरी,
माँ दक हजसकी गोद में हसर,
रख हलया िो दुख ििीं दिर,
माँ दक हजसकी स्नेि – धारा,
का यिाँ िक भी पसारा,
उसे हलखिा ििीं आिा,
जो दक उसका पत्र पािा।
हपिा जी हजिको बुढ़ापा,
एक क्षण भी ििीं व्यापा,
4. हत्रलोचि
कहविा- चंपा काले काले अछछर ििीं चीन्ििी
पद्यांश-1
“चंपा काले काले अछछर ििीं चीन्ििी
मैं जब पढ़िे लगिा हँ वि आ जािी िै
खिी खिी चुपचाप सुिा करिी िै
उसे बिा अचरज िोिा िै:
इि काले चीन्िों से कै से ये सब स्वर
हिकला करिे िैं
चंपा सुन्दर की लिकी िै
सुन्दर ग्वाला िै: गायें-भैंसें रखिा िै
चंपा चौपायों को लेकर
चरवािी करिे जािी िै”
चंपा अछछी िै
चंचल िै
ि ट ख ट भी िै
कभी कभी ऊधम करिी िै
कभी कभी वि कलम चुरा देिी िै
जैसे िैसे उसे ढू ँढ़ कर जब लािा हँ
पािा हँ-अब कागज गायब
परे शाि दिर िो जािा हँ”
(i) चंपा काले काले अछछर ििीं चीन्ििी। इस पंहक्त में ‘काले काले’ शब्द दकस ओर संकेि करिे िैं?
(क) हशक्षा-व्यवस्था के अंिर्वयरोधों की ओर
(ख) उस दारुण यथाथय की ओर जिाँ आर्थयक मजबूठरयों के चलिे घर टूटिे िैं
(ग) क और ख दोिों सिी िैं
(घ) इिमें से कोई ििीं
(ii) चरपा को दकस बाि पर आियय िोिा िै?
(क) लोग पढ़-हलखकर इििे चालाक कै से िो जािे िैं
(ख) काले हचन्िों (अक्षरों) से अलग-अलग स्वर कै से हिकलिे िैं
(ग) कहव िर समय कागज पर क्या हलखिा रििा िै
(घ) गांधी जी पढ़िे-हलखिे की बाि कै से कि सकिे िैं
(iii) चरपा क्या काम करिी िै?
पद्यांश-2
“उस ददि चंपा आई, मैंिे किा दक
चरपा िुम भी पढ़ लो
िारे गाढ़े काम सरे गा
गाँधी बाबा की इछछा िै-
सब जि पढ़िा-हलखिा सीखें
चंपा िे यि किा दक
मैं िो ििीं पढ़ूँगी
िुम िो कििे थे गांधी बाबा अछछे िैं
वे पढ़िे हलखिे की कै से बाि किेंगे
मैं िो ििीं पढ़ूँगी”
(i) कहव िे चरपा से क्या किा?
(क) अिपढ़ रििा अछछा िै (ग) पशु चरािा अछछा िै
(ख) पढ़िा-हलखिा अछछा िै (घ) बिस करिा अछछा िै
(ii) कहव के अिुसार मिात्मा गांधी जी की क्या इछछा थी?
(क) सब लोग आराम से रिें (ग) सब लोग पढ़िा-हलखिा सीखें
(ख) सब लोग खेिी के काम करें (घ) सब चरखा चलािा सीखें
(iii) चरपा िे कहव को क्या जवाब ददया?
(क) वि पढाई ििीं करे गी (ग) उसे हलखिा अछछा लगिा िै
(ख) वि पशुओं को लेकर ििीं जाएगी (घ) वि कलकिा जाएगी
(iv) गांधी बाबा अछछे िैं-यि दकसिे किा?
(क) चंपा िे (ख) कहव िे (ग) चरपा के हपिा िे (घ) चरपा के पहि िे
(v) ‘िारे गाढ़े काम सरे गा’ पंहक्त का अथय िै-
(क) मिोबल बढ़ेगा (ग) िारिे पर काम आएगा
(ख) दकसी भी समय काम हिकल जाएगा (घ) कठििाई के वक्त काम आएगा
उत्तरमाला
(i)-ख (ii)-ग (iii)-क (iv)-क (v)-ख
5. दुष्यंि कु मार
कहविा-गजल
उत्तर-(i) (ख) िर व्यहक्त को उसके िक की सुख-सुहवधाएं हमलेंगी (ii) (ग) हवरोधाभास (iii) (क)
संिोषी प्रवृहत्त (iv) (घ) अहधकार एवं सुख-सुहवधाएं (v) (ख) दरख्ि
पद्यांश-2
वे मुिमइि िैं दक पत्थर हपघल ििीं सकिा,
मैं बेकरार हँ आवाज में असर के हलए।
िेरा हिजाम िै हसल दे जुबाि शायर की,
ये एिहियाि जरूरी िै इस बिर के हलए।
हजएँ िो अपिे बगीचे में गुलमोिर के िले,
मरें िो गैर की गहलयों में गुलमोिर के हलए।
(i) कहव दकस के हलए बेकरार िै?
(क) आवाज को मधुर बिािे के हलए
(ख) अहधकाठरयों को खुश करिे के हलए
(ग) जििा को जगािे के हलए
(घ) सत्ता में बैिे लोगों को सावधाि करिे के हलए
उत्तर- (i) (ग) जििा को जगािे के हलए (ii) (क) कहवयों की जुबाि बंद करिे की (iii) (घ) देश-समाज
(iv) (ख) अपिे अहधकारों की प्राहि के हलए (v) (घ) सत्ता में बैिे लोग
6. अक्क मिादेवी
कहविा- िे भूख मि मचल
“िे भूख! मि मचल
प्यास, ििप मि
िे िींद! मि सिा
क्रोध, मचा मि उथल-पुथल
िे मोि! पाश अपिे ढील
लोभ, मि ललचा
मद! मि कर मदिोश
ईष्याय, जला मि
ओ चराचर! मि चूक अवसर
आई हँ संदश
े लेकर चन्नमहल्लकाजुयि का”
(i) प्रस्िुि वचि में कौि-सा अलंकार िै?
(क) हवभाविा (ख) अहिशयोहक्त (ग) हवरोधाभास (घ) मािवीकरण
(ii) पद्यांश में ‘प्यास’ से क्या िात्पयय िै?
(क) पािी की प्यास (ख) आलस्य (ग) सांसाठरक िृष्णा (घ) क्रोध
(iii) क्रोध से क्या िाहि िोिी िै?
पद्यांश: 2
“और इस अहवश्वास-भरे दौर में
थोिा-सा हवश्वास
थोिी-सी उरमीद
थोिे-से सपिे
आओ, हमलकर बचाएँ
दक इस दौर में भी बचािे को
बहुि कु छ बचा िै
अब भी िमारे पास!”
(i) वियमाि को ‘अहवश्वास-भरा’ क्यों किा गया िै?
(क) प्रत्येक व्यहक्त दूसरे को िगिे की िाक में रििा िै। (ख) ददखावटी सरमाि के कारण
(ग) मािवीय संवेदिाओं के अभाव के कारण (घ) उक्त सभी
(ii) पद्यांश पठरचायक िै-
(क) कवहयत्री की सकारात्मकिा का (ख) आददवासी संस्कृ हि के प्रहि जुिाव का
(ग) सामूहिक प्रयास के मित्त्व का (घ) उक्त सभी को
(iii) ‘बहुि कु छ बचा िै’ से क्या आशय िै?
(क) आददवासी समाज की अछछाइयां (ख) झारखंहर्यों के िकारात्मक पक्ष
(ग) आददवासी लोग (घ) उक्त में से कोई ििीं
(iv) ‘आओ, हमलकर बचाएँ’ में कवहयत्री का आह्वाि िै-
(क) देशवाहसयों से (ख) सरकारों से (ग) आददवासी समाज के लोगों से (घ) देश की िई पीढ़ी से
(v) ‘थोिे-से सपिे’ में ‘सपिे’ प्रिीक िै-
(क) आधुहिकिा के (ख) सिल और सुकूि युक्त जीवि के (ग) संघषय के (घ) कठििाइयों के
उत्तर-
(i) (ii) (iii) (iv) (v)
(घ) (घ) (क) (ग) (ख)
गद्यांश-2
“पंहर्ि अलोपीदीि का लक्ष्मी जी पर अखंर् हवश्वास था। वि किा करिे थे दक संसार का िो कििा िी क्या,
स्वगय में भी लक्ष्मी का िी राज्य िै। उिका यि कििा यथाथय िी था। न्याय और िीहि सब लक्ष्मी के िी हखलौिे
िैं, इन्िें वि जैसे चाििी िैं, िचािी िैं। लेटे िी लेटे गवय से बोले-चलो, िम आिे िैं। यि किकर पंहर्ि जी िे
बिी हिबिंििा से पाि के बीिे लगाकर खाए दिर हलिाि ओढ़े हुए दारोगा के पास आकर बोले-बाबू जी,
आशीवायद कहिए िमसे ऐसा कौि-सा अपराध हुआ दक गाहियाँ रोक दी गई। िम िाह्णों पर िो आपकी
कृ पा-दृहि रििी चाहिए। वंशीधर रुखाई से बोले-सरकारी हुक्म िै।”
(i) पंहर्ि अलोहपद्दीि का दकस पर अखंर् हवश्वास था?
(क) अपिे सेवको पर (ख) दरोगा बंशीधर पर (ग) वकीलों पर (घ) लक्ष्मी जी पर
(ii) स्वगय में दकस का राज्य िै?
(क) भगवाि का (ख) पंहर्ि अलोपीदीि का (ग) दारोगा का (घ) लक्ष्मी जी का
(iii) न्याय और िीहि सब लक्ष्मी के िी हखलौिे िैं, इन्िें वि जैसे चाििी िैं, िचािी िैं। यि दकसका कथि िै?
(क) िवलदार का (ख) दारोगा का (ग) पंहर्ि अलोपीद्दीि का (घ) बंशीधर के हपिा का
गद्यांश-3
“दुहिया सोिी थी, पर दुहिया की जीभ जागिी थी। सवेरे देहखए िो बालक-वृद्ध सबके मुँि से यिी बाि सुिाई
देिी थी। हजसे देहखए, विी पंहर्ि जी के इस व्यविार पर टीका-ठटप्पणी कर रिा था, बिंदा की बौछार िो
रिी थीं. मािो संसार से अब पापी का पाप कट गया। पािी को दूध के िाम से बेचिेवाला ग्वाला, कहल्पि
रोजिामचे बिािे वाले सेि और साहकार, यि सब-के -सब देविाओं की भाँहि गरदिें चला रिे थे। जब दूसरे
ददि पंहर्ि अलोपीदीि अहभयुक्त िोकर कांस्टेबलों के साथ, िाथों में िथकहियाँ, हृदय में ग्लाहि और क्षोभभरे ,
लज्जा से गरदि झुकाए अदालि की िरि चले, िो सारे शिर में िलचल मच गई। मेलों में कदाहचि् आँखें
इििी व्यग्र ि िोिी िोंगी। भीि के मारे छि और दीवार में कोई भेद ि रिा।“
(i) िमक का दरोगा पाि के लेखक कौि िैं?
(क) मिादेवी वमाय (ख) प्रेमचंद (ग) िठरशंकर परसाई (घ) कृ ष्णा सोबिी
(ii) दुहिया सोिी थी मगर दुहिया की ________ जागिी थी –
(क) आँख (ख) काि (ग) जीभ (घ) िाक
(iii) कौि देविाओं की भाँहि गरदिें चला रिे थे।
(क) पािी को दूध के िाम से बेचिेवाला ग्वाला (ग) सेि और साहकार,
(ख) कहल्पि रोजिामचे बिािे वाले बाबू लोग (घ) उपयुयक्त सभी
(iv) भीि के मारे छि और दीवार में कोई भेद ि रिा क्यों?
(क) वंशीधर की िौकरी लग गई थी (ग) पंहर्ि अलोपीदीि की हगरफ्िारी िो गई थी
(ख) वंशीधर की िौकरी चली गई थी (घ) पंहर्ि अलोपीदीि अदालि से बरी िो गए थे
(v) मािो संसार से अब पापी का पाप कट गया दकस घटिा के बारे में किा गया िै?
(क) वंशीधर की िौकरी लगिे के बारे में
(ख) वंशीधर की िौकरी चली जािे के बारे में
(ग) पंहर्ि अलोपीदीि की हगरफ्िारी के बारे में
(घ) पंहर्ि अलोपीदीि के अदालि से बरी िो जािे के बारे में
उत्तर-
प्रश्न संख्या (i) (ii) (iii) (iv) (v)
सिी हवकल्प ख ग घ ग ग
गद्यांश-4
गद्यांश-2
“दिर िेवर चढ़ा िमें घूरकर किा 'िुिकी पापि से ज्यादा मिीि िोिी िै, मिीि। िाँ दकसी ददि हखलाएँग,े
आपको।' एकाएक हमयाँ की आँखों के आगे कु छ कौंध गया। एक लंबी साँस भरी और दकसी गुमशुदा याद को
िाजा करिे को किा उिर गए वे जमािे और गए वे कद्रदाि जो पकािे-खािे की कद्र करिा जाििे थे। हमयाँ
अब क्या रखा िै... हिकाली िंदरू से-हिगली और िजम!”
(i) िुिकी क्या िै?
(क) पापि (ख) सेवइयां (ग) हमिाई (घ) रोटी
(ii) हमयाँ के आगे क्या कौंध गया?
(क) पुरािी याद (ख) पुरािा जमािा (ग) कद्रदाि लोग (घ) उक्त सभी
(iii) 'उिर गए वे जमािे' से क्या अहभप्राय िै?
(क) आिे वाला समय (ख) गुजरा हुआ समय (ग) संघषय का समय (घ) इिमें से कोई ििीं
(iv) हमयाँ को क्या गम िै?
(क) अपिे खािदाि का (ख) अपिे हपिा का (ग) खािे के कद्रदाि ििीं िै (घ) अपिे व्यवसाय का
(v) ‘कद्रदाि’ का क्या अथय िै?
(क) क़द्र(सरमाि) करिे वाले (ख) गवय करिे वाले (ग) ज्यादा खािे वाले (घ) इिमें से कोई ििीं
गद्यांश-2
“आप बहुि धीर-गंभीर प्रहसद्ध थे। उस सारी धीरिा-गंभीरिा को आपिे इस बार कौंहसल में बेकािूिी कािूि
पास करिे और किवोके शि वक्तृ िा देिे समय ददवाला हिकाल ददया। यि ददवाला िो इस देश में हुआ। उधर
हवलायि में आपके बार-बार इस्िीिाा़ देिे की धमकी िे प्रकाश कर ददया दक जि हिल गई िै। अंि में विाँ भी
आपको ददवाहलया िोिा पिा और धीरिा-गंभीरिा के साथ दृढ़िा को भी हिलांजहल देिी पिी। इस देश के
िादकम आपकी िाल पर िाचिे थे, राजा-मिाराजा र्ोरी हिलािे से सामिे िाथ बाँधे िाहजर िोिे थे। आपके
एक इशारे में प्रलय िोिी थी। दकििे िी राजों को मट्टी के हखलौिे की भाँहि आपिे िोि-िोि र्ाला। दकििे
िी मट्टी-काि के हखलौिे आपकी कृ पा के जादू से बिे बिे पदाहधकारी बि गए। आपके इस इशारे में इस देश
की हशक्षा पायमाल िो गई, स्वाधीििा उि गई। बंग देश के हसर पर आरि रखा गया। आि, इििे बिे माइ
लॉर्य का यि दजाय हुआ दक िौजी अिसर उिके इहछछि पद पर हियि ि िो सका और उिको उसी गुस्से के
मारे इस्िीिाा़ दाहखल करिा पिा, वि भी मंजूर िो गया। उिका रखाया एक आदमी िौकर ि रखा, उलटा
उन्िीं को हिकल जािे का हुक्म हमला”
(i) उपयुक्त
य गद्यांश में दकस पर कटाक्ष दकया गया िै?
(क) िाददर शाि पर (ख) अबुलिसि पर (ग) एर्वर्य पंचम पर (घ) लॉर्य कजयि पर
पाठ्यसामग्री-हिन्दी (आधार) कक्षा:ग्यारिवीं पृष्ठ 45 of 123
(ii) लॉर्य कजयि िे इस्िीिा क्यों दाहखल कर ददया?
(क) कजयि की पसंद के व्यहक्त को उिके मिपसंद पद पर हियुक्त ििीं दकया गया।
(ख) हिटेि के शासक के साथ कजयि के संबंध अछछे ििीं थे।
(ग) भारिीय जििा की आंदोलिों से वे परे शाि थे।
(घ) लॉर्य कजयि वापस हिटेि जािा चाििे थे।
(iii) ‘अंि में विाँ भी आपको ददवाहलया िोिा पिा’ पंहक्त का आशय िै-
(क) हिठटश सरकार द्वारा कजयि को ददवाहलया घोहषि कर ददया गया।
(ख) कजयि को पद से िटा ददया गया िथा उसकी सारी शहक्तयाँ हछि ली गईं।
(ग) हिठटश सरकार द्वारा कजयि को पदाविि कर ददया गया।
(घ) लॉर्य कजयि की सारी संपहत्त को हिठटश सरकार िे जब्ि कर हलया।
(iv) ‘आपके एक इशारे में प्रलय िोिी थी।’ इस कथि के माध्यम से दकसकी ओर इशारा दकया गया िै?
(क) मिाराज एर्वर्य की ओर (ख) िाददरशाि की ओर (ग) अबुलिसि की ओर (घ) लॉर्य कजयि की ओर
(v) लॉर्य कजयि के संबध
ं में कौि-सा कथि सिी िै?
(क) उन्िोिे भारिीय हशक्षा व्यवस्था को बबायद दकया (ख) भारिीयों पर बंगाल हवभाजि थोपा
(ग) अिेक राजाओं की गद्दी हछि ली। (घ) उपयुयक्त सभी
उत्तर
)i)-घ )ii)-क )ii)-ख )iv)-घ )v)-घ
गद्यांश-2
“िॉटीकल्चर हर्पाटयमेंट का सेक्रेटरी साहित्य प्रेमी आदमी जाि पििा था। उसिे हलखा था, "आियय
िै, इस समय जब िम ‘पेि लगाओ’ स्कीम ऊँचे स्िर पर चला रिे िैं, िमारे देश में ऐसे सरकारी अिसर मौजूद
िैं जो पेिों को काटिे का सुझाव देिे िैं, और वि भी एक िलदार पेि को, और वि भी जामुि के पेि को,
हजसके िल जििा बिे चाव से खािी िै! िमारा हवभाग दकसी िालि में इस िलदार वृक्ष को काटिे की
इजाजि ििीं दे सकिा।"
"अब क्या दकया जाए? इस पर एक मिचले िे किा, "अगर पेि काटा ििीं जा सकिा, िो इस आदमी
िी को काटकर हिकाल हलया जाए।"
"यि देहखए," उस आदमी िे इशारे से बिाया, "अगर इस आदमी को िीक बीच में से, यािी धि से
काटा जाए िो आधा आदमी इधर से हिकल आएगा, आधा आदमी उधर से बािर आ जाएगा और पेि विीं
का विीं रिेगा।
" मगर इस िरि िो मैं मर जाऊँगा।" दबे हुए आदमी िे आपहत्त प्रकट करिे हुए किा।
"यि भी िीक कििा िै।" एक क्लकय बोला”
(i) िलदार पेि दकस हवभाग के अंिगयि आिे िैं?
(क) बागवािी हवभाग (ख) कृ हष हवभाग (ग) वि हवभाग (घ) उद्योग हवभाग
(ii) ‘इस समय जब िम ‘पेि लगाओ’ स्कीम ऊँचे स्िर पर चला रिे िैं, िमारे देश में ऐसे सरकारी अिसर
मौजूद िैं जो पेिों को काटिे का सुझाव देिे िैं’ कथि दकसका िै?
(क) एग्रीकल्चर हर्पाटयमेंट के सेक्रेटरी का (ग) िॉटीकल्चर हर्पाटयमेंट के सेक्रेटरी का
(ख) िॉरे स्ट हर्पाटयमेंट के सेक्रेटरी का (घ) कल्चरल हर्पाटयमेंट के सेक्रेटरी का
(iii) " मगर इस िरि िो मैं मर जाऊँगा।" यि दकसिे किा?
(क) पेि के िीचे दबे हुए व्यहक्त िे (ग) माली िे
(ख) िॉरे स्ट हर्पाटयमेंट के सेक्रेटरी िे (घ) क्लकय िे
उत्तर-(i) (ख) भारि मािा की जय (ii) (घ) उपयुयक्त सभी (iii) (ग) धरिी (iv) (ख) बिंदस्ु िाि के लोग (v) (ख)
जवािरलाल िेिरू
उत्तर संकेि-
1- ख, 2-ख, 3-ख, 4-ख, 5-ग, 6-घ, 7-घ, 8-घ, 9-घ, 10-घ, 11-घ, 12-ख, 13-ग, 14-घ, 15-
क, 16-ख, 17-ख, 18-घ, 19-ख, 20-ग 21-ख, 22-ग, 23-ख, 24-क, 25-ख, 26-क, 27-ग, 28-
क, 29-क, 30-ग
उत्तर-संकेि :
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10
(घ) (ग) (क) (ग) (घ) (घ) (क) (ख) (घ) (घ)
11 12 13 14 15 16 17 18 19 20
(ग) (ग) (ख) (घ) (घ) (ग) (ग) (ख) (क) (ग)
21 22 23 24 25 26
(घ) (ख) (ग) (घ) (ग) (ख)
3. आलो-आँधाठर-बेबी िालदार
‘आलो-आंधाठर’ पाि लेहखका बेबी िालदार द्वारा हलहखि अपिी आत्मकथा का एक अंश िै। इिका
जन्म जरमू कश्मीर के दकसी स्थाि पर हुआ, जिाँ सेिा की िौकरी में उिके हपिा िैिाि थे। िेरि वषय की आयु
में इिका हववाि दुगुिी उम्र के व्यहक्त से कर ददया गया। इस कारण उन्िें सािवीं कक्षा में पढ़ाई छोििी पिी।
12-13 वषों के बाद पहि की ज्यादहियों से परे शाि िोकर वे िीि बच्चों सहिि पहि का घर छोिकर दुगायपुर
से िरीदाबाद आ गई। कु छ समय बाद वे गुिगाँव चली आईं। इिकी एकमात्र रचिा िै-आलो-आँधाठर जो दक
मूल रूप से बांग्ला भाषा में हलखी गई हजसका हिन्दी में अिुवाद प्रबोध कु मार िे दकया। बेबी इस कथा की
िाहयका भी िै और लेहखका भी। मात्र िेरि वषय की िोिे-िोिे सािवीं की पढ़ाई अधूरी छोि वि एक अधेि
से ब्याि दी जािी िै और जीवि के सबसे संवेदिशील उम्र में िीि बच्चों की माँ बि जािी िै। विी बेबी पहि
की ज्यादहियों को ि बदायश्ि कर शुरू करिी िै एक ऐसी यात्रा जो ि िो उसिे पिािों पर की, ि समुद्रिट
पर और ि िी स्टर्ीरूम में बैिकर।
पाि का सारांश-लेहखका अपिे पहि से अलग दकराए के मकाि में अपिे िीि छोटे बच्चों के साथ रििी
थी। उसे िर समय काम की िलाश रििी थी। वि सभी को अपिे हलए काम ढू ँढ़िे के हलए कििी थी। शाम
को जब वि घर वाहपस आिी िो पिोस की औरिें काम के बारे में पूछिीं। काम ि हमलिे पर वे उसे सांत्विा
देिी थीं। लेहखका की पिचाि सुिील िामक युवक से थी। एक ददि उसिे दकसी मकाि माहलक से लेहखका
को हमलवाया। मकाि माहलक िे आि सौ रुपये मिीिे पर उसे रख हलया और घर की सिाई व खािा बिािे
का काम ददया। उसिे पिले काम कर रिी महिला को िटा ददया। उस महिला िे लेहखका से भला-बरा किा।
लेहखका उस घर में रोज सवेरे आिी िथा दोपिर िक सारा काम खत्म करके चली जािी। घर जाकर बच्चों
को ििलािी व हखलािी। उसे बच्चों के भहवष्य की बचंिा थी। हजस मकाि में वि रििी थी, उसका दकराया
अहधक था। उसिे कम सुहवधाओं वाला िया मकाि ले हलया। यिाँ के लोग उसके अके ले रििे पर िरि-िरि
की बािें बिािे थे। घर का खचय चलािे के हलए वि और काम चाििी थी। वि मकाि माहलक से काम की ियी
जगि ढू ँढ़िे को कििी िै। उसे बच्चों की पढ़ाई, घर के दकराए व लोगों की बािों की भी बचंिा थी। माहलक
सज्जि थे। एक ददि उन्िोंिे लेहखका से पूछा दक वि घर जाकर क्या-क्या करिी िै। लेहखका की बाि सुिकर
उन्िें आियय हुआ। उन्िोंिे स्वयं को ‘िािुश' किकर पुकारिे को किा। वे उसे बेबी कििे थे िथा अपिी बेटी
की िरि माििे थे। उिका सारा पठरवार लेहखका का ख्याल रखिा था। वि पुस्िकों की अलमाठरयों की सिाई
करिे समय पुस्िकों को उत्सुकिा से देखिे लगिी। यि देखकर िािुश िे उसे एक दकिाब पढ़िे के हलए दी।
पाररपठरक और अप्रत्याहशि हवषयों में अन्िर-पाररपठरक हवषय वे हवषय िोिे िैं जो दकसी मुद्द,े हवचार,
घटिा आदद से जुिे िोिे िैं और अहधकिर सामाहजक और राजिीहिक हवषय िोिे िैं। इसमें आप अपिी
व्यहक्तगि राय को उििी प्राथहमकिा ि देकर सामूहिक हवचार पर जोर देिे िैं जबदक अप्रत्याहशि हवषयों
पर लेखि में आपके अपिे हिजी हवचार िोिे िैं।
िर घर हिरं गा
भारि की आजादी के 75 वषय पूणय िोिे पर प्रधािमंत्री श्री िरें द्र मोदी द्वारा 13 से 15 अगस्ि 2022 िक िर
घर राष्ट्रीय ध्वज हिरं गा ििरािे िेिु हवशेष आह्वाि दकया गया। इस अहभयाि के माध्यम से देश के िागठरकों
के ददलों में राष्ट्रीय ध्वज के प्रहि सरमाि की भाविा पैदा कर देशभहक्त की भाविा को बढ़ािा िै। िर घर
हिरं गा अहभयाि का लक्ष्य िै दक प्रत्येक िागठरक देश की रक्षा के हलए िमेशा ित्पर रिे। यि अहभयाि
देशभहक्त की भाविा को उच्चिम स्िर िक पहुंचािे में मदद करे गा। यि एक राष्ट्र के रूप में िमारी प्रहिबद्धिा
को दशायिे का एक अछछा िरीका िै हजससे िमारे राष्ट्रीय ध्वज के प्रहि सरमाि बढ़ेगा। यि अहभयाि भारिीय
िागठरकों को राष्ट्र के प्रहि अपिी हजरमेदाठरयों की याद ददलाएगा।
आजादी का अमृि मिोत्सव
“भारि की आजादी के अमृि मिोत्सव” प्रधािमंत्री श्री िरेंद्र मोदी जी िे 12 माचय, 2021 को शुरू दकया। यि
काययक्रम 15 अगस्ि 2022 से 75 सिाि पिले शुरू हुआ और 15 अगस्ि 2023 िक चलेगा। आजादी के
अमृि मिोत्सव का अथय िै-स्विंत्रिा सेिाहियों से प्राि प्रेरणा का अमृि। भारि के पास एक समृद्ध ऐहििाहसक
चेििा और सांस्कृ हिक हवरासि का अथाि भंर्ार िै हजस पर िमें गवय िोिा चाहिए। भारि की सांस्कृ हिक
हवरासि को घर-घर पहुँचािे िेिु साबरमिी आश्रम, अिमदाबाद (गुजराि) से 80 लोगों के दल के साथ
पदयात्रा (स्विंत्रिा माचय) का आयोजि दकया गया, जो गांधीजी की दांर्ी यात्रा से प्रेठरि िै। गांधी जी की
दांर्ी यात्रा की िरि इस पदयात्रा में 25 ददि में 241 मील का रास्िा 5 अप्रैल िक पूणय करिे का लक्ष्य रखा।
इस काययक्रम का उद्देश्य युवा पीढ़ी को स्विंत्रिा सेिाहियों के बहलदाि के प्रहि जागरूक करिा और उन्िें
श्रद्धांजहल देिा िै। यि मिोत्सव भारि के उि सभी स्विंत्रिा सेिाहियों को समर्पयि िै हजन्िोंिे देश को आजाद
करािे में मित्वपूणय भूहमका हिभाई।
अहिपथ योजिा
“अहिपथ योजिा” सशस्त्र बलों की िीि सेिाओं में कमीशि अहधकाठरयों के पद से िीचे के सैहिकों की भिी
के हलए भारि सरकार द्वारा शुरू की गई एक िई योजिा िै। इस योजिा के ििि सेिा में शाहमल िोिे वाले
जवािों को ‘अहिवीर’ के िाम से जािा जाएगा। अहिपथ के हलए 17.5 साल से 21 साल के बीच के उरमीदवार
आवेदि कर सकें गे। भिी िोिे वाले युवाओं को छि मिीिे िक रेबिंग दी जाएगी, इसके बाद 3.5 साल िक
सेिा में सर्वयस देिी िोगी। चार वषय की सेवा के पिाि 25 प्रहिशि अहिवीरों को उिकी कु शलिा के आधार
पर स्थाई दकया जाएगा। स्थाई कै र्र का हिस्सा बि जािे के पिाि अहिवीरों को बाकी जवािों की िी िरि
पेंशि और अन्य सुहवधाएं मुिय
ै ा कराई जाएगी। सेवा समाहि के पिाि अहिवीरों को उिकी कु शलिा के
अिुरूप कौशल प्रमाण-पत्र ददया जाएगा। इस योजिा का मुख्य उद्देश्य देश के युवाओ को 4 वषय के हलए सेिा
में भिी करिा िै हजससे दक उि सभी युवाओं का सपिा पूरा िो सके जो सेिा में भिी िोिा चाििे िैं।
राष्ट्रीय हशक्षा िीहि 2020
राष्ट्रीय हशक्षा िीहि 2020, 21वीं शिाब्दी की पिली हशक्षा िीहि िै हजसका लक्ष्य िमारे देश के हवकास के
हलए अहिवायय आवश्यकिाओं को पूरा करिा िै। यि िीहि वियमाि की 10+2 वाली स्कू ली व्यवस्था को 3 से
प्राथयिा पत्र
(1) अवकाश प्राहि िेिु प्राथयिा पत्र।
परीक्षा भवि,
का ख ग
ददिांक:10 िवरबर, 2022
सेवा में,
प्राचायय मिोदय
कें द्र हवद्यालय मंर्ोर,
जोधपुर (राज.)
मिोदय,
सहविय हिवेदि यि िै दक मैं आपके हवद्यालय में कक्षा आि का छात्र हं। कल ददिांक 10 िवरबर, 2022
को हवद्यालय से वापस आिे के बाद मुझे िेज िीव्र ज्वर आ गया। र्ॉक्टर िे मुझे 5 ददि का हवश्राम करिे की
सलाि दी िै। मैं अगले 5 ददिों िक हवद्यालय में अिुपहस्थि रहंगा।
अिः मिोदय से हिवेदि िै दक आप मुझे ददिांक 10-11-2022 से 15/11/2022 िक अवकाश प्रदाि करिे
की कृ पा करें ।
धन्यवाद
सेवा में
प्रधािाचायय,
राज उच्च माध्यहमक हवद्यालय
अजमेर रोर्,
जयपुर।
मिोदय,
सहविय हिवेदि यि िै दक मैं आपके हवद्यालय के कक्षा 12वीं का हवद्याथी हँ। मेरे घर में मेरी बिी बिि की
शादी िै, हजसकी शादी ददिांक 8/9/2022 और 9/9/2022 को हिहिि हुई िै। मैं अपिे घर में सबसे बिा
लिका हँ। अिः शादी में बहुि से ऐसे कायय िै, हजसमें मेरा िोिा बहुि आवश्यक िै। इस कारण मुझे 8/9/2022
और 9/9/2022 िक का अवकाश चाहिए।
अिः आपसे हविम्र हिवेदि िै दक आप मुझे अवकाश प्रदाि करिे की कृ पा करें । मैं आपका आभारी रहँगा।
धन्यवाद
हशकायिी पत्र
(3) िगर हिगम के स्वास्थ्य अहधकारी को अपिे मोिल्ले में गंदगी के हवषय में पत्र
सेवा में,
श्रीमाि् मुख्य स्वास्थ्य अहधकारी,
िगर हिगम,
जोधपुर।
ददिांक : ..............
मिोदय,
प्राथी
अहमि यादव
मंर्ोर बाग
जोधपुर
(4) क्षेत्र में चोरी की बढ़िी हुई घटिाओं पर स्थािीय समाचार-पत्र के संपादक को पत्र-
ददिांक.................
मिोदय,
उपयुयक्त हवषय के अंिगयि हिवेदि िै दक मैं आपके प्रहिहष्ठि समाचार-पत्र के माध्यम से वठरष्ठ पुहलस
अहधकाठरयों का ध्याि जिकपुरी क्षेत्र में चोरी और लूटपाट की बढ़िी घटिाओं के प्रहि आकृ ि करिा चाििा
हँ। हवगि कु छ माि से िमारे क्षेत्र में असामाहजक ित्त्वों का जमाविा िो गया िै। राहत्रकाल में घर में चोरी के
अलावा रास्िे में ददि-दिािे लूटपाट की घटिाएँ आम िो गई िैं। िर कोई स्वयं को असुरहक्षि मिसूस कर रिा
िै। लिदकयों और महिलाओं का घर से बािर हिकलिा दूभर िो गया िै कोई अपिे घर को सूिा छोिकर जा
ििीं सकिे िै।
अिः आपसे अिुरोध िै दक आप संबंहधि अहधकाठरयों को अपिे समाचार पत्र के माध्यम से इस समस्या पर
ित्काल ध्याि आकर्षयि करवाकर उहचि कारय वाई करवािे की कृ पा करें ।
सधन्यवाद
भवदीय
मिेश वमाय
जिकपुरी
जयपुर-10
मान्यवर,
सहविय हिवेदि िै दक मैं मुरली व्यास, अजमेर के आदशय बाजार रोर् हस्थि संयम क्षेत्र का हिवासी हं। मैं
आपके समाचार पत्र का हियहमि पािक हं। मुझे आपके समाचार पत्र द्वारा प्रकाहशि दकए जािे वाले प्रत्येक
लेख, समाचार िथा अन्य मित्वपूणय जािकाठरयां पढिा अछछा लगिा िै।
मिोदय, मैं बचपि से िी हवहभन्न कहविा लेखि का प्रयास करिा आया हं। हवद्यालय स्िर पर मैंिे हवहभन्न
कहविा लेखि प्रहियोहगिाओं में भाग हलया। िथा संभाग एवं राज्य स्िर पर हवशेष पुरस्कार प्राि दकया।
इन्िीं प्रहियोगिाओं के माध्यम से मेरी कहविा लेखि में रुहच हिरं िर अहधक बढ़िी गई।मेरी हलहखि कहविाओं
का अब िक िक हवहभन्न समाचार पत्रों, पहत्रकाओं, मैगजीि िथा लेखों में प्रकाशि दकया जा चुका िै। परं िु
मेरी इछछा िै दक मेरी िव रहचि “प्रगहि पथ” िामक कहविा आपके समाचार पत्र में भी प्रकाहशि िो।
अिः मेरा आपसे अिुरोध िै दक अपिे प्रहिहष्ठि समाचार पत्र के अन्िगयि मेरी कहविा को प्रकाहशि करिे का
कि करें । मैं उरमीद करिा हं दक आप मुझे हिराश ििीं करेंगे। इसके हलए मैं आपका आभारी रहंगा।
सधन्यवाद।
भवदीय
मुरली व्यास,
लेखक।
संयम क्षेत्र,
आदशय क्षेत्र, अजमेर।
ददिांक…..
(6) पेरोल और र्ीजल की बढिी कीमिों पर बचंिा जाहिर करिे हुए पत्र
मिेश िगर,
जयपुर।
ददिांक:10-11-2022
सेवा में,
मिोदय,
मैं एक लंबे समय से आपके अखबार का पािक हं। आपके अखबार में आम आदमी से जुिे मुद्दों को कािी
गंभीरिा के साथ उिाया जािा िै। बीिे कािी मिीिों से पेरोल और र्ीजल की बढ़िी कीमिों िे आम आदमी
की जेब को खासा प्रभाहवि दकया िै। हजसके चलिे उि पर अहिठरक्त भार पि रिा िै। वियमाि समय में, दिर
चािे वि पेरोल िो या र्ीजल, दोिों की िी कीमिें आसमाि छू रिीं िैं। हजससे िर दकसी का बजट िक
प्रभाहवि हुआ िै।
बाि करें , हपछले वषों की िो साल 2020-िक पेरोल 66 रुपए और र्ीजल 50 रुपए प्रहि लीटर हुआ करिा
था। लेदकि वियमाि 2021-22 में पेरोल और र्ीजल 100 के पार पहुंच गया िै। ऐसे में आम आदमी जो दक
पिले से िी मिंगाई की मार झेल रिा िै। अब पेरोल और र्ीजल की बढ़िी कीमिों िे उसके हलए आग में घी
र्ालिे का काम दकया िै िो विीं कोरोिा काल में लोगों की आमदिी के जठरए वैसे भी कम िो गए िैं , ऊपर
से पेरोल और र्ीजल के बढ़े हुए दामों से आम आदमी की आर्थयक हस्थहि शोचिीय िो गई िै।
ऐसे में मेरा आपसे अिुरोध िै दक आप अपिे अखबार के माध्यम से वियमाि सरकार का ध्याि पेरोल और
र्ीजल की बढ़िी कीमिों की ओर आकर्षयि करें । िादक सरकार द्वारा इिकी कीमिों को पटरी पर लािे की
कोहशश की जा सके । साथ िी कें द्र और राज्य की सरकारें देश भर की जििा को पेरोल और र्ीजल की बढ़िी
कीमिों से हिजाि ददलािे के हलए उस पर लगिे वाले कर को कम करें और जििा को उहचि कीमि पर इसकी
उपलब्धिा कराई जाए।
आशा िै दक आपके अखबार में जििा से जुिी उपरोक्त खबर को प्राथहमकिा से प्रकाहशि दकया जाएगा।
हजसके हलए आपका ििे ददल से शुदक्रया।
सधन्यवाद
प्राथी
रमेश चंद्र,
हिवासी पुरािा शिर, जयपुर।
(7) मोिल्ले में देर राि िक लाउर्स्पीकर बजिे के कारण सभासद को हशकायिी पत्र।
सेवा में,
आदरणीय सभासद मिोदय,
गुलाबिगर मोिल्ला,
जयपुर।
मिोदय,
भवदीय
संजीव हिवारी
मोिल्ले के अन्य सभी सदस्य
ददिांक……
मित्वपूणय प्रश्न-
प्रश्न-1-र्ायरी लेखि क्या िै?
उत्तर-र्ायरी वि हििांि हिजी स्िर पर घठटि घटिाओं और ित्संबंधी बौहद्धक-भाविात्मक प्रहिदक्रयाओं का
लेखा-जोखा िै। इन्िें िम दकसी और के हलए ििीं, स्वयं अपिे हलए शब्दबद्ध करिे िैं। हजि बािों को िम
दुहिया में दकसी और व्यहक्त के सामिे ििीं कि सकिे, उन्िें भी र्ायरी के पन्नों पर शब्दबद्ध करके खुद को
सुिा र्ालिे िैं। ऐसा करके िम पिले खुद को बेििर िरीके से समझ पािे िैं, दूसरे अपिे अंदर अिजािे इकट्ठा
िोिे भार से मुक्त िोिे िैं और हवस्मृहि के अंधेरे में खोिे अपिे िी व्यहक्तत्त्व के पिलुओं को इस िरि ठरकॉर्य
कर लेिे िैं दक उन्िें पलट कर कभी भी छु आ जा सकिा िै। र्ायरी हलखिा अपिे साथ एक अछछी दोस्िी
कायम करिे का बेििरीि जठरया िै।
प्रश्न-2-र्ायरी हलखिे समय िमें दकि-दकि बािों को ध्याि मे रखिा चाहिए?
उत्तर-र्ायरी हलखिे समय िमें हिम्नहलहखि बािों को ध्याि मे रखिा चाहिए-
1. र्ायरी या िो दकसी िोटबुक में या पुरािे साल की र्ायरी में हलखी जािी चाहिए। र्ायरी हलखिे समय
पृष्ठ में सबसे ऊपर हिहथ (िारीख) का उल्लेख दकया जािा चाहिए। यदद उसमें हिहथयाँ पिले से अंदकि
िैं िो उन्िें अपिे िाथ से संशोहधि कर लेिा चाहिए।
2. लेखि करिे हुए बािरी दबावों से मुक्त िोकर अपिी ददिभर की घटिाओं, मुलाकािों, खयालािों
इत्यादद में से जो बािें आपको दजय करिे लायक लगिी िैं, हजन्िें आप भहवष्य में भी याद रखिा चाििे
िैं, उन्िें हलखा जािा चाहिए।
3. र्ायरी हबलकु ल हिजी वस्िु िै और यि माि कर िी उसे हलखा जािा चाहिए दक वि दकसी और के
द्वारा पढ़ी ििीं जाएगी। इस से र्ायरी में आपके हवचार स्विंत्र, हिभीक और प्रभाव से मुक्त िोिे िैं।
4. र्ायरी हलखिे समय भाषा का प्रवाि स्वाभाहवक िोिा चाहिए अथायि् जैसी भाषा आप स्वाभाहवक
रूप से प्रयोग करिे िैं उसी भाषा में र्ायरी हलखी जािी चाहिए।
प्रश्न-3. र्ायरी हबलकु ल हिजी वस्िु िै और वि दकसी और के द्वारा ििीं पढ़ी जाएगी-ऐसा माि कर िी र्ायरी
क्यों हलखी जािी चाहिए?
उत्तर-यि माि कर िी र्ायरी हलखी जािी चाहिए दक वि दकसी और के द्वारा पढ़ी ििीं जाएगी क्योंदक यदद
िम दकसी और को पढ़वािे की बाि सोच कर र्ायरी हलखिे िैं, िो इस से लेखि-शैली, हवषय-वस्िु के चयि
और बािों के बेबाकपि पर असर पििा िै हजससे िम हबल्कु ल हिर्र िोकर और प्राकृ हिक रूप से ििीं हलख
पािे। िब िम कु छ बािों को छु पािे लगिे िैं िो कु छ बािों को बढ़ा-चढ़ा कर बिािे लगिे िैं।
संदभय
1. र्ॉ.रहव िगेहिया, सिायक प्राध्यापक, श्री कल्याण कला मिाहवद्यालय, सीकर
2. प्रो० पवि अिलुवाहलया, प्रख्याि अथयशास्त्री, जोधपुर
मैं हवज्ञाहपि पद के हलए स्वयं को उपयोगी माििा हँ। मैं आपको हवश्वास ददलािा हँ दक पूणय समर्पयि भाव
से काम करूँगा और संस्था की उन्नहि के हलए सिि प्रयास करिा रहँगा।
धन्यवाद सहिि
कखग
सीकर (राज.)
06-11-2022
ध्यािव्य-
1. A4 Sheet जैसा Border (बार्यर) अवश्य बिवाएँ। Box के अंदर िी हलखा जाए।
2. Box के ऊपर स्ववृत्त अवश्य हलखें।
3. अंि में धन्यवाद सहिि िाम और हिहथ अवश्य हलखें।
4. शैक्षहणक योग्यिा में सारणी (िाहलका) अवश्य हलखें।
5. पद की आवश्यकिाओं के अिुरूप शैक्षहणक योग्यिाओं का अध्ययि कर लें।
प्रश्न 1. स्ववृि से आप क्या समझिे िैं? इसके दकििे पक्ष िोिे िैं?
उत्तर-स्ववृि व्यहक्त के पिचाि का एक माध्यम िै। यि दकसी िौकरी, पद आदद के आवेदि के साथ प्रस्िुि
दकया जािा िै हजसमें व्यहक्तगि जािकारी उपलब्ध कराई जािी िै। इसमें आवेदक का जन्म, शैक्षहणक योग्यिा,
कायय-अिुभव आदद सभी समाहिि िोिे िैं। इसके दो पक्ष िोिे िैं-
1. स्ववृि के पिले पक्ष में वि उरमीदवार िोिा िै, हजसको कें द्र में रखकर सूचिाएं संकहलि की जािी िै।
2. स्ववृि के दूसरे पक्ष में हियोक्ता या संस्था िोिी िै, हजसके प्रयोजि को ध्याि में रखकर सूचिाएं एकहत्रि
की जािी िैं।
प्रश्न 2. उरमीदवारों के चयि में स्ववृि दकस प्रकार सिायक िोिा िै?
शब्दकोश का मित्त्व
वियमाि समय में शब्दकोश का अत्यन्ि मित्त्व िै। इसके माध्यम से िमें अिेक शब्दों के अथय, सरलिा से ज्ञाि
िो जािे िैं। साथ िी ये िमें दकसी भी शब्द के हवषय में सरपूणय जािकारी प्रदाि करिे िैं। इसका सबसे अहधक
मित्त्व यि िै दक सभी शब्द िमें एक िी कोश (पुस्िक) में हमल जािे िैं और िमें जगि-जगि ििीं भटकिा
पििा।
मित्वपूणय प्रश्न
1. शब्दकोश क्या िै?
उत्तर-शब्दकोश के अंदर दकसी एक भाषा में प्रयोग िोिे वाले सभी शब्दों को इकट्ठा करके प्रस्िुि दकया जािा
िै। शब्दकोश में शब्दों की व्युत्पहत्त, स्रोि, बलंग के साथ-साथ उसके शब्द रूपों और हवहभन्न संदभयपरक अथों
की जािकारी िोिी िै। बिंदी शब्दकोश में शब्द बिंदी वणयमाला के अिुसार ददए िोिे िैं। शब्दकोश का सबसे
बिा लाभ यि िै दक इसमें दकसी भी प्रकार के शब्द का हवस्िृि हवश्लेषण आसािी से हमल जािा िै।
2. संदभय ग्रंथ क्या िै?
उत्तर-हजस प्रकार शब्दों के अथय शब्दकोश में ददए िोिे िैं, उसी प्रकार संदभय ग्रंथ में मािव द्वारा संहचि ज्ञाि
को संहक्षि रूप से प्रस्िुि दकया जािा िै। संदभय ग्रंथों से दकसी भी हवषय की जािकारी िुरंि प्राि की जा
सकिी िै। संदभय ग्रंथों में जािकाठरयों का क्रम भी शब्दकोश' के हियमों के अिुसार िी िोिा िै। जब भी दकसी
हवषय पर िमें िुरंि जािकारी चाहिए िोिी िै, िब ये ग्रंथ िमारे काम आिे िैं।
3. हवश्वज्ञाि कोश व साहित्य कोश को समझाइए।
उत्तर-हवश्वज्ञाि कोश-इसमें पूरे हवश्व की जािकाठरयों का संग्रि िोिा िै। मिुष्य के ज्ञाि व रुहच से संबंहधि
सभी रचिाएँ व जािकाठरयाँ हवश्वज्ञाि कोश से संहक्षि रूप में सिजिा से प्राि की जा सकिी िैं। हवश्वज्ञाि
कोश में भी शब्दकोश के हियमों को अपिाया जािा िै।
साहित्य कोश-साहित्य कोश में साहिहत्यक हवषयों से संबंहधि सभी जािकाठरयाँ उपलब्ध िोिी िैं। इसमें सभी
साहिहत्यक रचिाओं के साथ-साथ उिके लेखकों आदद के िाम क्रमािुसार हलखे िोिे िैं।
4. चठरत्र कोश दकसे कििे िैं?
उत्तर-हजस कोश में साहित्य, संस्कृ हि, हवज्ञाि आदद क्षेत्रों के मिाि व्यहक्तयों के व्यहक्तत्व व कृ हित्व की
जािकारी उपलब्ध िोिी िै, उसे िी चठरत्र कोश कििे िैं। इसमें सभी हवचारकों, साहित्यकारों, वैज्ञाहिकों
आदद का संहक्षि पठरचय व उपलहब्धयाँ, क्रमािुसार ददया िोिा िै। चठरत्र कोश को 'व्यहक्त कोश' भी कििे
िैं। इसमें भी शब्दकोश के हियमों का िी पालि दकया जािा िै।
5. िीचे ददए गए शब्दों को शब्दकोश क्रम में हलहखए-
परीक्षण, पठरक्रमण, पठरक्रम, हवश्वाहमत्र, हिमाश्रया, हृदयंगम, ग्वाहलि, घंटा, योगासि, घटक, इहछछि, इक्षु,
अंि:, अंि, अकं हपि, उदािरण, उद्योग, हजज्ञासु।
2. मीरा
✓ जन्म: सि् 1498, कु िकी गाँव (मारवाि ठरयासि) मृत्यु: सि् 1546
✓ प्रमुख रचिाएँ:-‘मीरापदावली’, ‘िरसीजी-रो-मािेरो’
✓ साहिहत्यक हवशेषिाएँ:
मीरा सगुण धारा की मित्वपूणय भक्त कवहयत्री थीं। कृ ष्ण की उपाहसका िोिे के कारण उिकी कहविा
में सगुण भहक्त मुख्य रूप से मौजूद िै, लेदकि हिगुयण भहक्त का प्रभाव भी हमलिा िै। संि कहव रै दास उिके
गुरु मािे जािे िैं। बचपि से िी उिके मि में कृ ष्ण-भहक्त की भाविा जन्म ले चुकी थी। इसहलए वे कृ ष्ण को
िी अपिा आराध्य और पहि माििी रिीं।
मीरा िे देश में दूर-दूर िक यात्राएँ कीं। हचत्तौि राजघरािे में अिेक कि उिािे के बाद मीरा वापस
मेििा आ गई। यिाँ से उन्िोंिे कृ ष्ण की लीला भूहम वृंदावि की यात्रा की। जीवि के अंहिम ददिों में वे द्वारका
चली गई। मािा जािा िै दक विीं रणछोि दास जी की मंददर की मूर्िय में वे समाहिि िो गई।
उन्िोंिे लोकलाज और कु ल की मयायदा के िाम पर लगाए गए सामाहजक और वैचाठरक बंधिों का
िमेशा हवरोध दकया। पदाय प्रथा का भी पालि ििीं दकया िथा मंददर में सावयजहिक रूप से िाचिे-गािे में
कभी हिचक मिसूस ििीं की। मीरा सत्संग (मिापुरुषों के साथ संवाद) को ज्ञाि प्राहि का माध्यम माििी थीं
और ज्ञाि को मुहक्त का साधि। बिंदा से वे कभी हवचहलि ििीं हुई। वे उस युग के रूदढ़ग्रस्ि समाज में स्त्री-
मुहक्त की आवाज बिकर उभरी।
भाषा-शैली-मीरा की कहविा में प्रेम की गंभीर अहभव्यंजिा िै। उसमें हवरि की वेदिा िै और हमलि का
उल्लास भी। इिकी कहविा में सादगी व सरलिा िै। इन्िोंिे मुक्तक गेय पदों की रचिा की। उिके पद लोक व
शास्त्रीय संगीि दोिों क्षेत्रों में आज भी लोकहप्रय िैं। इिकी भाषा मूलि: राजस्थािी िै िथा किीं-किीं
िजभाषा का प्रभाव िै। कृ ष्ण के प्रेम की दीवािी मीरा पर सूदियों के प्रभाव को भी देखा जा सकिा िै। मीरा
की कहविा के मूल में ददय िै।
पाि का सारांश-पिले पद में मीरा िे कृ ष्ण के प्रहि अपिी अिन्यिा व्यक्त की िै। वि भहक्त में लगे लोगों को
देखकर खुश िोिी िै िथा व्यथय के कायों में व्यस्ि लोगों को देखकर दुखी िोिी िै। वे कििी िैं दक मोर
मुकुटधारी हगठरधर कृ ष्ण िी उसके स्वामी िैं। कृ ष्ण-भहक्त में उसिे अपिे कु ल की मयायदा भी भुला दी िै। संिों
के पास बैिकर उसिे लोकलाज खो दी िै। आँसुओं से सींचकर उसिे कृ ष्ण प्रेम रूपी बेल बोयी िै। अब इसमें
आिंद के िल लगिे लगे िैं। उसिे दिी से घी हिकालकर छाछ छोि ददया। संसार की लोलुपिा देखकर मीरा
रो पििी िैं और कृ ष्ण से अपिे उद्धार के हलए प्राथयिा करिी िैं। प्रस्िुि पद िरोत्तम दास स्वामी द्वारा संकहलि-
संपाददि मीराँ मुक्तावली से िैं।
प्रश्न 1: मीरा कृ ष्ण की उपासिा दकस रूप में करिी िैं? वि रूप कै सा िै?
उत्तर-मीरा कृ ष्ण की उपासिा पहि के रूप में करिी िैं। उसका रूप मि मोििे वाला िै। वे पवयि को धारण
करिे वाले िैं। उिके हसर पर मोरपंखी मुकुट िै। इस रूप को अपिा मािकर वे सारे संसार से हवमुख िो गई
िैं।
प्रश्न 2: भाव व हशल्प-सौंदयय स्पि कीहजए-
(क) अंसुवि जल सींहच-सीहच, प्रेम-बेहल बोयी
अब ि बेहल िै हल गई आणंद-िल िोयी
(ख) दूध की मथहियाँ बिे प्रेम से हवलोयी
दहध महथ घृि कादढ़ हलयो, र्ाठर दयी छोयी
3. घर की याद-भवािीप्रसाद हमश्र
पाठ्यसामग्री-हिन्दी (आधार) कक्षा:ग्यारिवीं पृष्ठ 89 of 123
जीवि पठरचय-जन्म 1913 ई. से मध्य प्रदेश के िोशंगाबाद हजले के ठटगठरया गाँव में। मृत्यु-सि् 1985 में।
पुरस्कार-इन्िें साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासि का हशखर सरमाि, ददल्ली प्रशासि का गाहलब पुरस्कार
से सरमाहिि दकया गया। इिकी साहित्य व समाज सेवा के मद्देिजर भारि सरकार िे इन्िें पद्मश्री से अलंकृि
दकया।
प्रमुख रचिाएँ-सिपुिा के जंगल, सन्नाटा, गीििरोश, चदकि िै दुख, बुिी हुई रस्सी, खुशबू के हशलालेख,
अिाम िुम आिे िो, इदं ि मम् आदद।
काव्यगि हवशेषिाएँ-भवािी प्रसाद हमश्र के साहित्य में सिजिा सवयत्र हवद्यमाि िै। साहित्य और राष्ट्रीय
आंदोलि में इिकी भागीदारी मित्वपूणय िै। गाँधीवाद में इिका अखंर् हवश्वास था। इन्िोंिे गांधी वांगमय के
बिंदी खंर्ों का संपादि कर कहविा और गांधी जी के बीच सेिु का काम दकया। इिकी कहविा बिंदी की सिज
लय की कहविा िै। इस सिजिा का संबंध गांधी के चरखे की लय से भी जुििा िै इसहलए इन्िें कहविा का
गाँधी भी किा गया िै। इिमें बोलचाल के गद्यात्मक से लगिे वाक्य हवन्यास को िी कहविा में बदल देिे की
अद्भुि क्षमिा िै। इसी कारण इिकी कहविा सिज और लोक के करीब िै।
सारांश-इस कहविा में घर के सदस्यों की आत्मीयिा का मार्मयक हचत्रण दकया गया िै। कहव को जेल प्रवास
के दौराि हवस्थापि की पीिा सालिी िै। कहव के स्मृहि-संसार में उसके पठरजि एकएक कर शाहमल िोिे
चले जािे िैं। घर की अवधारणा की साथयक और मार्मयक याद कहविा की कें द्रीय संवेदिा िै। वि घर के सभी
सदस्यों को याद करिा िै। उसे अपिे भाइयों व बििों की याद आिी िै। कहव को अपिी अिपढ़, व्याकु ल,
परं िु स्नेिमयी माँ की याद आिी िै।
कहव को अपिे हपिा की याद आिी िै हजिमें बुढ़ापे का कोई लक्षण ििीं िै। वे अभी भी दौि सकिे िैं। मौि
या शेर का सामिा करिे से ििीं र्रिे। उिकी वाणी में जोश िै। वे प्रहिददि गीिा का पाि और व्यायाम करिे
िैं। जब वे पाँचवें बेटे को ि पाकर रो पिे िोंगे िो माँ िे उन्िें समझाया िोगा। कहव सावि के मिीिे से हिवेदि
करिा िै दक िुम खूब बरसो, लेदकि मेरे मािा-हपिा को मेरे हलए दुखी ि िोिे देिा। उन्िें मेरा संदश
े देिा दक
मैं जेल में भी खुश हँ। मुझे खािे-पीिे की ददक्कि ििीं िै। मैं यिाँ स्वस्थ हँ। उन्िें मेरी सच्चाई मि बिािा दक मैं
हिराश, दुखी व असमंजस में हँ। िे सावि! िुम उन्िें मेरा संदश
े देकर धैयय बँधािा। इस प्रकार कहव िे अपिे
घर की अवधारणा का हचत्र प्रस्िुि दकया िै।
हवशेष-सावि मिीिे की घिघोर बाठरश में कहव की भावुकिा का स्वाभाहवक हचत्रण हुआ िै। पाठरवाठरक
सदस्यों के प्रहि कहव का लगाव व्यक्त हुआ िै। जेल में बंद िोिे के कारण उसकी हववशिा प्रकट हुई िै। मािा-
हपिा और भाई-बिि का सिज स्नेि उसे व्याकु ल कर देिा िै। कहविा में संयुक्त पठरवार का आदशय रूप प्रस्िुि
िै। अिुप्रास, यमक, उपमा व पुिरुहक्त प्रकाश अलंकारों की छटा दशयिीय िै। वात्सल्य, वीर एवं शांि रस का
प्रयोग। दृश्य बबंब िै। बोलचाल के शब्दों से युक्त खिीबोली का प्रयोग हुआ िै।
वणयिात्मक प्रश्न
प्रश्न-1 पािी के राि भर हगरिे और प्राण-मि के हघरिे में परस्पर क्या संबध
ं िै?
उत्तर-‘घर की याद’ का आरंभ इसी पंहक्त से िोिा िै दक ‘आज पािी हगर रिा िै’। इसी बाि को कहव कई बार
अलग-अलग ढंग से कििा िै ‘बहुि पािी हगर रिा िै, राि भर हगरिा रिा िै’। भाव यि िै दक सावि की झिी
के साथ-साथ ‘घर की यादों’ के कारण कहव का मि भर आया िै। प्राणों से प्यारे अपिे घर को, एक-एक
पठरजि को, मािा-हपिा को याद करके उसकी आँखों से भी पािी हगर रिा िै। वि कििा िै दक "घर िजर में
हिर रिा िै’। बादलों से वषाय िो रिी िै और घर की यादों से हघरे मि का बोझ कहव की आँखों से अश्रुओ के
रूप में बरस रिा िै।
प्रश्न-2 मायके आई बिि के हलए कहव िे घर को पठरिाप का घर क्यों किा िै?
उत्तर-कहव िे बिि के हलए घर को पठरिाप का घर किा िै। मायके में बिि का आिा िी बिि के मि में
उत्साि एवं खुशी भर देिा िै। वि खुशी से अपिे पठरवार वालों से हमलिे के हलए आिी िै। वि भाई-बििों
के साथ हबिाए हुए क्षणों को याद करिी िै। लेदकि कहव के अिुसार जब घर पहुँचकर बिि को पिा चलिा
पाठ्यसामग्री-हिन्दी (आधार) कक्षा:ग्यारिवीं पृष्ठ 90 of 123
िै दक उसका एक भाई जेल में िै िो वि बहुि दुखी िोिी िै। इस कारण कहव िे घर को पठरिाप का घर अथायि
दुखों का घर किा िै।
प्रश्न-3 कहविा में हपिा के व्यहक्तत्व की दकि हवशेषिाओं को उके रा गया िै?
उत्तर-कहव अपिे हपिा के हवषय में बिािा िै दक उिमें वृद्धावस्था का कोई लक्षण ददखाई ििीं देिा िै। वे
आज भी बहुि िु िीले िैं और दौि लगा सकिे िैं। हखलहखलाकर िँसिे िैं। वे इििे हिर्र िै दक मौि के सामिे
भी ििीं हिचदकचािे। उिमें इििा सािस िै दक वे शेर के सामिे भी भयभीि ििीं िोगे। उिकी आवाज बादलों
की गजयिा के समाि िै। िर काम को िूिाि की रफ़्िार से करिे की उिमें अदभुि क्षमिा िै। वे हियहमि गीिा
का पाि और व्यायाम करिे िैं। वे बहुि िी भावुक एवं संवेदिशील िैं। उिमें राष्ट्र-प्रेम की भाविा िै।
प्रश्न-4 हिम्नहलहखि पंहक्तयों में 'बस' शब्द के प्रयोग की हवशेषिा बिाइए
मैं मजे में हँ सिी िै
घर ििीं हँ बस यिी िै।
ककं िु यि बस बिा बस िै।
इसी बस से सब हवरस िै।
उत्तर-कहव िे इस शब्द का लाक्षहणक प्रयोग दकया िै। पिली बार के प्रयोग का अथय िै दक वि के वल घर पर
िी ििीं िै। दूसरे प्रयोग का अथय िै दक वि घर से दूर रििे के हलए हववश िै। िीसरा प्रयोग उसकी लाचारी व
हववशिा को दशायिा िै। चौथे बस से कहव के मि की व्यथा प्रकट िोिी िै हजसके कारण उसके सारे सुख हछि
गए िैं।
प्रश्न-5 कहव अपिे पठरजिों से क्या हछपािा चाििा िै?
उत्तर-कहव स्वाधीििा आंदोलि का वि सेिािी िै जो जेल में दी जािे वाली याििाओं की जािकारी अपिे
पठरवार के लोगों को ििीं देिा चाििा िै क्योंदक इससे वे दुखी िोंगे। कहव कििा िै दक िे सावि! उन्िें मि
बिािा दक मैं उदास रििा हँ, मैं िीक से सो भी ििीं पािा और मिुष्य से भागिा हँ। उन्िें यि सब मि बिािा
दक जेल की याििाओं से में मौि िो गया हँ और कु छ ििीं बोलिा। मैं स्वयं यि ििीं समझ पा रिा दक मैं कौि
हँ?
प्रश्न-6 “िाय रे , ऐसा िा कििा......पांचवे को वे ि िरसें।" इि पंहक्तयों का आशय स्पि कीहजए।
उत्तर-प्रस्िुि पंहक्तयों में कहव सावि से हवििी करिे िैं दक वि उसकी जेल की वास्िहवक हस्थहि को उसके
पठरवारजिों को ि बिाए िथा ऐसा कु छ ि किें हजससे उिको कु छ शक िो जाए। उिको यि ि बिाए दक
कहव राि भर जागिा िै, आदमी से र्रिे लग गया िै, अब वि दकसी के हखलाि आवाज ििीं उिािा िै िथा
चुपचाप कि सिि कर लेिा िै। वि िर समय दुखों में खोया रििा िै िथा खुद को ििीं पिचाििा िै। अंि
में वे सावि से कििे िैं दक वि अपिा कायय करे , जैसे अपिी वषाय से इस धरिी को सींच कर प्रसन्न करिा
उसका दाहयत्व िै वैसे िी उिके घर को भी प्रसन्निा से भर दे िथा उन्िें कहव की कमी का एिसास ि िोिे दे।
प्रश्न-7 कहव द्वारा सावि के माध्यम से झूिा संदश
े हभजवािा क्या दशायिा िै?
उत्तर-कहव द्वारा सावि को दूि बिाकर अपिे मािा-हपिा को झूिा संदश
े हभजवािा यि दशायिा िै दक कहव
अपिे मािा-हपिा एवं पठरवार के अन्य सदस्यों को दुखी ििीं करिा चाििा। उसके मािा-हपिा दुखी ि िो,
इसीहलए वि अपिे दुख और संिाप को हछपािे के हलए िैयार िै।
प्रश्न-8 कहविा पढ़िे के पिाि् कहव की माँ के बारे में क्या छहव उभरिी िै?
उत्तर-कहविा पढ़िे के पिाि् िमें यि पिा चलिा िै दक कहव की माँ भले िी अिपढ़ िै, लेदकि उिकी सोच
बहुि ऊँची िै। उन्िें इस बाि का दुख अवश्य िो रिा िै दक उिका एक बेटा उिसे दूर कारावास में िै , परंिु
उन्िें इस बाि पर गवय भी िै दक उिके बेटे िे देशहिि में स्वयं को समर्पयि कर ददया िै। यदद कहव ऐसा ि
करिा, िो उसे लहज्जि िोिा पििा। मुहश्कल समय में जब कहव के हपिा भावुक िोकर रो पििे िैं, िब विी
जीवि पठरचय-जन्म उत्तर प्रदेश के सुल्िािपुर हजले के हचरािी पट्टी में सि् 1917 में।मृत्यु-9 ददसंबर, 2007
में।
इिका मूल िाम वासुदव े बसंि था। ये बिंदी साहित्य में प्रगहिशील काव्यधारा के प्रमुख कहव के रूप में प्रहिहष्ठि
रिे। इन्िोंिे गद्य और पद्म दोिों में साहित्य रचिा की। इिकी साहिहत्यक उपलहब्धयों के आधार पर इन्िें
साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृ ि दकया गया। उत्तर प्रदेश सरकार िे इन्िें मिात्मा गाँधी पुरस्कार से सरमाहिि
दकया। शलाका सरमाि भी इिकी मित्वपूणय उपलहब्ध िै।
रचिाएँ-धरिी. गुलाब और बुलबुल, ददगंि, िाप के िाये हुए ददि, शब्द, उस जिपद का कहव हँ, अरघाि,
िुरिें सौंपिा हँ, चैिी, अमोला, मेरा घर, जीिे की कला (काव्य) ; देशकाल, रोजिामचा, काव्य और अथयबोध,
मुहक्तबोध की कहविाएँ (गद्य) ; इसके अलावा बिंदी के अिेक कोशों के हिमायण में मित्त्वपूणय योगदाि।
काव्यगि हवशेषिाएँ-हत्रलोचि बहुभाषाहवज्ञ थे। ये रागात्मक संयम व लयात्मक अिुशासि वाले कहव थे।
इसी कारण इिके िाम के साथी शास्त्री' जुि गया, लेदकि यि शास्त्रीयिा इिकी कहविा के हलए बोझ ििीं
बिी। ये जीवि में हिहिि मंद लय के कहव थे। प्रबल आवेग और त्वरा की अपेक्षा इिके यिाँ कािी कु छ हस्थर
िै। इिकी भाषा छायावादी रूमाहियि से मुक्त िै िथा इिका काव्य िाि िे ि गाँव की जमीि से जुिा हुआ िै।
ये बिंदी में सॉिेट (अंग्रेजी छद) को स्थाहपि करिे वाले कहव के रूप में भी जािे जािे िैं। कहव बोलचाल की
भाषा को चुटीला और िाटकीय बिाकर कहविाओं को िया आयाम देिा िै। कहविा की प्रस्िुहि का अंदाज
कु छ ऐसा िै दक वस्िु रूप की प्रस्िुहि का भेद ििीं रििा।
सारांश-‘चरपा काले-काले अछछर ििीं चीन्ििी’ कहविा धरिी संग्रि में संकहलि िै। यि पलायि के लोक
अिुभवों को मार्मयकिा से अहभव्यक्त करिी िै। इससे अक्षरों के हलए काले-काले हवशेषण का प्रयोग दकया गया
िै जो एक और हशक्षा-व्यवस्था के अंिर्वयरोधों को उजागर करिा िै िो दूसरी ओर उस दारुण यथाथय से भी
िमारा पठरचय करािा िै जिाँ आर्थयक मजबूठरयों के चलिे घर टूटिे िैं। काव्य िाहयका चंपा अिजािे िी उस
शोषक व्यवस्था के प्रहिपक्ष में खिी िो जािी िै जिाँ भहवष्य को लेकर उसके मि में अिजाि खिरा िै।
काव्य की िाहयका चंपा अक्षरों को ििीं पिचाििी। जब कहव पढ़िा िै िो वि चुपचाप पास खिी िोकर
आियय से सुििी िै। वि सुंदर ग्वाले की एक लिकी िै िथा पशु चरािे का काम करिी िै। वि अछछी व चंचल
िै। कभी वि कहव की कलम चुरा लेिी िै िो कभी कागज। इससे कहव परे शाि िो जािा िै। चंपा कििी िै दक
ददि भर कागज पर कु छ हलखिे रििे िो क्या यि काम अछछा िै? कहव िँस देिा िै। एक ददि कहव िे चरपा
से पढ़िे-हलखिे के हलए किा। उन्िोंिे इसे गाँधी बाबा की इछछा बिाया। िब चंपा िे किा दक वि ििीं पढ़ेगी।
गाँधी जी बहुि अछछे िैं, वे बच्चों को पढ़ाई की बाि कै से किेंगे? कहव िे किा दक पढ़िा अछछा िै। शादी के
बाद िुम ससुराल जाओगी। िुरिारा पहि काम के हलए कलकिा जाएगा। अगर िुम ििीं पढ़ी िो उसके पत्र
कै से पढ़ोगी या अपिा संदश
े ा उसे कै से भेजोगी? इस पर चरपा िे किा दक िुम पढ़े-हलखे झूिे िो। वि शादी
ििीं करे गी। यदद शादी करे गी िो अपिे पहि को कभी कलकत्ता ििीं जािे देगी। वि कलकत्ता पर भारी हवपदा
आिे की कामिा करे गी।
हवशेष-इस कहविा में कहव िे पलायि के लोक अिुभवों का बिी िी मार्मयकिा से हचत्रण दकया िै। गाँव में
साक्षारिा के प्रहि उदासीििा को चंपा के माध्यम से मुखठरि दकया गया िै। ग्रामीण जीवि का हचत्रण िै।
देशज शब्दावली युक्त सिज व सरल खिी बोली िै। अिुप्रास, पुिरुहक्तप्रकाश एवं प्रश्नालंकारों का स्वाभाहवक
प्रयोग हुआ िै। लाक्षहणक एवं व्यंग्य प्रधाि संवाद शैली का मिोरम प्रयोग दकया गया िै।
वणयिात्मक प्रश्न
प्रश्न-1 पथेर पांचाली दिल्म की शूटटंग का काम ढाई साल िक क्यों चला?
उत्तर-‘पथेर पांचाली' दिल्म की शूटटंग का काम ढाई साल िक चला। इसके कई कारण थे-लेखक के पास
पैसों का अभाव था। पैसे इकट्ठे िोिे पर िी वि शूटटंग करिा था। वि एक हवज्ञापि कं पिी में काम करिा
था। इसहलए काम से िु सयि िोिे पर िी लेखक िथा अन्य कलाकार दिल्म की शूटटंग का काम करिे थे।
पात्रों के मर जािे एवं िकिीकी हपछिेपि के कारण भी पात्र, स्थाि, दृश्य आदद की समस्याएँ आ जािी थीं।
प्रश्न-2 अब अगर िम उस जगि बाकी आधे सीि की शूटटंग करिे, िो पिले आधे सीि के साथ उसका मेल
कै से बैििा? उसमें से 'कं ठटन्युइटी' िदारद िो जािी-इस कथि के पीछे क्या भाव िै?
उत्तर-इसके पीछे भाव यि िै दक कोई भी दिल्म िमें िभी प्रभाहवि कर पािी िै जब उसमें हिरंिरिा िो।
यदद एक दृश्य में िी एकरूपिा ििीं िोिी िो दिल्म कै से चल पािी। दशयक भ्रहमि िो जािा िै। ‘पथेर
पांचाली’ दिल्म में काशिू लों के साथ शूटटंग पूरी करिी थी, परं िु एक सिाि के अंिराल में पशु उन्िें खा
गए। अि: उसी पृष्ठभूहम में दृश्य हचहत्रि करिे के हलए एक वषय िक इंिजार करिा पिा। यदद यि आधा
दृश्य काशिू लों के हबिा हचहत्रि दकया जािा िो दृश्य में हिरं िरिा ििीं बि पािी।
प्रश्न-3 दकि दो दृश्यों में दशयक यि पिचाि ििीं पािे दक उिकी शूटटंग में कोई िरकीब अपिाई गई िै?
उत्तर-प्रथम दृश्य-इस दृश्य में 'भूलो' िामक कु त्ते को अपू की माँ द्वारा गमले में र्ाले गए भाि को खािे हुए
हचहत्रि करिा था, परं िु सूयय के अस्ि िोिे िथा पैसे खत्म िोिे के कारण यि दृश्य हचहत्रि ि िो सका। छि
मिीिे बाद लेखक पुि: उस स्थाि पर गया िब िक उस कु त्ते की मौि िो चुकी थी। कािी प्रयास के बाद
उससे हमलिा-जुलिा कु त्ता हमला और उसी से भाि खािे हुए दृश्य को दिल्माया गया। यि दृश्य इििा
• रचिाएँ-
• किािी-संग्रि- कोसी का घटवार, साथ के लोग, दाज्यू, िलवािा, िौरं गी बीमार िै।
• शब्दहचत्र संग्रि- एक पेि की याद ।
सारांश-इस किािी में समाज के जाहिगि हवभाजि पर कई कोणों से ठटप्पणी की गई िै। यि किािी लेखक
के लेखि में अथय की गिराई को दशायिी िै। इस पूरी किािी में लेखक की कोई मुखर ठटप्पणी ििीं िै। इसमें
एक मेधावी, ककं िु हिधयि िािमण युवक मोिि दकि पठरहस्थहियों के चलिे उस मिोदशा िक पहुँचिा िै,
जिाँ उसके हलए जािीय अहभमाि बेमािी िो जािा िै। सामाहजक हवहध-हिषेधों को िाक पर रखकर वि
धिराम लोिार के आिर पर बैििा िी ििीं, उसके काम में भी अपिी कु शलिा ददखािा िै। मोिि का व्यहक्तत्व
जाहिगि आधार पर हिर्मयि झूिे भाईचारे की जगि मेिििकशों के सच्चे भाईचारे को प्रस्िाहवि करिा प्रिीि
िोिा िै मािो लोिा गलकर िया आकार ले रिा िो।
• किािी-संग्रि- एक प्लेट सैलाब, मैं िार गई, िीि हिगािों की एक िस्वीर, यिी सच िै, हत्रशंकु,
आँखों देखा झूि।
• उपन्यास- आपका बंटी, मिाभोज, स्वामी, एक इंच मुस्काि (राजेंद्र यादव के साथ)|
• पटकथाएँ- रजिी, हिमयला स्वामी, दपयण।
पाि का सार-ियी किािी आंदोलि में जो िया मोि आया. उसमें मन्नू भंर्ारी का हवशेष योगदाि रिा। उिकी
किाहियों में किीं पाठरवाठरक जीवि, किी िारी-जीवि और किीं समाज के हवहभन्न वगों के जीवि की
हवसंगहियाँ हवशेष आत्मीय अंदाज में अहभव्यक्त हुई िैं। चािे किािी िो या उपन्यास या दिर पटकथा-सभी
में मन्नू जी िे आक्रोश, व्यंग्य एवं संवेदिा को मिोवैज्ञाहिक रचिात्मक आधार ददया िै।
प्रस्िुि पाि 'रजिी' मन्नू भंर्ारी द्वारा हलहखि बहुचर्चयि टेलीहवजि धारावाहिक 'रजिी' की एक किी िै,
हजसमें जुझारू, स्त्री-पात्र एवं सूत्रधार रजिी हशक्षा की समस्या से जूझिी िजर आिी िै।
पिला दृश्य (लीला का घर)
रजिी लीला के घर जािी िै िथा उससे बाजार चलिे को कििी िै। लीला उसे बिािी िै दक आज अहमि का
ठरजल्ट आ रिा िै। रजिी उसे हमिाई िैयार रखिे को कििी िै, क्योंदक अहमि बहुि िोहशयार लिका िै।
अहमि के हलए भी रजिी आंटी 'िीरो' िैं। िभी अहमि स्कू ल से आिा िै। उसका चेिरा उिरा हुआ िै। वि
ठरपोटय कार्य माँ की िरि िें किे हुए कििा िै दक मैंिे पिले िी गहणि में ट्यूशि लगवािे को किा था। ट्यूशि
ि करिे की वजि में उसे के वल 72 अंक िी हमले। लीला कििी िै दक िुमिे िो सारे सवाल िीक दकए थे। िुरिें
पंचािवे िंबर जरूर हमलिे चाहिए थे। रजिी कार्य देखिी िै. दूसरे हवषयों में 86, 80, 88, 82, 90 अंक
हमले थे। सबसे कम गहणि में िी हमले थे। अहमि गुस्से व दुःख से कििा िै दक सर, बार-बार ट्यूशि करिे के
िथा ि करिे पर पठरणाम भुगििे के हलए िैयार रििे की चेिाविी देिे थे। रजिी अहमि को िसल्ली देिी िै
िथा सारी बािों की जाँच करिी िै। उसे पिा चलिा िै दक हमस्टर पािक उसे गहणि पढ़ािे िैं और अपिे िर
बच्चे को ट्यूशि लेिे के हलए कििे िैं। अहमि िे िाि ईयरली में हछयािबे िंबर पाए थो अध्यापक िे दिर भी
उससे ट्यूशि रखिे का आग्रि दकया। रजिी अहमि को समझािी िै दक उसे अध्यापक से लििा चाहिए। यि
सारी बदमाशी उसकी िै। रजिी अहमि से कििी िै दक वि कल उसके स्कू ल जाकर सर से हमलेगी। अहमि
र्रकर उन्िें जािे से रोकिा िै। रजिी उसे र्ाँटिी िै िथा अगले ददि स्कू ल जािे का संकल्प लेिी िै।
दूसरा दृश्य (िेर्मास्टर का कमरा)
रजिी अहमि के स्कू ल के िेर्मास्टर से हमलिे पहुँची। उसिे अहमि सक्सेिा की गहणि की कॉपी देखिे की
अिुमहि माँगी, िो िेर्मास्टर िे वार्षयक परीक्षा की कॉहपयाँ ददखािे में असमथयिा ददखाई। रजिी कििी िै
दक अहमि िे मैथ्स में पूरा पेपर िीक दकया था, परं िु उसे के वल बित्तर अंक हमले िैं। वि देखिा चाििी िै दक
गलिी दकसकी िै। िेर्मास्टर दिर भी कॉपी ि ददखािे पर अिा रििा िै और अहमि को दोषी बिािा िै।
रजिी कििी िै दक अहमि के हपछले ठरजल्ट बहुि बदढ़या िैं। इस बार उसके िंबर दकस बाि के हलए काटे
गए। िेर्मास्टर जब हियमों की दुिाई देिे िैं िो रजिी व्यंग्य करिी िै दक यिाँ िोहशयार बच्चों को भी ट्यूशि
लेिे के हलए मजबूर दकया जािा िै। िेर्मास्टर ट्यूशि को टीचसय व स्टूर्ट्ें स का आपसी मामला बिािा िै।