Professional Documents
Culture Documents
हिन्दी पाठ्य सामग्री व आदर्श प्रश्न-पत्र कक्षा 11 2022-23 PDF
हिन्दी पाठ्य सामग्री व आदर्श प्रश्न-पत्र कक्षा 11 2022-23 PDF
मुख्य संरक्षक
श्री बी.एल.मोरोहिया
उपायुक्त, के .हव.सं., जयपुर संभाग
संरक्षक
समन्वयक
2 काव्य खंर् पर आधाठरि िीि प्रश्नों में से दकन्िीं दो प्रश्नों के उत्तर (लगभग 40 शब्दों में)(2 अंक x 2 प्रश्न) 4
3 गद्य खंर् पर आधाठरि िीि प्रश्नों में से दकन्िीं दो प्रश्नों के उत्तर (लगभग 60 शब्दों में) (3 अंक x 2 प्रश्न) 6
अपठिि गद्यांश-2
“इहििास से हवरासि में आपको भारिीय संगीि जैसी अमूल्य हिहध हमली िै। अन्य देशों के संगीिों
की अपेक्षा इसमें जो हवहशििा िै, वि उि मान्यिाओं के कारण िै जो संगीि के संबंध में िमारे पूवयजों की थी।
भारि में संगीि क्षहणक आमोद-प्रमोद या अिृि िृष्णा की वस्िु ि िोकर, समस्ि िह्ांर् से ऐक्य का आभास
िै, आिंद प्रदाि करिे वाला आध्याहत्मक साधि िै और मािव को बह् िक ले जािे वाला मागय िै। संगीि के
इस स्वभाव और ध्येय को िमारे देश के लोगों िे िमारी सभ्यिा के प्रारं भ में िी पिचाि हलया था और संगीि
का हवकास इन्िीं आदशों के अिुकूल दकया था।
उन्िोंिे संगीि और जीवि में दकसी प्रकार की दीवार ििीं खिी की। यि कििा अिुहचि ि िोगा दक
उन्िोंिे संगीि को िमारे जीवि में इस प्रकार बुि ददया दक सिस्राहब्दयों के पिाि् भी वि उसका अहवहछछन्न
अंग बिा हुआ िै। संसार में संभवि: ऐसा अन्य कोई देश ििीं िै जिाँ संगीि इििे पुरािे युग से जि-जीवि में
इििा व्याि िो हजििा दक भारि में भारिवाहसयों के अहधक संगीिप्रेमी िोिे की बाि का उल्लेख मेगस्थिीज
भी कर गया िै। दूसरी शिाब्दी ई.पू. में हलखे गए 'इंहर्का' िामक अपिे ग्रंथ में एठरयि मेगस्थिीज का यि
कथि उद्धि िै दक "सब जाहियों की अपेक्षा भारिीय लोग संगीि के किीं अहधक प्रेमी िै।
सिस्रों वषों से िमारे घरे लू और सांसाठरक जीवि में लगभग सभी काम दकसी-ि-दकसी प्रकार के
संगीि से प्रारं भ िोिे रिे िैं। जन्म से लेकर मृत्यु िक यि संगीि िमारे साथ बिा रििा िै। हजस ददि बालक
संसार में अपिी आँखे खोलिा िै, उस ददि से िी संगीि से भी उसका पठरचय िो जािा िै। िामकरण,
कणयछेदि, हववाि आदद में िो संगीि िोिा िी िै। ऐसा कोई िीज-त्योिार ििीं िोिा, ऐसा कोई पवय और
संस्कार ििीं िोिा हजसमें संगीि ि िो। घर में िी क्यों, िमारे यिाँ खेल में और चौपाल में, चक्की चलािे और
धाि कू टिे के समय भी संगीि चलिा िी रििा िै। यि िमारे जि-जीवि के उल्लास को प्रकट करिे का िो
प्रभावी साधि िै िी, साथ िी साथ उसको गहिमाि बिािे का भी प्रबल अस्त्र िै। संगीि रचिात्मक कायों में
अग्रसर िोिे की सामूहिक स्िू र्िय और प्रेरणा प्रदाि करिा िै और वि सामूहिक शहक्त देिा िै, जो िमें उि
कायों को करिे के योग्य बिा देिी िै, हजन्िें िम अके ले या समूि में संगीि की प्रेरणा के हबिा ििीं कर पािे।”
(i) प्रस्िुि गद्यांश दकस हवषयवस्िु पर आधाठरि िै?
(क) इहििास के पृष्ठों पर भारि (ग) इहििास की प्रहसद्ध पुस्िक
(ख) भारिीय संगीि की हवशाल परं परा (घ) हवहभन्न कमयकांर्ों का व्यहक्त पर प्रभाव
(ii) भारिीय संगीि में अन्य देशों के संगीि की अपेक्षा क्या हवशेषिा िै?
(क) संपूणय िह्ांर् से ऐक्य करिे का आभास िै
(ख) मािव को वास्िहवकिा से हवमुख करिा
(ग) मािव को िह् बिा देिा
(घ) कृ हत्रम वािावरण उपहस्थि कर कल्पिा लोक में ले जािा
(iii) मिुष्य को िह् िक ले जािे का मागय दकसे किा गया िै?
(क) संगीि को (ख) आदशों को (ग) ईश्वर को (घ) गुरु को
(iv) संसार का ऐसा कौि-सा देश िै, जिाँ संगीि पुरािे समय से मािव जीवि का हिस्सा रिा िो?
(क) एहशया (ख) जापाि (ग) िुर्कय स्िाि (घ) भारि
पाठ्यसामग्री-हिन्दी (आधार) कक्षा:ग्यारिवीं पृष्ठ 9 of 194
(v) इहििास में भारिीयों की संगीिहप्रयिा का उल्लेख दकससे हमलिा िै?
(क) पवय-त्योिार से (ख) इंहर्का ग्रंथ से (ग) संस्कारों से (घ) सामूहिक काययक्रम से
(vi) हिम्नहलहखि में से दकस संस्कार में संगीि ििीं हमलिा िै?
(क) िामकरण (ख) हववाि (ग) कणय छेदि (घ) इिमें से कोई ििीं
(vii) जि-जीवि के उल्लास को प्रकट करिे का प्रभावी साधि क्या िै?
(क) त्योिार (ख) पवय (ग) संगीि (घ) रीहि ठरवाज
(viii) सामूहिक रचिात्मक कायों में संगीि का क्या प्रभाव िोिा िै?
(क) हशहथलिा प्रदाि करिा (ग) स्िू र्िय और प्रेरणा प्रदाि करिा
(ख) अके लेपि का अिुभव करिा (घ) कायय करिे योग्य िा छोििा
(ix) िमारे घरे लू जीवि में संगीि किाँ व्याि ददखाई देिा िै?
(क) चक्की चलािे में (ख) चौपाल में (ग) धाि कू टिे में (घ) यि सभी
(x) अन्य देशों की अपेक्षा भारिीय संगीि की हवहशििा का क्या कारण रिा िै?
(क) भारिीयों का संगीि प्रेमी िोिा (ग) संगीि के संबंध में पूवयजों की मान्यिाएं िोिा
(ख) मािव िेिु संगीि का िोिा (घ) जिजीवि द्वारा संगीि की उपेक्षा करिा
उत्तर-
प्रश्न सं . i ii iii iv v vi vii viii ix x
उत्तर ख क क घ ख क ग ग घ क
अपठिि गद्यांश-3
“कियव्य-पालि और सत्यिा में बिा घहिष्ठ सरबन्ध िै। जो मिुष्य अपिा कियव्य-पालि करिा िै, वि
अपिे कामों और वचिों में सत्यिा का बिायव भी रखिा िै। वि िीक समय पर उहचि रीहि से अछछे कामों
को करिा िै । सत्यिा िी एक ऐसी वस्िु िै, हजससे इस संसार में मिुष्य अपिे कायों में सिलिा पा सकिा
िै, क्योंदक संसार में कोई कायय झूि बोलिे से ििीं चल सकिा। यदद दकसी के घर सब लोग झूि बोलिे लगे
िो उस घर में कोई कायय ि िो सके गा और सब लोग बिा दु:ख भोगेंगे । इसहलए िम लोगों को अपिे कायों
में झूि का बिायव ििीं करिा चाहिए। अिएव सत्यिा को सबसे ऊँचा स्थाि देिा उहचि िै। संसार में हजििे
पाप िैं, झूि उि सभी से बुरा िै । झूि की उत्पहत्त पाप, कु ठटलिा और कायरिा के कारण िोिी िै। बहुि-से
लोग सच्चाई का इििा थोिा ध्याि रखिे िैं दक अपिे सेवकों को स्वयं झूि बोलिा हसखािे िैं। पर उिको इस
बाि पर आियय करिा और क्रुद्ध ि िोिा चाहिए, जब उिके िौकर भी उिसे अपिे हलए झूि बोलें।
बहुि-से लोग िीहि और आवश्यकिा के बिािे झूि की रक्षा करिे िैं। वे कििे िैं दक इस समय इस
बाि को प्रकाहशि ि करिा और दूसरी बाि को बिाकर कििा, िीहि के अिुसार समयािुकूल और परम
आवश्यक िै। दिर बहुि-से लोग दकसी बाि को ‘सत्य-सत्य’ कििे िैं दक हजससे सुििे वाला यि समझे दक
यि बाि सत्य ििीं, वरि् इसका जो उल्टा िै विी सत्य िोगा। इस प्रकार से बािों का कििा झूि बोलिे के
पाप से दकसी प्रकार कम ििीं िै।
संसार में बहुि-से ऐसे भी िीच और कु हत्सि लोग िोिे िैं, जो झूि बोलिे में अपिी चिुराई समझिे
िैं और सत्य को हछपाकर धोखा देिे या झूि बोलकर अपिे को बचा लेिे में अपिा परम गौरव माििे िैं ।
ऐसे लोग िी समाज को िि करके दु:ख और सन्िाप के िै लािे के मुख्य कारण िोिे िैं । इस प्रकार झूि बोलिा
स्पि ि बोलिे से अहधक हिहन्दि और कु हत्सि कमय िै।
हवधािा-रहचि इस सृहि का हसरमौर िै मिुष्य। उसकी कारीगरी का सवोत्तम िमूिा! इस मािव
को िह्ांर् का लघु रूप मािकर भारिीय दाशयहिकों िे ‘यि् हपण्र्े िि् िह्ांर्’े की कल्पिा की थी। उिकी
1 2 3 4 5
क घ ग ख ख
अपठिि पद्यांश-2
“भारि मािा का मंददर यि, समिा को संवाद जिाँ।
सबका हशव कल्याण यिाँ पाएँ सभी प्रसाद यिाँ।
जाहि-धमय या संप्रदाय का, ििीं भेद व्यवधाि यिाँ
सबका स्वागि, सबका आदर, सबका सरमाि यिाँ।
राम-रिीम, बुद्ध ईसा का, सुलभ एक-सा ध्याि यिाँ।
हभन्न-हभन्न भव संस्कृ हियों के , गुण-गौरव का ज्ञाि यिाँ।
ििीं चाहिए बुहद्ध वैर की, भला प्रेम उन्माद यिाँ।
सब िीथों का एक िीथय यि, हृदय पहवत्र बिा लें िम।
रे खाएँ प्रस्िुि िैं, अपिे मि के हचत्र बिा लें िम।
सौ-सौ आदशों को लेकर, एक चठरत्र बिा लें िम।
कोठट-कोठट कं िों से हमलकर, उिे एक जयिाद यिाँ।
सबका हशव कल्याण यिाँ िै, पाएँ सभी प्रसाद यिाँ”
(i) कहव दकस मंददर की बाि कर रिा िै?
(क) हशव मंददर (ख) शहक्त मंददर (ग) राम-सीिा मंददर (घ) भारि मािा
(ii)“जाहि-धमय या संप्रदाय का, ििीं भेद व्यवधाि यिाँ” का क्या िात्पयय िै?
(क) समाििा का भाव िै (ग) असमाििा का भाव िै
(ख) जाहि धमं का भेद िै (घ) इिमेंसे कोई ििीं
(iii) सबका आदर सरमाि किाँ िोिा िै?
(क) भारि देश में (ख) ईराि (ग) चीि में (घ) पादकस्िाि में
(iv) िम सबके हमत्र कै से बि सकिे िैं?
पाठ्यसामग्री-हिन्दी (आधार) कक्षा:ग्यारिवीं पृष्ठ 15 of 194
(क) वैरभाव से (ख) आपसी भेदभाव से (ग) वैर-बुहद्धको त्यागकर (घ) हवषम दृहिकोण से
(v) एकिा के सूत्र में बाँधिे के हलए क्या प्रयास दकया गया िै?
(क) अपिे मि के हचत्र बिािा (ग) एक चठरत्र बिािा
(ख) हवहभन्न प्रकार के आदशों को ग्रिण करिा (घ) उक्त सभी
उत्तर गद्यांश – 2
1 2 3 4 5
घ क क ग घ
अपठिि पद्यांश-3
“मिमोहििी प्रकृ हि की जो गोद में बसा िै,
सुख स्वगय-सा जिाँ िै, वि देश कौि-सा िै?
हजसके चरण हिरन्िर रत्नेश धो रिा िै,
मुकुट हिमालय, वि देश कौि-सा िै?
िददयाँ जिाँ सुधा की धारा बिा रिी िैं,
सींचा हुआ सलोिा, वि देश कौि-सा िै?
हजसके बिे रसीले िल, कन्द, िाज, मेव,े
सब अंग में सजे िैं, वि देश कौि-सा िै?
हजसमें सुगन्ध वाले, सुन्दर प्रसूि प्यारे ,
ददि-राि िँस रिे िैं, वि देश कौि-सा िै?
मैदाि, हगठर, विों में िठरयाहलयाँ लिकिी,
आिन्दमय जिाँ िै, वि देश कौि-सा िै?
हजसकी अिन्ि धि से, धरिी भरी पिी िै,
संसार का हशरोमहण, वि देश कौि-सा िै?”
(i) भारि का मुकुट दकसे किा गया िै?
(क) रत्नेश (ख) हिमालय (ग) स्वगय (घ) उक्त सभी
(ii) भारि बसा हुआ िै:
(क) स्वगय में (ख) हिमालय में (ग) मैदािों में (घ) प्रकृ हि की जो गोद में
(iii) “सींचा हुआ सलोिा’ से क्या िात्पयय िै?
(क) अमृि धाराओं वाली िददयों के बसंचि से सुन्दर (ग) के वल ‘क’
(ख) रत्नेश द्वारा चरणों के बसंचि से सुन्दर (घ) ‘क’ व ‘ख’ दोिो
(iv) भारि देश को संसार का हशरोमहण क्यों किा गया िै?
(क) खेिों की उत्पादकिा की प्रचुरिा के कारण (ख) प्राकृ हिक सौंदयय के कारण
(ग) अपूवय खहिज-संपदा के कारण (घ) उक्त सभी
(v) ‘ददि-राि’ में समास िै-
(क) द्वंद्व (ख) ित्पुरुष (ग) कमयधारय (घ) बहुव्रीहि
उत्तर गद्यांश – 3
1 2 3 4 5
ख घ घ घ क
अपठिि पद्यांश-5
“मि रोक मुझे भयभीि ि कर, मैं सदा कटीली राि चला।
पथ-पथ मेरे पिझारों में िव सुरहभ भरा मधुमास पला।
दिर किाँ र्रा पाएगा यि पगले! जजयर संसार मुझे।
इि लिरों के टकरािे पर, आिा रि-रि कर प्यार मुझे।
(iii) कहव रािों में दकस मिोभाव के साथ आगे बढ़िा िै?
(क) उदासीििा (ख) हिराशा (ग) बेमि (घ) उत्साि
(iv) जीवि को कं टीली राि क्यों किा गया िै?
(क) जीवि की सरलिा के कारण (ग) संघषों से भरा िोिे के कारण
(ख) रािों में हबखरे काँटों के कारण (घ) रास्िे की हवषमिा के कारण
(v) ‘जजयर संसार’ में संसार पद िै:
(क) सवयिाम (ख) हवशेषण (ग) हवशेष्य (घ) इिमें कोई ििीं
उत्तर गद्यांश – 5
1 2 3 4 5
ख घ घ ग ग
उत्तरमाला
1-घ 2-क 3-घ 4-घ 5-ग 6-ग 7-क 8-ख 9-घ 10-क
11-ख 12-ख 13-घ 14-ग 15-घ 16-ख 17-क 18-क 19-घ 20-क
21-ख 22-ग 23-घ 24-ग
2. मीरा
➢ जन्म: सि् 1498, कु िकी गाँव (मारवाि ठरयासि)
➢ मृत्यु: सि् 1546
➢ प्रमुख रचिाएँ:-‘मीरापदावली’, ‘िरसीजी-रो-मािेरो’
पद
मेरे िो हगरधर गोपाल, दूसरो ि कोई
जा के हसर मोर-मुकुट, मेरो पहि सोई
छांहि दयी कु ल की काहि, किा कठरिै कोई?
संिि दढग बैठि-बैठि, लोक लाज खोयी
अंसुवि जल सींहच-सींहच, प्रेम-बेहल बोयी
पाठ्यसामग्री-हिन्दी (आधार) कक्षा:ग्यारिवीं पृष्ठ 27 of 194
अब ि बेहल िै हल गयी, आणंद-िल िोयी
दूध की मथहियाँ बिे प्रेम से हवलोयी
दहध महथ घृि कादढ़ हलयो, र्ाठर दयी छोयी
भगि देहख राजी हुयी, जगि देहख रोयी
दाहस मीरां लाल हगरधर! िारो अब मोिी
बहुहवकल्पी प्रश्न
1. मीरा िे अपिे आराध्य देव की क्या पिचाि बिाई िै?
(क) उसके हसर पर िाज िै (ख) उसके हसर पर मोर मुकुट िै
(ग) उसिे अपिे हसर को झुकाया िै (ग) उसके हसर पर पगिी बँधी हुई िै
2. "छाहि दयी कु ल की काहि, किा कठरिै कोई?" इस पंहक्त से मीरा की कौि-सी भाविा प्रकट िोिी िै?
(क) समाज के प्रहि चुिौिी (ख) हवियभाव
(ग) समाज के सामिे याचिा भाव (घ) समाज से र्रिे का भाव
3. दकसके साथ बैि-बैि कर मीरा िे लोक-लाज को त्याग ददया था?
(क) सास-ससुर (ख) सहखयों (ग) संिों (घ) राजा
4. मीरा िे अपिी प्रेम-बेहल को दकससे सींचा िै?
(क) पािी से (ख) दूध से (ग) अमृि से (घ) आँसुओं से
5. मीरा इस जगि में क्या देखकर प्रसन्न िोिी िै?
(क) सामाहजक बंधि (ख) समाज में मोि-माया
(ग) प्रभु-भहक्त (घ) सगे-संबंधी
उत्तर-
(i) (ii) (iii) (iv) (v)
(ख) (क) (ग) (घ) (ग)
3. भवािीप्रसाद हमश्र
कहविा-घर की याद
पद्यांश-1
“और माँ हबि – पढ़ी मेरी,
दुःख में वि गढ़ी मेरी,
माँ दक हजसकी गोद में हसर,
रख हलया िो दुख ििीं दिर,
माँ दक हजसकी स्नेि – धारा,
का यिाँ िक भी पसारा,
उसे हलखिा ििीं आिा,
जो दक उसका पत्र पािा।
हपिा जी हजिको बुढ़ापा,
एक क्षण भी ििीं व्यापा,
4. हत्रलोचि
कहविा- चंपा काले काले अछछर ििीं चीन्ििी
पद्यांश-1
“चंपा काले काले अछछर ििीं चीन्ििी
मैं जब पढ़िे लगिा हँ वि आ जािी िै
खिी खिी चुपचाप सुिा करिी िै
उसे बिा अचरज िोिा िै:
इि काले चीन्िों से कै से ये सब स्वर
हिकला करिे िैं
चंपा सुन्दर की लिकी िै
सुन्दर ग्वाला िै: गायें-भैंसें रखिा िै
चंपा चौपायों को लेकर
चरवािी करिे जािी िै”
चंपा अछछी िै
चंचल िै
ि ट ख ट भी िै
कभी कभी ऊधम करिी िै
कभी कभी वि कलम चुरा देिी िै
जैसे िैसे उसे ढू ँढ़ कर जब लािा हँ
पािा हँ-अब कागज गायब
परे शाि दिर िो जािा हँ”
(i) चंपा काले काले अछछर ििीं चीन्ििी। इस पंहक्त में ‘काले काले’ शब्द दकस ओर संकेि करिे िैं?
(क) हशक्षा-व्यवस्था के अंिर्वयरोधों की ओर
(ख) उस दारुण यथाथय की ओर जिाँ आर्थयक मजबूठरयों के चलिे घर टूटिे िैं
(ग) क और ख दोिों सिी िैं
(घ) इिमें से कोई ििीं
(ii) चरपा को दकस बाि पर आियय िोिा िै?
(क) लोग पढ़-हलखकर इििे चालाक कै से िो जािे िैं
(ख) काले हचन्िों (अक्षरों) से अलग-अलग स्वर कै से हिकलिे िैं
(ग) कहव िर समय कागज पर क्या हलखिा रििा िै
(घ) गांधी जी पढ़िे-हलखिे की बाि कै से कि सकिे िैं
(iii) चरपा क्या काम करिी िै?
पद्यांश-2
“उस ददि चंपा आई, मैंिे किा दक
चरपा िुम भी पढ़ लो
िारे गाढ़े काम सरे गा
गाँधी बाबा की इछछा िै-
सब जि पढ़िा-हलखिा सीखें
चंपा िे यि किा दक
मैं िो ििीं पढ़ूँगी
िुम िो कििे थे गांधी बाबा अछछे िैं
वे पढ़िे हलखिे की कै से बाि किेंगे
मैं िो ििीं पढ़ूँगी”
(i) कहव िे चरपा से क्या किा?
(क) अिपढ़ रििा अछछा िै (ग) पशु चरािा अछछा िै
(ख) पढ़िा-हलखिा अछछा िै (घ) बिस करिा अछछा िै
(ii) कहव के अिुसार मिात्मा गांधी जी की क्या इछछा थी?
(क) सब लोग आराम से रिें (ग) सब लोग पढ़िा-हलखिा सीखें
(ख) सब लोग खेिी के काम करें (घ) सब चरखा चलािा सीखें
(iii) चरपा िे कहव को क्या जवाब ददया?
(क) वि पढाई ििीं करे गी (ग) उसे हलखिा अछछा लगिा िै
(ख) वि पशुओं को लेकर ििीं जाएगी (घ) वि कलकिा जाएगी
(iv) गांधी बाबा अछछे िैं-यि दकसिे किा?
(क) चंपा िे (ख) कहव िे (ग) चरपा के हपिा िे (घ) चरपा के पहि िे
(v) ‘िारे गाढ़े काम सरे गा’ पंहक्त का अथय िै-
(क) मिोबल बढ़ेगा (ग) िारिे पर काम आएगा
(ख) दकसी भी समय काम हिकल जाएगा (घ) कठििाई के वक्त काम आएगा
उत्तरमाला
(i)-ख (ii)-ग (iii)-क (iv)-क (v)-ख
5. दुष्यंि कु मार
कहविा-गजल
उत्तर-(i) (ख) िर व्यहक्त को उसके िक की सुख-सुहवधाएं हमलेंगी (ii) (ग) हवरोधाभास (iii) (क)
संिोषी प्रवृहत्त (iv) (घ) अहधकार एवं सुख-सुहवधाएं (v) (ख) दरख्ि
पद्यांश-2
वे मुिमइि िैं दक पत्थर हपघल ििीं सकिा,
मैं बेकरार हँ आवाज में असर के हलए।
िेरा हिजाम िै हसल दे जुबाि शायर की,
ये एिहियाि जरूरी िै इस बिर के हलए।
हजएँ िो अपिे बगीचे में गुलमोिर के िले,
मरें िो गैर की गहलयों में गुलमोिर के हलए।
(i) कहव दकस के हलए बेकरार िै?
(क) आवाज को मधुर बिािे के हलए
(ख) अहधकाठरयों को खुश करिे के हलए
(ग) जििा को जगािे के हलए
(घ) सत्ता में बैिे लोगों को सावधाि करिे के हलए
उत्तर- (i) (ग) जििा को जगािे के हलए (ii) (क) कहवयों की जुबाि बंद करिे की (iii) (घ) देश-समाज
(iv) (ख) अपिे अहधकारों की प्राहि के हलए (v) (घ) सत्ता में बैिे लोग
6. अक्क मिादेवी
कहविा- िे भूख मि मचल
“िे भूख! मि मचल
प्यास, ििप मि
िे िींद! मि सिा
क्रोध, मचा मि उथल-पुथल
िे मोि! पाश अपिे ढील
लोभ, मि ललचा
मद! मि कर मदिोश
ईष्याय, जला मि
ओ चराचर! मि चूक अवसर
आई हँ संदश
े लेकर चन्नमहल्लकाजुयि का”
(i) प्रस्िुि वचि में कौि-सा अलंकार िै?
(क) हवभाविा (ख) अहिशयोहक्त (ग) हवरोधाभास (घ) मािवीकरण
(ii) पद्यांश में ‘प्यास’ से क्या िात्पयय िै?
(क) पािी की प्यास (ख) आलस्य (ग) सांसाठरक िृष्णा (घ) क्रोध
(iii) क्रोध से क्या िाहि िोिी िै?
पद्यांश: 2
“और इस अहवश्वास-भरे दौर में
थोिा-सा हवश्वास
थोिी-सी उरमीद
थोिे-से सपिे
आओ, हमलकर बचाएँ
दक इस दौर में भी बचािे को
बहुि कु छ बचा िै
अब भी िमारे पास!”
(i) वियमाि को ‘अहवश्वास-भरा’ क्यों किा गया िै?
(क) प्रत्येक व्यहक्त दूसरे को िगिे की िाक में रििा िै। (ख) ददखावटी सरमाि के कारण
(ग) मािवीय संवेदिाओं के अभाव के कारण (घ) उक्त सभी
(ii) पद्यांश पठरचायक िै-
(क) कवहयत्री की सकारात्मकिा का (ख) आददवासी संस्कृ हि के प्रहि जुिाव का
(ग) सामूहिक प्रयास के मित्त्व का (घ) उक्त सभी को
(iii) ‘बहुि कु छ बचा िै’ से क्या आशय िै?
(क) आददवासी समाज की अछछाइयां (ख) झारखंहर्यों के िकारात्मक पक्ष
(ग) आददवासी लोग (घ) उक्त में से कोई ििीं
(iv) ‘आओ, हमलकर बचाएँ’ में कवहयत्री का आह्वाि िै-
(क) देशवाहसयों से (ख) सरकारों से (ग) आददवासी समाज के लोगों से (घ) देश की िई पीढ़ी से
(v) ‘थोिे-से सपिे’ में ‘सपिे’ प्रिीक िै-
(क) आधुहिकिा के (ख) सिल और सुकूि युक्त जीवि के (ग) संघषय के (घ) कठििाइयों के
उत्तर-
(i) (ii) (iii) (iv) (v)
(घ) (घ) (क) (ग) (ख)
गद्यांश-2
“पंहर्ि अलोपीदीि का लक्ष्मी जी पर अखंर् हवश्वास था। वि किा करिे थे दक संसार का िो कििा िी क्या,
स्वगय में भी लक्ष्मी का िी राज्य िै। उिका यि कििा यथाथय िी था। न्याय और िीहि सब लक्ष्मी के िी हखलौिे
िैं, इन्िें वि जैसे चाििी िैं, िचािी िैं। लेटे िी लेटे गवय से बोले-चलो, िम आिे िैं। यि किकर पंहर्ि जी िे
बिी हिबिंििा से पाि के बीिे लगाकर खाए दिर हलिाि ओढ़े हुए दारोगा के पास आकर बोले-बाबू जी,
आशीवायद कहिए िमसे ऐसा कौि-सा अपराध हुआ दक गाहियाँ रोक दी गई। िम िाह्णों पर िो आपकी
कृ पा-दृहि रििी चाहिए। वंशीधर रुखाई से बोले-सरकारी हुक्म िै।”
(i) पंहर्ि अलोहपद्दीि का दकस पर अखंर् हवश्वास था?
(क) अपिे सेवको पर (ख) दरोगा बंशीधर पर (ग) वकीलों पर (घ) लक्ष्मी जी पर
(ii) स्वगय में दकस का राज्य िै?
(क) भगवाि का (ख) पंहर्ि अलोपीदीि का (ग) दारोगा का (घ) लक्ष्मी जी का
(iii) न्याय और िीहि सब लक्ष्मी के िी हखलौिे िैं, इन्िें वि जैसे चाििी िैं, िचािी िैं। यि दकसका कथि िै?
(क) िवलदार का (ख) दारोगा का (ग) पंहर्ि अलोपीद्दीि का (घ) बंशीधर के हपिा का
गद्यांश-3
“दुहिया सोिी थी, पर दुहिया की जीभ जागिी थी। सवेरे देहखए िो बालक-वृद्ध सबके मुँि से यिी बाि सुिाई
देिी थी। हजसे देहखए, विी पंहर्ि जी के इस व्यविार पर टीका-ठटप्पणी कर रिा था, बिंदा की बौछार िो
रिी थीं. मािो संसार से अब पापी का पाप कट गया। पािी को दूध के िाम से बेचिेवाला ग्वाला, कहल्पि
रोजिामचे बिािे वाले सेि और साहकार, यि सब-के -सब देविाओं की भाँहि गरदिें चला रिे थे। जब दूसरे
ददि पंहर्ि अलोपीदीि अहभयुक्त िोकर कांस्टेबलों के साथ, िाथों में िथकहियाँ, हृदय में ग्लाहि और क्षोभभरे ,
लज्जा से गरदि झुकाए अदालि की िरि चले, िो सारे शिर में िलचल मच गई। मेलों में कदाहचि् आँखें
इििी व्यग्र ि िोिी िोंगी। भीि के मारे छि और दीवार में कोई भेद ि रिा।“
(i) िमक का दरोगा पाि के लेखक कौि िैं?
(क) मिादेवी वमाय (ख) प्रेमचंद (ग) िठरशंकर परसाई (घ) कृ ष्णा सोबिी
(ii) दुहिया सोिी थी मगर दुहिया की ________ जागिी थी –
(क) आँख (ख) काि (ग) जीभ (घ) िाक
(iii) कौि देविाओं की भाँहि गरदिें चला रिे थे।
(क) पािी को दूध के िाम से बेचिेवाला ग्वाला (ग) सेि और साहकार,
(ख) कहल्पि रोजिामचे बिािे वाले बाबू लोग (घ) उपयुयक्त सभी
(iv) भीि के मारे छि और दीवार में कोई भेद ि रिा क्यों?
(क) वंशीधर की िौकरी लग गई थी (ग) पंहर्ि अलोपीदीि की हगरफ्िारी िो गई थी
(ख) वंशीधर की िौकरी चली गई थी (घ) पंहर्ि अलोपीदीि अदालि से बरी िो गए थे
(v) मािो संसार से अब पापी का पाप कट गया दकस घटिा के बारे में किा गया िै?
(क) वंशीधर की िौकरी लगिे के बारे में
(ख) वंशीधर की िौकरी चली जािे के बारे में
(ग) पंहर्ि अलोपीदीि की हगरफ्िारी के बारे में
(घ) पंहर्ि अलोपीदीि के अदालि से बरी िो जािे के बारे में
उत्तर-
प्रश्न संख्या (i) (ii) (iii) (iv) (v)
सिी हवकल्प ख ग घ ग ग
गद्यांश-4
गद्यांश-2
“दिर िेवर चढ़ा िमें घूरकर किा 'िुिकी पापि से ज्यादा मिीि िोिी िै, मिीि। िाँ दकसी ददि हखलाएँग,े
आपको।' एकाएक हमयाँ की आँखों के आगे कु छ कौंध गया। एक लंबी साँस भरी और दकसी गुमशुदा याद को
िाजा करिे को किा उिर गए वे जमािे और गए वे कद्रदाि जो पकािे-खािे की कद्र करिा जाििे थे। हमयाँ
अब क्या रखा िै... हिकाली िंदरू से-हिगली और िजम!”
(i) िुिकी क्या िै?
(क) पापि (ख) सेवइयां (ग) हमिाई (घ) रोटी
(ii) हमयाँ के आगे क्या कौंध गया?
(क) पुरािी याद (ख) पुरािा जमािा (ग) कद्रदाि लोग (घ) उक्त सभी
(iii) 'उिर गए वे जमािे' से क्या अहभप्राय िै?
(क) आिे वाला समय (ख) गुजरा हुआ समय (ग) संघषय का समय (घ) इिमें से कोई ििीं
(iv) हमयाँ को क्या गम िै?
(क) अपिे खािदाि का (ख) अपिे हपिा का (ग) खािे के कद्रदाि ििीं िै (घ) अपिे व्यवसाय का
(v) ‘कद्रदाि’ का क्या अथय िै?
(क) क़द्र(सरमाि) करिे वाले (ख) गवय करिे वाले (ग) ज्यादा खािे वाले (घ) इिमें से कोई ििीं
गद्यांश-2
“आप बहुि धीर-गंभीर प्रहसद्ध थे। उस सारी धीरिा-गंभीरिा को आपिे इस बार कौंहसल में बेकािूिी कािूि
पास करिे और किवोके शि वक्तृ िा देिे समय ददवाला हिकाल ददया। यि ददवाला िो इस देश में हुआ। उधर
हवलायि में आपके बार-बार इस्िीिाा़ देिे की धमकी िे प्रकाश कर ददया दक जि हिल गई िै। अंि में विाँ भी
आपको ददवाहलया िोिा पिा और धीरिा-गंभीरिा के साथ दृढ़िा को भी हिलांजहल देिी पिी। इस देश के
िादकम आपकी िाल पर िाचिे थे, राजा-मिाराजा र्ोरी हिलािे से सामिे िाथ बाँधे िाहजर िोिे थे। आपके
एक इशारे में प्रलय िोिी थी। दकििे िी राजों को मट्टी के हखलौिे की भाँहि आपिे िोि-िोि र्ाला। दकििे
िी मट्टी-काि के हखलौिे आपकी कृ पा के जादू से बिे बिे पदाहधकारी बि गए। आपके इस इशारे में इस देश
की हशक्षा पायमाल िो गई, स्वाधीििा उि गई। बंग देश के हसर पर आरि रखा गया। आि, इििे बिे माइ
लॉर्य का यि दजाय हुआ दक िौजी अिसर उिके इहछछि पद पर हियि ि िो सका और उिको उसी गुस्से के
मारे इस्िीिाा़ दाहखल करिा पिा, वि भी मंजूर िो गया। उिका रखाया एक आदमी िौकर ि रखा, उलटा
उन्िीं को हिकल जािे का हुक्म हमला”
(i) उपयुक्त
य गद्यांश में दकस पर कटाक्ष दकया गया िै?
(क) िाददर शाि पर (ख) अबुलिसि पर (ग) एर्वर्य पंचम पर (घ) लॉर्य कजयि पर
पाठ्यसामग्री-हिन्दी (आधार) कक्षा:ग्यारिवीं पृष्ठ 44 of 194
(ii) लॉर्य कजयि िे इस्िीिा क्यों दाहखल कर ददया?
(क) कजयि की पसंद के व्यहक्त को उिके मिपसंद पद पर हियुक्त ििीं दकया गया।
(ख) हिटेि के शासक के साथ कजयि के संबंध अछछे ििीं थे।
(ग) भारिीय जििा की आंदोलिों से वे परे शाि थे।
(घ) लॉर्य कजयि वापस हिटेि जािा चाििे थे।
(iii) ‘अंि में विाँ भी आपको ददवाहलया िोिा पिा’ पंहक्त का आशय िै-
(क) हिठटश सरकार द्वारा कजयि को ददवाहलया घोहषि कर ददया गया।
(ख) कजयि को पद से िटा ददया गया िथा उसकी सारी शहक्तयाँ हछि ली गईं।
(ग) हिठटश सरकार द्वारा कजयि को पदाविि कर ददया गया।
(घ) लॉर्य कजयि की सारी संपहत्त को हिठटश सरकार िे जब्ि कर हलया।
(iv) ‘आपके एक इशारे में प्रलय िोिी थी।’ इस कथि के माध्यम से दकसकी ओर इशारा दकया गया िै?
(क) मिाराज एर्वर्य की ओर (ख) िाददरशाि की ओर (ग) अबुलिसि की ओर (घ) लॉर्य कजयि की ओर
(v) लॉर्य कजयि के संबध
ं में कौि-सा कथि सिी िै?
(क) उन्िोिे भारिीय हशक्षा व्यवस्था को बबायद दकया (ख) भारिीयों पर बंगाल हवभाजि थोपा
(ग) अिेक राजाओं की गद्दी हछि ली। (घ) उपयुयक्त सभी
उत्तर
(i)-घ (ii)-क (ii)-ख (iv)-घ (v)-घ
गद्यांश-2
“िॉटीकल्चर हर्पाटयमेंट का सेक्रेटरी साहित्य प्रेमी आदमी जाि पििा था। उसिे हलखा था, "आियय
िै, इस समय जब िम ‘पेि लगाओ’ स्कीम ऊँचे स्िर पर चला रिे िैं, िमारे देश में ऐसे सरकारी अिसर मौजूद
िैं जो पेिों को काटिे का सुझाव देिे िैं, और वि भी एक िलदार पेि को, और वि भी जामुि के पेि को,
हजसके िल जििा बिे चाव से खािी िै! िमारा हवभाग दकसी िालि में इस िलदार वृक्ष को काटिे की
इजाजि ििीं दे सकिा।"
"अब क्या दकया जाए? इस पर एक मिचले िे किा, "अगर पेि काटा ििीं जा सकिा, िो इस आदमी
िी को काटकर हिकाल हलया जाए।"
"यि देहखए," उस आदमी िे इशारे से बिाया, "अगर इस आदमी को िीक बीच में से, यािी धि से
काटा जाए िो आधा आदमी इधर से हिकल आएगा, आधा आदमी उधर से बािर आ जाएगा और पेि विीं
का विीं रिेगा।
" मगर इस िरि िो मैं मर जाऊँगा।" दबे हुए आदमी िे आपहत्त प्रकट करिे हुए किा।
"यि भी िीक कििा िै।" एक क्लकय बोला”
(i) िलदार पेि दकस हवभाग के अंिगयि आिे िैं?
(क) बागवािी हवभाग (ख) कृ हष हवभाग (ग) वि हवभाग (घ) उद्योग हवभाग
(ii) ‘इस समय जब िम ‘पेि लगाओ’ स्कीम ऊँचे स्िर पर चला रिे िैं, िमारे देश में ऐसे सरकारी अिसर
मौजूद िैं जो पेिों को काटिे का सुझाव देिे िैं’ कथि दकसका िै?
(क) एग्रीकल्चर हर्पाटयमेंट के सेक्रेटरी का (ग) िॉटीकल्चर हर्पाटयमेंट के सेक्रेटरी का
(ख) िॉरे स्ट हर्पाटयमेंट के सेक्रेटरी का (घ) कल्चरल हर्पाटयमेंट के सेक्रेटरी का
(iii) " मगर इस िरि िो मैं मर जाऊँगा।" यि दकसिे किा?
(क) पेि के िीचे दबे हुए व्यहक्त िे (ग) माली िे
(ख) िॉरे स्ट हर्पाटयमेंट के सेक्रेटरी िे (घ) क्लकय िे
उत्तर-(i) (ख) भारि मािा की जय (ii) (घ) उपयुयक्त सभी (iii) (ग) धरिी (iv) (ख) बिंदस्ु िाि के लोग (v) (ख)
जवािरलाल िेिरू
उत्तर संकेि-
1- ख, 2-ख, 3-ख, 4-ख, 5-ग, 6-घ, 7-घ, 8-घ, 9-घ, 10-घ, 11-घ, 12-ख, 13-ग, 14-घ, 15-
क, 16-ख, 17-ख, 18-घ, 19-ख, 20-ग 21-ख, 22-ग, 23-ख, 24-क, 25-ख, 26-क, 27-ग, 28-
क, 29-क, 30-ग
उत्तर-संकेि :
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10
(घ) (ग) (क) (ग) (घ) (घ) (क) (ख) (घ) (घ)
11 12 13 14 15 16 17 18 19 20
(ग) (ग) (ख) (घ) (घ) (ग) (ग) (ख) (क) (ग)
21 22 23 24 25 26
(घ) (ख) (ग) (घ) (ग) (ख)
3. आलो-आँधाठर-बेबी िालदार
‘आलो-आंधाठर’ पाि लेहखका बेबी िालदार द्वारा हलहखि अपिी आत्मकथा का एक अंश िै। इिका
जन्म जरमू कश्मीर के दकसी स्थाि पर हुआ, जिाँ सेिा की िौकरी में उिके हपिा िैिाि थे। िेरि वषय की आयु
में इिका हववाि दुगुिी उम्र के व्यहक्त से कर ददया गया। इस कारण उन्िें सािवीं कक्षा में पढ़ाई छोििी पिी।
12-13 वषों के बाद पहि की ज्यादहियों से परे शाि िोकर वे िीि बच्चों सहिि पहि का घर छोिकर दुगायपुर
से िरीदाबाद आ गई। कु छ समय बाद वे गुिगाँव चली आईं। इिकी एकमात्र रचिा िै-आलो-आँधाठर जो दक
मूल रूप से बांग्ला भाषा में हलखी गई हजसका हिन्दी में अिुवाद प्रबोध कु मार िे दकया। बेबी इस कथा की
िाहयका भी िै और लेहखका भी। मात्र िेरि वषय की िोिे-िोिे सािवीं की पढ़ाई अधूरी छोि वि एक अधेि
से ब्याि दी जािी िै और जीवि के सबसे संवेदिशील उम्र में िीि बच्चों की माँ बि जािी िै। विी बेबी पहि
की ज्यादहियों को ि बदायश्ि कर शुरू करिी िै एक ऐसी यात्रा जो ि िो उसिे पिािों पर की, ि समुद्रिट
पर और ि िी स्टर्ीरूम में बैिकर।
पाि का सारांश-लेहखका अपिे पहि से अलग दकराए के मकाि में अपिे िीि छोटे बच्चों के साथ रििी
थी। उसे िर समय काम की िलाश रििी थी। वि सभी को अपिे हलए काम ढू ँढ़िे के हलए कििी थी। शाम
को जब वि घर वाहपस आिी िो पिोस की औरिें काम के बारे में पूछिीं। काम ि हमलिे पर वे उसे सांत्विा
देिी थीं। लेहखका की पिचाि सुिील िामक युवक से थी। एक ददि उसिे दकसी मकाि माहलक से लेहखका
को हमलवाया। मकाि माहलक िे आि सौ रुपये मिीिे पर उसे रख हलया और घर की सिाई व खािा बिािे
का काम ददया। उसिे पिले काम कर रिी महिला को िटा ददया। उस महिला िे लेहखका से भला-बरा किा।
लेहखका उस घर में रोज सवेरे आिी िथा दोपिर िक सारा काम खत्म करके चली जािी। घर जाकर बच्चों
को ििलािी व हखलािी। उसे बच्चों के भहवष्य की बचंिा थी। हजस मकाि में वि रििी थी, उसका दकराया
अहधक था। उसिे कम सुहवधाओं वाला िया मकाि ले हलया। यिाँ के लोग उसके अके ले रििे पर िरि-िरि
की बािें बिािे थे। घर का खचय चलािे के हलए वि और काम चाििी थी। वि मकाि माहलक से काम की ियी
जगि ढू ँढ़िे को कििी िै। उसे बच्चों की पढ़ाई, घर के दकराए व लोगों की बािों की भी बचंिा थी। माहलक
सज्जि थे। एक ददि उन्िोंिे लेहखका से पूछा दक वि घर जाकर क्या-क्या करिी िै। लेहखका की बाि सुिकर
उन्िें आियय हुआ। उन्िोंिे स्वयं को ‘िािुश' किकर पुकारिे को किा। वे उसे बेबी कििे थे िथा अपिी बेटी
की िरि माििे थे। उिका सारा पठरवार लेहखका का ख्याल रखिा था। वि पुस्िकों की अलमाठरयों की सिाई
करिे समय पुस्िकों को उत्सुकिा से देखिे लगिी। यि देखकर िािुश िे उसे एक दकिाब पढ़िे के हलए दी।
उत्तर-(i) (क) सुिील िे (ii) (ख) बेबी को बच्चों के पालि-पोषण और दकराया देिे के हलए पैसों की आवश्यकिा
थी। (iii) (घ) बेबी किीं और काम करें (iv) (ग) स्नेि (v) (क) िीि (vi) (घ) सुिील से (vii) (ग) रामकृ ष्ण
(viii) (ख) सािवीं में (ix) (घ) उपयुयक्त सभी (x) (घ) उपयुयक्त सभी (xi) (ख) विाँ के सारे घर िोि ददए गए
थे। (xii) (क) भोला दा िे (xiii) (ग) ददल्ली और कोलकािा में (xiv) (क) अपिी लिकी जैसी (xv) (ख) िीि
(xvi) (घ) अजुयि (xvii) (ग) वि कम बािचीि दकया करिा था। (xviii) (क) सुिीहि से (xix) (ग) वि अपिी
बेटी को लेकर पाकय में आिी थी। (xx) (क) सुिीहि से (xxi) (ख) जेिू (xxii) (ख) उिकी बांग्ला सीखिे की
इछछा ििीं थी। (xxiii) (घ) जेिी की बंधु (xxiv) (ग) आशापूणाय देवी (xxv) (घ) उपयुयक्त सभी (xxvi) (क)
ऐहि फ्रैंक की र्ायरी की िरि (xvii) (क) अपिे बाबा से (xviii) (ख) 'आलो-आँधाठर'-बेबी िालदार (xxix)
(क) बेबी िालदार (xxx) (ग) प्रबोध कु मार
पाठ्यसामग्री-हिन्दी (आधार) कक्षा:ग्यारिवीं पृष्ठ 60 of 194
प्रश्न-5 (1) अप्रत्याहशि हवषयों पर लेखि
िए और अप्रत्याहशि हवषयों पर रचिात्मक लेखि (5 अंक के हलए)
हिदेश और ध्याि रखिे योग्य मुख्य बबंद-ु
● इस प्रश्न के हलए 5 अंक हिधायठरि दकए गए िैं। हजसमें मौहलकिा के हलए 2 अंक, हवषय वस्िु के
हलए 3 अंक और भाषा की शुद्धिा के हलए 1 अंक हिधायठरि िै।
● शब्द सीमा-120 शब्द िै। इििे शब्द की यि सीमा थोिी-बहुि आगे-पीछे कर सकिे िैं, लेदकि बहुि
ज्यादा ििीं। जैसे 120 शब्द सीमा के हलए िम 110 से 130 िक भी हलखेंगे िो गलि ििीं िै। बाि
पूरी और स्पि ढंग से रचिात्मकिा के साथ आ जािी चाहिए।
● अप्रत्याहशि शब्द का अथय िै-अ+प्रहि+आशा+इि = अप्रत्याहशि अथायि् हजसकी आशा ि की गई िो।
अथायि एकदम िया और मौहलक हवषय जो त्वठरि रूप से िमारे सामिे आिा िै, उस हवषय पर िम
दकस प्रकार सृजिात्मकिा के साथ सोच कर हलख सकिे िैं, यि इस प्रश्न का उद्देश्य िै।
● दकसी िए अथवा अप्रत्याहशि हवषय पर कम समय में अपिे हवचारों को संकहलि कर उन्िें सुंदर ढंग
से अहभव्यक्त करिा िी अप्रत्याहशि हवषयों पर लेखि किलािा िै।
● हवषय पर हलखिे से पिले लेखक को अपिे महस्िष्क में उसकी एक उहचि रूपरे खा बिा लेिी चाहिए।
● हवषय से जुिे अन्य िथ्यों की जािकारी िोिा भी आवश्यक िै। सुसंबद्धिा दकसी भी लेखि का
बुहियादी ित्व िोिा िै।
● रचिात्मक लेखि के अन्िगयि आपको दकसी भी प्रकृ हि का कोई भी हवषय ददया जा सकिा िै।
● लेख में आपकी किी गई बािें ि हसिय आपस में जुिी हुई िों, अहपिु उिमें िालमेल भी िो। आपकी
दो बािें एक-दूसरे का खंर्ि करिी हुई ििीं िोिी चाहिए।
● िए िथा अप्रत्याहशि हवषयों के लेखि में आत्मपरक 'मैं' शैली का प्रयोग दकया जा सकिा िै।
● इस शैली के प्रयोग से लेखक के हवचारों और उसके व्यहक्तत्व की झलक प्राि िोिी िै।
पाररपठरक और अप्रत्याहशि हवषयों में अन्िर-पाररपठरक हवषय वे हवषय िोिे िैं जो दकसी मुद्द,े हवचार,
घटिा आदद से जुिे िोिे िैं और अहधकिर सामाहजक और राजिीहिक हवषय िोिे िैं। इसमें आप अपिी
व्यहक्तगि राय को उििी प्राथहमकिा ि देकर सामूहिक हवचार पर जोर देिे िैं जबदक अप्रत्याहशि हवषयों
पर लेखि में आपके अपिे हिजी हवचार िोिे िैं।
हजि हवचारों को कि र्ालिा िमारे हलए एकदम आसाि िोिा िै उन्िें हलखिा चुिौिी िै क्योंदक
आत्महिभयर िोकर हलहखि रूप से अहभव्यक्त करिे का अभ्यास िी ििीं करिे।
अभ्यास के िर मौके को िम रटिे पर हिभयर िोकर गवां बैििें िै। यि बुरी आदि(कु टेव) िै।
अप्रत्याहशि लेखि-अचािक सामिे आए हवषयों पर हलखिा। दकसी दृश्य, हवचार को लेख की शक्ल देिा,
उसे शब्दों के सिारे पन्नों पर हलखिा अप्रत्याहशि लेखि िै।
िर घर हिरं गा
भारि की आजादी के 75 वषय पूणय िोिे पर प्रधािमंत्री श्री िरें द्र मोदी द्वारा 13 से 15 अगस्ि 2022 िक िर
घर राष्ट्रीय ध्वज हिरं गा ििरािे िेिु हवशेष आह्वाि दकया गया। इस अहभयाि के माध्यम से देश के िागठरकों
के ददलों में राष्ट्रीय ध्वज के प्रहि सरमाि की भाविा पैदा कर देशभहक्त की भाविा को बढ़ािा िै। िर घर
हिरं गा अहभयाि का लक्ष्य िै दक प्रत्येक िागठरक देश की रक्षा के हलए िमेशा ित्पर रिे। यि अहभयाि
प्राथयिा पत्र
परीक्षा भवि,
का ख ग
ददिांक:10 िवरबर, 2022
सेवा में,
प्राचायय मिोदय
कें द्र हवद्यालय मंर्ोर,
जोधपुर (राज.)
मिोदय,
सहविय हिवेदि यि िै दक मैं आपके हवद्यालय में कक्षा आि का छात्र हं। कल ददिांक 10 िवरबर, 2022
को हवद्यालय से वापस आिे के बाद मुझे िेज िीव्र ज्वर आ गया। र्ॉक्टर िे मुझे 5 ददि का हवश्राम करिे की
सलाि दी िै। मैं अगले 5 ददिों िक हवद्यालय में अिुपहस्थि रहंगा।
अिः मिोदय से हिवेदि िै दक आप मुझे ददिांक 10-11-2022 से 15/11/2022 िक अवकाश प्रदाि करिे
की कृ पा करें ।
धन्यवाद
(2) छोटी बिि के हववाि िेिु 5 ददिों के अवकाश के हलए प्रधािाचायय को प्राथयिा पत्र हलहखए?
परीक्षा भवि
अबस
ददिांक: 8/9/2022
सेवा में
प्रधािाचायय,
राज उच्च माध्यहमक हवद्यालय
अजमेर रोर्,
जयपुर।
हशकायिी पत्र
(3) िगर हिगम के स्वास्थ्य अहधकारी को अपिे मोिल्ले में गंदगी के हवषय में पत्र
सेवा में,
श्रीमाि् मुख्य स्वास्थ्य अहधकारी,
िगर हिगम,
जोधपुर।
ददिांक : ..............
मिोदय,
उपयुयक्त हवषय के अंिगयि यि दुःख के साथ कििा पि रिा िै दक हपछले कु छ ददिों से िमारे मौिल्ले में चारों
ओर गंदगी का साम्राज्य िै ला हुआ िै, हजसके कारण मौिल्लेवाहसयों का जीिा दूभर िो गया िै। मौिल्ले में
िैं के गए कू िे-कचरे के ढेर पर पशुओं का जमाविा लगा रििा िै। चारों ओर िै ली गंदगी के कारण पूरे मौिल्ले
में महक्खयों और मछछरों का साम्राज्य िै ला िै। हजससे िरि-िरि की बीमाठरयों के िै लिे का र्र बिा रििा
िै।
अिः आपसे िम्र हिवेदि िै दक िमारे मौिल्ले में जल्द से जल्द साि-सिाई करवाई जाए, हजससे मौिल्ले के
लोगों को िरक का जीवि गुजारिे से मुहक्त हमल सके ।
धन्यवाद।
प्राथी
अहमि यादव
मंर्ोर बाग
जोधपुर
(4) क्षेत्र में चोरी की बढ़िी हुई घटिाओं पर स्थािीय समाचार-पत्र के संपादक को पत्र-
ददिांक.................
मिोदय,
उपयुयक्त हवषय के अंिगयि हिवेदि िै दक मैं आपके प्रहिहष्ठि समाचार-पत्र के माध्यम से वठरष्ठ पुहलस
अहधकाठरयों का ध्याि जिकपुरी क्षेत्र में चोरी और लूटपाट की बढ़िी घटिाओं के प्रहि आकृ ि करिा चाििा
हँ। हवगि कु छ माि से िमारे क्षेत्र में असामाहजक ित्त्वों का जमाविा िो गया िै। राहत्रकाल में घर में चोरी के
अलावा रास्िे में ददि-दिािे लूटपाट की घटिाएँ आम िो गई िैं। िर कोई स्वयं को असुरहक्षि मिसूस कर रिा
िै। लिदकयों और महिलाओं का घर से बािर हिकलिा दूभर िो गया िै कोई अपिे घर को सूिा छोिकर जा
ििीं सकिे िै।
अिः आपसे अिुरोध िै दक आप संबंहधि अहधकाठरयों को अपिे समाचार पत्र के माध्यम से इस समस्या पर
ित्काल ध्याि आकर्षयि करवाकर उहचि कारय वाई करवािे की कृ पा करें ।
सधन्यवाद
भवदीय
मिेश वमाय
जिकपुरी
जयपुर-10
मान्यवर,
भवदीय
मुरली व्यास,
लेखक।
संयम क्षेत्र,
आदशय क्षेत्र, अजमेर।
ददिांक…..
(6) पेरोल और र्ीजल की बढिी कीमिों पर बचंिा जाहिर करिे हुए पत्र
मिेश िगर,
जयपुर।
ददिांक:10-11-2022
सेवा में,
संपादक मिोदय,
दैहिक भास्कर,
जयपुर।
मिोदय,
मैं एक लंबे समय से आपके अखबार का पािक हं। आपके अखबार में आम आदमी से जुिे मुद्दों को कािी
गंभीरिा के साथ उिाया जािा िै। बीिे कािी मिीिों से पेरोल और र्ीजल की बढ़िी कीमिों िे आम आदमी
की जेब को खासा प्रभाहवि दकया िै। हजसके चलिे उि पर अहिठरक्त भार पि रिा िै। वियमाि समय में, दिर
चािे वि पेरोल िो या र्ीजल, दोिों की िी कीमिें आसमाि छू रिीं िैं। हजससे िर दकसी का बजट िक
प्रभाहवि हुआ िै।
प्राथी
रमेश चंद्र,
हिवासी पुरािा शिर, जयपुर।
(7) मोिल्ले में देर राि िक लाउर्स्पीकर बजिे के कारण सभासद को हशकायिी पत्र।
सेवा में,
आदरणीय सभासद मिोदय,
गुलाबिगर मोिल्ला,
जयपुर।
मिोदय,
मेरा िाम संजीव हिवारी िै। मैं शास्त्री िगर के गुलाब िगर मोिल्ले का हिवासी हं। मैं इस पत्र के माध्यम से
आपको बिािा चाहंगा दक मेरे घर के सामिे अिावश्यक िौर पर प्रहिददि जोर-जोर से लाउर्स्पीकर बजाया
जा रिे िैं। इि लाउर्स्पीकरों की आवाज से मोिल्ले की समस्ि हिवाहसयों को अत्यहधक परे शाहियों का
सामिा करिा पि रिा िै।
मान्यवर, िम समझिे िैं दक दकसी हवशेष अवसर पर या त्योिार पर लोग अपिी खुशी िथा उत्साि के हलए
लाउर्स्पीकर बजािे िैं लेदकि यि समय िा दकसी त्योिार का िै िा िी दकसी हवशेष अवसर का। परं िु दिर
भी इस समय िमारे घर के सामिे िेज आवाज में लाउर्स्पीकर बजाए जािे िैं। हजसके कारण मोिल्ले में रििे
वाले छात्र-छात्राओं को पढ़िे में परे शािी िोिी िै। घर के आस-पास जो कोबचंग संस्थाि िै उिके बच्चों को
पढ़ािा मुहश्कल िो जािा िै। मोिल्ले के कई हिवाहसयों िे उिसे इस बाि की हशकायि की लेदकि उि कहथि
व्यहक्तयों िे िमारी दकसी परेशािी को ििीं समझा।
अिः िमारा आपसे हविम्र अिुरोध िै दक आप मोिल्ले में अिावश्यक िौर पर बजाए जा रिे िैं लाउर्स्पीकरों
को जल्दी िी बंद करािे के हलए कोई िोस कदम ले।
सधन्यवाद।
संदभय
1. र्ॉ.रहव िगेहिया, सिायक प्राध्यापक, श्री कल्याण कला मिाहवद्यालय, सीकर
2. प्रो० पवि अिलुवाहलया, प्रख्याि अथयशास्त्री, जोधपुर
पाठ्यसामग्री-हिन्दी (आधार) कक्षा:ग्यारिवीं पृष्ठ 78 of 194
मैं हवज्ञाहपि पद के हलए स्वयं को उपयोगी माििा हँ। मैं आपको हवश्वास ददलािा हँ दक पूणय समर्पयि भाव
से काम करूँगा और संस्था की उन्नहि के हलए सिि प्रयास करिा रहँगा।
धन्यवाद सहिि
कखग
सीकर (राज.)
06-11-2022
ध्यािव्य-
1. A4 Sheet जैसा Border (बार्यर) अवश्य बिवाएँ। Box के अंदर िी हलखा जाए।
2. Box के ऊपर स्ववृत्त अवश्य हलखें।
3. अंि में धन्यवाद सहिि िाम और हिहथ अवश्य हलखें।
4. शैक्षहणक योग्यिा में सारणी (िाहलका) अवश्य हलखें।
5. पद की आवश्यकिाओं के अिुरूप शैक्षहणक योग्यिाओं का अध्ययि कर लें।
प्रश्न 1. स्ववृि से आप क्या समझिे िैं? इसके दकििे पक्ष िोिे िैं?
उत्तर-स्ववृि व्यहक्त के पिचाि का एक माध्यम िै। यि दकसी िौकरी, पद आदद के आवेदि के साथ प्रस्िुि
दकया जािा िै हजसमें व्यहक्तगि जािकारी उपलब्ध कराई जािी िै। इसमें आवेदक का जन्म, शैक्षहणक
योग्यिा, कायय-अिुभव आदद सभी समाहिि िोिे िैं। इसके दो पक्ष िोिे िैं-
1. स्ववृि के पिले पक्ष में वि उरमीदवार िोिा िै, हजसको कें द्र में रखकर सूचिाएं संकहलि की जािी िै।
2. स्ववृि के दूसरे पक्ष में हियोक्ता या संस्था िोिी िै, हजसके प्रयोजि को ध्याि में रखकर सूचिाएं एकहत्रि
की जािी िैं।
प्रश्न 2. उरमीदवारों के चयि में स्ववृि दकस प्रकार सिायक िोिा िै?
उत्तर-उरमीदवारों के चयि में स्ववृि की अिम भूहमका िोिी िै। इसके माध्यम से उरमीदवारों की गुणवत्ता
का मूल्यांकि आसािी से दकया जा सकिा िै। व्यहक्त के संहक्षि मूल्यांकि के आधार पर यि पिा लगाया जा
सकिा िै दक वि उस पद के हलए दकििा योग्य िै।
प्रश्न 3. एक अछछे स्ववृि में क्या-क्या हवशेषिाएँ िोिी िै?
उत्तर-एक अछछे स्ववृि की हिम्न हवशेषिाएँ िोिी िैं-
1. स्ववृत्त में सत्यिा और ईमािदारी झलकिी चाहिए अथायि कु छ भी झूि ििीं हलखिा चाहिए।
2. जरूरि से ज़्यादा बिा या बहुि छोटा ििीं िोिा चाहिए।
3.अपिी व्यहक्तगि जािकारी, शैक्षहणक योग्यिा, कायय-अिुभव के संबंध में में सटीक (To the Point)
िथ्यात्मक सूचिाएँ (Factual Information) देिी चाहिए।
4. स्ववृत्त हलखिे समय शुद्धिा एवं स्पििा का ध्याि रखा जािा चाहिए।
प्रश्न 4. स्ववृत्त में अन्य योग्यिाओं के अहिठरक्त कायेत्तर गहिहवहधयों की चचाय करिा क्यों आवश्यक िै?
उत्तर-जब एक िी पद के हलए अिेक आवेदि प्राि िोिे िैं, िब कायेत्तर गहिहवहधयों का मित्त्व बढ़ जािा िै।
हजस उरमीदवार के पास कायेत्तर गहिहवहधयों का अिुभव अहधक िोिा िै,उसके चयि की सरभाविा बढ़
जािी िै। इसहलए स्ववृत्त हलखिे समय काययकुशलिा, कायेत्तर गहिहवहधयों का उल्लेख दकया जािा चाहिए।
प्रश्न 5. स्ववृत्त हिमायण कला में हिपुण िोिा क्यों आवश्यक िै?
शब्दकोश का मित्त्व
वियमाि समय में शब्दकोश का अत्यन्ि मित्त्व िै। इसके माध्यम से िमें अिेक शब्दों के अथय, सरलिा से ज्ञाि
िो जािे िैं। साथ िी ये िमें दकसी भी शब्द के हवषय में सरपूणय जािकारी प्रदाि करिे िैं। इसका सबसे अहधक
मित्त्व यि िै दक सभी शब्द िमें एक िी कोश (पुस्िक) में हमल जािे िैं और िमें जगि-जगि ििीं भटकिा
पििा।
मित्वपूणय प्रश्न
1. शब्दकोश क्या िै?
2. मीरा
✓ जन्म: सि् 1498, कु िकी गाँव (मारवाि ठरयासि) मृत्यु: सि् 1546
✓ प्रमुख रचिाएँ:-‘मीरापदावली’, ‘िरसीजी-रो-मािेरो’
✓ साहिहत्यक हवशेषिाएँ:
मीरा सगुण धारा की मित्वपूणय भक्त कवहयत्री थीं। कृ ष्ण की उपाहसका िोिे के कारण उिकी कहविा
में सगुण भहक्त मुख्य रूप से मौजूद िै, लेदकि हिगुयण भहक्त का प्रभाव भी हमलिा िै। संि कहव रै दास उिके
गुरु मािे जािे िैं। बचपि से िी उिके मि में कृ ष्ण-भहक्त की भाविा जन्म ले चुकी थी। इसहलए वे कृ ष्ण को
िी अपिा आराध्य और पहि माििी रिीं।
मीरा िे देश में दूर-दूर िक यात्राएँ कीं। हचत्तौि राजघरािे में अिेक कि उिािे के बाद मीरा वापस
मेििा आ गई। यिाँ से उन्िोंिे कृ ष्ण की लीला भूहम वृंदावि की यात्रा की। जीवि के अंहिम ददिों में वे द्वारका
चली गई। मािा जािा िै दक विीं रणछोि दास जी की मंददर की मूर्िय में वे समाहिि िो गई।
उन्िोंिे लोकलाज और कु ल की मयायदा के िाम पर लगाए गए सामाहजक और वैचाठरक बंधिों का
िमेशा हवरोध दकया। पदाय प्रथा का भी पालि ििीं दकया िथा मंददर में सावयजहिक रूप से िाचिे-गािे में
कभी हिचक मिसूस ििीं की। मीरा सत्संग (मिापुरुषों के साथ संवाद) को ज्ञाि प्राहि का माध्यम माििी थीं
पाठ्यसामग्री-हिन्दी (आधार) कक्षा:ग्यारिवीं पृष्ठ 86 of 194
और ज्ञाि को मुहक्त का साधि। बिंदा से वे कभी हवचहलि ििीं हुई। वे उस युग के रूदढ़ग्रस्ि समाज में स्त्री-
मुहक्त की आवाज बिकर उभरी।
भाषा-शैली-मीरा की कहविा में प्रेम की गंभीर अहभव्यंजिा िै। उसमें हवरि की वेदिा िै और हमलि का
उल्लास भी। इिकी कहविा में सादगी व सरलिा िै। इन्िोंिे मुक्तक गेय पदों की रचिा की। उिके पद लोक व
शास्त्रीय संगीि दोिों क्षेत्रों में आज भी लोकहप्रय िैं। इिकी भाषा मूलि: राजस्थािी िै िथा किीं-किीं
िजभाषा का प्रभाव िै। कृ ष्ण के प्रेम की दीवािी मीरा पर सूदियों के प्रभाव को भी देखा जा सकिा िै। मीरा
की कहविा के मूल में ददय िै।
पाि का सारांश-पिले पद में मीरा िे कृ ष्ण के प्रहि अपिी अिन्यिा व्यक्त की िै। वि भहक्त में लगे लोगों को
देखकर खुश िोिी िै िथा व्यथय के कायों में व्यस्ि लोगों को देखकर दुखी िोिी िै। वे कििी िैं दक मोर
मुकुटधारी हगठरधर कृ ष्ण िी उसके स्वामी िैं। कृ ष्ण-भहक्त में उसिे अपिे कु ल की मयायदा भी भुला दी िै। संिों
के पास बैिकर उसिे लोकलाज खो दी िै। आँसुओं से सींचकर उसिे कृ ष्ण प्रेम रूपी बेल बोयी िै। अब इसमें
आिंद के िल लगिे लगे िैं। उसिे दिी से घी हिकालकर छाछ छोि ददया। संसार की लोलुपिा देखकर मीरा
रो पििी िैं और कृ ष्ण से अपिे उद्धार के हलए प्राथयिा करिी िैं। प्रस्िुि पद िरोत्तम दास स्वामी द्वारा
संकहलि-संपाददि मीराँ मुक्तावली से िैं।
प्रश्न 1: मीरा कृ ष्ण की उपासिा दकस रूप में करिी िैं? वि रूप कै सा िै?
उत्तर-मीरा कृ ष्ण की उपासिा पहि के रूप में करिी िैं। उसका रूप मि मोििे वाला िै। वे पवयि को धारण
करिे वाले िैं। उिके हसर पर मोरपंखी मुकुट िै। इस रूप को अपिा मािकर वे सारे संसार से हवमुख िो गई
िैं।
प्रश्न 2: भाव व हशल्प-सौंदयय स्पि कीहजए-
(क) अंसुवि जल सींहच-सीहच, प्रेम-बेहल बोयी
अब ि बेहल िै हल गई आणंद-िल िोयी
(ख) दूध की मथहियाँ बिे प्रेम से हवलोयी
दहध महथ घृि कादढ़ हलयो, र्ाठर दयी छोयी
उत्तर-(क) भाव-सौंदयय : इस पद में भहक्त की चरम सीमा िै। हवरि के आँसुओं से मीरा िे कृ ष्ण-प्रेम की बेल
बोयी िै। अब यि बेल बिी िो गई िै और आिंद-रूपी िल हमलिे का समय आ गया िै।
हशल्प-सौंदयय:
1. ‘सींहच-सींहच’ में पुिरुहक्तप्रकाश अलंकार िै।
2. रूपक अलंकार िै-प्रेम-बेहल, आणंद-िल, अंसुवि जल
3. राजस्थािी हमहश्रि िजभाषा िै।
4. अिुप्रास अलंकार िै-बेहल बोयी।
5. संगीिात्मकिा िै।
(ख) भाव-सौंदयय: इि काव्य पंहक्तयों में कवहयत्री िे दूध की मथािी से भहक्त रूपी घी हिकाल हलया िथा
सांसाठरक सुखों को छाछ के समाि छोि ददया। इस प्रकार उन्िोंिे भहक्त की महिमा को व्यक्त दकया िै।
हशल्प-सौंदयय:
1. अन्योहक्त अलंकार िै।
2. राजस्थािी हमहश्रि िजभाषा िै।
3. प्रिीकात्मकिा िै-‘घी’ भहक्त का िथा ‘छाछ” सांसाठरकिा का प्रिीक िै।
4. दहध, घृि आदद ित्सम शब्द िैं।
5. संगीिात्मकिा िै।
3. घर की याद-भवािीप्रसाद हमश्र
जीवि पठरचय-जन्म 1913 ई. से मध्य प्रदेश के िोशंगाबाद हजले के ठटगठरया गाँव में। मृत्यु-सि् 1985 में।
पुरस्कार-इन्िें साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासि का हशखर सरमाि, ददल्ली प्रशासि का गाहलब पुरस्कार
से सरमाहिि दकया गया। इिकी साहित्य व समाज सेवा के मद्देिजर भारि सरकार िे इन्िें पद्मश्री से अलंकृि
दकया।
प्रमुख रचिाएँ-सिपुिा के जंगल, सन्नाटा, गीििरोश, चदकि िै दुख, बुिी हुई रस्सी, खुशबू के हशलालेख,
अिाम िुम आिे िो, इदं ि मम् आदद।
काव्यगि हवशेषिाएँ-भवािी प्रसाद हमश्र के साहित्य में सिजिा सवयत्र हवद्यमाि िै। साहित्य और राष्ट्रीय
आंदोलि में इिकी भागीदारी मित्वपूणय िै। गाँधीवाद में इिका अखंर् हवश्वास था। इन्िोंिे गांधी वांगमय के
बिंदी खंर्ों का संपादि कर कहविा और गांधी जी के बीच सेिु का काम दकया। इिकी कहविा बिंदी की सिज
लय की कहविा िै। इस सिजिा का संबंध गांधी के चरखे की लय से भी जुििा िै इसहलए इन्िें कहविा का
गाँधी भी किा गया िै। इिमें बोलचाल के गद्यात्मक से लगिे वाक्य हवन्यास को िी कहविा में बदल देिे की
अद्भुि क्षमिा िै। इसी कारण इिकी कहविा सिज और लोक के करीब िै।
सारांश-इस कहविा में घर के सदस्यों की आत्मीयिा का मार्मयक हचत्रण दकया गया िै। कहव को जेल प्रवास
के दौराि हवस्थापि की पीिा सालिी िै। कहव के स्मृहि-संसार में उसके पठरजि एकएक कर शाहमल िोिे
चले जािे िैं। घर की अवधारणा की साथयक और मार्मयक याद कहविा की कें द्रीय संवेदिा िै। वि घर के सभी
सदस्यों को याद करिा िै। उसे अपिे भाइयों व बििों की याद आिी िै। कहव को अपिी अिपढ़, व्याकु ल,
परं िु स्नेिमयी माँ की याद आिी िै।
उत्तर-कहव िे इस शब्द का लाक्षहणक प्रयोग दकया िै। पिली बार के प्रयोग का अथय िै दक वि के वल घर पर
िी ििीं िै। दूसरे प्रयोग का अथय िै दक वि घर से दूर रििे के हलए हववश िै। िीसरा प्रयोग उसकी लाचारी
जीवि पठरचय-जन्म उत्तर प्रदेश के सुल्िािपुर हजले के हचरािी पट्टी में सि् 1917 में।मृत्यु-9 ददसंबर, 2007
में।
इिका मूल िाम वासुदव े बसंि था। ये बिंदी साहित्य में प्रगहिशील काव्यधारा के प्रमुख कहव के रूप में प्रहिहष्ठि
रिे। इन्िोंिे गद्य और पद्म दोिों में साहित्य रचिा की। इिकी साहिहत्यक उपलहब्धयों के आधार पर इन्िें
साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृ ि दकया गया। उत्तर प्रदेश सरकार िे इन्िें मिात्मा गाँधी पुरस्कार से सरमाहिि
दकया। शलाका सरमाि भी इिकी मित्वपूणय उपलहब्ध िै।
रचिाएँ-धरिी. गुलाब और बुलबुल, ददगंि, िाप के िाये हुए ददि, शब्द, उस जिपद का कहव हँ, अरघाि,
िुरिें सौंपिा हँ, चैिी, अमोला, मेरा घर, जीिे की कला (काव्य) ; देशकाल, रोजिामचा, काव्य और अथयबोध,
मुहक्तबोध की कहविाएँ (गद्य) ; इसके अलावा बिंदी के अिेक कोशों के हिमायण में मित्त्वपूणय योगदाि।
प्रश्न-1 पथेर पांचाली दिल्म की शूटटंग का काम ढाई साल िक क्यों चला?
उत्तर-‘पथेर पांचाली' दिल्म की शूटटंग का काम ढाई साल िक चला। इसके कई कारण थे-लेखक के पास
पैसों का अभाव था। पैसे इकट्ठे िोिे पर िी वि शूटटंग करिा था। वि एक हवज्ञापि कं पिी में काम करिा
था। इसहलए काम से िु सयि िोिे पर िी लेखक िथा अन्य कलाकार दिल्म की शूटटंग का काम करिे थे।
पात्रों के मर जािे एवं िकिीकी हपछिेपि के कारण भी पात्र, स्थाि, दृश्य आदद की समस्याएँ आ जािी थीं।
प्रश्न-2 अब अगर िम उस जगि बाकी आधे सीि की शूटटंग करिे, िो पिले आधे सीि के साथ उसका मेल
कै से बैििा? उसमें से 'कं ठटन्युइटी' िदारद िो जािी-इस कथि के पीछे क्या भाव िै?
उत्तर-इसके पीछे भाव यि िै दक कोई भी दिल्म िमें िभी प्रभाहवि कर पािी िै जब उसमें हिरंिरिा िो।
यदद एक दृश्य में िी एकरूपिा ििीं िोिी िो दिल्म कै से चल पािी। दशयक भ्रहमि िो जािा िै। ‘पथेर
पांचाली’ दिल्म में काशिू लों के साथ शूटटंग पूरी करिी थी, परं िु एक सिाि के अंिराल में पशु उन्िें खा
गए। अि: उसी पृष्ठभूहम में दृश्य हचहत्रि करिे के हलए एक वषय िक इंिजार करिा पिा। यदद यि आधा
दृश्य काशिू लों के हबिा हचहत्रि दकया जािा िो दृश्य में हिरं िरिा ििीं बि पािी।
प्रश्न-3 दकि दो दृश्यों में दशयक यि पिचाि ििीं पािे दक उिकी शूटटंग में कोई िरकीब अपिाई गई िै?
उत्तर-प्रथम दृश्य-इस दृश्य में 'भूलो' िामक कु त्ते को अपू की माँ द्वारा गमले में र्ाले गए भाि को खािे हुए
हचहत्रि करिा था, परं िु सूयय के अस्ि िोिे िथा पैसे खत्म िोिे के कारण यि दृश्य हचहत्रि ि िो सका। छि
मिीिे बाद लेखक पुि: उस स्थाि पर गया िब िक उस कु त्ते की मौि िो चुकी थी। कािी प्रयास के बाद
उससे हमलिा-जुलिा कु त्ता हमला और उसी से भाि खािे हुए दृश्य को दिल्माया गया। यि दृश्य इििा
स्वाभाहवक था दक कोई भी दशयक उसे पिचाि ििीं पाया। दूसरा दृश्य-इस दृश्य में श्रीहिवास िामक व्यहक्त
हमिाई वाले की भूहमका हिभा रिा था। बीच में शूटटंग रोकिी पिी। दोबारा उस स्थाि पर जािे से पिा
चला दक उस व्यहक्त का देिांि िो गया िै, दिर लेखक िे उससे हमलिे-जुलिे व्यहक्त को लेकर बाकी दृश्य
दिल्माया। पिला श्रीहिवास बाँस वि से बािर आिा िै और दूसरा श्रीहिवास कै मरे की ओर पीि करके
मुखजी के घर के गेट के अंदर जािा िै। इस प्रकार इस दृश्य में दशयक अलग-अलग कलाकारों की पिचाि
ििीं पािे।
प्रश्न-4 'भूलो' की जगि दूसरा कु त्ता क्यों लाया गया? उसिे दिल्म के दकस दृश्य को पूरा दकया?
उत्तर-भूलो की मृत्यु िो गई थी, इस कारण उससे हमलिा-जुलिा कु त्ता लाया गया। दिल्म का दृश्य इस
प्रकार था दक अपू की माँ उसे भाि हखला रिी थी। अपू िीर-कमाि से खेलिे के हलए उिावला िै। भाि
खािे-खािे वि िीर छोििा िै िथा उसे लािे के हलए भाग जािा िै। माँ भी उसके पीछे दौििी िै। भूलो
कु त्ता विीं खिा सब कछ देख रिा िै। उसका ध्याि भाि की थाली की ओर िै। यिाँ िक का दृश्य पिले कु त्ते
• रचिाएँ-
• किािी-संग्रि- कोसी का घटवार, साथ के लोग, दाज्यू, िलवािा, िौरं गी बीमार िै।
• शब्दहचत्र संग्रि- एक पेि की याद ।
सारांश-इस किािी में समाज के जाहिगि हवभाजि पर कई कोणों से ठटप्पणी की गई िै। यि किािी लेखक
के लेखि में अथय की गिराई को दशायिी िै। इस पूरी किािी में लेखक की कोई मुखर ठटप्पणी ििीं िै। इसमें
एक मेधावी, ककं िु हिधयि िािमण युवक मोिि दकि पठरहस्थहियों के चलिे उस मिोदशा िक पहुँचिा िै,
जिाँ उसके हलए जािीय अहभमाि बेमािी िो जािा िै। सामाहजक हवहध-हिषेधों को िाक पर रखकर वि
धिराम लोिार के आिर पर बैििा िी ििीं, उसके काम में भी अपिी कु शलिा ददखािा िै। मोिि का व्यहक्तत्व
जाहिगि आधार पर हिर्मयि झूिे भाईचारे की जगि मेिििकशों के सच्चे भाईचारे को प्रस्िाहवि करिा प्रिीि
िोिा िै मािो लोिा गलकर िया आकार ले रिा िो।
मोिि के हपिा वंशीधर िे जीविभर पुरोहििी की। अब वृद्धावस्था में उिसे कठिि श्रम व व्रि-
उपवास ििीं िोिा। उन्िें चंद्रदत्त के यिाँ रुद्री पाि करिे जािा था, परंिु जािे की िहबयि ििीं िै। मोिि
उिका आशय समझ गया, लेदकि हपिा का अिुष्ठाि कर पािे में वि कु शल ििीं िै। हपिा का भार िलका करिे
के हलए वि खेिों की ओर चला, लेदकि िँसुवे की धार कुं द िो चुकी थी। उसे अपिे दोस्ि धिराम की याद आ
गई। वि धिराम लोिार की दुकाि पर धार लगवािे पहुँचा।,
धिराम उसका सिपािी था। दोिों बचपि की यादों में खो गए। मोिि िे मास्टर हत्रलोक बसंि के
बारे में पूछा। धिराम िे बिाया दक वे हपछले साल िी गुजरे थे। दोिों िँस-िँसकर उिकी बािें करिे लगे।
पाठ्यसामग्री-हिन्दी (आधार) कक्षा:ग्यारिवीं पृष्ठ 110 of 194
मोिि पढ़ाई व गायि में हिपुण था। वि मास्टर का चिेिा हशष्य था और उसे पूरे स्कू ल का मॉिीटर बिा
रखा था। वे उसे कमजोर बच्चों को दंर् देिे का भी अहधकार देिे थे। धिराम िे भी मोिि से मास्टर के आदेश
पर र्ंर्े खाए थे। धिराम उसके प्रहि स्नेि व आदरभाव रखिा था, क्योंदक जाहिगि आधार की िीििा उसके
मि में बैिा दी गई थी। उसिे मोिि को कभी अपिा प्रहिद्वंद्वी ििीं समझा।
धिराम गाँव के खेहििर या मजदूर पठरवारों के लिकों की िरि िीसरे दजे िक िी पढ़ पाया। मास्टर
जी उसका हवशेष ध्याि रखिे थे। धिराम को िेरि का पिािा कभी याद ििीं हुआ। इसकी वजि से उसकी
हपटाई िोिी। मास्टर जी का हियम था दक सजा पािे वाले को अपिे हलए िहथयार भी जुटािा िोिा था।
धिराम र्र या मंदबुद्ध िोिे के कारण िेरि का पिािा ििीं सुिा पाया। मास्टर जी िे व्यंग्य दकया-'िेरे ददमाग
में िो लोिा भरा िै रे । हवद्या का िाप किाँ लगेगा इसमें?”
इििा किकर उन्िोंिे थैले से पाँच-छि दराहियाँ हिकालकर धिराम को धार लगा लािे के हलए
पकिा दी। िालाँदक धिराम के हपिा िे उसे िथौिे से लेकर घि चलािे की हवद्या हसखा दी। हवद्या सीखिे के
दौराि मास्टर हत्रलोक बसंि उसे अपिी पसंद का बेंि चुििे की छू ट देिे थे, परंिु गंगाराम इसका चुिाव स्वयं
करिे थे। एक ददि गंगाराम अचािक चल बसे। धिराम िे सिज भाव से उिकी हवरासि सँभाल ली।
इधर मोिि िे छात्रवृहत्त पाई। इससे उसके हपिा वंशीधर हिवारी उसे बिा आदमी बिािे का स्वप्न
देखिे लगे। पैिृक धंधे िे उन्िें हिराश कर ददया था। वे कभी पठरवार का पूरा पेट ििीं भर पाए। अि: उन्िोंिे
गाँव से चार मील दूर स्कू ल में उसे भेज ददया। शाम को थकामाँदा मोिि घर लौटिा िो हपिा पुराण कथाओं
से उसे उत्साहिि करिे की कोहशश करिे। वषाय के ददिों में मोिि िदी पार गाँव के यजमाि के घर रििा था।
एक ददि िदी में पािी कम था िथा मोिि घहसयारों के साथ िदी पार कर घर आ रिा था। पिािों पर भारी
वषाय के कारण अचािक िदी में पािी बढ़ गया। दकसी िरि वे घर पहुँचे इस घटिा के बाद वंशीधर घबरा
गए और दिर मोिि को स्कू ल ि भेजा।
उन्िीं ददिों हबरादरी का एक संपन्न पठरवार का युवक रमेश लखिऊ से गाँव आया हुआ था। उससे
वंशीधर िे मोिि की पढ़ाई के संबंध में अपिी बचंिा व्यक्त की िो वि उसे अपिे साथ लखिऊ ले जािे को
िैयार िो गया। उसके घर में एक प्राणी बढ़िे से कोई अंिर ििीं पििा। वंशीधर को रमेश के रूप में भगवाि
हमल गया। मोिि रमेश के साथ लखिऊ पहुँचा। यिाँ से बजंदगी का िया अध्याय शुरू हुआ। घर की महिलाओं
के साथ-साथ उसिे गली की सभी औरिों के घर का काम करिा शुरू कर ददया। रमेश बिा बाबू था। वि
मोिि को घरे लू िौकर से अहधक िैहसयि ििीं देिा था। मोिि भी यि बाि समझिा था। कि सुिकर उसे
समीप के सामान्य स्कू ल में दाहखला करा ददया गया। कामों के बोझ व िए वािावरण के कारण वि अपिी
कोई पिचाि ििीं बिा पाया। गर्मययों की छु ट्टी में भी वि िभी घर जा पािा जब रमेश या उसके घर का कोई
आदमी गाँव जा रिा िोिा। उसे अगले दरजे की िैयारी के िाम पर शिर में रोक हलया जािा।
मोिि िे पठरहस्थहियों से समझौिा कर हलया था। वि घर वालों को असहलयि बिाकर दुखी ििीं
करिा चाििा था। आिवीं कक्षा पास करिे के बाद उसे आगे पढ़िे के हलए रमेश का पठरवार उत्सुक ििीं था।
बेरोजगारी का िकय देकर उसका िकिीकी स्कू ल में दाहखल करा ददया गया। वि पिले की िरि घर व स्कू ल
के काम में व्यस्ि रििा। र्ेढ़-दो वषय के बाद उसे कारखािों के चक्कर काटिे पिे। इधर वंशीधर को अपिे बेटे
के बिे अिसर बििे की उरमीद थी। जब उसे वास्िहवकिा का पिा चला िो उसे गिरा दुख हुआ। धिराम िे
भी उससे पूछा िो उसिे झूि बोल ददया। धिराम िे उन्िें यिी किा-मोिि लला बचपि से िी बिे बुहद्धमाि
थे।
इस िरि मोिि और धिराम जीवि के कई प्रसंगों पर बािें करिे रिे। धिराम िे िँसुवे के िाल को
बेंि से हिकालकर िपाया, दिर उसे धार लगा दी। आमिौर पर िािमण टोले के लोगों का हशल्पकार टोले में
उििा बैििा ििीं िोिा था। काम-काज के हसलहसले में वे खिे-खिे बािचीि हिपटा ली जािी थी। िािमण
टोले के लोगों को बैििे के हलए कििा भी उिकी मयायदा के हवरुद्ध समझा जािा था। मोिि धिराम की
काययशाला में बैिकर उसके काम को देखिे लगा।
7. रजिी-मन्नू भंर्ारी
• जीवि पठरचय- मन्नू भंर्ारी का जन्म 1931 ई. में मध्यप्रदेश के भािपुरा में हुआ। इिकी आरं हभक
हशक्षा अजमेर में हुई।
• किािी-संग्रि- एक प्लेट सैलाब, मैं िार गई, िीि हिगािों की एक िस्वीर, यिी सच िै, हत्रशंकु,
आँखों देखा झूि।
• उपन्यास- आपका बंटी, मिाभोज, स्वामी, एक इंच मुस्काि (राजेंद्र यादव के साथ)|
• पटकथाएँ- रजिी, हिमयला स्वामी, दपयण।
पाि का सार-ियी किािी आंदोलि में जो िया मोि आया. उसमें मन्नू भंर्ारी का हवशेष योगदाि रिा। उिकी
किाहियों में किीं पाठरवाठरक जीवि, किी िारी-जीवि और किीं समाज के हवहभन्न वगों के जीवि की
हवसंगहियाँ हवशेष आत्मीय अंदाज में अहभव्यक्त हुई िैं। चािे किािी िो या उपन्यास या दिर पटकथा-सभी
में मन्नू जी िे आक्रोश, व्यंग्य एवं संवेदिा को मिोवैज्ञाहिक रचिात्मक आधार ददया िै।
प्रस्िुि पाि 'रजिी' मन्नू भंर्ारी द्वारा हलहखि बहुचर्चयि टेलीहवजि धारावाहिक 'रजिी' की एक किी िै,
हजसमें जुझारू, स्त्री-पात्र एवं सूत्रधार रजिी हशक्षा की समस्या से जूझिी िजर आिी िै।
पिला दृश्य (लीला का घर)
रजिी लीला के घर जािी िै िथा उससे बाजार चलिे को कििी िै। लीला उसे बिािी िै दक आज अहमि का
ठरजल्ट आ रिा िै। रजिी उसे हमिाई िैयार रखिे को कििी िै, क्योंदक अहमि बहुि िोहशयार लिका िै।
अहमि के हलए भी रजिी आंटी 'िीरो' िैं। िभी अहमि स्कू ल से आिा िै। उसका चेिरा उिरा हुआ िै। वि
ठरपोटय कार्य माँ की िरि िें किे हुए कििा िै दक मैंिे पिले िी गहणि में ट्यूशि लगवािे को किा था। ट्यूशि
ि करिे की वजि में उसे के वल 72 अंक िी हमले। लीला कििी िै दक िुमिे िो सारे सवाल िीक दकए थे। िुरिें
पंचािवे िंबर जरूर हमलिे चाहिए थे। रजिी कार्य देखिी िै. दूसरे हवषयों में 86, 80, 88, 82, 90 अंक
हमले थे। सबसे कम गहणि में िी हमले थे। अहमि गुस्से व दुःख से कििा िै दक सर, बार-बार ट्यूशि करिे के
िथा ि करिे पर पठरणाम भुगििे के हलए िैयार रििे की चेिाविी देिे थे। रजिी अहमि को िसल्ली देिी िै
िथा सारी बािों की जाँच करिी िै। उसे पिा चलिा िै दक हमस्टर पािक उसे गहणि पढ़ािे िैं और अपिे िर
बच्चे को ट्यूशि लेिे के हलए कििे िैं। अहमि िे िाि ईयरली में हछयािबे िंबर पाए थो अध्यापक िे दिर भी
उससे ट्यूशि रखिे का आग्रि दकया। रजिी अहमि को समझािी िै दक उसे अध्यापक से लििा चाहिए। यि
सारी बदमाशी उसकी िै। रजिी अहमि से कििी िै दक वि कल उसके स्कू ल जाकर सर से हमलेगी। अहमि
र्रकर उन्िें जािे से रोकिा िै। रजिी उसे र्ाँटिी िै िथा अगले ददि स्कू ल जािे का संकल्प लेिी िै।
दूसरा दृश्य (िेर्मास्टर का कमरा)
रजिी अहमि के स्कू ल के िेर्मास्टर से हमलिे पहुँची। उसिे अहमि सक्सेिा की गहणि की कॉपी देखिे की
अिुमहि माँगी, िो िेर्मास्टर िे वार्षयक परीक्षा की कॉहपयाँ ददखािे में असमथयिा ददखाई। रजिी कििी िै
दक अहमि िे मैथ्स में पूरा पेपर िीक दकया था, परं िु उसे के वल बित्तर अंक हमले िैं। वि देखिा चाििी िै दक
गलिी दकसकी िै। िेर्मास्टर दिर भी कॉपी ि ददखािे पर अिा रििा िै और अहमि को दोषी बिािा िै।
रजिी कििी िै दक अहमि के हपछले ठरजल्ट बहुि बदढ़या िैं। इस बार उसके िंबर दकस बाि के हलए काटे
गए। िेर्मास्टर जब हियमों की दुिाई देिे िैं िो रजिी व्यंग्य करिी िै दक यिाँ िोहशयार बच्चों को भी ट्यूशि
लेिे के हलए मजबूर दकया जािा िै। िेर्मास्टर ट्यूशि को टीचसय व स्टूर्ट्ें स का आपसी मामला बिािा िै।
रजिी उसे कु सी छोििे के हलए कििी िै िादक ट्यूशि के काले धंधे को रोका जा सके । िेर्मास्टर आग बबूला
िोकर रजिी को विाँ से चले जािे को कििा िै।
िीसरा दृश्य (रजिी का घर)
शाम के समय रजिी का पहि घर आिा िै। वि उसके हलए चाय लािी िै, दिर उसे अपिे काम के बारे में
बिािी िै। इस पर उसका पहि रहव उसे समझािा िै दक टीचर ट्यूशि करें या धंधा। िुरिें क्या परे शािी िै।
साहित्य का जीवि के साथ गिरा संबंध िोिा िै। साहित्यकार अपिी पैिी दृहि से
देखिा िै और संवेदिशील मि से उसको अहभव्यक्त करिा िै। चारों ओर देखे गए
सत्य और भोगे गए यथाथय को कभी कल्पिा के रं ग, कभी ज्यों का त्यों पािको के
सामिे प्रस्िुि कर देिा िै। साहित्यकार में सौन्दयय को देखिे और परखिे की अद्भुि
शहक्त िोिी िै। मिोरम दृश्यों के सौन्दयय और मुग्ध कर देिे वाले स्वरों की मधुरिा से
वि अके ले िी आिंददि ििीं िोिा बहल्क वि इससे दूसरों को भी आिंदमि करिे के
हलए आिुर रििा िै
साहित्यकार जब समाज को अपिे मि की बाि सुिािा िै िो साहित्यकार और समाज
का संबंध स्पि ददखाई पििा िै। समाज की रूदढ़यों और हवर्ंबिाओं को उजागर कर
वि जिमािस को जागृि करिा िै। उन्िें बिािा िै की जो कु छ पुरािा िै, वि सोिा
िी िो यि जरूरी ििीं िै। िमें जकििे वाली पीछे धके लिे वाली रूदढ़यों से छु टकारा
पािा िी िोगा। इस प्रकार साहित्यकार समाज का पथ-प्रदशयक भी िै। यि भी सत्य
िै की अिेक रचिाएँ समाज में क्रांहि का आधार भी बिी िै। इसहलए साहित्य को
के वल मिोरं जि की वस्िु समझिा अपिी आँखों पर पट्टी बांधकर सूरज को िकारिा
िै।
i साहिहत्यक अहभव्यहक्त दकसका पठरणाम िै? 1
(क) संवेदिशील मि,पैिी दृहि (ख) साहित्यकार
(ग) गिरा संबंध (घ) मिोरम दृश्य
ii साहित्य और जीवि के साथ कै सा संबध
ं िोिा िै? 1
(क) दोिों अलग-अलग िै (ख) दोिों में कु छ समाििा िै
(ग) दोिों एक दूसरे से जुिे िै (घ) इिमे से कोई ििीं
iii भोगे गए यथाथय का क्या अथय िै? 1
(क) दूसरों का दुख (ख) अपिे दकसी हप्रय की पीिा
(ग) स्वयं अिुभव दकया हुआ (घ) साहिहत्यक अिुभव
पाठ्यसामग्री-हिन्दी (आधार) कक्षा:ग्यारिवीं पृष्ठ 123 of 194
iv साहित्यकार में कौि सा हवशेष गुण िोिा िै? 1
(क) साहित्य का जीवि के साथ सामंजस्य करिा
(ख) रूदढ़यों और हवर्ंबिाओं को उजागर करिा
(ग) आिंदमि िोिे का गुण
(घ) सौन्दयय को देखिे और परखिे की अद्भुि शहक्त
v साहित्यकार और समाज का स्पि संबध
ं कब ददखाई पििा िै? 1
(क) समाज की रूदढ़यों और हवर्ंबिाओं को उजागर करिे पर
(ख) देखे गए सत्य और भोगे गए यथाथय को प्रस्िुि करिे पर
(ग) मिोरम दृश्यों के सौन्दयय का वणयि करिे पर
(घ) समाज को अपिे मि की बाि सुिािे पर
vi अपिी आँखों पर पट्टी बांधकर सूरज को िकारिा िै। दकस बाि की ओर संकेि 1
करिा िै?
(क) साहित्यकार में सौन्दयय को देखिे और परखिे की अद्भुि शहक्त
(ख) रूदढ़यों और हवर्ंबिाओं को उजागर कर वि जिमािस को जागृि करिा
(ग) साहित्य को मिोरं जि का साधि समझिा
(घ) साहित्यकार समाज का पथ-प्रदशयक भी िै।
vii साहित्य का मित्वपूणय कायय क्या िै? 1
(क) जिमािस को जागृि करिा (ख) सूचिा देिा
(ग) मिोरं जि करिा (घ) इिमे से कोई ििीं
viii पथ-प्रदशयक का क्या अथय िै? 1
(क) मागय का जािकार (ख) रास्िा ददखिे वाला
(ग) साथ साथ चलिे वाला (घ) साहित्य की जािकारी रखिे वाला
ix साहित्य और क्रांहि के बीच क्या संबध
ं िै? 1
(क) साहित्य क्रांहि पर आधाठरि िै
(ख) बहुि सी क्रांहि साहित्य पर आधाठरि िै
(ग) साहित्य और क्रांहि में कोई संबंध ििीं िै
(घ) क्रांहि और साहित्य दोिों सौन्दयय से जुिे िै
x उपयुक्त
य गदयांश का उहचि शीषयक दीहजए। 1
(क) साहित्य और मिोरं जि (ख) साहित्यकार
(ग) समाज (घ) साहित्य और जीवि
ब ददए गए अपठिि पद्यांश में से दकसी एक पदयांश को ध्यािपूवक
य पढ़कर सिी (1×5=5)
हवकल्प का चयि कीहजए।
िुम भारि, िम भारिीय िैं, िुम मािा, िम बेटे,
दकसकी हिरमि िै दक िुरिें दुििा-दृहि से देख।े
ओ मािा, िुम एक अरब से अहधक भुजाओं वाली,
सबकी रक्षा में िुम सक्षम, िो अदरय बलशाली।
साधारण शब्दों में धमय के बहुि से अथय िैं हजिमें से कु छ ये िैं-कियव्य, अबिंसा, न्याय,
सदाचरण, सद्गुण आदद। धमय का शाहब्दक अथय िोिा िै, 'धारण करिे योग्य' अथायि
हजसे सबको धारण करिा चाहिए, यिी मािवधमय िैं। "धमय" एक पररपरा के माििे
वालों का समूि िै। ऐसा मािा जािा िै दक धमय मािव को मािव बिािा िै। सुखी,
सिल और उत्तम जीवि जीिे के हलए दकए गए आचरण और प्रयत्नों का िाम िी धमय
िै। देश, काल और सामाहजक मूल्यों की दृहि से संसार में भारी हवहवधिा िै, अिएव
अपिे-अपिे ढंग से जीवि को पूणयिा की ओर ले जािे वाले हवहवध धमों के बीच भी
ऊपर से हवहवधिा ददखाई देिी िै। आदमी का स्वभाव िै दक वि अपिे िी हवचारों
और जीिे के िौर-िरीकों को िथा अपिी भाषा और खािपाि को सवयश्रेष्ठ माििा िै
िथा चाििा िै दक लोग उसी का अिुसरण और अिुकरण करें , अिएव दूसरों से अपिे
धमय को श्रेष्ठिर समझिे हुए वि चाििा िै दक सभी लोग उसे अपिाएँ। इसके हलए वि
जोर-जबदयस्िी को भी बुरा ििीं समझिा।
धमय के िाम पर िोिे वाले जाहिगि हवद्वेष, मारकाट और बिंसा के पीछे मिुष्य की
यिी स्वाथय-भाविा काम करिी िै। सोच कर देहखए दक आदमी का यि दृहिकोण
दकििा सीहमि, स्वाथयपूणय और गलि िै। सभी धमय अपिी-अपिी भौगोहलक,
सांस्कृ हिक और ऐहििाहसक आवश्यकिाओं के आधार पर पैदा िोिे, पिपिे और बढ़िे।
अिएव उिका बाह्य स्वरूप हभन्न-हभन्न िोिा आवश्यक और स्वाभाहवक िै, पर सबके
2. हिम्नहलहखि पद्यांशों में से दकसी एक पद्यांश से संबहं धि प्रश्नों के उत्तर सिी हवकल्प- (1x5=5)
चयि द्वारा दीहजए.
3. हिम्नहलहखि प्रश्नों के उत्तर देिे के हलए उपयुक्त हवकल्प का चयि कीहजए- (1x5=5)
5. हिम्नहलहखि गद्यांश को पढ़कर ददए गए प्रश्नों के सिी उत्तर वाले हवकल्प को चुहिए- (1x5=5)
श्रीहिवास िामक घूमिे हमिाईवाले से हमिाई खरीदिे के हलए अपू और दुगाय के पास
पैसे ििीं िैं। वे िो हमिाई खरीद ििीं सकिे, इसहलए अपू और दुगाय उस हमिाईवाले
के पीछे-पीछे मुखजी के घर के पास जािे िैं। मुखजी अमीर आदमी िैं। वे िो हमिाई
जरूर खरीदेंगे और उिका हमिाई खरीदिा देखिे में िी अपू और दुगाय की खुशी िै।
इस दृश्य का कु छ अंश हचहत्रि िोिे के बाद िमारी शूटटंग कु छ मिीिों के हलए स्थहगि
िो गई। पैसे िाथ आिे पर दिर जब िम उस गाँव में शूटटंग करिे के हलए गए, िब
6. हिम्नहलहखि प्रश्नों के उत्तर िेि हिदेशािुसार सिी हवकल्प का चयि कीहजए- (1x10=10)
8. दकसी प्रमुख समाचार-पत्र के संपादक को पत्र हलखकर गाँवों में हचदकत्सा-सुहवधाओं (5x1=5)
के अभाव का उल्लेख कीहजए और कु छ गाँवों के बीच हवशेष हचदकत्सा-सुहवधाओं वाले
अस्पिाल खोलिे का सुझाव दीहजए।
अथवा
सिकों पर िोिे वाली दुघयटिा से बचाव के हलए पठरविि हवभाग के सहचव को एक
पत्र हलहखए।
(क) र्ायरी हबलकु ल हिजी वस्िु िै और वि दकसी और के द्वारा ििीं पढ़ी जाएगी-
ऐसा माि कर िी र्ायरी क्यों हलखी जािी चाहिए?
(ख) पटकथा या ‘स्क्रीिप्ले’ क्या िै? समझाइए।
(ग) फ्लैश बैक और फ्लेशिॉरवर्य क्या िैं?
11. काव्य खंर् पर आधाठरि हिम्नहलहखि िीि प्रश्नों में से दकन्िीं दो प्रश्नों के उत्तर लगभग (3x2=6)
60 शब्दों में हलहखए-
(क) कबीर की दृहि में ईश्वर एक िै। इसके समथयि में उन्िोंिे क्या िकय ददए िैं?
(ख) “ये लोग दकििे मुिाहसब िैं इस सिर के हलए”-यिाँ दुष्यंि का इशारा दकस िरि
के लोगों की ओर िै?
(ग) ‘इस दौर में भी बचािे को बहुि कु छ बचा िै’-से क्या आशय िै?
12. काव्य खंर् पर आधाठरि हिम्नहलहखि िीि प्रश्नों में से दकन्िीं दो प्रश्नों के उत्तर लगभग (2x2=4)
40 शब्दों में हलहखए-
(क) मीरा कृ ष्ण की उपासिा दकस रूप में करिी िैं? वि रूप कै सा िै?
(ख) मायके आई बिि के हलए कहव िे घर को ‘पठरिाप का घर’ क्यों किा िै?
13. गद्य खंर् पर आधाठरि हिम्नहलहखि िीि प्रश्नों में से दकन्िीं दो प्रश्नों के उत्तर लगभग (3x2=6)
60 शब्दों में हलहखए-
(क) ‘िमक का दरोगा’ किािी में पंहर्ि अलोपीदीि के व्यहक्तत्व के कौि-से दो पिलू
(पक्ष) उभरकर आिे िैं?
(ख) दकसी दिल्म की शूटटंग करिे समय दिल्मकार को हजि समस्याओं का सामिा
करिा पििा िै, उन्िें सूचीबद्ध कीहजए।
(ग) भारि मािा के प्रहि िेिरू जी की क्या अवधारणा थी?
14. गद्य खंर् पर आधाठरि हिम्नहलहखि िीि प्रश्नों में से दकन्िीं दो प्रश्नों के उत्तर लगभग (2x2=4)
40 शब्दों में हलहखए-
प्रश्न-5 हिम्नहलहखि गद्यांश को ध्यािपूवकय पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सिी उत्तर वाले हवकल्प
1X5
चुहिए:-
आप बहुि धीर-गंभीर प्रहसद्ध थे। उस सारी धीरिा-गंभीरिा को आपिे इस बार कौंहसल
में बेकािूिी कािूि पास करिे और किवोके शि वक्तृ िा देिे समय ददवाला हिकाल
ददया। यि ददवाला िो इस देश में हुआ। उधर हवलायि में आपके बार-बार इस्िीिा देिे
की धमकी िे प्रकाश कर ददया दक जि हिल गई िै। अंि में विाँ भी आपको ददवाहलया
िोिा पिा और धीरिा-गंभीरिा के साथ दृढ़िा को भी हिलांजहल देिी पिी। इस देश
के िादकम आपकी िाल पर िाचिे थे, राजा-मिाराजा र्ोरी हिलािे से सामिे िाथ बाँधे
िाहजर िोिे थे। आपके एक इशारे में प्रलय िोिी थी। दकििे िी राजों को मट्टी के हखलौिे
की भाँहि आपिे िोि-िोि र्ाला। दकििे िी मट्टी-काि के हखलौिे आपकी कृ पा के जादू
से बिे बिे पदाहधकारी बि गए। आपके इस इशारे में इस देश की हशक्षा पायमाल िो
गई, स्वाधीििा उि गई। बंग देश के हसर पर आरि रखा गया। आि, इििे बिे माइ
लॉर्य का यि दजाय हुआ दक िौजी अिसर उिके इहछछि पद पर हियि ि िो सका और
उिको उसी गुस्से के मारे इस्िीिा दाहखल करिा पिा, वि भी मंजरू िो गया। उिका
रखाया एक आदमी िौकर ि रखा, उलटा उन्िीं को हिकल जािे का हुक्म हमला!
1 उपयुयक्त गद्यांश में दकस पर कटाक्ष दकया गया िै?
(क) िाददर शाि पर
(ख) अबुलिसि पर 1
(ग) एर्वर्य पंचम पर
(घ) लॉर्य कजयि पर
2 लॉर्य कजयि िे इस्िीिा क्यों दाहखल कर ददया?
(क) कजयि की पसंद के व्यहक्त को उिके मिपसंद पद पर हियुक्त ििीं दकया गया।
(ख) हिटेि के शासक के साथ कजयि के संबंध अछछे ििीं थे। 1
(ग) भारिीय जििा की आंदोलिों से वे परे शाि थे।
(घ) लॉर्य कजयि वापस हिटेि जािा चाििे थे।
3 ‘अंि में विाँ भी आपको ददवाहलया िोिा पिा’ पंहक्त का आशय िै-
(क) हिठटश सरकार द्वारा कजयि को ददवाहलया घोहषि कर ददया गया।
(ख) कजयि को पद से िटा ददया गया िथा उसकी सारी शहक्तयाँ हछि ली गईं। 1
(ग) हिठटश सरकार द्वारा कजयि को पदाविि कर ददया गया।
(घ) लॉर्य कजयि की सारी संपहत्त को हिठटश सरकार िे जब्ि कर हलया।
4 ‘आपके एक इशारे में प्रलय िोिी थी।’ इस कथि के माध्यम से दकसकी ओर इशारा
दकया गया िै? 1
(क) मिाराज एर्वर्य की ओर
(ख) िाददरशाि की ओर
v (घ) अिुप्रास 1
2. हिम्नहलहखि में से हिदेशािुसार सिी हवकल्प का चयि कीहजए। 1×5=5
i (ख) कायय
ii (ग) अंग्रेजों से। 1
vi (घ) रे जा
vii (क) जो पािी धरािल पर बििा िै। 1
viii (ख) रे जाणी पािी 1
ix (घ) उपयुयक्त सभी। 1
5. हिम्नहलहखि प्रश्नो में से दकन्िी दो प्रश्नो के उत्तर लगभग 40 शब्दों में दीहजए– 2×2=4
क हिमयला पुिुल अपिे पठरवेश को शिरी प्रभाव से बचािा चाििी िै क्योंदक शिरी
संस्कृ हि के प्रभाव में आिे से गाँव की हिमयलिा समाि िो जाएगी।
ख कहव अपिे पठरवार जिों को रोिे हुए, दुखी िोिे ििीं देख सकिे। उन्िें कहव की याद ि
सिाएं।
ग चंपा िे देख रखा था दक पढ़े हलखे लोग अपिे गाँव और पठरवार जिों को छोि कर
शिर चले जािे िै और लौट कर वापस ििीं आिे िैं साथ िी पढ़े लोखे लोग िी आम
आदमी को परे शाि भी करिे रििे िैं।
6. हिम्नहलहखि प्रश्नो में से दकन्िी दो प्रश्नो के उत्तर लगभग 60 शब्दों में दीहजए– 3×2=6
क हमयाँ िसीरुद्दीि का माििा िै की कोई भी काम करिे से िी आिा िै दकसी की सलाि
से ििीं आिा।
ख हशवशंभू की दो गायो के माध्यम से लेखक बाल मुकुंद यि कििा चाििे िै दक • हजस
प्रकार इंसािों को साथ साथ रििे एक दूसरे से लगाव िो जािा िै उसी प्रकार जािवरों
में भी साथ रििे से लगाव िो जािा िै। • हशव शरभू को दो गाये थी। उिमें से गाय
दूसरी को मारा करिी थी।लेदकि जब मरिे वाली गाय को पुरोहिि को दे ददया जािा िै
िब मार खािे वाली गाय भी दुखी रििे लग जािी िै। अपिे साथी के चले जािे का
दुःख उसे भी िोिा िै।
ग मोिि के लखिऊ आिे के बाद के समय को लेखक िे उसके जीवि का िया अध्याय
इसहलए किा िै क्योंदक अगर मोिि अपिे गांव में रििा िो उसे पढ़ाई से वंहचि रििा
पििा परं िु वि शिर आकर अपिी पढ़ाई अछछी िरीके से प्रारं भ कर सका और उसे
साथ िी साथ पाठरवाठरक ज्ञाि भी हमला।.
प्रश्न 2. हिम्नहलहखि पद्यांशों में से दकसी एक पद्यांश से संबहं धि प्रश्नों के उत्तर सिी हवकल्प- (1x5=5)
चयि द्वारा दीहजए.
प्रश्न 3. हिम्नहलहखि प्रश्नों के उत्तर देिे के हलए उपयुक्त हवकल्प का चयि कीहजए- (1x5=5)
प्रश्न 5. हिम्नहलहखि गद्यांश को पढ़कर ददए गए प्रश्नों के सिी उत्तर वाले हवकल्प को चुहिए- (1x5=5)
प्रश्न 6. हिम्नहलहखि प्रश्नों के उत्तर िेि हिदेशािुसार सिी हवकल्प का चयि कीहजए- (1x10=10)
प्रश्न 7. ददए गए चार अप्रत्याहशि हवषयों में से दकसी एक हवषय पर लगभग 120 शब्दों में (5x1=5)
रचिात्मक लेख हलहखए-
(क) यि माि कर िी र्ायरी हलखी जािी चाहिए दक वि दकसी और के द्वारा पढ़ी ििीं
जाएगी क्योंदक यदद िम दकसी और को पढ़वािे की बाि सोच कर र्ायरी हलखिे िैं,
िो इस से लेखि-शैली, हवषय-वस्िु के चयि और बािों के बेबाकपि पर असर पििा
िै हजससे िम हबल्कु ल हिर्र िोकर और प्राकृ हिक रूप से ििीं हलख पािे। िब िम
कु छ बािों को छु पािे लगिे िैं िो कु छ बािों को बढ़ा-चढ़ा कर बिािे लगिे िैं।
(ख) शब्द ‘पटकथा’ दो शब्दों के मेल से बिा िै-‘पट’ और ‘कथा’। कथा का मिलब िै-
किािी और पट का अथय िोिा िै-परदा; अथायि ऐसी कथा जो परदे पर ददखाई जाए।
चािे वो परदा बिा िो या छोटा। हसिेमाघर आदद में पदे का प्रयोग दकया जािा िै।
पटकथा को िी अंग्रेजी में ‘स्क्रीिप्ले’ किा जािा िै।
(ग) फ़्लैशबैक वो िकिीक िोिी िै, हजसमें आप अिीि में घटी दकसी घटिा को ददखािे
िैं और फ़्लैशिॉरवर्य में आप भहवष्य में िोिे वाले दकसी िादसे को पिले ददखा देिे िैं।
(क) 1. स्ववृत्त में सत्यिा और ईमािदारी झलकिी चाहिए अथायि कु छ भी झूि ििीं
हलखिा चाहिए।
2. जरूरि से ज़्यादा बिा या बहुि छोटा ििीं िोिा चाहिए।
3.अपिी व्यहक्तगि जािकारी, शैक्षहणक योग्यिा, कायय-अिुभव के संबंध में सटीक
(To the Point) िथ्यात्मक सूचिाएँ (Factual Information) देिी चाहिए।
4. स्ववृत्त हलखिे समय शुद्धिा एवं स्पििा का ध्याि रखा जािा चाहिए।
(ख) स्ववृत्त के साथ एक आवेदि-पत्र भी हलखा जािा िै। आवेदि पत्र के साथ
उरमीदवार अपिा स्ववृत्त लगािा िै और उसे हियोक्ता के पास प्रेहषि कर देिा िै।
स्ववृत्त में सारी जािकाठरयाँ दे दी जािी िैं लेदकि दिर भी अलग से आवेदि-पत्र
हलखिे की आवश्यकिा िोिी िै, क्योंदक स्ववृत्त िो बिा-बिाया रखा िोिा िै जबदक
आवेदि-पत्र हवज्ञापि, पद एवं संबंहधि संस्थाि को लेकर हलखा जािा िै।
(ग) अंिः, अंि, अकं हपि, इक्षु, इहछछि, उदािरण, उद्योग, ग्वाहलि, घंटा, घटक,
हजज्ञासु, पठरक्रम, पठरक्रमण, परीक्षण, योगासि, हवश्वाहमत्र, हिमाश्रया, हृदयंगम।
प्रश्न11. काव्य खंर् पर आधाठरि हिम्नहलहखि िीि प्रश्नों में से दकन्िीं दो प्रश्नों के उत्तर लगभग (3x2=6)
60 शब्दों में हलहखए-
(क) कबीर िे एक िी ईश्वर के समथयि में अिेक िकय ददए िैं, जो हिम्नहलहखि िैं-
संसार में सब जगि एक िी पवि व जल िै।
सभी में एक िी ईश्वरीय ज्योहि िै।
एक िी हमट्टी से सभी बियिों का हिमायण िोिा िै।
एक िी परमात्मा का अहस्ित्व सभी प्राणों में िै।
प्रत्येक कण में ईश्वर िै।
दुहिया के िर जीव में ईश्वर व्याि िै।
(ख) इस शेर में उि लोगों की ओर इशारा दकया गया िै जो अपिे अहधकारों के हलए
आवाज ििीं उिािे और अपिे हिस्से की सुख-सुहवधाओं को प्राि करिे के हलए वियमाि
व्यवस्था का हवरोध ििीं करिे। जो कु छ इन्िें हमल जाए, ये लोग उसी में संिुि िो
जािे िैं। इस प्रकार की गूंगी-बािरी व्यवस्थाओं के हलए ये लोग बहुि अछछे िोिे िैं
क्योंदक इिसे उन्िें कोई खिरा ििीं िोिा।
(ग) ‘इस दौर में भी’ का आशय िै दक वियमाि पठरवेश में पािात्य और शिरी प्रभाव
िे सभी संस्कारपूणय मौहलक ित्वों को िि कर ददया िै, परं िु कवहयत्री हिराश ििीं िै,
वि कििी िै दक िमारी समृद्ध परं परा में आज भी बहुि कु छ शेष िै। आओ िम उसे
हमलकर बचा लें। यिी इस समय की माँग िै। लोगों का हवश्वास, उिकी टूटिी उरमीदों
को जीहवि करिा, सपिों को पूरा करिा आदद को सामूहिक प्रयासों से बचाया जा
सकिा िै।
(क) मीरा कृ ष्ण की उपासिा पहि के रूप में करिी िैं। उसका रूप मि मोििे वाला
िै। वे पवयि को धारण करिे वाले िैं। उिके हसर पर मोरपंखी मुकुट िै।
(ख) कहव िे बिि के हलए घर को पठरिाप का घर किा िै। बिि मायके में अपिे
पठरवार वालों से हमलिे के हलए खुशी से आिी िै। वि भाई-बििों के साथ हबिाए
हुए क्षणों को याद करिी िै। घर पहुँचकर जब उसे पिा चलिा िै दक उसका एक भाई
जेल में िै िो वि बहुि दुखी िोिी िै। इस कारण कहव िे घर को पठरिाप का घर किा
िै।
(ग) चंपा ििीं चाििी दक उसका बालम उसे छोिकर किीं दूर पैसा कमािे के हलए
जाए। कहव िे उसे बिाया दक कलकत्ता जो बहुि दूर िै विाँ लोग धि कमािे जािे िैं।
चंपा चाििी िै दक कलकत्ते का अहस्ित्व िी समाि िो जाए िो उसका बालम उसी के
पास रिेगा। इसहलए वि कििी िै दक कलकत्ते पर बजर हगरे ।
प्रश्न13. गद्य खंर् पर आधाठरि हिम्नहलहखि िीि प्रश्नों में से दकन्िीं दो प्रश्नों के उत्तर लगभग (3x2=6)
60 शब्दों में हलहखए-
प्रश्न14. गद्य खंर् पर आधाठरि हिम्नहलहखि िीि प्रश्नों में से दकन्िीं दो प्रश्नों के उत्तर लगभग (2x2=4)
40 शब्दों में हलहखए-
अथवा
िाटक और पटकथा में मूलभूि अंिर यि िोिा िै दक िाटक के दृश्य और संवाद लंबे
लंबे िोिे िैं, जबदक पटकथा छोटे दृश्यों को आधार मािकर हलखी जािी िै। िाटक
का घटिास्थल सीहमि िोिा िै क्योंदक वि मंच पर मंहचि दकया जािा िै जबदक
पटकथा दकसी दिल्म आदद के हलए हलखी जािी िै, हजसका घटिास्थल वि हवस्िृि
िोिा िै। उसकी कोई सीमा ििीं िोिी।
प्रश्न:10 क. आररभ और समापि की औपचाठरकिाएं-1 2X2=4
हवषय-वस्िु-3
भाषा-1
ख. स्ववृत्त लेखि से अहभप्राय स्वयं के हववरण से िै। यि प्रारूप िोिा िै हजसे हवज्ञापि
के प्रत्युत्तर में आवेदि पत्र के साथ भेजा जािा िै। िौकरी के संदभय में स्ववृत्त की
िुलिा एक उरमीदवार के प्रहिहिहध से की जािी िै।
ग. शब्दकोश ऐसा ग्रंथ िोिा िै हजसमें शब्दों की वियिी, उिकी व्युत्पहत्त,
व्याकरणहिदेश, अथय, पठरभाषा, प्रयोग आदद की जािकारी िोिी िै।
प्रश्न:11 क. मीरा कृ ष्ण की उपासिा अपिे पहि या स्वामी के रूप में करिी िैं। वो कृ ष्ण को 2X2=4
अपिा स्वामी और स्वयं को उिकी दासी कििी िैं। श्रीकृ ष्ण िी मीरा के प्राणाधार
िैं। मीरा कििी िैं दक श्रीकृ ष्ण गोवधयि पवयि को अपिी अंगुली से उिािे वाले व
अपिे हसर पर मोरपंखी का मुकुट धारण वाले िैं।
(ख) ‘पटकथा’ दो शब्दों के मेल से बिा िै ‘पट’ और ‘कथा’। ‘पट’ का अथय परदा िथा 3
‘कथा’ का अथय किािी िोिा िै। अि: ऐसी कथा जो परदे पर ददखाई जाए, भले िी
वि परदा हसिेमा िो या टेलीहवजि,इि दोिों िी माध्यमों के हलए बििे वाली
दिल्में, धारावाहिक आदद की पटकथा हलखी जािी िै।
अथवा
दिल्म या टी.वी की पटकथा की संरचिा िाटक की संरचिा की िरि िी िोिी िै।
इसे स्क्रीि प्ले भी कििे िैं। िाटक की िरि िी यिाँ पात्र, िायक – प्रहििायक,
घटिास्थल,दृश्य, किािी का क्रहमक हवकास, द्वंद्व – टकरािट िथा समाधाि आदद
िोिे िैं।
प्रश्न 10 (क) स्ववृि व्यहक्त के पिचाि का एक माध्यम िै। यि दकसी िौकरी, पद आदद के 2
आवेदि के साथ प्रस्िुि दकया जािा िै हजसमें व्यहक्तगि जािकारी उपलब्ध कराई
जािी िै। आवेदि का जन्म, शैक्षहणक योग्यिा, कायय-अिुभव आदद सभी समाहिि
िोिे िैं।
(ख) आवेदि-पत्र की हवषय-वस्िु में मुख्यि: चार भाग िोिे िैं 2
1. भूहमका पिले खंर् में उरमीदवार हवज्ञापि िथा हवज्ञाहपि पद पर अपिी
उरमीदवारी की इछछा प्रकट करिा िै।
प्रश्न 12(क) कहव अविार बसंि पाश द्वारा रहचि कहविा 'सबसे खिरिाक' का आरंभ और अंि 2
मेििि की लूट सबसे खिरिाक ििीं िोिी' पंहक्त से इसहलए दकया िै, क्योंदक कहव
इस बाि की ओर ध्याि ददलािा चाििा िै दक बेशक मेििि की कमाई का लुट जािा
(2) चंपा ििीं चाििी दक उसका पहि उसे छोिकर किीं दूर मिािगर में पैसा कमािे के हलए जाए। कहव िे
उसे बिाया दक कलकिा बहुि दूर िै यिाँ लोग धि कमािे जािे िैं। चंपा पहि से हबछििा ििीं चाििी िै
इसहलए उसिे कलकिे का अहस्ित्व िी समाि कर देिा चाििी िै िादक उसका पहि उसके पास रिेगा।
इसहलए यि कििी िै दक कलकिे पर बजर हगरे ।
(3) कहविा में अहशक्षा, हवहभन्न कु रीहियों िथा शराबखोरी की ओर संकेि दकया गया िै
प्रश्न-13 (1) वंशीधर िे जब पंहर्ि अलोपीदीि को हिरासि में हलया िो रािों-राि यि समाचार सारे क्षेत्र
में िै ल गई। सभी लोग पहण्र्ि जी के इस व्यविार पर अपिे अपिे अिुसार िंज कस रिे थे। पंहर्ि जी के
उपर िर िरि से बिंदा दक वषाय िो रिी थी। पािी को दूध के िाम से बेचिे वाला ग्वाला, ठरश्वि लेिे वाले
अहधकारी, रे ल में हबिा ठटकट यात्रा करिे वाले बाबु लोग, जाली दस्िावेज िैयार करिे वाले सेि और साहकार
सब के सब पंहर्ि जी को कोस रिे थे।
(2) “िेरे ददमाग में िो लोिा भरा िै रे ! हवद्या का िाप किाँ लगेगा इसमें?" इस कथि को ‘जबाि के चाबुक’
किा िै क्योंदक धिराम एक लोिार का बेटा था और मास्टर जी का यि कथि उसे मार से भी अहधक चुभ
गया। जैसा दक किा भी जािा िै 'मार का घाव भर जािा िै, पर किवी जबाि का ििीं भरिा'। यिी धिराम
के साथ हुआ
(3) रजिी आम हस्त्रयों से अलग िै। आम स्त्री सििशील िोिी िै, वि र्रपोक िोिी िै। वि अन्याय का हवरोध
ििीं करिी िथा संघषों से दूर रििा चाििी िै। रजिी इि सबके हवपरीि जुझारू संघषयशील व बिादुर िै।
वि अपिे सामिे िो रिे अन्याय को ििीं सिि कर सकिी। वि अपिे पहि िक को खरी-खोटी सुिािी िै िथा
अहधकाठरयों की बखंचाई करिी िै। यि ट्यूशि के हवरोध में जि-आंदोलि खिा कर देिी िै।
प्रश्न-14 (1) सच्चाई यि थी दक वे दकसी बादशाि का िाम ििीं जाििे थे और िो सकिा िै उिके पठरवार का
दकसी बादशाि से संबंध ि रिा िो। बादशाि का बावची िोिे की बाि उन्िोंिे अपिे पठरवार की बिाई करिे
के हलए कि दी िोगी। लेहखका के प्रश्न का अब उिके पास कोई उत्तर ििीं था। इसहलए बादशाि का प्रसंग
आिे िी वे बेरुखी ददखािे लगे।
(2) भूलो की मृत्यु िो गई थी, इस कारण उससे हमलिा-जुलिा कु त्ता लाया गया। दिल्म का दृश्य इस प्रकार
था दक अप्पू की माँ उसे भाि हखला रिी थी। अपू िीर-कमाि से खेलिे के हलए उिावला िै। भाि खािे-
खािे वि िीर छोििा िै िथा उसे लािे के हलए भाग जािा िै। माँ भी उसके पीछे दौििी िै। भूलो कु त्ता
विीं खिा सब कु छ देख रिा िै। उसका ध्याि भाि की थाली की ओर िै। यिाँ िक का दृश्य पिले भूलो कु त्ते
पर दिल्माया गया था। इसके बाद के दृश्य में अपू की माँ बचा हुआ भाि गमले में र्ाल देिी िै और भूलो
वि भाि खा जािा िै। यि दृश्य दूसरे कु त्ते से पूरा दकया गया।
(3) कृ हष हवभाग िे मामला िॉटीकल्चर हर्पाटयमेंट को सौंपिे हुए िकय ददया दक एग्रीकल्चर हर्पाटयमेंट अिाज
और खेिी-बािी के मामलों में िै सला करिे का िकदार िै। जामुि का पेि चूँदक एक िलदार पेि िै। इसहलए
यि हवषय िॉटीकल्चर हर्पाटयमेंट के अंिगयि आिा िै।