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मनोज राजन ि पाठी तक़रीबन तीस साल से प का रता म ह। दैिनक

जागरण से शु आत और िफर हद ु तान टाइ स ुप होते हुए यज़ ू 18


नेटवक, इं डया यज़ ू और ईटीवी म ए डटर रहे। आप अजय देवगन, परेश
रावल, का तक आयन क सुपरिहट िफ म अ त थ तुम कब जाओगे-पाट टू
(गे ट इन लंडन) के डायलॉग राइटर ह। प का रता म पुर कार के साथ-
साथ आपने ज़ी टीवी के स गग रए लटी शो सा रे गा मा पा, अंता री, सुर
ंगार, संगम कला जैसे नेशनल लेटफॉ स पर बतौर गायक भी कई अवॉड
जीते। िफलहाल आप ज़ी मी डया म ए डटर ह। CODE काकोरी आपका
पहला उप यास है।
कई कहािनयाँ कई भाषाएँ
एका क थापना िदसंबर 2018 म क गई। दो वष म ही इसके तहत 120 से यादा मूल रचनाएं
और नौ भाषाओं म अनुवाद छप चुके ह। इस दौरान हम अनेक सव कृ रचनाएं और लेखक िमले।
भारतीय भाषाओं म िवशेष ता ा दस से अ धक संपादक और तीस से अ धक भाषा जोड़ के
साथ काम करने वाले अनुवादक क सहायता से हम अपने इस ल य को ा कर पाए ह। इसी के
साथ हमने उन सभी अ यव के साथ योग िकए जनसे एक िकताब आकार लेती है—फॉ ट से
लेकर लेआउट, कवर डज़ाइन और वो प े ज ह आप पलटते ह, और तब जाकर ये िकताब उस
व प म आई ं ज ह देखकर हम सभी संतु हुए।
हम गौरवा वत करने वाली रचनाएं और लेखक िव भ िवधाओं से आते ह। इनम तिमल ाइम-
िफ शन के िद गज, राजेश कुमार के उप यास शािमल ह; बंगाली लेखक मनोरंजन यापारी, जनके
उप यास के अं ेज़ी अनुवाद (देयर’स गनपाउडर इन द एयर) को जेसीबी ाइज़, ॉसवड अवॉड,
डीएससी ाइज़ और मातृभूिम बुक ऑफ़ द इयर अवॉड के लए शॉट ल ट िकया गया; तिमल
लेखक पे मल मु गन क पूनाची छह भारतीय भाषाओं म का शत हुई; चेतन भगत का उप यास द
गल इन म 105, सात भाषाओं म; और अमीश का उप यास रावण छह भाषाओं म का शत िकया
गया। समी क ारा शं सत लेखक क रचनाओं का अं ेज़ी अनुवाद िकया गया जनक काफ
सराहना हुई। इनम िह दी लेखक िवनोद कुमार शु क ए वडो ल ड इन द वॉल, मराठी लेखक
िव ास पािटल क पानीपत और महानायक, शवाजी सावंत क युगांधर, मलयालम लेखक उ ी
आर. क वन हेल ऑफ़ ए लवर, वी.जे. जे स क चोरशा , एम. मुकंु दन क डे ही: ए सो ललो वे,
तिमल लेखक पे मल मु गन क ए चुअरी, बंगाली लेखक लीज़ा गाज़ी क हेलफायर, क ड़ लेखक
एस.एल. भैर पा क उ र का ड शािमल ह। नोबल पुर कार िवजेता काज़ुओ इ शगुरो क द रमे स
ऑफ द डे और हेन वी वेअर ऑफ स के मराठी अनुवाद ने पाठक और समी क का यान
ख चा। हमारी कुछ िह दी िकताब बे टसेलर रह , इनम िनशांत जैन क क जाना नह , संजीव
पालीवाल क ाइम लर नैना, िवजय ि वेदी ारा आरएसएस पर लखी संघम् शरणम् ग छािम
और अनंत िवजय ार लखी अमेठी सं ाम शािमल ह। सािह य अकादेमी युवा पुर कार िवजेता
लेखक मनु एस. िप ई क रबेल सु ता स के मराठी और िह दी अनुवाद, अिमताभ घोष क गन
आइलड के मलयालम, मराठी और िह दी अनुवाद ने हम िवशेष प से उ सािहत िकया।
2021 म अब तक हमने अमीश के उप यास लेजड ऑफ़ सुहेलदेव का हदी और मराठी अनुवाद,
चेतन भगत के उप यास वन अर ड मडर का हदी और मराठी अनुवाद का शत िकया है। हमारे
अं ेज़ी अनुवाद म गुजराती लेखक काजल ओज़ा वै के उप यास कृ णायन, हदी लेखक िवनोद
कुमार शु के उप यास एक छुपी जगह, मराठी लेखक िव ास पािटल क रचना संभाजी और
बंगाली लेखक मनोरंजन यापारी के उप यास ईमान का भी काशन हो चुका है। इसके साथ ही
सुपर कॉप राकेश मा रया के सं मरण लेट मी से इट नाऊ का मराठी म, यू ब
ू टार ेताभ गंगवार
क डे ट बुक एवर का हदी म और आशीष बागरेचा क से फ-हे प िकताब डयर टजर, आई नो
हाऊ यू फ ल का हदी म अनुवाद का शत हो चुका है। भारतीय सेना के जांबाज़ को ांज ल
व प शौय गाथा: भारत के वीर सेनानी का काशन हमारे लए गव का िवषय रहा। संजीव
पालीवाल का उप यास िपशाच भी का शत हो चुका है। ज द ही हम मनोरंजन यापारी क चंडाल
जीबन यी के उप यास को बंगाली, हदी और अं ज़ी म का शत करने वाले ह। इसी के साथ
अमीश और भावना रॉय क धम भी ज द आपके हाथ म होगी।
हम आपके शु गुज़ार ह और अनुवादक से अनुरोध करते ह िक वो एका के साथ जुड़, और
सािह य को भाषा क सीमाओं के पार ले जाने म हमारा साथ द।
CODE काकोरी र यज़

‘िफ़ म बना लो या वेबसीरीज़ CODE काकोरी बे टसेलर ट है’
–सा जद ना डयाडवाला
(िफ़ म िनमाता, िनदशक)
‘CODE काकोरी का रलीज़ टेक ऑफ़ िहट रहा, कहानी पेज टनर है’
–सुरे मोहन पाठक
(उप यासकार)
‘डा ट और ा ट CODE काकोरी को बज री डग बनाता है’
–सुधीर िम ा
(िफ़ म िनमाता, िनदशक)
‘वेबसीरीज़ या िफ़ म देखनी है तो CODE काकोरी म ट रीड है’
–अ नी धीर
(िफ़ म िनमाता, िनदशक)
‘CODE काकोरी रोलरको टर है, एक कं लीट कॉिमक लर’
–इं डया टु डे
‘CODE काकोरी: 1921 काकोरी कबाब, 1925 काकोरी कांड और 2021
काकोरी इज़ बैक’
–आज तक
‘CODE काकोरी के ल म काकोरी कबाब क महक है और काकोरी कांड
क दहक है’
–अमर उजाला
‘CODE काकोरी के कैरे टर, डायलॉग और कहानी पूरी िफ़ मी है’
– हद ु तान
‘2021 क टॉप टेन िकताब म है CODE काकोरी’
–सािह य तक
‘द बे ट बुक वी हैव एवर रेड’
–रिव दबु े और शरगुन मेहता
( ो ूसर, ए टस)
े े ै े े ै ो
‘रा वाद के साथ देशभि का सटीक मैसेज देती है CODE काकोरी’
–रिव िकशन
(ए टर)
‘CODE काकोरी क कहानी पर यूिज़क ज़ र बनाऊंगा’
–अंिकत तवारी
( यिू ज़क डायरे टर, सगर)
‘ऐसा ाइम िफ़ शन तो पढ़ा ही नह ’
–संजीव पालीवाल
(उप यासकार)
‘एक बार म िकताब पढ़ गया, ग़ज़ब पठनीयता है’
–अनंत िवजय
(लेखक, समी क)
‘CODE काकोरी के ज़ रये हदी को एक नया लेखक िमलने क
शुभकामनाएं ’
–आशुतोष
(व र प कार)
‘CODE काकोरी इ ॉ सग रीड है’
–स या यास
(उप यासकार)
First published in paperback in Hindi in 2021 as CODE Kakori by Eka, an imprint
of Westland Publications Private Limited
Published in Hindi in 2022 as CODE Kakori by Eka, an imprint of Westland Books,
a division of Nasadiya Technologies Private Limited.
No. 269/2B, First Floor, ‘Irai Arul’, Vimalraj Street, Nethaji Nagar, Allappakkam
Main Road, Maduravoyal, Chennai 600095
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Technologies Private Limited, or its affiliates.
Copyright © Manoj Rajan Tripathi, 2021
Manoj Rajan Tripathi asserts the moral right to be identified as the author of this
work.
ISBN: 9789391234324
10 9 8 7 6 5 4 3 2 1
This is a work of fiction. Names, characters, organisations, places, events and
incidents are either products of the author’s imagination or used fictitiously.
All rights reserved
No part of this book may be reproduced, or stored in a retrieval system, or
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recording, or otherwise, without express written permission of the publisher.
अं ेज़ दरोगा का हाथ काटने वाली मेरी दादी वतं ता सं ाम
सेनानी वीर बाला नारायणी ि पाठी को सम पत, जो आज भी
ह म रोशनी, रग म र और र म रेशमी रोशनाई बन कर
मेरे साथ ह।
िवषय-सूची
कवर
मुखपृ
CODE काकोरी र यूज़
CODE काकोरी
आभार
CODE काकोरी
18 जुलाई 2019
रात का क़रीब दो बजा था। काले घने बादल ने पूरनमासी को अमावस म बदल
िदया था। बरसात तो क़रीब दो घंटे पहले थम चुक थी, लेिकन काकोरी-लखनऊ
हाईवे से सटे आम के बाग का प ा-प ा बा रश से तर-ब-तर था। दशहरी आम के
घने पेड़ से छन कर आ रहा अंधेरा और काला होता जा रहा था। बाग के अंदर
आने वाली क ी पगडंडी पर कई जगह पानी भर गया था। मढक क टर-टर और
झ गुर क झांय-झांय के बीच ऑ डयो स टम पर फुल साउं ड म भोजपुरी गाना
बज रहा था, तू लगावे लू जब लपी टक, हीले ला आरा डी टक, जीला टॉप
लागे लू, कम रया करे लॉपा लॉप लॉलीपॉप लागे लू। नशे म धु काकोरी थाने का
मैिकया सपाही अंगद यादव बेसुरे सुर म ऑ डयो टैक के साथ-साथ गा रहा था।
अंगद के साथ बाग के केयरटेकर मज़दरू क फौज भी मौज म थी। गाते-गाते अंगद
ने ज़मीन पर पड़ी अपनी बंदक ू उठा कर एक मज़दरू क कमर पर िटका दी और
लोफ़र क तरह नाचने लगा। मज़दरू भी बंदक ू क नली अपनी कमर पर िटका कर
िकसी नचिनया क तरह कमर मटकाने लगा। सब के सब ताली बजा कर कमर
िहला-िहला कर नाच रहे थे। तभी आम के बाग म एक मोटरसाइिकल घुसी और
नाचते-गाते इन नशेबाज़ से क़रीब दो सौ मीटर दरू आकर क गई। गीले घु प
अंधेरे के पीछे से मोटरसाइिकल क हेडलाइट चमक ।
हेडलाइट क चमक देख कर अंगद के गंदे-गंदे पीले दांत हंसी से खुल गए। पट
क जप पर हाथ फेरते हुए अंगद बोला, ‘तैयार हो जा मेरे ल न टाप, आ गई मेरी
लालीपाप, जीला टाप!’ और िफर से सबके साथ नाचने लगा। हेडलाइट बंद हो
गई। गाने के शोर म बहुत दबी-दबी सी ससका रयां सुनाई दे रही थ , ‘छोड़ो,
लीज़ छोड़ दो, आह!’ धीरे-धीरे ससका रयां चीख़ म बदलने लग ।
आवाज़ सुन कर अंगद उतावला हुआ जा रहा था। धीरे-धीरे आवाज़ शांत हो
गई ं। बाग क पगडंडी पर कई जगह भरे पानी क दरू जाती छप-छप बता रही थी
िक कोई लौट रहा था। मोटरसाइिकल िफर से टाट हुई और हेडलाइट जली।
अंगद नाचना-गाना बंद करके लाइट क तरफ देखने लगा। अंधेरे को चीरती हुई
हेडलाइट क रोशनी सीधे अंगद के चेहरे पर पड़ रही थी। दो बार लाइट ऑफ़-
ऑन हुई और िफर मोटरसाइिकल मुड़ कर चली गई। अंगद अपनी बंदक ू वह छोड़
कर पट क िज़प खोलता हुआ उसी तरफ चल िदया, जस तरफ से कुछ देर पहले
ससका रयां आ रही थ । बादल िफर बरस पड़े, आम के प पर मोटी-मोटी बूदं
का शोर बढ़ने लगा और भीगी-भीगी सी रात सुबह क तरफ चल दी।
***
19 जुलाई 2019
सुबह के आठ बजे ही थे िक काकोरी म एक लड़क के रेप और मडर क ज़ोरदार
े कग यूज़ टीवी पर शोरदार अंदाज़ म चल रही थी। काकोरी पु लस को भनक
तक नह थी, लेिकन लखनऊ म काकोरी ाइम क ख़बर देख रहे डायरे टर
जनरल ऑफ़ पु लस बृजलाल कुल े के हॉ सएप पर लड़क क नंगी लाश क
वाइरल फ़ोटो भी चमक रही थ । डीजीपी ने लखनऊ के सीिनयर सुप रटडट ऑफ़
पु लस शैलेश कृ णा को फ़ोन करके हड़काया और एसएसपी साहब ने काकोरी
थाने के इं पे टर अ फ़ाक़ उ ा िब मल क मोबाइल पर ही खाल ख च ली। बड़े
अफसर क डांट, फटकार और ज़हरीली लताड़ सुनते ही इं पे टर अ फ़ाक़
उ ा िब मल क जीप िबना ेक लगाए सीधे फोथ िगयर पर लखनऊ-काकोरी
रोड के बगल म आम के बाग पर पहुच ं ी। हेड कां टेबल ि पुरारी पांडे, सपाही
िव ासागर जाप त उफ िविकपी डया और दो-तीन सपाही मौक़े पर खड़े थे।
जीप देख कर सभी दौड़े। अ फ़ाक़ उ ा ने उतर कर पूछा, ‘ या सचुएशन है?’
ि पुरारी पांडे ने डटेल दी, ‘सर रमाकांत और गौतम बॉडी पो टमॉटम म
दा ख़ल कर चुके ह। लाश से दस मीटर दरू मोटरसाइिकल क टू ल िकट िमली है।
टू ल िकट क कोई पैनी चीज़ लड़क के गले म घ प कर ह या क गई है। बगल म
ही लड़क का कुता पजामा और अंडरगाम स िमले ह। लगता है पहले रेप िकया
गया है और िफर मडर।’
‘बाग िकसका है?’ अ फ़ाक़ उ ा ने सवाल िकया।
ि पुरारी झट से बोला, ‘िकसी आशुतोष िनरंजन का है। रटायड आईएएस ह,
अमे रका म बेटे के साथ रहते ह। दो-तीन साल म आते ह। कुछ मज़दरू ह, वही सब
आम तोड़ते और बेचते ह सर।’
‘नंबर पता करो और उ ह ख़बर करो,’ अ फ़ाक़ ने आदेश िदया।
ि पुरारी ने फ़ौरन नंबर पता करने के लए एक सपाही को दौड़ा िदया।
इधर-उधर देख रहे अ फ़ाक़ उ ा ने िफर पूछा, ‘लड़क का पता चला कुछ?’
ि पुरारी ने सर झुका लया, ‘सर हम देर से आए, रमाकांत और गौतम शना त
के च र म पड़े िबना ही पो टमॉटम हाउस के लए िमसाइल हो गए।’
अ फ़ाक़ तमतमा गया, ‘एसएसपी तो लखनऊ से च ा रहे थे िक फ़ोटो वाइरल
हो गया है?’
ि पुरारी ने लॉ जक िदया, ‘सर लाश औंधे मुह
ं पड़ी थी, पीछे के फ़ोटो ह सब।
दोन सपाही लाश ढंक कर ले गए ह, सर। शना त हो जाएगी।’
अ फ़ाक़ झ ाया, ‘अबे कह टीवी पर शना त क े कग हो गई तो डीजीपी
नंगा कर देगा।’
अ फ़ाक़ कपड़े, टू ल िकट वगैरह िज़पर बैग म रख कर बाग म टहलने लगा।
अचानक उसक नज़र आम के एक पेड़ पर पड़ी। आगे बढ़ा तो च क गया। िबना
नंबर लेट क एक मोटरसाइिकल पेड़ से िटक खड़ी थी। डैश बोड खुला पड़ा था।
‘अबे ि पुरारी इधर आ, ज़रा ाइम पेटोल टाइल म चेक तो कर इस फटफिटया
को, और बाक लोग पूरे गाडन का मगो जूस िनकालो।’
मोटरसाइिकल म चाबी लगी थी। गाड़ी अभी भी ऑन मोड म थी और हेडलाइट
भी ऑन थी। ि पुरारी ने नीचे झांक कर देखा तो टंक का यूल पाइप हटा हुआ
था और सारा पेटोल बह चुका था। ‘सर फटफिटया ऑन ही थी, हेडलाइट जलती
रही और रात भर म बैटी चट कर गई है। कौनो पेटोल िनकाला है और पाइप टंक
म वापस लगाना भूल गया है, मंदी क मार म सारा ई ंधन बह गया।’
अ फ़ाक़ उ ा बोला, ‘नंबर लेट ग़ायब है…ज़रा इंजन और चे चस नंबर से पता
करो मोटरसाइिकल िकस हरामी के नाम से र ज टड है।’
तभी िविकपी डया क आवाज़ आई, ‘सर िमल गया!’
सब दौड़ कर बाग म बने एक छोटे से कमरे म पहुच
ं े जहां मज़दरू रहते थे। कमरे
म दा क बोतल, बुझी हुई राख और मैक क पुिड़या पड़ी िदख । अ फ़ाक़ ने
लकड़ी से राख को खंगाला तो उसम टू ल िकट का पेचकस िमला। पेचकस का
ला टक ह डल िपघल चुका था। अ फ़ाक़ ने राख को और खंगाला तो उसम
उ र देश पु लस का ास बैज और वद पर लगाने वाली नेम लेट िमली जो बुरी
तरह िपघल चुक थी, ‘ साला! कौनो पु लस वाला ही काम लगा गया है। पेटोल
डाल कर पेचकस और वद फंू क गई है आग म।’
रेप और मडर क इस वारदात ने इं पे टर अ फ़ाक़ उ ा िब मल क सारी
रंगबाज़ी दांव पर लगा दी। टशन से बाहर िनकलने के लए अ फ़ाक़ उ ा ि पुरारी
के कंधे पर हाथ रख कर बाग म टहलने लगा और एक बार िफर आम के उस पेड़
तक चला गया जसके सहारे मोटरसाइिकल िटक थी। मोटरसाइिकल पर नज़र
मारते हुए अ फ़ाक़ ने पेड़ क झुक हुई डाल से एक आम तोड़ा और चोपी हटा कर
चूसते हुए बोला, ‘ साला तीन िदन पहले ही तो काकोरी म दंगा होते-होते बचा था,
कैसे तो मामला िफट करके 144 हटाई थी और आज साला ये बवाल घुस गया।’
अपने साहब को टशन म देख ि पुरारी बोला, ‘अरे टशन काहे ले रहे ह सर, ये
ाइम भी सॉ व हो जाएगा। तीन िदन पहले ही तो आपका बेटा आया है और दो-
तीन ह ते म ही िवलायत चला जाएगा, पहले उसको टाइम दी जए।’
सच ही तो था, अ फ़ाक़ उ ा के पास व त ही नह था।
***
16 जुलाई 2019
तीन िदन पहले, 8 डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसजर सहारनपुर रेलवे टेशन के
लेटफॉम नंबर तीन से छूट ही रही थी िक अफ़ज़ल ने दौड़ कर टेन पकड़ी और
िफर गाड को तीन सौ पए देकर वडो सीट का जुगाड़ भी कर लया। बंगलौर से
उड़ा, ाइट से िद ी लड िकया, लेिकन िद ी से यादा फेमस है, िद ी का
टैिफक जाम। ऊपर से सिटज़न एमडमट ए ट को लेकर सड़क पर टू ड स का
ह ा बोल। जैसे-तैसे अफ़ज़ल िद ी से बाई रोड देवबंद पहुच
ं ा और अपनी अ मी
क क पर सजदा करने के बाद सहारनपुर से उसने टेन पकड़ी। 8 डाउन पैसजर
ने अभी आऊटर ॉस ही िकया था िक ट से एक प थर सामने वाली खड़क
पर बैठे फ़ गन तवारी के सर से टकराया और भलभला कर ख़ून िनकलने लगा।
टेन म शोर मच गया, ‘अबे खड़िकयां बंद कर दो, ल ड ने िफर बवाल शु कर
िदया है।’ धाड़-धाड़ क आवाज़ के साथ खड़िकयां बंद होने लग और खड़िकय
से आती आवाज़ से साफ़ था िक प थरबाज़ बाज़ नह आ रहे थे।
अ ू दलाई ने गले से काला सफेद चेक ट वाला क़ुरान वानी का मफ़लर
उतार कर फ़ गन के सर पर बांध िदया। ख़ून भी बहना बंद हो गया और प थर के
शोर से टेन भी आगे िनकल गई। डरते-डराते खड़िकयां िफर खुलना शु हुई ं और
बोगी के अंदर रोशनी आ गई।
अ ू बड़बड़ाया, ‘ये ल डे मानगे नह , तेईस ठो मारे जा चुके ह यप
ू ी म।’
कराहते हुए फ़ गन बोला, ‘पता नह टू डट ह या बेवद पु लस वाले।’
पैसजर टेन क जनरल बोगी म जटलमैन टाइप अफ़ज़ल को देख कर अ ू
दलाई ने नाम पूछा और फ़ गन तवारी ने ला ट टॉपेज।
अफ़ज़ल ने जवाब िदया, ‘काकोरी।’
‘वह रिहते हो पिहलवान?’ अ ू ने पूछा।
अफ़ज़ल ने जवाब िदया, ‘नह , पहली बार जा रहा हू।ं ’
अ ू ने अफ़ज़ल क नॉलेज बढ़ाई, ‘ जस टेन म बइठे हो न बेटा, यही टेन है
जसे काकोरी म रोक कर अं ेज़ का ख़ज़ाना लूटा गया था!’
लखनऊ से सफ अठारह िकलोमीटर दरू एक छोटा सा क बा है, काकोरी।
क़रीब पतालीस हज़ार आबादी, जसम यादातर मुसलमान ह। शेख़, अ बासी,
अ वी काकोरी से ही िनकले और पािक तान के सध, कराची और िम डल ई ट
तक फैल गए। छोटे से काकोरी का इ तहास बहुत बड़ा है। 1921 म काकोरी के
नवाब कािज़म ने ि िटश गवनर सर पसर हरकोट बटलर के ले टनट को अपनी
हवेली पर कबाब क दावत दी थी। कबाब बहुत स त थे। ले टनट ग़ु से म डनर
छोड़कर चला गया। बेइ ज़त हो चुके नवाब ने ख़ानसाम को हु म सुनाया िक ऐसे
कबाब बनाओ जो मुह ं म घुल जाएं । असल म पहले गो त को उड़द क दाल म
िमलाकर कबाब बनते थे। उड़द क दाल कबाब को स त कर देती थी। खोजबीन
हुई, कई नु ख़े आज़माए गए और िफर दाल के बजाय गो त म पपीता िमलाया
गया। ले टनट को िफर डनर पर बुलाया गया। इस बार कबाब ले टनट के मुह

म रखते ही घुल गए। कबाब का नाम पड़ गया, ‘काकोरी कबाब’। यही काकोरी
कबाब, आज देश-दिु नया के 7 टार मे यू म शािमल है।
काकोरी कबाब क पैदाइश के ठीक चार साल बाद, 9 अग त 1925 को काकोरी
कांड हुआ। पतालीस सरफ़रोश िगर तार िकए गए। कग एं परर वसज़ राम साद
िब मल एं ड अदस नाम से मुक़दमा चला। 22 अग त 1927 को एक सौ पं ह प
का फैसला सुनाया गया। बारह को क़ैद, उ क़ैद और काला पानी क सज़ा हुई।
सोलह बरी हो गए। 19 िदसंबर 1927 को अ फ़ाक़ उ ा ख़ाँ, राम साद िब मल,
रोशन सह और राजे नाथ लािहड़ी को फांसी दे दी गई।
1921 म काकोरी कबाब और 1925 म काकोरी कांड। ये काकोरी का कल था।
आज क मीर म कां टी श ू न ऑफ़ इं डया क धारा 370 हट चुक है, और
काकोरी म सीआरपीसी क धारा 144 लागू है। यानी पूरे क बे म चार लोग एक
साथ खड़े िदखाई िदए तो समझ ली जए सीधे हवालात। शाम के चार बजे थे,
टेशन पर ि पुरारी पांडे और िविकपी डया 8 डाउन पैसजर का इंतज़ार कर रहे
थे।
मुह
ं म पान कचरते हुए, लाल और हरी झंडी लए टेशन मा टर ि लोक यास
ने ि पुरारी पांडे के पास आकर पूछा, ‘कौन आ रहा है गु ?’
हेड कां टेबल ि पुरारी पांडे ने उसे ऊपर से नीचे तक देखते हुए ख ी उड़ाने
वाले अंदाज़ म कहा, ‘टेन आ रही है।’
टेशन मा टर ने अपनी ख ी को िम ड कॉल समझ कर इ ोर कर िदया, ‘अबे
टेन म कौन आ रहा है?’
ि पुरारी बुदबुदाया, ‘इं पे टर साहब का बेटा।’
‘कौन, अबराम आ रहा है या?’ टेशन मा टर ने िफर पूछा।
‘नह यार! अबराम तो यह काकोरी म रहता है, टेन से अफ़ज़ल आ रहा है।’
ि पुरारी झ ा चुका था।
‘अ छा! दो बेटे ह साहब के?’
ि पुरारी ने मौज ली, ‘भौजाई वगवासी हो गई ं, वना दजन भर होते।’
टेशन मा टर चज द टॉिपक वाले अंदाज़ म बोला, ‘साहब से कहो 144 हटाएं ,
ए टा इनकम एकदम ठप है। न पटाखे क पेिटयां जा रही ह और न ही चकन के
कपड़ क गठ रयां।’
िविकपी डया अथशा ी क तरह वन फोथ रंगबाज़ी िदखाते हुए बोला, ‘अबे
शेयर माकट आज डाउन है, 144 हटेगी तो सब टू ट पड़गे। सेव कर लो मेमोरी काड
म ि लोक बाबू, थाने का कट बढ़ा लेना वना एक सुतली बम भी क बे से टेशन
तक नह आएगा।’
ि पुरारी पांडे ने ि लोक क ठोढ़ी पकड़ी और सॉ ट धमक दी, ‘ये जो हर
गठरी पर सरचाज के साथ चकन का कुता लेते हो न भौजाई के लए, समझ लो
िबना चकन के भाभी िकतनी चकनी लगगी।’
टेशन मा टर ि लोक यास बीवी क चकनाई के बारे म सुनने के बाद भी
खल खलाने लगा। बेचारा करे भी या, अवैध पटाखे और चकन के कपड़े
काकोरी टेशन तक तभी तो आएं गे जब पु लस वाले आने दगे। र तखोरी के
र त क इसी ल फ़ाज़ी के बीच, टेन का ईमानदार हॉन सुनाई िदया। टेन धीरे-
धीरे लेटफॉम पर आकर क । पो स शूज़, जी स और लाल रंग क टी-शट के
ऊपर डैिनम लू जैकेट पहने अफ़ज़ल ने टेन के गेट से बाहर झांका। ि पुरारी पांडे
और िव ासागर उफ़ िविकपी डया, दोन अफ़ज़ल को देखकर बोगी क तरफ दौड़े
और अफ़ज़ल को से यूट मारा। कई बार मना करने के बावजूद दोन ने भारी
भरकम अटैची के साथ हडबैग भी उठा लए। अफ़ज़ल के कंधे पर टंगा लैपटॉप बैग
भी िविकपी डया ने अपने कंधे पर टांग लया।
पांडे ने अपना प रचय िदया, ‘हम हेड कां टेबल ि पुरारी पांडे!’
अफ़ज़ल ने हाथ िमलाया, ‘जी, ख़ाँ साहब बोले थे आप लेने आएं गे।’
िविकपी डया ने भी थोड़ी सी छाती फुलाई और अपना इंटोड शन दागा, ‘सर,
म सपाही िव ासागर जाप त। साहब ने आपका बोगी नंबर बताया ही नह था,
बोले थे टेन म जो सबसे माट और हडसम िदखाई दे, समझ लेना मेरा बेटा है।’
ि पुरारी ने साइलट मोड म सोचा िक िविकपी डया के नंबर यादा बढ़ गए ह, तो
ख़ुद का ोफ़ाइल हाई करते हुए बोला, ‘सर, हम साहब का सारा काम देखते ह। ये
िविकपी डया है, बहुत बड़ा वाला ानी है। थाने के साइबर सेल म गूगल, फेसबुक
और यू ब ू देखता है और साहब क गाड़ी भी चलाता है।’
हंसते हुए सब टेशन से बाहर आ गए। िविकपी डया ने तुरत ं गाड़ी टाट क ।
गाड़ी थड िगयर तक पहुच ं ी ही थी िक सड़क पर इ ा-द ु ा लोग को खड़ा देख
ि पुरारी पांडे ने रौब िदखाने के लए माइक पर च ाना शु िकया, ‘काकोरी म
धारा 144 लागू है, चार लोग एक साथ न खड़े ह , पु लस को मजबूर न कर। ल
मार कर हवालात म ठू ंस दगे…चलो, अंदर चलो…अ मी अंदर चलो…अबे ल डे!
बिहरे हो या बे? एक बार म सुनाई नह दे रहा है?’
अफ़ज़ल ने वजह जाननी चाही, तो पता चला िक करीना, क र मा, कैटरीना
और काजोल चार िदन से लापता ह। हद ू कह रहे ह िक मुसलमान ने िकडनैप
िकया है और मुसलमान नारा-ए-तदबीर पर आमादा ह। दोन तरफ क भीड़
काकोरी म दंगा-दंगा न खेले इस लए इं पे टर साहब ने शां त भंग का अंदेशा जता
िदया और डीएम साहब ने 144 लागू कर दी।
काकोरी क सड़क पर दो चौथाई स ाटा था। स ाटे को चीरती हुई मु ालाल
प कार क आवाज़ गूज ं ी, ‘ जस काकोरी म अ फ़ाक़ उ ा ख़ाँ और पं डत राम
साद िब मल जैसे ां तका रय ने टेन लूट कर अं ेज़ के छ े छुड़ा िदए थे,
उसी काकोरी म करीना, कैटरीना, क र मा और काजोल को ढू ंढ़ने म पु लस के
छ े छूट गए ह और आम आदमी छ क तरह घर म दबु का है। कैमरामैन सटू
दबु े के साथ काकोरी से सीसीटीवी यज़
ू के लए मु ालाल प कार क रपोट।’
अचानक िविकपी डया ने गाड़ी रोक । िपछवाड़े क सीट से ि पुरारी बाहर कूदा
और कैमरामैन सटू दबु े क तरफ लपका। सटू कैमरा लेकर आम के बाग क
तरफ भागा और मु ालाल सीधे ि पुरारी से जा भड़ा। िविकपी डया ने हड ेक
लगाई और डाइ वग सीट से छलांग लगाकर मु ालाल को पीछे से जकड़ लया।
पु लस और प कार का बवाल देख कर अफ़ज़ल जीप से उतरा और तीन को
अलग करते हुए बोला, ‘अरे ये जन ल ट है, रपो टग कर रहा है।’
‘साला छ ा कह रहा है!’ ि पुरारी पांडे ने मु ालाल का कॉलर पकड़ा और
च ाया।
मु ालाल प कार िबना डरे ि पुरारी क आं ख म आं ख डालकर गुराया,
‘अनु ास अलंकार है, छ ा, छ े , छ … हदी सीख लो पहले, िफर ये
शलाजीत वाली हास पावर िदखाना मी डया को।’
ि पुरारी क बैटी ओवरचा ड हो चुक थी, वो अफ़ज़ल क तरफ देखते हुए
बड़बड़ाया, ‘इस चू तए के कहने पर साहब सौ काम करते ह। एक मोटरसाइिकल
नह छोड़ी, तो साला संपादक बन गया! आठ बजे वाटर पीकर धु हो जाता है,
ो टी ट ू प लकार, साला।’
मु ालाल प कार अपना कॉलर ि पुरारी क मु ी से छुड़ाने क को शश करते
हुए चीख़ा, ‘ ो टी ट ू नह े टी ट ू ! अं ेज़ी भी सीख लो कायदे से…नेशन
वां स टू नो िक या हो रहा है काकोरी म? आज चार हीरोइन का फ़ोटो लगा कर
देश म चमकेगा काकोरी थाना, एकदम ाइम टाइम है नौ बजे…पूरा थाना नपवा
दगं ू ा।’
िविकपी डया ाइम टाइम का मतलब अ छी तरह समझता था। टू जी, फोर जी
से लेकर जीजा जी क सारी ख़बर ाइम टाइम पर आती थ । मारे डर के उसे
मु ालाल अब एवजस—द एं ड गेम िदखाई देने लगा था। वो मु ालाल को पीछे से
छोड़कर अफ़ज़ल क ओर इशारा करते हुए ि पुरारी के कान म फुसफुसाया, ‘अबे
बेटे के सामने बाप क ऐसी-तैसी हो रही है, साहब फाड़ कर चथड़ा कर दगे।’
इस सबके बीच अफ़ज़ल ने अपने मोबाइल से अबराम को फ़ोन िमलाया, ‘गु ,
आ गया हू।ं बस ख़ाँ साहब से िमलकर सीधे आता हूं तु हारे पास। चाय साथ िपएं गे
और सु ा भी। तू बस लाइव लोकेशन भेज दे, मुझे रा ते मालूम नह ह यहां के।’
उधर पु लस और प कार का झंझट ाइमे स पर था। िविकपी डया ने ि पुरारी
और मु ालाल को िकसी वचन देने वाले बाबा क तरह समझाया, ‘पु लस का
कोई ठौर नह , प कार का कोई और नह …कॉलर छोड़ो हाथ िमलाओ।’
ि पुरारी िविकपी डया का इशारा कैच करते ही फ़ वारे का फुहारा हो गया। वो
मु ालाल का कॉलर छोड़कर उसक शट ठीक करने लगा। उधर मु ालाल क
बैक बोन को भी अहसास हो गया िक करेज फॉर जन ल म अभी ज़दा है।
ि पुरारी ने मु ालाल से हाथ िमलाते हुए उसे जीप म अपने साथ पीछे बैठा लया।
मु ालाल ने कैमरामैन सटू दबु े को फ़ोन कर सीधे थाने आने को कहा। गाड़ी िफर
थाने क तरफ चल पड़ी।
अफ़ज़ल ने आ ख़रकार मु कुराते हुए सबसे एक साथ पूछा, ‘ये कैटरीना,
करीना का या च र है?’
िविकपी डया बोला, ‘अरे सर, वो ननकू कुशवाहा क चार गाय िकडनैप ह, वही
च र घनच र बनाए हुए है और या।’
पीछे वाली सीट से ि पुरारी क आवाज़ आई, ‘चार िदन हो गए ह, हद-ू मु लम
आमने-सामने ह, अजब िव मयकारी संकट है।’
अफ़ज़ल कुछ समझा नह , ‘िफर ये िहरोइन?’
ि पुरारी ने मु ालाल क तरफ फज़ मु कुराहट फक , ‘अरे सर ये मु ालाल
प कार रख िदया है िहरोइन के नाम।’
ि पुरारी के कंधे पर हाथ रखते हुए मु ालाल प कार बोला, ‘अरे हमारे िद ी
वाले एडीटर को हर समय हद ु तान-पािक तान क ही ख़बर चािहए तो हम का
कर, थोड़ा चूरन लगा िदया…लापता गाय पर िहरोइन के नाम चपका िदए, बस
हुई गया ाइम टाइम ए स ू सव। एकदम फुलटास टीआरपी के साथ।’
‘िफर 144 य ?’ अफ़ज़ल ने पूछा।
इस बार िविकपी डया का जवाब आया, ‘सर देश के माहौल क चर कर चौह र
हो गई है, अइसे म िकसी ने गाय काट कर फक दी तो लॉ एं ड ऑडर का काईलैब
सीधे साहब के सर पर ही िगर पड़ेगा।’
ि पुरारी ने अफ़ज़ल को तस ी दी, ‘साहब वकआउट म लगे ह, मान के च लए
आज रात नह तो कल तक गारंटी लेकर हट ही जाएगी।’
मु ालाल ने ि पुरारी को आं ख मारी, ‘उसे वकआउट नह गुडवक कहते ह,
पांडे जी। और साहब तो गुडवक के वण पदक िवजेता ह।’
जीप िफ थ िगयर पर दौड़ी जा रही थी। बीच-बीच म ि पुरारी पांडे एनाउं समट
कर रहा था, ‘धारा 144 लागू है, भीड़ इक ा न कर।’
उधर थाना काकोरी पर इं पे टर अ फ़ाक़ उ ा िब मल अपने बेटे अफ़ज़ल
का इंतज़ार कर रहा था। इं पे टर साहब के वा लद फ़ उ ा ख़ाँ डम फाइटर
थे। देश के लए जान देने वाले ां तवीर के दीवाने थे, लहाज़ा बेटे का नाम
अ फ़ाक़ उ ा ख़ाँ क जगह अ फ़ाक़ उ ा िब मल रख िदया था। इ ेफाक
दे खए, नौ महीने पहले अ फ़ाक़ उ ा िब मल उसी काकोरी म तैनात हुए जहां
अ फ़ाक़ उ ा और राम साद िब मल ने अं ेज़ का ख़ज़ाना लूटा था और दोन
एक ही िदन फांसी पर हंसते-हंसते शहीद हो गए थे।
शहीद अ फ़ाक़ उ ा ख़ाँ और पं डत राम साद िब मल के भौ तक और
रासायिनक गुण इं पे टर साहब से एकदम मैच नह करते थे। इं पे टर साहब एक
नंबर के घूसखोर थे। स ाईस साल क नौकरी म दजन फ़ज़ गुडवक िकए,
आउट ऑफ़ टन मोशन िमले और साहब हेड कां टेबल से इं पे टर हो गए।
इ स साल पहले सहारनपुर दंग म दंगाइय ने पु लस लाइन म घुस कर उनक
बीवी म रयम ख़ाँ का क़ ल कर िदया था। साहब ने र त क ऊपरी इनकम से
दोन जुड़वां बेट अबराम और अफ़ज़ल को पाला, पोसा, पढ़ाया और बढ़ाया।
अबराम ने िद ी के एक बड़े कॉलेज से होटल मैनेजमट क ड ी हा सल क ।
एक िदन अबराम ीनगर के 7 टार होटल के शेफ क अ छी ख़ासी नौकरी छोड़
कर काकोरी आ गया। अब अबराम काकोरी म ही ब स एं ड ला ट के नाम से
असली काकोरी कबाब क ऑनलाइन स लाई चेन चला रहा था।
अफ़ज़ल तार म अ मी को ढू ंढ़ते-ढू ंढ़ते बंगलौर के इं डयन इं टी ट
ू ऑफ़
ए टोिफिज़ स म लेनेटरी साइंिट ट बन गया। नासा क अमे रकन
ए टोनॉिमकल सोसाइटी के नॉमन े चर ुप म अफ़ज़ल का सले शन हो गया था।
कुल िमला कर, अफ़ज़ल ह और न का वै ािनक था। उसे नासा के
नामकरण ुप म चुन लया गया था। ये ुप ह , न और उन पर पाए जाने वाले
ग , पहाड़ का अ ययन करता है और िफर उनका कुछ न कुछ नाम भी रखता
है। अफ़ज़ल रसच ोजे ट के साथ ही एक महीने क छु ी पर आया था।
जीप काकोरी थाने पहुच ं ी, लेिकन थाने के गेट से अंदर तक काफ़ भीड़ जुटी
थी। अपोज़ीशन लीडर भूरल े ाल यादव ने समथक के साथ धारा 144 के मु े पर
बवाल काट रखा था। जीप देखते ही तमाम सोश ल ट मुह ं म गुटखे क पीक
गुड़गुड़ाते हुए नारे लगाने लगे, ‘लोिहया जी का एक ही लाल, भूरल े ाल भूरल
े ाल!
ह ा बोलो करो बवाल, भूरल े ाल भूरल
े ाल!’
काकोरी थाना हदी भाषा और भाषा के ए सट का नेशनल रसच पॉइंट था।
यहां कोई भी इस बात से टेट नह था िक उसे इं लश नह आती, य िक जो
इं लश इनको आती है वो इं लश ऑ टे लया के कै बरा म नह सफ काकोरी म
ही बोली जाती है। मतलब कुछ यूं समझ ली जए िक यहां िकसी को हदी कायदे से
नह आती थी, और इं लश तो बाकायदा तौर पर, बेकायदे ही आती थी। कुल
िमलाकर, अं ेज़ी, हदी और उद ू म आटे क तरह देहाती सान कर जो भाषा बनती
है, उसे आप काको रयन ल वेज कह सकते ह। िफ़ म का देसी और परदेसी ान
लबालब भरा था और सोशल मी डया क फुलटॉस नॉलेज थी, भाई लोग को।
फ़ैशन भले ही साउथ बॉ बे म पहले आता हो, लेिकन डायलॉगबाज़ी का असली
अ ा तो काकोरी ही था। इस थाने म सभी सपाही थे और जब अ फ़ाक़ उ ा
िब मल स या के भीखू हा े क तरह सबसे पूछता था िक ‘ सपािहय का कग
कौन?’ तो सब जवाब देते थे ‘इं पे टर साहब!’। इं पे टर साहब भी तो सपाही
भत हुए थे। बस जुगाड़ डॉट कॉम का ऑनलाइन मोशन पाकर सपाही से
इं पे टर बन गए। गव क बात ये िक ये सभी हाई कूल तो प ा पास थे, पर कुछ
ऐसे भी थे जो लस टू फेल भी थे। सफ िविकपी डया ही ेजुएशन फ़ ट इयर तक
पहुचं ा और पहुच
ं ते ही फेल हो गया बेचारा। बाक कुछ पढ़े- लखे, सुपरसॉिनक
पीड से इं लश बोलने वाले और नफ़ासत के साथ उद ू ज़ुबान रखने वाले भी थे,
काकोरी म। बेचारे िक़ मत के मारे थे, जो काकोरी से या तो िनकल नह सके या
काकोरी आ गए।
अनेकता म एकता वाला संवध ै ािनक स ांत लए पु लस जीप कानफोड़ू हॉन
बजाती काकोरी थाने के अंदर पहुच ं ी। ि पुरारी लाउड पीकर पर शु हो गया,
‘धारा 144 लागू है, एक जगह पर चार लोग के खड़े होने क मनाही है। सब लोग
िमल कर पूरे काकोरी थाने को एमाजॉन क बंपर सेल बना रखे हो, हटो एकदम!’
जीप रोक कर िविकपी डया अफ़ज़ल को भीड़ से बचाते हुए इं पे टर के द तर
क तरफ ले गया। थाने के अंदर इं पे टर अ फ़ाक़ उ ा िब मल मोबाइल पर
बात कर रहा था। बेटे अफ़ज़ल को देख कर इं पे टर मु कुराया, िफर आसमान
क तरफ उं गली से इशारा करके सबको जता िदया िक ऊपर से फ़ोन आया है।
‘जी सर! यस सर! िब कुल सर! प ा हो जाएगा…आज ही होगा सर, बस एक-
दो घंटे क मोहलत दी जए। नह सर, गुडवक एकदम नह है। पूरा केस सट परसट
वकआउट हो गया है, सर।’ इं पे टर अ फ़ाक़ उ ा िब मल ने सबके सामने
खुलेआम मु ालाल प कार को आं ख मारी और जय हद कहकर फ़ोन रख िदया।
फ़ोन रख कर अ फ़ाक़ उ ा िब मल मु ालाल प कार क तरफ देखते हुए
बड़बड़ाने लगा, ‘एसएसपी शैलेश कृ णा साहब थे लखनऊ से। ये सब िबना टे नग
के आईपीएस बन जाते ह। फ ड पु ल सग का कोई आई डया तो है नह ।
बृजलाल कुल े साहब भी तो आईपीएस ह! फ ड म घूमे ह, स ह-अठारह
िज़ल के क ान रहे ह। बीहड़ म कई डकैत के एनकाउं टर िकए ह, तब बने ह न
डीजीपी! एक हमारे क ान ह, लखनऊ आते ही नवाब हो गए। डीजीपी साहब ने
ज़रा सा टाइट िकया तो वाइ ेशन मोड म झनझनाने लगे। बस काकोरी इं पे टर
को फ़ोन िमलाओ और हड़काओ…मु ालाल जैसे सीिनयर जन ल ट मदद न कर
तो रोज़ क े कग यूज़ है! ये साला गाय क स ग हमारे घुस गई ह। साली खोपड़ी
भ ा गई है, कैसे िनकाल?’
ख़ुद को सीिनयर जन ल ट सुनकर मु ालाल मन ही मन ए डटर हो गया,
‘अ फ़ाक़ सर जब से आए ह, मी डया को फुल कॉपरेशन है। िपछले वाले इं पे टर
बहुत अं ेज़ी ब तयाते थे, दो ख़बर म स पड हो गए। य ि पुरारी, बताओ साहब
को! आज ही ाइम टाइम यूज़ डॉप िकए ह। प का रता का यही ए थ स है, भले
ही चार ख़बर छूट जाएं पर ऐसी कोई यूज़ न चले जससे डेमो े सी पर असर
पड़े।’
अफ़ज़ल अचानक उठ कर बोला, ‘ख़ाँ साहब म िनकलता हू,ं अबराम इंतज़ार
कर रहा होगा। लाइव लोकेशन है मेरे पास, म चला जाऊंगा।’
अ फ़ाक़ उ ा िब मल झट से उठ कर अफ़ज़ल क तरफ बढ़ा, ‘अरे, ये है मेरा
साइंिट ट बेटा। चं मा से लेकर मंगल ह तक इसक डायरे ट लाइन पर ह, िबना
रो मग चाज के।’
मु ालाल प कार कुस से खड़ा हो गया, ‘मतलब चं यान उड़ाते ह?’
ि पुरारी ने इंटरवीन िकया, ‘अरे नह चं यान टू उड़ाते ह, चं यान वन के व त
तो सर छोटे रहे ह गे।’
िविकपी डया ने तुरत
ं अपने ान का छ का लगाया, ‘अब ये न कह दी जएगा िक
साहब िव म लडर के पायलट थे और चं मा पर उतर नह पाए। सर लेनेटरी
साइंिट ट ह, नासा म सले ट हो गए ह।’
अफ़ज़ल को गले लगाकर अ फ़ाक़ िफर बोला, ‘जैसे पं डत म यो तषी ब
का नाम रखते ह, वैसे ही ये मंगल ह के ग क रसच करके उनका नाम रखेगा।
अभी भी नाराज़ है, ख़ाँ साहब बोलता है।’
अफ़ज़ल ने अं ज़ े ी बुदबुदाई, ‘इ स ओके, आई कैन अंडर टड, बट इ स नॉट
यो तष, इ स ए टोनॉिमकल नॉमन े चर ुप ऑफ़ नासा।’
बेटे क रंगबाज़ी पर अ फ़ाक़ उ ा िब मल का चेहरा चमक उठा, ‘मतलब
बताओ मेरे यूटन…थोड़ी हम लोग क भी जीके बढ़ जाएगी!’
‘अरे जैसे शु का अं ेज़ी नाम ‘वीनस’ है, रोमन गॉडेस; मंगल ह का नाम
‘मास’ है, रोम के यो ा भगवान, उसी तरह लैने स पर जो ग े और पहाड़ िमलते
ह उनके नाम हमको रखने होते ह। मास पर बड़ा ग ा िमला है, उसका नाम िकसी
इं डयन सटी, िवलेज या टाउन के नाम पर रखना है, बस इसी ोजे ट पर एक
महीने के लए आया हू।ं ’ अफ़ज़ल बोला।
अ फ़ाक़ ठहाका लगाते हुए बोला, ‘गजब पारस टी है, सब रोम के ही भगवान
िमले थे? कुछ बजरंग बली के नाम पर भी रख देते।’
इस बीच नारेबाज़ी जारी थी। कैमरा चलाते हुए सटू दबु े, सपाही गौतम और
रमाकांत एक साथ थाने म दा ख़ल हुए। रमाकांत ने परिमशन मांगी, ‘साहब का कर
इनका? लफ र मचाए पड़े ह सुबह से। आप आडर कर तो लाठीचाज कर द। दो-
दो डंडा खाकर संट हो जाएं गे साले।’
अ फ़ाक़ झ ाया, ‘रमाकांत, गौतम, तुम दोन अफ़ज़ल को लेकर चलो। बेटा
तुम पहुच
ं ो, हम बस ये लफड़ा िनबटा कर आते ह। और प कार बंधु आप भी
अपना कैमरा लेकर च लए, कल िमलते ह।’
अ फ़ाक़ ि पुरारी से बोला, ‘ज़रा भूरल
े ाल नेता को अंदर लाओ।’
ि पुरारी तुरत
ं भूरल
े ाल को अंदर लेकर आया। भूरल े ाल के साथ समथक क
भीड़ भी नारे लगाती घुसी, ‘अपना नेता कैसा हो, भूरल
े ाल जैसा हो! भूरे तुम संघष
करो, हम तु हारे साथ ह!’
भूरल
े ाल यादव िबना कहे कुस खसका कर बैठने ही वाला था िक अ फ़ाक़ ने
नेता के मुह
ं से मुह
ं सटाते हुए उसे घूरा, ‘काहे यादव जी, दध
ू का िबजनेस तो तुम
लोग कृ ण भगवान के टाइम से कर रहे हो ना! जब अपनी सरकार थी तब तुम को
गाय-भस का आई डया नह ि क िकया? अब ये सरकार गाय को लेकर स सिटव
है, तो काऊ-काऊ क पालिट स ब तयाने लगे? अबे ि पुरारी, ये साला मैिकया
अंगद यादव म लहाबाद से लौटा िक नह ? िमलाओ तो फ़ोन साले को।’
भूरल
े ाल ने पलट कर कायकताओं क भीड़ को देखा, िफर इं पे टर क आं ख
म आं ख डालकर गुराया, ‘ यादा चुलबुल पांडे न बनो अ फ़ाक़ उ ा, एक िमनट
के अंदर काकोरी म जन क याणकारी क म लागू हो जाएगी, िफर लाउड पीकर
पर पढ़ते रहना सरकार का घोषणा प ।’
अ फ़ाक़ ने माइ ड धमक देते हुए पूछा, ‘ सघम वन देखे हो?’
भूरल
े ाल बोला, ‘हां देखे ह, तो?’
अ फ़ाक़ ने ि पुरारी को देखते हुए कहा, ‘हम िफलहाल उसी मूड म ह।’
ि पुरारी बोला, ‘सर अंगद यादव का फ़ोन नाट रीचेिबल है। बोले थे साले को,
आज ूटी पर मैक न फंू क लेना…पड़ा होगा कह कोने म!’
बहसा-बहसी के बीच अचानक दरवाज़ा खुला और सपाही अंगद यादव एक के
बाद एक, चार गाय लेकर सीधे साहब के द तर म ही घुस आया, ‘हटो यार! साइड
हो जाओ। साहब, ये रही गऊ माताएं , सीधे म लहाबाद से छोटा हाथी टपो पर लाद
कर लाए ह।’
अ फ़ाक़ च ाया, ‘ि पुरारी एक एफआईआर तैयार कर और लख,
“अपोजीशन लीडर भूरल े ाल यादव के फाम हाउस पर मने रेड डाली और फाम
हाउस से काकोरी के ननकू कुशवाहा क चोरी हुई चार गाय बरामद क । पूछताछ
म फाम हाउस कमचा रय ने बताया िक भूरल े ाल ने टेट का लॉ एं ड ऑडर ख़राब
करने क नीयत से पहले गाय चुराई ं, िफर सरकार को बदनाम करने और दंगा
कराने के लए गाय काट कर सड़क पर फकने क क म बनाई थी।” अभी सारी
नेतािगरी घुसेड़ता हूं इनक कमोड म!’
ि पुरारी ने पूछा, ‘सर या कमोड का भी उ ेख करना है मुकदमे म?’
अ फ़ाक़ च ाया, ‘हम ग़ु सा न िदलाओ ि पुरारी, ग़ु सा आ गया तो टं ेचर
बढ़ेगा और हम लोबल वा मग कम करने क कसम खाए ह।’
द तर म िपन डॉप स ाटा फैल गया। कायकताओं के नारे ढीले पड़ गए और
नारेबाज़ी बंद हो गई। अ फ़ाक़ ने भीड़ के सामने दोन हाथ से भूरले ाल का कॉलर
पकड़ कर डायलॉग मारा, ‘काकोरी म सब के सब िवलेन ह भूरल े ाल, और हीरो
यहां वही है जो सबसे बड़ा िवलेन है।’
इं पे टर साहब का इरादा समझ कर ि पुरारी पांडे िविकपी डया को कं यूटर
पर एफआईआर ड टेट करने लगा। भूरल े ाल क सोश ल ट बॉडी ल वेज ने
एकदम सरडर कर िदया, ‘मतलब गुडवक करोगे तुम?’
इं पे टर अ फ़ाक़ उ ा िब मल ने िफर भूरले ाल यादव को ध स दी, ‘153,
153 ए, 295, तबं धत पशु, राज ोह और सािज़श रचने का मुकदमा काफ़ है या
खाने म नेशनल स यो रटी ए ट भी लगे, नेता जी? ठ क कर अंदर कर दगं ू ा!
कसम से साल भर जमानत नह होगी।’
भूरल
े ाल ने कायकताओं क भीड़ को बाहर जाने का इशारा िकया। भीड़ चुपचाप
सरक ली। अ फ़ाक़ ने भी सपािहय को बाहर भेज िदया, ‘देखो नेता जी, केस
वकआउट िकया तो एसबली म भूरल े ाल के लए एक-दो िदन शोरगुल होगा, और
गुडवक िकया तो पांच साल ख़ुद भूरले ाल सरकार क नी तय पर शोर मचाएगा।’
भूरल
े ाल नेता के िदमाग़ का फोर जी नेटवक अब टनाटन काम करने लगा:
सरकार जा चुक है, दस साल स ा आने क कोई गुज ं ाइश नह िदखाई दे रही।
िनकले थे गऊवादी सरकार िहलाने, साला मुसलमान दरोगा ने गाय का खट ूं ा खोल
िदया। राजनी त कहती है िक राजनी त बनी रही तो द ु मन को िनबटाने के लए
कई मौक़े िमलगे। यही सब सोच कर भूरल
े ाल ने धीरे से पूछा, ‘ या करना है?’
‘बस तीन लाख कैश, सवा लाख क चेक, एक कायकता और गाय का पता,’
अ फ़ाक़ उ ा ने पूरा मे यू काड पेश कर िदया।
भूरल
े ाल बोला, ‘कुछ समझा नह म!’
‘कैश थाने का िम लीिनयस फंड है। चेक म लहाबाद के मेवालाल तवारी के
नाम, जहां से चार गाय हमारा मैिकया सपाही ख़रीद कर लाया है। कायकता
सफ गाय चोरी म जेल जाएगा और कायकता के पते से गाय बरामद होगी,’
इं पे टर बोला।
भूरल
े ाल ने अपना मे यू काड खोला, ‘कायकता छोड़ो, फाम हाउस का कमचारी
जेल भेज दो। उसी के घर से गाय बरामद िदखा दो, बाक चेक पेमट क या
ज़ रत है, जहां से गाय ख़रीदी ह उसे लौटा दो।’
‘गाय लौटा दगे तो या घंटा बरामद करगे बे!’ इं पे टर चड़ चड़ाया।
नेता ने रह य से पदा उठाया, ‘गाय हमारे फाम हाउस म ही बंधी ह।’
इं पे टर बनावटी तौर पर च का, ‘चलो सारे िनयम और शत लागू, लेिकन जेल
तो कायकता ही जाएगा। सवा लाख क चेक छोड़ो, प ीस हज़ार के दीवाली बंपर
ड काउं ट के साथ, बस एक लाख कैश बढ़ा लो।’
‘चलो कोई छोटा-मोटा कायकता अंदर कर देना, पर एक लाख काहे बढ़ा ल?’
अ फ़ाक़ ने चुटक बजाई, ‘काहे से िक फाम हाउस पर छापा मार कर केस तो
हम वैसे ही वकआउट कर रहे थे। तो समझो क सवा लाख म इसक फ स तीस
हज़ार, दसू रा मेवालाल से गाय पचपन हज़ार म ख़रीदी ह, िहसाब हुआ प ासी
हज़ार। बाक बचे चालीस हज़ार, वो मेवालाल बक से िनकाल कर देता। अब हम
प ीस हज़ार क स सडी दे िदए तुमको, तो बचा एक लाख—अब पइसा िनकालो
और फ़ौरन िनकलो यहां से।’
इं पे टर अ फ़ाक़ उ ा िब मल ने हस ू ड कर िदया िक वो ही काकोरी का
सबसे बड़ा िवलेन है। अपोज़ीशन लीडर को बचा कर चार लाख घूस वसूल ली,
केस वकआउट कर िदया। कायकता क िगर तारी से सािबत हो गया िक माहौल
िबगाड़ने म िवप का हाथ था। सरकार है पी, अफ़सर भी है पी और दफ़ा 144
काकोरी से दफ़ा हो गई।
उधर आम के बाग , छोटे-बड़े घर म बने पटाखा कारखान और चकनकारी का
काम करने वाल के घर के बीच से गुज़र कर अफ़ज़ल क जीप अबराम के
काकोरी कबाब पॉइंट तक पहुच ं गई। अबराम काकोरी कबाब बना रहे अपने
कारीगर को िकसी बात पर डांट रहा था। जहां पर ऑडर स लाई करना था वहां
से कई फ़ोन आ चुके थे, लेिकन माल अभी तक ड लवर नह हुआ था। जीप क
आवाज़ सुन कर अबराम ने सामने देखा तो अफ़ज़ल खड़ा था। अबराम ने काउं टर
छोड़ा और दौड़ कर अफ़ज़ल को गले लगा लया, ‘ या गु , गजब माट हो गया
है तू तो!’
अबराम को गले लगाए हुए अफ़ज़ल क आं ख नम थ , ‘अ मी को तेरे नाम से भी
चादर चढ़ा दी गु , ख़ुश थ िक तू ख़ाँ साहब के साथ है।’
‘पं डत जी से मुलाकात बड़ी यूपी पु लस टाइप रही होगी?’ अबराम बोला।
अफ़ज़ल ने टॉ ट मारा, ‘तेरे पं डत जी तो सफ गांधीिगरी म िबज़ी रहते ह,
“फॉर द मनी, ऑफ़ द मनी, बाय द मनी!”’
दोन ठहाका लगाकर हंसे और िफर अबराम ने घर क चाबी रमाकांत को देकर
कहा, ‘लगेज घर पर ही रख देना और चाबी पं डत जी को दे देना।’
दोन सपािहय ने नम ते िकया और जीप टाट करके चले गए।
‘नाम तो बड़ा ट टग रखा है—ब स एं ड ला ट!’ अफज़ल ने बोड पढ़ते हुए
कहा।
‘अरे काकोरी कबाब ह ही ऐसे िक मुह
ं म पानी का ला ट हो जाता है,’ अबराम
हंसते हुए बोला।
‘अ छा, टे ट ब स एं ड माउथ वॉट रग ला ट!’ अफ़ज़ल ज़ोर से हंसा।
‘गु जस नवाब के शेफ ने काकोरी कबाब इ वट िकया था, उस शेफ क फोथ
जनरेशन है। सच ए काइंड मैन, ज ट िग टेड िहज़ हाउस ि माइसेस फॉर माय
काउं टर एं ड िहज़ जनरेशन रॉय टी टू ,’ अबराम ने अफ़ज़ल को बताया।
इतने म अ सी साल के तह वर ख़ाँ घर से बाहर िनकले। अफ़ज़ल क तरफ
देख कर अबराम से पूछा, ‘आ गया अफ़ज़ल साइंिट ट!’ िफर अफ़ज़ल से बोले,
‘तेरे बारे म अ सर बात होती रहती ह। समझा इसको, अ छी ख़ासी नौकरी छोड़
कर यहां छोटे से क बे म ख़ुद को कबाब क तरह पका रहा है।’
‘ई कॉमस ऑल टाइम हाई पर है, तह वर चाचा। और ऑथिटक कबाब, वो भी
होम ड लवरी! आप देखते जाइए, ब स एं ड ला ट का एप एक िदन सबसे टॉप
पर होगा,’ अबराम ने तह वर और अफ़ज़ल को कॉ फडस िदखाया।
‘ख़ैर, म ख़ानक़ाह तक जा रहा हू,ं उस कमेटी क मी टग है, तैया रयां करनी ह।’
कहकर तह वर धीरे-धीरे छड़ी के सहारे चल िदया। तह वर के पास काकोरी म
पुरख का बनाया कुल जमा एक घर और पांच बीघा आम का बाग था। औलाद के
नाम पर चौबीस साल क एक बेहद ख़ूबसूरत सी बेटी, रािबया बसर थी। रािबया
लखनऊ के ईसाबेला थॉबन कॉलेज से पो ट ेजुएट थी और काकोरी हायर
सेकडरी कूल म िह टी क टीचर थी। तह वर उस कमेटी का से े टरी था और
तह वर का भांजा, चांद खुतरा कमेटी का मबर।
तीस साल पहले तह वर क बहन ने लखनऊ के मैट नटी होम म एक बेटे को
ज म िदया। ओवर एने थी सया क वजह से बहन ड लवरी टेबल पर ही मर गई।
चेरी लॉसम पॉ लश जैसा कलर टोन लेकर भांजा पैदा हुआ। चेचक ने रही सही
कसर भी पूरी कर दी। सैकड़ छोटे-बड़े दाग चांद के चेहरे का जयो ािफया बदल
चुके थे। जैसे चूहा कपड़े कुतर देता है, वैसे चेचक ने चांद का चेहरा कुतर िदया था।
मामा ने चांद नाम रखा, दो त ने चांद के आगे कुतरा, और िफर उसे भी कुतर कर
खुतरा जोड़ िदया। चांद खुतरा तह वर के बाग क देखरेख के साथ-साथ सीज़न
के दशहरी आम, मगो डंक बनाने वाली म टीनेशनल कंपनी को बेचता था। चांद
आम क पेमट और उस के चंदे म कैम करके अपना ख़च चलाता था। बूढ़ा
तह वर मामा चांद खुतरा क नस-नस से वािकफ था, बस बहन को याद करके चुप
रहता था।
चांद खुतरा का लंगोिटया यार था, नसीम पपीतेवाला। नसीम लो-डायिबटीज़
का पेशट था। जी स पहने या पजामा कुता या िफर पठानी सूट, लेिकन पैर म
गो डन ए ॉयडरी वाली पेशावरी ज़ र पहनता था और प ा लोफ़र लगता था।
क मीरी सेब, नागपुरी संतरे, मुज़ फरपुर क लीची और चाइनीज़ डैगन ू ट का
होलसेल कारोबारी था नसीम पपीतेवाला। काफ़ असा पहले उसने कबाब के लए
पपीते का कारोबार शु िकया था, इसी लए लोग उसे नसीम पपीतेवाला के नाम
से ही जानने लगे। नसीम क नज़र तह वर क बेटी रािबया बसर पर थी। चांद
खुतरा भी चाहता था िक नसीम का िनकाह ममेरी बहन रािबया से हो जाए। िनकाह
हो गया तो क़ म पैर लटका चुके मामा क सारी जायदाद उसे िमल जाएगी। दो त
नसीम से र तेदारी के साथ-साथ िबज़नेस पाटनर शप भी हो जाएगी।
तह वर क बेटी रािबया बसर अपनी सुपर सहेली ा ठाकुर के साथ र शे से
जा रही थी। ा ठाकुर—टॉम बॉय थी, जी स, टी-शट, जैकेट, पो स शूज़ और
हेयर टाइल म तो काकोरी के ल डे भी फेल थे। ा अयो या क रहने वाली थी
और रािबया के साथ ही कूल म आट क टीचर थी और शौिक़या े आ ट ट। वो
िकसी भी चीज़ को देखकर टैराकोटा या िम ी से उसक रै लका तैयार कर देती
थी। ा के पापा अयो या म पीड यड ू ी क थे, मां हाउसवाइफ और छोटा भाई
अयो या के एक कूल म टथ क पढ़ाई कर रहा था। इधर तह वर काकोरी शरीफ़
दरगाह पहुचं ा, उधर उसक लाड़ली रािबया, ा ठाकुर के साथ र शे से ठीक
कलंदरी दरगाह के सामने उतरी।
तह वर मु कुराते हुए बोला, ‘कहां जा रही ह गुलाबो सताबो?’
अ बू का गाल चूमते हुए रािबया बोली, ‘आज 16 हो गई है और 18 तारीख़ को
कूल का फाउं डस डे है, ब के ले क तैयारी करनी है। रात म ा के घर ही
कूंगी।’
‘डीजीपी चीफ गे ट ह, आप भी आइएगा,’ ा बोली।
सर िहलाकर इंकार करते हुए तह वर ने कहा, ‘अरे मुझे रहने दे, उस क तैयारी
जोर पर है। चल जा, तू अपने ले क तैयारी कर। अगर घर जाती तो अबराम के
भाई से भी िमल लेती, वो आया हुआ है।’
अ बू से नज़र बचाते हुए ा ने रािबया को कोहनी मारी, ‘अरे कौन? वो ब स
एं ड ला ट वाले अबराम का भाई, अफ़ज़ल साइंिट ट?’
रािबया ने ा को आं ख िदखाई, ‘तो या हुआ, हम कल िमल लगे।’
तह वर दोन को छोड़कर दरगाह के अंदर चल िदया। ा और रािबया िफर
र शे पर बैठ गई ं, बैठते ही ा ने रािबया क कमर म चुटक काटते हुए कहा,
‘मैडम अब तो दो-दो ऑ शन ह आप के पास।’
रािबया मुह
ं बना कर बोली, ‘अबराम ट है, न थग सी रयस। चांद भाई और
नसीम पपीते से उसक दो ती; डो ट नो हाई, बट आई ज ट हेट दैट लाइक
एिन थग!’
ा ने आं ख मारते हुए कहा, ‘अरे तू इ क के कबाब खा या लव क लैब म
साइंिट ट का लटमस टे ट कर ले, नाऊ चॉइस इज़ योस।’
तभी र शे के बगल से माल ढोने वाला टपो गुज़रा। टपो ने तेज़ी से कट मारा
और र शा पलटते-पलटते बचा। रािबया ग़ु से म टपो वाले पर च ाई, ‘देख कर
नह चलाना आता या?’
डाइ वग सीट से पैर म गो डन ए ॉयडरी वाली पेशावरी, आं ख म म टीकलर
च मा और पठानी सूट पहने नसीम पपीतेवाला उतरा, ‘अरे हम तो देख कर ही
चला रहे थे मेरी डीम गल, हमारे टपो ने बस आपको देखा और ज़ोर से ेक मार
िदया।’
रािबया ने ताना मारा, ‘स डल देखी है, उता ं या?’
नसीम लोफ़राना अंदाज़ म बोला, ‘देखी तो सलवार भी है!’
टपो के बगल वाली सीट से चांद खुतरा उतरा, ‘ए नसीम! हम मामा को िनकाह
के लए राज़ी करने म पसीना बहा रहे ह और तुम साला अपने टपो को नह समझा
पा रहे हो। टपो से बोलो देख कर ेक मारा करे।’
रािबया च ाई, ‘चांद भाई हम सफ अ बू क शराफ़त म चुप ह…’
इस बार चांद खुतरा बोला, ‘और हम नसीम भाई क शराफ़त म चुप ह।’
ा भी उतर कर आई और बोली, ‘आप रािबया के भाई ह, चांद भाई।’
नसीम पपीतेवाला ने च मा उतार कर ा को आं ख िदखाई, ‘ यादा मैरीकॉम
न बनो, एक कंटाप मारा तो बफ रग वाले च े क तरह घूमने लगोगी। साला साल
भर से शराफ़त से गुड मॉ नग, गुड नाइट करते थक गए हम, ए ो वा सप मैसेज
का र लाई ही नह देती है।’
रािबया ग़ु से म पलटी और ा के साथ र शे पर बैठ कर चली गई। र शा
ा के घर के बाहर का तो रािबया बोली, ‘या तो तू कूटी ले ले, या मुझे
चलाना सखा दे, अब ये र शे और टपो का झंझट इ रटेट करने लगा है यार।’
ा बोली, ‘कोई कूटी नह ख़रीदनी, अबक बार अयो या गई तो अपनी
मोटरसाइिकल ले आऊंगी। घर म खड़ी-खड़ी जंग खा रही है। िफर नो र शा।’
रािबया का िदमाग़ थोड़ा ठंडा हुआ। दोन मु कुराई ं और र शे वाले को पैसे
देकर ऊपर चली गई ं। ा का िकराए का मकान दस ू री मंिज़ल पर था। मकान
मा लक बाहर रहता था और कभी-कभार ही आता था।
पूरनमासी क रात थी। चांद क रोशनी ने काकोरी को तर-ब-तर कर रखा था।
पु लस लाइन के सरकारी वाटर पर अबराम और अफ़ज़ल डाइ नग टेबल पर बैठे
थे। िकचन म कुकर क सीटी बार-बार बज कर बंद हो गई। इं पे टर अ फ़ाक़
उ ा कुकर हाथ म लए डाइ नग टेबल पर आते ही बोला, ‘ योर ख सी है, एकदम
ताज़ा! खड़े मसाले म भूना है, पुरिबया देसी टाइल म। मजा न आए तो पैसे
वापस।’
अफ़ज़ल ने चुटक ली, ‘ख़ाँ साहब कब से पैसे वापस करने लगे?’
‘अफ़ज़ल हम तीन शायद दो साल बाद िमल रहे ह,’ अबराम बोला।
‘हां पता है हम तीन शायद दो साल बाद एक साथ िमले ह, लेिकन अ मी बीस
साल से हमारे साथ नह ह अबराम,’ अफ़ज़ल बुदबुदाया।
अबराम से रहा नह गया, ‘अरे अ मी को मने भी खोया है, और अ मी भी अ बू
को पं डत जी बोलती थ , ये तो याद होगा तुझे?’
अफ़ज़ल ने ं धे हुए गले से कहा, ‘और जन ि िमन स को ख़ाँ साहब ने पैसा
लेकर थाने से छोड़ िदया था, उ ह ि िमन स ने दंगाई बन कर अ मी को हमारी
आं ख के सामने मार िदया था। या तुझे याद है?’
इस बार अ फ़ाक़ ने टोका, ‘अरे उसे छोड़ तू मटन िनकाल और देख तो ज़रा,
छु न के ढाबे से रेशमी माल जैसी माली मंगाई है।’
मगर अबराम ने बहस जारी रखी, ‘अफ़ज़ल, पं डत जी हमारे अ बू ह!’
अफ़ज़ल ने िफर जवाब िदया, ‘अ मी ने अपने ससुर फ़ उ ा ख़ाँ का लहाज़
रखा और पं डत जी कहकर इ ज़त ब शी वना ये न तो अ फ़ाक़ उ ा ख़ाँ ह और
न पं डत राम साद िब मल।’
अबराम च ाया, ‘तो ख़ाँ साहब भी मत बोला कर।’
अफ़ज़ल ने घूरा, ‘शहीद अ फ़ाक़ उ ा ख़ाँ क इ ज़त करता हू…
ं ’
‘तो म ख़ाँ साहब भी नह हू?ं ’ अ फ़ाक़ ने मायस
ू ी से पूछा।
अफ़ज़ल ने मानो ज़हर उगल िदया, ‘आप से सफ एक र ता है ख़ाँ साहब, वो
र ता जो अ मी क याद और अबराम के साथ से जुड़ा है। काकोरी से मेरा या
वा ता? अबराम न होता तो म य आता यहां?’
अबराम से रहा नह गया, ‘तो वो जो तू छुि य म ह त मेरे साथ ीनगर म
का और म जो तेरे साथ अ सर बंगलौर म रहता था, उस र ते म पं डत जी
कह नह थे?’
अ फ़ाक़ उ ा िब मल क िह मत टू ट गई, ‘चार-पांच साल म रटायर हो
जाऊंगा, मान लेना िक अ मी के साथ म भी नह रहा। जब तक है यार से रह ले,
िफर अबराम से िमलते रहना।’
पूरनमासी पर अमावस छा गई। आज द तर वान पर सफ आं सू िपए गए।
तीन डाइ नग टेबल से उठे । अबराम, अ फ़ाक़ को उसके कमरे म ले गया और
अफ़ज़ल, अबराम के कमरे क तरफ बढ़ गया।
***
17 जुलाई 2019
कुरैशी कसाई के काटने से पहले पजड़े म बंद देसी मुग ने बांग दी। सुबह होते ही
नसीम पपीतेवाला के ू ट के गोदाम म टपो लाइन लगा कर खड़े थे। मंडी का व त
था, लहाज़ा लखनऊ, कानपुर, हरदोई, िमज़ापुर और सोनभ जाने वाले टपो
ज दी लोड िकए जा रहे थे। नसीम सारे डाइवस को पेमट साथ म लेकर आने का
हु म सुना रहा था। इसी बीच सामने से टहलता हुआ चांद खुतरा आया और
नसीम के कंधे पर ध ा मार कर बोला, ‘सारे टपो सफ फल ढोने के लए ख़रीदे
हो या एक आधा अपना माल लादने के लए भी छोड़े हो?’
नसीम च का, ‘अपना माल! ओह…हां, रािबया डा लग।’
चांद बोला, ‘दरगाह चलो, आज बु े से ब तया ही लेते ह।’
नसीम के चेहरे पर तस ी िदखाई दी, ‘हां चल, आज हो ही जाए।’
चांद च ाया, ‘अबे ए सोनभ ! तू बाद म जाना, टपो ला इधर।’
चांद डाइ वग सीट पर बैठा और दोन दरगाह क तरफ चल िदए। नसीम ने चांद
के कंधे पर हाथ मारते हुए कहा, ‘खुतरे, तुझे साले बे ट साला होने का नोबेल
पुर कार िमलेगा, बस आज िफ स करा दे सब।’
टपो चला रहे चांद ने मुह
ं खोला, ‘अबे ये नोबेल-ओबेल न ब तयाओ, इतने बड़े
साइंिट ट नह ह हम, बस मेहर क रकम तैयार रखो।’
नसीम ने पूछा, ‘तो का चािहए तुमको, मेरे खुत ीन?’
चांद ने ठहाका मारा, ‘मगो गाडन हमारा, ू ट गोदाम तु हारा, दजन भर टपो,
िफ टी-िफ टी के िबज़नेस पाटनर; िफर हम भी कंड टर क तरह आवाज़
लगाएं गे “अबे है कोई सवारी लखनऊ-िमजापुर-सोनभ !”’
नसीम ज़ोर से हंसने लगा।
दरगाह पहुच
ं कर चांद ने टपो साइड म लगाया और दोन अंदर चल िदए।
तह वर आ तान से िनकल कर कमेटी के द तर क तरफ जा रहा था। चांद ने
आवाज़ देकर रोक लया और पास जाकर सीधे पॉइंट पर आया, ‘मामा नसीम को
तो जानते ही हो, काकोरी का सबसे बड़ा कारोबारी है। तारीख तय करके रािबया
से िनकाह पढ़वा दो, बस।’
तह वर ग़ु साया, ‘बस यही लफ़ंगा बचा था!’
‘ए मामा, लफ़ंगा लाख कमाता है।’
तह वर ने नसीम को घूर कर देखा, ‘हां, लाख कमाने वाला लफ़ंगा।’
चांद मटल हो गया, ‘गो डन ए ॉयडरी वाली जूती पहनता है ये लफ़ंगा!’
‘मुझे अपनी बेटी को सोने क जूती नह बनाना है।’ तह वर बोला।
चांद का पारा चढ़ गया, ‘तुम क़ाज़ी बुलाते हो या उठवा लूं ल डया?’
तह वर ने चांद का गाल थपथपाया, ‘अ छा होता मेरी बहन क जगह तू मर
जाता उस िदन। पहले भी कह चुका हू,ं िफर कह रहा हू,ं रािबया को इस लए नह
पढ़ाया- लखाया िक काकोरी के िकसी गुडं े को दे द!ं ू ’
अबक बार नसीम पपीतेवाला चांद को बीच से हटाते हुए बोला, ‘रहने दे बे चांद,
कई बार बु े को चांद का चंदामामा समझ कर ड र वे ट भेज चुका हू,ं साला
ए से ट ही नह कर रहा है। चलो तह वर क ल डया घर लाने का अरमान लॉक
कर देते ह।’
चांद गुराया, ‘मामा वलीमे क दावत म ज़ र आना और हां, बोनलेस िबरयानी
ही खाना, काहे से न ा तो तु हारे दांत से अब टू टेगा नह ।’
नसीम तह वर क तरफ देख कर बेहद नम अंदाज़ म बोला, ‘अबे चांद ग़ु से को
वच ऑफ़ कर। वो डायलॉग सुना है न, “नो म स नो!” मामा कहा सुना माफ़।
आपको बेटी मुबारक, हमको हमारी लफ़ंगई।’ इतना कहकर नसीम चांद को लेकर
वहां से चला गया।
***
उधर काकोरी थाने म आज बड़ी गहमागहमी थी, जैसे कोई माकट हो। कह
मोटरसाइिकल के मीटर खुले रखे थे, कह पेटोल क टंिकयां, तो कह इंजन।
कार के दो इंजन अलग से खुले रखे थे। दजन लोग क भीड़ खड़ी थी। शोरगुल
हो रहा था। ि पुरारी पांडे, गौतम, रमाकांत, अंगद यादव सब के सब िहसाब म जुटे
थे।
ि पुरारी च ाया, ‘अब ये मछली बाज़ार न बनाओ। ओ गु ा, ये दोन इंजन
एसयवू ी के ह। पीछे से ट र लगी थी, दोन डीजल इंजन ह और एकदम सेफ़ ह।
एक खर च नह है…स र हजार से एक पैसा कम नह लगे। ए रमाकांत! अबे
गौतम! मोटरसाइिकल का ए ो पुजा दस पया नीचे न बेचना। र ज टर पर जस
चीज़ का जतना दाम है, बस उतने ही म िबकेगी। जसे लेना हो लो, नह तो कम
हो लो।’
तभी इं पे टर अ फ़ाक़ उ ा िब मल क जीप थाने म घुसी। गाड़ी रोक कर
िविकपी डया ने साहब के लए दरवाज़ा खोला। अ फ़ाक़ ने बे ट पकड़कर पट
चढ़ाई, ‘ या ि पुरारी, या हाल है तु हारी वटर सेल का? और ये मैिकए अंगद
को काहे लगाए हो बे?’
अंगद दांत िनपोर कर बोला, ‘हम तो सेल म हमेशा रहते ह, साहब।’
ि पुरारी को ज दी से सब िनबटाने का इशारा कर अ फ़ाक़ अंदर चला गया।
थाने के अंदर इं पे टर अ फ़ाक़ फ़ोन पर बात कर रहा था, ‘जय हद सर!
सुबह क ान साहब ने आदेश िकया था िक डीजीपी साहब से बात कर लू।ं फ़ोन
िमलाए थे, पर साहब आप फ़ोन वाइंट पर नह थे…जी सर, पता लगा आप
मी टग म ह। पीआरओ साहब बोले थे दो बजे तक मोबाइल लगाने को। जी सर, हां
पूरी तैयारी है सर। हम सब चेक कर लए ह सर, बस आप आइए, काकोरी ध य हो
जाएगा। कूल मैनेजमट आपका स मान भी करेगा, सर। जी सर, जय हद सर!’
बगल म र ज टर दबाए ि पुरारी के हाथ म नोट क ग यां थ , ‘साहब काम
पूरा हो गया; िहसाब तैयार है, सुन ली जए।’
दराज़ से मै ीफाइंग लस िनकाल कर अ फ़ाक़ बोला, ‘हां बताओ।’
ि पुरारी ने नोट क ग यां मेज़ पर रख और र ज टर खोल कर पढ़ने लगा,
‘साहब, चार लाख गइया चोरी वाले बवाल म भूरल
े ाल यादव से लए थे, मारपीट
के दो मुकदम म चालीस हज़ार, खेत पर क ज़े वाले म दातादीन पासी एं ड टेन
अदस वाली एफआईआर म टेन म स स अदस को डेढ़ लाख लेकर थाने से छोड़े
थे; बाक कार, टक, मोटरसाइिकल का पुजा, इंजन, चे चस बेच कर टोटल नौ
लाख छांछठ हजार नौ सौ िन यानबे पए ह। बाक रमाकांत टाक िमला रहा है।’
तब तक रमाकांत, गौतम और अंगद यादव भी अंदर आ गए। रमाकांत बोला,
‘साहब, पांच महीने का पूरा िहसाब है। मोटरसाइिकल क नौ हेडलाइट, दो टंक ,
दो साइलसर और एक मोटरसाइिकल टाक म कम है, पता नह कऊन चुरा ले
जाता है?’
अ फ़ाक़ बोला, ‘साला थाने म ही चोरी हो रही है चार-पांच महीने से?’
मैिकए सपाही अंगद यादव ने धीरे से कहा, ‘साहब हम लगता है ये यापारी
लोग ही चुरा ले जाते ह, कोई थाना कमचारी िमला हुआ है।’
मै ीफाइंग लस से असली नकली नोट चेक कर रहे अ फ़ाक़ उ ा ने लस से ही
ि पुरारी को घूर कर देखा, ‘और चरस का या हुआ?’
ि पुरारी ने िहसाब िदया, ‘साहब वो म लहाबाद इं पे टर िपछले महीने ढाई सौ
ाम ले गए थे, अभी उनका पेमट प डग है। बाक टाक म तौल कर एक केजी
चरस करे ट बची है, कोई घपला नह है।’
लस को दराज़ म रख कर अ फ़ाक़ उ ा िब मल उठा, ‘मेरे साथ दो-तीन लोग
काकोरी हायर सेकडरी कूल का मुआयना करने चलो। डीजीपी साहब चीफ गे ट
ह वहां। ि पुरारी ये पैसा और िहसाब का र ज टर अपने पास रख लो, जब म
बताऊं तब िनकालना।’
***
पु लस वाटर क छत पर बैठा अफ़ज़ल लैपटॉप पर मै स देख कर बीच-बीच म
डायरी के प पर कुछ कॉ डने स लख रहा था। तभी उसका मोबाइल बजा।
अफ़ज़ल ने फ़ोन उठाया, ‘गुड नून सर! जी काकोरी म ही हू।ं यस सर, वैरी मच
ऑन माय िमशन! जी सर, हां सर, आई एम व कग ऑन कॉ डने स। योर सर!
नह सर, ॉपर पॉपूलेशन सच करके, डायामीटर के कै यूलेशन के िहसाब से ही
कं लीट क ं गा। हेडली को एक डा ट मेल कर िदया है, एक-दो िदन म काम शु
करके बीस िदन म कं लीट कर दगं ू ा, सर।’
जैसे ही अफ़ज़ल ने फ़ोन रखा, वैसे ही अबराम छत पर आया, ‘यहां या कर
रहा है गु ? चल तुझे अपना काम िदखाता हू।ं ’
अफ़ज़ल ने झट से लैपटॉप क ीन डाउन कर डायरी भी बंद कर दी, ‘नह
गु , तू चल, मेरा बहुत काम बाक है…जब से आया हूं एक घंटे भी काम नह
िकया, छु ी पर हूं पर वक ॉम होम ोजे ट है।’
अबराम मु कुराया, ‘चल कोई नह , िफर िकसी िदन।’
अबराम के जाते ही अफ़ज़ल िफर से काम म लग गया।
***
18 जुलाई 2019
कुरैशी कसाई के कड़कनाथ मुग क कुकड़कूं के साथ एक और गुड मॉ नग कर
चुके काकोरी के सर पर चमचमाते सूरज क घड़ी बता रही थी िक दोपहर के
क़रीब दो बज चुके ह। काकोरी हायर सेकडरी कूल का फाउं डस डे फं शन था।
रािबया तैयार होकर सीिढ़यां उतर रही थी। कई मज़दरू लकड़ी क पेिटयां लेकर
छत क तरफ चढ़ रहे थे। संकरी सीिढ़यां होने क वजह से एक मज़दरू रािबया से
टकराया। पेटी कंधे से सरक और सीढ़ी पर लुढ़क कर खुल गई। पेटी से मी डयम
साइज़ क डल जैसे दजन पीस िगर पड़े। हर पीस काले रंग के रैपर म पैक था।
मज़दरू तुरतं पेटी रख कर सारे पीस बटोरने लगा। रािबया ज़ोर से च ाई, ‘देख
कर नह चल सकते? और ये सब या है, कहां ले जा रहे हो?’
मज़दरू घबरा गया, ‘चांद भाई बोले ह िक छत वाले कमरे म रख दो।’
तमाम पीस सीिढ़य से िगरते हुए नीचे तक पहुच
ं गए। शोर सुन कर तह वर नीचे
वाले कमरे से जीने के पास आ गया। एक पीस तह वर के पैर से टकराया। पीस
उठाते हुए तह वर बोला, ‘अरे ये सब या िगर गया? य इतना ग़ु सा हो रही है
मेरी रानी िबिटया?’
सीढ़ी से नीचे उतर रही रािबया बड़बड़ाई, ‘इस चांद ने घर को गोदाम बना िदया
है, म तंग आ गई हूं तु हारे इस नाकारा भांजे से। हर व त चांद-नसीम, चांद-
नसीम…पता नह ये र ज टर कहां रख िदया मने?’
तह वर ने रािबया को काले रैपर म पैक क डल जैसा पीस थमाया और सीढ़ी से
कमरे क तरफ मुड़कर चल िदया, ‘अंदर मेज़ पर रखा है।’
रािबया कमरे म पहुच
ं ी, र ज टर उठाया और चलने लगी िक तह वर ने उसके
सर पर हाथ रखकर कहा, ‘चांद और नसीम आए थे बात करने।’
‘िबन याही मर जाऊंगी, पर पपीते क पेटी नह बनूग
ं ी,’ रािबया चढ़कर बोली।
तह वर मु कुराया, ‘अरे मने कब कहा…या तो म ढू ंढ़ द,ं ू या तू ढू ंढ़ ले।’
रािबया ने पलट कर क डल साइज़ का वो पीस मेज़ क दराज़ म रख िदया, िफर
अ बू का माथा चूमा, ‘ढू ंढ़ कर ज दी बताती हू।ं म नह ढू ंढ़ पाई तो आप ढू ंढ़ लेना,
अ बू जान।’
रािबया बाहर आई। नसीम पपीतेवाला और चांद खुतरा अबराम के साथ बच पर
बैठे िकसी बात पर ज़ोर-ज़ोर से हंस रहे थे।
रािबया च ाई, ‘चांद भाई, मेरे अ बू का घर पपीतेवाला का गोदाम नह है।
बदा त से बाहर हो चुके हो तुम दोन , कल तक ये पेिटयां बाहर करो, वना अ ाह
कसम पु लस उठा कर बाहर फकेगी।’
चांद खुतरा और नसीम पपीता रािबया क तरफ लपके, पर अबराम ने रोक
लया। रािबया ने उन दोन को इ ोर करके अबराम से कहा, ‘आई एम गे टग लेट,
इफ यॉर इंपॉटट मी टग इज़ ओवर, कैन यू लीज़ डॉप मी टू कूल?’
अबराम ने बच पर पड़ी पपीतेवाला के टपो क चाबी उठाई। नसीम और चांद ने
अबराम को कस के घूरा। अबराम टपो पर बैठ गया। रािबया ने अबराम को घूरा
और बोली, ‘अब नसीम का टपो ही बचा है?’
अबराम मु कुराया, ‘बैठो रािबया, आई एम िहयर टू डॉप यू।’
रािबया िफर बोली, ‘इन लफ़ंग का साथ तुम छोड़ोगे नह न!’
अबराम ने जवाब िदया, ‘इ स ऑल ोफेशनल, रािबया। उसके टपो मेरा ऑडर
भी तो ड लवर करते ह। म पेमट देता हू,ं बस और कुछ नह ।’
‘मुझसे शादी करोगे?’ रािबया ने सीधा और सपाट सवाल िकया।
अबराम च का, ‘शादी! यार, आर यू सी रयस?’
रािबया सच म सी रयस हो गई, ‘मतलब तुम सी रयस नह हो?’
अबराम थोड़ा अनकंफटबल हो गया, ‘ हाई आर यू टे कग इट सो सी रयसली?
तुम चांद और नसीम क वजह से ड टब हो, म समझता हू…ं ’
‘हां हू,ं तो िकसके पास जाऊं? तु ह तो एक ऑ शन हो,’ रािबया बोली।
अबराम बोला, ‘यार यही तो म भी कह रहा हू,ं म ऑ शन हू।ं तुमने कभी इतनी
सी रयसनेस िदखाई ही नह । फ़ोन पर बात करना और कभी-कभी िमल लेना एक
अलग बात है, लेिकन मने सच म इस तरह कभी नह सोचा।’
‘तो अब सोच लो,’ रािबया ने यार से कहा।
अबराम ने राहत क सांस ली, ‘म बात करता हू,ं थोड़ा को।’
‘अब कना-वुकना नह है…वो तु हारा ोफेशनल टपो मेरे आसपास ही रोज़
ेक मार रहा है। अ बू भी परेशान ह, आज ही बोला िक ढू ंढ़ लो, नह तो…’
अबराम ने रािबया क आं ख म आं ख डाल कर टेय रग छोड़ा और उसका हाथ
पकड़ा, ‘िगव मी कपल ऑफ़ डेज़, लीज़! इ स डन, प ा ॉिमस।’
रािबया ने थोड़ी िफ िदखाई, ‘पता नह या- या धंधे फैला रखे ह चांद और
नसीम ने। एक घर बचा था, आज उसको भी गोडाउन बना िदया। मुझे अ बू क
बहुत िफ होती है। वो बहुत शरीफ़ ह, सूफ ह, बट देयर इज़ सम थग वैरी
िम टी रयस।’
‘सब ठीक हो जाएगा, म तह वर चाचा से बात क ं गा।’ अबराम ने तस ी देते
हुए कहा।
रािबया ने अबराम के कंधे पर सर रख िदया, ‘कभी ख़ुद ही नह समझ पाई िक
तुमसे यार करती हूं या नह , लेिकन अब खुलकर रहना है, खुलकर तुमसे यार
करना है, सच म अबराम।’
अबराम ने गाड़ी का टेय रग मोड़ा और कूल के गेट के सामने क
े लगाया, ‘ये
तो मेरे पं डत जी का डायलॉग है “खुलकर जयो, खुलेआम, सरेआम”, अब
खु म-खु ा यार करगे हम दोन …लव य,ू सो मच!’
ख़ुशी-ख़ुशी रािबया टपो से उतरी और कूल गेट से अंदर चली गई।
अबराम ने टपो आगे बढ़ाया ही था िक सामने से काकोरी थाने क जीप आती
िदखाई दी। जीप क ं ट सीट पर अफ़ज़ल को बैठा देख अबराम ने ज़ोर से
आवाज़ लगाकर पूछा, ‘गु , तुम यहां कैसे?’
अफ़ज़ल ने हंसते हुए कहा, ‘ख़ाँ साहब ने जीप भेजी थी, कोई फं शन है कूल
म, ब े कोई ले कर रहे ह।’
अबराम ख़ुश हुआ, ‘अ छा िकया। अब जब तक है, पं डत जी से लफ़ड़ा मत
करना गु । पूरी उ नह बदले, तो इस उ म तू नह बदल सकता उनको। म भी
तो रहता हू,ं वो डायलॉग याद है न तुझे…’
दोन साथ म बोले, ‘जीना है तो खुलकर जयो, खुलेआम, सरेआम!’
हंसते हुए अफ़ज़ल ने अबराम को भी अंदर चलने को कहा, लेिकन ज़ री काम
बता कर अबराम वापस चल िदया।
***
कूल के टेज पर काकोरी कांड पर ले चल रहा था। गे ट क ं ट रो म डीजीपी
बृजलाल कुल े , एसएसपी शैलेश कृ णा और इं पे टर अ फ़ाक़ उ ा िब मल
बैठे थे। ि पुरारी ने अफ़ज़ल को देख कर रािबया को इशारा िकया और रािबया ने
उसे कूल सपल के बगल म खाली पड़ी सीट पर बैठा िदया। अफ़ज़ल थ स
कहकर बैठ गया। टेज पर ब क ि िटश अदालत बैठी थी। ब े अ फ़ाक़ उ ा,
राम साद िब मल, ठाकुर रोशन सह और राजे नाथ लािहड़ी क डेस म
कटघरे म खड़े थे।
‘माय लॉड! इन इंकलािबय ने ि िटश हुकूमत के ख़लाफ़ जंग छे ड़ी है। ख़ुद को
ां तकारी कहने वाले इन लोग ने ि िटश ख़ज़ाना लूटा। इनके ुप का नाम है
हद ु तान रप लकन एसो सएशन। ह थयार ख़रीदने के लए इस ुप ने 8 डाउन
पैसजर लूटी, माय लॉड। ये है वो 15. MARZ.1895 नंबर का जमन माऊज़र,
इसक गोली से बेचारे अहमद अली क मौत हो गई। ये ह ि िटश हुकूमत क
कग शप के वो स े जो लूटे गए। ुप के तमाम लोग ि िटश हुकूमत के गवाह बन
कर बयान दे चुके ह।’
‘टु म अपनी स फाई म कुछ बोलना चाटा है, िब मल?’ जज ने पूछा।
िब मल ने मु कुराते हुए शायरी पढ़ी—
बहे बहर-ए-फ़ना म ज द, या रब लाश िब मल क
िक भूखी मछ लयां ह, जौहर-ए-शमशीर क़ा तल क
कटघरे म खड़े अ फ़ाक़ उ ा ख़ाँ ने ‘काकोरी कांड’ के ख़लाफ़ ि िटश हुकूमत के
गवाह बन चुके लोग पर तंज करते हुए शेर पढ़ा—
ज़ुबान-ए-हाल से अ फ़ाक़ क तुबत ये कहती है
मुिह बाने वतन ने य हम िदल से भुलाया है
बहुत अफसोस होता है, बड़ी तकलीफ़ होती है
शहीद अ फ़ाक़ क तुबत है और धूप का साया है
जरह के बाद जज ने चार को फांसी क सज़ा सुना दी।
टेज पर लाइट बंद हो गई ं और अंधेरा छा गया। अंधेरे म पॉट लाइट जली।
चार फांसी के त त पर खड़े थे। ज ाद ने चार के गले म फंदा पहनाया, चार
गले लगे और गाने लगे—
ऐ शहीद-ए-मु क-ओ-िम त हम तेरे ऊपर िनसार
अब तेरी िह मत का चचा ग़ैर क महिफल म है
अब न अगले व वले ह और न अरमान क भीड़
सफ िमट जाने क हसरत अब िदल-ए-िब मल म है
सरफ़रोशी क तम ा अब हमारे िदल म है
देखना है ज़ोर िकतना बाज़ू-ए-क़ा तल म है
टेज क लाइ स जल गई ं। कूल कपस ता लय क आवाज़ से गूज ं उठा। कूल
सपल ने टेज पर जाकर चीफ गे ट डीजीपी बृजलाल कुल े को पीच देने
के लए इ वाइट िकया। अ फ़ाक़ उ ा िब मल डीजीपी को टेज तक ले गया
और िफर पो डयम के ही बगल म खड़ा हो गया।
डीजीपी ने काकोरी कांड डामे क जमकर तारीफ करते हुए ब क हौसला
अफज़ाई क और कूल का ध यवाद िकया। उ ह ने ये भी बताया, ‘ऐसे ही
सरफ़रोश से यंग जेनरेशन को वािकफ़ कराने के लए िपछली 15 अग त को
सरकार ने ऐलान िकया था िक इस बार वतं ता िदवस के ठीक छह िदन पहले,
यानी 9 अग त को काकोरी कांड क िप यानव एिनवसरी काकोरी म ही मनाई
जाएगी। ि टेन, अमे रका, जापान, चाइना और स क सरकार के तमाम
िमिन टस, गवनस, डे लगे स और ब े उसी टेन से काकोरी आएं गे। ये काकोरी के
लए बड़ा िदन होगा। अब अगले पांच साल तक 9 अग त को ये जलसा काकोरी म
होगा और सौव साल म काकोरी कांड के शता दी िदवस पर पूरा देश काकोरी को
सलामी देगा, थ यू।’
पीच देने के बाद डीजीपी बृजलाल कुल े टेज से नीचे उतर गए। अ फ़ाक़
उ ा भी साथ हो लया। एसएसपी शैलेश कृ णा भी दौड़कर आ गए। इं पे टर
अ फ़ाक़ ने डीजीपी से अफ़ज़ल को िमलवाया, ‘सर ये मेरे बेटा है—अफ़ज़ल।
साइंिट ट है, नासा म सले ट हो गया है।’
डीजीपी अफ़ज़ल से बोले, ‘वैरी नाइस…सो हॉट आर यू िहयर फॉर?’
अफ़ज़ल ने जवाब िदया, ‘सर ऑन ए ोजे ट फॉर नॉमन े चर ुप। यू कैन से,
इ स िमशन मास बट ए चुअली इ स ए िमशन फॉर मी।’
डीजीपी ने ठहाका मारा, ‘यार अफ़ज़ल, मुझे तो िमशन के नाम पर दो िफ़ म ही
याद आती ह, िमशन मंगल और िमशन क मीर…ड ट माइंड।’
‘नॉट एट ऑल सर, कुछ ऐसा ही िमशन है अपना भी,’ अफ़ज़ल हंस िदया।
एसएसपी शैलेश कृ णा ने पूछा, ‘कब तक हो यहां, अफ़ज़ल?’
अफ़ज़ल ने थोड़ा सोच कर कहा, ‘इं डपडस डे के बाद जाना है।’
डीजीपी बोले, ‘ओ ह फाइन देन, 9 अग त काकोरी एिनवसरी पर तुम हमारे
मेहमान होगे। िवल सी यू सून, एं ड गुड लक फ़ॉर यॉर िमशन!’
पूरी पु लस फोस और अफ़सर डीजीपी के साथ बाहर चले गए। गाड़ी पर पहुच

कर डीजीपी बृजलाल इं पे टर अ फ़ाक़ से बोले, ‘गाय वाला मामला तो तुमने
अ छा ह डल िकया था अ फ़ाक़। हाई कमान काकोरी एिनवसरी को बहुत
स सिटवली ले रहा है, और तुम तो जानते हो िक डेवलपमट के साथ रा वाद
गवनमट का ाइम कंसन है।’
अ फ़ाक़ ने कॉ फडस िदखाया, ‘सर काकोरी एिनवसरी के लए ही आपने नौ
महीने पहले मेरा टांसफर कानपुर से काकोरी िकया था। एसएसपी साहब के
गाइडस म सचुएशन पूरी तरह कंटोल रहेगी।’
तस ी पाकर डीजीपी वापस चले गए। एसएसपी शैलेश कृ णा को अ फ़ाक़ ने
थोड़ा म खन लगाया, ‘सर आप रात म पु लस गे ट हाउस म िकए, बिढ़या देसी
मुगा कटवाया हूं आपके लए।’
एसएसपी ने पहले तो थोड़ा तक़ फ़
ु िदखाया, पर कने के लए राज़ी हो गए।
अ फ़ाक़ मन से तो एसएसपी को कतई पसंद नह करता था, लेिकन बट रग
करना उसे बख़ूबी आता था। अ फ़ाक़ फ़ौरन आगे वाली सीट पर एसएसपी के
साथ बैठा और थाने क फोस को गे ट हाउस आने के लए बोला।
अफ़ज़ल कूल के अंदर ही था िक तभी ा के साथ रािबया उसके पास आई,
‘हाय अफ़ज़ल, म रािबया बसर। इं पे टर साहब तो चले गए ह, आप चाह तो म
आपके लए र शा बुला देती हू।ं ’
अफ़ज़ल बोला, ‘नो इ यूज़, म ख़ुद चला जाऊंगा। इफ आई एम रॉ ग लीज़
करे ट मी, ले आपने ही लखा है न? इट वॉज़ वंडरफुल!’
रािबया ने हां म सर िहलाया, ‘जी, म यहां िह टी टीचर हू।ं ’
अफ़ज़ल ने बात आगे बढ़ाई, ‘आपको कैसे पता िक म अफ़ज़ल हू?ं ’
‘जैसे एनाउं समट से आपको पता चला िक ले मने लखा है, वैसे ही मुझे भी
पु लस वाले ने बोला था आपको रसीव करने को…सो सपल न।’
तभी ा ठाकुर बैग से माऊज़र और कग शप स क थैली िनकाल कर
बोली, ‘ये काकोरी है साइंिट ट साहब, यहां या तो लोग बंदक
ू क नोक पे लूट लए
जाते ह, या स म िबक जाते ह।’
अफ़ज़ल ने दोन हाथ ऊपर उठाते हुए कहा, ‘अरे म तो सचमुच डर गया
मैडम।’
ा ने हाथ बढ़ाया, ‘माय से फ ा ठाकुर, मैडम िह टी म रहती ह और हम
े ट कॉटी यअ
ज़ ू स म। िह टी को िम ी म ढाल देते ह, बस!’
रािबया ने अफ़ज़ल को हंसते हुए बताया, ‘ े आ ट ट है…इसी ने बनाए ह ये
स े और माऊज़र। एकदम ओ रजनल लगते ह ना!’
अफ़ज़ल ने माऊज़र और स े हाथ म लेकर कहा, ‘एकदम रै लका!’
ा ने चुटक ली, ‘साइंिट ट सर, पर रािबया क कोई रै लका नह है।
ओ रजनल मोना लसा ॉम काकोरी! पर आज कल हमारी मोना लसा कपूर एं ड
संस क आ लया भ हो गई है, तय ही नह कर पा रही है िक स ाथ म हो ा के
साथ जाए या फ़वाद ख़ाँ के साथ।’
रािबया ने उसे घूरा और बोली, ‘अबराम और आप एकदम अलग ह।’
तीन बात करते रहे और िफर अफ़ज़ल बोला, ‘अबराम ने बताया िक आपके
अ बू ने अपना ड और अपने घर पर काउं टर तक दे रखा है। वो एक िदन ज़ र
कुछ बड़ा करेगा।’
रािबया ने भी आमीन कहा।
ा ने शरारत क , ‘अरे साइंिट ट सर, अपना फ़ोन नंबर देने म कोई ॉ लम
तो नह होगी आपको?’
‘जी िबलकुल नह ,’ कहते हुए अफ़ज़ल ने अपने मोबाइल का लॉक खोला और
ा को थमा िदया। ा ने अफ़ज़ल के फ़ोन पर रािबया का नंबर डायल कर
िदया, ‘इ स डन, अब हमारी मोना लसा के मोबाइल पर आपका नंबर सेव हो
गया।’
अफ़ज़ल ने शरारत क , ‘ओह, पर मुझे तो आपका नंबर चािहए था मैम।’
‘नह , ड र वे ट रजे टेड,’ ा ज़रा इतरा कर बोली।
रािबया सोचने लगी िक शायद वो ख़ुद ही नह जानती िक वो अबराम को लेकर
सी रयस है या नह । या िफर अबराम उसे लेकर सी रयस है िक नह , इसका भी
उसे कोई इ म नह है। उसे सफ इतना पता था िक चांद और नसीम जैसे लोफ़र
ने उसका जीना दभ ू र िकया हुआ है। शायद वो सच म ऑ शन ही तलाश रही थी।
ख़ैर जो भी हो देखा जाएगा। अगर अबराम मान गया तो ठीक, नह तो अफ़ज़ल से
बात करेगी। ा ने ज़ोर से चुटक बजाई तो रािबया अपने याल से बाहर आई।
अफ़ज़ल मु कुराते हुए उसे देख रहा था।
अफ़ज़ल ने जाने से पहले उसक तरफ हाथ बढ़ाया तो रािबया ने भी हाथ िमला
लया। टेराकोटा से बना माऊज़र और स े ा को लौटा कर अफ़ज़ल कूल से
बाहर जाने लगा। रािबया ने दो र शे बुलाए। एक पर रािबया और ा बैठ गई ं,
दस
ू रे पर अफ़ज़ल। रािबया ने अफ़ज़ल को आं ख -आं ख म ज दी िमलने का
इ वीटेशन दे िदया। दोन र शे आगे बढ़े और अपने रा ते चल िदए।
अफ़ज़ल र शे से घर पर उतरा ही था िक पीछे से चांद और नसीम पपीतेवाला
के साथ टपो पर अबराम भी आ गया।
अबराम ने उनका ता फ कराया, ‘गु , ये चांद खुतरा है और ये है नसीम उफ़
नसीम पपीतेवाला; और ये अफ़ज़ल है, मेरा जुड़वां भाई।’
अफ़ज़ल ने दोन से हाथ िमलाया और अबराम के साथ अंदर चला गया। अंदर
पहुच
ं कर अबराम तुरत ं िकचन क तरफ गया और लेट लगा कर सीधे डाइ नग
टेबल पर बैठ गया, ‘आ जा गु , बहुत तेज़ भूख लगी है।’
अफ़ज़ल हाथ धोकर टेबल पर बैठा, ‘आज कुछ अलग सा अहसास है, लगता है
काकोरी से एक और र ता बन जाएगा, गु ।’
अबराम ने मु कुरा कर खचाई क , ‘रािबया से िमला या?’
‘हां!’ अफ़ज़ल ने माली तोड़ते हुए कहा।
अबराम ने िफर पूछा, ‘ या बात हुई?’
अफ़ज़ल थोड़ा हंसा और बोला, ‘नॉट लाइक दैट, ज ट एन इंटोड शन।’
िफर अबराम ने अफ़ज़ल को बताया, ‘रािबया शादी करना चाहती है मुझसे।’
अफ़ज़ल थोड़ा नवस हो गया, ‘ओह, रयली! बताया नह उसने।’
अबराम बोला, ‘अरे, ऐसा कोई सी रयस नह , बस वही पग करती है।’
‘कब से है? ख़ाँ साहब को पता है?’ अफ़ज़ल ने सवाल िकया।
अबराम ने सी रयस होने का नाटक िकया, ‘छह महीने से है, बस ये मान ले िक
जब से आया तब से। िकसी को कुछ नह पता, थोड़ा िटिपकल इं डयन लड़क है;
ये मत करो, वो मत करो टाइप।’
अफ़ज़ल टेबल से उठा और वॉशबे सन पर हाथ धोने लगा, ‘ऑल डन।’
अबराम भी वॉशबे सन तक आया और बोला, ‘नह गु , िफिज़कल तो नह
हुआ कुछ, बस ये िनकाह का झंझट थोड़ा बो रग लगता है।’
अफ़ज़ल ने तौ लए से हाथ प छे और हंसते हुए बोला, ‘नह यार, ऑल डन
मतलब मेरा पेट भर गया है। तू दरवाज़ा बंद कर ले, म तेरे कमरे म कुछ काम
क ं गा इस लए तू ख़ाँ साहब के कमरे म सो जा। चल, गुड नाइट।’
अबराम बोला, ‘तू कहे तो तेरे लए बात क ं ? अपना कोई सटीमटल एं गल नह
है, गु ! बस टाइम पास है, रािबया भी मुझे लेकर कं यूज़ ही है।’
अफ़ज़ल मु कुराते हुए बोला, ‘चल देखा जाएगा, सुबह िमलते ह।’
अबराम बोला, ‘पं डत जी एसएसपी साहब के साथ ह, फ़ोन आया था िक खाना
खा लेना। रोज़ का डामा है, कह देते ह, “दरवाज़ा खुला रखना, देर हो जाएगी।”’
दोन भाई दरवाज़ा उढ़का कर कमर क तरफ चले गए।
***
19 जुलाई 2019
सुबह के आठ बजे, एसएसपी शैलेश कृ णा को काकोरी पु लस गे टहाउस से
लखनऊ रवाना करने के बाद इं पे टर अ फ़ाक़ उ ा िब मल क जीप अपने
सरकारी घर पर आकर क । अ फ़ाक़ उ ा ने िविकपी डया को तुरत ं तैयार
होकर आने को कहा और अंदर चला गया। दरवाज़ा खोल कर वो अंदर पहुच
ं ा तो
अबराम सोया हुआ था। अफ़ज़ल का लैपटॉप तो ऑन था, लेिकन वो भी बेसुध
था। िकचन म जाकर अ फ़ाक़ ने चाय बनाई और दोन बेट को आवाज़ देकर
जगाया। चाय क पहली चु क अभी गले से उतरी ही थी िक अ फ़ाक़ उ ा का
मोबाइल बजा। मोबाइल ीन पर एसएसपी साहब का नाम चमक रहा था।
अ फ़ाक़ फ़ोन उठा कर बाहर चला गया, ‘जय हद, सर!’
एसएसपी ने अ फ़ाक़ को डांटते हुए पूछा, ‘ या है ये सब?’
अ फ़ाक़ च का, ‘ या हुआ सर, हम कुछ समझे नह ? कोई गु ताखी हो गई
हमसे? मुगा तो एकदम फ़ ट ास चौकस देसी था, सर।’
एसएसपी शैलेश का पारा सातव आसमान पर चढ़ गया, ‘ हॉ सएप देखा तुमने?
तु हारे इलाके म लड़क क नेकेड बॉडी िमली है। लाश के सामने दो-दो सपाही
खड़े ह लेिकन बॉडी पर कपड़ा तक नह डाला। डीजीपी तक फ़ोटो पहुच ं गई ं और
तु ह ख़बर तक नह है।’
अ फ़ाक़ परेशान हो गया, ‘सर हम वा सप रखते ही नह ह, हमारे मोबाइल पर
केवल इनक मग और आउटगोइंग क सुिवधा है।’
एसएसपी ने िफर से झाड़ा, ‘लड़क क नंगी बॉडी का फ़ोटो वाइरल हो रहा है,
और तुम बारह सौ पए का मोबाइल लए टहल रहे हो!’
इस बार अ फ़ाक़ ने झूठ बोला, ‘सर बॉडी का हमको पता है, फोस भी भेज िदए
ह…अब कौन फ़ोटो ख च कर भेज िदया, अभी देखता हू।ं ’
एसएसपी ने अ फ़ाक़ को डांट लगाते हुए मौक़ा-ए-वारदात पर पहुच
ं कर रपोट
देने को कहा और फ़ोन रख िदया।
अ फ़ाक़ ने जय हद कहकर फ़ोन रखा और बड़बड़ाने लगा, ‘ये साला क या
रा श क व ि हम पर काहे पड़ गई है? कभी गऊ माता तो कभी लड़क क
बॉडी, वो भी नेकेड।’
अ फ़ाक़ ि पुरारी को फ़ोन िमलाने ही वाला था िक ि पुरारी का ही फ़ोन आ
गया।
अ फ़ाक़ भनभनाया, ‘अबे इससे पहले िक मादरे हद का फ़ोन आए, ये बताओ
िक हुआ या है? कहां िमली है बॉडी?’
ि पुरारी बोला, ‘सर हमारे वा सप पर जैसे ही फ़ोटो आया, हम तुरत
ं ै गौतम
और रमाकांत को मौक़े पर रवाना कर िदए। आधा घंटा हो गया सर, बॉडी
पो टमॉटम के लए टपो पर लाद दी गई है।’
अ फ़ाक़ खीझ गया, ‘अबे तुमको आधे घंटे से पता है? फोस रवाना हो गया,
पो टमॉटम के लए ऑन कॉल टपो भी मंगा लए हो, तो भाई हमको काहे नह
बताए पहले? और ये नंगा फ़ोटो कौन ख च लया?’
ि पुरारी बोला, ‘सर वो साला मु ालाल प कार ख चा है सब, और ख़बर भी
दाग िदया है। आप रात भर के जगे थे, सोचा आराम करने द,ं ू इस लए सारा
मैनेजमट करने के बाद आपको फ़ोन िकया।’
अ फ़ाक़ च ाया, ‘अबे आराम को मारो गोली, रॉकेट क ग त से गाड़ी भेजो
फ़ौरन। डॉ टर को दो-चार सौ पकड़ा कर पो टमॉटम का टाइम एक घंटा पहले
का लखाना, वना चमन चू तया एसएसपी साला देसी मुगा खाने के बाद भी हम ही
मुगा बना देगा।’
अ फ़ाक़ उ ा घर के अंदर आया। दोन बेट को मडर और लड़क क नेकेड
बॉडी का मसला समझा कर वो मुह ं धोने लगा। तभी बाहर जीप का हॉन बजा।
अ फ़ाक़ फ़ौरन बाहर जाकर जीप पर बैठा और रवाना हो गया–उसी मौक़ा-ए-
वारदात क ओर चल िदया, जहां कल रात को काकोरी थाने का नशेड़ी सपाही
अंगद यादव बाग के मज़दरू के साथ भोजपुरी गाने पर डांस कर रहा था, जस बाग
म एक मोटरसाइिकल आई थी और नशे म धु अंगद यादव ससका रयां और
चीख़ सुन कर बौराया जा रहा था। काकोरी-लखनऊ हाईवे पर मौजूद आम के बाग
का च पा-च पा छान रहे अ फ़ाक़ उ ा िब मल ने पेड़ से िटक िबना नंबर लेट
क मोटरसाइिकल का पुज़ा-पुज़ा पैनी नज़र से देखने के बाद आम क गुठली चूस
कर फक दी और ि पुरारी पांडे के गले म हाथ डालते हुए िफर मज़दरू के कमरे क
तरफ लौटा, जहां आग म पु लस क वद जलाई गई थी। उ र देश पु लस का
ास बैज देखते ही अ फ़ाक़ बोला, ‘अबे ि पुरारी, इस तरफ िकसका िपकेट ूटी
था, वो मैिकए अंगद का ए रया है न ये?’
ि पुरारी ने हां म सर िहलाया और िबना कहे अंगद यादव को फ़ोन िमलाया,
लेिकन फ़ोन नह उठा, ‘नसेड़ी फ़ोन नह उठा रहा है, सर। घर से घसीट लाएं का
साले को?’
तभी सामने मोटरसाइिकल पर धड़धड़ाता हुआ मु ालाल प कार कैमरामैन
सटू दबु े के साथ आया और सीधे अ फ़ाक़ उ ा के मुह
ं पर माइक लगा कर पूछा,
‘मडर हो गया है, कैसा लग रहा है सर?’
अ फ़ाक़ बौरा गया, ‘अइसा लग रहा है जैसे हमारी फटने वाली है।’
मु ालाल ने िफर सवाल िकया, ‘सर ये मडर के बारे म आपका या कहना है?’
झुझ
ं लाकर माइक हटाते हुए अ फ़ाक़ बोला, ‘एकदमै चू तया हो का बे?’
मु ालाल ने जवाब िदया, ‘चू तया नह सजे रयन ह, जवाब दी जए।’
अ फ़ाक़ का फ़ोन रग रगाया, ीन पर “डीजीपी सर” नाम चमका। फ़ोन काट
कर अ फ़ाक़ ने मु ालाल से पूछा, ‘कोई े कग पेल िदए हो का?’
मु ालाल ने सीना छ पन इंच फुलाया और बोला, ‘डेड बॉडी का नाम खोल िदए
ह।’
अ फ़ाक़ ने पुचकार कर पूछा, ‘सेवा म संपादक महोदय, नाम बताइए।’
मु ालाल का सीना छ पन, स ावान, अ ावन हो गया, ‘रािबया बसर।’
ि पुरारी ने च ककर पूछा, ‘रािबया बसर! वो तह वर क ल डया, कूल
टीचर?’
अ फ़ाक़ सी रयस हो गया।
उसके मोबाइल पर डीजीपी का फ़ोन िफर टु नटु नाया। फ़ोन उठाते ही वो बोला,
‘िमसकॉल हो गया था सर, फ़ोन सपाही के पास था। पॉट पर हूं सर, रेप एं ड
मडर केस है सौ परसट, तीन-चार लोग का काम लगता है। इंवे टगेशन म लगा
हू।ं रािबया बसर है सर, वो काकोरी शरीफ़ क उस कमेटी के से े टरी तह वर ख़ाँ
क बेटी। कूल टीचर है सर, आप देखगे तो पहचान जाएं गे। वद जलाई गई है,
कोई पु लसवाला भी शािमल लगता है, सर।’
डीजीपी बोले, ‘ठीक है, ठीक है। मुझे पता है िक तुम वकआउट कर लोगे। मेक
इट डन, एएसएपी। और ये मी डया को ज़रा सेट करके रखो अ फ़ाक़, मुझे
काकोरी एिनवसरी तक कोई स सिटव सचुएशन नह चािहए, ओके?’
अ फ़ाक़ बोला, ‘प ा, सर! जय हद, सर!’
फ़ोन रखने के बाद अ फ़ाक़ ने मु ालाल का कंधा थपथपाया और एक बार िफर
आम के पेड़ के पास चल िदया, ‘तुम कुछ िदन सीसीटीवी यूज़ म काम कर लो
मु ालाल, िफर डीजीपी से कहकर िकसी कायदे के चैनल म तुमको एं कर बनवाता
हू।ं यहां तो तु हारे टैलट का शी पतन हो रहा है।’
मु ालाल ने दांत िनपोरे और सटू दबु े से कैमरे का ढ न बंद करने को कहा।
अ फ़ाक़ ने मु ालाल को दो हज़ार और सटू दबु े को पांच सौ का नोट थमाया और
बोला, ‘अब पहले हमारे फ़ोन पर े कग कराया करो। 9 अग त िनपट जाने दो,
तब तक काकोरी के इ तहास पर दो-चार सॉ ट टोरीज़ करो। ए ि पुरारी! इनका
याल रखा करो, मै सेसे अवॉड जीतने क मता कूट-कूट कर भरी है इनम।’
ि पुरारी ने हां म सर िहला िदया। कई सपाही बाग क तलाशी करके हांफते हुए
लौटे। एक सपाही बोला, ‘सर बा रश क वजह से बहुत क चड़ है, और तो कुछ
नह िमला है, थोड़ा सूख जाए तो मज़दरू से झाड़ू लगवा कर एक बार और चेक
करा लगे।’
क चड़ पर चल रहे अ फ़ाक़ के बूट के नीचे कुछ आया। उसने ज़मीन पर बैठ
कर क चड़ हटा कर देखा तो एक टू टा हुआ म टीमी डया मोबाइल िमला।
अ फ़ाक़ ने मोबाइल को गौर से देखा। ऐसा लग रहा था जैसे िकसी ने जूत के नीचे
कुचल कर मोबाइल चकनाचूर िकया हो। अ फ़ाक़ ने मोबाइल िविकपी डया क
तरफ बढ़ाया, ‘इसे भी पाउच म रख लो, और हां, सारे एिवडस फॉर सक
इ वे टगेशन के लए लैब भेज दो। ि पुरारी, तुम लड़क का नंबर पता करके सारे
कॉल डटे स मंगवा लो, ज दी।’
ि पुरारी ने हां म जवाब िदया और दो सपािहय को वह तैनात कर अ फ़ाक़ के
साथ जीप पर बैठ गया। जीप तेज़ी से थाने क तरफ चल दी। मु ालाल और
कैमरामैन सटू भी पु लस से िवदा लेकर मोटरसाइिकल से बढ़ लए। थोड़ा आगे
जाकर मोटरसाइिकल डाइव कर रहे सटू से मु ालाल ने पूछा, ‘काहे सटू , जब
हम कैमरे का ढ न बंद करने को कहते ह तो बंदै कर देते हो न, या शू टग चालू
रहती है?’
सटू ने गुटखे क पीक थूक , ‘मु ा भाई, कं यूज़न कहो या अंडर क ट डग,
हम तो इसे कोड वड समझते ह। तुम ढ न बंद करने को जब भी बोले, हम समझ
गए िक बंद तो होना ही नह है।’
मु ालाल ने पीछे बैठे-बैठे उसे शाबाशी दी और िफर मु ालाल क फटफिटया
लखनऊ मे डकल कॉलेज के पो टमॉटम हाउस क तरफ बढ़ गई। वहां पहुच ं कर
मु ालाल अंदर दा ख़ल हुआ। पो टमॉटम हाउस के अंदर टेचस पर कई लाश
पड़ी थ । उनम से एक लाश रािबया क भी थी। डॉ टर ने रािबया का पो टमॉटम
कर हाथ से ल स और चेहरे से मा क उतारा ही था िक मु ालाल को बगल म
खड़ा देख ग़ु से म बोला, ‘सीसीटीवी यूज़ से ह न आप? आपको पता नह िक
पो टमॉटम हाउस के अंदर मी डया अलाऊड नह है?’
मु ालाल ने गुज़ा रश क , ‘बस सर ये बता दी जए िक या िनकला।’
डॉ टर ने कहा, ‘जो पता करना है थाने से पता क जएगा।’
मु ालाल नह माना तो डॉ टर ने बाहर खड़े सपाही को आवाज़ लगाई,
‘हटाइए न इन सबको यहां से।’
मु ालाल िफर भी ू क आस म बोलता रहा, पर डॉ टर ने मुहं घुमा लया।
मु ालाल पीछे से आवाज़ लगा कर बोला, ‘सर, जब सब हो जाए तो पो टमॉटम
रपोट क एक कॉपी दे दी जएगा।’
इसके बाद मु ालाल ने सपाही को पचास का नोट देकर उसके नंबर पर अपने
नंबर से िमस कॉल िदया, ‘सेव कर लो हमारा नंबर, और याद रखना हमारे रहते
तु ह िकसी ने टच ब लए िकया, तो हम उसका नच ब लए करा दगे। चु पे से रपोट
का फ़ोटो ख चकर वा सप कर देना।’ सपाही ने पचास का नोट जेब म रखते हुए
कहा, ‘पूरी को शश करगे, सर।’
***
काकोरी थाने पर इं पे टर अ फ़ाक़ उ ा िब मल अपनी कुस पर बैठा अख़बार
पढ़ रहा था और थाने के पीछे क तरफ से कुछ लोग के चीख़ने- च ाने क
आवाज़ भी आ रही थ । हेड कां टेबल ि पुरारी पांडे, सपाही रमाकांत और गौतम
ज़मीन पर पड़े हुए मैिकए सपाही अंगद यादव के मुह ं पर पानी डाल-डाल कर
जगाने क को शश कर रहे थे। एक तरफ अंगद क बीवी िग रजा और दो बेटे
ू री तरफ अंगद नशे म बड़बड़ा रहा था जीला टाप लागे
ज़मीन पर बैठे हुए थे, तो दस
लू, लालीपाप लागे लू, पाप लागे लू।
अंगद क बीवी ब के सर पर हाथ रख रोते हुए बोली, ‘साहब इ कुछौ नाह
िकए ह, हम ब न क कसम खाय सिकत है।’
रमाकांत ने बोला, ‘अब ई साले पापी मैिकए के लए तुम ब न साहब क
कसम काहे खा रही हो? कछु और खाएं का हो तो बताओ!’
अंगद क बीवी ज़ोर से रोने लगी, ‘केवल नसा प ी मा बरबाद हुई गै ह साहब।
बाक दईु ब न के बाद कौनो काम के नाई बचे ह।’
हवालात क तरफ से एक सपाही हांफता हुआ आया, ‘सर, एक भी मज़दरू कुछ
नह बता रहा है, सब कह रहे ह िक नशे म थे।’
अख़बार पढ़ रहे अ फ़ाक़ ने ि पुरारी को अंदर जाने का इशारा िकया। ि पुरारी
सीधे हवालात पहुच ं ा, जहां चार मज़दरू क हालत बता रही थी िक कम से कम
एक घंटे से लगातार उनको सूता जा रहा था। तीन सपाही थके हारे खड़े थे।
ि पुरारी ने एक मज़दरू को उठाया और बाहर िनकाल कर खंभे से चपका िदया। दो
सपािहय ने उसके हाथ पकड़ लए। ि पुरारी ने उसे लाठी और प े से जम कर
पीटना शु िकया। मज़दरू च ाने लगा और िपटाई का डॉ बी ड जटल साउं ड
थाने के अंदर िफर गूजं ने लगा। इं पे टर अ फ़ाक़ उ ा अख़बार रख कर कुस से
उठा और अंगद यादव क तरफ इशारा करते हुए बोला, ‘इस हरामजादे को होश म
लाओ और जब तक इन सबके आकाशवाणी का िविवध भारती क स ाई न बके,
तब तक साल को बजाते रहो।’
िविकपी डया ने जीप टाट क और अ फ़ाक़ को क़ि तान ले गया। क़ खुद
चुक थी और रािबया को दफनाया जा रहा था। चांद खुतरा, नसीम पपीतेवाला,
अफ़ज़ल, अबराम और काकोरी के तमाम बा शद के अलावा काकोरी शरीफ़ से
जुड़े लोग क भीड़ मौक़े पर मौजूद थी। बेटी पर ख़ाक डाल रहे तह वर का रो-रो
कर बुरा हाल था।
अ फ़ाक़ गाड़ी से उतरा और अबराम और अफ़ज़ल को देखता हुआ तह वर क
तरफ बढ़ गया। तह वर के कंधे पर जैसे ही इं पे टर ने हाथ रखा, तह वर ने पलट
कर देखा और कंधे से हाथ हटाकर बोला, ‘साहब म सूफ हू,ं िकसी को ब आ ु
नह दे सकता। काकोरी के एक तरफ काकोरी शरीफ़ ज त के मा नद है और
काकोरी के दस
ू रे छोर पर काकोरी थाना है, जो थाना नह दोज़ख है। आपने क़ानून
क़ायम रखा होता तो आज मेरी यारी िब ो क डोली उठती, जनाज़ा नह ।’
अ फ़ाक़ ने चार तरफ देखा और मौक़े क नज़ाकत समझते हुए तह वर के
कंध पर हाथ रखकर बोला, ‘दो िदन म आपका गुनहगार जेल म होगा तह वर
साहब।’
तह वर बेचारगी से उसे देखते हुए बोला, ‘इस बार सौदा मत क जएगा साहब।’
अ फ़ाक़ ने तह वर को गले लगाया और अबराम को इशारा िकया िक वो तह वर
को संभाले। अबराम और अफ़ज़ल दोन आगे बढ़े और तह वर को लेकर
क़ि तान से वापस चल िदए। क़ि तान म चांद खुतरा और नसीम पपीतेवाला
भी खड़े थे। तह वर ने उ ह देखते ही चांद का कॉलर दबोचा और नसीम को घूरने
लगा, ‘उठा ली ल डया! हो गया वलीमा! ह तो नह मानती, पर मेरा अ ाह
कहता है िक तू ख़बीस नह हो सकता जो अपनी बहन को ही शैतान के हवाले
करके उसका क़ ल कर दे।’
चांद और नसीम आं ख झुकाए खड़े रहे। अबराम, अफ़ज़ल और इं पे टर के
साथ तक़रीबन सारी भीड़ दोन को घूरने लगी। अ फ़ाक़ ने तह वर को जीप म
बैठने को कहा, लेिकन उसने इंकार कर िदया और काकोरी शरीफ़ के एक नुमाइंदे
क गाड़ी म बैठ कर चला गया। अ फ़ाक़ उ ा ने अफ़ज़ल और अबराम को जीप म
बैठने को कहा, लेिकन दोन ने टहलते हुए जाने क बात कहकर अ फ़ाक़ को थाने
जाने िदया।
काकोरी क सड़क पर टहलते हुए घर क ओर बढ़ रहे अफ़ज़ल ने कहा, ‘इ स
अ बलीवेबल, िकसी ने आपक ज़दगी क डोर बेल बजाई, आपने दरवाज़ा खोला
और सामने कोई नह …ऐसा भी होता है या?’
अचानक अबराम ने अफ़ज़ल को अपनी तरफ ख चा और उसके गले लगकर
फफक-फफक कर रोने लगा। अफ़ज़ल अबराम के इस रवैये से च क गया।
अफ़ज़ल ने हमेशा अबराम को एक नॉन सी रयस कैरे टर क तरह देखा था—हर
बात को हंसी म उड़ा देना, िकसी भी बात का यादा लोड न लेना, अबराम क
आदत थी। मां क मौत को लेकर उसे कभी अ फ़ाक़ उ ा से कोई शकायत नह
थी। अफ़ज़ल और अ फ़ाक़ उ ा के कड़वे र ते को भी वो हंसते-हंसते सुलझाने
क को शश करता था। रािबया तो उसके लए बस एक टाइमपास थी। अफ़ज़ल ने
अबराम को गले लगाए-लगाए, उसका सर सहलाया तो अबराम एकदम फट पड़ा,
‘मुझसे तो कल ही उसने शादी क बात क थी, बट मने तो यही सोचा था िक चांद
और नसीम पपीते से परेशान है इस लए थोड़ा चा ड-अप है, कुछ िदन म सब
सेटल हो जाएगा। लेिकन रािबया का रेप एं ड मडर, िदस इज़ वैरी हॉ रिफक फॉर
मी।’
अबराम को अलग कर अफ़ज़ल ने सामने खड़ा िकया और दोन हथे लय से
उसके आं सू प छने लगा। उसने अबराम को समझाने क बहुत को शश क , लेिकन
अबराम बस रोए जा रहा था। अबराम को िफर गले लगा कर अफ़ज़ल बोला, ‘कल
ही नंबर लया था उसने, मने तो उसका नंबर सेव भी नह िकया था। रात क
आठ-दस िम ड कॉल पड़ी ह। ट कॉलर ने रािबया बसर नाम बताया। य कॉल
िकया होगा उसने? कुछ तो कहना चाहती होगी वो।’
रोते-रोते अबराम ने भी अपना मोबाइल जेब से िनकाल कर िदखाया, ‘मुझे भी
दो कॉल िकए पर म सोता रहा। म तो रगर ऑन ही रखता हू,ं बेचारी तड़प रही
होगी, फ़ोन िमलाकर मुझसे मदद मांग रही होगी। जसके अ बू ने मुझे सब िदया,
व त आने पर, उस रािबया तक म पहुच ं भी नह पाया। शायद वो बच जाती। वो
तो इसी उ मीद म होगी, िक अबराम उसे बचा लेगा, पर मने फ़ोन ही नह उठाया।’
अफ़ज़ल ने मोबाइल खोला, ‘सच म बहुत मजबूर होगी, वना रात म दो बजे कौन
फ़ोन करता है, यार।’
अबराम बोला, ‘मेरे फ़ोन पर भी दो बजे के आसपास ही आई थ कॉ स। आई
एम सो सॉरी रािबया…।’
नाक से बहते न ले को प छते हुए अबराम अफ़ज़ल से बोला, ‘गु , पं डत जी
को बता देते ह।’
अफ़ज़ल ने मना कर िदया, ‘जब कोई पूछेगा तो बता दगे, अभी य बताना।’
अबराम चीख़ते हुए बोला, ‘नह गु , म ज़ र बताऊंगा। रािबया का रेप हुआ है,
गले म पेचकस घुसा कर बेरहमी से उसका क़ ल िकया गया है। म सच म सी रयस
नह था, लेिकन मुझे आज य लग रहा है, दैट आई एम िम सग सम थग।’
अफ़ज़ल बोला, ‘देख अबराम, तेरे लए वो टाइमपास थी और तू उसके लए
एक ऑ शन, बस। मुझे भी सचुएशनल िम सग फ लग है, शायद इस लए िक हम
ू रे पल जैसे कुछ भी न हो, तू िफ
कल ही िमले थे। एक पल का अहसास और दस
न कर। व त आने पर हम ख़ाँ साहब को बता दगे िक उसने हम दोन को कॉल
िकया था। अभी कोई हड़बड़ी करने क ज़ रत नह है।’
‘कुछ भी हो गु , लेिकन उसके साथ जसने ये िकया उसका चेहरा ज़ र
सामने आना चािहए।’ ख़ुद पर काबू करते हुए, अबराम ने अफ़ज़ल से कहा।
दोन भाई घर पहुच
ं े तो अबराम आराम करने लेट गया और अफ़ज़ल अपना
लैपटॉप और फ़ाइल लेकर िफर से पु लस वाटर क छत पर चला गया।
***
काकोरी थाने पर अंगद यादव का नशा अब उतर चुका था। उसे समझ नह आ
रहा था िक आ ख़र कल रात से लेकर आज तक हुआ या है। सारे सपाही उसे
घेरे खड़े थे। बीवी ब को सामने देख कर उसने नज़र झुका ली। सामने कुस पर
बैठे अ फ़ाक़ ने गुरा कर लेिकन धीरे से पूछा, ‘का चू तयापा िकए हो अंगद? नशे के
साथ छनरपन का शौक भी था तो मजा ले लेते, मार काहे िदए?’
अंगद िगड़िगड़ाया, ‘साहब पता नह कइसे हो गया, कु छौ याद नह ।’
तभी सपाही रमाकांत ने अंगद यादव क शट के अंदर हाथ डाला और छाती से
एक बाल तोड़ कर िज़पर बैग म रख लया। िफर नेल कटर िनकाल कर उसके
नाख़ून काटने लगा। अंगद उठा और दौड़ कर अपने ब से लपट गया, ‘साहब
ग़लती हो गई है, पर पता नह सर हम का िकए ह, बहुत धुध
ं ला सा याद है, सर।’
अ फ़ाक़ ने इशारा िकया और दो सपाही उसक प नी और ब को बाहर ले
जाने लगे तो िग रजा ने दौड़ कर अ फ़ाक़ के पैर पकड़ लए और च ाने लगी,
‘साहब, इ नसेड़ी तो कु छौ नह छोिड़स है, पर आप बताओ के ा पइसा लागी
एका छोड़ मा?’
अ फ़ाक़ ने ताली बजाते हुए ठहाका लगाया, ‘अरे पहले इंवे टगेशन तो हो
जाने दे, देख तो कौन-कौन सी धाराओं म ाइम िकया है मेरे रमन राघव ने, िफर
कुछ कम यादा करके िहसाब-िकताब कर लगे।’
िग रजा ने हाथ जोड़े और ब को लेकर बाहर जाने लगी। एक बार पलट कर
उसने अंगद क तरफ देखा। अंगद ने िग रजा को देख कर हाथ जोड़ लए। िग रजा
ने िफर अ फ़ाक़ क तरफ देखा, अपने आं सू प छे और हाथ जोड़ कर चली गई।
पूछताछ का सल सला िफर शु हुआ। िपटाई से बेहाल मज़दरू को भी
अ फ़ाक़ उ ा के सामने लाया गया। अ फ़ाक़ ने सीधे सवाल दागा, ‘ या िकए थे
अंगद? स पस मत बनाओ, सीधे-सीधे सच बताओ।’
अंगद यादव हाथ जोड़ते हुए बोला, ‘साहब वो अ सर आती थी, आम के बाग
वाले कमरे म। हम उसके लए मज़दरू को डांट फटकार कर कमरा भी खाली
करवा देते थे, पर साली सबको देती थी, बस हमको फुसलाती रहती थी। मेरा
उसका िफ स था िक हमारी नाइट ूटी म वो बाग म खुलकर धंधा करे, हम कोई
पइसा नह चािहए था, बस दो-चार ह ते म एक बार हमको भी दे दे…दो-तीन बार
िदहीस भी हमको, लेिकन कने शन लूज रह गया साहब। इस बार हम सोच लए
थे, पटक-पटक कर पेल डालगे साली को, बस साहब यही ग़लती हुई।’
अ फ़ाक़ ने टोका, ‘मतलब तुम सांड़ हो गए, और जोश-जोश म मार भी डाले!’
अंगद िगड़िगड़ाया, ‘ग़लती हो गई साहब।’
अ फ़ाक़ कुस से उठा और अंगद का कॉलर पकड़ कर च ाया, ‘ग़लती हो
गई! ग़लती तु हारी, साला भुगत हम! तुमको एक टीचर ही िमली थी पेचकस पेलने
को?’
अंगद च का, ‘टीचर! कउन टीचर? रंडी थी, साली छनार एक नंबर क ।’
अ फ़ाक़ ने उसे ज़ोरदार तमाचा जड़ा, ‘अबे छनार थी, तो तुम मार डालोगे
उसको? जब से तैनाती पाए हो हमारे थाने म, मैक के च र म तु हारी नौकरी
बचा रहा हू,ं तुम हमारी ही नौकरी चाटने म लग गए? साला उसका बाप सबके
सामने ग रया रहा था क़ि तान म हमको, ल ड के सामने घोर इंस ट हो गई
हमारी।’
अंगद ने सवा लया नज़र से ि पुरारी क तरफ देखा।
ि पुरारी बोला, ‘अबे रािबया का बाप, जसक िबिटया टपका िदए तुम!’
अंगद भौच ा रह गया, ‘कउन रािबया?’
अ फ़ाक़ ग़ु से से पागल हो गया और उसने अंगद को जूत से मारना शु कर
िदया।
अंगद दद से कराहने लगा, ‘साहब रािबया नह , वो तो अनारकली थी। साहब
एक बार सुन ली जए, हम सच म नह जानते िक रािबया कउन है। वो नौटंक वाली
अनारकली अ सर बाग म ाहक के साथ आती थी, उसी का कांड िकए ह हम।’
अ फ़ाक़ थोड़ा सा सोच म पड़ गया तो रमाकांत सपाही बीच म बोला, ‘साहब
वही जो ठे केदार आया था न दो महीने पहले, थाने से नौटंक क परमीसन लेने,
वही नौटंक । उसी नौटंक म अनारकली काम करती है।’
ि पुरारी ने अ फ़ाक़ और सभी सपािहय को इशारा िकया। उसने अंगद को
पानी िपलाया और यार से पूछा। अंगद ने उस रात का िक सा सुनाना शु िकया,
‘साहब घटाटोप अंधेरा था, हम कस कर दो-तीन राउं ड फंू क चुके थे, ये सब भी
हमारे साथ नाच गा रहे थे, तभी अनारकली आ गई। थोड़ी देर बाद उसका ाहक
लौट गया। िफर हम गए तो अनारकली लेटी थी। झीनी-झीनी बा रश म एकदम
भीगी हुई थी, साहब। हम उसका एक-एक कपड़ा उतार िदए। हमारा हास पावर
एकदम हाई था, हम िमसाइल दाग िदए।’
पूरा थाना अंगद यादव क कहानी चुपचाप सुन रहा था।
‘हां साहब, उसका जोस तो गजबै था! उस िदन, वो कोई पैनी चीज हाथ म
पकड़े थी और हमारी पीठ पर गोद रही थी। बहुत लग रहा था। हम उसके हाथ से
छीन लए। हम ठंडे पड़े और उठ गए, पर वो लेटी रही। आगे बढ़े तो मोटरसाइिकल
क ब ी जल रही थी, तब हम देखे िक जसे हम पानी म भीगा बदन समझ रहे थे,
वो तो ख़ून था। हम घबरा कर उसके पास गए तब तक वो मर चुक थी। हम लौटे
और आग म पूरा वद जला िदए, काहे से िक वद एकदम ख़ून म रंग चुक थी।
उसी आग म हम वो पेचकस भी फक िदए जससे वो हमको गोद रही थी। हम अंधेरे
म ही जां घया, बिनयान पिहने घर पहुच
ं े और िफर फंू क कर सो गए। और सवेरे
नसा उतरा, तो देखा हम आपके सामने लेटे ह।’
अ फ़ाक़ का िदमाग़ सु हो गया, ‘साला! या दो-दो कांड हो गए एकै रात म,
एकै जगह पर, एकै तरीके से? रमाकांत दौड़ के नौटंक पहुच
ं और पता कर ज़रा ये
अनारकली कहां है, या वो भी टपक गई?’
रमाकांत िविकपी डया के साथ जीप से चल िदया। नौटंक मैदान पर बहुत सारे
टट लगे थे। इ ह म नौटंक वाले रहते थे। रमाकांत ने एक टट खोला तो दो-तीन
लड़िकयां कपड़े बदल रही थ । रमाकांत को देख कर लड़िकयां ज़ोर से हंसने
लग ।
रमाकांत ने पूछा, ‘अनारकली का टट कौन सा है?’
एक लड़क टट से सफ लाउज़ और पेटीकोट म बाहर आकर बोली, ‘अरे
कभी मधुबाला को भी टाई करके देखो, मेरे सलीम सप या!’
रमाकांत ने िफर पूछा, ‘अनारकली का टट कौन सा है?’
लड़क िफर ज़ोर से हंसने लगी, ‘जाओ, ज े इलाही से पूछ लो!’
रमाकांत को ग़ु सा आ गया। तब तक नौटंक का ठे केदार पहुच
ं गया, ‘सर
हमको बताइए या ढू ंढ़ रहे ह खानाबदोश के त बुओ ं म?’
रमाकांत ने सीधे पूछा, ‘अनारकली कहां है?’
ठे केदार बोला, ‘कल रात क गई है, अभी तक लौटी नह साहब।’
‘कहां गई है? िकसके साथ गई है?’ रमाकांत ने सवाल िकया।
ठे केदार ने जानकारी दी, ‘साहब रात क़रीब सवा एक बजा होगा, कोई
मोटरसाइिकल से आया था, उसी के साथ गई है।’
रमाकांत त बुओ ं क तलाशी लेने लगा। ठे केदार ने रमाकांत को समझाया, ‘सर
यही वाला टट है अनारकली का। कह गई थी िक सुबह तक आ जाएगी, पर आई
नह ।’
िविकपी डया ने पूछा, ‘कोई जगह बता गई थी? िकसके साथ गई है, ये बताया?’
ठे केदार ने ना म सर िहला िदया, ‘अ सर जाती रहती है साहब। म अपने टट म
ही था, बाहर से बोली िक लखनऊ रोड तक जा रही है।’
रमाकांत ने सवाल िकया, ‘फ़ोन िमलाया उसको?’
ठे केदार बोला, ‘हां सर कई बार िमलाया, वच ऑफ़ है।’
िविकपी डया ने गाड़ी क तरफ चलते हुए कहा, ‘ठीक है, नंबर दो उसका और
जैसे ही लौटे, बोलना साहब ने फ़ौरन थाने बुलाया है।’
ठे केदार ने रमाकांत को अपना और अनारकली का नंबर नोट कराया, िफर ख से
िनकाल कर बोला, ‘जी ज़ र बोल दगं ू ा, सर कोई ख़ास बात?’
रमाकांत ने धीरे से कहा, ‘मडर का मामला है।’
ठे केदार स रह गया। दोन सपाही वापस थाने क तरफ चल िदए।
***
अगले िदन दोपहर का क़रीब एक बजा था। थाने म रािबया बसर के अ बू तह वर
ख़ाँ इं पे टर साहब के साथ बैठे थे। साथ म अबराम और अफ़ज़ल भी मौजूद थे।
तह वर से अ फ़ाक़ उ ा िब मल ने एक तहरीर ली, लेिकन अंगद यादव के
सामने बैठे होने के बावजूद तह वर ने तहरीर म िकसी का नाम नह दज कराया।
अ फ़ाक़ ने तहरीर पर द तख़त कराने के बाद तह वर से यह जानना चाहा िक
या उ ह ज़रा सा भी अंदाज़ा है िक रािबया इतनी रात म आम के बाग म गई य
होगी। तह वर ने सफ इतना बताया िक उसे नह मालूम िक रािबया कब घर से
िनकली, िकसके साथ गई, कहां गई। रोज़ क तरह वो खाना खाकर सो गए थे,
लेिकन रात म वो कह चली गई, इसका इ म तो ख़बर देखने के बाद ही हुआ।
अ फ़ाक़ ने तह वर को भरोसा िदलाया िक मामला ज द ही सुलझ जाएगा,
सपाही अंगद यादव ने क़ुबूल कर लया है िक वो उस रात वहां ूटी पर था। वद
और वो पेचकस जससे रािबया का क़ ल हुआ, दोन इसने ही जलाए ह। बस
पो टमॉटम और फॉर सक रपोट आने के बाद सबकुछ साफ़ हो जाएगा। अ फ़ाक़
ने तह वर को ये भी बताया िक बस एक ही बात अटक रही है िक अंगद बोल रहा है
िक ये रािबया को जानता तक नह । जस लड़क के साथ इसने रेप िकया और
जस लड़क का क़ ल हुआ, वो नौटंक म काम करने वाली अनारकली थी न िक
रािबया।
तह वर और अ फ़ाक़ क इस बातचीत के बीच म िविकपी डया बोला, ‘सर
अनारकली कल रात क़रीब एक बजे से लापता है। वो लखनऊ रोड कहकर िकसी
के साथ मोटरसाइिकल से िनकली थी, लेिकन अभी तक लौटी नह है और
अनारकली का फ़ोन भी वच ऑफ़ है।’
‘मतलब वो भी लापता है…तो वो कौन है जो मोटरसाइिकल पर आया था?
िकसक है मोटरसाइिकल? हम बोले थे िक इंजन और चे चस नंबर से पता करो,
कुछ पता चला?’ अ फ़ाक़ परेशान होकर बोला।
ि पुरारी ने तुरत
ं एक सपाही को फ़ोन िकया जसे उसने पता लगाने के लए
आरटीओ ऑिफस भेजा था।
सपाही ने जवाब िदया, ‘सर आरटीओ वाले इं ेसन ले रहे ह, कहे ह िक
र ज टेशन नंबर होता तो तुरत
ं बता देते, तमाम र ज टर देखने पड़गे। इस लए
आज तो नह , लेिकन कल तक ज़ र बता दगे।’
ि पुरारी ने डपटते हुए कहा, ‘बोलो मडर का मामला है, ज दी कर।’
ि पुरारी ने फ़ोन रख कर कहा, ‘सर कल तक ही पता लगेगा, थोड़ा टेढ़ा काम
है, पर हो जाएगा।’
अ फ़ाक़ उ ा िब मल ने तह वर के हाथ पर हाथ रख कर कहा, ‘आप िफ न
कर, कोई बचेगा नह । अगर हमारा पु लस वाला भी गुनहगार होगा तो उसे भी हम
सीधे जेल भेजगे।’
तह वर बोला, ‘आप अपनी त तीश कर ली जए, कोई बेगुनाह सज़ा न पाए।’
इतना कहकर तह वर अफ़ज़ल और अबराम के साथ बाहर खड़ी उस कमेटी क
एक गाड़ी से चला गया।
इं पे टर ने फ़ौरन जीप िनकालने के लए कहा। िविकपी डया और ि पुरारी
पांडे दौड़ कर बाहर आए। जीप पर बैठ कर तीन लखनऊ मे डकल कॉलेज क
तरफ िनकल पड़े।
काकोरी शरीफ़ पर तह वर को उतार कर अबराम और अफ़ज़ल पैदल घर क
तरफ चल िदए। ख़ामोशी तोड़ते हुए अफ़ज़ल बोला, ‘तू ठीक है न अब? सोच रहा
हूं एक िदन के लए लखनऊ हो आऊं, िफर सहारनपुर भी जाना है। कुछ डटे स
लेनी ह।’
‘अभी तो दो-तीन ह ते ह न तेरे पास?’ अबराम ने पूछा।
अफ़ज़ल बोला, ‘दोन जगह पर ोजे ट का ही काम है, लेिकन उससे ज़ री
ोजे ट ये है िक तू एकदम पहले जैसा हो जा—एकदम नॉन सी रयस, मलंग और
अपने टड अप कॉमे डयन टाइल म।’
अफ़ज़ल क बात सुनते ही धीरे से अपने टाइल म आकर, अबराम ने अफ़ज़ल
का हाथ पकड़ा और पूछा, ‘यार, या ोजे ट है तेरा?’
अफ़ज़ल मु कुराया, ‘हो जाने दे, व त आने पर सब बता दगं ू ा।’
अबराम बोला, ‘तू बता न बता, मने तेरी फ़ाइल और लैपटॉप म सब देख लया
है। पता नह या- या कोड ल वेज म लखा है तूने।’
अफ़ज़ल च का, ‘कब देखा? और या ज़ रत थी?’
अबराम हंसा, ‘अरे, उस रात तू सो गया था, तेरा लैपटॉप ऑन था, बस बढ़ा ली
अपनी नॉलेज। पर सच म कुछ समझ म नह आया।’
अफ़ज़ल ने ठंडी सांस ली, ‘होटल मैनेजमट नह है, लेनेटरी साइंस है…सब
कोड म ही रहता है, पाई-फाई-साई टाइ स। पर आगे से मत देखना।’
अबराम ने अपनी योरी ऑफ़ लाइफ़ समझाते हुए कहा, ‘यार, अपना तो खु ा
खेल फ खाबादी है…खुलेआम, सरेआम। जो पं डत जी ने फॉमूला िदया उसी पर
जीते ह—खुलकर खेलो, छुप कर या खेलना! बड़ी नौकरी छोड़ी, होटल के दो त
ने नसीम पपीतेवाला का पता िदया, नसीम ने चांद से िमलाया और चांद ने तह वर
चाचा से…बस हो गया अपना ब स एं ड ला ट काकोरी कबाब, वो भी असली
वाला!’
अफ़ज़ल बोला, ‘देख यार मेरा नेचर ऑफ़ वक ही ऐसा है िक िकसी से कुछ
शेयर नह कर सकता, सो लीज़ लेट मी मटेन माय सी े सी…और लीज़ अब
दोबारा कभी मेरी चीज़ मत खंगालना।’
अफ़ज़ल क बात पर चेहरा लटकाने के बजाय अबराम ने ठहाका मारा, ‘ओ हो
इतना सी रयस, अभी तो मुझको समझा रहा था िक नॉन सी रयस हो जा, देख मने
कंटोल िकया न! अब तो ज़ र देखग
ूं ा तेरा लैपटॉप, चाहे िकतना भी रोक ले।’
‘आई एम सी रयस एं ड आई मीन इट, गु !’ अफ़ज़ल गंभीर होकर बोला।
माहौल थोड़ा सा ह का हुआ। अबराम ने अफ़ज़ल को भरोसा िदलाया िक वो
अब कभी ऐसा नह करेगा। दोन बात करते हुए घर क तरफ चल िदए।
***
मे डकल कॉलेज म इं पे टर अ फ़ाक़ उ ा िब मल डॉ टर के साथ बैठा था।
डीजीपी से लेकर एसएसपी तक का ज़बरद त दबाव था उस पर, इस लए उसे
ज द से ज द पो टमॉटम और फॉर सक रपोट हा सल करनी थी। अ फ़ाक़ सोच
रहा था िक जब अंगद यादव ने सारी बात क़ुबूल कर ही ली है तो ज द से ज द
केस क जांच पड़ताल ख़ म होनी चािहए। फॉर सक ए सपट डॉ टर स हा ने
अ फ़ाक़ से एक िदन का व त मांगते हुए कहा, ‘िम टर अ फ़ाक़, अंगद यादव के
बाल और नाख़ून के सपल हम िमल गए ह, रािबया बसर के सपल हमारे पास ह
ह , बस दोन मैच कर गए तो समझ ली जए आपका केस सॉ व।’
अ फ़ाक़ ने िफ िदखाते हुए पूछा, ‘वो मोबाइल का या हुआ?’
डॉ टर स हा ने हौसला बढ़ाया, ‘आप िफ मत करो इं पे टर, हमने मोबाइल
डाटा रकवर करने के लए सॉ टवेयर इंजीिनयर को भेजा है। आ जाएगा ज दी,
मामला स सिटव है, कोई हड़बड़ी ठीक नह है।’
अ फ़ाक़ ने पो टमॉटम करने वाले डॉ टर रमेश किटयार से पूछा, ‘आपक
रपोट कब तक पूरी हो जाएगी डॉ टर साहब?’
डॉ टर किटयार ने बताया, ‘बस दस िमनट म पूरी हो जाएगी, अपने साथ ही
लेते जाइएगा। केस सॉ व है आपका।’
इसी बीच एसएसपी का फ़ोन आया। अ फ़ाक़ ने फ़ोन उठाया, ‘जय हद सर!
पो टमॉटम रपोट दस िमनट म िमल जाएगी। सात-आठ घंटे म फॉर सक रपोट
भी आ रही है। अंगद और मज़दरू को हमने क टडी म ले लया है, अंगद ने
सबकुछ क़ुबूल भी कर लया है, बस रपो स लगा कर जेल भेज दगे सर, बाक
कुछ है नह केस म…नशे म लड़क का रेप और िफर क़ ल कर िदया गया है।’
एसएसपी ने पूछा, ‘तो ये अनारकली का या एं गल है?’
अ फ़ाक़ ने जवाब िदया, ‘कुछ नह सर, झूठ बोल रहा है साला।’
एसएसपी ने ग़ु से म पूछा, ‘तो अनारकली िम सग य है?’
अ फ़ाक़ बोला, ‘आ जाएगी सर, िकसी क टमर के साथ होगी। इनका तो धंधा
आप समझते ही ह, मोबाइल ऑफ़ है उसका।’
एसएसपी तेवर िदखाते हुए बोला, ‘केस को ज दी सॉ व करो, और हां, मी डया
मैनेज रखना, ओके?’
अ फ़ाक़ ने गहरी सांस लेकर फ़ोन रखा। एक सबॉ डनेट पो टमॉटम रपोट
लेकर अंदर आया। डॉ टर किटयार ने रपोट ली और पढ़ना शु िकया, ‘रात दो
से ढाई के बीच म डेथ हुई है। लड़क क वेजाइना म सीमेन िमला है। शाप वूंड है
टैिकया म, मतलब सांस क नली म कोई पैनी चीज़ घ प कर मारा गया है। मुह
ं और
नाक के अलावा वूंड से ए सेस ली डग हुई है। े ट और बॉडी के कई पा स पर
गहरी खर च के िनशान ह। जसने भी िकया है, इ स ए वैरी फोसफुल ए ट!’
अ फ़ाक़ बुदबुदाया, ‘साला जानवर हो गया नशे और टेशन म।’
डॉ टर किटयार बोले, ‘हां, से सुअली इंकॉ पटट लोग ऐसे ही पेश आते ह,
उनके अंदर िकसी को हरा देने का िबहेिवयर काम करता है। ऐसे कई केसेस ह।
ऐसे लोग इरादतन नह , ब क ख़ुद को मद सािबत करने के लए क़ ल तक कर
देते ह। इससे इनको से सुअल सैिट फे शन िमलता है। लड़क ने शायद ख़ुद
पैनी चीज़ गले से िनकाली और अटैक से रकवर करने के लए आदमी पर वार
िकए ह गे।’
अ फ़ाक़ उठा और रपोट हाथ म लेकर बोला, ‘सबकुछ तो मैच करता है, बस
स हा साहब फॉर सक रपोट थोड़ा ज दी दे दी जए। देख तो रहे ह आप, केस
ो ेस को लेकर फ़ोन पर फ़ोन आ रहे ह।’
ि पुरारी और िविकपी डया के साथ अ फ़ाक थाने क ओर चल िदया। उसके
चेहरे पर चता साफ़ िदख रही थी, ‘यार बड़ी डबल िम टी टाइप है…ये
अनारकली का स पस नह खुला तो बहुत बखेड़ा हो जाएगा। अइसा तो नह िक
अनारकली को कोई और लाया हो, और रािबया बसर िकसी दस
ू रे च र म वहां गई
हो और साला अंगद यादव अनारकली समझ कर रािबया का रेप िकया हो और
िफर मारे जोश म मडर कर िदया हो?’
ि पुरारी बोला, ‘सर ऐसा तो नह िक अनारकली का भी मडर हुआ हो और
हमको सफ एक लाश िमली हो और दस ू री क चड़ या िकसी बरसाती ग े म दबी
हो?’
ि पुरारी ने बाग म तैनात सपािहय को फ़ोन िमलाया तो पता चला िक बाग म
अ छे से क चड़ साफ़ िकया गया, पर कुछ नह िमला। ि पुरारी बोला, ‘सर वहां तो
सब िनल है, अब एक बात ज़ री है िक अनारकली या अनारकली क बॉडी िमलने
से पहले ये पता लगाया जाए िक मोटरसाइिकल कहां से आई और िकसक है,
तभी इस कांड का गु कालीन रह य समझ म आएगा!’
थाने पर जीप कते ही अ फ़ाक़ ने देखा िक जो मोटरसाइिकल बाग से बरामद
हुई थी वो थाने म खड़ी है, ‘अरे या हुआ गाड़ी नंबर का कुछ पता लगा आरटीओ
से या नह ?’
आरटीओ से लौटे दोन सपािहय म से एक बोला, ‘साहब चे चस नंबर और
इंजन नंबर देखने म बहुत सारा र ज टर पलटना पड़ रहा है।’
‘चू तया हो या बे! अब सब कं यूटराइज़ है,’ अ फ़ाक़ झ ाकर बोला।
िविकपी डया बोला, ‘सर अब तो नंबर डा लए और सब सामने आ जाता है।
नंबर नह तो चे चस, इंजन नंबर डाल कर भी सब पता लग जाएगा। पर िबना पैसा
कोई काम कहां करता है!’
अ फ़ाक़ ने िविकपी डया को घूरा, ‘अबे तुम जाओ, ये साले सब गधा शरोम ण
ह। पैसा देकर िनकलवाओ। यान रखना, खाली हाथ मत लौटना, बस बता दे रहे
ह।’
िविकपी डया एक सपाही को लेकर िनकल लया। अ फ़ाक़ ने आवाज़ लगाई,
‘अंगद को बाहर लाओ।’
दो सपाही अंगद को पकड़ कर बाहर लाए। अ फ़ाक़ ने अंगद को पास बुलाया
और मोटरसाइिकल को यान से देखने को कहा। अंगद ने मोटरसाइिकल देखी,
‘साहब या यही मोटरसाइिकल थी उस रात को?’
अ फ़ाक़ चड़ चड़ाया, ‘ल डया अंधेरे म भी िदख गई, मोटरसाइिकल नह
पहचान पा रहे हो? बाग म ाहक अ सर आते थे न अनारकली के साथ, तो
बताओ िकस क टमर क गाड़ी है? याद करो।’
अंगद ने िफर से मोटरसाइिकल को देखना शु िकया। उसक नज़र टू टी हुई
टेल लाइट पर गई। पेटोल टंक के ढ न को हाथ से पकड़ कर पूछा, ‘ि पुरारी
भैया इसका चाबी कहां है?’
ि पुरारी के इशारे पर सपाही ने जेब से चाबी िनकाली। अंगद ने सपाही से टंक
का ढ न खोलने को कहा। सपाही ने चाबी से कई बार को शश क । टंक के लॉक
म चाबी घुसी तो, लेिकन न इधर हुई न उधर। अंगद ने बताया िक चाबी घूमेगी ही
नह , य िक ढ न लॉक होता ही नह । ढ न केवल घुमाने से खुल जाता है।
अ फ़ाक़ ने सारा तमाशा देख कर पूछा, ‘बताना या चाहते हो बे?’
अंगद ने कहा, ‘साहब ये मोटरसाइिकल हम ही थाने से चुराए थे।’
अ फ़ाक़ तलिमला गया, ‘मोटरसाइिकल चुराए थे? कब चुराए थे, साले?’ उसे
अचानक याद आया, ‘अरे हां, उस िदन िहसाब म मोटरसाइिकल भी लापता थी,
न! ज़रा लाओ तो र ज टर और देखो कब से ये सब चोरी चल रही है थाने म? और
अंगद, तुम बताओ इतना योर कैसे हो िक ये वही मोटरसाइिकल है? बस टंक
और चाबी से?’
रमाकांत दौड़ कर िहसाब का र ज टर लेने अंदर चला गया।
अंगद ने कहा, ‘हां सर, टंक का चाबी नह घूमता, आप चाहो तो एक बार सीट
भी उखाड़ कर देख लो, आपको प ा हो जाएगा सब।’
ि पुरारी ने सीट उखड़वाई। सीट उखाड़ते ही सबक आं ख खुली क खुली रह
गई ं। सीट के नीचे से मैक क चार पुिड़या िनकल । ि पुरारी ने पुिड़या अ फ़ाक़
को िदखाई ं, ‘सर, सही बोल रहा है। साले डिग ट का माल भी इसी म छुपा हुआ
रखा है।’
इसी बीच रमाकांत भी िहसाब का र ज टर लेकर आया, ‘सर ये ए सीडट वाली
गाड़ी है। चार साल पहले दरगाह रोड पर टक ने एक आदमी को कुचल िदया था,
उसी वाले मुकदमे क गाड़ी है।’
‘िकसके नाम पर है गाड़ी?’ अ फ़ाक़ ने पूछा।
रमाकांत बोला, ‘साहब िकशोरी लाल गु ा के नाम पर र ज टड है। अयो या का
नंबर है। पटाखा कारोबारी था, पटाखा लेने आता था यहां। ए सीडट म मौक़े पर
ही मर गया था। टक भी ज़ त कर लया था, वो दे खए थाने म ही टक खड़ा है,
मुकदमा सुलटा नह है अभी तक।’
अंगद अ फ़ाक़ से बोला, ‘साहब हम ही सामान चुरा कर बेचते थे।’
अ फ़ाक़ ने तेज़ी से आकर उसे एक ज़ोरदार तमाचा मारा, ‘लाओ तो लाठी,
साला सब ूव हो गया। इसी का मोटरसाइिकल, इसी ने रेप िकया और इसी हरामी
ने साला बेवजह एक लड़क को मार डाला।’
अंगद रोने लगा, ‘साहब हम नसे म पता नह काहे मार िदए उसे, लेिकन हम
अनारकली को मारे ह गे, रािबया को तो प ा नह मारे।’
अ फ़ाक़ ने अंगद पर लाठी बजाना शु कर िदया। वो िबलखने लगा, ‘साहब
हम सब बताए ह आपको, कुछ नह छुपाए।’
अ फ़ाक़ च ाया, ‘अब बचा या है छुपाने को!’
अंगद िफर बोला, ‘सर हम पं ह-बीस िदन पहले चुराए थे मोटरसाइिकल और
प ा कबाड़ी के यहां बेच िदए थे। आज गाड़ी देखे तो याद आया िक हम तो खुदै
चार पुिड़या माल ग ी के नीचे छुपाए थे। हम चोरी का सारा माल प ा को ही बेचते
ह सर।’
ि पुरारी अ फ़ाक़ से बोला, ‘आप छोड़ो सर, ये हर बार एक नया एं गल पेल रहा
है। कभी अनारकली, कभी प ा कबाड़ी, ये साला हम सबको घुमा रहा है।’
थाने म अंगद क िपटाई चल ही रही थी िक अचानक मे डकल कॉलेज क जीप
आकर क । गाड़ी से डॉ टर किटयार और डॉ टर स हा उतरे। डॉ टर
किटयार ने अ फ़ाक़ से अंदर चलने को कहा। अ फ़ाक़ ने अंदर जाते-जाते
ि पुरारी को अंगद को उसी हवालात म बंद करने का हु म िदया जहां मज़दरू भी
क़ैद थे। इसी बीच आरटीओ से लौटकर आए िविकपी डया ने बताया िक एक िदन
बाद ही नंबर िनकल पाएगा।
अंदर आकर डॉ टर किटयार फ़ाइल से रपोट िनकाल कर बोले, ‘ वैब लाइड
क टे ट रपोट से साफ़ है िक रािबया के वेजाइना म अंगद यादव का सीमेन है।
रािबया के ने स म अंगद क कन और लड है और अंगद के नाख़ून म रािबया
के ही कन और लड पा टकल िमले ह। सब मैच हो गया है, एक मैिनऐक क
तरह अंगद ने रािबया का रेप िकया और िफर ूटली उसे मार डाला।’
अ फ़ाक़ ने चैन क सांस ली िक सारा मामला सुलझ गया। उसने ि पुरारी से
कहा िक मु ालाल प कार को फ़ोन करे और बाक मी डया वाल को भी कल
सुबह बुला ले। अ फ़ाक़ ने दोन डॉ टस से भी ेस कॉ स म मौजूद रहने को
कहा और सीधे डीजीपी को फ़ोन लगाया, ‘जय हद, सर! सब मैच हो गया है सर,
पो टमॉटम रपोट, फॉर सक रपोट, मोटरसाइिकल—सब सॉ व हो गया है।
अंगद यादव ही िनकला सर। कल ेस बुला ली है सर, आप ही आकर मी डया
बंधुओ ं को संबो धत कर द, तो और अ छा रहेगा।’
डीजीपी ने कहा, ‘नह अ फ़ाक़, मेरे आने से खामखां केस का ोफ़ाइल बड़ा हो
जाएगा। तुमने केस खोल ही िदया है, छोटा सा मामला है, ह डल कर लो।
एसएसपी को बता देना, भूलना मत।’
डीजीपी से बात करने के बाद अ फ़ाक़ ने एसएसपी को फ़ोन लगाया और वही
बात दोहरा द । एसएसपी ने बेमन से ही सही, लेिकन शाबाशी दी। अ फ़ाक़ ने ेस
कॉ स म आने को कहा तो एसएसपी ने भी मना कर िदया।
ि पुरारी ने अ फ़ाक़ को जानकारी दी िक मु ालाल के अलावा बाक मी डया
को भी बुला लया है और सारा इंतज़ाम अ छे से कर िदया है—समोसे, अदरक
वाली चाय और प कार को ड गा देने के लए, एक-एक चकन का कुता-पजामा
और पांच-पांच सौ पए के पटाखे। जन ल म क दिु नया म ेस कॉ स म िदए
जाने वाले िग ट को कोडवड म ‘ड गा’ कहते ह।
***
सारा इंतज़ाम होने के बाद अ फ़ाक़ घर लौट आया। घर पर अबराम और अफ़ज़ल
अपने-अपने कमर म थे। जीप के कने क आवाज़ सुनकर अबराम बाहर गया।
अ फ़ाक़ डाइवर को सुबह ज दी आने का ऑडर देकर अबराम के साथ अंदर आ
गया, ‘अफ़ज़ल कहां है? आओ तस ी से चाय पी जाए।’
अफ़ज़ल कमरे से िनकल कर सीधे चाय बनाने िकचन म चला गया और पांच
िमनट म टे म तीन कप सजा कर ले आया, ‘ली जए ख़ाँ साहब, अदरक, इलायची,
ल ग और मसाले वाली चाय! मज़ा न आए तो पैसे वापस।’
अ फ़ाक़ हंसा, ‘चाय है या ब स एं ड ला ट के मसालेदार लंबे वाले सीख
कबाब?’
अबराम हंसते हुए बोला, ‘पं डत जी गु के लैपटॉप और गु क कोड ल वेज
के बाद, अब जनता क बेहद मांग पर पेश है गु क कबाबी चाय!’
तीन हंसने लगे और अ फ़ाक़ बोला, ‘लाओ भाई, एक कप गरम कबाबी चाय।’
अबराम थोड़ा सी रयस होकर बोला, ‘पं डत जी, एक बात बतानी थी
आपको…’
अ फ़ाक़ ने चाय क चु क ली, ‘हां, हां बोलो!’
अबराम ने अफ़ज़ल क तरफ देखा, ‘वो रािबया बसर क बात है।’
अफ़ज़ल ने अबराम को आं ख िदखाई, ‘चल चाय पीने दे उनको।’
अ फ़ाक़ थोड़ा च का, ‘बोलो या बताना है रािबया बसर के बारे म?’
इससे पहले क अफ़ज़ल टोकता, अबराम ने फट से कहा, ‘पं डत जी जस रात
को मडर हुआ था, उस रात दो बजे के आसपास मेरे मोबाइल पर रािबया क दो-
तीन िम ड कॉल थ और अफ़ज़ल के मोबाइल पर भी आठ-दस िम ड कॉल आई
थ …मतलब हम सो रहे थे और जो भी कॉ स रािबया ने िकए ह गे वो सब िमस हो
गए।’
अफ़ज़ल ने बीच म सफाई दी, ‘ कूल फं शन वाले िदन नंबर लया था उसने
मेरा।’
अ फ़ाक़ बोला, ‘हां लया होगा, तो? अबराम से रािबया ने नंबर लया, इसी लए
िमलाया होगा।’
अबराम बोला, ‘हां पं डत जी, लेिकन मडर िकतने बजे हुआ उसका?’
अ फ़ाक़ च क गया, ‘हां यार दो से ढाई बजे के बीच ही हुआ है। इसका मतलब
वो मुसीबत म रही होगी, कई लोग को फ़ोन िकया होगा…तुम लोग को भी फ़ोन
िमला कर वो कुछ मदद मांग रही हो शायद। बड़ा ग़लत हो गया उसके साथ,
लेिकन तुम लोग चता मत करो, केस सॉ व हो गया है।’
अबराम बोला, ‘हां, वो अंगद यादव को देखा हम लोग ने टीवी पर। साला,
चौराहे पर लटका कर फांसी देनी चािहए उसको।’
अफ़ज़ल ने अ फ़ाक़ के हाथ से खाली कप ले लया और बोला, ‘ख़ाँ साहब, ये
अनारकली और प ा कबाड़ी का या मसला है?’
अ फ़ाक़ को न द का झ का आ रहा था। वो उठा और वद उतारता हुआ कमरे
क तरफ चल िदया, ‘अरे हमारे थाने के ख़बरी मु ालाल प कार को ू देते रहते
ह, वो साला सबका े कग प ी बनाकर चला देता है। अनारकली िम सग है और
मोटरसाइिकल ख़ुद अंगद ही चुराया था, बाक कुछ नह है। बहुत ज़ोर से न द आ
रही है…’
अ फ़ाक़ के कमरे म जाते ही अबराम का कॉलर पकड़ कर अफ़ज़ल हंसते हुए
बोला, ‘तुम को मना िकया था, िफर भी नह माने! म भी बताऊं जाकर िक शादी
करना चाहती थी तुझसे?’
अंगद के पकड़े जाने के बाद रािबया के िग ट को अनलोड कर चुका अबराम,
कॉलर छुड़ा कर अ फ़ाक़ के कमरे क तरफ दौड़ा, लेिकन तब तक अ फ़ाक़ सो
चुका था। अबराम पलटा, ‘म डरता नह हू,ं सुबह उठने दे, ख़ुद ही बता दगं ू ा। हम
िपच पर टाइम नह वे ट करते गु , सीधे िवरे दर सहवाग क तरह खु ा खेल
फ खाबादी है!’
दोन हंसते-हंसते अपने कमरे म चले गए। हर िकसी को सुबह का इंतज़ार था।
***
काकोरी थाने म इं पे टर अ फ़ाक़ उ ा िब मल अपनी कुस पर बैठा था।
डॉ टर किटयार और डॉ टर स हा भी साथ म मौजूद थे। भीड़ भी काफ़ थी।
तह वर ख़ाँ के साथ दरगाह के दजन लोग खड़े थे। अबराम और अफ़ज़ल के
अलावा चांद खुतरा और नसीम पपीतेवाला भी जानने आए थे िक उस रात रािबया
के साथ या और कैसे हुआ। एक दजन यूज़ चैन स क माइक आईडी मेज़ पर
रखी थ , लेिकन कैमरा सफ एक लगा था। ये कैमरा था सीसीटीवी यूज़ का और
रपोटर के नाम पर सफ मु ालाल प कार सामने क कुस पर सवाल पूछने के
लए बैठा था। अ फ़ाक़ ने ि पुरारी से पूछा, ‘बाक मी डया नह आया या?
सबको इ वाइट िकए थे न?’
इससे पहले ि पुरारी कोई जवाब देता, मु ालाल प कार बोल पड़ा, ‘अरे सर,
चाइना के े सडट आए ह, यहां कउन आएगा कवर करने! लखनऊ म सारे बड़े-
बड़े चैनल के यूरो चीफ बैठे ह और िद ी म सबके एडीटर…हम ठहरे छोटे से
चैनल के छोटे से टंगर, हम ही यूरो चीफ और हम ही एडीटर। काकोरी म िकसी
को कोई भी यज़ ू चािहए, वी डयो चािहए, बाइट चािहए तो मु ालाल प कार है न!
सारे चैनल वाले हमको अपना माइक आईडी दे िदए ह, आप चता न कर ेस
कॉ स शु क जए। हर चैनल को आपका इंटर यू पहुच
ं जाएगा। आप बस
खुलासा क जए और दे खए आधे घंटे म कमाल!’
अ फ़ाक़ उ ा िब मल ने अंगद यादव और चार मज़दरू को पेश करके पूरे कांड
का खुलासा िकया। अ फ़ाक़ उ ा ने कैमरे पर पूरा यौरा िदया। मु ालाल ने अंगद
यादव को भी बोलने के लए कहा, तो अंगद यादव ने एक बार िफर अनारकली
और प ा कबाड़ी का एं गल छे ड़ िदया।
मु ालाल प कार ने अ फ़ाक़ से सवाल पूछा, ‘सर ये बताइए िक ये बार-बार
कह रहा है िक मोटरसाइिकल इसने थाने से चुराई ज़ र थी, लेिकन प ा कबाड़ी
को बेच दी थी, िफर कबाड़ी से पूछताछ हुई या?’
अ फ़ाक़ उ ा िब मल के बोलने से पहले ही डॉ टर किटयार बोल पड़े,
‘दे खए इस सवाल का कोई रे लवस है ही नह , सीमेन, लड और कन
पा टक स रािबया बसर और अंगद यादव के बीच मैच हो चुके ह। अंगद मान चुका
है िक उसने ही वद भी जलाई थी और मज़दरू के बयान से भी सािबत हो गया है
िक उस रात ये सब वह थे। मोटरसाइिकल तो इसी ने चुराई, अब बेचने क बात
कह रहा है तो हम साइंिटिफक ू स देखगे, या इस झूठ पर सवाल करगे?’
मु ालाल का अगला सवाल आया, ‘च लए मान लया, िफर ये अनारकली क
या योरी है? कहां ग़ायब है अनारकली? अब तक टेस य नह हुई?’
अ फ़ाक़ बोला, ‘अनारकली और मोटरसाइिकल का मसला एक जैसा है। अंगद
कह रहा है िक उसने रेप तो िकया है, पर रािबया का नह , अनारकली का;
मोटरसाइिकल तो चुराई है, पर प ा कबाड़ी को बेच दी है। हम अनारकली को टेस
कर रहे ह। कॉल डटे स आने दी जए अनारकली का च र भी खुल ही जाएगा।’
‘अनारकली, उफ अनारा शु ा कोई च र नह चलाती। इकॉिनिम स म
पो ट ेजुएट हू,ं इस लए योर शॉट जानती हूं िक च र तो मोह बत करने वाल
का चलता है। यहां तो कैश ऑन ड लवरी वाला स टम है, सर जी!’ एक औरत
क खनकती आवाज़ सुन कर सब स रह गए। ख़ुद अनारकली द तर के दरवाज़े
पर खड़ी थी। महंगी कन िफट जी स, डीप नेक वाली टी-शट, को हापुरी च पल
और डेड सन लासेस पहने अनारकली अंदर आई।
अंगद यादव के चेहरे पर राहत थी, लेिकन भ चक हो चुके अ फ़ाक़ ने उसे इशारे
से अंदर बुलाया। सटू दबु े ने कैमरा उसक तरफ मोड़ िदया। मु ालाल ने माइक
लगा िदया, ‘मैडम ज़रा डटेल म बताइए।’
अनारकली ने अंगद को देखा और यौरा िदया, ‘हां, हम अ सर जाते थे आम के
बाग म। अंगद से हमारा कारोबारी र ता है। पैसे का नह , ब क कॉमो डटी
ए सचज का।’
मु ालाल हंसा, ‘वो सब तो ठीक है, लेिकन उस रात आप कहां थ ?’
अनारकली ने अफ़ज़ल क तरफ देखा, और िफर इं पे टर क तरफ देखते हुए
बोली, ‘बेटा िब कुल बाप पर गया है। ख़ैर छोिड़ए, हम लखनऊ गए थे। डा लग
डलाइ स होटल, कमरा नंबर 376, आठ घंटे क श ट थी। क टमर को हमारा
फेसबुक एकाउं ट इतना पसंद आ गया िक लाइक और कमट से पूरा इनबॉ स भर
िदया साले ने। एक श ट क बु कग थी, साला पांच श ट ूटी करनी पड़ी!’
इस बार अ फ़ाक़ ने सवाल िकया, ‘तुम िकसक मोटरसाइिकल पर थ
अनारकली? और तुमने फ़ोन वच ऑफ़ य रखा इतने घंट तक?’
अनारकली मु कुराई, ‘ ूटी के टाइम मोबाइल ऑफ़ कर देती हू।ं रही बात िक
िकसके साथ थी, िकसक मोटरसाइिकल पर गई थी, तो साहब वो मेरा मेक माय
िटप है, वही बु कग लाता है और ले जाता है। काकोरी म कई लोग ह, बस नाम मत
खुलवाइए…टेड सी े ट है, सर।’
अ फ़ाक़ ने ेस कॉ स ख़ म क और कहा, ‘इनक बात क स ाई का पता
हम ज द लगा लगे। अंगद को हम अदालत म पेश करके जेल भेज रहे ह, सारी
रपो स के साथ। थ यू!’
भीड़ से िनकल कर तह वर ने अ फ़ाक़ के सामने हाथ जोड़े और इंसाफ़ के लए
एक पु लस वाले को भी न छोड़ने का शुि या िकया। तह वर क नज़र चांद और
नसीम पर भी पड़ी, लेिकन उसने दोन को बस देख कर अनदेखा सा कर िदया
और दरगाह के लोग के साथ वापस चला गया।
अनारकली भी बाहर िनकली और एक श स के साथ मोटरसाइिकल पर बैठ
गई। उसने अबराम और अफ़ज़ल को देखा और िफर मु कुरा कर चांद खुतरा और
नसीम पपीतेवाला को आं ख मारती हुई चली गई। इं पे टर अ फ़ाक़ उ ा ने उसे
आं ख मारते हुए देख लया। मु ालाल भी सबके िह से का ड गा लेकर चलता
बना।
अ फ़ाक़ उ ा गहरी सांस लेता हुआ कुस पर ध म से बैठ गया। सारे सपाही
पूरी तस ी के साथ खड़े थे। अबराम और अफ़ज़ल सामने वाली कुस पर बैठे थे।
अ फ़ाक़ बोला, ‘सब सुलझ गया, सारे सवाल के जवाब िमल गए, बस अफसोस
इस बात का है िक साला पु लस का सपाही ही रेिप ट िनकला।’
िविकपी डया बोला, ‘बड़ी टफ सचुएशन थी आपके लए, कैसे िकए सब?’
अ फ़ाक़ बोला, ‘दीवार िफ़ म देखे हो? बेचारे श श कपूर पु लस इं पे टर और
ब न साहब मगलर। अब ब न साहब भाई भी थे और सुपर टार भी, भला कैसे
गोली मार? आज समझ आया िक बेचारे श श कपूर कैसे चलाए ह गे गोली। बस
दीवार िफ़ म से ेरणा लए और अंगद को जेल भेज िदए।’
सब हंसने लगे। अबराम बीच म बोला, ‘मुझे लगता है पं डत जी िक अनारकली
क बात म कुछ तो है, िफर प ा कबाड़ी से मोटरसाइिकल क पूछताछ करने म
हज या है?’
‘अब काहे गोभी खोदी जाए जब सीज़न िनकल गया?’ अ फ़ाक़ बोला।
अबराम ने बात को ह का िकया, ‘वही तो म कह रहा हू,ं सारी रपो स िमल गई
ह, अंगद जेल चला गया, अनारकली आ गई…नाऊ केस इज़ ओपेन एं ड शट; िफर
भी अंगद ने जो कहा, जसे हम झूठ समझ रहे ह, उस झूठ को तलाशने म, आई
थक देयर इज़ नो हाम! शायद कुछ िमल जाए। नह िमला तो कोई नुकसान नह ,
और िमल गया तो सच ही होगा।’
तभी एक सपाही अंदर आया, ‘साहब आरटीओ वाले ऑिफस से कोई िब न
बाबू आए ह, िव ासागर भैया ने बुलाया है।’
अ फ़ाक़ बोला, ‘बुलाओ, बुलाओ।’
िब न बाबू ने अंदर आकर दो कागज़ िविकपी डया को थमा िदए, ‘भैया, वो
जस मोटरसाइिकल के इंजन और चे चस नंबर का आपने इं ेसन उतरवाया था,
वो तो उ र देश म कह भी र ज टड नह है।’
िविकपी डया ने कहा, ‘अरे पता लग गया है, गाड़ी अयो या क है। काकोरी के
ए सीडट म मा लक मर गया था, थाने म जमा थी।’
िब न च क गया, ‘नह भैया, आपके कहने पर पूरा कं यूटर छान मारा है
ऑनलाइन, अयो या क गाड़ी नह है वो।’
‘अयो या क नह है, तो कहां क है?’ िविकपी डया ने सवाल िकया।
िब न बोला, ‘गाड़ी न तो अयो या क है और न मोटरसाइिकल है!’
इस बार अफ़ज़ल बोला, ‘तो डटेल दो।’
िब न ने कहा, ‘साहब, ये चे चस नंबर और इंजन नंबर मोटरसाइिकल का नह ,
एक कार का है, और नंबर यूपी का नह क मीर का है।’
इं पे टर अ फ़ाक़ च क गया, ‘अरे मोटरसाइिकल हमने बाग से बरामद क है।
मोटरसाइिकल को अंगद ने पहचाना—टंक का ताला नह खुलता था, टेल लाइट
टू टी थी और वो सीट उखाड़ने को भी बोला था। उसके कहने पर सीट उखाड़ी तो
कई पुिड़या मैक भी िनकली थी अंदर से।’
ि पुरारी ने िविकपी डया से कागज़ लए और अलमारी क तरफ गया। अलमारी
से र ज टर िनकाल कर ि पुरारी ने ए सीडट वाली फ़ाइल से कागज़ िनकाले और
दोन कागज़ िमलाने लगा, ‘सर ये अयो या के नंबर पर र ज टड है। इसका इंजन
नंबर, चे चस नंबर भी पड़ा है, लेिकन हम लोग को िब न बाबू जो इं ेसन का
कागज़ िदए ह, उसका इंजन और चे चस नंबर तो एकदम अलग है।’
िविकपी डया ने मोटरसाइिकल लेकर आरटीओ गए दोन सपािहय से पूछा,
‘तुम दोन अपने सामने इं ेसन उतरवाए थे न?’
िब न बोला, ‘अरे िव ासागर भैया, ये दोन सपाही वह खड़े थे और हमने इन
दोन के सामने ही इं ेसन उतारा था।’
अफ़ज़ल और अबराम भी च क गए। अफ़ज़ल ह का सा मु कुराया, ‘एक तो
वैसे ही पच ह केस म, अब एक और नया पच सामने आ गया है।’
अबराम ने ख़ुद क तारीफ क , ‘हमने कहा था न, मोटरसाइिकल और
अनारकली वाले एं गल पर काम करने म कोई भी हज नह है!’
अ फ़ाक़ ने िब न से पूछा, ‘कैसे पता िकया क मीर का नंबर?’
िब न बोला, ‘सर अब देश के िकसी भी आरटीओ ऑिफस से िकसी भी टेट
का या शहर का नंबर ऑनलाइन पता िकया जा सकता है। िव ासागर भैया ने
बोला था िक मडर का मामला है, इस लए स रयसली नंबर पता िकया है। कोई
लापरवाही नह है।’
िविकपी डया ने कागज़ अपने पास रख लए और िब न चला गया। पूरा थाना
अब एक नई उलझन म था। केस म एक नया मोड़ आ चुका था। ये सफ एक
इ ेफ़ाक है, या िकसी क शरारत? िकसी को कुछ समझ म नह आ रहा था।
सवाल ये िक मोटरसाइिकल अंगद ने पहचानी थी, और सीट के नीचे से मैक
िनकाल कर पहचान सािबत भी कर दी थी। िफर थाने के पेपस य बता रहे ह िक
गाड़ी अयो या क है? सवाल नंबर दो, अगर थाने के पेपस सही ह, तो इंजन और
चे सस नंबर का इं ेशन य कह रहा है िक गाड़ी क मीर म र ज टड है, वो भी
मोटरसाइिकल नह ब क कार!? या राज़ है इन कागज़ का? ये सवाल हर
िकसी का िदमाग़ ख़राब कर रहा था। तय िकया गया िक प ा कबाड़ी से पहले पूछा
जाएगा िक या सच म अंगद ने पं ह-बीस िदन पहले थाने से मोटरसाइिकल चुरा
कर उसे बेची थी? ये भी फैसला िकया गया िक अनारकली से भी सवाल-जवाब
कर लया जाए, तािक रात के अंधेरे क कहानी उजाले म आ सके। ये सब सोच
कर अ फ़ाक़ ने फ़ौरन ि पुरारी से प ा कबाड़ी के िठकाने पर छापा मारने को कहा
और ख़ुद अनारकली के नौटंक मैदान जाने के लए खड़ा हो गया। जीप पर बैठते-
बैठते अ फ़ाक़ बोला, ‘ि पुरारी तुमसे बोले थे न हम िक रािबया और अनारकली
के कॉल डटेल मंगा लो? साला केस सॉ व हो गया, तो तुम राहत इंदौरी हो गए!
चलो ख़ैर, केस िनबट गया है, आराम से ह ते दो ह ते म डटेल मंगा लो, िफर
देखते ह, या करना है।’
अ फ़ाक़ उ ा नौटंक मैदान क तरफ िनकला, अबराम घर क तरफ और
अफ़ज़ल घर से लैपटॉप और फ़ाइल लेकर काकोरी टेशन पहुच ं ा। नौटंक मैदान
पर झालर िटमिटमा रही थ । काकोरी के सैकड़ जवान लड़के सीिटयां और ताली
बजा-बजा कर नाच रहे थे। टेज पर ख़ुद अनारकली बाक डांसस के साथ नाच
रही थी और लोग के हाथ से नोट भी पकड़ रही थी।
चांद खुतरा और नसीम पपीतेवाला भी टेज पर चढ़ कर उसके साथ नाच रहे
थे। अनारकली दोन को हटाने क को शश कर रही थी। तभी एनाउं सर ने जनता
क बेहद मांग पर ऐलान िकया िक अनारकली शक रा के गाने पर डांस करेगी। भीड़
भी ज़ोर-ज़ोर से च ाने लगी और साउं ड स टम पर गाना गूज ं ा। गाने पर
अनारकली के कू हे शक रा से यादा शा तर अंदाज़ म थरक रहे थे। भीड़ म पीछे
खड़े इं पे टर अ फ़ाक़ से अनारकली क नज़र िमली और वो टेज के पीछे चली
गई। अ फ़ाक़ उ ा सीधे अनारकली के डे सग म म पहुच ं ा। भीतर पहुचं ते ही
अनारकली बोली, ‘साहब हम ही बुला लया होता।’
अ फ़ाक़ बोला, ‘उस िदन बाग म रािबया नह तु हारा क़ ल हो जाता, ज़रा भी
डर नह लगा तुमको?’
अनारकली अपने अंदाज़ म बोली, ‘सच म साहब डर तो बहुत लगा हमको, िफर
सोचा जदा ह तो डरना कैसा! इस लए शो म ट गो ऑन।’
अ फ़ाक़ ने सीधे सवाल िकया, ‘अंगद यादव बार-बार तु हारा नाम य ले रहा
था?’
अनारकली उदासी के साथ मु कुराई, ‘उसक बंदक
ू म बा द तो बहुत था,
लेिकन बेचारे क नली म जंग लगी थी।’
अ फ़ाक़ से रहा नह गया और बोला, ‘अब इस अंदाज़ म हमसे बात मत करो
अनारकली उफ़ अनारा शु ा। सीधे-सीधे बताओ िक तुम उस िदन बाग म गई थ
या नह ? तुमने कुछ देखा था वहां?’
अनारकली उठी और डे सग टेबल क दराज़ से कागज़ िनकाल कर उसने
अ फ़ाक़ को थमा िदया, ‘आप तो मंगा ही चुके ह, लेिकन हमने पहले ही मंगा लए
ह। ये हमारे मोबाइल के कॉल डटे स ह। च िकए मत, पूरे एक महीने का
आइटमाइ ड िबल है—इनक मग, आउटगोइंग का कं लीट डटेल। अब लोकेशन
आप पता कर ली जएगा। कई बार आपको हमारी लोकेशन बाग म िमलेगी, लेिकन
उस िदन हम नह गए थे। हां, हम रात म जब जा रहे थे तो हमने लखनऊ-काकोरी
रोड पर एक मोटरसाइिकल पर लड़के-लड़क को आम के बाग क तरफ मुड़ते तो
देखा था साहब, ये प ा है।’
‘कौन था वो लड़का? और लड़क या रािबया ही थी?’ अ फ़ाक़ ने पूछा।
अनारकली ने न म सर िहलाया, ‘नह साहब, लड़का मुह
ं पर माल बांधे हुए
था और लड़क शायद रािबया बसर ही होगी य िक सफेद रंग का कुता पजामा
पहने थी वो लड़क । लड़क का जो फ़ोटो और कपड़े टीवी पर हमने देखे थे, वो
एक जैसे ही लग रहे थे साहब।’
अ फ़ाक़ ने पूछा, ‘तुमने नसीम पपीते को आं ख य मारी?’
अनारकली ज़ोर से हंसी, ‘अरे सर, वो तो उसको ओटीपी भेजा था हमने।’
‘ओटीपी मतलब?’ अ फ़ाक़ ने जानकारी मांगी।
अनारकली बोली, ‘िकसी से किहएगा नह साहब। नसीम पपीते-वाला नया
क टमर है हमारा। हम घर बुला रहा था कई िदन से, पर हम िबज़ी थे इस लए
मना कर िदए। आज फुसत थी, तो बस आं ख मार कर ओटीपी दे िदया िक रात म
पहुच
ं गे घर, एक बजे।’ वो िफर बोली, ‘एक सवाल तो आपने पूछा ही नह ?’
अ फ़ाक़ च का, ‘कौन सा सवाल?’
‘यही िक हमने ये य बोला िक आपका बेटा आप पर गया है?’
‘हां, तो बता दो य बोला था?’ अ फ़ाक़ ने यादा तरजीह न देते हुए पूछा।
‘इस लए िक ब स एं ड ला ट वाले अबराम को हम पहचानते ह। अ सर होम
डलीवरी होती है उसके काउं टर से, पूरी नौटंक के लए। एक-दो बार काउं टर से
डायरे ट हम ही लए ह डलीवरी, कसम से या िगलावटी काकोरी कबाब बनाता
है। अफ़ज़ल एक िदन लैपटॉप लए दरगाह के सामने वाली बच पर बैठा कुछ काम
कर रहा था, तब देखा था उसे। श बहुत िमलती है दोन क , आप भी जवान रहे
ह गे तो ऐसे ही माट ह गे। ओ ह सॉरी, जवान तो आप आज भी ह, एकदम वीर
ज़ारा वाले ओ ड शाह ख ख़ाँ क तरह हडसम!’
अ फ़ाक़ हंस पड़ा, ‘जुड़वां ह दोन , िदखते तो काफ़ कुछ एक जैसे ह, लेिकन
नेचर बहुत अलग है दोन का।’ बात ख़ म करते ही अ फ़ाक़ कुस से उठ गया,
‘मुझे उ मीद है तुमने सब सच बोला है। कुछ और हुआ तो हम तुमसे िमल लगे।’
जीप पर बैठ कर अ फ़ाक़ ने अनारकली से कहा, ‘तु हारा बहुत लोग से
िमलना रहता है, हर िकसी क िह टी जा फ़ तु हारी जेब म है। कह ज़रा सा भी
कुछ नज़र आए तो ज़ र बताना हम।’
अनारकली ने भरोसा िदलाया िक उसे जो कुछ भी पता चलेगा वो ख़ुद थाने
आकर बता देगी। जीप चली गई और अनारकली पलट कर टट क तरफ चल दी।
गेट पर पहुच
ं ते ही चांद खुतरा और नसीम पपीतेवाला टट के पीछे से िनकले।
अनारकली थोड़ा च क गई।
चांद खुतरा ने रंगबाज़ी िदखाई और नसीम पपीतेवाले को हाथ मारते हुए बोला,
‘अरे हम टेज पर शक ला के साथ ज टन बीरबल क तरह नाच रहे थे, और
यहां शक ला इं पे टर को देख कर भाग आई।’
अनारकली ग़ु से म बोली, ‘सुन बे खुतरे, और बता दे अपने पपीते को भी,
अनारा ीपेड है! जतना पेमट उतना टॉक टाइम…यहां टॉप अप क कोई क म
नह है, इस लए आगे-पीछे घूमते मत िदखाई देना। मेरा नाम अनारकली है, रािबया
बसर नह जसे मसल लेगा तू।’
नसीम बोला, ‘अरे हम तो मज़ाक़ कर रहे ह, बस इं पे टर को देख कर थोड़ा
टशन हो गई। बाक ऑल इज़ वेल, बेबो!’
***
काकोरी का भी गज़ब हाल था। चंदा मामा खो गए और सूरज चाचू जाग गए थे,
लेिकन कमाल ये था िक आज कुरैशी कसाई के पजड़े म बंद थके हुए बॉयलर मुग
भी ुप बांग दे रहे थे। चौबीस कैरेट द ु त सबूत के साथ रािबया मडर केस म
अंगद यादव जेल म था। अफ़सर भी है पी-है पी थे। काकोरी के क़रीब दो ह ते बड़े
आराम से गुज़र चुके थे। अनारकली से इंटेरोगेशन के बाद मोटरसाइिकल का
क मीर कने शन भुलाकर रे ट मोड म आ चुके अ फ़ाक़ उ ा साहब, आज
आराम से अख़बार पढ़ रहे थे। अबराम और अफ़ज़ल भी साथ म बैठे रा ीय चतन
म जुटे थे। मु ा था—सकल घरेलू उ पाद। मूडीज़ का दावा था िक जीडीपी कम
रहेगी, जबिक अफ़ज़ल का तक था िक मंदी तो लोबल है। अबराम का मानना था
िक क मीर से धारा 370 हटाना, राम मंिदर का फैसला, तीन तलाक और
एनआरसी, सीएए जैसे मसल म सरकार आम जनता को लगातार उलझाए हुए है।
अफ़ज़ल ने मज़ाक़ िकया, ‘म तो कहता हूं अमे रका िनकल लो, यहां तो पता
नह कौन-कौन से डॉ यम
ू ट चेक करने वाली है सरकार।’
अबराम ने मुह
ं बनाया, ‘गु इ स नॉट ए जोक। टू ड स मारे जा रहे ह, पु लस
घर म घुस कर मुसलमान को िनशाना बना रही है।’
अ फ़ाक़ उ ा ने आवाज़ तेज़ क , ‘पागल, तू भी पागल क तरह बात करने
लगा? जसे देखो बस पु लस वाल को ग रया रहा है। पु लस क गािड़यां जलाई ं,
पु लस वाल के सर फोड़े गए, वो िकसने िकया है?’
‘वो टू ड स के बीच छुपे दंगाइय ने िकया है,’ अबराम ने दलील दी।
अफ़ज़ल भी फैिमली डबेट म कूद गया, ‘सच बोलू,ं मसला दोन तरफ से है—
टू ड स, दंगाई, पु लस, सरकार, अपोिज़शन—सब खेल रहे ह।’
माहौल गम हो रहा था और तीन कप चाय ठंडी हो रही थी। अफ़ज़ल ने ऊंची
आवाज़ म बताया िक बालाकोट क स जकल टाइक हो या उरी का बदला, सेना
ने घुस कर मारा है। अ फ़ाक़ उ ा ने िपयो और पीने दो का मतलब समझाया।
चाय का कप दोन क तरफ ये कहते हुए बढ़ाया िक इससे पहले चाय का टे ेचर
क मीर क तरह माइनस म चला जाए, चाय तो पी ली जाए।
रा िहत से जुड़े फैिमली आ यूमट का रडार अबराम ने अब अ फ़ाक़ क तरफ
घुमा िदया, ‘पं डत जी, आपने रािबया मडर केस म एक बड़ा पॉइंट िमस कर िदया।
आपने ये तो पूछा ही नह िक मोटरसाइिकल अगर क मीर म र ज टड है, तो
क मीर म कहां और िकसके नाम पर र ज टड है?’
अ फ़ाक़ बोला, ‘अरे जब गाड़ी यह क है, तो य चेक कराएं दोबारा? केस
सॉ व हो चुका है। तेरह-चौदह िदन शां त से गुज़र गए ह, तुमसे हमारा सुकून झेला
नह जाता है या, अब हम काहे पड़ी लकड़ी ले ल, बताओ?’
अबराम ने ज़ोर िदया, ‘च लए मान लया, पर अगर आरटीओ वाले ने ही इंजन
और चे सस नंबर का इं ेशन ग़लत ले लया है तो? दोबारा थाने पर इं ेशन
िनकालवा ली जए, दे खए तो मसला या है? छोिड़ए मत कुछ!’
चाय क चु क लेते हुए अफ़ज़ल ने पूछा, ‘अनारकली से बात क आपने?’
अ फ़ाक़ ने हां म जवाब िदया और कहा, ‘कुछ ख़ास नह िनकला।’
अबराम बोला, ‘हो गई न तस ी अनारकली से बात करके, तो िफर
मोटरसाइिकल का लफड़ा भी पता करके डलीट क रए न!’
अंदर ही अंदर झ ाने के बाद भी अबराम क बात अ फ़ाक़ के प े पड़ गई।
उसने तुरत
ं ि पुरारी को फ़ोन लगाया और मालूम िकया िक दो ह ते पहले प ा
कबाड़ी के गोदाम पर जो छापा मारा गया था, उसका रज़ ट या रहा। ि पुरारी ने
बताया िक छापा मारा, लेिकन कुछ ख़ास हाथ नह लगा। अ फ़ाक़ च ाया, ‘अरे
भाई कोई इ कम टै स का छापा नह था िक िकतना कैश िमला और िकतना
गो ड। बात तो सफ ये तय हुई थी िक छापा मारकर ये पता करो िक या सच म
अंगद यादव ने थाने से मोटरसाइिकल चुराकर उसे ही बेची थी।’ ि पुरारी ने कंफम
िकया िक अंगद यादव सच कह रहा था।
अ फ़ाक़ ने ग़ु से म ही पूछा, ‘मोटरसाइिकल क पहचान प ा कबाड़ी से कंफम
हुई िक नह ?’
ि पुरारी पांडे का जवाब इस बार िम टेक नह , लंडर था। उसने अ फ़ाक़ को
बताया िक प ा कबाड़ी ने अपनी दराज़ म पड़ी हुई मोटरसाइिकल क अयो या
र ज टेशन वाली असली नंबर लेट िदखा कर कंफम कर िदया िक जो
मोटरसाइिकल आम के बाग म िमली थी, वो ही मोटरसाइिकल थाने से अंगद
यादव ने चुराई थी, और मोटरसाइिकल का र ज टेशन भी अयो या का ही है।
इं पे टर का मूड अब चाय से भी यादा गम हो चुका था। अ फ़ाक़ ने ि पुरारी को
ऑडर िदया िक वो एक घंटे म थाने पहुच
ं जाए।
फ़ोन कटते ही अबराम ने पूछा, ‘ या हुआ, वही सही है न जो मने कहा था? इसे
कहते ह पु लस कंस टेशन, वो भी !’
अ फ़ाक़ ने उठते हुए जवाब िदया, ‘हां यार, एकदम सही है, अंगद ने मडर से
पं ह िदन पहले फटफिटया थाने से चुराई और प ा कबाड़ी को बेची। प ा के पास
असली नंबर लेट भी है। सबकुछ ॉस चेक हो गया है।’
अबराम ने सल सला जारी रखा, ‘इसका मतलब अंगद सही बोल रहा था।
अगर यही सही है तो मडर के व त अंगद के पास मोटरसाइिकल थी ही नह । िफर
प ा कबाड़ी से ये मोटरसाइिकल लेकर कौन गया उस रात आम के बाग म? और
गया था, तो गाड़ी य छोड़ गया?’
अबराम के सवाल म अ फ़ाक़ को दम नज़र आया, लेिकन अफ़ज़ल जैसे
एकदम बोर हो गया और काम पर िनकलने क बात कहकर अंदर चला गया।
अ फ़ाक़ उ ा के िदमाग़ म अब दो बात क ध रही थ —पहली ये िक अंगद
अनारकली का नाम ले रहा था, मगर अनारकली तो ज़दा है। अंगद ने
मोटरसाइिकल चोरी क बात भी ख़ुद ही बताई। उसक ये बात भी सच िनकली।
पर सबसे यादा ता ुब इस बात का था िक मोटरसाइिकल का जो नंबर अयो या
का था, वो क मीर का कैसे हो गया? आज अ फ़ाक़ हर सवाल का जवाब तलाशने
क िज़द म था। उसने तय िकया िक झारदार याज़ बन चुके इस केस क हर पत
छीलेगा, भले ही छीलते-छीलते उसक आं ख से आं सू ही य न बहने लग।
***
काकोरी थाना आज इ वे टगेशन का टेट ऑफ़ आट बन चुका था। एक-एक
पु लस वाला, थाना कपस म मौजूद था। प ा कबाड़ी भी मौजूद था।
मोटरसाइिकल के इंजन और चे सस नंबर का ताज़ा इं ेशन लेने के लए पहले
कागज़ लगाया गया, िफर कागज़ के ऊपर से प सल घसना शु िकया गया।
िविकपी डया गाड़ी के पुराने कागज़ और आरटीओ वाले इं ेशन और बाक
द तावेज़ लेकर खड़ा था। गाड़ी का फ़े श इं ेशन उतरा। सारा क यूज़न अब दरू
हो गया। आरटीओ वाला सही कह रहा था। इंजन और चे सस पर जो नंबर पड़ा
था, वो सच म यूपी का नह , क मीर का था।
फॉर सक और पो टमॉटम रपोट क िबनाह पर अंगद यादव जेल भेजा जा चुका
था। ये भी ूव हो चुका था िक जो मोटरसाइिकल आम के बाग से िमली थी, वही
अंगद ने थाने से चुराई थी। केस पूरी तरह सॉ व हो चुका था। िफर भी, आज
अबराम के टोकने के बाद अ फ़ाक़ उ ा िब मल तय कर चुका था िक केस भले
ही सॉ व हो चुका है, मगर िम टी सॉ व नह हुई है। अब उसे जो-जो ू िमलेगा,
उसे हर हाल म इंवे टगेट िकया जाएगा। लहाज़ा अ फ़ाक़ ने ज़ोर से पूछा,
‘क मीर म गाड़ी िकसके नाम पर र ज टड है, िविकपी डया?’
िविकपी डया ने सीधे आरटीओ का कागज़ पढ़कर सुनाया, ‘सर इस गाड़ी के
मा लक का नाम है—स ाद अहमद भट। उ स ह साल, गांव महरम, ड टक
अनंतनाग, क मीर।’
अ फ़ाक़ ने कबाड़ी क तरफ नज़र घुमाई, ‘अब तुम बोलो प ा, जब ये गाड़ी
यूपी क है, तो इसका चे चस नंबर क मीर का कैसे हो गया?’
कबाड़ी कुड़कुड़ाया, ‘साहब, हम तो अंगद यादव से ख़रीदने के दो िदन बाद ही
गाड़ी मेवालाल एं ड संस के मा लक को बेच िदए थे।’
‘तुमने इसक असली नंबर लेट अपने पास य रखी?’ अ फ़ाक़ ने पूछा।
कबाड़ी बोला, ‘साहब नंबर लेट हमने नह रखी, वो मेवालाल एं ड संस का
नौकर मोटरसाइिकल क नंबर लेट ख़ुद ही उतार कर दे गया था। कह रहा था िक
लाल टीकर वाली नई नंबर लेट बनवाएगा।’
‘सर, स ाद अहमद भट का नाम कह सुने ह हम।’ िविकपी डया बीच म बोला।
‘अबे नाम छोड़ो, पहले मेवालाल क तरफ गेयर दबाओ,’ अ फ़ाक़ झ ाया और
िबना टाइम वे ट िकए प ा कबाड़ी को गाड़ी म बैठा कर, दो-तीन सपािहय के
साथ सीधे मेवालाल एं ड संस क दक ु ान क ओर चल पड़ा। मेवालाल एं ड संस
काकोरी म होलसेल पटाख क बड़ी दक ु ान थी। उ र देश का शायद ही कोई
ऐसा िज़ला हो, जहां मेवालाल के पटाखे न दगते ह । अब मेवालाल तो बचा नह ,
सफ संस ही संस बचे ह, और मेवा खा-खाकर लाल हो रहे ह। मेवालाल तो अपने
आ ख़री व त म छुआरे क तरह सूख कर मर गया, लेिकन मेवालाल के नालायक
संस ने मेवा क सेवा तक नह क । बेचारा मेवालाल ख़ुद तो ज़दगी भर दसू र क
दीवाली धमाकेदार से ल ेट कराता रहा, पर ख़ुद फु स पटाखे क तरह िबना
आवाज़ िकए, सीधे वग सधार गया।
पु लस क जीप देखते ही मेवालाल के बेटे ग ी से उतरे और च ा कर एक
साथ बोले, ‘अबे सीको, साहब के लए कॉफ ला गमागरम।’
अ फ़ाक़ सीधे पॉइंट पर आया, ‘हम यहां कॉफ िवद करन खेलने नह आए ह।
सीधे केबीसी के सवाल का जवाब दो, वो भी िबना ऑ शन।’
दोन बेट ने िफर एक साथ बोला, ‘हां सर, पू छए न!’
अ फ़ाक़ ने प ा कबाड़ी को कॉलर ख चते हुए आगे िकया, ‘इससे कोई
मोटरसाइिकल ख़रीदी थी तुम लोग ने?’
अब उनम से एक बेटा बोला, ‘जी सर, ख़रीदी थी।’
‘अबे वो गाड़ी रािबया के मडर म इ तेमाल क गई है, कहां है गाड़ी?’ अ फ़ाक़
ने सवाल िकया।’
मेवालाल का बेटा बोला, ‘हे भगवान! वो कूल टीचर, जसका मडर हुआ था
आम के बाग म? वो गाड़ी मडर म इ तेमाल क गई? भगवान क़सम सर, वो
मोटरसाइिकल तो फुलझड़ी ले गया था, छन गई है।’
अ फ़ाक़ ने डांटा, ‘अबे फुलझड़ी ले गया हो या रॉकेट, गाड़ी कहां है?’
दोन बेटे एक ही साथ बोले, ‘फुलझड़ी हमारा कारीगर है। उसके लए ही ख़रीदी
थी, प ा कबाड़ी से। रिबया के मडर के तीन िदन पहले काकोरी मोड़ पर, िकसी ने
क ा िदखा कर मोटरसाइिकल छीन ली थी।’
अ फ़ाक़ ने माथा पीटा, ‘साला काकोरी म खुतरा, पपीता, कबाड़ी तो सुन ही
लए थे, बस ये सीको और फुलझड़ी सुनना रह गया था। अबे तुम काकोरी वाले
एक भी सिपल और ईज़ी नाम नह रख सकते हो?’
प ा कबाड़ी ने फ़ज़ हंसी के साथ जवाब िदया, ‘अरे सर, नाम तो आपका भी
नायाब है, अ फ़ाक़ उ ा िब मल! लगता है हर व त से यूट करते रह आपको,
और हर 9 अग त को फूल चढ़ाते रह।’
मेवालाल के बेटे बोले, ‘सर हम पटाख के नाम पर इस लए नाम रखते ह
य िक कारीगर भागते बहुत ह, अब िकस-िकस का नाम याद रख! ये सीको है,
मतलब छोटा बम, फुलझड़ी तो आप समझ ही गए ह गे, हमारी काकोरी का नेम
टड फेमस है सर।’
‘फुलझड़ी को जलाओ। मेरा मतलब बुलाओ,’ अ फ़ाक़ ने आदेश िदया।
फुलझड़ी को बुलाया गया और वो दौड़ कर आ गया। उसने सारा िक सा
सुनाया—वो गाड़ी लेकर जा रहा था। रात हो चुक थी। तभी काकोरी मोड़ पर
मंक कैप पहने एक आदमी ने उसे क ा िदखा कर रोका और कंटाप मार कर भगा
िदया। अ फ़ाक़ का िदमाग़ घूम गया—अंगद ने चुराई, कबाड़ी को बेची, कबाड़ी से
मेवालाल संस ने ख़रीदी, फुलझड़ी से िकसी ने तमंचे क न क पर छीन ली। वही
गाड़ी आम के बाग से बरामद हुई, जसके टू ल बॉ स के पेचकस से रािबया का
क़ ल िकया गया। और अब, गाड़ी अयो या क नह , क मीर क है। उसके िदमाग़
म एक सवाल क धा—छीनी थी तो एफआईआर दज य नह कराई? जवाब भी
आसान था, य िक गाड़ी चोरी क थी।
एक और सवाल अ फ़ाक़ के िदमाग़ म आया िक असली नंबर लेट तो कबाड़ी
के पास थी, तो या नई नंबर लेट फुलझड़ी ने लगवाई थी? इसका भी जवाब
सपल था। हां, नई नंबर लेट लगवाई थी, वो भी रात म चमकने वाले रे डयम
टीकर वाली। जसने छीनी होगी उसने ही नंबर लेट हटा दी होगी, तािक पता ही
न चले िक गाड़ी है िकसक । अब फाइनल सवाल था िक जो नंबर लेट हटा
सकता है या वो इंजन और चे सस नंबर भी बदलवा सकता है? ये जवाब तो सफ
प ा कबाड़ी दे सकता था य िक चोरी क गािड़यां तो कबाड़ी ही ख़रीदता था।
िफर या था, मेवालाल एं ड संस को यूचर म पूछताछ का नोिटस थमा कर,
अ फ़ाक़ उ ा प ा कबाड़ी को लेकर वापस चल िदया। अब तो काकोरी थाने म
ही प ा कबाड़ी का िफिज़कल वै रिफ़केशन भी होगा। सफ िफिज़कल
वै रिफ़केशन ही नह लािठय , प , जूत , थ पड़ से नाग रक स मान भी िकया
जाएगा।
थाने पहुचं ते ही अ फ़ाक़ ने कबाड़ी को ल तयाते हुए हवालात के अंदर कर िदया
और ि पुरारी को सबसे मोटी वाली लाठी छांट कर लाने का फ़रमान सुनाया।
सपािहय ने लािठयां एक जगह इक ा क । टायर के प े को पानी म भगो िदया
गया और पट के साथ कबाड़ी क पटी भी उतार कर फक दी गई। ि पुरारी ने पटी
को लेकर यादा िदमाग़ नह लगाया। वो समझ गया िक या तो प ा कबाड़ी भी
अनारकली का क टमर है, या िफर साले का िकसी से इ सट रलेशन है। दोन
ही सूरत म अंधेरे क ज़ रत तो पड़ती ही है। हो गई होगी अदला-बदली। आज
नह तो कल वापस कर देगा पटी। मु े क बात ये है िक हवालात ऑपरेशन थएटर
लग रहा था। सारे अपरेटस टरलाइज़ िकए जा रहे थे। इतना ज़ोरदार य देख
कर प ा कबाड़ी क आं ख फटी क फटी रह गई ं। सोच-सोच कर िदमाग़ भी फटने
लगा। मतलब कुछ यूं समझ ली जए, िक पंचत व से िन मत ई र द इस न र
शरीर म जो कुछ भी फट सकता था, सब का सब फटने लगा। अचानक एक सौ
साठ डे सबल से थोड़ी यादा ती ता वाली आवाज़ गूज ं ी—सटाक! सटाक!
सटाक! तीन बार “सटाक” के बीच क टाइ मग भी एक ही थी। तीन लाठी पड़ते
ही यूटन, गैली लयो, आकिमडीज़, फैराडे और आई ं टीन के सारे फॉमूले लागू हो
चुके थे। बॉयोलॉ जकली कान से सुना जाए, तो लगा जैसे बम फट गया। हालांिक
फटा तो बम ही था, लेिकन ये बम कोई सुतली बम नह , ब क कबाड़ी का बम था।
चौथे सटाक क आवाज़ से पहले ही कबाड़ी का सामा य ान जाग गया। उसक
आ मा ने आवाज़ दी िक बेटा कबाड़ी, इससे पहले िक ये पु लस वाले तेरी
कोलोनो कोपी कर, मुह ं से सब उगल दे। प ा कबाड़ी ने साहब-साहब च ा कर
शरीर के द णी गोलाध का भूगोल बदलने से बचा लया और इ तहास उगल
िदया, ‘साहब हम चोरी का सारा माल ख़रीदते-बेचते ह। कई इंटर टेट वाहन चोर
गग हम अपना माल बेचते ह, लेिकन साहब पूछ ली जए ि पुरारी भैया से, हर
महीना थाने को पूरा पैसा टाइम से पहुच
ं ाते ह।’
अ फ़ाक़ ने िफर लाठी उठाई, ‘इंजन, चे चस नंबर का या खेल है?’
कबाड़ी ने थूक गटका, ‘साहब ये ऑटो ल टर गग बहुत शा तर ह, फ़ौरन गाड़ी
क नंबर लेट हटा देते ह। हम जस हालत म गाड़ी गग से ख़रीदते ह, वैसे ही बेच
देते ह। पर ये गाड़ी तो हम सीधे अंगद यादव से ख़रीदे थे, इसी लए नंबर लेट हटा
कर बेच िदए थे, साहब।’
अ फ़ाक़ ने लाठी ज़मीन पर पटक दी और बोला, ‘साले इतना जानता है तो ये
भी जानता होगा िक गग वाले नंबर लेट और चे चस नंबर कैसे अदला-बदली
करते ह? इतना तो मधुर संबध
ं है ही न तु हारा?’
कबाड़ी िगड़िगड़ाया, ‘सर हमको पता तो नह है, बस सुना है िक गािड़यां
चुराकर लखनऊ के रकाबगंज म खरादी के कारखाने जाती ह। वहां असली नंबर
लेट फ़ौरन बदल दी जाती है, िफर खराद, यानी ाइंडर से घसकर इंजन और
चे चस नंबर भी िमटा िदया जाता है। उसके बाद नया नंबर गोदा जाता है। पर हम
कभी नह गए, साहब।’
िविकपी डया बोला, ‘सर गािड़यां तो हमेशा पा कग, मकान, दक
ु ान या ऑिफस
के बाहर से चुराई जाती ह, इसका मतलब जो गािड़यां छीनी जाती ह, वो भी तो
ऑटो ल टर ही होते ह। अगर मेवालाल एं ड संस वाले फुलझड़ी से
मोटरसाइिकल, मडर के तीन िदन पहले क ा िदखा कर छीनी गई, तो वो भी नंबर
बदलने के लए खराद कारखाने भेजी गई होगी, य न हम रकाबगंज वाले खराद
कारखाने से पता कर?’
अ फ़ाक़ उ ा एक भी ू िमस नह करना चाहता था। असल म वो सवाल से
जूझ रहा था। पहला सवाल, आ ख़र मोटरसाइिकल फुलझड़ी से िकसने छीनी?
दसू रा सवाल, जसने छीनी अगर वो चोर ही है, तब तो चे सस नंबर बदलवाना
बनता है, लेिकन अगर चोर नह है, तो य बदलवाया? तीसरा सवाल, अगर
छीनने वाला ऑटो ल टर गग का है, तो या उस रात आम के बाग म वो चोर ही
रािबया के साथ गया था? चौथा सवाल, अगर चोरी क गाड़ी िकसी और ने ख़रीद
ली हो, तो िफर चोर नह , ब क मोटरसाइिकल का ख़रीदार ही वो श स होगा,
जो क़ ल क रात बाग म गाड़ी छोड़ गया था।
िबना व त गंवाए, िविकपी डया दो सपािहय के साथ लखनऊ के रकाबगंज
खराद कारखाने क तरफ िनकलने को हुआ, तो इं पे टर ने उसे ताक द क िक
िकसी भी हालत म लखनऊ पु लस को पता न चले िक काकोरी पु लस िकसी
पूछताछ के सल सले म लखनऊ आई है। य िक लखनऊ पु लस को पता चला,
तो एसएसपी साहब को पता चल जाएगा, और अगर एसएसपी साहब को पता
चला, तो वो तुरत
ं समझ जाएं गे िक रािबया रेप एं ड मडर केस म अभी भी कुछ
लोचा है।
***
िविकपी डया ने गाड़ी दौड़ाई और सीधे लखनऊ के रकाबगंज जाकर का। इधर-
उधर पता करने के बाद, काकोरी पु लस खराद के कारखाने पहुच
ं गई। पु लस क
गाड़ी देख कर कारखाने के लोग शटर िगराकर भागने लगे। िविकपी डया को
अ फ़ाक़ क ताक द याद थी। हालात संभालते हुए िविकपी डया ने सबको गारंटी
दी िक िकसी को कोई परेशानी नह होगी। गारंटी काड िमलने के बाद खराद
कारखाने का मा लक, बाबूराम बाघमार सामने आया। उसने िबना कुछ पूछे ही बता
िदया िक वो ऑटो ल टर गग का मबर तो नह है, बस गािड़य के नंबर, ाइंडर से
घसकर बदलता है और इसके बदले उसे मोटी रकम िमलती है। इस मोटी रकम
का एक तगड़ा िह सा, थाना रकाबगंज को ह ते के िहसाब से भेजा जाता है। चोरी
क गािड़य का सारा िक सा सुनने के बाद, िविकपी डया ने सफ एक सवाल
िकया, ‘बस इतना बता दो बाबूराम, कैसे करते हो सब?’
बाबूराम ने ाइंडर और नए नंबर डालने वाली हीट मशीन िदखा कर बताया,
‘साहब जो गािड़यां चोरी होकर आती ह, हम उनके इंजन और चे चस नंबर ाइंडर
से घस कर िमटा देते ह, िफर हीट मशीन से दस
ू रे नंबर इंजन और चे चस म गोद
देते ह।’
स टम समझते हुए िविकपी डया बोला, ‘इंजन और चे चस म नंबर छापने
वाली ये मशीन तो गािड़यां बनाने वाली फै टय म होती ह, फै टी से ही नंबर छप
कर आता है, तु हारे पास मशीन कहां से आई?’
बाबूराम ने मासूम सा जवाब िदया, ‘साहब कहने को तो नोट छापने क मशीन
सफ रजव बक म ही है, िफर बाहर कैसे छप जाती है करसी?’
बाबूराम क बात िविकपी डया के िदमाग़ म सीधे उतर गई। उसने िफर पूछा,
‘करसी तो समझ गए, लेिकन गािड़य पर तुम जो नंबर छापते हो, वो नंबर आते
कहां से ह तु हारे पास?’
बाबूराम ने सबकुछ साफ़-साफ़ बताया, ‘साहब गग वाले ही चोरी क
मोटरसाइिकल और कार के साथ नंबर दे जाते ह। आरटीओ वाल से उनक
से टग होती है, वो दस ू रे शहर और टेट के नंबर दे जाते ह। कार का नंबर
मोटरसाइिकल पर, मोटरसाइिकल का नंबर कार पर। कभी टक का नंबर, तो कभी
टपो का नंबर, जो नंबर दे जाते ह वो छाप देते ह। गाड़ी पकड़ी जाए तो कं यूज़न
बना रहे, इस लए नंबर इधर का उधर छपवाते ह। कोई कड़क टैिफक वाला िमल
गया, तो ढू ंढ़ता रहेगा िक िकसक गाड़ी िकसके नाम र ज टड है।’
िविकपी डया ने पूछा, ‘अरे वो म सब समझ गया, लेिकन इतने के लए ल ट
क या ज़ रत है? अपने मन से कोई भी नंबर लख दो।’
बाबूराम बाघमार बोला, ‘ लख सकते ह साहब, पर िकतना लख, कौन सा
लख? ल ट है, तो बस कापी पे ट करना रहता है।’
िविकपी डया को अब सारे ही सवाल के जवाब िमल चुके थे। बस एक आ ख़री
सवाल उसके िदमाग़ म कुलबुला रहा था, ‘अ छा ये भी बताओ िक सफ गग वाले
ही आते ह या कोई ाइवेट आदमी भी नंबर िमटाने और नया नंबर छपवाने आता
है तु हारे पास?’
बाघमार के चेहरे पर टशन आ गई, ‘साहब, आप या जानना चाहते ह?’
‘बस ऐसे ही, कुछ ख़ास नह ,’ िविकपी डया ने थोड़ा टालते हुए कहा।
बाघमार ने िफर पूछा, ‘सर, कोई केस हो गया है या?’
िविकपी डया ने फटकारा, ‘देखो बाघमार, तुम नाम के बाघमार होगे, अभी तो
हम बहुत आराम से पूछ रहे ह, िफर अपने पर आ गए तो तुम अपना नाम गीदड़मार
बताओगे सबको। जो पूछा है, वो बताओ!’
‘साहब, द सय साल से तो सफ गग वाले ही आते ह। अभी तक बस एक ही
आया जसने अपनी मोटरसाइिकल का नंबर घसवा कर कार का नंबर छपवाया,’
बाघमार ने दबी ज़बान म जवाब िदया।
इतना सुनते ही िविकपी डया ने पूछा, ‘कौन आया था?’
बाबूराम बाघमार ने अलमारी खोलकर सैकड़ कागज़ िनकाले। उन कागज़ पर
दसू रे टे स और शहर क कार , मोटरसाइिकल , टक और टै टर तक के
इंजन नंबर, चे सस नंबर और र ज टेशन नंबर लखे थे। वो कागज़ को उलटने-
पलटने लगा। उनके बीच म से अचानक लॉसी पेपर पर छपी एक फ़ोटो िगरी।
बाघमार ने कागज़ छोड़ कर ज़मीन से फ़ोटो उठाई और िविकपी डया को थमा दी,
‘ये ली जए साहब।’
िविकपी डया ने फ़ोटो देखी। फ़ोटो कलड थी, िकसी के जनाज़े क । लाश
पािक तानी झंडे से लपेट कर रखी गई थी। कुछ लोग जनाज़े के पास बैठे रो रहे
थे। जनाज़े के पीछे , मैदान म सैकड़ क भीड़ िदखाई दे रही थी। िफरन, जैके स
देख कर समझ आ रहा था िक स दय क फ़ोटो है। िविकपी डया ने बाघमार से
पूछा, ‘फ़ोटो काहे का है बे?’
बाघमार बोला, ‘अरे नह ! फ़ोटो नह साहब, फ़ोटो को पलिटए िफर बताइए िक
या इसी नंबर क तलाश है आपको?’
िविकपी डया ने फ़ोटो को फ़ौरन पलटा। फ़ोटो के पीछे वाले सफेद िह से पर
िकसी ने काले रंग के माकर पेन से लखा था, इंजन नंबर G12BN164140 और
चे सस नंबर MA3ERLF1SOO183735। फ़ोटो म गाड़ी के र ज टेशन नंबर के आगे
लखा था 33.964722 ड ी नॉथ और 74.964444 ड ी ई ट। उसने फ़ौरन
सपाही को बाहर भेजा और आरटीओ वाली फ़ाइल मंगवाई। सपाही दौड़ कर
फ़ाइल लाया। फ़ाइल के कागज़ और फ़ोटो पर लखे नंबर को िविकपी डया ने
िमलाया तो सकपका गया। ये दोन ही इंजन और चे सस नंबर एक थे।
िविकपी डया ने बाघमार क पीठ थपथपाई, ‘बहुत बड़ा काम कर िदया तुमने
बाघमार! बस एक आ ख़री बात और बता दो, कौन दे गया था ये?’
‘जाने दी जए साहब, चोर नह है, ाइवेट आदमी है,’ बाघमार ने कहा।
‘जानवर क तरह एक लड़क का रेप करके मार िदया गया है। नाम बता दोगे तो
इंसाफ़ िमल जाएगा एक बूढ़े बाप को,’ िविकपी डया बोला।
बाघमार अलट हो गया, ‘आप काकोरी से आए ह साहब?’
‘हां, काकोरी से ही आया हू,ं ’ िविकपी डया साफ़ बोला।
बाघमार ने थोड़ा संकोच िकया, िफर कहा, ‘तो या चांद भाई…’
िविकपी डया हड़बड़ाया, ‘कौन चांद भाई?’
‘चांद खुतरा,’ बाघमार क ज़ुबान ने पूरा नाम खोल िदया।
िविकपी डया ने बाघमार से तुरत
ं चाय मंगाने को कहा और उसके कंधे पर हाथ
रख कर वह बैठ गया। चाय पीते-पीते बाघमार ने बताया िक वो गािड़य के टील
के साइलसर, मडगाड और तमाम चीज़ को ाइंड करके चमकाता है। जब टक ,
बस , टपो के िप टन और सलडर के बीच चलते-चलते जगह बन जाती है, तो
गाड़ी एवरेज कम देने लगती है। सलडर म मेटल भर कर घसाई क जाए तो जगह
भर जाती है और एवरेज िफर द ु त हो जाती है।
चांद खुतरा कई बार टपो के िप टन और सलडर क खराद कराने आता था।
िपछले ह ते वो इंजन और चे सस नंबर घस कर, नया नंबर छपवाने के लए
मोटरसाइिकल लाया था। नंबर भी वो ख़ुद लख कर लाया था। फ़ोटो पर लखा
नंबर, कागज़ के साथ उसके पास पड़ा था, जो आज बाघमार ने िविकपी डया को
िदया। िविकपी डया ने ये भी पूछा िक र ज टेशन नंबर क जगह जो नॉथ-ई ट
और ड ज स लखे ह, उसका या मतलब है। इस पर बाघमार ने बताया िक
उससे सफ इंजन और चे सस नंबर बदलने को कहा गया था। बाक और सब या
लखा है, न वो जानता है और न ही उसने चांद खुतरा से पूछा था। िविकपी डया ने
जेब से दो हज़ार का नोट िनकाल कर बाघमार को िदया। बाघमार यूपी के िगने चुने
लोग म होगा जो ग़लत धंधे म भी इ वॉ व था और पु लस उसी को घूस दे रही
थी। िविकपी डया ने उससे वादा लया िक वो इस पूछताछ के बारे म िकसी को
नह बताएगा। बाघमार ने भी िविकपी डया को क़सम खलाई िक उसका नाम कह
नह आना चािहए। िविकपी डया ने बाघमार को भरोसा िदलाया और सीधे काकोरी
क तरफ चल िदया।
***
काकोरी थाने पर जीप से उतर कर िविकपी डया तेज़ी से इं पे टर अ फ़ाक़ उ ा
िब मल के द तर म दा ख़ल हुआ। उसने सै यूट िकया और फ़ोटो सीधे
इं पे टर के सामने रख दी। अ फ़ाक़ ने दराज़ से मै ीफाइंग लस िनकाला और
फ़ोटो देखने लगा। िविकपी डया ने फ़ौरन टोका, ‘साहब फ़ोटो म कुछ नह है, जो
भी है फ़ोटो के पीछे , लेन वाले िह से पर है।’ अ फ़ाक़ ने फ़ोटो पलटी और िफर
मै ीफाइंग लस से काले रंग के माकर पेन से लखा हर एक ए फ़ाबेट और ड जट
पढ़ना शु कर िदया। सब पढ़ने के बाद अ फ़ाक़ बोला, ‘अबे िविकपी डया ये या
है? इतना पढ़े- लखे होते तो सपाही काहे भत होते, िबना गुडवक और मोशन के
इं पे टर न बन जाते?’
िविकपी डया ने बताना शु िकया, ‘सर ये वही नंबर ह जो मोटरसाइिकल पर
छापे गए ह। मोटरसाइिकल वा तव म अयो या के नंबर क ही है। इसी
मोटरसाइिकल का ए सीडट हुआ था टक से। यही गाड़ी तो अंगद यादव थाने से
चुरा कर प ा कबाड़ी को बेची थी। िफर कबाड़ी ने यही गाड़ी मेवालाल एं ड संस को
बेची थी। फुलझड़ी तीन िदन पहले, जब यही गाड़ी लेकर जा रहा था तब मंक कैप
पहने िकसी आदमी ने क ा िदखा कर उससे गाड़ी छीन ली थी। इस गाड़ी का
असली इंजन, चे चस और र ज टेशन नंबर तो हमारे थाने के पास है, लेिकन चोरी
क गाड़ी ख़रीद कर प ा ने नंबर लेट हटा दी थी। िफर फुलझड़ी ने रात म
चमकने वाली नंबर लेट लगवाई, लेिकन जसने फुलझड़ी से गाड़ी छीनी, उसने
वो नंबर लेट हटवा दी और लखनऊ म रकाबगंज के खराद वाले से इंजन और
चे चस नंबर घसवा कर नया नंबर छपवा िदया। यही नंबर आरटीओ वाले िब न
बाबू भी लेकर आए और बताया िक ये नंबर मोटरसाइिकल का नह कार का है।
कार के मा लक का नाम है, स ाद अहमद भट—उ स ह साल, गांव महरम,
ड टक अनंतनाग और 370 हटने के बाद क मीर।’
अ फ़ाक़ ने मै ीफाइंग लस से िफर नंबर देखा, ‘हां तो इसम नया या है?
असली बात बताओ, नंबर बदलवाया कौन?’
‘सर पहले ये बताइए, ईनाम या दगे?’ िविकपी डया ने हंस कर पूछा।
अ फ़ाक़ झुझ
ं लाकर बोला, ‘पहले बताओ।’
िविकपी डया ने साहब का मूड भांप लया और झट से बोला, ‘चांद।’
‘कौन चांद?’ अ फ़ाक़ ने पूछा।
िविकपी डया फुसफुसाया, ‘चांद खुतरा।’
अ फ़ाक़ उ ा स रह गया।
ि पुरारी च का, ‘चांद खुतरा, माने वो रािबया क फूफ का लड़का!’
अ फ़ाक़ उ ा िब मल ने िविकपी डया को गले लगा लया। मतलब, पहले चांद
खुतरा रािबया बसर को लेकर मोटरसाइिकल से आम के बाग पहुच
ं ा। उसने रािबया
के गले म टू ल िकट का पेचकस घ प कर, उसका क़ ल कर िदया। िफर
मोटरसाइिकल मोड़ कर वापस ले गया। चांद खुतरा को लगा िक रािबया बसर मर
चुक है। लेिकन रािबया तो अभी मौत से लड़ रही थी। अंगद यादव ने समझा क
मोटरसाइिकल चली गई, यानी अनारकली का क टमर वापस चला गया। बस
िफर या, अंगद यादव ने आ ख़री सांस िगन रही रािबया के साथ बला कार कर
िदया। धीरे-धीरे सबको समझ आने लगा िक उस रात शायद या हुआ होगा।
अंगद ख़ुद को मैच िवनर समझकर आगे बढ़ा, तो मोटरसाइिकल चालू थी।
लाइट जल रही थी। ऐसा इस लए हुआ य िक गाड़ी के लौटने और अंगद के
अनारकली के पास तक जाने के बीच चांद खुतरा वापस आया और गाड़ी को ऑन
छोड़ गया। हेडलाइट क रोशनी म अंगद को पता चला िक जस वद को वो पानी
से भीगा समझ रहा था, असल म वह पानी नह अनारकली का ख़ून है। बदहवास
सा अंगद वापस लौटा, तब तक रािबया मर चुक थी। अंगद क बात सच थी।
अंगद का िदमाग़ मान चुका था िक जो लड़क मरी वो रािबया नह , अनारकली थी।
नशे, हैवािनयत और क़ ल के टायंगल म फंसे अंगद ने उस रात मान लया िक
उसने अनारकली का रेप िकया, िफर जोश म उसे मार भी डाला।
अब साफ़ हो चुका था िक चांद ने मडर िकया और अंगद ने रेप। पेचकस के वार
से बुरी तरह घायल रािबया बसर बला कार के दौरान मर गई थी।
पच सफ दो पॉइं स पर अटक रहा था—एक, चांद ने रािबया को मारा य ?
और दस ू रा सबसे अहम पॉइंट, छीनी हुई मोटरसाइिकल का इंजन और चे सस
नंबर चांद ने य बदलवाया? और बदलवाया भी, तो खराद वाले से कह देता िक
िकसी भी गाड़ी का इंजन और चे सस नंबर छाप दो। चांद ने ख़ुद नंबर लखकर
य िदया? और नंबर क मीर क कार का ही य िदया?
***
हर सवाल, सवाल का हर जवाब और जवाब से िफर िनकलने वाले नए सवाल
जाकर चांद खुतरा पर िटक गए थे। िबना िकसी शोरगुल के सीधे तह वर ख़ाँ के घर
पर छापा मारा गया। चांद नसीम पपीतवाला के साथ रोज़मरा क तरह बस बैठा
टाइम पास कर रहा था। अबराम अपने ऑडस टपो पर लोड करके र ज टर म
कुछ िहसाब लख रहा था। जीप कने के पहले ही अ फ़ाक़ उ ा ने आगे वाली
सीट से छलांग लगाई और चांद को कॉलर पकड़ कर उठा लया। चांद ख़ुद को
छुड़ा कर भागने लगा। नसीम िठठक कर क गया। सारा तमाशा देख रहे अबराम
के लए ये सुपर सर ाइज़ पैकेज था। भाग रहे चांद के पीछे सपाही भागे। चांद घर
के अंदर घुस गया। अ फ़ाक़ भी तेज़ी से दौड़ा। सपाही पीछे -पीछे और तेज़ दौड़ने
लगे। एक कमरा, दस ू रा कमरा, बरामदा, िकचन और िफर सीढ़ी चढ़ कर पहली
मंिज़ल और िफर एक और सीढ़ी। इस बार सीढ़ी छत पर जाकर खुली। चांद खुतरा
उन पेिटय के पीछे छुप गया जो उस िदन मज़दरू छत वाले कमरे म रखने के लए
चढ़ा रहे थे और रािबया मज़दरू से टकरा गई थी। अ फ़ाक़ और सपाही थोड़ी देर
तक चांद को ढू ंढ़ते रहे, िफर अ फ़ाक़ ने एक पेटी उठाई। चांद खुतरा अब एकदम
सामने था। अ फ़ाक़ ने अपने हाथ म उठाई पेटी को चांद के सर पर पटक िदया।
चांद क खोपड़ी और पेटी, दोन खुल गई ं। उसके सर से ख़ून और पेटी से काले
रैपर म पैक मी डयम साइज़ क डल जैसे दजन पीस कमरे म िबखर गए। अ फ़ाक़
उ ा चांद को कॉलर से पकड़ कर घसीटता हुआ सीढ़ी से नीचे ले आया और जीप
पर लाद कर थाने क तरफ चल िदया।
अबराम को समझते देर नह लगी िक हो न हो चांद को रािबया मडर केस क
वजह से ही पु लस उठा कर ले गई है। टपो पर काकोरी कबाब के ड बे लोड हो
चुके थे। अबराम ने टपो डाइवर से काकोरी शरीफ़ दरगाह छोड़ने को कहा। टपो
टाट ही हुआ था िक कबाब काउं टर के पीछे छुपा बैठा नसीम पपीतेवाला बाहर
िनकला। नसीम ने अबराम को ज़ोर से आवाज़ दी, ‘गु , मुझे भी अपने साथ ले
चलो।’
अबराम टपो से उतर कर नसीम के पास आकर बोला, ‘नह यार, तू घर जा। म
तह वर चाचा को लेकर थाने पहुचं ता हू।ं हंडेड परसट रािबया के मडर को लेकर
कोई ू िमला है, इसी लए चांद को उठा ले गए ह।’
पसीने म तर-ब-तर हो चुका नसीम हांफ रहा था। उसने अबराम का हाथ
पकड़ा, ‘गु , िदल बहुत घबरा रहा है।’
अबराम दौड़कर काउं टर से श र लाया, ‘ज दी से फांक ले, तेरी शुगर लो हो
रही है। परेशान मत हो, कुछ नह होगा।’
नसीम ने श र फांक और वह बच पर बैठ गया। तीन-चार िमनट बाद वो थोड़ा
नॉमल हुआ, तो अबराम ने उससे कहा, ‘चल तू घर जा। म भी अब तह वर चाचा
के पास नह जाऊंगा, वो भी खामखां परेशान हो जाएं गे।’
अबराम समझ गया िक अभी तह वर को कुछ भी बताना ठीक नह रहेगा। जस
टपो से अबराम, तह वर को लेने दरगाह जा रहा था, उस टपो पर उसने नसीम
पपीतेवाला को बैठाया और डाइवर से उसे घर छोड़ने को कहा। टपो के जाने के
बाद अबराम तह वर के घर के अंदर चला गया। पु लस और चांद खुतरा क दौड़
भाग म पूरा का पूरा घर िबखरा पड़ा था। अबराम कमरा ठीक करने लगा। ाउं ड
ोर का कमरा ठीक करके वो जैसे ही फ़ ट ोर के लए बढ़ा, उसे लगा िक
रािबया क डे सग टेबल क दराज़ खुली है। अबराम ने उसको बंद कर िदया।
ता ुब क बात ये िक काले रैपर म मी डयम साइज़ क क डल जैसा जो पीस
रािबया ने उस िदन दराज़ म रखा था, वो आज दराज़ से ग़ायब था। अबराम ने
ाउं ड और फ़ ट ोर के सभी कमर म िबखरे हुए सामान को ठीक िकया और
छत क तरफ बढ़ गया। उसने छत के कमरे म िबखरे सारे पीस िफर से पेटी म भरे
िदए।
िफर कुछ सोचते हुए उसने क डल जैसा िदखने वाला एक पीस उठाया और
रैपर हटा कर उसे तोड़ कर देखा तो उसम से पीले रंग के श र जैसे दाने ज़मीन
पर िबखर गए। अबराम ने झाड़ू से सारे दाने नाली म बहा िदए और टू टा हुआ वो
पीस जेब म रख लया।
***
चांद खुतरा के सर से लगातार ख़ून टपक रहा था। पु लस क जीप थाने क तरफ
जा रही थी। एक सपाही ने चांद के सर पर माल लगा कर ज़ म को दबा रखा
था। हेड कां टेबल ि पुरारी ने इं पे टर अ फ़ाक़ को सलाह दी िक चांद को पहले
काकोरी के सरकारी अ पताल ले चलना चािहए। अ फ़ाक़ उ ा िब मल ि पुरारी
क बात मान गया। गाड़ी थाने के बजाय सीधे जला अ पताल के लए मुड़ गई।
इमरजसी म डॉ टर ने फ़ौरन चांद के सर का घाव देखा। घाव काफ़ गहरा था।
डॉ टर ने अ फ़ाक़ को बताया िक कम से कम अठारह टांके आएं गे। अ पताल के
बाहर तक चांद के चीख़ने क आवाज़ आ रही थी।
चीख़ते हुए चांद के दोन गाल को अ फ़ाक़ ने अपने हाथ से दबाया, ‘ य दद
हो रहा है या? देखो साले खुतरे को, इस मद को दद होता है।’
अ फ़ाक़ को छोड़ कर सारे पु लस वाले इमरजसी से बाहर चले गए। चांद खुतरा
िनढाल सा हो चुका था। कंपाउं डर ने पहले चांद क डेिनम जैकेट उतारी, िफर
कची से उसक टी-शट काटी। टी-शट काटने के बाद कंपाउं डर ने जैसे ही बिनयान
काटी, वैसे ही काले रैपर म पैक क डल जैसा पीस ज़मीन पर िगरा। अ फ़ाक़ ने
कंपाउं डर से ज़मीन पर िगरा पीस उठाने को कहा। कंपाउं डर ने उसे उठा कर
अ फ़ाक़ को दे िदया। अ फ़ाक़ ने पीस को देखा और ि पुरारी को आवाज़ दी।
ि पुरारी आवाज़ सुन कर अंदर आया, तो अ फ़ाक़ ने उसे पीस थमा िदया, ‘वो
जो पेटी साले के सर पर पटक थी, उसी म से िनकलकर बिनयान म फंसा रह
गया है शायद। रख लो, बाद म देखगे।’
ि पुरारी पीस लेकर बाहर चला गया। कंपाउं डर ने चांद क टी-शट और बिनयान
काट दी। उसके गले म एक ताबीज़ था। कंपाउं डर जैसे ही उसे काटने लगा, चांद ने
उसका हाथ पकड़ लया और मुसलमान होने का हवाला देते हुए, ताबीज़ नह
काटने क गुज़ा रश क । उसे ताबीज़ को बचाते हुए देख अ फ़ाक़ ज़ोर से हंसा,
‘कउनो भसम-भभूत, ताबीज़, टोटका तुमको बचा नह पाएगा खुतरा बाबू। िक ी
भी को शश कर लो…तुम तो गए!’
चांद ने अ फ़ाक़ को देखा और दद के बावजूद भी हंस िदया।
अ फ़ाक़ भी हंसा, ‘अरे कंपाउं डर साहब, वो िप चर म कौन रहता है, जो केवल
पा वाला अंडरिवयर पहनता है? बहुत बड़ी बॉडी वाला, ीन- ीन कलर का…
अरे वो, जो हथौड़े वाले थॉर के साथ रहता है ना?’
कंपाउं डर ख़ून साफ़ करता हुआ बोला, ‘इंि डिबल ह क न, सर।’
अ फ़ाक़ िफर ज़ोर से हंसा, ‘इनको देखो, हमको देख कर हंस रहे ह। चर के
चार हो गई है, लेिकन इंि डिबल ह क बन के िदखा रहे ह।’
चांद क बॉडी से ख़ून साफ़ हो जाने के बाद डॉ टर ने टांके लगाना शु िकया।
चांद ज़ोर-ज़ोर से चीख़ने लगा और िहलने-डु लने लगा, ‘अरे अ ाह! सर, कसम से
बहुत दद हो रहा है। सर को सु कर दी जए, मुझे बेहोश करके टांके लगा दी जए,
सर।’
अ फ़ाक़ ने दो-तीन पु लसवाले अंदर बुलवाए। उ ह ने चांद को कस कर पकड़
लया और िफर डॉ टर ने टांके लगा कर उसे पेन िकलर इंजे शन दे िदया। ये सब
होने के बाद अ फ़ाक़ बोला, ‘डॉ टर साहब, अब हम इसे थाने ले जाते ह।’
डॉ टर च क कर बोला, ‘नह , नह इं पे टर साहब, अठारह टांके लगे ह!
काफ़ डीप कट है। पेन िकलर तो दे िदया है, न द का भी एक इंजे शन दे देता हू,ं
थोड़ा आराम कर लेगा तो आपके थाने ले जाने लायक हो जाएगा।’
अ फ़ाक़ को ये सही नह लगा, लेिकन डॉ टर के कई बार कहने पर उसे समझ
म आ गया। खराद के कारखाने से िमले सबूत से लेकर चांद को दबोचने तक का
मामला उसने अभी तक छुपा ही रखा था। वो नह चाहता था िक िकसी भी हाल म
अफसर तक ये बात पहुच ं े िक रािबया बसर केस म कोई कसर बाक रह गई थी।
लहाज़ा अ फ़ाक़ ने चांद को न द का इंजे शन देने क हामी भर दी। चांद को
डॉ टर और चार सपािहय के सुपुद कर वो ि पुरारी, िविकपी डया, रमाकांत और
गौतम के साथ थाने वापस चल िदया।
जीप थाने पहुच ं ी तो देखा िक फॉर सक ए सपट, डॉ टर स हा भी वहां तभी
पहुच
ं े थे। थाने के बाहर ही वो बोले, ‘थक गॉड अ फ़ाक़, रािबया बसर का मोबाइल
सॉ टवेयर इंजीिनयर ने रकवर कर िदया है। सारे डटे स ऐज़ इट इज़ ह।’
अ फ़ाक़ ने डॉ टर स हा के हाथ से मोबाइल ले लया और बोला, ‘बहुत-बहुत
शुि या डॉ टर साहब!’
फ़ोन अ फ़ाक़ के सुपुद कर डॉ टर स हा वापस चले गए। अ फ़ाक़ रािबया का
मोबाइल लेकर अंदर चल िदया। अ फ़ाक़ ने फैसला िकया था िक वो िकसी को ये
पता ही नह चलने देगा िक रािबया रेप एं ड मडर केस म उसे कई और ू िमले ह,
इस लए उसने डॉ टर से भी इसका िज़ नह िकया। अ फ़ाक़ नह चाहता था
िक अंगद यादव को जेल भेज कर उसने जो असली गुडवक िकया है, उसक कोई
भी ख़बर लीक हो। उसे डर था तो केवल मु ालाल प कार का य िक चांद खुतरा
अ पताल म भत था और मु ालाल ख़बर के च र म हर जगह घूमता रहता था।
अ फ़ाक़ ने समय गंवाए िबना ही मु ालाल का नंबर डायल कर िदया। फ़ोन उठाते
ही अ फ़ाक़ ने मु ालाल से पूछा, ‘अरे कहां ग़ायब हो एडीटर साहब? िकतने िदन
हो गए, आपके दरू दशन ही नह हुए…सब सुई पटक स ाटा है न हमारी काकोरी
म?’
उधर से मु ालाल प कार क आवाज़ आई, ‘इं पे टर साहब, आपक सस
ऑफ़ म ू रता का तो या कहना, कोई न कोई अइसा सटस बोल देते ह िक मजा
आ जाता है!’
अ फ़ाक़ ने हंसते हुए मु ालाल क तारीफ क , ‘अरे नह भाई, आप जैसे दो त
ह तो हंसी-मज़ाक़ बस चलता रहना चािहए। वैसे कहां हो आजकल? आओ कभी,
बहुत िदन से चाय समोसा नह हुआ।’
मु ालाल बोला, ‘अरे सर, वो हमारा कैमरामैन है न— सटू दबु े, उसक तशरीफ़
म बलतोड़ हो गया है, उसी को लेकर सरकारी अ पताल आए ह।’
सरकारी अ पताल का नाम सुनकर अ फ़ाक़ के होश उड़ गए।
तभी मु ालाल बोला, ‘सर, डॉ टर साहब बताए िक आप चांद को पकड़ कर
लाए ह? खोपड़ी फटी है उसक , बाला बन कर लेटा है। हम इंतज़ार कर रहे ह, उठे
तो बाइट ले ल।’
अ फ़ाक़ तुरतं बोला, ‘अरे नह , लोफ़र ह साले, या बाइट लेना। तुम सटू का
आधार काड ठीक करा कर इधर ही आ जाओ, िफर चाय पीते ह और समोसे खाते
ह, कम तेल वाले।’
मु ालाल प कार ने एक-दो घंटे म हािज़र होने क बात कह तो दी, पर अ फ़ाक़
के लए नई मुसीबत ये थी िक चांद अगर टीवी ीन पर चमक गया तो सब िकए
कराए पर पानी िफर जाएगा। अ फ़ाक़ ने ि पुरारी को कहा िक अ पताल म चांद
क चौकसी म तैनात सपािहय को फ़ोन करके कह दे िक िकसी भी हालत म
सीसीटीवी यूज़, इमरजसी वॉड के अंदर न जाने पाए। इतना कहने के बाद
अ फ़ाक़ ने िविकपी डया को रािबया का मोबाइल चेक करने को दे िदया, और
ि पुरारी को बुला कर पूछा, ‘ये बताओ ि पुरारी, जब मोबाइल रकवर होकर आ
गया, िफर रािबया के कॉल डटे स अभी तक य नह आए?’
ि पुरारी ने तुरत
ं ही मोबाइल नेटवक कंपनी को फ़ोन िमलाया और पता िकया
िक अभी तक डटे स य नह आई ं।
उधर से आवाज़ आई, ‘सर आपने मना कर िदया था िक केस सॉ व हो गया है,
अब ज़ रत नह है। डटेल तो हमने एक-दो ह ते पहले से िनकाल कर रखी ह।’
ि पुरारी बोला, ‘यार, ये सब छोड़ो, तुम फ़ौरन लेकर आओ।’
अ फ़ाक़ ने घूर कर ि पुरारी को देखा। इतने म रािबया बसर का मोबाइल और
कागज़ पर लखी डटेल लेकर िविकपी डया उसके पास आया, ‘सर पतीस फ़ोटो
ह गैलरी म। यादातर ा ठाकुर के साथ रािबया क से फ ह, कूल के ब के
डामे वाले फ़ोटो, सन राइज़, सन सेट के फ़ोटो ह। वा सप पर गुड मॉ नग, गुड
नाइट वाले फ़ालतू के मैसेज ह। चैट भी ा के साथ हैलो-हाय, डामे क ट,
डायलॉग। रािबया के मोबाइल म कुछ इंपॉटट नह िमला, सर।’
अ फ़ाक़ ने िविकपी डया क तरफ देख कर सवा लया चेहरा बनाया, ‘एक भी
ख़ास चीज़ नह िमली?’
िविकपी डया ने जवाब िदया, ‘सर रािबया ने मोबाइल म व छता अ भयान
चला रखा था। मतलब जो काम क चीज़ नह है, वो डलीट। वा सप से फ़ोटो
और वी डयो क डायरे ट डाउनलो डग बंद क हुई है। एक बात ख़ास है सर, पं ह
िदन के जो वा सप मैसेज ह, उसम साले नसीम पपीतेवाले के एक-एक िदन म
तीस-चालीस फ़ोटो मैसेज ह…सब शेरोशायरी, लेिकन कुछ को छोड़ कर रािबया
मैसेज देखती तक नह थी। बाक सब ठीक है।’
अ फ़ाक़ बड़बड़ाया, ‘साला! इसे भी नापते ह, थोड़ा क जाओ बस। और
बताओ कॉल र ज टर म कुछ ख़ास िमला िक नह ?’
िविकपी डया ने कॉल र ज टर के डटेल पढ़ना शु िकया, ‘िमस कॉल,
आउटगोइंग, इनक मग िमला कर केवल नौ िदन का िहसाब है इसम—चांद और
पपीते के ढेर सारे िमस कॉल, तह वर और ा से िदन म कई-कई बार बात, बाक
कूल के नंबर से बात हुई है।’
अ फ़ाक़ उ ा िब मल ने दराज़ से मै ीफाइंग लस और वो फ़ोटो िफर
िनकाली, जस पर चांद खुतरा ने क मीर क कार का इंजन और चे सस नंबर
लख कर बाबूराम बाघमार को िदया था। फ़ोटो को उलट-पलट कर देखते हुए
अ फ़ाक़ बोला, ‘उस रात अबराम और अफ़ज़ल को भी फ़ोन िमलाया था रािबया
ने, उसका भी िहसाब दो ज दी से।’
‘सर मडर से पहले, करीब पं ह िदन म रािबया क अबराम भैया से आठ-नौ
बार, बस एक या दो िमनट ही बात हुई है। क़ ल क रात, अगर सफ बारह से दो-
ढाई बजे क बात कर तो सवा एक बजे के आसपास ा के नंबर से रािबया के
फ़ोन पर एक कॉल आई। दोन क क़रीब तीन िमनट बात हुई। पं ह िमनट बाद
ा के नंबर पर रािबया ने कॉल क , सर ये कॉल दो बज कर तीन िमनट तक
चली। मान ली जए िक रािबया ने ा से क़रीब आधा घंटे लगातार बात क , दो
बज कर पांच िमनट पर रािबया ने अबराम भैया को दो और अफ़ज़ल भैया को नौ
कॉल िकए, लेिकन दोन ने फ़ोन ही नह उठाया।’
बेट के नाम सुनने के बाद भी अ फ़ाक़ ने ख़ुद को जानबूझ कर रलै स
िदखाया, ‘अफ़ज़ल और अबराम ने मुझे बताया था िक उस रात कॉ स आए थे
इसी लए हम तु हारे बताने से पहले ही पूछ लए। लेिकन मडर से पहले, ा
ठाकुर का फ़ोन आना, िफर रािबया का ा को फ़ोन िमलाकर आधे घंटे तक बात
करना, ये समझ म नह आ रहा है। रपोट के मुतािबक, दो से ढाई बजे के बीच
रािबया का क़ ल हुआ था, तो ये रािबया ा से इतनी देर तक या बात कर रही
थी? ा का फ़ोन काटने के बाद, उसने शायद मदद के लए अबराम और
अफ़ज़ल को फ़ोन िमलाया…अबे कहां है तु हारी कॉल डटे स, ि पुरारी?’
ि पुरारी बोला, ‘बस सर आती ही होगी।’
अ फ़ाक़ ने िविकपी डया से पूछा, ‘ या कर, वो क मीर क कार के मा लक के
बारे म पता िकया जाए, या रहने द उसे?’
िविकपी डया बोला, ‘सर, क मीर के नाम पर तो हम सब को ज मू पता है और
ज मू के नाम पर सफ वै ण देवी जी के दशन िकए ह…मातारानी क कसम,
हमारा कोई पु लस वाला कने शन तो है नह , िफर हम क मीर म पता कैसे करगे?
वहां क पु लस से पता करने के लए बड़े साहब से कहना पड़ेगा, और आप ये
चाहते नह िक उन लोग को कुछ भी पता चले।’
अ फ़ाक़ ने िफर लस लगाकर नंबर पढ़ा, ‘अरे नह यार, मन कहता है िक फ़ज़
ही क मीर का नंबर लखा िदया है, पर साला िदमाग़ कह रहा है िक कह कोई
च र तो नह है? एक बात बताओ, इंजन चे चस नंबर तो ठीक है, पर साला चांद
खुतरा फ़ोटो म नॉथ और ई ट का या आं कड़े लखा है? हमने तो ये सब कभी
नह पढ़े हाई कूल म।’
िविकपी डया ने कॉलर खड़े िकए, ‘सर, हम ेजुएशन के फ़ ट इयर म फेल
होकर सपाही बन गए, वना चांद बाबू क नॉथ ई ट क सारी आं कड़ेबाज़ी,
मडलीफ क िप रयॉ डक टेबल क तरह टांसलेट कर देते।’
ि पुरारी को लगा िक उसके नंबर कम हो रहे ह इस लए लपक कर बोला, ‘सर,
काकोरी है या, लखनऊ क एक छोटी सी तहसील। डगू भी हो जाए, तो
अ पताल वाले लाद कर लखनऊ मे डकल कॉलेज भेज देते ह। पो टमॉटम
लखनऊ म, फॉर सक लखनऊ म, एसएसपी साहब लखनऊ म। कुल जमा एक
थाना है काकोरी म, अब भला छोटे से काकोरी म लड़क का मडर हो गया, तो
क मीर से धारा 370 हटने का इससे या लेना-देना? आप तो बस ये कॉल डटेल
और चांद खुतरा क जांच करके तस ी कर ली जए, बाक तो सब टाइम वे ट है,
सर।’
इसी उधेड़-बुन के बीच थाने के अंदर टेलीकॉम कंपनी से एक छोटे क़द का
कमचारी, रािबया बसर के छह महीने के कॉल डटे स लेकर घुसा और पतली
आवाज़ म बोला, ‘सर ि पुरारी पांडे सर ने बुलाया था, हम डटे स लेकर आए ह।’
ि पुरारी ने फ़ौरन टेलीकॉम कंपनी के लड़के से कॉल डटे स का पैकेट ले
लया और उसे सौ का नोट देकर बोला, ‘अबे पसना टी तो तु हारी राग
भीमपलासी है और आवाज़ एकदम जीरो िफगर! िकसी कायदे के स वस सटर म
िदखा कर अपने साउं ड स टम का बेस बढ़वाओ बे।’
टे लकॉम कंपनी का लड़का, लड़िकय क तरह बैसाखी मु क छोड़ता हुआ
िनकल लया और ि पुरारी ने सारे कागज़ अ फ़ाक़ उ ा को दे िदए। अ फ़ाक़
उ ा ने िफर लस लगा कर कागज़ देखना शु िकया, ‘ये तो पूरे छह महीने का
कोस है भाई, अइसे नह समझ आएगा। ि पुरारी, तुम और िव ासागर दोन िमल
कर चेक करो और िफर हमको मेन-मेन डटेल िनकाल कर आराम से बताओ।’
तभी, लंगड़ाता हुआ कैमरामैन सटू दबु े मु ालाल के साथ द तर म घुसा।
अ फ़ाक़ उ ह देखते ही बोला, ‘ओ हो सटू को काहे ले आए, महाराज?’
‘अरे मानै नह रहे थे सटू बाबू, बोले हम भी चलगे,’ मु ालाल ने जवाब िदया।
‘बालतोड़ के च र म सटू का शॉकर बैठ गया है,’ अ फ़ाक़ बोला।
मु ालाल हंसा, ‘इं पे टर साहब के िदमाग़ म मोटरसाइिकल चढ़ गई है—टंक ,
मीटर, इंजन, चे चस नंबर, और अब सटू बाबू का शॉकर…हाहाहा!’
कुस पर तरछे बैठकर कराहते हुए सटू बोला, ‘अरे कैमरामैन क भाषा म बोल,
तो बस समझ ली जए हमारा टायपॉड ख़राब हो गया है भाई।’
अ फ़ाक़ ने सपाही को बुलाकर चाय समोसा मंगवाया, ‘बिढ़या गमागरम
लाना!’ और िफर मु ालाल से बोला, ‘अरे यार मु ाभाई, तुम तो घर के हो—
मोटरसाइिकल, चांद खुतरा—सारा लफड़ा तो समझ ही रहे हो, बस ख़बर थोड़ा
अवॉइड करना इस मामले म।’
मु ालाल प कार ने टाइल मारा, ‘इं पे टर साहब आप तो जानते ही ह,
जन ल म हमारा फैशन है। ख़बर मु ालाल से बचकर जाएगी कहां? लेिकन आपके
लए हम यज़ू का यज़ ू उड़ा देते ह। टशन मत लो आप।’
ि पुरारी अलमारी से एक लफ़ाफ़ा लेकर आया और अ फ़ाक़ को थमा िदया।
अ फ़ाक़ ने लफ़ाफ़ा मु ालाल प कार क तरफ बढ़ा िदया। पैकेट खोल कर मु ा
ने देखा तो बीस हज़ार पए िनकले। मु ालाल क अंतरा मा अलादीन बन गई
और उसे अ फ़ाक़ उ ा इं पे टर लप वाला ज नज़र आने लगा। हज़ार, पांच
सौ, दो हज़ार तक तो ठीक था मगर बीस हज़ार तो उसने नोटबंदी के दौरान टीवी
पर ही देखे थे। िफर भी फ़ज़ िफकेशन म मािहर मु ालाल प कार हंस कर बोला,
‘का करगे इतने पैसे का?’
अ फ़ाक़ बोला, ‘अरे, सटू भाई के बमतोड़ हो गया है, थोड़ा याल रखो भाई।
दोन ही लोग ू स और हरी स जी ज़ र खाया करो, सुबह उठ कर गरम पानी
—पेट सफा, हर रोग दफ़ा।’
सटू ने मन ही मन अपना कैमरा हमेशा के लए बंद कर िदया। सटू दबु े का हाथ
दबा कर मु ालाल ने इशार म समझाया िक हम ह तो ख़बर ह, खबर ह तो पइसा
है, इस लए कैमरा ऑन रखो और पइसा आने दो। सटू तक मु ालाल क आवाज़
पहुचं चुक थी। याल म बंद िकया गया कैमरा िफर ऑन हो गया।
ि पुरारी और िविकपी डया कॉल डटेल के पॉइंटस लख कर ले आए। अ फ़ाक़
ने दोन का चेहरा पढ़ते ही मु ालाल को वहां से चलता िकया।
ि पुरारी और िविकपी डया ने बताना शु िकया, ‘सर टॉवर रपोट के साथ पूरे
छह महीने का कॉल डटेल है। उस रात रािबया के मोबाइल पर सवा एक बजे के
क़रीब जस नंबर से फ़ोन आया, वो नंबर अलग है और डेढ़ बजे के क़रीब ख़ुद
रािबया ने जस नंबर पर फ़ोन िमलाया, वो दस ू रा नंबर है। हालांिक दोन नंबर
रािबया के मोबाइल म ा के नाम से ही सेव ह। एक नंबर से तीन िमनट और
दसू रे पर क़रीब आधा घंटा रािबया क बात हुई। ा सक ये है सर िक जस नंबर
से पहले फ़ोन आया, यानी जस नंबर पर तीन िमनट बात हुई, उस नंबर से छह
महीने म केवल पं ह-बीस बार ही रािबया क बात हुई है…वो भी एक-एक, दो-दो
घंटे, रात म दो-दो बजे तक।’
ि पुरारी बोला, ‘दोन सहे लयां इतनी रात म घंट या बात करती ह गी?’
गौतम का डायलॉग आया, ‘अइसा तो नह िक दोन सहे लयां गे ह ?’
िविकपी डया ने अं ेज़ी झाड़ी, ‘गे नह बे, ल बयन कहते ह उसको।’
अ फ़ाक़ बोला, ‘यहां काम क बात चल रही है, तुम दोन चप चपी बात करने
लगे। ह म…इसका मतलब ये िक ा ठाकुर दो मोबाइल रखती है—पहले ा
ने एक नंबर से ख़ुद रािबया को फ़ोन िमलाया और तीन िमनट बात क , िफर
रािबया ने ा के दस
ू रे नंबर पर कॉल िकया और आधे घंटे लगातार बात क । उस
रात लोकेशन या है रािबया के नंबर क ?’
‘सर, जब ा के पहले नंबर से रािबया के फ़ोन पर कॉल आई, तो रािबया क
लोकेशन उसके घर के पास क है। रािबया ने जब ा के दस
ू रे नंबर पर फ़ोन
िमलाया, तो रािबया क लोकेशन—पहले घर, िफर दरगाह, िफर काकोरी टेशन
क रेलवे ॉ सग है। उसके बाद टॉवर लोकेशन के िहसाब से, रािबया लखनऊ-
काकोरी रोड तक पहुच ं ी। सर, रािबया क ला ट लोकेशन आम का बाग है, जहां
उसका रेप और मडर हुआ। उसके बाद से मोबाइल वच ऑफ़ है।’ िविकपी डया
बोला।
अ फ़ाक़ ने तुरत
ं ऑडर िदया, ‘ ा ठाकुर क लोकेशन पता करो, फ़ौरन। हम
अभी आते ह, ा ठाकुर से िमल कर।’
िविकपी डया और दो सपािहय के साथ अ फ़ाक़ उ ा ने कूल का ख़
िकया। कूल पहुच ं ने पर पता चला िक जस रात रािबया का मडर हुआ, उसके
अगले िदन से ा कूल ही नह आई। सपल ने बताया िक ा का फ़ोन बंद
है। जब अ फ़ाक़ ने ा के दस
ू रे नंबर के बारे म पूछा तो पता चला िक कूल म
िकसी के पास ा का दस
ू रा नंबर नह है। इं पे टर को थोड़ा ता ुब हुआ। उसने
सपल से ा के अयो या वाले घर का पता और घरवाल के मोबाइल नंबर
मांगे। सपल ने बताया िक रािबया के क़ ल के दस ू रे िदन, जब कूल के िपयून
को ा के काकोरी वाले घर पर भेजा तो वहां ताला पड़ा था। इसके बाद अयो या
म ा के पापा और भाई को कई बार फ़ोन लगाया, लेिकन फ़ोन वच ऑफ़ थे।
अ फ़ाक़ सपल पर भड़क गया य िक ा ह ते भर से ग़ायब थी और कूल
ने पु लस को ख़बर तक नह दी। वो भी कोई और नह , ब क रािबया बसर क
सबसे प और इकलौती सहेली। सपल ने सॉरी बोल अपनी रा ीय िज़ मेदारी
पूरी कर दी। अ फ़ाक़ ने मन ही मन कुछ सोचा और ा ठाकुर के काकोरी वाले
घर क तरफ चल पड़ा।
ा ठाकुर के घर पर ताला लटका था। काफ़ सोचने के बाद, अ फ़ाक़ ने
सपािहय से ताला तोड़ने को कहा। ताला तोड़ा गया, तो अंदर एकदम स ाटा
था। सबने तलाशी शु क —पलंग, रज़ाई, ग ा, िकचन से लेकर मेज़ क एक-एक
दराज़, पर कह कुछ नह िमला। िफर ताला तोड़ कर, अलमारी खोली गई।
अलमारी म काकोरी कांड का जमन माऊज़र और कग शप के वो स े िमले, जो
कूल ले म इ तेमाल िकए गए थे। अलमारी के नीचे वाली रैक म भगत सह,
चं शेखर आज़ाद, सुभाष चं बोस, झांसी क रानी क मू तयां रखी हुई थ । ये
मू तयां ा ठाकुर ने बनाई थ । ा े आ ट ट थी। उसके हाथ म एक शानदार
कु हार और मू तकार क जोड़ी बसती थी। अ फ़ाक़ के कहने पर अलमारी को
थोड़ा और टटोलने पर काकोरी कांड क उस 8 डाउन पैसजर टेन का छोटा सा
े मो डेड मॉडल भी िमला, जसक चेन ख चकर चं शेखर आज़ाद, अ फ़ाक़
उ ा ख़ाँ और राम साद िब मल ने अं ेज़ का आठ हज़ार पए का ख़ज़ाना
लूटा था। पॉली थन बै स म मो डग े और टैराकोटा के े यू स भरे पड़े थे।
अलमारी क सबसे नीचे वाली शे फ म मू तय के सांचे और टैराकोटा े यू स
मे ट करने वाली मे टग मशीन भी पड़ी थी। पूरी छानबीन म कुछ हाथ नह लगा।
अ फ़ाक़ ने ा के पापा और भाई को फ़ोन लगाया। दोन के फ़ोन बंद ही थे।
अ फ़ाक़ ने ि पुरारी को ा ठाकुर के पापा और भाई के नंबर नोट कराए और
उनके डटेल तुरत
ं लाने को कहा। अब तक अ फ़ाक़ समझ चुका था िक रािबया
बसर केस सफ अंगद यादव तक नह , ब क चांद खुतरा से लेकर ा ठाकुर
तक, मकड़ी के जाले क तरह फैला हुआ है। बस, या? य ? और कैसे? इसका
जवाब अ फ़ाक़ के पास नह था। अ फ़ाक़ का खुराफाती िदमाग़ लाउड पीकर क
तरह ज़ोर से च ा रहा था िक छुपाने से कुछ नह होगा। कुछ बड़ा खुला, तो लेने
के देने पड़ जाएं गे। आ ख़रकार उसने डीजीपी बृजलाल को फ़ोन लगाया।
डीजीपी के फ़ोन उठाते ही अ फ़ाक़ ने जय हद के साथ बात शु क , ‘सर,
रािबया बसर केस म कुछ ज़ री डटेल शेयर करनी ह आपसे।’
ऑिफस क मी टग म बैठे डीजीपी बोले, ‘हां, बोलो अ फ़ाक़।’
अ फ़ाक़ ने बोलना शु िकया, ‘सर मडर पॉट पर जो मोटरसाइिकल िमली
थी, वो अंगद यादव ने चुराई थी, ये तो आपको पता ही है, पर उस मोटरसाइिकल
के चे चस और इंजन नंबर पर रािबया बसर क फूफ के बेटे—चांद—ने क मीर
क एक कार का नंबर ट कराया है। चांद को क टडी म ले लया है, सर पर चोट
लगी है और अभी अ पताल म भत है। लेिकन सर ा ठाकुर नाम क एक टीचर
है, जो रािबया बसर के साथ काम करती थी, वो भी मडर वाली रात से फैिमली के
साथ ग़ायब है।’
डीजीपी ने चु पी तोड़ी, ‘ या करना है, बोलो?’
अ फ़ाक़ ने र वे ट क , ‘सर, अयो या पु लस से हे प लेनी है। वहां पता कर
लया जाए िक घरवाल ने फ़ोन बंद य कर रखे ह? सर मुझे लग रहा है िक इसम
और भी लोग इंवॉ व ह।’
डीजीपी ने चुटक ली, ‘अयो या म मेरी हे प चािहए, और लखनऊ के
रकाबगंज थाने म चुपचाप पु लस भेज दी थी! तुम को या लगा, मुझे कुछ पता
नह रहता? एक-एक डटेल है मेरे पास, बस इंतज़ार कर रहा था िक तुम ख़ुद मुझे
कब बताओगे। बी सी रयस, अ फ़ाक़!’
अ फ़ाक़ बोला, ‘सर, एसएसपी साहब पता नह य नाराज़ रहते ह हम से,
इस लए चुपचाप काम कर रहे थे। लेिकन सर, ये िब कुल सच है िक हम आपसे
कंसी मट ऑफ़ फै ट नह करना चािहए था।’
डीजीपी ने स त लहजे म कहा, ‘देखो अ फ़ाक़, म अयो या पु लस को तुमसे
कॉ टे ट करने को बोलता हू,ं लेिकन मुझे िफर बता दो, तुम 9 अग त तक संभाल
लोगे ना? या म िकसी को काकोरी भेज?ूं ’
अ फ़ाक़ ने डीजीपी को कॉ फडस िदखाया, ‘नह सर, सब संभल जाएगा।
आप हम यहां लाए ह, हम सब ह डल कर लगे। स ाईस साल क नौकरी म, कई
जल म आप हमारे क ान और ड टी रह चुके ह।’
डीजीपी से बात करके अ फ़ाक़ उ ा िब मल ने एटमो फयर से ख़ूब सारी
ऑ सजन एक साथ फेफड़ म भर कर सांस ली और सपािहय को ा के घर
पर नया ताला लगाने का ऑडर िदया। सपािहय ने बाज़ार से आनन-फानन म
नया ताला ख़रीदा और घर को फाइनली लॉक कर िदया गया। िफर सब सरकारी
जीप म वापस थाने क ओर रवाना हो लए। रा ते म अ फ़ाक़ बोला, ‘अरे
िविकपी डया, कुछ नोिटस िकए? ा बड़ी भ टाइप क है! शहीदे आजम भगत
सह, चं शेखर आज़ाद और तमाम ां तका रय क एकदम मै चग मू तयां बना
कर रखी ह।’
िविकपी डया ने हां म सर िहलाया, ‘देखे सर, े आ ट ट है न।’
‘बहुत बड़ी देश भि न लगती है, ये ा ठाकुर,’ अ फ़ाक़ बोला।
िविकपी डया ने पूछा, ‘ या मतलब, सर? देश भि न कैसे?’
अ फ़ाक़ ने िविकपी डया को झड़का, ‘अबे सारी क सारी मू तयां आज़ादी के
लए लड़ने वाल क ह। गणेश, ल मी, शंकर जी और बजरंगी भाईजान क तो
ए ौ मू त नह िदखाई दी हमको वहां।’
अ फ़ाक़ ने ि पुरारी को फ़ोन लगाया, ‘ि पुरारी म बहुत थक गया हू,ं घर जा रहा
हू।ं कल का ल ट बोल रहा हू,ं िदमाग़ म नोट कर लो फ़ौरन।’
थाने म बैठे ि पुरारी ने नोट करना शु िकया, ‘सर बोल।’
अ फ़ाक़ उ ा िब मल ने ल ट ड टेट क , ‘नंबर एक, ा ठाकुर के दोन
मोबाइल नंबर क पूरी डटेल; नंबर दो, ा के पापा और भाई के भी मोबाइल का
क ा च ा; नंबर तीन, नसीम पपीते को थाने लाओ; नंबर चार, चांद खुतरे का
वा य बुलेिटन अ पताल से पता करो, बोलो कल तक खुतरा होश म आ जाए
वना हम से बुरा कोई नह ; नंबर पांच, वो जेलर है न आकाश शमा, उससे िमल कर
पता तो करो िक अंगद का पांव अभी तक जमा है या उखड़ गया।’
ि पुरारी पांडे धीरे से िमनिमनाया, ‘सर और कुछ, या ल ट बंद क ं ?’
अ फ़ाक़ खल खलाया, ‘अब नंबर छह से लेकर नौ तक तुम खुदै सोचो।’
ि पुरारी फ़ौरन बोला, ‘सर नंबर छह, अंगद के बीवी ब क खोज ख़बर भी ले
लूग
ं ा और थाने के िम लीिनयस फंड से कुछ रकम दे दगं ू ा; नंबर सात, म लहाबाद
इं पे टर से चरस का पेमट प डग है; नंबर आठ, हम दबंग ी का डीवीडी लाना है,
काहे से िक आप बहुत िदन से कौनो िफ़ म नह देखे ह; नंबर नौ, थाने क जीप का
इंजन ऑयल बदले तीन महीने हो गए ह, कल सपाही को वकशॉप भेजना है।’
अ फ़ाक़ ने ओवर एं ड आउट कहकर फ़ोन रखा िफर िविकपी डया से बोला,
‘पांडे हमारा हैरी पॉटर पाट ी है और तुम जे स बांड शू य शू य सात। एक बात
कह, अगर ि केट टीम म युवराज, िवराट, स चन और रोिहत शमा जैसे चार-पांच
खलाड़ी ह , तो मह सह धोनी व ड कप जीतेगा ही जीतेगा। चलो गाड़ी घर लगा
दो चल के।’
िविकपी डया तारीफ सुनकर ख़ुश हो गया, ‘सर, आपके भले ही दो सगे बेटे ह ,
लेिकन आप पूरे थाने के बाप ह। एकदम दबंग वन और टू वाले रॉिबनहुड पांडे क
तरह, स ी।’
पु लस वाटर के पास आते ही जीप झटके देते हुए क गई। कई बार चाबी
घुमाई पर गाड़ी टाट नह हुई। िविकपी डया ने गाड़ी से बाहर आकर जैसे ही
बोनेट खोला, उसम से तेज़ धुआं िनकला। खांसते हुए िविकपी डया ने रे डएटर का
ढ न हटाया, तो उबलते पानी का फ वारा िनकल पड़ा। इंजन ऑयल वाला कैप
हटाया, तो अंदर ऑयल था ही नह । अ फ़ाक़ उ ा जीप म बैठे-बैठे बोला, ‘का
हुआ? ल ट का काम नंबर नौ, इंजन ऑयल ख़ म!’
िविकपी डया ने कपड़े से हाथ साफ़ करते हुए कहा, ‘सर इंजन चोक हो गया है।
सुबह िम ी को बुलाते ह।’
िविकपी डया जीप क चाबी िनकाल कर सपािहय के साथ पैदल चल िदया,
और अ फ़ाक़ अपने घर के अंदर। हमेशा क तरह दरवाज़े क कंु डी खुली थी।
अ फ़ाक़ पहले अपने कमरे म गया। वहां अबराम सो रहा था और पलंग पर
अफ़ज़ल का लैपटॉप ऑन था और कुछ फ़ाइल खुली पड़ी थ । अ फ़ाक़ ने
अफ़ज़ल के लैपटॉप को दो-चार िमनट देखने के बाद, फ़ाइल के कागज़ पलटना
शु िकया। लैपटॉप और फ़ाइल उठा कर वो अबराम के कमरे म पहुच ं ा, तो वहां
अफ़ज़ल भी गहरी न द म सो रहा था। अ फ़ाक़ ने लैपटॉप और फ़ाइल अफ़ज़ल
के पलंग के सामने रखी मेज़ पर रख िदए। न द मानो अ फ़ाक़ क आं ख से
लापता थी। वो डाइ नग टेबल क तरफ आया और टीवी ऑन करके बैठ गया। एक
चैनल पर सघम टू िफ़ म आ रही थी। बैठे-बैठे अ फ़ाक़ ने वद पर लगी नेम लेट
को गौर से देखा और कंध पर लगे टास को सहलाया। अ फ़ाक़ वापस अपने
कमरे म गया और वद को खट ूं ी पर टांग िदया। लुग
ं ी और शट पहन कर अ फ़ाक़
िफर बाहर आया। जाने य आज उसे भूख नह लग रही थी। शायद टशन ने न द
और भूख से दो ती कर ली थी।
उसने अपने लए चाय बनाई और चाय क चु कयां लेते हुए िफ़ म देखने लगा।
टीवी पर सघम टू चल रही थी, लेिकन पता नह कैसे, सघम के बैक ाउं ड से
िकशोर कुमार का गाना सुनाई देने लगा:
आ चल के तुझे, म लेके चलूं
इक ऐसे गगन के तले
जहां ग़म भी न हो
आं सू भी न हो
बस यार ही यार पले…
अ फ़ाक़ उ ा क आं ख के िकवाड़ बंद हो चुके थे। िफ़ म अ फ़ाक़ के लए
मटली रलै स होने का एक ज़ रया रही थ । हर बात म िफ़ मी डायलॉग, हर
ए ज़ा पल िफ़ मी। रािबया केस म उलझे होने क वजह से अ फ़ाक़ ने कई िदन
से कोई भी िफ़ म नह देखी थी, इसी लए ि पुरारी ने वक ल ट म दबंग ी क
डीवीडी लाने का वादा िकया था। अ फ़ाक़ के ज़ेहन म अभी भी िकशोर कुमार का
गाना बजता जा रहा था।
***
अ फ़ाक़ के सपन का नाइट शो शु हो चुका था। यही गाना बीस साल पहले,
सहारनपुर दंग के व त, अ फ़ाक़ के पु लस लाइन वाले घर म रखे रे डयो पर बज
रहा था। सहारनपुर के छिनयापुरा इलाके म, नव दगु ा के मू त िवसजन के रा ते को
लेकर हद-ू मु लम आमने-सामने आ गए थे। मामला बढ़ते-बढ़ते दंगे म त दील हो
गया। पु लस दंगे को कंटोल ही नह कर पा रही थी। एक से दो और दो से चार थाने
करते-करते, बारह थान म आने वाले सभी इलाक म क यू लगाना पड़ा। दोन
तरफ से क़रीब यारह लोग क मौत हो चुक थी। सौ से यादा अ पताल म भत
थे। हालात इतने ख़राब थे िक सीआरपीएफ के अलावा आसपास के िज़ल क
फोस और पीएसी तैनात करनी पड़ी थी। एक धम के दंगाई पु लस वाल से बेहद
नाराज़ थे। उनका मानना था िक पु लस एक तरफ के लोग को बचा रही है और
दसू री तरफ के लोग को जेल भेज रही है। दंगे के दहशतज़दा माहौल के बीच छह
थान म तीन िदन बाद, दो घंटे के लए क यू हटाया गया था। इन इलाक म
पु लस लाइन भी शािमल थी। अ फ़ाक़ उ ा के पास उस व त कोई थाना नह
था। पैसे लेकर ि िमन स को छोड़ने क वजह से अ फ़ाक़ को लाइन हािज़र कर
िदया गया था। िबना फ ड पो टग के अ फ़ाक़ पु लस लाइन म ही लाइन हािज़री
काट रहा था। इससे यादा व त उसने अपने बीवी ब को कभी नह िदया था।
न हे अबराम और अफ़ज़ल कमरे म खेल रहे थे। अ फ़ाक़ रे डयो पर बज रहे गाने
के साथ-साथ बेसुरा सुर िमला रहा था। बीवी म रयम चाय बना कर लाई। अ फ़ाक़
ने म रयम को हाथ पकड़ कर बैठा लया, ‘साला ि िमन स क श देख-देख कर
म भूल ही गया िक मेरी पं डताइन इ ी ख़ूबसूरत है। बुक म रहा करो, वना आपके
ख़ूबसूरत चेहरे को मेरी ही नज़र लग जाएगी, म रयम!’
म रयम झट से उठी, ‘हाय अ ाह! स ी मेरे मुह
ं क बात छीन ली, पं डत जी।
नज़र लगे इस नौकरी को जसने तुमको ईद का चांद बना िदया है। पहली बार
इतनी फुसत म हो, कह मेरी ही नज़र न लग जाए, इस लए अब जब तक घर म हो,
पद से ही देखग
ूं ी तुमको।’
म रयम कमरे से उठ कर चली गई। ब े अ फ़ाक़ क गोद म चढ़ गए। अ फ़ाक़
उ ा िब मल क गोद म बैठा छोटा सा अबराम बोला, ‘अ बू िक े िदन हो गए,
आई पाई खेलो न। म ढू ंढ़ूंगा, और आप छुपना।’
अ फ़ाक़ को भी म रयम के पास जाने का बहाना िमल गया। उसने अफ़ज़ल को
गोद से उतारा और अबराम को दस तक िगनती िगन कर आने को कहा। अफ़ज़ल
दौड़ कर कोने म पड़े ब से के पीछे जाकर छुप गया। अबराम घर क बालकनी म
दीवार क तरफ अपना मुह ं छुपा कर िगनती िगनने लगा। अ फ़ाक़ फ़ौरन म रयम
के कमरे म गया। म रयम बुका पहन ही रही थी िक अ फ़ाक़ ने म रयम को पीछे से
जकड़ लया और बुका उतारने लगा। तभी अबराम क आवाज़ सुनाई दी, ‘छह,
सात, आठ, नौ, दस…अ बू म आ रहा हूं आपको पकड़ने।’
अबराम ने अफ़ज़ल को ढू ंढ़ लया। अब दोन अ फ़ाक़ को ढू ंढ़ने लगे। अबराम
दौड़ कर िकचन क तरफ गया। बुका पहने म रयम कुकर म चावल चढ़ा रही थी।
छोटे से अबराम और अफ़ज़ल ने म रयम से पूछा, ‘अ बू कहां ह?’ म रयम ने अपने
कमरे क तरफ उं गली से इशारा िकया। दोन ब े जैसे ही कमरे म पहुच
ं े, तो देखा
म रयम वहां कपड़े तह कर रही थी। ब े च क गए िक अगर अ मी यहां ह तो िफर
बुका पहनकर िकचन म कौन है। दोन दौड़ कर बाहर जाने ही लगे िक अचानक
बुक वाली अंदर आई और उसने बुका उठाया। बुक म से अ फ़ाक़ उ ा िनकला तो
ब े ची टग-ची टग च ाने लगे। हंसती हुई म रयम सच म िकचन क तरफ चली
गई।
अ फ़ाक़ अपने बेट से बोला, ‘बेटा, अगर छुप गए तो सब ढू ंढ़गे, पर जो सामने
है उसे कोई नह ढू ंढ़ता। अफ़ज़ल छुपा था, तो तूने ढू ंढ़ लया और अ बू सामने था,
िफर भी तू नह ढू ंढ़ पाया। ज़दगी म कभी छुपना मत, कुछ छुपाना मत…एकदम
खुलकर जयो, बस खुलेआम, सरेआम!’
बाप-बेटे गले लगकर हंस रहे थे िक अचानक घर का दरवाज़ा टू टने क आवाज़
आई। हाथ म चापड़ और तलवार लेकर भीड़ घुसी और घुसते ही म रयम पर टू ट
पड़ी। पेट म तलवार घुसते ही म रयम ज़मीन पर िगर पड़ी। दंगाई उस पर लगातार
वार करते रहे। दरवाज़ा टू टने और भीड़ के शोर के बीच म रयम क चीख़ सुनकर
अ फ़ाक़ को समझने म देर नह लगी िक दंगाइय ने धावा बोल िदया है। कमरे के
दरवाज़े पर लटका पदा छोटा था। ज़मीन पर पड़ी म रयम को अंदर से अ फ़ाक़
और ब े साफ़ िदखाई दे रहे थे। िबना व त गंवाए, ब को पलंग के नीचे छुपाकर,
अ फ़ाक़ जैसे ही बाहर आने को पलटा, पद के नीचे से म रयम से उसक आं ख
िमल । ख़ून से नहाई म रयम ने हाथ जोड़कर आं ख -आं ख म उससे बाहर न आने
क गुज़ा रश क । घर म फैल चुके दंगाई कमर के पद हटा-हटा कर तलाशी ले रहे
थे। तभी पु लस लाइन कपस म सायरन और िटयर गैस दागने क आवाज़ सुनाई
देने लग । आं सू गैस का एक गोला, बालकनी से होकर, अ फ़ाक़ के घर के अंदर
आ िगरा। दंगाई भागने लगे और पु लस ने दंगाइय को दबोचना शु िकया। जैसे
ही एक दंगाई ने पु लस पर फ़ायर िकया, पु लस ने भी फाय रग शु कर दी। इसम
कुछ दंगाई मारे गए। लेिकन कुछ पल का ये तूफ़ान, अ फ़ाक़ उ ा िब मल क
ज़दगी म तबाही मचा गया। अबराम और अफ़ज़ल के साथ पलंग के नीचे से
अ फ़ाक़ धुएं के पीछे से म रयम को सांस िगनते देखता रहा। अ फ़ाक़ ब का मुह

दबाए रोए जा रहा था। उसे शक था िक हो सकता है दंगाई अभी भी वहां मौजूद
ह । वो ब को गंवाना नह चाहता था।
हर तरफ धुआं ही धुआं था। आं सू तो यूं भी बह रहे थे, पर िटयर गैस ने रही सही
कसर भी पूरी कर दी थी। म रयम क आं ख खुली थ , मगर सांस थम चुक थ ।
धुध
ं का पदा खोलकर अ फ़ाक़ ब को लेकर बाहर आया। ब े अ मी से
लपटकर रोने लगे, तभी पु लस के जवान अंदर घुसे और तीन को लेकर चले गए।
***
अ फ़ाक़ के सपने का नाइट शो ख़ म हो गया। वो म रयम-म रयम च ा रहा था।
अफ़ज़ल और अबराम दौड़ कर बाहर आए। पसीने से नहाए अ फ़ाक़ क आं ख
खुल , तो दोन बेटे पास खड़े थे। अफ़ज़ल ने अबराम से पानी मंगाया। सघम के
डायलॉग टीवी पर गूजं रहे थे—
म यहां इ वे टगेशन करने आया हू,ं
दो कौड़ी का वचन सुनने नह !
इ वे टगेशन या करना है?
तेरी टीम का कां टेबल पैस के साथ पकड़ा गया है!
अ फ़ाक़ च ककर खड़ा हो गया। बेट को देखकर उसने ख़ुद को संभाला,
‘अ छी िप चर है…म सो गया था, छूट गई। कल थाने म देखता हू,ं सघम टू ।’
अबराम ने पूछा, ‘पं डत जी यहां य सो रहे ह? अंदर च लए।’
अ फ़ाक़ मु कुराया, ‘म रयम आ गई थी, उसी से बात कर रहा था।’
अफ़ज़ल ने ताना कसा, ‘ख़ाँ साहब, अ मी से बात करने क फ़ुसत ही कब थी
आपको? आ ख़री व त भी पलंग के नीचे छुपकर आपने अ मी को सफ मरते हुए
देखा था। वो मरती रही और हम तीन ज़दा ह, अ मी को रोज़-रोज़ मरता हुआ
देखने के लए।’
अ फ़ाक़ ने अफ़ज़ल के कंधे पर हाथ रखा, ‘तू नह समझेगा, शायद कभी नह ।
पता नह तूने अपने िदल म या- या छुपा रखा है, म जैसा भी था, म रयम ने मुझे
वैसे ही क़ुबूल िकया। म रयम हमेशा कहती थी, “पं डत जी, मने क़ुबूल-क़ुबूल-
क़ुबूल कह िदया है, अब जैसे भी हो खुलेआम रहो, सरेआम रहो; न कभी छुपना, न
कुछ छुपाना।”’
अ फ़ाक़ हंसकर बोला, ‘मने भी तो यही कहा था तुम दोन से—खुलकर जयो।
अबराम को देख, न छुपता है, न छुपाता है। खुलकर रहता है। पर तू अपने ख़ाँ
साहब से, अबराम से और ख़ुद से न जाने य छुपता रहा है, छुपाता रहता है?’
अफ़ज़ल बोल पड़ा, ‘समझ तो आप नह पाए, ख़ाँ साहब। आप समझ ही नह
पाए िक अ मी के क़ा तल तो आप ह। और हां, मुझे ढू ंढ़ने क को शश भी मत
क जए, म कभी सामने नह आऊंगा।’
अबराम ने अफ़ज़ल को पकड़ कर कहा, ‘हमने फ़ैसला िकया था न िक जब तक
तू यहां है, पं डत जी से पंगा नह होगा? और हां, कोई भी तुझे नह ढू ंढ़ेगा—न म, न
पं डत जी—कुछ िदन यार से रह ले, िफर चले जाना।’
अफ़ज़ल का मूड नह बदला, मगर अबराम क बात सुनकर अ फ़ाक़ ने अपनी
आदत के मुतािबक सबकुछ भुला िदया। माहौल बदलते हुए अ फ़ाक़ ने अफ़ज़ल
क तरफ देख कर कहा, ‘वैसे तू िकतना भी छुपा ले, आज तेरा लैपटॉप और
फ़ाइल तो मने भी ताड़ ली ह बेटा!’
अफ़ज़ल अबराम से झुझ
ं लाकर बोला, ‘देख यार समझा दे, ये सब ठीक नह
है।’
अ फ़ाक़ बोला, ‘ये बताओगे मुझे, तु हारा लैपटॉप मेरे कमरे म य था?’
अबराम ज़ोर से हंसा, ‘गु , पं डत जी खामखां फंसा रहे ह मुझे।’
अ फ़ाक़ ने चुटक ली, ‘देख बेटा, फंस तो तू गया ही है अब।’
अफ़ज़ल भी हंस िदया, ‘बस अबराम, ॉिमस मी, इ स ला ट टाइम!’
अबराम ने िफर एक बार तोड़ देने के लए वादा िकया। अफ़ज़ल भी अबराम के
वादे क औकात जान चुका था। माहौल ह का हुआ और सब वापस सोने चल
िदए। ठहरी हुई रात िफर आगे बढ़ने लगी।
***
पजड़े म न कोई देसी बचा था, न बॉयलर। लकड़ी के खट ूं े म, एक ज़दा ॉयलर
मुग का लेगपीस बंधा हुआ था। मुगा जैसे ही बांग देने को हुआ, चापड़ लेकर कुरैशी
कसाई बाहर आ गया। मुगा समझ गया िक आज उसक कह अल मॉ नग स लाई
है। खट
ूं े से खोल कर कुरैशी ने ॉयलर मुग को पंज से पकड़कर उ टा लटकाया
और दक ु ान के अंदर चल िदया। ब ी म बंधे तीन ख सी बकर ने, पहले मुग क
तरफ देखा, िफर पजड़े क तरफ। बकरे समझ गए, आज काकोरी को िबना बांग
के जागना पड़ेगा। मुग ने बकर क आं ख म ऐसे देखा, जैसे कहना चाह रहा हो िक
अगर मुग क ताज़ी खेप आ गई तो ठीक है, वना कल से तुम लोग ही, म-म करके
काकोरी को जगा देना। मुगा अब लकड़ी के ठू ंठ पर रखा था। कुरैशी ने चापड़
उठाया। मुग क गदन पर िनशाना लगाया। इतने म मुग क अजर-अमर आ मा जैसे
बोल पड़ी—िगव मी सम सन शाइन, िगव मी सम रेन, िगव मी अनदर चांस, आई
वॉना ोअप व स अगेन। कुरैशी चकराया िक ये मोह मद रफ क आवाज़ म
अं ेज़ी गाना कौन गा रहा है। कुरैशी कसाई का चापड़ गदन तक आने म यारह
सेकड लेट हो गया। बस लेट-लतीफ का फायदा उठाकर, मुग ने राइट टाइम
टी रयो फॉिनक बांग दी। समाज के त मुग का मुगधम पूरा हुआ और काकोरी
आज िफर जाग गया।
कल रात म पु लस क जो जीप ख़राब हुई थी, वो अभी भी पु लस वाटर के
बाहर खड़ी थी। ज़बरद त टशन म िविकपी डया अकेला जीप के पास खड़ा था।
दो सपाही मैकेिनक लेने गए थे, अब तक लौटे ही नह थे और अफ़ज़ल को
लखनऊ जाना था। इं पे टर अ फ़ाक़ उ ा क वक ल ट तो कल ही ि पुरारी
नोट कर चुका था। रात का झगड़ा ख़ म होने के बाद आज बाप बेट ने साथ म
ेकफा ट िकया और सीधे बाहर िनकले। जीप ख़राब देखकर अ फ़ाक़ बोला,
‘अबे िविकपी डया, तुम तो ओप नग म ही ज़ीरो पर आउट हो गए!’
िविकपी डया नवस हो गया, ‘सर हम तो अल मा नग भेज िदए थे िम ी के
पास, वो साला सपाही गड़बड़ कर िदया डायलॉग मार कर।’
‘डायलॉग मार िदया! मतलब?’ अ फ़ाक़ ने पूछा।
‘अरे सर, सपाही कल रात म कौनो हॉरर िप चर देख लया था। डरते-डराते
मुह
ं अंधेरे पहुच
ं तो गया, पर वहां साला पता नह िकस िपनक म मैकेिनक से बोल
िदया, “ओ िम ी कल आना!”’
अफ़ज़ल, अबराम और अ फ़ाक़ उ ा ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगे। अबराम ने कहा
िक वो टपो से अ फ़ाक़ को थाने और अफ़ज़ल को लखनऊ डॉप करा देगा। उसने
बताया, ‘लखनऊ के फाइव टार होटल म एक सरकारी लंच पाट है, जसका
ऑडर काफ़ बड़ा था, इस लए रात भर कारीगर ने काम िकया। माल लोड करके,
टपो आने ही वाला है।’ इतने म ही टपो आता िदखाई दे गया। अ फ़ाक़ ने
िविकपी डया को जीप बनवा कर सीधे अ पताल आने का हु म िदया। अबराम ने
डाइवर को कबाब के ड ब के साथ पीछे बैठाया और अ फ़ाक़ और अफ़ज़ल को
आगे बैठा कर ख़ुद टपो डाइव करने लगा। टपो आगे बढ़ा ही था िक अ फ़ाक़ ने
ि पुरारी को फ़ोन लगाकर फ़ौरन नसीम पपीतेवाला के घर पहुच ं ने को बोला।
अ फ़ाक़ क बात सुनते ही अबराम ने टपो को नसीम के घर क तरफ मोड़ िदया।
नसीम पपीतेवाला के घर के बाहर, रोज़मरा क तरह ू स टपो पर लोड हो रहे
थे। सुबह-सुबह टपो पर अ फ़ाक़ उ ा को आते देख नसीम टशन म आ गया।
अ फ़ाक़ के साथ-साथ ही मोटरसाइिकल से ि पुरारी भी वहां पहुच ं गया। अ फ़ाक़
च ाया, ‘अबे पांडे, पपीते के गाल पर एक कंटाप तो रसीद कर भनभना कर! काहे
से िक हम मारे तो यूआर कोड छप जाएगा।’
ि पुरारी ने तुरत
ं ही पपीतेवाला के गाल पर झ ाटेदार कंटाप जड़ िदया। कंटाप
खाकर नसीम का शरीर ऐसे िहला मानो भूकंप आ गया हो, और र टर केल पर
इसक ती ता बारह से भी यादा हो। अ फ़ाक़ टपो से उतरा और नसीम के पास
पहुच
ं ा, ‘अबराम बता रहा था तुमको शुगर है, इस लए हमने सोचा िक बात करने से
पहले एक ए पल इंसु लन तो ठ क ही द तु हारी ड गी म।’
नसीम थोड़ा सा ग़ु से म बोला, ‘एक आम नाग रक को आप ऐसे नह मार
सकते। पहले बताइए, मने िकया या है, जो इसने मारा मुझे?’
अ फ़ाक़ ने बेहद शा तराना अंदाज़ म मौज ली, ‘ओ हो, पपीते का रे डएटर
गरम हो गया। थोड़ा कूलट डाल लो बेटा, नह तो गाड़ी फंु क जाएगी।’
अफ़ज़ल और अबराम भी टपो से उतर कर बाहर आ गए। अ फ़ाक़ ने ि पुरारी
से डटेल देने को कहा। ि पुरारी ने हॉ सएप मैसेज क हाड कॉपी िनकाल कर
नसीम पपीतेवाला के हाथ म थमा दी। रािबया को भेजे सारे आ शक िमजाज़ मैसेज
पढ़कर पपीते का र चाप चढ़ गया।
‘साहब हम रािबया से िनकाह करना चाहते थे, बस इसी लए मैसेज भेजते थे
उसको। हमने उसके अ बू से मना कर िदया था िक अगर वो नह चाहती, तो
िनकाह नह होगा। स ी,’ नसीम िगड़िगड़ाया।
अफ़ज़ल और अबराम चुपचाप खड़े देख रहे थे। नसीम ने दोन को देख कर
कहा, ‘अबराम भाई आप बताओ न इं पे टर साहब को, हम तो साथ म काम भी
करते ह। कभी कोई हरकत करते देखा है आपने?’
अ फ़ाक़ गुराया, ‘साला, म तराम यिू नव सटी का वाइस चांसलर बन गया,
लड़क का जीना हराम कर िदया तूने! और अबराम या बताएगा बे?’
अबराम बोला, ‘पपीते बता दे जो भी िकया है, सच बोल दे…’
नसीम बीच म ही बोल पड़ा, ‘कसम से अबराम भाई, कुछ है ही नह तो बताएं
या? हां, मैसेज भेजे थे, पर पढ़ती ही नह थी रािबया।’
अबराम को ग़ु सा आ गया, ‘तो या रािबया झूठ बोलती थी? रािबया ने ख़ुद
तेरी लफ़ंगई का एक-एक सच मुझे बताया था। तूने उसका जीना हराम कर रखा
था नसीम। दो त समझ ले या हमदद, जो सच है बता दे, वना पु लस हलक़ म हाथ
डालकर सच िनकाल लेगी।’
नसीम पपीतेवाला को लगा था िक अबराम उसका साथ देगा, लेिकन उसने
रािबया क शकायत सबके सामने खोल दी। नसीम ने अबराम क आं ख म देखते
हुए इ तजा क , ‘मैसेज के अलावा कुछ िनकल जाए, तो पपीते को ेकफा ट म
खा जाइएगा।’
अ फ़ाक़ ने अबराम को िकनारे िकया और नसीम से बोला, ‘ये जो गो डन जूते
पहने रहते हो न हर व त, इनको पहन कर कह पैदल या ा पर भी मत जाना इन
िदन , य िक हम कभी भी थाने बुला सकते ह तुमको। ये ू स का धंधा जैसे भी
चला रहे हो, चुपचाप चलाते रहो। काकोरी म ही िदखाई देना। लखनऊ भी गए, तो
तु हारे डाई ू ट तोड़ डालगे हम। ज़दगी भर टू टी- ू टी क तरह टांग फैला कर
टहलोगे काकोरी म।’
बेहद बायोलॉ जकल धमक देकर अ फ़ाक़ ने ि पुरारी से नसीम पर नज़र रखने
को कहा और टपो पर बैठ गया। अफ़ज़ल और नसीम देर तक एक दस ू रे क आं ख
म देखते रहे। अबराम ने टपो म बैठ कर अफ़ज़ल को बुलाया। अफ़ज़ल पलट कर
टपो म बैठा और सब अ पताल क तरफ िनकल गए। नसीम सकपकाया हुआ था।
उसे ग़ु सा आ रहा था पर वो मजबूर था। अबराम ने टपो के साइड िमरर म देखा
तो नसीम उसे लगातार घूर रहा था। ि पुरारी टपो के पीछे -पीछे चल रहा था। उसे
आज कई काम करने थे। गाड़ी चलाते-चलाते उसने फ़ोन पर गौतम को दबंग ी
क सीडी का इंतज़ाम करने को कहा, िफर टे लकॉम कंपनी के लोकल मैनेजर को
फ़ोन करके ा ठाकुर के दोन मोबाइल नंबर के साथ ा के पापा और भाई के
नंबर क कॉल डटेल भी दोपहर तक लाने के लए धमकाया।
***
सभी काकोरी अ पताल पहुच ं े। इं पे टर अ फ़ाक़, अबराम और अफ़ज़ल टपो से
उतरे। ि पुरारी को लेकर अ फ़ाक़ अ पताल के अंदर चल िदया। अबराम के साथ
अफ़ज़ल िफर टपो क तरफ बढ़ लया। अचानक अ फ़ाक़ ने आवाज़ लगाई,
‘अफ़ज़ल, अंदर आकर ज़रा देख तो लो अबराम बाबू के दो त िकतने शरीफ़ ह—
एक साला खुतरा हुआ चांद है और दस ू रा कमब त सड़ेला पपीता।’
अफ़ज़ल ने अबराम को शरारती नज़र से देखा, ‘सही कहा ख़ाँ साहब, ज़रा म
भी तो देख लूं अबराम का ोफेशनल टपो पाटनर चांद िदखता कैसा है? और
बेचारा खुतरा य है?’
‘गु टपो पाटनर तो पपीतेवाला है, जसके गाल पर आज पं डत जी का
यआू र कोड छपते-छपते रह गया।’ अबराम थोड़ा चढ़ कर बोला।’
अ फ़ाक़ उ ा ने बात संभालते हुए कहा, ‘अरे नह अबराम, म तो मौज ले रहा
हू।ं तुम तो मेरे राजा बेटा हो। तुम ही तो हमको अनारकली और क मीर क कली
का आई डया िदए थे, यार।’
अबराम ने िफर चढ़ते हुए पूछा, ‘कौन सी क मीर क कली?’
अ फ़ाक़ बोला, ‘अरे तुम बोले थे न, अनारकली का दोबारा इंटेरोगेशन कर लो;
मोटरसाइिकल िकस क मीर क कली के नाम र ज टड है, ये भी तो आई डया
तुम ही िदए थे बेटा। तु हारे ही आई डया से पता चला िक चांद खुतरा ही
मोटरसाइिकल पर क मीर का नंबर छपवाया था। आओ, अंदर चलते ह।’
सब अ पताल के उस वॉड म पहुच
ं गए जहां चांद क चांद पर प ी बंधी हुई थी।
डॉ टर साहब चांद खुतरा का लड ेशर नाप रहे थे और एक नस लूकोज़ क
बोतल बदल रही थी।
‘का बे चांद, एकदम बाला बने लेटे हो!’ अ फ़ाक़ ने घुड़क सी लगाई।
‘हम डर गए थे साहब, इसी लए भागे थे।’ चांद ने कराहते हुए कहा।
‘भागने म तो तुम काल लुइस का भी रकॉड तोड़े हो। िफकर ना करो, पो डयम
पर चढ़ाकर गो ड मेडल हम ही दगे तुमको,’ अ फ़ाक़ हंसा।
तभी डॉ टर ने अपनी रपोट दी, ‘अभी थोड़ा टाइम लगेगा। ही इज़ रकव रग
फा ट। पेनिकलस िदए ह, दो यूिनट लड भी चढ़ चुका है, बस लूकोज़ क दो-
तीन बोतल और चढ़ाएं गे।’
अ फ़ाक़ ने धमक वाले टाइल म चांद खुतरा का गाल थपथपाया, ‘अबे खुतरे
तुम तो प े डैकुला बन गए हो, ख़ून पे ख़ून िपए जा रहे हो। चलो चंदा मामा, ढाई
सौ ाम ख़ून हम भी पीते ह तु हारा।’
डॉ टर ने टोका, ‘आराम से इं पे टर साहब, चोट गहरी है।’
अ फ़ाक़ ि पुरारी क ओर घूमा, ‘ए ि पुरारी, फ़ाइल लेकर आओ ज़रा।’
ि पुरारी दौड़कर बाहर गया। मोटरसाइिकल से बैग िनकाल कर वॉड म वापस
लौटा। अफ़ज़ल और अबराम चांद के पैर क तरफ खड़े उसे देख रहे थे। ि पुरारी
ने फ़ाइल खोलकर अ फ़ाक़ को दी। अ फ़ाक़ ने फ़ाइल से फ़ोटो िनकाली और
चांद के सामने लहराई। चांद ने फ़ोटो को ऐसे देखा, जैसे पहली बार देख रहा हो,
‘इसम या है साहब?’
अ फ़ाक़ बोला, ‘तु ह बताओ! हम तो मै ीफाइंग लस से फ़ोटो को दजन बार
देख चुके ह। साला थॉमस ए डसन भी कैमरे का आिव कार िकए ह गे तो सोचे नह
ह गे िक फ़ोटो का िपछवाड़ा भी कभी चांद खुतरा के काम आएगा। फ़ोटो पलट कर
देख चू तए और फटाफट उगल िक ये का आं कड़ेबाजी लखे हो।’
चांद ने लेटे-लेटे फ़ोटो पलटी और कुछ सेकड का पॉज़ देकर बोला, ‘साहब
इंजन और चे चस नंबर लखा है ये तो।’
अब अ फ़ाक़ ने भ ह चढ़ाई ं, ‘कहां से पाए ये नंबर?’
खुतरा कुछ नह बोला। अ फ़ाक़ गुराया, ‘चांद, ये नंबर कहां से पाए हो?’
खुतरा इस बार भी साइलस ज़ोन म था।
ि पुरारी बोला, ‘काहे शनचैन क तरह बदमाशी कर रहा है बे, बोल?’
अबराम ने भी टोका, ‘सच बता दे चांद।’
खुतरा ख़ामोशी तोड़कर बुदबुदाया, ‘बस ऐसे ही फ़ज़ लख िदए ह।’
‘अबे तो या काकोरी म क मीर का नंबर पेलोगे?’ अ फ़ाक़ भड़का।
चांद खुतरा ने फ़ोटो अ फ़ाक़ को वापस कर दी, ‘साहब हम नह पता ये क मीर
का है िक क याकुमारी का।’
अ फ़ाक़ ने फ़ोटो ि पुरारी क ओर बढ़ाया। इससे पहले िक ि पुरारी फ़ोटो
फ़ाइल म रखता, अबराम ने फ़ोटो उसके हाथ से ली और यान से देखा। िफर
अफ़ज़ल को फ़ोटो के पीछे लखा नंबर िदखाते हुए बोला, ‘गु , इसम तो कुछ
जयो ािफकल डेटा भी है।’
अफ़ज़ल देखते ही बोला, ‘ये तो कॉ डने स ह!’
‘कॉ डने स तो तु हारे लैपटॉप पर देखे थे मने।’
अफ़ज़ल थोड़ा अचकचाया। तभी ि पुरारी ने अबराम के हाथ से फ़ोटो लेकर
फ़ाइल म रख दी। ि पुरारी फ़ाइल को जैसे ही बैग म वापस रखने लगा, बैग ज़मीन
पर िगर पड़ा और सारे कागज़ िबखर गए। काले रैपर म पैक क डल जैसा पीस भी
बैग के बाहर आ गया।
अबराम ने फ़ौरन पीस ज़मीन से उठाया और िफर अपनी जेब म हाथ डालकर
वैसा ही दसू रा पीस िनकाला। अबराम को ये पीस उस व त िमला था, जब पु लस
रेड के बाद वो िबखरे हुए घर क सफ़ाई कर रहा था। ये वही पीस था, जसे
अबराम ने तोड़ा था, और तोड़ने पर उस पीस म से पीले रंग के श र जैसे दाने
िनकले थे। अबराम ने दोन पीस एक दस ू रे से िमलाने क को शश क , तभी
ि पुरारी बोला, ‘दोन ए ै जैसे ह, लेिकन आप कहां से पाए, अबराम भैया?’
‘तुमको कहां से िमला था?’ अबराम ने भी सवाल िकया।
‘अरे ई तो इं पे टर साहब जब चांद के सर पर पेटी पटके थे, तो साला पेटी
टू ट गई थी और चांद क बिनयाइन म फंस गया था। कंपाउं डर जब बिनयाइन
काटा, तो उसी म िमला था।’
‘तो हम कहां काम करते ह पांडे जी?’ अबराम ने पूछा।
‘अरे हां, आप भी तो वह काम करते ह,’ ि पुरारी झपते हुए बोला।
अबराम ने खचाई क , ‘चांद को पकड़ने के च र म आप पु लस वाले पूरे घर
का सामान िबखेर कर चले आए थे। मुझे अकेले ही घर क सफ़ाई करनी पड़ी।
तभी िमला था, पांडे जी।’
अबराम ने पलट कर चांद से पूछा, ‘ये या है चांद?’
चांद धीरे से बोला, ‘येलो शुगर है, गु ।’
अ फ़ाक़ चांद से मुखा तब हुआ, ‘अबे को यार, ये श र का च र बाद म
िनबटाएं गे, पहले क मीर का कने शन बको बे।’
चांद िफर ख़ामोश हो गया।
अ फ़ाक़ ग़ु से म तेज़ी से आगे बढ़ा ही था िक डॉ टर ने अ फ़ाक़ को रोक
लया और बोला, ‘लेट िहम रकवर, िफर पूछताछ क जएगा।’
अ फ़ाक़ ने ग़ु से म डॉ टर का हाथ मरोड़ने क को शश क , पर तभी ि पुरारी,
अबराम और अफ़ज़ल ने अ फ़ाक़ के हाथ से डॉ टर का हाथ छुड़वाया और उसे
समझाया िक चांद के साथ कुछ भी गड़बड़ हो गई तो लेने के देने पड़ जाएं गे।
बेहतर यही है िक डॉ टर जो कह रहा है, उसे मान लया जाए। अबराम ने डॉ टर
को सॉरी बोलकर अ फ़ाक़ को पीछे िकया और बच पर बैठा िदया। जब माहौल का
टे ेचर थोड़ा डाउन हुआ तो अबराम ने चांद क तरफ देखा और घूरते हुए कहा,
‘जो िकया है बोल दे, य िकया है ये भी बोल दे चांद! बता दे िक रािबया के साथ
या िकया है तूने? क मीर का या च र है? सब बता दे वना एक बात तो प है
चांद, तू बचेगा नह ।’
चांद आ ख़रकार दोन हाथ का सहारा लेते हुए अ पताल के पलंग पर कराहते
हुए उठकर बैठ गया। उसने अफ़ज़ल क आं ख म आं ख डाल कर गौर से देखा
और िफर डॉ टर, ि पुरारी पांडे और अ फ़ाक़ को देखते हुए अबराम से बोला,
‘हर सुराग, सुराग नह होता। हर सबूत, सफ सबूत नह होता। हो सकता है, जसे
पु लस सुराग समझ रही हो, वो सुराग नह संदेश हो! अपने बाप को समझा
अबराम, जो सुराग उसने तलाशे ह, वो सुराग तो ख़ुद चलकर आए ह उसके पास।
म बचूंगा या नह , पता नह , पर इं पे टर अ फ़ाक़ उ ा िब मल तुम तो गए,
तु हारा काम ख़ म।’
सुराग और संदेश क पहेली म सबको उलझाकर चांद ने अपने हाथ धीरे-धीरे
गदन क तरफ बढ़ाए और झट से ताबीज़ तोड़कर मुह ं म डाल लया। इससे पहले
िक वो ताबीज़ चबा जाता, अ फ़ाक़ बच से उठकर तेज़ी से चांद क तरफ लपका
और उसने अपने मज़बूत पंज से उसका जबड़ा दबा िदया। चांद का मुहं खुल गया
और अ फ़ाक़ ने गहरे तक उसक हलक़ म उं गली डालकर ताबीज़ बाहर िनकाल
लया। डॉ टर ने नस को आवाज़ दी और न द का इंजे शन लाने को कहा। सबने
चांद के दोन हाथ जकड़ लए। चांद खुतरा क इस हरकत से सब के सब बौराए
हुए से थे। वॉड के भीतर हर कोई स था। ऐसा लगा जैसे िकसी ने सर के अंदर
बम फोड़ िदया हो। हर िकसी के ज़ेहन म सफ एक ही बात थी— या चांद खुतरा
टेरे र ट है? य िक सभी ने अभी तक सफ िफ़ म म ही देखा था िक आतंकवादी
गले म कै सूल लटकाए रहते ह और जब फंस जाते ह तो उसे तोड़ कर खा जाते
ह।
अ फ़ाक़ उ ा अंदर तक िहल गया। मडर केस म फंसे कई लोग को अ फ़ाक़ ने
जेल के अंदर, जेल के बाहर, थाने के हवालात म भी ख़ुदकुशी करते देखा था और
सुना भी था, लेिकन ये पहला मडर केस था जसम सफ इ वे टगेशन से बचने के
लए िकसी ने सायनाइड का कै सूल खाकर अपनी जान लेने क को शश क हो।
अ फ़ाक़ उ ा के चेहरे से बहता हुआ पसीना और तेज़ सांस बता रही थ िक
अ फ़ाक़ िकतना भी शा तर हो, लेिकन उसक उ हो गई थी। रािबया केस अब
सफ मडर या रेप केस नह था। इसम तो कुछ और ही छुपा था। अ फ़ाक़ के
भीतर बैठे कमज़फ़ पु लस वाले ने ख़ुद को संभाला और समझाया िक अगर आज
वो टू ट गया, तो सब छूट जाएगा। वो ख़ुद पर च ाया, ख़ुद को झकझोरने लगा िक
अ फ़ाक़ तेरे सामने आज एक टेरे र ट है, और टेरे र ट का नाम है चांद खुतरा।
टेरे र ट नह होता तो कै सूल खाकर ख़ुद को मारने क को शश नह करता, ख़ुद
को संभाल अ फ़ाक़! अ फ़ाक़ के चेहरे से पसीना ग़ायब होने लगा। उसका शा तर
िदमाग़, उसके उ दराज़ शरीर को क़ाबू म कर चुका था। अ फ़ाक़ ने मन ही मन
ख़ुद से कहा िक वो काकोरी का सबसे बड़ा िवलेन है और काकोरी म जो सबसे
बड़ा िवलेन है, वो ही काकोरी का हीरो है। इसके बाद अ फ़ाक़ ने चांद खुतरा का
ताबीज़ खोला और उसक तरफ िफर वही िवलेन वाली माइल देकर बोला,
‘अ फ़ाक़ के रहते काहे अकेले-अकेले बीकोसूल खा रहे हो खुतरा? इलाज म कोई
कमी रह गई थी तो बताते, हम डॉ टर से इंजे शन ठु ंकवा देते।’
चांद बस हांफ रहा था और अ फ़ाक़ को घूरे जा रहा था। वो मौत से बस एक
खुराक क दरू ी पर रह गया। उसके मुह
ं से बुरी तरह थूक िगर रहा था। अ फ़ाक़ ने
ताबीज़ और कै सूल ि पुरारी को थमाते हुए िज़पर बैग म रखने को कहा और चांद
क तरफ मुड़कर अपने ही अंदाज़ म मु कुराया, ‘बांधो साले के हाथ। सुन बे सूअर
क औलाद, ये सुराग संदेस का खेल हमसे मत खेल, काहे से हम इस खेल के
रक पॉ टग ह। अबे हम तो खुदै तुमको सबके सामने संदेसा बना िदए ह, तािक
तुम एक और सुराग उगल दो। और देखो तुम िकतना ज दी दे िदए हमको सुराग
का रीचाज कूपन। संदेस तो हमको बहुत पहले ही िमल गया था तु हारा, लेिकन
तु हारे कै सूल ने क मीर का कने शन ि टल ि यर कर िदया है।’
अब तक नस, क पाउं डर, वॉडबॉय और सपाही चांद खुतरा के दोन हाथ पलंग
पर बांध चुके थे। डॉ टर ने फ़ौरन उसे न द का इंजे शन िदया। चांद िमनट क
जगह सेकड म ही िब तर पर लुढ़ककर डीप लीप म चला गया। अफ़ज़ल और
अबराम घबराए हुए थे, दोन ने ही िकसी को ख़ुदकुशी क को शश करते पहली
बार देखा था। सायनाइड का तो सफ नाम सुना था, देखा तो पहली बार था। सफ
टीवी और अखबार म आतंकवादी देखे थे। चांद क श म एक टेरे र ट, अब
उनके सामने था। िदल मानने को तैयार नह था िक चांद आतंक हो सकता है, पर
सायनाइड ने िफलहाल सािबत कर िदया था िक चांद टेरे र ट ही था। सु हो चुके
िदमाग़ को िहलाते हुए अ फ़ाक़ ने सबसे पहले डीजीपी बृजलाल कुल े को ख़बर
दी। वो समझ चुका था िक रािबया बसर केस अब सफ काकोरी का छोटा-मोटा
लोकल केस नह रह गया है। फ़ोन पर अ फ़ाक़ उ ा के साथ आज डीजीपी उतना
कैज़ुअल नह था, जैसा हमेशा रहता था। डीजीपी बृजलाल क सी रयसनेस का
अंदाज़ा लगा कर अ फ़ाक़ उ ा भी अब अपनी पो जशन को लेकर बहुत योर
नह था। अ फ़ाक़ को समझ म आ चुका था िक उसके ख़लाफ़ िकसी भी व त
कोई भी ए शन लया जा सकता है। अपनी बीवी म रयम क मौत के व त भी
उसका हाल कुछ ऐसा ही था। लेिकन तब बेट के लए उसने चेहरे पर नकाब पहन
लया था। यही नकाब अ फ़ाक़ के भीतर बैठा बह िपया है। िफर एक बार चेहरे से
टशन हटाकर, अ फ़ाक़ ने अबराम और अफ़ज़ल को बाहर चलने का इशारा
िकया। सब वॉड से बाहर आ गए। अ फ़ाक़ ने ि पुरारी को दो सपाही वॉड के अंदर
और दो बाहर तैनात करने को कहा और िफर अफ़ज़ल से बोला, ‘ख़ुद पर क़ाबू
रख अफ़ज़ल, तेरे चेहरे पर पसीना य है?’
अफ़ज़ल ने अ फ़ाक़ का चेहरा पढ़ते हुए कहा, ‘टस तो आप लग रहे ह ख़ाँ
साहब। याल र खए अपना, उ हो गई है आपक ।’
अ फ़ाक़ के भीतर बैठे बह िपए ने अफ़ज़ल क िफ को टाल िदया। उसने
अबराम को देखा, तो अबराम बोला, ‘म भी द ु त हू।ं अफ़ज़ल ठीक ही कह रहा है
पं डत जी, अपना याल र खए। केस के च र म अपना केस मत ख़राब क जए।’
अ फ़ाक़ मु कुराया और बोला, ‘अरे ि पुरारी, वो कौन सी िफ़ म है जसम वो
साला गायत डे है?’
ि पुरारी िफ़ म सोचने लगा िक साहब इतनी िफ़ म देखते ह, पता नह कौन सी
िफ़ म क बात कर रहे ह। इतने म अबराम बोला, ‘अरे, िफर शु हो गई आपक
िफ़ मी िफलॉ सफ !’
अ फ़ाक़ बोला, ‘अरे बताओ तो कौन सी िफ़ म थी? कई पाट थे।’
‘िफ़ म नह वेब सीरीज़ थी,’ अबराम ने जवाब िदया।
अ फ़ाक़ ज़ोर से हंसा और बोला, ‘गायत डे को तो कभी-कभी लगता था िक वो
भगवान है, पर हम तो सट परसट कंफम ह िक हम ही भगवान ह और भगवान का
कोई कुछ उखाड़ नह सकता।’
िफर उसने अफ़ज़ल से पूछा, ‘तू कब तक लौटेगा लखनऊ से?’
‘टाइम लगेगा, शायद कल तक ही आ पाऊं।’ अफ़ज़ल ने जवाब िदया।
‘गु , कहे तो टपो वह रोक द?ं ू ’ अबराम बोला।
‘अरे नह , उसक ज़ रत नह , म टेन से आ जाऊंगा।’ अफ़ज़ल ने जवाब
िदया।
अबराम अफ़ज़ल को टपो तक ले गया और डाइवर से बोला, ‘लखनऊ माल
अनलोड कर देना। साहब कह तो क जाना, वना वापस आ जाना।’
टपो लखनऊ क तरफ चल पड़ा। अ फ़ाक़ ने ि पुरारी से अबराम को तह वर
के घर तक छोड़ने को कहा। अबराम को पीछे बैठाकर ि पुरारी वहां से िनकल
गया। तभी िविकपी डया जीप लेकर अ पताल पहुच ं गया। अ फ़ाक़ ने
िविकपी डया क तरफ देखा, ‘अरे म कुछ कहना भूल गया। ि पुरारी को फ़ोन करो
और ा ठाकुर के डटे स लेकर थाने पर आने को बोलो।’
िविकपी डया ने फ़ोन लगाया ही था िक अ फ़ाक़ ने जोड़ा, ‘कल रात म सघम
टू देखते-देखते हम न द म परलोक सधार गए थे, ि पुरारी को बोलो कह से भी
ढू ंढ़ कर सघम टू क डीवीडी लाए, आज थाने को थएटर बना दगे।’
अ फ़ाक़ क बात सुनते ही िविकपी डया ने ि पुरारी पांडे को फ़ोन पर इं पे टर
साहब का पूरा मे यूकाड पेश कर िदया। अ फ़ाक़ िफर एक बार चांद के वॉड म
गया, तो देखा चांद पर अमावस छाई हुई थी। चांद खुतरा के वॉड म लगातार
ूटी दे रहे सपाही सोए ही नह थे, उनक आं ख म न द सवार थी। सपािहय
को अ फ़ाक़ ने समझाया िक रात म उनक ूटी चज कर दी जाएगी पर तब तक
डॉ टर के अलावा बाहर से कोई अंदर न आ सके और अंदर से कोई बाहर न जा
सके। सपािहय को समझा कर अ फ़ाक़ वापस थाने आ गया।
***
काकोरी थाना टे लकॉम डपाटमट बना हुआ था। ि पुरारी पांडे ा ठाकुर, उसके
िपता और छोटे भाई के कॉल डटे स उलटता-पलटता अ फ़ाक़ के सामने पहुच ं ा,
‘सर ये रह डटे स।’
‘कुछ हाथ लगा ि पुरारी?’ अ फ़ाक़ ने पूछा।
‘हां साहब, ा के जस मोबाइल से रािबया को तीन िमनट क कॉल क गई
थी, वो मोबाइल इस कॉल के फ़ौरन बाद ही वच ऑफ़ हो गया था। ख़ास बात ये
है साहब िक ये समकाड क़रीब छह महीने पहले ख़रीदा गया और छह महीन म
क़रीब बीस कॉल ही हुए ह इससे।’
अ फ़ाक़ च का, ‘लोकेशन या कह रही है?’
ि पुरारी बोला, ‘साहब लोकेशन कभी रािबया का कूल कभी घर, कभी दरगाह
तो कभी काकोरी का झंकार रे टोरट…ये मोबाइल छह महीने म पं ह बीस बार ही
ऑन हुआ, बाक वच ऑफ़ ही रहा है।’
अ फ़ाक़ ने तुरत
ं पूछा, ‘और दस
ू रे नंबर का या हाल है?’
‘सर दसू रा नंबर परफे ट है। रािबया ने उस रात ा के इस नंबर पर क़रीब
आधे घंटे बात क और तब तक इस मोबाइल क लोकेशन ा ठाकुर के घर के
ही पास थी,’ ि पुरारी पांडे ने जवाब िदया।
अ फ़ाक़ हैरत म पड़ गया और बोला, ‘कह ऐसा तो नह िक ा ने पहले नंबर
से रािबया को फ़ोन करके वच ऑफ़ कर िदया हो, िफर दसू रा नंबर ऑन करके
अपने घर पर ही छोड़ िदया हो?’
िविकपी डया ने ान बघारा, ‘हां सर, कई बार ऐसा होता है िक लोग फ़ोन काटे
िबना ही “ओके बाय, गुडनाइट” कह देते ह, पर कॉल कने ट रहती है। हो सकता
है अपना मोबाइल ऑन छोड़कर, रािबया के साथ कोई और नह , ब क ख़ुद ा
ठाकुर आम के बाग गई हो।’
अ फ़ाक़ क चता बढ़ गई, ‘ या ठकुराइन मोटरसाइिकल चला लेती थी?’
जवाब रमाकांत क ओर से िमला, ‘सर जब तह वर को ा ठाकुर क िम सग
के बारे म हम इंफ़ॉम िकए थे, तब वो बोले थे िक रािबया तो कूटी ख़रीदना चाहती
थी, पर ा ही उससे बोली थी िक इस बार अयो या से अपनी मोटरसाइिकल ले
आएगी।’
गौतम ने भी अपनी राय सामने रखी, ‘साहब, ा एकदम ल ड क तरह रहती
थी। जी स, पो स शूज़, टी-शट और हेयर टाइल तो एकदम ह ानी ल डा
कट!’
अ फ़ाक़ के लए सबकुछ िकसी स पस िफ़ म क तरह था। वो बड़बड़ाया,
‘अंगद यादव जेल म है, चांद खुतरा अ पताल म है, देश भि न ा ठाकुर
लापतागंज है—साला िदमाग़ डसमटल हो गया है।’
स पस म डू बे अ फ़ाक़ का फ़ोन बजा, उसने फोन उठाया, ‘हां बोलो।’
उधर से आवाज़ आई, ‘अ फ़ाक़ भाई, डीजीपी साहब का ऑडर िमला था,
थाना अयो या से इं पे टर रमाशंकर कठे रया बोल रहा हू।ं ’
अयो या का नाम सुनते ही अ फ़ाक़ कुस से खड़ा हो गया, ‘अरे कठे रया
साहब, या हालचाल? अयो या कब पहुच ं गए आप? जब आप तापगढ़ थाना
भारी थे, तब हम कंु डा चौक इ चाज थे, याद है?’
‘डेढ़ साल हो गया अयो या म हमको। या बताएं अ फ़ाक़ बाबू आप तो मजे म
ह, अयो या म तो हमारा बड ही बजा हुआ है। जबसे राम मंिदर वाला सु ीम कोट
का फैसला आया है, तब से ग त कर-करके पांव थक गए और तलाशी ले-लेकर
हाथ पक गए ह।’
अ फ़ाक़ बोला, ‘राम, राम, राम। आपका तो राम नाम स य हो गया।’
कठे रया क आवाज़ आई, ‘वो ा ठाकुर के डटेल मांगे थे न आपने?’
‘हां, हां बताइए, या हुआ उसम?’ अ फ़ाक़ ने झट से पूछा।
‘भाई जस िदन से आपके काकोरी म क़ ल हुआ है उस लड़क का, उसी िदन
से ा क फैिमली ताला बंद करके ग़ायब है,’ कठे रया बोला।
‘बाप पीड यूडी म है न? और भाई कह पढ़ता है,’ अ फ़ाक़ ने पूछा।
इं पे टर कठे रया बोला, ‘ सपािहय को पीड यूडी के लोकल ऑिफस और
लड़के के कूल भी भेजे थे, कोई ख़बर नह …सब िम सग ह।’
अ फ़ाक़ िनराश हो गया, ‘अरे साला! अ छा, उस लड़क क मोटरसाइिकल
का या?’
कठे रया ने जवाब िदया, ‘वो भी िम सग है।’
बात ख़ म हुई तो फ़ोन काटकर अ फ़ाक़ ने ि पुरारी क तरफ देखा, ‘अरे यार,
अयो या म तो सब िम सग ह। ा के भाई और बाप का या डटेल है पांडे?’
‘सर क़ ल क रात के बाद से ा ठाकुर के दोन नंबर बंद ह और अगले िदन
सुबह यारह बजे से उसके बाप और भाई का मोबाइल भी वच ऑफ़ है,’ ि पुरारी
ने बाप, बेटे और बेटी का यौरा बांचा।
‘बाप और भाई क आ ख़री लोकेशन या है?’ अ फ़ाक़ ने सवाल िकया।
‘अयो या टेशन,’ ि पुरारी ने जवाब िदया।
अ फ़ाक़ क चता गहरी हो गई, ‘सबके नंबर के डटेल म जो-जो नंबर कॉमन
ह , उनका भी थड पाट डटेल िनकलवाओ। एकदम सब के सब कैसे ग़ायब हो
गए? ज़ र कोई दस ू रा समकाड ख़रीदकर ये फैिमली इ तेमाल कर रही है, इन
नंबर से कने शन का तो पता लगेगा ही लगेगा।’
िविकपी डया भला अपनी जनरल नॉलेज पेलने म य पीछे रहता, ‘हां सर, ये
आई डया काम करेगा। जतने कॉमन नंबर ह, उन पर जैसे ही िकसी नए नंबर से
फ़ोन आए, तो समझ ली जए िक यही लोग फ़ोन िमलाए ह और कह िकसी
र तेदार के यहां डेरा जमा लए ह।’
ि पुरारी ने िविकपी डया के साथ कॉमन नंबर िनकालने शु िकए। अ फ़ाक़
दराज़ से लस िनकालकर हाथ क रेखाएं पढ़ने लगा, ‘ लखा तो है िक आज
सघम टू देखनी है। अबे ि पुरारी, नंबर िनकाल कर हमारे साथ सघम देखो और
िफ़ म देख कर तुम, िविकपी डया, रमाकांत और गौतम अ पताल म ूटी देना।
दो िदन से ूटी देकर चार सपाही थकान भारती हो गए ह। बेचार को छु ी दे
देना।’
गौतम बोला, ‘साहब, खुतरा टेरे र ट िनकल गया िफर भी आप ठंडा-ठंडा,
कूल-कूल कइसे रह लेते ह?’
अ फ़ाक़ ने िफर िफ़ मी िफलॉ सफ समझाई, ‘अबे राउडी राठौर देखे हो?
उसम एक दरोगा ईमानदार है और दस
ू रा एकदम हरामी, बस समझ लो हम हरामी
वाले ह।’
अ फ़ाक़ के साथ सभी हंसने लगे और अब काकोरी थाने म टीवी चल रहा था।
अपनी कुस के सामने एक और कुस पर पैर रख कर लेटा अ फ़ाक़, आज
ज़बरद त टशन के बाद भी ख़ुद से भीतर ही भीतर लड़कर नॉमल िदखने क
को शश कर रहा था। वैसे भी िफ़ म उसका टॉिनक थ । सामने टीवी पर िफ़ म
चल रही थी और बाजीराव सघम अपने सेकड पाट के डायलॉग बोल रहा था।
टीवी पर बाजीराव सघम के साथ स टम से लड़ने के लए पूरा का पूरा पु लस
डपाटमट वद फक कर सड़क पर उतर पड़ा। िविकपी डया, ि पुरारी, रमाकांत,
गौतम के साथ थाने के दस
ू रे सपाही ताली बजा-बजा कर अ फ़ाक़ उ ा िब मल
क तरफ देखने लगे। ये देख कर लग रहा था जैसे थाने म भी कॉप रेट क चर लागू
है। असल म बॉस क हर बात पर यस बॉस बोलना भी एक ड स लीन है। िफर
चाहे सरकारी द तर हो, ाइवेट ऑिफस हो या िफर थाना काकोरी।
अ फ़ाक़ ने भी ताली बजाई, ‘अइ साला! देखो, एक छोटे से सपाही के लए
कैसे इं पे टर पूरा का पूरा स टम िहला िदिहस, यार!’
रमाकांत बोला, ‘सर एकदम आपै क तरह है सघम टू ।’
थाने म हर कोई अ फ़ाक़ क जी हुजूरी कर के अपनी वफादारी सािबत करने
को तैयार था।
िविकपी डया कुस से उठकर अ फ़ाक़ के पैर छूने लगा, ‘हम पूरा नॉलेज है सर,
आप चांद को लेकर ड टब ह। हम सब आपके साथ ह सर।’
ि पुरारी पांडे भी िविकपी डया के कंिपटीशन म आ गया और अ फ़ाक़ के पैर
पकड़ कर बोला, ‘सर आपके लए जान दगे, नह तो ले लगे।’
अ फ़ाक़ उ ा ने दोन हाथ फैलाकर िविकपी डया, ि पुरारी, रमाकांत, गौतम
को बुलाया। सब आकर अ फ़ाक़ के गले लग गए। अ फ़ाक़ ने िफर मौज ली, ‘अबे
िप चर इतनी ल न टॉप लग गई या िक पूरा काकोरी थाना इमोशनल हो गया?
अइसा है तो दस
ू रा शो भी देख ही लया जाए, मगर साल िफ़ म के च र म ूटी
रिपटीशन न करा देना। चार सपािहय को छु ी देने टाइम से चले जाना
अ पताल।’
ि पुरारी पांडे, रमाकांत, गौतम, िविकपी डया अ फ़ाक़ उ ा क कुस के पास
बच लगाकर बैठ गए। िफ़ म देखे या मौज ले ले, मगर टशन ने अ फ़ाक़ के िदमाग़
को ाइट मोड पर डाल िदया था। कुछ समझ नह आ रहा था िक केस कैसे
सॉ व िकया जाए। इसी िज़क-ज़ैक सोच के बीच अ फ़ाक़ ने िफर दराज़ से फ़ोटो
िनकाली और लस से उसे देखना शु िकया। भले ही सब िफ़ म देख रहे ह ,
लेिकन अ फ़ाक़ क पूरी टीम अपने इं पे टर साहब का िदमाग़ पढ़ रही थी।
ि पुरारी, गौतम, रमाकांत, िविकपीडीया टीवी छोड़कर साहब के लस से फ़ोटो
देखने लगे। अ फ़ाक़ उ ा ने कुस के हुड पर सर िटका िदया और बड़ी बेचारगी
से बोला, ‘ये साला क मीर का कने शन सुलझाना है। लगता है ज़दगी िफर आई-
पाई खेल रही है, अ फ़ाक़ से।’
ि पुरारी ने फ़ोटो और लस उठाकर दराज़ म रख िदए और अ फ़ाक़ उ ा को
भरोसा िदलाया िक सब िमलकर केस सॉ व करगे। टीम को परेशान देख कर
अ फ़ाक़ ने िफर अपने चेहरे का इमोजी बदला और सबको देख कर मु कुराया।
तभी एक सपाही गमागरम कु हड़ वाली चाय और बन म खन लेकर आया। सबने
चाय के घूट
ं गले म उतारना शु िकए। िफर या था, छोटे से ेक के बाद थाने म
सघम टू का सेकड शो शु हो गया।
***
रात के क़रीब दो बजे थे। अंधेरे ने काकोरी को अपनी िगर त म ले लया था।
अ पताल म अंधेरे के साथ स ाटे ने दो ती कर ली थी। ये दो ती अभी हुई ही थी
िक ख क आवाज़ के साथ लाइट भी चली गई। अंधेरे म कोई था जो कॉ रडोर से
होता हुआ चांद खुतरा के वॉड तक जा रहा था। बरामदे म मरीज़ के एक-दो
तीमारदार गहरी न द म सोए हुए थे। नस लापता थी। एक वॉडबॉय इमरजसी
टेचर पर तिकया लगाए सो रहा था। सपािहय क ूटी बदल चुक थी।
ि पुरारी और िविकपी डया वॉड के बाहर खराटे भर रहे थे। अंधेरे म आगे बढ़ रहा
ये श स, वॉड के दरवाज़े पर पहुचं ा। उसने आिह ता से कंु डी खोली और वॉड के
अंदर दा ख़ल हो गया। वॉड के अंदर रमाकांत बच पर और गौतम बच के नीचे
ज़मीन पर अ पताल क चादर ओढ़कर सोया हुआ था। कोई था जसने चांद के
चेहरे को क़रीब से देखा। चांद अभी भी इंजे शन के ज़ रए नस म उतरी न द क
आगोश म था।
***
कुरैशी कसाई का पजड़ा खाली था। मतलब साफ़ था िक मुग का नया कंसाइ मट
कल से नह आया था। कल जस ब ी म तीन बकरे बंधे थे, उनक पॉपुलेशन भी
कम हो चुक थी। बचे हुए दो ख सी बकर क आं ख बता रही थ िक बेचारा एक
बकरा कल ॉयलर मुग क अं येि के बाद रे ट इन पीस करने चला गया था।
बकर ने मुग का टाइम टेबल फॉलो िकया और म-म करके काकोरी क न द उड़ा
दी।
सुबह-सुबह काकोरी थाने म अ फ़ाक़ के मोबाइल पर ि पुरारी क कॉल आई।
टीवी अभी ऑन ही था, मगर िप चर नह चल रही थी। इं पे टर अ फ़ाक़ सो रहा
था। फ़ोन बजे जा रहा था। अ फ़ाक़ ने कुनमुनाते हुए फ़ोन उठाया, ‘कौन है बे?’
ि पुरारी क घबराई हुई आवाज़ आई, ‘साहब, चांद िनकल लया।’
अ फ़ाक़ ने ज हाई ली, ‘अबे तो सुबह हो गई है, चांद तो िनकल ही लेगा न!’
‘नह साहब, चांद खुतरा मर गया,’ ि पुरारी ने डरते हुए बताया।
अ फ़ाक़ के हाथ से फ़ोन छूटते-छूटते बचा, ‘ या?’
जला अ पताल के वॉड म ि पुरारी पांडे लाश के क़रीब खड़ा था। लाश एकदम
काली पड़ चुक थी। ि पुरारी लाश को ऊपर से नीचे तक देखकर बोला, ‘साहब
चांद खुतरा काला तो था ही, अब तो और भी काला हो गया है।’
‘अबे चुप कर, फ़ौरन आ रहा हू,ं ’ अ फ़ाक़ ने फ़ोन रख िदया।
अ फ़ाक़ तुरत ं जीप म बैठा और अ पताल पहुच ं गया। सरकारी अ पताल पर
जीप कते ही अ फ़ाक़ वॉड क तरफ भागा। वॉड के बाहर से अंदर तक नस,
डॉ टर और तीमारदार क भीड़ थी। अ फ़ाक़ के पहुच ं ते ही सब ततर-िबतर हो
गए। अ फ़ाक़ उ ा लाश को देख कर बुरी तरह च क गया। चांद क लाश कोई
और भी देखता तो ऐसे ही च क जाता। ये लाश एक लाश नह थी, ब क सुराग क
श म एक संदेश थी। चांद सर से पांव तक काला पड़ चुका था। उसक छाती पर
ए फोर साइज़ का एक पेपर चपका था, जस पर अं ेज़ी म छपा था— हद ु तान
रप लकन एसो सएशन। िकसी ने छाती को ि प बोड क तरह इ तेमाल िकया
था। थंब िप स से ये पेपर चांद खुतरा क छाती पर टैग िकया गया था। लाश से
लेकर बेड तक, ि िटश कग शप के दजन चांदी सोने के स े फैले थे। ये वही
स े थे, जो ा ठाकुर ने टैराकोटा मो डग से बनाए थे। ये वही स े थे, जो
कूल ले म ब ने इ तेमाल िकए थे। ये वही स े थे, जो ा ठाकुर के घर पर
रेड मारने के दौरान अ फ़ाक़ उ ा िब मल ने अलमारी म देखे थे।
आज पहली बार अ फ़ाक़ उ ा का िवलेन वाला हीरो ऐसा महसूस कर रहा था
जैसे उसके हाथ-पैर खंभे म बांध कर िकसी ने घंट तक पीटा हो। अ फ़ाक़ तेज़ी
से वॉड से बाहर आ गया और अ पताल के गेट से पहले बने लॉन म खड़ा हो गया।
उसने दोन हाथ फैलाए और चेहरे को आसमान क तरफ उठा कर ज़ोर से चीख़ने
लगा। उसके मुह ं से लार िगरने लगी, आं ख से पानी बहने लगा। उसक आवाज़
लगातार बढ़ रही थी। न जाने वो िकससे और या कहना चाह रहा था। ख़ुद से वो
या बताना चाहता था? उसक आवाज़ इतनी तेज़ थी िक पूरा अ पताल िहल
गया। सब दौड़ कर बाहर आ गए। पहली बार अ फ़ाक़ उ ा क ऐसी हालत देख
कर ि पुरारी, गौतम, िविकपी डया और रमाकांत डरे-सहमे बस दरू खड़े थे। िकसी
क िह मत नह थी िक अ फ़ाक़ के क़रीब जा सके। अ फ़ाक़ के अंदर चल रहे
भूचाल से सब कांप गए। सबने ि पुरारी को आगे बढ़ाया। सहमे हुए ि पुरारी ने
जाकर धीरे से अपने साहब को आवाज़ लगाई। अ फ़ाक़ एकदम से ख़ामोश हो
गया। िफर ि पुरारी क जेब से माल िनकाल कर मुह ं क लार और आं ख का
पानी प छते हुए शा तर मु कुराहट लए वॉड क तरफ चल िदया। डॉ टर, नस,
टाफ और तमाम लोग क भीड़ लगी थी। अ फ़ाक़ अपने अंदाज़ म लौटा और
बोला, ‘कोई टपका गया चांद के टु कड़े को, अब झेलो एक और बवाल। बहुत
खराटा लेने का शौक है न!’
अ फ़ाक़ ने डॉ टर से पूछा, ‘कोई ग़लत इंजे शन तो नह लग गया?’
डॉ टर च क गया, ‘आप देख तो रहे ह पूरी बॉडी म लैक नग है और ये सोने
चांदी के स े , ये पेपर जो छाती से चपका है—इ स ए सिपल केस ऑफ़
पॉयज़ नग, बाक तो पो टमॉटम बताएगा।’
तभी कैमरामैन सटू दबु े और मु ालाल वॉड म पहुच
ं े।
अ फ़ाक़ ने मु ालाल को ताक द क , ‘ये िबहार वाला अ पताल नह है, जहां
जो चाहे घुसता चला आए और अपनी टीआरपी बढ़ाने लगे।’
मु ालाल ने अ फ़ाक़ को समझाया िक ख़बर वो फ़ोन पर ेक कर चुका है, बस
िवजुअल और बाइट लेनी है। अ फ़ाक़ ने े कग का नाम सुन कर मुह
ं बनाया तो
मु ा ने उसे िफर समझाइश दी िक सबको पता चल चुका है। अब जो पता चल
चुका है उसक रपो टग म कोई िद त नह है। कानाफूसी अभी हो ही रही थी िक
अ फ़ाक़ के मोबाइल पर एसएसपी शैलेश कृ णा का फ़ोन आ गया। अ फ़ाक़
मोबाइल पर ‘जय हद सर’ कहकर बाहर िनकल लया।
अब मौक़ा-ए-वारदात पर सटू का कैमरा और मु ालाल क सनसनी शु हो
गई: ‘लाश को ज़रा गौर से दे खए! बॉडी काली पड़ चुक है। िकसी बेरहम ने
नुक ली िपन से लाश के सीने पर पेपर लगा िदया है। पेपर पर हद ु तान
रप लकन एसो सएशन लखा हुआ है। लाश पर चांदी और सोने के स े भी
िबखरे हुए ह। ये लाश िकसी और क नह , उस चांद खुतरा क है जो दो िदन से
अ पताल म भत था और रािबया बसर क फूफ का लड़का था। काकोरी म एक
के बाद एक, दो क़ ल हो गए और क़ ल करने वाला हैवान पु लस क पकड़ से
बाहर है। कैमरामैन सटू दबु े के साथ सीसीटीवी यूज़ के लए काकोरी से
मु ालाल प कार क पेशल इ वे टगेिटव रपोट।’
फ़ोन पर एसएसपी क लताड़ सुनने के बाद जैसे ही अ फ़ाक़ वॉड म वापस
आया, उसने ख़ुद मु ालाल का माइक अपने मुह
ं पर लगा लया और सवाल पूछने
को कहा। सटू ने कैमरा ऑन िकया। मु ालाल ने सवाल िकया, ‘सर कैसा लग
रहा है?’
अ फ़ाक़ बोला, ‘ऐसा लग रहा है जैसे मडर हो गया है चांद का।’
मु ालाल ने दस ू रा सवाल िकया, ‘ हद ु तान रप लकन एसो सएशन का पचा
और सोने-चांदी के नकली स े —इ ह देखकर या लगता है?’
अ फ़ाक़ ने जवाब िदया, ‘ये सुराग ह, जो क़ा तल ने िदए ह।’
मु ालाल ने िफर पूछा, ‘ या रािबया बसर के क़ ल से इस क़ ल का कोई
कने शन है, य िक चांद को क मीर के नंबर वाले मामले म आपने दो िदन पहले
िहरासत म लया था, या कुछ और वजह है?’
अ फ़ाक़ ने िबना देरी िकए कहा, ‘रािबया बसर के क़ ल के बाद जो गाड़ी हम
मौक़े से िमली थी, उसका इंजन और चे चस नंबर चांद ने ही बदलवाया था। वो
नंबर मोटरसाइिकल का नह ब क कार का था, और ये कार क मीर के अनंतनाग
ड ट ट के महरम गांव म रहने वाले िकसी स ाद अहमद भट के नाम पर
र ज टड है।’
‘आपने चांद से पूछताछ क ?’ मु ालाल ने आ ख़री सवाल दागा।
अ फ़ाक़ ने िफ िदखाई, ‘कल पूछताछ क थी…पूछताछ के दौरान ही
कै सूल खाकर ख़ुदकुशी क को शश क थी, लेिकन हमने उसे बचा लया था।
बाक आप डॉ टर और टाफ से भी पूछ सकते ह।’
मु ालाल ने अ फ़ाक़ के बगल म ही खड़े डॉ टर के मुह
ं के आगे माइक लगा
िदया, ‘सर खुतरा क हालत कैसी थी? वो ख़ुदकुशी य कर रहा था?’
डॉ टर बोला, ‘म भी पूछताछ के दौरान साथ ही था। सबकुछ हमारी आं ख के
सामने हुआ। चांद जवाब नह दे रहा था, पु लस थोड़ा स ती से पेश आ रही थी।
चांद लगातार धमक दे रहा था। बात करते-करते उसने ताबीज़ तोड़ कर ख़ुद को
मारने क को शश क । हो सकता है उसे लग रहा हो िक वो फंस चुका है या िफर
हो सकता है िक उसे अहसास हो चुका हो िक कोई उसे मार डालेगा।’
‘ऐसा तो आतंकवादी करते ह,’ मु ालाल धीरे से बोला।
अ फ़ाक़ ने मु ा क आं ख म देखा, ‘यही सबसे इंपॉटट ू ह। रािबया का मडर,
ा ठाकुर का ग़ायब होना और िकसी टेरे र ट क तरह चांद के सायनाइड खाने
क को शश बताती है िक इसम टेरर एं गल है।’
***
अ फ़ाक़ उ ा िब मल का जो इंटर यू अभी तक काकोरी के जला अ पताल म
शूट हो रहा था, अब वो टीवी पर चल रहा था। ये टीवी कह और नह ब क
सरकार के चीफ से े टरी आनंद मोहन राय के ऑिफस म चल रहा था। ऑिफस
क राउं ड टेबल पर चीफ से े टरी के साथ डीजीपी बृजलाल कुल े , लखनऊ के
एसएसपी शैलेश कृ णा और बाक तमाम पु लस अफ़सर और यूरो े स बैठे थे।
सब के सब इस टीवी रपोट को यान से देख रहे थे। चीफ से े टरी आनंद मोहन
ने टीवी ऑफ़ कर िदया और सीधे मु े पर आ गए, ‘हां तो िम टर डीजीपी, आपको
इसम कोई टेरर ए टिवटी का इं ेशन िमल रहा है या हम बेवजह इसे सी रयसली
ले रहे ह?’
डीजीपी बृजलाल बोले, ‘सर रािबया बसर केस के बाद से अभी तक हम कोई
इंटे लजस इनपुट तो नह िमला है। इ फै ट, िपछले पांच-छह महीने से िकसी
एजसी ने कोई िटप ऑफ़ भी नह िदया है हमको।’
एसएसपी शैलेश कृ णा ने डीजीपी और चीफ से े टरी क तरफ ख़ िकया,
‘सर, मे बी इ स ए सी रयल िक लग! या हो सकता है रािबया केस म कोई ऐसा
श स इ वॉ व हो जो िकसी मॉ ूल का लीपर सेल हो और बेवजह इस केस से
लाइम लाइट म आ गया हो, य िक चांद खुतरा क कह कोई िह टी तो है नह ।
रेप और मडर केस म अंगद यादव अंदर है। बस इसम ये सायनाइड फै टर
िम टी रयस है, सर।’
डीजीपी बृजलाल ने चीफ से े टरी आनंद मोहन को तस ी दी, ‘सर, सारे
डाउ स ि यर करने के लए मने एटीएस चीफ दगु ा शि ठाकरे को इ वे टगेशन
दी है। शी िवल ह डल िदस केस नाऊ।’
इसी बीच चीफ से े टरी आनंद मोहन के पीएस ने एटीएस चीफ के आने क
ख़बर दी। आनंद मोहन ने फ़ौरन अंदर भेजने को कहा। अंदर आकर पूरी वद म
आईपीएस दगु ा शि ठाकरे ने से यूट के साथ परिमशन मांगी, ‘मे आई, सर!’
आनंद मोहन और बृजलाल कुल े ने हंसते हुए उसे अंदर आने को कहा।
अंदर आते ही एसएसपी शैलेश कृ णा खड़े हो गए। डीजीपी ने सभी से बैठ जाने को
कहा, ‘हां तो दगु ा, हम कह रहे थे िक ये सफ लोकल ाइम है, अदरवाइज़
एजसीज़ का इनपुट अब तक ज़ र िमलता। बस एक सायनाइड वाला पॉइंट ही
टॉ ग है।’
दगु ा बोली, ‘सर इनपुट हो न हो, दो-तीन पॉइं स बहुत ज़ री ह—पहला
क मीर से 370 हटी है, दसू रा सु ीम कोट से राम मंिदर के फेवर म डसीज़न हुआ
है। सर, हो सकता है िक िकसी टेरे र ट ुप ने िकसी ए टिवटी का लू ट
फ़ाइनल िकया हो और इसी बीच रािबया बसर केस हो गया हो। चांद खुतरा केस म
फंस रहा था, इस लए उसने सायनाइड टाय मारा, बट अवर पोलीस से ड िहम।
देन उसके िकसी काउं टर पाट ने उसक अं तम इ छा पूरी कर दी। बट
सायनाइड…सर सायनाइड, इ स नॉट से रडॉन क सरदद वाली गोली सर,
इ स वैरी-वैरी सी रयस इ य!ू कहां से आया सायनाइड? कौन लाया? मला मािहत
नाही, सर।’
डीजीपी ने हंसते हुए दगु ा क तरफ देखा, ‘एसएसपी तु ह डटे स दे दगे,
लेिकन आई एम योर िक शैलेश कृ णा को मराठी नह आती।’
दगु ा ने सभी को हंसते हुए देखा और फ़ौरन जवाब िदया, ‘हऊ सर! नो ॉ स,
बट आपके पास आने से पहले वी व ड ऑन इट। पहले रािबया बसर का मडर
हुआ। एकॉ डग टू फॉर सक रपोट बॉडी म सीमेन और कन- लड मै चग वॉज़
परफे ट टु ो अंगद यादव िबहाइंड द बास…’
एसएसपी शैलेश कृ णा बीच म बोले, ‘एक मोटरसाइिकल भी पॉट पर िमली थी
जो अंगद ने काकोरी थाने से चुराई थी। वो बाइक उसने कबाड़ी को बेची, कबाड़ी
ने काकोरी के लोकल ै कस होलसेलर को बेच दी थी…’
दगु ा शि ठाकरे ने शैलेश कृ णा क बात को आगे बढ़ाया, ‘और ै कस
होलसेलर मेवालाल एं ड संस के नौकर फुलझड़ी से मोबाइक रािबया के मडर केस
के पहले छीन लया गया था। चांद खुतरा ने ओ रजनल इंजन और बॉडी नंबर
इरेज़ कराया और उस पर क मीर क एक कार का नंबर री- ट िकया गया। कार
का मा लक स ाद अहमद भट है, जो ड ट ट अनंतनाग के महरम िवलेज का
रेिज़डट है।’
डीजीपी बृजलाल कुल े सोचते हुए बोले, ‘दगु ा हू इज़ िदस क मीरी बॉय
स ाद भट? सच म इसका केस से कोई कने शन है या कैजुअली एक कार का
नंबर िमला और मोबाइक पर छाप िदया?’
दगु ा शि इ फॉमशन छुपाते हुए ज़ोर से हंसी, ‘हे कसे होऊ शकते सर, स ाद
भट का कने शन हो या न हो, लेिकन उसके नंबर का कने शन तो काकोरी जाकर
ही पता चलेगा। वी आर ऑन इट, सर। बहुत सारी डटे स ह जो ि मे यो रली
शेयर नह कर सकती आपसे। िगव मी सम टाइम। लेट मी रीच देयर, ज दी बताती
हू,ं सर।’
आनंद मोहन राय ने पूछा, ‘बट ये चांद खुतरा क बॉडी पर हद ु तान
रप लकन एसो सएशन और कग शप के स का या इशारा है?’
दगु ा शि ने जवाब िदया, ‘सर, कोई हमारे साथ वी डयो गेम खेल रहा है—कभी
मोबाइक पर क मीर का नंबर, कभी हद ु तान रप लकन एसो सएशन और ये
कग शप कॉइ स डॉप करके वो पु लस को कं यूज़ करना चाहता है तािक हम
उलझे रह िक इज़ इट ए सपल मडर सी वस ऑर इज़ देयर ए टेरे र ट
आउटिफट िवद एन इं डयन नेम, लाइक इं डयन मुजािहदीन, जसे रयाज़
भटकल ने बनाया था।’
डीजीपी बृजलाल ने दगु ा क तारीफ क , ‘गुड दगु ा! बाक चांद खुतरा के साथ
या हुआ, ये तो तुम को पता ही है। हमारा इं पे टर अ फ़ाक़ उ ा िब मल तु ह
वहां िमलेगा, उसी ने सारा केस ै क िकया है। ही वॉज़ व कग ऑन इट, लेिकन
बीच म चांद खुतरा का मडर हो गया।’
अ फ़ाक़ उ ा से हमेशा नाराज़ रहने वाले एसएसपी शैलेश कृ णा ने भी डीजीपी
क बात आगे बढ़ाई, ‘मैम ही इज़ वैरी शाप पु लसमैन। डट माइंड, बट काम करने
का उसका अपना अलग टाइल है। थोड़ा हक -पक करता रहता है। अंगद यादव
को जेल भेजने के बाद भी अ फ़ाक़ ने केस को थरली इ वे टगेट िकया—गाड़ी,
चांद, अनारकली—ईवेन ा ठाकुर क िम सग पर भी वो काम कर रहा है। ही इज़
एन इंट टग ीचर।’
दगु ा सी रयस हुई, ‘ ा ठाकुर इस केस म सबसे डफरट एं गल है। वी आर
ऑलरेडी ऑन इट। बट सर, लखनऊ, अयो या, फैज़ाबाद से हम इंटे लजस
इनपुट लेने चािहए य िक हो सकता है कोई ुप अपने लीपर से स ए टव कर
रहा हो। अयो या स सिटव है, सर।’
‘हां पॉइंट तो है, लेिकन अगर सफ लोकल ाइम है तो इसे बहुत हाइप देने क
ज़ रत नह है। बेवजह टेट म अनरे ट होगा। वैसे भी अपो जशन हर बात का
बतंगड़ ही बना देता है, सो ह डल इट वैरी केयरफुली,’ सबकुछ सुन रहे चीफ
से े टरी आनंद मोहन ने राय दी।
डीजीपी ने कहा, ‘नो डाउट, अयो या एं गल इज़ वैरी स सिटव, और ा
अयो या से ही है। हम एजसीज़ से बात करते ह, लेिकन तुम 9 अग त अपने
िदमाग़ म रख लो—काकोरी एिनवसरी है, और आज का िदन एड कर लो, तो सफ
चार िदन बचे ह उसम, दगु ा।’
अपने अफसर को भरोसा िदलाते हुए दगु ा शि ठाकरे उठी और से यूट मार
कर बाहर िनकल गई। दगु ा मुब
ं ई के दादर क रहने वाली थी। बचपन म दगु ा ने ‘क’
से कबूतर नह ब क ‘क’ से क यू पढ़ा था। वो हमेशा कहती थी िक उसे कूल
जाना है लेिकन उन िदन घरवाले बताते थे िक कूल बंद है, अभी क यू लगा है।
जस उ म आज के ब े एवजस सीरीज़ के खलौने ख़रीदने क िज़ करते ह,
उस उ म दगु ा के साथ पढ़ने वाले ब े िकसी दाऊद इ ािहम के बारे म बहुत बात
करते थे। बड़ी हुई तो 26/11 के मुब
ं ई हमल ने दगु ा को सफ नाम से नह , ब क
काम से दगु ा शि बनने का हौसला िदया। बैच क आईएएस टॉपर, मगर
आईपीएस ऑ ट िकया। ढाका, कुवैत और क मीर म दगु ा ने कई इंटे लजस और
एं टी टेरे र ट ऑपरेशस
ं को अंजाम िदया। िफलहाल यूपी म ऑन डे युटेशन
एटीएस चीफ, दगु ा शि के रकॉड म अब तक सात-आठ मेड स थे। वो हर बार
मेडल पर अपना नाम लख कर ख़ुद को भरोसा िदलाती िक वो िफर एक बार जीत
गई और टेरे र ट एक बार िफर हार गया। उसका नेटवक टॉ ग था और कई बार
काम पूरा होने तक वो डटे स शेयर भी नह करती थी। िज़ ी, चालाक, गु सैल—
बस एक पॉइंट पर हमेशा कं यूज़ िक आ ख़र हर बार एक मुसलमान ही टेरे र ट
य िनकलता है। वद बदल कर जी स और टी-शट म दगु ा काकोरी क तरफ
िनकल पड़ी। दगु ा क टीम म सब इं पे टर स मान सह और देव त सोमवंशी भी
शािमल थे।
***
काकोरी सरकारी अ पताल के बाहर इं पे टर अ फ़ाक़ उ ा िब मल फ़ोन पर
डीजीपी से बात कर रहा था। वो काफ़ सी रयस था। आ ख़र वही हुआ जसका
उसे अंदाज़ा था। अ फ़ाक़ को इंफॉम कर िदया गया िक अब पूरे केस का
इंवे टगेशन एटीएस चीफ दगु ा शि करेगी। अ फ़ाक़ फैसले से ख़ुश नह था।
उसक नाख़ुशी का अंदाज़ा लगा कर डीजीपी ने अ फ़ाक़ को तस ी दी िक वो भी
एटीएस टीम के साथ काम करेगा। असल म अ फ़ाक़ को डीजीपी क नज़र म
अपने नंबर कम होने का टेशन था, मगर ख़ुद पर भरोसा भी था िक साम-दाम-
दंड-भेद का जुगाड़ िफट करके वो दगु ा को भी डीजीपी क तरह सेट कर लेगा।
थोड़ी ख़ुशी, थोड़े ग़म वाले मूड म अ फ़ाक़ िफर अ पताल के उस वॉड म घुस
गया जहां चांद क लाश पड़ी थी। अ फ़ाक़ ने ि पुरारी को डीजीपी का ऑडर
सुनाया और बताया िक जब तक एटीएस क टीम नह आ जाती, चांद क लाश
पो टमॉटम के लए नह भेजी जाएगी। ि पुरारी और अ फ़ाक़ क बात चल ही रही
थी िक दो-तीन लोग वॉड म घुसे। अ फ़ाक़ ने तीन को फ़ौरन बाहर जाने को कहा।
असल म ये दगु ा शि ठाकरे थी। अ फ़ाक़ उ ा िब मल उसे जी स टी-शट म
पहचान ही नह पाया। सब-इं पे टर स मान सह और देव त भी सिवल डेस म
थे। दगु ा ने अ फ़ाक़ क वद पर लगी नेम लेट हाथ से पकड़ कर पढ़ी, ‘कसा
आहेस अ फ़ाक़ उ ा िब मल? मी दगु ा, अ धक मािहती साठी डीजीपी साहेब ला
संपक करा।’
अ फ़ाक़ उ ा ने फ़ौरन से यूट मारा, ‘जय महारा , सर!’
दगु ा शि ज़ोर से हंस दी, ‘लेट इट बी जय हद, अ फ़ाक़।’
‘ि पुरारी फ़ौरन गमागरम चाय ला,’ अ फ़ाक़ ने म का लगाया।
दगु ा बोली, ‘ि पुरारी वॉड खाली करा, लउकर!’
काकोरी थाने क पु लस आनन-फानन म अ पताल से लेकर वॉड तक लगी
भीड़ को कपस से खदेड़ कर बाहर करने लगी। उधर स मान सह ने लाश के
फ़ोटो ा स लेना शु िकया। दगु ा शि ने अपनी पैनी नज़र से चांद खुतरा क
लाश को हर एं गल से देखा। कैमरा फेल हो सकता था, मगर दगु ा के कॉ नया से
गुज़र कर रेिटना म जो त वीर क़ैद होती, उसका रेज़े यूशन एचडी वॉ लटी होता
था। देव त ने ल स पहने। लकर से चांद के सीने म घुसी हुई िप स बाहर
िनकाल और उ ह एिवडस पाउच म बंद कर िदया। चांद खुतरा के चे ट पर चपके
जस पेपर पर हद ु तान रप लकन एसो सएशन लखा था, उसे भी टां पेरट
फ़ाइल म सील कर िदया गया। देव त कग शप के स े एिवडस िज़पर म रख रहा
था, तभी दगु ा ने लाश पो टमॉटम के लए भेजने को कहा। चांद क बॉडी सील
करके ए बुलस म पो टमॉटम के लए रखी गई। दगु ा ने अ फ़ाक़ क तरफ देखा
और बोली, ‘स मान और देव त काकोरी म रहगे अ फ़ाक़। तुम बॉडी के साथ दो
लोग पो टमॉटम हाउस भेजो, फा ट। ड ट मेक एनी डले, मुझे दो घंटे म ही रपोट
चािहए। पूरा वॉड सील कर दो, एक भी चीज़ इधर से उधर नह होगी।’
अ फ़ाक़ ने रमाकांत और गौतम को ए बुलस म साथ जाने का इशारा िकया
और िविकपी डया से वॉड सील करने को कहा। अ फ़ाक़ क बात सुनकर साथ म
खड़े डॉ टर ने फ़ौरन वॉडबॉय से ताला मंगाया और वॉड सील कर िदया गया।
डॉ टर ने चाबी दगु ा शि क तरफ बढ़ाई। दगु ा ने चाबी अ फ़ाक़ उ ा को थमा
दी। िफर उसने ि पुरारी क तरफ देख कर आवाज़ लगाई, ‘ि पुरारी, ला तो ज़रा
गरम चाय, एकदम पेशल!’
इतने म मु ालाल प कार ने एं टी मारी, ‘मेरे लए भी एक ईमानदार चाय।’
अ फ़ाक़ ने दगु ा शि से मु ालाल को इंटो ूस कराया, ‘मैडम ये ह सीसीटीवी
यूज़ के सनसनीखेज़ एडीटर, मु ालाल जन ल ट।’
दगु ा ने फ़ज़ माइल दी।
मु ालाल बे झझक बोला, ‘मैडम पूरे काकोरी म सफ एक ही सीसीटीवी है।’
दगु ा बोली, ‘यस, आई नो। सारा लोग तेरे से ही ख़बर मांगता। जो चािहए मु ा
को बोलो, आता पॉइंट वर ये मु ा, लउकर…’
मु ा क यूज़ हो गया, ‘म अंडर टड नह कर पाया मैडम।’
‘रे बाबा बोलो कइसा आना हुआ? या पॉइंट है?’ दगु ा ने हंस कर पूछा।
मु ालाल प कार नवस हो गया, ‘बस मैडम सोचा आपने केस ह डल कर लया
है, तो चांद के मडर पर एक इंटर यू ले लेता आपका।’
दगु ा फ़ौरन बोली, ‘तेरे को सा ा कार िदया न अ फ़ाक़ अबी? कुछ नया होता
तो बताती, अपना नंबर दे दे, संपक करती म।’
मु ालाल ख सयाकर कैमरामैन सटू दबु े के साथ वापस चल िदया। काकोरी
थाने के पु लस वाल को समझ म नह आ रहा था िक वो दगु ा शि को अपना
बॉस मान या अ फ़ाक़ को। सबने ये फैसला लया िक िदल और इराद म उनका
बॉस सफ और सफ अ फ़ाक़ उ ा िब मल ही है। कु सयां लगा कर दगु ा शि
और अ फ़ाक़ अ पताल के कपस म बैठे थे। दगु ा ने अ फ़ाक़ से रािबया मडर केस
के शु से आज तक के सारे डटे स ड कस िकए। चाय पीते-पीते अ फ़ाक़ उ ा
ने दगु ा शि ठाकरे को सबकुछ बताया।
दगु ा ने सवाल िकया, ‘ ा ठाकुर के बारे म कुछ पता िकया या?’
अ फ़ाक़ बोला, ‘थड पाट के नंबस पर नज़र है, जैसे ही इन पर कोई नया नंबर
कॉल करेगा, हम उस पर नज़र रखगे। हो सकता है एक-दो नंबर लाइंड लग जाएं ,
पर कोई तो ऐसा नंबर होगा जस पर ा नए नंबर से कॉ टे ट करेगी, या िफर
ा का कोई िमलने वाला उसे कॉ टे ट करेगा। थोड़ा इंतज़ार क रए मैडम—
जाल िबछा िदया है, मछली जैसे ही फंसेगी, हम इस केस म कोई न कोई नई लीड
ज़ र िमलेगी।’
दगु ा शि के माथे पर थोड़ी शकन थी। उसे समझ म आ चुका था िक ा
ठाकुर क लीड ही इस केस म सबसे इंपॉटट है। थोड़ा सोचते हुए दगु ा ने अ फ़ाक़
को कुरेदा, ‘ ा के र तेदार और िमलने वाल के बारे म कुछ पता िकया? माने
िफज़कली चेक िकया पु लस ने?’
अ फ़ाक़ ने पूरे कॉ फडस से जवाब िदया, ‘अयो या, लखनऊ, कानपुर,
इलाहाबाद और आज़मगढ़ म उसके तमाम र तेदार रहते ह। डीजीपी साहब से
कहकर हर जगह पु लस भेजी, लेिकन कह भी ा और उसक फैिमली ने कोई
कॉ टे ट नह िकया। ये सब हमारे रडार पर ह। अयो या टेशन पर उसके पापा
का फ़ोन वच ऑफ़ हुआ था, पर टेशन से भी कुछ पता नह चला। बस एक
शक है िक क़ ल क रात रािबया बसर से आधा घंटा उसने बात क , िफर वो
फैिमली के साथ भाग गई।’
‘ या लगता है अ फ़ाक़, ज़दा तो है न ा?’ दगु ा ने थोड़ा परेशान होते हुए
पूछा।
अ फ़ाक़ ने उसक िफ दरू क , ‘दो सौ परसट ज़दा है वो!’
दगु ा को थोड़ा अजीब लगा और उसने पूछा, ‘इतना योर कैसे हो?’
अ फ़ाक़ ने पु लस योरी बताई, ‘मैडम पूरी फैिमली िम सग है; अगर वो ज़दा
नह है, तो िफर चार म से कोई भी ज़दा नह है।’
दगु ा का िदमाग़ तेज़ी से चल रहा था। उसके मन म लगातार सवाल आ रहे थे।
या ा िकसी ऐसे मामले म इ वॉ व है, जसके खुल जाने से उसक पूरी
फैिमली ख़तरे म आ जाएगी? या, ा ख़ुद िकसी िमशन को लीड कर रही है और
िफलहाल फैिमली के साथ अंडर ाउं ड हो गई है? ा को लेकर उठ रहे इन
सवाल के पीछे दगु ा के मन म दो मज़बूत वजह थ —पहली, रािबया केस के बाद
वो भागी य ? दस ू री, ा ठाकुर का अयो या कने शन। सु ीम कोट का फैसला
आने के बाद अयो या स सिटव भी था। अ फ़ाक़ ने बताया िक ा लड़िकय क
तरह रहती ही नह थी। उसके घर पर जब रेड क गई, तो वहां िमली तमाम चीज़
से साफ़ पता चलता है िक ा क पसने टी क र हदवू ादी टाइप है। चांद क
लाश पर जो कग शप स े िमले, वो भी ा ठाकुर ने ही बनाए थे। अ फ़ाक़ क
बात सुनते ही दगु ा शि , अ फ़ाक़ उ ा के साथ ा ठाकुर के घर चल दी। घर
पहुच ं ते ही दोन सीिढ़य से ा के म पर पहुचं े। दरवाज़े पर लगा ताला और
कंु डी टू टी पड़ी थी। अ फ़ाक़ उ ा ये देख कर च क गया। अब ये कंफम था िक
िकसी ने ताला तोड़कर ही स े चुराए थे। अ फ़ाक़ ने उढ़का हुआ दरवाज़ा धीरे
से खोला। दगु ा ने अपनी िप टल िनकाल कर कॉक कर ली। अ फ़ाक़ के दरवाज़ा
खोलते ही दोन च क गए। दरवाज़े के पास टू टा हुआ ताला और कग शप का एक
स ा पड़ा था। अ फ़ाक़ ने स ा उठा लया। उसने दगु ा को बताया िक िपछली
रेड म भी पु लस ने दरवाज़े का ताला तोड़ा था और बाद म नया ताला लगा िदया
था। अ फ़ाक़ और दगु ा हर तरफ नज़र दौड़ा कर पूरे घर क तलाशी लेने लगे।
अलमारी म चं शेखर आज़ाद, भगत सह, सुभाष चं बोस क मू तयां, मू तय क
डाई, े और टेराकोटा के े यू स वैसे ही रखे थे, जैसे वो िपछली बार छोड़ गया
था। बस कग शप के सारे स े ग़ायब थे। अ फ़ाक़ बोला, ‘लगता है िक चोर जाते
व त धोखे म ताला चाबी और स ा यह छोड़ गया है।’
दगु ा बोली, ‘हो सकता है जानबूझ कर स ा छोड़ िदया हो।’
अ फ़ाक़ ने हां म सर िहलाया, ‘जी, ये भी हो सकता है।’
दगु ा ने अ फ़ाक़ को डांटा, ‘जब रािबया केस के बाद से ा ग़ायब है तो यहां
पर कोई पु लस वाला स यो रटी म य नह लगाया?’
अ फ़ाक़ उ ा िब मल के पास कोई जवाब नह था, ‘मैडम, सच म ग़लती हो
गई।’
दगु ा ग़ु से म बोली, ‘साला िदमाग़ तो कह रहा है िक ा घर आई और स े
लेकर चली गई। हो सकता है उसी ने रािबया और चांद खुतरा का क़ ल िकया हो,
तभी तो वो स का ू छोड़ गई है।’
अ फ़ाक़ हंसा, ‘आपको भी लगता है िक ा ने ही ऐसा िकया होगा?’
‘मतलब? कोई और भी लगता है या?’ दगु ा ने सवाल िकया।
अ फ़ाक़ बोला, ‘हां, मेरे कई सपािहय को लगता है। मेरे अंदर के पु लस वाले
को भी कभी-कभी ऐसा ही लगता है। बस अपो जशन पाट वाल को ये लगता है
िक इसम हद-ू मु लम एं गल है।’
दगु ा ने िदमाग़ पर ज़ोर डाला, ‘ या नाम था उस एसो सएशन का?’
अ फ़ाक़ उ ा बोला, ‘ हद ु तान रप लकन एसो सएशन।’
दगु ा ने अंदाज़ा लगाया, ‘मे बी ा ठाकुर इज़ ऑन ए िमशन।’
अ फ़ाक़ च क कर बोला, ‘ ा क पसनै लटी हदवू ादी देशभ जैसी तो है
और वो हद ू है भी। जस तरह से ग़ायब है, कह सकते ह िक वो मुसलमान को ही
मार रही है, लेिकन िकन मुसलमान को? मान लया िक चांद टेरे र ट था और उसे
ा ने मार िदया, तो या रािबया बसर भी आतंकवादी थी? ा ने रािबया को
भी इसी लए मार डाला?’
दगु ा बोली, ‘आई एम नॉट योर अ फ़ाक़, लेिकन तुम मु लम होकर ा
ठाकुर के फेवर म अइसा पॉिज़िटव कैसे सोच सकता है?’
अ फ़ाक़ मु कुरा कर बोला, ‘मुब
ं ई के दंगे और 26/11 झेलने के बाद आप भी तो
मुसलमान के बारे म पॉिज़िटव ही सोचती ह न मैडम।’
दगु ा ने अ फ़ाक़ क मु कुराहट का जवाब मु कुरा कर िदया और िफर बोली,
‘बहुत रीसच िकया मेरे बारे म तू, पन तुझे या मालूम म या सोचती?’
‘रीसच तो चेहर क होती है मैडम। िकसी को नह पता साला िदमाग़ या बक-
बक कर रहा है और चेहरा या बोल रहा है,’ अ फ़ाक़ बोला।
दगु ा ने बात बदली, ‘तो तुम को लगता है ा इनोसट है?’
अ फ़ाक़ ने दलील दी, ‘ ा का नाम रािबया बसर होता तो कभी नह लगता
िक वो इंनोसट है। नाम से ही तो नतीजे िनकलते ह आजकल।’
‘कोई पॉइंट है तु हारे पास जो कहे िक ा इंनोसट है?’ दगु ा ने िफर पूछा।
अ फ़ाक़ ने बात आगे बढ़ाई, ‘एक वाइंट है और बहुत मज़बूत वाइंट है—
क मीर का इंजन और चे चस नंबर तो चांद ने िदया न मैडम। वो ू चांद ने िदया।
उसके बाद िफर से चांद को ू देने क या ज़ रत थी? या वो ा से ू - ू
खेल रहा था िक मने ू दे िदया है, अब आपक बारी है, आइए मुझे मार डा लए
और अपना ू दी जए!’
दगु ा ने अपना तक िदया, ‘ य िक चांद ने नंबर िदया, िफर सायनाइड खाने क
को शश क ; यू कैन से िक ूव कर िदया िक वो टेरे र ट टाइप कुछ है। बस ा ने
अपना अगला िनशाना चांद पर लगाया, सपल।’
अ फ़ाक़ ने एक बार िफर अपना तक रखा, ‘तो िफर रािबया बसर को य
मारा? रािबया क लाश के पास चांद ने य क मीर का नंबर ू िदया? वाइंट तो
ये भी है िक ा कुछ जानती है या िफर उसने कुछ ऐसा देखा है जससे उसे ख़ुद
क जान का ख़तरा हो, इस लए पूरी फैिमली के साथ छुप गई है कह ।’
‘आई डो ट नो, वी आर ज ट लेइगं िबटवीन गेस एं ड गट फ ल स। कह कोई
पच तो है, जो खुलना बाक है। ये पच ा ठाकुर ही खोल पाएगी…सी रयसली,
म बहुत कं यज़ू हू।ं ’ दगु ा बोली।
अ फ़ाक़ ने दगु ा शि को तस ी दी, ‘हो जाएगा मैडम, सब सेटल हो जाएगा।
िफ छोड़ दी जए, हम साथ िमलकर सॉ व कर लगे।’
दगु ा ने टॉिपक बदला, ‘चांद का मडर होते ही तुमने स े पहचाने थे?’
‘जी, तुरत
ं पहचान गया था,’ अ फ़ाक़ बोला।
दगु ा ने माथा पीटा, ‘िफर ा के घर पर दोबारा रेड य नह िकया?’
अ फ़ाक़ ने सफाई दी, ‘वो डीजीपी साहब का ऑडर था िक केस एटीएस को
ह डल करना है; िकसी भी एिवडस को टच भी नह करना है, इस लए।’
दगु ा ने अफसोस जताया, ‘चांद के मडर का ाइम सीन अनट ड रखने को
बोला था, डीजीपी साहेब थोड़ा जासती समझ लया।’ िफर उसने अ फ़ाक़ के
हाथ से स ा ले लया, ‘चलो छोड़ो, ये बताओ अ फ़ाक़ िक तुमने रेड का डटेल
तो लखा होगा…यहां से और कुछ तो ग़ायब नह है? मतलब कोई ऐसी चीज़ जो
पहले हो और अब नह है।’
अ फ़ाक़ ने अलमारी को िफर टटोला और हर तरफ देखने के बाद अ फ़ाक़
उ ा हैरान परेशान हो गया, ‘मैडम, ा ठाकुर ने टैराकोटा का जमन माऊज़र भी
बनाया था, वो ग़ायब है। और हां, 8 डाउन काकोरी पैसजर का िमिनएचर मॉडल
भी ग़ायब है।’
दगु ा शि ठाकरे ने स मान सह को फ़ोन लगाया और ऑडर िकया, ‘स मान
िवदआउट वे टग एनी टाइम, कं यूटर पर एक पो टर डॉ करो। पो टर म ा
ठाकुर और उसके फैिमली का फ़ोटो लगाओ। मेरा और अ फ़ाक़ का मोबाइल नंबर
भी ट कर दो। लखो, “िकसी के पास भी कोई भी इ फॉमशन हो तो दोन म से
िकसी भी नंबर पर कॉ टै ट करे। इ फॉमशन शेयर करने वाले का नाम सी े ट
रखा जाएगा।” मेरे को पो टर अयो या, लखनऊ, फैज़ाबाद—सभी जगह मांगता,
बर?’
अ फ़ाक़ ने कहा, ‘मैडम, काकोरी म भी चपका देते ह पो टर।’
दगु ा ने अ फ़ाक़ का मज़ाक़ उड़ाया, ‘वैरी इंपॉटट सजेशन अ फ़ाक़, डू यू फ ल
आई एम ए फ़ूल? काकोरी का केस है और हम काकोरी म पो टर नह लगाएं गे
या? मला समझत नाही तू पु लस म कैसे भत हो गया। कॉल ए मी टग एं ड ले स
ए सचज द डटे स, चला चला!’
अ फ़ाक़ उ ा को दगु ा शि का इस तरह मज़ाक़ अ छा नह लगा, लेिकन
िफलहाल उसे ख़ुद पर क़ाबू रखना था। रािबया केस से यादा उसे इस बात क
िफ थी िक कह उसका केस िबगड़ न जाए। एक और चता उसे परेशान कर रही
थी, वो थी भाषा क । अपनी ज़दगी ही नह , पूरी नौकरी म मराठी भाषा से उसका
कभी भी सामना नह हुआ था। हां, ये बात सही है िक सामना अख़बार का नाम
उसने सुना था। अ फ़ाक़ को आज उन लोग पर ग़ु सा आ रहा था ज ह ने व त
रहते महारा को उ र देश म शािमल नह िकया। चलो नह िकया तो नह
िकया, लेिकन हदी भाषा को रा भाषा का दजा अभी तक य नह िदया? मराठी
क मटल मैकेिन स से बाहर िनकल कर अ फ़ाक़ ने िविकपी डया को फ़ोन
िमलाया और बेहद गंदी धमक के साथ कामचलाऊ मराठी का ान इक ा करने
का ऑडर िदया। बात यह ख़ म नह हुई। अ फ़ाक़ ने अगला नंबर ि पुरारी पांडे
को िमलाया और ऑिफस म इमरजसी मी टग के अजट इंतज़ाम करने को कहा।
इसके बाद अ फ़ाक़ दगु ा को गाड़ी म बैठा कर थाने क तरफ चल िदया। रा ते म
दगु ा ने अ फ़ाक़ से अंगद यादव, चांद खुतरा, नसीम पपीतेवाला, मेवालाल एं ड
संस के बेट , फुलझड़ी और मोटरसाइिकल पर नंबर ट करने वाले बाबूराम
बाघमार से जुड़ी एक-एक बात िफर से पूछी। अ फ़ाक़ उ ा िब मल पहले ही सब
बता चुका था, पर इस बार दगु ा सबके पसनल डटेल खंगाल रही थी। वो सबका
िबहेिवयर और आपसी र त के बारे म जानने म यादा िदलच पी ले रही थी।
सबकुछ जानने के बाद दगु ा ने गाड़ी चला रहे अ फ़ाक़ से पूछा, ‘अ फ़ाक़, आर यू
योर, यू आर नॉट िम सग एनी डटेल?’
अ फ़ाक़ ने िदमाग़ पर ज़ोर डाला, ‘नह मैडम, सबकुछ बता िदया।’
दगु ा ने िफर अ फ़ाक़ क तरफ देखा, ‘प ा न, अ फ़ाक़!’
अ फ़ाक़ भी दगु ा क तरफ मुड़ा, ‘मैडम, आपको कुछ ख़ास पूछना हो तो बोल।’
दगु ा ह का सा मु कुराई, ‘तुमने अपने बेट के बारे म नह बताया।’
अ फ़ाक़ च क गया, ‘मेरे बेट का इस केस से या कने शन है, मैडम?’
दगु ा ने गहरी सांस ली, ‘रािबया से दोन बेट का कोई कने शन था?’
अ फ़ाक़ जो भी भूल रहा था, वो उसे फ़ौरन याद आ गया। ‘ओ ह! हां म सच म
भूल गया था। मडर वाली रात रािबया ने अबराम और अफ़ज़ल को भी फ़ोन िकया
था। सभी िमस कॉ स थे, हो सकता है रािबया ने मदद के लए फ़ोन िकया हो। ये
बात मुझे कॉल डटे स आने के पहले ही अबराम और अफ़ज़ल ने ख़ुद बताई थी।
अबराम से रािबया क अ सर बात होती थी य िक रािबया के अ बू, तह वर ख़ाँ
ने ही अबराम को अपनी काकोरी कबाब ऑन लाइन चेन चलाने के लए मकान म
जगह दी और साथ म अपना ड भी िदया है।’
दगु ा बोली, ‘वई तो! िफर बताना य भूल गए अ फ़ाक़? ल य ठे वा! एवरी
माइ ो डटेल इज़ वैरी-वैरी इंपॉटट, इं पे टर साहेब।’
अब अ फ़ाक़ मु कुराया, ‘मैडम ये सारी डटे स रािबया बसर के फ़ोन और
कॉल डटे स म ह, वह से तो आपको भी पता चला है सब। ल य ठे वा दगु ा शि
ठाकरे मैडम, इसे छुपाना नह भूलना कहते ह।’
दगु ा अ फ़ाक़ क मराठी पर हंसी, ‘बर अ फ़ाक़ उ ा बर, डू वन थग—अबराम
और अफ़ज़ल को भी थाने बुला लो, हो सकता है कोई नई िटप ऑफ़ िमल जाए।’
‘मैडम आप सैराट िफ़ म देखे हो?’ अ फ़ाक़ ने हंस कर सवाल िकया।
दगु ा भी हंस कर बोली, ‘हऊ!’
अ फ़ाक़ का अगला सवाल जैसे तैयार था, ‘और लयभारी और दगड़ी चाल?’
‘हां देखी ह,’ दगु ा ने िफर हंस कर जवाब िदया। ‘पर य पूछ रहे हो?’ इस बार
दगु ा ने सवाल िकया।
अ फ़ाक़ हंसा, ‘करन जौहर को बोलो न जैसे सैराट क धड़क बनाई है वैसे ही
लयभारी और दगड़ी चाल हदी म बना द, तो समझ म आ जाए।’
दगु ा समझ गई और ज़ोर से हंस पड़ी, ‘मराठी से ॉ लम होती है न तुमको? तुम
भी मनोज तवारी को बोलो, भोजपुरी को मराठी बनाए।’
***
जीप थाने क तरफ बढ़ रही थी। अ फ़ाक़ ने अबराम को फ़ोन िकया तो पता चला
िक वो अफ़ज़ल को टेशन लेने जा रहा था। अ फ़ाक़ ने अबराम को अफ़ज़ल के
साथ सीधे थाने आने को कहा और बताया िक एटीएस चीफ दगु ा शि ठाकरे,
रािबया मडर केस म उन दोन से बातचीत करना चहती ह। अबराम बोला िक वो
अफ़ज़ल के साथ थाने पहुच ं जाएगा। बातचीत, पूछताछ और हंसी मज़ाक़ के बीच
गाड़ी काकोरी थाने पहुच ं गई। थाने को भीड़ ने घेर रखा था। एटीएस चीफ को देख
कर भीड़ ने नारेबाज़ी शु कर दी, ‘लोिहया जी का एक ही लाल, भूरल े ाल
भूरल
े ाल! ह ा बोलो करो बवाल, भूरल े ाल भूरले ाल! दो-दो ह या बुरा है हाल,
भूरले ाल भूरल
े ाल! भूरल
े ाल भूरल
े ाल!’
िविकपी डया, ि पुरारी पांडे और बाक पु लस वाल ने भीड़ को लािठय से
धकेल कर िकनारे कर जीप को अंदर जाने का रा ता िदया। अ फ़ाक़ उ ा
भूरले ाल को देख कर एकदम लाल हो गया। वो दौड़कर भूरल े ाल के पास पहुच
ं ा,
‘का बे भूर,े िफर आगे से लाल हो रहे हो? पीछे से भी लाल कर का? चलो बहुत
तेज़ी से साइलट मोड पर आ जाओ, वना अइसा पेलगे इस बार िक ज़दगी भर
केवल वाइ ेट करोगे।’
दगु ा शि अ फ़ाक़ के पास आई, ‘ या ती बोलू नका, ये मोचा िवचा हटाओ
यहां से…चलो भागो! पु लस को काम करने दो।’
भूरल
े ाल पूरी तरह पॉ लिटकल हो गया और दगु ा शि क तरफ देख कर बोला,
‘हमारे मुसलमान भाई-बहन के मडर हो रहे ह काकोरी म और एक हद… ू हद ू तो
समझती ह न मैडम? एक क र हदवू ादी ा ठाकुर ग़ायब है, बाक आप ख़ुद
समझदार ह। और इतना तो समझ म हमको भी आता है िक कौन, िकसे और य
मार रहा है।’
दगु ा को ज़बरद त ग़ु सा आ गया, ‘ए चला चला, ये हद-ू मुसलमान का वोटर
ल ट जेब म डाल और इले शन के लए बचा कर रख।’
भूरल
े ाल गुराया, ‘हमारी एक मु लम बहन को नंगा करके मार डाला गया। हमारे
एक मु लम भाई का अ पताल म क ल कर िदया गया। एक हद ु ववादी लड़क
मडर करके भाग गई है, और ये गैया को मैया मानने वाली पु लस सफ मुसलमान
को टेरे र ट बताकर एक पालेिटकल पाट के लए वोट बक का इंतज़ाम कर रही
है।’
दगु ा शि ने भूरल
े ाल का कॉलर पकड़ लया, ‘ यामाइला इतना ज़हर, तुिम
लोग ने यादा कचड़ा कर रखा है देश का। साला पॉ लिट स के लए कुछ भी
करेगा, कुछ भी कहेगा? इतना स सिटव मैटर को हम ह डल कर रहे ह, तू अभी से
जजमटल हो गया? साला मटल लोग!’
दगु ा शि का ग़ु सा अ फ़ाक़ के लए मालामाल वीकली लॉटरी का िटकट बन
गया। उसे सांड़ क आं ख, यानी अं ेज़ी म बु स आई साफ़-साफ़ िदखाई दे रही
थी। अपने टाइल म उसने ि पुरारी को आवाज़ लगाई, ‘अबे ए ि पुरारी पांडे, ज़रा
देख वो काऊ िकडनै पग म जो इसका कायकता जेल भेजा था वो नारे लगा रहा है
या नह ? अगर है, तो ला साले को ज़रा सामने। उसके बयान िफर से लेने ह,
िहसाब कर इसका।’
ि पुरारी पांडे दौड़कर थाने के अंदर गया और िविकपी डया भीड़ म कायकता
को ढू ंढ़ने लगा। अ फ़ाक़ ने िफर भूरले ाल को समझाया, ‘देखो यादव जी, ये मराठा
मंिदर के सामने यादा गो डन जुबली न बनो। हमने िटकट काट िदया, तो मॉ नग
शो म भी शोले अकेले देखोगे।’
दगु ा शि ने अ फ़ाक़ को बीच से हटा कर भूरल े ाल को घूरा, ‘बोलो या डमांड
है तु हारा? मेमोरडम दे दो, आई िवल लुक इन टू दैट।’
ि पुरारी र ज टर ले आया और िविकपी डया ने उस कायकता को भीड़ म से
ढू ंढ़ िनकाला जसने गाय चोरी करने का जुम क़ुबूल िकया था। अ फ़ाक़ ने दगु ा क
तरफ देखा, ‘अरे छोिड़ए मैडम, काहे संतोषी माता क तरह सॉ ट हो रही ह। ये
साले मिहषासुर ह, ि शूल पेले िबना मानगे नह । िकए, दईु िमनट म इनका कबीर
सह िनकालते ह हम।’
इसके पहले िक दगु ा शि कुछ कह पाती अ फ़ाक़ उ ा ने गाय क चोरी क़ुबूल
करने वाले कायकता को कॉलर से पकड़ा और थाने के अंदर ले जाने लगा।
भूरल
े ाल यादव ने दगु ा शि के सामने हाथ जोड़े, ‘मैडम हम जानते ह िक आप आ
गई हो तो सब ठीक ही हो जाएगा, वना आपके इस इं पे टर ने पूरा थाना बेच
डाला है। आईपीसी क हर धारा के िहसाब से पइसा लेता है ये पु लस वाला। ये जो
थाने म कबाड़ देख रही हो न आप, इसका भी रेट ल ट िफ स है।’
दगु ा भूरल
े ाल के साथ थाने के अंदर आ गई जहां अ फ़ाक़ उ ा ख़ुद ही बोल-
बोल कर कायकता का बयान लखवा रहा था, ‘ लखो साले िक हम चार गाय
भूरल
े ाल यादव के कहने पर चुराए थे। भूरल े ाल ने बोला था िक गाय काट कर फक
दगे तो दंगे हो जाएं गे, लोग मारे जाएं गे और सरकार क पूरे देश म थू-थू होगी, और
जो मु लम वोटर इधर-उधर चला गया है, वो िफर हमारी पाट म वापस लौटेगा।’
दगु ा ने अ फ़ाक़ को डांटा, ‘हाऊ कैन यू मैनेज इन िदस वे, अ फ़ाक़?’
अ फ़ाक़ ने दगु ा क तरफ देखा, ‘मैडम इस कहानी का कोई भी पा का पिनक
नह है। इस कहानी का स ाई से सौ परसट लेना-देना है। जो लखा रहे ह, वही
सच है। िपछली बार पालिटकल ड े मर का ड काउं ट दे िदए थे। अब इस
बयान पर मुकदमा िफर खोल कर साले को जेल भेज ही देते ह, सब सेटल हो
जाएगा।’
दगु ा शि के िदमाग़ म सफ मडर से लेकर टेरे र ट ए टिवटी क उलझन शोर
मचा रही थ । उसका टारगेट ि यर था। ग़ु सा तो उसे बहुत आ रहा था, लेिकन
िफलहाल वो ग़ु से से काम नह लेना चाहती थी। वो जानती थी िक अ फ़ाक़ उ ा
ने केस यहां तक खोला है और केस म आगे तक जाने के लए उसे अ फ़ाक़ का
साथ चािहए। दगु ा को अ फ़ाक़ के बारे म अफ़सर पहले ही बता चुके थे इसी लए
भूरले ाल यादव ने कर शन क जो बात दगु ा से कह , उसका दगु ा पर कोई असर
नह पड़ा। दरअसल भूरल े ाल यादव को जस तरह अ फ़ाक़ ह डल कर रहा था, वो
टाइल दगु ा को अ छा ही लगा। कुछ सोच कर दगु ा ने सभी को कमरे से बाहर
िनकाला और भूरल े ाल यादव और अ फ़ाक़ उ ा को साथ बैठाया, ‘सुनो भूरले ाल
तु हारा पॉ लिट स ओके है। अभी मेरे को इंवे टगेशन कर लेने दो, म लॉ एं ड
ऑडर क इंचाज नह हू।ं थोड़ा िदन तु हारा ज़दाबाद मुदाबाद मेरे को सुनने को
मांगता नई। नाऊ इ स अप टू यू िक तू मेरी बात मानता है या िफर म अ फ़ाक़
उ ा क बात मान लूं और तुझे जेल जाने द?ं ू ’
भूरल
े ाल यादव क नेतािगरी एक बार िफर दांव दे गई। अ फ़ाक़ एक बार िफर
िवलेन नंबर वन सािबत हो गया। ख़ैर मरता या न करता, लहाज़ा नेता जी ने
“ सलडर” कर िदया। ये बात बहुत से लोग जानते ह िक उ र देश के यादातर
िह स म सरडर को सलडर ही कहा जाता है। शायद यूपी के लोग को लगता है
िक जस िकसी क गैस ख़ म हो जाए तो वो सलडर हो जाता है। बस यह से ये
श द िनकला और उद,ू फारसी, अरबी क तरह इं लश भी 370 हटने से पहले
वाले क मीर क तरह हदी भाषा का अ भ अंग बन गई। भूरल े ाल यादव थाने से
भीड़ के साथ िवदा हो गया। बस िफर या था, स मान सह और देव त ने लैपटॉप
िनकाल कर फ़ौरन ोजे शन का इंतज़ाम िकया। अब दगु ा शि कुछ ऐसा बताने
जा रही थी, जो अब तक न िकसी ने सोचा और न ही बताया।
िविकपी डया और ि पुरारी ने सबके लए कु सयां लगाई ं। स मान सह और
देव त के साथ सारे सपाही कु सय पर बैठ गए। अ फ़ाक़ उ ा ने अपनी कुस
दगु ा को ऑफ़र क मगर दगु ा ने मेज़ पर रखे लैपटॉप के सामने कुस डाल कर
वी डयो ोजे शन शु िकया। सबसे पहले एक एटीएम का वी डयो ीन पर
िदखाई िदया। एक चौदह-पं ह साल का लड़का एटीएम से पैसे िनकाल रहा था।
पैसे िनकालने के बाद उसने काड वापस लया िफर टेटमट लप भी िनकाली।
लड़का मुड़ कर बाहर चला गया। दगु ा ने वी डयो रोक कर पूछा, ‘िकसी ने पहचाना
इस लड़के को? कौन है ये लड़का? कौन से एटीएम से पैसे िनकाल रहा है?’
सब ख़ामोश थे। अ फ़ाक़ भी अंदाज़ा नह लगा पाया। दगु ा ने िफर कहा, ‘ओके,
नो इ यू! इस लड़के को म भी नह पहचानती, लेिकन इस लड़के के काड को
पहचानती हू।ं इस लड़के ने िकसी दसू रे के एटीएम काड से पैसे िनकाले ह और
अगर ये काड िकसी दस
ू रे का नह होता, तो ये वी डयो हमको मंगाने क ज़ रत ही
नह पड़ती…नाऊ एनी गेस?’
सब ख़ामोश ही रहे, िकसी को कोई अंदाज़ा नह था।
दगु ा िफर बोली, ‘ये एटीएम लखनऊ के हज़रतगंज का है। इस लड़के ने रािबया
बसर केस के तीन िदन बाद एटीएम से पैसा िनकाला। वो बहुत ही शा तर है जसने
अपना काड इस लड़के को देकर एटीएम भेजा था, य िक वो नह चाहता िक उसे
कोई देखे या कोई उसे पहचान पाए।’
अ फ़ाक़ बोला, ‘अब बता भी दी जए मैडम।’
दगु ा ने मु कुराते हुए कहा, ‘ये एटीएम काड ा ठाकुर का है और जो पैसे
िनकाल रहा है, वो ा का छोटा भाई है। ा ठाकुर ख़ुद को सामने नह लाना
चाहती, लेिकन उसे ये नह पता िक हमारी नज़र उसके एटीएम पर भी है। आ ख़र
जीने के लए पैसे क तो ज़ रत पड़ती ही है।’
िविकपी डया कुस से खड़ा हो गया, ‘मैम, अभी तो आपने कहा िक आप ा
ठाकुर के भाई को पहचानती नह , िफर इतना योर कैसे ह आप?’
दगु ा क मराठी िफर शु हो गई, ‘ए तू ग प बस रे! मने बोला, म भी इसे नह
पहचानती अगर काड ा ठाकुर का नह होता। काड का डटेल जब हमारे पास
आ गया तो अयो या से पूरी फैिमली फ़ोटो ाफ मंगाई हमने। हमने अभी अपने
रडार म सफ ा ठाकुर क फ़ोटो फ ड कर रखी है, अभी ये सारी फ़ोटो देख लो
और इन सबको अ छे से पहचान लो य िक इनक ए टिवटी से हम ाक
ए टिवटी का पता चलेगा।’
ोजे शन पर सबक फ़ोटो और एटीएम काड नंबर ड ले हो रहे थे।
अ फ़ाक़ को कुछ याद आया, ‘मैडम, जब आपके पास ये डटेल थे, तो आपने
मुझसे य कंफम िकया था िक ा ज़दा है या नह ?’
दगु ा हंसी, ‘डीजीपी साहेब तेरा पु ल सग का बहुत तारीफ करते ह रे! मने सोचा
देखूं तो अ फ़ाक़ उ ा िब मल का या लॉ जक है। यू वर करे ट अ फ़ाक़, बस
एक ग़लती क तुमने, अभी देखो उसको भी।’
दगु ा शि ने लैपटॉप पर दस ू री लाइड खोली। इस बार ीन पर एक फ़ोटो
थी। अपनी ठोड़ी पर हाथ रख कर पोज़ देता ख़ूबसूरत सा एक गोरा लड़का—हाथ
म घड़ी, नीले रंग क जैकेट, चेहरे पर दाढ़ी, मासूम सी मु कुराहट और सर पर
नीले रंग क मखमली अफगानी टोपी। हर कोई गौर से फ़ोटो देख रहा था िक
आ ख़र कौन है ये बेहद नाज़ुक सा शहज़ादा। दगु ा ने लाइड आगे बढ़ाई, एक बार
िफर उसी लड़के क फ़ोटो। इस फ़ोटो म भी लड़के के चेहरे पर मासूिमयत
बरकरार थी, लेिकन मु कुराहट ग़ायब थी। अब सर पर टोपी नह थी। जैकेट क
जगह काले रंग क टी-शट थी और गले म लैक एं ड हाइट चे स वाला मफलर।
एक हाथ म िप टल और दस ू रे म ए के 56 और पीछे जैश-ए-मोह मद का िनशान।
इस बार फ़ोटो ने कम से कम एक राज़ तो खोल िदया िक ये लड़का टेरे र ट था।
दगु ा ने ज़ोर से पूछा, ‘कोई जानता है इस लड़के को? कह देखा है इसको?’
अ फ़ाक़ उ ा बोला, ‘ये प ा बुरहान वानी तो है नह ।’
दगु ा ने सवाल िकया, ‘टीवी, यूज़ पेपर पर फ़ोटो देखकर बुरहान वानी को
पहचानते हो, पन इसको नह पहचान पा रहे जो ीन पर है?’
अ फ़ाक़ ने लापरवाही से जवाब िदया, ‘अरे हम ओसामा जी, बगदादी जी,
अज़हर मसूद, हािफज़ सईद जी को भी पहचानते ह मैडम, पर बुरहान वानी जी को
ख़ास पहचानते ह। ये साहब क मीर के िम टर टेरे र ट थे, िहजबुल मुजािहदीन के
पो टर बॉय। आम क दो गोली पड़ और जनाब ओला करके हूर के पास िनकल
लए। बेचारा, फटा पो टर िनकला ज़ीरो! य रे ि पुरारी, हम सट परसट सही
बोले न?’
ि पुरारी बोला, ‘साहबै हम लोग को बताए थे िक वो ीनगर घूमने गए थे, त बै
मार गोली, मार गोली आम पेल िदिहस थी बुरहान वानी को! बस िफर सब बंद
और दे प थरबाजी। साहबौ फंसे रहे कई िदन!’
दगु ा ने अ फ़ाक़ को एि शएट िकया, ‘पािक तान रेलवे ने बुरहान वानी के मरने
के बाद उसके पो टर लगा कर आज़ादी टेन भी चलाई थी। ख़ैर, ले स नॉट
डेिवएट ॉम द स जे ट। सो, हू इज़ देयर ऑन द ीन?’
िविकपी डया झट से बोला, ‘मैम हम देखे ह इसे, बहुत क़रीब से देखे ह।’
िविकपी डया ने िदमाग़ पर ज़ोर डाला पर उसे कुछ याद नह आया।
दगु ा ने िविकपी डया को बक अप िकया, ‘ या नाम है तु हारा?’
ि पुरारी हंसा, ‘नाम तो इनका िव ासागर है, पर ये खुदै भूल चुके ह।’
िविकपी डया सी रयस हो गया, ‘जी मैम, हम िविकपी डया ह। थाने म साइबर
सेल भारी ह, केस के झंझट म पढ़ाई- लखाई सब ठप है।’
दगु ा ज़ोर से हंसी, ‘नाम तो अ छा है, चलो सोच कर बताओ ज दी।’
िविकपी डया को सब ग़ु से से देखने लगे। बेवजह साला ानपीठ पुर कार
िवजेता बन रहा है। दगु ा भी बेवजह स पस काहे बना रही ह। अरे नाम पता बता
कर कहानी आगे बढ़ाएं । मगर दगु ा का इरादा कुछ और था। वो सबको समझाना
चाहती थी िक अगर केस सॉ व करना है, तो केस सॉ व करने म हर एक डटेल
ज़ री होती है।
इसी बीच िविकपी डया बोला, ‘सर, ये तो स ाद अहमद भट है!’
अ फ़ाक़ ने च ा कर पूछा, ‘कौन स ाद अहमद भट?’
िविकपी डया बुदबुदाया, ‘सर क मीर का टेरे र ट है, ये तो।’
अ फ़ाक़ सीधे सवाल पर आया, ‘मैडम, इसका केस से या लेना-देना?’
दगु ा सी रयस हो गई, ‘लेना-देना है, अ फ़ाक़। ये वो ही स ाद अहमद भट है,
जो क मीर के अनंतनाग ड ट ट के महरम गांव का रहने वाला है। ये वो ही
स ाद अहमद भट है, जसक कार का इंजन G12BN164140 और चे सस नंबर
MA3ERLF1SOO183735 मोबाइक पर बाघमार के ाइं डग कारखाने म री- ट
कराया गया था। ग़लती समझ म आई अपनी? तुमने आज तक पता करने क
को शश ही नह िक…’
अ फ़ाक़ उ ा च का, ‘ओ ह साला! लेिकन ये तो मर चुका है मैडम?’
दगु ा ने अ फ़ाक़ उ ा से कसकर हाथ िमलाया, ‘यू आर करे ट अ फ़ाक़! इसने
2 फरवरी 2019 को कार ख़रीदी, 25 फरवरी 2019 को इसका जैश-ए-मोह मद के
बैनर वाला ये फ़ोटो सामने आया और 18 जून 2019 को फोसस ने एनकाउं टर म
स ाद अहमद भट को उसके ही गांव, महरम, म मार िगराया। ये साला मर चुका है,
ही इज़ नो मोर।’
अ फ़ाक़ क नॉलेज का बैटी बैकअप ख़ म हो चुका था। अ फ़ाक़ ने दराज़ से
वो फ़ोटो िनकाली और िफर ोजे शन ीन पर इंजन और चे सस नंबर िमलाया,
‘मैडम ीन पर जो ये र ज टेशन नंबर के आगे लखा है 33.964722 ड ी नॉथ
और 74.964444 ड ी ई ट—इसका भी तो कोई मतलब होना चािहए या ये िनल
बटा स ाटा है?’
दगु ा ने अ फ़ाक़ उ ा के हाथ से फ़ोटो लेकर गौर से देखा। दगु ा को कोई नंबर
नह िदखा। दगु ा को समझ नह आया तो अ फ़ाक़ ने फ़ोटो पलट कर देखने को
कहा। दगु ा ने फ़ोटो पलट कर देखी और ीन पर लखा नंबर िदखाते हुए बोली,
‘अ फ़ाक़ उ ा एकदम करे ट बोला, ये र ज टेशन नंबर नह ब क कॉ डनेट
पोज़ीश नग है।’
अचानक कमरे म एक आवाज़ गूज
ं ी, ‘ये लाथेपोरा के कॉ डने स ह।’
सफ दगु ा ही नह ब क पूरा का पूरा द तर च क गया िक आ ख़र िकसने
लाथेपोरा का नाम लया। सब िविकपी डया क तरफ देखने लगे, लेिकन ये
आवाज़ अफ़ज़ल क थी जो अबराम के साथ अभी-अभी द तर म दा ख़ल हुआ
था। अ फ़ाक़ उ ा कुस से उठ कर दगु ा शि के पास आया और बोला, ‘ये दोन
मेरे बेटे ह—अबराम और अफ़ज़ल। अबराम होटल मैनेजमट ड ी हो डर है,
काकोरी म असली काकोरी कबाब क ऑनलाइन फूड चेन चलाता है। ये अफ़ज़ल
है। है तो साइंिट ट, बाक ख़ुद ही बताए तो ठीक है।’
अफ़ज़ल ने दगु ा से हाथ िमलाया, ‘माय से फ अफ़ज़ल, लैनेटरी साइंिट ट
हू।ं ’
दगु ा ने बात आगे बढ़ाई, ‘नासा के नॉमन े चर ुप म सेले शन हुआ है और अब
े टस के नाम रखने के लए एक महीने के वक ॉम होम पर आए ह और यह से
अपने ोजे ट पर रसच कर रहे ह।’
अफ़ज़ल मु कुराया, ‘आपको तो सब पता है।’
दगु ा भी मु कुराई, ‘जी, जैसे आपको सब पता है, मेरा मतलब लाथेपोरा।’
‘मेरे काम का िह सा ह कॉ डने स,’ अफ़ज़ल बोला।
अ फ़ाक़ उ ा ने पूछा, ‘हमको तो कभी नह बताए।’
अफ़ज़ल ने सवाल टाला, ‘िकसी ने पूछा ही नह , िफर य बताएं ?’
दगु ा ने टीज़ िकया, ‘पूछा तो आज भी िकसी ने नह ।’
अफ़ज़ल ने अबराम क तरफ देखा और जवाब िदया, ‘अबराम ने चुटक काट
कर बोलने को कहा, इस लए बोल िदया।’
अबराम बोला, ‘मने तो अफ़ज़ल के लैपटॉप म ऐसे बहुत से कॉ डने स देखे थे,
इस लए बताने के लए चुटक काट ली।’
दगु ा ने थोड़ा गंभीर होते हुए कहा, ‘च लए कभी हम भी देखते ह आपका
लैपटॉप।’
अफ़ज़ल ोफेशनली बोला, ‘इ स नासा, ए सी े ट ोफेशन।’
दगु ा ने भी सी े सी क़ुबूल क , ‘ओके, ओके! पसनली, समटाइम।’
अफ़ज़ल ने मज़ाक़ उड़ाया, ‘अबराम को तो हर टॉिपक पर ख़ाँ साहब को अपना
पसनल यू देने का बहुत शौक है—इ वे टगेशन म फलाना पॉइंट थरली चेक कर
लेना। ये पॉइंट िमस मत करना…’
अ फ़ाक़ ने अबराम के सर पर हाथ फेरा, ‘ठीक ही तो करता है पं डत जी क
मदद करके। तू बता देता, तो स ाद भी पता चल जाता हम।’
दगु ा ने ख़ुशी ज़ािहर क , ‘इंटे टग फैिमली! पं डत जी, ख़ाँ साहेब। पं डत जी
वाले अबराम को बकबक क आदत है, और ख़ाँ साहेब के अफ़ज़ल को एकदम
िपनडॉप साइलस चलता…बरोबर, एकदम बरोबर।’
अबराम ने दगु ा से पूछा, ‘हम दोन को बुलाने क वजह?’
दगु ा ने माहौल ह का िकया, ‘बस अफ़ज़ल से कॉ डनेट पूछने के लए।’
अफ़ज़ल बोला, ‘पर मुझे तो लगा िक रािबया के िमस कॉल पूछने के लए।’
‘वैरी माट! वो बाद म पूछूंगी, सफ आपसे नह अबराम से भी, लेिकन पहले
सबको कॉ डने स समझाइए।’ दगु ा ने र वे ट क ।
दगु ा को छोड़ कर सब ास म के टू ड स क तरह बैठ गए और अफ़ज़ल ने
समझाना शु िकया, ‘जैसे आप काकोरी से िद ी जाते ह, वैसे ही आपके मोबाइल
पर मैसेज आता है “वेलकम टू िद ी”, कैसे पता चलता है टे लकॉम कंपनी को िक
अब आप िद ी म ह? आपक पोिज़श नग से, आपक लोकेशन से। आपका शहर
बदलता है, तो आपके मोबाइल टॉवर भी बदलते ह और इन टॉवस से ही आप
िकसी केस को सॉ व करने के लए लोकेशन पता करते ह। बस ऐसे ही ये दिु नया
खड़ी और पड़ी लाइन के जाल म घरी है। इस जाल को कॉ डनेट ाफ कहते ह।
कौन सा शहर, कौन सा देश, कौन सा घर, कौन सा आदमी—कब कहां है, ये ाफ
ही हम बताता है। जब आप जीपीएस ऑन करके उसम लोकेशन डालते ह, तो
जीपीएस आपको उस लोकेशन तक ले जाता है, यही कॉ डने स ह। जब आपको
कैब मंगानी होती है, तो पता चल जाता है न िक कैब िकतनी दरू है, और कैब वाले
को मालूम पड़ जाता है िक आप कहां खड़े ह—यही कॉ डने स ह। कॉ डने स से
ही लेन टेक ऑफ़ और लड करते ह, कॉ डने स से ही शप का समु म मूवमट
होता है, वना कौन बताएगा िक िकस तरफ जाना है? कोई एक फ़ोटो भी ख चता है
तो कॉ डने स ही बताते ह िक फ़ोटो िकस जगह ख ची गई है, बस। बहुत सपल है
कॉ डने स योरी।’
िविकपी डया बोला, ‘भैया, आपको कैसे पता चला लाथेपोरा का?’
अफ़ज़ल ने दगु ा क तरफ हंसते हुए देखा, िफर ीन क तरफ इशारा करके
बताया, ‘कोई जाद ू नह है, ीन पर कॉ डनेट लखे ह, बस सच इंजन म
कॉ डने स डाले और सच इंजन ने जगह का नाम बता िदया।’
इस बार सवाल अ फ़ाक़ ने िकया, ‘मतलब हम जतने लोग यहां बैठे ह, सबका
कॉ डनेशन है सबके पास…मतलब कॉ डनेट पता है सबको?’
दगु ा शि ने इसका जवाब िदया, ‘नह , आप कहां ह, ये कॉ डनेट सफ
जीपीएस को मालूम है। अगर आपके पास िकसी जगह का या िकसी आदमी का
कॉ डनेट है, तो सच इंजन म कॉ डने स फ ड क जए, आपको लोकेशन पता चल
जाएगी। जैसे हमको लाथेपोरा का कॉ डनेट जान बूझ कर बताया गया िक बेटा
अगर अकल हो तो जगह पता कर लो।’
अ फ़ाक़ बोला, ‘समझ गए, उरी िफ़ म म भी तो द ु मन के कप कॉ डने स से
ही िमलते ह।’
दगु ा जो भी करती, उसके पीछे कोई न कोई वजह होती थी। शायद दगु ा सबको
टड करना चाहती थी, या शायद वो िकसी और ही तलाश म थी। िफलहाल दगु ा ने
दोन को थोड़ी देर वेट करने को बोला। अबराम और अफ़ज़ल बाहर जा ही रहे थे
िक दगु ा ने मन ही मन कुछ सोचा और दोन को वह बैठने को कहा। ि पुरारी
कु सयां लाया। दोन बैठ गए और ेक के बाद िफर से शु हो गया—रािबया मडर
केस का वी डयो ोजे शन।
दगु ा ने बोलना शु िकया, ‘तो ये कॉ डने स लाथेपोरा के ह। लाथेपोरा वो जगह
है, जहां 14 फरवरी 2019 को सीआरपीएफ कॉ वॉय पर हमला िकया गया था।
इस अटैक म हमारे चालीस जवान शहीद हुए थे।’
अ फ़ाक़ उ ा सी रयस हो गया, ‘मतलब पुलवामा अटैक।’
िविकपी डया भी खड़ा हो गया, ‘सर वो कार स ाद अहमद क ही थी।’
दगु ा ने ख़ुद को संभाला, ‘हां, जस कार का इंजन और चे सस नंबर मोबाइक पर
ट िकया गया, वो स ाद अहमद क थी। इसी कार म ए स लो सव था। नामद
ने इसी कार से कॉ वॉय को ट र मारी थी।’
द तर म स ाटा छा गया। दगु ा ने ख़ुद को संभाला और िफर बोली, ‘ये कार
2011 म अनंतनाग क हैवे स कॉलोनी के मोह मद जलील अहमद ह ानी को
बेची गई। स ाद अहमद भट के ख़रीदने से पहले, ये कार यारह बार बेची और
ख़रीदी गई थी। इट वॉज़ ए डेिव स कार।’
अबराम से रहा नह गया, ‘इट मी स समबडी इज़ लेइगं िवद दीज़ डेिवल
नंबस! पु लस को िमसगाइड कर रहा है? कोई खेल खेल रहा है?’
अ फ़ाक़ उ ा िन ंत होकर बोला, ‘टास जीत कर चौ वे-छ े मार रहा है, तो
मारने दो। जब हम खेलगे, खेल तो तभी ख़ म होगा ना!’
दगु ा ने ताली बजाई, ‘ये हुआ न, अ फ़ाक़ उ ा का पु ल सग टाइल। चलो,
अभी जो िमस हो गया, उसे जाने दो। अभी टीम वक के साथ, वी हैव टू िवन। अब
हमको सारे ू ज़ पर पॉइंट टू पॉइंट काम करना है, बर?’
‘हऊ शर!’ िविकपी डया जोश म बोला।
दगु ा हंसी, ‘ओ हो, मराठी माणुष इन यूपी!’
माहौल थोड़ा नॉमल हुआ ही था िक तभी रमाकांत और गौतम चांद खुतरा क
पो टमॉटम रपोट लेकर द तर के अंदर दा ख़ल हुए। दगु ा शि ने रपोट पढ़ना
शु िकया। रपोट म साफ़ लखा था िक चांद खुतरा क मौत हाई पोट शयल
पॉयज़न से हुई थी। ज़हर उसके पेट म नह िमला, ब क उसे वे स के ज़ रए ज़हर
िदया गया था। रपोट के मुतािबक चांद के सीने पर नौ िपन के मा स भी थे। ये वो
िपन मा स थे, जनके ज़ रए चांद क चे ट पर हद ु तान रप लकन एसो सएशन
लखा पेपर लगाया गया था। लेिकन िकसी भी िपन या छाती पर िमले मा स म
ज़हर नह िमला। लड टांस यूजन और लूकोज़ के लए जो वीगो लगाया गया था
उसके अलावा इंटावीनस या इंटाम कुलर स रज इं ेशन बॉडी म कह नह िमला।
मतलब साफ़ था, ज़हर न तो खलाया गया था, न ही ज़हर का इंजे शन िदया गया
था, ब क ज़हर डप के ज़ रए ही बॉडी म गया। दगु ा शि ने अबराम और
अफ़ज़ल से िफलहाल बाद म िमलने को कहा और अ फ़ाक़ को लेकर थाने से
बाहर चल दी। अ फ़ाक़ के साथ ि पुरारी, देव त, स मान सह और िविकपी डया
भी दौड़े और अ पताल क ओर रवाना हो गए। अ पताल पहुच ं ते ही दगु ा ने हाथ
म ल स चढ़ाते हुए डॉ टर को वॉड का ताला खुलवाने को कहा। ताला खुलते ही
दगु ा ने सबसे पहले लूकोज़ क बोतल चेक क । पूरी बोतल लूकोज़ से भरी हुई
थी। यानी चांद को डप तो लगाई गई, लेिकन चांद तब तक मर चुका था इस लए
लूकोज़ बॉडी म गया ही नह । दगु ा ने ड टिबन म पड़ी ड पोिज़बल स रज
देखना शु क और देव त से सारी स रज सील करने को कहा। देव त यू ड
स रज सील कर ही रहा था िक दगु ा ने िफर डॉ टर से पूछा, ‘िकतने यूिनट लड
और लूकोज़ चांद को चढ़ाए गए?’ डॉ टर ने चांद के बेड पर टंगी टेटस रपोट
पढ़कर पूरा आं कड़ा बताया और साथ म पूरा यौरा भी दे डाला—‘इमरजसी के
लए कुछ ख़ास लड ुप क आठ-दस यूिनट रेि जरेटर म रखी जाती ह।
जसका लड ुप नह होता है, उसे सीधे लखनऊ मे डकल कॉलेज रेफर कर
िदया जाता है। चांद के लड ुप क तीन यूिनट एवेलेबल थ , इस लए चढ़ा दी
गई ं।
दगु ा ने चांद क मौत वाली रात को ूटी पर मौजूद नस के बारे म पूछा, तो
डॉ टर ने बताया िक वो रात क श ट म आएगी।
दगु ा ने टेटस रपोट हाथ म ली, ‘टोटल तीन बोतल लूकोज़ चढ़ाया गया है,
आ ख़री बोतल कल रात म साढ़े दस बजे डप क गई, माने?’
डॉ टर बोला, ‘ रकवरी के लए लड काफ था मैडम, लेिकन यूड लेवल
सही रखने के लए तीन बोतल लूकोज़ सिफ़ शएं ट था—दो कल िदन म चढ़ाई गई
थ और एक रात म, मतलब तीन से चार घंटे म एक डप कं लीट होती है।’
‘चलो चार घंटे मान लेते ह, मतलब ला ट बोतल रात म दो से ढाई बजे के बीच
ख़ म होनी चािहए। पर पो टमॉटम रपोट तो बोल रही है िक चांद क मौत दो से
ढाई बजे के बीच हुई है, िफर बोतल फुल कैसे है?’
सबके िदमाग़ म एक ही सवाल घूम रहा था—जब वीगो के अलावा कोई माक
बॉडी म है ही नह , तो पॉयज़न बॉडी म गया कैसे? डॉ टर ने िबना देरी िकए सीधे
नस को फ़ोन लगा िदया। नस ने बताया िक उसने रात म साढ़े दस बजे आ ख़री
बोतल लगाई थी। साढ़े यारह बजे, घर जाने से पहले, जब उसने चेक िकया तो
चांद सांस भी ले रहा था और वन फोथ लूकोज़ बॉडी म जा चुका था। नस क
ूटी सुबह तक थी, तो वो रात म ही घर कैसे चली गई, इस बात के लए डॉ टर
ने उसे फ़ोन पर ही डांटा। इस बीच अ फ़ाक़ ने दगु ा को टेटस रपोट म लूकोज़
क बोतल का सी रयल और बैच नंबर चेक करने का सजेशन िदया। डॉ टर ने
फ़ौरन सारी बोतल के नंबर चेक िकए—जो बोतल आ ख़र म लगी थी, उसका बैच
नंबर तो टेटस रपोट म था ही नह । अ फ़ाक़ उ ा के िदमाग़ म अब सफ एक ही
सॉ यूशन था— लूकोज़ का टॉक चेक िकया जाए और ये देखा जाए िक यू ड
बोतल कहां डंप क गई ह। डॉ टर के साथ सब दौड़ कर वॉड के सामने ही बने
रसे शन काउं टर पर पहुचं े और वहां नीचे रखे तीन काटन उठा कर मेज़ पर रखे
गए। एक तो पूरा सी ड था। दस ू रे म स रज थ और तीसरे म इ स बोतल
लूकोज़, यानी बैच नंबर तो सबका एक ही था, बस सी रयल नंबर चेक करना था।
टॉक र ज टर से आ ख़रकार पता चला िक िकस सी रयल नंबर क बोतल िकस
मरीज़ को चढ़ाई गई। पता तो ये भी चल गया िक चांद के बेड टड हुक पर जो
बोतल लटक थी, उस सी रयल नंबर क बोतल अ पताल म िकसी मरीज़ के पास
भेजी ही नह गई। िफर वो चांद के पास कैसे पहुच ं गई? इस बोतल क कोई एं टी
टॉक र ज टर म नह थी। अ फ़ाक़ के इशारे पर सारे सपाही और वॉड बॉयज़,
दसू री नस के साथ अ पताल के मेन गेट कपस म गेट से थोड़ा हट कर रखे
ड टिबन को खंगालने लगे।
दगु ा ने सबको टोका, ‘ए फालतू लोग, फोकट म अइसे मरने का है या? पूरा
ड टिबन िगरा पिहले, िफर ल स पहन के काम कर रे बाबा।’
काकोरी तहसील का ये छोटा सा सरकारी अ पताल था इस लए यादा तो
नह , लेिकन िफर भी क़रीब पं ह-बीस बोतल, गॉज़, बडेज और इंजे शन कूड़ेदान
म पड़े थे। एक-एक बोतल का सी रयल नंबर देख कर टॉक र ज टर से मैच
कराया जा रहा था। तभी िविकपी डया के हाथ एक बोतल लगी और वो ज़ोर से
च ाया, ‘यहां दे खए, ज दी!’ दगु ा लपक कर उसके पास पहुच
ं ी और बोतल हाथ
म लेकर बोली, ‘यस दै स इट! यही वाली बोतल है प ा।’
बोतल म सच म वन फोथ ू ड ही बचा था। दगु ा ने गौर से बोतल को देखा तो
उसम वैसा ही कै सूल पड़ा था जैसा कै सूल चांद खुतरा ने खाने क को शश क
थी। कै सूल बोतल म फूल कर फट चुका था और सारा ज़हर डप के ज़ रए चांद
क रग म बह गया था। बस कै सूल का कवर बचे हुए लूकोज़ म तैर रहा था।
उसने बोतल को हर तरफ से घुमा कर देखा तो बोतल क ठीक उ टी तरफ यानी
ह गग ि प के ठीक नीचे छोटा सा एक कट था। दगु ा ने सोचना शु िकया—इसी
कट से कै सूल डप म डाला गया और गेट से जाते व त क़ा तल ने बोतल को
ड टिबन म फक िदया। नस ने बताया था िक साढ़े यारह बजे, जब उसने चेक
िकया था तो वन फोथ ू ड चढ़ चुका था। िफर बोतल म केवल वन फोथ ू ड य
बचा था? दगु ा के िदमाग़ ने जवाब िदया— य िक बोतल म कट था इस लए बाक
का लूकोज़ उससे बह गया। सबकुछ शीशे क तरह साफ़ था। क़ा तल ने नस क
लगाई बोतल म कै सूल डाला। आराम से चांद के मरने का इंतज़ार िकया। िफर
टॉक से एकदम े श बोतल बदल दी, जो मरने के बाद नस म चढ़ी ही नह और
जाते व त कै सूल वाली बोतल ड टिबन म फक गया। उसे तो अंदाज़ा ही नह
रहा होगा िक बैच और सी रयल नंबर भी चेक िकया जाएगा। बस एक सवाल बाक
था, जसका जवाब सफ डॉ टर दे सकता था। सवाल ये िक या टॉक ऐसे
रसे शन क मेज़ के नीचे यूं ही खुले म पड़ा रहता है? जो चाहे उठाए, जो चाहे
चढ़ाए।
डॉ टर ने पु लस वाल क तरफ देखते हुए कहा, ‘छोटा सा अ पताल है, कभी
कोई मरीज़ आ जाए तो इलाज िमल जाना चािहए। ूटी और ताला चाबी के
च र म पड़े, तो कभी कोई एबसट होता है, तो कभी िकसी का ब ा बीमार। ये
पु लस वाले भी तो ए सीडटल मरीज़ ले आते ह, तो वॉड बॉय क मदद से
लूकोज़ वगैरह लगवा देते ह।’
िविकपी डया ने दगु ा शि क तरफ देख कर कहा, ‘मैडम सरफ़रोश ने गोर का
ख़ज़ाना काकोरी म सरेआम लूटा था। फांसी पर झूलते शहीद ने यही सोचा होगा
िक हद ु तान आज़ाद होगा और स टम काम करेगा, पर स टम गया तेल लेने।
बह र साल बाद भी जुगाड़ काम कर रहा है।’
अ फ़ाक़ उ ा िब मल ने िविकपी डया के कंधे पर हाथ रखा, ‘ स टम जब
तेल लेकर वापस लौटेगा तो तु हारी भी मा लश करा दगे। कल लूकोज़ क बोतल
फॉर सक जांच के लए भजवा देना, समझे बाबू!’
दगु ा शि समझ ही नह पा रही थी िक आ ख़र अ फ़ाक़ उ ा चीज़ या है—
एक नंबर का कर ट है, लेिकन अफ़सर मुरीद ह। मसला िकतना भी सी रयस हो,
हमेशा नॉनसी रयस रहता है। वो कुछ कह पाती इससे पहले ही अ फ़ाक़ बोला,
‘मैडम मेरी ष मे ीय अनुभू त कहती है िक पपीतेवाले का कै सूल कने शन चेक
करना चािहए। ऐसा तो नह िक दोन च ी-ब ी स डॉ टर-डॉ टर खेल रहे
ह ?’
दगु ा ने मुह
ं बनाया, ‘रे बाबा, या ष म् अनुभू त? कौन डॉ टर?’
िविकपी डया तुरत
ं बोला, ‘मैडम स थ सस।’
दगु ा ने मु कुराते हुए कहा, ‘मेरा भी ष म् सस कहता है िक ॉस मै चग के लए
चांद खुतरा का ताबीज़ भी बोतल के साथ म भेज दो।’
अ फ़ाक़ ने ि पुरारी क तरफ देखा, ‘पांडे, कल पपीता मंगा ज़रा, थाने पर।
सुबह ना ते म खाया जाए दगु ा शि मैडम के साथ।’
चांद क मौत का माहौल भले ही काकोरी के लए िफ क वजह हो, मगर
बेिफ अ फ़ाक़ ने दगु ा शि ठाकरे को पु लस गे ट हाउस तक जय हद कहकर
सी ऑफ़ िकया। िविकपी डया और ि पुरारी अपने साहब को घर छोड़ कर थाने
क तरफ चल िदए। रात का रंग गहरा हो रहा था, शायद एक और सुबह के इंतज़ार
म। वो सुबह, जो आती तो हर रोज़ है, लेिकन सुराग के अंधेरे पर रोशनी डालने म
नाकामयाब है।
***
काकोरी आज िबना बांग के जाग चुका था। पजड़े म न सगल पीस मुगा था, न मुग
का कोई पीस ही बचा था। ब ी म बंधे ख सी बकरे भी कमफल के िहसाब से
चौरासी योिनय म अपना फ़ाइनल रज़ ट देख चुके ह गे। मुि सफ उसी बकरे
क पॉ सबल थी, जसे ा ण के पेट से वग का रा ता ा हुआ होगा। कुरैशी
कसाई क दक ु ान पर काकोरी थाने का एक सपाही पो टर चपका रहा था।
पो टर म रािबया बसर, चांद खुतरा क लाश क फ़ोटो और ा ठाकुर के साथ
उसक पूरी फैिमली क फ़ोटो छपी थी। पो टर म लखा था—रािबया और चांद के
क़ ल और ा के बारे म िकसी को कुछ मालूम हो, तो वो दगु ा शि और
अ फ़ाक़ उ ा िब मल के मोबाइल नंबर पर ख़बर करे। ख़बर देने वाले का नाम
और नंबर सी े ट रखा जाएगा।
अफ़ज़ल सुबह-सुबह लैपटॉप खोल कर नासा म अपने चीफ कॉ डनेटर से फ़ोन
पर बातचीत म िबज़ी था। अबराम तैयार होकर एक बार िफर अपने काकोरी कबाब
क स लाई के लए काउं टर पर पहुच ं चुका था। दोन के बीच तय हुआ था िक
आज का लंच ब स एं ड ला ट म होगा। सपाही रमाकांत फॉर सक इ वे टगेशन
के लए लूकोज़ क बोतल और चांद खुतरा का ताबीज़ लेकर लखनऊ मे डकल
कॉलेज रवाना हो चुका था। अंगद यादव ने जेल क बैरक म मैक क खुराक के
लए चीख़-चीख़ कर हंगामा खड़ा कर िदया था। अनारकली डीजे वाले बाबू के
साथ बैठी थी। आज रात डांस के लए उसे कुछ नए गाने सुनने थे। नसीम
पपीतेवाला इंसु लन लगा रहा था। ेकफा ट के दस िमनट पहले वाली डोज़ थी
ये। उसक अ मी ने अपने हाथ से ना ते म कबाब परांठे बनाए थे, भला दस िमनट
इंतज़ार कैसे होगा। नसीम पपीता ना ता दस िमनट बाद करे या तुरत ं कर ले,
ज़ री बात ये थी िक ा ठाकुर आज भी लापता थी।
इं पे टर अ फ़ाक़ उ ा थाने पर सभी के साथ मी टग कर रहा था—हेड
कां टेबल ि पुरारी पांडे, िविकपी डया, रमाकांत और गौतम सब साथ बैठे थे िक
तभी एक सपाही केतली और कु हड़ लेकर अंदर आया। अख़बार के लफ़ाफ़े म
समोसे भी थे। चाय समोसे के साथ थाने म सी रयस ड कशन शु हुआ।
ड कशन का मु ा था— ा और ड ेशन का मु ा था—दगु ा शि ।
िविकपी डया ने एटीएस चीफ का रकॉड अ फ़ाक़ उ ा के सामने रख िदया।
पढ़ते-पढ़ते अ फ़ाक़ मुह ं बनाकर बोला, ‘अबे ये दादर क एं जे लना जॉली क तो
सारी िफ़ म िहट ह! नौ साल म आठ मेडल ह मैडम के नाम।’
ि पुरारी ने हाथ मलते हुए कहा, ‘बस सर ये ा ठाकुर हाथ लग जाए…’
इस बार अ फ़ाक़ उ ा हाइपर हो गया, ‘अबे ा के सच ऑपरेशन म िकए का
हो तुम अभी तक? देखे हो ना ये दादर-कुला लोकल िकतनी सुपरफा ट है—
एटीएम तक पहुच
ं गई, स ाद भट को ढू ंढ़ िनका लस।’
िविकपी डया ने ि पुरारी क तरफ नज़र करते हुए कहा, ‘सर, हम दोन लोग
उसके र तेदार और नए नंबर को एकदम साइंिट ट टाइल म टेली कोप से
देख रहे ह, मगर हाथ ही नह लग रही है ठकुराइन।’
अ फ़ाक़ सी रयस हो गया, ‘चाचा चौधरी बन जाओ और कं यूटर से नह ,
एटीएस वाली जीजाबाई से तेज़ सोचो, नह तो वो ले उड़ेगी बाबू।’
रमाकांत ने इंट ट िकया, ‘सर, िमल जाए तो गोली मार दगे।’
अ फ़ाक़ उ ा ग़ु से म बोला, ‘गोली भी मारनी पड़े, तो पैर म मारना।’
थाने म इस बात क तैयारी हो रही थी िक ा को पकड़ना है, मगर इससे भी
यादा तैयारी इस बात क हो रही थी िक उसे दगु ा शि ठाकरे से पहले पकड़ना
है, य िक ये फ़ाइनल था िक जो ा को पकड़ेगा, वो ही गेम िवनर भी होगा और
गेम चजर भी। दगु ा शि भी एटीएस चीफ थी। वो न द म भी केस सॉ व करने क
ट पर काम करती थी। दगु ा को पता था िक जब सौ शा तर मरे ह गे, तब
अ फ़ाक़ उ ा िब मल पैदा हुआ होगा। पु लस गे ट हाउस के लॉन म बैठ कर
दगु ा स मान सह और देव त के साथ मी टग कर रही थी। यहां भी ड कशन का
मु ा ा ठाकुर ही थी।
दगु ा शि ने हु म िदया िक ा ठाकुर का ू जैसे ही िमले उठा लेना।
‘मैम, बक एकाउं स और रलेिट स पर पैनी नज़र है,’ स मान बोला।
देव त ने कहा, ‘जहां-जहां आपने बोला था, वहां पो टस भी लग गए ह।’
‘मेरे को अ फ़ाक़ से पहले ा चािहए, एनी हाऊ,’ दगु ा ने ताक द क ।
स मान सह बोला, ‘नसीम, अबराम और अफ़ज़ल से इंटेरोगेशन प डग है।’
दगु ा शि ने कुछ सोचते हुए सर िहलाया, ‘ह म…पडसी तो बहुत है रे!
इंटेरोगेशन तो करते, आज ही करते, पन तू ये साला तीन लोग का लउकरात
लउकर डटे स काढ़ा, कम से कम स स मं स।’
‘जी मैम हो जाएगा…आज शाम तक हो जाएगा,’ देव त ने जवाब िदया।
‘न रे, असा कसा? मेरे को लोकेशन डटे स भी मांगता,’ दगु ा बोली।
देव त सोच कर बोला, ‘मैम टे लकॉम कंपनी वाल को कम से कम दो िदन का
टाइम देना पड़ेगा। टॉवर डटे स म टाइम लगेगा थोड़ा।’
दगु ा ने देव त को देखा, ‘ठीक है, पर ज दी करने को बोलो। एं ड रमबर वन मोर
थग, अ फ़ाक़ को पता नह चलना चािहए िक हम उसके बेट पर नज़र रख रहे ह,
वना दोन अलट हो जाएं गे।’
देव त ने हां म सर िहला िदया।
बातचीत चल ही रही थी िक टेबल पर रखे दगु ा के मोबाइल पर एक हॉ सएप
नोिटिफकेशन आया। दगु ा ने ीन पर नज़र डाली ही थी िक िकसी अननोन नंबर
से एक के बाद एक फ़ोटो मैसेज आना शु हो गए। दगु ा ने तुरत
ं मोबाइल अनलॉक
िकया। पहला फ़ोटो दगु ा का। दस
ू रा फ़ोटो दगु ा और देव त का। तीसरा फ़ोटो दगु ा,
देव त और स मान सह का। फ़ोटो अभी ख चे गए थे, यानी पु लस गे ट हाउस
के जस लॉन म दगु ा मी टग कर रही थी, उसी व त कोई उनके फ़ोटो भी ख च
रहा था और रयल टाइम सड कर रहा था। दगु ा ने िबना िकसी हड़बड़ी के धीरे से
मेज़ पर पड़ा रवॉ वर उठाया और लॉन के पेड़ और कमर क तरफ देखना शु
कर िदया। एक और फ़ोटो हॉ सएप पर आया। इस फ़ोटो म दगु ा रवॉ वर मेज़ से
उठा रही थी। दगु ा को देख कर देव त और स मान सह ने भी अपनी-अपनी
रवॉ वर िनकाल ल । दोन को ही नह पता था िक अचानक मोबाइल पर उसने
या देखा और वो या ढू ंढ़ रही थी। िबना कुछ जाने स मान और देव त अपनी
चीफ को ले ट राइट कवर देते हुए उस तरफ भागने लगे, जस तरफ दगु ा शि
भाग रही थी।
स मान और देव त को कवर करते देख दगु ा ज़ोर से च ाई, ‘ड ट कवर मी।
समबडी इज़ िहयर, कोई है जो हमको देख रहा है। एक म क तरफ जाओ और
एक बाहर जाकर देखो।’
स मान सह कमर क तरफ भागा और देव त गे ट हाउस के गेट से जाने के
बजाय सीधे बाऊंडी वॉल फांद कर बाहर िनकल गया। स मान ने एक-एक कमरा
और वॉश म तलाशा, मगर कह कोई नह िमला। वो दौड़ कर छत पर भी गया,
पर वहां भी स ाटा था। दगु ा ने एक-एक पेड़ के पीछे देखा और ग लय तक दौड़-
दौड़ कर हांफता हुआ देव त भी लौट आया। िकसी को कह कोई भी नह िमला।
दगु ा ने स मान और देव त को मोबाइल पर तीन के फ़ोटो िदखाए। िफर उसने
अननोन नंबर को डायल िकया। नंबर वच ऑफ़ था, मगर ट कॉलर ने फ़ौरन बता
िदया िक ये नंबर ा ठाकुर का था। दगु ा ने देव त से फ़ाइल मंगाई। देव त दौड़
कर अंदर से फ़ाइल लाया और दगु ा ने ा के कॉल डटे स देखना शु िकया। ये
ा का वो नंबर था जो यादातर वच ऑफ़ ही रहता था। वही नंबर जससे
क़ ल क रात रािबया को फ़ोन िमलाया गया था और तीन िमनट बात क गई थी।
यानी रािबया बसर के मडर क रात के बाद ये नंबर आज पहली बार ऑन हुआ
था। तो या ा ठाकुर इस व त काकोरी के पु लस गे ट हाउस म कह थी?
या उसने खुलेआम दगु ा के फ़ोटो ख च कर उसे बता िदया िक वो सबकुछ देख
रही है, और जब तक वो ख़ुद नह चाहेगी उसे कोई नह देख पाएगा? दगु ा शि ने
डीजीपी बृजलाल कुल े को फ़ोन िमलाया और बताया िक ा ठाकुर काकोरी
म थी, लेिकन अब उसका फ़ोन वच ऑफ़ था। डीजीपी ने नाकाबंदी कराने को
कहा। दगु ा ने ा ठाकुर क ख़बर देते हुए अ फ़ाक़ को काकोरी आने वाले तीन
रा त पर पु लस चे कग लगाने को कहा।
स मान बोला, ‘मैडम ा ठाकुर अब तक तो िनकल गई होगी।’
‘भाग जाने दो, पर दोबारा आएगी…हमसे खेल रही है वो; देन ले म ट गो ऑन,
स मान,’ दगु ा ने जवाब िदया।
स मान सह ने दगु ा क हां म हां िमलाई, ‘ले स होप फॉर द बे ट।’
दगु ा ने तुरत
ं मूड बदला, ‘झुनखा भाकर िकदर िमलेगा यहां?’
देव त सकपका गया, ‘मैडम काकोरी तो कबाब के लए फेमस है!’
स मान सह बोला, ‘मैम काकोरी आकर असली काकोरी कबाब न खाया, तो
या खाया? एकदम माउथ मे टग डश है।’
दगु ा के चेहरे पर स पस वाली मु कुराहट आई और उसने दोन को तैयार होकर
सीधे ब स एं ड ला ट चलने को कहा। ‘कबाब का कबाब, पूछताछ क
पूछताछ…एक साथ दोन काम हो जाएं गे।’
सूरज ठीक सर के ऊपर था। ब स एं ड ला ट के बाहर छांव म कुस मेज़ डाल
कर बैठा अफ़ज़ल अपना मोबाइल चेक कर रहा था। हरदोई म िकसी का वलीमा
था, तो उसके लए कारीगर कबाब बना भी रहे थे और ब स एं ड ला ट के डेड
ड ब म पैक भी कर रहे थे। ऑडर डलीवर करने के लए टपो भी खड़ा था।
काउं टर के अंदर से अबराम ब स एं ड ला ट के दो ड बे हाथ म लेकर बाहर
आया। ‘आज कबाब के साथ परांठे और शीरमाल भी है। एकदम अलग
कॉ बनेशन।’
अबराम ने मेज़ पर दोन ड बे रखे, ‘गु , मोबाइल बंद कर और ज दी से
गमागरम कबाब समेट ले मुझे तो ज़ोर क भूख लगी है।’
अफ़ज़ल ने ड बे खोले, ‘शीरमाल और परांठे दोन ? लुचई कहां है?’
अबराम हंसा, ‘ओ रजनल है, खा ले…नासा म तो घंटा वचुअल भी नह
िमलेगा। ॉन और ै ब खाते रहना। लुचई छोड़, परांठा और शीरमाल तोड़।’
अफ़ज़ल ने परांठा तोड़ा और कबाब के साथ खाना शु िकया, ‘गु धंधा जम
गया है या नौकरी छोड़ कर पछता रहा है? मतलब ऑल वेल ना?’
अबराम खाते-खाते बोला, ‘म त है, एकदम सॉ ट। नो झंझट, नॉट आं सरेबल
टू एनीबडी। एक साल क, लखनऊ-िद ी तक चेन होगी अपनी।’
‘दै स गुड! एप अ छा है, बट डग म ट है आजकल।’ अफ़ज़ल बोला।
‘ह म…कुछ लो बजट डग सोच तो रहा हू,ं ’ अबराम ने जवाब िदया।
अफ़ज़ल बोला, ‘मेरे पास आई डया है, लुचई खला तो बताऊं!’
अबराम कुस छोड़कर बहुत तेज़ी से उठा और पानी से भरा जग लेकर अफ़ज़ल
के सर पर उड़ेलने के लए दौड़ा, पर अफ़ज़ल को समझ म आ गया और वो
सतक हो गया। अबराम ने कई बार को शश क , लेिकन अफ़ज़ल बच गया और
जग के पानी ने िकसी बा रश क तरह ज़मीन को भगो िदया। हंसते हुए दोन भाई
एक-दस ू रे के गले लग गए। इसी बीच दगु ा शि ठाकरे क जीप आकर क । दगु ा
शि फ़ोन पर अ फ़ाक़ उ ा से बात कर रही थी। उसने अ फ़ाक़ को बताया िक
वो अबराम के कबाब पॉइंट पर है और अफ़ज़ल भी साथ म है। दगु ा ने अ फ़ाक़ को
भी वह बुला लया और फ़ोन काट कर गले लगे दोन भाइय क तरफ बढ़ गई।
दगु ा ने दोन से हाथ िमलाया। अबराम ने एक लड़के को आवाज़ देकर कुस
मंगवाई। स मान सह और देव त भी वह खड़े हो गए। अबराम ने िबना कुछ पूछे
दगु ा, स मान और देव त के लए काकोरी कबाब, परांठे और शीरमाल लाने को
बोला।
दगु ा ने हंसते हुए पूछा, ‘सम थग पेशल? बहुत ख़ुश हो दोन ।’
अफ़ज़ल बोला, ‘वो हम लोग कबाब क डग पर बात कर रहे थे।’
अबराम भी हंसने लगा, ‘म कह रहा था िक मेरा आई डया अ छा है, और
अफ़ज़ल अपना आई डया मुझे टैग कर रहा था, बस हो गई हाथापाई।’
दगु ा ने कंधे उचकाए, ‘ओ ह, तो या था अफ़ज़ल का आई डया?’
अफ़ज़ल बोला, ‘अरे वो तो मने बताया ही नह ।’
अबराम भी ज़ोर से हंसा, ‘हां गु , वो तो मने भी नह बताया।’
दगु ा ने दोन क तरफ मु कुराते हुए देखा, ‘कोई बात नह , अब बता दो दोन ।’
अफ़ज़ल बोला, ‘काकोरी एिनवसरी पर काकोरी कबाब! कैसा आई डया है?’
अबराम ने ज़ोर से ताली बजाई, ‘अरे गु , यही तो मेरा भी है। मने तो कूल के
ब के लए सपल से बात भी कर ली है।’
अफ़ज़ल ख़ुश हुआ, ‘ ेट!’
9 अग त को काकोरी कांड एिनवसरी पर, 8 डाउन लखनऊ-सहारनपुर पैसजर
म देशी-िवदेशी मेहमान को छोटे-छोटे ब के हाथ काकोरी कबाब टेन म सव
कराने का आई डया फ़ाइनल हो गया। इसी बीच टेबल पर तीन ड बे सजा िदए
गए। दगु ा ने दोन का आई डया ए ी शएट िकया िफर ड बा खोला, ‘ब स एं ड
ला ट इज़ ए यूिनक ड नेम। और तू जो ये ड बे पर काकोरी टेशन का येलो
टोनबोड ट करवाया, इट इज़ ऑ सो ए ेट थॉट।’
अबराम हंसने लगा, ‘मैडम बचपन से एक पज़ल सॉ व करता रहा िक यार टेन
िकसी टेशन के लेटफॉम पर जैसे ही एं टर करती है, तो बड़े से टोन बोड पर
काले रंग से टेशन का नाम लखा होता है और जब चल देती है, तो लेटफॉम के
ला ट म भी वैसा ही टोन बोड लगा रहता है—मगर पज़ल ये थी िक हर टेशन
का टोन बोड येलो य होता है?’
दगु ा ताली बजाते हुए ज़ोर से हंसी, ‘यार पज़ल तो एक और भी है िक हर टेशन
के टोन बोड पर, वो समुद ं र तल से ऊंचाई काई को लखी होती है?’
अफ़ज़ल ने मु कुराते हुए कहा, ‘समुद
ं र नह , समु तल—सी लेवल।’
दगु ा ने कबाब खाया, ‘हां, वईच! गुड…नाईस, वैरी नाईस पै कग एं ड पैके जग
िवद समुं । ओ हो, सॉरी अफ़ज़ल! समु तल से ऊंचाई वाला बोड इज़ सुपब
आई डया। अबराम वैरी टे टी, झकास कबा स!’
अबराम और अफ़ज़ल दोन मु कुराने लगे, मगर दगु ा कबाब परांठा खाते-खाते
सी रयस होकर पॉइंट पर आ गई। उसने अफ़ज़ल क ओर ख़ िकया, ‘सो
अफ़ज़ल, टाइम बहुत नह है, मुझे सीधे जवाब चािहए िक तू लखनऊ गवनमट के
टैटे ट स डपाटमट काई को गया था? बोल।’
अफ़ज़ल ने सीधा जवाब िदया, ‘ये तो सबको पता है, हां गया था।’
दगु ा ने िफर सवाल िकया, ‘मेरे को भी मालूम, मेरा वै न इज़ “काई को”
गया?’
‘मुझे टेट के सटीज़, टाउ स और उनके छोटे इलाक के टैटे ट स कले ट
करने ह। मेरे ोजे ट के लए इंपॉटट ह,’ अफ़ज़ल ने िफर सीधा जवाब िदया।
‘टेल मी इन डटेल,’ दगु ा ने कबाब तोड़ते हुए कहा।
अफ़ज़ल बोला, ‘मंगल, चं मा या िकसी भी और लैनेट क ज़मीन पर जो पहाड़
या ग ,े मतलब े टस होते ह, हम उनके नाम रखने होते ह। जन े टस का
डायामीटर स टी िकलोमीटर से कम होता है, ऐसे े टस का नाम उन शहर या
इलाक के नाम पर रखा जाता है, जनक पॉ युलेशन एक लाख से कम होती है।’
दगु ा ने अफ़ज़ल को पैनी नज़र से देखा, ‘और तू सफ इसके लए ही ये सारे
टैटे ट स कले ट कर रहा है, न थग मोर देन िदस?’
अफ़ज़ल ने सर िहलाया, ‘ऑफकोस!’
‘रािबया को कॉल बैक य नह िकया?’ दगु ा ने तीखा सवाल िकया।
‘तब तक उसके मरने क ख़बर टीवी पर आ चुक थी,’ अफ़ज़ल बोला।
‘क मीर िकतनी बार गया तू?’ दगु ा ने िफर सवाल दागा।
इस बार अबराम बोला, ‘दो बार आया था, अफ़ज़ल—एक बार पं डत जी…’
दगु ा ने अबराम को घूर कर देखा, ‘जबी तेरे को पूछूं, तब जवाब दे।’
अफ़ज़ल बीच म बोला, ‘दो बार, दोन बार अबराम से िमलने।’
‘अबराम तू िकतने साल नौकरी िकया क मीर म?’ दगु ा ने पतरा बदला।
अबराम ने झट से जवाब िदया, ‘क़रीब साढ़े तीन या चार साल।’
‘रािबया से या रलेशन था तेरा?’ दगु ा ने िफर पूछा।
अबराम ने बेिहचक कहा, ‘ ट था, दोन ही तरफ से…नो बडी वॉज़ सी रयस।
रािबया चांद और नसीम पपीते से परेशान थी, सो शी ोपो ड मी फ़ॉर मै रज, बट
वी बोथ वर नॉट योर अबाउट दैट।’
दगु ा ने दोन को अलट िकया, ‘आई हैव माय रीज़ स टू इ वे टगेट। मुझे मालूम
है तुम अ फ़ाक़ के बेटे हो, बट इ स नॉट पसनल।’
अफ़ज़ल और अबराम ने दगु ा शि से कहा िक वो कभी भी, िकसी भी वजह से
उनसे कुछ भी पूछ सकती है। दगु ा पहले ही अपनी टीम से दोन के मोबाइल
लोकेशन डटे स िनकलवाने का फैसला कर चुक थी। वो वहां से वापस िनकलने
को ही थी िक अ फ़ाक़ उ ा क जीप क । िविकपी डया साथ था। अ फ़ाक़ ने
दगु ा को अपडेट िदया िक ा के लए तीन रा त पर चे कग लगी हुई है, लेिकन
वो अभी तक हाथ नह आई है। दगु ा ने मान लया िक ा ठाकुर काकोरी से प ा
िनकल गई होगी।
िविकपी डया ने दगु ा को से यूट िकया और पूछा, ‘काकोरी कबाब खाया मैडम?
इसक भी िह टी है।’
दगु ा बोली, ‘मेरे को मालूम है—1921 काकोरी कबाब, 1925 काकोरी कांड।’
अ फ़ाक़ ने िविकपी डया से कहा, ‘चल-चल वो लैपटॉप ला।’
अ फ़ाक़ उ ा िब मल के ऑडर पर िविकपी डया लैपटॉप लाने के लए जीप
क तरफ चला गया। दगु ा शि , अबराम, अफ़ज़ल और अ फ़ाक़—सब साथ ही
खड़े थे िक तभी नसीम के तीन टपो एक के बाद एक वहां आकर के। एक टपो
डाइवर सीधे अबराम के पास आया और बोला, ‘नसीम भाई ने चांद भाई क वो
पेिटयां मंगाई ह।’
अबराम ने पूछा, ‘कौन सी पेिटयां? नसीम भाई से बात कराओ मेरी।’
डाइवर ने नसीम पपीतेवाले से अबराम क फ़ोन पर बात कराई और नसीम
पपीतेवाले के कहने पर अबराम ने डाइवर को छत वाले कमरे से पेिटयां ले जाने
को बोला। तीन डाइवर धीरे-धीरे सारी पेिटयां िनकाल कर टपो पर लादने लगे।
थोड़ी ही देर म सारी पेिटयां लद गई ं और टपो वहां से नसीम क बताई हुई जगह
पर चले गए। अ फ़ाक़ उ ा को अचानक कुछ याद आया, ‘अरे अबराम, ये तो वही
पेिटयां ह न, जो नया धंधा शु िकए थे दोन लोफ़र? यही पेटी तो साला चांद के
सर पर मारे थे!’
दगु ा ने कहा, ‘कौन सा धंधा?’
अ फ़ाक़ उ ा ने बेिफ ी िदखाई, ‘अरे कुछ ाउन शुगर का धंधा।’
दगु ा च क गई, ‘ए अ फ़ाक़, तू ग प बस रे, ाउन शुगर का धंधा?’
अफ़ज़ल बोला, ‘अरे ाउन शुगर नह , मुझे याद है चांद खुतरा ने अ पताल म
बताया था—येलो शुगर टाइप है कुछ, ड ट रमबर ए ज़े टली।’
अबराम ने अफ़ज़ल क बात म हां म हां िमलाई, ‘येलो शुगर ही बताया था।’
दगु ा ने बात टाली, ‘स मान, ये नसीम पपीते को थाने बुला।’
िविकपी डया ने अ फ़ाक़ उ ा को लैपटॉप पकड़ाया, ‘सर ली जए।’
अ फ़ाक़ ने लैपटॉप दगु ा शि को पकड़ाया, ‘ली जए मैडम।’
दगु ा ने च कते हुए लैपटॉप लया, ‘ हणजे काय?’
अ फ़ाक़ ने बताया, ‘अफ़ज़ल का लैपटॉप है, आप देखना चाहती थ न।’
अफ़ज़ल के लए अचानक ये बहुत बड़ा झटका था। उसे एक पल के लए लगा
जैसे रािबया बसर और चांद खुतरा के क़ ल म सफ एटीएस ही नह , ब क
उसका वा लद भी उस पर शक कर रहा है। उसका िदमाग़ खौल गया। उसने
अबराम और अ फ़ाक़ उ ा क तरफ ग़ु से से देखा, ‘ख़ाँ साहब, मुझ पर शक
करने से पहले पल भर को भी आपके िदल म ये याल नह आया िक एक बार
अफ़ज़ल से पूछ लया होता, जान लया होता िक सच या है?’
अ फ़ाक़ उ ा तैश म बोला, ‘अफ़ज़ल…’
अफ़ज़ल िबलिबला गया, ‘मेरा नाम आपक ज़ुबां पर गाली जैसा है ख़ाँ साहब।
ख़ैर, उस श स के आगे चीख़ने से या हा सल होगा जस श स को अपनी बीवी
क घुटती सांस तक न सुनाई दी ह । जो म रयम का न हुआ, वो भला उसक
िनशािनय का या होगा?’
अ फ़ाक़ भी नाराज़ हो गया, ‘तू सच म अंधा हो गया है, अफ़ज़ल। एक बार गौर
से देख, तेरे बाप ने ख़ाक पहन रखी है।’
अफ़ज़ल ने अ फ़ाक़ को घूरा, ‘न आप कुनबे के हुए और न ख़ाक के…’
दगु ा ने अफ़ज़ल के कंधे पर हाथ रखा, ‘ रलै स! इ स ंटी फोर कैरेट
ोफेशनल, बट जब तक इ वे टगेशन ख़ म नह हो जाती, तू कह नह जाएगा।
ऑन ए वैरी सी रयस नोट, वी नीड यॉर पासपोट, अफ़ज़ल।’
अफ़ज़ल झ ा गया, ‘ ोफेशनल समझ गया, बट हॉट अबाउट माय सी े सी?’
दगु ा शि थोड़ा सा ए े सव हो गई, ‘लेट मी टेल यू वन थग इन शॉट,
इ वे टगेशन म न थग इज़ सी े ट। ज ट वाना कैन द कॉ डने स यू आर व कग
ऑन, सो लीज़ कोऑपरेट एं ड कोऑ डनेट।’
‘ लीज़ ड ट कॉपी ऑर शेयर िवद एिनबडी,’ नाराज़ होकर अफ़ज़ल बोला।
अ फ़ाक़ उ ा ने अबराम और अफ़ज़ल क तरफ देखते हुए अपनी जेब से
अफ़ज़ल का पासपोट िनकाल कर दगु ा शि को थमा िदया। अफ़ज़ल, अबराम,
यहां तक िक ख़ुद दगु ा शि अ फ़ाक़ के इस ख़ से एकदम स रह गए। माहौल
पूरी तरह सी रयस हो गया। अफ़ज़ल और अ फ़ाक़ के बीच बाप-बेटे क महीन
डोर पहले से ही कमज़ोर थी, मगर आज क हरकत ने र त के बचे-खुचे नाम का
भी काम तमाम कर िदया। अ फ़ाक़ अपने अंदाज़ म हमेशा क तरह मज़बूत खड़ा
था। उसने जता िदया िक उसे अफ़ज़ल क नाराज़गी से कोई फक नह पड़ता।
अफ़ज़ल तो ख़ामोश हो गया, मगर अबराम को भी आज अ फ़ाक़ का ये अंदाज़
बदा त नह हुआ। असल म जो अ फ़ाक़ उ ा िब मल जानता था, उसक भनक
िकसी को भी नह थी। अगर आज उसने लैपटॉप दगु ा को ख़ुद नह िदया होता, तो
दगु ा घर से ज़ त कर लेती। अ फ़ाक़ उ ा को योर शॉट आई डया था िक दगु ा
शि उसके दोन बेट के मोबाइल भी खंगाल रही थी। दगु ा भी अ फ़ाक़ के
एटी ड ू से शॉ ड थी। लैपटॉप लेते ही वो समझ गई िक वो जो भी सोचती है,
अ फ़ाक़ उससे एक क़दम आगे सफ सोचता ही नह , कर डालता है। अबराम
अफ़ज़ल को लेकर िकनारे हो गया और अ फ़ाक़ िविकपी डया के साथ काकोरी
थाने क तरफ रवाना हो गया। जीप पर बैठ कर दगु ा शि भी स मान सह और
देव त के साथ थाने चली गई।
***
काकोरी थाने पर नसीम पपीतेवाला बैठा था। दगु ा शि के कहने पर उसे तलब
िकया गया था। दगु ा शि और अ फ़ाक़ उ ा के अंदर घुसते ही वो कुस से खड़ा
हो गया। दगु ा ने तुरत
ं स मान सह और देव त को तलाशी लेने को कहा। दोन ने
नसीम पपीतेवाले को जकड़ कर कुस पर बैठा िदया और िबना टाइम वे ट िकए
उसके गले म पड़ा ताबीज़ और हाथ म बंधा मोटा सा धागा काट िदया। ताबीज़
और धागा चेक करने के बाद स मान ने सर िहला कर जता िदया िक कुछ भी नह
िमला। दगु ा शि ने कुस के दोन ह डल पकड़ कर पपीतेवाले के मुहं के पास मुह

ले जाकर धमकाया, ‘कै सूल कहां है रे?’
पपीतेवाला सर झुकाकर बोला, ‘मैडम कै सूल नह , म इंसु लन लेता हू।ं ’
‘अरे मा याशी खोट नको बोलू…चांद खुतरा वाला कै सूल?’ दगु ा झ ाते हुए
बोली।
‘चांद ने या िकया, कैसे िकया मुझे सच म कुछ मालूम नह ,’ नसीम बोला।
दगु ा ने नसीम को बाल पकड़ िहला िदया, ‘साला, चांद के चकोर को मालूम नह
कुछ? एक थोबाडीत पडली, िक खरे बोलायला लागशील तू।’
िविकपी डया च ाया, ‘आईला!’
दगु ा बोली, ‘ यामाइला! तू समझा या िविकपी डया?’
िविकपी डया बोला, ‘हां मैडम, स चन तदल
ु कर को टीवी म सुना था।’
अब नसीम िगड़िगड़ाया, ‘म नह समझा मैडम।’
दगु ा बोली, ‘म हदी म समझाती तुझको—नंगा करके तेरे को तेरा गो डन जूते
से बंपर पर इतना मारेगी िक साला तू सब क़ुबूल कर लेगा।’
दगु ा अभी भी उसके बाल को ज़ोर से ख च रही थी। नसीम पपीतेवाला ने दद से
च ाते हुए अ फ़ाक़ क तरफ देखा, ‘मैडम, इं पे टर साहब मेरे मोबाइल क पूरी
तलाशी ले चुके ह। थोड़ा शायरी-वायरी, वा सप कर िदया था रािबया को, बाक
मुझे सच म कुछ नह पता।’
‘अबराम और रािबया का या रलेशन था?’ दगु ा ने सीधा सवाल िकया।
नसीम ने जवाब िदया, ‘कोई र ता नह था, बस दो त थे दोन ।’
‘और तू या है उसका?’ दगु ा ने पूछा।
लोफ़र नसीम पपीता अचानक संत हो गया, ‘अबराम तो पढ़ा- लखा है, अ ाह
का नेक बंदा—मुझ गलीज ने रािबया से िनकाह क िज़द न क होती तो अबराम
पर शक न होता पु लस को। अ ाह माफ़ करे।’
दगु ा के पीछे खड़ा अ फ़ाक़ च ाया, ‘चल बे, यादा वचन न दे। ये स संग का
टेज नह थाना है, िकतना हरामी है तू सब जानता हू।ं हम शक क योरी मत
समझा, वना हाथ डाल कर यह पटक दगं ू ा।’
दगु ा ने नसीम क जेब से जबरन मोबाइल िनकाला, ‘पासवड बोल।’
‘पपीता,’ नसीम बोला।
‘अबे नाम नह , पासवड,’ दगु ा गुराई।
नसीम बोला, ‘पासवड ही है मैडम, पपीता—पी ए पी डबल ई टी ए।’
दगु ा ने फ़ोन अनलॉक करके स मान क तरफ बढ़ा िदया।
अ फ़ाक़ उ ा ने िविकपी डया को इशारा करके पपीतेवाले के कॉल और
लोकेशन रकॉ स मांगे। िविकपी डया ने अलमारी से नसीम का पूरा रकॉड
अ फ़ाक़ को थमा िदया। अ फ़ाक़ ने दगु ा के पास आकर कहा, हम इसे चेक कर
चुके ह। रािबया मडर के व त लोकेशन ठीक थी इसक , बस रािबया के मोबाइल
पर वा सप मैसेज िमले थे।’
दगु ा ने नसीम को छोड़ा और पलट कर बोली, ‘ रकॉड ड टिबन म फक दो
अ फ़ाक़। चांद का क़ ल रािबया मडर के बाद हुआ है इस लए म नया लोकेशन
रकॉड मंगाई है। इसका काईप और हॉ सएप कॉ लग भी चेक करना मांगता,
देखूं तो साले शांणे का कने शन िकतना लूज़ है।’
स मान सह ने दगु ा शि को नसीम का मोबाइल थमाया, ‘कुछ नह है मैम—
जो स का कोई ुप है, उस पर लेटे ट मैसेज दो िमनट पहले आया है। थाने आने
से पहले सबकुछ डलीट करके आया है साला।’
स मान क बात सुनते ही अ फ़ाक़ उ ा ने ग़ु से म कुस पर बैठे नसीम क
छाती पर एक ज़ोरदार लात मारी। नसीम कुस के साथ नीचे िगर गया और उसका
सर ज़मीन पर कस कर टकरा गया। दगु ा ने उसे कॉलर से पकड़ कर उठाया,
‘काय कू डलीट िकया रे तू सब, बोल?’
नसीम िगड़िगड़ाया, ‘आप तो रकॉड मंगवा रही ह, सब देख ली जएगा।’
दगु ा ने कॉलर कस कर ख चा, ‘साला हॉ सएप और काईप, रकॉड म नह
आता इस लए न खेल िकया तू? पूरा टे नग िमला न तेरे को, पर क म जानती, म
तेरा पूरा र ज टर चाइना से मंगाती…देख तू!’
देव त बीच म बोला, ‘मैम इंटरनेट कॉ लग शो करेगा डटे स म।’
दगु ा ने देव त को टोका, ‘ए डोके ख़राब नको क तू, नंबर बताता या, बोल?
वतःला हीरो समज याची गरज नाही। समझा न? चुप कर।’
देव त सहम गया। अ फ़ाक़ और पूरा थाना ख़ामोश था। दगु ा शि ने नसीम के
कपड़े ठीक िकए, ‘चल तू िनकल अबी इदर से, तेरे को देखती म। तेरा कने शन
िनकला, तो कै सूल म खलाइगी तेरे को, चल।’
नसीम पपीतेवाला हाथ जोड़कर िनकलने लगा। स मान सह ने नसीम को
ताबीज़ और हाथ के धागे के साथ मोबाइल भी वापस कर िदया। नसीम सबकुछ
लेकर जैसे ही थाने के बाहर आया, वहां पर िद ी के नंबर क एक ल ज़री गाड़ी
आकर क । डाइवर ने गाड़ी का दरवाज़ा खोला। गाड़ी म से क़रीब स र साल का
एक बूढ़ा उतरा। उसके साथ उसका चालीस साल का बेटा भी था। दोन थाने के
अंदर जा रहे थे और नसीम पपीतेवाला बाहर िनकल रहा था। बूढ़े से नसीम क
नज़र िमल और िफर वो अंदर चले गए। थाने के अंदर पहुच ं कर बूढ़े ने इंटोड शन
िदया, ‘माय से फ, आशुतोष िनरंजन— रटायड आईएएस, ए स से े टरी डफस।
ही इज़ दीि मान िनरंजन, माय सन। वी आर सेटे ड इन ो रडा।’
दगु ा शि ने पहले से यूट िकया, िफर आगे बढ़ कर हाथ िमलाया। अ फ़ाक़ ने
भी से यट ू िकया और सपािहय ने फ़ौरन दोन के लए कु सयां लगाई ं। दगु ा ने
दोन के बैठते ही पूछा, ‘एिन थग फॉर अस सर?’
आशुतोष िनरंजन बोले, ‘मेरा एक सौ एकड़ का मगो गाडन है यहां पर, ज ट
िबसाइड लखनऊ-काकोरी रोड, वी आर िहयर टू सेल इट।’
अ फ़ाक़ समझ गया, ‘ओ ह सर, तो वो बाग आपका है, जहां पर रािबया का
मडर हो गया था? मने ही बोला था आपको बताने के लए।’
आशुतोष ने जवाब िदया, ‘जी, मुझे काकोरी थाने से ही िकसी ने इंफॉम िकया
था, हमने पैरटल ॉपट ज़ बेच कर ये बाग ख़रीदा था, लेिकन तीन-चार साल म भी
इं डया आना मु कल होता है, सो वी डसाइडेड टू सेल ऑफ़। माय सन इज़ डू इंग
वेल इन ो रडा एं ड वी आर फु ी सेटे ड देयर। मडर का पता लगा, तो सोचा बेच
देते ह। मज़दरू के भरोसे इसे नह छोड़ सकते ह, बहुत ग़लत हो गया।’
दगु ा ने इंटरवीन िकया, ‘ए ीड सर, बट हाऊ कैन वी हे प यू इन िदस?’
आशुतोष मु कुराया, ‘नो-नो, नॉट लाइक दैट। सोचा िक बेच रहे ह, तो आपको
इंफॉम कर द। अगर केस सॉ व होने तक हम नह बेच सकते तो भी कोई ॉ लम
नह है, दोबारा आ जाएं गे, बट वाना कम आउट ॉम िदस। बाक हम कुछ हे प
कर सकते ह , तो लीज़ टेल अस।’
दगु ा ने रए ट िकया, ‘नो ॉ लम, सर! आप बेच सकते ह। आप हमारी
इ वे टगेशन का पाट नह ह। िफर भी सीिनयस से बात करके बताती हू,ं अभी तो
आप ह गे ही यहां पर कुछ िदन और?’
‘हां, हम दो ह ते ह,’ आशुतोष के बेटे दीि मान ने जवाब िदया।
‘गुड, िवल लेट यू नो इन ए डे ऑर टू ,’ दगु ा ने भरोसा िदलाया।
आशुतोष वापस जाने को खड़े हुए और बोले, ‘एक और बात—कई परचेज़स ह
जो बाग देखना चाहते ह, इस लए हम बाग म गए थे सफाई कराने; सफाई म हमारे
मज़दरू को क चड़ म दबा हुआ कुछ िमला, सोचा आपको देता चलू।ं ’
दीि मान भी बीच म बोला, ‘यॉर ाइम सीन इज़ टल अनट ड।’
आशुतोष बोले, ‘हां, जो िमला है, वो क चड़ म था।’
दगु ा च क गई, ‘ऐसा या िमला? लेट मी सी।’
दीि मान ने डाइवर से बैग मंगाया और सीधे दगु ा शि को थमा िदया। दगु ा ने
उसे फ़ौरन खोल कर देखा, तो उसम काले पॉली थन म पैक मी डयम साइज़
क डल का एक पीस पड़ा था। इस पीस पर ख़ून के िनशान भी थे। दगु ा ने च क कर
पूछा, ‘ये या है? इसे िकसी ने टच तो नह िकया?’
दीि मान बोला, ‘नो मैम, हमारे बाग म मडर हुआ था इस लए हमने मज़दरू को
ल स पहन कर सफाई करने को बोला था। अगर ये केस से रलेटेड है, तो इसम
िकसी भी मज़दरू के फगर ट नह ह।’
अ फ़ाक़ बुरी तरह क यूज़ हो गया, ‘अरे ि पुरारी, चांद खुतरा इसी को तो
येलो शुगर बता रहा था। रािबया के घर पर इसक ही पेिटयां रखी थ न?’
ि पुरारी ने दौड़कर अलमारी खोली और उसम रखा िब कुल वैसा ही पीस
िनकाल कर अ फ़ाक़ को थमा िदया। अ फ़ाक़ ने दगु ा को दोन पीस िदखाए, ‘चांद
खुतरा क बिनयान जब काटी थी, तब िनकला था और दस ू रा वाला अबराम को
छत पर िमला था। वो ही हमको िदया था। ये साला येलो शुगर का च र या है?’
दगु ा ने स मान सह को ल स पहन कर क डल पीस का काला रैपर खोलने को
कहा और अ फ़ाक़ से फ़ौरन फॉर सक ए सपट को फ़ोन िमलाकर बुलाने क
ताक द क । अ फ़ाक़ उ ा ने लखनऊ मे डकल कॉलेज म तैनात फॉर सक
ए सपट डॉ टर किटयार को फ़ोन लगाया। रािबया बसर केस क सारी फॉर सक
इ वे टगेशन डॉ टर किटयार ने ही क थी। स मान सह ने क डल पीस का रैपर
हटाया और उसे अलग रख िदया य िक उस पर ख़ून के िनशान थे। सबको ये भी
उ मीद थी िक हो न हो कवर पर िकसी के फगर स भी िमल सकते ह। दगु ा ने
मेज़ पर यूज़ पेपर िबछा कर उस पीस को बीच से तोड़ा तो पीस म से पीले रंग क
श र के दाने िगरने लगे। दगु ा श र के दाने देख कर बौखला गई, ‘साला! सब का
सब पागल लोग, येलो शुगर नई रे, िदस इज़ लडी जेलेिटन टक। इ स
ए स लो सव!’
अ फ़ाक़ उ ा हड़बड़ा गया, ‘मैडम चांद खुतरा ने रािबया बसर क छत पर इसी
क पेिटयां रखवाई थ । इसी म से एक पेटी चांद खुतरा के सर पर पटक थी मने।’
िविकपी डया बीच म बोला, ‘मैडम, हम लोग जब अबराम के कबाब वाइंट पर
थे, तब टपो म यही पेिटयां तो लोड करके जा रही थ ।’
दगु ा ने आशुतोष और दीि मान को अपना नंबर देते हुए लखनऊ म ही दो ह ते
कने को कहा और फ़ौरन बाहर दौड़ी। पीछे -पीछे स मान सह और देव त भी
भागे। अ फ़ाक़ उ ा जैसे ही पीछे आया, दगु ा बोली ‘तू उस रैपर को लड
इ वे टगेशन के लए डॉ टर को दे, नसीम का लोकेशन ले। मेरे साथ नसीम के
घर दो-तीन सपाही भेज लउकर!’
आशुतोष िनरंजन और दीि मान भी बाहर िनकल कर अपनी गाड़ी से लखनऊ
रवाना हो गए। दगु ा शि ठाकरे क जीप तेज़ी से नसीम पपीतेवाला के घर क
तरफ बढ़ रही थी। स मान, देव त और चार सपािहय के साथ दगु ा नसीम के घर
के अंदर घुसी। अंदर नसीम क अ मी पु लस को देख कर घबरा गई। दगु ा शि ने
नसीम और पेिटय के बारे म उससे पूछा, पर उसे बस इतना ही पता था िक नसीम
काकोरी थाने गया और तब से लौट कर नह आया। पेिटय के बारे म उसे कुछ
नह पता था। घर के दोन ोर पु लस ने चेक िकए, मगर कुछ हाथ नह लगा।
नसीम क अ मी ने पीछे क तरफ बड़े से लॉन म बने ू ट गोडाउन क तरफ
पु लस को भेजा। फल क कम से कम दो सौ पेिटयां गोडाउन म रखी थ । वहां क
तलाशी म भी कुछ नह िमला। तभी देव त अंदर से दवा क एक छोटी सी शीशी
लेकर आया। शीशी म तीन कै सूल पड़े थे। सारे कै सूल सायनाइड वाले कै सूल
जैसे थे। स मान सह ने वो र ज टर खंगाला, जस पर हर टपो का यौरा लखा
जाता था।
***
उधर अ फ़ाक़ ने तह वर के घर पर छापा मारा, लेिकन कह कुछ हा सल नह
हुआ। अबराम और अफ़ज़ल तह वर के घर पर ही थे। अ फ़ाक़ के कहने पर
पु लस अबराम और अफ़ज़ल के साथ दरगाह से लौटे तह वर को थाने ले गई। दगु ा
भी थाने वापस आ गई। अंदर पहुच ं कर दगु ा ने अबराम और अफ़ज़ल से जेलेिटन
टक के बारे म पूछा, लेिकन दोन ने साफ़ कहा िक उनको नह पता था िक जो
क डल है असल म जेलेिटन ट स ह। जेलेिटल टक शायद िकसी ने आज
तक देखी नह थी इसी लए हर िकसी को जेलेिटन े यु स येलो शुगर लग रहे थे।
दगु ा शि ने अ फ़ाक़ उ ा से नसीम पपीतेवाला क लोकेशन के बारे म मालूम
िकया, तो पता चला िक नसीम पपीतेवाला फ़ोन ही नह उठा रहा है। पु लस और
एटीएस नसीम को दबोचना तो चाहती थी, मगर िबना िकसी शोर-शराबे के। चांद
खुतरा ने सायनाइड खाकर ख़ुद को मारने क को शश क थी। नसीम के घर से
सायनाइड क शीशी बरामद हो ही चुक थी। पु लस और एटीएस कोई र क नह
लेना चाहती थी। ख़तरा इस बात का था िक नसीम के पास शीशी के अलावा भी
अगर कोई कै सूल हुआ, तो वो ख़ुद को मार डालेगा।
रािबया बसर का अ बू तह वर ख़ाँ अब तक समझ चुका था िक हो न हो चांद
और नसीम टेरे र ट ह। जेलेिटन और सायनाइड िमलने के बाद काकोरी पु लस
और एटीएस—दोन को ही समझ म आ चुका था िक कोई टेरे र ट मॉ ूल अपने
लीपर से स के ज़ रए कह िकसी बड़ी टेरर ए टिवटी क ला नग कर रहा है।
मगर सवाल ये था िक चांद और नसीम के अलावा लीपर सेल के तौर पर अभी
और िकतने टेरे र ट काकोरी, लखनऊ या आसपास के इलाक म मौजूद ह।
तह वर ने दगु ा और अ फ़ाक़ से हाथ जोड़ कर पूछा, ‘साहब, ये सब या है?
िकस बा द के कारोबारी बन गए ह ये सब के सब?’
अ फ़ाक़ ने तह वर के कंधे पर हाथ रखा, ‘आपने कभी चांद से पूछने क
को शश नह क िक वो बा द का िठकाना बना रहा है आपके घर को?’
तह वर का बूढ़ा हो चुका गला ं ध गया, ‘उस िदन रािबया बहुत नाराज़ थी।
मज़दरू पेिटयां छत पर चढ़ा रहे थे। ज़ीने पर पेटी िगर कर िबखर गई। उसम से
िनकला एक टु कड़ा मने ही उसे उठा कर िदया था। मुझे अ छी तरह से याद है िक
उसने दराज़ म वो टु कड़ा महफूज़ रख िदया था, मगर अब वहां नह है। आज
बा द का वही टु कड़ा आम के उस बाग म बरामद हुआ, जहां मेरी रािबया का
क़ ल हुआ था। कमज़फ चांद और नसीम ने मेरा घर, मेरी ख़ु शयां सब छीन ल ।
या अ ाह! मेरी रािबया का याल रख, मुझे पनाह दे अपनी रहमत म…रािबया!
मेरी ब ी।’
सब ख़ामोश थे िक तभी दगु ा ने स मान से च ा कर कहा, ‘ या रे, नसीम क
अ मी से र ज टर तू रफ वक करने के लए लाया? टपो के नंबर स युलेट िकया
के नई?’
स मान सह थोड़ा सहमा, ‘मैम हेड वाटर को भेज िदया है—तीन टपो ह,
वायरलेस भी हो चुका है। ख़बर लगते ही फ़ौरन इ ला करगे।’
आज काकोरी थाना और एटीएस ही नह , पूरा का पूरा माहौल हड़बड़ा चुका
था। एक सपाही फॉर सक ए सपट डॉ टर किटयार के साथ अंदर आया। डॉ टर
किटयार ने अंदर आते ही दगु ा शि को अपना इंटोड शन िदया। स मान सह
और देव त ने डॉ टर किटयार को इ वे टगेशन के लए जेलेिटन टक का रैपर
और सायनाइड क शीशी दे दी। दगु ा ने डॉ टर किटयार को सजेशन िदया िक रैपर
के लड सपल को रािबया के लड सपल से हर हाल म मैच कर लया जाए। दगु ा
शि ही नह ब क सभी मान चुके थे िक जेलेिटन टक रािबया बसर ही आम के
बाग तक ले गई थी य िक रािबया क दराज़ से जेलेिटन टक अब ग़ायब थी।
दगु ा शि को िव ास था िक इस जेलेिटन टक का रािबया मडर केस से सीधा
रलेशन है और इस रलेशन को सािबत करने के लए नसीम पपीतेवाला का
िमलना बेहद ज़ री है। जेलेिटन टक के रैपर का सपल और सायनाइड क
शीशी लेकर डॉ टर किटयार लखनऊ रवाना हो गए। रात के नौ बजे थे। अबराम
और अफ़ज़ल तह वर को लेकर घर क ओर चलने लगे, तो तह वर ने दोन को
घर के बजाय काकोरी दरगाह छोड़ने को कहा। आज काकोरी शरीफ़ उस का
आ ख़री िदन था। हज़रत शाह मु तफा हैदर कलंदर का कुल शरीफ़ था इस लए
कौल पढ़े जाने थे, क वा लयां होनी थ और हज़ार क भीड़ इसम शरकत करने
वाली थी। हेड कां टेबल ि पुरारी पांडे के मोबाइल क घंटी बजी। कॉल रसीव
करके ि पुरारी ने मोबाइल अ फ़ाक़ को पकड़ा िदया। अ फ़ाक़ ने बस दस सेकड
बात क और फ़ोन ि पुरारी क तरफ बढ़ा िदया। अ फ़ाक़ उ ा दगु ा शि ठाकरे
को इशारे से द तर के पीछे वाले कमरे म ले गया। अ फ़ाक़ उ ा ने अकेले म दगु ा
शि को बताया िक िपछले तीन घंटे से नसीम पपीतेवाला क ला ट लोकेशन
काकोरी दरगाह है।
अ फ़ाक़ ने दगु ा से कहा, ‘हो सकता है नसीम को अभी तक मालूम ही न हो िक
जेलेिटन रॉ स के बारे म पु लस जान चुक है।’
दगु ा बोली, ‘हमने घर पर रेड मारा, उसक अ मी इंफॉम कर चुक होगी।’
अ फ़ाक़ ने तक िदया, ‘लेिकन उसने मोबाइल ऑन िकया हुआ है, शा तर है
साला! जानता तो ज़ र होगा िक हम मोबाइल टेस कर सकते ह।’
दगु ा ने सर िहलाया, ‘पॉ सबल है िक उसे मालूम हो…बट मे बी ही इज़ नॉट
अवेयर अबाउट अस, ले स टेक ए चांस।’
हेड कां टेबल ि पुरारी पांडे और िविकपी डया काकोरी म कई साल से तैनात
थे। दोन ने काकोरी दरगाह का उस देखा था। उ ह ने बताया िक उस म नसीम को
पकड़ने के लए ज़बरद त सावधानी क ज़ रत है। फोस देखकर कह नसीम ही
कोई गड़बड़ी न कर दे और भीड़ म कह िकसी को कोई नुकसान न पहुच ं जाए।
दगु ा ने लान सभी को बताया, ‘स मान, यू एं ड देव त िवल बी इन पठानी सूट
िवद कल कैप एं ड िविकपी डया, रमाकांत, ि पुरारी—तुम यहां पहले से तैनात
हो, तुम लोग को सब पहचानते यहां…यू गो इन बुका। गौतम तू नसीम के घर जा
और जब म बोलूं नसीम के मोबाइल पर उसक अ मी के फ़ोन से कॉल करना।
साला कहां जाएगा बच कर?’
सभी वायरलेस से लैस होकर दरगाह क तरफ िनकल गए। काकोरी शरीफ़
दरगाह जगमगा रही थी। उस कह या मेला, हर तरफ भीड़ थी। बाहर से भीतर तक
चाइनीज़ झालर फ वारे क तरह रोशनी फुहार रही थ । टेज पर हरे रंग क
चमक ली अचकन और टोपी पहने महताब आलम क वाल क उं ग लयां
हारमोिनयम से खेल रही थ । अगल-बगल बैठे सा जदे मडो लन और नाल पर
जुगलबंदी कर रहे थे। बाहर मैदान म ब े झूले झूल रहे थे। इस मेले म सफ
मुसलमान ही नह ब क हद ू भी थे, य िक काकोरी का धम सफ सूफ है।
ाइम तो हर जगह होता है, मगर काकोरी म कभी दंगे नह हुए। गु बारे वाले, चाट
क दकु ान, बुिढ़या के बाल खाते ब े। िविकपी डया, ि पुरारी, रमाकांत ने पहले
एक दसू रे को देखा िफर एक साथ बुका ढंक कर दरगाह के अंदर चल िदए। देव त
और स मान पठानी सूट के साथ टोपी पहन कर भीड़ म गुम हो गए। तभी
लाउड पीकर पर क वाल का सुर गूज ं ा:
आ िपया इन नैनन म,
जो पलक ढांक तोहे लू,ं
न म देखूं गैर को,
न तोहे देखन द…
ंू
अ फ़ाक़ उ ा और दगु ा शि भी टेज के पीछे थे। दगु ा शि ने अ फ़ाक़ को
इशारा िकया िक वो दाई ं तरफ जाएगी और अ फ़ाक़ बाई ं तरफ। दोन अपने-अपने
रा ते चल िदए। भीड़ म त मगन नाच रही थी। कुछ लोग ऐसे भी थे, जो अपने
मोबाइल फ़ोन से वी डयो बना रहे थे। लाउड पीकर पर क वाली बज रही थी:
छाप तलक सब छीनी रे,
मोसे नैना िमलाय के,
नैना िमलाय के,
नैना िमलाय के, नैना िमलाय के…
देव त और स मान सह हर कोने म घूम-घूम कर और िविकपी डया, ि पुरारी
पांडे, रमाकांत अलग-अलग जगह पर बुक के भीतर से सफ नसीम पपीते को
तलाश रहे थे। लेिकन कोई और भी था जो इस भीड़ म बुका पहन कर नसीम पर
नज़र लगाए था। तभी दगु ा ने गौतम को फ़ोन िमलाया और नसीम पपीते के घर पर
मौजूद गौतम ने फ़ोन काट कर नसीम क अ मी के नंबर से नसीम का नंबर डायल
करना शु कर िदया। पहली रग, दस ू री रग, तीसरी, चौथी, पांचव , छठी…
लाउड पीकर पर क वाली लगातार गूज ं रही थी और उसम कुछ सुनाई नह दे रहा
था।
बुका पहने दगु ा ने वायरलेस पर स मान से बाहर जाकर सफ एक िमनट के लए
लाइट काटने को कहा। स मान बाहर क तरफ िनकल गया। दगु ा का वायरलेस
मैसेज पूरी टीम ने सुना। अ फ़ाक़ ने वायरलेस पर बताया िक माइ ोसेकड के
लए ही स ाटा होगा इसी बीच हमको उसे दबोचना होगा।
गौतम लगातार नसीम क अ मी के नंबर से नसीम को फ़ोन िमला रहा था। तभी
लाइट चली गई। बस एक पल को स ाटा हुआ और इसी स ाटे म लगातार गूज ं ती
मोबाइल क रग टोन सुनाई दी। एक बुक वाली ने बुक क जेब म मदाना हाथ डाल
कर मोबाइल िनकाला। इ ेफाक से दगु ा पास ही खड़ी थी। दगु ा ने मोबाइल वाला
हाथ पकड़ लया और रवॉ वर िनकल कर उसक पीठ म ख स दी। दगु ा ने उसे
चुपचाप बाहर चलने को कहा। दगु ा क िगर त म आई बुक वाली क कमर म
रवॉ वर सटी हुई देख पांच मीटर क दरू ी पर खड़ी दस
ू री बुक वाली तेज़ी से टेज
क तरफ बढ़ने लगी और िफर दौड़ने लगी। इस बुक वाली ने पैर म गो डन
ए ॉयडरी वाली पेशावरी पहन रखी थी। सेकड के टथ पाट का साइलस और िफर
भीड़ का शोर गूज
ं उठा। स मान ने दोबारा से लाइट ऑन कर दी। क वाली िफर
शु हो गई।
गो डन पेशावरी पहने बुक वाली तेज़ी से टेज क तरफ दौड़ रही थी और
उसक पेशावरी देखते ही एक और बुक वाली उसके पीछे चल दी। टेज क तरफ
थोड़ा और आगे बढ़ने के बाद वो गो डन पेशावरी पहने बुक वाली के सामने खड़ी
हो गई। पेशावरी पहने बुक वाली ने फ़ौरन अपना बुका उठाया, वो नसीम
पपीतेवाला था। दस
ू री बुक वाली ने नसीम पपीते को गले लगाया और उसके बुक
क जेब म कुछ डाल िदया। नसीम को ऐसा लगा जैसे उसके पेट म कोई सूई चुभी।
दगु ा ने भीड़ कम होते ही वायरलेस पर सबको कहा िक नसीम पपीतेवाला उसके
क ज़े म है। मैसेज देने के बाद दगु ा शि ने उसका बुका उठाया, पर बुक के अंदर
से नसीम पपीता नह , उसका एक डाइवर िनकला। उसने पलट कर अंदर देखा तो
लड़खड़ाता हुआ नसीम बुका पहने-पहने ध म से ज़मीन पर िगर गया। नसीम को
िगरता देख दगु ा शि वायरलेस पर च ाई, ‘पपीता अंदर है, वो बुकवाली मार कर
भागी नसीम को, उसे पकड़ो।’
वायरलेस मैसेज सुन कर अ फ़ाक़, ि पुरारी, देव त, स मान और िविकपी डया
टेज क तरफ तेज़ी से भागे। दगु ा क ला नग तो फुल ूफ थी, लेिकन जो बुक
वाली नसीम पर नज़र लगाए हुए थी, उसक ला नग म गो डन पेशावरी भी
शािमल थी। फ़ोन क रग सुन कर दगु ा ने बुका पहने डाइवर को नसीम समझ कर
जैसे ही पकड़ा, वैसे ही बुका पहने नसीम वहां से तेज़ी से दस
ू री तरफ भागने लगा।
उसक पेशावरी पहचानते ही उस बुक वाली ने अपना काम कर िदया, जो पु लस
और एटीएस क तरह ही नसीम पपीतेवाला को पहले से ढू ंढ़ रही थी।
ज़मीन पर पड़े नसीम को बुक म देख कर अ फ़ाक़ उ ा िब मल च क गया।
नसीम को धीरे-धीरे सबकुछ धुध ं ला नज़र आने लगा। उसे तुरतं जीप म डाला
गया। नसीम बेहोश होने लगा। दगु ा उसके चेहरे पर लगातार थपक दे रही थी। उसे
आवाज़ दे रही थी, लेिकन नसीम अब कुछ नह बोल रहा था। उसके हाथ-पैर ठंडे
पड़ चुके थे। तभी दगु ा ने देखा िक नसीम के बुक क जेब म कोई भारी सी चीज़ थी
और जेब अलग से लटक रही थी। उसने जेब म हाथ डाला, तो अंदर से जो चीज़
िनकली, उसे देख कर अ फ़ाक़ उ ा और दगु ा दोन च क गए। नसीम क जेब से
ा ठाकुर का टेराकोटा वाला जमन माऊज़र िनकला, जो उसके घर से चोरी
हुआ था। साथ ही एक कागज़ भी िनकला जस पर हद ु तान रप लकन
एसो सएशन लखा था। दगु ा और अ फ़ाक़, दोन के मुहं से एक साथ एक ही नाम
िनकला— ा ठाकुर। अ फ़ाक़ ने अ पताल चलने को कहा, पर देर हो चुक थी।
दगु ा ने तुरत
ं डीजीपी बृजलाल कुल े को फ़ोन लगाया और बोली, ‘सर,
नसीम पपीते को भी कोई मार िदया है। लीज़ अलाऊ मी टू गेट िहज़ पो टमॉटम
डन एट िदस टाइम, लीज़ सर।’
डीजीपी ने मंज़ूरी देते हुए कहा, ‘ठीक है, टेक िहज़ बॉडी टू द मॉचरी।’
दगु ा ने राहत क सांस ली, ‘थ स सर! िवल शट िदस केस एएसएपी, सर।’
डीजीपी ने गहरी सांस भरी और कहा, ‘मीट मी टु मारो िवद यॉर ो ेस।’
अ फ़ाक़ उ ा ने ि पुरारी और देव त के साथ बॉडी पो टमॉटम के लए भेज
दी। बॉडी लेकर दोन अ पताल क जीप से लखनऊ मॉचरी रवाना हो गए। दगु ा
शि अ फ़ाक़ उ ा के साथ काकोरी थाने चल दी। थाने पहुच ं कर दगु ा ने
अ फ़ाक़ उ ा िब मल से रािबया के मडर क सारी रपो स मांग । िविकपी डया
ने अलमारी से िनकाल कर अब तक िमले सारे जेलेिटन ट स, रािबया का
मोबाइल, पो टमॉटम रपोट, फॉर सक रपोट, ा ठाकुर, रािबया बसर, नसीम
पपीतेवाला और चांद खुतरा के कॉल डटे स के साथ चांद क पो टमॉटम रपोट
भी दगु ा शि को स प दी। दगु ा ने नसीम पपीतेवाले क जेब से िमले माऊज़र और
हद ु तान रप लकन एसो सएशन लखा हुआ कागज़ स मान सह को थमा
िदया। स मान सह ने सारी चीज़ उठाई ं और दगु ा शि के साथ बाहर चल िदया।
दगु ा शि अपने साथ मेज़ पर रखा अफ़ज़ल का लैपटॉप भी ले गई। वो केस को
एक बार िफर शु से समझना चाहती थी। हर तार को जोड़ कर, पूरी ोनोलॉजी
को अपने िदमाग़ म काढ़ना चाहती थी। पर अ फ़ाक़ उ ा िब मल पूरा केस
जानता था। उसके िदमाग़ म कोई शक नह था और टारगेट ि यर था। अ फ़ाक़
उ ा को मालूम था िक सफ और सफ ा ठाकुर को दबोच कर ही ये केस
सुलझ पाएगा, वना काकोरी म एक के बाद एक लाश िगरती रहेगी और लाश िगराने
वाला कोई बड़ा कांड करके िनकल जाएगा। इस खेल म जसने भी ा ठाकुर को
पकड़ा, वो ही होगा गेम िवनर।
***
पु लस गे ट हाउस म दगु ा शि ठाकरे क न द उड़ी हुई थी। वो अफ़ज़ल का
लैपटॉप गौर से देख रही थी। हर एक ए लकेशन और छोटी से छोटी डटेल पर वो
पैनी नज़र रख रही थी। लैपटॉप देखते-देखते उसने पलंग पर रािबया मडर केस
क सारी डटे स एक-एक कर सजानी शु क । इसके बाद वो पलंग से दरू जाकर
फुल िवज़न म देखने लगी। एक कागज़ पर कॉ डने स लगा कर जगह के नाम
पढ़ने लगी।
उधर अ फ़ाक़ उ ा िब मल अपने घर पर था। अबराम और अफ़ज़ल डाइ नग
टेबल पर बैठे थे। अ फ़ाक़ उ ा अपने कमरे से कुछ यूज़ पेपर क ट स लेकर
िनकला और उ ह अबराम के सामने रख िदया। अबराम पेपर क टग पढ़ने लगा।
पढ़ने के बाद अबराम ने क ट स अफ़ज़ल क तरफ बढ़ा द । अफ़ज़ल उ ह पढ़ने
के बाद बोला, ‘बहुत देर हो गई ख़ाँ साहब, बहुत देर हो गई।’
अ फ़ाक़ उ ा खीझ कर बोला, ‘जो छुपाया था, आज िदखा रहा हू।ं भले ही
मुझे अठारह साल लग गए, लेिकन तेरी अ मी के का तल को एक-एक करके
एनकाउं टर म मरवा डाला…अब तो माफ़ कर दे!’
अफ़ज़ल मु कुरा कर बोला, ‘ख़ाँ साहब, तीन बदमाश थे। आज नह तो कल
मारे ही जाते। बदला आपने नह लया, पु लस ने उ ह मारा है।’
अ फ़ाक़ च ाया, ‘हां, मने नह मारा—कभी सहारनपुर पु लस, कभी मुज़ फर
नगर पु लस ने मारा, पर पेशबंदी मने क । पु लस के दो त से मुकदमे पर मुकदमे
दज करवा कर िह टीशीटर बना डाला साल को। कोई जेल म मरा, कोई पेशी पर
और कोई पु लस क टडी म।’
अबराम खड़ा हो गया, ‘महान मत बिनए पं डत जी। ि िमनल थे सब के सब,
िह टीशीटर भी थे, िकसी ने मार िदया…शायद आपने मार िदया होता, मगर सच
कहां ले जाएं िक उ ह ने अ मी को मार डाला।’
‘और अ मी को उ ह ने मारा, जनसे हमारे ख़ाँ साहब ने पैसे लए—मेरे
खलौन के लए, तु हारी टॉिफय के लए। मेरा अ ाह, मेरी अ मी, कभी माफ़
नह करगे आपको,’ अफ़ज़ल बेहद ग़ु से म बोला।
अ फ़ाक़ उ ा क आं ख से आं सू िनकल पड़े। अबराम और अफ़ज़ल के गाल
पर हाथ फेर कर अ फ़ाक़ ं धे हुए गले से बोला, ‘अ ाह से तुम दोन के लए दआ

मांगना कई मतबा भूल गया। अ सर अ ाह को भी याद करना भूल गया, मगर
म रयम के का तल को रोज़ ये सोच कर ज़दा रखा िक कह व त क गत मेरे
अंदर क आग को राख न कर दे। म रयम सब देख रही है।’
‘अ मी देख रही ह िक आज आपने मुझे भी फंसा िदया,’ अफ़ज़ल बोला।
अ फ़ाक़ मु कुराया, ‘व त बताएगा बेटा िक बचा रहा हूं या फंसा रहा हू।ं ’
कहते-कहते अ फ़ाक़ िबना कुछ खाए अपने कमरे क तरफ बढ़ गया। अब उसे
यक न था िक उसके बेटे उसे कभी माफ़ नह करगे। म रयम को याद करते
अ फ़ाक़ उ ा ने रात आं ख म ही गुज़ारनी शु क । हर तरफ से ज़दगी ने मोचा
खोल रखा था। एक तरफ बेटे, दस
ू री तरफ लगातार िबगड़ता हुआ केस। वो करवट
पर करवट बदल रहा था िक अचानक लखनऊ मे डकल कॉलेज से फ़ोन आया।
फ़ोन पर डॉ टर स हा ने बताया िक नसीम पपीतेवाले क बॉडी म न कोई घाव
िमला और न कोई पॉयज़न, उसक मौत म टी ऑगन फे लयर से हुई है। अ फ़ाक़
ने िबना व त गंवाए दगु ा शि ठाकरे को फ़ोन लगाया। फ़ोन पर म टी ऑगन
फे लयर क रपोट सुन कर वो च क गई। आ ख़र ऐसा या हुआ िक नसीम
पपीतेवाला देखते-देखते मर गया? कौन थी वो बुक वाली औरत जो नसीम से
टकराई थी? अ फ़ाक़ और दगु ा को सफ ा ठाकुर क श िदखाई दे रही थी।
दोन रात भर इस गु थी को सुलझाने का रा ता ढू ंढ़ते रहे।
***
लखनऊ-अयो या हाईवे पर कल रात से सैकड़ टक और गािड़य का क़रीब तीन
िकलोमीटर लंबा जाम लगा था, सुबह का क़रीब नौ बजा था, दरू मंिदर म घंटे बजने
क आवाज़ सुनाई दे रही थी। शोर यादा न हो तो बजरंग बली क आरती कान
और यान लगा कर सुनी जा सकती थी। अयो या म, हनुमान गढ़ी हाईवे के पास
ही है। 6 िदसंबर 1992 के बाद इस सड़क पर हर दो सौ मीटर क दरू ी पर पु लस
बै रके डग लगी ही रहती है। माहौल जब भी स सिटव होता है, बस यही बै रके डग
पु लस का चेक पॉइंट बन जाती है। और कल रात से हेड वॉटर के मैसेज पर
नसीम पपीतेवाला के टपो पकड़ने के लए पु लस ने ज़बरद त चे कग लगा रखी
थी। चे कग के च र म ही लंबा जाम लगा हुआ था। हर गाड़ी क डीप चे कग के
बाद ही पु लस धीरे-धीरे टैिफक रलीज़ कर रही थी। इसी बीच एक पु लस वाला
च ाया, ‘सर ये तीन टपो उसी नंबर के ह जो एटीएस ने स युलेट िकए ह, ज दी
आइए।’
पु लस ने तीन टपो को मैटल डटे टर से सच िकया। पपीता, संतरा, सेब,
चाइनीज़ डैगेन ू ट के काटन हटाते ही डटे टर बीप करने लगा। पु लस ने पेिटयां
खोलना शु िकया तो उनम से जेलेिटन ट स िनकलने लग । फ़ौरन वायरलेस
िकया गया और टपो सीज़ करके डाइवस को अरे ट कर लया गया। ख़बर िमलते
ही दगु ा शि ने डाइवस को काकोरी थाने भेजने का ऑडर िदया। दगु ा शि ने
अ फ़ाक़ को फ़ोन कर सारी इंफॉमशन दी और पूछताछ के लए उसे तुरत ं थाने
बुलाया।
***
लखनऊ से काकोरी जाने वाले हाईवे के दोन तरफ काकोरी एिनवसरी के हो डग
बैनर लग रहे थे। हो डग म राम साद िब मल, ठाकुर रोशन सह, अ फ़ाक़ उ ा
ख़ाँ, राजे नाथ लािहड़ी क फांसी के फंदे को गले म डाले हुए मु कुराती हुई
त वीर बनी थ और सबसे ऊपर लखा था:
“सरफ़रोशी क तम ा अब हमारे िदल म है”
“9 अग त काकोरी क 95व सालिगरह”
“शहीद क धरती पर आपका वागत है”
काकोरी टेशन से लेकर काकोरी शहीद मारक तक सबकुछ सजाया जा रहा
था। फांसी के फंदे को चूमते शहीद क वॉल प टग, तरंगे झंडे और सरफ़रोशी का
गीत पट िकया जा रहा था। काकोरी के तमाम कूल के छोटे-छोटे ब े, घर-घर
पच बांट रहे थे। सड़क और गली मोह म पो टर चपकाए जा रहे थे। हर एक
ई ंट म आज भारत देश िदखाई दे रहा है। काकोरी हायर सेकडरी कूल म ब े
देशभि गीत गा रहे थे:
मज़हब नह सखाता
आपस म बैर रखना
हदी ह हम वतन है
हदो तां हमारा हमारा
सारे जहां से अ छा
हदो तां हमारा हमारा
हम बुलबुले ह इसक
ये गु ल तां हमारा हमारा
***
मु ालाल प कार कैमरा मैन सटू के साथ सबकुछ शूट कर रहा था। कूल के
टीचस क बाइट लेने के बाद वो ब को भी कैमरे म क़ैद कर रहा था। ब क
कतार देख कर लग रहा था, जैसे तरंगा लहरा रहा हो—एक कतार म ब ने
केस रया रंग के कपड़े पहने थे, दस
ू री म सफेद और तीसरी कतार म हरे। इ ह
ब म कोई चं शेखर आज़ाद बना था, तो कोई भगत सह, राम साद िब मल
और कोई अ फ़ाक़ उ ा ख़ाँ। टीचस और कूल के बाक ब क भीड़ मैदान म
खड़ी ताली बजा रही थी। आज ब े अबराम के साथ काकोरी एिनवसरी के
फं शन के लए रहसल कर रहे थे। गीत ख़ म होते ही मु ालाल अबराम के पास
बाइट लेने के लए आया। अबराम मु ालाल को बाइट देने के बाद सरफ़रोश क
डेस पहने ब के साथ से फ ख चने लगा। तरंगी कतार म ब को खड़ा कर
अबराम िफर से फ ि क करने लगा। मु ालाल बैक ाउं ड म इन सभी को लेकर
काकोरी शहीद और ब क उमंग के बारे म कैमरे पर बोलने लगा। से फ ख चने
के बाद अबराम वापस जाने लगा िक तभी मोबाइल पर हॉ सएप नोिटिफकेशन
चमकने लगे। सभी फ़ोटोज़ थ । जैसे ही फ़ोटो डाउनलोड कं लीट हुआ, वो च क
गया। सारी फ़ोटोज़ उसी क थ —ब के साथ से फ लेते हुए। उसने चार तरफ
देखा, मगर उसे कुछ समझ नह आया िक ये कौन हो सकता है। मु ालाल कैमरे
पर बोल रहा था, ‘कैमरामैन सटू दबु े के साथ काकोरी से मु ालाल प कार क
काकोरी सालिगरह क सुपर पेशल रपोट।’
अबराम दौड़ कर मु ालाल के पास आया, ‘मुझे थाने तक छोड़ दे यार।’
अबराम को लेकर मु ालाल थाने क तरफ चल िदया। वहां पहुच ं ते ही चीख़
सुनाई द । बफ क स ी पर उ टा बांध कर अयो या म पकड़े गए डाइवस क
सुताई चल रही थी। जस डाइवर ने उस म बुका पहन कर नसीम पपीतेवाले का
मोबाइल रखा हुआ था, उसे भी ज़मीन पर लटाकर थड ड ी िदया जा रहा था।
डाइवर च ा रहा था। उधर दगु ा शि और अ फ़ाक़ टपो डाइवर को मार-मार
कर सद म भी गम का अहसास ा करा चुके थे। तब तक रमाकांत और
िविकपी डया रोटी सकने वाले चमटे लेकर आए। दगु ा और अ फ़ाक़ ने दो डाइवर
के शरीर पर बचा-खुचा पटरेदार अंडरिवयर भी उतरवा िदया। िबना कपड़ के पड़े
हुए डाइवर को देख कर आदम और हौ वा म से सफ आदम क याद आ गई।
शुि या आदम का जसने प क कट बनाई। लेिकन आज तो प ा-प ा हट
चुका था, सफ बूटा-बूटा िदखाई दे रहा था। एक चमटा दगु ा शि ने पकड़ा और
दसू रा अ फ़ाक़ उ ा ने। बस िफर या था, जो अंग मद होने का आईडिटटी काड
था, जो अंग रंगबाज़ी िदखाने का यं -तं -संयं था, वो अंग आज य -त -सव
सकुड़ कर कोमलांग बन गया था। दगु ा और अ फ़ाक़ ने दोन डाइवर के
कोमलांग को चमट म पूरी ताकत से जकड़ लया। िफर सेकड लॉ ऑफ़ मोशन
अ लाई करते हुए पूरी ताकत से चमटे अपनी तरफ ख च लए। च क ज़ोरदार
आवाज़ आई और बाक डाइवर भी िबना कॉलेज गए िफिज़ स ेजुएट हो गए।
िफिज़ स के बाद केिम टी ै टकल शु िकया गया। ढेर सारी हरी िमच पीस
कर डाइवर के लटमेस का भी टे ट िकया गया, मगर रज़ ट ज़ीरो रहा।
दगु ा शि ठाकरे और अ फ़ाक़ उ ा िब मल हांफते हुए द तर के अंदर आए।
मु ालाल और अबराम पहले से ही वहां बैठे हुए थे। मु ालाल ने दोन को हाथ
जोड़कर नम ते िकया और बताया िक उसने नसीम पपीतेवाला क मौत क ख़बर
सबसे पहले ेक क थी। दगु ा ने मु ालाल को घूरा, तो उसने ये भी बताया िक कैसे
वो काकोरी कांड क 95व एिनवसरी क शानदार रपोट तैयार कर रहा है।
अ फ़ाक़ उ ा ने अबराम से आने क वजह पूछी तो उसने तुरत ं हॉ सएप खोल
कर िदखाया। अ फ़ाक़ ने फ़ोटो देखे और िफर फ़ोटो भेजने वाले का नंबर।
अ फ़ाक़ उ ा ने दांत पीसते हुए दगु ा से कहा, ‘वो काकोरी म थी।’
दगु ा शि ने भी अबराम के मोबाइल पर फ़ोटो देखे और अपना भी मोबाइल
िनकाल कर बताया िक ा ठाकुर ने उसके भी फ़ोटो ख च कर भेजे थे। अ फ़ाक़
उ ा ने काकोरी से बाहर जाने वाले हर रा ते पर पु लस चेक लगाने का सजेशन
िदया। दगु ा शि को भी ये बात सही लगी। अ फ़ाक़ उ ा ने स मान सह के साथ
दो सपाही काकोरी-लखनऊ हाईवे पर लगाने को कहा; िविकपी डया, रमाकांत
और गौतम को काकोरी के अंदर से हरदोई जाने वाले रा ते पर और दो सपािहय
को काकोरी-हरदोई सगल रोड पर तैनात करने को कहा। उसने ये भी सजे ट
िकया िक लखनऊ से लौटने के बाद ि पुरारी पांडे और देव त के साथ चार
सपाही थाने पर रह। वे दोन नसीम क बॉडी पो टमॉटम के लए लखनऊ लेकर
गए थे और अभी लौटे नह थे। हालांिक देव त ने नसीम पपीतेवाला क
पो टमॉटम रपोट दगु ा को हॉ सएप कर दी थी। दगु ा ने बताया िक केस क
ो ेस रपोट के साथ अ फ़ाक़ और उसे डीजीपी साहब के साथ मी टग के लए
लखनऊ जाना है। तभी अनारकली नसीम क लड़खड़ाती हुई बूढ़ी अ मी को
लेकर द तर के अंदर आई। उसे देख कर सब च क गए।
नसीम क अ मी को कुस पर बैठा कर अनारकली बोली, ‘नालायक बेटे क
नालायक पूछने, मां पैदल ही आ रही थी, मने देखा तो ले आई।’
नसीम क अ मी ने लरज़ती हुई आवाज़ िनकाली, ‘अ ाह दोज़ख म जगह न दे
ऐसे बेटे को। बस बेटा, मुझे तस ी के लए ये बता दो िक उसने िकया या था?’
अ फ़ाक़ ने नसीम क अ मी क गोद म रखे उसके दोन हाथ थाम लए,
‘अ मी, मासूम को मौत ब शने वाला शैतान था। नसीम बा द का कारोबार कर
रहा था। नसीम आतंकवादी था!’
नसीम क अ मी ने अ फ़ाक़ से कहा, ‘बेटा तेरे हर ल ज़ को हक कत मानकर
एक गुज़ा रश करती हू,ं बस एक बार और परख ले। देख ले कह कोई गुज
ं ाइश तो
नह रह गई।’
अ फ़ाक़ उ ा ने उसके सर पर अपना हाथ रख िदया, ‘हां अ मी, आपक ह
क तस ी के लए हर गुज ं ाइश क तलाश होगी। अगर नसीम बेगुनाह हुआ, तो म
माफ़ मांगग
ूं ा, सरेआम मांगग
ूं ा।’
अ मी को जैसे कोई ताकत िमली, ‘बस बेटा, नसीम को काकोरी मत लाना।
शहीद क पाक ज़ा िम ी को म खोटा नह करना चाहती। उ मीद तो कतई नह है,
पर गुज
ं ाइश िनकली तो इस मां का भी वादा है, बेटे के साथ ख़ुद भी द न होगी।’
अ फ़ाक़ ने आं सुओ ं से भीगी आं ख से अनारकली को उनके साथ जाने का
इशारा िकया। अनारकली के थामने से पहले ही दगु ा शि ने नसीम क अ मी को
गले लगा लया और रोते हुए बोली, ‘आई, तू सच म मेरी आई जइसी है। बहुत
िदन से आई से नह िमली, आज िमली।’
अनारकली ने अपने आं सू प छते हुए उ ह सहारा िदया और चल दी। अ फ़ाक़
के साथ दगु ा, अबराम और मु ालाल भी बाहर आ गए। अनारकली ने नसीम क
अ मी को वैन म बैठाया और चली गई। कुछ देर तक सभी वैन को जाते देखते रहे,
िफर दगु ा ने ि पुरारी और देव त को लखनऊ म ही रहने को बोला। अ फ़ाक़ उ ा
ने भी सजेशन िदया िक जब नसीम क अ मी ने इंकार कर िदया है, तो नसीम क
बॉडी को लखनऊ म ही ि मेट करवा देना चािहए।
दगु ा द तर के अंदर आई और जेलेिटन क पेिटयां देख कर बोली, ‘तीन टपो म
सफ सात पेटी िनकली, या इतनी ही पेटी थी रे उधर?’
अ फ़ाक़ उ ा ने जवाब िदया, ‘मुझे याद है, कम से कम पं ह ह गी।’
अबराम भी बीच म बोला, ‘पं डत जी ठीक कह रहे ह, पं ह ही ह गी।’
दगु ा सोचते हुए बोली, ‘साला, बाक पेटी कहां अनलोड कर िदया पपीता?’
मु ालाल प कार ने संपादक य िट पणी दी, ‘अयो या के रा ते म कह पहले ही
तो नह उतार द ? एक तरफ से पकड़ी जाएं , तो दस ू री तरफ से अयो या के अंदर
पहुच
ं ा दी जाएं । मतलब यूं ही, ऐसा लगा मुझे…’
दगु ा ने मु ालाल के कंधे पर हाथ रखा, ‘बात तो सही बोला रे, तू।’
अ फ़ाक़ उ ा ने िफ जताई, ‘अयो या के हर रा ते पर बै रकेड तो रहता है,
लेिकन ये लोग तभी टाइट होते ह, जब सचुएशन टाइट हो।’
दगु ा ने फ़ौरन हेड वाटर फ़ोन लगाया और अयो या को जाने वाले हर रा ते पर
ने ट ऑडर तक टी फोर सेवन फुलऑन चे कग करने को बोला। दगु ा ने
अबराम को िफ न करने और ा को ज द से ज द पकड़ने का भरोसा
िदलाया। दगु ा ने मु ालाल को भी अलट िकया िक वो हर ससिटिवटी पर नज़र रखे
और इंफॉम करे। दोन थाने के बाहर आए और मोटरसाइिकल पर बैठ कर चल
िदए। अ फ़ाक़ ने एक बार िफर ूटी के मुतािबक सभी से काकोरी से जाने वाले
रा त पर फ़ौरन पहुच ं ने और कड़ी नज़र रखने को बोला। दगु ा शि अपनी
फ़ाइल के साथ जीप पर बैठी और ख़ुद अ फ़ाक़ उ ा ने टेय रग संभाल ली।
स मान सह, िविकपी डया, रमाकांत, गौतम और बाक सपाही अपने-अपने रा ते
िनकल पड़े।
अ फ़ाक़ क जीप ने फ़ ट िगयर लया ही था िक सपाही जेलेिटन क पेिटयां
हवालात क तरफ मालखाने म रखने जाते िदखे। अ फ़ाक़ को अचानक कुछ
िदखा। उसने फ़ौरन जीप बैक क और िफर जीप से उतर कर मालखाने क तरफ
भागा। उसे भागता देख दगु ा शि भी पीछे -पीछे दौड़ी। मालखाने म अ फ़ाक़ उ ा
ने सपािहय से सारी पेिटयां घुमाने को कहा। सपाही एक-एक करके पेटी घुमाते
रहे। दगु ा सोच रही थी िक ऐसा या देख लया है अ फ़ाक़ ने, तभी अ फ़ाक़
बोला, ‘अबे क…!’
पेटी का एक िह सा उसने क़रीब से देखा, तो काले रंग से कुछ नंबर लखे
िदखाई िदए। पास से देखा तो ये नंबर नह , कॉ डनेट था। अ फ़ाक़ ने फ़ौरन नोट
िकया 28.6172 ड ी नॉथ। पेटी को दस ू री तरफ घुमाया। िफर कॉ डनेट िमला
77.2082 ड ी ई ट। अ फ़ाक़ ने एक हाथ से फ़ोन िनकला, िविकपी डया का
नंबर डायल िकया और कॉ डने स नोट कराए। िविकपी डया ने दस िमनट म
डटेल देने क बात कही। दगु ा शि सकपका गई। दोन ने सपािहय के साथ
िमल कर चार पेिटय का एक-एक िह सा घुमा कर, उलट-पलट कर देख लया,
लेिकन बाक कह कुछ नह िदखा। दोन एक साथ अंदर क तरफ भागे। सपाही
तीन और पेिटयां उठा कर ला रहे थे। अ फ़ाक़ ने पेिटयां वह रखवाई ं। अ फ़ाक़
को इस बार भी पेटी म कुछ नह िदखा। कुछ सोच कर अ फ़ाक़ ने सपाही से
पेचकस मंगाया। पेचकस से पेटी का ढ न हटाते ही ढ न के अंदर दो कॉ डने स
िदखे—28.6165 ड ी नॉथ, 77.1011 ड ी ई ट। अ फ़ाक़ से पेचकस लेकर
दगु ा ने बाक दो पेिटय के ढ न खोले। कह कुछ नह िमला। अ फ़ाक़ ने
सपािहय से पेटी से जेलेिटन बाहर करने को कहा। सपािहय ने एक पेटी खाली
क पर कुछ नह िमला। दस ू री खाली क , इस बार भी कुछ हाथ नह लगा।
अ फ़ाक़ और दगु ा ने तय िकया िक अगर इन पेिटय के अंदर कुछ नह िमला, तो
सारी पेिटय को खाली करके चेक िकया जाएगा। तीसरी पेटी खुलते ही ढ न म
कुछ नह िमला, मगर पेटी के अंदर क तरफ बेस पर दो कॉ डनेट िदखे—
34.2668 ड ी नॉथ, 74.4136 ड ी ई ट। अ फ़ाक़ ने िफर से िविकपी डया को
फ़ोन िमलाकर कॉ डने स नोट कराए। अब मालखाने से लेकर बाहर तक रखी
सात पेिटयां खुल चुक थ । न कोई नंबर, न ही कोई कॉ डनेट। सारी पेिटय म
िफर से जेलेिटन भरने का डायरे शन देकर अ फ़ाक़ उ ा िब मल दगु ा शि
ठाकरे को लेकर चल िदया।
***
जीप सीधे डीजीपी ऑिफस क । अ फ़ाक़ उ ा िब मल के मोबाइल पर मैसेज
आया। िविकपी डया ने तीन कॉ डने स क डटे स भेजी थ । अ फ़ाक़ मैसेज
पढ़ते ही ख़ूब ज़ोर से हंसा, ‘चलो भैया अ छा है, बहुत अ छा है…इस बार भी
बुरहान वानी नह है।’
दगु ा च क , ‘तू ये बार-बार बुरहान वानी का नाम य लेता है, अ फ़ाक़?’
अ फ़ाक़ ने शाप माइल दी, ‘मुझे बहुत मोह बत है, बुरहान वानी से।’
‘चल तेरे को चांस देती, आज तू ड ाइब कर सबकुछ,’ दगु ा बोली।
अ फ़ाक़ ने जीप पाक क , दगु ा ने फ़ाइल उठाई ं। दगु ा ख़ुद से थोड़ा मायूस थी।
आज भी कॉ डनेट अ फ़ाक़ को ही िदखाई िदए। देखा जाए तो दगु ा के हाथ अभी
कुछ लगा ही नह था। सच तो ये था िक एटीएस क नौकरी सफ और सफ
आईबी के िटप ऑफ़ पर चलती है। आईबी क इ फॉमशन न हो, तो मूवमट
मु कल होती है। आईबी तो यूं भी कभी ं ट पर नह आती। आईबी का इं टमटल
फेस है, एटीएस। इस केस म यूं भी आईबी से न कोई िटप ऑफ़ थी, न इंफो और न
आईबी ने िकसी को इंटरसे ट िकया था। वजह थी अजगर क तरह साल पड़े
रहने वाले ली पग सेल, जो व त आने पर एनाकॉ डा क तरह लोग को िनगल
जाते ह। जब तक ये अजगर िकसी िमशन के लए कचुल बदल कर एनाकॉ डा नह
हो जाते, आईबी के पास कुछ नह होता। हो भी कैसे, ये आम आदमी क तरह
हमारे बीच म रहते ह। आम जनता के बीच म—कभी चांद खुतरा क श म, कभी
ू स के होल सेलर नसीम पपीतेवाला क तरह। सवाल ये था िक िफर अ फ़ाक़
उ ा िब मल के पास ऐसा या था, जो दगु ा शि ठाकरे के पास नह था।
अ फ़ाक़ के पास था फ ड ए सपी रएं स। अ फ़ाक़ उ ा के पास स ाईस साल
का फ ड मूवमट था। मुखिबर का नेटवक था। अ फ़ाक़ को काम करना, काम
आना, काम बनाना और काम िबगाड़ना, सब आता था। यही सब सोचती हुई दगु ा
के पास एक बेहतरीन मौक़ा था अफसर को ये जताने का िक जस इं पे टर क
पु ल सग पर सब िफदा थे, वो सच म आज के दौर म िकतना ऑथ डॉ स था।
सफ कॉ डने स पता लग जाने से या होगा, ड शन भी तो ज़ री होता है।
आ ख़र एक इं पे टर और आईपीएस म फक नह , बहुत बड़ा फक होता है। दगु ा
शि ने डसाइड िकया िक आज सारा ेज़टेशन अ फ़ाक़ उ ा ही देगा और इसी
बहाने बड़े-बड़े अफसर के सामने मज़ाक़ बन कर रह जाएगा। दोन डीजीपी
बृजलाल कुल े के द तर म दा ख़ल हुए। चीफ से े टरी आनंद मोहन राय और
एसएसपी शैलेश कृ णा भी वहां मौजूद थे। दगु ा शि ने लक पेपस पर कॉ डनेट
लखे, िफर डीजीपी ऑिफस के पेपर बोड म सारे कॉ डने स के साथ रािबया
बसर, अंगद यादव, अनारकली, चांद खुतरा, नसीम पपीतेवाला, स ाद अहमद
भट, ा ठाकुर के फ़ोटो िपन करके चीफ से े टरी से प मशन मांगी, ‘सर, टु डे
िम टर अ फ़ाक़ उ ा िब मल िवल ए स लेन द होल ो ेस।’
अ फ़ाक़ भी दगु ा के इराद से सौ फ सद वािकफ था। मगर दगु ा भूल गई िक
उसका नाम अ फ़ाक़ उ ा िब मल था। अ फ़ाक़ उ ा ने पूरे कॉ फडस से
ऑ जे स पर केल रख कर बोलना शु िकया, ‘सर रािबया बसर का रेप
अनारकली के धोखे म अंगद यादव ने िकया, लेिकन उसका गेम िकसने बजाया,
पता नह । ये प ा है िक रािबया का मडर जेलेिटन रॉड क वजह से िकया गया।
जेलेिटन चांद खुतरा ने ही रािबया के घर पर डंप िकया था, मगर चांद के मडर के
बाद नसीम पपीते ने जेलेिटन क पेिटयां रमूव कर द । सात पेटी जेलेिटन
अयो या म रकवर हुआ, पर अभी भी आठ-दस पेटी जेलेिटन िम सग है।’
एसएसपी शैलेश कृ णा बोले, ‘ये जेलेिटन उसके पास आया कहां से?’
अ फ़ाक़ ने डीजीपी क मेज़ पर रखा सेब उठाया, ‘ ू स सर, ू स—इधर से
सोनभ फल क स लाई, उधर से जेलेिटन इन र लाई।’
डीजीपी ने सर िहलाया, ‘ह म, सोनभ म लड एं ड टोन माइ नग ने उसका
काम आसान कर िदया और हम कभी पकड़ ही नह पाए उसे।’
अ फ़ाक़ आगे बोला, ‘चांद खुतरा को एक बड़ा असाइनमट िदया गया,
असाइनमट ये था िक भैया जाओ और पुलवामा अटैक के टेरे र ट स ाद अहमद
भट क कार का इंजन और चे चस नंबर मोटरसाइिकल म छपवाओ। िफर
पुलवामा कॉ डने स पु लस तक पहुच
ं ाओ…असाइनमट पूरा होने के बाद चांद
पकड़ा गया, तो सायनाइड का ना ता करने लगा पर हमने बचा लया। बाद म,
बेचारे को लूकोज़ क बोतल से सायनाइड डाल कर िकसी ने मार डाला। रािबया
बसर क तरह, चांद का क़ा तल कौन है—िकसी को नह पता। मतलब मडर दो
और क़ा तल िफर से लापता।’
दगु ा बोली, ‘ हॉट अबाउट नसीम पपीतेवाला, अ फ़ाक़?’
अ फ़ाक़ उ ा िफर शु हुआ, ‘जेलेिटन चांद और नसीम का कॉमन
असाइनमट था, मगर जैसे ही चांद क़ म गया, नसीम पपीते को जेलेिटन रॉ स
क पेिटयां रमूव करने का असाइनमट िदया गया। इधर पपीते ने असाइनमट पूरा
िकया, उधर उसका भी राम नाम स य!’
चीफ से े टरी आनंद मोहन राय बोले, ‘बट नसीम को कैसे मारा गया?’
दगु ा क फ़ाइल से अ फ़ाक़ ने नसीम पपीते क पो टमॉटम रपोट उठाई और
सबको िदखाकर मु कुराया, ‘ये िकलर, मैडम क मराठी म डेढ़ शाणा है सर।
पो टमॉटम कह रहा है िक नसीम क िकडनी, लीवर, हाट—मतलब सब फेल हो
गया और भाई क मौत हो गई। न पॉयज़न, न बुलेट—कुछ भी नह । लेिकन सर
उसक थाइज़ पर बहुत सारे इंजे शन माक ह और पेट पर केवल एक इंजे शन
माक…मालूम है सर य ? य िक पपीता डायिबिटक था, अपनी थाइज़ पर पेन
इंजे शन से इंसु लन लेता था। इस बार उसे पेन इंजे शन से पेट म कम से कम
दस ए पल इंसु लन क़ा तल ने एक साथ दे दी। जस नसीम क शुगर दो ए पल से
कंटोल रहती थी, उसको बीस एमएल ए टा इंसु लन िमलेगी तो शुगर इतनी िगर
जाएगी िक आदमी उठे गा नह उठा जाएगा। ा सक तो ये है िक इंसु लन कभी भी
पो टमॉटम म डटे ट ही नह होती…दगु ा मैडम, म ठीक जा रहा हूं न?’
दगु ा ने अपनी ख सयाहट छुपाई, ‘वेल डन अ फ़ाक़, म मानती िक यू आर
ए से यू ली करे ट। बट इंसु लन से मरा है, तुम योर कैसे हो?’
अ फ़ाक़ हंसा, ‘मैडम आपक तरह अजुन तो हम बन नह सके और एकल य
बनने से हम कोई रोक नह सका। सब आप जैस से सीखा है। पो टमॉटम के
अलावा कोई तरीका हो तो कंफम कर ली जए िक शुगर पेशट को ओवरइंसु लन दे
दी जाए, तो या- या फेल होता है।’
डीजीपी चीफ से े टरी से बोले, ‘सर डासना जेल म पॉलेिटकल मािफया को
इंसु लन देकर मारा गया था और मौत का कारण अ ात िनकला।’
चीफ से े टरी बोले, ‘बट िदस टाइम अगेन, िकलर इज़ िम सग…’
एसएसपी शैलेश कृ णा हंसते हुए बोले, ‘ए ी टाइम िकलर इज़ िम सग।’
चीफ से े टरी ने गंभीर होकर पूछा, ‘एिन थग मोर?’
अब अ फ़ाक़ ने कॉ डने स पर केल रखा, ‘पुलवामा अटैक म स ाद अहमद
भट क कार इ तेमाल हुई, उसक कार का इंजन और चे चस नंबर हमको
मोटरसाइिकल म छाप कर भेजा गया। इंजन और चे चस नंबर कॉ बीनेशन
कं लीट करने के लए लाथेपोरा कॉ डनेट जानबूझ कर फ़ोटो के पीछे लख कर
िदए गए। कहानी यह नह क सर, हमको िफर कॉ डनेट भेजे गए, इस बार
जेलेिटन क पेिटय म। सर पुलवामा अटैक का कॉ डनेट चांद खुतरा ने भेजा और
चांद का काम तमाम। नया कॉ डनेट नसीम पपीते ने भेजा—28.6172 ड ी नॉथ
एं ड 77.2081 ई ट—और सर, गौर क जए कॉ डनेट भेजने के बाद ही नसीम
पपीते का भी काम तमाम।’
सबके लए कॉ डने स िकसी पहेली या ॉसवड जैसे थे। अंदाज़ा लगा रहे
लोग के बीच डीजीपी बृजलाल ने पूछा, ‘ हच लेस इज़ िदस?’
अ फ़ाक़ सबक ज ासा को समझ कर बोला, ‘हमारा संसद भवन।’
‘ हॉट इज़ अनदर वन?’ चीफ से े टरी ने हैरान होते हुए पूछा।
‘28.6165 ड ी नॉथ एं ड 77.1011 ड ी ई ट,’ अ फ़ाक़ ने केल रखते हुए
अगला कॉ डनेट डफाइन िकया, ‘सर ये िद ी तहाड़ जेल है। आप सोच रहे ह गे
िक संसद का तहाड़ जेल से या रलेशन है?’
दगु ा तुरत
ं बोली, ‘हां बोलो, बोलो या वा ता है इसका?’
अ फ़ाक़ ने तीसरे कॉ डनेट पर केल रखा और िफर दगु ा क तरफ देख कर
बोला, ‘अगला कॉ डनेट है 34.2668 ड ी नॉथ, 74.4136 ड ी ई ट, दोआबाग
िवलेज, ड ट ट अनंत नाग। एक बार िफर क मीर।’
डीजीपी च क कर खड़े हो गए िफर बोले, ‘अफ़ज़ल…!’
अ फ़ाक़ उ ा ने दगु ा क तरफ देखते हुए कहा, ‘िब कुल सर, अफ़ज़ल गु ,
मतलब पा लयामट अटैक म अफ़ज़ल गु । िफर तहाड़ से बाक ए यू ड छूट गए
पर अफ़ज़ल गु को तहाड़ म फांसी देकर दफना िदया गया। गु , यानी अफ़ज़ल
गु , क मीर के दोआबाग िवलेज, अनंत नाग का ही रहने वाला था। पहले
पुलवामा, िफर संसद अटैक।’
एसएसपी शैलेश कृ णा ने ताली बजाई, ‘इंटे टग!’
अ फ़ाक़ भी हंसा, ‘अभी इंटे टग कहां है, सर? अफ़ज़ल गु के मरने के बाद
गुलाम क मीर से क मीर वैली तक जन लड़क क ढंग से मूछ ं नह उगी थ , वो
भी आज़ादी मांगने लगे। जैश-ए-मोह मद के बॉस ने इसका फायदा उठाया और
तीन नए वॉयड बना डाले—अल मु बतोन, तहरीक़ अल फ़ुरकान और तीसरा
सबसे यादा खतरनाक अफ़ज़ल गु वॉयड—और कम म बम ये है िक जस
स ाद क कार पुलवामा अटैक म यूज़ हुई, उसका पूरा नाम था—स ाद अहमद
भट उफ़ अफ़ज़ल गु —और वो अफ़ज़ल गु वॉयड का टेरे र ट था सर।’
दगु ा बीच म बोली, ‘येस, स ाद अहमद भट उफ़ अफ़ज़ल गु !’
अ फ़ाक़ क ही नह रहा था, ‘सर, कार तो स ाद भट क थी, पर जसने कार
टकराई, उसका नाम था—आिदल अहमद डार उफ़ कार टकराने वाला। उसने
पुलवामा अटैक से पहले अपने आ ख़री वी डयो म बोला िक वो अफ़ज़ल गु को
पुलवामा अटैक डे डकेट कर रहा है। डार भी जैश के अफ़ज़ल गु वॉयड का
सुसाइड बॉ बर था। अब अगला वाइंट सर, एक और टेरे र ट और मेरा सबसे
फेवरेट, दगु ा मैडम!’
दगु ा बोली, ‘बुरहान वानी…अ फ़ाक़ को मोह बत है उससे।’
अ फ़ाक़ उ ा िफर शु हुआ, ‘सर, बुरहान वानी घाटी म टेरे र ट क सो
कॉ ड आज़ादी जंग का पो टर बॉय था। िम टी ने जब उसे मारा, तो पािक तान
ने उसके लए टेन चलाई। उसे चे वेरा और शहीद का टाइटल िदया था। बुरहान
भी अफ़ज़ल गु वॉयड का टेरे र ट था। अफ़ज़ल गु जब दफनाया जा रहा
था तब या आिदल डार, या बुरहान—सबने कसम खाई और नारे लगाए थे
“अफ़ज़ल हम श मदा ह, तेरे क़ा तल ज़दा ह, क मीर क हम लेके रहगे
आज़ादी!”’
‘िफर हद ु तान रप लकन एसो सएशन या है दगु ा?’ डीजीपी ने पूछा।
दगु ा अ फ़ाक़ के बगल म खड़ी हो गई, ‘बस रडमली एक नाम का इ तेमाल है,
सर। जैसा रयाज़ भटकल ने इं डया के नाम पर इं डयन मुजािहदीन ुप ि एट
िकया, वैसा ही इस अफ़ज़ल वॉयड ने िकसी ख़ास िमशन के लए हद ु तान
रप लकन एसो सएशन का नाम अडॉ ट िकया, सर। प ा, िदस ुप इज़ व कग
ऑन अयो या।’
चीफ से े टरी आनंद मोहन राय ने डीजीपी बृजलाल से कहा, ‘इ स वैरी
सर ाइ ज़ग, आईबी का कोई भी इनपुट य नह है अभी तक!’
डीजीपी बृजलाल ने ए स लेन िकया, ‘सर मुब
ं ई दंग से पहले टाइगर मेमन वॉज़
ए कॉमन मैन, िबफोर पा लयामट अटैक अफ़ज़ल गु आम आदमी था। सब आम
आदमी होते ह, बस अटैक के बाद ख़ास हो जाते ह।’
‘देन, ा ठाकुर का या रोल है?’ चीफ से े टरी आनंद ने पूछा।
दगु ा ने ड ाइब िकया, ‘सर देयर आर टू योरीज़—या तो ा अफ़ज़ल
वॉयड के लए काम कर रही है और असाइनमट कं लीट होने पर लोग को
ख़ म कर रही है, या िफर ा को ला नग पता है और वो एक के बाद एक इस ुप
के लोग को टपका रही है।’
डीजीपी ने कंधे उचकाए, ‘बट ा तो हद ू है दगु ा, िफर कैसे?’
दगु ा ह का सा मु कुराई, ‘सर सीएए, एनआरसी को लेकर पु लस ने पीपु स
ं ट के ख़लाफ़ कई मुकदमे र ज टड कराए ह। जतनी िगर ता रयां हुई ह, उनम
कई हदज़
ू ह। राइट वग कॉल देम लेफिट ट।’
एसएसपी शैलेश कृ णा बोले, ‘सर अगर दस
ू री योरी को मान ल िक ा को
अफ़ज़ल वॉयड के िमशन क पूरी नॉलेज है, तो िफर ये लड़ाई अफ़ज़ल वॉड
वसज़ हद ु तान रप लकन एसो सएशन है।’
डीजीपी ने चीफ से े टरी से कहा, ‘सर ा ठाकुर इज़ ाइम लक।’
इसी बीच अ फ़ाक़ का फ़ोन वाइ ेट िकया। उसने अफसर से इजाज़त ली और
बाहर क तरफ चला गया। दगु ा ने अ फ़ाक़ के जाते ही एक िम टी रवील क ।
उसने बताया िक रािबया बसर का मडर अफ़ज़ल के काकोरी म आने के दो िदन म
हो गया। िफर चांद खुतरा और उसके बाद नसीम पपीतेवाला को टपका िदया गया।
अफ़ज़ल टेट के कई इलाक के टैटे ट स भी िनकलवाने गवनमट ऑिफस
गया था। दगु ा ने आगे बताया िक वो अफ़ज़ल को लेकर सफ ऐसे ही शक नह कर
रही थी, ब क उसके लैपटॉप म कुछ िम टी रयस िमलने के बाद उसने अफ़ज़ल
को ऑ ज़व करना शु िकया था। अफसर के पूछने पर दगु ा ने बताया िक
हालांिक उसके लैपटॉप से कोई ऐसा कॉ डनेट नह िमला, मगर लैपटॉप से
इंटरनेट कॉ लग कई बार क गई थी। ये कॉ स पािक तान, गुलाम क मीर,
क मीर और बां लादेश तक क गई थी। दगु ा शि क बात सुन कर सभी च क
गए। डीजीपी और चीफ से े टरी ने जानना चाहा िक या अ फ़ाक़ इसके बारे म
जानता है, तो दगु ा ने खुलकर अ फ़ाक़ क तारीफ क और बताया िक उसे
लैपटॉप ख़ुद अ फ़ाक़ उ ा ने ही इ वे टगेशन के लए िदया था। दगु ा ने अपने
सीिनयस को बताया िक उसे अफ़ज़ल को अन एनाउं ड होम अरे ट करना
पड़ेगा। डीजीपी बृजलाल ने दगु ा को अफ़ज़ल के नासा क रयर और अ फ़ाक़ क
पो जशन का याल रखने को कहा। इस पर दगु ा ने वादा िकया िक वो हर व त
केवल दो-तीन सपाही ही अफ़ज़ल के आसपास रखेगी तािक ऑ ज़व भी िकया
जा सके और उसके क रयर के साथ-साथ अ फ़ाक़ क भावनाओं को भी ठे स न
पहुच
ं े।
डीजीपी ने गहरी सांस ली और बोले, ‘अगर ये सच है तो इ स वेरी सैड,
इ ेफाक दे खए िक हम अफ़ज़ल वॉयड क बात कर रहे ह और इस लड़के का
नाम भी अफ़ज़ल है। अगर पहली योरी को सही मान ल, तो ा और अफ़ज़ल
साथ िमल कर िकसी िमशन पर काम कर रहे ह।’
इसी बीच अ फ़ाक़ उ ा कमरे म वापस आ गया। अंदर आते व त उसने अपने
बेटे अफ़ज़ल के बारे म ड कशन भी सुन लया। वो बोला, ‘सर अफ़ज़ल गु
वॉयड और अफ़ज़ल का तो हम देख ही लगे, लेिकन े कग यूज़ ये है िक ा
टेस हो गई है।’
अ फ़ाक़ क आवाज़ से सब च क गए। डीजीपी ने पूछा, ‘कहां है? कैसे िमली?’
अ फ़ाक़ बोला, ‘पो टर म ा और उसक फैिमली का फ़ोटो देख कर एक
सम काड सेलर ने ि पुरारी पांडे के मुखिबर को फ़ोन िकया है सर।’
दगु ा ने ज दबाज़ी म पूछा, ‘लोकेशन अ फ़ाक़, लोकेशन?’
अ फ़ाक़ ने जवाब िदया, ‘अमीनाबाद म उसका एक र तेदार है, शायद वह है
या आसपास कोई और घर होगा जहां छपी है।’
डीजीपी बोले, ‘तुमने ि पुरारी को लोकेशन पर य नह भेजा?’
‘सर ि पुरारी और देव त लखनऊ के गंज शहीदा क़ि तान म नसीम क बॉडी
दफना रहे थे, बस िनकल ही गए ह गे।’ अ फ़ाक़ ने जवाब िदया।
दगु ा ने अ फ़ाक़ क तरफ देखते हुए कहा, ‘ ेट! ले स ोसीड।’
‘फोस चािहए?’ एसएसपी शैलेश कृ णा ने पूछा।
‘नह सर, हम भगम छर मचाएं गे तो भाग जाएगी,’ अ फ़ाक़ बोला।
अ फ़ाक़ और दगु ा तेज़ी से मुड़े और जाने लगे। डीजीपी ने अ फ़ाक़ को आवाज़
देकर रोका और उसका कंधा थपथपा कर शाबाशी देते हुए कहा, ‘वी आर ाउड
ऑफ़ यू! अफ़ज़ल को लेकर परेशान मत होना लीज़।’
अ फ़ाक़ बोला, ‘सर, कािबल तो बहुत है मेरा अफ़ज़ल, साइंिट ट है, मगर पाप
तो इस अ फ़ाक़ उ ा ने िकए ह। सज़ा तो मेरी है, मुझे ही िमलनी चािहए और िमल
भी रही है सर। अफ़ज़ल कह नह जा पाएगा, अ फ़ाक़ उसे जाने भी नह देगा।
मगर अभी हम ा ठाकुर को हाथ से कह नह जाने देना चािहए सर, इजाज़त
दी जए हमको।’
अ फ़ाक़ उ ा क बात सुन कर सभी भावुक हो गए और दगु ा शि कं यज़ ू ।
अ फ़ाक़ उसके लए कभी तो सफ एक कंिपटीटर होता था, कभी एक कर ट
पु लस वाला, कभी एकदम शीशे क तरफ साफ़ बोलने वाला खु म-खु ा इंसान।
दगु ा के िदमाग़ म अचानक िफर ा ठाकुर क धी और वो फ़ौरन अ फ़ाक़ के साथ
तेज़ी से बाहर चली गई। दगु ा ने हेड वाटर फ़ोन िमला कर ा के नए नंबर को
स वलांस पर डालने को बोला। ये नंबर ा ठाकुर क मां के आधार काड पर
लया गया था। असल म ा ठाकुर के ग़ायब होने के बाद से लखनऊ के अलावा
यूपी के कई जल म रहने वाले ा के र तेदार पर नज़र रखने के लए
आ फ़ाक़ ने मुखिबर को काम पर लगा रखा था। उसका एक र तेदार अमीनाबाद
रहता था और आज ा के नए समकाड क लोकेशन अमीनाबाद के र तेदार के
घर के आसपास क ही िमली थी इस लए पु लस ये चांस ले रही थी। अ फ़ाक़ ने
जीप टाट क और उसके बाद अपनी रवॉ वर क काटज चेक करके रवॉ वर
को कॉक कर िदया। दगु ा ने भी अपनी रवॉ वर को कॉक करके देव त को फ़ोन
िमलाया। देव त ने बताया िक वो लोग अमीनाबाद पहुच ं चुके थे। अ पताल क
जीप जाम म फंसी थी, इस लए वो जीप को कह पाक करके सीधा ा के
र तेदार के घर जाएं गे। दगु ा ने उसे समझाया िक कोई भी ऐसी ए टीिवटी नह
होनी चािहए, जससे पहली बार हाथ आई ा िनकल जाए। अ फ़ाक़ ने दगु ा को
सजेशन िदया िक कॉल कने ट रखी जाए। दगु ा ने दोन को अ फ़ाक़ क ला नग
समझा दी ।
जीप तेज़ी से अमीनाबाद क तरफ बढ़ी जा रही थी। उधर से देव त ने बताया,
‘मैम, हम बताशे वाली गली के पास पहुच
ं गए ह। यहां पर एक बोड लगा है—
चारमीनार नॉनवेज पॉइंट—हम इसी गली म जीप ले जा रहे ह। गली बहुत संकरी
है, को शश कर रहे ह।’
दगु ा ने अ फ़ाक़ को बताया िक वो लोग िकसी गली म जा रहे ह।
अ फ़ाक़ उ ा ज़ोर से च ाया, ‘देव त गाड़ी िकसी भी गली के अंदर मत ले
जाना, फंस जाएगी। गाड़ी बाहर रोकना, जस तरफ लौटना है उसी तरफ गाड़ी
सीधी खड़ी करना। ऐसा करोगे तो उसे पकड़ कर सीधे अपने ट पर िनकल
पाओगे, वना बाद म गाड़ी बैक करना मु कल होगा।’
देव त ने ि पुरारी को ऑडर बताए। उसने गाड़ी गली के बाहर रोक और बैक
िकया, िफर कैसरबाग क तरफ मुह ं करके गाड़ी पाक कर दी, य िक अमीनाबाद
क तरफ के रा ते पर यादातर व त जाम रहता है। दोन ने रवॉ वर कमीज़ के
अंदर छुपा ल ।
अ फ़ाक़ िफर बोला, ‘देव त तुम सिवल कपड़ म हो, आगे जाओ और
ि पुरारी से बोलो िक वो वद म है इस लए गली म ऐसे घुसे जैसे पेशाब करने क
जगह ढू ंढ़ रहा हो। रवॉ वर हाथ म नह , कॉक करके कमीज़ म छुपा लो, केवल
तब िनकालना जब घर का दरवाज़ा खुलवाना हो। देव त तुम पहले घुसोगे,
ि पुरारी कवर करेगा।’
देव त बोला, ‘ योर, सर!’
फ़ोन पर लंबी ख़ामोशी छा गई। अ फ़ाक़ उ ा तेज़ी से अमीनाबाद क तरफ
जीप दौड़ा रहा था। उधर ि पुरारी के इशारे पर देव त बेहद ख़ामोशी से संकरी सी
गली म बने एक छोटे से मकान क सीिढ़यां चढ़ने लगा। देव त ने धीरे से दगु ा को
मकान नंबर बताया और कहा िक मकान के बाहर “ ीय िनवास” लखा है। सीधी
सीढ़ी और सीढ़ी के ठीक सामने दो प वाला छोटा सा सफेद रंग का दरवाज़ा।
ि पुरारी भी धीरे-धीरे पीछे चढ़ रहा था। दोन ने अपनी-अपनी रवॉ वर हाथ म ले
ली। दगु ा फ़ोन कान पर लगाए हुए थी। देव त और ि पुरारी ने आं ख म बात क
और तय िकया िक तीन िगनने के बाद दोन कंधे के ध े से दरवाज़ा तोड़ दगे। दगु ा
और अ फ़ाक़ क जीप जाम म फंस गई। हॉन बजा रहे अ फ़ाक़ उ ा क एं ज़ायटी
बढ़ती जा रही थी— र शा, ऑटो, भसा ठे ले, दजन टपो और पचास लोग जाम
म फंसे थे। उधर एक, दो, तीन कहकर ि पुरारी और देव त ने दरवाज़े को तीन
ध े म तोड़ िदया। अंदर के नज़ारे ने दोन को खौफज़दा कर िदया। अंदर स ाटा
था। ा के तीन बूढ़े र तेदार और दो ब े कु सय म बंधे थे, उनके मुह
ं मेटेल टेप
से बंद थे तािक वो शोर न मचा सक। ि पुरारी ने सबक आं ख म गौर से देखा तो
एक ब ा दस ू रे कमरे क तरफ सहमी नज़र से देख रहा था। इससे पहले िक वो
दोन कमरे क तरफ बढ़ते मंक कैप पहने तीन आदिमय ने गो लयां चला कर
हमला कर िदया। एक गोली देव त के घुटने म लगी और दस ू री गोली ि पुरारी क
जांघ म। दोन िगर पड़े। गो लय क आवाज़ फ़ोन पर सुन कर दगु ा स हो गई।
दगु ा तुरत
ं जीप से कूदी और बोनेट पर खड़ी हो गई। हर तरफ नज़र दौड़ाने के बाद
उसने जेब से मोबाइल िनकाल कर कैमरा खोला और ज़ूम इन िकया। उसके लए
कैमरे का ज़ूम इन ही इस व त दरू बीन था। उधर ा के िठकाने पर ि पुरारी और
देव त क रवॉ वर गोली लगते ही हाथ से छूट गई। ि पुरारी और देव त ने िफर
उठने क को शश क , तो मंक कैप से चेहरा छुपाए तीन आदिमय ने गा लयां
बकते हुए देव त और ि पुरारी पांडे को जकड़ लया। ि पुरारी और देव त ज़ मी
होने के बाद भी तीन से गु थम-गु था करने लगे, लेिकन दोन के मुह ं म बदमाश ने
रवॉ वर क नाल ठू ंस दी। एक बदमाश ने देव त और ि पुरारी क रवॉ वर
उठाकर कर अपनी कमर म ख स ल और अपनी रवॉ वर बंधे हुए ब े क
कनपटी पर रख दी। देव त और ि पुरारी ने सारी को शश बंद कर द । देव त का
इयरफ़ोन देख कर एक बदमाश ने उसक जेब से मोबाइल िनकाला और कान पर
लगाया। दगु ा क आवाज़ सुनते ही उसने फ़ोन को ज़मीन पर पटक कर तोड़ िदया।
दो बदमाश ने दपु े से देव त और ि पुरारी के हाथ बांध िदए और एक ने जेब से
मेटेल टेप िनकाल कर दोन के मुह ं पर चपका दी। जाम म फंसी दगु ा को कैमरे म
चारमीनार नॉनवेज पॉइंट का बोड िदखाई िदया। उसने तुरत ं मोबाइल हटाया—
दरू ी क़रीब छह सौ-सात सौ मीटर क थी। दगु ा ने अ फ़ाक़ को फ़ौरन जीप छोड़
कर पैदल भागने को कहा। दोन जाम म गािड़य को लांघते, मोटरसाइिकल को
ध ा देते भागने लगे।
उधर मंक कैप पहने एक बदमाश, दस ू रे कमरे म जाकर बंधी हुई ा ठाकुर को
बाहर लाया। ा के भी मुह
ं पर टेप चपक थी। असल म जस व त ये बदमाश
सबको बांध कर ा को ले जाने क िफराक म थे, उसी व त देव त और
ि पुरारी ने धावा बोल िदया। देव त और ि पुरारी के सामने तीन बदमाश ा को
दबोचे हुए बाहर ले जाने लगे। एक ने ि पुरारी क जेब म हाथ डालकर अ पताल
क गाड़ी क चाबी िनकाली और ा को लेकर नीचे उतरने लगे। टेप बंधा होने के
बाद भी तीन को रोकने के लए ि पुरारी मुह ं से आवाज़ लगाने लगा, लेिकन
सवाय ऊ…ऊ…ऊ के कोई आवाज़ बाहर नह िनकली। तीन बदमाश गली से
िनकल कर बाहर आए और गाड़ी टाट कर भागने लगे। दगु ा और अ फ़ाक़ को
सब साफ़ िदखाई दे रहा था। उनके और बदमाश के बीच क दरू ी घट रही थी।
बदमाश क गाड़ी कैसरबाग क तरफ भागने लगी। दगु ा और अ फ़ाक़ गाड़ी से
क़रीब बीस मीटर क ही दरू ी पर थे। रा ता खाली तो नह रहता, लेिकन
अमीनाबाद जैसा रोज़ का जाम भी इस सड़क पर नह रहता। कैसरबाग से गाड़ी
अगर हज़रतगंज पहुच ं गई तो सीधे िनकल जाएगी। दगु ा ने िदमाग़ लगाया और एक
मोटरसाइिकल वाले को रोका और ध ा देते हुए आदमी को फक िदया। अ फ़ाक़
आगे दौड़ रहा था, दगु ा ने बाइक रोक कर उसे बैठाया और बाइक बदमाश के पीछे
भगा दी। कैसरबाग से गाड़ी बारादरी होती हुई इमामबाड़े क तरफ मुड़ गई। अब
रा ता काफ़ कुछ खुला हुआ था। अ फ़ाक़ ने रवॉ वर िनकल कर बदमाश क
गाड़ी के टायर का िनशाना लगाया, लेिकन िमस हो गया। इस बार गाड़ी क
खड़क से एक हाथ िनकला और उसने दगु ा पर गोली चलाई पर गोली साइड से
िनकल गई। थोड़ी देर के बाद मोटरसाइिकल जीप के एकदम नज़दीक आ गई।
अ फ़ाक़ और दगु ा ने देखा क दो बदमाश ा को बीच म दबोचे पीछे क सीट पर
बैठे हुए थे। एक बदमाश गाड़ी चला रहा था। अ फ़ाक़ ने जीप क डाइवर वाली
सीट के बगल वाली सीट क खड़क पकड़ी और मोटरसाइिकल छोड़ कर लटक
गया। इस लटकने म मोटरसाइिकल लड़खड़ाई और दगु ा धड़ाम से सड़क पर िगर
गई। घसटती हुई मोटरसाइिकल डवाइडर से जाकर टकराई और अ फ़ाक़ उ ा
भागती हुई गाड़ी पर लटका रहा। दगु ा दरू तक गाड़ी को देखती रही। िफर उसने
मोटरसाइिकल उठाई और वापस पीछा करने लगी। अ फ़ाक़ खड़क से गाड़ी के
अंदर घुसने क को शश कर रहा था। पीछे बैठे एक बदमाश ने उठकर उसे बाहर
धकेलने क को शश क । अ फ़ाक़ के एक हाथ म रवॉ वर थी, इस लए खड़क
पर उसक पकड़ मज़बूत नह थी। तभी डाइवर ने रवॉ वर उठाई और अ फ़ाक़
पर दाग दी। गोली अ फ़ाक़ के कंधे को पार कर िनकल गई। अ फ़ाक़ का हाथ
गाड़ी से छूट गया। वो सड़क पर कई बार लुढ़कता चला गया और दगु ा क
मोटरसाइिकल से टकराते-टकराते बचा। अ फ़ाक़ के िगरते ही जीप तेज़ी से आगे
िनकल गई। दगु ा ने तुरतं मोटरसाइिकल रोक कर अ फ़ाक़ को उठाया। अ फ़ाक़
ने कंधा पकड़ लया। दगु ा ने एक बार िफर गाड़ी को देखा, मगर गाड़ी ग़ायब हो
चुक थी। दगु ा ने उसे बाइक पर पीछे बैठाया। अ फ़ाक़ ने कराहते हुए उसे
समझाया िक अब कोई फायदा नह । ग़ु साई दगु ा ने झ ा कर ज़मीन पर ठोकर
मारी। दगु ा ने फ़ोन करके डीजीपी को यौरा िदया। डीजीपी ने तुरत ं फ़ोन करके
अमीनाबाद फोस भेजी और जस काकोरी अ पताल क गाड़ी से ा ठाकुर को
िकडनैप िकया गया उसका नंबर भी वायरलेस के ज़ रए स यूलेट कर िदया गया।
मे डकल कॉलेज इमरजसी म ि पुरारी, देव त और अ फ़ाक़ के टांके लगा कर
प ी बांधी गई। डीजीपी और एसएसपी भी वह खड़े थे। एसएसपी ने दगु ा शि को
फ़ाइल थमाई। इस फ़ाइल म वो फ़ोटो, कॉ डने स और रपो स थे, जसे पेपर
बोड पर िपन करके उसने डीजीपी ऑिफस म ेज़टेशन िदया था। दगु ा फ़ाइल
लेकर ा के र तेदार क तरफ घूम गई। र तेदार ने बताया िक ा ने आज
सवा बारह बजे नए नंबर से फ़ोन िकया और दस िमनट बाद अमीनाबाद म उनके
घर आ गई। एटीएम काड उसके भाई के पास था, इस लए वो उनसे कुछ पैसे लेने
आई थी। िकसी को फ़ोन पर बता रही थी िक आज शाम क टेन से वो आज़मगढ़
आ रही है। र तेदार ने बताया िक ा और उसके प रवार को जान का ख़तरा
था इस लए भागते िफर रहे थे। पो टर लगने के बाद कई दो त और र तेदार ने
उ ह पनाह देने से इंकार कर िदया था। कई रात वो रैन बसेर और फुटपाथ पर भी
सोई थी। र तेदार ने ये भी बताया िक ा पढ़ने म बहुत अ छी थी, वो गो ड
मेड ल ट और यूपी टॉपर रही है इस लए वो ऐसा कभी कुछ नह कर सकती। दगु ा
ने ा क मोबाइल लोकेशन के लए हेड वाटर फ़ोन िकया, तो पता चला िक
मोबाइल वच ऑफ़ है। दगु ा ने डीजीपी को एक टीम आज़मगढ़ भेजने क
र वे ट क । उसे शक था िक ा क फैिमली आज़मगढ़ म िमलेगी।
अ फ़ाक़ उ ा िब मल ने घाव पर बंधी प ी देखते हुए वद पहनी और
कॉ फडस से कहा, ‘अबे ि पुरारी, इंजन ऑयल बह गया या बचा है?’
ि पुरारी ज़ोर से हंसा, ‘आपके लए इंजन ऑयल या, इंजन तक चोक हो जाए
तो भी कम है। बस साले तमंचा छीन लए, वना पेल देते।’
‘िफकर नाट, बच कर कहां जाएं गे साले,’ अ फ़ाक़ बोला।
अमीनाबाद के जाम म फंसी काकोरी थाने क जीप लखनऊ पु लस लेकर आ
गई। अ फ़ाक़ उ ा ने डीजीपी को भरोसा िदलाकर वादा िकया, ‘आल इज वेल,
सर।’ डीजीपी ने अगले िदन होने वाली काकोरी एिनवसरी क स यो रटी क
ला नग मांगी। दगु ा ने कहा िक अयो या यादा स सिटव है, लहाज़ा अयो या म
स यो रटी यादा ड लॉय क जाए। मास चे कग और ि कग का भी उसने
सजेशन िदया। दगु ा शि ने काकोरी एिनवसरी क ला नग भी डटेल म समझाई।
उसने बताया, ‘8 डाऊन पैसजर सहारनपुर से चलेगी, काकोरी टेशन पर
मेहमान को वेलकम करके शहीद को सलामी दी जाएगी। काकोरी से टेन
लखनऊ रवाना होगी और चीफ िमिन टर साहब के काय म म सब शरकत
करगे। एटीएस के एक दजन जवान सिवल डेस म टेन पर सहारनपुर से ही चढ़
जाएं गे और लखनऊ म चीफ िमिन टर के फं शन तक रहगे। हरदोई और उ ाव
पु लस के भी पं ह सपाही काकोरी पु लस के साथ टेशन से लेकर लोकल
काकोरी म ग त करते रहगे।’ अ फ़ाक़ उ ा ने डीजीपी को से यूट िकया और
भरोसा िदलाया िक उसके रहते िफ क कोई भी ज़ रत नह , बस अयो या क
तरफ क मूवमट पर कॉ से टेट कर लया जाए। डीजीपी सबको शाबाशी देकर
वापस चले गए। दगु ा डाइ वग सीट पर बैठने लगी, तो अ फ़ाक़ ने उसे बगल वाली
सीट पर बैठने को कहा। अ फ़ाक़ क िह मत देख कर दगु ा दंग रह गई। घायल
देव त और ि पुरारी पीछे बैठे। जीप िफर काकोरी क तरफ चल पड़ी, िफर से एक
पॉिज़िटव उ मीद के साथ।
***
जीप काकोरी थाने पर क । स मान सह, िविकपी डया, रमाकांत, गौतम और
तमाम सपाही काकोरी से बाहर जाने वाली बै रके डग ूटी से वापस आ चुके थे।
कंधे म गोली लगने के बाद भी अ फ़ाक़ को डाइ वग सीट पर देख कर सब च क
गए। उतरते व त ि पुरारी को देव त ने सहारा देने क को शश क , लेिकन उसने
िह मत िदखाते हुए मना कर िदया। दगु ा अ फ़ाक़ टाइल म च ाई, ‘अबे ए
स मान, मंगा तो ज़रा गमागरम चाय और समोसा लाल चटनी वाला!’
दो सपाही चाय समोसा लेने तुरत
ं दौड़ गए। सब द तर के अंदर एक साथ चल
िदए। दगु ा शि अ फ़ाक़ उ ा को उसक कुस पर बैठा कर बोली, ‘ या हुआ,
तुम लोग को बै रके डग पर ा नह िमली या?’
स मान सह बोला, ‘नह मैम।’
दगु ा ने ताली मार कर ज़ोर से हंसते हुए कहा, ‘हम भी नह िमली।’
‘वो तो लखनऊ म थी, हमको कैसे िमलती मैम?’ िविकपी डया बोला।
अ फ़ाक़ च ाया, ‘अबे एकदमै चू तया हो का? सुबह तो काकोरी म थी न, जब
अबराम का फ़ोटो ख च कर वा सप-वा सप खेल रही थी।’
‘जी सर, तभी आपने तीन रा ते बै रकेड कराए थे,’ िविकपी डया बोला।
अ फ़ाक़ ने मज़ाक़ उड़ाया, ‘िकतने बजे अबराम को फ़ोटो आया? और िकतने
बजे तुम सब बै रकेड पर गए थे, कुछ टाइम-वाइम का अंदाज़ा है?’
िविकपी डया ने जवाब िदया, ‘सर, सुबह क़रीब साढ़े यारह पर फ़ोटो आया था
और हम अलग-अलग बै रके डग पर क़रीब पौने बारह पहुचं गए थे।’
अ फ़ाक़ कंधा पकड़ कर उठा और िविकपी डया के कान म मुह ं लगा कर ज़ोर
से बोला, ‘िव ासागर उफ़ िविकपी डया, शाह ख ख़ान समझते हो न ख़ुद को,
साले जैक भगनानी भी नह हो! अबे सवा बारह बजे जब ा ने अपने र तेदार
को नए नंबर से फ़ोन िकया था, तब वो लखनऊ के अमीनाबाद म थी…कुछ प े
पड़ा, चू तयम स फेट?’
दगु ा च क , ‘पॉइंट है, पतालीस िमनट म आई और चली गई?’
अ फ़ाक़ ने अपनी बात रखी, ‘बीस-प ीस िमनट लखनऊ पकड़ लो, लखनऊ
से अमीनाबाद बीस िमनट और जोड़ लो; चलो मान लया पौउन घंटे म पहुच
ं गई
ठकुराइन, तो या रॉकेट हो गई? या फटफिटया साथ लेकर आई थी अयो या
से…कुछ बोलोगे भी या तु हारे िटक टॉक पर लॉक लग गया?’
िविकपी डया ख़ामोश हो गया। ड कशन के बीच द तर के अंदर दो सब-
इं पे टर आए। एक हरदोई से और दस
ू रा उ ाव से। दोन काकोरी एिनवसरी क
पेशल ूटी पर अपने सपािहय के साथ भेजे गए थे। हरदोई वाले सब-इं पे टर
ने सूचना दी िक हरदोई से आते व त काकोरी-हरदोई सगल रोड पर, काकोरी से
क़रीब डेढ़ िकलोमीटर दरू हरदोई क तरफ एक अ पताल क गाड़ी लावा रस
िमली है। उसने ये भी बताया िक ये वही गाड़ी है, जसका नंबर वायरलेस पर
एनाउं स िकया गया था। दगु ा शि ठाकरे को ये समझते देर नह लगी िक भले ही
काकोरी से डेढ़ िकलोमीटर दरू , हरदोई क तरफ अ पताल क गाड़ी िमली हो, पर
ये प ा है िक ा को िकडनैप करके काकोरी या आसपास ही कह क़ैद िकया
गया है। दगु ा ने फ़ौरन हरदोई के दो सपािहय को अ फ़ाक़ के घर जाकर अफ़ज़ल
के आसपास हर व त रहने के लए ताक द िकया। अ फ़ाक़ ने दगु ा क तरफ
देखते हुए पूरे कॉ फडस से रज़ामंदी जताई। दगु ा और अ फ़ाक़ उ ा ने लान
बनाना शु िकया। हरदोई और उ ाव क पु लस फोस को लोकल काकोरी ए रया
से लेकर काकोरी टेशन और काकोरी शहीद मारक तक अलग-अलग ूटी
थमा दी गई।
अ फ़ाक़ उ ा ने िविकपी डया, ि पुरारी पांडे, गौतम और रमाकांत को फ़ौरन
ग त पर िनकल कर संिद ध ग तिव धय पर पैनी नज़र रखने को कहा। चार उसी
अ पताल क गाड़ी से ग त पर िनकल गए, जो थोड़ी देर पहले हरदोई पु लस को
लावा रस िमली थी। अ फ़ाक़ को पूरा यक न था िक ा काकोरी म ही कह क़ैद
है। दगु ा शि ने स मान सह और देव त को अलग ले जाकर स ती से पूछा िक
अभी तक अफ़ज़ल और अबराम के लोकेशन डटे स य नह आए। देव त ने
टे लकॉम कंपनी म फ़ोन लगाया और स मान के साथ डटे स लेने िनकल गया।
दगु ा ने दोन को डटे स लेकर सीधे गे ट हाउस आने को कहा। उसके चेहरे से
टशन साफ़ झलक रही थी। अ फ़ाक़ उ ा जीप से दगु ा को लेकर पु लस गे ट
हाउस क तरफ चल िदया।
ख़ामोशी तोड़ते हुए अ फ़ाक़ दगु ा से बोला, ‘पैसे लेकर ि िमन स को छोड़ा तो
साल ने म रयम को मार डाला। आज पु लस वाले बाप का बेटा ही पु लस क
नज़र म ि िमनल है, आज पु लस वाले ने बेटे को य नह छोड़ा? बेटे को य
नह बचाया? पता नह बाप गुनाह कर रहा है या एक पु लस वाला गुनहगार था?’
दगु ा ने कुछ सोच कर जवाब िदया, ‘एक बाप अपने पाप धो रहा है।’
अ फ़ाक़ क आं ख म आं सू क एक बूद ं अटक हुई थी िक तभी जीप पु लस
गे ट हाउस पहुच
ं गई। जीप से उतरते ही दगु ा ने अ फ़ाक़ से हाथ िमलाया। भीगी
आं ख को प छते हुए अ फ़ाक़ उ ा बोला, ‘पता नह य , हवा तेज़ हो तो आं ख
म पानी आ जाता है।’
दगु ा अ फ़ाक़ टाइल म बोली, ‘एवजस देखे हो?’
ये सुन कर अ फ़ाक़ हंसा, ‘देखे नह मैडम, सुने ह।’
दगु ा ने बात को आगे बढ़ाया, ‘तू ना थेनॉस है। साला, सीरीज़ क हर िफ़ म म
थेनॉस का कैरे टर छोटे से बड़ा होता जाता है, तेरा कैरे टर भी अइसाइच है।
कभी इ ू सा होता है, कभी साला एकदम मेन वाला रोल!’
अ फ़ाक़ ने िगयर लगाया, ‘थ स मैडम, आपने माना तो सही िक हम सबसे बड़े
वाले िवलेन ह, और काकोरी म जो सबसे बड़ा िवलेन, वही हीरो है!’
‘तुमको कैसे मालूम िक थेनॉस िवलेन था?’ दगु ा ने पूछा।
‘अरे हम बोले न देखे नह ह, सुने ह,’ अ फ़ाक़ ने जवाब िदया और जीप बढ़ा
दी।
***
अ फ़ाक़ मु कुराता हुआ आगे बढ़ रहा था। पु लस गे ट हाउस से जीप चली और
काकोरी क सड़क पर बढ़ती रही। थोड़ी दरू चलने के बाद पु लस वाटर का मोड़
आया। अ फ़ाक़ ने जीप मोड़ने के बजाय रोक दी। दो सेकड कुछ सोचा और िफर
िगयर लगा कर आगे चल िदया। क़रीब एक िकलोमीटर चलने के बाद ले ट साइड
पर काकोरी थाना िदखाई िदया, मगर जीप िफर भी नह क । अ फ़ाक़ आज
िकसी और मूड म था। जीप बढ़ती ही जा रही थी। काकोरी दरगाह, िफर काकोरी
टेशन, रेलवे ॉ सग और उसे पार करते ही जीप काकोरी-लखनऊ रोड क ओर
चल दी। अ फ़ाक़ क आं ख बता रही थ िक कुछ है जसने उसक छाती को
छ पन इंच का कर िदया था। लखनऊ रोड पहुच ं ते ही उसने उस क े रा ते क
ओर जीप घुमा ली जो आम के बाग क तरफ जा रहा था। ये वही बाग था, जहां
रािबया बसर का क़ ल हुआ था। जीप से पहले जीप क रोशनी बाग म दा ख़ल
हुई। उसने जीप का ख़ बाहर क तरफ करके उसे पाक कर िदया और अंधेरे म
पैदल ही चल िदया। तभी उसे एक गाड़ी िदखाई दी। अ फ़ाक़ जैसे ही पास पहुच ं ा,
उसने देखा िक ये वही अ पताल वाली गाड़ी थी। ये गाड़ी हरदोई पु लस को
लावा रस िमली थी। अ फ़ाक़ उ ा थोड़ा आगे बढ़ा, तो वो मज़दरू के लए बनाए
गए वाटर के बाहर खड़ा था। उसने दरवाज़ा खटखटाया। दरवाज़ा खुलते ही
अ फ़ाक़ िकसी को देख कर मु कुराया। दरवाज़ा खोलने वाला भी उसे देख कर
मु कुरा रहा था—वो कोई और नह ब क ि पुरारी पांडे था। अ फ़ाक़ उ ा ने
ि पुरारी पांडे को गले लगाया और अंदर चला गया।
अंदर घुसते ही उसने देखा िक वहां रमाकांत, गौतम और िविकपी डया भी खड़े
ह। उन सबके सामने से हटते ही, उसने देखा िक कुस पर ा ठाकुर बंधी हुई
थी। अ फ़ाक़ ने बहुत धीरे से ा के मुह
ं पर लगा टेप हटाया, ‘कैसी हो
ठकुराइन? तुम तो रेस वन, रेस टू , रेस ी सब िदखा द हमको! देखो तु हारे च र
म गोली भी मार िदए साले हमको। य बे िविकपी डया, तुम से कहे थे िक ा
िमले तो पैर म गोली मारना, तुम साले कंधे म मार िदए?’
िविकपी डया ने सर झुका लया, ‘सर आप जीप क खड़क पर लटके थे, पैर
िदखाई ही नह दे रहे थे। खड़क खोल के मारते तो जीप क टेय रग छोड़नी पड़
जाती। बहुत िमला कर मारे, तो कंधे पर लगी सर।’
ि पुरारी पांडे बड़बड़ाया, ‘सर देव त के च र म तो गोली हमको भी खानी पड़ी
गरम पानी से, अकेले होते तो हम चार टी- टी खेल लेते।’
अ फ़ाक़ ने ा ठाकुर क तरफ देखा, िफर िविकपी डया से बोला, ‘साले गाड़ी
हरदोई रोड पर काहे छोड़े? खामखां म मैडम महारा को शक हो गया है िक ा
ठाकुर काकोरी म ही कह है…बौड़मै हो एकदम!’
गौतम बोला, ‘सर आप ही तो हम तीन क ूटी काकोरी-हरदोई सगल रोड
बै रके डग पर लगाए थे, ि पुरारी भाई ने ा क लोकेशन जैसे ही बताई, हम
अपनी मोटरसाइिकल से धूम वन…टू … ी हो गए।’
सपाही रमाकांत ने आगे का यौरा िदया, ‘सर डेढ़ िकलोमीटर पहले हम लोग
अपनी ही बै रके डग पर जीप छोड़ िदए, िकतना पैदल चलते! आप ही तीन रा ते
पर चे कग लगवाए थे, यही रा ता बचा था।’
‘अबे तो मोटरसाइिकल कहां ह तुम लोग क ?’ अ फ़ाक़ ने सवाल िकया।
िविकपी डया ने जे स बॉ ड के टाइल म जवाब िदया, ‘अमीनाबाद वाली गली
के पहले खड़ी कर िदए थे, सर। ि पुरारी भाई का फ़ोन वाला मुखिबर, अपने चेले
के साथ थाने छोड़ गया है दस िमनट पहले। आप ही के चेले ह, सर!’
ि पुरारी पांडे ने सवाल दागा, ‘अऊर वद कइसे मैनेज िकए बे ा?’
रमाकांत ने शरारती अंदाज़ म बोला, ‘अब हर चीज़ न पूछो, रज़ ट देखो पांडे
जी।’
रज़ ट म सामने ा ठाकुर बैठी थी। अ फ़ाक़ उ ा ने चार को ग त पर
िनकलने को कहा और तय िकया िक जब वो फ़ोन करेगा तो कोई एक ा पर
नज़र रखने के लए िफर से बाग पर तैनात होने आ जाएगा। चार कमरे से बाहर
आए और जीप टाट करके ग त पर चले गए। अब उस कमरे म केवल अ फ़ाक़
उ ा िब मल और ा ठाकुर थे।
अ फ़ाक़ ने ा का एक हाथ खोल िदया, ‘कहां है तु हारा मोबाइल?’
ा ने कुत क जेब से मोबाइल िनकाला और अ फ़ाक़ को दे िदया।
अ फ़ाक़ ने वो मोबाइल लया और िफर पूछा, ‘दस
ू रा वाला मोबाइल कहां है?’
***
उधर पु लस गे ट हाउस म स मान सह और देव त बैठे थे, सामने कुस पर दगु ा
शि ठाकरे, अबराम और अफ़ज़ल क लोकेशन रपोट पूरे कॉ संटेशन के साथ
पढ़ रही थी। ‘इसम तो कुछ भी नह है। रािबया, चांद और नसीम के क़ ल वाले
िदन दोन भाइय क लोकेशन मैच नह कर रही है, इसका मतलब ा ठाकुर ही
िठकाने लगा रही है।’
स मान बोला, ‘मैडम, दोन भाइय क लोकेशन रपोट आज तक क है।’
देव त ने ा ठाकुर के उस मोबाइल क अप टू डेट लोकेशन रपोट दगु ा शि
को दी, जो छह महीने म बमु कल इ स बार ही ऑन हुआ था, ‘मैडम रािबया
मडर के बाद ये मोबाइल पहली बार तब ऑन हुआ, जब उस िदन हमारे फ़ोटो
ख च कर हॉ सएप िकए गए। और िफर दोबारा तब खुला, जब अबराम को कूल
म फ़ोटो हॉ सएप िकए गए थे।’
***
उधर आम के बाग म ा ठाकुर पर नज़र रखने के लए गौतम को तैनात करके
अ फ़ाक़ उ ा वापस चला गया। वहां से अ फ़ाक़ क जीप काकोरी दरगाह पर
क । पहले से ही अ पताल क गाड़ी म ि पुरारी पांडे, िविकपी डया और रमाकांत
मौजूद थे। उनके साथ रािबया बसर के अ बू तह वर ख़ाँ भी बैठे थे। जीप चल दी।
अ फ़ाक़ ने भी धीरे से गाड़ी आगे बढ़ाई। रा ते म कई जगह बाहर से आई फोस के
जवान अ फ़ाक़ को देख कर यादा मु तैद हो गए। उ ह समझ म आ गया िक
इं पे टर लगातार ग त लगा रहा है और पूरी फोस पर नज़र बनाए हुए है।
अ फ़ाक़ ने जीप पहले अपने घर क तरफ मुड़वाई। अबराम अंदर सो रहा था
और अफ़ज़ल स यो रटी म तैनात दो सपािहय के साथ बाहर बैठा था। अ फ़ाक़
उ ा अंदर गया, पहले उसने गहरी न द म सो रहे अबराम के सर पर यार से हाथ
फेरा, िफर दसू रे कमरे म टंगी अपनी बीवी म रयम और वा लद फ़ उ ा ख़ाँ क
त वीर को दो पल देखने के बाद चादर से ढंक िदया और फौरन बाहर आ गया।
अफ़ज़ल और उसक स यो रटी म तैनात दोन सपािहय को जीप म बैठा कर
अ फ़ाक़ चल िदया। अफ़ज़ल को लेकर अ फ़ाक़ उ ा और ि पुरारी पांडे क जीप
सीधे तह वर के घर के सामने क । सब उतरे और तह वर से घर क चाबी लेकर
दरवाज़ा खोला गया। सभी लोग घर के अंदर चले गए। ताज़े काकोरी कबाब क
ख़ुशबू पूरे घर म फैली थी। दजन ड ब म ताज़े काकोरी कबाब पैक थे। अ फ़ाक़
उ ा ने एक ड बा उठा कर खोला और ख़ुशबू सूंघते हुए एक कबाब तोड़ा और
खाकर बोला, ‘ऐ साला काकोरी कबाब—इसे खा डाला तो लाइफ झगालाला!’
दोपहर से सब भूखे थे। रात का डेढ़ बजा था, पूरा िदन बस चाय समोसे म कट
गया था। अ फ़ाक़ ने िफर कबाब तोड़ते हुए सबको इशारा िकया। इशारा पाते ही
सारे सपाही ड बे उठाने लगे—कोई चार, कोई पांच, तो कोई दस-दस ड बे
लेकर सीिढ़य क तरफ चल िदए। फटी आं ख से सबकुछ देख रहे तह वर को
अ फ़ाक़ धीरे-धीरे नीचे वाले कमरे म ले गया। तह वर को पलंग पर बैठा कर
अ फ़ाक़ ने कबाब का ड बा उसके आगे कर िदया। तह वर हैरान था।
***
एक नई सुबह के साथ काकोरी िफर जाग गया। पु लस गे ट हाउस म अपना कमरा
अंदर से लॉक करके दगु ा शि ठाकरे नहा रही थी और बेड म म उसका फ़ोन
बज रहा था। देव त ने फ़ोन क घंटी क आवाज़ सुन कर दगु ा का डोर नॉक
िकया, मगर बाथ म तक आवाज़ नह पहुच ं ी। हरदोई, उ ाव और काकोरी पु लस
के जवान जगह-जगह तैनात थे। काकोरी म तीन तरफ से आने वाली सड़क पर
चेक पो ट बना दी गई थ । काकोरी टेशन पर भी जवान चाक-चौबंद थे। कोई
काकोरी दरगाह पर, तो कोई शहीद मारक पर—काकोरी म जैसे कोई मेला सा
लगा था। गली-मोह म लाउड पीकर पर देशभि के गीत गूज ं रहे थे। जोश से
भरी सुरीली सुबह म खाला हो या मौसी, अ बू हो या पापा, मैकू या मुबीन—एक
रेला सा सज-धज कर काकोरी टेशन क तरफ जा रहा था। कुछ शहीद मारक
क तरफ बढ़े जा रहे थे। हर तरफ शहीद के पो टर पर माला चढ़ी थी। िवदेशी
मेहमान और ब को लेकर 8 डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसजर को सहारनपुर
से रवाना हुए काफ़ देर हो चुक थी। एक बार िफर काकोरी को 1925 के इ तहास
का इंतज़ार था।
अ फ़ाक़ उ ा क जीप टेशन क तरफ बढ़ रही थी। िविकपी डया, ि पुरारी,
रमाकांत और गौतम हमेशा क तरह आज भी साथ थे। गीत का गूज
ं ना जारी था।
सरफ़रोशी क तम ा अब हमारे िदल म है
देखना है ज़ोर िकतना बाज़ु-ए-क़ा तल म है
***
दगु ा शि ठाकरे तैयार हुई। उसने फ़ोन उठा कर देखा तो अफ़ज़ल क तीन िम ड
कॉ स थ । दगु ा ने अफ़ज़ल को कॉल बैक िकया, लेिकन उसने फ़ोन नह उठाया।
फ़ोन कान पर लगाए हुए ही दगु ा ने टीवी ऑन िकया। हर यूज़ चैनल पर सिटजन
एमडमट िबल, यानी सीएए और एनआरसी के मु े पर कई जगह पर हो रहे दशन
क ख़बर चल रही थ । टीवी के लए काकोरी एिनवसरी कोई टीआरपी टॉिपक
नह था। चैनल स फग करते-करते वो सीसीटीवी यूज़ पर क , वहां मु ालाल
प कार क वही रपोट चल रही थी, जो मु ालाल ने काकोरी हायर सेकडरी कूल
के ब क तैयारी के व त शूट क थी। मु ालाल ने टीवी पर बोलना शु ही
िकया था िक अचानक दगु ा शि उठकर टीवी ीन के एकदम क़रीब आ गई।
दगु ा के कमरे के दरवाज़े पर िकसी ने द तक दी। दगु ा ने अंदर आने को कहा तो
स मान सह दा ख़ल हुआ और उसने बताया िक अफ़ज़ल उससे िमलना चाहता
है। दगु ा स मान के साथ बाहर आ गई। लॉन म पड़ी ेकफा ट टेबल के पास
अफ़ज़ल खड़ा था। हरदोई पु लस के दो सपाही उसके साथ थे। अफ़ज़ल के हाथ
म एक पॉली थन था। उसम दो-तीन ड बे रखे थे। दगु ा के आते ही अफ़ज़ल
मु कुराया और उसने पॉली थन मेज़ पर रख िदया।
अफ़ज़ल को सामने देख दगु ा बोली, ‘म तैयार हो रही थी, तेरे तीन कॉल िमस हो
गए।’
‘म बाहर ही था इस लए आपका कॉल िपक नह िकया,’ अफ़ज़ल ने भी जवाब
िदया।
‘काईको फ़ोन िकया? कइसे आना हुआ तेरा?’ दगु ा ने सवाल िकए।
अफ़ज़ल ने पॉली थन से ड बे िनकाले और बोला, ‘फ़ोन इस लए िमला रहा था
िक पूछ लूं ना ते म काकोरी कबाब खाएं गी या? फ़ोन नह उठा, तो म सीधे ले ही
आया।’
दगु ा के िदमाग़ म कुछ चल रहा था, उसने मु ालाल प कार को फ़ोन लगाया।
मु ा के फ़ोन उठाते ही दगु ा कमरे क तरफ चली गई। स मान सह और देव त
लगातार अफ़ज़ल को घूर रहे थे। अफ़ज़ल ने दोन से कहा िक उसका काम ठप
पड़ा है और वो बोर हो रहा है इस लए काकोरी टेशन जाना चाहता है। स मान ने
दो टू क जवाब िदया िक कोई भी डसीज़न सफ दगु ा शि ही लेगी।
दगु ा बात करके वापस बाहर आई, ‘हऊ! बता, कइसे आना हुआ?’
अफ़ज़ल मायूस सा बोला, ‘इ स बो रग फॉर मी, मुझे टेशन जाना है।’
‘सॉरी अफ़ज़ल, नॉट पॉ सिबल,’ दगु ा ने साफ़ मना कर िदया।
‘ लीज़! आप अपने ये सपाही साथ भेज दी जए,’ अफ़ज़ल ने र वे ट क ।
‘म थोड़ा फंसी है मटली, कुछ सोच कर ही तेरे को डटेन नह िकया। समझा तू
अबी? लीज़ कोऑपरेट,’ दगु ा ग़ु से म बोली।
फटे हुए साइलसर क आवाज़ के साथ मु ालाल प कार कैमरामैन सटू दबु े के
साथ, मोटरसाइिकल से पु लस गे ट हाउस म घुसा। मु ालाल ने अफ़ज़ल से हाथ
िमलाया और दगु ा के इशारे पर सटू के साथ अंदर चल िदया। अफ़ज़ल ने पीछे से
आवाज़ लगाई, ‘काकोरी के कबाब लाया था सुबह-सुबह; गरम ह, खा ली जएगा
ेक फा ट म।’
दगु ा पीछे पलट कर बोली, ‘थ स अफ़ज़ल, अबी खा लेगी थोड़ा देर म।’
टोटल सी रयस होकर अफ़ज़ल बोला, ‘समुद ं र नह , समु तल से ऊंचाई नाप
कर खाइएगा—सी लेवल, अदरवाइज़ यू िवल िमस सम थग मोर!’
दगु ा अफ़ज़ल को देख कर मु कुराई, िफर ओके कहकर मु ालाल के साथ अंदर
चली गई। देव त भी दगु ा के पीछे -पीछे अंदर चल िदया। अफ़ज़ल दोन सपािहय
के साथ वापस जाते हुए, स मान के बगल से गुज़रते हुए बोला, ‘अपनी मैडम को
याद िदला देना िक काकोरी कबाब ज़ र खा ल, लेिकन खाने से पहले समु तल
से काकोरी क ऊंचाई नाप ल।’
इतना कहकर अफ़ज़ल चला गया। स मान ने ऐसे मुह ं बनाया जैसे अफ़ज़ल
कोई पागलपन क बात कर रहा हो। गे ट हाउस के अंदर मु ालाल दगु ा को कैमरे
म कुछ िदखा रहा था। दगु ा ने मु ालाल से टीवी पर चल रही रपोट का रॉ फुटेज
मंगाया था। कई बार रवाइंड िकया, लेिकन दगु ा को वो चीज़ साफ़ नह िदखी जो
उसने रपोट म देखी थी। देव त ने एक बैग खोल कर वी डयो डवाइस िनकाली
और लीड टीवी से कने ट कर, कैमरे का टेप डवाइस पर चलाया।
दगु ा बोली, ‘मेरे को ला ट वाला चािहए, जब तू लाइव बोल रहा था।’
मु ालाल बोला, ‘अ छा वो पीटू सी!’
दगु ा झ ा गई, ‘पीटू सी या है रे?’
मु ालाल प कार ने उसे बताया िक ख़बर के आ ख़र म जब रपोटर बोलता है
तो उसे पीटू सी कहते ह, मतलब पीस टू कैमरा।’
दगु ा ने उसका ान इ ोर िकया और वही िदखाने को बोला।
देव त ने टेप फॉरवड क , क़रीब तीस सेकड बाद मु ा ने उसे रोकने को कहा।
उधर टेशन पर एक टपो का। उस टपो से उतर कर अबराम ने इधर-उधर
देखा और िफर दो कारीगर को टपो से कुछ िनकालने का इशारा िकया। टपो के
खुलते ही जेलेिटन क उन पेिटय के जैसी ही पेिटयां िदखाई द , जो अभी तक
लापता थ । कारीगर ने एक पेटी का ढ न खोला। पेटी के अंदर ब स एं ड ला ट
के ड बे भरे िदखाई िदए। पेिटयां एक के बाद खुलती गई ं। हर बार पेटी के अंदर
ब स एं ड ला ट के ही ड बे िनकल रहे थे।
इधर पु लस गे ट हाउस म वी डयो डवाइस पर टेप ठीक पीटू सी के पहले पॉज़
हो गया। दगु ा ने देव त को लो मोड म टेप िफर चलाने को कहा। इस बार दगु ा
शि ने एक जगह ज़ोर से कहा, ‘ टॉप, टॉप, अभी तू िफर से टेप रवाइंड कर
और चला तो ज़रा।’
देव त ने टेप को रवाइंड करके िफर लो मोड म चलाया। दगु ा ने टॉप कहकर
वी डयो कवाया और ज़ूम इन कराया। ज़ूम इन होते ही दगु ा ने िकसी िवनर क
तरह मु ी बांधी और बोली, ‘येस! येस! येस!’
दगु ा ने फुटेज म देखा िक मु ालाल पीटू सी कर रहा है और उसके ठीक पीछे
अबराम अपने मोबाइल से ब के साथ से फ ले रहा है। उसी समय पर एक और
ब ा अबराम का फ़ोटो ख च रहा है। फ़ोटो ख चने के बाद, ब ा अबराम को
मोबाइल वापस कर देता है। अब अबराम के हाथ म दो मोबाइल ह। अबराम ब े से
लए मोबाइल से कुछ करने के बाद, दोन ही मोबाइल अपनी जेब म रख लेता है।
उधर टेशन पर ब क भीड़ ने अबराम को घेर लया। ये सभी ब े काकोरी
हायर सेकडरी कूल के थे ज ह अबराम ने टे नग दी थी। अबराम ने हंसते हुए हर
ब े को ड बा पकड़ाया।
टेप देखकर दगु ा दौड़ कर अपने कमरे म गई और केस वाली फ़ाइल लेकर वापस
आई। उसने एक के बाद एक सारे कागज़ िनकाले और िफर अबराम और अफ़ज़ल
के साथ-साथ, ा ठाकुर के दस
ू रे मोबाइल नंबर क लोकेशन रपोट भी मेज़ पर
फैला दी। दगु ा ने एक पेन लया और तीन रपो स को एक साथ रख कर रपो स
पर गोले बनाने लगी।
इसके बाद दगु ा ने रपोट पर पेन से लगाए गोले िदखाते हुए कहा, ‘सबकुछ हाथ
लग गया देव त, सबकुछ! थ स मु ालाल, यू आर रयली सीसीटीवी।’
मु ालाल को ऐसा लगा जैसे आज वो इस रा के काम आ गया, उसने पूछा,
‘मैडम वादा है िक ख़बर ेक नह क ं गा, पर बताइए तो सही या हाथ लगा?’
दगु ा ने समझाना शु िकया, ‘ ीन पर अबराम का फ़ोटो एक ब ा ख च रहा
है। िफर उस ब े ने मोबाइल अबराम को वापस कर िदया। अब देखो, अबराम ने
ब े वाले मोबाइल से कुछ िकया और िफर अपनी जेब म दोन मोबाइल वापस रख
लए।’ दगु ा ने िफर खुलासा िकया, ‘ये वही फ़ोटो है जो अबराम ने मुझे िदखाई थी।
वही, जो ा ठाकुर के नंबर से अबराम के नंबर पर भेजी गई थी।’
देव त को याद आ गया, ‘जी मैम, उस िदन लॉन म ा के मोबाइल से आपके
नंबर पर आपके फ़ोटो भी हॉ सएप िकए गए थे, याद है मैम?’
दगु ा के चेहरे पर कॉ फडस साफ़ िदखाई देने लगा, ‘सब याद है, अभी ये ा
के दस ू रे वाले स पी शयस मोबाइल नंबर और अबराम के मोबाइल के डटे स देख
—पूरे छह महीने म ा का नंबर जतनी बार भी खुला, उतनी बार अबराम का
लोकेशन और ा के इस नंबर का लोकेशन एकदम सेम है।’
‘लेिकन ा का मोबाइल अबराम के पास कैसे मैम?’ देव त ने सोचते हुए
पूछा।
‘नो आई डया, बट थ स िवल रवील,’ दगु ा ने जवाब िदया।
देव त ने च कते हुए पूछा, ‘बात तो आपक ठीक है, लेिकन या रािबया बसर
मडर वाले िदन भी सेम लोकेशन है दोन मोबाइ स क ?’
उधर टेशन के बाहर खड़ा अबराम का टपो खाली हो चुका था। ब े ब स एं ड
ला ट के ड बे लेकर टेशन के अंदर भाग रहे थे। अ फ़ाक़ के साथ ि पुरारी,
िविकपी डया, रमाकांत और गौतम भी टेशन पर ग त लगा रहे थे। ब के हाथ
म ब स एं ड ला ट के ड बे देख कर अ फ़ाक़ ने यार से एक ब े के सर पर
हाथ रखा, पुचकारा और चल िदया।
दगु ा ने बात आगे बढ़ाई, ‘बहुत चालाक है रे अबराम, बस रािबया बसर के मडर
वाले िदन उसने अपना ओ रजनल मोबाइल घर छोड़ िदया, िफर रािबया को ा
वाले मोबाइल से फ़ोन िमलाकर वच ऑफ़ कर िदया। मतलब ये वोई नंबर है,
जससे रािबया और ा नह , ब क रािबया और अबराम रात म घंट बात िकया
करते थे। रािबया का मडर करके रािबया केइ मोबाइल से ख़ुद को और अफ़ज़ल
को िमस कॉल िदया, ये बताने के लए िक रािबया ने मदद के लए अफ़ज़ल और
अबराम को फ़ोन िकया, तािक हर कोई यही समझे िक सीधा-सादा कबाब वाला
अबराम उस रात घर पर ही था।’
देव त सकते म था, ‘मतलब काकोरी हायर सेकडरी कूल म ा आती है,
अबराम का फ़ोटो ख चती है और पौन घंटे म लखनऊ पहुच ं जाती है, अब समझ
म आया िक जसे हम ा समझ रहे थे वो अबराम था।’
दगु ा बड़बड़ाई, ‘ये अबराम िकसी िमशन पर है। जसका काम पूरा वो ख ास—
रािबया बसर, चांद खुतरा, नसीम पपीता—सब ख ास!’
‘मैडम, रािबया का या असाइनमट रहा होगा?’ देव त ने सवाल िकया
दगु ा ने जवाब िदया, ‘ये तो ा बताएगी िक मडर के पहले रािबया क आधे घंटे
या बात हुई ा से? या िफर ा भी िमशन म है…आई डो ट नो…’
‘बट चांद क लाश पर ि िटश कग शप के स े , नसीम के बुक क जेब म
माऊज़र—ये सब ा ठाकुर ने ही बनाए थे मैम। उसके घर से चोरी हुए या उसने
ख़ुद चुराए, अबराम के साथ िमशन के लए?’
दगु ा ने सर िहलाया, ‘ड ट नो, रयली नो आई डया िक ये सब या है।’
‘पर हम अफ़ज़ल को य टैप कर रहे ह मैम?’ देव त ने िफर सवाल िकया।
‘उसका भी लॉ जक है। म ग़लत टैप नह कर रही अफ़ज़ल को। अफ़ज़ल अपने
लैपटॉप से ॉस बॉडर इंटरनेट कॉ लग िकया है रे,’ दगु ा बोली।
तभी स मान सह दौड़ता हुआ अंदर आया, ‘मैडम अफ़ज़ल भाग गया।’
दगु ा का मुह
ं खुला का खुला रह गया, ‘ या? कइसे भागा?’
हरदोई के दोन सपाही भी अंदर आए, उनके बदन पर काला क चड़ लगा था।
हाथ और माथे पर ख़र च थ । दोन ने बताया िक अफ़ज़ल एक जगह सगरेट लेने
का और उनको भी ऑफ़र क । दोन अफ़ज़ल के साथ सगरेट का धुआं उड़ाते
जा रहे थे िक एक सुनसान जगह उसने एक सपाही को िगराकर उसक रवॉ वर
छीन ली। दोन ने उसे पकड़ने क को शश क , लेिकन वो रवॉ वर के दम पर भाग
गया। दगु ा ने झुझ
ं लाते हुए दस
ू रे सपाही क रवॉ वर के बारे म पूछा, तो पता चला
िक एक रवॉ वर छीनने के बाद उसने कनपटी पर रख कर दस ू री रवॉ वर भी
छीन ली और बगल के नाले म फक दी। वही रवॉ वर ढू ंढ़ने के लए दोन नाले म
उतर गए और क चड़ से उनक वद सन गई। दगु ा ने अ फ़ाक़ को फ़ोन िमलाया,
लेिकन वो फ़ोन नह उठा रहा था। अफ़ज़ल और अबराम के फ़ोन वच ऑफ़ थे।
8 डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसजर काकोरी पहुच ं ने ही वाली थी। दगु ा ने घड़ी
देखी और सबको तुरतं रेलवे टेशन चलने का इशारा िकया। काकोरी क हर बात
म कोई बात है, िदखता कुछ है और होता कुछ और। स मान सह भी हर बात, हर
इशारे को परख लेना चाहता था इस लए उसने तुरत ं ब स एं ड ला ट का
पॉली थन उठाया और दगु ा को पकड़ा िदया, ‘अफ़ज़ल कहकर गया था िक मैडम
कबाब ज़ र खा ल।’
‘ यामाइला…अभी ना ता-वी ता बाद म, पिहले चल लउकर,’ दगु ा च ाई।
स मान जानता था िक दगु ा ने मां क गाली दी है, लेिकन वो का नह , उसने
िफर दगु ा को देखा और अफ़ज़ल क बात दोहरा दी, ‘खाने से पहले समु तल से
ऊंचाई ज़ र नाप ली जए।’
दगु ा का िदमाग़ ट -ट बोलने लगा य िक समु तल से ऊंचाई नापने क बात
तो अफ़ज़ल ने उससे भी कही थी। दगु ा को याद आया िक जस रोज़ दोन भाइय
से पूछताछ के लए वो अबराम के कबाब पॉइंट पर गई थी, उस िदन भी ब स एं ड
ला ट के नाम को ख़ुद दगु ा ने ए ी शएट िकया था। ड बे पर छपे काकोरी टेशन
के टोन बोड क तारीफ क थी, और टेशन बोड पर काकोरी के नाम के नीचे
लखी समु तल से ऊंचाई को लेकर सब ख़ूब हंसे थे। दगु ा शि ने पॉली थन से
ड बा बाहर िनकाला और सीधे समु तल से ऊंचाई का आं कड़ा देखा। आं कड़ा
लखा था—26.8841 मीटर 80.8001 सटीमीटर।
दगु ा शि ठाकरे आं कड़ा देख कर चकरा गई। वो समझ गई िक ये कोई ऊंचाई
नह ब क कॉ डनेट है। उसने सच इंजन म जैसे ही कॉ डनेट फ ड िकया, वैसे ही
जवाब आया—काकोरी रेलवे टेशन। दगु ा शि का िदमाग़ चकरा गया िक अबराम
ने ब स एं ड ला ट के ड बे पर केवल रेलवे टेशन का कॉ डनेट य छापा है,
काकोरी का कॉ डनेट य नह छापा? तुरत ं ही दगु ा के िदमाग़ ने सब समझ लया।
उसे अंदाज़ा हो गया िक ब स एं ड ला ट के ड बे पर छपे काकोरी टेशन के
कॉ डनेट सारा खुलासा ख़ुद कर रहे ह। दगु ा ने हर ड बे को देखा। हर ड बे पर
कॉ डनेट छपे थे। काकोरी टेशन के कॉ डनेट उस िदन से ड बे पर छपे ह, जस
िदन अबराम ने काकोरी म क़दम रखा। जस िदन अबराम ने अपनी ऑनलाइन
स लाई चेन खोली। अब ब स एं ड ला ट के मायने बदल चुके थे, डेिफनेशन
बदल चुक थी। आज ये कहना सरासर ग़लत था िक असली काकोरी कबाब को
जैसे ही टे ट ब स चखगी, मुह
ं म ऐसे पानी आएगा जैसे वाद का ला ट हुआ
हो। असली िमशन तो काकोरी कबाब को चखने वाली टे ट ब स क आड़ म
ला ट करने का था। 1921 का काकोरी कबाब, आज, 1925 के काकोरी कांड को
बा द म उड़ाने का िमशन बना चुका था। ये सच दगु ा शि समझ चुक थी, मगर
एक सवाल का जवाब अभी भी वो नह खोज पाई थी। सवाल ये िक िफर अफ़ज़ल
ने इंटरनेट कॉ लग य क ? अगर वो बेकसूर है, तो फरार य हुआ? या
अ फ़ाक़ उ ा िब मल के दोन बेटे सािज़श का िह सा ह? या दोन ही िमशन के
लए काम कर रहे ह?
इसी बीच दगु ा के मोबाइल पर अ फ़ाक़ उ ा का फ़ोन आया। 8 डाउन
सहारनपुर-लखनऊ पैसजर, यानी काकोरी कांड वाली वही टेन लेटफॉम पर
धीरे-धीरे आ रही थी, जसे ां तका रय ने लूटा था। टेन शहीद क याद म सजी
हुई थी। टेन म बैठे देशी-िवदेशी मेहमान और ख़ासकर ब े तरंगा लए खड़िकय
से झांक कर अपनी ख़ुशी ज़ािहर कर रहे थे। लाउड पीकर पर िब मल
अज़ीमाबादी का गीत बज रहा था—सरफ़रोशी क तम ा अब हमारे िदल म है।
अ फ़ाक़ टेशन पर खड़ा फ़ोन पर च ा रहा था, ‘मैडम बहुत शोरगुल है,
आपका कॉल सुन नह पाया। आप ज दी से टेशन आ जाइए।’
इधर से दगु ा फ़ोन पर च ाकर बोली, ‘अ फ़ाक़ अबराम को पकड़ो।’
पर अ फ़ाक़ ने जवाब िदया, ‘हां-हां अबराम यह है, आप आ जाइए।’
‘यार इसको कुछ सुनाई नह देता,’ दगु ा बुरी तरह झ ाई।
दगु ा शि क जीप टेशन के बाहर आकर क । दगु ा, स मान, देव त,
मु ालाल और सटू दबु े जीप से कूद कर बाहर िनकले। कबाब के सैकड़ ड बे
लेटफॉम पर जमा कर िदए गए थे। ब े ड बे लेकर बोगी म जाने को तैयार थे। 8
डाउन पैसजर क एक बोगी के गेट पर अबराम ब क तरफ देख रहा था। चार
पु लस वाले जैसे ही ड ब क जांच करने आए, अ फ़ाक़ उ ा ने गेट पर खड़े
अबराम को देखा। अबराम के चेहरे पर टशन थी। अ फ़ाक़ उ ा ने आं ख आं ख म
अबराम से कुछ बात क और िफर पु लस वाल को हट जाने के लए कहा। ब े
हाथ म एक साथ दो-चार ड बे लेकर शोर मचाते हुए बोिगय म चढ़ने लगे। ब
क ये भीड़ बोिगय क बथ के नीचे ड बे इक ा करने लगी। अ फ़ाक़ उ ा भी टेन
के अंदर चला गया। टेशन मा टर ि लोक यास ने हरी झंडी िदखाई। दगु ा शि
जैसे ही लेटफॉम पर पहुच ं ी, टेन ज़ोरदार हॉन देते हुए आगे खसकने लगी।
देव त, स मान सह और दगु ा शि अलग-अलग कोचेज़ म चढ़ गए। मु ालाल
प कार ने भी सटू दबु े के साथ एक कोच पकड़ ली।
***
काकोरी कांड का इ तहास समेटे टेन चल दी। टेन क हर बोगी म पीकर लगे थे
और काकोरी कांड का रेकॉडड ऑ डयो ो ाम बज रहा था। क़रीब तीन
िकलोमीटर दरू वो जगह थी जहां 8 डाउन पैसजर क चेन ख च कर चं शेखर
आज़ाद के साथ राजे नाथ लािहड़ी, अ फ़ाक़ उ ा ख़ाँ, रोशन सह और राम
साद िब मल ने अं ेज़ का आठ हज़ार पए का ख़ज़ाना लूटा था। एक से
दसू री, तीसरी, चौथी और पांचव बोगी तलाशते हुए दगु ा, स मान और देव त
अबराम को ढू ंढ़ रहे थे। ब े ब स एं ड ला ट के ड बे टेन म सवार लोग को
िग ट कर रहे थे। दगु ा ने एक ब े के हाथ से ड बा छीना। ब ा च क गया। दगु ा ने
ड बा खोला, तो उसम कबाब थे। दगु ा ने िफर से एक ड बा छीना, पर उसम भी
कबाब ही िनकले। स मान सह और देव त भी ब से ड बे लेकर चेक करते चल
रहे थे। जतने ड बे सबने चेक िकए सभी म कबाब थे। ब के डरे हुए चेहरे और
मेहमान को च कते हुए देख दगु ा समझ गई िक ऐसा करने से टेन म पैिनक हो
जाएगा। अबराम का लान उसक समझ के परे था। चेहरे पर नकली मु कुराहट
चपका कर दगु ा ने ब और मेहमान को समझाया िक वो बस रडम चे कग कर
रही है। टेन म कह बैठा अबराम िकसी िवलेन क तरह मु कुरा रहा था। अबराम
कह से देख रहा था िक ड बे चेक िकए जा रहे ह। सफ वही जानता था—वो
जेलेिटन क सात पेिटयां भरकर कबाब के ड बे लाया है। बेचारे ब े तो सफ दो-
दो, चार-चार ड बे हाथ म लेकर बांट रहे ह। दगु ा सफ ब और मेहमान के हाथ
म मौजूद ड बे ही चेक कर रही है। टेन पर चढ़ने के बाद ब ने जन ड ब के ढेर
बथ के नीचे रखे ह, उस पर तो िकसी क नज़र ही नह जा रही है। ब े तो बीस-
तीस ही ह। ड बे तीन-चार सौ से यादा ह। अबराम ने ब को बथ के नीचे ड बे
इक ा करने क टे नग दी थी और कहा था िक वह से िनकाल कर मेहमान को
कबाब बांटना है। दगु ा तलाशी लेते सोच रही थी िक या ड ब के बीच म कह
कुछ छुपा है या लान कुछ और है? दगु ा शि ने सोचा िक ड बे तलाशने से
बेहतर है िक अबराम को ही तलाशा जाए। गाड के कोच से ठीक एक कोच पहले
एक ऐसी बोगी थी जसम सफ चार लोग बैठे थे। दगु ा, स मान सह और देव त
भी उसी कोच म पहुच ं गए। दगु ा ने एक के बाद एक तीन मुसािफर क श देख ,
और इससे पहले िक वो चौथे के पास पहुच ं ती, कंबल ओढ़े एक मुसािफर उठा और
सीधे दगु ा के सामने आ गया। दगु ा, स मान और देव त ने तुरत ं रवॉ वर तान दी
—ये अबराम था।
अबराम के हाथ म पकड़ी हुई चीज़ देख कर दगु ा शॉ ड रह गई। ये कोई
रवॉ वर नह , ब क एक रमोट था। अबराम ज़ोर से च ाया, ‘मैडम इतने तो
तु हारे पास तमंचे भी नह , जतने बटन ह इस रमोट म। िटगर दबाओगी तो
ताकत लगेगी, मेरा या है, बस रमोट से चैनल बदलना है…बस एक धमाका और
हर धमाके पर एक धमाकेदार े कग यूज़!’
रवॉ वर तानकर खड़ी दगु ा आगे बढ़ी, ‘तेरा ॉ लम या है अबराम?’
अबराम जैसा िदख रहा था, वैसा िकसी ने कभी नह देखा था। जैसे वो कोई
साइको हो, इ लाम के नाम पर जहाद का पागलपन उसके चेहरे पर साफ़ िदखने
लगा। अबराम जोकर जैसा मुह
ं बना कर बोला, ‘मेरा ॉ लम! टग-टांग चैनल नंबर
एक “आज जािमया िम लया के छा ने बस म आग लगा दी”, टग-टांग चैनल
नंबर दो “पु लस ने आज जेएनयू के छा को जमकर पीटा”, ढेन टड़…चैनल
नंबर तीन “फैसला आया है िक राम मंिदर अयो या म ही बनेगा, म जद के लए
पांच एकड़ ज़मीन अलग से दी जाएगी”, चैनल नंबर चार, पांच, छह, सात, आठ
“क मीर से धारा 370 ख़ म, इंटरनेट बंद, यूपी म तेईस दंगाई पु लस क गोली से
मरे…एनआरसी, सीएए, एनआरपी!” और कोई चैनल लगाऊं मैडम दगु ा?’
दगु ा आगे बढ़ रही थी िक अबराम ने उसे िफर रमोट िदखाकर रोका और
रवॉ वर उसक तरफ फकने को कहा। दगु ा के इशारे पर देव त और स मान ने
भी अपना रवॉ वर अबराम क तरफ फक िदए। अबराम ने सारे रवॉ वर पैर क
ठोकर से बथ के नीचे सरका िदए। दो सेकड के लए जैसे ही उसने बथ क तरफ
देखा, वैसे ही धाड़ से एक गोली चली और सीधी अबराम के कान के बाज़ू से होती
हुई, कोच क दीवार म घुस गई। अबराम ने च क कर देखा तो हाथ म रवॉ वर
ताने हुए अफ़ज़ल आगे बढ़ रहा था। अबराम अपने भाई को देख कर ज़ोर से हंसने
लगा। दगु ा तेज़ी से अबराम क तरफ कूदी और उसने अबराम का रमोट वाला
हाथ पकड़ लया। देव त, स मान और अफ़ज़ल भी तेज़ी से अबराम क तरफ
लपके, तभी इंटरकने टेड टेन के शटर िगरने क आवाज़ आई। दगु ा ने पलट कर
देखा तो ि पुरारी पांडे ने देव त, िविकपी डया ने स मान सह और रमाकांत और
गौतम ने अफ़ज़ल के सर पर रवॉ वर िटका रखी थी। शटर िगराकर अ फ़ाक़
उ ा िब मल पलटा और उसने दगु ा शि ठाकरे क कनपटी पर सीधे रवॉ वर
सटा दी और िफर अबराम क तरफ देख कर च ाया, ‘आई पाई अबराम! अब
बोल तू हारा म जीता, आई पाई का कग कौन? अ फ़ाक़ उ ा िब मल, लडी
मुसलमान।’
अबराम ज़ोर से हंसा, ‘हाहाहा…पु लस ने चोर पकड़ ही लया, मगर चोर पागल
है, चोर के पास रमोट है, दबा िदया तो चथड़े उड़ जाएं गे।’
ताकत लगाकर अ फ़ाक़ उ ा ने दगु ा के हाथ से अबराम का हाथ छुड़ाया। हाथ
छूटते ही अबराम बोगी के वॉशबे सन के पास जाकर खड़ा हो गया। अ फ़ाक़ दगु ा
के बाल ख चते हुए बोला, ‘अरे ए मैडम, मेनोपॉज़ को थोड़ा पॉज़ दो यार, फ़ज़
एनकाउं टर करके बहुत मेडल पहन चुक । सरकार को फ़ोटो पर भी मेडल लटकाने
का मौक़ा तो दो। हां तो हज़रात! हज़रात! हज़रात! दगु ा शि ठाकरे को
मरणोपरांत वीरता च से नवाज़ा जाता है। बीवी खो चुका हू,ं साली मेरा बेटा भी
छनोगी या?’
दगु ा उठी और उसने घूर कर अ फ़ाक़ को देखा, ‘तेरे लए थोड़ा-थोड़ा र पे ट
आया था मेरे मन म, मगर म जानती तू साला हरामखोर है।’
अ फ़ाक़ ने दगु ा क कनपटी से हटा कर उसके मुह ं म रवॉ वर ठू ंस िदया,
‘हरामखोर नह थेनॉस, ग बर सह, शाकाल, मोगै बो और वो या नाम था—
गायत डे, सब िमला कर हम ह सबसे बड़े िवलेन, और काकोरी म जो सबसे बड़ा
िवलेन, वो ही काकोरी का हीरो नंबर वन। और मैडम बॉलीवुड हो या हॉलीवुड, बेटे
क जान बचाने के लए तो बाप जान ले ही लेता है। अरे हदी म प रवारवाद,
अं ेजी म नेपोिट म समझ !’
अफ़ज़ल च ाया, ‘ख़ाँ साहब, अपने नाम क तो क़ कर ली जए।’
अ फ़ाक़ चीख़ा, ‘अबे छोड़ मेरा नाम, तुझ नामद को अफ़ज़ल होकर अफ़ज़ल
गु याद है? स ाद भट, आिदल डार, बुरहान वानी याद ह?’
अफ़ज़ल रोने लगा, ‘मुझे गांधी याद ह, कलाम भी याद ह। ये भी याद है िक म
बेकसूर हूं और आप दोन ने िमल कर मुझे फंसाया। मेरे जैसे मुसलमान आप जैसे
मुसलमान क वजह से पािक तानी कहलाते ह।’
‘अबे लैपटॉप से भाई लोग से बात या कर ली, मतलब फंसा िदया तुझे? फ़
कर साले, कुछ तो काम आया तू!’ अबराम ने मज़ाक़ उड़ाया।
अबराम रमोट लेकर अ फ़ाक़ के पास आया और दगु ा शि के बाल ज़ोर से
ख चकर बोला, ‘साली तुझे या ूव करना है, सािबत तो हम मुसलमान को
करना है िक हम पािक तानी ह, बां लादेशी ह, या अफगािन तान से आए ह। म तो
अकेला था, पर अब मेरा बाप मेरे साथ है—मेरा अ ाह, मेरा िमशन—और देख,
पलट कर देख गौर से, कौन-कौन मेरे साथ है।’
दगु ा बोली, ‘साला सब का सब देश का दीमक है, और या है!’
‘अबे ए ि पुरारी, बताए नह मैडम महारा को तुम लोग? अरे ये नाम से हद ू ह,
बाक ह कुछ और…अबे या हो तुम लोग?’ अ फ़ाक़ ने अपने चेल से पूछा।
िविकपी डया ने ज़ुबान खोली, ‘ले ट ट ह सर! ले ट ट, माने अबन
न सल।’
दगु ा ने कुछ बोलने क को शश क , लेिकन मुह
ं म रवॉ वर था। उसने अ फ़ाक़
क आं ख म देखा तो अ फ़ाक़ ने रवॉ वर हटाया और िफर सर पर िटका िदया।
दगु ा बोली, ‘अ फ़ाक़ समझा इस लड़के को, ही इज़ क यू ड लाइक अदस…
प थर चलाने से कुछ सॉ व नह होगा, टेन उड़ेगी तो ये भी चथड़ा हो जाएगा। सब
मासूम मारे जाएं गे इधर।’
मासूम के मरने क बात सुन कर अबराम क आं ख लाल हो गई ं। अबराम ज़ोर-
ज़ोर से चीख़ने लगा, ‘मरने दो साल को। बाबरी शहीद होगी, तो हम संसद म
मारगे; अफ़ज़ल गु शहीद होगा, तो बुरहान वानी पैदा होगा; बुरहान मारोगे, उरी
को फौ जय का मशान बना दगे; स जकल टाइक करोगे कािफर , तो पुलवामा
म बदला लगे; क मीर छीनोगे, मंिदर बनाओगे? हम मु क से िनकालोगे? ये हमारा
मु क है, कोई नह श मदा है, अफ़ज़ल अब भी ज़दा है! बुरहान के अंदर ज़दा है,
अबराम के अंदर ज़दा है!’
अबराम के साथ अ फ़ाक़ उ ा भी नारे लगाने लगा, ‘ ज़दा है, ज़दा है, अबराम
के अंदर ज़दा है, अ फ़ाक़ के अंदर ज़दा है, ज़दा है!’
ि पुरारी पांडे, िविकपी डया, रमाकांत और गौतम भी नारे लगाने लगे।
बोगी को इंटरकने ट करने वाले शटर को िकसी ने ज़ोर से पीटा। अ फ़ाक़ ने
रमाकांत को इशारा िकया। अफ़ज़ल को गौतम के हवाले करके रमाकांत शटर क
तरफ बढ़ गया, ‘कौन है बे?’
‘मु ालाल प कार, सीसीटीवी यूज़,’ उधर से आवाज़ आई।
अ फ़ाक़ उ ा के इशारे पर रमाकांत ने ह का सा शटर खोला। सर झुकाकर
मु ालाल और सटू दबु े अंदर आ गए। िविकपी डया ने दोन को रवॉ वर िदखा
कर कायदे से रहने क धमक । अंदर का सीन देख कर मु ालाल च क गया, ‘अरे
लगता है ड टब कर िदया, हम चलते ह।’
अ फ़ाक़ च ाया, ‘अबे मु ा आओ, आज तु ह डाइरे ट एडीटर क पो ट पर
मोट कर देते ह। बे सटू ! िनकाल कैमरा, आज एकदम सनेमा कोप शू टग
होगी…साइलस लीज़! लाइ स, कैमरा, ए शन!’
सटू दबु े ने कांपते हाथ से कैमरे का बटन दबाया और शू टग शु क । तभी
बोगी म लगे पीकर पर चल रहा काकोरी कांड का रकॉडड ऑ डयो डामा बंद हो
गया। िकसी ने बोगी के ठीक पीछे वाली गाड क बोगी म साउं ड स टम बंद िकया,
िफर टेप रकॉडर क लीड हटा कर मोबाइल फ़ोन क लीड लगा दी और फ़ोन ले
कर िदया। पीकर पर एक और डामा बजा, ये डामा फ़ोन क ऑ डयो रकॉ डग
थी।
हैलो ा!
हां, बोल न।
ा, रािबया बोल रही हू।ं
हां, तो बोल। सुन रही हूं मेरी जान!
ा, उसने मुझे बुलाया है।
हाय! यट
ू ी वीन को इ ी रात म िकसने बुलाया? या इरादा है?
मज़ाक़ मत कर यार, मुझे डर लग रहा है।
हां पहली-पहली बार तो डर ही लगता है।
ा ठाकुर और रािबया बसर क आवाज़ सुन कर बोगी म मौजूद हर िकसी के
होश उड़ गए। अ फ़ाक़ च ाया, ‘अबे ये एफएम रे डयो कउन चला दीस? अ छी
ख़ासी शू टग चल रही है यहां।’
अबराम ज़ोर से हंसा, ‘अरे बजने दो, बजने दो। हैलो रािबया, हैलो ा!’
अ फ़ाक़ ने इशारा करके गौतम को गाड क बोगी क तरफ रवाना िकया।
ऑ डयो अभी भी चल रहा था।
आज ही बात हुई और आज ही बुला लया है, यार!
अरे अरे साइंिट ट! देख लेना कोई लैब म नया ै टकल न कर दे!
नह यार, तेरे वाले नंबर से फ़ोन आया है।
ओ हो, मीठी-मीठी बात वाला फ़ोन!
िकसी िमशन क बात कर रहा है, यार! पता नह या कर रहे ह ये तीन ।
तीन ? मतलब चांद और नसीम भी?
हां यार, ा वो आने वाला है।
ओके-ओके ठीक है, रखती हू।ं
नह रख मत, बस सब सुनती जा।
अबे म य सुन,ूं मेरे पास कौन सा ड डो है,
लीज़ तू साथ रह मेर…

(दरू से मोटरसाइिकल क आवाज़ आने लगी)
वो आ गया, सामने है।
ओके।
कैसी हो?
ठीक हू।ं
िदन म शादी क बात और रात को बुला लया, इ ा सी रयस!
बैठो ज दी।
(मोटरसाइिकल चलने क आवाज़ लगातार आ रही थी)
सफ शादी ही ज़दगी नह है रािबया।
तो या है?
िमशन है।
या िमशन-िमशन बोल रहे हो तबसे?
बताता हू।ं
हम कहां जा रहे ह?
बस पास म।
नह , बताओ ये या है?
या?
ये…
ये हमारी ज़ुबान है।
साफ़-साफ़ बोलो, अबराम।
इस मु क को बा द क ज़ुबान ही समझ म आती है रािबया।
मुझे सफ ये बताओ, ये या है?
जेलेिटन, जसे लेकर तुम सुबह से शोर मचा रही हो।
जेलेिटन िकस लए? रोको लीज़!
मु क हमारे ख़लाफ़ है रािबया।
ख़लाफ़? मतलब?
कौम क बबादी नह िदखाई दी तुमको अभी तक?
ये तुम कौम-कौम या करने लगे अबराम?
वही जो तु हारी भी कौम है, बस तुम भूल गई हो।
हां तो या हुआ हम मुसलमान ह तो?
बाबरी का नाम सुना है?
हां, य ?
क मीर का?
अरे सब सुना है, पढ़ी- लखी हू!ं
370 जानती हो?
370, एनआरसी, सीएए सब जानती हू।ं
तो या कर रही हो कौम के लए?
हमारी कौम का इसम या है?
हम जवाब देना है।
कैसा जवाब?
जवाब जो पुलवामा म िदया, उरी, अयो या, संसद म िदया…
सब टेरे र ट थे, अबराम।
इ लाम को बचाने वाले अ ाह क नज़र म शहीद ह रािबया।
लीज़ गाड़ी रोको। मुझे वापस जाना है।
कौम के साथ रहो रािबया, इ लाम को ज़ रत है तु हारी।
तुम गाड़ी रोको, लीज़ गाड़ी रोको।
(दरू गाना बज रहा था, तू लगा ले लू जब लपी टक…)
लो क गया, अब बोलो।
हम हटा लगे पेिटयां, बस तुम कुछ िदन ख़ामोश रहो।
देखो वो सामने लोग बैठे ह, म च ा दगं ू ी।
वो सब नशे म ह, कुछ नह सुनगे।
या तुम भी नह सुनोगे?
सुनूगं ा य नह , पर तुम भी तो मेरी सुनो।
ये या कर रहे हो?
कुछ नह बस एक पच कसना है।
तुम वापस चलो, मुझे नह कना यहां।
यह से तो जवाब देना है रािबया।
यहां से मतलब? यहां बाग से?
नह काकोरी से…
काकोरी से?
काकोरी के कबाब से, काकोरी कांड को जवाब।
या मतलब?
इस बार टेन से जवाब दगे।
और म ऐसा होने दगं ू ी!
रा ते पर साथ नह चलना, तो रा ते म मत आओ रािबया।
मुझे तु हारी इस श का अंदाज़ा नह था अबराम, वापस चलो तुरत
ं ।
तुम कुछ िदन ख़ामोश रहो बस…
अबराम म कह रही हू,ं चलो वापस।
तो तुम चुप नह रहोगी?
म शोर मचा दगं ू ी।
आ…आ…ऊह, ओ ह, अ ब रा म, लीज़!
साली, अ ाह के ख़लाफ़ है।
या अ ाह! तेरे हु म क तामील है, अ ाह!
इ लाम क आज़ादी के लए इसे आज़ाद कर रहा हू,ं अ ाह।
हम आज़ादी चािहए…
आज़ादी, आज़ादी, आज़ादी…
हैलो, हैलो…
ा ठाकुर! साली कॉल करके आई है!
ा ठाकुर!
अबराम, उसे जाने दो।
चली गई है वो।
अबराम लीज़…
ड ट ाय ा, इ लाम के लए कुबानी है ये।
नह अबराम!
अब एक कािफर को भी क़ ल करना होगा।
अबराम म िकसी से कुछ नह कहूगं ी।
तू कहने के लए बचेगी ही कहां ा, क बस क तू!
ऑ डयो बंद हो गया। अ फ़ाक़ ज़ोर-ज़ोर से हंसा, ‘समाचार समा हुए।’
तभी गाड क बोगी से ा ठाकुर अंदर आई। रमाकांत ने उसक पीठ म
रवॉ वर लगा रखी थी। दगु ा ने आं ख -आं ख म ा ठाकुर को कुछ इशारा िकया;
अफ़ज़ल, देव त और स मान सह को भी दगु ा ने पलट कर देखा और टेन क चेन
ख चने का इशारा िकया। दगु ा लगातार ऊपर क तरफ इशारा कर रही थी, लेिकन
कोई समझ नह पा रहा था। मु ालाल ने सटू दबु े क पीठ म हाथ लगाते हुए
कैमरा लस चेन क तरफ उठाने का िटप िदया। सटू ने जैसे ही कैमरा चेन क
तरफ िकया, ा ठाकुर समझ गई। ा ठाकुर ही टेन क चेन के सबसे क़रीब
खड़ी थी, लेिकन उसक पीठ पर रवॉ वर लगी थी। ा ठाकुर ने दगु ा को आं ख
ही आं ख म समझाया िक मौक़ा िमलते ही वो चेन ख च कर रोक देगी।
अ फ़ाक़ आं ख क इन हरकत को समझ रहा था, ‘अरे ओ रे बॉ बे वीटी!
वतःला िहरोइन समज याची गरज नाही। साला, अ छा खासा दोन बाप-बेटे
आई पाई खेल रहे थे, मगर मैडम को तो िफ़ म देखनी थी—अरे ए अबराम!
िदखा तो मैडम को एवजस: द एं ड गेम फ़ ट डे फ़ ट शो।’
अबराम ने रमोट िदखाया। दगु ा च ाई, ‘ क जा अबराम, क जा!’
अ फ़ाक़ च ाया, ‘उड़ा दे अबराम, ख़ म कर काकोरी कांड!’
रमाकांत ने ा को ज़मीन पर लटा िदया। अफ़ज़ल च ाने लगा। देव त ने
खड़े होने क को शश क तो ि पुरारी ने उसे घुटने से दबा कर, उसके सर पर
रवॉ वर का बट मार िदया। टेन क दस ू री बोिगय म ब े एक दस ू रे से िमल कर
हंस रहे थे। हर बोगी म लोग कबाब खा रहे थे। एक ब ा बथ के नीच रखे ब स एं ड
ला ट के ड बे उठाने जा रहा था। रमोट हवा म उठाकर अबराम च ाया,
‘नारा-ए-तदबीर, अ ाहो अकबर!’
रमोट का बटन दब गया। बोगी म मौजूद हर िकसी ने अपनी आं ख म च ल ।
मु ालाल रोने लगा। सटू दबु े कैमरा लेकर ज़मीन पर लेट गया। ि पुरारी,
रमाकांत, िविकपी डया और गौतम भी ज़मीन पर बैठ गए। अ फ़ाक़ उ ा िब मल
ने रवॉ वर क नोक पर दगु ा को लटा िदया और ख़ुद भी बैठ कर च ाने लगा,
‘नारा-ए-तदबीर, अ ाहो अकबर!’
एकदम स ाटा था। ला ट नह हुआ। अबराम ने दस ू रा बटन दबाया, िफर भी
धमाका नह हुआ। तीसरा, चौथा, पांचवां…उसने कई बटन दबाए, लेिकन िकसी
भी बोगी म धमाका नह हुआ। अबराम ने रमोट क बैटी चेक करके िफर बटन
दबाए, पर न कोई धमाका, न ला ट।
दगु ा क कनपटी पर रवॉ वर िटकाए हुए अ फ़ाक़ उ ा िब मल ने उसे बाल
से ख च कर खड़ा िकया और ख़ुद भी खड़ा हो गया। उसने अबराम को देख कर
पूछा, ‘ या हुआ अबराम?’
अबराम क आं ख म ग़ु सा था। वो िबलखते ब जैसा मुह ं बना कर रोने लगा,
मानो िकसी ने खलौना छीन लया हो। अबराम ने पहले रमोट देखा, िफर दगु ा
को। ि पुरारी, गौतम, अफ़ज़ल, देव त और बोगी क बथ के नीचे दबु के बैठे तीन
मुसािफर पर नज़र डालते हुए अबराम ने पीछे गदन घुमा कर रमाकांत और ा
ठाकुर से आं ख िमलाई ं। हारे हुए अबराम ने आसमान क तरफ चेहरा उठाया और
दहाड़ मार कर रोने लगा। रोते-रोते जैसे थोड़ी देर बाद अबराम थक गया। नाक से
न ला बह रहा था। उसने जैकेट क बांह म नाक प छी और आं सुओ ं को साफ़
िकया। इस व त अबराम का हमेशा क तरह सफ एक ही सहारा था—अ फ़ाक़
उ ा। अबराम ने अ फ़ाक़ क तरफ अपनी बाह फैलाई ं और डबडबाई आं ख से
अ फ़ाक़ क आं ख म देख कर ं धे गले से बोला, ‘पं डत जी!’
धाड़ से एक गोली चली और अबराम के माथे के बीचोबीच छे द करती हुई, सर
के पीछे से िनकल कर बोगी के वॉशबे सन पर टंगे शीशे को चकनाचूर कर गई।
अ फ़ाक़ बुदबुदाया, ‘ साला, पं डत जी बोलता है।’
कांच के टु कड़े िबखर गए। हर टु कड़े म सफ अ फ़ाक़ उ ा िब मल नज़र आ
रहा था। पूरी तरह शॉ ड दगु ा शि ठाकरे ने पलट कर देखा। अ फ़ाक़ उ ा
िब मल आगे बढ़ा और ज़मीन पर पड़े अबराम पर रवॉ वर तानते हुए अंदाज़ा
लगाने क को शश क िक वो मरा भी है या नह । अबराम क आं ख खुली थ और
आं ख क पुत लय म अ फ़ाक़ का अ स एकदम साफ़ था। अ फ़ाक़ उ ा ने
नज़र उठाई, तो बोगी क वॉल पर अ फ़ाक़ उ ा ख़ाँ, राजे नाथ लािहड़ी, रोशन
सह और पं डत राम साद िब मल क त वीर लगी थ । त वीर पर सबके नाम
लखे थे। लेिकन राम साद िब मल के नाम के आगे जहां पं डत लखा था, उस
पं डत पर अबराम के ख़ून का एक कतरा लग गया था। अ फ़ाक़ उ ा िब मल ने
अपनी वद क बांह से वो ख़ून प छ कर साफ़ िकया। ा ठाकुर, देव त, ि पुरारी
पांडे, रमाकांत, गौतम और िविकपी डया—सब उसक तरफ बढ़ गए। अ फ़ाक़
उ ा ने अपनी जेब से 8 डाउन पैसजर का टेराकोटा मॉडल िनकाल कर अबराम
क हथेली म रख िदया। वही मॉडल, जो कग शप के स और माउज़र के साथ
ा ठाकुर के घर से चोरी हो गया था। अ फ़ाक़ अबराम के हाथ म छोटी टेन
पकड़ा कर उसक मु ी बंद करने क को शश करते-करते गुनगुनाने लगा:
आ चल के तुझे
म लेके चलूं
इक ऐसे गगन के तले
जहां ग़म भी न हो
आं सू भी न ह
बस यार ही यार पले
इक ऐसे गगन के तले…
अ फ़ाक़ के कंधे पर एक हाथ आया। उसने पलट कर देखा तो दगु ा शि ठाकरे
खड़ी थी। अ फ़ाक़ उ ा िब मल ने दगु ा शि के हाथ पर हाथ रखा। आं सू क
धार उसक आं ख से होती हुई, गाल क कोर से ट प से टपक गई। दगु ा बोली,
‘औलाद को मार डाला?’
दगु ा शि के हाथ म अपनी रवॉ वर थमा कर अ फ़ाक़ मु कुराया, ‘ जसे गोद
म पाला था, वो औलाद थी, पर जसे मार डाला वो आतंक था।’
ा ठाकुर ने टेन क चेन ख ची। टेन ठीक काकोरी शहीद मारक पर क ।
यही वो जगह थी जहां ां तका रय ने टेन क चेन ख चकर अं ेज़ का ख़ज़ाना
लूटा था। सपािहय ने िमलकर अबराम क लाश बोगी से उतारी। अबराम क जेब
से िनकले दो मोबाइल और रमोट ि पुरारी पांडे ने अपने माल म बांध लए।
ठीक पीछे वाली कोच से उतर कर गाड ने हौज़ पाइप कने ट िकया और अ फ़ाक़
उ ा को झंडी पकड़ा दी। अ फ़ाक़ उ ा िब मल ने इंजन से झांक रहे डाइवर को
एक बार िफर से हरी झंडी िदखाई और 8 डाऊन पैसजर िफर चल दी।
***
लखनऊ सीएम हाउस म काकोरी एिनवसरी का फं शन धूमधाम से चल रहा था।
इधर काकोरी थाने म सब चाय समोसे खा रहे थे। अ फ़ाक़ उ ा िब मल अपनी
कुस पर बैठा था और दगु ा शि ठाकरे अ फ़ाक़ के ठीक सामने, मगर उसके चेहरे
पर कुछ सवाल थे, जो अ फ़ाक़ पढ़ पा रहा था।
दगु ा ने आ ख़रकार पूछा, ‘अबराम वॉज़ टेरे र ट, ये तुमको कैसे पता चला?’
अ फ़ाक़ उ ा ने उसे इंजन और चे सस नंबर वाली फ़ोटो दराज़ से िनकाल कर
दी। दगु ा ने फ़ोटो पलटी और नंबर पढ़कर बोली, ‘ये नंबर कैसे बताया िक अबराम
कोई िमशन ऑपरेट कर रहा है?’
इस बार अ फ़ाक़ ने दराज़ से अपना मै ीफाइंग लस भी िनकाल कर दगु ा को
पकड़ा िदया। दगु ा ने अब लस से देखना शु िकया, पर इंजन, चे सस नंबर और
कॉ डनेट के अलावा उसे कुछ नह िदखा।
अ फ़ाक़ उ ा मु कुराया, ‘इस फ़ोटो को जब भी देखो, साला सब यही कहते ह
िक पलट कर देखो, नंबर पीछे लखा है…सबक तरह धोखा मत खाओ दगु ा
मैडम, फ़ोटो को उ टा नह सीधा देखो, िफर बताओ।’
दगु ा शि ने फ़ोटो पलटा और िबना लस के देखते हुए भी च क गई,
‘ यामाइला, ये तो साला तेरा फेवरेट बुरहान वानी का जनाज़ा है बे!’
अ फ़ाक़ हंसा, ‘देखो मैडम, गौर से देखो, बुरहान के जनाज़े म अबराम बाबू
ह थयार लेकर बैठे रो रहे ह, फ़ तहा पढ़ रहे ह अपने आका का।’
िविकपी डया ने आज अपना अं तम ान िदया, ‘मैडम िकसी भी सच इंजन पर
बुरहान वानी टाइप करो, जनाज़े के फ़ोटो भरे पड़े ह। वो टेन भी िमलेगी जो
पािक तान ने बुरहान वानी नह ब क शहीद बुरहान वानी के लए “आज़ादी
ए स ेस” के नाम से चलाई थी।’
ि पुरारी पांडे कैसे चुप रहता, ‘अ फ़ाक़ साहब तब अबराम के पास ीनगर म
ही थे, जब बुरहान मारा गया था। कई िदन तक फंसे रहे वहां, भला कैसे भूल जाते
बुरहान वानी का चेहरा? और िफर बुरहान के जनाज़े म अबराम का फ़ोटो देखते ही
बुरहान सर का फेवरेट हो गया।’
‘ हद ु तान रप लकन एसो सएशन काई को, अ फ़ाक़?’ दगु ा ने पूछा।
‘तब गोर से लड़े थे, अब गौ रय को कुचलना है,’ अ फ़ाक़ उ ा बोला।
‘चांद खुतरा को य मारा?’ दगु ा का अगला सवाल आया।
अ फ़ाक़ ने जवाब िदया, ‘अबराम ने चांद खुतरा को बुरहान वानी के जनाज़े
वाले अपने फ़ोटो पर ख़ुद ही कॉ डनेट लख कर िदया था। काम पूरा हुआ। मने
पकड़ लया तो ख़ुद सायनाइड खा कर मर रहा था, और ख़ुद नह भी मरता तो भी
अबराम उसे मार डालता। बस िफर या था, उसे मरना ही था, तो मने मार िदया।
अगर इन खख ूं ार का िमशन मासूम को मौत क न द सुलाना था, तो मेरा भी
िमशन इन आतंिकय को मौत का आतंक िदखाना था और हद ु तान के साथ,
हद ु तािनयत को बचाना था।’
‘पन मारा कैसे, वहां तो स यो रटी था?’ दगु ा सबकुछ जानना चाहती थी।
अ फ़ाक़ उ ा अपने टाइल म बोला, ‘ सघम टू देखे हो, मैडम? हम लोग देखे
ह, ए ै रात म दो-दो शो। िप चर देखने के बाद मने थके हुए सपािहय क ूटी
बदली और हमारे फंटा टक फोर चांद खुतरा क स यो रटी म तैनात हो गए।’
िविकपी डया, ि पुरारी, रमाकांत और गौतम ज़ोर से हंसे। ि पुरारी बोला, ‘अरे
मैडम, हम लोग तय कर लए थे िक सघम साहब के लए बिनयाइन पहन कर चल
दगे। बस चांद खुतरा के वाड म हम चार क ूटी लगी, हम सब सोने का नाटक
करते रहे और साहब चांद को चंदा मामा के पास भेज िदए।’
िविकपी डया बोला, ‘मैडम ये पू छए िक खुतरा क लूकोज़ क बोतल म
सायनाइड का कै सूल कहां से आया? साहब के पास कोई सायनाइड क होलसेल
एजसी थोड़े है।’
दगु ा ने िविकपी डया के कहने पर अ फ़ाक़ उ ा से ये नह पूछा िक उसके पास
सायनाइड का कै सूल कहां से आया, ब क उसने सीधे फॉर सक ए सपट
डॉ टर किटयार को फ़ोन लगा िदया, ‘वो सायनाइड वाली रपोट का या हुआ,
डॉ टर साहेब?’
किटयार बोला, ‘तैयार है मैडम, बस टाइप हो रही है।’
‘अरे आप ऐसे ही बताओ, रपोट कल दे देना,’ दगु ा ने कहा।
‘मैडम नसीम पपीतेवाले के घर से जो शीशी िमली थी, उसम जो तीन कै सूल
थे, वो सायनाइड ही ह। लूकोज़ क बोतल म जो कै सूल तैर रहा था, वो भी
सायनाइड है मैडम, मगर चांद खुतरा के ताबीज़ म जो कै सूल बरामद हुआ था वो
िबकोसूल कै सूल है— सपल बी कॉ लै स!’
दगु ा ने अ फ़ाक़ को कन खय से देखते हुए कहा, ‘तो चांद के ताबीज़ का
सायनाइड कै सूल तूने लूकोज़ बॉटल म डाल िदया और ताबीज़ म िबकोसूल रख
िदया।’
अ फ़ाक़ ने दगु ा के पूछने से पहले ही बाक डटेल दे दी, ‘बुका तो आपने ही
मुझे पहना िदया था, नसीम के पास डायिबटीज़ थी और मेरे पास टेन ए पल क
पेन इंसु लन। ज़दगी के पेड़ से पपीता बेव त टपक गया। नसीम पपीतेवाला चांद
खुतरा क अगली कड़ी था, टेन को बा द से उड़ाने के लए अबराम ने जेलेिटन
नसीम से मंगाया, चांद के घर पर रखवाया और पपीतेवाले ने अबराम के कहने पर
जेलेिटन का िठकाना बदलवाया। बात िफर वही थी—िमशन पूरा करते ही नसीम
ख़ुद मर जाता या अबराम उसे मार डालता, मने इस बार नसीम को मार डाला।’
अब तक चुपचाप बैठी ा ठाकुर ने ख़ामोशी तोड़ी, ‘अ छा हुआ मेरे फ़ोन का
ऑ डयो रकॉडर हमेशा ऑन रहता है। रािबया ने उस रात फ़ोन सुनते रहने को न
कहा होता, तो म अबराम का खख ूं ार चेहरा कभी पहचान ही नह पाती लेिकन चांद
खुतरा और नसीम पपीते क ददनाक मौत क ख़बर ने अहसास करा िदया था िक
कोई है, जो अबराम के खख
ूं ार दो त को मौत क न द सुला रहा है। िफर मेरे पास
पु लस क वद म एक बाप आया, उसक आं ख म बेटे के गुनाह का ग़म था और
चेहरे क झु रय म सज़ा देने का बहता लावा। म तो मू तयां गढ़ती थी, मू तयां
पढ़ती थी, लेिकन मुझे सच म जीता जागता अ फ़ाक़ उ ा िब मल िमल गया।’
अ फ़ाक़ ने आसमान क तरफ देखा, ‘देख म रयम अ फ़ाक़ के पास आज एक
िबिटया भी है। मेरी ठकुराइन न होती, तो रािबया क मासूम गुहार और इ लाम के
नाम पर अबराम क घनौनी आवाज़ कैसे सुनता? कैसे नज़र आती, काकोरी
कबाब म छपी बा द क सािज़श? अयो या म हमने जेलेिटन से लोडेड जो टपो
पकड़े थे, वो हमने पकड़े नह थे, ब क हमारा यान अयो या क तरफ भटकाने
के लए अबराम ने नसीम पपीते से कह कर जानबूझ कर पकड़वाए थे। दस-पं ह
पेिटयां, जो हम नह पकड़ पाए, उन पेिटय क जेलेिटन रॉ स तो एक-एक कबाब
के अंदर भरी जा चुक थ । ा न होती तो ये कैसे पता चलता हम?’
बाप के िकरदार ने अफ़ज़ल क ह म गहरे तक पैब त नफरत के ज़ म पर
मरहम का फ़ाहा रख िदया। आज उसे फ़ था िक वो अ फ़ाक़ उ ा िब मल का
बेटा है। अफ़ज़ल धीरे से बोला, ‘उस रात जब ख़ाँ साहब हम सबको तह वर चाचा
के घर ले गए, तब समझ म आया िक अबराम ने ब स एं ड ला ट के ड ब म
जेलेिटन ट स छुपा कर रखी थ , वो ड बे बदले न होते, तो सब ख़ म हो
जाता।’
दगु ा ने कुस से उठकर अफ़ज़ल के कंधे पर हाथ रखा, ‘तू भागा य ?’
अफ़ज़ल ने अ फ़ाक़ को मु कुरा कर देखा और िफर दगु ा को जवाब िदया, ‘इस
कहानी का राइटर है अ फ़ाक़ उ ा िब मल, राइटर ने व त-व त पर हमम से हर
िकसी को एक कैरे टर िदया, मेरी िक मत है िक मुझे ठीक एक रात पहले एक
करै टर िमला। हम सब सफ अपने कैरे टर िनभा रहे थे और वो करते जा रहे थे
जो राइटर ने लखा था, मैम।’
दगु ा िफर अ फ़ाक़ क तरफ पलटी और मु कुराते हुए बोली, ‘चांद और पपीते
को पकड़ कर तू इंटेरोगेशन भी कर सकता था, मारना ज़ री था या?’
अ फ़ाक़ सी रयस हो गया, ‘अभी भी आपको समझ म नह आया मैडम?
रािबया एक राज़ जानती थी, वो राज़ न खुले, इस लए अबराम ने रािबया का बेदद
से क़ ल कर िदया। चांद खुतरा को हमने पूछताछ के लए ही पकड़ा था। अबराम
उस व त सामने ही खड़ा था, जब चांद ने सायनाइड खाने क को शश क । चांद
जानता था िक िमशन के लए उसे या तो ख़ुद मरना है, या िमशन म मार िदया
जाना है, इसी लए जैसे ही अबराम ने चांद से कहा िक “एक बात तो प है चांद,
तू बचेगा नह ”, तो इतना सुनते ही चांद इशारा समझ गया और उसने सायनाइड
खा लया। पपीतेवाला के घर पर भी तो सायनाइड िमला था हमको— य ?
िकस लए? केवल इस लए िक या तो ख़ुद मर जाओ या मर जाने के लए तैयार
रहो। िमशन का लीडर अबराम था, वो ख़ुद टेन के धमाके म मर जाने को तैयार
था। ये सोसाइडल वॉड है, मैडम! इससे पहले िक ये मर, हम मार देना चािहए,
रही बात पूछताछ क तो ये ख़ुद सबूत थे, ख़ुद गवाह थे, इ ह मरना ही था।’
काकोरी का सबसे बड़ा िवलेन अ फ़ाक़ उ ा आज सबका हीरो बन चुका था।
दगु ा ने अ फ़ाक़ पर आ ख़री सवाल दागा, ‘इतना डामा काई कू अ फ़ाक़? अबराम
को तो तू बहुत पहले मार िदया होता, नई या?’
अ फ़ाक़ उ ा ने कोई जवाब नह िदया। उसने दगु ा को अपने साथ चलने को
कहा और दोन जीप म बैठ कर चल िदए। जीप सीधे तह वर ख़ाँ के घर पर क ।
अ फ़ाक़ दगु ा को लेकर अंदर पहुच ं ा। दोन तह वर के कमरे म घुसे, तो देखा
तह वर नमाज़ पढ़ रहा था। दोन ख़ामोशी से खड़े रहे। नमाज़ अदा करके तह वर
ने अ फ़ाक़ को देखते ही गले लगा लया, ‘बेटा पंचव ा नमाज़ी हू,ं आज रािबया
क ह के लए दआ ु म सुकून मांगा है अ ाह पाक से। मगर असली नमाज़ी तो तू
है, जो नमाज़ नह पढ़ता और सबाब म सुकून देता है।’
थोड़ी देर तक िबलखते तह वर ख़ाँ को गले लगाने के बाद अ फ़ाक़ ने कमरे के
पीछे वाला दलान खोलने को कहा। तह वर ख़ाँ ने कंपकंपाते हाथ से दलान के
ं ते ही अ फ़ाक़ ने दगु ा शि को ब स एं ड
दरवाज़े का ताला खोला। अंदर पहुच
ला ट के ड बे िदखाए, िफर एक ड बा उठा कर उसको िदया, ‘खा कर दे खए
मैडम, असली काकोरी कबाब है!’
दगु ा ने ड बे को खोला। ड बे म दस कबाब थे जो आपस म तार से जुड़े थे और
दस कबाब से िनकले तार ला ट म एक ससर से जुड़े थे। अ फ़ाक़ उ ा ने कबाब
हाथ म लेकर उसके ऊपर का क मा नाख़ून से खर चना शु िकया। थोड़ी ही देर
म कबाब का पूरा का पूरा क मा ज़मीन पर िगर गया। कबाब के अंदर से जेलेिटन
टक िनकली। अ फ़ाक़ ने तह वर क तरफ देख कर कहा, ‘तह वर ख़ाँ असली
काकोरी कबाब बनाने वाले कबाब चय क पीढ़ी के आ ख़री बंदे ह, इ ह भी नह
अंदाज़ा होगा िक एक िदन ीनगर से एक भटका हुआ मुसलमान लड़का आएगा
और कबाब के अंदर बा द भरकर, एक और काकोरी कबाब ईजाद करेगा। कोई
बाबरी के लए भटका, कोई क मीर के लए भटक गया, म इस भटके हुए एक और
मुसलमान लड़के को पहचानते ही मार देता, तो उसके चेहरे पर हार का डर कैसे
देखता? याद है कैसे रो रहा था, कैसे िबलख रहा था? अ ाह के नाम पर िमशन पर
चल पड़ा था न, य अ ाह ने उसे ला िदया? य िक अ ाह मेरे साथ था,
अ ाह मेरे इ लाम के साथ था, अ ाह मेरे िमशन के साथ था और मेरा िमशन था
—भटके हुए शैतान को मारने से पहले ये बताना िक अगर अबराम का िमशन है,
तो अ फ़ाक़ का भी िमशन है। िमशन मारने का नह , िमशन एक ऐलान का और
ऐलान ये िक एक अ फ़ाक़—एक इं पे टर, एक बाप—अगर िमशन पर चल पड़ा,
तो अबराम को बता कर मारेगा िक बेटा शैतान फेल, इंसान पास।’
दगु ा शि क आं ख म एक चमक सी आ गई। आज उसक आं ख ख़ुद के लए
नह , ब क िकसी और के कामयाब होने पर पहली बार चमक रही थ । उसने कभी
भी िकसी केस म िगव अप नह िकया था। साम-दाम-दंड-भेद, कुछ भी लग जाए,
उसे मेडल चािहए था। मेडल इस लए तािक वो ख़ुद को जता सके िक उसने एक
और टेरे र ट को हरा िदया। दगु ा मन म हार क़ुबूल करके बोली, ‘म न तेरे से रेस
कर रही थी, अभी म ए से ट करती िक म रेस म थी ही नह । और ये केस न कोई
रेस-वेस होताइ नह है, ये तो ूटी है और तू सफ पु लस क ही ूटी नह ,
इंसान क ूटी पन भी था। बस साला ये इंसान हरा िदया मेरे को। और हां, एक
और बात मेड स आर माय पैशन, आई कैन डाय फॉर देम, पन पहली बार म
िकसी अ फ़ाक़ का मेडल रकमड करेगी…प ा, डन!’
अ फ़ाक़ ने ज बाती होते हुए कहा, ‘मेडल आप रख लो मैडम, अ फ़ाक़ उ ा
के पाप धुल गए। गुनाह माफ़ हो गए, बस यही काफ़ है मेरे लए तो।’
‘तूने मुझे पहले ये सब य नह बताया, अ फ़ाक़? म तो साथ थी तेर,े ’ दगु ा ने
पूछा।
िब मल िनज़ामाबादी क वो शायरी जसे राम साद िब मल ने गुनगुना कर
अमर कर िदया, अ फ़ाक़ ने उसे अपने िहसाब से गढ़ा और पढ़ा:
व त आने पर तुझे बतला िदया ऐ आसमां
हम भी पहले या बताते, या हमारे िदल म है
सरफ़रोशी क तम ा िफर हमारे िदल म है
देखते ह ज़ोर िकतना बाज़ु-ए-क़ा तल म है
***
कुरैशी कसाई क दक ु ान के पजड़े म रंग-िबरंगे मुग थे। लखनऊ के मुगा होलसेलर
आजकल देसी मुग के नाम पर बॉयलर मुग को रंग कर बेचते ह। काले, लाल,
पीले, सुनहरे, सफेद, केस रया और तो और िकसी बेवकूफ मुगा रंगरेज़ ने एक मुगा
हरे रंग का भी रंग िदया। पजड़े का माहौल सतरंगी था। मगर हर मुग क आं ख म
िफर काटे जाने का खौफ साफ़ नज़र आ रहा था। तभी सफेद पजामा कुता और
सर पर टोपी लगाए, एक छोटा सा ब ा हाथ म कागज़ का तरंगा झंडा लए दौड़
कर आया। पता नह या बदमाशी सूझी िक उसने पजड़े क कंु डी म फंसी क ल
िनकाल कर पजड़ा खोल िदया। एक के बाद एक सारे मुग पजड़े से िनकल कर
इधर-उधर भागने लगे। पूरा पजड़ा खाली हो गया, पजड़े के एक कोने म बस हरे,
सफेद और केस रया रंग के तीन पंख चपके हुए थे। आज 15 अग त था और
सड़क पर भागते मुग के रंग देख कर ऐसा अहसास हो रहा था, जैसे आज़ादी सच
म आज़ाद दौड़ रही है।
लखनऊ के सीएम हाउस म बहुत बड़ा फं शन हो रहा था। चीफ से े टरी
आनंद मोहन राय, डीजीपी बृजलाल कुल े , एसएसपी शैलेश कृ णा, ि पुरारी
पांडे, िविकपी डया, गौतम, रमाकांत, तह वर ख़ाँ, अनारकली, देव त, प ा
कबाड़ी, मेवालाल के संस, फुलझड़ी, सीको, नसीम पपीते क अ मी, आशुतोष
िनरंजन, दीि मान िनरंजन, अंगद यादव क बीवी और ब ,े मु ालाल प कार और
सटू दबु े बैठे लगातार ताली बजा रहे थे। उधर जेल म जेलर आकाश शमा के साथ
दजन कैदी टीवी पर इस फं शन का लाइव टे लका ट देख रहे थे। इन कैिदय
क भीड़ म मैिकया सपाही और रािबया बसर के रेप का ए यू ड अंगद यादव भी
शांत बैठा था।
दगु ा शि ठाकरे फं शन हो ट कर रही थी। उसने अपनी पीच देनी शु क :
देयर आर सम फै स इन िदस प टकुलर केस, िवच आईवॉ ट टू शेयर िवद
माय सीिनयस, एं ड पेशली फॉर ऑल कॉमन मेन िहयर—26/11 वॉज़ द मो ट
हॉ रिफक डे फॉर द कंटी, बट फॉर मी, इट वॉज़ ए टेन थाउज़ट वो ट शॉक। मगर
वो टेन थाउज़ट वो ट का शॉक मेरे को एनजाइज़ कर िदया, एं ड िवद द एनज
ऑफ़ दैट मूमट, आई एम िहयर टु डे। मने टेरे र म का बहुत केस सॉ व िकया,
मो ट ऑफ़ द टाइम ये टेरे र ट लड़के लोग लड़िकय को सॉ ट टारगेट बनाते ह,
अपना काम कराने के लए। अइसे ही अबराम ीनगर से काकोरी आया, उसने
अपने लीपर सेल स—चांद और नसीम के साथ लान बनाया, तह वर से ड
लया और उसक लड़क रािबया को इंनोसस म फंसा लया। लड़क ने मदद क ,
लड़क क ड ने भी मदद क । ही डमांडेड ए फ़ोन, एं ड रािबया क ड ा ने
उसे एक फ़ोन दे िदया। यह से कहानी शु हुई, अबराम ने इंनोसट बनकर
समकाड लया और पािक तान के टेरे र ट ड से बात करने लगा। ये म इस लए
बता रही हूं िक इस सोसाइटी म हमेशा लड़क ही सॉ ट टारगेट रहती है, िफर वो
रािबया हो या ा! जस िदन वो आिदल अहमद डार पुलवामा म कार टकराया
फोस के कॉ वाय से, वो डेट भी 14 फरवरी थी, बोले तो वेले टाइन डे। एं ड इन
िहज़ ला ट वी डयो, आिदल अहमद डार बोला िक लड़क लोग से दरू रहने का
य िक िम टी, आईबी, एटीएस—सब टेरे र ट लोग के लवर से िमल कर
इ फॉमशन िनकाल लेते ह। हच इज़ राइट, बुरहान वानी को उसक लवर क
इंफॉमशन पर ही पकड़ा गया और एनकाउं टर म मारा गया। बस देखो कैसे अबराम
रािबया बसर को मार िदया! मेरे को तो कोई बोला था एक िदन िक रािबया बसर
वॉज़ ए होली सट, माने संत, वो संत इराक म पैदा हुई थी। ऑफकोस िदस
काकोरी रािबया बसर वॉज़ ऑ सो ए सट। उसने अबराम का पोलप ी खोलने क
पूरा को शश क , पन मर गई। अगर रािबया बसर से ीफायज़ नह क होती, तो
इतना बड़ा टेरे र म लान फेल नह होता। कंटी ऐसी हर लड़क को से यट ू करती
है, जो टेरे र ट से देश को बचाई। आज से रािबया बसर जैसी लड़िकय के लए,
‘रािबया बसर ेवरी अवॉड’ िदया जाएगा।
***
धानमं ी अफ़ज़ल को “साइंिट ट ऑफ़ द नेशन” का मेडल पहना रहे थे।
अ फ़ाक़ को गले लगा कर ज़ोरदार ता लय क गड़गड़ाहट के बीच मेडल लेकर
अफ़ज़ल पो डयम पर पहुच
ं ा और उसने बोलना शु िकया:
मेरा स उस पल जवाब दे गया जब काकोरी इं पे टर ने मेरा ही लैपटॉप देकर
मुझे फंसाने क को शश क । मेरे सामने जब मेरे सगे भाई को मेरे वा लद ने गोली
मारी, उस पल मुझे समझ म आया िक ख़ुद उस बाप ने िकतना बदा त िकया होगा,
जसने अपने बेट को बचाने के लए बीवी को आं ख के सामने तल- तल मरते
देखा। ज़रा नाइंसाफ तो दे खए ऊपर वाले क िक जन बेट को बचाया, वो बेटे
ही उससे नफरत करते थे। मने खुलेआम नफरत क और अबराम ने चेहरे पर
नकाब पहन कर क । आई पाई तो आप सबने ही खेला होगा बचपन म, इसे
छुपन-छुपाई भी कहते ह—जो छुपा वो चोर और जो पकड़ेगा वो पु लस। अ बू ने
बचपन म ही बता िदया था िक छुपना तो है ही नह , खुलेआम रहना है। मेरी अ मी
खुलकर सामने आ गई तो हम सब बच गए। म यही सोचता रहा िक अगर अ बू
खुलकर बाहर आ जाते, तो अ मी बच जाती। बस तभी से अ बू के लए नफरत
भर गई िदल म, लेिकन आपको पता है िक म उस िदन के बाद से आई पाई नाम
के उस खेल से ही बाहर हो गया। जानते ह य ? य िक म नफरत को खुलेआम
चेहरे पर लेकर घूमने लगा। अब सोचता हूं िक अ बू ने यही तो कहा था िक
खुलकर रहो खुलेआम, सरेआम। नासा को मंगल ह, मतलब मास पर एक बड़ा
ग ा िमला, बहुत बड़ा ग ा…साइंस क भाषा म इसे े टर कहते ह, इसका नाम
रखने के लए मुझे ोजे ट िदया गया था। े टर के नाम रखने के जो स थे,
उसम अ बू का गांव मोहनलाल गंज सबसे मुफ द था। अ बू लखनऊ के ह और
अ मी सहारनपुर के देवबंद क …अ बू से नफरत थी और अ मी से बेपनाह यार,
मगर काकोरी ने समझा िदया िक ये काकोरी आ ख़र काकोरी य है। अ फ़ाक़
उ ा ख़ाँ क काकोरी, ठाकुर रोशन सह क काकोरी, पं डत राम साद िब मल
क काकोरी…तीस िदन क छु ी ने समझा िदया िक काकोरी एक तहसील नह ,
इ तहास है ां त का; काकोरी ज़मीन है शहीद क ; काकोरी ख़ुद अपने आप म
एक देश है, आज़ादी क लड़ाई लड़ने वाला देश। बस तय कर लया िक काकोरी
का ही नाम सही रहेगा। जस जगह से मेरा कोई लेना-देना ही नह था, आज मंगल
के उस े टर का नाम सफ और सफ काकोरी है।
अ फ़ाक़ उ ा िब मल को “ ेवरी मेडल” से नवाज़ा गया। धानमं ी के हाथ
से मेडल पहन कर अ फ़ाक़ टेज से उतरने लगा, तो उसे कुछ कहने के लए कहा
गया। अ फ़ाक़ ने माइक संभाला और बोला:
अफ़ज़ल सबकुछ कह गए ह, पर आई पाई का खेल छड़ ही गया है तो बता
देता हू।ं नफरत तो अबराम भी करता था हमसे, अफ़ज़ल ने ख़ुद को ज़ािहर करके
गेम से बाहर कर लया और अबराम ख़ुद के इरादे छुपा कर हमसे छुपन-छुपाई
खेलता ही रहा—कभी फ़ोटो से हट िदया, कभी मोटरसाइिकल का सुराग भेजा,
कभी जेलेिटन क पेटी म ू भेजा। सजेशन भी देता था, “इं पे टर साहब
मोटरसाइिकल चेक करा लो”, ये जांच, वो इ वे टगेशन होने दो। अबराम िमयां
चांद से फ़ोटो भी भजवाते और नसीम से जेलेिटन क पेिटयां। असल म अबराम
हमको चैलज कर रहा था िक ढू ंढ़ सको तो ढू ंढ़ लो और हम ढू ंढ़ते-ढू ंढ़ते काकोरी
टेन तक पहुच ं गए। तमाम ू िदए उसने हमको और हम खेलते रहे, लेिकन उसे वो
ू नह िदखाई िदया, जो हमने उसे िदया। वो ू थे हम ख़ुद, हमारा नाम ही हट
था। हमारा नाम—अ फ़ाक़ उ ा िब मल—जो हमारे वा लद फ़ उ ा ख़ाँ ने
शायद इसी िदन के लए रखा होगा। अबराम अफ़ज़ल गु के नाम पर बा द से
खेल रहा था। अरे मेरा एक और बेटा भी तो अफ़ज़ल ही है, तो या हर अफ़ज़ल,
अफ़ज़ल गु है? नह , कतई नह है! आ ख़र बुरहान, स ाद, डार, अबराम को
अफ़ज़ल गु के नाम पर—जैश, ल कर और िहजबुल जैसे आकाओं ने अपना
चेला बनाया कैसे? बाबरी के नाम पर, क मीर के नाम पर। कभी सीएए के नाम पर,
तो कभी धारा 370 के नाम पर, और असल म हद-ू मुसलमान के नाम पर, मगर
जब तक अ फ़ाक़ उ ा ख़ाँ और पं डत राम साद िब मल साथ ह, अफ़ज़ल
जैसे इन गु घंटाल को अपने ाथिमक िव ालय पर ताला लगा कर भागना
होगा।
मुझसे कोई न कहे िक मने बेटे क कुबानी दी है। अरे कुबानी के नाम पर तुब
ं ाक
बेकदरी मत करो, उस बकरे क बेकदरी मत करो जो रसूल-ए-पाक के नाम कुबान
हुआ! सरफ़रोश ने ‘ हद ु तान रप लकन एसो सएशन’ अं ेज़ के ख़लाफ़
बनाया, मने आतंिकय के ख़लाफ़ उसे िमशन का झंडा बना डाला; चं शेखर
आज़ाद का माऊज़र, अं ेज़ के ख़ज़ाने म लूटे वो स े और 8 डाउन पैसजर का
छोटा सा मॉडल—चांद खुतरा, नसीम पपीतेवाला और अबराम जैसे आतंिकय क
लाश पर रख िदए तािक सनद रहे िक मु क आज़ाद है और आज़ादी से कोई
खेलेगा तो आज़ाद िफर आएगा। एक सवाल है जसने पूरी कौम को नासूर का
मरीज़ बना िदया है, सवाल ये िक हर मुसलमान आतंकवादी नह होता, मगर हर
बार हर आतंकवादी मुसलमान ही य होता है? अरे कोई तो इस सवाल का
जवाब दे दो। बता दो इस मु क को िक एक मुसलमान आतंक को इस बार एक
मुसलमान ने मार डाला है, अ फ़ाक़ उ ा ने मार डाला है, पं डत राम साद
िब मल के लए मार डाला है। बचा लो अपनी कौम को इस सवाल से, ब श दो
कौम को इस सवाल से…ख़ुदा के लए बचा लो, राम के लए ब श दो।
पूरे हॉल म हर िकसी क आं ख से आं सू बह रहे थे। उधर जेल म अंगद यादव
ज़ोर-ज़ोर से रो रहा था। बड़ा अफ़सर हो या छोटा सपाही, अनारकली हो या
नसीम क अ मी, हर कोई अ फ़ाक़ उ ा िब मल के लए खड़े होकर या तो
ता लयां बजा रहा था या सलामी दे रहा था। अफ़ज़ल अपने वा लद को लेकर
बाहर आया, तो सामने दगु ा शि ठाकरे खड़ी थी। दगु ा ने अ फ़ाक़ से हाथ
िमलाया और जैसे ही अ फ़ाक़ जीप पर बैठा, उसने बूट पटक कर उसे से यूट
िकया। जीप टाट हुई और हाईवे से एक बार िफर काकोरी क तरफ चल दी।
जेल म अंगद यादव रो-रोकर जेलर से पूछ रहा था, ‘साब, मेरा या कसूर है?
मेरा गुनाह या है, मुझे िकस बात क सज़ा िमल रही है?’
जेलर आकाश शमा ने अंगद क पीठ थपथपाई, ‘तेरा गुनाह है नशा, तेरा कसूर
तेरे अंदर बैठा हैवान है। तू िव टम भी है और रेिप ट भी। दोहरी सज़ा है तेरी, तुझे
जेल भी भुगतना है और आ मा क क़ैद भी।’
पु लस वाटर वाले घर म अफ़ज़ल और अ फ़ाक़ कमरे म पहुच
ं े। म रयम और
अपने वा लद फ़ उ ा ख़ाँ क त वीर पर पड़ी चादर हटाकर, अ फ़ाक़ ने फ़
के साथ मेडल अपने वा लद क त वीर पर पहना िदया। अफ़ज़ल ने भी अपनी
अ मी क त वीर पर मेडल टांगा और अपने वा लद के गले लग गया। अफ़ज़ल को
कल नासा रपोट करना है।
***
काकोरी टेशन पर आज िफर 8 डाउन पैसजर खड़ी थी। अफ़ज़ल क िज़द थी
िक लखनऊ तक इसी टेन से जाएगा और वहां से िद ी क ाइट पकड़ेगा।
िविकपी डया, ि पुरारी पांडे, गौतम, रमाकांत और टेशन मा टर ि लोक यास
के साथ अ फ़ाक़ उ ा िब मल भी उसे िवदा करने आया था।
‘मन कहता है अब आपको पं डत जी बोला क ं ,’ अफ़ज़ल ने कहा।
‘ख़ाँ साहब बोल या पं डत जी, सजदा शहीद को है,’ अ फ़ाक़ ने जवाब िदया।
अफ़ज़ल ने अ फ़ाक़ से नज़र िमलाई ं, उसे तस ी थी िक अब अबराम, ज त म
अ मी क गोद म चैन से सर रख कर लेटा होगा।
अ फ़ाक़ उ ा िब मल अपनी ही टाइल म बोला, ‘अबे चल, अ मी क
वािहश कब थी उसे? जनाब तो बह र हूर क तलाश म िनकल गए ह।’
माहौल ह का हुआ, तभी टेन ने हॉन िदया और चल दी। दरू तक टेन को देखने
के बाद सब चलने लगे, तभी अ फ़ाक़ उ ा के मोबाइल पर एक कॉल आई। बात
करते-करते उसके चेहरे पर टशन आया, िफर वो अपने अंदाज़ म बोला, ‘अबे ए
ि पुरारी! िनकाल गाड़ी, नया केस आया है।’
‘कहां चलना है, साहब?’ ि पुरारी पांडे ने पूछा।
अ फ़ाक़ उ ा िब मल बोला, ‘ह कुछ बा दज़ादे ज ह पटाख से खेलने का
शौक है, लगता है इस बार दीवाली अयो या म ही मनेगी।’
जीप फर से िफर िकसी नए िमशन पर िनकल गई।
***
काकोरी हायर सेकडरी कूल क ास VI-ए म एक ब ा टीचर से मोबाइल मांग
कर मंगल ह पर काकोरी ढू ंढ़ रहा था, लेिकन मंगल पर काकोरी कह िदख ही
नह रहा था। तभी उसक टीचर, ा ठाकुर, ने मोबाइल के सच इंजन पर “गूगल
मास” टाइप िकया। सच बटन दबाते ही मंगल ह का सतरंगी न शा खुल गया।
ा ने न शे के सच बॉ स म इं लश म काकोरी लखा, और जैसे ही सच बटन
दबाया, फौरन मंगल पर हरे रंग का काकोरी े टर िदखाई देने लगा। काकोरी अब
सफ इ तहास के प म नह है, काकोरी अब सफ लखनऊ क एक तहसील ही
नह है, ब क आज काकोरी आकाश म चमक रही है। और आकाश म काकोरी का
नया एडेस है—41.5 ड ी साउथ, 29.9 ड ी वे ट।
*****
आभार
भगत सह के दो त, चं शेखर आज़ाद के हमराज़ और ि िटश हुकूमत के
ख़लाफ़ लाहौर ष ं म स ह साल काला पानी क सज़ा भुगतने वाले
ां तकारी शव वमा जी से मेरा ख़ास र ता था। बात 1994 क है, तब म
दैिनक जागरण म था। शव वमा जी ने मुझे बताया िक 18 िदसंबर 1927
को वो सगे भाई का भेष बदल कर काकोरी ए शन के लीडर पं डत राम
साद िब मल से िमलने गोरखपुर जेल गए थे। रोते हुए शव वमा से
मु कुराते हुए िब मल बार-बार कहते रहे, “सरफ़रोशी क तम ा अब हमारे
िदल म है, देखना है ज़ोर िकतना बाज़ु-ए-क़ तल म है”। अगले ही िदन
गोरखपुर म िब मल और फ़ैज़ाबाद जेल म अ फ़ाक़ उ ा ख़ाँ को फांसी दे
दी गई। बस उसी िदन से काकोरी नाम के क बे से मुझे मोह बत हो गई।
मने वमा जी से वादा लया िक म जब भी लखग ूं ा वो मेरी कहानी के सू धार
ह गे। 1997 म कानपुर के हैलट अ पताल म भत शव वमा को ए सपायड
लूकोज़ चढ़ाया गया, जसम फंगस थी। मने अख़बार म कई िदन तक
सीरीज़ लखी। 10 जनवरी को मेरे सू धार ने अ पताल के िब तर पर
आ ख़री सांस ली। िबलखते मन से सफ एक ही आवाज़ आ रही थी, “मेरा
सू धार चला गया, मेरा कहानीकार चला गया।”
अख़बार, टीवी और ज़दगी लखने से क़रीब बाइस साल बाद थोड़ी
फ़ुसत िमली। एक िदन नासा के ए स चीफ साइंिट ट फॉर लोबल चज,
डॉ टर इ तयाक़ रसूल क वेबसाइट पर एक आ टकल पढ़ा। इ तयाक़
रसूल के पोज़ल पर ही नासा ने मंगल ह के े टर का नाम ‘काकोरी’
रखा था। इसी संदभ क क पना पर, म ीन ले रचने लगा। कहानी का
ीन ले मने बॉलीवुड के मशहूर ो ूसर सा जद न डयाडवाला को
सुनाया। सा जद भाई ने लपक कर गले लगा लया और कहा िक िबना
व त गंवाए इस पर उप यास लखो। मुझे लगा िक उ ह ने मुझे टाल िदया,
लेिकन कई बार उ ह ने मुझसे उप यास के बारे म पूछा। मशहूर डायरे टर
अनुभव स हा, सुधीर िम ा और अ नी धीर ने मुझसे वही कहा जो
सा जद भाई ने कहा था। िकताब कभी लखी तो थी नह , लहाज़ा मने
सबसे पहले अपने फेवरेट लेखक, समी क, आलोचक और अमेठी सं ाम
से तहलका मचा चुके रा ीय पुर कार िवजेता अनंत िवजय जी को कहानी
सुनाई और उसी िदन से अनंत जी मेरे लए मुसीबत बन गए। आए िदन
फ़ोन िमलाकर पूछते थे, “िकतना लखा?” म अमूमन झूठ बोल देता था।
एक बार उ ह ने मेरा झूठ पकड़ लया। मने कहा पचास प े लख चुका हू,ं
अनंत जी ने तुरतं मेल करने को कहा। मेरे पास कुछ नह था। उ ह ने
मुझसे कहा िक तुम जैसे बहाने बाज़ दिु नया से नह , अपने आप से झूठ
बोलते ह। म श मदा हो गया। ख़ुद पर लानत भेजते हुए मने अपनी ाइसेस
ै े ो औ ो
मैनेजर, दो त, शायरा और लोकमत समाचार िक व र प कार अचना
अचन को फ़ोन करके श मदगी का िक़ सा सुनाया। अचना ने फौरन
आई डया िदया िक म रोज़ लखूं और उनको सुनाऊं। मेरे जैसा आलसी
रोज़ लखता, रोज़ सुनाता। प रवार और नौकरी क ज़बरद त
मस िफ़यत के बीच भी वो रोज़ सुनत और एक नया तार बुनत । अचना
क श म अब मेरे पास एक वट रीडर, एक इं टट समी क मौजूद
था, जो कहानी के हर झोल, हर पोल को द ु त कराता था।
एक िदन िकताब तो पूरी हो गई, पर सम या ये िक छपेगी कैसे! स पस
लर नैना के लेखक और मेरे बॉस रहे संजीव पालीवाल सर मुझे हौसला
देते थे िक तुमने लख ली है, बस लगे रहो, सबको सुनाते रहो, छप जाएगी
एक िदन। मेरी ज़दगी म सफ एक ही सुपरबॉस ह और वो ह आशुतोष सर।
जतना भरोसा उ ह मुझ पर रहा, शायद मेरे िपता को भी नह रहा।
आशुतोष जी ने िह मत जगाए रखी। वो हमेशा कहते रहे िक हम सब छोटे
शहर के लड़के ह, ख़ुद अपनी जगह बनाई है, लड़ते रहो, जगह िफर बनेगी
और िकताब भी छपेगी। तमाम को शश के बाद एक िदन अचानक मीना ी
ठाकुर जी से फ़ोन पर बात हो गई और उ ह ने फौरन नरेशन मांग लया। म
लंबे सफ़र पर था, हाईवे पर गाड़ी रोक कर मने उ ह नरेशन िदया। िदन-
महीने-साल बीते, मीना ी ठाकुर के धैय ने कई बार मुझे टू टने से बचाया।
कोरोना के कहर के दौरान भी काम के बीच म मुझे व त देकर कई-कई बार
सुना। बस यह से कहानी क िक मत बदल गई।
अब कहानी एक िकताब है। पापा, म मी ी शि -सुबोध ने अपनी आं ख
से मेरी िकताब के सपने देखे। सोना, जागृ त, िग ी और आयन क िफ़
का िज़ बेहद ज़ री है। सोना ख़ुद एक चुअल पावर है, जसे हर व त
पता था िक िकताब लख भी जाएगी, छप भी जाएगी और एक िदन सबके
हाथ म होगी। जागृ त पैराशूट क तरह है। िगरने का कोई ख़तरा ही नह ।
उसने हमेशा कहा िक हम सबको तु हारा सपना पूरा करना है, भले ही
िकतना बड़ा र क लेना पड़े। िग ी ने िह मत बंधाई िक लखने म समय
कम पड़े तो नौकरी छोड़ दी जएगा, मेरी त वाह से घर चलेगा। आयन टथ
म थे, लेिकन मंझे हुए टोरी ाफर क तरह कहानी के क स बताते थे।
मन भर कर आभार मेरे िम , यज़ ू 18 म मेरे परम सहयोगी, यूपी के
सीएम योगी आिद यनाथ के मी डया सलाहकार शलभ म ण ि पाठी का,
ज ह ने मेरी नौकरी चलाई और कहानी के साथ मुझे मुब ं ई रवाना कर
िदया। ये हम दोन का कंबाइंड लान था िक वो पॉ लिट स म जाएं गे और
म िफ म और नॉवल राइ टग म। िकताब क ए ड टग के दौरान प वी सह
ने सफ एडीशन और डलीशन ही नह िकया, ब क कहानी के े वर,
एसस, डाइले ट और मौसम को भी फ़ोटो िफ़िनश िकया। समाजवादी पाट
के पूव मं ी, रा ीय व ा और मेरे िदल से जुड़े दो त अनुराग भदौ रया,
े ो ौ
अंबुज पांडे, ऋषभ म ण ि पाठी, अंकुर सोनी, गौरव ि पाठी का शुि या
ज ह ने तब कहानी सुनी थी जब कहानी का सफ ‘क’ पैदा हुआ था। मेरे
दो त और आईबीएन 7 म मेरे सहयोगी रहे िव ांत दबु े ने िकताब लखने के
लये अपना ऑिफस, अपना केिबन सब दे िदया मुझे। ये सब न होता तो
सुकून के साथ ये िकताब लख ही नह पाता म। आ रफ़ ने मेरे िदल का
डज़ाइन कं यूटर से कवर पेज पर उतार िदया। णाम और आभार य
करता हूं गु एवं िपतातु य ओमशरण जी, मोद तवारी जी, का लका
साद िम लद जी का ज ह ने हर पल, हर व त मेरे श द, वा य, िव यास
और यास पर नज़र बनाए रखी।
यक़ न है िक ये उप यास आप सबको रोलर को टर क लर जन पर
ले गया होगा। कैरे टस और उनके डाइले ट ने आपको सौ फ़ सदी
गुदगुदाया होगा। पहली को शश है, अ छा या बुरा, जो भी लगे ज़ र
बताइएगा। आप बताएं गे तभी तो अगली को शश और भी बेहतर हो सकेगी।
मेरा ईमेल है: manojrajantripathi@gmail.com
शुि या, ध यवाद, थ यू!
मनोज राजन ि पाठी

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