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Section-A (Objective -50 Marks)

Section-B
Subjective-50 Marks

Q1. निबंध - 8 Marks


निबंध
परिचय - जो टॉनपक हम शुरु कि िहे हैं उसकी
जािकािी
सूचिा - कम से कम 3 अिुच्छेद - Systematic
तिीके से हम अपिी बात को नबिा repeat नकए
हुए आगे बढाते हैं ।
निष्कर्ष - पढिे वाले को ऐसा लगे की बात खत्म हो
गई है ।
पसंदीदा एवं सामानजक समस्या
पसंदीदा सामानजक समस्या
मेरी प्रिय पुस्तक दहेज िथा
मेरे पसदं ीदा कप्रि भ्रष्टाचार
मेरा आदर्श व्यप्रित्ि बेरोजगारी
िाम गरीबी
क्यों क्या ?
उसके बािे में समाज पि प्रभाव
उसके या उसके बािे में कोई िोकथाम
खास बात कोई व्यक्तिगत अिुभव ?
कब वह पसंदीदा बि गया ? सिकाि को क्या कििा चानहए?
आपके जीवि पि क्या प्रभाव ? आप क्या कि सकते हो?
Q2. व्याख्या- 4x2=8 Marks
Format

प्रसंग :- प्रस्तुत पंक्तियााँ हमािी पाठ्यपुस्तक नदगंत भाग 2


के गद्य खंड /काव्य खंड शीर्षक ............. से ली गई हैं ।
इस ......... के िचिाकाि …......... हैं । लेखक / कनव िे
यहां .................................

व्याख्या :- कनव ……… यहााँ ये कहिा चाहते हैं नक/इस


पंक्ति से कनव का आशय है नक ……….............................
प्रलखना ऐसे है:-

िश्न :-आज प्रदर्ाएँ भी हँसती हैं है उल्लास प्रिश्व पर छाया मे रा खोया हुआ प्रखलौना अब तक
मेरे पास न आया।
िसगं :- िस्तुत पंप्रि राष्ट्रीय भाि धारा की किप्रयत्री सभ ु द्र कुमारी चौहान रप्रचत कप्रिता पुत्र-
प्रियोग से ली गई है।
व्याख्या :- प्रजसमें किप्रयत्री अपने पुत्र के असामप्रयक प्रनधन के पश्चात् र्ोक व्यि करते हुए
कहती है प्रक आज पूरे प्रिश्व में हर्श का उल्लास का माहौल है। प्रकन्तु मै दुखी हँ क्योंप्रक मेरा पुत्र
अब तक मेरे पास नहीं आया है।
Q3. पत्र /आवेदि-5 Marks
फीस माफी के प्रलए महाप्रिद्यालय के िाचायश के पास प्रनिेदन
परीक्षा भिन
सेिा में,
श्रीमान िधानाध्यापक महोदय
एलएस कॉलेज, मुजफ्फरपुर

प्रदनांक -1 Feb 2023


प्रिर्य - फीस माफी के प्रलए आिेदन
मान्यिर,
प्रिनम्र प्रनिेदन यह है की मैं आपके कॉलेज के 12िीं का छात्र हं। मैं पढ़ने में अच्छा हँ परंतु मेरी आप्रथशक प्रस्थप्रत अच्छी नहीं है।
मेरे प्रपताजी एक छोटी सी दुकान चलाते हैं और उसी से उन्हें पूरा पररिार चलाना पड़ता है मैं इस िर्श अपनी फीस अदा करने में सक्षम
नहीं हँ।
अतः श्रीमान से प्रनिेदन है प्रक मेरी फीस माफ कर मुझे आगे पढ़ने का अिसर िदान करें इसके प्रलए मैं श्रीमान का आभारी रहँगा ।
सधन्यिाद। आपका प्रिश्वासी छात्र
राहुल
िगश:- 12 िीं ,रोल:- नंबर 10
Q4. लघु उत्तिीय प्रश्न- 5×2=10 Marks
Q5. दीघष उत्तिीय प्रश्न -3x5 =15 Marks
Q.1 अगर हममे िाक्र्प्रि न होती, तो क्या होता?
Ans- िस्तुत िश्न बालकृष्ट्ण भट्ट रप्रचत लप्रलत प्रनबंध बातचीत से प्रलया गया है। प्रजसके
अनस ु ार अगर हममे िाक्र्प्रि नहीं होती तो सपं ूणश सप्रृ ष्ट गगूँ ी ितीत होती।
Q.2 हरचरना कौन है? उसकी क्या पहचान है?
Ans- िस्तुत िश्न आधुप्रनक काल के कप्रि रघुिीर सहाय रप्रचत कप्रिता अप्रधनायक से प्रल गई
है। यहाँ ‘हरचरना’ आम आदमी का िप्रतप्रनप्रध है। उसकी पहचान उसका फटा, ढीला पजामा है।
Q.3 कप्रि ने प्रसतारे को भयानक क्यों कहा है? प्रसतारे का इर्ारा प्रकस ओर हैं?
उत्तर- िस्तुत िश्न गजानन माधि मुप्रिबोध द्वारा रप्रचत पाठ जन-जन का चेहरा एक से प्रलया
गया है। प्रजसमें कप्रि ने र्ोर्क िगश के र्ोर्ण से त्रस्त और क्रोप्रधत जनता को प्रसतारा कहकर
सबं ोप्रधत प्रकया है। कप्रि कहते हैं प्रक जब र्ोर्क िगश का आतंक अपनी चरमसीमा पार कर
जाता है। तब त्रस्त जनता क्रोप्रधत हो जाती है। और क्रांप्रत का उद्घोर् करती है। तब िह र्ोर्क
िगश से- आजादी पाने के प्रलए भयानक हो जाती है।
Q.4 ‘प्रबप्रटया’ कहाँ-कहाँ लोहा पहचान पाती है?
Ans- िस्तुत िश्न प्रिनोद कुमार र्ुक्ल रप्रचत पाठ प्यारे नन्हें बेटे को से प्रलया गया है। प्रजसमें
प्रबप्रटया प्रचमटा, करछुल, प्रसगरी, समसी, दरिाजे की प्रसकड़ी, कब्जा, कील, साईप्रकल, सेफ़्टी
प्रपन, लोहे का तार, इन सभी में लोहा को पहचान लेती है।

Q.5 प्रसपाही के घर की प्रस्थप्रत मानक के घर से प्रभन्न नहीं है, कै से। स्पष्ट करें?
Ans- िस्तुत िश्न मोहन राके र् रप्रचत पाठ प्रसपाही की माँ से प्रलया गया है। प्रजसके अनस ु ार
प्रसपाही के घर की प्रस्थप्रत मानक के घर से प्रभन्न नहीं है क्योंप्रक जैसे मानक की माँ प्रबर्नी और
बहन मुन्नी उसकी प्रचंता करते रहते हैं, उसके प्रचट्ठी का इतं जार करते हैं िैसे ही प्रसपाही की माँ
और उनकी पत्नी भी उसका इतं जार करते हैं, उसके प्रलए प्रचंप्रतत रहते हैं।
Q. 6 चंपारण क्षेत्र में बाढ़ आने के मुख्य कारण क्या है?
उत्तर:- चम्पारण क्षेत्र में बाढ़ का िमुख कारण जंगलों का कटना है। िक्ष ृ की जड़ें नप्रदयों जल को
रोककर रखती है, िनािरण कम होने के कारण प्रमट्टी की कसाि कम होती गई और जल की
धाराएँ तीव्र होती गई। आज चंपारन में िृक्ष को काट कर कृप्रर्योग्य समतल भूप्रम बना दी गई है,
पररणाम यह हुआ प्रक गंडक नदी चंपारण क्षेत्र में िचंड बाढ़ का द्योतक बन गई है।
Q. 7 सरु ेन्द्र की बातों को सनु कर लेखक प्रिचप्रलत क्यों हो जाते हैं?
उत्तर- सरु ेन्द्र के द्वारा कहे गये िचन “भाभीजी, आपके हाथ का खाना तो बहुत जायके दार है।
हमारे घर में तो कोई भी ऐसा खाना नहीं बना सकता है” लेखक को प्रिचप्रलत कर देता है।
लेखक जब बच्चे थे तब उनकी माँ सरु ेन्द्र प्रसहं के दादा सख ु देि प्रसहं त्यागी के यहाँ काम करती
थी । प्रदनभर की हाड़-तोड़ मेहनत करने के बािजूद उन्हें प्रसफश जूठन ही प्रमलता था। ‘सरु ेन्द्र की
बड़ी बुआ की र्ादी में हाड़-तोड़ मेहनत करने के बािजूद सरु ेन्द्र की दादाजी ने उनकी माँ के द्वारा
एक पत्तल भोजन माँगे जाने पर प्रकतना प्रधक्कारा था।
उनकी औकात प्रदखाई थी, यह सब लेखक की स्मप्रृ तयों में प्रकसी प्रचत्रपट की भाँप्रत पलटने
लगा था। जब सरु ेन्द्र प्रसहं ने ऐसा कहा। आज सरु ेन्द्र उनके घर का भोजन कर रहा है और उसकी
बड़ाई कर रहा है। उसके द्वारा कहा िचन स्ितःस्फूतश स्मृप्रतयों में उभर आता है और लेखक को
प्रिचप्रलत कर देता है।

Q.8 ‘पंच परमेश्वर’ के खो जाने को लेकर कप्रि प्रचंप्रतत क्यों है?


Ans- िस्तुत िश्न ज्ञानेंद्रपप्रत रप्रचत पाठ गाँि का घर से प्रलया गया। प्रजसमें गाँि में पंच-परमेश्वर
के खो जाने से प्रचंप्रतत हैं। क्योंप्रक अब गाँि में लोगों का एक-दूसरे के ऊपर उतना प्रिश्वास नहीं
रह गया है। अब लोग अप्रधकतर अदालतों का सहारा लेते हैं।
Q.9 उत्सि कौन और क्यों मना रहे हैं?
Ans- िस्तुत िश्न आधप्रु नक काल के लेखक अर्ोक िाजपेयी रप्रचत कप्रिता हार-जीत से ली
गई है। प्रजसमें आम जनता उत्सि मना रही है और यद्ध
ु में जीत के कारण उत्सि मना रहे हैं।

Q.10 नागररक क्यों व्यस्त हैं? क्या उनकी व्यस्तता जायज है?
Ans- िस्तुत िश्न आधप्रु नक काल के लेखक अर्ोक िाजपेयी रप्रचत कप्रिता हार-जीत से ली
गई है। प्रजसमें नागररक उत्सि मनाने में व्यस्त हैं। उन की व्यस्तता जायज नहीं है क्योंप्रक युद्ध में
अनेक सैप्रनक मारे गए, उनका र्ोक मानने के स्थान पर उत्सि मानना कदाप्रप जायज नहीं है।
Q.11 एकांकी और नाटक में क्या अंतर है ?
Ans-एकांकी- एकांकी में के िल एक एक्ट होता है। एकांकी एक िकार से एक लघु कहानी के
समतुल्य है और एक एप्रपसोड या प्रस्थप्रत पर ध्यान कें प्रद्रत करता है । आमतौर पर इसमें कम पात्र
होते हैं।
एकांकी आम तौर पर छोटा होता है जो पंद्रह से चालीस प्रमनट के बीच िदप्रर्शत प्रकया जा
सकता है।
नाटक - रंगमंच में िदर्शन के प्रलए तैयार की गई रचना का िह रूप, प्रजसमें कई एक्ट होता है।
यह एक साथ कई प्रस्थप्रतयों पर ध्यान कें प्रद्रत करता है एिं इसमें कई पात्र होते हैं। नाटक आमतौर
पर लंबा होता है।
Q.12 पुत्र प्रियोग में स्त्री स्ियं को असहाय एिं प्रििर् क्यों महसस ू कर रही हैं ?
Ans-पुत्र प्रियोग, प्रजसे सभ ु द्रा कुमारी चौहान ने प्रलखा है । उसमें उन्होंने अपने बेटे की
असामप्रयक मत्ृ यु पर र्ोक िकट प्रकया है । बेटे की मत्ृ यु पर िह असहाय एिं प्रििर् महसस ू कर
रही हैं । िह कहती हैं प्रक उनके बेटे की मत्ृ यु को कोई टाल ना सका हालांप्रक हमने सारी
सािधाप्रनयां बरती पर प्रनयप्रत के आगे प्रकसका बस चलता है । हर सभ ं ि उन्होंने अपने बेटे को
बचाने का ियास प्रकया, पूजा- अचशना की, सािधाप्रनयां बरती परंतु उनका बेटा बच ना सका
इसप्रलए िह असहाय एिं बेबस महसस ू कर रही हैं ।
Q.13. प्रबर्नी और मुन्नी को प्रकसकी ितीक्षा है िे डाप्रकए की राह क्यों देखती हैं ?
Ans. प्रबर्नी मानक की मां और मुन्नी मानक की बहन है एिं इन दोनों को मानक की ितीक्षा है
जो इग्ं लैंड की ओर से जापान के प्रखलाफ बमाश में लड़ने गया है । िे मानक के प्रचट्ठी के आने की
ितीक्षा में डाप्रकया की राह देखती हैं ।

Q14. चंपारण क्षेत्र में बाढ़ आने के िमुख कारण क्या है ?


Ans.चंपारण क्षेत्र में बाढ़ के आने का सबसे िमुख कारण है - जंगलों का कटाि । हालांप्रक उस
क्षेत्र में पहले भी बाढ़ आती थी पर उतनी िचंड नहीं होती थी । लेप्रकन प्रपछले 6 या 7 सप्रदयों में
जो महािन चंपारण से गंगा तक फैला हुआ था । िन कटता चला गया उन जंगलों को काट कर
भूप्रम को समतल बना प्रदया गया इसप्रलए िाडश की िसन्नता को रोकने का अब कोई साधन नहीं
रहा ।
Q15. हार- जीत कप्रिता में मर्क िाले की क्या भूप्रमका है?
Ans.दरअसल मर्क िाले का अथश होता है सड़क को पानी से सींचने
िाला । ये लोग अक्सर बूढ़े होते हैं । िह पूरी लगन से सड़क को सींचने में
लगे होते हैं । यहां पर दरअसल ितीकात्मक रूप से बात की गई है की बूढ़े
लोग बुप्रद्धजीिी होते हैं परंतु हमारे देर् की राजनीप्रत से उन्हें िंप्रचत रखा
जाता है । उन्हें सच कहने और बोलने से रोका जाता है अगर उनके हाथ में
देर् की सत्ता होती तो राष्ट्र की ऐसी प्रस्थप्रत ना होती ।
Q6. संक्षेपण - 4 Marks
2. संक्षेपण
संक्षेपण प्रािम्भ कििे से पहले -
मूल अवतिण कम-से-कम तीि बाि पढिा है ।
शीर्षक का चुिाव :-अवतिण के मूल भाव से ही जुडा हुआ कुछ शब्ों का
शीर्षक होिा चानहए। सामान्यतः यह नदए गए अवतिण में ही कही ं िा
कही ं पि होता है पिं तु िा भी हो तो उससे सम्बंनधत शीर्ष क तैयाि नकया
जा सकता है ।
मूल अिुच्छेद का पठि :- प्रस्तुत गद्द या पद्द को पढते हुए संक्षेपक को
नवनशष्ट शब्ों या वाक्यों को िे खानकंत कि लेिा चानहए।
संक्षेपण की शुरुआत :- अब िे खांनकत शब्ों से अपिे शब्ों में संक्षेपण
कििा शुरू कि दें लेनकि मूल कथि को हमेशा ध्याि में िखते हुए।
Note :- संक्षेपण का आकि कम से कम एक
नतहाई होिा चानहए (थोडा सा कम या ज्यादा
हो तो भी चलेगा )
नदए गए अवतिण का संक्षेपण किें ।
महािगिों में जो सत्यता फैली है वह नछछली औि हदय हीि है । लोगों के
पािस्परिक नमलि के अवसि तो बहुत हो गए हैं मगि इस नमलि में
हानदष कता िही ं होती, मािवीय संबंधों में घनिष्ठता िही ं आ पाती। दफ्तिों,
बसों, िे लों, सभाओं औि कल-कािखािों में आदमी हि समय भीड में
िहता है , मगि इस भीड के बीच वह अकेला होता है । मिुष्य के नलए
मिुष्यत्व के भीति पहले जो माया, ममता औि सहािुभूनत के भाव थे, वे
अब लापता होते जा िहे हैं । दे शों की पािस्परिक दूिी घट गई है । लेनकि
आदमी औि आदमी के बीच की दूिी बढती जा िही है । (102
Words)
शीर्षक -िगिीय जीवि एवं मािवीय रिश्ते
आज की महािगिीय सभ्यता में भले ही लोगों मैं
पािस्परिक नमलि के अवसि बढ गए हों पिं तु
उिके संबंध में वह घनिष्ठता िही ं िही । ममता औि
सहािुभूनत का अभाव हो गया । (31 Words)
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SUBJECTIVE

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2. प्रनम्नप्रलप्रखत में से प्रकन्हीं दो अितरणों की सिसगं व्याख्या करें :
(i) “आदमी यथाथश को जीता ही नहीं, यथाथश को रचता भी है ।”
(ii) “प्रकतने क्रूर समाज में रह रहे हैं हम, जहाँ श्रम का कोई मोल नहीं, बप्रल्क प्रनधशनता को बरकरार रखने का र्डयंत्र ही था यह सब ।”
(iii) “प्रफर भी कोई कुछ न कर सका
प्रछन ही गया प्रखलौना मेरा
मैं असहाय प्रििर् बैठी ही
रही उठ गया छौना मेरा ।”
(iv) “आर्ामयी लाल-लाल प्रकरणों से अंधकार
चीरता सा प्रमत्र का स्िगश एक :
जन-जन का प्रमत्र एक ।”

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Ans-2.
(i) िस्तुत पंप्रि लेखक मलयज के 10 मई 78 की डायरी की है। मनुष्ट्य अपनी दैप्रनक प्र ंदगी मे जो कुछ करता हैं, प्रजन सघं र्श के साथ रहता है,
िह यथाथश है । जीिमात्र को जीने के प्रलए हमेर्ा सघं र्श करना पड़ता हैं। िह इन सघं र्ों को जीते हैं। यप्रद सघं र्श ना हो तो जीिन का कोई मोल ही
नहीं है। मनुष्ट्य इन यथाथो के सहारे जीिन जीता है। िह इन यथाथो का भोग भी करता हैं और भोग करने के दौरान इनकी सजशना भी कर देता हैं।
संघर्श, संघर्श को जन्म देती है। कहा गया हैं गप्रत ही जीिन है और जड़ता मृत्यु। इस िकार आदमी यथाथश को जीता हैं और रचता भी है।
(ii) िस्तुत गद्यांर् सुिप्रसद्ध दप्रलत आंदोलन के लेखक ओमिकार् िाल्मीप्रक रप्रचत आत्माकथा ‘जूठन’ र्ीर्शक से प्रलया गया है। िस्तुत
गद्यांर् के माध्यम से लेखक ने समाज की प्रिर्मताओ ं पर कटाक्ष प्रकया हैं। लेखक के पररिार के द्वारा श्रमसाध्य कमश प्रकए जाने के बािजूद दो
जून की रोटी भी नसीब न होती थी । रोटी की बात कौन कहे जूठन नसीब होना भी कम मुप्रककल नहीं था। प्रिद्यालय का हेडमास्टर कलीराम
लेखक से रोज पूरे प्रिद्यालय में झाड़ू लगिाता था। चुहड़े का बेटा होने के कारण पत्तलों का जूठन ही उनका प्रनिाला होता था। लेखक अपनी
आत्मकथा में समाज की क्रूरता को प्रदखाने का ियास करते हैं।

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Ans-3.
(i) आज प्रदर्ाएँ भी हँसती हैं
है उल्लास प्रिश्व पर छाया,
मेरा खोया हुआ प्रखलौना
अब तक मेरे पास न आया।

र्ीत न लग जाए, इस भय से
नहीं गोद से प्रजसे उतारा
छोड़ काम दौड़ कर आई
‘माँ’ कहकर प्रजस समय पुकारा।

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Ans-3.
थपकी दे दे प्रजसे सल
ु ाया
प्रजसके प्रलए लोररयाँ गाई,
प्रजसके मुख पर जरा मप्रलनता
देख आँख में रात प्रबताई।

प्रजसके प्रलए भूल अपनापन


पत्थर को भी देि बनाया
कहीं नाररयल, दूध, बतार्े
कहीं चढ़ाकर र्ीर् निाया।

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Ans-3.
थपकी दे दे प्रजसे सल
ु ाया
प्रजसके प्रलए लोररयाँ गाई,
प्रजसके मुख पर जरा मप्रलनता
देख आँख में रात प्रबताई।

प्रजसके प्रलए भूल अपनापन


पत्थर को भी देि बनाया
कहीं नाररयल, दूध, बतार्े
कहीं चढ़ाकर र्ीर् निाया।

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Ans-3.
प्रफर भी कोई कुछ न कर सका
प्रछन ही गया प्रखलौना मेरा
मैं असहाय प्रििर् बैठी ही
रही उठ गया छौना मेरा।

तड़प रहें हैं प्रिकल िाण ये


मुझको पल भर र्ांप्रत नहीं हैं
िह खोया धन पा न सकूँगी
इसमें कुछ भी भ्रांप्रत नहीं हैं।

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Ans-3.
प्रफर भी रोता ही रहता है
नहीं मानता है मन मेरा
बड़ा जप्रटल नीरस लगता है
सूना-सूना जीिन मेरा।

यह लगता है एक बार यप्रद


पल भर को उसको पा जाती
जी से लगा प्यार से सर
सहला सहला उसको समझाती।

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Ans-3.
मेरे भैया मेरे बेटे अब
माँ को यों छोड़ न जाना
बड़ा कप्रठन है बेटा खोकर
माँ को अपना मन समझाना।

भाई-बप्रहन भूल सकते हैं


प्रपता भले ही तुम्हें भुलािे
प्रकन्तु रात प्रदन की साप्रथन माँ
कै से अपना मन समझािे !

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Ans-4.
उपयशुि पंप्रि मुप्रिबोध रप्रचत कप्रिता 'जन-जन का चेहरा एक से उद्भुत है। इस पंप्रि
का आर्य यह है प्रक सभी मनुष्ट्य जीिन को उन्नत बनाने के प्रलए एक साथ आर्ािान
हो खड़े होंगे प्रजससे उनके जीिन का अंधकार िो चाहे दुख, सतं ाप या र्ोर्ण हो
सबसे उन्हें मुप्रि प्रमलेगी। सभी मनुष्ट्य इसी अकांक्षा से एक दूसरे के प्रमत्रित साथ है।
सस
ं ार मे र्ोर्ण से मुप्रि का लक्ष्य मनुष्ट्यों को साथ जोड़े हुए है।
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4. प्रनम्नांप्रकत िश्नों में से प्रकन्हीं पाँच के उत्तर दें :
(i) मानक स्ियं को िहर्ी और जानिर से भी बढ़कर क्यों कहता है ?
(ii) जहाँ भय है िहाँ मेधा नहीं हो सकती । क्यों ?
(iii) ‘धरती का क्षण’ से क्या आर्य है ?
(iv) प्यार का इर्ारा और क्रोध काअ दुधारा से क्या तात्पयश है ?
(v) ह्रदय की बात का क्या अथश है ?
(vi) तुलसी ने अपने प्रकन-प्रकन दुगशणों का बखान प्रकया है ?
(vii) भगत प्रसहं ने कै सी मृत्यु को ‘सदुं र कहा है ?
(vii) कबीर प्रिर्यक छप्पय में नाभादास ने कबीर के बारे में क्या कहा है ?
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(ix) सभ
ु द्रा जी के पप्रत के व्यप्रित्ि के बारे में बताएँ ।
(x) नप्रदयों की िेदना का क्या कारण है ?

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Ans-4.
(i) िस्तुत िश्न नई कहानी आंदोलन के िमुख हस्ताक्षर और बीसिीं र्ती के उत्तरिती युग के लेखक मोहन राके र् रप्रचत
नाटक प्रसपाही की माँ से प्रलया गया है। कहानी में मानक स्ियं को बहर्ी और जानिर से भी बढ़कर कहता है क्योंप्रक िह
प्रिरोधी प्रसपाहीयों को चुन-चुनकर उनकी हत्या करता हैं। एक फौजी का कतशव्य प्रनभाते हुए िह प्रिरोधी प्रसपाप्रहयो पर
गोप्रलयाँ चलाता रहता है मानों एक जानिर प्रकसी के खून का प्यासा हो।

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Ans-4.
(ii) मेधा अथशता िप्रतभा के प्रलए भय से मुि होना आिकयक है। हम अपने जीिन मे भय से ग्रप्रसत रहते है प्रजससे
हमारी चेतना का प्रिकास नहीं हो पाता। नौकरी का भय सखा- संबंप्रध का भय, परंपरा के अनुकरण का भय से तमाम
चीजें हमें बाँध के रखती है प्रजसे हमारे मन : मप्रस्तष्ट्क में अनुकरण के िप्रत प्रिद्रोह की भािना नहीं जगती। हम नयें िश्नों
से जीिन की जररलता से जीिनक के यथाथश से साक्षात्कार नहीं कर पाते। जीिन की समग्रता को समझने के प्रलए हमे
भय से मुि होना चाप्रहए **मेधा िह र्प्रि है प्रजससे हम भय और प्रसद्धांतों की अनुपप्रस्थप्रत में स्ितंत्रता के साथ सोचते
है ताप्रक अपने प्रकए सत्य की,िास्तप्रिकता की खोज कर सके । और अगर भय होगा तो हम मेधािी नहीं अथाशत्
िास्तप्रिकता की खोज नहीं कर पायेंगे। हमारी प्रर्क्षा ऐसी हो प्रजससे हमें प्रबना डरे सत्य की ओर ले जाये।

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Ans-4.
(iii) लेखक कप्रिता के मूड में जब डायरी प्रलखते हैं तो र्ब्द और अथश के मध्य की दूरी अप्रनधाशररत हो जाती है। र्ब्द अथश में और
अथश र्ब्द में बदलते चले जाते हैं, एक दूसरे को पकड़ते-छोड़ते हुए। र्ब्द और अथश का जब साथ नहीं होता तो िह आकार् होता है
प्रजसमें रचनाएँ प्रबजली के फूल की तरह प्रखल उठती हैं प्रकन्तु जब इनका साथ होता है तो िह धरती का क्षण होता है और उसमें
रचनाएँ जड़ पा लेती हैं िस्फुटन का आप्रदिोत पा जाती हैं। अतः यह कहना उप्रचत है प्रक र्ब्द और अथश दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं।
(iv) सभी मनुष्ट्य प्यार से एक समान जीिन जीना चाहते हैं। धरती के सभी देर्ों में अिप्रस्थत मनुष्ट्य िेम की िकालत करते है।
सभ्यता के आप्रद से ििाहमान नप्रदयों की तरह लोगों के मध्य िेम और करुणा का ििाह होता आया है लेप्रकन र्प्रि के बल पर
मनुष्ट्य मनुष्ट्यों का र्ोर्ण करते है। जीिन की अबाध गप्रत को बाप्रधत करते है प्रजससे क्रोप्रधत हो जन समुदाय दोधारी तलिार के
समान र्ोर्ण के प्रिरुद्ध लड़ रहे हैं।

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Ans-4.
(v) कप्रि के ह्रदय में इस भीर्ण कलयुग में लोकमानस के क्रुर होते एिं दुष्ट्काल में सब चीज को अव्यिप्रस्थत होते देख दर
बैठ गया है प्रजसको कप्रि साधु समाज के समझ अपनी ह्रदय के डर को ले जाते हैं । िहीं श्रीराम ही सब कुछ अच्छा कर
सकते है ।
(vi) (क) नाम लै भरै उदर एक िभ-ु दासी-दास कहाई ।
उत्तर- इस पद का अथश यह हैं प्रक कप्रि तुलसीदास जो गरीब है मैला है और अंगहीन है उनका पेट िभुराम के नाम लेने
अथाशत राम की भप्रि करने से ही भरती है । इसीप्रलए िो राम के सेिक कहलाते है ।

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Ans-4.
(ख) कप्रल कराल दुकाल दारुन, सब कुभाँती कुसाजु ।
नीच जन, मन ऊँ च, जैसी कोढ़ में की खाजु ॥
उत्तर- इस पद का अथश यह है प्रक कप्रि के अनुसार इस भूर्ण कप्रलयुग में इस भयानक दुष्ट्कार में सभी चीज बुरी तरह
अव्यिप्रस्थत हो चुकी है । समय इतना भीर्ण हो गया है प्रक नीच मनुष्ट्यों की महत्िकांक्षा बहुत बढ़ गयी प्रजससे प्रस्थप्रत
आरामकपूणश हो गयी है ।
(ग) पेट भरर तुलप्रसप्रह जेंिाइय भगप्रत-सध
ु ा सनु ाजु ।
उत्तर- भि कप्रि तुलसीदास िभु राम से अपनी भूख प्रमटाने का प्रनिेदन करते कहते हैं प्रक िे जन्म के भूखे प्रभखारी है, हे िभु इस
गरीब भि को उसकी भप्रि मे को प्रमताओ ं और अपनी भप्रि का अमृत् पान कराओ ।
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(vii) क्रांप्रतकारी सरदार भगत प्रसंह देर् सेिा के बदले दी गई फाँसी (मृत्युदण्ड) को सुन्दर मृत्यु कहा है। भगत प्रसंह इस सन्दभश में कहते हैं
प्रक जब देर् के भाग्य का प्रनणशय हो रहा हो तो व्यप्रियों के भाग्य को पूणशतया भुला देनी चाप्रहए। इसी दृढ़ इच्छा के साथ हमारी मुप्रि का
िस्ताि सप्रम्मप्रलत रूप में और प्रिश्वव्यापी हो और उसके साथ ही जब यह आन्दोलन अपनी चरम सीमा पर पहुच
ँ े तो हमें फाँसी दे दी
जाय। यह मृत्यु भगत प्रसंह के प्रलए सुन्दर होगी प्रजसमें हमारे देर् का कल्याण होगा। र्ोर्क यहाँ से चले जायेंगे और हम अपना कायश स्ियं
करेंगे। इसी के साथ व्यापक समाजिाद की कल्पना भी करते हैं प्रजसमें हमारी मृत्यु बेकार न जाय। अथाशत् संघर्श में मरना एक आदर्श मृत्यु
है। भगत प्रसहं आत्महत्या को कायरता कहते हैं। क्योंप्रक कोई भी व्यप्रि जो आत्महत्या करेगा िह थोड़ा दुख, कष्ट सहने के चलते करेगा।
िह अपना समस्त मूल्य एक ही क्षण में खो देगा। इस संदभश में उनका प्रिचार है प्रक मेरे जैसे प्रिश्वास और प्रिचारों िाला व्यप्रि व्यथश में
मरना कदाप्रप सहन नहीं कर सकता। हम तो अपने जीिन का अप्रधक से अप्रधक मूल्य िाप्त करना चाहते हैं।

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हम मानिता की अप्रधक–से–अप्रधक सेिा करना चाहते हैं। सघं र्श में मरना एक आदर्श मृत्यु है। ियत्नर्ील होना एिं श्रेष्ठ और उत्कृष्ट आदर्श के
प्रलए जीिन दे देना कदाप्रप आत्महत्या नहीं कही जा सकती। भगत प्रसंह आत्महत्या को कायरता इसप्रलए कहते हैं प्रक के िल कुछ दुखों से बचने
के प्रलए अपने जीिन को समाप्त कर देते हैं। इस संदभश में िे एक प्रिचार भी देते हैं प्रक प्रिपप्रत्तयाँ व्यप्रि को पूणश बनाने िाली होती है।
(viii) नाभादास ने अपने छप्पय के माध्यम तत्कालीन था अपने से पूिश के भि कप्रियों का िणशन प्रकया है। पुस्तक के िथम छप्पय में नाभादास
ने भारतीय जनमानस के महान कप्रि एिं परंपरा भंजक भि कप्रि कबीर के प्रिर्ेर्ताओ ं के बारे में बात की है-
नामादास के अनुसार कबीर भारतीय धमश-दर्शन के स्पष्ट एिं कमशकांड के प्रिरोधी कप्रि है। िे भप्रि में लीन गंभीर प्रचंतन के व्यिहारी थे। कबीर
धमश के भप्रि मागश को धमश मानते है। कबीर के अनुसार योग, व्रत, यज्ञ तुच्छ है क्योंप्रक प्रबना भप्रि का इनका महत्ि नहीं के बराबर है। िे प्रहन्दु-
मुसलमान का प्रकसी जाप्रत प्रिर्ेर् से दूर मानि कल्याण एिं सह्दय िेम के पक्षधर थे। िे भारतीय धमश दर्शन के िणाशक्ष्तम व्यिस्था के िखर
प्रिरोधी थे एिं भगिदभप्रि को धमश का माध्यम मानते थे।

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(ix) उत्तर- िस्तुत कप्रिता मे नप्रदयों की िेदना का कारण है जन-िेम। जीिन के गप्रतर्ील धारा
को बाप्रधत करने िाले तत्ि के िप्रत हुक
ँ ार। इस धरा पर बहती हुई नप्रदयाँ जीिन की तरह
गप्रतर्ील है। सभी का इर्ारा िेम, करुणा की तरह है। और जो तत्ि मानिता के इस पक्ष को
बाप्रधत करेगा तब नप्रदयाँ उग्र, क्रोप्रधत हो धारदार बहने लगेगी। र्ोर्ण के प्रिरुद्ध आक्रोप्रर्त
जन नाप्रदयों के उम्र धारा की तरह आिेगमय हो उढेगी।

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5. प्रनम्नप्रलप्रखत िश्नों में से प्रकन्हीं तीन का उत्तर दें :
(i) ‘बातचीत के संबंध में बेन जॉनसन और एडीसन के क्या प्रिचार हैं ?
(ii) सपं ूणश क्रांप्रत पाठ का सारांर् प्रलप्रखए ।
(iii) ‘रोज कहानी में कहानीकार ने प्रकस िकार मालती की अंत: प्रस्थप्रत ि बाह्म प्रस्थप्रत का िणशन कीया है ?
(iv) सरू दास के िथम पद का भािाथश प्रलप्रखए ।
(v) ‘उर्ा’ र्ीर्शक कप्रिता का भाि स्पष्ट करें ।
(vi) ‘क्लकश की मौत’ र्ीर्शक कहानी का सारांर् प्रलखें ।

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Ans-5.
(i) िस्तुत िश्न बालकृष्ट्ण भट्ट रप्रचत लप्रलत प्रनबंध बातचीत से प्रलया गया है। इसके
अनुसार बेन जॉनसन के प्रिचार थे प्रक बोलने से ही मनुष्ट्य के रूप का साक्षात्कार होता है।
और एप्रडसन के प्रिचार थे प्रक असल बातचीत प्रसफश दो व्यप्रियों के बीच ही हो सकती है।

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Ans-5.
(ii) सपं ूणश क्रांप्रत पाठ का सारांर् प्रलप्रखए ।
सम्पूणश क्रांप्रत 5 जून, 1974 को पटना के गाँधी मैदान में जयिकार् नारायण द्वारा प्रदए गए भार्ण का अंर् है।
प्रजसमें जयिकार् नारायण देर् में प्रिद्यमान, गरीबी, भूखमरी, महँगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के प्रखलाफ
देर् की जनता से सम्पूणश क्रांप्रत का आिाहन करते हैं।
उन्होंने यूथ फॉर डेमोक्रेसी का आिाहन प्रकया। क्योंप्रक उनके अनुसार भािी पीढ़ी ही देर् का भप्रिष्ट्य है
इसीप्रलए उन्हें ही र्ासन की, सत्ता की और सघं र्श की िागडोर सभ
ं ालनी चाप्रहए और बुजुगों से मागशदर्शन लेना
चाप्रहए। प्रकन्तु युिाओ ं के आग्रह पर जयिकार् नारायण ने सम्पूणश क्रांप्रत का नेतृत्ि इस र्तश पर स्िीकार प्रकया
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प्रक िे सनु ेंगे सबकी परन्तु फैसला उनका होगा और सबको मानना होगा। उन्होंने बताया प्रक मुझे प्रकसी व्यप्रि प्रिर्ेर् से
कोई झगड़ा नहीं हैं। मुझे उन नीप्रतयों से, प्रसद्धांतों से और कायों से झगड़ा है जो गलत है। जो प्रसद्धांत गलत होंगे, जो
पॉप्रलसी गलत होगी और जो कायश गलत होंगे, उसे चाहे कोई भी करें मैं उसका प्रिरोध करूँगा।
अंत में जयिकार् नारायण कहते हैं प्रक जो सघं र्श सप्रमप्रतयाँ छात्रों की या जनता की बन गई हैं या बन रहीं हैं उनका काम
होगा र्ासन के गलत नीप्रतयों का प्रिरोध करना, समाज के हर अन्याय और अनीप्रत के प्रिरुद्ध संघर्श करना, गाँि के छोटे –
छोटे अफसरों जो घुसखोरी करते हैं, उनका प्रिरोध करना और हर तरह के अन्याय जो मेरी कल्पना है उन अन्यायों को
रोकना।
इस िकार जनता की या छात्रों की ये प्रनदशलीय संघर्श सप्रमप्रतयाँ के िल लोकतंत्र के प्रलए नहीं बप्रल्क सामाप्रजक, आप्रथशक,
नैप्रतक क्रांप्रत के प्रलए अथिा सम्पूणश क्रांप्रत के प्रलए बहुत महत्िपूणश कायश करेगी।
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Ans-5.
(iii) मालती के घर का िातािरण प्रबलकुल प्रिरान और बोझल लग रहा है। ऐसा लगता है प्रक जैसे प्रकसी र्ाप की काली छाया मँडरा रही हो।
मालती स्ियं भी बहुत गंभीर और नीरस हो गई है।
(iv) सूरदास के िथम पद में भप्रि रस की व्यंजना हुई है। िात्सल्य भाि पर आधाररत इस पद को सूरदास की सबसे उत्तम कृप्रत 'सूरसागर ' से
प्रलया गया है। इस पद में सूरदास जी माँ की ममता का भाि िदप्रर्शत कर रहे हैं। माँ यर्ोदा अपने बेटे कृष्ट्ण को सुबह होने पर जगा रही हैं । िह
कहती हैं प्रक हे ब्रज के राजकुमार! अब जाग जाओ। कमल पुष्ट्प प्रखल गए हैं तथा कुमुद भी बंद हो गए हैं। (कुमुद राप्रत्र में ही प्रखलते हैं, क्योंप्रक
इनका सबं ंध चंद्रमा से है) भौंरे कमल के फूलों पर मंडाराने लगे हैं। सिेरा हो रहा है , मुगे बांग देने लगे हैं और पप्रक्षयों का चहकना र्ुरू हो गया
है। र्ेर की दहाड़ सनु ाई देने लगी है। गोर्ाला में गायें बछड़ों के प्रलए रंभा रही हैं अथाशत् दूध दुहने का समय हो गया है। चंद्रमा छुप गया है तथा
सूरज प्रनकल आया है। नर-नाररयां िात:कालीन गीत गा रहे हैं। इसप्रलए मेरे प्यारे कयामसुंदर! अब तुम उठ जाओ। सूरदास कहते हैं प्रक यर्ोदा
बहुत पुचकार कर /दुलार कर श्रीगोपाल को जगा रही हैं।

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(v) कप्रिता में आरंभ से अंत तक िकृत के सौन्दयश का अनुपम िणशन हुआ है। कप्रि िात काल के आकार्
को प्रिप्रभन्न प्रबंबों के माध्यम से िप्रणशम करते हैं। कप्रि नीला र्ंख, राख से लीपा हुआ चौका। लाल के सर,
खप्रड़या चाक स्लेट आप्रद प्रबंबों से मोर के नन को रूपाप्रयत करते हैं। गप्रतर्ील जीिन के आिकयक तत्िों
को प्रबम्ब बना लेखक िकृप्रत के गप्रतर्ील को िप्रणशत करते हैं। गौर प्रझलप्रमलाती रहे से िातः कालीन ऊर्ा
को रूपाप्रयत कर लेखक चमत्कृत िकृप्रत सौन्दयश िणश को काव्य में गप्रतर्ील तत्िों को प्रबम्ब बना कर
प्रकया है।

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(vi) ‘क्लकश की मौत’ र्ीर्शक कहानी का सारांर् प्रलखें ।

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सम्पूणश क्रांप्रत :-
सारांर्
सम्पूणश क्रांप्रत 5 जून, 1974 को पटना के गाँधी मैदान में जयिकार् नारायण द्वारा प्रदए
गए भार्ण का अंर् है। प्रजसमें जयिकार् नारायण देर् में प्रिद्यमान, गरीबी, भूखमरी,
महँगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के प्रखलाफ देर् की जनता से सम्पूणश क्रांप्रत का
आिाहन करते हैं।
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उन्होंने यूथ फॉर डेमोक्रेसी का आिाहन प्रकया। क्योंप्रक उनके अनुसार भािी पीढ़ी ही देर्
का भप्रिष्ट्य है इसीप्रलए उन्हें ही र्ासन की, सत्ता की और सघं र्श की िागडोर सभ
ं ालनी
चाप्रहए और बुजुगों से मागशदर्शन लेना चाप्रहए। प्रकन्तु युिाओ ं के आग्रह पर जयिकार्
नारायण ने सम्पूणश क्रांप्रत का नेतृत्ि इस र्तश पर स्िीकार प्रकया प्रक िे सनु ेंगे सबकी परन्तु
फै सला उनका होगा और सबको मानना होगा। उन्होंने बताया प्रक मुझे प्रकसी व्यप्रि प्रिर्ेर्
से कोई झगड़ा नहीं हैं। मुझे उन नीप्रतयों से, प्रसद्धांतों से और कायों से झगड़ा है जो गलत है।
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जो प्रसद्धांत गलत होंगे, जो पॉप्रलसी गलत होगी और जो कायश गलत होंगे, उसे चाहे कोई भी
करें मैं उसका प्रिरोध करूँगा।
अंत में जयिकार् नारायण कहते हैं प्रक जो सघं र्श सप्रमप्रतयाँ छात्रों की या जनता की बन गई
हैं या बन रहीं हैं उनका काम होगा र्ासन के गलत नीप्रतयों का प्रिरोध करना, समाज के हर
अन्याय और अनीप्रत के प्रिरुद्ध सघं र्श करना, गाँि के छोटे –छोटे अफसरों जो घुसखोरी करते
हैं, उनका प्रिरोध करना और हर तरह के अन्याय जो मेरी कल्पना है उन अन्यायों को रोकना।

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प्रलए नहीं बप्रल्क सामाप्रजक, आप्रथशक, नैप्रतक क्रांप्रत के प्रलए अथिा सम्पूणश क्रांप्रत के
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अधशनारीश्वर :-
सारांर्
िस्तुत पाठ छायािादोत्तर युग के राष्ट्रीय भािधारा के आधुप्रनक कप्रि और राष्ट्रकप्रि
रामधारी प्रसहं प्रदनकर द्वारा 1952 में प्रलखा गया प्रनबंध है। अधशनारीश्वर भारत का एक
प्रमथकीय ितीक है जो र्ंकर और पािशती का एक कप्रल्पत रूप है। प्रजसका सभ
ं ितः
आधा अंग पुरुर् का और आधा अंग नारी का है।
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अधशनारीश्वर की साथशकता व्यि करने के प्रलए कप्रि ने नर और नारी पर प्रिप्रभन्न लेखकों
की प्रटप्पणीयों का प्रजक्र् प्रकया है और उनका खंडन भी प्रकया है। जैसे प्रक िेमचंद्र ने
कहा है प्रक “पुरुर् जब नारी के गुण लेता है तब िह देिता बन जाता है ; प्रकन्तु नारी जब
नर के गुण सीखती है तब िह राक्षसी हो जाती है। इसीिकार रप्रिन्द्रनाथ टै गोर का मत
था प्रक नारी की साथशकता के िल पथ्ृ िी की र्ोभा और के िल िेम की िप्रतमा बनने में
है। िहीं बनाडश र्ॉ ने नारी को प्रर्कारी और नर को प्रर्कार कहा है।
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उपयशूि सभी प्रिचारों का प्रिरोध करते हुए कप्रि कहते हैं प्रक कृप्रर् के आप्रिष्ट्कार के साथ
मानि सभ्यता का प्रिकास िारंभ हुआ और उसी समय नारी की पराधीनता की र्ुरुआत
हो गई। पुरुर् ने मप्रहलाओ ं का दायरा घर तक सीप्रमत कर प्रदया। स्िंय िक्ष
ृ और नारी को
लता बना प्रदया। जहाँ कहीं कमश का कोई क्षेत्र है , अप्रधकार की कोई भूप्रम है अथिा
सत्ता का साधन है िहाँ पुरुर्ों ने कब्जा कर प्रलया। उसने स्ियं को राजा और नारी को
छाया मात्र बना प्रदया। अतः यह सभ
ं ि नहीं है प्रक कोई नारी प्रकसी नर का प्रर्कार करे।
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कप्रि कहते हैं हालाँप्रक महात्मा बुद्ध और भगिान महािीर ने नाररयों को प्रभक्षण
ु ी होने
का अप्रधकार प्रदया था। प्रकन्तु अप्रधकार देने के पश्चात बुद्ध ने अपने प्रर्ष्ट्य आनंद से कहा
था प्रक मैंने प्रजस धमश की स्थापना की थी िह 5 हजार िर्श चलती प्रकन्तु अब िह मात्र
500 िर्श चलेगी। िहीं प्रदगंबर सम्िदाय के धमाशचायों ने कहा था प्रक नारी को प्रभक्षण
ु ी
होने का कोई लाभ नहीं है। जब िो पुरुर् योप्रन में जन्म लेंगी तभी उन्हें मोक्ष की िाप्रप्त हो
सकती है।
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अंत मे लेखक कहते हैं प्रक पुरुर् और नारी दोनों एक ही द्रव्य की ढली दो िप्रतमाएँ हैं।
इसीप्रलए जो कमशक्षेत्र पुरुर् का है िह नारी का भी है।ित्येक पुरुर् को तथाकप्रथत कहे जाने
िाले नारी के गुण दया, करूणा, माया और सप्रहष्ट्णुता अपनाना चाप्रहए और ित्येक नारी
को तथाकप्रथत पुरुर् के कहे जाने िाले गुणों को स्िीकार करना चाप्रहए। तभी िह अपने में
पूणश हो सकते हैं।
अतः जरूरी है प्रक ित्येक पुरुर् में नारीत्ि जगे और ित्येक नारी में पौरुर् का आभास हो।

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ओ सदानीरा :-
सारांर्
िस्तुत पाठ में जगदीर्चंद्र माथुर गंडक की चंचलता और उसके इदश-प्रगदश प्रिकप्रसत हुए सस्ं कृप्रत
का प्रजक्र करते हैं। लेखक कहते हैं प्रक 12 िीं सदी से लगभग 300 िर्श तक कणाशट िंर् का
राज्य था। िथम राजा नान्यदेि चालुक्य के राजा सोमेश्वर पुत्र आप्रदत्य के सेनापप्रत, नेपाल और
प्रमप्रथला की प्रिजय यात्रा पर आए और प्रफर यही बस गए। सब 1325 ईसिी में कणाशट िंर् के
राजा हररप्रसहं देि को गयासद्दु ीन तुगलक का
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सामना करना पड़ा। उस िि गयासद्दु ीन तुगलक ने िक्ष
ृ ों की कटाई कर हररप्रसहं देि के
महल तक का रास्ता बनाया और हररप्रसहं देि को नेपाल भागना पड़ा।
तब से जो िक्ष
ृ ों की कटाई र्ुरू हुई िह अभी तक बनी हुई है प्रजस कारण सदानीरा
नदी गंडक बरसात के मौसम में भयानक बाढ़ लाती है। जब जंगल घना था तब िक्ष
ृ ों
की जड़ें में पानी रुका रहता था प्रकंतु िक्ष
ृ ों की कटाई के कारण बाढ़ उस इलाके में
भयानक त्रासदी लाती है।
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चंपारण में 19िीं सदी में नील की खेती का प्रिस्तार अंग्रेज ठे केदारों ने प्रकया। उन प्रदनों नील से
ही रंग बनते थे इसीप्रलए प्रिदेर्ों में इसकी मांग बहुत थी।
अंग्रेज प्रकसानों से जबरदस्ती नील की खेती करिाते थे, हर 20 कट्ठा जमीन में 3 कट्ठा में नील
की खेती हर प्रकसान को करनी पड़ती थी इसे ही प्रतनकप्रठया िणाली के नाम से जाना जाता है।
अिैल 1917 में गांधीजी चंपारण आए और नीलहे प्रकसानों की दयनीय प्रस्थप्रत को सध
ु ारने के
प्रलए चंपारण सत्याग्रह प्रकया तथा 3 गांि में आश्रम प्रिद्यालय की स्थापना भी प्रकए -
बड़हरिा, मधुबन और प्रभप्रतहरिा।
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बरहरिा का प्रिद्यालय बिनजी गोखले और उनकी पत्नी अिंप्रतकाबाई गोखले ने चलाया।
मधुबन में गांधी जी ने गुजरात से नरहरीदास पारीख और उनकी पत्नी आपने सेक्रेटरी महादेि देसाई को
भेजा। भीप्रतहरिा के अध्यक्ष थे डॉक्टर देि और सोमन जी, कस्तूरबा गांधी भी यहीं रहती थी। गांधी जी ने
पुंडलीक जी को बेलगांि से बुलाया था, प्रभप्रतहरिा आश्रम में रहकर बच्चों को पढ़ाने के प्रलए और
ग्रामिाप्रसयों के प्रदल से भय को दूर करने के प्रलए।
गंडक नदी घाटी के दोनों और प्रिप्रभन्न आकृप्रत के ताल हैं, इन तालों को चौर और मन कहते हैं। चौर उथले
ताल है प्रजनमें पानी जाड़ों और गप्रमशयों में कम हो जाता है और खे ती भी होती है। मन प्रिर्ाल और गहरे
ताल को कहते हैं। एक ताल है सरैयामन प्रजसका पानी प्रस्थर रहता है।
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प्रकंतु गंडक नदी का जल सप्रदयों से चंचल रहा है। गंडक नदी के जल का सदुपयोग
करने के प्रलए भैंसालोटन में लगभग 3000 फुट लंबा बराज बन रहा है प्रजससे एक
पप्रश्चमी नहर और एक पूिी नहर प्रनकलती है और इसके ऊपर से रेल लाइन ले जाने की
भी सभ
ं ािना है। गंडक नदी को सदानीरा, चक्रा, नारायणी और महागंडक भी कहते हैं।

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प्रर्क्षा : - सारांर्
इस पाठ के अनुसार लेखक प्रर्क्षा का िास्तप्रिक अथश समझने का ियास करते हैं।
लेखक कहते हैं प्रक प्रर्क्षा प्रसफश कुछ परीक्षाएँ उत्तीणश कर लेना या प्रकसी उद्योग में लग
जाना नहीं हैं बप्रल्क प्रर्क्षा का कायश है प्रक िह हमें बचपन से ही जीिन प्रक समपूणश
िप्रक्रया समझने में सहायता करे। चूँप्रक जीिन बहुत बड़ा है और अनन्य रहस्यों से भड़ा
हुआ है। पूरी िकृप्रत ही जीिन है।
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जीिन समुदायों जाप्रतयों और देर्ों का पारस्पररक सघं र्श है, जीिन ध्यान है, धमश है, गूढ़ है, ईष्ट्याश,
महत्िकांक्षा, िासना, भय, प्रचंता और सफलता भी है। और कुछ परीक्षाएँ उत्तीणश कर लेने या प्रकस प्रिर्य
में प्रनपुण होने से ज्यादा कप्रठन है जीिन को समझना है। इसीप्रलए बचपन से ही एक स्ितंत्र िातािरण में
रहना अत्यंत आिकयक है।
प्रर्क्षा का कायश ही है प्रक िह आज पूरी दुप्रनया र्प्रि और िप्रतष्ठा के चाह में एक-दूसरे के साथ संघर्शरत
है। एक ओर सन्यासी और धमशगुरु अपने-अपने अनुयाप्रययों के साथ इस दुप्रनया या दूसरी दुप्रनया में र्प्रि
और िप्रतष्ठा के प्रलए सघं र्श कर रहे हैं िहीं दूसरी ओर समाजिादी इन दोनों का प्रिरोध कर रहा है।

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तुलसीदास :-
सारांर्
िस्तुत िथम पद में कप्रि माता सीता से प्रिनती करते हुए कहते हैं प्रक कभी सही समय
पाकर िभु श्रीराम को मेरी मे कोई भी दुखभरी कहानी सुना कर मेरी मे याद प्रदलाना।
उनसे कहना की आपकी दासी का दास बहुत गरीब है, उसके सारे अंग दुबशल हैं िह
मप्रलन और पापी है, के िल आपका नाम लेकर ले ही पेट भरता है।
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उनके इतना भर सनु लेने से मेरे सारे दुख दूर हो जाएगं े। आपने ित्येक व्यप्रि की
सहायता की है, अगर मैं तुलसीदास भिसागर पार कर जाता हं तो समस्त सस
ं ार िभु
के गुण गाएगा । दूसरे पद में तुलसीदास भगिान राम से िाथशना थश कर रहे हैं और कह
रहे हैं प्रक सबु ह से ही आपके द्वार पर खड़ा हं, रट रहा हं , प्रगड़प्रगड़ा रहा हं, मेरा कोई
प्रठकाना नहीं है। मुझेआपकी भप्रि के एक कौर के अलािा कुछ नहीं चाप्रहए।

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मैंने साधुओ ं पूछा की क्या मेरे जैसे पापी व्यप्रि के प्रलए कहीं कोई जगह है तो उन्होंने
कोर्लराज का नाम बताया। हे कृपाप्रनप्रध मेरा दुख, मेरी मे दररद्रता दूर कीप्रजए, मुझे
अपनी भप्रि रूपी अमतृ का बस एक प्रनिाला दे दीप्रजए।

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अप्रधनायक :- सारांर्
अप्रधनायक कप्रिता रघुिीर सहाय की कप्रिता सग्रं ह आत्महत्या के प्रिरुद्ध से प्रल गई
है। िस्तुत कप्रिता समकालीन राजनीप्रतक व्ययस्था पर व्यंग्य है। अप्रधनायक कप्रिता
में फटा सथ
ु न्ना पहने हरचना जो आजादी के बाद के भारत के प्रिपन्न गरीब नागररक
है। िो राष्ट्रगीत गाता है। उसी के प्रिपरीत आलीर्ान िैभिपूणश जीिन प्रबताते िाले
जनिप्रतप्रनप्रध लोगों से अपना जयकारा करिा रहे है।
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चारों ओर से गरीबी के मार झेलते िे लोग जो अपनी प्रस्थप्रत से परे जन-गण-मन गा रहे
है। सत्तासीन िे लोग अपने बल के जोर पर लोगों से मनमुताप्रबक काम करिाते है।
र्ोर्ण करते है। कप्रि ऐसे सत्तासीन लोगों को महाबली कहते हुए र्ोर्ण का एक
ितीक गढ़ते है। और आम जनों की बदहाली को रेखांप्रकत करते है।

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उर्ा :- सारांर्
उर्ा बीसिीं र्ती के उतराधश के कप्रि र्मर्ेर बहादुर प्रसहं रप्रचत िकृप्रत िणशन से
सबं ंप्रधप्रत कप्रिता है। प्रजसमें कप्रि कहते हैं प्रक भोर का आकार् र्ंख के आकार का
और नीला प्रदख रहा है। भोर का आकार् प्रमट्टी के उस चुल्हे के जैसा गहरा रंग का
प्रदख रहा है जो राख से प्रलया हुआ है और अभी तक गोला पड़ा है।

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उसके बाद जब अरूणोदय होता है, उस समय का िणशन करते हुए कहते है प्रक
आसमान ऐसा प्रदख रहा है जैसे काले पत्थर को प्रकसी ने लाल के सर से धो प्रदया हो ।
अथिा काले स्लेट को लाल चॉक से प्रकसी ने रंग प्रदया हो उसके बाद सयु ोदय का
िणशन करते हुए कप्रि कहते हैं प्रक आसमान ऐसा प्रदख रहा है जैसे नीले जल में प्रकसी
का गोरा र्रीर चमक रहा हो । और इस िकार उर्ा का जादू टुट जाता है और सयु ोदय
हो जाता है।
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हार-जीत :- सारांर्
िस्तुत कप्रिता अर्ोक िाजपेयी के कप्रिता सक
ं लन ‘कहीं नहीं िहीं’ से ली गई एक
गद्य कप्रिता है। इस में कप्रि कहते हैं प्रक र्ासक िगश और आम जनता उत्सि मना हैं।
उन्हें प्रसफश इतना पता है प्रक उनकी सेना युद्ध जीत गई है। प्रकस युद्ध में जीती, प्रकसके
साथ युद्ध था। कहाँ युद्ध था इन सब का प्रकसी को कोई ज्ञान नहीं हैं। िे तो बस
प्रिजयपिश मना रहे हैं प्रकतने सैप्रनक मारे गए इससे इनको कोई फकश नहीं पड़ता।
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बस एक सड़क सींच रहा मर्किाला है जो यह कहता है प्रक हम एक बार प्रफर हार
गए, प्रकन्तु उसकी बात सनु ता कौन है? प्रकसी को कुछ नहीं पता प्रक कौन युद्ध जीता
र्ासक िगश या आम जनता या सेना, िो तो बस प्रिजयपिश मना रहें हैं।

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आओ प्रमलकर प्रबहार की तस्िीर बदलते हैं।

अब English के कारण प्रबहार का कोई


बच्चा भारत में कहीं नहीं प्रपछड़ेगा।
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