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निबंध से

प्रश्न 1.
जिन लोगों के पास आँखें हैं, वे सचमच
ु बहुत कम दे खते हैं-
हे लेन केलर को ऐसा क्यों लगता था?
उत्तर-
हे लेन केलर ने ऐसा इसललए कहा क्योंकक िो लोग ककसी चीि
को हमेशा दे खने के आदी हो िाते हैं वे उनकी तरफ़ अधिक
ध्यान नहीीं दे ते। उनके मन में उस वस्तु के प्रतत कोई
जिज्ञासा नहीीं
प्रश्न 2.
‘प्रकृतत का िाद’ू ककसे कहा गया है ?
उत्तर-
प्रकृतत अपने रूप के आकर्षण से हमें अपनी ओर िाद ू की
तरह आकर्र्षत करती है । प्रकृतत में र्वर्विता है , अलग-अलग
वक्ष
ृ ों की अलग-अलग घुमावदार बनावट और उनकी छाल और
पर्त्तयाँ होना, फूलों का खखलना, कललयों की पींखडु ़ियों की
मखमली सतह, बागों में पे़िों पर गाते पक्षी, कलकल करते
बहते हुए झरने, कालीन की तरह फैले हुए घास के मैदान
आदद प्रकृतत के िाद ू हैं।
प्रश्न 3.
‘कुछ खास तो नहीीं’–हे लेन की लमत्र ने यह िवाब ककस मौके
पर ददया और यह सुनकर हे लेन को आश्चयष क्यों नहीीं हुआ?
उत्तर-
प्रकृतत में चारों ओर दे खने और समझने की बहुत सी चीिें हैं,
कफर भी उनकी लमत्र कह रही है कक मैंने कुछ खास नहीीं
दे खा। लेखखका का मानना है कक वे कुछ भी दे खना ही नहीीं
चाहती। वे उन चीिों की चाह ज़रूर करती हैं िो उनके आस-
पास नहीीं है ।
प्रश्न 4.
हे लेन केलर प्रकृतत की ककन चीज़ों को छूकर और सन
ु कर
पहचान लेती थीीं? पाठ के आिार पर इसका उत्तर ललखो।
उत्तर-
हे लेन केलर प्रकृतत की अनेक चीिों िैसे भोि-पत्र पे़ि की
धचकनी छालीं, ची़ि की खुरदरी छाल, टहतनयों में नई, कललयों
फूलों की पींखडु ़ियों की बनावट को छूकर और सँघकर पहचान
लेती है ।
प्रश्न 5.
िबकक इस तनयामत से जिींदगी को खुलशयों के इींद्रिनुर्ी रीं गों
से हरा-भरा ककया िा सकता है ’। -तम्
ु हारी नज़र में इसका
क्या अथष हो सकता है ?
उत्तर-
हमारी आँखें अनमोल होती हैं। सींसार की सारी खूबसरू ती
आँखों से ही है । िीवन के सभी रीं ग आँखों से ही हैं। अतः यह
जिींदगी की बहुत ब़िी दे न है । इसमें जिींदगी को रीं गीन और
खुशहाल बनाया िा सकता है और अपने सारे दख ु ों को भुलाया
िा सकता है ।
मूल्य परक प्रश्न:
शारीररक रूप से,या ककसी अींग से अक्षम व्यजक्तयों के साथ
ककस तरह का व्यवहार होता है ?समाि में उनकी क्या दिाष है
?अगर आप कभी उनसे लमले तो आपकी क्या प्रततकिया
होगी अपने र्वचार ललखखए |

उत्तर:- शारीररक रूप से अक्षम व्यजक्त समाि से हमददी नहीीं


चाहता , हालात की मिबूरी के चलते मदद अक्सर चाहता है
|लोगों जस्थतत को दे खकर भी िब अनिान बन िाते हैं तब
समाि का चेहरा दे खकर वह व्यजक्त स्वयीं को हीन समझने
लगता है और भी़ि में भी वह अक्षम व्यजक्त अवसादग्रस्त (
dipressed) ददखाई दे ता है ।

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