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Theory of Supply
Theory of Supply
पररिाषा
थॉमस के अनुसार, “वस्तु की पूर्ति वह मात्रा है िो एक बािार में ककसी र्नजित समय पर
ववर्िन्न कीमतों पर वबकने के र्िए प्रस्तुत की िाती है ”
जिस तरह से मांग तथा मांगी गई मात्रा में अंतर होता है उसी प्रकार पूर्ति तथा पूर्ति
की मात्रा में िी अंतर होता है ।
एनातोि मुराद के अनुसार, “ककसी वस्तु की पूर्ति की मात्रा से अर्िप्राय ककसी वस्तु की उस
मात्रा से है जिसे उस व स्तु का ववक्रेता एक र्नजित कीमत पर एक र्नजित बािार में र्नजित
समय पर बेचने के र्िए तै यार है ।”
पूर्ति (Supply)
पाककिंग के अनुसार, “पूर्ति की धारणा से अर्िप्राय ककसी वस्तु की कीमत तथा आपूर्ति की िाने
वािी मात्रा में पाए िाने वािे कुि संबंध से है ।”
उदाहरण के र्िए मान िीजिए बािार में ककसी वस्तु के केवि 2 ववक्रेता फमि A और
फमि B है । ककसी र्नजित कीमत पर फमि A एक वस्तु की 100 इकाइयों की पूर्ति करती है
तथा फमि B 200 इकाइयों की पूर्ति करती है तो बािार पूर्ति या उद्योग पूर्ति 300 इकाइयां
होंगी।
तार्िका से स्पष्ट है कक िैसे-िैसे वस्तु की कीमत बढ़ रही है उसकी पूर्ति िी बढ़ रही
है । िब आइसक्रीम की कीमत ₹5 प्रर्त इकाई होती है तो उत्पादक आइसक्रीम की कोई
िी मात्रा बेचने के र्िए तैयार नहीं होता। कीमत के बढ़कर ₹10 प्रर्त आइसक्रीम होने
पर पूर्ति 10 इकाइयां हो िाती है । इसी प्रकार कीमत के बढ़ते िाने पर पूर्ति िी बढ़ती
िाती है । अतएव व्यविगत पूर्ति अनुसूची वह अनुसूची है िो अन्य बातें समान रहने पर, एक
फमि द्वारा ककसी वस्तु की कीमत तथा बेची िाने वािी मात्रा के संबंध को प्रकट करती है ।
बािार पूर्ति अनुसूची से अर्िप्राय बािार में ककसी ववशेष वस्तुओं का उत्पादन की
आपूर्ति करने वािी सिी फ़मों की पूर्ति की मात्रा के िोड़ से है । ककसी वस्तु का उत्पादन
करने वािे सिी फ़मों के समूह को उद्योग कहते हैं । अतएव बािार पूर्ति अनुसूची, समस्त
उद्योग की पूर्ति अनुसूची होती है ।
तार्िका से स्पष्ट है कक िैसे-िैसे कीमत बढ़ती िाती है , बािार पूर्ति बढ़ती िाती है ।
िब आईसक्रीम की कीमत ₹5 प्रर्त इकाई होती है तब कोई िी फमि आइसक्रीम की
पूर्ति नहीं करती है । कीमत के बढ़कर ₹10 प्रर्त आइसक्रीम हो िाने पर फमि A 10 इकाई
तथा फमि B 5 इकाइयों की पूर्ति करती है । अतः बािार पूर्ति 15 इकाई हो िाती है । इससे
स्पष्ट है कक अन्य बातें समान रहने पर बािार पूर्ति तार्िका ककसी वस्तु की कीमत तथा बेची
िाने वािी मात्रा के संबंध को प्रकट करती है ।
रे खार्चत्र में OX अक्ष पर वस्तु की मात्रा तथा OY अक्ष पर कीमत को दशािया गया है । SS
पूर्ति वक्र है तथा इसका ढिान धनात्मक है । इससे ज्ञात होता है कक कीमत के बढ़ने
पर पूर्ति बढ़ती है । रे खार्चत्र से यह िी ज्ञात होता है कक िब कीमत ₹5 या इससे कम
होगी तो कोई िी तो ववक्रेता वस्तु बेचने के र्िए तैयार नहीं होता है । जिस कीमत के
नीचे ववक्रेता वस्तु को बेचने के र्िए तैयार नहीं होता उसे सुरजक्षत कीमत अथवा न्यूनतम पूर्ति
कीमत कहते हैं ।
रे खार्चत्र में दो फ़मों A और B के व्यविगत पूर्ति वक्र को प्रकट ककया गया है तथा इन
दोनों का योग बािार पूर्ति वक्र होता है । बािार पूर्ति वक्र बािार में ककसी एक वस्तु
का उत्पादन करने वािे सिी फ़मों के पूर्ति वक्रों का समस्तरीय िोड़ होता है ।
(यहााँ Sx =वस्तु x की पूर्ति, Px= वस्तु x की अपनी कीमत, Po=अन्य वस्तुओं की कीमत, Nf=
फ़मों की संख्या, G= फ़मों का उद्दे श्य, Pf=उत्पादन के साधनों की कीमत, T=तकनीक, E x
=िववष्य में कीमत संिावना, G p =सरकारी नीर्त)
पूर्ति फिन या पूर्ति के र्नधािरक तत्व
ककसी वस्तु की अपनी कीमत और उसकी पूर्ति में प्रत्यक्ष संबंध होता है । सामान्यतः
ककसी वस्तु की अपनी कीमत बढ़ने से उसकी पूर्ति बढ़ती है और कीमत कम होने से
पूर्ति िी कम होती है ।
ककसी वस्तु की पूर्ति अन्य वस्तुओं की कीमतों पर िी र्नििर करती है । अन्य वस्तुओं
की कीमत में वृवि के फिस्वरूप वे वस्तुएं फ़मों के र्िए िािदायक हो िाएंगी। इस
कारण से फ़में उनकी अर्धक पूर्ति करें गी। इसके ववपरीत अन्य वस्तुओं की कीमत
कम होने से कम िािदायक होने की दशा में फ़में कम पूर्ति करें गी।
ककसी वस्तु की बािार पूर्ति फ़मों की संख्या पर िी र्नििर करती है । फ़मों की संख्या
अर्धक होने पर पूर्ति अर्धक और फ़मों की संख्या कम होने पर पूर्ति िी कम होती
है ।
यकद फमि का उद्दे श्य िाि अर्धकतम करना है तो बािार में उस वस्तु की पूर्ति कम
होती है । इसके ववपरीत यकद फ़मि का उद्दे श्य वबक्री अर्धकतम करना हो तो कम
कीमत पर िी अर्धक पूर्ति की िाएगी।
उत्पादन के साधनों की कीमत बढ़ िाने से उत्पादन िागत बढ़ िाती है । इसके
फिस्वरूप पूर्ति में कमी होती है । इसके ववपरीत उत्पादन के साधनों की कीमत कम
होने पर उत्पादन की िागत कम होने से उस वस्तु की पूर्ति में वृवि होती है ।
िववष्य में वस्तु की कीमतों में होने वािे पररवतिन की संिावना का वतिमान पूर्ति पर
प्रिाव पड़ता है । यकद िववष्य में कीमत बढ़ने की संिावना हो तो वतिमान में पूर्ति
घाट िाती है । इसके ववपरीत यकद िववष्य में कीमतों में कमी की संिावना हो तो
वतिमान पूर्ति बढ़ िाती है ।
डू िे के अनुसार, “पूर्ति का र्नयम यह बतिाता है कक अन्य बातें समान रहने पर जितनी कीमत
अर्धक होती है उतनी ही पूर्ति अर्धक होती है या जितनी कीमत कम होती है उतनी ही पूर्ति कम
होती है ।
• 1. उत्पादन के कारकों की पूर्ति तथा कीमत में कोई पररवतिन नहीं होता।
• 2. उत्पादन की तकनीक में कोई पररवतिन नहीं होता।
• 3. फ़मि के उद्दे श्य में कोई पररवतिन नहीं होता।
• 4. अन्य वस्तुओं की कीमत में कोई पररवतिन नहीं होता।
• 5. िववष्य में वस्तु की कीमत में पररवतिन होने की संिावना नहीं होती।
इसके ववपरीत पूर्ति में पररवतिन से अर्िप्राय वस्तुओं की अपनी कीमत के अर्तररि
पूर्ति के अन्य र्नधािररत तत्वों में पररवतिन के कारण पूर्ति की मात्रा में होने वािी कमी
या वृवि से है । इसे पूर्ति वक्र में के जखसकाव के रूप में व्यि ककया िाता है - आगे की
ओर जखसकाव या पीछे की ओर जखसकाव।
िब वस्तु की अपनी कीमत में पररवतिन के फिस्वरूप इसकी पूर्ति में पररवतिन होता
है तो उसे पूर्ति वक्र पर ववर्िन्न वबंदओ
ु ं के रूप में व्यि ककया िाता है । इसे पूर्ति वक्र
पर संचिन या पूर्ति की मात्रा में पररवतिन कहा िाता है । वस्तु की अपनी कीमत में
वृवि के फिस्वरुप पूर्ति की मात्रा में वृवि होना पूर्ति का ववस्तार (Extension of supply)
कहिाता है और वस्तु की अपनी कीमत में कमी के फिस्वरूप पूर्ति की मात्रा में कमी
होना पूर्ति का संकुचन (Contraction of supply) कहिाता है ।
इस जस्थर्त में नया पूर्ति वक्र प्रारजम्िक पूर्ति वक्र के बाई ओर ऊपर या दाई ओर
नीचे जखसक िाता है । पूर्ति वक्र का यह जखसकाव ककसी वस्तु की अपनी कीमत में
जस्थर रहने पर उसकी पूर्ति को प्रिाववत करने वािे अन्य तत्व िैसे तकनीक में
पररवतिन इत्याकद के फिस्वरूप उत्पन्न होता है । यह पररवतिन पूर्ति के स्तर में
पररवतिन कहिाता है । इसके फिस्वरूप पूर्ति वक्र बायीं या दाईं ओर जखसक िाता है ।
इस प्रकार के
पररवतिनों को पूर्ति में वृवि या कमी पूर्ति में कमी कहा िाता है यह कीमत के
अर्तररि अन्य तत्वों में पररवतिन के कारण होता है ।
अन्य बातें समान रहने पर, िब ककसी वस्तु की अपनी कीमत बढ़ने के फिस्वरूप
उसकी पूर्ति अर्धक हो िाती है तो इस बढ़ी हुई पूर्ति को पूर्ति का ववस्तार कहा िाता
है । इसे र्नम्न तार्िका और रे खार्चत्र द्वारा स्पष्ट ककया िा सकता है -
रे खार्चत्र में आइसक्रीम की कीमत ₹1 तथा उसकी पूर्ति एक इकाई को वबंद ु A द्वारा
दशािया गया है िब आइसक्रीम की कीमत बढ़ कर ₹5 हो िाती है तो उसकी पूर्ति का
ववस्तार 5 इकाई हो िाता है । इसे वबंद ु B से दशािया गया है । उत्पादक पूर्ति वक्र के A
वबंद ु से B वबंद ु पर पहुंच िाता है । अतः एक पूर्ति वक्र के नीचे वबंद ु से ऊंचे वबंद ु पर
पहुंचना पूर्ति का ववस्तार कहिाता है ।
अन्य बातें समान रहने पर, िब ककसी वस्तु की अपनी कीमत के कम होने के
फिस्वरूप उसकी पूर्ति कम हो िाती है तो पूर्ति में होने वािे इस कमी को पूर्ति का
संकुचन कहा िाता है । इसे र्नम्न तार्िका और रे खार्चत्र की सहायता से स्पष्ट ककया
िा सकता है -
ज्यादा कीमत होने पर ककसी वस्तु की अर्धक पूर्ति क्यों होती है ? (Why more quantity is
offered at higher price)
पूर्ति में वृवि तथा पूर्ति में कमी अथवा पूर्ति में पररवतिन
(Increase in supply and decrease in supply or
Change in supply)
िब ककसी वस्तु की अपनी कीमत के अर्तररि अन्य तत्व िैसे िववष्य की
संिावनाएं, तकनीक या फमि के िक्ष्य में पररवतिन होने के कारण उसकी पूर्ति में
पररवतिन होता है तो उसे पूर्ति की वृवि या कमी कहते हैं । पूर्ति में वृवि या कमी पूर्ति
वक्र के नीचे की ओर या ऊपर की ओर जखसकाव द्वारा प्रकट की िाती है ।
वस्तु की अपनी कीमत के समान रहने पर यकद ककसी वस्तु की पूर्ति बढ़ िाती है
अथवा कीमत कम होने पर पूर्ति समान रहती है तो इसे पूर्ति में वृवि कहा िाता है ।
अतएव पूर्ति में वृवि दो प्रकार के हो सकते हैं -
ककसी वस्तु की अपनी कीमत समान रहने पर यकद ककसी वस्तु की पूर्ति कम हो
िाती है अथवा अपनी कीमत बढ़ने पर िी पूर्ति समान रहती है तो इसे पूर्ति में कमी
कहा िाता है । पूर्ति में वृवि की तरह आपूर्ति में कमी िी दो प्रकार की होती है -
प्रौद्योर्गकी या तकनीक में सुधार होने से उत्पादन के समान तथा औसत िागत घटती
है , क्योंकक पहिे से कम साधन िगाकर अर्धक मात्रा में उत्पादन प्राप्त ककया िा
सकता है । अतः उत्पादक प्रचर्ित कीमत पर अर्धक पूर्ति करने के र्िए तैयार हो
िाएंगे। फिस्वरूप पूर्ति वक्र आगे को दाईं ओर जखसक िाता है यह पूर्ति की वृवि की
जस्थर्त को प्रकट करता है इसे हम र्नम्न रे खार्चत्र से समझा सकते हैं -
आगतों की कीमतों में पररवतिन का पूर्ति वक्र पर प्रिाव (Effect of change in
input price on supply curve)
आगतो या साधनों की कीमतों में वृवि अथवा कमी हो सकती है । आगतो की कीमतों में
वृवि के फिस्वरुप सीमांत तथा औसत िागत बढ़ती है । अतः उत्पादक प्रचर्ित कीमत
पर कम पूर्ति करते हैं । पूर्ति वक्र पीछे की ओर बाई ओर जखसक िाता है । यह पूर्ति में
कमी को प्रकट करता है । इसके ववपरीत यकद आगतों की कीमत र्गर िाती है तो
सीमांत तथा औसत िागत घट िाती है । पररणामस्वरूप उत्पादक प्रचर्ित कीमत पर
अर्धक पूर्ति करने के योग्य हो िाता है । इस जस्थर्त में पूर्ति वक्र आगे की ओर दायीं
ओर जखसक िाता है अथाित पूर्ति में वृवि हो िाती है । इसे र्नम्न रे खार्चत्र से स्पष्ट
ककया िा सकता है -
उत्पादन कर में पररवतिन का पूर्ति वक्र पर प्रिाव (Excise tax and supply curve)
संबंर्धत वस्तुओं की कीमत में पररवतिन का पूर्ति वक्र पर प्रिाव Price of related
goods and supply curve)
प्रर्तस्थापन वस्तुओं की कीमत में पररवतिन का वस्तु की पूर्ति पर ववशेष प्रिाव पड़ता
है । उदाहरण के र्िए यकद चाय के दाम बढ़ िाते हैं तो कॉफी के उत्पादक अपने
स्टॉक को रोक िेंगे और कॉफी की कीमत में वृवि की प्रतीक्षा करें गे। कॉफी की
प्रचर्ित कीमत पर वह इसकी कम मात्रा बेचेंगे इसके फिस्वरूप पूर्ति घट िाएगी और
पूर्ति वक्र पीछे की ओर जखसक िाता है । इसके ववपरीत चाय की कीमत घट िाने पर
उत्पादक अपने स्टाफ को िल्दी से िल्दी बेचना चाहें गे अन्यथा क्रेता कॉफी की अपेक्षा
चाय की मांग करने िगेंगे। अतः प्रचर्ित कीमत पर कॉफी के अर्धक मात्रा को वबक्री
के र्िए प्रस्तुत ककया िाएगा। इसके फिस्वरूप पूर्ति बढ़ िाएगी और पूर्ति वक्र आगे
की ओर जखसक िाता है इसे र्नम्न रे खार्चत्र द्वारा स्पष्ट ककया िा सकता है -
अर्त अल्पकाि जिसे बािार अवर्ध या बािार काि िी कहा िाता है । अर्त अल्प
काि या बािार अवर्ध समय की उस अवर्ध को कहते हैं जिसमें ककसी िी तरह
उत्पादन में पररवतिन नहीं ककया िा सकता। अतः पूर्ति को अर्धक से अर्धक उसके
वतिमान स्टॉक तक ही बढ़ाया िा सकता है ।
उदाहरण के र्िए एक मुगी-फामि में अर्त अल्पकाि में अंडों की पूर्ति उतनी ही होती
हैं जितने अंडे स्टॉक में होते हैं । ककसान के िाख र्नवेदन करने पर िी मुर्गियां अर्धक
अंडे नहीं दें गी। वास्तव में नाशवान वस्तुएं िैसे हरी सजब्ियां, दध
ू की अर्त अल्प काि
में पूर्ति पूणत
ि या बेिोचदार रहती है । इसे एक खड़ी रे खा द्वारा पूणत
ि या बेिोचदार पूर्ति के
रूप में प्रकट ककया िा सकता है ।
दीघिकाि समय की उस अवर्ध को कहते हैं जिसमें उत्पादन के सिी साधनों में
पररवतिन ककया िा सकता है । तकनीक सुधार िी इसी अवर्ध में महत्वपूणि िूर्मका
र्निाते हैं । अतः पूर्ति वक्र मांग वक्र के अनुसार पररवर्तित हो सकता है । सरि शब्दों में
दीघिकाि समय कक वह अवर्ध है जिसमें पूर्ति को मांग के अनुसार,उत्पादन कारकों में
पररवतिन करके घटाया बढ़ाया िा सकता है ।
दीघिकाि में पूर्ति वक्र अल्पकाि की तुिना में कीमत के पररवतिन के प्रर्त बहुत
संवेदनशीि होती है । अल्पकाि की तुिना में पूर्ति वक्र में जखसकाव की बहुत अर्धक
प्रवृवि पाई िाती है । दीघिकाि पूर्ति वक्र की तुिना में अल्पकाि पूर्ति वक्र बहुत
अर्धक खड़ी ढाि वािे वक्र होती है । अतः कहा िा सकता है कक दीघिकािीन पूर्ति वक्र,
अल्पकािीन पूर्ति वक्र की तुिना में अर्धक चपटी वक्र है ।
सैमुअल्सन के अनुसार, “पूर्ति की िोच कीमत में होने वािे पररवतिन के फिस्वरुप पूर्ति में होने
वािे पररवतिन की प्रर्तकक्रया की मात्रा है ।”
प्रो. वबिास के अनुसार, “पूर्ति की िोच अर्िप्राय वस्तु की पूर्ति में होने वािे प्रर्तशत
पररवतिन को कीमत में होने वािे प्रर्तशत पररवतिन से िाग दे ने से है ।”
इस ववर्ध के अनुसार पूर्ति की िोच वस्तु की पूर्ति की मात्रा में प्रर्तशत पररवतिन तथा
कीमत में प्रर्तशत पररवतिन का अनुपात है ।
पूर्ति की िोच (Es)=पूर्ति की मात्रा में प्रर्तशत पररवतिन/कीमत में प्रर्तशत पररवतिन
िब ककसी वस्तु की पूर्ति में पररवतिन उसी अनुपात में होता है जिस अनुपात में
उसकी कीमत में पररवतिन होता है तो उसे पूर्ति की इकाई िोच कहा िाता है ।
उदाहरण के र्िए यकद कीमत में 20% की वृवि होने से उसकी पूर्ति में िी 20% पररवतिन
हो िाए तो पूर्ति की िोच इकाई के बराबर होगी। इस जस्थर्त में पूर्ति वक्र मूि वबंद ु
(O) से 45 कडग्री का कोण बनाता है ।
इकाई से अर्धक िोचदार पूर्ति (Greater than unitary elasticity of supply or elastic
supply)
इकाई से अर्धक िोचदार पूर्ति उस समय होती है िब कीमत में जितना पररवतिन हो
पूर्ति में उससे ज्यादा पररवतिन होता है । उदाहरण के र्िए कीमत में 20% की वृवि होने
से पूर्ति में 30% की वृवि हो िाए तो यह इकाई से अर्धक िोचदार पूर्ति दशािता है । इस
जस्थर्त में पूर्ति वक्र OY अक्ष पर ककसी वबंद ु से शुरू होता है ।
3- इकाई से कम िोचदार/बेिोचदार पूर्ति (Less than unitary elasticity of supply or
inelastic supply)
िब कीमत में पररवतिन के अनुपात में पूर्ति में कम पररवतिन होता है तो इसे इकाई
से कम या बेिोचदार पूर्ति की जस्थर्त कहा िाता है । उदाहरण के र्िए कीमत में 20%
की वृवि होने पर पूर्ति में केवि 15% की वृवि हो तो इसे इकाई से कम िोचदार पूर्ति
कहा िाएगा। इस जस्थर्त में पूर्ति वक्र OX अक्ष पर ककसी वबन्द ु से शुरू होता है ।
अनुसार घटाया बढ़ाया नहीं िा सकता है । इस जस्थर्त में पूर्ति वक्र OY अक्ष के
समानांतर होता है ।
इस जस्थर्त में पूर्ति वक्र को OX अक्ष के समानांतर होता है । सामान्यतः पूणि प्रर्तयोर्गता
बािार में पूर्ति वक्र इस प्रकार का होता है ।
यकद ककसी वस्तु के उत्पादन के र्िए आवश्यक आगत (कच्चा माि) सामान्य रूप से
उपिब्ध होते हैं तो उस वस्तु की पूर्ति िोचदार होती है । इसके ववपरीत यकद ककसी
वस्तु के उत्पादन के र्िए ववशेष आगतों की आवश्यकता होती है तो उसकी पूर्ति
बेिोचदार होती है ।
ककसी वस्तु की पूर्ति पर प्राकृ र्तक बाधाओं का िी प्रिाव पड़ता है । प्रकृ र्त से प्राप्त
आगतों पर प्राकृ र्तक प्रर्तबंध होते है । उदाहरण के र्िए इमारती िकड़ी के पेड़ तैयार
होने में कई वषि का समय िगने के कारण उसकी पूर्ति में वृवि आसानी से नहीं की
िा सकती है ।
यकद ककसी वस्तु का उत्पादक िोजखम उठाने का इच्छुक है तो पूर्ति िोचदार होती है ।
इसके ववपरीत िोजखम न उठाने की दशा में पूर्ति बेिोचदार होती है ।
यकद उत्पादन में बढ़ती िागतों का र्नयम िागू हो रहा होता है तो वस्तु की पूर्ति
बेिोचदार होती है ।
पूर्ति की िोच पर समय तत्व का बहुत प्रिाव पड़ता है । अर्त अल्पकाि में पूर्ति में
कोई पररवतिन करना संिव नहीं होता, अतः पूर्ति की िोच बेिोचदार होती है । अल्पकाि
में उत्पादन को कुछ सीमा तक ही पररवर्तित ककया िा सकता है , अतः पूर्ति कम
िोचदार होती है । इसके ववपरीत दीघिकाि में उत्पादन के सिी कारक पररवतिनशीि
होने के कारण पूर्ति अर्धक िोचदार होती है ।
माशिि द्वारा प्रर्तपाकदत समय तत्व की धारणा वास्तव में पूर्ति की िोच पर आधाररत
है । अर्त अल्प काि में पूर्ति के अर्धक बेिोचदार होने के फिस्वरूप कीमत र्नधािरण
पर मांग का अर्धक प्रिाव पड़ता है । दीघिकाि में पूर्ति का अर्धक िोचदार होने के
फिस्वरूप कीमत पर पूर्ति का अर्धक प्रिाव पड़ता है ।
2) साधन कीमत र्नधािरण तथा पूर्ति की िोच– (Factor pricing and elasticity of
supply)