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सत्र 5 : अध्याय 5

कर्म योग - कृष्ण भावना भक्ति कर्म

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गीता मे ड
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ईज़ी
अमरेंद्र गौर दास

अंतर्राष्ट्रीय श्रीकृ ष्णभावनामृत संघ


संस्थापकाचार्य कृ ष्णकृ पामूर्ति श्रीमद श्री ए सी भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद
भक्त; मित्र; कहाँ से प्राप्ति होगी ? परंपरा
पात्र कौन है?
जिज्ञास;ु आज्ञाकारी
इसकी पहचान भगवान कब अवतार लेते हैं ?
दिव्य ज्ञान क्या है ? भगवान क्यँू अवतार लेते हैं ?
क्षमता – चरित्र (4.1 – 4.10)
इस ज्ञान की प्राप्ति का क्या फल है?
का संतल
ु न यज्ञ करने के
सर्वोत्तम यज्ञ लिए गरुु की
योग्यता श्री कृष्ण भ्रम
अध्याय मिटाते हैं समीक्षा
यज्ञादि 4 (4.11 – 4.15) अध्याय 4
(4.25– 4.42)
कर्म
महामंत्र का जाप कर्म फलों का अतं विकर्म
(4.16– 4.24)
शास्त्रों का अध्ययन
इन्द्रियों पे सयं म अकर्म

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समीक्षा - अध्याय 5

तीन कर्ता अष्टांग योग का


कमल का पत्ता समान दृष्टि शान्ति सत्रू
(5.1 – 5.12) (5.13 – 5.16) (5.17– 5.26) परिचय (5.29)
(5.27-5.28)

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श्लोक 5.10
ब्रह्मण्याधाय कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा करोति यः ।
लिप्यते न स पापेन पद्मपत्रमिवाम्भसा ।।
अनुवाद
जो व्यक्ति कर्मफलों को परमेश्वर को समर्पित कर के ,
आसक्ति रहित हो कर, अपना कर्म करता है, वह पाप
कर्मों से उसी प्रकार अप्रभावित रहता है, जिस प्रकार
कमलपत्र जल से अस्पश्ृ य रहता है।

कमल का पत्ता (5.1 – 5.12) गीता मेड ईज़ी (Gita Made Easy) www.studygita.com
कमल का पत्ता
कर्तव्य पालन करें

फल की इच्छा ना करें

इन्द्रियों पर सयं म रखें


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कर्तव्य पालन करें
भक्तों का संघ
शास्त्रों का अध्ययन
(भगवद गीता, श्रीमद भागवतम)

भगवान श्री कृष्ण का नाम जप


क्लेषाग्नि और शभु दा
प्रसाद सेवन
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कर्तव्य पालन करें
।। अनमोल शिक्षा ।।

अध्यात्म मार्ग पर आगे बढ़ने से पाप


कर्म अपने आप ही हमें छोड़ देते हैं।
हमें इसके लिए कोई भी परिश्रम नहीं
करना पड़ता है।
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कर्तव्य पालन करें
फल की इच्छा ना
करें

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।। अनमोल शिक्षा ।।
कर्म फल से जितनी आसक्ति होगी,
जीवन उतना ही अशांत रहेगा।
हर परिस्थिति में,
लाभ-हानि देखने से व्यक्ति सदैव चिति
ं त
रहता है।
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फल की इक्षा ना करें
इन्द्रियों पर सयं म

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इन्द्रियों पर सयं म
धर्म के चार स्तम्भ
दया सत्य तप पवित्रता

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इन्द्रियों पर सयं म
दया सत्य तप पवित्रता
अस्तव्यस्तता

मांसाहार सेवन द्युतक्रीडा नशीले पदार्थ, मदिरा, पर-स्त्री / पुरुष


धूम्रपान आदि से सम्बन्ध चार नियम

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इन्द्रियों पर सयं म
।। अनमोल शिक्षा ।।

पाप नहीं करें गे तो उसका


दण्ड भी नहीं मिलेगा!

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इन्द्रियों पर सयं म
श्लोक 5.13
सर्वकर्माणि मनसा सन्ं यस्यास्ते सख ु ं वशी ।
नवद्वारे परु े देही नैव कुर्वन्न कारयन् ।।
अनुवाद
जब देहधारी जीवात्मा अपनी प्रकृति को
वश में कर लेता है, और मन से समस्त कर्मों का परित्याग
कर देता है, तब वह नौ द्वारों वाले नगर (भौतिक शरीर) में
बिना कुछ किये कराये सख ु पर्वू क रहता है।
तीन कर्ता (5.13 – 5.16) गीता मेड ईज़ी (Gita Made Easy) www.studygita.com
9 द्वारों की नगरी
दो कान दो
नथुने

दो नेत्र एक मुंह

उपस्थ एक गुदा

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9 द्वारों की नगरी
इस नगरी का उद्देश्य?
भोग करने की सवि
ु धा

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9 द्वारों की नगरी
शरीर क्यों बदलता रहता है ?

सख
ु की निरंतर खोज
अस्थायी नगरी आधुनिक
जीवन शैली

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9 द्वारों की नगरी
इस प्रक्रिया का परिणाम
कष्ट
अल्पकालिक सख

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9 द्वारों की नगरी
यह नगरी कै से प्राप्त होती है ?

हमारी इच्छाओ ं पर निर्भर

हमारी योग्यता पर निर्भर (कर्म)

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9 द्वारों की नगरी
इस नगरी का स्वभाव
बिना नियंत्रण के चलना

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9 द्वारों की नगरी
आत्मा
आनंद की आकांक्षा
इच्छा अनसु ार पाप पण्ु य की प्राप्ति

"मैं नगरी हू"ँ - एक भ्रम

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।। अनमोल शिक्षा ।।

मेरे सखु या मेरे दख


ु …
ये मेरा चयन है।

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आत्मा
।। अनमोल शिक्षा ।।

प्रकृति के नियम अत्यधिक


कठोर हैं ।
अपने रक्षक स्वयं बनें ।
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आत्मा
परमात्मा
नगरी की समस्त सामग्री
का पर्ति
ू कर्ता
आत्मा का स्रोत

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परमात्मा
परमात्मा
मनष्ु य की अर्ज़ी, ईश्वर की मर्ज़ी
- इसका आधार -
कर्म
इच्छा

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परमात्मा
।। अनमोल शिक्षा ।।
भगवान निर्दोष हैं;
वे के वल सहायता करते हैं ।
इच्छा हमारी और कर्म भी हमारे ।

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परमात्मा
श्लोक 5.18
विद्याविनयसपं न्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि ।
शनि
ु चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः। ।
अनुवाद
विनम्र साधपु रुु ष अपने वास्तविक ज्ञान के कारण एक
विद्वान् तथा विनीत ब्राह्मण, गाय, हाथी, कुत्ता, तथा
चाण्डाल को समान दृष्टी (समभाव) से देखते हैं।

समान दृष्टि (5.17 – 5.26) गीता मेड ईज़ी (Gita Made Easy) www.studygita.com
समान दृष्टि प्रभाव

परिणाम

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प्रभाव
तीन कर्ताओ ं का स्पष्ट दर्शन

प्रत्येक जीव में परमात्मा की


उपस्थिति का अनभु व

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प्रभाव
परिणाम - स्वयं पर

स्वाभाविक सहनशीलता
वास्तविक अनकु म्पा (अदं र – बाहर)
अपने से और दसू रों से अवास्तविक
अपेक्षा का त्याग

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परिणाम (स्वयं पर)
परिणाम - पर दर्शन

वास्तविक भाईचारा

समस्त जीवों में परमात्मा का दर्शन

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परिणाम (पर दर्शन)
अष्टांग योग का परिचय
अष्टांग योग का परिचय (5.27 – 5.28) गीता मेड ईज़ी (Gita Made Easy) www.studygita.com
श्लोक 5.29
भोक्तारं यज्ञतपसां सर्वलोकमहेश्वरम् ।
सहृु दं सर्वभतू ानां ज्ञात्वा मां शान्तिमच्ृ छति ।।
अनुवाद
मझु े समस्त यज्ञों तथा तपस्याओ ं का परम भोक्ता,
समस्त लोकों तथा देवताओ ं का परमेश्वर एवं समस्त
जीवों का उपकारी एवं हितैषी जानकर मेरे भावना मतृ
से पर्णू परुु ष भौतिक दख
ु ों से शांति - लाभ करता है।

शान्ति सत्रू (5.29) गीता मेड ईज़ी (Gita Made Easy) www.studygita.com
भगवान को जानें भगवान नहीं

शांति को शांति नहीं


जानें

गीता मेड इजी (Gita Made Easy) www.studygita.com शान्ति सत्रू


भोक्तारं यज्ञतपसां
(समस्त यज्ञ और तपस्या के परम
भोक्ता)
सर्वलोकमहेश्वरम्
(सम्पर्णू लोकों के महान ईश्वर)
भगवान के अनसु ार सहृु दं सर्वभतू ानां
भगवान को जानें (हर प्राणी के ह्रदय में परमात्मा
रूप में स्थित)
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भोक्तारं यज्ञतपसां …
प्रत्येक वस्तु भगवान की
दिव्य सेवा में समर्पित करें

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भगवान के अनसु ार भगवान को जानें
।। अनमोल शिक्षा ।।

भोग की इच्छा मझु े कर्मफल


के चक्रव्यहू में बांधती है।

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भगवान के अनसु ार भगवान को जानें
सर्वलोकमहेश्वरम् …
भगवान श्री कृष्ण से बढ़ कर कोई
नहीं है - वे समस्त देवताओ ं से
महान हैं
समस्त लोकों तथा देवताओ ं के
ईश्वर व स्वामी
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भगवान के अनसु ार भगवान को जानें
।। अनमोल शिक्षा ।।

हमारा स्वामित्व अस्थायी है ।

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भगवान के अनसु ार भगवान को जानें
सहृु दं सर्वभतू ानां …
समस्त जीवों के परम
हितैषी एवं उपकारी

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भगवान के अनसु ार भगवान को जानें
।। अनमोल शिक्षा ।।
यदि भगवान सब के मित्र
हैं, तो मेरा कोई शत्रु कै से
हो सकता है ?

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भगवान के अनसु ार भगवान को जानें
कर्तव्य पालन धर्म के 4 स्तम्भ -
भगवान नहीं - शांति नहीं करें फल की इच्छा ना करें
भगवान के अनसु ार कसी के भी टूटने से
भगवान को जानें गड़बड़
कमल का पत्ता
(5.1 – 5.12) इन्द्रियों पर संयम रखें
अष्टांग योग में
शान्ति सत्रू

समीक्षा
• सब कुछ भगवान प्रवेश
(5.29)
की सेवा में समर्पित (5.27-5.28) तीन कर्ता
• सभी लोकों तथा अध्याय (5.13 – 5.16) अध्याय
देवताओ ं के स्वामी अष्टागं योग का 5
• सभी के शभु चितं क परिचय
5
(5.27-5.28)
शरीर आत्मा परमात्मा
स्वयं पर प्रभाव समान दृष्टि
(5.17– 5.26) उद्देश्य ; नया शरीर क्यों मिलता है ?; शरीर के साथ हमें क्या
पर दर्शन मिलता है ?; शरीर कै से मिलता है ?; शरीर की प्रकृति
परिणाम
(दसू रों पर)
धन्यवाद

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