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Gita Made Easy - Chapter - 2
Gita Made Easy - Chapter - 2
गीता का सारांश
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गीता मे ड
Gita Made Easy
ईज़ी
अमरेंद्र गौर दास सुकीर्ति माधवी देवी दासी
समीक्षा
(अध्याय 1)
1. यद्ध
ु की भमि
ू का
(1.1 – 1.11)
धतृ राष्ट्र की मानसिकता पक्षपातपूर्ण
मेरी वास्तविक
सक
ं ट नियत्रं ण दो कर्तव्य सदैव प्रसन्नचित
(2.1 – 2.10) पहचान (2.31– 2.53) (2.54– 2.72)
(2.11 – 2.30)
असमजं स शरणागति
ज्ञान की प्राप्ति
गीता मेड ईज़ी (Gita Made Easy) www.studygita.com मेरी वास्तविक पहचान
मत्ृ यु के पशचात - सक्ष्ू म शरीर और आत्मा
नए शरीर में प्रवेश करते हैं
स्वयं की सरं चना (उदाहरण : परु ाने वस्त्र और नए वस्त्र)
सक्ष्ू म शरीर
आत्मा सक्ष्ू म शरीर
स्थल
ू शरीर (मन; बद्धि
ु तथा अहक
ं ार )
(पथ्ृ वी;जल;अग्नि;वायु एवं आकाश )
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श्लोक 2 .20
न जायते म्रियते वा कदाचि-
न्नायं भत्ू वा भविता वा न भयू ः ।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं परु ाणो-
न हन्यते हन्यमाने शरीरे ॥
अनुवाद
आत्मा के लिए किसी भी काल में न तो जन्म है ना
मत्ृ य।ु वह न तो कभी जन्मा है,न जन्म लेता है और न
जन्म लेगा। वह अजन्मा, नित्य शास्वत तथा परु ातन है।
शरीर के मारे जाने पर वह मारा नहीं जाता।
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आत्मा की उपस्थिति का साक्ष्य
सामान्य बोध
सदं हे पर्णू
मत्ृ यु के समीप होने का अनभु व (NDE)
शरीर से बाहर होने का अनभु व (OBE)
पर्वू जन्म की स्मति
ृ
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गीता मेड ईज़ी (Gita Made Easy) www.studygita.com मेरी वास्तविक पहचान
।। अनमोल शिक्षा ।।
सदं हे पर्णू मैं अपने शरीर को हानि पहुचं ा
कर, अथवा उसका विनाश
कर के , कष्टों से मक्ति
ु नहीं पा
सकता ।
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श्लोक 2 .47
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।
मा कर्मफलहेतर्भुु र्मा ते सगं ोऽस्त्वकर्मणि ॥
अनुवाद
तम्ु हें अपना कर्म (कर्त्तव्य) करने का अधिकार है, किन्तु
कर्म के फलों के तमु अधिकारी नहीं हो। तमु ना तो
कभी अपने आप को अपने कर्मों के फलों का कारण
मानो, न ही कर्म न करने में कभी आसक्त होओ।
दो कर्तव्य (2.31– 2.53) गीता मेड ईज़ी (Gita Made Easy) www.studygita.com
शरीर के प्रति कर्त्तव्य आत्मा के प्रति कर्त्तव्य
परिवार का पोषण अथवा नौकरी भगवान श्री कृष्ण का नाम जप
(स्वधर्म ) भगवद गीता का पाठ (सनातन धर्म)
सदैव प्रसन्नचित (2.54– 2.72) गीता मेड ईज़ी (Gita Made Easy) www.studygita.com
सफलता और आनंद की कुंजी
सर्वोत्तम रस
का स्रोत है…
श्रीमद् भगवद् गीता
गीता मेड ईज़ी (Gita Made Easy) www.studygita.com सदैव प्रसन्नचित
सर्वोत्तम रस
श्लोक 2 .62 श्लोक 2 .63
ध्यायतो विषयान्पसंु ः सगं स्तेषपू जायते । क्रोधादभ् वति सम्मोहः सम्मोहात्स्मति
ृ विभ्रमः ।
सगं ात्सजं ायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते ॥ स्मति
ृ भ्रशं ाद् बद्धि
ु नाशो बद्धि
ु नाशात्प्रणश्यति ॥
अनुवाद अनुवाद
इन्द्रिय विषयों का चितं न करते हुए मनष्ु य क्रोध से पर्णू मोह उत्पन्न होता है और मोह से
की उनमें आसक्ति उत्त्पन्न हो जाती है स्मरणशक्ति विभ्रम हो जाती है। जब
और ऐसी आसक्ति से काम उत्त्पन्न होता स्मरणशक्ति भ्रमित हो जाती है तो बद्ध ु ी नष्ट हो
है और फिर काम से क्रोध प्रकट होता है। जाती है। और बद्धि ु नष्ट होने पर मनष्ु य भव-
कूप में पनु ः गिर जाता है।
गीता मेड ईज़ी (Gita Made Easy) www.studygita.com सदैव प्रसन्नचित
विफलता के 8 चरण
विवाह की वर्षगाँठ पत्नी उत्साहित है : पत्नी गूगल करती है : पत्नी तुलना करती है : पति वर्षगांठ
आने वाली है विषयों का चिंतन आसक्ति उत्त्पन्न काम की उत्त्पत्ति भूल जाता है
होती है
का पालन क्यूँ
करना दर्गुु णों का त्याग
(स्वतः अच्छे गणु ों का विकास)
कृष्ण भावनाभक्ति
(शांतिप्रिय - सख
ु द)
चाहिए ?
गीता मेड ईज़ी (Gita Made Easy) www.studygita.com सदैव प्रसन्नचित
असमजं स
समीक्षा 1. सकं ट नियंत्रण
(2.1 – 1.10)
(अध्याय 2) शरणागति
अध्याय 2
2. मेरी वास्तविक
अध्याय 2 पहचान
(2.11 – 2.30)
स्वयं की संरचना
• स्थल ू शरीर
• सक्ष्ू म शरीर
• आत्मा
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असमजं स
समीक्षा 1. सकं ट नियंत्रण
(2.1 – 1.10)
(अध्याय 2) शरणागति
2. मेरी वास्तविक
अध्याय 2 पहचान
(2.11 – 2.30)
शरीर के प्रति कर्त्तव्य
स्वयं की संरचना
3. दो कर्तव्य • स्थल ू शरीर
आत्मा के प्रति (2.31-2.53) • सक्ष्ू म शरीर
कर्त्तव्य • आत्मा
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असमजं स
समीक्षा विफलता के 8 चरण 1. सकं ट नियंत्रण
(2.1 – 1.10)
(अध्याय 2) शरणागति
एक का प्र
बेहत यास
र इं
सान
बनने
सुख की खोज
जीवन में कु छ
कमी का आभास
अके लापन