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सत्र 2 : अध्याय 2

गीता का सारांश

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गीता मे ड
Gita Made Easy
ईज़ी
अमरेंद्र गौर दास सुकीर्ति माधवी देवी दासी

अंतर्राष्ट्रीय श्रीकृ ष्णभावनामृत संघ


संस्थापकाचार्य कृ ष्णकृ पामूर्ति श्रीमद श्री ए सी भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद
संदेह पूर्ण
भयभीत

समीक्षा
(अध्याय 1)
1. यद्ध
ु की भमि
ू का
(1.1 – 1.11)
धतृ राष्ट्र की मानसिकता पक्षपातपूर्ण

अपनी सेना के बारे में डींगें


दर्यो
ु धन की मानसिकता मारना
• तनाव के लक्षण
• विभिन्न प्रकार के कष्ट निष्ठावान लोगों पर संदेह
• अर्जुन यद्ध
ु न करने का 2. सर्व-मंगल मर्ति
ू करना
निश्चय करता है
4. जीवन के कष्ट भगवान श्री कृष्ण
(1.28– 1.46) (1.12 – 1.20) • आलौकिक शख ं
• भगवान श्री कृष्ण की व्यक्तिगत
उपस्थिति
• अर्जुन के ध्वज पर हनमु ान जी
की छवि
ऐश्वर्य से परिपर्णू भगवान 3. भक्त वत्सल भगवान
विजय के संकेत • लक्ष्मी देवी - भाग्य की देवी
भक्तों के सेवक बनते हैं (1.21– 1.27) • अग्नि देव द्वारा प्रदान अर्जुन का
रथ

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समीक्षा - अध्याय 2

मेरी वास्तविक
सक
ं ट नियत्रं ण दो कर्तव्य सदैव प्रसन्नचित
(2.1 – 2.10) पहचान (2.31– 2.53) (2.54– 2.72)
(2.11 – 2.30)

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श्लोक 2 .7
कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः
पच्ृ छामि त्वां धर्मसम्मढू चेताः ।
यच्छ्रे यः स्यान्निश्चितं ब्रहि
ू तन्मे
शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम‌् ॥
अनुवाद
अब मैं अपनी कृपण दर्बु लता के कारण अपना कर्त्तव्य भल ू गया हूँ
और सारा धैर्य खो चक ू ा हू।ँ ऐसी अवस्था में आपसे पछू रहा हूँ की
जो मेरे लिए श्रेयस्कर हो उसे निश्चित रूप से बताए।ं अब मैं आपका
शिष्य हूँ और आपके शरणागत हू।ँ कृपया मझु े उपदेश दें
सक
ं ट नियत्रं ण (2.1 – 2.10) गीता मेड ईज़ी (Gita Made Easy) www.studygita.com
सक
ं ट नियंत्रण

असमजं स शरणागति

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असमंजस
कर्तव्य का पालन
करूँ या न करूँ ?
असमजं स
उचित क्या है –
विजय या पराजय ?

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।। अनमोल शिक्षा ।।
सदं हे पर्णू
आसक्ति के कारण, व्यक्ति
सही-गलत में भेदभाव की
क्षमता खो देता है।
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असमंजस
निर्बलता का आभास

शरणागति ‘भगवान’ की शरणागति

रिश्ते में परिवर्तन


दोस्ती के रिश्ते से गरुु - शिष्य का रिश्ता

ज्ञान की प्राप्ति

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सर्व कारणों के
परम कारण
परम स्वामी
परम नियंता
परम भोक्ता

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शरणागति
।। अनमोल शिक्षा ।।
सदं हे पर्णू कठिन निर्णय लेने की
परिस्थिति में उत्तम
प्राधिकारी से ही परामर्श करें ।

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शरणागति
यश
सौंदर्य ज्ञान
भगवान के 6 गणु
भगवान
धन वीर्य
वैराग्य

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शरणागति
।। अनमोल शिक्षा ।।
सदं हे पर्णू
मझु में जो गणु हैं, वे भगवान
के ऐश्वर्य का अश
ं है।

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शरणागति
श्लोक 2 .13
देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा ।
तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मह्य
ु ति ॥
अनुवाद
जिस प्रकार शरीरधारी आत्मा इस (वर्तमान) शरीर में
बाल्यावस्था से तरुणावस्था में और फिर वद्धृ ावस्था में
निरंतर अग्रसर होती रहती है, उसी प्रकार मत्ृ यु होने पर
आत्मा दसू रे शरीर में चली जाती है। धीर व्यक्ति ऐसे
परिवर्तन से मोह को प्राप्त नहीं होता है।
मेरी वास्तविक पहचान (2.11 – 2.30) गीता मेड ईज़ी (Gita Made Easy) www.studygita.com
मैंसदं हे पर्णू
कौन हूँ ? आपके अंदर आत्मा नहीं है
अपितु आप स्वयं ही आत्मा हैं
आपका शरीर अस्थायी है

गीता मेड ईज़ी (Gita Made Easy) www.studygita.com मेरी वास्तविक पहचान
मत्ृ यु के पशचात - सक्ष्ू म शरीर और आत्मा
नए शरीर में प्रवेश करते हैं
स्वयं की सरं चना (उदाहरण : परु ाने वस्त्र और नए वस्त्र)

सस्थदं लू हे शरीरपर्णू आत्मा


(सत चित आनन्द )

मत्ृ यु पर नष्ट हो जाता है , अस्थायी होता है

सक्ष्ू म शरीर
आत्मा सक्ष्ू म शरीर
स्थल
ू शरीर (मन; बद्धि
ु तथा अहक
ं ार )
(पथ्ृ वी;जल;अग्नि;वायु एवं आकाश )

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श्लोक 2 .20
न जायते म्रियते वा कदाचि-
न्नायं भत्ू वा भविता वा न भयू ः ।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं परु ाणो-
न हन्यते हन्यमाने शरीरे ॥
अनुवाद
आत्मा के लिए किसी भी काल में न तो जन्म है ना
मत्ृ य।ु वह न तो कभी जन्मा है,न जन्म लेता है और न
जन्म लेगा। वह अजन्मा, नित्य शास्वत तथा परु ातन है।
शरीर के मारे जाने पर वह मारा नहीं जाता।
गीता मेड ईज़ी (Gita Made Easy) www.studygita.com मेरी वास्तविक पहचान
आत्मा की उपस्थिति का साक्ष्य
सामान्य बोध
सदं हे पर्णू
मत्ृ यु के समीप होने का अनभु व (NDE)
शरीर से बाहर होने का अनभु व (OBE)
पर्वू जन्म की स्मति

गीता मेड ईज़ी (Gita Made Easy) www.studygita.com मेरी वास्तविक पहचान
गीता मेड ईज़ी (Gita Made Easy) www.studygita.com मेरी वास्तविक पहचान
।। अनमोल शिक्षा ।।
सदं हे पर्णू मैं अपने शरीर को हानि पहुचं ा
कर, अथवा उसका विनाश
कर के , कष्टों से मक्ति
ु नहीं पा
सकता ।
गीता मेड ईज़ी (Gita Made Easy) www.studygita.com मेरी वास्तविक पहचान
श्लोक 2 .47
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।
मा कर्मफलहेतर्भुु र्मा ते सगं ोऽस्त्वकर्मणि ॥
अनुवाद
तम्ु हें अपना कर्म (कर्त्तव्य) करने का अधिकार है, किन्तु
कर्म के फलों के तमु अधिकारी नहीं हो। तमु ना तो
कभी अपने आप को अपने कर्मों के फलों का कारण
मानो, न ही कर्म न करने में कभी आसक्त होओ।
दो कर्तव्य (2.31– 2.53) गीता मेड ईज़ी (Gita Made Easy) www.studygita.com
शरीर के प्रति कर्त्तव्य आत्मा के प्रति कर्त्तव्य
परिवार का पोषण अथवा नौकरी भगवान श्री कृष्ण का नाम जप
(स्वधर्म ) भगवद गीता का पाठ (सनातन धर्म)

गीता मेड ईज़ी (Gita Made Easy) www.studygita.com दो कर्तव्य


पिजं रे (शरीर) की
देखभाल करना और
पक्षी (आत्मा) का
पोषण नहीं करना
गीता मेड ईज़ी (Gita Made Easy) www.studygita.com दो कर्तव्य
श्लोक 2 .40
नेहाभिक्रमनाशोऽस्ति प्रत्यवातो न विद्यते ।
स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात‌् ॥
अनुवाद
इस प्रयास में न तो हानि होती है न ही ह्रास
अपितु इस पथ पर की गई अल्प प्रगति भी
महान भय से रक्षा कर सकती है ।

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।। अनमोल शिक्षा ।।
सदं हे पर्णू कष्ट ये स क
ं े त दे
त े हैं कि
जीवनशैली में कुछ असतं ल ु न
है। कृपया ध्यान दें और जीवन
को सतं लि
ु त करें ।
गीता मेड ईज़ी (Gita Made Easy) www.studygita.com दो कर्तव्य
श्लोक 2 .59
विषया विनिवर्तन्ते निराहारस्य देहिनः ।
रसवर्जं रसोऽप्यस्य परं दृष्टवा निवर्तते ॥
अनुवाद
देहधारी जीव इन्द्रियभोग से भले ही निवत्तृ हो जाय पर
उसमें इन्द्रियभोगों की इच्छा बनी रहती है | लेकिन
उत्तम रस के अनभु व होने से ऐसे कार्यों को बंद करने पर
वह भक्ति में स्थिर हो जाता है |

सदैव प्रसन्नचित (2.54– 2.72) गीता मेड ईज़ी (Gita Made Easy) www.studygita.com
सफलता और आनंद की कुंजी

“ढ़ृढ़ निश्चय और उत्साह के


साथ अपने दोनो कर्तव्य का
पालन करने वाला व्यक्ति,
हर जन्म में सख
ु ी रहता है”

गीता मेड ईज़ी (Gita Made Easy) www.studygita.com सदैव प्रसन्नचित


सर्वोत्तम रस
सर्वोत्तम रस
की …अनुभूति
गीता मेड ईज़ी (Gita Made Easy) www.studygita.com सदैव प्रसन्नचित
सर्वोत्तम रस
।। अनमोल शिक्षा ।।

सर्वोत्तम रस
का स्रोत है…
श्रीमद् भगवद् गीता
गीता मेड ईज़ी (Gita Made Easy) www.studygita.com सदैव प्रसन्नचित
सर्वोत्तम रस
श्लोक 2 .62 श्लोक 2 .63
ध्यायतो विषयान्पसंु ः सगं स्तेषपू जायते । क्रोधाद‍भ् वति सम्मोहः सम्मोहात्स्मति
ृ विभ्रमः ।
सगं ात्सजं ायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते ॥ स्मति
ृ भ्रशं ाद् बद्धि
ु नाशो बद्धि
ु नाशात्प्रणश्यति ॥
अनुवाद अनुवाद
इन्द्रिय विषयों का चितं न करते हुए मनष्ु य क्रोध से पर्णू मोह उत्पन्न होता है और मोह से
की उनमें आसक्ति उत्त्पन्न हो जाती है स्मरणशक्ति विभ्रम हो जाती है। जब
और ऐसी आसक्ति से काम उत्त्पन्न होता स्मरणशक्ति भ्रमित हो जाती है तो बद्ध ु ी नष्ट हो
है और फिर काम से क्रोध प्रकट होता है। जाती है। और बद्धि ु नष्ट होने पर मनष्ु य भव-
कूप में पनु ः गिर जाता है।
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विफलता के 8 चरण

विवाह की वर्षगाँठ पत्नी उत्साहित है : पत्नी गूगल करती है : पत्नी तुलना करती है : पति वर्षगांठ
आने वाली है विषयों का चिंतन आसक्ति उत्त्पन्न काम की उत्त्पत्ति भूल जाता है
होती है

सबं धं ों में फूट - भव-कूप बद्धि


ु का नाश स्मरण शक्ति का भ्रमित होना सम्मोह की उत्पत्ति क्रोध का प्राकट्य

गीता मेड ईज़ी (Gita Made Easy) www.studygita.com सदैव प्रसन्नचित


विफलता के 8 चरण
।। अनमोल शिक्षा ।।
हानिकारक विचारों से
सावधान रहें - क्यंकि
ू ये क्रूर
योजनाओ ं में परिवर्तित हो कर
पाप कर्मों का रूप लेते हैं ।
गीता मेड ईज़ी (Gita Made Easy) www.studygita.com सदैव प्रसन्नचित
विफलता के 8 चरण
द्वदं ों से मक्ति
ु अपेक्षा से मक्ति

दोनों कर्तव्यों (द्वन्द का अर्थ है अच्छा -बरु ा,
सफलता – विफलता, उचित – अनचि ु त)
(अपेक्षा - निराशा )

का पालन क्यूँ
करना दर्गुु णों का त्याग
(स्वतः अच्छे गणु ों का विकास)
कृष्ण भावनाभक्ति
(शांतिप्रिय - सख
ु द)
चाहिए ?
गीता मेड ईज़ी (Gita Made Easy) www.studygita.com सदैव प्रसन्नचित
असमजं स
समीक्षा 1. सकं ट नियंत्रण
(2.1 – 1.10)
(अध्याय 2) शरणागति

अध्याय 2

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असमजं स
समीक्षा 1. सकं ट नियंत्रण
(2.1 – 1.10)
(अध्याय 2) शरणागति

2. मेरी वास्तविक
अध्याय 2 पहचान
(2.11 – 2.30)

स्वयं की संरचना
• स्थल ू शरीर
• सक्ष्ू म शरीर
• आत्मा
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असमजं स
समीक्षा 1. सकं ट नियंत्रण
(2.1 – 1.10)
(अध्याय 2) शरणागति

2. मेरी वास्तविक
अध्याय 2 पहचान
(2.11 – 2.30)
शरीर के प्रति कर्त्तव्य
स्वयं की संरचना
3. दो कर्तव्य • स्थल ू शरीर
आत्मा के प्रति (2.31-2.53) • सक्ष्ू म शरीर
कर्त्तव्य • आत्मा
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असमजं स
समीक्षा विफलता के 8 चरण 1. सकं ट नियंत्रण
(2.1 – 1.10)
(अध्याय 2) शरणागति

सर्वोत्तम रस 2. मेरी वास्तविक


4. सदैव प्रसन्नचित अध्याय 2 पहचान
(2.54-2.72) (2.11 – 2.30)
शरीर के प्रति कर्त्तव्य
स्वयं की संरचना
3. दो कर्तव्य • स्थल ू शरीर
आत्मा के प्रति (2.31-2.53) • सक्ष्ू म शरीर
कर्त्तव्य • आत्मा
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जीव
न का
अर्थ
नी जिज्ञा जानने
बेचै करना सा की
सूस
मह
पढ़ें
इसे
धन्यवाद

एक का प्र
बेहत यास
र इं
सान
बनने
सुख की खोज

जीवन में कु छ
कमी का आभास
अके लापन

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