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अपना हाथ जगन्नाथ

स्वयं सहायता पस्ु स्तका

हकलाने के डर से आजाद हों


और कुशल संचारकताा बनें
(प्रथम संस्करण: हहंदी हदवस
14 ससतम्बर 2015)

डॉ. सत्येन्र श्रीवास्तव

दी इस्डडयन स्टै मररंग एसोससएशन (तीसा)


उद्धरे दात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत ्।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धरु ात्मैव ररपरु ात्मनः ॥ गीता ६-५॥

(अपने द्वारा अपना संसार-समुर से उद्धार करे और अपने को


अधोगतत में न डाले क्योंकक यह मनुष्य आप ही तो अपना समत्र
है और आप ही अपना शत्रु है .. गीता, 6-5)

समर्पण

“तनःस्वाथा सेवा आध्यास्त्मक जीवन का एक महत्त्वपण


ू ा अंग है ।“
श्री श्री चन्रस्वामी जी उदासीन

हार्दप क आभार

श्री असमत ससंह कुशवाहा, इस पस्ु स्तका के टं कण व संपादन में अमल्


ू य योगदान हे त|ु
तीसा से जुड़े सभी साथी स्जन्होंने इस पुस्तक के हहंदी अनुवाद पर तनरं तर जोर हदया|
श्री जयप्रकाश सुंडा और श्री हरीश उसगांवकर – अनन्य समत्र व सहयोगी, स्जनके बबना ये सफ़र तनतान्त अधुरा
ही रह जाता! श्री राजा पोलाड़ी, स्जन्होंने इस श्रंख
र ला को शुरू ककया- इस पुस्तक के पहले व अंग्रेजी संस्करण के
प्रकाशन में बहुमूल्य योगदान दे कर!

“अगर आप इस मल्
ु क (अमेररका) के पंरह लाख हकलाने वालों के समान हैं तो आपको कोई थैरपी नहीं समलेगी;
आपको जो करना है , वह अपने बल-बूते ही करना होगा, उन ववचारों और संसाधनों को लेकर जो आपको
उपलब्ध हैं..”

डॉ जोसफ शीहान (1918-1983)

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विषय सच
ू ी
पहला अध्याय: स्वयं सहायता क्यों? ............................................................................................... 4

द्ववतीय अध्याय: हकलाना क्या है ? ................................................................................................ 7

तत
र ीय अध्याय: स्वीकार क्या और क्यू?
ूँ ......................................................................................... 11

चौथा अध्याय: चला मुरारी हीरो बनने! ........................................................................................... 15

पांचवा अध्याय: खेलें एक खेल, तनकालें आवाजें नई!.......................................................................... 18

छठा अध्याय: दो-दो हाथ इन से भी (कुछ और तकनीकें) ................................................................. 24

सातवाूँ अध्याय: मन का खेल ...................................................................................................... 28

आठवाूँ अध्याय: जीवन मल्


ू य और आत्मववश्वास .............................................................................. 32

नौवां अध्याय: ससतारों के आगे जहाूँ और भी हैं ............................................................................... 40

दसवाूँ अध्याय: आगे की कायायोजना ............................................................................................. 44

करपया ध्यान दें -

1. हकलाने वाला व्यस्क्त या अंग्रेजी में पी.डब्ल्यू.एस. (पीपल हू स्टै मर) का प्रयोग कहीं कहीं ककया गया है । इसके पीछे
ससद्धांत यह है कक हकलाना जीवन का ससर्ा एक पहलू है ; यह उस व्यस्क्त की समग्रता को बयान नहीं करता। व्यस्क्त
पहले, तब उसकी ववकलांगता - यह ससद्धांत भी इसके पीछे है । इससलए “हकला” जैसे शब्दों से हम बचे हैं। सच्चाई तो यह
है कक जब हम हकलाने की संकीणा मानससकता से आजाद हो जाते हैं तो ये शब्द या ‘लेबल’ महत्वपूणा नहीं रह जाते। तब
कोई कुछ भी कहे - कोई र्का नहीं पड़ता।

2. यह अंग्रेजी की पुस्तक "अपना हाथ जगन्नाथ" का सीधा-सीधा अनुवाद नहीं है । हमने हहन्दी भावियों की जरूरतों को
ध्यान में रखते हुए कुछ र्ेरबदल भी ककए हैं। अगर हो सके, तो उसे भी पढें और इंटरनेट पर उपलब्ध अन्य बहुत सारी
सामग्री का भी प्रयोग करें ।

3. यह पुस्तक हकलाना जड़ से समटाने (क्योर) का दावा नहीं करती, क्योंकक ऐसा कोई क्योर वतामान में कहीं नहीं है ।
मगर हकलाने से उत्पन्न मानससकता से आप जरूर छुटकारा पा सकते हैं और एक कुशल संचारकताा बन सकते हैं। यह
पुस्स्तका उस हदशा में पहला कदम है । इसमें बताए कियाकलापों को करना दस
ू रा और असली कदम है । अगर आपने इसे
पढा लेककन व्यवहार में नहीं उतारा तो कोई लाभ नहीं होगा!

4. इस सामग्री की खल
ु कर प्रततसलवप बनाएं, बांटें और स्वयं सहायता के सलए प्रयोग करें । कोई कॉपीराइट नहीं है ।

आभार: इस र्ुस्तक में हमने इन्टरनेट से सािपजाननक चचत्रों का प्रयोग ककया है , जजसके लिए हम उनके स्रोतों के विशेष रूर्
से आभारी हैं|

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र्हिा अध्याय
स्ियं सहायता क्यों?

वपछले आठ विों में तीसा से जुड़े ज्यादातर लोगों ने बताया कक स्पीच


थैरेपी से उन्हें ससर्ा कुछ हदनों या हफ्तों का लाभ समला। कुछ समय बाद
उनका हकलाना कर्र से लौट आया। इससे हमें दो बातें समझ में आती हैं:
एक - जैसे मलेररया या ब्रोंकाइहटस का क्योर (ईलाज) सम्भव है , वैसा
स्टै मररंग में नहीं। दस
ू री बात - हकलाने में कार्ी लम्बे समय तक मदद
की जरूरत पड़ती है और इसी सलए जरूरत है कक हम अपने स्पीच
थैरेवपस्ट खुद बनें। दस
ू रा कब तक हमारी मदद करे गा और करे भी तो लम्बे समय तक उसकी फ़ीस
ककतने दे पाएंग?
े यानी अगर आप अगले एक साल तक, बाइक पर भारत भ्रमण की योजना बना रहे
हैं तो स्पाका प्लग साफ़ करना भी सीख लें और पंचर लगाना भी! क्योंकक तभी तो सफ़र का मज़ा
आएगा!

यहाूँ एक अहम ् सवाल यह है कक क्या आप अपनी मदद खद


ु कर सकते है ? तीसा का अनभ
ु व यह है कक
ज्यादातर हकलाने वाले, भारत में अपने ही प्रयासों से ठीक हुए हैं। अधधकतर तो कभी ककसी थैरेवपस्ट के पास
गए नहीं। थोड़े से जो गए, कुछ ही महीनों में ससखाई गई तकनीक का प्रयोग बंद कर चुके थे और अपने स्तर
पर हाथ-पांव मार रहे थे या कुछ नया तलाश रहे थे। इनमें से ज्यादातर थैरेपी की असर्लता के सलए
खुद को ही स्जम्मेदार मान कर अंदर से तनराश हो चुके थे : र्लां व्यस्क्त तो क्योर हो गया मगर मैं
क्यों नहीं? शायद मैंने मेहनत नहीं की; शायद मैं अभागा हूूँ? आहद।

कम ही थैरेवपस्ट इस मद्
ु दे को खुल कर समझाते हैं कक हकलाने की असली वजह कोई नहीं जानता
और इस सलए क्योर भी ककसी के पास नहीं है , और स्जसे लोग क्योर समझ रहे हैं वह ससर्ा कडरोल
या मैनेजमें ट है - या ससर्ा बहुत ही बबरले मामलों में स्पॉन्टे तनयस ररकवरी (जड़ से ठीक), स्जसे न
तो कोई समझता है और न ही ककसी दस
ू रे को दे सकता है । जैसे कभी-कभी कैं सर के ऐसे रोगी स्जन्हें
डॉक्टर जवाब दे चक
ु े हैं, अपने आप ही ठीक होने लगते हैं – क्यों? कोई नहीं जानता। मगर ऐसे
मामले बेहद कम हैं। प्रायः हकलाना कुछ महीनों के सलए शांत हो जाता है और कर्र लौट आता है –
जीवन के महत्त्वपण
ू ा मोड़ों पर – नया कॉलेज, कैं पस इंटरव्य,ू नई नौकरी, शादी-ब्याह आहद। अन्य
शब्दों में – ऐसा कुछ करें कक हकलाना हमेशा के सलए ठीक (क्योर) हो जाये, जैसी कोई चीज़ नहीं है
– मगर मन है की मानता नहीं!

तीसा की सोच है कक हकलाहट का भले क्योर न हो, मगर समाधान है और वह स्वयं सहायता में
तछपा है । जहां हम अपने थैरेवपस्ट खद
ु बनते हैं, मगर एक-दस
ू रे की मदद से। यानी एक ऐसा स्वयं

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सहायता समह
ू जहां हम एक-दस
ू रे को सम्मानपव
ू क
ा सन
ु ते हैं, सीखते हैं, ससखाते हैं, नए व्यवहारों को
तनभाय होकर आजमाते व अपनाते हैं। अगर आप ककसी ऐसे समह
ू में जाएं तो पहली बात जो बबजली
की तरह मन में कौंधती है - मैं अकेला नहीं हूूँ ! ये सब लोग भी हकलाते हैं! इन्होंने कक्षा में रोल
कॉल कैसे हदया होगा? नौकरी के सलए इंटरव्यू कैसे हदया होगा? चलो पता करें । इस तरह हम
हकलाने की मानससकता से ऊपर उठते हैं। ये ककसी क्योर से कम नहीं, बस्ल्क ज्यादा है – क्योंकक
इस प्रकिया में हम कुशल संचारकताा, सामास्जक प्राणी और एक नेटवका के अंग बनते हैं।

यह स्वयं सहायता समह


ू ों की सबसे बड़ी ताकत है - आप अपने जैसे ही लोगों के बीच हैं और उनसे
कुछ भी पछ
ू ने को आजाद हैं। और यह सब एक दोस्ती की भावना से प्रेररत है - ककसी शल्
ु क या पेशे
से जुड़ा नहीं।

स्वयं सहायता समह


ू केवल स्थानीय ही नहीं बस्ल्क र्ोन, व्हाट्स एप, गग
ू ल हैंग आउट, स्काइप आहद
पर आधाररत भी हो सकते हैं। वस्तत
ु ः आप स्वयं भी एक स्वयं सहायता समह
ू शरू
ु कर सकते हैं।
यह करने से पहले कुछ बतु नयादी जानकारी व तकनीक आपको सीखनी पड़ेंगी, ताकक आप अपनी व
दस
ू रों की साथाक मदद कर पाएं।

प्रायः हकलाने वाले, समस्या को स्वीकार करने के बजाय, इसको नकारना (डडनायल) ही सवु वधाजनक
पाते हैं। यह नकारना प्रायः अवचेतन मन के स्तर पर होता है और इससलए हम कई बार परू ी
ईमानदारी से कहते हैं: नहीं, मैं तो नहीं हकलाता। मैं थोड़ा सा रूकता हूूँ , कभी-कभी। बस एक-दो
शब्दों पर। मुझे ककसी मदद की जरूरत नहीं। आहद।

यह नकारना (डडनायल) हमारी तकलीर् को और बढा दे ता है । कॉलेज, ऑकर्स में इस मद्


ु दे पर
खल
ु कर बात करने के बजाय हम सालों इसे तछपाते और घट
ु ते रहते हैं। नाते-ररश्तों में भी यही
नकारना अन्य तमाम मानससक तनावों को जन्म दे ता है । इस तरह अगर दे खें तो समझ में आता है
कक हकलाने में 90 प्रततशत से भी ज्यादा भसू मका मनोवैज्ञातनक प्रभावों की है - और बोलने की
समस्या वस्तत
ु ः एक बहुत ही छोटी भसू मका तनभाती है । पर प्रायः हकलाने वाले व उनके थैरेवपस्ट
बोलने की समस्या के पीछे पड़े रहते हैं और मनोवैज्ञातनक तथा सामास्जक कारकों पर ध्यान ही नहीं
दे त।े इसी कारण परम्परागत थैरेपी में थोड़ा र्ायदा जो होता है , वह भी कुछ महीनों में गायब हो
जाता है और हकलाना कर्र लौट आता है ।

इसी को डा. शीहान ने समर


ु में तैरते हहमखडड की उपमा दी थी। हकलाने में जो हमें सन
ु ाई व
हदखाई पड़ता है वह ससर्ा ऊपरी और थोड़ी सी समस्या है । समस्या का बहुत बड़ा हहस्सा हमारे
अवचेतन मन में तछपा रहता है और वह हमारी सोच, भावनाओं, मल्
ू यों आहद को तनरन्तर प्रभाववत
करता है । हमें पता नहीं चलता मगर यह अदृश्य हहमखंड हमें अनचाहे कररयर, एकाकी जीवन शैली
और अपने आप में घट
ु ते रहने के सलए मजबरू करता चला जाता है । उलटे , हम इसे अपनी पसंद का

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नाम दे कर और बढा दे ते हैं, जीवन का स्थाई भाव बना लेते हैं : मुझे पाटी वाटी पसंद नहीं; मैं
वकील नहीं कम्प्यूटर इंजीतनयर ही बनना चाहता था – मुझे कोडडंग करना अच्छा लगता है , आहद...

हमारे इदा -धगदा लोगों को कुछ भी अंदाज़ा नहीं होता कक हम कैसी मनःस्स्थतत से गज
ु र रहे हैं। अपने
चारों तरर् एक रूखेपन की दीवाल बना कर हम खुद को सरु क्षक्षत समझते हैं। लोग कभी-कभी हमें
अहं कारी, घमंडी, असामास्जक आहद भी समझ बैठते हैं। इन सबका दोि भी हम प्रायः दतु नया पर ही
मढ दे ते हैं! कई बार हम सचमच
ु एक सप
ु ेररओररटी काम्प्लेक्स (खद
ु को श्रेष्ठ समझना) की चादर
ओढ लेते हैं: हम हकलाने वाले इंटेलीजेंट (बुद्धधमान) होते हैं – बेवकूर्ों से क्या बात करें ?! पर सच
तो ये है कक ये सारी रणनीततयां या तरकीबें ककसी काम नहीं आती और दे र सबेर अन्दर की तकलीर्
हद से गज
ु र जाती है । तब हम क्योर की तलाश में भटकना शरू
ु करते हैं ...

क्या आपका जीवन कुछ कुछ ऐसा है ? अगर हाूँ, तो यह पस्


ु तक आपके सलए है और तीसा के स्वयं
सहायता समह
ू हैं आपका मैदान! खेलो खुल के और मारो मैदान! क्योंकक इस खेल के सभी तनयम
बदल चुके हैं!

बोध कथा: स्िीकायपता का एक दस


ू रा र्हिू

कुछ लोग कहते हैं: मैंने हकलाने को स्वीकार (एक्सेप्ट) कर सलया, अब मझ


ु े और क्या करना है ? कुछ नहीं!
पर सच तो यह है कक शब्दों में स्वीकार करना ससर्ा पहली सीढी है | असली सफ़र इसके बाद शुरू होता है | यह
बोध कथा यही समझाती है :

एक बार एक आदमी लॉटरी जीत कर रातोंरात बेहद अमीर बन गया| उसके मन में पहली बात आई – मैं नौकरी
क्यूूँ करूूँ? मैं तो दस
ू रों को नौकरी दे सकता हूूँ! उसने इस्तीफ़ा दे हदया| दस
ू रे हदन उसके मन में आया- इतनी
सुबह क्यूूँ उठ रहा हूूँ, कौन सा ऑकर्स पहुूँचना है ? कुछ हदन बाद उसे लगा की दाढी बनाना बेकार है क्योंकक
उसे कौन सा बॉस से समलना है ? इस तरह उसने नहाना-धोना, कपड़े बदलना आहद सब बंद कर हदया और
बबस्तर में ही पड़ा रहता, सारे हदन| एक हदन उसका एक समत्र उस से समलने आया| उसे दे ख कर वह बगैर कुछ
कहे लौटने लगा| क्योंकक उसे लगा कक वह नौकर से क्या बात करे ?!

कार्ी मुस्श्कलों के बाद जब उसे यकीन हुआ कक यह नौकर नहीं वरन उसका दोस्त ही है तो उसे सारी बात
समझते दे र नहीं लगी| वह मुस्कुरा कर बोला: दोस्त, अमीर बनने के बाद तो तुम्हे और ज्यादा काम करना
पड़ेगा| समाज में अमीर होना एक बड़ी स्जम्मेदारी है | बेहतर है , तुम इस स्जम्मेदारी के सलए तैयार हो जाओ..

इसी तरह, एक्सेप्टे न्स (स्वीकायाता) आपको अपने प्रतत स्जम्मेदाररयों से मंह
ु मोड़ना नहीं ससखाती; बस्ल्क
एक्सेप्टे न्स के बाद करने योग्य ववकल्प और बढ जाते हैं! आगे के अध्यायों में यही बताया गया है |

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द्वितीय अध्याय
हकिाना क्या है ?

वतामान वैज्ञातनक सोच यह है कक कुछ बच्चे ऐसे


गण
ु सत्र
ू (जीन्स) लेकर पैदा होते हैं स्जनके चलते
बचपन में उनके हदमाग में वाणी तंबत्रकाओं का
ववकास अन्य बच्चों से सभन्न होता है – सभन्न मगर
कमतर नहीं!

इस कारण कभी तो हदमाग से ववद्यत


ु ् सम्वेग
जुबान तक पहुंचते हैं और कभी नहीं। जब नहीं
पहुंचते, तब हमारा मह
ंु वपछली ध्वतन को ही दोहराता रहता है : रा- रा- रा- राम। इस आकस्स्मक रूकावट के डर
से एक अन्य प्रततकिया जन्म लेती है । अज्ञानवश बच्चा समझ बैठता है कक जोर लगाने से र्ंसा हुआ शब्द
बाहर तनकल आएगा। मगर जोर लगाने पर हमारे स्वर तन्तु (वोकल कार्डास) और बंद हो जाते हैं, हवा कडठ से
बाहर ही नहीं आती और एक छोटी समस्या बड़ी और जहटल रूप लेती चली जाती है ।

इस िम में बड़े होते बच्चे के मनोववज्ञान पर कई नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं। दस


ू रों का टोकना, व्यथा सझ
ु ाव
दे ना (आराम से बोलो), मजाक बनाना, है रान होना - आहद बच्चे के मन में हकलाने के प्रतत नर्रत, डर और
धचंता पैदा करते हैं। अपने पररवार की प्रततकियाएं दे खकर उसमें एक अपराध बोध भी पैदा होता है - हकलाकर
मैंने अपने पररवार या दोस्तों को तकलीर् पहुंचाई है , मैं ककतना अभागा हूूँ, आहद।

बड़े होते-होते, ये भावनाएं - डर, शमा, अपराधबोध (धगल्ट), हमारे अवचेतन मन में गहरे बैठते जाते हैं और
प्रायः हमें इसका कोई अहसास भी नहीं होता। इन सबके साथ एक और बात: मन में कहीं न कहीं यह द्वंद्व
भी तनरं तर चलता रहता है : मैं कौन हूूँ? मैं नामाल हूूँ? मैं एब्नामाल हूूँ? अगर मैं न हकलाता तो क्या होता?
शायद, मैं यह या वह बन जाता, उस ऊूँचाई तक पहुंच जाता आहद। ऐसे धचन्तन के कारण हकलाने वाले प्रायः
न तो वतामान में जी पाते हैं और न ही उसका परू ा आनन्द ले पाते हैं। वे सदै व कहीं और, कुछ और होने या
बनने की कर्राक में रहते हैं, उसका इन्तजार करते रहते हैं और इस तरह कई बार परू ी स्जंदगी तनकल
जाती है ।

ू ा र्ैसले टालते रहते हैं : अंग्रेजी बोलना मैं तब सीखूंगा जब मेरा


इस तरह हम जीवन के सभी महत्वपण
हकलाना ठीक हो जाएगा। पहले हकलाना ठीक कर लूँ ू तब एमबीए करूूँगा... इस तरह हम जैसे हैं, वैसा
खुद को कभी स्वीकार नहीं कर पाते। हमारे इदा-धगदा लोग भी हमारी असहजता के चलते, इस मद्
ु दे पर बात
नहीं करते।

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इन मनोवैज्ञातनक कारणों के चलते - हकलाने
की वजह से नहीं - उनकी सशक्षा-दीक्षा, नाते-
ररश्ते, नौकरी-व्यवसाय, शादी-ब्याह आहद
प्रभाववत होते हैं। एक बच्चा जो कक्षा में न तो
सवाल पछ
ू पा रहा था और न ही जवाब दे पा रहा
था, उसने घर पर पढना ही बन्द कर हदया :
पढकर र्ायदा भी क्या है , जब मैं क्लास में कुछ
बोल ही नही पाता? कुछ यव
ु क इसीसलए
कम्प्यट
ू र साइंस लेते हैं कक एक प्रोग्रामर के नाते
उनका जीवन मॉतनटर के सामने बगैर बोले बीत
जाएगा! यव
ु ावस्था में दोस्त बनाना, लड़ककयों
या लड़कों से बात करना, और कहठन हो जाता है । क्योंकक हकलाने के बारे में खुलकर बात करने का ररवाज ही
नहीं है , जबकक चश्मे या हहयररंग एड (कान की मशीन) के बारे में लोग कर्र भी बात कर लेते हैं।

संक्षेप में , हकलाना प्रायः आनव


ु ांसशक समस्या है । मगर यह हर पीढी में एक बराबर प्रकट नहीं होती।
अक्सर बड़ा या छोटा लड़का हकलाता है । बचपन में सभी बच्चे बोलना सीखने की प्रकिया में कुछ हफ्ते या माह
हकलाते हैं – लडककयाूँ भी। ज्यादातर स्वतः ठीक हो जाते हैं। मगर 5-10 प्रततशत बच्चों में हकलाना जारी
रहता है । अपने आप ठीक होने वाले बच्चों में लड़ककयां ज्यादा होती हैं। इस तरह वयस्कों में , प्रतत चार हकलाने
वाले परू
ुं िों पर एक महहला ही हकलाती है । जबकक बचपन में लड़की- लड़के का अनप
ु ात एक - एक का, यानी
बराबर होता है ।

हकलाना मस्स्तष्क में एक न्यरू ोलास्जकल समस्या से उत्पन्न होता है , और कुछ विों में ढे र सारी
मनोवैज्ञातनक समस्याओं को जन्म दे ता है : डर, शमा, अपराध बोध, अशक्तता (मैं यह नहीं कर सकता, मैं
वह नहीं कर सकता), तछपाने की प्रववर ि, कतराना, बचना, अपने में ससमटे रहना, कुडठा, हीनभावना आहद।
इस परू ी मानससकता को बदले बबना ससर्ा हकलाने पर काम करना प्रायः तनष्र्ल होता है । इसीसलए स्वयं
सहायता के पथ पर कम से कम एक
विा तक तनरन्तर चलना जरूरी है ।

हकलाने की मानससकता का एक और
दष्ु पररणाम है - प्रवाह (फ्लए
ू ंसी) के
प्रतत अन्धश्रद्धा। बस मैं धाराप्रवाह
बोल,ूं चाहे श्रोता की समझ में आए, न
आए, चाहे वह प्रासंधगक हो या न हो
आहद। ऐसी सोच के चलते हकलाने

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वाले बहुत से थैरेवपस्ट के पास जाते हैं, बहुत सी तकनीक आजमाते हैं, ककन्तु असली बात - संचार
(कम्यतू नकेशन) - को नकार दे ते हैं। ध्यान से सन
ु ना और समझना – ये हम भल
ू ही जाते हैं, अच्छा
बोलने के चक्कर में| इससलए हमारा मत है कक फ्लए
ू ंसी या क्योर की तलाश में भटकने के बजाय, कुशल
संचारकताा बनना ज्यादा वांतछत और व्यावहाररक है ।

बोध कथा: प्रिाह (फ्िूएंसी) और संचार (कम्यूननकेशन) में अंतर

रामू घर के आूँगन में बैठा याद कर रहा था: माई हे ड (my head) यानी मैडम का ससर, माई हे ड यानी मैडम
का ससर, माई हे ड यानी मैडम का ससर...

कुछ दे र में उसके वपता जी उधर से गुजरे और बोले: बेवकूफ़, माई हे ड यानी मैडम का ससर नहीीँ, माई हे ड यानी
मेरा ससर.. समझे? ये कह के वे बाज़ार चले गए| अब रामू दोहरा रहा था: माई हे ड यानी वपता जी का ससर,
माई हे ड यानी वपता जी का ससर, माई हे ड यानी वपता जी का ससर..

थोड़ी दे र में उसकी माता जी पड़ोसन से समल के लौटीं तो वो बोलीं: नहीं बेटा, ये तुम्हे ककसने बताया? माई हे ड
यानी मेरा, इधर दे खो, मेरा ससर.. समझे? रामू कर्र से मेहनत से लग गया: माई हे ड यानी मम्मी का ससर,
माई हे ड यानी मम्मी का ससर..!

उसका बड़ा भाई गोलू, खेल कर लौटा तो समझ गया कक क्या मामला है | उसने रामू का हाथ पकड़ा और उसी
के ससर पे रख कर बोला – ये क्या है ? रामू बोला – मेरा ससर, और क्या? अब गोलू बोला – इसी को अंग्रेजी में
“माई हे ड” बोलते हैं! समझा कुछ? क्या?

रामू हूँसा और बोला: बस इतनी सी बात? माई हे ड यानी बोलने वाले का ससर - समझ गया| सुबह से मुझे
सबने परे शान कर रखा है ..

मगर गोलू इतने पर ही रुका नहीं| उसने रामू का एक हाथ उसी के ससर पे रखा और दस
ू रा हाथ अपने ससर पे
रखवा के बोला: ये मेरा ससर, ये तेरा ससर! अब यही अंग्रेजी में बोल के हदखा..

कुछ दे र दोनों भाई ये खेल खेलते रहे - ये मेरी नाक, ये तेरी नाक; ये मेरा कान, ये तेरा कान आहद| रामू को
स्पष्ट हो गया कक “माई हे ड” का क्या मतलब है | इस कहानी में माता, वपता व मैडम, सभी फ़्लूएंट वक्ता थे
मगर ससर्ा गोलू ही संचार की बारीकी समझता था| अब सोच कर बताएं कक आप क्या बनना चाहें गे: फ़्लूएंट या
कुशल संचारकताा?

इसी िम में कुछ और मॉडल भी समझाएं गए हैं : फ़ास्ट टॉककं ग जींस के कारण बच्चे जल्दी बोलते
हैं, कुछ शब्दों पर लड़-खड़ाते हैं और सामास्जक प्रततकियाओं के चलते धीरे -धीरे नकारात्मक
मानससकता ववकससत कर लेते हैं – जाने अनजाने; डडमांड और कैपेससटी (जरुरत और क्षमता) मॉडल
में माना जाता है कक बच्चे के मस्स्तष्क की बोलने के सलए जरुरी क्षमता और बच्चे से बड़े जो
उम्मीद करते हैं – इन दोनों में जब भी गैप आता है तब बच्चा हकलाता है – जैसे जब बच्चे को
“अंकल” को कववता सन
ु ाने के सलए बाध्य ककया जाता है ; ये दोनों ही कारक समय के साथ बदलते
रहते हैं और इसी सलये हकलाना घटता – बढता रहता है । जैसे नए कॉलेज में जाने पर एकाएक बोलने

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की डडमांड बढ जाती है और हम पाते हैं कक हम ज्यादा हकला रहे हैं। ऐसे बहुत से मॉडल हैं जो
हकलाने को समझने के सलए वैज्ञातनकों ने पेश ककए हैं। दभ
ु ााग्यवश इनमे से कोई भी परू ी तरह न तो
खरा उतरा है और ना ही इलाज़ की हदशा में ठोस मदद साबबत हुआ है ।

ये थी एक अधूरी सी वववेचना - लोग हकलाते क्यों है ? वज़ह जो भी हो, असली मद्


ु दा है - आप या
मैं कर क्या सकते हैं इसके सलए? बहुत कुछ - अगर हम ये ठान लें कक ऐसा जीवन अब और नहीं!
अब और नहीं! अब और नहीं ...

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तत
ृ ीय अध्याय
क्या मैं हकिाता हूूँ?

मैं हकलाता हूूँ - यह स्वीकार करना बहुत कहठन है , मगर


इसके बबना काम भी नहीं चलेगा। अगर कोई बच्चा यह
मानने को तैयार नहीं कक वह गणणत में कमजोर है , तो वह
उस पर और समय क्यों दे गा? मेहनत क्यों करे गा? समस्या
को समस्या के रूप में खल
ु कर स्वीकार करने पर ही हम
बदलाव की तरर् बढते हैं। अन्यथा हम तकनीक तो बहुत सी
इस्तेमाल करते हैं, मगर उनसे लाभास्न्वत नहीं होते।

सच तो यह है कक हकलाना एक प्रततकिया, एक सघंिा है ।


जब हम यह स्वीकार लेते हैं कक कभी-कभी मैं न चाहते हुए
भी रूकंू गा और इसमें कोई भी ववशेि बात नहीं, (इट इज ओके!) तब यह संघिा अपने आप खत्म हो
जाता है । सभी झगड़े खत्म हो जाते हैं, अगर एक पक्ष परू ी तरह चप
ु हो जाए। मगर जब तक हमें
लगता है कक हकलाना एक बरु ी चीज़ है और मझ
ु े कुछ करना पड़ेगा इसके सलए, तब तक अवचेतन
मन में ये संघिा जारी रहता है ।

मगर सालों से हम अपने हकलाने से जूझते रहे हैं। अतः इस शत्रत


ु ापण
ू ा ररश्ते को एकदम से खत्म
करना थोड़ा मस्ु श्कल है - मगर असम्भव भी नहीं। ये मस्ु श्कल इससलए है , क्योंकक थोड़ी तकलीर्
उठाने के हम आदी हो गए हैं। थोड़ी असवु वधा, थोड़ा तछपाना, थोड़ा बचना - इस तरह हमारा काम
चलता रहता है । जब तक पानी नाक से ऊपर न तनकले, हम ज्यादा कुछ करने के सलए तैयार ही नहीं
होते! जब हमारा अमेररकन एम्बेसी में “ग्रीन काडा” का इंटरव्यू होना होता है तब हम तलाशते है –
कोई टे स्क्नक या हरक! आणखरी क्षण पर ये चीज़ें प्रायः काम नहीं करतीं। लेककन उस दःु खद स्स्थतत
का हम इन्तजार क्यों कर रहे हैं? यह सवाल आप स्वयं से पछ
ू ें । क्या आप आज बदलने को तैयार हैं?

अगर आप तैयार हैं तो चसलए शरू


ु करें यह पहला कदम -

1. कभी-कभी अकेले में अपने आप से कहें - मैं हकलाता हूूँ और इसमें कोई खास बात नहीं है । (इट
इज ओके!) शरू
ु में यह मस्ु श्कल लगेगा। मन ववरोध करे गा, हज़ार बहाने बनाएगा (“मैं ससर्ा रुकता हूूँ,
हकलाता नहीं..”) मगर कर्र भी कोसशश करें । धीरे -धीरे यह आसान होता चला जाएगा।

2. यही बात अपने पालतू जानवर या ककसी छोटे बच्चे से कहें , दो-तीन बार, मस्
ु कुरा कर।

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3. अब इसको सलखकर दे खें - कुछ पंस्क्तयों में या एक कववता के रूप में । अपने हकलाने से जुड़े
अनभ
ु वों को सलखें । उन्हें बाद में दोबारा पढें ।

4. अपने हकलाने के बारे में बेहद करीबी व्यस्क्त - पत्नी, मां, दोस्त, भाई या बहन से बात करें । मगर
कोई उम्मीद न रखें कक वे जवाब में क्या कहें गे या कोई प्रततकिया दें गे भी या नहीं। आपको अपनी
बात कहने का हक़ है - उन्हें भी चुप रहने या अपनी ही बात कहने का हक़ है ।

5. अपने हकलाने के बारे में आपने जो भी सलखा है उसे करीबी दोस्तों के साथ बांटें। थोड़ा हहम्मत
आने पर आप इसे ककसी ब्लॉग पर भी प्रकासशत कर सकते हैं।

6. कुछ समय पश्चात उन दोस्तों को र्ोन करें जो 5-10 विा पहले आपके साथ पढते थे और कुछ
ऐसी बातचीत करें मगर ककसी ववशेि प्रततकिया की उम्मीद न रखें :

“याद है , मैं कॉलेज में अपनी रोल कॉल नहीं बोलता था? क्योंकक मैं हकलाता था और अब इस
पर मैं काम कर रहा हूूँ ...” आहद।

7. कुछ महीने बीतने दें और तब हहम्मत करके ऑकर्स / कॉलेज में भी अपने जीवन के इस पहलू
को बांटना शरू
ु करें । यथा – डारववन, न्यट
ू न, चधचाल, ब्रस
ू ववसलस आहद भी हकलाते थे - मैं भी
हकलाता हूूँ। इट इज सो कूल!

ऑकर्स में कॉर्ी मग पर सलखवाएं - हकलाओ, मगर प्यार से। टे बल डडस्पले भी कुछ ऐसा ही हो
सकता है –वपछली तीसा कांफ्रेंस या कम्यतु नकेशन वकाशॉप की र्ोटो! इसका र्ायदा यह है कक जब
कोई पछ
ू े गा तो आपको इस बारे में खुलकर बात करने का मौका समलेगा।

8. ववद्यालय में अध्यापक की अनम


ु तत से छोटी
सी प्रस्ततु त दें हकलाने के बारे में । यह ऑकर्स में
भी कर सकते हैं। इसके सलए स्लाइर्डस इन्टरनेट
पर उपलब्ध हैं।

9. अपना पररचय दे ते हुए एक छोटा सा वीडडयो


बनाएं और य-ू ट्यब
ू पर डालें। आपको दस
ू रे लोगों
से कार्ी सकारात्मक प्रततकियाएं समलेंगी – यकीन
रखें । याद रखें, ये सारे कदम धीरे -धीरे उठाएूँ।
औसतन 3 से 9 माह तक का समय लग सकता
है - पहले और नौवें कदम के बीच (ऊपर दे खें)। मगर बीच में ही रुक न जाएं। चलते रहें , मस्ु श्कलों
के बावजूद। स्वयं अपने आप से पछ
ू ें – मैं अभी भी ककन लोगों से कतराता हूूँ? उन्हीं लोगों से
हकलाने के बारे में ऊपर बताये तरीके से बातचीत करें |

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यह सब अकेले करना कार्ी मस्ु श्कल हो सकता है । अगर आप कुछ अन्य हकलाने वालों के सम्पका
में रहें और उनसे बातचीत भी करते रहें तो कार्ी मदद समलेगी। अगर कोई स्वयं सहायता समह
ू पास
में है तो उस से या ऑनलाइन स्काइप, व्हाट्सएप समह
ू से जड़
ु ना बहुत अच्छा होगा, क्योंकक इससे
आप जब भी तनराश होंगे, आपको दस
ू रों से कार्ी प्रोत्साहन समलेगा।

इस गततववधध के साथ-साथ अन्य चीजों पर भी ध्यान दें - ध्यान से सन


ु ना, तनगाहें समलाना,
मस्
ु कुराना, सवाल पछ
ू ना और ककसी स्पीच तकनीक का इस्तेमाल करना आहद। तकनीक का इस्तेमाल
हकलाना छुपाने के सलए नहीं – बस्ल्क बेह्तर संचार के सलए, ताकक सामने वाला आपकी बात आसानी
से समझ पाए| ये सब ववस्तार से आगे बताया जा रहा है ।

एक बात और - हकलाने को स्वीकार करने और इसके बारे में बात करना शरू
ु करने से ककसी
चमत्कार की आशा न करें । यह न सोचें कक आपकी तमाम मस्ु श्कलें एक हफ्ते में या एक महीने में
दरू हो जाएंगीं। याद रखें कक यह एक लम्बी प्रकिया है । एक लम्बा सर्र है । कम से कम एक साल
के सलए कमर कस कर तैयार हो जाएं। यह सब एक नयी भािा सीखने के समान है । खरगोश नहीं,
कछुए की मानससकता चाहहए, इस मैराथन में जीतने के सलए!

बोध कथा

शहर में रहने वाले एक बच्चे ने कभी भी कुछ उगते हुए नहीं दे खा था। उसके वपता ने उसे एक हदन एक र्ूल
का बीज ला कर हदया। बच्चे ने उसे एक गमले में समट्टी के नीचे दबा हदया और सींच हदया। कुछ समनटों के
बाद उसे लगा कक क्या पता बीज अंकुररत हो भी रहा है या नहीं! अतः उसने धीरे से ऊपर की समटटी हटाई
और गौर से बीज़ को दे खा। नहीं, अभी कुछ बदलाव हदखाई नहीं दे रहा था। बच्चे ने उसे कर्र से समट्टी से
ढक हदया। पूरे हदन यही िम चलता रहा। दो हदन बाद उसने दे खा कक बीज सड़ गया था!

सच तो यह है कक एक्सेप्टे न्स (स्वीकायाता) परू े जीवन के प्रतत एक दृस्ष्टकोण है । ससर्ा हकलाना ही


नहीं, बस्ल्क जीवन की अन्य तमाम घटनाओं, स्जस पर आपका जोर नहीं है , को स्वीकार करके आगे
बढना ही बेहतर ववकल्प है । मान लीस्जए,
आप ककसी इंटरव्यू में असर्ल हो गए! अब
क्या? मेरा चयन क्यों नहीं हुआ? इसी
उधेड़बन
ु में अगर आप पड़े रहे तो अगले
इंटरव्यू का पररणाम क्या कुछ सभन्न होगा?
शायद नहीं। इसीसलए हमारा मत है कक
एक्सेप्टे न्स (स्वीकायाता) एक दृस्ष्टकोण है
स्जसकी जरूरत आजीवन बनी रहती है । यह
एक अंदरूनी नजररया है , जीवन के प्रतत
दृस्ष्टकोण है – न कक कोई बाहरी किया

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कलाप या एक्सरसाइज – स्जसको नापा जा सके| इसको हम स्जतना जल्दी सीख लें, उतना बेहतर।
वैसे भी, जो सबको पता है उसे तछपाने में कौन सी अकलमंदी? अकलमंदी तो कुछ नया अपने बल
बत
ू े करने में है ! यही हम आगे बताने जा रहे हैं|

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चौथा अध्याय
चिा मरु ारी हीरो बनने!

हकलाने को बदलने से पहले यह जानना होगा कक मेरा


हकलाना कैसा हदखता है ? कैसा सन
ु ाई पड़ता है ? यह
मस्ु श्कल मगर जरूरी चरण है । जब तक हम अपने
हकलाने को गहराई में जांचते परखते नहीं, तब तक कुछ
भी करना, अूँधेरे में तीर मारने के बराबर है - जो हम सब बहुत कर चक
ु े हैं, थैरेपी के नाम पर! अपने
हकलाने को जानने समझने का सबसे आसान तरीका है - अपना ही वीडडयो बनाना और उसे कई बार
दे खना, बहुत बारीकी से - एक दो बार नहीं, कई बार, महीनो तक।

आजकल कई र्ोन व कैमरों में वीडडयो की सवु वधा होती है । अपना वीडडयो बनाना कोई मस्ु श्कल नहीं।
पर कई बार जब हम वीडडयो बनाते हैं तो हम जरा भी नहीं हकलाते! यह दे खने में खुद को अच्छा
लगता है पर इससे इस चरण का उद्दे श्य परू ा नहीं होगा। अगर हमारा अवचेतन मन हकलाने को
तछपाता ही रहा तो हम इसका इलाज कैसे करें ग?
े दाई से कब तक पेट तछपाएंग?
े तो चसलए हहम्मत
करके ये कदम उठाते हैं। ये चार चरण हैं:-

र्हिा चरण : एक-दो रोज दस


ू रों को बात करते हुए ररकाडा करें । इससे आपको पता चलेगा कक ककस
दरू ी पर अच्छी ररकाडडिंग होती है , आवाज और वीडडयो दोनों की। इसे कम्प्यट
ू र पर भी सेव करके दे ख
लें। जब परू ी प्रकिया सन्तोिजनक ढं ग से स्पष्ट हो जाए, तब खुद को ररकाडा करना शरू
ु करें । कोई
ककताब पढते हुए, ककसी दोस्त के साथ बात करते हुए। आसान कियाओं से शरू
ु करें और धीरे -धीरे
मस्ु श्कलों की ओर बढें ।

अगर कोई दोस्त ररकाडडिंग में मदद करे तो और भी अच्छा। जैसे वह ररकाडा करे और आप ककसी
दक
ु ानदार से बात करें या र्ोन पर ककसी अजनबी या सीतनयर से बात करें । उन्हें पहले ही समझा दें
कक आप ये ररकॉडडिंग अपनी स्पीच को बेहतर बनाने के सलए कर रहे हैं। छोटी ररकाडडिंग से काम नहीं
चलेगा। कोसशश करें कक ररकाडडिंग कम से कम 10 समनट की जरूर हो। अगर ररकाडडिंग में चेहरे के
अलावा बाकी शरीर भी आए तो अच्छा होगा। आप अपने हाव भाव (बॉडी लैंग्वेज) भी दे ख पाएंगे।
एक अच्छी ररकाडडिंग वह है स्जसमें आपका चेहरा सार् हदख रहा है और आवाज सार् सन
ु ाई पड़ रही
हो। यानी पयााप्त रोशनी होनी चाहहए और कैमरा नजदीक हो। हो सके तो इस सारी ररकाडडिंग को
कम्प्यट
ू र में डालते जाएं।

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दस
ू रा चरण: अब इन ररकॉडडिंग्स को दो-तीन बार परू े
ध्यान से दे खें - ककसी अच्छे दोस्त के साथ। गौर से
दे खें कक हकलाने के दौरान, उसके पहले और बाद में
- आपके हाव-भाव में क्या र्का आया। शब्दों या
उच्चारण, पलकों का झपकना, ओठों का फ्रीज होना,
ससर का पीछे या एक तरर् झक
ु ना, नथन
ु ों का
र्ैलना या ससकुड़ना - ये सब कैसा था? क्या यह
सब परू ी तरह सामान्य था, या इसके पीछे आप
अनावश्यक जोर लगा रहे थे? क्या आपकी वपच
एकाएक ऊूँची हो गई थी? इसमें क्या आवश्यक था
और क्या अनावश्यक? जहां पर आपको शक है , अपने अनभ
ु वी दोस्त की राय भी लें।

इतना ही नहीं - जब आप नहीं हकला रहे हैं, उस दौरान सब कुछ कैसा लग रहा था? उस समय
आपका कम्यतू नकेशन कैसा था? आप पाएंगे की 90 प्रततशत से ज्यादा समय आप अच्छा बोलते हैं
और आपकी कही बात ककसी को भी आसानी से समझ में आ जाएगी। यानी आप बोलना जानते हैं,
बस कुछ शब्दों पर आपको काम करना है । कहने का मतलब यह कक सब समलाकर, अपनी कसमयां ही
न तलाशें - अपनी ताकत व मजबत
ू पक्ष भी ढूंढें और उन्हें सराहें । आणखर में कुछ सवाल ऐसे भी
पछ
ू ें -

1. मैं यहां पर थोड़ा तेज बोला हूूँ? क्य?


ूं मैं ककस चीज से दरू भाग रहा हूूँ ? क्यों?

2. यहां पर हकलाते हुए मेरी आंखें क्यूं बंद हुईं? क्या मैं आंखें खोलकर भी हकला सकता था?

3. यहां पर मैं इतना सीररयस क्यूं हदख रहा हूूँ? मस्


ु कुरा क्यूूँ नहीं पाया?

4. इन तमाम व्यवहारों में से कौन से मैं छोड़ना चाहता हूूँ? ककनको और मजबत
ू बनाना चाहता हूूँ?
इसकी सलस्ट बनाएं और बार-बार इसको दे खें और इसके अनरू
ु प जीवन में अभ्यास करें । अपने
साधथयों से भी बांटैं ताकक वे भी आपको बीच-बीच में याद हदलाएं और आपकी मदद कर सकें।

तीसरा चरण : हकलाने से जुड़ी भावनाएं

हमारे हर कियाकलाप के पीछे भावनाएं तछपी होती हैं। ककसी से बात करना अच्छा लगता है , ककसी
से नहीं। ककसी वविय पर बोलना इतना अच्छा लगता है कक हम समय सीमा ही भल
ू जाते हैं। अपने
वीडडयो को अब इस दृस्ष्टकोण से दोबारा दे खें। कहां पर मैं बोलने का मजा ले रहा हूूँ? कहां बोलने से
डर रहा हूूँ? क्य?
ूूँ क्या इन भावनाओं को बदला जा सकता है ?

एक बार और अपना वीडडयो बनाएं और इस बार लगातार मस्


ु कुराते रहें । इस वीडडयो को भी 2-3 बार
दे खें। शायद यह एक नाटक या असभनय जैसा लगे। मगर क्या यह नाटक बहुत मस्ु श्कल है ?

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मस्
ु कुराते हुए बोलना, भले ही अन्दर से डर लग रहा हो? थोड़े अभ्यास के बाद आप पाएंगे कक यह
मस्ु श्कल नहीं है और आप ये भी महसस
ू करें गे कक सामने वाले की आंखों में दे खकर मस्
ु कुराते हुए
बोलने से आप कहीं ज्यादा बेहतर बोल पाते हैं और कहीं ज्यादा अच्छे हदखते हैं। ससर्ा बोलना उबले
चावल खाने के सामान है । जब आप इसमें सकारात्मक भावनाओं का समावेश करते हैं तो ये
स्वाहदष्ट पल
ु ाव जैसा लगता है ! यकीन न हो तो कोई बॉलीवड
ु कर्ल्म दे खें!

चौथा चरण : अगर हम अपने हकलाने को गहराई में समझना चाहते हैं तो दस
ू रे भी इसमें कार्ी
मदद कर सकते हैं। य-ू ट्यब
ू पर हकलाने से जुड़े वीडडयो दे खें, उनके ब्लॉग पढें । उनसे चैट करें ,
स्काइप पर उनसे बातचीत करें । कुछ महीनों में आपको लगने लगेगा कक आपके हकलाने में आपका
अपना कुछ भी नहीं है - सब कुछ सावाभौम (यतु नवसाल) है । यानी जो आपको होता है वही दस
ू रे अन्य
हकलाने वालों को भी होता आया है । “मझ
ु जैसा अभागा कोई नहीं” - यह भावना धीरे -धीरे दरू हो
जायेगी। अगर हहम्मत है , तो अपना वीडडयो भी य-ू ट्यब
ू पर डाल दें । आणखर आप ककस हीरो से कम
हैं? इससे एक समस्या तो झट से दरू हो जाएगी - “कहीं ककसी को पता न चल जाए कक मैं हकलाता
हूूँ”। इसकी जगह ले लेगी यह भावना - “मैं हकलाता हूूँ, तो क्या? स्जसको जो करना है , कर लो!”

सारांश : अपनी वीडडयो बार-बार बनाकर हकलाने से जुड़े व्यवहारों और भावनाओं को हम बदल सकते
हैं। आप अपनी हकलाहट को इतना बेहतर जान
लेते हैं कक समसमिी (नक़ल) में आप अपनी
हकलाहट को हूबहू पेश कर सकते हैं - और ये
पहला चरण है इसे बदलने का। इन वीडडयो को
ऑनलाइन बांटकर आप अपने डर और शमा से भी
हमेशा के सलए आजाद हो सकते हैं। मम
ु ककन है
कोई आपकी तछपी प्रततभा को पहचान कर कर्ल्मों
में एक मौका दे ? अगर ये मौका समला तो आप
क्या कहें ग?

“नहीं, अभी नहीं - पहले मैं क्योर हो जाऊूँ तब
सोचंग
ू ा..!”
अरे नहीं, ऐसा भल
ू के भी मत करना, प्लीज़! अगर
मरु ारी हीरो बन सकता है तो हम क्यों नहीं?

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र्ांचिा अध्याय
खेिें एक खेि, ननकािें आिाजें नई!

दे खा गया है कक अगर हकलाने वाला अपनी आवाज जरा सी-


यानी थोऽऽऽड़ी सी - बदल पाए, तो धीरे -धीरे वह कार्ी कुछ
बदल सकता है - और यहां तक कक कुछ महीनों में अपने
हकलाने को एकदम सभन्न स्वरूप दे सकता है – यानी
हकलाना, हकलाने जैसा लगे ही ना! यहां हम हकलाने को
छुपाने की नहीं बस्ल्क उसे बदलने की बात कर रहे हैं – परू ी
तरह! हाूँ, ये संभव है ! चसलए, दे खें ये चमत्कार कैसे होता है ।

क्या आपने उस बच्चे को दे खा है जो कुिे, बबल्ली, बकरी,


बन्दर, कबत
ू र, मग
ु ी आहद की आवाजें तनकालने में ससद्धहस्त है ? सम्भवतः आप खुद बचपन में यह सब
करके लोगों को है रान करते थे? क्या कभी आपने टीचर या बॉस की नक़ल या समसमिी की? चसलए उसी
मजेदार वक्त की ओर लौटते हैं।

यहां पर बतु नयादी बात ससर्ा यह है : कई बार हकलाने वाले सोचते हैं कक जैसे वह अभी बोल रहे हैं, बस यही एक
तरीका मम
ु ककन है उनके सलए। उन्हें स्जंदगी भर ऐसे ही बोलना है ! मगर सच्चाई यह है कक हमारा कडठ हजारों
तरह की आवाजें तनकाल सकता है । हमारा हदमाग बीससयों व्यस्क्तयों की हूबहू नकल कर सकता है । हम एक
बेहद आत्मववश्वास से भरे वक्ता का असभनय कर सकते हैं! जब हम ऐसा करना शरू
ु करते हैं तो धीमे-धीमे यह
यकीन पैदा होता है कक ससर्ा हकलाना, और वह भी एक ही स्टाइल में , कोई जरूरी नहीं है । इसे बदला जा
सकता है । यही ‘स्टटररंग मोडडकर्केशन’ के पीछे छुपा ससद्धान्त है । बदलते-बदलते एक समय ऐसा आता है
कक आपका हकलाना, सामान्य बातचीत सा लगने लगता है । मगर इसमें मेहनत और समय लगता है ।

1. गीत गाता चि, ओ साथी... : अपने गले को बेहतर समझने के सलए गाने का अभ्यास करना अच्छा तरीका

है । इसमें मजा भी खूब आता है और यह एक तरह का वामाअप भी है । खुली छत पर, अपना एक हाथ गले पर
रखें और सरगम के स्वर तनकालें, महीन आवाज, मोटी आवाज, ऊूँचे स्वर, तनचले स्वर, साथ ही, हाथों से गले
के कम्पन को महसस
ू करें । स्वर तंतु (वोकल कार्डास) के कम्पन बबना कोई भी आवाज गले से बाहर नहीं आती,
हवा भले बाहर आ जाए। कम्पन को स्वेच्छा से पैदा करना, बढाना और रोकना - इसका तनरन्तर अभ्यास करें ।

अगर हो सके तो शास्त्रीय गायन सीखें या उसका अभ्यास करें । अपने गाने को ररकाडा करें और कई बार सन
ु ें।
कुछ समय पश्चात ् ककसी दोस्त के सलए गाना गाएं, जो आप से कुछ दरू ी पर खड़ा हो। इन गानों को ररकाडा करें ,
दोस्तों के साथ बांटें, य-ू ट्यब
ू पर डालें। इस बात को महसस
ू करें कक आप अच्छा गाते हैं। सचमच
ु , कई हकलाने
वाले व्यस्क्त प्रससद्ध गायक बने हैं।

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2. उपरी कदम के साथ, अपनी आवाज के साथ कुछ नए प्रयोग भी करें । ये हैं – बाउस्न्संग (दोहराना) और
स्रे धचंग या प्रोलॉन्गेशन (रबर बैंड की तरह स्वर को खींचना)। यह सब अपने समह
ू में ककसी अनभ
ु वी साथी की
मदद से सीखें और अभ्यास करें |

बाउजन्संग: ककसी भी आसान शब्द की पहली ध्वतन को 5-6 बार आराम से दोहराएं और तब उस परू े शब्द को
आराम से बोलें – जैसे बच्चे बोलते हैं। मन को लगता है कक वह परू ा शब्द एक बार में नहीं बोल पाएगा। मन को
समझाएं - मुझे पूरा शब्द अभी नहीं बोलना है । अभी तो मैं ससर्ा पहली ध्वतन को ही दह
ु रा रहा हूूँ , और जब मैं
तैयार होऊंगा, तब पूरा शब्द बोलूग
ं ा। जैस-े अ-अ-अ- अतनल...

ध्यान दें : दो बाउन्स के बीच में आपको परू ी तरह ररलैक्स होना है और कोई भी जल्दी नही करनी है | शरू
ु के
कुछ महीनों में बाउस्न्संग केवल आसान शब्दों पर ही करें - स्जन पर आप कभी नहीं अटकते। शरू
ु आत कहठन
शब्दों से बबल्कुल न करें । यह मस्ु श्कल होगा और आप बहुत जल्दी तनराश हो जाएंगे|

बाउस्न्संग का अभ्यास शरू


ु में अकेले में करें , कर्र ककसी दोस्त या स्वयं सहायता समह
ू में और कुछ हफ्तों के
बाद स्काइप या र्ोन पर अजनबबयों के साथ भी करें । इसे ररकाडा करें और दोबारा सन
ु ें - क्या आप बाउस्न्संग
आराम से कर रहे हैं? आहद। ककसी शब्द पर बाउस्न्संग ककतनी बार करें ? शरू
ु में 5 से 10 बार भी जरूरी हो
सकता है । ससद्धान्त यह है कक जब तक आपके अन्दर घबराहट या जल्दी बोलने की प्रववर ि है - तब तक
बाउन्स करें । जब यह प्रववर ि शान्त हो जाए तब परू ा शब्द बोलें। शरू
ु में ये कुछ अजीब सा लगेगा पर जल्दी ही
आप इसके र्ायदे को महसस
ू करें ग।े याद रखें, जब आपने पहली बार साइककल चलाई थी तो सब कुछ ककतना
अजीब लगा था और कुछ हदन के बाद खुद को साइककल से दरू रखना समस्या बन गई थी!

कई बार बाउस्न्संग के बीच हकलाहट हो जाएगी या ब्लॉक आ जाएगा। तनराश न हों- रूकें, गहरी सांस लें और
कर्र शरू
ु करें । यह सब करते हुए अपना ध्यान अपने मन और भावनाओं पर भी रखें । अपने आप को तनाव में
न आने दें । दो तीन गहरी सांसें लें, मस्
ु कराएूँ और कर्र अभ्यास में लग जाएं। मन व शरीर दोनों तनावमक्
ु त
होने चाहहए - अच्छी बाउस्न्संग के सलए। मस्
ु कुराएं और कैमरे में दे खें, ररकाडडिंग के वक्त, या सामने वाले की
आंखों में दे खें। धीरे -धीरे आप तनावमक्
ु त, संयत बाउस्न्संग आराम से कर पाएंगे - बातचीत के बीच में और वह
भी अजनबबयों के साथ। मगर इसमें कुछ महीने लगें गे।

अब अगली चुनौती की ओर बढें । दो तीन महीने बाद, स्जन शब्दों पर आप हकलाते हैं, उन शब्दों पर बाउन्स
करना शरू
ु करें । ऊपर बताए िम में , पहले अकेले में, कर्र दोस्त या स्वयं सहायता समह
ू में , कर्र र्ोन,
स्काइप आहद पर। कर्र बस, रे न में और तब कहीं ऑकर्स या कॉलेज में । जब भी मस्ु श्कल हो, तो कुछ कदम
पीछे जाकर कर्र से अपना अभ्यास शरू
ु करें । अपने स्वयं सहायता समह
ू की मदद लेते रहें |

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जेन्टि ऑनसेट्स और प्रोिॉन्गेशन (या स्रे चचंग) :
ये दोनों समलती-जुलती तकनीक हैं। इसमें हमें परू ा
ध्यान कडठ, ओंठ, जब
ु ान और तालू पर लाना होता
है । जब हम बोलना शरू
ु करते हैं तब इन अंगों को
परू ी तरह तनावरहहत बनाकर धीरे से शरू
ु आत
करनी चाहहए - जैसे कक हम ककक मार कर धीरे से
बाइक का क्लच छोड़ते हैं और बाइक पर सन्तल
ु न
बनाकर, थोड़ा रे स दे कर चल पड़ते हैं। जैसे बाइक
चलाना सीखने में धीरे से क्लच छोड़ना महत्वपण
ू ा कदम है , उसी तरह बोलना शरू
ु करने के पहले एक-दो
सेकडड में अगर आप वाणीतन्त्र को धीरे से चलाएं तो हकलाना बहुत कम या गायब हो जाएगा।

इसके साथ ही, अगर पहली ध्वतन को थोड़ा लम्बा कर दें तो ये प्रकिया आसान और कारगर हो जाएगी:
आ...तनल (अतनल), का...मल (कमल), का... नपरु (कानपरु ), मा...नीि (मनीि) आहद। इसका एक और तरीका
है – हस्म्मन्ग : अगर मनीि बोलना है तो आप स्वयं को “म” की ध्वतन पे तब तक रोकें जब तक आप आगे का
शब्द बोलने को तैयार नहीं हो जाते। इसी तरह “नरे न्र” बोलते समय “न” की ध्वतन पर खद
ु को रोकें और तब
परू ा शब्द बोलें| अभ्यास के सलए कभी एक सेकंड तो कभी दस सेकडड, या ज्यादा भी रुक कर दे खें| इसी तरह
आप धीरे धीरे अपनी आवाज़ पर अच्छा तनयंत्रण पा जाएंगे|

प्रारं भ में इसे सीखने के सलए थोड़ा लम्बा या ज्यादा स्रे धचंग करें । जेन्टल आन्सेट के सलए वणों को मल
ु ायम
बनाएं, ऐसे - खम आन (कम आन!) ज़मीन (जमीन), र्वन (पवन) आहद। इसकी बारीककयां अपने स्वयं
सहायता समह
ू में ककसी अनभ
ु वी साथी से सीणखए। इसका भी अभ्यास पहले आसान शब्दों पर, आसान
स्स्थततयों से शरू
ु करें और धीमे धीमे मस्ु श्कल का स्तर बढाते जाएं। शरू
ु में ऐसे बोलना अजीब लगेगा मगर
तनराश न हों और अभ्यास न छोड़ें। दतु नया में हर कोई अंग्रज
े ी या हहंदी ककसी एक ही स्टै डडडाआइज्ड तरीके से
नहीं बोलता| कर्र अपने से ये उम्मीद क्यों? कुछ समय के बाद सब कुछ बहुत सामान्य लगेगा। ये सब एक
नयी भािा या बोली सीखने के समान है , इस सलए जल्दी न करें और अपने को पयााप्य समय और
शाबाशी दें , हर छोटी सर्लता के सलए|

सािधाननयां :

1. कई बार दोस्त या पररवार के लोग अन्जाने में नकारात्मक प्रततकिया दे दे ते हैं: ऐसे क्यों बोल रहे हो? इससे
बेहतर तो तुम्हारा हकलाना ही है ! ऐसी प्रततकियाओं पर ध्यान न दें और अपनी तकनीक का अभ्यास जारी
रखें । हो सके तो उन्हें समझा दें कक आप क्या और क्यूं कर रहे हैं और वे इसमें कैसे आपकी मदद कर सकते हैं -
चप
ु चाप सन
ु कर!

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2. कई बार लोग जल्दी में शरू
ु आत ही कहठन शब्दों से करते हैं,
हकलाते हैं या ब्लॉक में जाते हैं और तकनीक को दोि दे कर
अभ्यास बीच में ही छोड़ दे ते हैं। हमेशा शरू
ु आत आसान शब्दों
और आसान स्स्थततयों से करें । धीमें-धीमें मस्ु श्कलें बढाएं।
स्वयं सहायता समह
ू में अभ्यास करें ।

3. कई बार लोग अपने कम्र्टा जोन में कैद होकर रह जाते हैं।
जैसे रोज सब
ु ह अखबार पढते हुए एक घडटे बाउस्न्संग या
प्रोलॉन्गेशन करना। महीनों वे यही करते रहते हैं! कभी क्लास
में बाउन्स करके कोई सवाल नहीं पछ
ू ते! यह भी असर्लता का
एक मख्
ु य कारण है । जैसे ही आप एक चरण में थोड़ा सा सहज
महसस
ू करने लगें - तरु न्त अपने आप को अगले चरण में धकेलें।
स्वयं सहायता समह
ू में बहुत सी गततववधधयां इन तथ्यों को ध्यान में
रखकर आयोस्जत की जाती हैं। ये समह
ू बने ही हैं आपको आगे धकेलने के सलए!

िोिंटरी स्टै मररंग: यानी स्वेच्छा से हकलाना| ये आसान नहीं है मगर एक बहुत ही ताकतवर तकनीक है ! पानी
के नीचे तछपे हहमखंड की ये धस्ज्जयाूँ उड़ा दे ती है , मात्र कुछ हफ़्तों में | एक आइना लेकर अकेले में अपने
हकलाने की नक़ल करें : मे..मे..मे – मेरा न.......नाम अऽऽऽऽऽऽअ---- अतनल है | एक दम हूबहू अपनी नक़ल
करनी है - और मस्
ु कराना भी है | अब इसके बाद ये सारा िम वीडडयो ररकॉडा करें 3-4 बार, और दे खें कक कौन
सी ररकॉडडिंग आपके असली हकलाने के सबसे करीब है | अब इसके बाद यही “असभनय” अपने स्वयं सहायता
समह
ू में करें – और मस्
ु कुराना न भल
ू ें! कुछ हदन के बाद इसे आम बात-चीत के बीच इस्तेमाल करें और तरु ं त
रुक कर अपनी अंदरूनी भावनाओं और ववचारों को परखें : अभी मैं जानबझ
ू कर हकलाया था, ये कैसा लगा?
इस से क्या याद आ गया? क्यों? मेरा मस्
ु कुराना असली था या नकली? इस को मैं असली कैसे बना सकता हूूँ?
अगर ये असभनय था तो मातम ककस बात का? अपने आप को हकलाने के क्षण में रोकना सीखें, बगैर होश
गंवाए|

कुछ समय पश्चात, थोड़े और बड़े समह


ू में कोई चट
ु कुला सन
ु ाएं और अपने हकलाने की समसमिी (नक़ल) करें
और मज़ा लें! और वीडडयो बनायें; अपने हकलाने के क्षण को परू ी तरह ररप्रोर्डयस
ू करें - न केवल आवाज़, बस्ल्क
शैली, हाव-भाव और यहाूँ तक कक अन्दर की घबराहट भी – मगर सब कुछ एक असभनय के रूप में और आणखर
में खुल कर हूँसना न भल
ू ें! अब यही सब कुछ अजनबबयों के साथ (शौवपंग मॉल, मेरो आहद में) आजमायें –
कुछ महीने| अब आप अगले कदम के सलए तैयार हैं|

ब्िॉक करे क्शन: जब मह


ुं से कोई शब्द नहीं तनकलता तो इसे ब्लॉक कहते हैं। ये एक कार्ी तकलीर्दे ह क्षण
होता है , जब हमें कुछ नहीं सझ
ू ता कक क्या करें । वैज्ञातनकों का मानना है कक “कुछ नहीं सझ
ू ना” एक आदत,
एक प्रततकिया है , जो हमने सीखी है (learned helplessness) – इसे लेकर पैदा नहीं हुए। अगर हम चाहें तो

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अभ्यास से इस से उबर सकते हें । हमें ससर्ा इसके उलट प्रततकियाएं सीखनी होंगी – जैसे ब्लॉक में आूँखें खुली
रखना, मस्
ु कराना, सांस लेते रहना आहद।

1. र्ोस्ट-ब्िॉक करे क्शन: इसके सलए पहला अभ्यास है - जानबझ


ू कर हकलाना और ब्लॉक में जाना। ब्लॉक में
जाकर 1 से 5 तक मन में धगनती धगनें, रूकें और तब ब्लॉक से बाहर आयें। कुछ-कुछ ऐसे जैसे ववि अमत
र के
खेल में , बच्चे तब तक फ्रीज हो जाते हैं, जब तक कक उन्हें कोई छूकर अमत
र नहीं दे दे ता। तब वे कर्र से भागना
शरू
ु कर दे ते हैं। स्वयं को ब्लॉक में परू े होशो हवास के साथ आप ककतनी दे र तक फ्रीज कर सकते हैं? कोसशश
करके दे खें।

अब जब आप ब्लॉक में रूके हुए हैं - तो एक गहरी सांस लें, मस्


ु कुराएं और कर्र से उसी शब्द को बोलें। अगर
दोबारा भी ब्लॉक में जाते हैं तो यही िम कर्र दोहराएं। दस
ू री या तीसरी बार आप वह शब्द आराम से बोल
पाएंगे। इसे पोस्ट ब्लॉक करे क्शन कहते हैं। यानी ब्लॉक में गए, ब्लॉक खत्म हुआ, खुद को सम्हाला और
दोबारा वही शब्द बोला- ताकक श्रोता को समझ आ जाये कक आपने बोला क्या था।

2. इनब्िॉक करे क्शन: एक और तरीका है - आप अभी ब्लॉक में ही हैं और बगैर घबराए आप ब्लॉक के बीच में
ही घीरे से बाउस्न्संग या प्रोलॉन्गेशन का प्रयोग करते हुए शब्द को परू ा करते हैं। इसे इन ब्लॉक करे क्शन कहते
हैं: मैं कल का--------------का-का-कानपरु जाऊंगा। ज़ाहहर है कक इसे अच्छी तरह करने के सलए आप को वोलेंरी
स्टै मररंग, बौस्न्संग और प्रोलॉन्गेशन ववसभन्न स्स्थततयों में करने का कम से कम 4-5 महीने का अभ्यास होना
चाहहए।

3. प्रीब्िॉक करे क्शन: इस तीसरी ववधध में आप ब्लॉक आने से पहले ही सम्हलते हैं, थोड़ा रूकते हैं और ककसी
एक तकनीक का इस्तेमाल करते हुए, उस शब्द को आराम से बोलकर आगे बढ जाते हैं। यानी, ब्लॉक में जाने
से पहले ही रुक कर आप सोचते हैं, योजना बनाते हैं कक मैं इस शब्द को कैसे, क्या टे स्क्नक इस्तेमाल कर के
बोलूँ ग
ू ा। और तब उस योजना को एक्शन में बदलते हैं|

इनका अभ्यास बताए िम में ककया जाना चाहहए – पहले पोस्ट, कर्र इन और तब प्रीब्लॉक करे क्शन; ये सभी
ककसी अनभ
ु वी साथी की तनगरानी में , स्वयं सहायता समह
ू में या कम्यतू नकेशन वकाशाप में करें । वीडडयोग्रार्ी
की मदद भी लें।

ब्लॉक में जाना और बगैर होश खोए, तकनीक


इस्तेमाल कर बाहर तनकल आना एक कहठन काम
है । लम्बे अभ्यास से यह सीखा जा सकता है ।
बाइक चलाना एक बात है और उस पे स्टं ट करना
अलग बात है | मगर असंभव नहीं| अभ्यास से सब
कुछ मम
ु ककन है | याद रखें , की तकनीक आप
ककतनी भी सीख लें, ब्लॉक से तनपटे बगैर सब

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व्यथा है । इससलए सभी तकनीक कुछ महीने प्रयोग करने के बाद, उनका इस्तेमाल ब्लॉक में करना भी जरूर
सीखें ।

ख्याल रहे कक ब्लॉक में अपनी गतत को धीमा करना बेहद जरूरी है । अगर कभी आपका स्कूटर या बाइक गर्डडे
में उतर जाए, तो पहला काम आप उसे पहले धगयर में डालकर धीमा करें गे और तब गर्डडे से बाहर तनकलने का
सतु नयोस्जत प्रयास करें गे। ठीक यही ब्लॉक में भी करना है । गतत धीमी, मन शांत और हदमाग एकदम चैतन्य।
अपने स्वयं सहायता समह
ू में या स्काइप काल में इसका खब
ू अभ्यास करें ।

याद रखें, टे स्क्नक बहुत सारी हैं मगर ब्लॉक में जो आप के काम आ जाये वही सबसे अच्छी और इसके सलए
आप को कमर कस के ब्लॉक में घस
ु ना ही होगा और इन तस्क्नकों को आजमा कर दखना ही होगा। यह
ससर्ा आप ही कर सकते हैं। आणखर ब्लॉक के डर में कब तक स्जयेंग?
े तो दो-दो हाथ कर ही लें? राइट?

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छठा अध्याय
दो-दो हाथ इन से भी

अगर आप वपछले अध्याय में हदए गए अभ्यासों को परू ा कर चुके हैं या उन्हें आजमाना शरू
ु कर चुके हैं और
अभी तक आपने हहम्मत नहीं हारी है - तो आप सचमच
ु बधाई के पात्र हैं। आप थोड़ी और मेहनत कर सकते हैं।
इस अध्याय में हम उन कुछ तथ्यों के बारे में बात करें गे जो हमारे संचार की नींव हैं और इसीसलए अदृश्य रहते
हैं, जैस-े बोलने में सांस की भसू मका, शब्दों के बीच अन्तराल व मौन, नजरों का तालमेल, ध्यान से सन
ु ना और
हावभाव (बॉडी लैंग्वेज)। इनके बारे में प्रायः लोग बात नहीं करते मगर इन कौशलों का संचार के साथ बड़ा
गहरा सम्बंध है ।

श्िसन : आपने गौर ककया होगा कक गहरी नींद में सो रहे व्यस्क्त का श्वसन बहुत लयबद्ध और धीमा होता है ।
वही इन्सान जब ककसी से झगड़ता है तो उसकी सांसें उथली, अतनयसमत और तेज हो जाती हैं। यानी मानससक
अवस्थाओं का सांस के साथ घतनष्ठ सम्बंध है । वैज्ञातनक मानते हैं कक सांस को गहरा और धीमा बनाकर मन
को भी शान्त ककया जा सकता है । और शान्त मन बेहतर संचार में ककतना सहायक होता है , हम सब अच्छी
तरह जानते हैं।

अच्छा बोिने के लिए गहरी सांस िें - ऐसे की नासभ (पेट) बाहर की ओर तनकले। गहरी सांस लेकर छोड़ते हुए
ऊूँची आवाज में बोलना शरू
ु करें । तीन-चार शब्दों के बाद रुकें और कर्र वही िम दोहराएं।

ये अभ्यास पहले अकेले में, कर्र दोस्तों के साथ, स्वयं सहायता समह
ू में और तब, बस या भरे बाजार में करें -
अगले २-३ महीनों में । जब भी आपको बोलना कहठन लगे, 3-4 बार पेट से गहरी सांस लें, और कर्र इसी तरह
बोलना शरू
ु करें ।

पेट से सांस लेने का अभ्यास करने के सलए यह ववधध अपनाएं : लेट जाएं। बेल्ट आहद ढीला कर लें। एक ककताब
या अपना सेलर्ोन नासभ के ठीक ऊपर रख लें। अब हर सांस के साथ इस पस्
ु तक या र्ोन को ज्यादा से ज्यादा
ऊपर उठाएं। उसे ऊपर ही रोकें, कुछ सेकडड और कर्र सांस छोड़ते हुए नीचे लाएं। बाद में कोई भारी वस्तु जैसे
ककताब या ईंट रख कर अभ्यास करें । अच्छा अभ्यास होने पर आप यह खड़े-खड़े, चलते-कर्रते भी कर पाएंगे।

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जब भी आप उिेस्जत हों, जैसे- प्रेजन्
े टे शन के पहले - मस्
ु कुराएं और कई बार ऊपर बताए तरीके से गहरी सांसें
लें और धीमे से छोड़ें - और इसका अपने ववचारों पर होते असर को दे खें, गौर करें ।

सांस के प्रतत अहसास (अवेयरनेस) अपने आप में एक ववज्ञान है , स्जसे ध्यान या ववपासना के द्वारा सीखा जा
सकता है । इसमें आप मन में आने वाले हर ववचार के प्रतत जागरूक बनते हैं और उनसे उसी क्षण तनपटने में
सक्षम बनते हैं। मगर इसके सलए लम्बे अभ्यास की आवश्यकता है जो शरू
ु में नीरस लगता है ककन्तु बाद में
स्वभाव बन जाता है ।

मौन (र्ॉजजंग) - शब्दों के बीच, ववशेिकर जहां ववराम, अद्ाधववराम आहद आते हैं, आराम से रूकना एक अच्छी
कला है । इस मौन के क्षण में आप श्रोता से आंख समलाकर दे ख सकते हैं कक
वह समझ रहा है या नहीं; साथ ही, सांस ले सकते हैं, मस्
ु कुरा सकते हैं
और आगे क्या कहना है यह सोच सकते हैं। शब्दों के बीच यह मौन
श्रोता के सलए भी जरूरी है । धाराप्रवाह बोलने वालों की ज्यादातर बातें
श्रोता की समझ में नहीं आती, क्योंकक समझने के सलए भी थोड़ा समय
तो चाहहए ही।

इसके अलावा अच्छा संचार दोतरर्ा होता है । इससलए दस


ू रे को सवाल
पछ
ू ने का मौका हदया जाना चाहहए| ये मौका उन्हें कैसे समलेगा,
अगर आप ही लगातार बोले चले जा रहे हैं? जब दस
ू रा बोले तो ससर्ा
मौन ही नहीं, बस्ल्क उसकी बात को ध्यान से सन
ु ना व समझना भी
कुशल संचारकताा का महत्वपण
ू ा गण
ु है ।

ध्यान से सन
ु ना : ज्यादातर अधधकाररयों को अपने साधथयों से सशकायत यह नहीं कक वे अच्छा नहीं बोलते हैं -
बस्ल्क यह है कक वे ध्यान से सन
ु ते नहीं हैं! ध्यान से सन
ु ने का अथा है वक्ता की आंखों में, चुप होकर दे खना,
सन
ु ना, समझना, ससर हहलाना कक “हां, समझ गया” और समझ न आने पर जरूर सवाल पछ
ू ना। आणखर में,
अपने शब्दों में, सारांश में बताना कक मैं क्या समझा : ओके, तो मैं कल सुबह, आईटीओ पर ठीक नौ बजे
समलूग
ं ा, स्वयं सहायता समूह के सदस्यों की सूची लेकर। ठीक?

अगर बातचीत महत्वपण


ू ा है, तो अपना सेलर्ोन ऑर् कर दें , श्रोता की तरर् अपना मह
ुं करें , बेहतर सन
ु ने के
सलए उसके पास बैठें, उसके शब्दों को मन ही मन दोहराएं
ताकक बाद में भी याद रहे । अन्य सारी धचंताओं को एक
तरर् करें और ध्यान से सन
ु ें, ऐसे कक जैसे आपकी
स्जन्दगी उस के हर शब्द पर हटकी हो। जरूरत हो तो
नोट्स भी लें। कुछ समय के बाद अगर आप सारी
बातचीत बगैर नोट्स के याद (ररकॉल) कर पाते हैं, तो

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इसका मतलब आप अच्छे श्रोता हैं और बधाई के पात्र हैं।
ववशेिज्ञ मानते हैं कक अच्छे संचार का 90 प्रततशत से
भी ज्यादा भाग ध्यान से सन
ु ना है | कम ही थेरवपस्ट
इस पहलू पर ध्यान दे ते हैं!

नजर और हािभाि : संचार में हम परू े शरीर का प्रयोग करते


हैं। इसमें सबसे महत्वपण
ू ा हैं तनगाहें । सभी श्रोताओं से
तनगाहें समलाना महत्वपण
ू ा है । जैसे लाइट-हाउस की बीम
लगातार घम
ू ती रहती है , उसी तरह सबकी ओर बारी-
बारी से दे खें, मस्
ु कुराएं और अपनी बात कहते जाएूँ। इसके
अलावा, आप कैसे खड़े होते हैं, श्रोता से ककतनी दरू ी पर या
ककतने नजदीक, आप उसको र्ेस करते हैं या नहीं, आप
मंच पर एक ही जगह मतू ता की तरह जड़वत खड़े हैं या थोड़ा ररलैक्स होकर दाएं-बाएं टहल भी रहे हैं, आप हाथों
और चेहरे के हाव-भाव का भी इस्तेमाल कर रहे हैं या नहीं - इन सबका असर आपके संचार पर पड़ता है ।

इसे सीखने का अच्छा तरीका है - दस


ू रों के वीडडयो दे खें और अपने वीडडयो भी बनाएं, मगर ककसी भी हाव-भाव
का प्रयोग ज्यादा न करें । ककसी मज़ेदार घटना का स्ज़ि करते हुए अपना वीडडयो बनायें| इसे ककसी दोस्त के
साथ बैठ कर दे खें – मगर आवाज़ ऑर् (म्यट
ू ) कर दें | क्या अब आपका दोस्त आपके हाव भाव से अंदाजा लगा
सकता है कक आप ककस बारे में बात कर रहे हैं? आप खुद भी ये अभ्यास करें , दस
ू रों के म्यट
ू वीडडयो दे ख कर
वविय का अंदाज़ा लगाएं| अब दोबारा वही घटना कर्र से बताएं और ररकॉडा करें – इस बार चेहरे के हाव भाव
और हाथों का खब
ू इस्तेमाल करें | कर्र से इस वीडडयो को दे खें| क्या आपने हाथ ज्यादा हहलाया मगर चेहरा
सपाट ही रहा? अगर हाूँ, तो दोबारा वीडडयो बनायें और अपने समह
ू में हदखाएं और र्ीडबैक मांगें| आस पास
ककसी धथएटर समह
ू से जुडें या अपने समह
ू में ही रोल-प्ले
(नक्
ु कड़ नाटक) का तनयसमत अभ्यास करें | रोल-प्ले परू े संचार
को तनखारने का बेहतरीन तरीका है |

ध्यान रहे कक संचार का असली इम्तहान टे लीर्ोन है । टे लीर्ोन


पर आप न तो हाव-भाव, न आखों का सहारा ले सकते हैं। अपनी
वाणी, वाणी के उतार-चढाव, शब्दों के चयन, शब्दों के बीच मौन,
ध्यान से सन
ु ना और श्रोता से र्ीडबैक मांगना - यही सब वह
कुछ कौशल हैं जो र्ोन पर भी आपकी मदद करते हैं। दृस्ष्ट
सम्पका और हाव-भाव भी जरूरी हैं, लेककन बोनस की तरह।

यानी आपको बहुत सारे कौशल (स्स्कल) सीखने हैं – धीरे -धीरे ,
अपने स्वयं सहायता समह
ू में, कर्र अजनबबयों के साथ, र्ोन पर

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भी, ववसभन्न सन्दभों में – जैसे स्लाइर्डस के साथ औपचाररक प्रस्ततु त करते हुए या इंटरव्यू आहद में । ये सब
आपका समह
ू आपके सलए आयोस्जत कर सकता है बशते आप पहल करें और समन्वयक को बताएं। ये न सोचें
की मझ
ु े ये सब क्यूँू सीखना पड़ रहा है? क्योंकक सच्चाई तो यह है कक जो नहीं हकलाते, वे भी कुशल संचार
स्जंदगी भर सीखते रहते हैं। स्जंदगी का ताना बाना, नाते ररश्तों, लेन दे न पर हटका है और इसकी जड़ में तछपा
है संचार, संवाद! तो क्यूूँ न सीखें ख़ुशी ख़ुशी ये महाववज्ञान? ये जीवन का गान, मस्ती की तान!

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सातिाूँ अध्याय
मन का खेि

हमें संचार को दो स्तरों पर समझने की जरूरत है । कुशल


संचारकताा वह है जो इन दोनों स्तरों की समझ रखता है
और दोनों ही स्तरों पर स्वयं को सम्हालने में तनपण
ु है ।
पहला स्तर है - दस
ू रों से बात करने के बारे में हम क्या
सोचते हैं? हमारे मन के अन्दर के डर, भावनाएं, ववश्वास
व मल्
ू य। हम दस
ू रों से बात भी करना चाहते हैं या नहीं?
क्य?
ूं क्या बात करना एक मजेदार चीज़ है या खतरनाक
काम? क्य?
ूँू आहद।

दस
ू रा स्तर है - बोलने की भौततक किया - स्जसमें शब्द,
आवाज, तनगाहें , हाव-भाव आहद शासमल हैं। अगर मन में यह ववचार उठा कक आज इंटरव्यू में कुछ गड़बड़ न हो
जाए - तो यकीनन हम हकलाते हैं। हकलाने के बाद अगर मन में आया - ओह, मैंने ये क्या कर हदया? तो
यकीनन हम आगे की बात भल
ू जाते हैं, और भी ज्यादा हकलाते हैं तथा एक ढलान पर नीचे की ओर कर्सलते
चले जाते हैं। यानी हमारे ववचार और हमारा बोलना - दोनों में गहरा सम्बंध है ।

तो अब प्रश्न है - मन में नकारात्मक ववचार न आएं - इसके सलए क्या ककया जा सकता है ? मन की एक
ववशेिता है कक स्जस बात की मनाही की जाए, वही ववचार मन में बार-बार उठता है । नकारात्मक आदे शों को
मन मानता ही नहीं। इसके बजाय सकारात्मक सझ
ु ावों को यह आसानी से ग्रहण करता है। “मैं र्ेसबक
ु पर
टाइम बबााद नहीं करूूँगा” का प्रण व्यवहार में लाना थोड़ा मस्ु श्कल है | मगर अगर हम ये सोचें : “आज से मैं हदन
की शरु
ु आत “बेटर इंडडया साईट” पर उत्साहवधाक लेख पढ कर करूूँगा” तो इसको व्यवहार में लाना बतनस्बत
आसन होगा| अगर आप ये करें तो कुछ समय बाद आप र्ेसबक
ु को भल
ू ही जायेंगे|

मगर नकारात्मक ववचारों को सकारात्मक ववचार नहीं, सकारात्मक कियाएं और पहल ही दरू कर पाती हैं।
पॉस्जहटव धथंककं ग पर ससर्ा ककताबें पढना या वीडडयो दे खना व्यथा है । ज्यादा प्रभावशाली है , पॉस्जहटव कदम
लेना। यानी ववचारों पर ववचार से नहीं, बस्ल्क कमा से ववजय पाई जा सकती है ।

उदाहरण : कमल अगले कुछ सालों में अपनी स्पीच को परू ी तरह बदल दे ना चाहता है । इससलए वह बहुत सी
ककताबें पढता है, उत्साहवधाक वीडडयो दे खता है आहद-आहद। दस
ू री ओर असभिेक इन सबके बजाय स्वयं
सहायता समह
ू से जुड़ता है । वहां हर हफ्ते वह कुछ नया सीखता है, करता है । वहां सीखी हुई बातें , वह बाजार
में , घर पर और ऑकर्स में भी धीमे-धीमे आजमाता है । एक विा बाद आप ककसमें ज्यादा बदलाव की उम्मीद
करते हैं, कमल में या असभिेक में?

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अब तीसरी महत्िर्ण
ू प बात : ‘बोलना खरतनाक है ’, यह डर हमने सालों में अपने अन्दर बबठाया है - बार-बार
अन्दर ही अन्दर दोहरा कर। बरु ी आदत को अच्छी आदत में बदलने के सलए भी वही करना पड़ेगा - बार-बार
दोहराना। इसके सलए अपने आप को थोड़ा समय दे ना होगा। अच्छी पहल, अच्छी आदतों में बदलने में समय
लेती हैं। समय से पहले अगर रूके, तो जहां से चले थे वहीं पहुंच जाएंगे।

चौथी बात - अपनी सोच को बदलने की लम्बी प्रकिया में वातावरण बहुत बड़ी भसू मका तनभाता है । सही
वातावरण समलने पर आम व्यस्क्त भी असाधारण उपलस्ब्धयां हाससल कर सकता है । यहाूँ वातावरण से हमारा
मतलब है - एक लक्ष्य आधाररत समह
ू । अगर हम ध्यान में तनपण
ु होना चाहते हैं, तो एक ध्यान मडडली; अगर
प्रततयोधगता की तैयारी करना चाहते हैं तो एक स्टडी ग्रप
ु ; अगर हम संचार पर काम करना चाहते हैं तो तीसा
जैसे स्वयं सहायता समह
ू । समह
ू लोगों से समलकर बनते हैं। अगर आप कहटबद्ध और गम्भीर नहीं हैं, तो
आपका समह
ू भी धीरे -धीरे बबखर जाएगा और तब आप अभ्यास ककसके साथ करें ग?
े क्योंकक संचार कौशलों
का अभ्यास कभी भी अकेले में नहीं ककया जा सकता|

र्ांचिी और आखखरी बात : अपने अन्दर आप वही चीजें बदल सकते हैं, स्जनका आपको आभास हो। अगर
आपको ‘मन के खेल’ का आभास भी नहीं है , तो इस खेल में तनपण
ु होना मस्ु श्कल है । बगैर मन के खेल को
समझे आप बेहतर संचार की दौड़ में आगे नहीं तनकल सकते।

तो, बडा प्रश्न है - हमें कैसे मालम


ू चले की हमारे मन में ककसी
क्षण क्या चल रहा है? इसका एक ही तरीका है: ध्यान की टॉचा जो
हमेशा बाहर की ओर मड़
ु ी रहती है , स्जसकी रोशनी में हम बाहरी
जगत के व्यापार को दे खते, समझते, परखते हैं - उस ध्यान की
टाचा को अन्दर की ओर मोड़ हदया जाए। रोज तनयसमत रूप से।
इसी का नाम ध्यान है । तरीका है - चुपचाप, शान्त, स्स्थर बैठना,
कम से कम एक घडटे (शरू
ु में)। इसके सलए जरूरी है कक हम सारे
सेलर्ोन, टीवी, म्यस्ू जक प्लेयर, कम्प्यट
ू र आहद बन्द कर दें और
ऐसा समय चुनें जब प्रकरतत भी शान्त है - सब
ु ह या शाम।

कुछ महीनों के अभ्यास के बाद जब ध्यान गहरा होगा, तब आप


अपने डर, अपनी ग्लातन और अपनी असरु क्षा की भावनाओं को बेहतर समझ पाएंगे और इनसे तनपट भी
पाएंगे। आपका बाहरी संचार खुद ब खुद बेहतर होता चला जाएगा।

अच्छा ध्यान, एक अच्छे एडटीवाइरस प्रोग्राम की तरह है । ये न ससर्ा कभी-कभी र्ाइलों को स्कैन करता है,
बस्ल्क मैमोरी में लगातार बैठकर कम्प्यट
ू र के अन्दर की हर प्रकिया पर तनगाह रखता है – चौबीसों घंटे। ध्यान
भी उसी तरह पष्र ठभसू म में लगातार सकिय रहने वाला प्रोग्राम बन जाए - इसके सलए आपको अपनी जीवनशैली
में कुछ छोटे -छोटे बदलाव करने होंगे। तभी ध्यान का र्ायदा आपको संचार की हर स्स्थतत में अपने आप
समलेगा। ये तमाम बदलाव धीमे-धीमे करें , अगले 1-2 सालों में । ये हैं-

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1. जल्दी सोएं ताकक आप सब
ु ह जल्दी उठ सकें। सब
ु ह का शांत समय ध्यान और डायरी सलखने के सलए अच्छा
समय है ।

2. जल्दी सोने के सलए, अपना सारा काम जल्दी व समय पर तनपटाएं और रात दस बजे के आसपास सेलर्ोन,
कम्प्यट
ू र आहद बन्द करें या साइलेन्ट मोड में डालें। बबस्तर पर बैठें और ध्यान करते-करते सो जाएं। कोई
अच्छी उत्साहवधाक ककताब पढते हुए भी सो जाना एक अच्छा तरीका है ।

3. हदन में काम समय पर कैसे तनपटाएं? जो काम कहठन लगते हैं, उन्हें सबसे पहले सब
ु ह तनपटाएं। इसके
सलए एक टाइमर/अलामा भी इस्तेमाल कर सकते हैं। अगर आपको परीक्षा की तैयारी के सलए एक ववशेि
ककताब पढना उबाऊ लगता है तो सब
ु ह 30 समनट का अलामा लगाएं और स्वयं से कहें : ससर्ा 30 समनट, मैं ये
ककताब पढने जा रहा हूूँ - सब कुछ छोड़कर - चाहे जो हो जाए!

इसके बाद उन कियाकलापों को छांटें और बदलें, जो आपको अच्छे लगते हैं मगर समय बबााद करते हैं: बार-
बार ई-मेल चेक करना, इन्टरनेट पर व्यथा ब्राउस्जंग करना, अपना ब्लॉग बार-बार चेक करना, ‘सबवे सर्ा’ या
‘टे म्पल रन’ जैसे वीडडयो गेम खेलना आहद। इन आदतों को बदलने के सलए तनयम बनाएं: ई-मेल का जवाब
पहली बार में ही पढकर तरु न्त दें ; बार-बार चेक करने के बजाय ई-मेल नोहटकर्केशन टूल्स का इस्तेमाल करें ,
सारे ई-मेल का जबाव दे ने के बाद ही ‘सबवे सर्ा’ खेलें या ब्लॉग चेक करें । मगर उसकी भी समय सीमा तय
करें ।

4. हदन की शरू
ु आत और अन्त, ध्यान से करें । ककसी आध्यास्त्मक संस्था से जड़
ु ें। ववपासना, ब्रम्ह ववद्या,
राजयोग, ध्यान आहद ठीक से सीखें और तनयसमत अभ्यास करें । ऐसे ककसी समह
ू से जुड़ना र्ायदे मन्द होगा।
ये अभ्यास समह
ू में करने के बहुत से र्ायदे हैं|

5. शरीर और मन में एक गहरा सम्बंध है । कुछ


लोग मानते हैं कक शरीर और मन एक ही ससक्के के
दो पहलू हैं। आप मन को शरीर के द्वारा तनयस्न्त्रत
कर सकते हैं- जैसे अगर पेंससल के सलखने वाले ससरे
को घम
ु ाएं तो समटाने वाला ससरा भी घम
ू ता है । अगर
आप तनयसमत रूप से व्यायाम करते हैं और अपने
शरीर पर अच्छा तनयन्त्रण रखते हैं तो आपका मन
भी नकारात्मकता से जल्दी बाहर तनकलेगा और अच्छे संचार में आपकी मदद करे गा। व्यायाम में सभन्नता
बनाएं रखें । सप्ताह में कुछ हदन योगासन, कुछ हदन स्जम या जूडो-कराटे या जॉधगंग, कभी तैरना या
साईककसलंग, कभी रै ककं ग और कभी टैंगो डांस! ये कियाकलाप भी अकेले करने के बजाय कुछ दोस्तों के साथ
करना ज्यादा मजेदार और स्थायी होगा।

6. जीवनशैली में बदलाव के बारे में दोस्तों और पररवार को बताएं, ताकक वे आपकी मदद कर सकें।

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7. डायरी तनयसमत रूप से सलखें और बीच-बीच में इसे पढें । इससे आपको समझ में आएगा कक आपके अन्दर
सकारात्मक बदलाव आ रहे हैं - भले ही ऊपर से ऐसा न लग रहा हो।

8. बीच-बीच में कुछ नया और चन


ु ौती भरा भी आजमाएं। न केवल भौततक रूप में, बस्ल्क भावनात्मक रूप में
भी। जैस,े अपना एक जन्महदन दोस्तों के बजाय ककसी वद्धाश्रम
र ृ़ में मनाएं।

9. ककसी अनभ
ु वी, वररष्ठ दोस्त या सहकमी को अपना लाइर् कोच (गरू
ु ) बनाएं। लगातार उसके सम्पका में
रहें । अपने ववचार उसे बताएं और उसकी राय लें। कई बार, दस
ू रे वह दे ख पाते हैं, जो हमारे इतना करीब है कक
हमें उसका अहसास भी नहीं होता। इससलए एक अच्छा दोस्त या कोच हमारी मदद कर सकता है ।

अन्ततः एक समय ऐसा आएगा जब न केवल आपका संचार बदल चुका होगा, बस्ल्क जीवन के प्रतत आपका
परू ा दृस्ष्टकोण बदल चुका होगा।

इस राह र्र मजु श्किें बहुत सारी हैं। विशेषकर :-

1. हम प्रायः ववपासना एक बार करते हैं और उम्मीद करते हैं कक दस हदन में हमारी सारी मस्ु श्कलें हल हो
जाएंगी। ववपासना में जो सीखा, उसे घर पर नहीं करते। धीरे -धीरे सब भल
ू कर अपनी परु ानी स्जन्दगी की ओर
लौट जाते हैं।

2. कई बार हम परू ी जीवनशैली में बदलाव लाने के बजाय ससर्ा सतही तौर पर एक-दो चीजें बदलने का प्रयास
करते हैं - या बदलाव को एक योजनाबद्ध तरीके से नहीं करते। कभी-कभी बहुत सारे बदलाव एक साथ करने
का प्रयास करते हैं। लेककन थोड़ी मस्ु श्कल आते ही तनराश हो जाते हैं और सब कुछ छोड़ कर भाग खड़े होते हैं।

3. हम लम्बे समय तक योजनाबद्ध ढं ग से काम करने का मन नहीं बनाते। कुछ हफ्तों या माह में ठडडे पड़
जाते हैं। “बद्
ु धधजीवी” ककस्म के लोग अक्सर इस जाल में र्ंसते हैं। उन्हें लगता है – सब पढ सलया, समझ
सलया और सब हो गया! जब करने की बारी आती है तब तक सारी उजाा ख़त्म हो चक
ु ी होती है ।

4. हम अकेले-अकेले प्रयास करते रहते हैं, ककसी समह


ू से नहीं जुड़ते। पररवार व दोस्तों को अपना मददगार
नहीं बनाते। जल्दी ही तनराश हो जाते हैं और सारे प्रयास छोड़ दे ते हैं।

अन्त में, ध्यान दें - अच्छा बोलने में एक बाहरी प्रकिया है और एक अंतमान का खेल है । अगर मन उत्साहहत है,
तनभाय है और आश्वस्त है तो हम जरूर अच्छी प्रस्ततु त दे पाएंगे। मन को आप जब चाहें , ऐसा बना सकते हैं।
यही है मन का खेल। इस पर ववजय पाने के सलए अपनी जीवन शैली में धीरे -धीरे सकारात्मक बदलाव लाएं।
अगर मन आपका है, तो ये जंग भी आपकी है । मन के जीते जीत है, मन के हारे हार!

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आठिाूँ अध्याय
जीिन मल्
ू य और आत्मविश्िास

कहातनयों और समथकों की हमारे जीवन


में गहरी भसू मका है । ये जाने-अनजाने
हमारे व्यवहार को तनरूवपत करते हैं।
जैसे भारतीय होने का हमारे सलए एक
ववशेि मतलब है । यह ववदे श में जाने पर
भी हमारे साथ बना रहता है । इसके असर से परू ी तरह आजाद होना मस्ु श्कल है । इस से कभी र्ायदे होते हैं तो
कभी मस्ु श्कलें। इसी तरह व्यस्क्तगत स्तर पर भी कुछ मल्
ू य, कुछ ववश्वास हमेशा हमें प्रभाववत करते रहते हैं।
कई बार इन्हें हम एक छोटी सी कहानी के रूप में खद
ु को सन
ु ाते रहते हैं:-

मेरा इन्टरव्यू गड़बड़ हो गया। और क्या होता? मैं तो हकलाता हूूँ ..

ऐन मौके पर मेरी बस छूट गई। हकलाने वाले के साथ और क्या होगा!

मैं ककतने अच्छे ववचार रखता हूूँ। कोई भी सराहता नहीं। शायद मैं इसी काबबल हूूँ ...

मेरा कैम्पस इन्टरव्यू अच्छा हो गया। मगर अब आगे की धचन्ता है मुझ।े कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर होगी अब...

मैं जुझारू इन्सान हूूँ। पूरी स्जन्दगी मुस्श्कल से जूझता रहा हूूँ। आगे भी जूझता रहूूँगा ...

मुझे अकेले ही मजा आता है । लोग बकवास लगते हैं...

अगर आप गौर करें , तो पाएंगे कक हमारा मन अक्सर ऐसी ही नकारात्मक बातें और भववष्यवाणणयां करता
रहता है । एक तरह का वाताालाप अन्दर चलता रहता है , जो हमें हीनभावना और तनराशा से भर दे ता है । हम हर
नई पररस्स्थतत और संभावना को नकारात्मक रूप में ही लेते हैं। इस तरह जीवन के प्रतत दृस्ष्टकोण और हमारी
आत्मछवव बेहद नकारात्मक हो जाती है । क्या इन्हें बदले बगैर हम अपना संचार, अपने नाते-ररश्ते, अपनी
शैक्षक्षक उपलस्ब्धयां, रचानात्मकता व अन्य बौद्धधक व सामास्जक कुशलताओं को बदल सकते हैं? शायद
नहीं।

आत्मछवि : हमारे मन में हमारी ये नकारात्मक छवव कहां से, कैसे आई? बचपन में हमने औरों से अपने बारे
में या अपने सलए जो भी सन
ु ा, महसस
ू ककया - वह हमारे मन में हमारी पहचान बनता चला गया। बाद में एक
समय ऐसा आया कक हमने अच्छी बातों को नकारकर, ससर्ा अपनी कसमयों पर ही गौर करना शरू
ु कर हदया।
धीरे -धीरे हमारी आत्मछवव इतनी नकारात्मक बन गई की हम अपने से कोई भी अच्छी उम्मीद नहीं रखते।
और यही सब हमारे बोलने में भी झलकता है ।

पर हम अक्सर एक बात भल
ू जाते हैं। दतु नया वह नहीं रही जो बीस साल पहले थी, जब हम बच्चे थे और हमें
धचढाने वाले भी बच्चे थे। लोग बदल गए हैं - हम भी बदल चुके हैं। इससलए हम अपनी मानससकता और अपना

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संचार बदल सकते हैं। पहले ये जान लें कक क्या और ककसे बदलना है, यानी हमारी मानससकता अभी क्या है?
इसे समझने के सलए परू ी ईमानदारी से नीचे हदए गए वाक्यों के आगे अपनी प्रततकिया दें : अगर आप सहमत
हैं तो सही पर तनशान लगाएं अन्यथा गलत पर।

1. मेरा धगलास हमेशा आधा खाली है - आधा भरा नहीं।  

2. मैं हमेशा हर बात के सलए मार्ी ही मांगता रहता हूूँ।  

3. मझ
ु े हमेशा लगता है कक मझ
ु े ऐसा करना चाहहए था या वैसा करना चाहहए था।  

4. मैं अक्सर अन्दर ही अन्दर अपनी आलोचना करता रहता हूूँ।  

5. दस
ू रे मेरे बारे में क्या सोचते हैं - इससे मझ
ु े र्का पड़ता है ।  

6. मैं गलततयां करने के बाद उसके बारे में बार-बार सोचता हूूँ।  

7. मैंने अपने दोस्तों और पररवार के लोगों का हदल दःु खाया है ।  

8. मझ
ु े अक्सर लगता है कक दतु नया भर का बोझ मेरे कन्धों पर है ।  

9. छोटी सी भल
ू भी बड़ी भल
ू के समान गम्भीर मामला है ।  

10. मैं औरों को खश


ु करने के सलए जी-जान लगा दे ता हूूँ।  

11. मझ
ु े अपनी अच्छाईयां हदखाई नहीं दे तीं - जब दस
ू रे लोग बताते हैं, तब हदखती हैं।  

12. लोगों की गलततयों को भल


ू ना और मार् करना मेरे सलए मस्ु श्कल है ।  

13. नाते-ररश्ते तनबाहने के सलए मझ


ु े औरों से ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है और मझ
ु े डर है कक ये नाते-ररश्ते
दे र-सबेर टूट जाएंगे।  

14. अगर मैं औरों के बराबर काम न कर पाऊं तो इसका मतलब है मैं औरों से कमतर हूूँ।  

15. अगर कोई काम मैं बेहतरीन न कर सकंू , तो इसे करना ही व्यथा है ।  

र्ररणाम : अब अपने आपको हर उस कथन के सलए एक अंक दें स्जसे आपने सही माना है । इसका योग कर लें।
योग नीचे स्जस श्रेणी में आता है , उसके आगे दी गई समीक्षा को ध्यान से पढें ।

0-4 अंक : आपकी सोच सामान्यतः सकारात्मक है । स्वयं को बधाई दें और अपनी सकारात्मक सोच को आगे
भी जारी रखें ।

5-8 अंक : आप सम्भवतः कुछ नकारात्मक भावनाओं से जूझ रहे हैं। करपया अपनी अच्छाईयों और गण
ु ों पर
भी ध्यान दें , उन पर मनन करें , उनकी एक लम्बी सी सलस्ट बनाएं।

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9 से ज्यादा अंक : आप अपनी ही आलोचना करते रहे हैं। इसने आपको बेहद नकारात्मक बना हदया है । अपनी
सोच को बदलने की चुनौती को स्वीकार करें और नीचे हदए सझ
ु ावों को आजमाएं।

नकारात्मक सोच से कैसे आजाद हों?

1. अच्छे पररणाम की कल्पना करें , उम्मीद करें । जो पररणाम आप चाहते हैं, उसे ध्यान में मत
ू ा रूप दें
(ववजुअलाइज करें )। उसके बारे में सलखें, बातें करें ।

2. भरसक आप जो कर सकें, कर डालें। जो न करते बने उसकी धचन्ता, उसका मलाल मन में न रखें । डू योर
बेस्ट, लीव दी रे स्ट।

3. सकारात्मक और उत्साहवधाक ववचारों से अपनी हदनचयाा और वातावरण को भरें । न्यज


ू कम से कम दे खें
क्योंकक ये अक्सर बरु ी घटनाओं पर ही केस्न्रत होती है ।

4. यथासम्भव सकारात्मक लोगों का साथ करें ; न तो खद


ु नकारात्मक बातें करें , न ऐसे लोगों के साथ ज्यादा
वक्त बबताएं।

5. जब भी खाली हैं या जैसे सर्र कर रहें हैं - तब सकारात्मक प्रततज्ञा (पॉस्जहटव एर्मेशन) दोहराएं: मैं
हकलाता हूूँ और मझ
ु े इससे कोई समस्या नहीं; मैं कुशल संचारकताा हूूँ; मैं अच्छी प्रस्ततु त दं ग
ू ा; मैं बहुत बहढया
समझाऊंगा, आहद। इन्हें आप बार-बार सलख भी सकते हैं। सलखकर सामने दीवार पर भी लगा सकते हैं।

6. गलततयां होने पर अर्सोस करने के बजाए, उन पर मनन करें और सोचें की दोबारा उनसे कैसे बचा जा
सकता है । गलततयां करना बबल्कुल स्वाभाववक है पर वही गलततयां बार-बार दोहराते रहना जरूर अर्सोसनाक
है ।

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7. भरसक सभी कामों की योजना बनाएं और उस योजना को मौके के अनस
ु ार थोड़ा बदलने के सलए भी तैयार
रहें । जैसे कल जो-जो काम करने हैं, र्ोन करने हैं या ई-मेल भेजने हैं - इसकी एक छोटी सी सलस्ट रात में ही
बना लें। कहठन या महत्वपण
ू ा कामों को सब
ु ह ही तनपटाने का प्रयास करें ।

8. हर छोटी या बड़ी सर्लता का जश्न मनाएं; ऐसे मौके पर अपनी पीठ थपथपाने में कंजस
ू ी न करें । स्वयं को
सराहना (एवप्रसशयेट करना) सीखें । इसके सलए दोस्तों के साथ पाटी या कोई अच्छी कर्ल्म या ससर्ा आईसिीम
भी चलेगी। अपनी डायरी या ब्लॉग में भी सलखें : आज मैंने ये सर्लता हाससल की। तनराशा के क्षणों में ये
डायरी पढें , इस से मदद समलेगी|

9. अपने इदा -धगदा एक अच्छी टीम या दोस्तों की मडडली ववकससत करें । टीम वका (सहकाररता) को बढावा दें ।

10. अपनी सर्लताओं को ओझल न होने दें । उनके स्मतर त धचन्ह सम्हाल कर रखें । ग्रप
ु र्ोटो, रॉर्ी,
सहटा कर्केट आहद। इन्हें बार-बार दे खें और खुद को याद हदलाएं कक प्रयास करके आप कुछ भी हाससल कर सकते
हैं और आपने ककया भी है ।

11. आभार तासलका (थैंक्यू सलस्ट) : कभी-कभी अपनी डायरी में लम्बी-सी सलस्ट बनाएं, ऐसे : मैं आभारी हूूँ
........ का, कक मेरे पास एक स्वस्थ शरीर है , आहद। शरू
ु में ससर्ा 3-4 ही ऐसी बातें सझ
ू ेंगी मगर लगे रहें ;
हर वो बात स्जसका श्रेय आप खुद को ईमानदारी से नहीं दे सकते, उसको सलखते चले जायें| कुछ
हदनों में ये सलस्ट कार्ी लम्बी हो जाएगी और आप को कुछ कुछ आभास होगा कक हकलाने के
बावजद
ू आप ककतने भाग्यशाली हैं; पररवार, समाज व ईश्वर से ककतना कुछ समला है ; आपके जीवन
में ककतना कुछ अच्छा घहटत हुआ है और हो रहा है | ये अभ्यास बार बार करते रहने से आपका
जीवन के प्रतत दृस्ष्टकोण बदलने लगेगा| दृस्ष्टकोण बदलने पर धीरे धीरे आपके इदा धगदा स्स्थततयाूँ,
नाते ररश्ते और संचार भी बदलने लगेगा|

जोहै री विण्डो

यह स्वयं को समझने और बदलने का एक अच्छा मनोवैज्ञातनक तरीका है । पहले हम इसे समझेंग,े कर्र इसके
प्रयोग से स्वयं को समझकर, बदलाव की प्रकिया की ओर बढें गे। अपने सबसे अच्छे दोस्त को साथ लेकर ये

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अभ्यास करें । एक बड़ा पेपर लेकर उसमें अपना नाम सलखें और नीचे बताए गए चार खाने बनाएं। पहले इस
ववंडो को यहाूँ एक धग्रड के रूप में समझ लें:

मैं जानता हूूँ मैं नहीं जानता हूूँ

दनु नया 1. सावाजतनक मैं : मेरे बारे में वह सबकुछ 2.अनजान मैं: मेरे वह गण
ु और पहल,ू जो
जानती है जो मैं जानता हूूँ और दतु नया भी जानती है । दतु नया जानती है, मगर मैं अनसभज्ञ हूूँ।

दनु नया 3. गप्ु त मैं: मेरे व्यस्क्तत्व के वे पहलू स्जन्हें 4. अज्ञात मैं: मेरी वह क्षमताएं स्जन्हें न
नहीं मैं जानता हूूँ , तछपाता हूूँ - और इससलए मैं जानता हूूँ , न दतु नया।
जानती है दतु नया नहीं जानती।

पहले वगा (सावाजतनक मैं) में अपने वह सारे गण


ु , अवगण
ु , व्यस्क्तत्व के पहलू और पहचान जो आप और
आपके इदा -धगदा लोग जानते हैं, उन्हें सलखें ।

इसके बाद तीसरे वगा (गप्ु त मैं) को भरना शरू


ु करें । इसमें वे बातें सलखें जो ससर्ा आप जानते हैं, आपके साथी
नहीं। ये मस्ु श्कल हो सकता है मगर कोसशश करें | इसमें आप अपने बारे में अभी जो भी बांट सकें,
बांटें|

अब दस
ू रा वगा (अनजान मैं) भरा जाना है । इसके सलए आप और आप का घतनष्ठ समत्र एक-दस
ू रे की मदद
कर सकते हैं। घननष्ठ लमत्र ही इस चरण में आपकी मदद कर पायेगा| ये एक तरह का र्ीडबैक सत्र है
स्जसमें ये बेहद जरूरी है कक आप अपने अहम ् के प्रतत सजग रहें और उसे तनरन्तर दबाकर रखें- ताकक आप
अपने समत्र के र्ीडबैक को बगैर बहस ककये सन
ु सकें। अगर आप सहमत हैं तो उसको वगा 2 में सलखें ।

उदाहरण के सलए: आप का समत्र आपके बारे में दो बातें बताता है : तुम वायदा हर चीज का कर दे ते हो, मगर पूरा
नहीं करते; दस
ू री बात – तुम हमेशा लेट आते हो।

इसे परू े ध्यान से सन


ु ें, आंखें समलाकर, बीच में न टोकें। और भी र्ीड बैक मांगें। जब दोस्त की बात खत्म हो
जाए तो मनन करें कक कौन-कौन सी बातें सही हैं। उन्हें वगा दो में सलखें । कुछ मद्
ु दों पर अगर आप को शक है
तो उससे पछ
ू ें : वायदा परू ा न करने के कुछ ठोस उदाहरण मांगें। अगर वह एक दो सही उदाहरण दे पाता है , तो
आपको इसे शासमल करना चाहहए, क्योंकक इन आदतों को स्वीकार करने के बाद ही, आप इन पर काम कर
पाएंगे।

इसी तरह आप भी मांगने पर अपने समत्र को सही-सही र्ीड बैक दें - बदले की भावना से नहीं, बस्ल्क इस
अभ्यास को सही ढं ग से परू ा करने के सलए।

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इतना सब भरे जाने पर आप और आप का दोस्त, अगर दोनों राजी हैं, तो अपने पेपर की अदला-बदली करें ,
समीक्षा करें और एक-दस
ू रे को सझ
ु ाव दें - लेककन परू ी ववनम्रता और ध्यान से। अनजाने में भी ठे स न पहुचाएं
और न ही अपने अहम ् को सांप की तरह र्न उठाने दें ! अगर आप सचेत नहीं हैं तो ये दोनों ही बातें हो
सकती हैं, आप एक अच्छा दोस्त खो सकते हैं और ये अभ्यास चौपट हो सकता है ! इस अभ्यास के
सलए बेहद पररपक्वता, समझदारी और अपने आप से ईमानदारी की जरुरत है |

जो बातें आपने अब तक तछपाई थी, उनके बारे में भी दोस्त से ध्यानपव


ू क
ा बात करें । अगर वह असहज है तो
रूकें। अगर वह कोई भी प्रततकिया न दे , तो दःु खी न हों। आप यह सब बताकर अपना हदल हल्का कर रहे हैं,
अपनी सहजता (कम्र्टा लेवल) बढा रहे हैं। इससलए ककसी ववशेि प्रततकिया की उम्मीद न करें ।

“अज्ञात मैं” (चौथा वगा) को जानने के सलए आप दोनों को तनत नई-नई चुनौततयां या खतरे उठाने होंगे। तभी
आप जान पाएंगे कक आप में क्या संभावनाएूँ तछपी हुई हैं| आपस में बात करें कक ये चुनौततयां आप दोनों
के संदभा में क्या हो सकती हैं, कैसी हो सकती हैं? जैसे मान लें, आप एक शमीले व्यस्क्त हैं जो अपने
काम से काम रखता है । एक हदन ऑकर्स में अपने बॉस को, कलेजा कड़ा कर, एक काम्पलीमेन्ट दें । इसमें
खतरा है । हो सकता है कक बॉस इसे गलत अथा में ले। मगर ये भी मम
ु ककन है कक वह इसे सही रूप में लें और
इस बात की सराहना करें । पररणाम जो भी हो, ऐसा करने के बाद आप जान पाएंगे कक आप में ररस्क लेकर एक
वररष्ठ साथी को सावाजतनक रूप से साधुवाद दे ने की क्षमता है । ये आपको पहले नहीं पता था। ककसी साथी के
जन्महदन पर अगर कोई गाना सन
ु ाने की गज
ु ाररश करे तो ररस्क लें और गाना गायें| इस तरह आप का
“सावाजतनक मैं” धीरे -धीरे बढे गा और “अज्ञात मैं” ससकुड़ता जाएगा।

इस तरह दे खें तो, आप वास्तव में कौन हैं, इस पररभािा, इस समझ को बढाते जाने के तीन तरीके हैं : 1)
अपने साधथयों से र्ीड बैक मांगना और ध्यान से सन
ु ना 2) अपने बारे में ज्यादा से ज्यादा दस
ू रों को
बताना, ब्लॉग पर सलखना आहद और 3) तनत नई-नई चुनौततयों को स्वीकार करना; पररणाम चाहे जो भी हो,
आप हर हाल में र्ायदे में रहें गे!

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ये तो है आप कौन हैं - इसका उिर
सामास्जक सन्दभा में, इसके परे ,
आध्यास्त्मक दृस्ष्ट से आप कौन हैं?
कभी-कभी हकलाने वालों को ये प्रश्न
बहुत उद्वेसलत करता है । इसका जवाब
आसान नहीं। मैं कौन हूूँ? लगातार यह
पछ
ू ते जाना एक पथ है , स्जसे रमण
महविा ने लोकवप्रय बनाया था। दस
ू रे पथ
भी हैं - जैसे ध्यान, ववपासना,
ब्रम्हववद्या आहद।

अन्ततः, अपने इस अभ्यास वाले पष्र ठ


को सम्हालकर रखें - साल दर साल। जब
भी मौका समले - इसे लेकर यही अभ्यास
पन
ु ः नए साधथयों के साथ या अपने स्वयं
सहायता समह
ू में करें क्योंकक आप हर
क्षण बदल रहे हैं। हर साल एक नया पष्र ठ
प्रयोग करें । वपछले विों से तल
ु ना करें ।
एकाएक आपको समझ आएगा कक आप
ने ककतनी बड़ी दरू ी तय कर ली है ।
हकलाना तो ससर्ा एक शरु
ु आत थी इस मजेदार सफ़र की - और सफ़र हमेशा ज्यादा मनोरं जक होता है , मंस्जल
पर पहुूँचने के बजाय! ओके?

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समूह किया: जीिन का िेखा जोखा – टाइमिाइन

इस अभ्यास को अपने स्वयं सहायता समूह में करें , बहुत मजा आएगा और सीख समलेगी| ए4 कागज ले लें
और एक गोले में बैठ जाएूँ| समन्वयक ये तनयम समझा दे : नीचे हदए धचत्र के अनस
ु ार एक सीधी लाइन खीचें
और उस पे सारे महत्त्वपण
ू ा विा बबन्दव
ु ार हदखाते चले जाएूँ; क्यूूँ महत्त्वपण
ू ा था, ये लेबल भी डालते जाएूँ: जन्म,
सशक्षा, दोस्तों से मुलाकात, ककसी परीक्षा या प्रततयोधगता में सर्लता, नयी जॉब, शादी ब्याह आहद| ये पूरा होने
पर बारी बारी से सब समूह में अपनी टाइमलाइन के बारे में बताएं| दस
ू रे चि में : जीवन की चुनौततयों
(दघ
ु ट
ा नाएं, अनचाहे बदलाव) को भी इसी चाटा पर डालना शुरू करें | इन्हें पूरे समूह में बांटना जरुरी नहीं है ,

मगर समन्वयक चाहे तो अपना उदाहरण पेश कर सकता है ताकक दस


ू रे साथी भी हहम्मत कर के जीवन के
दख
ु द क्षणों के बारे में बात कर सकें और उनसे सीख ले सकें|

अब तीसरे चि में तमाम अच्छी बरु ी घटनाओं के आपसी संबंधों के बारे में सोचें और इन्हें तीर के तनशाूँ से
हदखाने की कोसशश करें : आपका पररवार कानपुर छोड़ कर हदल्ली में जा बसा, क्या इस सलए आप अगले साल
दसवीं में र्ेल हो गए? क्या आपकी दोस्ती रमेश से हुई, इसी सलए एक साल बाद आपने भी उसकी तरह बी.
टे क करने का मन बनाया? अब समूह को मौका दें की जो चाहे वह अपने ववचार, अपनी समझ बाूँट सकता है |

आणखरी चि में सभी सहभाधगयों से कहें कक अब वे अपने आने वाले पांच या दस सालों कक सम्भाववत घटनाओं
को अपने टाइमलाइन पर हदखाने का प्रयास करें | हमारा अतीत अक्सर हमारे भववष्य पर हावी रहता है , जब
तक कक हम इस सच्चाई को अच्छी तरह समझ कर, जीवन की हदशा को तनयोस्जत ढं ग से बदलने का प्रयास
नहीं करते| आणखर में , सबको अपनी समझ बांटने का मौका दें , धन्यवाद दें और सत्र का समापन करें | सभी से
अपनी टाइमलाइन सम्हाल कर रखने का तनवेदन करें , ताकक कुछ महीने बाद यही अभ्यास दोबारा ककया जा
सके| इस अभ्यास में अधधकतर प्रततभाधगयों को अपने बारे में गहरी अंतदृास्ष्ट समलती है और वे नए अवसरों के
प्रतत सजग होते हैं|

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नौिां अध्याय
लसतारों के आगे जहाूँ और भी हैं...
स्वयं सहायता का एक मस्ु श्कल पहलू है - जब हम हतोत्साहहत होते हैं,
तब हम सब कुछ, सारे प्रण भल
ू जाते हैं और पास में कोई थैरेवपस्ट भी
नहीं होता जो हमें आगे ढकेले। हकलाने वालों के जीवन में ऐसे अंधेरे
क्षण अक्सर आते हैं। कॉलेज में एक प्रस्ततु त खराब हो गई और बस,
हम तनराशा में डूब जाते हैं और सारे अभ्यास छोड़ दे ते हैं। ऐसे में खद

को सम्हालने और अपने अभ्यास को जारी रखने के सलए एक ववशेि
मानससक व भावनात्मक अनश
ु ासन की जरूरत है । अगर आप थोड़े
रचनात्मक व कल्पनाशील हैं तो ये आप आसानी से कर सकते हैं। आइए समझें की हकलाने वाले ‘सेल्र्
स्टाटा र’ कैसे बन सकते हैं। यानी अपनी चाभी, अपने हाथ!

सिपशजक्तमान िातािरण : पहली बात हमें ये समझनी होगी की हमारी अपनी इच्छाशस्क्त ककतनी भी दृढ क्यों
न हो, वातारण के आगे यह कुछ भी नहीं! आप जब भी अपने आप को बदलने का प्रयास करते हैं तो पररवार,
दोस्त, सहकमी जाने-अनजाने इसे तनष्र्ल बना सकते हैं, बना दे ते हैं। अगर ये सब आपसे कहते रहें : तुम तो
नहीं हकलाते, जरा सा रूकते हो, तुम्हें क्या जरूरत है यहां-वहां जाने की? तो तनस्श्चत रूप से आप न तो स्वयं
सहायता समह
ू में जाएंगे और न ही थैरेपी आजमाएंगे। इसी तरह से जब आप कोई नई तकनीक का अभ्यास
कर रहे हैं और कोई यह कह दे – यार, तुम पहले जैसा बोलते थे, वही अच्छा था! तब आप के सलए कुछ भी नया
सीखना या आजमाना कार्ी मस्ु श्कल हो जाएगा। मगर जाने अनजाने यही सब हमारे साथ होता रहा है !

अपना पररवार, सहकमी व दोस्त – इन्हें हम रातोंरात बदल नहीं सकते, छोड़ नहीं सकते। मगर एक नए
पररवार से जरूर जुड़ सकते हैं! यह नया पररवार है - स्वयं सहायता समह
ू । इस समह
ू में आप नए कौशल, नए
व्यवहार आजमा सकते हैं। अपना डर या ददा बांट सकते हैं, और कुछ मजेदार कियाकलापों में भाग ले सकते हैं,
क्योंकक यहां हर कोई उन सारे अनभ
ु वों से गज
ु रा है स्जनसे आप गज
ु रे हैं। हर व्यस्क्त आपको गहराई से
समझता है । अगर हकलाना बायोलास्जकल घटना है तो ये लोग ही आपकी असली बायोलास्जकल र्ैसमली हैं!
सबसे बड़ी बात – ये कभी आपको हतोत्साहहत नहीं करें गे।

स्वयं सहायता समह


ू - व्हाट्सएप, स्काइप, गग
ू ल हैंगआउट पर आधाररत भी हो सकते हैं। जब भी आप ककसी
ऐसे समह
ू से जड़
ु ें तो कुछ बातों का ख्याल रखें : ध्यान से दस
ू रे की बात सन
ु ना, उसकी मदद करने के समान है ।
सम्मान से सन
ु ना और सराहना ही बहुत है । इससे आगे जाकर कोई तकनीक बताना, सझ
ु ाव दे ना अनावश्यक
है - जब तक कक कोई आपसे ववशेि रूप से न कहे । इसी तरह आप औरों से र्ीडबैक मांगने को आजाद हैं पर
दे ने को नहीं!

अपना हाथ जगन्नाथ _ 40 / 48


स्वयं सहायता में आप अपनी सन
ु ाएं, दस
ू रों की सन
ु ें और सब कुछ सम्हाल कर अपने तक ही सीसमत रखें ।
समह
ू एक ववश्वास पर हटका है , स्जसका सदै व सम्मान ककया जाना चाहहए। दस
ू रों की र्ोटो, ऑडडयो या
वीडडयो जब भी लें, तो उनसे अनम
ु तत लें। उनके जीवन की घटनाओं का स्जि बाहर न करें । दस
ू रों को,
ववशेिकर बच्चों, यव
ु ाओं व लड़ककयों को ज्यादा समय और अवसर दें , बोलने के, भाग लेने के।
ऑनलाइन समहू ों में समय की पाबन्दी और ज्यादा महत्वपण
ू ा है । सत्र शरू
ु होने से पहले ही, एंकर या
सग
ु मकताा (र्ैसससलटे टर) को ई-मेल या एस.एम.एस से बताएं कक आपकी ववशेि आवश्यकताएं क्या हैं? जैसे
आप गज
ु ाररश कर सकते हैं कक वे आपके सलए 5
समनट का इंटरव्यू आयोस्जत करें , आहद। हमेशा
अपनी बात हदए गए समय में समेटें ताकक
दस
ू रे प्रततभागी को भी पयााप्त समय समल
सके|

अगिा कदम : अगर आप ऊपर बताई स्वयं


सहायता गततववधधयों से कुछ समय तक जुड़े रहे
हैं तो अब वक्त है खुद भी ककसी ऐसे समह
ू की
स्जम्मेदारी अपने कन्धे पर लें। एक समह
ू को
चलाना एक बहुत अच्छा अभ्यास और अवसर है ।
इसमें आप सॉफ्ट स्स्कल सीखें गे - समह
ू का समन्वय, तनयोजन, अनश्र
ु वण (मातनटररंग) व मल्
ू यांकन
(इवैल्यए
ु शन) आहद। ये तमाम कियाकलाप करने में आपका न ससर्ा संचार बेहतर होता है बस्ल्क आप एक
अच्छे काउन्सलर, र्ैसससलटे टर और मैनेजर बनते हैं।

जब आप ऐसी कोई भसू मका तनभाना शरू


ु करते हैं तो एक मजेदार बात और होती है : आपका र्ोकस "मैं और
मेरी हकलाहट" से आगे बढ जाता है । आप स्जन्दगी को उसकी समग्रता में समझना शरू
ु करते हैं। आपको ये भी
समझ आना शरू
ु होता है कक स्जस चीज ने आपको अब तक पीछे रोका हुआ था, वह हकलाना नहीं बस्ल्क ससर्ा
हकलाने का डर था। कुछ दस
ू री बातें - जैसे हर काम को टालना, दस
ू रों से कतराना, मौके समलने पर कन्नी काट
लेना, बहानेबाजी करना - ये वे बातें थीं, स्जन्होंने हमें पीछे रोका हुआ था। एक समन्वयक के रूप में, आपको
इन पहलओ
ु ं पर, मान ना मान, काम करना ही पड़ता है । इस तरह आप एक शमीले, खोए-खोए से इन्सान के
बजाय एक प्रभावशाली, लोकवप्रय समन्वयक में ढल जाते हैं। तीसा में इसके बहुत से उदहारण मौजूद हैं!

आध्याजत्मक बदिाि : शरीर व मन का कोई भी बदलाव तब तक स्थाई नहीं है जब तक हम अन्दर से नहीं


बदलते - अपने को एक नए रूप में नहीं दे खते, जब तक हमारी पहचान नहीं बदल जाती। आणखर हमारी
पहचान क्या है? बचपन में हमें ककसी ने हकला कहा तो हमें बहुत बरु ा लगा और हमने भरसक साबबत करने की
कोसशश की कक "मैं हकलाता नहीं हूूँ !" स्जतना तछपाया, उतना ही अन्दरूनी और बाहरी संघिा बढता चला गया।

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स्जतना तछपाया, उतना ही डर बढता गया: अगर ककसी को पता चल गया कक मैं हकलाता हूूँ तो क्या होगा? इस
तरह हम स्जतना भागे, उतना ही इस भत
ू ने हमारा पीछा ककया। एक समय ऐसा आया जब भत
ू भी थक कर
कहीं बैठ गया - मगर हम कर्र भी भागे जा रहे हैं बेतहाशा, सालों बाद!

अगर हम स्वीकार कर लें कक ‘हां, मैं हकलाता हूूँ’ तो ऊपर की सारी समस्या, डर, संघिा व शमा से हम तरु न्त
आजाद हो जाते हैं और हमारी नयी पहचान बन जाती है : एक हकलाने वाला व्यस्क्त जो स्वयं को स्वीकार
करता है , स्जसमे कोई ग्रंधथ (काम्प्लेक्स) नहीं है । औरों की तरह, जब हम मेहनत करते हैं तो यह पहचान और
ववकससत होती है : वह हकलाता है पर अच्छा समझाता है, अच्छा सलखता है , अच्छा डॉक्टर है, अच्छा टीचर है ,
अच्छा डडजाईनर है , आहद-आहद।

ये सारी पहचान हमें समाज दे ता है । इसके परे हम क्या हैं? कौन हैं? हकलाना और प्रवाह में बोलना - इन दोनों
के परे हम कौन है ? अपनी बनावट और कियाकलापों के परे भी हम सम्भवतः कुछ हैं, स्जसे गहराई में समझने
की जरूरत है ; हम अपने अस्स्तत्व को दतु नया की दी हुई पहचानों, लेबलों से परे जानना और समझना चाहते हैं।
ये स्ज़न्दगी की असली और आखरी चन
ु ौती है । आणखरी जंग!

स्वयं को गहराई में , अससलयत में, समझने की एक लम्बी यात्रा है, इसकी शरू
ु आत ध्यान, ववपासना, ईश्वर में
तनष्ठा और प्रेम आहद के साथ की जा सकती है । हो सकता है , हकलाना वह सीढी हो जो आपको आध्यास्त्मक
साधना की उं चाईयों तक ले जाए!

अगर तम
ु जानते हो कक तम
ु कौन हो, तो तम
ु गलत हो!
- तनसगादि महाराज
(क्योंकक हम जो हैं वह शब्दों और ववचारों से परे है, इस सलए “जानने” का वविय नहीं!)

इस तरह जीवन में एक क्षण आता है जब आप


सचमच
ु हकलाने को एक असभशाप नहीं बस एक
आशीवााद, एक अनोखे अवसर के रूप में दे खना शरू

करते हैं। आप परू ी ईमानदारी से महसस
ू करते हैं कक
अगर आप हकलाते न होते तो वह न होते जो आज हैं
- और अपने आपको परू ी तरह स्वीकार करते हैं और
खुश रहना सीखते हैं।

इस बड़े बदलाव के साथ कुछ और बातें भी स्वतः


होती हैं : आपके तमाम डर छू मन्तर हो जाते हैं।
आपकी रचनात्मकता पंख लेती हैं। आप जीवन का
आनन्द लेना शरू
ु करते हैं। आप दस
ू रे हकलाने वालों

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को भी खुले हदल से स्वीकार करना शरू
ु करते हैं। आपकी सहानभ
ु तू त का दायरा बढता है और आप दस
ू रे मद्
ु दों
से भी जुड़ना शरू
ु करते हैं – जैसे ऑहटज्म से प्रभाववत बच्चे, ववकलांग व हासशए पर ससमटे दस
ू रे लोग, दस
ू रे
मद्
ु दे और वैचाररक आन्दोलन।

अगर आपका जीवन इस राह पर चल पड़ा है तो आप “क्योर” हो गए हैं। ककसी को भी - यहां तक कक थैरेवपस्ट
को भी, इस पर शक करने की जरूरत नहीं, अधधकार नहीं। मैं ठीक हूूँ - यह मानना और महसस
ू करना, आपका
जन्मससद्ध अधधकार है, स्जसका तीसा समथान व असभनन्दन करता है । और ये परू ी तरह आपके हाथ में है |
अपना हाथ जगन्नाथ!

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दसिाूँ अध्याय
सारांश - कायपयोजना

सारी पस्
ु तक पढ ली– अब क्या? ये कार्ी
नहीं| इस पस्
ु तक को दो-तीन बार पढें । अपने
स्वयं सहायता समह
ू में इस पर चचाा करें ।
साथ ही एक मोटी-मोटी कायायोजना भी
बनाएं। बबना कायायोजना के सब अधरु ा रह
जायेगा| सब सपने ही रह जायेंगे!

जरूरी नहीं कक आपकी योजना ठीक ऐसी ही हो, मगर कुछ कुछ ऐसी हो सकती है । अपनी योजना बनाकर उसे
उन तमाम जगहों पर र्ोटोकॉपी करके लगाएं जहां आपकी तनगाह पड़ती रहती है । अपने दोस्तों को बताएं
ताकक वे भी आपको बीच बीच में याद हदलाते रहें | र्ेसबक
ु , व्हाट्सएप, ब्लॉग आहद पर भी इसे बांटें
ताकक आपकी प्रततबद्धता बनी रहे और दस
ू रे भी प्रेरणा ले पायें|

ये भी जरुरी नहीं कक आप इस पस्


ु तक में हदए गए अभ्यासों और टे स्क्नक्स को ही अपनाएं! आप
इनके परे भी जरुर जायें और दे खें कक आप क्या कर सकते हैं, क्या अच्छा लगता है , क्या
व्यावहाररक है , क्या और चन
ु ौती भरा है , आहद| सबसे बड़ी बात है - अपने “कम्र्टा जोन” से बाहर
तनकलना, योजनाबद्ध तरीके से और कुछ महीने, कुछ साि, कमर कस के उस योजना पर काम
करना, जी-जान से| इसके सलए सही वातावरण, जैसे स्वयं सहायता समह
ू बेहद जरुरी है |

1. तरु न्त एक ई-मेल तीसा को भेजें या तीसा कोरग्रप


ु के ककसी सदस्य को र्ोन करें । अपने हकलाने से जुड़े सारे
अनभ
ु व, थैरेपी आहद के बारे में सब सलखें या बताएं।

2. अगिे दो हफ्तों में: अध्याय 1 से 4 तक दोबारा पढें और उसमें बताए गए कियाकलाप करें । तनकटस्थ स्वयं
सहायता समह
ू में जाना शरू
ु करें । इसके साथ रात में स्काइप/गग
ू ल हैंगआउट में भी शासमल हों। व्हाट्सएप
भी ज्वाइन करें (इनके वववरण तीसा ब्लॉग पर उपलब्ध हैं)। अपने अनभ
ु व तीसा ब्लॉग या याहू
आई.पी.डब्ल्य.ू एस ग्रप
ु पर बांटें – हर हफ्ते कुछ सलखने का तनयम बनायें|

3. अगिा एक महीना: एक डायरी में हकलाने से जुड़े अपने अनभ


ु व, घटनाएं व ववचार रोज सलखें । बीच-बीच में
इस डायरी को पढें और बदलावों पर मनन करें । दस
ू रे हकलाने वालों या अजनबबयों को र्ोन करें । इनके र्ोन
नम्बर आपको तीसा ब्लॉग व अखबार से समल सकते हैं। स्वयं सहायता समह
ू में तनयसमत रूप से जाएं। स्वयं
सहायता समह
ू में तनगाहें समलाना और मस्
ु कुराना - इन दो तकनीकों का अभ्यास शरू
ु करें ।

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4. अगिे दो महीने: अध्याय 5 व 6 कर्र से पढें । कुछ और तकनीक का अभ्यास शरू
ु करें । ध्यान से सन
ु ना,
पॉस्जंग (शब्दों के बीच रूकना), बाउस्न्संग, प्रोलॉन्गेशन। ये सब ववसभन्न पररस्स्थततयों में करने का अभ्यास
करें । मस्ु श्कलों का स्तर धीमे धीमें बढायें| अपनी वीडडयोग्रार्ी करें - कम से कम 10 समनट, ककसी दस
ू रे से
बात करते हुए। इसे स्वयं सहायता समह
ू में हदखाएं। हो सके तो य-ू ट्यब
ू पर डाल दें और सलंक तीसा में तथा
अन्य दोस्तों के साथ बांटें। उनसे र्ीडबैक मांगें।

5. तीन माह र्श्चात : अध्याय 7, 8 और 9 पढें । कुछ हदन बाद पन


ु ः परू ी पस्
ु तक को उलट-पल
ु ट कर दे खें - क्या
ककया, क्या छूटा आहद। ववपासना/ध्यान आहद का कोई तनयसमत कायािम परू ा करें । सब
ु ह दौड़ना, स्जम या
ऐसा कोई व्यायाम या खेल शरू
ु करें जो आपको अच्छा लगता हो। बेहतर हो अगर यह ककसी दोस्त के साथ शरू

करें ताकक इसे करने की लालसा बनी रहे । परु ानी सारी तकनीक स्वयं सहायता समह
ू के बाहर अजनबबयों के
साथ करना शरू
ु करें । वालेन्टरी स्टै मररंग भी शरू
ु करें धीरे -धीरे । अपने समह
ू में ब्लॉक करे क्शन तकनीकों का
अभ्यास करें । कम्यतू नकेशन वकाशाप तथा तीसा कायािमों से जुड़ें।
6. छः माह बाद: नए हकलाने वालों को र्ोन करें । इंस्ग्लश स्पीककं ग जैसे प्रासंधगक कायािम या कोसा शरू

करें । अगर समय है तो बच्चों को गणणत या ववज्ञान की मफ्
ु त कोधचंग दें । अपने स्वयं सहायता समह
ू में तैयारी
के साथ एक सत्र का संचालन करें । हकलाने वालों का एक नया समह
ू शरू
ु करें । ककसी ववद्यालय में हकलाहट
पर जागरूकता का एक घडटे का सत्र आयोस्जत करें । वपछले छः माह में अपने जीवन में आए पररवतानों का
लेखा-जोखा एक तनबन्ध के रूप में सलख कर ऑनलाइन कान्फ्रेंस में भेजें। दस
ू रों के सलए एक उत्साहवधाक
वीडडयो बनाकर य-ू ट्यब
ू पर डालें।

7. इसके आगे अपने काम से जुड़े नए प्रोर्ेशनल कोसा करने के बारे में सोचें । अपने पाररवाररक और कामकाजी
ररश्तों के ऊपर अब गम्भीरता से काम करने में जट
ु जाएं। स्जनसे कभी कोई मतलब नहीं रखा, उन सबसे पन
ु ः
जुड़ें। उनसे बातचीत करें , उनकी व्यावहाररक मदद करें । उनके साथ समय बबताएं। ककसी सामास्जक संस्था से
वालेस्डटयर के रूप में जुड़ें। अपने शहर या आकर्स में हकलाहट व स्वयं सहायता पर 1-2 हदन का कायािम
आयोस्जत करें । व्यस्क्तत्व ववकास के दस
ू रे कायािमों से जड़
ु ें – जैसे टोस्टमास्टर आहद। नए रचनात्मक शौक
ववकससत करें - एस्क्टं ग (धथयेटर), शास्त्रीय संगीत, र्ोटोग्रार्ी, ब्लाधगंग, लेखन, रै ककं ग, बंगी-जंवपंग आहद।
तीसा का नया चैप्टर या शाखा शरू
ु करें । ध्यान, ववपासना, साधना की गहराई में उतरें ।

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आगे का सफर – एक रे खाचचत्र

ररकिरी: औरों को कोच


करें , नाते-ररश्तों पर
ध्यान दें , आध्यास्त्मक
व सामास्जक सरोकारों ववपासना, ब्रम्हववद्या,
से जुडें (बबग वपक्चर!) ध्यान, जॉधगंग, स्जम,
जूडो-कराटे ,ब्लॉग आहद
शुरू करें ; पेश,े हाबी से
खल ु कर स्वीकार करें , जड़ु े कोसा करें ।
मैं हकलाता हूूँ,
र्ेसबुक, ब्लॉग आहद
पर सलखें.. ववपासना, ब्रम्ह ववद्या,
ध्यान, जाधगंग, स्जम,
आवश्यकतानस ु ार जूडो-कराटे , डायरी आहद
अपना वीडडयो बनायें
दोहराएं शुरू करें ; पेश,े हाबी से
और समीक्षा करें ;
जुड़े कोसा करें ।
यूट्यूब पर डालें ;
र्ीडबैक मांगें ..

स्वयं सहायता समूह


स्वयं सहायता समूह में चलाएं; तीसा की मदद
भाग लें, डायरी/ ब्लॉग करें !
पर सलखें, अन्य
हकलाने वालों को ई-
मेल भेजें, र्ोन पर
जोहै री ववंडो – दोस्त के
उनसे बात करें ।
साथ, कर्र समूह में
करें ।

अपने हकलाने को
ककसी तकनीक से
बदलें -तनगाहें , बॉडी- ब्लाक करे क्शन का
लैंग्वेज, पॉस्जंग, अभ्यास, समह ू में कर्र
बाउस्न्संग, प्रोलॉन्गेशन, अजबबयों के संग
जेंटल ओन्सेट्स,
तनयसमत सांस आहद
से..

टे स्क्नक्स का अभ्यास अब वालेन्टरी स्टै मररंग


दोस्तों के साथ, समूह आजमाएं- अकेले में ,
में , बस में , र्ोन पर, समूह में , दोस्त के
अजनबबयों के साथ साथ – आणखर में
करें अजनबबयों के साथ..

धन्यवाद! आपकी यात्रा मंगलमय हो! सौ मील का सफ़र एक कदम से!


स्थायी बदलाव, अपनी पहल से!
अपना हाथ जगन्नाथ!

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र्ष्ृ ठभलू म

डा. सत्येन्र श्रीवास्तव 1993 से सामुदातयक स्वास्थ्य पर उिराखडड में स्वैस्च्छक


संस्थाओं के साथ काम कर रहे हैं। अपनी हकलाहट से सर्लतापूवक
ा तनपटने के
पश्चात 2004 के आसपास उन्हें लगाकक हकलाना एक ऐसी समस्या है स्जसमें
सामास्जक कारक कहीं ज्यादा महत्वपूणा हैं। इससलए इसका समाधान दवा, थैरेपी,
तकनीक आहद के बजाय सामास्जक संदभों में , खुले सम्वाद के द्वारा ज्यादा
आसानी से ककया जा सकता है ।

2007 में एक ब्लॉग से इस बदलाव की शुरूआत हुई और ब्लॉग में सलखने वालों का
एक समुदाय कुछ विों में पनपने लगा। इस समुदाय ने दे श के सभन्न-सभन्न शहरों में स्वयं सहायता समूह शुरू ककए जो
परू ी तरह स्वयंसेववयों द्वारा चलाए जा रहे हैं।

इन समूहों में हमने कई सभन्न-सभन्न ववचारों का समावेश ककया : सहभागी कियाकलाप, संचार केस्न्रत कौशल, समूह
कियाएं, कुछ तकनीक ववशेिकर पीटर रीट्जेस की पुस्तक से; ये सब क्योर नहीं बस्ल्क हकलाने को अच्छी संचार शैली में
बदलने की दृस्ष्ट से। क्योंकक हकलाने में सबसे ज्यादा संचार ही प्रभाववत होता है | इस सब के पीछे हमारा ववश्वास था कक
हकलाना न कोई जुमा है , न गुनाह, बस एक संचार की समस्या है । अपने किया कलापों में आध्यास्त्मक पक्ष को
भी हमने जगह दी क्योंकक बहुत से साधथयों को ववपस्सना, ध्यान, ब्रह्मववद्या, राजयोग आहद से कहीं ज्यादा
मदद समली, थेरेपी के बतनस्बत|

इस तरह तीन हदवसीय संचार कायाशाला (कम्युतनकेशन वकाशॉप) की नींव पड़ी जो बहुत लोकवप्रय हुई। इन
कायाशालाओं ने हकलाने वालों की एक नई पीढी को पैदा ककया - जो हकलाने को लेकर न तो शसमान्दा हैं और न ही
अंधाधुंध “क्योर” के पीछे भाग रहे हैं| जो हकलाने को एक सभन्नता (“रान्स-फ़्लुएनसी”) के रूप में स्वीकार करने को तैयार
हैं। ऐसे साधथयों ने 2012 में , भुवनेश्वर में , पहली बार एक राष्रीय सम्मेलन का आयोजन ककया। तब से यह हर विा
सभन्न-सभन्न शहरों में होता रहा है । इन सम्मेलनों से हकलाने वाले एक नई पहचान, नई अन्तदृास्ष्ट लेकर लौटते हैं।

तीसा पारम्पररक अथों में कोई संस्था नहीं है – न ऑकर्स, न एकाउन्ट, न बजट। हमारा ववश्वास है कक एक-दस
ू रे को
सम्मानपूवक
ा सुनने और मदद करने के सलए ककसी सरकारी या बाहरी अनुदान की नहीं, ससर्ा थोड़ी सी संवेदनशीलता
की आवश्यकता है । हकलाना कोई रोग तो है नहीं, यह महज एक सभन्नता (डाईवससाटी) है । इसे ससर्ा स्वीकार ककए जाने
की जरूरत है – दोनों तरर् से; हकलाने वाला और उसका समाज अगर इसे स्वीकार कर ले तो ये कोई समस्या
नहीं रह जाती।

संचार कायाशाला, राष्रीय सम्मेलन तथा हमारे सभी प्रकाशन स्वयं हकलाने वालों तथा कुछ सुहृद समत्रों की मदद से
आयोस्जत व सम्पन्न ककए जाते हैं। हम सब उन सबके बहुत आभारी हैं। अन्ततः तीसा एक समद
ु ाय है जो हकलाने वाले
व्यस्क्तयों के अनुभवों, र्ैसलों, पहल और उनकी रचनात्मकता का असभनन्दन करता है । अगर आप ककसी हकलाने वाले
से बात करें तो ससर्ा तीन बातों का ख्याल रखें - तनगाहें समलाएं, बीच में न टोकें, अपनी गतत थोड़ी धीमी कर लें ।
धन्यवाद!

अपना हाथ जगन्नाथ _ 47 / 48


बचपन की थोड़ी सी सभन्नता, और समाज का प्रततकार –
इस तरह पैदा होता है , जीवन पयिंत चलने वाला एक संघिा:
कक मैं कैसे औरों सा हदखूं और बोलूँ ?

यही हकलाना है !
इसका “इलाज़” भी आसान है :
मैं जैसा हूूँ, अच्छा हूूँ, पयााप्त हूूँ, खुश हूूँ|
“अच्छा” बोलने के बजाय, अच्छा संचार करूूँ,
दस
ू रों से अच्छा संवाद स्थावपत करूूँ,
इसमें खुल कर मदद लूँ ू और दूँ ,ू
एक समूह से जुडूूँ और आगे बढूूँ..

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दी इस्डडयन स्टै मररंग एसोससएशन

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