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अपना हाथ जगन्नाथ
अपना हाथ जगन्नाथ
समर्पण
हार्दप क आभार
“अगर आप इस मल्
ु क (अमेररका) के पंरह लाख हकलाने वालों के समान हैं तो आपको कोई थैरपी नहीं समलेगी;
आपको जो करना है , वह अपने बल-बूते ही करना होगा, उन ववचारों और संसाधनों को लेकर जो आपको
उपलब्ध हैं..”
तत
र ीय अध्याय: स्वीकार क्या और क्यू?
ूँ ......................................................................................... 11
1. हकलाने वाला व्यस्क्त या अंग्रेजी में पी.डब्ल्यू.एस. (पीपल हू स्टै मर) का प्रयोग कहीं कहीं ककया गया है । इसके पीछे
ससद्धांत यह है कक हकलाना जीवन का ससर्ा एक पहलू है ; यह उस व्यस्क्त की समग्रता को बयान नहीं करता। व्यस्क्त
पहले, तब उसकी ववकलांगता - यह ससद्धांत भी इसके पीछे है । इससलए “हकला” जैसे शब्दों से हम बचे हैं। सच्चाई तो यह
है कक जब हम हकलाने की संकीणा मानससकता से आजाद हो जाते हैं तो ये शब्द या ‘लेबल’ महत्वपूणा नहीं रह जाते। तब
कोई कुछ भी कहे - कोई र्का नहीं पड़ता।
2. यह अंग्रेजी की पुस्तक "अपना हाथ जगन्नाथ" का सीधा-सीधा अनुवाद नहीं है । हमने हहन्दी भावियों की जरूरतों को
ध्यान में रखते हुए कुछ र्ेरबदल भी ककए हैं। अगर हो सके, तो उसे भी पढें और इंटरनेट पर उपलब्ध अन्य बहुत सारी
सामग्री का भी प्रयोग करें ।
3. यह पुस्तक हकलाना जड़ से समटाने (क्योर) का दावा नहीं करती, क्योंकक ऐसा कोई क्योर वतामान में कहीं नहीं है ।
मगर हकलाने से उत्पन्न मानससकता से आप जरूर छुटकारा पा सकते हैं और एक कुशल संचारकताा बन सकते हैं। यह
पुस्स्तका उस हदशा में पहला कदम है । इसमें बताए कियाकलापों को करना दस
ू रा और असली कदम है । अगर आपने इसे
पढा लेककन व्यवहार में नहीं उतारा तो कोई लाभ नहीं होगा!
4. इस सामग्री की खल
ु कर प्रततसलवप बनाएं, बांटें और स्वयं सहायता के सलए प्रयोग करें । कोई कॉपीराइट नहीं है ।
आभार: इस र्ुस्तक में हमने इन्टरनेट से सािपजाननक चचत्रों का प्रयोग ककया है , जजसके लिए हम उनके स्रोतों के विशेष रूर्
से आभारी हैं|
कम ही थैरेवपस्ट इस मद्
ु दे को खुल कर समझाते हैं कक हकलाने की असली वजह कोई नहीं जानता
और इस सलए क्योर भी ककसी के पास नहीं है , और स्जसे लोग क्योर समझ रहे हैं वह ससर्ा कडरोल
या मैनेजमें ट है - या ससर्ा बहुत ही बबरले मामलों में स्पॉन्टे तनयस ररकवरी (जड़ से ठीक), स्जसे न
तो कोई समझता है और न ही ककसी दस
ू रे को दे सकता है । जैसे कभी-कभी कैं सर के ऐसे रोगी स्जन्हें
डॉक्टर जवाब दे चक
ु े हैं, अपने आप ही ठीक होने लगते हैं – क्यों? कोई नहीं जानता। मगर ऐसे
मामले बेहद कम हैं। प्रायः हकलाना कुछ महीनों के सलए शांत हो जाता है और कर्र लौट आता है –
जीवन के महत्त्वपण
ू ा मोड़ों पर – नया कॉलेज, कैं पस इंटरव्य,ू नई नौकरी, शादी-ब्याह आहद। अन्य
शब्दों में – ऐसा कुछ करें कक हकलाना हमेशा के सलए ठीक (क्योर) हो जाये, जैसी कोई चीज़ नहीं है
– मगर मन है की मानता नहीं!
तीसा की सोच है कक हकलाहट का भले क्योर न हो, मगर समाधान है और वह स्वयं सहायता में
तछपा है । जहां हम अपने थैरेवपस्ट खद
ु बनते हैं, मगर एक-दस
ू रे की मदद से। यानी एक ऐसा स्वयं
प्रायः हकलाने वाले, समस्या को स्वीकार करने के बजाय, इसको नकारना (डडनायल) ही सवु वधाजनक
पाते हैं। यह नकारना प्रायः अवचेतन मन के स्तर पर होता है और इससलए हम कई बार परू ी
ईमानदारी से कहते हैं: नहीं, मैं तो नहीं हकलाता। मैं थोड़ा सा रूकता हूूँ , कभी-कभी। बस एक-दो
शब्दों पर। मुझे ककसी मदद की जरूरत नहीं। आहद।
हमारे इदा -धगदा लोगों को कुछ भी अंदाज़ा नहीं होता कक हम कैसी मनःस्स्थतत से गज
ु र रहे हैं। अपने
चारों तरर् एक रूखेपन की दीवाल बना कर हम खुद को सरु क्षक्षत समझते हैं। लोग कभी-कभी हमें
अहं कारी, घमंडी, असामास्जक आहद भी समझ बैठते हैं। इन सबका दोि भी हम प्रायः दतु नया पर ही
मढ दे ते हैं! कई बार हम सचमच
ु एक सप
ु ेररओररटी काम्प्लेक्स (खद
ु को श्रेष्ठ समझना) की चादर
ओढ लेते हैं: हम हकलाने वाले इंटेलीजेंट (बुद्धधमान) होते हैं – बेवकूर्ों से क्या बात करें ?! पर सच
तो ये है कक ये सारी रणनीततयां या तरकीबें ककसी काम नहीं आती और दे र सबेर अन्दर की तकलीर्
हद से गज
ु र जाती है । तब हम क्योर की तलाश में भटकना शरू
ु करते हैं ...
एक बार एक आदमी लॉटरी जीत कर रातोंरात बेहद अमीर बन गया| उसके मन में पहली बात आई – मैं नौकरी
क्यूूँ करूूँ? मैं तो दस
ू रों को नौकरी दे सकता हूूँ! उसने इस्तीफ़ा दे हदया| दस
ू रे हदन उसके मन में आया- इतनी
सुबह क्यूूँ उठ रहा हूूँ, कौन सा ऑकर्स पहुूँचना है ? कुछ हदन बाद उसे लगा की दाढी बनाना बेकार है क्योंकक
उसे कौन सा बॉस से समलना है ? इस तरह उसने नहाना-धोना, कपड़े बदलना आहद सब बंद कर हदया और
बबस्तर में ही पड़ा रहता, सारे हदन| एक हदन उसका एक समत्र उस से समलने आया| उसे दे ख कर वह बगैर कुछ
कहे लौटने लगा| क्योंकक उसे लगा कक वह नौकर से क्या बात करे ?!
कार्ी मुस्श्कलों के बाद जब उसे यकीन हुआ कक यह नौकर नहीं वरन उसका दोस्त ही है तो उसे सारी बात
समझते दे र नहीं लगी| वह मुस्कुरा कर बोला: दोस्त, अमीर बनने के बाद तो तुम्हे और ज्यादा काम करना
पड़ेगा| समाज में अमीर होना एक बड़ी स्जम्मेदारी है | बेहतर है , तुम इस स्जम्मेदारी के सलए तैयार हो जाओ..
इसी तरह, एक्सेप्टे न्स (स्वीकायाता) आपको अपने प्रतत स्जम्मेदाररयों से मंह
ु मोड़ना नहीं ससखाती; बस्ल्क
एक्सेप्टे न्स के बाद करने योग्य ववकल्प और बढ जाते हैं! आगे के अध्यायों में यही बताया गया है |
बड़े होते-होते, ये भावनाएं - डर, शमा, अपराधबोध (धगल्ट), हमारे अवचेतन मन में गहरे बैठते जाते हैं और
प्रायः हमें इसका कोई अहसास भी नहीं होता। इन सबके साथ एक और बात: मन में कहीं न कहीं यह द्वंद्व
भी तनरं तर चलता रहता है : मैं कौन हूूँ? मैं नामाल हूूँ? मैं एब्नामाल हूूँ? अगर मैं न हकलाता तो क्या होता?
शायद, मैं यह या वह बन जाता, उस ऊूँचाई तक पहुंच जाता आहद। ऐसे धचन्तन के कारण हकलाने वाले प्रायः
न तो वतामान में जी पाते हैं और न ही उसका परू ा आनन्द ले पाते हैं। वे सदै व कहीं और, कुछ और होने या
बनने की कर्राक में रहते हैं, उसका इन्तजार करते रहते हैं और इस तरह कई बार परू ी स्जंदगी तनकल
जाती है ।
हकलाना मस्स्तष्क में एक न्यरू ोलास्जकल समस्या से उत्पन्न होता है , और कुछ विों में ढे र सारी
मनोवैज्ञातनक समस्याओं को जन्म दे ता है : डर, शमा, अपराध बोध, अशक्तता (मैं यह नहीं कर सकता, मैं
वह नहीं कर सकता), तछपाने की प्रववर ि, कतराना, बचना, अपने में ससमटे रहना, कुडठा, हीनभावना आहद।
इस परू ी मानससकता को बदले बबना ससर्ा हकलाने पर काम करना प्रायः तनष्र्ल होता है । इसीसलए स्वयं
सहायता के पथ पर कम से कम एक
विा तक तनरन्तर चलना जरूरी है ।
हकलाने की मानससकता का एक और
दष्ु पररणाम है - प्रवाह (फ्लए
ू ंसी) के
प्रतत अन्धश्रद्धा। बस मैं धाराप्रवाह
बोल,ूं चाहे श्रोता की समझ में आए, न
आए, चाहे वह प्रासंधगक हो या न हो
आहद। ऐसी सोच के चलते हकलाने
रामू घर के आूँगन में बैठा याद कर रहा था: माई हे ड (my head) यानी मैडम का ससर, माई हे ड यानी मैडम
का ससर, माई हे ड यानी मैडम का ससर...
कुछ दे र में उसके वपता जी उधर से गुजरे और बोले: बेवकूफ़, माई हे ड यानी मैडम का ससर नहीीँ, माई हे ड यानी
मेरा ससर.. समझे? ये कह के वे बाज़ार चले गए| अब रामू दोहरा रहा था: माई हे ड यानी वपता जी का ससर,
माई हे ड यानी वपता जी का ससर, माई हे ड यानी वपता जी का ससर..
थोड़ी दे र में उसकी माता जी पड़ोसन से समल के लौटीं तो वो बोलीं: नहीं बेटा, ये तुम्हे ककसने बताया? माई हे ड
यानी मेरा, इधर दे खो, मेरा ससर.. समझे? रामू कर्र से मेहनत से लग गया: माई हे ड यानी मम्मी का ससर,
माई हे ड यानी मम्मी का ससर..!
उसका बड़ा भाई गोलू, खेल कर लौटा तो समझ गया कक क्या मामला है | उसने रामू का हाथ पकड़ा और उसी
के ससर पे रख कर बोला – ये क्या है ? रामू बोला – मेरा ससर, और क्या? अब गोलू बोला – इसी को अंग्रेजी में
“माई हे ड” बोलते हैं! समझा कुछ? क्या?
रामू हूँसा और बोला: बस इतनी सी बात? माई हे ड यानी बोलने वाले का ससर - समझ गया| सुबह से मुझे
सबने परे शान कर रखा है ..
मगर गोलू इतने पर ही रुका नहीं| उसने रामू का एक हाथ उसी के ससर पे रखा और दस
ू रा हाथ अपने ससर पे
रखवा के बोला: ये मेरा ससर, ये तेरा ससर! अब यही अंग्रेजी में बोल के हदखा..
कुछ दे र दोनों भाई ये खेल खेलते रहे - ये मेरी नाक, ये तेरी नाक; ये मेरा कान, ये तेरा कान आहद| रामू को
स्पष्ट हो गया कक “माई हे ड” का क्या मतलब है | इस कहानी में माता, वपता व मैडम, सभी फ़्लूएंट वक्ता थे
मगर ससर्ा गोलू ही संचार की बारीकी समझता था| अब सोच कर बताएं कक आप क्या बनना चाहें गे: फ़्लूएंट या
कुशल संचारकताा?
इसी िम में कुछ और मॉडल भी समझाएं गए हैं : फ़ास्ट टॉककं ग जींस के कारण बच्चे जल्दी बोलते
हैं, कुछ शब्दों पर लड़-खड़ाते हैं और सामास्जक प्रततकियाओं के चलते धीरे -धीरे नकारात्मक
मानससकता ववकससत कर लेते हैं – जाने अनजाने; डडमांड और कैपेससटी (जरुरत और क्षमता) मॉडल
में माना जाता है कक बच्चे के मस्स्तष्क की बोलने के सलए जरुरी क्षमता और बच्चे से बड़े जो
उम्मीद करते हैं – इन दोनों में जब भी गैप आता है तब बच्चा हकलाता है – जैसे जब बच्चे को
“अंकल” को कववता सन
ु ाने के सलए बाध्य ककया जाता है ; ये दोनों ही कारक समय के साथ बदलते
रहते हैं और इसी सलये हकलाना घटता – बढता रहता है । जैसे नए कॉलेज में जाने पर एकाएक बोलने
1. कभी-कभी अकेले में अपने आप से कहें - मैं हकलाता हूूँ और इसमें कोई खास बात नहीं है । (इट
इज ओके!) शरू
ु में यह मस्ु श्कल लगेगा। मन ववरोध करे गा, हज़ार बहाने बनाएगा (“मैं ससर्ा रुकता हूूँ,
हकलाता नहीं..”) मगर कर्र भी कोसशश करें । धीरे -धीरे यह आसान होता चला जाएगा।
2. यही बात अपने पालतू जानवर या ककसी छोटे बच्चे से कहें , दो-तीन बार, मस्
ु कुरा कर।
4. अपने हकलाने के बारे में बेहद करीबी व्यस्क्त - पत्नी, मां, दोस्त, भाई या बहन से बात करें । मगर
कोई उम्मीद न रखें कक वे जवाब में क्या कहें गे या कोई प्रततकिया दें गे भी या नहीं। आपको अपनी
बात कहने का हक़ है - उन्हें भी चुप रहने या अपनी ही बात कहने का हक़ है ।
5. अपने हकलाने के बारे में आपने जो भी सलखा है उसे करीबी दोस्तों के साथ बांटें। थोड़ा हहम्मत
आने पर आप इसे ककसी ब्लॉग पर भी प्रकासशत कर सकते हैं।
6. कुछ समय पश्चात उन दोस्तों को र्ोन करें जो 5-10 विा पहले आपके साथ पढते थे और कुछ
ऐसी बातचीत करें मगर ककसी ववशेि प्रततकिया की उम्मीद न रखें :
“याद है , मैं कॉलेज में अपनी रोल कॉल नहीं बोलता था? क्योंकक मैं हकलाता था और अब इस
पर मैं काम कर रहा हूूँ ...” आहद।
7. कुछ महीने बीतने दें और तब हहम्मत करके ऑकर्स / कॉलेज में भी अपने जीवन के इस पहलू
को बांटना शरू
ु करें । यथा – डारववन, न्यट
ू न, चधचाल, ब्रस
ू ववसलस आहद भी हकलाते थे - मैं भी
हकलाता हूूँ। इट इज सो कूल!
ऑकर्स में कॉर्ी मग पर सलखवाएं - हकलाओ, मगर प्यार से। टे बल डडस्पले भी कुछ ऐसा ही हो
सकता है –वपछली तीसा कांफ्रेंस या कम्यतु नकेशन वकाशॉप की र्ोटो! इसका र्ायदा यह है कक जब
कोई पछ
ू े गा तो आपको इस बारे में खुलकर बात करने का मौका समलेगा।
एक बात और - हकलाने को स्वीकार करने और इसके बारे में बात करना शरू
ु करने से ककसी
चमत्कार की आशा न करें । यह न सोचें कक आपकी तमाम मस्ु श्कलें एक हफ्ते में या एक महीने में
दरू हो जाएंगीं। याद रखें कक यह एक लम्बी प्रकिया है । एक लम्बा सर्र है । कम से कम एक साल
के सलए कमर कस कर तैयार हो जाएं। यह सब एक नयी भािा सीखने के समान है । खरगोश नहीं,
कछुए की मानससकता चाहहए, इस मैराथन में जीतने के सलए!
बोध कथा
शहर में रहने वाले एक बच्चे ने कभी भी कुछ उगते हुए नहीं दे खा था। उसके वपता ने उसे एक हदन एक र्ूल
का बीज ला कर हदया। बच्चे ने उसे एक गमले में समट्टी के नीचे दबा हदया और सींच हदया। कुछ समनटों के
बाद उसे लगा कक क्या पता बीज अंकुररत हो भी रहा है या नहीं! अतः उसने धीरे से ऊपर की समटटी हटाई
और गौर से बीज़ को दे खा। नहीं, अभी कुछ बदलाव हदखाई नहीं दे रहा था। बच्चे ने उसे कर्र से समट्टी से
ढक हदया। पूरे हदन यही िम चलता रहा। दो हदन बाद उसने दे खा कक बीज सड़ गया था!
आजकल कई र्ोन व कैमरों में वीडडयो की सवु वधा होती है । अपना वीडडयो बनाना कोई मस्ु श्कल नहीं।
पर कई बार जब हम वीडडयो बनाते हैं तो हम जरा भी नहीं हकलाते! यह दे खने में खुद को अच्छा
लगता है पर इससे इस चरण का उद्दे श्य परू ा नहीं होगा। अगर हमारा अवचेतन मन हकलाने को
तछपाता ही रहा तो हम इसका इलाज कैसे करें ग?
े दाई से कब तक पेट तछपाएंग?
े तो चसलए हहम्मत
करके ये कदम उठाते हैं। ये चार चरण हैं:-
अगर कोई दोस्त ररकाडडिंग में मदद करे तो और भी अच्छा। जैसे वह ररकाडा करे और आप ककसी
दक
ु ानदार से बात करें या र्ोन पर ककसी अजनबी या सीतनयर से बात करें । उन्हें पहले ही समझा दें
कक आप ये ररकॉडडिंग अपनी स्पीच को बेहतर बनाने के सलए कर रहे हैं। छोटी ररकाडडिंग से काम नहीं
चलेगा। कोसशश करें कक ररकाडडिंग कम से कम 10 समनट की जरूर हो। अगर ररकाडडिंग में चेहरे के
अलावा बाकी शरीर भी आए तो अच्छा होगा। आप अपने हाव भाव (बॉडी लैंग्वेज) भी दे ख पाएंगे।
एक अच्छी ररकाडडिंग वह है स्जसमें आपका चेहरा सार् हदख रहा है और आवाज सार् सन
ु ाई पड़ रही
हो। यानी पयााप्त रोशनी होनी चाहहए और कैमरा नजदीक हो। हो सके तो इस सारी ररकाडडिंग को
कम्प्यट
ू र में डालते जाएं।
इतना ही नहीं - जब आप नहीं हकला रहे हैं, उस दौरान सब कुछ कैसा लग रहा था? उस समय
आपका कम्यतू नकेशन कैसा था? आप पाएंगे की 90 प्रततशत से ज्यादा समय आप अच्छा बोलते हैं
और आपकी कही बात ककसी को भी आसानी से समझ में आ जाएगी। यानी आप बोलना जानते हैं,
बस कुछ शब्दों पर आपको काम करना है । कहने का मतलब यह कक सब समलाकर, अपनी कसमयां ही
न तलाशें - अपनी ताकत व मजबत
ू पक्ष भी ढूंढें और उन्हें सराहें । आणखर में कुछ सवाल ऐसे भी
पछ
ू ें -
2. यहां पर हकलाते हुए मेरी आंखें क्यूं बंद हुईं? क्या मैं आंखें खोलकर भी हकला सकता था?
4. इन तमाम व्यवहारों में से कौन से मैं छोड़ना चाहता हूूँ? ककनको और मजबत
ू बनाना चाहता हूूँ?
इसकी सलस्ट बनाएं और बार-बार इसको दे खें और इसके अनरू
ु प जीवन में अभ्यास करें । अपने
साधथयों से भी बांटैं ताकक वे भी आपको बीच-बीच में याद हदलाएं और आपकी मदद कर सकें।
हमारे हर कियाकलाप के पीछे भावनाएं तछपी होती हैं। ककसी से बात करना अच्छा लगता है , ककसी
से नहीं। ककसी वविय पर बोलना इतना अच्छा लगता है कक हम समय सीमा ही भल
ू जाते हैं। अपने
वीडडयो को अब इस दृस्ष्टकोण से दोबारा दे खें। कहां पर मैं बोलने का मजा ले रहा हूूँ? कहां बोलने से
डर रहा हूूँ? क्य?
ूूँ क्या इन भावनाओं को बदला जा सकता है ?
चौथा चरण : अगर हम अपने हकलाने को गहराई में समझना चाहते हैं तो दस
ू रे भी इसमें कार्ी
मदद कर सकते हैं। य-ू ट्यब
ू पर हकलाने से जुड़े वीडडयो दे खें, उनके ब्लॉग पढें । उनसे चैट करें ,
स्काइप पर उनसे बातचीत करें । कुछ महीनों में आपको लगने लगेगा कक आपके हकलाने में आपका
अपना कुछ भी नहीं है - सब कुछ सावाभौम (यतु नवसाल) है । यानी जो आपको होता है वही दस
ू रे अन्य
हकलाने वालों को भी होता आया है । “मझ
ु जैसा अभागा कोई नहीं” - यह भावना धीरे -धीरे दरू हो
जायेगी। अगर हहम्मत है , तो अपना वीडडयो भी य-ू ट्यब
ू पर डाल दें । आणखर आप ककस हीरो से कम
हैं? इससे एक समस्या तो झट से दरू हो जाएगी - “कहीं ककसी को पता न चल जाए कक मैं हकलाता
हूूँ”। इसकी जगह ले लेगी यह भावना - “मैं हकलाता हूूँ, तो क्या? स्जसको जो करना है , कर लो!”
सारांश : अपनी वीडडयो बार-बार बनाकर हकलाने से जुड़े व्यवहारों और भावनाओं को हम बदल सकते
हैं। आप अपनी हकलाहट को इतना बेहतर जान
लेते हैं कक समसमिी (नक़ल) में आप अपनी
हकलाहट को हूबहू पेश कर सकते हैं - और ये
पहला चरण है इसे बदलने का। इन वीडडयो को
ऑनलाइन बांटकर आप अपने डर और शमा से भी
हमेशा के सलए आजाद हो सकते हैं। मम
ु ककन है
कोई आपकी तछपी प्रततभा को पहचान कर कर्ल्मों
में एक मौका दे ? अगर ये मौका समला तो आप
क्या कहें ग?
े
“नहीं, अभी नहीं - पहले मैं क्योर हो जाऊूँ तब
सोचंग
ू ा..!”
अरे नहीं, ऐसा भल
ू के भी मत करना, प्लीज़! अगर
मरु ारी हीरो बन सकता है तो हम क्यों नहीं?
यहां पर बतु नयादी बात ससर्ा यह है : कई बार हकलाने वाले सोचते हैं कक जैसे वह अभी बोल रहे हैं, बस यही एक
तरीका मम
ु ककन है उनके सलए। उन्हें स्जंदगी भर ऐसे ही बोलना है ! मगर सच्चाई यह है कक हमारा कडठ हजारों
तरह की आवाजें तनकाल सकता है । हमारा हदमाग बीससयों व्यस्क्तयों की हूबहू नकल कर सकता है । हम एक
बेहद आत्मववश्वास से भरे वक्ता का असभनय कर सकते हैं! जब हम ऐसा करना शरू
ु करते हैं तो धीमे-धीमे यह
यकीन पैदा होता है कक ससर्ा हकलाना, और वह भी एक ही स्टाइल में , कोई जरूरी नहीं है । इसे बदला जा
सकता है । यही ‘स्टटररंग मोडडकर्केशन’ के पीछे छुपा ससद्धान्त है । बदलते-बदलते एक समय ऐसा आता है
कक आपका हकलाना, सामान्य बातचीत सा लगने लगता है । मगर इसमें मेहनत और समय लगता है ।
1. गीत गाता चि, ओ साथी... : अपने गले को बेहतर समझने के सलए गाने का अभ्यास करना अच्छा तरीका
है । इसमें मजा भी खूब आता है और यह एक तरह का वामाअप भी है । खुली छत पर, अपना एक हाथ गले पर
रखें और सरगम के स्वर तनकालें, महीन आवाज, मोटी आवाज, ऊूँचे स्वर, तनचले स्वर, साथ ही, हाथों से गले
के कम्पन को महसस
ू करें । स्वर तंतु (वोकल कार्डास) के कम्पन बबना कोई भी आवाज गले से बाहर नहीं आती,
हवा भले बाहर आ जाए। कम्पन को स्वेच्छा से पैदा करना, बढाना और रोकना - इसका तनरन्तर अभ्यास करें ।
अगर हो सके तो शास्त्रीय गायन सीखें या उसका अभ्यास करें । अपने गाने को ररकाडा करें और कई बार सन
ु ें।
कुछ समय पश्चात ् ककसी दोस्त के सलए गाना गाएं, जो आप से कुछ दरू ी पर खड़ा हो। इन गानों को ररकाडा करें ,
दोस्तों के साथ बांटें, य-ू ट्यब
ू पर डालें। इस बात को महसस
ू करें कक आप अच्छा गाते हैं। सचमच
ु , कई हकलाने
वाले व्यस्क्त प्रससद्ध गायक बने हैं।
बाउजन्संग: ककसी भी आसान शब्द की पहली ध्वतन को 5-6 बार आराम से दोहराएं और तब उस परू े शब्द को
आराम से बोलें – जैसे बच्चे बोलते हैं। मन को लगता है कक वह परू ा शब्द एक बार में नहीं बोल पाएगा। मन को
समझाएं - मुझे पूरा शब्द अभी नहीं बोलना है । अभी तो मैं ससर्ा पहली ध्वतन को ही दह
ु रा रहा हूूँ , और जब मैं
तैयार होऊंगा, तब पूरा शब्द बोलूग
ं ा। जैस-े अ-अ-अ- अतनल...
ध्यान दें : दो बाउन्स के बीच में आपको परू ी तरह ररलैक्स होना है और कोई भी जल्दी नही करनी है | शरू
ु के
कुछ महीनों में बाउस्न्संग केवल आसान शब्दों पर ही करें - स्जन पर आप कभी नहीं अटकते। शरू
ु आत कहठन
शब्दों से बबल्कुल न करें । यह मस्ु श्कल होगा और आप बहुत जल्दी तनराश हो जाएंगे|
कई बार बाउस्न्संग के बीच हकलाहट हो जाएगी या ब्लॉक आ जाएगा। तनराश न हों- रूकें, गहरी सांस लें और
कर्र शरू
ु करें । यह सब करते हुए अपना ध्यान अपने मन और भावनाओं पर भी रखें । अपने आप को तनाव में
न आने दें । दो तीन गहरी सांसें लें, मस्
ु कराएूँ और कर्र अभ्यास में लग जाएं। मन व शरीर दोनों तनावमक्
ु त
होने चाहहए - अच्छी बाउस्न्संग के सलए। मस्
ु कुराएं और कैमरे में दे खें, ररकाडडिंग के वक्त, या सामने वाले की
आंखों में दे खें। धीरे -धीरे आप तनावमक्
ु त, संयत बाउस्न्संग आराम से कर पाएंगे - बातचीत के बीच में और वह
भी अजनबबयों के साथ। मगर इसमें कुछ महीने लगें गे।
अब अगली चुनौती की ओर बढें । दो तीन महीने बाद, स्जन शब्दों पर आप हकलाते हैं, उन शब्दों पर बाउन्स
करना शरू
ु करें । ऊपर बताए िम में , पहले अकेले में, कर्र दोस्त या स्वयं सहायता समह
ू में , कर्र र्ोन,
स्काइप आहद पर। कर्र बस, रे न में और तब कहीं ऑकर्स या कॉलेज में । जब भी मस्ु श्कल हो, तो कुछ कदम
पीछे जाकर कर्र से अपना अभ्यास शरू
ु करें । अपने स्वयं सहायता समह
ू की मदद लेते रहें |
इसके साथ ही, अगर पहली ध्वतन को थोड़ा लम्बा कर दें तो ये प्रकिया आसान और कारगर हो जाएगी:
आ...तनल (अतनल), का...मल (कमल), का... नपरु (कानपरु ), मा...नीि (मनीि) आहद। इसका एक और तरीका
है – हस्म्मन्ग : अगर मनीि बोलना है तो आप स्वयं को “म” की ध्वतन पे तब तक रोकें जब तक आप आगे का
शब्द बोलने को तैयार नहीं हो जाते। इसी तरह “नरे न्र” बोलते समय “न” की ध्वतन पर खद
ु को रोकें और तब
परू ा शब्द बोलें| अभ्यास के सलए कभी एक सेकंड तो कभी दस सेकडड, या ज्यादा भी रुक कर दे खें| इसी तरह
आप धीरे धीरे अपनी आवाज़ पर अच्छा तनयंत्रण पा जाएंगे|
प्रारं भ में इसे सीखने के सलए थोड़ा लम्बा या ज्यादा स्रे धचंग करें । जेन्टल आन्सेट के सलए वणों को मल
ु ायम
बनाएं, ऐसे - खम आन (कम आन!) ज़मीन (जमीन), र्वन (पवन) आहद। इसकी बारीककयां अपने स्वयं
सहायता समह
ू में ककसी अनभ
ु वी साथी से सीणखए। इसका भी अभ्यास पहले आसान शब्दों पर, आसान
स्स्थततयों से शरू
ु करें और धीमे धीमे मस्ु श्कल का स्तर बढाते जाएं। शरू
ु में ऐसे बोलना अजीब लगेगा मगर
तनराश न हों और अभ्यास न छोड़ें। दतु नया में हर कोई अंग्रज
े ी या हहंदी ककसी एक ही स्टै डडडाआइज्ड तरीके से
नहीं बोलता| कर्र अपने से ये उम्मीद क्यों? कुछ समय के बाद सब कुछ बहुत सामान्य लगेगा। ये सब एक
नयी भािा या बोली सीखने के समान है , इस सलए जल्दी न करें और अपने को पयााप्य समय और
शाबाशी दें , हर छोटी सर्लता के सलए|
सािधाननयां :
1. कई बार दोस्त या पररवार के लोग अन्जाने में नकारात्मक प्रततकिया दे दे ते हैं: ऐसे क्यों बोल रहे हो? इससे
बेहतर तो तुम्हारा हकलाना ही है ! ऐसी प्रततकियाओं पर ध्यान न दें और अपनी तकनीक का अभ्यास जारी
रखें । हो सके तो उन्हें समझा दें कक आप क्या और क्यूं कर रहे हैं और वे इसमें कैसे आपकी मदद कर सकते हैं -
चप
ु चाप सन
ु कर!
3. कई बार लोग अपने कम्र्टा जोन में कैद होकर रह जाते हैं।
जैसे रोज सब
ु ह अखबार पढते हुए एक घडटे बाउस्न्संग या
प्रोलॉन्गेशन करना। महीनों वे यही करते रहते हैं! कभी क्लास
में बाउन्स करके कोई सवाल नहीं पछ
ू ते! यह भी असर्लता का
एक मख्
ु य कारण है । जैसे ही आप एक चरण में थोड़ा सा सहज
महसस
ू करने लगें - तरु न्त अपने आप को अगले चरण में धकेलें।
स्वयं सहायता समह
ू में बहुत सी गततववधधयां इन तथ्यों को ध्यान में
रखकर आयोस्जत की जाती हैं। ये समह
ू बने ही हैं आपको आगे धकेलने के सलए!
िोिंटरी स्टै मररंग: यानी स्वेच्छा से हकलाना| ये आसान नहीं है मगर एक बहुत ही ताकतवर तकनीक है ! पानी
के नीचे तछपे हहमखंड की ये धस्ज्जयाूँ उड़ा दे ती है , मात्र कुछ हफ़्तों में | एक आइना लेकर अकेले में अपने
हकलाने की नक़ल करें : मे..मे..मे – मेरा न.......नाम अऽऽऽऽऽऽअ---- अतनल है | एक दम हूबहू अपनी नक़ल
करनी है - और मस्
ु कराना भी है | अब इसके बाद ये सारा िम वीडडयो ररकॉडा करें 3-4 बार, और दे खें कक कौन
सी ररकॉडडिंग आपके असली हकलाने के सबसे करीब है | अब इसके बाद यही “असभनय” अपने स्वयं सहायता
समह
ू में करें – और मस्
ु कुराना न भल
ू ें! कुछ हदन के बाद इसे आम बात-चीत के बीच इस्तेमाल करें और तरु ं त
रुक कर अपनी अंदरूनी भावनाओं और ववचारों को परखें : अभी मैं जानबझ
ू कर हकलाया था, ये कैसा लगा?
इस से क्या याद आ गया? क्यों? मेरा मस्
ु कुराना असली था या नकली? इस को मैं असली कैसे बना सकता हूूँ?
अगर ये असभनय था तो मातम ककस बात का? अपने आप को हकलाने के क्षण में रोकना सीखें, बगैर होश
गंवाए|
2. इनब्िॉक करे क्शन: एक और तरीका है - आप अभी ब्लॉक में ही हैं और बगैर घबराए आप ब्लॉक के बीच में
ही घीरे से बाउस्न्संग या प्रोलॉन्गेशन का प्रयोग करते हुए शब्द को परू ा करते हैं। इसे इन ब्लॉक करे क्शन कहते
हैं: मैं कल का--------------का-का-कानपरु जाऊंगा। ज़ाहहर है कक इसे अच्छी तरह करने के सलए आप को वोलेंरी
स्टै मररंग, बौस्न्संग और प्रोलॉन्गेशन ववसभन्न स्स्थततयों में करने का कम से कम 4-5 महीने का अभ्यास होना
चाहहए।
3. प्रीब्िॉक करे क्शन: इस तीसरी ववधध में आप ब्लॉक आने से पहले ही सम्हलते हैं, थोड़ा रूकते हैं और ककसी
एक तकनीक का इस्तेमाल करते हुए, उस शब्द को आराम से बोलकर आगे बढ जाते हैं। यानी, ब्लॉक में जाने
से पहले ही रुक कर आप सोचते हैं, योजना बनाते हैं कक मैं इस शब्द को कैसे, क्या टे स्क्नक इस्तेमाल कर के
बोलूँ ग
ू ा। और तब उस योजना को एक्शन में बदलते हैं|
इनका अभ्यास बताए िम में ककया जाना चाहहए – पहले पोस्ट, कर्र इन और तब प्रीब्लॉक करे क्शन; ये सभी
ककसी अनभ
ु वी साथी की तनगरानी में , स्वयं सहायता समह
ू में या कम्यतू नकेशन वकाशाप में करें । वीडडयोग्रार्ी
की मदद भी लें।
ख्याल रहे कक ब्लॉक में अपनी गतत को धीमा करना बेहद जरूरी है । अगर कभी आपका स्कूटर या बाइक गर्डडे
में उतर जाए, तो पहला काम आप उसे पहले धगयर में डालकर धीमा करें गे और तब गर्डडे से बाहर तनकलने का
सतु नयोस्जत प्रयास करें गे। ठीक यही ब्लॉक में भी करना है । गतत धीमी, मन शांत और हदमाग एकदम चैतन्य।
अपने स्वयं सहायता समह
ू में या स्काइप काल में इसका खब
ू अभ्यास करें ।
याद रखें, टे स्क्नक बहुत सारी हैं मगर ब्लॉक में जो आप के काम आ जाये वही सबसे अच्छी और इसके सलए
आप को कमर कस के ब्लॉक में घस
ु ना ही होगा और इन तस्क्नकों को आजमा कर दखना ही होगा। यह
ससर्ा आप ही कर सकते हैं। आणखर ब्लॉक के डर में कब तक स्जयेंग?
े तो दो-दो हाथ कर ही लें? राइट?
अगर आप वपछले अध्याय में हदए गए अभ्यासों को परू ा कर चुके हैं या उन्हें आजमाना शरू
ु कर चुके हैं और
अभी तक आपने हहम्मत नहीं हारी है - तो आप सचमच
ु बधाई के पात्र हैं। आप थोड़ी और मेहनत कर सकते हैं।
इस अध्याय में हम उन कुछ तथ्यों के बारे में बात करें गे जो हमारे संचार की नींव हैं और इसीसलए अदृश्य रहते
हैं, जैस-े बोलने में सांस की भसू मका, शब्दों के बीच अन्तराल व मौन, नजरों का तालमेल, ध्यान से सन
ु ना और
हावभाव (बॉडी लैंग्वेज)। इनके बारे में प्रायः लोग बात नहीं करते मगर इन कौशलों का संचार के साथ बड़ा
गहरा सम्बंध है ।
श्िसन : आपने गौर ककया होगा कक गहरी नींद में सो रहे व्यस्क्त का श्वसन बहुत लयबद्ध और धीमा होता है ।
वही इन्सान जब ककसी से झगड़ता है तो उसकी सांसें उथली, अतनयसमत और तेज हो जाती हैं। यानी मानससक
अवस्थाओं का सांस के साथ घतनष्ठ सम्बंध है । वैज्ञातनक मानते हैं कक सांस को गहरा और धीमा बनाकर मन
को भी शान्त ककया जा सकता है । और शान्त मन बेहतर संचार में ककतना सहायक होता है , हम सब अच्छी
तरह जानते हैं।
अच्छा बोिने के लिए गहरी सांस िें - ऐसे की नासभ (पेट) बाहर की ओर तनकले। गहरी सांस लेकर छोड़ते हुए
ऊूँची आवाज में बोलना शरू
ु करें । तीन-चार शब्दों के बाद रुकें और कर्र वही िम दोहराएं।
ये अभ्यास पहले अकेले में, कर्र दोस्तों के साथ, स्वयं सहायता समह
ू में और तब, बस या भरे बाजार में करें -
अगले २-३ महीनों में । जब भी आपको बोलना कहठन लगे, 3-4 बार पेट से गहरी सांस लें, और कर्र इसी तरह
बोलना शरू
ु करें ।
पेट से सांस लेने का अभ्यास करने के सलए यह ववधध अपनाएं : लेट जाएं। बेल्ट आहद ढीला कर लें। एक ककताब
या अपना सेलर्ोन नासभ के ठीक ऊपर रख लें। अब हर सांस के साथ इस पस्
ु तक या र्ोन को ज्यादा से ज्यादा
ऊपर उठाएं। उसे ऊपर ही रोकें, कुछ सेकडड और कर्र सांस छोड़ते हुए नीचे लाएं। बाद में कोई भारी वस्तु जैसे
ककताब या ईंट रख कर अभ्यास करें । अच्छा अभ्यास होने पर आप यह खड़े-खड़े, चलते-कर्रते भी कर पाएंगे।
सांस के प्रतत अहसास (अवेयरनेस) अपने आप में एक ववज्ञान है , स्जसे ध्यान या ववपासना के द्वारा सीखा जा
सकता है । इसमें आप मन में आने वाले हर ववचार के प्रतत जागरूक बनते हैं और उनसे उसी क्षण तनपटने में
सक्षम बनते हैं। मगर इसके सलए लम्बे अभ्यास की आवश्यकता है जो शरू
ु में नीरस लगता है ककन्तु बाद में
स्वभाव बन जाता है ।
मौन (र्ॉजजंग) - शब्दों के बीच, ववशेिकर जहां ववराम, अद्ाधववराम आहद आते हैं, आराम से रूकना एक अच्छी
कला है । इस मौन के क्षण में आप श्रोता से आंख समलाकर दे ख सकते हैं कक
वह समझ रहा है या नहीं; साथ ही, सांस ले सकते हैं, मस्
ु कुरा सकते हैं
और आगे क्या कहना है यह सोच सकते हैं। शब्दों के बीच यह मौन
श्रोता के सलए भी जरूरी है । धाराप्रवाह बोलने वालों की ज्यादातर बातें
श्रोता की समझ में नहीं आती, क्योंकक समझने के सलए भी थोड़ा समय
तो चाहहए ही।
ध्यान से सन
ु ना : ज्यादातर अधधकाररयों को अपने साधथयों से सशकायत यह नहीं कक वे अच्छा नहीं बोलते हैं -
बस्ल्क यह है कक वे ध्यान से सन
ु ते नहीं हैं! ध्यान से सन
ु ने का अथा है वक्ता की आंखों में, चुप होकर दे खना,
सन
ु ना, समझना, ससर हहलाना कक “हां, समझ गया” और समझ न आने पर जरूर सवाल पछ
ू ना। आणखर में,
अपने शब्दों में, सारांश में बताना कक मैं क्या समझा : ओके, तो मैं कल सुबह, आईटीओ पर ठीक नौ बजे
समलूग
ं ा, स्वयं सहायता समूह के सदस्यों की सूची लेकर। ठीक?
यानी आपको बहुत सारे कौशल (स्स्कल) सीखने हैं – धीरे -धीरे ,
अपने स्वयं सहायता समह
ू में, कर्र अजनबबयों के साथ, र्ोन पर
दस
ू रा स्तर है - बोलने की भौततक किया - स्जसमें शब्द,
आवाज, तनगाहें , हाव-भाव आहद शासमल हैं। अगर मन में यह ववचार उठा कक आज इंटरव्यू में कुछ गड़बड़ न हो
जाए - तो यकीनन हम हकलाते हैं। हकलाने के बाद अगर मन में आया - ओह, मैंने ये क्या कर हदया? तो
यकीनन हम आगे की बात भल
ू जाते हैं, और भी ज्यादा हकलाते हैं तथा एक ढलान पर नीचे की ओर कर्सलते
चले जाते हैं। यानी हमारे ववचार और हमारा बोलना - दोनों में गहरा सम्बंध है ।
तो अब प्रश्न है - मन में नकारात्मक ववचार न आएं - इसके सलए क्या ककया जा सकता है ? मन की एक
ववशेिता है कक स्जस बात की मनाही की जाए, वही ववचार मन में बार-बार उठता है । नकारात्मक आदे शों को
मन मानता ही नहीं। इसके बजाय सकारात्मक सझ
ु ावों को यह आसानी से ग्रहण करता है। “मैं र्ेसबक
ु पर
टाइम बबााद नहीं करूूँगा” का प्रण व्यवहार में लाना थोड़ा मस्ु श्कल है | मगर अगर हम ये सोचें : “आज से मैं हदन
की शरु
ु आत “बेटर इंडडया साईट” पर उत्साहवधाक लेख पढ कर करूूँगा” तो इसको व्यवहार में लाना बतनस्बत
आसन होगा| अगर आप ये करें तो कुछ समय बाद आप र्ेसबक
ु को भल
ू ही जायेंगे|
मगर नकारात्मक ववचारों को सकारात्मक ववचार नहीं, सकारात्मक कियाएं और पहल ही दरू कर पाती हैं।
पॉस्जहटव धथंककं ग पर ससर्ा ककताबें पढना या वीडडयो दे खना व्यथा है । ज्यादा प्रभावशाली है , पॉस्जहटव कदम
लेना। यानी ववचारों पर ववचार से नहीं, बस्ल्क कमा से ववजय पाई जा सकती है ।
उदाहरण : कमल अगले कुछ सालों में अपनी स्पीच को परू ी तरह बदल दे ना चाहता है । इससलए वह बहुत सी
ककताबें पढता है, उत्साहवधाक वीडडयो दे खता है आहद-आहद। दस
ू री ओर असभिेक इन सबके बजाय स्वयं
सहायता समह
ू से जुड़ता है । वहां हर हफ्ते वह कुछ नया सीखता है, करता है । वहां सीखी हुई बातें , वह बाजार
में , घर पर और ऑकर्स में भी धीमे-धीमे आजमाता है । एक विा बाद आप ककसमें ज्यादा बदलाव की उम्मीद
करते हैं, कमल में या असभिेक में?
चौथी बात - अपनी सोच को बदलने की लम्बी प्रकिया में वातावरण बहुत बड़ी भसू मका तनभाता है । सही
वातावरण समलने पर आम व्यस्क्त भी असाधारण उपलस्ब्धयां हाससल कर सकता है । यहाूँ वातावरण से हमारा
मतलब है - एक लक्ष्य आधाररत समह
ू । अगर हम ध्यान में तनपण
ु होना चाहते हैं, तो एक ध्यान मडडली; अगर
प्रततयोधगता की तैयारी करना चाहते हैं तो एक स्टडी ग्रप
ु ; अगर हम संचार पर काम करना चाहते हैं तो तीसा
जैसे स्वयं सहायता समह
ू । समह
ू लोगों से समलकर बनते हैं। अगर आप कहटबद्ध और गम्भीर नहीं हैं, तो
आपका समह
ू भी धीरे -धीरे बबखर जाएगा और तब आप अभ्यास ककसके साथ करें ग?
े क्योंकक संचार कौशलों
का अभ्यास कभी भी अकेले में नहीं ककया जा सकता|
र्ांचिी और आखखरी बात : अपने अन्दर आप वही चीजें बदल सकते हैं, स्जनका आपको आभास हो। अगर
आपको ‘मन के खेल’ का आभास भी नहीं है , तो इस खेल में तनपण
ु होना मस्ु श्कल है । बगैर मन के खेल को
समझे आप बेहतर संचार की दौड़ में आगे नहीं तनकल सकते।
अच्छा ध्यान, एक अच्छे एडटीवाइरस प्रोग्राम की तरह है । ये न ससर्ा कभी-कभी र्ाइलों को स्कैन करता है,
बस्ल्क मैमोरी में लगातार बैठकर कम्प्यट
ू र के अन्दर की हर प्रकिया पर तनगाह रखता है – चौबीसों घंटे। ध्यान
भी उसी तरह पष्र ठभसू म में लगातार सकिय रहने वाला प्रोग्राम बन जाए - इसके सलए आपको अपनी जीवनशैली
में कुछ छोटे -छोटे बदलाव करने होंगे। तभी ध्यान का र्ायदा आपको संचार की हर स्स्थतत में अपने आप
समलेगा। ये तमाम बदलाव धीमे-धीमे करें , अगले 1-2 सालों में । ये हैं-
2. जल्दी सोने के सलए, अपना सारा काम जल्दी व समय पर तनपटाएं और रात दस बजे के आसपास सेलर्ोन,
कम्प्यट
ू र आहद बन्द करें या साइलेन्ट मोड में डालें। बबस्तर पर बैठें और ध्यान करते-करते सो जाएं। कोई
अच्छी उत्साहवधाक ककताब पढते हुए भी सो जाना एक अच्छा तरीका है ।
3. हदन में काम समय पर कैसे तनपटाएं? जो काम कहठन लगते हैं, उन्हें सबसे पहले सब
ु ह तनपटाएं। इसके
सलए एक टाइमर/अलामा भी इस्तेमाल कर सकते हैं। अगर आपको परीक्षा की तैयारी के सलए एक ववशेि
ककताब पढना उबाऊ लगता है तो सब
ु ह 30 समनट का अलामा लगाएं और स्वयं से कहें : ससर्ा 30 समनट, मैं ये
ककताब पढने जा रहा हूूँ - सब कुछ छोड़कर - चाहे जो हो जाए!
इसके बाद उन कियाकलापों को छांटें और बदलें, जो आपको अच्छे लगते हैं मगर समय बबााद करते हैं: बार-
बार ई-मेल चेक करना, इन्टरनेट पर व्यथा ब्राउस्जंग करना, अपना ब्लॉग बार-बार चेक करना, ‘सबवे सर्ा’ या
‘टे म्पल रन’ जैसे वीडडयो गेम खेलना आहद। इन आदतों को बदलने के सलए तनयम बनाएं: ई-मेल का जवाब
पहली बार में ही पढकर तरु न्त दें ; बार-बार चेक करने के बजाय ई-मेल नोहटकर्केशन टूल्स का इस्तेमाल करें ,
सारे ई-मेल का जबाव दे ने के बाद ही ‘सबवे सर्ा’ खेलें या ब्लॉग चेक करें । मगर उसकी भी समय सीमा तय
करें ।
4. हदन की शरू
ु आत और अन्त, ध्यान से करें । ककसी आध्यास्त्मक संस्था से जड़
ु ें। ववपासना, ब्रम्ह ववद्या,
राजयोग, ध्यान आहद ठीक से सीखें और तनयसमत अभ्यास करें । ऐसे ककसी समह
ू से जुड़ना र्ायदे मन्द होगा।
ये अभ्यास समह
ू में करने के बहुत से र्ायदे हैं|
6. जीवनशैली में बदलाव के बारे में दोस्तों और पररवार को बताएं, ताकक वे आपकी मदद कर सकें।
9. ककसी अनभ
ु वी, वररष्ठ दोस्त या सहकमी को अपना लाइर् कोच (गरू
ु ) बनाएं। लगातार उसके सम्पका में
रहें । अपने ववचार उसे बताएं और उसकी राय लें। कई बार, दस
ू रे वह दे ख पाते हैं, जो हमारे इतना करीब है कक
हमें उसका अहसास भी नहीं होता। इससलए एक अच्छा दोस्त या कोच हमारी मदद कर सकता है ।
अन्ततः एक समय ऐसा आएगा जब न केवल आपका संचार बदल चुका होगा, बस्ल्क जीवन के प्रतत आपका
परू ा दृस्ष्टकोण बदल चुका होगा।
1. हम प्रायः ववपासना एक बार करते हैं और उम्मीद करते हैं कक दस हदन में हमारी सारी मस्ु श्कलें हल हो
जाएंगी। ववपासना में जो सीखा, उसे घर पर नहीं करते। धीरे -धीरे सब भल
ू कर अपनी परु ानी स्जन्दगी की ओर
लौट जाते हैं।
2. कई बार हम परू ी जीवनशैली में बदलाव लाने के बजाय ससर्ा सतही तौर पर एक-दो चीजें बदलने का प्रयास
करते हैं - या बदलाव को एक योजनाबद्ध तरीके से नहीं करते। कभी-कभी बहुत सारे बदलाव एक साथ करने
का प्रयास करते हैं। लेककन थोड़ी मस्ु श्कल आते ही तनराश हो जाते हैं और सब कुछ छोड़ कर भाग खड़े होते हैं।
3. हम लम्बे समय तक योजनाबद्ध ढं ग से काम करने का मन नहीं बनाते। कुछ हफ्तों या माह में ठडडे पड़
जाते हैं। “बद्
ु धधजीवी” ककस्म के लोग अक्सर इस जाल में र्ंसते हैं। उन्हें लगता है – सब पढ सलया, समझ
सलया और सब हो गया! जब करने की बारी आती है तब तक सारी उजाा ख़त्म हो चक
ु ी होती है ।
अन्त में, ध्यान दें - अच्छा बोलने में एक बाहरी प्रकिया है और एक अंतमान का खेल है । अगर मन उत्साहहत है,
तनभाय है और आश्वस्त है तो हम जरूर अच्छी प्रस्ततु त दे पाएंगे। मन को आप जब चाहें , ऐसा बना सकते हैं।
यही है मन का खेल। इस पर ववजय पाने के सलए अपनी जीवन शैली में धीरे -धीरे सकारात्मक बदलाव लाएं।
अगर मन आपका है, तो ये जंग भी आपकी है । मन के जीते जीत है, मन के हारे हार!
मैं ककतने अच्छे ववचार रखता हूूँ। कोई भी सराहता नहीं। शायद मैं इसी काबबल हूूँ ...
मेरा कैम्पस इन्टरव्यू अच्छा हो गया। मगर अब आगे की धचन्ता है मुझ।े कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर होगी अब...
मैं जुझारू इन्सान हूूँ। पूरी स्जन्दगी मुस्श्कल से जूझता रहा हूूँ। आगे भी जूझता रहूूँगा ...
अगर आप गौर करें , तो पाएंगे कक हमारा मन अक्सर ऐसी ही नकारात्मक बातें और भववष्यवाणणयां करता
रहता है । एक तरह का वाताालाप अन्दर चलता रहता है , जो हमें हीनभावना और तनराशा से भर दे ता है । हम हर
नई पररस्स्थतत और संभावना को नकारात्मक रूप में ही लेते हैं। इस तरह जीवन के प्रतत दृस्ष्टकोण और हमारी
आत्मछवव बेहद नकारात्मक हो जाती है । क्या इन्हें बदले बगैर हम अपना संचार, अपने नाते-ररश्ते, अपनी
शैक्षक्षक उपलस्ब्धयां, रचानात्मकता व अन्य बौद्धधक व सामास्जक कुशलताओं को बदल सकते हैं? शायद
नहीं।
आत्मछवि : हमारे मन में हमारी ये नकारात्मक छवव कहां से, कैसे आई? बचपन में हमने औरों से अपने बारे
में या अपने सलए जो भी सन
ु ा, महसस
ू ककया - वह हमारे मन में हमारी पहचान बनता चला गया। बाद में एक
समय ऐसा आया कक हमने अच्छी बातों को नकारकर, ससर्ा अपनी कसमयों पर ही गौर करना शरू
ु कर हदया।
धीरे -धीरे हमारी आत्मछवव इतनी नकारात्मक बन गई की हम अपने से कोई भी अच्छी उम्मीद नहीं रखते।
और यही सब हमारे बोलने में भी झलकता है ।
पर हम अक्सर एक बात भल
ू जाते हैं। दतु नया वह नहीं रही जो बीस साल पहले थी, जब हम बच्चे थे और हमें
धचढाने वाले भी बच्चे थे। लोग बदल गए हैं - हम भी बदल चुके हैं। इससलए हम अपनी मानससकता और अपना
3. मझ
ु े हमेशा लगता है कक मझ
ु े ऐसा करना चाहहए था या वैसा करना चाहहए था।
5. दस
ू रे मेरे बारे में क्या सोचते हैं - इससे मझ
ु े र्का पड़ता है ।
6. मैं गलततयां करने के बाद उसके बारे में बार-बार सोचता हूूँ।
8. मझ
ु े अक्सर लगता है कक दतु नया भर का बोझ मेरे कन्धों पर है ।
9. छोटी सी भल
ू भी बड़ी भल
ू के समान गम्भीर मामला है ।
11. मझ
ु े अपनी अच्छाईयां हदखाई नहीं दे तीं - जब दस
ू रे लोग बताते हैं, तब हदखती हैं।
14. अगर मैं औरों के बराबर काम न कर पाऊं तो इसका मतलब है मैं औरों से कमतर हूूँ।
15. अगर कोई काम मैं बेहतरीन न कर सकंू , तो इसे करना ही व्यथा है ।
र्ररणाम : अब अपने आपको हर उस कथन के सलए एक अंक दें स्जसे आपने सही माना है । इसका योग कर लें।
योग नीचे स्जस श्रेणी में आता है , उसके आगे दी गई समीक्षा को ध्यान से पढें ।
0-4 अंक : आपकी सोच सामान्यतः सकारात्मक है । स्वयं को बधाई दें और अपनी सकारात्मक सोच को आगे
भी जारी रखें ।
5-8 अंक : आप सम्भवतः कुछ नकारात्मक भावनाओं से जूझ रहे हैं। करपया अपनी अच्छाईयों और गण
ु ों पर
भी ध्यान दें , उन पर मनन करें , उनकी एक लम्बी सी सलस्ट बनाएं।
1. अच्छे पररणाम की कल्पना करें , उम्मीद करें । जो पररणाम आप चाहते हैं, उसे ध्यान में मत
ू ा रूप दें
(ववजुअलाइज करें )। उसके बारे में सलखें, बातें करें ।
2. भरसक आप जो कर सकें, कर डालें। जो न करते बने उसकी धचन्ता, उसका मलाल मन में न रखें । डू योर
बेस्ट, लीव दी रे स्ट।
5. जब भी खाली हैं या जैसे सर्र कर रहें हैं - तब सकारात्मक प्रततज्ञा (पॉस्जहटव एर्मेशन) दोहराएं: मैं
हकलाता हूूँ और मझ
ु े इससे कोई समस्या नहीं; मैं कुशल संचारकताा हूूँ; मैं अच्छी प्रस्ततु त दं ग
ू ा; मैं बहुत बहढया
समझाऊंगा, आहद। इन्हें आप बार-बार सलख भी सकते हैं। सलखकर सामने दीवार पर भी लगा सकते हैं।
6. गलततयां होने पर अर्सोस करने के बजाए, उन पर मनन करें और सोचें की दोबारा उनसे कैसे बचा जा
सकता है । गलततयां करना बबल्कुल स्वाभाववक है पर वही गलततयां बार-बार दोहराते रहना जरूर अर्सोसनाक
है ।
8. हर छोटी या बड़ी सर्लता का जश्न मनाएं; ऐसे मौके पर अपनी पीठ थपथपाने में कंजस
ू ी न करें । स्वयं को
सराहना (एवप्रसशयेट करना) सीखें । इसके सलए दोस्तों के साथ पाटी या कोई अच्छी कर्ल्म या ससर्ा आईसिीम
भी चलेगी। अपनी डायरी या ब्लॉग में भी सलखें : आज मैंने ये सर्लता हाससल की। तनराशा के क्षणों में ये
डायरी पढें , इस से मदद समलेगी|
9. अपने इदा -धगदा एक अच्छी टीम या दोस्तों की मडडली ववकससत करें । टीम वका (सहकाररता) को बढावा दें ।
10. अपनी सर्लताओं को ओझल न होने दें । उनके स्मतर त धचन्ह सम्हाल कर रखें । ग्रप
ु र्ोटो, रॉर्ी,
सहटा कर्केट आहद। इन्हें बार-बार दे खें और खुद को याद हदलाएं कक प्रयास करके आप कुछ भी हाससल कर सकते
हैं और आपने ककया भी है ।
11. आभार तासलका (थैंक्यू सलस्ट) : कभी-कभी अपनी डायरी में लम्बी-सी सलस्ट बनाएं, ऐसे : मैं आभारी हूूँ
........ का, कक मेरे पास एक स्वस्थ शरीर है , आहद। शरू
ु में ससर्ा 3-4 ही ऐसी बातें सझ
ू ेंगी मगर लगे रहें ;
हर वो बात स्जसका श्रेय आप खुद को ईमानदारी से नहीं दे सकते, उसको सलखते चले जायें| कुछ
हदनों में ये सलस्ट कार्ी लम्बी हो जाएगी और आप को कुछ कुछ आभास होगा कक हकलाने के
बावजद
ू आप ककतने भाग्यशाली हैं; पररवार, समाज व ईश्वर से ककतना कुछ समला है ; आपके जीवन
में ककतना कुछ अच्छा घहटत हुआ है और हो रहा है | ये अभ्यास बार बार करते रहने से आपका
जीवन के प्रतत दृस्ष्टकोण बदलने लगेगा| दृस्ष्टकोण बदलने पर धीरे धीरे आपके इदा धगदा स्स्थततयाूँ,
नाते ररश्ते और संचार भी बदलने लगेगा|
जोहै री विण्डो
यह स्वयं को समझने और बदलने का एक अच्छा मनोवैज्ञातनक तरीका है । पहले हम इसे समझेंग,े कर्र इसके
प्रयोग से स्वयं को समझकर, बदलाव की प्रकिया की ओर बढें गे। अपने सबसे अच्छे दोस्त को साथ लेकर ये
दनु नया 1. सावाजतनक मैं : मेरे बारे में वह सबकुछ 2.अनजान मैं: मेरे वह गण
ु और पहल,ू जो
जानती है जो मैं जानता हूूँ और दतु नया भी जानती है । दतु नया जानती है, मगर मैं अनसभज्ञ हूूँ।
दनु नया 3. गप्ु त मैं: मेरे व्यस्क्तत्व के वे पहलू स्जन्हें 4. अज्ञात मैं: मेरी वह क्षमताएं स्जन्हें न
नहीं मैं जानता हूूँ , तछपाता हूूँ - और इससलए मैं जानता हूूँ , न दतु नया।
जानती है दतु नया नहीं जानती।
अब दस
ू रा वगा (अनजान मैं) भरा जाना है । इसके सलए आप और आप का घतनष्ठ समत्र एक-दस
ू रे की मदद
कर सकते हैं। घननष्ठ लमत्र ही इस चरण में आपकी मदद कर पायेगा| ये एक तरह का र्ीडबैक सत्र है
स्जसमें ये बेहद जरूरी है कक आप अपने अहम ् के प्रतत सजग रहें और उसे तनरन्तर दबाकर रखें- ताकक आप
अपने समत्र के र्ीडबैक को बगैर बहस ककये सन
ु सकें। अगर आप सहमत हैं तो उसको वगा 2 में सलखें ।
उदाहरण के सलए: आप का समत्र आपके बारे में दो बातें बताता है : तुम वायदा हर चीज का कर दे ते हो, मगर पूरा
नहीं करते; दस
ू री बात – तुम हमेशा लेट आते हो।
इसी तरह आप भी मांगने पर अपने समत्र को सही-सही र्ीड बैक दें - बदले की भावना से नहीं, बस्ल्क इस
अभ्यास को सही ढं ग से परू ा करने के सलए।
“अज्ञात मैं” (चौथा वगा) को जानने के सलए आप दोनों को तनत नई-नई चुनौततयां या खतरे उठाने होंगे। तभी
आप जान पाएंगे कक आप में क्या संभावनाएूँ तछपी हुई हैं| आपस में बात करें कक ये चुनौततयां आप दोनों
के संदभा में क्या हो सकती हैं, कैसी हो सकती हैं? जैसे मान लें, आप एक शमीले व्यस्क्त हैं जो अपने
काम से काम रखता है । एक हदन ऑकर्स में अपने बॉस को, कलेजा कड़ा कर, एक काम्पलीमेन्ट दें । इसमें
खतरा है । हो सकता है कक बॉस इसे गलत अथा में ले। मगर ये भी मम
ु ककन है कक वह इसे सही रूप में लें और
इस बात की सराहना करें । पररणाम जो भी हो, ऐसा करने के बाद आप जान पाएंगे कक आप में ररस्क लेकर एक
वररष्ठ साथी को सावाजतनक रूप से साधुवाद दे ने की क्षमता है । ये आपको पहले नहीं पता था। ककसी साथी के
जन्महदन पर अगर कोई गाना सन
ु ाने की गज
ु ाररश करे तो ररस्क लें और गाना गायें| इस तरह आप का
“सावाजतनक मैं” धीरे -धीरे बढे गा और “अज्ञात मैं” ससकुड़ता जाएगा।
इस तरह दे खें तो, आप वास्तव में कौन हैं, इस पररभािा, इस समझ को बढाते जाने के तीन तरीके हैं : 1)
अपने साधथयों से र्ीड बैक मांगना और ध्यान से सन
ु ना 2) अपने बारे में ज्यादा से ज्यादा दस
ू रों को
बताना, ब्लॉग पर सलखना आहद और 3) तनत नई-नई चुनौततयों को स्वीकार करना; पररणाम चाहे जो भी हो,
आप हर हाल में र्ायदे में रहें गे!
इस अभ्यास को अपने स्वयं सहायता समूह में करें , बहुत मजा आएगा और सीख समलेगी| ए4 कागज ले लें
और एक गोले में बैठ जाएूँ| समन्वयक ये तनयम समझा दे : नीचे हदए धचत्र के अनस
ु ार एक सीधी लाइन खीचें
और उस पे सारे महत्त्वपण
ू ा विा बबन्दव
ु ार हदखाते चले जाएूँ; क्यूूँ महत्त्वपण
ू ा था, ये लेबल भी डालते जाएूँ: जन्म,
सशक्षा, दोस्तों से मुलाकात, ककसी परीक्षा या प्रततयोधगता में सर्लता, नयी जॉब, शादी ब्याह आहद| ये पूरा होने
पर बारी बारी से सब समूह में अपनी टाइमलाइन के बारे में बताएं| दस
ू रे चि में : जीवन की चुनौततयों
(दघ
ु ट
ा नाएं, अनचाहे बदलाव) को भी इसी चाटा पर डालना शुरू करें | इन्हें पूरे समूह में बांटना जरुरी नहीं है ,
अब तीसरे चि में तमाम अच्छी बरु ी घटनाओं के आपसी संबंधों के बारे में सोचें और इन्हें तीर के तनशाूँ से
हदखाने की कोसशश करें : आपका पररवार कानपुर छोड़ कर हदल्ली में जा बसा, क्या इस सलए आप अगले साल
दसवीं में र्ेल हो गए? क्या आपकी दोस्ती रमेश से हुई, इसी सलए एक साल बाद आपने भी उसकी तरह बी.
टे क करने का मन बनाया? अब समूह को मौका दें की जो चाहे वह अपने ववचार, अपनी समझ बाूँट सकता है |
आणखरी चि में सभी सहभाधगयों से कहें कक अब वे अपने आने वाले पांच या दस सालों कक सम्भाववत घटनाओं
को अपने टाइमलाइन पर हदखाने का प्रयास करें | हमारा अतीत अक्सर हमारे भववष्य पर हावी रहता है , जब
तक कक हम इस सच्चाई को अच्छी तरह समझ कर, जीवन की हदशा को तनयोस्जत ढं ग से बदलने का प्रयास
नहीं करते| आणखर में , सबको अपनी समझ बांटने का मौका दें , धन्यवाद दें और सत्र का समापन करें | सभी से
अपनी टाइमलाइन सम्हाल कर रखने का तनवेदन करें , ताकक कुछ महीने बाद यही अभ्यास दोबारा ककया जा
सके| इस अभ्यास में अधधकतर प्रततभाधगयों को अपने बारे में गहरी अंतदृास्ष्ट समलती है और वे नए अवसरों के
प्रतत सजग होते हैं|
सिपशजक्तमान िातािरण : पहली बात हमें ये समझनी होगी की हमारी अपनी इच्छाशस्क्त ककतनी भी दृढ क्यों
न हो, वातारण के आगे यह कुछ भी नहीं! आप जब भी अपने आप को बदलने का प्रयास करते हैं तो पररवार,
दोस्त, सहकमी जाने-अनजाने इसे तनष्र्ल बना सकते हैं, बना दे ते हैं। अगर ये सब आपसे कहते रहें : तुम तो
नहीं हकलाते, जरा सा रूकते हो, तुम्हें क्या जरूरत है यहां-वहां जाने की? तो तनस्श्चत रूप से आप न तो स्वयं
सहायता समह
ू में जाएंगे और न ही थैरेपी आजमाएंगे। इसी तरह से जब आप कोई नई तकनीक का अभ्यास
कर रहे हैं और कोई यह कह दे – यार, तुम पहले जैसा बोलते थे, वही अच्छा था! तब आप के सलए कुछ भी नया
सीखना या आजमाना कार्ी मस्ु श्कल हो जाएगा। मगर जाने अनजाने यही सब हमारे साथ होता रहा है !
अपना पररवार, सहकमी व दोस्त – इन्हें हम रातोंरात बदल नहीं सकते, छोड़ नहीं सकते। मगर एक नए
पररवार से जरूर जुड़ सकते हैं! यह नया पररवार है - स्वयं सहायता समह
ू । इस समह
ू में आप नए कौशल, नए
व्यवहार आजमा सकते हैं। अपना डर या ददा बांट सकते हैं, और कुछ मजेदार कियाकलापों में भाग ले सकते हैं,
क्योंकक यहां हर कोई उन सारे अनभ
ु वों से गज
ु रा है स्जनसे आप गज
ु रे हैं। हर व्यस्क्त आपको गहराई से
समझता है । अगर हकलाना बायोलास्जकल घटना है तो ये लोग ही आपकी असली बायोलास्जकल र्ैसमली हैं!
सबसे बड़ी बात – ये कभी आपको हतोत्साहहत नहीं करें गे।
अगर हम स्वीकार कर लें कक ‘हां, मैं हकलाता हूूँ’ तो ऊपर की सारी समस्या, डर, संघिा व शमा से हम तरु न्त
आजाद हो जाते हैं और हमारी नयी पहचान बन जाती है : एक हकलाने वाला व्यस्क्त जो स्वयं को स्वीकार
करता है , स्जसमे कोई ग्रंधथ (काम्प्लेक्स) नहीं है । औरों की तरह, जब हम मेहनत करते हैं तो यह पहचान और
ववकससत होती है : वह हकलाता है पर अच्छा समझाता है, अच्छा सलखता है , अच्छा डॉक्टर है, अच्छा टीचर है ,
अच्छा डडजाईनर है , आहद-आहद।
ये सारी पहचान हमें समाज दे ता है । इसके परे हम क्या हैं? कौन हैं? हकलाना और प्रवाह में बोलना - इन दोनों
के परे हम कौन है ? अपनी बनावट और कियाकलापों के परे भी हम सम्भवतः कुछ हैं, स्जसे गहराई में समझने
की जरूरत है ; हम अपने अस्स्तत्व को दतु नया की दी हुई पहचानों, लेबलों से परे जानना और समझना चाहते हैं।
ये स्ज़न्दगी की असली और आखरी चन
ु ौती है । आणखरी जंग!
स्वयं को गहराई में , अससलयत में, समझने की एक लम्बी यात्रा है, इसकी शरू
ु आत ध्यान, ववपासना, ईश्वर में
तनष्ठा और प्रेम आहद के साथ की जा सकती है । हो सकता है , हकलाना वह सीढी हो जो आपको आध्यास्त्मक
साधना की उं चाईयों तक ले जाए!
अगर तम
ु जानते हो कक तम
ु कौन हो, तो तम
ु गलत हो!
- तनसगादि महाराज
(क्योंकक हम जो हैं वह शब्दों और ववचारों से परे है, इस सलए “जानने” का वविय नहीं!)
अगर आपका जीवन इस राह पर चल पड़ा है तो आप “क्योर” हो गए हैं। ककसी को भी - यहां तक कक थैरेवपस्ट
को भी, इस पर शक करने की जरूरत नहीं, अधधकार नहीं। मैं ठीक हूूँ - यह मानना और महसस
ू करना, आपका
जन्मससद्ध अधधकार है, स्जसका तीसा समथान व असभनन्दन करता है । और ये परू ी तरह आपके हाथ में है |
अपना हाथ जगन्नाथ!
सारी पस्
ु तक पढ ली– अब क्या? ये कार्ी
नहीं| इस पस्
ु तक को दो-तीन बार पढें । अपने
स्वयं सहायता समह
ू में इस पर चचाा करें ।
साथ ही एक मोटी-मोटी कायायोजना भी
बनाएं। बबना कायायोजना के सब अधरु ा रह
जायेगा| सब सपने ही रह जायेंगे!
जरूरी नहीं कक आपकी योजना ठीक ऐसी ही हो, मगर कुछ कुछ ऐसी हो सकती है । अपनी योजना बनाकर उसे
उन तमाम जगहों पर र्ोटोकॉपी करके लगाएं जहां आपकी तनगाह पड़ती रहती है । अपने दोस्तों को बताएं
ताकक वे भी आपको बीच बीच में याद हदलाते रहें | र्ेसबक
ु , व्हाट्सएप, ब्लॉग आहद पर भी इसे बांटें
ताकक आपकी प्रततबद्धता बनी रहे और दस
ू रे भी प्रेरणा ले पायें|
2. अगिे दो हफ्तों में: अध्याय 1 से 4 तक दोबारा पढें और उसमें बताए गए कियाकलाप करें । तनकटस्थ स्वयं
सहायता समह
ू में जाना शरू
ु करें । इसके साथ रात में स्काइप/गग
ू ल हैंगआउट में भी शासमल हों। व्हाट्सएप
भी ज्वाइन करें (इनके वववरण तीसा ब्लॉग पर उपलब्ध हैं)। अपने अनभ
ु व तीसा ब्लॉग या याहू
आई.पी.डब्ल्य.ू एस ग्रप
ु पर बांटें – हर हफ्ते कुछ सलखने का तनयम बनायें|
7. इसके आगे अपने काम से जुड़े नए प्रोर्ेशनल कोसा करने के बारे में सोचें । अपने पाररवाररक और कामकाजी
ररश्तों के ऊपर अब गम्भीरता से काम करने में जट
ु जाएं। स्जनसे कभी कोई मतलब नहीं रखा, उन सबसे पन
ु ः
जुड़ें। उनसे बातचीत करें , उनकी व्यावहाररक मदद करें । उनके साथ समय बबताएं। ककसी सामास्जक संस्था से
वालेस्डटयर के रूप में जुड़ें। अपने शहर या आकर्स में हकलाहट व स्वयं सहायता पर 1-2 हदन का कायािम
आयोस्जत करें । व्यस्क्तत्व ववकास के दस
ू रे कायािमों से जड़
ु ें – जैसे टोस्टमास्टर आहद। नए रचनात्मक शौक
ववकससत करें - एस्क्टं ग (धथयेटर), शास्त्रीय संगीत, र्ोटोग्रार्ी, ब्लाधगंग, लेखन, रै ककं ग, बंगी-जंवपंग आहद।
तीसा का नया चैप्टर या शाखा शरू
ु करें । ध्यान, ववपासना, साधना की गहराई में उतरें ।
अपने हकलाने को
ककसी तकनीक से
बदलें -तनगाहें , बॉडी- ब्लाक करे क्शन का
लैंग्वेज, पॉस्जंग, अभ्यास, समह ू में कर्र
बाउस्न्संग, प्रोलॉन्गेशन, अजबबयों के संग
जेंटल ओन्सेट्स,
तनयसमत सांस आहद
से..
2007 में एक ब्लॉग से इस बदलाव की शुरूआत हुई और ब्लॉग में सलखने वालों का
एक समुदाय कुछ विों में पनपने लगा। इस समुदाय ने दे श के सभन्न-सभन्न शहरों में स्वयं सहायता समूह शुरू ककए जो
परू ी तरह स्वयंसेववयों द्वारा चलाए जा रहे हैं।
इन समूहों में हमने कई सभन्न-सभन्न ववचारों का समावेश ककया : सहभागी कियाकलाप, संचार केस्न्रत कौशल, समूह
कियाएं, कुछ तकनीक ववशेिकर पीटर रीट्जेस की पुस्तक से; ये सब क्योर नहीं बस्ल्क हकलाने को अच्छी संचार शैली में
बदलने की दृस्ष्ट से। क्योंकक हकलाने में सबसे ज्यादा संचार ही प्रभाववत होता है | इस सब के पीछे हमारा ववश्वास था कक
हकलाना न कोई जुमा है , न गुनाह, बस एक संचार की समस्या है । अपने किया कलापों में आध्यास्त्मक पक्ष को
भी हमने जगह दी क्योंकक बहुत से साधथयों को ववपस्सना, ध्यान, ब्रह्मववद्या, राजयोग आहद से कहीं ज्यादा
मदद समली, थेरेपी के बतनस्बत|
इस तरह तीन हदवसीय संचार कायाशाला (कम्युतनकेशन वकाशॉप) की नींव पड़ी जो बहुत लोकवप्रय हुई। इन
कायाशालाओं ने हकलाने वालों की एक नई पीढी को पैदा ककया - जो हकलाने को लेकर न तो शसमान्दा हैं और न ही
अंधाधुंध “क्योर” के पीछे भाग रहे हैं| जो हकलाने को एक सभन्नता (“रान्स-फ़्लुएनसी”) के रूप में स्वीकार करने को तैयार
हैं। ऐसे साधथयों ने 2012 में , भुवनेश्वर में , पहली बार एक राष्रीय सम्मेलन का आयोजन ककया। तब से यह हर विा
सभन्न-सभन्न शहरों में होता रहा है । इन सम्मेलनों से हकलाने वाले एक नई पहचान, नई अन्तदृास्ष्ट लेकर लौटते हैं।
तीसा पारम्पररक अथों में कोई संस्था नहीं है – न ऑकर्स, न एकाउन्ट, न बजट। हमारा ववश्वास है कक एक-दस
ू रे को
सम्मानपूवक
ा सुनने और मदद करने के सलए ककसी सरकारी या बाहरी अनुदान की नहीं, ससर्ा थोड़ी सी संवेदनशीलता
की आवश्यकता है । हकलाना कोई रोग तो है नहीं, यह महज एक सभन्नता (डाईवससाटी) है । इसे ससर्ा स्वीकार ककए जाने
की जरूरत है – दोनों तरर् से; हकलाने वाला और उसका समाज अगर इसे स्वीकार कर ले तो ये कोई समस्या
नहीं रह जाती।
संचार कायाशाला, राष्रीय सम्मेलन तथा हमारे सभी प्रकाशन स्वयं हकलाने वालों तथा कुछ सुहृद समत्रों की मदद से
आयोस्जत व सम्पन्न ककए जाते हैं। हम सब उन सबके बहुत आभारी हैं। अन्ततः तीसा एक समद
ु ाय है जो हकलाने वाले
व्यस्क्तयों के अनुभवों, र्ैसलों, पहल और उनकी रचनात्मकता का असभनन्दन करता है । अगर आप ककसी हकलाने वाले
से बात करें तो ससर्ा तीन बातों का ख्याल रखें - तनगाहें समलाएं, बीच में न टोकें, अपनी गतत थोड़ी धीमी कर लें ।
धन्यवाद!
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