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परिश्रम सफलता की कुं जी है

परिश्रम उस प्रयत्न को कहा जाता है जो ककसी व्यक्ति द्वािा अपने उद्दे श्य की प्राक्ति के किए ककया जाता
है । परिश्रम ही मानव की उन्नकत का एकमात्र साधन है । परिश्रम के द्वािा हम वे सभी वस्तुएं प्राि कि
सकते हैं कजनकी हमें आवश्यकता है । इसके द्वािा ककिन से ककिन कायय को भी संभव बनाया जा सकता
है ।

एक प्राचीन कहावत है की जो मनुष्य अपने पुरुषार्य पि यकीन िखकि अपने िक्ष्य की प्राक्ति के किए
मन, वचन औि कमय से ककिन परिश्रम किता है , सफिता उसके कदम चूमती है । परिश्रम के द्वािा मनुष्य
के सभी मनोिर् पूर्य हो जाते हैं ।

परिश्रम का महत्व

परिश्रम ही मानव जीवन की सफिता की कुंजी है । आज कजतने भी बड़े -बड़े उधोगपकत, िाजनेता,
अकभनेता, हैं वे सभी किोि परिश्रम किके ही सफि हुए हैं , वे कदन-िात मेहनत एवं परिश्रम किते हैं औि
यह उनके परिश्रम का ही नतीजा है कक आज वे पूिे सं साि में प्रकसद्व हैं , बड़ी-बड़ी उपिक्तियां प्राि कि
िहे हैं ।

हमें ककसी भी काम को ककिन नहीं समझना चाकहये। यकद हममें परिश्रम किने की क्षमता है तो हम जकिि
से जकिि काम सििता से कि सकते हैं । परिश्रम के द्वािा मानव अपने में नये जीवन का संसाि कि
सकता है । अतः परिश्रम का महत्व अद् भुत तर्ा अनोखा है ।

मानव जीवन का ववकास- परिश्रम द्वािा मानव जीवन का कवकास सम्भव है । प्राचीन काि में मानव का
शिीि बन्दि जैसा र्ा। वह अपने खाने तर्ा जीकवका को चिाने के किए कनिन्ति परिश्रम किता िहता
िहा। धीिे -धीिे मानव का कवकास हुआ औि वह किोि परिश्रम कि एक कदन जानवि सीधा होकि कसफय
पैिों के सहािे चिने िगा।

आज नगिों में जो सभ्यता एवं संस्कृकत कदखिाई पड़ती है , वह सब परिश्रम द्वािा सम्भव हुई है । जापान
संसाि के कवकासशीि दे शों मे इसकिए कगना जाने िगा है क्ोंकक वहां के िोग सं साि के सबसे अकधक
परिश्रमी होते हैं ।

मानव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में परिश्रम उपयोगी है । कचत्रकाि या मूकतय काि कम परिश्रम नहीं किता है ।
वह एक मूकतय का कनमाय र् किने में, उसको आकाि दे ने में िात-कदन एक कि दे ता है । तब कहीं जाकि वह
कजस मूकतय का कनमाय र् किता है , उसमे सफि होता है । वह प्रकसद्व मूकतयकाि कहिाता है ।

ककसान भी कड़ी धूप एवं कचिकचिाती गमी में कृकष का अत्यकधक परिश्रम किता है औि उसी के परिश्रम
का फि पूिे संसाि को कमिता है । व्यापािी औि उधोगपकत कदन-िात परिश्रम किके बिसों में धनवान
औि उधोगपकत बन जाते हैं तब जाकि दु कनया उनकी ओि दे खती है । उनसे उनकी सफिता का िाज
पूछा जाता है तो वे एक ही वाक् कहते हैं - ककिन परिश्रम।
जो िोग मन िगाकि परिश्रम नहीं किते उनका जीवन सदै व दु ःख तर्ा कष्ट से भिा िहता है ।
परिश्रम से हम धमय, अर्य, काम औि यहााँ तक की मोक्ष भी प्राि कि सकते हैं । सं साि इस बात का साक्षी
है की कजस भी िाष्टर ने आज तक तिक्की की है , उसकी उन्नकत का एकमात्र िहस्य उस दे श के कनवाकसयों
का परिश्रमी होना है । अमेरिका का उदाहिर् हम सभी के सामने है । अमेरिका का अकधकां श भाग बंजि
है पिन्तु ककिन परिश्रम तर्ा साहस के बि पि अमेरिका आज कवश्व के कशखि पि कविाजमान है । यह
दे श स्वयं तो आत्मकनभयि है ही तर्ा दु सिे दे शों की भी सहायता किता है । दू सिा उदाहिर् है कसंगापुि
का। कसंगापूि एक छोिा सा दे श है पिन्तु आज इसकी कगनती कवश्व के कुछ सबसे समृद्ध तर्ा खुशहाि
दे शों में होती है । इन सभी दे शों के कनवाकसयों का परिश्रम ही इनकी सफिता का कािर् है ।

परिश्रम चाहे शािीरिक हो या मानकसक, दोनों ही फि प्रदान किने वािे होते हैं । कजस प्रकाि िस्सी की
िगड़ से कुएं के मजबूत पत्थि पि भी कनशान पड़ जाते हैं , उसी प्रकाि ककिन परिश्रम द्वािा ककिन से
ककिन कायय भी सिि हो जाते हैं ।

यह संसाि अनंत सुख-संपकि, धन-धान्य से भिा हुआ है ककन्तु इसका भोग वाही कि सकता है
कजसमें परिश्रम किने की िगन हो। परिश्रम के सामने तो प्रकृकत भी झुक जाती है । परिश्रम ही ईश्वि की
सच्ची साधना है । इसकिए महाककव तुिसीदास ने िीक ही कहा है की –
“सकल पदािथ हैं जग माुंही, कममहीन नि पावत नाही ुं।”

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