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 सहज योग में ध्यान धारण कैसे क्रियान्वित होता है ?

सहजयोग-(सह+ज=हमारे साथ जन्मा हुआ)


जिसमें हमारी आन्तरिक शक्ति अर्थात कुण्डलिनी
जागृ त होती है , कुण्डलिनी तथा सात ऊर्जा केन्द्र जिन्हैं
चक् र कहते हैं ,जो कि हमारे अन्दर जन्म से ही विद्यमान हैं ।
ये चक् र हमारे शारीरिक,मानसिक,भावनात्मक तथा आध्यात्मक
पक्ष को नियन्त्रित करते हैं । इन सभी चक् रों में अपनी-अपनी
विशे षता
होती है ,सबके कार्य बं टे हुये हैं ।कुण्डलिनी के जागृ त होने पर सम्पूर्ण
ब्रह्माण्ड
में फैली हुई ईश्वरीय शक्ति के साथ एकाकारिता को योग कहते हैं ।और
कुण्डलिनी
के सूक्ष्म जागरण तथा अपने अन्तरनिहित खोज को आत्म
साक्षात्कार(Self Realization)
कहते हैं ।आत्म साक्षात्कार के बाद परिवर्तन स्वतः आ जाता है ।वर्तमान
तनावपूर्ण तथा प्रतिस्पर्धात्मक
वातावरण में भी सामज्स्य बनाना सरल हो जाता है और सु न्दर
स्वास्थ्य,आनं द,शान्तिमय जीवन तथा मधु र
सम्बन्ध कायम करने में सक्षम होते हैं ।
 विद्यार्थियों को ध्यान धारण से लाभ-
1-शॉत एवं एकाग्र चित्त –
(Silent and Concentrated Attention) (स्वाधिष्ठा चक् र से )

2-स्मरण शक्ति तथा सृ जनशीलता में वृ दधि ् -


(Increased Memory and Creativity)
(स्वाधिष्ठान तथा मूलाधार चक् र द्वारा )
3-बडों के प्रति आदर तथा सम्मान-
(Respect towards Elders)
(स्वतः जागृ ति, नाभि चक् र द्वारा)
4-स्व अनु शासन,परिपक्व और
जिम्मे दारी पूर्ण आचरण –
(Self Discipline)
(आज्ञा चक् र द्वारा)
् -
5-आई क्यू के स्तर में वृ दधि
(Increased IQ, )
(सहस्रार चक् र द्वारा)
6-जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोंण-
(Positive Attitude)
( बॉयॉ पक्ष, इडा नाडी)
7-आत्म विश्वास में वृ दधि् -
(Self Confidence) (ह्दय चक् र)

 शिक्षकों तथा जन सामान्य को लाभः-


1- सबके प्रति प्रेम एवं करुं णॉमय आचरण
(उदार ह्दयचक् र के कारण प्रेम एवं
आनं द का भाव)
2-सहन शीलता और धै र्य में वृ दधि ्
(प्रकाशित आज्ञाचक् र – क्षमा शक्ति का उदय)
3-अध्यापकों में विद्यार्थियों के उत्थान के लिए
रुचि रखना(सबके प्रति सं तुलित एवं समान व्यवहार)
हमारे शरीर में कुण्डलिनी महॉनतम् शक्ति है
जिसने कुण्डलिनी का उत्थान कर दिया उस साधक
का शरीर ते जोमय हो उठता है ।इसके कारण शरीर के दोष
एवं अवॉच्छित चर्वी समाप्त हो जाती है ।अचानक साधक का
शरीर अत्यन्त सं तुलित एवं आकर्षक दिखाई दे ने लगता है ।आं खें
चमकदार और पु तलियॉ ते जोमय दिखाई दे ती हैं । सं त ज्ञाने श्वर जी
ने कहा है कि शु षुम्ना नाडी में उठती हुई कुण्डलिनी द्वारा बाहर छिडका
गया जल अमृ त का रूप धारण करके उस प्राणवायु की रक्षा करताहै
जो“उठती हैं ,
अन्दर तथा बाहर शीतलता का अनु भव प्रदान करती है ” ।।
जब आप निर्विचारिता में होते हैं तो आप

परमात्मा की श्रष्ठि का पूरा आनं द ले ने लगते
हैं ,बीच में कोई वाधा नहीं रहती है ।विचार आना
हमारे और सृ जनकर्ता के बीच की बाधा है ।हर काम
करते वक्त आप निर्विचार हो सकते हैं , और निर्विचार
होते ही उस काम की सु न्दरता,उसका सम्पूर्ण ज्ञान और
उसका सारा आनं द आपको मिलने लगता ङै ।

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