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िदल्ली

पिब्लक स्कू ल, ग्रेटर नोएडा


(समास की सरल युिक्तयों द्वारा पुनरावृित्त एवं पाठों पर आधािरत अध्ययन सामग्री)
कक्षा-दस
समास की सरल युिक्तयों द्वारा त्विरत पुनरावृित्त
(1) तत्पुरुष समास (उत्तरपद प्रधान)
(समस्तपद में कारकीय िवभिक्तयों का लोप)
कारकीय िवभिक्तयाँ- कतार् व संबोधन को छोड़कर बाकी सभी छह कारकों की िवभिक्तयाँ- कमर्- को,
करण-से/के द्वारा-by/with, संप्रदान-के िलए, अपादान-से (अलग होना), from, संबंध- का, की, के,
अिधकरण-में, पर
यशप्राप्त, ख्याितप्राप्त, हस्तिलिखत, जन्मांध, पाठशाला, रसोईघर, गुणहीन, प्रदू षणरिहत, राजपुत्र,
यमुनातट आिद
अन्य उदाहरण
पनचक्की- पानी से चलने वाली चक्की- तत्पुरुष समास
दहीबड़ा- दही में डू बा हुआ बड़ा- तत्पुरुष समास
जेबकतरा- जेब को कतरने वाला- तत्पुरुष समास
मनोहर- मन को हरने वाली- तत्पुरुष समास

(2) कमर्धारय समास की पहचान (उत्तरपद प्रधान)


(१) िवशेषण+ िवशेष्य= बीच में ‘है जो’ का लोप
नील (नीला) + कमल= नीलकमल- नीला है जो कमल
अन्य उदाहरण
नीलगगन, महात्मा, पुण्यात्मा, शुभागमन, शुभकामना, सद्भावना, सुपुत्र, सुगंध, दुरात्मा, दुराचरण,
सदाचरण, कालीिमचर्, प्रधानमंत्री, नववषर्, कापुरुष आिद

(२) उपमेय+ उपमान= समस्तपद के बीच में ‘रूपी’ का लोप


चरण+ कमल= चरणकमल- चरण रूपी कमल संतानरत्न- संतान रूपी रत्न
भवसागर- भव रूपी सागर करकमल- कर रूपी कमल
क्रोधािग्न- क्रोध रूपी अिग्न
अन्य उदाहरण- नरिसं ह, नरव्याघ्र, िवद्यारत्न, पुत्ररत्न आिद

(३) उपमान+ उपमेय= समस्तपद के बीच में ‘के समान’ का लोप


चंद्र+ मुख= चंद्रमुख- चंद्र के समान मुख अमृतवाणी- अमृत के समान वाणी
स्वणर्लता- स्वणर् के समान लता घनश्याम- घन के समान श्याम
• िवशेष िनयम- िवग्रह करने पर िवशेषण के साथ है जो, उपमेय के साथ रूपी और उपमान के साथ के
समान जोड़ते हैं।
(3) बहुव्रीिह समास (अन्य पद प्रधान)
िकसी अन्य पद की ओर संकेत करता है…
पौरािणक पात्रों, देवी-देवताओं के नाम, ई प्रत्यय से िनिमर् त स्त्रीवाचक शब्द होते हैं…
गजानन (गज+आनन) गज के समान आनन है िजनका अथार्त् गणेश जी- बहुव्रीिह समास
सुमुखी- सुंदर है मुख िजसका अथार्त् कोई सुंदर स्त्री- बहुव्रीिह समास
पीतांबर- पीत (पीला) अंबर (वस्त्र) हैं िजनके अथार्त् भगवान िवष्णु/ श्रीकृष्ण- बहुव्रीिह समास
श्वेतांबरा (माँ सरस्वती), दशानन (रावण), अंशुमाली (सूय)र् , चक्रधर/ चक्रपािण (िवष्णु भगवान),
मुरलीधर/ िगिरधर (श्रीकृष्ण), चतुरानन (ब्रह्म जी), षडानन (स्वामी काितर् केय)
सुलोचनी, मृगनयनी, मृगलोचनी, चंद्रमुखी आिद

(4) अव्ययीभाव समास (पूवर्पद प्रधान)


पहचान
(i) चयिनत उपसगोर्ं द्वारा पहचान-
यथा, प्रित, आ, भर, बा, बे, िनस् आिद से बने शब्द
यथाशिक्त- शिक्त के अनुसार
यथासंभव- िजतना संभव हो सके
प्रितिदन- हर िदन, प्रितक्षण- हर क्षण, आजीवन-जीवन भर,
आमरण-मरण तक, आकंठ- कंठ तक, भरपेट- पेट भरकर,
बाइज़्ज़त- इज़्ज़त के साथ, बाक़ायदा- क़ायदे के साथ
बेरहम- रहम के िबना, बेख़ौफ़- खौफ़ के िबना, िनस्संदेह- संदेह के िबना, िनस्संतान-संतान के िबना

(ii) पुनरुक्त शब्दों के द्वारा पहचान


पल-पल- हर पल, गाँव-गाँव- हर गाँव, गली-गली- हर गली,
नगर-नगर- हर नगर, कण-कण- हर कण आिद

(iii) पुनरुक्त शब्दों के बीच ओं का प्रयोग


बीचोंबीच- बीच ही बीच में
कानोंकान- कान ही कान में
रातोंरात- रात ही रात में
बातोंबात- बात ही बात में

(5) द्वं द्व समास (दोनों पद प्रधान)


जोड़े वाला समास- समस्तपद में और/ या का लोप
योजक िचह्न वाले जोड़े - माता-िपता, सुख-दुख, चाय-कॉफ़ी, तताँरा-वामीरो, अम्मा-दादा आिद
िबना योजक वाले शब्द- राधेश्याम, सीताराम, भीमाजुर्न, सत्यासत्य, धमार्धमर्, लाभालाभ आिद
(6) िद्वगु समास (उत्तरपद प्रधान)
पहचान- पहला पद संख्यावाची होता है। इन संख्याओं से बने शब्द प्रचिलत हैं- दो/िद्व, ित/ित्र,
चौ/चव/चतु:(चतुर्), पंच/पच/पंच, षड् , सप्त/सत, अष्ट/अठ, नौ/नव, दश, शत, सहस्त्र आिद।
िवशेष- समूह या समाहार का प्रयोग
(शास्त्रीय िनयम- उत्तरपद गणनीय होने पर समूह,अगणनीय होने पर समाहार का प्रयोग…)
सरलीकरण- अब गणनीय- अगणनीय कहीं भी समूह या समाहार का प्रयोग…
दोपहर, दोरंगा, ित्ररत्न, ित्रफला, चतुभुर्ज, चवन्नी, चौराहा, पंचरत्न, पंचफल, षड् भुज, सप्ताह, सप्तरंग,
सतरंगा, अष्टाध्यायी, अठन्नी, नवरात्र, नवरस, नविनिध, दशाब्दी, शताब्दी, सहस्राब्दी
कुछ अन्य शब्द- सतसई, चारपाई, इकन्नी, दुअन्नी, पंजाब, पंचामृत, नवरात्र आिद
(साथर्क िहं दी व्याकरण से साभार- डॉ. िवनोद ‘प्रसून’)

पाठ$ पर आधा)रत अ,ययन साम1ी


मीरा के पद
नरहिर- नर रूपी हिर( िसं ह)
पीतांबर- पीला है जो अंबर- कमर्धारय समास
पीले हैं अंबर िजनके अथार्त् भगवान िवष्णु/श्रीकृष्ण समास
िगिरधर- िगिर को धारण करने वाले अथार्त् श्रीकृष्ण
बड़े भाई साहब
दुख-ददर् (दुख और ददर्- द्वं द्व समास)
देहावसान (देह का अवसान-तत्पुरुष समास)
जन्मिसद्ध- जन्म से िसद्ध- करण तत्पुरुष समास (Proven by birth)
राधेश्याम- राधा और श्याम- द्वं द्व समास
असफल, अज्ञात
मेल-े तमाशे, गुल्ली-डंडा, मोह-माया, आटा-दाल, खेल-कूद (द्वं द्व समास)
आत्मसम्मान- आत्म (स्वयं) का सम्मान- संबंध तत्पुरुष समास
आत्मगौरव- आत्म (स्वयं) का गौरव- संबंध तत्पुरुष समास
दुरुपयोग- दुर् (बुरा) है जो उपयोग- कमर्धारय समास
िन:स्वाद/िनस्स्वाद- स्वाद के िबना- अव्ययीभाव समास
कांितहीन- कांित से हीन - अपादान तत्पुरुष समास


तताँरा-वामीरो कथा
तताँरा-वामीरो- तताँरा और वामीरो- द्वं द्व समास
द्वीपसमूह- द्वीपों का समूह- संबंध तत्पुरुष समास
लोककथा- लोक की कथा-संबंध तत्पुरुष समास
िवचारमग्न- िवचार में मग्न- अिधकरण तत्पुरुष समास
असंगत- न संगत- नञ् तत्पुरुष समास
असंभव- न संभव- नञ् तत्पुरुष समास
आँ चरिहत- आँ च से रिहत- अपादान तत्पुरुष समास
प्रतीक्षारत- प्रतीक्षा में रत- अिधकरण तत्पुरुष समास
शब्दहीन-शब्द से हीन- अपादान तत्पुरुष समास
हृष्ट-पुष्ट- हृष्ट और पुष्ट- द्वं द्व समास
नृत्य-संगीत- नृत्य और संगीत-द्वं द्व समास
भूखंड- भू (भूिम) का खंड (टु कड़ा)- संबंध तत्पुरुष समास
प्रेमकथा- प्रेम की कथा- संबंध तत्पुरुष समास

अब कहाँ दू सरे के दु ख से दु खी होने वाले


ठौर-िठकाना- ठौर और िठकाना- द्वं द्व समास
बेदख़ल- दखल के िबना- अव्ययीभाव समास
सुख-दुख- सुख और दुख- द्वं द्व समास
महाकिव- महान है जो किव- कमर्धारय समास
आत्मकथा- आत्म (स्वयं) की कथा- संबंध तत्पुरुष समास
िवनाशलीला- िवनाश की लीला- संबंध तत्पुरुष समास
सहनशिक्त- सहने की शिक्त- संबंध तत्पुरुष समास
पूजास्थल- पूजा के िलए स्थल- संप्रदान तत्पुरुष समास
बावजूद- वजूद के साथ- अव्ययीभाव समास
बार-बार-हर बार- अव्ययीभाव समास
रोज़-रोज़- हर रोज़- अव्ययीभाव समास
पिरं दो-चिरं दों- पिरं दों और चिरं दों- द्वं द्व समास
डॉ. िवनोद ‘प्रसून’

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